Serial Story: विषपायी (भाग-3)

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आशीष पेशे से एक डाक्टर थे. उन की शादी नंदिता नाम की एक लड़की से हुई, जो खुद एक अच्छी कंपनी में सीनियर मैनेजर के पद पर कार्य कर रही थी. शादी के बाद आशीष पत्नी नंदिता की उदासी से परेशान थे. बिस्तर पर भी नंदिता एक संपूर्ण स्त्री की तरह आशीष से बरताव नहीं करती थी. एक दिन आशीष ने नंदिता से जोर दे कर कारण पूछा, तब नंदिता ने बताया कि वह एक व्यक्ति से प्रेम करती है और उस के प्यार में पागल है. आश्चर्य की बात तो यह थी कि जिस व्यक्ति से नंदिता प्रेम करती थी वह शादीशुदा था. यह सुन कर आशीष के पैरों तले जमीन खिसक गई. एक दिन क्लीनिक पर उस से एक महिला मिलने आई.

नंदिता से तलाक के बाद आशीष ने दिव्या से दूसरी शादी कर ली थी. दिव्या के साथ 8 साल के उन के दांपत्य जीवन में कभी कटुता के क्षण नहीं आए थे. पर 8 साल बाद जब अचानक नंदिता उन से मिलने क्लीनिक पहुंची तो सीधेसादे आशीष नंदिता की बातों में आ गए. वह अब खुद को दीनहीन और असहाय बता रही थी और बारबार आशीष से अपनी गलती के लिए माफी मांग कर खुद के लिए सहानुभूति चाह रही थी. नंदिता के बारबार अनुरोध करने पर आशीष उस की मदद को तैयार हो गए. आशीष ने नंदिता को न सिर्फ पैसे दिए, किराए पर एक फ्लैट भी दिला दिया.

एक दिन नंदिता ने आशीष को अपने फ्लैट पर अकेले आने को कहा. बारबार आग्रह करने पर आशीष शाम को नंदिता के पास पहुंचा तो नंदिता सजधज कर उसी का इंतजार कर रही थी.

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उसके सौंदर्य से आशीष अभिभूत हो गए. यह सौंदर्य कभी उन का था और अगर नंदिता ने थोड़ी समझदारी और संयम से काम लिया होता तो आज भी वह उन की होती, परंतु नंदिता अब उन की नहीं है. सच तो यह है कि अब वह किसी की नहीं है और देखा जाए तो वह स्वतंत्र है और जिसे चाहे पसंद कर सकती है, प्यार कर सकती है. उस के जीवन में किसी भी पुरुष के लिए उतनी ही जगह है, जितनी प्यार करने के लिए किसी को हो सकती है.

‘‘आइए, मुझे विश्वास था, आप अवश्य आएंगे,’’ वह इठलाती हुई बोली. उस के चेहरे की चंचलता से अधिक उस के शरीर की

चंचलता बोल रही थी. उस का बदन मछली की तरह तड़प रहा था. वह जानबूझ कर ऐसा कर रही थी या आशीष के आने की खुशी में भावविह्वल हुई जा रही थी, समझ नहीं आ रहा था. उस के व्यवहार से ऐसा नहीं लग रहा था जैसे उन के संबंधों के बीच में कभी दरार आई हो और वे हमेशा के लिए एकदूसरे से जुदा हो गए हों. जो भी देखता, यही कहता नंदिता उन की पत्नी है. नंदिता के खुलेपन से आशीष के मन में कुछ डोल गया. वे पुरुष थे और किसी भी पुरुष का मन नारी की सुंदरता और चंचलता देख कर डोल जाता है. इस में अस्वाभाविक कुछ भी नहीं था. नंदिता उन की पूर्व पत्नी थी और उन्होंने उस के प्रत्येक अंग को देखा था. अब इतने अंतराल के बाद उन्होंने उसे फिर सौंदर्य के रंग बिखेरते देखा था तो क्यों न मन में लहरें उठतीं?

उन्होंने ऊपर से कुछ जाहिर नहीं किया और नजरें चुराते हुए अंदर आ कर बैठ गए. नंदिता ने अपने घर को बहुत सुंदर तरीके से सजा दिया था. घर छोटा था, पर अगर गृहिणी में समझ हो तो छोटी सी जगह को भी सुंदर बनाया जा सकता है. नंदिता का यह गुण आशीष को पता नहीं था, क्योंकि दोनों की शादी के बाद नंदिता मन से उन के घर में थी ही नहीं, बस उस का तन मौजूद रहता था. वह दूसरी ही दुनिया में विचरण कर रही थी, तो आशीष के घर की तरफ कैसे ध्यान देती? चाय पी कर आशीष घर चलने लगे तो नंदिता ने उन का हाथ पकड़ लिया और उत्साह से बोली, ‘‘किन शब्दों में आप का धन्यवाद करूं?’’

आशीष के शरीर में एक झनझनी सी दौड़ गई. नंदिता का स्पर्श उन के लिए अनचाहा नहीं था, परंतु उन्हें लगा जैसे नंदिता उन्हें पहली बार स्पर्श कर रही हो और यह स्पर्श अनोखा ही नहीं उत्तेजित कर देने वाला था. 10 साल बाद नंदिता के सौंदर्य में अगर कोई कमी आई थी तो वह उम्र की थी, जिस में 10 साल बढ़ गए थे वरना वह आज भी वैसी ही सुंदर और दिलकश थी. आज भी वह किसी मर्द के दिल को घायल करने का सौंदर्य अपने अंदर समेटे थी.

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आशीष ने बिना उस की तरफ देखे अपने हाथ को छुड़ा लिया और कहा, ‘‘इस में धन्यवाद की कोई बात नहीं है. मनुष्य ही मनुष्य के काम आता है.’’ मनुष्य सौंदर्य प्रेमी होता है. हर तरह का सौंदर्य उसे प्रभावित करता है, आकर्षिक करता है. भोगा हुआ भी और नया भी. नंदिता का सौंदर्य आशीष के लिए नया नहीं था, परंतु आज वह बिलकुल नई और अलग दिख रही थी. नारी का सौंदर्य इसीलिए मनुष्य को आकर्षित करता है, क्योंकि वह प्रतिपल अपने नए रूप और नए अंदाज में दिखती है.

आशीष थोड़ा विचलित हो गए थे. घर आ कर उन्होंने दिव्या को भरपूर निगाहों से देखा. वह भी उन्हें बिलकुल नईनई सी लगी. सुबह की नर्म धूम में नहाई सी, खिलते फूलों की रंगत लिए. एक बच्चे की मां थी, फिर भी उस के सौंदर्य में कोई कमी नहीं आई थी. वह एक डाक्टर की पत्नी थी. उस ने अपने को संभाल कर रखा था. वह तुलना करने लगे नंदिता और दिव्या में. दोनों का सौंदर्य एकदूसरे से अलग था. एक अपने परिवार के प्रति पूरी तरह समर्पित थी तो दूसरी स्वच्छंद उड़ने वाली तितली… परंतु दोनों ही मनमोहक थीं. नंदिता को उन्होंने एक स्थायित्व प्रदान किया था, इस बात से उन्हें संतुष्टि प्राप्त होती थी, परंतु इस एहसान का बदला लेने का उन के मन में कोई विचार कभी नहीं आया था. वे उसे अपनी तरफ से फोन भी नहीं करते थे, परंतु नंदिता जब तक दिन में 3-4 बार उन्हें फोन न कर लेती, उसे चैन न पड़ता. वह मीठीमीठी बातें करती, कई बार पुरानी बातें खोद कर उन से माफी मांगती, यह जताने की कोशिश करती कि वह उन के प्रति ऋणी है और उन के एहसानों का बदला चुकाना चाहती है. वे हंस कर टाल जाते और अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया जाहिर न करते जिस से कि नंदिता को यह लगे कि वे उस से प्रतिदान की अपेक्षा रखते हैं.

नंदिता लगभग रोज उन्हें अपने घर आमंत्रित करती. उस की बातों में कुछ ऐसा इसरार होता कि आशीष मना न कर पाते या वे उस का दिल दुखाना नहीं चाहते थे. नंदिता अकेली है, इस शहर में उस का कोई सगासंबंधी नहीं है, इस नाते वे उसे खुश करने के लिए रोज तो नहीं, परंतु दूसरेतीसरे दिन उस के घर चले जाते. नंदिता गर्मजोशी से उन का स्वागत करती, चायकौफी के साथ कुछ खाने के लिए बना लेती. वे कुछ देर बैठ कर उस की बकबक सुनते और चले आते.

एक दिन नंदिता उन की बगल में सोफे पर बैठ गई. वह चौंक से गए और हलका सा खिसक कर अपने बदन को सिकोड़ लिया. वह हंस कर बोली, ‘‘आप मुझ से इतना दूर क्यों जा कर बैठ गए? आखिर मैं आप की पत्नी रह चुकी हूं… अभी भी हमारे रिश्ते में आत्मीयता है… इतनी दूरी क्यों?’’

आशीष उस की बात का क्या जवाब देते. बस इतना कहा, ‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘परंतु मैं ठीक नहीं हूं,’’ वह फिर से उन की तरफ खिसक गई, ‘‘मेरे मन में अपराधबोध है. मैं ने आप को कितने दुख दिए, आप ने कभी मुझे न तो डांटा, न मारापीटा. सहज भाव से आप सब कुछ सहते गए. मैं तब भी इस बात को नहीं समझ पाई कि आप जैसे शरीफ इनसान को कष्ट दे कर मैं अपने जीवन को नर्क बना रही हूं. तब अगर आप ने मेरे साथ सख्ती की होती, डांटा होता तो संभवतया मैं आप को छोड़ने की गलती कभी नहीं करती. मैं अपने अपराधबोध से कैसे छुटकारा पाऊं?’’

उन्हें क्या पता वह अपने अपराधबोध से कैसे छुटकारा पा सकती थी. यह उस का निजी मामला था. इस में वे नंदिता की क्या मदद कर सकते थे?

‘‘मैं लखनऊ इसलिए नहीं आई थी कि आप के माध्यम से कोई नौकरी प्राप्त कर लूं और हंसीखुशी जीवन व्यतीत करूं … यह काम तो मैं दिल्ली में रह कर भी कर सकती थी… जो नौकरी छोड़ दी थी वही प्राप्त कर लेती या दूसरी कर लेती… इस में कोई परेशानी नहीं थी.’’

आज उस ने अपने दिल की बात कही थी. आशीष चौंक गए, तो क्या वह केवल उन के लिए यहां आई थी. उसे कोई दुख और परेशानी नहीं थी?

‘‘अच्छा… तो फिर…’’ उन्होंने असहज भाव से पूछा. वे आगे बहुत कुछ पूछना चाहते थे, पर नहीं पूछा. वे जानते थे कि उन के बिना पूछे ही वह सब कुछ उन्हें बता देगी. नंदिता का स्वभाव बहुत चंचल था. वह बहुत दिनों तक कोई बात अपने मन में छिपा कर नहीं रख सकती थी. नंदिता ने अपना दायां हाथ उन की बाईं जांघ पर रख दिया और उसे हौलेहौले सहलाने लगी. आशीष को संभवतया इस बात का भान नहीं हुआ था. वे अन्य विचारों में खोए थे.

‘‘जब तक आदमी को दुख नहीं मिलता वह दूसरों के दुख को नहीं महसूस कर पाता… जब उस ने मुझे ठुकरा दिया तो मुझे एहसास हुआ कि मेरी बेवफाई से आप को कितना मानसिक कष्ट हुआ होगा. जब मेरा दिल तारतार हुआ और मैं दुनिया को मुंह दिखाने लायक नहीं रही तो लगा जैसे मेरे लिए डूब मरने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.

‘‘फिर मैं ने सोचा मेरे कारण आप ने इतना दुख सहा, मेरा दिया सारा जहर पी गए, विषपायी बन गए, तो फिर मैं जी कर दूसरों के दिए जहर को क्यों नहीं पी सकती. मैं ने तय किया कि अगर आप मिल गए और आप ने मुझे क्षमा कर दिया तो मेरा दुख कम हो जाएगा. अब आप मुझे मिल गए हैं और मैं देख रही हूं कि मेरे प्रति आप के मन में कोई कटुता नहीं. इस से न केवल मेरा दुख कम हुआ है, बल्कि मैं सुख के सागर में डूबनेउतराने लगी हूं. जीवन के प्रति मेरा मोह बढ़ गया है. मैं बहुत कुछ पा लेना चाहती हूं… वह भी जो बहुत पहले मेरी नादानी के कारण मेरे हाथों से फिसल गया था.’’

