एक्ने से पाना चाहती हैं छुटकारा, तो चेहरे पर लगाएं साल्ट स्क्रब

अगर आपके चेहरे पर भी एक्‍ने हो गया है और आप उससे मुक्ती पाना चाहती हैं तो साल्‍ट स्‍क्रब आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है. यह एक्‍ने की समस्‍या को ठीक करने में काफी कारगर होता है. आप साल्‍ट को अपने चेहरे को साफ करने के लिये प्रयोग कर सकती हैं. कई स्‍पा में भी इसका प्रयोग किया जाता है, आप भी इसे बाथ साल्‍ट या फिर फेस स्‍क्रब के रूप में प्रयोग कर सकती हैं. अगर आपको एक्‍ने से मुक्‍ति पानी है तो हमारे बताए गए इन तरीको का इस्‍तमाल करें.

1. साल्‍ट स्‍क्रब

नहाने के बाद एक बूंद एप्‍सम साल्‍ट और स्‍क्रब को अपनी हथे‍ली में लेकर चेहरे पर लगाएं. इसे गोलाई में लगाएं जिससे स्‍किन से डेड स्‍किन साफ हो जाए और पोर खुल जाए. अगर नाक के पास ज्‍यादा ब्‍लैकहेड्स हैं तो वहां पर हल्‍के हल्‍के रगड़िये. आप इस साल्‍ट स्‍क्रब को हफ्ते में एक या दो बार प्रयोग कर सकती हैं.

2. एप्‍सम साल्‍ट एंड लेमन स्‍क्रब

यह एक प्रभावी स्‍क्रब है जो कि मिनट भर में तैयार हो जाता है. कुछ बूंद नींबू की साल्‍ट स्‍क्रब में डालें और चेहरे को स्‍क्रब करें. इससे पिंपल, डेड स्‍किन और ब्‍लैकहेड तथा वाइटहेड साफ करने में आसानी होगी.

3. एप्‍सम साल्‍ट एंड क्‍लींजिंग मिल्‍क

अगर आपकी स्‍किन ड्राई है तो एप्‍सम साल्‍ट में क्‍लींजिंग मिल्‍क मिला दीजिये. क्‍लींजिंग मिल्‍क से चेहरे में नमी आएगी और रैशेज भी नहीं पड़ेंगे. अगर ड्राई स्‍किन पर एप्‍सम साल्‍ट का प्रयोग अकेले ही किया जाए तो इससे रैशेज पड़ने की संभावना होती है. इसलिये हमेशा बौडी लोशन या क्‍लींजिंग मिल्‍क डाल कर ही प्रयोग करें.

4. साल्‍ट एंड औयल स्‍क्रब

अपनी स्‍किन को साफ करने के लिये साल्‍ट में कुछ अच्‍छे किस्म के तेल जैसे, लेवेंडर, पिपरमिंट या रोजमेरी का तेल मिलाइये. इसे महीने में केवल एक बार ही प्रयोग कीजिये. ऐसा करने से आपके चेहरे के पिंपल गायब होने लगेंगे.

5. शहद और एप्‍सम साल्‍ट स्‍क्रब

यह स्‍क्रब सन टैनिंग और एक्‍ने को एक साथ कम करने में सहायक होती है. शहद स्‍किन को लाइट करता है और नमी पहुंचा कर एक्‍ने से राहत दिलाता है. आप चाहें तो इसमें दही को मिला कर फेस मास्‍क बना सकती हैं.

पतझड़ में वसंत : सुषमा और राधा के बनते बिगड़ते हालात

‘प्रिय राधा,

‘स्नेह, मैं सुषमा, तेरी सहेली, तेरी पड़ोसिन, तेरी कलीग. शायद तू मुझे भूल गई होगी पर इन 10 बरसों में कोई दिन ऐसा न था जब तेरा हंसताखिलखिलाता चेहरा जेहन में न उभरा हो. बहुत याद आती है इंडिया की, इंडिया के लोगों की. मुझे तुझ से एक फेवर चाहिए. मैं यूएस से इंडिया आना चाहती हूं. क्या मैं कुछ दिन तेरे पास रह सकती हूं? मेरा आना न आना, तेरी हां या न पर है. ईमेल का जवाब फौरन देना. मैं अगले महीने की 20 तारीख तक चलने का प्रोग्राम बना रही हूं. मेरी बात हो सकता है तुझे अजीब लगे, उस के लिए माफी चाहती हूं. सबकुछ आ कर बताऊंगी.

‘तेरी सुषमा.’

ईमेल सुषमा का था. 10 बरस पहले यूएस में अपने बेटों के पास जा बसी थी. आज इतने लंबे समय के बाद वापस आ रही है. पर क्यों? लोग तो वहां जा कर वापस आना ही नहीं चाहते. फिर यह

तो बेटों के बुलाने पर ही गई थी. सोचतेसोचते बरामदे में पड़ी कुरसी पर आ बैठी. अतीत सामने आ कर खड़ा हो गया.

सामने वाली दीवार के पीछे सुषमा का परिवार रहता था. लंबीचौड़ी कोठी थी, 10-15 लोग रहते थे. ठीक, राधा के परिवार की तरह. दोनों की छतें इस तरह जुड़ी थीं कि गरमी में रात को जब परिवार के बच्चेबूढ़े सोने आते तो पता ही नहीं लगता कि घरों का आदि कहां, अंत कहां है. वैसे भी दोनों परिवार में बहुत अपनापन था. बच्चे भी बहुत हिलमिल कर रहते थे. उसे आज भी याद है, जब भी दोनों घरों में कोई खुशी आती, सब मिलजुल कर बांटते. चाहे किसी बच्चे का जन्मदिन हो या किसी को कंपीटिशन में जबरदस्त कामयाबी मिली हो.

राधा और सुषमा एक ही स्कूल में नौकरी करती थीं. दोनों ने अपने और बच्चों से जुड़े किसी भी फैसले को कभी अकेला नहीं लिया. स्कूल से रिटायर होने के बाद भी वे एकदूसरे की सलाह लेने में कोताही नहीं करती थीं.

राधा के 2 बेटे हैं तो सुषमा 3 बच्चों की मां है. कोईर् वक्त था जब पढ़ाई में दोनों के बच्चों में होड़ सी लगी होती. जिन्हें देख कर दोनों परिवारों के दूसरे बच्चे भी इस होड़ में शामिल हो जाते. दोनों सहेलियों ने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के सपने देखे थे. वक्त के साथ सपनों में रंग भरने लगे. वैसे भी टीचर्स के बच्चों की सोच में सिर्फ और सिर्फ कैरियर होता है.

राधा के दोनों बेटों ने इंजीनियरिंग की और बाहर का रुख किया. सुषमा के तीनों बेटे भी मैडिकल की पढ़ाई कर के अमेरिका चले गए. कुछ वर्षों बाद तीनों भाइयों ने मिल कर एक हौस्पिटल का शुभारंभ किया. बेटों की तरक्की से दोनों माएं खुश थीं. यही नहीं, दोनों के परिवारों के बाकी बच्चे भी अच्छी नौकरी ले कर दूसरे शहरों में जा बसे थे. इतने बड़े घर में केवल राधा व राधा के पति कमलेश्वर थे. उधर, सुषमा व उस के पति रमेश रह गए थे. दोनों को रिटायर होने में समय था. सब के दिमाग में यही प्रश्न था, रिटायर हो कर वे कहां, क्या करेंगे?

बच्चों ने नए देश व माहौल में अपने को ढालने में देर न लगाई. दोनों दंपती जानते थे कि अब बच्चे वहीं बसेंगे, कोईर् यहां बसने नहीं आएगा.

राधा के बेटों ने मम्मीपापा को अमेरिका आ कर बसने का प्रस्ताव रखा. उन्होंने पहले तो इस प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिया पर जब बेटों ने बारबार कहा तो कमलेश्वर ने पत्नी से कहा, ‘बच्चों की भावनाओं को मैं समझता हूं, पर यह समझ लो, हम कहीं नहीं जाएंगे. जहां हम रह रहे हैं वही ठिकाना ही हमारा सम्मान है. साधु अपनी कुटिया में रहता है, तो चार लोग उस से मिलने आते हैं. कुटिया छोड़ कर घरघर भीख मांगने जाएगा तो लोग दुत्कार भी सकते हैं.

‘सो, हम अपनी इस कुटिया में ही भले. जिस को मिलना है, यहां आ कर मिल जाए. और फिर हम बूढ़े पेड़ की तरह हैं, एक जगह से उखड़ कर दूसरी जगह की मिट्टी में नहीं जम सकते. चिडि़या अपने बच्चों को उड़ना सिखाती है, सदा उन के साथ नहीं उड़ती. यह देख कर कि उन्होंने उड़ना सीख लिया है, वह उन्हें आजाद छोड़ देती है. हम ने भी बच्चों को अच्छी शिक्षा व संस्कारों के मजबूत पंख दिए हैं. उन्हें अब हमारी जरूरत नहीं है. हम दोनों ही अपने तरीके से जीने के लिए आजाद हैं.’

बच्चे इस बात को नहीं मानते. उन का कहना था, ‘आप दोनों का शरीर इस उम्र में आने वाली तकलीफोें को कैसे झेलेगा? कोई तो साथ होना चाहिए. यहां हमारे पास होगे तो किसी अनहोनी का डर तो न होगा.’

बच्चों की मजबूरी और कमलेश्वर का स्वाभिमानी तर्क, दोनों अपनी जगह ठीक थे. पतिपत्नी के हठ के आगे बच्चों को घुटने टेकने पड़े.

सुषमा व उस के पति रमेश की सोच इन से अलग है. उन के बच्चों ने दोनों को जब अमेरिका आने का निमंत्रण दिया, तो वे मना न कर सके. ‘राधा, मेरे तीनों बेटों ने एक हौस्पिटल खोला है. बड़े हौस्पिटल के मालिक होने के साथ एक होटल भी खरीदा है. होटल का उद्घाटन हमारे हाथ से कराना चाहते हैं. हम दोनों के न जाने पर बच्चे नाराज हो जाएंगे. सो, हम ने भी सोचा है कि हम सबकुछ बेच कर वहीं बच्चों के पास क्यों न रहें.’

जाने से पहले सुषमा, सहेली से मिलने आईर् थी. बहुत खुश थी. अमेरिका जाने की खुशी से चमकती आंखों में न जाने कितने ही सपने थे.

‘मुझे भूल तो न जाएगी?’ सुषमा ने पूछा.

‘नहीं, कभी नहीं. जब जी करे, फोन कर लेना. मैं यहीं हूं, यहीं रहूंगी. यह तेरी सहेली, तेरे वापस आने का इंतजार करेगी,’ राधा ने उसे गले लगाते हुए कहा.

जाने के बाद राधा सोच रही थी, क्यों उस ने सुषमा से कहा, ‘तेरे वापस आने का इंतजार करूंगी. कहीं बुरा न मान गई हो. इस बात को 10 साल हो गए, लगता है सुषमा से मिले सदियां गुजर गईं. क्या उसे आज भी वे पुरानी बातें याद होंगी? आएगी, तो पूछूंगी. वैसे उस की खनकती हंसी और मुसकराती आंखें आज भी उस की उपस्थिति का उसे एहसास कराती हैं.

वक्त कभीकभी कितने सितम ढाता है, कौन जानता है? एक ऐक्सिडैंट में राधा के पति की अचानक मृत्यु हो गई. उस की तो दुनिया ही लुट गई. बच्चों ने एक बार फिर दोहराया, ‘मम्मी, यहां कैसे अकेली रहोगी, हमारे साथ अमेरिका में रहना ठीक होगा.’

‘नहीं, तुम्हारे पापा मुझे यहीं बैठा गए हैं. इस घर में आज भी तुम्हारे पापा हैं, उन के साथ जुड़ी यादें है. मुझे अभी यहीं रहने दो.’

‘बेटे अनिल और सुनील मां के मन की दशा को समझते थे. सो, चुप रहे. हां, एक पुरानी कामवाली व उस के बेटे से कहा, ‘आज से, तुम दोनों हमारे घर में ही रहोगे. कोई तो हो जो मां के साथ हो.’ कामवाली कमला और उस के बेटे बौबी को, अनिल और सुनील अच्छी तरह जानते थे, सो, तसल्ली थी.

ऐसे समय पर राधा को सुषमा की बड़ी याद आई. वक्त से बढ़ कर मरहम भी कोई नहीं है. फिर भी बच्चों ने सलाह दी कि मम्मी को कोई काम पकड़ना चाहिए. काम में व्यस्त रहेंगी तो मन लगा रहेगा.

राधा ने एक एनजीओ जौइन कर लिया. वक्त आसानी से कट जाता. लेकिन कई बार उसे लगता, 5 कमरों के इस दोमंजिले घर का ऊपरी हिस्सा तो बंद ही रहता है. साफसफाई के साथ आएदिन मरम्मत की जरूरत भी मुंहबाए खड़ी रहती है. कई लोगों ने बच्चों को सलाह दी, ‘इस मकान को बेच दो, अच्छे पैसे मिल जाएंगे? बदले में मां को एक छोटा फ्लैट खरीद दो. आधे दाम में एवन सोसायटी में बड़ा अच्छा फ्लैट मिल सकता है.’

‘वक्त की दौड़ में शामिल होना समझदारी हो सकती है. पर मेरे घर को ले कर ऐसा कुछ सोचना, समझदारी न होगी. नहीं, इस घर में हमारा बचपन बीता है, हमारे बचपन की मीठी यादें इस से जुड़ी हैं. यह घर हमारे दादीदादा की धरोहर है. इस का कोई मोल नहीं है.’ बेटों के मुंह से पति की भाषा सुन कर राधा को बड़ी खुशी हुई.

‘क्यों न हम ऊपर की मंजिल को किराए पर चढ़ा दें?’ बेटों ने प्रस्ताव रखा.

‘यह ठीक रहेगा, चहलपहल भी रहेगी और आमदनी भी होगी,’ राधा को बात पसंद आई. ऊपर की मंजिल में एक लाइब्रेरी है जिसे एक ट्रस्ट चलाता है. किराया भी अच्छा मिल जाता है. यह बच्चों की सूझबूझ से हुआ है. इस बीच, आसमान में बदलों के गरजने की जोरदार आवाज आई तो राधा के विचारों का सफर खत्म हुआ.

आज जब राधा को, सुषमा का मेल आया तो वह लाइब्रेरी में ही थी. ट्रस्ट के मैनेजर कई बार उस से कह चुके हैं ‘मैडम, हमें कोई लाइब्रेरियन बताएं. हमारे पास कोई लाइब्रेरियन नहीं है.’ वह सोच रही थी, ‘काश, आज सुषमा होती…’ ईमेल फिर से पढ़ कर सोचने लगी, ‘क्या जवाब दूं?’

‘प्रिय सुषमा

‘तेरी तरह मैं भी तुझे कभी नहीं भूली. यह दिल, घर का यह दरवाजा हमेशा ही तेरे स्वागत में खुला है. यह हिंदुस्तान है, यहां लोग किसी के घर पूछबता कर नहीं आते. फिर तू ने क्यों पूछा? शायद, विदेशी सभ्यता में ढल गई है. आएगी तो कान खींचूंगी, भला अपनी सभ्यता क्यों भूली.

‘तेरी अपनी राधा.’

एक दिन सुबहसुबह दरवाजे पर सुषमा को देख राधा चौंक पड़ी

‘‘अरे, यह कैसा सुखद संयोग.’’

‘‘लो, तूने ही तो मुझे याद दिलाया था कि यह हिंदुस्तान है. बस, मुंह उठाए चली आई. कोई शक?’’

‘‘नहीं, कोई शक नहीं,’’ राधा ने देखा, दोनों के मिलनसुख में सुषमा के नयन कटोरे छलछला रहे हैं. राधा भी अपने को रोक न सकी. दोनों सहेलियां बहुत देर तक अनकहे दुख से एकदूसरे को भिगोती रहीं. पतियों की बातें, उन की मृत्यु का दुखद आगमन, फिर बच्चे. बच्चों की बात पर सुषमा चुप हो गई. राधा को कुछ अजीब सा लगा.

सो, आगे कुछ भी न बोली. सोचा, थकी है शायद, जैटलैग उतरेगा, तभी सामान्य हो पाएगी. बच्चों की बातें फिर कभी.

ये भी पढ़ें- कौन जिम्मेदार: किशोरीलाल ने कौनसा कदम उठाया

सुषमा को आए डेढ़ महीना गुजर गया था. पर चेहरे की उदासी न गई. हंसताखिलखिलाता चेहरा जैसे वह अमेरिका में ही छोड़ आई थी.

‘‘क्या तुझे यहां मेरे घर में कुछ परेशानी है?’’ राधा के मन में कहीं अपराधबोध भी था.

‘‘अरे नहीं, बस यों ही,’’ सुषमा बात को टालना चाहती थी.

एक दिन एनजीओ से लौटी तो देखा सुषमा फूटफूट कर रो रही थी.

उसे रोता देख राधा घबरा गई, ‘‘क्या हुआ? बताती क्यों नहीं. मुझ से तो कहती है, मैं तेरी सहेली हूं. फिर क्यों अंदर ही अंदर घुट रही है?’’

यह सुन कर सुषमा का रोना और तेज हो गया.

राधा ने उसे झकझोर कर कहा, ‘‘मैं जो समझ पा रही हूं वह शायद यह है कि कोई ऐसी बात तो जरूर है जो तू मुझ से छिपा रही है. वैसे, मैं होती कौन हूं यह सब पूछने वाली? मैं तेरी कलीग ही तो हूं. बहुत बदल गईर् है, तू.’’

‘‘राधा, नहीं ऐसा मत कह, तू ही तो है जिस से आज तक मैं ने हर बात साझा की है,’’ वह बताने लगी, ‘‘10 साल पहले हम ने इंडिया छोड़ने से पहले देहरादून में फ्लैट खरीदा था. यह सोच कर कि कभी इंडिया आएंगे तो ठाठ से रहेंगे. जाते समय फ्लैट की चाबी जेठ के बेटे रवि को दे गई थी. यहां आने से पहले मैं ने रवि से फोन पर कहा, साफसफाई करा कर रखना. मैं इंडिया आ रही हूं. काफी समय से मैं उस के संपर्क में हूं. कुछ दिनों पहले कहता था, घर तैयार नहीं है.

‘‘आज फोन किया तो बताया, ‘आंटी, वह मकान मैं ने बेच दिया है. जल्दी दूसरा खरीद दूंगा. मुझे एक महीने का समय दो.’ राधा, मैं तो कहीं की नहीं रही. पहले तो मेरे बच्चों ने दुत्कार दिया, अब यहां ये सब…’’

‘‘क्या? बेटों ने तुझे दुत्कारा? मुझे कुछ अंदाजा तो था कि आज डेढ़ महीने से अंदर ही अंदर किसी दर्द को ले कर तू तड़प रही है,’’ राधा ने मन की बात कह दी.

‘‘हां, आज मैं तुझे सारी कहानी सुनाऊंगी, 10 वर्षों पहले मेरे बेटों ने खूबसूरत साजिश रची थी. हम दोनों को इमोशनल ब्लैकमेल कर के, हमें अमेरिका आने का निमंत्रण दिया. हम ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया तो कहा, ‘आप दोनों के नाम से हम एक होटल खोलना चाहते हैं. इस में आप का शेयर भी होगा.’ रमेश को लगा, बच्चों ने ठीक सोचा है. घर का पैसा घर में ही रहेगा. कुछ पैसे से हम ने देहरादून में फ्लैट खरीद लिया. जिस के बारे में बच्चों को आज भी जानकारी नहीं है. हां, कुछ पैसे हम ने यहां बैंक में भी छोड़ दिए थे.

‘‘अमेरिका पहुंच कर हम दोनों की खुशी दूनी हो गई जब पता लगा हम दोनों दादादादी बनने वाले हैं. बड़े बेटे विशाल के घर मेहमान आने वाला है. सोच कर मैं ने बहू को अपने गले की चेन देने का मन बना लिया था. बहू के घर बेटा हुआ. मेरा दिल बल्लियों उछल रहा था. बहू की सेवा में मैं दिनरात लगी रहती थी.

‘‘बच्चा 6 महीने का हो गया तो बहू औफिस जाने लगी. दिनभर बच्चा मेरे पास रहता, रात को बहू के आने पर मैं रसोई में घुस जाती. पर अब तक मैं थक कर चूर हो चुकी होती थी. बच्चा 2 साल का हो गया तो नर्सरी जाने लगा. मैं ने राहत की सांस ली. तभी एक दिन छोटी बहू का फोन आया, ‘मांजी, आप फिर से दादी बनने वाली हैं. मैं आप को आ कर ले जाऊंगी.’

‘‘ठीक है, बहू की बात सुन कर मन तो खुश हुआ पर याद आया, कुछ दिनों पहले इसी के पति (मेरे बेटे) ने बताया था. ‘इंडिया से मेरी सास आई हैं. कुछ महीने रहेंगी.’ क्या बहू अपनी मां को प्रसव तक रोक नहीं सकती थी?

‘‘पहली बार लगा, मुझे इन लोगों ने फालतू समझा है? चुप रही. छोटे के घर बेटी ने जन्म लिया. मैं पिछला सब भूल कर फिर अपनी पुरानी फौर्म में आ गई. सोचने लगी, मेरे पास और काम ही क्या है, ये तो अपने बच्चे हैं. मैं जब नौकरी करती थी, तब मेरी सास बच्चों को संभालती थीं. मैं कुछ अनोखा तो कर नहीं रही. हां, यह जरूर था अब मैं पहले की अपेक्षा थकने लगी थी. मेरी थकान से जिसे सब से ज्यादा तकलीफ होती थी, मेरे पति थे. वे कहते, ‘क्यों सारा दिन खटती हो. बिलकुल नौकरमाई बन गई हो. छोड़ोे सब.’ मैं जानती थी. मेरी तकलीफ पति के सिवा कोई नहीं समझता.

‘‘एक दिन रमेश को दिल का दौरा पड़ा. बहुत कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया न जा सका. मेरी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गईर् थी. दिनरात अकेले पड़ी रोती रहती. कभी कोई बेटा या बहू पूछने भी न आते. कभीकभार छोटी बिटिया मेरे आंसू पोंछ कर तोतली भाषा में पूछ लेती, ‘दादी मम्मा, आप क्यों रो रही हो?’ मन करता खूब चिल्लाचिल्ला कर रोऊं. कितनी दुखी और बेबस हूं मैं. इन सब से तो यह 5 वर्ष की बिटिया भली है जो मेरे आंसू देख कर बेचैन हो जाती है. राधा, मैं बिलकुल टूट चुकी थी. तब मुझे यहां की बहुत याद आई. जी करता पंख लगा कर उड़ जाऊं, इंडिया पहुंच जाऊं.

ये भी पढ़ें- मार्मिक बदला: रौनक से कौनसा बदला लेना चाहती थी रागिनी

‘‘एक रोज बीच वाली बहू ने फोन किया, ‘मम्मी, अब आप मेरे पास रहेंगी.’

‘‘‘नहीं बेटा, मुझे माफ करो. अब मैं तुम लोगों की सेवा न कर पाऊंगी.’

‘‘‘क्यों?’

‘‘मैं रुलाई रोक न पाई. उधर से बहू ने फोन पलट दिया. मैं रोती रही. उस दिन मुझे यकीन हो गया कि इन बच्चों ने मुझे आयानौकर से ज्यादा कुछ भी नहीं समझा. ये बच्चे मेरे दुख को क्यों नहीं समझते? पति को गए सिर्फ 6 महीने हुए हैं. मुझे तो दोशब्द संवेदना के चाहिए. ये फोन पटक कर अपना गुस्सा दिखा रहे हैं.

‘‘राधा, इस घटना के बाद सब के चेहरे का नकाब उतरने लगा. मुझे ले कर बहूबेटों में खुसरफुसुर होने लगी. परोक्ष से कई बार सुना. ‘मम्मी, हम तीनों के पास 4-4 महीने रहेंगी.’ एक बहू बोली, ‘न, न, न.’ दूसरी ने कहा, ‘तो क्या करें?’

‘‘राधा, बस, मैं ने समझ लिया था कि यहां रुकना ठीक नहीं हैं. किंतु जाऊंगी कहां? कोई न कोई रास्ता तो निकालना होगा.

‘‘एक दिन बड़े बेटे विशाल ने कहा, ‘मम्मी, हम नया हौस्पिटल खोल रहे हैं. हमें कुछ पैसा चाहिए. पापा के जो 20 लाख रुपए जमा हैं, उन में से 15 लाख रुपए दे दो.’

‘‘‘सोचूंगी.’

‘‘मैं ने सोच रखा था, इन्हें तो अब एक कौड़ी न दूंगी. एक दिन छोटे बेटे विभव ने कहा, ‘मम्मी, एक  और बात, हम लोगों का छोटे फ्लैट में शिफ्ट होने का इरादा है. ऐसे में हम तीनों के साथ आप रह न सकोगी. सो, 6 महीने के लिए आप ओल्डएज होम में रह लो. नया घर बनते ही हम आप को ले आएंगे.’

‘‘मैं निशब्द, लगा, सारे शरीर का खून निचुड़ गया है. मैं ने हिम्मत दिखाई. मन के भीतर जो उमड़ रहा था, सब कह देना चाहती थी. सो, ‘ठीक है बेटा, तुम सब ने मिल कर बढि़या खेल रचा है. पहले हमें इमोशनल ब्लैकमेल कर के बच्चे पालने के लिए यहां बुला लिया. 10 वर्षों तक तुम हम से काम लेते रहे. जब मैं ने मानसिक व शारीरिक असमर्थता दिखाई, तो ओल्डएज होम का रास्ता दिखा दिया. अरे, गोरों के साथ रह कर तुम्हारे तो खून भी सफेद हो गए हैं. लानत है मुझ पर, मेरी कोख पर, जिस ने ऐसी निकम्मी औलादें पैदा कीं.’

‘‘‘कहां गए वे संस्कार, वे भारतीयों के जीवन मूल्य? थू है तुम पर, तुम्हारी शिक्षा पर.’ मेरी तीखी आवाज सुन कर बेटे इधरउधर हो गए थे. बहुएं तो पहले ही खिसक गई थीं. मैं बड़ी देर तक अकेली रोती रही. कमरे से बाहर आ कर किसी ने संवेदना के दोशब्द भी न कहे.

‘‘राधा, विश्वास नहीं होता था ये हमारे बेटे हैं. मैं ने तय कर लिया था, मैं इंडिया वापस जाऊंगी, यहां रही तो घुटघुट कर मर जाऊंगी. पर सवाल यह था, जाऊंगी कहां, रहूंगी कहां? मन अतीत के पन्ने पलटने लगा.

‘‘मन की लिस्ट में सब से ऊपर तेरा नाम था. इसीलिए मेल डाला था, ‘इंडिया पहुंच कर क्या मैं तेरे पास रुक सकती हूं? शुक्र है, अंतिम समय, अपनी धरती तो नसीब हो गई. नहीं तो किसी ओल्डएज होम की दीवारों से टक्कर मारमार कर मर जाती.’’

सुषमा अचानक चुप हो गई थी. सिर्फ आंखें बह रही थीं. राधा अपने को न रोक पाई. सहेली ने जो कुछ झेला है, दिल दहला देने वाला है. ठीक कह रही है- यकीन नहीं होता कि ये अपने बच्चे हैं जिन के संस्कारों और अनुशासन की पूरा महल्ला दुहाई देता था. उसी परिवार की एक मां आज बच्चों के दुर्व्यवहार से कितनी दुखी है. राधा जानती थी, रो कर सुषमा का मन हलका हो जाएगा.

‘‘10 मिनट बाद सुषमा ने कहा, अच्छा राधा, यह बता मैं कहां गलत थी?’’

‘‘नहींनहीं, तू कहीं गलत न थी. गलत तो समय की चाल थी. हां, इंडिया आने का तेरा फैसला बिलकुल सही था. बस, यह समझ, तू यहां सुरक्षित है. कई बार भावावेश में हम ऐसे फैसले ले लेते हैं जिन के परिणाम का हमें एहसास नहीं होता. सुषमा, मेरी समझ से महत्त्वाकांक्षी होना अच्छा है. पर स्वाभिमान को मार कर महत्त्वाकांक्षाएं पूरी करना गलत है. सच तो यह है कि तेरे बेटों ने तेरे स्वाभिमान का सौदा किया है, जिसे तू समझ नहीं पाई. जब समझ आई, तो बहुत देर हो चुकी थी.’’

‘‘तू ठीक कहती है राधा,’’ सुषमा खामोश थी.

‘‘वैसे, तेरे बच्चों का भी कोई कुसूर नहीं है. वहां का माहौल ही ऐसा है. हमारे अपने वहां सहूलियतों और पैसों की चमक में रिश्तों की गरिमा को भूल जाते हैं. वे कोई ऐसी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते है जिस में उन की आजादी में बाधा पड़े. देखने में तो यह आया है कि विदेश जा कर बसे बच्चे, मांबाप को अपने पास सिर्फ जरूरत पड़ने पर बुलाते हैं. आ भी गए तो अपने साथ रखना नहीं चाहते हैं. इसीलिए तेरे बच्चों को जब लगा कि मां एक बोझ है तो बेझिझक, ओल्डएज होम का रास्ता दिखा दिया.

‘‘बदलाव यहां भी आया है. बच्चे यहां भी अलग रहना चाहते हैं. फिर भी एक चीज जो यहां है वहां नहीं है, रिश्तों की गरमाहट का एहसास. साथ ही, यहां बच्चों में बूढ़ों के दर्द को महसूस करने और उन की संवेदनाओं को समझने का जज्बा है. यही एहसास उन्हें मांबाप से दूर हो कर भी पास रखता है. तेरे बेटे रिश्तों की गरमाहट की कमी को तब महसूस करेंगे जब इन के बच्चे अपने मांबाप यानी उन को ओल्डएज होम का रास्ता दिखाएंगे. मन मैला मत कर. बच्चों से हमारी ममता की डोर कभी नहीं टूटती. हम उन का बुरा कभी नहीं चाहेंगे. वे जहां भी रहें, खुश रहें. अब आगे की सोच.’’

‘‘हां, वही सोच रही थी. रवि ने तो मेरी सोच के सारे दरवाजे बंद कर दिए.’’

‘‘जब सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं तो एक दरवाजा तो जरूर खुला होता है.’’

‘‘बता, कौन सा दरवाजा खुला है?’’

‘‘राधा का दरवाजा. देख, ध्यान से सुन, मैं यहां अकेली हूं. तू साथ रहेगी, तो मुझे भी हिम्मत बंधी रहेगी. मैं तुझ से सच कह रही हूं.’’

‘‘लेकिन कब तक?’’ सुषमा को राधा का प्रस्ताव कुछ अजीब सा लगा, ‘‘पर तेरे बेटे? वे क्या सोचेंगे?’’

‘‘यह घर मेरा है. मुझे अपने घर में किसी को बुलाने, रखने का पूरा हक है. वे दोनों तो खुश होंगे, कहेंगे, मम्मी, बहुत अच्छा किया जो सुषमा आंटी ने आप के साथ रहने का मन बना लिया है. अब हमें बेफिक्री रहेगी. कम से कम आप दो तो हो. सच तो यह है कि हम दोनों ने जीवन में वसंत को साथसाथ जिया. हर खुशी व तकलीफ में साथ थे. घरपरिवार के हरेक फैसले साथ लेते थे. आज भी हम साथ हैं. बेशक, यह उम्र का पतझड़ है, पर इसे हम वसंत की तरह तो जी सकते हैं. मेरे बेटे कहते हैं, ‘मम्मी, जो इस उम्र में साथ देता है वही सच्चा मित्र है. वे चाहे बच्चे हों, पड़ोसी हों या कोई और हो.’’’

‘‘राधा, तू कितनी खुश है जो ऐसी सोच वाले बच्चे हैं. एक मेरे…’’

‘‘ओह, तू फिर अपनों को कोसने लगी. छोड़ वह सब, आज में जीना सीख.’’

‘‘पर यह तो सोच, मैं यहां सारा दिन अकेली…’ सुषमा बोली थी.

‘‘नहीं, मेरे पास उस का भी तोड़ है. वह ऊपर की लाइब्रेरी तू संभालेगी.’’

‘‘मैं, इस उम्र में लाइब्रेरियन…’’

‘‘क्यों, मैं भी तो एनजीओ के लिए काम करती हूं. एक बात कहूंगी, यों खाली बैठ कर तू भी रोटी नहीं खाएगी. जानती हूं, पहचानती हूं तुझे और तेरे सम्मान को.’’

‘‘ठीक है, सोचूंगी.’’

दूसरे दिन सुबहसुबह खटरपटर सुन कर राधा ने रजाई से झांका, ‘‘कहां चली मैडम, सुबहसुबह?’’

‘‘लो, खुद ही तो नौकरी दिलाई. अरे, भूल गई? चल लाइब्रेरी तक तो छोड़ कर आ जा. पहला दिन है.’’

दोनों हंस रही थीं.

आज राधा ने कितने दिनों बाद सुषमा को खिलखिलाते देखा था. वही पहली वाली हंसी थी. कहीं मन में किसी ने कहा, खुशी ही तो जीवन की सब से नियामत है. इसे कहते हैं, पतझड़ में वसंत.

यह भी खूब रही एक बार मैं अपनी चाचीजी के साथ उन के पीहर गई. चाचीजी के पैर में पोलियो है, वे वाकर के सहारे से चलती हैं. उम्र 70 साल है. वे बहुत ही दुबलीपतली हैं. उन के पीहर का फ्लैट 5वें तले पर है. कुरसी पर बैठा कर 2 व्यक्ति उन्हें ऊपर चढ़ा देते हैं.

उस दिन हम ज्यों ही टैक्सी से उतरे, सामने झाकावला (बड़ी टोकरी में सामान ले जाने वाला) दिखाई दिया. उन्होंने उस से कहा, ‘‘भैया, इधर आ, सामान ढोएगा.’’

उस के हां कहने पर वे उस में बैठ गईं. झाकावाला उन्हें ऊपर ले गया. वहां पर सभी आश्चर्यचकित देखने लगे. फिर तो सब को बहुत हंसी आई. मैं भी जब इस घटना को याद करती हूं, मुसकराए बिना नहीं रहती.      अमराव बैद मैं अपने 5 साल के बेटे के साथ कुछ सामान खरीदने गई. उसी दुकान पर मेरे बेटे की ही कक्षा का लड़का भी अपने पिता के साथ कुछ खरीद रहा था. दोनों बच्चे आपस में बातें करने लगे. मैं ने अपने बेटे से कहा कि पास की ही दुकान से चौकलेट लेती हूं, आप बात कर के जल्दी आ जाइए.

मैं पास की दुकान पर चली गई. दुकानदार से कुछ टौफियां व 4 बड़ी चौकलेट मांगीं. दुकान पर कुछ मनचले युवक भी खडे़ थे. एक युवक ने कटाक्ष किया, ‘‘क्या बात है? टौफी खुद टौफी खाती है.’’

दूसरे ने कहा, ‘‘तभी तो टौफी जैसी है.’’

मैं ने गुस्से से उन की ओर देखा. दुकानदार ने मुझे पैकेट थमाते हुए कहा,

‘‘70 रुपए.’’

लड़का फिर बोला, ‘‘मैडम, गुस्सा क्यों दिखाती हैं, आज टौफियां हमारी ओर से ही खाइए.’’

यह कहने के साथ ही उस ने बड़ी शान से सौ रुपए का नोट दुकानदार की ओर उछाल दिया.

इतने में ही मेरा लड़का दौड़ते हुए आया और पूछा, ‘‘मम्मी, चौकलेट ले ली आप ने?’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘बेटा, आज चौकलेट इन अंकल ने आप के लिए ली है.’’

बच्चे ने भी बड़े मजे से कहा, ‘‘थैंक्यू अंकल.’’

अब उन लोगों की शक्लें देखने लायक थीं. बचे पैसे दुकानदार मुसकराते हुए उन्हें लौटा रहा था और मैं मुसकराते हुए अपने बेटे के साथ दुकान से निकल रही थी.

बच्चे की चाह में : राजो क्या बचा पाई अपनी इज्जत

लेखक- प्रदीप कुमार शर्मा

भौंरा की शादी हुए 5 साल हो गए थे. उस की पत्नी राजो सेहतमंद और खूबसूरत देह की मालकिन थी, लेकिन अब तक उन्हें कोई औलाद नहीं हुई थी. भौंरा अपने बड़े भाई के साथ खेतीबारी करता था. दिनभर काम कर के शाम को जब घर लौटता, सूनासूना सा घर काटने को दौड़ता. भौंरा के बगल में ही उस का बड़ा भाई रहता था. उस की पत्नी रूपा के 3-3 बच्चे दिनभर घर में गदर मचाए रखते थे. अपना अकेलापन दूर करने के लिए राजो रूपा के बच्चों को बुला लेती और उन के साथ खुद भी बच्चा बन कर खेलने लगती. वह उन्हीं से अपना मन बहला लेती थी.

एक दिन राजो बच्चों को बुला कर उन के साथ खेल रही थी कि रूपा ने न जाने क्यों बच्चों को तुरंत वापस बुला लिया और उन्हें मारनेपीटने लगी. उस की आवाज जोरजोर से आ रही थी, ‘‘तुम बारबार वहां मत जाया करो. वहां भूतप्रेत रहते हैं. उन्होंने उस की कोख उजाड़ दी है. वह बांझ है. तुम अपने घर में ही खेला करो.’’

राजो यह बात सुन कर उदास हो गई. कौन सी मनौती नहीं मानी थी… तमाम मंदिरों और पीरफकीरों के यहां माथा रगड़ आई, बीकमपुर वाली काली माई मंदिर की पुजारिन ने उस से कई टिन सरसों के तेल के दीए में मंदिर में जलवा दिए, लेकिन कुछ नहीं हुआ. बीकमपुर वाला फकीर जबजब मंत्र फुंके हुए पानी में राख और पता नहीं कागज पर कुछ लिखा हुआ टुकड़ा घोल कर पीने को देता. बदले में उस से 100-100 के कई नोट ले लेता था. इतना सब करने के बाद भी उस की गोद सूनी ही रही… अब वह क्या करे?

राजो का जी चाहा कि वह खूब जोरजोर से रोए. उस में क्या कमी है जो उस की गोद खाली है? उस ने किसी का क्या बिगाड़ा है? रूपा जो कह रही थी, क्या सचमुच उस के घर में भूतप्रेत रहते हैं? लेकिन उस के साथ तो कभी ऐसी कोई अनहोनी घटना नहीं घटी, तो फिर कैसे वह यकीन करे? राजो फिर से सोच में डूब गई, ‘लेकिन रूपा तो कह रही थी कि भूतप्रेत ही मेरी गोद नहीं भरने दे रहे हैं. हो सकता है कि रूपा सच कह रही हो. इस घर में कोई ऊपरी साया है, जो मुझे फलनेफूलने नहीं दे रहा है. नहीं तो रूपा की शादी मेरे साथ हुई थी. अब तक उस के 3-3 बच्चे हो गए हैं और मेरा एक भी नहीं. कुछ तो वजह है.’

भौंरा जब खेत से लौटा तो राजो ने उसे अपने मन की बात बताई. सुन कर भौंरा ने उसे गोद में उठा लिया और मुसकराते हुए कहा, ‘‘राजो, ये सब वाहियात बातें हैं. भूतप्रेत कुछ नहीं होता. रूपा भाभी अनपढ़गंवार हैं. वे आंख मूंद कर ऐसी बातों पर यकीन कर लेती हैं. तुम चिंता मत करो. हम कल ही अस्पताल चल कर तुम्हारा और अपना भी चैकअप करा लेते हैं.’’

भौंरा भी बच्चा नहीं होने से परेशान था. दूसरे दिन अस्पताल जाने के लिए भाई के घर गाड़ी मांगने गया. भौंरा के बड़े भाई ने जब सुना कि भौंरा राजो को अस्पताल ले जा रहा है तो उस ने भौंरा को खूब डांटा. वह कहने लगा, ‘‘अब यही बचा है. तुम्हारी औरत के शरीर से डाक्टर हाथ लगाएगा. उसे शर्म नहीं आएगी पराए मर्द से शरीर छुआने में. तुम भी बेशर्म हो गए हो.’’ ‘‘अरे भैया, वहां लेडी डाक्टर भी होती हैं, जो केवल बच्चा जनने वाली औरतों को ही देखती हैं,’’ भौंरा ने समझाया.

‘‘चुप रहो. जैसा मैं कहता हूं वैसा करो. गांव के ओझा से झाड़फूंक कराओ. सब ठीक हो जाएगा.’’ भौंरा चुपचाप खड़ा रहा.

‘‘आज ही मैं ओझा से बात करता हूं. वह दोपहर तक आ जाएगा. गांव की ढेरों औरतों को उस ने झाड़ा है. वे ठीक हो गईं और उन के बच्चे भी हुए.’’ ‘‘भैया, ओझा भूतप्रेत के नाम पर लोगों को ठगता है. झाड़फूंक से बच्चा नहीं होता. जिस्मानी कमजोरी के चलते भी बच्चा नहीं होता है. इसे केवल डाक्टर ही ठीक कर सकता है,’’ भौंरा ने फिर समझाया.

बड़ा भाई नहीं माना. दोपहर के समय ओझा आया. भौंरा का बड़ा भाई भी साथ था. भौंरा उस समय खेत पर गया था. राजो अकेली थी. वह राजो को ऊपर से नीचे तक घूरघूर कर देखने लगा. राजो को ओझा मदारी की तरह लग रहा था. उस की आंखों में शैतानी चमक देख कर वह थोड़ी देर के लिए घबरा सी गई. साथ में बड़े भैया थे, इसलिए उस का डर कुछ कम हुआ.

ओझा ने ‘हुं..अ..अ’ की एक आवाज अपने मुंह से निकाली और बड़े भैया की ओर मुंह कर के बोला, ‘‘इस के ऊपर चुड़ैल का साया है. यह कभी बंसवारी में गई थी? पूछो इस से.‘‘ ‘‘हां बहू, तुम वहां गई थीं क्या?’’ बड़े भैया ने पूछा.

‘‘शाम के समय गई थी मैं,’’ राजो ने कहा.

‘‘वहीं इस ने एक लाल कपडे़ को लांघ दिया था. वह चुड़ैल का रूमाल था. वह चुड़ैल किसी जवान औरत को अपनी चेली बना कर चुड़ैल विद्या सिखाना चाहती है. इस ने लांघा है. अब वह इसे डायन विद्या सिखाना चाहती है. तभी से वह इस के पीछे पड़ी है. वह इस का बच्चा नहीं होने देगी.’’ राजो यह सुन कर थरथर कांपने लगी.

‘‘क्या करना होगा?’’ बड़े भैया ने हाथ जोड़ कर पूछा. ‘‘पैसा खर्च करना होगा. मंत्रजाप से चुड़ैल को भगाना होगा,’’ ओझा ने कहा.

मंत्रजाप के लिए ओझा ने दारू, मुरगा व हवन का सामान मंगवा लिया. दूसरे दिन से ही ओझा वहां आने लगा. जब वह राजो को झाड़ने के लिए आता, रूपा भी राजो के पास आ जाती.

एक दिन रूपा को कोई काम याद आ गया. वह आ न सकी. घर में राजो को अकेला देख ओझा ने पूछा, ‘‘रूपा नहीं आई?’’ राजो ने ‘न’ में गरदन हिला दी.

ओझा ने अपना काम शुरू कर दिया. राजो ओझा के सामने बैठी थी. ओझा मुंह में कुछ बुदबुदाता हुआ राजो के पूरे शरीर को ऊपर से नीचे तक हाथ से छू रहा था. ऐसा उस ने कई बार दोहराया, फिर वह उस के कोमल अंगों को बारबार दबाने की कोशिश करने लगा.

राजो को समझते देर नहीं लगी कि ओझा उस के बदन से खेल रहा है. उस ने आव देखा न ताव एक झटके से खड़ी हो गई. यह देख कर ओझा सकपका गया. वह कुछ बोलता, इस से पहले राजो ने दबी आवाज में उसे धमकाया, ‘‘तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, मैं समझ रही हूं. तुम्हारी भलाई अब इसी में है कि चुपचाप यहां से दफा हो जाओ, नहीं ंतो सचमुच मेरे ऊपर चुड़ैल सवार हो रही है.’’

ओझा ने चुपचाप अपना सामान उठाया और उलटे पैर भागा. उसी समय रूपा आ गई. उस ने सुन लिया कि राजो ने अभीअभी अपने ऊपर चुड़ैल सवार होने की बात कही है. वह नहीं चाहती थी कि राजो को बच्चा हो. रूपा के दिमाग में चल रहा था कि राजो और भौंरा के बच्चे नहीं होंगे तो सारी जमीनजायदाद के मालिक उस के बच्चे हो जाएंगे.

भौंरा के बड़े भाई के मन में खोट नहीं था. वह चाहता था कि भौंरा और राजो के बच्चे हों. राजो को चुड़ैल अपनी चेली बनाना चाहती है, यह बात गांव वालों से छिपा कर रखी थी लेकिन रूपा जानती थी. उस की जबान बहुत चलती थी. उस ने राज की यह बात गांव की औरतों के बीच खोल दी. धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैलने लगी कि राजो बच्चा होने के लिए रात के अंधेरे में चुड़ैल के पास जाती है. अब तो गांव की औरतें राजो से कतराने लगीं. उस के सामने आने से बचने लगीं. राजो उन से कुछ पूछती भी तो वे उस से

सीधे मुंह बात न कर के कन्नी काट कर निकल जातीं. पूरा गांव उसे शक की नजर से देखने लगा. राजो के बुलाने पर भी रूपा अपने बच्चों को उस के पास नहीं भेजती थी.

2-3 दिन से भौंरा का पड़ोसी रामदा का बेटा बीमार था. रामदा की पत्नी जानती थी कि राजो डायन विद्या सीख रही है. वह बेटे को गोद में उठा लाई और तेज आवाज में चिल्लाते हुए भौंरा के घर में घुसने लगी, ‘‘कहां है रे राजो डायन, तू डायन विद्या सीख रही है न… ले, मेरा बेटा बीमार हो गया है. इसे तू ने ही निशाना बनाया है. अगर अभी तू ने इसे ठीक नहीं किया तो मैं पूरे गांव में नंगा कर के नचाऊंगी.’’ शोर सुन कर लोगों की भीड़ जमा

हो गई. एक पड़ोसन फूलकली कह रही थी, ‘‘राजो ने ही बच्चे पर कुछ किया है, नहीं तो कल तक वह भलाचंगा खापी रहा था. यह सब इसी का कियाधरा है.’’

दूसरी पड़ोसन सुखिया कह रही थी, ‘‘राजो को सबक नहीं सिखाया गया तो वह गांव के सारे बच्चों को इसी तरह मार कर खा जाएगी.’’ राजो घर में अकेली थी. औरतों की बात सुन कर वह डर से रोने लगी. वह अपनेआप को कोसने लगी, ‘क्यों नहीं उन की बात मान कर अस्पताल चली गई. जेठजी के कहने में आ कर ओझा से इलाज कराना चाहा, मगर वह तो एक नंबर का घटिया इनसान था. अगर मैं उस की चाल में फंस गई होती तो भौंरा को मुंह दिखाने के लायक भी न रहती.’’

बाहर औरतें उसे घर से निकालने के लिए दरवाजा पीट रही थीं. तब तक भौंरा खेत से आ गया. अपने घर के बाहर जमा भीड़ देख कर वह डर गया, फिर हिम्मत कर के भौंरा ने पूछा, ‘‘क्या बात है भाभी, राजो को क्या हुआ है?’’ ‘‘तुम्हारी औरत डायन विद्या सीख रही है. ये देखो, किशुना को क्या हाल कर दिया है. 4 दिनों से कुछ खायापीया भी नहीं है इस ने,’’ रामधनी काकी

ने कहा. गुस्से से पागल भौंरा ने गांव वालों को ललकारा, ‘‘खबरदार, किसी ने राजो पर इलजाम लगाया तो… वह मेरी जीवनसंगिनी है. उसे बदनाम मत करो. मैं एकएक को सचमुच में मार डालूंगा. किसी में हिम्मत है तो राजो पर हाथ उठा करदेख ले,’’ इतना कह कर वह रूपा भाभी का हाथ पकड़ कर खींच लाया.

‘‘यह सब इसी का कियाधरा है. बोलो भाभी, तुम ने ही गांव की औरतों को यह सब बताया है… झूठ मत बोलना. सरोजन चाची ने मुझे सबकुछ बता दिया है.’’

सरोजन चाची भी वहां सामने ही खड़ी थीं. रूपा उन्हें देख कर अंदर तक कांप गई. उस ने अपनी गलती मान ली. भौंरा ओझा को भी पकड़ लाया, ‘‘मक्कार कहीं का, तुम्हारी सजा जेल में होगी.’’

दूर खड़े बड़े भैया की नजरें झुकी हुई थीं. वे अपनी भूल पर पछतावा कर रहे थे.

Jasmin Bhasin की आंखें हुई खराब, बैंडेज लगाए एक्ट्रेस की फोटो आई सामने

टीवी इंडस्ट्री की जानी मानी ऐक्ट्रेस जैस्मिन भसीन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है फिलहाल अभिनेत्री जैस्मिन भसीन मुश्किल दौर से गुजर रही हैं, क्योंकि उनके लेंस में समस्या के कारण उनकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई है. अभिनेत्री ने बताया, “मैं 17 जुलाई को एक कार्यक्रम के लिए दिल्ली में थी, जिसके लिए मैं तैयारी कर रही थी.

मुझे नहीं पता कि मेरे लेंस में क्या समस्या थी, लेकिन उन्हें पहनने के बाद मेरी आंखों में दर्द होने लगा और दर्द धीरेधीरे बढ़ता गया. मैं डौक्टर के पास जाना चाहती थी, लेकिन चूंकि यह वर्क कमिटमेंट थी, इसलिए मैंने कार्यक्रम में भाग लेने और फिर डौक्टर के पास जाने का फैसला किया.”

वह आगे कहती हैं, “मैंने कार्यक्रम में धूप का चश्मा पहना था और टीम ने मुझे चीजों को संभालने में मदद की, क्योंकि एक समय के बाद मैं कुछ भी नहीं देख पा रही थी. देर रात हम एक आइ स्पेशलिस्ट के पास गए, जिन्होंने मुझे बताया कि मेरी कार्नियल डैमज हो गई है और मेरी आंखों पर पट्टी बांध दी.

अपनी मौजूदा स्थिति के बारे में बात करते हुए, वह कहती हैं, “मुझे बहुत दर्द हो रहा है. डौक्टरों ने मुझे बताया है कि मैं अगले चारपांच दिनों में ठीक हो जाऊंगी, लेकिन तब तक मुझे अपनी आंखों का अच्छे से ख्याल रखना होगा. यह आसान नहीं है क्योंकि मैं देख नहीं सकती और दर्द के कारण मुझे सोने में भी दिक्कत हो रही है.”

जैस्मिन को उम्मीद है कि वह जल्द ही काम पर वापस लौट आएंगी. “सौभाग्य से, मुझे अपना कोई भी काम स्थगित नहीं करना पड़ा. मुझे उम्मीद है कि मैं कुछ दिनों में ठीक हो जाऊंगी और काम पर वापस लौट जाऊंगी,” वह कहती हैं.

समझदार सासूमां: नौकरानी की छुट्टी पर जब बेहाल हुईं श्रीमतीजी

किचनमें पत्नीजी के द्वारा जिस तरह से जोरजोर से बरतन पटके जा रहे थे, उस से मुझे अंदाजा हो गया कि घर में काम करने वाली ने एक सप्ताह की छुट्टी ले ली है, इसलिए नाराजगी बरतनों पर निकल रही है.

नौकरानी का घर पर नहीं आने का दोष भला बरतनों पर क्यों उतारा जाए? मैं सोचता रहा लेकिन उन से कुछ कहा नहीं. रात को बिस्तर में जाने से पहले वे फोन पर अपनी मां से नौकरानी की शिकायतें करती रहीं, ‘‘मम्मी, ये कमला ऐसे ही नागा करती है. इस का वेतन काटो तो बुरा मुंह बना लेती है. मैं तो यहां की नौकरानियों से तंग आ चुकी हूं.’’

उधर सासूजी न जाने क्या कह रही थीं, जिसे सुन कर पत्नीजी हांहूं किए जा रही थीं. फिर वे कह उठीं, ‘‘नहीं मम्मीजी, ऐसा मत कहो,’’ और फिर जोरों से हंस दीं.

आखिर मामला क्या है? सोच कर मेरा दिल जोरों से धड़क उठा.

पत्नीजी ने टैलीफोन रखा और गीत गुनगुनाती हुई आ कर लेट गईं.

‘‘बड़ी खुश हो, क्या नई नौकरानी खोज ली?’’ मैं ने उन से पूछा.

‘‘मेरी खुशी भी नहीं देखी जाती?’’ उन्होंने तमक कर कहा.

‘‘यही समझ लो, फिर भी बताओ तो कि मामला क्या है? क्या सासूजी आ रही हैं?’’

‘‘आप को कैसे पता?’’ पत्नी ने खुशीखुशी कहा.

मुझे तो जैसे बिजली का करंट लग गया. मैं ने सोचा सासूजी आएंगी तो कई महीने रह कर घर का बजट किसी भूकंप की तरह तहसनहस कर के ही जाएंगी.

मैं भी कल से 7-8 दिनों की छुट्टी ले कर कहीं चला जाता हूं, मैं ने मन ही मन विचार किया.

‘‘तुम्हें इतना खुश देख कर समझ गया था कि तुम्हारी मम्मीजी आ रही हैं,’’ मैं ने उन से कहा.

‘‘तुम कितने समझदार हो,’’ पत्नीजी ने मुझ से कहा तो सच जानिए मैं शरमा गया.

‘‘इसीलिए तो तुम ने मुझ से विवाह किया,’’ मैं ने कहा और उन के चेहरे को पढ़ने लगा. वे भी शर्म से लाल हो रही थीं.

मैं ने फिर प्रश्न किया, ‘‘वह घर की नौकरानी कब तक आ रही है?’’

पत्नीजी ने कहा, ‘‘एक बात सुन लीजिए. जब तक किसी के जीवन में चुनौतियां न हों, जीने का मजा ही नहीं आता. और प्रत्येक व्यक्ति के पीछे एक सैकंड लाइन होनी आवश्यक है.’’

मैं ने सुना तो मैं घबरा गया. पत्नीजी आखिर ये कैसी बातें कर रही हैं? मैं ने तो कभी पत्नीजी के पीछे किसी सैकंड लाइन के विषय में सोचा तक नहीं और आज ये क्या कह रही हैं? क्या मैं छुट्टी पर जा रहा हूं तो कोई दूसरा पुरुष मेरे स्थान पर यहां होगा? सोच कर ही मेरी रूह कांप गई. मेरे चेहरे पर आ रहे भावों को देख कर वे ताड़ गईं कि मेरे मन में क्या भाव चल रहा है.

हंसते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं आप के विषय में नहीं कह रही हूं…’’

‘‘फिर?’’

‘‘मैं घर की नौकरानी कमला के बारे में कह रही हूं. उस की नागा, उस के अत्याचार इतने बढ़ चुके हैं कि आप विश्वास नहीं करेंगे कि मुझे उस से डर लगने लगा है. कभी भी नागा कर जाती है, वेतन काटो तो नौकरानियों के यूनियन में जाने की धमकी देती है. काम ठीक से करती नहीं. लेकिन मैं काम से निकाल नहीं सकती, क्योंकि घर में काम बहुत अधिक है…’’

‘‘फिर क्या सोचा…?’’

‘‘प्रत्येक परेशानी का कोई न कोई उपाय तो निकलता ही है.’’

‘‘क्या उपाय है वह?’’

‘‘वह उपाय ले कर ही तो मम्मीजी आ रही हैं,’’ पत्नीजी ने रहस्य को उजागर करते हुए कहा.

‘‘क्या उपाय है कुछ तो बताओ.’’

‘‘यह तो उन्होंने बताया नहीं, लेकिन वे कह रही थीं कि पूरी कालोनी की कामवाली बाइयों को सुधार कर रख दूंगी.’’

चूंकि सासूजी से मेरी कभी पटी नहीं थी, इसलिए मैं ने फिर सोचा कि उन के आने पर 7-8 दिनों की छुट्टी ले कर मैं शहर से बाहर घूम आता हूं. फिर मैं जिस सुबह बाहर गया, उसी रात को सासूजी ने मेरे घर में प्रवेश किया. पूरे 8 दिनों बाद मैं जब घर लौट कर आया तो देखा कि बालकनी में हमारी पत्नी गरमगरम पकौड़े खा रही हैं. सासूजी झूले में लेटी हैं और कमला यानी घर की नौकरानी रसोई में पकौड़े तलतल कर खिला रही है.

हमें आया देख कर पत्नीजी दौड़ कर हम से लिपट गईं और कहने लगीं, ‘‘यहां सब ठीक हो गया.’’

‘‘यानी कमला बाई वाला मामला…?’’

‘‘हां, कमला बाई एकदम ठीक हो गई.’’

‘‘कैसे…?’’

‘‘वह मैं बाद में बताऊंगी.’’

इतनी देर में कमला बाई प्रकट हो गई. हमारा सामान उठाया, कमरे में रखा और घर के बरतन साफ कर के, किचन में पोंछा लगा कर जातेजाते हमारे कमरे में आई और पत्नीजी से कहने लगी, ‘‘जाती हूं मेम साब नमस्ते.’’ यह कह कर वह सासूजी की ओर पलटी और बोली, ‘‘मैं जाती हूं अध्यक्षजी,’’ फिर वह विनम्रता के साथ चली गई.

घमंड में चूर रहने वाली कमला, जो एक भी अतिरिक्त काम नहीं करती थी और हमेशा अतिरिक्त काम का अतिरिक्त रुपया मांगती थी, आखिर ऐसा क्या हो गया कि इतनी बदल गई? मैं सोच रहा था, लेकिन कुछ समझ नहीं पा रहा था.

रात को भोजन के बाद जब पत्नीजी, मैं और सासूजी बैठ कर गप्पें मारने बैठे तो पत्नीजी ने बताया, ‘‘मैं कमला से बहुत परेशान हो गई थी. इस का असर पूरी गृहस्थी पर पड़ रहा था. मम्मीजी से मैं ने यह बात शेयर की, तो मम्मीजी ने कहा कि मैं आ कर एक दिन में सब परेशानियों को निबटा दूंगी.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘वही तो बता रही हूं पर आप को एक पल का भी चैन नहीं है. हुआ यह कि मम्मीजी ने मुझे आने पर बताया कि उन का परिचय कमला बाई से यह कह कर करवाया जाए कि जहां ये रहती हैं वहां की नौकरानियों की यूनियन अध्यक्ष हैं. मैं ने वही किया भी. मम्मीजी ने यहां के काम को देखा और कमला बाई के सामने मुझ से कहा कि पूरी कालोनी में कितनी नौकरानियों की जरूरत है? मैं कामवाली बाइयों को काम भी दिलवाती हूं और इस समय 150 से अधिक काम करने वाली महिलाओं का पंजीयन मेरे पास है. वे सब यहां दिल्ली में काम करने के लिए आने को भी तैयार हैं. यहां काम कम, वेतन अधिक है और शहर की सारी सुविधाएं हैं.

‘‘लेकिन मम्मीजी इतनी कामवाली बाइयां रहेंगी कहां?’’ मैं ने पूछा तो वे बोलीं कि तू उस की चिंता मत कर. वैलफेयर डिपार्टमैंट ऐसी महिलाओं के निवास की व्यवस्था कम से कम दामों में कर देता है.

‘‘मम्मीजी पूरी कालोनी में 10 काम करने वाली महिलाओं की जरूरत है, मैं ने मम्मीजी से कहा तो उन्होंने तुरंत मोबाइल निकाल कर कमला बाई के सामने नंबर मिलाया ही था कि कमला ने दौड़ कर मम्मीजी के पांव पकड़ लिए और रोते हुए कहने लगी कि मैडमजी पीठ पर लात मार लो, लेकिन किसी के पेट पर लात मत मारो.

‘‘क्यों क्या हुआ? मम्मीजी बोलीं तो वह बोली कि मैडमजी सारी कामवाली बाइयां बेरोजगार हो जाएंगी.

‘‘लेकिन तुम भी तो परेशान करने में कसर नहीं करती हो, यह कहने पर उस का कहना था कि ऐसा नहीं है मैडमजी, हम जानबूझ कर छुट्टी ले कर केवल अपनी उपयोगिता बताना चाहते हैं कि हम भी इंसान हैं और हमारे नहीं आने से आप के कितने काम डिस्टर्ब हो जाते हैं. इसलिए आप हमें इंसान समझ कर इंसानों को जो बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए उन्हें हमें भी दिया करें.’’

‘‘कह तो यह सच रही है, मेरी ओर मम्मीजी ने देख कर कहा.

‘‘मैं पूरी बुनियादी सुविधाएं देने को तैयार हूं,’’ मैं ने झट से कहा.

‘‘आप को कभी मुझ से शिकायत नहीं मिलेगी. मुझ से ही नहीं कालोनी की काम करने वाली किसी भी महिला से,’’ उस ने मुझे आश्वासन दिया तो मम्मीजी ने मोबाइल बंद कर दिया और उसी दिन से कमला के व्यवहार में 100% परिवर्तन आ गया,’’ पत्नीजी ने पूरी बात का खुलासा करते हुए कहा.

‘‘वाह, क्या समझदारी का सुझाव सासूजी ने दिया. सांप भी मर गया, लाठी भी नहीं टूटी,’’ मैं ने प्रसन्नता से कहा.

‘‘लेकिन आप नौकरानी यूनियन की अध्यक्ष कब बनीं?’’ मैं ने सासूजी से हैरत से पूछा.

‘‘लो कर लो बात. तुम भी कितने भोले हो. अरे वह तो उस को ठीक करने का नाटक था,’’ सासूजी बोलीं.

फिर हम सभी जोर से हंस पड़े. हमें अपनी समझदार सासूमां की तरकीब पर गर्व हो आया.

नींव: क्या थी रितू की जेठानी की असलियत

विवेकवेक ने लंच ब्रेक के दौरान मोबाइल पर मुझे जो जानकारी दी उस ने मुझे चिंता से भर दिया.

‘‘विनोद भैया ने किराए का मकान ढूंढ़ लिया है. मुझे उन के दोस्त ने बताया है कि

2 हफ्ते बाद वे शिफ्ट कर जाएंगे,’’ विवेक की आवाज में परेशानी के भाव साफ झलक रहे थे.

‘‘हमें उन्हें जाने से रोकना होगा,’’ मैं एकदम बेचैन हो उठी.

‘‘बिलकुल रोकना होगा, रितु. अब रिश्तेदार और महल्ले वाले हम पर कितना हंसेंगे. तुम आज शाम ही भाभी को समझना. मैं भी बड़े भैया को अभी फोन करता हूं.’’

‘‘नहीं,’’ मैं ने उन्हें फौरन टोका, ‘‘अभी आप किसी से इस विषय पर कोई बात न करना प्लीज. यह मामला समझनेबुझने से नहीं सुधरेगा.’’

‘‘फिर कैसे बात बनेगी?’’

‘‘पहले शाम को हम आपस में विचारविमर्श करेंगे फिर कोई कदम उठाएंगे.’’

‘‘ओ. के.’’

इधरउधर की कुछ और बातें करने के बाद मैं ने फोन काट दिया. खाना खाने का मन नहीं कर रहा था. मैं ने आंखें मूंद लीं और वर्तमान समस्या के बारे में सोचविचार करने लगी…

संयुक्त परिवार की बहू बन कर सुसराल आए मुझे अभी सालभर भी नहीं हुआ है. अब मेरे जेठजेठानी अलग होने की सोच रहे हैं. इस कारण मैं परेशान तो हूं, पर मेरी परेशानी का कारण जगहंसाई का डर नहीं है.

संयुक्त परिवार से जुड़े रहने के फायदों को, उस की सुरक्षा को मैं व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर जानती हूं.

मेरे पापा का दिल के दौरे से जब अचानक देहांत हुआ, तब मैं बी.कौम. के अंतिम वर्ष में पढ़ रही थी. साथ रह रहे मेरे दोनों चाचाओं का पूरा सहयोग हमारे परिवार को न मिला होता, तो मेरी कालेज की पढ़ाई बड़ी कठिनाई से पूरी होती. फिर बाद में जो मैं ने एमबीए भी किया, उस डिगरी को प्राप्त करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था.

एमबीए करने के बाद मुझे अच्छी नौकरी मिली, तो मैं अपने संयुक्त परिवार का मजबूत स्तंभ बन गई. अपने छोटे भाई को इंजीनियर व बड़े चाचा के बेटे को डाक्टर बनाने में मेरी पगार का पूरा योगदान रहा. अपनी शादी का लगभग पूरा खर्चा मैं ने ही उठाया. मेरे मायके में संयुक्त परिवार की नींव आज भी मजबूत है.

अपनी ससुराल में भी मैं संयुक्त परिवार की जड़ों को उखड़ने नहीं देना चाहती हूं. काफी सोचविचार के बाद मैं अपने बौस अमन साहब से मिलने उठ खड़ी हुई. वे मुझे बहुत मानते हैं और इस समस्या के समाधान के लिए मैं उन की सहायता व सहयोग पाने की इच्छुक थी.

शाम को घर में घुसते समय मेरे पास सब को सुनाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण खबर

थी. उसे मैं शानदार अभिनय करते हुए सुनाना चाहती थी, पर वैसा कुछ हो नहीं सका क्योंकि मेरी सासूमां संध्या भाभी पर बु%B

Bad Newz स्टार विक्की कौशल की फेवरेट हैं कियारा अडवाणी

कियारा आडवाणी इंडियन सिनेमा की सबसे वर्सेटाइल और फेवरेट एक्ट्रेसेस में से एक हैं. अपने प्रभावशाली करियर में, एक्ट्रेस ने कई एक्टर्स के साथ काम किया है, और उनमें से एक विक्की कौशल हैं. कियारा ने पहली बार विक्की के साथ ‘लस्ट स्टोरीज़’ में काम किया था. यह फिल्म उन दोनों के लिए टर्निंग पाइंट थी और फिर वे गोविंदा नाम मेरा में फिर से नजर आए.

हाल ही में, अपनी आगामी फिल्म ‘बैड न्यूज़’ के प्रचार के दौरान, विक्की कौशल ने कियारा आडवाणी के बारे में बहुत बात की और कहा, “कियारा इंडस्ट्री में मेरी पसंदीदा लोगों में से एक हैं. मैं उन्हें एक इंसान के तौर पर और एक अभिनेता के तौर पर भी प्यार करता हूं. हम अक्सर बात नहीं करते और मिलते नहीं हैं, लेकिन मुझे उनके साथ लस्ट स्टोरीज में काम करने में मजा आया और मैंने उनके साथ गोविंदा नाम मेरा में काम किया.”

इसके बाद विक्की ने कहा, “जब मैं उनके साथ काम करता हूं तो मुझे अलग तरह का एहसास होता है, जहां मुझे लगता है कि हम दोनों के बीच बहुत सहजता है, हम दोनों के बीच सहजता है और हमें ऐसा लगता है कि हम एकदूसरे का साथ दे रहे हैं. मैं उनके बारे में बहुत कुछ कहना चाहता हूं, लेकिन मैं भावुक हो रहा हूं, लेकिन मेरे दिमाग में, मुझे मिलने वाली हर फिल्म के बारे में, मेरे दिमाग में यह बात है कि यार ये कियारा के साथ होती तो मजा आ जाता. वह वाकई एक बेहतरीन इंसान हैं.”

वर्कफ्रंट की बात करें तो कियारा आडवाणी गेम चेंजर, वार 2 और डौन 3 में नजर आएंगी और विक्की कौशल बैड न्यूज और चावा में नजर आएंगे.

Fitness Tips : वेट लूज करना चाहती हैं, तो बस 15 मिनट डांस करें

Fitness Tips :  तेज म्यूजिक पर आप अपने पैरों को थिरकने से नहीं रोक पाते. रिपोर्ट्स की मानें तो दिन में कुछ देर बस ऐसे ही थिरकने से शरीर को कई फायदे होते हैं.  थोड़ी देर डांस करके हेल्दी तरीके से वेट लूज किया जा सकता है. डांस एक ऐसा वर्कआउट है, जो आपकी पूरी बॉडी को फिट रखेगा.  इसके साथ ही आपने कभी डांस नहीं किया है, तो आप एक स्किल भी सीख लेंगी. आइए जानते हैं वेट लूज करने के साथ ही डांस के दूसरे बेनिफिट्स क्या क्या है ?

 डांस करने से कैलोरी तेजी से बर्न होती है

डांस एक प्रकार की कार्डियो ऐक्सरसाइज है, जिसे करने से शरीर में कैलोरी तेजी से बर्न होती है. करीब 1 घंटा डांस करने से लगभग 500 से 800 कैलोरी बर्न होती है जो वजन घटाने में काफी फायदेमंद हो सकती है. इस से मैटाबोलिज्म की प्रक्रिया भी तेज होती है, जिस से शरीर में जमा वसा की मात्रा आसानी से पिघलती है. वजन घटाने के लिए आप रोजाना कम से कम 15 से 20 मिनट तक डांस कर सकते हैं. अमेरिका के स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग के अनुसार, अगर आप का वेट  150 पाउंड्स है तो सिर्फ  30 मिनट नाचने से आप अच्छीखासी कैलोरीज बर्न कर सकते हैं. अच्छी बात यह कि ज्यादा वजन वाले लोग भी कैलोरी बर्न करने के इस अंदाज को आजमा सकते हैं.

इन डांस को आजमाएं –
ज़ुंबा सही मायने में कार्डियो मूव्स और लैटिन म्यूजिक का कौम्बिनेशन है. अनुमान के अनुसार यह 30 मिनट में 300 से 400 कैलोरी तक बर्न कर सकता है.

हिप-हॉप डांस: यह एनर्जेटिक स्टाइल वाला डांस है, इसे करने से पूरे शरीर की मुवमेंट होती है.  इससे तेजी से वजन घटता है. आप अपनी बौडी के हिसाब से ही करें.
भांगड़ा :  इस इंडियन डांस को करने के लिए भी काफी एनर्जी लगानी पड़ती है.   इस पंजाबी डांस फौर्म की खासियत है कि यह 30 मिनट में 350–400 कैलोरी तक बर्न कर सकता है. यह काफी एंटरटेनिंग डांस फौर्म है.
बॉलीवुड डांस: यह न केवल और एंजौय कराता है बल्कि साथ ही साथ पसीना बहाने में भी मदद करता है. वेस्टर्न मूव्स वाले डांस करके देखें, आपके शरीर को फायदा नजर आएगा. 200–300 कैलोरी बर्न हो सकती है. कुछ लोग इसी डांस फौर्म को  एरोबिक डांस भी कहते हैं, यह पेट की चर्बी को भी कम करता है.
सालसा,  जैज़  और बैले: डांस के ये रूप युथ्स में पौपुलर हैं. यह वजन घटाने के साथ मसल्स को टोन करने को काम करता है.

नींद अच्छी आएगी

दिनभर में की गई आधे घंटे की डांस थेरैपी से आप रात में चैन की नींद सो पाएंगे. दरअसल, डांस करने से आप के शरीर के सभी अंग हिलतेडुलते हैं, जिस से शरीर में थकान का भी अनुभव रहता है. ऐसे में रात को अच्छी नींद आती है.

वर्क ऐफिशिएंसी भी बढ़ती है. डांस से हमारा दिमाग पूरी तरह फ्रैश हो जाता है और हम बाकी सभी चिंताओं से खुद को मुक्त कर के केवल डांस पर ही फोकस करते हैं. इस से हमारे अंदर एकाग्रता बढ़ने लगती है और हम आसानी से किसी भी काम को पूरे मन से कर पाते हैं. दिनभर में कुछ मिनटों तक डांस करना सेहत के लिए तो फायदेमंद होता ही है, साथ ही आप को मानसिक तौर पर भी मजबूत बनाता है. इस से आप की वर्क ऐफिशिएंसी भी बढ़ती है.

भूख न लगने की समस्या भी दूर होगी

अगर आप को भूख नहीं लगती और  वजन धीरेधीरे कम हो रहा है तो दिन में 1 घंटा डांस करना शुरू कर दें. इस से थकान होगी  और भूख और प्यास दोनों लगने लगेंगी. जब डाइट सही होगी तो वजन भी अपनेआप सही हो जाएगा.

श्वसन तंत्र में सुधार

नाचने से श्वसन तंत्र में सुधार होता है क्योंकि इस में म्यूजिक के साथ कूदना भी शामिल होता है और ये हाई इंटैंसिटी स्टैप्स होते हैं.  नाचने से ब्रीथिंग रेट बढ़ता है जिस से फेफड़े स्वस्थ रहते हैं.

मसल्स स्ट्रौंग होती हैं

जुंबा, साल्सा, पोल डांस, बैलेट आदि  डांस करने से आप की हड्डियां मजबूत रहती  हैं. यों तो ये केवल कुछ नाम हैं पर आप  डांस कोई भी करें आप का पूरा शरीर  उस समय काम कर रहा होता है. नृत्य करने से मसल्स स्ट्रौंग होती हैं, बौडी स्ट्रैच होती है.

वेट लूज करने की अच्छी ऐक्सरसाइज है

आजकल सोशल मीडिया पर हरकोई अपनीअपनी तरह से वजन कम करने के लिए बहुत सा ज्ञान दे रहा है लेकिन कई स्टडीज में साबित हो गया है कि डांस करने से शरीर की कैलोरी बर्न होती है. शोधकर्ताओं की मानें तो नियमित तौर पर डांस करने से बौडी मास इंडैक्स, बौडी मास, कमर की चरबी कम होने के साथ ही फैट पर्सैंटेज भी काफी हद तक कम होता है. डांस नहीं करने वाले लोगों की तुलना में रोजाना डांस करने वाले लोगों में फैट की मात्रा आसानी से कम होती है. शोध के अनुसार तो यह ऐक्टिविटी आप की फिजिकल और मैंटल हेल्थ को दुरुस्त रखने के साथ ही मोटापे से बचाने में भी लाभकारी होती है. अगर आप वजन या फिर फैट लौस करना चाहते हैं तो नियमित तौर पर इस शारीरिक गतिविधि में शामिल हो सकते हैं.                  Fitness Tips

वीकेंड पर सुनें दिल को छूने वाले ये New Trending Song

New Trending Song : संगीत दिल को कितना सुकून देता है. दुनिया में  कोई भी ऐसा व्यक्ती नहीं होगा, जिसे गाने सुनना पसंद न हो… खुशी के पल हो या गम के, गाने सुनकर हम अपना हालएदिल बयां करते हैं. हर मिजाज के हिसाब से गाने बनाए गए हैं. म्यूजिक ही एक ऐसी चीज है, जो सिर्फ मन को शांति देती है.

 

बारिश का मौसम चल रहा है, बारिश पर न जाने कितने गाने लिखे गए होंगे, लेकिन मुझे किशोर कुमार दा और लता जी का गाना ”रिमझिम गिरे सावन” बहुत पसंद है. ऐसे और भी कई गाने हैं, जिन्हें सौ बार से भी ज्यादा सुन लो, तो भी मन नहीं भरता. अब आप अपनी फेवरेट प्लेलिस्ट भी अपने फोन में क्रिएट कर सकते हैं. बढ़ते टेक्नोलौजी के कारण कोई भी गाने सुनना बहुत ही आसान हो गया है.

Woman using headphones for music at home in bed

ड्राइविंग, एक्सरसाइज, वाक करते समय गाने सुनने की बात ही अलग होती है. गाने सुनकर मन में एक अलग ही सुकून मिलता है. किसी भी काम में मन न लगे, तो अपना फेवरेट गाने सुन लें, आप उसी टाइम बूस्ट हो जाएंगे और पहले से बेहतर महसूस करेंगे. मेरे साथ ऐसा अक्सर होता है, जब किसी काम में मेरा मन नहीं लगता, मैं अपना फेवरेट प्लेलिस्ट सुन लेती हूं. यूं कहे तो गाने सुनकर इंसान एनर्जेटिक महसूस करता है.

गाने तो कई तरह के होते हैं, लाउड म्यूजिक, रोमांटिक म्यूजिक, स्लो म्यूजिक और लिरिक्स भी म्यूजिक के हिसाब से ही होते हैं. हालांकि पुराने गाने की लिरिक्स बहुत ही गहरे होते थे. उसमें म्यूजिक कम होता था, लेकिन आजकल के गानों में लिरिक्स से ज्यादा म्यूजिक होते हैं. कुछ लोगों को ये गाने पसंद होते हैं, तो वहीं कुछ लोग पुराने गाने ही सुनना पसंद करते हैं. पहले की तुलना में अब गाने के बोल भी बदल गए हैं.

Beautiful woman listening to music with headphones on the orange sofa apartments

पुराने गानों के रीमिक्स का ट्रेंड काफी पहले से चल रहा है. हालांकि इसके लिए सिंगर्स ट्रोल भी होते हैं. नई फिल्म Bad Newz के ‘मेरे महबूब मेरे सनम’ के रीमेक पर लोग भड़क गए थे. खैर बौलीवुड इंडस्ट्री में फिल्म के साथसाथ गाने के भी बोल बिगाड़े जाते हैं. आज हम आपके लिए इस आर्टिकल में बौलीवुड के कुछ नए ट्रेंडिग गाने लेकर आए हैं, जिन्हें आप इस वीकेंड जरूर सुनें.

1.तौबा तौबा ( Bad Newz)

Bad Newz का ‘हुसन तेरा तौबा तौबा’ सौन्ग आजकल ट्रेंड में हैं. विक्की कौशल ने इस गाने पर शानदार डांस किया है. इन दिनों ये गाना हर किसी के जुबां पर है. इस गाने को बास्को मार्टिस ने कोरियोग्राफ किया है जबकि इसके सिंगर करण औजला हैं.

2. मार उड़ी (Sarfira)

अक्षय कुमार की फिल्म सिरफिरा ‘मार उड़ी’ गाने में एक्टर का अलग ही अंदाज देखने को मिला है. इस गाने में आम आदमी बने अक्षय जिद्दी अंदाज में दिख रहे हैं. यह गाना उन सभी के लिए है, जो सपने देखने और असंभव को संभव करने की हिम्मत रखते हैं. इसे यदु कृष्णन, सुगंध शेखर, हेस्टन रोड्रिग्स और अभिजीत राव ने मिलकर गाया है. मनोज मुंतशिर का  लिखा गया गाना ‘मार उड़ी’ साहस का प्रतीक है.

3. ‘भैरव एंथम’ (Kalki 2898 AD)

‘भैरव एंथम’ इस गाने को मशहूर पंजाबी और बौलीवुड सिंगर दिलजीत दोसांझ ने गाया है, इस गाने को सुनकर आप थिरकने पर मजबूर हो जाएंगे. दिलजीत ने इसे हिंदी के अलावा तमिल भाषा में भी गाया है. इस गाने को विजयनारायण और संतोष नारायणन ने भी आवाज दी है. राइटर कुमार ने ‘भैरव एंथम’ के लिरिक्स को लिखा है.

4. निकट (kill)

फिल्म किल के इस गाने को काफी पसंद किया जा रहा है. ‘निकट’ इस गाने को हारून गेविन ने कंपोज किया है और सिद्धांत कौशल ने इसे लिखा है. यह गाना प्यार करने वालों के लिए बहुत ही खास है. रेखा भारद्वाज का गाया यह गाना लोगों का दिल जीत रहा है.

5. चल करे तयारी (धर्मवीर 2)

मराठी फिल्म धर्मवीर 2 के गाने ‘चल करे तयारी’ संगीत प्रेमियों के बीच धूम मचा रही है. इस गाने की धून भी काफी शानदार है. इस गाने को आप यूट्यूब पर देख सकते हैं. यह गाना साहस को दर्शाता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें