Serial Story: कौन हारा (भाग-3)

कई दिनों तक सुधीर और वैशाली के बीच सन्नाटा सा पसर गया था. पहले वह आ कर बच्चों के हालचाल उस से पूछता था पर अब आ कर खाना खा कर चुपचाप सो जाता था. वैशाली सोच रही थी कि आज सुधीर से पूछेगी कि वह इतना क्यों बदल गया है? पर उस के कुछ कहने के पहले ही सुधीर उस से पूछ बैठा, ‘‘तुम शिल्पा के घर गई थीं?’’

‘‘क्यों, नहीं जाना चाहिए था?’’ सुधीर का सपाट सा चेहरा देख कर वह चौंक गई थी.

‘‘मुझ से पूछ तो लेतीं, मेरे खयाल में मैं कोई ऐसा काम नहीं कर रहा हूं जिस के लिए तुम इतना परेशान हो,’’ सुधीर उसी स्वर में बोला.

‘‘उस ने मेरी शांति भंग कर दी है. मेरा घर तोड़ने पर तुली है और तुम कह रहे हो कि कुछ हुआ ही नहीं,’’ वैशाली लगभग चीख उठी थी.

‘‘तुम्हारा घर कौन छीन रहा है. मैं उसे नया घर दे रहा हूं,’’ सुधीर ने उसी शांति से जवाब दिया.

वैशाली जैसे आसमान से नीचे आ गिरी, ‘‘यह क्या कह रहे हो? प्लीज सुधीर, मेरी गलती तो बताओ. तुम्हारे इस कदम से बच्चों पर क्या असर पड़ेगा?’’

‘‘क्या कहूं मैं? मैं ने बहुत सोचा पर यह कदम उठाने से खुद को रोक नहीं सका.’’

‘‘क्या वह मुझ से बहुत अच्छी है, सुंदर है, सलीके वाली है? क्या लोग मेरे से ज्यादा उस की तारीफ करते हैं?’’ वैशाली की आंखों में हार की नमी आ गई थी.

वैशाली के बहुत पूछने पर सुधीर धीरे से मुसकराया, ‘‘यही सब तो नहीं है उस में. वह एक आम सी लड़की है. मेरे साथ रहेगी तो लोग मुझे भूल कर भी उसे नहीं देखेंगे. कोई हमारी जोड़ी को बेमेल नहीं कहेगा. मेरी हीन भावना अंदर ही अंदर मुझे नहीं मारेगी.’’

वैशाली चौंक गई थी तो यह बात थी जो सुधीर पार्टी फंक्शन में जाने से कतराते थे. वह बोली, ‘‘तुम…तुम सुधीर, मुझे जरा सा इशारा तो करते. तुम्हारे लिए मैं खुद को पूरी तरह बदल देती, सादगी अपना लेती, पार्टी में जाना छोड़ देती.’’

‘‘मेरे खयाल से तुम इतनी नासमझ तो नहीं हो कि मेरी पसंद, नापसंद समझ नहीं सकीं. सच तो यह है कि तुम्हें भीड़, शोरशराबा, पार्टी बेइंतहा पसंद हैं. तुम चाहती हो कि तुम हर समय लोगों से घिरी अपनी तारीफ सुनती रहो. क्या तुम ने कभी चार लोगों में मेरी तारीफ की थी, बुराई को नापसंद किया, तुम सिर्फ अपने घमंड में जीती रहीं और मुझे नजरअंदाज करती रहीं, लेकिन शिल्पा में यह सब नहीं है. उस के साथ मुझे हीन भावना नहीं आएगी, क्योंकि उस के लिए सिर्फ मैं ही अहम हूं. लोगों की भीड़ की जगह उसे सिर्फ मेरा साथ पसंद है और मैं सिर्फ यही चाहता हूं.’’

‘‘ठीक है, अब से यही होगा. अपनी नादानी में मैं ने इस ओर ध्यान नहीं दिया पर अब जैसा तुम चाहोगे वैसा ही होगा. मुझे अपनी गलती सुधारने का एक मौका दो. मुझे माफ कर दो,’’ वैशाली के लाख माफी मांगने, आंसू बहाने पर भी सुधीर पर कोई असर नहीं पड़ा.

‘‘देखो, अब बहुत देर हो चुकी है. मैं शिल्पा से शादी कर के दूसरे घर में जा रहा हूं. तुम कहोगी तो तलाक दे दूंगा अन्यथा जैसे रह रही हो, बच्चों के साथ रहती रहो. तुम्हें बच्चों व घर का खर्च मिलता रहेगा. तुम्हारे व बच्चों के प्रति फर्ज पहले की तरह निभाता रहूंगा.’’

सुधीर की बातों से वैशाली का मन बुरी तरह सुलग उठा था. इतना तो समझ ही गई थी कि अब सुधीर का निर्णय बदलेगा नहीं. उस का मन हुआ था कि जोर से चिल्ला कर कह दे कि ठीक है, वह जहां जाना चाहे जाए, मुझ से कोई मतलब न रखे पर वह जानती थी कि वह भी मजबूर थी क्योंकि बच्चे जिस रहनसहन के आदी थे, वह अकेली कुछ नहीं कर सकती थी. अत: कुछ देर बाद वह शांति से बोली, ‘‘देखो, अब अगर इस घर से जाने का फैसला कर ही लिया है तो तुम्हारा संबंध बच्चों तक ही रहेगा. दूसरी पत्नी से बचेखुचे पल मैं तुम्हारे साथ शेयर नहीं कर सकूंगी.’’

?सुधीर कुछ देर तक कस कर होंठ भींचे एकटक आंखों से वैशाली को देखता रहा, फिर अपना सामान ले कर झटके से बाहर चला गया. वह बुत बनी खड़ी थी. उस की तंद्रा तब टूटी जब चिंटू उस से आ कर लिपट गया था, ‘‘मम्मी, पापा कहां चले गए? क्या अब वह कभी नहीं आएंगे?’’

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वैशाली चौंक उठी थी, उस ने चिंटू के सिर पर हाथ फेरा और बोली, ‘‘नहीं बेटा, पापा आएंगे.’’

वैशाली जैसे सबकुछ हार चुकी थी. सारी कोशिशों के बाद भी सुधीर को वापस न लाने की असफलता का दुख उस के मन पर हिमखंड की तरह जम चुका था. घर छोड़ने के बाद सुधीर वैशाली के यहां जल्दीजल्दी चक्कर लगाता था, कभीकभी रुक भी जाता था. नियमित रूप से पैसे भी देता रहता था लेकिन जाने क्यों वैशाली के मन में जमी बर्फ की सतह और भारी हो जाती थी.

सुधीर को देख कर वह इधरउधर हो जाती, खुद को काम में व्यस्त कर लेती थी. सुधीर फोन करता तो वह ‘होल्ड करें’ कह कर बच्चों को फोन पकड़ा देती थी. कई बार सुधीर ने उस से सीधे बात करने की कोशिश भी की लेकिन न जाने क्यों वह उसे पथराई सी आंखों से देखती बुत सी बनी रह जाती.

अगर सुधीर गलती का एहसास कर के पूरी तरह से उस के पास वापस आने की बात करता तो शायद उस के मन में जमा दुख पिघल जाता पर कहां, अपनी हार के दुख से वह जैसे चलतीफिरती मशीन बन कर रह गई थी. नित नए मैचिंग कपड़े, गहने, ब्यूटीपार्लर के चक्कर, साजसिंगार, क्लब, पार्टीज, सबकुछ बंद हो गया था. लंबा समय गुजर गया, किसी ने उस को बाहर आतेजाते नहीं देखा था. पर एक दिन वसुधा जबरदस्ती उसे एक परिचित के यहां पार्टी में ले ही गई. हलकी हरी शिफान की साड़ी, सादगी से बना जूड़ा, साधारण से शृंगार में भी वह बहुत खूबसूरत लग रही थी.

तभी वैशाली कि निगाह सुधीर पर पड़ी, जो उसे ही एकटक देख रहा था और सोच रहा था कि यह इतनी खूबसूरत स्त्री कभी उस का हक थी और आज वह उस से कितनी दूर है. वसुधा का ध्यान सुधीर पर गया तो उस ने वैशाली को कोहनी मारी, ‘‘देख, सुधीर कैसी हसरत से तुम्हें देख रहे हैं. अपनी गलती पर पछता रहे होंगे.’’

‘‘गलती कैसी, मर्द हैं चाहे जो कर सकते हैं,’’ मन में उमड़ते दुख को दबा कर वैशाली बोली.

‘‘हां, यही काम कोई औरत करती तो बदचलन कहलाती,’’ वसुधा चिढ़ गई थी.

‘‘चलो उधर,’’ वैशाली उस का हाथ पकड़ दूसरी तरफ ले गई थी. वैशाली ने सुधीर को बहुत समय बाद देखा था पर एक ही नजर में उसे महसूस हुआ कि सुधीर शायद मौजूदा जिंदगी से खुश नहीं हैं. शायद मेरा वहम है, वैशाली का यही सोचना था पर यह उस का भ्रम नहीं था. वह सच में अपनी जिंदगी से नाखुश था. वैशाली की जिस बात से घबरा कर वह शिल्पा की ओर झुका था वही सबकुछ आज शिल्पा ने अपना लिया था. वैशाली खुद अपनी आंखों से देख रही थी कि कीमती साड़ी, गहनों से लदी पूरे साजसिंगार से सजी शिल्पा लोगों की भीड़ में घिरी कहकहे लगा रही थी. ऐशोआराम ने उस के चेहरे की रौनक ही बदल दी थी और खूबसूरत लग रही थी. वह पूरी तरह बदल गई थी और उस ने भी उस उच्च वर्ग की खासीयत को अपना लिया था जहां चमकदमक, दिखावट, शो, सजावट को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है. वह लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी थी और उसे ध्यान भी नहीं था कि सुधीर कहां खड़ा फिर से अपने अकेलेपन से जूझ रहा है.

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यह देख कर वैशाली के मन का तपता रेगिस्तान मानो बारिश की बूंदों से ठंडक पा गया था. तभी उस की निगाहें सुधीर से टकराईं. उस ने सुधीर को देख कर एक गहरी निगाह शिल्पा पर डाली और फिर से सुधीर को देख कर व्यंग्य से मुसकराई, मानो कह रही हो कि क्या अब तुम फिर से नई शिल्पा ढूंढ़ोगे? क्योंकि यह शिल्पा भी आज लोगों की भीड़ में घिरी तुम्हारी हीन भावना की वजह बन तुम्हें अनदेखा कर रही है.

वैशाली की निगाहों की तपिश से घबरा कर सुधीर शर्मिंदा सा दूसरी ओर चला गया. वैशाली तो पति की जिंदगी में दूसरी औरत के दुख से हार गई थी पर सुधीर भी कहां जीत पाया था? नम आंखों और फीकी मुसकान के साथ वह सुधीर को जाता देखती रह गई.

Serial Story: कौन हारा (भाग-2)

वैशाली समझ नहीं पा रही थी कि पार्टियों में लोग उस की तारीफ करते हैं और उस के चारों तरफ मंडराते हैं वहीं दूसरी ओर सुधीर खुद को उपेक्षित महसूस कर हीनभावना में डूब जाता है और फिर उस का दिल पार्टी में नहीं लगता था. पिछले दिनों ऐसी ही किसी पार्टी में दोनों निमंत्रित थे. गहरी नीली शिफान की खूबसूरत सी साड़ी और सितारों से बनी चमकदार चोली और मैचिंग ज्वेलरी से सजी सब के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी.

