घर पर बनाएं रेस्टोरैंट स्टाइल गोभी मंचुरियन, ये रही रेसिपी

गोभी मंचूरियन एक देसी चाइनीज व्यंजन है जो ज्यादातर रेस्टोरैंट में मिलता है और सभी उम्र के लोगों का पसंदीदा है. अपने घर पर रेस्टॉरंट जैसा स्वादिष्ट और कुरकुरा गोभी मंचूरियन बनाने की विधि जानें.

हमें चाहिए

पकोड़े बनाने के लिए:

1 कप कद्दूकस की हुई गोभी

1 बारीक कटी हुई हरी मिर्च

1 छोटा चम्मच कटा हुआ अदरक

1/4 कप बेसन

नमक स्वादानुसार

2 कप (300 मिलीलीटर) पानी

तलने के लिए तेल

1 पैकेट चिंग्स सीक्रेट वेज मंचूरियन मसाला

1 कप (100 ग्राम) कटी हुई सब्जी – प्याज, गाजर, शिमला मिर्च

गार्निशिंग के लिए कटे हुए हरे प्याज का पत्ता

बनाने का तरीका

  1. कद्दूकस की हुई गोभी से पानी बाहर निचोड़ दें और पैन में डालें.
  2. 1 इंच बारीक कटा हुआ अदरक डालें.
  3. मिश्रण में मिर्च, बेसन और नमक डालें और अच्छी तरह मिलाएँ.
  4. छोटे आकार के गोले बनाएं और एक तरफ गहरे तलने (डीप फ्राई) के लिए रखें. अतिरिक्त तेल निकालें.
  5. वेज मंचूरियन मसाला का एक पैक एक कटोरे में डालें और उसमें पानी डालें. इससे अच्छी तरह से मिलाएं.
  6. पैन में 3 चम्मच तेल गरम करें. उसमें कटा हुआ प्याज, शिमला मिर्च और गाजर डालें और फ्राई करें. ज़्यादा न पकाएं.

7. इसमें पानी और वेज मंचूरियन मसाला मिश्रण मिलाएं. इस मिश्रण में गोभी के गोलों को डालें, 15 मिनट तक उबालें और ग्रेवी गाढ़ी होने पर गैस बंद कर दें. कटे हुए हुआ हरे प्याज पत्ते के साथ गार्निश करें और गर्म परोसें.

रेसिपी सहयोग: शेफ प्रणव जोशी

अबौर्शन के कारण मेरी मैरिड लाइफ में प्रौब्लम हो रही है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 35 वर्षीय विवाहिता हूं. मेरी 13 साल की बेटी है. 2 बार गर्भपात से भी गुजर चुकी हूं. मेरी वैजाइना बिलकुल ढीली हो गई है. इस वजह से मेरे पति और मुझे सैक्स के समय संतुष्टि नहीं मिलती. कोई ऐसा इलाज बताएं जिस से कि यह पहले जैसी टाइट हो जाए. इंटरनैट पर मैं ने कुछ जैल क्रीम के बारे में पढ़ा था. क्या जैल क्रीम असरदायक होती है? पति औपरेशन के लिए राजी नहीं हैं. बताएं, क्या करूं? 

जवाब-

आप का इशारा शायद ऐस्ट्रोजन युक्त क्रीम और जैली की ओर है. इस की उपयोगिता उन महिलाओं के लिए होती हैं, जो मेनोपौज से गुजर चुकी होती हैं, जिन के शरीर में प्राकृतिक रूप से ऐस्ट्रोजन बनना बंद हो चुका होता है उन की योनि की प्राकृतिक नमी भी खत्म हो चुकी होती है. यह स्थिति 45 से 50 साल की उम्र के बाद ही कुछ महिलाओं में देखने को मिलती है. उस शुष्क हुई योनि की अंदरूनी सतह में कोशिकीय भरणपोषण और तरलता लौटाने में ऐस्ट्रोजन युक्त क्रीम उपयोगी सिद्ध होती है. आप के मामले में जरूरत योनि की ढीली हुई पेशियों में फिर से पहले जैसी चुस्ती लौटाने की है. इस के लिए नियम से श्रोणि पेशियों का व्यायाम करें. यह व्यायाम बिलकुल सरल है. आप इसे लेटे हुए, बैठे हुए या खड़े हुए किसी भी मुद्रा में कर सकती हैं. बस, श्रोणि पेशियों को इस प्रकार सिकोड़ें और भींच कर रखें मानो मूत्रत्याग की क्रिया पर रोक लगा रही हैं. 10 की गिनती तक श्रोणि पेशियों को भींचे रखें और फिर उन्हें ढीला छोड़ दें. अगले 10 सैकंड तक श्रोणि पेशियों को आराम दें. इस के लिए 10 तक गिनती गिनें. यह व्यायाम पहले दिन 10-12 बार दोहराएं. फिर धीरेधीरे बढ़ाते हुए सुबहशाम 20-25 बार करने का नियम बना लें. 2-3 महीनों के भीतर ही आप योनि की पेशियों को फिर से कसा हुआ पाएंगी.

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प्रैग्नेंसी में रखें ये हैल्दी आदतें, मां और बच्चा दोनों रहेंगे सुरक्षित

गर्भावस्था के दौरान मां की सेहत का तुरंत और लंबे समय में बच्चे की सेहत पर गहरा प्रभाव पड़ता है. गर्भकाल की डायबिटीज और एनीमिया, यानी कि मां में एनीमिया और डायबिटीज बच्चे की सेहत पर बुरा असर डाल सकते हैं. मां में एनीमिया हो तो बच्चे का जन्म के समय 6.5 प्रतिशत मामलों में वजन कम होने और 11.5 प्रतिशत मामलों में समय से पहले प्रसव की समस्या हो सकती है. गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की वजह से बच्चे को 4.9 प्रतिशत मामलों में एनआईसीयू (नवजात गहन चिकित्सा इकाई) में भरती होने और 32.3 प्रतिशत मामलों में सांस प्रणाली की समस्याएं होने का खतरा रहता है.

गर्भावस्था में इन समस्याओं की वजह से पैदा हुए बच्चों में मोटापे, दिल के विकार और टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा उम्रभर रहता है.

गर्भावस्था के दौरान हाइपरटैंशन, जो कि 20वें सप्ताह में होता है, पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है. इस से गर्भनाल (एअंबीलिकल कौर्ड) की रक्तधमनियां सख्त हो जाती हैं जिस से भू्रूण तक औक्सीजन और पोषण उचित मात्रा में नहीं पहुंच पाता. इस वजह से गर्भाशय में बच्चे की वृद्धि में रोक, जन्म के समय बच्चे का कम वजन, ब्लडशुगर में कमी और लो मसल टोन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कुछ मामलों में आगे चल कर किशोरावस्था में बच्चे में हाइपरटैंशन की समस्या भी हो सकती है.

मां में मोटापा हो तो गर्भावस्था में डायबिटीज होने की संभावना होती है जिस वजह से समय से पहले प्रसव और बच्चे में डायबिटीज व मोटापा होने के खतरे रहते हैं. गर्भावस्था के दौरान मां के पोषण में मामूली कमी का भी प्रतिकूल असर बच्चे की सेहत पर पड़ सकता है, जैसे कि गर्भावस्था में विटामिन डी की कमी से आगे चल कर जच्चा और बच्चा दोनों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

डा. संजय कालरा, कंसल्टैंट एंडोक्राइनोलौजिस्ट, भारती हौस्पिटल, करनाल एवं वाइस पै्रसिडैंट, साउथ एशियन फैडरेशन औफ एंडोक्राइन सोसायटीज, कहते हैं कि अगर मां को गर्भावस्था में डायबिटीज या हाइपरटैंशन हो जाए तो बच्चे की सेहत का, खासतौर पर शुरुआती दिनों में, पूरा ध्यान रखना चाहिए. बच्चे के ग्रोथ चार्ट पर नियमित ध्यान देते रहना चाहिए और रोगों की रोकथाम वाली जीवनशैली अपनानी चाहिए. आहार में आयरन, फोलेट और विटामिन बी12 की कमी की वजह से गर्भवती महिलाओं में एनीमिया होने की संभावना काफी ज्यादा होती है.

गर्भावस्था में आयरन की अत्यधिक जरूरत होने की वजह से यह समस्या और भी बढ़ जाती है. एनीमिया की वजह से गर्भनाल से भ्रूण तक औक्सीजन जाने में कमी से शिशु के विकास में कमी हो सकती है और एंडोक्राइन ग्रंथि की कार्यप्रणाली पर असर पड़ सकता है.

भारतीय महिलाओं को आयरन और हेमाटोपौयटिक (रक्तोत्पादक) विटामिन देने चाहिए ताकि गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के दौरान हीमोग्लोबीन का उचित स्तर बना रहे. गर्भावस्था में डायबिटीज और हाइपरटैंशन के  आने वाले जीवन में पड़ने वाले प्रभावों से बचने के लिए मां और बच्चे दोनों को ही रोगों की रोकथाम वाली जीवनशैली अपनानी चाहिए.

अलग धरातल : घर छोड़ने के बाद वह मां को क्यों इतना याद कर रही थी

Writer- Vimla Rastogi

सुबह  व दोपहर के बाद शाम भी होने जा रही थी. समय के हर पल के साथ मेरी बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी. हर आहट पर मैं चौंक उठती. दुविधा, आशंकाएं मेरे सब्र पर हावी होती जा रही थीं. खिड़की पर जा कर देखती, कुसुम का कहीं पता न था. क्यों नहीं आई अब तक? शायद बस न मिली हो. देरी का कोई भी कारण हो सकता है. मैं अपने मन को सम झाने का असफल प्रयास करती रही. तभी मैं ने संतोष की सांस ली. सामने बैग लिए कुसुम खड़ी थी. इस से पहले कि मैं अपनी बेचैनी जाहिर करती, उस के पैरों की शिथिलता ने मु झे भी शिथिल बना दिया. वह रेंगते कदमों से सोफे पर धंस गई.

‘‘बात नहीं बनी?’’ मैं ने स्वयं को संयत कर पूछा.

‘‘हां, तरू. अशोक किसी भी कीमत पर सम झौता करने को तैयार नहीं है.’’

‘‘तू ने मेरी तरफ से…’’

‘‘हां, मैं ने हर तरीके से सम झा दिया. वह यही कहता रहा कि अब हम दोनों के धरातल अलगअलग हैं. एक ही मकान अलगअलग नींवों पर खड़ा नहीं हो सकता.’’

‘‘सच है उस का कहना. अपनी बरबादी का कारण मैं स्वयं हूं. मु झे अपने किए का फल मिलना ही चाहिए ताकि दूसरी लड़कियां मु झ से कुछ सीख सकें. मेरे जैसी गलतियां दोहराई न जाएं.’’

‘‘सच तरू तू ने अकारण ही अपना बसाबसाया घर उजाड़ डाला.’’

