यादगार: कन्हैयालाल की क्या थी आखिरी इच्छा

पिछले कुछ महीने से बीमार चल रहे कन्हैयालाल बैरागी को गांव में उन के साथ रह रहा छोटा बेटा भरतलाल पास के शहर के बड़े अस्पताल में ले गया. सारी जरूरी जांचें कराने के बाद डाक्टर महेंद्र चौहान ने उसे अलग बुला कर समझाते हुए कहा, ‘‘देखो बेटा भरत, आप के पिताजी की बीमारी बहुत बढ़ चुकी है और इस हालत में इन को घर ले जा कर सेवा करना ही ठीक होगा. वैसे, मैं ने तसल्ली के लिए कुछ दवाएं लिख दी हैं. इन्हें जरूर देते रहना.’’

डाक्टर साहब की बात सुन कर भरत रोने लगा. आंसू पोंछते हुऐ उस ने अपनेआप को संभाला और फोन कर के भाईबहनों को सारी बातें बता कर इत्तिला दे दी.

इस बीच कन्हैयालाल का खानापीना बंद हो गया और सांस लेने में भी परेशानी होने लगी. दूसरे दिन बीमार पिता से मिलने दोनों बेटे रामप्रसाद और लक्ष्मणदास गांव आ गए. बेटियां लक्ष्मी और सरस्वती की ससुराल दूर होने से वे बाद में आईं.

कन्हैयालाल के दोनों बेटे सरकारी नौकरियो में बड़े ओहदों पर थे, जबकि  छोटा बेटा गांव में ही पिता के पास रहता था. बेटियों की ससुराल भी अच्छे  परिवारों मे थी. शाम होतेहोते कन्हैयालाल ने सब बेटेबेटियों को अपने पास बुला कर बैठाया, सब के सिर पर हाथ फेर कर हांपते हुए रोने लगे, फिर थोड़ी देर बाद वे धीरेधीरे कहने लगे, ‘‘मेरे बच्चो, मुझे लगता है कि मेरा आखिरी वक्त आ गया है. तुम सभी ने मेरी खूब सेवा की. मेरी बात ध्यान से सुनना. मेरे मरने के बाद सब भाईबहन मिलजुल कर प्यार से रहना.‘‘

ऐसा कहते हुए वे कुछ देर के लिए चुप हो गए, फिर थोड़ी देर बाद रूंधे गले से कहने लगे, ‘बच्चो, तुम्हें तो पता ही है कि तुम्हारी मां की आखिरी इच्छा और मेरा सपना पूरा करने के लिए मैं ने यहां गांव में एक मकान  बनाया है, ताकि तुम लोगों को गांव में आनेजाने और ठहरने में कोई परेशानी न हो,‘‘ कहतेकहते अचानक कन्हैयालाल को जोर की खांसी चलने लगी. कुछ दवाएं देने के बाद उन की खांसी रुकी, तो वे फिर कहने लगे, ‘‘बच्चो, ये मकान मिट्टीपत्थर से बना जरूर है, पर याद रखना, ये तुम्हारी मां और मेरी निशानी  है. मैं जानता हूं कि इस मकान की कोई ज्यादा कीमत तो नहीं है, फिर भी मेरी इच्छा है कि तुम लोग इस मकान को मांबाप की आखिरी निशानी मान कर मत बेचना…

‘‘आज तुम सब मेरे सामने ये वादा करोगे कि हम ये मकान कभी नहीं बेचेंगे. तुम वादा करोगे, तभी मैं चैन की सांस ले सकूंगा.‘‘

ऐसा कहते समय कन्हैयालाल ने पांचों बेटेबेटियों के हाथ अपने हाथ में ले रखे थे, वे बारबार कह रहे थे, ‘‘वादा करो मेरे बच्चो, वादा करो कि मकान नहीं बेचोगे.‘‘

लेकिन, किसी ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप मुंह लटकाए बैठे रहे, तभी अचानक कन्हैयालाल को एक हिचकी आई और उन के हाथ से बेटेबेटियों के हाथ छूट गए और वे एक तरफ लुढ़क गए.

कन्हैयालालजी को गुजरे अभी 15 दिन ही हुए हैं. आज उन के मकान के आसपास मकान खरीदने वालों की भीड़ लगी है. मकान की बोली लगाने में  दूर खड़ा एक नौजवान बहुत बढ़चढ़ कर बोली लगा रहा था. सब को ताज्जुब हो रहा था कि मकान की इतनी ज्यादा बोली लगाने वाला ये ऐसा खरीदार कौन है?

गांव के धनी सेठ बजरंगलाल जैन के बेटे ने युवक को इशारा कर के बुलाया और मकान की इतनी ज्यादा कीमत लगाने की वजह पूछी, तो वह बताने लगा, ‘‘मेरा नाम रुखसार खां है. हमारा परिवार भी इसी गांव में रहता था. मेरे वालिद हबीब खां और कन्हैयालाल अंकल दोनों दोस्त थे. उन की दोस्ती इतनी गहरी थी कि आसपास के गांवों में इन की दोस्ती की मिसालें दी जाती थीं.‘‘

‘‘दीपावली पर मिठाइयों की थाली खुद अंकल ले कर हमारे घर आते थे, तो होली पर घर भर को रंगगुलाल लगाना भी नहीं भूलते थे.

‘‘हमारी माली हालत अच्छी नहीं थी. लेकिन, अंकल हर बुरे वक्त में हमारे परिवार के लिए मदद ले कर खडे़ रहते थे.

‘‘मैं पास के शहर अजमेर में एक इलैक्ट्रिकल कंपनी में इंजीनियर हूं. इस गांव के स्कूल से मैं ने 12वीं जमात फर्स्ट डिवीजन में पास की. मैं ने घर वालों से इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग करने की इच्छा जताई, तो घर वालों ने घर  के हालात बताते हुए हाथ खड़े कर दिए. मेरे पास फीस भरने के लिए भी पैसे नहीं थे.

‘‘जब यह बात अंकल को पता चली, तो वे एक थैले में रुपए ले कर आए और मुझे बुला कर सिर पर हाथ फेर कर हिम्मत दिलाते हुए थैला मेरे हाथ मे दे कर कहा, ‘‘जाओ बेटा, अपनी पढ़ाई पूरी करो और इंजीनियर बन कर ही आना.

‘‘कल जब गांव के मेरे एक दोस्त ने कन्हैयालाल अंकल के मकान बिकने और उन के परिवार के बीच बंटवारे के विवाद के साथसाथ अंकल की आखिरी इच्छा के बारे में बताया, तो मैं सारे काम छोड़ कर गांव आ गया.

‘‘आज मैं जो कुछ भी हूं, सिर्फ और सिर्फ अंकल बैरागी की वजह से हूं. अगर वे नहीं होते, तो मैं कहां होता, पता नहीं,‘‘ ये कहतेकहते रुखसार खां फफकफफक कर रोने लगा.

वह रोते हुए फिर बोला, ‘‘इसीलिए आज यह सोच कर आया हूं कि अंकल बैरागी और आंटी की यादगार को अपने सामने बिकने नहीं दूंगा. मैं इसे खरीद कर उन की यादों को जिंदा रखना चाहता हूं.‘‘

आखिर रुखसार खां ने अंकल बैरागी के मकान की सब से ज्यादा बोली लगा कर 25 लाख रुपयों में वह मकान खरीद लिया और सभी कानूनी कार्यवाही पूरी होते ही मकान पर बोर्ड लगवा दिया. बोर्ड पर मोटेमोटे अक्षरों में लिखा था, ‘बैरागी  भवन’.

थोडी देर बाद कन्हैयालाल के बेटेबेटियां अपने मांबाप की आखिरी निशानी को बेच कर रुपयों से भरी अटैची ले गरदन झुकाए चले जा रहे थे, वहीं दूसरी तरफ रुखसार खां गर्व से बैरागी अंकलआंटी की यादगार को बिकने से बचा कर मकान पर लगे ‘बैरागी भवन’ का बोर्ड देख रहा था.

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मेरा बौयफ्रैंड दूसरी लड़की के साथ घूम रहा था, कहीं वह मुझे धोखा तो नहीं दे रहा?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल

मैं 3 सालों से रिलेशनशिप में हूं, मेरा बौयफ्रैंड जौब करता है, इसलिए वह शहर से बाहर रहता है. मैं पीजी में रहती हूं और वह पहले मुझसे हर हफ्ते मिलने आया करता था लेकिन इधर कुछ दिनों से वह अब मिलने भी नहीं आ रहा है. फोन पर भी हमारी बातें कम होने लगी हैं. मैंने इस बदलाव का कारण भी जानने की कोशिश की, लेकिन उसने यह कह कर मना कर दिया कि उसे औफिस के काम का ज्यादा प्रैशर है.

मैंने उसे बिना बताए दो दिनों की छुट्टी लेकर उससे मिलने उसके शहर गई, वहां उसके औफिस जा ही रही थी कि वह उधर एक लड़की के साथ घूमते दिखाई दिया. मैं वापस अपने शहर चली आई, अब मैं भी उससे कम ही बात करती हूं. लेकिन अंदर से टूटती जा रही हूं. मुझे कभीकभी ये लगता है कि वह कि कहीं वह दूसरे लड़की के साथ रिलेशनशिप में तो नहीं है या फिर वह मुझे धोखा दे रहा है, समझ नहीं आ रहा क्या करूं ? कृपया इस समस्या का कोई समाधान बताएं.

जवाब

कपल्स के बीच दूरियों का कारण है, एकदूसरे को अनदेखा करना.. ये रिश्ते कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण है. देखिए आपके बौयफ्रैंड में ये बदलाव अचानक से आए हैं. जैसा कि आपने बताया कि आप अपने बौयफ्रैंड के औफिस तक गई थी, वहां आपने उन्हें एक लड़की के साथ देखा और फिर वापस आ गए. ये आपने गलती की. जब आप वहां गई थी, तो आपको अपने बौयफ्रैंड से मिलना चाहिए.

जरूरी नहीं है कि अगर कोई लड़कालड़की साथ में घूम रहे हैं, तो वो दोनों रिलेशनशिप में ही हों. आपका 3 साल का रिलेशनशिप है, तो आपको अपने बौयफ्रैंड के मूड के बारे में पता होगा, उसे क्या पसंद और क्या नहीं ? अगर आप अपने रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते हैं , तो आप दोनों मिलकर बात करें, रोमांटिक डेट पर जाएं, अगर ये भी करने से बात नहीं बनती है, तो बेहतर है कि आप ब्रेकअप कर लें. किसी रिश्ते में बने रहने के लिए दोनों को प्रयास करना चाहिए. किसी रिश्ते में घुटघुट कर जीने से बेहतर है, उस रिश्ते को तोड़ देना…

जब बौयफ्रैंड अनदेखा करने लगे

  • अगर आपको लग रहा है कि आपका पार्टनर इग्नोर कर रहा है, तो उसे अपने प्यार का इजहार करें, सरप्राइज गिफ्ट्स दें या डेट पर जाएं.
  • रिश्ते में कम्यूनिकेशन गैप न आने दें.
  • अगर किसी बाते से साथी परेशान है, तो उससे कारण जानने की कोशिश करें और अपनी भी राय दें.
  • ये छोटेछोटे कन्सर्न रिश्ते को मजबूत बनाते हैं.

