Hrithik Roshan की कजिन पश्मीना रोशन फैशन आईकन बनकर दिखा रही हैं जलवा, देखें खूबसूरत Photos

हाल ही में बड़े पर्दे पर डेब्यू करने वाली पश्मीना रोशन जल्दी ही चर्चा का विषय बन गई हैं. वह न केवल अपनी पहली फिल्म इश्क विश्क रिबाउंड में अपने अभिनय से बल्कि अपने बेहतरीन फैशन औप्शनों से भी चर्चा में हैं. पश्मीना का स्टाइल इजी, अक्ट्रेटिव, क्लासी और ट्रेंडी है. बौडीसूट, ड्रेस से लेकर पैराशूट पैंट तक, पश्मीना रोशन निश्चित रूप से शहर की नई फैशनिस्टा हैं! यहां कुछ ऐसे पल हैं जब एक्ट्रेस ने फैशन की दुनिया में अपने बेहतरीन प्रदर्शन से सभी को अचंभित कर दिया.

सीक्विन्ड ब्लू आफ

शोल्डर ड्रेस: इश्क विश्क रिबाउंड के प्रीमियर के दौरान, पश्मीना आफ शोल्डर ब्लू स्पार्कली और सीक्विन्ड ड्रेस में हमेशा की तरह बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

खूबसूरत फिट के साथ ट्रांसपरेंट हील्स और खूबसूरत सिल्वर ज्वेलरी में अभिनेत्री ने ग्लैमर बिखेरा. ओस भरे मेकअप और खुले बालों के साथ, पश्मीना बिल्कुल सपनों जैसी लग रही थीं!

कूल, कैजुअल और आरामदायक:-

हर कोई आराम और फैशन को मिलाने की कला नहीं जानता, हालांकि, पश्मीना ने निश्चित रूप से इसमें महारत हासिल की है. अभिनेत्री ने ब्रालेट टौप, बेज जागर्स और एक कोजी आरामदायक ब्राउन स्वेटर के साथ एक परफेक्ट स्टेएटहोम लुक बनाया. ढीले कर्ल और नेचुरल मेकअप के साथ.

कौर्सेट प्ले:

पश्मीना एक सिंपल रेड कौर्सेट ड्रेस में बिल्कुल मंत्रमुग्ध कर देने वाली लग रही थीं. उनकी ड्रेस के बोल्ड कलर और फिगर की बात ही खास उस पर स्ट्रेट हेयर तारीफ के काबिल है. फिंगर में सुंदर क्रिस्टल स्टड और रेड हाई हील के शूज के साथ एक्सेसराइज किया.

टेनिस कोर

टेनिस कोर फैशन ट्रेंड को अपनाते हुए, पश्मीना को एक सफेद कमरकोट और एक प्लीटेड मिनी स्कर्ट पहने देखा गया. एक्ट्रेस ने अपने हेयर पर एक समान कलर का धनुष बांधा, जिससे लुक को बो गेट का स्पर्श मिला. कम से कम मेकअप और मोती की बालियों के साथ, लुक ने ट्रेंडीनेस, स्पोर्टी टच का एक सुंदर मिश्रण दिखाया.

बौडीसूट और डेनिम:

कैजुअली टेम्परेचर बढ़ाना और शानदार दिखना पश्मीना का शौक है! ग्रे बॉडीसूट और लो-वेस्ट डेनिम पैंट के साथ उन्होंने जेन जेड के लिए कुछ खास लक्ष्य पूरे किए. इस फिट को 10 गुना हॉट बनाने वाली चीज थी दस्ताने की जोड़ी जिसने पूरे लुक को पूरा किया.

हाई ग्लैम फिट से लेकर डेली पहनने तक, रोशन ने निश्चित रूप से अपनी फैशन में बहुमुखी प्रतिभा साबित की है. चाहे वह फैंसी रेड कार्पेट की शोभा बढ़ा रही हो या एक साधारण ठाठ वाला लुक अपना रही हो, पश्मीना का स्टाइल ट्रेंडीनेस और परिष्कार का शानदार मिश्रण है. यह कहना गलत नहीं होगा कि पश्मीना न सिर्फ एक उभरती हुई स्टार हैं, बल्कि एक फैशन आइकन भी हैं.

बारिश में इन तरीकों से करें बालकनी गार्डन की देखभाल

प्रकृति प्रेमी अविका ने अपने थ्री बी एच के फ्लैट की बालकनी को बहुत महंगे महंगे पौधों से सजा रखा था जो भी उसके घर आता था उसकी बालकनी की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाता था. बारिश का मौसम जैसे ही प्रारम्भ हुआ तो भी उसके सारे पौधे जस के तस रखे रहे. परन्तु कुछ दिनों के बाद उसने देखा कि एडेनियंम, एगलोनिमा, क्रोटोन और पाम जैसे अधिकांश पौधों की जड़ें गल गयी और वे पौधे धीरे धीरे सूख गए. दरअसल आजकल अधिकांश घरों बालकनी या टेरेस गार्डन होते हैं जहां पर पौधों को गमले में लगाया जाता है, इनकी जड़ें चूंकि एक छोटे से गमले में होतीं हैं इसलिए इन्हें अतिरिक्त पोषण और देखभाल की आवश्यकता होती है. बारिश के मौसम में ये भली भांति बढ़ते रहें इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक होता है.

1.अक्सर गार्डन की जमीन को साफ रखने के लिए गमलों के नीचे प्लेट्स लगा दीं जातीं हैं परन्तु यही प्लेट्स बारिश में पानी से भर जाती हैं ये भरा हुआ पानी एक तरफ जहां गमले में लगे पौधों की जड़ों को नुकसान तो पहुंचाता ही है, दूसरी तरफ लंबे समय तक भरे पानी में डेंगू जैसे बीमारी के जीवाणु पनपने की संभावना भी होती है इसलिए बारिश के प्रारम्भ होते ही गमलों के नीचे से प्लेट्स हटा देना ही उचित रहता है.

2. चूंकि बारिश में अक्सर पानी बरसता है इसलिए गमले के नीचे के ड्रेनेज होल को चेक कर लें ताकि गमले से बारिश का पूरा पानी ड्रेनेज होल से निकल जाए यदि गमले में पानी भरा रहेगा तो गमले में लगा पौधा ही सड़ जाएगा. यदि पानी गमले की ऊपरी सतह पर हो तो गमले को थोड़ा सा टेढ़ा करके पानी निकाल दें.

3. बारिश के दिनों में जहां गर्मी से झुलसते पौधों को जिंदगी मिल जाती है वहीं इस मौसम में विविध प्रकार के कीट भी पौधों पर हमला कर देते हैं इनसे बचाव के लिए 1 टेबलस्पून तरल सोप को 1 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर सप्ताह में 1 बार स्प्रे करें.

4. एडेनियंम, कैक्टस, जेड प्लांट, पाम जैसे लो मेंटेनेंस वाले पौधे जिन्हें बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है उन्हें 2-3 बार की बारिश के बाद ऐसे स्थान पर रखें जहां वे बारिश के पानी से बचे रहें.

5. इन दिनों में पानी बरसने के कारण गमलों की मिट्टी गीली हो जाती है जिससे इनकी मिट्टी की गुड़ाई नहीं हो पाती, इसलिए जब भी आप थोड़ा सा मौसम खुला देंखें पौधों की हल्की सी गुड़ाई अवश्य कर दें ताकि इन्हें पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे.

6. पौधों को नाइट्रोजन युक्त खाद्य देने का यह सही समय होता है. केमिकल युक्त खाद की अपेक्षा और्गेनिक अथवा गोबर की खाद प्रत्येक पौधे में 1-1 टेबलस्पून डाल दें इससे पौधे को पर्याप्त पोषण मिलेगा और वह जल्दी बढ़ेगा.

7-बारिश का पानी पौधों के लिए संजीवनी का काम करता है इसलिए घर के सभी इंडोर प्लांट्स कुछ दिनों के लिए खुले में अवश्य रखें ताकि ये बारिश के पानी का लाभ ले सकें परन्तु इनमें पानी भरने न पाए इस बात का विशेष ध्यान रखें.

8-ये मौसम नए पौधे लगाने, कटिंग करने या पौधों को ट्रांसफर करने का सर्वाधिक उपयुक्त समय होता है, इसलिए इन दिनों में आप अपने मनमुताबिक पौधों को लगा सकते हैं.

आत्महत्या किसी भी समस्या का हल नहीं… इससे खुद को ऐसे बचाएं

आत्महत्या एक ऐसा आसान तरीका है जो हर वो कमजोर आदमी अपनाना चाहता है जो जिंदगी से बेजार हो चुका है. और अपनी मुश्किलों से भरी जिंदगी से छुटकारा पाने के लिए उसको आत्महत्या ही एक ऐसा आसान तरीका लगता है जो हर समस्या का समाधान उसकी नजर में है. कई लोगों में ऐसी प्रवृत्ति पाई जाती है जो छोटी-छोटी बात पर भी आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं. बिना यह सोचे की उनकी इस हरकत से उनके अपनों पर क्या हाल होगा. जैसे की कई युवा प्यार में असफलता पाने के बाद , या परीक्षा में फेल होने के बाद, या बेरोजगारी के चलते पैसे पैसे को मोहताज होने के चलते कर्जे में डूबने के बाद अपनी जिंदगी खत्म करने का आसान तरीका अर्थात आत्महत्या अपना लेते हैं.

आज के टेंशन भरे माहौल में जब कि हर कोई किसी न किसी बात को लेकर परेशान है लिहाजा वह ऐसी खराब जिंदगी जीने के बजाय आत्महत्या करके पूरी तरह से दुख से छुटकारा पाना चाहता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जो बहुत ज्यादा इमोशनल होते हैं और थोड़ा सा दुख आने पर भी आत्महत्या तक करने का फैसला ले लेते हैं. कई बार ऐसे जघन्य कारण भी होते हैं जबकि इंसान मजबूर होकर न सिर्फ खुद आत्महत्या करता है बल्कि ऐसे जालिम समाज से अपने परिवार को बचाने के लिए या तो पूरे परिवार को जहर दे देता है या गोली मारकर हत्या कर देता है और खुद भी फांसी पर लटक जाता है.

पिछले कुछ सालों में कई किसानों ने भी कर्जे में फंसे होने की वजह से आत्महत्या कर ली. ऐसे में सवाल यही उठता है की क्या आत्महत्या हर समस्या का हल है? क्या आत्महत्या की कोशिश करने वाले मजबूर और दुखी लोगों को बचाया जा सकता है? हर साल कई लोग अपनी परेशानी से तंग आकर आत्महत्या कर रहे हैं क्या इसका कोई हल है. पेश है इसी सिलसिले पर एक नजर…

ग्लैमर वर्ल्ड में भी हर साल आत्महत्या के बढ़ते केस…

मुंबई शहर सपनों की नगरी फिल्म इंडस्ट्री , ग्लैमर वर्ल्ड एक ऐसी चकाचौंध है, जिसे देखकर कई सारे युवा अपनी तकदीर आजमाने मुंबई शहर आते हैं. और अपने आप को यहां के माहौल में ढालने के लिए किसी भी हद तक समझौते करने के लिए भी तैयार रहते हैं. ताकि वह न सिर्फ अपने सपने पूरे कर सके बल्कि गरीबी से निकलकर आलीशान जिंदगी जी सके.कई सारे एक्टर अपने टैलेंट और मेहनत के चलते कामयाब भी हो जाते है .लेकिन जब उन्हें इस चकाचौंध के पीछे गहरे अंधेरे कड़वे सच का एहसास होता है तब वह अपने आप को संभाल नहीं पाते और फांसी लगाकर या नींद की गोली खाकर आत्महत्या कर लेते हैं. आश्चर्य तो तब होता है जब उनकी इस मंशा का पता तक नहीं लग पाता और अचानक पता चलता है की शूटिंग करते-करते अपने मेकअप रूम में जाकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.

ऐसा ही कुछ हाल पिछले दिनों ही एक टीवी एक्ट्रेस तुनिषा शर्मा का हुआ जिन्होंने शूटिंग के दौरान काफी कम उम्र में आत्महत्या करके अपना जीवन खत्म कर लिया. इससे पहले भी कई सारे लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी का अंत बहुत बुरी तरह आतमहत्या करके किया है ,जब कि वह एक नामचीन इंसान थे और उनके हजारों करोड़ों चाहने वाले थे. जैसे सुशांत सिंह राजपूत, परवीन बॉबी, प्रत्युषा बनर्जी, साउथ की हीरोइन सिल्क स्मिता, पुराने एक्टर लेखक डायरेक्टर गुरुदत्त, मूवी और टीवी एक्टर कुशाल पंजाबी, जितेंद्र के कजिन नितिन कपूर, एक्टर मॉडल शिखा जोशी, प्रसिद्ध एक्ट्रेस जिया खान, यह रिश्ता क्या कहलाता है सीरियल की 29 वर्षीय हीरोइन वैशाली ठक्कर आदि जेसे कई एक्टर और मॉडल हर साल किसी ना किसी वजह के चलते आत्महत्या कर लेते हैं. और पीछे छोड़ जाते हैं अपने परिवार और अपनों को रोते बिलखते .

आत्महत्या करने से रोकने और बचने के उपाय…

एक कड़वा सच यह भी है कि जब कोई इंसान अपने आप को पूरी तरह अकेला, बेसहारा, और मजबूर समझता है. जब उसको अपनी समस्या का कोई हल नजर नहीं आता तभी वह ऐसा भयानक फैसला लेता है . वही एक ऐसा क्षण होता है जब इस इंसान के दिमाग में आत्महत्या करने का फितूर सवार होता है अगर ऐसे नाजुक वक्त में उसको किसी का सपोर्ट मिल जाता है जिससे वह अपने दिल की बात कर सकता है या अपनी समस्या का समाधान पा सकता है तो वह आत्महत्या करने से भी बच जाता है . इस लिए बहुत जरूरी है कि चाहे कितना ही आपका जीवन व्यस्त हो आप अपने परिवार से दूर ना रहे किसी तरह मोबाइल या फोन के जरिए उनसे जुड़े रहे , घर के किसी ना किसी एक सदस्य से दिल की बात जरूर शेयर करे. परिवार में कोई ऐसा बंदा नहीं है तो कुछ दोस्त ऐसे जरूर बनाएं जिससे आप अपनी हर प्रॉब्लम शेयर कर सकें और और उस पर विश्वास कर सके. क्योंकि जहां परिवार काम नहीं आता वहां दोस्त काम आते हैं. एक दो सच्चे और अच्छे दोस्त जरूर बनाएं.जो आपको आपके बुरे वक्त में ना सिर्फ सही रास्ता दिखाएं बल्कि आपको मानसिक तौर पर पूरा सपोर्ट भी करें.

छोटे परदे और बड़े पर्दे के कई कलाकारों ने इस बात से सहमति जताई है कि उनके मन में भी आत्महत्या का ख्याल आया था. जैसे की टीवी एक्ट्रेस अर्चना गौतम ने अपने संघर्ष के दिनों की बात बताते हुए कहा की एक बार वह इतनी परेशान हो गई थी कि उन्होंने आत्महत्या करने का फैसला कर लिया था लेकिन उसी दौरान उनके मन में ख्याल आया कि अगर मैं मर गई तो मां को कौन संभालेगा, और मां कैसे करजा चुकाएगी. टीवी एक्टर अभिषेक कुमार ने भी बताया प्यार और करियर में असफलता के चलते उनके मन में भी आत्महत्या का ख्याल आया था लेकिन उनके मां-बाप के सपोर्ट की वजह से वह बच गए. स्पेशली उनकी मां ने अभिषेक को मानसिक तौर पर मजबूत किया और आज वह कामयाबी पा भी रहे हैं. कहने का मतलब यह है की हर एक ऐसे इंसान के दिल में कभी ना कभी मरने का ख्याल जरुर आता है, जब वह परेशानी में होता है.

ऐसे ही नाजुक वक्त में किसी शुभचिंतक का थोड़ा सा सपोर्ट भी उसके जीने का कारण बन जाता है. इसलिए बहुत जरूरी है की आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने के लिए परिवार वाले भी उसे इंसान का जरूर साथ दें जिसे उनकी बहुत जरूरत है. पैसों के लालच में या अपने स्वार्थ के चलते अपने सबसे प्यारे सदस्य को मरने के लिए अकेला ना छोड़े.

फिल्मों में आत्महत्या दिखाने की बजाय आत्महत्या रोकने के पॉजिटिव कहानिया कई लोगों की जान बचा सकती हैं…

कहते हैं कि फिल्में समाज का आईना है. यहां ऐसे भी कह सकते हैं कि लोगों पर फिल्मों का बहुत असर होता है कई फिल्में ऐसी होती हैं जिसकी कहानी आम लोगों को मानसिक तौर पर इफेक्ट करती है. फिल्मों में दिखाई जाने वाली नेगेटिविटी आम लोगों को निराशा की तरफ धकेलती है. जिसके चलते फिल्मों में दिखाए जाने वाले आत्महत्या के दृश्य कई युवा लोगों को आत्महत्या के लिए उकसाते हैं जैसे की 3 इडियट्स में शर्मन जोशी ने आत्महत्या की थी फैमिली प्रेशर के चलते. फिल्म मसान में रिचा चड्ढा और उसके प्रेमी ने पुलिस से प्रताड़ना के चलते आत्महत्या करते दिखाया गया.

सलमान खान अभिनीत जय हो में अपाहिज जेनेलिया डिसूजा को परीक्षा में फेल होने की वजह से आत्महत्या करते दिखाया गया, इसी तरह फिल्म डर्टी पिक्चर में विद्या बालन जिन्होंने सिल्क स्मिता का किरदार निभाया था उनको आत्महत्या करते दिखाया गया. लिहाजा इस तरह की फिल्में ऐसे लोगों को प्रेरित करती है जो आत्महत्या करने के बारे में सोचते रहते हैं.फिल्मों में आत्महत्या के दृश्य में बदलाव करते हुए अगर कहानी में किसी युवा को आत्महत्या करने से बचाते हुए दिखाया जाए तो निश्चित तौर पर युवा वर्ग में अच्छी सोच पैदा होगी जिसमें मुश्किलों से ना डरते हुए किसी भी चुनौती का सामना करके जीत हासिल करने का हौसला बुलंद होगा और आत्महत्या केस कम होंगे.

अंबानी लेडीज के हैं एक से बढ़कर एक स्टाइलिश ब्लाउज डिजाइन, जो हर लुक के लिए है ग्लैमरस

अपने लुक्स और फैशन स्टाइल को लेकर सोशल मीडिया में चर्चाओं में बनी रहने वाली अंबानी घर की महिलाएं एक बार फिर अपने स्टाइलिश ब्लाउज की वजह से सोशल मीडिया में छाई हुई है. अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट के मैरिज फंक्शन में अंबानी परिवार की लेडिज जब ड्रेसअप होकर आई तो किसी की निगाहे उन से हटी नहीं. उन के डिफरेंट और स्टाइलिश ब्लाउज ने एक्ट्रैस के फैशन सेंस को भी मात दे दी. आज हम अपने इस आर्टिकल में इन्हीं स्टाइलिश ब्लाउज के बारे में आप को बताएंगे.

1. एम्ब्रायडरी वर्क विद नेम

नीता अंबानी के इस एम्ब्रायडरी ब्लाउज ने पूरी महफिल लूट ली थी. इस ब्लाउज को हैवी एम्ब्रायडरी वर्क के साथ डिजाइन किया गया था. जिस में नीता अंबानी के बेटे और बेटी के साथसाथ उन के ग्रैंड चिर्ल्डन वेदा, पृथ्वी, कृष्णा और आदित्य के नाम भी लिखे हुए थे. इस के लिए बैक में नेट के फैब्रिक का इस्तेमाल किया गया था. इस के बीच में मां लक्ष्मी के चिन्ह और हाथी के डिजाइन को बनाया गया था. इस के अलावा इस की बाजुओं पर मंत्र को भी लिखवाया था. इस में ब्लाउज में छोटेछोटे लटकन का भी इस्तेमाल किया गया था.

neeta ambani

2. ईशा अंबानी का ज्वैलरी वाला ब्लाउज

इस ग्रैंड शादी में चल रहे फंक्शन में ईशा ने एक शानदार ब्लाउज पहना था, जिस में अलगअलग तरह के झुमके और नेकपीस लगे हुए थे. तरहतरह की ज्वैलरी से सजे इस ब्लाउज में ईशा के गहनों और उन के टुकड़ों के साथसाथ गुजरात और राजस्थान के सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्रों से मिले आभूषणों को भी शामिल किया गया था. इस ब्लाउज में कीमती आभूषणों को नए रूप में प्रस्तुत कर के उन का रूप बदल दिया गया था. ईशा के इस ब्लाउज ने सभी को चौंका दिया था और उन का लुक इस में देखते ही बन रहा था. गहनों का इतना अच्छा इस्तेमाल किसी ने सोचा भी नहीं था.

3. सोने का बेहतरीन ब्लाउज

अनंत राधिका की शादी से पहले नीता अंबानी ने अपने घर में एक पूजा रखी. इस पूजा में उन्होंने अबू जानी संदीप खोसला के हैवी कढ़ाई वाले लहंगा चोली को चुना. इस पर सोने के वर्क के साथ मिनट मिरर वर्क किया गया था. लेकिन इस लहंगे की शान था सोने से बना उन का यह ब्लाउज, जो चंदन हार और चांद के धागों से तैयार किया गया था. इस की गोल नेकलाइन पर सितारों के साथ लहंगे की तरह सोनी वर्क से डीटेलिंग की गई, वही स्लीव्स पर भी सेम डिजाइन किया गया था, इस के साथ उन्होंने साटन सिल्क का रॉयल ब्लू दुपट्टा कैरी किया गया था, जो उन्हें महारानी का लुक दे रहा था.

4. श्लोका मेहता का हाल्टर नेक बो बैक ब्लाउज

श्लोका ने य फैंसी ब्लाउज अनंत और राधिका के संगीत सेरेमनी में पहना था. इस हॉल्टर नेक वाले स्लीवलेस ब्लाउस को छोटेबड़े वाइट पर्ल से सजाया गया है. ये इस के बैक साइड में टीजिंग एलिमेंट एड करते हुए क्रिस्टल से बने बो बैक बटन भी लगे हुए थे. ये ब्लाउज इतना एलिगेंट था कि इस की वजह से उन्होंने गले में कोई जूलरी भी नहीं पहनी थी.

5. राधिका मर्चेंट का कोटी ब्लाउज​

राधिका मर्चेंट ने अपनी शादी के फंक्शन में एक लहंगे के साथ विंटेग कोटी वाला ब्लाउज कैरी किया था. गुलाबी और आरेंज कलर की इस कोटी की नेकलाइन ‘वी ‘ थी. जिस की सीध पर नीचे की ओर बटन लगाए गए थे. वहीं, वेस्ट वाले पोर्शन पर हरी रंग की बॉर्डर वाली मोटी पट्टी की फिनिशिंग के साथ दोनों साइड से कट दिया गया था. स्लीव्स को हाफ रखते हुए उस की हेमलाइन पर छोटीछोटी गोल्डन कलर की लटकन लगाई गई थी. जिस की वजह से इस ब्लाउज की खूबसूरती देखते ही बन रही थी.

6. सिंगल शोल्डर ब्लाउज

इस सिंगल शोल्डर ब्लाउज को ईशा अंबानी ने स्टाइल किया था. ईशा ने इस ब्लाउज को ट्यूब स्टाइल में कैरी किया था. इसे मशहूर फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा द्वारा किया गया था. जो देखने में बेहद खूबसूरत लग रहा था. अगर आप भी ईशा अंबानी की तरह ब्लाउज पहनना चाहती है तो आप इसे बनवा सकती हैं और स्टाइल कर सकती हैं. इस में आप एक साइड पर फुल स्लीव्स और दूसरी तरह केवल सिंगल स्ट्रैप डिजाइन को बनवा सकती हैं. इस के अलावा आप इस ब्लाउज डिजाइन को ड्राप शोल्डर या हैंगिंग स्टाइल स्लीव्स की तरह भी बनवाकर लहंगे, साड़ी, स्ट्रैट शरारा के साथ पहन सकती हैं.

7. नीता अंबानी का पिंक एम्ब्रायड्री ब्लाउज​

नीता अंबानी ने इस पिंक कलर के हेवी बंधनी लहंगा के साथ पिंक कलर का ही ब्लाउज कैरी किया था, जिस का फ्रंट और बैक डिजाइन प्लेन था. लेकिन स्लीव्स को हेवी बार्डर और बाजुओं पर गोल्डन कढ़ाई के साथ डिजाइन किया गया था. अगर आप भी उन महिलाओं में से है जो सिंपल ब्लाउज कैरी करना पसंद करती हैं, तो नीता अंबानी के इस ब्लाउज डिजाइन को कौपी कर सकती हैं.

8. राधिका मर्चेंट का औफ शोल्डर ब्लाउज

राधिका मर्चेंट ने अपने संगीत सेरेमनी में लहंगे के साथ एक औफ शोल्डर ब्लाउज पर पहना था. इस ब्लाउज की खास बात यह थी कि इस की नेकलाइन और हाथों खूबसूरत डिजाइन और डिटेलिंग थी. इस ब्लाउज ने उन की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए.

9. श्लोका मेहता का पफ स्लीव ब्लाउज​

अनंत राधिका के मामेरू फंंक्शन में श्लोका ने अपने पिंत कलर के घाघरे के साथ ऑरेंज रंग की चोली पहनी थी. जिस पर पिंक और गोल्डन सितारों का काम किया गया था. नेक डिजाइन को डायमंड शेप में रखा गया था, जिस में पिंक कलर की पाइपिंग से फिनिशिंग दी गई थी. इस की स्लीव्स बैलून स्टाइल में थी जिस ने लुक को और भी ज्यादा खूबसूरत बनाने का काम किया.

10. ईशा अंबानी का शार्ट रफल ब्लाउज​

जब से इंटरनेट पर ईशा अंबानी का शार्ट रफल ब्लाउज​ की फोटोज आई हैं, हर कोई उन के लुक की ही तारीफ कर रहा है. ईशा ने इस ब्लाउज की नेकलाइन को स्वीट हार्ट स्टाइल में रखा था. वहीं इस में स्ट्रैप डिजाइन के साथ शॉर्ट फ्लटर स्लीव को अटैच किया गया था, जो ब्लाउज के लुक को परफेक्ट फिनिशिंग दे रही थी. इस की वजह से ब्लाउज की रौनक देखते ही बन रही थी. इस ब्लाउज के फ्रंट और बैक का डिजाइन भी बहुत स्टाइलिश था, जिसे हुक वाला रखा गया था. इस ब्लाउज में टैसल वाली लटकन लगाई गई थी.

अंबानी महिलाओं के ये स्टाइलिश ब्लाउज अब ट्रेड में आ चुके हैं. हर महिला इन्हें पहनना चाहती है. ऐसे में आप भी इन स्टाइलिश ब्लाउज को पहनकर पार्टी में छा सकती है. तो देर किस बात की. जल्द ही इन्हें बुटीक से सिलवाए और अपना जलवा बिखेरे.

उत्तरजीवी: क्यों रह गई थी फूलवती की जिंदगी में कड़वाहट?

लेखक- के मेहरा

नारायणदास, यह देखो, तुम्हारा इकलौता पोता रोहित, तुम्हारे बेटे अजीत का बेटा, आज घोड़ी चढ़ रहा है.

मोगरा के फूल बिखरे पड़े हैं. मोगरा, जो मैं तुम्हारे लिए सफेद चादर पर बिछा देती थी, अपने जूड़े में छिपा लेती थी, मुट्ठी भरभर कर तुम्हारे ऊपर बिखेरती थी, जब तुम मेरे पास खुली छत पर चांदनी बटोरने चले आते थे.

शहनाई बज रही है. कभी मैं ने भी चाहा था कि मेरी बरात आए और शहनाई बजे. आज भी वही धुन बज रही है जो हमतुम गुनगुनाते थे, ‘तेरे सुर और मेरे गीत, दोनोें मिल कर बनेंगे प्रीत.’ मेरा रोमरोम झनक रहा है. मैं अंतर्मन से भीगी इस बच्चे को आशीष दे रही हूं. काश, तुम जिंदा होते, यह मंजर देखने के लिए.

रोहित की दुलहन का पिता कर्नल है. दादा राजदूत रह चुका है. बड़ेबड़े राजनेता आए हैं शादी में. मिलिटरी बैंड से बरात चढ़ रही है. एक से बढ़ कर एक गाड़ी, सब घोड़ी के पीछे रेंग रही हैं और उन में बैठी हैं राजरानियां, हीरेमोती चमकाती, साडि़यां सरसराती, खुशबू फैलाती.

तुम कहां हो? और कहां है तुम्हारी घमंडी बीवी राजरानी? दिल नहीं चाहता कि आगे सोचूं. बस, अपने चश्मे के मोटे शीशों से आज का नजारा देख रही हूं, अकेली मैं. बेटियांबहुएं दादीजीदादीजी की गुहार बीसियों बार लगा चुकी हैं, कानों पर विश्वास नहीं होता. अजीत का बेटा मेरे पांव छू कर मुझ से मेरा आशीर्वाद लेने आया घोड़ी चढ़ने से पहले. अजीत और उस की बहू ने भी पांव छुए. यकीन नहीं होता.

तुम ने यह हक मुझे जीतेजी कभी नहीं दिया था. तुम्हारी मौत ने दे दिया. तुम नहीं रहे, राजरानी नहीं रही, न रही तुम्हारी खबीसनी बहन, देशी. मैं तुम सब से उम्र में छोटी थी, सो अभी तक जिंदा हूं तुम्हारे हिस्से के सुखदुख उठाने को.

अजीत की बहू सुनंदा ने न्यौता भिजवाया था, साथ में 10 हजार रुपए नकद, 4 बढि़या, कीमती सूट, नई चप्पलें, शौल, पर्स, शृंगार का सारा सामान, और भी न जाने क्याक्या. पत्र में लिखा था, ‘चाचीजी, अब बस आप ही हमारे सिर की छतरी हैं. इस परिवार के सब बुजुर्ग उम्र से पहले ही गुजर गए. अपने इस इकलौते वंशदीप को आशीर्वाद देने के लिए ब्याह में जरूर आइएगा. मेरी छोटी बहन आप को लिवाने आएगी ताकि आप को कोई असुविधा न हो.’

भला हो सुनंदा का. नारायणदास, तुम्हारे गलत कामों की गिनती नहीं मगर कहीं कोई अच्छा काम जरूर तुम्हारे खाते में जमा रहा होगा जो तुम्हें ऐसे सुंदर कर्मों वाली लायक बहू मिली. कितनी अभागी थी राजरानी जोे जल्दी चली गई.

मैं ने सुना है, अजीत ने मां को क्लोरोफौर्म का डबल इंजैक्शन दे कर हमेशा के लिए सुला दिया, जैसा कि खानसामा प्यारेलाल ने बताया. सबकुछ होते हुए भी राजरानी पागल हो गई.

मैंराजरानी नहीं हूं, उस की सौत भी नहीं हूं. तुम्हारे संग अपने रिश्ते को क्या नाम दूं? बता कर तो जाते एक बार. राजरानी की गुनाहगार मैं थी तो इस की सजा मुझे मिलनी चाहिए थी. राजरानी क्यों पागल हो गई? हजार दुख तो मैं ने सहे थे, चुपचाप. कहती भी तो किस से? मैं क्यों न पागल हो गई?

उस के मायके वाले जयपुर के पुराने रईस थे. उस के पिता और फिर छोटे भाई जीवनभर उस के नाम से रुपयापैसा भेजते रहे, वह भी हजारों में. तुम सब उस पैसे से ऐश करते थे. उस के जेवर बेचबेच कर पैसा कारोबार में लगा दिया. घर खरीदा तो उस के जड़ाऊ कंगन बेच दिए. चोरी का इलजाम प्यारेलाल पर लगा दिया. फिर भी प्यारेलाल घर में बना रहा. राजरानी ने उसे निकालने को कहा तो तुम ने कहा कि रहने दो, गरीब है, पुराना खादिम है. कितनी भोली थी वह, बेवकूफ थी परले दरजे की. फूलों में पली, कौनवैंट में पढ़ी. तुम देखने गए थे तो वह स्कर्ट पहन कर साइकिल चला रही थी अपने लौन में. न बदन न काठी. तुम उसे बच्ची समझे थे.

सच बताऊं, मुझे उस से जलन थी. तुम जब बीमार पड़े और फालिज से निकम्मे हो गए थे तब मैं छिपछिप कर उसे तुम्हारी बेकार देह की मालिश करते देखती तो मेरे कलेजे को एक अजीब सी ठंडक मिलती. वह खाना बना कर नहानेधोने जाती, मैं रसोई में घुस कर सब्जी चुरा लाती.

जयपुर वाली रसोई खूब अच्छी बनाती थी. तुम्हें उसी के हाथ का खाना पसंद था. थूकपसीने की दोस्ती मुझ से और खाना बीवी के संग मेज सजा कर. जी जलता था मेरा. मन में आता था, जा कर मेजपोश खींच दूं और सारा तामझाम जमीन पर गिरा दूं मगर जब्त कर लेती थी अपना गुस्सा. फिर वह फितूर दिमाग से उतर कर मेरी नसनस में बहने लगता. खाना खा कर वह ठाट से सोती थी.

मैं मौका देखती रहती थी. उस की नाक बजने की आवाज के साथ ही मेरी नसों में दौड़ता गुस्सा नशा बन कर मुझ पर छा जाता था और मैं उसे लांघ कर तुम्हारे शरीर से आ लिपटती थी. तुम ने क्या कभी रोका मुझे? कितनी फुरती से हम उड़ जाते थे अपनी दुनिया में.

मगर तुम तो लाए ही मुझे इसीलिए थे. नेपालगंज तुम लकड़ी का व्यापार करने आए थे. साथ में था तुम्हारा भाई बिशनदास. मेरा पहाड़ी पंडित बाप लकड़ी का दलाल था. घर ले आया तुम को.

‘साब को चाय पिला, फूलवती. कुछ मीठाशीठा भी ला.’

मैं हिरनी सी कुलांचें भरती पहाड़ी ढलान के नीचे वाली गली के हलवाई से ताजा गुलाबजामुन ले आई थी. तुम्हें गुलाबजामुन से ज्यादा मीठी मैं लगी थी.

लकड़ी का ठेका तो अपनी जगह रहा. तुम मुझे अपने भाई की दुलहन बना कर ले आए. न बरात न बाजा…चार फेरों की शादी. मैं ने सोचा बड़े लोग हैं, बड़ा शहर, ऐश करूंगी. नहीं पता था कि मुझे दुख भोगने हैं. तुम्हारे भाई को तो भयंकर दमा था. मैं नादान उस बीमार पति की सेवा करती रही. कभी उस की पीठ पर, कभी छाती पर वैद्यजी का तेल मलती. कभी गरम पानी में पिपरमिंट डाल कर भाप दिलाती. उस का गोरागोरा पिलपिला मांस, कुरता, बनियान, लकीरों वाला पायजामा, सब में वही बास. चूड़े वाले हाथों से मैं साबुन से कपड़े धोती, मगर बास पीछा नहीं छोड़ती थी.

तुम्हारी विधवा बहन जहानभर के काढ़े बनाती. वह काढ़ा पी कर चुपचाप सो जाता. 5 महीने बाद मैं मायके गई, पहली और आखिरी बार. मां ने मुझे ऊपर से नीचे तक घूरा. मेरे चूड़े का रंग उतरउतर कर बदरंग, पीला सा पड़ गया था. मेरे हाथ सूखे, पांव फटेफटे. उस का मुंह उतर गया. मैं आंख चुरा कर पहाड़ी जंगलों में भाग गई. चीड़ और भांग की मिलीजुली खुशबू में लंबीलंबी सांसें लेती घंटों भटकती रही. मन हुआ, वहीं रह जाऊं. खूब दहाड़ मार कर रोई. मां से लिपटलिपट कर दुहाई दी कि मत भेजो अपने से दूर. मगर मां जल्लाद निकली.

‘अरी कम्बख्त, कोई नहीं कहेगा कि तू छोड़ आई. सब कहेंगे गंवार थी, छोड़ गए. हमारी इज्जत रख. तेरे और भी भाईबहन हैं.’

इस के बाद वह बूढ़ी नाइन को बुला लाई. नाइन ताई ने मुझे पत्नीधर्म की शिक्षा दी. मैं हंसहंस कर दोहरी हो गई. तब उस ने मेरे गाल पर चांटा जड़ दिया. जोर से चिल्लाई, ‘तेरी जिंदगी में दुख ही दुख हैं. अब अपनी कोशिश से जिंदगी सुधार ले वरना कहीं की नहीं रहेगी.’

उस की दी गई हिदायतें गांठ बांध लीं और चुपचाप वापस आ गई. भले ही नादान थी पर इतना तो पता था कि पतिपत्नी के रिश्ते का आधार क्या होता है.

सारे नुस्खे आजमाती रही तुम्हारे भाई पर. वह हंसनेमुसकराने लगा. मेरी ठोढ़ी उठा कर मुंह भी चूमता कभी. मैं सिकुड़ कर कछुआ बन जाती. जैसेतैसे मेरी गृहस्थी चलने लगी, मगर अकसर उस की सांस फूलने लगती. वह लाचार सा मुझे छोड़ कर खांसने लगता.

मैं डर जाती. अगर उसे ऐसावैसा कुछ हो जाता तो तुम्हारी बहन चिल्लाती, ‘क्या कर दिया उसे करमजली. जब से पांव धरा है, घर में रोज लड़का बीमार हो जाता है. पहले छठेछमासे अटैक होता था, अब आएदिन पड़ जाता है. अपने मौजमजे के मारे प्राण लेगी क्या?’

किस की मौज, किस का मजा. उस की कमजोरी मुझे खाने लगी. मैं ने तुम से एक दिन दोटूक बात की कि मुझे वापस भेज दो, जहां से लाए थे. तुम कुटिलाई से मुसकरा कर बोले, ‘पहले अपनी मां से पूछ ले फूलवती, फिर बोल. तेरे बाप को बराबर 500 रुपए महीना भिजवा रहा हूं.’

गोया मैं कोई नौकरानी थी और जैसे तुम मेरी तनख्वाह भेज रहे थे मेरे गांव. मेरा बाप, क्या तुम्हारे लकड़ी के ठेके नहीं पूरा कर रहा था? माल तो वही भिजवाता था जिस से तुम हजारों कमाते थे.

मुझे तो नहीं, अलबत्ता 1 हफ्ते बाद तुम ने राजरानी को उस के मायके जयपुर भेज दिया. तुम ने कहा कि तुम्हें बलूत की लकड़ी लाने असम जाना पड़ेगा. 2-4 महीने का चक्कर लगेगा. अंधा क्या मांगे दो आंखें. राजरानी क्या मांगे, अपना मायका.

उसे भेजने में तो तुम्हारा लाभ ही लाभ था. हर बार वह ढेर सारे सामान से लदीफंदी लौटती थी.

वह चली गई तो सारा काम मेरे जिम्मे. ऊपर से हुकूमत तुम्हारी बहन की. तुम झूठे, न कहीं जाना न आना. बिशन तुम्हारे लालच से चिढ़ता था. एकएक कर के सारे कीड़े रेंगरेंग कर बाहर आ रहे थे.

एक दिन मुझ पर जैसे पागलपन सवार हो गया. मैं आंगन में सिर झटकझटक कर नाचने लगी. मेरा पति चिल्लाता रहा मगर मुझे रोक नहीं पाया. तब तुम ने आ कर मुझे अपनी बलिष्ठ गिरफ्त में थाम लिया. मैं वहीं सब के सामने तुम से लिपट कर फूटफूट कर रोई.

बिशनदास तुम्हारे दफ्तर में कागजपत्तर संभालता था. रोज सुबह सफेद कमीज और सफेद पतलून पहन कर, काला बैग ले कर वह औफिस में जा बैठता था. खाना खाने के लिए 1 बजे घर आता था. अकसर उसी के रिकशे में देशी सौदासुलफ लाने बाजार चली जाती थी. घर पर मैं अकेली रहती थी.

उस दिन भी सुबह की रसोई समेट कर मैं छत पर चली गई. धूप में टंकी के पास बैठ कर कपड़े धोए और नहाई. छत के दरवाजे की ओर मेरी पीठ थी. तुम चुपके से आए और दरवाजे की सांकल लगा दी. मैं मुड़ कर देखती इस के पहले ही तुम ने मुझे गोद में उठा लिया. मैं चिल्लाई तो हथेली से मुंह दबा दिया.

‘चिल्लाचिल्ला…और जोर से चिल्ला. सुन कौन रहा है तेरी? देशी सुनेगी, प्यारेलाल सुनेगा. हां, मगर वे क्या तेरी तरफदारी करेंगे? तुझे ही इलजाम लगेगा. सोच ले. उन का दानापानी तो मुझ से है.’

मैं छटपटाती रही मगर छूट न पाई. फिर यह हरकत रोज का किस्सा बन गई. जितना ही मैं डरती, बचती उतना ही तुम रंग दिखाते. किसी को पता नहीं चला. मगर मैं मुंहजोर हो गई. एकदम निर्भीक. देशी की गालियों का मुंहतोड़ जवाब देती. प्यारेलाल पर रौब से हुक्म चलाती. जब मरजी घूमनेफिरने बाजार चली जाती. मुझे लगता था सब मेरे गुनाहगार थे, अव्वल दरजे के मक्कार.

बस, बिशन से दोस्ती बनाए रखी. उस पर मेरा हक था. वह सीधासादा मासूम इंसान था. तुम्हारे हथकंडों से बेखबर. मुझे सिनेमा ले जाता था. सोने की चूडि़यां बनवा दीं. उस के प्यार करने में आग नहीं थी मगर सुकून तो था, जो मुझे अपनी नियति समझ आती थी. मैं उसे ठग रही थी मगर तुम्हारी मरजी से. बेबस जो थी.

राजरानी वापस आई. मैं ने सोचा, चलो जान छूटी. मगर तुम घाघ थे. कोई न कोई मौका जुटा ही लेते. पहले मैं राजरानी से डरती रही, फिर वह डर भी निकल गया. तुम चोर थे तो मैं सीनाजोर.

मेरे हावभाव देख राजरानी का माथा ठनका. उस ने तुम पर अपनी गिरफ्त कस ली. जाने कैसे, शादी के वर्षों बाद उसे गर्भ रह गया. तुम फूले न समाए. तुम्हारा सारा ध्यान राजरानी पर केंद्रित हो गया. मैं गई भाड़ में. जलन ने मुझे कुटिल बना दिया. ऊपरऊपर से मैं खुशी दिखाती, अंदरअंदर कुढ़ती. मुझे बच्चा चाहिए था. अपना बच्चा, बिशनदास का बच्चा. बहुत जतन किए. कुछ नहीं हुआ.

राजरानी जचगी के लिए मायके चली गई. उसे वहां छोड़ कर तुम वापस आए तो तुम्हें फिर से मेरी तलब लगी. मन में आया कि तुम पर थूक दूं, मगर मुझे बच्चा चाहिए था, कैसे भी. मैं मुसकरा कर फिर से तुम्हारी हो ली. बच्चा आया, मेरा मन गुलजार हो गया. मैं ने चुपके से तुम्हें बताया पर तुम्हारे तो चेहरे का रंग फीका पड़ गया.

‘निकलवा, अभी गिरवा दे इसे.’

‘नहीं, हरगिज नहीं. कोई नहीं जानता कि यह तुम्हारा है. सब इसे बिशन का ही मानेंगे. नहीं गिरवाऊंगी.’

‘सब बिशन का ही मानेंगे इसे, सिवा बिशन के.’

‘क्या मतलब?’

‘बिशन बच्चा नहीं पैदा कर सकता और यह बात उसे पता है. सुन फूलवती, तू उस की दूसरी बीवी है. उस की पहली को जब पता चला, वह वापस नहीं आई. किसी और के संग जा बैठी. इसीलिए बिशन शुरूशुरू में तुझ से हाथ समेट कर बैठा रहा. जब तू पहली बार मायके जा कर लौट आई तब उस ने तुझे अपनाया, याद कर. बिशन को अगर पता चला कि तू पेट से है तो वह समझ जाएगा कि तू क्या कर रही है.’

मेरे हाथ के तोते उड़ गए यह कहानी सुन कर. मुझे तुम्हारे घर आए तीसरा साल था. इतना बड़ा किस्सा और मुझ से ही छिपा कर रखा तुम सब ने, राजरानी ने भी. तभी तुम ने यह भी बताया कि बिशनदास तुम्हारा जुड़वां भाई था, तुम से 2 घंटे छोटा. पैदाइश के समय सिर्फ डेढ़ किलो वजन था उस का. हजारों तकलीफें उठा कर उसे तुम्हारी मां ने पाला था और अब यह रोल तुम्हारी बहन अदा कर रही है.

‘कितने बेईमान हो तुम सब? कितने झूठे. ऐसे आदमी की शादी ही क्यों की?’

‘तुझे यहां कैसे लाता? तेरा रूप जो डंक मार गया. फूलवती, तू बेहद सुंदर जो थी.’

‘ओ हो, तो फिर राजरानी पर क्यों इतना लुटे जाते हो?’

‘अब पैसा भी तो कोई चीज है न. बस, तू अपनी जगह वह अपनी जगह. तू मुझे खुश रख, मैं हमेशा तेरा खयाल रखूंगा. पर तू यह बच्चेवच्चे का चक्कर छोड़ दे.’

मैं मरती क्या न करती. रोरो कर अंधी हो गई. मेरी अंदर की व्यथा कौन समझता. दुख जैसेतैसे छिपाया. कहा कि नजला हुआ है. बदले में तुम ने मुझे जड़ाऊ टीका और कंधे तक लटकते झुमके बनवा दिए. बड़ी चालाकी से तुम ने वे गहने अपने भाई को दिए और जताया कि बेटे होने की खुशी में उपहार दे रहे हो. बिशनदास खुश हो गया. खुद अपने हाथ से उस ने मुझे पहनाए और फिर मेरे साथ फोटो खिंचवाई. मैं फूली न समाई.

लकड़ी के ठेके से तुम ने हजारों कमाए मगर मेरे नाम कोई रकम जमा नहीं की जो मैं जिंदगीभर खाती. बिशनदास को तुम क्या देते थे? सिर्फ 250 रुपए महीना.

हमारा राज कब तक छिपा रहता? जिस दिन पकड़ा गया, तुम्हारे भाई ने जहर खा लिया. मैं विधवा हो गई. तुम्हारे खोटे करम एक अच्छेभले इंसान को खा गए. कितना शरीफ था. कुदरत ने भी क्या बंटवारा किया जुड़वां बच्चों में. एक को सारे सद्गुण, विद्या, लगन, कलाप्रियता, संवेदना सब दे कर सेहत छीन ली और दूसरे को सेहत दे कर मतलबी, बेईमान और ऐय्याश बना दिया. भाईबहन तुम्हें बहुत प्यारे थे, मगर अपनी ऐय्याशी सब से ज्यादा.

बिशनदास ने मरतेमरते मुझ से बदला लिया. उस ने अपना सारा हिस्सा देशी के नाम लिख दिया. तुम्हारे मांबाप उस की सेहत की चिंता के मारे अपनी पुरानी हवेली उसी के नाम कर गए थे. तुम ने बेसाख्ता उस की अंतिम इच्छा का मान रखा. दसियों छोटेमोटे किराएदार उस में बसे थे. वह किराया देशी को मिलने लगा. मुझे? मुझे क्या मिला, ठेंगा. मैं और भी निहत्थी और बेबस हो गई.

बिशनदास से मेरे रिश्ते का एक नाम था. उस के रहते मैं सुहागिन कहलाती थी, शृंगार करती थी. चवन्नीभर बिंदी मेरे उजले माथे पर चमचम करती थी. मेरा रूप जगमगाता था. अब मैं न सजसंवर सकती थी, न हंसबोल सकती थी. मेरा नाम एक गाली बन गया. मेरा अंतर्मन मुझे डसता. सोचा, तुम्हारी मनहूस दहलीज छोड़ कर मायके जा बैठूं. मगर वहां कौन खजाना गड़ा था. टीबी की मारी मां. भाई की कच्ची गृहस्थी, बूढ़ा बाप. सबकुछ बदल गया था.

बेटे के सामने होते तो तुम ऐसा दिखाते कि मुझे जानते भी नहीं. मगर अकेले में?

मैं ने अपने किवाड़ उढ़का लिए. तुम ने दर्जनों सफेद साडि़यां ला कर डाल दीं. औरगंडी कोटा, चंदेरी, शिफौन, सब राजरानी से चोरीचोरी. मैं सफेद साड़ी पहने उतरी तो तुम ने घेर लिया. तुम बोले कि फूलवती, तू हंसिनी लगती है. अपने नैनों में मुझे छिपा ले. कह कर तुम ने मेरी छाती में अपना सिर गड़ा दिया.

बेचारी राजरानी. मेरा अपराधी मन कभी भी उस की सेज पर डाका नहीं डालना चाहता था मगर तुम न माने.

मैं ने पूजापाठ में मन लगाया. आश्रम में जा कर रहने लगी. तुम चार दिन में इज्जत का ढोंग कर के वापस ले आए. आश्रम वाले अभिभूत हो गए. मैं ने हथियार डाल दिए. तुम्हारा दिया खाने के एवज में फर्ज भी तो अदा करना था. मैं तुम्हें पाले रही. मैं झूठ क्यों बोलूं. मेरी जवान देह तो वैसी की वैसी ही थी, भूखी, प्यासी.

तुम्हारा बेटा बड़ा हुआ तो राजरानी ने उसे अजमेर पढ़ने भेज दिया. अब वह रोजरोज उस से मिलने के बहाने चली जाती. तुम खुद भी चले जाते अकसर. मैं और देशी अकेले इस कोठी में. न हम आपस में बोलते थे न एकदूसरे को सह पाते थे. प्यारेलाल खाना बना देता. दोनों अलगअलग कमरों में बैठ कर उसे निगल लेते थे.

मुझे प्यारेलाल का ही आसरा था. शायद वह मेरे दर्द को समझता था. शायद वह मुझे भी अपने जैसा समझता था. महज एक खिदमतगार. मैं उस को देशी की तरह फटकारती नहीं थी. धीरेधीरे, मेरी शह पा कर उस के आधे दर्जन बच्चे हमारे आंगन में कूदनेफांदने लगे. देशी नाराज होती तो मैं उसे डांट देती. आखिरकार वह पुरानी हवेली में रहने चली गई. प्यारेलाल ने मुझ से कहा, ‘मालकिन, इन्हें पढ़ालिखा दिया करें. कुछ जोड़बाकी सीख जाएंगे.’

सच पूछो तो मुझे एक आसरा मिल गया. रोज स्कूल लगा कर बैठ जाती. धीरेधीरे महल्लेभर के गरीब बच्चे आ कर बैठने लगे.

तुम दोनों वापस आते तो स्कूल बंद. घर तुम्हें सजासजाया मिलता. रोटी, पानी, राशन, बगीचा सब एकदम ठीक. वक्त गुजरा. अजीत एअरफोर्स का बड़ा अफसर बना. हर तरह से सुंदर होशियार. उस के बौस ने ही उस को दामाद बना लिया. सुनंदा आई सर्वगुणसंपन्न. राजरानी का घमंड सातवें आसमान पर. तुम दोनों एक हो गए.

सफेद बालों के साथसाथ तुम ने इज्जत का जामा पहन लिया. मैं छिटक कर दूर जा पड़ी. घर के कोने में रखी हुई झाड़ू की तरह. अजीत बेंगलुरु में जा बसा. तुम भी वहीं चले जाते. जब यहां आते, देशी भी रहने आ जाती वरना शक्ल भी न दिखाती. उस के पास आमदनी थी, मेरे पास कुछ भी नहीं.

कितनी बार मैं ने मांग रखी. क्या मेरा हक नहीं था? बिशनदास क्या मेरा ब्याहता पति न था? मगर तुम मामूली हाथ खर्च दे कर टालते गए. बिशनदास के संभाले ही तुम्हारा कारोबार टिका  था. उस के मरने के बाद तुम्हारा मानो दाहिना हाथ ही कट गया. सारा बिजनैस चौपट हो गया. तुम ने कभी सोचा कि जिस भाई की शादी तुम ने अपनी जिम्मेदारी पर करवाई थी उस की विधवा को रोटीपानी की जरूरत पड़ेगी बुढ़ापे में? मेरा बच्चा आज होता तो वह भी अजीत जितना होता, कमा रहा होता.

राजरानी का पर्स नोटों से भरा रहता था और मेरे पास? पर्स ही नहीं था. जब तक तुम्हारा शरीर चला, तुम ने मुझे भोगा. राजरानी ने अपने घमंड में कभी जाहिर नहीं किया मगर मैं जानती हूं कि उसे पता था. वह अपने सुहाग का दिखावा करती थी. तुम्हारे सामने मीठी बनी रहती थी मगर पीठ पीछे, उस की आंखों की नफरत मुझ से सहन नहीं होती थी.

शायद मेरी बददुआ ही तुम को लगी कि तुम्हें फालिज मार गया. कोई कुछ न कर सका. प्यारेलाल और राजरानी तुम्हें संभालते रहे. 6 साल तुम पलंग पर पड़े रहे. पानी की तरह पैसा बहने लगा. मैं दूर से देखती रहती. राजरानी सबकुछ भूल कर तुम्हारे पास बैठी रहती.

नारायणदास, तुम्हारी जैसी नीयत थी वैसा तुम्हें फल भी मिला. सुनंदा जैसी बहू का कोई सुख नहीं मिला. पोता हुआ, पर तुम उसे चाह कर भी देख नहीं पाए. समझ ही नहीं थी. तुम मरे तो अजीत विदेश में था. जिस बच्चे को देखदेख कर मेरी ममता तरसती रही, उस का कंधा भी तुम्हें नसीब नहीं हुआ.

तुम्हारे जाने के बाद राजरानी बिखरने लगी. जब मैं उसे समझातीबुझाती, वह मुझे ही कोसने लगती. मेरा छुआ हुआ खाना तक नहीं खाती थी. दोचार बार आमनेसामने हमारी तकरार हुई. मैं ने डंके की चोट पर उसे साफसाफ सुना दिया :

‘राजरानी, मुझे दोष मत लगा. गलती तेरी है. मां की लाडो बनी रही जनमजिंदगी. बौराया मरद छोड़ कर तू मायके दौड़ जाए तो वह जहां चाहे, मुंह मारेगा ही. जवानी तो अंधी होती है. मैं तो दोनों तरफ से लुट गई. न इज्जत रही न रखवाला. और आज भिखारन बनी तेरे दो टुकड़ों के लिए यहां पड़ी हूं, तो तू डंडे बरसा रही है? शरम कर. मेरा आदमी मरा तेरे आदमी के कारण. तेरे पास तो पैसा है और पूत भी. मेरे पास क्या है?’

‘मेरे पूत का नाम न ले अपनी काली जबान से.’

‘तो जा न उसी के पास. यहां क्यों बैठी है? यह घर तो मनहूस है.’

उस के बाद राजरानी का डेरा बेटेबहू के पास लग गया. मैं घर में निपट अकेली. प्यारेलाल को भी कहां से पालती? चुपचाप राजरानी की भरीपूरी गृहस्थी में से चोरियां करने लगी. कभी कोई भांडा, कभी चांदी का सामान, कभी उस की विदेशी साड़ी. वह छठेछमासे आती, उसे पता भी न चलता. उस की याददाश्त कम होने लगी थी. धीरेधीरे उस का आना कम होने लगा. किसे होश था सामान का?

प्यारेलाल ने मोटर हथिया ली जो अजीत के नामकरण के वक्त राजरानी के मायके से आई थी. वह उस को टैक्सी में चलाने लगा. मैं ने उस से अपना कट रखवा लिया. वह रोज के रोज 30-40 रुपए दे देता. मैं ने कोठी को सजासंवार कर रखा. कोई ब्याहबरात होती तो सामने का बगीचा और कमरे किराए पर दे देती.

महल्लेभर के बच्चे इस आंगन को आबाद रखते. मैं खुद 8वीं तक पढ़ी थी मगर उन बच्चों का होमवर्क करातेकराते कुछ ज्यादा ही पढ़लिख गई. जिसे भी जरूरत होती मेरे पास सीखनेसमझने आ बैठता. बिशनदास का कमरा किताबों से भरा पड़ा था. मैं खूब पढ़ती. मेरा नाम चाचीजी पड़ गया. सिर्फ अजीत की नहीं जगतभर की चाची.

एक दिन सुना कि राजरानी बहुत बीमार है. मैं ने प्यारेलाल को खबर लाने के लिए भेजा. मगर उस के बेंगलुरु पहुंचने से पहले ही वह मर चुकी थी. बड़ी बुरी तरह मरी. दिमाग नहीं रहा था उस का. जहांतहां गंदगी फैला देती. पलंग पकड़ लिया था. पड़ेपड़े घाव हो गए. पूरे शरीर में गलन आ गई. हालांकि अजीत और सुनंदा ने सेवादवा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. आखिरकार अजीत ने…

चलो, जो हुआ भला हुआ. निजातमिली.

राजरानी के मरने के बाद अजीत आया था. सुनंदा को राजरानी ने सब बताया था, मगर वह नेक स्वभाव की पढ़ीलिखी लड़की निकली. उस ने आदर से पूछा, ‘चाचीजी, मम्मी का बहुत सा सामान पड़ा है. आप को देखभाल करनी पड़ती है. आप चाहें तो हम ले जाएं?’

‘हां बेटी, सब तुम्हारा है. जो चाहे ले जाओ.’

वह तीनचार दिन तक सामान खोलतीछांटती रही. जो उसे ठीक लगा, ले गई. बाकी यहीं धरा है. मेरे मरने तक पड़ा रहेगा. घर तो कितना जर्जर हो चुका है. मेरा बुढ़ापा भी तो यहीं आ कर पसरा है जाने कब से.

अजीत कह गया था कि जब तक मैं जिंदा हूं वह कोठी नहीं बेचेगा. देशी कब की मर चुकी. पुरानी हवेली पर किराएदारों ने कब्जा जमा लिया. कौन कोर्टकचहरी कर रहा है? अजीत और सुनंदा के पास बहुत है. बेंगलुरु में ठाट से रहते हैं. एक बेटा, वह भी न्यूयौर्क में जा बसा है. आजकल फैशन है विदेश में बच्चों को भेज देने का.

मेरी रोटीपानी, सेवादवा सब इन बच्चों के तमाम गरीब मांबाप देख लेते हैं. बगीचे में सब्जियां लगी हैं. जो पेड़ तुम ने बोए थे खूब फल देते हैं. आम, लीची, अमरूद, अनार. मैं खुश हूं. तुम सब के मरने के बाद बांटबांट कर खाती हूं.

कहते हैं न कि सब से अच्छा प्रतिशोध है, बाद तक बचे रहना.

बरात दुलहन के घर तक पहुंच गई. अगवानी और मिलनी हो रही है. दुलहन की दादी, राजदूत की बीवी ने मुझे यानी रोहित की दादी को गले लगाया, मिलनी की और पशमीने की शौल ओढ़ाई. कल जब दुलहन की डोली घर आएगी तो मुंहदिखाई में उसे मैं अपना वही जड़ाऊ मांगटीका और झुमके दूंगी जो तुम ने मुझे दिलाए थे. आखिर मैं ठहरी उत्तरजीवी.

वे 20 दिन : क्या राजेश से शादी करना चाहती थी रश्मि?

लेखक- किशोर

नेहरू प्लेस से राजीव चौक का करीब आधे घंटे का मैट्रो का सफर कुछ ज्यादा रुहानी हो गया है. अब यह मैट्रो स्टेशन रात को भी सपने में नजर आता है. क्यों नहीं आएगा? यहीं मैं ने उसे पहली बार देखा था. देखा क्या? पहली नजर में उस से प्यार करने लगा. पता नहीं कि यह मेरा प्यार है या महज आकर्षण. पहला दिन, दूसरा दिन और फिर शुरू हो गया आनेजाने का सिलसिला.

स्टेशन पर जब वह नजर आती तो मेरा दिल उछलने लगता. अगर नहीं दिखती तो एकदम उदास हो जाता. पूरे 24 घंटे उस की तसवीर मेरी आंखों के इर्दगिर्द घूमती रहती. एक सवाल मुझे परेशान करता रहता कि क्या उस की किसी और से दोस्ती है? रोजाना यही सोच कर जाता कि आज तो दिल की बात उस से कह ही दूंगा, लेकिन उस के सामने आते ही मेरी घिग्घी बंध जाती. मुझे उस से कभी एकांत में मिलने का मौका ही नहीं मिला.

देखने में तो वह मुझ से बस 2-3 साल ही छोटी लगती. उस पर नीली जींस और लाल टौप खूब फबता. कभीकभी तो वह सलवारकुरते में भी बेहद खूबसूरत नजर आती. उस के बौब कट बाल और कानों में बड़ेबड़े झुमके, काला चश्मा, हलका मेकअप उस की सादगी को बयान करते. मैं उस की इसी सादगी का कायल

हो गया था. मैट्रो में पूरे सफर के दौरान मेरी नजरें उसी के चेहरे पर टिकी रहतीं.

मैं सोचता, ‘कैसी लड़की है? मेरी तरफ देखती तक नहीं,‘ फिर दिल को किसी तरह तसल्ली दे देता. फिर सोचता कि कभी तो उसे तरस आएगा.

दोस्त कहते हैं, ‘लड़कियां तो पहली नजर में ही अपने मजनू को ताड़ जाती हैं.’ मैं भी तो उस का मजनू हूं, फिर क्यों… मैट्रो में मोबाइल की लीड लगा कर उस का गाना सुनना मुझे अखरता रहता. कभीकभी तो वह गाने सुनने के साथसाथ अंगरेजी उपन्यास

भी पढ़ना शुरू कर देती. मैट्रो में राजीव चौक स्टेशन की घोषणा होते ही वह सीट से उठ जाती और तेजी से चल पड़ती. मैं भी भीड़ के साथसाथ उस के पीछे हो लेता. रीगल सिनेमाहौल के आसपास कहीं उस का कार्यालय था.

जब तक वह मेरी आंखों से ओझल नहीं हो जाती, तब तक मैं खड़ा एकटक उसे देखता रहता. बाद में धीरेधीरे मैं भी अपने कार्यालय की ओर चल पड़ता. कार्यालय में काम करने का मन ही नहीं करता. मेरा पूरा ध्यान तो घड़ी की सूई पर टिका रहता. कब 1 बजे और मैं लंच का बहाना बना कर नीचे उतरूं. क्या पता, मार्केट में मुझे कहीं उस के दर्शन हो जाएं. एकाध बार तो वह नजर आई थी, लेकिन तब उस के साथ कार्यालय के कई सहयोगी थे. हफ्ता बीत गया. मेरी बेचैनी दिनोदिन बढ़ती जा रही थी. कितना दब्बू हूं मैं…  लड़का हूं, मुझे तो पहले पहल करनी चाहिए थी. डरता हूं कि कहीं कोई तमाशा खड़ा न हो जाए.

कुछ दिन से तो खानासोना पूरी तरह से हराम हो गया था. जब टिफिन का खाना वापस घर लौटने लगा तो भाभी नाराज होने लगीं. शिकायत मां तक पहुंची. सुबह भी मेरा नाश्ता ढंग से नहीं होता. वजह एक ही थी कि कहीं मैट्रो न छूट जाए.

‘‘छोटू, क्या बात है?’’ बड़े भाई ने पूछा.

मां बोलीं, ‘‘शायद इस की तबीयत खराब होगी. जवान लड़का है. बाजार में खट्टीमीठी चीजें खा लेता होगा.’’

‘‘नहींनहीं सासूजी, राजू बाहर कुछ खाता नहीं है, समझ में नहीं आ रहा है कि इस लड़के को किस बात की जल्दबाजी रहती है. मैं समय पर नाश्ता बना लेती हूं. कल थोड़ी देर क्या हो गई, बरस पड़ा था. पहले तो इस की कभी बोलने की भी हिम्मत नहीं होती थी. देवरानी आ जाएगी तो दिमाग ठिकाने लगा देगी,’’ भाभी बोलीं.

‘‘हां, मेरी नजर में मास्टर देवधरजी की बेटी नीता है. इसी साल उस ने 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की है. देखने में गोरीचिट्टी, सुंदर और सुशील है,’’ भैया बोले, ‘‘राजेश से बात तो चलाओ. मुझ से तो वह शरमाता है. मां, तुम ही उस से बात कर के देख लो.’’

रविवार को छुट्टी का दिन था. मैं अपने कमरे में बैठा उन सब लोगों की बातें सुन रहा था. मुझे लगा कि अब तो मां मेरे कमरे में आ ही जाएंगी.

मैं फौरन उठा और अपने 8 साल के भतीजे को आवाज लगाई, ‘‘सोनू, चल, छत पर पतंग उड़ाते हैं.’’

‘‘अच्छा चाचू, आया, लेकिन चाचू मम्मी ने पढ़ने को कहा है.’’

‘‘चल तो सही, मैं भाभी से कह दूंगा.’’

‘‘राजेश सुन,’’ मां ने आवाज दी पर मैं ने मां की आवाज को अनसुना कर दिया. भतीजे को कंधे पर बैठाया और तेज कदमों से छत पर चला गया. पीछे से भाभी की आवाज सुनाई दी, ‘‘राजू, सुन नाश्ता तो कर ले.’’

‘‘बाद में भाभी.’’

इतने में भैया बोले, ‘‘शरमा गया है. लगता है कि उस ने हमारी बातें सुन ली हैं. चलो, इतनी भी जल्दी क्या है? आराम से बात कर लेंगे,’’ भैया यह कह कर बाहर चले गए और मांभाभी अपनेअपने काम में व्यस्त हो गईं.

छत पर जाना तो मेरा बस, एक बहाना था. मैं फिर उस की यादों में खो गया और सोचने लगा, ‘कल तो कुछ भी हो जाए, मैं उस से अवश्य बात करूंगा.’

‘‘चाचूचाचू, कहां ध्यान है आप का. डोर तो ठीक से पकड़ो. हमारी पतंग कट जाएगी.’’

‘‘अच्छाअच्छा, तू ढील तो छोड़,’’ छत पर काफी देर हो गई. भाभी से रहा नहीं गया तो वे नाश्ता ले कर ऊपर छत पर ही आ गईं. भाभी से मेरा बचपन से ही गहरा लगाव था.

बचपन में मुझे नहलानेधुलाने की सारी जिम्मेदारी उन्हीं की होती थी. भाभी से रहा नहीं गया और बोलीं, ‘‘राजेश, नाश्ता कर ले. कब तक भूखा रहेगा? आखिर ऐसी क्या नाराजगी है. अब तो दोपहर के खाने का समय होने वाला है.’’

‘‘हां, भाभी, रख दो. खा लूंगा.’’

‘‘नहींनहीं. पहले खा क्योंकि तब तक मैं जाने वाली नहीं. तेरे भैया ने सुन लिया तो दोनों को डांट पड़ेगी.’’

‘‘क्या बनाया है भाभी?’’

‘‘आलू के परांठे और आम की चटनी है.’’

‘‘अरे वाह,’’ और फिर मैं खाने पर टूट पड़ा.

भाभी मेरे बदले व्यवहार से परेशान थीं, इसलिए वह अकेले में मुझ से बात करने का बहाना तलाश रही थीं, ‘‘अरे, राजू, कब तक भाभी से छिपाता फिरेगा. मैं तुझ से बहुत बड़ी हूं. जिंदगी की समझ मुझे तुझ से ज्यादा है.’’

‘‘नहींनहीं, भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘कहीं तेरा कोई प्यारव्यार का चक्कर तो नहीं है. मुझे बता दे. अब तो घर में तेरी शादी की बातें होने लगी हैं. तुझे कोई लड़की पसंद है तो मुझे बता दे. तेरे भैया को बता दूंगी. वे आधुनिक विचारों के हैं. मान जाएंगे. हां, सासूजी को मैं मना लूंगी. बाकी जैसी तेरी मरजी. मैं चलती हूं दोपहर के खाने का समय हो गया है. तुम दोनों भी जल्दी नीचे

आ जाना और सोनू को स्कूल का होमवर्क करा देना.’’

‘‘ठीक है भाभी, हम दोनों आते हैं.’’

खाना खाने के बाद मैं बिस्तर पर लेट गया. नींद तो कोसों दूर थी. रात के खाने पर मां ने शादी की बात छेड़ने की कोशिश की. मैं बोला, ‘‘इतनी भी जल्दी क्या है?’’

इतने में भाभी बोल पड़ीं, ‘‘ठीक है, मैं राजेश को समझा दूंगी. अभी उसे खाना तो खा लेने दो. सप्ताह में एक दिन तो घर पर रहता है.’’

मैं भतीजे को ले कर अपने कमरे में चला गया. भाभी मेरा कितना खयाल रखती हैं. उन से कोई बात छिपानी नहीं चाहिए. लेकिन पहले उस लड़की से बात तो हो जाए. सोमवार से सोचतेसोचते शुक्रवार बीत गया. इस बीच उस से बात करने का मौका नहीं मिला. अब तो मुझे सोमवार का इंतजार करना पड़ेगा. शनिवाररविवार को तो उस का अवकाश होता है. आज शनिवार था इसलिए मुझे उठने की जल्दी नहीं थी.

सुबह का नाश्ता मैं ने आराम से किया. मैट्रो स्टेशन पहुंचा तो उसे देख कर चौंक पड़ा. वह पीछे वाले कोच की तरफ जा रही थी. आज कोच में कम लोग थे. मैं फौरन उस की बगल वाली सीट पर जा बैठा.

मैं कांपती आवाज में उस से बोल पड़ा, ‘‘मैं राजेश.’’

उस ने पहले मेरे चेहरे की ओर देखा और बोल पड़ी, ‘‘आई एम रश्मि. तुम भी रोजाना राजीव चौक जाते हो. कई बार तुम्हें देखा है. क्या करते हो?’’

‘‘एमबीए किया है मैं ने. एक पीआर कंपनी में नौकरी करता हूं.’’

‘‘मैं भी एक टायर कंपनी में काम करती हूं. वैसे शनिवार को छुट्टी होती है, लेकिन आज औफिस में काम कुछ ज्यादा था इसलिए आना पड़ा.’’

कब राजीव चौक आ गया पता ही नहीं चला.

‘‘अच्छा, चलती हूं.’’

आज पूरे 13 दिन के तनाव व बेचैनी के बाद मुझे राहत मिली. ‘अब तो भाभी को बता ही दूंगा. नहींनहीं,’ आज तो पहली बार बात हुई है. 2-3 बार मिलेगी तो खुल कर बात करने का मौका मिल जाएगा,’ मैं ने मन ही मन सोचा.

सोमवार को वह दिखाई नहीं दी. लगता है कि पहले निकल गई होगी. जब 2-3 दिन ऐसे ही गुजर गए तो मेरी बेचैनी बढ़ने लगी. ’कहां गई होगी? काश, मैं ने उस से मोबाइल नंबर मांग लिया होता.’ सोचसोच कर मैं परेशान हो उठा. शाम को पूरी तरह से निराश था. उम्मीद ही नहीं थी कि रश्मि से मुलाकात हो जाएगी.

रश्मि का चेहरा कुछ थकाथका सा लग रहा था. पास पहुंचा तो बोल पड़ी, ‘‘अरे, राजेश, कैसे हो.’’

‘‘ठीक हूं. क्या बात है 3-4 दिन…’’

‘‘हां, मैं हैदराबाद गई थी. मामाजी का देहांत हो गया था. आज सुबह की फ्लाइट से दिल्ली लौटी हूं.’’

मैट्रो तेज रफ्तार पकड़ चुकी थी. बातचीत में सफर कब कट गया, पता ही नहीं चला. नेहरू प्लेस स्टेशन आते ही वह उतरी और तेज कदमों से आटो ले कर घर चली गई. मैं भी अपने घर चला गया. घर पहुंचा तो भाभी मेरी चालढाल से समझ गईं. ‘‘देवरजी, आज तो चेहरे पर रौनक नजर आ रही है. क्या कोई खुशखबरी है?’’

‘‘नहीं भाभी, आप तो…’’

‘‘चल, चाय बना कर लाती हूं. हाथमुंह धो ले.’’

मां भी आ गईं. मां कुछ पूछें उस से पहले ही मैं कपड़े बदलने का बहाना बना कर अपने कमरे में चला गया. भतीजा भी मेरे पीछेपीछे हो लिया.

‘‘चाचू, 10 रुपए…’’

‘‘क्यों, कुछ लेना है. ठीक है, लेकिन मम्मीपापा को मत बताना.’’

आज दिल बहुत खुश था. सबकुछ अच्छा लग रहा था. भाभी को बताना चाहता था इसलिए किचन में चला गया.

‘‘अरे, देवरजी, किचन में क्यों आ गए.’’

‘‘क्यों, मैं यहां नहीं आ सकता भाभी?‘‘

’’क्यों नहीं. कोई न कोई बात होगी. पहले तो कभी नहीं आया था. तेरे पास हमारे साथ बात करने का तो समय ही नहीं होता. बोल, खाने में क्या बनाऊं तेरे लिए.’’

‘‘पनीर खाने का मन हो रहा है, भाभी.’’

‘‘ठीक है,’’ भाभी ने कहा, ‘‘बाजार से खरीद कर ले आ. मैं बना देती हूं. बहुत

दिन से सोनू भी पनीर खाने की जिद कर रहा था.’’

अचानक मां आ गईं और बोलीं, ‘‘क्या बातचीत हो रही है दोनों देवरभाभी में.’’

‘‘कुछ नहीं मां, मैं भाभी से कह रहा था कि पनीर की सब्जी बना दो.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. ठीक है, पालक भी ले आना. पालकपनीर की सब्जी तेरे भाई को पसंद है.’’

मैं फौरन बाजार की तरफ निकल पड़ा. बाजार क्या पहुंचा? पुराने दोस्तों की टोली मिल गई. मैं चाह कर भी उन से पीछा नहीं छुड़ा पाया. फिर तो मेरी खिंचाई का दौर शुरू हो गया. ’घर में बैठेबैठे क्या करते हो.’ ’शादी के लिए कोई लड़की पसंद की है कि नहीं,’ एकसाथ कई सवालों ने मेरा दिमाग खराब कर दिया…

’’अरे भाई, अब जाने भी दो. भाभी ने पनीर और पालक के लिए भेजा है. भैया भी आते होंगे. देर हो गई तो मुझे डांट पड़ेगी.’’

‘‘आज तो तुझे इतनी जल्दी नहीं छोड़ेंगे बच्चू. बहुत दिन बाद बड़ी मुरगी जाल में फंसी है. नौकरी की पार्टी हमें अभी तक नहीं मिली है.’’

‘‘सब ठीक है अगली बार… पक्का.’’

‘‘रविवार को हम सब इंतजार करेंगे.’’

बाप रे, पीछा छूटा, और कोई पुराना दोस्त मिले इस से पहले घर भागता हूं. सब्जी की दुकान पर पहुंचा तो नीता अपने पापा और छोटी बहन के साथ खड़ी थी. नजरें मिलीं तो शरमा गई और मुंह फेर लिया. उसे इस बात की भनक लग चुकी थी कि मेरे साथ उस के रिश्ते की बात चल रही है. इस से पहले कि उस के पापा की नजर मुझ पर पड़ती, मैं फौरन घर भाग लिया. मैं घर के अंदर कदम रख ही रहा था कि भैया नीता के रिश्ते के बारे में मां से पूछ रहे थे, ‘‘मां, राजू से बात की.’’

‘‘नहीं, अभी नहीं. पहले उस की हां तो हो जाए फिर सभी उन के घर चल पड़ेंगे.’’

मैं ने नीता को बचपन से देखा था. हम दोनों साथसाथ खेलते थे. पिछली बार देखा तो पहचान नहीं पाया. तभी दोस्तों ने बताया कि वह नीता है. अब घर वाले उस के हाथ पीले करने की सोच रहे हैं. मैं आधुनिक और पढ़ीलिखी लड़की को अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं, नीता की तरफ मेरा ध्यान ही नहीं गया था. रश्मि तो पढ़ीलिखी है. अच्छी नौकरी है. घर वालों को जल्दी पसंद आ जाएगी. बस, अब रश्मि का इंतजार है. दोचार दिन में हम दोनों पूरी तरह से घुलमिल गए थे, लेकिन अभी तक इतनी हिम्मत नहीं हुई कि दिल की बात कह सकूं.

सोचता हूं कि जल्दबाजी में कहीं बात बिगड़ न जाए. रश्मि वैसे भी खुले विचारों की युवती थी. खुल कर बात होने लगी. अगले शनिवार को रश्मि ने मेरा घूमने का प्रस्ताव मान लिया. दिन में हम ने दिल्ली दरबार में लंच किया और फिर आटो पकड़ कर इंडिया गेट की तरफ चल पड़े. खूब घूमेफिरे, लेकिन दिल की बात करने का मौका ही नहीं मिला. असल में रश्मि ने ऐसा कोई मौका ही नहीं दिया.

औफिस और हैदराबाद की बातों में ही पूरा दिन निकल गया. घर वापसी में ज्यादा बात नहीं हो पाई. वह थोड़ी परेशान नजर आई. नेहरू प्लेस स्टेशन आते ही वह तेजी से बाहर निकली और मुझे बाय करते हुए चल पड़ी. 1-2 घंटे पहले तो सब ठीक था. अचानक इसे क्या हो गया? कोई समस्या होगी. अगले 2 दिन तक रश्मि नजर नहीं आई. आखिर क्या बात हो गई. किसी ने हमें साथ घूमते देख तो नहीं लिया. मिलने पर ही सारी स्थिति स्पष्ट हो पाएगी. बुधवार को रश्मि से मुलाकात हो गई.

‘‘क्या हुआ रश्मि?’’

वह बोली, ‘‘पहले आराम से बैठते हैं, फिर बातें करते हैं.’’

उस का चेहरा बुझाबुझा सा लग रहा था. आज ठीक से मेकअप भी नहीं किया. लगता है कि रातभर सोई नहीं होगी. मेरे कई सवालों का उस ने एक उत्तर दिया. ‘‘बहुत जल्दबाजी करते हो,’’ कहते ही वह अचानक गंभीर हो गई.

‘‘राजेश, तुम बहुत अच्छे लड़के हो. अच्छी नौकरी है. दिखने में हैंडसम हो. एक अच्छे दोस्त के नाते तुम्हें एक सलाह देती हूं कि जल्दी ही शादी कर लो.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘मैं सब समझती हूं. शायद तुम्हें पता नहीं कि मैं शादीशुदा हूं और 2 बच्चों की मां हूं. पति आर्मी में हैं. उन की ड्यूटी ज्यादातर सीमा पर रहती है. मैं सासससुर के साथ रहती हूं. मैं दोस्ती तोड़ने को थोड़े कह रही हूं. वह तो चलती ही रहेगी. यह सब अलग बात है. जिंदगी की गाड़ी चलाना अलग बात है.’’

मैं पूरी तरह से जड़वत हो गया. क्या सोचा था? क्या हो गया? एक ही झटके में सब खत्म हो गया. अचानक रश्मि सीट से उठी और तेजी से चल पड़ी. मैं अवाक् रह गया.

उस के जाते ही मैं ने खुद को संभाला. मेरी क्या गलती थी? स्टेशन पर उतरने के बाद मैं धीरेधीरे घर की ओर चल पड़ा. पैर जमीन पर ठीक से नहीं पड़ रहे थे. दरवाजे पर पहुंचा ही था कि भाभी खड़ी थीं. ‘‘अरे राजू, तू आ गया. क्या बात है तेरे चेहरे पर तो पूरे 12 बजे हैं.‘‘

‘‘नहीं, भाभी, ऐसा कुछ नहीं है,’’ अचानक मेरे मुंह से निकल पड़ा, ‘‘भाभी, आप लोग नीता को देखने कब जा रहे हो. भाभी, मुझे नीता पसंद है.’’

भाभी को एकाएक विश्वास ही नहीं हुआ. उन्होंने उत्साह में भैया को जोर से आवाज दी, ‘‘अजी, सुनते हो…’’

‘‘क्या है, क्यों इतना चिल्ला रही हो?’’ भैया बोले.

‘‘जल्दी से बाजार से 2 किलो अच्छी बरफी तो ले आओ.’’

‘‘आखिर ऐसी क्या बात हो गई. कौन सी खुशी की बात है.’’

‘‘अपने राजू को नीता पसंद आ गई है. वह शादी के लिए मान गया है.’’

मां भी दौड़ीदौड़ी बाहर आ गईं. घर में पूरी तरह से खुशी का माहौल था. भतीजे ने सुना तो वह भी खुशी से पागल हो गया.

‘‘मैं अपने दोस्तों को बताने जा रहा हूं, चाचू. मेरे चाचू की शादी होगी. बहुत मजे आएंगे.’’

प्यार के रंग : क्यों अपराधबोध महसूस कर रही थी वर्षा?

लेखिका- नीलम राकेश

सफेद कोट पहने और गले में आला लटकाए वह अपलक उसे आता देख रहा था. कुछ तो बात थी उस लड़की में कि डाक्टर मृणाल सा उस की ओर खिंचता जा रहा था.

मझोला कद, साधारण नैननक्श के बावजूद उस लड़की में एक कशिश थी जो डाक्टर मृणाल को बेचैन कर रही थी. कुछ भी तो नहीं जानता था वह उस के बारे में, सिवा इस के कि उस की एक मरीज चांदनी को देखने वह रोज सुबहशाम आती है. 6 महीने से यह क्रम बिना नागा चला आ रहा है, जबकि वह जानती है कि उस का आना चांदनी को पता नहीं चलता.

आज डाक्टर मृणाल ने तय कर लिया था कि वे आज उस से कुछ पूछेंगे. “गुड मौर्निंग डाक्टर, आप को कुछ चाहिए?” रिसैप्शनिस्ट विनम्रता से पूछ रही थी.

“नहीं, धन्यवाद. मैं किसी की प्रतीक्षा कर रहा था,” कहते हुए डाक्टर मृणाल रिसैप्शन से हट कर उस के पीछे चल दिए.

उन की मरीज चांदनी एक साधारण परिवार से थी. किसी हादसे के कारण वह कोमा में चली गई थी. शुरू में उस के भाई, भाभी, पिता सब उसे देखने आते थे. परंतु इलाज के खर्चे के आगे घुटने टेकने लगे. अस्पताल से दबाव पड़ा कि और पैसे जमा करो या मरीज को घर ले जाओ, तो परिजनों ने आना बंद कर दिया. बेचारी को अस्पताल के रहमोकरम पर छोड़ दिया. परंतु, यह लड़की लगातार सुबहशाम आती रहती है.

वार्ड में वह चांदनी के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए कुछ बोल रही थी इस बात से अनजान कि उस की बात चांदनी नहीं, पीछे खड़े डाक्टर मृणाल सुन रहे हैं, “तुझे ठीक होना होगा चांदनी, मैं तुझे इस तरह से नहीं देख सकती.”

“आप का विश्वास इसे ठीक करेगा, मिस…” डाक्टर मृणाल ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

” वर्षा, मेरा नाम वर्षा है डाक्टर,” वह उठती हुई बोली.

“वर्षा जी, आप इन की बहन हैं?”

“नहीं डाक्टर, यह मेरी सहेली है.”

“सहेली ? आप सहेली के लिए…” डाक्टर मृणाल को कुछ सूझा नहीं तो वे चुप हो गए.

” जी हां, मैं अपनी सहेली के लिए ही आती हूं. आप को एतराज है क्या डाक्टर?” वह सीधे डाक्टर की आंखों में देख रही थी.

“क्षमा करें, आप की भावना को आहत करने का मेरा इरादा नहीं था. पर आजकल … आप समझ रही हैं न वर्षा जी, मैं क्या कहना चाह रहा हूं.”

“जी डाक्टर, समझ रही हूं. मैं भी क्षमा चाहती हूं. मुझे इस तरह उत्तेजित नहीं होना चाहिए था.”

“क्षमा तो आप को मिल सकती है वर्षा जी, अगर आप कैंटीन में चल कर मेरे साथ एक कप कौफी पिएं.”

अपने हाथ में बंधी घड़ी पर नजर डालते हुए वर्षा बोली, “लेकिन मुझे जाना है.”

“क्या 10 मिनट भी नहीं निकाल सकतीं?”

“ठीक है, 10 मिनट तो हैं.”

“आइए.”

दोनों मौन कैंटीन की ओर चल दिए. वहां पहुंच कर डाक्टर मृणाल बैठने से पहले काउंटर पर 2 कौफी बोल आए.

“वर्षा जी, आप क्या कर रही हैं?”

“मैं स्कूल में पढ़ा रही हूं डॉक्टर,” मृदु मुसकान के साथ वर्षा बोली.

“आप मुझे मृणाल ही कहें. मृणाल, मेरा नाम है,” विनम्रता से डाक्टर मृणाल बोले.

“बहुत अच्छा नाम है.”

“आप को देख कर तो लगता है आप पढ़ ही रही होंगी.”

“मैं पढ़ ही रही थी डाक्टर…मेरा मतलब है मृणाल जी.”

“अं…?”

“परिस्थितियां बदल गईं मृणाल जी और मुझे पढ़ाई छोड़ कर नौकरी करनी पड़ी.”

“हां, समय बहुत बलवान होता है.”

“अरे, समय हो गया, मुझे निकलना होगा. मेरे स्कूल का टाइम हो गया,” अपना कप रखती हुई वर्षा उठ खड़ी हुई.

“कौफी पर मेरा साथ देने के लिए धन्यवाद वर्षा जी.”

मृणाल वहीं बैठा वर्षा को जाता देखता रहा. धीरेधीरे यह रोज की दिनचर्या बन गई. मृणाल सुबहसुबह वर्षा के आने के समय पर चांदनी के वार्ड में पहुंच जाता और शाम को फिर वर्षा को वहीं मिलता.

एक दिन वर्षा ने हंसते हुए पूछा, “मृणाल, आप मेरी सहेली के इलाज में कुछ ज्यादा ही रुचि लेते हैं, क्या बात है?”

“आप की सहेली तो मेरी मरीज है. उस के प्रति मेरी जिम्मेदारी है. लेकिन आप से मुझे प्यार हो गया है.”

“नहीं…” कहती हुई वर्षा उठी और तेजी से कमरे से बाहर भाग गई.

हतप्रभ सा मृणाल कुछ समझ ही नहीं पाया. अगली सुबह मृणाल बेसब्री से वार्ड में टहल रहा था, सोच रहा था, वह आएगी या नहीं. तभी वह रोज की तरह आती दिखाई दी और मृणाल की जान में जान आ गई.

“गुडमौर्निंग वर्षा.”

“गुडमौर्निंग डाक्टर.”

“क्या बात है वर्षा, तुम ठीक तो हो?” वर्षा की लाल आंखों की ओर देखते हुए मृणाल ने पूछा.

“मैं ठीक हूं डाक्टर. लेकिन क्षमा चाहती हूं, यदि मेरी किसी बात से आप के मन में यह प्यार वाली बात आई है तो.”

“वर्षा…”

“डा. मृणाल, प्यार या ऐसी सारी कोमल भावनाएं मेरे जीवन से दूर जा चुकी हैं. मेरे जीवन का एक ही लक्ष्य है, कि मेरी चांदनी ठीक हो जाए. उस के पहले मैं और कुछ नहीं सोच सकती.”

“तुम्हें पता है, चांदनी ठीक भी हो सकती है और…”

“जानती हूं, आप सब डाक्टरों यही बताया है.”

“फिर?”

“अपने जीवन का निर्णय लेने का अधिकार तो मुझे है ही.”

“वर्षा, तुम्हारा यह निस्वार्थ समर्पण, तुम्हें औरों से अलग खड़ा करता है.”

“एक मिनट, डाक्टर मुझे महान समझने की भूल मत करिएगा.”

“तुम महान हो वर्षा. जो जीवन में अकेला होता है, इस निश्च्छ्ल स्नेह की कीमत वही जानता है. आज से 4 वर्षों पहले जब मुझे पहली सैलरी मिली थी तब मैं ने अपने मम्मीपापा को तीर्थयात्रा के लिए भेजा था. यह उन का सपना था. परंतु मेरा समय देखो, लौटते समय उन की बस खाई में गिर गई और कोई नहीं बचा. डाक्टर हो कर भी मैं कुछ नहीं कर सका. मेरी दुनिया उजड़ गई. मैं बिलकुल अकेला हो गया. इस दर्द को मैं ने भोगा है. फिर मैं ने चांदनी को अकेले होते हुए देखा. परंतु समय की बलवान है वह, कि अपनों द्वारा छोड़े जाने के बाद भी तुम ने उसे नहीं छोड़ा. तुम्हारे लिए मेरे मन में प्यार के साथसाथ बहुत आदर भी है.”

“नहीं डाक्टर मृणाल, मैं इस प्यार और आदर के योग्य नहीं हूं. जहां तक बात अपनों के तिरस्कार की है तो डूबते सूरज को कौन जल चढ़ाता है? और अगर मेरी बात करें तो यह मेरा प्रायश्चित्त भी है. कहीं ना कहीं मैं खुद

को दोषी पाती हूं.”

“भरोसा कर सको, तो मुझे पूरी बात बताओ. पर प्लीज, मुझे मृणाल ही कहो.”

“भरोसा तो जाने क्यों आप पर हो गया है. और जहां तक अकेलेपन की बात है, तो चांदनी का साथ देने का निर्णय ले कर मैं भी पूरी तरह अकेली ही हो गई हूं.”

“बैठो,” स्टूल वर्षा की ओर खिसकाते हुए डाक्टर मृणाल बोले.

दोनों चांदनी की बैड के पास 2 स्टूलों पर बैठ गए. वर्षा शून्य में देखती हुई बोली, “मेरे मम्मीपापा नहीं हैं. केवल भाई, भाभी हैं. उन पर मैं बोझ हूं. चांदनी के पापा हैं और भाई, भाभी भी हैं. भाभी को वह फूटी आंख नहीं सुहाती. दुनियादारी निभाने कुछ समय वे लोग अस्पताल आए और अब खुश हैं कि उस की शादी का खर्चा बचा. अंकल खुद बेटे के ऊपर ही आश्रित हैं. हम दोनों सहेलियां बचपन से साथ ही पढ़ी हैं. घर हमारा भले ही दूर था, पर मन बहुत करीब था. हमारे दर्द साझा थे. हम दोनों पढ़ कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहते थे. परंतु चांदनी के जीवन में तपन नाम का एक लड़का आ गया. दोनों के बीच गहरा प्रेम था, ऐसा मुझे लगता था. चांदनी मेरे घर आने का बहाना कर तपन के साथ समय बिताती थी. पर हमेशा मुझे बता देती थी ताकि मैं घर वालों के प्रश्नों को संभाल लूं. सबकुछ ठीक ही चल रहा था. उस दिन तपन ने मुझे फोन कर कहा, ‘मैं चांदनी को सरप्राइज देना चाहता हूं. चांदनी को विराट होटल के कमरा नंबर 16 में भेज दो. मेरा जन्मदिन है और मैं चाहता हूं कि मैं आज के दिन ही उसे प्रपोज करूं.’ मैं बहुत खुश हो गई और उस के सरप्राइज में शामिल हो गई. चांदनी को फोन कर के वहां बुला लिया.”

यह सब बोलतेबोलते वर्षा फफक कर रो पड़ी. मृणाल ने उठ कर उसे गिलास में पानी दिया. शून्य में देखते हुए ही उस ने पानी पी कर गिलास मृणाल को पकड़ा दिया.

“मैं चांदनी के फोन की प्रतीक्षा कर रही थी. पर उस का फोन नहीं आया. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था कि इतनी बड़ी बात वह मुझे क्यों नहीं बता रही. जब नहीं रहा गया तो मैं ने उसे फोन लगाया. पर फोन नहीं उठा. थकहार कर मैं ने उस की भाभी को फोन मिलाया. वे बोलीं, ‘तुम्हारी सहेली तुम्हारे घर जाने का बहाना कर जाने कौन सा गुल खिलाने होटल विराट चली गई थी. वहां गिर गई है. पता नहीं बचेगी कि नहीं. हम लोग अस्पताल में हैं.’

“मैं भागतीदौड़ती अस्पताल पहुंची. उस की हालत देख कर साफ पता चल रहा था कि उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश हुई है. मैं ने पुलिस को, भैया और अंकल को उस के होटल विराट जाने का कारण बताया और तपन का नंबर दे दिया. पता चला तपन एक रईस परिवार का बिगड़ा हुआ लड़का था और उस ने गलत इरादे से चांदनी को वहां बुलाया था. कमरे में वह 2 दोस्तों के साथ उस की प्रतीक्षा कर रहा था. परंतु चांदनी ने उन सब का डट कर मुकाबला किया और आखिर में खुद को बचाने के लिए खिड़की से कूद गई. उस का सिर दीवार से टकराया था और वह कोमा में चली गई. तपन ने पुलिस वालों के साथसाथ चांदनी के भाई को भी मोटी रकम दे कर केस वापस करा लिया. और अब वे लोग उस का इलाज भी नहीं करा रहे हैं. इसलिए, मैं ने पढ़ाई छोड़ कर 2 महीना पहले यह नौकरी जौइन कर ली, ताकि चांदनी का इलाज न रुके. मैं और कुछ तो नहीं कर सकती, पर उस का इलाज तो जरूर करवाऊंगी,” यह कह कर वह फिर रो पड़ी.

मृणाल ने धीरे से वर्षा के कंधे पर हाथ रखा, “वर्षा, तुम अपने इस निर्णय पर मुझे हमेशा अपने साथ खड़ा पाओगी. आंसू पोंछ लो वर्षा.”

वर्षा ने नजर उठा कर मृणाल की ओर देखा जैसे तोल रही हो.

“वर्षा हम दोस्त हैं, और दोस्त ही रहेंगे. यह दोस्ती प्यार के रिश्ते में तब ही बदलेगी जब तुम चाहोगी. मैं सारी उम्र तुम्हारी प्रतीक्षा कर सकता हूं. रही बात चांदनी के इलाज की, तो मैं तुम से वादा करता हूं, आज से यह जिम्मेदारी मेरी है.”

“मृणाल…”

“कुछ मत बोलो वर्षा. बस, मुझे अपने साथ खड़े रहने की अनुमति दे दो.”

एक महीने बाद डा. मृणाल और वर्षा एक सादे समारोह में परिणय सूत्र में बंध गए. मृणाल के छोटे से घर में पहुंच कर वर्षा ने चारों ओर नजर घुमाई. सलीके और सादगी से सजा घर मृणाल के व्यक्तित्व से मेल खा रहा था. उसी समय मृणाल ने पीछे से आ कर उसे बांहों में भर लिया. इस अनोखी छुअन से वह सिहर उठी और आंखें बंद कर मृणाल की आगोश में समा गई.

“वर्षा, तुम्हें कुछ दिखाना है, आओ मेरे साथ.”

वर्षा मृणाल के पीछे चल दी. एक कमरे का दरवाजा खोल कर मृणाल उस का हाथ पकड़ कर अंदर प्रविष्ट हुआ. चकित सी वर्षा देखती रह गई. वह कमरा अस्पताल का कमरा लग रहा था, जिस में सारी मैडिकल सुविधाएं उपलब्ध थीं. और ठीक बीचोंबीच अस्पताल वाला लोहे का एक बैड पड़ा हुआ था.

“वर्षा, यह कमरा तुम्हारी सहेली और मेरी बहन चांदनी के लिए है. कल हम दोनों चल कर उसे यहां ले आएंगे. अब से वह अपने घर में रहेगी और हम दोनों मिल कर उस की देखभाल करेंगे.”

वर्षा आश्चर्य से मृणाल की ओर पलटी और उस के गले से लग कर सिसक उठी, “मृणाल.”

“वर्षा,” मृणाल ने कस कर उसे अपनी बांहों में ले लिया.

“आप बहुत महान हैं मृणाल. शायद ही किसी पति ने अपनी पत्नी को इतना अनमोल तोहफा दिया होगा.”

“नहीं वर्षा, तुम्हारे लिए तो कुछ भी किया जाए वह कम ही है. आज के समय में किसी के लिए अपना पूरा जीवन उत्सर्ग करने को कोई तत्पर हो तो वह हीरा ही है. और ऐसा हीरा मेरे जीवन में आया है. तो उसे तो मैं पलकों पर बिठा कर ही रखूंगा.”

“मृणाल, प्यार पर से तो मेरा विश्वास ही उठ गया था. पर तुम ने मेरे जीवन को प्यार से सराबोर कर दिया,” कह कर वर्षा फिर आलिंगनबद्ध हो गई.

दोनों का तनमन प्यार की फुहार से भीग रहा था.

मैं झूठ नहीं बोलती: ममता को सच बोलना क्यों पड़ा भारी?

‘‘निधि रुक जा, कहां भागी जा रही है? बस निकल जाएगी, ममता ने गेट की ओर तेजी से जाती हुई निधि को पुकारा, पर निधि तो अपनी ही धुन में थी. उस ने ममता को वहीं रुकने का इशारा किया और गेट से बाहर निकल गई. तब तक बस आ गई और सभी छात्राएं उस में बैठने लगीं. ममता जानती थी कि यदि वह निधि के पीछे गई तो उस की बस भी निकल जाएगी. अत: वह बस में जा कर बैठ गई.

तभी निधि दौड़ती हुई बस की ओर आई और बोली, ‘‘ममता, मां पूछें तो कह देना कि मेरी ऐक्सट्रा क्लास है.’’

‘‘मैं क्यों झूठ बोलूं, दादीमां कहती हैं कि सब बुराइयां झूठ से ही शुरू होती हैं,’’ ममता ने चिढ़ कर उत्तर दिया.

‘‘सतयुग में एक राजा हरिश्चंद्र थे और कलियुग में तू, तेरे जो मन में आए कह देना. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता,’’ निधि झुंझलाते हुए बोली और देखते ही देखते आंखों से ओझल हो गई. ममता उसे पुकारती ही रह गई, लेकिन उस ने पीछे मुड़ कर देखा भी नहीं. उधर बस में बैठी छात्राएं निधि और ममता की बातचीत के मजे ले कर खूब हंस रही थीं.

‘‘अब तो निधि ने भी आज्ञा दे दी है. आज ही जा कर निधि की मम्मी को सब सच बता देना. समझा देना कि आजकल उन की बेटी कक्षा में कम और कैंटीन में आशीष के साथ अधिक नजर आती है. तू ने इतना सा साहस दिखा दिया तो उस के घर वाले तुझे उपहारों से लाद देंगे,’’ रचना बोली तो बस में फिर से ठहाके गूंज उठे.

‘‘क्या हो रहा है ये सब? रचना, मैं ने तुम से सलाह मांगी है क्या?’’ ममता गुस्से से बोली.

हंसहंस कर दोहरी हो रही रचना पर ममता इतनी जोर से चीखी कि हवा जैसे थम सी गई.

‘‘तुम जानो और तुम्हारी सहेली. हमें क्या पड़ी है दूसरों के झमेलों में पड़ने की,’’ रचना ने बड़ी अदा से मुंह बनाया व अपनी अन्य सहेलियों के साथ गपें हांकने लग गई. अन्य छात्राएं भी शीघ्र ही निधि प्रकरण को भूल गईं और ममता ने चैन की सांस ली. पर असली समस्या तो अभी भी मुंहबाए खड़ी थी. सत्या आंटी ने अगर पूछ लिया कि उन की बेटी निधि कहां है तो वह क्या उत्तर देगी. न वह झूठ बोल सकती है और न ही सच. निधि उस की सब से प्यारी सहेली है. उस के राज को राज रखना उस का कर्तव्य भी तो बनता है.

निधि की मां, सत्या आंटी अपने गेट के पास निधि की प्रतीक्षा में खड़ी रहती थीं. आज उन्हें वहां खड़ा न देख कर ममता ने चैन की सांस ली और लपक कर अपने घर में घुस गई.

‘‘क्या हुआ, इस तरह दौड़ कर क्यों घर में घुस गई? मैं बाहर दरवाजे पर खड़ी तेरी प्रतीक्षा कर रही थी, मुझे देखा तक नहीं तू ने,’’ उस की मां निशा अचरज से बोलीं.

‘‘बात ही कुछ ऐसी है मां, मुझे लगा कहीं सत्या आंटी सामने मिल गईं तो मैं क्या करूंगी,’’ ममता ने अपनी मां को अपना स्वर नीचे रखने का इशारा किया.

‘‘क्यों, ऐसा क्या किया है तुम ने, जो सत्या से डर रही हो,’’ मां चकित स्वर में बोलीं.

‘‘मैं ने कुछ नहीं किया है मां पर निधि…’’

‘‘क्या हुआ निधि को?’’

‘‘कुछ नहीं हुआ उसे, पर आप ने क्या देखा नहीं कि निधि मेरे साथ बस से नहीं उतरी?’’

‘‘अरे, हां, कहां गई वह? घर क्यों नहीं आई?’’

‘‘यही तो मुश्किल है मां, वह अपने मित्र के साथ घूमने गई है. मुझ से कहा कि अगर उस की मम्मी पूछें तो कह दूं कि उस की आज ऐक्स्ट्रा क्लास है.’’

‘‘पर गई कहां है वह?’’

‘‘उस का एक मित्र है, आशीष, आजकल उसी के साथ घूमती रहती है. कई बार तो कक्षा छोड़ कर भी चली जाती है.’’

‘‘आशीष? यह तो लड़के का नाम है.’’

‘‘वह लड़का ही है मां, आप भी न बस…’’

‘‘पर तुम्हारा स्कूल तो केवल लड़कियों के लिए है. वहां यह आशीष कहां से आ गया?’’

‘‘स्कूल तो लड़कियों के लिए है पर स्कूल के बाहर तो लड़के भी होते हैं, मां. हमारे स्कूल के आसपास तो लड़के कुछ अधिक ही मंडराते रहते हैं.’’

‘‘हो क्या गया है निधि को. 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली इतनी सी लड़की को डर नहीं लगता क्या? किसी के भी साथ चल पड़ती है.’’

‘‘निधि बहुत निडर और स्मार्ट है, मां. मेरी तरह डरपोक नहीं है.’’

‘‘क्या मतलब, तुम डरपोक नहीं होती तो किसी के साथ भी घूमने चल पड़ती,’’ मां तीखे स्वर में बोलीं.

‘‘मैं ने ऐसा कब कहा मां. आप हर बात का गलत अर्थ क्यों निकालती हो. कुछ खाने को दो न, बहुत भूख लगी है.’’

‘‘ड्रैस बदल कर और हाथमुंह धो कर आओ, तब तक खाना लगाती हूं,’’ मां रसोई में जातेजाते बोलीं.

‘‘पर मन में ममता की बातें गूंजती रहीं. किसी अनहोनी की आशंका से मन कांप उठा. खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है. कहीं निधि को देख कर ममता भी उसी राह पर चल पड़ी तो क्या करूंगी,’’ सोचतेसोचते निशा अपनी बेटी से बोली, ‘‘देख ममता, निधि तेरी मित्र है इसीलिए कह रही हूं, उस की मम्मी को सबकुछ सचसच बता दे नहीं तो बहुत बुरा मानेंगी वे.’’

‘‘और अगर सच बता दिया तो निधि मुझे कच्चा चबा जाएगी. वह मेरी सब से अच्छी मित्र है, मुझ पर विश्वास कर के ही वह अपने राज मुझे बताती है. 2 सहेलियों के बीच विश्वास ही नहीं रहा तो बचेगा क्या,’’ ममता कुछ ऐसे अंदाज में बोली कि मां अपनी हंसी नहीं रोक पाईं.

‘‘मांबेटी के बीच क्या गंभीर वार्त्तालाप चल रहा है हम भी तो सुनें,’’ तभी ममता की दादी ने कमरे में प्रवेश किया.

‘‘कुछ नहीं मांजी, यों ही स्कूल की बातें कर रही थी. कह रही थी कि दादी कहती हैं कि झूठ बोलने से बड़ा पाप और कोई नहीं है,’’ मां फिर हंस दीं.

‘‘अरे, वाह, मेरी गुडि़या तो बहुत सयानी हो गई है. जीवन में पढ़तेलिखते तो सब हैं पर गुनते बहुत कम लोग हैं और ममता गुनने वालों में से है. देख लेना यह एक दिन अवश्य तुम दोनों का नाम रोशन करेगी.’’

‘‘क्या नाम रोशन करेगी मांजी. आजकल नाम सच बोलने से नहीं पढ़नेलिखने से होता है. ममता को तो आप जानती ही हैं कि कभी 50% से अधिक अंक नहीं आए इस के.’’

‘‘अभी तो मुझे यह बताओ कि यह क्या बात थी जिस के लिए ममता झूठ बोलने से कतरा रही थी.’’

‘‘कुछ नहीं, पड़ोस में इस की सहेली निधि रहती है. एक लड़के से दोस्ती है उस की. स्कूल के बाद उस से मिलतीजुलती है, घूमने जाती है और ममता से कहती है कि उस की मम्मी पूछें तो कह देना कि स्कूल में ऐक्स्ट्रा क्लास है.’’

‘‘यह तो बहुत गलत बात है. सच बोलने के लिए बड़े साहस की आवश्यकता होती है. सत्य बोलना कायरों का काम नहीं है. तुम्हें अपनी सहेली के लिए झूठ बोलने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘वही तो रोना है मांजी, दोस्ती में न कुछ कहते बनता है न छिपाते. फिर ममता अपनी सहेली को खोना भी नहीं चाहती. पता नहीं किस ने उसे बता दिया है कि अपनी सहेली के राज को राज ही रखना चाहिए,’’ मां ने झिझकते हुए बताया.

‘‘अब जमाना बहुत बदल गया है. अब केवल सच बोलने से काम नहीं चलता. आज की दुनिया में बड़ा जोड़तोड़ करना पड़ता है.’’

‘‘कहना क्या चाहती हो तुम.’’

‘‘मेरा मतलब बस इतना है कि हमें दूसरों के झमेलों में पड़ने की क्या जरूरत है. मैं नहीं चाहती कि इन सब बातों का असर ममता की पढ़ाई पर पड़े.’’

‘‘सच नहीं बोलेगी तो उस पर असर पड़ेगा. हर बार अपनी सहेली के बारे में ही सोचती रहेगी ममता. तुम बच्चों के मनोविज्ञान को नहीं समझती हो,’’ दादीमां भी अपनी बात पर अड़ गईं.

‘‘आप दोनों शांत हो जाइए. मैं वादा करती हूं कि मैं किसी को भी शिकायत का अवसर नहीं दूंगी,’’ ममता नाराज हो कर अपने कमरे में चली गई.

थोड़ी ही देर में बात आईगई हो गई. ममता ही नहीं उस की मां और दादी भी सारे प्रकरण को भूल चुकी थीं, अचानक रात के 10 बजे घंटी बजी.

ममता की मां ने जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने निधि की मां सत्या खड़ी थीं.

‘‘जी, कहिए,’’ न चाहते हुए भी वह अचकचा गईं.

‘‘ममता कहां है, कृपया उसे बुलाइए,’’ निधि की मम्मी बोलीं.

सत्या आंटी की आवाज सुन कर ममता स्वयं ही चली आई.

‘‘ममता, निधि कहां है अब तक घर नहीं आई.’’

‘‘क्या अब तक नहीं आई,’’ मां और ममता एकसाथ बोलीं.

‘‘कुछ कह कर गई थी क्या?’’

‘‘ऐक्स्ट्रा क्लास थी ऐसा कुछ कह कर तो गई थी पर अब तक उस का कोई अतापता नहीं है, इसी से चिंता हो रही है. तुम कितने बजे घर पहुंची,’’ उन्होंने ममता से पूछा.

‘‘मैं तो स्कूल बस से ही आ गई थी. आज कोई ऐक्स्ट्रा क्लास नहीं थी,’’ डरतेडरते बोली.

‘‘तुम्हारी नहीं रही होगी. निधि कह रही थी कि यह क्लास केवल 90त्न से अधिक वाली छात्राओं के लिए है जिन की 10वीं में मैरिट लिस्ट में आने की आशा है,’’ सत्या तनिक गर्व से बोलीं.

‘‘कोई फोन आदि,’’ ममता की मां ने दोबारा पूछा.

‘‘यही तो रोना है. स्कूल वाले फोन ले जाने की अनुमति कहां देते हैं. फिर भी निधि छिपा कर ले जाती थी, पर आज भूल गई, पता नहीं कहां होगी मेरी बच्ची?’’ सत्या रो पड़ी.

‘‘धीरज रखिए, मिल जाएगी,’’ ममता की मां ने उन्हें ढाढ़स बंधाना चाहा.

‘‘क्या धीरज रखूं? मैं ने सोचा था कि शायद ममता को कुछ पता हो पर यहां भी निराशा ही हाथ लगी.’’

‘‘आंटी, मुझे पता है. आज कोई ऐक्स्ट्रा क्लास नहीं थी. निधि तो आशीष के साथ डिस्को गई थी. वह नवीन जूनियर कालेज का विद्यार्थी है, निधि उस से अकसर मिलती है.’’

‘‘क्या, इतना घटिया आरोप मेरी बेटी पर? मैं ने तो सोचा था कि तुम निधि की मित्र हो. पर अब समझ में आया कि तुम मन ही मन उस से जलती हो.’’

‘‘नहीं यह सच नहीं है. मैं भला निधि से क्यों जलने लगी.’’

‘‘मां, जल्दी घर चलो. दीदी के स्कूल की प्राचार्या का फोन आया है. वह किसी के साथ मोटरसाइकिल पर जा रही थी कि दुर्घटनाग्रस्त हो गई. वह निर्मल अस्पताल में भरती है,’’ तभी निधि के भाई ने सारी बात बताई और सत्या के साथ ममता के मातापिता भी अस्पताल के लिए रवाना हो गए. रह गई थीं केवल ममता और उस की दादी दमयंती.

ममता फूटफूट कर रो रही थी और दादी उसे समझा रही थीं कि सच बोलने वालों को तो इस तरह की हर बात के लिए तैयार रहना चाहिए. पर ममता के पल्ले उन की बात पड़ी या नहीं.

Monsoon Special: घर पर बना सकते हैं ओनियन चीज पिज्जा, सभी पूछेंगे रेसिपी

अगर आप भी बारिश के मौसम में कुछ टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहती हैं तो ओनियन चीज पिज्जा की ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन साबित होगा. ओनियन चीज पिज्जा आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जिसे आप अपनी फैमिली को स्नैक्स में खिला सकते हैं.

सामग्री

–  1 प्याज कटा

–  1 टमाटर कटा (फिलिंग के लिए)

–  1 शिमलामिर्च कटी

–  1 छोटा चम्मच मस्टर्ड पाउडर

–  1 बड़ा चम्मच ओरिगैनो

–  1 बड़ा चम्मच चिली फ्लैक्स

–  1 छोटा चम्मच गार्लिक पाउडर

–  2 टमाटर (पिज्जा सौस के लिए)

–  1 बड़ा चम्मच सूखी तुलसी

–  1 बड़ा चम्मच परमेसन चीज

–  1 बड़ा चम्मच औलिव औयल

–  3-4 लहसुन की कलियां

–  9 इंच का पिज्जा बेस

–  साल्ट पैपर सीजनिंग स्वादानुसार.

सौस की विधि

सब से पहले नमक के पानी में टमाटरों को ब्लांच करें. अब छिलका उतार कर बीज अलग कर टमाटर के गूदे को बारीक काट लें. अब एक गरम पैन में औलिव औयल डाल कर उस में लहसुन को डाल कर उसे सुनहरा होने तक चलाएं. अब इस में टोमैटो पल्प, साल्ट पैपर सीजनिंग डाल कर तब तक पकाएं जब तक टमाटरों का सारा पानी सूख न जाए. अब इस में थोड़ा सा ओरिगैनो, चिली फ्लैक्स, ड्राई तुलसी के पत्ते व परमेसन चीज डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. पिज्जा सौस तैयार है.

फिलिंग की विधि

एक बाउल में कटा प्याज, टमाटर, शिमलामिर्च, ओरिगैनो, चिली फ्लैक्स, गार्लिक पाउडर, मस्टर्ड पाउडर, साल्ट पैपर सीजनिंग डाल कर अच्छी तरह मिलाएं और एक तरफ रख दें.

पिज्जा की विधि

सब से पहले पिज्जा बेस पर पिज्जा सौस लगाएं. फिर इस पर तैयार की हुई फिलिंग लगाएं. फिर इस पर कद्दूकस किया चीज डाल कर पहले से गरम ओवन में 180 डिग्री सैल्सियस पर तब तक बेक करें, जब तक चीज पिघल न जाए और बेस क्रिस्प न हो जाए. अब पिज्जा को कटर से काट कर कैचअप के साथ सर्व करें.

परफेक्ट लुक पाना चाहती हैं, तो स्किन टोन केअनुसार चुनें लिपस्टिक और आईशैडो

सही और संतुलित मेकअप जहां आप की खूबसूरती में चार चांद लगाता है वहीं आप का व्यक्तित्व भी निखर कर सामने आता है. जब बात मेकअप की हो तो सही लिपस्टिक और आईशैडो का चयन काफी मायने रखता है. अगर इस में थोड़ी भी चूक हुई तो आप की खूबसूरती अधूरी रह जाती है. इस के विपरीत यदि आप अपने स्किन टोन के हिसाब से परफेक्ट लिप कलर और आईशैडो का प्रयोग करती हैं तो महफ़िल में आप का कोई जवाब नहीं होगा.

आइये जानते हैं मेकअप आर्टिस्ट नीति बलजीत से कि लिपिस्टिक और आईशैडो का चयन किस आधार पर करें;

woman applying eyeshadow

लिपस्टिक शेडस का चयन

  • अगर आप का रंग गोरा है तो आप के पास काफी ओपशंस हैं. आप न्यूड पिंक या बेबी पिंक जैसे कलर्स बड़े आराम से लगा सकती हैं. आप मैट लिपस्टिक भी बेझिझक हो कर इस्तेमाल कर सकती हैं. आप पर सुर्ख लाल या बैगनी रंग के हलके शेड्स भी अच्छे लगेंगे.
  • अगर आप की स्किन गेहुएं रंग की है तो आप हलके से ले कर गहरे शेड्स की लिपस्टिक लगा सकती हैं. गहरा शेड्स लगाते वक़्त इस बात का ध्यान ज़रूर रखें कि आप का चेहरा ब्राइट दिख रहा हो न कि डल. चेहरे को ब्राइट दिखाने के लिए बीबी क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं.
  • अगर आप की स्किन न्यूट्रल कलर की है तो गुलाबी, लाल जैसे रंगों का ही इस्तेमाल करें और क्लासी लुक के लिए ज़्यादा से ज़्यादा मैट शेड्स लगाने की कोशिश करें.
  • अगर आप की त्वचा का रंग सांवला है तो आप के ऊपर मरून या भूरा रंग काफी जंचेगा.

आईशेडो का चयन

  • अगर आप की त्वचा गोरी है, तो हल्के रंग के आईलाइनर जैसे नीले या हरे रंग का चुनाव करें.
  • भारतीयों की गेहुंआ त्वचा पर स्मोकी आईज सब से अच्छी लगती है.आप काले के बजाय भूरे और मोव आईलाइनर का चुनाव भी कर सकती हैं. मध्यम या गेहुएं रंग की त्वचा वाले लोग वास्तव में हल्के और गहरे रंगों में अच्छे दिख सकते हैं.मध्यम त्वचा टोन के लिए, दिन के लिए मैट आईशैडो और रात के लिए ग्लिटरी आईशैडो बेहतर चाइस है.
  • औलिव या टैन स्किन टोन वाले लोगों के लिए ब्लैक आईलाइनर सब से उत्तम हैं. डार्क इंडियन स्किन कौम्प्लेक्शन पर चमकदार आई मेकअप बहुत अच्छा लगता है. उन्हें हल्के रंगों से दूर रहना चाहिए क्यों कि ये आप के रंग को अधिक गहरा दिखाएंगे.
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