911 : लव मैरिज क्यों बनीं जी का जंजाल

लेखक – श्री प्रकाश

रात के 2 बजे थे. हलकीहलकी ठंड पड़ रही थी. दशहरा और दिवाली की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. धनबाद स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 2 पर बहुत भीड़ थी. इस में ज्यादातर विद्यार्थियों की भीड़ थी, जो त्योहार में दिल्ली से धनबाद आए थे. धनबाद, बोकारो और आसपास के बच्चे प्लस टू के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली पढ़ने जाते हैं. इस एरिया में अच्छे कालेज न होने से बच्चे अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए स्कूल के बाद दिल्ली जाना चाहते हैं. दिल्ली में कोचिंग की भी अच्छी सुविधा है. वहां वे इंजीनियरिंग, मैडिकल आदि की कोचिंग भी लेते हैं. कुछ तो टेंथ बोर्ड के बाद ही दिल्ली चले जाते हैं. वे वापस दिल्ली लौट रहे थे.

वे सभी कालका मेल के आने का इंतजार कर रहे थे. अनेकों के पास रिजर्वेशन नहीं था. वे वेटिंग टिकट ले कर किसी भी थ्री टियर में चढ़ने वाले थे. जिस के पास रिजर्वेशन होता, उसी की बर्थ पर 4 या 5 जने किसी तरह एडजस्ट कर दिल्ली पहुंचते. इस तरह के सफर की उन्हें आदत थी. अकसर सभी छुट्टियों के बाद यही नजारा होता. कुछ अमीरजादे तत्काल या एजेंट से ब्लैक में टिकट लेते, तो कुछ एसी कोच में जाते. पर ज्यादातर बच्चे थ्री टियर कोच में जाते थे और सब के लिए रिजर्वेशन मुमकिन नहीं था.

रात के 11 बज रहे थे. अभी भी ट्रेन आने में एक घंटा रह गया था. ट्रेन कुछ लेट थी. रोहित कंधों पर बैकपैक लिए चहलकदमी कर रहा था. उस की निगाहें किसी जानपहचान वाले को तलाश रही थीं, जिस के पास रिजर्व टिकट हो. उस की नजर मनोज पर पड़ी, तो उस ने पूछा, “तुम्हारी बर्थ है क्या?“

“नहीं यार, पर अपने महल्ले वाली सुनीता को जानता है न? S-7 कोच में उस का रिजर्वेशन है. वो देख… आ रही है अपने पापा के साथ.”

प्लेटफार्म पर वे बेटी के साथ खड़े थे. मनोज ने उन से कहा, “अंकल नमस्ते. आप वापस जा सकते हैं. हम लोग हैं न. सुनीता को कोई दिक्कत नहीं होने देंगे.”

तभी अनाउंस हुआ, “कालका मेल अपने निश्चित समय से 45 मिनट की देरी से चल रही है. यात्रियों की असुविधा के लिए हमें खेद है.”

सुनीता ने कहा, “हां पापा, आप जाइए. अभी हमारे पड़ोस की मनीषा भी आ रही होगी. उस की बर्थ भी हमारे ही कोच में है. और भी जानपहचान के फ्रैंड्स हैं. आप परेशान न हों. घर लौट जाइए. हम लोग मैनेज कर लेंगे.”

सुनीता के पापा लौट गए. थोड़ी देर में मनीषा भी आ गई. रोहित, मनोज, सुनीता और मनीषा चारों एक ही कालोनी में रहते थे, पर अलगअलग सैक्टर में. दोनों लड़के इंजीनियरिंग सेकंड ईयर में थे और लड़कियां ग्रेजुएशन कर रही थीं. इन में सुनीता ही सब से ज्यादा धनी परिवार से थी. रोहित और मनोज दोनों के पिता कोल इंडिया में क्लर्क थे. मनीषा के पिता कोल इंडिया में ही लेबर अफसर और सुनीता के पिता ठेकेदार थे. देश के अनेक भागों में कोयला भेजते थे.

रोहित बोला, “मेरे और मनोज के पास रिजर्व टिकट नहीं हैं. तुम लोग मदद करना. तुम दोनों एक बर्थ पर हो लेना और दूसरी बर्थ पर हम दोनों रहेंगे. अगर कोस्ट शेयर करना हुआ तो वो भी शेयर कर लेंगे.”

सुनीता ने कहा, “क्या बेवकूफों जैसी बात कर रहे हो? ऐसा क्या पहली बार हुआ है? इस के पहले भी तुम लोग हमारी बर्थ पर गए हो. क्या हम ने पैसा लिया है कभी? फिर ऐसी बात न करना. मगर, इस बार हम दोनों को लेडीज कोटे से बर्थ मिली है.“

मनीषा बोली, “हां, S-7 में बर्थ नंबर 1 से 8 तक लेडीज कोटा है. हम तो शेयर कर लेंगे, पर बाकी औरतों ने कहीं शोर मचाया तब क्या करोगे? “

मनोज बोला, “हम लोग पहले भी ये सिचुएशन झेल चुके हैं. इस को हम पर छोड़ दो, हैंडल कर लेंगे.”

ट्रेन आने पर सभी कोच में जा बैठे. लेडीज कोटे में एक बुजुर्ग महिला भी थी. उस ने कहा, “तुम दोनों लड़के यहां नहीं बैठ सकते हो.”

सुनीता ने कहा, “आंटी, आप तो इधर की ही लगती हैं. आप को पता होगा इस पीरियड में यहां से दिल्ली स्टूडेंट्स जाते हैं और इतनी भीड़ में हमें एडजस्ट करना पड़ता है.”

“अच्छा ठीक है, चुपचाप बैठो. तुम लोग न खुद सोते हो और न औरों को सोने देते हो.”

थोड़ी देर में टीटी आया. टिकट चेक करने के बाद उस ने लड़कों से कुछ कड़ी आवाज में कहा, “तुम लोग यहां नहीं बैठ सकते हो. एक तो वेटिंग की टिकट और ऊपर से लेडीज कोटा में आ बैठो हो. अगले स्टेशन गोमो में तुम लोग उतर जाना.”

मनोज बोला, “शायद आप हमें नहीं जानते. आप का बेटा भी अगले साल दिल्ली जाएगा पढ़ने. उस की ऐसी रैगिंग करूंगा कि वह रोते हुए वापस इसी ट्रेन से धनबाद आएगा. बाकी आप की मरजी.”

टीटी ने कहा, “तुम लोग तो गजब ही हो. जो चाहे करो, पर मैं तो मुगलसराय में उतर जाऊंगा. उस के बाद तुम जानो.”

“आगे भी हम देख लेंगे. पर, आप अपने रिलीवर को भी हमें तंग न करने को कह देते तो अच्छा होता.”

सुबह के 7 बजे ट्रेन मुगलसराय पहुंची. वहां ट्रेन कुछ देर रुकती है. रोहित और मनोज दोनों प्लेटफार्म पर उतर कर टी स्टाल पर सिगरेट पी रहे थे. उन्हें देख सुनीता और मनीषा भी उतर गईं. सुनीता ने मनीषा से कहा, “चल, 1-2 फूंक हम भी मार लेते हैं.”

दोनों उन के निकटआईं. सुनीता बोली, “क्या अकेलेअकेले पी रहे हो?“

“आओ, तुम भी पीओ,” मनोज ने कहा और चाय वाले से 2 कप चाय ले कर उन की ओर बढ़ा दिया.

सुनीता बोली, “और सिगरेट? “

मनोज ने अपना सिगरेट बढ़ाते हुए कहा, “लो, दो कश तुम भी ले लो. अगर मनीषा को भी चाहिए तो…?“

“नहीं, मुझे नहीं चाहिए” मनीषा बोली.

सुनीता ने कहा, “मैं शेयर नहीं करूंगी. मुझे अलग से नया सिगरेट दो.”

मनोज ने उसे सिगरेट जला कर दिया. दोतीन कश लेने के बाद सुनीता ने सिगरेट फेंक कर उसे सैंडल से बुझा दिया.

यह देख कर मनोज बोला, “तुम्हें पीते देख कर यह नहीं लगा कि तुम पहली बार पी रही हो. फिर तुम ने नाहक ही मेरा सिगरेट बरबाद कर दिया.”

“पैसे चाहिए सिगरेट के?“

“तुम से बहस करना बेकार है.”

खैर, सभी वापस ट्रेन में जा बैठे. रात के करीब 9 बजे ट्रेन दिल्ली पहुंची. चारों एक टैक्सी में बैठे. मनीषा और सुनीता को उन के होस्टल में छोड़ मनोज और रोहित अपने होस्टल पहुंचे. चारों एक ही शहर और कालोनी के रहने वाले थे, इसलिए छुट्टियों में ट्रेन में आनाजाना अकसर साथ होता था.

मनोज और रोहित के ब्रांच अलग थे. मनीषा और सुनीता के कॉम्बिनेशन एक ही थे, इसलिए उन में कुछ दोस्ती थी. सुनीता नेचर से ज्यादा फ्रैंक और डोमिनेटिंग थी. किसी से अनचाहा एनकाउंटर होने से या कोई मनीषा को तंग करता तो वह मनीषा को प्रोटेक्ट किया करती थी. मनीषा अंतर्मुखी थी.

इसी तरह ये चारों कभी ट्रेन में मिलते, तो कभी किसी मौल या मल्टीप्लेक्स में तो देर तक आपस में बातें करते.

मनोज और मनीषा के स्वभाव में अंतर था, फिर भी दोनों एकदूसरे के करीब आए.

रोहित और मनोज दोनों ने बीटैक पूरा किया और मनीषा और सुनीता ने पीजी. मनोज ने नोएडा में नौकरी ज्वाइन किया.

मनोज और मनीषा ने मातापिता की मरजी के विरुद्ध कोर्ट मैरेज किया. रोहित और सुनीता उन की शादी में आए थे.

एक साल बाद दोनों अमेरिका चले गए. मनोज अपने जौब वीजा H 1 B पर गया था और मनीषा उस की आश्रित H 4 वीजा पर. कुछ दिनों बाद मनीषा को भी EAD मिला, जिस से वह भी नौकरी कर सकती थी. उस ने भी नौकरी ज्वाइन की. उन्हें 2 बेटियां थीं. मनीषा का काम वर्क फ्राम होम होता था. यह उस के लिए एक वरदान था, वह अपनी बेटियों का भी ध्यान रख सकती थी. उन दिनों रोहित और मनोज और सुनीता और मनीषा के बीच रेगुलर संपर्क बना रहा, विशेषकर मनीषा और सुनीता के बीच.

इधर रोहित और सुनीता दोनों ने पुणे में नौकरी ज्वाइन किया. कुछ महीने बाद दोनों की शादी हुई. इस शादी में उन के मातापिता की सहमति थी. कुछ दिनों के बाद रोहित और सुनीता कनाडा चले गए. यहां भी मनीषा और सुनीता के बीच अच्छा संपर्क बना रहा.

इधर कुछ समय से मनीषा और मनोज के रिश्ते में कुछ खटास आने लगी थी. मनोज रोज रात को शराब पीता और मनीषा को भी पीने को कहता. पर मनीषा ने उस के लाख कहने के बावजूद शराब को होठों से नहीं लगाया. इस के चलते मनोज उस से बहुत नाराज रहता. कभीकभी वह गालीगलौज पर भी उतर आता. धीरेधीरे उन के बीच कड़वाहट बढ़ती गई, पर मनीषा ने अपना दुख सुनीता के सामने जाहिर नहीं किया.

एक बार तो मनोज ने मनीषा पर हाथ तक उठा दिया था. इसी तरह लड़तेझगड़ते करीब 10 साल गुजर गए.

एक बार जब मनीषा और सुनीता वीडियो चैट कर रही थीं, उसी बीच मनोज ने कालबेल बजाया. मनीषा को दरवाजा खोलने में कुछ वक्त लगा. उस ने फोन हाथ में लिए दरवाजा खोला. दरवाजा खुलते ही मनोज उस पर गरज पड़ा, “बिच, तुम को डोर खोलने में इतना टाइम क्यों लगा?“

मनीषा ने झट से फोन काट दिया. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और सुनीता को मामला समझने में देर नहीं लगी.

सुनीता के मन में अपनी सहेली के लिए चिंता हुई. कुछ दिनों बाद वह खुद मनीषा से मिलने अमेरिका आई. वह दो दिनों तक रही. इस बीच मनीषा और मनोज में बातचीत हां, नहीं या यस, नो तक सिमट कर रह गई थी.

जब मनोज औफिस गया था और बच्चे स्कूल, तब सुनीता ने मनीषा से पूछा, “मनोज आजकल कुछ नाराज दिख रहा है. कुछ खास बात है तो मुझे बताओ.“

“नहीं, कुछ ख़ास नहीं. कल से ही हम दोनों एकदूसरे से नाराज हैं और बातचीत करीब बंद है. फिर अपने ही एकदो दिन में ठीक हो जाएगा.“

“आर यू श्योर ? तुम कहो तो मैं मनोज से कुछ बात करूं? “

“नहींनहीं, इस की जरूरत नहीं है. कहीं ऐसा न हो बात और बिगड़ जाए. मैं मैनेज कर लूंगी.“

“ओके. फिर भी देखना, जरूरत पड़ने पर मैं या रोहित अगर तुम्हारे कुछ काम आ सके तो बहुत खुशी होगी हमें.“

सुनीता कनाडा लौट आई. उस ने रोहित को मनोज और मनीषा के बारे में बताया. सुनीता बोली, “मैं मनीषा को बहुत पहले से और अच्छी तरह जानती हूं. वह अंतर्मुखी है, अपने मन की बात जल्द किसी को नहीं बताती है. रोहित क्या हमें उस की मदद नहीं करनी चाहिए.“

“जरूर करनी चाहिए बशर्ते वह मदद मांगे. मियांबीवी के बीच में यों ही दखल देना ठीक नहीं है. फिलहाल लेट अस वेट एंड वाच.“

कुछ दिनों बाद सुनीता ने मनीषा को फोन किया. फोन उस की बेटी ने उठाया. सुनीता को बेटी की आवाज सुनाई पड़ी, “मम्मा, सुनीता आंटी का फोन है. क्या बोलूं ?”

‘बोल दे, मम्मा अभी सो रही है.“

सुनीता ने फोन काट दिया. उसे दाल में कुछ काला लगा. एक तो यह उस के सोने का टाइम नहीं था और दूसरे मनीषा की आवाज रोआंसी थी. उस ने समझ लिया कि जरूर आज फिर मनीषा के साथ कुछ बुरा घटा होगा.

रोहित कभी मनोज को फोन करता, तो रोहित महसूस करता कि उसे बातचीत करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. थोड़ी देर इधरउधर की बात कर मनोज कहता, ‘और सब ठीक है, बाद में बात करते हैं,’ पर मनोज कभी काल नहीं करता था, बल्कि रोहित ही 10 – 15 दिनों में एक बार हालचाल पूछ लेता.

