बदला : क्या हुआ था सुगंधा के साथ

लेखक- अवधेश कुमार त्रिपाठी

‘‘सुगंधा, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारी खूबसूरती पर मैं एक क्या कई जन्म कुरबान कर सकता हूं.’’

‘‘चलो हटो, तुम बड़े वो हो. कुछ ही मुलाकातों में मसका लगाना शुरू कर दिया. मुझे तुम्हारी कुरबानी नहीं, बल्कि प्यार चाहिए,’’ फिर अदा से शरमाते हुए सुगंधा ने रमेश के सीने पर अपना सिर टिका दिया.

रमेश ने सुगंधा के बालों में अपनी उंगलियां उलझा दीं और उस के गालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘सुगंधा, मैं जल्दी ही तुम से शादी करूंगा. फिर अपना घर होगा, अपने बच्चे होंगे…’’

‘‘रमेश, तुम शादी के वादे से मुकर तो नहीं जाओगे?’’

‘‘सुगंधा, तुम कैसी बात करती हो? क्या तुम को मुझ पर भरोसा नहीं?’’

सुगंधा रमेश की बांहों व बातों में इस कदर डूब गई कि रमेश का हाथ कब उस के नाजुक अंगों तक पहुंच गया, उस को पता ही नहीं चला. फिर यह सोच कर कि अब रमेश से उस की शादी होगी ही, इसलिए उस ने रमेश की हरकतों का विरोध नहीं किया.

दोनों की मुलाकातें बढ़ती गईं और हर मुलाकात के साथ जीनेमरने की कसमें खाई जाती रहीं. रमेश ने शादी का वादा कर के सुगंधा के साथ जिस्मानी संबंध बना लिया और फिर अकसर दोनों होटलों में मिलते और जिस्म की भूख मिटाते. इस तरह दोनों जब चाहते जवानी का मजा लूटते.

रमेश इलाहाबाद के पास के एक गांव का रहने वाला था. उस के परिवार में मातापिता और एक छोटा भाई दिनेश था. छोटे से परिवार में सभी अपनेअपने कामों में लगे हुए थे. पिताजी पोस्टमास्टर के पद से रिटायर हो कर अब घर पर ही रह कर खेतीबारी का काम देखने लगे थे. छोटा भाई दिनेश दिल्ली यूनिवर्सिटी से एमए कर रहा था.

लखनऊ में एक विदेशी फर्म में कैशियर के पद पर काम करने की वजह से रमेश लखनऊ में एक फ्लैट ले कर रह रहा था. चूंकि घरपरिवार ठीक था और नौकरी भी अच्छी थी, इसलिए उस की शादी भी हो गई थी. बीवी को वह साथ नहीं रखता था, क्योंकि मां से घर का काम नहीं होता था.

रमेश जिस फर्म में काम करता था, उसी फर्म में सुगंधा क्लर्क के पद पर काम करने आई थी.

सुगंधा को देखते ही रमेश उस पर मोहित हो गया और डोरे डालना शुरू कर दिया.

रमेश की शराफत, पद और हैसियत देख कर सुगंधा भी उसे पसंद करने लगी.

रमेश ने सुगंधा को बताया कि वह कुंआरा है और उस से शादी करना चाहता है. अब चूंकि रमेश ने उस से शादी का वादा किया, तो वह पूरी तरह उस की बातों में ही नहीं, आगोश में भी आ गई.

समय सरकता गया. रमेश सुगंधा की देह में इस कदर डूब गया कि घर भी कम जाने लगा. वह घर वालों को पैसा भेज देता और चिट्ठी में छुट्टी न मिलने का बहाना लिख देता था.

एक दिन पार्क में जब वे दोनों मिले, तो सुगंधा ने रमेश से कहा, ‘‘रमेश, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. अभी तक आप ने मुझे अपने घर वालों से भी नहीं मिलाया है. मुझे जल्दी ही अपने मातापिता से मिलवाइए और उन्हें शादी के बारे में बता दीजिए.’’

रमेश सुगंधा को आगोश में लेते हुए बोला, ‘‘अरी मेरी सुग्गो, अभी शादी की जल्दी क्या है? शादी भी कर लेंगे, कहीं भागे तो जा नहीं रहे हैं?’’

‘‘नहीं, मुझे शादी की जल्दी है. रमेश, अब मुझे अकेलापन अच्छा नहीं लगता है,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘ठीक है, कल शाम को मेरे कमरे पर आ जाना. वहीं शादी के बारे में बात करेंगे,’’ रमेश ने सुगंधा के नाजुक अंगों से खेलते हुए कहा.

‘‘मैं शाम को 8 बजे आप के कमरे पर आऊंगी,’’ रमेश ने सुगंधा के होंठों का एक चुंबन ले कर उस से विदा ली.

रमेश ने अभी तक शादी का वादा कर सुगंधा के साथ खूब मौजमस्ती की, लेकिन उस की शादी की जिद से उसे डर लगने लगा था. सच तो यह था कि वह सुगंधा से छुटकारा पाना चाहता था, क्योंकि एक तो सुगंधा से उस का मन भर गया था. दूसरे, वह उस से शादी नहीं कर सकता था.

शाम को 8 बजने वाले थे कि रमेश के कमरे पर सुगंधा ने दस्तक दी. रमेश ने समझ लिया कि सुगंधा आ गई है. उस ने दरवाजा खोला और उसे बैडरूम में ले गया.

‘‘हां, अब बताओ सुगंधा, तुम्हें शादी की क्यों जल्दी है? अभी कुछ दिन और मौजमस्ती से रहें, फिर शादी करेंगे,’’ रमेश ने उसे सीने से चिपकाते हुए कहा.

‘‘नहीं, जल्दी है. उस की कुछ वजहें हैं.’’

‘‘क्या वजहें हैं?’’ रमेश ने चौंकते हुए पूछा.

तभी बाहर दरवाजे पर हुई दस्तक से दोनों चौंके. रमेश सुगंधा को छोड़ कर दरवाजा खोलने के लिए चला गया. सुगंधा घबरा कर एक तरफ दुबक कर बैठ गई.

इतने में रमेश को धकेलते हुए 3 लोग बैडरूम में आ गए.

‘‘अरे, तू तो कहता था कि यहां अकेले रहता?है. ये क्या तेरी बीवी है या बहन,’’ उन में से एक पहलवान जैसे शख्स ने कहा.

‘‘देखो, जबान संभाल कर बात करो,’’ रमेश ने कहा.

तभी एक ने रमेश के गाल पर जोर का थप्पड़ मारा और उसे जबरदस्ती कुरसी पर बैठा कर बांध दिया. तीनों सुगंधा की ओर बढ़े और उसे बैड पर पटक दिया.

सुगंधा चीखतीचिल्लाती रही. उन से हाथ जोड़ती रही, पर उन्होंने एक न सुनी और बारीबारी से तीनों ने उस के साथ बलात्कार किया. उधर रमेश कुरसी से बंधा कसमसाता रहा.

जब सुगंधा को होश आया, तो वह लुट चुकी थी. उस का अंगअंग दुख रहा था. वह रोने लगी. रमेश उसे हिम्मत बंधाता रहा.

फिर सुगंधा के आंसू पोंछते हुए रमेश ने कहा, ‘‘सुगंधा, इस को हादसा समझ कर भूल जाओ. हम जल्दी ही शादी कर लेंगे, जिस से यह कलंक मिट जाएगा.’’

सुगंधा उठी और अपने घर चली गई. वह एक हफ्ता की छुट्टी ले कर कमरे पर ही रही और भविष्य के बारे में सोच कर परेशान होती रही थी, लेकिन रमेश द्वारा शादी का वादा उसे कुछ राहत दे रहा था.

सुगंधा हफ्तेभर बाद रमेश से मिली, तब बोली कि अब वह जल्द ही उस से शादी कर ले, क्योंकि वह बहुत परेशान है और वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है.

‘‘क्या कहा तुम ने? तुम मेरे बच्चे की मां बनने वाली हो? सुगंधा, तुम होश में तो हो. अब तो यह तुम मुझ पर लांछन लगा रही हो. मालूम नहीं, यह मेरा बच्चा है या किसी और का,’’ रमेश ने हिकारत भरी नजरों से देखते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं रमेश, ऐसा मत कहो. यह तुम्हारा ही बच्चा है. हादसे वाले दिन मैं तुम से यही बात बताने वाली थी,’’ सुगंधा ने कहा, पर रमेश ने धक्का दे कर उसे निकाल दिया.

सुगंधा जिंदगी के बोझ से परेशान हो उठी. जब लोगों को मालूम होगा कि वह बगैर शादी के मां बनने वाली है, तो लोग उसे जीने नहीं देंगे. अब वह जान दे देगी.

अचानक रमेश का चेहरा उस के दिमाग में कौंधा, ‘धोखेबाज ने आखिर अपना असली रूप दिखा ही दिया.’

एक दिन जब सुगंधा बाजार जा रही थी, तो देखा कि रमेश किसी से बातें कर रहा था. उस आदमी का डीलडौल उसे कुछ पहचाना सा लगा.

सुगंधा ने छिपते हुए नजदीक जा कर देखा, तो रमेश जिन लोगों से हंस कर बातें कर रहा था, वे वही लोग थे, जिन्होंने उस रात उस के साथ बलात्कार किया था.

अब सुगंधा रमेश की साजिश समझ गई थी. उस ने मन में ठान लिया कि अब वह मरेगी नहीं, बल्कि रमेश जैसे भेडि़ए से बदला लेगी.

रमेश से बदला लेने की ठान लेने के बाद सुगंधा ने पहले परिवार के बारे में पता लगाया. जब मालूम हुआ कि रमेश शादीशुदा है, तो वह और भी जलभुन गई. उसे पता चला कि उस का छोटा भाई दिनेश दिल्ली में पढ़ाई कर रहा था. उस ने लखनऊ की नौकरी छोड़ दी.

दिल्ली जा कर सब से पहले सुगंधा ने अपना पेट गिराया, फिर उस ने वहीं एक कमरा किराए पर ले लिया, जहां दिनेश रहता था. धीरेधीरे उस ने दिनेश पर डोरे डालना शुरू किया.

दिनेश को जब सुगंधा ने पूरी तरह अपने जाल में फांस लिया, तब उस ने दिनेश को शादी के लिए उकसाया. उस ने शादी की रजामंदी दे दी.

दिनेश ने रेलवे परीक्षा में अंतिम रूप से कामयाबी पा ली. अब वह अपनी मरजी का मालिक हो गया. उस ने सुगंधा से शादी के लिए अपने मातापिता को लिख दिया. लड़का अपने पैरों पर खड़ा हो गया है, इसलिए उन्होंने भी शादी की इजाजत दे दी.

सुगंधा ने भी शर्त रखी कि शादी कोर्ट में ही करेगी. दिनेश को कोई एतराज नहीं हुआ.

जब दिनेश ने अपने मातापिता को लिखा कि उस ने कोर्ट में शादी कर ली है, तो उन्हें इस बात का मलाल जरूर हुआ कि घर में शादी हुई होती, तो बात ही कुछ और थी. अब जो होना था हो गया. उन्होंने गृहभोज के मौके पर दोनों को घर बुलाया.

पूरा घर सजा था. बहुत से मेहमान, दोस्त, सगेसंबंधी इकट्ठा थे. रमेश भी उस मौके पर अपने दोस्तों के साथ आया था. दुलहन घूंघट में लाई गई.

मुंह दिखाई के समय रमेश और उस के दोस्त उपहार ले कर पहुंचे. रमेश ने जब दुलहन के रूप में सुगंधा को देखा, तो उस के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई.

रमेश और उस के दोस्त जिन्होंने सुगंधा के साथ बलात्कार किया था, सब का चेहरा शर्म से झुक गया.

इस तरह सुगंधा ने अपना बदला लिया.

Raksha Bandhan 2024 – सीमा रेखा: जब भाई के लिए धीरेन भूल गया पति का फर्ज

‘‘सोमू, उठ जाओ बाबू…’’ धीरेन दा लगातार आवाज दिए जा रहे थे जिस से रूपल की नींद में बाधा पड़ने लगी तो वह कसमसाती हुई सोमेन के आगोश से न चाहते हुए भी अलग हो गई और पति सोमेन को लगभग धकियाती हुई बोली, ‘‘अब जाओ, उठो भी, नहीं तो तुम्हारे दादा सुबहसुबह पूरे घर को सिर पर उठा लेंगे. छुट्टी वाले दिन भी आराम नहीं करने देते.’’

