‘अल्फा’ की शूटिंग से पहले शर्वरी ने दिखाया अपनी फिटनेस का जलवा, वाश बोर्ड एब्स हुए वायरल!

बौलीवुड की नई और लोकप्रिय अभिनेत्री शर्वरी इस साल अपने शानदार प्रदर्शन के कारण सुर्खियों में हैं. मुंजा, महाराज और वेदा जैसी फिल्मों में उनकी दमदार अदाकारी ने लोगों का दिल जीत लिया है. अब, जैसे ही शर्वरी अपनी आगामी फिल्म अल्फा के एक और शेड्यूल के लिए तैयार हो रही हैं, उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने वॉश बोर्ड एब्स दिखाकर सभी को बड़ा फिटनेस मोटिवेशन दिया है!

शर्वरी ने अपने ग्लैमरस फिटनेस फोटोज को कैप्शन दिया, “इन माय फिट पूकी एरा.” यशराज फिल्म्स स्पाई यूनिवर्स की फिल्म अल्फा के तीसरे शेड्यूल की शुरुआत होने जा रही है, और शर्वरी अपने फिटनेस के चरम पर हैं. इस फिल्म में वह आलिया भट्ट के साथ नजर आएंगी, जिसे लेकर शरवरी बोहत उत्साहित है .

आलिया भट्ट और शर्वरी की अल्फा, यशराज फिल्म्स की पहली महिला स्पाई फिल्म है. यशराज फिल्म्स ने घोषणा की है कि उनकी यह बहुप्रतीक्षित एक्शन एंटरटेनर अल्फा, जो YRF स्पाई यूनिवर्स की पहली महिला प्रधान फिल्म है,इस फ़िल्म की शूटिंग जोरो शोरो से चल रही है . इस फिल्म का निर्माण आदित्य चोपड़ा कर रहे हैं.

बौलीवुड सुपरस्टार आलिया भट्ट फिल्म में मुख्य भूमिका निभाते नजर आएंगी, और उनके साथ उभरती हुई अभिनेत्री और YRF की होमग्रोन टैलेंट शर्वरी होंगी. दोनों इस बहुप्रतीक्षित स्पाईवर्स फिल्म में सुपर एजेंट की भूमिका में दिखाई देंगी, जिसे शिव रवैल निर्देशित कर रहे हैं.अल्फा एक्शन और मनोरंजन से भरपूर फ़िल्म है, क्योंकि आदित्य चोपड़ा इस फिल्म को बड़े परदे का भव्य अनुभव बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. इस फिल्म में शानदार दृश्य और रोमांचक एक्शन सीक्वेंस के साथ साथ कई अप्रत्याशित ट्विस्ट भी देखने को मिलेंगे.

Vivek Oberoi ने आइफा अवार्ड में सलमान खान पर कसा तंज, शाहरुख खान को क्यों कहा ‘बहुत अच्छे इंसान’

हाल ही में आबू धाबी में अवार्ड फंक्शन के दौरान विवेक ओबेरौय ने शाहरुख खान के साथ स्टेज शेयर किया और उसी दौरान मौके पर चौका मारते हुए जहां एक और विवेक ओबेरौय ने स्टेज पर शाहरुख खान की तारीफ के पुल बांध दिए तो वही सलमान खान (Salman Khan) को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. विवेक ओबेरौय ने शाहरुख की तारीफ करते हुए कहा कि वह शाहरुख के बहुत बड़े फैन हैं. क्योंकि शाहरुख बहुत अच्छे एक्टर ही नहीं बहुत अच्छे इंसान भी हैं.

विवेक ओबेरौय ने सलमान पर तंज कसते हुए आगे कहा. पावर और फेम तो बहुत लोगों के पास होता है. लेकिन शाहरुख अपने पावर को लोगों को एम पावर करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. शाहरुख जहां अपनी तारीफ सुनकर मुस्कुराते नजर आए. वहीं लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी की विवेक ओबरौय ने शाहरुख का सहारा लेकर सलमान की बेइज्जती कर दी है. गौरतलब है सलमान और ऐश्वर्या राय के ब्रेकअप और झगड़े के बीच विवेक ओबेरौय ने बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिश की थी और ऐश्वर्या राय को अपनी गर्लफ्रेंड बताने का सिलसिला शुरू कर दिया था. इसके बाद सलमान खान विवेक ओबेरौय से इतना चिढ़ गए थे कि उन्होंने विवेक का फिल्मी करियर बर्बाद कर दिया. ऐसा विवेक ओबेरौय और फिल्म इंडस्ट्री वालों का कहना है. अपना करियर बचाने के लिए विवेक ओबेरौय ने सलमान से माफी भी मांगी थी. लेकिन सलमान ने विवेक ओबेरौय को कभी माफ नहीं किया.

जिस वजह से अच्छा एक्टर होने के बावजूद और कई हिट फिल्में देने के बावजूद विवेक ओबेरौय को फिल्म इंडस्ट्री वालों ने अपने से दूर कर दिया. अपनी इसी खुन्नस और गुस्से को विवेक ओबेरौय ने आईफा अवार्ड के दौरान शाहरुख की तारीफ करके और सलमान पर तंज कसके पूरा किया. जहां तक सलमान की बात है . तो अब सलमान को इन बातों से कोई खास फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि उनकी जिंदगी में आलरेडी इतनी टेंशन और तकलीफें हैं कि विवेक ओबरौय की तारीफ या बुराई सलमान के लिए कोई मायने नहीं रखती.

FIR के राइटर ने कपिल शर्मा के शो को क्यों कहा ‘सबसे घटिया’, इस हफ्ते कपूर सिस्टर्स खोलेंगी कई राज

The Great Indian Kapil Show : द ग्रेट इंडियन कपिल शर्मा शो के फैंस की कमी नहीं है. यह पौपुलर शो टीवी के बाद नेटफ्लिकस पर दिखाया जा रहा है. इस शो को लेकर अलगअलग रिव्यूज आते हैं. कुछ लोगों को यह शो काफी पसंद आता है, तो वहीं कुछ लोग ये कहते हैं कि कपिल सैलिब्रिटीज को अपने शो पर बुलाकर मजाक उड़ाते हैं.

FIR के राइटर ने बताया सबसे घटिया शो

एक रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में टीवी शो FIR के राइटर अमित आर्यन ने इस शो को लेकर एक यू-ट्यूब चैनल से बातचीत की. उन्होंने कहा, ”कपिल शर्मा का शो सबसे बुरा शो है. उन्होंने आगे ये भी कहा कि इस शो में अश्लील कंटैंट दिखाए जाते हैं और महिलाओं का मजाक उड़ाया जाता है.”

आज की जेनरेशन इसी को कौमेडी समझ रही है. अमित आर्यन ने आगे ये भी कहा कि ”अगर आज मैं घटिया बात करूं, किसी का मज़ाक उड़ाऊं, किसी को मोटा कहूं, काला बोलूं, बौडी शेमिंग करूं तो लोग हंसेंगे. मगर आपकी भी तो कुछ जिम्मेदारी होनी चाहिए.”

किसी का मजाक उड़ाकर कौमेडी करना गलत है

अमित ने कहा कि किसी का मजाक उड़ाकर कौमेडी पैदा करना गलत है. हालांकि इस शो को लेकर फैंस काफी ऐक्साइटेड रहते हैं. हाल ही में इस शो से जुड़ा एक क्लिप सामने आया है, क्लिप में करिश्मा कपूर करीना के अटपटे सवाल का जवाब देते नजर आ रही हैं. करीना अपनी बहन करिश्मा का सीक्रेट भी बता रही हैं.

कपूर सिस्टर्स कपिल शर्मा के शो में करेंगी एंट्री

कपिल के शो में कपूर सिस्टर्स दर्शकों का फुल एंटरटेनमैंट करेंगी. वीडियो के अनुसार, कपिल ने दोनों का शानदार वेलकम किया. कपिल कहते हैं कि मेरे एक तरफ करीना, एक तरफ करिश्मा, इसके बाद चाहे गोली मार दो.

करीना ने सैफ को किया प्रपोज?

कपिल शर्मा बेबो से सवाल करते हैं कि करीना या सैफ में से किसने पहले प्रपोज किया था. करीना इसका हंसते हुए जवाब देती हैं और कहती हैं कि जितना मैं खुद को जानती हूं, मैंने ही उनको बताया होगा. क्योंकि सब जानते हैं कि मैं अपनी फेवरिट हूं. कपिल ने सैफ के टैटू के बारे में भी पूछा, इस पर करीना ने बताया कि मैंने ही सैफ से कहा कि अगर मुझसे प्यार करते हो तो मेरे नाम का टैटू बनवाओ.

करिश्मा ने कृष्णा अभिषेक के साथ की हूक स्टेप

इसके बाद शो में कृष्णा अभिषेक की एंट्री होती है. वह करिश्मा के साथ हुक स्टेप करते हैं. करिश्मा उन्हें चीची भैया कहकर बुलाती है, इसके बाद कृष्णा कहते हैं कि ये जो आपने भैया बोला है, यह बात मुझे अंदर तक लगी है.

करिश्मा का क्रश सीक्रेट

कपिल के शो में ये भी देखने को मिलेगा कि करीना अपनी बहन करिश्मा के क्रश सीक्रेट के बारे में बताएंगी. कपिल जब करिश्मा के क्रश के बारे में पूछते हैं तो करीना कहती हैं कि मुझे लगता है कि सलमान खान पहले क्रश थे. ये सुनकर करिश्मा शौक्ड दिखती हैं. यूजर्स ने इस क्लिप पर काफी सारे कमेंट्स किए हैं. इस एपिसोड को लेकर दर्शक ऐक्साइटेड हैं और अच्छा फीडबैक दे रहे हैं.

मैट्रिमोनियल: पंकज को क्यों दाल में कुछ काला नजर आ रहा था

पंकज कई दिनों से सोच रहा था कि रामचंदर बाबू के यहां हो आया जाए, पर कुछ संयोग ही नहीं बना. दरअसल, महानगरों की यही सब से बड़ी कमी है कि सब के पास समय की कमी है. दिल्ली शहर फैलता जा रहा है.

15-20 किलोमीटर की दूरी को ज्यादा नहीं माना जाता. फिर मैट्रो ने दूरियों को कम कर दिया है. लोगों को आनाजाना आसान लगने लगा है. पंकज ने तय किया कि  कल रविवार है, हर हाल में रामचंदर बाबू से मुलाकात करनी ही है.

किसी के यहां जाने से पहले एक फोन कर लेना तहजीब मानी जाती है और सहूलियत भी. क्या मालूम आप 20 किलोमीटर की दूरी तय कर के पहुंचें और पता चला कि साहब सपरिवार कहीं गए हैं. तब आप फोन करते हैं. मालूम होता है कि वे तो इंडिया गेट पर हैं. मन मार कर वापस आना पड़ता है. मूड तो खराब होता ही है, दिन भी खराब हो जाता है. पंकज ने देर करना मुनासिब नहीं समझा, उस ने मोबाइल निकाल कर रामंचदर बाबू को फोन मिलाया.

रामचंदर बाबू घर पर ही थे. दरअसल, वे उम्र में पंकज से बड़े थे. वे रिटायर हो चुके हैं. उन्होंने 45 साल की उम्र में वीआरएस ले लिया था. आज 50 के हो चुके हैं.

‘‘हैलो, मैं हूं,’’ पंकज ने कहा.

‘‘अरे वाह,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘काफी दिनों बाद तुम्हारी आवाज सुनाई दी. कैसे हो भाई.’’

‘‘मैं ठीक हूं. आप कैसे हैं?’’

‘‘मुझे क्या होना है. बढि़या हूं. कहां हो?’’

‘‘अभी तो औफिस में ही हूं, कल क्या कर रहे हैं, कहीं जाना तो नहीं है?’’

‘‘जाना तो है. पर सुबह जाऊंगा. 10-11 बजे तक वापस आ जाऊंगा. क्यों, तुम आ रहे हो क्या?’’

‘‘हां, बहुत दिन हो गए.’’

‘‘तो आ जाओ. मैं बाद में चला जाऊंगा या नहीं जाऊंगा. जरूरी नहीं है.’’

‘‘नहीं, नहीं. मैं तो लंच के बाद ही आऊंगा. आप आराम से जाइए. वैसे जाना कहां है?’’

‘‘वही, रिनी के लिए लड़का देखने. नारायणा में बात चल रही थी न. तुम्हें बताया तो था. फोन पर साफ बात नहीं कर रहे हैं, टाल रहे हैं. इसलिए सोचता हूं एक बार हो आऊं.’’

‘‘ठीक है, हो आइए. पर मुझे नहीं लगता कि वहां बात बनेगी. वे लोग मुझे जरा घमंडी लग रहे हैं.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो. मुझे भी यही लगता है. कल फाइनल कर ही लेता हूं. फिर तुम अपनी भाभी को तो जानते ही हो.’’

‘‘ठीक है, बल्कि यही ठीक होगा. भाभीजी कैसी हैं, उन का घुटना अब कैसा है?’’

‘‘ठीक ही है. डाक्टर ने जो ऐक्सरसाइज बताई है वह करें तब न.’’

‘‘और नीरज आया था क्या?’’

‘‘अरे हां, आजकल आया हुआ है. एकदम ठीक है. तुम्हारे बारे में आज ही पूछ भी रहा था. खैर, तुम कितने बजे तक आ जाओगे?’’

‘‘मैं 4 बजे के करीब आऊंगा.’’

‘‘ठीक है. चाय साथ पिएंगे. फिर खाना खा कर जाना.’’

‘‘रिनी की कहीं और भी बात चल रही है क्या? देखते रहना चाहिए. एक के भरोसे तो नहीं बैठे रहा जा सकता न.’’

‘‘चल रही है न. अब आओ तो बैठ कर इत्मीनान से बात करते हैं.’’

‘‘ठीक है. तो कल पहुंचता हूं. फोन रखता हूं, बाय.’’

मोबाइल फोन का यही चलन है. शुरुआत में न तो नमस्कार, प्रणाम होता है और न ही अंत में होता है. बस, बाय कहा और बात खत्म.

रामचंदर बाबू के एक लड़का नीरज व लड़की रिनी है. रिनी बड़ी है. वह एमबीए कर के नौकरी कर रही है. साढे़ 6 लाख रुपए सालाना का पैकेज है. नीरज बीटैक कर के 3 महीने से एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब कर रहा है. रामचंदर बाबू रिनी की शादी को ले कर बेहद परेशान थे. दरअसल, उन के बच्चे शादी के बाद देर से पैदा हुए थे. पढ़ाई, नौकरी व कैरियर के कारण पहले तो रिनी ही शादी के लिए तैयार नहीं थी, जब राजी हुई तब उस की उम्र 28 साल थी. देखतेदेखते समय बीतता गया और रिनी अब 30 वर्ष की हो गई, लेकिन शादी तय नहीं हो पाई. नातेरिश्तेदारों व दोस्तों को भी कह रखा था. अखबारों में भी विज्ञापन दिया था. मैट्रिमोनियल साइट्स पर भी प्रोफाइल डाल रखा था. अब जब अखबार ने उन का विज्ञापन 30 प्लस वाली श्रेणी में रखा तब उन्हें लगा कि वाकई देर हो गई है. वे काफी परेशान हो गए.

पंकज जब उन के यहां पहुंचा तो 4 ही बजे थे. रामचंदर बाबू घर पर ही थे. पंकज का उन्होंने गर्मजोशी से स्वागत किया. उन के चेहरे पर चमक थी. पंकज को लगा रिनी की बात कहीं बन गई है.

‘‘क्या हाल है रामचंदर बाबू,’’ पंकज ने सोफे पर बैठते हुए पूछा.

‘‘हाल बढि़या है. सब ठीक चल रहा है.’’

‘‘रिनी की शादी की बात कुछ आगे बढ़ी क्या?’’

‘‘हां, चल तो रही है. देखो, सबकुछ ठीक रहा तो शायद जल्द ही फाइनल हो जाएगा.’’

‘‘अरे वाह, यह तो बहुत अच्छा हुआ. नारायणा वाले तो अच्छे लोग निकले.’’

‘‘नारायणा वाले नहीं, वे लोग तो अभी भी टाल रहे हैं. मैं गया था तो बोले कि 2-3 हफ्ते में बताएंगे.’’

‘‘फिर कहां की बात कर रहे हैं?’’

रामचंदर बाबू खिसक कर उस के नजदीक आ गए.

‘‘बड़ा बढि़या प्रपोजल है. इंटरनैट से संपर्क हुआ है.’’

‘‘इंटरनैट से? वह कैसे?’’

‘‘मैं तुम्हें विस्तार से बताता हूं. इंटरनैट पर मैट्रिमोनियल की बहुत सी साइट्स हैं. वे लड़के और लड़कियां की डिटेल रखते हैं. उन पर अकाउंट बनाना होता है, मैं ने रिनी का अकाउंट बनाया था. मुंबई के बड़े लोग हैं. बहुत बड़े आदमी हैं. अभी पिछले हफ्ते ही तो मैं ने उन का औफर एक्सैप्ट किया था.’’

‘‘लड़का क्या करता है?’’

‘‘लड़का एमटैक है आईआईटी मुंबई से. जेट एयरवेज में चीफ इंजीनियर मैंटिनैंस है. 22 लाख रुपए सालाना का पैकेज है. तुम तो उस का फोटो देखते ही पसंद कर लोगे. एकदम फिल्मी हीरो या मौडल लगता है. अकेला लड़का है. कोई बहन भी नहीं है.’’

‘‘चलिए, यह तो अच्छी बात है. उस का बाप क्या करता है?’’

‘‘बिजनैसमैन हैं. मुंबई में 2 फैक्टरियां हैं.’’

‘‘2 फैक्टरियां? फिर तो बहुत बड़े आदमी हैं.’’

‘‘बहुत बड़े. कहने लगे इतना कुछ है उन के पास कि संभालना मुश्किल हो रहा है. लड़के का मन बिजनैस में नहीं है, नहीं तो नौकरी करने की कोई जरूरत ही नहीं है. कह रहे थे बिजनैस तो रिनी ही संभालेगी, एमबीए जो है. घर में 3-3 गाडि़यां हैं,’’ रामचंदर बाबू खुशी में कहे जा रहे थे.

‘‘इस का मतलब है कि आप की बात हो चुकी है.’’

‘‘बात तो लगभग रोज ही होती है. एक्सैप्ट करने के बाद साइट वाले कौंटैक्ट नंबर दे देते हैं. जितेंद्रजी कहने लगे कि जब से आप से बात हुई है, दिन में एक बार बात किए बिना चैन ही नहीं मिलता. कई बार तो रात के 12 बजे भी उन का फोन आ जाता है. व्यस्त आदमी हैं न.’’

‘‘कुछ लेनदेन की बात हुई है क्या?’’

‘‘मैं ने इशारे में पूछा था. कहने लगे, कुछ नहीं चाहिए. न सोना, न रुपया, न कपड़ा. बस, सादी शादी. बाकी वे लोग बाद में किसी होटल में पार्टी करेंगे. होटल का नाम याद नहीं आ रहा है. कोई बड़ा होटल है.’’

‘‘घर में और कौनकौन है?’’

‘‘बस, मां हैं और कोई नहीं है. नौकरचाकरों की तो समझो फौज है.’’

‘‘आप ने रिश्तेदारी तो पता की ही होगी. कोई कौमन रिश्तेदारी पता चली क्या?’’

‘‘मैं ने पूछा था. दिल्ली में कोई नहीं है. मुंबई में भी सभी दोस्तपरिचित ही हैं. वैसे बात तो वे सही ही कह रहे हैं. अब हमारी ही कौन सी रिश्तेदारियां बची हैं. एकाध को छोड़ दो तो सब से संबंध खत्म ही हैं. मेरे बाद नीरज और रिनी क्या रिश्तेदारियां निबाहेंगे भला. खत्म ही समझो.’’

‘‘चलिए, ठीक ही है. बात आगे तो बढ़े.’’ वैसे मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है, ‘‘शादीब्याह का मामला है, कुछ सावधानियां तो बरतनी ही पड़ती हैं.’’

‘‘हां, सो तो है ही. मैं सावधान तो हूं ही. पर सावधानी के चक्कर में इतना अच्छा रिश्ता कैसे छोड़ दूं. रिनी की उम्र तो तुम देख ही रहे हो.’’

‘‘नहीं, मेरा यह मतलब नहीं था. फिर भी जितना हो सके बैकग्राउंड तो पता कर ही लेना चाहिए.’’

‘‘वो तो करूंगा ही भाई.’’

चायवाय पी कर पंकज वापस चला गया. सबकुछ तो ठीक था पर एक बात थी जो अजीब लग रही थी उसे. आखिर उन लोगों को रिनी में ऐसी कौन सी खासियत नजर आ गई थी जो वे शादी के लिए एकदम तैयार हो गए. बहरहाल, शादीब्याह तो जहां होना है वहीं होगा, फिर भी चलतेचलते उस ने इतना कह ही दिया कि आप एक बार मुंबई जा कर परिवार, फैक्टरियां वगैरह देख आइए. कम से कम तसल्ली तो हो जाएगी. उन्होंने जाने का वादा किया.

अगले शनिवार रामचंदर बाबू ने पंकज को फोन किया.

‘‘अरे, कहां हो भाई? क्या हाल है?’’ मुझे उन का स्वर उत्तेजित लगा.

‘‘मैं घर पर ही हूं,’’ पंकज ने कहा, ‘‘क्या हुआ. सब ठीक तो है.’’

‘‘हां, सब ठीक है. कल का कोई प्रोग्राम तो नहीं है?’’

‘‘नहीं. पर हुआ क्या, तबीयत वगैरह तो ठीक है न?’’

‘‘तबीयत तो ठीक है. अरे, वह रिनी वाला संबंध है न. वही लोग कल आ रहे हैं.’’

‘‘आ रहे हैं? पर क्यों?’’

‘‘अरे, लड़की देखने भाई. सब ठीक रहा तो कोई रस्म भी कर देंगे.’’

‘‘जरा विस्तार से बताइए. पर रुकिए, क्या आप मुंबई हो आए, घरपरिवार देख आए क्या?’’

‘‘अरे, कहां? मैं बताता हूं. तुम्हारे जाने के बाद उन का फोन आ गया था. काफी बातें होती रहीं. पौलिटिक्स पर भी उन की अच्छी पकड़ है. बडे़ बिजनैसमैन हैं. 2-2 फैक्टरियां हैं. पौलिटिक्स पर नजर तो रखनी ही पड़ती है. फिर मैं ने उन से कहा कि अपना पूरा पता बता दीजिए, मैं आ कर मिलना चाहता हूं. कहने लगे आप क्यों परेशान होते हैं. लेकिन आना चाहते हैं तो जरूर आइए. वर्ली में किसी से भी स्टील फैक्टरी वाले जितेंद्रजी पूछ लीजिएगा, घर तक पहुंचा जाएगा. कहने लगे कि फ्लाइट बता दीजिए, ड्राइवर एयरपोर्ट से ले लेगा.’’

‘‘बहुत बढि़या.’’

मैं ने कहा, हवाईजहाज से नहीं, मैं तो ट्रेन से आऊंगा. तो बोले टाइम बता दीजिएगा, स्टेशन से ही ले लेगा. बल्कि वे तो जिद करने लगे कि हवाईजहाज का टिकट भेज देता हूं. 2 घंटे में पहुंच जाइएगा. मैं ने किसी तरह से मना किया.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर क्या. मैं रिजर्वेशन ही देखता रह गया और कल सुबहसुबह ही उन का फोन आ गया.’’

‘‘अच्छा.’’

‘‘हां. उन्होंने बताया कि वे 15 दिनों के लिए स्वीडन जा रहे हैं. वहां उन का माल एक्सपोर्ट होता है न. पत्नी भी साथ में जा रही हैं. पत्नी की राय से ही उन्होंने फोन किया था. उन की पत्नी का कहना था कि जाने से पहले लड़की देख लें. और ठीक हो तो कोई रस्म भी कर देंगे. सो, बोले हम इतवार को आ रहे हैं.’’

‘‘बड़ा जल्दीजल्दी का प्रोग्राम बन रहा है. क्या लड़का भी साथ में आ रहा है?’’

‘‘ये लो. लड़का नहीं आएगा भला. बड़ा व्यस्त था. पर जितेंद्रजी ने कहा कि आप ने भी तो नहीं देखा है. लड़कालड़की दोनों एकदूसरे को देख लें, बात कर लें, तभी तो हमारा काम शुरू होगा न.’’

‘‘यह तो ठीक बात है. कहां ठहराएंगे उन्हें.’’ पंकज जानता था कि रामचंदर बाबू का मकान बस साधारण सा ही है. एसी भी नहीं है. सिर्फ कूलर है.

‘‘ठहरेंगे नहीं. उसी दिन लौट जाएंगे.’’

‘‘पर आएंगे तो एयरपोर्ट पर ही न.’’

‘‘नहीं भाई, बड़े लोग हैं. उन की पत्नी ने कहा कि जब जा ही रहे हैं तो लुधियाना में अपने भाई के यहां भी हो लें. अब उन का प्रोग्राम है कि वे आज ही फ्लाइट से लुधियाना आ जाएंगे. ड्राइवर गाड़ी ले कर लुधियाना आ जाएगा. कल सुबह 8 बजे घर से निकल कर 11 बजे तक दिल्ली पहुंच जाएंगे व लड़की देख कर लुधियाना वापस लौट जाएंगे. वहीं से मुंबई का हवाईजहाज पकडेंगे. ड्राइवर गाड़ी वापस मुंबई ले जाएगा.’’

‘‘बड़ा अजीब प्रोग्राम है. उन के साले के पास गाड़ी नहीं है क्या, जो मुंबई से ड्राइवर गाड़ी ले कर आएगा. उस की भी तो लुधियाना में फैक्टरी है.’’

‘‘बड़े लोग हैं. क्या मालूम अपनी गाड़ी में ही चलते हों.’’

‘‘क्या मालूम. लेकिन आप जरा घर ठीक से डैकोरेट कर लीजिएगा.’’

‘‘अरे, मैं बेवकूफ नहीं हूं भाई, मेरा घर उन के स्तर का नहीं है. होटल रैडिसन में 6 लोगों का लंच बुक कर लिया है. पहला इंप्रैशन ठीक होना चाहिए.’’

‘‘चलिए, यह आप ने अच्छा किया. नीरज तो है ही न.’’

‘‘वह तो है, पर भाई तुम आ जाना. बड़े लोग हैं. तुम ठीक से बातचीत संभाल लोगे. मैं क्या बात कर पाऊंगा. तुम रहोगे तो मुझे सहारा रहेगा. तुम साढ़े 10 बजे तक रैडिसन होटल आ जाना. हम वहीं मिल जाएंगे.’’

‘‘मैं समय से पहुंच जाऊंगा. आप निश्चित रहें.’’

सारी बातें उसे कुछ अजीब सी लग रही थीं. पंकज ने मन ही मन तय किया कि रामचंदर बाबू से कहेगा कि कल कोई रस्म न करें. जरा रुक कर करें और हो सके तो मुंबई से लौट कर करें.

पंकज घर से 10 बजे ही होटल रैडिसन के लिए निकल गया. आधा घंटा तो लग ही जाना था. आधे रास्ते में ही था कि मोबाइल की घंटी बजी. नंबर रामचंदर बाबू का ही था.

‘‘क्या हो गया रामचंदर बाबू. मैं रास्ते में हूं, पहुंच रहा हूं.’’

‘‘अरे, जल्दी आओ भैया, गजब हो गया.’’

‘‘गजब हो गया? क्या हो गया.’’

‘‘तुम आओ तो. लेकिन जल्दी आओ.’’

‘‘मैं बस 10 मिनट में रैडिसन पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘रैडिसन नहीं, रैडिसन नहीं. घर आओ, जल्दी आओ.’’

‘‘मैं घर ही पहुंचता हूं, पर आप घबराइए नहीं.’’

अगले स्टेशन से ही उस ने मैट्रो बदल ली. क्या हुआ होगा. फोन उन्होंने खुद किया था. घबराए जरूर थे पर बीमार नहीं थे. कहीं रिनी ने तो कोई ड्रामा नहीं कर दिया.

दरवाजा नीरज ने खोला. सामने ही सोफे पर रामचंदर बाबू बदहवास लेटे थे. उन की पत्नी पंखा झल रही थीं व रिनी पानी का गिलास लिए खड़ी थी. पंकज को देखते ही झटके से उठ कर बैठ गए.

‘‘गजब हो गया भैया, अब क्या होगा.’’

‘‘पहले शांत हो जाइए. घबराने से क्या होगा. हुआ क्या है?’’

‘‘ऐक्सिडैंट…ऐक्सिडैंट हो गया.’’

‘‘किस का ऐक्सिडैंट हो गया?’’

‘‘जितेंद्रजी का ऐक्सिडैंट हो गया भैया. अभी थोड़ी देर पहले फोन आया था. अरे नीरज, जल्दी जाओ बेटा. देरी न करो.’’

नीरज ने जाने की कोई जल्दी नहीं दिखाई.

‘‘एक मिनट,’’ पंकज ने रामचंदर बाबू को रोका. ‘‘पहले बताइए तो क्या ऐक्सिडैंट हुआ, कहां हुआ. कोई सीरियस तो नहीं है?’’

‘‘अरे, मैं क्या बताऊं,’’ रामचंदर बाबू जैसे बिलख पड़े, ‘‘कहीं वे मेरी रिनी को मनहूस न समझ लें. अब क्या होगा भैया.’’

‘‘मैं बताता हूं अंकल,’’ नीरज बोला जो कुछ व्यवस्थित लग रहा था, ‘‘अभी साढ़े 9-10 बजे के बीच में जितेंद्र अंकल का फोन आया था. उन्होंने बताया कि ठीक 8 बजे वे लुधियाना से दिल्ली अपनी कार से निकल लिए थे. उन की पत्नी व बेटा भी उन के साथ थे. दिल्ली से करीब 45 किलोमीटर दूर शामली गांव के पहले उन की विदेशी गाड़ी की किसी कार से साइड से टक्कर हो गई. कोई बड़ा एक्सिडैंट नहीं है. सभी लोग स्वस्थ हैं. किसी को कोई चोट नहीं आई है.’’

‘‘तब समस्या क्या है, वे आते क्यों नहीं?’’

‘‘कार वाले ने समस्या खड़ी कर दी. वह पैसे मांग रहा है. कोई दारोगा भी आ गया है.’’

‘‘फिर?’’

‘‘कार वाले से 50 हजार रुपए में समझौता हुआ है.’’

‘‘तो उन्होंने दे दिया कि नहीं.’’

‘‘उन के पास नकद 25 हजार रुपए ही हैं. उन्होंने बताया कि पास में ही एक एटीएम है. पर अंकल का कार्ड चल ही नहीं रहा है.’’

‘‘अरे, तुम जा कर उन के खाते में 25 हजार डाल क्यों नहीं देते बेटा.’’ रामचंदर बाबू कलपे, ‘‘अब तक तो डाल कर आ भी जाते.’’

पंकज ने प्रश्नसूचक दृष्टि से नीरज की तरफ देखा.

‘‘अंकल के ड्राइवर का एटीएम कार्ड चल रहा है. पर उस के खाते में रुपए नहीं हैं. अंकल ने पापा से कहा है कि वे ड्राइवर के खाते में 25 हजार रुपए जमा कर दें, वे दिल्ली आ कर मैनेज कर देंगे. ड्राइवर का एटीएम कार्ड भारतीय स्टेट बैंक का है. मैं वहीं जमा कराने जा रहा हूं.’’

‘‘एक मिनट रुको नीरज. मुझे मामला कुछ उलझा सा लग रहा है. रामचंदर बाबू आप को कुछ अटपटा नहीं लग रहा है?’’

‘‘कैसा अटपटा?’’

‘‘उन्होंने अपने साले से लुधियाना, जहां रात में रुके भी थे, रुपया जमा कराने के लिए क्यों नहीं कहा?’’

‘‘शायद रिश्तेदारी में न कहना चाहते हों.’’

‘‘तो आप से क्यों कहा? आप से तो नाजुक रिश्तेदारी होने वाली है.’’

‘‘शायद मुझ पर ज्यादा भरोसा हो.’’

‘‘कैसा भरोसा? अभी तो आप लोगों ने एकदूसरे का चेहरा भी नहीं देखा है. फिर 2-2 फैक्टरियों के किसी मैनेजर को फोन कर के रुपया जमा करने को क्यों नहीं कहा?’’

‘‘अरे, दिल्ली से 45 किलोमीटर दूर ही तो हैं वे. मुंबई दूर है.’’

ये भी पढ़ें- Short Story: अब क्या करूं मैं

‘‘क्या बात करते हैं? कंप्यूटर के लिए क्या दिल्ली क्या मुंबई. लड़का भी तो साथ है. उस का भी कोई कार्ड नहीं चल रहा है. आजकल तो कईकई क्रैडिटडैबिट कार्ड रखने का फैशन है.’’

‘‘क्या मालूम?’’ रामचंदर बाबू भी सोच में पड़ गए.

‘‘किसी का कार्ड नहीं चल रहा है. सिर्फ ड्राइवर का कार्ड चल रहा है. बात जरा समझ में नहीं आ रही है.’’

‘‘तो क्या किया जाए भैया. बड़ी नाजुक बात है. अगर सच हुआ तो बात बिगड़ी ही समझो.’’

‘‘इसीलिए तो मैं कुछ बोल नहीं पा रहा हूं?’’

‘‘नहीं. तुम साफ बोलो. अब बात फंस गई है.’’

‘‘यह फ्रौड हो सकता है. आप रुपया जमा करा दें और फिर वे फोन ही न उठाएं तो आप उन्हें कहां ढूंढ़ेंगे?’’

‘‘25 हजार रुपए का रिस्क है,’’ नीरज धीरे से बोला.

‘‘मेरा तो दिमाग ही नहीं चल रहा है. इसीलिए तो तुम्हें बुलाया है. बताओ, अब क्या किया जाए?’’

‘‘नीरज, तुम्हें अकाउंट नंबर तो बताया है न.’’

‘‘हां, ड्राइवर का अकाउंट नंबर बताया है. स्टेट बैंक का है. इसी में जमा करने को कहा है.’’

‘‘चलो, सामने वाले पीसीओ पर चलते हैं. तुम उन को वहीं से फोन करो और कहो कि बैंक वाले बिना खाता होल्डर की आईडी प्रूफ के रुपया जमा नहीं कर रहे हैं. कह देना मैं मैनेजर साहब के केबिन से बोल रहा हूं. आप इन्हीं के फैक्स पर ड्राइवर की आईडी व अकाउंट नंबर फैक्स कर दें. वैसे, ऐसा कोई नियम नहीं है. 25 हजार रुपए तक जमा किया जा सकता है. हो सकता है वे ऐसा कुछ कहें. तो कहना, लीजिए, मैनेजर साहब से बात कर लीजिए. तब फोन मुझे दे देना. मैं कह दूंगा कि अब यह नियम आ गया है.’’

‘‘इस से क्या होगा?’’

‘‘आईडी और अकाउंट नंबर का फैक्स पर आ गया तो रुपया जमा कर देंगे, वरना तो समझना फ्रौड है.’’

‘‘अगर वहां फैक्स सुविधा न हुई तो?’’ रामचंदर बाबू बोले.

‘‘जब एटीएम है तो फैक्स भी होगा. फिर उन्हें तो कहने दीजिए न.’’

‘‘ठीक है. ऐसा किया जाए. इस में कोई बुराई नहीं है.’’ रामचंदर बाबू के दिमाग में भी शक की सूई घूमी. पंकज व नीरज पीसीओ पर आए. उस का फैक्स नंबर नोट किया व फिर नीरज ने फोन मिलाया.

‘‘अंकल नमस्ते,’’ नीरज बोला, ‘‘मैं रामचंदरजी का बेटा नीरज बोल रहा हूं.’’

उधर से कुछ कहा गया.

‘‘नहीं अंकल, बैंक वाले रुपए जमा नहीं कर रहे हैं. कह रहे हैं अकाउंट होल्डर का आईडी प्रूफ चाहिए. मैं बैंक से ही बोल रहा हूं,’’ नीरज उधर की बात सुनता रहा.

‘‘लीजिए, आप मैनेजर साहब से बात कर लीजिए,’’ नीरज ने फोन काट दिया.

‘‘क्या हुआ,’’ मैं ने दोबारा पूछा.

‘‘उन्होंने फोन काट दिया,’’ नीरज बोला.

‘‘काट दिया? पर कहा क्या?’’

‘‘मैं ने अपना परिचय दिया तो अंकल ने पूछा कि रुपया जमा किया कि नहीं. मैं ने बताया कि बैंक वाले जमा नहीं कर रहे हैं, तो अंकल बिगड़ गए, बोले कि इतना सा काम नहीं हो पा रहा है. मैं ने जब कहा कि लीजिए बात कर लीजिए तो फोन ही काट दिया.’’

‘‘फिर मिलाओ.’’

नीरज ने फिर से फोन मिलाया लेकिन लगातार स्विच औफ आता रहा.

पंकज ने राहत की सांस ली. ‘‘अब चलो.’’

वे दोनों वापस घर आ गए व रामचंदर बाबू को विस्तार से बताया.

‘‘हो सकता है गुस्सा हो गए हों, परेशान होंगे,’’ वे सशंकित थे.

‘‘आप मिलाइए.’’ रामचंदर बाबू ने भी फोन मिलाया पर स्विच औफ आया.

‘‘15 मिनट रुक कर मिलाइए.’’

15-15 मिनट रुक कर 4 बार मिलाया गया. हर बार स्विच औफ ही आया.

‘‘ये साले वाकई फ्रौड थे,’’ आखिरकार रामचंदर बाबू खुद बोले, ‘‘नहीं तो हमारी रिनी कौन सी ऐसी हूर की परी है कि वे लोग शादी के लिए मरे जा रहे थे. उन का मतलब सिर्फ 25 हजार रुपए लूटना था.’’

‘‘ऐसे नहीं,’’ पंकज ने कहा, ‘‘अभी और डिटेल निकालता हूं.’’

उस ने अपने दोस्त अखिल को फोन किया जो एसबीआई की एक ब्रांच में था. उस ने उस अकाउंट नंबर बता कर खाते की पूरी डिटेल्स बताने को कहा. उस ने देख कर बताया कि उक्त खाता बिहार के किसी सुदूर गांव की शाखा का था.

‘‘जरा एक महीने का स्टेटमैंट तो निकालो,’’ पंकज ने कहा.

‘‘नहीं यार, यह नियम के खिलाफ होगा.’’

पंकज ने जब उसे पूरा विवरण बताया तो वह तैयार हो गया. ‘‘बहुत बड़ा स्टेटमैंट है भाई. कई पेज में आएगा.’’

‘‘एक हफ्ते का निकाल दो. मैं नीरज नाम के लड़के को भेज रहा हूं. प्लीज उसे दे देना.’’

‘‘ठीक है.’’

नीरज मोटरसाइकिल से जा कर स्टेटमैंट ले आया. एक सप्ताह का स्टेटमैंट 2 पेज का था. 6 दिनों में खाते में 7 लाख 30 हजार रुपए जमा कराए गए थे व सभी निकाल भी लिए गए थे. सारी जमा राशियां 5 हजार से 35 हजार रुपए की थीं. उस समय खाते में सिर्फ 1,300 रुपए थे. स्टेटमैंट से साफ पता चल रहा था कि सारे जमा रुपए अलगअलग शहरों में किए गए थे. रुपए जमा होते ही रुपए एटीएम से निकाल लिए गए थे. अब तसवीर साफ थी. रामचंदर बाबू सिर पकड़ कर बैठ गए.

‘‘देख लिया आप ने. एक ड्राइवर के खाते में एक हफ्ते में 7 लाख से ज्यादा जमा हुए हैं. फैक्टरियां तो उसी की होनी चाहिए.’’

‘‘मेरे साथ फ्रौड हुआ है.’’

‘‘बच गए आप. कहीं कोई लड़का नहीं है. कोई बाप नहीं है. कोई फैक्टरी नहीं है. यहीं कहीं दिल्ली, मुंबई या कानपुर, जौनपुर जगह पर कोई मास्टरमाइंड थोड़े से जाली सिमकार्ड वाले मोबाइल लिए बैठा है और सिर्फ फोन कर रहा है. सब झूठ है.’’

‘‘मैं महामूर्ख हूं. उस ने मुझे सम्मोहित कर लिया था.’’

‘‘यही उन का आर्ट है. सिर्फ बातें कर के हर हफ्ते लाखों रुपए पैदा

कर रहे हैं. इस की तो एफआईआर होनी चाहिए.’’

रामचंदर बाबू सोच में पड़ गए और बोले, ‘‘जाने दो भैया. लड़की का मामला है. बदनामी तो होगी ही, थाना, कोर्टकचहरी अलग से करनी पड़ेगी. फिर हम तो बच गए.’’

‘‘आप 25 हजार रुपए लुटाने पर भी कुछ नहीं करते. कोई नहीं करता. किसी ने नहीं किया. लड़की का मामला है सभी के लिए. कोई कुछ नहीं करेगा. यह वे लोग जानते हैं और इसी का वे फायदा उठा रहे हैं.’’

‘‘हम लोग तुम्हारी वजह से बच गए.’’

‘‘एक बार फोन तो मिलाइए रामचंदर बाबू. हो सकता है वे लोग रैडिसन में इंतजार कर रहे हों.’’

रामचंदर बाबू ने फोन उठा कर मिलाया व मुसकराते हुए बताया, ‘‘स्विच औफ.’’

बाद में पंकज ने अखिल को पूरी बात बता कर बैंक में रिपोर्ट कराई व खाते को सीज करा दिया. पर एक खाते को सीज कराने से क्या होता है.

और बाद में, करीब 6 महीने बाद रिनी की शादी एक सुयोग्य लड़के से हो गई. मजे की बात विवाह इंटरनैट के मैट्रिमोनियल अकाउंट से ही हुआ. रिनी अपनी ससुराल में खुश है.

आलिया से लेकर सलमान खान, इन बौलीवुड कलाकारों के विवादित बयानों पर हुआ बवाल

वैसे तो हर किसी को सोचसमझ कर बोलना चाहिए लेकिन खासतौर पर उन लोगों को जो लोगों में मशहूर हैं और हजारों लोगों द्वारा उन की बातों को तूल दिया जाता है, ऐसे लोग जब गलत बयानबाजी करते हैं तो उन को इस का बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है.

इस का जीताजागता उदाहरण ऐक्ट्रैस और सांसद कंगना राणावत हैं जो अपने विवादित और बेवकूफ भरे कमैंट्स से हमेशा मुंह की खाती हैं. उन्होंने हाल ही में किसानों पर विवादित बयान दिया और एअरपोर्ट पर एक महिला से जोरदार थप्पड़ भी खाई। ट्विटर पर गलत बयान दिया, तो ट्विटर वालों ने अकाउंट ही बंद कर दिया।

कंगना के बोल

राहुल गांधी, जो कांग्रेस के सब से प्रतिष्ठित नेता हैं उन के लिए भी सोशल मीडिया पर इंटरव्यू के दौरान कंगना ने बेहद भद्दे कमैंट्स किए कि राहुल गांधी साइको हैं, ड्रग्स लेते हैं, टौम ऐंड जैरी फिल्में देखते हैं। कंगना ने कुछ देर के लिए लाइमलाइट तो बटोर ली लेकिन उन की खुद की ही फिल्म जो इंदिरा गांधी पर बनी है, सैंसर बोर्ड में अटक गई.

अभिनय कम बयानबाजी ज्यादा

सांसद होने के बावजूद कंगना सिर्फ गलत कमैंट्स के अलावा कुछ और नहीं कर पाईं. यहां तक की अपनी फिल्म भी सैंसर बोर्ड में पास नहीं करा पाईं.

राहुल गांधी पर फालतू कमैंट्स कर के बीजेपी वालों को भी परेशान कर दिया जिस के चलते बीजेपी वालों ने कंगना से पल्ला झाड़ते हुए उन्हें इस तरह की बयानबाजी पर रोक लगाने के लिए भी कहा.

इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कई कमैंट्स विपक्षी पार्टियों द्वारा उन को ट्रोल करने के लिए धड़ल्ले से इस्तेमाल किए जाते हैं.

सलमान भी पीछे नहीं

बौलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान जो लाखोंकरोड़ों दिलों की धड़कन हैं, देर रात ट्विटर पर ऐसे कमैंट्स डाल देते थे कि सुबह उन के जागने तक बवाल हो जाता था, जिस के बाद पिता सलीम को सलमान की तरफ से माफी मांगनी पड़ती थी या फिर सलमान खुद ही दूसरे कमैंट ट्विटर पर डाल कर माफी मांग लेते थे.

कपिल का भङास

इसी तरह स्टैंडअप कौमेडियन कपिल शर्मा ने भी कुछ समय पहले एक रिपोर्टर के साथ गुस्से में गलत बातें कर के और ट्विटर पर विवादित बयान दे कर अपने लिए अच्छीखासी मुसीबत खड़ी कर ली थी, जिस का खामियाजा उन को भुगतना पड़ा था.

आमिर खान ने भी शाहरुख को ले कर एक कमैंट पास कर दिया था कि शाहरुख खान को मैं रोज सुबह बिस्कुट खिलाता हूं क्योंकि मेरे कुत्ते का नाम शाहरुख है.

करीना के गलत बोल

करीना कपूर ने अपने कमैंट के जरीए ऐश्वर्या को बड़ी उम्र का बता दिया था. सोनम कपूर ने ऐश्वर्या राय को आंटी बोल दिया था क्योंकि उन के अनुसार ऐश्वर्या ने उन के डैडी के साथ काम की थी इसलिए वह उन की आंटी जैसी हैं.

इसी तरह डाइरैक्टर महेश भट्ट ने अपनी बेटी पूजा भट्ट के लिए कमैंट कर दिया था कि अगर वह मेरी बेटी नहीं होती तो मैं उस से शादी कर लेता.

नासमझ आलिया

आलिया भट्ट ने देश का पहला प्रधानमंत्री पृथ्वीराज चौहान को बता दिया था। इस के बाद वह बहुत ज्यादा ट्रोल हुई थीं और उन के सामान्य ज्ञान पर जगहंसाई भी हुई थी.

इसी तरह अनन्या पांडे, किरण राव, सोनाक्षी सिन्हा आदि भी अपने अटपटे बयानों को ले कर न सिर्फ ट्रोल हुई हैं बल्कि मजाक का विषय भी बनी हैं.

ऐसे में, यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह फिल्मी सितारों को उन के अभिनय की वजह से हमेशा याद रखा जाता है उसी तरह उन के बोले गए शब्द या कमैंट्स जिस से उन की छवि अच्छी और खराब बनती है वह भी हमेशा लोगों को याद रहती है. इसलिए बहुत जरूरी है कि नेता हो या अभिनेता हर किसी को पब्लिक प्लेटफौर्म पर बहुत सोचसमझ कर बोलना चाहिए ताकि वह मजाक का विषय न बनें और न ही अपने विवादित बयानों से मुसीबत में घिरें.

पेरैंट्स हों या दोस्त, आलोचनात्मक रवैये से न खोएं आत्मविश्वास

किशोरावस्था यानी टीनऐज शारीरिक और मानसिक विकास की एक महत्त्वपूर्ण अवधि है. इस अवधी
में एक टीनऐज के तौर पर आप बहुत कुछ सीख रहे होते हैं. आप के अपने दोस्तों, पेरैंट्स और
सिबलिंग्स के साथ रिश्ते नई शक्ल ले रहे होते हैं. टीनऐजर्स के लिए यही वक्त होता है अपना भविष्य और कैरियर को एक रूप देने का.

ऐसी स्थिती में पेरैंट्स एक खास भूमिका अदा करते हैं जोकि उन के मानिसक विकास को प्रभावित
करती है. अकसर आप ने देखा होगा कि टीनेजर्स के पेरैंट्स अपने बच्चों को तरहतरह से परखते हैं और
उन की परख पर खरे न उतर पाने के कारण अकसर अपने बच्चों की आलोचना करने से भी कतराते भी नहीं.

आलोचना जरीया हो

पेरैंट्स के अनुसार आलोचना एक जरीया हो टीनऐजर्स को अपनी परफौर्मेंस में सुधार करने के लिए, प्रेरित करने के लिए.

एक ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा,”बचपन में जब पापा मेरे मार्क्स देख कर कहते कि ओह, गणित में तो बहुत कम अंक आए हैं, बेटा. मगर कोई बात नहीं अगली बार कोशिश करो अच्छा करने की. वहीं मेरी मां मुझे नीचे के कमरे से कुछ लाने के लिए कहतीं और फिर अचानक ही कहतीं कि रहने दो तेरे बस की नहीं है, तो पता नहीं क्यों मैं हतोत्साहित होने के बजाय वह काम करने के लिए ज्यादा उत्साहित हो जाती.”

लेकिन आज के समय टीनऐजर्स इस तरह के छोटे बडे क्रिटिसिज्म को नकारात्मक तरीके से ले लेते हैं और अपनेआप को कमजोर और डीमोटीवेट करने लगते हैं.

आइए, जानें कैसे अपनेआप को एक टीनऐजर्स के तौर पर आप क्रिटिसिज्म से बचा सकते हैं :

क्रिटिसिज्म को लें पौजिटिव

टीनऐजर्स में दोस्तों के साथ बने रहने का सामाजिक दबाव होता है, जिन में से कुछ दोस्त हमेशा आगे होते हैं. वे बेहतर दिखते हैं, ज्यादा समझदारी से काम लेते हैं, स्कूल में अधिक उपलब्धियां हासिल करते हैं और अधिक लोकप्रिय और कूल होते हैं.

सुबहसुबह स्कूल के दिनों के लिए तैयार होने की बात है आप वहीं अपनी आलोचना शुरू कर देते हैं.
‘मैं कैसा दिख रहा/रही हूं’,’मेरी दोस्त कितनी सुंदर दिखती है’,’ मेरा दोस्त अच्छा नंबर लाया है’,’वह स्पोर्ट्स में कितना अच्छा है…’ आदि आप खुद की आलोचना कर के अपना कौन्फिडेंस खो देते हैं.

ऐसा करने से बचें. हर व्यक्ति की अपनी एक सीमा और खासियत होती है. आप का सुंदर दिखना
उतना जरूरी नहीं है जितना कि आप का प्रभावी दिखना. खुद की तुलना किसी के साथ न करें चाहे वह आप का दोस्त या फिर भाई या बहन ही क्यों न हो. ऐसा करना खुद के साथ क्रूरता करने जैसा ही है. ऐसा कर के आप अपना आत्मविश्वास खो देंगे और अगर यह क्रिटिसिज्म आप के पेरैंट्स द्वारा किया गया है तो याद रखें कि आप के पेरैंट्स की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे आप की लिमिट्स और प्रतीभा को बढ़ाने की कोशिश करते रहें.

इसलिए उन के द्वरा किये गए क्रिटिसिज्म को नकारात्म रूप से न लें. इस को ले पौजीटिव वे में रहें और अपनी परफौर्मेंस को सुधारने की कोशिश करते रहे.

क्रिटिसिज्म को न होने दें हावी

अमेरिका के मशहूर राइटर विलियम गिलमोर सिम्स कहते हैं, “आलोचना का भय प्रतिभा की मृत्यु है.”

