एक बाती बुझती हुई: बसंती ने कैसे निभाया अपना फर्ज?

‘‘माताजी, मैं जाऊं,’’ माताजी का सिर सहलाते बसंती ने पूछा तो वे क्षीण स्वर में बोलीं, ‘‘अभी मत जा…’’

बीमारी ने माताजी का शरीर जर्जर और मस्तिष्क कुंद कर दिया था. पिछले सवा साल से वे बिस्तर पर थीं. पहले जबान लड़खड़ाई, फिर कदम बेजान हो गए तो वे बिस्तर की हो कर रह गईं. जब तक वे थोड़ाबहुत चल पाती थीं, यही बसंती बाथरूम तक जाने में उन की मदद कर देती थी. उन का दिमाग ठीक था तो वे बसंती के हाथ में कुछ न कुछ रख देती थीं. कभी रुपए, कभी साड़ी, कभी कुछ और यानी उसे कभी खाली हाथ नहीं जाने देतीं. वे सोचतीं किस के लिए जोड़ना है. अब जो उन की सेवा कर दे, उसी को दे दें.

बसंती उन के घर में पिछले 20 साल से काम कर रही थी. उन की दोनों बहुएं भी उसी के सामने आई थीं. खुद बसंती भी तब 20 की थी अब 40 की हो गई थी.

बसंती भी कितनी देर तक रहती. दूसरे वह कई घरों में काम भी करती थी. धीरेधीरे माताजी इस लायक भी नहीं रह गईं कि अलमारी से निकाल कर उसे कुछ दे सकें. फिर भी बसंती उन का काम कर देती थी. घर में 2 बेटे, 2 बहुएं थीं. बेटों का अपनी बीवियों को नौकरी करने के लिए मना करने पर, माताजी की जिद व प्रयासों से वे नौकरी कर पाई थीं लेकिन आज जब वे बिस्तर की हो कर रह गईं तो बहुएं उन के कमरे में झांकती भी नहीं थीं. छोटी बहू आ कर दवाइयां सामने रख जाती थी…जब तक वे खुद खा पातीं, खा लेती थीं. जब नहीं खा पाईं तब बसंती का इंतजार करतीं. बड़ी बहू बेमन से भोजन की थाली रख जाती.

माताजी के कपड़े जब मलमूत्र से गंदे हो जाते तो उन्हें वैसे ही रह कर बसंती का इंतजार करना पड़ता. बहुएं कमरे में दवाई और खाना रखने आतीं तो बदबू के मारे नाकभौं सिकोड़ कर चली जातीं. बसंती सुबहशाम तो उन की सफाई कर देती पर दिनभर तो वह नहीं रहती थी. वे अकेले ही घर में पड़ी रहतीं. बहूबेटे घर पर ताला लगा कर चले जाते.

जिन नातेरिश्तेदारों से घर हमेशा भरा रहता था, जीवन के इस अंतिम समय में जैसे उन्होंने भी मुंह फेर लिया. कमरे की दुर्गंध की वजह से वे दरवाजे से झांक कर चले जाते. बीमारी की वजह से उन की याददाश्त कमजोर हो गई थी. इसलिए वे कुछ को पहचान पातीं, कुछ को नहीं. उन के मन में बारबार यही आता कि इस जीवन से तो अच्छी मौत है.

उन की इस दुर्गति को देख कर बेटों का दिल पसीजा तो दोनों ने मिल कर उन के लिए एक नर्स का प्रबंध र दिया. चूंकि बैंक में उन का थोड़ाबहुत पैसा पड़ा था इसलिए कोई दिक्कत नहीं थी.

‘‘ठीक से देखभाल करना माताजी की…कोई शिकायत का मौका न देना,’’ बड़ा बेटा बोला.

‘‘जी, साब,’’ नर्स बोली.

छोटा बेटा आनेजाने वाले रिश्तेदारों से कहता, ‘‘हमें माताजी की बहुत चिंता रहती है, इसलिए नर्स रख दी है…’’

‘‘बहुत कर रहे हो…’’ रिश्तेदार कहते.

दिनभर घर में कोई नहीं रहता. नर्स सुबह सफाई करती और शाम को सब के घर आने से पहले कर देती, बाकी समय कुरसी पर बैठी या तो पत्रिका पढ़ती या स्वेटर बुनती रहती. बसंती इधरउधर से काम निबटा कर माताजी को देखने पहुंच जाती. कमरे में पहुंचती तो नर्स को अपनेआप में ही व्यस्त पाती.

‘‘गंध आ रही है, कहीं माताजी ने पौटी तो नहीं कर दी.’’

‘‘पता नहीं, अभी तो साफ की थी… माताजी को भी चैन नहीं…जब देखो, तब कपड़े खराब करती रहती हैं…सारा दिन यही काम है…’’

बसंती को देख कर माताजी की अधखुली आंखों में चमक आ जाती. वे किसी को पहचानें न पहचानें पर बसंती को अवश्य पहचान जातीं. जिंदगी भर शान से जीने वाली माताजी, एक नर्स की डांट खा कर, सहम कर और भी सिकुड़ जातीं.

‘‘देखो, पेशाब की थैली भर गई… गिर जाएगी…ये भी खाली नहीं की तुम ने…’’ बसंती नर्स को उस के काम की याद दिलाती.

‘‘तुझे क्या मतलब है,’’ नर्स तिलमिला कर कहती, ‘‘घर की मालकिन है क्या…मुझ से सवालजवाब करती रहती है…यह मेरा काम है, मैं देख लूंगी…’’

इतने में बसंती माताजी को पलटा कर देखने लग जाती तो पाती माताजी पूरी तरह गंदगी में सनी हुई हैं. नर्स वापस लौटती तो बसंती को चुपचाप सफाई करते हुए पाती. बसंती के चेहरे पर गुस्सा होता. पर जानती थी अभी कुछ बोलेगी तो झगड़ा हो जाएगा. बसंती को सफाई करते देख, नर्स को थोड़ा शर्मिंदगी का एहसास होता और वह कहती, ‘‘अभी तो सफाई की थी, फिर कर दी होगीं.’’

साब लोगों से बसंती नर्स की शिकायत नहीं कर पाती. सोचती दिनभर घर में कोई रहता नहीं है. डांट पड़ने पर नर्स भी भाग गई तो इस सूने घर में माताजी के साथ कोई भी न रहेगा. बसंती का हृदय माताजी के लिए करुणा से भर जाता.

इन बड़ीबड़ी महलनुमा कोठियों में ऐसा ही होता है. कई घरों का हाल देख चुकी है बसंती, बेटेबहुएं बड़ीबड़ी नौकरी करते हैं और दिनभर घर से गायब रहते हैं. बच्चे पढ़ने के लिए बाहर चले जाते हैं और बुजुर्ग इसी तरह एक कमरे में, बिस्तर पर अकेले पड़े हुए मौत का इंतजार करते हैं.

दिन बीतते जा रहे थे. धीरेधीरे माताजी की आवाज भी कम होने लगी. वे कभीकभार ही कुछ शब्द बोल पातीं, लेकिन बसंती को देख कर अभी भी उन की आंखें चमक जातीं और उन के होंठों के हिलने से लगता कि वे बसंती से कुछ बोल रही हैं. लेटेलेटे माताजी के पीछे की तरफ घाव होने लगे तो बसंती ने हिम्मत कर के छोटी बहू से कह दिया, ‘‘बहूजी, माताजी की पीठ में घाव होने लगे हैं…डाक्टर को दिखा दो…’’

‘‘वे तेरी सास हैं या मेरी…बड़ी फिक्र पड़ी है तुझे…’’ छोटी बहू कड़कती हुई बोलीं.

‘‘बहूजी, मैं तो सिर्फ बता रही थी.’’

‘‘तू ने कब देखा…नर्स ने तो कुछ नहीं बताया…नर्स किसलिए रखी है…अपनेआप देखेगी वह…सारा दिन लेटी रहती हैं, घाव तो होंगे ही…अब इस से ज्यादा कोई क्या करे…फुलटाइम नर्स तो रख दी है…’’

‘‘लेकिन बहूजी, सेवा तो अपने हाथ से होती है…आप लोग तो घर में रहते नहीं हो…नर्स थोड़े ही इतना करेगी,’’ बसंती किसी तरह हिम्मत कर बोल गई.

तभी बड़ी बहू बीच में बोल पड़ी, ‘‘तू जरा कम बोला कर और अपने काम पर ध्यान ज्यादा दिया कर.’’

‘‘अपने काम पर तो ध्यान देती हूं,’’ बसंती धीरेधीरे बुदबुदाती हुई अपने काम पर लग गई. फिर एक दिन बसंती से न रहा गया इसलिए बोल पड़ी :

‘‘बहूजी, आप जो खाना रख कर जाती हो वैसे ही पड़ा रहता है…माताजी से सब्जीरोटी कहां खाई जाती होगी, कुछ जूस, सूप, दलिया, खिचड़ी आदि बना दिया करो न उन के लिए…’’

‘‘हां, कई नौकर लगे हैं न यहां…और कोई काम तो है नहीं हमारे पास…सिवा एक काम के…’’ दोनों बहुएं एकसाथ बड़बड़ाने लगतीं और बसंती चुपचाप माताजी के क्षीण होते शरीर को देखती रहती.

माताजी के बैडसोर बड़े होने लगे थे. नर्स घावों की सफाई भी ठीक से नहीं करती, ऊपर से माताजी का पेट चलता तो दवाई भी ठीक से न दे पाती. कमरा सड़ांध से भरा रहता और बसंती उन की दुर्दशा पर चुपचाप आंसू बहाती रहती.

उस ने माताजी का वह समय देखा था, जब यहां काम करना शुरू किया था. तब वह माताजी को देख कर कितनी हुलसित हो जाती थी. कितनी शानदार लगती थीं माताजी तब…क्या शरीर था उन का… ममतामयी माताजी उसे बहुत ही अच्छी लगतीं. तब साहब भी जिंदा थे. पूरे घर की बागडोर माताजी के हाथ में थी. उन के दोनों बेटे उस के देखतेदेखते ही बड़े हुए थे.

उस के कितने ही सुखदुख में माताजी ने उस का साथ दिया और बदले में वह भी माताजी के पूरे काम आती. कितना देती- करती थीं माताजी उसे…उस के बच्चे बीमार पड़ते तो बिना काम के भी उसे रुपए पकड़ा देतीं. वह अपने शराबी आदमी से परेशान होती तो माताजी उसे धैर्य बंधातीं…सास के तानों से तारतार होती तो माताजी उसे पास बिठा कर समझातीं और इसी तरह उस की जीवन नैया पार लगी. आज बसंती के खुद के बच्चे भी बड़े हो गए हैं.

आज उन्हीं माताजी को तिलतिल कर मरते देख वह कुछ नहीं कर पा रही थी. हां, इतना जरूर था कि वह जब होती तो नर्स के साथ लग जाती. जब नहीं होती तो नर्स क्या करती, क्या नहीं करती वह नहीं जानती थी. एक दिन जब बसंती काम निबटा कर माताजी को देखने पहुंची तो कमरे से माताजी की कराहने की आवाज आ रही थी और नर्स की फोन पर बात करने की. वह कमरे में गई तो देखा, माताजी उघड़े बदन आधीअधूरी सफाई में वैसे ही ठंड में पड़ी हैं और नर्स फोन पर बात कर रही है. बसंती को देख कर उस ने फोन बंद कर दिया.

‘‘तुम काम छोड़ फोन पर बात कर रही हो और माताजी उघड़े बदन पड़ी हैं… उन्हें ठंड नहीं लग रही होगी,’’ बसंती का चेहरा गुस्से से तमतमा गया.

‘‘कर तो रही थी पर बीच में कोई फोन आ जाए तो क्या न उठाऊं.’’

‘‘तुम्हें यहां तनख्वाह माताजी का काम करने की मिलती है…फोन पर बात करने की नहीं…’’ बसंती अपने गुस्से को रोक नहीं पा रही थी.

‘‘तू जरा जबान संभाल कर बात किया कर…तू नहीं देती है मुझे तनख्वाह…’’

‘‘हां…जो तनख्वाह देते हैं, उन्हें तो पता नहीं कि तू क्या करती है…आज तो मैं कह कर रहूंगी.’’

‘‘जा…जा…कह दे, बहुत देखे तेरे जैसे…’’

नर्स भी कहां चुप रहने वाली थी. उस अकेले घर में बिस्तर पर असहाय बीमार पड़ी माताजी के सामने बसंती व नर्स की तूतू, मैंमैं होती रही. बसंती का मन उस दिन बहुत खराब हो गया. उस ने सोच लिया था कि अब चाहे काम छूटे या डांट पड़े, उसे माताजी के बहूबेटों को सबकुछ बताना ही पड़ेगा. रात भर वह सो न सकी. दूसरे दिन जब काम पर आई तो बड़ी बहू से बोली :

‘‘बहूजी, आप दोनों रहती नहीं…नर्स माताजी की ठीक तरह से देखभाल नहीं करती…’’

‘‘तो क्या करें अब…तू फिर शुरू हो गई…’’ बड़ी बहू को यह टौपिक बिलकुल भी पसंद नहीं था.

‘‘आप दोनों बारीबारी से छुट्टियां ले कर माताजी की देखभाल कर लो बहूजी…पुण्य लगेगा…अब…खाना तक तो छूट गया उन का…नर्स रखने भर से बुजुर्गों की सेवा नहीं होती. कितना प्यार दिया है माताजी ने आप लोगों को…इस समय उन्हें आप दोनों की बहुत जरूरत है,’’ स्वर में यथासंभव मिठास ला कर बसंती बोली.

‘‘तू हमें सिखाने चली है,’’ बड़ी बहू को गुस्सा आ गया, ‘‘बकवास बंद कर और अपना काम कर…और हां, अपनी औकात में रह कर बात किया कर…’’

‘‘ठीक है बहूजी…20 साल हो गए हैं आप के घर में काम करते हुए…माताजी ने कभी ऐसी तीखी बात नहीं कही…हमारी औकात ही क्या है…वह तो माताजी की ममता हमारे सिर चढ़ कर बोल जाती है, हम नहीं देख पाते हैं उन की यह दुर्दशा… आप कोई दूसरी ढूंढ़ लो…मुझ से नहीं हो पाएगा अब आप के घर का काम,’’ कह कर बसंती काम छोड़ कर चली गई.

अगले दिन उन्होंने दूसरी काम वाली ढूंढ़ ली. बसंती ने काम पर जाना तो छोड़ दिया लेकिन माताजी को देखने के लिए उस का दिल तड़पता रहता पर अब किस मुंह से जाए, मन ही मन तड़पती रह जाती. नर्स की तो अब और भी मनमानी हो गई. माताजी मृत्यु के थोड़ा और करीब पहुंच गई थीं.

एक दिन के लिए बोल कर नर्स छुट्टी पर गई तो दूसरे दिन भी नहीं आई. माताजी का कमरा ऐसा भभका मार रहा था कि दरवाजे पर खड़ा होना भी मुश्किल था. बहुओं ने, गंध बाहर न आए, इसलिए कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. शाम को बेटे घर आए तो अपनी बीवियों से पूछा :

‘‘नर्स आई थी आज…’’

‘‘नहीं…’’

‘‘तो क्या, मां वैसे ही पड़ी हैं अब तक…किसी ने सफाई नहीं की…खाना नहीं खिलाया…’’

‘‘कौन करता सफाई…’’ बहुएं चिढ़ गईं.

‘‘अरे, बसंती को ही जा कर बुला लाते…मां के लिए वह आ जाती…’’

‘‘कौन बुलाता उस नकचढ़ी को… कैसे पैर पटक कर काम छोड़ कर गई थी… हम से न हो पाएगा यह सब…’’

बीवियों से भिड़ना बेकार था, यह दोनों बेटे जानते थे. बड़ा बेटा बसंती के घर गया और उसे बुला लाया.

माताजी का नाम सुन कर बसंती ने आने में एक पल भी नहीं लगाया. बहुओं ने उसे देख कर मुंह फेर लिया. बसंती ने पूरे मनोयोग से माताजी की सफाई की. गीले तौलिए से पूरे शरीर को पोंछा, मालिश की. उन की चादर और कपड़े बदले और सारे कपड़े धो कर सुखाने डाल दिए. फिर माताजी के लिए पतली खिचड़ी बनाई और मनुहार से खिलाई. बसंती के प्यारमनुहार से माताजी ने 1-2 चम्मच खिचड़ी खा ली.

बसंती को आज माताजी की हालत और दिनों से भी गिरी हुई लगी. अनुभवी आंखें समझ गईं कि माताजी कल का सूरज शायद ही देख पाएंगी. इसलिए वह बड़े बेटे से बोली :

‘‘साब, नर्स नहीं है तो आज रात मैं यहीं रुक जाती हूं…बहूबेटे खुश हो गए. रात बसंती माताजी के कमरे में सो गई. बसंती को सामने देख कर माताजी भी चैन से सो गईं. उन के सोने के बाद बसंती भी लेट गई.’’

सुबह माताजी की खांसी की आवाज सुन कर बसंती की नींद टूट गई. उन की इकहरी होती सांसों को सुन कर बसंती चौंक गई. भाग कर बहूबेटों का दरवाजा खटखटा आई और माताजी का सिर अपनी गोद में रख लिया. सांस लेतेलेते माताजी ने निरीह नजरों से अपने बेटेबहुओं को देखा, फिर बसंती के चेहरे पर जा कर उन की नजर टिक गई. उन का मुंह हलका सा कुछ बोलने को खुला और प्राणपखेरू उड़ गए. बसंती का विलाप उस बड़ी कोठी के बाहर भी सुनाई दे रहा था. दूसरे दिन माताजी की अंतिम यात्रा का प्रबंध हो गया. रिश्तेदार आए. बहूबेटों ने छुट्टी ली और पूरी औपचारिकता निभाई. शाम को बसंती जाने लगी तो बहुओं ने उस के काम के रुपए ला कर उस के हाथ में रख दिए.

‘‘यह क्या है?’’ बसंती ने पूछा.

‘‘तुम्हारे काम का पैसा है…माताजी तुम को बहुत चाहती थीं. इसलिए ज्यादा ही दिया है.’’

‘‘बहूजी…’’ बसंती कसैले स्वर में बोली, ‘‘माताजी तो मेरी अन्नदाता थीं… बहुत दिया है उन्होंने हमें जिंदगी भर…हम उन के प्यार का कर्ज तो कभी नहीं उतार पाएंगे…माताजी के लिए किए काम का हमें कुछ नहीं चाहिए…उन का आशीष मिल गया हमें…आखिरी समय उन के मुंह में अन्नजल डाल पाए…हमारे लिए यही बहुत है…यह रुपया आप संभाल कर रख लो…जब आप लोग बुढ़ापे में इस बिस्तर पर पड़ोगे, तब आया को देने के काम आएंगे…’’

यह कह सुबकती हुई बसंती, गुस्से में दनदनाती चली गई और एक अनपढ़, साधारण नौकरानी की बात को मन ही मन तोलते, चारों उच्च शिक्षित, तथाकथित सभ्य समाज के कर्णधार भौचक्के से खड़े एकदूसरे की शक्ल देखते रह गए.

वो एक लड़की: जिस लड़की से वह बेतहाशा प्यार करती थी

अब इस की हत्या के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं बचा मेरे पास. मैं क्या करूं, कुछ समझ नहीं पा रही हूं. इस मामले से छुटकारा पाने का बस एक ही तरीका दिख रहा है कि इस लड़की की हत्या कर दी जाए. मैं इस लड़की को अच्छी तरह से जान गई हूं. हल्ला मचा रखा है इस ने बैगन की सब्जी खाने के लिए. उस दिन मेरे औफिस में मेरी सहेली ने मुझे बैगन की सब्जी ला कर दी. बैगन मुझे बिलकुल पसंद नहीं हैं… बैगन यानी बेगुण. बचपन मेें हम अपनी कक्षा की एक सांवली लड़की रामकली को ऐसे ही चिढ़ाया करते थे- कालीकलूटी, बैगन लूटी.

मैं ने बहुत झिझकते हुए बैगन लिए थे, जबकि बैगन की सब्जी वास्तव में देखने में बहुत अच्छी दिख रही थी. बिलकुल ताजगी से भरी, जबकि जब भी मैं बैगन बनाती हूं तो वे बनने के बाद बिलकुल सिकुड़ जाते हैं. ठीक है, बैगन बहुत खूबसूरत दिख रहे थे पर खाने में तो बेस्वाद और कसैले ही होंगे न.

वैसे आप को बताऊं यदि मेरा बस चले तो मैं यह सब्जी कभी बनाऊं ही नहीं पर क्या करूं. घर में बाकी सब इसे बड़े शौक से खाते हैं और मैं भी मन मार के खा ही लेती हूं. अब कौन अपने लिए अलग से कुछ बनाए.

अरे मैं भी कहां की कहां पहुंच गई. हां तो जब मैं ने अपनी सहेली के बनाए बैगन झिझकते हुए खाए तो इतने स्वादिष्ठ लगे कि मैं पूरा डब्बा ही चट कर गई. बस मुझ से गलती यह हुई कि मैं ने इस लड़की को भी वह सब्जी खिला दी. कमबख्त बिना मुझे बताए मेरी सहेली से बैगन बनाने की पूरी विधि सीख आई.

तब से यह लड़की रोज मेरे पीछे पड़ी है. कहती है दीदी बैगन तो फ्रिज में रखे ही हैं. चलो बनाते हैं और तो और मेरी बचत के पैसों से गोडा मसाला भी खरीद लाई. पूरे क्व50 का. इस महंगाई के जमाने में जब अपने बच्चों की जरूरतें भी पूरी नहीं होतीं तो ऐसे में इस कमबख्त की जुर्रत तो देखिए.

मैं रोज इसे बहला रही हूं कि चल आज बच्चों की पसंद के भरवां बैगन बना लेते हैं या पति की पंसद के इमली दाल वाले बैगन बना लेते हैं पर यह कपटी लड़की मुझ से मनुहार करती है कि नहीं दीदी वैसे वाले बैगन बनाओ न जैसे आशा ने बनाए थे. अब बताइए सब की फरमाइशें पूरी करने के लिए मैं समय कहां से लाऊं.

मैं ने आप से बताया नहीं इस के बारे में अभी तक. मुझ से भूल हुई कि शादी के बाद मैं इसे भी अपने साथ ले आई ससुराल में. तूफान मचा रखा है इस ने मेरी जिंदगी में. जरा भी कहना नहीं मानती मेरा. क्याक्या बताऊं आप को इस के बारे में. मेरी तो जगहंसाई कराती है. कभी सड़क पर यह ऊंट सी लड़की गुनगुनाने लगती है तो कभी बच्चों की तरह किसी को भी देख कर बिना वजह मुसकराने लगती है.

तंग आ गई हूं इस से. मरी के अंदर कोलंबस कौंप्लैक्स भरा पड़ा है. नएनए रास्तों पर मुझे भी घुमा लाती है. बीच सड़क पर किसी से भी बतियाने लगती है. मुझ सदगृहस्थन की इतनी बदनामी कराती है. बहुत समझाया कि अच्छी लड़कियों की तरह सलीके से रह पर यह सुनती ही नहीं.

अब मैं इस की हत्या की योजना बना रही हूं. मरना ही होगा इसे. एक म्यान में एक ही तलवार रह सकती है. इस घर में या तो यह रहेगी या मैं. यह सोचते ही मेरे मन में ठंडक सी पड़ जाती है. यह जीएगी तो मैं रोज मरती रहूंगी और यह जब मर जाएगी तो मैं चैन की जिंदगी जी सकूंगी. आज बस इस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. कल से इस की आवाज भी नहीं सुननी पड़ेगी मुझे और इस की हत्या ऐसे करूंगी कि किसी को कानोंकान खबर भी नहीं पड़ेगी.

चलो इस के पहले मैं उस जी के जंजाल बैगन को बच्चों के पसंदीदा ढंग से बना कर चलता करूं. पड़ेपड़े मुरझा रहे हैं. कहीं इस नासपीटी ने मुझे देख लिया तो कहर ढाएगी कि वैसे वाले बैगन बनाओ. वैसे वाले…

मैं रसोई में पहुंची ही थी कि यह नासपीटी खिलखिलाती हुई मेरे पीछेपीछे आ पहुंची. बोली कि दीदी आज तो इतवार है. अब तो बनाओ न वैसे वाले बैगन. कैसे समझाऊं इस नासपीटी को कि हम कामकाजी औरतों का कौन सा इतवार होता है.

छुट्टी के दिन तो दोगुना काम होता है हमें. बच्चों की पसंद का, पति की पसंद का नाश्ता, खाना बनाओ, हफ्तेभर के पैंडिंग काम करो. सांस लेने की भी फुरसत नहीं मिलती. मैं झुंझला उठी. मेरा गुस्सा चरम सीमा पर पहुंच गया. पगली ने अपनी मौत को खुद न्योता दिया है.

मैं सिलबट्टे से इस का सिर फोड़ने जा ही रही थी कि इस ने पीछे से आ कर मेरे मुंह में कपड़ा ठूंस दिया. जकड़ दिया मेरे हाथपैरों को रस्सी से. मैं फटी आंखों से देखती रही… अपने मन की कर ही ली इस ने. बना ही लिए इस ने वैसे वाले बैगन जिस के लिए हफ्ते भर से किचकिच कर रही थी.

बैगन बना कर न केवल तसल्ली से उंगलियां चाटचाट कर खाए इस ने बल्कि मुझे भी जबरदस्ती खिला दिए. इस को खिलखिलाते देख कर में चौंक गई. आज तो मुझे इसे मार डालना था पर यहां तो सब उलटा पड़ गया. इस ने बड़ी चतुराई से खुद को भी बचा लिया और मुझे भी जिंदा छोड़ दिया.

यह लड़की मुझ से जीत गई. मेरी आंखें भर आईं… मैं कहां मारना चाहती हूं इसे. कितना प्यार करती हूं इस बच्ची से मैं… कितना छिपछिप कर दुलारती भी तो हूं इसे. कभी बाजार घुमा लाती हूं इसे तो कभी इस का जन्मदिन चुपचाप इस के साथ मनाती हूं. इसे इस की पसंद का उपहार भी देती हूं.

आप हैरान हो रहे होंगे न कि क्या लगती है यह लड़की मेरी जो पिछले 20 सालों से जोंक की तरह मेरे साथ चिपकी हुई है जो न खुद मरती है और न मुझे मरने देती है. जिस से मैं नफरत भी करती हूं और बेतहाशा प्यार भी. आखिर क्या रिश्ता है इस का और मेरा?

अरे, आप ने पहचाना नहीं इसे? यह लड़की मेरे भीतर की सदगृहस्थन के अंदर बैठी है… मेरी बालसुलभ अस्मिता जो अपने लिए भी जीना चाहती है और मुट्ठी भर खुशी भी ढूंढ़ती है अपने लिए. आम औरतों की तरह मैं ने भी इस लड़की को मारने की कोशिश तो की पर मार न सकी.

आज आम औरतें गहने बनवातीं और गहने तुड़वातीं, साडि़यां की सेल में घूमतीं, किट्टी पार्टियों में जातीं, पति और बच्चों की पसंद के नशे में अपने वजूद को मार डालती हैं. किताबों, पत्रपत्रिकाओं से रिश्ता ही तोड़ लेती है… अपनी पसंद को भूल जाती हैं.

शुक्र है कि वो लड़की मेरे भीतर अभी भी जिंदा है जो शादी के इतने सालों बाद भी खुल कर सांस लेने की कोशिश करती है और कभीकभी अपने लिए भी सोचती है. चाहे पल भर के लिए ही सही, खिलखिला कर हंसती है और जी हां, जिस ने मेरी पसंद के बैगन भी मुझे बना कर खिला दिए.

काश, हर औरत अपने भीतर की उस लड़की की हत्या न करे और हंसती रहे वो लड़की.

महिलाएं और उन के अधिकार

भारतीय संविधान ने चाहे महिलाओं को समानता के हक दिए हों लेकिन हकीकत यही है कि आज भी घरों में उन्हें अपने अधिकारों के लिए बहस करनी पड़ती है और अपनों से ही उलझना पड़ता है.

घर हो या दफ्तर हर जगह उन के अधिकारों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं और महिलाओं को कभी अज्ञानतावश तो कभी सामाजिक दबाव में आ कर उन अधिकारों की अनदेखी करनी पङती है, जिस के
चलते वे शोषण का शिकार होती हैं।

कई बार महिलाओं को अपने अधिकारों का पता ही नहीं होता जिस की वजह से वे बिना जबान खोले सबकुछ सहती चली जाती हैं. आइए, उन्हीं कुछ अधिकारों को जानते हैं जिन्हें हर महिला को पता होना चाहिए…

मैंटेनेंस यानी भरणपोषण का अधिकार

भारतीय संविधान महिलाओं को उन के भरण पोषण का अधिकार देती है, जिस के अनुसार हर विवाहित महिला को कानूनी रूप से अपने पती से मैंटेनेंस पाने का अधिकार है, भले ही वे साथ न रह रहे हों.

यह अधिकार भारत में महिलाओं के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ( एचएमए) और घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (डीवीए) जैसे कानूनों द्वारा संरक्षित किया गया है.

एचएमए की धारा 24 के अनुसार, समर्थ पत्नी या पति में से उस का पार्टनर मैंटेनेंस मांग सकता है क्योंकि भारतीय महिलाओं को शादी के बाद पूरी तरह पति और ससुराल पर आश्रित कर दिया जाता है. ऐसे में यह आधिकार उन के भरणपोषण की व्यवस्था सुनिस्चित करता है. मैंटेनेंस के रूप में महिलाओं को यह हक है कि पती से अपना खर्चा मांगे.

अगर दोनों के बीच तलाक की स्थिति हो तो ऐसे में तलाक की काररवाई के दौरान और तलाक के बाद भी उन्हें मैंटेनेंस का अधिकार है. पति इस की अनदेखी नहीं कर सकता.

समान वेतन का अधिकार

समान वेतन का अधिकार सब से महत्त्वपूर्ण श्रम अधिकारों में से एक है. यह अधिकार एक ही तरह के काम के लिए एकसमान वेतन के अधिकार की बात करता है.

भारत में समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 (ईआरए) प्राथमिक कानून है जो यह सुनिश्चित करता है कि पुरुष और महिला दोनों श्रमिकों को काम करने के लिए समान रूप से भुगतान किया जाए जो दोनों के लिए समान है.

यह अधिकार महिलाओं को औफिस और अपने कार्यस्थल पर अपोइंटमैंट और इंक्रीमैंट में जैंडर के आधार पर महिलाओं के खिलाफ हो रहे भेदभाव को भी प्रतिबंधित करता है.

गरिमा और शालीनता का अधिकार

भारत में ऐसा कोई तबका या स्टेट नहीं है जहां महिलाओं को नीचा या कमतर दिखाने की कोशिश नहीं की जाती. संविधान में दिए गरिमा और शालीनता का अधिकार हर महिला को किसी भी तरह का डर, ताकत, हिंसा या भेदभाव से मुक्त हो कर सम्मान, समानता और शालीनता
का जीवन जीने का अधिकार देता है.

संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार महिलाओं सहित हर नागरिक को सम्मान से जीने का अधिकार है. भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए किसी भी तरह के उत्पीड़न और शोषण को क्राइम मानती है और उस के खिलाफ उन्हें अधिकार देती है.

कार्यस्थल पर महिलाओं का फीजिकल ऐब्यूज (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013
कार्यस्थल पर महिलाओं के फिजिकल ऐब्यूज को रोकता है.

दहेज के खिलाफ अधिकार

दहेज जैसी कुप्रथा भारत में संस्कृति की तरह अपना ली गई है जिसशके चलते अब तक न जाने कितनी ही बेकसूर लड़कियों की जिंदगियां तबाह हो चुकी हैं. गरीब और कमजोर लोग अकसर दहेज के नाम पर प्रताङित किए जाते है. इस समस्या से निबटने के लिए भी भारतीय संविधान में
प्रावधान किए गए हैं.

दहेज निषेध अधिनियम, 1961 दहेज प्रथा यानी दहेज देना और लेना दोनों
पर रोक लगाता है और हर महिला को यह अधिकार देता है कि वह दहेज मांगने वालों के खिलाफ कानूनी शिकायत कर सके.

आत्मरक्षा का अधिकार

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 100 के तहत प्रत्येक व्यक्ति, जिस में महिलाएं भी शामिल
हैं, को अपने शरीर को किसी भी हिंसा, हमले या हमले से बचाने का अधिकार है, जिस से मृत्यु, गंभीर चोट, अपहरण आदि की आशंका हो सकती है. इसलिए एक महिला अपनी आत्मरक्षा के
लिए इस धारा का इस्तेमाल कानूनन कर सकती है.

महिला का पीछा नहीं कर सकते

आईपीसी की धारा 354डी के तहत किसी भी महिला का उस की जानकारी के बिना पीछा करना
कानूनन अपराध है. ऐसा करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ महिला की शिकायत पर कानूनी काररवाई की जा सकती है जो पीछा करता है, बारबार मना करने के बावजूद अप्रोच करने की कोशिश करता है या किसी भी इलैक्ट्रौनिक कम्युनिकेशन जैसे इंटरनैट, ईमेल के जरीए मौनिटर
करने की कोशिश करता है. महिलाएं उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर सकती हैं.

इस के अलावा भी कानून और संविधान महिलाओं को एक सुरक्षित वातावरण देने के लिए कई
अधिकार देता है जिस की चर्चा हम आने वाले लेखों में करते रहेंगे.

क्या आपका पार्टनर रहता है चुपचुप सा, तो दिल की बात जानने के लिए अपनाएं ये टिप्स

पति के औफिस से घर आते ही नेहा बहुत ही उत्सुकता से उसे अपने दिनभर की बातें बताने लगती.वहीं उसका पति चुपचाप सब सुनता रहता. धीरेधीरे नेहा की उत्सुकता और जोश भी ठंडा हो गया. वह अपने पति का ये रवैया समझ नहीं पा रही थी. उसे लगने लगा कि उसका पति उसे पसंद नहीं करता. लेकिन जरूरी नहीं है कि ऐसा ही हो. दरअसल, नेहा का ​पति स्वभाव से चुप रहने वाला है. वह बहुत ही कम बोलता है. इसका मतलब ये नहीं है कि वह गुस्सा है या उससे प्यार नहीं करता. आइए जानते हैं क्या है साइलेंट पर्सनैलिटी-

क्या है साइलैंट पर्सनैलिटी

हर किसी की पर्सनैलिटी अलग होती है.कोई खुलकर बात करता है तो कोई चुप रहकर ही अपनी भावनाओं का एहसास करवाता है.लेकिन जब बात पार्टनरशिप यानी शादी की आती है तो चुप रहना कभीकभी अजीब स्थिति पैदा कर सकता है.अगर आपके पति अक्सर चुप रहते हैं तो स्थिति और भी विकट हो जाती है.पति का चुप रहना पत्नी के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है.कई बार पत्नी अपने आपको अलगथलग महसूस करने लगती है. नए माहौल में एडजस्ट करना उसके लिए और भी मुश्किल हो जाता है.अगर आपके पति भी अक्सर चुप रहते हैं या बहुत कम बोलते हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है.

रिश्ता खराब कर सकती है चुप्पी

दरअसल, चुप रहने का मतलब सिर्फ कम बातें करना ही नहीं है.बल्कि ऐसे लोगों की भावनाओं को समझना भी काफी मुश्किल होता है.पति की चुप्पी को अक्सर पत्नी उदासीनता समझ लेती है.यह उसके लिए बहुत ही दुखी करने वाला एहसास होता है.कभी-कभी ये चुप्पी आपके रिश्ते को भी खराब कर सकती है.

चुप्पी के पीछे मनोवैज्ञानिक कारण

आपने देखा होगा कि चुप रहने का स्वभाव महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में अधिक होता है.इसका बहुत बड़ा कारण है हमारी सामाजिक कंडीशनिंग.भारत में खासतौर पर बच्चे को बचपन से ही अपनी भावनाएं दबाना सिखाया जाता है.आपने भी अक्सर सुना होगा, लड़के रोते नहीं हैं…, लड़के ऐसी बातें नहीं करते…, तुम लड़के हो क्या बात-बात पर इमोशनल होते हो…ये बातें बहुत ही आम हैं.लेकिन ये रूढ़िवादी सोच बच्चों को अपनी भावनाएं दबाना सिखा देती हैं.ऐसे में बच्चे बचपन से ही चुप रहना सीख जाते हैं.उन्हें लगता है कि अगर वे अपनी भावनाएं किसी को बताएंगे तो उसकी बेइज्जती होगी.यही उनके जीने का तरीका बन जाता है.कई शोध भी इस बात को स्वीकारते हैं कि कुछ पुरुष अपने विचारों और भावनाओं को बताने के लिए शब्द ही नहीं खोज पाते हैं और चुप रहने लगते हैं.इसका यह मतलब बिलकुल नहीं है कि वे किसी से प्यार नहीं करते.

ऐसे तोड़ें चुप्पी की दीवार

अगर आपके हसबैंड भी अक्सर चुप रहते हैं और अपनी भावनाएं बता नहीं पाते तो कुछ तरीके आपके काम आ सकते हैं.

1. बनाएं अपना संसार

मान लिया कि आपके पति चुप रहते हैं, लेकिन आप उन्हें बातें करने के लिए प्रोत्साहित करें.सबसे बेहतर है कि आप अपने पार्टनर को ऐसा माहौल दें जहां वो दिल खोलकर अपनी बातें आपसे कर सके.इस जगह पर उन्हें​ झिझक महसूस न हो.एक ऐसी जगह जहां उन्हें ये डर न हो कि कोई उन्हें सुनेगा तो क्या कहेगा.

2 . बिना बोले समझें बातें

सच्चा साथी वो है जो बिना बोले अपने पार्टनर की बात समझ जाए.अगर आपका पार्टनर चुप रहता है तो भी आप उनके चेहरे और हावभाव से उसकी फीलिंग्स समझने का प्रयास करें.उनके हर काम की सराहना करें.जिससे उनमें कौन्फिडेंस आएगा. धीरेधीरे ही सही वो आपसे बातें करने लगेंगा.

3. चमत्कार की उम्मीद न करें

बचपन से जो बातें बच्चों को बताई या सिखाई जाती हैं वो उनमें गहराई तक समाहित हो जाती हैं.दिल के किसी कोने में सालों से जमी इन जड़ों को हिलाने में समय लग सकता है.ऐसे में आप चमत्कार की उम्मीद न करें.धैर्य के साथ आप अपनी कोशिशे जारी रखें.एक न एक दिन आपके प्यार की जीत जरूर होगी.

बरसात के दिनों में अक्सर गले में खराश हो जाती है, क्या करूं?

सवाल

मुझे मौनसून के दौरान सर्दीजुकाम और गले में खराश की समस्या हो जाती है. मैं इन समस्याओं को बारबार होने से कैसे रोक सकता हूं?

जवाब

मौनसून के महीनों में सर्दी और गले में खराश पैदा करने वाले कीटाणु तेजी से फैलते हैं. इन बीमारियों से बचने के लिए अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाना जरूरी है. विटामिन सी से भरपूर आहार आप की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है और सर्दी और गले में खराश से बचा सकता है. भीड़भाड़ वाली जगहों पर संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने से ये रोग फैलते हैं. अगर हम सभी कुछ बुनियादी स्वच्छता उपायों का पालन करें तो इसे रोका जा सकता है, जैसे खांसने और छींकने के दौरान अपनी नाक और मुंह को ढकें, बारबार हाथ धोएं और जरूरत पड़ने पर हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें. बीमार लोगों के साथ निकट संपर्क से भी बचना चाहिए. इन उपायों को अपना कर आप सर्दी और गले में खराश के जोखिम को काफी कम कर सकते हैं.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Friendship Day Special : घर पर बनाएं चटपटा और टेस्टी बटाटा वड़ा, दोस्तों को आएगा खूब पसंद

मीठा हर कोई बनाता है, लेकिन अगर आप इस  कुछ चटपटा और टेस्टी बनाना चाहते हैं तो ये रेसिपी आपके काम आएगी. बटाटा वड़ा मुंबई में फेमस है, साथ ही इसे बनाना आसान भी है. आप चाहें तो मीठे के साथसाथ कुछ नमकीन खाने के लिए ये रेसिपी ट्राई कर सकती हैं.

हमें चाहिए

250 ग्राम आलू उबले

1/2 छोटा चम्मच जीरा

1/2 छोटा चम्मच राई

5-6 करीपत्ते

2 बड़े चम्मच प्याज बारीक कतरा

1 छोटा चम्मच अदरक व हरीमिर्च बारीक कटी

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी

1 बड़ा चम्मच नीबू का रस

1/2 छोटा चम्मच चाटमसाला

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

2 छोटे चम्मच रिफाइंड औयल

1 कप वड़ा पाउडर

1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी

1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1 बड़ा चम्मच तिल

बटाटा फ्राई करने के लिए पर्याप्त रिफाइंड औयल

नमक स्वादानुसार

बनाने का तरीका

आलुओं को मोटामोटा फोड़ लें. एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम कर के जीरा, राई व करीपत्ते डालें. फिर प्याज, अदरक व हरीमिर्च डाल कर पारदर्शी होने तक भूनें.

फिर हलदी पाउडर डाल कर आलुओं को भून लें. इस में नमक, मिर्च व नीबू का रस डालें. ठंडा कर के नीबू से थोड़े बड़े गोले बना लें.

वड़ा पाउडर में पानी डाल कर गाढ़ा घोल बनाएं. इस में तिल और धनियापत्ती मिक्स करें.

गरम तेल में प्रत्येक गोले को वड़ा पाउडर के घोल में लपेट कर गरम तेल में डीप फ्राई करें. बटाटा वड़े तैयार हैं.

बालों को बनाना चाहते हैं हैल्दी, तो रात के समय इस तरह करें देखभाल

खूबसूरत बालों की चाह किसे नहीं होती. रूखेसूखे बालों की समस्या से आज के समय लगभग हर कोई जूझ रहा है. इसे ठीक करने के लिए हम क्या कुछ नहीं करते. महंगे से महंगे ट्रीटमेंट लेते हैं, जिसके कुछ दिन बाद बालों हाल फिर से बेहाल हो जाता है. और साथ में बालों से जुड़ी परेशानी भी दोगुनी हो जाती है. अगर आप भी बालों की समस्या से ग्रसित हैं, और अपने बालों को ठीक करने के तरीकों को खोज रही हैं, तो आपको अपनी दिनचर्या के साथ-साथ बालों की दिनचर्या पर खास ध्यान देने की जरूरत है. जिससे बाल एक बार फिर से जी उठेंगे. तो चलिए फिर जानते हैं, कि रात के समय बालों की सही तरीके से देखरेख कैसे करें.

1. नाईट हेयर मास्क जरूरी-

रूखे सूखे बालों को प्रोटीन की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. जिसके लिए घरेलू हेयर मास्क सबसे बढ़िया विकल्प है. इससे बालों को टूटने से रोका जा सकता है. वहीं अगर बालों में फ्रिजिनेस है और उलझे रहते हैं, तो भी आपको इससे काफी राहत मिलेगी. हेयर मास्क बनाने के लिए केले को अच्छे से ब्लेंड कर लें, और उसमें शहद मिलाकर अच्छे से बालों के स्कैल्प में लगाएं. इससे बालों में चमक आयेगी.

2. सीरम भी जरूरी-

हेयर सीरम, बालों से जुड़ी समस्या को दूर करता है. इससे बालों में चिकनापन बढ़ता है. आप जब भी सोने से पहले बालों को धोएं, तो कुछ बूंद हेयर सीरम की अच्छे से लगाएं. जिससे बालों में गांठें ना पड़े और सुलझाने में भी आसानी रहे. इसके अलावा हेयर सीरम बालों को धूप और कीटाणुओं से भी बचाता है. आप बालों के लिए हेयर सीरम में इन्वेस्ट कर सकती हैं.

3. रात में करें चोटी-

रात में सोने से पहले बालों की मालिश करें, और अच्छे कंघा करके चोटी बांध लें. अगर आप सोते समय अपने बालों को खोलकर सोएंगी तो बाल और भी खराब हो जाएंगे. और घर्षण की वजह से टूट भी सकते हैं. ध्यान रखें कि छोटी ज्यादा टाइट ना हो.

4. पोषक तत्वों की न हो कमी-

बालों की देखभाल के लिए आप कोशिश करें कि विटामिन के सभी तत्व और हेल्दी वसा शामिल हो. क्योंकि ये हमारे  बालों के लिए बेहद फायदेमंद होती है. आप इसके लिए सही ढंग से खाना खाएं, और विटामिन से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करें.

5. सिल्क की तकिया बेहतर विकल्प-

अगर आप बालों को हाइड्रेट रखना चाहती हैं, तो अपनी तकिया बदलकर सिल्क की तकिया लगाना शुरू कर दें. इससे रूखे बालों की समस्या से छुटकारा मिलता है.  बता दें कॉटन की तकिया बालों की सारी नमी सोख लेता है. लेकिन सिल्क का तकिया बालों की नमी को बरकरार रखता है.

बालों की देखभाल दिन में तो हम बखूबी कर लेते हैं, लेकिन हमारे बालों को सबसे ज्यादा देखरेख की जरूरत रात के समय होती है. आप भी हमारी बताई हुई टिप्स को आज्मकर अपने बालों को नया जीवनदान दे सकती हैं.

इस्तेमाल: कौलेज में क्या हुआ निम्मो के साथ?

कालेज से आते ही निम्मो ने अपना बैग जोर से पटका तो सरला सम झ गई कि जरूर आज फिर कालेज में कुछ ऐसावैसा घटित हुआ है.

‘‘क्या हुआ?’’ सरला ने पूछा.

‘‘अवनि… अवनि… अवनि… पता नहीं यह जिन्न मु झे कब छोड़ेगा,’’ निम्मो गुस्से में बड़बड़ाई.

‘‘लेकिन हुआ क्या है?’’ सरला ने फिर पूछा.

‘‘वही, जो आज तक होता आया है. हमारी तुलना और क्या? मु झे मैम ने ऐनुअल फंक्शन में होने वाले रैंप शो का शो स्टौपर बनने से आउट कर दिया,’’ निम्मो ने बताया.

‘‘अरे, कल तक तो तुम्हीं शो स्टौपर थी, पिछले 10 दिनों से तुम लगातार प्रैक्टिस कर रही हो, तुम्हारी तो कौस्ट्यूम भी फाइनल हो चुकी थी फिर अचानक ऐसा क्या हुआ?’’ सरला ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘आज जब फाइनल रिहर्सल हो रहा था तो अचानक अवनि ने रैंप पर आ कर कहा कि मैं बताती हूं तुम्हें कैसे वौक करना चाहिए.

‘‘फिर उस ने रैंप पर वौक कर के दिखाया तो प्रिंसिपल मैम को बहुत पसंद आया. उन्होंने कहा कि इस फैशन शो में शो स्टौपर के लिए अवनि को ही फाइनल कर दो और मु झे आउट कर दिया गया,’’ निम्मो ने मुंह सिकोड़ते हुए कालेज का सारा घटनाक्रम कह सुनाया.

‘‘यह तो दुनिया की बहुत पुरानी रीत है. लोग 2 बहनों में तुलना करते ही हैं,’’ कहते हुए सरला ने उसे सहज करने की कोशिश की.

‘‘लेकिन क्यों? मैं मैं हूं और अवनि अवनि. हम दोनों अलग हैं. फिर लोग क्यों हमें एकदूसरे से जोड़ कर देखते हैं? मैं खुद के जैसी ही रहना चाहती हूं किसी और के जैसी नहीं बनना चाहती,’’ निम्मो आवेश में आ गई.

निम्मो के अपने तर्क थे और वे अपनीजगह सही भी थे, मगर सरला जानती थी

कि अपनेआप को ही बदला जा सकता है, दुनिया को नहीं. वह रसोई में जा कर निम्मो के लिए खाना गरम करने लगी.

खाना खा कर निम्मो सो गई.  सरला भी वहीं लेटी धीरेधीरे उस के बालों में हाथ फेरती रही. इस के साथ ही कई पुरानी बातें भी जेहन में घूमने लगीं…

अवनि सरला के भाई रवि की बेटी है और निम्मो से केवल 4 दिन ही बड़ी है. दोनों बहनों ने एकसाथ एक ही स्कूल में पहला कदम रखा था. दोनों को एक ही स्कूल में एडमिशन दिलाया गया था ताकि दोनों को एकदूसरे का साथ मिल सके और उन्हें वहां अकेलापन न खले, साथ ही होमवर्क आदि में भी मदद मिल सके.

मगर 2 जनों में तुलना करना लोगों का स्वभाव होता है. तब तो और भी ज्यादा जब उन का आपस में कोई नजदीकी संबंध हो. सब से पहले उन की स्कूल टीचर्स ने दोनों बहनों की आपस में तुलना करनी शुरू की. कभी उन के मार्क्स को ले कर तो कभी उन की क्लास में परफौर्मैंस को ले कर… कभी स्पोर्ट्स में उन के प्रदर्शन की तुलना होती तो कभी हैल्थ और हाइट को आपस में कंपेयर किया जाता. निम्मो अकसर हर बात में अवनि से उन्नीस ही रहती. सब उसे अवनि का उदाहरण देते और कमतरी का एहसास कराते. सुन कर निम्मो बु झ जाती.

सरला को पहली बार बेटी के दर्द का एहसास उस दिन हुआ था जब वह केजी क्लास में पढ़ती थी. निम्मो ने एक दिन स्कूल से आते ही कहा था, ‘‘मु झे नहीं पढ़ना इस स्कूल में. यह स्कूल अच्छा नहीं है. यहां सब अवनि को ही प्यार करते हैं. मु झे कोई प्यार नहीं करता.’’

सरला के पूछने पर निम्मो ने बताया, ‘‘आज क्लास में टीचर ने ड्राइंग बनवाई थी. मेरी शीट देख कर मैडम ने कहा कि अवनि की शीट देखो, कितनी सफाई से ड्रा की है. इसे कहते हैं ड्राइंग. कुछ सीखो अपनी बहन से,’’ और निम्मो फिर रोने लगी.

सरला के लिए यह बड़ी मुश्किल घड़ी थी. एक तरफ बेटी थी और दूसरी तरफ भतीजी. धर्मसंकट में फंसी सरला को कोई उपाय नहीं सू झ रहा था. रोती हुई निम्मो को सीने से लगाने के अलावा उस के पास कोई और उपाय था भी नहीं.

अवनि जहां स्वभाव में तेजतर्रार और स्मार्ट थी वहीं निम्मो शांत और सहनशील. अवनि उस की सहनशीलता का पूरा फायदा उठाती थी. वह अकसर निम्मो पर हावी हो जाती. कई बार तो अपना होमवर्क भी निम्मो से करवा लेती थी. धीरेधीरे अवनि के खुद से बेहतर होने का भाव निम्मो के भीतर जड़ें जमाने लगा. वह स्कूल में तो अवनि का विरोध नहीं कर पाती थी, मगर घर आ कर रोने लगती थी. अवनि के सामने निम्मो का व्यक्तित्व दबने लगा. अवनि निम्मो के लिए उस बरगद के पेड़ जैसी हो गई थी जिस के नीचे निम्मो पनप नहीं पा रही थी.

सरला उसे बहुत सम झाया करती थी कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति परफैक्ट नहीं होता. हर किसी में कोई न कोई कमी होती ही है. लेकिन वे लोग बहुत बहादुर होते हैं जो उसे स्वीकार कर लेते हैं और वे तो विरले ही होते हैं, जो उस पर विजय पा लेते हैं. वे भी कुछ कम नहीं होते जो अपनी कमियों के साथ जीना सीख लेते हैं. मगर निम्मो का बालमन शायद अभी इन बातों को सम झने के लिए परिपक्व नहीं था.

एक दिन निम्मो स्कूल से आई और आते ही घर में बने मंदिर में हाथ जोड़ने लगी.

सरला को बड़ा आश्चर्य हुआ, उस ने पूछा, ‘‘आज हमारी निम्मो क्या मांग रही है कुदरत से?’’

निम्मो ने मासूमियत से कहा, ‘‘मां, मैं कुदरत से प्रे कर रही हूं कि वह अगले जन्म में मु झे अवनि जैसी सुंदर और स्मार्ट बना दे.’’

उस के मुंह से ऐसी बात सुन कर सरला हैरान रह गई. उस ने निम्मो से कहा, ‘‘बिट्टो, अगलापिछला कोई जन्म नहीं होता. जो कुछ है सब यही है. कुदरत ने हर इंसान को अपनेआप में बहुत ही खास बनाया है और एकदूसरे से अलग भी. इसीलिए तुम दोनों बहनें भी एकदूसरे से अलग हैं. तुम दोनों की अपनीअपनी खासीयत है. हां, इस जन्म में अगर तुम अच्छे काम करोगी तो बहुत अच्छी इंसान जरूर बन जाओगी.’’

मगर निम्मो को मां की बातें ज्यादा सम झ में नहीं आईं उस के दिमाग में तो हर वक्त अपने आप को अवनि से बेहतर साबित करने की तरकीबें ही चलती रहतीं.

सैकंडरी स्कूल के रिजल्ट वाले दिन प्रिंसिपल मैम ने असैंबली में उन सब बच्चों के लिए तालियां बजवाई, जिन्हें 80% से ज्यादा नंबर मिले थे. निम्मो और अवनि को भी स्टेज पर बुलाया गया.

मार्क शीट देख कर टीचर ने कहा, ‘‘यहां भी हमेशा की तरह अवनि ने ही बाजी मारी. उसे निम्मो से 4 नंबर अधिक मिले हैं.’’

बस फिर क्या था, निम्मो ने घर आ कर रोरो कर बुरा हाल कर लिया. खुद को कमरे में बंद कर लिया और स्कूल छोड़ने की जिद पर अड़ गई. यह देख कर सरला ने सैकंडरी स्कूल के बाद निम्मो का स्कूल चेंज करवा दिया.

भाई ने कारण पूछा तो सरला ने सब्जैक्ट चेंज करने का बहाना बना कर उसे टाल दिया. चूंकि अवनि पहले ही आर्ट्स सब्जैक्ट चुन चुकी थी, इसलिए निम्मो ने इंटरैस्ट न होते हुए भी कौमर्स सब्जैक्ट चुना और इस बहाने से अपना स्कूल बदल लिया.

अवनि से दूर होते ही निम्मो का मानसिक तनाव छूमंतर हो गया और सालभर में ही उस का व्यक्तित्व निखर आया. बेटी का बढ़ता हुआ आत्मविश्वास देख कर सरला उस के स्कूल बदलने के अपने निर्णय पर खुश थी.

2 साल में ही निम्मो ने अपना कद निकाल लिया. हालांकि निम्मो की शारीरिक बनावट अवनि जैसी सांचे में ढली हुई नहीं थी, मगर उस की सादगी में भी एक कशिश थी. जहां अवनि को देख कर कामुकता का एहसास होता था वहीं निम्मो की सुंदरता में शालीनता और गरिमा थी.

मेरी आंखों के कोर भीग गए थे. ऐसा लगा मेरा अहं किसी कोने से जरा सा संतुष्ट

हो गया है. सोचती थी, पति की जिंदगी में मेरी जरूरत ही नहीं रही.मगर मांबेटी का यह सुख सिर्फ 2 साल से ज्यादा कायम नहीं रह सका. स्कूल खत्म होते ही अवनि ने भी निम्मो के ही कालेज में एडमिशन ले लिया. फिर से वही पुरानी कहानी दोहराई जाने लगी. फिर से वही दोनों बहनों में तुलना. मगर अब सरला के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था, क्योंकि कसबे में एक ही कालेज था और इसी कालेज में पढ़ना दोनों की मजबूरी थी.

‘‘अब तुम बच्ची नहीं हो निम्मो. अपनी लड़ाई अपने हथियारों से लड़ना सीखो. तुम्हारा आत्मविश्वास ही तुम्हारा सब से पैना हथियार है.’’ सरला बेटी को आने वाले कल के लिए तैयार करने में जुटी थी.

यह उन के कालेज का पहला ही साल था यानी दोनों में ही अभी स्कूल का लड़कपन बाकी था. जब ऐनुअल फंक्शन के रैंप शो में निम्मो की जगह अवनि को शो स्टौपर बना दिया गया तो निम्मो का स्वाभिमानी मन बहुत आहत हुआ और उस ने शो में मौडलिंग करने से ही मना कर दिया.

‘‘तुम चाहो तो अपना यह आउटफिट ले कर जा सकती हो. यू नौ अवनि किसी की इस्तेमाल की हुई चीजें नहीं लेती. मैं ने अपने लिए दूसरा आउटफिट मंगवा लिया है,’’ प्रैक्टिस रूम छोड़ कर बाहर आती निम्मो ने अवनि का ताना सुना, लेकिन कुछ बोली नहीं. चुपचाप रूम से बाहर निकल आई.

अवनि जब अदा से अपने जलवे बिखेरती रैंप पर आई तो औडिटोरियम में बैठी सभी लड़कियां तालियां बजाने लगीं और लड़के सीटियां. निम्मो फंक्शन बीच में ही छोड़ कर औडिटोरियम से बाहर आ गई.

औडिटोरियम से बाहर निकलती निम्मो के कदमों की दृढ़ता और चाल का आत्मविश्वास बता रहा था कि उस के मन के भीतर चल रहे संघर्ष को विराम लग गया है. विचारों की उफनती नदी में डगमगाती नाव निर्णय के तट पर आ लगी है.

या तो निम्मो ने इस बात को स्वीकार कर लिया था कि तुलना करना मानव स्वभाव मात्र है, इसे दिल पर लेना सम झदारी नहीं है या फिर यह हवाओं में तेज बरसात से पहले वाली चुप्पी है.

अवनि ने अपनी अलग ही दुनिया बसा रखी थी. उसे अपनी मौडल सी कदकाठी पर बहुत घमंड था. उसी के अनुरूप वह कपड़े भी पहना करती थी, जो उस पर बहुत फबते भी थे और अधिक आधुनिक बनने के चक्कर में उस ने सिगरेट भी पीना सीख लिया था. कभीकभी दोस्तों के साथ एकाध पैग भी लगाने लगी थी. जहां पूरा कालेज अवनि का दीवाना था वहीं अवनि का दिल विकास में आ कर अटक गया.

इन दिनों सरला निम्मो में अलग तरह का चुलबुलापन देख रही थी. हर समय बिना मेकअप के रहने वाली निम्मो आजकल न्यूड मेकअप करने लगी थी. सुबह जल्दी उठ कर कुछ देर योग व्यायाम भी करने लगी थी जिस का असर उस के चेहरे की बढ़ती चमक पर साफसाफ दिखाई देने लगा था. सरला बेटी में आए इस सकारात्मक परिवर्तन को देख कर खुश थी.

‘‘इस बहाने फालतू की बातों से दूर रहेगी,’’ सोच कर सरला मुसकरा देती.

उधव अवनि का विकास के प्रति  झुकाव बढ़ने लगा था. पूरा कालेज उन दोनों के बीच होने वाली नोक झोंक के प्यार में बदलने की प्रतीक्षा कर रहा था. शीघ्र ही उन का यह इंतजार खत्म हुआ. इन दिनों अवनि और विकास साथसाथ देखे जाने लगे थे.

साल बीतने को आया. एक बार फिर से ऐजुअल फंक्शन की तैयारियां जोर

पकड़ने लगीं. यह वर्ष कालेज की स्थापना का स्वर्ण जयंती वर्ष था इसलिए नवाचार के तहत कालेज प्रशासन ने कालेज में 50 साल पहले मंचित नाटक ‘शकुंतलादुष्यंत’ के पुनर्मंचन का निर्णय लिया.

औडिशन के बाद विकास को जब दुष्यंत का पात्र अभिनीत करने का प्रस्ताव मिला तो सब ने स्वाभाविक रूप से अवनि के शकुंतला बनने का कयास लगाया, लेकिन तब सब को आश्चर्य हुआ जब कमेटी द्वारा अवनि को दरकिनार कर इस रोल के लिए निम्मो का चयन किया.

कमर तक लंबे घने बाल, बड़ीबड़ी बोलती आंखें और मासूम सौंदर्य, शायद यही पैमाना रहा होगा इस रोल के लिए निम्मो के चयन का.

कालेज के बाद देर तक नाटक का रिहर्सल करना और उस के बाद देर होने पर विकास का निम्मो को घर तक छोड़ना… रोज का नियम था. वैसे भी अवनि इस सदियों पुराने नाटक में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए कालेज में रुक कर विकास का इंतजार करना उसे बोरियत भरा महसूस होता था. हवा का  झोंका भी कभी एक जगह ठहरा है भला जो अवनि ठहरती.

कई साथियों ने निम्मो और विकास को ले कर उसे छेड़ा भी, मगर आत्मविश्वास से भरी अवनि को अपने रूपसौंदर्य पर पूरा भरोसा था. क्या मजाल जो एक बार इस भूलभुलैया में भटका मुसाफिर बिना उस की इजाजत बाहर निकल सके.

रिहर्सल लगभग फाइनल हो चुका था. विकास की अगुआई में कालेज कैंटीन में बैठा छात्रों का दल चाय की चुसकियों के साथ गरमगरम समोसों का आनंद ले रहा था. निम्मो और अवनि भी अन्य लड़कियों के साथ इस गैंग में शामिल थीं.

‘‘यार विकास, इतने दिनों से तू दुष्यंत बना घूम रहा है, अब तो शकुंतला को अंगूठी पहना ही दे,’’ एक दोस्त ने उसे कुहनी मारी.

विकास की नजर लड़कियों के दल की तरफ घूम गई. सब ने अवनि की इतराहट देखी. निम्मो बड़े आराम से समोसा खा रही थी.

‘‘हांहां, यह तो होना ही चाहिए. कैसा रहेगा यदि फंक्शन वाले दिन नाटक मंचन के बाद वही अंगूठी असल वाली शकुंतला की उंगली में भी पहनाई जाए?’’ दूसरे दोस्त ने प्रस्ताव रखा तो शेष गैंग ने भेजें थपथपा कर उस का अनुमोदन किया. शरमाई अवनि अपनी उंगली सहलाने लगी. बेशक वह एक बोल्ड लड़की थी, लेकिन इस तरह के प्रकरण आने पर लड़कियों का संकुचित होना स्वाभाविक सी बात है.

‘‘तुम सब कहते हो तो चलो? मु झे भी यह चुनौती मंजूर है. तो तय रहा. फंक्शन वाले दिन… नाटक के बाद… डन,’’ विकास ने दोस्तों की चुनौती पर अपनी सहमति की मुहर लगाई और इस के साथ ही मीटिंग खत्म हो गई.

ऐनुअल फंक्शन की शाम… निम्मो का निर्दोष सौंदर्य देखते ही बनता था. श्वेत परिधान संग धवल पुष्पराशि के शृंगार में निम्मो असल शकुंतला का पर्याय लग रही थी. विकास और निम्मो के प्रणयदृश्य तो इतने स्वाभाविक लग रहे थे मानो स्वयं दुष्यंतशकुंतला इन अंतरंग पलों को साक्षात भोग रहे हों. औडिटोरियम में बारबार बजती सीटियां और मंचन के समापन पर देर तक गूंजता तालियों का शोर नाटक की सफलता का उद्घोष कर रहा था. परदा गिरने के बाद विकास जब निम्मो का हाथ थामे मंच पर सब का अभिवादन करने आया तो बहुत से उत्साही मित्र उत्साह के अतिरेक में नाचने लगे.

देर रात फंक्शन के बाद मित्रमंडली एक बार फिर से जुटी थी. सब लोग विकास और निम्मो को घेरे खड़े थे. दोनों विनीत भाव से सब की बधाइयां बटोर रहे थे.

‘‘अरे शकुंतला, वह अंगूठी कहां है जो दुष्यंत ने तुम्हें निशानी के रूप में दी थी,’’ अवनि के कहते ही मित्रों को विकास को दी गई चुनौती याद आई.

‘‘अरे हां, वह अंगूठी तो तुम आज अपनी असली शकुंतला को पहनाने वाले थे न. चलो भाई, जल्दी करो. देर हो रही है,’’ मित्र ने कहा.

अवनि अपनी योजना की सफलता पर मुसकराई. इसी प्रसंग को जीवित करने के लिए तो उस ने अंगूठी प्रकरण छेड़ा था. विकास भी मुसकराने लगा. उस ने अपनी जेब की तरफ हाथ बढ़ाया. जेब से हाथ बाहर निकला तो उस में एक सोने की अंगूठी चमचमा रही थी.

‘‘तुम ने उंगली की नाप तो ले ली थी न? कहीं छोटीबड़ी हुई तो?’’ मित्र ने चुहल की.

अवनि की निगाहें अंगूठी पर ठिठक गईं. विकास अंगूठी ले कर लड़कियों

की तरफ बढ़ा. सब की निगाहें विकास के चेहरे पर जमी थीं. अवनि शर्म के मारे जमीन में गढ़ी जा रही थी.

विकास ने निम्मो का बांयां हाथ पकड़ा और उस की अनामिका में सोने की अंगूठी पहना दी. यह दृश्य देख कर वहां मौजूद हर व्यक्ति हैरान खड़ा रह गया, क्योंकि किसी ने इस की कल्पना तक नहीं की थी. अपमान से अवनि की आंखें छलक आईं. निम्मो कभी अपनी उंगली तो कभी विकास के चेहरे की तरफ देख रही थी. पूरे माहौल को सांप सूंघ गया था.

निम्मो धीरेधीरे चलती हुई आई और अवनि के सामने खड़ी हो गई. अवनि निरंतर जमीन को देख रही थी. सब ने देखा कि अपमान की कुछ बूंदें उस की आंखों से गिर कर घास पर जमी ओस का हिस्सा बन गई थीं.

निम्मो ने अपनी उंगली से अंगूठी उतारी और अवनि की हथेली पर रख दी. बोली, ‘‘तुम चाहो तो यह अंगूठी रख सकती हो. यू नो, निम्मो को भी किसी की इस्तेमाल की हुई चीजें पसंद नहीं,’’ कहती हुई आत्मविश्वास से भरी निम्मो सब को हैरानपरेशान छोड़ कर कालेज के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ गई.

मेरे हसबैंड शक्की मिजाज के हैं, उन्हें लगता है कि मेरा कोई बौयफ्रैंड है…

सवाल

मैं वर्किंग महिला हूं, कुछ ही दिनों पहले मेरी शादी हुई. मेरी अरेंज मैरिज है, लेकिन हमदोनों शादी से पहले एकबार मिले थे और इस मैरिज के लिए हामी भरी थी. हमारी ज्वाइंट फैमिली है, मेरे सासससुर और पति रहते हैं. शादी से पहले हसबैंड और साससुर को मेरे जौब से कोई दिक्कत नहीं थी.

लेकिन मुझे लगता है, मेरे औफिस जाने से मेरे ससुराल वालों को परेशानी है. क्योंकि हर रोज सुबह और शाम घर के कामों को लेकर मेरी सास और हसबैंड कलह करते हैं. मैंने उनसे कई बार कहा है कि मुझे भी थकान होती है, औफिस से आने के बाद घर के काम करने का मन नहीं करता. आपलोग काम में मेरी मदद कर देंगे, तो खाना आसानी से बन जाएगा, लेकिन वो लोग चाहते हैं कि घर का सारा काम मैं ही करूं.

Group of friends having fun at living room singing a song together

इतना ही नहीं मेरे हसबैंड अब मुझ पर शक भी करते हैं कि किसी कौलिग के साथ मेरा चक्कर तो नहीं चल रहा… वो मेरा फोन चेक करते हैं, किसी भी लड़के का मैसेज आता है, तो वो पढ़ते हैं… किसी ने कुछ मजाक में भी लिखा हो, तो उन्हें लगता है कि मेरा उस लड़के के साथ कोई संबंध है. शादी के बाद मैं हर तरह से फंस चुकी हूं, मेरा करियर डूबता नजर आ रहा है और मेंटल हैल्थ भी खराब हो रही है. इस समस्या को कोई समाधान बताएं.

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जवाब

समाज में लोगों की यही सोच होती है कि महिलाएं घर का काम करें और मर्द बाहर का काम करें. हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से आगे हैं. जब महिला और पुरुष दोनों वर्किंग हो, तो घर का काम सिर्फ महिलाएं क्यों करें?

आपको अपनी ससुराल वालों की सोच बदलने की कोशिश करनी होगी. आप उन्हें समझा सकती हैं कि मैं पढ़लिखी हूं, घर के कामों में मैं अपना लाइफ नहीं बर्बाद करना चाहती, आजकल चीजें कितनी महंगी हो गई और ऐसे में आप जौब कर रही हैं, आप आर्थिक रूप से भी उनकी मदद कर सकती हैं. रही बात घर के कामों की तो आप भी चाहती हैं कि आपकी फैमिली मदद करें. तो आप कामों को बांट सकती हैं, इससे काम आसान हो जाएगा और किसी एक पर प्रेशर भी नहीं होगा. आप एक हाउस हैल्पर भी रख सकती हैं, जिससे परिवार में घर के कामों के लिए झगड़ा नहीं होगा.

दूसरी समस्या ये है कि आपके पति आप पर शक करते हैं. वो आपके लेकर पोजैसिव हैं, ऐसे में आप उन्हें यकीन दिलाएं कि आप उनकी पत्नी है और किसी लड़के से बात करने का मतलब ये नहीं होता है कि दोनों का चक्कर ही चल रहा है. प्रोफैशनल लाइफ और पर्सनल लाइफ अलग होती है.

अगर आप वर्किंग हैं, तो तरहतरह के लोगों से मिलनाजुलना, बातें करने का सिलसिला जारी रहता है. ऐसे में हसबैंड और वाइफ की आपसी समझदारी होनी चाहिए. शक करने से रिश्ते बिगड़ने लगते हैं.

पर्पल सिंदूर की वजह से लाइमलाइट में आईं अंकिता लोखंडे, सोशल मीडिया पर फैशन का बना मजाक

पौपुलर एक्ट्रेसअंकिता लोखंडे आए दिन पैपराजी के कैमरे में स्पौट होती रहती हैं, कभी वह अपने हसबैंड विक्की जैन संग क्वालिटी टाइम स्पेंड करती दिखती हैं तो कभी अपने फैशन की वजह से लाइम लाइट में आ जाती है एक बार फिर अंकिता ने कुछ ऐसा किया है जिस वजह से वह लोगों के निशाने पर आ चुकी हैं.
हाल ही में अंकिता लोखंडे और उनके हसबैंड विक्की जैन का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें उनके साथ अली गोनी भी नजर आ रहे हैं. ये वीडियो लाफ्टर सेट का है. जिसमें तीनों साथ में कैमरे के लिए पोज देते दिख रहे हैं, इस वीडियो में अली ने मैरून कलर का प्लेन कुर्तापायजामा पहना और विक्की ने ब्लैक कलर के कुर्ते में पिंक फ्लावर की इम्ब्राइडरी वाला कुर्तापायजामा, वहीं अंकिता होल्टर नेक वाली, रेड कलर पर ग्रीन और लाइट पिंक फ्लावर वाली खूबसूरत स्लीव्स लेस ड्रेस पहने नजर आ रहीं है. उन्होंने हेयर को सिंपल पीछे करके बांधा हुआ है. नेचुरल कलर की लिपस्टिक से लुक को स्टाइल दिया है. कानों में आक्सीडाइज्ड इयररिंग पहनी हुई है. इतना तो ठीक है लेकिन इसके साथ जो उन्होंने सिंदूर लगाया है, वही ट्रोलिंग का कारण बन गया है.

फैशन सिंबल पर्पल सिंदूर

वीडियो में एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे फोरहैड पर रेड कलर की जगह पर्पल कलर का सिंदूर लगाए दिख रही हैं, जैसे ही उनके सिंदूर पर अली गोनी की नजर पड़ी, उन्होंने मीडिया के सामने ही कह दिया कि पर्पल कलर का सिंदूर कौन लगाता है? अली गोनी की बात सुनकर विक्की फौरन कहते हैं कि इसने मार-मार कर पर्पल कर दिया है. विक्की और अली की बात सुनते ही अंकिता ने कहा कि अरे ये फैशन है. इसके बाद लोग उन्हें ट्रोल करने लगे और अजीबोगरीब कमेंट्स कर रहे है.

लोगों के कमेंट्स

अंकिता का पर्पल कलर के सिंदूर वाला वीडियो देखने के बाद एक यूजर ने कमेंट कर किया, ‘फैशन को अपनी परंपरा पर मत लागू करो, वहीं किसी यूजर ने लिखा है- ‘फैशन के नाम पर कुछ भी करोगी,
किसी ने लिखा, ”अंकु तुम बैंगनी सिन्दूर क्यों पहनती हो, यह तुम पर शोभा नहीं देता.  एक यूजर ने कमेंट कर लिखा है- ‘वह मुस्लिम है, लेकिन वो अच्छे से जानता है.’ वहीं किसी ने लिखा, ‘इसका छपरीपना बढ़ता ही जा रहा है, एक यूजर ने लिखा है- ‘भाई वो सेलिब्रिटी है वो लोग पाटी भी माथे पर लगा लें तो लोगों के लिए बहुत बड़ी बात होगी.

टीवी के अलावा फिल्मों में भी

अंकिता लोखंडे ने टीवी सीरियल ‘पवित्र रिश्ता’ से अपनी खास पहचान बनाई. इसके बाद पति विक्की जैन के साथ बिग बॉस सीजन 17 में नजर आई थीं, 2019 में आंकिता ने हिंदी फिल्मों में अपने करियर की शुरुआत की उनकी पहली हिंदी फिल्म कंगना रनौत की मणिकर्णिका: द क्वीन आफ झांसी थी. इसके बाद वह 2020 की एक्शन थ्रिलर बाघी 3 में दिखाई दीं. साल 2019 में उन्होंने बिजनेसमैन विक्की जैन के साथ अपने संबंधों की घोषणा की और 14 दिसंबर 2021 को मुंबई में शादी के बंधन में बंध गई.

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