सुबह-सुबह फोन की घंटी बजी. मुझे चिढ़ हुई कि रविवार के दिन भी चैन से सोने को नहीं मिला. फोन उठाया तो नीता बूआ की आवाज आई, ‘‘रिया बेटा, शाम तक आ जाओ. तुम्हारे पापा और निर्मला की शादी है.’’
मुझे बहुत तेज गुस्सा आ गया. लगभग चीखते हुए बोली, ‘‘नीता बूआ, आप को मेरे साथ इतना भद्दा मजाक नहीं करना चाहिए.’’
वे तुरंत बोलीं, ‘‘बेटा, मैं मजाक नहीं कर रही हूं, बल्कि तुम्हें खबर दे रही हूं.’’
मैं ने फोन काट दिया. मुझ में पापा की शादी के संबंध में बातचीत करने का सामर्थ्य नहीं था. बूआ का 2 बार और फोन आया किंतु मैं ने काट दिया. मेरी चीख सुन राजेश भी जाग गए तथा मुझ से बारबार पूछने लगे कि किस का फोन था, क्या बात हुई, मैं इतना परेशान क्यों हूं वगैरहवगैरह. मैं तो अपनी ही रौ में बोले जा रही थी, ‘आदमी इतना भी मक्कार हो सकता है. अपनी जान से प्यारी पत्नी के देहांत के ढाई माह के अंदर ही उस की प्यारी सखी से शादी रचा ले, इस का मतलब तो यही है कि मम्मी के साथ उन के पति और उन की सखी ने षड्यंत्र रचा है.’
पापा दूसरी शादी कर रहे हैं, यह सुन कर मैं हतप्रभ थी. रोऊं या हंसूं, चीखूं या चिल्लाऊं, करूं तो क्या करूं, पापा की शादी की खबर गले में फांस की तरह अटकी हुई थी. मम्मी को गुजरे अभी सिर्फ ढाई माह हुए हैं, उन की मृत्यु के शोक से तो मन उबर नहीं पा रहा है. रातदिन मम्मी की तसवीर आंखों के सामने छाई रहती है. घर, औफिस सभी जगह काम मशीनी ढंग से करती रहती हूं, पर दिलोदिमाग पर मम्मी ही छाई रहती हैं. अपने मन को स्वयं ही समझाती रहती हूं. मम्मी तो इस दुनिया से चली गईं, अब लौट कर आएंगी भी नहीं. जिंदगी तो किसी के जाने से रुकती नहीं. मैं खुद भी कितनी खुश हूं कि मेरी मम्मी मुझे सैटल कर, गृहस्थी बसा कर गई हैं. कितने ऐसे अभागे हैं इस संसार में जिन की मम्मी उन के बचपन में ही गुजर जाती हैं, फिर भी वे अपना जीवन चलाते हैं.
मम्मी के साथसाथ इन दिनों पापा भी बहुत याद आते, मन बहुत भावुक हो आता पापा को याद कर. मन में विचार आता कि मैं तो अपनी गृहस्थी, औफिस और अपनी प्यारी गुडि़या रिंकू में व्यस्त होने के बावजूद मम्मी को भुला नहीं पाती हूं, बेचारे पापा का क्या हाल होता होगा? वे अपना समय मम्मी के बिना किस तरह बिताते होंगे? 30 वर्षों का सुखी विवाहित जीवन दोनों ने एकसाथ बिताया था. मम्मी के साथ साए की तरह रहते थे. उन की दिनचर्या मम्मी के इर्दगिर्द ही घूमती रहती थी.
मम्मी की मृत्यु के बाद 4 दिन और पापा के साथ रह कर मैं वापस लखनऊ आ गई थी. मैं ने पापा को लखनऊ अपने साथ लाने की बहुत जिद की, पापा को अकेला छोड़ना मुझे नागवार लग रहा था. पापा 2 साल पहले रिटायर्ड हो चुके थे. मेरा सोचना था कि मम्मी के बिना वे अकेले यहां क्या करेंगे.
पापा मेरे साथ आने के लिए एकदम तैयार नहीं हुए. उन का तर्क था, ‘यह घर मैं ने और हेमा ने बड़े प्यार से बनवाया है, सजायासंवारा है. इस घर के हर कोने में मुझे हेमा नजर आती है. उस की यादों के सहारे मैं बाकी जिंदगी गुजार लूंगा. फिर तुम लोग हो ही, जब फुरसत मिले, मिलने चले आना या मुझे जरूरत लगेगी तो मैं बुला लूंगा. 4-5 घंटे का ही तो रास्ता है.’
मैं ने कहा, ‘ठीक है पापा, किंतु मेरी तसल्ली के लिए कुछ दिनों के लिए चलिए.’
पापा तैयार नहीं ही हुए. मैं सपरिवार लखनऊ लौट आई. अपनी गृहस्थी में रमने की लाख कोशिशों के बावजूद पूरे समय मम्मीपापा पर ध्यान लगा रहता. पापा से रोज फोन से बात कर लेती, पापा ठीक से हैं, यह जान कर मन को कुछ तसल्ली होती.
आज अचानक नीता बूआ से पापा की शादी की खबर मिलना, मेरे जीवन में झंझावात से कम न था. मेरी दशा पागलों जैसी हो रही थी. मन में बारबार यही खयाल आता कि बूआ ने कहीं मजाक ही किया हो, यह खबर सही न हो.
निर्मला आंटी और मम्मी कालेज के दिनों से ही अच्छी सहेलियां थीं और शादी के बाद भी दोनों अच्छी सहेलियां बनी रहीं. निर्मला आंटी आगरा में रहती थीं. उन के पति बेहद स्मार्ट और हैंडसम थे व अच्छे ओहदे पर कार्यरत थे, लेकिन शादी के 2 साल बाद ही एक ऐक्सीडैंट में उन का देहांत हो गया. निर्मला आंटी को उन के पति के औफिस में काम पर रख लिया गया. लेकिन उन के ससुराल वालों ने उन्हें ‘अभागी’ मान उन से संबंध तोड़ लिया. उन की सास बहुत कड़े स्वभाव की थीं. उन्होंने साफ कह दिया कि बेटे से ही बहू है, जब बेटा ही नहीं रहा तो बहू कैसी?
निर्मला आंटी एकदम अकेली हो गई थीं, लेकिन मम्मी ने उन्हें टूटने नहीं दिया. मम्मी और निर्मला आंटी में बहुत प्रेम था. मम्मी उन्हें प्रेम से निम्मो कहती थीं तथा आंटी मम्मी को हेमू कह कर पुकारती थीं. मम्मी अब हर मौके पर निर्मला आंटी को अपने घर बुला लेती थीं. मम्मी अकसर आंटी से कहतीं, ‘निम्मो, फिर से शादी कर ले, अकेले जिंदगी पहाड़ जैसी लगेगी, मन की कहनेसुनने को तो कोई होना चाहिए.’ निर्मला आंटी हमेशा ‘न’ कर देतीं, कहतीं, ‘हेमू, यदि मेरे जीवन में उन का साथ होना होता तो उन का देहांत क्यों होता? यदि मेरे जीवन में अकेला, सूनापन है तो वही सही.’ मम्मी फिर भी कहतीं, ‘निम्मो, भविष्य की तो सोच, हर दिन एक से नहीं होते, कोई सहारा चाहिए होता है.’ निर्मला आंटी कहतीं, ‘हेमू, तू और तेरा परिवार है न, इतना अपनापन तुम लोगों से मिलता है, उस सहारे जिंदगी काट लूंगी.’ मम्मी के बहुत समझाने पर भी निर्मला आंटी दूसरी शादी के लिए तैयार न होतीं.
एक बार उन्होंने मम्मी से सख्ती से कह भी दिया था, ‘देख हेमू, यदि तू मुझे आइंदा पुनर्विवाह के लिए बोलेगी तो मैं तेरे पास आना छोड़ दूंगी,’ उन्होंने बहुत भावुक हो कर कहा था, ‘रमेश के साथ गुजरे 2 सालों पर मेरी पूरी जिंदगी कुरबान है हेमू.’ मम्मी ने आंटी को गले से लगाते हुए कहा था, ‘निम्मो, मैं आइंदा तुझ से विवाह के लिए नहीं बोलूंगी, मुझे हेमेश की कसम.’
पापा निर्मला आंटी को ‘साली साहिबा’ कह कर पुकारते थे. मम्मी को यदि पापा की मरजी के खिलाफ पापा से काम करवाना होता तो वे निर्मला आंटी के माध्यम से ही पापा को कहलवाती थीं तथा पापा यह कहते हुए कि साली साहिबा, आप की बात टालने की हिम्मत तो मुझ में नहीं है, काम कर देते थे.
बड़ा प्यारा रिश्ता था पापा और निर्मला आंटी का. दोनों के रिश्तों में शुद्ध लगाव के अलावा ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता था जिसे आपत्तिजनक कहा जा सके. वे दोनों कभी भी अकेले में मिलते हुए या बातें करते हुए भी नजर नहीं आते थे. दोनों के रिश्तों की धुरी तो मम्मी ही नजर आती थी. फिर दोनों ने शादी कैसे कर ली और क्यों कर ली. दोनों इतने समय से मम्मी को छल रहे थे. इस गुत्थी को मैं किसी भी तरह सुलझा नहीं पा रही थी.
मम्मी और निर्मला आंटी रंगरूप, स्वभाव में बहुत मेल खाती थीं. पहली नजर में तो वे जुड़वां बहनें ही नजर आती थीं. मम्मी के कैंसर का पता अंतिम स्थिति में चल पाया. पापा ने मम्मी के इलाज और सेवा में रातदिन एक कर दिए.
मैं ने उन्हें छिपछिप कर रोते हुए देखा था. मम्मी की हालत की खबर निर्मला आंटी को भी दे दी गई. वे खबर मिलते ही मम्मी के पास पहुंच गईं. आते ही मम्मी की सेवा में लग गईं. कितना प्यार करती थीं मम्मी को वे, कभीकभी उन की बुदबुदाहट मुझे सुनाई भी पड़ी थी, ‘यह क्या हो गया? मेरी हेमू को कुछ नहीं होना चाहिए, उसे बचा लो, मुझे उठा लो, उस के सारे कष्ट मुझे दे दो.’
फिर वही सवाल दिमाग को मथने लगता कि कैसे दोनों ने शादी कर ली? इस का मतलब तो यही है कि दोनों मम्मा के सामने नाटक कर रहे थे.
मैं रातदिन पापा और आंटी की शादी की गुत्थी में उलझी रहती, एक सेकंड भी मेरा मन इस उलझन से निकल नहीं पाता था. नतीजतन, इस का असर मेरे स्वास्थ्य पर पड़ना ही था, सो पड़ गया. राजेश ने मुझे डाक्टर को दिखाया. सारी जांचपड़ताल के बाद डाक्टर का दोटूक निर्णय यही था कि सब रिपोर्ट नौर्मल हैं, ये बहुत टैंशन में हैं, इतना टैंशन इन को काफी नुकसान पहुंचा सकता है. इन्हें खुश रहने की ही आवश्यकता है. राजेश ने मुझे बड़े प्यार से समझाया, ‘‘रिया, जो होना था सो हो गया, मम्मी चली गई हैं, तुम्हारे लाख चिंता करने से भी वापस नहीं आएंगी. सो, मन को दुखी मत करो.’’
मैं ने कहा, ‘‘राजेश, मम्मी को गुजरे ढाई माह हो रहे हैं, मैं ने उस दुख को सहज ले लिया है. मैं क्या करूं, पापा और आंटी ने शादी कर मम्मी के साथ विश्वासघात किया है, यह मुझ से बरदाश्त नहीं हो रहा है.’’
राजेश बहुत संयत हो कर बोले, ‘‘यों अपने को जलाने से तो कोई फायदा नहीं है. मुझे ऐसा लगता है, जरूर कोई कारण होगा जो उन लोगों ने ऐसा कदम उठाया है, दोनों ही बहुत सुलझे हुए और समझदार इंसान हैं.’’
मैं ने कहा, ‘‘राजेश, क्या कारण हो सकता है, दोनों सब की आंखों में धूल झोंक कर प्रेम किया करते होंगे. अभी तक दोनों नाटक ही कर रहे थे, बल्कि मुझे तो पूरा विश्वास है कि दोनों मम्मी की मृत्यु का इंतजार ही करते होंगे. उन्हें अपने रास्ते का कांटा ही समझते रहे होंगे.’’
राजेश ने थोड़ा सख्ती से मुझ से कहा, ‘‘रिया, हम भी बच्चे नहीं हैं. हमारी आंखों पर पट्टी नहीं बंधी हुई है जो हमारी आंखों के सामने प्रेमलीला खेली जाए और वह हमें दिखाई भी न दे.’’
मैं ने मायूस हो कर कहा, ‘‘राजेश, मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? किस के आगे रोऊं, चीखूं, चिल्लाऊं. जी में आता है उन दोनों से खूब झगड़ूं कि आप लोगों की नीयत में ही खोट था जो मम्मी चल बसीं और अब दोनों शादी रचा रहे हैं.’’
राजेश ने मेरे हाथ को अपने हाथों में ले कर बहुत ही संयत ढंग से कहा, ‘‘रिया, मेरी बात ध्यान से सुनो. 4 दिनों बाद रिंकू की गरमी की छुट्टियां शुरू हो रही हैं. हम भी छुट्टी ले कर पापा के पास चलते हैं.’’
मैं ने झट से कहा, ‘‘राजेश, उन्हें तो हम कबाब में हड्डी की तरह लगेंगे. वे दोनों तो हनीमून के मूड में होंगे. अब निर्मला आंटी मेरी आंटी नहीं, बल्कि मेरी सौतेली मां बन बैठी हैं, न जाने कैसा व्यवहार करें,’’ मैं ने बात और विस्तार से समझाने के लिए राजेश से कहा, ‘‘अब तो पापा पर भी भरोसा नहीं रहा. कहीं वे हम लोगों का अपमान न कर बैठें? मेरी तो छोड़ो, तुम्हारे अपमान को मैं बरदाश्त न कर पाऊंगी.’’
राजेश ने मेरे कंधों पर हाथ रखते हुए बड़े धैर्य से जवाब दिया, ‘‘यदि नहीं मिलना चाहेंगे या हमारा अपमान करेंगे, हम तुरंत लौट आएंगे और फिर दोबारा उन के पास नहीं जाएंगे. हम यही समझ लेंगे कि मम्मी तो अब इस दुनिया में नहीं हैं और पापा से अब हमारा कोई संबंध नहीं है.’’
मैं चुपचाप राजेश की बातें सुन रही थी.
‘‘तुम्हें मुझ से वादा करना होगा कि तुम उस के बाद पापा की चिंता करना छोड़ दोगी,’’ उन्होंने बड़े प्यार से कहा, ‘‘मुझ से मेरी बीवी उदास और बुझीबुझी देखी नहीं जाती इसलिए एक बार तो यह रिस्क लेना ही होगा. एक बार चल कर देखना ही होगा.’’
हम जब पापा के पास पहुंचे उस समय सुबह के लगभग 8 बज रहे थे. पापा बागबानी में लगे हुए थे. हमें देखते ही गेट तक आए और बोले, ‘‘अरे, तुम लोग बिना खबर दिए आए, खबर करते तो मैं स्टेशन आ जाता.’’
राजेश ने धीरे से मुझ से कहा, ‘‘रिया, गुस्से को जब्त रखना और अपनी तरफ से कुछ भी अपमानजनक नहीं करना,’’ राजेश ने टैक्सी से निकलते हुए कहा, ‘‘अचानक ही प्रोग्राम बन गया इसलिए चले आए,’’ मैं अपने क्रोध को किसी तरह रोकने की कोशिश कर रही थी, फिर भी मुंह से निकल ही गया, ‘‘हमें लगा, आप को फुरसत कहां होगी, फिर हमें लाने की आप को अनुमति मिले न मिले.’’
पापा कुछ भी न बोले. हमें अंदर लिवा लाए और बोले, ‘‘निम्मो, देखो कौन आया है?’’
पापा के मुंह से निम्मो सुन मैं अंदर ही अंदर तिलमिला गई. निर्मला आंटी तुरंत हाथ पोंछती हुई हमारे पास आ गईं, शायद किचन में थीं. आते ही बोलीं, ‘‘अरे बेटी रिया, कैसी हो? राजेश, रिंकू तुम सभी को देख कर बहुत खुशी हो रही है,’’ फिर रिंकू को दुलारते हुए बोलीं, ‘‘तुम लोग फ्रैश हो लो, मैं नाश्ते की तैयारी करती हूं. हम सभी साथ ही नाश्ता करेंगे.’’
मैं ने कुछ भी नहीं कहा. अपना मायका आज मुझे अपना सा लग ही नहीं रहा था. चुपचाप हम ने थोड़ाथोड़ा नाश्ता कर लिया. निर्मला आंटी ने राजेश के पसंद के आलू के परांठे बनाए थे तथा रिंकू की पसंद की गाढ़ी सेंवइयां भी बनाई थीं.
पापा का बैडरूम वैसा ही था जैसा मम्मी के समय रहता था. घर की साजसज्जा भी वैसी ही थी, जैसी मम्मी के समय रहती थी. परदे, चादरें सब मम्मी की पसंद के ही लगे हुए थे. बैडरूम में मम्मी की बड़ी सी तसवीर लगी हुई, उस पर सुंदर सी माला पड़ी हुई थी. मुझे मायके आए हुए 2 दिन हो चुके थे. निर्मला आंटी से मैं ने कोई बात नहीं की थी. पापा से भी कुछ खास बात नहीं हुई थी. शाम को पापा रिंकू को ले कर घूमने निकले थे, मैं और राजेश टैरेस पर गुमसुम बैठे हुए थे, तभी निर्मला आंटी आईं और मेरे हाथ में एक कागज थमाते हुए बोलीं, ‘‘बेटी रिया, इसे पढ़ लो. मैं खाना बनाने जा रही हूं. क्या खाना पसंद करोगी, बता देतीं तो अच्छा रहता.’’
मैं ने बेरुखी से कहा, ‘‘जो आप की इच्छा, हम लोगों को खास भूख नहीं है.’’
वे चली गईं. तब मैं ने कटाक्ष करते हुए राजेश से कहा, ‘‘खाना हमारी पसंद से बनेगा और शादी के समय हमारी पसंद कहां गई थी? हुंह, बात बनाना भी कोई इन से सीखे. कितनी बेशर्मी से नाटक जारी है,’’ कहते हुए मैं ने बेमन से कागज खोला, यह तो मम्मी का पत्र था :
प्यारी प्यारी निम्मो,
आज मैं तुझ से अपनी हेमेश की कसम तोड़ने की इजाजत लेते हुए पुनर्विवाह की बात कर रही हूं. आशा करती हूं, मेरी अंतिम इच्छा पूरी करने से ‘न’ नहीं करेगी. मेरी तो विदाई की वेला आ गई है. तुझ से, हेमेश से, बेटी रिया, राजेश, रिंकू सभी से इच्छा न होते हुए भी विदा तो मुझे होना ही पड़ेगा.
एक दिन मैं ने हेमेश और डाक्टर की बातें सुन ली थीं. मुझे अपनी बीमारी का हाल मिल गया था. मैं अच्छी तरह समझ चुकी थी कि मैं चंद दिनों की मेहमान हूं. मैं ने सब से नजर बचा कर यह पत्र लिखा क्योंकि अपनी अंतिम इच्छा बताना जरूरी था. मन की बात तुम लोगों को बताए बिना भी तो मेरी आत्मा को शांति न मिल सकेगी.
मेरे बाद हेमेश एकदम अकेले हो जाएंगे. तू भी अब रिटायर होने वाली है. मेरे हेमेश को अपना लेना. दोनों एकदूसरे का सहारा बन जाना. हेमेश को तो जानती ही है, अपनी सेहत के प्रति कितने लापरवाह रहते हैं, तू रहेगी तो उन्हें वक्त पर हर चीज मिलेगी. प्यारी निम्मो, हेमेश की साली साहिबा से बीवी साहिबा बन जाना.
रिया बेटी मेरे जाने से बहुत दुखी होगी. फिर धीरेधीरे रियाराजेश अपनी जिंदगी, अपनी गृहस्थी में मन लगा लेंगे. उन की आंटी से उन की मम्मी बन जाना. मेरी बेटी का मायका पूर्ववत बना रहेगा.
थक गई हूं, अब लिखा नहीं जा रहा है. बोल देती हूं, तुम दोनों की शादी ही तुम दोनों की तरफ से मेरे लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
तेरी,
हेमू
पत्र पढ़ कर मेरी आंखों से आंसू गिरने लगे. राजेश ने भी मेरे साथ ही पत्र पढ़ लिया था. उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोले, ‘‘चलो, सारी गलतफहमियां दूर हो गईं. चल कर देखें मम्मी क्या कर रही हैं?’’
हम लोग किचन में गए. देखा, निर्मला आंटी खाना बनाने में व्यस्त थीं. पापा भी किचन में ही थे. वे सलाद काट रहे थे. मैं निर्मला आंटी के पास गई तथा बोली, ‘‘क्या बना रही हैं, मम्मी?’’
निर्मला आंटी की आंखें डबडबा आईं. उन्होंने प्यार से मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया फिर धीरे से कहा, ‘‘हेमेश और मेरा शादी करने का एकदम मन नहीं था. हम ने कभी एकदूसरे को इस नजर से देखा ही नहीं था लेकिन हेमू की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए शादी करनी पड़ी. मंदिर में तुम्हारे बूआ, फूफा की उपस्थिति में हम ने एकदूसरे को माला पहनाई, हेमेश ने मेरी सूनी मांग में सिंदूर भर दिया, हो गई शादी. तुम्हारी नीता बूआ ने मिठाई खिला हमारा मुंह मीठा कराया.’’
मैं चुपचाप उन्हें देखे जा रही थी.
उन्होंने आगे कहा, ‘‘तुम्हें बताने की हिम्मत मुझ में और हेमेश में न थी.
तुम्हें बताने की जिम्मेदारी नीता ने ली, उस ने तुम्हें सारी बातें बताने की कोशिश की, लेकिन तुम ने उस के फोन काट दिए, बात नहीं सुनी उस की. वैसे बेटा, तुम ने भी वही किया जो एक बेटी अपनी मम्मी को खोने के बाद इस तरह की खबर सुन कर करेगी, हमें तुम से…’’
मैं ने बीच में ही निर्मला आंटी की बात काटते हुए कहा, ‘‘आप लोगों से माफी मांगने लायक तो नहीं हूं, लेकिन फिर भी हो सके तो मुझे माफ कर दीजिए. सौरी मम्मी, सौरी पापा.’’
मम्मीपापा दोनों ने आगे बढ़ कर मुझे गले से लगा लिया. मैं ने देखा राजेश, रिंकू को गोद में लिए पूरी तरह संतुष्ट नजर आ रहे थे. वे भी मुझ से नजर मिलते ही मुसकरा दिए. इस दौरान एक विचार दिल और दिमाग को लगातार मथ रहा था कि दो उदास और तन्हा प्राणियों को एक कर जीने का मौका देना क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता है? इस विचार के आते ही मम्मी के प्रति श्रद्धा से सिर झुक गया.