भीगीभीगी सड़कों पर: पूर्वा और उसकी बहन के साथ क्या हुआ

रात के तकरीबन 8 बज रहे थे. पटना शहर के शिवपुरी इलाके में अमूमन  इस समय काफी चहलपहल रहती है, लेकिन उस दिन बारिश के मौसम ने सभी को घरों में सिमट जाने के लिए मजबूर कर दिया था. यही वजह थी कि सड़कें सुनसान पड़ी थीं. आसमान में कालेकाले बादलों ने शाम से ही डेरा जमा लिया था.

26 साल का गोरा, तंदुरुस्त नौजवान रुद्र प्रताप गाड़ी चला रहा था. बगल वाली सीट पर उस का खास दोस्त आदित्य बैठा था, जो देखने में सांवले रंग का इकहरे बदन का नौजवान था. रेडियो पर गाना बज रहा था ‘भीगीभीगी सड़कों…’ और दोनों साथसाथ मस्ती में गाए भी जा रहे थे…

“यार रुद्र, क्या मस्त मौसम है, क्या शानदार गाना है, ऐसे में बस किसी अपने का साथ हो जाए तो जिंदगी में  मजा आ जाए…” आदित्य ने खिड़की के कांच को नीचे कर बाहर की ओर देखते हुए कहा.

“देख, अपनेवपने का मैं नहीं जानता, पर… अच्छा, चल तेरे सामने जो बक्सा है उसे खोल,” रुद्र प्रताप ने दोस्त के मूड का खयाल रखते हुए कहा.

आदित्य ने बड़े जोश से बक्सा खोला और उछल पड़ा, “तू न सचमुच कमाल है कमाल… लेकिन ड्रिंक ऐंड ड्राइव… पकड़े गए तो?”

आदित्य एक साधारण परिवार का लड़का था. उसे दुनियादारी की खूब समझ थी, पर रुद्र प्रताप करोड़पति पिता का एकलौता बेटा था.

“कुछ नहीं होता, बस जेब में करारे नोटों की गड्डी होनी चाहिए… अब तू ज्ञान ही देगा या मजे भी करेगा…” रुद्र प्रताप को अपने पिता के पैसों पर बहुत घमंड था, यह उस की इस बात से साफ जाहिर हो रहा था.

“कुछ खाने के लिए नहीं है?” आदित्य ने शराब की बोतल को आगेपीछे   देखते हुए कहा.

“पीछे की सीट पर देख…” रुद्र प्रताप ने पीछे की ओर इशारा करते हुए कहा.

“आज तो बस हम मजे ही मजे करेंगे. एक काम करते हैं तेरे औफिस वाले फ्लैट पर चलते हैं,” आदित्य ने सुझाव दिया.

“तू जैसा कहे…” रुद्र प्रताप ने हामी भरी.

‘भीगीभीगी सड़कों…’ दोनों एकदूसरे की ओर देख कर फिर से गाने लगे.

“यार रुद्र, इस गाने के साथ मेरे जज्बात कुछ ज्यादा ही मचल रहे हैं,” आदित्य ने चेहरे पर शैतानी मुसकान लाते हुए कहा.

“हां यार, मेरे भी…” रुद्र प्रताप ने आंख मारी.

अचानक तभी उन्हें सड़क किनारे 2 लड़कियां खड़ी दिखाई दीं, जो इस तेज बारिश में लोगों से मदद मांग रही थीं.

“दीदी, बहुत ठंड लग रही है, जल्दी से घर चलो न…” बारिश में भीगती बिन्नी ने ठिठुरते हूए खुद को अपनी बड़ी बहन पूर्वी से चिपकाते हुए कहा.

“मैं समझ रही हूं बिन्नी, पर तुझे भी क्या जरूरत थी सुबह मेरे साथ ईंट भट्ठे पर आने की, अब कोई सवारी मिले तो चलूं न,” परेशान पूर्वी ने चेहरे से पानी पोंछते हुए जवाब दिया. उस समय उस का पूरा ध्यान सड़क पर आजा रही गाड़ियों पर था.

“मरते समय बापू ने मुझ से वचन लिया था कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूं… उस का क्या?” बिन्नी ने ठिठुरते हुए भी जबाव दिया.

यह बात सुनते ही पूर्वी ने अपनी बहन के माथे को स्नेह से चूम लिया. 18 साल की पूर्वी अपनी 11 साल की बहन बिन्नी और मां के साथ शहर के भीतरी हिस्से में बनी झुग्गी बस्ती में रहती थी. उस की खूबसूरती में कोई कमी न थी, पर वह खूबसूरती लोगों को न दिखे, इस की कोशिश खूब होती थी. इस के लिए लोगों से कम बात करना, चिढ़ कर जबाव देना, बातबेबात पत्थर चला देना जैसी बेतुकी बातें शामिल थीं.

ऐसा पहले नहीं था, पर पिछले साल पिता की मौत होते ही ऐसे लोगों की लाइन लग गई थी, जो पूर्वी की मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे थे. अपने स्वाभिमान का खयाल रखते हुए वह ईंट भट्ठे पर बहीखाते के काम पर लग गई थी. उस ने सरकारी स्कूल में 10वीं जमात तक पढ़ाई भी की थी.

आज भी पुर्वी वहीं से लौट रही थी. रास्ते में बीमार मां के लिए दवाएं खरीदने लगी, तभी ईंट भट्ठे की ओर से निकलने वाली आखिरी बस छूट गई थी. नतीजतन, दोनों बहनें पैदल ही घर की ओर चल पड़ी थीं. उन्हें उम्मीद थी कि रास्ते में कोई न कोई इंतजाम हो ही जाएगा. लेकिन बरसात ने समस्या को बढ़ा दिया था.

तभी रुद्र प्रताप और आदित्य की गाड़ी वहां से गुजरी. दोनों लड़कों ने एकदूसरे की ओर शरारत भरी निगाहों से देखा और गाड़ी रोक दी. तब तक पूर्वी कार की खिड़की तक आ चुकी थी.

“झुग्गी बस्ती तक छोड़ देंगे बाबू…”

पूर्वी ने हाथ जोड़ कर कहा.

बारिश में भीगती हुई लड़की, चेहरा पानी में धुल कर चमक रहा था. रुद्र प्रताप और आदित्य की मुंहमांगी मुराद जैसे सामने खड़ी थी.

‘हांहां, क्यों नहीं…’ दोनों एकसाथ बोल पड़े.

पीछे का दरवाजा खोल दिया गया. पूर्वी अपनी बहन के साथ गाड़ी में बैठ गई. गाड़ी चलने लगी. दोनों ने सामने के मिरर से पूर्वी को निहारा.

रुद्र प्रताप ने स्टेयरिंग से हाथ हटा कर आदित्य की ओर बढ़ाया. आदित्य ने इशारे को समझ उस के हाथ को गरमाहट से थाम लिया.

उस समय पूर्वी का परेशान चेहरा घुंघराले बालों से ढका हुआ था, केवल पतले होंठ, जो बारिश में भीगने के चलते और भी गुलाबी हो गए थे, वही उन्हें दिख रहे थे. दोनों की बांछें ऐसे खिल गईं, जैसे पूर्वी उन्हीं के लिए आई हो.

“दीदी, पानी…” बिन्नी ने कराहते हुए कहा. बिन्नी का बुखार बढ़ता ही जा रहा था. होंठ सूख गए थे.

“बस, थोड़ी देर और बिन्नी…” कहते हुए पूर्वी ने अपने भीगे दुपट्टे से उस का चेहरा पोंछा.

दोनों लड़कों की दहकती निगाहें अब भी पूर्वी से चिपकी हुई थीं.

“दीदी, पानी…” और बिन्नी बेहोश हो गई.

“बिन्नी… बिन्नी…” पूर्वी ने जोर से आवाज लगाई.

बिन्नी का शरीर जैसे ढीला पड़ गया था. पूर्वी ने अपनी बहन को सीने से भींच  लिया. बिन्नी का शरीर भट्ठी की तरह तप रहा था. पूर्वी उस के शरीर की गरमी को अपने अंदर ले लेना चाहती थी. वह परेशान लड़की किसी से और मदद नहीं लेना चाहती थी, अपनेआप ही इस परेशानी को सुलझाना चाहती थी.

रुद्र प्रताप और आदित्य, जो अब तक औफिस वाले फ्लैट की प्लानिंग में उलझे हुए थे, बिन्नी के बेहोश होते ही जैसे होश में आ गए.

‘क्या हुआ है बिन्नी को?’ दोनों ने एकसाथ पूछा.

बेचैन पूर्वी ने इसी तरह अपने पिता को खो दिया था. उस दिन भी उस के पिता ने भी उसी की गोद में लेटे हुए आखिरी सांस ली थी. उसे वह सीन याद आने लगा और वह एक अलग ही दुनिया में खो गई.

तब तक रुद्र प्रताप ने गाड़ी रोक दी. वे दोनों पीछे आए. अचानक पूर्वी को खतरा सामने दिखने लगा, जिस के लिए वह कुछ हद तक तैयार भी थी.

पूर्वी ने बाएं हाथ से अपना चाकू, जिसे वह हमेशा अपनी कमर में खोंसे रखती थी, कस कर थामा लिया, लेकिन उस की जरूरत नहीं पड़ी.

गाड़ी में हलचल मच गई. पीछे की सीट पर आते ही रुद्र प्रताप ने बिन्नी के माथे को छुआ. आदित्य बिन्नी की हथेली और पैर को मलने लगा. इतने में रुद्र प्रताप जल्दी जा कर आगे से पानी की बोतल ले आया और बूंदबूंद पानी बिन्नी के अधखुले होंठों पर लगातार गिराने लगा. आदित्य अब भी उस के हाथपैर मल रहा था.

“डाक्टर अंकल को फोन कर,” आदित्य ने रुद्र प्रताप से कहा.

“हां, किया था मैं ने, नैटवर्क नहीं मिल रहा…” रुद्र प्रताप ने एक बार फिर नंबर डायल करते हुए कहा.

“चल, बिन्नी को क्लिनिक ले कर चलते हैं,” आदित्य ने तेजी दिखाई.

“ठीक है,” कहते हुए रुद्र प्रताप आगे आ गया.

पूर्वी अभी भी चाकू थामे जड़वत उन दोनों की सारी बातें सुन रही थी.

क्लिनिक बंद होने ही वाला था. रात काफी गहरी हो चुकी थी.

“अंकल, प्लीज… थोड़ा देखिए न, बिन्नी को क्या हो गया…” रुद्र प्रताप ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

डाक्टर बिना कुछ पूछे बिन्नी का मुआयना करने लगे और बोले, “सिस्टर, इन्हें वार्ड में ले चलो…”

थोड़ी देर बाद डाक्टर ने वार्ड से बाहर आ कर बताया, “घबराने की कोई बात नहीं है. कमजोरी, बुखार और भूखप्यास की वजह से बिन्नी बेहोश हो गई थी. सलाइन दी जा रही है, जल्दी ही उसे होश आ जाएगा…. हां, अगर और देर हो जाती तो मामला बिगड़ सकता था.”

वे रुद्र प्रताप के फैमिली डाक्टर थे. वे तीनों रातभर वहीं रहे. गाड़ी में रखी खाने की चीजें तीनों ने मिलबांट कर खाईं.

सुबह तक बिन्नी को होश आ गया था. रुद्र प्रताप तो उन्हें उन के घर तक छोड़ना चाहता था, पर पूर्वी ने मना कर दिया.