सोमेन अंगड़ाई लेता हुआ उठ बैठा और ‘आया दादा’ कहता हुआ बाथरूम की ओर लपका. जब फे्रश हो कर जोगिंग करने के लिए टै्रकसूट और जूते पहन कर कमरे से बाहर निकला तो दादा रोज की तरह गरम चाय लिए उस का इंतजार करते मिले.

उसे देखते ही मुसकरा कर प्यालों में चाय डालते हुए बोले, ‘‘सोमू, रूपल और बच्चों से भी क्यों नहीं कहता कि सुबह जल्दी उठ कर कुछ देर व्यायाम कर लें. सुबह की ताजा हवा से दिन भर तरावट महसूस होती है और साथ में स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.’’

‘‘दादा, रोज तो उन्हें जल्दी जागना ही पड़ता है, सो कम से कम रविवार को उन्हें नींद का मजा लेने दीजिए. चलिए, हम दोनों जोगिंग पर चलते हैं,’’ कहता हुआ सोमेन चाय की खाली प्याली रख कर उठ खड़ा हुआ. दोनों भाइयों ने नजदीक के पार्क में धीमी गति से जोगिंग की. फिर धीरेन दा बैंच पर बैठ कर हाथपांव हिलाने लगे और उन के पास ही सोमेन एक्सरसाइज करने लगा. धीरेन दा 55 से ऊपर के हो चले थे और सोमेन भी 34 बसंत पार कर चुका था. लेकिन धीरेन दा हरपल सोमेन का ऐसे खयाल रखते जैसे वह कोई नादान बालक हो.

धीरेन दा की दुनिया सोमेन से शुरू हो कर उसी पर खत्म हो जाती थी. कुदरत की इच्छा के आगे किसी का बस नहीं चलता. धीरेन दा के जन्म के बाद काफी कोशिशों के बावजूद उन के मातापिता की कोई दूसरी संतान नहीं हुई फिर भी वे डाक्टर की सलाह पर दवा लेते रहे और फिर 16 साल बाद अचानक सोमेन का जन्म हुआ. सोमेन के जन्म से धीरेन दा बहुत खुश थे मानो सोमेन के रूप में उन्हें कोई जीताजागता खिलौना मिल गया हो. उन के बाबूजी की माली हालत कुछ खास अच्छी नहीं थी इसलिए मां को ही घर का हर काम करना पड़ता था. ऐसे में मां का हाथ बंटाने के लिए धीरेन दा ने सोमेन की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी.

सोमेन ज्यादातर समय धीरेन दा की गोद में होता या जहां वह पढ़ते थे उन के पास ही पालने में सोया या खेलता रहता. देखतेदेखते सोमेन 4 साल का हो गया. धीरेन दा उस दिन बहुत खुश थे क्योंकि बी. काम. फाइनल में उन्होंने अपने विश्वविद्यालय में टाप किया था. घर आ कर जब उन्होंने यह खबर मांबाबूजी को सुनाई तो वे बहुत खुश हुए. इस खुशी को अपने पड़ासियों के साथ बांटने के लिए वे दोनों मिठाई लेने ऐसे निकले कि कफन ओढ़ कर घर वापस आए.

रास्ते में एक बस ने उन्हें बुरी तरह से कुचल दिया था. एक पल को धीरेन दा को यों लगा मानो उन का सबकुछ खत्म हो गया. पर मासूम सोमेन को बिलखते देख उन्हें भाई से पिता रूप में परिवर्तित होने में तनिक भी वक्त नहीं लगा. उसी वक्त उन्होंने मन ही मन प्रण किया कि वह न सोमेन को अनाथ होने देंगे और न ही कभी उसे मातापिता की कमी महसूस होने देंगे. इस घटना के कुछ महीनों बाद ही धीरेन दा की बैंक में नौकरी लग गई. नौकरी मिलने के 1 साल बाद उन्होंने रजनी के साथ विवाह रचा लिया. रजनी के गृहप्रवेश करते ही धीरेन दा की दुनिया बदल गई.

सोमेन को भी रजनी भाभी कम और मां ज्यादा लगतीं. 2 साल का प्यार भरा समय कैसे गुजर गया, पता ही न चला. एक दिन रजनी को अपने भीतर एक नवजीवन के पनपने का एहसास हुआ तो धीरेन दा की खुशियों की सीमा न रही. सोमेन को भी चाचा बनने की बेहद खुशी थी. पर उन लोगों की सारी खुशियां रेत के घरौंदे की तरह पलक झपकते ही बिखर गईं. एक दिन रजनी बारिश में भीगते कपड़ों को समेटने गई और फिसल कर गिर पड़ी. अंदरूनी चोट इतनी गहरी थी कि लाख कोशिशों के बावजूद डाक्टर मां और बच्चे में से किसी को नहीं बचा सके.

रजनी की मौत के बाद धीरेन दा ने किसी भी स्त्री के लिए अपने दिल के दरवाजे हमेशाहमेशा को बंद कर लिए. अब उन के जीने का मकसद सिर्फ और सिर्फ सोमेन था. अब वह सोमेन की नींद सोते और जागते थे. उस की हर जरूरत का ध्यान रखना, उसे खुश रखना और उस के विकास के बारे में चिंतनमनन करना ही जैसे उन का एकमात्र ध्येय रह गया था. कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म होते ही जब सोमेन को एक बड़ी इंटरनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई तो सोमेन से कहीं ज्यादा खुशी धीरेन दा को हुई. सोमेन के प्रति उन की बस आखिरी जिम्मेदारी बाकी रह गई थी और वह जिम्मेदारी थी सोमेन की शादी.

साल भर बाद धीरेन दा ने अपने मित्र रमेशजी की मदद से आखिर रूपल जैसी गुणवती, सुंदर और मासूम लड़की को अपने अनुज के लिए तलाश ही लिया. रूपल के रूप में उन्हें एक बेटी का ही रूप नजर आता. रूपल थी भी इतनी प्यारी और नेकदिल कि सोमेन और धीरेन दा के दिलों में बसने के लिए उसे जरा भी वक्त नहीं लगा. सबकुछ ठीक चल रहा था. रूपल को कुछ अखरता था तो वह धीरेन दा का सोमेन को ले कर जरूरत से ज्यादा पजेसिव होना.

भाई के प्यार में वह इस कदर डूबे हुए थे कि अकसर रूपल की उपस्थिति को नजरअंदाज कर जाते. वह भूल जाते कि उन की तरह रूपल भी सुबह से सोेमेन का इंतजार कर रही है. पति को देखने को व्याकुल उस नवविवाहिता की आंखें शाम से ही दरवाजे पर टिकी हुई हैं. सोमेन भी घर आते ही रूपल को बांहों में ले कर प्यार की बौछार कर देने को आतुर रहता पर घर में प्रवेश करते ही धीरेन दा को अपना इंतजार करते बैठा देखता तो मर्यादा के तहत मन को वश में कर वहीं बैठ जाता और उन से वार्तालाप में मस्त हो जाता. बीच में कभी कपड़े बदलने के बहाने से तो कभी बाथरूम जाने के बहाने से अंदर जा कर झुंझलाईबौखलाई रूपल पर ऐसे तेज गति से चुंबनों की झड़ी लगा देता कि रूपल सारा गुस्सा भूल कर कह उठती, ‘‘अब बस भी करो मेरे सुपर फास्ट राजधानी एक्सप्रेस, बाहर भैया चाय के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं.’’

फिर दोनों भाई शतरंज खेलते. इस बीच खाना बना कर रूपल बेमन से टीवी का चैनल बदलती रहती. कभी सोमेन आवाज लगाता तो चाय या पानी दे जाती. उस की मनोस्थिति से सर्वथा अनजान धीरेन दा शतरंज की बिसात पर नजरें जमाए हुए कहते, ‘‘रूपल, तुम भी शतरंज खेलना सीख जाओ तो मजा आ जाए.’’ ‘‘जी दादा, सीखूंगी,’’ संक्षिप्त सा उत्तर दे कर वह वापस अंदर की ओर मुड़ जाती. तब सोमेन का मन शतरंज छोड़ कर उठ जाने को करता. वह चाहता कि रूठी हुई रूपल को हंसाए, गुदगुदाए पर दादा का एकाकीपन अकसर उस के मन पर अंकुश लगा देता.

रात को अपने अंतरंग क्षणों में वह रूपल को मना लेता और समझा भी देता कि धीरेन दा ने सिर्फ मेरे लिए अपनी सारी खुशियों की आहुति दे दी. अब हमारे किसी काम से उन्हें यह एहसास नहीं होना चाहिए कि हम उन की परवा या कद्र नहीं करते. रूपल ने भी धीरेधीरे यह सोच कर नाराज होना छोड़ दिया कि जब बच्चे हो जाएंगे तब सब ठीक हो जाएगा पर वैसा कुछ हुआ नहीं.

पिंकी व बंटी के होने के बाद भी धीरेन दा की वजह से सोमेन रूपल को वक्त नहीं दे पाता. यों ही और 8 साल बीत गए. अब तो पिंकी 10 और बंटी 8 साल के हो गए थे. अगर बच्चे कहते, ‘‘पापा, हमें किसी बच्चों के पार्क में या चिडि़याघर दिखाने ले चलिए,’’ तो सोमेन का जवाब होता कि बेटे, हम वहां जाएंगे तो ताऊजी अकेले हो जाएंगे. ‘‘तो फिर ताऊजी को भी साथ में ले चलिए न,’’ पिंकी ठुनकती हुई कहती. इस पर सोमेन प्यार से उसे समझाते हुए कहता, ‘‘बेटे, इस उम्र में ज्यादा चलनाफिरना ताऊजी को थका देता है. हम फिर कभी जाएंगे,’’ और वह दिन बच्चों के लिए कभी नहीं आया था.

यह सब देखसुन कर रूपल कुढ़ कर रह जाती. उस ने अपनी सारी इच्छाएं दफन कर डालीं पर अब बच्चों के चेहरों पर छाई मायूसी उस के मन में धीरेन दा के लिए आक्रोश भर देती. इन सब का परिणाम यह हुआ कि धीरेधीरे रूपल के व्यवहार में अंतर आने लगा और बोली में भी कड़वापन झलकने लगा. धीरेन दा कुछ महीनों से रूपल के व्यवहार में आए परिवर्तन को देख रहे थे पर बहुत सोचने पर भी उस की तह तक नहीं पहुंच पाए. अंत में हार कर उन्होंने अपने मित्र रमेश से परामर्श करने की सोची.

रमेश से उन का कोई दुराव- छिपाव न था. एक बार फिर रमेश ने उन्हें मर्यादा और व्यावहारिक ज्ञान से रूबरू कराया. रमेश ने धीरेन दा की कही हरेक बातें ध्यान से सुनीं और उन से उन के और घर के हर सदस्यों की दिनचर्या के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की, फिर थोड़ी देर के लिए खामोश हो गए. पल भर के मौन के बाद धीरेन दा को समझाने के लहजे में बोले, ‘‘देख, धीरेन, ऐसा नहीं है कि रूपल अब तुम्हें बड़े भाई का मान नहीं देती. पर मेरे यार, तुम एक बात भूल गए कि कोई भी इनसान किसी एक का नहीं होता.

‘‘सोमेन की शादी से पहले की बात और थी. तब तुम्हारे सिवा उस का कोई नहीं था लेकिन विवाह के बाद वह किसी का पति और किसी का पिता बन गया. तुम्हारी ही तरह पिंकी, बंटी और रूपल को सोमेन से विभिन्न अपेक्षाएं हैं जो वह सिर्फ इसलिए पूरी नहीं कर पा रहा कि कहीं तुम स्वयं को उपेक्षित न समझ बैठो. उलटे तुम्हें हमेशा खुश रखने के प्रयास में वह न तो अच्छा पति साबित हो रहा है और न ही एक अच्छा पिता. हर रिश्ता एक मर्यादा और सीमारेखा से बंधा होता है जिस का अतिक्रमण बिखराव और ऊब की स्थिति ला देता है.

‘‘मेरे यार, अनजाने ही सही, तुम भी रिश्तों की सीमारेखा को लांघने लगे हो. माना कि तुम्हारी नीयत में कोई खोट नहीं पर कौन सी ऐसी पत्नी होगी जो कुछ वक्त अपने पति के साथ अकेले बिताना नहीं चाहेगी या फिर कौन से बच्चे अपने पापा के साथ कहीं घूमने नहीं जाना चाहेंगे. कहते हैं न, जब आंख खुली तभी सवेरा समझो. अब भी देर नहीं हुई है. तुम्हारे घर की खोती हुई खुशियां और रूपल की निगाहों में तुम्हारे प्रति सम्मान फिर से वापस आ सकता है. बस, तुम अपने और सोमेन के रिश्ते को थोड़ा विस्तृत कर लो. खुले मन से अपने साथ रूपल और बच्चों को समाहित कर लो…’’

सहसा धीरेन दा के चेहरे पर एक चमक आ गई और वह रमेशजी को बीच में ही टोकते हुए बोले, ‘‘बस यार, मेरी आंखें खोलने के लिए तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद. अब मैं चलता हूं, पहले ही बहुत देर हो चुकी है…अब मैं और देर नहीं करना चाहता,’’ फिर तेजतेज कदमों से वह घर की ओर चल पड़े मानो भागते हुए समय को खींच कर पीछे ले जाएंगे. रमेशजी ने जाते हुए अपने मित्र को और रोकना उचित नहीं समझा और मुसकरा पड़े.

अगले दिन रविवार था. सालों के नियम को भंग करते हुए धीरेन दा अकेले ही सुबहसुबह कहीं गायब हो गए. रूपल की नींद खुली तो सुबह के 8 बज रहे थे. वह उठ कर पूरे घर का एक चक्कर लगा आई. बाहर का दरवाजा भी यों ही उढ़का हुआ था. घबरा कर उस ने सोमेन को जगाया, ‘‘सुनोसुनो, जल्दी उठो, 8 बज गए हैं और दादा का कहीं पता नहीं है. दरवाजा भी खुला हुआ है.’’ सोमेन घबरा कर उठ बैठा. बच्चे भी मम्मीपापा के बीच का होहल्ला सुन कर जाग गए. सब मिल कर सोचने लगे कि धीरेन दा कहां जा सकते हैं?

आखिर 10 बजे घर के बाहर आटो रुकने की आवाज आई. पिंकी व बंटी दरवाजे से बाहर झांक कर चिल्लाए, ‘‘ताऊजी आ गए, ताऊजी आ गए.’’ सोमेन और रूपल ने चैन की सांस ली. धीरेन दा के घर में घुसते ही रूपल ने सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘दादा, आप कहां चले गए थे? कह कर क्यों नहीं गए? हम से नाराज हैं क्या? क्या हम से कोई गलती हो गई?’’ धीरेन दा मुसकराते हुए बोले, ‘‘अरे, नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो अपनी गलती सुधारने गया था.’’

कुछ न समझने की स्थिति में सोमेन और रूपल एकदूसरे का मुंह देखने लगे. धीरेन दा बोले, ‘‘अरे, बाबा, मैं तुम लोगों को सरप्राइज देना चाहता था इसलिए ‘सिंह इज किंग’ की 2 टिकटें लाया हूं. आइनोक्स में यह फिल्म लगी है, आज तुम दोनों देख आना.’’ रूपल की आंखें आश्चर्य और खुशी से भर गईं. आज तक उसे आइनोक्स में फिल्म देखने का मौका जो नसीब नहीं हुआ था. वह तो कहीं भी आनेजाने की उम्मीद ही छोड़ बैठी थी.

‘‘पर दादा, बच्चे और आप…’’ ‘‘उस की तुम चिंता मत करो. हम तीनों आज ‘एडवेंचर आइलैंड’ जाएंगे, बाहर खाना खाएंगे और खूब मस्ती करेंगे. क्यों बच्चो?’’ ‘‘दादाजी, आप कितने अच्छे हैं?’’ यह कहते हुए दोनों बच्चे धीरेन दा के पैरों से लिपट गए तो धीरेन दा भावुक हो उठे. इधर सोमेन और रूपल की आंखों से छलका हुआ अनकहा ‘धन्यवाद’ भी…

कितने तरह के होते हैं हेयर ब्रश, जानें उपयोग करने का सही तरीका

59 वर्षीया हेयर डे्रसर मारिया शर्मा की शख्सियत अनूठी है. स्वभाव से हंसमुख, मृदुभाषी मारिया ने फिल्मी दुनिया में 40 वर्ष पूरे किए हैं. आज वे कंगना राणावत की हेयर डे्रसर हैं. इतने सालों में उन्होंने रेहाना सुल्ताना से ले कर आज की बहुत सी युवा हीरोइनों के बाल संवारे हैं. जब वे केवल 18 वर्ष की थीं तब उन्होंने इस क्षेत्र में कदम रखा. साल 2009 में उन्हें दादा साहब फालके अवार्ड से नवाजा गया.

उन का शुरुआती दौर काफी संघर्षपूर्ण रहा. तब किसी प्रकार के प्रशिक्षण का प्रावधान नहीं था. क्रिश्चियन परिवार में जन्मी मारिया को बचपन से ही बालों को संवारने का शौक था. वे किसी भी अवसर पर आसपास की सभी सहेलियों के बालों को खुद संवारा करती थीं. उन्हें बचपन से बालों की सजावट से लगाव था. उन्हें अलगअलग अंदाज में संवारने का शौक था. हीरोइनों के बाल संवारते हुए ही उन्होंने सारे प्रशिक्षण प्राप्त किए. फलस्वरूप उन्होंने हीरोइनों को बालों के कई स्टाइलों से अवगत कराया, जिस में तार का जूड़ा, चाइनीज स्टाइल, ब्राइडल स्टाइल और ट्विस्ट स्टाइल काफी मशहूर हैं.

इस काम में उन की बड़ी बेटी रचना भी हाथ बंटाती है. उन की छोटी बेटी मिनाली मौडल और बेटा अनिल व्यवसायी है. हेयर ब्रश के बारे में उन से बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि हेयर ब्रश का इस्तेमाल सही ढंग से करना जरूरी होता है. हेयर ब्रश बालों के आधार पर चुना जाना चाहिए. आइए जानें, उन से कुछ जरूरी बातें :

हेयर ब्रश कितने तरह के होते हैं?

हेयर ब्रश कई तरह के होते हैं. छोटे, बड़े और गोल. बडे़ ब्रश में ब्रसल्स होते हैं, जो 2 प्रकार के होते हैं- कांटों वाला और गोल ब्रसल्स वाला. जिन के बाल घने होते हैं. उन के लिए कांटों वाला ब्रश उपयोगी होता है. जिन के बाल पतले होते हैं, उन्हें गोल ब्रसल्स वाले हेयर ब्रश सूट करते हैं. दोनों ही हेयर ब्रश को वौल्यूम दिखाने के लिए प्रयोग किया जाता है.

इन का उपयोग कैसे किया जाता है?

बालों को सेट करने के लिए ब्लोड्राई करना जरूरी है. अगर बाल काफी पतले हों तो एक साइज छोटा हेयर ब्रश ले कर ब्लोड्राई करने से आउट टर्न और फुल आउट टर्न दोनों ही संभव है. मीडियम हेयर ब्रश हलका आउट टर्न और फ्लिप आउट करने के लिए उपयोगी होता है.

छोटे हेयर ब्रश का प्रयोग कहां होता है?

छोटा हेयर ब्रश, जो गोल आकार में होता है, इस से रोलर इफेक्ट दिया जाता है. जिन के बाल स्टेप कट में हों उन के लिए छोटे हेयर ब्रश से फुल आउट टर्न कर ब्लोड्राई करने से अच्छा लगता है. बालों में फ्रिंज निकालने के लिए भी छोटे हेयर ब्रश इस्तेमाल किए जाते हैं.

फ्लैट हेयर ब्रश का प्रयोग कहां किया जाता है?

जिन के बाल घुंघराले हों उन के लिए फ्लैट हेयर ब्रश उपयोगी होता है, जिस में कांटे होते हैं. बालों को सीधा कर के ब्लोड्राई करने से बाल सीधे दिखते हैं. इस के अलावा अगर बाल बहुत पतले हों और आगे छोटेछोटे हों तब उन के लिए छोटे फ्लैट हेयर ब्रश को ले कर ब्लोड्राई कर सकते हैं. माथे पर आगे के बेबी हेयर के  लिए भी छोटे फ्लैट हेयर ब्रश का ही इस्तेमाल किया जाता है. इस के अलावा ब्रसल्स ब्रश बैक कांबिंग के लिए भी प्रयोग किया जाता है. इस से बाल साफसुथरे दिखते हैं. थोड़े से बेबी बाल होने पर पानी लगा कर सेमी वेट कर के अंत में सीरम लगाया जाता है. अगर बाल पतले हों तो मूज लगा कर थोड़ा सूखने दें, फिर ब्लोड्राई करें. ब्रश के प्रयोग के बाद उस का रखरखाव भी अच्छे तरीके से करना चाहिए ताकि आप अधिक दिनों तक उस का उपयोग कर सकें. ये ब्रश काफी महंगे होते हैं, जो अधिकतर विदेशों से मंगाए जाते हैं. भारत में मिलने वाले ब्रश अधिक दिनों तक नहीं चलते. जल्दी ही इन के ब्रसल्स खराब हो जाते हैं.

ब्रश का रखरखाव कैसे करना सही होता है?

कांटेदार ब्रश को डेटोल के पानी से धो कर रखें और अगर ब्रसल्स वाले हेयर ब्रश हों तो उन्हें साफ कर स्टरलाइज करें. पानी में डालने से पहले ब्रश के ऊपर चिपके हुए बाल कंघी की सहायता से पूरी तरह निकाल दें.

फर्स्ट डेट के बाद Boyfriend की सैकंड डेट में दिलचस्पी है या नहीं, कैसे पता लगाएं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरा कोई बौयफ्रैंड नहीं रहा. 24 साल की हो चुकी हूं. डेटिंग ऐप के बारे में काफी कुछ पढ़ा और सुना है. इसलिए सोचा, क्यों न मैं भी इन ऐप्स का सहारा लूं. एक बार जब मैं इन ऐप्स से जुड़ी तो मु झे मजा आने लगा. कई लड़कों के साथ चैटिंग की. अब कई दिनों से, लगभग 3 महीने हो गए होंगे, मैं एक लड़के से रैगुलर चैट कर रही हूं. मु झे वह बहुत अच्छा लगने लगा है. मैं उस से प्यार करने लगी हूं. वह  अब मु झ से पर्सनली मिलना चाहता है. मिलना तो मैं भी चाहती हूं लेकिन पता नहीं क्यों डर लग रहा है कि कहीं पर्सनली मिल कर मैं उसे पसंद न आई तो? मैं कैसे पता लगाऊं कि फर्स्ट डेट के बाद उसे सैकंड डेट में दिलचस्पी है या नहीं?

जवाब-

आप की घबराहट जायज है क्योंकि चैट करते हुए रोमांटिक बातें करना एक बात है और पार्टनर के सामने बैठ कर उस से आंखें मिलाते हुए रोमांटिक टौक दिलचस्प बनाना दूसरी बात है. एक तरह से दोनों को ही डर होता है कि वे एकदूसरे की अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे या नहीं. आप डर रही हैं, हो सकता है उसे भी डर लग रहा हो.

फिलहाल यहां हम आप की बात करते हैं कि आप कैसे पता लगाएंगी कि वह आप से दोबारा मिलने की इच्छा रखता है या नहीं या आप उसे कितनी पसंद आई हैं. जरूरी नहीं कि सामने वाला हर बात बोले, कुछ हमें खुद भी सम झनी होती हैं.

जब आप दोनों मिलें और वक्त कैसे निकल गया, पता न चले तो यह गुड साइन है. लेकिन वह डेट को जल्दी से जल्दी खत्म करना चाहेगा तो हो सकता है कि उसे आप का साथ पसंद नहीं आया. अकसर पहली डेट पर ही सैकंड डेट की प्लानिंग हो जाती है लेकिन वह आप से दूसरी बार मिलना ही न चाहता तो यकीनन वह दूसरी डेट का जिक्र तक न करेगा.  इतना ही नहीं, अगर आप भी इस बात का जिक्र करेंगी तो वह कोई बहाना बना देगा.

किसी से मिलने के बाद हम सामने वाले पार्टनर को मैसेज या कौल कर के पहली डेट की यादों को सा झा करते हैं. यदि वह ऐसा नहीं करता तो सम झ जाएं कि आप उस की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरीं. डेट पर जाने पर लोग एकदूसरे की पर्सनैलिटी, स्टाइल को कौंप्लीमैंट करते हैं लेकिन वह आप को एक टैक्स्ट मैसेज भी नहीं करता तो सम झ जाइए उसे दूसरी डेट में कोई दिलचस्पी नहीं.

