बारिश में मन है कुछ मीठा खाने का, तो बनाएं आटे और सूजी का हलवा

अगर आप अपनी फैमिली के लिए आटे और सूजी से बना हलवा बनाने की सोच रहे हैं, तो ये रेसिपी आपके काम की है. कम समय और आसानी से बनने वाली यह रेसिपी आपकी फैमिली के लिए हेल्दी और टेस्टी है.

हमें चाहिए- 

–  2 बड़े चम्मच देसी घी

–  2 बड़े चम्मच गेहूं का आटा

–  चीनी स्वादानुसार

–  जरूरतानुसार फूड कलर

–  1 कप दूध

–  1 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

–  2 बड़ा चम्मच मेवा कटा.

बनाने का तरीका-

कड़ाही में घी गरम कर गेहूं का आटा मध्यम आंच पर भूनें. अब इस में सूजी मिला कर मिश्रण हलका लाल होने तक भूनें. आंच धीमी कर चीनी, फूड कलर और जरूरतानुसार पानी मिला कर हलवा पक जाने तक भूनें. फिनिश करने के लिए दूध व इलायची पाउडर मिलाएं. मेवे से गार्निश कर परोसें.

चलो एक बार फिर से : मानव से कैसे हुआ काव्या का मोहभंग

‘‘काव्या,कल जो लैटर्स तुम्हें ड्राफ्टिंग के लिए दिए थे, वे हो गया क्या?’’ औफिस सुपरिंटेंडैंट नमनजी की आवाज सुन कर मोबाइल पर चैट करती काव्या की उंगलियां थम गईं. उस ने नमनजी को ‘गुड मौर्निंग’ कहा और फिर अपनी टेबल की दराज से कुछ रफ पेपर निकाल कर उन की तरफ बढ़ा दिए. देखते ही नमनजी का पारा चढ़ गया.

बोले, ‘‘यह क्या है? न तो इंग्लिश में स्पैलिंग सही हैं और न हिंदी में मात्राएं… यह होती है क्या ड्राफ्टिंग? आजकल तुम्हारा ध्यान काम पर

नहीं है.’’ ‘‘सर, आप चिंता न करें, कंप्यूटर सारी मिस्टेक्स सही कर देगा,’’ काव्या ने लापरवाही से कहा. नमनजी कुछ तीखा कहते उस से पहले ही काव्या का मोबाइल बज उठा. वह ‘ऐक्सक्यूज मी’ कहती हुई अपना मोबाइल ले कर रूम से बाहर निकल गई. आधा घंटा बतियाने के बाद चहकती हुई काव्या वापस आई तो देखा नमनजी कंप्यूटर पर उन्हीं लैटर्स को टाइप कर रहे थे. वह जानती है कि इन्हें कंप्यूटर पर काम करना नहीं आता. नमनजी को परेशान होता देख उसे कुछ अपराधबोध हुआ. मगर काव्या भी क्या करे? मनन का फोन या मैसेज देखते ही बावली सी हो उठती है. फिर उसे कुछ और दिखाई या सुनाई ही नहीं देता.

‘‘आप रहने दीजिए सर. मैं टाइप कर देती हूं,’’ काव्या ने उन के पास जा कर कहा. ‘‘साहब आते ही होंगे… लैटर्स तैयार नहीं मिले तो गुस्सा करेंगे…’’ नमनजी ने अपनी नाराजगी को पीते हुए कहा.

‘‘सर तो आज लंच के बाद आएंगे… बिग बौस के साथ मीटिंग में जा रहे हैं,’’ काव्या बोली. ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘यों ही… वह कल सर फोन पर बिग बौस से बात कर रहे थे. तब मैं ने सुना था,’’ काव्या को लगा मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो. वह सकपका गई और फिर नमनजी से लैटर्स ले कर चुपचाप टाइप करने लगी. काव्या को इस औफिस में जौइन किए लगभग 4 साल हो गए थे. अपने पापा की मृत्यु के बाद सरकारी नियमानुसार उसे यहां क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. नमनजी ने ही उसे औफिस का सारा काम सिखाया था. चूंकि वे काव्या के पापा के सहकर्मी थे, इस नाते भी वह उन्हें पिता सा सम्मान देती थी. शुरूशुरू में जब उस ने जौइन किया था तो कितना उत्साह था उस में हर नए काम को सीखने का. मगर जब से ये नए बौस मनन आए हैं, काव्या का मन तो बस उन के इर्दगिर्द ही घूमता रहता है.

काव्या का कुंआरा मन मनन को देखते ही दीवाना सा हो गया था. 5 फुट 8 इंच हाइट, हलका सांवला रंग और एकदम परफैक्ट कदकाठी… और बातचीत का अंदाज तो इतना लुभावना कि उसे शब्दों का जादूगर ही कहने का मन करता था. असंभव शब्द तो जैसे नैपोलियन की तरह उस की डिक्शनरी में भी नहीं था. हर मुश्किल का हल था उस के पास… काव्या को लगता था कि बस वे बोलते ही रहें और वह सुनती रहे… ऐसे ही जीवनसाथी की तो कल्पना की थी उस ने अपने लिए. मनन नई विचारधारा का हाईटैक औफिसर था. वह पेपरलैस वर्क का पक्षधर था. औफिस के सारे काम कंप्यूटर और मेल से करने पर जोर देता था. उस ने नमनजी जैसे रिटायरमैंट के करीब व्यक्ति को भी जब मेल करना सिखा दिया तो काव्या उस की फैन हो गई. सिर्फ काव्या ही नहीं, बल्कि औफिस का सारा स्टाफ ही मनन के व्यवहार का कायल था. वह अपने औफिस को भी परिवार ही समझता था. स्टाफ के हर सदस्य में पर्सनल टच रखता था. उस का मानना था कि हम दिन का एक अहम हिस्सा जिन के साथ बिताते हैं, उन के बारे में हमें पूरी जानकारी होनी चाहिए और उन से जुड़ी हर अच्छी और बुरी बात में हमें उन के साथ खड़े रहना चाहिए.

अपनी इस नीति के तहत हर दिन किसी एक व्यक्ति को अपने चैंबर में बुला कर चाय की चुसकियों के साथ मनन उन से व्यक्तिगत स्तर पर ढेर सी बातें करता था. इसी सिलसिले में काव्या को भी अपने साथ चाय पीने के लिए आमंत्रित करता था.

जिस दिन मनन के साथ काव्या की औफिस डेट होती थी, वह बड़े ही मन से तैयार हो कर आती थी. कभीकभी अपने हाथ से बने स्नैक्स भी मनन को खिलाती थी. अपने स्वभाव के अनुसार वह उस की हर बात की तारीफ करती थी. काव्या को लगता था जैसे वह हर डेट के बाद मनन के और भी करीब आ जाती है. पता नहीं क्या था मनन की गहरी आंखों में कि उस ने एक बार झांका तो बस उन में डूबती ही चली गई.

मनन को शायद काव्या की मनोदशा का कुछकुछ अंदाजा हो गया था, इसलिए वह अब काव्या को अपने चैंबर में अकेले कम ही बुलाता था. एक बार बातोंबातों में मनन ने उस से अपनी पत्नी प्रिया और 2 बच्चों विहान और विवान का जिक्र भी किया था. बच्चों में तो काव्या ने दिलचस्पी दिखाई थी, मगर पत्नी का जिक्र आते ही उस का मुंह उतर गया, जिसे मनन की अनुभवी आंखों ने फौरन ताड़ लिया. पिछले साल मनन अपने बच्चों की गरमी की छुट्टियों में परिवार सहित शिमला घूमने गया था. उस की गैरमौजूदगी में काव्या को पहली बार यह एहसास हुआ कि मनन उस के लिए कितना जरूरी हो गया है. मनन का खाली चैंबर उसे काटने को दौड़ता था. दिल के हाथों मजबूर हो कर तीसरे दिन काव्या ने हिम्मत जुटा कर मनन को फोन लगाया. पूरा दिन उस का फोन नौट रीचेबल आता रहा. शायद पहाड़ी इलाके में नैटवर्क कमजोर था. आखिरकार उस ने व्हाट्सऐप पर मैसेज छोड़ दिया-

‘‘मिसिंग यू… कम सून.’’ देर रात मैसेज देखने के बाद मनन ने रिप्लाई में सिर्फ 2 स्माइली भेजीं. मगर वे भी काव्या

के लिए अमृत की बूंदों के समान थीं. 1 हफ्ते बाद जब मनन औफिस आया तो उसे देखते ही काव्या खिल उठी. उस ने थोड़ी देर तो मनन के बुलावे का इंतजार किया, फिर खुद ही उस के चैंबर में जा कर उस के ट्रिप के बारे में पूछने लगी. मनन ने भी उत्साह से उसे अपने सारे अनुभव बताए. मनन महसूस कर रहा था कि जबजब भी प्रिया का जिक्र आता, काव्या कुछ बुझ सी जाती. कई दिनों के बाद दोनों ने साथ चाय पी थी. आज काव्या बहुत खुश थी.

दोपहर में नमनजी ने एक मेल दिखाते हुए काव्या से उस का रिप्लाई बनाने को कहा. कंपनी सैक्रेटरी ने आज ही औफिस स्टाफ की कंप्लीट डिटेल मंगवाई थी. रिपोर्ट बनाते समय अचानक काव्या मुसकरा उठी जब मनन की डिटेल बनाते समय उसे पता चला कि अगले महीने ही मनन का जन्मदिन है. मन ही मन उस ने मनन के लिए सरप्राइज प्लान कर लिया. जन्मदिन वाले दिन सुबहसुबह काव्या ने मनन को फोन किया, ‘‘हैप्पी बर्थडे सर.’’

‘‘थैंकयू सो मच. मगर तुम्हें कैसे पता?’’ मनन ने पूछा. ‘‘यही तो अपनी खास बात है सर… जिसे यादों में रखते हैं उस की हर बात याद रखते हैं,’’ काव्या ने शायराना अंदाज में इठलाते हुए कहा.

मनन उस के बचपने पर मुसकरा उठा. ‘‘सिर्फ थैंकयू से काम नहीं चलेगा… ट्रीट तो बनती है…’’ काव्या ने अगला तीर छोड़ा.

‘‘औफकोर्स… बोलो कहां लोगी?’’ ‘‘जहां आप ले चलो… आप साथ होंगे तो कहीं भी चलेगा…’’ काव्या धीरेधीरे मुद्दे की तरफ आ रही थी. अंत में तय हुआ कि मनन उसे मैटिनी शो में फिल्म दिखाएगा. मनन के साथ

3 घंटे उस की बगल में बैठने की कल्पना कर के ही काव्या हवा में उड़ रही थी. उस ने मनन से कहा कि फिल्म के टिकट वह औनलाइन बुक करवा लेगी. अच्छी तरह चैक कर के काव्या ने लास्ट रौ की 2 कौर्नर सीट बुक करवा ली. अपनी पहली जीत पर उत्साह से भरी वह आधा घंटा पहले ही पहुंच कर हौल के बाहर मनन का इंतजार करने लगी. मगर मनन फिल्म शुरू होने पर ही आ पाया. उसे देखते ही काव्या ने मुसकरा कर एक बार फिर उसे बर्थडे विश किया और दोनों हौल में चले गए. चूंकि फिल्म स्टार्ट हो चुकी थी और हौल में अंधेरा था इसलिए काव्या ने धीरे से मनन का हाथ थाम लिया.

फिल्म बहुत ही कौमेडी थी. काव्या हर पंच पर हंसहंस के दोहरी हुई जा रही थी. 1-2 बार तो वह मनन के कंधे से ही सट गई. इंटरवल के बाद एक डरावने से सीन को देख कर उस ने मनन का हाथ कस कर थाम लिया. एक बार हाथ थामा तो फिर उस ने पूरी फिल्म में उसे पकड़े रखा. मनन ने भी हाथ छुड़ाने की ज्यादा कोशिश नहीं की. फिल्म खत्म होते ही हौल खाली होने लगा. काव्या ने कहा, ‘‘2 मिनट रुक जाते हैं. अभी भीड़ बहुत है,’’ फिर अपने पर्स में कुछ टटोलने का नाटक करते हुए बोली, ‘‘यह लो… आप से ट्रीट तो ले ली और बर्थडे गिफ्ट दिया ही नहीं… आप अपनी आंखें बंद कीजिए…’’

मनन ने जैसे ही अपनी आंखें बंद कीं, काव्या ने एक गहरा चुंबन उस के होंठों पर जड़ दिया. मनन ने ऐसे सरप्राइज गिफ्ट की कोई कल्पना नहीं की थी. उस का दिल तेजी से धड़कने लगा और अनजाने ही उस के हाथ काव्या के इर्दगिर्द लिपट गए. काव्या के लिए यह एकदम अनछुआ एहसास था. उस का रोमरोम भीग गया. वह मनन के कान में धीरे से बुदबुदाई, ‘‘यह जन्मदिन आप को जिंदगी भर याद रहेगा.’’

मनन अभी भी असमंजस में था कि इस राह पर कदम आगे बढ़ाए या फिर यहीं रुक जाए… हिचकोले खाता यह रिश्ता धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था. जब भी काव्या मनन के साथ होती तो मनन उसे एक समर्पित प्रेमी सा लगता और जब वह उस से दूर होती तो उसे यह महसूस होता जैसे कि मनन से उस का रिश्ता ही नहीं है… जहां काव्या हर वक्त उसी के खयालों में खोई रहती, वहीं मनन के लिए उस का काम उस की पहली प्राथमिकता थी और उस के बाद उस के बच्चे. कव्या औफिस से जाने के बाद भी मनन के संपर्क में रहना चाहती थी, मगर मनन औफिस के बाद न तो उस का फोन उठाता था और न ही किसी मैसेज का जवाब देता था. कुल मिला कर काव्या उस के लिए दीवानी हो चुकी थी. मगर मनन शायद अभी भी इस रिश्ते को ले कर गंभीर नहीं था.

एक दिन सुबहसुबह मनन ने काव्या को चैंबर में बुला कर कहा, ‘‘काव्या, मुझे घर पर मैसेज मत किया करो… घर जाने के बाद बच्चे मेरे मोबाइल में गेम खेलने लगते हैं… ऐसे में कभी तुम्हारा कोई मैसेज किसी के हाथ लग गया तो बवाल मच जाएगा.’’ ‘‘क्यों? क्या तुम डरते हो?’’ काव्या ने

उसे ललकारा. ‘‘बात डरने की नहीं है… यह हम दोनों का निजी रिश्ता है. इसे सार्वजनिक कर के इस का अपमान नहीं करना चाहिए… कहते हैं न कि खूबसूरती की लोगों की बुरी नजर लग जाती और मैं नहीं चाहता कि हमारे इस खूबसूरत रिश्ते को किसी की नजर लगे,’’ मनन ने काव्या को बातों के जाल में उलझा दिया, क्योंकि वह जानता था कि प्यार से न समझाया गया तो काव्या अभी यही रोनाधोना शुरू कर देगी.

अपने पूरे समर्पण के बाद भी काव्या मनन को अपने लिए दीवाना नहीं बना पा रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा क्या करे जिस से मनन सिर्फ उस का हो कर रहे. वह मनन को कैसे जताए कि वह उस से कितना प्यार करती हैं… उस के लिए किस हद से गुजर सकती है… किसी से भी बगावत कर सकती है. आखिर काव्या को एक तरीका सूझ ही गया.

मनन अभी औफिस के लिए घर से निकला ही था कि काव्या का फोन आया. बेहद कमजोर सी आवाज में उस ने कहा, ‘‘मनन, मुझे तेज बुखार है और मां भी 2 दिन से नानी के घर गई हुई हैं. प्लीज, मुझे कोई दवा ला दो और हां मैं आज औफिस नहीं आ सकूंगी.’’

ममन ने घड़ी देखी. अभी आधा घंटा था उस के पास… उस ने रास्ते में एक मैडिकल स्टोर से बुखार की दवा ली और काव्या के घर पहुंचा. डोरबैल बजाई तो अंदर से आवाज आई, ‘‘दरवाला खुला है, आ जाओ.’’

मनन अंदर आ गया. आज पहली बार वह काव्या के घर आया था. काव्या बिस्तर पर लेटी हुई थी. मनन ने इधरउधर देखा, घर में उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था. मनन ने प्यार से काव्या के सिर पर हाथ रखा तो चौंक उठा. बोला, ‘‘अरे, तुम्हें तो बुखार है ही नहीं.’’

वह उस से लिपट कर सिसक उठी. रोतेरोते बोली, ‘‘मनन, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती… मैं नहीं जानती कि मैं क्या करूं… तुम्हें कैसे अपने प्यार की गहराई दिखाऊं… तुम्हीं बताओ कि मैं ऐसा क्या करूं जिस से तुम्हें बांध सकूं… हमेशा के लिए अपना बना सकूं…’’ ‘‘मैं तो तुम्हारा ही हूं पगली… क्या तुम्हें अपने प्यार पर भरोसा नहीं है?’’ मनन ने उस के आंसू पोंछते हुए कहा.

‘‘भरोसा तो मुझे तुम पर अपनेआप से भी ज्यादा है,’’ कह कर काव्या उस से और भी कस कर लिपट गई. ‘‘बिलकुल सिरफिरी हो तुम,’’ कह कर मनन उस के बालों को सहलातासहलाता उस के आंसुओं के साथ बहने लगा. तनहाइयों ने उन का भरपूर साथ दिया और दोनों एकदूसरे में खोते चले गए. अपना मन तो काव्या पहले ही उसे दे चुकी थी आज अपना तन भी उस ने अपने प्रिय को सौंप दिया था. शादीशुदा मनन के लिए यह कोई अनोखी बात नहीं थी, मगर काव्या का कुंआरा तन पहली बार प्यार की सतरंगी फुहारों से तरबतर हुआ था. आज उस ने पहली बार कायनात का सब से वर्जित फल चखा था.

काव्या अब संतुष्ट थी कि उस ने मनन को पूरी तरह से पा लिया है. झूम उठती थी वह जब मनन उसे प्यार से सिरफिरी कहता था. मगर उस का यह खुमार भी जल्द ही उतर गया. 2-3 साल तो मनन के मन का भौंरा काव्या के तन के पराग पर मंडराता रहा, मगर फिर वही ढाक के तीन पात… मनन फिर से अपने काम की तरफ झुकने लगा और काव्या को नजरअंदाज करने लगा. अब काव्या के पास भी समर्पण के लिए कुछ नहीं बचा था. वह परेशानी में और भी अधिक दीवानी होने लगी. कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता… उन का रिश्ता भी पूरे विभाग में चर्चा का विषय बन गया. लोग सामने तो मनन की गरिमा का खयाल कर लेते थे, मगर पीठ पीछे उसे काव्या का भविष्य बरबाद करने के लिए जिम्मेदार ठहराते थे. हालांकि मनन तो अपनी तरफ से इस रिश्ते को नकारने की बहुत कोशिश करता था, मगर काव्या का दीवानापन उन के रिश्ते की हकीकत को बयां कर ही देता था, बल्कि वह तो खुद चाहती थी कि लोग उसे मनन के नाम से जानें.

बात उड़तेउड़ते दोनों के घर तक पहुंच गई. जहां काव्या की मां उस की शादी पर

जोर देने लगीं, वहीं प्रिया ने भी मनन से इस रिश्ते की सचाई के बारे में सवाल किए. प्रिया को तो मनन ने अपने शब्दों के जाल में उलझा लिया था, मगर विहान और विवान के सवालों के जवाब थे उन के पास… एक पिता भला अपने बच्चों से यह कैसे कह सकता है कि उन की मां की नाराजगी का कारण उस के नाजायज संबंध हैं. मनन काव्या से प्यार तो करता था, मगर एक पिता की जिम्मेदारियां भी बखूबी समझाता था. वह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहता था.

इधर काव्या की दीवानगी भी मनन के लिए परेशानी का कारण बनने लगी थी. एक दिन काव्या ने मनन को अकेले में मिलने के लिए बुलाया. मनन को उस दिन प्रिया के साथ बच्चों के स्कूल पेरैंटटीचर मीटिंग में जाना था, इसलिए उस ने मना कर दिया. यही बात काव्या को नागवार गुजरी. वह लगातार मनन को फोन करने लगी, मगर मनन उस की मानसिकता अच्छी तरह समझता था. उस ने अपने मोबाइल को साइलैंट मोड पर डाल दिया. मीटिंग से फ्री हो कर मनन ने फोन देखा तो काव्या की 20 मिस्ड कौल देख कर उस का सिर चकरा गया. एक मैसेज भी था कि अगर मुझ से मिलने नहीं आए तो मुझे हमेशा के लिए खो दोगे. ‘‘सिरफिरी है, कुछ भी कर सकती है,’’ सोचते हुए मनन ने उसे फोन लगाया. सारी बात समझाने पर काव्या ने उसे घर आ कर सौरी बोलने की शर्त पर माफ किया. इतने दिनों बाद एकांत मिलने पर दोनों का बहकना तो स्वाभाविक ही था.

ज्वार उतरने के बाद काव्या ने कहा, ‘‘मनन, हमारे रिश्ते का भविष्य क्या है? सब लोग मुझ पर शादी करने का दबाव बना रहे हैं.’’ ‘‘सही ही तो कर रहे हैं सब. अब तुम्हें भी इस बारे में सोचना चाहिए,’’ मनन ने कपड़े पहनते हुए कहा.

‘‘शर्म नहीं आती तुम्हें मुझ से ऐसी बात करते हुए… क्या तुम मेरे साथ बिस्तर पर किसी और की कल्पना कर सकते हो?’’ काव्या तड़प उठी. ‘‘नहीं कर सकता… मगर हकीकत यही है कि मैं तुम्हें प्यार तो कर सकता हूं और करता भी हूं, मगर एक सुरक्षित भविष्य नहीं दे सकता,’’ मनन ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘मगर तुम्हारे बिना तो मेरा कोई भविष्य ही नहीं है,’’ काव्या के आंसू बहने लगे. मनन समझ नहीं पा रहा था कि इस सिरफिरी को कैसे समझाए. तभी मनन का कोई जरूरी कौल आ गई और वह काव्या को हैरानपरेशान छोड़ चला गया. काव्या ने अपनेआप से प्रश्न किया कि क्या मनन उस का इस्तेमाल कर रहा है… उसे धोखा दे रहा है?

नहीं, बिलकुल नहीं… मनन ने कभी उस से शादी का कोई झूठा वादा नहीं किया, बल्कि पहले दिन से ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी थी. प्यार की पहल खुद उसी ने की थी… उसी ने मनन को निमंत्रण दिया था अपने पास आने का…’’ काव्या को जवाब मिला. तो फिर क्यों वह मनन को जवाबदेह बनाना चाह रही है… क्यों वह अपनी इस स्थिति के लिए उसे जिम्मेदार ठहरा रही है… काव्या दोराहे पर खड़ी थी. एक तरफ मनन का प्यार था, मगर उस पर अधिकार नहीं था और दूसरी तरफ ऐसा भविष्य था जिस के सुखी होने की कोई गारंटी नहीं थी. क्या करे, क्या न करे… कहीं और शादी कर भी ले तो क्या मनन को भुला पाएगी? उस के इतना पास रह कर क्या किसी और को अपनी बगल में जगह दे पाएगी? प्रश्न बहुत से थे, मगर जवाब कहीं नहीं थे. इसी कशमकश में काव्या अपने लिए आने वाले हर रिश्ते को नकारती जा रही थी.

इसी बीच प्रमोशन के साथ ही मनन का ट्रांसफर दूसरे सैक्शन में हो गया. अब काव्या के लिए मनन को रोज देखना भी मुश्किल हो गया था. प्रमोशन के साथ ही उस की जिम्मेदारियां भी पहले से काफी बढ़ गई थीं. इधर विहान और विवान भी स्कूल से कालेज में आ गए थे. मनन को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा का भी ध्यान रखना पड़ता था. इस तरह काव्या से उस का संपर्क कम से कमतर होता गया. मनन की बेरुखी से काव्या डिप्रैशन में रहने लगी. वह दिन देखती न रात… बारबार मनन को फोन, मैसेज करने लगी तो मनन ने उस का मोबाइल नंबर ब्लौक कर दिया. एक दिन काव्या को कहीं से खबर मिली कि मनन विभाग की तरफ से किसी ट्रेनिंग के लिए चेन्नई जा रहा है और फिर वहीं 3 साल के लिए प्रतिनियुक्ति पर रहेगा. काव्या को सदमा सा लगा. वह सुबहसुबह उस के औफिस में पहुंच गई. मनन अभी तक आया नहीं था. वह वहीं बैठ कर उस का इंतजार करने लगी. जैसे ही मनन चैंबर में घुसा काव्या फूटफूट कर रोने लगी. रोतेरोते बोली, ‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और तुम ने मुझे बताने लायक भी नहीं समझा?’’

मनन घबरा गया. उस ने फौरन चैंबर का गेट बंद किया और काव्या को पानी का गिलास थमाया. वह कुछ शांत हुई तो मनन बोला, ‘‘बता देता तो क्या तुम मुझे जाने देतीं?’’ ‘‘इतना अधिकार तो तुम ने मुझे कभी दिया ही नहीं कि मैं तुम्हें रोक सकूं,’’ काव्या ने गहरी निराशा से कहा.

‘‘काव्या, मैं जानबूझ कर तुम से दूर जाना चाहता हूं ताकि तुम अपने भविष्य के बारे में सोच सको, क्योंकि मैं जानता हूं कि जब तक मैं तुम्हारे आसपास हूं, तुम मेरे अलावा कुछ और सोच ही नहीं सकती. मैं इतना प्यार देने के लिए हमेशा तुम्हारा शुक्रगुजार रहूंगा…’’ ‘‘मैं अपने स्वार्थ की खातिर तुम्हारी जिंदगी बरबाद नहीं कर सकता. मुझे लगता है कि हमें अपने रिश्ते को यही छोड़ कर आगे बढ़ना चहिए. मैं ने तुम्हें हमेशा बिना शर्त प्यार किया है और करता रहूंगा. मगर मैं इसे सामाजिक मान्यता नहीं दे सकता… काश, तुम ने मुझे प्यार न किया होता… मैं तुम्हें प्यार करता हूं, इसीलिए चाहता हूं कि तुम हमेशा खुश रहो… हम चाहे कहीं भी रहें, तुम मेरे दिल में हमेशा रहोगी…’’

सुन कर काव्या को सदमा तो लगा, मगर मनन सच ही कह रहा था. अंधेरे में भटकने से बेहतर है कि उसे अब नया चिराग जला कर आगे बढ़ जाना चाहिए. काव्या ने अपने आंसू पोंछ, फिर से मुसकराई, फिर उठते हुए मनन से हाथ मिलाते हुए बोली, ‘‘नए प्रोजैक्ट के लिए औल द बैस्ट… चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाएं हम दोनों… और हां, मुझे पहले प्यार की अनुभूति देने के लिए शुक्रिया…’’ और फिर आत्मविश्वास के साथ चैंबर से बाहर निकल गई.

तलाक की वजह पत्नी नहीं सिर्फ होते हैं पति

भारतीय समाज में शादी का बहुत महत्व है. माना जाता है कि एक बार शादी करने के बाद इसे जिंदगीभर निभाना पड़ता है, लेकिन आए दिन तलाक के मामले सामने आ रहे हैं. हालांकि कई देशों की तुलना में भारत में तलाक कम होते हैं. चाहे सेलिब्रिटी हो या आम कपल सभी में तलाक होने की कौमन बात है.

तलाक के लिए कौन है दोषी ?

सोसाइटी में तलाक की जिम्मेदार सिर्फ औरत को ठहराया जाता है. हालांकि इस अलगाव की सहमति दोनों की होती है. कई बार सिर्फ पति दोषी होता है, ऐसे में भी समाज, घरपरिवार या रिश्तेदार से पत्नी को ही ताने सुनने को मिलते हैं कि ”उसके ही कारण घर टूटा है.” लोगों की सोच यही होती है कि तलाक की वजह पत्नी होती है. कहा जाता है कि ”औरत का काम है घर संभालना, क्या मर्दों का काम नहीं है अपने घर को बर्बाद होने से बचाना?”

Sad pensive young girl thinking of relationships problems sitting on sofa with offended boyfriend conflicts in marriage

केवल औरत ही अपने घर को टूटने से क्यों बचाए, मर्द भी तो घर को संजो कर रख सकते हैं. शादी बराबरी का हक होता है, इसे संभालने की जिम्मदारी भी दोनों की होती है. हालांकि एक तरह से देखा जाए, तो ये पति की जिम्मेदारी बनती है कि वो अपनी पत्नी का हर कदम पर साथ दें और उनको किसी भी मामले कम न समझे. जब एक लड़की शादी कर के ससुराल आती है, तो उसके लिए सब अंजान होते हैं, सिर्फ वो पति को जानती है और वो उसके लाइफ का खास शख्स बनने लगता है. पति के कारण ही वह उस परिवार से जुड़ती है. कई बार ससुराल वालों की वजह से भी पतिपत्नी में तलाक होते हैं.

Wedding rings on divorce paper

किसी भी शादीशुदा पुरुष को ये समझने की जरूरत है कि वह अपनी पत्नी के साथ कुछ भी गलत न करे, जिससे उनके रिश्ते में खटास आए.

कई तलाक के मामले सामने आए है, जिसमें देखा गया है कि पति अपनी पत्नी की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता है, मारपीट करता है…तो क्यों पत्नी साथ रहना चाहेगी? ऐसे में पति से अलग होना ही बेहतर है, तो इस स्थिति में तलाक का दोषी सिर्फ पति है न कि पत्नी..

लड़की के सपने को पंख न देना

मैं पर्सनली एक लड़की को जानती हूं, जिसकी शादी को तीन साल हुए थे और वह अपना पढ़ाई कंप्लीट करना चाहती थी, लेकिन उसके पति ने खर्च देने से इनकार कर दिया. दोनों के बीच इतनी प्रौब्लम बढ़ गई कि कुछ समय बाद उनका तलाक हो गया. इस तरह के मामले में भी लड़की को ही दोषी ठहराया जाता है, लेकिन तलाक की नौबत ज्यादातर पति की वजह से होती है. अगर शादी के बाद पत्नी पढ़ना चाहती है, तो पति का फर्ज है कि उसे पढ़ने दे और खर्चा उठाएं. अगर पत्नी पढ़लिखकर इंडिपेंडेंट होती है, तो इससे दोनों की लाइफ आसान होगी.

Adult woman and male thinking of next step

पत्नी के रहते दूसरी औरत में दिलचस्पी

पति के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की वजह से तलाक होते हैं, इसमें भी पत्नी को ही सुनने को मिलता है, ”जरूर कोई इसमें ही कमी है कि इसका पति दूसरी औरत के पास जा रहा है.” अरे भाई ! इसमें पत्नी की क्या गलती… जब पति दूसरी औरत में इंट्रेस्टेड हो… घर आकर पत्नी से झूठ बोलना, किसी काम में फंस गया था. पत्नी से छिपछिप कर गर्लफ्रेंड से बातें करना… इस टाइप के पति सिर्फ धोखा देते हैं.. न ये पूरी तरह से गर्लफ्रेंड के होते हैं न ही पत्नी के…

जब पति की एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की पोल खुलती है, तो वह पत्नी से झगड़ा कर उसे तलाक की धमकी देता है और जब पत्नी तलाक के लिए हां कर दे, तो समाज उसी को डिवोर्स का जिम्मेदार बना देता है. क्यों ऐसे पति के साथ कोई पत्नी रहना चाहेगी? इस तलाक की जिम्मेदार पति है न कि पत्नी…

Shut up! Puzzled beautiful woman keeps palm near husbands mouth

पत्नी को मानसिक रूप से प्रताड़ित करना

शादी के बाद एक महिला की जिंदगी में कई तरह के बदलाव आते हैं. कई बार घरवाले घर का सारे काम का प्रेशर बहू पर ही डाल देते हैं. ऐसे में पत्नी मानसिक रूप से बीमार हो जाती है. पति को पत्नी का घर के कामों में हांथ बंटाना चाहिए. आप दोनों का बराबरी का हक है, घर संभालने का. कुछ पुरुष घर के कामों को छोटा समझते हैं और अपनी पत्नी से लड़ते रहते हैं. ये लड़ाई तलाक का रूप ले लेती है. इसमें भी तलाक का जिम्मेदार सिर्फ पति है.

वाइफ की वैल्यू न करना

समाज की दकियानुसी सोच है कि शादीशुदा रिश्ते में पुरुष का ज्यादा महत्व होता है. यह रिश्ता बराबरी का है. दोनों का हक समान होता है, लेकिन जब इस रिश्ते में पति अपनी पत्नी को खुद से कम समझने लगता है, तो पत्नी की सेल्फ रिस्पेक्ट को ठेस पहुंचती है और वह टूट जाती है. कई बार कोशिश करने के बाद भी परिस्थिति नहीं सुधरती है, तो बात तलाक तक पहुंच जाती है. तो दोषी कौन हुआ, सिर्फ पति…

Young couple having a problem Guy is sitting on bed and looking sadly away his girlfriend in the background Upset young couple having problems with sex

पतिपत्नी में कम्यूनिकेशन गैप

ज्यादातर अरेंज मैरिज में कपल के बीच कम्यूनिकेशन गैप होता है. पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने में टाइम लगता है, लेकिन कई बार बातचीत की कमी की वजह से गलतफहमियां बढ़ने लगती हैं और झगड़ा होने के कारण तलाक होता है.

जब अरेंज मैरिज कर रहे हैं, तो पति को यह समझना चाहिए कि वह अपनी पत्नी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं, कहीं वो बाहर घूमने जाएं, दोनों एकदूसरे के बारे में जानने की कोशिश करें. ताकि आपका रिश्ता मजबूत हो.

High angle hands with broken heart

पत्नी को पपेट समझना

शादी के बाद कुछ पुरुष चाहते हैं कि पत्नी उनके हाथ की कठपुतली बना जाए, जैसा वो चाहे, उसी तरह वो करे.. हद है, क्यों पत्नी अपने पति की इशारों पर नाचेगी ? पत्नी भी पति की तरह इंसान है, कोई रोबोट नहीं, जब बटन दबाया वह काम पर लग गई.. अगर पति की इच्छाओं पर पत्नी खरी नहीं उतरती है, तो तलाक के मामले बढ़ते हैं. इसमें भी पति ही दोषी होता है क्योंकि वह अपनी पत्नी को बदलने की कोशिश करता है.

जब भी कोई सेलिब्रिटीज या आम कपल के बीच तलाक होता है, तो लोग बड़ी चुटकियां लेते हैं. कपल के लाइफ से जुड़ी बातों की गरमजोशी से चर्चा होती है. हालांकि तलाक कोई बड़ी बात नहीं है. जब रिश्ते में दो लोगों की आपस में नहीं बन रही है, तो जिंदगी को मुश्किल बनाने के बजाय इसे आसान बनाना ही सही हल है. आपसी सहमति से अलग होना बेहतर फैसला है.

मेरा Boyfriend केवल करता है सेक्स की डिमांड, करियर की बातों पर साध लेता है चुप्पी, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 20 साल है और मैं बीए First Year में हूं. मेरा एक Boyfriend भी है, जिसे मैं बहुत प्यार करती हूं, लेकिन वह जब भी मिलता है, बातें करता है, सिर्फ और सिर्फ सेक्स की डिमांड करता है. मैं चाहती हूं कि हमदोनों अपने करियर पर फोकस करें, ताकि जौब मिलने के बाद मैं अपने पेरेंट्स से हमारी शादी के लिए बात कर सकूं.

लेकिन ये सोचकर परेशान हूं कि मेरा बौयफ्रेंड सिर्फ सेक्स को महत्व देता है. हालांकि मैं उसे समझाने की कोशिश भी करती हूं कि सिर्फ सेक्स से जिंदगी नहीं चलने वाली है, लेकिन वह समझने को तैयार ही नहीं है. मैं इस रिलेशनशिप से थक चुकी हूं, मेरी इस समस्या का कोई सामाधान बताएं…

Close-up of young woman looking away at home

जवाब

आपका यह सवाल काफी उलझा हुआ है. एक मजबूत रिलेशनशिप के लिए सेक्स जरूरी है, लेकिन जरूरत से ज्यादा कोई भी चीज नुकसानदायक होती है. आजकल लोग बौयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड रखने के साथ अपने करियर पर भी ध्यान देते हैं. रिलेशनशिप में रहने का मतलब यह नहीं होता है कि कपल हर टाइम इंटिमेट ही होते रहें.

High angle couple napping together

जैसा कि आपने कहा, आप अपने बौयफ्रेंड को समझाते भी है, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं है और आप उससे बहुत प्यार भी करती हैं… खैर अभी आपकी उम्र कम है और इस समय आपको करियर पर अपना फोकस करना चाहिए.. इस तरह के रिलेशनशिप में रहने से बचना चाहिए. उस लड़के को सिर्फ आपकी बौडी से प्रेम है, अगर आपको वो सच्चा प्यार करता तो आपकी बातें जरूर समझता.

कहीं आप इस सौल्यूशन से दु:खी महसूस करें, लेकिन जितना जल्दी हो सके आप इस रिलेशनशिप को खत्म कर दें और अपने करियर पर फोकस करें. हो सकता है आपके लाइफ में कोई दूसरा बेहतर लड़का आए, जो हर कदम पर आपका साथ दें. आप फ्री टाइम में फ्रेंड्स के साथ एंजाय करें, किताबें पढ़ें या म्यूजिक सुनें.

श्री देवी से लेकर कंगना रनौत तक, स्क्रीन पर महाराष्ट्रियन लुक में नजर आईं ये एक्ट्रेसेस

इंडियन सिनेमा में बौलीवुड एक्ट्रेसेस ने डिफरेंट तरह के रोल निभाए हैं. अगर बात करे, महाराष्ट्रियन रोल की तो कई बौलीवुड एक्ट्रेसेस ने इस रोल को बखूबी निभाया और औडियंस पर अपने किरदार से एक अलग ही छाप छोड़ी है. कुछ वर्षों में, कई फेमस एक्ट्रेसेस महाराष्ट्रीयन लुक में नजर आईं, आइए जानते हैं उन एक्ट्रेसेस के बारे में जिन्होंने महाराष्ट्रीयन लुक से खूब सुर्खियां बटोरी.

राधिका मदान

हाल ही में अक्षय कुमार और राधिका मदान की फिल्म ‘सरफिरा’ आयी जिसमें एक्ट्रेस राधिका ने एक मराठी लड़की (रानी) और एक उद्यमी का रोल निभाया. राधिका ‘रानी’ की भूमिका के लिए एक पारंपरिक मराठी लड़की के रूप में बहुत खूबसूरत लगी. उन्होंने मराठी सीखने और अपनी बॉडी लैंग्वेज को निखारने के लिए तीन महीने का टाइम लिया लुक को बेस्ट दिखाने के लिए जो कस्टम और एक्सेसरीज पहना, उससे और निखार आया. राधिका मदान ने रानी की भूमिका में खुद को पूरी तरह से डुबो दिया है. फिल्म में उनका लुक, महाराष्ट्रीयन सार को दर्शाने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार किया गया है, जिसने प्रशंसकों और आलोचकों के बीच पहले से ही चर्चा का विषय बना दिया है. पारंपरिक नौवारी साड़ियों से लेकर बेहतरीन नथ (नाक की अंगूठी) तक, राधिका के रूप के हर तत्व को मराठी महिला की शान और ताकत को दर्शाने के लिए सावधानी से चुना गया है. उनकी बिंदी, हेयर और डांस सभी महाराष्ट्र की समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं, जो उनके कैरेक्टर में और अधिक प्रामाणिकता जोड़ते हैं.