‘‘हां कुसुम मेरे  झूठे अहं ने मु झे कहीं का न छोड़ा. तू तो मेरे बारे में बहुत कुछ जानती है. पर जिंदगी के कुछ खास अध्याय मैं तु झे विस्तार से बताना चाहती हूं. पश्चात्ताप की जलन ने मु झे मेरी भूलों का एहसास करा दिया है. उस दिन भी मंगलवार ही था. मैं दफ्तर से आई थी तो उठी तो 7 बज चुके थे. खुद को ठीक किया. कमरा सुबह से अस्तव्यस्त पड़ा था. तभी अशोक आ गए.

‘‘बुक करा लिया टिकट?’’ प्रश्न बंदूक की गोली सा उन पर दाग दिया गया.

‘‘बताता हूं. पहले एक कप चाय हो जाए.’’

‘‘चाय पीने में देर हो जाएगी, वहीं कैफे में पी लेंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘हम तो तुम्हारे हाथ की बनी चाय ही पीएंगे,’’ अशोक बोले.

‘‘देखो, बातों में मत फुसलाओ. साफसाफ बताओ कि टिकट बुक किया या नहीं?’’

‘‘दरअसल…’’

‘‘हांहां, सोच लो कोई बहाना,’’ मैं ने कहा.

‘‘बहाना नहीं, सच कह रहा हूं. आज

दफ्तर में बहुत काम था. बीच में 1-2 बार ट्राई किया पर साइट विजी थी इसलिए हो न सका.’’

‘‘यह काठ का रैक बुक करने की फुरसत तुम्हें मिल गई, म्यूजिक कंसर्ट के टिकट के

लिए नहीं.’’

‘‘अरे बाबा, यह तो सुबह और्डर कर दिया था. सख्त जरूरत थी इस की. डब्बे इस रैक में लग जाने से कमरा खाली दिखाई देगा.’’

‘‘जब देखो कमरे की सफाई, सामान को ठीक ढंग से लगाने पर जोर, इस तरह के कभीकभार होने वाले लाइव व म्यूजिक को

जाने को मन ही कब करता है तुम्हारा? तुम तो खुश होगे कि 3-4 हजार रुपए भी बच गए.’’

‘‘तरू, तुम हर बात कितनी आसानी से कह जाती हो.’’

‘‘क्या गलत कहा है? तुम हर समय पैसे का खयाल करते हो.’’

‘‘कहीं भी कुछ भी शुरू करने से पहले अपनी जेब तो देखनी ही पड़ती है.’’

‘‘जेब को इतना ही देखना था तो फिर शादी क्यों की?’’ मेरा क्रोध अग्नि बनता जा रहा था और उन का धैर्य पानी.

‘‘‘तरू, नाहक परेशान न हो. यह स्टार तो आतेजाते रहते हैं. अगली बार चल चलेंगे.’’

इस सिंगर को लाइव देखने का कितना मन था. स्टेडियम का मैदान पूरा भरा होगा. जो थ्रिल होगी उस की कल्पना नहीं कर सकते. फिर कब होगा किसे पता? हो सकता है तुम्हारा कोई दोस्त, पुरानी गर्लफ्रैंड, रिश्तेदार ही आ धमके.

‘‘तरू, बात कहने से पहले सोच तो लिया करो.’’

‘‘तुम ने शादी से पहले कुछ सोचा था? लोगबाग अपनी बीवियों के लिए क्या कुछ नहीं करते? एक तुम हो कि एक कमरे के मकान में ला कर डाल दिया कि लो बना लो अपने रहनसहन का स्तर. एक दिन भी खुशी प्राप्त नहीं हुई. मेरी नौकरी न होती तो इस का किराया भी न दे पाते.’’

‘‘खुशी मन की होती है. तुम कभी किसी बात से संतुष्ट ही नहीं होतीं. मेरी तो बराबर तुम्हें खुश रखने की कोशिश रहती है.’’

‘‘बातें खूब कर लेते हो.’’

‘‘क्यों? तुम्हारे कहने पर ही तो मैं ने

यहां शहर में बदली कराई है वरना मौमडैड

के साथ रहते. खर्चा भी कम होता, तुम्हें आराम भी मिलता.’’

‘‘मेरे बस का नहीं था उस छोटी सी

जगह घर में घुसते ही सिर ढकेढके काम करना, दब कर रहना. मौम की किट्टी सहेलियों की

सेवा करना.’’

‘‘पर अफसोस तो यह है कि तुम यहां आ कर भी खुश नहीं हो.’’

‘‘यहां कितना घुमाफिरा रहे हो तुम मु झे?’’

‘‘केवल घूमना ही सुख नहीं है. शादी से पहले क्या घूमती ही रहती थी? हम लोग डेटिंग करते समय 5 सालों में कब कहां जा पाए थे?’’

‘‘तब सोचते थे शादी के बाद घूमेंगे, हम ने शादी से पहले भी मनचाहा खाया, पहना, क्या पता था कि…’’ मेरी हिचकियां तेज हो गई थीं.

वे फिर भी मेरे आंसुओं की लडि़यां संजोते हुए बोले, ‘‘बचपना छोड़ दो, तरू. अब तुम अकेली नहीं हो, कोई और भी है जो तुम्हारे प्यार पर बिछबिछ जाता है. तुम्हारा अपना घर है, अपनी जिम्मेदारियां हैं और जहां जिम्मेदारियां होती हैं, वहां कुछ परेशानियां भी होती हैं. कुछ पाने के लिए खोना भी पड़ता है.’’

‘‘साफसाफ सुन लो अशोक, मैं परेशानियां ढोने वाला कोई वाहन नहीं हूं. मेरी सब सहेलियां कितने ठाट से रहती हैं, एक मैं ही…’’

‘‘तो किसी करोड़पति वाले से शादी की होती. सुबह देर से उठती हो, सारा दिन दफ्तर पर रहती हो, संडे को इधरउधर चल देती हो. घर कभी व्यवस्थित नहीं रहता. मैं कुछ नहीं कहता, जो मु झ से बन पड़ता है करता हूं. फिर भी…’’

‘‘अशोक, मैं तुम्हारी नौकरानी बनने नहीं आई हूं.’’

‘‘तरू, बहुत हो चुका. अब चुप हो जाओ वरना…’’

‘‘वरना क्या कर लोगे मेरा? मारोगे? घर से निकालोगे? ब्रेकअप करोगे जो कसर बाकी हो, वह भी पूरी कर लो,’’ दोनों तरफ से तड़ातड़ वाक्यबाण चलते रहे.

‘‘तरू, मेहरबानी कर के चुप हो जाओ. क्यों घर बरबाद करने पर तुली हो?’’

‘‘यह घर आबाद ही कब हुआ था?’’

‘‘बात में बात निकाल कर बढ़ाती जा रही हो. चुप नहीं रह सकतीं क्या?’’

‘‘मैं ने कभी अपने मांबाप की नहीं सुनी… तभी तो तुम जैसे अपनी से नीची जाति वाले से शादी कर ली.’’

‘‘तो वहीं जा कर रहो.’’

‘‘हांहां, वहीं चली जाऊंगी. खुली हवा में सांस तो ले सकूंगी. एक कमरे का कोई घर होता है? न बैठक, न खाने का कमरा. न फर्नीचर, न क्रौकरी. क्या सजाऊं, क्या संवारूं?’’

‘‘एक कमरे को सजानेसंवारने की ज्यादा आवश्यकता होती है, एक बार याद रखो, आलीशान इमारतें और फर्नीचर से होटल बनते हैं, घर नहीं. घर बनता है प्यार से, अपनेपन से.’’

‘‘रहने दो अपने उपदेश. अब मुझे यहां नहीं रहना.’’

‘‘तरू, जल्दबाजी में उठे कदम हमेशा पतन और पश्चात्ताप की ओर जाते हैं.’’

‘‘तुम्हारी बला से मैं मरूं या जीऊं. तुम खर्च से बचोगे.’’

‘‘तरू, क्या हम दोनों अलग रहने के लिए एक हुए थे?’’

‘‘अब मु झे कुछ नहीं सुनना, मैं जा रही हूं,’’ गुस्सा मेरे विवेक पर हावी हो चुका था. मैं ने बैग में कपड़े डालने शुरू कर दिए.

‘‘पागल हुई हो? मैं रात में तुम्हें अकेले नहीं जाने दूंगा,’’ कह कर अशोक ने मेरे हाथ से बैग छीन लिया.

‘‘जीभर कर परेशान कर लो पर मैं ने भी सोच लिया है मु झे यहां नहीं रहना… नहीं रहना…’’ और मैं औंधे मुंह पलंग पर गिर कर सिसकती रही.

बिन बुलाए मेहमान सी साधिकार रात आ चुकी थी. हम दोनों की आंखें नींद से कोरी थीं. कुलबुलाते पेट, बेचैन दिल और करवटें बदलते हम. रात पंख लगा कर उड़ती रही, पर मेरा क्रोध कम न हुआ. अशोक का आत्मसम्मान भी जाग चुका था. वे भी कुछ नहीं बोले. भोर होते ही मैं ने 2 कप चाय बनाई, जो प्यालों की खनखनाहटट के बीच पी ली गई. मैं ने बैग उठाया, 2 मिनट रुकी. मैं जानती थी अशोक कुछ न कुछ जरूर कहेंगे. ऐसा ही हुआ. वे बोले, ‘‘तरू, गुस्सा कम होते ही मैसेज कर देना, मैं आ जाऊंगा. चाहो तो स्वयं चली आना.’’

मैं बिना जवाब दिए ही आगे बढ़ गई. रास्तेभर मेरे दिमाग में अनेकानेक विचार आतेजाते रहे.

मु झे अचानक और अकारण आया देख कर घर में सब लोग आश्चर्यचकित रह गए. सब की हमदर्दी से मु झे रुलाई आ गई.

‘‘और तू ने खूब बढ़ाचढ़ा कर अपने घरवालों से कह दिया कि अशोक ने तु झे मारा, घर से निकाला और घर के लिए रुपए लाने को कहा है?

‘‘हां कुसुम, मैं पूरी तरह अपना विवेक खो चुकी थी. मु झ पर अशोक को नीचा दिखाने का जनून सवार था. मेरी बातें सुन कर मेरा भाई राकेश भड़क उठा. बोला, ‘‘उस नीच जाति के अशोक की इतनी हिम्मत कि मेरी बहन पर हाथ उठाए? लालची कहीं का… रुपए मांगता है. ऐसा सबक  सिखाऊंगा कि जिंदगीभर याद रखेगा. देख लेना यहीं आ कर तु झ से माफी मांगेगा. मैं कल ही अपने दोस्त विनोद के साथ उस के पास जाऊंगा,’’ कह कर राकेश चला गया.

और अगले दिन अशोक के घर पहुंच कर विनोद और राकेश ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई.

 

वे दोनों जाते ही अशोक पर बस पड़े. विनोद ने कहा,

‘‘बनो मत, अशोक. हम आप जैसे लालची युवकों की नसनस से वाकिफ हैं. शर्म नहीं आती आप को. आप जैसों के अच्छी तरह सम झते हैं हम और इसीलिए 2 साल शादी नहीं होने दी. खुद तो कभी सलीके से नहीं रहे, हमारी बहन को भी उसी तरह रखना चाहते हो.’’

‘‘विनोद, आप को गलतफहमी हुई है. तरूणा को मारना तो दूर, मैं ने उस से कटु शब्द भी नहीं कहे. आप का धन, आप की जाति आप को मुबारक हो.’’

‘‘भोले मत बनो अशोक, हम से टकराना महंगा पड़ेगा. हम दब्बू लड़की वाले नहीं हैं.’’

‘‘मेरे घर में मेरा अपमान करने का आप को कोई हक नहीं है.’’

‘‘खैरियत इसी में है अशोक आप 2 दिन के अंदर ही हमारे घर आ कर तरूणा से माफी मांगें अन्यथा अंजाम अच्छा न होगा, पछताओगे.’’

‘‘कुसुम, ये लोग आंधी की तरह गए और तूफान की तरह आ गए. इन लोगों ने लौट कर मु झे केवल इतना ही बताया कि 1-2 दिन में अशोक यहां आएंगे,’’ मैं ने कुसुम से कहा.

‘‘तरू, अशाक ने तुम से शदी की थी, अपना स्वाभिमान नहीं बेचा था. तुम्हारे घर आ कर तुम से माफी मांग कर वह अपने अपमान पर मुहर नहीं लगाना चाहता था.’’

‘‘हां, इसीलिए वह नहीं आया और 4 दिन बाद ही तुम्हारे भाई ने किराए के आदमियों से उसे पिटवा दिया. कितना नीच काम किया.’’

‘‘मैं ने ऐसा नहीं कहा था. मु झे यह बात काफी दिन बाद पता चली.’’

‘‘अपने भाई को तुम पहले ही काफी भड़का चुकी थीं. बस जवानी के जोश में राकेश ने भलाबुरा कुछ भी न सोचा. उस ने बारबार पढ़ रख था कि वे लोग ताड़न के अधिकारी हैं. उस का जाति अहम जाग चुका था. तुम्हें मालूम है न आज का माहौल कैसा है?’’

‘‘कुसुम, अपने घर को मैं ने खुद ही आग लगाई है. फिर किस से दोष दूं?’’

‘‘जिंदगी की हकीकतों से घबरा कर तुम जैसी पलायनवादी लड़कियां अपने साथ अपनी जिंदगी को भी ले डूबती हैं. सभी लड़कियों को दहेज के कारण नहीं मारा जाता. उन में से आधी धैर्य व साहस के अभाव में या बदले की भावना से आत्महत्या कर बैठती हैं या तलाक ले कर जीवनभर नए की तलाश करती रहती हैं.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो. मैं भी अशोक को नीचा दिखा कर ऊंची बनना चाहती थी. शायद मेरा पुश्तैनी  झूठा अहं भी इस से संतुष्ट होता.’’

‘‘तरू, तू ने अपने साथ अशोक को भी कहीं का न छोड़ा. बेचारे ने मारे शर्म के उस शहर में नौकरी छोड़ दी. अपने मांबाप के पास भी उस का मन नहीं लगा क्योंकि घर वालों की सहानुभूति और बाहर वालों के व्यंग्य दोनों ही उस से बरदाश्त नहीं हुए. वह फिर नौकरी की तलाश में भटकता रहा. जैसेतैसे उसे एक नौकरी मिल गई. उस की जिंदगी में न कोई चाह है, न कोई उमंग, बढ़ी दाढ़ी, आंखों के नीचे काले गड्ढे, दुबला शरीर, असमय ही बूढ़ा हो गया है वह.’’

‘‘मेरी जिंदगी भी कम वीरान नहीं. अब न सुबह होने की खुशी होती है, न रात होने का अवसाद. न सुबह को किसी की विदाई, न शाम को किसी का इंतजार. नौकरी पर जाती हूं पर कोई उत्साह नहीं. मशीन की तरह काम करती हूं. सबकुछ गड्डमड्ड हो गया. मैं ने जीती हुई बाजी हार दी है. क्या मु झे हारी हुई बाजी ले कर ही बैठे रहना होगा? कुसुम मु झे कोई तो रास्ता बता?’’ मैं ने कहा.

मैं ने अशोक को बहुत सम झाया. यह भी कहा कि तरूणा अपने किए पर बेहद शर्मिंदा है उसे माफ कर दो पर वह यही कहता रहा कि  झूठे लांछनों से प्रताडि़त मैं तरूणा को कभी माफ नहीं कर सकता. हम दोनों कभी एक नहीं हो सकते. तरूणा ने मु झ से किस जन्म का बदला लिया है, मैं आज तक सम झ नहीं पाया. तुम्हारे भाई ने न जाने उस की जाति को ले कर क्याक्या कह दिया कि अब वह बदलने को तैयार की.’’

‘‘हां, कुसुम, वे मु झे बहुत चाहते थे. मैं ही सपनों के रंगमहल में खोई रहती. सचाई के धरातल पर पैर ही न रखना चाहती थी. मैं मांबाप की बहुत मुंहचढ़ी थी. मैं ने कभी किसी की एक भी बात बरदातश्त नहीं की थी. जब मैं गुस्से में घर छोड़ कर चली आई, उस दिन काश, मेरी मां मु झे बजाय आंचल में छिपाने के फटकार कर अशोक के पास भेज देतीं तो कुछ और होता. मौमडैड ने तो यही कहा कि इन छोटी जातियों वालों में तो यही होता है. अब तलाक दिला कर तेरी शादी कुलीन घर में कराएंगे.’’

‘‘पीहर वालों की शह भी लड़की की जिंदगी में सुलगती लकडि़यों सा काम करती है, तरू.’’

‘‘अब सब अपनीअपनी दुनिया में मगन हैं. राकेश से कुछ कहो तो वह भी मेरी गलती बताता है. मां भी मेरे  झूठे बोलने को दोष देती हैं. मैं अकेली वीरान जिंदगी लिए समाज की व्यंग्योेक्तियां, दोषारोपण कैसे सह पाऊंगी? वकील ने कह दिया कि अगर सहमति से तलाक न हुआ तो केस 4-5 साल चलेगा और 5 लाख रुपए तो लग जाएंगे. अब इतने पैसे न भाई खर्च करने को तैयार न मौमडैड. मेरी सैलरी भी उन्हें मिल रही है तो वे क्यों चिंता करें.

‘‘हर इंसान अपने किए को भोगता है, तरू. रो कर सहो या चुप रह कर, तुम्हें सहना ही होगा. अशोक तुम से इतनी दूर जा चुका है कि तुम्हारा रुदन, तड़प कुछ भी उस तक नहीं पहुंच सकता.’’

‘‘एक भूल की इतनी बड़ी सजा?’’

‘‘दियासलाई की एक तीली ही सारा घर फूंकने की सामर्थ्य रखती है.’’

‘‘कुसुम, तुम भी मु झे ही…’’

‘‘मैं क्या करूं, तरू? अलगअलग धरातलों पर खड़े तुम दोनों किसकिस को दोष दोगे? अब मैं चलूंगी, तरू, देर हो रही है.’’

‘‘जाओ कुसुम, कहीं लौटने में बहुत देर न हो जाए. घर पर कोई तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा,’’ मैं ने हार कर कहा.

कुसुम चली गई. मैं निर्विकार भाव से उसे जाती हुई देखती रही. रह गया केवल सन्नाटा, जिस के साए में ही मुझे दिन गुजारने हैं.

अनिरुद्ध आचार्य ने ठुकरा दी करोड़ों की फीस, छवि खराब होने की वजह से शो में आने से किया इनकार

अनिरुद्धचार्या बाबा जो अपने प्रवचन और कथा वाचक, कहानियों को लेकर अतिचर्चित है . वह हाल ही में कलर्स चैनल के लाफ्टर शैफ शो में पधारे थे . वहां पर बाबा शो के प्रतियोगियों के साथ मजाक मस्ती करते नजर आए. चूंकि लाफ्टर शेफ एक खाना बनाने का कॉमेडी शो है जिसके चलते बाबा भी सभी के साथ मजाक करते नजर आए. लेकिन खबरों के अनुसार जब उन्हें बिग बौस शो में जाने का औफर मिला तो उन्होंने बिग बौस में जाने से इनकार कर दिया है.

प्राप्त सूत्रों के अनुसार अनिरुद्ध बाबा को बिग बौस 18 शो में बतौर प्रतियोगी आने का आफर मिला था . लेकिन इस शो में जाने से उन्होंने इनकार कर दिया. जिसकी वजह उनकी छवि खराब होने का डर ओर शो के दौरान होने वाली बेज्जती का डर बताया जा रहा है .

बिग बौस शो जिसमें आने वाले प्रतियोगी को नाम और पैसा दोनों तो बहुत मिलता है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा बदनामी और बेइज्जती सहन करनी पड़ती है. जिसकी वजह से इस शो में भाग लेने वाले कलाकार और अन्य प्रतियोगियों में से अगर किसी को अपार लोकप्रियता मिली है तो किसी प्रतियोगी को बेइंतहा बेज्जती के चलते करियर को लेकर भारी नुकसान भी उठाना पड़ा है और उनकी बदनामी भी बहुत हुई है.
खबरों के अनुसार क्योंकि अनिरुद्ध बाबा अपनी छवि खराब नहीं करना चाहते हैं और ना ही उन्हें बेज्जती सहना है . इसलिए उन्होंने इस शो में जाने से इनकार कर दिया है. हालांकि कलर्स चैनल की तरफ से औफीशियली ऐसा कोई अनाउंसमेंट नहीं हुआ था. लेकिन सूत्रों के अनुसार चैनल ने अनिरुद्ध बाबा को शो में आने का आमंत्रण दिया है.

इससे पहले भी कलर्स के बिग बौस 10 शो में स्वामी ओम बाबा पधारे थे. और उनको इस शो के दौरान भारी बेइज्जती का सामना करना पड़ा था. और उनकी छवि भी बोहत खराब हुई थी. इन सभी कारणों की वजह से खबरों के अनुसार आने वाले बिग बौस शो का अनिरुद्ध बाबा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया.

सुर्खियों में हैं देवोलीना भट्टाचार्य और सोनाली सहगल, इस यूनिक स्टाइल से किया गुड न्यूज शेयर

हर किसी की लाइफ में स्पेशल मूवमेंट की गुड न्यूज होती ही है फिर चाहे वो आपके औफिस में प्रोमोशन की हो हाऊस वार्मिंग की हो, इंगेजमेंट की हो, मैरिज की हो, प्रेगनेंसी की हो या बेबी शावर की हर कोई अपने स्पेशल मूवमैंट को अपने फैमिली, फ्रेंड्स रिलेटिव्स और कलीग्स के साथ शेयर करके सैलिब्रेट करता है लेकिन सोशल मीडिया के दौर में इस गुड न्यूज को शेयर करने का स्टाइल ही यूनिक हो गया है खास कर प्रेग्नेंसी की न्यूज का, इन गुड न्यूज को शेयर करने का यूनिक आइडिया दिया बौलीवुड सेलेब्रिटीज ने, ये सेलिब्रिटीज अपने स्पेशल मूवमैंट की न्यूज सोशल मीडिया पर इस तरह शानदार तरीके से देते हैं जिससे इम्प्रैस होकर आम लोग भी अपनी गुड न्यूज को सोशल मीडिया पर शेयर करने से पीछे नहीं रहते.