पूर्वी ने उन दोनों का शुक्रिया अदा करना चाहा, पर उस से पहले ही रुद्र प्रताप बोल उठा, “देखो, थैंक्यू मत कहना. जो भी हुआ वह इनसानियत थी, उस के आगे कुछ नहीं.”

वे दोनों बहनें वहां से जाने ही वाली थीं कि पीछे से रुद्र प्रताप ने कहा, “पूर्वी, चाकू का इस्तेमाल सही जगह पर जरूर करना.”

यह सुन कर पूर्वी झेंप गई. उसे लगा कि उस की चोरी पकड़ी गई है. उस ने मुसकराते हुए अपनी नजरें झुका लीं और फिर एक नजर रुद्र प्रताप और आदित्य की तरफ देखते हुए वह घर की ओर चल दी.

अफसोस: क्यों विजया से दूर हो गया वह

मैं औफिस में काफी रंगीनतबीयत माना जाता था और खुशमिजाज भी. हर रोज किसी को सुनाने के लिए मेरे पास नया व मौलिक लतीफा तैयार रहता था. मैं हाजिरजवाब भी गजब का था. कोई गंदा सा जोक अपने साथियों को सुना कर मैं इतनी बेशर्मी से आंख मारता और सारी बात इतनी गंभीरता से कहता कि हर कोई सच में मेरी बात मान लेता था.

वैसे तो मेरी कहानी सब लोगों के सामने एक खुली किताब रही है. मैं ने जिंदगी में जीभर कर ऐश की है. घर अच्छा था. मेरी बीवी भी कमाती थी. मैं ने सबकुछ खायापीया, घूमाफिरा. इतनी सारी औरतों से यारी की, रोमांस भी किया. वह मजेदार जिंदगी जी कर मजा आ गया.

मगर जनाब, असली बात तो यह है कि मैं ने गफलतभरी जिंदगी जी है. कोई ऐसा काम नहीं किया कि जिसे याद कर के दिल को कोई सुकून मिले. किसी ने मेरे अंदर की बात को कभी संजीदगी से नहीं लिया.

सभी सोचते रहे कि यह आदमी कितना मिलनसार और खुशमिजाज है. चलो, इस के पास चलते हैं. कुछ घड़ी बैठ कर गपें मारते हैं. मैं उन्हें ऐसी बातें बताता जो असल में सच नहीं थीं. कोरी कल्पनाएं थीं, वे सुन कर खुश हो जाते, ठहाके मार कर हंसते.

उन के जाने के बाद मैं उदास हो जाता. एक बलात्कार की सी स्थिति थी मेरे साथ. लगता था मानो इस बलात्कार को मैं ने खुद ही अरेंज करवाया है. रोजरोज मैं अपने अंतर्मन के साथ बलात ढोंग करता.

यह आदत मुझे बचपन से ही थी. लोग बताते हैं कि मेरे पिताजी को भी यही सनक थी, हरेक बात को बढ़ाचढ़ा कर बताना. अगर उन के पास हजार रुपए होते तो वे लोगों को बताते कि उन के पास 10 हजार रुपए हैं. मुझ में यह शेखी एक सनक की हद तक विकसित हो चुकी थी. अगर मैं कभी सच बोलता भी तो लोगों को यकीन न होता.

इस से बहुत नुकसान उठाए हैं, साहब, मैं ने. कई अधेड़ स्त्रियां तो मेरी अच्छी दोस्त बनीं मगर मेरी हमउम्र जवान औरतें मुझ से परहेज करतीं. कालेज में मुझे अपनी उम्र से बड़ी स्त्रियां भाती थीं जिन्हें हम दोस्त लोग आंटीज कह कर मजे लेते थे. एकदो तो मेरी चिकनी, हंसोड़ बातों में आ भी गई थीं. उन की गहरी जिस्मानी अंतरंगता भी मिली मुझे. वे मेरी शेखी भरी बातें सुन कर प्रभावित हो जाती थीं.

मगर ज्योंज्यों मेरी शादी पुरानी हुई, मुझे कच्ची उम्र की जवान, शोख लड़कियां अच्छी लगने लगीं. मगर मेरी बढ़ती हुई उम्र, आगे निकलती हुई तोंद और पकते जा रहे बालों ने उन्हें हमेशा मुझ से दूर ही रखा.

ऐसे में एक बार मुझे लगा कि मैं जिंदगी के सही अर्थ पा गया हूं. बात उन दिनों की है जब मैं अपने औफिस के स्टाफ टे्रनिंग कालेज में प्रशिक्षण अधिकारी था. एक बैच में एक लड़की थी जो मेरी हंसोड़, लच्छेदार तथा चुटीली बातों में आ गई थी. वह थोड़ी सांवली थी मगर हम हिंदुस्तानी लोग गोरे रंग पर टूट कर पड़ते हैं. अब मैं सोचता हूं कि मुझे उस का दिल दुखाना नहीं चाहिए था.

हां, तो जनाब, विजया, यही नाम था उस का. प्रशिक्षण पीरियड खत्म होने के बाद वह मुझ से मिलने मेरे सैक्शन में आई. वह 21 बरस की जवान लड़की थी और मैं 38 बरस का था. इतना अधेड़ तो न था मगर बाल जरूर पकने लगे थे मेरे और शरीर भी फूलने लगा था.

सारा सैक्शन हैरान नजरों से उसे देख रहा था. विजया को मैं ने साथ पड़ी कुरसी पर बिठाया. औपचारिकतावश चाय मंगवाई. हमारे बीच उम्र का बहुत बड़ा फासला था. वह कमसिन थी, जवानी की दहलीज पर अभी उस ने कदम रखा था मगर मैं उम्र की सीढि़यां उतर रहा था.

वह उस दिन मजाक के मूड में थी. मेरी नेमप्लेट देख कर बोली, ‘सर, आप का नाम तो लड़कियों जैसा है.’ मैं असंयत हो गया, जवाब में कुछ नहीं सूझा. मैं ने बस यही कहा, ‘तुम्हारा नाम भी तो लड़कों जैसा है.’

वह हंस पड़ी. अपने सैक्शन वालों के सामने मुझे पहली बार बेहद झिझक महसूस हुई. इसलिए नहीं कि वह लड़की थी बल्कि इसलिए कि वह उम्र में मुझ से बहुत छोटी थी. मेरी बगल वाली सीट पर हमेशा एक औरत बैठी रहती थी क्योंकि मैं इस बातकी कम ही परवा करता था कि लोग क्या कहेंगे.

लोग मुझे ठरकी कहते थे. यह बात मुझे पता थी. मेरी बगल में बैठने वाली तमाम औरतें लगभग संवेदनशून्य थीं, जो चाहे घटिया बात उन्हें कह लो, हाथवाथ लगा लो, कुछ बुरा नहीं मानती थीं. कुछ तो कोई न कोई बहाना लगा कर मेरी बगल वाली सीट पर विराजमान होने के लिए लालायित रहती थीं.

हां, तो विजया दूसरी बार आई, वह भी एक सप्ताह के अंदर. सैक्शन की बाकी औरतों को बहुत झुंझलाहट हुई. मन ही मन मैं खुश तो था मगर घबरा रहा था, डर रहा था. विजया की गलती यही थी कि जब वह मुझ से मिली थी तो मैं काफी उम्र जी चुका था. मैं 40 की तरफ जा रहा था और वह 20 पार कर रही थी. उस की बातें बेहद दिलचस्प होती थीं. मैं साफ देख रहा था कि यह लड़की मेरे प्रति कितना गहरा मोह पाले बैठी है.

एक जवान लड़की का साथ पाने की एक प्रकार की मेरी दिली इच्छा पूरी होने जा रही थी मगर मैं बेहद डर गया था, बुरी तरह हांफ रहा था, घबरा रहा था कि कहीं कुछ हो न जाए या लोग क्या सोचेंगे.

विजया सांवली थी, उस का शरीर गोलमटोल और गुदाज था. आंखें छोटी मगर बेहद कटीली और नशीली थीं. चुस्त, आधुनिक कपड़े पहनती थी. विचारों से वह काफी बोल्ड और साहसी थी. एमए इंगलिश कर रही थी. साहित्य में काफी शौक रखती थी. मैं ने भी बी ए औनर्स अंगरेजी साहित्य के साथ किया था. इसलिए लारैंस, कीट्स, बैकन और हक्सले की बहुत सी बातें मुझे अभी तक याद थीं.

सो, काफी देर तक हमारा वार्त्तालाप चलता. विजया के साथ मेरी कैफियत उस बच्चे के समान थी जो नंगे हाथों से दहकता हुआ गरम अंगारा उठा ले. विजया ने मेरे विश्वासों, मेरी मान्यताओं और मेरे विचारों को उलटपलट कर रख दिया था जैसे बरसात के बाद गलियों में बहने वाले पानी का पहला रेला अपने साथ तमाम बिखरे कागज, तिनके आदि बहा ले जाता है.

वह एक पहाड़ी नदी की तरह पगली थी, आतुर थी. उसे बह निकलने की बहुत जल्दी थी. उसे कई रास्ते, कई मोड़ पार करने थे. मैं एक सपाट मैदानी नाला था. मैं ने काफीकुछ देखा था.

इसी झिझक के मारे मैं ने कभी उस के सामने बाहर घूमने का प्रस्ताव नहीं रखा. विजया ने कई बार कहा, ‘सर, चलिए, कहीं चलते हैं, शिमला या मनाली, हिल स्टेशन पर मस्ती मारते हैं. चलो, बाहर नहीं तो यहीं अपने शहर के लेक व रौक गार्डन पर तो चलो.’ मगर मैं कोई न कोई बहाना लगा कर उसे टालता रहता.

3-4 बार मैं उस के साथ शहर के आसपास गया भी मगर कहीं उस से इत्मीनान से बात करने के लिए सुरक्षित जगह नजर नहीं आई. हर जगह मुझे कोई न कोई परिचित खड़ा नजर आया.

उस के साथ चल कर मुझे लगा कि मैं फिर से जवान हो गया हूं. मेरी उम्र कम हो गई है. फिर विजया की उम्र देख कर मुझे यह बोध होता कि मैं ठीक नहीं कर रहा हूं. अपराधबोध के बिना सच्चा प्यार क्यों नहीं होता. प्यार तो समाज की धारा के खिलाफ चल कर ही किया जा सकता है.

मैं डर गया था लोगों से, समाज से, अपनेआप से. कहीं फंस गया तो? हालांकि मैं विजया के प्यार में फंसना चाहता था मगर इतना गहरा फंसने का मेरा इरादा नहीं था.

मैं तो बस उसे छू कर, महसूस कर के देखना चाहता था. मगर विजया तो दीवानगी की हद तक पागल थी. मैं उस की कमसिन उम्र से डर कर अजीब परस्परविरोधी फैसले करता था. कभी सोचता था कि आगे बढ़ूं तो कभी बिलकुल पीछे हट जाने की ठान लेता था. उसे कहीं मिलने का समय दे कर उस से मिलने नहीं जाता था.

फिर मैं ने विजया के साथ एक रात किसी होटल में गुजारने की सोची. मगर उस से पहले मैं उस के प्यार की परीक्षा लेना चाहता था कि क्या वह मेरे सामने समर्पण करेगी या वैसे ही कोरी भावुकता में बह कर वह ऐसी बातें करती है. अपने औफिस की कई औरतों के साथ मुझे उन के घर पर ही उन के साथ अंतरंग संबंध बना लेने में कोई दिक्कत पेश नहीं आई. मगर विजया के केस में मुझे 1 साल लग गया यह सब सोचने में कि शुरुआत कहां से करूं.

सच बात तो यह थी कि मैं उस के साथ सिर्फ प्यार का खेल ही खेलना चाहता था मगर वह दीवानी लड़की अपनी जवानी के आवेगों को रोक नहीं पा रही थी. हर रोज मुझे यही लगता कि वह मेरे सम्मुख समर्पण करने के लिए बेकरार है.

एक दिन जी कड़ा कर के मैं ने शिमला के ग्रैंड होटल में 2 लोगों के लिए एक कमरे की बुकिंग करवा ही दी. वोल्वो बस से शिमला जाने का प्लान बन गया मगर उस सुबह जिस दिन मुझे विजया के साथ निकलना था उस दिन मेरे मन में पता नहीं कैसे नैतिकता की ओछी सनक सवार हो गई कि इस तरह तो मैं उस का भविष्य खराब कर दूंगा. विजया बस स्टैंड से मोबाइल पर रिंग करती रही मगर मैं मोबाइल बंद कर के अपने रूम में सिरदर्द का बहाना कर के पड़ा रहा.

अब मेरी बात बहुत लंबी हो चली है. मैं अपनी बात यहीं खत्म करता हूं कि एक मौका जब मैं सच में किसी को दिल की गहराइयों से प्रेम करने लगा था, मैं ने जानबूझ कर गंवा दिया.

विजया को अपमानित किया, उसे बुला कर मिलने नहीं गया. वह मेरे पास आई तो मैं अधेड़ उम्र की सुरक्षित किस्म की खांटी व अधेड़ औरतों से बतियाने में मशगूल रहा. मैं ने विजया को भूल जाना चाहा. वह बारबार मेरे पास आई तो मैं ने जी कड़ाकर के उस की उपेक्षा की, अपनेआप को ऐसा दिखाया कि मैं औफिस के काम में बुरी तरह मसरूफ हूं.

आखिरकार, मैं ने अपनेआप को एक खोल में बंद कर लिया जैसे गृहिणियां अचार या मुरब्बे को एअरटाइट कंटेनरों में भर कर कस कर बंद कर देती हैं. अब मेरी कैफियत ऐसी थी कि जैसे मैं विजया के काबिल नहीं हूं और यह कि उस के साथ और कुछ दिन चला तो फिर संभलना मुश्किल था. मैं यह खेल बस इसी खूबसूरत मोड़ पर ला कर बंद कर देना चाहता था. उस के साथ जिस्मानी दलदल में धंसने का मेरा कोई इरादा न था.

इस तरह विजया धीरेधीरे मुझ से दूर होती गई. मगर अब इस उम्र में जब मैं 55 के काफी करीब जा रहा हूं, मुझे उन मधुर क्षणों की याद आती है कि जब मुझ में और विजया में जबरदस्त दीवानगी थी तो मैं बेहद मायूस हो जाता हूं. मैं सोचता हूं कि मैं ने कभी किसी से प्यार नहीं किया और एक प्यारभरा दिल तोड़ दिया. सचमुच सिर्फ एक लड़की जिस से मैं ने पहली और आखिरी बार मन की गहराइयों से प्यार किया था, उस का प्यार गंवा दिया, उस से निष्ठुरता दिखा कर बहुत बड़ा अपराध किया था.

क्या है पोस्टपार्टम ब्यूटी, जानें इससे जुड़ी खास बातें

बच्चे के जन्म की घटना जीवन को बदलने वाला अनुभव है, लेकिन  बच्चे को जन्म देने के बाद आपके शरीर में कई पोषक तत्वों में कमी हो जाती है और आपके बाल झड़ने लगते हैं और स्किन मुर्झाने लगती हैं, जो किसी भी महिला के लिए एक  डरावने पल से कम नहीं है. पोस्टपोर्टम के दौरान कुछ महिलाएं स्किन टेक्सचर में बदलाव , मुंहासे , डार्क सर्कल्स , स्ट्रेच मार्क्स और पिगमेंटेशन का अनुभव करती हैं , यह कारण है की अपनी त्वचा की विशेष देखभाल करना महत्वपूर्ण हैं. हो सकता है आपके बाल टूटना या त्वचा का खराब होना आपको एक बार के लिए डरा सकता  हैं. लेकिन यह पोस्ट डिलीवरी के बाद आपके शरीर में होने वाले हार्मोनल परिवर्तनों के कारण होता है. आपके बच्चे के जन्म के तुरंत बाद , आपके हार्मोन का स्तर तेज़ी से गिरता है और इसमें मुख्य रूप से एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन शामिल हैं. अगर आप हाल ही में मां बनी हैं तो हम यहां आपके साथ कुछ सुपर आसान , टिप्स शेयर करने जा रहें हैं जो आपके बड़े ही काम आ सकती हैं.

बालों और स्किन केयर की कुछ सुपर टिप्स :

चलिए जानते हैं क्या हैं यह सुपर टिप्स –

स्कैल्प मसाज : भारतीय घरों में एक लोकप्रिय बॉन्डिंग प्रैक्टिस जिसे आप स्कैल्प मसाज कहें या साथ ही इसे चांपी भी कह सकते हैं , यह बालों के विकास को प्रोत्साहित करने का एक शानदार तरीका है. यह बालों को पुनर्जीवित करने और उन्हें मजबूत बनाने में मदद करता है , बालों को झड़ने से रोकता है और बालों के पुनः विकास को बढ़ावा देता है.

 हेयर स्पा या हेयर मास्क : एक हेयर स्पा न केवल बालों की सेहत को बढ़ाने में उपयोगी है , बल्कि यह आपके हैक्टिक शेड्यूल से उभरने का एक शानदार तरीका है ! हेम्प आपके चारों ओर नींद का चक्र बनाए रखता है , बालचद और शंखपुष्पी आपके मन को शांत करते हैं. हेम्प आपके बालों में प्राकृतिक चमक भी लाता है और डैंड्रफ और ड्राइनेस को भी कम करने में मदद करता है.

आपके लिए आसान स्किन केयर हैक्स :

*क्लींजिंग एक्सफोलिएट : सुनने में यह थोड़ा भारी भरकम शब्द लगा होगा , लेकिन वास्तव में यह स्किन केयर के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम है. केमिकल फ्री क्लींज़र का उपयोग करना आपकी त्वचा के लिए अति आवश्यक है – न केवल अच्छा देखने के लिए बल्कि स्वस्थ महसूस करने के लिए भी. आप क्लींज़र का उपयोग करें जिसमें एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल प्रॉपर्टीज होती है जो आपके मुंहासे और काले धब्बे को खत्म करने में मदद करते है.

* कुमकुमादि औयल : जरूरी नहीं की आप हमेशा माइश्चराइजिंग क्रीम का ही इस्तेमाल करें , आपको हर बार इसकी आवश्यकता नहीं होती है. अपनी त्वचा को मॉइस्चराइज करने के लिए कुमकुमादि तेल का उपयोग करें. फेस ऑयल से आपकी त्वचा चमकती और कोमल दिखाई देती है. इस ऑयल का उपयोग डैमेज्ड और डल स्किन के लिए भी किया जाता है. इसके आयुर्वेदिक प्रकृति को देखते हुए , यह ऑयल पिग्मेंटेशन और स्ट्रेच मार्क्स को कम करने में भी मदद करता है.

 फेस मास्क : जब आप चेहरे की सफाई और एक्सफोलिएट करने के लिए उतावले होती हैं , तो फेस मास्क सबसे पहले आपके दिमाग में आता है वह है चारकोल, जो प्रभावी रूप से त्वचा को साफ करता है , पोर्स को बंद करता है , और गहरी इम्पुरिटी और डेड सेल्स को हटाता है। यह उन दिनों में आपका सबसे अच्छा दोस्त है जब आप कुछ और करने के मूड में नहीं होती.

कुछ और बेहतरीन टिप्स

वैसे तो ऊपर बताई गई सभी टिप्स बहुत प्रभावी है , लेकिन इनके अलावा और भी बातों का रखें ख्याल जैसे –

  •  रोजाना सुबह एक्सरसाइज करें
  • संतुलित डाइट है जरूरी
  • फलों और हरी सब्जियों का करें सेवन
  • अधिक से अधिक पानी पिएं

इक सफर सुहाना: क्या पूरा हुआ वीना का प्लान

अजीत की बड़ी बहन मीना का पत्र आया था. उसे खोल कर पढ़ने के बाद अजीत बोला, ‘‘आ गया खर्चा.’’

‘‘अरे, पत्र किस का है पहले यह तो बताओ?’’ पत्नी वीना तनिक रोष से बोली, ‘‘सीधी तरह तो बताते नहीं, बस पहेलियां बुझाने लगते हो.’’

‘‘मीना दीदी का है. बेटे की सगाई कर रही हैं. अगले महीने की 15 तारीख की शादी है. बंबई में ही कर रही हैं.’’

वीना खुश हो गई, ‘‘यह तो बहुत अच्छा हुआ. बहुत दिनों से मेरा बंबई जाने का मन हो रहा था. बच्चे भी शिकायत करते रहते हैं कि कभी समुद्र नहीं देखा. और हां, लड़की कैसी है, कुछ लिखा है?’’

अजीत उस की बात पर ध्यान दिए बिना हिसाब लगाने लगा, हम दो, हमारे दो यानी 3 पूरी टिकट और 1 आधा, ऊपर से बहन को शादी में देने के लिए उपहार आदि.

‘‘भई, एक सप्ताह की छुट्टी तो कम से कम जरूर लेना. पहली बार बंबई जा रहे हैं. मैं ने कभी फिल्म की शूटिंग नहीं देखी. जीजाजी कह रहे थे कि फिल्म वालों से उन की खासी जानपहचान है. वे कुछ न कुछ प्रबंध करवा ही देंगे. वहां आरगंडी की साडि़यां बहुत अच्छी मिलती हैं और सस्ती भी होती है. दीदी की साडि़यां देखी हैं, कितनी सुंदर होती हैं. बच्चों के कपड़े भी वहां सस्ते और सुंदर मिलते हैं,’’ वीना धाराप्रवाह बोले जा रही थी.

अजीत झल्ला गया, ‘‘दो मिनट चुप भी रहोगी या नहीं. तुम तो बंबई का नाम सुनते ही ऐसे योजना बनाने लगी हो मानो किसी बड़े व्यापारी की पत्नी हो. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इतना खर्चा करेंगे कैसे. तुम ने कुछ रुपए बचा कर रखे हुए हैं क्या अपने पास?’’

वीना का जोश झाग के समान बैठ गया, ‘‘मेरे पास कहां से आएंगे. तुम्हारे बैंक में कुछ तो होंगे ही. जाना तो बहुत जरूरी है.’’

‘‘यही तो चिंता है. अनु भी अब 14 वर्ष की होने वाली है, उस का भी पूरा टिकट लगेगा. मनु साढ़े 6 का हो गया है, इसलिए आधा टिकट उस का भी लेना पड़ेगा. आनेजाने का भाड़ा ही कितना हो जाएगा. कहां मेरठ और कहां बंबई, लिख देंगे रेल में आरक्षण नहीं मिला, इसलिए नहीं आ सकते. अब परिवार के साथ बिना आरक्षण के इतना लंबा सफर तो हो नहीं सकता या लिख देंगे कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है.’’

वीना चुप हो गई. पति भी सच्चे थे. इतना खर्चा करना आजकल हर किसी के बूते की बात तो है नहीं, पर जाए बिना भी गुजारा नहीं था. वह सोचने लगी, दीदी का 1 ही तो बेटा है, उसी के ब्याह में न पहुंचे तो जीवनभर उलाहने सुनने पड़ेंगे. वैसे बंबई जाने का लोभ वह स्वयं भी संवरण नहीं कर पा रही थी. मेरठ में रहते हुए बंबई उस के लिए लंदन, न्यूयार्क से कम नहीं था.

‘‘किसी तरह खर्चा कम नहीं किया जा सकता?’’ वह ठुड्डी पर हाथ रखती हुई बोली.

‘‘अब रेल में दूसरे दरजे से तो कम कुछ है नहीं. हां, यह हो सकता है कि तुम अकेली ही हो आओ. मैं काम का बहाना कर लूंगा,’’ अजीत उस की उत्सुकता को भांपते हुए बोला.

अब तक दोनों बच्चों को बंबई जाने की भनक लग गई थी. अपने कमरे से ही चिल्लाए, ‘‘विनय भैया की शादी में हम जरूर जाएंगे.’’

‘‘काम की बात कभी सुनाई नहीं देती पर अपने मतलब की बात वहां बैठे भी सुनाई दे गई,’’ अजीत भन्नाया.

वीना के दिमाग में नएनए विचार आ कर उथलपुथल मचा रहे थे. अचानक अजीत के पास सरकती हुई फुसफुसाई, ‘ऐसा करते हैं, अनु का तो आधा टिकट ले लेते हैं और मनु का लेते ही नहीं. दोनों दुबलेपतले से तो हैं. अपनी उम्र से कम ही लगते हैं. अनु को साढ़े 11 वर्ष की बता देंगे और मनु को सवा 4 वर्ष का.

अजीत ने हिसाब लगाया कि ऐसे फर्क तो काफी पड़ जाएगा. दो आधी टिकटें कम हो जाएंगी. आनेजाने का मिला कर 2 टिकटों के पैसे बच जाएंगे. वीना का विचार तो सही है.

‘‘पर अगर पकड़े गए तो?’’ उस ने धीरे से पूछा.

‘‘अरे, कैसे पकड़े जाएंगे?’’ वीना मुसकराती हुई बोली, ‘‘गाड़ी में कोई प्रमाणपत्र थोड़े ही मांगता है. इस महंगाई के जमाने में सब लोग ऐसा ही करते हैं, हम कोई निराले थोड़े ही हैं. हमारे जरा से झूठ बोलने से कौन सी रेलें चलनी बंद हो जाएंगी.’’

अजीत को बात समझ में आ गई, ‘‘पर टिकट चैकर को तुम्हीं संभालना, मुझ से इतना बड़ा झूठ नहीं बोला जाएगा.’’

‘‘ठीक है, तुम पहले आरक्षण तो करवाओ. अरे, यही पैसा खरीदारी में काम आ जाएगा. सब जाएंगे तो दीदी भी खुश हो जाएंगी,’’ वीना चहकने लगी. आखिर उसे अपना बंबई घूमने का सपना साकार होता नजर आ रहा था.

अजीत ने भागदौड़ कर के सीटें आरक्षित करवा लीं. दीदी को देने के लिए सामान भी खरीद लिया. वीना सारी तैयारी खूब सोचसमझ कर कर रही थी.

सफर पर रवाना होने से पहले उस ने अनु को एक पुरानी, छोटी हो चुकी फ्रौक पहना दी और कानों के ऊपर कस कर 2 चोटियां बना दीं.

‘‘अब इसे 10 वर्ष के ऊपर कौन मान सकता है. मनु तो दुबलापतला सा है, सो जब टिकट चैकर आएगा तो उसे मैं गोद में ले लूंगी. किसी को शक तक नहीं होगा,’’ वीना ने पति से कहा.

अगले दिन शाम को सपरिवार बंबई के लिए निकल पड़े. स्टेशन पहुंचने के बाद थोड़ी देर इंतजार के बाद ट्रेन आ गई. ट्रेन आते ही एकएक कर सभी ट्रेन में बैठ गए.

टे्रन का सफर बड़ा अच्छा कट रहा था. 3 स्टेशन निकल चुके थे और कोई टिकट चैकर नहीं आया था.

‘‘रात में तो वैसे भी कोई नहीं आएगा,’’ वीना बोली, ‘‘फिर कल सुबह तक तो बंबई पहुंच ही जाएंगे. बाहर निकलते समय कौन पूछता है यह सब.’’

शाम की चाय पी कर दोनों बाहर डूबते हुए सूरज का दृश्य निहार रहे थे. हरेभरे खेतों और उन पर फैली हुई सूरज की लालिमा को देखते हुए दोनों मुग्ध हो रहे थे.

‘‘सब कितना सुंदर लग रहा है,’’ वीना पति के कंधे पर सिर टिकाती हुई बोली.

तभी डब्बे में कुछ हलचल होने लगी.

‘‘टिकट चैकर आ रहा है,’’ अजीत बोला और जल्दी से चादर ओढ़ कर लेट गया, ‘‘टिकटें तुम्हारे पर्स में ही हैं.’’

टिकट चैकर आया तो वीना ने तीनों टिकटें दिखा दीं. चैकर ने चारों के चेहरों को ध्यान से देखा. मनु को अजीत ने अपने साथ ही लिटा लिया था.

‘‘बेटा अभी सवा 4 साल का ही है,’’ वीना मुसकराती हुई बोली, ‘‘यह इस बिटिया का आधा टिकट है.’’

अनु खिड़की से सिर टिकाए एक उपन्यास पढ़ रही थी. मां की बात सुन कर वह जरा सी हंसी और फिर अपनी पुस्तक में खो गई.

‘‘कौन सी कक्षा में पढ़ती हो, बेटी?’’ टिकट चैकर ने उस के हाथ में पकड़े उपन्यास को घूरते हुए पूछा.

वीना हड़बड़ा गई कि अब अनु कहीं सब गुड़गोबर न कर दे.

‘‘यह छठी में पढ़ती है,’’ वह जल्दी से बोली, ‘‘बड़ी होशियार है. पढ़ने का बहुत शौक है. सदा कुछ न कुछ पढ़ती रहती है. इस उम्र में ही इतनी बड़ीबड़ी पुस्तकें पढ़ने लगी है. अनु, जरा इन्हें अपना उपन्यास तो दिखाना. मैं तो मना करती रहती हूं कि चश्मा लग जाएगा. इतना मत पढ़, पर मानती ही नहीं है. आजकल के बच्चों को समझाना बड़ा कठिन है.’’

‘‘घरघर यही हाल है, बहनजी, आजकल के बच्चे किसी की नहीं सुनते. पर आप की बच्ची को अभी से पढ़ने का इतना शौक है वरना आजकल बच्चे तो पुस्तकों से कोसों दूर भागते हैं. मेरे तो तीनों बच्चे नालायक हैं. बस, फिल्मों की पूरी खबर रखते हैं. पता नहीं बड़े हो कर क्या करेंगे?’’

गाड़ी धीमी हो गई थी, शायद कोई स्टेशन आने वाला था. टिकट चैकर उठ कर दरवाजे के पास चला गया. वीना ने चैन की सांस ली. एक बड़ी मुसीबत से पार पा लिया था. ‘अब, वापसी में भी ऐसे ही आसानी से बात बन जाए तो

इस झंझट से छुटकारा मिले,’ वीना सोच रही थी.

अजीत हंसता हुआ उठ गया, ‘‘तुम ने तो उसे एकदम बुद्धू बना दिया. मुझ से न हो पाता.’’

डब्बे में एक चौकलेट बेचने वाला घूम रहा था.

‘‘मां, एक बड़ा वाला चौकलेट दिलवा दो,’’ मनु जिद करने लगा. पिता के उठते ही वह भी उठ कर बैठ गया.

‘‘अरे नहीं, बहुत महंगा है. यह ले, मैं तेरे लिए कितने बढि़या शक्करपारे बना कर लाई हूं. तुझे तो ये बहुत पसंद हैं,’’ वीना उसे प्यार से समझाती हुई बोली.

‘‘नहीं दिलाओगी क्या?’’ वह मां को घूरते हुए बोला, ‘‘ठीक है, तब मैं टिकट चैकर चाचा को बता दूंगा कि दीदी तो 14 साल की हैं और मैं 7 साल का. मैं दूसरी कक्षा में पढ़ता हूं. फिर भी इन्होंने मेरा टिकट नहीं लिया.’’

अजीत ने जल्दी से उस के मुंह पर हाथ रख दिया. गनीमत थी कि उस समय किसी ने अनु की बात नहीं सुनी. कोई सुन लेता तो कितनी बेइज्जती होती.

‘‘इधर आना भई,’’ अजीत ने चौकलेट वाले को पुकारा. जिस महंगे चौकलेट की मनु फरमाइश कर रहा था, वह उसे दिलवा दिया.

‘‘इस शैतान को सब बताने की क्या आवश्यकता थी,’’ फिर वह वीना पर बिगड़ा.

‘‘अरे, मैं ने कब बताया. जाने चोरीछिपे क्याक्या सुनता रहता है,’’ वह परेशान हो कर बोली, फिर मनु को जोर से झिंझोड़ते हुए डांटा, ‘‘अब खबरदार जो तू ने मुंह खोला.’’

पर मनु को भला इन सब बातों का कहां फर्क पड़ने वाला था हर स्टेशन पर किसी न किसी ऊलजलूल वस्तु की फरमाइश करता रहता. मना करने पर धौंस दिखाता, ‘अच्छा, मैं अभी टिकट चैकर चाचा को आप की सारी चालाकी बताता हूं.’

वीना और अजीत हार कर उस की हर फरमाइश पूरी करते जाते. उधर अनु अलग मुंह फुलाए भुनाभुना रही थी, ‘डब्बे में कहीं घूम भी नहीं सकती, इतनी छोटी सी फ्रौक पहना दी है. बाल भी गंवारों से गूंथ दिए हैं. टिकट नहीं खरीद सकते थे तो मुझे लाए ही क्यों? मेरठ में ही क्यों नहीं छोड़ दिया? आगे से आप लोगों के साथ कहीं नहीं जाऊंगी. हमें तो कहते रहते हैं कि झूठ मत बोलो और आप इतने बड़ेबड़े झूठ बोलते हैं.’

बंबई पहुंचने पर सामान उतरवाते ही अजीत बोला, ‘‘तुम लोग जरा यहां रुको, मैं अभी आया.’’

‘‘कहां भागे जा रहे हो?’’ वीना इतनी भीड़ देख कर घबरा गई, ‘‘अब तो पहले घर पहुंचने की बात करो. इतने लंबे सफर के बाद बुरी हालत हो गई है.’’

‘‘वापसी का सफर आराम से करो. उसी का प्रबंध करने जा रहा हूं. पहले इन बच्चों के टिकटे ठीक से बनवा लाऊं, हो गई बहुत बचत. आज से अपनी ‘सुपर’ योजनाएं अपने तक ही सीमित रखना, मुझे बीच में मत फंसाना.’’

वीना उत्तर में केवल सिर झुकाए खड़ी रही. इस से अधिक वह कर भी क्या सकती थी. जिस जोश से वह घर से निकली थी वह अब ठंडा पड़ चुका था.

International Friendship Day: इस दोस्ती को क्या नाम देंगे आप! लाइक, कमेंट या इमोजी ?

यह बात वैज्ञानिक रूप से साबित हो चुकी है, जिसके जितने दोस्त होंगे, वह उतना ही खुश और हेल्दी रहेगा.पर वर्तमान समय में दोस्तों की अहमियत कितनी है ये आज सोशल मीडिया के युग में जन्में बच्चे कहां समझ पाएंगे. क्योंकि आज के युग में सोशल मीडिया ने दोस्ती के दायरे को काफी तेजी से बढ़ाया है.कल तक गली मोहल्ले में होने वाली दोस्ती आज सात समंदर पार तक फैल गई है.नब्बे के दशक में जब व्यक्ति को अपने दोस्त की याद आती थी, तो घर जाकर हाल चाल ले लिया करते थे. उस समय की दोस्ती का मतलब था दोस्त के लिए ही जीना मरना.कई बार तो बुरी परिस्थितियों में जब हमारे अपने साथ छोड़ देते थे तब ये दोस्त ही होते थे, जो दोस्ती की खातिर कुछ भी कर गुजर जाते थे. पर आज के मौर्डन समय में जब हमारे पास वीडियो काल की सुविधा है, तब आपके हालचाल कितने मित्र लेते हैं. कभी आपने ये सोचा है?

गुम होती दोस्ती

आज के दौर में भले ही सोशल मीडिया में आपकी दोस्तों की लिस्ट में हजारों फ्रैंड्स हों पर असल जिंदगी में कितने आपके साथ हैं? ये जानना बेहद ज़रूरी है. सोशल मीडिया के जरिए हम चाहें कितनी भी दोस्तों की भीड़ जुटा लें, पर दुख—तकलीफ में वह खड़े दिखाई नहीं देते हैं? हजारों की संख्या में दोस्त होते हुए भी इंसान अकेलापन महसूस करता है. क्योंकि खुशी हो या गम लोग सोशल मीडिया पर संदेश लिखकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं. इस सोशल मीडिया की दोस्ती का परिणाम यह होता है कि हम बदले में ऐसे दोस्तों को खो देते हैं, जो हर कदम पर हमारे साथ रहते हैं.

बदलती फीलिंग्स

इस बारे में मनोचिकित्सक संदीप कपूर का कहना है कि आज के समय में लोगों की फीलिंग्स डिजिटल फार्म में कन्वर्ट हो चुकी हैं. क्योंकि उन्हें एक ऐसा प्लेटफार्म मिल चुका है जहां वो अपनी पर्सनेलिटी को रिफ्लेक्ट करते हैं, ताकि लोग उन्हें पसंद करें.सोशल मीडिया पर मिलने वाले लाइक व्यक्ति के कौन्फिडेंस को और बढ़ाते हैं और जब भी कोई कमेंट के रूप में उनकी तारीफ करता है तो उनके दिमाग में डोपामिन नाम का न्यूरोट्रांसमीटर स्तर बढ़ने लगता है, जिसके चलते वो अच्छा फील करते हैं.

इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि सोशल मीडिया एकदूसरे के जानने का अच्छा जरिया है, लेकिन यदि उसे असल जिंदगी में अपना सच्चा दोस्त समझ लेंगे तो तकलीफ ही होगी. इस दोस्ती के दिन पर खुद से ये वादा करें कि अपने यारों से सोशल मीडिया पर नहीं बल्कि असल जिंदगी में मिलते रहिएगा.

इन स्पेशल कोट्स के जरिए अपने दोस्तों को कहें Happy Friendship Day

Happy Friendship Day 2024 Wishes: हर साल अगस्त के पहले संडे को फ्रैंडशिप डे मनाया जाता है. इस साल 4 अगस्त को मनाया जाएगा. यह दिन हर किसी के लिए खास होता है. वैसे तो दोस्त हर दिन के लिए होते हैं, लेकिन दोस्ती को सैलिब्रैट करने का एक दिन जरूर होता है, वो है फ्रैंडशिप डे. इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है दोस्ती के महत्व को समझना. यह रिश्ता निस्वार्थ होता है, इसमें बिना किसी फायदे के दोस्त एकदूसरे के लिए खड़े रहते हैं. इस दिन को स्पेशल बनाने के लिए आप भी अपने फ्रैंड्स को ये स्पेशल मैसेजेज भेज सकते हैं.

1. आसमान में निगाहें हो तेरी,
मंजिले कदम चुमे तेरी,
आज दिन है दोस्ती का
तु सदा खुश रहे ये दुआ है मेरी।

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

Happy Friendship Day ai generated

2. एक प्यारा सा दिल जो कभी नफरत नहीं करता
एक प्यारी सी मुस्कान जो कभी फीकी नहीं पड़ती
एक अहसास जो कभी दुःख नहीं देता
और एक रिश्ता जो कभी खत्म नहीं होता

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

3. दोस्ती कोई खोज नहीं होती
दोस्ती किसी से हर रोज नहीं होती
अपनी जिंदगी में हमारी मौजूदगी को बेवजह न समझना
क्योंकि पलकें आखों पर कभी बोझ नहीं होतीं

Happy Friendship Day cute poster

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

4. दोस्ती अच्छी हो तो रंग लाती है
दोस्ती गहरी हो तो सबको भाती है
दोस्ती वही सच्ची होती है जो
जरूरत के वक्त काम आती है

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

5. दोस्ती एक गुलाब है, जो बेहद न्यारी है
दोस्ती नशा भी है, और नशे का इलाज भी
दोस्ती वो गीत है, जो सिर्फ हमारी है !

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

6. दोस्तों की दोस्ती में कभी कोई रूल नहीं होता है
और ये सिखाने के लिए, कोई स्कूल नहीं होता है !

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

7. दोस्ती कोई खोज नहीं होती
और यह हर रोज नहीं होती
अपनी जिंदगी में हमारी मौजूदगी को
बेवजह न समझना!

Beautiful card for friendship day with holding promise hand design

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

8. अच्छे दोस्त फूलों की तरह होते हैं
जिसे हम न तोड़ सकते हैं, न ही छोड़ सकते है

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

9. यह हर रोज नहीं होती,
अपनी जिंदगी में हमारी मौजूदगी
को बेवजह न समझना!

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

10. दोस्तों की दोस्ती में कभी कोई रूल नहीं होता है
और ये सिखाने के लिए, कोई स्कूल नहीं होता है!

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

हैलोवीन: गौरव ने कद्दू का कौनसा राज बताया

लेखक- अनीता सक्सेना

गौरव जब सुबह सो कर उठा तो देखा, बड़े पापा गांव जाने को तैयार हो चुके थे. वे गौरव को देखते ही बोले, ‘‘क्यों बरखुरदार, चलोगे गांव और खेत देखने? दीवाली इस बार वहीं मनाएंगे.’’

दादी बोलीं, ‘‘अरे, उस बेचारे को सुबहसुबह क्यों परेशान कर रहा है. थक जाएगा वहां तक आनेजाने में.’’

गौरव हंस कर बोला, ‘‘नहीं दादी, मैं जाऊंगा गांव. मैं तो यहां आया ही इसलिए हूं. मुझे अच्छा लगता है, वहां की हरियाली देखने में और आम के बगीचे घूमने में.’’

‘‘आम तो बेटा इस मौसम में नहीं होंगे, हां, खेतों में गेहूं की फसल लगी मिलेगी. दीवाली पर नई फसल आती है न.’’

‘‘तब फिर चाय पी कर और नाश्ता कर के जाना,’’ दादी बोलीं.

‘‘अच्छा गौरव, तुम्हारे यहां दीवाली कैसे मनाई जाती है?’’ बड़े पापा ने पूछा. ताईजी तब तक सब के लिए चाय ले आई थीं, वे भी वहीं बैठ गईं.

‘‘दीवाली तो हम सब क्लब में मनाते हैं, लेकिन बड़े पापा अमेरिका में एक त्योहार सब मिल कर मनाते हैं, वह है हैलोवीन डे.’’

‘‘अच्छा, हमें भी तो बताओ क्या है हैलोवीन?’’ सौरभ भी निकल कर बाहर आ गया. ताईजी ने उसे भी चाय दी.

गौरव बोला, ‘‘जिस तरह हमारे देश में दीवाली का त्योहार मनाया जाता है उसी तरह अमेरिका में 31 अक्तूबर की रात को हैलोवीन का त्योहार मनाया जाता है. इस को मनाने की तैयारी भी दीवाली की तरह कई दिन पहले से शुरू कर दी जाती है.’’

‘‘अच्छा, यह क्या अमेरिका में ही मनाया जाता है?’’ दादी ने पूछा.

‘‘नहीं दादी, हैलोवीन डे आयरलैंड गणराज्य, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया सहित समस्त पश्चिमी देशों में मनाया जाता है. कहा जाता है कि बुरी आत्माओं को घरों से दूर रखने के लिए इसे मनाया जाता है इसलिए लोग कई दिन पहले से ही घर के बाहर एक बड़ा सा कद्दू ला कर रख देते हैं साथ ही घर के बाहर चुड़ैल, भूत, झाड़ू, मकड़ी और मकड़ी के जाले आदि खिलौने रख देते हैं.’’

‘‘कद्दू? कद्दू तो सब्जी के काम आता है?’’ सौरभ ने कहा.

‘‘नहीं सौरभ, ये कद्दू खाने वाले कद्दू नहीं होते बल्कि बीज बनने को छोड़े हुए बड़ेबड़े कद्दू होते हैं जो पके व सूख चुके होते हैं. कद्दू के अंदर का सारा गूदा निकाल कर उसे खोल बना देते हैं फिर ऊपर से खूबसूरत तरीके से चाकू से काट कर उस की आंखें, मुंह इत्यादि बनाते हैं और इस के अंदर एक दीपक जला कर रख देते हैं. दूर से देखने में ऐसा लगता है मानो किसी का चेहरा हो, जिस में से आंखें चमक रही हैं. बाजार में इन कद्दुओं के अंदर छेद करने और आंख इत्यादि बनाने के लिए कई औजार भी मिलते हैं. बच्चों के लिए इन हैलोवीन कद्दुओं की प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती हैं.’’

‘‘पर जब भूतप्रेत होते ही नहीं, तो उन के लिए ये कद्दू क्यों?’’ दादी बोलीं.

‘‘नहीं दादी, दरअसल, हजारों साल पहले केल्ट जाति के लोग यहां आए थे. जो फसलों की खुशहाली के लिए प्रकृति की शक्तियों को पूजा करते थे. मूलत: यह त्योहार अंधेरे की पराजय और रोशनी की जीत का उत्सव है. नवंबर की पहली तारीख को केल्ट जाति का नया साल शुरू होता था. नए साल में कटी हुई फसल की खुशी मनाई जाती थी. उस के एक दिन पहले यानी 31 अक्तूबर को ये लोग ‘साओ इन’ नामक त्योहार मनाते थे. इन का मानना था कि इस दिन मरे हुए लोगों की आत्माएं धरती पर विचरने आती थीं और उन्हें खुश करने के लिए उन की पूजा होती थी. इस के लिए वे ‘द्रूइद्स’ नामक पहाड़ी पर जा कर आग जलाते थे. फिर इस आग का एकएक अंगारा लोग अपनेअपने घर ले जाते थे और नए साल की नई आग जलाते थे.’’

‘‘नए साल की आग का क्या मतलब हुआ?’’ बड़े पापा ने पूछा.

‘‘बड़े पापा, उस जमाने में माचिस का आविष्कार नहीं हुआ था. घर में जली आग को लगातार बचा कर रखना पड़ता था. इस रोज पहाड़ी पर अलाव जलाया जाता था और उस में कटी फसल का भाग जलाया जाता था. इस अलाव की आग का अंगारा घर तक ले जाने के लिए तथा हवा बारिश में बुझने से बचाने के लिए उसे किसी फल में छेद कर के उस में सहेज कर ले जाया जाता था. आग को हाथ में देख कर बुरी आत्माएं वार नहीं करेंगी ऐसी मान्यता थी. इस के लिए कद्दू के खोल में जलता दीया रख कर ले जाया जाता था. रात के अंधेरे में कद्दू में आंखें और मुंह काट कर दीया रखने से एकदम राक्षस के सिर जैसा लगता था. कहीं पर इसे पेड़ पर टांग दिया जाता था और कहीं खिड़की पर रख दिया जाता था. आजकल घर के बाहर रख देते हैं.

‘‘जिस तरह से हमारे देश में बहुरूपिए बनते हैं ठीक उसी तरह से यहां लोग हैलोवीन पर बहुरूपिया बनते हैं. 31 अक्तूबर की रात को बच्चेबड़े सभी तरहतरह की ड्रैसेज पहनते हैं और चेहरे पर मुखौटे लगाते हैं. ये ड्रैसेज और मुखौटे काल्पनिक या भूतप्रेतों के होते हैं जो काफी डरावने दिखते हैं. ये ड्रैसेज व मुखौटे बाजारों में कई दिन पहले से बिकने शुरू हो जाते हैं, कई लोग मुखौटा पहनने की जगह चेहरे पर ही पेंट करा लेते हैं.

‘‘हैलोवीन के दिन बच्चे घरघर जाते हैं. हर बच्चा अपने साथ एक बैग या पीले रंग का कद्दू के आकार का डब्बा लिए रहता है. ये बच्चे घरों के अंदर नहीं जाते बल्कि लोग घरों के बाहर बहुत सारी चौकलेट्स एक बड़े से डब्बे में रख कर इन के आने का इंतजार करते हैं. हर बच्चा बाहर बैठे व्यक्ति के पास आता है और कहता है, ‘ट्रिक और ट्रीट’ उसे जवाब मिलता है ‘ट्रीट’ (ट्रिक यानी जादू और ट्रीट यानी पार्टी), बच्चे जोकि हैलोवीन बन कर आते हैं वे घर वालों को डरा कर पूछते हैं कि आप मुझे पार्टी दे रहे हो या नहीं? नहीं तो मैं आप के ऊपर जादू कर दूंगा.

‘‘घर वाले हंस कर ‘ट्रीट’ कहते हुए उन के आगे चौकलेट का डब्बा बढ़ा देते हैं. बच्चे खुश हो कर बाउल में से एकएक चौकलेट उठाते हैं और थैंक्स कह कर आगे बढ़ जाते हैं. देर रात तक बच्चों के बैग में बहुत सी चौकलेट्स इकट्ठी हो जाती हैं.’’

‘‘वाह गौरव, तुम ने तो आज बड़ी रोचक कहानी सुनाई और एक नए त्योहार के बारे में भी बताया, मजा आ गया,’’ दादी बोलीं तो सब ने उन की हां में हां मिलाई.

गौरव हंस पड़ा, सब चाय भी पी चुके थे. ताईजी लंबी सांस लेती हुई बोलीं, ‘‘बस, अब जल्दी से नाश्ता बनाती हूं, खा कर गांव जाना और सुनो, वहां से कद्दू मत ले आना,’’ उन्होंने कहा तो सब जोरजोर से हंसने लगे.

Bigg Boss OTT 3 में दिखाए गए दो सौतनों की तनातनी से लेकर गालीगलौज और थप्पड़ के नौनस्टौप सीन्स !

आखिर बिग बौस ओटीटी 3 के फिनाले का इंतजार खत्म हुआ. इस शो के विनर का ताज सना मकबूल के नाम हुआ. सना पेशे से एक्ट्रैस हैं, इस शो के होस्ट अनिल कपूर ने विनर का नाम घोषित किया. एक चमचमाती ट्रौफी और 25 लाख की प्राइज मनी के साथ सना इस सीजन की विनर बनी हैं, तो वहीं रैपर नेजी दूसरे नंबर पर और रणवीर शौरी ने तीसरी पोजिशन हासिल की.

सना के जीतने पर उनकी फैंस फौलोइंग, फैमिली, बौयफ्रैंड सोशल मीडिया पर लगातार बधाई दे रहे हैं. सना के बौयफ्रैंड के खुशी का ठिकाना नहीं है, उन्होंने सोशल मीडिया पर सना के लिए स्पेशल मैसेज भी शेयर किया, इतना ही नहीं सना और ट्रौफी के साथ उन्होंने पोज भी दिया.

अब बात करते हैं, यह शो लोगों के लिए कितना यूजफुल रहा. मूवीज, सीरिज, टीवी सीरियल या कोई रियलिटी शोज, एंटरटैनमेंट के लिए देखे जाते हैं, लोग खूब एंजौय भी करते हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या बिग बौस ओटीटी 3 भी लोगों को एंटरटैन करने में कामयाब रहा या इस शो में केवल बेमतलब की बातें दिखाई गई, जिससे यह शो सुर्खियों में छाया रहा. यहां हम कुछ केंटेस्टैंट के बारे में बात करेंगे, जो इस शो में काफी चर्चे में रहे और इस शो में कौनसी बेकार चीजें दिखाई गई…

अरमान मलिक और उनकी बीवियां

अरामन मलिक इस शो में अपनी दो पत्नियों के साथ दिखें, जिससे यह शो काफी चर्चित रहा. हर किसी के जुबां पर अरमान दो बीवियों के साथ रहता है, तीनों ने मिलकर इस शो को एक फैमिली शो की तरह दिखाने लगे. कोई दो शादियां करे या तीन शादियां, ये रियलिटी शो में दिखाने का क्या मतलब है. कहा जाता है ‘सिनेमा समाज का दर्पण होता है’ ऐसे में दर्शक इस शो को इतने चाव से देखते हैं, इस तरह के रियलिटी शोज में इन चीजों को दिखाया जाता है, फलां की दो बीवियां है, तो इससे समाज पर क्या असर पड़ेगा. ये बहुत ही बेबुनियाद चीजें हैं, आम लोग बहुत ही आसानी से सेलिब्रिटीज या टीवी पर दिखाए जाने वाले शोज से प्रभावित होते हैं, तो ये गलत चीजों को दिखाने से बेहतर है कि शोज में कुछ ऐसा कंटैंट दिखाया जाए जिससे लोगों का भला हो न कि उनका घर में लड़ाईझगड़े हो.

बिग बौस हाउस को लड़ाईझगड़े का घर कहा जाता है. हालांकि यह शो लड़ाईझगड़े के कारण ही चलता भी है, लेकिन स्क्रीन पर ऐसे कंटैंट ही क्यों दिखाना जिसका प्रभाव केवल बुरा ही हो.

अश्लील कंटैंट

इस शो में लड़ाईझगड़ा दिखाने के बाद अश्लील कंटैंट भी दिखाए जाते हैं, अरे भाई अगर ऐसे कंटैंट यहां भी दिखाए जाने लगे, तो बाकी पोर्न साइट का क्या काम? इस शो को एक पूरी फैमिली बैठकर देखती है, ऐसे में इस शो में अश्लील कंटैंट दिखाकर क्या साबित करना चाहते हैं? इससे शो की टीआरपी कम हो रही है न कि बढ़ रही है…

इस शो से जुड़ा एक वीडियो सामने आया था, जिसमें अरमान और कृतिका इंटिमेट हो रहे थे. हालांकि इस सीन पर लीगल एक्शन किए जाने की भी मांग की गई थी. लेकिन जियो सिनेमा ने औफिशियल स्टेटमेंट जारी किया है, जिसमें मेकर्स ने इस शो पर लगे आरोपों को गलत बताया.

थप्पड़ से लेकर गाली तक

बिग बौस ओटीटी 3 में कई झगड़े देखने को मिले. विशाल पांडे और अरमान मलिक के बीच बहुत बड़ा झगड़ा हुआ था. दरअसल, विशाल ने अरमान की दूसरी पत्नी कृतिका को कुछ ऐसी बातें कह दी थी उससे सुनने के बाद अरमान अपना आपा खो दिए थे और विशाल को थप्पड़ भी मारा था. तो वहीं एक टास्क के दौरान लव कटारिया और साई के बीच जमकर लड़ाई हुई. बहस के दौरान लव ने गाली दी जिससे साई उन्हें मारने भी पड़े थे. लव ने साई के मां को लेकर कुछ अपशब्द कहे थे. ऐसे में साई ने बहुत ही हंगामा किया था. उन्होंने घर की कुछ कुर्सियों को भीी तोड़ डाली थी.

क्या यही है इस शो का वजूद, जिसमें किसी को अपनी मांबहन के बारे में गाली सुननी पड़े…

कुल मिलाकर बिग बौस ओटीटी 3 के कंटैंट को बकवास और बेकार कहा जा सकता है, इस शो में सिर्फ और सिर्फ निगैटिव चीजें ही दिखाई गई. एंटैरटेमैंट के नाम पर वहीं घिसीपिटी चीजें फैमिली ड्रामा और तड़का लगाने के लिए गालीगलौज… इस शो से दर्शकों का सिर्फ समय बर्बाद हुआ..

भरमजाल : रानी के जाल में कैसे फंस गया रमेश

आज पार्क जा कर जौगिंग करने में मेरा बिलकुल भी मन नहीं लगा. हालांकि, रमेश को छोड़ कर बाकी सभी दोस्त थे, मगर रमेश से मेरी कुछ ज्यादा ही पटती थी. 25 सालों से हम दोनों एकसाथ इस पार्क में जौगिंग करने आते रहे हैं. कुछ तो वैसे ही रमेश का न होना मुझे एक अधूरेपन का एहसास करा रहा था और कुछ दोस्तों ने जब उस के बारे में उलटीसीधी बात करनी शुरू की, तो मेरा मन और भी परेशान हो गया.

‘‘4 महीने बाद 60वां जन्मदिन होने वाला था रमेश का. उम्र के इस पड़ाव पर ऐसा काम करते हुए उसे जरा भी शर्म नहीं आई. देखने में कितना धार्मिक लगता था और काम देखो कैसा किया. सारा समाज थूथू कर रहा है उस पर,’’ एक दोस्त ने कहा. दूसरे दोस्त ने नाकभौं सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे तो भाभीजी पर तरस आ रहा है. अच्छा हुआ दोनों लड़कों ने घर से निकाल दिया ऐसे बाप को…’’

इस से ज्यादा सुनने की ताकत मुझ में नहीं थी. ‘‘कुछ काम है…’’ कह कर मैं वापस घर आ गया और रमेश के बारे में सोचने लगा. रमेश और मेरी कारोबार के सिलसिले में एकदूसरे से जानपहचान हुई थी. यह जानपहचान कब दोस्ती और फिर गहरी दोस्ती में बदल गई, पता ही नहीं चला.

रमेश बहुत ही साफदिल, अपने काम में ईमानदार और सामाजिक इनसान था. उस के इन्हीं गुणों के चलते हमारी दोस्ती इतनी बढ़ी कि 25 साल तक हम रोजाना एकसाथ जौगिंग करने जाते रहे. हम दोनों अपनी सारी बातें जौगिंग के दौरान ही कर लेते थे. कई बार तो दूसरे दोस्त हमें लैलामजनू कह कर चिढ़ाते थे.

इतने सालों में रमेश ने अपना कारोबार काफी बढ़ा लिया था. ट्रांसपोर्ट के कारोबार के साथ ही अब उस ने दिल्ली के पौश इलाके में पैट्रोल पंप भी खोल लिया था. एक तरफ लक्ष्मी उस पर पैसा बरसा रही थी, वहीं दूसरी तरफ उस की सुंदर सुशील पत्नी ने 2 बेटे उस की गोद में दे कर दुनिया का सब से अमीर इनसान बना दिया था.

जिंदगी ने अच्छी रफ्तार पकड़ ली थी, मगर सब से अमीर आदमी सुखी भी हो, ऐसा जरूरी नहीं होता. वह लालच के ऐसे दलदल में धंसता चला जाता है कि जब तक उसे एहसास होता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है. 2 साल पहले बाजार में गिरावट आई, तो सभी के कारोबार ठप हो गए. रमेश किसी भी तरह कारोबार को चलाना चाहता था. उस ने अपने पैट्रोल पंप पर पैट्रोल भरने के लिए लड़कियां रख लीं और वाकई उस के पैट्रोल पंप की कमाई पहले से काफी ज्यादा बढ़ गई.

ग्राहक वहां पैट्रोल लेने के बहाने लड़कियां देखने ज्यादा आने लगे. अब रमेश हर तीसरे महीने पहली लड़की को हटा कर किसी नई और खूबसूरत लड़की को काम पर रखता. मुझे उस की इस सोच से नफरत हुई. मैं ने उसे समझाने की कोशिश भी की, तो उस ने कहा ‘आल इज फेयर इन बिजनेस’.

मैं अपनी आंखों से देख रहा था कि पैसा कैसे एक सीधेसादे इनसान की अक्ल मार देता है. ज्यादातर उस के मैनेजर ही इन लड़कियों को काम पर रखते थे. पर वे लड़कियां काम कैसा कर रही हैं, यह देखने के लिए रमेश कभीकभार अपने पैट्रोल पंप पर ही पैट्रोल भरवाने चला जाया करता था.

उन्हीं दिनों एक लड़की रानी, उस के पैट्रोल पंप पर काम करने आई. एक शाम को मैं उसी की गाड़ी में काम के सिलसिले में उस के साथ गया था. उस दिन रमेश ने पहली बार रानी को देखा था. गठे हुए बदन की लंबीपतली थोड़ी सांवली सी थी वह, उम्र यही होगी कोई 23-24 साल यानी रमेश के बेटे से भी छोटी उम्र की थी.

रमेश ने मैनेजर को बुला कर पूछा, तो उस ने बताया कि यह नई लड़की है रानी, अपना काम भी बखूबी कर रही है. उस के बाद रमेश और मैं वापस आ गए. 3 महीने बाद मैनेजर का रमेश के पास फोन आया कि रानी आप से मिलना चाहती है. वह काम से हटने को तैयार नहीं है. उसे समझाने की बहुत कोशिश की, मगर कहती है कि एक बार मालिक से मिलवा दो, फिर चली जाऊंगी.

रमेश ने कहा, ‘‘उसे मेरे दफ्तर भेज देना.’’

दफ्तर आते ही रानी रमेश के पैरों में गिर गई और लगी जोरजोर से रोने, ‘‘मालिक, मुझे काम से मत निकालो. मेरे घर में कमाने वाली सिर्फ मैं ही हूं. बाप शराबी है. वह पैसे के लिए मुझे बेच देगा. 3 महीने से आधी तनख्वाह उस के हाथ में रख देती थी, तो शांत रहता था. बड़ी मुश्किल से अच्छी नौकरी और अच्छे लोग मिले थे. मैं आप के सब काम कर दिया करूंगी, ओवरटाइम भी करूंगी. उस के पैसे भी चाहे मत देना, पर मुझे काम से मत निकालो.’’ रमेश ने 1-2 बार उस से कहा भी कि उठो, ऐसे पैरों में मत गिरो, मगर वह पैरों को पकड़े रोती रही. आखिरकार रमेश को ही उसे उठाना पड़ा और मानना पड़ा कि वह उसे काम से नहीं निकालेगा.

ऐसा सुनते ही रानी ने रमेश का हाथ चूम लिया. 60 साल के बूढ़े रमेश के अंदर कमसिन रानी के चुंबन से एक सिहरन सी दौड़ गई. रानी के जाने के बाद भी रमेश उसी के बारे में सोचता रहा. वह खुद को उस की तरफ खिंचता हुआ महसूस कर रहा था. 1-2 बार उस ने अपने इन विचारों को झटका भी कि वह यह क्या सोच रहा है. मगर रानी का गठीला बदन और उस का चुंबन रहरह कर उसे उस से मिलने को बेचैन कर रहे थे.

उस दिन के बाद से रमेश अकसर अपने पैट्रोल पंप पर जाने लगा. पहले वह वहां बैठता नहीं था. अब उस ने वहां बैठना भी शुरू कर दिया था. रानी के दफ्तर आने वाली बात रमेश ने मुझे बताई थी और जब उस ने अपनी उस सोच के बारे में मुझे बताया, तभी मैं ने उसे समझाने की कोशिश की, ‘‘तुम रानी से दूर ही रहो. फिसलने की कोई उम्र नहीं होती. कीचड़ में कितना धंस जाओगे, खुद तुम्हें भी पता नहीं चलेगा.’’

मेरे समझाने के बाद से रमेश ने मुझ से रानी के बारे में बातें करना बंद कर दिया, मगर मैं बरसों पुराना दोस्त था उस का, उस की बदलती हरकतों को बखूबी देख पा रहा था. अगले 3 महीने का समय भी इसी तरह निकल गया. अब रमेश ने रानी को बुला कर कहा, ‘‘देखो, अब मुझे तुम्हें यहां से हटाना होगा, नहीं तो बाकी की लड़कियां भी यही मांग करेंगी कि हमें भी काम से मत हटाओ.’’

‘‘मगर, मैं कहां जाऊंगी मालिक?’’ ‘‘शहर से बाहर निकल कर हमारा एक फार्म हाउस है, वहां उस घर की देखभाल के लिए किसी की जरूरत है. मैं तुम्हें वहां नौकरी दे सकता हूं. चौबीस घंटे वहीं रहना होगा. खानापीना सब हम देंगे और तनख्वाह अलग.’’

रानी ने खुशीखुशी हां भर दी. अब रानी फार्म हाउस में काम करने लगी. कभीकभी रमेश अपने दोस्तों को वहां ले जाता, तो रानी खाना भी बना देती थी सब के लिए.

रानी हर काम में माहिर थी. फार्म हाउस पूरा चमका दिया था उस ने. रमेश को यह देख कर बहुत अच्छा लगा. एक बार कहीं बाहर से आते हुए रमेश फार्म हाउस पर चला गया. वहां जा कर पता चला कि चौकीदार छुट्टी पर है. तब रानी ही गेट खोलने आई. चायपानी, नाश्ता सब दे दिया और जाने लगी, तो रमेश ने पूछा, ‘‘तुम्हें यहां कोई दिक्कत तो नहीं है?’’

‘‘जितना चाहा था, उस से भी ज्यादा मिल गया मालिक. आप की वजह से ही मैं आज इज्जत की जिंदगी जी रही हूं, नहीं तो मेरा बाप कब का मुझे बेच देता,’’ कहतेकहते वह रोने लगी. रमेश ने उस के आंसू पोंछे, तो रानी ने रमेश का हाथ पकड़ लिया, ‘‘सर, आप बहुत ही अच्छे इनसान हैं. आजकल अपने कर्मचारियों के बारे में कौन सोचता है.’’ और फिर से उस का हाथ चूमने लगी और बोली, ‘‘आप तो मेरे लिए सबकुछ हैं.’’

उस चुंबन की सिहरन ने रमेश के हाथों वह काम करवा दिया, जो रानी उस से कराना चाहती थी. उस के बाद से तो रमेश का हर हफ्ते का यही काम हो गया. वह हर हफ्ते काम का बहाना बना कर फार्म हाउस आ जाता. रानी ने उसे अपनी बातों में इस कदर उलझा लिया था कि अब रमेश को अपने घर और बीवीबच्चों की भी चिंता नहीं थी. इस बीच रमेश ने मुझ से मिलनाजुलना बंद कर दिया था. फिर अचानक एक दिन भाभी (रमेश की पत्नी) का फोन आया कि रमेश ने दूसरी शादी कर ली है.

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यह सुन कर मैं हक्काबक्का रह गया. मुझे यह तो अंदाजा था कि कुछ गलत हो रहा है, मगर इस हद तक होगा, यह नहीं सोचा था. शादी की उम्र तो उस के बेटों की थी, ऐसे में जब उन्हें अपने बाप की करतूत का पता चला, तो उन्होंने उन्हें घर से निकाल दिया.

रमेश ने पार्क आना बंद कर दिया. आता भी किस मुंह से. इतने सालों से कमाई इज्जत पल में मिट्टी में मिल गई. सारा समाज रमेश पर थूथू कर रहा था. शादी के 6 महीने बाद ही रानी ने एक बच्चे को जन्म दे दिया. रमेश रानी के साथ फार्म हाउस में ही रह रहा था. एक दिन अचानक रात में रमेश मुझ से मिलने आया. वह जानता था कि उस की हरकत से मैं भी बहुत नाराज हूं.

मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बोला, ‘‘मुझे मालूम है कि तुम मेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहते, पर एक बार मेरी बात सुन लो. मैं यही चाहता हूं और कुछ नहीं. तुम्हारी माफी भी नहीं.’’ फिर रमेश ने शुरू से आखिर तक सारी बातें मुझे बताईं. रमेश ने यह भी बताया कि यह बच्चा उस का है ही नहीं. मगर रमेश ने रानी के साथ संबंध बनाए थे, उस का वीडियो रानी के आशिक ने चुपके से बना लिया था. रमेश पर शादी करने का दबाव डाला गया.

‘‘शादी के बाद ही उसे सारी सचाई का पता चल गया था. रानी ने सिर्फ पैसों के लिए उसे फंसाया था. यह उस की और उस के आशिक की सोचीसमझी चाल थी,’’ यह सब कह कर रमेश फूटफूट कर रोने लगा और मेरे घर से चला गया. मैं तो यह सुन कर सन्न सा बैठा रह गया. अपने दोस्त की जिंदगी अपनी आंखों के सामने बरबाद होते हुए देख रहा था. जिसे रमेश प्यार समझ रहा था, वह केवल एक भरमजाल था. उस ने अपनी इज्जत, परिवार, दोस्तों को तो खोया ही, साथ ही उस प्यार से भी इतना बड़ा धोखा खाया.

काश, वह पहले ही समझ जाता, तो इतने सालों से कमाई हुई उस की इज्जत पर इतना बड़ा कलंक तो नहीं लगता. वह इतना समझता कि 60 साल की उम्र प्यार करने के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार के लिए होती है.

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शौक : कोठे पर जाना क्यों पड़ा अखिलेश को महंगा

‘यह नया पंछी कहां से आया है?’’ जैम की शीशियां गत्ते के बड़े डब्बे में पैक करते हुए सुरेश ने सामने कुरसी पर बैठे अखिलेश की तरफ देखते हुए अपने साथी रमेश से पूछा.

‘‘उत्तर प्रदेश का है,’’ रमेश ने कहा.

‘‘शहर?’’ सुरेश ने फिर पूछा.

‘‘पता नहीं,’’ रमेश ने जवाब दिया.

‘‘शक्ल से तो मास्टरजी लगता है,’’ अखिलेश की आंखों पर चश्मे को देख हलकी हंसी हंसते हुए सुरेश ने कहा.

‘‘खाताबही बनाना मास्टरजी का ही काम होता है,’’ रमेश बोला.

फलों और सब्जियों को प्रोसैस कर के जूस, अचारमुरब्बा और जैम बनाने की इस फैक्टरी में दर्जनों मुलाजिम काम करते थे. सुरेश, रमेश और कई दूसरे पुराने लोग धीरेधीरे काम सीखतेसीखते अब ट्रेंड लेबर में गिने जाते थे. फैक्टरी में सामान्य शिफ्ट के साथ दोहरी शिफ्ट में भी काम होता था, जिस के लिए ओवर टाइम मिलता था. इस का लेखाजोखा अकाउंटैंट रखता था. अखिलेश एमए पास था. वह इस फैक्टरी में अकाउंटैंट और क्लर्क भरती हुआ था. मुलाजिमों के कामकाज के घंटे और दूसरे मामलों का हिसाबकिताब दर्ज करना और बिल पास करना इस के हाथ में था. अपने फायदे के लिए फैक्टरी के सभी मुलाजिम अकाउंटैंट से मेलजोल बना कर रखते थे.

‘‘पहले वाला बाबू कहां गया?’’ रामचरण ने पूछा.

‘‘उस का तबादला कंपनी की दूसरी ब्रांच में हो गया है.’’

‘‘ये सब बाबू लोग ऊपर से सीधेसादे होते हैं, पर अंदर से पूरे चसकेबाज होते हैं,’’ रमेश ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘इन का चसकेबाज होने में अपना फायदा है. सारे बिल फटाफट पास हो जाते हैं.’’ शाम को शिफ्ट खत्म हुई. दूसरे सब चले गए, पर सुरेश, रमेश और रामचरण एक तरफ खड़े हो गए.

अखिलेश उन को देख कर चौंका.

‘‘सलाम बाबूजी,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘सलाम, क्या बात है?’’ अखिलेश ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं, आप से दुआसलाम करनी थी. आप कहां से हो?’’

अखिलेश ने गांव के बारे में बताया.

‘‘साहब, एकएक कप चाय हो जाए?’’ रमेश ने जोर दिया.

अखिलेश उन के साथ फैक्टरी की कैंटीन में चला आया. चाय के दौरान हलकीफुलकी बातें हुईं. कुछ दिनों तक यह सिलसिला चला, फिर धीरेधीरे मेलजोल बढ़ता गया.

‘‘साहब, आज कुछ अलग हो जाए…’’ एक शाम सुरेश ने मुसकराते हुए अखिलेश से कहा.

‘‘अलग… मतलब?’’ अखिलेश ने हैरानी से पूछा.

सुरेश ने अंगूठा मोड़ कर मुंह की तरफ शराब पीने का इशारा किया.

‘‘नहीं भाई, मैं शराब नहीं पीता,’’ अखिलेश ने कहा.

‘‘साहब, थोड़ी चख कर तो देखो.’’

उस शाम सुरेश के कमरे में शराब का दौर चला. नया पंछी धीरेधीरे लाइन पर आ रहा था. कुछ दिनके बाद सुरेश ने अखिलेश से पूछा, ‘‘साहब, आप ने सवारी की है?’’

‘‘सवारी…?’’

‘‘मतलब, कभी सैक्स किया है?’’

‘‘नहीं भाई, अभी तो मैं कुंआरा हूं. मेरी पिछले महीने ही मंगनी हुई है,’’ अखिलेश ने कहा.

‘‘सुहागरात को अगर आप चुक गए, तो सारी उम्र आप की बीवी आप का रोब नहीं मानेगी,’’ रामचरण बोला. इस पर अखिलेश सोच में पड़ गया. वह 25 साल का था, लेकिन अभी तक किसी लड़की से सैक्स नहीं किया था.

‘‘साहब, आज आप को जन्नत की सैर कराते हैं,’’ सुरेश ने कहा.

इस सोच के साथ कि सुहागरात को वह ‘अनाड़ी’ या ‘नामर्द’ साबित न हो जाए, अखिलेश सहमत हो कर उन के साथ चल पड़ा. वे चारों एक सुनसान दिखती गली में पहुंचे. गली के मुहाने पर ही एक पान वाले की दुकान थी.

‘‘4 पलंगतोड़ पान बनाना,’’ एक सौ रुपए का नोट थमाते हुए सुरेश ने कहा.

पान बंधवा कर वे सब आगे चले.

‘‘यह पलंगतोड़ पान क्या होता है?’’ अखिलेश ने पूछा.

‘‘साहब, यह बदन में जोश भर देता है. औरत भी ‘हायहाय’ करने लगती है. अभी आप भी आजमाना,’’ रामशरण ने समझाते हुए कहा. एक दोमंजिला मकान के बाहर रुक कर सुरेश ने कालबैल बजाई. एक औरत ने खिड़की से बाहर झांका. अपने पक्के ग्राहकों को देख कर उस औरत ने राहत की सांस ली. दरवाजा खुला. सभी अंदर चले गए. एक बड़े से कमरे में 3-4 पलंग बिछे थे. कई छोटीबड़ी उम्र की लड़कियां, जिन में से कई नेपाली लगती थीं, मुंह पर पाउडर पोते, होंठों पर लिपस्टिक लगाए बैठी थीं.

‘‘सोफिया नजर नहीं आ रही?’’ अपनी पसंदीदा लड़की को न देख सुरेश कोठे की आंटी से पूछ बैठा.

‘‘बाहर गई है वह.’’

‘‘इस को सब से ज्यादा ‘मस्त’ वही नजर आती है,’’ रामचरण बोला.

‘‘नए साहब आए हैं. इन को खुश करो,’’ आंटी ने लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा.

सभी लड़कियां एक कतार में खड़ी हो गईं. कइयों ने अपनेअपने उभारों को यों तान दिया, जैसे फौज में आया जवान अपनी छाती फुला कर दिखाता है.

‘‘साहब, आप को कौन सी जंच रही है?’’ रामचरण ने अखिलेश से पूछा.

अखिलेश के लिए यह नया तजरबा था. सैक्स के लिए उस को एक लड़की छांटनी थी, जबकि उस को तो ठेले पर सब्जी छांटनी नहीं आती थी. आंटी तजरबेकार थी. वह समझ गई थी कि नया चश्माधारी बाबू अनाड़ी है. उस ने लड़कियों की कतार में खड़ी मीनाक्षी की तरफ इशारा किया. मीनाक्षी अखिलेश की कमर में बांहें डाल कर बोली, ‘‘आओ, अंदर चलें.’’

इस के बाद वह अखिलेश को एक छोटे केबिननुमा कमरे में ले गई. बाकी तीनों भी अपनीअपनी पसंद की लड़की के साथ अलगअलग केबिनों में चले गए. कमरे की सिटकिनी बंद कर लड़की ने अपने नए ग्राहक की तरफ देखा. अखिलेश ने भी उसे देखा. नेपाली मूल की उस लड़की का कद औसत से छोटा था. उस के मुंह पर ढेरों पाउडर पुता था. होंठों पर गहरे रंग की लिपस्टिक थी. लड़की ने एकएक कर के सारे कपड़े उतार दिए, फिर अखिलेश के पास आ कर खड़ी हो गई. अखिलेश ने चश्मे में से ही उस की तरफ देखा. उस के उभार ब्लाउज उतर जाने के बाद ढीलेढाले से लटके थे. उभारों, बांहों, जांघों पर दांतों के काटने के निशान थे.

उसे देख कर अखिलेश को जोश की जगह तरस आने लगा था.

‘‘अरे बाबू, क्या हुआ? सैक्स नहीं करोगे?’’ उस लड़की ने पूछा.

‘‘नहीं, मुझे जोश नहीं आ रहा,’’ अखिलेश ने कहा.

‘‘कपड़े उतार दो, जोश अपनेआप आ जाएगा,’’ वह लड़की बोली.

‘‘मुझ से नहीं होगा.’’

‘‘पनवाड़ी से पान तो लाए होगे?’’

‘‘हां है. तुम खा लो,’’ पान की पुडि़या उसे थमाते हुए अखिलेश ने कहा.

‘‘आप खा लो… गरमी आ जाएगी.’’

‘‘तुम खा लो.’’

लड़की ने पान चबाया. अखिलेश पछता रहा था कि वह यहां क्यों आया.

‘‘तुम्हें कितने पैसे मिलते हैं?’’

‘‘यह आंटी को पता है.’’

‘‘मुझ से क्या लोगी?’’

‘‘यह भी आंटी बताएगी. तुम कुछ करोगे?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘मैं कपड़े पहन लूं?’’

अखिलेश चुप रहा. लड़की ने कपड़े पहने और बाहर चली गई. अखिलेश भी बाहर चला आया. इतनी जल्दी ग्राहक निबट गया था. आंटी ने टेढ़ी नजरों से उस की तरफ देखा. मीनाक्षी ने भद्दा इशारा किया. पलंग पर बैठी सभी लड़कियां हंस पड़ीं. आधेपौने घंटे बाद बाकी तीनों भी बाहर आ गए. अखिलेश को बाहर आया देख वे सभी चौंके.

‘‘क्या बात है साहब?’’ सुरेश बोला.

‘‘मुझ से नहीं हुआ,’’ अखिलेश ने बताया.

‘‘पहली बार आए हो न साहब. धीरेधीरे सीख जाओगे.’’

आंटी को पैसे थमा कर वे सब बाहर चले आए. अगले कई दिनों तक उन तीनों ने अखिलेश को उकसाने की कोशिश की, मगर उस ने वहां जाने से मना कर दिया. एक शाम मौसम सुहावना था. शराब के 2 पैग पीने के बाद अखिलेश घूमने निकल पड़ा. अचानक ही अखिलेश के कदम उस गली की तरफ मुड़ गए. चश्माधारी बाबूजी को देख आंटी पहले चौंकी, फिर हंसते हुए बोली, ‘‘आओ बाबूजी.’’

मीनाक्षी भी मुसकराई. वह उस को अपने केबिन में ले गई.

‘‘आप फिर आ गए?’’

‘‘मौसम ले आया.’’

‘‘अकेले?’’

‘‘हां.’’

‘‘मैं अपने कपड़े उतारूं?’’

अखिलेश खामोश रहा. लड़की ने कपड़े उतार दिए. पहले की तरह अखिलेश ने उस के बदन को देखा.

‘‘अब आप भी अपने कपड़े उतारो,’’ लड़की बोली.

अखिलेश ने भी अपने कपड़े उतारे और उस के करीब आया. उसे अपनी बांहों भरा और चूमा, फिर बिस्तर पर खींच लिया. लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी अखिलेश में जोश नहीं आया. आखिरकार तंग आ कर मीनाक्षी ने  पूछा, ‘‘क्या तुम ने पहले कभी सैक्स किया है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘फिर तुम यहां क्यों आए हो?’’

‘‘अगले महीने मेरी शादी है. वहां खिलाड़ी साबित करने के लिए मैं यहां आया हूं.’’

यह सुन कर मीनाक्षी खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘तुम से कुछ नहीं हो सकता. तुम चले जाओ.’’

कपड़े पहन कर अखिलेश बाहर जाने को हुआ, तभी मीनाक्षी बोली, ‘‘अपना पर्स, घड़ी और अंगूठी उतार कर मुझे दे दो,’’

‘‘क्यों?’’ अखिलेश ने पूछा.

तभी एक कद्दावर गुंडे ने वहां आ कर चाकू तान दिया. अखिलेश ने अपने पर्स की सारी नकदी, अंगूठी और घड़ी उतार कर पलंग पर रख दी और चुपचाप बाहर चला आया.

आते वक्त भी मौसम खुशगवार था, लौटते वक्त भी. मगर आते समय अखिलेश शराब के नशे में था, लौटते समय उस का नशा उतर चुका था.

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