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तीज में पहनें पतिपत्नी के नाम वाले लहठी, बौलीवुड ऐक्ट्रैस भी इस डिजाइन को करती हैं फौलो

हर महिला चाहती है कि वो सबसे खूबसूरत दिखे. इसके लिए वो पहनावे से लेकर ज्वैलरी, मेकअप हर चीज का खास खयाल रखती हैं. महिलाओं का लोकप्रिय त्योहार हरियाली तीज मनाया जा रहा है. इस फेस्टिवल में महिलाएं खूब सजती हैं. इसमे पारंपरिक साङियां पहनने का खास महत्व है. इस त्यौहार में लाह लहठी पहनने का भी चलन है. आइए जानते हैं, लाह इतना क्यों है पौपुलर?

बिहार से लहठी का है खास कनैक्शन

लाह की चूड़ियों को लहठी कहा जाता है. बिहार में शादियों या किसी त्यौहार के दौरान शादीशुदा महिलाएं लाह की लहठी पहनती हैं. ये लहठी बाजार में रंगबिरंगी और अलगअलग डिजाइनों में मिलती हैं. यह लहठी देशभर मे प्रसिद्ध है. वैसे तो बिहार के हर शहर में यह लहठी मिलती है पर मुजफ्फरपुर की लहठी ज्यादा मशहूर है. लाह की चमक काफी तेज होती है. इसकी लहठियां चमकिली गुलाबी, हरा, लाल, और भी कई रंगों में मिलती हैं. इसकी चमक और डिजाइन को शायद ही किसी महिला को पसंद न आए.

इस लहठी की कई वैरायटिज मिलती हैं, इसमें दुल्हन लहठी, राज बड़ा सेट, कुन्दन कड़ी दुल्हन सेट, स्पेशल दुल्हन लहठी ट्रैंड में है. इन लहठियों पर फोटो और पतिपत्नी के नाम भी लिखवाए जाते हैं. महिलाएं अपने पसंद की डिजाइन की भी लहठी बनवाने के लिए और्डर देती हैं.

इन लहठियों की ये हैं कीमत

ये लहठियांं 100 रुपये से लेकर हजारों की कीमत में बिकती हैं. मुजफ्फरपुर के इस्लामपुर मार्केट में लाह की लहठियों का बड़ा बिजनैस है. कहा जाता है कि यहां की लहठियां बौलीवुड एक्ट्रैस भी पहन चुकी हैं. यहां के कारीगर लहठियों पर तरहतरह के डिजाइन तैयार करते हैं. झारखंड और बंगाल से कच्चा मैटेरियल आता है, जिससे लहठी तैयार की जाती है.

सिर्फ देश ही नहीं विदेशो में भी ये लहठियां मशहूर हैं. बाहर से आए लोग भी इन लहठियों को जरूर खरीदते हैं. सावन या अन्य किसी फैस्टिवल में इसकी डिमांड ज्यादा बढ़ जाती है. इस मार्केट में इतनी भीड़ होती है कि जो लोग नहीं पहुंच पाते हैं वो औनलाइन आर्डर देते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हर साल मुजफ्फरपुर के लहठी मार्केट में दोतीन करोड़ से अधिक का कारोबार होता है. लहठी की इतनी डिमांड है कि यहां से अयोध्या भी लाह की लहठियां भेजवाई जाती है.

राजस्थान में  बनती हैं लाख की लहठी

राजस्थान में भी ये लहठी बनाई जाती है, जिसे लाख की लहठी कहते हैं. हालांकि लाह और लाख की लहठी में ज्यादा कोई अंतर नहीं है. कारीगरों के अनुसार, बिहार और राजस्थान के लहठियों में सिर्फ डिजाइन का फर्क है. बिहार के भी कई कारिगर राजस्थान में बनने वाले लाख के लहठियों को डिजाइन करने के लिए जाते हैं.

क्या आप जानते हैं लाख की लहठी कैसे बनाई जाती है

लोगों में ये अफवाहें हैं कि लाख की लहठी पेड़ों से बनाई जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है. लाख कीड़ों से निकलने वाला एक पदार्थ है, ये कीड़ें पेड़ों पर पाए जाते हैं. खासकर पीपल, गूलर, पलाश जैसे पेड़ों की टहनियों पर ये कीड़े पाए जाते हैं और इन्हीं से लाख बनता है. क्या आप जानते हैं, जब एक बार लाख पिघल जाता है, तो  इसका रंग लाल होता है. लहठी बनाने के लिए इसे और सख्त करना पड़ता है. इसमें टाइटैनियम, वैक्स और अलगअलग रंगों को मिलाया जाता है ताकि चूडियों को सही आकार मिल सके. चूड़ियों को साइज देते समय लाख को गर्म किया जाता है, इसे डिजाइन देने के लिए मोटी नग और पत्थर को चिपकाया जाता है.

हालांकि ये लहठियां ज्यादा दिनों तक नहीं टिकती हैं. ये पिचक जाती हैं.  पानी के संपर्क में आने से ये आसानी से टूटने लगती हैं, ये लहठियां चूल्हे या आग के पास भी रहने से पिघल सकती हैं. जिन महिलाओं का सेंसिटिव स्किन होता है, उनके लिए ये लहठियां नुकसानदायक होती हैं. अगर आपको पहले से स्किन एलर्जी की समस्या है, तो लाह की लहठियां पहनने से बचें.

लाख कहने का क्या है कारण

इसे लाख इसलिए भी कहा जाता है कि ये कीड़े लाखों की संख्या में टहनियों पर बैठते हैं. इस नाम के पीछे बस इसकी संख्या है और कोई अन्य कारण नहीं है.

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डायन का कलंक : क्या दीपक बसंती की मदद कर पाया?

लेखक- सचिंद्र शुक्ल

आज पूरे 3 साल बाद दीपक अपने गांव पहुंचा था, लेकिन कुछ भी तो नहीं बदला था उस के गांव में. पहले अकसर गरमियों की छुट्टियों में वह अपने मातापिता और अपनी छोटी बहन प्रतिभा के साथ गांव आता था, लेकिन 3 साल पहले उसे पत्रकारिता पढ़ने के लिए देश के एक नामी संस्थान में दाखिला मिल गया था और कोर्स पूरा होने के बाद एक बड़े मीडिया समूह में नौकरी भी.

दीपक की बहन प्रतिभा को मैडिकल कालेज में एमबीबीएस के लिए दाखिला मिल गया था. इस वजह से उन का गांव में आना नहीं हो पाया था. पिताजी और माताजी भी काफी खुश थे, क्योंकि पूरे 3 साल बाद उन्हें गांव आने का मौका मिला था.

दीपक का गांव शहर से तकरीबन 15 किलोमीटर की दूरी पर बड़ी सड़क के किनारे बसा हुआ था, लेकिन सड़क से गांव में जाने के लिए कोई भी रास्ता नहीं था. गरमी के दिनों में तो लोग पंडितजी के बगीचे से हो कर आतेजाते थे, मगर बरसात हो जाने पर किसी तरह खेतों से गुजर कर सड़क पर आते थे.

जब वे गांव पहुंचे, तो ताऊ और ताई ने उन का खूब स्वागत किया. ताऊ तो घूमघूम कर कहते फिरे, ‘‘मेरा भतीजा तो बड़ा पत्रकार हो गया है. अब पुलिस भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी.’’ दीपक के ताऊ की एक ही बेटी थी, जिस का नाम कुमुद था.

ताऊजी नजदीक के एक गांव में प्राथमिक पाठशाला में प्रधानाध्यापक थे. आराम की नौकरी. जब मन किया पढ़ाने गए, जब मन किया नहीं गए. वे इस इलाके में ‘बड़का पांडे’ के नाम से मशहूर थे. वे जिस गांव में पढ़ाते थे, वहां ज्यादातर दलित जाति के लोग रहते थे, जो किसी तरह मेहनतमजदूरी कर के अपना पेट पालते थे.

उन बेचारों की क्या मजाल, जो इलाके के ‘बड़का पांडे’ के खिलाफ कहीं शिकायत करते. शायद इसी का नतीजा था कि उन की बेटी कुमुद 10वीं जमात में 5 बार फेल हुई थी, पर ताऊ ने नकल कराने वाले एक स्कूल में पैसे दे कर उसे 10वीं जमात पास कराई थी.

दीपक का सारा दिन लोगों से मिलनेजुलने में बीत गया. अगले दिन शाम को वह अपने एक चचेरे भाई रमेश के साथ गांव में घूमने निकला. उस ने कहा कि चलो, अपने बगीचे की तरफ चलते हैं, तो रमेश ने कहा कि नहीं, शाम के समय वहां कोई नहीं जाता, क्योंकि वहां बसंती डायन रहती है.

दीपक को यह सुन कर थोड़ा गुस्सा आया कि आज विज्ञान कहां से कहां पहुच गया है, लेकिन ये लोग अभी भी भूतप्रेतों और डायन जैसे अंधविश्वासों में उलझे हुए हैं.

दीपक ने रमेश से पूछा ‘‘यह बसंती कौन है?’’

उस ने बताया, ‘‘अपने घर पर जो चीखुर नाम का आदमी काम करता था, यह उसी की पत्नी है.’’

चीखुर का नाम सुन कर दीपक को झटका सा लगा. दरअसल, चीखुर दीपक के खेतों में काम करता था और ट्रैक्टर भी चलाता था. उस की पत्नी बसंती बहुत सुंदर थी. हंसमुख स्वभाव और बड़ी मिलनसार. लोगों की मदद करने वाली. गांव के पंडितों के लड़के हमेशा उस के आगेपीछे घूमते थे.

दीपक ने रमेश से पूछा, ‘‘बसंती डायन कैसे बनी?’’ उस ने बताया, ‘‘उस के कोई औलाद तो थी नहीं, इसलिए वह दूसरे के बच्चों पर जादूटोना कर देती थी. वह हमारे गांव के कई बच्चों की अपने जादूटोने से जान ले चुकी है.’’

बसंती के बारे सुन कर दीपक थोड़ा दुखी हो गया, लेकिन उस ने मन ही मन ठान लिया कि उसे डायन के बारे में पता लगाना होगा.

जब थोड़ी रात हुई, तो दीपक शौच के बहाने लोटा ले कर घर से निकला और अपने बगीचे की तरफ चल पड़ा. बगीचे के पास एक कच्ची दीवार और उस के ऊपर गन्ने के पत्तों का छप्पर पड़ा था, जिस में एक टूटाफूटा दरवाजा भी था.

दीपक ने बाहर से आवाज लगाई, ‘‘कोई है?’’

अंदर से किसी औरत की आवाज आई, ‘‘भाग जाओ यहां से. मैं डायन हूं. तुम्हें भी जादू से मार डालूंगी.’’

दीपक ने कहा, ‘‘दरवाजा खोलो. मैं दीपक हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘कौन दीपक?’’

दीपक ने कहा, ‘‘मैं रामकृपाल का बेटा दीपक हूं.’’

वह औरत रोते हुए बोली, ‘‘दीपक बाबू, आप यहां से चले जाइए. मैं डायन हूं. आप को भी मेरी मनहूस छाया पड़ जाएगी.’’

दीपक ने कहा, ‘‘तुम बाहर आओ, वरना मैं दरवाजा तोड़ कर अंदर आ जाऊंगा.’’

तब वह औरत बाहर आई. वह एकदम कंकाल लग रही थी. फटी हुई मैलीकुचैली साड़ी, आंखें धंसी हुईं. उस के भरेभरे गाल कहीं गायब हो गए थे. उन की जगह अब गड्ढे हो गए थे.

उस औरत ने बाहर निकलते ही दीपक से कहा, ‘‘बाबू, आप यहां क्यों आए हैं? अगर आप की बिरादरी के लोगों ने आप को मेरे साथ देख लिया, तो मेरे ऊपर शामत आ जाएगी.’’

दीपक ने कहा, ‘‘तुम्हें कुछ नहीं होगा. लेकिन तुम्हारा यह हाल कैसे हुआ?’’

वह औरत रोने लगी और बोली, ‘‘क्या करोगे बाबू यह जान कर?’’

दीपक ने उसे बहुत समझाया, तो उस औरत ने बताया, ‘‘तकरीबन 2 साल पहले मेरे पति की तबीयत खराब हुई थी. जब मैं ने अपने पति को डाक्टर को दिखाया, तो उन्होंने कहा कि इस के दोनों गुरदे खराब हो गए हैं. इस का आपरेशन कर के गुरदे बदलने पड़ेंगे, लेकिन पैसे न होने के चलते मैं उस का आपरेशन नहीं करा पाई और उस की मौत हो गई.

‘‘पति की दवादारू में मेरे गहने बिक गए थे और हमारी एक बीघा जमीन जगनारायण पंडित के यहां गिरवी हो गई. अपने पति का क्रियाकर्म करने में जो पैसा लगाया था, वह सारा जगनारायण पंडित से लिया था. उन पैसों के बदले उस ने हमारी जमीन अपने नाम लिखवा ली, पर मुझे तो यह करना ही था, वरना गांव के लोग मुझे जीने नहीं देते. पति तो परलोक चला गया था. सोचा कि मैं किसी तह मेहनतमजदूरी कर के अपना पेट भर लूंगी.

‘‘फिर मैं आप के खेतों में काम करने लगी, लेकिन जगनारायण पंडित मुझे अकसर आतेजाते घूर कर देखता रहता था. पर मैं उस की तरफ कोई ध्यान नहीं देती थी.

‘‘एक दिन मैं खेतों से लौट रही थी. थोड़ा अंधेरा हो चुका था. तभी खेतों के किनारे मुझे जगनारायण पंडित आता दिखाई दिया. वह मेरी तरफ ही आ रहा था.

‘‘मैं उस से बच कर निकल जाना चाहती थी, लेकिन पास आ कर उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘कहां इतना सुंदर शरीर ले कर तू दूसरों के खेतों में मजदूरी करती है. मेरी बात मान, मैं तुझे रानी बना दूंगा. आखिर तू भी तो जवान है. तू मेरी जरूरत पूरी कर दे, मैं तेरी जरूरत पूरी करूंगा.’

‘‘मैं ने उस से अपना हाथ छुड़ाया और उसे एक तमाचा जड़ दिया. मैं अपने घर की तरफ दौड़ पड़ी. पीछे से उस की आवाज आई, ‘तू ने मेरी बात नहीं मानी है न, इस थप्पड़ का मैं तुझ से जरूर बदला लूंगा.’

‘‘कुछ महीनों के बाद रामजतन का बेटा और मंगरू की बेटी बीमार पड़ गई. शहर के डाक्टर ने बताया कि उन्हें दिमागी बुखार हो गया है, लेकिन जगनारायण पंडित और उस के चमचे कल्लू ने गांव में यह बात फैला दी कि यह सब किसी डायन का कियाधरा है.

‘‘उन बच्चों को अस्पताल से निकाल कर घर लाया गया और एक तांत्रिक को बुला कर झाड़फूंक होने लगी. लेकिन अगले दिन ही दोनों बच्चों की मौत हो गई, तो जगनारायण पंडित ने उस तांत्रिक से कहा कि बाबा उस डायन का नाम बताओ, जो हमारे बच्चों को खा रही है.

‘‘उस तांत्रिक ने मेरा नाम बताया, तो भीड़ मेरे घर पर टूट पड़ी. मेरा घर जला दिया गया. मुझे मारापीटा गया. मेरे कपड़े फाड़ दिए गए और सिर मुंड़वा कर पूरे गांव में घुमाया गया.

‘‘इतने से भी उन का मन नहीं भरा और उन लोगों ने मुझे गांव से बाहर निकाल दिया. तब से मैं यहीं झोंपड़ी बना कर और आसपास के गांवों से कुछ मांग कर किसी तरह जी रही हूं’’.

उस औरत की बातें सुन कर दीपक की आंखें भर आईं. उस ने कहा, ‘‘मैं जैसा कहता हूं, वैसा करना. मैं तुम्हारे माथे से डायन का यह कलंक हमेशा के लिए मिटा दूंगा.’’

दीपक ने उसे धीमी आवाज में समझाया, तो वह राजी हो गई. दीपक ने गांव में यह बात फैला दी कि बसंती को कहीं से सोने के 10 सिक्के मिल गए हैं. पूरा गांव तो डायन से डरता था, लेकिन एक दिन जगनारायण पंडित उस के घर पहुंचा और बोला, ‘‘क्यों री बसंती, सुना है कि तुझे सोने के सिक्के मिले हैं. ला, सोने के सिक्के मुझे दे दे, नहीं तो तू जानती है कि मैं क्या कर सकता हूं.

‘‘जब पिछली बार तू ने मेरी बात नहीं मानी थी, तो मैं ने तेरा क्या हाल किया था, भूली तो नहीं होगी?

‘‘मेरी वजह से ही तू आज डायन बनी फिर रही है. अगर इस बार तू ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं तेरा पिछली बार से भी बुरा हाल करूंगा.’’

वह बसंती को मारने ही वाला था कि दीपक गांव के कुछ लोगों के साथ वहां पहुंच गया. इतने लोगों को वहां देख कर जगनारायण पंडित की घिग्घी बंध गई. वह बड़बड़ाने लगा. इतने में बसंती ने अपने छप्पर में छिपा कैमरा निकाल कर दीपक को दे दिया.

जगनारायण पंडित ने कहा, ‘‘यह सब क्या?है?’’

दीपक ने कहा, ‘‘मेरा यह प्लान था कि डायन के डर से गांव का कोई आदमी यहां नहीं आएगा, लेकिन तुझे सारी हकीकत मालूम है और तू सोने के सिक्कों की बात सुन कर यहां जरूर आएगा, इसलिए मैं ने बसंती को कैमरा दे कर सिखा दिया था कि इसे कैसे चलाना है.

‘‘जब तू दरवाजे पर आ कर चिल्लाया, तभी बसंती ने कैमरा चला कर छिपा दिया था और जब तू इधर आ रहा था, मैं ने तुझे देख लिया था. अब तू सीधा जेल जाएगा.’’

यह बात जब गांव वालों को पता चली, तो वे बसंती से माफी मांगने लगे. जगनारायण पंडित को उस के किए की सजा मिली. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. भीड़ से घिरी बसंती दीपक को देख रही थी, मानो उस की आंखें कह रही हों, ‘मेरे सिर से डायन का कलंक उतर गया दीपक बाबू.’

दीपक ने अपने नाम की तरह अंधविश्वास के अंधेरे में खो चुकी बसंती की जिंदगी में उजाला कर दिया था.

नाइट फ्लाइट : ऋचा से बात करने में क्यों कतरा रहा था यश

मुंबई का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा. अभी शाम के 5 भी  नहीं बजे थे. यश की फ्लाइट रात के 8 बजे की थी. वह लंबी यात्रा में किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था. सो, एयरपोर्ट जल्दी ही आ गया था. उस ने टैक्सी से अपना सामान उतार कर ट्रौली पर रखा. हवाईअड्डे पर काफी भीड़ थी. वह मन ही मन सोच रहा था, आजकल हवाई यात्रा करने वालों की कमी नहीं है. यश ने अपना पासपोर्ट और टिकट दिखा कर अंदर प्रवेश किया.

यश ने एयर इंडिया के काउंटर से चेकइन कर अपना बोर्डिंग पास लिया. उस ने अपने लिए किनारे वाली सीट पहले से बुक करा ली थी. उसे यात्रा के दौरान विंडो या बीच वाली सीट से निकल कर वौशरूम जाने में परेशानी होती है. उस के बाद वह सुरक्षा जांच के लिए गया. सुरक्षा जांच के बाद टर्मिनल 2 की ओर बढ़ा जहां से एयर इंडिया की उड़ान संख्या ए/314 से उसे हौंगकौंग जाना था. वहां पर वह एक किनारे कुरसी पर बैठ गया. अभी भी उस की फ्लाइट में डेढ घंटे बाकी थे. हौंगकौंग के लिए और भी उड़ानें थीं पर उस ने जानबूझ कर नाइट फ्लाइट ली ताकि रात जहाज में सो कर गुजर जाए और सारा दिन काम कर सके. उस की फ्लाइट हौंगकौंग के स्थानीय समय के अनुसार सुबह 6.45 बजे वहां लैंड करती.

थोड़ी देर बाद एक बुजुर्ग आ कर यश की बगल में एक सीट छोड़ कर बैठ गए. बीच की सीट पर उन्होंने अपना बैग रख दिया. देखने में वे किसान लग रहे थे. उन्होंने अपना बोर्डिंग पास यश को दिखाते हुए पंजाबी मिश्रित हिंदी में पूछा, ‘‘पुत्तर, मेरा जहाज यहीं से उड़ेगा न?’’

यश ने हां कहा और अपनी किताब पढ़ने लगा. बीचबीच में वह सामने टीवी स्क्रीन पर न्यूज देख लेता. लगभग आधे घंटे के बाद एक युवती आई. यश की बगल वाली सीट पर बुजुर्ग का बैग रखा था. लड़की ने यश से कहा, ‘‘प्लीज, आप अपना बैग हटा लेते, तो मैं यहां बैठ जाती.’’

यश ने मुसकराते हुए बुजुर्ग की ओर इशारा कर कहा, ‘‘यह बैग उन का है.’’

उस बुजुर्ग को हिंदी ठीक से नहीं आती थी. लड़की के समझाने पर उन्होंने अपना बैग नीचे रखा. तब लड़की ने यश की ओर देख कर कहा, ‘‘मैं थोड़ी देर में वौशरूम से आती हूं.’’

इस बार यश ने सिर उठा कर उसे देखा और मुसकराते हुए, ‘इट्स ओके’ कहा. फिर लड़की को जाते हुए देखा. लड़की खूबसूरत थी. उस की पतली कमर के ऊपर ब्लू स्कर्ट और स्कर्ट के बाहर झांकती पतली टांगें उसे अच्छी लगी थीं. ऊपर एक सफेद टौप था. उस ने हाईहील सैंडिल पहनी थी.

करीब 10 मिनट के बाद एक हाथ में स्नैक्स और दूसरे में कोक का कैन लिए वह लड़की आ रही थी. पहले स्नैक्स खाती, फिर कोक सिप करती. यश ने देखा कि उसे हाईहील पहन कर चलने में कुछ असुविधा हो रही थी. वह जैसे ही अपनी कुरसी पर बैठने जा रही थी कि थोड़ा लड़खड़ा पड़ी. उस ने अपने को तो संभाल लिया पर कोक का कैन हाथ से छूट कर यश की गोद में जा पड़ा. कुछ कोक छलक कर उस की जींस पर गिरी जिस से जींस कुछ गीली हो गई थी.

यश ने खड़े हो कर कैन उसे पकड़ाया. लड़की बुरी तरह शर्मिंदा थी, बोली, ‘‘आई एम ऐक्सट्रीमली सौरी.’’ और बैग में से कुछ टिश्यूपेपर निकाल कर उस की जींस पोंछने लगी.

यश को यह अच्छा नहीं लगा, वह बोला, ‘‘आप रहने दें, मैं खुद कर लेता हूं.’’ और उस के हाथ से टिश्यू ले कर खुद गीलापन कम करने की कोशिश करने लगा.

थोड़ी देर बाद बोर्डिंग की घोषणा हुई. यह भी इत्तफाक ही था कि वह लड़की और बुजुर्ग दोनों यश की बगल की सीटों पर थे. बुजुर्ग को विंडो सीट और लड़की को बीच वाली सीट मिली थी.

विमान के कैप्टन ने यात्रियों का स्वागत करते हुए कहा कि मुंबई से हौंगकौंग तक की उड़ान करीब 8 घंटे 35 मिनट की होगी. पर लगभग 2 घंटे के बाद विमान एक घंटे के लिए दिल्ली में रुकेगा. जिन यात्रियों को हौंगकौंग जाना है, कृपया अपनी सीट पर बैठे रहें. विमान परिचारिका ने सुरक्षा नियम समझाए. बुजुर्ग यात्री पहली बार हवाई जहाज से यात्रा कर रहे थे. उन्हें बैल्ट बांधने में लड़की ने मदद की. उन्होंने बताया कि वे कनाडा जा रहे हैं. वे कुछ दिन हौंगकौंग में अपनी भतीजी की शादी के सिलसिले में रुकेंगे.

फिर उन्हें हौंगकौंग से वैंकुवर जाना है. उन के बेटे ने उन का ग्रीनकार्ड स्पौंसर किया है.

निश्चित समय पर विमान ने टेकऔफ किया. बातचीत का सिलसिला यश ने शुरू किया. वह लड़की से बोला, ‘‘मैं यश मेहता, सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं. मेरी कंपनी बैंकिंग सौफ्टवेयर बनाती है. अभी मैं एक प्रोडक्ट के सिलसिले में हौंगकौंग के बार्कले इन्वैस्टमैंट बैंक और एचएसबीसी बैंक जा रहा हूं.’’

‘‘ग्लैड टू मीट यू, मैं ऋचा शर्मा. हौंगकौंग में हमारा बिजनैस है.’’

‘‘तब तो आप अकसर वहां जाती होंगी.’’

‘‘जी नहीं, पहली बार जा रही हूं.’’

तब तक जलपान दिया गया. यश और ऋ चा ने देखा कि वे बुजुर्ग बारबार उठ कर बाथरूम जा रहे हैं जिस के चलते ऋचा को ज्यादा परेशानी हो रही थी. यश किनारे वाली सीट पर था तो वह अपने पैर बाहर की तरफ मोड़ लेता.

बुजुर्ग ने बताया कि उन्हें शुगर और किडनी दोनों बीमारियां हैं. उन की एक आदत यश और ऋ चा दोनों को बुरी लगी कि विमान परिचारिका जो भी कुछ सामान अगलबगल की सीट पर देती, वे अपने लिए भी मांग बैठते.

कुछ देर बाद विमान दिल्ली हवाई अड्डे पर उतर रहा था. करीब एक घंटे के बाद विमान ने हौंगकौंग के लिए उड़ान भरी. आधे घंटे के बाद डिनर सर्व हुआ. डिनर के बाद यश सोने की तैयारी में था. तभी ऋ चा ने अपने रिमोट से परिचारिका को बुलाने के लिए कौलबैल का बटन दबाया. थोड़ी देर में वह आई. ऋचा ने उस के कान में धीरे से कुछ कहा. परिचारिका ‘श्योर मैम, मैं देखती हूं,’ बोल कर चली गई.

कुछ ही देर बाद वह लौट कर आई. उस ने एक टिश्यू में लिपटा हुआ कुछ सामान ऋचा को दिया. बुजुर्ग ने कहा, ‘‘पुत्तर, एक मुझे भी दे दो.’’

परिचारिका बोली, ‘‘सर, यह आप के काम की चीज नहीं है.’’

‘‘तुम मुझे दो तो सही. मैं देख लूंगा, मेरे लिए है या नहीं.’’

ऋचा शरमा रही थी और अपनी हंसी भी नहीं छिपा पा रही थी. बारबार समझाने पर भी वे नहीं मान रहे थे. तब परिचारिका ने झुंझला कर कहा, ‘‘आप को भी मासिकधर्म है क्या?’’

बुजुर्ग बोले, ‘‘छि, क्या बोलती है?’’

तब जा कर उन की समझ में बात आई. यश ने कहा, ‘‘मैं देख रहा हूं आप हर चीज अपने लिए मांग रहे हैं?’’

‘‘आते समय मेरे बेटे ने समझाया था कि शर्म नहीं करना, सब चीजें जहाज में फ्री मिलती हैं.’’

यश हंस पड़ा. इसी बीच ऋचा सैनिटरी नैपकिन ले कर वौशरूम चली गई. 10 मिनट बाद वह लौट कर अपनी सीट पर आ रही थी. बगल की सीट पर बैठा यात्री सो रहा था और उस का हैडफोन नीचे गिरा था. ऋचा का पैर हैडफोन की तार में फंस गया, ऊपर से हाईहील, पैंसिल नोक वाली सैंडिल. ऋचा गिर पड़ी और उस की स्कर्ट भी कुछ इस तरह उठ गई थी कि उस का अधोवस्त्र भी झलकने लगा. वह उठने की कोशिश कर रही थी, पर दोबारा फिसल पड़ी थी. यश ने उसे सहारा दे कर अपनी सीट पर बैठाया और खुद बीच वाली सीट पर बैठ गया.

‘‘थैंक्स अ लौट,’’ ऋ चा बोली.

‘‘इट्स ओके. पर एक बात पूछूं, बुरा न मानिए.’’

ऋचा के पूछिए बोलने पर वह बोला, ‘‘आप हाईहील में सहज नहीं लगती हैं, फिर फ्लाइट में क्यों इसे पहन कर आई हैं?’’

‘‘हाईहील के बगैर मेरी हाइट 5 फुट से भी कम हो जाती है. वैसे, मैं रैगुलर इसे यूज नहीं करती.’’

थोड़ी देर बाद ऋ चा को नींद आ गई. उस ने नींद में यश के कंधे पर अपना सिर रख दिया. यश को उस का सामीप्य अच्छा लग रहा था. कंधे पर एक खुशनुमा बोझ तो था, पर उस के बदन और बालों की खुशबू यश को रोमांचित कर रही थी. वह यथावत स्थिति में बैठा रहा. उसे डर था कि कहीं हिलनेडुलने से ऋचा की नींद न टूट जाए और वह इस आनंद से वंचित रह जाए. बीच में कभी ऋचा की नींद खुलती तो वह सीधा हो कर बैठती, पर 5 मिनट के अंदर फिर यश के कंधों पर लुढ़क जाती.

इस बीच, यश ने दोनों सीटों के बीच वाले हिस्से को उठा कर खड़ा कर दिया. कभी तो ऋ चा का सिर उस के सीने पर भी आ जाता, तब उस की नींद खुलती और सौरी बोल कर सीधी हो जाती और बोलती, ‘‘मुझ से नींद बरदाश्त नहीं होती. मैं कहीं भी जाती हूं किसी तरह अपने सोनेभर की जगह बना ही लेती हूं.’’

यश ने कहा, ‘‘आप कहें तो मैं आप के लिए कुछ और जगह बना दूं. मेरे पैर पर तकिया रख कर सो लें.’’

‘‘ओह, नोनो.’’

पर 10 मिनट के अंदर उस का सिर यश के पैर पर रखे तकिए पर आ गया. यश को भी नींद आ रही थी, पर वह अपनी नींद कुरबान करने को तैयार था, बल्कि एकाध बार तो उस का दाहिना हाथ ऋ चा के बालों पर फिसलने लगता.

देखतेदेखते लैंडिंग की भी घोषणा हुई. तब यश ने धीरे से ऋचा का सिर हिला कर कहा ‘‘उठिए, बैल्ट बांधिए. हम हौंगकौंग पहुंच रहे हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी आ गए. मुझे तो पता ही नहीं चला.’’ और फिर सीधा बैठ कर बैल्ट बांधती हुई बोली, ‘‘क्या मैं रातभर इसी तरह सोती आई? सौरी, आप को तकलीफ दी.’’

‘‘कोई बात नहीं, इट्स अ प्लेजर फौर मी. अगर सफर लंबा होता तो मुझे और खुशी होती.’’

ऋ चा मुसकरा कर रह गई. ऋ चा और यश दोनों का इमिग्रेशन और कस्टम एक ही डैस्क पर हुआ. वहीं लाइन में खड़े यश ने कहा, ‘‘आप के साथ का सफर बड़ा प्यारा रहा. क्या हम आगे भी मिल सकते हैं?’’

‘‘हां, मिलने में कोई बुराई नहीं है.’’

‘‘तो शाम को विंधम स्ट्रीट के इंडियन रैस्टोरैंट में मिलते हैं. जब हौंगकौंग आता हूं, वहां मैं अकसर डिनर करता हूं. लाजवाब स्वाद है वहां के खाने में.’’

ऋ चा हंस कर बोली, ‘‘तब तो वहां मैं जरूर मिलूंगी.’’

दोनों एयरपोर्ट से बाहर निकले. दोनों के लिए तख्तियां ले कर कार के ड्राइवर्स खड़े थे. दोनों अपनेअपने गंतव्य स्थान पर गए.

यश 2-3 घंटे होटल में आराम कर अपने काम पर चला गया. दिनभर वह शाम को ऋचा से होने वाली मुलाकात को सोच कर रोमांचित होता रहा.

यश ने शाम को उस इंडियन रैस्टोरैंट में अपने लिए टेबल बुक कर लिया था. होटल पहुंच कर वह अपने टेबल पर बैठा बारबार घड़ी देख रहा था. सोच रहा था कि ऋचा बोल कर भी क्यों नहीं आई. वह सोच ही रहा था कि तभी ऋचा एप्रन पहने सामने आ खड़ी हुई. उसे मेनू बुक देते हुए बोली, ‘‘गुड इवनिंग सर, आप खाने में क्या पसंद करेंगे?’’

यश उसे वेट्रैस की ड्रैस में देख कर घबरा गया और बोला, ‘‘तुम यहां वेट्रैस हो? यही तुम्हारा बिजनैस है?’’

‘‘रिलैक्स सर. अच्छा, आज मेरी पसंद का डिनर लें. आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

यश ने उस का हाथ पकड़ कर बैठाना चाहा तो वह बोली, ‘‘मैं डिनर ले कर आती हूं. दोनों साथ बैठ कर खाएंगे.’’

यश हैरानपरेशान सा बैठा था. थोड़ी देर में वह भरपूर खाना ले कर आई और एप्रन खोल कर रख दिया. दोनों खाते रहे. यश ने 2-3 बार पूछना चाहा कि क्या वह वेट्रैस है, पर हर बार वह टाल जाती.

खाना खत्म होते ही एक युवक उन के पास आया और उस ने ऋ चा से पूछा, ‘‘कुछ और चाहिए. खाना पसंद आया तुम्हारे वीआईपी गैस्ट को?’’

यश उस युवक की ओर देखने लगा. ऋ चा बोली, ‘‘मीट माई हस्बैंड, नीलेश.’’

यश भौचक्का सा कभी ऋचा, तो कभी नीलेश को देखता रहा. थोड़ी देर बाद नीलेश बोला, ‘‘हमारी शादी 2 महीने पहले इंडिया में हुई थी. इसे मायके में कुछ दिन रुकने का मन था. मैं यहां पहले चला आया. इस होटल में मेजर शेयर हमारा है. आप ने यात्रा में ऋचा की काफी सहायता की है. वह आप की बहुत तारीफ कर रही थी. दरअसल, इस टेबल की वेट्रैस आज छुट्टी पर है. ऋ चा बोली कि उस का एक खास गैस्ट आ रहा है, वह खुद मेहमाननवाजी करेगी. और आज का डिनर हमारी तरफ से कौंप्लीमैंट्री रहा.’’

यश अभी तक इस आश्चर्यजनक वाकए से उबर नहीं सका था, वह बोला, ‘‘ऋचा, आप ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं ने कहा था कि मेरा बिजनैस है. पर जब आप ने इंडियन रैस्टोरैंट का नाम लिया तो मैं ने सोचा, क्यों न सरप्राइज दिया जाए, और आप को कुछ देर और रोमांचित होने का मौका दिया मैं ने.’’

‘‘नौट फेयर ऋचा, मुझे आप ने अपने बारे में अंधेरे में रखा.’’

ऋचा ने यश की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘वी विल रिमेन गुड फ्रैंड्स. इस होटल में जब भी चाहो, आ जाना. बिल नहीं भी देंगे तो भी चलेगा. पर हर बार मैं सर्व नहीं कर सकूंगी. होप यू डौंट माइंड.’’

नीलेश और ऋचा दोनों होटल के बाहर तक यश को छोड़ने आए.

यश ने टैक्सी ली और वापस अपने होटल आ गया. रिलैक्स हो कर सोफे पर बैठ गया. उसे एहसास हो रहा था कि हम बिना दूसरे के बारे में जाने न जाने क्याक्या सोच बैठते हैं. ऋचा को देख उस ने न जाने क्याक्या सोच लिया था. गलती तो उसी की थी. मन तो बावरा होता है, लेकिन अपनी सोच पर तो हमारी खुद की पकड़ होती है. यश को अपनेआप पर हंसी आ गई. फिर लंबी सांस भर कर बोला, ‘‘नौट अगेन.’’

शीनबाम : साधारण महिला से राष्ट्रपति का सफर

यह सच है कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा संवेदनशील होती हैं और उन में जो प्रकृतिप्रदत्त गुण होते हैं उन के कारण समाज, देश का वे ज्यादा भला कर सकती हैं. यह एक बार फिर सिद्ध हो गया.

भारत से हजारों किलोमीटर दूर मैक्सिको में एक महिला वैज्ञानिक ने यह सिद्ध कर दिया. पहले मेयर बनीं और फिर उन्होंने समाज में जो आमूलचूल परिवर्तन किए और बिना प्रचारप्रसार के अपनी योग्यता का प्रदर्शन करते हुए अपराधों पर अंकुश लगाया, युवाओं को रोजगार से जोड़ दिया इस से मिली शोहरत के कारण वह मैक्सिको की राष्ट्रपति बन गई है.

है न एक अजूबा और हमारे देश भारत के लिए प्रेरणादायक? एक महिला मेयर क्लाउडिया शीनबाम ने मैक्सिको के चुनावों में बड़ी जीत हासिल करते हुए इतिहास बना दिया. इस तरह पहली दफा क्लाउडिया शीनबाम मैक्सिको की पहली महिला राष्ट्रपति बन गई हैं. मजे की बात है कि पुरुष प्रतिद्वंद्वी को पीछे छोड़ कर 61 वर्षीय शीनबाम ने मैक्सिको के लोकतंत्र के इतिहास में सब से अधिक वोटों से जीतने का कीर्तिमान भी बनाया है. उन्हें 82 फीसद मतों की गिनती के बाद कुल 58.8 फीसद वोट मिले.

अनुशासित महिला

शीनबाम पहलेपहल मैक्सिको सिटी की प्रथम नागरिक अर्थात मेयर बनीं. वे एक अनुशासित महिला हैं. परिणामस्वरूप शीनबान ने शांत भाव के साथ काम करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते एक ऐसा परिवर्तन ला कर दिखा दिया कि लोग उन के मुरीद बन गए और बिना टीवी और समाचारपत्रों की सुर्खियों के उन्होंने लोगों के दिलों में जगह बनाई और जब मैक्सिको के राष्ट्रपति चुनाव का समय आया तो सैकड़ों लोगों ने उन के पक्ष में माहौल बनाना शुरू कर दिया और आखिरकार राष्ट्रपति बन गईं.

शीनबाम समाज में महिलाओं पर व्यापक हिंसा के खिलाफ सख्त कदम उठाने में यकीन करती हैं. यही कारण रहा कि उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में महिलाओं के साथ पुरुषों का भी अभूतपूर्व समर्थन मिला. पाठकों को यह बताना आवश्यक है कि राष्ट्रपति बनने से पहले क्लाउडिया शीनबाम मैक्सिको सिटी की मेयर बनीं और महत्त्वपूर्ण काम और व्यवहार से धीरेधीरे देश की जनता का दिल जीतती चली गईं.

यहां उल्लेखनीय यह है कि उन्होंने लीक से हट कर काम किया और मैक्सिको को बदलने का प्रयास किया जिस में सफल हुईं. उन्होंने अपराधों पर नियंत्रण के लिए सुनियोजित अभियान चलाए. इस से शहर के अपराधों में 50 फीसद तक की कमी देखी गई.

अपराधों पर बड़ी सफलता

क्लाउडिया ने मैक्सिको सिटी की मेयर रहते हुए रणनीति व पुलिस के आधुनिकीकरण से अपराधों पर बड़ी सफलता पाई. पुलिस को खुफिया ताकत दे कर तथा अपराध नियंत्रण में नागरिकों को जोड़ कर उन्होंने गिरोहबाजों की कमर तोड़ डाली. यही नहीं उन्होंने पुलिसकर्मियों को हाइटैक अपराधों से निबटने के लिए प्रशिक्षित किया. संगठित अपराधियों की कमर तोड़ने के लिए उन्होंने सामुदायिक पुलिसिंग के सफल प्रयोग भी किए, जिस में उन्हें संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न संगठनों की मदद भी मिली.

मेयर के रूप में नागरिकों को सोशल मीडिया के माध्यम से सुरक्षा प्राप्त करने के उपायों की जानकारी भी दी, जिस से मैक्सिको सिटी में अपराध आश्चर्यजनक तरीके से कम होते गए. इन कामों की जब प्रशंसा होने लगी तो लोगों का ध्यान उन की ओर चला गया.

रोजगारपरक शिक्षा

उन के मार्गदर्शन में शहर के युवाओं को अपराधों से दूर करने के लिए कार्यक्रम संचालित किए गए. युवाओं को रोजगारपरक शिक्षा दी गई. उन की सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भागीदारी बढ़ाई गई. वे अपराध की दुनिया से दूर रहें इसलिए खेलों में भागीदारी बढ़ाई गई. उन के लिए रोजगार के नएनए अवसर सृजित किए गए. इस से क्रांतिकारी बदलाव दिखाई दिए जिसे दुनियाभर में नोटिस में लिया गया.

महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि सदियों से पुरुषप्रधान समाज के रूप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के लिए जाना जाने वाले मैक्सिको देश में शीनबाम की ताजपोशी इस देश में बड़े बदलाव का आगाज है.

मैक्सिको के संविधान के अनुसार राष्ट्रपति का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है और वह व्यक्ति दोबारा राष्ट्रपति नहीं बन सकता. ऐसे में देखना होगा कि 6 वर्षों के भीतर देश में क्या बदलाव आते हैं और दुनिया के नक्शे में मैक्सिको किस तरह अलग दिखाई देने लगेगा.

त्यौहारी सीजन में घर पर इस्टेंटे बनाएं मिठाइयां, ये हैं आसान टिप्स

बारिश के प्रारंभ होते ही त्योहारों का सीजन प्रारंभ हो जाता है. भारतीय संस्कृति में त्योहार और मिठाइयों का बहुत गहरा नाता है, बिना मिठाइयों के त्यौहार कैसा परन्तु आज की युवा पीढ़ी जो कामकाजी है उसके लिए घर में मिठाइयां  बनाना किसी मुसीबत से कम नहीं होता क्योंकि इन्हें बनाने में काफ़ी समय लगता है. ऑफ़िस और घर के प्रैशर के कारण उनके लिए इतना समय निकालना काफी मुश्किल होता है. आज हम आपको 10 इंस्टेंट मिठाइयां बनाने के टिप्स बता रहे हैं, जिन्हें आप केवल 5 मिनट में बना सकती हैं. और इस तरह आप भी घर पर ही मिठाइयां बना सकतीं हैं. एक बार वीकेंड पर बनाकर आप फ्रिज में रखकर इन्हें 10 दिन तक प्रयोग कर सकतीं हैं-

1-1 कप दूध में 2 कप नारियल बुरादा और ¼ कप शकर डालकर मिश्रण के सूखने तक लगातार चलाते हुए तेज आंच पर पकायें. तैयार मिश्रण में इलायची पाउडर डालकर चिकनाई लगी ट्रे में बर्फी जमायें. ऊपर से मेवा और चाँदी के वर्क से सजायें. ठंडा होने पर मनचाहे आकार में बर्फी के पीस काटें.

2-बेसन के लड्डू बनाने में बेसन भूनने में बहुत समय लगता है. 5 मिनट में बेसन के लड्डू बनाने के लिए 2 कप बिना छिलके के भुने चने को मिक्सी में ग्राइंड करके पाउडर बना लें अब इसमें 1 कप गुड़ पाउडर, इलायची पाउडर और मेवा डालकर इंस्टेंट लड्डू बना लें.

3-ब्रेड स्लाइस के किनारे काटकर बटर लगाकर नानस्टिक तवे पर दोनों तरफ़ सुनहरा होने तक सेंक लें. अब प्रत्येक स्लाइस पर मिल्क मेड की पतली परत लगाकर मेवा से गार्निश करें. फ्रिज में रखकर सर्व करें.
4-1/4 कप मूंग की धुली दाल को आधे घंटे के लिए भिगो दें. आधे घंटे बाद पानी छलनी से छान दें और दाल को आधा टीस्पून घी में सुनहरा होने तक भून लें. भुनी दाल को प्रेशर कुकर में 1 लीटर दूध, 1 कप मिल्क पाउडर, ¼ कप शकर, केसर के धागे के साथ डालें और धीमी आंच पर 4 सीटियाँ ले लें. बारीक कटी मेवा डालकर इंस्टेंट मूंग खीर मेहमानों को सर्व करें.

5-2 कप मखानों को माइक्रोवेब में क्रिस्पी होने तक रोस्ट कर लें. ¼ कप गुड़ को धीमी आंच पर मेल्ट करें. जब गुड़ से बुलबुले उठने लगें तो गैस बंद करके मखाने डालकर अच्छी तरह चलायें. अब इन्हें माइक्रोवेब सेफ कंटेनर में रखकर मेहमानों को सर्व करें.

6-रोस्टेड बादाम और काजू को मेल्ट की हुई चौकलेट में डिप करके सिल्वर फायल पर रखें. ठंडा होने पर एयरटाइट जार में रखकर प्रयोग करें.

7-2 कप किसा पनीर, 1 कप मिल्क पाउडर, आधा कप शकर, 1 कप दूध को एक नानस्टिक पैन में अच्छी तरह मिक्स करें. अब इसे गैस पर रखें और लगातार चलाते हुए मिश्रण के गाढ़ा होने तक पकायें. लगभग 5 मिनट के बाद मिश्रण पैन के किनारे छोड़ने लगेगा. अब इस मिश्रण को चिकनाई लगी ट्रे में जमायें. ठंडा होने पर मनचाहे पीसेज में काटकर सर्व करें.

8-1 कप पिसे खजूर को एक नानस्टिक पैन में डालकर गर्म करें अब इसमें 1 कप रोस्टेड बारीक कटी मेवा और ½ कप किसा नारियल डालकर अच्छी तरह चलायें. ठंडा होने पर छोटे छोटे रोल बनाकर फ्रिज में रखें और आवश्यकतानुसार प्रयोग करें.

9-1 कप भुने चने के पाउडर को नानस्टिक पैन में डालें, आधा कप मलाई डालकर 2-3 मिनट तक चलायें. ¼ कप शकर मिलाकर 2-3 मिनट तक भूनें जैसे ही मिश्रण पैन के बीच में इकट्ठा होने लगे तो ट्रे में जमा दें. ऊपर से कटी मेवा से गार्निश करें. हल्की ठंडी में ही मनचाहे पीसेज में काट लें. काँच के जार में भरकर प्रयोग करें.

10-1/2 कप सूजी को पैन में 2-3 मिनट तक रोस्ट कर लें. अब इसमें 1 कप दूध, आधा कप मिल्क मेड और 1 टेबलस्पून घी डालकर अच्छी तरह चलायें. जब मिश्रण गाढ़ा होने लगे तो इलायची पाउडर और कटी मेवा डालकर स्वादिष्ट हल्वा तैयार कर लें.

कहीं तकिया तो नहीं है बीमारी का कारण ?

आप में से कुछ लोगों को तब तक नींद नहीं आती होगी जब तक आपको तकिया न मिले. क्या आपको तकिया लेने का जितना शौक है उतना ही उसके रखरखाव का भी है. अगर नहीं, तो इस वजह से आपका यह शौक आपको धीरे-धीरे बीमार कर देगा.

पूरे दिन की भागदौड़ के बाद आपको सुकून की नींद की आवश्यकता तो होगी ही. ऐसे में आरामदायक और मुलायम तकिया आपके लिए सोने में सोने पर सुहागे से कम नहीं होता. हम आपको बता देना चाहते हैं कि आपकी तकिये का सही रखरखाव न होने के कारण यह बीमारी का जरिया भी बन जाता है.

बैक्‍टीरियल संक्रमण का खतरा

आपको भले ही आपके पुराने तकिये से लगाव हो और इसके बिना आपको नींद नहीं आती हो पर क्‍या आप ये बात जानते हैं कि आपको चैन और सुकून की नींद देने वाला ये तकिया बैक्‍टीरिया का घर भी बन जाता है. आपके पुराने तकिये में काफी बैक्टीरिया और धूल हो जाती है. घर के अंदर आने वाली धूल-मिट्टी तकिये पर जम जाती है.

अगर आपके घर में कोई पालतू जानवर है तो उनके जरिये भी आपके तकिये पर बैक्‍टीरिया आ जाते हैं. ये बैक्‍टीरियाज आपकी सांस के जरिये आपके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और अस्‍थमा जैसी श्‍वसन संबंधी बीमारी का कारण बनते हैं. इसके अलावा इनके कारण आपको एलर्जी भी हो सकती है.

दर्द का कारण

पुराने तकिये का अधिक समय तक प्रयोग करने से गर्दन और पीठ में दर्द हो सकता है. चूंकि हमें सोते वक्‍त थोड़े सहारे की जरूरत होती है और अगर तकिये से सही तरीके से सहारा न मिले तो रीढ़ की ह‍ड्डी पर दबाव पड़ता है और इसके कारण गर्दन या कमर में भी दर्द होने लगता है.

तकिये की जांच कैसे करें

अगर आपका तकिया पुराना हो चुका है और उसका प्रयोग अब नहीं हो सकता है तो पहले उसकी जांच कर लें. यह देख लें कि तकिये में कितनी गंदगी जमी हुई है. इसके अलावा आपको सोते वक्त इससे परेशानी तो नहीं होती, यानि आपकी रात करवट बदलते हुए तो नहीं बीत जाती और सुबह उठने पर अगर आपको गर्दन में अकड़न, पीठ, टखनों या घुटनों में दर्द महसूस हो तो समझ जाइये कि अब तकिये को बदल देने की जरूरत है.

तकिया कैसा होना चाहिए

बाजार में कई तरह के तकिये मिलते हैं, उनमें से आपके लिए सबसे बेहतर तकिये का चुनाव करना आपके लिए मुश्किल तो हो सकता है, तो ऐसे में एक बेहतर और आरामदेह तकिये की खरीद में हम आपकी मदद कर सकते हैं..

1. पालिएस्‍टर सबसे मशहूर और सस्‍ता होता है, क्‍लस्‍टर युक्‍त इन तकियों को आप वॉशिंग मशीन में धो सकते हैं. इनको दो साल में बदल दीजिए.

2. लैटैक्स तकिये बहुत आरामदायक होते हैं, इनको तो आप 10-15 साल तक प्रयोग कर सकते हैं.

3. मेमोरी फोम तकिये भी बहुत ही आरामदेह होते हैं, क्‍योंकि ये लेटने पर सिर और गर्दन की शेप खुद ही बना लेते हैं. गर्भवती महिलाओं को इन तकियों का ही प्रयोग करने की सलाह दी जाती है.

4. पानी वाले तकिये में पानी के पाउच जैसा सपोर्ट होता है, ये तकिये नर्म होते हैं और हाइपो-ऐलर्जिक भी होते हैं, हां पर ये थोड़ा आरामदेह नहीं होते हैं.

इन बातों का रखें विशेष ध्‍यान :

अगर आप तकिया को लंबे समय तक इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों को ध्‍यान में रखना चाहिए..

1. अगर आपके बाल गीले हों तो तकिये पर न लेटें, क्‍योंकि गीली और गंदी जगह पर बैक्टीरिया जल्‍दी और ज्‍यादा पनपते हैं.

2. तकिये के साथ-साथ इसके कवर का भी ध्‍यान रखें. तकिये का कवर ऐसा हो जिससे धूल-मिट्टी अंदर तक न पहुंचे. अगर मुमकिन हो सके तो अपने बेडरूम में डी-ह्यूमिडफायर लाकर रख लें.

3. इन सुझावों और उपायों को ध्‍यान में रखेंगे तो आपकी नींद के बीच में आपका तकिया नहीं आयेगा. आपको चैन की नींद भी आएगी और आप हमेशा स्वस्थ्य रहेंगे.

शादी को 3 साल हो गए हैं पर अभी तक कंसीव नहीं कर पाई हूं?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल

मैं 26 वर्षीय विवाहिता हूं. शादी को 3 साल हो गए हैं पर अभी तक कंसीव नहीं कर पाई हूं. इस के लिए अब मैं सैक्स के दौरान नीचे तकिया भी रखती हूं और पति से कहती हूं कि स्खलित होने के बाद वे देर तक उसी अवस्था में रहें. फिर भी कंसीव नहीं कर पा रही जबकि मेरे पीरियड्स रैग्युलर हैं और हम नियमित रूप से सैक्स भी करते हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

सैक्स के दौरान इजैक्युलेशन के समय पुरुष के अंग से काफी तीव्र वेग से स्पर्म निकलते हैं और गहराई तक पहुंचते हैं. जो स्पर्म स्ट्रौंग नहीं होते वे वैजाइना से बाहर भी निकल जाते हैं, मगर इस से गर्भधारण प्रक्रिया में कोई फर्क नहीं पड़ता. यह एक आम प्रक्रिया है और इस से घबराने की भी जरूरत नहीं है.

अगर पति का स्पर्म काउंट सही है, आप का पीरियड्स रैग्युलर है तो संभव है कि आप के कंसीव न कर पाने के पीछे कोई और मैडिकल वजह हो. यह वजह आप में या फिर आप के पति दोनों में से किसी में भी हो सकती है. अच्छा यही होगा कि आप किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा से सलाह लें और फर्टिलिटी के बारे में बात करें. तभी आप जल्दी कंसीव कर पाएंगी.

जब कोई भी जोड़ा (कपल) इनफर्टिलिटी (बांझपन) की वजह से बच्चा नहीं पैदा कर पाता है तो उनके लिए यह बहुत ही दुःख की बात होती है. बच्चा न पैदा कर पाने की वजह से जोड़ों को कई सारी भावनाओं और बांझपन के कलंक को झेलना पड़ता है. इससे सबसे ज्यादा महिलाएं प्रभावित होती हैं.

इनफर्टिलिटी का डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से चुनौतीपूर्ण होता है.  इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट के सफल होने का दर कई सारे कारणों पर निर्भर करता है. जिसमे प्रभावित जोड़ों की उम्र, इनफर्टिलिटी होने का कारण के साथ-साथ इसके लिए किस तरह का इलाज किया जा सकता है, यह सभी कारण भी शामिल होते है.

 

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सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बुझते दिए की लौ

अपने वीरान से फ्लैट से निकल कर मैं समय काटने के लिए सामने पार्क में चला गया. जिंदगी जीने और काटने में बड़ा अंतर होता है. पार्क के 2 चक्कर लगाने के बाद मैं दूर एकांत में पड़ी बैंच पर बैठ गया. यह मेरा लगभग रोज का कार्यक्रम होता है और अंधेरा होने तक यहीं पड़ा रहता हूं.

बाग के पास कुछ नया बन रहा था. वहां की पहली सीढ़ी अभी ताजा थी इसलिए उस को लांघ कर सीधे दूसरी सीढ़ी पर पहुंचने में लोगों को बहुत परेशानी हो रही थी. मैं लोगों की असुविधा को देखते हुए हाथ बढ़ा कर उन्हें ऊपर खींचता रहा. बडे़बूढ़ों का पांव कांपता देख मैं पूरी ताकत से उन्हें ऊपर खींच रहा था पर बेहद आहिस्ता से.

‘हाथ दीजिए,’ कह कर मैं लगातार उस औरत को आगे आने को कहता और वह हर बार हिचकिचा कर सीढि़यों की बगल में खड़ी हो जाती. हलके भूरे रंग के सूट के ऊपर सफेद चुन्नी से उस ने अपना सिर ढांप रखा था. मैं ने फिर से आग्रह किया, ‘‘हाथ दीजिए, अब तो अधेरा भी शुरू होने वाला है.’’

उस ने धीरे से मुझे अपना हाथ पकड़ाया. मैं ने जैसे ही उस के हाथ को स्पर्श किया उस के कोमल स्पर्श ने मुझे भीतर तक हिला दिया. इसी प्रक्रिया में उसे सहारा देते समय उस की चुन्नी सिर से ढलक कर कंधे पर आ गई. उस ने मुझे देखते ही कहा, ‘‘तब तुम कहां थे जब मैं ने इन हाथों का सहारा मांगा था?’’

‘‘तुम नूपुर हो न,’’ मैं ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘शुक्र है, तुम्हारे होंठों पर मेरा नाम तो है,’’ कहतेकहते उस की आंखों में पानी आ गया और वह सीढि़यों से हट कर एक कोने में चली गई. मैं भी उस के पीछेपीछे वहां आ गया. वह बोली, ‘‘मैं ने परसों तुम को पार्क में देखा तो इन आंखों को सहज विश्वास ही नहीं हुआ कि वह तुम हो…कैसे हो?’’

‘‘ठीक ही हूं,’’ मैं ने बुझे मन से कहा और उस का पता जानने के लिए अधीर हो कर पूछा, ‘‘यहां कहां रहती हो?’’

‘‘सेक्टर 18 में. मेरे बडे़ भाई वहीं रहते हैं. जब मन बहुत उदास हो जाता है तो यहां आ जाती हूं.’’

मैं उस के चेहरे को देखता रहा. उस के बाल समय से पहले सफेदी पर थे. पर उस की सफेद चुन्नी और सूनी मांग देख कर मैं सहम सा गया. कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं जुटा सका. दोनों के बीच में एक गहरा सा सन्नाटा पसर गया था. भाव व्यक्त करने के लिए शब्दों का अभाव लगने लगा. वर्षों की चुप्पी के बाद भी शब्दों को तलाशने में बहुत समय लग गया. खामोशी को तोड़ते हुए मैं ने ही कहा, ‘‘चलो, दूर पार्क में चल कर बैठते हैं.’’

एक आज्ञाकारी बालक की तरह वह मेरे साथ चल दी थी. हमारे बीच का गहरा सन्नाटा मौन था. उस के बारे में सबकुछ जानने के लिए मैं बेहद उतावला हो रहा था पर बातें शुरू करने का सिरा पकड़ में नहीं आ रहा था.

मरकरी लाइट के पोल के पास नीचे हरी घास में हम दोनों ही एकदूसरे की मूक सहमति से बैठ गए. ठीक वैसे ही जैसे बचपन में बैठा करते थे. उस के  शरीर से छू कर आने वाली ठंडी हवा मुझे भीतर तक सुखद एहसास दे रही थी.

‘‘और कौनकौन है यहां तुम्हारे साथ?’’ मैं ने डूबते हुए दिल से पूछा.

‘‘कोई नहीं. बस मैं, भैयाभाभी और उन की एक 8 साल की बेटी. और तुम्हारे साथ कौन है?’’

‘‘बस, मैं ही हूं,’’ मेरा स्वर उदास हो गया.

बातोंबातों में उस ने बताया कि शादी के 10 साल बाद ही उस के पति एक सड़क दुर्घटना में चल बसे थे. एक बेटी है जो वनस्थली में पढ़ती है और वहीं होस्टल में रहती है. संयुक्त परिवार होने के नाते सबकुछ वैसा चला जो नहीं चलना चाहिए था. उस घर में रहना और ताने सहना उस की मजबूरी बन चुकी थी. पति के गुजर जाने के बाद कुछ दिन तो सहानुभूति में कट गए, बस उस के बाद सब ने अपनेअपने कर्तव्यों से इतिश्री मान ली.

पिछले साल बेटी के होस्टल जाने के बाद थोड़ी राहत सी महसूस की पर मन बहुत ही उदास और अकेला हो गया. जिंदगी की लड़ाइयां कितनी भयंकर होती हैं, मन बहुत उदास होता है तो कुछ दिनों के लिए यहां चली आती हूं. सच, बहुत कुछ सहा है मैं ने.’’ इतना कह कर वह बिलखती रही और मैं पाषण बना चुपचाप उस का रुदन सुनता रहा. मेरे मन में इस इच्छा ने बारबार जन्म लिया कि किसी न किसी बहाने उसे स्पर्श करूं, उस को सीने से लगाऊं, उस के लंबे केशों को सहला कर उसे चुप करा दूं पर शुरू से ही संकोची स्वभाव का होने के कारण कुछ भी न कर पाया.

मेरी आंखें भर आईं. मैं मुंह दूसरी तरफ कर के सुबकने लगा. एक लंबी ठंडी सांस ले कर मैं ने कहा, ‘‘पता नहीं यह संयोग है कि तुम्हें एक बार फिर से  देखने की हसरत पूरी हो गई.’’

बातों का क्रम बदलते हुए उस ने अपनी आंखों को पोंछा और बोली, ‘‘तुम ने अपने बारे में तो कुछ बताया ही नहीं.’’

‘‘मेरे पास तुम्हारे जैसा बताने लायक तो कुछ नहीं है,’’ मैं ने कहा तो गहरे उद्वेग के साथ कही गई मेरी बातों में छिपी वेदना को उस ने महसूस किया और मेरा हाथ जोर से दबा कर सबकुछ कह कर मन हलका करने का संकेत दिया.

‘‘अपने से कहीं ऊंचे स्तर के परिवार में मेरा विवाह हो गया. पत्नी के स्वछंद एवं स्वतंत्र होने की जिद ने मुझे डंस लिया. अत्यधिक धनसंपदा ने भी इस को मुझ से दूर ही रखा. बातबात पर झगड़ कर मायके जाना और मायके वालों का मेरी पत्नी पर वरदहस्त, कुल मिला कर हमारी बीच की दूरियां बढ़ाता ही रहा. वह चाहती थी कि मैं घरजमाई बन कर हर ऐशोआराम की वस्तु का उपभोग करूं मगर मेरे जमीर को यह मंजूर नहीं था. 1-2 बार मेरे मातापिता उसे मनानेसमझाने भी गए पर उन्हें तुच्छ एवं असभ्य कह कर उस ने बेइज्जत किया. फिर मैं वहां नहीं गया.

‘‘मेरे जुड़वां बेटाबेटी हैं, उसी के पास रहते हैं. जब कभी मेरा मन बच्चों से मिलने को चाहता है मैं उन्हें कहीं बाहर बुला कर मिल लेता हूं. उन के मन में मेरे प्रति न प्यार है न नफरत. जब से मेरे ससुरजी का देहांत हुआ है, उस ने दोनों बच्चों को होस्टल में भेज दिया है. पत्नी के मन में आज भी मेरे प्रति नफरत कूटकूट कर भरी है. सारा जीवन बस, यों ही बीत गया.

‘‘जीवन कैसा भी बीते, पर उसे छोड़ने का मन ही नहीं करता. धीरेधीरे यह दर्द मेरे जीवन का हिस्सा बन गया है, फिर तो अकेले ही जिंदगी जीने की जंग शुरू हो गई जो आज तक चल रही है. मैं पिछले 3 सालों से इसी शहर में हूं, और पास ही के एक बैंक में मैनेजर हूं. बस, यही है मेरी कहानी.’’

हम दोनों ही अतीत की यादों में खो गए. जिंदगी की किताब के पन्ने पलटते रहे एवं एकएक पड़ाव जांचते रहे. यही भटकाव कभीकभी आदमी के भविष्य की दिशा तय कर देता है. रात काफी घिर चुकी थी. बड़े बेमन से हम ने एकदूसरे से विदा ली.

नूपुर से मिलने के बाद मेरा दिल बहुत बेचैन हो गया था. खाना खाने का मन नहीं था इसलिए महरी को दरवाजे से ही वापस भेज दिया. मैं चाय का गिलास लिए ड्राइंगरूम में बैठ गया. सहसा स्मृति कलश से पुन: एक स्मृति उभर कर मुझे कई बरस पीछे ले गई. मेरे विचारों के तार कब अतीत से जुड़ गए पता ही न चला.

उस छोटे से शहर में कालोनी के कोने वाले मकान में वे लोग नएनए आए थे. मां प्रतिदिन सवेरे टहलने जातीं तो नूपुर की मां का भी वही नित्यकर्म था. हम अपनीअपनी मां के साथ पार्क में आते और जब तक मां टहलतीं पार्क में एक तरफ बैठ कर बातें करते रहते. हमउम्र होने के कारण हमारी आपस में बहुत बनने लगी. खेलतेखेलते कब जवान हो कर एकदूसरे के करीब आ गए पता ही न चला.

दिन बीतते गए. हमारी खुशियों का कोई अंत नहीं था. मगर एक दिन सूर्योदय होने से पहले ही सूर्यास्त हो गया. उस के पिताजी को दिल का दौरा पड़ा और वे सदा के लिए संसार से कूच कर गए. इस तरह एक दिन उस परिवार पर कहर टूट पड़ा.

उस रोज की शाम हर रोज की तरह नहीं हुई. जब तक मैं कालिज से आया उन का सामान ट्रक में लादा जा चुका था, पता चला वे लोग पूना अपने घर जा रहे हैं, मैं नूपुर से मिल भी नहीं सका. उस से मिलने की हसरत बस, मन में सिमट कर रह गई. न तोप चली न तलवार, न सूई चली न नश्तर पर हृदय पर ऐसा गहरा आघात लगा कि मैं ठीक से संभल न पाया.

मेरे तो प्राण ही निकल गए. वह साल बेहद उदासी में बीता. मैं पार्क में बैठ कर पुरानी यादों को दोहराता रहता. मेरे पास उस का अब कोई संपर्क सूत्र भी नहीं था.

एम. काम. करने के बाद मेरी बैंक में नियुक्ति हो गई तो मुझे देहरादून जाना पड़ा. बातों का सिलसिला इस के बाद जा कर थम गया. लेकिन उस की यादें मेरे मन में बनी रहीं.

एक बार दीवाली पर घर आया तो मां ने यों ही दिल के तार छेड़ दिए, ‘तुझे याद है. हमारे पड़ोस में वर्माजी रहते थे, वही जिन की बेटी नूपुर के साथ तू अकसर खेला करता था.’

‘हां,’ मेरा दिल धक से कर गया, ‘कहां है वह?’

‘पिछले दिनों उस की मां का फोन आया था. अपनी बेटी के रिश्ते की बात करने लगीं.’

‘तो क्या कहा आप ने?’ मैं ने उत्सुकता से सांसें थाम कर पूछा.

‘मैं भला क्या कहती. जब भी तुझ से रिश्ते की बात करती, तू टाल जाता था. मुझे लगा तेरे मन में कोई है और जब समय आएगा तू खुद ही बता देगा.’

‘नहीं, मां, मेरे मन में ऐसा कुछ भी नहीं था, न है,’ मैं ने सारा संकोच त्याग कर मां से मनुहार की, ‘चाहो तो एक बार फिर से बात कर के देख लो.’

और जब तक मां ने बात की, बहुत देर हो चुकी थी. मां ने रोंआसी सी हो कर बताया कि नूपुर की शादी तेरे साथ करने को उन का बड़ा मन था और नूपुर की भी रजामंदी थी पर समय से मैं कुछ जवाब न दे सकी तो वह उदास हो गईं. अब तो नूपुर की सगाई भी हो चुकी है.

मेरा दिल भारी हो गया और अगले दिन ही मैं वापस देहरादून चला गया. उस जैसा फिर मन को कोई प्यारा न लगा. मैं ने उस का अस्तित्व ही भुला देना चाहा पर भूलने के लिए भी मुझे हमेशा याद रखना पड़ा कि मुझे उसे भूलना है जो सहज न हो सका.

आज इतने सालों के बाद सारी बातों की पुनरावृत्ति ने मुझे झकझोर कर रख दिया. मैं ने धीरे से आंखें मूंद लीं पर फिर भी आंसू का एक कतरा न जाने कहां से निकल कर मेरे गालों पर आ गया.

अगले दिन सुबह घूमने के लिए मैं बाहर जाने लगा तो दरवाजे पर नूपुर को देख कर रुक गया. हैरानगी से पूछा, ‘‘नूपुर, तुम?’’

‘‘घूमने जा रहे हो, चाय नहीं पिलाओगे, देखूं तो अकेले कैसे रह लेते हो.’’

उस के शब्दों के इस आक्रमण से मैं  सकपका सा गया परंतु उस के साथ रहने का कोई मौका भी गंवाना नहीं चाहता था सो बोला, ‘‘चलो, आज सैर रहने देता हूं.’’

‘‘नहीं, तुम जाओ, तब तक मैं चाय तैयार करती हूं,’’ अपने होंठों पर चिर- परिचित मुसकान के साथ नूपुर बोली, ‘‘नित्यकर्म नहीं छूटना चाहिए, चाहे शरीर छूट जाए,’’ उस ने यह उसी अंदाज में कहा जैसे पार्क का चौकीदार टहलने वालों से कहा करता था. हम दोनों बीती बातों को याद कर हंस पड़े.

वह मेरे साथ ही घर के अंदर आ गई. दिन पखेरू की तरह उड़ने लगे. जिंदगी ने खुद ही खुशनुमा वारदात की शुरुआत कर दी. हमारा मिलनाजुलना लगातार जारी रहा और निरंतर एकदूसरे को सहारा देते रहे. उस ने भी अपनी छुट्टियां बढ़वा लीं.

उस दिन दोपहर से ही मेरा मन बहुत बेचैन और क्षुब्ध था. शाम होतेहोते उस ने वह बात बता दी जो मैं पहले से ही जानता था. मेरे पास आते ही साड़ी के पल्लू को उंगलियों पर इस तरह लपेट रही थी जैसे कोई महत्त्वपूर्ण बात कहने की भूमिका सोच रही हो.

‘‘मेरे स्कूल की छुट्टियां समाप्त होने जा रही हैं, कल वापस चली जाऊंगी.’’ यह सुन कर मुझे काठ मार गया. मैं तड़प उठा. बेहद धीमी आवाज में डूबते हुए दिल से पूछा, ‘‘फिर कब लौटोगी, क्या फैसला किया है?’’

‘‘कुछ फैसले हिसाब लगा कर नहीं किए जाते, जिंदगी खुद ही कर देती है.’’

‘‘फिर भी,’’ मैं उस के मुंह से सुनना चाहता था.

‘‘मैं नहीं जानती,’’ वह रोंआसी सी हो गई, फिर स्वयं को नियंत्रित कर लड़खड़ाते शब्दों में पूछा, ‘‘तुम…’’

‘‘मेरा क्या है…जब तक मन चाहा रह लूंगा. फिर ढलते सूरज का क्या पता कब अस्त हो जाए.’’

‘‘ऐसा क्यों कहते हो,’’ कहते हुए नूपुर ने मेरे कंधे पर सिर टिका दिया. मेरी सिसकियां रुलाई में फूट पड़ीं. प्रेम का एहसास इतना गहरा होता है, मैं ने कभी सोचा भी न था. हम एकदूसरे के बाहुपाश में बंध गए.

आखिर वह मनहूस घड़ी आ ही गई. मैं उसे स्टेशन तक छोड़ने गया. गाड़ी के जाने तक मैं भागदौड़ कर उस के लिए पानी और फलों का इंतजाम करता रहा. बड़े भारी मन से मैं ने उसे विदा किया. मुझे लगा, लगातार मेरे शरीर का एक हिस्सा कटता जा रहा है पर मुझे तो अपने हिस्से की पीड़ा भोगनी थी, उसे अपने हिस्से की.

नूपुर क्या गई मेरा सारा सुखचैन ही चला गया. मुझे सबकुछ वीराना सा लगने लगा. बरसों तक जो बात सीने में छिपी थी वह फिर से पपड़ी पड़े घाव को कुरेद गई. वह न मिलती तो अच्छा था. मैं जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहता था ताकि रास्ते में मुझे कोई रोता हुआ न देख ले.

नूपुर की यादों ने पुन: मुझे तोड़ कर रख दिया. उस के बिना कुछ भी करने को मन नहीं करता. जब मन ज्यादा बेचैन होने लगता तो उसे लंबेलंबे पत्र लिखता और फाड़ कर फेंक देता.

इस उम्र में जब मैं जिंदगी को समेटने में व्यस्त था, नूपुर के प्रति इतनी चाहत बनी रहेगी, यह पहले पता होता तो उस से कभी न मिलता. घंटे दिनों में बदल गए, दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में. हमारे बीच निरंतर संपर्क बना रहा. फोन की हर घंटी पर मैं दिल की धड़कन में तेजी महसूस करता.

मेरा वीआरएस (रिटायरमेंट) स्वीकृत हो गया. मैं ने शहर से दूर पहाड़ी पर बनी कालोनी में एक फ्लैट ले लिया और जब नूपुर को इस बारे में बताया तो वह बहुत खुश हुई. पूछा, ‘‘कब तक कब्जा मिलेगा?’’

‘‘वह सब तो मिल चुका है. बस, गृहप्रवेश बाकी है.’’

‘‘अच्छा, कब कर रहे हो गृह- प्रवेश?’’

‘‘जब तुम आ जाओ. मेरा इस दुनिया में और है ही कौन? 14 मार्च ठीक रहेगी.’’

‘‘समझ गई, तुम्हारे जन्मदिन वाले दिन. इस से अच्छा और कोई दिन हो भी नहीं सकता है. मैं कोशिश करूंगी पर मेरा इंतजार मत करना.’’

14 मार्च के दिन सुबह से ही मैं ने घर धुलवा कर 2 गेंदे की मालाएं दरवाजे पर लटका दी थीं और मौली में आम के पत्ते बांध कर ऊपर तोरण बांध दिया. मुझे मां के कहे शब्द अचानक याद आ गए. वह कहा करती थीं, ‘‘बाहर दरवाजे पर आम के पत्ते मौली में गूंथ कर जरूर बांधना क्योंकि आम हमेशा हराभरा रहता है.’’

आम के पत्ते बांधने के बाद मेरी गृहस्थी कितनी हरीभरी रही इस को देखने के लिए आज मां मेरे बीच नहीं थीं. उन के बारे में सोच कर मेरी आंखें भर आईं.

मैं मिठाई की दुकान से एक डब्बा काजू की कतली और नमकीन ले आया. दोनों ही नूपुर को बहुत पसंद थे. मुझे आशा ही नहीं विश्वास भी था कि नूपुर यहां पहुंचने का हरसंभव प्रयत्न करेगी.

मुझे नूपुर का ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा. वह सीधी मेरे फ्लैट पर आ गई. उस के साथ उस की बेटी भी थी. एकदम वैसी ही जैसे नूपुर को मैं ने बचपन में देखा था. मुझे देख कर उस का चेहरा खिल उठा तो मन में आया कि उसे सीने से लगा लूं. आज मेरे बच्चे भी इतने ही  बड़े होंगे. रुंधे गले से मैं इतना ही कह पाया, ‘‘काश, आज मेरे बच्चे भी होते.’’

‘‘यह भी तो तुम्हारी ही बच्ची है, फिर भी अपने बच्चों को देखना चाहते हो तो सामने देखो,’’ उस ने मेरे कंधों का सहारा ले कर सामने टैक्सी की तरफ इशारा किया, ‘‘मैं इन्हें होस्टल से ले कर आई हूं. मैं जानती थी कि पत्नी के मरने के बाद तुम इन की कमी महसूस करोगे.’’

‘‘क्या वह नहीं रही?’’ मैं चौंक गया.

‘‘उन्हें गुजरे तो 6 माह हो गए हैं. उन्होंने जानबूझ कर तुम को नहीं बताया,’’ फिर मुझे एक तरफ ले जा कर बोली, ‘‘इन बच्चों के मन में तुम्हारे प्रति यह कह कर जहर भर दिया गया है कि तुम उन की अंत्येष्टि में भी नहीं आए. बड़ी मुश्किलों और आश्वासनों के साथ इन को यहां लाई हूं.’’

मुझे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. मैं झट से नूपुर को साथ ले कर टैक्सी के पास गया और कस कर बच्चों से लिपट गया.

थोड़ी देर साथ रहने के बाद नूपुर वापस जाने लगी तो मेरा मन टूटने लगा. किस अधिकार से उसे रोकूं. फिर भी भरे कंठ से बोला, ‘‘रुक जाओ, नूपुर. मुझे इस तरह अकेला छोड़ कर मत जाओ.’’

वह खामोश असहजता को छिपाने का असफल प्रयत्न करती रही. उस की चुप्पी मुझे निराश कर गई. एक दीर्घ ठंडी सांस ले कर मैं ने पूछा, ‘‘नूपुर, क्या मेरा कोई अधिकार है तुम पर?’’

‘‘ऐसा शरीर में कोई कोना नहीं जहां तुम्हारा अधिकार न हो,’’ वह मेरी आंखों में झांकते हुए बोली थी. उस के शब्द मेरे दिल की गहराइयों में उतर गए. जैसे इस छोटे से वाक्य में जीवन का सारा निचोड़ समाया हो. फिर डबडबाई आंखों से बोली, ‘‘तुम क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं, नूपुर. क्या अब हम सब साथसाथ नहीं रह सकते?’’

‘‘तुम ने ऐसी वस्तु मांगी है जो पहले से ही तुम्हारी थी,’’ वह सिसकने लगी. शायद वह भी मुझ से सहारा चाहती थी.

मैं ने एक बार बच्चों की तरफ देखा. मेरे मन के भावों को पढ़ते हुए नूपुर बोली, ‘‘अब ये बच्चे इतने नादान नहीं हैं. मैं ने उन्हें अपने और तुम्हारे बारे में सबकुछ साफसाफ बता दिया है. कल पूरी रात बच्चे मेरे साथ थे. ये सबकुछ समझते हैं.’’

मैं ने दूर से बच्चों की तरफ देखा. तीनों बच्चे आंखों से इस रिश्ते को स्वीकार कर रहे थे. समय कब, कौन सी करवट बदले कोई नहीं जानता. इस नए बंधन की झुरझुरी हमारे मन के भीतर तक फैल गई.

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