कुछ दिनों बाद एक बार सुनीता ने मनीषा को फोन कर पूछा, “कैसी हो मनीषा? तुम तो खुद कभी फोन करती नहीं हो.“

“क्या कहूं…? बस जीना एक मजबूरी हो गई है, इसलिए जिए जा रही हूं.“

“ऐसा क्यों बोल रही हो? अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? अभी आगे बहुत लंबी जिंदगी पड़ी है. सुखदुख तो आतेजाते रहते हैं.“

“दुख हो तो झेल लूं, पर मेरा जीवन नासूर बन गया है सुनीता,“ मनीषा ने कहा.

“ऐसी कोई बात नहीं. आजकल हर ज़ख्म का इलाज है. तू बोल तो सही.“

मनीषा को कुछ देर खामोश देख कर सुनीता बोली, “तुम चुप क्यों हो गई हो? जब तक बोलोगी नहीं, मुझे तेरी तकलीफ का कैसे पता चलेगा. वैसे, मुझे कुछ अहसास है कि मनोज तुम्हें जरूरत से ज्यादा तंग करता है.“

मनीषा ने सिसकते हुए कहा, “2-2 बेटियां हैं, उन के लिए जीना मेरी मजबूरी है. पहले बात सिर्फ गालीगलौज तक रहती थी, अब तो अकसर बेटियों के सामने हाथ भी उठा देता है. वह भी बिना वजह.“

“आखिर वह चाहता क्या है? “

“तू तो जानती है, मेरा जौब वर्क फ्रॉम होम होता है. मुझे घर से बाहर ज्यादा जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. मुझे ज्यादा तामझाम पसंद नहीं है.“

“तो इस से क्या हुआ?“

“मनोज को चाहिए कि मैं भी जींसशॉर्ट्स पहनूं, स्विमिंग सूट पहन कर स्विम करूं, उस के और उस के दोस्तों के साथ शराब पीऊं और डांस करूं. मुझ से यह सब नहीं होगा. उस के साथ कहीं पार्टी में जाती हूं, तो मैं अपने इंडियन ड्रेस में होती हूं.“

“इस में गलत क्या है, इस के लिए कोई तुम्हें फोर्स नहीं कर सकता है.“

“यह सब किताबों की बात है, प्रैक्टिकल लाइफ में नहीं. अब मनोज को साथ काम करने वाली शादीशुदा क्रिश्चियन औरत अमांडा मिल गई है, जो उस की मनपसंद है. कभी वह घर आती है तो उस के सामने भी मेरा अपमान करता है.“

“तो तुम बरदाश्त क्यों करती हो?“

“नहीं करूं तो रोज मार खाऊं? “

“तुम अमेरिका में रह कर ऐसी बात करती हो? एक काल 911 को कर, उस की सारी हेकड़ी निकल जाएगी.“

“नहीं, मुझ से नहीं होगा.“

“तो तू मर घुटघुट के,“ बोल कर सुनीता ने गुस्से में फोन काट दिया.

इस के कुछ ही दिनों के बाद सुनीता और रोहित अमेरिका गए. वे दोनों दूसरे शहर में होटल में रुके थे. सुनीता ने मनीषा को फोन किया. मनीषा का फोन बेडरूम में था. उस की बड़ी बेटी वहीं थी. उस ने कहा, “वन मिनट, मैं मम्मा को देती हूं.“

फोन वीडियो काल था. बेटी फोन लिए लिविंग रूम में आई, जहां मनोज और अमांडा शराब पी कर म्यूजिक पर डांस कर रहे थे. मनीषा मनोज को अमांडा को घर से बाहर निकालने के लिए बोल रही थी. इस पर मनोज मनीषा को गालियां दे रहा था और बोल रहा था, “यह नहीं जाएगी. तुझे जाना होगा,“ बोल कर वह मनीषा को घसीटने लगा. अमांडा भी उस का साथ दे रही थी. मनीषा को दरवाजे के बाहर निकाल कर मनोज ने दरवाजा बंद कर दिया. उधर सुनीता यह सब देख रही थी और रिकौर्ड कर रही थी.

सुनीता को यह सब सहन नहीं हुआ. उस ने फोन काट दिया और तुरंत 911 पर काल कर पूरी बात बता दी. कुछ ही मिनटों के अंदर मनीषा के घर पुलिस पहुंच गई, “यहां मनीषा कौन है?“

“मैं ही हूं. क्या बात है?“

“हमें सुनीता ने फोन कर आप की मदद करने के लिए कहा है. वैसे, सुनीता ने वीडियो क्लिप भी भेजी है. आप अपना स्टेटमेंट रिकौर्ड करवा दें. मनोज कौन है?“

“वे मेरे पति हैं और अंदर हैं.“

पुलिस के बेल दबाने पर मनोज ने दरवाजा खोला, तो उसे देख कर हक्काबक्का रह गया. पुलिस ने कहा, “आप को मेरे साथ थाने चलना होगा.“

मनोज को पुलिस ले गई. सुनीता ने फोन पर मैसेज भेजा था, “तुम दोनों बेटियों के साथ कनाडा आ जाओ. वहां से अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करना.“

कितने तरह के होते हैं फेस सीरम, क्या इसे चेहरे पर लगाने के कोई नुकसान नहीं है ?

स्किन को हैल्दी रखने के लिए इसका केयर करना बहुत जरूरी है. अगर आप डेली स्किन रोटीन फौलो करती हैं, तो आपकी स्किन बेजान नहीं होगी. क्लींजिंग, टोनिंग और स्किन मौइश्चराइजिंग सभी करते हैं, लेकिन क्या आप फेस सीरम के बारे में जानते हैं, ये स्किन के लिए काफी फायदेमंद होता है. ऐसे में आज आपको फेस सीरम क्या और ये कितने तरह के होते हैं, ये सभी जानकारी आपको इस आर्टिकल में देंगे.

क्या है फेस सीरम

फेस सीरम बहुत ही लाइट होता है. यह वाटर बेस्ड होता है. जिसके कारण स्किन इसे तुरंत ही एब्जार्ब कर लेता है. जो लड़कियां नियमित रूप से चेहरे पर फेस सीरम लगाती हैं, उनकी त्वचा में कसाव, चमक और नमी ज्यादा दिखाई देती है. फेस सीरम लगाने से त्वचा जवां दिखती है.

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कई तरह के होते हैं फेस सीरम

एंटी एजिंग फेस सीरम

फेस सीरम के इस्तेमाल से उम्र बढ़ने के लक्षणों को रोका जा सकता है. इस तरह से फेस सीरम स्किन के दागधब्बों को कम करने में मदद करते हैं. ये चेहरे की महीन रेखाओं और झुर्रियों को भी दूर करते हैं. जिससे त्वचा टाइट रहती है.

हाइड्रैटिंग सीरम

जैसेजैसे उम्र बढ़ती है, त्वचा का कोलेजन धीमा हो जाता है. ऐसे में स्किन डिहाइड्रेटेडऔर सुस्त दिखने लगती है. हाइड्रैटिंग सीरम के इस्तेमाल से त्वचा जवां और ताजा नजर आती है. इस सीरम में हयालूरोनिक एसिड होता है, जो स्किन में पानी को रोके रखता है.

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विटामिन-सी फेस साीरम

विटामिन-सी फेस साीरम स्किन की नमी को बढ़ावा देता है. इसे चेहरे पर लगाने से बढ़ती उम्र के निशानों को हल्का किया जा सकता है. यह कोलेजन और इलास्टिन को बढ़ाता है और चेहरे के रंग को सामान करता है.

एंटी-एजिंग नाइट सीरम

उम्र बढ़ने के साथ तो चेहरे पर झुर्रियां नजर आती ही है, कई लोगों को कम उम्र में ही झुर्रियों की समस्या का सामना करना पड़ता है. ये सीरम चेहरे की गंदगी को पूरी तरह से निकाल देते हैं. यह सीरम उम्र बढ़ने के संकेतों से लड़ता है और त्वचा को हाइड्रैटेड रखता है.

चेहरे पर कब लगाएं सीरम

हर किसी की त्वचा अलग होती है, लिहाजा किसी भी प्रोडक्ट इफैक्ट देखने के लिए कम से कम 1 हफ्ते का समय देना पड़ता है. जिससे स्किन पर इफैक्ट या साइड इफैक्ट देखने को मिलता है.

रोजाना चेहरे और गर्दन पर दो बार सीरम लगाया जा सकता है. एक बार सुबह चेहरा साफ करने के बाद सीरम लगा सकते हैं. इसके बाद चेहरे पर मौइश्चराइजर जरूर लगाएं. दूसरी बार रात में सोने से पहले चेहरे पर सीरम अप्लाई करें. चेहरे पर सीरम लगाते समय रगड़ें नहीं, इसे हल्के हाथों से चेहरे पर अप्लाई करें.

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चेहरे पर सीरम लगाने के फायदे

  • चेहरे का ग्लो बढ़ता है, इसके लिए विटामिन-सी सीरम बैस्ट है.
  • सीरम चेहरे की कसावट को बनाए रखता है.
  • जिन लोगों को मुंहासे की समस्या है, उन्हें सीरम जरूर लगाना चाहिए.
  • यह स्किन को रिपेयर करने का काम करता है.

सीरम लगाने के नुकसान भी हैं

स्किन एक्सपर्ट के अनुसार, स्किन टाइप के अनुसार ही फेस सीरम का इस्तेमाल करना चाहिए. इसमें विटामिन-सी, रेटिनौल और कई तत्व पाए जाते हैं. जिन लोगों की स्किन सेंसिटिव होती है, उन्हें रोजाना चेहरे पर सीरम नहीं लगाना चाहिए, इससे जलन, खुजली या रैशेज की समस्या हो सकती है.

ऋतिक रोशन ने अपनी बहन के लिए शेयर किया ये खास पोस्ट

भाईबहन का रिश्ता प्यार और सम्मान से भरा होता है .जो जीवन के हर मोड़ पर दोनों के बीच गहरा बंधन बनाए रखता है. एक दूसरे की खुशियों में खुश होना और दुख के पलों में साथ खड़े रहने का अपना अलग ही आनंद है. ऐसा ही रिश्ता बौलीवुड के हैंडसम और, फिटनेस फ्रीक एक्टर ऋतिक रोशन और उनकी कजिन सिस्टर पश्मीना रोशन का है. दोनों के रिश्ते में आपसी सम्मान और प्रशंसा की झलक मिलती है, जिसमें ऋतिक अपनी यंगर कजिन सिस्टर के लिए एक गाड फादर की भूमिका निभाते हैं.

सोशल मीडिया बना जरिया

आपको बता दे बौलीवुड के फेमस एक्टर ऋतिक रोशन इस समय अपनी कजिन सिस्टर पश्मीना रोशन की सक्सेस को एंजौय कर रहे हैं, पश्मीना ने हाल ही में फिल्म “इश्क विश्क रिबाउंड” से धमाकेदार एंट्री की है. पश्मीना को उनके रोल के लिए खूब वाहीवाही मिल रही है. इस बात से पश्मीना के भाई ऋतिक बहुत प्राउड फील कर खुश हो रहे है अपनी खुशी को जाहिर करने से खुद को रोक नही पाएं उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए बहन की तारीफ करते हुए इमोशनल मैसेज लिखा वो मैसेज क्या है आइये बताते हैं-

इमोशनल मैसेज

आपको बता दें इंस्टाग्राम पर ऋतिक ने पश्मीना के साथ एक फोटो पोस्ट की और उनके हुनर की तारीफ करते हुए एक दिल की गहराइयों से मैसेज लिखा. ऋतिक ने लिखा, “असली आप को जानना और आपको बड़े पर्दे पर पूरी तरह से किरदार में डूबे हुए देखना मेरे लिए एक रहस्योद्घाटन और किसी खुशी के अनुभव से कम नहीं है, पाश.मेरा विश्वास करो, तुम्हारी क्षमता आसमान छू रही है और तुम इसे बहुत जल्द ही प्रकट कर दोगे, ठीक वैसे ही जैसे तुमने अपना पहला इश्क विश्क प्रकट किया था. तुम्हारी मौजूदगी में कुछ बेहद खास है.एक बार जब तुम इसे महसूस कर लोगे, तो तुम जान जाओगे कि इसका उपयोग कैसे करना है, इसकी रक्षा कैसे करनी है, इसका पोषण कैसे करना है. चलते रहो, पाश! अजेय रहो! मुझे तुम पर बहुत गर्व है.लव यू ❤️ डुग्गू भैया.”

रिश्ते में आपसी सम्मान और प्रशंसा की झलक

ऋतिक और पश्मीना के बीच बहुत ही करीबी रिश्ता है, अक्सर वे अपने-अपने सफर में एक-दूसरे का साथ देते हुए देखे जाते हैं बौलीवुड में स्टेबिलिस्ट (Established) एक्टर होने की वजह से ऋतिक हमेशा पश्मीना के लिए एक गाइडिंग फोर्स (guiding force) रहे हैं. उनके रिश्ते में आपसी सम्मान और प्रशंसा की झलक मिलती है, जिसमें ऋतिक अपनी यंगर कजिन सिस्टर के लिए एक गाड फादर की भूमिका निभाते हैं.

ऋतिक की ये पोस्ट स्ट्रौंग फैमिली रिलेशनशिप और उनकी अचीवमेंट्स पर प्राउड करने का प्रमाण है. वहीं दूसरी तरफ एक्टर ऋतिक रोशन की पर्सनल लाइफ को लेकर गॉसिप हो रही है कि एक्टर का उनकी गर्ल फ्रैंड सबा आजाद से ब्रेकअप हो गया है.

मैं अपने प्रोफैसर से प्यार करने लगी हूं, लेकिन वो मुझसे 20 साल बड़े हैं…

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल

मेरी उम्र 20 साल है, मैं बी-टेक की स्टूडेंट हूं. कुछ ही दिनों पहले मैंने दिल्ली के एक फेमस कौलेज में एडमिशन लिया है. यहां एक से बढ़कर एक लड़केलड़कियां आते हैं. यहां पर ढेर सारी सुविधाएं हैं. मेरे कोर्स कोअर्डिनेटर बहुत अच्छे हैं. वो काफी सपोर्टिव हैं. वो Personality Development की क्लास भी लेते हैं. मेरे प्रोफैसर बहुत ही हैंडसम हैं.

