अटूट बंधन: भाग-1

विशू  देर तक सोया पड़ा था. वैसे तो जल्दी ही उठ जाता है वह या कहें कि उठना पड़ता है. विश्वनाथ तिवारी, डिप्टी जनरल मैनेजर के पद पर एक मल्टीनैशनल कंपनी में रोबदाब के साथ 13 साल से काम कर रहा है. वह कंपनी के मालिक जालान का दाहिना हाथ है. आकाश चूमता वेतन,  साथ में अन्य सुविधाएं जैसे ड्राइवर, पैट्रोल समेत गाड़ी, फुल फर्निश्ड फ्लैट, मैडिकल और बच्चों की पढ़ाई का पैसा, साल में एक बार देश या विदेश में घूमने का खर्चा और पूरे विश्व में औफिशियल टूर का अलग पैसा. जब  इतनी सारी सुविधाएं देती है कंपनी तो काम भी दबा कर लेती है.

सच तो यह है कि उसी ने ही कंपनी को सफलता की चोटी पर बैठाया है. इस की टक्कर की जो दूसरी कंपनी हैं वे उस पर नजर लगाए हैं कि कब विश्वनाथ का जालान से मतभेद हो और कब वे उसे चारा फेंक, अपनी कंपनी में खींच लें. हां, तो यह भोर की नींद उसे बचपन से लुभाती है.

उस के पिता एक निष्ठावान ब्राह्मण पंडित केशवदास थे. गांव के छोटे से प्राइमरी स्कूल के हैडमास्टर, वेतन अनियमित. पहली पत्नी डेढ़ साल के विश्वनाथ को छोड़ कर दुनिया से चल बसी तो विशू की देखभाल के लिए ही गरीब ब्राह्मण कन्या निर्मला को ब्याह लाए थे वे. उस से 2 बच्चे, बेटा दीनानाथ और बेटी सुलक्षणा हैं. अपनी आय में गृहस्थी नहीं चलती पर 5 बीघा जमीन थी उन के पास. उसी से रोटीकपड़ा चल जाता. मिट्टी का कच्चा घर तो अपना था ही. पर उन के पास सब से बड़ी संपत्ति थी पूरे गांव का आदरसम्मान. भोर में 4 बजे वे उठ जाते. अपने साथ ही वे विशू को जगा कर पढ़ने बैठा देते. कहते, ‘‘ऊषाकाल का अध्ययन सब से श्रेष्ठ होता है, सूर्योदय तक बिस्तर पर रहना चांडालों का काम है.’’

बेचारा विशू, बचपन से ही भोर की मीठी नींद से वंचित रह गया. विद्यार्थी जीवन समाप्त होते ही कंधों पर आ बैठा ऊंचे पद का दायित्व. भोर की तो क्या रात की नींद भी छिन रही थी. पर रविवार के दिन विशू देर तक सोता है, रीमा भी नहीं जगाती, उलटे बच्चों को हल्लागुल्ला करने से रोकती है.

आज रविवार नहीं सोमवार है. हफ्तेभर काम करने का पहला दिन. विशू गहरी नींद में सो रहा था. इतनी निश्चिंत शांति की नींद वह वर्षों से नहीं सोया. बच्चे कब स्कूल चले गए, पता नहीं चला. पहली चाय रोज की तरह सिरहाने रख कर कब नौकर भी चला गया उस का भी पता नहीं चला. रीमा के जोरदार झकझोरने से उठा. हड़बड़ा कर देखा खिड़की के परदे हटा दिए गए हैं. फर्श पर धूप, सामने रीमा हाउसकोट पहने खड़ी हंस रही है.

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‘‘उठिए साहब, पता है 8 बज गए. आज आस्ट्रेलिया की पार्टी से मीटिंग है न?’’

‘‘धत, नींद खराब कर दी मेरी.’’ रीमा बिस्तर पर बैठी प्यार से उस के बिखरे बालों को संवार रही थी और हंस रही थी.

‘‘बच्चों से कम नहीं हो तुम. वे भी तैयार हो, स्कूल चले गए. चलो, उठो.’’

वह फिर लुढ़कने को तैयार.

‘‘सोने दो मुझे.’’

‘‘अरे अरे, ठीक 11 बजे मीटिंग है तुम्हारी.’’

‘‘भाड़ में जाए मीटिंग. जालान का बच्चा संभाले अपनेआप.’’

‘‘क्या कह रहे हो?’’

‘‘ठीक ही कह रहा हूं. शनिवार को ही मैं रैजिगनेशन लैटर उस के मुंह पर मार आया हूं. आजाद हूं अब मैं.’’

‘‘क्या?’’

रीमा इस तरह छिटक कर खड़ी हो गई मानो हजार वोल्ट का झटका लगा हो.

‘‘नौकरी छोड़ दी तुम ने?’’

‘‘हां.’’

‘‘इतना बड़ा फैसला तुम ने मुझ से पूछे बिना लिया कैसे?’’

विशू ने देखा, एक क्षण पहले की रोमांसभरी मधुर मुसकान उस के मुख से गायब थी. अब वहां क्रोध की ज्वाला थी.

‘‘क्या? तुम से पूछता? यह तो मेरा व्यक्तिगत मामला है. मैं नौकरी करूंगा या नहीं, यह मेरा फैसला है.’’

गुस्से में हांफ रही थी रीमा, ‘‘तुम्हारा फैसला? वाह, बहुत बढि़या. अब तुम्हारा व्यक्तिगत कुछ भी नहीं है जो अपनी मरजी से चलोगे. घरपरिवार वाले हो. तुम्हारे सबकुछ पर हमारा अधिकार है. तुम बिना पूछे इतना बड़ा फैसला कैसे ले सकते हो? सोने की खान जैसी नौकरी, जिस ने तुम को झोंपड़े से उठा कर राजमहल में बैठा दिया. समाज की सर्वोच्च सोसाइटी में तुम को पहचान दी, तुम उसी नौकरी को मिजाज दिखा छोड़ आए.’’

‘‘ऐ, हैलो, यह सब जो तुम मुझे गिना रही हो वह सब खैरात में नहीं दिया है किसी ने मुझे. अपनी योग्यता और ईमानदारी की बदौलत हासिल किया था मैं ने यह मुकाम. कैंपस सिलैक्शन में टौप किया था. एक पिछड़ी कंपनी को कहां से कहां पहुंचा दिया इन 13 वर्षों में. खरबों का मुनाफा कमा कर दिया कंपनी को, नहीं तो बड़ीबड़ी कंपनियों के सामने तिनके की तरह बह जाता जालान का बच्चा.’’

‘‘अपने मुंह मियांमिट्ठू तो बनो मत. तुम जैसे एमबीए आजकल क्लर्क का काम कर रहे हैं.’’

‘‘हां, कर रहे हैं पर 13 वर्ष पहले आज की तरह छवड़ा भरभर एमबीए नहीं निकलते थे प्रति वर्ष.’’

थोड़ी नरम दिखाई दी रीमा, ‘‘देखो, आपस में लड़ाई करने से किसी समस्या का समाधान नहीं होता. जालान साहब इतनी बड़ी कंपनी के मालिक हैं, कोई मूर्ख तो हैं नहीं. तुम से कंपनी को कितना फायदा है, यह वे भी समझते हैं. तुम इतने वर्षों से इस कंपनी के प्रतिनिधि हो. बहुत से देशों के लोग तुम को ही जानते हैं इस कंपनी के नाम से. तुम्हारे न रहने का मतलब है कंपनी का बहुत नुकसान हो सकता है. बहुत सारे बाहर के कस्टमर तुम्हारी जगह नया आदमी देख डील ही न करें. इस बात को जालान साहब भी जानते हैं.’’

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विशू अवाक हो रीमा को देख रहा था. वह भी एक बड़ी कंपनी में ऊंचे पद पर कार्यरत है. 50 हजार रुपए से ऊपर ही वेतन लेती है. उस में इतनी प्रैक्टिकल समझ, व्यावसायिक बुद्धि है, यह तो उस ने सोचा ही नहीं था और ऐसा दांवपेंच तो इतने बड़ेबड़े डील कर के भी उस के मस्तिष्क में नहीं आया.

‘‘देखो, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा. जालान साहब मंजे हुए व्यापारी हैं. अपना फायदा अच्छी तरह समझते हैं. तुम्हारी जगह नए आदमी को ले कर उसे अपने हिसाब से तैयार करने में उन को वर्षों लग जाएंगे. कंपनी को बहुत नुकसान होगा. चलो, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं. वे मुझे बेटी मानते हैं. तुम माफी मांग कर रैजिगनेशन वापस ले लो. आज की आस्ट्रेलिया वाली डील में सफल हो जाओगे तो वे औैर भी खुश हो जाएंगे. चलो, उठो, मैं भी तैयार होती हूं. तुम्हारी समस्या का समाधान कर मैं अपने औफिस चली जाऊंगी.’’

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शह और मात: भाग-3

उस की इच्छाओं की पूर्ति करतेकरते भी उस से गालियां सुनती है, मार खाती है. पल्लवी उन मूर्खों में से थी जिस ने खुद अपना पैर कुल्हाड़ी पर दे मारा था. अपनी गलतियों के कारण वह संजीव की बिछाई शतरंज की बिसात पर सिर्फ एक मुहरा बन कर रह गई थी. पल्लवी ने आंसू पोंछे और मन मार कर संजीव को खाना परोसने चली गई.

इस के बाद कुछ दिनों तक तो संजीव शांत रहा, लेकिन वह ₹10 हजार रुपयों पर आखिर कितने दिन ऐश करता? उस ने पल्लवी को शरद से ₹1 लाख निकलवाने के लिए कहा और इस के लिए योजना भी समझा दी.

पल्लवी ने संजीव के कहे अनुसार अभिनय करना शुरू कर दिया. एक दोपहर शरद के साथ खाना खाते समय उस ने अपनी छोटी बहन से फोन पर बात करने का नाटक किया और रोने लगी. पल्लवी को इस तरह रोता देख कर शरद परेशान हो गया.

“पल्लवी तुम इस तरह क्यों रो रही हो? घर पर सब ठीक है न?” शरद ने पूछा.

“शरद मेरी मां की तबीयत बहुत खराब है. मुझे उन के औपरेशन के लिए ₹1 लाख का इंतजाम करना होगा और वह भी 2 दिनों के अंदर. मैं इतनी जल्दी इतनी बड़ी रकम कहां से लाऊंगी?” पल्लवी ने परेशान होने का नाटक किया.

“तुम फिक्र मत करो पल्लवी. कोई न कोई इंतजाम हो जाएगा,” शरद ने उसे हौसला बंधाते हुए कहा.

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“कैसे फिक्र न करूं शरद. मेरा बैंक अकाउंट संजीव खाली कर चुका है. जो थोड़ेबहुत गहने थे वे मैंने कर्ज उतारने के लिए बेच दिए थे. अभी कुछ दिन पहले मेरे पास घर का किराया देने के लिए एक फूटी कौड़ी तक नहीं थी. उस वक्त तुम ने मेरी मदद की थी. अब मैं किस के आगे हाथ फैलाऊं?” पल्लवी अपने चेहरे को हथेलियों के पीछे छिपा कर रो पड़ी.

शरद अपनी कुरसी खींच कर पल्लवी के पास ले आया और उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा,“पल्लवी ‌सब ठीक हो जाएगा, पहले तुम रोना बंद करो प्लीज.”

शरद को पिघलता देख कर पल्लवी ने उस की बांह को कस कर पकड़ लिया और अपना सिर उस के कंधे पर टिका दिया और रोते हुए कहा, “अगर मां को कुछ हो गया तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी. मैं क्या करूं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैं बहुत अकेली हो गई हूं शरद.”

“तुम अकेली नहीं हो पल्लवी. मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं,” शरद ने पल्लवी के हाथ पर अपना हाथ रखा. वह उस के चेहरे पर उभरती कुटिल मुसकान से बेखबर था.

अगले दिन औफिस पहुंचने से पहले ही पल्लवी को मालूम था कि शरद ने रुपयों का इंतजाम कर लिया होगा. आखिर उस ने अभिनय भी तो कमाल का किया था.

पल्लवी का अंदाजा बिलकुल सही निकला. शरद ने लंच ब्रैक के समय उस के हाथ में ₹1 लाख थमा दिए.

“थैंक यू सो मच शरद. मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी. मैं जल्द से जल्द तुम्हारे सारे रुपए लौटा दूंगी,” पल्लवी ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा.

“कैसी बातें करती हो पल्लवी, क्या मेरा सब कुछ तुम्हारा नहीं है? अब बातें करने में समय बरबाद मत करो. जाओ और अपनी बहन को यह रुपए दे दो,” शरद ने मुसकरा कर उस का माथा चूम लिया.

पल्लवी ने एक बार फिर से शरद को धन्यवाद कहा और रुपए ले कर अपने घर आ गई. ₹1 लाख देख कर संजीव खुशी से उछल पड़ा और एक पल गंवाए बिना पल्लवी के हाथ से नोट झपट लिए, “अरे वाह पल्लवी, आज तो तुम ने कमाल ही कर दिया. अच्छा यह बताओ शरद को तुम पर शक तो नहीं हुआ?”

“नहीं…”

“वैरी गुड… अब अगली बार ₹2 लाख से कम मत मांगना,” संजीव ने हिदायत दी.

“लेकिन संजीव, इस तरह बारबार बहाने कर के ज्यादा रुपए मांगूगी तो शरद को मुझ पर शक हो जाएगा,” पल्लवी ने तर्क दिया.

“पल्लवी, तुम अपने छोटे से दिमाग पर ज्यादा जोर मत डालो. यह शरद तुम पर पूरी तरह से लट्टू हो चुका है. इस का जितना फायदा उठा सकती हो उठा लो. फिर कोई नया बकरा फंसा लेना,” संजीव ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा और चलता बना.

संजीव के जाने के बाद पल्लवी का हाथ अनायास ही अपने माथे पर चला गया. जब शरद ने उस के माथे को चूमा था तो उसे अजीब सी सुखद अनुभूति हुई थी. शरद ने उसे भीतर तक छू लिया था. आज से पहले उस ने न जाने कितने लोगों के साथ प्यार का नाटक किया था मगर उसे ऐसा तो कभी महसूस नहीं हुआ. सिर्फ यही नहीं, शरद के रुपए संजीव को देते समय उसे ग्लानि हो रही थी. वह संजीव के पूछने पर इनकार कर देती थी लेकिन सच तो यह था कि उसे शरद का साथ अच्छा लगने लगा था.

पल्लवी को आभास हुआ कि उस का मन भटक रहा है. वह शादीशुदा होते हुए भी पता नहीं क्याक्या सोचने लगी थी. उसने मन ही मन खुद को फटकारा और अपना ध्यान बंटाने के लिए घर के काम में व्यस्त हो गई.

₹1 लाख रुपए मिलने के बाद भी संजीव का पेट नहीं भरा. उस;ने जल्द ही सारे रुपए उड़ा दिए और पल्लवी को शरद से दोबारा रुपए मांगने के लिए मजबूर करने लगा. इस बार उस:के लालच के साथ रुपयों की मांग भी बड़ी थी. पल्लवी के इनकार करने पर वह उसे प्रताड़ित करने लगा.

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इधर औफिस में पल्लवी और शरद के बीच नजदीकियां बढ़ती जा रहीं थीं. संजीव का बुरा बरताव आग में घी का काम कर रहा था. संजीव के दिए जख्मों को शरद के प्रेम का मरहम भरने लगा था. पल्लवी के प्रति शरद की परवाह उसे शरद की तरफ खींचती चली जा रही थी. जब पल्लवी शरद के करीब होती तो खुद को बेहद सुरक्षित महसूस करती थी. उसे लगता था कि शरद की बांहों में ही उस का घर है. पल्लवी के लिए प्यार का नाटक धीरेधीरे सच होता चला गया. उस ने बहुत कोशिश की मगर वह खुद को शरद से प्यार करने से नहीं रोक पाई. पल्लवी ने निश्चय कर लिया था कि अब चाहे जो हो जाए, वह शरद से कभी रुपयों की मांग नहीं करेगी.

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तालमेल: भाग-1

‘‘गोपाल जीजाजी सुनिए,’’ अचानक अपने लिए जीजाजी का संबोधन सुन कर विधुर गोपाल चौंक पड़ा. उस ने मुड़ कर देखा, ऋतु एक सुदर्शन युवक के साथ खड़ी मुसकरा रही थी. चंडीगढ़ में उस के परिवार के साथ गोपाल और उस की पत्नी रचना का दिनरात का उठनाबैठना था.

‘‘अरे, साली साहिबा आप? अरे, शादी कर ली और मुझे बताया तक नहीं?’’

‘‘आप का कोई अतापता होता तो शादी में बुलाती,’’ ऋतु ने शिकायत भरे स्वर में कहा और फिर युवक की ओर मुड़ कर बोली, ‘‘राहुल, यह गोपाल जीजाजी हैं.’’

‘‘मुझे मालूम है. जब पहली बार तुम्हारे घर आया था तो अलबम में इन की कई तसवीरें देखी थीं. पापा ने बताया था कि ये भी कभी परिवार के ही सदस्य थे. दिल्ली ट्रांसफर होने के बाद भी संपर्क रहा था. फिर पत्नी के आकस्मिक निधन के बाद न जाने कहां गायब हो गए,’’ राहुल बीच ही में बोल उठा.

‘‘रचना के निधन के बाद मनु को अकेले संभालना मुश्किल था, इसलिए उसे देहरादून में एक होस्टल में डाल दिया. यहां से देहरादून नजदीक है, इसलिए अपना ट्रांसफर भी यहीं करवा लिया. अकसर आप लोगों से संपर्क करने की सोचता था, मगर व्यस्तता के चलते टाल जाता था.’’

गोपाल ने जैसे सफाई दी, ‘‘चलो, सामने रेस्तरां में बैठ कर इतमीनान से बातें करते हैं. अकेले रहता हूं, इसलिए घर तो ले जा नहीं सकता.’’

‘‘तो हमारे घर चलिए न जीजाजी,’’ राहुल ने आग्रह किया.

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‘‘तुम्हारे घर जाने और वहां खाना बनने में देर लगेगी और मुझे बहुत भूख लगी है. मैं रेस्तरां में खाना खाने जा रहा हूं, तुम भी मेरे साथ खाना खाओ. अब मुलाकात हो गई है तो घर आनाजाना तो होता ही रहेगा.’’

रेस्तरां में खाना और्डर करने के बाद गोपाल ने ऋतु से उस के परिवार का हालचाल पूछा और फिर राहुल से उस के बारे में. राहुल ने बताया कि वह एक फैक्टरी में इंजीनियर है.

‘‘नया प्लांट लगाने की जिम्मेदारी मुझ पर है, इसलिए बहुत व्यस्त रहता हूं. घर वालों से बहुत कहा था कि फिलहाल मेरे पास घरगृहस्थी के लिए बिलकुल समय नहीं होगा. अत: शादी स्थगित कर दें. मगर कोई माना ही नहीं और उस की सजा भुगतनी पड़ ही है बेचारी ऋतु को. खैर, अब आप मिल गए हैं तो मेरी चिंता दूर हो गई. अब आप इसे संभालिए और मैं अपनी नौकरी को समय देता हूं. अगर मैं यह प्रोजैक्ट समय पर यानी अगले 3 महीने में सफलतापूर्वक पूरा नहीं कर सका तो मेरी यह नौकरी ही नहीं पूरा भविष्य ही खतरे में पड़ जाएगा जीजाजी,’’ राहुल ने बताया.

‘‘दायित्व वाली नौकरी में तो ऐसे तनाव और दबाव रहते ही हैं. खैर, अब साली साहिबा की फिक्र छोड़ कर तुम अपने प्रोजैक्ट पर ध्यान दो और फिलहाल खाने का मजा लो, अच्छा लग रहा है न?’’

‘‘हां, क्या आप रोज यहीं खाना खाते हैं?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘अकसर सुबह नौकरानी नाश्ता और साथ ले जाने के लिए लंच बना देती है, शाम को यहीं कहीं खा लेता हूं.’’

‘‘अब आप इधरउधर नहीं हमारे साथ खाना खाया करेंगे जीजाजी. ऋतु बढि़या खाना बनाती है.’’

‘‘जीजाजी को मालूम है, मैं ने रचना दीदी से ही तो तरहतरह का खाना बनाना सीखा है,’’ ऋतु बोली.

‘‘तब तो तुम्हें जीजा को क्याक्या पसंद है, यह भी मालूम होगा?’’ राहुल ने पूछा, तो ऋतु ने सहमति में सिर हिला दिया.

‘‘तो फिर कल रात का डिनर जीजाजी की पसंद का बनेगा,’’ राहुल ने कहा, ‘‘मना न करिएगा जीजाजी.’’

‘‘जीजाजी को अपने घर का पता तो बताओ,’’ ऋतु बोली.

‘‘आप के पास व्हीकल है न जीजाजी?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘हां, मोटरसाइकिल है.’’

‘‘तो फिर पता क्या बताना तुम घर ही दिखा दो न. मैं यहां से सीधा फैक्टरी के लिए निकल जाता हूं. तुम जीजाजी के साथ घर जाओ, मैं एक राउंड लगा कर आता हूं. तब तक आप लोग बरसों की जमा की हुई बातें कर लेना.’’

‘‘कमाल के आदमी हो यार… कुछ देर पहले मिले अजनबी के भरोसे बीवी को छोड़ कर जा रहे हो.’’

‘‘क्यों शर्मिंदा कर रहे हैं जीजाजी, ऋतु के घर में आप की भी वही इज्जत है, जो ललित जीजाजी की,’’ राहुल ने उठते हुए कहा.

गोपाल अभिभूत हो गया. ललित ऋतु की बड़ी बहन लतिका का पति था. मोटरसाइकिल पर ऋतु उस से सट कर बैठी. एक अरसे के बाद नारीदेह के स्पर्श से शरीर में एक अजीब सी अनुभूति का एहसास हुआ. लेकिन अगले ही पल उस ने उस एहसास को झटक दिया कि ऐसा सोचना भी राहुल और ऋतु के परिवार के साथ विश्वासघात है. बातों में समय कब बीत गया पता ही नहीं चला. राहुल के लौटने के बाद वह चलने के लिए उठ खड़ा हुआ.

‘‘आप कल जरूर आना जीजाजी,’’ राहुल ने याद दिलाया.

‘कल नहीं, आज शाम

को कहो, 12 बज चुके हैं बरखुरदार. वैसे भी शाम को मुझे औफिस में देर हो जाएगी, इसलिए फिर कभी आऊंगा.’’

‘‘देरसवेर से अपने यहां कुछ फर्क नहीं पड़ता जीजाजी और फिर देर तक काम करने के बाद तो घर का बना खाना ही खाना चाहिए,’’ राहुल ने जोड़ा.

‘‘लेकिन हलका, दावत वाला नहीं,’’ गोपाल ने हथियार डाल दिए.

‘‘हलका यानी दालचावल बना लूंगी, मगर आप को आना जरूर है,’’ ऋतु ठुनकी.

शाम को जब गोपाल ऋतु के घर पहुंचा तो राहुल तब तक नहीं आया था.

‘‘हो सकता है 10 मिनट में आ जाएं और यह भी हो सकता है कि 10 बजे तक भी न आएं… फोन कर बता देती हूं कि आप आ गए हैं,’’ ऋतु ने मोबाइल उठाते हुए कहा.

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‘‘ठीक है, मैं खाना पैक कर देती हूं. आप ड्राइवर को आने के लिए कह दीजिए,’’ कह कर ऋतु ने मोबाइल रख दिया. बोली, ‘‘कहते हैं आने में देर हो जाएगी, ड्राइवर को खाना लाने भेज रहे हैं. आप टीवी देखिए जीजाजी, मैं अभी इन का टिफिन पैक कर के आती हूं.’’

‘‘मुझे फोन दो पूछता हूं कि यह कहां की शराफत है कि मुझे घर बुला कर खुद औफिस

में खाना खा रहा है,’’ गोपाल की बात सुन

कर ऋतु ने नंबर मिला कर मोबाइल उसे पकड़ा दिया.

‘‘आप घर पर हैं, इसलिए मैं भी समय पर घर का खाना खा लूंगा जीजाजी वरना

अकेली ऋतु के पास तो ड्राइवर को घर पर खाना लाने नहीं भेज सकता ना,’’ गोपाल की शिकायत सुन कर राहुल ने कहा, ‘‘आप के साथ ऋतु भी खा लेगी वरना भूखी ही सो जाती है.

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Serial Story: उड़ान (भाग-3)

आखिर एक दिन उस का मन इतना विरक्त हुआ कि उस ने तय कर लिया कि वह अपने केश उतरवा देगी.

घर में उत्सव जैसा माहौल था. नाई आया. आंगन में एक पीढ़े पर वह बैठी. नाई ने अपना उस्तरा तेज किया और उस के सिर पर फेरना शुरू किया. केशगुच्छ जमीन पर गिरते गए. नाई के जाने के बाद घर की बड़ीबूढि़यां आईं और बोलीं, ‘‘चलो बेटी, अब नहा लो.’’

अरुणा उठ खड़ी हुई. नहा कर उस ने एक कोरी रेशम की साड़ी पहनी जो विधवाओं का लिबास था. अब उस की दिनचर्या बिलकुल बदल गई थी. उस के हिस्से में आए जप, तप, पूजापाठ, व्रतउपवास और संयमी जीवन.

उस के गांव से कुछ स्त्रियां तीर्थयात्रा पर जा रही थीं. अरुणा भी उन के साथ हो ली.

घर लौटी तो हमेशा की तरह उस के भाई उसे बसस्टैंड पर लेने आए थे.

‘‘कहो अक्का, तुम्हारी यात्रा सुखद रही न?’’ केशव ने पूछा.

‘‘हां,’’ वह बताने लगी, ‘‘मैं ने चारों धाम के दर्शन कर लिए. मेरा जीवन सार्थक हो गया.’’

उस ने देखा राघव कुछ अनमना सा था.

‘‘क्या बात है राघव, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, अक्का.’’

नागमणि द्वार पर खड़ी उस का रास्ता देख रही थी.

‘‘भाभी, मैं तुम सब के लिए उपहार लाई हूं,’’ अरुणा बोली, ‘‘तुम्हारे और जया के लिए चंदेरी साडि़यां…’’

कहतेकहते उस की निगाह अंदर सहन में झूले पर बैठी जया पर पड़ी तो वह ठिठक गई.

‘‘अरे, यह क्या?’’ उस के मुंह से निकला.

जया का गला व माथा सूना था. सारे सुहाग के चिह्न नदारद. एक मैली सी साड़ी लपेटे वह शून्य में ताकती अनमनी सी बैठी थी.

‘‘भाभी,’’ अरुणा ने अस्फुट चीत्कार किया, ‘‘यह क्या देख रही हूं मैं? यह कब और कैसे हुआ?’’

नागमणि ने रोरो कर बताया कि जया का पति उसे मायके छोड़ने आया था. सुबह नदी में नहाने गया. हेमावती नदी में बाढ़ आई हुई थी. सुरेश तैरते हुए एक भंवर में फंस गया और तुरंत डूब गया.

‘‘ओह, इतना बड़ा हादसा हो गया और आप लोगों ने मुझे खबर तक न की.’’

‘‘यही नहीं,’’ नागमणि रो कर बोली, ‘‘पति की मृत्यु की खबर से जया को इतना गहरा सदमा लगा कि उसी शाम उसे प्रसव वेदना हुई और एक सतमासा बच्चा पैदा हुआ, वह भी मरा हुआ. इस दोहरे आघात से लड़की एकदम विक्षिप्त सी हो गई है. न किसी से बोलतीचालती है न ठीक से खातीपीती है. बस, दिनभर गुमसुम सी इस झूले पर बैठी रहती है.’’

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‘‘लेकिन आप लोगों ने इस के गहने क्यों उतरवा दिए? यह तो बड़ी ज्यादती है.’’

‘‘हम ने नहीं, इस ने खुद उतार फेंके हैं. मुझे तो डर है कि यह कहीं दुख से पागल न हो जाए.’’

‘‘ओह,’’ अरुणा ने ठंडा निश्वास छोड़ा. इस भतीजी से उसे बहुत लगाव था. पलभर में उस का सुखी संसार उजड़ गया था.

कुछ दिन बाद बैठक में भाई राघव, भाभी नागमणि, भतीजे श्रीधर और भतीजी जया के साथ अरुणा बैठी हुई थी. अचानक भाई ने प्रसंग छेड़ा.

‘‘स्वामीजी ने कहा था कि जया मांगलिक है इसलिए उस का एक वटवृक्ष से गठबंधन करा कर बाद में उस का विवाह करना चाहिए. हम ने वह भी किया. फिर भी पता नहीं क्यों यह हादसा हो गया? स्वामीजी के अनुसार तो यदि एक नवग्रह जाप करा कर ग्रहशांति के लिए एक छोटा सा यज्ञ करा दिया गया होता तो यह अनर्थ न होता.’’

‘‘उन की छोड़ो, आगे की सोचो. अब जया के बारे में क्या इरादा है?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘उसे यों मझधार में तो छोड़ा नहीं जा सकता. तुम लोग उस की दूसरी शादी क्यों नहीं कर देते?’’

‘‘दूसरी शादी?’’

नागमणि भौचक उस का मुंह ताकने लगी. उस के होंठ कांपे और आंखों से आंसू ढुलकने लगे, ‘‘अक्का, क्या यह संभव है?’’

‘‘क्यों नहीं.’’

‘‘लेकिन लोग क्या कहेंगे? समाज इस की अनुमति देगा?’’ राघव ने टोका.

‘‘राघव, तुम किस समाज की बात कर रहे हो? हम लोग भी तो समाज का अंग हैं और तुम तो गांव के मुखिया हो. सब के अगुआ हो. तुम्हें यह क्रांतिकारी कदम उठाना ही होगा. तुम्हें एक दृष्टांत कायम करना होगा. आखिर किसी को तो पहल करनी चाहिए तभी तो इन कुरीतियों का अंत होगा.’’

‘‘लेकिन बिरादरी वाले हमें जीने नहीं देंगे.’’

‘‘न सही, पर बेटी पहले है या बिरादरी? जरा सोचो, जया के पति की अकाल मृत्यु हुई है, पर तुम लोग जया को जीतेजी मार रहे हो. क्षति उस की हुई और सजा भी वही भुगते. यह कहां का न्याय है?’’

‘‘अक्का ठीक कह रही हैं,’’ केशव ने कहा.

‘‘लेकिन मेरा मन इस की गवाही नहीं देता. हमारे हिंदू धर्म में विधवा विवाह वर्जित है.’’

‘‘अन्य धर्मों में विधवा विवाह की छूट है. मुसलमानों और ईसाइयों में विधवा विवाह होते रहते हैं. पता नहीं, हम हिंदू ही नारी के प्रति इतने बर्बर क्यों हैं? पुरुष एक छोड़ दस शादियां कर सकता है. एक पत्नी के मरने पर दोबारा कुंआरी कन्या से विवाह कर सकता है. ये सारे कायदेकानून, सारे प्रतिबंध स्त्रियों के लिए ही हैं. क्यों न हों, ये नियम पुरुषों ने ही तो बनाए हैं. लेकिन अब सारे देश में बदलाव की लहर बह रही है.

‘‘स्त्रियों के हित में नित नए कानून बन रहे हैं. स्त्रियां अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं. वे अन्याय के विरुद्ध आवाज उठा रही हैं, पर अफसोस, हमारा गांव वहीं का वहीं है. वही संकीर्ण मानसिकता, वही पिछड़ापन. कुप्रथाओं के मकड़जाल में फंसा, तंत्रमंत्र, छुआछूत, टोनाटोटका, झाड़फूंक और अंधविश्वासों से घिरा है हमारा ग्रामीण समाज. ऊपर से हमारे धर्म के ठेकेदार हमें धर्म की दुहाई दे कर तिगनी का नाच नचाते रहते हैं. मैं यह सब इसलिए कह रही हूं कि हमें जया को आजीवन रोने व कलपने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए. उस का भविष्य संवारने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए.’’

‘‘मैं अक्का से सहमत हूं,’’ केशव बोला, ‘‘हमें जया की दूसरी शादी कर देनी चाहिए. मेरी नजर में एक अति उत्तम लड़का है. वह सुलझे विचारों वाला है. उस की सोच नई है. मैं उस से बात करूंगा.’’

‘‘ठीक है, पर एक बात, जातपांत को ले कर कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए. जया को इस माहौल से निकालो. उसे शहर भेजो. वहां के उन्मुक्त वातावरण में उसे सांस लेने दो. उस के पंख मत कतरो. उस पर अंकुश मत लगाओ. उसे उड़ान भरने दो. उसे स्वच्छंद विचरने दो. उस के  व्यक्तित्व को विकसित होने दो.’’

‘‘अक्का, तुम ने भी तो कम उम्र में अपने पति को गंवाया था. तुम ने भी तो सारी उम्र निष्ठा से वैधव्य धर्म का पालन किया.’’

‘‘राघव, उस समय मेरे सामने और कोई विकल्प नहीं था. मुझ में मातापिता के विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं थी. लेकिन यह जरूरी नहीं कि जया का हश्र मेरे जैसा हो. उस में और मुझ में एक पीढ़ी का फर्क है. हमारे समय में लड़कियों को पढ़ायालिखाया नहीं जाता था. उसे पहले पिता फिर पति और फिर पुत्र का आश्रित हो कर रहना पड़ता था. विधवा होना तो उस के लिए एक बड़ा अभिशाप था.

अपनी इच्छाओं का दमन कर, रूखासूखा खा कर, मोटाझोटा पहन कर वह एक उपेक्षित की जिंदगी गुजारती थी. उसे मनहूस, कुलच्छिनी माना जाता था और उस की दशा जानवरों से भी बदतर होती थी. तुम तो जानते हो कि हमारी तमिल भाषा में ‘मुंडे’ यानी ‘विधवा’ गाली है. ‘मुंडेदे’ यानी विधवा की अवैध संतान भी एक गाली है. लेकिन अब हम विधवा के प्रति सदय हैं. हम में जागरूकता आई है. हम ने कई पुरानी कुप्रथाओं का त्याग किया है. एक समय था कि हमारे देश में सती का चलन था. बालविवाह और देवदासी की प्रथा थी. हमारे दक्षिण भारत के गांवों में नवजात बच्चियों को दूध के गागर में डुबो कर मार दिया जाता था. अब जमाना बदल रहा है. हमें जमाने के साथ चलना चाहिए. जया पढ़ीलिखी है, सबल है, सक्षम है. उसे स्वावलंबी बनने दो. उसे नया जीवनदान दो.’’

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नागमणि अरुणा के पैरों पर गिर पड़ी, ‘‘अक्का, मुझे क्षमा कर दो. मैं ने आप को बहुत जलीकटी सुनाई है. आप को बहुत दुख पहुंचाया है.’’

‘‘वह सब भूल जाओ. अब हमारे सामने जया की ज्वलंत समस्या है. इस का समाधान ढूंढ़ना है. जिंदगी जीने के लिए है, घुटघुट कर मरने के लिए नहीं.’’

वह उठ कर जया की बगल में जा बैठी. उस की पीठ पर हाथ फेरते हुए उस ने कहा, ‘‘क्यों बिटिया, मैं ने ठीक कहा न?’’

जया के निस्पंद शरीर में तनिक हरकत हुई. उस ने सिर घुमा कर अरुणा को देखा और बिना कुछ बोल अपना सिर उस के कंधे पर टिका दिया.

वार्निंग साइन बोर्ड: भाग-4

डा. सुभाष के ट्रीटमैंट तथा शुचि के साथ के कारण निधि में काफी परिवर्तन आ रहा था. कक्षा में भी वह अच्छा प्रदर्शन कर रही थी. देखते ही देखते 4 वर्ष बीत गए. निधि को खुश देख कर हम भी बेहद प्रसन्न थे. आखिर हमारी बच्ची उस दु:स्वप्न को भूल कर जीवन में आगे बढ़ रही थी.

एक दिन शाम के समय हम सब बैठे टीवी देख रहे थे कि एकाएक निधि ने पूछा, ‘‘ममा, रेप क्या होता है?’’

उस का प्रश्न सुन कर निशा और दीपक चौंके. ध्यान दिया तो पाया कि न्यूज चैनल में एक गैंगरेप की घटना को पूरे जोरशोर से दिखाया जा रहा था. दीपक ने तुरंत चैनल चेंज कर दिया.

‘‘ममा रेप क्या होता है?’’ उस ने पुन: अपना प्रश्न दोहराया.

‘‘निशा खाना लगा दो… कल मुझे औफिस जल्दी जाना है,’’ दीपक ने निधि का ध्यान हटाने के लिए कहा.

‘‘ओके,’’ कह कर वह उठ गई.

निधि का बारबार प्रश्न पूछना उसे आतंकित करने लगा था, पर उत्तर तो देना ही था. अंतत: उस ने कहा, ‘‘जब कोई किसी को परेशान करता है, तो उसे रेप कहते हैं.’’

‘‘जैसे उन अंकल ने मुझे किया था?’’

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‘‘नहीं बेटा,’’ कहते हुए उसे सीने से लगा लिया. वह समझ गई थी कि निधि के मन का घाव अभी भरा नहीं है. उन्हें बहुत सावधानी बरतनी होगी पर इन टीवी वालों का क्या करें. इन की तो कोई न्यूज इस तरह की घटनाओं के बिना समाप्त ही नहीं होती. नित्य ऐसी घटनाओं को देख कर उसे न जाने ऐसा क्यों महसूस होने लगा था जैसे कि हमारे समाज में चारों ओर अमानुष ही अमानुष अपना डेरा जमाए हैं, जिन्होंने न केवल हमारा जीना हराम कर रखा है वरन अराजकता भी फैला रखी है. अकसर लड़कों के जन्म पर उत्सव मनाया जाता है, क्योंकि उन से वंश चलता है, उन्हें समाज का रक्षक माना जाता है पर संस्कार देने में कहां चूक हो जाती है जो वे नर से राक्षस बन जाते हैं?

अपनी मांबहन समान नारियों पर दरिंदगी करते समय उन का मन उन्हें नहीं कचोटता? हम अपनी लड़कियों को तो ‘यह न करो वह न करो के बंधन में बांधते हैं पर लड़कों को क्यों नहीं? हमें अपने लड़कों को नैतिकता की शिक्षा देने का प्रयास करना होगा, क्योंकि जब तक व्यक्ति की मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक अपराध कम नहीं होंगे. इस के साथ ही अपनी लड़कियों को ऐसे शातिर अपराधियों से बचाने के उपाय भी बताने होंगे.

निशा के मन के दर्द ने उस के मन में ऐसी ऊहापोह मचा रखी थी कि उस के तनमन की शांति भंग हो गई थी. कहते हैं कड़वे अतीत को भूल कर आगे बढ़ने में ही भलाई है पर अगर अतीत बारबार दिल पर दस्तक दे तो इनसान क्या करे? घरबाहर का काम करने के बावजूद कुछ ऐसा था जो उस के मन की ज्वाला को शांत नहीं होने दे रहा था.

उस दिन निशा को अपनी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. अत: औफिस से छुट्टी ले ली. दीपक के औफिस और निधि के स्कूल जाने के बाद वह पेपर ले कर बैठी ही थी कि एक समाचार पर उस की नजर ठहर गई. दिव्या खन्ना की मौत. पुलिस छानबीन में लगी है. इनसैट में फोटो देख कर चौंक गई कि अरे, यह तो उस की ननद विभा की जेठानी रमा की लड़की है. पिछले वर्ष ही इस का विवाह तय हुआ था पर दहेज की मांग सुन कर इस ने स्वयं ही उस लड़के के साथ विवाह करने से इनकार कर दिया था.

उस के इस निर्णय की समाज तथा मीडिया में काफी चर्चा हुई थी. अब वह सिविल सर्विसेज के लिए कोचिंग ले रही थी. ऐसी साहसी और दृढ़निश्चयी युवती के साथ ऐसा हादसा?

निशा से आगे पढ़ा नहीं गया. उस ने गाड़ी निकाली तथा विभा के घर की ओर चल दी. वह पहुंची ही थी कि विभा अपनी जेठानी रमा के घर खाना ले कर जाने की तैयारी कर रही थी. उसे देख कर विभा ने कहा, ‘‘निशा कल से किसी के मुंह में अन्न का एक ग्रास भी नहीं गया है, कुछ ले कर जा रही हूं, शायद कुछ खा लें.’’

‘‘मुझे तो आज पेपर से पता चला, कम से कम सूचना तो दे देती,’’ उस ने कह तो दिया पर तुंरत ही अपने प्रश्न पर यह सोच कर संकुचित हो उठी कि ऐसे समय में उलाहना देना उचित नहीं है.

‘‘निशा परिस्थितियां ही कुछ ऐसी हो गई थीं कि दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था.’’

‘‘मैं समझ सकती हूं… चलो, मैं गाड़ी ले कर आई हूं.’’

विभा के साथ वह रमा के घर पहुंची. रमा का बुरा हाल था. उन की आंखें रोरो कर सूज गई थीं. बारबार यही कह रही थीं कि मेरी फूल सी बेटी ने उस का क्या बिगाड़ा था जो उस दरिंदे ने उसे ऐसी मौत दी.

समझ में नहीं आ रहा था कि रमा को क्या कह कर सांत्वना दे… विभा ने उन्हें खिलाने का प्रयास किया पर उन के मुंह से निकला कि जिस की बेटी का अभी तक अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ उस के मुंह में अन्न कैसे जा सकता है.

रमा का प्रलाप कठोर से कठोर मन को भी द्रवित कर रहा था. आखिर जवान इकलौती बेटी की दुर्दांत मृत्यु से किस का दिल नहीं उबलेगा पर चाह कर भी कोई कुछ नहीं कर सकता था… इस दर्द को सहने के अतिरिक्त कोई चारा भी तो न था.

इसी बीच इंस्पैक्टर ने हाल में प्रवेश किया. उसे देखते ही रमा ने पूछा, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, अपराधी का पता चला?’’

‘‘अभी तो नहीं पर क्या दिव्या से किसी की कोई दुश्मनी थी?’’

‘‘नहीं, मेरी बेटी तो बहुत मृदुभाषी थी. उस का किसी से कोई बैर नहीं था,’’ रमा रुंधे गले से बोली.

‘‘आप याद कीजिए विशाल साहब, बिना दुश्मनी के कोई किसी के साथ बलात्कार कर उसे इतनी बेरहमी से मौत के घाट नहीं उतारता,’’ इंस्पैक्टर ने रमा के पति से पूछा.

‘‘मुझे तो याद नहीं है, सिवा इस के कि उस ने विवाह के लिए संजीव नामक युवक से इसलिए मना कर दिया था कि वे दहेज मांग रहे थे.’’

‘‘आप मुझे उस का पता दीजिए. उस से भी पूछताछ कर के देखते हैं. वैसे हम ने इस काम के लिए खोजी कुत्ते भी लगाए हैं… दिव्या की कौल्स भी खंगाल रहे हैं. उस समय एक नंबर से उसे कौल आई थी. उस नंबर को तलाशने का प्रयास कर रहे हैं… खोजी कुत्ते ने जिस स्पौट की ओर हमारा ध्यान केंद्रित किया वहां पर सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं. उन की फुटेज बाइक के पीछे चेहरा ढके किसी लड़की को बैठा तो दिखा रही हैं पर हैलमेट लगा होने के कारण न तो आदमी को पहचान पा रहे हैं न ही चेहरा ढका होने के कारण लड़की को. आश्चर्य तो इस बात का है कि जिस रूट से वह बाइक गई है, उस रूट पर सीसीटीवी कैमरे लगे होने के बावजूद हमें न बाइक का नंबर दिखा और न ही उस लड़के का पता चल पा रहा है. पर आप चिंता न करें, कानून के हाथ बहुत लंबे हैं… अपराधी पकड़ा अवश्य जाएगा.’’

‘‘सर, बुरा न मानें तो एक बात कहूं?’’ निशा ने पूछा.

‘‘जी, कहिए.’’

‘‘जैसे मूवी में पुलिस सायरन बजाती आती है ताकि अपराधी को भागने का अवसर मिल जाए ठीक वैसे ही जगहजगह लगे आप के सीसीटीवी कैमरे हैं… जहांजहां कैमरे लगे हैं वहांवहां ‘आप कैमरे की नजर में हैं’ लिखी वार्निंग क्या अपराधी को उस की कैद में आने देगी? आशा है मेरे इस प्रश्न पर आप और आप की सरकार अवश्य ध्यान देगी.

‘‘‘आप कैमरे की नजर में हैं’ के बोर्ड जगहजगह मिल जाएंगे. कहीं कैमरे चल रहे होते हैं तो कहीं बंद पड़े होते हैं, उन्हें ठीक कराने की भी किसी को फुरसत नहीं होती है. चाहे हम कितने भी उपाय कर लें, अगर अपराधी को अपराध करना है तो उस का शातिर दिमाग कोई न कोई उपाय खोज ही लेगा,’’ काफी दिनों से मन में उमड़तीघुमड़ती बात कह देने से जहां निशा के मन का बोझ कम हो गया था, वहीं उस की बात सुन कर सन्नाटा भी छा गया था. निधि के स्कूल से आने का समय हो गया था. अत: वह क्षमा मांगते हुए घर लौट आई.

रोज घटती ये घटनाएं उसे चैन नहीं लेने दे रही थीं. 7 वर्षीय बच्ची हो या वयस्क लड़की. क्या लड़की सिर्फ देह भर ही है, जिसे जब चाहा, जैसे चाहा रौंदा और चलते बने? अगर किसी ने विरोध करने का प्रयास किया तो उसे रास्ते से हटाने में भी संकोच नहीं किया… निधि और दिव्या दोनों ही केसों में अपराधी अनजान नहीं थे. अगर जानपहचान वाले ही धोखा करें तो एक स्त्री क्या करे? जीवन को चलना है सो वह तो चलता ही जाता है, चाहे आंधी आए या तूफान…

धीरेधीरे 6 महीने बीत गए. कभी पुलिस की खोज दिव्या के फेसबुक फ्रैंड की ओर घूमती, तो कभी उस के क्लास के लड़कों पर… निशा के मतानुसार, ‘आप कैमरे की नजर में हैं’ के वार्निंग साइन बोर्ड के कारण अपराधी अभी तक पकड़ में नहीं आ पाया था. 6 महीने बाद भी पुलिस अंधेरे में हाथपैर मार रही थी. निशा को लग रहा था कि अगर यही हाल रहा तो शायद एक दिन कोई क्लू न मिलने के कारण केस ही बंद न हो जाए. उस से भी बुरा उसे यह सोच कर लग रहा था कि सारे सुबूत पेश करने के बावजूद भी निधि के आरोपी को सजा नहीं मिल पाई है… तारीख पर तारीख लगती जा रही है… अगर न्याय में ऐसे ही देरी होती रही तो अपराधी को अपराध करने से शायद ही कोई रोक पाए.

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अमानुषों द्वारा दिल में लगाई गई इस आग में उस जैसे लोगों का तिलतिल जलना नियति बनती जा रही है. निशा ने निश्चय कर लिया था कि उसे इन आग की लपटों से अपनी बेटी को बचाना है.. वह निधि को जूडोकराटे की शिक्षा देने के साथसाथ उस की उम्र के अनुसार शारीरिक संरचना में होते परिवर्तनों व सैक्स ऐजुकेशन देने का भी भरपूर प्रयास करेगी ताकि दोबारा ऐसी अनहोनी उस के जीवन में न आए. वह इस हादसे को अपने जीवन पर हावी नहीं होने देगी… उस की इस सोच ने उस के मन में छाए अंधेरे को दूर करने का प्रयास शुरू कर दिया.

वार्निंग साइन बोर्ड: भाग-3

दूसरे दिन निशा निधि को स्कूल के लिए तैयार करने लगी तो उस ने कहा, ‘‘ममा, मुझे स्कूल नहीं जाना है.’’

‘‘बेटा, स्कूल तो हर बच्चे को जाना होता है. अगर आप स्कूल नहीं जाओगे तो डाक्टर कैसे बनोगे?’’

‘‘मुझे डाक्टर नहीं बनना है.’’

‘‘घर में रह कर बोर नहीं हो जाओगी… स्कूल में बहुत सारे फ्रैंड्स मिलेंगे. गेम होंगे और आप को अच्छीअच्छी बुक्स भी पढ़ने को मिलेंगी.’’

निधि के चेहरे पर थोड़ी सहजता देख कर निशा ने पुन: कहा, ‘‘शुचि भी आप के साथ जाएगी.’’

‘‘क्या वह भी मेरे साथ मेरी क्लास में पढ़ेगी?’’

‘‘नहीं बेटा, पर वह आप के स्कूल में ही पढ़ती है.’’

‘‘ओके ममा…’’

‘‘शुचि तुम तैयार हो गईं? चलो मैं तुम दोनों को स्कूल छोड़ आती हूं.’’

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‘‘आंटी, मेरी बस आ रही होगी.’’

‘‘आज मेरे साथ चलो. निधि भी कल से तुम्हारे साथ बस से आएगीजाएगी. आज उस की फीस जमा करा दूंगी.’’

‘‘ओके आंटी.’’

उस दिन निशा ने उन्हें स्कूल छोड़ दिया था. खुशी तो इस बात की थी कि कुछ ही दिनों में निधि ने स्वयं को स्कूल में ऐडजस्ट कर लिया था. अब वह बिना आनाकानी किए स्कूल जाने लगी थी. शुचि के साथ ने उसे पहले जैसी चंचल बना दिया था पर फिर भी वह कभीकभी रात में डरते हुए उठ कर बैठ जाती या नींद में बड़बड़ाती कि प्लीज अंकल, मुझे पनिश मत करो, मैं गंदी लड़की नहीं हूं.

निशा समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. दीपक वैसे ही परेशान था. औफिस, कोर्टकचहरी… अभी सोच ही रही थी कि मोबाइल बज उठा. उस के फोन उठाते ही दीपक ने कहा, ‘‘निशा, स्कूल प्रशासन ने स्विमिंग इंस्ट्रक्टर को बरखास्त कर दिया है तथा वकील नागेंद्र ने कोर्ट में विशेष अर्जी दे कर कोर्ट से मांग की है कि बच्ची की उम्र को देखते हुए बच्ची को कोर्ट न आने की अनुमति प्रदान की जाए. सिर्फ डा. संगीता तथा उस के द्वारा निधि के रिकौर्ड किए बयान को ही साक्ष्य मान लिया जाए. देखो क्या होता है? इस के साथ ही एक खुशखबरी और है, मेरे स्थानांतरण की अर्जी को मौखिक रूप से स्वीकार कर लिया गया है. लिखित रूप में आदेश महीने भर में मिल जाना चाहिए.’’

सुन कर निशा ने चैन की सांस ली. सजा तो वह भी उस दरिंदे को दिलवाना चाहती थी, पर उस की एक ही शर्त थी कि इस सब में निधि का नाम न आए… वह नहीं चाहती थी कि वह बारबार उन पलों को जीए, जिन्होंने उस के तनमन को घायल कर दिया है.

निधि का निरंतर बड़बड़ाना निशा की रात की नींद तथा दिन का चैन खराब कर रहा था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे उस के मन का डर समाप्त किया जाए. फिर उस ने सोचा क्यों न किसी चाइल्ड साइकिएट्रिस्ट से संपर्क करे. पर अलका के पास रहते हुए निधि को डाक्टर के पास ले जाना संभव नहीं था. न जाने कितने प्रश्न उठते. इसी सोच के तहत उस ने एक दिन अलका से कहा, ‘‘बहुत दिन हो गए तुम्हारे पास रहतेरहते, अब मैं चाहती हूं अलग घर ले लूं. दीपक भी शायद अगले महीने तक आ जाएं.’’

‘‘तुम्हारे रहने से मुझे अच्छा लग रहा है. शुचि भी निधि के साथ बहुत हिल गई है, पर तुम्हारा कहना भी जायज है. अभी कुछ ही दिनों पूर्व इसी अपार्टमैंट में एक घर खाली हुआ है, तुम देख लो. अगर पसंद आ जाए तो शिफ्ट कर लेना, पास भी रहोगी.’’

निशा को वह घर पसंद आ गया और उस ने वहीं शिफ्ट कर लिया. उस के इस फैसले से अलका के साथ निधि और शुचि भी यह सोच कर बेहद प्रसन्न थीं कि उन का साथ नहीं छूटेगा. अलका ने स्वयं यह कह कर उस के मन के बोझ को हलका कर दिया था कि तुम निधि की चिंता मत करना, तुम्हारे औफिस से आने तक निधि मेरे पास ही रहेगी.

निशा डा. सुभाष से अपौइंटमैंट ले कर पहले स्वयं उस से समस्या के बारे में डिस्कस करने गई. सुन कर डाक्टर ने कहा, ‘‘आप बच्ची को ले कर कल इसी समय आ जाएं. बच्ची कम उम्र की है. अत: हमें बहुत ही सावधानी से उस के डर को समाप्त करना होगा पर मुझे विश्वास है कि हम सफल होंगे.’’

‘‘डाक्टर इसी आशा के साथ आप के पास आई हूं.’’

दूसरे दिन निशा निधि को ले कर डा. सुभाष के पास गई. डा. सुभाष ने उसे देख कहा, ‘‘स्वीट ऐंजिल, वाट इज योर गुड नेम?’’

‘‘निधि.’’

‘‘निधि बेटा, आप की ममा कह रही हैं कि आप ‘पनिश मत करो… पनिश मत करो… गंदी लड़की’ कहते हुए अकसर रात में उठ कर बैठ जाती हैं. कौन आप को पनिश करता है?’’

डाक्टर की बात सुन कर निधि ने निशा की ओर देखा.

‘‘डरो मत, डाक्टर अंकल को सचसच बता दो.’’

‘‘पर आप ने तो बताने के लिए मना किया था?’’

‘‘मना किया था बेटा पर ये डाक्टर अंकल हैं. इन को बताने से ये आप के डर को दूर कर देंगे.’’

‘‘अच्छा छोड़ो, यह बताओ आप को किसी अंकल ने चोट पहुंचाई थी? बाद में उस ने कहा कि आप गंदी लड़की हो, इसलिए आप को पनिश किया गया?’’

‘‘पर डाक्टर अंकल मैं ने कुछ गलत नहीं किया… मैं गंदी लड़की नहीं हूं.’’

‘‘यही बात तो मैं आप से कहना चाह रहा हूं… गंदी आप नहीं वह अंकल है जिस ने आप को चोट पहुंचाई.’’

‘‘फिर सुजाता मैम ने ऐसा क्यों कहा कि तुम गंदी लड़की हो, इसलिए तुम्हें पनिश किया गया?’’

‘‘तुम्हारी मैम ने गलत कहा.’’

‘‘पर क्यों डाक्टर अंकल?’’

‘‘अच्छा यह बताओ, अगर तुम अपनी किसी मित्र को चोट पहुंचाती हो तो गंदा कौन हुआ?’’

‘‘मैं.’’

‘‘बिलकुल ठीक. इसी तरह उस अंकल ने आप को चोट पहुंचाई तो गंदा काम उस ने किया न कि आप ने.’’

‘‘फिर ममा किसी को बताने के लिए मना क्यों करती हैं?’’

‘‘आप की ममा ठीक कहती हैं. बुरी बातें जो हमें चोट पहुंचाती हैं, उन्हें बारबार याद नहीं करना चाहिए.’’

‘‘ओ.के. अंकल.’’

‘‘निशाजी आज के लिए इतना ही काफी है. अगले हफ्ते फिर इसी समय… आई होप जल्द ही सब ठीक हो जाएगा.’’

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इसी बीच दीपक से पता चला कि यलो लाइन इंटरनैशनल स्कूल ने सीसीटीवी लगाने का निर्णय कर लिया है. सुन कर उस ने मन ही मन सोचा अब चाहे जो भी प्रबंध कर लें निधि के साथ हुई घटना तो बदल नहीं जाएगी… वैसे भी सार्वजनिक स्थानों पर लगे सीसीटीवी कैमरे के पास लिखा स्लोगन ‘आप कैमरे की नजर में हैं’ उसे कैमरा कम कैमरा लगे होने का विज्ञापन अधिक नजर आता था.

केस की जिम्मेदारी वकील को सौंप कर महीने भर में ही दीपक भी आ गया था. सब कुछ भुला कर नए सिरे से जिंदगी शुरू करने का प्रयत्न कर रहे थे. अब निशा रोज निधि का होमवर्क कराते हुए उस से उस की पूरे दिन की ऐक्टिविटीज के बारे में पूछने लगी थी ताकि उसे पता रहे कि वह स्कूल में किस से मिलजुल रही है, क्या कर रही है तथा कहां आतीजाती है?

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वार्निंग साइन बोर्ड: भाग-2

‘‘निशा तुम उस राक्षस के खिलाफ केस दायर करो. उस के खिलाफ गवाही मैं दूंगी… मैं ने अपने मोबाइल पर निधि का बयान रिकौर्ड कर लिया है,’’ कहते हुए डा. संगीता के चेहरे पर आक्रोश साफ झलक रहा था.

डा. संगीता के साथ ने निशा को आत्मिक बल प्रदान किया. पर क्या ऐसा करना उचित होगा? कहीं यह बात समाज में फैल गई तो निधि का जीना दूभर न हो जाए… हमारे समाज में लड़कों के हजार खून माफ हैं पर लड़की के दामन पर लगा एक छोटा धब्बा भी उस के पूरे जीवन पर कालिख पोत देता है… निधि पर इस घटना का बुरा असर न पड़े, इसलिए निशा ने निधि के सोने के बाद ही दीपक को इस घटना के बारे में बताने का निश्चय किया.

दीपक यह सुनते ही भड़क गया. मेज पर हाथ मारते हुए बोला, ‘‘मैं उस कमीने को छोड़ूंगा नहीं… सजा दिलवा कर ही रहूंगा.’’

‘‘शांत दीपक शांत…’’

‘‘सुन कर मेरा भी खून खौला था… तुम्हारी जैसी ही बात मेरे भी दिमाग में आई थी, पर अगर हम इस सचाई को दुनिया के सामने लाते हैं तो क्या समाज की उंगली हमारे ऊपर नहीं उठेगी? हो सकता है लोग बच्ची का जीना भी दूभर कर दें?’’

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‘‘शायद तुम्हारा कहना ठीक हो पर ऐसा कर के क्या हम अपराधी को मनमानी करने की छूट नहीं देंगे? आज हमारी बेटी उस की हवस का शिकार हुई है, कल न जाने कितनों को वह वहशी अपनी हवस का शिकार बनाएगा?’’

इस सोच ने अंतत: हमें अपने अंत:कवच से बाहर आने के लिए प्रेरित किया तथा हम ने एफआईआर दर्ज करवाई एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म की. डा. संगीता की गवाही मजबूत सुबूत बनी.

बच्ची के आरोपी को पहचानने के बावजूद स्कूल प्रशासन इस आरोप को मान ही नहीं रहा था. मानता भी कैसे उस की अपनी साख पर जो बन आई थी. यह खबर आग की तरह फैली. मीडिया के साथ अन्य बच्चों के मातापिता ने उन की आवाज को बल दिया, क्योंकि आज जो एक बच्ची के साथ हुआ है वह कल को किसी और की बच्ची के साथ भी तो हो सकता है. अंतत: पुलिस ने स्विमिंग इंस्ट्रक्टर को गिरफ्तार कर लिया.

दूसरे दिन यह खबर तमाम समाचारपत्रों में प्रमुखता के साथ छपी. यलो लाइन इंटरनैशनल स्कूल में 7 वर्ष की बच्ची के साथ रेप… स्विमिंग करने के बाद स्विमिंग पूल के पास बने चैंबर में बच्ची कपड़े बदलने के लिए गई थी. उस के पीछेपीछे स्विमिंग इंस्ट्रक्टर भी चैंबर में घुस गया तथा उस के मुंह पर कपड़ा बांध कर उसे डराते हुए उस के साथ जबरदस्ती की तथा किसी को न बताने की चेतावनी भी दी. बच्ची की क्लास टीचर ने जब उसे दहशत में देखा तो अनहोनी की आशंका से उस ने उस से प्रश्न किया. उस के प्रश्न के उत्तर में बच्ची को दर्द…दर्द कहते हुए रोते देख कर क्लास टीचर ने प्रिंसिपल को बताया. प्रिंसिपल ने डाक्टर को बुला कर चैकअप करवाने को कहा.

डाक्टर ने उस की ड्रैसिंग कर दवा खाने को दे दी. इस के बाद टीचर ने उसे घर में किसी को कुछ भी न बताने की चेतावनी देने के साथ ही यह भी कहा कि तुम गंदी लड़की हो, इसलिए तुम्हें सजा दी गई. अगर तुम घर में बताओगी तो तुम्हें अपने मम्मीपापा से भी डांट खानी पड़ेगी.

पढ़ कर निशा ने माथा पीट लिया. दनदनाती हुई दीपक के पास गई तथा कहा, ‘‘देखो समाचारपत्र… सब जगह हमारी थूथू हो रही होगी.’’

‘‘थू…थू… किसलिए… हमारी बच्ची की कोई गलती नहीं है.’’

‘‘आप पुरुष हैं शायद आप इसलिए ऐसा सोच रहे हैं… एक लड़की के दामन पर लगा एक छोटा सा दाग भी उसे दुनिया में बदनाम कर देता है.’’

‘‘तो क्या हम उस अपराधी को ऐसे ही छोड़ दें?’’

‘‘मैं ने ऐसा तो नहीं कहा पर मैं नहीं चाहती कि हमारी निधि का नाम दुनिया के सामने आए.’’

‘‘नहीं आएगा… पर मैं अपराधी को सजा दिला कर रहूंगा… मैं ने वकील से बात कर ली है.’’

‘‘वह तो ठीक है पर इस सब में पता नहीं कितना समय लगेगा… मैं अपनी बच्ची को तिलतिल सुलगने नहीं दे सकती… निधि के मनमस्तिष्क से कड़वी यादें मिटाने के लिए हमें यहां से दूर जाना होगा.’’

‘‘दूर?’’

‘‘आप अपना स्थानांतरण करवा लीजिए.’’

‘‘स्थानांतरण इतना आसान है क्या?’’

‘‘निधि के जीवन से अधिक कुछ कठिन नहीं है. अगर आप नहीं करा सकते तो मैं अपने मैनेजमैंट से बात करती हूं. मेरा हैड औफिस दिल्ली में है. वहां की एक लड़की यहां आना चाह रही थी… म्यूचुअल स्थानांतरण होने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

म्यूचुअल ट्रांसफर में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. 1 महीने के अंदर निशा का स्थानांतरण दिल्ली हो गया. पहले दिल्ली जाने से मना करने के कारण औफिस वालों की आंखो में प्रश्न झलके थे, पर फैमिली प्रौब्लम का हवाला दे कर उन का उस ने स्थानांतरण कर दिया. दीपक ने भी स्थानांतरण के लिए आवेदन कर दिया था.

दिल्ली में निशा निधि का डीपीएस में दाखिला करवाने के लिए गई, प्रिंसिपल ने उस के ट्रांसफर सर्टिफिकेट को देख कर कहा, ‘‘यलो लाइन इंटरनैशनल स्कूल. वहां कुछ दिन पूर्व स्कूल के स्टाफ के किसी कर्मचारी द्वारा एक बच्ची का रेप हुआ था.’’

‘‘हां, मैम. मेरा यहां स्थानांतरण हो गया है. आप का स्कूल प्रसिद्ध है. इसलिए मैं इस का यहां दाखिला कराना चाहती हूं,’’ उस ने बिना घबराए उत्तर दिया, क्योंकि उसे पता था कि ऐसे प्रश्न शायद आगे भी उठें पर उसे विचलित नहीं होना है. गनीमत है कि निधि उस के साथ नहीं आई थी. उसे वह अपनी मित्र अलका के पास छोड़ आई थी. उस ने सोचा था पहले स्वयं जा कर स्कूल प्रशासन से बात कर ले. पता नहीं दाखिला होगा भी या नहीं.

‘‘संयोग से हफ्ता भर पहले ही स्थानांतरण के कारण फर्स्ट स्टैंडर्ड में एक स्थान रिक्त हुआ है, हम निधि को उस की जगह ले लेंगे… आप फार्म भर दीजिए तथा कल से उसे स्कूल भेज दीजिए.’’

‘‘थैंक्यू मैम,’’ निशा ने उठते हुए उन से हाथ मिलाते हुए कहा.

‘‘मोस्ट वैलकम.’’

अलका उस की बचपन की मित्र थी. अकसर वह उसे बुलाती रहती थी. अत: जैसे ही उसे ट्रांसफर और्डर मिला, उस ने सब से पहले उसे ही फोन किया. उस ने सुनते ही कहा, ‘‘हमारी दिल्ली में तुम्हारा स्वागत है. तुम सीधे मेरे पास ही आओगी.’’ उस की लड़की शुचि डीपीएस में पढ़ती थी. अत: उस ने निधि का दाखिला डीपीसी में कराने का सुझाव दिया था.

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वैसे तो निशा की ननद विभा भी दिल्ली में रहती थी पर एक तो उस का घर उस के औफिस से दूर था वहीं उसे डर था अगर उसे जरा सी भी भनक लग गई तो निधि का जीना हराम हो जाएगा. वह चलताफिरता अखबार है… उस के पेट में एक भी बात नहीं पचती. उस ने कहीं पढ़ा था कि एक अच्छा मित्र अच्छा हमराज हो सकता है जबकि रिश्तेदार बाल की खाल निकालने से बाज नहीं आते. अपने मन के इसी डर के कारण उस ने उन के पास न जा कर अलका के पास ही रुकना मुनासिब समझा.

आगे पढ़ें- दूसरे दिन निशा निधि को स्कूल के लिए तैयार करने लगी तो…

वार्निंग साइन बोर्ड: भाग-1

निशा औफिस के बाद निधि को लेने स्कूल पहुंची. उसे देखते ही दौड़ कर उस के पास आने वाली निधि ठीक से चल भी नहीं पा रही थी.

निशा को देखते ही अटैंडैंट ने दवा देते हुए कहा, ‘‘मैम, आज निधि दर्द की शिकायत कर रही थी. डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने यह दवा दी है. आप इस दवा को दिन में 2 बार तो इस दवा को दिन में 3 बार देना.’’

‘‘मुझे फोन कर दिया होता?’’

‘‘हो सकता है न मिला हो, इसलिए डाक्टर को बुला कर दिखाया हो.’’

‘‘ओके, डाक्टर का परचा?’’

‘‘डाक्टर ने परचा नहीं दिया, सिर्फ यह दवा दी है.’’

निशा ने सोचा शायद इस से परचा कहीं खो गया होगा. अत: झूठ बोल रही है… फिर उस ने मन ही मन स्कूल प्रशासन को धन्यवाद दिया. नाम के अनुरूप काम भी है, सोच कर संतुष्टि की सांस ली. निधि को किस कर गोद में उठा कर कार तक ले गई. निधि कार में बैठते ही सो गई. कैसी भागदौड़ वाली जिंदगी है उस की… वह अपनी बेटी को भी समय नहीं दे पा रही है. स्कूल तो ढाई बजे ही बंद हो जाता है पर घर में किसी के न होने के कारण उसे निधि को स्कूल के क्रैच में ही छोड़ना पड़ता है. कभीकभी लगता है कि एक छोटी सी बच्ची पर कहीं जरूरत से ज्यादा शारीरिक और मानसिक बोझ तो नहीं पड़ रहा है. पर करे भी तो क्या करे? अपनेअपने कार्यक्षेत्र में व्यस्त होने के कारण न तो उस के और न ही दीपक के मातापिता का लगातार उन के साथ रहना संभव है. बस एक ही उपाय है कि वह नौकरी छोड़ दे, पर उसे लगता है कि अगर नौकरी छोड़ देगी तो फिर पता नहीं ऐसी नौकरी मिले या न मिले.

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घर आ कर निशा ने निधि को जगाने का प्रयास किया. न जागने पर निशा ने उसे यह सोच कर गोद में उठा लिया कि शायद उसे दर्द से अभी आराम मिला हो, इसलिए गहरी नींद में सो रही है. रात को निधि ने खाना भी नहीं खाया. रात में वह बुदबुदाने लगी. उस की बुदबुदाहट सुन कर निशा की नींद खुल गई. उसे थपथपाने लगी तो पाया कि उसे तेज बुखार है. नींद में ही निशा ने उसे दवा दे दी. दवा खाते ही वह पुन: बुदबुदाई, ‘‘मैं गंदी लड़की नहीं हूं. पनिश मत करो अंकल, मुझे पनिश मत करो.’’

निशा समझ नहीं पा रही थी कि निधि ऐसा क्यों कह रही है. क्या उसे किसी ने पनिश किया? पर क्यों? क्या उस का दर्द इसी वजह से है? निधि की दशा देख कर उस ने दूसरे दिन छुट्टी लेने का निर्णय कर लिया वरना पहले कभीकभी ऐसी ही स्थितियों में उस में और दीपक में झगड़ा हो जाता था, बिना यह सोचेसमझे कि उन के इस वादविवाद का उस मासूम पर क्या असर होता होगा?

दूसरे दिन निधि सुबह 10 बजे के लगभग उठी. उठते ही वह निशा से चिपक कर रोने लगी और फिर रोतेरोते ही उस ने कहा, ‘‘ममा, मैं अब कभी स्कूल नहीं जाऊंगी.’’

‘‘क्यों बेटा, क्या आप से स्कूल में किसी ने कुछ कहा?’’ उस ने हैरानी से पूछा.

‘‘बस मैं स्कूल नहीं जाऊंगी.’’

‘‘लेकिन बेटा, स्कूल तो हर बच्चे को जाना पड़ता है.’’

‘‘मैं ने कहा न मैं स्कूल नहीं जाऊंगी,’’ कहते हुए वह फफकफफक कर रो पड़ी.

‘‘ठीक है, रो मत बेटा. जब आप स्कूल जाना चाहो तभी भेजूंगी,’’ निशा ने उसे सांत्वना देते हुए कहा.

‘कल स्कूल जा कर टीचर से बात करूंगी. न जाने ऐसा क्या घटित हुआ है इस लड़की के साथ कि हमेशा स्कूल जाने के लिए लालायित रहने वाली लड़की स्कूल ही नहीं जाना चाह रही है… फिर नींद में ‘पनिश…पनिश… कह रही थी,’ सोच कर मन को सांत्वना दी.

निशा निधि को नाश्ता करा कर उस के कपड़े बदलने लगी तो उस की पैंटी में खून के निशान देख कर चौंक गई कि 7 वर्ष की उम्र में रजस्वला… दर्द की वजह से वह पैर भी जमीन पर ठीक से नहीं रख पा रही थी. निशा की कुछ समझ में नहीं आया तो उसे डा. संगीता के पास ले जाना उचित समझा.

डा. संगीता ने उसे चैक करने के बाद कहा, ‘‘ओह नो…’’

‘‘क्या हुआ डाक्टर?’’

‘‘निशा, इस बच्ची के साथ रेप हुआ है,’’ डा. संगीता ने उसे अलग ले जा कर बताया.

‘‘रेप’’? पर कहां और कैसे? कल तो स्कूल के अतिरिक्त यह कहीं गई ही नहीं है?’’ डा. संगीता की बात सुन कर निशा ने चौंक कर कहा.

‘‘निशा यह मेरा अनुमान नहीं सचाई है.’’

‘‘क्या,’’ कह कर वह अपना सिर पकड़ कर कुरसी पर बैठ गई कि क्या हो गया है इन नरपिशाचों को… एक 7 वर्ष की बच्ची के साथ ऐसी घिनौनी हरकत… एक नन्ही बच्ची में भी उसे सिर्फ स्त्रीदेह नजर आई… मन क्यों नहीं कांपा इस मासूम के साथ बलात्कार करते हुए… इनसानियत को तारतार करने वाले इनसान के रूप में वह हैवान है… तभी उसे याद आया निधि का नींद में बड़बड़ाना कि प्लीज अंकल, मुझे पनिश मत करो…

‘‘निशा संभालो स्वयं को… तुम बिखर गईं तो बच्ची को कौन संभालेगा? हमें वस्तुस्थिति का पता लगाना होगा,’’ डा. संगीता बोलीं.

निशा ने निधि की ओर तड़प कर देखा. उस के चेहरे पर दर्द की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं. वह मासूम चुपचाप डाक्टर की बातों से अनजान उन की ओर देखे जा रही थी. आखिर डा. संगीता ने उस से पूछा, ‘‘बेटा, आप को चोट कैसे लगी?’’

निधि को चुप देख कर निशा ने डा. संगीता का प्रश्न दोहराते हुए पुन: पूछा, ‘‘निधि बेटा, डाक्टर आंटी की बात का उत्तर दो… तुम्हें चोट कैसे लगी?’’

‘‘ममा, मैं नहीं बता सकती वरना मुझे डांट पड़ेगी.’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘मैम ने कहा है कि अगर तुम घर में किसी को बताओगी तो तुम्हें अपने मम्मीपापा की भी डांट सुननी पड़ेगी… आप ने गलती की है, आप एक गंदी लड़की हो इसलिए आप को पनिशमैंट मिला है… ममा मैं ने कुछ नहीं किया… प्रौमिस,’’ कहते हुए उस की आंखें भर आईं.

‘‘बेटा, आप हमें बताओ… हम आप को कुछ नहीं कहेंगे.’’

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डा. संगीता के बारबार पूछे जाने पर निधि ने सचाई उगल दी. सचाई सुन कर निशा और डा.  संगीता अवाक रह गईं. एक स्विमिंग इंस्ट्रक्टर का ऐसा अमानवीय व्यवहार…

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मिशन क्वार्टर नंबर 5/2बी: भाग-3

विहाग ने एक बार फिर अपनी तरफ से क्वार्टर पाने की मुहिम तेज करते हुए पीडब्लूआई के सीनियर सिविल इंजीनियर के आगे अर्जी ले कर हाजरी दी.

बहुत व्यस्त इंसान, एक तरफ सरकार के घर कोई काम होता दूसरी ओर उन के घर में कोई नया वैभवविलास जुड़ जाता. यों करतेकरते एक मंजिल मकान अंदरूनी ठाठ के साथ तीन मंजिला विशाल बंगला तो बन ही चुका था, शहर के अंदरबाहर कई मालिकाना हस्ताक्षर थे उन के नाम. यानी बीसियों जगह उन की संपत्ति बिखरी पड़ी थी, तो स्वाभाविक ही था ऐसा इंसान उन्हें संभालने में व्यस्त रहेगा ही हरदम. खातेपीते चर्बी का प्रोडक्शन हाउस था उन का शरीर.

विहाग को इंजीनियर साहब ने बड़़े गौर से परखा. अनुभवी आंखों से कुछ क्षण स्कैन होता रहा विहाग का सर्वांग चेहरे से ले कर चप्पल तक. लड़का उन के हिसाब से जरा कम समझदार है. बोले, ‘‘तुम मेरे घर आओ, यहां बात नहीं हो सकती.’’

दूसरे दिन शाम को विहाग ने अपनी ड्यूटी का समय किसी दूसरे से बदल कर, ज्यादा दुरुस्त हो कर इंजीनियर साहब से कहे जाने वाले वाक्यों के विन्यासों पर मन ही मन नजर फरमा कर दरख्वास्त के कागजों के साथ उन के घर पहुंचा.

इंजीनियर उसे अपने आधुनिक सुसज्जित ड्राईंगरूम के गद्देदार सोफे पर बिठा कर अंदर चले गए. विहाग साभार धन्यवाद करते हुए कागजात की फाइल ले कर बैठा सामने दीवार पर टंगी घड़ी की सुई गिनने लगा. कभी सायास, कभी अनायास.

घड़ी दो घड़ी का कांटा जब घंटा भरभर का होने लगा और इंतजार नामुमकिन सा हो कर विहाग को बेबस करने लगा तब अंदर से परदा हटा कर एक गोरी सुंदर बहुत ही ज्यादा गोलमटोल मलाई में चुपड़ी सी मालपूए की काया वाली लगभग 30 वर्षीया बाला का पदार्पण हुआ. हाथ में उस के बड़ा सा ट्रे था जिस में सजे थे मनलुभावन मिठाइयां, नमकीन और शर्बत. विहाग सारे माजरे को भांप अंदर ही अंदर पसीने से तरबतर होने लगा.

क्वार्टर रिपेयर की बात कब होगी, कब रिपेयर शुरू होगा, कब वह शिफ्ट होगा और यह सब पिता द्वारा दी गई वैवाहिक वचन के रस्म के साथ कैसे तालमेल में सही बैठेगा.

इस बीच उस लड़की को फोन आया, उस ने ‘हां, हूं’ की और विहाग से लग कर बैठ गई. मनुहार के साथ उस की ओर मिठाईनमकीन की तश्तरियां एकएक कर आगे बढ़ाती रही.

इस कठपुतली नाच की डोर इंजीनियर साहब के उंगलियों में थी इस में अब विहाग कोे कोई शक नहीं था. वह सोफे के एक किनारे धंसा सा महसूस कर रहा था. जरा सी भी नानुकर से क्वार्टर का काम धरा रह जाएगा. इंजीनियर साहब न मुयायने के लिए कर्मचारी भेजेंगे, न रुपया सैंक्शन होगा, न मिस्त्री लगेंगे. फिर या तो अकेले खुद अपने हाथ से काई छीलो या फिर किराए के मकान में बीबी को ले कर बारबार उखड़ो और बसो. पौकेट पर वजन जो अलग आएगा उस का हिसाब तो कनाडा जाने वाले मांबाप को रखना नहीं है.

धर्मसंकट की घड़ी थी. बेमतलब बेवजह विहाग उस बाला से सवाल करता रहा ताकि अजीब सा लगने वाला यह वक्त कटे.

आखिर इंजीनियर साहब आए. इस हाथ ले, उस हाथ दे वाली मुखमुद्रा

बना कर सामने वाले सोफे पर धंस गए. बाला

की ओर उन्होंने देखा नहीं कि वह उठ कर खड़ी हो गई और जिधर से आई थी उधर ही विलीन

हो गई.

‘‘विहाग बाबू, इकलौती कन्या है, पढ़नेलिखने में मन नहीं था, मां इस की चल बसी थी, क्या कहें, सौतली मां से भी उसे सुख नहीं मिला, डिप्रैशन में रहती थी, ज्यादा ही खा पी गई.

लाडप्यार अब जो मैं ने दी तो घर का काम भी क्या करती, फिर मैं तो हीरे के सिंहासन में बिठा कर भेजूंगा उसे और आप जैसे हीरे के साथ रह कर बाकी तो सीख ही जाएगी. उम्र कुछ ज्यादा है, 30 की होने वाली है, लेकिन आप लोग इस जमाने के मौर्डन लड़के आप के लिए इन सब बातों का क्या मोल, तो मालिनी से आप की बात पक्की समझें?’’

‘‘सर मेरी अर्जी, वो क्वार्टर?’’ विहाग को बुक्का फाड़ कर रोने का मन हो रहा था, विहाग सा लड़का जिसे चाहिए एक आधुनिक सोच वाली धरती से जुड़ी लड़की, पढ़ीलिखी लेकिन गृहस्थी में रचीबसी बिलकुल तैयार गृहिणी. वह कल्पना के पंख से उड़े और जिंदगी को जोड़ने वाले तिनके दबा कर वापस आए, घर जोड़े, मन जोड़े, सप्रयास. यह मालपूए सी मालिनी जो हीरे के सिंहासन पर बैठ कर उस के घर (जो अब तक उखड़े प्लास्टर और काईयों का संगम ही था) आएगी और इस चर्बी के प्रोडक्शन हाउस के जरिए कठपुतली नाच नाचेगी. उस की बीबी बनेगी?

इंजीनियर ने दंभ से मुसकराते हुए कहा, ‘‘जिस घर में मेरी मालिनी जाएगी वह तुम्हारा जर्जर क्वार्टर नहीं होगा? तब तो मैं खुद उसे आलीशान घर दूंगा, जिस में तुम भी ऐश करोगे.’’

मुंह पर साफ कहने की आदत वाले विहाग की जबान ठिठक गई, गरम दिमाग विहाग को लगा कि एक चांटा रसीद दे उसे. जिस के लिए विलासिता के आगे मनुष्यता का पैमाना इतना छोटा है. लेकिन वक्त की कठिनाई उसे संयत रहने का हुनर सिखा रही थी.

‘‘सर, मैं वापस जा कर अपने पापा से बात करता हूं, उन्होंने एक जगह मेरी बात पक्की कर दी है, उन लोगों से भी बात करनी पड़ेगी. तब तक क्या मैं अपनी फाइल आप को दे जाऊं?’’

‘‘सीधी सी बात है, आप पापा से बात कर लें, और तब तक अपना कागज मेरे दफ्तर में फाइल की लाइन में लगा दें, जब इस शादी को हां हो जाए तो मुझे बता दीजिएगा, कोई कमी नहीं रहेगी, इतना कह सकता हूं.’’

सरकारी नियम कुछ भी हो, कुछ बातें विहाग के अख्तियार में तो नहीं थीं.

विहाग ने वापसी की. अब भी वह समझदार नहीं हुआ था, लेकिन समझ ही गया था. हफ्तेभर की नाइट ड्यूटी और कई दफा दिन की खलल वाली नींद के बाद वह एक मजदूर को ले कर क्वार्टर पर पहुंचा. इरादा था मजदूर के संग मिल कर क्वार्टर को घर बनाने की दिशा में कुछ कदम बढ़ाना, मसलन काइयों और झड़े प्लास्टर के साथ मकड़जाल की सफाई. यानी अपने खुद के ठिकाने की तरफ एक कदम.

बरामदे में पहुंचते ही चौंकने की बारी थी, अंदर कोलाहल सा था, दरवाजा अधखुला. बैडरूम से ठहाकों और अश्लील गालीगलौज की आवाजें आ रही थीं. जुए की बाजी बिछाए 30 के आसपास के 4 पुरुष और 2 बार गर्ल की वेशभूषा में इन चारों के साथ चिपकी बैठी शातिराना मुसकान बिखेर रही 20-22 साल की लड़कियां.

विहाग के तनबदन में आग लग गई, परेशान हो कर पूछा, ‘‘भाई लोग आप सब यहां कैसे?’’

तुरंत बात खींच ली हो जैसे, उन में से

एक आदमी ने छूटते ही कहा, ‘‘बाबू चाबी सिर्फ आप के पास ही नहीं थी, एक चाबी अभी भी सरकारी दराज में थी,’’ सभी भौंड़े तरीके से

हंसने लगे.

‘‘क्या मतलब?’’विहाग क्रोधित भी था और भौंचक भी. तुरंत एक कारिंदे ने कहा, ‘‘ए लिली, जा बाबू को मतलब समझा.’’

आगे पढ़ें- लड़कियां फुर्ती से आ कर विहाग से…

मिशन क्वार्टर नंबर 5/2बी: भाग-1

फौरीतौर पर देखा जाए तो मुझ जैसी स्टाइलिश लड़की के लिए वह बंदा इतना भी दिलचस्प नहीं था कि मैं खयालों के दीए गढूं और उन्हें अपने दिल में जलाए फिरूं. मगर जिंदगी बड़ी दिलचस्प चीज है. हम एक पल जिसे झुठलाते हैं, उसे ही दूसरे पल कबूलते हैं.

 

2 साल पहले की बात है मेरे पापा होमियोपैथी की प्रैक्टिस करते थे. अब तो उन की सेहत साथ नहीं देती, मगर एक समय था जब शहर में उन का बड़ा नाम था. रोज मरीज की लाइन लगी रहती थी. उस दिन मरीजों की कतार में एक दुबलापतला, लंबे कद वाला गेहूंए रंग का 26 वर्ष का लड़का बैठा था. हमारे 2 मंजिल के मकान के ऊपरी हिस्से में हमारा निवास था और नीचे पापा का क्लीनिक.

 

मैं उन दिनों एमबीए कर रही थी. उस दिन मुझे कालेज के लिए निकलना था. मैं ऊपर से नीचे आई. उसे मरीजों की लाइन में बैठा देखा. खैर, मैं अंदर पापा से कुछ कहने चली गई.

 

अभी मैं पापा से बात कर ही रही थी कि ये जनाब अंदर आए. पापा ने उसे कुछ ज्यादा ही इज्जत से बिठाया और मुझे रोक लिया. ‘‘देविका, ये विहाग हैं. हमारे यहां के नए स्टेशन मास्टर. पहली पोस्टिंग है. घरपरिवार से दूर हैं. अकेले हैं. तुम इन का साथ देना.’’

 

‘‘जी पापा.’’

 

‘‘तुम तो ट्रेन से कालेज जाती हो, इन से मिल कर मंथली पास बनवा लेना. मेरी इन से बात हो गई है.’’

 

‘‘जी पापा.’’

 

इस बीच उस ने अपनी बड़ीबड़ी आंखें मेरे चेहरे पर गड़ा दीं. उस की आंखों में एक अजीब सी खुमारी थी और होंठों पर लरजती सी मुसकान. मेरी सारी स्मार्टनैस गायब हो गई, ‘‘जी, जी’’ करती मैं बुत सी बनी रह गई.

 

अचानक बंदे ने पापा की ओर देख कर कहा, ‘‘सर कई दिनों से मुझे सर्दी है, रात को बंद नाक के मारे सो नहीं पाता. काफी कफ जमा है सीने में. हमेशा घरघर की आवाजें आती हैं.’’

 

मेरे पापा को शायद यह उम्मीद नहीं थी कि एक 23 साल की सुंदर, आकर्षक लड़की के सामने वह सर्दी और सीने में जमे कफ की बात करेगा. उन्हें आशा थी कि अपनी बीमारी की बात करने पापा ने जैसे ही दवा लिखने के लिए पैन उठाया मैं चुपचाप वहां से निकल आई. मेरे मन की तितलियों के पंख उस की सर्दी में लिपपुत कर औंधे मुंह गिर पड़े थे.

 

हां, मगर न, न कर के भी एक बात स्वीकार करती हूं. मैं उसे जबजब सोचती, होंठों पर खुद ही मुसकान आ जाती डायरी में कुछ लिखने की कोशिश करती, लेकिन, उफ, उस का चेहरा याद आते ही सर्दी की याद आ जाती. उस की घनी मूंछों की जब भी याद आती बंद नाक भी साथ सामने आ जाता. उस के शर्ट के जरा से खुले हुए बटन के नीचे से झांकता घना रेशमी जंगल मेरे दिल को ज्यों धड़काने को होता सीने में जमा उस का कफ मेरे इरादों को तहसनहस कर देता. मैं डायरी के हर पन्ने पर तारीख लिखती, आड़ीतिरछी रेखाएं बना कर डायरी बंद कर देतीं. रेखाएं थीं बेजुबान, वरना न जाने क्याक्या कह देती मेरे बारे में.

 

 

मेरे मन में उस की चाह ऐसी थी जैसे कोई पपीहा सूने और घने वन की किसी डाली

 

की एक अकेली सी फुनगी पर बैठ राग अलाप कर उड़ जाता हो और पीछे रह जाती हो बीहड़ की निस्तब्धता.

 

दिन बीते, मैं ने उसे भुलाने की कोशिश की. वैसे उस का आना भी अब काफी कम हो गया था. शायद उस की तबीयत अब ठीक थी.

 

मेरी शादी की बात अब जोर पकड़ने वाली थी, क्योंकि मुंबई से मुझे जौब औफर था. 30 साल की मेरी दीदी जिन्हें शादी से परहेज था, मां की मृत्यु के बाद हमारी मां बनी रहती और हमारे साथ रह कर ही नौकरी करती थी, मेरे मन की टोह लेने में लगी थी.

 

आखिर न, न करते मेरे चेहरे के भाव ने बड़ी रुखाई से बिना मेरी राय की परवाह किए मेरे दिल को साझा करने की गुस्ताखी कर ही डाली. दीदी ने मेरे मन की बात पापा तक पहुंचा दी थी.

 

अब विहाग की उपस्थिति सीधे हमारे डाइनिंग में दर्ज होने लगी. पापा की यही मर्जी थी. हर बार वह आता, मुसकरा कर बात करता और खापी कर चला जाता.

 

दिन निकल रहे थे, मेरे मुंबई जाने का दिन नजदीक आ रहा था, लेकिन इस शर्मीले मगर नीरस युवक से हम दिल की बात नहीं कह पाए. अंतत: पापा को कमर कसनी पड़ी और उन्होंने सीधे ही उस से मेरी शादी की बात पूछ ली.

 

मेरे खयाल से अन्य कोई भी युवक होता तो इतनी बार हमारे साथ डाइनिंग साझा करने के बाद मना करने में ठिठक जाता, कुछ सोचता और बाद में जवाब देने की बात कह कर महीनों टालता. हम इंतजार करते और वह मुंह छिपाने की कोशिश करता. मगर यह था ही अलग. कहा न, बंदे ने दिलचस्पी जगा दी थी.

 

खाना खा कर जाते वक्त पापा ने ज्यों ही पूछा तुरंत उस ने जवाब दे दिया. वह यहां शादी नहीं कर सकता था. वह ऐसी जगह शादी नहीं करेगा जहां उस का ससुराल नजदीक हो, ससुराल वालों के अत्यधिक संपर्क में रहना पसंद नहीं था उसे.

 

मैं डायरी को अपने कमरे के सब से ऊपरी ताक पर सीलन के हवाले कर मुंबई रवाना हो गई.

 

सालभर बाद मैं घर वापस आई. कुछ वजहों ने बहाने दिए और मेरी खामोश डायरी फिर ताक से उतर कर बोल पड़ी.

 

विहाग इस मध्यम आकार के शहर में स्टेशन मास्टर था. उस के मातापिता उज्जैन में रहते थे.

 

2 बहनें थीं जिन की शादी हो गई थी. ये छोटे थे और आत्मनिर्भर भी. 26 वर्षीय विहाग जब स्टेशन मास्टर के रूप में पदस्थापित हो कर आया तो उस ने इस छोटे से स्टेशन के सामने बने छोटेछोटे लेकिन सामान्य सुविधा युक्त एक कमरे, एक हौल वाले क्वार्टरों में से एक के लिए आवेदन दिया. क्वार्टर तो नहीं मिल पाया मगर वह शादीशुदा नहीं था तो एक सहकर्मी के सा िकिराये का मकान साझा कर रहने लगा.

 

यह साल 2013 था और नए नियुक्त इन लड़कों की तनख्वाह कुल मिला कर 25 हजार के आसपास थी. स्टेशन मास्टर की ड्यूटी अगर छोटे या मध्यम आकार के स्टेशन में होती तो स्टाफ की कमी की वजह से उन्हें 12 घंटे की ड्यूटी अकसर ही करनी पड़ती है. नाइट ड्यूटी तो आए दिन की आम बात थी. स्टाफ की कमी के कारण सप्ताह की एक छुट्टी भी मुश्किल थी. बारिश का मौसम हो, हाड़ कंपाती ठंड की रात बिना नागा ड्यूटी पर हाजिर होना ही पड़ता. छुट्टी की गुंजाइश तभी थी जब इंसान बीमार पड़ कर बिस्तर पकड़ ले.

 

आगे पढ़ें- बारिश और जाड़े की रात बाइक से भीगभीग कर…

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