जानें दंगल गर्ल कैसे करती हैं अपना Self Care

कर्ली हेयर और खूबसूरत मुस्कान वाली दंगल गर्ल यानी बौलीवुड एक्ट्रैस सान्या मल्होत्रा अपनी बेहतरीन ऐक्टिंग, डांस, फिटनेस, फैशन, और फनी वीडियोज से अपने फैंस को लुभाती रहती हैं और अब उन्होंने अपनी ब्यूटी को बरकरार रखने के लिए कुछ खास बातें शेयर की वो बातें क्या हैं आइए जानते हैं-

हाल ही में सान्या मल्होत्रा एक फ़ूड प्रोडक्ट लौंच के मौके पर दिल्ली में नजर आईं. जहां पर उन्होंने मीडिया के कई सवालों का जवाब दिया. जब सान्या से उनके बिजी शेड्यूल में सेल्फ केअर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया, “कभी-कभी काम के चक्कर में मैं सो नही पाती इसलिए जब मौका मिलता है तो मैं खूब सोकर अपनी केअर करती हूं, हेल्दी खाना खा कर, वर्कआउट बहुत करती हूं, जिससे मैं एक्टिव और फिट रह सकूं इसके अलावा ग्लोइंग स्किन के लिए हर्बल चीजों से बने प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती हूं जैसे-हल्दी, एलोवेरा, दही और बेसन को मिला कर पेस्ट बना कर फेस पर लगाती हूं. स्किन को हाइड्रेट करने के लिए खूब पानी पीती हूं इससे स्किन हेल्दी होने के साथ शाइन भी करती है.”

आपको बता दे सान्या मल्होत्रा इन दिनों अपनी फिल्म ‘मिसेज’ को लेकर चर्चा में है उन्होंने फिल्म “मिसेज” के लिए न्यूयार्क इंडियन फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्ट्रैस का पुरस्कार जीता था. यही नहीं, उन्होंने इस फिल्म के लिए आईएफएफएम 2024 में बेस्ट एक्ट्रेस नौमिनेशन भी हासिल किया. अब ‘मिसेज’ का मेलबर्न इंडियन फिल्म फेस्टिवल 2024 में प्रीमियर होगा. जो 15 से 25 अगस्त तक आयोजित किया जाएगा. ‘मिसेज’, मलयालम फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन किचेन’ का हिंदी कनवर्जन है. इस फिल्म में सान्या के अलावा कंवलजीत सिंह और निशांत दहिया भी मेन लीड में हैं.

एक्ट्रेस सान्या मल्होत्रा ने साल 2016 में ब्लौकबस्टर हिट फिल्म ‘दंगल’ से अपने करियर की शुरुआत की थी. इसके बाद उन्हें फिल्म ‘फोटोग्राफ’, ‘पटाखा’, ‘बधाई हो’, ‘पगलेट’, ‘जवान’, ‘कटहल’ और ‘सैम बहादुर’ फिल्मों में देखा गया था. अब सान्या, ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’, ‘ठग लाइफ’ और अनुराग कश्यप के साथ एक बेनाम फिल्म में नजर आएंगी.

सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ शशांक खेतान द्वारा लिखित और निर्देशित है. यह फिल्म 18 अप्रैल, 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी.

दूसरों के बारे में दिलचस्पी लेने से पहले खुद के घर में झांके!

सड़क किनारे, मेट्रो स्टेशन, छोटेछोटे गलियोंकस्बों में बड़े बड़े होर्डिंग्स लगे होते हैं. ये होर्डिंग्स ज्यादात्तर फिल्मों के प्रमोशन के होते हैं, आखिर जब ये होर्डिंग्स पुराने हो जाते हैं, तो इनका क्या किया जाता है?

सीन – होर्डिंग्स पुराने हुए, नीचे गिर गए, गलियों या सड़कों किनारे रहने वाले लोग उस होर्डिंग्स को उठाया अपने गंदे फर्श या दीवार को ढ़क दिया.

” लोग अपनी गंदगी को छिपाने के लिए मखमली चादरों का इस्तेमाल करते हैं, ताकि बाहर से सुंदर दिखे और अंदर की गंदगी छिप जाए” इसी तरह हालात है लोगों की… वो अपने घर में नहीं देखते है कि उनके घर में कितने झगड़े हैं, लेकिन दूसरों में इतनी दिलचस्पी लेते हैं, कि लगता है उन्हें सुप्रिम पावर मिल गई है कि वो कुछ भी कह सकते हैं.”

यूं कहे तो लोग अपनी गलतियों को ढ़कने के लिए दूसरी चीजों यानी अपने पड़ोसी, रिश्तेदार यहां तक की सेलिब्रिटीज, पौलिटिशियन या अन्य हस्ती के बारे में गौसिप करते  हैं. जबकि लोगों को कुछ पता भी नहीं होता है, फिर भी तेलमसाले, नमकमिर्च लगा कर बात करते हैं.

कहा जाता है कि लोगों का काम है कहना, लेकिन आजकल मीडिया न्यूज चैनल या वेब पोर्टल भी इन मामलों में आगे हैं.  इनके पास जब कुछ नयी मसालेदार खबरें नहीं होती हैं, तो वो बौलीवुड,  पौलिटिशियन, बड़े बिजनेसमैन या किसी भी अन्य हस्ती की लव स्टोरी, एक्सट्रा मैरिटल अफेयर की बातें करने लगते हैं, वो गूगल ट्रैंड पर भी दिखने लगता है. इनके पास कोई ठोस सुबूत भी नहीं होता फिर भी ये खबरें फैलाते रहते हैं, एक ही तरह के खबरों पर अलगअलग तरह के मिर्चमसाले लगाकर पेश करते हैं और लोगों को ये एंगल पसंद भी आता है. इतना ही नहीं ये खबरें गूगल पर टौप पर भी दिखता है, आखिर लोग किसी की प्रेम कहानी, एक्सट्रा मैरिटल अफेयर जैसे चीजों में इतना क्यों इंट्रेस्ट लेते हैं?

क्या आम पुरुष हो या महिला अगर किसी को कोई पसंद आता है और वह शख्स उसके लिए उपलब्ध है, तो वह जरूर उससे संबंध रखेगा, किसी भी लड़के या लड़की को ऐसे चांस मिलेंगे तो कोई भी मिस नहीं करना चाहेगा.. तो फिर दूसरों पर उंगली ही क्यों उठाना.. आज हम इस आर्टिकल में कुछ पर्सनैलिटीज के बारे में बात करेंगे. आए दिन जिनके अफेयर, प्रेम कहानी आए दिन पढ़ने को मिलते हैं. हालांकि इन खबरों के बारे में लोगों को पहले से पता है, लेकिन फिर भी वो अक्सर इस बारे में पढ़ना पसंद करते हैं.

शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर

 

कांग्रेस पार्टी के नेता शशि थरूर की उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर की हत्या का मामला लगभग हर किसी को पता होगा. लेकिन इसे आप वेब पोर्टल या टीवी चैनल पर कई अलगअलग तरीकों से पढ़ा या देखा होगा. आज भी इनसे जुड़ी कोई खबर आ जाए, तो कोई भी पढ़ने से नहीं चूकेगा.

आए दिन सोशल मीडिया पर लोग शशि थरूर को ट्रोल करते हैं, किसी महिला के साथ उनकी फोटो को जोड़कर गलत शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. इस तरह के लोगों से सिर्फ इतना कहना है कि आपको इससे क्या समस्या है, शशि थरूर किसी भी महिला के साथ फोटो क्लिक करवाएं या कहीं जाएं.. आप कौन होते हैं बातें बनने वाले, उन्हें जज करने वाले… आप खुद पर काम करें, ताकि लोग आपसे इंप्रेस हों.

रेखा अमिताभ की लव स्टोरी

ये प्रेम कहानी काफी पुरानी है लेकिन आजकल के नौजवान को भी इस लव स्टोरी के बारे में पता है. जी हां पता क्यों न हो, मीडिया वाले आए दिन चटपटे गौसिप लेकर आते हैं. ‘इस फंक्शन में रेखा-अमिताभ आए आमनेसामने… तो बीच में आई जया’ तो ‘मुहब्बत जवान रहती है पत्नी बूढ़ी हो जाती है…” वगैरह, वगैरह… ऐसी खबरों पर इतने व्यूज आते हैं, लोगों को बस इसी तरह की खबरें पढ़ने को चाहिए…

कभी अपने घर में झांककर देखो, तुमने कितनी लड़कियों को लाइन मारा है, या सिंगल लड़कियां हो या शादीशुदा.. क्या आपने किसी मर्द को प्यार भरी नजरों से नहीं देखा या उसके करीब जाना नहीं चाहा, तो फिर सेलिब्रिटीज को ही क्यों ट्रोल करना… ”जिनके खुद के घर कांच के होते हैं, वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं मारा करते” यह मुहावरा इस तरह के लोगों पर फिट बैठता है.”

सलमान और ऐश्वर्या

आजकल ऐश्वर्या और अभिषेक बच्चन की तलाक की खबरे चर्चे में है. कुछ मीडिया न्यूज वालों ने अभिषेक और ऐश्वर्या के रिश्ते में दरार की वजह सलमान को बता दिया. क्या सच्चाई है अभिषेक और ऐश के रिश्ते की, अब ये दोनों ही जानें, लेकिन इसमें मिर्चमसाला लगाकर और कई अफवाहें फैलाई जा रही है. जिसे लोग बड़े मजे लेकर पढ़ रहे हैं और आपसे में चर्चा भी कर रहे हैं.

राहुल गांधी

भारतीय राजनेता राहुल गांधी के रिश्ते के बारे में भी लोगों को खूब दिलचस्पी होती है. कहा जाता है कि राहुल गांधी की गर्लफ्रैंड इटली में रहती है, वो अक्सर मिलने जाते हैं, कुछ लोगों तो ये भी कहते हैं कि उन्होंने शादी भी कर ली हैं. इस उम्र में कोई कैसे अकेला रह सकता है. जो लोग इस तरह की बातें करते हैं, या जो न्यूज चैनल इन खबरों को बढ़ावा देते हैं.. उनसे सवाल ये है कि आपने व्यक्तिगत रूप से चेक किया है कि राहुल कहां जाते हैं, उनकी गर्लफ्रैड हैं भी या नहीं… ऐसी अफवाहें क्यों फैलाते हैं जब आपको उस शख्स के बारे में कुछ पता ही न हो..

सिर्फ रिश्ते ही नहीं राहुल गांधी के एजुकेशन को भी लेकर कई तरह की बातें कही जाती हैं. मिम्स भी बनाए जाते हैं, जिन्हें ढंग से लिखना या बोलना भी नहीं आता वो राहुल गांधी को पप्पु कह देते हैं, क्या आप जानते हैं जिस नेता के बारे में आप ऐसी बातें करते हैं, उनकी पढ़ाई कहां से हुई है और उनके पास क्या डिग्री है… आपने किसी भी वेबसाइट, सोशल मीडिया या टीवी चैनल पर इस तरह की खबरें देख लिया और बातें बनाने लगे…

अफवाहें फैलाने वाले लोगों और मीडिया वालों से कहना है कि किसी भी खबर को फैलाने से पहले अच्छी तरह जांचपड़ताल कर लें, उसकी कोई ठोस जानकारी रखें, तभी लोगों तक पहुंचाएं और जो लोग किसी के अफेयर, तलाक, लवस्टोरी पर चुस्कियां लेते हैं, पहले आप खुद के घर में देखें कि आप किस मिजाज के हैं या कहीं आप भी तलाकशुदा तो नहीं है, फिर दूसरों की कहानी में इतनी ज्यादा दिलचस्पी क्यों?

बारिश में कुछ खाना चाहते हैं चटपटा, तो बनाएं इडली मंचूरियन

बारिश के मौसम में जब इंद्र देव अपना प्रकोप दिखाते हुए झमाझम बारिश करने लगते हैं तो एक ओर जहां मौसम सुहावना होता है वहीं दूसरी ओर मन कुछ चटपटा और तीखा खाने का करने लगता है. हर दिन कचौड़ी, समोसा और पकौड़े जैसी तली भुनी चीजें खाना सेहतमंद नहीं होता. इडली यूं तो साउथ इंडियन डिश है जिसे सांभर के साथ खाया जाता है लेकिन आज हम आपको साउथ इंडियन और चायनीज डिश का फ्यूजन करके बनायी गई एक बहुत ही हैल्दी रेसिपी बनाना बता रहे हैं जिसे आप आसानी से घर पर बना सकती हैं साथ ही बहुत हैल्दी होने का कारण आप इसे बेफिक्र होकर खा भी सकती हैं तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है –

सामग्री
कितने लोगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

तैयार मिनी इडली 16
तेल 1टेबलस्पून
बारीक कटी प्याज 1
बारीक कटी शिमला मिर्च 1
बारीक कटी गाजर 1 कप
बारीक कटी पत्तागोभी ½ कप
कटी लहसुन 4 कली
किसी अदरक 1 छोटी गांठ
सोया सॉस 1 टीस्पून
विनेगर 1 टीस्पून
ग्रीन चिली सौस 1 टीस्पून
रेड चिली सौस 1 टीस्पून
टोमेटो कैच अप 1 टेबलस्पून
कार्नफ्लोर 1 टीस्पून
नमक ½ टीस्पून
कश्मीरी लाल मिर्च ½ टीस्पून
चिली फ्लैक्स ¼ टीस्पून
बारीक कटा हरा प्याज 1 टेबलस्पू

विधि

गर्म तेल में प्याज, अदरक, हरी मिर्च और लहसुन को हल्का सुनहरा होने तक भून लें. अब इसमें सभी सब्जियां डालकर हल्की सी नरम होने तक पकाएं. एक बाउल में आधा कप पानी लें और उसमें सभी सासेज, नमक और कार्नफ्लौर डालकर अच्छी तरह चलायें. अब इसे भुनी सब्जियों में डाल दें. कश्मीरी लाल मिर्च और चिली फ्लैक्स डालकर धीमी आंच पर अच्छी तरह चलाते हुए गाढ़ा होने तक पकाएं. जब अच्छी तरह उबल जाए तो गैस बंद कर दें और तैयार ग्रेवी को सर्विंग डिश में डालकर ऊपर से इडली रखें. कटे हरे प्याज से गार्निश करके सर्व करें. ध्यान रखें कि इडली हमें सबसे अंत में सर्व करते समय ही डालनी है अन्यथा इडली ग्रेवी में घुल जाएगी.

जब मेल दोस्तों में अकेली हो फीमेल दोस्त

संजना लड़कियों से ज्यादा लड़कों से दोस्ती रखना पसंद करती है. उस के कई मेल फ्रैड्स हैं और वह अपने गु्रप में काफी फेमस भी है. उस का कहना है, अच्छे दोस्त मिलना बहुत मुश्किल है. फिर चाहे वे लड़के हों या लड़कियां. मुझे अधिकतर लड़के ही दोस्त मिले और वे सभी बेहतर हैं, लड़कियों से.

 

यह पूछे जाने पर कि आखिर वह एक लड़की होते हुए भी ऐसा क्यों बोल रही? तो वह हंसते हुए कहती है कि लड़कों से दोस्ती रखना आसान होता है. इन में लड़कियों जितना इगो नहीं होता, कंपीटिशन की भावना नहीं होती. कभीकभी ये लोग इतने सपोर्टिव होते हैं कि मैं उम्मीद भी नहीं कर सकती.

इस की एक बजह इन का आजाद स्वाभव भी है. वहीं लड़कियों में कंपीटिशन होता है, इन का इगो बहुत ही जल्द हर्ट हो जाता है और फिर एक लंबा समय लग जाता है उसे ठीक करने में जिस में खुद आप का मानसिक संतुलन खराब हो जाता है. हालांकि न ही लड़के और न ही लड़कियां हरकोई ऐसा नहीं होता. आप को लोगों की परख और दोस्ती के कुछ दायरे रखने पड़ते हैं. तभी समाज में फैले इस वहम को कि लड़केलड़कियां आपस में अच्छे दोस्त नहीं हो सकते को दूर किया जा सकता है.

आइए, जानें उन बाउंडरीज के बारे में जिन का ध्यान मेल दोस्तों के बीच रहने वाली फीमेल दोस्त को रखना चाहिए और साथ ही मेल दोस्तों को भी:

अपने पुरुष मित्रों के साथ ज्यादा टची न हों

पुरुषमहिला मित्रता में किसी भी प्रकार की शारीरिक गतिविधि से दूर रहना चाहिए. जिस तरह हम अपनी फीमेल दोस्तों के साथ एकदूसरे को छू कर बातें करते हैं. उसी तरह अपने मेल दोस्तों के साथ न करें वे इसे गलत इंडीकेटर सम?ा सकते हैं.

अपने मेल दोस्तों के साथ फ्लर्टिंग या एकदूसरे के साथ बहुत ज्यादा संवेदनशील होने से बचें और साथ बैठते समय सुनिश्चित करें कि आप के बीच दूरी बनी रहे.

इस बात को साफ करें कि आप सिर्फ दोस्त हैं

अगर आप किसी लड़के से मिलती हैं और आप को यकीन नहीं है कि उस के इरादे क्या हैं लेकिन वह आप के बहुत करीब आने लगा है तो उसे पहले ही बता दें कि आप सिर्फ दोस्त बनना चाहती हैं. अगर वह फ्लर्टिंग जैसी चीजें करता है तो उसे साफ शब्दों में सम?ा दें जो आप चाहती हैं वरना यह दोस्ती काम नहीं करेगी.

डेट जैसी या रोमांटिक सैटिंग से बचें

अगर आप अपनी प्लैटोनिक मेलफीमेल दोस्ती को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं तो ऐसी जगह घूमने से बचें जहां डेटिंग करने वाले लोग यानी कपल्स जाते हैं. ग्रुप के किसी भी मेल दोस्ते के साथ अकेले समय बिताने से बचें. वरना बाकी दोस्तों को गलतफहमी हो सकती है.

पैसे की बराबर हिस्सेदारी रखें

अगर आप अपने मेल दोस्तों के साथ डिनर पर जाती हैं या कोई भी इवेंट की हिस्सेदार बनती हैं तो अपने हिस्से के पैसों का भुगतान अपने मेल दोस्तों को न करने दे क्योंकि अकसर मेल दोस्त अपनी पार्टनर या क्रश के लिए ही पूरे पैसों का भुगतान करते हैं न कि दोस्त के लिए. ऐसे में कन्फ्यूजन पैदा हो सकता है.

देर रात को बात करना या मैसेज भेजना

देर रात में मैसेज या बहुत ज्यादा बात करना भी मेलफीमेल दोस्तों के बीच कन्फ्यूजन पैदा कर सकता है. अत: जरूरत न हो तो दोस्तों को देर रात मैसेज न करें. कोशिश करें कि अधिकतर बातें आप की गु्रप चैट में ही हों.

प्राइवेट बातें शेयर न करें

ऐसे दोस्त होना अच्छी बात है जिन के साथ आप अपनी प्राइवेट बातें तक शेयर करती हैं लेकिन मेल दोस्तों के साथ प्राइवेट बातें करना सम?ादारी नहीं हो सकती है. ऐसा करने से आप के मेल दोस्तों का आप के लिए अट्रैक्शन बढ़ सकता है, उन में रोमांटिक फीलिंग्स पैदा हो सकती हैं.

दोस्ती में शामिल करें

अगर आप किसी को डेट कर रही हैं या पहले से शादीशुदा हैं तो अपने मेल फ्रैंड्स को इस के बारे में जरूर बताएं. अपने पार्टनर को इस बात का एहसास जरूर कराएं कि आप की दोस्ती मेल फ्रैंड्स के साथ सिर्फ दोस्ती तक ही सीमित है वरना यह आप के अपने पार्टनर के साथ के रिलेशन को खराब कर सकती है.

ड्रैसिंग रखें कैजुअल

मेलफीमेल दोस्ती में सब से जरूरी पहलू है ड्रैसिंग. अगर आप हर बार अपने मेल दोस्तों के साथ बहुत अच्छे या रिविलिंग कपड़े पहनती हैं तो उन्हें यह लग सकता है कि आप उन्हें किसी तरह इंप्रैस करने की कोशिश कर रही हैं. मेल दोस्तों के साथ घूमने के दौरान कैजुअल कपड़े कैरी करें. अगर आप कल्ब बगैरा जाने का शोक रखती हैं तो कोशिश करें अपने फीमेल फ्रैंड्स के साथ ही जाएं. इस तरह आप अपनी मेलफीमेल दोस्ती को लंबे समय तक कायम रख सकती हैं और वह भी बिना किसी परेशानी के.

पीजी लाइफ : कभी प्यार कभी तकरार!

आज की लड़कियां न सिर्फ घर संभाल रही हैं बल्कि बाहर निकल कर अपने सपनों को भी आकार दे रही हैं. वे अपने कैरियर की खातिर छोटेछोटे शहरों से निकल कर अपने घर से दूर दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में आ कर गर्ल्स पीजी या होस्टल में रहती हैं. सिर्फ पढ़ने वाली लड़कियां ही नहीं बल्कि वर्किंग वूमन भी पीजी में रहती हैं.

पीजी में रहने के फायदे

अधिकांश बड़े शहरों में यातायात की भीड़ एक बड़ी समस्या है और यही कारण है कि लोग अपने औफिस और कालेज के करीब पीजी में रहना पसंद करते हैं. महंगे होते घरों के किराए में रहने से पीजी एक अच्छा विकल्प है क्योंकि यह किफायती तो है ही साथ में आप का समय भी बचाता है क्योंकि बाहर से आ कर पढ़ने वाले छात्र या कामकाजी पेशेवर अपने औफिस और स्कूलकालेज के करीब पीजी ले कर रह सकते हैं.

पीजी या पेइंगगैस्ट सिस्टम आज बड़ेबड़े शहरों में कौमन बात हो चुकी है, जहां 1 कमरे में 2 से 4 लड़कियां एकसाथ रहती हैं. यहां आप को समय पर चायनाश्ता और खाना तो मिल ही जाता है, आप के कपड़े भी लौंड्री हो जाते हैं. यहां गीजर, एसी, कूलर और इंटरनैट की भी सुविधा होती है. गर्ल्स पीजी हर तरह से बाहर से आ कर रहने वाली लड़कियों के लिए अच्छा विकल्प है, मगर गर्ल्स पीजी में कुछ ऐसी भी चीजें होती हैं जिन्हें वहां रहने वाली लड़कियां ही महसूस कर पाती हैं.

गर्ल्स पीजी में और भी बहुत कुछ क्या होता है, आइए जानते हैं.

लड़ाईझगड़े, मनमुटाव

ऐसा नहीं है कि हर पीजी में लड़कियों के बीच लड़ाई?ागड़े होते ही हैं. लेकिन कई अलगअलग जगहों से आई लड़कियां जब एकसाथ एक ही कमरे में रहती हैं तो मतभेद होना स्वाभाविक है. किसी न किसी बात पर उन के बीच मन मुटाव हो जाता है तो एक समय बाद वह ?ागड़े का रूप ले लेता है. आपस में विचार न मिल पाने के कारण अकसर छोटीछोटी बातों पर उन के बीच तूतू, मैंमैं की नौबत आ जाती है.

चोरी होना

पीजी में अपना सामान रखने के लिए हर लड़की के लिए अलमारी होती है. लेकिन फिर भी कई बार वहां छोटीमोटी चोरी हो जाती है लेकिन कभीकभार बड़ी चोरी भी हो जाती है. एक लड़की ने अपने पीजी में रहने का किस्सा शेयर करते हुए कहा कि पीजी में रहते हुए उस के पर्स से 5 हजार रुपए चोरी हो गए थे. सब से पूछा पर किसी ने नहीं बताया कि पैसे किस ने चुराए उलटे सब से उस का रिश्ता खराब हो गया. अगर आप भी पीजी या होस्टल में रहती हैं तो अपने सामान का ध्यान जरूर रखें.

कमरे में साफसफाई को ले कर नोकझोंक

पीजी में रहने वाली शिल्पी जहां साफसफाई पसंद थी, वहीं उस की रूममेट रूहानी बहुत ही गंदे तरीके से रहती थी. उस के पहने हुए कपड़े यहांवहां बिखरे पड़े रहते थे. सो कर उठने पर वह अपना स्तर भी ठीक नहीं करती थी. और तो और बिस्कुट और चिप्स का पैकेट खा कर उसे डस्टबिन में न डाल कर उसे बैड के नीचे फेंक देती थी, जो पंखे की हवा से पूरे कमरे में उड़ता रहता था.

बाथरूम भी बहुत गंदा रखती थी और इस बात को ले कर दोनों के बीच कई बार कहासुनी हो चुकी थी. हार कर फिर शिल्पी ही दूसरे पीजी में रहने चली गई क्योंकि रोजरोज के ?ागड़े से उस की मैंटल हैल्थ पर असर पड़ने लगा था.

पीजी में रहने वाले 2 लोगों की आदतें अलगअलग होती हैं. किसी को साफसफाई पसंद होती है तो किसी को मैसी तरह से रहना पसंद होता है. इसलिए कमरे की साफसफाई को ले कर भी अकसर गर्ल्स पीजी में लड़कियों के बीच नोक?ांक हो जाती है.

एकदूसरे के बारे में बातें बताना

पीजी में रहने वाली लड़कियां एकदूसरे के बारे में काफी कुछ जानती हैं. चाहे पीरियड्स को ले कर बातें हों, रूम पार्टनर के बौयफ्रैंड के बारे में बातें हो या फिर घर की पर्सनल बातें, लड़कियां एकदूसरे से सारे ऐक्सपीरियंस शेयर करती हैं.

पीजी में रहने वाली लड़कियों के बीच अगर किसी बात को ले कर तकरार होती है तो उन के बीच प्यार भी कम नहीं होता. वक्त पड़ने पर वे एकदूसरे को सपोर्ट भी करती हैं.

मैंटल सपोर्ट

घर से दूर रह रही लड़कियां को अकसर मैंटल प्रैशर से गुजरना पड़ता है. औफिस के काम का लोड, रिलेशनशिप की प्रौब्लम, घर की प्रौब्लम इन सभी चीजों के लिए उन्हें एक मैंटल सपोर्ट चाहिए होती है जो उन्हें पीजी में साथ रह रही लड़कियों से मिलती है.

स्नेहा बिहार की रहने वाली है. पढ़ाई के लिए वह अहमदाबाद में एक पीजी में रहती है. एक बार उस की तबीयत काफी खराब हो गई. तब उस की रूममेट आकांक्षा ने उस की काफी हैल्प की. वह उसे डाक्टर से दिखाने ले कर तो गई ही, उस की सेवा भी की जिस के कारण वह जल्द ही रिकवर हो गई. आज दोनों ही अलगअलग शहरों में रहकर जौब कर रही हैं पर उन का रिश्ता आज भी वैसा ही है प्यार भरा. दोनों अकसर फोन पर बातें करती हैं.

पीजी में साथ रहने वाली लड़कियां भले ही आपस में लड़ती?ागड़ती हों पर वक्त पड़ने पर वे एकदूसरे को सपोर्ट भी करती हैं. इसीलिए तो गर्ल्स होस्टल या पीजी में बने रिश्ते आप के साथ सालोंसाल चलते हैं.

टारगेट पर लड़कियां

2 अक्टूबर, 2023 की बात है. अहमदाबाद के सैटलाइट एरिया स्थित शिवरंजनी सोसायटी के पीजी में रहने वाली लड़कियों और स्थानीय महिलाओं के बीच ?ागड़ा हो गया. बात गाड़ी पार्किंग और लड़कियों के कपड़ों के मुद्दे पर शुरू हुई जो बाद में पुलिस तक पहुंच गई. वहां रह रही महिलाओं का कहना था कि पीजी में रहने वाली लड़कियों के वाहनों की पार्किंग, उन का पहनावा सोसायटी का माहौल बिगाड़ रहा है. महल्ले की महिलाओं का आरोप है कि पीजी में रह रही लड़कियां देर रात तक लड़कों के साथ घूमती फिरती हैं, अश्लीलता फैलती हैं.

घर हो या बाहर हर जगह लड़कियों को ही टारगेट किया जाता है कि वे कैसे बोलती हैं, कैसे चलती हैं, क्या पहनती हैं. यहां यह अच्छा हुआ कि पीजी की सारी लड़कियों ने साथ मिल कर उन से अपने हक के लिए लड़ाई भी की और पुलिस में शिकायत भी लिखाई.

बारिश के मौसम में मेरी त्वचा पर फंगल इन्फैक्शन हो जाता है, क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 40 साल है और मौनसून के मौसम में अकसर मेरी त्वचा पर फंगल इन्फैक्शन हो जाता है. इस समस्या से निबटने के लिए मैं क्या कर सकती हूं?

जवाब

मौनसून के दौरान गरम और आर्द्र जलवायु फंगस के पनपने के लिए जिम्मेदार होते हैं. साथ ही जैसेजैसे आप उम्रदराज होते हैं, आप के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने लगती है. ऐसे में फंगल इन्फैक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है. इस से बचाव के लिए अपनी त्वचा को साफ और सूखा रखें खासकर पसीने वाले क्षेत्रों जैसे बगल, त्वचा की तह और पैरों के बीच के हिस्सों को नमी से मुक्त रखें. नहाने के बाद अपनी त्वचा को सुखा लें. इस से फंगस को रोकने में मदद मिलेगी. इस के अतिरिक्त, संतुलित आहार, पोषण और नियमित व्यायाम के माध्यम से अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएं.

गृहस्थी की डोर : मनीष और शोभना की शादीशुदा जिंदगी की नीव क्यों हो रही थी कमजोर

मनीष उस समय 27 साल का था. उस ने अपनी शिक्षा पूरी कर मुंबई के उपनगर शिवड़ी स्थित एक काल सेंटर से अपने कैरियर की शुरुआत की, जहां का ज्यादातर काम रात को ही होता था. अमेरिका के ग्राहकों का जब दिन होता तो भारत की रात, अत: दिनचर्या अब रातचर्या में बदल गई.

मनीष एक खातेपीते परिवार का बेटा था. सातरस्ते पर उस का परिवार एक ऊंची इमारत में रहता था. पिता का मंगलदास मार्केट में कपड़े का थोक व्यापार था. मनीष की उस पुरानी गंदी गलियों में स्थित मार्केट में पुश्तैनी काम करने में कोई रुचि नहीं थी. परिवार के मना करने पर भी आई.टी. क्षेत्र में नौकरी शुरू की, जो रात को 9 बजे से सुबह 8 बजे तक की ड्यूटी के रूप में करनी पड़ती. खानापीना, सोनाउठना सभी उलटे हो गए थे.

जवानी व नई नौकरी का जोश, सभी साथी लड़केलड़कियां उसी की उम्र के थे. दफ्तर में ही कैंटीन का खाना, व्यायाम का जिमनेजियम व आराम करने के लिए रूम थे. उस कमरे में जोरजोर से पश्चिमी तर्ज व ताल पर संगीत चीखता रहता. सभी युवा काम से ऊबने पर थोड़ी देर आ कर नाच लेते. साथ ही सिगरेट के साथ एक्स्टेसी की गोली का भी बियर के साथ प्रचलन था, जिस से होश, बदहोश, मदहोश का सिलसिला चलता रहता.

शोभना एक आम मध्यम आय वाले परिवार की लड़की थी. हैदराबाद से शिक्षा पूरी कर मुंबई आई थी और मनीष के ही काल सेंटर में काम करती थी. वह 3 अन्य सहेलियों के साथ एक छोटे से फ्लैट में रहती थी. फ्लैट का किराया व बिजलीपानी का जो भी खर्च आता वे तीनों सहेलियां आपस में बांट लेतीं. भोजन दोनों समय बाहर ही होता. एक समय तो कंपनी की कैंटीन में और दिन में कहीं भी सुविधानुसार.

रात को 2-3 बजे के बीच मनीष व शोभना को डिनर बे्रक व आराम का समय मिलता. डिनर तो पिज्जा या बर्गर के रूप में होता, बाकी समय डांस में गुजरता. थोड़े ही दिनों में दफ्तर के एक छोटे बूथ में दोनों का यौन संबंध हो गया. मित्रों के बीच उन के प्रेम के चर्चे आम होने लगे तो साल भर बीतने पर दोनों का विवाह भी हो गया, जिस में उन के काल सेंटर के अधिकांश सहकर्मी व स्टाफ आया था. विवाह उपनगर के एक हालीडे रिजोर्ट में हुआ. उस दिन सभी वहां से नशे में धुत हो कर निकले थे.

दूसरे साल मनीष ने काल सेंटर की नौकरी से इस्तीफा दे कर अपने एक मित्र के छोटे से दफ्तर में एक मेज लगवा कर एक्सपोर्ट का काम शुरू किया. उन दिनों रेडीमेड कपड़ों की पश्चिमी देशों में काफी मांग थी. अत: नियमित आर्डर के मुताबिक वह कंटेनर से कोच्चि से माल भिजवाने लगा. उधर शोभना उसी जगह काम करती रही थी. अब उन दोनों की दिनचर्या में इतना अंतराल आ गया कि वे एक जगह रहते हुए भी हफ्तों तक अपने दुखसुख की बात नहीं कर पाते, गपशप की तो बात ही क्या थी. दोनों ही को फिलहाल बच्चे नहीं चाहिए थे, अत: शोभना इस की व्यवस्था स्वयं रखती. इस के अलावा घर की साफसफाई तो दूर, फ्लैट में कपड़े भी ठीक से नहीं रखे जाते और वे चारों ओर बिखरे रहते. मनीष शोभना के भरोसे रहता और उसे काम से आने के बाद बिलकुल भी सुध न रहती. पलंग पर आ कर धम्म से पड़ जाती थी.

मनीष का रहनसहन व संगत अब ऐसी हो गई थी कि उसे हर दूसरे दिन पार्टियों में जाना पड़ता था जहां रात भर पी कर नाचना और उस पर से ड्रग लेना पड़ता था. इन सब में और दूसरी औरतों के संग शारीरिक संबंध बनाने में इतना समय व रुपए खर्च होने लगे कि उस के अच्छेभले व्यवसाय से अब खर्च पूरा नहीं पड़ता.

किसी विशेष दिन शोभना छुट्टी ले कर मनीष के साथ रहना चाहती तो वह उस से रूखा व्यवहार करता. साथ में रहना या रेस्तरां में जाना उसे गवारा न होता. शोभना मन मार कर अपने काम में लगी रहती.

यद्यपि शोभना ने कई बार मनीष को बातोंबातों में सावधान रहने व पीने, ड्रग  आदि से दूर रहने के संकेत दिए थे पर वह झुंझला कर सुनीअनसुनी कर देता, ‘‘तुम क्या जानो कमाई कैसे की जाती है. नेटवर्क तो बनाना ही पड़ता है.’’

एक बार मनीष ने एक कंटेनर में फटेपुराने चिथड़े भर कर रेडीमेड के नाम से दस्तावेज बना कर बैंक से रकम ले ली, लेकिन जब पोर्ट के एक जूनियर अधिकारी ने कंटेनर खोल कर तलाशी ली तो मनीष के होश उड़ गए. कोर्ट में केस न दर्ज हो इस के लिए उस ने 15 लाख में मामला तय कर अपना पीछा छुड़ाया, लेकिन उस के लिए उसे कोच्चि का अपना फ्लैट बेचना पड़ा था. वहां से बैंक को बिना बताए वापस मुंबई शोभना के साथ आ कर रहने लगा. बैंक का अकाउंट भी गलत बयानी के आधार पर खोला था. अत: उन लोगों ने एफ.आई.आर. दर्ज करा कर फाइल बंद कर दी.

इस बीच मनीष की जीवनशैली के कारण उस के लिवर ने धीरेधीरे काम करना बंद कर दिया. खानापीना व किडनी के ठीक न चलने से डाक्टरों ने उसे सलाह दी कि लिवर ट्रांसप्लांट के बिना अब कुछ नहीं हो सकता. इस बीच 4-6 महीने मनीष आयुर्वेदिक दवाआें के चक्कर में भी पड़ा रहा. लेकिन कोई फायदा न होता देख कर आखिर शोभना से उसे बात करनी पड़ी कि लिवर नया लगा कर पूरी प्रक्रिया में 3-4 महीने लगेंगे, 12-15 लाख का खर्च है. पर सब से बड़ी दुविधा है नया लिवर मिलने की.

‘‘मैं ने आप से कितनी बार मना किया था कि खानेपीने व ड्रग के मामले में सावधानी बरतो पर आप मेरी सुनें तब न.’’

‘‘अब सुनासुना कर छलनी करने से क्या मैं ठीक हो जाऊंगा?’’

सारी परिस्थिति समझ कर शोभना ने मुंबई के जे.जे. अस्पताल में जा कर अपने लिवर की जांच कराई. उस का लिवर ऐसा निकला जिसे मनीष के शरीर ने मंजूर कर लिया. अपने गहनेजेवर व फ्लैट को गिरवी रख एवं बाकी राशि मनीष के परिवार से जुटा कर दोनों अस्पताल में इस बड़ी शल्यक्रिया के लिए भरती हो गए.

मनीष को 6 महीने लगे पूरी तरह ठीक होने में. उस ने अब अपनी जीवन पद्धति को पूरी तरह से बदलने व शोभना के साथ संतोषपूर्वक जीवन बिताने का निश्चय कर लिया है. दोनों अब बच्चे की सोचने लगे हैं.

बालू पर पड़ी लकीर

लेखक- रेणुका पालित

मैं अपने घर  के बरामदे में बैठा पढ़ने का मन बना रहा था, पर वहां शांति कहां थी. हमेशा की तरह हमारे पड़ोसी पंडित ओंकारनाथ और मौलाना करीमुद्दीन की जोरजोर से झगड़ने की आवाजें आ रही थीं. वह उन का तकरीबन रोज का नियम था. दोनों छोटी से छोटी बात पर भी लड़तेझगड़ते रहते थे, ‘‘देखो, मियां करीम, मैं तुम्हें आखिरी बार मना करता हूं, खबरदार जो मेरी कुरसी पर बैठे.’’

‘‘अमां पंडित, बैठने भर से क्या तुम्हारी कुरसी गल गई. बड़े आए मुझे धमकी देने, हूं.’’

‘नहाते तो हैं नहीं महीनों से और चले आते हैं कुरसी पर बैठने,’ पंडितजी ने बड़बड़ाते हुए अपनी कुरसी उठाई और अंदर रखने चले गए.

मुझे यह देख कर आश्चर्य होता था कि मौलाना और पंडित में हमेशा खींचातानी होती रहती थी, पर उन की बेगमों की उन में कोई भागीदारी नहीं थी. मानो दोनों अपनेअपने शौहरों को खब्ती या सनकी समझती थीं. अचार, मंगोड़ी से ले कर कसीदा, कढ़ाई तक में दोनों बेगमों का साझा था.

पंडित की बेटी गीता जब ससुराल से आती, तब सामान दहलीज पर रखते ही झट मौलाना की बेटी शाहिदा और बेटे रागिब से मिलने चली जाती. मौलाना भी गीता को देख कर बेहद खुश होते. घंटों पास बैठा कर ससुराल के हालचाल पूछते रहते. उन्हें चिढ़ थी तो सिर्फ  पंडित से.

कटाक्षों का सिलसिला यों ही अनवरत जारी रहता. पिछले दिन ही मौलाना का लड़का रागिब जब सब्जियां लाने बाजार जा रहा था, तब पंडिताइन ने पुकार कर कहा, ‘‘बेटे रागिब, बाजार जा रहा है न. जरा मेरा भी थैला लेता जा. दोचार गोभियां और एक पाव टमाटर लेते आना.’’

‘‘अच्छा चचीजान, जल्दी से पैसे दे दीजिए.’’

पंडित और मौलाना अपनेअपने बरामदे में कुरसियां डाले बैठे थे. भला ऐसे सुनहरे मौके पर मौलाना कटाक्ष करने से क्यों चूकते. छूटते ही उन्होंने व्यंग्यबाण चलाए, ‘‘बेटे रागिब, दोनों थैले अलग- अलग हाथों में पकड़ कर लाना, नहीं तो पंडित की सब्जियां नापाक हो जाएंगी.’’

मुसकराते हुए उन्होंने कनखियों से पंडित की ओर देखा और पान की एक गिलौरी गाल में दबा ली.

जब पंडित ने इत्मीनान कर लिया कि रागिब थोड़ी दूर निकल गया है, तब ताव दिखाते हुए बोले, ‘‘अरे, रख दे मेरे थैले. मेरे हाथपांव अभी सलामत हैं. मुझे किसी का एहसान नहीं लेना. पंडिताइन की बुद्धि जाने कहां घास चरने चली गई है. खुद चली जाती या मुझे ही कह देती.’’

भुनभुनाते हुए पंडित दूसरी ओर मुंह फेर कर बैठ जाते.

यों ही नोकझोंक चलती रहती पर एक दिन ऐसी गरम हवा चली कि सारी नोकझोंक गंभीरता में तबदील हो गई.

शहर शांत था, पर वह शांति किसी तूफान के आने से पूर्व जैसी भयानक थी. अब न पंडिताइन रागिब को सब्जियां लाने को आवाज देती, न ही मौलाना आ कर पंडित की कुरसी पर बैठते. एक अदृश्य दीवार दोनों घरों के मध्य उठ गई थी, जिस पर दहशत और अविश्वास का प्लास्टर दोनों ओर के लोग थोपते जा रहे थे. रिश्तेदार अपनी ‘बहुमूल्य राय’ दे जाते, ‘‘देखो मियां, माहौल ठीक नहीं है. यह महल्ला छोड़ कर कुछ दिन हमारे साथ रहो.’’

परंतु कुछ ऐसे भी घर थे जहां अविश्वास की परत अभी उतनी मोटी नहीं थी. इन दोनों परिवारों को भी अपना घर छोड़ना मंजूर नहीं था.

‘‘गीता के बापू, सो गए क्या?’’

‘‘नहीं सोया हूं,’’ पंडित खाट पर करवट बदलते हुए बोले.

‘‘मेरे मन में बड़ी चिंता होती है.’’

‘‘तुम क्यों चिंता में प्राण दिए दे रही हो. ख्वाहमख्वाह नींद खराब कर दी, हूंहं,’’ और पंडित बड़बड़ाते हुए बेफिक्री से करवट बदल कर सो गए.

पर एक रात ऐसा ही हुआ जिस की आशंका मन के किसी कोने में दबी हुई थी. दंगाई (जिन की न कोई जाति होती है, न धर्म) जोरजोर से पंडित का दरवाजा खटखटा रहे थे, ‘‘पंडितजी, बाहर आइए.’’

पंडित के दरवाजा खोलते ही लोग चीखते हुए पूछने लगे, ‘‘कहां छिपाया है आप ने मौलाना के परिवार को?’’

‘‘मैं…मैं ने छिपाया है, मौलाना को? अरे, मेरा तो उन से रोज ही झगड़ा होता है. नहीं विश्वास हो तो देख लो मेरा घर,’’ पंडित ने दरवाजे से हटते हुए कहा.

अभी दंगाइयों में इस बात पर बहस चल ही रही थी कि पंडित के घर की तलाशी ली जाए या नहीं कि शहर के दूसरे छोर से बच्चों और स्त्रियों की चीखपुकार सुनाई पड़ी. रात के सन्नाटे में वह हंगामा और भी भयावह प्रतीत हो रहा था. दरिंदे अपना खतरनाक खेल खेलने में मशगूल थे. बलवाइयों ने पंडित के घर की चिंता छोड़ दी और वे दूसरे दंगाइयों से निबटने के लिए नारे लगाते हुए तेजी से कोलाहल की दिशा की ओर झपट पड़े.

दंगाइयों के जाते ही पंडित ने दरवाजा बंद किया. तेजी से सीटी बजाते हुए एक ओर चले. वह कमरा जिसे पंडिताइन फालतू सामान और लकडि़यां रखने के काम में लाती थी, अब मौलाना के परिवार के लिए शरणस्थली था. सभी भयभीत कबूतरों जैसे सिमटे थे. बस, सुनाई पड़ रही थी तो अपनी सांसों की आवाजें.

पंडित ने कमरे में पहुंचते ही मौलाना को जोर से अंक में भींच कर गले लगा लिया. आंखों से अविरल बह रहे आंसुओं ने खामोशी के बावजूद सबकुछ कह दिया. मौलाना स्वयं भी हिचकियां लेते जाते और पंडित के गले लगे हुए सिर्फ ‘भाईजान, भाईजान’ कहते जा रहे थे.

गरम हवा शांत हो कर फिर बयार बहने लगी थी. सबकुछ सामान्य हो चला था. न तो किसी को किसी से कोई गिला था, न शिकवा. एक संतुष्टि मुझे भी हुई, अब मेरा महल्ला शांत रहेगा. पढ़ने के उपयुक्त वातावरण पर मेरा यह चिंतन मिथ्या ही साबित हुआ.

सुबह होते ही पंडित और मौलाना ने अखाड़े में अपनी जोरआजमाइश शुरू कर दी थी.

‘‘तुम ने मेरे दरवाजे की पीठ पर फिर थूक दिया, मौलाना, ’’ पंडित गरज रहे थे.

‘‘अरे, मैं क्यों थूकने लगा. तुझे तो लड़ने का बहाना चाहिए.’’

‘‘क्या कहा, मैं झगड़ालू हूं.’’

‘‘मैं तो गीता बिटिया के कारण तेरे घर आता हूं, वरना तेरीमेरी कैसी दोस्ती.’’

शिकायतों और इलजामों का कथोपकथन तब तक जारी रहा जब तक दोनों थक नहीं गए.

मैं ने सोचा, ‘यह समुद्र की लहरों द्वारा बालू पर खींची गई वह लकीर है, जो क्षण भर में ही मिट जाती है. समुद्र के किनारों ने लहरों के अनेक थपेड़ों को झेला है पर आखिर में तो वे समतल ही हो जाते हैं.’

कहो, कैसी रही चाची: आखिर चाची में ऐसा क्या था

लड़की लंबी हो, मिल्की ह्वाइट रंग हो, गृहकार्य में निपुण हो… ऐसी बातें तो घरों में तब खूब सुनी थीं जब बहू की तलाश शुरू होती थी. जाने कितने फोटो मंगाए जाते, देखे जाते थे. फिर लड़की को देखने का सिलसिला शुरू होता था. लड़की में मांग के अनुसार थोड़ी भी कमी पाई जाती तो उसे छांट दिया जाता. यों, अब सुनने में ये सब पुरानी बातें हो गई हैं पर थोड़े हेरफेर के साथ घरघर की आज भी यही समस्या है.

अब तो लड़कियों में एक गुण की और डिमांड होने लगी है. मांग है कि कानवेंट की पढ़ी लड़की चाहिए. यह ऐसी डिमांड थी कि कई गुणसंपन्न लड़कियां धड़ामधड़ाम गिर गईं. अच्छेअच्छे वरों की कतार से वे एकदम से बाहर कर दी गईं. उन में कुंभी भी थी जो मेरे पड़ोस की भूली चाची की बेटी थी.

‘‘कानवेंट एजुकेटेड का मतलब?’’ पड़ोस में नईनई आईं भूली चाची ने पूछा, जो दरभंगा के किसी गांव की थीं. ‘‘अंगरेजी जानने वाली,’’ मैं ने बताया.

‘‘भला, अंगरेजी में ऐसी क्या बात है भई, जो हमारी हिंदी में नहीं…’’ चाची ने आंख मटकाईं. ‘‘अंगरेजी स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियां तेजतर्रार होती हैं. हर जगह आगे, हर काम में आगे,’’ मैं ने उन्हें समझाया, ‘‘फटाफट अंगरेजी बोलते देख सब हकबका जाते हैं. अच्छेअच्छों की बोलती बंद हो जाती है.’’

‘‘अच्छा,’’ चाची मेरी बात मानने को तैयार नहीं थीं, इसलिए बोलीं, ‘‘यह तो मैं अब सुन रही हूं. हमारे जमाने की कई औरतें आज की लड़कियों को पछाड़ दें. मेरी कुंभी तो अंगरेजी स्कूल में नहीं पढ़ी पर आज जो तमाम लड़कियां इंगलिश मीडियम स्कूलों में पढ़ रही हैं, कुछ को छोड़ बाकी तो आवारागर्दी करती हैं.’’ ‘‘छी…छी, ऐसी बात नहीं है, चाची.’’

‘‘कहो तो मैं दिखा दूं,’’ चाची बोलीं, ‘‘घर से ट्यूशन के नाम पर निकलती हैं और कौफी शौप में बौयफे्रंड के साथ चली जाती हैं, वहां से पार्क या सिनेमा हाल में… मैं ने तो खुद अपनी आंखों से देखा है.’’ ‘‘हां, इसी से तो अब अदालत भी कहने लगी है कि वयस्क होने की उम्र 16 कर दी जाए,’’ मैं ने कुछ शरमा कर कहा.

‘‘यानी बात तो घूमफिर कर वही हुई. ‘बालविवाह की वापसी,’’’ चाची बोलीं, ‘‘अच्छा छोड़ो, तुम्हारी बेटी तो अंगरेजी स्कूल में पढ़ रही है, उसे सीना आता है?’’ ‘‘नहीं.’’

‘‘खाना पकाना?’’ ‘‘नहीं.’’

‘‘चलो, गायनवादन तो आता ही होगा,’’ चाची जोर दे कर बोलीं. ‘‘नहीं, उसे बस अंगरेजी बोलना आता है,’’ यह बताते समय मैं पसीनेपसीने हो गई.

चाची पुराने जमाने की थीं पर पूरी तेजतर्रार. अंगरेजी न बोलें पर जरूरत के समय बड़ेबड़ों की हिम्मत पस्त कर दें. उस दिन चाची के घर जाना हुआ. बाहर बरामदे में बैठी चाची साड़ी में कढ़ाई कर रही थीं. खूब बारीक, महीन. जैसे हाथ नहीं मकड़ी का मुंह हो.

‘‘हाय, चाची, ये आप कर रही हैं? दिखाई दे रहा है इतना बारीक काम…’’ ‘‘तुम से ज्यादा दिखाई देता है,’’ चाची हंस कर बोलीं, ‘‘यह तो आज दूसरी साड़ी पर काम कर रही हूं. पर बिटिया, मुझे अंगरेजी नहीं आती, बस.’’

मैं मुसकरा दी. फिर एक दिन देखा, पूरे 8 कंबल अरगनी पर पसरे हैं और 9वां कंबल चाची धो रही हैं. ‘‘चाची, इस उम्र में इतने भारीभारी कंबल हाथ से धो रही हैं. वाशिंगमशीन क्यों नहीं लेतीं?’’

‘‘वाशिंगमशीन तो बहू ने ले रखी है पर मुझे नहीं सुहाती. एक तो मशीन से मनचाही धुलाई नहीं हो पाती, कपड़े भी जल्दी पतले हो जाते हैं, कालर की गंदगी पूरी हटती नहीं जबकि खुद धुलाई करने पर देह की कसरत हो जाती है. एक पंथ दो काज, क्यों.’’

चाची का बस मैं मुंह देखती रही थी. लग रहा था जैसे कह रही हों, ‘हां, मुझे बस अंगरेजी नहीं आती.’ उस दिन बाजार में चाची से भेंट हो गई. तनु और मैं केले ले रही थीं. केले छांटती हुई चाची भी आ खड़ी हुईं. मैं ने 6 केलों के पैसे दिए और आगे बढ़ने लगी.

चाची, जो बड़ी देर से हमें खरीदारी करते देख रही थीं, झट से मेरा हाथ पकड़ कर बोलीं, ‘‘रुक, जरा बता तो, केले कितने में लिए?’’ ‘‘30 रुपए दर्जन,’’ मैं ने सहज बता दिया.

‘‘ऐसे केले 30 रुपए में. क्या देख कर लिए. तू तो इंगलिश मीडियम वाली है न, फिर भी लड़ न सकी.’’ ‘‘मेरे कहने पर दिए ही नहीं. अब छोड़ो भी चाची, दोचार रुपए के लिए क्या बहस करनी,’’ मैं ने उन्हें समझाया.

‘‘यही तो डर है. डर ही तो है, जिस ने समाज को गुंडों के हवाले कर दिया है,’’ इतना कह कर चाची ने तनु के हाथ से केले छीन लिए और लपक कर वे केले वाले के पास पहुंचीं और केले पटक कर बोलीं, ‘‘ऐसे केले कहां से ले कर आता है…’’ ‘‘खगडि़या से,’’ केले वाले ने सहजता से कहा.

‘‘इन की रंगत देख रहा है. टी.बी. के मरीज से खरीदे होंगे 5 रुपए दर्जन, बेच रहा है 30 रुपए. चल, निकाल 10 रुपए.’’ ‘‘अब आप भी मेरी कमाई मारती हो चाची,’’ केले वाला घिघिया कर बोला, ‘‘आप को 10 रुपए दर्जन के भाव से ही दिए थे न.’’

‘‘तो इसे ठगा क्यों? चल, निकाल बाकी पैसे वरना कल से यहां केले नहीं बेच पाएगा. सारा कुछ उठा कर फेंक दूंगी…’’ और चाची ने 10 रुपए ला कर मेरे हाथ में रख दिए. मैं तो हक्कीबक्की रह गई. पतली छड़ी सी चाची में इतनी हिम्मत.

