एहसान: क्या हुआ था रुक्मिणी और गोविंद के बीच

अंधेरा हो चला था. रुक्मिणी ने सब से पहले तो बैलगाड़ी जोती और अनाज के 2 बोरे गाड़ी में रख अपने गांव की तरफ चल दी. अंधेरे को देखते हुए रुक्मिणी ने लालटेन जला कर लटका ली थी. इस बार फसल थोड़ी अच्छी हो गई थी, इसलिए वह खुश थी. खेत से निकल कर रुक्मिणी की गाड़ी रास्ते पर आ गई थी. अभी वह थोड़ा ही आगे बढ़ी थी कि उसे पेड़ से टकराई हुई मोटरसाइकिल दिखी. उस को चलाने वाला वहीं खून से लथपथ पड़ा था. रुक्मिणी ने गाड़ी रोकी और लालटेन निकाल कर उस के चेहरे के पास ले गई. उस आदमी की नब्ज टटोली, जो अभी चल रही थी. इस के बाद उस का चेहरा देख कर एक पल के लिए तो रुक्मिणी का भी सिर घूम गया. वह सरपंच का बेटा मंगल सिंह था.

मंगल सिंह को देख कर रुक्मिणी का एक बार मन हुआ कि उसे ऐसा ही छोड़ कर आगे बढ़ जाए, लेकिन आखिर वह भी एक औरत थी और न चाहते हुए भी उस ने गाड़ी के सामान को एक तरफ किया और फिर मंगल सिंह को उठा कर गाड़ी में डाल लिया. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी मंगल सिंह को वह सरपंच के हवाले कर दे. इसी के साथ पुरानी यादों ने रुक्मिणी के जख्म को ताजा कर दिया.

सीतापुर गांव में रामलाल अपने छोटे से परिवार के साथ रहता था. उस के पास छोटा सा खेत था, इसी के साथ उस की पत्नी त्रिवेणी सरपंच गोविंद सिंह के यहां झाड़ूपोंछे का काम करती थी. त्रिवेणी के साथ उस की बेटी रुक्मिणी भी आती थी. मंगल सिंह और रुक्मिणी की उम्र बढ़ने के साथसाथ उन के दिलों में प्यार की कोंपलें भी फूटने लगी थीं और अकसर वे दोनों गांव व खेतों में निकल जाया करते थे. रुक्मिणी के भरते शरीर, उभार और जवानी का रसपान गोविंद सिंह भी दूर से करने लगा था. रुक्मिणी इन सब बातों से दूर अपनी ही दुनिया में मस्त रहती थी. गंगू ने जब सरपंच गोविंद सिंह को रुक्मिणी और मंगल सिंह की प्रेम कथा बताई, तो वह आगबबूला हो गया.

पहले तो गोविंद सिंह ने मंगल सिंह को समझाया, ‘मैं तुम्हारी शादी दूसरी जगह कर दूंगा, जहां से अच्छा दहेज मिल जाएगा और वैसे भी रुक्मिणी हमारी बराबरी की नहीं है.’ जब मंगल सिंह पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ, तब उस ने रुक्मिणी के पीछे अपने आदमी छोड़ दिए. वे उसे बदनाम करने लगे. एक बार रुक्मिणी के पिता रामलाल ने उस से उस की शादी की बात की, तो वह उसे टाल गई. समय धीरेधीरे गुजर रहा था. आखिर गोविंद सिंह ने एक दिन रुक्मिणी को उठवा लिया और मंगल सिंह से कहा कि वह गांव के किसी लड़के के साथ भाग गई है. कुछ दिन बाद जब गोविंद सिंह ने उसे छोड़ा, तब तक मंगल सिंह उस से दूर चला गया था. रुक्मिणी में जिंदगी जीने और हालत से जूझने का हौसला था, इसलिए वह इतने पर भी टूटी नहीं. थोड़े दिन बाद इसी गम में रुक्मिणी के मांबाप भी इस दुनिया से चल बसे. लेकिन इन सब हालात ने उसे और भी जुझारू बना दिया था. इस के बाद रुक्मिणी ने खेतीबारी को खुद संभाल लिया और पास के दूसरे गांव में रहने चली गई. अमीर घराने की लड़की मंगल सिंह के साथ ज्यादा दिन नहीं निभा सकी और एक दिन वह भी उसे छोड़ कर चली गई.

इस के बाद मंगल सिंह पागल जैसा हो गया, क्योंकि बाद में उसे भी रुक्मिणी के साथ हुए गलत बरताव के बारे में मालूम पड़ा था. इस के बाद मंगल सिंह अपने को कुसूरवार मानता था, उस से माफी मांगना चाहता था. इस के बाद उस ने भी अपने पिता सरपंच गोविंद सिंह का घर छोड़ दिया था और अलग रहने लगा था. उस दिन भी मंगल सिंह रुक्मिणी से माफी मांगने के लिए उस के खेत पर ही जा रहा था. दिमागी परेशानी से उस का ध्यान सड़क से भटक गया था और सामने से आते हुए ट्रैक्टर ने उस की मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी थी तभी मंगल सिंह ने कराहते हुए अपनी आंखें खोलीं. अब रुक्मिणी भी यादों से वापस आ गई थी. सरपंच का घर अभी थोड़ी दूर था, इसलिए मंगल सिंह की हालत देखने के लिए उस ने बैलगाड़ी रोकी और उस के पास गई. रुक्मिणी ने मंगल सिंह के सिर पर अपनी चुनरी कस कर बांध दी. तभी मंगल सिंह के हाथ माफी मांगने के लिए जुड़ गए थे. इन सब बातों का रुक्मिणी पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने बैलगाड़ी तेजी से चलाई और सरपंच के घर के सामने गाड़ी रोक कर पूरी बात गोविंद सिंह को बताई और वापस जाने लगी.

गोविंद सिंह उस के पैरों पर गिर गया और बोला, ‘‘रुक्मिणी, मुझे किसी गरीब को नहीं सताना चाहिए था. मुझे माफ कर दे.’’ गोविंद सिंह मंगल सिंह को जीप में डाल शहर के अस्पताल में ले जाने लगा, तब मंगल सिंह ने रुक्मिणी का हाथ जोर से पकड़ लिया और उसे भी साथ चलने के लिए इशारा किया. अस्पताल में मंगल सिंह का इलाज शुरू हो गया और उसे तुरंत खून देना था. परिवार में से किसी का खून मंगल सिंह के खून से नहीं मिल रहा था. साथ ही, वहां आए लोगों का खून भी मंगल सिंह के खून से नहीं मिल रहा था. रुक्मिणी एक बार फिर यादों की दुनिया में चली गई थी. मंगल सिंह और रुक्मिणी एक बार शहर घूमने गए थे. तब रुक्मिणी ने कहा था, ‘देख मंगल, हमारा प्यार एकदम सच्चा और पक्का है कि तू भले ही न माने, लेकिन हमारा खून भी एक ही है.’ तब मंगल सिंह ने हंसते हुए कहा था, ‘हट पगली, ऐसे थोड़े न होता है. सभी के खून का ग्रुप अलगअलग ही होता है.’

मजाक की बात शर्त में बदल गई और दोनों ने पास के एक अस्पताल में जा कर जब खून को चैक करवाया, तब दोनों का ग्रुप एक ही निकला.

तभी डाक्टर ने आ कर कहा, ‘‘गोविंद सिंह, जल्दी खून का इंतजाम करो. मंगल सिंह की हालत खराब होती जा रही है. खून काफी बह गया है.’’

तब रुक्मिणी ने विश्वास से कहा, ‘‘डाक्टर, मेरा खून ले लीजिए.’’ गोविंद सिंह हैरानी से रुक्मिणी को देख रहा था और एहसान तले दबा जा रहा था.

वारिस: सुरजीत के घर कौन थी वो औरत

सुरजीत के घर में अनजान औरत को देख नरेंद्र चौंक गया. पूछने पर मालूम हुआ कि वह ‘कुदेसन’ है. रहरह कर उसे अपने घर में रह रही उस औरत का खयाल आने लगा. कहीं वह भी ‘कुदेसन’ तो नहीं.

होश संभालने के साथ ही नरेंद्र उस औरत को अपने घर में देखता आ रहा था. वह कौन थी, उसे नहीं पता था.

बचपन में जब भी वह किसी से उस औरत के बारे में पूछता था तो वह उस को डांट कर चुप करा देता था.

घर के बाईं ओर जहां गायभैंस बांधे जाते थे उस के करीब ही एक छोटी सी कोठरी बनी हुई थी और वह औरत उसी कोठरी में सोती थी.

मां का व्यवहार उस औरत के प्रति अच्छा नहीं था जबकि उस का बाप  बलवंत और बूआ सिमरन उस औरत के साथ कुछ हमदर्दी से पेश आते थे.

नरेंद्र की मां बलजीत का सलूक तो उस औरत के साथ इतना खराब था कि वह सारा दिन उस से जानवरों की तरह काम लेती थी और फिर उस के सामने बचाखुचा और बासी खाना डाल देती थी. कई बार तो लोगों का जूठन भी उस के सामने डालने में बलवंत परहेज नहीं करती थी. लेकिन जैसा भी, जो भी मिलता था वह औरत चुपचाप खा लेती थी.

होश संभालने के बाद नरेंद्र ने घर में रह रही उस औरत को ले कर एक और भी अजीब चीज महसूस की थी. वह हमेशा नरेंद्र की तरफ दुलार और हसरत भरी नजरों से देखती थी. वह उसे छूना और सहलाना चाहती थी. पर घर के किसी सदस्य के होने पर उस औरत की नरेंद्र के करीब आने की हिम्मत नहीं होती थी. लेकिन जब कभी नरेंद्र उस के सामने अकेले पड़ जाता और आसपास कोई दूसरा नहीं होता तो वह उस को सीने से लगा लेती और पागलों की तरह चूमती.

ऐसा करते हुए उस की आंखों में आंसुओं के साथसाथ एक ऐसा दर्द भी होता था जिस को शब्दों में जाहिर करना मुश्किल था.

‘कुदेसन’ शब्द को नरेंद्र ने पहली बार तब सुना था जब उस की उम्र 14-15 साल की थी.

गांव के कुछ दूसरे लड़कों के साथ नरेंद्र जिस सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता था वह गांव से कम से कम 2 किलोमीटर की दूरी पर था.

नरेंद्र के साथ गांव के 7-8 लड़कों का समूह एकसाथ स्कूल के लिए जाता था और रास्ते में अगर कोई झगड़ा न हुआ तो एकसाथ ही वे स्कूल से वापस भी आते थे.

सुबह स्कूल जाने से पहले सारे लड़के गांव की चौपाल पर जमा होते थे. एकसाथ मस्ती करते हुए स्कूल जाने में रास्ते की दूरी का पता ही नहीं चलता था और जब कभी समूह का कोई लड़का वक्त पर चौपाल नहीं पहुंचता था तो उस की खोजखबर लेने के लिए किसी लड़के को उस के घर दौड़ाया जाता था. हमारे साथ स्कूल जाने वाले लड़कों में एक सुरजीत भी था जिस के साथ नरेंद्र की खूब पटती थी. दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे. नरेंद्र कई बार सुरजीत के घर भी जा चुका था.

एक दिन जब स्कूल जाते समय  सुरजीत गांव की चौपाल पर नहीं पहुंचा तो उस की खोजखबर लेने के लिए नरेंद्र उस के घर पहुंच गया.

पहले तो घर में दाखिल हो कर नरेंद्र ने देखा कि सुरजीत को बुखार है. वह वापस मुड़ा तो उस की नजर सुरजीत के घर में एक औरत पर पड़ी जो उस के लिए अनजान थी.

वह जवान औरत गांव में रहने वाली औरतों से एकदम अलग थी, बिलकुल उसी तरह जैसे उस के अपने घर में रह रही औरत उसे नजर आती थी. चूंकि नरेंद्र को स्कूल जाने की जल्दी थी इसलिए उस ने इस बारे में सुरजीत से कोई बात नहीं की.

2 दिन बाद सुरजीत स्कूल जाने वाले लड़कों में फिर से शामिल हो गया तो छुट्टी के बाद गांव वापस लौटते हुए नरेंद्र ने उस से उस अजनबी औरत के बारे में पूछा था. इस पर सुरजीत ने कहा, ‘बापू ने ‘कुदेसन’ रख ली है.’

‘‘कुदेसन, वह क्या होती है?’’ नरेंद्र ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं नहीं जानता. लेकिन ‘कुदेसन’ के कारण मां और बापू में रोज झगड़ा होने लगा है. मां कुदेसन को घर में एक मिनट भी रखने को तैयार नहीं, लेकिन बापू कहता है कि भले ही लाशें बिछ जाएं, कुदेसन यहीं रहेगी,’’ सुरजीत ने बताया.

‘‘मगर तेरा बापू इस कुदेसन को लाया कहां से है?’’

‘‘क्या पता, तुम को तो मालूम ही है कि मेरा बापू ड्राइवर है. कंपनी का ट्रक ले कर दूरदूर के शहरों तक जाता है. कहीं से खरीद लाया होगा,’’ सुरजीत ने कहा.

सुरजीत की इस बात से नरेंद्र को और ज्यादा हैरानी हुई थी. उस ने जानवरों की खरीदफरोख्त की बात तो सुनी थी मगर इनसानों को भी खरीदा या बेचा जा सकता है यह बात वह पहली बार सुरजीत के मुख से सुन रहा था.

‘कुदेसन’ शब्द एक सवाल बन कर नरेंद्र के जेहन में लगातार चक्कर काटने लगा था. उस को इतना तो एहसास था कि ‘कुदेसन’ शब्द में कुछ बुरा और गलत था. किंतु वह बुरा और गलत क्या था? यह उस को नहीं पता था.

‘कुदेसन’ शब्द को ले कर घर में किसी से कोई सवाल करने की हिम्मत उस में नहीं थी. बाहर किस से पूछे यह नरेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था.

असमंजस की उस स्थिति में अचानक ही नरेंद्र के दिमाग में अमली चाचा का नाम कौंधा था.

अमली चाचा का असली नाम गुरबख्श था. अफीम के नशे का आदी (अमली) होने के कारण ही गुरबख्श का नाम अमली चाचा पड़ गया था. गांव के बच्चे तो बच्चे जवान और बड़ेबूढे़ तक गुरबख्श को अमली चाचा कह कर बुलाते थे. दूसरे शब्दों में, गुरबख्श सारे गांव का चाचा था.

गांव की चौपाल के पास ही अमली चाचा पीपल के नीचे जूतों को गांठने की दुकानदारी सजा कर बैठता था. वह अकेला था, क्योंकि उस की शादी नहीं हुई थी. एकएक कर के उस के अपने सारे मर गए थे. आगेपीछे कोई रोने वाला नहीं था अमली चाचा के. गांव के हर शख्स से अमली चाचा का मजाक चलता था.

बड़े तो बड़े, नरेंद्र की उम्र के लड़कों के साथ भी उस का हंसीमजाक चलता था. आतेजाते लड़के अमली चाचा से छेड़खानी करते थे और वह इस का बुरा नहीं मानता था. हां, कभीकभी छेड़खानी करने वाले लड़कों को भद्दीभद्दी गालियां जरूर दे देता था.

शरारती लड़के तो अमली चाचा की गालियां सुनने के लिए ही उस को छेड़ते थे.

नरेंद्र ने जब से होश संभाला था उस का भी अमली चाचा से वास्ता पड़ता रहा था. जब भी उस के पांव की चप्पल कहीं से टूटती थी तो उस की मरम्मत अमली चाचा ही करता था. चप्पल की मरम्मत और पालिश कर के एकदम उस को नया जैसा बना देता था अमली चाचा.

काम करते हुए बातें करने की अमली चाचा की आदत थी. बातों की झोंक में कई बार बड़ी काम की बातें भी कह जाता था अमली चाचा.

‘कुदेसन’ के बारे में अमली चाचा से वह पूछेगा, ऐसा मन बनाया था नरेंद्र ने.

एक दिन जब स्कूल से वापस आ कर सब लड़के अपनेअपने घर की तरफ रुख कर गए तो नरेंद्र घर जाने के बजाय चौपाल के करीब पीपल के नीचे जूतों की मरम्मत में जुटे अमली चाचा के पास पहुंच गया.

नरेंद्र को देख अमली चाचा ने कहा, ‘‘क्यों रे, फिर टूट गई तेरी चप्पल? तेरी चप्पल में अब जान नहीं रही. अपने कंजूस बाप से कह अब नई ले दें.’’

‘‘मैं चप्पल बनवाने नहीं आया, चाचा.’’

‘‘तब इस चाचा से और क्या काम पड़ गया, बोल?’’ अमली ने पूछा.

नरेंद्र अमली चाचा के पास बैठ गया. फिर थोड़ी सी ऊहापोह के बाद उस ने पूछा, ‘‘एक बात बतलाओ चाचा, यह ‘कुदेसन’ क्या होती है?’’

नरेंद्र के सवाल पर जूता गांठ रहे अमली चाचा का हाथ अचानक रुक गया. चेहरे पर हैरानी का भाव लिए वह बोले, ‘‘ तू यह सब क्यों पूछ रहा है?’’

‘‘मैं ने सुरजीत के घर में एक औरत को देखा था चाचा, सुरजीत कहता है कि वह औरत ‘कुदेसन’ है जिस को उस का बापू बाहर से लाया है. बतलाओ न चाचा कौन होती है ‘कुदेसन’?’’

‘‘क्या करेगा जान कर? अभी तेरी उम्र नहीं है ऐसी बातों को जानने की. थोड़ा बड़ा होगा तो सब अपनेआप मालूम हो जाएगा. जा, घर जा.’’ नरेंद्र को टालने की कोशिश करते हुए अमली चाचा ने कहा.

लेकिन नरेंद्र जिद पर अड़ गया.

तब अमली चाचा ने कहा,

‘‘ ‘कुदेसन’ वह होती है बेटा, जिस को मर्द लोग बिना शादी के घर में ले आते हैं और उस को बीवी की तरह रखते हैं.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं चाचा.’’

‘‘थोड़े और बड़े हो जाओ बेटा तो सब समझ जाओगे. कुदेसनें तो इस गांव में आती ही रही हैं. आज सुरजीत का बाप ‘कुदेसन’ लाया है. एक दिन तेरा बाप भी तो ‘कुदेसन’ लाया था. पर उस ने यह सब तेरी मां की रजामंदी से किया था. तभी तो वह वर्षों बाद भी तेरे घर में टिकी हुई है. बातें तो बहुत सी हैं पर मेरी जबानी उन को सुनना शायद तुम को अच्छा नहीं लगेगा, बेहतर होगा तुम खुद ही उन को जानो,’’ अमली चाचा ने कहा.

अमली चाचा की बातों से नरेंद्र हक्काबक्का था. उस ने सोचा नहीं था कि उस का एक सवाल कई दूसरे सवालों को जन्म दे देगा.

सवाल भी ऐसे जो उस की अपनी जिंदगी से जुडे़ थे. अमली चाचा की बातों से यह भी लगता था कि वह बहुत कुछ उस से छिपा भी गया था.

अब नरेंद्र की समझ में आने लगा था कि होश संभालने के बाद वह जिस खामोश औरत को अपने घर में देखता आ रहा है वह कौन है?

वह भी ‘कुदेसन’ है, लेकिन सवाल तो कई थे.

यदि मेरा बापू कभी मां की रजामंदी से ‘कुदेसन’ लाया था तो आज मां उस से इतना बुरा सलूक क्यों करती है? अगर वह ‘कुदेसन’ है तो मुझ को देख कर रोती क्यों है? जरा सा मौका मिलते ही मुझ को अपने सीने से चिपका कर चूमनेचाटने क्यों लगती थी वह? मां की मौजूदगी में वह ऐसा क्यों नहीं करती थी? क्यों डरीडरी और सहमी सी रहती थी वह मां के वजूद से?

फिर अमली चाचा की इस बात का क्या मतलब था कि अपने घर की कुछ बातें खुद ही जानो तो बेहतर होगा?

ऐसी कौन सी बात थी जो अमली चाचा जानता तो था किंतु अपने मुंह से उस को नहीं बतलाना चाहता?

एक सवाल को सुलझाने निकला नरेंद्र का किशोर मन कई सवालों में उलझ गया.

उस को लगने लगा कि उस के अपने जीवन से जुड़ी हुई ऐसी बहुत सी बातें हैं जिन के बारे में वह कुछ नहीं जानता.

अमली चाचा से नई जानकारियां मिलने के बाद नरेंद्र ने मन में इतना जरूर ठान लिया कि वह एक बार मां से घर में रह रही ‘कुदेसन’ के बारे में जरूर पूछेगा.

‘कुदेसन’ के कारण अब सुरजीत के घर में बवाल बढ़ गया था. सुरजीत की मां ‘कुदेसन’ को घर से निकालना चाहती थी मगर उस का बाप इस के लिए तैयार नहीं था.

इस झगड़े में सुरजीत की मां के दबंग भाइयों के कूदने से बात और भी बिगड़ गई थी. किसी वक्त भी तलवारें खिंच सकती थीं. सारा गांव इस तमाशे को देख रहा था.

वैसे भी यह गांव में इस तरह की कोई नई या पहली घटना नहीं थी.

जब सारे गांव में सुरजीत के घर आई ‘कुदेसन’ की चर्चा थी तो नरेंद्र का घर इस चर्चा से अछूता कैसे रह सकता था?

नरेंद्र ने भी मां और सिमरन बूआ को इस की चर्चा करते सुना था लेकिन काफी दबी और संतुलित जबान में.

इस चर्चा को सुन कर नरेंद्र को लगा था कि उस के मां से कु छ पूछने का वक्त आ गया है.

एक दिन जब नरेंद्र स्कूल से वापस घर लौटा तो मां अपने कमरे में अकेली थीं. सिमरन बूआ किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई थीं और बापू खेतों में था.

नरेंद्र ने अपना स्कूल का बस्ता एक तरफ रखा और मां से बोला, ‘‘एक बात बतला मां, गायभैंस बांधने वाली जगह के पास बनी कोठरी में जो औरत रहती है वह कौन है?’’

नरेंद्र के इस सवाल पर उस की मां बुरी तरह से चौंक गईं और पल भर में ही मां का चेहरा आशंकाओें के बादलों में घिरा नजर आने लगा.

‘‘तू यह सब क्यों पूछ रहा है?’’ नरेंद्र को बांह से पकड़ झंझोड़ते हुए मां ने पूछा.

‘‘सुरजीत के घर में उस का बापू  एक कुदेसन ले आया है. लोग कहते हैं हमारे घर में रहने वाली यह औरत भी एक ‘कुदेसन’ है. क्या लोग ठीक कहते हैं, मां?’’

नरेंद्र का यह सवाल पूछना था कि एकाएक आवेश में मां ने उस के गाल पर चांटा जड़ दिया और उस को अपने से परे धकेलती हुई बोलीं, ‘‘तेरे इन बेकार के सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं है. वैसे भी तू स्कूल पढ़ने के लिए जाता है या लोगों से ऐसीवैसी बातें सुनने? तेरी ऐसी बातों में पड़ने की उम्र नहीं. इसलिए खबरदार, जो दोबारा इस तरह की  बातें कभी घर में कीं तो मैं तेरे बापू से तेरी शिकायत कर दूंगी.’’

नरेंद्र को अपने सवाल का जवाब तो नहीं मिला मगर अपने सवाल पर मां का इस प्रकार आपे से बाहर होना भी उस की समझ में नहीं आया.

ऐसा लगता था कि उस के सवाल से मां किसी कारण डर गईं और यह डर मां की आखों में उसे साफ नजर आता था.

नरेंद्र के मां से पूछे इस सवाल ने घर के शांत वातावरण में एक ज्वारभाटा ला दिया. मां और बापू के परस्पर व्यवहार में तलखी बढ़ गई थी और सिमरन बूआ तलख होते मां और बापू के रिश्ते में बीचबचाव की कोशिश करती थीं.

मां और बापू के रिश्ते में बढ़ती तलखी की वजह कोने में बनी कोठरी में रहने वाली वह औरत ही थी जिस के बारे में अमली चाचा का कहना था कि वह एक ‘कुदेसन’ है.https://audiodelhipress.s3.ap-south-1.amazonaws.com/Audible/ch_a105_000001/0923_ch_a105_000006in_rev1_s1b_waaris_sl.mp3

मां अब उस औरत को घर से निकालना चाहती हैं. नरेंद्र ने मां को इस बारे में बापू से कहते भी सुना. नरेंद्र को ऐसा लगा कि मां को कोई डर सताने लगा है.

बापू मां के कहने पर उस औरत को घर से निकालने को तैयार नहीं हैं.

नरेंद्र ने बापू को मां से कहते सुना था, ‘‘इतनी निर्मम और स्वार्थी मत बनो, इनसानियत भी कोई चीज होती है. वह लाचार और बेसहारा है. कहां जाएगी?’’

‘‘कहीं भी जाए मगर मैं अब उस को इस घर में एक पल भी देखना नहीं चाहती हूं. नरेंद्र भी इस के बारे में सवाल पूछने लगा है. उस के सवालों से मुझ को डर लगने लगा है. कहीं उस को असलियत मालूम हो गई तो क्या होगा?’’ मां की बेचैन आवाज में साफ कोई डर था.

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. तुम बेकार में किसी वहम का शिकार हो गई हो. हमें इतना कठोर और एहसानफरामोश नहीं होना चाहिए. इस को घर से निकालने से पहले जरा सोचो कि इस ने हमें क्या दिया और बदले में हम से क्या लिया? सिर छिपाने के लिए एक छत और दो वक्त की रोटी. क्या इतने में भी हमें यह महंगी लगने लगी है? जरा कल्पना करो, इस घर को एक वारिस नहीं मिलता तो क्या होता? एक औरत हो कर भी तुम ने दूसरी औरत का दर्द कभी नहीं समझा. तुम को डर है उस औलाद के छिनने का, जिस ने तुम्हारी कोख से जन्म नहीं लिया. जरा इस औरत के बारे में सोचो जो अपनी कोख से जन्म देने वाली औलाद को भी अपने सीने से लगाने को तरसती रही. जन्म देते ही उस के बच्चे को इसलिए उस से जुदा कर दिया गया ताकि लोगों को यह लगे कि उस की मां तुम हो, तुम ने ही उस को जन्म दिया है. इस बेचारी ने हमेशा अपनी जबान बंद रखी है. तुम्हारे डर से यह कभी अपने बच्चे को भी जी भर के देख तक नहीं सकी.

‘‘इस घर में वह तुम्हारी रजामंदी से ही आई थी. हम दोनों का स्वार्थ था इस को लाने में. मुझ को अपने बाप की जमीनजायदाद में से अपना हिस्सा लेने के लिए एक वारिस चाहिए था और तुम को एक बच्चा. इस ने हम दोनों की ही इच्छा पूरी की. इस घर की चारदीवारी में क्या हुआ था यह कोई बाहरी व्यक्ति नहीं जानता. बच्चे को जन्म इस ने दिया, मगर लोगों ने समझा तुम मां बनी हो. कितना नाटक करना पड़ा था, एक झूठ को सच बनाने के लिए. जो औरत केवल दो वक्त की रोटी और एक छत के लालच में अपने सारे रिश्तों को छोड़ मेरा दामन थाम इस अनजान जगह पर चली आई, जिस को हम ने अपने मतलब के लिए इस्तेमाल किया, पर उस ने न कभी कोई शिकायत की और न ही कुछ मांगा. ऐसी बेजबान, बेसहारा और मजबूर को घर से निकालने का अपराध न तो मैं कर सकता हूं और न ही चाहूंगा कि तुम करो. किसी की बद्दुआ लेना ठीक नहीं.’’

नरेंद्र को लगा था कि बापू के समझाने से बिफरी हुई मां शांत पड़ गई थीं. लेकिन नरेंद्र उन की बातों को सुनने के बाद अशांत हो गया था. जानेअनजाने में उस के अपने जन्म के साथ जुड़ा एक रहस्य भी उजागर हो गया था.

अमली चाचा जो बतलाने में झिझक गया था वह भी शायद इसी रहस्य से जुड़ा था.

अब नरेंद्र की समझ में आने लगा था कि घर में रह रही वह औरत जोकि अमली चाचा के अनुसार एक ‘कुदेसन’ थी, दूर से क्यों उस को प्यार और हसरत की नजरों से देखती थी? क्यों जरा सा मौका मिलते ही वह उस को अपने सीने से चिपका कर चूमती और रोती थी? वह उस को जन्म देने वाली उस की असली मां थी.

नरेंद्र बेचैन हो उठा. उस के कदम बरबस उस कोठरी की तरफ बढ़ चले, जिस के अंदर जाने की इजाजत उस को कभी नहीं दी गई थी. उस कोठरी के अंदर वर्षों से बेजबान और मजबूर ममता कैद थी. उस ममता की मुक्ति का समय अब आ गया था. आखिर उस का बेटा अब किशोर से जवान हो गया था.

सावधानी हटी दुर्घटना घटी: आखिर क्या हुआ था सौजन्या के साथ?

‘‘सौजन्या तुम अब तक यहीं बैठी हो? घर नहीं गईं?’’ रीमा सौजन्या को अपने कक्ष में लैपटौप में व्यस्त देख चौंक गई. ‘‘आओ रीमा बैठो. घर जाने का मन नहीं कर रहा था. इसीलिए समाचार आदि देखने लगी. यह इंटरनैट भी कमाल की चीज है. समय कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता,’’ सौजन्या बोली.

‘‘हां, वह भी जब तुम विवाह डौट कौम पर व्यस्त हो,’’ रीमा हंसी. ‘‘तुम भी उपहास करने लगीं. विवाह

डौट कौम मेरा शौक नहीं मजबूरी है. सोचती हूं कोई ठीकठाक सा प्राणी मिल जाए तो समझो मैं चैन से जी सकूंगी,’’ सौजन्या बड़े दयनीय ढंग से मुसकराई.

‘‘समझ में नहीं आता तुम्हें कैसे समझाऊं… एक बार नवीन से मिल तो लो. वह भी तुम्हारी तरह हालात का मारा है. पत्नी ने 3 माह की मासूम बच्ची को छोड़ कर आत्महत्या कर ली. बेचारा कोर्टकचहरी के चक्कर में फंस कर बुरी तरह टूट चुका है,’’ रीमा ने पुन: अपनी बात दोहराई. ‘‘तुम भी रीमा… मैं तो सोचती थी तुम मेरी परम मित्र हो. मुझे और मेरी मजबूरी को भली प्रकार समझती हो. मैं तो स्वयं अपने तलाक के केस में उलझ कर रह गई थी. जीवन में कड़वाहट के अलावा कुछ बचा ही नहीं था. 10 साल लग गए उस मकड़जाल से निकलने में. सोचा था तलाक के बाद खुली हवा में सांस ले पाऊंगी, पर अब शुभचिंतक पीछे पड़े हैं. एक तुम्हारे नवीन का ही प्रस्ताव नहीं है मेरे सामने. दूरपास के संबंधियों को अचानक मेरी इतनी चिंता सताने लगी है कि मेरे लिए विवाह के प्रस्तावों की वर्षा होने लगी है,’’ सौजन्या एक ही सांस में बोल गई.

‘‘तो इस में बुराई ही क्या है? अब तो तुम्हारा तलाक भी हो गया है. कब तक यों ही अकेली रहोगी? अपनी नहीं तो अपने मातापिता की सोचो. तुम्हारी चिंता में घुल रहे हैं… तुम तो स्वयं समझदार हो. तुम्हारे भाईबहन अपनी ही दुनिया में इतने व्यस्त हैं कि तुम्हारी खोजखबर तक नहीं लेते,’’ रीमा भी कब चुप रहने वाली थी. ‘‘मैं ने कब मना किया है. मैं तो स्वयं अपने जीवन से ऊब गई हूं. पर समस्या यह है कि सभी प्रस्ताव तुम्हारे कजिन नवीन जैसे ही हैं. मैं ने अपनी मुक्ति के लिए इतनी लंबी लड़ाई लड़ी है कि मैं किसी और के घावों पर मरहम लगाने की हालत में नहीं हूं. मुझे तो कोई ऐसा चाहिए जो मेरे घावों पर मरहम लगा सके.’’

‘‘ठीक है, जैसा तू ठीक समझे. मैं तो तुझे खुश देखना चाहती हूं. मन को मन से राह होती है. पर जब तुम्हें कोई मनचाहा साथी मिल जाए तो बताना जरूर. अकेले ही कोई निर्णय मत ले लेना. इस बार तो हम खूब ठोकबजा कर देखेंगे ताकि बाद में पछताना न पड़े.’’ ‘‘वही तो. मैं तो ऐसा जीवनसाथी चाहती हूं, जो मेरी नौकरी और मोटे वेतन के लालच में नहीं, मैं जैसी हूं मुझे वैसी स्वीकार कर ले,’’ सौजन्या भीगे स्वर में बोली तो रीमा का मन भी भर आया.

दोनों बचपन की सहेलियां थीं और एकदूसरी पर जान छिड़कती थीं. रीमा अपने 2 बच्चों और पति के साथ अपने घरसंसार में सुखी थी, तो सौजन्या अपने नारकीय वैवाहिक जीवन से मुक्त होने के संघर्ष में टूट चुकी थी. 10 सालों के लंबे संघर्ष के बाद उसे पीड़ा से मुक्ति तो मिल गई पर इन 10 सालों के अपमान, तिरस्कार और कड़वाहट को भूल पाना सरल नहीं था. उस पर शुभचिंतकों द्वारा लाए गए नितनए विवाह के प्रस्ताव उस का जीना दूभर कर रहे थे. अत: उस ने अपने जीवन की बागडोर दृढ़ता से अपने हाथों में थामने का निर्णय ले लिया. दूसरा विवाह वह करेगी पर अपनी शर्तों पर. अपने भावी वर का चुनाव वह स्वयं करेगी. वह नहीं चाहती थी कि कोई उस पर तरस खा कर विवाह करे या उस की नौकरी और ऊंचे वेतन के लालच में विवाह के बंधन में बंधे और उस का जीवन नर्क बना दे. अंतर्मुखी सौजन्या को इन हालात में ‘इंटरनैट’ देवदूत की भांति लगा था और वह उसी में अपने सपनों के राजकुमार की खोज में जुट गई थी. 1 सप्ताह पहले जब रीमा अचानक उस के कक्ष में चली आई थी तो वह विभिन्न इंटरनैट पटलों पर भावी वरों के जीवनविवरण देखने में व्यस्त थी.

आशीष कुमार नाम के एक युवक का फोटो और जीवनविवरण उसे

इतना भा गया कि वह देर तक उस फोटो को हर कोण से देख कर मंत्रमुग्ध होती रही. जीवनविवरण का हर शब्द उस ने कई बार पढ़ा और पंक्तियों के बीच छिपे अर्थ को ढूंढ़ने का प्रयत्न करती रही. पहली बार उसे लगा कि आशीष को कुदरत ने उसी के लिए बनाया है. चेहरे का हर भाव उसे दीवाना सा किए जा रहा था. फिर तो सौजन्या मौका मिलते ही अपना लैपटौप खोल कर बैठ जाती और मंत्रमुग्ध सी अपने प्रिय को निहारती रहती.

सौजन्या को लगता कि अब उसे छिप कर रोमांस करने की जरूरत नहीं है. अब तो वह डंके की चोट पर अपने प्यार का इजहार करेगी. आशीष भी उस के प्रति अपना प्रेम प्रकट करने में पीछे नहीं रहता था. उस का फोटो देख कर ही वह इतना मंत्रमुग्ध हो गया था कि उस से मिलने की प्रबल इच्छा प्रकट करता रहता था. पर न जाने क्यों सौजन्या ही उस से मिलने का साहस नहीं जुटा पा रही थी. वह एक ही तर्क देती, पहले एकदूसरे को जान लें, समझ लें तब मिलने की सोचेंगे. सौजन्या के मन में अजीब सी जड़ता ने घर कर लिया था. कहीं मिल कर निराशा हाथ लगी तो? कभी सोचती कि उस के जीवन में जो कुछ घट रहा है कहीं मात्र स्वप्न तो नहीं? कहीं आंखें खोलते ही सबकुछ विलुप्त तो नहीं हो जाएगा? क्यों न इस स्वप्न को यों ही चलने दे और उस का रसास्वादन करती रहे.

उधर आशीष का उस से मिलने का हठ बढ़ता ही जा रहा था. सौजन्या का एक ही उत्तर होता कि पहले हम एकदूसरे को भली प्रकार समझ तो लें. ‘‘हमारा परिचय हुए 3 माह से अधिक हो गए हैं. अधिक समझने के लिए एकदूसरे से मिलना भी तो जरूरी है,’’ एक दिन आशीष अनमने स्वर में बोला.

‘‘अभी नहीं, मैं जब मानसिकरूप से तुम से मिलने को तैयार हो जाऊंगी तो स्वयं तुम्हें सूचित कर दूंगी,’’ सौजन्या ने दोटूक उत्तर दिया. अब सौजन्या को रीमा की याद आई, ‘‘रीमा, आज शाम को घर आना. कुछ जरूरी बातें करनी हैं,’’ उस ने रीमा को फोन कर कहा.

‘‘ऐसी क्या जरूरी बातें हैं, जो तुम औफिस में नहीं कर सकतीं?’’ रीमा ने उत्सुक स्वर में पूछा. ‘‘यह तो घर आ कर ही पता चलेगा,’’ सौजन्या ने टाल दिया.

सौजन्या घर पहुंची ही थी कि रीमा आ पहुंची. उस का सामना पहले सौजन्या की मां से हुआ. ‘‘नमस्ते आंटी,’’ रीमा उन्हें देखते ही बोली.

‘‘नमस्ते, तुम तो ईद का चांद हो गई हो बेटी. कभीकभी हम से भी मिलने आ जाया करो,’’ वे बोलीं. ‘‘2 माह पहले ही तो आई थी आंटी,’’

रीमा बोली. ‘‘हां, और मैं ने तुम से कुछ कहा था पर उस का कोई नतीजा तो सामने आया नहीं. विवाह का नाम सुनते ही सौजन्या बेलगाम सांड़ की तरह भड़क उठती है.’’

सौजन्या की मां रीमा से बातें कर ही रही थीं कि सौजन्या अपने कमरे के बाहर की बालकनी में प्रकट हुई, ‘‘अरे रीमा, वहां क्या कर रही हो? ऊपर आओ न.’’ ‘‘जाओ बेटी, हम वृद्धों के पास तुम्हारा

क्या काम?’’ ‘‘क्या मां, छोटी सी बात पर भड़क उठती हो. थोड़ी देर में हम दोनों नीचे आती हैं,’’ सौजन्या बोली.

‘‘जाओ रीमा बेटी, लैपटौप खोल कर बैठी होगी. आजकल वही इस का सबकुछ है. अपने परिवार या समाज की तो इसे चिंता ही नहीं है.’’ ‘‘आंटी, अपना गुस्सा मुझ पर उतार रही थीं. वे शायद समझती नहीं कि सहेली हूं तो क्या हुआ? औफिस में तो तू मेरी बौस है. मेरी बात भला क्यों मानने लगी,’’ रीमा सौजन्या के कक्ष में पहुंचते ही आहत स्वर में बोली.

‘‘अब दूंगी एक, पर छोड़ ये सब, यह देख,’’ सौजन्या ने विवाह डौट कौम पर आशीष का फोटो और जीवनविवरण निकाल लिया, ‘‘देख तो कैसा है?’’ ‘‘वाऊ, यह तो किसी फिल्मी हीरो की तरह लग रहा है. कब से चल रहा है ये सब?’’ रीमा आशीष का विवरण पढ़ते हुए बोली.

‘‘3 माह पहले मिले थे हम दोनों.’’ ‘‘कहां?’’

‘‘यहीं इंटरनैट पर और कहां.’’ ‘‘तो अभी मेलमुलाकात भी नहीं हुई? विवाह भी इंटरनैट पर ही करोगी क्या?’’ रीमा हंस दी.

‘‘आशीष तो बहुत दिनों से मिलने की रट लगाए हैं. मेरी ही हिम्मत नहीं होती. तुम चलोगी मेरे साथ?’’ ‘‘मैं क्यों कबाब में हड्डी बनने लगी? अब तुम छोटी बच्ची नहीं हो. अपने निर्णय स्वयं लेने सीखो. औफिस में तो लाखों के वारेन्यारे करती हो और यहां किसी से मिलने से कतरा रही हो?’’ रीमा ने समझाना चाहा.

‘‘यही पूछना था तुम से. तुम ने कहा था न कि कोई पसंद आए तो बताना. तो सब से पहले तुम्हें ही बता रही हूं.’’ ‘‘ओह हो, तुम अभी से शरमा रही हो. चेहरे पर भी लाली छा रही है. चल अभी इस से मिलने का दिन और तिथि तय कर लो.’’

‘‘रविवार कैसा रहेगा?’’ ‘‘बहुत बढि़या, छुट्टी का दिन है. दोनों पूरा दिन साथ बिता सकते हो. एकदूसरे को जाननेसमझने में मदद मिलेगी.’’ तुरंत सौजन्या और आशीष के बीच संदेशों का आदानप्रदान हुआ और रविवार के दिन मिलने की बात तय हो गई.

‘‘आंटी, अब मत डांटना मुझे. आप की इच्छा पूरी होने जा रही है. बैंडबाजा बजने में अधिक देर नहीं है अब,’’ रीमा जातेजाते सौजन्या की मां से बोली. ‘‘तुम्हारे मुंह में घीशक्कर, पर पूरी बात तो बताती जाओ,’’ वे बोलीं.

‘‘वह तो आप सौजन्या से ही पूछना. मुझे देर हो रही है. घर में सब इंतजार कर रहे होंगे,’’ कह रीमा सरपट भागी. मगर दूसरे दिन कुछ अप्रत्याशित सा घट गया. सौजन्या एक मीटिंग में व्यस्त थी कि उस के सहायक ने एक चिट ला कर दी. चिट पर आशीष कुमार का नाम देखते ही उस के होश उड़ गए. वह बाहर की ओर लपकी.

आशीष लौबी में बैठा उस का इंतजार कर रहा था. ‘‘आप यहां? इस समय?’’ सौजन्या के मुंह से किसी प्रकार निकला.

‘‘रहा नहीं गया. इसीलिए मिलने चला आया. मैं रविवार तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता. चलो छुट्टी ले लो कहीं घूमनेफिरने चलते हैं,’’ आशीष बोला. ‘‘यह क्या पागलपन है. मेरी एक जरूरी मीटिंग चल रही है. मैं छुट्टी नहीं ले सकती… इस तरह यहां क्यों चले आए? देखो सब की निगाहें हम दोनों पर ही टिकी हैं,’’ सौजन्या झेंप गई थी पर आशीष अपनी ही जिद पर अड़ा था.

बड़ी मुश्किल से सौजन्या ने आशीष को समझाबुझा कर भेजा और रविवार को मिलने की बात दोहराई. लंच के समय रीमा ने सौजन्या की खूब खिंचाई की, ‘‘लगता है आशीष बाबू से अब यह दूरी सहन नहीं हो रही.’’

‘‘पर इस तरह औफिस में आ धमकना? मुझे तो अच्छा नहीं लगा.’’ ‘‘चलता है सब चलता है. प्रेम और जंग में सब जायज है,’’ रीमा हंस दी.

शुक्रवार को सौजन्या घर पहुंची ही थी कि रीमा आ पहुंची. ‘‘क्या हुआ? आज औफिस क्यों नहीं आईं और अब इस तरह अचानक?’’ सौजन्या चौंक गई.

‘‘इतने प्रश्न मत किया करो. अपने कमरे में चलो. जरूरी बात करनी है,’’ रीमा बोली और फिर दोनों सहेलियां सौजन्या के कमरे में जा बैठीं. रीमा ने चटपट ‘विवाहविच्छेद डौट कौम’ नाम की साइट खोली और एक फोटो और जीवनविवरण ढूंढ़ निकाला.

‘‘यह देखो, पहचाना?’’ रीमा बोली. ‘‘यह तो आशीष है.’’

‘‘नहीं, नीचे पढ़ो. यह रूबीन है. यहां इस का नाम, काम, धाम सब बदला हुआ है. यहां ये महोदय सरकारी अफसर नहीं चिकित्सक हैं. अविवाहित नहीं तलाकशुदा हैं. पर फोन नंबर वही है. जाति, धर्म भी बदल गए हैं.’’ ‘‘उफ, ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है?’’ सौजन्या ने सिर पकड़ लिया.

‘‘स्वयं पर तरस खाना छोड़ दो सौजन्या. ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है. चलो नवीन से मिलने चलते हैं.’’ ‘‘मैं किसी से मिलने की स्थिति में नहीं हूं.’’

‘‘मैं तुम्हें उस से मिलवाने नहीं ले जा रही. हम उस से इन आशीष उर्फ रूबीन महोदय के विरुद्ध सहायता मांगेंगी. इस धोखेबाज को दंड दिलाए बिना मुझे चैन नहीं मिलने वाला. नवीन साइबर अपराध शाखा में कार्यरत है,’’ रीमा नवीन को फोन मिलाते हुए बोली. कुछ ही देर में दोनों सहेलियां नवीन के सामने बैठी सौजन्या की आपबीती सुना रही थीं.

‘‘मैं ने तो स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि औनलाइन भी इस तरह की धोखाधड़ी होती है. मैं तो सोचती थी कि ये डौट कौम कंपनियां सबकुछ पता लगा कर ही किसी का विवरण पंजीकृत करती हैं.’’ ‘‘धोखाधड़ी कहां नहीं होती सौजन्याजी. हमारे अपने भी हमें धोखा दे देते हैं. हमें सावधानी से काम लेना चाहिए. यों समझ लीजिए कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी,’’ नवीन बोला और फिर देर तक फोन करने में व्यस्त रहा.

‘‘कुछ देर तक यह आशीष उर्फ रूबीन मुझ से बात करता रहा. पर जब मैं ने पूछताछ शुरू की तो फोन काट दिया. पर आप चिंता न करें. आप चाहें तो अपनी जानकारी गुप्त रखते हुए इस व्यक्ति के विरुद्ध रपट लिखवा सकती हैं.’’ ‘‘नहीं, मैं किसी चक्कर में नहीं पड़ना चाहती. वैसे भी मैं तो बालबाल बच गई… रीमा ने बचा लिया मुझे नहीं तो पता नहीं क्या होता. मैं बहुत डर गई हूं… अब कभी इस झंझट में नहीं पड़ने वाली.’’

‘‘वही तो मैं समझा रहा हूं. उस ने मानसिक संताप दिया है आप को. इस के लिए उसे 3 साल की सजा भी हो सकती है,’’ नवीन ने समझाया. ‘‘मैं कुछ समय चाहती हूं,’’ सौजन्या ने हथियार डाल दिए थे.

धीरेधीरे जीवन अपने ही ढर्रे पर चलने लगा था. न सौजन्या ने आशीष वाली घटना का कभी जिक्र किया न रीमा ने पूछा. रीमा को लगा कि उस घटना को किसी बुरे सपने की तरह भूल जाना ही ठीक था. अचानक एक दिन नवीन रीमा के घर आ धमका. ‘‘मैं तो खुद तुम से मिल कर धन्यवाद देना चाहती थी. तुम ने उस प्रकरण को कितनी कुशलता से संभाला वरना तो पता नहीं मेरी सहेली सौजन्या का क्या हाल होता,’’ रीमा ने आभार व्यक्त किया.

‘‘रीमा, आभार तो मुझे तुम्हारा व्यक्त करना चाहिए. सौजन्या मेरे जीवन में सुगंधित पवन के झोंके की तरह आई है. शाम की प्रतीक्षा में दिन कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता.’’ ‘‘क्या? फिर से कहो, सुगंधित पवन का झोंका और न जाने क्या? लगता है आजकल सौजन्या तुम्हें घास डालने लगी है,’’ रीमा मुसकराई.

‘‘घास तो फिलहाल हम ही डाल रहे हैं, पर जीवन में कुछ ऐसा घटित हो रहा है जो पहले कभी नहीं हुआ था.’’ ‘‘मैं सौजन्या से बात करूंगी,’’ रीमा ने कहा.

‘‘नहीं, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी. उसे भनक भी लग गई कि मैं उस पर डोरे डाल रहा हूं तो भड़क उठेगी. यह समस्या मेरी है. इसे सुलझाने का भार भी मेरे ही कंधों पर है,’’ कह नवीन कहीं खो सा गया. मगर रीमा उस की आंखों में लहराते प्रेम के अथाह सागर को साफ देख पा रही थी. पहली बार रीमा को लगा कि अपने करीबी लोगों को भी कितना कम जानते हैं हम. पर वह खुश थी सौजन्या के लिए और नवीन के लिए भी जो अनजाने ही निशांत की ओर बढ़े जा रहे थे.

ब्रेकअप पार्टी: प्रतीक को अनन्या से हुआ था एक झटके में प्यार

‘‘चुप हो जा भाई, कितना रोएगा,’’ मैं और सुशील काफी देर से प्रतीक को चुप कराने की कोशिश कर रहे थे, पर वह रोए जा रहा था. मिलिंद अपना आपा खोता जा रहा था और दीवार पर हाथ मारते हुए कुछ बोल रहा था, ‘इसे जल्दी चुप कराओ वरना मैं इस की पिटाई कर दूंगा.’

कितना बदल गया था प्रतीक. जब मैं ने उसे पहली बार देखा था तब मेरी तरह वह भी अपने पापा के साथ इस होस्टल में पीजी के तौर पर रहने आया था. उस की रिजल्ट हिस्ट्री जानने के बाद पापा ने मुझे उस के साथ रहने और उसी के साथ दोस्ती रखने की हिदायत दे डाली थी. जहां मैं नीट की तैयारी के लिए कोटा आया था, वह आईआईटियन था. पढ़ने में होशियार प्रतीक जब देखो किताबोें में ही घुसा रहता, पर मुझे शाम होते ही ऐसा लगता जैसे मेरे छोटे से कमरे की दीवारों ने भयावह आकृति अख्तियार कर ली है और मैं डर कर कमरे से बाहर भागता.

मेरे कमरे के पास ही सुशील का भी कमरा था पर वह सिर्फ नाम का सुशील था. पढ़ाईलिखाई से उस का कम ही वास्ता था. वह कमरे में कम बालकनी में ज्यादा रहता था और रहता भी क्यों नहीं, उस ने अपने शहर में कहां इतनी हरियाली देखी थी जो यहां थी. हमारे होस्टल वाली गली में सिर्फ हमारा ही बौयज होस्टल था. बाकी सारे गर्ल्स होस्टल थे. चारों तरफ गोपियां बीच में कन्हैया वाला हाल था.

मेरे कमरे के सामने वाला कमरा प्रतीक का था और उस के पास वाले कमरे में नया लड़का मिलिंद आया था, जो जल्दी ही हम सब का बौस बन गया था. उसे सुशील की हरकतें बिलकुल पसंद नहीं थीं. मुझे वह अपना छोटा भाई समझता था और ऐसे भाषण पिलाता था जिस के आगे मम्मी के भाषण भी फीके पड़ जाते थे.

मैं, मिलिंद और प्रतीक अकसर साथ ही पढ़ाई करते थे, पर शाम होते ही हमें किताबों को देख कर उबकाई सी आने लगती, इसलिए हम उसी वक्त पढ़ाई बंद कर के नहाधो कर, परफ्यूम लगा कर हीरो बन जाते और कोटा की भीड़भरी सड़कों पर घूमने निकल जाते.

प्रतीक और मिलिंद लड़कियों को देख कर खुश होते, लेकिन लड़कियां मुझ पर लाइन मारती हुई निकल जातीं तो मैं शरमा कर रह जाता. सुशील को तो गर्लफ्रैंड भी मिल गई थी और उस लड़की ने उसे अपनी और अपनी सहेलियों की हर ख्वाहिश पूरी करने वाला जिन्न बना लिया था. हमें उस की ऐसी हालत पर तरस भी आता और हंसी भी आती, पर कई बार हमारे समझाने पर भी वह नहीं समझा तो हम ने उसे उस के ही हाल पर छोड़ दिया.

इधर, हमेशा से पढ़ाकू रहे प्रतीक का भी मन उचटने लगा था, वजह थी सामने वाले होस्टल में रहने वाली अनन्या. अब वह भी अपने कमरे में कम, बालकनी में ज्यादा नजर आता था. हमेशा खयालों में खोया रहता. जब हम से उस का हाल देखा नहीं गया तो हम ने उन दोनों की मीटिंग की जुगत भिड़ाई और उन की प्रेमकहानी शुरू हो गई.

परेशानी यह थी कि परीक्षा के दिन नजदीक आ रहे थे और मैं व मिलिंद घूमनाफिरना छोड़ कर अब पढ़ाई में जुटे हुए थे, पर प्रतीक का मन अब पढ़ाई में नहीं लग रहा था. हर वीकली टैस्ट में उस की कटऔफ नीचे जा रही थी, पर उसे इस की परवा ही नहीं थी. फिर वही हुआ जिस का हमें डर था. उस का रिजल्ट इतना डाउन हुआ कि उस ने ही आईआईटी के छोड़ने का निश्चिय कर लिया. परीक्षा खत्म होने के बाद ज्यादातर स्टूडैंट्स अपनेअपने घर चले गए थे, पर हम लोग वहीं थे, क्योंकि अनन्या के चक्कर में प्रतीक नहीं गया और न ही उस ने हमें जाने दिया.

उस रोज मैं और मिलिंद अपने कमरे में बैठ कर बातें कर रहे थे कि मिलिंद का मोबाइल बजा. वहां से प्रतीक घबराई हुई आवाज में कह रहा था, ‘‘मिलिंद, तू सौम्य को ले कर जल्दी चंबल गार्डन पहुंच.’’

‘‘क्या हुआ भाई, तू इतना घबराया हुआ क्यों है?’’ मिलिंद की बात पूरी सुने बिना ही फोन कट चुका था. हम दोनों जैसे थे उसी स्थिति में औटो ले कर चंबल गार्डन पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर हक्केबक्के रह गए. अनन्या एक लड़के से चिपकी हुई खड़ी थी और 2 लड़के प्रतीक को पीट रहे थे. यह देख कर मेरा और मिलिंद का पारा हाई हो गया. हम ने उन दोनों लड़कों को मार भगाया और अनन्या अपने एक बौयफ्रैंड के साथ चली गई.

प्रतीक को काफी चोटें आई थीं, पर शरीर से ज्यादा उस का दिल घायल हुआ था. जब उसे पता चला कि उस के अलावा अनन्या के 2 और बौयफ्रैंड्स हैं, उस ने गुस्से में आ कर अनन्या से कहा कि वह सब के सामने उस की पोल खोल देगा. तो उस ने व उस के बौयफ्रैंड ने अपने दोस्तों को बुला कर प्रतीक को पिटवा दिया. बेचारे प्रतीक का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. इस तरह तो वह शायद बचपन में अपना कोई प्यारा खिलौना टूटने पर भी नहीं रोया होगा.

मिलिंद बारबार दीवार पीट रहा था और गुस्से में उबल रहा था, ‘‘मैं उन लोगों को छोड़ूंगा नहीं और ये अनन्या कितनी चालू लड़की निकली यार, एकसाथ 3 लड़कों के साथ फ्लर्ट कर रही है.’’

‘‘बहुत स्मार्टगर्ल है, उस के तो ऐश हैं. हम लड़के न जाने क्यों इन लड़कियों के चक्कर में पड़ जाते हैं,’’ मैं ने कहा तो प्रतीक ने मुझे घूर कर देखा और घुटनों में मुंह छिपा कर फिर से रोने लगा. उस के रोने से जहां मुझे दया आ रही थी वहीं मिलिंद को बहुत गुस्सा आ रहा था.

‘‘ऐसे रो रहा है जैसे पता नहीं क्या हो गया है. अरे, अभी तो हमारी लाइफ शुरू हुई है. अभी तो न जाने कितने लोग हमारी लाइफ में आएंगे और चले जाएंगे, तो क्या उसे याद कर हम यों ही रोते रहेंगे.

‘‘उस लड़की के चक्कर में अपनी पढ़ाई खराब की सो अलग. सच में इन लड़कियों के चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहिए. ये सिर्फ हमारी जेब ही ढीली करवाती हैं. इन्हें कोई मालदार मिल गया तो एक ही झटके में इन्हें ढेरों बुराइयां दिखाई देने लगती हैं और एक ही झटके में ऐसे दिल तोड़ती हैं जैसे दिल न हुआ कोई कच्ची माटी का घड़ा हो गया.’’

मिलिंद बड़बड़ाए जा रहा था और प्रतीक का रोना बंद नहीं हो रहा था. तभी मुझे एक उपाय सूझा. मैं सुशील को साथ ले कर मार्केट गया और कुछ स्नैक्स व कोल्डड्रिंक ले आया. सुशील के पास एक प्लयूटूथ स्पीकर था. हम ने अच्छा सा पार्टी सौंग लगाया और प्रतीक को समझाया तब उस ने अनन्या की सारी फोटोग्राफ्स डिलीट कीं, फिर उसे सोशल साइट्स पर ब्लौक कर दिया.

यह सब करने के बाद उस के चेहरे पर सुकून की झलक दिखाई दी. उस का मूड बदलता देख हम सब मूड में आ गए और फिर हम चारों ने सारी रात खूब डांस किया. भाई का ब्रेकअप हुआ था भई, पार्टी तो बनती है.

फैस्टिव सीजन में एथनिक फैशन के रंग, ब्राइट कलर्स के साथ पाएं आकर्षक लुक

ब्याह हो या तीज-त्यौहार अथवा और कोई खास अवसर भारतीय घरों में खरीदारी भी खास हो जाती है. हर महिला चाहती है कि वह त्योहारों के अवसर पर सब से अलग और खास दिखे. सब की प्रशंसाभरी नजरें उस की तरफ उठें. मगर इस ऐक्साइटमैंट में यह न भूलें कि त्योहार के दौरान अच्छा दिखने के साथसाथ कंफर्ट का खयाल रखना भी जरूरी है. कपड़े ऐसे हों कि आप आसानी से सारी भागदौड़ कर सकें, रीतिरिवाज निभा सकें और गौर्जियस लुक के साथ परफैक्ट फैस्टिव दीवा भी लगें.

ऐसे में इंडियन एथनिक कपड़ों को पहनने का जो आनंद आता है वह शायद ही किसी और ड्रैस को पहन कर आता हो. तो इस फैस्टिव सीजन क्यों न हर रस्म को ऐथनिक फैशन के साथ सैलिब्रेट किया जाए.

इस संदर्भ में डिजाइनर शिल्पी गुप्ता कहती हैं कि इन दिनों बहुत सारे ऐथनिक फैशन उपलब्ध हैं. ऐथनिक वियर की कईर् उपशैलियां भी उपलब्ध हैं जैसेकि गुजराती ऐथनिक वियर, राजपूताना ऐथनिक वियर, पंजाबी ऐथनिक वियर, मराठी ऐथनिक वियर, इसलामिक ऐथनिक वियर आदि.

इन टिप्स को अपना कर आप त्योहार में ऐथनिक लुक में भी परफैक्ट लग सकती हैं:

मिनिमम लुक

फैस्टिवल के दौरान हम मेहमानों का अभिवादन करने में थोड़ा व्यस्त हो जाते हैं. ऐसे में भारी काम वाले कपड़े थका देने वाले साबित हो सकते हैं. अत: हलकी प्रिंटेड साड़ी स्टेटमैंट प्रिंटेड श्रग के साथ अच्छा विकल्प है. यह ड्रैस आप को ऐथनिक के साथसाथ मौडर्न लुक भी देगी.

शाइनिंग सिल्क

सिल्क में आप कोई भी ऐथनिक ड्रैस पहनती हों तो वह खूबसूरत लगती है. हाल के दिनों में डिजाइनरों, मशहूर हस्तियों और कई अन्य लोगों ने रेशम के कपड़ों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है. बनारसी या डाउन साउथ शैली ने फैशन की दुनिया में अलग जगह बनाई है. आप रेशमी ब्लाउज, घाघरा या साड़ी में अपना ऐथनिक अवतार ट्राई कर सकती हैं.

अनारकली और चूड़ीदार के क्लासिक कौंबो

ड्रामा और ग्लैमर, अनारकली सूट के लिए 2 शब्द हैं. इन्हें चूड़ीदार के साथ पहना जाता है. चाहे कढ़ाई हो या जरी का काम किया गया हो अथवा किसी अन्य पैटर्न में भारतीय ऐथनिक वियर की यह शैली विकल्प के रूप में नंबर-1 पर है.

टै्रडिशनल विद मौडर्न लुक

बौलीवुड स्टार अपनी ट्रैडिशनल विद मौडर्न लुक की ऐथनिक पोशाक से सब को आकर्षित करती हैं. साड़ी, लहंगा या सूट सभी पोशाकों में थोड़ा सा मौडर्न लुक इस्तेमाल कर आप ऐथनिक में भी सब से अलग लग सकती हैं.

शौपक्लूज की रितिका तनेजा, हैड, कैटेगरी मैनेजमैंट, मानती हैं कि भारत सैकड़ों भाषाओं, संस्कृतियों, व्यंजनों और त्योहारों वाला देश है. सालभर देश के किसी न किसी हिस्से में कोई खास त्योहार मनाया जाता है, लेकिन खास फैस्टिव सीजन हर साल के अंत में शुरू होता है. इस समय महिलाओं के लिए ऐसी ड्रैसेज खरीदना काफी बड़ा काम होता है, जिन में वे खूबसूरत और सब से अलग दिखें.

कुछ टिप्स

अपनाएं इंडोवैस्टर्न फ्यूजन

फैस्टिव सीजन के विभिन्न इवेंट्स में रंग जमाने के लिए इंडोवैस्टर्न फ्यूजन जरूर आजमाएं. इस समय भारतीय लुक पर अधिक और पाश्चात्य लुक पर कम ध्यान दें. यानी आप अपने लुक को सिर्फ हलका वैस्टर्न टच दें. आप अनारकली सूट को हैरम पैंट के साथ पहन सकती हैं या इस के साथ डैनिम वेस्ट जैकेट पहनें.

ब्राइट कलर्स के साथ आकर्षक लुक

इस सीजन डल कलर्स से दूरी बनाएं और ब्राइट कलर जैसे यलो, रैड, पिंक आदि पहनें या इन के साथ मैचिंग करें. यह फैशन का ऐसा सीजन है, जिस में आप कलर्स के साथ भरपूर ऐक्सपैरिमैंट्स कर सकती हैं.

स्टाइलिश स्लिट वाला कुरता

स्लिट वाले कुरते काफी आकर्षक होते हैं. आकर्षक बनने के लिए आप साइड स्लिट, फ्रंट स्लिट और मल्टीपल स्लिट वाले कुरते आजमा सकती हैं. अपने पूरे लुक को ऐक्साइटिंग टच देने के लिए इन्हें आप स्कर्ट, बेल पैंट, प्लाजो या लूज पैंट के साथ आसानी से पहन सकती हैं.

हेमलाइन का उठाएं आनंद

अनइवन, अनमैच्ड और लेयर्ड हेमलाइंस इस सीजन में बहुत लोकप्रिय हैं, क्योंकि ये अधिक कंफर्टेबल और आकर्षक लुक प्रदान करती हैं. आप रफल्स और मल्टीपल लेस वाले कुरतों के विभिन्न स्टाइल आजमा सकती हैं. आप इसे स्लिम पैंट, लूज पैंट या स्कर्ट के साथ भी पहन सकती हैं. यह परिवार और दोस्तों के साथ त्योहार मनाने के लिए अच्छा लुक है.

आकर्षक प्रिंट्स

रैट्रो युग की प्रिंट डिजाइनें बेहद आकर्षक, स्टाइलिश और क्रिएटिव लुक देती हैं. फ्लोरल मोटिफ, ब्लौक प्रिंट्स काफी ट्रैंडी दिखते हैं और ये बाहर खाना खाने, खरीदारी करने जाते समय पहनने के लिए उपयुक्त हैं.

आइए, जानते हैं मोंटे कार्लो की ऐग्जिक्युटिव डाइरैक्टर मोनिका ओसवाल से कि अपने ऐथनिक लुक में परफैक्ट कैसे दिखें:

सही फैब्रिक है सब से अहम

परिधानों का चयन करते समय सब से पहले हमें फैब्रिक पर ध्यान देना चाहिए खासकर ऐथनिक वियर के मामले में फैब्रिक एक एनहांसर का काम करता है और आप के लुक को और निखारता है. कल्पना करें, आप ने एक सिल्क साड़ी पहनी है और उस के साथ एक अच्छा सा ब्रोकेड ब्लाउज है तो कितना अच्छा लगेगा. बात जब ऐथनिक परिधानों की आती है तो सिल्क बैस्ट विकल्प होता है. वैसे भी क्लासिक फैब्रिक जैसेकि सिल्क, लिनेन, कौटन, शिफौन, लेस आदि हमेशा चलन में रहते हैं और इन पर खर्च करना एक इनवैस्टमैंट जैसा होता है.

फिटिंग भी रखती है माने

फैब्रिक के साथ फिटिंग भी माने रखती है, क्योंकि इसी से परिधानों का लुक निखरता है. ढीलेढाले कपड़े चाहे जितने भी अच्छे क्यों न हों कभी खास नहीं लगते हैं. बहुत टाइट कपड़े भी अच्छे नहीं दिखते हैं, क्योंकि ये बेवजह का अटैंशन पाने की चाह में पहने हुए से लगते हैं. ऐसे में आप इन के साथ निप ऐंड टक कर के बड़ी आसानी से और कम समय में कपड़ों की फिटिंग ठीक कर सकती हैं या फिर टेलर से फिटिंग करा कर अपने लुक को परफैक्ट बनाएं.

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लेयरिंग का जलवा

कौन कहता है कि लेयरिंग सिर्फ वैस्टर्न आउटफिट में ही अच्छी लगती है? ऐथनिक वियर में भी लेयरिंग उतनी ही महत्त्वपूर्ण होती है जो ऐलिगैंस बढ़ा देती है. एक सामान्य कुरती के ऊपर अगर आप मल्टी ह्यूड जैकेट पहन लें तो यह खास लुक देगी. साड़ी के ऊपर वैलवेट केप्स पहन कर आप अपने फैशनिस्टा के सपने को साकार कर सकती हैं. यहां तक कि एक साधारण दुपट्टा भी आप के आउटफिट में जान डाल सकता है. इस लेयरिंग को समझदारी से करें और फिर देखें कैसे आप सब के आकर्षण का केंद्र बन जाती हैं.

मिक्स ऐंड मैच

हमें अकसर ऐसा महसूस होता है कि हमारे पास ऐथनिक इवेंट के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं है. ऐसे टाइम पर भी यदि हम अपने वार्डरोब को खंगालें तो पता चलेगा कि उस में ऐसी बहुत सारी चीजें हैं, जिन्हें मिक्स ऐंड मैच कर के हम उस खास मौके के लिए बेहतरीन आउटफिट तैयार कर सकती हैं. चूड़ीदार की जगह प्लाजो ट्राई करें अथवा अपनी लौंग कुरती के साथ शिमरी घाघरा पहन कर अपनी ड्रैस में लाएं एकदम नयापन.

बनाएं यादगार स्टेटमैंट

यह आम धारणा है कि ऐथनिक का मतलब है गहनों से लदा होना. नख से शिख तक गहने ही गहने, जो सही नहीं है. अगर आप दुलहन नहीं हैं तो गहनों को ले कर चूजी रहें. बहुत सारे गहनों की जगह एक स्टेटमैंट पीस का चयन कर सोबर लुक के साथसाथ अट्रैक्टिव भी लगें.

फैशन डिजाइनर आशिमा शर्मा कहती हैं कि पेस्टल शेड्स फिर से ट्रैंड में हैं. युवा महिलाओं में त्योहारों के समय इस कलर का क्रेज दिखता है. मजैंटा या डार्क पिंक भी आजकल फ्यूजन वियर लुक के लिए ट्रैंड में हैं. ये भारतीय महिलाओं में फैस्टिव लुक्स के लिए काफी पौपुलर शेड्स हैं.

फैस्टिव लुक्स के लिए इंडोवैस्टर्न या फ्यूजन वियर भी काफी ट्रैंडिंग हैं. लहंगासाड़ी भी बेहतरीन औप्शन है. इंडोवैस्टर्न कुरती लुक्स भी फैस्टिव चौइस के रूप में काफी लोकप्रिय है. अनारकली ट्रैंड भी बेहतरीन फैस्टिव लुक देता है.

इंडोवैस्टर्न बैल्टेड साड़ी पहन कर भी आप त्योहारों के मौसम में जलवे बिखेर सकती हैं. प्लीटेड स्कर्ट्स के साथ इंडोवैस्टर्न टौप भी एक स्मार्ट चौइस है.

आजकल कुछ महिलाओं ने जोधपुरी पैंट्स के साथ शौर्ट कुरती पहननी शुरू की है, जो उन्हें डिफरैंट लुक देती है. ऐंब्रौयडरी वाली प्लेन चिकन कुरतियां भी फैवरिट फैस्टिव फैशन ट्रैंड है और यह हर उम्र की महिलाओं के द्वारा पसंद किया जाने लगा है.

इस फैस्टिव सीजन के लिए ज्वैलरी ट्रैंड्स

फ्लोरल ज्वैलरी इस सीजन में सब से ज्यादा लोकप्रिय ट्रैंडिंग ज्वैलरी ट्रैंड है. फ्लौवर्स से बने नैकपीसेज और मांगटीका इस सीजन में सब से ज्यादा पहने जा रहे हैं. स्टेटमैंट नैक पीसेज और इयररिंग्स भी फैस्टिव लुक में पसंद किए जा रहे हैं. डायमंड और क्रिस्टल ज्वैलरी मैचिंग इयररिंग्स के साथ भी फैस्टिव सीजन की पहली पसंद है. व्हाइट गोल्ड ज्वैलरी भी ट्रैंड में आ गई है. बहुत सी सैलिब्रिटीज यह ज्वैलरी पहनी दिख जाएंगी.

मल्टीपल कलर्ड पीसेज के बजाय फैस्टिवल्स में सिंगल कलर्ड ज्वैलरी पीसेज ज्यादा अच्छे लगते हैं. फैस्टिवल्स के दौरान हैवी पीस के बजाय लाइट वेट नैक पीस ज्यादा पसंद किए जाते हैं. फैस्टिव ज्वैलरी के लिए ब्यूटीफुल पर्ल्स ट्रैंड में हैं. असली और नकली दोनों तरह के पर्ल्स लिए जाते हैं. हैंड क्राफ्टेड और क्रिएटिव लुकिंग ज्वैलरी भी फैस्टिव सीजन की पहली पसंद है. इंडोवैस्टर्न लुक्स के साथ मैटेलिक या ब्रौंज्ड ज्वैलरी कंप्लीट फैस्टिव लुक देती है. सी शैल्स से बनी ज्वैलरी भी ऐथनिक फैस्टिव ड्रैसेज के साथ परफैक्ट लुक देता है. रंगरीति के सीईओ संजीव अग्रवाल ऐथनिक वियर से जुड़े निम्न टिप्स दे रहे हैं:

पारंपरिक परिधानों को दें नया ट्विस्ट

इस सीजन में पारंपरिकता और आधुनिकता का फ्यूजन टै्रंड में है. आप लंबी मैक्सी ड्रैस के साथ गहरे रंग की धोती पैंट पहन सकती हैं या कुरते के साथ धोती या पैंट मैच कर सकती हैं. आप चाहें तो स्टाइलिश कुरते को फ्लेयर्ड प्लाजो पैंट के साथ भी पहन सकती हैं.

आप स्टाइलिश कुरती और पैंट के साथ पारंपरिक जैकेट भी पहन सकती हैं. गहरे, पेस्टल या मिलेजुले रंगों में अपनी पसंद के रंग चुन सकती हैं. पेस्टल ग्रीन, मिंट ग्रीन, क्रीम, डल पिंक, पाउडर ब्लू जैसे कलर इस सीजन फैशन में हैं, जो फ्रैश और लाइट फीलिंग देते हैं.

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ऐथनिक फैशन

ऐथनिक ड्रैसेज भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं. इन त्योहारों में आप कई रंगों, पैटर्नों और डिजाइनों में ऐथनिक आउटफिट जैसे सलवार सूट, कुरतीप्लाजो, हैवी टुपट्टा, कुरती स्लिम पैंट, कुरतीस्कर्ट जैसे फ्यूजन अपना सकती हैं. अलगअलग रंगों और डिजाइनों के साथ नए प्रयोग भी कर सकती हैं.

कुरता ड्रैस

कुरता ड्रैस आजकल महिलाओं में काफी लोकप्रिय है. टाई ऐंड डाई प्रिंट का शौर्ट कुरता या मैक्सी कुरता जैसे परिधान इन त्योहारों में आप को नया लुक देंगे.

डबल लेयरिंग: लेयरिंग 2019 का नया फैशन कहा जा सकता है. यह पारंपरिक और पश्चिमी दोनों तरह की ड्रैसेज में चल रहा है. फैस्टिवल्स में आरामदायक एहसास पाने के लिए आप अपनी टीशर्ट के साथ नैट या कौटन का स्टाइलिश श्रग पहन सकती हैं. लेयर्स जहां एक ओर आरामदायक और खूबसूरत एहसास देती हैं, वहीं स्टाइलिश लुक भी देती हैं.

कोई भी ड्रैस चुनते समय आराम को सब से ज्यादा महत्त्व दें. आप चाहे वैस्टर्न वियर पहन रही हों या ऐथनिक वियर, आराम सब से ज्यादा माने रखता है. त्योहारों में आप को काम भी करना होता है, तो डांस भी. ऐसे में जरूरी है कि आप का परिधान ऐसा हो जिस में आप आराम से काम कर सकें, डांस कर सकें, लंबे समय तक सहज महसूस कर सकें. ऐसे मौकों के लिए क्लासी, लेकिन लाइटवेट कपड़े ही चुनें.

Dimple Kapadia ने बेटी ट्विंकल संग फोटो खींचवाने से किया मना, सरेआम कह दी ये बात

बौलीवुड ऐक्ट्रैस डिंपल कपाड़िया (Dimple Kapadia) इन दिनों सुर्खियों में छाई हैं. दरअसल एक इवेंट के दौरान उन्होंने कुछ ऐसा किया जिससे उनकी तुलना जया बच्चन से होने लगी. इस दौरान डिंपल कपाड़िया की बेटी ट्विंकल और दामाद अक्षय कुमार उनके साथ थे. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला…

डिंपल कपाड़िया और उनकी बेटी ट्विंकल खन्ना (Twinkle Khanna) के बीच एक स्ट्रौंग बौन्डिंग देखने को मिलती है, मांबेटी की ये जोड़ी अपने जुदा अंदाज से अक्सर फैंस का दिल जीत लेती है. हाल ही में एक इवेंट के दौरान डिंपल कपाड़िया अपनी बेटी और दामाद के साथ मौजूद थीं. इससे जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

डिंपल कपाड़िया ने अपनी बेटी ट्विंकल के साथ पोज देने से किया मना

इस वीडियो में ऐक्ट्रैस अपनी बेटी ट्विंकल संग पोज देने से मना कर देती हैं. दरअसल, इवेंट के दौरान पैपराजी डिंपल से कहते हैं कि वह ट्विंकल के साथ पोज दें तो इस बात पर डिंपल कपाड़िया बुरी तरह से भड़क जाती हैं और गुस्से में कहती हैं, ‘मैं जूनियर्स के साथ पोज नहीं देती. सिर्फ सीनियर्स के साथ देती हूं.’ वीडियो में डिंपल का ऐसा एटीट्यूड देखकर हर कोई हैरान है. इस बर्ताव के लिए डिंपल को सोशल मीडिया पर ट्रोल भी किया जा रहा है.

सोशल मीडिया पर डिंपल हो रही हैं ट्रोल

हर कोई डिंपल के इस बर्ताव से हैरान है. यूजर्स का कहना है कि डिंपल को डरती हैं कि कहीं जूनियर्स के साथ पोज देने में उनकी असली उम्र न दिख जाए. तो वहीं एक यूजर ने लिखा, कि वह जया बच्चन का जूठा खा ली हैं. एक अन्य यूजर ने लिखा, उम्र के साथ हर कोई जया बच्चन बनता जा रहा है. एक यूजर ने कमेंट किया है कि लोग इनका सेंस औफ ह्यूमर नहीं समझ पा रहे हैं.

फिल्म ‘गो नोनी गो’ की क्या है कहानी

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुंबई में चल रहे फिल्म फेस्टिवल 2024 में ट्विंकल खन्ना ,अक्षय कुमार और डिंपल कपाड़िया की फिल्म ‘गो नोनी गो’ का प्रीमियर रखा गया. इसी फिल्म की स्क्रीनिंग में पैपरा जी ने डिम्पल को ट्विंकल के साथ पोज देने के लिए रिक्वैस्ट की. इस फिल्म की बात करें, तो  डिंपल कपाड़िया इसमें मुख्य किरदार में हैं. ट्विंकल खन्ना ने इस फिल्म को प्रोड्यूस किया है. यह एक रोमांटिक कौमेडी ड्रामा फिल्म है. फिल्म ‘गो नोनी गो’ की कहानी में एक ऐसी महिला को दिखाया गया है, जिसकी लाइफ में 50 साल की उम्र के बाद रोमांस जगता है. मानव कौल, आयशा रजा और अथिया शेट्टी भी इस फिल्म में नजर आएंगे.

Govinda और भांजे कृष्णा का 7 साल बाद हुआ मिलन, लेकिन लेकिन मामी सुनीता अभी भी हैं नाराज!

बौलीवुड ऐक्टर गोविंदा (Govinda)  के भांजे कृष्णा अभिषेक अपने मामा की कार्बन कौपी नजर आते हैं. कृष्णा अभिषेक ने अपने मामा गोविंदा का नाम जितना रोशन किया है उतना उनके बेटे या बेटी ने भी अपने पिता के लिए नहीं किया होगा. कृष्णा अपने मामा पर जान छिड़कते हैं वह न सिर्फ गोविंदा की तरह डांस करते हैं बल्कि गोविंदा का एक्टिंग स्टाइल भी कौपी करते हैं . मामा गोविंदा अगर बड़े पर्दे की शान है तो तो भांजे कृष्णा छोटे पर्दे की शान है. इन शौर्ट कृष्णा अभिषेक अपने मामा को ना सिर्फ गुरु मानते हैं बल्कि मामा के पदचिन्हों पर भी चलते हैं. बावजूद इसके पिछले 7 सालों से गोविंदा और कृष्णा में बातचीत बंद थी.

क्योंकि गोविंदा की पत्नी सुनीता ने कृष्णा पर इल्जाम लगाया था कि वह अपने मामा का अपने कौमेडी शोज में पब्लिकली मजाक उड़ाते हैं . इसके बाद यह झगड़ा सार्वजनिक हो गया और गोविंदा ने कृष्ण के साथ बात करनी बंद कर दी. करीबन 7 सालों से कृष्ण अपने मामा के घर भी नहीं गए.

लेकिन हाल ही में जब गोविदा को पैर में गोली लगी तो उस वक्त भांजे कृष्णा औस्ट्रेलिया में थे. मामा की खराब हालत की खबर सुनते ही जब कृष्णा मुंबई पहुंचे तो सबसे पहले वह गोविंदा से मिलने उनके घर पहुंच गये. गोविंदा ने भी सब कुछ भूल कर भांजे कृष्ण को गले लगा लिया और उसके साथ कई घंटों तक बातें की. यहां तक कि गोविंदा की बेटी और बेटा भी कृष्णा से मिले.

लेकिन बीवी सुनीता ने कृष्णा को दर्शन नहीं दिए. और ना ही कृष्ण को माफ किया. गोविंदा ने भले ही बड़ा दिल करके सारे गिले शिकवे भुलाकर भांजे गोविंद को माफ कर दिया हो. लेकिन मामी सुनीता अभी भी नाराजगी कायम की हुई हैं. गौरतलब है कि कश्मीरा शाह जहां गोविंदा के घायल होने की खबर सुनते ही अस्पताल पहुंच गई थीं वहीं सुनीता इतने बड़े कांड के बावजूद अकड़ के ही बैठी हैं.

मैंने अपनी दोस्त की बहन के साथ संबंध बनाया है, कहीं फ्रैंड मुझे धोखेबाज न समझ लें…. मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरा एक बचपन का दोस्त था, जो मुझे सालों बाद मिला. अब हमारे बीच गहरी दोस्ती हो गई है. वह अपनी बहन के साथ रहता है. मैं अक्सर अपने दोस्त के घर जाता हूं, वह भी मेरे घर आता है. एक दिन उसकी बहन रास्ते में मुझे मिल गई, मैंने उसे घर छोड़ दिया उस दिन से हमारी बातचीत शुरू हुई. लेकिन मैं अपने दोस्त के सामने उसकी बहन से ज्यादा बात नहीं करता हूं, क्योंकि मुझे लगता है कहीं वह मुझे गलत न समझ लें.

कुछ दिनों पहले मेरा दोस्त शहर से कहीं बाहर गया था और उसकी बहन को तेज बुखार था, मेरा दोस्त मुझे फोन कर के बताया और उसने कहा कि मेरे घर चले जाओ और उसे डौक्टर से दिखा देना. उसकी बहन मुझे मैसेज काल करती है, हमारे बातचीत बढ़ती जा रही है. जब उसका भाई नहीं रहता है, तो हम मिलते भी हैं, हमारे बीच फिजिकल रिलेशन भी बन चुका है. लेकिन मेरे दोस्त को इस बारे में कुछ नहीं पता है. आजकल मुझे डर लग रहा है कि अगर मेरे दोस्त उसकी बहन के साथ अफेयर के बारे में पता चल गया तो हमारी दोस्ती तो टूटेगी ही और पता नहीं वह मेरे साथ क्या करेगा?

मेरी दोस्त की बहन ये भी कहती है कि मैं अपने भैया से हमारी शादी की बात करूंगी. मुझे ये बात भी परेशान कर रहा कि वह क्या सोचेगा कि उसकी पीठ पीछे मैंने उसकी बहन को बहकाया.

जवाब

देखिए आपके सवाल से लगता है आप अपने दोस्ती को नहीं खोना चाहते हैं और बीच में आपका प्यार भी है. दोस्ती और प्यार दोनों जरूरी रिश्ते हैं, इन दोनों में से किसी एक को चुनना बहुत कठिन है.
अगर आप और आपके दोस्त की बहन दोनों मिलकर बात करें और आप अपने दोस्त से अपने रिश्ते की सच्चाई बताएं, तो ये भी हो सकता है कि आपका दोस्त दोनों के रिश्ते को खुशीखुशी स्वीकार कर लें.

लेकिन आप अपने रिलेशनशिप की सच्चाई अपने दोस्त से छिपाए नहीं क्योंकि अगर उन्हें किसी तीसरे से इस बारे में पता चलता है, ज्यादा तकलीफ हो सकती है. उनकी सोच भी आपके प्रति गलत साबित हो सकती है. इसलिए जितना जल्दी हो सके आप अपने दोस्त से उनकी बहन के साथ रिलेशनशिप के बारे में बता दें.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

हम तीन: आखिर क्या हुआ था उन 3 सहेलियों के साथ?

स्नेही ने कालेज से आते ही मुझे बताया, ‘‘मां, शनिवार को हमारी 10वीं कक्षा का रियूनियन है, बहुत मजा आएगा, मैं बहुत एक्साइटेड हूं. नीता, रिंकी, मोना से मिले हुए बहुत समय हो गया. वे लोग भी कोटा से इस प्रोग्राम के लिए विशेषरूप से आ रही हैं. एक

बड़े होटल में पार्टी है, डिनर है, बहुत मजा आएगा मां.’’

मैं उसे चहकते देख रही थी. उस की खास सहेलियां नीता, रिंकी, मोना कोटा में इंजीनियरिंग कर रही हैं.

स्नेहा फिर बोली, ‘‘कुछ बोलो न मां… बहुत मजा आता है पुराने दोस्तों से मिल कर… है न मां?’’

न चाहते हुए भी मेरे मुंह से ठंडी सी सांस निकली, ‘‘हां, आता तो है.’’

स्नेहा मेरे पास बैठ गई. बोली, ‘‘मां, आप की भी तो सहेलियां, दोस्त रहे होंगे… आप को उन की याद नहीं आती?’’

‘‘आती तो है, लेकिन शादी के बाद लड़कियां अपनीअपनी गृहस्थी में खो जाती हैं. चाह कर भी कहां एकदूसरे से मिल पाती हैं.’’

‘‘नहीं मां, दोस्तों से मिलना इतना मुश्किल तो नहीं है. आप नानी के यहां जाती हैं तो किसी से मिलने की कोशिश नहीं करतीं?’’

‘‘हां, मैं जाती हूं तो वे लोग थोड़े ही होती हैं वहां. वे अपने हिसाब से प्रोग्राम बना कर मायके आती हैं.’’

‘‘अरे मां, कोशिश तो करो, अपनी पुरानी सहेलियों से मिलने की. आप को भी बहुत

मजा आएगा… आप की लाइफ में भी एक चेंज होगा. मेरी मानो तो एक रियूनियन आप भी रख ही लो.’’

स्नेहा तो कह कर फ्रैश होने चली गई, 2 चेहरे मेरी आंखों के आगे तैर गए. क्यों न मैं भी सुकन्या और अनीता से मिलूं, लेकिन मैं यहां मुंबई में, सुकन्या इलाहाबाद में और अनीता दिल्ली में है. 20 साल से तो कोई संपर्क है नहीं. मां के यहां जाती हूं तो मां से ही उन के बारे में पता चल जाता है. अब थोड़ा अजीब तो लगेगा. अब किस का कितना स्वभाव बदल गया होगा, पता नहीं. कोई मिलने में रुचि दिखाएगी भी या नहीं… खैर पहल तो कर के देखनी चाहिए. एक कोशिश करने में क्या हरज है.

बस, मन इसी बात में उलझ कर रह गया. अमित औफिस से आए. मुझे थोड़ी देर देखते रहे, फिर बोले, ‘‘मीनू, क्या हुआ, किसी सोच में डूबी लग रही हो?’’

मैं ने उन्हें कुछ नहीं कह कर टाल दिया. डिनर के समय स्नेहा और राहुल ने भी मुझे टोका, ‘‘क्या हुआ मां?’’

मैं ने उन्हें भी टाल दिया. मैं अभी किसी को कुछ नहीं बताना चाहती थी. पहले अपनी सहेलियों का पता तो कर लूं.

अगले दिन सब के जाने के बाद मैं ने मुजफ्फरनगर मां को

फोन कर उन्हें अपने मन की बात बताई.

वे हंस पड़ीं. बोलीं, ‘‘बहुत अच्छा सोचा. बना लो प्रोग्राम.’’

‘‘मेरे पास उन दोनों के नंबर नहीं हैं.’’

‘‘परेशान क्यों हो रही हो? मैं उन के घर से फोन नंबर ला कर तुम्हें बता दूंगी.’’मैं बेफिक्र हो गई. आधे घंटे में ही मां ने मुझे दोनों के फोन नंबर लिखवा दिए. सुकन्या हमारी गली में ही तो रहती थी और अनीता

2 गलियां छोड़ कर. मैं दोनों से बात करने के लिए बेचैन हो गई. मेरी आवाज दोनों नहीं पहचानीं, लेकिन जब उस उम्र के खास कोडवर्ड, खास किस्सों का संकेत दिया तो दोनों चहक उठीं. हम ने कितने गिलेशिकवे किए, कभी याद न करने के उलाहने दिए और फिर मैं ने अपना प्रोग्राम बताया तो दोनों एकदम तैयार हो गईं. लेकिन परेशानी यह थी कि अनीता अब टीचर थी और सुकन्या मेरी तरह हाउसवाइफ. यह तय हुआ कि अनीता छुट्टियों में मुजफ्फरनगर आ सकेगी. रात को जब हम चारों साथ बैठे तो मैं ने कहा, ‘‘अमित, आप से कोई जरूरी बात करनी है.’’

बच्चों के भी कान खड़े हो गए.

अमित ने कहा, ‘‘कहो न, क्या हुआ?’’

‘‘मुझे भी अपनी सहेलियों से मिलने मां के यहां जाना है… मेरा भी रियूनियन का प्रोग्राम बन गया है.’’

तीनों जोर से हंस पड़े. मैं झेंप गई तो अमित ने स्नेहा से कहा, ‘‘स्नेहा, तुम अपनी मम्मी को क्या पट्टी पढ़ा देती हो… वे सीरियस हो जाती हैं.’’

‘‘क्यों, उन की भी लाइफ है. सारा दिन क्या हमारे आगेपीछे घूमती रहें? उन का भी फ्रैंड सर्कल रहा होगा. उन का भी मन करता होगा. मां, आप बताओ, क्या सोचा आप ने?’’

मैं ने तीनों को सुकन्या और अनीता से हुई बातचीत के बारे में बता दिया. हंसीखुशी मेरा प्रोग्राम बन गया.

राहुल को अलग ही चिंता हुई. बोला, ‘‘मम्मी, हमारे खाने का क्या होगा?’’

‘‘लताबाई से बात कर ली है. वह दोनों टाइम आ कर खाना बना देगी. अमित ने 2-3 दिन बाद ही मेरी फ्लाइट बुक कर दी. मैं ने सुकन्या और अनीता को भी बता दिया. अब हम तीनों फोन पर संपर्क में रहतीं. बहुत अच्छा लगने लगा है. सुकन्या के पति सुधीर बिजनैसमैन हैं. उस की भी 1 बेटी और 1 बेटा है. अनीता के पति विनय डाक्टर हैं और उन का इकलौता बेटा नागपुर में इंजीनियरिंग कर रहा है.’’

‘‘हम तीनों एक ही कालेज में पढ़ी हैं. 12वीं कक्षा तक तो हम एक ही क्लास में थीं. बाकी लड़कियां हमें 3 देवियां कहती थीं. 12वीं कक्षा के बाद बीए में हमारे विषय अलगअलग हो गए थे. सुकन्या का विवाह तो बीए के बाद ही हो गया था. अनीता और मेरा एमए करने के बाद. अनीता ने अंगरेजी में एमए किया था और मैं ने ड्राइंग ऐंड पेंटिंग में.’’

वे दिन याद आए तो साथ में और भी बहुत कुछ चाहाअनचाहा याद आने लगा. अब तो हम तीनों के विवाह को 20-22 साल हो गए थे. अब उस उम्र की बातें याद करते हुए कुछ अजीब सा लगने लगा. जब भी विनोद का खयाल आता है, मेरे मन का स्वाद कसैला हो जाता है. अच्छा ही हुआ उस लालची इंसान का सच जल्दी सामने आ गया था. मेरी टीचर मां उस के दहेज के लालच को कहां पूरा कर पातीं. पिता का साया तो मेरे सिर से मेरी 13 वर्ष की उम्र में ही उठ गया था. जब से अमित से विवाह हुआ है, कुदरत को धन्यवाद देते नहीं थकती हूं मैं.

और सुकन्या ने अनिल को कैसे भुलाया होगा. अनिल और सुकन्या बीए में एक ही सैक्शन में थे. धीरेधीरे जब दोनों के प्रेम के चर्चे होने लगे तो बात सुकन्या के घर तक पहुंच गई और फिर सुकन्या का विवाह बीए करते ही कर दिया गया. अनीता और मुझ से सुकन्या के आंसू देखे नहीं जाते थे. वह बारबार मरने की

बात करती और हम उसे समझाते रहते. उधर अनिल का हाल कालेज में एक मजनू की तरह हो गया था. हम जब भी उसे देखते उस पर तरस आता.

पहले सुकन्या, फिर मेरा विवाह भी हो गया. अनीता शुरू से जानती थी अगर उस के घर में किसी को भी उस का कोई प्यारव्यार का चक्कर सुनने को मिलेगा तो उस की पढ़ाई छुड़वा दी जाएगी, इसलिए वह हमेशा इन चक्करों से दूर रही. बस हंसते हुए हमारे किस्से सुनती और अब हम अपनीअपनी गृहस्थी में वे किस्से, वे बातें सब भूल चुके थे.

छुट्टियों तक का समय बेसब्री से बिताया. अमित और बच्चे मेरे उत्साह पर मुसकराते रहे. तय समय पर मैं एअरपोर्ट से टैक्सी ले कर पहुंच रही थी. अनीता ने कहा भी था वह मुझे लेने आ जाएगी, फिर साथ चलेंगे, लेकिन जब मुझे पता चला उस के पति को क्लीनिक छोड़ कर इतनी दूर लेने आना पड़ेगा तो मैं ने प्यार से मना कर दिया. मुझे आदत है ऐसे जाने की.

मेरा शहर आ गया था. मेरी जन्मभूमि, यहां की मिट्टी में मुझे अपनी ही खुशबू महसूस होती है. यहां की हवा में मैं मातृत्व सा अपनापन महसूस करती हूं. मेरे चेहरे पर एक गहरी मुसकान आ जाती है जैसे मैं फिर एक नवयौवना बन गई हूं. वैसे भी मायके आते ही एक धीरगंभीर महिला भी चंचल तरुणी बन जाती है.

घर पहुंच कर फ्रैश हो कर खाना खाया. मां और रेनू भाभी ने पता नहीं कितनी चीजें बना रखी थीं. मैं सब के साथ थोड़ी देर बैठ कर सुकन्या के घर जाने के लिए तैयार हो गई.

भाभी ने हंसते हुए कहा, ‘‘सहेलियों में हमें मत भूल जाना.’’

सब हंसने लगे. अनीता भी वहीं आ चुकी थी. अपनेअपने मोबाइल पर हम लगातार संपर्क में थीं. हम तीनों ने जब 20 साल बाद एकदूसरे को देखा तो मुंह से बोल ही नहीं फूटे, फिर बिना कुछ कहे भीगी आंखें लिए हम तीनों एकदूसरे के गले लग गईं. सुकन्या के मातापिता और भाई हमें एकटक देख रहे थे. फिर तो बातों का न रुकने वाला सिलसिला शुरू हो गया और कब लंच टाइम हो गया पता ही नहीं चला.

तभी सुकन्या की भाभी ने आ कर कहा,

‘‘3 देवियो, खाना लग गया है, पहले खाना खा लो… ये बातें तो अभी खत्म होने वाली नहीं हैं.’’

दिन भर साथ रह कर हम तीनों शाम को अपनेअपने घर आ गईं. मां मेरा इंतजार कर रही थीं, देखते ही बोलीं, ‘‘यह क्या बेटा, पूरा दिन वहीं बिता दिया?’’

भाभी भी कहने लगीं, ‘‘अब कल कहीं मत जाना. उन्हें यहीं बुला लेना नहीं तो हम इंतजार करते रह जाएंगे और तुम्हारा यह हफ्ता ऐसे ही बीत जाएगा.’’

मैं ने हंस कर बस ‘ठीक है’ कहा. रात को अमित और बच्चों से बात की, अमित ने आदतन पूरे दिन हालचाल पूछा.

सुबह 10 बजे सुकन्या और अनीता आ गईं. पहले हम साथ बैठ कर गप्पें मारती रहीं. फिर भाभी के मना करने पर भी किचन में उन का लंच तैयार करने में हाथ बंटाया. फिर हम तीनों मेरे कमरे में आ गईं. मेरा कमरा अब मेरे भतीजे यश का स्टडीरूम बन गया था. छुट्टी थी. यश खेलने में व्यस्त था. हम तीनों आराम से लेट कर अपनेअपने परिवार की बातें एकदूसरी को बताने लगीं. बात करतेकरते मैं ने नोट किया कि सुकन्या कुछ उदास सी हो गई.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ सुकन्या?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘हमें नहीं बताएगी?’’ अनीता ने भी पूछा.

‘‘कुछ नहीं, तुम लोगों को वहम हुआ है.’’

मैं ने कहा, ‘‘हम इतनी दूर से एकदूसरी से मिलने आई हैं. क्या हम एकदूसरी से पहले की तरह अपने दिल की बातें नहीं कर सकतीं?’’

सुकन्या पहले तो गुमसुम सी बैठी रही, फिर बहुत ही उदास स्वर में बोली, ‘‘अनिल को नहीं भुला पाई मैं.’’

हम दोनों चौंक पड़ीं, ‘‘क्या? क्या कह रही है तू?’’

‘‘हां,’’ सुकन्या की आंखों से आंसू बहने लगे, ‘‘अपने असफल प्यार की पराकाष्ठा को दिल में लिए एक सहज जीवन जीना अग्निपथ पर चलने जैसा मुश्किल है, यह सिर्फ मैं जानती हूं. बस, 2 हिस्सों में बंटी जी रही हूं… अब तो उम्र अपनी ढलान पर है, लेकिन मन वहीं ठहरा है. अनिल से दूर मन कहीं नहीं रमा, इतने सालों से जैसे 2 नावों की सवारी करती रही हूं. बस, बचाखुचा जीवन भी जी ही लूंगी… जो प्यार मिलने से पहले ही खो गया हो, कैसे जी लिया जाता है उस के बिना भी, यह वही जान सकता है, जिस ने यह सब झेला हो. सुधीर के पास होती हूं तो अनिल का चेहरा सामने आ जाता है और जब भी यहां आती हूं, मेरा मन और उदास हो जाता है.’’

मैं और अनीता हैरानी से सुकन्या को देख रही थीं. हमें तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि बात इतनी गंभीर होगी. यह क्या हो गया… हमारी प्यारी सहेली

22 साल से इस मनोदशा में है. मैं और अनीता एकदूसरी का मुंह देखने लगीं. हम जानती थीं सुकन्या शुरू से ही बहुत भावुक थी, लेकिन वह तो आज भी वैसी ही थी.

सुकन्या कह रही थी, ‘‘यहां आने पर मेरे सामने अतीत के वे मधुर पल जीवंत हो उठते हैं… आज भी आखें बंद कर उस सुखद समय का 1-1 पल जी सकती हूं मैं.’’

अनीता ने पूछा, ‘‘सुकन्या, यहां आने पर तू कभी अनिल से मिली है?’’

‘‘नहीं.’’

अनीता ने पल भर पता नहीं क्या सोचा, फिर बोली, ‘‘मिलना है उस से?’’

मैं तुरंत बोली, ‘‘अनु, पागल हो गई है क्या?’’

अनीता ने ठहरे हुए स्वर में मुझे आंख मारते हुए कहा, ‘‘क्यों, इस में पागल होने की क्या बात है? सुकन्या अनिल के लिए आज भी उदास है तो क्या उस से एक बार मिल नहीं सकती?’’

सुकन्या ने कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. अब मिल कर क्या होगा?’’

‘‘अरे, एक बार उसे देख लेगी तो शायद तेरे दिल को ठंडक मिल जाए.’’ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. मैं चुप रही, पता नहीं अनीता ने क्या सोचा था.

सुकन्या ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘मीनू, तू क्या कहती है?’’

‘‘जैसा तेरा दिल चाहे.’’

‘‘लेकिन मैं उस से मिलूंगी कहां?’’

अनीता ने कहा, ‘‘मुझे उस का घर पता है. बूआजी की बेटी उसी कालेज में पढ़ाती है जहां अनिल भी प्रोफैसर है.’’

सुकन्या बोली, ‘‘मेरे तो हाथपैर अभी से कांप रहे हैं… कैसा होगा वह, क्या कहेगा मुझे देख कर? पहचान तो जाएगा न?’’

अनीता हंसी, ‘‘हां, पहचान तो जाना चाहिए. उस की याद में तू आज भी वैसी ही तो है सूखीमरियल सी.’’

सुकन्या ने कहा, ‘‘हां, तेरी तरह सेहत बनानी भी नहीं है मुझे.’’

अनीता का शरीर कुछ ज्यादा ही भर गया था. मैं जोर से हंसी तो अनीता ने कहा, ‘‘हांहां, ठीक है, मुझे अपनी सेहत से कोई शिकायत नहीं है. यह तो अपने प्यारे पति के प्यार में थोड़ी फूलफल गई हूं.’’ और फिर हम तीनों इस बात पर खूब हंसीं.

मैं ने कहा, ‘‘वैसे हम तीनों के ही पति बहुत अच्छे हैं जो हमें एकदूसरी से मिलने भेज दिया.’’

अनीता ने कहा, ‘‘हां, यह री बातें सुन लें तो हैरान रह जाएं. खासतौर पर सुकन्या के बच्चे तो अपनी मां के इस सो कोल्ड प्यार का किस्सा सुन कर धन्य हो जाएंगे.’’

सुकन्या चिढ़ कर बोली, ‘‘चुप कर, खुद ही आइडिया दिया है और खुद ही मेरा मजाक उड़ा रही है.’’

अगले दिन हम तीनों पहले मार्केट गईं. वहां सुकन्या ने अनिल को देने के लिए गिफ्ट खरीदी. सुकन्या बहुत इमोशनल हो रही थी. अनीता और मैं अपनी हंसी बड़ी मुश्किल से रोक पा रही थीं.

अनिता ने मेरी कान में कहा, ‘‘यार, यह तो बिलकुल नहीं बदली. पहले भी एक बात पर हफ्तों खुश.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, लेकिन तूने इसे अनिल से मिलने का आइडिया क्यों दिया?’’

अनीता बड़े गर्व से बोली, ‘‘टीचर हूं, बिगड़े बच्चों को सुधारना मुझे आता है और इसे तो मैं अच्छी तरह जानती हूं. अपनी इस खूबसूरत सहेली का सौंदर्य प्रेम भी मुझे पता है और तुझे बता रही हूं मैं ने अनिल को 6 महीने पहले ही एक शादी में देखा था.’’

‘‘अच्छा, कोई बात हुई थी क्या?’’

‘‘नहीं, मौका नहीं लगा था. अच्छा, अब चुप कर. अपनी सहेली की शौपिंग पूरी हो गई शायद. पता नहीं कितने रुपए फूंक कर आ रही है मैडम.’’

सुकन्या पास आई तो हम ने पूछा, ‘‘क्याक्या खरीद लिया?’’

‘‘कुछ खास नहीं, अनिल के लिए एक ब्रैंडेड शर्ट, एक परफ्यूम, एक बहुत ही सुंदर पैन और उस की पसंद की मिठाई.’’

अनीता ने कहा, ‘‘चलो चलें प्रोफैसर साहब घर आ गए होंगे.’’

शाम के 4 बजे थे. हम तीनों पैदल ही साकेत चल पड़ीं. अनीता ने एक गली में दूर से ही एक घर की तरफ इशारा किया, ‘‘यही है अनिल का घर और वह जो बाहर स्कूटर खड़ा कर रहा है शायद अनिल ही है.’’

हम तीनों के कदम थोड़े तेज हुए.

अनिता ने कहा, ‘‘हां, सुकन्या, अनिल ही तो है.’’

सुकन्या ने ध्यान से देखा. अनिल किसी से फोन पर बात कर रहा था. वह ऐसे खड़ा था कि हमें उस का साइड पोज दिख रहा था. सुकन्या के कदम ढीले पड़ गए, उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘यह मोटा सा गंजा आदमी अनिल कैसे हो सकता है, लेकिन शक्ल तो मिल रही है.’’

अनीता ने कहा, ‘‘यही है हैंडसम सा तेरा प्रेमी जिस का साथ पाने की इच्छा आज भी तेरा पीछा नहीं छोड़ रही, जिस के सामने अपने पति का अथाह प्यार भी तुझे तुच्छ लगता है.’’

सुकन्या अचानक वापस मुड़ गई. मैं ने कहा, ‘‘क्या हुआ, अनिल से मिलना नहीं है क्या?’’

सुकन्या जल्दी से बोली, ‘‘नहीं, थोड़ा तेज नहीं चल सकती तुम दोनों? जल्दी चलो यहां से.’’

अनीता हंसते हुए बोली, ‘‘चलो, किसी रेस्तरा में चलती हैं.’’

हम ने वहां बैठ कर कौफी और सैंडविच का और्डर दिया. हमारी हंसी नहीं रुक रही थी.  सुकन्या का चेहरा देखने लायक था.

अनीता हंसी. बोली, ‘‘बेचारी सुकन्या,

इतने साल पुराने प्यार की परिणति हुई भी तो किस रूप में.’’

सुकन्या ने हमें डपटा, ‘‘चुप हो जाओ तुम दोनों, मुझे सताना बंद करो, अपनी सारी कल्पनाओं को वहीं उसी गली में दफन कर आई हूं मैं. पहली बार मुझे मेरे पति सुधीर याद आ रहे हैं. बस, अब जल्दी से उन के पास पहुंचना है.’’

मैं ने कहा, ‘‘वाह क्या बेसब्री है… तुम्हारा प्यार का भूत तो बहुत तेजी से भाग गया.’’

अब हम तीनों की हंसी नहीं रुक रही थी. हम बहुत हंसीं. इतना हंसे पता नहीं कितने साल हो गए थे. मैं ने कहा, ‘‘सुकन्या, और ये जो तुम ने गिफ्ट्स खरीदे इन का क्या होगा?’’

‘‘होगा क्या? शर्ट सुधीर पहनेंगे, मिठाई घर जा कर हम सब के साथ खाएंगे, परफ्यूम और पैन अपने बेटे को दे दूंगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, अनिल को तो यह शर्ट आती भी नहीं,’’ मुझे और अनीता को तो जैसे हंसी का दौरा पड़ गया था. सुकन्या की शक्ल देख कर हम इतना हंसी कि हमारी आंखों में आंसू आ गए. सच, अगर हमारे बच्चे हमारा यह रूप देखते तो उन्हें अपनी आंखों पर यकीन न आता. यह तो अच्छा था कि इस समय रेस्तरां में 1-2 लोग ही थे और हम बैठी भी एक कोने में थीं. वेटर बेचारा हमारी शक्लें देख रहा था. खैर, खापी कर हम अपनेअपने घर चली गईं.

गिनेचुने दिन थे. जाने का दिल भी पास आ रहा था. अगले दिन हम तीनों ने फिर खरीदारी की. मां के लिए, भैयाभाभी और यश के लिए कुछ कपड़े खरीदे. उन दोनों ने भी इसी तरह का सामान लिया. फिर जब हम तीनों साथ बैठीं तो सुकन्या के दिल में आया कि थोड़े मुझे छेड़ा जाए, अत: मुझ से कहने लगी, ‘‘विनोद कहां है आजकल? कुछ पता है?’’

मैं ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘मेरी इस बात में जरा भी रुचि नहीं है. मुझे माफ करो.’’

अनीता हंसी, ‘‘मीनू, कहो तो उस का कायाकल्प भी देख लिया जाए.’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं, रहने दो, अभी एक को देख कर छेड़ा. फिर हम तीनों ने यह तय किया कि अब जब भी संभव होगा, मिलती रहेंगी. एक बार फिर पुराने समय में लौट कर बहुत मजा आया.’’

जाने का दिन आ गया. भीगी आंखों से एकदूसरी से बिदा ली. मां और भाभी ने तो पता नहीं कितनी चीचें बांध दी थीं. सब से पहले मैं ही निकल रही थी. अनीता को एक विवाह में शामिल होने के लिए 2 दिन और रुकना था, सुकन्या को लेने सुधीर आने वाले थे.

मां और भाभी प्यार भरी शिकायत कर रही थीं कि मैं सहेलियों के साथ ही घूमती रही. मैं बहुत अच्छा समय बिता कर लौट रही थी. मुंबई जा कर स्नेहा को इस रियूनियन का आइडिया देने के लिए गले से लगा कर थैंक्स कहने के लिए मैं बहुत उत्साहित थी. सच, बहुत मजा आया था.

पहला विद्रोही: गुर्णवी किस के प्रेम में हो गई थी पागल?

आकाश काले मेघों से आच्छादित था. चौथे पहर तक अंधकार सा छाने लगा था, परंतु वर्षा नहीं हो रही थी. सूर्यदर्शन कई दिनों से नहीं हुआ था. वन हरियाली से लहलहा रहे थे. कई दिन से हो रही घनघोर वर्षा कुछ ही समय पहले थमी थी.

कुमार पृषघ्र अपने आश्रम से दूर एक पहाड़ी चट्टान पर बैठा प्रकृति के इस अनुपम रूप का आनंद ले रहा था. तभी कहीं से एक पुष्पगुच्छ आ कर कुमार के चरणों के पास गिरा. चकित भाव से उसे उठा कर उस ने चारों ओर दृष्टिपात किया, लेकिन कहीं कोई दिखाई नहीं दिया. ऐसा अकसर होता रहता था. जब भी वह संध्या समय एकांत में प्रकृति की गोद में बैठता, कहीं से पुष्पगुच्छ आ कर उस के शरीर का स्पर्श करता. कई प्रयास करने पर भी वह नहीं जान पाया कि पुष्पगुच्छ कहां से, कौन फेंकता है. किंतु आज यह रहस्य स्वत: ही खुल गया.

कुछ क्षणों के अंतराल से एक नारी कंठ की चीख सुनाई दी. कुमार उसी दिशा में तेजी से अग्रसर हुआ. कुछ ही दूरी पर एक नारी छाया धरती पर बैठी दिखाई दी. पीड़ा की छटपटाहट और रुदन स्पष्ट सुनाई दे रहा था.

‘‘कौन हो तुम? क्या हुआ?’’ निकट जा कर कुमार पृषघ्र ने कोमल स्वर में पूछा. अंधकार की वजह से चेहरा स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था.

प्रश्न सुन कर, अपना कष्ट भूल कर वह एकाएक खड़ी हो गई, करबद्ध, नतमस्तक.

‘‘कौन हो? यहां इस निपट अंधकार में क्या कर रही थीं?’’

लेकिन उत्तर देने की अपेक्षा स्त्री ने पीठ मोड़ कर चेहरा छिपा लिया, किंतु प्रस्थान का प्रयास नहीं किया.

‘‘यह तुम्हीं ने फेंका था?’’ कुमार ने अपने हाथ के पुष्पगुच्छ को उस की ओर बढ़ाते हुए पूछा.

उस ने अपना चेहरा कुमार की ओर मोड़ा और तभी भयंकर गड़गड़ाहट के साथ आकाश में बिजली चमकी, जिस से सारा वनप्रदेश क्षण भर के लिए प्रकाशित हो गया. कुमार पृषघ्र ने तरुणी को क्षण भर में ही पहचान लिया.

‘‘तुम…तुम ही मुझ पर पुष्पगुच्छ फेंकती रही हो, गुर्णवी?’’ कुमार के स्वर में आश्चर्य था.

‘‘जी हां…किंतु क्षमा करें, देव, अब से ऐसा नहीं होगा.’’

‘‘लेकिन क्यों? क्या सहज परिहास के लिए? इस का परिणाम जानती हो?’’

‘‘अपराध क्षमा करें, कुमार, अब ऐसा नहीं होगा,’’ उस ने पुन: करबद्ध, नतमस्तक हो उत्तर दिया.

तभी आकाश में पुन: बिजली चमकी. कुमार ने अब देखा, गुर्णवी पसीने से तर क्षीणलता सी कांप रही है. बालों की वेणी और हाथों के गजरे उन्हीं पुष्पों के थे जिन्हें उस ने पुष्पगुच्छ के रूप में कुमार पर फेंका था. भय और रुदन की हिचकियों से उस का संपूर्ण शरीर रहरह कर थरथरा रहा था. वन विचरण के समय अकसर दोनों की भेंट हो जाया करती थी, अत: अपरिचित नहीं थे.

‘‘वह तो ठीक है कि अब ऐसा नहीं होगा, पर अब तक क्यों होता रहा, यह तो बताओ?’’ पृषघ्र के गौरवर्णी चेहरे पर एक रहस्यमयी मुसकान दौड़ गई, जिसे अंधकार में गुर्णवी न देख सकी.

‘‘क्षमा करें, देव… मैं…’’

‘‘क्या तुम मुझे चाहने लगी हो? क्या यह सब अभिसार की अभिलाषा से कर रही थीं?’’ कोमल स्वर में कुमार ने पूछा.

‘‘हां…नहीं…नहीं,’’ वह हड़बड़ा कर बोली.

तभी भयंकर गर्जना के साथ फिर बिजली चमकी. कुमार ने देखा, गुर्णवी के दोनों हाथ रक्तरंजित हो रहे थे. करबद्ध होने से रक्त बह कर कुहनियों तक आ गया था.

‘‘तुम तो घायल हो,’’ कहते हुए पृषघ्र ने उस के दोनों हाथों को अलग कर हथेलियां देखने का प्रयास किया.

‘‘मुझे छुएं नहीं, कुमार, मैं…मैं शूद्र कन्या हूं,’’ कहते हुए उस ने पीछे हटने का प्रयास किया.

‘‘यह समय इन बातों का नहीं है, तुम्हें सहायता और औषधि की आवश्यकता है. चलो, तुम्हें तुम्हारे आवास तक पहुंचा दूं.’’

‘‘मैं धीरेधीरे चली जाऊंगी. पैर में बड़ा शूल लगा है और मोच भी है, धीरेधीरे जाना होगा. किसी ने आप को मुझे छूते हुए देख लिया तो संकट होगा. आप पर विपत्ति आ जाएगी. आप पधारें,’’ गुर्णवी ने निवेदन किया.

‘‘ओह,’’ पृषघ्र बोला, ‘‘वह सब छोड़ो, मेरे पास आओ,’’ कहते हुए पृषघ्र ने उसे उठा कर अपने बलिष्ठ कंधों पर डाल लिया और चल पड़ा.

गुर्णवी ने कोई विशेष विरोध भी नहीं किया.

उस के आवास तक पहुंचतेपहुंचते दोनों वर्षा की बौछारों में स्नान कर चुके थे. कुटिया काफी बड़ी थी. गुर्णवी दूसरी ओर वस्त्र बदलने चली गई. कुमार पृषघ्र पुन: बाहर आ कर खड़ा हो गया.

‘‘पधारें, कुमार,’’ गुर्णवी ने कुछ देर बाद भीतर से कहा. उस ने जैसेतैसे अग्नि प्रज्ज्वलित कर ली थी.

कुटिया में प्रवेश कर कुमार ने अग्नि के मंद प्रकाश में गुर्णवी के सौंदर्य को देखा और अभिभूत हो गया. भरी देहयष्टि, कटि प्रदेश को चूमती सघन केशराशि, बड़ेबड़े काले नेत्र और राजमहल के शिखर सा गर्वोन्मत्त वक्ष प्रदेश. कुमार पृषघ्र निर्निमेष उसे देखता ही रह गया.

गुर्णवी शूद्र जाति की यौवना थी. प्रकृति ने उसे सजानेसंवारने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी, प्रकृति की वह अनुपम कृति थी. उस दिन के बाद कुमार पृषघ्र उस से अकसर मिलने लगा.

‘‘इस प्रकार की भेंट का परिणाम जानते हैं, कुमार?’’ एक सांझ उस ने कुमार पृषघ्र से पूछा.

‘‘क्या तुम भयभीत हो?’’ कुमार ने गुर्णवी के झील से गहरे नेत्रों में झांकते हुए पूछा.

‘‘मुझे कोई भय नहीं है,’’ वह बोली, ‘‘अधिक से अधिक क्या होगा… मेरा वध न? आप को पा कर जितना जीवन मिलेगा वह मेरे कई जन्मों की थाती होगी. न मेरे मातापिता हैं, न भाईबंधु. सबकुछ अल्पायु में ही खो चुकी हूं. इन वनों ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया है. मैं तो केवल आप के लिए चिंतित हूं,’’ उस के मुखमंडल पर गहन दुख और चिंता का भाव तैर गया.

‘‘ऐसा क्यों सोचती हो, गुर्णवी? जीवन के प्रति सदैव आशावान रहना सीखो.’’

‘‘हमारी व्यवस्था ही ऐसी है. यह जो वर्ण व्यवस्था है, हमारे ऋषियों ने कुछ सोच कर ही बनाई होगी. हमारे मिलन को कभी मान्यता नहीं मिलेगी. मैं…मैं…आप को पा कर भी नहीं पा सकूंगी,’’ कहते हुए गुर्णवी का स्वर भारी हो गया और बड़ेबड़े नेत्रों से 2 मोती टपक पड़े.

‘‘ऐसा नहीं होगा, तुम्हारे प्रेम के प्रतिदान में मैं तुम्हें अपने साथ प्रतिष्ठित करूंगा. तुम विश्वास रखो,’’ पृषघ्र ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘मेरे लिए यही प्रतिदान पर्याप्त है कि आप ने मेरे प्रेम को स्वीकार किया. ऋषियों द्वारा स्थापित इन कठोर नियमों और परंपराओं को तोड़ना सरल नहीं है, कुमार. परंपराओं और नियमों की चट्टानों से हम सिर फोड़तेफोड़ते मृत्युपर्यंत विजयी नहीं हो सकेंगे. आप अपना शिक्षण पूर्ण कर राजगृह को लौट जाएंगे और यह गुर्णवी यथावत ‘गुर्णवी’ ही रह जाएगी.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं होगा. मैं शक्ति के बल पर इस सनातनी व्यवस्था को बदल दूंगा.’’ ‘‘मैं जानती हूं कुमार, आप जैसा क्षत्रिय वीर दूरदूर तक नहीं है. आप की तलवार की गति मैं ने देखी है. आप के धनुष की टंकार भी सुनी है और बाणों को आप की आज्ञा के प्रतिकूल जाते कभी नहीं पाया. आप केवल आप ही हैं परंतु केवल शस्त्रों से तो समाज नहीं बदल सकता. मुझे लगता है, हम दोनों को एकदूसरे तक पहुंचने में हजारों वर्ष लगेंगे.’’

‘‘तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है या चुनौती दे रही हो?’’ गंभीर स्वर में पृषघ्र ने पूछा.

‘‘मैं एक अबला और उस पर भी शूद्रा, भला आप को क्या चुनौती दे सकती हूं. परंतु मैं ने जो भी कहा है वह यथार्थ है, नभ में चमकते इस चंद्रमा की तरह,’’ कहते हुए उस ने आकाश में चमकते चंद्रमा को इंगित किया.

‘‘नहीं, गुर्णवी, तुम ने पृषघ्र को केवल चाहा है, प्रेम किया है. उस की शक्ति और बाह्य रूप को देखा है, उस के अंतर्मन को नहीं जाना. आओ, तुम्हें विश्वास दिला दूं,’’ कहते हुए पृषघ्र ने उस का हाथ पकड़ा और झटके से उठा कर अपने बाई ओर चट्टान पर खड़ा कर लिया.

‘‘सुनो, दसों दिशाओे, दिग्पालो और पंचभूतात्माओ, सभी मेरी घोषणा सुनो. मैं वैवस्वत मनु का पुत्र, कुमार पृषघ्र आज से, इसी क्षण से इस गुर्णवी (जूती) को, जो शूद्री (अछूत कन्या) है, शूद्रता से मुक्त करता हूं. इस का नाम अब से गुणमाला होगा,’’ कुमार की यह घोषणा रात्रि के अंधकार में गूंज उठी.

परंतु यह घोषणा गुणमाला को प्रसन्न न कर सकी. वह वसिष्ठ के भय से आतंकित हो, स्थिर नेत्रों से पृषघ्र को देखती रह गई.

‘‘चलो, गुणमाला, तुम्हें तुम्हारे आवास पर पहुंचा दूं,’’ कुमार ने उस की कटि में अपनी दीर्घ भुजा डाल कर कहा, ‘‘अब तुम निश्ंिचत और प्रसन्न रहो. मेरी शिक्षा पूर्ण होने पर यथासमय हम विवाह करेंगे. तुम राजरानी बनोगी,’’ पृषघ्र ने हथेली से उस का चेहरा थपथपा दिया.

उस मृगनयनी के अश्रु छलक गए. कुमार पृषघ्र की घोषणा वायुमंडल में गूंजती हुई ऋषिवर वसिष्ठ तक भी पहुंची. वे विचलित हो गए. वसिष्ठ गुणमाला के बुद्धिकौशल और अनुपम रूपराशि के जादू से परिचित थे. उन्हें लगा, धरती पैरों तले खिसक रही है और वे शून्य में गिरते चले जा रहे हैं, कहीं ठौर नहीं मिल रहा है.

एकाएक वे सावधान हो कर बैठ गए, ‘कुछ करना ही होगा. यह युवक संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को नष्ट कर देगा,’ वे सोचते रहे, ‘हो सकता है, पृषघ्र उस से विवाह भी करना चाहे. तब तो ब्राह्मणों का समाज में वर्चस्व ही समाप्त हो जाएगा क्योंकि वर्चस्व की सारी शक्तियां क्षत्रियों के बल पर ही तो आश्रित हैं. यदि शूद्र स्त्रियां क्षत्रियों के हृदय मार्ग से हो कर महलों में प्रवेश कर गईं तो राजा और राजनीति दोनों ही ब्राह्मणों के हाथों से चली जाएंगी. और जिस दिन ऐसा होगा, इन के सारे घाव हरे हो जाएंगे…और फिर…फिर…’ भयानक बदले के एहसास से वे कांप उठे.

प्रात: हवन आदि के पश्चात ऋषि वसिष्ठ ने सभी शिष्यों की उपस्थिति में पृषघ्र से कठोर स्वर में पूछा, ‘‘तुम ने कल रात क्या अनर्थ किया, जानते हो?’’

‘‘क्या अनर्थ किया है?’’ शांत स्वर में उस ने प्रतिप्रश्न किया.

‘‘भोले मत बनो कुमार, तुम ने एक शूद्र कन्या को उस की शूद्रता से मुक्त किया है. तुम पतित हो रहे हो.’’

‘‘मैं पतित हो रहा हूं, पर कैसे? एक नारी को शूद्रता की दासता से मुक्त करने से मैं पतित कैसे हो गया, गुरुदेव?’’ पृषघ्र का स्वर अत्यंत नम्र था.

‘‘तुम ऐसा नहीं कर सकते. ऐसा करने से एक क्रम बन सकता है जो हमारी सामाजिक व्यवस्था को छिन्न- भिन्न कर देगा,’’ वसिष्ठ कठोर स्वर में बोले.

‘‘यह कैसी सामाजिक व्यवस्था है गुरुदेव, जिस में मानव ही मानव को हेयदृष्टि से देखता है, उस का शोषण और तिरस्कार करता है. इस व्यवस्था को बदलना होगा.’’

‘‘किसी भी बदलाव के लिए न तो तुम अधिकृत हो और न ही सक्षम. यह कार्य हम ऋषियों की अनुमति के बगैर नहीं हो सकता. तुम होते कौन हो?’’ गुरु वसिष्ठ क्रोधित होने लगे.

‘‘क्षमा करें, गुरुदेव मैं यह कार्य प्रारंभ कर चुका हूं. जैसे प्रकृति अपने परिवर्तन के लिए किसी की मोहताज नहीं होती वैसे ही मैं ने भी शुरुआत की है,’’ पृषघ्र बोला.

‘‘तुम उद्दंड हो रहे हो,’’ क्रोधावेश में वसिष्ठ बोले, ‘‘आज तुम ने उस शूद्री को मुक्त करने की बात की है और कल उस से विवाह भी कर सकते हो.’’

‘‘हां, गुरुदेव, शिक्षा पूर्ण होते ही मैं उसे अपनी अर्धांगिनी बनाऊंगा,’’ पृषघ्र ने शांत भाव से उत्तर दिया.

वसिष्ठ की आशंका सच निकली. ‘कल को तो यह समस्त शूद्र जाति को सवर्णों में सम्मिलित कर देगा. क्रोध से यह मानने वाला नहीं लगता. कोई युक्ति करनी होगी,’ उन्होंने विचार किया.

‘‘तुम क्या कह रहे हो, पुत्र? तुम उस से विवाह भी करोगे, यह कैसे हो सकता है? तुम जानते हो, एक शूद्री से उत्पन्न की हुई जारज संतान तुम्हारी उत्तराधिकारी नहीं हो सकेगी. उसे कोई मान्यता नहीं देगा. तुम राजवंशी हो और वह एक छोटे कुल की स्त्री,’’ वसिष्ठ ने कोमल स्वर में समझाने का प्रयास किया.

‘‘नहीं, गुरुदेव, छोटे या घटिया तो कर्म होते हैं, कोई कुल नहीं…और स्त्री तो धरती है. धरती की कोई जाति नहीं होती. वह तो बीज (पुरुष) है, जो विभिन्न किस्मों में उगता है. इस में धरती का कोई दोष नहीं होता. दोषी तो बीज होता है.’’

‘‘तुम मुझे ही पढ़ाने लगे हो. स्मरण रखो, तुम इस गुरुकुल में विद्या अध्ययन के लिए आए हो, गुरु को पढ़ाने नहीं,’’ वसिष्ठ खीज कर बोले.

‘‘स्मरण है, गुरुदेव.’’

‘‘तो फिर अब से तुम उस युवती से नहीं मिलोगे और यहां रहते न तो कोई और घोषणा करोगे और न ही किसी को कोई वचन दोगे.’’

‘‘तो क्या अपना वचन मिथ्या हो जाने दूं. यह संसार मुझ पर थूकेगा नहीं?’’

‘‘तुम आखिर चाहते क्या हो? क्या तुम्हें मनमानी करने दूं? क्या तुम मुझे सामाजिक व्यवस्था का पाठ पढ़ाना चाहते हो?’’ वसिष्ठ ने झल्ला कर पूछा.

‘‘मैं आप के पास पढ़ने आया हूं, गुरुदेव,’’ पृषघ्र करबद्ध हो कर बोला, ‘‘मैं एक ऐसे समाज की रचना करना चाहता हूं जिस में चारों वर्णों के लोग एक ही ‘मनुष्य वर्ण’ के नाम से जाने जाएं. न कोई ऊंचा हो न कोई नीचा. कोई वर्ण भेद न हो…सर्वत्र समभाव हो. इस में आप मेरे मार्गदर्शक बनें.’’

सुन कर वृद्ध ऋषि सकते में आ गए. उन्होंने समझ लिया कि बहस से इस युवक को परास्त नहीं किया जा सकेगा. यह दृढ़निश्चयी है. इस का कुछ करना होगा. सोचते हुए उन्होंने आग्नेय नेत्रों से पृषघ्र को देखा और बगैर उत्तर दिए वहां से चल दिए.

आकाश में बादलों की भयंकर गर्जना के साथ वर्षा वेगवती हो रही थी. ऋषि वसिष्ठ ने उसी दिन से पृषघ्र को गोशाला का कार्य सौंप दिया था. भारी वर्षा के कारण 3 दिन से पशुओं के लिए घास की व्यवस्था नहीं हुई थी. गोवंश भूखा ही था. स्वयं पृषघ्र का आश्रम से बाहर जाना प्रतिबंधित था. उस ने सुना था कि आश्रम में 2-3 दिन से सूखी लकड़ी न होने से पाकशाला भी ठंडी ही है. उसे भी अन्न का दाना नहीं मिला था.

संध्या होतेहोते गहन अंधकार छा गया. गोशाला में जगहजगह पानी टपक रहा था. बड़ी कठिनाई से थोड़ा स्थान खोज कर वह बैठ सका. भूखी गायों का रंभाना उसे भारी पीड़ा दे रहा था. संतोष था तो केवल यही कि वह स्वयं भी निराहार था. उस की इच्छा हुई कि गोशाला की छत तोड़ कर उसी की घास पशुओं को खिला दे, परंतु यह संभव नहीं था.

बैठेबैठे ही पृषघ्र को नींद के झोंके आने लगे थे. वह कब सो गया, स्वयं भी न जान सका. अर्द्धरात्रि में गोवंश के रंभाने की आवाज से उस की नींद खुली. गहन अंधकार था. पानी अभी भी बरस रहा था. एकाएक वह कुछ समझ न पाया. अंधकार में दृष्टि फाड़ कर देखने का प्रयास किया, तभी एक गर्जना से वह चौंक पड़ा.

गोशाला में सिंह घुस आया था. वह तुरंत अपनी तलवार तान कर खड़ा हो गया और सावधानी से गायों की ओर बढ़ा. 2-3 गाएं सींगों की सहायता से सिंह से जान बचाने को प्रयासरत थीं. पृषघ्र ने निकट पहुंच कर बिजली की फुरती से सिंह पर भरपूर वार किया. वनराज पृषघ्र से भी फुरतीला निकला और एक गाय की गरदन कट गई. सिंह तेजी से निकल कर भाग गया.

पृषघ्र हतप्रभ रह गया. मस्तिष्क शून्य हो गया और आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. बड़ी कठिनाई से वह अपने स्थान पर लौटा और कटे शव की भांति गिर गया. प्रात:काल उस ने देखा, गाय की गरदन के साथ सिंह का कान भी कट कर गिर गया था.

दिन चढ़े तक जब वह बाहर न आया तो सहपाठियों ने गोशाला के द्वार से उसे पुकारा. कोई उत्तर न पा कर, भीतर आ कर जो हाल देखा तो सभी आश्चर्य- चकित रह गए.

‘‘गुरुदेव, पृषघ्र ने गोहत्या कर दी है,’’ एक शिष्य ने दौड़ कर ऋषि वसिष्ठ को सूचना दी.

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो, वत्स? ऐसा कैसे हो सकता है?’’ वे अपने आसन से उठ खड़े हुए.

‘‘स्वयं चल कर देख लीजिए, गुरुदेव,’’ कई स्वर एकसाथ उभरे.

ऋषि वसिष्ठ तेज कदमों से गोशाला में पहुंचे. पृषघ्र द्वार पर सिर झुकाए बैठा था. सामने ही मृत गाय कटी पड़ी थी. ऋषि ने क्रोध से हुंकार भरी, ‘‘यह जघन्य अपराध किसलिए किया तुम ने…क्या केवल इसलिए कि बाहर न जा सकने के कारण तुम उस शूद्री से भेंट न कर सके? एक शूद्र कन्या के लिए इतना जघन्य अपराध?’’ ऊंचे स्वर और क्रोधावेग से वसिष्ठ का बूढ़ा शरीर कांपने लगा था.

‘‘नहीं, गुरुदेव, दरअसल, पिछली रात्रि गोशाला में सिंह घुस आया था. उसी को मारने के लिए तलवार का प्रयोग किया था, परंतु वह बच गया और…उस का कटा हुआ कान वहीं पड़ा है, देख लीजिए.’’

‘‘चुप रहो, वीरवर पृषघ्र का वार गलत पड़े, मैं नहीं मान सकता. तुम ने जानबूझ कर गोहत्या की है, ताकि तुम्हें गोशाला के कार्य से मुक्ति मिले और तुम बाहर जा कर उस शूद्री से प्रेमालाप कर सको, तुम रक्षक से भक्षक बन गए हो,’’ वसिष्ठ चीखे.

‘‘नहीं गुरुदेव, यह गलत है, मैं…’’

‘‘मुझे गलत कहता है, तू ने गोहत्या का महापाप किया है…वह भी एक शूद्री के लिए. मैं तुझे श्राप देता हूं, तू इस नीच कर्म के कारण अब क्षत्रिय नहीं रहेगा. जा, शूद्र हो जा,’’ इतना कह कर वे तेज कदमों से लौट गए.

शूद्रता का दंड मिलने से पृषघ्र का उसी क्षण आश्रम से निष्कासन हो गया. वह बहुत रोया, गिड़गिड़ाया और सत्य के प्रमाण में सिंह का कान दिखाया, पर वसिष्ठ ने न कुछ देखा, न सुना.

शाप क्या है?

उस काल में शिक्षा को ब्राह्मणों ने केवल अपने पास केंद्रित कर रखा था. शिक्षा का प्रसार सीमित वर्ग तक था और आदिवासी तथा निम्नवर्ग को ज्ञान के प्रकाश से कतई वंचित रखा गया था. शिक्षित वर्ग होने से ब्राह्मणों का वर्चस्व राजकाज में अधिक रहा और अर्द्धशिक्षित होने से शासक वर्ग ब्राह्मणों पर आश्रित था. अर्थात वसिष्ठ के शाप ने पृषघ्र को उस समय के सभ्य समाज से, सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित कर दिया था. ब्राह्मणों की इस एकाधिकारिक व्यवस्था को सामाजिक और राजनीतिक स्वीकृति प्राप्त थी.

समाज से बहिष्कृत हो कर पृषघ्र की समझ में न आया कि वह क्या करे. उस के अपने लोगों ने मुंह मोड़ कर उसे निकाल दिया था. जिस निम्नवर्ग में उसे शामिल होने का दंड मिला था, वह भी ब्राह्मणों के बनाए दंडविधान, सामाजिक असुरक्षा और राजभय के चलते उसे स्वीकार करने में असमर्थ था. पृषघ्र जानता था कि शूद्र वर्ग भी उसे अपने में सम्मिलित नहीं करेगा और साहस किया भी तो उस का दंड कईकई लोगों को भुगतना होगा.

वह वनों में भटकता रहा. कईकई दिनों तक मानव दर्शन भी न होता था. अंतत: उस ने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य का व्रत धारण किया. सारी आसक्तियां छोड़ दीं, गुणमाला मस्तिष्क से विलोप हो गई. इंद्रियों को वश में कर वह जड़, अंधे, बहरे के समान हो कर तथाकथित ईश्वर को खोजता रहा, पर वह न मिला.

अंतत: वह पुन: गुणमाला के पास लौटा, ‘‘गुर्णवी, मैं लौट आया हूं,’’ अधीर स्वर में उस ने टिया के द्वार पर खड़े हो कर आवाज दी. पर कोई उत्तर न मिला. पृषघ्र ने भीतर जा कर देखा, कोई नहीं था. कुटिया की हालत बता रही थी कि वहां काफी समय से कोई नहीं रहा. कुछ सोच कर उस ने कुटिया को आग लगा दी और स्वयं भी उसी में समा गया.

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