15 अगस्त स्पेशल: जवाबी हमला- क्या है सेना की असल भूमिका

लाइन औफ कंट्रोल के पास राजपूताना राइफल का हैडक्वार्टर. रैजिमैंट के सारे अफसर मीटिंगरूम में  थे. कमांडिंग अफसर कर्नल अमरीक सिंह समेत सभी के चेहरों पर आक्रोश और गुस्सा था. कुछ देर कर्नल साहब चुप रहे, फिर बोले, स्वर में अत्यंत तीखापन था, ‘‘आप सब जानते हैं, दुश्मन ने हमारे 2 जवानों के साथ क्या किया. एक का गला काट दिया, दूसरे का गला काट कर अपने साथ ले गए.’’

‘‘हां साहबजी, इस का जवाब दिया जाना चाहिए,’’ सूबेदार मेजर सुमेर सिंह गुस्से और आक्रोश के कारण आगे और कुछ बोल नहीं पाए.

‘‘हां, सूबेदार मेजर साहब, जवाब दिया जाना चाहिए, जवाब देना होगा. दुश्मनदेश को प्यार और शब्दों की भाषा समझ नहीं आती है. जो वह कर सकता है, उसे हम और भी अच्छे ढंग से कर सकते हैं. जान का बदला जान और सिर का बदला सिर,’’ सैकंड इन कमांड लैफ्टिनैंट कर्नल दीपक कुमार ने कहा.

‘‘हां सर, जान का बदला जान, सिर का बदला सिर. दुश्मन शायद यही भाषा समझता है. कैसी हैरानी है, सर, एक आतंकवादी मारा जाता है तो सारे मानवाधिकार वाले, एनजीओ और सरकार तक सेना के खिलाफ बोलने लगते हैं. जवानों के गले काटे जा रहे हैं, वे शहीद हो रहे हैं. कोई मानवाधिकार वाला नहीं बोलता.

‘‘पत्थरबाज हमारे जवानों को थप्पड़ मारते हैं. हाथ में राइफल और गोलियां होते हुए भी वे कुछ नहीं कर पाते क्योंकि उन को कुछ न करने का आदेश होता है. उन को आत्मरक्षा में भी गोली चलाने का हुक्म नहीं होता. क्यों? तब ये मानवाधिकार वाले कहां मर जाते हैं? कहां मर जाते हैं एनजीओ वाले और सरकार? और एक अफसर किसी पत्थरबाज को जीप के आगे बांध कर 10 सिविलियन को बचा ले जाता है तो उस के खिलाफ एफआईआर दर्ज होती है,’’ मेजर रंजीत सिंह ने कहा, ‘‘बस सर, हमें जवाब देना है. हमें आदेश चाहिए.’’

‘‘हां, साहबजी, अंजाम चाहे जो भी हो, हमें जवाब देना होगा,’’ तकरीबन सभी ने एकसाथ कहा.

‘‘ठीक है, हम जवाब जरूर देंगे, चाहे इस की गूंज हमें दिल्ली और इसलामाबाद तक सुनाई दे. पर, हमारी सेना ऐसी अमानवीयता के लिए मशहूर नहीं है. हमारी सेना अनुशासनप्रियता और आदेशों पर कार्यवाही के लिए विश्वभर में जानी जाती है. अपनी जानों की बाजी लगा कर भी हम ने सेना की इस परंपरा का पालन किया है, परंतु दुश्मन सेना इसे हमारी कमजोरी समझे, यह हमें बरदाश्त नहीं है. इस के लिए हमें उन के छोटे हमले का इंतजार करना होगा. तभी हमें उस का जवाब देना है और ऐसा समय बहुत जल्दी आएगा क्योंकि वह हमेशा ऐसा ही करता रहा है,’’ कर्नल साहब ने सब के चेहरों को बड़े गौर से देखा, फिर आगे कहा, ‘‘योजना इस प्रकार रहेगी, हमारी 2 प्लाटूनें जाएंगी. भयानक बर्फबारी की रात में चुपचाप जाएंगी और कार्यवाही को अंजाम देंगी. कार्यवाही इतनी चुपचाप और जबरदस्त होनी चाहिए कि दुश्मन को कुछ भी सोचने का मौका न मिले. उन्होंने हमारे 2 जवानों का गला काटा है, हम उन के 20 जवानों का गला काट कर आएंगे. एक जवान के बदले 10 जवानों का गला. ध्यान रहे, अपनी किसी भी कैजुअलिटी को वहां छोड़ कर नहीं आएंगे. अटैक सुबह मुंहअंधेरे होगा. मैं खुद लीड करूंगा.’’

‘‘नहीं सर, लीड मैं करूंगा, कार्यवाही आप की योजनानुसार होगी,’’ मेजर रंजीत सिंह ने कहा.

कर्नल साहब ने कुछ देर सोचा, फिर कहा, ‘‘ठीक है, तैयारी शुरू करो. मैं ब्रिगेड कमांडर साहब से मिल कर आता हूं.’’ सभी चले गए.

थोड़ी देर बाद कर्नल साहब ब्रिगेडियर सतनाम सिंह साहब के सामने थे. वे सिख रैजिमैंट से हैं. उन की बहादुरी का एक लंबा इतिहास है. वे धीरगंभीर थे हमेशा की तरह. उन्होंने कर्नल साहब को बैठने का इशारा किया. थोड़ी देर वे गहरी नजरों से देखते रहे, फिर कहा, ‘‘मुझे दुख है…’’

‘‘हां सर, दुख तो मुझे भी है पर मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मैं जवानों के आक्रोश और गुस्से को कैसे सहन करूं. मैं उन 2 जवानों के मांबाप को, उन की पत्नी और बच्चों को क्या जवाब दूं जो पाकिस्तान की दरिंदगी का शिकार हुए हैं. वे अपने बेटे, पति और बाप के दर्शन तो करेंगे पर बिना सिर के. वे जीवनभर इसे भूल नहीं पाएंगे. जीवनभर इसी गम में डूबे रहेंगे और जब वे अपनी दुखी नजरों से मुझे देखेंगे तो मैं कैसे सहन कर पाऊंगा. मैं उन को क्या जवाब दूंगा, मैं यही समझ नहीं पा रहा हूं. वे मुझे कायर ही समझेंगे.’’

‘‘कर्नल अमरीक सिंह, संभालो अपनेआप को. हमें जवाब देना होगा. हमारी ब्रिगेड और तुम्हारी रैजिमैंट उन की कुरबानी को वैस्ट नहीं होने देगी. दुश्मन को उन की इस कायरतापूर्ण कार्यवाही का जवाब देना है, उन के परिवारों को जवाब अपनेआप मिल जाएगा. जाओ, दुश्मन को ऐसा जवाब दो कि वह फिर ऐसा करने का दुस्साहस न कर सके. मुझ से जो मदद चाहिए मैं देने के लिए तैयार हूं.’’

‘‘राइट सर, मुझे आप से यही उम्मीद थी. मैं जानता था, आप ऐसा ही कहेंगे.’’ कर्नल साहब अपने ब्रिगेड कमांडर साहब की सहमति पा कर जोश से भर उठे. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे केवल आप की सहमति और आदेश चाहिए था, शेष मेरी रैजिमैंट के जवान करेंगे.’’ फिर उन्होंने दुश्मन पर होने वाली सारी कार्यवाही की योजना बताई. सब सुन कर कमांडर साहब ने कहा, ‘‘ध्यान रहे, कैजुअलिटी कम से कम हो. अगर होती है तो वहां कोई छूटनी नहीं चाहिए.’’

‘‘यस सर. पर सर, गुत्थमगुत्था की लड़ाई में कैजुअलिटी की कोई गारंटी नहीं होती. हां, यह गारंटी अवश्य है कैजुअलिटी वहां नहीं छूटेगी.’’

‘‘ओके फाइन, गो अहैड. गिव मी रिपोर्ट आफ्टर कंपलीशन. बेस्ट औफ लक कर्नल.’’

‘‘थैक्स सर.’’ कर्नल साहब थैंक्स कह कर उन के कमरे से बाहर आ गए. और उसी रात राजपूताना राइफल को अवसर मिला. दुश्मन की ओर से गोली आई और कर्नल अमरीक सिंह के जवानों ने तुरंत कार्यवाही की. दूसरे रोज कर्नल साहब ने अपने कमांडर को रिपोर्ट दी, ‘‘सर, टास्क कंपलीटिड. नो कैजुअलिटी. सर, दुश्मन के कम से कम 20 जवानों के सिर उसी प्रकार काट दिए गए थे जिस प्रकार उन्होंने हमारे 2 जवानों के काटे थे. हां, हम उन के सिरों को अपने साथ ले कर नहीं आए जैसे उन्होंने किया था. हम लड़ाई में भी अमानवीयता की हद पार नहीं करते.’’

‘‘गुड जौब कर्नल, भरतीय सेना और पाकिस्तान की सेना में यही अंतर है कि हम दुश्मनी भी मानवता के साथ निभाते हैं. इस का रिऐक्शन हमें बहुत जल्दी सुनने को मिलेगा, न केवल राजनीतिक स्तर पर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी. शायद कुछ आर्मी कमांडर भी यह कह कर इस का विरोध करें कि पाकिस्तान और हम में क्या अंतर है. पर चिंता मत करो, हमें यह मानना ही नहीं है कि यह हम ने किया है. जैसे पाकिस्तान नहीं मानता. उन्हीं की बात हम उन के मुंह पर मारेंगे कि यह आप के अंदर की लड़ाई है. आप के किसी टैररिस्ट गु्रप का काम है, हमारा नहीं. ध्यान रहे, हमें इसी बात पर कायम रहना है.’’

‘‘यस सर. मैं आप की बात समझ गया हूं, सर. ऐसा ही होगा,’’ कर्नल साहब ने जवाब दिया.

दूसरे रोज बिग्रेड कमांडर साहब ने फोन कर के बताया, ‘‘वही हुआ, जो मैं ने कल कहा था. मुझे, आप को और डिव कमांडर को कमांड हैक्वार्टर में बुलाया गया है. हम वहां कमांडरों का मूड देख कर बात करेंगे.’’

‘‘राइट सर. हमें कब चलना होगा?’’

‘‘अब से 15 मिनट बाद. हैलिकौप्टर तैयार है, आप आ जाएं.’’

‘‘मैं आ रहा हूं, सर,’’ कर्नल साहब ने जवाब में कहा.

जब हम हैलिकौप्टर में बैठ रहे थे तो हमें सूचना मिली कि हमें जीओसी, जनरल औफिसर कमांडिंग लैफ्टिनैंट जनरल साहब के साथ दिल्ली सेनामुख्यालय में बुलाया गया है. हम ने एकदूसरे की ओर देखा. आंखों ही आंखों में अपनी बात पर दृढ़ रहने की दृढ़ता व्यक्त की.

कुछ समय बाद हम कमांड हैडक्वार्टर में थे. सूचना देने पर लैफ्टिनैंट जनरल साहब ने हमें तुरंत अंदर बुलाया. वहां डीएमओ, डायरैक्टर मिलिटरी औपरेशन भी मौजूद थे. हमें देखते ही लैफ्टिनैंट जनरल साहब ने कहा, ‘‘बिग्रेडियर साहब, गुड जौब. कर्नल साहब,

वैरी गुड.’’

हम दोनों भौचक्के रह गए. चाहे यह औपरेशन टौप सीके्रट था. किसी को हवा भी नहीं लगने दी गई थी तो भी कमांड हैडक्वार्टर में बैठे टौप औफिसर को पता चल गया था. यह मिलिटरी इंटैलिजैंस का कमाल था या जीओसी साहब और डीएमओ साहब का केवल अनुमान मात्र था, हम इसे बिलकुल समझ नहीं पाए. मन के भीतर यह शंका भी कुलबुला रही थी कि कहीं हमें बहकाने के लिए कोई जाल तो नहीं बुना जा रहा. हमें चुप देख कर जीओसी साहब ने आगे कहा, ‘‘चाहे इस अटैक के लिए आप दोनों इनकार करेंगे. हमें इनकार ही करना है. हमें किसी स्तर पर इस अटैक को मानना नहीं है पर मैं जानता हूं जिस सफाई से इस अटैक को अंजाम दिया गया है, वह हमारे ही बहादुर जवान कर सकते हैं. क्यों?’’

जीओसी साहब ने जब हमारी आंखों में आंखें डाल कर ‘क्यों,’ कहा तो हम उन की आंखों की निर्मलता को समझ गए.

‘‘जवानों के आक्रोश, गुस्से और मोरल सपोर्ट के लिए यह अटैक आवश्यक था, सर. दुश्मन हमें कमजोर न समझे, इसलिए भी. चाहे इस का अंजाम कुछ भी होता,’’ कर्नल अमरीक सिंह ने कहा.

‘‘और मैं जानता हूं, आप बिग्रेडियर सतनाम सिंह की मरजी के बिना इस अटैक को अंजाम नहीं दे सकते थे,’’ डीएमओ साहब ने कहा.

‘‘यस, सर.’’

‘‘गुड.’’

जीओसी साहब ने कहना शुरू किया, ‘‘हमें सेनामुख्यालय में आर्मी चीफ ने बुलाया है. आप के डिव कमांडर भी आते होंगे. हम फर्स्ट लाइट में फ्लाई करेंगे. मैं नहीं जानता आर्मी चीफ इस के प्रति क्या देंगे. बधाई भी दे सकते हैं और नहीं भी. वे स्वयं एक मार्शल कौम से हैं, इस प्रकार की दरिंदगी बरदाश्त नहीं कर सकते. इसलिए आशा बधाई की है. आप सब जाएं. सुबह की तैयारी करें. डीएमओ साहब, हमारी मूवमैंट टौप सीक्रेट होनी चाहिए.’’

‘‘राइट सर,’’ कह कर हम बाहर आ गए. सुबह जब हैलिकौप्टर ने उड़ान भरी तो हम सब के चेहरों पर किसी प्रकार का तनाव नहीं था. हम सब बड़े हलके मूड में बातें कर रहे थे. कोई 2 घंटे बाद हमारे हैलिकौप्टर ने दिल्ली हवाई अड्डे पर लैंड किया. 2 कारों में सेनामुख्यालय पहुंचे. लंच का समय था. पहले हम से लंच करने के लिए कहा गया. बताया गया 3 बजे आर्मी चीफ के साथ हमारी मुलाकात तय है. 3 बजे हम आर्मी चीफ के समक्ष बैठे थे. इस मीटिंग में डीजीएमओ, डायरैक्टर जनरल मिलटरी औपरेशन उपस्थित थे.

चीफ साहब ने सभी के चेहरों को गहरी नजरों से देखा. शायद वे हमारे सपाट चेहरों से कुछ भी अनुमान नहीं लगा पाए. फिर कहा, ‘‘आप सब जानते हैं, मैं ने आप सब को यहां क्यों बुलाया है. आज सारे अखबार, टीवी चैनल, सरकार, सरहद पार की सरकार उन सिरकटे 20 पाकिस्तानी जवानों की बातें कर रहे हैं जो रात की कार्यवाही में मारे गए हैं.

‘‘मैं जानता हूं, कोई इसे माने या न माने पर यह कार्य हमारे जवानों का ही है. पर, हम इसे कभी नहीं मानेंगे कि यह हम ने किया है. मैं उस रैजिमैंट के कमांडिंग अफसर और जवानों को बधाई देना चाहता हूं जिन्होंने यह कार्यवाही इतनी सफाई से की.

‘‘मैं उस बिग्रेड कमांडर साहब को भी बधाई देना चाहता हूं जिस ने इस बहादुरीपूर्ण कार्य के लिए आदेश दिया. हम पाकिस्तान को यह संदेश दे पाने में समर्थ हुए हैं कि आप अगर हमारे एक जवान का गला काटेंगे तो हम आप के 10 जवानों का गला काटेंगे. राजनीतिक स्तर पर सरकारें आपस में क्या करती हैं, हमें इस से कोई मतलब नहीं है. हम सरहदों पर उन्हीं के आदेशों का पालन करते हैं, करते रहेंगे अर्थात हमारी सेना एलओसी पार नहीं करेगी, लेकिन चुपचाप जवाबी हमला करती रहेगी, जैसे कल किया गया है.

‘‘आप सब को मेरा यही आदेश है यदि वे एक मारते हैं तो आप 10 मारेंगे,’’ जनरल साहब थोड़ी देर के लिए रुके, फिर कहा, ‘‘डीजीएमओ, मैं आप को खा जाऊंगा यदि इस कमरे की मीटिंग की कोई भी बात बाहर गई.’’

‘‘राइट सर. मैं समझता हूं, सर.’’

‘‘गुड. आप सब अपनी ड्यूटी पर जाएं. मैं आज रात को प्रैस कौन्फ्रैंस करने जा रहा हूं. मैं जानता हूं, उस में मुझे क्या कहना है. आप सब भी जान जाएंगे.’’

रात को हम सब टीवी के सामने बैठ कर आर्मी चीफ की प्रैस कौन्फैं्रस सुन और देख रहे थे.

‘‘सर, कल रात जो सरहद पार 20 पाकिस्तानी जवानों के सिर कलम किए गए, यह हमारी सेना की कार्यवाही तो नहीं?’’

‘‘यह प्रश्न सरहद पार की सरकार और सेना से पूछा जाना चाहिए. मैं आप को बता दूं, हमारी सेना बिना आदेश के ऐसी कोई कार्यवाही नहीं करती. ऐसा नहीं कर सकती.’’

‘‘सर, यह आप से इसलिए पूछा जा रहा है कि 2 दिनों पहले 2 जवानों के सिर कलम कर दिए गए थे. सो, इस कार्यवाही को हमारी सेना का जवाबी हमला समझा जा रहा है. क्या यह सही नहीं है?’’

‘‘देखिए, हमारी सेना बहुत ही अनुशासनप्रिय है. बिना आदेश के वह किसी भी कार्यवाही को अंजाम नहीं दे सकती, न ही देगी.’’

‘‘क्या इसे सेना की कमजोरी समझी जाए कि अपने जवानों को मरते देख कर भी जवाबी कार्यवाही नहीं कर सकती या नहीं करती?’’

‘‘भारतीय सेना क्या कर सकती है, यह सारी दुनिया जानती है. वर्ष 1965, 1971 और कारगिल की लड़ाई में आप सब भी जान चुके हैं. हम इस का जवाब जरूर देंगे परंतु अपने समय, स्थान निश्चित कर के.’’

‘‘क्या हमारी सरकार ऐसी किसी कार्यवाही में अड़चन नहीं डालती? क्या अपनेआप सेना तुरंत जवाबी कार्यवाही नहीं कर सकती?’’

‘‘अपने पहले प्रश्न का उत्तर आप को सरकार से पूछना चाहिए. दूसरे प्रश्न के उत्तर के लिए मैं आप को बता दूं, सेना को किसी भी कार्यवाही के लिए योजना बनानी पड़ती है, उस के लिए समय चाहिए होता है. आप को बहुत जल्दी इस का जवाब मिल जाएगा.’’

‘‘सर, क्या ये गीदड़ भभकियां नहीं हैं. जैसे पहले होता रहा है, हम ये करेंगे, वो करेंगे, बहुत शोर मचता है पर होता कुछ नहीं. क्या पाकिस्तान हमारी इस कमजोरी को जान नहीं गया है. तभी वह कभी आतंकवादी भेजता है, कभी 26/11 करवाता है?’’

प्रश्न बड़े तीखे थे. टीवी देख रहे कर्नल अमरीक सिंह सोच रहे थे, देखें जनरल साहब इस का क्या उत्तर देते हैं. उन्होंने बड़ी समझदारी से उत्तर दिए.

‘‘मुझे नहीं पता ये गीदड़ भभकियां हैं या नहीं, यह आप सरकार से पूछें. मैं आप को बता दूं, आज तक भारतीय सेना के किसी जनरल ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के ऐसी बातें नहीं कहीं. केवल आप प्रतीक्षा करें और देखें. हम पाकिस्तान को जवाब जरूर देंगे.’’

कर्नल अमरीक सिंह सोच रहे थे, जनरल साहब ने बहुत समझदारी से सारी बातें सरकार पर डाल दी थीं पर अभी भी अनेक प्रश्न हैं जिन के उत्तर मिलने बाकी हैं. क्यों हम पाकिस्तान के खिलाफ ऐसी माकूल कार्यवाही नहीं कर पाए कि वह ऐसी कार्यवाहियां करने की हिम्मत न करे? क्यों हम आज तक अपने देश में हो रही घुसपैठ को रोक नहीं पाए? क्यों पाकिस्तान 26/11 जैसे हमले करने में सफल हो रहा है?

हम कहां कमजोर पड़ रहे हैं? क्यों हम इन कमजोरियों को दूर नहीं कर पाते? इस के लिए सेना कहां दोषी है? और इस दोष को क्यों सेना दूर नहीं कर पाती? क्या इस में सरकार बाधक है? अगर है, तो सेना इस का विरोध क्यों नहीं करती? और अगर करती है तो क्यों इस का आज तक हल नहीं मिला? मैं जानता हूं, इन प्रश्नों के उत्तर शायद किसी सैनिक अधिकारी और जवान के पास नहीं हैं. अगर हैं, तो कोई क्यों इसे खुल कर नहीं कहना चाहता. क्यों…आखिर क्यों?

मैडमजी: लिफाफे में क्या लिखा था

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सच्चा प्रेम: क्या हुआ था प्रताप के साथ

कनाट प्लेस की उस दसमंजिली इमारत की नौवीं मंजिल पर अपने औफिस में बैठे प्रताप ने घड़ी पर नजर डाली. रात के आठ बज रहे थे. वैसे तो वह शाम सात, साढ़े सात बजे तक औफिस से निकल जाता था, लेकिन आज नवीन ने आने के लिए कहा था, इसलिए वह औफिस में बैठा उसी का इंतजार कर रहा था.

नवीन की अभी नईनई शादी हुई थी. उसी के उपलक्ष्य में आज उस ने पीनेपिलाने का इंतजाम किया था.

आखिर साढ़े आठ बजे नवीन आया. उस के साथ अश्विनी और राजन भी थे. नवीन ने नीचे से ही प्रताप को फोन किया, तो वह नीचे आ गया था.

जनवरी का महीना और फिर हलकीफुलकी बूंदाबांदी होने से ठंड एकदम से बढ़ गई थी. शाम होते ही कोहरे ने भी अपना साम्राज्य फैलाना शुरू कर दिया था.

प्रताप के नीचे आते ही नवीन ने कहा, “यार, जल्दी गाड़ी निकाल. ठंड बहुत है…”

प्रताप को भी ठंड लग रही थी. उस ने जैकेट का कौलर खड़ा कर के कान ढकने का प्रयास किया. फिर दोनों हथेलियां रगड़ते हुए पार्किंग की ओर बढ़ गया. उस के गाड़ी लाते ही तीनों जल्दीजल्दी गाड़ी में घुस गए. गाड़ी बिल्डिंग के गेट तक पहुंचती, उस के पहले ही तीनों ने तय कर लिया कि कहां खानापीना होगा.
बिल्डिंग के गेट से गाड़ी सड़क पर आई, तो सड़क पर वाहनों की रेलमपेल थी. धीरेधीरे चलते हुए वे एक शराब की दुकान पर पहुंचे. शराब खरीदने के बाद उन्होंने एक रेस्टोरेंंट से खाना पैक कराया और चल पड़े राजन के घर की ओर.

राजन वहीं करीब ही रहता था. गाड़ी इमारत के नीचे खड़ी कर सभी राजन के फ्लैट में पहुंच गए.

राजन उन दिनों अकेला ही था, इसलिए उस का घर अस्तव्यस्त था. उस ने पानी वगैरह का इंतजाम किया और फिर सभी पीने बैठ गए. दोदो पैग गले से नीचे उतरे, तो सब के मुंह खुलने लगे.

नवीन ने प्रताप के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, “यार प्रताप, तुझे भाभी की याद नहीं आती?”

“मुझे छोड़ कर चली गई. उस की याद करने से क्या फायदा…” प्रताप ने उदास हो कर कहा.

“क्या अब वह वापस नहीं आ सकती?” अश्विनी ने पूछा.

“यदि उसे वापस आना होता, तो जाती ही क्यों?” सिगरेट सुलगाते हुए प्रताप ने कहा.

शराब के साथ इसी तरह की बातों में किसी को समय का भी खयाल नहीं रहा. शराब खत्म हुई, तभी उन्हें खाने का खयाल आया. तब प्रताप ने कहा, “यार जल्दी करो. बहुत देर हो गई.”

“तू तो ऐसे कह रहा है, जैसे घर में बीवी तेरा इंतजार कर रही है.”

“भई बीवी नहीं है तो क्या हुआ, ल्यूसी तो है. वैसे भी दो दिनों से वह ठीक से खाना नहीं खा रही है,” प्रताप ने बाहर की ओर देखते हुए कहा.

फिर जल्दीजल्दी खाना खा कर प्रताप चलने के लिए तैयार हुआ. अश्विनी और नवीन का राजन के यहां ही रुकने का प्रोग्राम था. वे प्रताप को भी रोक रहे थे, लेकिन उसे तो ल्यूसी की चिंता थी.

प्रताप नीचे आया, तो वातावरण में कोहरे की सफेद चादर फैल गई थी. ठंड भी बहुत तेज थी. प्रताप ने पीछे की सीट पर रखे औफिस बैग से टोपी निकाल कर लगाई और घर की ओर चल पड़ा. सड़कें सूनी थीं, फिर भी कोहरे की वजह से वह गाड़ी बहुत तेज नहीं चला पा रहा था. घर पहुंचतेपहुंचते उसे रात के 1 बज गए. नोएडा के सेक्टर 56 में साढ़े तीन सौ गज में बनी उस की कोठी में अंधेरा छाया था. उस ने गेट का ताला खोला, गाड़ी अंदर की. फिर घर का ताला खोल कर अंदर घुसते ही आवाज लगाई, “ल्यूसी… ल्यूसी…”

उस के ये शब्द दीवारों से टकरा कर वापस आ गए.
“ल्यूसी… ल्यूसी… मैं यहां हूं,” कहते हुए प्रताप ड्राइंगरूम से अंदर कमरे की ओर बढ़ा, तो उस ने महसूस किया कि किचन से ‘कूं… कूं…’ की आवाज आ रही है. उस ने किचन में जा कर देखा, तो ल्यूसी उस तेज ठंड में भी पैर फैलाए लेटी थी.

प्रताप ने उसे सहलाते हुए कहा, “तू यहां है?”

ल्यूसी ने गरदन उठा कर अधखुली आंखों से प्रताप की ओर देखा, लेकिन उठी नहीं. ऐसा लग रहा था, जैसे आज उस में उठने की शक्ति नहीं रह गई है. प्रताप उस की बगल में बैठ गया. उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “लगता है, आज तू ने कुछ खाया नहीं है.”

ल्यूसी बिना कुछ बोले गरदन नीची कर आंखें बंद कर ली. प्रताप ने उस की गरदन पर हाथ रख कर कहा, “इस तरह नाराज नहीं होते. चल, मैं तुझे खाना खिलाता हूं.”

ल्यूसी ने कोई हरकत नहीं की. प्रताप ने ध्यान से देखा, तो उसे लगा कि ल्यूसी की सांसें भारी हैं. उस की खुली निश्चल आंखों के खालीपन ने उसे द्रवित कर दिया. उस का नशा गायब हो गया. कपड़े बदलने का इरादा छोड़ कर वह बड़बड़ाया, “लगता है, तुझे डाक्टर के पास ले जाना होगा. मुझे पता है, अब तू कुछ बोलेगी नहीं.”

ल्यूसी ने धीरे से ‘कूं… कूं…’ किया. प्रताप की चिंता दोगुनी हो गई. वह बड़बड़ाया, ‘इसे डाक्टर के पास तो ले ही जाना पड़ेगा.’

डाक्टर उस का परिचित था. ल्यूसी को गाड़ी में ले कर वह डाक्टर के यहां पहुंच गया. ल्यूसी को देखने के बाद डाक्टर ने कहा, “प्रताप, लगता है, इसे न्यूमोनिया हो गया है. इसे यहीं छोड़ दो, हमारा नौकर इस की देखभाल कर लेगा.”

प्रताप ल्यूसी का सिर चूम कर लौट आया. कपड़े उतार कर वह बेड पर लेटा, तो रात के ढाई बज रहे थे. इतनी भागदौड़ के बाद भी उसे नींद नहीं आ रही थी. विरह की वह रात बड़ी लंबी लग रही थी.

वह उठ कर बैठ गया. आज वह एकदम अकेला था. उस की ओर कोई भी देखने वाला नहीं था. उसे कोई प्यार करने वाला भी नहीं था. बिना किसी के जीना भी कोई जीना है. कोई तो चाहने वाला होना ही चाहिए, चाहे वह जानवर ही क्यों न हो. कोई साथ होता है, तो आनंद से जीवन बीतता है. वह लेट गया. ल्यूसी की याद में करवटें बदलता रहा. बेचैन मन में ल्यूसी की याद आती रही. वह सोना चाहता था, पर ल्यूसी की यादें सोने नहीं दे रही थीं. तभी टेलीफोन की घंटी बजी. वह फट से उठ कर बैठ गया. झट से रिसीवर उठा कर कान से इस तरह लगाया, जैसे किसी की आवाज सुनने को उतावला हो.

“प्रताप… प्रताप…” उसे विषादयुक्त स्वर सुनाई दिया.

“जी…” सामने वाले व्यक्ति की आवाज प्रताप को परिचित लगी. लेकिन यह आवाज काफी दिनों बाद उसे सुनाई दी थी.

“इतनी रात को फोन करने के लिए माफ करना?”

“ठीक है,” प्रताप से वह बात करना चाहता है, यह जान कर उसे प्रसन्नता हुई.
“एक बैड न्यूज है.” सामने वाले व्यक्ति ने कहा.

“बैड न्यूज…?” आवाज में आशंका उपजी. हृदय धड़का, “क्या है बैड न्यूज…?”

“तुम्हारी पत्नी…” सामने वाले की आवाज धीमी पड़ गई.

“मेरी पत्नी…?”

“मेरा मतलब है, तुम्हारी एक्स पत्नी अब इस दुनिया में नहीं रही…” कहते हुए सामने वाले व्यक्ति भी आवाज लड़खड़ा गई.
प्रताप चुप रह गया. उस की आंखों के सामने अंतिम बार देखा गया अनुपमा का चेहरा उभर आया. अनुपमा अब इस दुनिया में नहीं रही.

प्रताप के चुप रह जाने पर सामने वाला व्यक्ति बोला, “प्रताप, तुम ठीक तो हो?”

“हां, मैं ठीक हूं, फोन करने के लिए धन्यवाद,” बात को आगे न बढ़ाते हुए प्रताप ने फोन रख दिया. एकांत और अकेलेपन ने उसे फिर घेर लिया. वह क्या मिस कर रहा, किस से कहे. ‘सुन कर उसे बहुत दुख हुआ’, जैसे शब्द भी वह नहीं कह पाया था. उसे इस बात पर आश्चर्य हुआ. इस का मतलब वह बदल गया है. अब अनुपमा के प्रति न उस के मन में प्रेम था, न तिरस्कार. इसलिए वह क्या कहे. इस संसार में आने वाला हर कोई जाता है. उस का अनुपमा से पहले ही संबंध विच्छेद हो चुका था. जीवन का एक खूबसूरत मोड़ दिखा कर वह गायब हो गई थी. अब तो ल्युसी ही उस के जीवन में सबकुछ थी.

प्रताप के दिल से आवाज आई. अनुपमा के लिए अपने हृदय के किसी कोने में थोड़ाबहुत प्रेम खोजना चाहिए. उस की मृत्यु का उसे दुख तो मनाना ही चाहिए. इस के लिए उसे थोड़ा रोना चाहिए. कम से कम आंखें तो नम कर ही लेनी चाहिए. आखिर तीन साल वह उस के साथ रही थी. उस के साथ कुछ रेखाएं तो खींची थीं, भले ही चित्र नहीं बन पाया. लोग दूसरे की मृत्यु पर ही दुखी होते हैं. अनुपमा तो कभी उस की अपनी थी. मृत्यु पर शोक प्रकट करने की जो हमारे यहां परंपरा है, उसे निभाना ही चाहिए. वह इनसान है, इसलिए उस के अंदर इनसानियत तो होनी ही चाहिए. इतने प्रयास के बाद भी अंदर से ऐसा भाव नहीं उपजा कि आंखें नम हो जातीं. वह लाचारी का अनुभव करने लगा. इस बेरुखी का उपाय वह खोजने लगा. अनुपमा के लिए थोड़े आंसू हृदय से निकालने के लिए वह प्रयास करता रहा, पर सफल नहीं हुआ. इसी कशमकश में वह करवट बदलता रहा. ऐसे में ही उस की आंखें लग गईं, तो सुबह फोन की घंटी बजने पर खुलीं. आंखों की पलकें भारी थीं. काफी कोशिश के बाद खुलीं तो देखा धूप निकल आई थी.

जम्हाई लेते हुए प्रताप ने रिसीवर उठा कर कान से लगाते हुए कहा, “हैलो?”

“प्रताप…” सामने वाले ने कहा, “लगता है, फोन की घंटी सुन कर उठे हो.”

“कोई बात नहीं डाक्टर साहब, दरअसल, रात सोने में देर हो गई थी न. अब ल्यूसी की तबीयत कैसी है?” प्रताप ने पूछा.

“प्रताप, ल्युसी तो नहीं रही. काफी प्रयास के बाद भी मैं उसे नहीं बचा सका.”

“हे भगवान…”

“प्रताप… प्रताप…”
लेकिन प्रताप तो खामोश. उस का हृदय जोर से धड़क उठा. उस की देह उस ठंड में भी पसीने से भीग गई. रिसीवर उस के हाथ से छूट गया. उस का सिर जैसे चकरा रहा था. वह वहीं पड़ी कुरसी पर बैठ गया. दोनों हथेलियां उस ने आंखों पर रख लीं. आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली. फिर वह फफक कर रो पड़ा.

#हमारा सवाल, पाठकों का जबाव# क्या प्रताप को विवाह की कोशिश करनी चाहिए या कोई पशु पालना चाहिए. इसका छोटा या लंबा सा जबाव +91 85888 43415 पर व्हाट्सएप से भेजें. अपना और अपने शहर का नाम अवश्य लिखें. अच्छे उत्तर बाद में कहानी के साथ वैब एडीशन में प्रकाशित किए जाएंगे.

छुई मुई नहीं: सुलक्षणा को उसके पति ने कैसे समझाया

“आज का पेपर पढ़ा आप ने?” सुलक्षणा अपने पति दर्शन से बोली.

“हां, सुबह पढ़ा था. कोई खास खबर है क्या?” दर्शन औफिस से आ कर चाय का कप उठा कर तीन सीटर सोफे पर बैठते हुए बोला.

“वो कामिनी देवी वाली खबर पढ़ी?” सुलक्षणा ने दूसरा प्रश्न किया.

“नहीं, मैं ने नहीं पढ़ी… कामिनी देवी वही ना, मशहूर कारोबारी रति प्रसादजी की पत्नी,” दर्शन ने पूछा.

“हां, वही… आज एक खोजी पत्रकार ने खुलासा किया कि उन का एक 28 साल के एक युवक के साथ संबंध थे,” सुलक्षणा कुछ झिझकते हुए बोली.

“अरे, इस में हैरानी कैसी? हो जाते हैं कई बार ऐसे संबंध,” दर्शन बोला.

“पर, कामिनीजी की उम्र 42 साल है और रति प्रसादजी भी साउंड फिजिक वाले व्यक्ति हैं,” सुलक्षणा दोनों की उम्र का रहस्य खोलते हुए बोली.

“ऐसी कोई कमी तो नहीं लगती उन में. स्त्रीपुरुष के व्यक्तिगत संबंधों में रूपरंग, कदकाठी जैसी चीजें माने नहीं रखती हैं, बल्कि अहम बात जो माने रखती है, वह है दोनों के बीच आपसी समझ और उस से मिली संतुष्टि,” दर्शन सुलक्षणा को समझाते हुए बोले.

“यह क्या कोई खाने का व्यंजन है, जो खाने के बाद संतुष्टि देगा,” सुलक्षणा मजाक में बोली.

“यह खाने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. खाए गए व्यंजन का स्वाद तो कुछ समय बाद समाप्त हो जाता है, लेकिन एक बार मिली सही तरह की संतुष्टि अगले कई दिनों तक याद रहती है. और उसी संतुष्टि को पुनः पाने के लिए फिर से संबंध स्थापित किए जाते हैं. यही संतुष्टि पतिपत्नी के बीच संबंधों को बनाए रखती है और दोनों के बीच प्रेम बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है,” दर्शन समझाता हुआ बोला.

“मतलब, कामिनीजी…?” कहते हुए सुलक्षणा दर्शन की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगी.

“देखो, यह द्विपक्षीय संबंध है, इसलिए गलती दोनों से हो सकती है,” दर्शन सुलक्षणा को समझाने लगा.

“उस में क्या गलती? 10 मिनट का ही तो काम रहता है,” सुलक्षणा बेझिझक हो कर बोली.

“यही तो बात है सुलक्षणा. यह महज 10 मिनट या सिर्फ दो अंगों के मिलन की बात नहीं है, बल्कि उन पलों में डूब कर उन पलों का भरपूर आनंद लेने व देने की है,” दर्शन समझाते हुए बोला.

“वो कैसे…?” सुलक्षणा सोफे पर दर्शन से सट कर बैठते हुए बोली. अब उस ने दर्शन के हाथों को अपने हाथों में ले लिया.

“वो ऐसे कि आज भी हमारे भारतीय समाज में जीवन से जुड़े इस महत्वपूर्ण विषय पर बात करना उचित नहीं समझा जाता है.

“ना ही बच्चे इस बारे में अपने मम्मीपापा से पूछ पाते हैं और ना ही मातापिता इस वर्जित विषय में अपने बच्चों को कुछ बतला पाते हैं. जितने भी साथी दोस्त रहते हैं, उन की जानकारी भी लगभग एक समान ही रहती है. इसी कारण प्रायः इस विषय पर बात करने वालों को
एक्स्ट्रा आर्डिनरी बोल्ड कह कर हेयदृष्टि से देखा जाता है. बचे पतिपत्नी, जो इस विषय पर खुल कर बातें कर सकते हैं और उन्हें करना
भी चाहिए. किंतु हमारे भारतीय परिवेश में जहां ज्यादातर विवाह परिजनों के द्वारा तय किए जाते हैं और लड़का व लड़की भिन्न पारिवारिक वातावरण से आते हैं, यह सोच कर इस विषय पर बात नहीं करते कि सामने वाला क्या सोचेगा. इसी कारण दस मिनट पूर्ति कर काम पूरा
कर लिया जाता है,” दर्शन बोला.

“तुम ठीक बोल रहे हो दर्शन. विदाई के समय मुझे भी इसी तरह की सीख दी गई थी कि जैसा दर्शन कहे वैसा करना. अपनी तरफ से कोई बात मत बोलना,” सुलक्षणा बोली.

“मैं जानता हूं. अभी हमारी शादी को मात्र 6 माह ही गुजरे हैं, इसीलिए तुम्हें यह सब समझा पा रहा हूं. बच्चे होने के बाद शायद तुम समझ ना पाओ या मैं तुम्हें समझा ना पाऊं, क्योंकि तब तक ट्रेन प्लेटफार्म छोड़ चुकी होगी,” दर्शन सुलक्षणा की आंखों में झांक कर बोला.

“तो मुझे क्या करना चाहिए?” कहते हुए सुलक्षणा दर्शन की गोद में सिर रख कर लेट गई और दर्शन उस के बालों में अपनी उंगलियां घुमाने
लगा, जो कभीकभी सुलक्षणा के होंठों तक पहुंच जाती थी.

ज्यादातर भारतीय औरतें अपने पति के साथ बिस्तर पर लेटने के साथ ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती हैं, जबकि ऐसा नहीं
होता. पति की अपनी कई इच्छाएं होती हैं, जिन में वह पत्नी का भरपूर सहयोग चाहता है. इतना ही नहीं, वह चाहता है कि पत्नी भी अपनी इच्छा पति पर बिना शर्माए जाहिर करे. बिस्तर पर जाने के बाद इसे सिर्फ 10 मिनट की प्रक्रिया ना समझें, बल्कि उन पलों को जितना लंबा खींच सकते हैं खींचें. यही पल तो उन्हें सर्वोच्च संतुष्टि यानी सुपर सेटिस्फेक्शन देने वाले होते हैं,” दर्शन सुलक्षणा के होंठ, चेहरे और गले पर हाथ घुमाते हुए बोला.

“मतलब, कामिनीजी के मामले में उन्हें संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई,” सुलक्षणा दर्शन के हाथ की एक उंगली को हलके से काटते हुए बोली.

“यह उन दोनों के बीच की बात है. हो सकता है कि कामिनीजी स्वयं आगे हो कर ना बोल पाई हों या रति प्रसादजी स्वयं हावी रहे हों. और कामिनीजी को एक्सप्रेस करने का मौका ही ना दिया हो,” दर्शन बोला.

“लेकिन जानू, कामिनीजी अपनी उम्र के व्यक्ति की तरफ भी तो आकर्षित हो सकती थीं. अपने से छोटे लड़के से उन्हें क्या मिला
होगा,” सुलक्षणा बुरा सा मुंह बना कर बोली.

“यहां कुछ दूसरा मनोविज्ञान काम करता है. वास्तव में यह प्रेम था ही नहीं, बल्कि विशुद्ध सैक्स था. अपनी उम्र के माध्यम से वह छोटी उम्र के व्यक्ति को आदेशित कर हर वो काम करवा सकती थीं, जो वह स्वयं रति प्रसादजी के सामने किसी कारण से नहीं कह पा रही थीं या उन से नहीं कह सकती थीं,” दर्शन बोला.

“मतलब स्पष्ट है कि रति प्रसादजी कामिनीजी को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे थे. और इसी कारण कामिनीजी की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रहे थे,” सुलक्षणा ने उत्सुकता से पूछा.

“संभवतः ऐसा ही हुआ हो,” दर्शन बोला, “चलो, बात करतेकरते 2 घंटे हो गए. अब खाना खा लिया जाए?”

“चलो…” सुलक्षणा बोली.

“और एक बात आदमी के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है और जिंदगी का रास्ता उस के बेड (बिस्तर) से हो कर जाता है,” दर्शन समझाता हुआ बोला.

“आप ने मुझे नया पाठ पढ़ा दिया,” कहते हुए सुलक्षणा ने दर्शन के दोनों गालों पर गहरे चुंबन अंकित कर दिए.

“अरे, वाह. 6 महीने में पहली बार बेडरूम के बाहर. वाह, मेरी छुईमुई,” कह कर दर्शन ने भी सुलक्षणा को चूम लिया.

“अब छुईमुई… नहीं हूं. अब मैं हूं फ्लावर औफ एक्सप्रेशन,” कह कर सुलक्षणा मुसकरा दी.

खाना लगाते समय वह गुनगुना रही थी, ‘सजना है मुझे सजना के लिए…’ आज वह इस गीत को संपूर्ण अर्थों में समझ रही थी.

अब्दुल मामा

भारतीय सैन्य अकादमी में आज ‘पासिंग आउट परेड’ थी. सभी कैडेट्स के चेहरों पर खुशी झलक रही थी. 2 वर्ष के कठिन परिश्रम का प्रतिफल आज उन्हें मिलने वाला था. लेफ्टिनेंट जनरल जेरथ खुद परेड के निरीक्षण के लिए आए थे. अधिकांश कैडेट्स के मातापिता, भाईबहन भी अपने बच्चों की खुशी में सम्मिलित होने के लिए देहरादून आए हुए थे. चारों ओर खुशी का माहौल था.

नमिता आज बहुत गर्व महसूस कर रही थी. उस की खुशी का पारावार न था. वर्षों पूर्व संजोया उस का सपना आज साकार होने जा रहा था. वह ‘बैस्ट कैडेट’ चुनी गई थी. जैसे ही उसे ‘सोवार्ड औफ औनर’ प्रदान किया गया, तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा ग्राउंड गूंज उठा.

परेड की समाप्ति के बाद टोपियां उछालउछाल कर नए अफसर खुशी जाहिर कर रहे थे. महिला अफसरों की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था. उन्होंने दिखा दिया था कि वे भी किसी से कम नहीं हैं. नमिता की नजरें भी अपनों को तलाश रही थीं. परिवारजनों की भीड़ में उस की नजरें अपने प्यारे अब्दुल मामा और अपनी दोनों छोटी बहनों नव्या व शमा को खोजने लगीं. जैसे ही उस की नजर दूर खड़े अब्दुल मामा व अपनी बहनों पर पड़ी वह बेतहाशा उन की ओर दौड़ पड़ी.

अब्दुल मामा ने नमिता के सिर पर हाथ रखा और फिर उसे गले लगा लिया. आशीर्वाद के शब्द रुंधे गले से बाहर न निकल पाए. खुशी के आंसुओं से ही उन की भावनाएं व्यक्त हो गई थीं. नमिता भी अब्दुल मामा की ऊष्णता पा कर फफक पड़ी थी.

‘अब्दुल मामा, यह सब आप ही की तो बदौलत हुआ है, आप न होते तो हम तीनों बहनें न तो पढ़लिख पातीं और न ही इस योग्य बन पातीं. आप ही हमारे मातापिता, दादादादी और भैया सबकुछ हैं. सचमुच महान हैं आप,’ कहतेकहते नमिता की आंखों  से एक बार फिर अश्रुधारा बह निकली. उस की पलकें कुछ देर के लिए मुंद गईं और वह अतीत में डूबनेउतराने लगी.

मास्टर रामलगन दुबे एक सरकारी स्कूल में अध्यापक थे. नमिता, नव्या व शमा उन की 3 प्यारीप्यारी बेटियां थीं. पढ़ने में एक से बढ़ कर एक. मास्टरजी को उन पर बहुत गर्व था. मास्टरजी की पत्नी रामदुलारी पढ़ीलिखी तो न थी, पर बेटियों को पढ़ने के लिए अकसर प्रेरित करती रहती. बेटियों की परवरिश में वह कभी कमी न छोड़ती. मास्टरजी का यहांवहां तबादला होता रहता, पर रामदुलारी मास्टरजी के पुश्तैनी कसबाई मकान में ही बेटियों के साथ रहती. मास्टरजी बस, छुट्टियों में ही घर आते थे.

पासपड़ोस के सभी लोग मास्टरजी और उन के परिवार की बहुत इज्जत करते थे. पूरा परिवार एक आदर्श परिवार के रूप में जाना जाता था. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. मास्टरजी की तीनों बेटियां मनोयोग से अपनीअपनी पढ़ाई कर रही थीं.

एक दिन मास्टरजी को अपनी पत्नी के साथ किसी रिश्तेदार की शादी में जाना पड़ा. पढ़ाई के कारण तीनोें बेटियां घर पर ही रहीं. शादी से लौटते समय जिस बस में मास्टरजी आ रहे थे, वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई. नहर के पुल पर ड्राइवर नियंत्रण खो बैठा. बस रेलिंग तोड़ती हुई नहर में जा गिरी. मास्टरजी, उन की पत्नी व कई अन्य लोगों की दुर्घटनास्थल पर ही मौत हो गई.

जैसे ही दुर्घटना की खबर मास्टरजी के घर पहुंची, तीनों बेटियां तो मानो जड़वत हो गईं. उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. जैसे ही उन की तंद्रा लौटी तो तीनों के सब्र का बांध टूट गया. रोरो कर उन का बुरा हाल हो गया.

जब नमिता ने अपने मातापिता की चिता को मुखाग्नि दी तो वहां मौजूद लोगों की आंखें भी नम हो गईं. सभी सोच रहे थे कि कैसे ये तीनों लड़कियां इस भारी मुश्किल से पार पाएंगी. सभी की जबान पर एक ही बात थी कि इतने भले परिवार को पता नहीं किस की नजर लग गई. सभी लोग तीनों बहनों को दिलासा दे रहे थे.

नमिता ने जैसेतैसे खुद पर नियंत्रण किया. वह सब से बड़ी जो थी. दोनों छोटी बहनों को ढाढ़स बंधाया. तीनों ने मुसीबत का बहादुरी से सामना करने की ठान ली.

तेरहवीं की रस्मक्रिया के बाद तीनों बहनें दोगुने उत्साह से पढ़ाई करने में जुट गईं. उन्होंने अपने मातापिता के सपने को साकार करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था. उन्हें आर्थिक चिंता तो नहीं थी, पर मातापिता का अभाव उन्हेें सालता रहता.

अगले वर्ष नमिता ने कालेज में प्रवेश ले लिया था. अपनी प्रतिभा के बल पर वह जल्दी ही सभी शिक्षकों की चहेती बन गई. पढ़ाई के साथसाथ वह अन्य कार्यक्रमों में भी  भाग लेती थी. उस की हार्दिक इच्छा सेना में अफसर बनने की थी. इसी के वशीभूत नमिता ने एनसीसी ले ली. अपने समर्पण के बल पर उस ने शीघ्र ही अपनेआप को श्रेष्ठ कैडेट के रूप में स्थापित कर लिया.

परेड के बाद अकसर नमिता को घर पहुंचने में देर हो जाती. उस दिन भी परेड समाप्त होते ही वह चलने की तैयारी करने लगी. शाम हो गई थी. कालेज के गेट के बाहर वह देर तक खड़ी रही, पर कोई रिकशा नहीं दिखाई दिया. आकाश में बादल घिर आए थे. बूंदाबांदी के आसार बढ़ गए थे. वह चिंतित हो गई थी, तभी एक रिकशा उस के पास आ कर रुका. चेकदार लुंगी पहने, सफेद कुरता, सिर पर टोपी लगाए रिकशा चालक ने अपनी रस घोलती आवाज में पूछा, ‘बिटिया, कहां जाना है?’

‘भैया, घंटाघर के पीछे मोतियों वाली गली तक जाना है, कितने पैसे लेंगे?’ नमिता ने पूछा.

‘बिटिया पहले बैठो तो, घर पहुंच जाएं, फिर पैसे भी ले लेंगे.’

नमिता चुपचाप रिकशे में बैठ गई.

बूंदाबांदी शुरू हो गई. हवा भी तेज गति से बहने लगी थी. अंधेरा घिरने लगा था.

‘भैया, तेजी से चलो,’ नमिता ने चिंतित स्वर में कहा.

‘भैया कहा न बिटिया, तनिक धीरज रखो और विश्वास भी. जल्दी ही आप को घर पहुंचा देंगे,’ रिकशे वाले भैया ने नमिता को आश्वस्त करते हुए कहा.

कुछ ही देर बाद बारिश तेज हो गई. नमिता तो रिकशे की छत की वजह से थोड़ाबहुत भीगने से बच रही थी, लेकिन रिकशे वाला भैया पूरी तरह भीग गया था. जल्दी ही नमिता का घर आ गया था. नव्या और शमा दरवाजे पर खड़ी उस का इंतजार कर रही थीं. रिकशे से उतरते ही भावावेश में दोनों बहनें नमिता से लिपट गईं. रिकशे वाला भैया भावविभोर हो कर उस दृश्य को देख रहा था.

‘भैया, कितने पैसे हुए… आज आप देवदूत बन कर आए. हां, आप भीग गए हो न, चाय पी कर जाइएगा,’ नमिता एक ही सांस में कह गई.

‘बिटवा, आज हम आप से किसी भी कीमत पर पैसे नहीं लेंगे. भाई कहती हो तो फिर आज हमारी बात भी रख लो. रही बात चाय की तो कभी मौका मिला तो जरूरी पीएंगे,’ कहते हुए रिकशे वाले भैया ने अपने कुरते से आंखें पोंछते हुए तीनों बहनों से विदा ली. तीनों बहनें आंखों से ओझल होने तक उस भले आदमी को जाते हुए देखती रहीं. वे सोच रही थीं कि आज के इस निष्ठुर समाज में क्या ऐसे व्यक्ति भी मौजूद हैं.

जब भी एनसीसी की परेड होती और नमिता को देर हो जाती तो उस की आंखें उसी रिकशे वाले भैया को तलाशतीं. एक बार अचानक फिर वह मिल गया. बस, उस के बाद तो नमिता को फिर कभी परेड वाले दिन किसी रिकशे का इंतजार ही नहीं करना पड़ा. वह नियमित रूप से नमिता को लेने कालेज पहुंच जाता.

नमिता को उस का नाम भी पता चल गया था, अब्दुल. हां, यही नाम था उस के रिकशे वाले भैया का. वह निसंतान था. पत्नी भी कई वर्ष पूर्व चल बसी थी. जब अब्दुल को नमिता के मातापिता के बारे में पता चला तो तीनों बहनों के प्रति उस का स्नेहबंधन और प्रगाढ़ हो गया था.

नमिता को तो मानो अब्दुल रूपी परिवार का सहारा मिल गया था. एक दिन अब्दुल के रिकशे से घर लौटते नमिता ने कहा, ‘अब्दुल भैया, अगर आप को मैं अब्दुल मामा कहूं तो आप को बुरा तो नहीं लगेगा?’

‘अरे पगली, मेरी लल्ली, तुम मुझे भैया, मामा, चाचा कुछ भी कह कर  पुकारो, मुझे अच्छा ही नहीं, बहुत अच्छा लगेगा,’ भावविह्वल हो कर अब्दुल बोला.

अब्दुल मामा नमिता, नव्या व शमा के परिवार के चौथे सदस्य बन गए थे. तीनों बहनों को कोई कठिनाई होती, कहीं भी जाना होता, अब्दुल मामा तैयार रहते. पैसे की बात वे हमेशा टाल दिया करते. एकदूसरे के धार्मिक उत्सवों व त्योहारों का वे खूब ध्यान रखते.

रक्षाबंधन का त्योहार नजदीक था. तीनों बहनें कुछ उदास थीं. अब्दुल मामा ने उन के मन की बात पढ़ ली थी. रक्षाबंधन वाले दिन नहाधो कर नमाज पढ़ी और फिर अब्दुल मामा जा पहुंचे सीधे नमिता के घर. रास्ते से थोड़ी सी मिठाई भी लेते गए.

‘नमिता थाली लाओ, तिलक की सामग्री भी लगाओ,’ अब्दुल मामा ने घर पहुंचते ही नमिता से आग्रह किया. नमिता आश्चर्यचकित मामा को देखती रही. वह झटपट थाली ले आई. अब्दुल मामा ने कुरते की जेब से 3 राखियां निकाल कर थाली में डाल दीं और साथ लाई मिठाई भी.

‘नमिता, नव्या, शमा तीनों बहनें बारीबारी से मुझे राखी बांधो,’ अब्दुल मामा ने तीनों बहनों को माधुर्यपूर्ण आदेश दिया.

‘मामा… लेकिन…’ नमिता कुछ सकुचाते हुए कहना चाहती थी, पर कह न पाई.

‘सोच क्या रही हो लल्ली, तुम्हीं ने तो एक दिन कहा था आप हमारे मामा, भैया, चाचा, मातापिता सभी कुछ हो. फिर आज राखी बांधने में सकुचाहट क्यों,’ अब्दुल मामा ने नमिता को याद दिलाया.

नमिता ने झट से अब्दुल मामा की कलाई पर राखी बांध उन्हें तिलक कर उन का मुंह मीठा कराया व आशीर्वाद लिया. नव्या व शमा ने भी नमिता का अनुसरण किया. तीनों बहनों ने मातापिता के चित्र को नमन किया और उन का अब्दुल मामा को भेजने के लिए धन्यवाद किया.

उस दिन ‘ईद-उल-फितर’ के त्योहार पर अब्दुल मामा बड़ा कटोरा भर मीठी सेंवइयां ले आए थे. तीनों बहनों ने उन्हें ईद की मुबारकबाद दी और ईदी भी मांगी, फिर भरपेट सेंवइयां खाईं.

अब्दुल मामा तीनों बहनों की जीवन नैया के खेवनहार बन गए थे. जब भी जरूरत पड़ती वे हाजिर हो जाते. तीनों बहनों की मदद करना उन्होंने अपने जीवन का परम लक्ष्य बना लिया था. तीनों बहनों को अब्दुल मामा ने भी मातापिता की कमी का एहसास नहीं होने दिया. किसी की क्या मजाल जो तीनों बहनों के प्रति जरा भी गलत शब्द बोल दे.

अब्दुल मामा जातिधर्म की दीवारों से परे तीनों बहनों के लिए एक संबल बन गए थे. उन की जिंदगी के मुरझाए पुष्प एक बार फिर खिल उठे. तीनों बहनें अपनेअपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए समर्पण भाव से पढ़ती रहीं व आगे बढ़ती रहीं.

नमिता ने बीएससी अंतिम वर्ष की परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण कर भारतीय सैन्य अकादमी की परीक्षा दी. अपनी प्रतिभा, एनसीसी के प्रति समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर उस का चयन भारतीय सेना के लिए हो गया. नव्या और शमा भी अब कालेज में आ गई थीं.

आज नमिता को देहरादून के लिए रवाना होना था. अब्दुल मामा के साथ नव्या और शमा भी स्टेशन पर नमिता को विदा करने आए थे. सभी की आंखें नम थीं. अव्यक्त पीड़ा चेहरों पर परिलक्षित हो रही थी.

‘अब्दुल मामा, नव्या और शमा का ध्यान रखना. दोनों आप ही के भरोसे हैं और हां, मैं भी तो आप के आशीर्वाद से ही ट्रेनिंग पर जा रही हूं,’ सजल नेत्रों से नमिता ने मामा से कहा.

‘तुम घबराना नहीं मेरी बच्ची, 2 वर्ष पलक झपकते ही बीत जाएंगे. आप को सद्बुद्धि प्राप्त हो और आगे बढ़ने की शक्ति मिले. छुटकी बहनों की चिंता मत करना. मैं जीतेजी इन्हें कष्ट नहीं होने दूंगा,’ नमिता को ढाढ़स बंधाते हुए अब्दुल मामा ने दोनों बहनों को गले लगा लिया.

गाड़ी धीरेधीरे आगे बढ़ रही थी. नमिता धीरेधीरे आंखों से ओझल हो गई. अब्दुल मामा ने जीजान से दोनों बहनों की देखभाल का मन ही मन संकल्प ले लिया था. 2 वर्ष तक वे उस संकल्प को मूर्त्तरूप देते रहे.

अचानक नमिता की तंद्रा टूटी तो उस ने पाया, अब्दुल मामा के आंसुओं से उस की फौजी वरदी भीग चुकी थी. मामा गर्व से नमिता को निहार रहे थे.

‘‘तुम ने अपने दिवंगत मातापिता और हम सभी का नाम रोशन कर दिया है नमिता. तुम बहुत तरक्की करोगी. मैं तुम्हारी उन्नति की कामना करता हूं. तुम्हारी छोटी बहनें भी एक दिन तुम्हारी ही तरह अफसर बनेंगी, मुझे पूरा यकीन है,’’ अब्दुल मामा रुंधे कंठ से बोले.

‘‘मामा… हम धन्य हैं, जो हमें आप जैसा मामा मिला,’’ तीनों बहनें एकसाथ बोल उठीं.

‘‘एक मामा के लिए या एक भाई के लिए इस से बढि़या सौगात क्या हो सकती है जो तुम जैसी होनहार बच्चियां मिलीं. तुम कहा करती थी न नमिता कि मुझ पर तुम्हारा उधार बाकी है. हां, बाकी है और उस दिन उतरेगा जब तुम तीनों अपनेअपने घरबार में चली जाओगी. मैं इन्हीं बूढ़े हाथों से तुम्हें डोली में बिठाऊंगा,’’ अब्दुल मामा कह कर एकाएक चुप हो गए.

तीनों बहनें एकटक मामा को देखे जा रही थीं और मन ही मन प्रार्थना कर रही थीं कि उन्हें अब्दुल मामा जैसा सज्जन पुरुष मिला. तीनों बहनें और अब्दुल मामा मौन थे. उन का मौन, मौन से कहीं अधिक मुखरित था. उन सभी के आंसू जमीन पर गिर कर एकाकार हो रहे थे. जातिधर्म की दीवारें भरभरा कर गिरती हुई प्रतीत हो रही थीं.

मैडमजी- भाग 3: लिफाफे में क्या लिखा था

डाक्टर बोस ने विनय की सारी बात सुनने के बाद तुरंत अपनी सैक्रेटरी को कैबिन में बुलाया और कहा, ‘‘अगले 2 दिन की मेरी सारी अपौइंमैंट कैंसिल कर दो.’’

डाक्टर बोस ने विनय से कहा, ‘‘सर आप चिंता मत करिए. मैं कल ही बैंगलुरु पहुंच जाऊंगा.’’

विनय ने हाथ जोड़ कर उन्हें थैंक्यू कहा और उठ कर जाने लगा तो डाक्टर बोस ने कहा, ‘‘सर मेरी फीस.’’

विनय वापस मुड़ा और बोला, ‘‘सौरी डाक्टर मैं इस बारे में बात करना भूल गया.’’

डाक्टर बोस ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. आप एक काम करिए एक खाली चैक पर अपने साइन कर के यहां छोड़ दीजिए.’’

विनय सोचने लगा इन नई पीढ़ी के डाक्टरों को सिर्फ पैसों से मतलब है. इंसान की भावनाओं और तकलीफ से इन्हें कुछ लेनादेना नहीं. उस ने अपने बैग से चैकबुक निकाल एक चैक फाड़ा और उस पर अपने साइन कर के टेबल पर रख दिया.

अगले दिन डाक्टर बोस बैंगलुरु पहुंच गए. उन्होंने अस्पताल जा कर शिखा के

सारे टैस्ट एक बार फिर करवाए और रिपोर्ट आने के बाद दूसरे दिन शिखा का औपरेशन कर दिया. औपरेशन सफल रहा.

विनय डाक्टर बोस को थैंक्यू बोलने के लिए उन से मिलने पहुंचा तो पता चला कि वे औपरेशन करने के एक घंटे बाद ही मुंबई वापस चले गए.

शिखा थोड़े दिन अस्पताल में रहने के बाद ठीक हो कर घर आ गई थी. विनय शिखा को डाक्टर बोस के बारे में बताते हुए कह रहा था

कि थोड़ा अजीब सा रवैया लगा मुझे उन का पर इतनी सी उम्र में इतना बड़ा नाम कमाना कोई छोटी बात नहीं है. तारीफ के लायक तो है

डाक्टर बोस.

दोनों बातें कर ही रहे थे कि कूरियर से एक डाक आई जो नौकर ने ला कर विनय के हाथ में दे दी थी. उस ने लिफाफे को पलट कर देखा तो पीछे डाक्टर बोस का नाम लिखा था.

विनय ने लिफाफा खोला तो उस में वही चैक था जो साइन कर के उस ने डाक्टर बोस

की टेबल पर छोड़ था. चैक में पैसे भरने की जगह अब भी खाली थी, पर चैक के पीछे कुछ लिखा था.

‘‘डियर सर,

‘‘इस महीने की 7 तारीख को मुंबई में मेरे अस्पताल की ओपनिंग है, जिस में आप को अपनी फैमिली के साथ उपस्थित होना है. यह ही मेरी फीस है.

‘‘थैंक्यू.

‘‘आप का डाक्टर बोस.’’

शिखा ने विनय से कहा, ‘‘सच ही कह रहे थे आप यह तो बहुत ही अजीब डाक्टर है. अब तो मेरे मन में भी इन से मिलने की इच्छा जाग उठी है.’’

विनय ने कहा, ‘‘डाक्टर बोस की इस

इच्छा का हमें मान तो रखना ही होगा शिखा. मैं कल ही 7 तारीख की फ्लाइट के टिकट बुक

कर देता हूं और उन्हें मैसेज भी कर देता हूं कि हम 7 तारीख को सुबह की फ्लाइट से मुंबई आ रहे हैं.’’

7 तारीख को विनय और शिखा मुंबई के लिए रवाना हो गए. दोनों एयरपोर्ट से जैसे ही बाहर निकले उन्हें एक आदमी हाथ में डाक्टर विनय सिंह नाम का बोर्ड ले कर खड़ा दिखा.

विनय उस के पास गया और बोला, ‘‘मैं ही हूं डाक्टर विनय सिंह हूं. लेकिन आप को किस ने भेजा है?’’

उस आदमी ने कहा, ‘‘वैलकम सर, मुझे डाक्टर बोस ने आप को रिसीव करने के लिए भेजा है,’’ और फिर उस आदमी ने अस्पताल पहुंच कर विनय और शिखा को पूरे सम्मान के साथ मुख्य अतिथि के स्थान पर बैठा दिया.

शिखा और विनय अचानक मिलने वाले इस सम्मान से बहुत हैरान थे.

शिखा विनय से कह रही थी, ‘‘ये सब

क्या हो रहा है, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. पहले तो डाक्टर बोस ने हम से फीस नहीं ली और आज यहां बुला कर हमें इतना सम्मान दे

रहे हैं. आखिर इस के पीछे क्या वजह हो

सकती है?’’

विनय शिखा के सवालों पर कुछ प्रतिक्रिया करता उस से पहले ही माइक की आवाज आई, ‘‘वैलकम लेडीज ऐंड जैंटलमैन.’’

विनय ने शिखा को बताया, ‘‘यह ही डाक्टर बोस हैं.’’

डाक्टर बोस ने आगे बोलना शुरू किया, कहा इस से पहले कि मुख्य अतिथि रीबन काट कर अस्पताल की ओपनिग करें मैं इन के प्रभावी व्यक्तित्व के बारे में आप सब को कुछ बताना चाहता हूं.

‘‘अकसर हमारी सफलता के पीछे कुछ ऐसे लोग होते हैं जो भले ही हमारी रोज की जिंदगी का हिस्सा न हों, हर पल हमारे साथ न रहें पर उन की सोच और उन के विचार हमारे दिल और दिमाग पर बहुत गहरी छाप छोड़ देते हैं, जिस कारण हम उन्हें अपना आदर्श मान लेते हैं.

‘‘आज से 20 साल पहले सिगनल पर बेहोश पडे़ एक लड़के को अगर ऐसे ही एक महान व्यक्तित्त्व ने सहारा न दिया होता, समय पर उसे अस्पताल पहुंचा कर उस की मदद न की होती और ममता भरा हाथ उस के सिर पर न फेरा होता तो वह लड़का आज डाक्टर अतुल बोस बन कर आप के सामने खड़ा न होता. सिगनल पर किताबें बेचने वाले लड़के से डाक्टर बोस बनने तक का मेरा सफर जिस महान व्यक्तित्व से प्रभावित है आप सभी को आज उन से मिलवाते हुए मुझे बेहद खुशी हो रही है.’’

शिखा और विनय ये सब सुन कर अपनी कुरसी पर से उठ खड़े हुए. दोनों हैरानी से एकदूसरे की तरफ देख रहे थे और सोच रहे थे अतुल ही डाक्टर बोस है. शिखा को ये सब

किसी सपने से कम नहीं लग रहा था. उस ने कभी नहीं सोचा था कि अतुल से उस की मुलाकात इतने आश्चर्यजनक ढंग से होगी. शिखा की आंखें आज नम नहीं थीं बल्कि खुशी के आंसुओं से भरी थीं.

डाक्टर बोस शिखा और विनय के पास आए और फिर शिखा का हाथ

पकड़ा कहा, ‘‘आइए मैडमजी अपने अतुल की सफलता का दरवाजा अपने हाथों से खोलिए.’’

शिखा ने रिबन काट कर अतुल के अस्पताल का उद्घाटन कर दिया.

डाक्टर बोस जैसे ही शिखा और विनय के पैर छूने के लिए झुके तो विनय ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया. शिखा ने उन के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम पर बहुत गर्व है अतुल. आखिर तुम हार्ट स्पैशलिस्ट बन ही गए.’’

अतुल ने हंसते हुए कहा, ‘‘हार्ट स्पैशलिस्ट नहीं मैडमजी दिल का डाक्टर.’’

‘‘हां, दिल का डाक्टर,’’ बोल कर शिखा भी जोर से हंस दी.

मैडमजी- भाग 2: लिफाफे में क्या लिखा था

शिखा दौड़ते हुए विनय के पास आई और बोली, ‘‘क्या हुआ सरगम को? आपने मुझे फोन क्यों नही किया? बुखार कैसे आ गया उसे.’’

शिखा सरगम को देखने के लिए उस के कमरे मे जाने लगी तो विनय ने उस का हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर बैठा दिया और पानी का गिलास उसे देते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं हुआ है सरगम को, वह बिलकुल ठीक है और तुम से कितनी बार कहा है कि इतनी जल्दी टैंशन में मत आया करो. पहले ही बीपी ज्यादा रहता है.’’

शिखा ने कहा, ‘‘पर मम्मी ऐसा क्यों बोल रही हैं?’’

‘‘उफ शिखा मां की आदत तुम जानती हो न किसी भी बात को बढ़ाचढ़ा कर बोलने की उन की पुरानी आदत है. तुम परेशान मत हो. सफर से आई हो. आराम करो. मैं हौस्पिटल जा कर आता हूं… शाम को मिलते हैं.’’

शाम को विनय के अस्पताल से लौटने के बाद शिखा और विनय साथ बैठ कर चाय पी रहे थे, तो विनय ने शिखा से पूछा, ‘‘तुम्हारी मीटिंग कैसी रही?’’

‘‘अच्छी रही. आप को कुछ और भी बताना है,’’ बोल कर शिखा ने विनय को अतुल के बारे में सब बताया, ‘‘मुझे पूरा यकीन है वह लड़का अतुल जरूर एक दिन बहुत बड़ा हार्ट स्पैशलिस्ट बनेगा.’’

विनय ने शिखा से कहा, ‘‘बहुत अच्छा किया तुम ने उसे अपना कार्ड दे कर, उसे शिक्षित होने के लिए जो भी मदद चाहिए होगी हम उस तक पहुंचाने की पूरी कोशिश करेंगे.’’

शिखा ने कहा, ‘‘जी, मैं ने भी यही सोच कर उसे अपना कार्ड दिया है.’’

इस बात को 1 साल बीत गया था. अचानक एक दिन शिखा के फोन की घंटी बजी.

उस ने फोन उठा कर हैलो बोला तो उस के चेहरे पर मुसकान आ गई, ‘‘हैलो अतुल

कैसे हो? तुम ठीक हो न? किसी मदद की जरूरत है क्या? बोलो बेटा.’’

अतुल ने कहा, ‘‘हां मैडमजी मै ठीक हूं और किसी मदद की जरूरत नहीं है. आप को एक बात बतानी थी इसलिए फोन किया.’’

‘‘हांहां बोलो,’’ शिखा ने कहा.

अतुल ने कहा, ‘‘मैडमजी मैं ने 10वीं की परीक्षा में टौप किया है और मुझे यहां जूतों के एक बड़े शोरूम में नौकरी भी मिल गई है. अब मैं अपनी आगे की पढ़ाई का खर्च अच्छे से उठा सकूंगा. यही बताने के लिए आप को फोन किया,’’ शिखा ने कहा, ‘‘शाबाश अतुल. ऐसे ही आगे बढ़ते रहना. तुम सोच भी नहीं सकते तुम्हारी इस सफलता के बारे में सुन कर मुझे कितनी खुशी हो रही है. आगे कभी किसी तरह की मदद की जरूरत पडे़ तो फोन जरूर करना.’’

‘‘थैंक्यू मैडमजी, अब फोन रखता हूं्,’’ अतुल बोला.

फोन कट चुका था. अतुल की सफलता की खबर ने शिखा की आंखों को फिर से नम कर दिया था.

शिखा ने विनय को अतुल की सफलता के बारे में बताया तो उसे भी बहुत खुशी हुई. कुछ महीनों बाद शिखा को एक बार फिर औफिस के काम से मुंबई जाने का अवसर मिला. अतुल से मिलने की आस में शिखा बहुत उत्साहित थी. इस बार विनय भी शिखा के साथ मुंबई जा रहा था. शिखा को पूरा यकीन था कि विनय को अतुल से मिल कर बहुत खुशी होगी.

मुंबई आ कर शिखा ने सब से पहले अपने औफिस का काम खत्म किया. उस के बाद विनय के साथ अतुल से मिलने के लिए उसी सिगनल पर पहुंच गई जहां अतुल उसे मिला था. अतुल वहां नजर नहीं आया तो शिखा ने उस सिगनल पर सामान बेचने वाले दूसरे बच्चों से अतुल के बारे में पूछताछ की. तब उन बच्चों ने बताया कि अतुल अब सिगनल पर किताबें नहीं बेचता. उस की एक बड़ी दुकान में नौकरी लग गई है.

शिखा ने दुकान का नाम पूछा तो किसी को उस की जानकारी नहीं थी. शिखा सोचने लगी कि अतुल ने जब फोन किया था तब बताया तो था कि जूतों के शोरूम में नौकरी मिली है उसे. कितनी बड़ी गलती हो गई मेरे से. मैं ने अतुल से दुकान का नाम नहीं पूछा. ये सब सोच कर शिखा बहुत निराश हो गई. उस ने थोड़ी देर सोचा, फिर ड्राइवर से कहा, ‘‘गाड़ी स्टेशन के पास वाली झोंपड़पट्टी की तरफ ले चलो.’’

‘‘कौन सा स्टेशन मैडम?’’ ड्राइवर ने पूछा, ‘‘मुंबई में बहुत स्टेशन हैं. जब तक आप नाम नहीं बताएंगी मैं आप को नहीं ले जा पाऊंगा.’’

विनय ने शिखा को समझाया कि डाइवर सही कह रहा है. मुंबई जैसे शहर में बिना किसी जानकारी के किसी को ढूंढ़ना आसान नहीं है.

शिखा और विनय अगले दिन बैंगलुरु लौट आए. शिखा को अतुल से मुलाकात न हो पाने का बहुत अफसोस हुआ.

अतुल का फिर कभी फोन नहीं आया.

कहते हैं समय के साथ हर याद धुंधली पड़ने लगती है.

मगर 20 साल गुजर जाने के बाद भी शिखा के जेहन में अतुल आज भी एक मासूम सी याद बन कर अपनी जगह बनाए हुए था. शिखा और विनय अब सीनियर सिटिजन की श्रेणी में आ चुके थे. उन की बेटी सरगम की शादी हो चुकी थी. शिखा की तबीयत बीपी ज्यादा होने के कारण अकसर खराब रहने लगी थी. विनय ने सरगम की शादी के बाद शिखा की नौकरी छुड़वा दी थी. अब विनय अपना ज्यादा समय शिखा के साथ ही गुजारता था.

अचानक एक दिन शिखा की तबीयत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई.

विनय ने तुरंत उसे अपने अस्पताल में भरती कर दिया. सारे टैस्ट करवाने के बाद विनय समझ गया कि अब औपरेशन ही शिखा का आखिरी इलाज है. उस ने शिखा के औपरेशन के लिए किसी बड़े हार्ट सर्जन से संपर्क करने का फैसला लिया.

उस ने इस बारे में अपने अस्पताल के दूसरे डाक्टरों से सलाह ली तो उन्होंने बताया हार्ट स्पैशलिस्ट की सूची में आजकल डाक्टर बोस का नाम सब से ऊपर है पर वे बहुत व्यस्त रहते हैं. उन से महीनों पहले अपौइंमैंट लेनी पड़ती है.’’

विनय ने डाक्टर अतुल के क्लीनिक में

फोन कर के अपौइंमैंट मांगा तो पता चला वे सेमिनार अटैंड करने अमेरिका गए हैं और 2 दिन बाद लौटेंगे.

2 दिन बाद विनय डाक्टर बोस से मिलने मुंबई पहुंच गया. विनय ने उन की सैक्रेटरी को अपना कार्ड दिया और आग्रह करते हुए कहा, ‘‘मेरा डाक्टर बोस से मिलना बहुत जरूरी है.’’

थोड़ी देर बाद विनय को बुलाया गया. वह जैसे ही उन के कैबिन के अंदर गया तो हैरान हो गया. उस ने डाक्टर बोस की जो छवि अपने मन में बनाई थी वह बिलकुल उस के विपरीत थे. उन की उम्र 40 के आसपास रही होगी. इतनी सी उम्र में इतना बड़ा नाम, उस ने तो सोचा था डाक्टर बोस तजरबे के साथ उम्र में भी काफी बडे़ होंगे, इसीलिए तो उन का नाम हार्ट सर्जन की सूची में सब से ऊपर है.’’

विनय को देख कर डाक्टर बोस अपनी कुरसी से उठ कर खडे़ हो गए और बोले, ‘‘आइए सर, क्या सेवा कर सकता हूं आप की?’’

विनय ने शिखा की तबीयत की पूरी जानकारी देते हुए उस की सारी रिपोर्टें उन्हे दिखाईं.

मैडमजी- भाग 1: लिफाफे में क्या लिखा था

गाड़ी के अचानक ब्रेक लगने से शिखा का ध्यान बाहर गया तो उस ने देखा कि सिगनल पर बहुत भीड़ जमा थी. उसे मीटिंग में जाने के लिए देर हो रही थी. उस ने ड्राइवर से उतर कर देखने को कहा तो ड्राइवर ने बताया कि कोई 14-15 साल का लड़का है. सडक पर बेहोश पड़ा है. शायद किसी गाड़ी ने उसे टक्कर मारी है.’’

शिखा ने कहा, ‘‘उसे अस्पताल ले जाना चाहिए.’’

ड्राइवर हंसा और बोला, ‘‘अरे मैडम लगता है आप मुंबई में नई आई हैं, इसलिए ऐसा कह रही हैं.’’

यहां हर टै्रफिक सिगनल की यही कहानी है. गलती इन बच्चों के मांबाप की है जो छोटी सी उम्र में इन्हें काम पर लगा कर छोड़ देते हैं. चलिए, मैं आप को दूसरे रास्ते से पहुंचा देता हूं.’’

शिखा ने कहा, ‘‘नहीं रुको.’’

वह गाडी से उतरी और उस ने भीड़ में खड़े लोगों से चिल्लाते हुए कहा, ‘‘इस बच्चे की जगह अगर आप में से किसी का बच्चा होता तब भी आप लोग ऐसे ही खड़े हो कर तमाशा देखते? चलिए हटिए सब यहां से.’’

शिखा ने ड्राइवर से कहा, ‘‘बच्चे को उठा कर गाड़ी में लिटा दो और जल्दी से किसी अस्पताल ले चलो,’’ फिर उस ने फोन कर के अपनी मीटिंग कैंसिल कर दी थी.’’

अस्पताल में डाक्टर ने उस बच्चे का चैकअप किया और शिखा से

कहा, ‘‘अच्छा हुआ आप इसे समय पर यहां ले आईं. सिर पर चोट लगी है. इसे यहां लाने मैं थोड़ी देर और होती तो खतरा हो सकता था. अब डरने की बात नहीं है. थोड़ी देर बाद इसे होश आ जाएगा, फिर यह घर जा सकता है.’’

शिखा उस लड़के के पास जा कर बैठ गई थी. कुछ देर बाद उसे होश आ गया था. शिखा ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘अब कैसा लग रहा है अतुल? दर्द तो नहीं हो रहा न?’’

उस बच्चे ने हैरानी से शिखा की ओर देखा और कहा, ‘‘अरे मैडमजी, आप को मेरा नाम कैसे पता?’’

शिखा ने कहा, ‘‘तुम्हारे हाथ पर लिखा है न.’’

अतुल ने कहा, ‘‘हां, पर यह तो बंगला में लिखा है? आप को बंगाली भाषा आती है?’’

‘‘हां थोड़ीबहुत आती है. चलो अब तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देती हूं,’’ शिखा ने कहा.

‘‘नहीं मैडमजी. मैं अभी घर नहीं जा सकता. मुझे अभी काम है. आप को मेरे आसपास एक किताबों का थैला पड़ा मिला होगा न?

‘‘हां वह गाड़ी में ही है. चलो. ड्राइवर को बता दो तुम्हें कहां छोड़ना है,’’ शिखा ने कहा.

गाड़ी में बैठते ही शिखा के बौस का फोन आ गया. वे शिखा पर मीटिंग कैंसिल करने के लिए चिल्ला रहे थे. शिखा उन्हें समझाने की कोशिश कर रही थी.

अतुल बडे़ ध्यान से सब सुन रहा था.

शिखा के फोन रखने के बाद अतुल ने उन से कहा ‘‘माफ कर दीजिए मैडमजी, ऐसा लग रहा है कि मेरे कारण आप को डांट पड़ गई. आप के काम का भी नुकसान हो गया. आप को देख कर लगता है कि आप किसी ऊंचे पद पर काम करती है.’’

शिखा ने हंसते हुए कहा, ‘‘हां मैं बैंगलुरु में एक बड़ी कंपनी में सीईओ हूं. यहां मुंबई में एक मीटिंग के लिए ही आई थी, पर तुम्हें माफी मांगने की जरूरत नहीं है. मिटिंग तो कल भी हो जाएगी पर आज अगर मै तुम्हें परेशानी में छोड़ कर चली जाती तो खुद से कभी नजरें नहीं मिला पाती. किसी के कठिन समय में उस के काम आना इस से बडा दूसरा और कोई काम नहीं होता. अच्छा अब तुम अपने बारे में भी तो कुछ बताओ,’’ शिखा ने कहा.

‘‘मैं अनाथ हूं मैडमजी,’’ अतुल बोला.

एक मुंहबोली मौसी है उन के साथ स्टेशन के पास वाली झोंपड़पट्टी में रहता हूं. सरकारी स्कूल में 9वीं कक्षा का छात्र हूं. मौसी बड़ी मुश्किल से मेरे खानेपीने का खर्च उठा पाती हैं. मुझे पढ़नेलिखने का बहुत शौक है, इसलिए स्कूल छूटने के बाद सिगनल पर ये कहानी की किताबें बेच कर खुद की शिक्षा का इंतजाम करता हूं.’’

शिखा ने पूछा, ‘‘क्या बनना चाहते हो?’’

अतुल ने बिना देर किए जवाब दिया, ‘‘डाक्टर और वह भी हार्ट स्पैशलिस्ट.’’

शिखा ने कहा, ‘‘अरे वाह. दिल का डाक्टर? इस की कोई खास वजह?’’

अतुल ने कहा, ‘‘मैं ने अपनी मां को नहीं देखा मैडमजी पर मेरी मौसी बताती हैं कि दिल का दौरा पड़ने से उन की मौत हुई थी. इसलिए मैं ने सोचा है कि मैं दिल का डाक्टर बनूंगा. अपनी मां के लिए तो मैं कुछ नहीं कर सका पर दूसरों के काम आ कर उन की सेवा कर के मुझे ऐसा लगेगा कि मै अपनी मां को श्रद्धांजलि दे पाया.’’

‘‘तुम्हारी सोच बहुत अच्छी है अतुल,’’ शिखा ने कहा.

फिर शिखा ने अतुल को बताया कि उस के पति भी बैंगलुरु में बडे़ डाक्टर हैं.

अतुल ने कहा, ‘‘अच्छा, क्या नाम है साहबजी का?’’

‘‘डाक्टर विनय सिंह.’’

‘‘मैं साहबजी से जरूर मिलना चाहूंगा. अगली बार जब आप मुंबई आओ तो साहबजी को भी साथ में लाना.’’

शिखा ने हंसते हुए कहा, ‘‘वे बहुत वयस्त रहते हैं, फिर भी अगर कभी मौका लगा तो तुम्हारे लिए कोशिश जरूर करूंगी.’’

बातोंबातों में अतुल की मंजिल आ चुकी थी. वह गाड़ी से उतरा तो शिखा भी उस के साथ उतर गई.

‘‘चलता हूं मैडमजी आप की मदद के लिए बहुतबहुत शुक्रिया,’’ और फिर उस ने शिखा के पैर छूए.’’

अतुल का पैर छूना शिखा को भावुक कर गया. शिखा की आंखें नम हो गई थीं.

उस ने अतुल से कहा, ‘‘तुम एक बहुत अच्छे इंसान हो अतुल. अपने अंदर की मासूमियत को कभी खोने मत देना और हां याद रखना कोई भी अच्छे काम को उस के अंजाम तक पहुंचाने में बहुत बाधाएं आती हैं, पर हार मत मानना, इसी लगन और मेहनत के साथ पढ़ाई करना और आगे बढ़ना.’’

शिखा ने अपने पर्स में से अपना कार्ड निकाला और अतुल को देते हुए कहा, ‘‘इस में मेरा फोन नंबर है, कभी भी किसी भी तरह की कोई मदद चाहिए होगी तो फोन कर लेना. मुझे तुम्हारी मदद करने में बहुत खुशी होगी.’’

अतुल ने कार्ड ले कर अपने थैले में डाल लिया और शिखा से कहा, ‘‘आपकी कही हुई हर बात को मैं हमेशा याद रखूंगा मैडमजी.’’

शिखा देर तक उसे जाते हुए देखते रही.

अतुल ने अपने थैले में से कुछ किताबें निकाल कर हाथ में पकड़ीं, थैला कंधे पर लटकाया और सिगनल पर रुकने वाली गाडि़यों के पीछे भागने लगा.

शिखा वापस आ कर गाड़ी में बैठ गई थी. अगले दिन उस ने अपनी मीटिंग अटैंड की और वापस बैंगलुरु के लिए रवाना हो गई.

शिखा घर पहुंची तो उस ने देखा उस की सास और विनय किसी बात को ले कर बहस कर रहे थे.

उस की सास ने जैसे ही शिखा को देखा उन की आवाज ने जोर पकड़ लिया, ‘‘लो आ गई मेम साहब, बच्ची 2 दिन से बुखार में पड़ी है. फुरसत मिल गई होगी बाहर के कामों से तो घरपरिवार पर भी थोड़ी नजर डाल लेना,’’ बोल कर सास अपने कमरे में चली गई.

हादसा: क्या समझ गई थी नीता देवी

इधरउधर देख कर मालविका ने पार्टी में आए अन्य लोगों का जायजा लेने का यत्न किया था पर कोई परिचित चेहरा नजर नहीं आया था.

‘‘अरे मौली, तुम यहां?’’ तभी पीछे से किसी का परिचित स्वर सुन कर उस ने पलट कर देखा तो सामने नमन खड़ा मुसकरा रहा था.

‘‘यही प्रश्न मैं तुम से भी कर सकती हूं. तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ मालविका मुसकरा दी थी.

‘‘बोर हो रहा हूं और क्या. सच कहूं तो इस तरह की पार्टियों में मेरी कोई रुचि नहीं है,’’ नमन ने उत्तर दिया था.

‘‘ऐसा है तो पार्टी में आए ही क्यों हो?’’

‘‘आया नहीं हूं, लाया गया हूं. सेठ रणबीर मेरे चाचाजी हैं. उन का निमंत्रण मिलने के बाद पार्टी में न आने से बड़ा अपराध कोई नहीं हो सकता,’’ नमन मुसकराया था.

‘‘वही हाल मेरा भी है. पर छोड़ो यह सब, बताओ, जीवन कैसा चल रहा है?’’

‘‘कुछ विशेष नहीं है बताने को. तुम्हारी ही तरह बैंक में अफसर हूं. पूरा दिन यों ही बीत जाता है. सप्ताहांत में थोड़ाबहुत रंगमंच पर अभिनय कर लेता हूं. हम कुछ मित्रों ने मिल कर नाट्य क्लब बना लिया है.’’

‘‘यह तो शुभ समाचार है कि तुम कालेज के दिनों के कार्यकलापों के लिए अब भी समय निकाल लेते हो. कभी हमें भी बुलाओ अपने नाटक दिखाने के लिए.’’

‘‘क्यों नहीं, हमारा एक नाटक शीघ्र ही मंचित होने वाला है. आमंत्रण मिले तो आना अवश्य. आजकल मेरे अधिकतर मित्र फिल्म या डिस्को में रुचि लेते हैं, नाटकों से वे दूर ही भागते हैं, पर तुम उन सब से अलग हो.’’

तभी नमन का कोई परिचित उसे पकड़ कर ले गया था और उतनी ही तेजी से हाथ में बीयर का गिलास थामे रोमी उस की ओर आया था.

‘‘कौन था वह?’’ रोमी ने तीखे स्वर में प्रश्न किया था.

‘‘किस की बात कर रहे हो तुम?’’

‘‘वही जिस से बहुत घुलमिल कर बात कर रही थीं तुम.’’

‘‘अच्छा वह, वह नमन है. कालेज में मेरा सहपाठी था और अब मेरी ही तरह बैंक की एक अन्य शाखा में कार्यरत है. मेरा अच्छा मित्र है,’’ मालविका ने उत्तर दिया था.

‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि इन टुटपुंजियों को मुंह मत लगाया करो. तुम अब केवल एक मध्यवर्गीय परिवार की युवती नहीं बल्कि मेरे जैसे जानेमाने उद्योगपति की महिलामित्र हो. मैं नहीं चाहता कि तुम अब अपने पुराने मित्रों से कोई भी संबंध रखो,’’ रोमी गुर्राया था. उस का तीखा स्वर सुन कर मालविका स्तब्ध रह गई थी.

वह चित्रलिखित सी पार्टी में भाग लेती रही थी पर मन ही मन सहमी हुई थी. यह सच था कि वह एक मध्यवर्गीय परिवार से संबंधित थी. जबकि रोमी एक जानेमाने उद्योगपति परिवार से था. मर्सिडीज, बीएमडब्लू जैसी गाडि़यों में घूमने वाले और पांचसितारा होटलों में उसे ले जाने वाले रोमी से मालविका बेहद प्रभावित थी. और कोई उस की नजरों में ठहरता ही नहीं था.

मौली उर्फ मालविका का परिवार बहुत अमीर न होने पर भी खासा प्रतिष्ठित था. पिता जानेमाने चिकित्सक थे पर पैसा कमाने को उन्होंने अपना ध्येय कभी नहीं बनाया. अपनी संतान में भी उन्होंने वैसे ही संस्कार डालने का यत्न किया था पर मौली रोमी की चकाचौंधपूर्ण जिंदगी से कुछ इस तरह प्रभावित थी कि किसी के समझानेबुझाने का उस पर कोई असर नहीं होता था.

पार्टी समाप्त हुई तो रोमी पूर्णतया सुरूर में था.

‘‘कैसी रही पार्टी?’’ उस ने कार को मुख्य सड़क पर मोड़ते हुए पूछा था.

‘‘बेहद उबाऊ और बकवास पार्टी थी. मेरा तो दम घुट रहा था वहां,’’ मौली बोली थी.

‘‘मैं जानता था तुम यही कहोगी. कभी गई हो ऐसी शानदार पार्टियों में? मैं तो यह सोच कर तुम्हें ऐसी पार्टियों में ले जाता हूं कि तुम सभ्य समाज के कुछ तौरतरीके सीख लोगी. पर तुम तो हर जगह अपने पुराने मित्र ढूंढ़ निकालती हो. कभी अपनी तुलना की है ऊंची सोसाइटी की अन्य युवतियों से? माना, कुदरत ने सौंदर्य दिया है पर ढंग से सजनासंवरना तो सीखना ही पड़ता है. अपनी पोशाक पर कभी दृष्टि डाली है तुम ने? महेंद्र बाबू की बेटी सुहानी पूछ बैठी कि तुम किस डिजाइनर की बनी पोशाक पहने हुए हो तो मैं तो शर्म से पानीपानी हो गया,’’ रोमी धाराप्रवाह बोले जा रहा था.

‘‘बस या और कुछ?’’ रोमी के चुप होते ही मौली चीखी थी, ‘‘तुम और तुम्हारा पांचसितारा कल्चर, मेरा दम घुटता है वहां. भूल मेरी थी जो मैं तुम्हारे साथ पार्टी में चली आई. मुझे नहीं चाहिए यह चमकदमक और तुम्हारे साथ इन बड़ी गाडि़यों में घूमना.’’

‘‘ठीक कहा तुम ने, तुम्हारी औकात ही नहीं है ऊंचे लोगों के बीच उठनेबैठने की या मेरे साथ महंगी कारों में घूमने की. चलो उतरो, इसी समय,’’ रोमी ने झटके से कार रोक दी थी.

मौली को काटो तो खून नहीं. उस के घर से 15 किलोमीटर दूर, निर्जन सड़क और रात के 12 बजे का समय, कहां जाएगी वह.

‘‘क्या कह रहे हो? मैं आधी रात को अकेली कहां जाऊंगी? मुझे मेरे घर तक छोड़ दो. मैं तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूलूंगी,’’ मौली बिलख उठी थी.

‘‘ये भावुकता की बातें रहने दो. मैं तुम मिडिल क्लास लोगों को भली प्रकार पहचानता हूं. अपनी गरज के लिए गिड़गिड़ाने लगते हो, रोनेपीटने लगते हो. काम निकल जाने पर अपने आदर्शों की बड़ीबड़ी बातें करते हो. दफा हो जाओ मेरी आंखों के सामने से,’’ रोमी ने घुड़क दिया था.

हार कर डरीसहमी सी मालविका कार से उतर गई थी. उसे आशा थी कि उस के उतरने के बाद रोमी का दिल पसीज जाएगा और वह उसे फिर कार में बैठने को कहेगा. पर ऐसा नहीं हुआ. उस के उतरते ही रोमी की कार फर्राटे भरते उस की आंखों से ओझल हो गई थी.

मौली ने अपना पर्स खोल कर देखा. टैक्सी का बिल चुकाने लायक पैसे थे पर टैक्सी मिले तब न. उस की आंखें डबडबा आईं. घर में तो सब यही सोच रहे होंगे कि वह रोमी के साथ है. वे बेचारे क्या जानें कि वह आधी रात को दूर तक नागिन की तरह फैली सीधीसपाट सड़क पर अपने ही आंसुओं को पीती पैदल चली आ रही होगी.

मौली कुछ दूर ही चली होगी कि उस के पास एक कार आ कर रुकी, जिस में 5 मनचले युवक सवार थे. शराब के नशे में धुत वे तरहतरह की आवाजें निकाल रहे थे. मौली को अकेले चलते देख कर उन्होंने अभद्र इशारे करते हुए उस से कार में बैठने का आग्रह किया. उस ने पहले तो उन की बात अनसुनी कर दी पर जब वे उस के साथ कार चलाते हुए उलटीसीधी हरकतें करने लगे तो वह फट पड़ी.

‘‘मेरा घर पास ही है. मैं ने एक बार कह दिया कि मुझे सहायता नहीं चाहिए तो क्या सुनाई नहीं पड़ता,’’ मौली दम लगा कर चीखी थी. पर कार में से

2 युवक डरावने अंदाज में उस की ओर बढ़े थे. वह सहायता के लिए चीखी तो दूसरी दिशा से आती एक कार उस के पास आ कर रुकी थी.

‘‘क्या हो रहा है यह?’’ कारचालक ने प्रश्न किया था.

‘‘देखिए न, मैं शरीफ लड़की हूं, ये गुंडे मुझे तंग कर रहे हैं,’’ मौली बोली थी.

‘‘शरीफ…हुंह, शरीफ लड़कियां आधी रात को यों सड़कों पर नहीं घूमतीं,’’ कारचालक हिकारत से बोला था, ‘‘और तुम लोग जाते हो यहां से या बुलाऊं पुलिस को?’’ उस ने युवकों को धमकाया तो वे भाग खड़े हुए.

‘‘कृपया मुझे मेरे घर तक छोड़ दीजिए,’’ मौली ने कारचालक से विनती की थी.

‘‘क्षमा कीजिए, महोदया. मेरी बहन नर्सिंगहोम में है. मैं उसे देखने जा रहा हूं. वैसे भी मैं न तो अनजान लोगों को लिफ्ट देता हूं न उन से लिफ्ट लेता हूं,’’ कार- चालक भी उसे अकेला छोड़ कर चला गया था.

अब उस ने अपना फोन निकाला था. अब तक वह डर रही थी कि किसी को उस के इस अपमान का पता चल गया तो कितनी बदनामी होगी पर अब नहीं. पापा भी नाराज होंगे पर इस समय सहीसलामत घर पहुंचना अत्यंत आवश्यक था. उस ने फोन किया तो मां ने फोन उठाया था.

‘‘मौली, कहां हो तुम? 1 बजने जा रहा है. मेरा चिंता के मारे बुरा हाल है. पार्टी क्या अभी तक चल रही है?’’ उस की मां नीता देवी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी. पर जब मौली ने वस्तुस्थिति से अवगत कराया तो उन के पांवों तले से जमीन खिसक गई थी.

‘‘किसे भेजूं इस समय? तुम्हारे पापा तो 2 घंटे पहले ही नींद की गोलियां ले कर सो चुके हैं. किस पड़ोसी को जगाऊं, इस समय. तुम जहां हो, वहीं आड़ में छिप कर खड़ी हो जाओ. सड़क पर अकेले चलना खतरे से खाली नहीं है. मैं अश्विन को जगाती हूं. वह न नहीं करेगा,’’ नीता देवी बोली थीं.

‘‘अश्विन? रहने दो मां. उस के पास तो कार भी नहीं है. मैं पुलिस को फोन करूंगी.’’

‘‘भूल कर भी ऐसी गलती मत करना. मैं अश्विन से पूछूंगी. यदि कार चला सकता है तो हमारी कार ले जाएगा, नहीं तो अपने स्कूटर पर आ जाएगा. यह समय नखरे दिखाने का नहीं है,’’ नीता देवी ने डपट दिया था.

अश्विन की बात सुनते ही मौली को झुरझुरी हो आई. वह मौली के घर में ही किराएदार था और किसी कालेज में व्याख्याता था. आजकल अखिल भारतीय प्रतियोगिता की तैयारी में जुटा था. नीता देवी से उस की खूब पटती थी. पर मौली ने उसे कभी महत्त्व नहीं दिया. प्रारंभ में उस ने मौली से बातचीत करने का प्रयत्न किया था पर उस की बेरुखी देख कर उस ने भी उस से किनारा कर लिया था. इस समय आधी रात को उस से मदद मांगना मौली को अजीब सा लग रहा था. वह आने के लिए तैयार भी होगा या नहीं, कौन जाने.

मौली खंभे की आड़ में खड़ी यह सब सोच ही रही थी कि नीता देवी का फोन आया था.

‘‘अश्विन को कार चलानी नहीं आती. वह अपने स्कूटर पर ही आ रहा है. शास्त्री रोड पर वह अपना हौर्न बजाते हुए आएगा तभी तुम सड़क पर आना,’’ नीता देवी ने आदेश दिया था.

लगभग 15 मिनट में हौर्न बजाता हुआ अश्विन उस के पास आ पहुंचा था, पर मौली को लगा मानो सदियां बीत गई हों. वह चुपचाप पिछली सीट पर बैठ गई थी.

घर पहुंची तो मां से गले मिल कर देर तक रोती रही थी मालविका. मां ने ही अश्विन की भूरिभूरि प्रशंसा करते हुए धन्यवाद दिया था. उस के मुंह से तो बोल ही नहीं फूटे थे.

इस के 2 दिन बाद ही रोमी का फोन आया था. देर तक क्षमायाचना करता रहा था. नशे में उस से बड़ी भूल हो गई. मालविका जो सजा दे उसे मंजूर है.

मौली ने उस की किसी बात का उत्तर नहीं दिया. सबकुछ चुपचाप सुनती रही थी. दोचार बार के फोन वार्त्तालाप के बाद रोमी घर आया. आज फिर वह मालविका को किसी विशेष आयोजन में ले जाने आया था.

उस के पिता के मित्र प्रसिद्ध फिल्म निर्माता नलिन बाबू की नई फिल्म का मुहूर्त था और रोमी सोचता था कि ऐसे ग्लैमरस आयोजन के लिए मौली न नहीं कह पाएगी.

नीता देवी ने तो सुनते ही डपट दिया था, ‘‘उस का साहस कैसे हुआ यहां आने का? उस दिन जो कुछ हुआ उस के बाद तुम उस के साथ जाने की बात सोच भी कैसे सकती हो.’’

‘‘जाने दो, मां. उस दिन रोमी नशे में था. बारबार थोड़े ही ऐसा करेगा. मैं तैयार हो कर आती हूं,’’ मालविका उठ कर अंदर गई थी.

कुछ ही क्षणों में बाहर से शोर उभरा था. किसी की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ पर मालविका के घर के सामने खड़ी रोमी की मर्सिडीज कार धूधू कर जल उठी थी.

आसपास के घरों के लोग घबरा गए थे. कुछ ही क्षणों में अग्निशामक दस्ता आ पहुंचा था. लोगों ने आग बुझाने के लिए पानी डालने का प्रयत्न भी किया था.

कैसे लगी यह आग? जितने मुंह उतनी बातें. कोई भी किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहा था. हैरानपरेशान रोमी अधजली कार ले कर जा चुका था. तभी नीता देवी की नजर मालविका पर पड़ी थी. उस के चेहरे पर अजीब संतुष्टि का भाव था. उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं. मानो, बिना कहे ही सब समझ गई हों.

नई सुबह: क्या अमृता ने की दूसरी शादी

अ  मृता को नींद नहीं आ रही थी.  वह जीवन के इस मोड़ पर आ  कर अपने को असहाय महसूस कर रही थी. उस ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसे दिन भी आएंगे कि हर पल बस, दुख और तकलीफ के एहसास के अलावा सोचने के लिए और कुछ नहीं बचेगा. एक तरफ उस ने गुरुजी के मोह में आ कर संन्यास लेने का फैसला लिया था और दूसरी ओर दादा, माधवन से शादी करने को कह रहे थे. इसी उधेड़बुन में उलझी अमृता सोच रही थी.

उस के संन्यास लेने के फैसले से सभी चकित थे. बड़ी दीदी तो बहुत नाराज हुईं, ‘यह क्या अमृता, तू और संन्यास. तू तो खुद इन पाखंडी बाबाओं के खिलाफ थी और जब अम्मां के गुरुभाई आ कर धर्म और मूल्यों की बात कर रहे थे तो तू ने कितनी बहस कर के उन्हें चुप करा दिया था. एक बार बाऊजी के साथ तू उन के आश्रम गई थी तो तू ने वहां जगहजगह होने वाले पाखंडों की कैसी धज्जियां उड़ाई थीं कि बाऊजी ने गुस्से में कितने दिन तक बात नहीं की थी और आज तू उन्हीं लोगों के बीच…’

बड़े भाईसाहब, जिन्हें वह दादा बोलती थी, हतप्रभ हो कर बोले थे, ‘माना कि अमृता, तू ने बहुत तकलीफें झेली हैं पर इस का मतलब यह तो नहीं कि तू अपने को गड्ढे में डाल दे.’

दादा भी शुरू से इन पाखंडों के बहुत खिलाफ थे. वह मां के लाख कहने के बाद भी कभी आश्रम नहीं गए थे.

सभी लोग अमृता को बहुत चाहते थे लेकिन उस में एक बड़ा अवगुण था, उस का तेज स्वभाव. वह अपने फैसले खुद लेती थी. यदि और कोई विरोध करता तो वह बदतमीजी करने से भी नहीं चूकती थी. इसलिए जब भी कोई उस से एक बार बहस करता तो जवाब में मिले रूखेपन से दोबारा साहस नहीं करता था.

अब शादी को ही लें. नरेन से शादी करने के उस के फैसले का सभी ने बहुत विरोध किया क्योंकि पूरा परिवार नरेन की गलत आदतों के बारे में जानता था पर अमृता ने किसी की नहीं सुनी. नरेन ने उस से वादा किया था कि शादी के बाद वह सारी बुरी आदतें छोड़ देगा…पर ऐसा बिलकुल नहीं हुआ, बल्कि यह सोच कर कि अमृता ने अपने घर वालों का विरोध कर उस से शादी की है तो अब वह कहां जाएगी, नरेन ने उस पर मनमानी करनी शुरू कर दी थी.

शुरुआत में अमृता झुकी भी पर जब सबकुछ असहनीय हो गया तो फिर उस ने अपने को अलग कर लिया. नरेन के घर वाले भी इस शादी से नाखुश थे, सो उन्होंने नरेन को तलाक के लिए प्रेरित किया और उस की दूसरी शादी भी कर दी.

अब इस से घर के लोगों को कहने का अवसर मिल गया कि उन्होंने तो नरेन के बारे में सही कहा था लेकिन अमृता की हठ के चलते उस की यह दशा हुई है. वह तो अमृता के पक्ष में एक अच्छी बात यह थी कि वह सरकारी नौकरी करती थी इसलिए कम से कम आर्थिक रूप से उसे किसी का मुंह नहीं देखना पड़ता था.

बाबूजी की मौत के बाद मां अकेली थीं, सो वह अमृता के साथ रहने लगीं. अब अमृता का नौकरी के बाद जो भी समय बचता, वह मां के साथ ही गुजारती थी. मां के पास कोई विशेष काम तो था नहीं इसलिए आश्रम के साथ उन की गतिविधियां बढ़ती जा रही थीं. आएदिन गुरुजी के शिविर लगते थे और उन शिविरों में उन को चमत्कारी बाबा के रूप में पेश किया जाता था. लोग अपनेअपने दुख ले कर आते और गुरु बाबा सब को तसल्ली देते, प्रसाद दे कर समस्याओं को सुलझाने का दावा करते. कुछ लोगों की परेशानियां सहज, स्वाभाविक ढंग से निबट जातीं तो वह दावा करते कि बाबा की कृपा से ऐसा हो गया लेकिन यदि कुछ नहीं हो पाता तो वह कह देते कि सच्ची श्रद्धा के अभाव में भला क्या हो सकता है?

अमृता शुरू से इन चीजों की विरोधी थी. उसे कभी धर्मकर्म, पूजापाठ, साधुसंत और इन की बातें रास नहीं आई थीं पर अब बढ़ती उम्र के साथ उस के विरोध के स्वर थोड़े कमजोर पड़ गए थे. अत: मां की बातें वह निराकार भाव से सुन लेती थी.

मां ने बेटी के इस बदलाव को सकारात्मक ढंग से लिया. उन्होंने सोचा कि शायद अमृता उन के धार्मिक क्रियाकलापों में रुचि लेने लग गई है. उन्होंने एक दिन गुरुजी को घर बुलाया. बड़ी मुश्किल से अमृता गुरुजी से मिलने को तैयार हुई थी. गुरुजी भी अमृता से मिल कर बहुत खुश हुए. उन्हें लगा कि एक सुंदर, पढ़ीलिखी युवती अगर उन के आश्रम से जुड़ जाएगी तो उन का भला ही होगा.

गुरुजी ने अमृता के मनोविचार भांपे और उस के शुरुआती विरोध को दिल से स्वीकारा. उन्होंने स्वीकार किया कि वाकई कुछ मामलों में उन का आश्रम बेहतर नहीं है. अमृता ने जो बातें बताईं वे अब तक किसी ने कहने की हिम्मत नहीं की थी इसलिए वह उस के बहुत आभारी हैं.

अमृता ने गुरुजी से बात तो महज मां का मन रखने को की थी पर गुरुजी का मनोविज्ञान वह भांप न सकी. गुरुजी उस की हर बात का समर्थन करते रहे. अब नारी की हर बात का समर्थन यदि कोई पुरुष करता रहे तो यह तो नारी मन की स्वाभाविक दुर्बलता है कि वह खुश होती है. अमृता बहुत दिन से अपने बारे में नकारात्मक बातें सुनसुन कर परेशान थी. उस ने गुरुजी से यही उम्मीद की थी कि वह उसे सारी दुनिया का ज्ञान दे डालेंगे, लेकिन गुरुजी ने सब्र से काम लिया और उस से सारी स्थिति ही पलट गई.

गुरुजी जब भी मिलते उस की तारीफों के पुल बांधते. अमृता का नारी मन बहुत दिन से अपनी तारीफ सुनने को तरस रहा था. अब जब गुरुजी की ओर से प्रशंसा रूपी धारा बही तो वह अपनेआप को रोक नहीं  पाई और धीरेधीरे उस धारा में बहने लगी. अब वह गुरुजी की बातें सुन कर गुस्सा नहीं होती थी बल्कि उन की बहुत सी बातों का समर्थन करने लगी.

गुरुजी के बहुत आग्रह पर एक दिन वह आश्रम चली गई. आश्रम क्या था, भव्य पांचसितारा होटल को मात करता था. शांत और उदास जिंदगी में अचानक आए इस परिवर्तन ने अमृता को झंझोड़ कर रख दिया. सबकुछ स्वप्निल था. उस का मजबूत व्यक्तित्व गुरुजी की मीठीमीठी बातों में आ कर न जाने कहां बह गया. उन की बातों ने उस के सोचनेसमझने की शक्ति ही जैसे छीन ली.

जब अमृता की आंखें खुलीं तो वह अपना सर्वस्व गंवा चुकी थी. गुरुजी की बड़ीबड़ी आध्यात्मिक बातें वास्तविकता की चट्टान से टकरा कर चकनाचूर हो गई थीं. वह थोड़ा विचलित भी हुई, लेकिन आखिर उस ने उस परिवेश को अपनी नियति मान लिया.

उसे लगा कि वैसे भी उस का जीवन क्या है. उस ने सारी दुनिया से लड़ाई मोल ले कर नरेन से शादी कर ली पर उसे क्या मिला…एक दिन वह भी उसे छोड़ कर चला गया और दे कर गया अशांति ही अशांति. नरेन के मामले में खुद गलत साबित होने से उस का विश्वास पहले ही हिल चुका था, ऊपर से रिश्तेदारों द्वारा लगातार उस की असफलता का जिक्र करने से वह घबरा गई थी. आज इस आश्रम में आ कर उसे लगा कि वह सभी अप्रिय स्थितियों से परे हो गई है.

दादा भी माधवन से शादी के लिए उस के बहुत पीछे पड़ रहे थे, वह मानती थी कि माधवन एक अच्छा युवक था, लेकिन वह भला किसी के लिए क्या कह सकती थी. नरेन को भी उस ने इतना चाहा था, परंतु क्या मिला?

दूसरी ओर उस की बड़ी बहन व दादा चाहते थे कि जो गलती हो गई सो हो गई. एक बार ऐसा होने से कोई जिंदगी खत्म नहीं हो जाती. वे चाहते थे कि अमृता के लिए कोई अच्छा सा लड़का देख कर उस की दोबारा शादी कर दें, नहीं तो वह जिंदगी भर परेशान रहेगी.

इस के लिए दादा को अधिक मेहनत भी नहीं करनी थी. उन्हीं के आफिस में माधवन अकाउंटेंट के पद पर काम कर रहा था. वह वर्षों से उसे जानते थे. उस के मांबाप जीवित नहीं थे, एक बहन थी जिस की हाल ही में शादी कर के वह निबटा था. हालांकि माधवन उन की जाति का नहीं था लेकिन बहुत ही सुशील नवयुवक था. दादा ने उसे हर परिस्थितियों में हंसते हुए ही देखा था और सब से बड़ी बात तो यह थी कि वह अमृता को बहुत चाहता था.

शुरू से दादा के परिवार के संपर्क में रहने के कारण वह अमृता को बहुत अच्छी तरह जानता था. दादा भी इस बात से खुश थे. लेकिन इस से पहले कि वह कुछ करते अमृता ने नरेन का जिक्र कर घर में तूफान खड़ा कर दिया था.

आज जब अमृता बिलकुल अकेली थी तो खुद संन्यास के भंवर में कूद गई थी. दादा को लगता, काश, माधवन से उस की शादी हो जाती तो आज अमृता कितनी खुश होती.

अमृता का तलाक होने के बाद दादा के दिमाग में विचार आया कि एक बार माधवन से बात कर के देख लेते हैं, हो सकता है बात बन ही जाए.

वह माधवन को समीप के कैफे में ले गए. बहुत देर तक इधरउधर की बातें करते रहे फिर उन्होंने उसे अमृता के बारे में बताया. कुछ भी नहीं छिपाया.

माधवन बहुत साफ दिल का युवक था. उस ने कहा, ‘दादा, आप को मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. आप कितने अच्छे इनसान हैं. मैं भी इस दुनिया में अकेला हूं. एक बहन के अलावा मेरा है ही कौन. आप जैसे परिवार से जुड़ना मेरे लिए गौरव की बात है और जहां तक बात रही अमृता की पिछली जिंदगी की, तो भूल तो किसी से भी हो सकती है.’

माधवन की बातों से दादा का दिल भर आया. सचमुच संबंधों के लिए आपसी विश्वास कितना जरूरी है. दादा ने सोचा, अब अमृता को मनाना मुश्किल काम नहीं है लेकिन उन को क्या पता था कि पीछे क्या चल रहा है.

जैसे ही अमृता के संन्यास लेने की इच्छा का उन्हें पता चला, उन पर मानो आसमान ही गिर पड़ा. वह सारे कामकाज छोड़ कर दौड़ेदौड़े वहां पहुंच गए. वह मां से बहुत नाराज हो कर बोले, ‘मैं यह क्या सुन रहा हूं?’

‘मैं क्या करूं,’ मां बोलीं, ‘खुद गुरु महाराज की मरजी है. और वह गलत कहते भी क्या हैं… बेचारी इस लड़की को मिला भी क्या? जिस आदमी के लिए यह दिनरात खटती रही वह निकम्मा मेरी फूल जैसी बच्ची को धोखा दे कर भाग गया और उस के बाद तुम लोगों ने भी क्या किया?’

दादा गुस्से में लालपीले होते रहे और जब बस नहीं चला तो अपने घर वापस आ गए.

दूसरी ओर अमृता गुरुजी के प्रवचन के बाद जब कमरे की ओर लौट रही थी, तब एक महिला ने उस का रास्ता रोका. वह रुक गई. देखा, उस की मां की बहुत पुरानी सहेली थी.

‘अरे, मंजू मौसी आप,’ अमृता ने पूछा.

‘हां बेटा, मैं तो यहां आती भी नहीं, लेकिन तेरे कारण ही आज मैं यहां आई हूं.’

‘मेरे कारण,’ वह चौंक गई.

‘हां बेटा, तू अपनी जिंदगी खराब मत कर. यह गुरु आज तुझ से मीठीमीठी बातें कर तुझे बेवकूफ बना रहा है पर जब तेरी सुंदरता खत्म हो जाएगी व उम्र ढल जाएगी तो तुझे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फेंक देगा. मैं ने तो एक दिन तेरी मां से भी कहा था पर उन की आंखों पर तो भ्रम की पट्टी बंधी है.’

अमृता घबरा कर बोली, ‘यह आप क्या कह रही हैं, मौसी? गुरुजी ने तो मुझे सबकुछ मान लिया है. वह तो कह रहे थे कि हम दोनों मिल कर इस दुनिया को बदल कर रख देंगे.’

मंजू मौसी रोने लगीं. ‘अरे बेटा, दुनिया तो नहीं बदलेगी, बदलोगी केवल तुम. आज तुम, कल और कोई, परसों…’

‘बसबस… पर आप इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकती हैं?’ अमृता ने बरदाश्त न होने पर पूछा.

‘इसलिए कि मेरी बेटी कांता को यह सब सहना पड़ा था और फिर उस ने तंग आ कर आत्महत्या कर ली थी.’

अमृता को लगा कि सारी दुनिया घूम रही है. एक मुकाम पर आ कर उस ने यही सोच लिया था कि अब उसे स्थायित्व मिल गया है. अब वह चैन से अपनी बाकी जिंदगी गुजार सकती है, लेकिन आज पता चला कि उस के पांवों तले की जमीन कितनी खोखली है.

उसी शाम दादा का फोन आया. दादा उसे घर बुला रहे थे. अमृता दादा की बात न टाल सकी. वह फौरन दादा के पास चली गई. दादा उसे देख कर बहुत खुश हुए. थोड़ी देर हालचाल पूछने के बाद दादा बोले, ‘ऐसा है, अमृता… यह तुम्हारा जीवन है और इस बात को मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि अगर तुम संन्यास लेना चाहोगी तो तुम्हें कोई रोक नहीं सकता. आज गुरुजी तुम्हें इस आश्रम से जोड़ रहे हैं तो इसलिए कि तुम सुंदर और पढ़ीलिखी हो. लेकिन इन के व्यवहार, चरित्र की क्या गारंटी है. कल को जिंदगी क्या मोड़ लेती है तुम्हें क्या पता. अगर कल से गुरु का तुम्हारे प्रति व्यवहार का स्तर गिर जाता है तो फिर तुम क्या करोगी? जिंदगी में तुम्हारे पास लौटने का क्या विकल्प रहेगा? अमृता, मेरी बहन, ऐसा न हो कि जीवन ऐसी जगह जा कर खड़ा हो जाए कि तुम्हारे पास लौटने का कोई रास्ता ही न बचे. सबकुछ बरबाद होने के बाद तुम चाह के भी लौट न पाओ.’

दादा की बात सुन कर अमृता की आंखें भर आईं.

‘और हां, जहां तक बात है तुम्हारी पुरानी जिंदगी की, तो उसे एक हादसा मान कर तुम नए जीवन की शुरुआत कर सकती हो. इस जीवन में सभी तो नरेन की तरह नहीं होते…और हम खुद भी अपनी जिंदगी से सबक ले कर आगे के लिए अपनी सोच को विकसित कर सकते हैं. माधवन तुम्हें बहुत पसंद करता है. मैं ने तुम्हारे बारे में उसे सबकुछ साफसाफ बता रखा है. उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है.’

अमृता उस रात एक पल भी नहीं सो पाई थी. मंजू मौसी व दादा की बातों ने उस के मन में हलचल मचा दी थी. एक ओर गुरुजी का फैला हुआ मनमोहक जाल था जिस की असलियत इतनी भयावह थी तो दूसरी ओर माधवन था, जिस के साथ वह नई जिंदगी शुरू कर सकती थी. वह दादा के साथ 3 साल से काम कर रहा था, दादा का सबकुछ देखा हुआ था. और सही भी है, आज नरेन ऐसा निकल गया, इस का मतलब यह तो नहीं कि सारी दुनिया के मर्द ही ऐसे होते हैं.

सही बात तो यह है कि जब वह किसी जोड़े को हंस कर बात करते देखती है तो उस के दिल में कसक पैदा हो जाती है.

फिर गुरुजी का भी क्या भरोसा… उस के मन ने उस से सवाल पूछा, आज वह उस की बातों का अंधसमर्थन क्यों करते हैं? क्या उस की सुंदरता व अकेली औरत होना तो इन बातों का कारण नहीं है? वाकई, सुंदर शरीर के अलावा उस में क्या है…जिस दिन उस की सुंदरता नहीं रही…फिर…क्या वह कांता की तरह आत्महत्या…

यह विचार आते ही अमृता पसीनापसीना हो उठी. सचमुच अभी वह क्या करने जा रही थी. अगर वह यह कदम उठा लेती तो फिर चाहे कितनी ही दुर्गति होती, क्या इस जीवन में कभी वापस आ सकती थी? उस ने निर्णय लिया कि वह अब केवल दादा की ही बात मानेगी. उसे अब इस आश्रम में नहीं रहना है. वह बस, सुबह का इंतजार करने लगी, कब सुबह हो और वह यहां से बाहर निकले.

धीरेधीरे सुबह हुई. चिडि़यों की चहचहाहट सुन कर उस की सोच को विराम लगा और वह वर्तमान में आ गई. सूरज की किरणें उजाला बन उस के जीवन में प्रवेश कर रही थीं. उस ने दादा को फोन लगाया.

‘‘दादा, मैं ने आप की बात मानने का फैसला किया है.’’

दादा खुशी से झूम कर बोले, ‘‘अमृता…मेरी बहन, मुझे विश्वास था कि तुम मेरी बात ही मानोगी. मैं तो तुम्हारे जवाब का ही इंतजार कर रहा था. मैं उस से बात करवाता हूं.’’

दादा की बात सुन कर अमृता का हृदय जोरों से धड़क उठा.

थोड़ी देर बाद…

‘‘हैलो, अमृता, मैं माधवन बोल रहा हूं. तुम्हारे इस निर्णय से हमसब बहुत खुश हैं. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम मेरे साथ बहुत खुश रहोगी. मैं तुम्हारा बहुत ध्यान रखूंगा, कम से कम इतना तो जरूर कि तुम कभी संन्यास लेने की नहीं सोचोगी.’’

अमृता, माधवन की बातों से शरमा गई. वह केवल इतना ही बोल सकी, ‘‘नहीं, ऐसा मैं कभी नहीं सोचूंगी,’’ और फिर धीरे से फोन रख दिया.

इस के बाद अमृता आश्रम से निकल कर ऐसे भागी जैसे उस के पीछे ज्वालामुखी का लावा हो…

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