वो कई लड़कियों के क्रश हैं. हालांकि वो कामभर ही किसी से बात करते हैं. मैं भी उन्हें पसंद करने लगी हूं, मैं तो अपने दिल की बात भी उनसे कहना चाहती हूं, लेकिन वो उम्र में मुझसे 20 साल बड़े हैं.
उनका बर्थडे आने वाला है, मैं सोच रही हूं कि उनका बर्थडे सेलिब्रेट करूं, कौलेज के सारे लड़केलड़कियों को इनवाइट करूं और सबके सामने उनसे अपने प्यार का इजहार करूं. इससे अच्छा मौका मुझे नहीं मिल सकता, आप सलाह दें, क्या ऐसा करना सही होगा ?

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जवाब

प्यार उम्र की सीमा नहीं देखता है. वैसे भी आजकल आजकल पार्टनर के बीच उम्र का अंतर ज्यादा होने लगा है. ऐसे कई सेलेब्स हैं, जिनकी पार्टनर से उनकी उम्र ज्यादा है. इससे फर्क नहीं पड़ता कि जिससे आप पसंद करते हैं, अगर उसकी उम्र आपकी उम्र से ज्यादा है तो…

लेकिन सबके सामने अपने प्रोफेशर को प्रोपौज करना गलत होगा.आपने दिन सही चुना है, बेशक आप उनका बर्थडे सेलिब्रैट करें, लेकिन अपने दिल की बात उनसे अकेले में कहें. अगर आप सबके सामने उनसे इजहार करती हैं, तो हो सकता है, उन्हें बुरा लगे, क्योंकि वो एक बड़े पोस्ट पर हैं और वो भी प्रोफैसर के पद पर कार्यरत हैं.

लेकिन जब आप किसी बड़े उम्र के आदमी से अपने प्रेम का इजहार करना चाहते हैं, तो उससे ठोड़ा मैच्योरिटी के साथ बिहेव करना होगा. आप बर्थडे के दिन उन्हें गिफ्ट देने के बहाने उनके पास जाएं और अपने प्यार का इजहार करें. ये मत सोचें कि वो गुस्सा करेंगे या आपसे बात नहीं करेंगे. पर हां आप ये बात अपने फ्रैंड्स से डिस्कस न करें.

Young couple together in an autumn park

जब हो जाए बड़े उम्र के आदमी से प्यार

कपल्स के बीच उम्र ज्यादा हो या कम, इससे फर्क नहीं पड़ता, लेकिन समाज में बहुत कुछ सुनने को मिलता है. लेकिन जब दो लोग आपसी सहमति से किसी रिश्ते को अपनाते हैं, तो दुनिया क्या कहती है, इससे मतलब नहीं रखना चाहिए. अगर आपका साथी आपसे अपना अनुभव साझा करता है, तो उसे ध्यान से सुनना चाहिए न कि ये सोचना चाहिए की पार्टनर बड़ा है, इसलिए ज्ञान दे रहा है.

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बदल गया जीने का नजरिया: क्या दूर हुआ मीना के घर का क्लेश

सुरेश भी अकसर बिना किसी बात के उस से चिड़चिड़ा कर बोल पड़ता था. कभीकभार तो मीना के ऊपर उस का इतना गुस्सा फूटता कि अगर चाय का कप हाथ में होता तो उसे दीवार पर दे मारता. ऐसे ही कभी खाने की थाली उठा कर फेंक देता. इस तरह गुस्से में जो सामान हाथ लगता, वह उसे उठा कर फेंकना शुरू कर देता. इस से आएदिन घर में कोई न कोई नुकसान तो होता ही, साथ ही घर का माहौल भी खराब होता.

ऐसे में मीना को सब से ज्यादा फिक्र अपने 2 मासूम बच्चों की होती. वह अकसर सोचती कि इन सब बातों का इन मासूमों पर क्या असर होगा? यही सब सोच कर वह अंदर ही अंदर घुटते हुए चुपचाप सबकुछ सहन करती रहती.

मीना अपनेआप पर हमेशा कंट्रोल रखती कि घर में झगड़ा न बढ़े, पर ऐसा कम ही हो पाता था. आजकल सुरेश भी औफिस से ज्यादा लेट आने लगा था.

जब भी मीना लेट आने की वजह पूछती तो उस का वही रटारटाया जवाब मिलता, ‘‘औफिस में बहुत काम था, इसलिए आने में देरी हो गई.’’

एक दिन मीना की सहेली सोनिया उस से मिलने आई. तब मीना का मूड बहुत खराब था. सोनिया के सामने वह झूठमूठ की मुसकराहट ले आई थी, इस के बावजूद सोनिया ने मीना के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफसाफ पढ़ ली थीं.

मीना ने सोनिया को कुछ भी नहीं बताया और अपनेआप को उस के सामने सामान्य बनाए रखने की कोशिश करती रही थी. कभी उस का मन कहता कि वह सोनिया को अपनी समस्या बता दे, लेकिन फिर उस का मन कहता कि घर की बात बाहर नहीं जानी चाहिए. हो सकता है, सोनिया उस की समस्या सुन कर खिल्ली उड़ाए या फिर इधरउधर कहती फिरे.

अगले दिन जब मीना बस से कहीं जा रही थी कि तभी उस की नजर उस बस में चिपके एक इश्तिहार पर अटक गई. उस इश्तिहार में किसी बाबा द्वारा हर समस्या जैसे सौतन से छुटकारा, गृहक्लेश, व्यापार में घाटे से उबरने का उपाय, कोई ऊपरी चक्कर, प्रेमविवाह, किसी को वश में करने का हल गारंटी के साथ दिया गया था.

बाबा का इश्तिहार पढ़ते ही मीना के मन में अपने गृहक्लेश से छुटकारा पाने की उम्मीद जाग गई थी. उस ने जल्दी से अपना मोबाइल फोन निकाला और बाबा के उस इश्तिहार में दिया गया एक नंबर सेव कर लिया.

घर पहुंचते ही मीना ने बाबा को फोन किया और फिर उस ने अपनी सारी समस्याएं उन के सामने उड़ेल कर रख दीं.

दूसरी तरफ से बाबा की जगह उन का कोई चेला बात कर रहा था. उस ने कहा कि आप दरबार में आ जाइए, सब ठीक हो जाएगा. उस ने यह भी कहा कि बाबा के दरबार से कोई भी निराश नहीं लौटता है. उस ने उसी समय मीना को एक अपौइंटमैंट नंबर भी दे दिया था. मीना अब बिलकुल भी देर नहीं करना चाहती थी. वह सुरेश को पहले जैसा खुश देखना चाहती थी.

जब दूसरे दिन मीना बाबा के पास पहुंची और अपनी सारी समस्याएं उन्हें बताईं, तब बाबा ने बुदबुदाते हुए कहा, ‘‘आप के पति पर किसी ने कुछ करवा दिया है.’’

मीना हैरान होते हुए बाबा से पूछ बैठी, ‘‘पर, किस ने क्या करवा दिया है? हमारी तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है… बाबाजी, ठीकठीक बताइए… क्या बात है?’’

इस पर बाबा दोबारा बोले, ‘‘आप के पति का किसी पराई औरत के साथ चक्कर है और उस औरत ने ही शर्तिया आप के पति पर कुछ करवाया है. आप के पति को उस से छुटकारा पाना होगा.’’

बाबा की बातों से मीना के मन में अचानक सुरेश की चिड़चिड़ाहट की वजह समझ आ गई.

मीना बोली, ‘‘बाबाजी, आप ही कोई उपाय बताएं… ठीक तो हो जाएंगे न

मेरे पति?’’

मीना की उलझन के जवाब में बाबा ने कहा, ‘‘ठीक तो हो जाएंगे, लेकिन इस के लिए पूजा करानी होगी और उस के बाद मैं एक तावीज बना कर दूंगा. वह तावीज रात को पानी में भिगो कर रखना होगा और अगली सुबह मरीज को बिना बताए चाय में वह पानी मिला कर

मरीज को पिलाना होगा. यह सब तकरीबन 2 महीने तक करना होगा.

‘‘मैं एक भभूत भी दूंगा जिसे उस औरत को खिलाना होगा, जिस ने आप के पति को अपने वश में कर रखा है.’’

बाबा की बातों से मीना का दिल बैठ गया था. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सुरेश उस के साथ बेवफाई कर सकता है.

इसी बीच बाबा ने एक कागज पर उर्दू में कुछ लिख कर उस का तावीज बना कर भभूत के साथ मीना को दिया और कहा, ‘‘मरीज को बिना बताए ही तावीज का पानी उसे पिलाना है और यह भभूत उस औरत को खिलानी है. अगर उस औरत को एक बार भी भभूत खिला दी गई तो वह हमेशा के लिए तेरे पति को छोड़ कर चली जाएगी.’’

मीना ये सब बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी. वह सुरेश को फिर से पहले की तरह वापस पाना चाहती थी. उसे बाबा पर पूरा भरोसा था कि वे उस के पति को एकदम ठीक कर देंगे.

उस रात मीना बिस्तर पर करवटें बदलती रही. उस की नींद छूमंतर

हो चुकी थी. उस को बारबार यही खयाल आता, ‘कहीं उस औरत के चक्कर में सुरेश ने मुझे छोड़ दिया तो मैं क्या करूंगी? कैसे रह पाऊंगी उस के बगैर?’

यह सब सोचसोच कर उस का दिल बैठा जा रहा था. फिर वह अपनेआप को मन ही मन मजबूत करती और सोचती कि वह भी हार नहीं मानने वाली.

इस के बाद मीना यह सोचने लग गई कि तावीज का पानी तो वह सुरेश को पिला देगी, पर उस औरत को ढूंढ़ कर उसे भभूत कैसे खिलाएगी? वह तो उस औरत को जानती तक नहीं है. यह काम उसे बहुत मुश्किल लग रहा था.

सुबह उठते ही मीना ने सब से पहले सुरेश के लिए चाय बनाई और उस में तावीज वाला पानी डाल दिया.

इस के बाद मीना सोफे पर पसर गई. बैठेबैठे वह फिर सोचने लगी कि उस औरत को कैसे ढूंढ़े, जबकि उस ने तो आज तक ऐसी किसी औरत की कल्पना तक नहीं की है?

मीना ने आज जानबूझ कर सुरेश का लंच बौक्स उस के बैग में नहीं रखा था, जिस से लंच बौक्स देने का बहाना बना कर वह उस के औफिस जा सके और उस की जासूसी कर सके.

सुरेश के औफिस जाने के बाद मीना भी उस के औफिस के लिए निकल पड़ी.

औफिस में जा कर मीना सब से पहले चपरासी से मिली और घुमाफिरा कर सुरेश के बारे में पूछने लगी.

चपरासी ने बताया, ‘‘सुरेश सर तो बहुत भले इनसान हैं. वे और उन की सैक्रेटरी रीता पूरे समय काम में लगे रहते हैं.’’

जब मीना ने चपरासी से सुरेश से मिलवाने को कहा, तब उस ने मीना को अंदर जाने से रोकते हुए कहा, ‘‘अभी सर और रीता मैडम कुछ जरूरी काम कर रहे हैं. आप कुछ देर बाद मिलने जाइएगा.’’

मीना को दाल में काला नजर आने लगा. अब तो उस का पूरा शक सैक्रेटरी रीता पर ही जाने लगा. उसे रीता पर गुस्सा भी आ रहा था लेकिन अपने गुस्से पर काबू करते हुए वह कुछ देर के लिए रुक गई.

कुछ देर बाद जब सैक्रेटरी रीता बाहर निकली तब मीना उसे बेमन से ‘हाय’ करते हुए सुरेश के केबिन में घुस गई.

वापसी में जब मीना दोबारा रीता से मिली तो उस ने कुछ दिनों बाद अपने छोटे बेटे के जन्मदिन पर रीता को भी न्योता दे डाला.

जब रीता उस के घर आई तो मीना ने उस के खाने में भभूत मिला दी. इस काम को कामयाबी से अंजाम दे कर मीना बहुत खुश थी.

अगली शाम को जब सुरेश दफ्तर

से लौटा तो एकदम शांत था, वह रोज की तरह आते ही न चीखाचिल्लाया

और न ही मीना से कोई चुभने वाली बात की. मीना बहुत खुश थी कि बाबा के तावीज ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है. उस रात सुरेश ने मीना से बहुत सी प्यार भरी बातें की थीं और उसे अपनी बांहों में भी भर लिया था.

मीना मन ही मन बाबा का शुक्रिया अदा करने लगी. वह यही सोच रही थी कि अब कुछ दिन बाद सुरेश को उस कुलटा औरत से छुटकारा मिल जाएगा और उन की जिंदगी फिर से खुशहाल हो जाएगी.

सुरेश के स्वभाव में दिनोंदिन और भी बदलाव आता चला गया. अब उस ने बच्चों के साथ खेलना और समय देना भी शुरू कर दिया था. मीना यह सब देख कर मन ही मन बहुत खुश होती. उसे बाबा द्वारा बताए गए उपाय किसी चमत्कार से कम नहीं लगे थे.

अब मीना बाबा के पास जा कर उन का शुक्रिया अदा करना चाहती थी. कुछ दिनों बाद ही वह बाबा के लिए मिठाई और फल ले कर उन के आश्रम पहुंच गई.

जब बाबा को इस बात का पता चला तो वे बहुत खुश हुए और उन्होंने मीना से कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारे पति को अभी कुछ और दिनों तक तावीज का पानी पिलाना पड़ेगा, वरना कुछ दिन में इस का असर खत्म हो जाएगा और वह फिर से पहले जैसा हो जाएगा.’’

मीना यह बात सुन कर अंदर तक सहम गई. उस ने बाबा के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘बाबा, आप जो कहेंगे, मैं वहीं करूंगी और जब तक कहेंगे तब तक करती रहूंगी, चाहे मुझे इस के लिए कितने ही रुपए क्यों न खर्च करने पड़ें.’’

इस पर बाबा ने उसे भरोसा देते हुए कहा, ‘‘चिंता मत कर, सब ठीक हो जाएगा. मेरे यहां से कभी कोई निराश हो कर नहीं गया है.’’

बाबा की बातें सुन कर मीना ने राहत की सांस ली. बाबा कागज के एक पुरजे पर उर्दू में कुछ मंत्र लिख कर तावीज बनाने में लगे थे कि तभी मीना के पति सुरेश का औफिस से फोन आ गया, ‘क्या कर रही हो? जरा गोलू से बात कराना.’

मीना थोड़ा हड़बड़ा कर बोली, ‘‘कुछ नहीं.’’मीना को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह सुरेश से क्या कहे कि वह कहां है और इस समय वह उस की गोलू से बात नहीं करा सकती. इसी बीच उस की नजर दीवार पर टंगे जीवन अस्पताल के कलैंडर पर पड़ी तो उस ने झट से कह दिया, ‘‘मैं अस्पताल में हूं. गोलू को घर छोड़ कर आई हूं.’’

सुरेश ने घबरा कर पूछा, ‘‘कौन से अस्पताल में?’’

मीना फिर हड़बड़ा कर कलैंडर में देखते हुए बोली, ‘‘जीवन अस्पताल.’’

मीना का इतना कहना था कि सुरेश का फोन कट गया.

थोड़ी देर बाद मीना बाबा के यहां से वापस लौट रही थी कि रास्ते में जीवन अस्पताल के सामने सुरेश को अपना स्कूटर लिए खड़ा देख वह बहुत ज्यादा घबरा गई.

उसे देख कर सुरेश एक ही सांस में कह गया, ‘‘तुम यहां कैसे? क्या हुआ मीना तुम्हें? सब ठीक तो है न?’’

सुरेश के मुंह से इतना सुन कर और अपने लिए इतनी फिक्र देख कर मीना भावुक हो उठी. उस वक्त उसे सुरेश की आंखों में अपने लिए अपार प्यार व फिक्र नजर आ रही थी.

इस के बाद तो मीना से झूठ नहीं बोला गया और उस ने सारी बातें ज्यों की त्यों सुरेश को बता दीं.

मीना की सारी बातें सुनते ही सुरेश ने हंसते हुए उस के गाल पर एक

हलकी सी चपत लगाई और फिर गले लगा लिया.

सुरेश मीना के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘तुम ने ऐसा कैसे समझ लिया. भला इतनी प्यारी पत्नी से कोई कैसे बेवफाई कर सकता है. लेकिन, तुम मुझे इतना ज्यादा प्यार करती हो कि मुझे पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हो, यह जान कर आज मुझे सचमुच बहुत अच्छा लग रहा है.

‘‘पर, तुम तो पढ़ीलिखी और इतनी समझदार हो कर भी इन बाबाओं के चक्कर में कैसे पड़ गईं, जबकि पहले तो तुम खुद बाबाओं के नाम से चिढ़ती थीं? अब तुम्हें क्या हो गया है?’’

सुरेश की बातों के जवाब में मीना एक लंबी सांस लेते हुए बोली, ‘‘लेकिन, कुछ भी हो… बाबा की वजह से

आप मुझे वापस मिले हो. अब मुझे पहले वाले सुरेश मिल गए हैं. अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए.’’

सुरेश ने प्यार से मीना का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘अच्छा चलो… घर चल कर बाकी बातें करते हैं.’’

घर पहुंच कर सुरेश ने मीना की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम्हें पता है न कि बाबाजी ने कोई चमत्कार नहीं किया. मैं बदला हूं सिर्फ और सिर्फ अपने दोस्त के साथ हुए एक हादसे के चलते. तुम बेकार ही यह समझ रही हो कि यह बाबा का चमत्कार है.’’

सुरेश की बातों पर मीना हैरान हो कर उसे घूरते हुए बोली, ‘‘हादसा… कैसा हादसा?’’

सुरेश ने उसे उदास मन से बताया, ‘‘मेरे एक दोस्त की पत्नी ने खुदकुशी कर ली थी और बच्चों को भी खाने में जहर दे दिया था.

‘‘जब मैं ने अपने दोस्त से पूछा कि यह सब कैसे हो गया तो उस ने बताया कि वह आजकल बहुत बिजी रहने

लगा था और काम के बोझ के चलते चिड़चिड़ा हो गया था. वह बातबात पर अपनी पत्नी पर गुस्सा होता रहता था और अकसर मारपीट पर भी उतर आता था.

‘‘पहले तो उस की पत्नी कभी उस से उलझ भी जाती थी, लेकिन कुछ दिन बाद उस ने उस से बात करना ही बंद कर दिया था और वह गुमसुम रहने लगी थी.

‘‘यह सब बताते हुए मेरा दोस्त फूटफूट कर रोने लगा था. उस ने अपने ही हाथों अपना परिवार स्वाहा कर दिया था.’’

सुरेश ने एक लंबी सांस लेते हुए आगे कहा, ‘‘अपने दोस्त की इस घटना ने मुझे अंदर तक हिला दिया था. उसी समय मैं ने सोच लिया था कि अब मैं भी अपने इस तरह के बरताव को बदल

कर ही दम लूंगा. इस तरह मेरा जीने का नजरिया ही बदल गया.’’

सुरेश की बातें सुन कर मीना बोली, ‘‘आप ने तो अपने जीने का नजरिया खुद बदला और मैं समझती रही कि यह सब बाबा का चमत्कार है और

इस सब के चलते मैं हजारों रुपए भी लुटा बैठी.’’

मीना के इस भोलेपन पर सुरेश ने हंसते हुए उसे अपनी बांहों में कस कर भर लिया.

राहुल बड़ा हो गया है: क्या मां समझ पाई

अमित से मैं अकसर इस बात पर उलझ पड़ती हूं कि राहुल अभी छोटा है. वह कभी हंस देते हैं, कभी झुंझला उठते हैं कि इतना छोटा भी नहीं है जितना तुम समझती हो.

अमित कहते हैं, ‘‘14 साल पूरे करने वाला है और तुम उसे छोटा ही कहती हो. मैं तो समझता हूं कि कल को उस के बच्चे भी हो जाएंगे तब भी राहुल तुम्हें छोटा ही लगेगा.’’

मैं इस तरह की बातें अनसुनी करती रहती हूं. बेटी मिनी, जो 16 की हुई है, वह भी अपने पापा के सुर में सुर मिलाए रखती है. वह भी यही कहती है, ‘‘छोटा है, हुंह, स्कूल में इस की मस्ती देखो तो आप को पता चलेगा कि यह कितना छोटा है.’’

मैं कहती हूं, ‘‘तो क्या हुआ, छोटा है तो मस्ती तो करेगा ही,’’ मतलब मेरे पास इन दोनों की हर बात का यही जवाब होता है कि राहुल अभी छोटा है. यह तो शुक्र है कि राहुल ने बहुत तेज दिमाग पाया है. कक्षा में हमेशा प्रथम स्थान प्राप्त करता है. खेलकूद में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता है. जिस में भाग लेता है उसी में प्रथम स्थान प्राप्त करता है. यहीं पर अमित उस से बहुत खुश हो जाते हैं नहीं तो उसे मेरा छोटा कहना दोनों बापबेटी के लिए अच्छाखासा मनोरंजन का विषय रहता है. अब मैं क्या करूं, अगर वह मुझे छोटा लगता है. वैसे भी सुना है कि मां के लिए बच्चे हमेशा छोटे ही रहते हैं.

ठीक है, उस का कद मुझे पार कर गया है. मैं जो अच्छीखासी लंबी हूं, राहुल के कंधे पर आने लगी हूं. उस की हर समय खेलकूद की बातें, उस के चेहरे पर रहने वाली भोली सी मुसकराहट, बस, मुझे कुछ दिखाई नहीं देता, न घर में सब को पार करता उस का कद, न उस के होंठों के ऊपर हलकी सी उभरती मूंछों की कालिमा.

अभी एक हफ्ते पहले मैं ने राहुल का एक दूसरा ही रूप देखा जिसे देख कर मैं ने भी महसूस किया कि राहुल बड़ा हो गया है.

मेरी तबीयत अकसर ठीक नहीं रहती है. कभी कुछ, कभी कुछ, लगा ही रहता है. पिछले हफ्ते की बात है. एक दिन घर का सामान लेने बाजार जाना था. मेरी तबीयत सुबह से ही कुछ सुस्त थी. अमित टूर पर थे, मिनी की परीक्षाएं चल रही थीं. सामान जरूरी था, अत: राहुल और मैं शाम को 4 बजे के आसपास बाजार चले गए. यहां मुंबई में किसी भी दिन किसी भी समय कहीं भी चले जाइए भीड़ ही भीड़, लोग ही लोग. कोई कोना खाली नहीं दिखता.

मुंबई आए 7 साल होने को हैं लेकिन आज भी बाहर निकलती हूं तो हर तरफ भीड़ देख कर जी घबरा जाता है. साधारण हाउसवाइफ हूं, बाहर अकेले कम ही निकलती हूं.

खैर, उस दिन बाजार में सामान लेतेलेते एक जगह सिर बहुत भारी लगने लगा. अचानक ही मुझे तेज चक्कर आया और मैं पसीनेपसीने हो उठी. साथ ही पेट के अंदर कमर के पास तेज दर्द शुरू हो गया. राहुल मेरी हालत देख कर घबरा उठा. मैं ने उसे अपना पर्स व सामान थमाया और इतना ही कहा, ‘‘राहुल, तुरंत डाक्टर के पास चलो.’’

राहुल ने तुरंत आटो बुलाया और मुझे उस में बैठा कर मेरे फैमिली डाक्टर के नर्सिंग होम पहुंचा. रास्ते में मैं ने उसे मिनी को फोन कर के बताने को कहा. डाक्टर ने पहुंचते ही मेरा चेकअप किया और बताया, ‘‘ब्लडप्रेशर बहुत हाई है. मुझे कुछ टेस्ट करने हैं. दर्द के लिए इंजेक्शन दे रहा हूं, आज आप को यहां भरती होना पड़ेगा.’’

मैं यह सोच कर परेशान हो गई कि अमित शहर में नहीं हैं और परीक्षा की तैयारी में व्यस्त मिनी घर पर अकेली है.

मैं अपनी परेशान हालत में कुछ और सोचती इस से पहले ही राहुल बोल उठा, ‘‘अंकल, मम्मी आज यहीं रुक जाएंगी. मैं सब देख लूंगा,’’ आगे मुझ से बोला, ‘‘आप बिलकुल किसी बात की चिंता मत करो, मम्मी. मैं यहीं हूं, मैं हर बात का ध्यान रखूंगा.’’

दर्द से तड़पती मैं उस हाल में भी गर्वित हो उठी यह सोच कर कि मेरा छोटा सा बेटा कैसे मेरी देखभाल के लिए तैयार है. दर्द से मेरी जान निकल रही थी. शायद इंजेक्शन से थोड़ी देर में मुझे नींद भी आ गई. इस बीच राहुल ने मिनी को फोन कर के कुछ पैसे और मेरे लिए खाने को कुछ लाने के लिए कहा.

रात 8 बजे मेरी आंख खुली, तो देखा, दोनों बच्चे मेरे सामने चुपचाप उदास बैठे थे. मन हुआ उठ कर दोनों को अपने सीने से लगा लूं. दर्द खत्म हो चुका था, कमजोरी बहुत महसूस हो रही थी.

मैं बच्चों से बोली, ‘‘अब मैं ठीक हूं. तुम लोग अब घर चले जाओ, रात हो गई है.’’

मैं ने अपनी 2-3 सहेलियों के नाम ले कर कहा, ‘‘उन लोगों को बता दो, उन में से कोई एक यहां रुक जाएगा रात को.’’

मैं आगे कुछ और कहती, इस से पहले ही राहुल बोल उठा, ‘‘नहीं, मम्मी, जब मैं यहां हूं और किसी को बुलाने की जरूरत नहीं है. आप देखना, मैं आप का अच्छी तरह ध्यान रखूंगा. मिनी दीदी, आप जाओ, आप के पेपर हैं. मम्मी और मैं सुबह आ जाएंगे.’’

राहुल आगे बोला, ‘‘हां, एक बात और मम्मी, हम पापा को नहीं बताएंगे. वह टूर पर हैं, परेशान हो जाएंगे. वैसे भी 2 दिन बाद तो वह आ ही जाएंगे.’’

मैं अपने छोटे से बेटे का यह रूप देख कर हैरान थी. मिनी को हम ने समझा कर घर भेज दिया. वैसे भी वह एक समझदार लड़की है. राहुल ने अपने हाथों से मुझे थोड़ा खाना खिलाया और कुछ खुद भी खाया. मेरे राहुल ने कितनी देर से कुछ भी नहीं खाया था, सोच कर मैं लेटेलेटे दुखी सी हो गई.

कुछ दवाइयों का असर था शायद मैं फिर सो गई लेकिन रात को मैं ने जितनी बार आंखें खोलीं, राहुल को बराबर के बेड पर जागते ही पाया. सुबह मुझे पता चला कि किडनी में पथरी का दर्द था. खैर, उस का इलाज तो बाद में होना था. ब्लडप्रेशर सामान्य था.

अब मैं डाक्टर की हिदायतों के बाद घर जाने को तैयार थी. डाक्टर से दवाई समझता, सब बिल चुकाता, एक हाथ से मेरा हाथ, दूसरे में मेरा पर्स और बैग थामता राहुल आज मुझे सच में बड़ा लग रहा था.

वायरिजम यानी ताकझांक: महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा का एक तरीका

देशभर में महिलाओं के खिलाफ कुछ ऐसे अपराध होते हैं जो अमूमन दर्ज नहीं किए जाते. बहुत से लोगों को उस अपराध के बारे में पता भी नहीं होता. ऐसा ही एक अपराध है ताक-झांक करना या ‘वायरिज़म’. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2021 में भारत में वायरिजम के केवल 1,513 मामले दर्ज किए गए. सब से अधिक मामलों वाला राज्य महाराष्ट्र (210) था. उस के बाद आंध्र प्रदेश (159) और ओडिशा (148) थे. मुंबई में 73 के साथ सब से अधिक मामले दर्ज किए गए. इस के बाद दिल्ली में 22, हैदराबाद में 18, चेन्नई और कोलकाता 17-17 के साथ पांचवें स्थान पर रहे.

इन आंकड़ों के मुताबिक़ मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा जैसे राज्यों में वॉयरिज्म के केस शून्य पर है पर इस का मतलब यह नहीं कि वहां ऐसे अपराध कम है. हो सकता है कि उन राज्यों की महिलाओं को यह न पता हो कि यह एक अपराध है और इस की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराई जा सकती है या ऐसा भी हो सकता है कि महिलाओं ने अपने पीछा करने वालों पर ध्यान न दिया हो यानी इन राज्य में महिलाओं में ऐसे अपराध के प्रति जागरूकता न हो. मेट्रो शहर जागरूकता और शिक्षा के मामले में आगे हैं इसलिए रिपोट्स भी अधिक दर्ज होते हैं. लेकिन मेट्रो शहर में भी महिलाएं इस अपराध और संभावित उपायों के बारे में कम ही जानती हैं.

क्या है वायरिज़म

वायरिजम का मतलब किसी व्यक्ति का किसी महिला को छिप कर देखने या उस की तस्वीरें लेने से है. इस से महिला की निजता और गोपनीयता का हनन होता है. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 सी के तहत किसी निजी काम में लिप्त महिला को देखना और उसकी तस्वीर खींचना ताक झांक (वायरिजम) करना है.

वायरिजम शब्द की उत्पत्ति ‘वायूर’ से हुई है जो एक फ्रांसीसी शब्द है. इस का अर्थ है ‘वह जो देखता है.’ इसका मतलब किसी व्यक्ति का किसी को छिपकर देखना है. यह महिलाओं की निजता और गोपनीयता का हनन करता है. यह महिला के शारीरिक स्वास्थ्य से भी ज्यादा उनके भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक और हानिकारक है. इसमें महिला के निजी स्थानों में कैमरा लगा दिया जाता है या फिर उस की रजामंदी के विरुद्ध रिकॉर्डिंग या तसवीरें खींची जाती हैं.

खिड़कियों या कीहोल के माध्यम से जासूसी करना, छिपे हुए कैमरों के महिला को कपड़े बदलते हुए देखना या निजी कामों के दौरान देखना, वाशरूम, पूल और बेडरूम आदि में कैमरे लगाना शामिल है जहां लोगों को आसानी से फिल्माया जा सकता है. आज अधिकांश ताक-झांक करने वाले अपराधी हाई-टेक गैजेट्स और मोबाइल उपकरणों से लैस हैं. जिन लोगों की तस्वीरें खींची जाती हैं या कैद की जाती हैं उन की निजी तस्वीरें और क्लिप इंटरनेट पर जारी होने का खतरा हमेशा मंडराता है.

आईपीसी 354 सी के तहत वायरिजम का प्रावधान

वायरिज्म एक ऐसा अपराध है जो व्यक्ति की निजता पर आक्रमण करता है. इसलिए हमें इस तरह के अपराधों को रोकने और दोषियों को सजा देने के लिए भारतीय कानूनों के प्रावधानों के बारे में जानना चाहिए.

साल 2013 तक भारत में वायरिजम अपराध नहीं था. न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति की सिफारिशों के आधार पर भारतीय दंड संहिता में वायरिजम के लिए एक नया खंड 354 C पेश किया गया था. 2012 की दिल्ली गैंगरेप घटना के बाद आयोग इस बात पर सहमत हुआ कि सभी प्रकार के यौन अपराधों के लिए सख्त दंड होना चाहिए और निर्णय लिया कि वायरिजम में अधिकतम सात साल की जेल की सजा होनी चाहिए. कोई भी पुरुष जो ऐसी परिस्थितियों में किसी महिला को निजी काम करते हुए देखता है या उसकी तस्वीर खींच लेता है जहां आमतौर पर उसे किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं देखे जाने की उम्मीद होती है इसी को आईपीसी 1860 के तहत वायरिजम कहते हैं.

इसमें जुर्माना भी लगाया जा सकता है और दूसरी बार या बाद में दोषी ठहराए जाने पर दंडित भी किया जा सकता है. ऐसे मामलों में 3 साल से 7 साल तक की कारावास की सजा हो सकती है.

आईटी अधिनियम, 2000 के तहत ताक-झांक

आईटी एक्ट 2000 के तहत धारा 67 के अंतर्गत निजता के उल्लंघन की सजा इस प्रकार बताई गई है – गोपनीयता के उल्लंघन के लिए सजा. कोई जानबूझकर किसी व्यक्ति की गोपनीयता का उल्लंघन करने वाली परिस्थितियों में उसकी सहमति के बिना उसके निजी क्षेत्र की फोटो लेता है या प्रसारित करता है उसे 3 साल तक कारावास का दंड दिया जाएगा. 2 लाख जुर्माना भी लग सकता है.

वायरिज़म का सामना कर रही महिलाएं क्या कर सकती हैं

यदि किसी महिला को लगता है कि वह वायरिज़म की शिकार हुई है तो वह पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कर सकती है. महिला के पास अपनी शिकायत व्यक्त करने के लिए दो विकल्प हैं- मौखिक या लिखित रूप से. भारत में ‘ताक-झांक’ यानी वायरिजम एक यौन अपराध के रूप में उभर रहा है. वायरिज़म से संबंधित अपराधों को रोकने के लिए यदि कोई महिला इस प्रकार के अपराध का सामना करती हैं या उन्हें लगता है कि ऐसा हो रहा है तो भी उसे चुप नहीं रहना चाहिए बल्कि उसकी जांच कर शिकायत दर्ज करनी चाहिए ताकि समय पर कोई एक्शन लिया जा सके. अगर वह किसी और महिला को इस का शिकार बनता देखती है तो भी महिला को चुप नहीं बैठना चाहिए क्योंकि ऐसे अपराधी किसी को नहीं छोड़ते.

एक अधूरा लमहा: क्या पृथक और संपदा के रास्ते अलग हो गए?

जिंदगी ट्रेन के सफर की तरह है, जिस में न जाने कितने मुसाफिर मिलते हैं और फिर अपना स्टेशन आते ही उतर जाते हैं. बस हमारी यादों में उन का आना और जाना रहता है, उन का चेहरा नहीं. लेकिन कोई सहयात्री ऐसा भी होता है, जो अपने गंतव्य पर उतर तो जाता है, पर हम उस का चेहरा, उस की हर याद अपने मन में संजो लेते हैं और अपने गंतव्य की तरफ बढ़ते रहते हैं. वह साथ न हो कर भी साथ रहता है.

ऐसा ही एक हमराही मुझे भी मिला. उस का नाम है- संपदा. कल रात की फ्लाइट से न्यूयौर्क जा रही है. पता नहीं अब कब मिलेगी, मिलेगी भी या नहीं. मैं नहीं चाहता कि वह जाए. मुझे पूरा यकीन है कि वह भी जाना नहीं चाहती. लेकिन अपनी बेटी की वजह से जाना ही है उसे. संपदा ने कहा था कि पृथक, अकेले अभिभावक की यही समस्या होती है. फिर टिनी तो मेरी इकलौती संतान है. हम एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते. हां, एक वक्त के बाद वह अकेले रहना सीख जाएगी. इधर वह कुछ ज्यादा ही असुरक्षित महसूस करने लगी है. पिछले 2-3 सालों में उस में बहुत बदलाव आया है. यह बदलाव उम्र का भी है. फिर भी मैं यह नहीं चाहती कि वह कुछ ऐसा सोचे या समझे, जो हम तीनों के लिए तकलीफदेह हो.

मैं उसे देखता रहा. पिछले 2 सालों से उस में बदलाव आया है यानी जब से मैं संपदा से मिला हूं. हो सकता है कि उस की बात का मतलब यह न हो, पर मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा, दुख हुआ.

संपदा ने मेरा चेहरा पढ़ लिया, ‘‘पृथक, तुम्हें छोड़ कर जाने से मैं बिलकुल अकेली हो जाऊंगी, इस का दुख मुझे भी है पर अब मेरे लिए टिनी का भविष्य ज्यादा जरूरी है.’’

‘‘टिनी होस्टल में भी रह सकती है… तुम्हारा जाना जरूरी है?’’ मैं ने संपदा का हाथ पकड़ते हुए कहा था. उस की भी आंखें देख कर मुझे खुद पर गुस्सा आ गया था. मनुष्य का मन चुंबक के समान है और वह अपनी इच्छित वस्तु को अपनी ओर आकर्षित कर उसे प्राप्त कर लेना चाहता है. परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों.

मैं कितना स्वार्थी हो गया हूं. वैसे भी मैं उसे किस हक से रोक सकता हूं? सब कुछ होते हुए भी वह मेरी क्या है? आज समझ में आ रहा है. हमदोनों की एकदूसरे की जिंदगी में क्या जगह है? दोनों के रिश्ते का दुनिया की नजर में कोई नाम भी नहीं है. समाज को भी रिश्तों में खून का रंग ज्यादा भाता है. अनाम रिश्तों में प्रेम के छींटे समाज नहीं देख पाता. अगर मेरी बेटी को जाना होता पढ़ने, तो मैं क्या करता? मैं उसे आसपास के शहर में भी नहीं भेज पाता.

मुझे चुप देख कर संपदा ने नर्म स्वर में कहा, ‘‘हमें अच्छे और प्यारे दोस्तों की तरह अलग होना चाहिए. इन 2 सालों में तुम ने बहुत कुछ किया है मेरे लिए… तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता है. तुम समझ सकते हो मुझे कैसा लग रहा होगा… तुम भी ऐसे उदास हो जाओगे…’’ उस के चेहरे पर उदासी छा गई.

कितनी जल्दी रंग बदलती है उस के चेहरे की धूप… रंग ही बदलती है, साथ नहीं छोड़ती. अंधेरे को नहीं आने देती अपनी जगह.

मैं उसे उदास नहीं देख पाता. अत: मुसकराते हुए कहा, ‘‘दरअसल, बहुत प्यार करता हूं न तुम्हें… इसीलिए पजैसिव हो गया हूं और कुछ नहीं. तुम ने बिलकुल ठीक फैसला किया है. मैं तुम्हें जाने से रोक नहीं रहा. पर इस फैसले से खुश भी कैसे हो सकता हूं,’’ यह कह कर मैं एकदम से उठ कर अपने चैंबर में आ गया. अपने इस बरताव पर मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आया कि मुझे उसे दुखी नहीं करना चाहिए.

यह वही संपदा है, जिस ने अपनी प्रमोशन पिछली बार सिर्फ इसलिए छोड़ दी थी कि उसे मुझे से दूर दूसरे शहर में जाना पड़ रहा था और वह मुझे छोड़ कर नहीं जाना चाहती. तब मैं उसे जाने के लिए कहता रहा था. तब उस ने कहा था कि तुम्हें कहां पाऊंगी वहां?

जब मैं अपनी कंपनी की इस ब्रांच में आया था अच्छाभला था. अपने काम और परिवार में मस्त. घर में सारी सुखसुविधाएं, बीवी और 2 बच्चों का परिवार, जो अमूमन सुखी कहलाता है… सुखी ही था. मेरी कसबाई तौरतरीकों वाली बीवी, जो शादी के बाद से ही खुद को बदलने में लगी है, पता नहीं यह प्रक्रिया कब खत्म होगी? शायद कभी नहीं. बच्चे हर लिहाज से एक उच्च अधिकारी के बच्चे दिखते हैं. मानसिकता तो मेरी भी पूर्वाग्रहों से मुक्त न थी.

एक दिन आपस में लंच टाइम में बैठे न जाने क्यों एक लैक्चर सा दे दिया. स्त्रीपुरुष के विकास की चर्चा सुन कर मुझ से संपदा ने जो कहा उस ने मुझे काफी हद तक बदल दिया था.

उस ने कहा था, ‘‘विकास के नियम स्त्रीपुरुष दोनों के लिए अलग नहीं हैं. किंतु पुरुष अविकसित पत्नी के होते हुए भी अपना विकास कर लेता है. लेकिन अविकसित पति के संग रह कर स्त्री अपना विकास असंभव पाती है, क्योंकि वह उस की प्रतिभा को पहचान नहीं पाता और व्यर्थ की रोकटोक लगाता है, जिस से स्त्री का विकास बाधित होता है. कम विकसित व्यक्तित्व वाली स्त्री जब अधिक विकसित परिवार में जाती है, तो वह अनुकूल विवाह है यह व्यावहारिक है, क्योंकि वहां उस के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध नहीं होता. लेकिन ऐसा परिवार जो उस के व्यक्तित्व की अपेक्षा कम विकसित है, उस परिवेश में उस का व्यक्तिगत विकास अधिक संभव नहीं होता तो यह अनुकूल विवाह नहीं है. वहां स्त्री का दम घुट जाएगा. विकास से मेरा तात्पर्य बौद्धिक, मानसिक, आत्मिक विकास से है. यह आर्थिक विकास नहीं है. ज्यादातर आर्थिक समृद्धि के साथ आत्मिक पतन आता है. स्त्री शक्ति है. वह सृष्टि है, यदि उसे संचालित करने वाला व्यक्ति योग्य है. वह विनाश है, यदि उसे संचालित करने वाला व्यक्ति अयोग्य है. इसीलिए जो मनुष्य स्त्री से भय खाता है वह अयोग्य है या कायर और दोनों ही व्यक्ति पूर्ण नहीं हैं…’’

मैं उस का मुंह देखता रह गया. मैं ने तो बड़े जोर से उसे इंप्रैस करने के लिए बोलना शुरू किया था पर उस के अकाट्य तर्कसंगत सत्य ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था. वह बिलकुल ठीक थी. कितनी अलग लगी थी संपदा ऐसी बातें करते हुए? पहले मैं क्याक्या सोचता था उस के बारे में.

इस औफिस में पहले दिन संपदा को देखा तो आंखों में चमक आ गई थी. चलो रौनक तो है. तनमन दोनों की सेहत ठीक रहेगी. पहले दिन तो उस ने देखा तक नहीं. बुझ सा गया मैं. फिर ऐसी भी क्या जल्दी है सोच कर तसल्ली दी खुद को. उस के अगले दिन फौर्मल इंट्रोडक्शन के बीच हाथ मिलाते हुए बड़ी प्यारी मुसकान आई थी उस के होंठों पर. देखता रह गया मैं. कुल मिला कर इस नतीजे पर पहुंचा कि मस्ती करने के लिए बढि़या चीज है. औफिस में खासकर मर्दों में भी उस के लिए कोई बहुत अच्छी राय नहीं थी. वह उन्हें झटक जो देती थी अपने माथे पर आए हुए बालों की तरह. खैर, कभीकभी की हायहैलो गुड मौर्निंग में बदली.

एक दिन उस ने ही चाय के लिए कहा. उसी के चैंबर में बैठे थे हम. मुझे बात बनती सी नजर आई. कई बातें हुईं पर मेरे मतलब की कोई नहीं हुई.

आगे चल कर चायकौफी का दौर जब बढ़ गया तो वैभव ने कहा कि तुम्हारी बात सिर्फ चाय तक ही है या आगे भी बढ़ी? मैं ने एक टेढ़ी सी स्माइल दी और खुद को यकीन दिलाया कि मैं उसे कुछ ज्यादा ही पसंद हूं. कभी कोई कहता कि सिगरेटशराब पीती है, तो कोई कहता ढेरों मर्द हैं इस की मुट्ठी में, तो कोई कहता कि देखो साड़ी कहां बांधती है? सैंसर बोर्ड इसे नहीं देखता क्या? जवाब आता कि इसे जीएम देखता है न.

ऐसी बातें मुझे उत्तेजित कर जातीं. कब वह आएगी मेरे हाथ? और तो और अब तो मुझे अपनी बीवी के सारे दोष जिन्हें मैं भूल चुका था या अपना चुका था, शूल की भांति चुभने लगे. उसे देखता तो लगता कैक्टस पर पांव आ पड़ा है. क्यों कभीकभी लगता है जिसे हम सुकून समझे जा रहे थे वह तो हम खुद को भुलावा दे रहे थे. कभी अचानक सुकून खुद कीमत बन जाता है सुख की… हर चीज की एक कीमत जरूर होती है.

ये बीवियां ऐसी क्यों होती हैं? कितना फर्क है दोनों में? वह कितनी सख्त दिल और संपदा कितनी नर्म दिल. वह किसी शिकारी परिंदे सी चौकस और चौकन्नी… और संपदा नर्मनाजुक प्यारी मैना सी. कोई खबर रखने की कोशिश नहीं करती कि कहां क्या हो रहा है, कोई उस के बारे में क्या कह रहा है.

संपदा की फिगर कमाल की है. और पत्नी को लाख कहता हूं ऐक्सरसाइज करने को, पर नहीं. कैसी लगेगी वह नीची साड़ी में? उस की कमर तोबा? शरीर में कोई कर्व ही नहीं है, परंतु इस के बाद भी घर में मेरा व्यवहार ठीक रहा. कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया.

एक दिन संपदा ने पूछ ही लिया परिवार के बारे में. मैं ने बताया बीवी के अलावा 1 बेटा और 1 बेटी है. तब उस ने भी बताया कि उस की भी 1 बिटिया है, टिनी नाम है. पति के बारे में उस ने न तो कुछ बताया और न ही मैं ने कुछ पूछा. पूछ कर मूड नहीं खराब करना चाहता था. हो सकता है कह देती कि मैं आज जो कुछ हूं उन्हीं की वजह से हूं या बहुत प्यार करते हैं मुझे. उन के अलावा मैं कुछ सोच भी नहीं सकती. अमूमन बीवियां या पति भी यही कहते हैं. हां, अगर वह ऐसा कह देती तो यह जो थोड़ीबहुत नजदीकी बढ़ रही है वह भी खत्म हो जाती.

लेकिन उस से बात करने के बाद, उसे जानने के बाद एक बात हुई थी. वह मुझे कहीं से भी वैसी नहीं लग रही थी जैसा सब कहते थे. पहली बार लगा संपदा मेरे लिए जिस्म के अलावा कुछ और भी है. क्या मेरी राय बदल रही थी?

औफिस की ओर से न्यू ईयर पार्टी रखी गई थी. संपदा गजब की सुंदर लग रही थी. लो कट ब्लाउज के साथ गुलाबी शिफौन की साड़ी पहनी थी. उस ने जिन भी पी थी शायद. मेरी सोच फिर डगमगा सी गई. अजीब सी खुशी भी हो रही थी. एक उत्तेजना भी थी. यह तो बहुत बाद में जाना कि डांस करने, हंसने, पुरुषों से हाथ मिलाने से औरत बदचलन नहीं हो जाती, अगली सुबह संपदा फिर वैसी की वैसी. पहले जैसी थोड़ी सोबर, थोड़ी चंचल.

चाय पीते हुए मैं ने उस से कहा, ‘‘कल तुम बहुत खूबसूरत लग रही थीं. मैं ने पहली बार किसी औरत को इतना खुल कर हंसते व डांस करते देखा था. कुछ खास है तुम में.’’

उस ने आंखें फैलाते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें डांस करते हुए ग्रेसफुल लगी? वैरी स्ट्रेज, बट दिस इज ए नाइस कौंप्लिमैंट. मैं तो उम्मीद कर रही थी कि आज सुनने को मिलेगा जानेमन कल बहुत मस्त लग रही थी या क्या चीज है यार यह औरत भी?’’

उस की हंसी नहीं रुक रही थी. अब मैं कैसे कहूं कि मैं भी उन्हीं मर्दों में से एक था. चीज तो मैं भी कहता था उसे.

अगले हफ्ते उस ने टिनी के जन्मदिन पर बुलाया था.

‘‘सुनो, मैं ने सिर्फ तुम्हें ही बुलाया है. मेरा मतलब औफिस में से.’’

मेरी उत्सुकता चौकन्नी हो गई थी. उस की चमकती आंखों में क्या था, मेरे प्रति भरोसा या कुछ और? क्यों सिर्फ मुझे ही बुलाया है? उसे ले कर वैभव से झगड़ा भी कर लिया था.

‘‘क्यों, पटा लिया तितली को?’’ कितने गंदे तरीके से कहा था उस ने.

‘‘किस की और क्या बात कर रहे हो?’’

‘‘उस की, जिस से आजकल बड़ी छन रही है. वही जिस ने सिर्फ तुम्हें दावत दी है. गजब की चीज है न.’’

बस बात बढ़ी और अच्छेखासे झगड़े में बदल गई. मैं यह सब नहीं चाहता था न ही कभी मेरे साथ यह सब हुआ था. खुद पर ही शर्म आ रही थी मुझे. मैं सोचता रहा, हैरान होता रहा कि ये सब क्या हो गया? क्यों बुरा लगा मुझे? खैर, इन सारी बातों के बावजूद मैं गया था. उस ने बताया कि इस साल टिनी 15 साल की हो जाएगी. मेरी आंखों के सामने मेरी बेटी का चेहरा आ गया. वह भी तो इसी उम्र की है. मैं ने देखा टिनी की दोस्तों के अलावा मैं ही आमंत्रित था. अच्छा भी लगा और अजीब भी. थोड़ी देर बाद पूछा था मैं ने, ‘‘टिनी के पापा कहां हैं?’’

‘‘हम अलग हो चुके हैं. उन्होंने दूसरी शादी कर ली है. मैं अपनी बिटिया के साथ रहती हूं.’’

कायदे से, अपनी मानसिकता के हिसाब से तो मुझे यह सोचना चाहिए था कि तलाकशुदा औरत और ऐसे रंगढंग? कहीं कोई दुखतकलीफ नजर नहीं आती. ऐसे रहा जाता है भला? जैसे कि तलाकशुदा या विधवा होना कोई कुसूर हो जाता है और ऐसी औरतों को रोतेबिसूरते ही रहना चाहिए. लेकिन यह जान कर पहली बात मेरे मन में आई थी कि तभी इतना आत्मविश्वास है. आज के वक्त में अकेले रह कर अपनी बच्ची की इतनी सही परवरिश करना वाकई सराहनीय बात है. वह मुझे और ज्यादा अच्छी लगने लगी, बल्कि इज्जत करने लगा मैं उस की. एक और बात आई मन में कि ऐसी खूबसूरत और अक्लमंद बीवी को छोड़ने की क्या वजह हो सकती है?

अब मैं उस के अंदर की संपदा तलाशने में लग गया. उस के जिस्म का आकर्षण खत्म तो नहीं हुआ था, पर मैं उस के मन से भी जुड़ने लगा था. मेरी आंखों की भूख, मेरे जिस्म की उत्तेजना पहले जैसी नहीं रही. हम काफी करीब आते गए थे. मैं कभीकभी उस के घर भी जाने लगा था. उस ने भी आना चाहा था पर मैं टालता रहा. अब उसे ले कर मैं पहले की तरह नहीं सोचता था. मैं उसे समझना चाहता था.

एक शाम टिनी का फोन मोबाइल पर आया,  ‘‘अंकल, मां को बुखार है, आप आ सकते हैं क्या?’’

कई दिन लग गए थे उसे ठीक होने में. मैं ने उस की खूब देखभाल की थी और वह मना भी नहीं करती थी. हम दोनों को ही अच्छा लग रहा था. इस दौरान मैं ने कितनी बार उसे छुआ. दवा पिलाई, सहारा दे कर उठायाबैठाया पर मन बिलकुल शांत रहा.

एक दिन चाय पी कर एकदम मेरे पास बैठ गई. उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कंधे से सिर टिका कर बैठ गई. मैं ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. कभी उस का हाथ तो कभी बाल सहलाता रहा. यह बड़ी स्निग्ध सी भावना थी. तभी मैं उठने लगा तो वह लिपट गई मुझ से. पिंजरे से छूटे परिंदे की तरह. एक अजीब सी बेचैनी दोनों महसूस कर रहे थे. मैं ने मुसकरा कर उस का चेहरा अपने हाथों में लिया और कुछ पल उसे यों ही देखता रहा और फिर धीरे से उसे चूम लिया और घर आ गया.

मैं बदल गया था क्या? सारी रात सुबह के इंतजार में काट दी. सुबह संपदा औफिस आई. बदलीबदली सी लगी वह. कुछ शरमाती सी, कुछ ज्यादा ही खुश. उस के चेहरे की चमक बता रही थी कि उस के मन की कोमल जमीन को छू लिया है मैं ने. मुझे समझ में आ रही थी यह बात, यह बदलाव. उस से मिल कर मैं ने यह भी जाना था कि कोई भी रिश्ता मन की जमीन पर ही जन्म लेता और पनपता है. सिर्फ देह से देह का रिश्ता रोज जन्म लेता है और रोज दफन भी हो जाता है. रोज दफनाने के बाद रोज कब्र में से कोई कब तक निकालेगा उसे. इसलिए जल्द ही खत्म हो जाता है यह…

कितनी ठीक थी यह बात, मैं खुद ही मुग्ध था अपनी इस खोज से. फिर मन से जुड़ा रिश्ता देह तक भी पहुंचा था. कब तक काबू रखता मैं खुद पर. अब तो वह भी चाहती थी शायद… स्त्री को अगर कोई बात सब से ज्यादा पिघलाती है, तो वह है मर्द की शराफत. हां, अपनी जज्बाती प्रकृति के कारण कभीकभी वह शराफत का मुखौटा नहीं पहचान पाती.

उस का बदन तो जैसे बिजलियों से भर गया था. अधखुली आंखें, तेज सांसें, कभी मुझ से लिपट जाती तो कभी मुझे लिपटा लेती. यहांवहां से कस कर पकड़ती. संपदा जैसे आंधी हो कोई या कि बादलों से बिजली लपकी हो और बादलों ने झरोखा बंद कर लिया हो अपना, आजाद कर दिया बिजली को. कैसे आजाद हुई थी देह उस की. कोई सीपी खुल गई हो जैसे और उस का चमकता मोती पहली बार सूरज की रोशनी देख रहा हो. सूरज उस की आंखों में उतर आया और उस ने आंखें बंद कर लीं. जैसे एक मोती को प्रेम करना चाहिए वैसे ही किया था मैं ने. धीरेधीरे झील सी शांत हो गई थी वह. पर मैं जानता था कि वह अब इतराती रहेगी, कैद नहीं रह सकती…

इस वक्त तो मुझे खुश होना चाहिए था कि संपदा की देह मेरी मुट्ठी में है. उस के जिस्म की सीढि़यां चढ़ कर जीत हासिल की थी. ये मेरे ही शब्द थे शुरूशुरू में. पर नहीं, कुछ नहीं था ऐसा. संपदा बिलकुल भी वैसी नहीं थी. जैसा उस के बारे में कहा जाता था. यह रिश्ता तो मन से जुड़ गया था. मैं सोच रहा था कि क्यों पुरुष सुंदर औरत को कामुक दृष्टि से ही देखता है और जब स्त्री उन नजरों से बचने के लिए खुद को आवरण के नीचे छिपा लेती है तब वही पुरुष समाज उसे पा न सकने की कुंठा में कैसेकैसे बदनाम करता है. संपदा के साथ भी यही हुआ था. पर जब मैं ने उस के भीतर छिपी सरल, भोली और पवित्र औरत को जाना तब मैं मुग्ध था और अभिभूत भी…

संपदा ने धीरे से कहा, ‘‘अब तक तो खुले आसमान के नीचे रह कर भी उम्रकैद भुगत रही थी मैं. सारी खुशियां, सारी इच्छाएं इतने सालों से पता नहीं देह के किस कोने में कैद थीं? तुम्हारा ही इंतजार था शायद…’’

और यही संपदा जिस ने मुझे सिखाया कि दोस्ती के बीजों की परवरिश कैसे की जाती है वह जा रही थी.

उसी ने कहा था कि इस परवरिश से मजबूत पेड़ भी बनते हैं और महकती नर्मनाजुक बेल भी.

‘‘तो तुम्हारी इस परवरिश ने पेड़ पैदा किया या फूलों की बेल?’’ पूछा था मैं ने.

यही संपदा जो मेरे वक्त के हर लमहे में है. अब नहीं होगी मेरे पास. उस के पास आ कर मैं ने मन को तृप्त होते देखा है… मर्द के मन को देह कैसे आजाद होती है जाना… पता चला कि मर्द कितना और कहांकहां गलत होता है.

मुझे चुपचुप देख कर उस की दोस्त मीता ने एक दिन कहा, ‘‘उस से क्यों कट रहे हो पृथक? उसे क्यों दुख पहुंचा रहे हो? इतने सालों बाद उसे खुश देखा तुम्हारी वजह से. उसे फिर दुखी न करो.’’

दोस्ती का बरगद बन कर मैं बाहर आ गया अपने खोल से. मैं ने ही उस का पासपोर्ट, वीजा बनवाया. मकान व सामान बेचने में उस की मदद की. ढेरों और काम थे, जो उसे समझ नहीं आ रहे थे कि कैसे होंगे. मुझे खुद को भी अच्छा लगने लगा. वह भी खुश थी शायद…

उस दिन हम बाहर धूप में बैठे थे. टिनी इधरउधर दौड़ती हुई पैकिंग वगैरह में व्यस्त थी. संपदा चाय बनाने अंदर चली गई. बाहर आई तो वह एक पल मेरी आंखों में बस गया. दोनों हाथों में चाय की ट्रे पकड़े हुए, खुले बाल, पीली साड़ी में बिलकुल उदास मासूम बच्ची लग रही थी, पर साथ ही खूबसूरत और सौम्य शीतल चांदनी के समान.

‘‘बहुत याद आओगे तुम,’’ चाय थमाते हुए वह बोली थी.

मैं मुसकरा दिया. वह भी मुसकरा रही थी पर आंखें भरी हुई थीं दर्द से, प्यार से… कई दिन से उस की खिलखिलाहट नहीं सुनी थी. अच्छा नहीं लग रहा था. क्या करूं कि वह हंस दे?

चाय पीतेपीते मैं बोला, ‘‘चलो संपदा छोटी सी ड्राइव पर चलते हैं.’’

‘‘चलो,’’ वह एकदम खिल उठी. अच्छा लगा मुझे.

‘‘टिनी, चलो घूमने चलें,’’ मैं ने उसे बुलाया.

‘‘नहीं, अंकल, आप दोनों जाएं. मुझे बहुत काम है… रात को हम इकट्ठे डिनर पर जा रहे हैं, याद है न आप को?’’

‘‘अच्छी तरह याद है,’’ मैं ने कहा. फिर देखा था कि वह हम दोनों को कैसे देख रही थी. एक बेबसी सी थी उस के चेहरे पर. थोड़ा आगे जाने पर मैं ने संपदा का हाथ अपने हाथ में लिया, तो वह लिपट कर रो ही पड़ी.

मैं ने गाड़ी रोक दी, ‘‘क्या हो गया संपदा?’’

उस के आंसू रुक ही नहीं रहे थे. फिर बोली, ‘‘मुझे लगा कि तुम अब अच्छी तरह नहीं मिलोगे, ऐसे ही चले जाओगे. नाराज जो हो गए हो, ऐसा लगा मुझे.’’

‘‘तुम से नाराज हो सका हूं मैं कभी? नहीं रानी, कभी नहीं,’’ मैं जब उसे बहुत प्यार करता था तो यही कह कर संबोधित करता था, ‘‘प्रेम में नाराजगी तो होती ही नहीं. हां, रुठनामनाना होता है. मैं क्या तुम से तो कोई भी नाराज नहीं हो सकता. हां, उदास जरूर होंगे सभी. जरा जा कर तो देखो दफ्तर में, बेचारे मारेमारे फिर रहे हैं.’’

वह मुसकरा दी.

‘‘अब अच्छा लग रहा है रोने के बाद?’’ मैं ने मजाक में पूछा तो वह हंस दी.

‘‘संपदा तुम ऐसे ही हंसती रह… बिलकुल सब कुछ भुला कर समझीं?’’

उस ने बच्ची की तरह हां में सिर हिलाया. फिर बोली, ‘‘और तुम? तुम क्या करोगे?’’

‘‘मैं तुम्हें अपने पास तलाश करता रहूंगा. रोज बातें करूंगा तुम से. वैसे तुम कहीं भी चली जाओ, रहोगी मेरे पास ही… मेरे दिल का हिस्सा हो तुम… मेरा आधा भाग… तुम से मिल कर मुझ में मैं कहां रहा? तुम मिली तो लगा अज्ञात का निमंत्रण सा मिला मुझे…’’

‘‘और क्या करोगे?’’

‘‘और परवरिश करता रहूंगा उन रिश्तों की, जिन की जड़ें हम दोनों के दिलों में हैं.’’

‘‘एक गूढ़ अवमानना हो, कुछ जाना है कुछ जानना है. आदर्श हो, आदरणीय हो, चाहत हो स्मरणीय हो.’’

वह चुप रही.

मैं ने संपदा से कहा, ‘‘जानती हो, मैं तुम्हारे जाने के खयाल से ही डर गया था. प्यार में जितना विश्वास होता है उतनी ही असुरक्षा भी होती है कभीकभी… रोकना चाहता था तुम्हें… इतने दिनों तक घुटता रहा पर अब… अब सब ठीक लग रहा है…’’

संपदा शांत थी. फिर जैसे कहीं खोई सी बोली, ‘‘विवाहित प्रेमियों की कोई अमर कहानी नहीं है, क्योंकि विवाह के बाद काव्य खो जाता है, गणित शेष रहता है. गृहस्थी की आग में रोमांस पिघल जाता है. यदि सचमुच किसी से प्रेम करते हो, तो उस के साथ मत रहो. उस से जितना दूर हो सके भाग जाओ. तब जिंदगी भर आप प्रेम में रहोगे. यदि प्रेमी के साथ रहना ही है, तो एकदूसरे से अपेक्षा न करो. एकदूसरे के मालिक मत बनो, बल्कि अजनबी बने रहो. जितने अजनबी बने रहोगे उतना ही प्रेम ताजा रहेगा. यह जान लो कि रोमांस स्थाई नहीं होता. वह शीतल बयार की तरह है, जो आती है तो शीतलता का अनुभव होता है और फिर वह चली जाती है. प्रेम की इस क्षणिकता के साथ रहना आ जाए तो तुम हमेशा प्रेम में रहोगे.’’

मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया. वह मुसकरा दी.

संपदा ने कार रोकने के लिए कहा. फिर बोली, ‘‘हर रिश्ते की अपनी जगह होती है… अपनी कीमत… जो तुम्हें पहले लगा वह भी ठीक था, जो अब लग रहा है वह भी ठीक है. पर एक बात याद रखना यह प्यार की बेचैनी कभी खत्म नहीं होनी चाहिए. मुझे पाने की चाह बनी रहनी चाहिए दिल में… क्या पता संपदा कब आ टपके तुम्हारे चैंबर में… कभी भी आ सकती हूं अपना हिसाबकिताब करने,’’ और वह खिलखिला कर हंस दी, ‘‘पृथक, शुद्ध प्रेम में वासना नहीं होती, बल्कि समर्पण होता है. प्रेम का अर्थ होता है त्याग. एकदूसरे के वजूद को एक कर देना ही प्रेम है… प्रेम को समय नहीं चाहिए. उसे तो बस एक लमहा चाहिए… उस अधूरे लमहे में युगों की यात्रा करता है और वह लमहा कभीकभी पूरी जिंदगी बन जाता है.’’

मैं उसे एकटक देखता रह गया…

जब पैरेंट्स लव मैरिज के लिए न हो तैयार, तो इस शादी के लिए मनाएं कैसे?

शादी एक खूबसूरत रिश्ता है जो प्यार और भरोसे की नींव पर टिका रहता है. जब यह शादी दो प्यार करने वाले आपस में करते हैं तो जिंदगी को सारे रंग मिल जाते हैं. अपने प्रेमी के साथ उम्र गुजारने का अहसास ही अलग होता है. मगर अक्सर समाज, परिवार और खासकर रिश्तेदार प्यार के मामले में थोड़े कंजर्वेटिव हो जाते हैं. जहां युवा अपने साथी को चुनने और प्यार के आसमान में ऊंची उड़ान भरने की आज़ादी चाहते हैं वहीं उनके माता पिता अक्सर खुद को समाज, परंपराओं, जाति ,धर्म , हैसियत जैसे मानदंडों में फंसा हुआ पाते हैं और यहीं से असली टकराहट शुरू होती है. ऐसे में सवाल उठता है कि पैरेंट्स को इस शादी के लिए कैसे मनाया जाए;

आप किसी से दिल से प्यार करती हैं और उस के साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहती हैं. वह भी आप से बहुत प्यार करता है मगर आप के पेरेंट्स इस प्यार के खिलाफ हैं और वह नहीं चाहते कि आप उस लड़के से शादी करें. पैरेंट्स अपने हिसाब से आप की शादी कराना चाहते हैं. ऐसे में आप क्या करेंगी? चुपचाप अपने सपनों का गला घोटकर पैरेंट्स की बात मान लेंगी या फिर पैरेंट्स को छोड़ कर उस लड़के के साथ अपना घर बसाएंगी?

जैसा कि हम जानते हैं आज के समय में लड़कियां अपने सपनों को और अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीना चाहती है. ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जो अपनी जिंदगी के बड़े फैसले खुद करती हैं. उन्हें अगर पैरेंट्स की बात सही नहीं लगती तो वे अपने लिए आवाज उठाती हैं. कई दफा ऐसी हालत में लड़कियों को अपने पैरेंट्स का घर छोड़ने का फैसला लेना पड़ता है. मगर जो भी हो कोई बड़ा फैसला लेने से पहले अपनी तरफ से पैरेंट्स को इस शादी के लिए मनाने कर प्रयास जरूर करना चाहिए.

किन कारणों से तैयार नहीं होते पेरेंट्स

परिवार – लव मैरिज के लिए मना परिवार के कारण भी होता है. लड़की या लड़के के परिवार का कोई आपराधिक रिकॉर्ड रहा हो या फिर उन्हें गुंडागर्दी के लिए जाना जाता हो तो प्रेम विवाह में अड़चन आ सकती है.

अलग जाति और धर्म – भारत में शादी से पहले जाति और धर्म पर परिवार जरूर गौर करती है. धार्मिक ठेकेदारों और धर्मग्रंथों ने लोगों के दिलों में अलग धर्म या जाति  के लोगों के प्रति कड़वाहट और वैमनस्य की जड़ें इतनी गहरी खोद दी हैं कि ज्यादार लोग एकदूसरे से ही नफरत करने लगे हैं. ऊंच नीच और छुआछूत की दीवारें मजबूती से खड़ी कर दी गईं हैं जिन का खामियाजा युवा प्रेमियों को भुगतना पड़ता है. ऐसे में अलग धर्म और जाति के व्यक्ति से रिश्ते के लिए पेरेंट्स बिल्कुल राजी नहीं होते हैं.

समाज का डर – कई परिवार वालों के लिए अपने बच्चे की खुशी ही सबसे ज्यादा मायने रखती है इसलिए वो जाति, धर्म और परिवार के इतिहास के बारे में ज्यादा नहीं सोचते. लेकिन समाज का डर उनके मन में बना रहता है. सामाजिक बहिष्कार का डर और बदनामी के डर से वो अपने बच्चे के प्रेम विवाह के खिलाफ हो जाते हैं.

आर्थिक स्थिति – अमीर परिवार के लड़के या लड़की खुद से कम पैसे वाले परिवार की लड़की या लड़के से प्यार करता है तो भी पैरेंट्स का लव मैरिज के लिए मानना मुश्किल हो जाता है.

उम्र का अंतर – प्रेम विवाह में एक मुश्किल उम्र भी है. अगर आपकी उम्र का अंतर प्रेम विवाह करने वाले से ज्यादा या कम है तो भी माता-पिता को प्रेम विवाह के लिए राजी करना कठिन हो सकता है.

प्रेम विवाह के लिए अपने पैरेंट्स को कैसे करें तैयार

कुछ समय पहले ‘2 स्टेट्स’ फिल्म आई थी जो चेतन भगत द्वारा लिखित उपन्यास  ‘2 स्टेट्स’ पर आधारित थी. इस फिल्म में भी इसी समस्या को उठाया गया था. आलिया भट्ट और अर्जुन कपूर दो अलग राज्य, अलग संस्कृति और भाषा वाले घरों से थे. आलिया साउथ इंडियन तो अर्जुन पंजाबी. दोनों को अपने पेरेंट्स को मनाने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े थे मगर अंत में दोनों परिवारों ने इस रिश्ते को मंजूरी दे दी थी. आप भी कोशिश करें तो संभव है कि आप के पेरेंट्स शादी के लिए तैयार हो जाएं मगर इस के लिए कोशिशें आप को करनी होंगी. अपने माता-पिता को प्रेम विवाह के लिए मनाने के कुछ टिप्स और ट्रिक्स ये हैं;

आर्थिक स्वावलंबन जरूरी

सब से पहले अगर आप आर्थिक रूप से शादी करने मैं सक्षम हैं तो आप को माँ बाप को मनाने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी. अक्सर पेरेंट्स किसी बेरोजगार या निठल्ले इंसान को अपनी बेटी देने से कतराते हैं. लड़का कामयाब है तो कोई माँ बाप मना नहीं करेंगे लेकिन अगर लड़का बेरोजगार है कमाता नहीं है तो लड़की वाले रिस्क नहीं उठाना चाहेंगे और आप जैसे तैसे मना भी लेंगे तो भविष्य मैं आप दोनों को आर्थिक संकट से जूझना पड़ेगा. हर माँ बाप चाहते है कि लड़की अच्छे घर मैं जाये उसे आर्थिक संकट का सामना ना करना पड़े. आप दोनों पहले अपना करियर बनाये ताकि आप पूरी हिम्मत के साथ पेरेंट्स के आगे शादी की बात रख सकें.

अपने रिश्ते को लेकर आश्वस्त हो जाएं

प्रेम विवाह जैसे बड़े फैसले के बारे में अपने मातापिता से बात करने से पहले अपने रिश्ते के बारे में पहले से सुनिश्चित होना बहुत जरूरी है. अपने साथी से बात करें और पूछें कि क्या आप दोनों अपने रिश्ते और शादी के बारे में एक ही राय रखते हैं. अगर आप में से कोई भी कमिटमेंट से डरता है तो यह आपके माता पिता को मनाने की सारी कोशिशों को बेकार कर सकता है.

सही समय देख कर अपने मातापिता को उस ख़ास व्यक्ति के बारे में बताएं

अपने साथी को अपने घर बुलाकर और उन्हें अपने दोस्त के रूप में पेश करके अपने माता पिता को प्रेम विवाह के अपने विचार के लिए तैयार करें. त्यौहार और विशेष अवसर हमेशा ऐसे मिलन के लिए मददगार होते हैं. छोटी छोटी मुलाकातें आपके माता पिता और साथी को एक-दूसरे से घुलने मिलने का समय देंगी जिससे असहजता दूर होगी. एक बार जब वे एक दूसरे के साथ घुल मिल जाएंगे तो उनके बीच की उलझन को दूर करना आसान हो जाएगा.

सफल प्रेम विवाह के उदाहरण दें

अगर आप अपने मातापिता को मनाना चाहते हैं तो उन्हें सफल प्रेम विवाह के जीवंत उदाहरण दिखाएं. आप के जिस दोस्त ने ऐसा किया है उस के बारे में बताएं. उन्हें समझाएं कि जब आप विवाह के बारे में सोचते हैं तो आपके लिए सबसे ज़्यादा क्या मायने रखता है जैसे कि उनका स्वभाव, उदारता, शिक्षा, योग्यता, अनुकूलता इत्यादि.

अपने माता पिता के आगे अपनी परिपक्वता साबित करें

अपने माता पिता के लिए हम हमेशा बच्चे ही रहेंगे चाहे हम कितने भी बड़े हो जाएँ. उन्हें यह साबित करने के लिए कि आप अब बच्चे नहीं हैं और परिवार के लिए सही निर्णय और जिम्मेदारी ले सकते हैं. पारिवारिक समस्याओं में शामिल हों और उन्हें हल करने का प्रयास करें. ज़िम्मेदारी और समझदारी से काम लें. ऐसे निर्णय लें जो आपकी परिपक्वता को दर्शाते हों. इससे आपको फायदा होगा और आपके माता पिता को लगेगा कि आप काफी परिपक्व हैं और अपने जीवन के लिए अच्छे निर्णय ले सकते हैं.

अपने माता पिता की बात सुनें

यदि आप चाहते हैं कि आपके मातापिता आपकी बात सुनें तो उन्हें भी अपने विचार आपके साथ साझा करने का मौका दें. उनके विचारों और चिंताओं को सुनें. उन्हें जल्दबाजी में न लें उन्हें पूरी स्थिति को समझने के लिए कुछ समय दें. तार्किक शर्तों पर सहमत होने का प्रयास करें.

उन्हें अपने साथी के अच्छे गुणों के बारे में बताएं

उन्हें अपने साथी के आपके लिए सबसे अच्छे होने के पीछे के कारणों को बताएँ. रिश्ते के प्रति उस की ईमानदारी और कमिटमेंट का जिक्र करें. साथी के सर्वोत्तम गुणों के बारे में बताते हुए समझाएं कि आप और आपका साथी हर तरह से एक-दूसरे के अनुकूल क्यों हैं भले ही आपकी जाति या धर्म अलग हो.

दोस्तों या रिश्तेदारों से मदद मांगें

अपने माता पिता को प्रेम विवाह के लिए राजी करने के लिए आपको किसी ऐसे व्यक्ति की मदद की ज़रूरत है जिसे वे पसंद करते हों और जिस पर भरोसा करते हों. यह आपके परिवार/रिश्तेदारों में से कोई हो . यह आपका कोई दोस्त हो सकता है जो उन्हें बहुत प्रिय हो या आपके परिवार का कोई बुजुर्ग जिसका वे बहुत सम्मान करते हों और जिसे वे ‘ना’ नहीं कह सकते.

कम से कम एक अभिभावक को समझाने का प्रयास करें

यह ध्यान देने और देखने का समय है कि आपके माता पिता में से कौन आप से अधिक ओपन और फ्रेंडली हैं ताकि वे यह माता-पिता आपके चुने हुए साथी के साथ आपके विवाह में मध्यस्थ होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें. अगर आपको लगता है कि आपके माता पिता में से किसी एक को आपके प्रेम विवाह के लिए मनाना आसान है तो उस पैरेंट पर ज्यादा ध्यान दें और उन्हें पूरी तरह से मनाने की कोशिश करें. उन को अपने साथी से मिलने दें और एक-दूसरे को थोड़ा जानने दें. एक बार जब वह राजी हो जाएं तो दूसरे पैरेंट भी जल्द राजी हो ही जाएंगे.

दोनों परिवारों की मीटिंग करवाएं

इससे पहले कि आप दोनों परिवारों के बीच मुलाकात तय करें अपने ससुराल वालों से मिलना, उनकी परंपराओं, संस्कृतियों और मूल्यों के बारे में जानने की कोशिश करना और अपने परिवार की परंपराओं, पारिवारिक पृष्ठभूमि और संस्कृतियों के साथ-साथ अपने माता-पिता के बारे में कुछ विवरण साझा करना ज़रूरी है. इस के बाद दोनों परिवारों को भी मिलाने की कोशिश करें.

 
पैरेंट्स पर दबाव बनाएं

पेरेंट्स पर दबाव बनाने के लिए आप तीन दिन का भूख हड़ताल कर सकती हैं. अपने बच्चे को भूखा देना किसी भी पेरेंट्स के लिए आसान नहीं. इसी तरह आप पेरेंट्स से कह सकती हैं कि इस लड़के से शादी न हुई तो आप किसी और से भी कभी शादी नहीं करेंगी. आप पेरेंट्स से बातचीत करना बंद कर सकती हैं. आप घर से निकलना बंद कर सकती हैं. आप उन पर दबाव डालने के लिए अपनी सहेलियों को बुला सकती हैं.

जल्दबाजी में फैसला न लें

जब आपके माता पिता लाख कोशिशों के बावजूद आप के रिश्ते का समर्थन नहीं करते हैं तो धैर्य न खोएं. यह एक कठिन स्थिति है लेकिन याद रखें कि जल्दबाजी में निर्णय न लें. इस निष्कर्ष पर न पहुंचे कि आपके माता पिता सही हैं और तुरंत अपने साथी से रिश्ता तोड़ दें या तुरंत ही भाग कर शादी करने का फैसला ले लें. हर पहलू पर अच्छे से विचार करें. अपने माता पिता को स्थिति के अनुकूल ढलने के लिए कुछ समय दें. यह उनके लिए भी एक बड़ी बात है इसलिए थोड़ा धैर्य रखना बहुत मददगार हो सकता है. उन्हें आपके नजरिए से चीजों को समझने में कुछ महीने लग सकते हैं. इस दौरान बातचीत करते रहने की कोशिश करें और उन्हें अहसास दिलाएं कि आपका रिश्ता आपके लिए महत्वपूर्ण और सार्थक है.

सुनिश्चित करें कि आप आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं

अगर आप प्रेमी के साथ शादी करने का फैसला करते हैं तो यह जरूरी है कि आप और आपका साथी दोनों ही खुद का खर्च उठाने के लिए तैयार हों. कोई भी फैसला करने से पहले अपनी वित्तीय स्थिति का आकलन करने के लिए कुछ समय निकालें. अगर आप किराए और राशन जैसे बुनियादी खर्च उठाने में असमर्थ हैं तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि आप शादी के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं. अपने साथी के साथ उनकी वित्तीय स्थिति के बारे में ईमानदारी से बातचीत करें. यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि शादी के बाद आप घर खर्च कैसे मैनेज करेंगे.  क्योंकि जब आप भाग कर शादी करते हैं तो पेरेंट्स का आर्थिक सहयोग नहीं मिलेगा. शादी के बाद पैसे के लिए पार्टनर से झगड़े हों और आप टूट जाएं या रिश्ता संभाल न पाएं उस से बेहतर है कि शादी का फैसला तभी लें जब आप एक किराए का घर और जीवन के संभावित  खर्चे उठाने में अच्छी तरह सक्षम हों.

खुद को सही साबित करें

अगर आप के पेरेंट्स अंत तक नहीं मानते और आप को भाग कर या उन की नाराजगी के साथ शादी करनी पड़ती है तो भी निराश न हों. सही समय का इन्तजार करें और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए राजी करने का प्रयास करते रहे. दो एक साल में जब वे देखेंगे कि आप आत्मनिर्भर और खूबसूरत और  जिंदगी जी रही हैं, आप को कोई परेशानी नहीं और आप दोनों ने मिलकर अपनी जिंदगी अच्छी तरह मैनेज कर ली है तो धीरे धीरे उन का रुख भी बदलता जाएगा. उन्हें यह अहसास दिलाएं कि आप का फैसला सही था और आप पार्टनर के साथ बहुत खुश और संतुष्ट हैं. आप की गृहस्थी की गाड़ी बिना किसी परेशानी अच्छे से चल रही है और वाकई आप का पार्टनर आप का बहुत ख़याल रखता है तो कहीं न कहीं आप के पेरेंट्स का दिल भी पिघलने लगेगा और वे ज्यादा समय तक आप से मुंह मोड़ कर नहीं रह पाएंगे.

जब दिल खुश हो तो खुलकर नाच भी लें ….

खुशी जाहिर करने के लिए कई तरीके होते हैं जैसे खुशी के मारे चिल्ला उठना, सामने वाले को जोर से गले लगाना मिठी मार लेना, खुशी के मारे उछलना आदि… लेकिन कई बार ऐसा मौका भी होता है कि जब हम खुशी के मारे नाचने लगते हैं. क्योंकि जब कई बार हम बहुत खुश होते हैं तो नाचने का मन भी कर उठना है. हम तो फिर भी इंसान हैं यहां तक की मोर पक्षी भी जब खुश होता है तो अपने पंख फहराकर नाचने लगता है. तो फिर इंसान क्यों नहीं खुशी जाहिर करने के लिए खुलकर नाच सकता.

टेंशन भरे माहौल में जरा सी भी खुशी सेलिब्रैट करने का मन होता है तो ऐसे में डांस आए या ना आए डांस करना तो बनता है. क्योंकि यह नाच आप किसी को दिखाने के लिए नहीं कर रहे हैं बल्कि अपनी खुशी जाहिर करने के लिए कर रहे हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपको डांस आता है कि नहीं आता है.
यकीन मानिए अगर आपको डांस ना आते हुए भी अगर आप मस्ती में आडाटेढ़ा भी नाचते हैं तो देखने वाले को आपका डांस मजेदार लगता है क्योंकि उस डांस में लोग आपकी मस्ती और खुशी देखते हैं ना की परफेक्ट स्टेप्स. कई लोगों को तो ऐसा ही डांस ज्यादा पसंद आता है जिसमें मस्ती खुशी मासूमियत और बिंदासपना ज्यादा हो क्योंकि ज्यादातर लोग ऐसा ही डांस करते हैं जिसमें परफेक्शन नहीं मस्ती होती है.

बौलीवुड में भी कई ऐसे खतरनाक आढाटेढ़ा डांस करने वाले हीरोज हैं . जिनको डांस का एबीसीडी ठीक से नहीं आता लेकिन उनका डांस सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. पेश है इसी पर एक नजर….

बौलीवुड के जाने माने खतरनाक डांस करने वाले वह हीरोज जिनका डांस मनोरंजन से भरपूर है….
बौलीवुड में कई ऐसे हीरोज है जिनसे खतरनाक स्टंट कराना आसान है लेकिन डांस करवाना उतना ही मुश्किल है. इनमे सबसे पहला नाम आता है हैंडसम हीरो धर्मेंद्र का. धर्मेंद्र पाजी के डांस स्टेप्स इतने मजेदार हैं की फिल्म इंडस्ट्री से लेकर आम लोगों तक हर कोई उनका डांस स्टाइल करना पसंद करता है.

लेकिन अगर धर्मेंद्र से डांस करवाने की बात करें तो वह बिल्कुल वैसा ही है जैसे शेर के गले में घंटी बांधना. लिहाजा फिल्म प्रतिज्ञा की शूटिंग के दौरान जब धर्मेंद्र को मैं जट यमला पगला दीवाना गाने के लिए कोरियोग्राफर ने स्टेप्स सिखाने की कोशिश की तो उसके पसीने छूट गए. क्योंकि चारपांच घंटे में भी धर्मेंद्र एक भी स्टेप नहीं सीख पाए थे. ऐसे में तंग आकर फिल्म के डायरेक्टर ने धर्मेंद्र से कहा आप जैसा भी डांस करोगे हम उसका फाइनल टेक कर देंगे. बस आप कैसे भी डांस कर लो इस गाने पर. उसके बाद धर्मेंद्र ने जो कॉमेडी से भरा डांस किया. उसे देखकर वहां मौजूद सब हंस हंस के लोटपोट हो गए. डायरेक्टर ने वादे के अनुसार उसी कॉमेडी डांस को फिल्म में रखा. जिसे देखने के बाद हर कोई हंसता मुस्कुराता नजर आया, और धर्म जी का यह डांस सभी के बीच लोकप्रिय हो गया.

धर्म जी की तरह ही सनी देओल जैकी श्राफ अजय देवगन सुनील शेट्टी सभी ऐसे डांसर हैं जिनको डांस करना कोरियोग्राफर के लिए उतना ही मुश्किल है जितना की भैंस के आगे बीन बजाना. लेकिन बावजूद इसके इन सभी हीरोज के डांस पर आधारित गाने सुपरहिट है. जैसे सुनील शेट्टी का यह जो तेरी पायलों की छम छम है.. सनी देओल का मेरा दिल ले गई कोई कम्मो किधर.. आदि. ऐसे में यह कह सकते हैं कि भले ही इन हीरोज को डांस नहीं आता लेकिन इनका डांस देखकर सबका मूड अच्छा बन जाता है और टैंशन बड़े माहौल में भी हंसी निकल जाती है. ऐसे ही डांसरों में एक नाम आज के बॉलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान का भी आता है जो अपने जींस पैंट की बेल्ट पकड़कर एक ही स्टेप करते हुए पूरा डांस कर लेते हैं. इतना ही नहीं मुन्नी बदनाम हुई गाने में सलमान खान के डांस स्टेप बिल्कुल वैसे हैं जैसे उनके शर्ट में बर्फ के टुकड़े डाल दिया हो. लेकिन बावजूद इसके सलमान खान के यही स्टेप्स दर्शकों को न सिर्फ पसंद आते हैं बल्कि वह इसकी नकल भी करते हैं. ऐसे ही डांसरों में एक नाम महानायक अमिताभ बच्चन का भी आता है जिनको ज्यादा डांस करना नहीं आता बस वह एक हाथ उठाकर ही या कमर पर हाथ रख के पूरा डांस कर लेते हैं, फिर चाहे वह डौन फिल्म का गाना खई के पान बनारस वाला गाना हो,या मैं हूं डॉन हो, या जुम्मा चुम्मा दे दे, या आज का शावा शावा गाना ही क्यों ना हो, करीबन हर गाने में अमित जी अपने स्टाइल में हाथ ऊपर करके डांस करते नजर आते हैं और वह डांस सुपरहिट भी होते हैं.

ऐसे में कहने का मतलब यही है कि आप डांस कैसे कर रहे हैं वह इतना जरूरी नहीं है जितना कि डांस किस मस्ती में बिंदास पने के साथ और दिल से कर रहे हैं वह जरूरी है . क्योंकि यह सारे एक्टर जिनको जितना भी डांस आता है वह पूरे दिल से और मस्ती के साथ करते हैं इसीलिए उनके डांस को दर्शकों द्वारा पसंद किया जाता है. ऐसे में अगर आप देखें तो ज्यादातर लोग ऐसा ही डांस करते हैं.जो फुल मस्ती से भरा होता है.

अगर आपको मानसिक और शारीरिक तौर पर स्वस्थ रहना है तो अपने जीवन में डांस करने की आदत को जरूर शामिल करें…

जिस तरह अच्छी सेहत के लिए अच्छा खाना, पौजिटिव सोच, व्यायाम, जरूरी है वैसे ही अपने आप को शारीरिक और मानसिक तौर पर फिट रखने के लिए कम से कम आधा घंटा डांस करना भी बहुत जरूरी है क्योंकि डांस करने से न सिर्फ मन खुश होता है बल्कि शारीरिक तौर पर भी हर अंग में लचक आती है ऐसे में जहां एक उम्र के बाद हमारे शरीर में अकड़न आने लगती है वहीं पर डांस की वजह से फिटनेस बढ़ने लगती है. यही वजह है कि आजकल जुंबा और फ्रीस्टाइल डांस सिखाने के तौर पर डांस एक्सरसाइज की दो तीन महीने की क्लासेस होती है. इसके अलावा भी अगर आप शादी ब्याह या डांस पार्टी में अच्छा डांस करने के शौकीन है तो दो-तीन महीने का शौर्ट टर्म कोर्स होता है जिसमें आपको डांस के कुछ अच्छे स्टेप्स सिखा दिए जाते हैं जो आप कहीं भी कर सकते हैं. यहां तक की जो मरीज व्हीलचेयर पर बैठकर डांस करना चाहते हैं उन्हें भी डांस सिखाने की स्पेशल ट्रेनिंग होती है जो सीख कर वह व्हीलचेयर पर भी अपनी खुशी जाहिर करने के लिए डांस कर सकते हैं.

ऐसे मैं यही निष्कर्ष निकलता है कि अगर आपको खुश रहना है पौजिटिव सोच रखनी है तो अच्छा संगीत और नाच गाना अपनी जिंदगी में जरूर शामिल करें. ठीक वैसे ही जैसे मस्ती खोरों का कहना है मस्त रहो मस्ती में आग लगे बस्ती में. अर्थात जितना भी टैंशन आए अपने बचपन को हमेशा जिंदा रखें और भले आडा टेढ़ा ही सही डांस करके खुश रहें.

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