आशीष चुपचाप उस की बातें सुनते जा रहे थे.

‘‘आप ने मेरे अपराध क्षमा कर दिए, मेरे दुख हर लिए, परंतु मेरा प्रायश्चित्त अभी बाकी है.’’

‘वह क्या?’ आशीष ने अपनी निगाहों को उठा कर नंदिता की आंखों में देखा. उस की आंखें भीगी थीं, इस के बावजूद उन में अनोखी चमक थी जैसे उसे विश्वास था कि उस की कोई बात आशीष नहीं टालेंगे.

नंदिता ने भावुक हो कर उन के दोनों हाथ पकड़ लिए, ‘‘मैं जानती हूं, आप बहुत बड़े दिल के आदमी हैं. इसीलिए आप से याचना कर रही हूं. मेरा प्रायश्चित्त यही है कि मैं जीवन भर आप के साथ रहूं?’’

आशीष को एक झटका सा लगा. उन्होंने अपने हाथ छुड़ा लिए और उठ कर खड़े हो गए, ‘‘क्या?’’

वह भी उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘आप इस तरह क्यों चौंक गए? मैं ने कोई अनहोनी बात नहीं कही है. इस दुनिया में बहुत सारे लोग बिना शादी के एकदूसरे के साथ रहते हैं, मैं तो आप की परित्यक्ता पत्नी हूं. मेरा आप पर कोई हक नहीं है, परंतु मैं अपना पूरा जीवन आप के लिए समर्पित करना चाहती हूं.’’

आशीष की आवाज लड़खड़ा गई, ‘‘यह कैसे संभव हो सकता है?’’

‘‘सब कुछ संभव है, बस मन को समझाने की बात है.’’

‘‘परंतु मैं शादीशुदा हूं, घर में पत्नी और 1 बेटा है. मैं तुम्हारे साथ कैसे रह सकता हूं?’’

‘‘जिस प्रकार आप मेरे दिए कष्ट का जहर पी कर रह सकते हैं, उसी प्रकार खुशीखुशी मेरे साथ रह सकते हैं. मैं आप के प्रति समर्पण चाहती हूं. किसी और चीज की मुझे आप से अपेक्षा नहीं है. मैं आप से कोईर् और हक नहीं मांगूंगी, न बच्चों की कामना न संपत्ति का अधिकार. मुझे बस आप का साथ चाहिए, कभीकभी संसर्ग चाहिए और कुछ नहीं…’’ आशीष का दिमाग चकरा गया. वे 1 डाक्टर थे, सुलझे हुए व्यक्ति थे. कठिन और विपरीत परिस्थितियों में भी नहीं घबराते थे. जब परपुरुष के साथ नंदिता के संबंधों का उन्हें एहसास हुआ था तब भी वे इतना विचलित नहीं हुए थे. सोचा था कि इस स्थिति से किसी तरह निबट लेंगे. परंतु आज उन्हें लग रहा था कि इस स्थिति से कुदरत भी नहीं निबट सकती.

नंदिता जो चाहती थी, वह कभी पूरा नहीं हो सकता था. कम से कम उन के लिए यह असंभव था. एक बार उन्होंने विष पीया था, परंतु दूसरी बार नहीं पी सकते थे, जानबूझ कर तो कतई नहीं. नंदिता उन के बदन से सट गई. लगभग उन्हें अपनी बांहों में समेटती हुई बोली, ‘‘देखिए मना मत कीजिएगा. मैं बड़ी उम्मीदों से आप के पास आईर् हूं. मेरा यहां आने का यही एक मकसद था कि पूरा जीवन आप के चरणों में समर्पित कर के मैं अपनी गलतियों से छुटकारा पा सकूंगी. मेरे अपराधों का प्रायश्चित्त हो जाएगा. ‘‘आप के सिवा अब मैं किसी और को नहीं चाह सकती. अगर आप मुझे नहीं स्वीकार करेंगे, तो भी मैं जीवन भर अविवाहित रह कर आप का इंतजार करूंगी,’’ उस की आवाज में बेबसी की गिड़गिड़ाहट भरती जा रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे नंदिता जमाने भर की सताई हुई औरत हो. आशीष ने उसे नहीं संभाला तो वह टूट जाएगी, बरबाद हो जाएगी.

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परंतु आशीष को नंदिता की गिड़गिड़ाहट, उस का रोना प्रभावित नहीं कर पा रहा था. उन के दिमाग की नसें फट रही थीं. उन्हें लग रहा था, चारों ओर धमाके हो रहे थे. यह दीवाली या किसी शादीब्याह के मौके पर होने वाले आतिशबाजी के धमाके नहीं थे. यह उन के जीवन को तहसनहस करने वाले धमाके थे. हड़बड़ाहट में वे बाहर जाने के लिए मुड़े. नंदिता ने उन्हें पकड़ लिया. वे ठिठक गए.

‘‘आप जा रहे हैं, मैं आप को नहीं रोकूंगी, पर यह वादा करती हूं कि इसी शहर में रह कर आप की प्रतीक्षा करूंगी. आप का जो निर्णय हो बता दीजिएगा.’’ वे बिना कुछ कहे बाहर निकल आए. बाहर घना अंधेरा पसरा था जैसे पूरे शहर की बिजली चली गई हो. परंतु ऐसा नहीं था, सभी घरों में बिजली थी. बस सड़क की बत्तियां नहीं जल रही थीं. सड़कें अंधेरी थीं, परंतु उन्हें लग रहा था जैसे पूरे शहर में अंधेरे की लंबीलंबी गुफाएं फैली हैं. जिस के अंदर से वे गुजर रहे हैं. इन कालीअंधेरी गुफाओं का कोई अंत नहीं था और उन की यात्रा का भी कोई अंत नहीं था.

उन के साथ ऐसा क्यों हो रहा था. दुख को चुपचाप सहन करना क्या दुखों को निमंत्रण देना होता है? वे किसी को कष्ट नहीं देते हैं, परंतु बदले में उन्हें क्यों कष्ट झेलने पड़ते हैं? नंदिता के घर के बाहर खड़ी अपनी गाड़ी को जब उन्होंने स्टार्ट किया तब भी उन्हें होश नहीं था और जब गाड़ी मुख्य सड़क पर ला कर अपने घर की तरफ मोड़ी तब भी उन्हें कुछ होश नहीं था. उन का शरीर कांप रहा था, परंतु हाथपैर काम कर रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे कोई अन्य व्यक्ति रिमोट कंट्रोल से उन के अंगों को संचालित कर रहा है. उन की अपनी सोच कहीं गुम हो गई थी. वे समझ नहीं पा रहे थे कि उन के दिमाग को संचालित करने वाला यंत्र उन के नियंत्रण में क्यों नहीं है?

वे गाड़ी चला रहे थे, परंतु उन्हें स्वयं पता नहीं था कि वह किस शक्ति से नियंत्रित हो रही है. सामने से आ रही गाडि़यों का प्रकाश उन की आंखों में आतिशबाजी की रोशनी की तरह चुभ रहा था और वे बारबार अपनी आंखें झपक रहे थे. घर पहुंचतेपहुंचते उन्होंने स्वयं को काफी हद तक संयत कर लिया था. दिमाग की झनझनाहट कम हो गई थी. शरीर का कंपन बंद हो गया था. मन संयत हो चुका था, परंतु चेहरे की उड़ी रंगत उन के अंदर अभीअभी गुजरे तूफान की कहानी बयां कर रही थी.

वे चुपचाप घर के अंदर प्रवेश कर गए. वे चाहते थे कि एकदम से दिव्या का सामना न हो, परंतु वह उन्हीं का इंतजार कर रही थी. रात काफी हो चुकी थी. बेटा सो चुका था. दिव्या के पास उन के इंतजार के सिवा और कोई काम नहीं था. उन की पस्त हालत देख कर दिव्या तत्काल उठी और उन को सहारा दे कर सोफे तक लाई, ‘‘आप बहुत थक गए हैं.’’

उस की आवाज में चिंता झलक रही थी. उस ने पति को सोफे पर बैठा दिया. आशीष ने एक नजर दिव्या के चेहरे पर डाली और फिर आंखें बंद कर के सोफे पर सिर टिका दिया. दिव्या दौड़ कर उन के लिए पानी ले आई. पानी का गिलास उन के हाथ में थमाते हुए बोली, ‘‘लीजिए, पानी पी लीजिए. आप किसी की नहीं सुनते हैं. कितनी बार कहा कि कम मेहनत किया करो. मरीजों का आना कभी खत्म नहीं हो सकता, आप चाहे सारी रात क्लीनिक खोल कर बैठे रहें… क्या उन के चक्कर में खुद मरीज बन जाएंगे? आप की सेहत ठीक नहीं रहेगी, तो मरीजों को कैसे ठीक करेंगे और फिर हम लोग कैसे खुश रह सकते हैं?’’ वह उन के माथे को सहला रही थी. आशीष को अच्छा लग रहा था.

‘‘देखिए तो चेहरे पर कैसी मुर्दनी छाई हुई है जैसे 10 दिनों से खाना न खाया हो.’’ आशीष चुपचाप आंखें मूंदे रहे. दिव्या की 1-1 बात उन के कानों में पड़ रही थी. वे उस की बातों को सुन सकते थे, परंतु उत्तर नहीं दे सकते थे. उस बेचारी को क्या पता कि आशीष ने अभीअभी कौन सा तूफान अपने सीने के अंदर झेला? वह कभी नहीं समझ पाएगी, क्योंकि जो कुछ उन के साथ हुआ था, उस के बारे में दिव्या को बता कर वह उस की खुशी नहीं छीन सकते थे.

दिव्या का इस प्रसंग में कहीं कोई हाथ नहीं था. दूसरों की करनी की सजा वह क्यों भुगते? जो जहर वे पी रहे थे, उस की 1 बूंद भी वह दिव्या के होंठों पर नहीं रख सकते थे. उन्हीं को सारी उम्र जहर पीना था. वे विषपायी हो गए थे. उन के अंदर अब इतना जहर समा चुका था कि किसी और जहर का उन के अंदर असर नहीं होने वाला था. वह रात किसी तरह गुजर गई. अगली सुबह पहले जैसी सामान्य थी जैसे पिछली रात कहीं कुछ नहीं हुआ. आशीष निश्चिंत भाव से उठ कर तैयार हुए. ऊपर से वे बहुत शांत और गंभीर थे, पर अंदर ही अंदर उन के मन में एक मंथन चल रहा था. उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है. आज ही सब कुछ तय हो जाना है. वे इंतजार नहीं कर सकते और न ही किसी और को दुविधा में रख सकते.

दिव्या किचन में व्यस्त थी. वे नहाधो कर तैयार हो गए. क्लीनिक जाने में अभी देर थी. वे अपने कमरे से मोबाइल ले कर बैठक में आए. रात उन्होंने ध्यान नहीं दिया था. उन के फोन पर बहुत सारे मैसेज आए थे. उन्होंने खोल कर देखा. उन में से एक मैसेज नंदिता का था. उस ने लिखा था, ‘‘आप घर पहुंच गए? ठीक तो हैं? मुझे आप की चिंता है?’’

उन्होंने उसी मैसेज पर उत्तर दिया, ‘‘मैं ठीक हूं और उम्मीद करता हूं कि तुम भी ठीक होगी. नंदिता मैं ने अपने जीवन में बहुत जहर पीया है. मैं सचमुच विषपायी हूं. यह जहर किस के कारण मैं ने पीया, इन सब बातों पर जाने का अब कोई औचित्य नहीं है. मैं तुम से केवल इतना कहना चाहता हूं कि अब और ज्यादा जहर पीने की क्षमता मुझ में नहीं है. मेरी सहनशीलता समाप्त हो चुकी है. अब अगर मैं ने 1 भी बूंद जहर पीया तो मैं मर जाऊंगा. आशा है, तुम मेरा आशय समझ गई होगी. मुझे अपनी बीवी और बेटे से प्यार है और शांतिपूर्वक उन के साथ जीना चाहता हूं, मुझे जीने दो. मेरी तुम्हारे लिए नेक सलाह है कि अब तुम भी भागना छोड़ दो और किसी अच्छे लड़के के साथ घर बसा कर खुशी से जीवन व्यतीत करो. अब मुझ से मिलने का प्रयास न करना. आशीष!’’

नंदिता को मैसेज भेजने के बाद एक भारी बोझ उन के मन से उतर गया. उन के मन में अब कोई संशय और चिंता नहीं थी. उन को ऐसा लग रहा था जैसे उन के अंदर जो विष का घड़ा 10 साल से रिसरिस कर बह रहा था, वह अचानक फूट कर बह गया और उस का जहर उन के शरीर से बाहर फैल गया. अब वह उन के शरीर पर असर नहीं कर रहा था. तभी मुसकराती हुई दिव्या नाश्ता ले कर आ गई. बोली, ‘‘आइए, नाश्ता कर लीजिए.’’

वह नहाधो चुकी थी. साधारण कपड़ों में भी किसी परी सी लग रही थी. उन्होंने एक प्यारी मुसकराहट के साथ दिव्या को देखा. फिर मन ही मन खुश होते हुए डाइनिंग टेबल पर जा बैठे.

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आईना: क्यों नही होता छात्रों की नजर में टीचर का सम्मान?

आईने के सामने खड़े हो कर गाना गुनगुनाते हुए डा. रत्नाकर ने अपने बालों को संवारा, फिर अपनेआप को पूर्ण संतुष्टि के साथ निहारते हुए बड़े मोहक अंदाज में अपनी पत्नी को आवाज लगाई, ‘‘सोनू, अरे सोना, मैं तो रेडी हो गया, अब तुम जरा गाड़ी में दोनों पैकेट रखवा दो…प्रिंसिपल साहब का स्पैशल वाला और स्टाफरूम के लिए बड़ा वाला मिठाई का डब्बा. मेरे सारे दोस्त मिठाई के इंतजार में होंगे, सभी के बधाई के फोन आ रहे हैं. आखिर मेरी ड्रीम कार आ ही गई.’’

‘‘पैकेट कार में पहले ही रखवा दिए, प्रिंसिपल साहब की मैडम के लिए कांजीवरम सिल्क की साड़ी भी रख दी है. चाहे कुछ कहो, प्रिंसिपल साहब साथ न दें तो हमारे सपने कैसे पूरे हों. अगर मैडम को भी खुश कर दो तो सबकुछ आसान हो जाता है. ठीक है न,’’ सोनू ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘यू आर ग्रेट,’’ परफ्यूम स्प्रे करतेकरते डा. रत्नाकर ने अपनी पत्नी की दूरदर्शिता की दाद देते हुए कहा, ‘‘जानती हो, स्टाफ में एक शख्स ऐसा भी है जिस ने न तो अभी तक मुझे बधाई नहीं दी. उस का नाम शैलेंद्र है. जलता है वह मेरी तरक्की से और कुछ कहो तो आदर्श शिक्षक की विशेषताएं बता कर सारा मजा किरकिरा कर देता है…सोच रहा हूं, आज उसे इग्नोर ही कर दूं वरना मूड खराब हो जाएगा.’’

सोनू ने भी इस बात पर पूर्ण सहमति जताते हुए सिर हिलाया. डा. रत्नाकर और सोनू गेट की ओर बढ़े. ड्राइवर ने दौड़ कर गाड़ी का दरवाजा खोला.

‘‘बाय,’’ हाथ हिलाते हुए डा. रत्नाकर ने सोनू से विदा ली और कार कालेज की ओर चली. आज उन्हें अपनेआप पर बहुत गर्व हो रहा था. हो भी क्यों न? मात्र 3-4 साल में पहले निजी फ्लैट और अब गाड़ी खरीद ली थी. कहां खटारा स्कूटर…किराए का मकान…मकानमालिक की किचकिच… सब से मुक्ति. जब से अपना कोचिंग सैंटर खोला है तब से रुपयों की बरसात ही तो हो रही है. सोनू भी पढ़ीलिखी है. वह कोचिंग का पूरा मैनेजमैंट देख लेती है और डा. रत्नाकर शिफ्ट में व्यावसायिक कोर्स की कोचिंग करते हैं. प्रिंसिपल साहब को भी किसी न किसी बहाने कीमती गिफ्ट पहुंच जाते हैं तो कालेज का समय भी कोचिंग में लगाने की सुविधा हो जाती है. एक बेटा है जो दिल्ली के एक महंगे स्कूल से 12वीं कर रहा है.

‘ट्रिन…ट्रिन,’ मोबाइल की घंटी से डा. रत्नाकर अपने सुखद विचारों से बाहर निकले. शौर्य का फोन था.

‘‘क्या बात है?’’ रत्नाकर ने पूछा.

‘‘पापा, आप अपनी किताबें व रजिस्टर घर पर ही भूल गए,’’ शौर्य ने कहा, ‘‘सोचा, आप को बता दूं. आप परेशान हो रहे होंगे.’’

‘‘अरे,’’ रत्नाकर सोच ही नहीं पाए कि क्या जवाब दें. फिर कुछ सोच कर बोले, ‘‘बेटा, असल में आज एक मीटिंग है, इसलिए कालेज में पढ़ाई नहीं होगी,’’ इतना कहते ही उन्होंने फोन रख दिया.

गाड़ी से उतर कर रत्नाकर तेज चाल से सीधे प्रिंसिपल के कमरे की ओर बढ़े. प्रिंसिपल साहब गाड़ी की आवाज सुन कर पहले ही खिड़की से डा. रत्नाकर की ड्रीम कार की झलक देख चुके थे, जिसे देख कर उन का मूड औफ हो गया था. अत: डा. रत्नाकर के कमरे में घुसने पर वे चाह कर भी मुसकरा न सके.

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‘‘सर, आप के आशीर्वाद से नई गाड़ी ले ली है…और इस खुशी में यह छोटी सी भेंट आप के लिए लाया था. सोनू ने भाभीजी के लिए कांजीवरम की साड़ी भी भेजी है,’’ कह कर डा. रत्नाकर ने बोझिल वातावरण को महसूस करते हुए उसे हलका करने के उद्देश्य से प्रिंसिपल साहब के पैर छूने का उपक्रम किया.

‘‘रहने दो. इस सब की जरूरत नहीं. वैसे भी मैं तुम को फोन करने वाला था क्योंकि आजकल कई अभिभावक तुम्हारे विरुद्ध शिकायतें ले कर आ रहे हैं कि लंबे समय से क्लास नहीं हुई. मेरे लिए भी संभालना मुश्किल हो रहा है,’’ प्रिंसिपल साहब ने थोड़ी बेरुखी दिखाते हुए कहा.

‘‘सर, मुझे पूरा विश्वास है कि आप तो संभाल ही लेंगे. वैसे भी भाभीजी की कुछ और खास पसंद हो तो बताइएगा,’’

डा. रत्नाकर ने ढिठाई से मुसकराते हुए कहा.

प्रिंसिपल साहब भी मुसकरा दिए.

अब दोनों खुश थे क्योंकि दोनों का दांव सही जगह लगा था.

 

प्रिंसिपल साहब से आज्ञा ले कर रत्नाकर खुशी से उतावले हो कर स्टाफरूम की ओर बढ़े. ‘अब असली मजा आएगा…गाड़ी खरीदने का. सब के चेहरे देखने में एक अजब ही सुख मिलेगा, जिस की प्रतीक्षा मुझे न जाने कब से थी,’ रत्नाकर मन में सोच कर प्रसन्न हो रहे थे.

‘‘बधाई हो,’’ कई स्वर एकसाथ उभरे. रत्नाकर भी खुशी से फूल गए. चारों ओर दृष्टि दौड़ा कर देखा तो कोने की टेबल पर डा. शैलेंद्र एक किताब पढ़ने में लीन थे. चाह कर भी रत्नाकर अपनेआप को रोक न सके. अत: शैलेंद्र की प्रतिक्रिया जानने के लिए मिठाई खिलाने के बहाने उन के पास पहुंचे.

‘‘शैलेंद्र, लो, मिठाई खाओ भई. कभीकभी दूसरों की खुशी में भी अपनी खुशी महसूस कर के देखो, अच्छा लगेगा,’’ थोड़े तीखे व ऊंचे स्वर में रत्नाकर ने कहा.

‘‘जरूरी नहीं कि मिठाई बांट कर या शोर मचा कर ही खुशी प्रकट की जाए. मुझे किताब पढ़ने में खुशी मिलती है तो मैं वही कर रहा हूं और खुश हो रहा हूं,’’ शांत भाव से शैलेंद्र ने जवाब दिया.

‘‘वही तो, कई लोगों को हमेशा पुराने ढोल की आवाज ही अच्छी लगती है तो वे बेचारे क्या तरक्की करेंगे. मैं ने अपनी सोच बदली, नए जमाने की दौड़ के साथ दौड़ा तो आज तुम जैसे लोगों को पीछे छोड़ दिया. असल में मुझे बहुत जल्दी ही इस सच का एहसास हो गया कि पहले जैसे विद्यार्थी रहे ही नहीं तो उन के साथ माथापच्ची क्यों करूं? इसलिए जो वास्तव में पढ़ना चाहते हैं उन्हें अलग से पढ़ाऊं…अलग पढ़ाने की फीस लूं…वे भी खुश हम भी खुश,’’ रत्नाकर ने तीखे स्वर में तर्क देते हुए कहा. क्योंकि वे अपनी उपलब्धि सभी पर प्रकट कर अपनेआप को सब से ऊंचा साबित करना चाह रहे थे.

‘‘गलत, एकदम गलत. अगर इसी बात को सही शब्दों में कहें तो हम शिक्षक अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए शिक्षा को व्यवसाय बना रहे हैं तथा ऐसा करने में जो अपराधबोध है उसे विद्यार्थियों के सिर मढ़ रहे हैं,’’ दोटूक उत्तर दे कर शैलेंद्र खड़े हुए और बिना मिठाई खाए स्टाफरूम से बाहर जाते हुए बोले, ‘‘आज भी अच्छे अध्यापक के सभी विद्यार्थी बहुत अच्छे होते हैं और वे ऐसे अध्यापक को वैसे ही सम्मान देते हैं जैसे अपने मातापिता को.’’

स्टाफरूम में सन्नाटा छा गया.

डा. रत्नाकर भी निरुत्तर हो कर बैठ गए.

‘‘दिन कैसा रहा?’’ दरवाजा खोलते हुए खुश हो कर सोनू ने उत्सुकता प्रकट करते हुए रत्नाकर से पूछा.

‘‘बहुत अच्छा, बस शैलेंद्र ने ही थोड़ा बोर कर दिया पर सोनू, सच कहूं तो उस की बात का बिलकुल बुरा नहीं लगा क्योंकि मुझे अपनी उपलब्धि पर भरपूर सुख का एहसास हो रहा था,’’ डा. रत्नाकर बोले.

‘‘अरे पापा, आप कब आए?’’ कहते हुए शौर्य उन के पास आ कर बैठ गया.

‘‘अभीअभी, बड़ी जरूरी मीटिंग थी, इसीलिए थोड़ा थक गया पर कल तुम को वापस जाना है इसलिए आज हम सब लोग डिनर करने बाहर चलेंगे. शौर्य, तुम अपने टीचर्स के लिए मिठाई और गिफ्ट्स ले जाना, वे खुश हो जाएंगे,’’ रत्नाकर ने शौर्य से कहा.

‘‘पापा, कोई टीचर इस लायक है ही नहीं कि उन को कुछ देने का मन करे, सब पैसे के पीछे भागते हैं, ‘डाउट्स क्लीयर’ करने के बहाने घर बुला कर अच्छीखासी फीस लेते हैं…कुछ तो न जाने कब से कालेज ही नहीं आए… केवल एक राजन सर ऐसे हैं जिन के मैं हमेशा पैर छूता हूं और उन के लिए सच्चे मन से कुछ ले जाना चाहता हूं पर वे लेंगे ही नहीं. उन का कहना है कि हमारा अच्छा रिजल्ट ही उन की उपलब्धि है,’’ कहतेकहते शौर्य भावुक हो उठा.

डा. रत्नाकर की निगाहें झुक गईं. उन का बेटा उन्हीं को ऐसा आईना दिखा रहा था जिस में वे अपना अक्स देखने की स्थिति में ही नहीं थे.

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रेत का समंदर: जब जूलिया मार्टिन की हरीश से हुई मुलाकात

Serial Story: रेत का समंदर (भाग-3)

आधापौना घंटा उन्होंने आराम किया होगा कि अम्माजी ने उन को बाजरे की रोटी और गुड़ की डली थमा दी. साथ में रेगिस्तानी इलाके में मिलने वाली झाड़ी की चटनी भी थी. ऐसा खाना उन के लिए निहायत रूखासूखा था, लेकिन भूख सख्त लगी होने से उन को वह बहुत स्वादिष्ठ लगा. खाना खाने के बाद दोनों पुआल के उसी ढेर पर सो गए.

वह झोंपड़ा रहमत अली खान का था. वह इलाके का जमींदार था. रेगिस्तानी इलाके में खेती कहींकहीं होती थी. शाम ढलते ही रहमत अली खान और उस के चार बेटे ढाणी में आए. एक अनजान ऊंट को, जिस की पीठ पर 2 आदमियों के बैठने वाली कीमती काठी बंधी थी, झोंपड़े के एहाते में चारा खाते देख चौंके.

कौन आया था ढाणी में, कोई पाक रेंजर या सेना का अफसर, लेकिन यहां क्यों आया?

रहमत अली ने झोंपड़े के दरवाजे की सांकल बजाई. अपने बेटे को देखते ही अम्माजी ने उस को अंदर आने का इशारा किया. पुआल पर सो रहे जोड़े को देख कर रहमत अली चौंका, ‘‘कौन हैं ये दोनों?’’

‘‘परली तरफ से भटक कर आया जोड़ा है. रात को चली आंधी में ऊंट भटक गया. सरहद पर लगी बाड़ की तार उखड़ गई होगी.’’

बातचीत की आवाज से जोड़े की नींद खुल गई. दोनों उठ कर बैठ गए.

‘‘सलाम साहब. सलाम मेमसाहब.’’

‘‘सलाम.’’

‘‘यह पाकिस्तानी इलाका है. यह ढाणी मेरी है.’’

‘‘हम भटक कर इधर आ गए.

अब आप ही हमें कोई रास्ता बता दीजिए,’’ हरीश ने विनम्रतापूर्वक उस से कहा.

‘‘अब तो रात होने वाली है. कल सुबह आप को अपने साथ ले चलूंगा,’’ रहमत अली ने उसे आश्वासन देते हुए कहा.

‘‘ठीक है, मेहरबानी,’’ हरीश ने उम्मीद भरी आंखों से देख कर कहा.

रात को उन की अच्छी आवभगत हुई. सुबह अभी पौ भी नहीं फटी थी कि पाकिस्तानी रेंजरों का एक दस्ता ऊंटों पर सवारी करता ढाणी के समीप आ कर रुका. रहमत अली से कइयों का परिचय था. कई बार वे उस के आतिथ्य का आनंद ले चुके थे.

ऊंटों की हुंकार सुन कर रहमत अली के साथ परिवार के कई और लोगों की भी नींद खुल गई. आंखें मलता रहमत अली बाहर आया.

‘‘सलाम, हुजूर.’’

‘‘सलाम, रहमत अली. कैसे हो?’’

ऊंट से उतरते सुपरिंटेंडैंट रेंजर ने पूछा.

‘‘आप की दुआ से सब खैरियत है. बहुत दिनों बाद दीदार हुए आप के. क्या हालचाल हैं?’’

‘‘सब खैरियत है.’’

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सारे रेंजर ढाणी में चले आए. उन की आवभगत हुई, जलपान का इंतजाम हुआ, तभी अहाते में बंधे ऊंटों में हड़कंप सा मच गया. रहमत अली के ऊंटों में एक नया ऊंट आया था. उस अजनबी ऊंट को अपने रेवड़ में शामिल होना ऊंटों को शायद सहन नहीं हुआ था.

‘‘क्या हुआ?’’ सुपरिंटेंडैंट ने पूछा.

‘‘ऊंट शायद लड़ पड़े हैं.’’

‘‘कोई ऊंट किसी ऊंटनी पर आशिक हुआ होगा. उस का दूसरा आशिक उस से लड़ पड़ा होगा.’’

सब खिलखिला कर हंस पड़े. सब उठ कर ऊंटों के रेवड़ तक पहुंचे. एक ऊंट की पीठ पर कीमती काठी बंधी थी.

‘‘इतनी बढि़या काठी तो अमीरलोग या सैरसपाटा करने वाले सैलानियों के ऊंटों पर होती है. यह ऊंट किस का है?’’

रहमत अली हकबकाया, फिर संभल गया.

‘‘हुजूर, कल रात मेरा भतीजा आया था. उस को ऊंट की सवारी का शौक है. ऊंट मेरा है. काठी वह खुद लाया था. कराची में काम करता है.’’

‘‘ओह. अच्छा रहमत अली, खुदा हाफिज.’’

रेंजर ऊंटों पर सवार हुए और चले गए. रहमत अली और सब की जान में जान आई. अगर हरीश और मेमसाहब के बारे में पता चल जाता तो वे पकड़े जाते, साथ में पनाह देने के इलजाम में रहमत अली भी फंसता.

तब तक सब जाग चुके थे. रेंजर के बारे में पता चलने पर हरीश और जूलिया भी चिंता में पड़ गए.

‘‘मेरे पास पाकिस्तान का वीजा तो है लेकिन सब कागजात तो रिसोर्ट के कमरे में हैं,’’ जूलिया ने कहा.

‘‘मेमसाहब, रेंजर अब इलाके में गश्त पर हैं. दिन में बाहर निकलना खतरनाक है. आप को शाम ढलने पर बाहर ले जा सकते हैं,’’ हरीश ने कहा.

‘‘रात के अंधेरे में फिर रास्ता भटक गए तो?’’ हरीश ने घबरा कर पूछा.

‘‘तसल्ली रखो साहब, इलाके का चप्पाचप्पा मेरा पहचाना हुआ है.’’

 

शाम ढल गई. 2 ऊंट ढाणी से बाहर निकले. एक पर हरीश और मेमसाहब सवार थे, दूसरे पर रहमत अली. ऊंट भारतीय सीमा की दिशा में चल पड़े. शाम का धुंधलका अंधेरे में बदल चुका था. गरमी का अब कोई असर नहीं था. मौसम धीरेधीरे ठंडा होता जा रहा था. दोनों ऊंट अपने रास्ते पर चलते लगातार मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे.

‘‘सफर कितना बाकी है?’’ जूलिया ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘सिर्फ 1 घंटा और लगेगा,’’ रहमत अली ने कहा.

आंखों पर अंधेरे में भी दिख जाने वाली दूरबीन चढ़ाए पाक रेंजर चौकी के आसपास और भारतीय सीमा की तरफ नजर गड़ाए हुए थे.

‘‘सर, 2 ऊंट भारतीय सीमा की तरफ बढ़ रहे हैं,’’ एक सिपाही ने दूरबीन पर निगाह गड़ाए हुए कहा.

‘‘कौन हो सकते हैं?’’

‘‘पता नहीं, सर, एक ऊंट पर 2 सवार बैठे हैं, दूसरे पर केवल 1 सवार है.’’

‘‘वार्निंग के लिए फायर करो.’’

एक हवाई फायर हुआ. रहमत अली समझ गया. अब उस का देखा जाना खतरे से खाली नहीं था. उस ने बगैर एक क्षण गंवाए अपना ऊंट मोड़ लिया.

‘‘साहब, मैं अब वापस जाता हूं. मैं देख लिया गया तो मुश्किल में पड़ जाऊंगा. अब आप खुद आगे जाओ, खुदा हाफिज.’’

रहमत अली ने ऊंट को एड़ लगाई, ऊंट दौड़ चला.

‘‘अब क्या करें?’’ जूलिया ने सहमी आवाज में पूछा.

‘‘हौसला रखो,’’ हरीश ने कहा और ऊंट की पहले रस्सी खींची और फिर ढीली करते हुए उसे टहोका दिया. ऊंट सरपट रेत पर दौड़ पड़ा.

‘‘सर, एक ऊंट वापस दौड़ गया, दूसरा भारतीय सीमा की तरफ दौड़ रहा है,’’ निगहबानी करने वाले सिपाही ने अपने अधिकारी से कहा.

‘‘वापस जाने वाला सवार और ऊंट तो काबू में नहीं आ सकते, कोई लोकल ही होगा. तुम आगे जा रहे ऊंट और उस पर सवार जोड़े को काबू करो.’’

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पहले एक हवाई फायर हुआ. फिर जमीनी फायरों का सिलसिला शुरू हुआ. उस के बाद कई रेंजर अपनेअपने ऊंटों पर सवार हो उस तरफ लपक पड़े.

चांद आसमान पर चढ़ रहा था. रेत का समंदर चांदनी में ऐसे चमक रहा था जैसे चांदी की चादर बिछी हो. 2 सवारों को रात की पिछली पहर से अपनी पीठ पर ढो रहे ऊंट को जैसे खतरे की गंभीरता का एहसास हो चुका था, वह तेजी से सरपट दौड़ रहा था.

‘‘साहब, कमाल की बात है?’’ एक पाक रेंजर ने अपने साथ दौड़ रहे ऊंट पर सवार अफसर से हैरत में कहा.

‘‘क्या?’’

‘‘भाग रहा ऊंट दोदो सवार उठाए हुए है, लेकिन फिर भी काबू में नहीं आ रहा. हम अकेले सवार हैं लेकिन हमारे ऊंट की स्पीड इतनी नहीं है.’’

‘‘अरे भाई, मौत का डर हर किसी को कुछ ज्यादा ताकत और जोश दिला देता है.’’

भारतीय सीमा में बीती रात को ढह गई तार की बाड़ को भारतीय फौजी ठीक कर रहे थे. उन्होंने हवाई फायरों और फिर जमीनी फायरों की लगातार आवाजें सुनीं. उन्होंने आंखों पर रात के अंधेरे में दिखने वाली दूरबीनें लगा कर देखा. एक ऊंट पर 2 सवार सामने से आ रहे थे.

फौजियों को ध्यान आया कि कल रात से ऊंट पर सवार एक टूरिस्ट जोड़ा लापता था. उन को सारा मामला समझ में आ गया. धीरेधीरे पाक रेंजर पीछा करते आ रहे थे.

भारतीय फौजियों ने फौरन अपना मोरचा संभाल लिया. ऊंट पर सवार जोड़े ने जैसे ही सीमा को पार कर भारतीय सीमा में प्रवेश किया, उन्होंने पहले हवाई फायर किया, फिर सर्चलाइट का प्रकाश फेंका.

पाक रेंजर वापस लौट गए. हरीश और जूलिया देर रात को सेना  की मदद से सुरक्षित अपने रिसोर्ट में पहुंच गए. अपने कमरे में पहुंच उन्होंने राहत की सांस ली. पर तब तक रेत के इस समंदर में सैर करतेकरते जूलिया हरीश को अपना दिल दे चुकी थी. हरीश को भी जूलिया भा गई थी. जब दोनों जयपुर लौटे, हरीश ने अपने घर में दिल की बात कह दी. हरीश के मातापिता सब समझ गए. जूलिया मार्टिन का भी पूरा परिवार भारत आया. दोनों की शादी बहुत धूमधाम से हुई.

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Serial Story: रेत का समंदर (भाग-2)

दृश्य रोमांटिक था. जूलिया ऊंट वाले की आंखों की चमक से उस की शरारत को समझ गई और मुसकराई. हरीश भी मुसकराया. दोनों एक ही ऊंट पर सवार हो गए. ऊंट वाला ऊंट की रस्सी थामे आगेआगे चला. ऊंट हिचकोले खाता, दोनों के शरीर आपस में टकराते, पहले थोड़ा संकोच हुआ फिर दोनों को मजा आने लगा.

ऊंट वाला तजरबेकार था. जोड़ों का इस तरह मौजमस्ती करना और अठखेलियां करना उस का देखाजाना था.

‘‘साहब, ऊंट इस इलाके को पहचानता है. मैं एक जगह बैठ जाता हूं, यह आप को घुमाता रहेगा. इस को बिठाना हो तो इस के कंधे को पांव से हलका टहोका देना. यह बैठ जाएगा. खड़ा करना हो तब भी ऐसा ही करना.’’

ऊंट वाला रस्सी जूलिया को थमा कर एक तरफ चला गया. ऊंट गोलाकार घूमता हुआ एक दायरे से दूसरे दायरे में चलता रहा. दूरदूर तक रेत किसी समंदर के पानी की तरह फैला हुआ था. टिब्बों के पीछे जोड़े एकदूसरे में खोए हुए थे.

हिचकोले लगने से जूलिया और हरीश के शरीर आपस में टकराते, पीछे हटते फिर टकराते. जूलिया एकाएक उचकी और पलट कर सीधी हो हरीश की तरफ मुंह कर के बैठ गई. अब दोनों आमनेसामने थे. सीने से सीना टकरा रहा था. थोड़ी देर ऐसा चला, फिर जूलिया ने बांहें फैला हरीश को अपनी बांहों में भर लिया. हरीश ने ऊंट को पांव का टहोका दिया, वह बैठ गया.

दोनों नीचे उतर रेत के नरम बिस्तर पर जा लेटे. दोनों के हाथ एकदूसरे की तरफ बढ़े, आंखें एकदूसरे में कुछ ढूंढ़ रही थीं दोनों दीनदुनिया से बेखबर धीरेधीरे एकदूसरे में समाते गए.

आसमान में सीधा दिखता चांद धीरेधीरे पश्चिम दिशा की तरफ उतरने लगा. रात गहरी और ठंडी होती गई. देह की उत्तेजना थम चुकी थी. दोनों एकदूसरे की बांहों में समाए मीठी नींद के आगोश में थे. ऊंट भी सो गया था.

शांत शीतल रात के आखिरी पहर में हवा अचानक तेज हो गई. मीठी नींद का आनंद लेते जोड़े अचकचा कर उठ बैठे. सब अपनेअपने कपड़े संभालते ऊंटों पर सवार होने लगे. अनुभवी ऊंट वाले मौसम का रुख समझ गए. रेगिस्तानी आंधी आ रही थी. कइयों ने अपनेअपने ऊंट बिठा दिए और सवारियों को उन के पीछे आंधी थम जाने तक ओट में बैठे रहने को कहा.

जूलिया और हरीश के ऊंट वाले का कहीं पता नहीं था. आंधी अभी बहुत तेज नहीं हुई थी.

‘‘हम ऊंट पर सवार हो कर चलते हैं. गोल चक्कर काट लेते हैं. ऊंट वाला शायद इधरउधर ही हो,’’ जूलिया ने कहा.

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ऊंट धीरेधीरे दायरे में चलने लगा. तभी आंधी एकदम तेज हो गई. घबरा कर ऊंट सरपट दौड़ पड़ा. हरीश ने टहोके पर टहोके दिए. लेकिन थमने के बजाय वह तो तेजी से दौड़ने लगा. हरीश के पीछे बैठी जूलिया ने उस को पीछे से बांहों में कस कर जकड़ लिया.

आंधी का वेग बढ़ता गया. सुहानी चांदनी रात रेतीली अंधियारी रात में बदल गई. तेज अंधड़ का यह भयावना रूप जूलिया को बेसब्र बना रहा था.

वह ऊंची आवाज में लगातार बोले जा रही थी, ‘‘ऊंट को बिठाने की कोशिश करो.’’

हरीश ने रस्सी  कस कर खींची, टहोका दिया. ऊंट धीरेधीरे थमने लगा. सामने एक जंगली झाड़ दिखा. ऊंट वहीं रुक गया. फिर से टहोका देने पर वहीं बैठ गया. दोनों उतर गए. आंधी शांत हो रही थी.

रात बीत चुकी थी. मौसम साफ था. दोनों उठे और ऊंट पर सवार हो गए. ऊंट खड़ा हो चलने लगा. दोनों ने बेचैन नजरों से इधरउधर देखा. हर तरफ जैसे रेत का समंदर फैला था. कहींकहीं रेतीला सपाट मैदान था तो कहीं ऊंचेनीचे रेत के टिब्बे. कहीं भी कोई आबादी, जानवर, आदमी या पेड़पौधे कुछ भी नहीं. सब तरफ रेत ही रेत.

‘‘हम रिसोर्ट से किस दिशा में हैं?’’ जूलिया ने भरसक अपनी घबराहट को काबू में रखते हुए कहा.

जूलिया के इस सवाल का जवाब हरीश क्या देता. उस ने ऊंट की रस्सी को एक बार खींचा और ढीला छोड़ दिया. ऊंट हिचकोले देता धीरेधीरे चल पड़ा. हालात समझ से बाहर थे.

परिस्थिति जो कराए, यही भावना दोनों के भीतर भर रही थी. ऊंट जाने कहां किस लक्ष्य की ओर चल रहा था. दोनों चुपचाप बैठे चारों तरफ देख रहे थे. प्यास से गला सूख रहा था, भूख भी लग आई थी. रात के रोमांस, उमंग और उत्तेजना का अब कहीं कोई वजूद नहीं था, मानो नींद में कोई सुंदर सपना देख लिया हो.

‘‘सुना है इस इलाके के साथ पाकिस्तान का इलाका लगा हुआ है,’’ काफी देर बाद खामोशी तोड़ते हुए जूलिया ने कहा.

‘‘हां, साथ का इलाका पाकिस्तान का है लेकिन सीमा पर कांटेदार बाड़ है.’’

‘‘रेत के तूफान में बाड़ उजड़ भी तो सकती है,’’ जूलिया की आवाज में डर छिपा था.

‘‘आप का मतलब है हम कहीं भटक कर पाकिस्तान की सीमा में तो प्रवेश नहीं कर गए?’’ हरीश चौंका.

‘‘मेरा अंदाजा तो यही है. ऊंट को चलतेचलते 3-4 घंटे हो चुके हैं. अगर हम रिसोर्ट के करीब होते या भारतीय सीमा में होते तो अब तक कहीं न कहीं तो पहुंच गए होते,’’ जूलिया ने बहुत इत्मीनान से परिस्थिति को समझने की कोशिश की.

‘‘थोड़ा आगे चलो, फिर ऊंट की दिशा मोड़ते हैं. पाकिस्तान भारत के पश्चिम में है. सूरज हमारे पूर्व से अब सीधा आसमान में हमारे सिर के ऊपर है. इस हिसाब से हम जैसलमेर के उस टूरिस्ट रिसोर्ट से पश्चिम में हैं. पाकिस्तान में न भी हों, तब भी पश्चिम दिशा में काफी दूर चले आए हैं,’’ अब जैसे हरीश की चेतना भी जगी.

ऊंट आगे बढ़ता रहा.

‘‘प्यास से मेरा गला सूख रहा है,’’ हरीश ने बर्दाश्त न कर पाने की दशा में कह ही दिया.

‘‘अपनी उंगली से अंगूठी उतार कर चूस लो,’’ जूलिया को व्यावहारिक समझ अधिक थी.

हरीश ने ऐसा ही किया. जूलिया भी अपनी उंगली मुंह में डाल कर चूसने लगी. थूक और लार गले की खुश्की को दूर करने लगे. तभी कुछ देख कर हरीश चौंका और जोर से बोला, ‘‘सामने कोई गांव है.’’

कुछ नजदीक पहुंचने पर मिट्टी की कच्ची दीवारों और बांस व पेड़ की डालियों से बने झोपड़े दिखने लगे. वह गांव पाकिस्तानी था या भारतीय, अभी यह समझ में नहीं आ रहा था. सीमा के दोनों तरफ के गांव, खासकर रेगिस्तानी इलाके के गांव एकसमान ही हैं. आखिर भारत और पाकिस्तान कभी एक देश ही तो थे.

‘‘यह गांव भारतीय है या पाकिस्तानी?’’ जूलिया ने पूछा.

‘‘रेगिस्तानी इलाके में जहांतहां ऐसे कुछेक झोंपड़े बने होते हैं, इन को ढाणी कहा जाता है, गांव नहीं. ढाणी भारतीय इलाके में हो या पाकिस्तानी इलाके में, एक समान ही दिखते हैं. यहां के लोगों का पहनावा, खानपान और बोली सब एक जैसी होती है.’’

‘‘अगर यह ढाणी पाकिस्तान में हुई तो?’’

‘‘देखा जाएगा. प्यास से गला खुश्क है, भूख से अंतडि़यां सूख रही हैं. ऊंट भी प्यासा है, अब वहीं चलते हैं.’’

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ऊंट ढाणी के करीब पहुंचा. आसमान पर चढ़ता सूरज आग बरसा रहा था. दोपहर अभी चढ़ी नहीं थी लेकिन गरमी से धरती और आसमान सब तप रहा था.

ढाणी में मुश्किल से 10-12 झोपडि़यां थीं. सब के दरवाजे बंद थे. एक बड़े एहाते में एक बड़ा पोखर था जिस में जमा पानी का रंग लगभग हरा था. उस के किनारों पर काई जमा थी.

ऊंट पानी देखते ही मचला. हरीश ने टहोका दिया. ऊंट बैठ गया. दोनों के उतरते ही ऊंट पानी के पोखर की तरफ लपका और सड़ापसड़ाप की आवाज के साथ पानी गटकने लगा.

प्यास से गला तो जूलिया और हरीश का भी सूख रहा था, लेकिन दोनों ऊंट की तरह पोखर का पुराना, काई वाला पानी कैसे पीते?

दोनों ने चारों तरफ नजर दौड़ाई. पोखर के चारों तरफ झोंपडि़यों के दरवाजे बंद थे. किस का दरवाजा खटखटाएं. तभी सामने की झोंपड़ी का दरवाजा खुला. एक वृद्धा ने, जिस ने झालरचुनटदार घाघरा व चोली पहन रखी थी और सिर पर दुपट्टा डाल रखा था, दरवाजे से बाहर झांका.

एक वृद्धा को यों देख हरीश उस के घर के दरवाजे के सामने गया और बोला, ‘‘अम्माजी, पांय लागूं.’’

‘‘जीते रहो, बेटा. यहां कैसे आए?’’

‘‘आंधी में ऊंट रास्ता भटक कर इधर चला आया.’’

‘‘कहां से आए हो?’’

‘‘जैसलमेर से.’’

‘‘हाय रब्बा, यह तो मुन्ना बाओ का इलाका है, पाकिस्तान है. यहां रेंजरों ने तुम्हें देख लिया तो गोली मार देंगे. जल्दी से अंदर चले आओ.’’

जूलिया मार्टिन का अंदाजा सही था. रेत के तूफान में ऊंट रास्ता भटक कर पाकिस्तान में प्रवेश कर गया था. अब सामने हर पल खतरा दिख रहा था.

‘‘ऊंट को दरवाजे के खंभे के साथ बांध दो और जल्दी से अंदर आ जाओ,’’ अनजान वृद्धा ने चाव और अपनेपन से  कहा.

दोनों ऐसा ही कर जल्दी से झोंपड़े के अंदर चले गए. मिट्टी या गारे की दीवारों से बने उस झोंपड़े में गरमी के मौसम में भी ठंडक थी. मटके का पानी बर्फ के समान शीतल था. गड़वा के बाद गड़वा, लगातार कई गड़वे पानी दोनों ने पिया. फिर अम्माजी ने उन को गुड़ का मीठा ठंडा शरबत पीने को दिया. दोनों फर्श पर पड़े फूस के ढेर पर जा लेटे. अम्माजी बाहर जा कर ऊंट को पुआल और चारा डाल आईं.

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Serial Story: रेत का समंदर (भाग-1)

हवामहल से बाहर आ कर जूलिया मार्टिन ने इधरउधर देखा, थोड़ी दूर पर आटोरिकशा स्टैंड था, जहां पर काले रंग पर पीली पट्टी वाले कई आटोरिकशा कतार में खड़े थे. सधे कदमों से चलती वह वहां तक पहुंची.

सलवारकमीज पहने और कंधे पर खादी का झोला लटकाए एक अंगरेज मेमसाहब को अपने आटो के समीप आते देख जींस और टीशर्ट पहने दरम्यानी कदकाठी और चुस्त शरीर वाला चालक अपने आटो से बाहर आ गया.

‘‘फोर्ट औफ आमेर,’’ जूलिया ने केवल इतना कहा.

हामी में सिर हिलाते चालक ने पिछली सीट पर बैठने का इशारा किया. सवारी के बैठते ही वह आटो ले कर चल पड़ा.

जूलिया मार्टिन इंगलैंड से भारत घूमने के लिए आई थी. कई शहरों और दर्शनीय स्थलों से घूमघाम कर अब वह जयपुर और राजस्थान के दूसरे दर्शनीय स्थलों को देखने आई थी.

आटोरिकशा को आमेर के किले के बाहर इंतजार करने को कह कर वह किला देखने अंदर चली गई. 2 घंटे बाद बाहर आई तो उस ने देखा आटो चालक पिछली सीट पर अधलेटा सो रहा था. एक बार उस ने सोचा कि उस को झिंझोड़ कर उठा दे. फिर यह सोच कर कि नींद से जगाना ठीक नहीं, वह चालक वाली सीट पर बैठ कर इंतजार करने लगी. और उसे पता भी नहीं चला कि कब वह ऊंघतेऊंघते सो गई.

किले से बाहर आते पर्यटकों ने इस अजीब नजारे को हैरत से देखा. यात्री तो चालक सीट पर बैठा हैंडल पर सिर रखे सो रहा था जबकि चालक पिछली सीट पर अधलेटा सो रहा था.

पहले कौन जागा पता नहीं. घंटेभर बाद दोनों की नींद टूटी. गरम दोपहरी, हलकी-हलकी हवा देती शाम में बदल गई थी.

‘‘मेमसाहब,’’ थोड़ा सकुचाते हुए आटो चालक यानी हरीश बोला.

‘‘डोंट माइंड, आई वाज आल्सो टायर्ड.’’

टूटीफूटी अंगरेजी बोलने और काम  लायक समझने वाला हरीश मुसकराया. जूलिया मार्टिन भी मुसकराई. वह हंसते हुए पिछली सीट पर आ बैठी. आटो स्टार्ट कर हरीश ने सिर घुमा कर उस की तरफ सवालिया लहजे में देखा.

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‘‘बैक टू जयपुर.’’

आटोरिकशा के जयपुर पहुंचतेपहुंचते शाम का अंधेरा छा गया था. उस के बताए लौज के बाहर आटो रोक हरीश ने उस की तरफ देखा.

‘‘कितना चार्ज हुआ?’’

हरीश हिसाब लगाने लगा. आनेजाने का किराया उतना नहीं था जितना समय का चार्ज था. लेकिन वह खुद भी तो झपकी लगतेलगते सो गया था.

‘‘मेमसाहब, जो ठीक समझें, दे दें.’’

इस सादगी भरे जवाब में जूलिया मुसकराई. अभी तक उस का वास्ता ज्यादा पैसा ऐंठने वाले आटो चालकों और दुकानदारों से पड़ा था. उस ने 500-500 रुपए के 2 नोट निकाले और उस की तरफ बढ़ाए. सकुचाते हुए हरीश ने एक नोट थाम लिया और कहा, ‘‘इतना काफी है.’’

हरीश के व्यवहार ने जूलिया मार्टिन को बहुत ही प्रभावित किया.

‘‘कल सुबह यहां आ जाना, 10 बजे,’’ कहती हुई जूलिया मार्टिन लौज के अंदर चली गई. हरीश भी आटो आगे बढ़ा ले चला. अब उस का दिल और अधिक दिहाड़ी बनाने का नहीं था. वह सीधे अपने घर पहुंचा.

उस की मां ने उस को जल्दी आया देख कर पूछा, ‘‘आज जल्दी आ गया?’’

‘‘आज एक अंगरेज मेमसाहब मिल गई थी. उस से सारे दिन की दिहाड़ी बन गई,’’ फिर उस ने सारा वाकेआ बताया. मां के साथ उस के वृद्ध पिता और छोटी बहन भी खिलखिला कर हंस पड़ी.

अगले दिन हरीश 10 बजे लौज के बाहर आटोरिकशा ले कर जा पहुंचा. जूलिया जैसे उसी का इंतजार कर रही थी. वह लपकती सी बाहर चली आई.

‘‘आज कहां?’’ हरीश ने पूछा.

‘‘सारा जयपुर.’’

‘‘ठीक है. तेल का खर्चा आप का, मेरी दिहाड़ी 500 रुपए.’’

‘‘ऐसा हिसाब हमारे यहां नहीं होता.’’

‘‘तब कैसा होता है?’’

‘‘वहां तो काफी महंगा पड़ता है. चालक और गाड़ी का किराया अलग, तेल व मरम्मत खर्च अलग.’’

‘‘मैडम, मैं तो सोचता हूं कि भारत के बनिए ही पैसा ऐंठने में चालाक हैं, अब आप के हिसाब से तो आप अंगरेज ज्यादा चालाक हैं.’’

‘‘बातें बढि़या करते हो. आटो चलाओ, सारा दिन तुम्हारी बातें सुनूंगी,’’ जूलिया मार्टिन ने हंसते हुए कहा.

हरीश भी हंसा. आटो पूरे दिन जयपुर के छोटेबड़े बाजार, हर टूरिस्ट स्पौट पर घूमता रहा. सुबह हरीश ने टंकी फुल भरवा ली थी. शाम को जूलिया ने दोबारा टंकी फुल भरवा दी और भुगतान कर दिया.

दिनभर उन के बीच हलकाफुलका हंसीमजाक होता रहा. दोनों ने साथसाथ कभी ढाबे में, कभी होटल में खायापिया. उस के इसरार पर हरीश उस के साथ टूरिस्ट स्पौट भी देखने गया. हरीश उस शाम भी जल्दी घर लौट आया. अगले दिन जयपुर के बाहरी इलाकों वाले टूरिस्ट स्पौट्स देखने का कार्यक्रम बना. 3-4 दिनों तक यही सिलसिला चला.

‘‘हरीश, वह मेमसाहब तेरे पीछे पड़ गई है क्या?’’ मां ने पूछा.

‘‘पता नहीं, एक सवारी है. जहां वह कहती है, उसे घुमा देता हूं.’’

‘‘शहर में और भी तो आटोरिकशा वाले हैं?’’

हरीश खामोश रहा.

अगले दिन जूलिया मार्टिन ने उस को अपने लौज के कमरे में बुलाया.

‘‘आप के परिवार में कौनकौन हैं?’’

‘‘मेरे मातापिता हैं. छोटी बहन है. बात क्या है?’’

‘‘मैं समाज विज्ञान के एक टौपिक पर शोध कर रही हूं, जिस का ताल्लुक भारतीय समाज से है. इसी सिलसिले में भारत घूमने आई हूं. तथ्य इकट्ठे करने के लिए आप के परिवार से मिलना चाहती हूं.’’

हरीश को बात समझ में आ गई. वह जूलिया को अपने घर ले गया. एक अंगरेज युवती को पंजाबी सलवारकमीज पहने और चुन्नी डाले देख हरीश की

मां बड़ी हैरान हुईं. उन को यह जान कर हैरानी हुई कि वह एक रिसर्च स्कौलर थी.

भारतीय परिवार कैसे होते हैं? रहते कैसे हैं? हालांकि उन की जीवनशैली पर सैकड़ों शोध पहले हो चुके थे लेकिन अब जूलिया भी इस विषय पर रिसर्च कर रही थी.

जूलिया का हरीश के घर आनाजाना शुरू हो गया. हरीश के साथ उस का जयपुर की गलियों, महल्लों में घूमनाफिरना भी होने लगा.

‘‘आप मेरे साथ राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में घूमने चलोगे?’’ एक शाम जूलिया ने पूछा.

‘‘जरूर चलूंगा,’’ हरीश कह तो आया, लेकिन घर में मां ने पूछा, ‘‘तेरी दिहाड़ी का क्या होगा?’’

पहले तो हरीश अचकचाया, फिर जवाब दिया, ‘‘मेमसाहब देंगी.’’

‘‘घुमानेफिराने के लिए गाइड होते हैं?’’

‘‘वह मुझे गाइड ही बनाना चाहती है.’’

‘‘भैया, गाइड बनतेबनते कुछ और न बन जाना,’’ छोटी बहन शरारती लहजे  में बोली.

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टूरिस्ट बस ने जूलिया और उस के गाइड हरीश को जैसलमेर के रेगिस्तानी इलाके में एक टूरिस्ट रिसौर्ट के पास उतार दिया. वहां का प्रति यात्री किराया हरीश को हैरानपरेशान कर देने वाला था, लेकिन मेमसाहब के लिए यह सामान्य बात थी.

मौजमस्ती के कार्यक्रमों में ऊंटों पर रेगिस्तान के सुदूरवर्ती इलाकों का भ्रमण और खानापीना, यही वहां का मुख्य आकर्षण था.

गोरी मेमों को ऊंटों पर बिठा कर चांद की रोशनी में रेत के विशाल मैदान दिखाना, जो किसी समंदर के समान दिखते थे, अलगअलग दिशाओं में सैर करवाना, उन्हें राजस्थानी लोकगीत व नृत्य सुनाना, दिखाना वहां के ऊंट वाले और स्थानीय निवासी बड़े उत्साह से करते. पर्यटक भी शांत व ठंडी हवा में टिब्बों की आड़ में मौजमस्ती करने का अवसर पा कर विशेष उत्साहित होते थे.

‘‘आप इस इलाके में कभी आए हो?’’

‘‘नहीं, मैं ने सारा राजस्थान नहीं देखा,’’ हरीश ने कहा.

‘‘मेमसाहब, आप और साहब अलगअलग ऊंट ले कर क्या करेंगे? एक ही ऊंट काफी है,’’ किराए पर ऊंट देने वाले ने कहा.

‘‘एक ऊंट पर दोनों कैसे बैठेंगे?’’

‘‘वह देखिए, सामने कई जोड़े एक ही ऊंट पर बैठे चले जा रहे हैं,’’ रेत के विस्तार में हौलेहौले जा रहे ऊंटों पर सवार जोड़ों की तरफ इशारा करते हुए ऊंट वाले ने कहा.

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Short Story: हिम्मत वाली लड़की

‘‘अरे राशिद, आज तो चांद जमीन पर उतर आया है,’’ मीना को सफेद कपड़ों में देख कर आफताब ने फबती कसी.

मीना सिर झुका कर आगे बढ़ गई. उस पर फबतियां कसना और इस प्रकार से छेड़ना, आफताब और उस के साथियों का रोज का काम हो गया था. लेकिन मीना सिर झुका कर उन के सामने से यों ही निकल जाया करती. उसे समझ नहीं आता कि वह क्या करे? आफताब के साथ हमेशा 5-6 मुस्टंडे होते, जिन्हें देख कर मीना मन ही मन घबरा जाती थी.

मीना जब सुबह 7 बजे ट्यूशन पढ़ने जाती तो आफताब उसे अपने साथियों के साथ वहीं खड़ा मिलता और जब वह 8 बजे वापस आती तब भी आफताब और उस के मुस्टंडे दोस्त वहीं खड़े मिलते. दिनोदिन आफताब की हरकतें बढ़ती ही जा रही थीं.

एक दिन हिम्मत कर के मीना ने आफताब की शिकायत अपने पापा से की. मीना की शिकायत सुन कर उस के पापा खुद उसे ट्यूशन छोड़ने जाने लगे. उस के पापा को इन गुंडों की पुलिस में शिकायत करने या उन से उलझने के बजाय यही रास्ता बेहतर लगा.

एक दिन मीना के पापा को सवेरे कहीं जाना था इसलिए उन्होंने उस के छोटे भाई मोहन को साथ भेज दिया. जैसे ही मीना और मोहन आफताब की आवारा टोली के सामने से गुजरे तो आफताब ने फबती कसी, ‘‘अरे, यार अब्दुल्ला, आज तो बेगम साले साहब को साथ ले कर आई हैं.’’

यह सुन कर मोहन का खून खौल गया. वह आफताब और उस के साथियों से भिड़ गया, पर वह अकेला 5 गुंडों से कैसे लड़ता. उन्होंने उस की जम कर पिटाई कर दी. महल्ले वाले भी चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे, क्योंकि कोई भी आफताब की आवारा मित्रमंडली से पंगा नहीं लेना चाहता था.

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शाम को जब मीना के पापा को इस घटना का पता चला तो उन्होंने भी चुप रहना ही बेहतर समझा. मोहन ने अपने पापा से कहा, ‘‘पापा, यह जो हमारी बदनामी और बेइज्जती हुई है इस की वजह मीना दीदी हैं. आप इन की ट्यूशन छुड़वा दीजिए.’’

मोहन के मुंह से यह बात सुन मीना हतप्रभ रह गई. उसे यह बात चुभ गई कि इस बेइज्जती की वजह वह खुद है. उसे उन गुंडों के हाथों भाई के पिटने का बहुत दुख था. लेकिन भाई के मुंह से ऐसी बातें सुन कर उस का कलेजा धक रह गया. वह सोच में पड़ गई कि वह क्या करे? सोचतेसोचते उसे लगा कि जैसे उस में हिम्मत आती जा रही है. सो, उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब उसे क्या करना है? उस ने उन आवारा टोली से निबटने की सारी तैयारी कर ली.

अगले दिन सवेरे अकेले ही मीना ट्यूशन के लिए निकली. उस ने न अपने भाई को साथ लिया और न ही पापा को. जैसे ही मीना आफताब की आवरा टोली के सामने से गुजरी उन्होंने अपनी आदत के अनुसार फबती कसते हुए कहा, ‘‘अरे, आज तो लाल गुलाब अंगारे बरसाता हुआ आ रहा है.’’

इतना सुनते ही मीना ने पूरी ताकत से एक तमाचा आफताब के गाल पर जड़ दिया. इस झन्नाटेदार तमाचे से आफताब के होश उड़ गए. उस के साथी भी एकाएक घटी इस घटना से ठगे रह गए. इस से पहले कि आफताब संभलता मीना ने दूसरा तमाचा उस की कनपटी पर जड़ दिया. तमाचा खा कर आफताब हक्काबक्का रह गया. वह उस पर हाथ उठाने ही वाला था कि तभी पास खड़े एक आदमी ने उस का हाथ पकड़ते हुए रोबीली आवाज में कहा, ‘‘खबरदार, अगर लड़की पर हाथ उठाया.’’

यह देख आफताब के साथी वहां से भागने की तैयारी करने लगे, तभी उन सभी को उस आदमी के इशारे पर उस के साथियों ने दबोच लिया.

आफताब इन लोगों से जोरआजमाइश करना चाहता था. तभी वह आदमी बोला, ‘‘अगर तुम में से किसी ने भी जोरआजमाइश करने की कोशिश की तो तुम सब की हवालात में खबर लूंगा. इस समय तुम सब पुलिस की गिरफ्त में हो और मैं हूं इंस्पेक्टर जतिन.’’

यह सुन कर उन आवारा लड़कों की पांव तले जमीन खिसक गई. उन के हाथपैर ढीले पड़ गए. इंस्पेक्टर जतिन ने मोबाइल से फोन कर मोड़ पर जीप लिए खड़े ड्राइवर को बुला लिया. फिर उन्हें पुलिस जीप में बैठा कर थाने लाया गया.

तब तक मीना के मम्मीपापा और भाई भी थाने पहुंच गए. इंस्पेक्टर जतिन उन्हें वहां ले गए जहां मीना अपनी सहेली सरिता के साथ बैठी हंसहंस कर बातें करती हुई नाश्ता कर रही थी.

इस से पहले कि मीना के मम्मीपापा उस से कुछ पूछते, इंस्पेक्टर जतिन खुद ही बोल पड़े, ‘‘देवेश बाबू, इस के पीछे मीना की हिम्मत और समझदारी है. कल मीना ने सरिता को फोन पर सारी घटना बताई. तब मैं ने मीना को यहां बुला कर योजना बनाई और बस, आफताब की आवारा टोली पकड़ में आ गई.

‘‘देवेश बाबू, एक बात मैं जरूर कहना चाहूंगा कि इस प्रकार के मामलों में कभी चुप नहीं बैठना चाहिए. इस की शिकायत आप को पहले ही दिन थाने में करनी चाहिए थी. लेकिन आप तो मोहन की पिटाई के बाद भी बुजदिल बने खामोश बैठे रहे. तभी तो इन गुंडों और समाज विरोधी तत्त्वों की हिम्मत बढ़ती है.’’

यह सुन कर मीना के मम्मीपापा को अफसोस हुआ. मोहन धीरे से बोला, ‘‘अंकल, सौरी.’’

‘‘मोहन बेटा, तुम भी उस दिन झगड़े के बाद सीधे पुलिस थाने आ जाते तो हम तुरंत कार्यवाही करते. पुलिस तो होती ही जनता की सुरक्षा के लिए है. उसे अपना मित्र समझना चाहिए.’’

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इंस्पेक्टर जतिन की बातें सुन कर मीना के मम्मीपापा व भाई की उन की आंखें खुल गईं. वे मीना को ले कर घर आ गए. इस हिम्मतपूर्ण कार्य से मीना का मानसम्मान सब की नजरों में बढ़ गया. लोग कहते, ‘‘देखो भई, यही है वह हिम्मत वाली लड़की जिस ने गुंडों की पिटाई की.’’

अब मीना को छेड़ना तो दूर, आवारा लड़के उसे देख कर भाग खड़े होते. मीना के हौसले की चर्चा सारे शहर में थी अब वह सब के लिए एक उदाहरण बन गई थी.

दो बहनें: क्या हुआ शीला और प्रीति के बीच?

Serial Story: दो बहनें (भाग-3)

‘‘तुम इतनी घबरा क्यों रही हो? तुम कांप रही थीं, इसलिए मैं ने तुम्हें पकड़ा था,’’ सिड बोला.

‘सिड, वह पहले ही तुम पर शक करती है, अब तो बात और भी बिगड़ जाएगी,’ वह बुदबुदाई, ‘क्या शीला कहीं से देख रही है?’

‘‘पार्टी कैंसिल करनी पड़ेगी, सिड. मेरा मन नहीं है,’’ प्रीति अब शीला की बात से डर रही थी. कहीं वह सचमुच न आ जाए. कहीं रहस्य खुल न जाए.

साल का आखिरी दिन था. शाम के 7 बजे थे, फिर भी प्रीति ने सभी नौकरों को छुट्टी दे दी थी. पीछे मंद स्वर में म्यूजिक औन था. सिड किचन काउंटर के बगल में एक ऊंचे स्टूल पर बैठा मार्टीनी की छोटीछोटी चुस्कियां ले रहा था और पिछले 15 मिनटों से प्रीति की किचन में आगेपीछे चलने की कदमताल सुन रहा था. लेकिन उस की नजरें बाहर फाटक पर टिकी हुई थीं. प्रीति घड़ीघड़ी रुकती, आह भरती और उस के कंधे पर अपना सिर रख देती. सिड तब हलके से उस का सिर थपथपाता, दिलासा देता.

‘‘ओह, कितना अनप्लेजेंट लग रहा है,’’ वह कहती, ‘‘उसे हमारे मजे वाले दिन को खराब कर के क्या मिला? हाऊ सैल्फिश.’’

सिड की समझ में नहीं आ रहा था कि प्रीति को हुआ क्या है?

‘‘तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं, बेबी. ऊपर रखा है, बैडरूम में,’’ कह कर सिड ने उस का माथा चूम लिया.

प्रीति अपनी धुन में बोले जा रही थी, ‘‘फिर भी, मेरा 16वां जन्मदिन ही बैस्ट था. शुरू से अंत तक शीला का प्लान किया हुआ.’’

घड़ी ने 8 बजे का घंटा बजाया और उस ने सोचा, ‘मुझे नहीं लगता कि अब वह आएगी.’

‘‘चलो, किसी की नई साल की पार्टी में ही चलते हैं,’’ कह कर वह ऊपर कपड़े बदलने चली गई. कमरे में जब उसे ज्यादा ठंड महसूस हुई, उसे लगा कि सामने वाली खिड़की खुली है. सिड की लापरवाही पर सिर हिलाते हुए वह उसे बंद करने के लिए बढ़ी तो देखा कि खिड़की बंद थी. इधर उस के नथुने फड़फड़ाने लगे.

‘यह क्या? शैनल नंबर फाइव, तो यह था मेरा सरप्राइज?’

वह इसी विचार में डूबी हुई थी जब उस की नजर सामने रखी आरामकुरसी पर पड़ी. शीला उस में धंस के बैठी  सिगरेट फूंक रही थी और प्रीति को देख कर मुसकरा रही थी.

‘‘मैं ने सुना, तुम बता रही थीं सिड को अपने 16वें जन्मदिन के बारे में. तुम्हें याद रहा. दैट वाज स्वीट.’’

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प्रीति उसे फटी आंखों से देख रही थी, ‘‘मैं ने तुम्हें अंदर आते हुए नहीं देखा. तुम अंदर कब आईं?’’

‘‘काफी देर हो गई आए हुए. आंख भी लग गई थी. जगी तब जब तुम ने नौकरों को दफा करना शुरू किया.’’

सिगरेट का धुआं हवा में सांप की भांति उठ रहा था, ‘‘ओह यस, इट इज योर बर्थडे टुडे. तुम जियो हजारों साल साल के दिन हों पचास हजार.’’

‘‘यह तुम किस से बातें कर रही हो, डार्लिंग?’’ आवाज सुन कर सिड भी आ गया. शीला को देखते ही उस का चेहरा तमतमा उठा, ‘‘तुम?’’

‘‘क्यों? चौंक गए.’’

सिड कुछ बुदबुदा रहा था, मगर आवाज गले में फंस सी गई थी.

शीला का चेहरा भी कुछ पीला सा हो गया था.

‘‘सिड, तुम ने मुझे मारना क्यों चाहा?’’ शीला बोली, ‘‘मैं ने तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा था.’’

‘‘सिड ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि मैं चुपचाप खड़े हो कर तुम्हारी यह बकवास सुन रही हूं. तुम को अपने सब से प्यारे पति से ऐसे बोलने दे रही हूं,’’ शीला पर नजर गड़ाते हुए प्रीति बोली.

‘‘और तुम कर भी क्या सकती हो?’’ फिर सिड को देखते हुए जोरदार आवाज में बोली, ‘‘जब तक मुझे अपने सवाल का जवाब नहीं मिलेगा, मैं वापस नहीं जाऊंगी,’’ शीला उसी आरामकुरसी पर वैसे ही बैठी रही थी.

सिड अब नौर्मल हो गया था. वह प्रीति के कंधों को पकड़े खड़ा था.

‘‘नो बेबी, माई हाउस, माई रूल्स, माई वे. यहां बस मेरी चलती है. मुझे किसी बात का जवाब देने की जरूरत नहीं और तुम तो अब खुशीखुशी वापस जाओगी,’’ यह कह कर प्रीति ने पर्स से रिवाल्वर निकाल कर शीला पर तान दिया और कहा, ‘‘और मेरे पास तुम्हें वापस भेजने का बड़ा अच्छा रास्ता भी है.’’

सिड भौचक्का सा देख रहा था कि प्रीति को हुआ क्या है. क्या बोल रही है?

वह घबरा गया और दो कदम पीछे हट गया. फिर बुदबुदाया, ‘शीला को मारने का प्लान मैं ने और प्रीति ने खुद बनाया था पर क्या किसी को पता चल गया? प्रीति बारबार शीलाशीला क्यों कर रही है. क्यों उस कुरसी की ओर नजरें गड़ाए हुए है.’

‘‘जल्दी खत्म करो, प्रीति. प्लीज,’’ सिड कह रहा था.

‘‘पागल हो गई हो क्या?’’ अपनी घनी बरौनियों के पीछे से शीला उन दोनों को देख रही थी और धीमेधीमे मुसकरा रही थी, ‘‘तुम मुझे, अपनी बहन को मारोगी?’’ यह कह कर उस ने फिर अपनी सिगरेट का कश लिया. उस की सिगरेट की आदत काफी बढ़ गई थी. पहले वह सिर्फ स्टाइलिश लगने के लिए कभीकभार ही सिगरेट फूंकती थी. अब, एक सिगरेट खत्म होती नहीं थी कि दूसरी जल जाती थी.

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प्रीति ने अपनी उंगली रिवाल्वर के घोड़े पर घुमाई और अगले क्षण जोर से धमाका हुआ. शीला के मुंह से निकला हुआ आखिरी शब्द था, ‘‘बाय.’’

धूल और धुएं के बादलों में लिपटी हुई, वह चली गई. न कोई चीख निकली, न कोई पुकार, लेकिन प्रीति को लगा कि धमाके के बाद उस ने उस की खिंचती हुई आवाज यह कहते हुए सुनी, ‘‘जब तक मुझे अपने सवाल का जवाब नहीं मिलेगा, मैं वापस नहीं जाऊंगी.’’

धूल थम गई. धुआं खिड़की से बाहर चला गया. न जाने फिर लाश क्यों नहीं मिली?

प्रीति ने देखा कुरसी पर खून के निशान भी न थे. हां, सीट पर गोली फंसी थी. सिड जोरजोर से चीख रहा था, ‘‘यह क्या हो गया है तुम्हें प्रीति. प्रीति होश में आओ. प्रीति, यू स्वीट गर्ल. प्रीति, यू आर बिग बिच.’’

बड़ा अजीब है यह मियाबीवी का जोड़ा, कैसे तुनकमिजाज हो गए हैं ये. बातबात में लोगों को काटने को दौड़ते हैं. बेवजह बहस करते हैं. खरगोश की तरह अचानक चौंक जाते हैं, बौराए से घूमते हैं. दोस्त हों या दुश्मन, अब सब इन से कतराते हैं.

हर साल प्रीति की हालत बद से बदतर होती जा रही है. सोना भी कम हो गया है. एक और अजीब आदत है प्रीति की कि वह किसी को ढूंढ़ती रहती है. उस को लगता है कि उस के आसपास कोई बैठा है, आरामकुरसी में लेटे हुए या बारस्टूल पर बैठे हुए या किचन के काउंटर पर टिके हुए कोई औरत, ऐंठती, सिगरेट फूंकती, टांग हिलाती, देख रही है, मुसकरा रही है, किसी सवाल के जवाब का इंतजार कर रही है.

प्रीति का यह बदला रुख देख कर सिड भी परेशान है. वह भी आपा खोता सा दिख रहा है.

सिड शीला के नाम पर फिल्म बनाना चाहता था पर प्रीति और सिड दोनों ने ही उस प्रसिद्ध अभिनेत्री को भगा दिया था, चिल्लाचिल्ला कर. प्रीति चीखी थी, ‘‘शीला पर फिल्म उस के मरने के बाद बनेगी. अभी वह काम बाकी है.’’

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Serial Story: दो बहनें (भाग-2)

‘‘कितनी भली लग रही हो, मेरी जान,’’ ऐसा कह कर वह एक लंबी हंसी हंसी. फिर उस ने अपनी सिगरेट का कश लिया. इस बीच, उस ने अपनी नजर प्रीति के चेहरे से नहीं हटाई.

‘‘क्या हुआ माई स्वीटनैस,’’ अपनी खनकती आवाज में वह बोलती रही, ‘‘मुझे देख कर खुश नहीं हुई?’’

प्रीति शीला को विस्फारित नेत्रों से देख रही थी. उस का मुंह एकदम सूख गया था. एक शब्द भी निकालना मुश्किल हो गया था.

‘‘नहीं,’’ आखिर एक शब्द निकल ही आया, ‘‘हमें तो लगा था कि ऐक्सिडैंट.

शीला ने धुएं का छल्ला बनाते हुए कहा, ‘‘ऐक्सिडैंट? कैसा ऐक्सिडैंट? कोई ऐक्सिडैंट नहीं हुआ था. वह तो मुझे मारने की कोशिश की गई थी जो नाकामयाब रही. हूं न तुम्हारे सामने, माई डार्लिंग,’’ वह फिर हंस दी.

लेकिन जब प्रीति उस से गले मिलने उस की तरफ बढ़ी, तो उस ने अपना हाथ उठा कर उसे आगे बढ़ने से रोक दिया, ‘‘नहीं, वहीं रहो. तुम्हें क्या लगता है, मैं भूल गई हूं, कैसी एलर्जी हो जाती है तुम्हें, मेरी सिगरेट के धुएं से. लेकिन फिर भी,’’ मुंह से धुएं का बड़ा सा बादल निकालते हुए वह बोली, ‘‘फिर भी तुम्हारा हर आशिक चेन स्मोकर था. हाऊ आइरौनिक.’’ फिर वह जोरजोर से हंसने लगी और हंसतेहंसते उस ने अपनी सिगरेट बुझा दी.

प्रीति की नजरें शीला पर से अब जा कर हट पाई थीं. गरमियों की छुट्टियों में दोनों बहनें किसी नई जगह जाती थीं, शिमला, नैनीताल, मसूरी आदि. इन की मम्मी को असल में हिलस्टेशन बहुत पसंद थे. जहां भी ये बहनें जातीं, हालात कुछ ऐसे बनते कि ये हमेशा अपने चारों तरफ अपने हमउम्र नौजवानों को पातीं. शीला से तो इन नौजवानों को डर लगता था. वह उन्हें घास भी नहीं डालती थी. मगर प्रीति का हर गरमी में एक नया अफसाना हो ही जाता था.

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‘‘मुझे तुम्हारे सभी आशिक पसंद थे, लेकिन पिन्का सब से अच्छा था. याद है?’’

खयालों में खोई प्रीति मुसकरा रही थी.

अब भी उसे याद था वह दृश्य. ऊंचाई इतनी थी कि बादल जमीन पर आ गए थे. मोटरसाइकिलों पर सवार कई सारे नौजवान दूर से आतेआते, उन तक पहुंच कर आगे निकल गए थे. बस, एक रुक कर देर तक दोनों बहनों को घूरघूर कर देख रहा था. उस के घूरने में कोई छिछोरापन नहीं था. ‘ऐसी होती हैं दिल्ली की लड़कियां,’ वह यह सोच रहा था, बाद में उस ने खुद ही यह बात प्रीति को बताई थी. वह था पिन्का. उस गरमी की छुट्टियों में पूरा शिमला प्रीति ने उस की मोटरसाइकिल पर पीछे बैठ कर देखा.

प्रीति ने आखिर कह ही दिया, ‘‘हां, मुझे अपने सभी आशिक पसंद थे, सिर्फ आखिरी वाला कभी नहीं अच्छा लगा. लेकिन मजेदार बात यह है कि बस, एक वही स्मोक नहीं करता था. जस्ट नौट माई टाइप. काश, तुम ने उस से शादी नहीं की होती,’’ सूखते गले और होंठों को गीला करने की असफल कोशिश करने लगी वह.

शीला ने एक और सिगरेट जला ली थी और बड़े ध्यान से प्रीति को देख रही थी.

‘‘सिड में बहुत सी अच्छी क्वालिटीज हैं. तुम ने उसे ठीक से नहीं समझा,’’ प्रीति बोली.

गहरी सांस लेते हुए वह बोली, ‘‘शायद, तुम ठीक कह रही हो. लेकिन उस ने मेरी कार क्यों टैंपर की?’’

प्रीति का मुंह फक् पड़ गया. बड़ी मुश्किल से वह बस इतना ही कह पाई, ‘‘ऐसा मत कहो. यह सच नहीं है. सिड तुम्हें बहुत चाहता है.’’

‘‘मैं तुम्हें बहुत कंट्रोल करती हूं, यही कह कर वह तुम्हें ले गया था न? अब वह तुम्हें कंट्रोल करता है. मुझे लगता है तुम्हें शौक है किसी न किसी के कंट्रोल में रहने का. गड़बड़ तुम में है, प्रीति.’’

वह फिर जोर से हंसने लगी. प्रीति को फिक्र हो रही थी कि आसपास वाले कहीं शिकायत न करने लगें. लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा. सब या तो खा रहे थे या बस उसे ही देख रहे थे. शीला की तरफ किसी का ध्यान न था. उस को लगा कि उस की आवाज ही नहीं निकलेगी. बड़ी मुश्किल से वह हिम्मत जुटा पाई, ‘‘शीला, यह सच नहीं है कि सिड ने तुम्हारी कार के साथ टैंपर किया था.’’

‘‘सच?’’ कुरसी से उठते हुए शीला बोली, ‘‘देखो तो. यहां मैं बातों में उलझ गई, वहां मेरा इंतजार हो रहा है. पता नहीं वह वेटर मेरा दोसा ले कर क्यों नहीं आया. बैठा होगा कहीं, इधरउधर, अपने प्यारे नेपाल के खयालों में खोया हुआ. खैर, कोई बात नहीं. आज बिना खाने के ही काम चलाना पड़ेगा. तुम से मैं बाद में मिलूंगी.’’

‘‘रुको, शीला, तुम यों नहीं जा सकतीं.’’

‘‘तुम्हारी पार्टी में आऊंगी. परसों है न? योर बर्थडे बैश.’’

प्रीति ने हौले से अपना सिर हिला दिया.

एक सुंदर हंसिनी की भांति इठलाती हुई शीला दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी. प्रीति ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘सुनो, क्या तुम वाकई सोचती हो…मेरा मतलब है, सिड और तुम्हारी कार…तुम बिना बात के शक कर रही हो…सोचो, कोई तुम्हें क्यों मारना चाहेगा?’’

यह सुनते ही शीला अपनी हील की नोक पर घूम गई. उस ने सिगरेट का गहरा कश लिया और प्रीति की ओर देखते हुए उसे आंख मारी और फिर बोली, ‘‘कई वजहें हो सकती हैं, माई इनोसैंट सिस्टर. पैसा, यश, रौब वगैरह सब काम की चीजें हैं, चाहे वे अपनी मेहनत की हों. या किसी और की,’’ यह कहने के साथ ही उस ने प्रीति को एक फ्लाइंग किस दिया.

‘‘सच, अब और नहीं रुक सकती. काम है. तुम्हें मैं कल 10 बजे फोन करूं?’’ जवाब का इंतजार किए बिना शीला वहां से चली गई. वापस मुड़ने पर प्रीति ने देखा कि उस का खाना कब का आ कर ठंडा भी हो गया था.

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‘‘क्या बात है, मेम साब? खाना अच्छा नहीं लगा? छुआ तक नहीं. कुछ और लाऊं?’’ वेटर ने बड़े अदब से कहा.

जो लोग बैठे थे वे प्रीति को घूर रहे थे. उन की चहेती शीला की बड़ी बहन है. कुछकुछ तो शीला जैसी ही है पर शीला वाली बात कहां है उस में, हर आंख में यही कथन था. यही बात प्रीति को वर्षों से सालती रही है.

अगले दिन औफिस में प्रीति बड़ी कसमसाहट महसूस कर रही थी. वैसे उस का मोबाइल नंबर नया था इसलिए शीला के फोन के आने की संभावना थी ही नहीं. फिर भी, मन बेचैन था. अभी 10 बजे ही थे कि फोन की घंटी बज उठी. बहुत सहम कर उस ने फोन उठाया.

‘‘हैलो.’’

उधर से जानीपहचानी सी आवाज सुनाई दी. इस से पहले कि वह आगे कुछ कह पाती, पीछे से 2 हाथों ने उस के कंधे पकड़ लिए. जब तक वह यह देखने के लिए मुड़ी कि कौन है, फोन ही कट गया. वह कोई और नहीं, सिड था.

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