हाल ही में टीवी एक्ट्रेस देवोलीना भट्टाचार्य ने सोशल मीडिया पर अनाउंस किया कि वह प्रेग्नेंट हैं. वैसे उनकी प्रग्नेंसी की अटकलें काफी पहले से लगाई जा रही थी लेकिन अब खुद देवलीना ने अपने अंदाज में हसबैंड शाहनवाज के साथ फोटोज शेयर कर ये गुड न्यूज फैंस के साथ शेयर की. जिसमें वह व्हाइट कलर का बेबी आउटफिट लिए दिखीं, जिस पर लिखा था… you can stop asking now… कैप्शन के नीचे बेबी के पैर बने हुए थे. उनके फैंस इस न्यूज को सुनकर खुश है और उन्हें ढेर सारी बधाई दे रहे है.

प्रेग्नेंसी फैशन से बटोरी सुर्खियां 

देवलीना शादी के डेढ़ साल बाद अपने पहले बेबी की मौम बनने जा रही हैं. फोटो में देवलीना के फेस में प्रेग्नेंसी वाली चमक साफ दिख रही है एक्ट्रेस ने स्लीवलेस ब्लाउज के साथ गोल्डन बौर्डर वाली ग्रीन कलर की साड़ी पहनी है जिस पर छोटेछोटे गोल्डन बूटे बने हुए है. साड़ी के साथ रेड बैंगल्स और गोल्ड कंगन पहने गले में गोल्ड का चोकर हार और मैचिंग ईयररिंग्स ,फिंगर रिंग पहने हुए देवलीना की सादगी वाली खूबसूरती देखते ही बनती है

न्यूड मेकअप 

गुड न्यूज वाली फोटो में रूप की चमक को बढ़ाने के लिए देवलीना ने न्यूड मेकअप किया. लाइट लिपिस्टिक, ब्लश्ड चीक्स, पतला आईलाइनर और न्यूड आईशैडो कर वो कमाल की का दिख रही है, हेयर को साइड पार्टीशन में स्ट्रेटकर ओपन रखा हुआ है और उस पर रोली की बड़ी सी बिंदी उनके रूप में चार चांद लगा रही है.

एक्ट्रेस सोनाली सहगल

वही अब प्यार का पंचनामा फेम एक्ट्रेस सोनाली सहगल ने भी अनाउंसमेंट कर दी है कि वह भी बहुत जल्द मां बनने जा रही हैं. एक्ट्रेस ने बहुत ही यूनिक स्टाइल में इस गुड न्यूज को अपने फैंस को बताया है.

यूनिक स्टाइल

सोनाली सहगल ने इंस्टाग्राम पर प्रेग्नेंसी की अनाउंसमेंट करते हुए गुड न्यूज सुनाई है. एक्ट्रेस ने बेबी बंप वाली तीन फोटोज शेयर की हैं, जिसमे वह कुछ खाती हुई दिख रही हैं और साथ में उनके हस्बैंड
आशीष सजनानी मुंह में बीयर की बॉटल लगाए और हाथों में बेबी के दूध की बौटल पकड़े दिख रहे हैं. सामने बेड पर खूब सारे चिप्स के पैकेट, कुकीज और बुक्स दिख रही हैं.

खास कैप्शन के साथ प्रग्नेंसी अनाउंसमेंट

एक्ट्रेस सोनाली ने प्रेग्नेंसी की अनाउंसमेंट करते हुए कैप्शन लिखा, ‘बीयर की बोतलों से लेकर बेबी बोतलों तक, आशीष की जिंदगी बदलने वाली है. जहां तक मेरा सवाल है, कुछ चीजें वैसी ही रहती हैं. पहले 1 के लिए खा रही थी, अब 2 के लिए खा रही हूं. इस बीच शमशेर (सोनाली का डौगी) एक अच्छा बड़ा भाई बनने के लिए नोट्स बना रहा है. धन्य हूं और बहुत खुश हूं. प्रार्थना करिए’.

मदरहुड एंजौय

सोनाली सहगल ने आशीष से करीब 5 साल डेट करने के बाद 7 जून 2023 को साथ शादी की थी. शादी के एक साल बाद हुईं प्रेग्नेंट अब सोनाली मदरहुड एंजौय करती नजर आएंगी. उनकी डिलीवरी दिसंबर में होगी.

मेरे पति हमेशा इंटिमेट होने से बचते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल 

मेरी शादी को 1 साल हो चुके हैं, मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते हैं, लेकिन शादी से पहले उन का किसी के साथ अफेयर रहा है. उन्होंने सुहागरात के दिन ही यह बात बताई थी. उन के घर वाले इस शादी के लिए तैयार नहीं थे इसलिए उन्होंने अरैंज्ड मैरिज की. उन्होंने कहा कि अब मैं ही उन के लिए सब कुछ हूं और वे अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड को भूल चुके हैं. मैं कहती हूं तो ही मेरे साथ सैक्स करते हैं, वे खुद से कभी नहीं कहते. मुझे लगता है कि वे अपने अतीत की वजह से मुझ से नहीं जुड़ पाए हैं और आज भी अपनी ऐक्स से मिलने जाते हैं। हमेशा डर लगा रहता है कि अगर वे मुझे छोड़ कर ऐक्स गर्लफ्रैंड के पास चले गए तो मेरा क्या होगा?

जवाब 

देखिए, शादी के तुरंत बाद ही आप के पति ने अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड के बारे में बता दिया. आप को उन की ईमानदारी की कद्र करनी चाहिए. हम आप को यही राय देंगे कि बेवजह आप उन पर शक न करें.

रही बात सैक्स की तो आप इंटिमेट होने के दौरान सिर्फ रोमांटिक बातें करें, इधरउधर की बातें न करें. आप यह भी मानती हैं कि आप के पति आप को प्यार भी करते हैं. तो उन के अतीत के बारे में न सोचें.

आप भी उन्हें इतना प्यार दें कि उन को अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड की याद न आए. आप की नईनई शादी हुई है, घूमने के लिए रोमांटिक डैस्टिनेशन का चुनाव करें. आप हौट लुक में दिखने के लिए शौर्ट ड्रैसेज का औप्शन चुन सकती हैं। पति को रिझाने के लिए आप का यह लुक मददगार साबित हो सकता है.

शादी से पहले काउंसलिंग है जरूरी

पतिपत्नी एकदूसरे को समझने की बजाय छोटीछोटी बातों पर झगड़ने लगते हैं. बात इतनी बढ़ जाती है कि रिश्ते टूटने के कगार पर पहुंच जाते हैं. इसलिए शादी से पहले उन का काउंसलिंग करवाना जरूरी है. इस से कप्लस को अपने रिश्ते को संभालने में मदद मिलेगी.

मैरिज काउंसलर प्रोफैशनल ऐक्सपर्ट भी होते हैं, जो कपल्स के समाधानों को सुलझाते हैं और उन्हें आगे बढ़ने की सलाह देते हैं. साइकोलौजिस्ट के अनुसार,‘‘हम भारतीय शादी पर लाखोंकरोड़ों रुपए तो खर्च कर देते हैं, लेकिन शादी को निभाने के लिए जरूरी काउंसलिंग पर पैसा नहीं खर्च करते. तभी आजकल तलाक के कई ऐसे मामले भी देखने में आते हैं जहां छोटीछोटी समस्या भी तलाक की वजह बन जाती है.

लड़कियों को डराने और सैक्सी दिखाने वाली फिल्में

हौरर फिल्मों के दीवानों के लिए ओटीटी पर एक से बढ़ कर एक हौरर फिल्मों का स्टौक है, लेकिन आप अपनी लिस्ट में ये सैक्सी हौरर मूवीज भी शामिल कर सकते हैं, जो न सिर्फ डरावनी हैं, गजब का रोमांस भी दिखाया गया है.

कुछ फिल्में सालों पहले आई थीं जिन्हें आज भी लोगों को देखना चाहिए. इन फिल्मों में ग्लैमरस, प्रेमकहानी, सस्पेंस सबकुछ देखने को मिलेगा. ये फिल्में आप के इस वीकेंड को शानदार बना सकती हैं :

वीराना : यह फिल्म साल 1988 में आई थी. इस फिल्म में हौरर के साथ सैक्स का भी तड़का था. माना जाता है कि इस फिल्म जैसी हौरर मूवी आज तक हिंदी सिनेमा में नहीं बन पाई. रामसे ब्रदर्स की फिल्म ‘वीराना’ एक समय काफी मशहूर हुई थी.

इस हौरर फिल्म की कहानी के चर्चे खूब हुए थे। इस में हीरोइन के किरदार में जैस्मीन नजर आई थीं. उन की खूबसूरती की भी काफी तारीफ हुई थी. इस फिल्म में ऐक्ट्रैस के बोल्ड अवतार ने सुर्खियां बटोरी थीं. फिल्म में संगीत बप्पी लहरी ने दिया था.

रेड रोज : राजेश खन्ना की फिल्म *रेड रोज’ सैक्सी सीन और थ्रिलर से भरपूर थी. साल 1980 में आई फिल्म को देख कर आप आज भी हैरान हो जाएंगे. राजेश खन्ना की छवि रोमांटिक हीरो के रूप में थी, लेकिन किसी फिल्म में सीरियल किलर बन कर एक के बाद एक लड़कियों का खून भी करता है, उन का यह किरदार देख कर ऐक्टर के फैंस हैरान थे.

इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने बैन भी लगाया था. बता दें कि यह तमिल फिल्म ‘सिगाप्पु रोजाक्कल’ का हिंदी रीमेक थी.

इस फिल्म की कहानी मानसिक रूप से बीमार शख्स की है, जो सैक्सी लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाता है और फिर उन का कत्ल कर देता है. इस फिल्म में ऐक्ट्रैस पूनम ढिल्लो भी मुख्य किरदार में नजर आई थीं.

उस समय बौलीवुड में इस फिल्म का विषय काफी बोल्ड था. इसलिए सेंसर बोर्ड ने इसे बैन कर दिया था. इस फिल्म में बौलीवुड के लिए यह बेहद बोल्ड विषय था. इस फिल्म में जिन फीमेल कलाकारों ने काम किया था वे बहुत ही हौट अवतार में नजर आई थीं.

राज 3 : विक्रम भट्ट की डरावनी फिल्म ‘राज 3’ सैक्सी सीन से भरपूर फिल्म है. हालांकि यह फिल्म कम बजट की थी. इस में इमरान हाशमी और बिपाशा बसु मुख्य किरदार में नजर आए थे. इस फिल्म में बिपाशा भूतों से सैक्स करते हुए दिखी थीं. इस फिल्म में ईशा गुप्ता बोल्ड अवतार में नजर आई थीं. यह फिल्म साल 2012 में रिलीज हुई थी.

रागिनी एमएमएस 2 : यह साल 2014 में आई एरोटिक हौरर फिल्म थी. इस में सनी लियोनी मुख्य किरदार में नजर आई थीं. इस फिल्म में ऐक्ट्रैस का ऐसा रूप देखने को मिला था कि जिसशके बारे में शायद ही किसी ने सोचा हो. इस फिल्म में हौट सीन के साथ डरावनी चीजें भी दिखाई गई हैं जिन से रोंगटे खड़े हो जाएंगे.

अलोन : फिल्म ‘अलोन’ हौरर सैक्सी मूवी है। इस में करण सिंह ग्रोवर और बिपाशा बसु और कई ऐक्टर्स नजर आए हैं. इस में रोमांस का जबरदस्त तड़का है. इस फिल्म का विषय कुछ खास नहीं है. लेकिन डरावनी सीन आप की धड़कनें बढ़ा सकती हैं. यह हौरर फिल्म अमेजान पर भी मौजूद है.

बैडरैस्ट: आखिर जया को कौनसी बीमारी हुई थी?

और्थोपैडिक डाक्टर अमित ने जब मुझे 10 दिन की बैडरैस्ट बताई तो तेज दर्द में भी मैं ने अपने होंठों पर आने के लिए तैयार हंसी रोक ली. मनमयूर नाच उठा. मन में दर्द में आह और बैडरैस्ट सोच कर वाह एकएक निकल रही थीं. मेरे पति विजय ने बैडरैस्ट सुन कर मुझे देखा तो मैं ने फौरन अपना चेहरा गंभीर कर लिया.

आप ने यह तो सुना ही होगा न कि हर औरत के अंदर एक अभिनेत्री होती है. विजय के मुंह से बैडरैस्ट सुन कर आह ही निकली थी. डाक्टर के सारे निर्देश समझ कर विजय ने जाने के लिए उठते हुए मुझे हाथ का सहारा दे कर उठाया. मेरे मुंह से एक कराह निकल ही गई.

‘‘बहुत ध्यान से जया… 10 दिन की बैडरैस्ट है,’’ मुझसे कह डाक्टर अमित ने मेरे दवा के परचे पर भी बड़ेबड़े अक्षरों में सीबीआर यानी कंप्लीट बैडरैस्ट लिख दिया.

डाक्टर अमित को हम काफी सालों से जानते हैं पर सच कहती हूं 60 साल के डाक्टर अमित आज तक मुझे इतने अच्छे नहीं लगे थे जितने आज लगे. अचानक मुझे अपनी कल्पना में डाक्टर अमित एक सुपरमैन की तरह लगे जो घर के कामों में पिसती औरत को कुछ दिन आराम करवाने आए हों. उन का मन ही मन शुक्रिया करते हुए मैं मन में खुद से कहने लगी कि जया, कर ले अब अपना सपना पूरा… कितने अरमान थे कभी बैडरैस्ट मिले… कम से कम कुछ दिन तो चैन से लेट कर टीवी देखेगी, किताबें पढ़ेगी. बस खाएगीपीएगी, नहाएगी फिर अच्छे से कपड़े पहन कर लेट जाएगी. फ्रैंड्स देखने आएंगी, गप्पें मारेंगे. बढि़या टाइम पास होगा. चलो, जया ऐंजौय योर बैडरैस्ट. जी ले अपनी जिंदगी. यह बैडरैस्ट डाक्टर रोजरोज नहीं बोलेगा. 40 साल में पहली बार बोला है. जया, जीभर कर इस बैडरैस्ट का 1-1 पल जी लेना.

मु?ो सोच में डूबे देख विजय ने कहा, ‘‘डौंट वरी जया. बस अब तुम घर चल कर आराम करना. हम सब मैनेज कर लेंगे.’’

मैं कुछ नहीं बोली. बहुत दर्द तो था ही.

विजय ने मु?ो ध्यान से कार की सीट पर बैठा

कर सीटबैल्ट भी खुद ही बांध दी. मैं ने सोचा वाह, इतना ध्यान रखा जाएगा, बढि़या है पर प्रत्यक्षत: इतना ही कहा, ‘‘सम?ा नहीं आ रहा कैसे होगा…डाक्टर का क्या है. ?ाट से बैडरैस्ट बोल दिया.’’

‘‘चिंता क्यों करती हो? हम हैं न… बच्चों के साथ मिल कर मैं सब संभाल लूंगा.’’

विजय ने कार स्टार्ट की. स्पीड ब्रेकर्स, गड्ढों का ध्यान रखते हुए गाड़ी चला रहे थे ताकि ?ाटका आदि लगने पर मु?ो दर्द न हो. दरअसल, हुआ यह था कि मैं आज सुबह तेजी से सीढि़यां उतरते हुए सब्जी लेने जा रही थी कि मेरा पैर फिसल गया… मैं बड़ी मुश्किल से उठ पाई थी. टैस्ट्स और ऐक्सरे के बाद डाक्टर अमित ने कहा कि यह प्रो स्लिप डिस्क इंजरी है… बच गई तुम, जया नहीं तो मुश्किल हो जाती.

मेरा मूड हलका करने के लिए विजय ने कहा ‘‘क्यों दौड़तीभागती हो इतना जया? कितनी बार कहा कि घोड़े की तरह इधर से उधर मत भागती फिरा करो… तुम आराम से क्यों नहीं चलती, डियर?’’

‘‘इस का सारा क्रैडिट मेरे पापी मायके वालों को है, जिन्होंने सब से छोटी होने के

कारण मुझे हर काम बताते हुए यही कहा कि जया, जाओ भाग कर यह ले आओ, भाग कर

वह ले आओ. किसी ने कभी यह कहा ही नहीं कि जाओ जया आराम से ले आओ. तो जनाब, मु?ो तो हर काम भागभाग कर करने की ही

आदत है.’’

मेरी नाटकीयता के साथ कही इस बात पर विजय हंस पड़े. बोले, ‘‘वाह, दर्द में भी हंसना कोई तुम से सीखे.’’

अब मैं उन्हें यह तो नहीं बता सकती थी कि दर्द में मु?ो बस बैडरैस्ट दिख रही है… मेरा सपना पूरा होने जा रहा है.

घर पहुंचे तो बच्चे नीरुषा और तन्मय परेशान से हमारी ही राह देख रहे थे. दोनों ने सवालों की ?ाड़ी लगा दी. विजय ने मुझे बैड तक ले जा कर लिटाते हुए उन्हें सब बताया.

पहले तो बच्चों ने आह कह कर गंभीर प्रतिक्रिया दी, फिर अचानक दोनों

जोश से भर गए. नीरुषा ने कहा, ‘‘मम्मी, हम सब मिल कर आप का ध्यान रखेंगे, डौंट वरी…’’

तन्मय भी बोला, ‘‘हां, बस आप लेटेलेटे हमें बताते रहना कि क्या काम करना है.’’

मैं ने मन ही मन सोचा कि चलो अब शायद सचमुच आराम मिलेगा. कितने प्यारे बच्चे हैं… कितना प्यारा पति है. मु?ो बड़ा लाड़ सा आया तीनों पर. फिर कहा, ‘‘मेड से कुछ और काम भी कह दूंगी…थोड़ी हैल्प हो जाएगी.’’

विजय बोले, ‘‘मैं ने आज छुट्टी ले ली है.’’

तभी नीरुषा बोली, ‘‘कल मैं कालेज नहीं जाऊंगी.’’

तन्मय भी कहां पीछे रहता. बोला ‘‘नहीं दीदी, आप चली जाना, मैं स्कूल नहीं जाऊंगा.’’

‘‘नहीं, मेरा कालेज जाना जरूरी नहीं, तुम स्कूल जाना.’’

तन्मय का मुंह उतर गया तो मु?ो हमेशा की तरह फ्रंट पर आना पड़ा, ‘‘ऐसा करो कि तीनों बारीबारी से 1-1 दिन रह लेना… तब तक तो मु?ो आराम हो ही जाएगा. चलो, आज तुम दोनों जाओ… आज तो विजय हैं.’’

दोनों बेमन से जाने के लिए उठ गए. विजय ने औफिस के 2-4 फोन निबटाए.

फिर मैं ने कहा, ‘‘सुनो, मैं ने नाश्ता तो बना ही दिया था. चलो, सब नाश्ता कर लेते हैं. बस मेरे लिए 1 कप चाय बना दो प्लीज.’’

विजय का चेहरा उतर गया, ‘‘चाय?’’

‘‘हां.’’

घर में सिर्फ मु?ो ही चाय पीने की आदत है. ज्यादा नहीं. 1 कप सुबह उठ

कर, 1 नाश्ते के साथ और 1 शाम को.

इस से ज्यादा एक बार भी नहीं. बच्चे तैयार हो रहे थे. मेड सुबह का काम कर के जा चुकी थी.

विजय ने किचन से वापस आ कर पूछा, ‘‘जया, मंजू चाय का बरतन कहां

रख गई?’’

‘‘टोकरे में रखे धुले बरतनों में होगा.’’

‘‘मतलब टोकरे में ढूंढूं?’’

थोड़ी देर में टोकरे के बरतनों की आवाज से लगा कि चाय का बरतन नहीं, पूरे टोकरे के बरतन एकसाथ नीचे गिर गए हैं. मैं ने आज नाश्ते में पोहा बनाया था. बस बना कर ही ताजा सब्जी लेने उतर रही थी जब यह हादसा हुआ. बच्चे तैयार हो कर अपना और मेरा नाश्ता ले कर मेरे पास ही आ गए, ‘‘मम्मी, आप भी खा लो. दवा लेनी होगी.’’

‘‘विजय चाय ला रहे हैं… तुम लोग शुरू करो… मैं खाती हूं.’’

विजय ?ोंपते हुए बड़ी देर बाद आधा कप चाय ले कर आए तो मैं ने पूछा, ‘‘अरे, इतनी कम बनाई?’’

‘‘नहीं, वह छानते हुए गिर गई.’’

बच्चे जोर से हंस पड़े. मैं ने भी हंसते हुए कहा, ‘‘हंसो मत, तुम लोगों का भी नंबर आने वाला है.’’

विजय ने प्यारे, मीठे स्वर में कहा, ‘‘पी कर बताओ. जया कैसी बनी है? सालों बाद बनाई है.’’

मैं ने पहला घूंट भरा. तीनों एकटक मेरा चेहरा देख रहे थे. मैं ने जानबू?ा कर गंभीरता से कहा, ‘‘तुम से यह उम्मीद नहीं थी, विजय.’’

‘‘क्या हुआ… पीने लायक नहीं है?’’

‘‘अरे, अच्छी बनी है.’’