अकसर फर्स्ट डेट के बाद कपल्स एकदूसरे के साथ सहज हो जाते हैं. अपनी पर्सनल बातें एकदूसरे से शेयर करना शुरू कर देते हैं. आप ध्यान रखें कि वह आप से अपनी कितनी पर्सनल बातें करता है या आप की निजी जिंदगी के बारे में जानने में कितना ख्वाहिशमंद है.

तो फिर डरिए मत, अच्छा सोच कर ही फर्स्ट डेट पर जाएं. हमारी बताई बातों को ध्यान में रखते हुए सारी स्थिति सम झें या सही निर्णय लीजिए और समझिए कि सामने वाला आप का सोलमेट बनेगा या नहीं.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें.

नाश्ते के लिए हैल्दी औप्शन है पोहा चिवड़ा, जानें इसकी आसान रेसिपी

पोहा ना केवल स्वादिष्ट होता बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी है. हल्का क्रंची पोहा चिवड़ा आपके लिए नमकीन है, जिसे ब्रैकफास्ट में आप अपनी फैमिली को खिला सकते हैं.

सामग्री:

– चिवड़ा  (200 ग्राम)

– तेल (50 ग्राम)

– मुंगफली (50 ग्राम)

– चना दाल (3 चम्मच)

– बादाम ( 8-10)

– काजू  (6-8)

–  नारियल (25 ग्राम)

– किशमिश (10-12)

– करि पत्ता (10-15)

– हरी मिर्च(4)

– तिल (1/2 चम्मच)

– हल्दी(1/2 चम्मच)

– नमक(स्वादानुशार)

पोहा बनाने कि विधि:

– सबसे पहले पोहा (चिवड़ा) को ले और उसे छननी से छान ले.

– फिर उसे कढ़ाई या पैन में डालकर कुरकुरा होने तक भूनें.

– और यहां पे हमारी पोहा कड़ा हो गयी है, और इसे तोड़ने पे आसानी से टूट जा रही है.

– पोहा को निकाल कर अलग रख दें और उसी कढ़ाई में तेल डालें.

– अब उसमे चना दाल और मूंगफली को दाल दे और उसे फ्राई करें.

– फ्राई होने के बाद उसे किसी बर्तन में निकाल लें.

– फिर उसी तेल में बादाम और काजू को भी डालकर फ्राई कर लें.

– फिर नारियल और किशमिश को डाले और उसे 1 से 2 सेकंड भूनकर निकाल लें.

– अब उसी तेल में करि पत्ता और मिर्च डाल दें.

– फिर उसमे तिल को भी डाल दे और उसे थोड़ी देर भुनें

– फिर  उसमे हल्दी डाल दें.

– फिर बिना देर किये उसमे भुने हुए ड्राई फ्रूट्स को डाल दें

– अब उसमे चिवड़ा डाल दें.

– फिर उसमे नमक डालकर उसे अच्छे से मिलाये और 2 मिनट तक भुनें.

– अब पोहा चिवड़ा बनकर तैयार हो गयी है.

क्या आपके भी सिर में होता है तेज दर्द, कहीं ये ब्रेन ट्यूमर तो नहीं !

22 वर्षीय निधि को कुछ समय से सिर दर्द, दाएं हाथ, पैर में कमजोरी, बोलने में परेशानी आदि कई चीजे हो रही थी. फैमिली डौक्टर ने पहले इसे एसिडिटी बताया, फिर विटामिन्स की कमी आदि न जाने कितने दिनों से यही चल रहा था, लेकिन कुछ ठीक नहीं हो रहा था, केवल दर्द की दवा लेने से सिर दर्द कम होता था, ऐसे करीब 4 से 5 महीने बीत गए, पर निधि को आराम न था. एक दिन निधि की सहेली की माँ निधि से मिलने आई और उन्होंने निधि को किसी अस्पताल में ले जाकर किसी न्यूरोसर्जन से बात करने की सलाह दी. निधि को अस्पताल ले जाने पर उसकी खून की जांच के साथ-साथ (MRIScan)भी की गयी, जिसमें मस्तिष्क के बाएं भाग में ट्यूमर पाया गया. मस्तिष्क के नाजुक भागों को बचाने के लिए, निधि को तुरंत Awake Brain Surgery के द्वारा ऑपरेट किया गया, जिसमें रोगी की होश और अलर्ट रखते हुए ही सर्जरी की जाती है. इसके बाद बायोप्सी से कैंसर ग्लायोमा ग्रेड 4 ( Glioma WHO – IV ) के जाँच की पुष्टि होने पर मरीज का कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी से इलाज किया गया. अब निधिपूरी इलाज के बाद बेहतर चल सकती है, अपने दाएं हाथ का प्रयोग कर सकती है और उसके बोलने में भी सुधार आया है. ऑपरेशन के 12 महीने पश्चात किया हुआ एमआरआई स्कैन, कैंसर को कंट्रोल में दिखाता है, जो अच्छी बात है. निधि का जीवन फिर से सामान्य हो गया.ये सही है कि समय पर ब्रेन ट्यूमर का पता लगने पर इलाज़ भी संभव है.

समझे ब्रेन ट्यूमर को

असल में मस्तिष्क, शरीर का अभिन्न अंग है, जिसका काम पूरे शरीर की क्रियाओं को संचालन करना होता है. ब्रेन, कई प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है. शरीर के अन्य भागों की तरह, यह भी कई प्रकार के ट्यूमर से ग्रसित हो सकता है. ब्रेन ट्यूमर से स्वस्थ मस्तिष्क पर दबाव बढ़ने के कारण उसको  हानि पहुंच सकती है. इसलिए प्राथमिक लक्षण उत्पन्न होने पर, तुरंत न्यूरो विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए.

कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल के न्यूरोसर्जन डॉ. अक्षत कयाल कहते है कि ब्रेन के सभी ट्यूमर कैंसर युक्त नहीं होते, लगभग 50 प्रतिशत ट्यूमर कैंसर रहित होते है, जिनका समय पर इलाज मरीज को पूर्ण रूप से स्वस्थ कर सकता है. कैंसर युक्त ब्रेन ट्यूमर ( Glioma स्टेज 3 एवं 4 ) का इलाज अत्यावश्यक है. इनके शीघ्र इलाज से मरीज को दीर्घायु प्रदान कर सकते है और उस मरीज की कार्य क्षमता एवं जीवन की गुणवत्ता को भी अधिक बढ़ा सकते है.

ब्रेन ट्यूमर के लक्षण

स्कल के अंदर सीमित जगह होने के कारण, कोई भी ट्यूमर, मौजूदा जगह में अपने लिए अतिरिक्त स्थान बनाने की कोशिश करता है, जिससे मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है और इसके लक्षण प्रकट होने लगते है. अधिकतर मरीजों में सिर दर्द, उल्टी, नजर का धुंधलापन, दोहरा दिखाई देना ( डिप्लोपिया ) एवं मिर्गी के दौरे, प्रमुख लक्षण होते है. अन्य असामान्य लक्षण जैसे चेहरे का तिरछापन, शरीर के दाएं या बाएं भाग में कमजोरी, बोलने, सुनने और निगलने में परेशानी आदि है.

ब्रेन ट्यूमर की जांच

न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अक्षत कयाल आगे कहते है कि मरीज के लक्षणों के आधार पर ब्रेन ट्यूमर की डायग्नोसिस की जातीहै. डायग्नोसिस की पुष्टि करने के लिए एमआरआई स्कैन ( MRI Scan ) की आवश्यकता होती है, जिसकी सलाह न्यूरो सर्जन,मरीज की जांच करने के बाद ही दे सकता है. जिन मरीजों में कोई लक्षण नहीं होते, उनमें ब्रेन ट्यूमर की डायग्नोसिससंदेह के आधार पर एमआरआई स्कैन कर पता करते है.

ब्रेन ट्यूमर का इलाज

  • किसी भी ब्रेन ट्यूमर के इलाज में ऑपरेशन की भूमिका प्रमुख रहती है.अधिकतरन्यूरो सर्जन, ऑपरेशन के द्वारा, सुरक्षित तरीके से ट्यूमर का अधिकतम भाग निकालते है.
  • छोटे कैंसर मुक्त ट्यूमर्स को समय-समय पर एम आर आई स्कैन ( MRI Scan ) द्वारा निगरानी में रखा जा सकता है और इसे फोकस रेडिएशन से नष्ट भी किया जा सकता है.
  • बड़े टयूमर, सर्जरी के द्वारा सुरक्षित रूप से पूरी तरह निकाले जा सकते है. ब्रेन के ट्यूमर, जिनमें कैंसर होने की संभावना होती है, उन्हें भी सर्जरी द्वारा सुरक्षित रूप से अधिक से अधिक निकाल दिया जाता है. इसके बादबायोप्सी की रिपोर्ट के आधार पर बची हुई ट्यूमर का कीमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी द्वारा इलाज किया जाता है. इससे मरीज की लॉन्ग लाइफ और अच्छी कार्य क्षमता मिल सकती है.

इसके अलावा देश के सभी बड़े शहरों में  ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन की सुविधा, सरकारी एवं गैर सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध है. देश के महानगरों में,  ब्रेन ट्यूमर के इलाज के लिए विश्व स्तरीय टेक्नोलॉजी उपलब्ध है. इन शहरों के सभी बड़े अस्पतालों में , ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी न्यूरो नेविगेशन, इंट्राऑपरेटिव एम आर आई, न्यूरो एंडोस्कोपी, इंट्राऑपरेटिव न्यूरोमोनिटरिंग, फंक्शनल एम आर आई, आदि के साथ की जाती है. अगर ब्रेन के नाजुक भाग से ट्यूमर की निकटता पाई जाती है, तब सर्जरी मरीज के होश में रहते हुए ही की जाती है. उपरोक्त सभी विधियां, मरीज के ट्यूमर को सुरक्षित रूप से निकालने में मददगार साबित होती है. ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी का प्राथमिक उद्देश्य, मरीज को उत्तम कार्य क्षमता के साथ लम्बी आयु प्रदान करना होता है.

महानगरों के प्राइवेट अस्पतालों में, ब्रेन ट्यूमर के इलाज का खर्च डेढ़ लाख से तीन लाख तक हो सकता है. सरकारी अस्पतालों में यह सर्जरी न्यूनतम खर्च में हो जाती है. प्राइवेट अस्पतालों में भी गरीबी रेखा के नीचे एवं वंचित वर्ग के लिए चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा मदद की सुविधाएं होती है.

आज ब्रेन ट्यूमर का इलाज भारत में आधुनिक तकनीक से सफलतापूर्वक करवाना संभव है.इस तरह की सर्जरी आज पूर्ण रूप से सुरक्षित है.लक्षणों की जल्दी पहचान और जल्द इलाज ही इस रोग के सर्वोत्तम निदान के लिए आवश्यक है.

विरक्ति: बूढ़े दंपति को कैसे हुआ एच.आई.वी.

लेखक- गोपाल काबरा

मैं उन से मिलने गया था. पैथोलाजी विभाग के अध्यक्ष और ब्लड बैंक के इंचार्ज डा. कांत खराब मूड में थे, विचलित और विरक्त.

‘‘सब बेमानी है, बकवास है. महज दिखावा और लफ्फाजी है,’’ माइक्रो- स्कोप में स्लाइड देखते हुए वह कहे जा रहे थे, ‘‘सोचता हूं सब छोड़छाड़ कर बच्चों के पास चला जाऊं. बहुत हो गया.’’

‘‘क्या हुआ, सर? क्या हो गया?’’ मैं ने पूछा तो कुछ क्षण चुपचाप माइक्रोस्कोप में देखते रहे, फिर बोले, ‘‘एच.आई.वी., एड्स… ऐसा शोर मचा रखा है जैसे देश में यही एक महामारी है.’’

‘‘सर, खूब फैल रही है. कहते हैं अगर रोकथाम नहीं की गई तो स्थिति भयानक हो जाएगी. महामारी…’’

मेरी बात बीच में ही काटते हुए डा. कांत तल्ख लहजे में बोले, ‘‘महामारी, रोकथाम. क्या रोकथाम कर रहे

हो. पांचसितारा होटल

में कानफ्रेंस, कंडोम वितरण. महामारी तो तुम लोगों के आडंबर और हिपोक्रेसी की है. बड़ी चिंता है लोगों की. इतनी ही चिंता है तो हिपे- टाइटिस बी. के बारे में क्यों नहीं कुछ करते. देश में महामारी हिपे टाइ-टिस बी. की है.

‘‘हजारों लोग हर साल मर रहे हैं, लाखों में संक्रमण है. यह भी तो वैसा ही रक्त प्रसारित, विषाणुजनित रोग है. इस की चिंता क्यों नहीं. असल में चिंता तो विदेशी पैसे और बिलगेट्स की है. एड्स उन की चिंता है तो हमारी चिंता भी है.’’

‘‘क्या हुआ, सर? आज तो आप बहुत नाराज हैं,’’ मैं बोला.

‘‘होना क्या है, तुम लोगों की बकवास सुनतेदेखते तंग आ गया हूं. एच.आई.वी., एड्स, दोनों का एकसाथ ऐसे प्रयोग करते हो जैसे संक्रमण न हुआ दालचावल की खिचड़ी हो गई. क्या दोनों एक ही बात हैं. क्या रोकथाम कर रहे हो? तुम्हें याद है यूनिवर्सिटी वाली उस महिला का केस?’’

‘‘कौन सी, सर? उस अविवाहित महिला का केस जिस ने रक्तदान किया था और जिस का ब्लड एच.आई.वी. पाजिटिव निकला था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, वही,’’ डा. कांत बोले.

‘‘उस को कैसे भूल सकते हैं, सर. गुस्से से आगबबूला हो रही थी. हम ने तो उसे गुडफेथ में बुला कर रिजल्ट बताया था वरना कानूनन एच.आई.वी. पोजि-टिव ब्लड को नष्ट करना भर लाजमी होता है. हमारा पेशेंट तो रक्त लेने वाला होता है, देने वाला तो स्वेच्छा से आता है. देने वाले में रोग निदान के लिए तो हम टेस्ट करते नहीं.’’

डा. कांत कुछ नहीं बोले, चुपचाप सुनते रहे.

‘‘वह महिला अविवाहित थी. उस के किसी से यौन संबंध नहीं थे. उस ने कभी रक्त नहीं लिया और न ही किसी प्रकार के इंजेक्शन आदि. इसीलिए तो हम ने उस की प्री टेस्ट काउंसिलिंग कर वेस्टर्न ब्लोट विधि से टेस्ट करवाने की सलाह दी थी. हम ने उसे बता दिया था कि जिस एलिसा विधि से हम टेस्ट करते हैं वह सेंसिटिव होती है, स्पेसिफिक नहीं. उस में फाल्स पाजिटिव होने के चांसेज होते हैं. सब तो समझा दिया था, सर. उस में हम ने क्या गलती की थी?’’

‘‘गलती की बात नहीं. इन टेस्टों के चलते उस महिला को जो मानसिक क्लेश हुआ उस के लिए कौन जिम्मेदार है?’’

‘‘सर, उस के लिए हम क्या कर सकते थे. जीव विज्ञान में कोई भी टेस्ट 100 प्रतिशत तो सही होता नहीं. हर टेस्ट की अपनी क्षमता होती है. हर टेस्ट में फाल्स पाजिटिव या फाल्स निगेटिव होने की संभावना

होती है. सेंसिटिव में फाल्स पाजिटिव और स्पेसिफिक में फाल्स निगेटिव.’’

‘‘बड़ी ज्ञान की बातें कर रहे हो,’’ डा. कांत बोले, ‘‘यह बात आम लोगों को समझाने की जिम्मेदारी किस की है? खुद को उस महिला की जगह, उस की समझ और सोच के हिसाब से रख कर देखो. उसे कितना संताप हुआ होगा. खैर, उसे छोड़ो. उस लड़के की बात करो जो अपनी लिम्फनोड की बायोप्सी ले कर आया था. उस का तो वेस्टर्न ब्लोट टेस्ट भी पाजिटिव आया था. वह तो कनफर्म्ड एच.आई.वी. पाजिटिव था. उस में क्या किया? क्या किया तुम ने रोकथाम के लिए?’’

‘‘वही जवान लड़का न सर, जिस की किसी बाहर के सर्जन ने गले की एक लिम्फनोड निकाल कर भिजवाई थी? जिस लड़के को कभीकभार बुखार, शरीर गिरागिरा रहना और वजन कम होने की शिकायत थी, पर सारे टेस्ट करवाने पर भी कोई रोग नहीं निकला था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, वही,’’ डा. कांत बोले, ‘‘याद है तुम्हें, वह बायोप्सी रक्त कैंसर की आरंभिक अवस्था न हो, इस का परीक्षण करवाने आया था. टेस्ट में रक्त कैंसर के लक्षण तो नहीं पाए गए थे, पर उस की लिम्फनोड में ऐसे माइक्रोस्कोपिक चेंजेज थे जो एच.आई.वी. पाजिटिव मामलों में देखने को मिलते हैं.’’

‘‘जी, सर याद है. उस की स्वीकृति ले कर ही हम ने उस का एच.आई.वी. टेस्ट किया था और वह पाजिटिव निकला था. उसे हम ने पाजिटिव टेस्ट के बारे में बताया था. उस की भी हम ने काउंसिलिंग की थी. किसी प्रकार के यौन संबंधों से उस ने इनकार किया था. रक्त लेने, इंजेक्शन, आपरेशन आदि किसी की भी तो हिस्ट्री नहीं थी. हम ने सब समझा कर नियमानुसार ही उसे वैस्टर्न ब्लोट टेस्ट करवाने की सलाह दी थी.’’

‘‘नियमानुसार,’’ बड़े तल्ख लहजे में डा. कांत ने दोहराया, ‘‘जब उस ने आ कर बताया था कि उस का वैस्टर्न ब्लोट टेस्ट भी पाजिटिव है तब तुम ने नियमानुसार क्या किया था? याद है उस ने आ कर माफी मांगी थी. हम से झूठ बोलने के लिए माफी. उस ने बाद में बताया था कि उस की शादी हो चुकी है, गौना होना है. मंगेतर कालिज में पढ़ रही थी. उस ने यौन संबंध न होने का झूठ भी स्वीकारा था. उस ने कहा था वह और उस के कुछ दोस्त एक लड़की के यहां जाते थे, याद है?’’

‘‘जी, सर, अच्छी तरह याद है, भले घर का सीधासादा लड़का था. उस ने सब कुछ साफसाफ बता दिया था. बड़ा घबराया हुआ था. जानना चाहता था कि उस का क्या होगा. हम ने उस की पूरी पोस्ट टेस्ट काउंसिलिंग की थी. बता दिया था उसे, कैसे सुरक्षित जीवन जीना…’’

‘‘नियमानुसार जबानी जमाखर्च हुआ और एड्स की रोकथाम

की जिम्मेदारी

पूरी हो गई,’’

डा. कांत ने बीच में बात काटी.

‘‘और क्या कर सकते थे, सर?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जिस लड़की के साथ उस का विवाह हो चुका था और गौना होना था उसे ढूंढ़ कर बताना आवश्यक नहीं था? उस के प्र्रति क्या तुम्हारा दायित्व नहीं था? तुम कौन सा वह केस बता रहे थे जिस में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि अगर आप का कोई रोगी एच.आई.वी. या ऐसे ही किसी संक्रमण से ग्रसित है और वह किसी व्यक्ति को संक्रमण फैला सकता है तो ऐसे व्यक्ति को इस खतरे के बारे में न बताने पर डाक्टर को दोषी माना जाएगा. अगर उस चिह्नित रोगी व्यक्ति को संक्रमण हो जाए तो उस डाक्टर के खिलाफ फौजदारी की काररवाई भी हो सकती है.’’

‘‘जी सर, डा. एक्स बनाम अस्पताल एक्स नाम का मामला था,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां, वही, अजीब नाम था केस का,’’ डा. कांत ने कहना जारी रखा, ‘‘लिम्फनोड वाले लड़के ने अपने दोस्तों के बारे में बताया था. क्या उन दोस्तों को पहचान कर उन का भी एच.आई.वी. टेस्ट करना आवश्यक नहीं था? क्या उस लड़की या वेश्या, जिस के यहां वे जाते थे उसे पहचानना, उस का टेस्ट करना आवश्यक नहीं था? एड्स की रोकथाम के लिए क्या उसे पेशे से हटाना जरूरी नहीं था?’’

‘‘जरूरी तो था, सर, पर नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, और न ही ऐसी कोई व्यवस्था है जिस से हम यह सब कर सकें,’’ मैं ने अपनी मजबूरी बताई.

‘‘तो फिर एड्स की रोकथाम क्या खाक करोगे. बेकार के ढकोसले क्यों करते हो? जो एच.आई.वी. पाजिटिव है उसे बताने की क्या आवश्यकता है. उसे जीने दो अपनी जिंदगी. जब एच.आई.वी. पाजिटिव व्यक्ति एड्स का रोगी हो कर आए तब जो करना हो वह करना.’’

‘‘लेकिन सर,’’ मैं ने कहना शुरू किया तो डा. कांत ने फिर बीच में ही टोक दिया.

‘‘लेकिन दुर्भाग्य तो यह है कि एच.आई.वी. संक्रमण, वेश्या के पास जाने या यौन संबंधों से ही नहीं, किसी शरीफ आदमी और महिला को चिकित्सा प्रक्रिया से भी हो सकता है,’’ वह बोले.

‘‘हां, सर, एच.आई.वी. संक्रमण होने के तुरंत बाद जिसे हम विंडो पीरियड कहते हैं, ब्लड टेस्ट पाजिटिव नहीं आता. लेकिन ऐसा व्यक्ति अगर रक्तदान करे तो उस से रक्त पाने वाले को संक्रमण हो सकता है.’’

सुन कर डा. कांत बोले, ‘‘मैं इस चिकित्सा प्रक्रिया की बात नहीं कर रहा. ऐसा न हो उस के पूरे प्रयास किए जाते हैं, जिस केस को ले कर मुझे ग्लानि विरक्ति और अपनेआप को दोषी मान कर क्षोभ हो रहा है और जिसे ले कर मैं सबकुछ छोड़ने की बात कर रहा हूं, वह कुछ और ही है.’’

मैं कुछ बोला नहीं. चुपचाप उन के बताने का इंतजार करता रहा. अवश्य ही कोई खास बात होगी जिस ने डा. कांत जैसे वरिष्ठ चिकित्सक को इतना विचलित कर दिया कि वह सबकुछ छोड़ने की सोच रहे हैं.

काफी देर चुप रहने के बाद बड़ी संजीदगी से लरजती आवाज में वह बोले, ‘‘कल देर रात घर आए थे, मियांबीवी दोनों. काफी बुजुर्ग हैं. रिटायर हुए भी 15 साल हो चुके हैं. बेटेपोतों के भरे परिवार के साथ रहते हैं.

‘‘कहने लगे, दोनों सोच रहे हैं कहीं जा कर चुपके से आत्महत्या कर लें क्योंकि एच.आई.वी पाजिटिव होना बता कर मैं ने उन्हें किसी लायक नहीं रखा है. मैं ने उन्हें किसलिए बताया कि वे एच.आई.वी. पाजिटिव हैं. उन दोनों का किसी से यौन संबंध नहीं हो सकता और न ही रक्तदान करने की उन की उम्र है. फिर उन से संक्रमण होने का किसे खतरा था जो मैं ने उन्हें एच.आई.वी. पाजिटिव होने के बारे में बताया? जब एच.आई.वी. का निदान कर कुछ किया ही नहीं जा सकता तो फिर बताया किसलिए? वे कैसे सहन करेंगे, अपने बच्चों, पोतों का बदला हुआ रुख जब उन्हें मालूम होगा. उन को संक्रमण का कोई खतरा नहीं है पर अज्ञात का भय, जब बच्चे उन के पास आने से कतराएंगे. कहने लगे, उचित यही होगा कि नींद की गोलियां खा कर जीवन समाप्त कर लें.’’

कहतेकहते डा. कांत चुप हो गए तो मैं ने कहा, ‘‘सर, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा. एड्स संक्रमण ऐसे तो होता नहीं. जब संक्रमण हुआ है तो उसे भुगतना और फेस भी करना ही होगा.’’

जवाब में डा. कांत ने कहा, ‘‘मेरी भी समझ में नहीं आया था कि उन्हें संक्रमण हुआ कैसे. मैं उन्हें अरसे से बहुत नजदीक से जानता हूं. घनिष्ठ घरेलू संबंध हैं. बड़ा साफसुथरा जीवन रहा है उन का. किसी प्रकार के बाहरी यौन संबंधों का सवाल ही नहीं उठता और उन का विश्वास करने का भी कोई कारण नहीं.