एक दिन फिर चाची से सड़क पर भेंट हो गई. सड़क पर जाम लगा था. सारी सवारियां आपस में गड्डमड्ड हो गई थीं. समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे रास्ता निकलेगा. ट्रैफिक पुलिस वाला भी नदारद था. लोग बिना सोचेसमझे अपनेअपने वाहन घुसाए जा रहे थे. मैं एक ओर नाक पर अपना रुमाल लगाए खड़ी हो कर भीड़ छंटने की प्रतीक्षा कर रही थी.

तभी चाची दिखीं. ‘‘अरे, क्या हुआ? इतनी तेज धूप में खड़ी हो कर क्या सोच रही है?’’

‘‘सोच रही हूं, जाम खुले तो सड़क के दूसरी ओर जाऊं.’’ ‘‘जाम लगा नहीं है, जाम कर दिया गया है. यहां सारे के सारे अंगरेजी पढ़ने वाले जो हैं. देखो, किसी में हिम्मत नहीं कि जो गलत गाडि़यां घुसा रहे हैं उन्हें रोक सके. सभ्य कहलाने के लिए नाक पर रुमाल लगाए खड़े हैं या फिर कोने में बकरियों की तरह मिमिया रहे हैं.’’

‘‘तो आप ही कुछ करें न, चाची,’’ उन की हिम्मत पर मुझे भरोसा हो चला था. चाची हंस दीं, ‘‘मैं कोई कंकरीट की बनी दीवार नहीं हूं और न ही सूमो पहलवान. हां, कुछ हिम्मती जरूर हूं. बचपन से ही सीखा है कि हिम्मत से बड़ा कोई हथियार नहीं,’’ फिर हंस कर बोलीं, ‘‘बस, अंगरेजी नहीं पढ़ी है.’’

चाची बड़े इत्मीनान से भीड़ का मुआयना करने लगीं. एकाएक उन्हें ठेले पर लदे बांस के लट्ठे दिखे. चाची ने उसे रोक कर एक लट्ठा खींच लिया और आंचल को कमर पर कसा और लट्ठे को एकदम झंडे की तरह उठा लिया. फिर चिल्ला कर बोलीं, ‘‘तुम गाड़ी वालों की यह कोई बात है कि जिधर जगह देखी, गाड़ी घुसा दी और सारी सड़क जाम कर दी है. हटो…हटो…हटो…पुलिस नहीं है तो सब शेर हो गए हो. क्या किसी को किसी की परवा नहीं?’’

पहले तो लोग अवाक् चाची को इस अंदाज से देखने लगे कि यह कौन सी बला आ गई. फिर कुछ चाची के पीछे हो लिए. ‘‘हां, चाची, वाह चाची, तू ही कुछ कर सकती है…’’ और थोड़ी ही देर में चाची के पीछे कितनों का काफिला खड़ा हो गया. मैं अवाक् रह गई.

गलतसलत गाडि़यां घुसाने वाले सहम कर पीछे हट गए. चाची ने मेरा हाथ पकड़ा और बोलीं, ‘‘चल, धूप में जल कर कोयला हो जाएगी,’’ और बांस को झंडे की तरह लहराती, भीड़ को छांटती पूरे किलोमीटर का रास्ता नापती चाची निकल गईं. जाम तितरबितर हो चला था. कुछ मनचले चिल्ला रहे थे : ‘‘चाची जिंदाबाद…चाची जिंदाबाद.’’

चाची किसी नेता से कम न लग रही थीं. बस, अंगरेजी न जानती थीं. भीड़ से निकल कर मेरा हाथ छोड़ कर कहा, ‘‘यहां से चली जाएगी या घर पहुंचा दूं?’’ ‘‘नहींनहीं,’’ मैं ने खिलखिला कर कहा, ‘‘मैं चली जाऊंगी पर एक बात कहूं.’’

‘‘क्या? यही न कहेगी तू कि कानवेंट की है, मुझे अंगरेजी नहीं आती?’’ ‘‘अरे, नहीं चाची, पूरा दुलार टपका कर मैं ने कहा, ‘‘मैं जब बहू खोजूंगी तब लड़की का पैमाना सिर्फ अंगरेजी से नहीं नापूंगी.’’

चाची खिलखिला दीं, शायद कहना चाह रही थीं, ‘‘कहो, कैसी रही चाची?’’

किरचें: पिता की मौत के बाद सुमन ने अपनी मां के मोबाइल में ऐसा क्या देखा?

‘ट्यूशन के लिए देर हो रही है… यह नेहा की बच्ची अभी तक नहीं आई. फोन करना ही पड़ेगा,’ मन ही मन बड़बड़ाती सुमन फोन की तरफ बढ़ी.

‘‘इस के भी अलग ही नखरे हैं… जब देखो जनाब का मुंह फूला रहता है,’’ सुमन ने डैड पड़े फोन को गुस्से में पटका.

अपनी सहेली को फोन करने के लिए सुमन ने मम्मी का मोबाइल उठाया तो उस में एक बिना पढ़ा मैसेज देख कर उत्सुकता से पढ़ लिया. किसी अनजान नंबर से आए इस मैसेज में एक रोमांटिक शायरी लिखी थी. आ गया होगा किसी का गलती से. दिमाग को झटकते हुए उस ने नेहा को फोन लगाया तो पता चला कि उस की तबीयत खराब है. आज नहीं आ रही. इस सारे घटनाक्रम में ट्यूशन जाने का टाइम निकल गया तो सुमन मन मार कर अपनी किताबें खोल कर बैठ गई. मगर मन बारबार उस अनजान नंबर से आए रोमांटिक मैसेज की तरफ जा रहा था.

‘कहीं सचमुच ही तो कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो मम्मी को इस तरह के संदेश भेज रहा है,’ सोच सुमन ने फिर से मम्मी का मोबाइल उठा लिया. 1 नहीं, इस नंबर से तो कई मैसेज आए थे.

तभी बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई तो सुमन ने घबरा कर मम्मी का मोबाइल यथास्थान रख दिया और किताब खोल कर पढ़ने का ड्रामा करने लगी.

जैसे ही मम्मी रसोई में घुसीं सुमन ने तुरंत मोबाइल से वह अनजान नंबर अपनी कौपी में नोट कर लिया. अगले दिन नेहा के मोबाइल पर वह नंबर डाल कर देखा तो किसी डाक्टर राकेश का नंबर था. कौन है डाक्टर राकेश? मम्मी से इस का क्या रिश्ता है? उस ने अपने दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा लिए, मगर कोई सूत्र हाथ नहीं लगा.

15 वर्षीय सुमन की मम्मी सुधा एक सिंगल पेरैंट हैं. उस के पापा एक जांबाज और ईमानदार पुलिस अधिकारी थे. खनन और ड्रग माफिया दोनों उन के दुश्मन बने हुए थे. अवैध खनन रोकने के विरोध में एक दिन कुछ बदमाशों ने उन की सरकारी जीप पर ट्रक चढ़ा दिया. जख्मी हालत में अस्पताल ले जाते समय उन की रास्ते में ही मौत हो गई. सुधा ने स्नातक तक की पढ़ाई की थी, इसलिए उन्हें सरकारी नियमानुसार पुलिस विभाग में अनुकंपा के आधार पर लिपिक की नौकरी मिल गई. मांबेटी की आर्थिक समस्या तो दूर हो गई, मगर सुधा के औफिस जाने के बाद सुमन जब स्कूल से घर लौटती तो मां के औफिस से वापस आने तक अकेली रहती. उस की सुरक्षा की चिंता सुधा को औफिस में भी सताती रहती. कुछ समय तक तो सुमन की दादी उस के साथ रही थीं. फिर एक दिन वे भी इस दुनिया से चल दीं.

मांबेटी फिर से अकेली हो गईं. बहुत सोचविचार कर सुधा ने अपने घर की ऊपरी मंजिल पर बना कमरा डाक्टर रानू को किराए पर दे दिया. उस की ड्यूटी अकसर नाइट में होती थी. रानू सुधा को दीदी कहती थी और बड़ी बहन सा मान भी देती थी. अब सुधा सुमन की तरफ से बेफिक्र हो कर अपनी नौकरी कर रही थीं. सुमन पढ़ाई में काफी होशियार थी. उस के पापा उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे. वह भी उन का सपना पूरा करना चाहती थी, इसलिए स्कूल के बाद शाम को अपनी सहेली नेहा के साथ प्रीइंजीनियरिंग प्रतियोगी परीक्षा की ट्यूशन ले रही थी.

अगले दिन सुबहसुबह ज्यों ही मम्मी के मोबाइल में एसएमएस अलर्ट बजा, स्कूल जाती सुमन का ध्यान अनायास पहले मोबाइल पर और फिर मम्मी के चेहरे की तरफ चला गया. मम्मी को मुसकराते देख उस के चेहरे का रंग उड़ गया. वह ठिठक कर वहीं खड़ी रह गई.

‘‘सुमन, स्कूल की बस मिस हो जाएगी,’’ मम्मी ने चेताया तो चेतनाशून्य सी सुमन मेन गेट की तरफ बढ़ गई.

शाम को सुधा के घर लौटते ही सुमन ने सब से पहले उन का मोबाइल मांगा. आज फिर 3 रोमांटिक शायरी वाले संदेश… ओहो, आज तो व्हाट्सऐप पर मिस्ड कौल भी. ‘कोई मैसेज तो नहीं है व्हाट्सऐप पर… हुंह डिलीट कर दिया होगा,’ सोच सुमन ने नफरत से मोबाइल एक ओर फेंक दिया.

सुधा औफिस से लौटते समय उस के मनपसंद समोसे ले कर आई थीं. ओवन में गरम कर के चाय के साथ लाईं तो सुमन ने भूख नहीं है कह खाने से मना कर दिया. सुधा को थोड़ा अटपटा तो लगा, मगर टीनऐज मूड समझते हुए इसे अधिक गंभीरता से नहीं लिया.

कुछ दिनों से सुधा को महसूस हो रहा था कि सुमन उन से खिंचीखिंची सी रह रही है. न उन से बात करती है, न ही किसी चीज की फरमाइश. कुछ पूछो तो ठीक से जवाब भी नहीं देती. कभीकभी तो सुधा को झिड़क भी देती. क्या हो गया है इस लड़की को? शायद पढ़ाई और प्रीइंजीनियरिंग कंपीटिशन का प्रैशर है. सुधा हर तरह से अपनेआप को समझाने का प्रयास करतीं और अधिक से अधिक उस के नजदीक रहने की कोशिश करतीं, मगर जितना वे पास आतीं उतना ही सुमन को अपने से दूर पातीं.

सुधा का माथा तो तब ठनका जब पीटीएम में सुमन की क्लास टीचर ने उन से अकेले में पूछा कि क्या सुमन को कोई मानसिक परेशानी है? किसी लड़केवड़के का कोई चक्कर तो नहीं? आजकल क्लास में पढ़ाई पर बिलकुल ध्यान नहीं देती. बस खोईखोई सी रहती है. जरा सा डांटते ही आंखों में आंसू भर लाती है. साथ ही नसीहत भी दे डाली कि देखिए सुमन के लिए मां और बाप दोनों आप ही हैं. उसे बेहतर परवरिश दीजिए… उसे समय दीजिए… कहीं ऐसा न हो कि वह किसी गलत राह पर चल पड़े और हाथ से निकल जाए.

‘सुमन से बात करनी ही पड़ेगी,’ सोच अपनेआप को शर्मिंदा सा महसूस करती हुई सुधा स्कूल से सीधे औफिस चली गईं. अचानक दोपहर 3 बजे रानू का फोन आया. घबराई हुई आवाज में बोली, ‘‘दीदी आप तुरंत घर आ जाइए.’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘बस आप आ जाइए,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

औफिस से तुरंत परमिशन ले कर सुधा टैक्सी पकड़ घर पहुंच गईं. सामने का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. सुमन अर्धचेतना अवस्था में बिस्तर पर पड़ी थी. डाक्टर उस के सिरहाने बैठी थी.

‘‘क्या हुआ इसे?’’ सुधा दौड़ कर सुमन के पास पहुंचीं.

‘‘इस ने नींद की गोलियों की ओवरडोज ले ली… वह तो शुक्र है कि मैं फ्रिज से सब्जी लेने नीचे आ गई और इसे इस हालत में देख लिया वरना पता नहीं क्या होता… मैं ने इसे दवा दे कर उलटी करवा दी है. अभी बेहोश है. मगर खतरे से बाहर है,’’ रानू ने सारी बात एक ही सांस में कह डाली.

‘‘मगर इस ने ऐसा कदम क्यों उठाया?’’ दोनों के दिमाग में यही उथलपुथल चल रही थी.

तभी सुमन नीम बेहोशी की हालत में बड़बड़ाई, ‘‘मां, प्लीज मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ… पहले पापा, फिर दादी मां और अब तुम भी चली जाओगी तो मैं कहां जाऊंगी…’’

‘‘नहीं मेरी बच्ची… मम्मी तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी… तुम्हीं तो मेरी दुनिया हो,’’ सुधा जैसे अपनेआप को दिलासा दे रही थीं.

इसी बीच सुमन को होश आ गया.

‘‘सुमन, यह क्या किया बिटिया तू ने? एक बार भी नहीं सोचा कि तेरे बाद तेरी मां का क्या होगा,’’ सुधा ने उस का सिर प्यार से सहलाते हुए भरे गले से कहा.

‘‘आप ने भी तो नहीं सोचा कि आप की बेटी का क्या होगा…’’ बात अधूरी छोड़ कर सुमन ने नफरत से मुंह फेर लिया.

‘‘मैं ने क्या गलत किया?’’

सुमन ने कोई जवाब नहीं दिया.

रानू ने कहा, ‘‘सुमन तुम एक बहादुर मां की बहादुर बेटी हो, तुम्हें ऐसी कायरता वाली हरकत नहीं करनी चाहिए थी.’’

‘‘बहादुर या चरित्रहीन?’’ सुमन बिफर पड़ी.

‘‘चरित्रहीन?’’ सुधा और रानू दोनों को जैसे एकसाथ किसी बिच्छू ने काट लिया हो.

‘‘हांहां चरित्रहीन… क्या आप बताएंगी कि कौन है यह डाक्टर राकेश जो आप को रोमांटिक संदेश भेजता है?’’ सुमन ने जलती निगाहों से सुधा से प्रश्न किया.

‘‘डाक्टर राकेश?’’ सुधा और रानू दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा.

सुधा ने कोई जवाब नहीं दिया बस खामोशी से जमीन की तरफ देखने लगीं.

‘‘देखा, कोई जवाब नहीं है न इन के पास,’’ सुमन ने फिर जहर उगला.

‘‘दीदी, आप नीचे जाइए. 3 कप कौफी बना कर लाइए. तब तक हम दोनों बैस्ट फ्रैंड्स बातें करते हैं,’’ रानू ने संयत स्वर में कहा.

रानू ने सुमन का हाथ अपने हाथ में लिया और कहने लगी, ‘‘सुमन, तुम बहुत बड़ी

गलतफहमी का शिकार हो गई हो. इस में सुधा दीदी का कोई दोष नहीं है. चरित्रहीन तुम्हारी मां नहीं, बल्कि डाक्टर राकेश है और उस से तुम्हारी मम्मी का नहीं बल्कि मेरा रिश्ता है. वह मेरा मंगेतर था, मगर मैं ने उस के चरित्र के बारे में कई लोगों से उलटासीधा सुन रखा था. बस अपना शक दूर करने के लिए मैं ने सुधा दीदी का सहारा लिया. उन के मोबाइल से राकेश को कुछ मैसेज भेजे. 3-4 मैसेज के बाद ही जैसाकि हमें शक था उस के रिप्लाई आने लगे. मैं ने जानबूझ कर बात को थोड़ा और आगे बढ़ाया तो उस के चरित्र का कच्चापन सामने आ गया. सचाई सामने आते ही मैं ने अपनी सगाई तोड़ ली.

‘‘सगाई टूटने के बाद तो राकेश और भी गिर गया. उस ने मुझ से तो अपना संबंध खत्म कर लिया, मगर तुम्हारी मम्मी के मोबाइल पर आने वाले उस के संदेश अब रोमांटिक से अश्लील होने लगे. बस 1-2 दिन में हम तुम्हारी मां की इस सिम को बदल कर नई सिम लेने वाले थे ताकि इस राकेश का सारा किस्सा ही खत्म हो जाए, मगर इस से पहले ही तुम ने यह नादानी भरी हरकत कर डाली. पगली एक बार अपनी मां से न सही, मुझ से ही अपने दिल की बात शेयर कर ली होती.’’

‘‘मुझे बहलाने की कोशिश मत कीजिए. मैं जानती हूं आप मम्मी का दोष अपने सिर ले रही हैं. मगर मम्मी का उस से कोई रिश्ता नहीं है तो वे उस के संदेश पढ़ कर मुसकराती क्यों थीं?’’ सुमन को अब भी रानू की बात पर यकीन नहीं हो रहा था.

‘‘वह इसलिए पगली कि जो रोमांटिक मैसेज मैं राकेश को भेजती थी वही मैसेज फौरवर्ड कर के वह तुम्हारी मम्मी वाले मोबाइल पर भेज देता था और दीदी की हंसी छूट जाती थी.’’

तभी सुधा कौफी ले आईं. सुमन उठने की स्थिति में नहीं थी. उस ने बैड पर लेटेलेटे ही अपनी बांहें मां की तरफ फैला दीं. सुधा ने उसे कस कर गले से लगा लिया. मांबेटी के साथसाथ डाक्टर रानू की भी आंखें भर आईं. आंसुओं में सारी गलतफहमी बह गई. मन में चुभी संदेश और अविश्वास की किरचें भी अब निकल चुकी थीं.

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