अब तीनों एकसाथ हंस पड़े. विजय ने बच्चों को गर्व से देखा. मैं कहतीकहती रुक गई कि विजय प्लीज, चाय वापस ले जाओ. मैं कल से चाय पीने की अपनी गंदी आदत छोड़ दूंगी पर कह नहीं पाई. तब ऐसा तो कुछ भी नहीं लगा कि महबूब के हाथ से जहर भी अमृत लग रहा है और उस की आंखों में देखते हुए सब पी गए. जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ. चाय खराब थी पर पोहे के साथ गटक ली. विजय सब काम कर सकते हैं पर किचन में जरा अनाड़ी हैं, छोड़ो आज ?ाठ नहीं बोलूंगी… जरा नहीं पूरे अनाड़ी हैं और मजेदार बात यह है कि उन्हें लगता है कि उन्हें किचन के काम आते हैं. जनाब की इस गलतफहमी को मैं कभी दूर नहीं कर पाई.

बच्चे चले गए तो विजय ने कहा, ‘‘अब तुम आराम करो.’’

मैं सुहाने सपनों में खोई लेटी थी.

10 दिन रैस्ट… डिलिवरी के समय ही कुछ दिन लेटी थी. उस के बाद तो रैस्ट शब्द याद ही नहीं आया आज तक. खैर, मन ही मन काफी कुछ सोचने के बाद मैं ने व्हाट्सऐप पर अपनी 3 खास सहेलियों गीता, नीरा और संजू को बैडरैस्ट की न्यूज दे दी. हम चारों को व्हाट्सऐप पर गु्रप है. तीनों के ज्ञान, जोक्स शुरू हो गए.

 

तभी विजय आए, ‘‘जया, फोन रख कर आराम कर लो,’’ और फिर मेरी

बगल में ही लेट गए. थोड़ी देर हम आम बातें करते रहे. फिर अचानक उन के खर्राटे शुरू हो गए. लो हो गया आराम… मैं ने अपना साइड में रखा नौवेल उठा लिया. ‘इस टाइम सोने की आदत तो है नहीं. चलो नौवेल ही पढ़ लूं,’ सोच मैं हिली तो मेरे शरीर में तेज दर्द की लहर दौड़ गई.

एक कराह सी निकली तो विजय की नींद खुल गई. मु?ो देख बोले, ‘‘उठना मत. कुछ चाहिए तो मु?ो बताना,’’ कह कर करवट बदल कर फिर सो गए.

मु?ो बस वाशरूम जाने की परमिशन थी. मैं रोज 1 बजे लंच करती हूं. मेरा टाइम तय है. 1 बजा तो मु?ो भूख लगने लगी. विजय सो रहे थे. डेढ़ बजे तक मैं ने वेट किया, फिर आवाज दे दी, ‘‘विजय, लंच कर लें?’’

ऊंघती हुई आवाज आई, ‘‘अभी तो खाया था?’’

‘‘भूख लगी है, विजय,’’ मु?ो अपने स्वर में अतिरिक्त गंभीरता का पुट देना पड़ा. जानती हूं इस का असर.

विजय तुंरत उठ गए, ‘‘क्या लाऊं?’’

‘‘तुम लोगों के टिफिन के लिए जो खाना बनाया था, वही रखा है, ले आओ.’’

कुछ ही पलों बाद वे फिर आए, ‘‘खाना गरम करना है?’’

आदतन मु?ो मस्ती सू?ा, ‘‘रोज तो गरम कर के खाती हूं, आज तुम्हारी मरजी है जैसा दोगे खा लूंगी.’’

विजय हंस दिए, ‘‘इतनी बेचारी बन कर मत दिखाओ. गरम कर के ला रहा हूं.’’

विजय मेरा और अपना खाना ले आए. खाना हम ने अच्छे मूड में हंसतेबोलते खाया. मेरा खाना खत्म हुआ तो मैं प्लेट रखने व हाथ धोने के लिए उठने लगी.

तब विजय ने उठने नहीं दिया. बोले, ‘‘मैं तुम्हारे हाथ यहीं धुलवा दूंगा.’’

‘‘नहीं, इतना तो उठूंगी,’’ कह कदम आगे बढ़ाने पर कमर में दर्द की लहर दौड़ गई पर जरा हिम्मत कर के किचन तक चली ही गई. किचन में आने न देने का कारण भी फौरन स्पष्ट हो गया. विजय खिसियाए से मु?ो देख रहे थे. सुबह से दोपहर तक ही किचन की काफी दयनीय स्थिति हो चुकी थी. सुबह टोकरे में जो चाय का बरतन ढूंढ़ा गया था तो बाकी के सारे बरतन किचन में बिखरे अपनी दर्दनाक कहानी सुना रहे थे.

मैं जड़ सी खड़ी रही तो विजय ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘जया, खड़ी मत रहो. दर्द होगा. तुम चलो, मैं सब समेट कर आता हूं.’’

मैं चुपचाप लेट गई. किचन तक आनेजाने में काफी दर्र्द हुआ था. विजय ने मु?ो दोपहर की दवाई दी. थोड़ी देर बाद मेरी आंख लग गई. मैं गहरी नींद सोई. विजय के खर्राटों से ही फिर 4 बजे आंख खुली. रोज की तरह चाय पीने का मन हुआ, पर विजय के हाथ की चाय पीने की हिम्मत नहीं थी. संजू मेरी बराबर की बिल्डिंग में रहती है. मैं ने उसे मैसेज डाला, ‘‘आ जाओ, चाय पीनी है, बना कर दो.’’

उस ने खुशी से रोने वाली इमोजी भेजी. पूछा, ‘‘विजय से नहीं बनवाओगी?’’

मैं ने भी सिर पर हाथ मारने वाली इमोजी भेज दी, थोड़ी मस्ती में चैट की, फिर संजू आ गई. चाय उसी ने बनाई तो विजय ने भी चैन की सांस ली.

संजू ने कहा, ‘‘डिनर मैं बना लाऊंगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, बना लाना आज. कल से अंजू को बोल दूंगी… दोनों टाइम का बना लाएगी.’’

तभी नीरा और गीता भी आ गईं. गीता ही फिर थोड़ी देर बाद सब के

लिए चाय बना लाई. मेरे दर्द की बात होती रही. दर्द तो था ही, फिर मैं शरारत से इठलाते हुए बोली, ‘‘मैं तो अभी बैडरैस्ट करूंगी, तुम लोग आती रहना.’’

गीता ने घुड़का, ‘‘ज्यादा उड़ो मत. हमारा भी टाइम आएगा… कभी तो हम भी बैडरैस्ट करेंगे.’’

नीरा ने भी कहा, ‘‘हां, बिलकुल.

ऐसा थोड़े ही है कि हम कभी बैडरैस्ट नहीं करेंगे. चिढ़ाओ मत हमें, सब का टाइम आता है.’’

हम सब जी भर कर हंसे. गीता मस्ती मैं बोली, ‘‘यार, जरा टिप्स दो, कैसे गिरना है कि ज्यादा बुरा हाल भी न हो और बैडरैस्ट भी हो जाए.’’

हम मस्ती कर ही रहे थे कि बच्चे भी आ गए. सब से मिल कर, थोड़ी देर बैठ कर फिर फ्रैश होने चले गए.

डिनर संजू ले आई थी. सब ने खाया तो मु?ो याद आया, ‘‘अरे, कोई मशीन चला दो. कपड़े धोते हैं…’’

तीनों ने एकदूसरे का मुंह देखा. विजय ने कहा, ‘‘अब तो थक गए, कोई इमरजैंसी तो है नहीं, कल धो लेंगे.’’

मैं ने मन में कहा कि थक गए? सोसो कर? मैं बस वाशरूम जाने के लिए ही किसी न किसी का सहारा ले कर उठी थी. मैं ने सचमुच आराम किया था. मु?ो अच्छा लग रहा था.

अगले दिन नीरुषा ने मु?ा से कहा, ‘‘मम्मी, पापा को औफिस भेज दो न. मेरा मन कर रहा है आप के पास रुक कर आप का खयाल रखने का.’’

नीरुषा ने मु?ा से लिपट कर यह बात ऐसे कही कि मना करने का सवाल ही नहीं उठता था. मैं ने सोचा, विजय दिनभर आराम ही तो करेंगे… बेटी का मन है तो वही रह लेगी. अत: मैं ने हामी भर दी. फिर कहा, ‘‘चलो, अब चाय पिला दो.’’

‘‘पापा नहीं बनाएंगे?’’

मैं ने जल्दी से कहा कि ‘‘थक गए? सोसो कर?’’

उसे हंसी आ गई. बोली, ‘‘सम?ा गई… बनाती हूं.’’

विजय और तन्मय चले गए. अंजू ने सफाई के साथसाथ खाने का काम भी कर दिया. नीरुषा मेरे पास ही लेट कर अपने फोन में व्यस्त रही. बीचबीच में कुछ बात कर लेती. पूरा दिन नीरुषा ने अच्छा रिलैक्स कर के बिताया. खूब सोई, गाने सुने. मैं ने उसे जब भी कोई काम कहा वह मु?ा से लिपट गई, ‘‘मम्मी, आप के पास ही लेटने का मन है. काम तो हो ही जाएगा.’’

दिनभर धोबी, कूरियर वाले किसी ने भी डोरबैल बजाई तो नीरुषा ?ां?ालाई, ‘‘उफ, मम्मी दिनभर कितनी घंटियां बजती हैं. कोई आराम से लेट भी नहीं सकता.’’

शाम को उसे चाय के लिए उठाया तो नींद में बोली, ‘‘मम्मी, चाय क्यों पीती हो? अच्छी चीज नहीं है?’’

मु?ो हंसी आ गई, ‘‘अच्छा, आज याद आया? चलो, उठो बना लो.’’

शाम को 2-3 पड़ोसिनें देखने आ गईं.

अंजू उन के घर भी काम करती थी, तो पता चलना ही था.

रात को तन्मय शुरू हो गया, ‘‘कल मैं मम्मी के पास रहूंगा…’’

विजय और नीरुषा ने मना किया तो उस का मुंह लटक गया. मैं ने हां में सिर हिलाया तो प्यार से मु?ा से लिपट गया.

अगले दिन 11 बजे उस ने मु?ा से पूछा, ‘‘मम्मी, आप को अभी मु?ा से कोई काम तो

नहीं है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘कुछ चाहिए?’’

‘‘नहीं, बेटा.’’

‘‘मम्मी, थोड़ी देर खेल आऊं?’’

‘‘जाओ.’’

‘‘प्यारी मम्मी,’’ कह तन्मय ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दीं, ‘‘मम्मी, आप के लंच तक आ जाऊंगा. आप उठना नहीं. बाय, लव यू,’’ कह कर तन्मय यह जा, वह जा.

मुझे पता है कि खेलने का दीवाना तन्मय घर रह कर  यह मौका कैसे छोड़ देता. बाहर

बच्चों के खेलने की आवाजें मु?ो भी आ रही थीं तो भला तन्मय ने क्यों न सुनी होंगी. 1 बजे वह आ गया. तब तक मैं अपना नौवेल पढ़ रही थी. फोन पर भी थी, अच्छा टाइम पास हो रहा था. हम दोनों ने खाना खाया. तन्मय सो गया. मैं ने भी थोड़ी देर ?ापकी ली. दर्द में थोड़ा आराम लग रहा था. उठ कर नहाने में भी किसी का सहारा नहीं लेना पड़ा. अब मेरा मन उठ कर चलनेफिरने का होने लगा. 4 बजे सोचा, चाय आज खुद ही बना लेती हूं.