‘वाह, क्या बात है. लगता ही नहीं कि आप 1 बच्चे की मां हैं और आप की शादी को 6 साल हो गए हैं. क्या राज है आप की खूबसूरती का?’ मिसेज चंदेल वैशाली से पूछ रही थीं.

‘इन का क्या है, ये तो एवरग्रीन हैं. इस का क्या राज है जरा हमें भी तो बताएं,’ मिसेज शर्मा मन में ईर्ष्या के साथ पूछ रही थीं.

‘अरे, राज की क्या बात है. नो टेंशन, सुकून की जिंदगी और भरपूर नींद, बस,’ वैशाली मन ही मन खुश होती बोली.

‘केवल इतना? यानी नो एक्सरसाइज, नो डायटिंग, न पार्लर के चक्कर?’ मिसेज चंदेल हैरान थीं.

‘अरे, और क्या?’ वैशाली साफ झूठ बोल गई. हालांकि अपनी खूबसूरती में चारचांद लगाए रखने के लिए वह नियम से महंगे ब्यूटीपार्लर में जाती थी. कम कैलोरी वाला संतुलित खाना और एक्सरसाइज सबकुछ उस के दैनिक जीवन में शामिल था.

‘किस्मत वाले हैं सुधीरजी, जो ऐसी खूबसूरत बीवी मिली.’

‘पता नहीं क्या देख कर शादी कर ली वैशाली ने सुधीर से?’

‘अरे, मर्दों का पैसा और साख देखी जाती है. बाकी बातों से क्या फर्क पड़ता है?’ ऐसी ही कुछ बातें चल रही थीं महिला मंडली में, जहां उस का ध्यान भी नहीं गया कि कब करीब से गुजर रहे सुधीर के कानों में ये बातें पड़ गईं और वह तरसता रह गया कि कब वैशाली उन को ऐसी बातों के लिए झिड़क दे या उस की तारीफ में कुछ कहे. और ऐसी ही बातों पर कई दिनों तक सुधीर का मूड उखड़ा ही रहता था.

जब वैशाली की दूसरी संतान के रूप में एक बेटी ने जन्म लिया तो उस ने चैन की सांस ली थी वरना उस का दिल धड़कता रहता था कि कहीं बच्चे पिता जैसी शक्लसूरत के हो गए तो…

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बेटी के जन्म के कुछ समय बाद जब वैशाली आफिस जाने के लिए तैयार हुई तो सुधीर ने उसे मना कर दिया कि अब तुम घर रह कर ही बच्चों की देखभाल करो.

‘अरे, आया है न इस काम के लिए,’ वैशाली घर रुकने को तैयार नहीं थी.

‘पर मां से अच्छी देखभाल कोई नहीं कर सकता. दुनिया की तमाम स्त्रियां अपने बच्चों की देखभाल खुद करती हैं,’ सुधीर ने समझाया.

‘पर वे निचली, मिडिल क्लास की औरतें होती हैं,’ वैशाली जिद पर अड़ी थी.

‘तुम भी तो कभी उसी क्लास से आई थीं,’ सुधीर झुंझला कर कह गया.

वैशाली के आंसू बहने लगे, ‘क्या मुझे यही ताना देने के लिए बचा था?’

‘नहीं, नहीं, मेरा मतलब यह नहीं था. बच्चे थोड़े बड़े हो जाएं तो तुम फिर से काम शुरू कर देना,’ सुधीर हड़बड़ा गया था.

और फिर वैशाली घर तक ही सीमित रह गई. उस का समय काटना मुश्किल हो जाता था पर सुधीर ने उसे मजबूर सा कर दिया था. अब वसुधा की खबर ने उसे बुरी तरह बेचैन कर दिया. उसे कई दिनों से सुधीर का व्यवहार बदला सा लग रहा था. वह देर से घर आने लगा था, कभी वह दूसरे शहर के टूर पर बाहर रहने की बात करता था. बच्चे व वैशाली उसे बहुत मिस करते थे. शिकायत करने पर वह कह देता कि मेहनत व भागदौड़ नहीं करूंगा तो आगे कैसे बढ़ूंगा. हमारा काम कैसा है यह तुम जानती ही हो. अब वैशाली समझ रही थी कि उस का समय व प्यार अब किसी और के नाम हो गया है. पर वह चुप थी.

पर एक दिन वह बोल ही गई, ‘आजकल आप घर से बाहर कुछ ज्यादा ही नहीं रहने लगे हैं?’

‘क्या मतलब है तुम्हारा?’ चोर निगाहों से देखते हुए सुधीर बोले.

‘मतलब आप अच्छी तरह समझते हैं. मेरा चैन खत्म कर के आप ऐसे पूछ रहे हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो.’

‘देखो, मेरा दिमाग खराब मत करो और मुझे सोने दो. न जाने क्या कहना चाह रही हो?’

‘आप जानते हैं कि मैं क्या कह रही हूं. बताओ क्या कमी है मुझ में जो आप को किसी और के बारे में सोचने की जरूरत पड़ गई.’

‘यह तुम्हारी गलतफहमी है. तुम जानती नहीं क्या कि हमारा काम ही ऐसा है कि जाने किसकिस से मिलनाजुलना पड़ता है और हमारी कामयाबी से जल कर लोग न जाने क्याक्या बातें उड़ा देते हैं,’ सुधीर जो अभी तक तैश में बोल रहा था एकदम ठंडा सा पड़ गया.

क्या वैशाली इतनी नादान थी कि उस के चेहरे के बदलते रंगों को समझ न पाती. हां, इतना अवश्य था कि अभी तक अपनी दुनिया में इतनी मग्न थी कि इस ओर सोच भी नहीं सकी थी. गुस्से व दुख में वह अपना तकिया ले कर दूसरे कमरे में जाने लगी इस आशा के साथ कि शायद सुधीर उसे रोक ले, पर कहां, सुधीर तो चैन से सो गया और वह दूसरे कमरे में जागी आंखों के साथ आंसू बहाती रही.

काफी दिन चढ़ आया था. चिडि़यों के चहचहाने से वैशाली की आंख खुली तो वह हड़बड़ा कर जाग उठी.

अगले दिन वैशाली ने वसुधा को घर बुलवाया और पूछा, ‘‘तुम उसे जानती हो?’’

‘‘हां, सुधीर के आफिस में मामूली सहायक है,’’ वसुधा ने बताया.

‘‘मैं उस से मिलना चाहती हूं, देखना चाहती हूं कि ऐसा क्या है उस में जो मुझ में नहीं है.’’

फिर शाम को दोनों उस मिडिल क्लास के तंग गली वाले महल्ले में पहुंचीं जहां अंदर तक उन की गाड़ी भी नहीं पहुंच सकी थी. दरवाजा खटखटाने पर एक बुजुर्ग औरत ने दरवाजा खोला तो पूछने पर पता चला कि शिल्पा अभी वापस नहीं आई है. वैशाली उसी महिला से, जो शिल्पा की मां थीं, उलझ पड़ी.

‘‘आफिस का समय तो कब का खत्म हो चुका है… क्या वह रोज ही इतनी देर से आती है?’’

‘‘नहींनहीं, कभीकभी आफिस में काम ज्यादा होता है तो देर हो जाती है. पर आप लोग कौन हैं?’’ शिल्पा की मां अचकचा सी गईं.

इस पर वसुधा ने जवाब दिया, ‘‘यह शिल्पा के बौस की पत्नी हैं. सुना है सुधीर यहां भी अकसर आते रहते हैं?’’

‘‘ज्यादा नहीं, 1-2 बार ही आए हैं.’’

‘‘तो क्या आप ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि एक कंपनी का मालिक एक मामूली कर्मचारी के घर क्यों आता है? खूब जानती हूं, आप जैसी मांएं ही अपनी आंखें बंद किए रखती हैं फिर चाहे किसी का घर बरबाद हो या उन्हें बदनामी मिले.’’

‘‘ये आप कैसी बातें कर रही हैं? शायद आप को कोई गलतफहमी हो गई है,’’ शिल्पा की मां के चेहरे का रंग उड़ने लगा था.

‘‘अगर गलतफहमी होती तो शायद हम यहां वक्त बरबाद करने न आते. आप अपनी बेटी को संभाल लीजिए वरना…’’ वसुधा जो बहुत तीखे शब्दों में कह रही थी, अचानक रुक गई क्योंकि आगे के शब्द शिल्पा बोल रही थी.

‘‘वरना क्या कर लेंगी आप. आप को मेरे घर आ कर हमारी बेइज्जती करने का कोई हक नहीं है. अच्छा होगा कि आप यहां से चली जाएं.’’

वैशाली हैरानी से उस साधारण सी लड़की को देख रही थी जो खुद को शिल्पा बता रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ऐसी कौन सी बात है जो सुधीर उसे छोड़ शिल्पा की ओर खिंच गए. उस की तंद्रा टूटी जब वसुधा और शिल्पा के बीच होने वाले वाक्युद्ध के स्वरों की तीव्रता बहुत बढ़ गई. वह वसुधा का हाथ पकड़ लगभग उसे घसीटती बाहर ले आई तो वसुधा उसी पर बरस पड़ी.

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‘‘आप चुप क्यों खड़ी थीं, खरीखोटी क्यों नहीं सुनाईं? इज्जतदार होगी तो फिर सुधीर से मिलने की कोशिश नहीं करेगी.’’

‘‘इतना ही काफी है. पता नहीं सुधीर के संबंध इस से कहां तक हैं. उन्हें पता चलेगा तो कहीं बात और न बिगड़ जाए,’’ वैशाली धीरे से बोली.

आगे पढ़ें- कई दिनों तक सुधीर और वैशाली के बीच…

Serial Story: कौन हारा (भाग-1)

वैशाली अपने जीवन से बहुत सुखी व संतुष्ट थी. घर में पति, 2 प्यारे से बच्चे, धनदौलत, ऐशोआराम और सामाजिक जीवन में मानसम्मान. और क्या चाहिए था. उस दिन भी वह सुखसागर में डूबी आंखें बंद किए बैठी थी कि उस की प्रिय सहेली वसुधा ने आ कर ऐसा बम सा फोड़ा कि वैशाली हक्काबक्का रह गई. वह क्या कह रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था या समझने के बाद भी उस पर भरोसा करने का मन नहीं हो रहा था.

‘‘हो सकता है वसुधा, तुम्हें कोई गलतफहमी हुई हो. सुधीर ऐसा कैसे कर सकते हैं? मैं उन के बच्चों की मां हूं और उन्हें कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचाने में मदद करने वाली हमसफर हूं.’’ वैशाली ने विश्वास न करने वाले अंदाज में वसुधा की ओर देख कर कहा.

‘‘इतनी बड़ी बात बिना विश्वास के मैं कैसे कह सकती हूं. यदि मुझे यह बात किसी और ने बताई होती तो विश्वास नहीं होता पर यह सब मैं ने खुद अपनी आंखों से देखा है और एक नहीं, कई बार. तुम हो कि न जाने कौन सी दुनिया में खोई रहती हो,’’ वसुधा की आंखों में गहरा दुख और चिंता थी.

वैशाली तड़प उठी थी, ‘‘लेकिन सुधीर तो मेरे हैं, सिर्फ मेरे. मुझ से पूछे बिना तो वह एक कदम नहीं उठाते फिर इतना बड़ा कदम कैसे? नहीं, लोग जलते हैं मुझ से, सुधीर से और हमारी कामयाबी से. यह शायद उन्हीं की कोई चाल होगी.’’

‘‘नहीं, चालवाल कुछ नहीं. बस इतना समझ लो, मर्द का प्यार आखिरी नहीं होता,’’ वसुधा ने कहा.

वैशाली बेजान सी सोफे पर गिर पड़ी और माथा पकड़ कर बैठ गई. फिर बुझे से स्वर में बोली, ‘‘क्या वह बहुत खूबसूरत है?’’

‘‘नहीं, तुम से क्या मुकाबला? लेकिन वही बात है न कि गधी पे दिल आ जाए तो परी क्या चीज है. सुना है कि सुधीर उस से जल्दी ही शादी करने वाले हैं.’’

‘‘शादी, नहींनहीं, ऐसा कैसे हो सकता है. क्या कमी है मुझ में. मैं ने क्या नहीं किया उन के लिए. बिजनेस को आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाने में मदद की. न दिन देखा न रात और फिर उन के घर को सजाया, संवारा. बच्चे, पैसा, शोहरत सबकुछ तो है, फिर?’’ वैशाली सुधीर की बेरुखी का कारण नहीं समझ पा रही थी.

‘‘शायद मर्द जात होती ही ऐसी है. मर्द कभी संतुष्ट नहीं होता. खैर, यह समय कमजोरी दिखाने का नहीं है. हमें खुद ही कुछ करना होगा और उस लड़की को डराधमका कर, बहलाफुसला कर किसी भी तरह सुधीर से दूर रखना होगा. और हां, सुधीर से इस विषय में अभी कुछ मत कहना वरना बात खुल कर सामने आ जाएगी. परदा पड़ा ही रहे तो अच्छा है.’’

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वसुधा तो वैशाली को समझाबुझा कर चली गई पर वैशाली का दम घुट सा रहा था. वह तो समझती थी कि सुधीर अपनी जिंदगी से संतुष्ट है फिर उस दूसरी औरत की जरूरत कहां से निकल आई थी यही सब सोचतेसोचते उस के आगे अतीत का दृश्य घूमने लगा.

वैशाली का सुधीर से परिचय उन दिनों हुआ था जब वह अपनी विज्ञापन एजेंसी का काम जमाने के लिए जीतोड़ कोशिश कर रहा था. वैशाली को उन दिनों काम की आवश्यकता थी और उसी सिलसिले में वह अपने किसी रिश्तेदार के माध्यम से सुधीर से मिली थी. सुधीर ने उसे साफसाफ कह दिया था कि वह अभी खुद ही संघर्ष कर रहा है. अत: ज्यादा वेतन नहीं दे सकेगा. अगर उसे कहीं और अच्छी नौकरी मिले तो वह जरूर कर ले. वैशाली इस बात पर हैरान थी पर उस ने बड़े विश्वास से कहा, ‘शायद इस की जरूरत ही न पड़े.’

और फिर कुछ ऐसा संयोग बना कि वैशाली के आते ही सुधीर को कामयाबी मिलती गई. वैशाली सुंदर होने के साथ मेहनती और समझदार भी थी. सुधीर ने उसे अपना दायां हाथ बना लिया था. जल्दी ही उन की एजेंसी का नाम देश भर में जाना जाने लगा था. सुधीर वैशाली से, और उस की कार्यपद्धति से बहुत प्रभावित था फिर एक दिन ऐसा भी आया जब सुधीर ने वैशाली के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया.

वैशाली को क्या आपत्ति हो सकती थी. सुधीर में कोई ऐब नहीं था. वह कम बोलने वाला, खुशमिजाज व चरित्रवान था. बस, कमी थी तो इतनी कि वैशाली के मुकाबले वह एक बहुत साधारण शक्लसूरत का इनसान था, लेकिन पुरुष कामयाब और मालदार हो तो उस की यह कमी कोई कमी नहीं होती और फिर सुधीर तो उस से प्यार भी करता था. एक खूबसूरत भविष्य तो उस के सामने खड़ा था. फिर भी वैशाली ने उस से पूछा था, ‘क्या आप को लगता है कि आप मुझ से विवाह कर के खुश रहेंगे?’

‘मैं ने तो सोच लिया है. तुम्हें सोचसमझ कर फैसला करना है. मुझे जल्दी नहीं है,’ सुधीर धीरे से मुसकराए थे.

‘पर मुझे है क्योंकि मेरी मां घर आए रिश्तों में से किसी को जल्दी ही ‘हां’ कहने वाली हैं,’ वैशाली शोख निगाहों से देखती मुसकराई थी.

‘ओह, तब तो फिर मुझे ही जल्दी कुछ करना होगा,’ उस के अंदाज पर वैशाली को हंसी आ गई थी.

दोनों जल्दी ही परिणयसूत्र में बंध गए थे. सारे शहर में इस विवाह की चर्चा रही और शायद उन के बीच बनने वाली दूरियों की नींव यहीं से पड़ गई थी. सुर्ख लहंगे, गहनों की चमक और मन की खुशी ने वैशाली की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए थे लेकिन उस के सामने सुधीर का व्यक्तित्व फीका पड़ रहा था. कुछ दोस्त ईर्ष्या छिपा नहीं पा रहे थे. ‘यार, किस्मत खुल गई तेरी तो, ऐसी खूबसूरत पत्नी? काश, हमारा नसीब भी ऐसा होता.’

तो कुछ दबी जबान से उस का मजाक भी उड़ा रहे थे, ‘हूर के पहलू में लंगूर’, और ‘कौए की चोंच में मोती’ जैसे शब्द भी उस के कान में पिघले शीशे की तरह उतर कर शादी के उत्साह को फीका कर गए थे.

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शादी के बाद भी वैशाली आफिस जाती थी. सुधीर को भी उस की सहायता की जरूरत रहती थी. शहर के बड़े लोगों की पार्टियों में भी उन की उपस्थिति जरूरी समझी जाती थी. हालांकि वैशाली का संबंध मध्यम वर्ग से था लेकिन उस ने बहुत जल्दी ही ऊंचे वर्ग के लोगों में उठनाबैठना सीख लिया था. एक तो वह पहले से ही खूबसूरत थी उस पर दौलत व शोहरत ने उस पर दोगुना निखार ला दिया था. अच्छे कपड़ों, गहनों की चमक के साथ सुख और संतोष ने उस के चेहरे पर अजीब सी कशिश पैदा कर दी थी. मेकअप का सलीका, बातचीत का ढंग, चलनेबैठने में नजाकत, सबकुछ तो था उस में. लोग उस की तारीफ करते, उस के आसपास मंडराते और लोगों की निगाहों में अपने लिए तारीफ देख वह चहकती, खिलखिलाती घूमती. उसे इन सब बातों का नशा सा होने लगा था. कई दिनों तक कोई पार्टी नहीं होती तो वह अजीब सी बेचैनी महसूस करती.

‘कई दिनों से कोई पार्टी ही नहीं हुई. क्यों न हम ही अपने यहां पार्टी रख लें,’ वह सुधीर से कहती तो सुधीर संयत स्वर में उसे मना कर देता था.

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Serial Story: अब बहुत पीछे छूट गया (भाग-1)

“मैं तो कहती हूं तुम ही फोन कर लो, अकड़ में क्यों हो? रिश्ते टूटने में ज्यादा देर नहीं लगती बेटा, पर जुड़ने में वर्षों लग जाते हैं…” सुमन के लिए चाय ले कर आईं उस की मां शांतिजी बोलीं। वे उसे समझाने लगीं,“पति की 2 बातें सुन ही लेगी तो क्या चला जाएगा? और झगड़ा किस पतिपत्नी के बीच नहीं होता बताओ तो…”शांति की बातों पर हामी भरते हुए भाई दीपक कहने लगा कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती. जरूर इस की भी गलती रही होगी.

मां और भाई की बातों पर सुमन का मन झल्ला पड़ा कि इन्हें कैसे समझाएं कि वहां उस के साथ क्याक्या बीत रहा था. बिना किसी गलती के वह सजा काट रही थी और क्या वह यहां अपनी मरजी से आई है? नहीं, बल्कि उसे भगाया गया। तो क्या वह इतनी गिरीपड़ी औरत है कि फिर उस दरवाजे पर अपनी नाक रगड़ने जाए?

“बोल न, बोलती क्यों नहीं, क्या तेरी गलती नहीं थी?” शांति ने जब फिर वही बात दोहराई तो सुमन तिलमिला उठी.

“हां हां हां… सारी गलती मेरी ही है. आप सब की नजरों में आज भी मैं ही गलत हूं और वह इंसान जो आएदिन मुझ पर जुल्म ढाता रहता था, वह सही…” बोलतेबोलते सुमन की आंखों से भरभरा कर आंसू टपकने लगे,“अगर मैं आप सब के लिए बोझ बन चुकी हूं तो चली जाती हूं यहां से भी,” कह कर वह बाथरूम में चली गई.

मन तो कर रहा था उस का अभी इसी वक्त खुद को खत्म कर ले, क्योंकि कोई नहीं है जो उस की बात समझ सके या उसे ढांढ़स दे सके, बल्कि सब के सब उसे ही दोष देने में लगे हैं. सोचा था कम से कम मां तो जरूर समझेंगी उसे, पर वह भी उस में ही दोष निकाल रही हैं. चाहती हैं फिर से जा कर पति के पैरों में वह गिर पड़े. लेकिन अब उस से यह नहीं होगा, क्योंकि बहुत सह लिया उस ने उस का अत्याचार.

लेकिन रोजरोज के तानेउलाहने और यह एहसास दिलाना कि गलती उस की भी है, उसे अपना घर छोड़ कर नहीं आना चाहिए था सुमन के बरदाश्त के बाहर होने लगा था. कई बार सोचा, कहीं चली जाएगी। नहीं रहेगी अब यहां, पर कहां जाएगी वह? कोई और ठिकाना है क्या? बहुत कुछ सोच कर यहां टिकी हुई थी. लेकिन आज मां और भाई की बातें उस के दिल में हौथोड़े की तरह बरसने लगा था.

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मां कहती हैं औरतों में सहनशक्ति होनी चाहिए. ऐसे अपना घर छोड़ कर नहीं आना चाहिए था उसे यहां, तो क्या वह जुल्म सहती रहती? आएदिन शराब पी कर मारपीट, गालीगलौज… आखिर कितना सहती वह और कब तक? इसलिए वह पति का घर छोड़ कर मायके आ गई. लेकिन उसे नहीं पता था कि यह घर भी उस के लिए पराया हो चुका है.

लड़की का अपना घर कौन सा होता है, यह बात आज तक बेटियां समझ नहीं पाईं. बचपन से ही लड़कियों के दिमाग में यह बात बैठा दी जाती है कि तुम तो पराई हो, एक दिन अपने घर चली जाओगी. लेकिन बेटियां ही पराई क्यों हो जाती हैं, बेटे क्यों नहीं? जबकि जन्म तो दोनों ने एक ही मां के पेट से लिया है, फिर यह पक्षपात क्यों? क्यों बेटियां किसी की अमानत समझ कर पाली जाती हैं, जबकि बेटे को परिवार का वंश समझा जाता है?ससुराल में भी लड़कियों को पराए घर की बेटी कह कर बुलाया जाता है. जहां एक लड़की शादी कर के जाती है, वह घर भी या तो उस के पति का होता है या सासससुर का. फिर लड़कियों का अपना घर है कौन सा? यह सारे सवाल सुमन के दिल में कुलबुलाते रहते, पर पूछती किस से?

सुमन के लिए अपनी मां के घर में रहना अब गंवारा नहीं था और यहां के अलावा अब एक ही ठिकाना बचा था उस के पास, उस की प्यारी सखी मीता का घर. कई बार वह उसे अपने घर आने के लिए बोल कर चुकी थी. लेकिन गृहस्थी की झंझटों में सुमन ऐसी उलझी थी कि कभी जाने का मौका ही नहीं मिला.

अपनी प्यारी सहेली की आने की खबर सुन कर मीता बहुत खुश हो गई थी. वह खुद उसे स्टेशन पर लेने आई थी और कहा था कि कोई चिंता की बात नहीं है, वह जब तक चाहे यहां रह सकती है. सुमन की दुख भरी कहानी सुनकर मीता को भी बुरा लगा था. लेकिन सुमन को नहीं पता था कि यहां भी उसे चैन से रहना मुश्किल हो जाएगा. मीता के पति राजन की गंदी नजरें लगातार उसे घूरती रहती थीं. सुमन जितना उस से दूर रहने की कोशिश करती, वह उतना ही उस के करीब आने की फिराक में लगा रहता था। मीता के सामने तो वह काफी शराफत से पेश आता सुमन के साथ. लेकिन अकेले पा कर वह उसे यहांवहां छूने की कोशिश करता, कभी उसे अपनी बुलंद बाजुओं में कस कर दबा देता. वह कसमसाई सी उस से छूट कर ऐसे भागती जैसे शिकार शिकारी के पंजों से. डर लगने लगा था अब उसे राजन के सामने जाने में भी.

कभी मन करता कि मीता को सब सचाई बता दें, लेकिन फिर यह सोच कर चुप रह जाती कि कहीं वह उलटे उसे ही गलत समझ बैठी तो? क्योंकि उस का पति उस की नजरों में दुनिया का सब से अच्छा इंसान जो था. और अभी उस की यह स्थिति भी तो नहीं थी कि सामने वाले पर उंगली उठा सके. इस आड़े वक्त में मीता ने ही उस का साथ दिया, उसे अपने घर में पनाह दी, तो कैसे वह उस के पति के बारे में कुछ बोल सकती थी, इसलिए चुप थी और उसषकी इसी चुप्पी का फायदा राजन उठाने लगा था. जबतब उस के कमरे में घुस जाता और फिर सौरीसौरी बोल कर बाहर आ जाता.
कई बार उस ने देखा उसे अपने कमरे में ताक-झांक करते हुए.

जिंदगी में एक पति के न होने से कैसे दुनिया के सारे मर्दों की नजर एक औरत के लिए गंदी हो जाती है, आज सुमन को यह बात समझ में आने लगी थी. कई बार मन हुआ, सूरज के पास चली जाए. मगर फिर उस की ज्यादतियों को याद कर उस का रोमरोम सिहर उठता और जाने का खयाल त्याग देती. सोच रही थी कहीं छोटीमोटी नौकरी मिल जाती तो वह अपने रहने का ठिकाना भी तलाश लेती. लेकिन मीता का कहना था कि अभी इतनी जल्दी क्या है उसे. क्या यहां उसे कोई तकलीफ है? पर वह उसे कैसे समझाए कि अब उस का यहां रहना खतरे से खाली नहीं है.

उस रात दरवाजा खुलने की आवाज से सुमन चौंक कर उठ बैठी थी. देखा, एक चोर की भांति राजन उस के कमरे में प्रवेश कर रहा था. पूछने पर कि कुछ चाहिए? तो बेशर्मों की तरह हंसते हुए कहने लगा कि उसे लगा सुमन बोर हो रही होगी इसलिए कंपनी देने चला आया.

“नहीं, मैं ठीक हूं आप जाइए,” कह कर दरवाजे की छिटकिनी लगा कर सुमन ने चैन की सांस ली थी. लेकिन पानी में रह कर वह मगर के साथ कब तक बैर कर सकती थी? न चाहते हुए भी साथ में उठानाबैठना, खानापीना तो होता ही था. कभीकभी तो राजन टेबल के नीचे से उस के पैरों में अपने पैर फंसा देता और गंदेगंदे इशारे करता. उस की ऐसी हरकतों से सुमन का चेहरा शर्म से नीचे झुक जाता था. घिन्न आने लगी थी सुमन को अब राजन के चेहरे से भी. मगर बरदाश्त करना उस की मजबूरी थी.

एक रात जाने कैसे राजन उस के कमरे में घुस आया और उस के साथ जबरदस्ती करने लगा.
“यह क्या कर रहे हैं आप? छोड़िए मुझे,” कह कर वह राजन के चंगुल से छूट कर दूर चली गई, लेकिन उस ने फिर उसे अपने मजबूत बांहों में दबोच लिया और यहांवहां छूनेचूमने लगा.

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आवाज सुन कर जब मीता कमरे से बाहर आई और दोनों को आपस में लिपटेचिपटे देखा, तो अवाक रह गई।लेकिन चालाक राजन अपनी पत्नी के सामने बेचारा बन कर सारा दोष सुमन के सिर मढ़ दिया और कहने लगा कि वही उस पर डोरे डाल रही थी और आज मौका देख कर उस के साथ जबरदस्ती करने लगी.

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Serial Story: अब बहुत पीछे छूट गया (भाग-2)

कहती रही सुमन कि राजन झूठ बोल रहा है, बल्कि वही उस पर गंदी नजर रखता था और आज उस ने ही उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की है. भरोसा करे उस पर, उस ने कुछ नहीं किया है. मगर मीता ने उस की एक भी बात पर भरोसा नहीं किया और रात को ही उसे अपने घर से निकल जाने का हुक्म सुना दिया. इतना तक कह दिया कि वह ‘आस्तीन की सांप’ निकली। गलती हो गई उसे अपने घर में लाकर. मगर मीता ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि गलत उस का पति की भी हो सकता है.

रोतेरोते कहती रही सुमन की इतनी रात को वह कहां जाएगी। सुबह तक की मोहलत दे दे. लेकिन मीता ने धक्के मार कर उसे अपने घर से बाहर निकाल दिया.

इस कुप्प अंधेरी रात में कहां जाती वह? न तो उस के लिए पति के घर का दरवाजा खुला था और ना ही मां का. मीता ने भी उस पर अविश्वास कर उसे अपने घर से निकाल दिया, तो अब उस के पास एक ही रास्ता बचता था, मौत का. वैसे भी अब उस के पास जीने के लिए रखा ही क्या था. वह पागलों की तरह सड़क पर चली जा रही थी मरने के लिए, मगर उसे नहीं पता था कि कुछ गुंडे उस का पीछा कर रहे हैं। मौका मिलते ही सुनसान गली में उन तीनों ने सुमन को धरदबोचा और उसके साथ जबरदस्ती करने लगे. सुमन जोरजोर से चिल्लाने लगी. मगर इतनी रात गए सुनसान गली में कौन सुनता उस की आवाज? लेकिन तभी तेज रफ्तार से एक गाड़ी आ कर उस के सामने रुकी. गाड़ी की तेज रोशनी से उन गुंडों की आंखें चौंधिया गई. चिल्लाया,“कौन है बे? हिम्मत है तो सामने आ.“

“रात के अंधेरे में कुत्ते की तरह भौंकने वाले, हिम्मत है तो तू मेरे सामने आ कर भौंक,”एक गरजती आवाज सुन तीनों चौंक पड़े. लेकिन सामने एक महिला को देख उन की हंसी छूट पड़ी, क्योंकि उन्हें लगा एक अकेली औरत क्या बिगाड़ लेगी उन का?

पुरुषों की मानसिकता आज भी यही है कि औरत कमजोर, अबला नारी होती है, जिसे वह जब चाहे अपने पैरों के नीचे रौंद सकता है. लेकिन उस महिला ने उन गुंडों पर लातघूंसों की बारिश शुरू कर दी। ऐसा पस्त कर दिया तीनों को मारमार कर कि वे वहां से भागने के लायक भी नहीं बचे. तब तक पुलिस भी वहां पहुंच गई और तीनों गुंडों को घसीटते हुए गाड़ी में बैठाषकर ले गई.

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35-36 साल की उस महिला की स्फूर्ति और निडरता देख कर सुमन भी दंग रह गई थी।
“घर से भाग रही थी या किसी नदीनाले में कूद कर मरने जा रही थी?“ ऊपर से नीचे तक सुमन को घूरते हुए जब उस महिला ने पूछा, तो वह सहम उठी.

“इस का मतलब मैं सही हूं. चलो बैठो गाड़ी में,” उस ने इशारा किया. लेकिन सुमन अब भी वैसे ही अपनेआप में सिमटी खड़ी थी. उसे डर लग रहा था कि पता नहीं यह औरत कौन है और उसे कहां ले जाएगी. अब किसी पर उसे भरोसा नहीं रह गया था.

“डरो मत, बैठो गाड़ी में,” जब उस ने फिर कहा तो सुमन को गाड़ी में बैठना ही पड़ा, क्योंकि चारा भी क्या था उस के पास. कुछ ही देर में गाड़ी एक टावर के पास आ कर रुकी. गाड़ी की हौर्न सुनते ही दौड़ कर वाचमैन ने गेट खोला और अदब से उस महिला को नमस्ते किया. उस का घर 7वें फ्लोर पर था. घबराई सी सुमन यहां तक तो आ गई, पर उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था कि जाने आगे क्या होगा? कहीं उस के साथ फिर कुछ गलत हो गया तो? लेकिन घर में प्रवेश करते ही उसे एक अजीब सा एहसास हुआ. वह इधरउधर देखने लगी. घर बहुत बड़ा नहीं था, पर बहुत ही करीने से सजा हुआ था. दीवारों पर तसवीरें, खिड़कियोंदरवाजों पर लहराते परदे, एक कोने में बिस्तर और एक कोने में दीवान। टीवी के सामने फर्श पर गद्दा व तकिए. स्टूल पर लैंप. मेज के पास किताबों का रैक. वह कमरा ऐसा लग रहा था जैसे एक रंगीन पत्रिका.

“कौफी पीओगी?” गैस पर बरतन चढ़ाते हुए जब उस महिला ने पूछा तो सुमन अकचका कर उस की तरफ देखने लगी.

“जानती हो, चाहे कितनी भी देर हो जाए मुझे घर लौटने में, जब तक 1 कप कौफी बना कर न पी लूं, मजा नहीं आता. पीती तो हो न कौफी?”

“हां, पीती हूं,” सूखते गले से बोल कर सुमन धीरे से कुरसी पर बैठ गई. कुछ ही देर में वह 2 कप कौफी और सैंडविच बना कर ले आई. सुमन को कौफी पकड़ाते हुए वह अपनी भी कौफी उठा कर चुसकियां भरने लगी.

“मैं ने तुम्हारा नाम तो पूछा ही नहीं. क्या नाम है तुम्हारा?” उस महिला ने पूछा तो धीरे से सुमन ने कहा,”सुमन।”

“अच्छा नाम है, और मैं किरण हूं,” बोल कर वह हंसी.