‘‘जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं था कि जिस से चाहेअनचाहे एच.आई.वी. संक्रमण हो सकता. सब पूछा था, काफी चर्चा हुई. वे बारबार मुझ से ही पूछते थे कि फिर कैसे हो गया संक्रमण. अंत में उन्होंने मुझे बताया कि वे डायबिटीज के रोगी अवश्य हैं. उन्हें इंसुलिन या अन्य इंजेक्शन तो कभी लेने नहीं पड़े पर वे नियमित रूप से टेस्ट करवाने एक प्राइवेट लैब में जाते थे. उन्होंने बताया, उस लैब में उंगली से ब्लड एक प्लंजर से लेते थे. दूसरे रोगियों में भी वही प्लंजर काम में लिया जाता था.

‘‘क्या उस से उन को संक्रमण हुआ है, क्योंकि इस के अलावा तो उन्होंने कभी कोई इंजेक्शन नहीं लिए. जब मैं ने बताया कि यह संभव है तो उन्होंने कहा कि इस लैब के खिलाफ काररवाई क्यों नहीं करते? लैब को ऐसा करने से रोका क्यों नहीं गया? जो उन्हें हुआ है वह दूसरे मासूम लोगों को भी हो सकता है या हुआ होगा.’’

कुछ पल शांत रह कर वह फिर बोले, ‘‘और मैं सोच रहा था कि आत्महत्या उन्हें करनी चाहिए या मुझे? क्या लाभ है ऐसे रोगों का निदान करने में जिन का इलाज नहीं कर सकते और जिन की रोकथाम हम करते नहीं. महज ऐसे रोेगियों का जीना दुश्वार करने से लाभ? क्या सोचते होंगे वे लोग जिन का निदान कर मैं ने जीना दूभर कर दिया?’’

प्रेम तर्पण: क्यों खुद को बोझ मान रही थी कृतिका

डाक्टर ने जवाब दे दिया था, ‘‘माधव, हम से जितना बन पड़ा हम कर रहे हैं, लेकिन कृतिकाजी के स्वास्थ्य में कोईर् सुधार नहीं हो रहा है. एक दोस्त होने के नाते मेरी तुम्हें सलाह है कि अब इन्हें घर ले जाओ और इन की सेवा करो, क्योंकि समय नहीं है कृतिकाजी के पास. हमारे हाथ में जितना था हम कर चुके हैं.’’

डा. सुकेतु की बातें सुन कर माधव के पीले पड़े मुख पर बेचैनी छा गई. सबकुछ सुन्न सा समझने न समझने की अवस्था से परे माधव दीवार के सहारे टिक गया. डा. सुकेतु ने माधव के कंधे पर हाथ रख कर तसल्ली देते हुए फिर कहा, ‘‘हिम्मत रखो माधव, मेरी मानो तो अपने सगेसंबंधियों को बुला लो.’’ माधव बिना कुछ कहे बस आईसीयू के दरवाजे को घूरता रहा. कुछ देर बाद माधव को स्थिति का भान हुआ. उस ने अपनी डबडबाई आंखों को पोंछते हुए अपने सभी सगेसंबंधियों को कृतिका की स्थिति के बारे में सूचित कर दिया.

इधर, कृतिका की एकएक सांस हजारहजार बार टूटटूट कर बिखर रही थी. बची धड़कनें कृतिका के हृदय में आखिरी दस्तक दे कर जा रही थीं. पथराई आंखें और पीला पड़ता शरीर कृतिका की अंतिम वेला को धीरेधीरे उस तक सरका रहा था. कृतिका के भाई, भाभी, मौसी सभी परिवारजन रात तक दिल्ली पहुंच गए. कृतिका की हालत देख सभी का बुरा हाल था. माधव को ढाड़स बंधाते हुए कृतिका के भाई कुणाल ने कहा, ‘‘जीजाजी, हिम्मत रखिए, सब ठीक हो जाएगा.’’

तभी कृतिका को देखने डाक्टर विजिट पर आए. कुणाल और माधव भी वेटिंगरूम से कृतिका के आईसीयू वार्ड पहुंच गए. डा. सुकेतु ने कृतिका को देखा और माधव से कहा, ‘‘कोई सुधार नहीं है. स्थिति अब और गंभीर हो चली है, क्या सोचा माधव तुम ने ’’ ‘‘नहींनहीं सुकेतु, मैं एक छोटी सी किरण को भी नजरअंदाज नहीं कर सकता. तुम्हीं बताओ, मैं कैसे मान लूं कि कृतिका की सांसें खत्म हो रही हैं, वह मर रही है, नहीं वह यहीं रहेगी और उसे तुम्हें ठीक करना ही होगा. यदि तुम से न हो पा रहा हो तो हम दूसरे किसी बड़े अस्पताल में ले जाएंगे, लेकिन यह मत कहो कि कृतिका को घर ले जाओ, हम उसे मरने के लिए नहीं छोड़ सकते.’’

सुकेतु ने माधव के कंधे को सहलाते हुए कहा, ‘‘धीरज रखो, यहां जो इलाज हो रहा है वह बैस्ट है. कहीं भी ले जाओ, इस से बैस्ट कोई ट्रीटमैंट नहीं है और तुम चाहते हो कि कृतिकाजी यहीं रहेंगी, तो मैं एक डाक्टर होने के नाते नहीं, तुम्हारा दोस्त होने के नाते यह सलाह दे रहा हूं. डोंट वरी, टेक केयर, वी विल डू आवर बैस्ट.’’

माधव को कुणाल ने सहारा दिया और कहा, ‘‘जीजाजी, सब ठीक हो जाएगा, आप हिम्मत मत हारिए,’’ माधव निर्लिप्त सा जमीन पर मुंह गड़ाए बैठा रहा. 3 दिन हो गए, कृतिका की हालत जस की तस बनी हुई थी, सारे रिश्तेदार इकट्ठा हो चुके थे. सभी बुजुर्ग कृतिका के बीते दिनों को याद करते उस के स्वस्थ होने की कामना कर रहे थे कि अभी इस बच्ची की उम्र ही क्या है, इस को ठीक कर दो. देखो तो जिन के जाने की उम्र है वे भलेचंगे बैठे हैं और जिस के जीने के दिन हैं वह मौत की शैय्या पर पड़ी है. कृतिका की मौसी ने हिम्मत करते हुए माधव के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘बेटा, दिल कड़ा करो, कृतिका को और कष्ट मत दो, उसे घर ले चलो.

‘‘माधव ने मौसी को तरेरते हुए कहा, ‘‘कैसी बातें करती हो मौसी, मैं उम्मीद कैसे छोड़ दूं.’’

तभी माधव की मां ने गुस्से में आ कर कहा, ‘‘क्यों मरे जाते हो मधु बेटा, जिसे जाना है जाने दो. वैसे भी कौन से सुख दिए हैं तुम्हें कृतिका ने जो तुम इतना दुख मना रहे हो,’’ वे धीरे से फुसफुसाते हुए बोलीं, ‘‘एक संतान तक तो दे न सकी.’’ माधव खीज पड़ा, ‘‘बस करो अम्मां, समझ भी रही हो कि क्या कह रही हो. वह कृतिका ही है जिस के कारण आज मैं यहां खड़ा हूं, सफल हूं, हर परेशानी को अपने सिर ओढ़ कर वह खड़ी रही मेरे लिए. मैं आप को ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता इसलिए आप चुप ही रहो बस.’’

कृतिका की मौसी यह सब देख कर सुबकते हुए बोलीं, ‘‘न जाने किस में प्राण अटके पड़े हैं, क्यों तेरी ये सांसों की डोर नहीं टूटती, देख तो लिया सब को और किस की अभिलाषा ने तेरी आत्मा को बंदी बना रखा है. अब खुद भी मुक्त हो बेटा और दूसरों को भी मुक्त कर, जा बेटा कृतिका जा.’’ माधव मौसी की बात सुन कर बाहर निकल गया. वह खुद से प्रश्न कर रहा था, ‘क्या सच में कृतिका के प्राण कहीं अटके हैं, उस की सांसें किसी का इंतजार कर रही हैं. अपनी अपलक खुली आंखों से वह किसे देखना चाहती है, सब तो यहीं हैं. क्या ऐसा हो सकता है

‘हो सकता है, क्यों नहीं, उस के चेहरे पर मैं ने सदैव उदासी ही तो देखी है. एक ऐसा दर्द उस की आंखों से छलकता था जिसे मैं ने कभी देखा ही नहीं, न ही कभी जानने की कोशिश ही की कि आखिर ये कैसी उदासी उस के मुख पर सदैव सोई रहती है, कौन से दर्द की हरारत उस की आंखों को पीला करती जा रही है, लेकिन कोईर् तो उस की इस पीड़ा का साझा होगा, मुझे जानना होगा,’ सोचता हुआ माधव गाड़ी उठा कर घर की ओर चल पड़ा. घर पहुंचते ही कृतिका के सारे कागजपत्र उलटपलट कर देख डाले, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. कुछ देर बैठा तो उसे कृतिका की वह डायरी याद आई जो उस ने कई बार कृतिका के पास देखी थी, एक पुराने बकसे में कृतिका की वह डायरी मिली. माधव का दिल जोरजोर से धड़क रहा था.

कृतिका का न जाने कौन सा दर्द उस के सामने आने वाला था. अपने डर को पीछे धकेल माधव ने थरथराते हाथों से डायरी खोली तो एक पन्ना उस के हाथों से आ चिपका. माधव ने पन्ने को पढ़ा तो सन्न रह गया. यह पत्र तो कृतिका ने उसी के लिए लिखा था :

‘प्रिय माधव,

‘मैं जानती हूं कि मैं तुम्हारे लिए अबूझ पहेली ही रही. मैं ने कभी तुम्हें कोई सुख नहीं दिया, न प्रेम, न संतान और न जीवन. मैं तुम्हारे लायक तो कभी थी ही नहीं, लेकिन तुम जैसे अच्छे पुरुष ने मुझे स्वीकार किया. मुझे तुम्हारा सान्निध्य मिला यह मेरे जन्मों का ही फल है, लेकिन मुझे दुख है कि मैं कभी तुम्हारा मान नहीं कर पाई, तुम्हारे जीवन को सार्थक नहीं कर पाई. तुम्हारी दोस्त, पत्नी तो बन गई लेकिन आत्मांगी नहीं बन पाई. मेरा अपराध क्षम्य तो नहीं लेकिन फिर भी हो सके तो मुझे क्षमा कर देना माधव, तुम जैसे महापुरुष का जीवन मैं ने नष्ट कर दिया, आज तुम्हारा कोई तुम्हें अपना कहने वाला नहीं, सिर्फ मेरे कारण.

‘मैं जानती हूं तुम ने मेरी कोई बात कभी नहीं टाली इसलिए एक आखिरी याचना इस पत्र के माध्यम से कर रही हूं. माधव, जब मेरी अंतिम विदाईर् का समय हो तो मुझे उसी माटी में मिश्रित कर देना जिस माटी ने मेरा निर्माण किया, जिस की छाती पर गिरगिर कर मैं ने चलना सीखा. जहां की दीवारों पर मैं ने पहली बार अक्षरों को बुनना सीखा.

जिस माटी का स्वाद मेरे बालमुख में कितनी बार जीवन का आनंद घोलता रहा. मुझे उसी आंगन में ले चलना जहां मेरी जिंदगी बिखरी है. ‘मैं समझती हूं कि यह तुम्हारे लिए मुश्किल होगा, लेकिन मेरी विनती है कि मुझे उसी मिट्टी की गोद में सुलाना जिस में मैं ने आंखें खोली थीं. तुम ने अपने सारे दायित्व निभाए, लेकिन मैं तुम्हारे प्रेम को आत्मसात न कर सकी. इस डायरी के पन्नों में मेरी पूरी जिंदगी कैद थी, लेकिन मैं ने उस का पहले ही अंतिम संस्कार कर दिया, अब मेरी बारी है, हो सके तो मुझे क्षमा करना.

‘तुम्हारी कृतिका.’

माधव सहम गया, डायरी के कोरे पन्नों के सिवा कुछ नहीं था, कृतिका यह क्या कर गई अपने जीवन की उस पूजा पर परदा डाल कर चली गई, जिस में तुम्हारी जिंदगी अटकी है. आज अस्पताल में हरेक सांस तुम्हें हजारहजार मौत दे रही है और हम सब देख रहे हैं. माधव ने डायरी के अंतिम पृष्ठ पर एक नंबर लिखा पाया, वह पूर्णिमा का नंबर था. पूर्णिमा कृतिका की बचपन की एकमात्र दोस्त थी. माधव ने खुद से प्रश्न किया कि मैं इसे कैसे भूल गया. माधव ने डायरी के लिखा नंबर डायल किया.

‘‘हैलो, क्या मैं पूर्णिमाजी से बात कर रहा हूं, मैं उन की दोस्त कृतिका का पति बोल रहा हूं,‘‘

दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘नहीं मैं उन की भाभी हूं. दीदी अब दिल्ली में रहती हैं.’’ माधव ने पूर्णिमा का दिल्ली का नंबर लिया और फौरन पूर्णिमा को फोन किया, ‘‘नमस्कार, क्या आप पूर्णिमाजी बोली रही हैं.’‘

‘‘जी, बोल रही हूं, आप कौन ’’

‘‘जी, मैं माधव, कृतिका का हसबैंड.’’

पूर्णिमा उछल पड़ी, ‘‘कृतिका. कहां है, वह तो मेरी जान थी, कैसी है वह  कब से उस से कोई मुलाकात ही नहीं हुई. उस से कहिएगा नाराज हूं बहुत, कहां गई कुछ बताया ही नहीं,’’ एकसाथ पूर्णिमा ने शिकायतों और सवालों की झड़ी लगा दी. माधव ने बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘कृतिका अस्पताल में है, उस की हालत ठीक नहीं है. क्या आप आ सकती हैं मिलने ’’ पूर्णिमा धम्म से सोफे पर गिर पड़ी, कुछ देर दोनों ओर चुप्पी छाई रही. माधव ने पूर्णिमा को अस्पताल का पता बताया. ‘‘अभी पहुंचती हूं,’’ कह कर पूर्णिमा ने फोन काट दिया और आननफानन में अस्पताल के लिए निकल गई. माधव निर्णयों की गठरी बना कर अस्पताल पहुंच गया. कुछ ही देर बाद पूर्णिमा भी वहां पहुंच गई. डा. सुकेतु की अनुमति से पूर्णिमा को कृतिका से मिलने की आज्ञा मिल गई.

पूर्णिमा ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया, कृतिका को देख कर गिरतेगिरते बची. सौंदर्य की अनुपम कृति कृतिका आज सूखे मरते शरीर के साथ पड़ी थी. पूर्णिमा खुद को संभालते हुए कृतिका की बगल में स्टूल पर जा कर बैठ गई. उस की ठंडी पड़ती हथेली को अपने हाथ से रगड़ कर उसे जीवन की गरमाहट देने की कोशिश करने लगी. उस ने उस के माथे पर हाथ फेरा और कहा, ‘‘कृति, यह क्या कर लिया तूने  कौन सा दर्द तुझे खा गया  बता मुझे कौन सी पीड़ा है जो तुझे न तो जीने दे रही है न मरने. सबकुछ तेरे सामने है, तेरा परिवार जिस के लिए तू कुछ भी करने को तैयार रहती थी, तेरा उन का सगा न होना यही तेरे लिए दर्द का कारण हुआ करता था, लेकिन आज तेरे लिए वे किसी सगे से ज्यादा बिलख रहे हैं. इतने समझदार पति हैं फिर कौन सी वेदना तुझे विरक्त नहीं होने देती.’’ कृति की पथराई आंखें बस दरवाजे पर टिकी थीं, उस ने कोई उत्तर नहीं दिया.

पूर्णिमा कृति के चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी, कुछ देर उस की आंखों में उस की पीड़ा खोजते हुए पूर्णिमा ने धीरे से कहा, ‘‘शेखर, कृति की पथराई आंख से आंसू का एक कतरा गिरा और निढाल हाथों की उंगलियां पूर्णिमा की हथेली को छू गईं. पूर्णिमा ठिठक गई, अपना हाथ कृतिका के सिर पर रख कर बिलख पड़ी, तू कौन है कृतिका, यह कैसी अराधना है तेरी जो मृत्यु शैय्या पर भी नहीं छोड़ती, यह कौन सा रूप है प्रेम का जो तेरी आत्मा तक को छलनी किए डालता है.’’ तभी आवाज आई, ‘‘मैडम, आप का मिलने का समय खत्म हो गया है, मरीज को आराम करने दीजिए.’’

पूर्णिमा कृतिका के हाथों को उम्मीदों से सहला कर बाहर आ गई और पीछे कृतिका की आंखें अपनी इस अंतिम पीड़ा के निवारण की गुहार लगा रही थीं. उस की पुतलियों पर गुजरा कल एकएक कर के नाचने लगा था. कृतिका नाम मौसी ने यह कह कर रखा था कि इस मासूम की हम सब माताएं हैं कृतिकाओं की तरह, इसलिए इस का नाम कृतिका रखते हैं. कृतिका की मां उसे जन्म देते ही इस दुनिया से चल बसी थीं. मौसी उस 2 दिन की बच्ची को अपने साथ लेआई थीं, नानी, मामी, मौसी सब ने देखभाल कर कृतिका का पालन किया था. जैसेजैसे कृतिका बड़ी हुई तो लोगों की सहानुभूति भरी नजरों और बच्चों के आपसी झगड़ों ने उसे बता दिया था कि उस के मांबाप नहीं हैं. परिवार में प्राय: उसे ले कर मनमुटाव रहता था. कई बार यह बड़े झगड़े में भी तबदील हो जाता, जिस के परिणामस्वरूप मासूम छोटी सी कृतिका संकोची, डरी, सहमी सी रहने लगी. वह लोगों के सामने आने से डरती, अकसर चिड़चिड़ाया करती, लोगों की दया भरी दलीलों ने उस के भीतर साधारण हंसनेबोलने वाली लड़की को मार डाला था.

कभी उसे बच्चे चिढ़ाते कि अरे, इस की तो मम्मी ही नहीं है ये बेचारी किस से कहेगी. मासूम बचपन यह सुन कर सहम कर रह जाता. यह सबकुछ उसे व्यग्र बनाता चला गया. बस, हर वक्त उस की पीड़ा यही रहती कि मैं क्यों इस परिवार की सगी नहीं हुई, धीरेधीरे वह खुद को दया का पात्र समझने लगी थी, अपने दिल की बेचैनी को दबाए अकसर सिसकसिसक कर ही रोया करती.

युवावस्था में न अन्य युवतियों की तरह सजनेसंवरने के शौक, न हंसीठिठोली, बस, एक बेजान गुडि़या सी वह सारे काम करती रहती. उस के दोस्तों में सिर्फ पूर्णिमा ही थी जो उसे समझती और उस की अनकही बातों को भी बूझ लिया करती थी. कृतिका को पूर्णिमा से कभी कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. पूर्णिमा उसे समझाती, दुलारती और डांटती सबकुछ करती, लेकिन कृतिका का जीवन रेगिस्तान की रेत की तरह ही था.

कृतिका के घर के पास एक लड़का रोज उसे देखा करता था, कृतिका उसे नजरअंदाज करती रहती, लेकिन न जाने क्यों उस की आंखें बारबार कृतिका को अपनी ओर खींचा करतीं, कभी किसी की ओर न देखने वाली कृतिका उस की ओर खिंची चली जा रही थी.

उस की आंखों में उसे खिलखिलाती, नाचती, झूमती जिंदगी दिखने लगी थी, क्योंकि एक वही आंखें थीं जिन में सिर्फ कृतिका थी, उस की पहचान के लिए कोई सवाल नहीं था, कोई सहानुभूति नहीं थी. कृतिका के कालेज में ही पढ़ने आया था शेखर. कृतिका अब सजनेसंवरने लगी थी, हंसने लगी थी. वह शेखर से बात करती तो खिल उठती. शेखर ने उसे जीने का नया हौसला और पहचान से परे जीना सिखाया था. पूर्णिमा ने शेखर के बारे में घर में बताया तो एक नई कलह सामने आई. कृतिका चुपचाप सब सुनती रही. अब उस के जीवन से शेखर को निकाल दिया गया. कृतिका फिर बिखर गई, इस बार संभलना मुश्किल था, क्योंकि कच्ची माटी को आकार देना सहज होता है.

कृतिका में अब शेखर ही था, महीनों कृतिका अंधेरे कमरे में पड़ी रही न खाती न पीती बस, रोती ही रहती. एक दिन नौकरी के लिए कौल लैटर आया तो परिवार वालों ने भेजने से इनकार कर दिया, लेकिन इस बार कृतिका अपने संकोच को तिलांजलि दे चुकी थी, उस ने खुद को काम में इस कदर झोंक दिया कि उसे अब खुद का होश नहीं रहता  परिवार की ओर से अब लगातार शादी का दबाव बढ़ रहा था, परिणामस्वरूप सेहत बिगड़ने लगी. उस के लिए जीवन कठिन हो गया था, पीड़ा ने तो उसे जैसे गोद ले लिया हो, रातभर रोती रहती. सपने में शेखर की छाया को देख कर चौंक कर उठ बैठती, उस की पागलों की सी स्थिति होती जा रही थी.

अब कृतिका ने निर्णय ले लिया था कि वह अपना जीवन खत्म कर देगी, कृतिका ने पूर्णिमा को फोन किया और बिलखबिलख कर रो पड़ी, ‘पूर्णिमा, मुझ से नहीं जीया जाता, मैं सोना चाहती हूं.’ पूर्णिमा ने झल्ला कर कहा, ‘हां, मर जा और उन लोगों को कलंकित कर जा जिन्होंने तुझे उस वक्त जीवन दिया था जब तेरे ऊपर किसी का साया नहीं था, इतनी स्वार्थी कैसे और कब हो गई तू  तू ने जीवन भर उस परिवार के लिए क्याक्या नहीं किया, आज तू यह कलंक देगी उपहार में ’

कृतिका ने बिलखते हुए कहा, ‘मैं क्या करूं पूर्णिमा, शेखर मेरे मन में बसता है, मैं कैसे स्वीकार करूं कि वह मेरा नहीं, मैं तो जिंदगी जानती ही नहीं थी वही तो मुझे इस जीवन में खींच कर लाया था. आज उसे जरा सी भी तकलीफ होती है तो मुझे एहसास हो जाया करता है, मुझे अनाम वेदना छलनी कर जाती है, मैं तो उस से नफरत भी नहीं कर पा रही हूं, वह मेरे रोमरोम में बस रहा है.’ पूर्णिमा बोली, ‘कृतिका जरूरी तो नहीं जिस से हम प्रेम करें उसे अपने गले का हार बना कर रखें, वह हर पल हमारे साथ रहे, प्रेम का अर्थ केवल साथ रहना तो नहीं. तुझे जीना होगा यदि शेखर के बिना नहीं जी सकती तो उस की वेदना को अपनी जिंदगी बना ले, उस की पीड़ा के दुशाले से अपने मन को ढक ले, शेखर खुद ब खुद तुझ में बस जाएगा. तुझ से उसे प्रेम करने का अधिकार कोई नहीं छीन सकता.

कृतिका को अपने प्रेम को जीने का नया मार्ग मिल गया था, शेखर उस की आत्मा बन चुका था, शेखर की पीड़ा कृतिका को दर्द देती थी, लेकिन कृतिका जीती गई, सब के लिए परिवार की खुशी के लिए माधव से कृतिका का विवाह हो गया. माधव एक अच्छे जीवनसाथी की तरह उस के साथ चलता रहा, कृतिका भी अपने सारे दायित्वों को निभाती चली गई, लेकिन उस की आत्मा में बसी वेदना उस के जीवन को धीरेधीरे खा रही थी और वही पीड़ा उसे आज मृत्यु शैय्या तक ले आई थी, उसे ब्रेन हैमरेज हो गया था.

रात हो चली थी. नर्स ने आईसीयू के तेज प्रकाश को मद्धम कर दिया और कृतिका की आंखों में नाचता अतीत फिर वर्तमान के दुशाले में दुबक गया. पूर्णिमा ने माधव से कहा कि कृतिका को आप उस के घर ले चलिए मैं भी चलूंगी, मैं थोड़ी देर में आती हूं. पूर्णिमा ने घर आ कर तमाम किताबों, डायरियों की खोजबीन कर शेखर का फोन नंबर ढूंढ़ा और फोन लगाया, सामने से एक भारी सी आवाज आई, ‘‘हैलो, कौन ’’

‘‘हैलो, शेखर ’’

‘‘जी, मैं शेखर बोल रहा हूं.’’

‘‘शेखर, मैं पूर्णिमा, कृतिका की दोस्त.’’

कुछ देर चुप्पी छाई रही, शेखर की आंखों में कृतिका तैर गई. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘पूर्णिमा… कृतिका… कृतिका कैसी है ’’ पूर्णिमा रो पड़ी, ‘‘मर रही है, उस की सांसें उसी शेखर के लिए अटकी हैं जिस ने उसे जीना सिखाया था, क्या तुम उस के घर आ सकोगे कल ’’ शेखर सोफे पर बेसुध सा गिर पड़ा मुंह से बस यही कह सका, ‘‘हां.’’ कृतिका को ऐंबुलैंस से घर ले आया गया. घर के सामने लोगों की भीड़ जमा हो गई, सब की आंखों में उस माटी में खेलने वाली वह गुडि़या उतर आई, दरवाजे के पीछे छिप जाने वाली मासूम कृति आज अपनी वेदनाओं को साकार कर इस मिट्टी में छिपने आई थी.

दरवाजे पर लगी कृतिका की आंखों से अश्रुधार बह निकली, शेखर ने देहरी पर पांव रख दिया था, कृतिका की पुतलियों में जैसे ही शेखर का प्रतिबिंब उभरा उस की अंतिम सांसों के पुष्प शेखर के कदमों में बिखर गए और शेखर की आंखों से बहती गंगा ने प्रेम तर्पण कर कृतिका को मुक्त कर दिया.

अनन्या पांडे और खुशी कपूर ने टमी फ्लैट करने के लिए फौलो किया यह फौर्मूला, चौंकाने वाली है इनकी फिटनेस रूटीन

बौलीवुड में एक्टर हो य एक्ट्रेस अपनी फिटनेस को लेकर ही हमेशा लाइमलाइट में बने रहते हैं. जिस के लिए वे घंटो जिम और योग में पसीने बहाते हैं. इतना ही नहीं, स्ट्रिक्ट डाइट को भी फोलो करते है. अपने खाने की टाइमिंग को ले कर कभी लापरवाही नहीं करते हैं. एक्ट्रेस अनन्या पांडे, खुशी कपूर इन दिनों अपने फिटनेस वीडियोज को लेकर चर्चा में हैं.

 

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बौलीवुड में अनन्या और खुशी के अलावा जाह्नवी और सारा अली खान भी फिटनेस फ्रीक मानी जाती हैं . ये सभी एक्ट्रेसैस अपनी एक्सरसाइज और डाइट को लेकर काफी सीरियस रहती है. इनकी वीडियो और फोटोज सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से वायरल होती रहती है. इनके फैंस यही जानने के लिए बेताब रहते है कि ये स्टार्स क्या खाते हैं, किस तरह की एक्सरसाइज करते हैं, कितने घंटें काम करते हैं.

बौलीवुड की सेक्सी और खूबसूरत एक्ट्रेस अनन्या पांडे आज लाखों दिलों पर राज करती हैं. इनकी स्माइल, ब्यूटी को हर कोई पसंद करता है इन्होंने अपनी एक्टिंग से भी लाखों लोगों को अपना फोलोअर बना लिया है. इतना ही नहीं, इनका स्लिम फिगर कई लड़कियों के लिए ड्रीम फिगर है.

अनन्या पांडे की डाइट

यह एक्ट्रेस औयली फूड और जंक फूड से काफी दूर रहती है. दिन की शुरुआत वह गुनगुना पानी पी कर करती हैं, एक्ट्रेस अपने ब्रेकफास्ट में लो फैट मिल्क और साउथ इंडियन फूड जैसे- इडली, डोसा, उपमा और प्रोटीन के लिए दो अंडे खाती हैं.

अनन्या पांडे अपने लंच में कार्ब्स इंटेक के लिए दो रोटी और उबली हुई सब्जियां खाती हैं. वह ग्रिल्ड फिश खाना पसंद करती हैं. इसके अलावा शाम को स्नैक्स में वह फिल्टर्ड कौफी पीती हैं और साथ ही नट्स खाना पसंद करती हैं. एक्ट्रेस हरी सब्जियां और सलाद खाना बहुत पसंद करती हैं. उनका फेवरेट स्नैक्स वेजिटेबल सलाद है.

डिनर के लिए अनन्या पांडे हरी सब्जियां, सलाद और रोटी प्रेफर करती हैं. साथ ही साथ वह सीजनल फ्रूट्स खाना पसंद करती हैं. वैसे तो चौकलेट्स और पिज़्ज़ा अनन्या का फेवरेट फूड है लेकिन अपनी बौडी की फिटनेस के लिए ऐसा खाना अवोइड करती हैं. हालांकि कभी-कभी चीट डे मनाती हैं, वो भी तब, जब वह अपने जिम वर्कआउट से छुट्टी लेती हैं.

कैसी है अनन्या की एक्सरसाइट रूटीन

एक्ट्रेस अपनी एक्सरसाइज में योगा, जिम, कार्डियो वर्कआउट, डांस, स्विमिंग, साइकलिंग आदि करती हैं. खुद को फिट रखने के लिए एक स्ट्रिक्ट एक्सरसाइज को फोलो करती हैं . वे दिन की शुरुआत योग से करती हैं और जिम जाना कभी नहीं भूलती . इसके अलावा वे अपनी पसंदीदा स्पोर्ट्स रूटीन में रखती है. भरपूर नींद लेती है और खूब सारा पानी पीती है.

खुशी कपूर की डाइट

फिटनेस डीवा खुशी कपूर बेहद स्लिम दिखती है और अपनी फिटनेस को लेकर काफी सतर्क भी रहती हैं. खुशी की डाइट की बात करें तो, वे भरपूर पोषण से जुड़ी डाइट लेती है साथ ही खूब सारा पानी पीना पसंद करती है. बैलेंस्ड डाइट लेती है. चीनी और जंक फूड से दूर रहती है.

खुशी कपूर का एक्सरसाइट रूटीन

खुशी कपूर फिटनेस के लिए जिम जाना पसंद करती है, वहां वे घंटों एक्सरसाइज करती हैं. हाल में वे जिस में टमी कम करने की एक्सरसाइज करती नजर आई. खुशी वर्कआउट में पिलाटे और कार्डियो करना पसंद करती है. ये उनके कर्वी फिगर को बनाएं रखने में काम आता है.

जाह्नवी कपूर की डाइट

जाह्नवी कपूर अपने दिन की शुरुआत पानी पी कर करती है. वह दिन भर में 10 ग्लास पानी पीती है. इसके बाद एक्ट्रेस ब्रेकफास्ट में ब्राउन ब्रेड, पीनट बटर, ओट्स और एग व्हाइट लेती है.

लंच के दौरान एक्ट्रेस सालद, ब्राउन राइट, पत्तेदार सब्जियां, वेजिटेबल सूप, दाल और उबली सब्जियां, वेजिटेबल सूप खाना पसंद है. एक्ट्रेस को रेड मीट खाना भी पसंद है. खुद को फिट रखने के लिए जाह्नवी सौफ्ट ड्रिंक्स और जंक फूड से कोसो दूर रहती है. डिनर के दौरान एक्ट्रेस दाल, सूप और फिश खाना पसंद करती है. जाह्नवी शराब से कोसों दूर है.

जाह्नवी कपूर का एक्सरसाइज रूटीन

एक्ट्रेस अपनी एक्सरसाइज में योगा, जिम, कार्डियो, वेट लिफ्टिंग और साइकलिंग करती है. जिम औफ वाले दिन एक्ट्रेस जोगिंग और स्विमिंग करती है. एक्ट्रेस को रस्सी कूदना बेहद पसंद है. इस तरह की एक्सरसाइज से एक्ट्रेस बेहद फिट रहती है.

सारा अली खान का नाम आज बौलीवुड की हौट और ग्लैमरस एक्ट्रेसेस की लिस्ट में शामिल है. लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब वह 96 किलो की हुआ करती थीं तब उन्हें उनकी माँ ने भी पहचानने से इंकार कर दिया था. उसके बाद सारा ने अपने डाइट में बदलाव किया और खुद को बनाया ग्लैमरस गर्ल.

सारा अली खान की डाइट

चिया पुडिंग से करती है सारा अपनी शुरुआत. इसमें दूध और दही चिया सीड्स के साथ खाया जाता है. इसे फलों, नट्स या फिर शहद जैसी टौपिंग के साथ भी खाया जाता है. इसके अलावा सारा एडवोकाडो टोस्ट खाती है. इसे टेस्टी बनाने के लिए आप इसमें टमाटर, उबले अंडे और सीज़निंग मिलाकर का सकते हैं.

सारा अली खान साफसुथरा खाना खाने और प्रोसेस्ड फूड से परहेज करने में विश्वास रखती हैं. उनकी जाइट में बहुत सारे ताजे फल और सब्जियां, लीन प्रोटीन और हैल्दी वसा शामिल हैं. ब्रेकफास्ट में सारा अली खान नाश्ते से करती है जिसमें वे अंडे का सफेद भाग, दलिया और ताजे फल खाते है.

दिन के खाने में वह सब्जियां और भूरे चावल के साथ ग्रिल्ड चिकन या मछली खाती है. डिनर में वे हल्का खाना पसंद करती है आमतौर पर ग्रिल्ड फिश या चिकन के साथ सलाद, सूप लेती है.

सारा अली खान की एक्सरसाइज

सारा अली खान मौर्निंग में जिम जाती है. इसके अलावा वह हाई इंटेसिटी वाला वर्कआउट करती है. उनके जो कि फैट बर्न करने में कारगर साबित होता है. कार्डियो एक्सरसाइज भी सारा की रूटीन में शामिल है. सारा ने अपनी फिटनेस रूटीन में रनिंग, वौकिंग, साइकिलिंग जैसे एक्सरसाइज को शामिल किया. सारा बौक्सिंग भी किया करती है. सारा पुश अप्स, लीपिंग स्क्वौट्स, वेटलिफ्टिंग, ट्रेडमिल बनी हौपिंग, योगासन, केटलेबल ट्रेनिंग और पिलेट्स स्विस आदि करती है.

मेरी लेडी प्रोफैशर मुझे अकेले में मिलने के लिए कहती है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैंने हाल ही में कौलेज में एडमिशन लिया है. मै रेगुलर जाता हूं. वहां एक से बढ़कर एक सुंदर लड़कियां हैं, जो फीमेल प्रोफैशर हैं, वो भी स्मार्ट हैं. मुझे तो पढ़ाई में कम , लड़कियों को देखने में ज्यादा मजा आता है. मेरी एक लेडी प्रोफैसर है, वो मुझसे घंटों तक बातें करती है. ये सिलसिला रोजाना चलता है.

वैसे मुझे भी औरतों में ज्यादा इंट्रेस्ट है. लेकिन उस दिन मेरी प्रोफैसर ने बात करतेकरते मेरी हाथों को कस के पकड़ लिया. मैं हक्काबक्का रह गया. मैंने हाथ छुड़ाकर उनके केबिन से बाहर निकला गया. एक दिन उन्होंने मुझे मैसेज किया कि मेरे घर पर आना मैं तुम्हें ट्यूशन पढ़ाऊंगी, लेकिन मैं कौलेज में भी उनके सामने जाने से कतरा रहा हूं. उस लेडी प्रोफैशर की उम्र करीब 40 के आसपासी होगी और वो अकेले ही रहती हैं. मेरा मन करता है, कभी उनसे अकेले में मिलूं, अगर वो मेरे साथ सैक्स करना चाहती है, तो मुझे भी कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन डर लगता है, मुझे कहीं वो फंसा न दें… कृपया कोई सुझाव दें, क्या करूं?

जवाब

देखिए कई बार पुरुष या महिला अपनी सेक्सुअल नीड के लिए किसी का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे लोगों से सावधान रहें. अगर आपको रिलेशनशिप में रहना ही है, तो किसी लड़की के साथ दोस्ती करें, रोमांटिक डेट पर जाएं, मौजमस्ती करें.

ये भी ध्यान रखें कि ये महिला आपकी प्रोफेसर है और उम्र में भी आपसे बड़ी है. हो सकता है अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए आपका इस्तेमाल करे, तो इन चीजों से दूर रहें कि ऐसी नौबत ही न आए.

जब टीचर से हो जाए प्यार

प्यार की ना तो कोई उम्र होती है ना ही कोई बंधन..यह कब किससे हो जाए, कोई नहीं जानता… लेकिन कुछ ऐसे रिश्ते हैं, जिनमें प्यार का रिश्ता है, तो दुनिया उसे गलत नजरों से देखती है और वो बादनामी का कारण बनता है.

पुराने जमाने में में टीचर और स्‍टूडेंट का रिश्‍ता बहुत पवित्र माना जाता था, लेकिन अब यह रिश्ता भी पूरा तरह बदल गया है और लोगों का नजरिया भी चेंज हुआ है. कौलेज लाइफ के दौरान ये अक्सर देखा गया है कि लड़के या लड़कियों का पहला क्रश कोई प्रोफेशर ही होता है. कई बार स्टूडेंट-टीचर का रिश्ता इतना आगे बढ़ जाता है कि बात शादी तक भी पहुंच जाती है.

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