उठी तो दर्द तो हुआ पर धीरेधीरे कदम रखते हुए चल कर आदतन बच्चों के कमरे में नजर डाली. देखते ही चक्कर आ गया. पूरा कमरा अस्तव्यस्त, हर जगह सामान बिखरा. बहुत गुस्सा आया.

किचन में गई तो वहां भी हाल खराब. अंजू भी अपने हिसाब से बस निबटा ही गई थी. गैस चूल्हा गंदा, फ्रिज पर गंदे हाथों के निशान, बरतन कहीं के कहीं. वाशप्लैश पर नजर डाली. धुलने वाले कपड़ों का अंबार. उफ, बहुत काम इकट्ठा हो गया. मैं बु?ो मन से धीरेधीरे चलती हुई अपनी चाय ले कर लिविंगरूम में सोफे पर बैठ गई. अंजू ने डस्टिंग की ही नहीं थी. हर जगह धूल. 2 दिन के पेपर सोफे पर ही थे. सफाईपसंद विजय को ये सब कैसे नहीं दिखाई दिया, हैरानी हुई. पैर ज्यादा देर लटकाने नहीं थे. मैं फिर ठंडी सांस ले कर बैड पर आ कर लेट गई.

तभी गीता का फोन आ गया, ‘‘कैसी चल रही है बैडरैस्ट?’’

मैं ने कहा, ‘‘चुप हो जाओ. अभीअभी पूरे घर की हालत देख कर लेटी हूं.’’

गीता हंस पड़ी, ‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘आ कर देख लो.’’

‘‘तुम्हें आराम मिल रहा है न? बस ऐंजौय करो.’’

‘‘मु?ो अब डर लग रहा है कि ठीक हो जाने के बाद यह बैडरैस्ट मु?ो बहुत महंगी पड़ने वाली है.’’

‘‘हाहा, बड़ी आई थी हमें चिढ़ाने वाली?’’

रात को सब साथ बैठे तो मैं ने कहा, ‘‘तुम लोग प्लीज घर ठीक कर लो… सारा सामान बिखरा है… बच्चो, अपनाअपना कमरा ठीक कर लो… विजय प्लीज लिविंगरूम संवार लो.’’

‘‘अरे, तुम इतना क्यों उठीं? तुम्हें अभी बैडरैस्ट करनी है.’’

‘‘अच्छा ही हुआ कि उठी. सम?ा आया कि बैडरैस्ट महंगी पड़ेगी… ठीक होने पर 4 गुना काम करना पड़ेगा.’’

तीनों ?ोंप गए. बच्चों ने मासूम शक्ल बना कर कहा, ‘‘आप को यह अच्छा नहीं लगा कि हम छुट्टी ले कर आप के पास रहें? फाम का क्या है मम्मी, आप ठीक हो कर कर ही लोगी. आप के लिए काम इंपौर्टैंट है या हमारी कंपनी?’’

मैं निरुत्तर हो गई. कह नहीं पाई कि भाई, काम कर दो कुछ पहले. कंपनी मिलती रहेगी… कोई भागा नहीं जा रहा है… यह जो हर जगह सामान फैला है… मेरे ठीक होने का इंतजार हो रहा है. डांटना, उलाहने देना मेरे स्वभाव में नहीं. सो बस अब लेटेलेटे अपने तथाकथित ध्यान रखने वालों की हरकतें नोट कर रही थी.

सोच रही थी कि इन लोगों के हिसाब से तो सबकुछ टाला जा सकता है… मशीन चलाने की कोई जल्दी नहीं क्योंकि अभी तो काम चल ही रहा है, बहुत कपड़े हैं… जो एक टाइम भी दाल खा कर खुश नहीं होते वे सुबहशाम दाल खा रहे हैं क्योंकि सब्जी लेने भी जाना पड़ेगा… जो नीरुषा दही के बिना खाना नहीं खाती, अब दही जमाना याद दिलाने पर कहती है कि मम्मी जरूरत नहीं है. दही के बिना भी खाना ठीक लग रहा है. फ्रूट्स लाने को कहा तो उसे फोन कर दिया गया.

एक दिन बहुत कहने पर नीरुषा ने वाशिंग मशीन चला ही दी. फ्लैट की सीमित जगह में इतने कपड़े कहां, कैसे सुखाने हैं, इस पर जबरदस्त विचारविमर्श हुआ, जिसे मैं ने चुपचाप आंखें बंद कर अपनी हंसी रोक कर सुना. अंजू को तो यह दिन बड़ी मुश्किल से मिला. रोज मु?ा से मेरी तबीयत पूछती और पहले से भी ज्यादा फुरती से काम निबटा कर भागती. पति और बच्चों को तो टोका जा सकता पर मेड के आगे तो अच्छोंअच्छों की बोलती बंद रहती है कि कहीं कुछ कह दिया तो भाग न जाए. मेड से तो हम लोग इतने प्यार से बोलते हैं कि इतना पति और बच्चों से बोल लें तो बेचारे निहाल हो जाएं.

मु?ो जरा बेहतर लगा तो मैं ने कहा, ‘‘अब तुम सब जाओ, मैं मैनेज कर लूंगी. काफी आराम कर लिया.’’

अब मु?ो लेटेलेटे चैन भी नहीं आ रहा था. मैं ने सब को छुट्टी दी. तीनों आश्वस्त हो कर चले गए तो मैं ने थोड़ाथोड़ा धीरेधीरे काम संभालना शुरू किया. 3 बजे गीता आई तो मैं तीसरी बार मशीन के कपड़े निकाल कर सुखा रही थी. उस ने फौरन नीरा और संजू को भी बुला लिया. तीनों इकट्ठा हुईं तो पूरे घर पर एक नजर डाली. तीनों हंसने लगीं. मैं ने इन दिनों उन्हें इस बात पर खूब चिढ़ाया था कि तुम लोग बस मूर्ख औरतों की तरहकाम करती रहो… मैं तो बैडरैस्ट पर हूं. देखो मु?ो… आजकल तो मेरा स्टेटस भी यही था, बैडरैस्ट.

मैं ने धीरेधीरे चलते हुए कहा, ‘‘यार, अगर पता होता कि बैडरैस्ट के बाद दोगुनी मेहनत

करनी पड़ेगी तो बैडरैस्ट पर कभी खुशियां न मनाई होतीं.’’

नीरा जोर से हंसी, ‘‘क्यों, आराम नहीं मिला? कितनी अच्छी सेवा हो रही थी है न?’’

‘‘छुट्टी ले ले कर सब ने बस आराम ही किया, काम सुनते ही कहते थे कि अरे, हो जाएगा. तुम बस आराम करो.’’

मेरे नाटकीय ढंग से बताने पर सब हंसने लगीं.

संजू बोली, ‘‘मेरी आंखों के आगे तो इस का पहले दिन का चेहरा आ रहा है जब बैडरैस्ट बताते हुए मुंह अनोखी चमक से चमक उठा था मैडम का. जया मैडम, हमारा पति है, बच्चे हैं, भरीपूरी गृहस्थी है, एकल परिवार है और सब से बड़ी बात हम औरतें हैं, बैडरैस्ट हमारे लिए कोई खुशी की बात नहीं हो सकती… ठीक होने पर डबल काम करने पड़ते हैं.’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘हां, इसीलिए सब को भेज दिया… काम कोई कर नहीं रहा था… जब खुद ही करना है तो इन लोगों को घर में क्या रखना.’’

मेरी लास्ट लाइन पर सब जोर से हंस पड़ीं. सब बातें करते हुए मेरा हाथ भी बंटा रही थीं. घर गया तो नीरा सब के लिए चाय बना लाई. गीता ने कहा, ‘‘चलो, यह तय हुआ कि अब बैडरैस्ट की तमन्ना नहीं करेंगे.’’

हम सब ने हंसते हुए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हां, नहीं चाहिए बैडरैस्ट.’’

किस्सा डाइटिंग का: क्या अपना वजन कम कर पाए गुप्ताजी

एक दिन सुबहसुबह पत्नी ने मुझ से कहा, ‘‘आप ने अपने को शीशे में  देखा है. गुप्ताजी को देखो, आप से 5 साल बड़े हैं पर कितने हैंडसम लगते हैं और लगता है जैसे आप से 5 साल छोटे हैं. जरा शरीर पर ध्यान दो. कचौरी खाते हो तो ऐसा लगता है कि बड़ी कचौरी छोटी कचौरी को खा रही है. पेट की गोलाई देख कर तो गेंद भी शरमा जाए.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गया. यह क्या, मैं तो अपने को शाहरुख खान का अवतार समझता था. मैं ने शीशे में ध्यान से खुद को देखा, तो वाकई वे सही कह रही थीं. यह मुझे क्या हो गया है. ऐसा तो मैं कभी नहीं था. अब क्या किया जाए? सभी मिल कर बैठे तो बातें शुरू हुईं. बेटे ने कहा, ‘‘पापा, आप को बहुत तपस्या करनी पड़ेगी.’’

फिर क्या था. बेटी भी आ गई, ‘‘हां पापा, मैं आप के लिए डाइटिंग चार्ट बना दूं. बस, आप तो वही करते जाओ जोजो मैं कहूं, फिर आप एकदम स्मार्ट लगने लगेंगे.’’

मैं क्या करता. स्मार्ट बनने की इच्छा के चलते मैं ने उन की सारी बातें मंजूर कर लीं पर फिर मुझे लगा कि डाइटिंग तो कल से शुरू करनी है तो आज क्यों न अंतिम बार आलू के परांठे खा लिए जाएं. मैं ने कहा कि थोड़ी सी टमाटर की चटनी भी बना लेते हैं. पत्नी ने इस प्रस्ताव को वैसे ही स्वीकार कर लिया जैसे कि फांसी पर चढ़ने वाले की अंतिम इच्छा को स्वीकार करते हैं.

मैं ने भरपेट परांठे खाए. उठने ही वाला था कि बेटी पीछे पड़ गई, ‘‘पापा, एक तो और ले लो.’’

पत्नी ने भी दया भरी दृष्टि मेरी ओर दौड़ाई, ‘‘कोई बात नहीं, ले लो. फिर पता नहीं कब खाने को मिलें.’’

आमतौर पर खाने के मामले में इतना अपमान हो तो मैं कदापि नहीं खा सकता था पर मैं परांठों के प्रति इमोशनल था कि बेचारे न जाने फिर कब खाने को मिलें.

रात को सो गया. सुबह अलार्म बजा. मैं ने पत्नी को आवाज दी तो वे बोलीं, ‘‘घूमने मुझे नहीं, आप को जाना है.’’

मैं मरे मन से उठा. रात को प्रोग्राम बनाते समय सुबह 5 बजे उठना जितना आसान लग रहा था अब उतना ही मुश्किल लग रहा था. उठा ही नहीं जा रहा था.

जैसेतैसे उठ कर बाहर आ गया. ठंडीठंडी हवा चल रही थी. हालांकि आंखें मुश्किल से खुल रही थीं पर धीरेधीरे सब अच्छा लगने लगा. लगा कि वाकई न घूम कर कितनी बड़ी गलती कर रहा था. लौट कर मैं ने घर के सभी सदस्यों को लंबा- चौड़ा लैक्चर दे डाला. और तो और अगले कुछ दिनों तक मुझे जो भी मिला उसे मैं ने सुबह उठ कर घूमने के फायदे गिनाए. सभी लोग मेरी प्रशंसा करने लगे.

पर सब से खास परीक्षा की घड़ी मेरे सामने तब आई जब लंच में मेरे सामने थाली आई. मेरी थाली की शोभा दलिया बढ़ा रहा था जबकि बेटे की थाली में मसालेदार आलू के परांठे शोभा बढ़ा रहे थे. चूंकि वह सामने ही खाना खा रहा था इसलिए उस की महक रहरह कर मेरे मन को विचलित कर रही थी.

मरता क्या न करता, चुपचाप मैं जैसेतैसे दलिए को अंदर निगलता रहा और वे सभी निर्विकार भाव से मेरे सामने आलू के परांठों का भक्षण कर रहे थे, पर आज उन्हें मेरी हालत पर तनिक भी दया नहीं आ रही थी.

खाने के बाद जब मैं उठा तो मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं ने कुछ खाया है. क्या करूं, भविष्य में अपने शारीरिक सौंदर्य की कल्पना कर के मैं जैसेतैसे मन को बहलाता रहा.

डाइटिंग करना भी एक बला है, यह मैं ने अब जाना था. शाम को जब चाय के साथ मैं ने नमकीन का डब्बा अपनी ओर खिसकाया तो पत्नी ने उसे वापस खींच लिया.

‘‘नहीं, पापा, यह आप के लिए नहीं है,’’ यह कहते हुए बेटे ने उसे अपने कब्जे में ले लिया और खोल कर बड़े मजे से खाने लगा. मैं क्या करता, खून का घूंट पी कर रह गया.

शाम को फिर वही हाल. थाली में खाना कम और सलाद ज्यादा भरा हुआ था. जैसेतैसे घासपत्तियों को गले के नीचे उतारा और सोने चल दिया. पर पत्नी ने टोक दिया, ‘‘अरे, कहां जा रहे हो. अभी तो तुम्हें सिटी गार्डन तक घूमने जाना है.’’

मुझे लगा, मानो किसी ने पहाड़ से धक्का दे दिया हो. सिटी गार्डन मेरे घर से 2 किलोमीटर दूर है. यानी कि कुल मिला कर आनाजाना 4 किलोमीटर. जैसेतैसे बाहर निकला तो ठंडी हवा बदन में चुभने लगी. आंखों में आंसू भले नहीं उतरे, मन तो दहाड़ें मार कर रो रहा था. मैं जब बाहर निकल रहा था तो बच्चे रजाई में बैठे टीवी देख रहे थे. बाहर सड़क पर भी दूरदूर तक कोई नहीं था पर क्या करता, स्मार्ट जो बनना था, सो कुछ न कुछ तो करना ही था.

फिर यही दिनचर्या चलने लगी. एक ओर खूब जम कर मेहनत और दूसरी ओर खाने को सिर्फ घासफूस. अपनी हालत देख कर मन बहुत रोता था. लोग बिस्तर में दुबके रहते और मैं घूमने निकलता था. लोग अच्छेअच्छे पकवान खाते और मैं वही बेकार सा खाना.

तभी एक दिन मैं ने सुबह 9 बजे अपने एक मित्र को फोन किया. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि वह अभी तक सो कर ही नहीं उठा था जबकि उस ने मुझे घूमने के मामले में बहुत ज्ञान दिया था. करीब 10 बजे मैं ने दोबारा फोन किया. तो भी जनाब बिस्तर में ही थे. मैं ने व्यंग्य से पूछा, ‘‘क्यों भई, तुम तो घूमने के बारे में इतना सारा ज्ञान दे रहे थे. सुबह 10 बजे तक सोना, यह सब क्या है.’’

मित्र हंसने लगा, ‘‘अरे भई, आज संडे है. सप्ताह में एक दिन छुट्टी, इस दिन सिर्फ आराम का काम है.’’

मुझे लगा, यही सही रास्ता है. मैं ने फौरन एक दिन के साप्ताहिक अवकाश की घोषणा कर दी और फौरन दूसरे ही दिन उसे ले भी लिया. देर से सो कर उठना कितना अच्छा लगता है और वह भी इतने संघर्ष के बाद. उस दिन मैं बहुत खुश रहा. पर बकरे की मां कब तक खैर मनाती, दूसरे दिन तो घूमने जाना ही था.

तभी बीच में एक दिन एक रिश्तेदार की शादी आ गई. खाना भी वहीं था. पहले यह तय हुआ था कि मेरे लिए कुछ हल्काफुल्का खाना बना लिया जाएगा पर जब जाने का समय आया तो पत्नी ने फैसला सुनाया कि वहीं पर कुछ हल्का- फुल्का खाना खा लेंगे. बस, मिठाइयों पर थोड़ा अंकुश रखें तो कोई परेशानी थोड़े ही है.

उन के इस निर्णय से मन को बहुत राहत पहुंची और मैं ने वहां केवल मिठाई चखी भर, पर चखने ही चखने में इतनी खा गया कि सामान्य रूप से कभी नहीं खाता था. उस रात को मुझे बहुत अच्छी नींद आई थी क्योंकि मैं ने बहुत दिनों बाद अच्छा खाना खाया था लेकिन नींद भी कहां अपनी किस्मत में थी. सुबह- सुबह कम्बख्त अलार्म ने मुझे फिर घूमने के लिए जगा दिया. जैसेतैसे उठा और घूमने चल दिया.

मेरी बड़ी मुसीबत हो गई थी. जो चीजें मुझे अच्छी नहीं लगती थीं वही करनी पड़ रही थीं. जैसेतैसे निबट कर आफिस पहुंचा. पर यहां भी किसी काम में मन नहीं लग रहा था. सोचा, कैंटीन जा कर एक चाय पी लूं. आजकल घर पर ज्यादा चाय पीने को नहीं मिलती थी. चूंकि अभी लंच का समय नहीं था इसलिए कैंटीन में ज्यादा भीड़ नहीं थी पर मैं ने वहां शर्मा को देखा. वह मेरे सैक्शन में काम करता था और वहां बैठ कर आलूबड़े खा रहा था. मुझे देख कर खिसिया गया. बोला, ‘‘अरे, वह क्या है कि आजकल मैं डाइटिंग पर चल रहा हूं. अब कभीकभी अच्छा खाने को मन तो करता ही है. अब इस जबान का क्या करूं. इसे तो चटपटा खाने की आदत पड़ी है पर यह सब कभीकभी ही खाता हूं. सिर्फ मुंह का स्वाद चेंज करने के लिए…मेरा तो बहुत कंट्रोल है,’’ कह कर शर्मा चला गया पर मुझे नई दिशा दे गया. मेरी तो बाछें खिल गईं. मैं ने फौरन आलूबड़े और समोसे मंगाए और बड़े मजे से खाए.

उस दिन के बाद मैं प्राय: वहां जा कर अपना जायका चेंज करने लगा. हां, एक बात और, डाइटिंग का एक और पीडि़त शर्मा, जोकि अपने कंट्रोल की प्रशंसा कर रहा था, वह वहां अकसर बैठाबैठा कुछ न कुछ खाता रहता था. शुरूशुरू में वह मुझ से शरमाया भी पर फिर बाद में हम लोग मिलजुल कर खाने लगे.

बस, यह सिलसिला ऐसे ही चलने लगा. इधर तो पत्नी मुझ से मेहनत करवा रही थी और दूसरी ओर आफिस जाते ही कैंटीन मुझे पुकारने लगती थी. मैं और मेरी कमजोरी एकदूसरे पर कुरबान हुए जा रहे थे. पत्नी ध्यान से मुझे ऊपर से नीचे तक देखती और सोच में पड़ जाती.

फिर 2 महीने बाद वह दिन भी आया जहां से मेरा जीवन ही बदल गया. हुआ यों कि हम सब लोग परिवार सहित फिल्म देखने गए. वहां पत्नी की निगाह वजन तौलने वाली मशीन पर पड़ी. 2-2 मशीनें लगी हुई थीं. फौरन मुझे वजन तौलने वाली मशीन पर ले जाया गया. मैं भी मन ही मन प्रसन्न था. इतनी मेहनत जो कर रहा था. सुबहसुबह उठना, घूमनाफिरना, दलिया, अंकुरित नाश्ता और न जाने क्याक्या.

मैं शायद इतने गुमान से शादी में घोड़ी पर भी नहीं चढ़ा होऊंगा. सभी लोग मुझे घेर कर खड़े हो गए. मशीन शुरू हो गई. 2 महीने पहले मेरा वजन 80 किलो था. तभी मशीन से टिकट निकला. सभी लोग लपके. टिकट मेरी पत्नी ने उठाया. उस का चेहरा फीका पड़ गया.

‘‘क्या बात है भई, क्या ज्यादा कमजोर हो गया? कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’’ मैं ने पत्नी को सांत्वना दी.

पर यह क्या, पत्नी तो आगबबूला हो गई, ‘‘खाक दुबले हो गए. पूरे 5 किलो वजन बढ़ गया है. जाने क्या करते हैं.’’

मैं हक्काबक्का रह गया. यह क्या? इतनी मेहनत? मुझे कुछ समझ में नहीं आया. कहां कमी रह गई, बच्चों के तो मजे आ गए. उस दिन की फिल्म में जो कामेडी की कमी थी, वह उन्होंने मुझ पर टिप्पणी कर के पूरी की. दोनों बच्चे बहुत हंसे.

मैं ने भी बहुत सोचा और सोचने के बाद मुझे समझ में आया कि आजकल मैं कैंटीन ज्यादा ही जाने लगा था. शायद इतने समोसे, आलूबडे़, कचौरियां कभी नहीं खाईं. पर अब क्या हो सकता था. पिक्चर से घर लौटने के बाद रात को खाने का वक्त भी आया. मैं ने आवाज लगाई, ‘‘हां भई, जल्दी से मेरा दलिया ले आओ.’’

पत्नी ने खाने की थाली ला कर रख दी. उस में आलू के परांठे रखे हुए थे. ‘‘बहुत हो गया. हो गई बहुत डाइटिंग. जैसा सब खाएंगे वैसा ही खा लो. और थोड़े दिन डाइटिंग कर ली तो 100 किलो पार कर जाओगे.’’

मैं भला क्या कहता. अब जैसी पत्नीजी की इच्छा. चुपचाप आलू के परांठे खाने लगा. अब कोई नहीं चाहता कि मैं डाइटिंग करूं तो मेरा कौन सा मन करता है. मैं ने तो लाख कोशिश की पर दुबला हो ही नहीं पाया तो मैं भी क्या करूं. इसलिए मैं ने उन की इच्छाओं का सम्मान करते डाइटिंग को त्याग दिया.

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