“वैसे, सुमन का मतलब पता है तुम्हें? हंसमुख, हमेशा प्रसन्न रहने वाला. मगर तुम तो कितनी दुखी नजर आ रही हो? क्या कोई समस्या है जिंदगी में? मरने क्यों जा रही थी?”सुबह की चाय पीते हुए जब किरण ने पूछा तो सुमन की आंखों से आंसू बहने लगे. किरण ने उसे रोने से इसलिए नहीं रोका, क्योंकि रोने से इंसान का मन हलका हो जाता है. कुछ देर रो लेने के बाद जब उस का मन जरा हलका हुआ तो सुमन बताने लगी…

ग्रैजुएशन करने के बाद वह आगे और पढ़ना चाहती थी. उसका शुरू से एमबीए करने का मन था. उस की कई सहेलियों ने भी गैजुएशन के बाद एमबीए करने का सोच रखा था. इसलिए वह चाहती थी उन के साथ वह भी उसी कालेज में ऐडमिशन ले ले। मगर सुमन के मातापिता उस की शादी कर देना चाहते थे. कितना कहा सुमन ने कि उसे आगे और पढ़ने दें. पर उन की सोच कि ‘वक्त के साथ लड़कियों की शादी हो जाए वही अच्छा होता है’ के आगे सुमन की एक न चली. बेटी मांबाप के लिए एक बोझ से कम नहीं होती, जिसे वह जितनी जल्दी हो सके उतार कर अपना माथा हलका कर लेना चाहते हैं.

अच्छा घरवर मिलते ही सुमन के मातापिता ने उस की शादी सूरज से तय कर दी जो एक सरकारी विभाग में अच्छे पद पर कार्यरत था. शहर में उस ने अपना घर भी बना लिया था तो और क्या चाहिए था उन्हें. लगा बेटी सुख करेगी वहां जा कर. लेकिन उन की सोच गलत थी. अच्छी नौकरी और बड़ा घर होने से लोगों के विचार भी अच्छे और दिल बड़ा नहीं हो जाता.

ससुराल में कुछ दिन रहने के बाद ही सुमन को पता चल गया कि सूरज अच्छा आदमी नहीं है. शराबी तो वह है ही, कई औरतों के साथ भी उस के नाजायज संबंध हैं. शराब पीना, औरतों के साथ रातें गुजारना उस की आदतों में शामिल है.

उस के किस्से सिर्फ घर वालों को ही नहीं, बल्कि मोहल्लेभर में भी सब जानते थे.

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यह जानते हुए कि सूरज एक नंबर का ऐयाश इंसान है, उस की शादी करा दी गई.

एक दिन जब सुमन ने इस बात पर लड़ाई की और कहा कि जब बाहर के औरतों के साथ ही संबंध रखना था, तो फिर उस से शादी क्यों की? इस बात पर सूरज ने उसे बहुत मारा, यह कह कर कि वह मर्द है जो चाहे कर सकता है. गुस्से में सुमन ने अपनी सास से कहा भी कि जब उन्हें पता था कि उस का बेटा शराबी है, कई औरतों से उस के संबंध हैं,तो फिर क्यों उस ने उस की जिंदगी बरबाद की? क्यों नहीं बताया सब कुछ? क्यों अपने बेटे की गंदी आदतों को छिपाया?

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Serial Story: अब बहुत पीछे छूट गया (भाग-3)

सास रोते हुए कहने लगीं कि उसे लगा था शादी के बाद उस का बेटा सही रास्ते पर आ जाएगा.

“एक मां हो कर जब आप अपने बेटे को सही राह पर नहीं ला पाईं, फिर मुझ से कैसे उम्मीद लगा लिया कि मैं उसे सही राह पर ला सकती हूं?”

सास के पास कोई जवाब नहीं था. बेटे के आदतों से त्रस्त सुमन की सास अपनी बेटी के पास रहने चली गईं. लेकिन सुमन कहां जाती?
रोजरोज शराब पीकर आधी रात को घर आना और कुछ पूछने पर उलटे सुमन को मारना, गंदीगंदी गालियां देना सूरज की आदत बन चुकी थी.

कभीकभी तो बिना बात के ही वह सुमन को मारने और गाली देने लगता था. सुमन को वह अपने पैरों की जूती के बराबर समझता था. सूरज यह सोच कर अपनी पत्नी पर जुल्म ढाता कि वह मर्द है और जो चाहे कर सकता है।

सुमन पर उस का अत्याचार रोजरोज बढ़ता ही चला जा रहा था. जब सुमन रोरो कर अपनाशदर्द मां को बताती, तो उलटे वह उसे ही समझाने लगतीं कि मर्द ऐसे ही होते हैं. औरतों को संभालना आना चाहिए.

एक रात एक महिला की बांहों में झूमतेहुए जब सूरज घर आया और कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा लगा लिया, तो सुमन अंदर तक सुलग उठी. कैसे एक पत्नी यह बात बरदाश्त कर सकती थी कि उस का पति उस के ही सामने, उस के ही बैडरूम में किसी गैर महिला के साथ….

‘इतना कैसे गिर सकता है यह इंसान’ सुमन बड़बड़ाई और जोरजोर से दरवाजा पीटने लगी. गुस्से में सूरज बाहर आया और उस औरत के सामने ही मारतेमारते यह बोल कर सुमन को घर से बाहर निकाल दिया कि अब न तो उस की जिंदगी में और न ही इस घर में उस के लिए कोई जगह है. रोतीचीखती रही वह, दरवाजा पीटती रही, पर सूरज ने दरवाजा नहीं खोला. आसपड़ोस वाले सब देख रहे थे. मगर उन्हें क्या जरूरत थी किसी के घरेलू मामलों में दखल देने की. सो सब तमाशा देख अपनेअपने घर चले गए.

घंटों वह दरवाजे के बाहर सिसकती रही, पर सूरज ने दरवाजा नहीं खोला. फिर क्या करती वह?

फिर वह मायके आ गई लेकिन यहां भी उस का वास नहीं हुआ. मां बातबात पर समझाती रहतीं कि वह अपने घर लौट जाए, क्योंकि वे कब तक उस का बोझ उठा पाएंगे. भाई बढ़ते खर्चे को ले कर अलग सुनाता रहता था और भाभी तो उसे देखना तक नहीं चाहती थी. सोचती कब वह उस घर से निकल जाए.

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“आखिर हम औरतों की स्थिति इतनी बदतर क्यों है? हमें ही क्यों सब सहना पड़ता है?” सुमन बोली.

सुमन की दर्दभरी कहानी सुन कर किरण को बहुत दुख हुआ.
बोली,“लेकिन यह कौन सी नई बात है सुमन? मर्द तो शुरू से ही औरतों पर राज करते आए हैं, उसे अपना गुलाम समझते आए हैं. चाहे बाप हो, भाई हो या पति, सब ने औरतों को दबा कर रखना चाहा. जो दब कर रहीं वह सीता, सावित्री कहलाईं और जो नहीं दबीं वह बदचलन, बेहया बन गईं. लेकिन जरूरत आज इस बात पर भी अंडरलाइन करने की है कि खुद औरतें इस बात से इनकार करती हैं कि पति उस पर जुल्म करता है.

“पूछो तो यही जवाब मिलेगा कि यह उन के घर का मामला है। आप रहने दो. चाहे पति मारेपीटे, जान ही क्यों न ले ले, पर कई औरतों के लिए उस का पति देवता है, परमेश्वर है।”

किरण बोली,”आज औरतों की स्थिति बदतर इसलिए है, क्योंकि वह सहना जानती है, लड़ना नहीं. जिस दिन औरतें अपने हक के लिए लड़ना शुरू कर देंगी न, सच कहती हूं सुमन, सही मानों में उस दिन औरतों को आजादी मिलेगी, गुलामी और बेचारगी जैसे शब्दों से. मगर औरतें खुद ऐसा चाहती हैं क्या? मैं तो कहती हूं कि तुम्हें उसी दिन पति का घर छोड़ देना चाहिए था, जब उस की करतूतों का तुम्हें पता चला था. लेकिन तुम ने ऐसा नहीं किया क्योंकि तुम्हें लगा एक दिन वह सुधार जाएगा.”

“आपशकी एकएक बात सही है किरणजी, लेकिन दुख तो मुझे इस बात का है कि मेरे मांबाप ने भी मुझे नहीं समझा, वरना मुझे यों दरदर की ठोकरें न खानी पड़ती,” बोलतेबोलते सुमन सिसकने लगी.

“नहीं, रोना नहीं, रोते तो बुजदिल लोग हैं और तुम तो बहादुर लड़की हो. तुम कमजोर नहीं हो सुमन यह दिखा दो दुनिया वालों को और एक बात, तुम मुझे किरणजी नहीं, बल्कि दीदी कह कर बुलाओगी, तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा,” उस के सिर पर हाथ फेरते हुए जब किरण बोली तो उसे पकड़ कर सुमन फूटफूट कर रोने लगी.

आज पहली बार कोई ऐसा मिला था, जो उस के दर्द को समझ रहा था, वरना तो सब ने उसे ही कटघरे में खड़ा किया यह बोल कर कि गलती उसी की है.

“बसबस… अब रोना बंद करो,” सुमन के आंसू पोंछते हुए किरण बोली, “तुम ने कहा था तुम एमबीए करना चाहती थीं?”

“जी।”

“तो आगे क्या करने का सोचा है, एमबीए या सुसाइड?” बोल कर किरण हंसी तो सुमन भी हंस पड़ी,“देखो, तो हंसते हुए तुम कितनी प्यारी लग रही हो,” प्यार से सुमन को निहारते हुए किरण बोली.

“दी, मैं एमबीए करना चाहती हूं, सपना है मेरा. लेकिन मैं कोई छोटीमोटी नौकरी भी करना चाहती हूं ताकि अपना खर्चा उठा सकूं,”सुमन बोली.

सुमन नहीं चाहती थी कि वह किरण पर बोझ बन कर रहे. और किरण भी नहीं चाहती कि उसे लगे वह उस पर कोई एहसान कर रही है, इसलिए उस के नौकरी करने वाली बात पर उस ने हामी भर दी.

किरण अनाथ बच्चों के लिए एक एनजीओ चलाती थी. इस के अलावा वह जरूरतमंदों की भी मदद करती रहती थी. किरण का बड़े-बड़े लोगों से पहचान था, तो उनषसे बोल कर सुमन की नौकरी भी लगवा दी और उस का एमबीए में एडमिशन भी हो गया.

जो सुमन पहले हरदम उदास रहा करती थी, अब काफी खुश रहने लगी थी. उस की नाइट शिफ्ट ड्यूटी होती थी। वह सुबह उठ कर किरण के साथ घर के कामों में हाथ बंटा कर कालेज निकल जाती, फिर देर रात ही घर वापस आती थी. जिंदगी अब अच्छी लगने लगी थी उसे.

एमबीए की पढ़ाई पूरी होते ही एक बड़ी कंपनी में सुमन की नौकरी लग गई. कल तक यही सुमन थी जिस का कोई ठिकाना नहीं था. दरदर भटकने को मजबूर थी वह. लेकिन आज उस के पास सब कुछ है. सुमन और किरण छोटा सा घर छोड़ कर एक बड़े घर में आ गई थी. अब सुमन बस से नहीं, बल्कि अपनी गाड़ी से औफिस जाने लगी थी.

एक दिन यह सोच कर सुमन के आंखों में आंसू आ गए कि अगर किरण न आई होती उस की जिंदगी में या तो वह आत्महत्या कर चुकी होती या रोरो कर अपनी जिंदगी काट रही होती कहीं पर.शलेकिन आज उस की जिंदगी उमंगों से भरी हुई है.

लेकिन एक बात उसे बड़ा दर्द देता था, वह यह कि हरदम हंसनेमुसकराते और लोगों की मदद करने वाली किरण कभीकभी उदास क्यों हो जाती है? कई बार पूछना चाहा सुमन ने, पर यह सोच कर रुक जाती कि शायद उसे ठीक न लगे.

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उस रात बैड पर दोनों समांतर लेटी हुई थीं. बगल में कौफी का 2 मग रखा हुआ था और दोनों यहांवहां की बातें कर रही थीं.

“दी, आज भी यह सब सोच कर हंसी आती है कि कैसे आप ने उन तीनों गुंडों को पानी पिलापिला कर मारा था. कैसे आपषने उन्हें पस्त कर दिया था. आप में इतनी हिम्मत आई कहां से? मैं तो 1 को भी ना मार सकूं और आप ने 3-3 को धूल चटा दिया। कैसे दी?” सुमन ने पूछा.

उस की बात पर पहले तो किरण हंसी, फिर बोली, “वह इसलिए क्योंकि मैंने कराटे का कोर्स किया हुआ है. ब्लैक बैल्ट हूं मैं समझी।”

“ओह, तभी…” अपनी आंख नचाते हुए सुमन बोली,“दी, एक बात और पूछूं आप से? बुरा तो नहीं मानोगी?”

उस की बात पर किरण ने मुसकराते हुए न में सिर हिलाया.

“दी,आज तक आप ने शादी क्यों नहीं की?” बहुत दिन तक अपने आप को रोके रखने के बाद आज सुमन ने पूछ ही लिया.

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उस की बात पर पहले तो किरण चुप रह गई. फिर मीठे भाव से मुसकराई और फिर गंभीर हो गई.

“बोलो न दी, आज तक क्यों आप अकेली हो. पढ़ीलिखी हो, इतनी सुंदर भी हो, फिर भी क्यों आप अकेली हो आज तक?”

“क्योंकि मेरे लायक कोई मिला ही नहीं… और जो मिला वह मेरा हो नहीं पाया,” बोल कर वे चुप हो गईं.

“हो नहीं पाया मतलब…” सुमन आज जान लेना चाहती थी कि आखिर क्यों अब तक किरण दी अकेली हैं?

“क्योंकि जिस से मैं ने प्यार किया, वह इंसान दगाबाज निकला. फायदा उठाया उस ने मेरा सिर्फ. आज भी सोचती हूं, तो लगता है कितनी स्टुपेड थी मैं जो उसे जान नहीं पाई. जानती हो सुमन, मैं ने उस के लिए कितना त्याग किया? जब उस की नौकरी छूट गई थी तब मैं ने उस के सारे खर्चे हंसतेहंसते उठाए. अपने परिवार के खिलाफ जा कर मैं उस के साथ लिवइन में रहने लगी और वह मेरी आंखों में धूल झोंक कर कईकई लड़कियों से संबंध रखता रहा.

“एक दिन जब मैं ने अपनी इन्हीं आंखों से उसे उस लड़की के साथ हमबिस्तर होते हुए देखा, तो सन्न रह गई थी. पूछा उस से कि हम दोनों तो एकदूसरे से प्यार करते थे न, शादी कर के अपनी छोटी सी गृहस्थी बसाने का सपना देखा था न, फिर उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? क्यों धोखा दिया उस ने मुझे? तो बेशर्मों की तरह हंसते हुए बोला कि उस का कई लड़कियों के साथ संबंध हैं तो क्या वह सब के साथ शादी कर ले।

“पागल थी मैं जो उस की बातों में आ कर अपने परिवार से रिश्ता खत्म कर लिया. गई थी मांपापा के पास अपनी गलतियों के लिए माफी मांगने, पर उन्होंने मेरे मुंह पर ही दरवाजा दे मारा यह बोलशकर कि मैं उन के लिए मर चुकी हूं. झूठ नहीं कहूंगी, फिर कई पुरुष आए मेरे जीवन में, पर सब ने मुझ से नहीं, बल्कि मेरे शरीर से प्यार किया. जैसे ही भूख मिटी मुझे छोड़ कर किसी और की बांहें तलाशने लग गए.

“अब तो सोच लिया है कि एकला ही चलूंगी अब।

“विकट मोड़ों वाली झाड़झंकर भरी जिंदगी में अटकाभटका आज मैं जीवन के ऐसे मुकाम पर पहुंच गई हूं जहां अब मुझे किसी के साथ की जरूरत नहीं है. खुश हूं मैं उन बच्चों के साथ जो इस दुनिया में अनाथ हैं.”

आगे पढें- किरण की बातें सुन सुमन….

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Serial Story: अब बहुत पीछे छूट गया (भाग-4)

किरण की बातें सुन सुमन की आंखें भर आईं. बोली,“हर व्यक्ति के साथ कितना कुछ गोपनीय होता है. सतह के ऊपर किसी से मिलते हुए, उस के बारे में बहुत कुछ जानते हुए भी हम उसशके अंतर्मन के गहन कोने से कितने अनजान रहते हैं न दी और हमें इस का भान भी नहीं होता,” एक उदास मुस्कान के साथ सुमन बोली.

“हूं…” एक गहरी सांस छोड़ते हुए किरण बोली, “सही कह रही हो तुम. अच्छा छोड़ो अब यह सब बातें. यह बताओ वह लड़का…अरे वही जो औफिस में तुम्हारे साथ काम करता है, क्या नाम है उस का… हां, सत्यम… कैसा लगता है तुम्हें?” सुमन की आंखों में झांकते हुए किरण ने पूछा तो शरमा कर सुमन ने अपनी नजरें झुका ली.

“न न… ऐसे शरमाने से थोड़े ही चलेगा, बताना पड़ेगा बहन कि चक्कर क्या चल रहा है तुम दोनों के बीच?”

“दी आप भी न, ऐसी कोई बात नहीं है सच में,”नजरें झुकाए सुमन मुसकराई.

“अच्छा, मुझ से झूठ बोलोगी? मैं उड़ती चिड़िया के पंख गिन लेती हूं तो तुम क्या हो? अरे भई मैं ने भी प्यार किया है, तो क्या समझ नहीं सकती तुम्हारी आंखों की भाषा?”

“प्यारव्यार कुछ नहीं, बस दोस्ती है हमारे बीच. एकदूसरे का साथ अच्छा लगता है हमें और कुछ नहीं दी,” सुमन बोली.

“और कुछ नहीं दी… मुंह बनाते हुए किरण बोलीं,“अरे पागल इसे ही तो प्यार कहते हैं. एकदूसरे का साथ अच्छा लगना, एकदूसरे के खुशी में खुश होना, एक दिन भी न मिलने पर बेचैन हो जाना, यही तो प्यार है पगली।”

सुमन के गालों पर शर्म की लाली देख किरण को एक शरारत सूझी,“वैसे, सुना है वह बंदा शादीशुदा है और उसशका एक बेटा भी है?”

“क्या…” सुमन भयंकर तरीके से चौंकी, “पर आप को कैसे पता यह सब?” उसे लगा शादीशुदा होते हुए भी कहीं वह लड़का उसे अपने जाल में तो नहीं फंसा रहा है?

“अरे, कल तुम ही तो नींद में बड़बड़ा रही थी यह सब बातें बोल कर,” किरण ठठा कर हंस पड़ी, “मज़ाक कर रही हूं।”

“ओह दी, आप ने तो मेरी जान ही ले ली,” अपने दिल पर हाथ रख सुमन बोली.

“अरे वाह, अभी तो कह रही थी कोई प्यारव्यार नहीं है तुम दोनों के बीच, तो फिर यह क्या है?”

किरण की बात पर वह लजा गई.

“वैसे, एक रोज उसे खाने पर बुलाओ. देखें तो बंदा है कैसा? मेरी बहन के लायक है भी या नहीं,” सुमन के गालों पर प्यार की थपकी देते हुए किरण बोली.

किरण को सुमन के लिए सत्यम एकदम सही लड़का लगा. ‘हां, दोनों की उम्र में अंतर जरूर है, लेकिन प्यार में सब जायज है और आजकल के लड़के तो अपनी उम्र से बड़ी लड़कियों को पसंद करने लगे हैं’ किरण ने सोचा.

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सत्यम को पूरी और आलू की भाजी बहुत पसंद है इसलिए आज उस के ही पसंद का खाना बन रहा था. सुमन ने पूरी बेल कर किरण को दी, तो उसे कङाही में छोड़ते हुए किरण बोली, “यह अच्छा है सुमन जो तुम्हें सत्यम जैसा जीवनसाथी मिला. देखा मैं ने उस की आँखों में तुम्हारे लिए प्यार. लेकिन क्या सत्यम के मातापिता भी तैयार हैं तुम दोनों के रिश्ते के लिए?”

“सत्यम के पापा नहीं हैं, मां हैं और एक बड़ी बहन है, जिन की शादी हो चुकी है. मिल चुकी हूं मैं उन सब से. कोई दिक्कत नहीं है उन्हें हमारे रिश्ते से,” पूरी बेल कर किरण के हाथों में पकड़ाते हुए सुमन बोली.

“फिर तो ठीक है, कोई समस्या नहीं है. लेकिन एक समस्या है. कहीं सूरज ने तुम्हें तलाक देने से मना कर दिया, तो क्या करोगी फिर?” सुमन की तरफ देख कर किरण बोली.

मगर उस दिन सत्यम के साथ सुमन को देख कर सूरज ने कैसे रिएक्ट किया था, यह नहीं बताई थी दी को।

गुस्से से उबलते हुए कहने लगा कि उसे क्या लगता है. वह उसे तलाक दे देगा? ताकि वह इस सत्यम से शादी कर सके. कभी नहीं, कभी वह उसे तलाक नहीं देगा.

उस पर सुमन बोली थी,“जैसा तुम ठीक समझो. लेकिन यह भी जान लो,:तुम ने मुझ पर जितने भी जुल्म किए हैं न सूरज, उस का एकएक सुबूत है मेरे पास और वह आसपड़ोस के लोग जिन्होंने रोज मुझे तुम्हारे हाथों मारगालियां खाते देखा है, क्या वे गवाही नहीं देंगे तुम्हारे खिलाफ? शादीशुदा होने के बाद भी तुम्हारे कई औरतों से संबंध हैं, वह भी बताऊंगी मैं पुलिस को. फिर तो तुम्हें जेल जाने से कोई रोक नहीं सकता. नौकरी तो जाएगी ही समझ लो और तलाक तो मुझे वैसे भी मिल जाएगा. तो सोच लो, फायदा किस का ज्यादा है, मेरा या तुम्हारा? और जब हमारे बीच अब कुछ बचा ही नहीं, तो फिर नाम के रिश्ते को क्यों ढोना?” बोल कर सुमन लौट आई थी और वह देखता रह गया था.

शायद उसे भी सुमन की बात समझ में आ गई थी कि इस में ही उस की भलाई थी.

“देगा वह मुझे तलाक, आप चिंता मत करो दी, क्योंकि उसे भी मुझ से छुटकारा चाहिए,” सलाद काटते हुए सुमन बोली.

खानापीना खत्म होने के बाद किरण ने ही कहा वह सत्यम को उस के घर तक छोड़ आए. मन तो सुमन का भी था जाने का, पर बोलने में उसे शर्म आ रही थी. जब किरण ने कहा तो वह झटपट तैयार हो गई जाने के लिए.

मौसम आज बहुत सुहाना था इसलिए दोनों घूमतेघूमते एक पार्क में बेंच पर जा कर बैठ गए और अपने भविष्य के सपने बुनने लगे.

“कैसा लगा मैं तुम्हारी दीदी को? पसंद आया या नहीं?” सत्यम ने पूछा.

“क्यों पूछ रहे हो ?” सुमन बोली.
“मतलब, उन्हें मैं पसंद आया या नहीं?” सत्यम बोला.

“तो क्या? शादी मुझे करनी है तुम से, और तुम मुझे बहुत पसंद हो,” जब अपनी आंखें बंद कर सुमन बोली, तब एकटक से सत्यम उसे निहारने लगा.

अचानक से उसे सुमन पर बहुत प्यार आने लगा. सुरक्षित एकांत जगह देख कर एकायक सत्यम मुड़ा और सुमन को अपने आलिंगन में भर कर उस के अधरों को चूम लिया. गहरी मुसकान के साथ सुमन भी उसे प्यार से देखने लगी. पुरुष के साथ उस का यह पहला भरपूर आलिंगन था, इसलिए सुमन की रीढ़ में हलकी सी झुरझुरी पैदा हो गई. सूरज ने कभी उसे इस तरह से बांहों में भर कर प्यार नहीं किया था. उसे तो सिर्फ सुमन के शरीर से प्यार था, जिसे वह जबतब रौंदता रहता था.

जब सत्यम ने सुमन के होंठों पर दबाव बढ़ाया, तो यौवन वेग के अनेक लहरें अचानक देह में गहराने लगीं.

सत्यम ने कहा कि आज रात वह उसशके घर ही रुक जाए. उसकी मां एक रिश्तेदार की शादी में गई हुई हैं, तो कोई समस्या नहीं है.

“हां, लेकिन दी को क्या कहूंगी?”

सुमन बोली. मन तो उस का भी तड़प रहा था अपने शरीर के ताप को बुझाने के लिए.

“ठीक है, मैं कोई बहाना बना देती हूं,” बोल कर सुमन मुसकराई.

आज उन के दरमियान कोई नहीं था सिवाय खामोशी के. चुंबन के दौरान सुमन ने महसूस किया कि उस की कमीज के बटन खोले जा रहे हैं. अब दृढ़ आलिंगन में सुमन की नग्न पीठ पर सत्यम के चपल हाथ का स्पर्श था. जैसेजैसे सत्यम का हाथ फिसलता जा रहा था, सुमन रोमांचित होती जा रही थी. सत्यम के स्पर्श और चुंबनों ने सुमन के पूरे शरीर में थरथराहट भर दी. सुमन ने अपने भीतर ऐसी तप्त नमी कभी महसूस नहीं की थी. जब सत्यम ने उसे अपने आगोश में भरा, तो सुमन की सांस रुक गई और आंखें बंद हो गईं.

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समागम के पहले सुमन जितनी मुखर थी, बाद में उतनी ही मौन हो गई. आज जीवन में पहली बार सुमन ने खुद को परिपूर्ण पाया था. अपनत्व और सुरक्षा की ऐसी अनुभूति पहले कभी नहीं हुई थी उसे. उसे लग रहा था अपने सत्यम के साथ वह दुर्गम पर्वत के शिखर पर पहुंच गई हो, जहां सिर्फ मौन, शांति और सुकून था.

बहुत ऊंचाई से उसे बाहरी संसार का शोर और अंधड़ याद आया, जो अब बहुत पीछे छूट गया था. वह अब अपने सत्यम की मजबूत बांहों में सुरक्षित थी.

अपना सा कोई: क्या बीमारी थी अंकित को?

Serial Story: अपना सा कोई (भाग-3)

नीचे के फ्लोर पर ही उन्हें कमरा दिलवाया और दरवाजा खोलती हुई बोली,”आ जाओ साहब. आज की रात यही आशियाना है तुम्हारा.”

थैंक्स कह कर अंकित ने दरवाजा बंद करना चाहा तो वह दरवाजे के बीच में आ गई.

“इतनी जल्दी पीछा छुड़ाना चाहते हो हम से मेरी जान?” लड़की की आंखों में कुटिलता और वासना की लपटें जल उठीं.

वह जबरन अंकित से सटती हुई बोली,”दिल चीज क्या है आप हमारी जान लीजिए…. हुजूर जो चाहे ले लो यह कनीज अब तुम्हारी है.”

“यह क्या कह रही हो?” घबड़ाता हुआ अंकित बोला.

मयंक भी अचरज से उस लड़की की तरफ देख रहा था. लड़की अब बेशर्मी पर उतर आई थी.

बिस्तर पर बैठती हुई बोली,” तुम्हारी जिंदगी की यह रात रंगीन कर दूंगी. तुम बस इशारा करो.”

अब तक अंकित और मयंक अच्छी तरह समझ गए थे कि यह किस तरह की लड़की है और वे इस होटल में आ कर बुरी तरह फंस गए हैं. मयंक बाथरूम की तरफ चला गया और इधर लड़की अंकित पर डोरे डालती रही. अंकित घबरा कर पीछे हट रहा था और लड़की उस के करीब आने का प्रयास करती रही.

अंकित तैयार नहीं हुआ तो वह अपनी अदाएं बिखेरती हुई बोली,”किस बात से डर रहे हो हुजूर? इस उम्र में जवां, खूबसूरत शरीर की जरूरत नहीं या जेब ढीली करना नहीं चाहते हो? चलो ज्यादा नहीं केवल ₹1 लाख दे देना. उतनी रकम तो होगी ही न. भारत दर्शन पर निकले हो.”

अंकित ने उसे परे करते हुए कहा,”नहीं बहनजी हमारे पास रुपए नहीं हैं.”

“ओए लड़के, बहन किस को बोला? मैं बहन नहीं तेरी. चल ₹1 लाख नहीं है तो अपनी यह घड़ी, अपनी यह सोने की चेन और अंगूठी दे देना. चल नखरे मत कर. शुरू हो जा. जी ले अपनी जिंदगी मेरे साथ आज की रात.”

अंकित सिकुड़ कर बैठता हुआ बोला,” सुनो, आप गगलतफहमी में हो. मेरा दोस्त बीमार है. इलाज के लिए आया हूं मैं.”

“देख चिकने, बहाने मत बना. तू ऐसे तैयार नहीं होगा तो यह शालू तुझे लूट लेगी,” कहते हुए उस लड़की यानी शालू ने बंदूक निकाल ली.

तभी मयंक सामने आ गया और बोला,”हम तो कब के लुट गए हैं शालू, बस तुम्हारी नजरों में अपना चेहरा ही ढूंढ़ रहे हैं. ”

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मयंक ने शालू के करीब आ कर कहा तो अंकित आंखें फाड़ कर उस की तरफ देखने लगा.

“देख शालू, मेरी जिंदगी के बस आखिरी 2-4 महीने ही बचे हैं. मैं अपनी जिंदगी के बचे हुए इन थोड़े से दिनों में जीवन की सारी खुशियां पा लेना चाहता हूं. मैं 35 साल का हूं पर तू यकीन नहीं करेगी, आज तक मेरी न कोई गर्लफ्रैंड है न बीवी. अतृप्त ही रह जाता अगर तू न मिलती. जल जाना चाहता हूं आज. आ जला दे मुझे…”

शालू शराबी निगाहों से उस की तरफ देखती हुई बोली,”क्या सचमुच तू मुझे अब पाना चाहता है?”

“हां पर एक धंधेवाली की तरह नहीं, एक प्रेमिका की तरह मेरी बांहों में समा जा. मरने से पहले एक बार अपने प्यार से तृप्त कर दे मुझे,” मयंक ने शालू को अपनी तरफ खींचा और आगोश में भर कर बाथरूम की तरफ ले गया.

बाथरूम में शौवर के नीचे खड़ा करता हुए बोला,”आज मैं भीग जाना चाहता हूं तुम्हारे साथ,” कहते हुए उस ने शौवर चला दिया और शालू पूरी तरह भीग गई. मयंक ने अचानक अपने होंठ उस के भीगे होंठों पर रख दिए. शालू की सांसें तेज हो गई थीं. वह पूरी तरह मयंक की गिरफ्त में थी.

मयंक ने उसी के दुपट्टे से उस की आंखें बांधते हुए कहा,” बस अब देखो मत. महसूस करो मुझे. मैं तुम्हारी रूह में उतर जाना चाहता हूं. ”

कहते हुए मयंक ने उस की बांहें थामी और उसे पीछे की तरफ करता हुआ खुद बाथरूम से बाहर आ गया और जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया. शालू को बात समझ में आई तो वह दरवाजा पीटने लगी. तब तक मयंक और अंकित तेजी से होटल से बाहर निकल आए. जल्दी से कार स्टार्ट की और रफूचक्कर हो गए. वहां से काफी दूर आने के बाद उन की जान में जान आई.

अंकित हंसता हुआ बोला,”यार तू इतना रोमांटिक है, यह तो मुझे पता ही नहीं था.”

“और तू इतना शरमीला है यह भी कहां पता था मुझे,” मयंक ने कहा तो दोनों दोस्त ठहाके लगा कर हंसने लगे. काफी आगे जा कर उन्हें एक सलीके का होटल मिला तो दोनों वहीं ठहर गए.

आगे भी पूरे सफर में तबीयत खराब होने के बावजूद मयंक अपने मन की करता रहा. वह जिंदगी की हर खुशी अपने दामन में भर लेना चाहता था. कभी पहाड़ों पर चढ़ने की जिद करता तो कभी सागर में गोते लगाना चाहता. कभी हैलीकोप्टर में बैठ कर दुनिया देखने की डिमांड करता तो कभी स्ट्रीट फूड्स खाने को मचल उठता. अंकित उसे ऐसे कामों के लिए मना करता रह जाता और अमन अपने मन की कर गुजरता.

इसी दौरान एक दिन अचानक उस की तबीयत काफी खराब हो गई. उस समय वे शिमला में थे. अंकित जल्दी से उसे पास के एक अस्पताल में ले कर भागा मगर उस अस्पताल में मयंक को दाखिल नहीं किया गया. उन लोगों ने उसे दूसरे अस्पताल रेफर कर दिया. अंकित मयंक को ले कर वहां पहुंचा लेकिन वहां भी मयंक को ट्रीटमैंट की फैसिलिटी नहीं मिल सकी. उस की तबीयत बिगड़ रही थी. अंकित घबराया हुआ था. अंत में थक कर अंकित शिमला के सब से बड़े अस्पताल में पहुंचा. वहां मयंक को ऐडमिट कर लिया गया. 4-5 दिन में उस की स्थिति बेहतर हो गई तो छठे दिन उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.

अब अंकित ने उस ट्रिप को थोड़ी जल्दी में पूरा किया और मयंक को ले कर वापस घर आ गया. 2 महीने के इस सफर के बाद मयंक बहुत खुश था. वह अंदर से बेहतर महसूस कर रहा था.

मयंक की बहन प्रज्ञा इस बात से बहुत खुश रहती थी कि अंकित मयंक का इतना खयाल रखता है.

वह जब भी फोन करतीं तो अंकित दोस्त के इलाज और हालत के बारे में विस्तार से बताता. मयंक की गतिविधियों का लेखाजोखा देता. बातचीत करते समय दोनों दोस्तों में मीठी झड़पें होतीं तो प्रज्ञा के बच्चे तालियां बजाबजा कर हंसते. वे अंकित को यंगर अंकल कह कर पुकारते और उस के साथ खूब मस्ती भरी बातें करते.

कई बार मयंक कहता,”मेरा भाई भी होता न तो तुझ सा नहीं हो पाता. तू तो भाई से भी बढ़ कर है.”

एक दिन मयंक की बहन वीडियो काल पर थी. अंकित चाय बनाने गया हुआ था और मयंक बहन से अंकित की तारीफ कर रहा था.

प्रज्ञा ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा,”मयंक मैं एक बात कहूं, तू मानेगा?

“हां दीदी बोलो न.”

“मैं चाहती हूं तू अपना घर अंकित के नाम कर दे. तेरे बाद मैं नहीं बल्कि तेरा भाई अंकित ही इस घर का मालिक होगा.”

इस बीच अंकित चाय ले कर कमरे में आ रहा था. उस ने प्रज्ञा की बात सुन ली थी.

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चाय रखते हुए उस ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा,” नहीं दीदी यह सही नहीं. आप ऐसी बातें नहीं कर सकतीं. जो घर मयंक का है वह कल को आप का या बच्चों का होगा मेरा नहीं. मैं किसी चीज की ख्वाहिश में मयंक का साथ नहीं दे रहा बल्कि मयंक के साथ मुझे यों ही दुनिया की खुशियां मिल रही हैं. ”

“देख मेरे भाई, मेरे अंकित, मैं ने मयंक से घर तेरे नाम करने की बात इसलिए नहीं की है ताकि तेरे एहसानों का कर्जा उतारा जा सके बल्कि इसलिए की है ताकि आने वाले समय में कभी मुझे भारत जाने की इच्छा हुई तो मुझे यह सोच कर मन न मसोसना पड़े कि वहां अब मेरा और कोई नहीं. मैं मयंक के बाद भी भारत घूमने आऊं तो पूरे अधिकार के साथ तेरे घर आ कर रुक सकूं. तू मेरी बात समझ रहा है न अंकित ? ”

“हां दीदी समझ गया. जैसी आप की इच्छा,” कहते हुए मयंक की आंखें भर आईं. आज उसे महसूस हो रहा था कि वाकई उस की कोई बड़ी बहन भी है जो उस पर अपना पूरा हक रखना चाहती है. भले ही वह दुनिया में अकेला है मगर अब उस का भी एक परिवार था जो उसे बहुत प्यार करता था.

Serial Story: अपना सा कोई (भाग-1)

आज मयंक बहुत खुश था. उस ने पूरे 2 दिन की छुट्टी ली थी. एक दिन तो हमेशा की तरह आराम और काम में निकल गया. मगर आज की छुट्टी का इस्तेमाल उस ने आसपड़ोस वालों से जानपहचान करने में लगाने की योजना बनाई थी. दरअसल, इस मोहल्ले में आए उसे पूरे डेढ़ महीने हो चुके थे. इस दौरान उस की नाइट शिफ्ट चल रही थी. सुबह 5 बजे निकल कर रात में 11 बजे घर में घुसता था. ऐसे में उसे दूसरों से परिचय करने का वक्त ही नहीं मिलता था.

उस ने 200 गज पर 1980-90 के समय के बने मकान का तीसरा फ्लोर खरीदा था. 3 कमरे, घर के बाहर खूबसूरत सी बालकनी और आसपास हरियाली देख कर उस ने यह घर पसंद किया था.

सुबहसुबह उठ कर वह बालकनी में आया और सामने के ग्राउंड में कुछ फिटनैस फ्रीक लोगों को मौर्निंग वाक और जौगिंग करता देख मुसकरा उठा. उस ने मन ही मन सोचा कि आज पूरे मोहल्ले का 1-2 चक्कर लगाने और ग्राउंड में जा कर ऐक्सरसाइज करने के बाद ही वह घर लौटेगा.

उस ने ट्रैकसूट पहना और नीचे आ गया. वाक और ऐक्सरसाइज के बाद दूध, अखबार और ब्रैड खरीद कर वापस लौटने लगा कि दूसरे फ्लोर की सीढ़ियों पर आ कर ठिठक गया. दरवाजा अंदर से बंद था और बाहर जमीन पर अखबार के साथ 2 पत्रिकाएं भी पड़ी हुई थीं. मयंक को शुरू से किताबें और पत्रिकाएं पढ़ने का बहुत शौक रहा है. उस ने पलट कर देखा तो सरिता और गृहशोभा एकसाथ देख कर उस का मन खुश हो गया. उस ने मन ही मन सोचा कि काश आज फ्री टाइम में मुझे यह पत्रिकाएं पढ़ने को मिल जातीं.

वह अभी पत्रिकाएं पलट ही रहा था कि तभी कमरे के अंदर से मुकेश के गाने ‘मैं पल दो पल का राही हूं…’ की आवाज आने लगी. गाना और मुकेश की आवाज दोनों ही मयंक को पसंद था. अपने इस पड़ोसी से मिलने का उसे मन कर रहा था. तभी दरवाज़ा खुला और अंदर से उसी की उम्र का एक युवक बाहर निकला. सवालिया नजरों से उस ने पहले मयंक को और फिर उस के हाथ में पकड़ी पत्रिकाओं को देखा.

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मयंक मुसकराता हुआ बोला,” हाय, मैं मयंक. आप का पड़ोसी. इधर से गुजर रहा था. पत्रिकाओं पर नजर गई तो देखने लगा. ये पत्रिकाएं शायद आप बराबर लेते हैं…”

“जी हां. मैं इन्हें शुरू से ही पढ़ता आ रहा हूं. आइए अंदर आ जाइए. मेरा नाम अंकित है.”

मयंक अंकित के साथ अंदर आता हुआ बोला,” आप का म्यूजिक टेस्ट भी बिलकुल मेरे जैसा है. मुकेश की आवाज का मैं भी दीवाना हूं.”

“गुड. फिर तो अच्छी जमेगी हमारी.”

इस के बाद 2-4 मिनट की औपचारिक बातचीत के बाद अंकित उठता हुआ बोला,”आई एम सौरी मयंक बट आई एम गेटिंग लेट.”

मयंक भी उठ गया और बोला,”आई कैन अंडरस्टैंड. जौब प्रेशर तो सब को रहता है. आप जाइए मैं चलता हूं.”

पत्रिकाएं अभी भी मयंक के हाथों में थीं. वह उन्हें टेबल पर रखने लगा तो अंकित मुसकराता हुआ बोला,”आप चाहें तो ये पत्रिकाएं ले जा सकते हैं. पढ़ कर लौटा दीजिएगा.”

“थैंक यू सो मच,” मयंक के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई.

यह मयंक और अंकित की पहली मुलाकात थी. इस के बाद भी उन दोनों के बीच हैलोहाय से ज्यादा बात नहीं हो पाई क्योंकि मयंक की शिफ्ट वाली जौब थी तो अंकित का टूरिंग वाला काम. दोनों व्यस्त थे.

उस दिन रविवार था. मयंक दूध और फल लेने के लिए नीचे उतर उतर रहा था कि उस ने बरामदे में अंकित को बेहोश पड़ा देखा. इंसानियत के नाते मयंक उसे तुरंत अस्पताल ले कर गया. वहां उसे ऐडमिट कर लिया गया. उसे माइनर हार्ट अटैक आया था. उस के घर में कोई और सदस्य था नहीं इसलिए पूरे दिन मयंक ही अस्पताल में उस के साथ रहा. अगले दिन भी उसे अस्पताल में ही रुकना पड़ा. तीसरे दिन सुबह अंकित को छुट्टी मिल गई. अब तक अंकित की तबियत संभल चुकी थी. उस ने दिल से मयंक का शुक्रिया अदा किया. दोनों में दोस्ती हो गई. घर आ कर भी मयंक ने अंकित को अकेला नहीं छोड़ा. उसे खाना बना कर खिलाने के बाद ही अपने औफिस गया.

रविवार को सुबहसुबह अंकित मयंक के घर आया. वह मयंक के लिए बिरयानी बना कर लाया था. दोनों ने साथ बैठ कर खाना खाया. बिरयानी बहुत स्वादिष्ठ बनी थी. उंगलियां चाटता हुआ मयंक बोला,”यार तुम खाना तो बहुत टेस्टी बनाता हो. भाभीजी तो खुश हो जाती होंगी. ”

“नहीं यार मेरी शादी कहां हुई है अभी? ”

“क्या बात है, यानी इस मामले में भी हम दोनों एकजैसे हैं. मैं ने भी अब तक शादी नहीं की. वैसे तुम ने शादी क्यों नहीं की?”

“यार मैं एक अनाथालय में पलाबढ़ा हूं. उन्होंने ने ही मुझे पढ़ाया है. बाद में एक सज्जन ने मुझे गोद ले लिया. वे भी दुनिया में अकेले थे. नौकरी मिलने के बाद मैं यहां चला आया. इस बीच उन का देहांत हो गया. अब मेरे जैसे अकेले लड़के को अपनी बेटी कौन देगा? उस पर टूरिंग वाली जौब है. मैं खुद भी अब शादी करने से हिचकने लगा हूं.”

“यार, काफी हद तक मेरी कहानी भी कुछ ऐसी ही है. मेरे पिताजी उसी समय चल बसे थे जब मैं मुश्किल से 8-10 साल का था. मां ने मुझे पढ़ायालिखाया. मुझे नौकरी लग गई उस के कुछ दिनों के बाद ही मां बीमार पड़ गईं. इस बीच मेरी बड़ी बहन की शादी अमेरिका में हो गई इसलिए वह भी दूर चली गई. मैं कई सालों तक मां की देखभाल और सेवा में लगा रहा. उस दौरान शादी का खयाल ही नहीं आया. 2 साल पहले उन का निधन हो गया. अब मैं भी दुनिया में अकेला हूं. शादी करने का सोचता हूं मगर परिवार में कोई न होने की वजह से मेरी शादी में भी दिक्कतें आ रही हैं.”

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“कोई नहीं यार. अब हम दोनों एकदूसरे का साथ देंगे.”

“बिलकुल…” अंकित ने कहा तो दोनों ठठा कर हंस पड़े.

इस के बाद तो अकसर ही दोनों एकसाथ खाना बना कर खाने लगे. कई दफा अंकित मयंक के लिए खाना बना कर रखता. कई बार मयंक बाजार से कुछ खाने की चीजें लाता तो दोनों मिल कर खाते. दोनों ने डुप्लीकेट चाबी भी ऐक्सचैंज कर ली थी ताकि वे एकदूसरे के पीछे में उन के फ्रिज में खाने की चीजें रख सकें या जरूरी होने पर एकदूसरे के काम भी आ सकें. अकसर रविवार को समय निकाल कर दोनों साथ घूमने भी जाने लगे.

आगे पढ़ें- एक दिन अंकित बाजार से घर लौटा कि तभी…

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