कृति सैनन

फेमस एक्ट्रेस कृति सैनन, जिन्हें आशुतोष गोवारिकर की ऐतिहासिक ड्रामा ‘पानीपत’ में पार्वती बाई का रोल निभाया था अपने रोल में बहुत खूबसूरत लग रही थीं. वह फिल्म ‘पानीपत’ में मराठा योद्धा सदाशिव राव भाऊ की पत्नी पार्वती बाई की भूमिका में नजर आई थीं. जहां फिल्म को दर्शकों और आलोचकों से खास रेस्पांस नही मिला, वहीं एक मराठी महिला के रूप में कृति के प्रदर्शन को बहुत सराहा गया. उनके हथियार चलाने के कौशल ने भी दर्शकों का ध्यान खूब अपनी ओर खींचा.

कंगना रनौत

ऐतिहासिक युद्ध ड्रामा ‘मणिकर्णिका: क्वीन ऑफ झांसी’ में, कंगना रनौत ने रानी लक्ष्मी बाई उर्फ मणिकर्णिका मनु का वास्तविक जीवन का किरदार निभाया. उनके लुक की हर तहफ तारीफ हुई. फिल्‍म का जो ट्रेलर लॉन्‍च हुआ था. उसमें कंगना सिल्‍क की साड़ी में नजर आ रही हैं जो उन्‍होंने मराठी अंदाज में पहन रखा था. फिल्‍म मणिकर्णिका में जो ज्‍वेलरी कंगना ने पहनी थी वो उनके महाराष्ट्रियन लुक को कंपलीट कर रही थी.

प्रियंका चोपड़ा

बॉलीवुड में अपने दम पर अपनी खास पहचान बनाने वाली एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा, विशाल भारद्वाज की कमीने और संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित बाजीराव मस्तानी में महाराष्ट्रीयन किरदार निभाती नजर आई थीं. जहां पहली फिल्म में वह ‘स्वीटी शेखर भोपे’ के रूप में दिखाई दीं, वहीं प्रियंका ने ऐतिहासिक ड्रामा बाजीराव मस्तानी में काशीबाई की भूमिका निभाई. फिल्‍म में उन्होंने ने नौ गज लंबी हाथ से बनी नौवारी साड़ी पहनी थी. उनकी सिल्‍क की मराठी साड़ी और मराठी ज्‍वेलरी को महिलाओं ने काफी पसंद किया था. खासतौर पर मराठी नोज पिन का फैशन यही से ट्रेंड में आया था.

श्रीदेवी

अपनी खूबसूरती, दमदार एक्टिंग स्किल्स के चलते बॉलीवुड की नंबर 1 स्टार का खिताब हासिल करने वाली बीते जमाने की फेमस एक्ट्रेस श्रीदेवी कौन नही जानता. श्री देवी ने गौरी शिंदे द्वारा निर्देशित ‘इंग्लिश विंग्लिश’ में एक मराठी महिला शशि गोडबोले का किरदार निभाया था. फिल्म में उनकी साड़ियां चर्चा का विषय बनी थीं. दर्शकों को श्रीदेवी का लुक काफी पसंद आया था. कॉमेडी ड्रामा में उनके अभिनय की सभी ने खूब सराहना की और उन्होंने ‘आउटस्टैंडिंग परफॉर्मर ऑफ द ईयर’ का पुरस्कार भी जीता और इसे ऑस्कर नामांकन के लिए भी चुना गया.

अगर आप भी महाराष्ट्रीयन लुक में तैयार होना चाहती हैं. तो एक्ट्रेस के इन लुक से इंस्पिरेशन ले सकती हैं. साड़ी बांधने के अंदाज से लेकर मेकअप तक सबकुछ कॉपी कर आप पूरे महाराष्ट्रीयन लुक में नजर आएंगी.

महिलाओं में मिसकैरेज के क्या हैं लक्षण

मुंबई की निम्न आय वर्ग की 30 वर्षीय विभा (बदला नाम) 24 हफ्ते में पहली बार डाक्टर के पास आई और जब बच्चे की सोनोग्राफी की गई तो पता चला कि बच्चे का सिर डैवलप नहीं हुआ, ब्रेन नहीं है. उसे कोख में पाल कर फायदा नहीं है. बिना सिर के बच्चा जीवित नहीं रह सकता. ऐसे में उस महिला को अपनी लाइफ के साथ सम?ाता करना पड़ा क्योंकि 20 हफ्ते के बाद बच्चे का कानून अबौर्शन संभव नहीं. यह अपराध है जिस से जेल हो सकती है. ऐसे में वह जहां भी अबौर्शन के लिए गई, सभी ने मना कर दिया.

अंत में उसे बिना विकसित हुए बच्चे के साथ पूरे 4 महीने और गुजारने पड़े जिस के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी. 3-4 दिन की दर्द के बाद बच्चे का जन्म हुआ और 15 मिनट बाद बच्चा खत्म हो गया.

जब कोई उपाय नहीं हो

यह दर्दनाक था पर कोई उपाय नहीं था. इस बारे में अकसर कहते हैं कि यह समस्या आज हमारे देश में अधिक है क्योंकि कानूनन 20 हफ्ते तक ही अबौर्शन संभव है. ऐसे में कई बार जान कर भी बच्चे का अबौर्शन नहीं कर पाते. इसलिए इस घटना के बाद मैं ने कुछ डाक्टरों की टीम के साथ यह पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में दायर की है कि अबौर्शन का दायरा बढ़ाया जाए ताकि इस तरह के ऐबनौर्मण बच्चे से मां को मुक्ति मिले.

इस पर कोर्ट अकसर अपने फैसले देते रहते हैं और ये फैसले लेने में कईकई दिन लग जाते हैं और प्रसूता तड़पती रहती है.

दरअसल, 6 या 7 महीने के बाद बच्चा अगर जन्म लेता है तो उसे प्रीटर्म डिलिवरी कहते हैं. समय के बाद अगर बच्चा बाहर आए और मैडिकल सपोर्ट के साथ जी सके तो उसे ‘वायबिलिटी’ कहते है. ‘वायबिलिटी’ के बाद बच्चा बाहर आए तो उसे डिलिवरी कहते हैं. ‘वायबिलिटी’ के पहले तो मिस कैरेज. अंगरेजी में अबौर्शन और मिसकैरेज 2 अलग शब्द हैं. अबौर्शन आप करवाते हैं और ‘मिसकैरेज’ अपनेआप हो जाता है. हिंदी में दोनों को ही गर्भपात यानी अबौर्शन कहते हैं. इसलिए लोग इसे सम?ा नहीं पाते.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

इस बारे में इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ बताते हैं कि 9 महीने के ग्राफ में पौने 2 महीने के बाद सोनोग्राफी करने के बाद दिल की धड़कन, लाइफ का पता चलता है. कानून के हिसाब से 20 हफ्ते तक अबौर्शन करवाने की मैडिकल टर्मिनेशन औफ प्रैगनैंसी ऐक्ट के अनुसार परमिशन है. हमारे देश में बच्चा कब ‘वायएबल’ हुआ इस का लीगल वर्णन कहीं नहीं होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह 24 हफ्ते तक है, जबकि हमारे देश में ‘बर्थ ऐंड डैथ’ रजिस्ट्रेशन ऐक्ट में कहीं भी इस बारे में साफसाफ सूचना नहीं है.

आसान नहीं है अबौर्शन

28 सप्ताह के बाद असल में डिलिवरी नहीं की जानी चाहिए. ‘एमटीपी ऐक्ट 1971’ जब बना उस समय सोनोग्राफी नहीं थी. अब तकनीक आगे बढ़ चुकी है. पहले ही बच्चे की ग्रोथ का पता चलता है. अगर समस्या है तो बच्चे का अबौर्शन कर मां को बचाया जा सकता है. तीन से 4 महीने में बच्चा विकसित नहीं होता. सिर का विकास, किडनी न होना दिल की बीमारियां आदि का 22 से 24 सप्ताह में ही पता चलता है.

कई देशों में 24 सप्ताह तक अबौर्शन का प्रावधान है अगर बच्चे का विकास पूरी तरह से न हुआ हो या फिर मां की जान को कोई खतरा हो. लेकिन हमारे देश में ऐसी समस्या को ले कर मरीज और डाक्टर दोनों परेशान रहते हैं. कुछ यूरोपीय देश भी चर्च के दबाव में अबौर्शन नहीं करने देते.

इस तरह का अबौर्शन मां के लिए काफी खतरनाक होता है. कानूनन मान्यता न होने की वजह से लोग चोरी से अबौर्शन करवाते हैं जिस से डाक्टरी इलाज उन्हें नहीं मिल पाता और अत्यधिक ब्लीडिंग या इन्फैक्शन का खतरा महिला के लिए बढ़ जाता है. 6 महीने में डिलिवरी या अबौर्शन करवाना आसान नहीं होता. इस के तरीके निम्न हैं:

इसे डिलिवरी की तरह ही करना पड़ता है. नीचे से दवा वैजाइना में डालते हैं जिस में नौर्मल सेलाइन में दवा डाली जाती और फिर लेबर पेन की प्रतीक्षा करते हैं.

6-6 घंटे के अंतर पर दवा डालने से प्रैशर आता है. थैली का मुंह खुलता है और नौर्मल डिलिवरी होती है. प्लासैंटल बीट्स रह जाते हैं. उन्हें सफाई कर निकालना पड़ता है.

24 घंटे से ले कर 2 दिन का समय लगता है. अगर 4-5 दिन वेट करने पर भी बच्चा नहीं निकला, थैली का मुंह नहीं खुला तो मिनी सिजेरियन किया जाता है.

इस के बाद ऐंटीबायोटिक दे कर उसे नौर्मल किया जाता है. यह प्रक्रिया आसान नहीं होती अच्छे डाक्टर और हाईजीन की आवश्यकता होती है. चोरीछिपे करने से मां पर उस का असर पड़ता है. दोबारा प्रैगनैंसी में समस्या आ सकती है.

मिसकैरेज का खतरा

6वें महीने में अबौर्शन या मिसकैरेज होने के अलगअलग महिलाओं में अलगअलग लक्षण होते हैं. मिसकैरेज आनुवंशिकी नहीं. इस के लक्षण निम्न हैं:

द्य पहली प्रैगनैंसी में कई बार महिलाओं को पता नहीं चलता कि उन का मिसकैरेज हो रहा है. थोड़ा दर्द होने पर वे ध्यान नहीं देतीं. इसलिए जब भी दर्द हो तो डाक्टर की सलाह लें.

द्य अगर हलका पानी डिस्चार्ज हो तो नौर्मल है. अगर एक बोतल जितना पानी जाए, जहां बैठी वह स्थान भीग जाए, जिसे बिकिंग कहते हैं तो तुरंत डाक्टर के पास जाएं.

पेन कैसा है, थैली का मुंह कितना छोटा है., सर्विकल लैंथ कितनी है आदि सभी पर ध्यान दे कर बच्चा और मां दोनों को बचाया जा सकता है.

डा. मेघना कहती हैं कि आजकल मिसकैरेज की संभावना इसलिए अधिक हो रही हैं क्योंकि महिलाएं कामकाजी हैं देरी से शादी करती हैं. प्रैगनैंसी भी देर से होती है. ऐसे में ये सावधानियां आवश्य बरतें:

30 की उम्र से पहले बच्चे की प्लानिंग करें.

वजन न बढ़ने दें.

प्रैगनैंसी प्लान करने से पहले अपनी पूरी जांच करवाएं.

अगर पौलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम है तो जल्दी प्रैगनैंसी प्लान करें.

प्रैगनैंसी के बाद 11 से 14 सप्ताह के बीच ‘न्यूकल ट्रांसलूसेंसी’ सोनोग्राफी के द्वारा करवा लें ताकि किसी भी समस्या का पता शुरू में चल जाए.

अगर बारबार मिसकैरेज शुरू में हो रहा है तो भी उस का इजाल संभव है.

थायराइड, ब्लडप्रैशर, मधुमेह आदि होने से मिसकैरेज की संभावना अधिक होती है. आजकल महिलाएं फिजिकल काम कम करती हैं और मैंटल स्ट्रैस अधिक होता है. जो मिसकैरेज का कारण बनता है.

किचन की गंदगी से हैं परेशान, तो फौलो करें ये टिप्स

साफसुथरा और आधुनिक उपकरणों से सजा घर भला किस को अच्छा नहीं लगता? जब हम किसी के घर जाते हैं तो सब से पहले एक नजर घर की व्यवस्था पर डालते हैं. जो घर सलीके से सजा होता है उस घर में 2 घंटे और बिताने का मन करता है.

ऐसे ही जब हमें कोई खाने पर बुलाता है तो उन के घर की रसोई बनाने का तरीका और सफाई की तरफ हम औरतों का ध्यान जरूर जाता है. अनाज स्टोर करने वाले कंटेनर, खाना पकाने वाले बरतन, गैस स्टोव से ले कर डिनर सैट, हाथ पोंछने के नैपकिन और किचन टौवेल ये सारी चीजें ध्यान आकर्षित करती हैं. ऐसे में यहांवहां पड़ा सामान, स्टोररूम जैसा फ्रिज, गंदे नैपकिंस खासकर गंदे जले हुए औयल लगे भगोने और कड़ाही मेहमानों के मन में अरुचि पैदा कर देती है.

किचन और बरतनों की सफाई सीधे हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करने का काम करती है. इसलिए इस की सफाई को बहुत ही ध्यान से करना जरूरी होता है ताकि चमक के साथसाथ हाइजीन भी बरकरार रहे.

किचन घर का ऐसा कोना होता है जो साफसुथरा और चमचमाता रहे तो काम करने में अलग ही मजा आता है. रसोई में बरतनों का भी महत्त्व उतना ही है जितना हैल्दी खाने का. खाना कितने भी मन से क्यों न बनाया जाए, अगर साफ चमचमाते बरतनों में परोसा न जाए तो उस का स्वाद ही फीका पड़ जाता है. इसलिए पुराने बरतनों की चमक बरकरार रखना बेहद जरूरी है. बरतनों पर लगे तेल और मसालों का पीलापन गृहिणी की फूहड़ता को दर्शाता है. इसलिए सू?ाबू?ा के साथ किचन का कोनाकोना साफ रखना मेहमानों के सामने आप की एक अलग ही छाप छोड़ जाता है.

ऐसे रखें हाइजीन

कड़ाही, कलछी, स्पैचुला, चम्मच जैसी चीजों को हर कुछ दिन बाद गरम पानी में डिटर्जेंट, नीबू, नमक और खाने का सोडा डाल कर कुछ देर डुबो कर रखने के बाद ब्रश से अच्छी तरह धो लेना चाहिए क्योंकि खाना बनाने के बाद कितना भी साफ करो छोटेछोटे कोनों में तेल चिपक ही जाता है, जिन में बैक्टीरिया पनपने के चांसेज रहते हैं. साथ ही जली हुई हांडी, पतीले और कड़ाही दिखने में भी भद्दे लगते हैं. अगर नौनस्टिक बरतन का उपयोग करते हैं तो धोते वक्त प्रोडक्ट के साथ मिले स्पैचुला का ही उपयोग करे और उस के साथ दिए गए ब्रश से ही सफाई करें वरना तुरंत नौनस्टिक की परत निकलने लगेगी और बरतन बेकार जाएगा.

कोटिंग निकले बरतनों में खाना बनाना नुकसानदेह होता है. कोटिंग निकले हुए बरतनों में खाना कभी न पकाएं, हो सकता है कलछी लगने पर हलकीहलकी कोटिंग निकल कर खाने में मिल जाए.

दूसरा कद्दूकस को इस्तेमाल करने के बाद कुछ लोग ऐसे ही पानी से धो कर रख देते हैं, जिस से कई बार उस में चीजें फंसी रह जाती हैं और सूखने के बाद उन्हें निकालना और ज्यादा मुश्किल हो जाता है. ऐसे में उसे टूथब्रश की मदद से साफ करें. भीगे बरतनों को स्टैंड में रख देते हैं जिस के कारण उन से अजीब सी बदबू आती है और बरतन रखने वाले स्टैंड में जंग लग जाती है. इसलिए बरतन स्टैंड को साफ कपड़े से पोंछ कर सुखा कर ही उस में बरतन रखें.

किचन में चिमनी लगवाएं

कई बार कुछ घरों में तो एक अजीब सी बास रहती है जो गंदी किचन की देन होती है. खाना बनाने के बाद गृहिणी इतनी थक जाती है कि किचन साफ करने का मन ही नहीं करता. इसलिए कुछ गृहिणियां जो हाथ में आया उसे पोंछा बना कर प्लेटफौर्म पोंछ देती हैं जिस की वजह से प्लेटफौर्म दाग, धब्बों वाला, चिकना और चिपचिपा रहता है, जिस की बदबू पूरे घर के वातावरण को पर्टिकुलर गंध में बदल देती है.

चिमनी रसोई की गरमी, धुआं और तड़के की महक को बाहर छोड़ देती है जिस से रसोई की किसी भी तरह की अच्छी, बुरी खुशबू या बदबू पूरे घर का माहौल खराब नहीं करती. साथ ही सिंक, ओवन और काउंटर टौप रसोई के सभी हिस्सों की सफाई भी बहुत जरूरी है. किचन काउंटर्स और फर्श पर कई प्रकार के खाद्यपदार्थ रखे जाते हैं और हमेशा तरल पदार्थ गिरते रहते हैं. कटी सब्जियों के टुकड़े, गिरा आटा, दूध, काउंटर पर गिरे मसाले और नमक, पानी व तेल की बूंदें इन में से तरल पदार्थों का छलकना आम बात है. लेकिन इन्हें सूखने और सड़ने के लिए छोड़ देना गलत आदत है. किचन में गिरे सभी तरल पदार्थों को सूखने और मक्खियों को आकर्षित करने से पहले साफ कर देना चाहिए.

सब से इंपौर्टैंट सफाई मिक्सर जार की होती है क्योंकि ब्लेड के नीचे के हिस्से में खाद्यपदार्थ चिपक जाता है जहां न ऊंगली पहुंचती है न ब्रश इसलिए गरमागरम खौलते पानी में नमक और नीबू डाल कर जार में भर कर रखिए फिर 1 घंटे बाद जार को बंद कर के जोर से हिलाइए. कोनेकोने से सारी गंदगी बाहर निकल आएगी.

जितनी जगह उतनी सुविधा

अनहाइजीनिक किचन, चिपचिपे उपकरण और गंदे बरतन बीमारियों का कारण बन सकते हैं. मसालों के डब्बों, शीशे के कप, प्लेट, बाउल, गिलास, किचन में लगी टाइल्स माइक्रोवेव और मिक्सर, ब्लैंडर आदि चीजों की सफाई भी उतनी ही जरूरी है जितनी डिनर सैट और बाकी चीजों की. किचन में कई बार लोग बिना काम की चीजों को भी भर कर रखते हैं. इस से भी किचन भरीभरी और गंदी नजर आती है. बेकार के सामान को बाहर कर दें. किचन में जितनी ज्यादा जगह रहेगी उतनी ही काम करने में सुविधा रहेगी.

कांच के बरतनों की बात करें तो इन्हें हमेशा सावधानी के साथ मैनेज करना चाहिए. हर कुछ समय बाद बरतनों की देखभाल उन की आयु ज्यादा बढ़ा देती है और साफ और चमकीले गिलास में सर्व किया ड्रिंक्स पीने वालों को तरोताजा बना देता है. जिन गिलासों को ठीक से धोया और सुखाया नहीं जाता है उन में अवांछित गंध रह सकती है जो आप के मेहनत से बनाए कोल्डड्रिंक को प्रभावित करेगी.

इस के अतिरिक्त दूध और पानी के निशान वाले कांच के बरतन अपनी चमक खो देते हैं जो मेहमानों को परोसते समय बहुत ही गंदे लगते हैं. गिलासों को धोने के बाद उलटा कर के सूखने के लिए छोड़ दें. सूख जाने पर पानी के निशान हटाने के लिए मुलायम सूखे कपड़े का उपयोग करें. इस से कांच के बरतनों की चमक बनी रहती है. तांबे और पीतल के बरतनों का वैसे तो जमाना नहीं रहा लेकिन कुछ लोग शौकिया और फैशन के तौर पर रसोई में इन बरतनों को स्थान देते हैं. अत: इन्हें भी समयसमय पर चमकाते रहें. पितांबरी पाउडर से यह काम किया जा सकता है.

गुस्से पर नहीं है कंट्रोल, तो ऐसे करें अपने मन को शांत

गुस्सा करना कोई अच्छी बात नहीं है. लेकिन कई बार परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि न चाहते हुए भी हम अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में अगर हमें गुस्से का घूंट पीना पड़े तो किस तरह अपने अंदर की कड़वाहट को निकाल सकते हैं. आइए, जानते हैं:

आज मीरा औफिस से घर आई तो उस का मूड कुछ उखड़ा हुआ था. जैसे ही वह घर आई तो उस के बेटे रोहन ने रोज की तरह पूछा कि मम्मी क्या मैं खेलने जाऊं? तब मीरा ने

गुस्से में आ कर कहा कोई जरूरत नहीं है. चुपचाप बैठ कर अपना होमवर्क करो, जब देखो तब बस खेलनाखेलना की रट लगाए रहते हो वैगरहवैगरह.

तब रोहन अपनी मम्मी को गुस्से में देख कर चुप हो गया और सोचने लगा आज मम्मी को आखिर क्या हुआ? बिना बात मेरे ऊपर गुस्सा कर रही हैं. मैं ने तो कोई गलती भी नहीं की.

ऐसा ही कुछ यदि आप के घर भी होता है तो यह लेख आप के लिए ही है ताकि आप जान सकें कि बिना वजह अपना गुस्सा किसी और पर उतारना क्या ठीक है और इस का क्या असर पड़ता है?

किसी भी बात पर जब हमें बहुत तेज गुस्सा आ रहा होता है तब हम अपने मन की सारी भड़ास या गुस्सा उस इंसान पर निकाल देना चाहते हैं जिस के कारण हमारा मूड खराब हुआ होता है. लेकिन जब स्थिति हमारी पहुंच से बाहर होती है तो गुस्सा हमें अंदर ही अंदर परेशान करता रहता है.

ऐसी स्थिति में इस घुटन से बचने के लिए यदि आप इन बातों को अपनाएंगे तो हो सकता है आप अपना गुस्सा बेवजह दूसरों पर नहीं उतारेंगे बल्कि अपने गुस्से के ऊपर काबू रख पाएंगे.

ध्यान कहीं और ले जाएं

किसी दिन जब आप की औफिस या घर पर या किसी दोस्त से कोई बहस या लड़ाई आदि हो जाए या कोई ऐसी बात हो जो आप को मंजूर नहीं या किसी के व्यवहार से आप आहत हो गए हों और तब अपनी बात को रख पाना संभव न हो तो मन ही मन परेशान रहने के बजाय थोड़ी देर चुपचाप बैठ जाएं और अपने ध्यान को कहीं और शिफ्ट या फोकस करने की कोशिश करें इस के लिए आप किचन में जा कर काम करने लगें या अपनी पसंद का कोई गाना या म्यूजिक सुन लें या अपनी पसंद का कोई भी काम चुन ले, कहीं घुमने चले जाएं ताकि आप पुरानी बात को भूल जाएं और अपने गुस्से को शांत कर सकें और उस पर नियंत्रण पा सकें क्योंकि जब हम गुस्से में होते हैं तो हमारा फोकस दूसरे कामों पर भी नहीं बन पाता है.

इसलिए जरूरी होता है कि हम अपने मन को हलका करें. आप चाहें तो इस के लिए मैडिटेशन की मदद भी ले सकती हैं.

मन को करें हलका

जितना बोलना है और जैसा बोलना है. सब बोल डालिए कुल मिला कर भड़ास निकाल लीजिए. घर पर, बच्चों पर या किसी और पर गुस्सा न उतारें. आप का ऐसा करना आप के अच्छे व्यवहार का परिचायक नहीं है तो आप बिना किसी बात के दूसरों से दूर हो जाएंगे क्योंकि तब लोग आप के बारे में यह सोच बना लेंगे कि यह तो हर समय बिना बात के गुस्सा करता रहता या रहती है.

करें अनदेखी

कभी ऐसा होता है जब आप अपने दोस्तों संग या औफिस अथवा परिवार में कुछ समय बिता रहे हों तब कोई आप के ऊपर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तानेबाजी कर रहा हो या आप की बात को नाकारे जा रहा हो तब उस का ऐसा करना आप के तनाव को बढ़ा देता है. मगर यह कोई जरूरी नहीं कि हरकोई आप के मुताबिक ही बात करे. ऐसे में छोटीछोटी बातों की अनदेखी जरूरी है ताकि गुस्से से बच सकें.

करें संवाद

यदि आप किसी की बात से आहत हो जाएं तो उस से आपस में बातचीत कर अपने गुस्से को शांत या ठंडा कर लें ताकि यदि कोई गलतफहमी हो गई हो तो उसे दूर किया जा सके? सामने वाले के तर्क को सम?ा जा सके. इस के लिए आपस में संवाद या बातचीत होना आवश्यक है.

करें आकलन

कई बार हम छोटीछोटी बातों को ले कर गुस्सा करने लगते हैं. हमारा ऐसा बरताव असुरक्षा की भावना भर देता है. ऐसे में किसी भी बात पर अपनी प्रतिक्रिया देने के बजाय सामने वाले की बात को सम?ाने का प्रयास करें.

माफ करना सीखें

कभीकभी किसी का व्यवहार या अपशब्द हमें इतना विचलित कर देते हैं कि हम उस से बात करने या किसी भी तरह का व्यवहार रखना पसंद नहीं करते और जब उस इंसान से आप का आमनासामना होता है तब हम फिर से गुस्से से भर जाते हैं ऐसे में ऐसे लोगों को माफ कर देने की आदत डालना ही बेहतर होता है ताकि गुस्से को वहीं खत्म किया जा सके, रिश्तों की कड़वाहट को खत्म किया जा सके.

एक बार जरूर सोचें

यह समस्या अकसर कई बच्चों के साथ होती है कि मातापिता की औफिस की टैंशन, घर की टैंशन, बाहर की टैंशन, किसी से ?ागड़े की टैंशन, सरकारी काम न होने की टैंशन, पैसों की कमी की टैंशन और न जाने क्याक्या उन के दिमाग में चलता रहता है और ऐसे में उन की यह फ्रस्ट्रेशन अधिकतर बच्चों पर निकलती है. यह तो हम सभी जानते हैं कि बच्चे की पहले पाठशाला घर से ही शुरू होती है जैसा वे बचपन से अपने घर का माहौल देखते हैं उस का असर उन के व्यवहार पर भी देखने को मिलता है. बच्चे हमेशा मातापिता की बातों को ही कौपी करते हैं और उन्हीं से सीखते हैं.

यदि मातापिता बातबात पर गुस्सा करें

मातापिता के इस व्यवहार का बच्चों पर बहुत गहरा असर पड़ता है और वे भी समय आने पर वैसा ही करते हैं. तब मातापिता को उन का ऐसा व्यवहार नागवार गुजरता है. तब मातापिता का यह कहना होता है कि उन का बच्चा बहुत जिद्दी है. वह भी बातबात पर अपना गुस्सा उतार रहा है. लेकिन उन का ऐसा कहना क्या यह सही है? इसलिए इन परिस्थितियों से बचने के लिए किसी भी हालत में फ्रस्ट्रेशन बच्चे पर उतारना सही नहीं होता है. इस बात का ध्यान रखना मातापिता की जिम्मेदारी है ताकि घर में आप के बच्चों को अच्छा माहौल मिल सके.

वसंत लौट गया : क्या था किन्नी का फैसला

टेलीविजन पर मेरा इंटरव्यू दिखाया जा रहा है. मुझे साहित्य का इतना बड़ा सम्मान जो मिला है. बचपन से ही कागज काले करती आ रही हूं. छोटेबड़े और सम्मान भी मिलते रहे हैं लेकिन इतना बड़ा सम्मान पहली बार मिला है. इसलिए कई चैनल वाले मेरा इंटरव्यू लेने पहुंच गए थे.

मैं ने इस बारे में अपने घर में किसी को कुछ भी नहीं बताया. बताना भी किसे था? आज तक कभी किसी ने मेरी इस प्रतिभा को सराहा ही नहीं. घर की मुरगी दाल बराबर. न पति को, न बच्चों को, न मायके में और न ही ससुराल में किसी को भी आज तक मेरे लेखिका होने से कोई मतलब रहा है.

मैं एक अच्छी बेटी, अच्छी बहन, अच्छी पत्नी, अच्छी मां बनूं यह आशा तो मुझ से सभी ने की, लेकिन मैं एक अच्छी लेखिका भी बनूं, मानसम्मान पाऊं, ऐसी कोई चाह किसी अपने को नहीं रही. मैं अपनों की उम्मीद पर पता नहीं खरी उतरी या नहीं लेकिन आलोचकों और पाठकों की उम्मीदों पर पूरी तरह खरी उतरी. तभी तो आज मैं साहित्य के इस शिखर पर पहुंची हूं.

इंटरव्यू लेने वाले भी कैसेकैसे प्रश्न पूछते हैं? शायद अनजाने में हम लेखक ही कुछ ऐसा लिख जाते हैं जो पाठकों को हमारे अंतर्मन का पता दे देता है जबकि लेखकों को लगता है कि वे मात्र दूसरों के जीवन को, उन की समस्याओं को, उन के परिवेश को ही कागज पर उतारते हैं.

इंटरव्यू लेने वाले ने बड़े ही सहज ढंग से एक सवाल मेरी तरफ उछाला था, ‘‘वैसे तो जीवन में कभी किसी को रीटेक का मौका नहीं मिलता फिर भी यदि कभी आप को जीवन की एक भूल सुधारने का अवसर दिया जाए तो आप क्या करेंगी? क्या आप अपनी कोई भूल सुधारना चाहेंगी?’’

मैं ने 2 बार इस सवाल को टालने की कोशिश की, लेकिन हर बार शब्दों का हेरफेर कर उस ने गेंद फिर मेरे ही पाले में डाल दी. मैं उत्तर देने से बच न सकी. झूठ मैं बोल नहीं पाती, इसीलिए झूठ मैं लिख भी नहीं पाती. मैं ने जीवन की अपनी एक भूल स्वीकार कर ली और कहा कि अगर मुझे अवसर मिले तो मैं अपनी वह एक भूल सुधारना चाहूंगी जिस ने मुझ से मेरे जीवन के वे कीमती 25 साल छीन लिए हैं, जिन्हें मैं आज भी जीने की तमन्ना रखती हूं, हालांकि यह सब अब बहुत पीछे छूट गया है.

प्रोग्राम कब का खत्म हो चुका था लेकिन मैं वर्तमान में तब लौटी जब फोन की घंटी बजी.

बेटी किन्नी का फोन था. मेरे हैलो कहते ही वह चहक कर बोली, ‘‘क्या मम्मा, आप को इतना बड़ा सम्मान मिला, इतना अच्छा इंटरव्यू टैलीकास्ट हुआ और आप ने हमें बताया तक नहीं? वह तो चैनल बदलते हुए एकाएक आप को टैलीविजन स्क्रीन पर देख कर मैं चौंक गई.’’

‘‘इस में क्या बताना था? यह सब तो…’’

‘‘फिर भी मम्मा, बताना तो चाहिए था. मुझे मालूम है आप को एक ही शिकायत है कि हम कभी आप का लिखा कुछ पढ़ते ही नहीं. खैर, छोड़ो यह शिकायत बहुत पुरानी हो गई है. मम्मा, बधाई हो. आई एम प्राउड औफ यू.’’

‘‘थैंक्स, किन्नी.’’

‘‘सिर्फ इसलिए नहीं कि आप मेरी मम्मा हैं बल्कि आप में सच बोलने की हिम्मत है. पर यह सच मेरी समझ से परे है कि आप ने इस को स्वीकारने में इतने साल क्यों लगा दिए? मैं ने तो जब से होश संभाला है मुझे हमेशा लगा कि पता नहीं आप इस रिश्ते को कैसे ढो रही हैं? मैं तो यह सोच कर हैरान हूं कि जब आप इसे अपनी भूल मान रही थीं तो ढो क्यों रही थीं?’’

‘‘तुम दोनों के लिए बेटा, तब इस भूल को सुधार कर मैं तुम दोनों का जीवन और भविष्य बरबाद कर कोई और भूल नहीं करना चाहती थी. भूल का प्रायश्चित्त भूल नहीं होता, किन्नी.’’

‘‘ओह, मम्मा, हमारे लिए आप ने अपना पूरा जीवन…इस के लिए थैंक्स. आई एम रियली प्राउड आफ यू. अच्छा मम्मा, जल्दी ही आऊंगी. अभी फोन रखती हूं. मिलने पर ढेर सारी बातें करेंगे,’’ कहते हुए किन्नी ने फोन रख दिया.

किन्नी हमेशा ऐसे ही जल्दी मेें होती है. बस, अपनी ही कहती है. मुझे तो कभी कुछ कहने या पूछने का अवसर ही नहीं देती. इस से पहले कि मैं कुछ और सोचती फोन फिर बज उठा. दीपक का फोन था.

‘‘हैलो दीपू, क्या तुम ने भी प्रोग्राम देखा है?’’

‘‘हां, देख लिया है. वह तो मेरे एक दोस्त, रवि का फोन आया कि आंटी का टैलीविजन पर इंटरव्यू आ रहा है, बताया नहीं? मैं उसे क्या बताता? पहले मुझे तो कोई कुछ बताए,’’ दीपक नाराज हो रहा था.

‘‘वह तो बेटा, तुम लोग इस सब में कभी रुचि नहीं लेते तो सोचा क्या बताना है,’’ मैं ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘मम्मा, यह तो आप को पता है कि हम रुचि नहीं लेते, लेकिन आप ने कभी यह सोचा है कि हम रुचि क्यों नहीं लेते? क्या यही सब सुनने और बेइज्जत होने के लिए हम रुचि लें इस सब में?’’

‘‘क्या हुआ, बेटा?’’

‘‘इस इंटरव्यू का आखिर मतलब क्या है? क्या हम सब की सोसाइटी में नाक कटवाने के लिए आप यह सब…आज तो इंटरव्यू देखा है, किताबों में पता नहीं क्याक्या लिखती रहती हैं. पता तो है न कि हम आप का लिखा कुछ पढ़ते नहीं.’’

‘‘बेटा, तुम ही नहीं पढ़ते, मैं ने तो कभी किसी को पढ़ने से नहीं रोका. बल्कि मुझे तो खुशी ही होगी अगर कोई मेरी…’’

‘‘वैसे पढ़ कर करना भी क्या है? कभी सोचा ही नहीं था कि पापा से अपनी शादी को आप भूल मानती आ रही हैं, तो क्या मैं और किन्नी आप की भूल की निशानियां हैं?’’ बेटे का स्वर तीखा होता जा रहा था.

‘‘यह तू क्या कह रहा है दीपू. मेरे कहने का मतलब यह नहीं था.’’

‘‘वैसे जब 25 साल तक चुप रहीं तो अब मुंह खोलने की क्या जरूरत थी? चुप भी तो रह सकती थीं आप?’’

‘‘बेटा, इंटरव्यू में कहे मेरे शब्दों का यह मतलब नहीं था. तू समझ नहीं रहा है मैं…’’

‘‘मैं क्या समझूंगा, पापा भी कहां समझ पाए आप को? दरअसल, औरतों को तो बड़ेबड़े ज्ञानीध्यानी भी नहीं समझ पाए. पता नहीं आप किस मिट्टी से बनी हैं, कभी खुश रह ही नहीं सकतीं,’’ कहते हुए उस ने फोन पटक दिया था.

मैं तो ठीक से समझ भी नहीं पाई कि उसे शिकायत मेरे इंटरव्यू के उत्तर से थी या अपनी पत्नी से लड़ कर बैठा था, जो इतना भड़का हुआ था. यह इतनी जलीकटी सुना कर भड़क रहा है, दूसरी तरफ बेटी है जो गर्व अनुभव कर रही है.

औरत को खानेकपड़े के अलावा भी जीवन में बहुत कुछ चाहिए होता है. यह बात जब पिछले 25 वर्षों में मैं इस के पापा को नहीं समझा पाई तो भला इसे क्या समझा पाऊंगी? बहुत सहा है इन 25 वर्षों में, आज पहली बार मुंह खोला तो परिवार में तूफान के आसार बन गए. कैसे समझाऊं अपने बेटे को कि मेरे कहने का तात्पर्य मात्र इतना है कि यदि कभी पता होता कि शादीशुदा जीवन में इतनी घुटन, इतनी सीलन, इतना अकेलापन, इतने समझौते हैं तो मैं शादी ही नहीं करती.

मैं तो उस पल में वापस जाना चाहती हूं जब इंद्रजीत को दिखा कर मेरे मम्मीपापा ने शादी के लिए मेरी राय पूछी थी और मैं ने इन की शिक्षा, इन का रूप देख कर शादी के लिए हां कर दी थी. तब मुझे क्या पता था कि साल में 8 महीने घर से दूर रहने वाला यह व्यक्ति अपने परिवार के लिए मेहमान बन कर रह जाएगा. इस का सूटकेस हमेशा पैक ही रहेगा. न जाने कब एक फोन आएगा और यह फिर काम पर निकल जाएगा.

बच्चों का क्या है…बचपन में कीमती तोहफों से बहलते रहे, बड़े हुए तो पढ़ाई और कैरियर की दौड़ में दौड़ते हुए मित्रों के साथ मस्त हो गए और शादी के बाद अपने घरपरिवार में रम गए. मां और बाप दोनों की जिम्मेदारियां उठाती हुई घर की चारदीवारी में मैं कितनी अकेली हो गई हूं, इस ओर किसी का कभी ध्यान ही नहीं गया. जब मुझे जीवन अकेले अपने दम पर ही जीना था और कलम को ही अपने अकेलेपन का साथी बनाना था तो इस शादी का मतलब ही क्या रह जाता है?

बेटे के गुस्से को देख कर तो मुझे इंद्रजीत की तरफ से और भी डर लगने लगा है. अगर उन्होंने भी यह इंटरव्यू देखा होगा तो क्या होगा? पता नहीं क्या कहेंगे? मैं जब इतने वर्षों में अपनी परेशानी कभी उन्हें नहीं कह पाई तो अब अपनी सफाई में क्या कह पाऊंगी? वे कहीं मुझे तलाक ही न दे दें और कहें कि लो, मैं ने तुम्हारी भूल सुधार दी है.

मैं परेशान हो उठी. वर्षों से सच उजागर करने वाली मैं अपने जीवन के एक सच का सामना नहीं कर पा रही थी. आंसुओं से मेरा चेहरा भीग गया. पहली बार मुझे सच बोलने पर खेद हो रहा था. मेरा मन मुझे धिक्कार रहा था. बेटा ठीक ही तो कह रहा था कि अब इस उम्र में मुझे मुंह खोलने की क्या जरूरत थी. काश, इंटरव्यू देते समय मैं ने यह सब सोच लिया होता.

ये मीडिया वाले भी कैसे हैं… ‘मौका पाते ही सामने वाले को नंगा कर के रख देते हैं.’

अचानक फोन की घंटी बज उठी. इंद्रजीत का फोन था. मैं ने कांपते हाथों से फोन उठाया. मेरे रुंधे गले से आवाज ही नहीं निकल रही थी. मुझे लगा अभी उधर से आवाज आएगी, ‘तलाक… तलाक…’

‘‘सुभी…हैलो सुभी…’’ वह मुझे पुकार रहे थे.

‘‘हैलो…’’ मैं चाह कर भी इस के आगे कुछ नहीं बोल पाई.

‘‘अरे, सुभी, मैं ने तो सोचा था खुशी से चहकती हुई फोन उठाओगी. तुम तो शायद रो रही हो? क्या हुआ, सब ठीक तो है न?’’ उन के स्वर में घबराहट थी. मैं ने पहली बार उन्हें अपने लिए परेशान पाया था.

‘‘अरे, भई, इतना बड़ा सम्मान मिला है. तुम्हें बताना तो चाहिए था? खैर, मैं परसों दोपहर पहुंच रहा हूं फिर सैलीब्रेट करेंगे तुम्हारे इस सम्मान को.’’

पति का यह रूप मैं ने 25 साल में पहली बार देखा था. आज अचानक यह परिवर्तन कैसा? मैं भय से कांप उठी. कहीं यह किसी तूफान की सूचना तो नहीं?

‘‘क्या आप ने टैलीविजन पर मेरा इंटरव्यू देखा है?’’ मैं ने घबराते हुए पूछा. मुझे लगा शायद उन्हें किसी से मुझे मिले सम्मान की बात पता लगी है.

‘‘देखा है सुभी, उसे देख कर ही तो सब पता लगा है, वरना तुम कब कुछ बताती हो?’’

‘‘क्या आप ने इंटरव्यू पूरा देखा था?’’ मेरी शंका अभी भी अपनी जगह खड़ी थी. पति में आए इस परिवर्तन को मैं पचा नहीं पा रही थी.

‘‘पूरा देखा ही नहीं रिकार्ड भी कर लिया है. रिकार्डिंग भी साथ ले आ रहा हूं.’’

‘‘फिर भी आप नाराज नहीं हैं?’’

‘‘नाराज तो मैं अपनेआप से हो रहा हूं. मैं ने अनजाने में तुम्हें कितनी तकलीफ पहुंचाई है. तुम इतनी बड़ी लेखिका हो, जिस का सम्मान पूरा देश कर रहा है उसे मेरे कारण अपनी शादी एक भूल लग रही है. काश, मैं तुम्हारी लिखी किताबें पढ़ता होता तो यह सब मुझे बहुत पहले पता लग जाता. खैर, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, शेष जीवन प्रायश्चित्त के लिए बहुत है,’’ इंद्रजीत हंसने लगे.

‘‘मैं क्षमा चाहती हूं, क्या आप मुझे माफ कर पाएंगे?’’ मैं रोंआसी हो गई.

‘‘क्षमा तो मुझे मांगनी चाहिए पगली, लेकिन मैं मात्र क्षमा मांग कर इस भूल का प्रायश्चित्त नहीं करना चाहता, बल्कि तुम्हारे पास आ रहा हूं, तुम्हारे हिस्से की खुशियां लौटाने. वास्तव में यह तुम्हारी भूल नहीं मेरे जीवन की भूल थी जो मैं ने अपनी गुदड़ी में पड़े हीरे को नहीं पहचाना.’’

मेरे आंसू खुशी के आंसुओं में बदल चुके थे. मुझे इंद्रजीत का बेसब्री से इंतजार था. उन के कहे शब्द मेरे लिए किसी भी सम्मान से बड़े थे. मैं वर्षों से इसी प्यार के लिए तो तरस रही थी.

जैसे तेज बारिश और तूफान अपने साथ सब गंदगी बहा ले जाए और निखरानिखरा सा, खिलाखिला सा प्रकृति का कणकण दिलोदिमाग को अजीब सी ताजगी से भर दे कुछ ऐसा ही मैं महसूस कर रही थी. खुशियों के झूले में झूलते हुए न मालूम कब आंख लग गई. सपने भी बड़े ही मोहक आए. अपने पति की बांहों में बांहें डाल मैं फूलों की वादियों में, झरनों, पहाड़ों में घूमती रही.

सुबह दरवाजे की घंटी से नींद खुली. सूरज सिर पर चढ़ आया था. संगीता काम करने आई होगी यह सोच कर मैं ने जल्दी से जा कर दरवाजा खोला तो सामने किन्नी खड़ी थी. मुझे देखते ही मुझ से लिपट गई. मैं वर्षों से अपनी सफलताओं पर किसी अपने की ऐसी ही प्रतिक्रिया, ऐसे ही स्वागत की इच्छुक थी. मैं भी उसे कस कर बांहों में समेटे हुए ड्राइंगरूम तक ले आई. मन अंदर तक भीग गया.

‘‘मम्मा, मुझे हमेशा लगता था कि आप नहीं समझेंगी, लेकिन कल टैलीविजन पर आप का इंटरव्यू देख कर लगा, मैं गलत थी,’’ किन्नी मेरी बांहों से अपने को अलग करती हुई बोली.

‘‘क्या नहीं समझूंगी? क्या कह रही है?’’ मैं वास्तव में कुछ नहीं समझी थी.

‘‘मम्मा, मैं ने तय कर लिया है कि मैं कार्तिक के साथ अब और नहीं रह सकती,’’ किन्नी एक ही सांस में बोल गई.

‘‘क्या…क्या कह रही है तू? किन्नी, यह कैसा मजाक है?’’ मैं ने उसे डांटते हुए कहा.

‘‘मैं मजाक नहीं कर रही. यह सच है. यह कोई जरूरी तो नहीं कि मैं भी अपनी भूल स्वीकार करने में 25 वर्ष लगा दूं?’’

‘‘लेकिन कार्तिक के साथ शादी करने का फैसला तो तुम्हारा ही था?’’

‘‘तभी तो इसे मैं अपनी भूल कह रही हूं. फैसले गलत भी तो हो जाते हैं. यह बात आप से ज्यादा कौन समझ सकेगा?’’

‘‘बेटा, मैं ने कहा था कि मैं शादी ही करने की भूल नहीं करती, न कि तुम्हारे पिता से शादी करने की भूल नहीं करती. तुम गलत समझ रही हो. दोनों में बहुत फर्क है.’’

‘‘आप अपनी बात को शब्दों में कैसे भी घुमा लो, मतलब वही है. मैं कार्तिक के साथ और नहीं रह सकती. बस, मैं ने फैसला कर लिया है,’’ कहते हुए उस ने अपने दोनों हाथ कुछ इस तरह से सोफे की सीट पर फेरे मानो अपनी शादी की लिखी इबारत को मिटा रही हो.

मैं हैरान सी उस का चेहरा देख रही थी. ठीक इसी तरह 2 वर्ष पहले उस ने कार्तिक के साथ शादी करने का अपना फैसला हमें सुनाया था. कार्तिक पढ़ालिखा, अच्छे संस्कारों वाला, कामयाब लड़का है इसलिए हमें भी हां करने में कोई ज्यादा सोचना नहीं पड़ा. वैसे भी आज के दौर में मातापिता को अपने बच्चों की शादी में अपनी राय देने का अधिकार ही कहां है? हमारी पीढ़ी से चला वक्त बच्चों की पीढ़ी तक पहुंचतेपहुंचते कुछ ऐसी ही करवट ले चुका है.

लेकिन अब क्या करूं? क्या आज भी किन्नी की हां में हां मिलाने के अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं है? एकदूसरे को समझने के लिए तो पूरा जीवन भी कम पड़ जाता है, 2 वर्षों की शादीशुदा जिंदगी होती ही कितनी है?

बहुत पूछने पर भी किन्नी ने अपने इस फैसले का कोई ठोस कारण नहीं बताया. उस का कहना था, मैं नहीं समझ पाऊंगी. मैं जो लोगों के भीतर छिपे दर्द को महसूस कर लेती हूं, उस के बताने पर भी कुछ नहीं समझ पाऊंगी, ऐसा उस का मानना है.

मैं जानती हूं आज की पीढ़ी के पास रिश्तों को जोड़ने, निभाने और तोड़ने की कोई ठोस वजह होती ही नहीं फिर भी इतने बड़े फैसले के पीछे कोई बड़ा कारण तो होना ही चाहिए.

एक दिन वह उस के बिना नहीं रह सकती थी तो शादी का फैसला कर लिया. अब उस के साथ नहीं रह सकती तो तलाक का फैसला ले लिया. जीवन कोई गुड्डेगुडि़यों का खेल है क्या? लेकिन मैं उसे कुछ भी न समझा पाई क्योंकि वह कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी. अपनी तथा परिवार की नजरों में भी मैं इस के लिए कुसूरवार थी. इंद्रजीत को भी किन्नी के फैसले का पता लग गया था. अगले दिन लौटने वाले वे अगले महीने भी नहीं लौटे थे. कोई नया प्रोजैक्ट शुरू कर दिया था. दीपक उस दिन से ही नाराज है. अब उसे कौन समझाता. किन्नी का यह फैसला मेरी खुशियों पर तुषारापात कर गया.

यह नया दर्द, यह उपेक्षा, यह साहिल पर उठा भंवर फिर किसी कालजयी रचना का माहौल बना रहा है. सभी खिड़कीदरवाजे बंद कर मैं ने कलम उठा ली है.

बहू हो या बेटी

रूबी ताई ने जैसे ही बताया कि हिना छत पर रेलिंग पकड़े खड़ी है तो घर में हलचल सी मच गई.

‘‘अरे, वह छत पर कैसे चली गई, उसे तीसरे माले पर किस ने जाने दिया,’’ शारदा घबरा उठी थीं, ‘‘उसे बच्चा होने वाला है, ऐसी हालत में उसे छत पर नहीं जाना चाहिए.’’

आदित्य चाय का कप छोड़ कर तुरंत सीढि़यों की तरफ दौड़ा और हिना को सहारा दे कर नीचे ले आया. फिर कमरे में ले जा कर उसे बिस्तर पर लिटा दिया.

हिना अब भी न जाने कहां खोई थी, न जाने किस सोच में डूबी हुई थी.

हिना का जीवन एक सपना जैसा ही बना हुआ था. खाना बनाती तो परांठा तवे पर जलता रहता, सब्जी छौंकती तो उसे ढकना भूल जाती, कपड़े प्रेस करती तो उन्हें जला देती.

हिना जब बहू के रूप में घर में आई थी तो परिवार व बाहर के लोग उस की खूबसूरती देख कर मुग्ध हो उठे थे. उस के गोरे चेहरे पर जो लावण्य था, किसी की नजरों को हटने ही नहीं देता था. कोई उस की नासिका को देखता तो कोई उस की बड़ीबड़ी आंखों को, किसी को उस की दांतों की पंक्ति आकर्षित करती तो किसी को उस का लंबा कद और सुडौल काया.

सांवला, साधारण शक्लसूरत का आदित्य हिना के सामने बौना नजर आता.

शारदा गर्व से कहतीं, ‘‘वर्षों खोजने पर यह हूर की परी मिल पाई है. दहेज न मिला तो न सही पर बहू तो ऐसी मिली, जिस के आगे इंद्र की अप्सरा भी पानी भरने लगे.’’

धीरेधीरे घर के लोगों के सामने हिना के जीवन का दूसरा पहलू भी उजागर होने लगा था. उस का न किसी से बोलना न हंसना, न कहीं जाने का उत्साह दिखाना और न ही किसी प्रकार की कोई इच्छा या अनिच्छा.

‘‘बहू, तुम ने आज स्नान क्यों नहीं किया, उलटे कपडे़ पहन लिए, बिस्तर की चादर की सलवटें भी ठीक नहीं कीं, जूठे गिलास मेज पर पडे़ हैं,’’ शारदा को टोकना पड़ता.

फिर हिना की उलटीसीधी विचित्र हरकतें देख कर घर के सभी लोग टोकने लगे, पर हिना न जाने कहां खोई रहती, न सुनती न समझती, न किसी के टोकने का बुरा मानती.

एक दिन हिना ने प्रेस करते समय आदित्य की नई शर्ट जला डाली तो वह क्रोध से भड़क उठा, ‘‘मां, यह पगली तुम ने मेरे गले से बांध दी है. इसे न कुछ समझ है न कुछ करना आता है.’’

उस दिन सभी ने हिना को खूब डांटा पर वह पत्थर बनी रही.

शारदा दुखी हो कर बोलीं, ‘‘हिना, तुम कुछ बोलती क्यों नहीं, घर का काम करना नहीं आता तो सीखने का प्रयास करो, रूबी से पूछो, मुझ से पूछो, पर जब तुम बोलोगी नहीं तो हम तुम्हें कैसे समझा पाएंगे.’’

एक दिन हिना ने अपनी साड़ी के आंचल में आग लगा ली तो घर के लोग उस के रसोई में जाने से भी डरने लगे.

‘‘हिना, आग कैसे लगी थी?’’

‘‘मांजी, मैं आंचल से पकड़ कर कड़ाही उतार रही थी.’’

‘‘कड़ाही उतारने के लिए संडासी थी, तौलिया था, उन का इस्तेमाल क्यों नहीं किया था?’’ शारदा क्रोध से भर उठी थीं, ‘‘जानती हो, तुम कितनी बड़ी गलती कर रही थीं…इस का दुष्परिणाम सोचा है क्या? तुम्हारी साड़ी आग पकड़ लेती तब तुम जल जातीं और तुम्हारी इस गलती की सजा हम सब को भोगनी पड़ती.’’

आदित्य हिना को मनोचिकित्सक को दिखाने ले गया तो पता लगा कि हिना डिप्रेशन की शिकार थी. उसे यह बीमारी कई साल पुरानी थी.

‘‘डिपे्रशन, यह क्या बला है,’’ शारदा के गले से यह बात नहीं उतर पा रही थी कि अगर हिना मानसिक रोगी है तो उस ने एम.ए. तक की पढ़ाई कैसे कर ली, ब्यूटीशियन का कोर्स कैसे कर लिया.

‘‘हो सकता है हिना पढ़ाई पूरी करने के बाद डिप्रेशन की शिकार बनी हो.’’

आदित्य ने फोन कर के अपने सासससुर से जानकारी हासिल करनी चाही तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर कर दी.

शारदा परेशान हो उठीं. लड़की वाले साफसाफ तो कुछ बताते नहीं कि उन की बेटी को कौन सी बीमारी है, और कुछ हो जाए तो सारा दोष लड़के वालों के सिर मढ़ कर अपनेआप को साफ बचा लेते हैं.

‘‘मां, इस पागल के साथ जीवन गुजारने से तो अच्छा है कि मैं इसे तलाक दे दूं,’’ आदित्य ने अपने मन की बात जाहिर कर दी.

घर के दूसरे लोगोें ने आदित्य का समर्थन किया.

घर में हिना को हमेशा के लिए मायके भेजने की बातें अभी चल ही रही थीं कि एक दिन उसे जोरों से उलटियां शुरू हो गईं.

डाक्टर के यहां ले जाने पर पता चला कि वह मां बनने वाली है.

‘‘यह पागल हमेशा को गले से बंध जाए इस से तो अच्छा है कि इस का एबौर्शन करा दिया जाए,’’ आदित्य आक्रोश से उबल रहा था.

शारदा का विरोध घर के लोगों की तेज आवाज में दब कर रह गया.

आदित्य, हिना को डाक्टर के यहां ले गया,  पर एबौर्शन नहीं हो पाया क्योंकि समय अधिक गुजर चुका था.

घर में सिर्फ शारदा ही खुश थीं, सब से कह रही थीं, ‘‘बच्चा हो जाने के बाद हिना का डिप्रेशन अपनेआप दूर हो जाएगा. मैं अपनी बहू को बेटी के समान प्यार दूंगी. हिना ने मेरी बेटी की कमी दूर कर दी, बहू के रूप में मुझे बेटी मिली है.’’

अब शारदा सभी प्रकार से हिना का ध्यान रख रही थीं, हिना की सभी प्रकार की चिकित्सा भी चल रही थी.

लेकिन हिना वैसी की वैसी ही थी. नींद की गोलियों के प्रभाव से वह घंटों तक सोई रहती, परंतु उस के क्रियाकलाप पहले जैसे ही थे.

‘‘अगर बच्चे पर भी मां का असर पड़ गया तो क्या होगा,’’ आदित्य का मन संशय से भर उठता.

‘‘तू क्यों उलटीसीधी बातें बोलता रहता है,’’ शारदा बेटे को समझातीं, ‘‘क्या तुझे अपने खून पर विश्वास नहीं है? क्या तेरा बेटा पागल हो सकता है?’’

‘‘मां, मैं कैसे भूल जाऊं कि हिना मानसिक रोगी है.’’

‘‘बेटा, जरूर इस के दिल को कोई सदमा लगा होगा, वक्त का मरहम इस के जख्म भर देगा. देख लेना, यह बिलकुल ठीक हो जाएगी.’’

‘‘तो करो न ठीक,’’ आदित्य व्यंग्य कसता, ‘‘आखिर कब तक ठीक होगी यह, कुछ मियाद भी तो होगी.’’

‘‘तू देखता रह, एक दिन सबकुछ ठीक हो जाएगा…पहले घर में बच्चे के रूप में खुशियां तो आने दे,’’ शारदा का विश्वास कम नहीं होता था.

पूरे घर में एक शारदा ही ऐसी थीं जो हिना के पक्ष में थीं, बाकी लोग तो हिना के नाम से ही बिदकने लगे थे.

शारदा अपने हाथों से फल काट कर हिना को खिलातीं, जूस पिलातीं, दवाएं पिलातीं, उस के पास बैठ कर स्नेह दिखातीं.

प्यार से तो पत्थर भी पिघल जाता है, फिर हिना ठहरी छुईमुई सी लड़की.

‘‘मांजी, आप मेरे लिए इतना सब क्यों कर रही हैं,’’ एक दिन पत्थर के ढेर से पानी का स्रोत फूट पड़ा.

हिना को सामान्य ढंग से बातें करते देख शारदा खुश हो उठीं, ‘‘बहू, तुम मुझ से खुल कर बातें करो, मैं यही तो चाहती हूं.’’

हिना उठ कर बैठ गई, ‘‘मैं अपनी जिम्मेदारियां ठीक से नहीं निभा पा रही हूं.’’

‘‘तुम मां बनने वाली हो, ऐसी हालत में कोई भी औरत काम नहीं कर सकती. सभी को आराम चाहिए, फिर मैं हूं न. मैं तुम्हारे बच्चे को नहलाऊंगी, मालिश करूंगी, उस के लिए छोटेछोटे कपडे़ सिलूंगी.’’

हिना अपने पेट में पलते नवजात शिशु की हलचल को महसूस कर के सपनों में खो जाती, और कभी शारदा से बच्चे के बारे में तरहतरह के प्रश्न पूछती रहती.

‘‘हिना ठीक हो रही है. देखो, मैं कहती थी न…’’ शारदा उत्साह से भरी हुई सब से कहती रहतीं.

आदित्य भी अब कुछ राहत महसूस कर रहा था और हिना के पास बैठ कर प्यार जताता रहता.

एक शाम आदित्य हिना के लिए जामुन खरीद कर लाया तो शारदा का ध्यान जामुन वाले कागज के लिफाफे की तरफ आकर्षित हुआ.

‘‘देखो, इस कागज पर बनी तसवीर हिना से कितनी मिलतीजुलती है.’’

आदित्य के अलावा घर के अन्य लोग भी उस तसवीर की तरफ आकर्षित हुए.

‘‘हां, सचमुच, यह तो दूसरी हिना लग रही है, जैसे हिना की ही जुड़वां बहन हो, क्यों हिना, तुम भी तो कुछ बोलो.’’

हिना का चेहरा उदास हो उठा, उस की आंखें डबडबा आईं, ‘‘हां, यह मेरी ही तसवीर है.’’

‘‘तुम्हारी?’’ घर के लोग आश्चर्य से भर उठे.

‘‘मैं ने कुछ समय मौडलिंग की थी. पैसा और शौक पूरा करने के लिए यह काम मुझे बुरा नहीं लगा था, पर आप लोग मेरी इस गलती को माफ कर देना.’’

‘‘तुम ने मौडलिंग की, पर मौडल बनना आसान तो नहीं है?’’

‘‘मैं अपने कालिज के ब्यूटी कांटेस्ट में प्रथम चुनी गई थी. फिर…’’

‘‘फिर क्या?’’ शारदा ने उस का उत्साह बढ़ाया, ‘‘बहू, तुम ब्यूटी क्वीन चुनी गईं, यह बात तो हम सब के लिए गर्व की है, न कि छिपाने की.’’

‘‘फिर इस कंपनी वालों ने खुद ही मुझ से कांटेक्ट कर के मुझे अपनी वस्तुओं के विज्ञापनों में लिया था,’’ इतना बताने के बाद हिना हिचकियां भर कर रोने लगी.

काफी देर बाद वह शांत हुई तो बोली, ‘‘मुझे एक फिल्म में सह अभिनेत्री की भूमिका भी मिली थी, पर मेरे पिताजी व ताऊजी को यह सब पसंद नहीं आया.’’

अब हिना की बिगड़ी मानसिकता का रहस्य शारदा के सामने आने लगा था.

हिना ने बताया कि उस के रूढि़वादी घर वालों ने न सिर्फ उसे घर में बंद रखा बल्कि कई बार उसे मारापीटा भी गया और उस के फोन सुनने पर भी पाबंदी लगा दी गई थी.

शारदा के मन में हिना के प्रति वात्सल्य उमड़ पड़ा था.

हिना के मौडलिंग की बात खुल जाने से उस के मन का बोझ हलका हो गया था. वह बोली, ‘‘मांजी, मुझे डर था कि आप लोग यह सबकुछ जान कर मुझे गलत समझने लगेंगे.’’

‘‘ऐसा क्यों सोचा तुम ने?’’

‘‘लोग मौडलिंग के पेशे को अच्छी नजर से नहीं देखते और ऐसी लड़की को चरित्रहीन समझने लगते हैं. फिर उस लड़की का नाम कई पुरुषों के साथ जोड़ दिया जाता है, मेरे साथ भी यही हुआ था.’’

‘‘बेटी, सभी लोग एक जैसे नहीं हुआ करते. आजकल तुम खुश रहा करो. खुश रहोगी तो तुम्हारा बच्चा भी खूबसूरत व निरोग पैदा होगा.’’

शारदा का स्नेह पा कर हिना अपने को धन्य समझ रही थी कि आज के समय में मां की तरह ध्यान रखने वाली सास भी है, वरना उस ने तो सास के बारे में कुछ और ही सुन रखा था.

नियत समय पर हिना ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया तो घर में खुशियों की शहनाई गूंज उठी.

हिना बेटे की किलकारियों में खो गई. पूरे दिन बच्चे के इतने काम थे कि उस के अलावा और कुछ सोचने की उसे फुरसत ही नहीं थी.

एक दिन शारदा की इस बात ने घर में विस्फोट जैसा वातावरण बना दिया कि हिना धारावाहिक में काम करेगी. पारस, मेरी सहेली के पति हैं और वह एक पारिवारिक धारावाहिक बना रहे हैं. उन्होंने हिना को कई बार देखा है और मेरे सामने प्रस्ताव रखा है कि आदर्श बहू की भूमिका वह हिना को देना चाहते हैं.

‘‘मां, तुम यह क्या कह रही हो. हिना को धारावाहिक में काम दिलवाओगी, वह कहावत भूल गईं कि औरत को खूंटे से बांध कर रखना चाहिए. एक बार औरत के कदम घर से बाहर निकल जाएं तो घर में लौटना कठिन रहता है,’’ आदित्य आक्रोश से उबल रहा था.

शारदा भी क्रोध से भर उठीं, ‘‘क्या मैं औरत नहीं हूं? पति के मरने के बाद मैं ने घर से बाहर जा कर सैकड़ों जिम्मेदारियां पूरी की हैं. मां बन कर तुम्हें जन्म दिया और बाप बन कर पाला है. सैकड़ों कष्ट झेले, पैसा कमाने को छोटीछोटी नौकरियां कीं, कठिन परिश्रम किया, तो क्या मैं ने अपना घर उजाड़ लिया? पुरुष तो सभी जगहों पर होते हैं, रूबी ताई भी तो दफ्तर में नौकरी कर रही है, क्या उस ने अपना घर उजाड़ लिया है. फिर हिना के बारे में ही ऐसा क्यों सोचा जा रहा है?

‘‘अगर तुम हिना को खूंटे से ही बांधना चाहते हो तो पहले मुझे बांधो, रूबी को बांधो. हिना का यही दोष है न कि वह सामान्य से कुछ अधिक ही खूबसूरत है, पर यह उस का दोष नहीं है. अरे, कोई खूबसूरत चीज है तो लोगों की नजरें उस तरफ उठेंगी ही.’’

शारदा के तर्कों के आगे सभी की जुबान पर ताले लग गए थे.

हिना शारदा की गोद में मुंह छिपा कर रो रही थी. फिर अपने आंसुओं को पोंछ कर बोली, ‘‘मां, तुम सचमुच मेरे लिए मेरा आदर्श ही नहीं बल्कि मां भी हो.’’

एक दिन जब हिना का धारावाहिक टेलीविजन पर प्रसारित हुआ तो उस के अभिनय की सभी ने तारीफ की और बधाइयां मिलने लगीं.

हिना उत्तर देती, ‘‘बधाई की पात्र तो मेरी सास हैं, उन्हीं ने मुझे डिप्रेशन से मुक्ति दिलाई और एक नया सम्मान से भरा जीवन दिया.’’

शारदा सिर्फ मुसकरा कर रह जातीं, ‘‘बहू हो या बेटी, दोनों ही एक हैं. दोनों के प्रति एक ही प्रकार से फर्ज निभाना चाहिए.’’

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