इसलिए कभी भी क्रिटिसिज्म यानी आलोचना को अपने ऊपर हावी न होने दें. टीनऐजर्स क्योंकि
भावुकता से भरे होते हैं इसलिए अकसर टीनऐजर्स किसी भी तरह के छोटेबङे क्रिटिसिज्म को दिल से
लगा लेते हैं जिस से उन की परफौर्मेंस गिरती चली जाती है. ऐसा न करें.

हैल्दी क्रिटिसिज्म को अपनाएं और अनहैल्दी क्रिटिसिज्म को नजरअंदाज करते चलें, बिलकुल वैसे ही जैसे अकसर आप की परफौर्मेंस को नजरअदाज कर दिया जाता है.

पेरैंट्स के लिए

टीनऐजर्स के लिए क्रिटिसिज्म से ज्यादा जरूरी है प्रोत्साहन. क्रिटिसिज्म और प्रोत्साहन का बैलेंस टीनऐजर्स को मजबूत बनाता है लेकिन सिर्फ क्रिटिसिज्म उन्हें अकसर कमजोर करता है खासकर पेरैंट्स की तरफ से किया गया क्रिटिसिज्म.

यह टीनऐजर्स में सैल्फ डाउट्स और अंडर कौन्फिडैंस पैदा करता है जिसे समझने में अकसर टीनऐजर्स को एक लंबा वक्त लग जाता है.

इसलिए कभी भी गुस्से में आलोचना न करें. कभी भी सुधार या दंड देने के लिए आलोचना न करें.

केवल आलोचना का उपयोग न करें
और ‘क्या आप मूर्ख हैं’,’आप कभी नहीं सीखेंगे’,’आप कुछ भी ठीक से नहीं कर सकते…’ जैसे शब्दों से बचें.

कैरियर में पाना चाहते हैं सफलता, तो ऐसे बढ़ाएं खुद का आत्मविश्वास

हेमंत एक वैब डिजाइनर है और अपने क्षेत्र में माहिर है. हाल ही में उसे पुरानी कंपनी से यह कहते हुए निकाल दिया गया कि आप क्लाइंट्स से ठीक से बात नहीं कर पाते और न ही उन्हें समझा पाते हैं। हमें एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो क्लाइंट्स से ठीक से बात कर पाए.

यह कहानी केवल हेमंत की नहीं है, बल्कि कई युवा केवल इसी वजह से अपने कैरियर और निजी जिंदगी में मात खा रहे हैं. व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम के इस युग में जिसे सोशल मीडिया कहा जाता है, युवा और
टीनऐजर्स अपनी कम्युनिकेशन स्किल्स पर काम करना भूलता जा रहा है. उन्हें सोशल मीडिया से इनपुट तो मिल रहा है लेकिन आउटपुट नहीं. यही वजह है कि जब भी वे किसी गंभीर स्थिति में पड़ते हैं, तो अपनी बात ठीक ढंग से रख नहीं पाते और फेल हो जाते हैं.

बात को प्रभावी ढंग से दूसरों तक पहुंचाना कम्युनिकेशन स्किल्स का एक हिस्सा है जोकि आप के जीवन के पर्सनल और प्रोफैशनल दोनों हिस्सों में काम आता है. तो आइए, जानते हैं कि कैसे आप अपनी कम्युनिकेशन स्किल्स को सुधार सकते हैं और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं :

सुनो और सीखो

कम्युनिकेशन स्किल्स का सब से जरूरी हिस्सा है सुनना. जब कोई व्यक्ति आप के सामने अपनी बात कह रहा हो तो उसे ध्यान से सुनें. आप ने देखा होगा जब टीचर या इंटरव्यू लेने वाला आप से कुछ सवाल करता है तो वह बहुत ही ध्यान से आप की बात सुन रहा होता है.

सामान्य जीवन में लोग चाहते हैं कि उन की बात सुनी जा रही है. अपनी प्रतिक्रिया तैयार करने के बजाय, वास्तव में दूसरे व्यक्ति की बात सुनें. कहीं भी कोई संशय हो तो उसे स्पष्ट करने की कोशिश करें और आगे बढें.

भाषा का रखें ध्यान

आप किस से बात कर रहे हैं, यह मायने रखता है. जब आप किसी दोस्त से बात कर रहे हों, तो सामान्य
भाषा का इस्तेमाल करना ठीक है, लेकिन अगर आप अपने बौस को ईमेल या टैक्स्ट कर रहे हैं, तो किसी भी अनौपचारिक भाषा का इस्तेमाल न करें. शिष्टाचार वाले शब्दों का चुनाव करें. साफसुथरी भाषाशैली का इस्तेमाल करें.

बौडी लैंग्वेज हो बेहतर

शारीरिक भाषा यानी बाडी लैंग्वेज मायने रखती है. बहुत ज्यादा ऐक्टिव और अनऐक्टिव न दिखें. बातबात पर उछलें नहीं, बातों को ध्यान से सुनें और जवाब दें और बात करते समय आंख से आंख मिलाए रखें ताकि दूसरे व्यक्ति को पता चले कि आप उन की बातें ध्यान से सुन रहे हैं.

भाषा/बोली को साफ रखें

जब आप बोलें तो न वह बात बहुत तेजी से कही जाए कि सुनने वाले को दोबारा पूछना पङे और न ही बात इतनी स्लो हो कि सामने वाला आप की बात को काटना और अपनी बात कहना शुरू कर दे.

बोली को सुधारने के लिए आप आईने के सामने किताब को जोरजोर से पढ़ने और खुद का विश्लेषण करें. देखें कि आप को कहांकहां सुधार की जरूरत है. आप कब अटकते हैं और कहां अटकते हैं.

बात खत्म होने का इंतजार करें

अपनी बात बोलने से पहले सामने वाले की बात के पूरे होने का इंतजार करें तभी अपनी बात बोलें. तपाक से बात के बीच में न कूदें जैसे अकसर दोस्ती में होता है.

अगर बात ज्यादा लोगों के बीच में हो रही हो तो अपनी बात बोलने से पहले अपना हाथ उठाएं और इजाजत लें. ऐसा करने से आप को अपनी बात स्पष्ट रूप से बोलने का मौका मिलेगा.

नोट्स बनाने की रखें आदत

हमेशा एक आदत बनाएं। जब भी कोई चीज चरूरी लगे उसे नोट यानी लिख लें. जब आप किसी दूसरे व्यक्ति से बात कर रहे हों या जब आप किसी मीटिंग में हों, तो नोट्स लें और अपनी याद्दाश्त पर निर्भर न रहें. नोट्स बनाने की आदत आप की स्किल्स में भी सुधार करती है क्योंकि आप उसे सुन कर लिख रहे हैं तो वे चीज आप को अधिक समय तक याद रहेगी, इस की संभावना बढ़ जाती है.

टैक्टिंग यानी मैसेज करने और फोन पर बात न करने की आदत करें दूर

आजकल युवा और टीनऐजर्स इंट्रोवर्ट होने के नाम पर सिर्फ टैक्टिंग पर बात करना पसंद करते हैं. ऐसा करने से आप की कम्युनिकेशन स्किल्स पर गहरा प्रभाव पङता है.

अपने प्रोफैशनल लाइफ से कुछ साल पहले और बाद तक आदत डालें कि बात फोन पर हो जिस से आप की कम्युनिकेशन स्किल
बेहतर हो नकि आप में अचानक लोगों से बात करने पर झिझक हो.

कभीकभी फोन उठाना बेहतर होता है, अगर आप को लगता है कि आप के पास कहने के लिए बहुत कुछ है.

बोलने से पहले सोचें

हमेशा बोलने से पहले रुकें। जो पहली बात दिमाग में आए उसे न कहें. एक पल रुकें और ध्यान से
देखें कि आप क्या कहने वाले हैं और कैसे कहने वाले हैं. यह एक आदत आप को शर्मिंदगी से
बचाएगी. अगर आप के पास कहने के लिए कुछ नहीं है तो हङबङी में जबाव देने और बात कहने से बचें.
पहले सोचें फिर बोलें.

सकारात्मक सोच रखें

कोशिश करें कि आप का ऐटीट्यूड पौजिटिव हो. सभी से बात करें जो भी आप से बात करना चाह रहा है. किसी को नजरअंदाज न करें। यह आप के लिए एक निगेटिव पौइंट साबित हो सकता है.

पौजिटिव ऐटीट्यूड बनाए रखें और मुसकराएं. यहां तक ​​कि जब आप फोन पर बात कर रहे हों, तब भी मुसकराएं क्योंकि आप का पौजिटिव ऐटीट्यूड दिखेगा और दूसरे व्यक्ति को इस का एहसास होगा.

जब आप अकसर मुसकराते हैं और पौजिटिव ऐटीट्यूड दिखाते हैं, तो लोग आप के प्रति भी पौजिटिव
ऐटीट्यूड देते हैं.

सैल्फ कौन्फिडैंस बनाए रखें

अपना कौन्फिडैंस हमेशा बनाए रखें. अकसर लोग आप को अपनी पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ में नीचा या कमतर दिखाने की कोशिश करते हैं जिस से अकसर लोग अपना कौन्फिडैंस खोने लगते हैं. ऐसा न करें. किसी भी कारण से अपना कौन्फिडैंस न खोएं.

अगर आप को अपने अंदर कोई कमी लगती है तो उसे पूरा करने की कोशिश करें और निगेटिव सोच रखने वाले लोगों से दूर रहें. ऐसा करने से आप अपने अंदर का कौन्फिडैंस बनाए रख पाएंगे.

कम्युनिकेशन स्किल्स एक महत्त्वपूर्ण पहलू है. अपनी कम्युनिकेशन स्किल्स पर काम करते रहें. खुद को पहले से बेहतर तरीके से और कौन्फिडैंस के साथ रखने से कामयाबी की संभावनाएं
बढ़ जाती हैं.

आसान किस्त: क्या बदल पाई सुहासिनी की संकीर्ण सोच

सुहासिनी का जी कर रहा था कि वह चीखचीख कर अपने दिल में छिपा दर्द सारे जहान के सामने रख दे. आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे तो अपमान की चोट खाया मन अंदर से सांप की तरह फुफकार रहा था. वह हाथ में रिसीवर थामे पत्थर की मूर्ति सी खड़ी रही.

कुछ महीने पहले यही एजेंट था जो आवाज में शहद की मिठास घोल कर बातें करता था. कहता था, ‘मैडम, गरीबी में जन्म लेना पाप नहीं, गरीबी में अपने को एडजस्ट करना पाप है. अब सोचें कि उस छोटी, गंदी सरस्वती बाई चाल में आप के बच्चे का भविष्य क्या होगा. ऐसा सुनहरा अवसर फिर हाथ नहीं आएगा इसलिए हर माह की आसान किस्तों पर इंद्रप्रस्थ कालोनी में एक फ्लैट बुक करा लीजिए.’ और आज वही एजेंट फोन पर लगभग गुर्राते हुए फ्लैट की मासिक किस्त मांग रहा था.

दरवाजे की घंटी बजते ही सुहासिनी का ध्यान उधर गया. उस ने दरवाजा खोल कर देखा तो सामने डाकिया खड़ा था, जिस ने एकसाथ 3 लिफाफे उसे पकड़ाए. पहला लिफाफा मिकी के पोस्टपेड सेलफोन के बिल का था. दूसरा मासिक किस्त पर खरीदी गई कार की किस्त चुकाने का था और तीसरा सोमेश के क्रेडिट कार्ड से की गई खरीदारी का विवरण था. इतनी देनदारी एकसाथ देख कर सुहासिनी का सिर चकरा गया और वह धम से वहीं बैठ गई. उसे लगा कि वह ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई है जिस में अंदर घुसने का रास्ता तो वह जानती थी, बाहर निकलने का नहीं.

सुहासिनी को उस शाम की याद आई जब सोमेश उसे समझा रहे थे, ‘घर में सुखशांति बनाए रखने के लिए आलीशान चारदीवारी की नहीं संतोष और संतुष्टि की जरूरत है.’

सुहासिनी तब अपने पति की बात काटती हुई बोली थी, ‘सोमेश, यह हद और हैसियत की बातें पुराने जमाने की हैं. आज के जमाने का नया चलन है, असंतुष्टि का बीज बो कर हद और हैसियत की बाड़ पार करना और सुखसाधन के वृक्ष की जड़ों को जीवन रूपी जमीन में बहुत गहरे तक पहुंचाना.’

पत्नी की महत्त्वाकांक्षा की उड़ान को देख कर सोमेश को लगा था कि गिरने के बाद चोट उसे तो लगेगी ही उस की पीड़ा का एहसास उन्हें भी तो होगा, इसीलिए पत्नी को समझाने का प्रयास किया, ‘‘देखो, सुहास, बडे़बूढे़  कह गए हैं कि जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाओ.’’

इस पर सुहासिनी ने पलटवार किया, ‘‘सोमू, तुम अपना नजरिया बदलो, ऐसा भी तो हो सकता है कि पहले पैर फैला कर सो जाओ फिर जितनी चादर खींची जा सकती है उसे खींच कर लंबी कर लो, नींद तो आ ही जाएगी. समय के साथ दौड़ना सीखो सोमू, वरना बहुत पीछे रह जाओगे.

‘‘सोमू, मैं नहीं चाहती कि हमारे बच्चे तंगहाली की जिंदगी जीएं या आज की तेज भागती जिंदगी में किसी कमी के चलते पीछे रह जाएं. तंगहाली में रहने वालों की सोच भी तंग हो जाती है इसलिए आओ, हम उन्हें एक विशाल आसमान दें.’’

सुहासिनी शुरू से महत्त्वाकांक्षी रही हो ऐसा भी नहीं था. हां, वह जब से विभा के घर से आई थी, पूरी तरह

बदल गई थी. विभा के घर का ऐशोआराम, सुखसुविधाएं, आलीशान बंगला, शानदार सोफे, कंप्यूटर, महंगी क्राकरी देख कर सुहासिनी भौचक्की रह गई थी.

चाय पर विभा ने अपनी अमीरी का राज उस के सामने इस तरह से खोला, ‘‘नहींनहीं, हमारी ऊपर की कोई कमाई नहीं है. भई, हम ने तो जीवन में सुखसुविधा का लाभ उठाने के लिए जोखिम और दिमाग दोनों से काम लिया है.’’

सुहासिनी ने पूछा, ‘‘वह कैसे?’’

विभा विजय भरी मुसकान सब पर फेंकती हुई भाषण देने के अंदाज में बोली, ‘‘समाज का एक बहुत बड़ा तबका मध्यम वर्ग है, लेकिन यह तबका हमेशा से ही डरा, दबा और संकुचित रहा है, कुछ बचाने के चक्कर में अपनी इच्छाओं को मारता रहा है लेकिन जब से देश में उदारीकरण आया है और विश्व का वैश्वीकरण हुआ है, इस ने मध्यम आय वर्ग के लोगों के लिए तरक्की के नए द्वार खोल दिए हैं. आज वह हर वस्तु जो कल तक लोमड़ी के खट्टे अंगूर की तरह थी, हथेली पर चांद की तरह मध्यम आय वर्ग के हाथों में है, चाहे वह कार, फ्लैट, एसी, विदेश भ्रमण या फिर सेलफोन ही क्यों न हो,’’ विभा ने अपनी बात खत्म की तो उस के पति ने बात को आगे बढ़ाया, ‘‘भई, चार दिन की जिंदगी में शार्ट टर्म बेनिफिट्स ही सोचना चाहिए, लांग टर्म प्लानिंग नहीं.’’

सोमेश भी बहस के बीच में पड़ता हुआ बोला, ‘‘भाईसाहब, ये कंपनियां उन शिकारियों की तरह हैं जो भूखे कबूतरों को पहले दाना डालती हैं, फिर जाल बिछा कर उन को कैद कर लेती हैं. अब आप क्रेडिट कार्ड को ही ले लें, पहले तो वह हमें कर्ज लेने के लिए पटाते हैं, और आप पट गए तो उस कर्ज पर मनचाहा ब्याज वसूलते हैं.’’

डिनर के बाद पार्टी समाप्त हो गई. मेहमान अपनेअपने घरों को चले गए. उस पार्टी ने सुहासिनी की सोच में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया. सुहासिनी और सोमेश ने पहले इंद्रप्रस्थ कालोनी में फ्लैट बुक करवाया, फिर कार, धीरेधीरे कंप्यूटर, एअर कंडीशनर, सोफे आदि सामानों से घर को आधुनिक सुखसुविधायुक्त कर दिया.

अब सोमेश के परिवार के सामने दिक्कत यह आई कि पहले जहां उस अकेले की आमदनी से घर मजे से चल जाता था, मासिक किस्तों को चुकाने के लिए सुहासिनी को भी नौकरी करनी पड़ी. सोमेश किस्तों को ले कर तनाव में रहने लगा. अच्छे खाने का उन्हें शुरू से ही शौक था, पर कर्र्जाें को पूरा करने के चक्कर में उन्हें अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ी.

सरस्वती बाई चाल से सोमेश का दफ्तर काफी पास था. यही वजह थी कि सोमेश हर शाम कभी मुन्नू हलवाई की कचौरी, कभी जलेबी का दोना ले कर घर जाते और सब मिल कर खाते थे. अब इंद्रप्रस्थ कालोनी से सोमेश का दफ्तर काफी दूर पड़ता था. ट्रैफिक जाम से बच कर वह घर पहुंचते तो इतना थके होते कि हंसने या बात करने का कतई मन न करता था.

सुहासिनी कभीकभी सोचती, आकाश के तारों से घर रोशन करने के लिए उस ने घर का दीपक बुझा दिया, किंतु कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, ऐसा सोच कर खयालों को झटक कर अलग कर देती.

एक दिन अचानक उस का सेलफोन बजा. सोमेश के दफ्तर से फोन था. सोमेश को अचानक हार्टअटैक हुआ था. दफ्तर वालों की मदद से सोमेश को स्थानीय नर्सिंगहोम में भरती करवा दिया गया था. सुहासिनी भागीभागी अस्पताल पहुंची. सोमेश गहन चिकित्सा कक्ष में थे. सुहासिनी की आंखें भर आईं. उसे लगा सोमेश की इस हालत की जिम्मेदार वह खुद है. अगले दिन सोमेश को होश आया. सुहासिनी उन से आंखें नहीं मिला पा रही थी.

उस को अब चिंता सोमेश की नहीं, अस्पताल का बिल भरने की थी. उन का बैंक बैलेंस तो निल था ही ऊपर से हजारों के पेंडिंग बिल पडे़ थे. अस्पताल का बिल कैसे चुकाया जाएगा, सोच कर उसे चक्कर आ रहे थे.

क्या मैरिड लाइफ में खुश रहने के लिए दवाई खाना ठीक है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 39 साल का हूं और मेरी बीवी 20 साल की है. मेरी सेहत अच्छी है, पर बीवी को पूरा मजा देने के लिए 7 दिनों में एक बार सैक्स की गोली खाता हूं. क्या यह ठीक है?

जवाब

बेवजह सैक्स की दवाएं खाना सेहत के लिए घातक होता है. 19 साल छोटी बीवी को बगैर दवा के भी खुश किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें…

पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी लें सेक्स का आनंद

‘‘और्गेज्म क्या होता है? क्या यह सैक्स से जुड़ा है? मैं ने तो कभी इस का अनुभव नहीं किया,’’ मेरी पढ़ीलिखी फ्रैंड ने जब मुझ से यह सवाल किया तो मैं हैरान रह गई.‘‘क्यों, क्या कभी तुम ने पूरी तरह से सैक्स को एंजौय नहीं किया?’’ मैं ने उस से पूछा तो वह शरमा कर बोली, ‘‘सैक्स मेरे एंजौयमैंट के लिए नहीं है, वह तो मेरे पति के लिए है. सब कुछ इतनी जल्दी हो जाता है कि मेरी संतुष्टि का तो प्रश्न ही नहीं उठता है, वैसे भी मेरी संतुष्टि को महत्त्व दिया जाना माने भी कहां रखता है.’’

यह एक कटु सत्य है कि आज भी भारतीय समाज में औरत की यौन संतुष्टि को गौण माना जाता है. सैक्स को बचपन से ही उस के लिए एक वर्जित विषय मानते हुए उस से इस बारे में बात नहीं की जाती है. उस से यही कहा जाता है कि केवल विवाह के बाद ही इस के बारे में जानना उस के लिए उचित होगा. ऐसा न होने पर भी अगर वह इसे प्लैजर के साथ जोड़ती है तो पति के मन में उस के चरित्र को ले कर अनेक सवाल पैदा होने लगते हैं. यहां तक कि सैक्स के लिए पहल करना भी पति को अजीब लगता है. इस की वजह वे सामाजिक स्थितियां भी हैं, जो लड़कियों की परवरिश के दौरान यह बताती हैं कि सैक्स उन के लिए नहीं वरन पुरुषों के एंजौय करने की चीज है.

यौन चर्चा है टैबू

भारत में युगलों के बीच यौन अनुभवों के बारे में चर्चा करना अभी भी एक टैबू माना जाता है, जिस की वजह से यह एक बड़ा चिंता का विषय बनता जा रहा है. दांपत्य जीवन में सैक्स संबंध जितने माने रखते हैं, उतनी ही ज्यादा उन की वर्जनाएं भी हैं. एक दुरावछिपाव व शर्म का एहसास आज भी उन से जुड़ा है. यही वजह है कि पतिपत्नी न तो आपस में इसे ले कर मुखर होते हैं और न ही इस से जुड़ी किसी समस्या के होने पर उस के बारे में सैक्स थेरैपिस्ट से डिस्कस ही करते हैं. पुरुष अपनी कमियों को छिपाते हैं. भारत में लगभग 72% स्त्रीपुरुष यौन असंतुष्टि के कारण अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं हैं.

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि जब भी महिलाएं अपनी किसी समस्या को ले कर उन के पास आती हैं और वजह जानने के लिए उन के सैक्स संबंधों के बारे में पूछा जाता है तो 5 में से 1 महिला इस बारे में बात करने से इनकार कर देती है. यहां तक कि अगली बार बुलाने पर भी नहीं आती. कानूनविद मानते हैं कि 20% डाइवोर्स सैक्सुअल लाइफ में संतुष्टि न होने की वजह से होते हैं. पुरुष अपने साथी को यौनवर्धक गोलियां लेने के बावजूद संतुष्ट न कर पाने के कारण तनाव में रहते हैं. पुरुष अपने सैक्सुअल डिस्फंक्शन को ले कर चुप्पी साध लेते हैं और औरतें अपनी शारीरिक इच्छा को प्रकट न कर पाने के कारण कुढ़ती रहती हैं. वैवाहिक रिश्तों में इस की वजह से ऐसी दरार चुपकेचुपके आने लगती है, जो एकदम तो नजर नहीं आती, लेकिन बरसों बाद उस का असर अवश्य दिखाई देने लगता है.

सैक्स से जुड़ा है स्वास्थ्य

एशिया पैसेफिक सैक्सुअल हैल्थ ऐंड ओवरआल वैलनैस द्वारा एशिया पैसेफिक क्षेत्र में 12 देशों में की गई एक रिसर्च के अनुसार एशिया पैसेफिक क्षेत्र में 57% पुरुष व 64% महिलाएं अपने यौन जीवन से संतुष्ट नहीं हैं. इस में आस्ट्रेलिया, चीन, हांगकांग, भारत, इंडोनेशिया, जापान, मलयेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, ताइवान आदि देशों को शामिल किया गया था. यह रिसर्च 25 से ले कर 74 वर्ष के यौन सक्रिय स्त्रीपुरुषों पर की गई थी. सब से प्रमुख बात, जो इस रिसर्च में सामने आई, वह यह थी कि पुरुषों में इरैक्टाइल हार्डनैस में कमी होने के कारण पतिपत्नी दोनों ही सैक्स संबंधों को ले कर खुश नहीं रहते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि इरैक्टाइल हार्डनैस का संबंध सैक्स के साथसाथ प्यार, रोमांस, पारिवारिक जीवन व जीवनसाथी की भूमिका निभाने के साथ जुड़ा है. जीवन के प्रति देखने का उन का नजरिया भी काफी हद तक सैक्स संतुष्टि के साथ जुड़ा हुआ है.

सिडनी सैंटर फौर सैक्सुअल ऐंड रिलेशनशिप थेरैपी, सिडनी, आस्ट्रेलिया की यौन स्वास्थ्य चिकित्सक डा. रोजी किंग के अनुसार, ‘‘एशिया पैसेफिक के इस सर्वेक्षण से ये तथ्य सामने आए हैं कि यौन जीवन संतुष्टिदायक होने पर ही व्यक्ति पूर्णरूप से स्वस्थ रह सकता है. आज की व्यस्त जीवनशैली में जबकि यौन संबंध कैरियर की तुलना में प्राथमिकता पर नहीं रहे, पुरुष व महिलाओं दोनों में ही यौन असंतुष्टि उच्च स्तर पर है. इस की मूल वजह अपनी सैक्स संबंधित समस्याओं के बारे में न तो आपस में और न ही डाक्टरों से बात करना है. चूंकि सैक्स संबंधों का प्रभाव जीवन के अन्य पहलुओं पर भी पड़ता है, इसलिए सैक्स के मुद्दे पर बोलने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.’’ जीवन के इस महत्त्वपूर्ण पक्ष को नजरअंदाज कर के युगल जहां एक तरफ तनाव का शिकार होते हैं, वहीं संतुष्टिदायक सैक्स संबंध न होने के कारण उन के जीवन के अन्य पहलू भी प्रभावित होते हैं. स्वास्थ्य के साथसाथ उन की सोच व जीवनशैली पर भी इस का गहरा असर पड़ता है. यौन संतुष्टि संपूर्ण सेहत के साथसाथ प्रेम व रोमांस से भी जुड़ी है.

कम होती एवरेज

कामसूत्र की भूमि भारत में, जहां की मूर्तियों तक पर सदियों पहले यौन क्रीडा से जुड़ी विभिन्न भंगिमाओें को उकेरा गया था, अभी भी अपने यौन अनुभव के बारे में बात करना एक संकोच का विषय है. भारतीय पुरुष के जीवन में सैक्स जीवन की प्राथमिकताओं में 17वें नंबर पर आता है और औरतों के 14वें नंबर पर. आज अगर हम शहरी युगलों पर नजर डालें तो पाएंगे कि वे दिन में 14 घंटे काम करते हैं, 2 घंटे आनेजाने में गुजार देते हैं और सप्ताहांत यह सोचते हुए बीत जाता है कि सफलता की सीढि़यां कैसे चढ़ें. इन सब के बीच सैक्स संबंध बनाना एक आवश्यकता न रह कर कभीकभी याद आ जाने वाली क्रिया मात्र बन कर रह जाता है. लीलावती अस्पताल, मुंबई के ऐंड्रोलोजिस्ट डा. रूपिन शाह का इस संदर्भ में कहना है, ‘‘प्रत्येक 2 में से 1 भारतीय शहरी पुरुष में पर्याप्त इरैक्टाइल हार्डनैस नहीं होती, फिर भी 40 से कम उम्र के पुरुष अपनी कमजोरी मानने को तैयार नहीं हैं. 40 से कम उम्र की औरतों की सैक्स की मांग अत्यधिक होने के कारण वे एक तरफ जहां अपनी सैक्स संतुष्टि को ले कर सजग रहती हैं, वहीं वे पार्टनर के सुख न दे पाने के कारण परेशान रहती हैं. नीमहकीमों के पास जाने के बजाय डाक्टर व काउंसलर की मदद से यौन संबंधों में व्याप्त तनाव को दूर किया जा सकता है.’’

ड्यूरैक्स सैक्सुअल वैलबीइंग ग्लोबल सर्वे के अनुसार भारतीय पुरुष व महिलाएं अपने सैक्स जीवन से संतुष्ट नहीं हैं. और्गेज्म तक पहुंचना प्रमुख लक्ष्य होता है और केवल 46% भारतीय मानते हैं कि उन्हें वास्तव में और्गेज्म प्राप्त हुआ है, जबकि ऐसी महिलाएं भी हैं, जो यह भी नहीं जानतीं कि और्गेज्म होता क्या है, क्योंकि एक महिला को इस तक पहुंचने में पुरुष से 10 गुना ज्यादा समय लगता है. पुरुष 3 मिनट में संतुष्ट हो जाता है, ऐसे में वह औरत को और्गेज्म प्राप्त होने का इंतजार कैसे कर सकता है. वैसे भी आज भी भारतीय पुरुष के लिए केवल अपनी संतुष्टि माने रखती है.

संवाद व सम्मान आवश्यक

असंतुष्टि की वजह कहीं न कहीं पतिपत्नी के बीच मानसिक जुड़ाव का न होना भी है. आपस में निकटता को न महसूस करना, सम्मान न करना भी उन की संतुष्टि की राह में बाधक बनता है. सैक्स के बारे में खुल कर बात न करना या किस तरह से उस का भरपूर आनंद उठाया जा सकता है, इस पर युगल का चर्चा न करना या असहमत होना भी यौन क्रिया को मात्र मशीनी बना देता है. अपने साथी से अपनी इच्छाओं को शेयर कर सैक्स जीवन को सुखद बनाया जा सकता है, क्योंकि यह न तो कोई काम है और न ही कोई मशीनी व्यवस्था, बल्कि यह वैवाहिक जीवन को कायम रखने वाली ऐसी मजबूत नींव है, जो प्लैजर के साथसाथ एकदूसरे को प्यार करने की भावना से भी भर देती है.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Festival Special: Snacks में बनाएं टेस्टी और Healthy पनीर काठी रोल, नोट करें ये रेसिपी

पनीर काठी रोल बच्चों और बड़ो दोनों को पसंद आने वाली स्वादिष्ट व्यंजन है. इसे बनाना भी बहुत आसान है. जानें इसे बनाने की विधि.

सामग्री

– 150 ग्राम पनीर.

मैरीनेट की सामग्री

–  1/4 कप हंग कर्ड

–  1/2 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

–  1/2 चम्मच लालमिर्च का पेस्ट

–  1/4 छोटा चम्मच धनियाजीरा पाउडर

–  1/2 चम्मच गरममसाला पाउडर

– फ्राई करने के लिए 1 छोटा चम्मच औयल

– नमक स्वादानुसार.

सलाद की सामग्री

– 1 छोटा प्याज कटा हुआ

– 1 छोटी गाजर टुकड़ों में कटी

– 2 छोटे चम्मच नीबू का रस

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– नमक व चाटमसाला स्वादानुसार.

असैंबल की सामग्री

– 1 गेहूं की रोटी.

विधि

सब से पहले पनीर को टुकड़ों में काटें. फिर एक बाउल में मैरीनेट की सामग्री को डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. अब पनीर को इस सामग्री से 30 मिनट के लिए मैरीनेट करने के लिए रख दें. फिर नौनस्टिक पैन को गरम कर उस पर औयल डालें. अब मैरीनेट पनीर को 5-6 मिनट के लिए मीडियम आंच पर पकाएं. फिर सलाद की सामग्री को एक बाउल में डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. इस के बाद तवे पर रोटी को गरम कर के उस में पनीर और ओनियन सलाद डाल कर रोटी को रोल कर के गरमगरम सर्व करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें