नाम तो सही लिखिए

‘‘इस नाम से कोई खाता नहीं है.’’ बैंक मैनेजर ने भी वही दोहराया जो क्लर्क ने कहा था. हम समझ नहीं पा रहे थे कि कुछ महीने पहले तक हम इस खाते में चैक जमा कर रहे थे और हमें वह रकम मिल भी रही थी. अब अचानक ऐसा क्या हो गया जो हमारा खाता ही गायब हो गया. हम ने बैंक मैनेजर से बारबार कहा कि हम इसी खाते में नकद और चैक जमा करते आ रहे हैं और पैसा निकालते आ रहे हैं पर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. ‘‘मुझे और भी काम हैं,’’ कह कर उस ने हमें सम्मानपूर्वक बाहर निकल जाने को कहा.

हर जगह जानपहचान होना कितना जरूरी है, यह हमें उस दिन पता चला. जब तक मैं अपने शहर में था और मेरा मित्र उस बैंक में था तब तक कोई दिक्कत नहीं आई थी. आज क्या हो गया. मैं ने बारबार चैक देखा. मेरा सरनेम गलत लिखा था. ‘गुप्ते’ की जगह ‘गुप्ता’ लिखा था. जब तक मेरा मित्र इस बैंक में था तब तक इस गलत सरनेम की समस्या नहीं आई थी. सोचा था कि इस नए शहर में भी कोई दिक्कत नहीं होगी.

आजकल तो किसी भी शहर में बैंक से पैसा निकाल सकते हैं और जमा कर सकते हैं. इसी भरोसे पर चैक जमा कर दिया. पेइनस्लिप पर जमा करने वाले का नाम और पता लिखा होता है, इसलिए वह चैक यहां के पते पर लौट आया. हम चैक ले कर बैंक पहुंचे. जांच करने पर हकीकत का पता चला. अब क्या हो? शहर अनजाना, ऐसे में पैसे की जरूरत आन पड़ी. रुपए निकालने गया तो पता चला कि अपना अस्तित्व ही खो गया. एक माह पहले लेखन पारिश्रमिक का चैक जमा करवाया था.

हम ने एक बार फिर मैनेजर को वस्तुस्थिति से परिचित करवाया. ‘‘हम कुछ नहीं कर सकते. यदि आज आप के खाते में चैक जमा कर देंगे तो कल को सचमुच का ही ‘गुप्ता’ सरनेम का ग्राहक आ गया तो हमारी नौकरी चली जाएगी. आप चैक वापस कर दीजिए,’’ उस ने कुछ नरम हो कर कहा.

देश के इस हिस्से में आ कर मैं ने पाया कि हम भारतवासी दूसरे प्रांत के लोगों से, उन की भाषा से, उन के नामों से कितने अपरिचित हैं. जो नाम अपनी जानकारी का होता है उसी को सही मानते हैं और उस से मिलताजुलता नाम हो सकता है, यह मानते ही नहीं. मेरे सरनेम को ही बारबार कहने के बावजूद लोग गलत लिखते हैं. जवाब मिलता है, ‘‘क्या फर्क पड़ता है? यह लिख दिया तो क्या गुनाह किया. आप तो वही हैं न?’’

मैं ने भी इस बात पर ज्यादा जोर नहीं दिया. वैसे भी जानपहचान का आदमी होने के कारण कभी आज जैसी समस्या नहीं आई थी. अब मैं इस शहर में आ गया. यहां के आदमी ने अपनी समझ से काम लिया और चैक खाते में जमा नहीं किया. गलती मेरी ही थी. मुझे पहले ही अपना सरनेम सही लिखने को कह देना चाहिए था. जब बिना कुछ किए काम हो रहा था तो बेकार में क्यों तकलीफ उठाई जाए, यही सोच कर चुप रहा.

आज पता चला कि घोड़े की नाल में सही समय पर कील न ठोंकने पर लड़ाई हार जाने की कहावत कितनी सही है. अगर मैं ने अब अपना सरनेम सही नहीं करवाया और लोगों को सही लिखनेबोलने पर जोर नहीं डाला तो कल गुप्ता सरनेम के किसी अपराधी की जगह पुलिस मुझे पकड़ कर ले जा सकती है. इस विचार से मैं गरमी के मौसम में पसीना पोंछतेपोंछते कांप भी गया.

सरनेम के गलत लिखे जाने का एकमात्र शिकार मैं ही नहीं हूं. मेरे एक परिचित कलैक्टर के दफ्तर के बाबू से हुई बिंदी की गलती के कारण मिलने वाली वैधानिक संपत्ति से हाथ धो बैठे. उन का सरनेम था ‘लोढ़ा’. पर बाबू ने ‘ढ’ के नीचे बिंदी न लगा कर उन्हें ‘लोढा’ लिखा. विपक्षी ने इसी का सहारा ले कर उन्हें झूठा साबित कर दिया. जरा सी बिंदी ने सही आदमी को गलत और गलत आदमी को सही साबित कर दिया.

यह आम धारणा है कि हिंदी अलग से सीखने की जरूरत नहीं है, वह तो राष्ट्रभाषा है. पर भाषा की शुद्धता भी तो आनी चाहिए. मराठी में भी एक कारकुन ने ‘कोरडे’ को ‘कोर्ड’ लिख कर उसे मराठी कायस्थ बना दिया. बेचारा सरनेम सही करवाने के लिए सरकारी दफ्तरों में रिश्वत खिलाता फिरा.

भाषा की लापरवाही से जाति का वैमनस्य बढ़ सकता है, क्योंकि महाराष्ट्र में जातिवाद सुशिक्षित लोगों में भी बहुत गहरा है. सिर्फ सवर्ण और पिछड़ी जातियां ही नहीं, ब्राह्मण और कायस्थ भी एकदूसरे को नापसंद करते हैं. सरनेम पता चलते ही शरीफ आदमी को भी किराए का मकान नहीं मिलता.

वह तो बाबू था. उस का लिखनेपढ़ने का एकमात्र उद्देश्य नौकरी पाना था. भाषाई शुद्धता से उसे कुछ नहीं करना था. लेकिन समाचारपत्र भी कम नहीं हैं, जहां पढ़ेलिखे और जागरूक लोग भरती किए जाते हैं. वे भी धड़ल्ले से नामों में गलती पर गलती किए जाते हैं. दुख की बात तो यह है कि उन्हें बारबार लिखने पर भी वे अपनी गलती नहीं स्वीकारते. इस के लिए दोष इंग्लिश के माथे मढ़ दिया जाता है. लेकिन उस से भी बड़ा दोष दूसरी भाषा की तरफ झांक कर न देखने वाले लोगों का है.

हिंदी और मराठी भाषाएं एक ही लिपि यानी देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं. मजाल है कि कोई हिंदी वाला मराठी अखबार उठा ले. अगर गलती से उठा भी लिया तो भाषा में फर्क नजर आते ही एकदम फेंक देगा मानो कोई गंदी चीज हाथ में आ गई हो. यही दुर्भावना मराठी लोगों में भी हिंदी के प्रति है. इसी कारण कई लोगों के नाम हास्यास्पद हो जाते हैं.

क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर का नाम तो दुनियाभर में जानापहचाना है. लेकिन दिल्ली के अखबार और टीवी वाले बेचारे को ‘तेंदुलकर’ लिखते हैं. वह तो एहसान मानिए कि आयकर विभाग में इंग्लिश में कामकाज किया जाता है. वरना होता यह कि बेचारा सचिन अपना आयकर भरता ‘तेंडुलकर’ सरनेम से और वसूली या कुर्की का नोटिस आता ‘तेंदुलकर’ सरनेम से.

अब क्रिकेट की बात आई ही है तो एक और उदाहरण दिया जा सकता है. गांगुली को हिंदी वाले और मराठी वाले ‘सौरव’ लिखते हैं क्योंकि इंग्लिश में वैसा ही लिखा आता है. जो लोग बांग्ला भाषा जानते हैं उन्हें मालूम है कि इस भाषा में ‘व’ शब्द नहीं है. इसीलिए तो ‘विमल’ को ‘बिमल’. ‘वरुण’ को ‘बरुण’ और ‘वर्तमान’ को ‘बर्तमान’ लिखापढ़ा जाता है. और तो और, जो लोग भाषा की जरा सी भी जानकारी रखते हैं वे इस नए शब्द ‘सौरव’ पर हैरान होंगे. शायद वे सोचते होंगे कि ‘कौरव’ की ही तरह ‘सौरव’ शब्द भी होगा. असल में सौरव नाम का कोई शब्द ही नहीं होता. सही शब्द है सौरभ. इसीलिए ‘सुमन सौरभ’ नाम की पत्रिका निकलती है, ‘सुमन सौरव’ नाम की नहीं.

बांग्ला में इंग्लिश के ‘वी’ का उच्चारण ‘भी’ होता है और उसे वैसा ही लिखा जाता है. इसीलिए बांग्लाभाषी ‘अमिताभ’ को इंग्लिश में ‘अमिताव’ और ‘शोभना नारायण’ को ‘शोवना नारायण’ लिखते हैं. अखबार वाले बिना मेहनत किए उसे इंग्लिश के हिसाब से ही लिखते हैं.

ऐसे में यदि वे इंग्लिश में लिखे ‘रामा’ को ‘रमा’ लिख कर बिना औपरेशन के लड़के को लड़की बना दें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. क्रिकेटर अजीत आगरकर को हमेशा ‘अगरकर’ लिखा जाता है. वह इसलिए कि उस का मध्य प्रदेश के आगर या ताज महल वाले आगरा से कोई संबंध नहीं है.

भारत जैसे विशाल देश में एक नाम के एक से अधिक नगर हैं. दंगों के लिए ख्यात औरंगाबाद बिहार में भी है तो सूखे के लिए प्रसिद्ध महाराष्ट्र में भी है. बेचारे अजीत को आगरा से या आगर से संबंधित न होने के कारण ‘अगरकर’ ही बना दिया गया.

हिंदी के अखबार तो इस बात पर भी एकमत नहीं हैं कि अभिनेत्री ऐश्वर्या राय का सही नाम ऐश्वर्य है या ऐश्वर्या. ‘ऐश्वर्य’ नाम तो लड़के का होता है. ठीक वैसे ही जैसे ‘दिव्य’ लड़के का होता है और ‘दिव्या’ लड़की का. ‘नक्षत्र’ लड़के का होता है और ‘नक्षत्रा’ लड़की का. ‘नयन’ लड़के का और ‘नयना’ लड़की का.

इसी तरह मद्रास के नए नाम पर भी विवाद है. यदि एक अखबार ‘चेन्नै’ लिखता है तो दूसरा ‘चेन्नई’. यही हाल मदुराई और ‘मदुरै’ का है. क्यों नहीं हम उन्हें तमिल उच्चारणों के हिसाब से लिखते?

अब पंजाब के एक रेलवे स्टेशन का नाम गुरुमुखी में लिखा है ‘बठिंडा’. लेकिन इस नाम से इसे देश में शायद ही कोई जानता हो. इसे ‘भटिंडा’ ही लिखा और बोला जाता है. ‘बठिंडा’ से ‘भटिंडा’ बनाने की तुक समझ में नहीं आती.

कुछ वर्षों पहले तक वडोदरा शहर के 4 नाम थे. हिंदी में बड़ौदा, इंग्लिश में बरोडा, मराठी में बडोदें और गुजराती में वडोदरा. अलगअलग भाषाओं में एक ही शहर के इतने नामों की तुक समझ नहीं आती. हिंदी अखबार ‘भांडारकर’ को हमेशा ‘भंडारकर’ लिख कर अपने ज्ञान के भंडार का प्रदर्शन करते हैं. ‘मालाड’ को ‘मलाड’ और ‘सातारा’ को ‘सतारा’ लिखने में इन्हें क्या मजा आता है, ये ही जानें.

दिल्ली के कई अखबार देव आनंद को ‘देवानंद’ लिख कर अपने संस्कृतबाज होने का सुबूत देते हैं जिस से स्वर संधि का उपयोग होता है. पता नहीं वे लक्ष्मी आनंद या सरस्वती आनंद को कैसे लिखते होंगे? शायद ‘लक्ष्म्यानंद’ या फिर ‘सरस्वत्यानंद’.

हिंदी के एक महान पत्रकार ने प्रभात फिल्म कंपनी की एक फिल्म ‘वहां’ का मजेदार अनुवाद किया. उस ने यह शब्द आंखें मूंद कर इंग्लिश से चुराया. इंग्लिश में लिखा था डब्ल्यूएएचएएन. उस ज्ञानी ने लगाया अपना दिमाग और उसे बना दिया ‘वहाण’ जिस का मराठी में अर्थ होता है ‘जूता’. अखबार के लेखक को भाषा के इस अति ज्ञान के बारे में बताया गया तो महाशय चुप्पी साध गए.

हिंदी में ‘गजानन’ को ‘गजानंद’ लिखने वाले भी कई मिल जाएंगे. खुद को ‘गजानंद’ लिखने वालों की भी कमी नहीं. वे इसे ‘विवेकानंद’ से जोड़ कर देखते हैं. किसी व्यक्ति के नाम को गलत लिखना लिखने वाले की नासमझी और उस व्यक्ति के प्रति असम्मान जताता है. अपनी भूल मंजूर करना और उसे फिर से न दोहराना न सिर्फ बड़े दिलदिमाग की निशानी है, बल्कि नई बात सीखने की चाह भी जाहिर करता है.

दुख की बात है कि ऐसा नहीं है.

‘‘हम जो लिखते हैं, वही सही है,’’ का दंभ रखने वालों के कारण बंगाली ‘दे’ सही सरनेम होने पर भी गलत लगने लगता है.

मराठी भी अजीब भाषा है. उस के अखबार इंग्लिश के बिना नहीं चलते. इसी कारण वे लोगों के नामों का कत्ल करते हैं. जिस तरह बच्चे नामों को बिगाड़ कर आनंद लेते हैं वही वृत्ति हिंदीमराठी में है. मराठी में मंसूर अली खां पटौदी को ‘पतौडी’ लिखते हैं. जानकार लोग जब ‘पतौडी’ पढ़तेसुनते हैं तो लगता है कि सिर पर हथौड़ी चल रही हो. उन के संवाददाता दिल्ली में बैठे हुए हैं पर उन्होंने कभी कुछ ही किलोमीटर दूर बसे गांव पटौदी की सुध नहीं ली जहां के मंसूर अली खां कभी नवाब थे.

इसी तरह भिंडरांवाले को सभी मराठी अखबार बेधड़क ‘भिन्द्रनवाले’ लिखते हैं. लाजपत राय को ‘लजपत’ लिखने में उन्हें आनंद आता है. चोपड़ा या कक्कड़ को वे कभी भी सही नहीं लिखते. वे बड़ी शान से लिखेंगे ‘चोप्रा’ या ‘कक्कर’. ‘गुड़गांव’ को वे आज तक ‘गुरगाव’ ही लिखते हैं. ऐसा नहीं कि मराठी में ‘ड़’ धवनि नहीं है. रवींद्रनाथ ठाकुर को वे बेधड़क ‘टागोर’ लिखतेबोलते हैं. जबकि मराठी में ‘ठाकूर’ सरनेम होता है.

एक अखबार ने तो पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री पर भरापूरा लेख लिखा पर हर जगह उन का नाम ‘बिधन चंद्र’ लिख कर उस लेख का महत्त्व मिट्टी में मिला दिया. इसी तरह विख्यात लेखक नीरद चौधुरी को ‘नीराद’ लिख कर उन की हंसी उड़वा दी.

पता नहीं किस झोंक में आ कर मराठी अखबारों ने सही नाम ‘ढाका’ लिखना शुरू कर दिया वरना कुछ वर्षो पहले तो वे इंग्लिश की लिपि को देवनागरी में बदल कर ‘डक्का’ लिखते थे. मराठी में आज भी ‘बरूआ’ को ‘बारूआ’ और ‘सान्याल’ को ‘सन्याल’ लिखा जाता है. कुछ समय पहले तो ‘गुवाहाटी’ को ‘गोहत्ती’ लिखा जाता था.

गुजराती लिपि में अहमदाबाद को ‘अमदाबाद’ लिखा जाता है. क्यों? इस का जवाब नहीं मालूम.

किसी जमाने में डिस्को किंग कहे जाने वाले संगीतकार बापी लाहिड़ी का नाम भी गलत लिखा जाता है. उन्हें ‘बप्पी’ या ‘बाप्पी’ लिखा करते हैं. ‘बापी’ बंगालियों में किसी का पुकारा जाने वाला नाम (डाक नाम) होता है. अंधविश्वास के कारण बापी ने अपनी स्पैलिंग में एक अतिरिक्त ‘पी’ जोड़ा है पर जनता ने इसे गलत तरीके से लिया है और वह ‘बप्पी’ या ‘बाप्पी’ लिखती है. ‘लाहिड़ी’ का ‘लहरी’ या ‘लाहिरी’ बन जाना तो इंग्लिश की मेहरबानी से हुआ है. इसे ठीक करना मुश्किल नहीं है, पर करे कौन?

माना कि हर भाषा का अनुशासन अलग होता है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि नामों का मजाक उड़ाया जाए. इन विदू्रपीकरण से नफरत बढ़ती है. यह भी सही है कि यह जरूरी नहीं है कि हर आदमी सभी भाषाएं जाने. पर यह तो जरूरी है कि वह सही बोले या लिखे. यह जिम्मेदारी मीडिया पर है. और मीडिया इतना तो कर ही सकता है कि वह जनता को सही नाम बताए.

इंग्लिश का सहारा ले कर कब तक जीना चाहेंगे. इंग्लिश अखबारों तक ने ‘कानपुर’ की स्पैलिंग ‘सी’ के बजाय ‘के’ से लिखनी शुरू कर दी है. ‘गंगा’ को वे पहले की तरह ‘गैंजेस’ नहीं लिखते. ‘मथुरा’ को ‘मुथरा’ नहीं लिखा जाता. अगर इंग्लिश को ही दोष देना है तो उस में ‘मनोरंजन दास’ को ‘एंटरटेनमैंट स्लेव’ लिखना चाहिए. पर ‘रवि किरण’ को ‘सन रे’, ‘वीर सिंह’ को ‘ब्रेव लौयन’ नहीं लिखा जाता.

जब इंग्लिश मीडिया ने भारतीय नामों को स्वीकार कर लिया है तो हिंदीमराठी मीडिया को भी सही नाम लिखने में झिझक नहीं होनी चाहिए. इस के लिए मानक तय होने चाहिए ताकि उत्तर भारत के आदमी को दक्षिण भारत वाले जानवर न समझें और न ही दक्षिण भारत का कोई आदमी उत्तर भारत में अजूबे की तरह लिया जाए. लेकिन जो लोग ‘भारत’ को ‘इंडिया’ बना कर अपनी गरदन ऊंची कर सकते हैं उन से यह उम्मीद नहीं की जा सकती.

फंगल इन्फैक्शन से नाखून बढ़ते नहीं है, मैं क्या करूं?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल-

मु झे कुछ दिन पहले हाथों के नाखूनों में फंगल इन्फैक्शन हो गया था. उस के बाद मेरे नेल्स अच्छे से नहीं बढ़ते. हमेशा टूटते रहते हैं. देखने में भी शेप सुंदर नहीं आती. बताएं क्या करूं?

जवाब-

अगर फंगल इन्फैक्शन खत्म हो गया हो तब ही उस के ऊपर कुछ काम करने की जरूरत है. जब नेल्स की शेप सही नहीं आती तो हलके गरम औलिव औयल से उन की रोज मसाज करें. एक सुंदर शेप बनाएं और फाइल कर के रखें. आप चाहें तो नेल ऐक्सटैंशन के द्वारा एक बार लंबे नेल्स करने से वे खूबसूरत हो जाएंगे. उन पर चाहें तो परमानैंट नेलपौलिश भी लगा सकती हैं. जब भी नेल्स बढ़ें तो रिफिलिंग करा सकती हैं. इस से नेल्स हमेशा लंबे खूबसूरत दिखाई देंगे. कोई फंक्शन हो तो उन पर आप नेल आर्ट भी करा सकती हैं.

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आजकल बड़े और लंबे नाखूनों का चलन है. ये रंग-बिरंगे, अलग-अलग आकार और विभिन्न सलीके से तराशे हुए नाखून, आपकी सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं. ये आपके हाथों की खूबसूरती बढ़ाने के साथ, आपके व्यक्तित्व में भी एक निखार लेकर आते हैं.

आपकी इस सुंदरता को बरकरार रखने के लिये ये जरूरी है कि आप अपने नाखूनों को अच्छे तरीके से काटें और उन्हें साफ रखें. कुछ युवतियों के नाखून जरुरत से ज्यादा मुलायम हो जाते हैं, इस कारण किसी भी तरह की चोट लग जाने से या जरा साभी मुड़ने पर भी वो टूट सकते हैं.

आज हम आपको कुछ उपायों को बताने जा रहे हैं. इन सारे उपायों को ध्यान में रखकर आप अपने  नाखूनों की सुंदरता को और निखार सकते हैं और ज्यादा आकर्षक बना सकते हैं..

 

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भी भेज सकते हैं, submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Friendship Day Special: जानें कौन अच्छे और कौन हैं सच्चे दोस्त

सही कहा है अच्छा दोस्त वह नहीं होता जो मुसीबत के समय उपदेश देने लगे वरन अच्छा दोस्त वह होता है, जो अपने दोस्त के दर्द को खुद महसूस करे और बड़े हलके तरीके से दोस्त के गम को कम करने का प्रयास करे. यह एहसास दिलाए जैसे यह गम तो कुछ है ही नहीं. लोग तो इस से ज्यादा गम हंसतेहंसते सह लेते हैं.

वैसे भी सही रास्ता दिखाने के लिए किताबें हैं, उपदेश देने के लिए घर के बड़े लोग हैं और उलाहने दे कर दर्द बढ़ाने के लिए नातेरिश्तेदार हैं. ये सब आप को आप की गलतियां बताएंगे, उपदेश देंगे पर जो दोस्त होता है वह गलतियां नहीं बताता, बल्कि जो गलती हुई है उसे कुछ समय को भुला कर दिमाग शांत करने का रास्ता बताता है. आप के सारे तनाव को बड़ी सहजता से दूर करता है.

तभी तो कहा जाता है कि पुराना दोस्त वह नहीं होता जिस से आप तमीज से बात करते हैं वरन पुराना दोस्त तो वह होता है, जिस के साथ आप बदतमीज हो सकें. दोस्ती का यही उसूल होता है कि अपने दोस्त के गमों को आधा कर दे और खुशियों को दोगुना. केवल पुराने दोस्त ही ऐसे होते हैं, जो हमें और हमारे एहसासों को गहराई से सम झने और महसूस करने में सक्षम होते हैं.

सच है कि दोस्ती का रिश्ता बहुत ही प्यारा और खूबसूरत होता है. सच्चे दोस्त आप को भीड़ में अकेला नहीं छोड़ते, बल्कि आप की दुनिया बन जाते हैं. वे हमेशा आप के साथ होते हैं भले ही परिस्थितियां आप को दूर कर दें. वे आप से जुड़े रहने का कोई न कोई तरीका खोज निकालते हैं. वे आप का हौसला बनते हैं. एक समय आ सकता है जब आप के घर वाले आप को छोड़ दें, एक समय वह भी आ सकता है जब आप का बौयफ्रैंड/गर्लफ्रैंड या आप का जीवनसाथी भी आप की सोच को गलत ठहराने लगे, आप से दूरी बढ़ा ले? पर आप के सच्चे दोस्त ऐसा कभी नहीं करते. अगर दोस्तों को आप अपने मन की उल झन बताते हैं तो वे उन्हें सम झते हैं क्योंकि वे आप को गहराई से सम झते हैं, वे आप के अंदर  झांक सकते हैं.

किसी ने कितने पते की बात कही है: बैठ के जिन के साथ हम अपना दर्द भूल जाते हैं, ऐसे दोस्त सिर्फ खुश नसीबों को ही मिल पाते हैं…

आज वयस्कों को दोस्तों की और ज्यादा जरूरत है, क्योंकि रिश्तेदार तो कई शहरों में बिखरे रहते हैं. मौके पर वे कभी चाह कर भी काम नहीं आ पाते तो कभी मदद करने की उन की मंशा ही नहीं होती. वे बहाने बनाने में देर नहीं लगाते. मगर सच्चे दोस्त किसी भी तरह आप की मदद करने पहुंच ही जाते हैं. इसीलिए तो कहा जाता है कि दोस्ती का धन अमूल्य होता है. यही नहीं बातचीत करने और दिल का हाल बता कर मन हलका करने के लिए भी एक साथी यानी दोस्त की जरूरत सब को होती है.

क्यों जरूरी हैं दोस्त

दोस्त कुछ नया सीखने का अवसर देते हैं. नई भाषा, नई सोच, नई कला और नई सम झ ले कर आते हैं. हमें कुछ नया करने और सीखने का मौका और हौसला देते हैं. हमारे डर को भगाते हैं और सोच का दायरा बढ़ाते हैं. मान लीजिए आप का दोस्त एक कलाकार या लेखक है तो उस के साथसाथ आप भी अपनी कला निखारने का प्रयास कर सकते हैं. कुछ आप उसे सिखाएंगे तो कुछ उस से सीखेंगे भी. दोस्त आप को कठिनाइयों का सामना करने में मदद करते हैं, सही सलाह देते हैं, आप की भावनाओं को सम झते हैं, अवसाद से बचाते हैं. दोस्तों के साथ आप घरपरिवार के साथसाथ कार्यालय की समस्याओं पर भी चर्चा कर सकते हैं.

दोस्त कहां और कैसे खोजें

आप उन स्थानों पर दोस्तों की तलाश करें जहां आप की रुचियां आप को ले जाती हैं. मसलन, प्रदर्शनी, फिटनैस क्लब, संग्रहालय, क्लब, साहित्यिक मंच या फिर कला से जुड़ी दूसरी संस्थाएं. आप डांस अकादमी या स्विमिंग सेंटर भी जा सकते हैं और वहां अच्छे दोस्त पा सकते हैं. ऐसी जगहों पर आप को अपने जैसी सोच वाले लोग मिलेंगे. आप सोशल नेटवर्किंग साइट्स और ब्लौग्स पर भी अपनी अभिरुचि से जुड़े दोस्तों की तलाश कर सकते हैं.

पड़ोसी हो सकते हैं अच्छे दोस्त

अकसर हम अपनी सोसाइटी या अपार्टमैंट के लोगों को भी नहीं पहचानते. आसपास रहने वाले लोगों के साथ भी हैलोहाय से ज्यादा संबंध नहीं रखेते. कभी गौर करें कि आप अपने पास रहने वाले लोगों के साथ कितनी बार संवाद करते हैं? क्या त्योहारों के मौकों पर उन्हें तोहफे देने, खुशियां बांटने या कुशलमंगल जानने जाते हैं? सच तो यह है कि हम उन्हें इग्नोर करते हैं पर वास्तव में एक पड़ोसी अच्छा दोस्त बन सकता है और आप इस दोस्त से रोजना मिल सकते हैं, साथ घूमने जा सकते हैं, बातें कर सकते हैं, कठिन समय में ये तुरंत आप की मदद को हाजिर हो सकते हैं.

औफिस में ढूंढें दोस्त

औफिस में हम अपनी जिंदगी का सब से लंबा वक्त बिताते हैं. यहां आप को समान सामाजिकमानसिक स्तर के लोगों की कमी नहीं होगी. बहुत से औप्शंस मिलेंगे. कई बार हम औफिस के लोगों से केवल काम से जुड़ी बातें ही करते हैं और औपचारिक रिश्ता ही रखते हैं पर जरा इस से आगे बढ़ कर देखें. कुछ ऐसे दोस्त ढूंढें जिन के साथ काम के सिलसिले में आप की प्रतिस्पर्धा नहीं या फिर जो आप के साथ चलना जानते हैं. ऐसे दोस्त न केवल आप के मनोबल को बढ़ाएंगे, बल्कि दिनभर के काम के बीच आप को थोड़ा रिलैक्स होने का मौका भी देंगे. यदि आप अपने औफिस के दोस्तों के प्रति ईमानदार रहते हैं और उन के सुखदुख में काम आते हैं, तो यकीन मानिए वे भी हमेशा आप का साथ देंगे.

इंटरनैट

इंटरनैट के माध्यम से आप अच्छे दोस्त ढूंढ़ सकते हैं. यह आप पर निर्भर करता है कि आप उन के साथ सालों की घनिष्ठ मित्रता के बंधन में बंधे रहना चाहते हैं या सिर्फ चैट कर मजे करना चाहते हैं खासकर विपरीतलिंगी व्यक्ति के साथ अकसर दोस्ती आकर्षणवश हो जाती है. लोग जिंदगी का मजा लेना चाहते हैं, पर इस सोच से अलग दोस्ती में घनिष्ठता और ईमानदारी रखना आप की जिम्मेदारी है.

अब सवाल उठता है कि औनलाइन दोस्त कैसे ढूंढें़? आज के समय में आप के पास इंटरनैट पर बहुत से औप्शंस हैं. आप स्काइप, फेसबुक, ट्विटर, डेटिंग साइट््स आदि पर दोस्त खोज सकते हैं. इस के लिए सोशल नैटवर्क पर अपने पेज को ठीक से डिजाइन करने की आवश्यकता है. इस के अलावा आप अपने कुछ विचार या मैसेज भी पोस्ट कर सकते हैं. सामाजिक और राष्ट्रीय विषयों पर अपनी बात रख सकते हैं. दूसरों के पोस्ट पर अपने कमैंट्स दे कर समान सोच वाले लोगों से संपर्क बढ़ा सकते हैं.

पुराने दोस्त हैं कीमती

यदि आप बचपन में कुछ ऐसे दोस्त बनाने में कामयाब रहे जो अब भी आप के साथ हैं तो इस से अच्छा आप के लिए और कुछ नहीं हो सकता. यदि आप के अपने पूर्व सहपाठियों के साथ संबंध नहीं हैं तो उन्हें खोजने का प्रयास करें. आज सोशल नैटवर्क का उपयोग कर यह काम बड़ी आसानी से किया जा सकता है. कौन जानता है शायद आप भी आपसी विश्वास और स्नेह पर बने अपने पिछले दोस्ती के रिश्तों को पुनर्जीवित करने में सक्षम हो जाएं.

सब से विश्वसनीय दोस्त बचपन के दोस्त ही होते हैं. इन के साथ आप बिना किसी हिचकिचाहट अपने दुखदर्द, अपनी तकलीफें और सीक्रेट शेयर कर सकते हैं. लंगोटिया यार साधारणतया कभी धोखा नहीं देते, क्योंकि वे आप को सम झते हैं. वे परिस्थितियों को देख कर नहीं, बल्कि आप के दिल की सुन कर सलाह देते हैं.

दोस्त बनाने के लिए क्या है जरूरी

आप को अजनबियों के साथ भी एक आम भाषा में अपनी भावनाएं व्यक्त करना और दूसरों का ध्यान आकर्षित करना आना चाहिए. कुछ लोग जन्म से ही इस कला में निपुण होते हैं. सब से जरूरी है कि दूसरों में रुचि लीजिए. दूसरों के हक के लिए आवाज उठाएं. अपनी भावनाएं शेयर कीजिए तभी सामने वाला आप के आगे खुलेगा और आप को दोस्त बनाने के लिए उत्सुक होगा.

सलीकेदार कपड़े पहनें

अपने कपड़ों के प्रति सतर्क रहें. कपड़े ऐसे हों जो आप के आकर्षण को बढ़ाएं और व्यक्तित्व को उभारें. कपड़ों के साथ ही अपने अंदर से आ रही गंध के प्रति भी सचेत रहें. मुंह से बदबू या कपड़ों से पसीने की गंध न आ रही हो. हलकी खुशबू का इस्तेमाल करें. बालों को सही से संवारें. इंसान दोस्त उसे ही बनाना चाहता है जो साफसुथरा और सलीकेदार हो.

जानबू झ कर शेखी न बघारें

अकसर लोग शेखी बघारने के क्रम में  झूठ का ऐसा जाल बुनते हैं कि फिर खुद ही उस में उल झ कर रह जाते हैं. इसी तरह दूसरों की नजरों में आने के लिए कुछ ऐसा न बोल जाएं जो मूर्खतापूर्ण लगे.

झगड़ा जल्दी सुल झाएं

दोस्त के साथ आप का  झगड़ा हो गया है तो यह जानने की कोशिश में न उल झें कि आप में से कौन सही है और कौन दोषी है, बल्कि सुलह करने वाले पहले व्यक्ति बनें. दोस्ती को खत्म करना बहुत सरल है पर इसे बनाए रखना बहुत कठिन. लंबे और विश्वसनीय रिश्ते के लिए एक मजबूत नींव बनाना कठिन काम है, पर वह नींव आप को ही तैयार करनी है.

याद रखिए 2 लोग जिन के शौक और दृष्टिकोण विपरीत हैं कभी दोस्त नहीं बन सकते. इसलिए समान हित और सोच वालों को अपना दोस्त बनाएं और जीवन के एकाकीपन को दूर करें.

गहरी दोस्ती के राज

अपने दोस्त के लिए हमेशा खड़े रहें. यदि धन से उस की मदद नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं, मन से उस का साथ दें. उस को मानसिक सपोर्ट दें. उस की परेशानियों को बांटें और समस्याओं को सुल झाने का प्रयास करें. जब भी उसे आप की सहायता की जरूरत पड़े तो तुरंत आगे आएं. हमेशा कोशिश करें कि सामने वाले ने आप के लिए जितना किया जरूरत पड़ने पर आप उस से बढ़ कर उस के लिए करें. इस से आप को भी संतुष्टि मिलेगी और उस के दिल में भी आप के लिए सम्मान और प्यार बढ़ेगा. तभी तो आप की दोस्ती ज्यादा गहरी और लंबी चल सकेगी.

पैसे के मामलों में थोड़ी तटस्थता रखें

पैसों के मामले में थोड़े तटस्थ रहें. जब भी आप साथ कहीं घूमने जाते हैं, कोई चीज खरीदते हैं या दोस्त आप के लिए कुछ ले कर आता है तो पैसों का हिसाबकिताब बराबर रखने का प्रयास करें. जब भी आप दोनों मिल कर कुछ खर्च कर रहे हों तो किसी एक पर अधिक भार न पड़ने दें. भले ही छोटेमोटे खर्च ही क्यों न हुए हों, कोशिश करें कि खर्च आधाआधा बांट लें. अगर आप 4-5 दोस्त हैं तो सब मिल कर रुपए खर्च करने की कोशिश करें.

जहां तक बात कुछ बड़ी परेशानियों के समय खर्च करने की आती है जैसे घर में बीमारीहारी हो जाए या आप का दोस्त किसी क्रिमिनल केस में फंस जाए और उसे आप की मदद की जरूरत हो जैसे बेल देनी हो या उस के लिए कोई काबिल वकील तलाश करना हो अथवा मैडिकल ट्रीटमैंट के लिए तुरंत पैसों की जरूरत हो तो इस तरह के मामलों में कभी भी रुपए खर्च करने में आनाकानी न करें. यानी जब बात जान पर आ जाए तो बिना कुछ सोचे दिल खोल कर खर्च करें, क्योंकि यह बात आप का दोस्त जिंदगीभर नहीं भूल सकेगा और समय आने पर आप के लिए वह भी जान की बाजी लगा देगा. इसलिए अपने दोस्त होने की जिम्मेदारी को ऐसे समय जरूर निभाएं.

घबराएं नहीं भरोसेमंद बनें

यदि आप दोनों की जीवनस्तर में काफी असमानताएं हैं यानी कोई अमीर है और दूसरा गरीब तो ऐसी स्थिति में भी आप की दोस्ती पर कोई फर्क न पड़े. दोस्ती के लिए सिर्फ एक भरोसा, एक विश्वास और एक अपनापन ही सब से अहम होता है. यदि आप सामने वाले के लिए भरोसेमंद साबित होते हैं, जरूरत के वक्त उस के साथ खड़े रहते हैं, उस के सीक्रेट्स किसी से शेयर नहीं करते और उसे भरपूर मानसिक सपोर्ट देते हैं तो यकीन मानिए आप दोनों की दोस्ती की नींव बहुत मजबूत और गहरी रहने वाली है. आर्थिक स्तर का कोई असर आप की दोस्ती पर नहीं पड़ेगा.

विवाहितों में दोस्ती

दोस्ती का एक खूबसूरत पहलू यह भी हो सकता है कि आप दोनों पतिपत्नी की दोस्ती किसी ऐसे कपल से हो जो बिलकुल आप के जैसे हों. ऐसी दोस्ती का अलग ही आनंद होता है. इस में ध्यान देने की बात यह है कि आप दोनों समान रूप से उस कपल के साथ जुड़े हों यानी आप की जीवनसाथी भी उस कपल के साथ दोस्ती ऐंजौय कर रही हो और किसी तरह की मिसअंडरस्टैंडिंग क्रिएट न हो रही हो. इस तरह 2 कपल्स की दोस्ती 2 परिवारों की दोस्ती जैसी हो जाती है. आप चारों मिल कर एक खूबसूरत परिवार जैसा रिश्ता बना लेते हैं. आप चारों मिलबैठ कर बातें करें. ऐसी दोस्ती महानगरों में बहुत उपयोगी है. इस से अकेलापन तो दूर होगा ही विश्वसनीय रिश्ते भी मिल जाते हैं.

इसी तरह पतिपत्नी आपस में भी एकदूसरे के दोस्त बने रहने चाहिए. जब तक जीवनसाथी को आप दोस्त नहीं मानते तब तक सही अर्थों में आप जीवन के सुखदुख में एकदूसरे का साथ नहीं दे पाएंगे. इसलिए हमेशा एकदूसरे को अपना दोस्त मानें. इस से रिश्ते में गहराई आती है.

रहस्य छिपा कर रखने की आदत डालें

दोस्ती का एक बहुत बड़ा उसूल होता है कि अपने दोस्त के राज कभी न खोलें. उन्हें किसी से शेयर न करें, क्योंकि सामने वाला आप को बहुत विश्वास के साथ अपना मान कर अपने सीक्रेट्स, फीलिंग्स या वीकनैस शेयर करता है. उन बातों को यदि आप किसी से कह देंगे तो फिर दोस्ती टूटने में एक पल का समय नहीं लगेगा. इसलिए सामने वाले को यह भरोसा दिलाएं कि आप किसी भी परिस्थिति में उस के राज किसी से नहीं कहेंगे. ऐसी दोस्ती में ही व्यक्ति दोस्त को अपना सबकुछ बता सकता है और अपना मन हलका कर सकता है.

जानें क्या है फ्यूजन मेकअप और इसे करने का तरीका

एक समय था जब काजल, लिपस्टिक लगा कर महिलाएं अपने हारशृंगार को पूर्ण समझती थीं. लेकिन वक्त के साथसाथ मेकअप के तौरतरीकों में बहुत सारे बदलाव हुए हैं.

रिफ्लैक्शन ब्यूटी क्लीनिक की ओनर एवं ब्यूटीशियन संगीता गुप्ता कहती हैं, ‘‘पहले के समय में मेकअप में वैराइटी की कमी थी, जिस के चलते महिलाएं हर अवसर में एक सी दिखती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है. इस की एक बड़ी वजह है फैशन इंडस्ट्री में निरंतर हो रहा बदलाव.

अब महिलाओं के परिधानों में जितनी वैराइटीज उपलब्ध हैं, उतनी पहले नहीं थी. पारंपरिक परिधानों के साथ ही अब वैस्टर्न कल्चर से प्रभावित या यों कहिए फ्यूजन ड्रैस का ट्रैंड महिलाओं को लुभा रहा है. यही फ्यूजन फैशन अपने साथ फ्यूजन मेकअप को भी ट्रैंड में लाया है.’’

ब्यूटीशियंस की जबान में इसे इंडोवैस्टर्न मेकअप कहा जाता है. इस मेकअप की खास ट्रिक्स बताने के लिए हाल ही में गृहशोभा की फेब मीटिंग में ब्यूटीशियन संगीता गुप्ता ने शिरकत की और मीटिंग में हिस्सा लेने आईं ब्यूटीशियंस को इंडियन वैस्टर्न फ्यूजन मेकअप की खास बारीकियों के बारे में बताया.

कंसीलर क्यों है जरूरी

क्लीनिंग, टोनिंग और मौइश्चराइजिंग के बाद चेहरे पर प्राइमर लगा कर कई महिलाएं उसी पर बेस लगा लेती हैं. लेकिन संगीता कहती हैं, ‘‘प्राइमर के बाद मेकअप का तीसरा महत्त्वपूर्ण स्टैप होता है कंसीलिंग और जब बात इंडोवैस्टर्न मेकअप की हो, तो कंसीलर लगाना अनिवार्य हो जाता है, क्योंकि कंसीलर 90% चेहरे को कवर कर लेता है. इस की सब से बड़ी खासीयत होती है कि यह चेहरे पर मुंहासों के दाग और गड्ढों को छिपा देता है. साथ ही आंखों के आसपास काले घेरों को भी कवर कर लेता है. कंसीलर लगाने के बाद चेहरे पर इस्तेमाल किए जाने वाले रंग उभरे दिखते हैं. खासतौर पर आईशेड्स का रंग बहुत अच्छा दिखता है.’’

बेस होना चाहिए परफैक्ट

कंसीलर के बाद चौथा स्टैप होता है मेकअप बेस बनाना. यह बेस पर ही निर्भर करता है कि मेकअप कैसा हुआ है और कब तक टिकेगा. कई बार लड़कियां कंसीलर पर ही सीधे कौंपेक्ट पाउडर लगा लेती हैं, लेकिन इस से उन का मेकअप ज्यादा देर नहीं टिक पाता.

संगीता कहती हैं, ‘‘जिस तरह किसी चीज को टिकाने के लिए आधार का होना जरूरी है उसी तरह मेकअप को अधिक समय तक टिकाने के लिए बेस का होना जरूरी है.’’

‘‘कई बार गोरा दिखने के चक्कर में लड़कियां अपनी स्किन टोन से फेयर दिखने वाला बेस लगा लेती हैं. मगर वह नैचुरल नहीं दिखता जबकि इंडोवैस्टर्न मेकअप का पहला नियम है, मेकअप हो भी और दिखे भी नहीं. इसलिए बेज कलर का बेस चुनें. यह इंडियन स्किन टोन के लिए ही होता है. इस के अलावा इस बात का भी ध्यान रखें कि कम से कम बेस चेहरे पर लगाएं और उसे कंसीलर के साथ अच्छी तरह मर्ज करें.

‘‘इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि यदि आप 90% चेहरे को पहले ही कंसीलर से कवर कर चुकी हैं तो केवल 10% हिस्सा ही बेस का होगा. इस के अतिरिक्त चेहरे पर बेस लगाते वक्त देख लें कि कहीं दाना तो नहीं है. यदि है तो उस पर बेस का इस्तेमाल न करें.

‘‘स्किन में 3 रंग होते हैं. लाल, नीला और पीला. इसलिए दाना हो तो उस पर हरे रंग का आईशैडो लगाएं, इस से लाल रंग का दाना छिप जाता है.’’

आई मेकअप का फंडा

आई मेकअप को ले कर लड़कियों, महिलाओं में अलगअलग भ्रांतियां होती हैं. कुछ लड़कियां हर ड्रैस के साथ एक जैसा आई मेकअप कर लेती हैं, जबकि आंखों पर सही मेकअप महिला को आकर्षक लुक दे सकता है.

संगीता के अनुसार, जब बात इंडोवैस्टर्न मेकअप की हो तो आंखों का सही मेकअप बहुत जरूरी हो जाता है. इंडोवैस्टर्न आई मेकअप को कोशिश कर के मैट लुक देना चाहिए और केवल आईबौल्स पर ही मेकअप होना चाहिए.

दरअसल, आजकल की लड़कियों की डिमांड होती है कि मेकअप दिखे भी नहीं और फोटो भी अच्छा आए. इस के लिए आई मेकअप अच्छा होना जरूरी है.

इंडोवैस्टर्न आई मेकअप में काजल का रोल बिलकुल नहीं होता लेकिन आईलाइनर की सही शेप बहुत माने रखती है. इस के साथ ही आईब्रोज डिफाइन करने के बाद ही आई मेकअप पूरा होता है.

लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि आईब्रोज नैचुरल लगें. उन्हें हमेशा ब्लैक के साथ ब्राउन कलर मिक्स कर के डिफाइन करना चाहिए. यह उन्हें नैचुरल लुक देता है. इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी  है कि आईलाइनर हमेशा आईज के आउट कौर्नर से लगाएं, क्योंकि इंडोवैस्टर्न लुक में आउटर पतला और इनर मोटा होता है.

सावधानी से करें लिप मेकअप

आजकल बाजार में लिप मेकअप के ढेरों विकल्प मौजूद हैं. लेकिन किस मकअप के साथ कैसा लिप मेकअप होना चाहिए, यह पता होना बहुत जरूरी है. संगीता के अनुसार जब इंडोवैस्टर्न मेकअप किया जाता है, तो न बहुत हलके रंग की और न बहुत डार्क शेड की लिपस्टिक लगानी चाहिए, बल्कि उस का चुनाव ऐसा होना चाहिए जो ड्रैस को कौंप्लिमैंट करे. लिपस्टिक हमेशा लिप कौर्नर से लगाई जानी चाहिए.

कौंपैक्ट लगाने का सही तरीका

बेस के ऊपर कौंपैक्ट पाउडर लगा कर चेहरे को भी बेहतर लुक दिया जाता है. संगीता कहती हैं, ‘‘बेस के बाद कौंपैक्ट लगाना मेकअप का एक अहम नियम है और इसे सभी जानती हैं. लेकिन इस नियम का सही से पालन कम महिलाएं करती हैं. बेस कितना भी अच्छा क्यों न हो, कौंपैक्ट सही तरीके से न लगाया जाए, तो सारा मेकअप बिगड़ जाता है. कई लड़कियां और महिलाएं कौंपैक्ट को ब्रश में ले कर डायरैक्ट चेहरे पर लगा लेती हैं, जिस से चेहरे पर कहीं कम तो कहीं ज्यादा पाउडर लग जाता है. यदि कौंपैक्ट को हाथ में ले कर ब्रश को उस पर घुमाएं और फिर लगाएं तो इस से पाउडर बेस के साथ अच्छी तरह मर्ज हो जाता है.’’

कंटूरिंग के बिना मेकअप अधूरा

कंटूरिंग यानी काटछांट. दरअसल, पहले के समय में फोटो खींचने के बाद कंप्यूटर पर उसे ऐडिट कर के सही किया जाता था, लेकिन जब से मेकअप में कंटूरिंग तकनीक जुड़ी है तब से मेकअप ऐसा किया जाता है कि चेहरा फोटोजेनिक लगे.

कंटूरिंग के बारे में जानकारी देते हुए संगीता कहती हैं, ‘‘मेकअप में कंटूरिंग का काम चेहरे की बोनस्ट्रक्चर को उभारना होता है. इंडियन ट्रैडिशनल मेकअप में इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था, लेकिन अब जब से इंडोवैस्टर्न मेकअप का चलन शुरू हुआ तब से बिना कंटूरिंग के मेकअप अधूरा लगता है.’’

संगीता के मुताबिक कंटूरिंग करते वक्त इन बातों का ध्यान रखें:

– कंटूरिंग चेहरे को 3डी लुक देता है. इसे 2 तरह से किया जाता है. पहली चीकबोन कंटूरिंग होती है और दूसरी डाउनचिक कंटूरिंग. चीकबोन कंटूरिंग गालों पर चढ़े फैट को कम करने के लिए की जाती है और डाउन चिन कंटूरिंग डबल चिन वाली महिलाओं के चेहरे पर की जाती है.

– चीकबोन कंटूरिंग में इयर टु चीक लाइन ड्रा की जाती है और जिन महिलाओं के गाल भारी होते हैं, उन के ऊपर की ओर ब्लैंडिंग होती है और जिन के चिन भारी होते हैं उन की कंटूरिंग अंदर की तरफ की जाती है.

– कंटूरिंग की लाइंस को छिपाने और कट्स को उभारने के लिए बेस का इस्तेमाल एक बार फिर किया जा सकता है.

– जिन की नाक की शेप अच्छी नहीं होती है उन के नोज कंटूरिंग की जाती है. नोज कंटूरिंग में इस बात का खयाल रखना जरूरी है कि यदि सही कंटूरिंग नहीं की गई तो चेहरा मैच्योर लगने लगेगा.

हर साल महिलाओं के शरीर में किस तरह के होते हैं बदलाव, जानें यहां

जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है हमारे जीवन में बहुत सी चीजें बदलती हैं. हमारी सोच बदलती है और हम जब तक जिंदा होते हैं, ये सोच तब तक बदलती रहती है. इसके साथ-साथ हमारे शरीर में भी बदलाव होते रहते हैं. एक महिला का शरीर, प्यूबर्टी से मेनोपॉज के दौर से गुजरता है, कई बार यह धीरे-धीरे होता है और कई बार अचानक ही.

डॉ.मनीषा रंजन, सीनियर कंसल्टेंट, प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा का कहना है कि-

कई बार ऐसा होता है जब एक महिला का शरीर लगातार बदल रहा होता है. एक महिला का शरीर बदलते और कम होते हॉर्मोन, गर्भावस्था, प्रसव और प्राकृतिक उम्र बढ़ने की प्रक्रिया का सामना करता है- और ये ऐसे बदलाव हैं जो केवल महिलाएं अनुभव करती हैं. यह प्यूबर्टी या यौवन से शुरू होता है और मेनोपॉज तक जारी रहता है, कुछ के लिये यह सूक्ष्म और कुछ के लिये यह जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया होती है.

प्यूबर्टी

लड़कियां 8 से 13 साल की उम्र में प्यूबर्टी के दौर में पहुंच जाती हैं. विकसित होना शरीर के लिये एक पीड़ादायक प्रक्रिया हो सकती है. लड़कियों के बाल मोटे होने लगते हैं और ‘ब्रेस्ट बड’ विकसित होते हैं. इसके कुछ समय बाद ही उनकी माहवारी शुरू हो जाती है. यह ऐसा दौर होता है, जिसे हम एक्‍ने और हमारे पहले क्रश के रूप में याद कर सकते हैं. दरसअल, यह महिला बनने की दिशा में शुरू होने वाला एक खूबसूरत सफर होता है.

प्यूबर्टी कब खत्म होती है

प्यूबर्टी शुरू होने के बाद से चार साल तक स्तन पूर्ण रूप से बढ़ते हैं. कुछ लड़कियों में अपर लिप्स पर बालों का उगना सामान्य बात होती है. टीनएज का गुस्सा और सोचने का बदलता तरीका इस स्टेज को बखूबी बयां करता है.

प्रेग्‍नेंसी और मदरहुड

जब महिला का शरीर प्रेग्‍नेंसी के लिये तैयार होता है तो वह कई तरीकों से बदलता है. आपका शरीर यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे को बढ़ने और विकसित होने के लिये पर्याप्त भोजन, जगह और ऑक्सीजन मिल पाए. प्रेग्‍नेंसी कई तरह के बदलाव ला सकती है, जिसमें बालों की मोटाई का बढ़ना, हड्डियों का मुलायम होना और आपकी त्वचा तथा ऑक्सीजन लेवल में बदलाव होना शामिल है.

जन्म देने के बाद आपका शरीर एक और महत्वपूर्ण बदलाव से गुजरता है. जन्म देने के तुरंत बाद आपके एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर काफी बदल जाएगा. बॉन्डिंग हॉर्मोन, ऑक्सीटॉसिन भी शरीर द्वारा अधिक बार निर्मित होता है. इस स्टेज पर, कुछ महिलाएं सामान्य से अधिक चिंतित रहती हैं. मदरहुड के शुरूआती सालों में मानसिक सेहत को सबसे पहली प्राथमिकता देनी चाहिए.

प्रीमेनोपॉज

मेनोपॉज से चार से पांच साल पहले, प्रीमेनोपॉज चरण शुरू हो जाएगा. महिलाएं अपने 40 के दशक में इस चरण से गुजरती हैं और अक्सर उन्हें पता नहीं होता कि क्या हो रहा है. आपका प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन का स्तर महत्वपूर्ण रूप से बदल सकता है. मेनोपॉज के लक्षण जैसे रात को पसीना आना, हॉट फ्लैशेज, वजन बढ़ना और मूड स्विंग होना भी संभव है.

मेनोपॉज

आपके आखिरी माहवारी के एक साल के बाद, मेनोपॉज का चरण शुरू होगा. 50 की उम्र तक, महिलाएं इस स्तर पर पहुंच जाती हैं, जोकि दस साल तक चलती है. मूड स्विंग, हॉट फ्लैशेज, रात में पसीना आना, कम सोना, वजन का बढ़ना और चिड़चिड़ापन, मेनोपॉज के कुछेक लक्षण हैं. मेनोपॉज के सबसे बुरे और नकारात्मक प्रभाव वाले लक्षणों में हॉट फ्लैशेज होते हैं. हॉट फ्लैश अचानक ही होता है, इसमें बहुत ज्यादा गर्मी महसूस होती है और पूरे शरीर में फैल जाती है. हॉट फ्लैशेज की वजह से रात में आने वाले पसीने से आपके नींद का समय भी काफी कम हो सकता है.

ब्लू साड़ी में श्वेता तिवारी की किलर अदा है सबसे जुदा, यहां देखें तस्वीरें

ब्यूटी और फिटनेस में नई एक्ट्रैस को टक्कर देती हौट एक्ट्रैस श्वेता तिवारी की बढ़ती उम्र में अदाएं भी कमाल की है. 43 की उम्र में उनकी खूबसूरती दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है. हाल ही में श्वेता का ब्लू साड़ी लुक वायरल हो रहा जो हर उम्र के लोगो को पसंद आ रहा है.

क्यूट मुस्कान के साथ बेहतरीन पोज

आपको बता दें कमाल की खूबसूरत श्वेता तिवारी को फिल्म सिटी में ब्लू साड़ी में देखा गया. वह शूट के लिए जा रही थी उन्हें देखते ही पैपराजी ने कैमरे में कैद करना शुरू किया तो श्वेता ने भी अपनी खूबसूरत मुस्कान के साथ साड़ी फ्लौन्ट करते हुए बेहतरीन पोज दिए. जो उनके फैंस को बहुत पसंद आ रहे है.

श्वेता का ब्लू ब्यूटी लुक

शूट के दौरान श्वेता ने स्लीवलेस ब्लाउज के साथ प्लेन ब्लू कलर की साड़ी पहनी हुई. साड़ी के साथ उनका न्यूड मेकअप, कर्ल किए हुए हेयर, हैंगिंग सिल्वर इयररिंग और ब्रेसलेट उनकी सुंदरता में चार-चांद लगा रहा है, श्वेता की इस ब्यूटी को देखकर फैंस भी तारीफ करते थक नही रहे और यही बोल रहे कि ये 43 साल की नहीं बल्कि 20 साल की लग रही हैं.

आज भी खूबसूरती है बरकरार

छोटे पर्दे की क्वीन कही जाने वाली श्वेता तिवारी को देख कर कोई कह नहीं सकता कि वह 2 बच्चों की मां हैं. उनकी 23 साल की बेटी पलक तिवारी भी खूबसूरती के मामले में उनसे कम ही है. श्वेता आज भी फिट और यंग नजर आती है

टीवी से फिल्मों का सफर

टीवी सीरियल ‘कसौटी जिंदगी’ में प्रेरणा के रोल से छाने वाली श्वेता, फेमस रिएलिटी शो बिग बौस सीजन 4 की विनर भी रह चुकी हैं और अब जल्द ही रोहित शेट्टी की फिल्म सिंघम अगेन में नजर आने वाली हैं. इससे पहले वह रोहित शेट्टी निर्मित इंडियन पुलिस फोर्स में सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ नजर आई थी. श्वेता ने भोजपुरी फिल्मों में भी काम किया है. आजकल श्वेता तिवारी का नाम उनसे 10 साल छोटे एक्टर फहमान खान के साथ सुर्खियों में है.

छोटे ब्रैस्ट साइज होने के कारण फ्रैंड्स मजाक उड़ाते हैं, क्या करूं?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल

मेरी उम्र 24 साल है, हाली ही में एक कौल सेंटर में जौब मिली है. मेरी शिफ्ट सुबह 8 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक है. यह मेरी पहली जौब है, तो मैं चाहती काम से लेकर हर चीज में मैं यह परफेक्ट रहूं, मैं अपने लुक को लेकर भी काफी कौन्शियस हूं. जो ड्रैसेज ट्रैंड में रहता है, मैं उसे कैरी करती हूं.

लेकिन मेरी एक प्रौब्लम है, मेरे ब्रैस्ट का साइज काफी स्मौल है. इस वजह से कोई भी ड्रैस मुझ पर नहीं जचती है. छोटे ब्रैस्ट होने के कारण कौलेज में भी फ्रैंड्स मजाक उड़ाते थे. खुद भी अजीब लगता है, कितना भी मेकअप कर लूं या अच्छी ड्रैसेज पहन लूं, लेकिन Small breast होने के कारण मेरी खूबसूरती फीकी पड़ जाती है. अब तो जौब भी करने लगी हूं. मैं अपनी औफिस में अपने काम के साथसाथ अपने लुक को बदलना चाहती हूं. जिससे यहां लड़कियां मुझे फैशनेबल का टैग दें, लेकिन कितना भी स्टाइलिश ड्रैस पहन लूं, छोटे ब्रैस्ट के कारण मैं अच्छी नहीं दिखती हूं. मैं ऐसा क्या करूं जिससे मेरी ब्रैस्ट में ग्रोथ हो और मैं खूबसूरत दिखने लगूं?

जवाब

हर लड़की एक परफैक्ट फिगर की चाहत रखती है. केवल आप ही नहीं बहुतसी लड़कियां अपने छोटे ब्रैस्ट साइज से परेशान रहती हैं. लड़कियों की बौडी को आकर्षक बनाने के लिए सही ब्रैस्ट साइज होना बहुत जरूरी है.

क्यों कम होते हैं ब्रैस्ट साइज

10 साल की उम्र में ही लड़कियों में ब्रैस्ट का विकास शुरू होने लगता है. हलांकि कुछ लड़कियों में देरी से होता है, लेकिन कई ऐसी लड़कियां होती हैं, उम्र बढ़ने के बाद भी उनके ब्रैस्ट का आकार छोटा ही रह जाता है. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं- अनहैल्दी डाइट, असंतुलित हार्मोन, वजन का काम होना, ब्लड सर्कुलेशन की कमी जैसे कई कारण हो सकते हैं.

ब्रैस्ट साइज बढ़ाने के लिए खाएं ये चीजें

ब्रैस्ट साइज को बढ़ाने के लिए आप अपनी डाइट में बदलाव करें. इसके लिए आप किसी एक्सपर्ट से सलाह लेकर अपनी डाइट में खाने की चीजें शामिल कर सकती है. इसके अलावा ब्रैस्ट बढ़ाने के लिए एक्सरसाइज करें. इसके लिए डंबल चैस्ट प्रैस, आर्म प्रैस, पुश अप्स और वाल प्रैश एक्सरसाइज कर सकती हैं.

पैडेड ब्रा भी कर सकती हैं वियर

मार्केट में पैडेड ब्रा भी मिलते हैं. इन्हें कैरी करने से ब्रैस्ट एट्रैक्टिव दिखता है. इससे शेप बेहतर दिखता है और इसकी फिटिंग भी अच्छी होती है. कई बार पतले कपड़े पहनने पर निप्पल का आकार दिखता है, लेकिन पैडेड ब्रा पहनने से निप्पल के दिखने की समस्या भी दूर होगी.

 व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें.

टीआरपी लिस्ट में ‘अनुपमा’ और ‘झनक’ में कड़ी टक्कर, ‘ये रिश्ता और गुम है’ को लगा झटका !

आजकल हर किसी के लिए डिजिटल या ओटीटी पर शोज, मूवीज, सीरीज देखना आसान हो गया है, लेकिन टीवी सीरियल का फैशन अभी नहीं गया है. जब भी लोग घर पर रहते हैं और समय होता है, तो वो टीवी से काफी हद तक जुड़े रहते हैं. समय के साथ टीवी कंटेंट में काफी बदलाव आया है.

टीवी सीरियल की 30 वें हफ्ते की टीआरपी लिस्ट आ गई है. बार्क (BARC) की ओर से जारी टीआरपी लिस्ट में काफी बदलाव देखने को मिला है. इस रिपोर्ट के बारे में जानने के बाद दर्शक हैरान भी हो सकते हैं. जैसा कि आप जानते हैं, टीआरपी के मामले में सीरियल अनुपमा लगातार टौप पर रहा है.

सीरियल अनुपमा काअच्छा परफौर्मेंस

रूपाली गांगुली और गौरव खन्ना का यह सीरियल घरघर में फेमस है. इस शो की कहानी से हर महिला खुद को रिलेट भी करती है. इस हफ्ते अनुपमा को 2.5 रेटिंग मिली. इश शो में ये दूसरी बार लीप दिखाया जा रहा है और कहानी के एंगल में भी बदलाव आया है. जिससे फैंस को एंटरटैनमेंट का डबल डोज मिल रहा है.

झनक टौप 5 में कर रहा है राज

लेकिन इस टीआरपी लिस्ट में अनुपमा को कांटे का टक्कर देने के लिए सीरियल ‘झनक’ ने भी अच्छा परफौर्म किया है. इसे 2.2 रेटिंग मिली है. यह सीरियल टौप 5 में राज कर रहा है. सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ को बड़ा झटका लगा है. यह टीआरपी लिस्ट में पीछे है.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ की बढ़ी टैंशन

टीआरपी लिस्ट में ‘उड़ने की आशा’ ने भी बेहतरीन परफौर्म किया है. लिस्ट में शो ने तीसरे नंबर पर अपनी जगह बना ली है. इसकी रेटिंग 2.2 है. तो वहीं ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ चौथे नंबर पर पहुंच गया है. इस शो को 2.1 ही रेटिंग मिली है.

सालों से ये सीरियल्स दर्शकों का कर रहे हैं एंटरटैनमेंट

छोटे स्क्रीन पर सामाजिक, रोमांटिक, फैमिली, हौरर, लव स्टोरी, कौमेडी जैसे हर तरह के शोज आ रहे हैं. कई टीवी सीरियल तो 14-15 सालों से ज्यादा टाइम से दिखाए जा रहे हैं. हर फैमिली में ये टीवी शोज बड़े ही चाव से देखे जाते हैं. सीरियल की कहानी में कई तरह के बदलाव भी दिखाए जाते हैं. कभी लीप दिखाई जाती है, तो कभी पहला सीजन खत्म हो जाता है, दूसरे सीजन में कहानी के नए एंगल को शुरू किया जाता है.

तारक मेहता का उल्टा चश्मा

सोनी सब चैनल का पौपुलर कौमेडी शो तारक मेहता का उल्ट चश्मा सालों से दर्शकों का फेवरेट बना है. इसका प्रीमियर जुलाई 2008 में हुआ था. इस शो में अब तक कई चेहरे बदल गए. शो के किरदारों में भी कई बदलाव आए. इसके बावजूद इस कौमेडी शो के पौपुलरिटी में कोई कमी नहीं आई.

आपको बता दें कि यह शो गुजरात के दिग्गज कौलमनिस्ट तारक मेहता के कौलम दुनिया के ‘ऊंधा चश्मा’ पर आधारित है. इस शो को बनाने की बात साल 1995 से चल रही थी. इस शो को बनाने के लिए दो साल तक बातचीत ही चलती रही. खबरों के अनुसार, इस शो को प्रसारित करने से सभी चैनलों ने इकार कर दिया था, लेकिन आखिर में सब टीवी ने इस सीरियल के लिए हामी भरी थी. इस शो के 4000 से भी ज्यादा एपिसोड पूरा हो चुके हैं. शो को 16 साल पूरे हो गए हैं.

ये रिश्ता क्या कहलाता है

टीवी इंडस्ट्री का पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ सालों से दर्शकों का पसंदीदा बना है. इस शो में कई किरदार नजर आते हैं. इस शो की शुरुआत साल 2009 में हुआ था. जब यह शो शुरू हुआ था तो इस सीरियल में हिना खान, करण मेहरा मुख्य किरदार में थे. इसके बाद शिवांगी जोशी और मोहसिन खान भी मुख्य किरदारों में नजर आए. अब यह कहानी की तीसरी पीढ़ी में चला गया है. शो को अब तक 15 साल पूरे हो गए हैं.

ये हैं चाहतें

ये है चाहतें का प्रीमियर 19 दिसंबर, 2019 को हुआ था और यह शो लगभग 5 साल पूरे करने के करीब है. इस शो के कहानी में कई उतारचढ़ाव आए. एक बार तो 20 साल का लीप भी दिखाया गया था. इसके चौथे सीजन दिखाए जा रहे हैं. यह डिज्नी हौट स्टार पर उपलब्ध है. यह रोमांटिक ड्रामा बेस्ड स्टोरी है.

Paris Olympic : 7 माह की प्रैगनैंट तलवारबाज महिला ने जीता दिल

मन में हौसला हो और कुछ कर गुजरने की ललक तो न सिर्फ अपने सपनों को पंख दिया जा सकता है, बल्कि दूसरों के लिए मिसाल भी। ऐसी ही एक महिला ने इस बार पैरिस ओलिंपिक में कर के दिखा दिया, जिस की तारीफ पूरी दुनिया कर रही है…

पैरिस ओलिंपिक पूरे शबाब पर है. सीन नदी के किनारे बसे दुनिया के इस सब से खूबसूरत शहर में महिला खिलाड़ियों के जनून का जलवा देख पूरा विश्व तालियां बजाते हुए देख रहा है. स्पोर्ट्स के सब से बड़े अखाड़े में यंग गर्ल्स से ले कर न्यू मदर्स तक शामिल हैं.

कभी ओलंपिया पर्वत से शुरू हुए खेलों के इस आयोजन में महिलाओं की ओर से रोज नए इतिहास रचे जा रहे हैं. भारत की ही नहीं, दूसरे देशों की महिलाएं भी यह साबित करने में लगी हैं कि उसे अबला, कमजोर और बेचारी नारी न समझा जाए.

 

अचानक चर्चा में आई यह खिलाङी

जुलाई महीने के आखिरी दिन मिस्र की एक महिला खिलाड़ी अचानक चर्चा में आ गई. उसे न गोल्ड मैडल मिला, न ही सिल्वर और न ही कांस्य. इस के बावजूद पूरा विश्व उस की तारीफ कर रहा है.

दरअसल, इजिप्ट (मिस्र) और यूएस की महिला तलवारबाजों का मुकाबला चल रहा था. इस मुकाबले में इजिप्ट की फैंसर नाडा हाफिज जीत हासिल कर लेती हैं. इस के बाद नाडा का अगला मुकाबला था साउथ कोरिया की फैंसर से. दोनों महिलाएं एकदूसरे का बहादुरी से सामना कर रही थीं। अंत में जीत का ताज साउथ कोरिया के नाम गया और नाडा हार गईं. लेकिन इस के बावजूद भी पूरे वर्ल्ड में नाडा की चर्चा हो रही है. इस की वजह थी उन की सोशल मीडिया पोस्ट, जिस में उन्होंने एक बड़ा खुलासा किया था.

नाडा ने अपने पोस्ट के जरीए पूरी दुनिया को बताया कि वह 7 महीने की प्रैग्नैंट हैं. इंस्टाग्राम पोस्ट की उन की लाइन थी, “7 महीने की गर्भवती ओलिंपियन। मैच के दौरान पोडियम पर 2 नहीं 3 खिलाड़ी थे। मैं, मेरी प्रतियोगी और गर्भ में पल रही मेरी बच्ची…”

उसी पोस्ट में नाडा ने यह भी लिखा था कि खेल की वजह से मैं ने और मेरे गर्भस्थ शिशु ने फिजिकल और इमोशनल दोनों चुनौतियों का डट कर मुकाबला किया. प्रैग्नैंसी एक कठिन रोलकोस्टर राइड है। ऐसे में लाइफ और स्पोर्ट्स के बीच बैलेंस करना वाकई चैलेंज था.”

नाडा ने पूरी दुनिया की महिलाओं को अपने जरीए यह खास मैसेज दे दिया कि तुम किसी भी स्थिति में कुछ भी कर सकती हो.

 

नाडा से आई मैरी कोम की याद

नाडा की चर्चा ने मैरी कोम की याद ताजा कर दी है. मैरी कोम ने एक बार यह कहा था कि कई महिला खिलाड़ी शादी या प्रैगनैंसी के बाद खेल को अलविदा कह देती हैं लेकिन मैं ने यह साबित किया कि मां बनने के बाद भी चैंपियन का मैडल पहना जा सकता है. मैरी कोम 8 बार विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की चैंपियन रह चुकी हैं. वह साल 2012 में ओलिंपिक में ब्रोंज जीतने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज रही हैं. उन्होंने 3 बच्चों की मां होने के बावजूद अपनी साहस और प्रतिभा की वजह से ढेरों पदकों की माला पहनी है.

और भी नाम हैं

पैरिस ओलिंपिक की वजह से भारत की दीपिका कुमारी का नाम भी जोरशोर से लिया जा रहा है. उन की मां का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिस में वह कह रही हैं कि 30 साल की दीपिका के लिए यह ओलिंपिक बेहद खास है. उन्होंने कहा कि किस तरह दीपिका ने अपने नवजात शिशु को परिवार के पास छोड़ अपनी ट्रैनिंग शुरू की.

साल 2022 में मां बनने के केवल 20 दिन बाद ही उन्हें अपने 19 किलोग्राम के तीरधनुष के साथ कोलकाता के स्पोर्ट्स अथौरिटी औफ इंडिया (एसएआई) के मैदान पर लौटना पड़ा था.

2 बार की वर्ल्ड चैंपियन दीपिका जब अपनी नवजात बच्ची को ससुराल वालों के पास छोड़ कर प्रैक्टिस करने के लिए जा रही थीं, तो फूटफूट कर रो पड़ी थीं. दीपिका ने भी अपनी प्रैगनैंसी के 7वें महीने तक ट्रैनिंग ली थी लेकिन कुछ समस्याओं की वजह से उन्हें बीच में ही प्रैक्टिस छोड़नी पड़ी.

एक इंटरव्यू में दीपिका ने यह बताया कि उन की डिलिवरी नौरमल थी इसलिए मैदान में आना कठिन नहीं था लेकिन फिर भी पुराने फौर्म में वापस आने को ले कर ढेरों चुनौतियां सामने हैं.

नए बच्चे की वजह से उन्हें कभी रातभर जागना पड़ा, तो कभी कुछ ही घंटे की नींद पूरी हो पाई. फिलहाल, 19 महीने की बच्ची को छोड़ कर यह मां पैरिस ओलिंपिक में खुद को साबित करने के लिए एड़ीचोटी करने में लगी हैं.

स्पोर्ट्स आइकौन बनीं मनु

पैरिस ओलिंपिक में 2 पदक जीत कर भारतीय महिला निशानेबाज मनु भाकर ने नया इतिहास रचा है, जो पिछले 124 साल की हिस्ट्री में कोई नहीं कर पाया. पहला कांस्य पदक जीत कर वह ओलिंपिक में भारत के लिए निशानेबाजी में पदक जीतने वाली पहली महिला बन गईं. मनु का यह पदक इसलिए और भी खास हो जाता है कि इस से पहले यह पदक जीतने वाले सभी एथलीट पुरुष थे.

मनु के पहले 2004 के ऐथैंस ओलिंपिक में राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ ने सिल्वर मैडल, 2008 के बीजिंग ओलिंपिक में अभिनव बिंद्रा ने गोल्ड मैडल, 2012 के लंदन ओलिंपिक में विजय कुमार ने सिल्वर और गगन नारंग ने ब्रोंज मैडल जीता था.

प्राचीन ओलिंपिक खेलों की शुरुआत 776 ईसा पूर्व मानी जाती है. ओलिंपिक खेलों के बारे में यह काफी मशहूर है कि खेलों के दौरान शहरों और राज्यों के बीच होने वाली लड़ाइयां तक रोक दी जाती थीं. तब से ले कर अब तक ओलिंपिक हर बार नया इतिहास रचता रहा है। लेकिन अब वह उस के खेलों की पौपुलरिटी की एक बड़ी वजह वूमंस स्पोर्ट्सपर्सन का दमखम है.

ओलिंपिक में महिलाओं की ऐंट्री

आधुनिक ओलिंपिक खेल की शुरुआत साल 1876 में हुई, तब केवल 14 देशों ने ही इस के खेलों में भाग लिया था. तब इन खेलों में किसी भी वूमन खिलाङी का नाम दूरदूर तक नहीं था.

महिलाओं ने सब से पहले साल 1900 के पैरिस ओलिंपिक में भाग लिया. तब करीब 997 ऐथलिट्स में से 22 महिलाएं थीं. इन महिलाओं ने टैनिस, गोल्फ, घुड़सवारी, क्रोकेट और नौकायान में भाग लिया था.

पहली बार साल 2012 के लंदन ओलिंपिक में पहली बार महिलाओं ने सभी खेलों में भाग लिया. ओलिंपिक खेलों में पहला मैडल जीतने वाली महिला थी हेलन डी पोर्टालेस. भारत के लिए ओलिंपिक का पहला पदक जीतने का श्रेय भारतीय वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी के नाम है. उन्हें यह पदक सिडनी ओलिंपिक में साल 2000 में मिला.

भारत की जनता पैरिस ओलिंपिक में अभी कई और महिला खिलाड़ियों से पदकों की आस लगाए टीवी के सामने इन के मुकाबले देख रही है.

 

प्रैगनैंसी की आड़ में महिलाओं को पंगु साबित करने की ज्योतिषीय सोच

प्रैगनैंट वूमन ने खुद को साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है जबकि ज्योतिष तो यह कहता है कि गर्भ के दिनों में कपल को दक्षिण की ओर सिर कर के सोना चाहिए क्योंकि दक्षिण की ओर पैर कर सोने को अशुभ माना गया है.

इतना ही नहीं, गर्भवती महिलाओं को इस बात की सलाह भी दी गई है कि वे कमरे में पूर्वजों की, वौयलेंट ऐनिमल्स की, महाभारत की फोटो नहीं लगाए।

ऐस्ट्रोलौजी ने तो प्रैगनैंट वूमन को इस बात की भी हिदायत दे दी है कि प्रैगनैंसी के समय बाल खोल कर नहीं सोना चाहिए.

गर्भवती महिला को कमजोर और नाजुक समझ कर कई तरह की हिदायतें दे दी गईं। इस में यह भी शामिल है कि इस दौरान शिव की पूजा नहीं की जानी चाहिए क्योंकि इस से उन का शरीर भारी हो जाएगा और उन के सांपों के नेत्र धुंधले हो जाएंगे.

कहने का मतलब है कि गर्भवती महिला इतनी अशुद्ध है कि उस के पूजा मात्र करने से भगवान ही नहीं पशु तक पर बुरा प्रभाव पड़ता है.
लेकिन क्या आप को लगता है कि महिलाओं ने ऐसी ओछी और छोटी सोच को दिखाने वाली बातों को फौलो किया होता तो पैरिस ओलिंपिक के पोडियम पर नाडा, मैरी कोम जैसी महिलाएं शान से खड़ी हो पातीं, अपने देश के झंडे को गर्व से लहरा पातीं,पूरे विश्व को अपने लिए तालियां बजाने पर मजबूर कर पातीं.

अधूरे जवाब: क्या अपने प्यार के बारे में बता पाएगी आकांक्षा?

कहानी- संदीप कुमरावत

कैफे की गैलरी में एक कोने में बैठे अभय का मन उदास था. उस के भीतर विचारों का चक्रवात उठ रहा था. वह खुद की बनाई कैद से आजाद होना चाहता था. इसी कैद से मुक्ति के लिए वह किसी का इंतजार कर रहा था. मगर क्या हो यदि जिस का अभय इंतजार कर रहा था वह आए ही न? उस ने वादा तो किया था वह आएगी. वह वादे तोड़ती नहीं है…

3 साल पहले आकांक्षा और अभय एक ही इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ते थे. आकांक्षा भी अभय के साथ मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी, और यह बात असाधारण न हो कर भी असाधारण इसलिए थी क्योंकि वह उस बैच में इकलौती लड़की थी. हालांकि, अभय और आकांक्षा की आपस में कभी हायहैलो से ज्यादा बात नहीं हुई लेकिन अभय बात बढ़ाना चाहता था, बस, कभी हिम्मत नहीं कर पाया.

एक दिन किसी कार्यक्रम में औडिटोरियम में संयोगवश दोनों पासपास वाली चेयर पर बैठे. मानो कोई षड्यंत्र हो प्रकृति का, जो दोनों की उस मुलाकात को यादगार बनाने में लगी हो. दोनों ने आपस में कुछ देर बात की, थोड़ी क्लास के बारे में तो थोड़ी कालेज और कालेज के लोगों के बारे में.

फिर दोनों की मुलाकात सामान्य रूप से होने लगी थी. दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी. मगर फिर भी आकांक्षा की अपनी पढ़ाई को ले कर हमेशा चिंतित रहने और सिलेबस कम्पलीट करने के लिए हमेशा किताबों में घुसे रहने के चलते अभय को उस से मिलने के लिए समय निकालने या परिस्थितियां तैयार करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी. पर वह उस से थोड़ीबहुत बात कर के भी खुश था.

दोस्ती होते वक्त नारी सौंदर्य के प्रखर तेज पर अभय की दृष्टि ने भले गौर न किया हो पर अब आकांक्षा का सौंदर्य उसे दिखने लगा था. कैसी सुंदरसुंदर बड़ीबड़ी आंखें, सघन घुंघराले बाल और दिल लुभाती मुसकान थी उस की. वह उस पर मोहित होने लगा था.

शुरुआत में आकांक्षा की तारीफ करने में अभय को हिचक होती थी. उसे तारीफ करना ही नहीं आता था. मगर एक दिन बातों के दौरान उसे पता चला कि आकांक्षा स्वयं को सुंदर नहीं मानती. तब उसे आकांक्षा की तारीफ करने में कोई हिचक, डर नहीं रह गया.

आकांक्षा अकसर व्यस्त रहती, कभी किताबों में तो कभी लैब में पड़ी मशीनों में. हर समय कहीं न कहीं उलझी रहती थी. कभीकभी तो उसे उस के व्यवहार में ऐसी नजरअंदाजगी का भाव दिखता था कि अभय अपमानित सा महसूस करने लगता था. वह बातें भी ज्यादा नहीं करती थी, केवल सवालों के जवाब देती थी.

अपनी पढ़ाई के प्रति आकांक्षा की निष्ठा, समर्पण और प्रतिबद्धता देख कर अभय को उस पर गर्व होता था, पर वह यह भी चाहता था कि इस तकनीकी दुनिया से थोड़ा सा अवकाश ले कर प्रेम और सौहार्द के झरोखे में वह सुस्ता ले, तो दुनिया उस के लिए और सुंदर हो जाए. बहुत कम ऐसे मौके आए जब अभय को आकांक्षा में स्त्री चंचलता दिखी हो. वह स्त्रीसुलभ सब बातों, इठलाने, इतराने से कोसों दूर रहा करती थी. आकांक्षा कहती थी उसे मोह, प्रेम या आकर्षण जैसी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं. उसे बस अपने काम से प्यार है, वह शादी भी नहीं करेगी.

अचानक ही अभय अपनी खयालों की दुनिया से बाहर निकला. अपनेआप में खोया अभय इस बात पर गौर ही नहीं कर पाया कि आसपास ठहाकों और बातचीतों का शोर कैफे में अब कम हो गया है.

अभय ने घड़ी की ओर नजर घुमाई तो देखा उस के आने का समय तो कब का निकल चुका है, मगर वह नहीं आई. अभय अपनी कुरसी से उठ कैफे की सीढि़यां उतर कर नीचे जाने लगा. जैसे ही अभय दरवाजे की ओर तेज कदमों से बढ़ने लगा, उस की नजर पास वाली टेबल पर पड़ी. सामने एक कपल बैठा था. इस कपल की हंसीठिठोलियां अभय ने ऊपर गैलरी से भी देखी थीं, लेकिन चेहरा नहीं देख पाया था.

लड़कालड़की एकदूसरे के काफी करीब बैठे थे. दोनों में से कोई कुछ नहीं बोल रहा था. लड़की ने आंखें बंद कर रखी थीं मानो अपने मधुरस लिप्त होंठों को लड़के के होंठों की शुष्कता मिटा वहां मधुस्त्रोत प्रतिष्ठित करने की स्वीकृति दे रही हो.

अभय यह नजारा देख स्तब्ध रह गया. उसे काटो तो खून नहीं, जैसे उस के मस्तिष्क ने शून्य ओढ़ लिया हो. उसे ध्यान नहीं रहा कब वह पास वाली अलमारी से टकरा गया और उस पर करीने से सजे कुछ बेशकीमती कांच के मर्तबान टूट कर बिखर गए.

इस जोर की आवाज से वह कपल चौंक गया. वह लड़की जो उस लड़के के साथ थी कोई और नहीं बल्कि आकांक्षा ही थी. आकांक्षा ने अभय को देखा तो अचानक सकते में आ गई. एकदम खड़ी हो गई. उसे अभय के यहां होने की बिलकुल उम्मीद नहीं थी. उसे समझ नहीं आया क्या करे. सारी समझ बेवक्त की बारिश में मिट्टी की तरह बह गई. बहुत मुश्किलों से उस के मुंह से सिर्फ एक अधमरा सा हैलो ही निकल पाया.

अभय ने जवाब नहीं दिया. वह जवाब दे ही नहीं सका. माहौल की असहजता मिटाने के आशय से आकांक्षा ने उस लड़के से अभय का परिचय करवाने की कोशिश की. ‘‘साहिल, यह अभय है, मेरा कालेज फ्रैंड और अभय, यह साहिल है, मेरा… बौयफ्रैंड.’’ उस ने अंतिम शब्द इतनी धीमी आवाज में कहा कि स्वयं उस के कान अपनी श्रवण क्षमता पर शंका करने लगे.  अभय ने क्रोधभरी आंखें आकांक्षा से फेर लीं और तेजी से दरवाजे से बाहर निकल गया.

आकांक्षा को कुछ समझ नहीं आया. उस ने भौचक्के से बैठे साहिल को देखा. फिर दरवाजे से निकलते अभय को देखा और अगले ही पल साहिल से बिना कुछ बोले दरवाजे की ओर दौड़ गई. बाहर आ कर अभय को आवाज लगाई. अभय न चाह कर भी पता नहीं क्यों रुक गया.

आधी रात को शहर की सुनसान सड़क पर हो रहे इस तमाशे के साक्षी सितारे थे. अभय पीछे मुड़ा और आकांक्षा के बोलने से पहले उस पर बरस पड़ा, ‘‘मैं ने हर पल तुम्हारी खुशियां चाहीं, आकांक्षा. दिनरात सिर्फ यही सोचता था कि क्या करूं कि तुम्हें हंसा सकूं. तमाम कोशिशें कीं कि गंभीरता, कठोरता, जिद्दीपन को कम कर के तुम्हारी जिंदगी में थोड़ी शरारतभरी मासूमियत के लिए जगह बना सकूं. तुम्हें मझधार के थपेड़ों से बचाने के लिए मैं खुद तुम्हारे लिए किनारा चाहता था. मगर, मैं हार गया. तुम दूसरों के साथ हंसती, खिलखिलाती हो, बातें करती हो, फिर मेरे साथ यह भेदभाव क्यों? तकलीफ तो इस बात की है कि जब तुम्हें किनारा मिल गया तो मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा तुम ने. क्यों आकांक्षा?’’

आकांक्षा अपराधी भाव से कहने लगी, ‘‘मैं तुम्हें सब बताने वाली थी. तुम्हें ढेर सारा थैंक्यू कहना चाहती थी. तुम्हारी वजह से मेरे जीवन में कई सारे सकारात्मक बदलावों की शुरुआत हुई. तुम मुझे कितने अजीज हो, कैसे बताऊं तुम्हें. तुम तो जानते ही हो कि मैं ऐसी ही हूं.’’

आकांक्षा का बोलना जारी था, ‘‘तुम ने कहा, मैं दूसरों के साथ हंसती, खिलखिलाती हूं. खूब बातें करती हूं. मतलब, छिप कर मेरी जासूसी बड़ी देर से चल रही है. हां, बदलाव हुआ है. दरअसल, कई बदलाव हुए हैं. अब मैं पहले की तरह खड़ ूस नहीं रही. जिंदगी के हर पल को मुसकरा कर जीना सीख लिया है मैं ने. तुम्हारा बढ़ा हाथ है इस में, थैंक्यू फौर दैट. और तुम भी यह महसूस करोगे मुझ से अब बात कर के, अगर मूड ठीक हो गया हो तो.’’ अब वह मुसकराने लगी.

अभय बिलकुल शांत खड़ा था. कुछ नहीं बोला. अभय को कुछ न कहते देख आकांक्षा गंभीर हो गई. कहने लगी, ‘‘तुम्हें तो खुश होना चाहिए. तुम मेरे नीरस जीवन में प्यार की मिठास घोलना चाहते थे तो अपनी ही इच्छा पूरी होने पर इतने परेशान क्यों हो गए? मुझे साहिल के साथ देख कर इतना असहज क्यों हो गए? मेरे खिलाफ खुद ही बेवजह की बेतुकी बातें बना लीं और मुझ से झगड़ रहे हो. कहीं…’’ आकांक्षा बोलतेबोलते चुप हो गई.

इतना सुन कर भी अभय चुप ही रहा. आकांक्षा ने अभय को चुप देख कर एक लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘तुम ने बहुत देर कर दी, अभय.’’

यह सुन कर उस के पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई. हृदय एक अजीब परंतु परिपूर्ण आनंद से भर गया. उस का मस्तिष्क सारे विपरीत खयालों की सफाई कर बिलकुल हलका हो गया. ‘तुम ने बहुत देर कर दी, अभय,’ इस बात से अब वह उम्मीद टूट चुकी थी जिसे उस ने कब से बांधे रखा था. लेकिन, जो आकांक्षा ने कहा वह सच भी तो था. वह न कभी कुछ साफसाफ बोल पाया न वह समझ पाई और अब जब उसे जो चाहिए था मिल ही गया है तो वह क्यों उस की खुशी के आड़े आए.

अभय ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कम से कम मुझ से समय से मिलने तो आ जातीं.’’ यह सुन कर आकांक्षा हंसने लगी और बोली, ‘‘बुद्धू, हम कल मिलने वाले थे, आज नहीं.’’ अभय ने जल्दी से आकांक्षा का मैसेज देखा और खुद पर ही जोरजोर से हंसने लगा.

एक झटके में सबकुछ साफ हो गया और रह गया दोस्ती का विस्तृत खूबसूरत मैदान. आकांक्षा को वह जितना समझता है वह उतनी ही संपूर्ण और सुंदर है उस के लिए. उसे अब आज शाम से ले कर अब तक की सारी नादानियों और बेवकूफीभरे विचारों पर हंसी आने लगी. उतावलापन देखिए, वह एक दिन पहले ही उस रैस्टोरैंट में पहुंच गया था जबकि उन का मिलना अगले दिन के लिए तय था.

अभय ने कुछ मिनट लिए और फिर मुसकरा कर कहा, ‘‘जानबूझ कर मैं एक दिन पहले आया था, माहौल जानने के लिए आकांक्षा, यू डिजर्व बैटर.’’

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