बबूल का माली: क्यों उस लड़के को देख चुप थी मालकिन

लेखक- नारायण शांत

लड़का अपने शहर रायपुर को छोड़ कर भिलाई पहुंच गया, वहां के बारे में वह बहुत कुछ सुन चुका था. वह किसी घरेलू नौकरी की तलाश में था ताकि उसे पढ़नेलिखने की सुविधा भी मिल सके. ऐसा ही एक परिवार था, जहां से दोचार दिन में ही नौकरनौकरानियां काम छोड़ कर चल देते, क्योंकि उस घर की मालकिन के कर्कश स्वभाव से तंग आ कर वे टिक ही नहीं पाते थे. एक दिन लड़का उसी बंगले के सामने जा खड़ा हुआ और उस मालकिन से नौकरी देने का आग्रह करने लगा.

पहले तो उस ने लड़के की बातों पर कोई गौर नहीं किया, लेकिन फिर बोली, ‘‘लड़के, तुम क्याक्या काम कर सकते हो ’’ लड़के का आग्रह सुन कर मालकिन को लगा कि जरूर वह पहले कहीं काम कर चुका है. वह उस से बोली, ‘‘ठीक है, आज और अभी से मैं तुम्हें काम पर रखती हूं.’’

‘‘मालकिन, एक शर्त मेरी भी है,’’ लड़के ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘बताइए, क्या है तुम्हारी शर्त ’’

‘‘मैं काम के बदले पैसा नहीं लूंगा बल्कि आप मुझे खाना, कपड़ा और मेरी पढ़ाईलिखाई की व्यवस्था कर दें,’’ लड़के ने दयनीय स्वर में कहा. पहले तो यह सुन कर मालकिन हड़बड़ा गई लेकिन अपनी मजबूरी को देखते हुए उस ने कह दिया, ‘‘ठीक है, लेकिन पढ़ाई-लिखाई के कारण घर का काम प्रभावित नहीं होना चाहिए.’’ लड़के को उस घर में काम मिल गया. वह सब से आखिर में सोता और सवेरे सब से पहले उठ कर काम शुरू कर देता. फिर काम निबटा कर स्कूल जाता. लड़का इस घर, नौकरी और पढ़ाईलिखाई, सभी से बड़ा खुश था. वह अपना काम भी पूरी ईमानदारी, लगन और मेहनत से करता. मालकिन को घरेलू नौकरचाकरों पर रोब झाड़ने की बुरी आदत थी, लेकिन उसे भी लड़के में जरा भी खोट दिखाई नहीं दिया. वह उस के काम से खुश थी.

घर वालों से प्यार और अपनापन मिलने के बावजूद लड़का इस बात का बराबर खयाल रखता कि वह एक नौकर है और उसे पढ़लिख कर एक दिन अच्छा आदमी बनना है. अपनी विधवा मां और भाईबहनों का सहारा बनना है. इधर इतना अच्छा और गुणी नौकर आज तक इस परिवार को नहीं मिला था. घर के बच्चों और खुद मालिक को दिनरात इसी बात का खटका लगा रहता था कि कहीं मालकिन इसे भी निकाल न दे. उधर आदत से मजबूर मालकिन उस लड़के से लड़ने का बहाना ढूंढ़ रही थी. एक दिन वह सोचने लगी कि यह दो कौड़ी का छोकरा इस घर में इतना घुलमिल कैसे गया  न काम में सुस्ती, न अपनी पढ़ाईलिखाई में आलस और खाने के नाम पर बचाखुचा जो कुछ भी मिल जाए खा कर वह इतना खुश रहता है. एक दिन मालकिन ने सब की उपस्थिति में लड़के से कहा, ‘‘देखो, अब से तुम हर महीने अपना वेतन ले लिया करना, ताकि तुम अपने खानेपीने, रहने और पढ़नेलिखने का अलग से इंतजाम कर सको.’’

लड़का आश्चर्य से मालकिन की ओर देखने लगा. उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. उस ने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘‘मालकिन, मुझे मौका दो मैं अपना काम और अच्छी तरह से करूंगा.’’ लड़के की बातों से ऐसा लगा जैसे मातापिता की सेवा करने वाले इकलौते और गरीब श्रवणकुमार को किसी राजा ने अपना शिकार समझ कर आहत कर दिया हो और बाकी लोग राजा के डर से मात्र मूकदर्शक बने बैठे हों. मालकिन को अपने पति और बच्चों की चुप्पी से ठेस लगी. वह भीतर ही भीतर तिलमिला कर रह गई, लेकिन कुछ नहीं बोली. अब तक ऐसे मौकों पर सभी उस का साथ दिया करते थे, लेकिन इस बार घर के सब से छोटे बच्चे ने ही टोक दिया, ‘‘मां, इस तरह इस बेचारे को अलग करना ठीक नहीं.’’

यह सुन कर मालकिन आगबबूला हो गई और चिढ़ कर बोली, ‘‘यह छोटा सा चूहा भी अच्छेबुरे की पहचान करने लगा है और मैं अकेली ही इस घर में अंधी हूं.’’वहां पर कुछ देर के लिए अदालत जैसा दृश्य उपस्थित हो गया. न्यायाधीश की मुद्रा में साहब ने कहा,  ‘‘किसी नौकर को निकालने या रखने के नाम से ही घर वाले आपस में लड़ने लगें तो नौकर समझ जाएगा कि इस घर में राज किया जा सकता है.’’

‘‘क्या मतलब ’’ मालकिन की आवाज में कड़कपन था.

‘‘मतलब साफ है, नौकर से मुकाबला करने के लिए हमें आपसी एकता मजबूत कर लेनी चाहिए,’’ साहब ने शांत स्वर में कहा. मालकिन अपनी गलती स्वीकार करने के पक्ष में नहीं थी. बुरा सा मुंह बनाते हुए वह भीतर कमरे में चली गई. साहब ने बाहर जाते हुए लड़के को समझा दिया कि वह उन की बातों का बुरा न माने और भीतर कमरे में सब को समझाते हुए कहा कि लड़के पर कड़ी नजर रखी जाए. जहां तक हो सके उसे रंगेहाथों पकड़ा जाना चाहिए, ताकि उसे भी तो लगे कि उस ने गलती की है, चोरी की है और उस से अपराध हुआ है.

वह दिन भी आ गया, जब लड़के को निकालने के बारे में अंतिम निर्णय लिया जाना था. लड़का उस समय रसोई साफ कर रहा था. घर के सभी सदस्य एक कमरे में बैठ गए. साहब ने पूछा, ‘‘अच्छा, किसी को कोई ऐसा कारण मिला है, जिस से लड़के को काम से अलग किया जा सके ’’ मालकिन चुप थी. उसे अपनेआप पर ही गुस्सा आ रहा था कि वह भी कैसी मालकिन है, जो एक गरीब नौकर में छोटी सी खोट भी नहीं निकाल सकी. मालकिन की गंभीरता और चुप्पी को देख कर साहब ने मजाक में ही कह दिया, ‘‘मुझे नहीं लगता कि बबूल में भी गुलाब खिल सकते हैं.’’

‘‘जिस माली की सेवा में दम हो, वह बबूल और नागफनी में भी गुलाब खिला सकता है,’’ मालकिन के मुंह से ऐसी बात सुन कर, दोनों बच्चों और साहब का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया. जब बात बनने के लक्षण दिखने लगे तो साहब ने कहा, ‘‘देखो भाई, जो भी कहना है, साफसाफ कह दो. बेचारे लड़के का मन दुविधा में क्यों डाल रहे हो ’’ तब मालकिन ने चिल्ला कर उस लड़के को बुलाया. लड़का आया तो मालकिन ऐसे चुप हो गई, जैसे उस ने लड़के को पुकारा ही न हो. वह ऐसे मुंह फुला कर बैठ गई, जैसे लड़के की कोई बड़ी गलती उस ने पकड़ ली हो.

अभीअभी बबूल, नागफनी, गुलाब और माली की बातें करने वाली मालकिन को फिर यह कैसी चाल सूझी  यह सोच कर साहब ने कहा, ‘‘जो कहना है साफसाफ कह दो, बेचारा कहीं और काम कर लेगा.’’

‘‘मुझे साफसाफ कहने के लिए समय चाहिए,’’ मालकिन बोली और वैसे ही मुंह फुला कर बैठी रही.

‘‘और कब तक इस बेचारे को अधर में लटका कर रखोगी, जो कहना है अभी कह दो,’’ साहब ने कहा, इस बार साहब और बच्चों ने भी तय कर लिया था कि मालकिन की इस तरह बारबार नौकर बदलने की आदत को सुधार कर ही दम लेंगे. मालकिन ने ताव खा कर कहा, ‘‘तो सुनो, जब तक यह लड़का अपने पांव पर खड़ा नहीं हो जाता, तब तक इसी घर में रहेगा, समझे.’’ एकाएक मालकिन में हुए इस परिवर्तन से सभी को आश्चर्य तथा अपार खुशी हुई. वैसे बबूल, नागफनी, गुलाब और माली वाली बातों का खयाल आते ही, सब को लगा कि मालकिन लड़के को पहले से ही अच्छी तरह परख चुकी थी और उस की जिंदगी संवारने के लिए मन ही मन अंतिम निर्णय भी ले चुकी थी.

जब 40 की उम्र के बाद मिले खोया हुआ प्यार…

हर स्त्री जब उम्र के इस दौर से गुजर रही होती है यानी 40 के पार. हलका भरा हुआ बदन, चेहरे पर जीवन के अनुभव से आया हुआ आत्मविश्वास, मांबाप, भाईबहन की बंदिशों से आजाद. बच्चे भी काफी हद तक निर्भर बन चुके होते हैं, पति भी अपने कार्यक्षेत्र में ज्यादा मशरूफ हो जाते हैं यानी कुल मिला कर औरत को थोड़ा समय मिलता है अपने ऊपर ध्यान देने का. फिर आज के समय में सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत से नए मित्र बन जाते हैं या पुराने बिछड़े हुए प्रेमी युगल इस सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर भी मिल जाते हैं.

अब जब नए मित्र  बनेंगे या पुराने मित्र मिलेंगे तो उन के बीच कुछ आकर्षण होना स्वाभाविक है. विवाह के बाद जीवन के 15 से 20 वर्ष तो घरपरिवार बनाने में, बच्चों की परवरिश में बीत जाते हैं यानी अब एक बार फिर स्त्री खुद को नजर उठा कर आईने में देखती है तो नजर आता है कि पहले का रूप तो गायब ही हो गया है. अचरज तो इस बात का है कि पता ही नहीं चला कि कहां गायब हुआ है.

खुद को अकेला न समझें

अब अवसाद में घिरने के बजाय स्त्री फिर कमर कसती है इस बार खुद को निखारने, संवारने की. खोए हुए शौक को पूरा करने के लिए. अब इस राह पर चलते हुए वह खुद को अकेला पाती है. पति व्यस्त हैं. बच्चे अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए मेहनत कर रहे हैं. अब वह ढूंढ़ती है कोई हो जो उसे समय दे सके, उसे प्रोत्साहित कर सके और शायद इस में कुछ गलत भी नहीं है. अब अगर कोई उसे सराहता है, उस की खूबियां उसे गिनाता है तो आखिर स्त्री को अच्छा क्यों नहीं लगेगा? भई लगना भी चाहिए.

तो बहुत अच्छे से समझ लें. इस में कुछ भी गलत नहीं है. अब आप कोई 16 साल की लड़की नहीं हैं. आप किसी की मां हैं, पत्नी, सास, चाची, नानी, दादी, बुआ, मामी हैं तो किसी की महिला मित्र क्यों नहीं बन सकतीं क्योंकि इन सभी रिश्तों को निभाने के बाद भी एक स्त्री एक ऐसे पुरुष को ढूंढ़ती है जो उसे मन से पूर्ण कर दे. उस की रूह को छू ले क्योंकि जिस्म का कुंआरापन तो शादी के बाद मिट ही जाता है, किंतु रूह अनछुई ही रह जाती है. सब की नहीं तो बहुतों की. देह की दहलीज से कोसों दूर.

इस में कोई बुराई नहीं

अगर मन से मन मिल सकता है तो कोई बुराई नहीं है. बरसों पहले देखी ‘खामोशी’ फिल्म के एक गाने के पंक्तियां यहां लिखूंगी, ‘‘हम ने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो हाथ से छू के इसे रिश्तों का इलजाम न दो…’’

आप के मित्र भी किसी के पति, पिता, ससुर, चाचा, नाना, दादा होंगे तो अब यहां साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने का या

रिश्तों में बंधने या बांधने का कोई प्रश्न या औचित्य नहीं है. शायद उम्र के इस दौर में जिंदगी के खट्टेमीठे अनुभव साझा करने के लिए वे भी एक दोस्त ढूंढ़ रहे हों कि किसी को बता सकें कि उन्हें आज भी शाम को समुंदर के किनारे डूबता सूरज देखना अच्छा लगता है या वे डायरी में कभीकभी कुछ लिखते हैं आदिआदि.

एक बात और लिखूंगी कि कोई भी रिश्ता बुरा या गंदा नहीं होता है. हम उस रिश्ते को किस ढंग से निभाते हैं उस रिश्ते की सफलता या असफलता उस पर निर्भर करती है.

हमेशा खुश रहें

हमारी सब से बड़ी जिम्मेदारी खुद को खुश रखने की होती है. जब हम खुद खुश होंगे तभी हम अपने अपनों को भी ज्यादा खुशी दे पाएंगे. अब अगर हमारी खुशी कहीं गुम हो गई है तो उसे खोजने में अगर हमारा कोई मित्र या शुभचिंतक हमारी कोई मदद कर रहा है तो यह कोई गलत नहीं है. आप अब इतनी परिपक्व हो चुकी हैं कि किसी से चंद मिनट अकेले बात कर सकती हैं, कभी एक कौफी पी सकती है, कभी चैट कर सकती हैं.

तो बस अगर आप का कोई ऐसा मित्र है आप के जीवन में तो खुद को खुशहाल समझें न कि अपने को अपनी ही नजर में गिरी हुई, बदचलन औरत समझें.

तलाक लेने के बाद क्या अच्छे जीवन की शुरुआत नहीं हो सकती?

बचपन से सुनती आई थी बेटियां बाप की इज्जत होती हैं, भाई का मान होती हैं और विवाह के बाद पति का सम्मान होती हैं, बेटे का हौसला होती हैं. इसी लीक पर समाज की गाड़ी दौड़ रही है यानी जन्म से मृत्यु तक का सफर पुरुष संरक्षण में ही गुजरता है और सबकुछ सामान्य रूप से चलता रहता है. किंतु प्रश्न तब खड़ा होता है जब किसी कारण से किसी लड़की का तलाक हो जाता है यानी गाड़ी पटरी से उतर जाती है.

यहां पर मैं पति के मृत्यु का मुद्दा नहीं उठाऊंगी वह एक अलग प्रश्न है. हालाकि पति की मृत्यु के बाद भी अकेली औरत को दिक्कत तो कमोबेश वैसी ही आती है. किंतु तलाक के केस में लड़की अपने पति से संबंध विच्छेद कर लेती है यानी अस्वीकार कर देती है रिश्ते को.

अमूमन तो लड़कियों को मानसिक रूप से इस बात के लिए बचपन से ही तैयार कर दिया जाता है कि तुम कितना भी पढ़लिख लो तुम्हें शादी के बाद अपने पति और उन के घर वालों के मुताबिक ही जीवन जीना होगा और आज भी मातापिता विवाह के वक्त यह तो देखते हैं कि लड़का आर्थिक रूप से कितना सफल है. किंतु वह नहीं देखते कि लड़की की परवरिश उन्होंने जिस परिवेश में की है उस की भावी ससुराल का परिवेश कमोबेश वैसा ही है या नहीं.

तलाक के बाद

जब हम एक छोटा पौधा ले कर आते हैं तो यह देखते हैं यह पौधा किस तरह की मिट्टी और जलवायु में फूलताफलता है. उसे वैसा ही वातावरण देते हैं या फिर उसे नए पर्यावरण में विकसित होने में ज्यादा समय लगने पर भी धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हैं. किंतु अफसोस बेटियों को नए घर में एकदम विपरीत परिस्थितियों में भी उन के मातापिता प्रत्यारोपित कर देते हैं और उन के ससुराल वाले भी उन से मनीप्लांट की तरह पानी में, मिट्टी में हर जगह हराभरा रहने की अपेक्षा करने लगते हैं. अगर बेचारी लड़की मनीप्लांट के बजाय गुलाब हुई तो फिर तो कांटों से उस का सामना हर दिन, हर पल होता है.

अब पुन: मूल प्रश्न पर आती हूं. एक पढ़ीलिखी आत्मनिर्भर लड़की या आत्मनिर्भरता की योग्यता रखने वाली लड़की का जीवन तलाक के बाद  सामान्य क्यों नहीं रह पाता?

वह कहां रहेगी, यह प्रश्न सौसौ मुंह वाले नाग की तरह फन उठाए डसने को तैयार रहता है. उसे मातापिता या भाईभाभी के साथ ही रहने को कहा जाता है. जहां चाहे उस के आत्मसम्मान को हर पल छलनी ही क्यों न किया जाता हो. वह कमाए भी और घर में दोयम दर्जे का स्थान भी पाए. भाभी के कटाक्ष सहे. मांबाप की आंखों में उन की परवरिश पर धब्बा लगाने का उल्हाना देखे. शायद ही कोई कहता है कि तुम ने ठीक किया. क्यों भई आखिर औरत को अपनी पसंद न पसंद से जीने का अधिकार क्यों नहीं है?

समाज जीने नहीं देता

लड़की अगर यह कह दे कि उन का चाल चलन ठीक नहीं है तो सबसे पहले मां ही कहती है बेटी सुधर जाएगा. तुम प्यार से सम?ाओ आदिआदि या पूरी शाकाहारी बेटी का पति मांसाहारी भोजन करता है तो उस को कहा जाता है तुम भी ढल जाओ. उदाहरण अनगिनत हैं. लड़कियां भी बहुत हद तक बरदाश्त कर जाती हैं या कह लें अंदर से मर जाती हैं. कुछ जिंदा लाश जैसी जीती हैं.

कुछ अगर साहस कर जीने के लिए उस बंधन को तोड़ने का साहस कर भी लेती हैं तो समाज उन्हें जीने नहीं देता. उन के अलग रहने के फैसले को उन की बदचलनी का सुबूत मान लिया जाता है. कुछ अपवाद भी होगे किंतु मैं बात बहुतायत लड़कियों की कर रही हूं. उन्हें सामान्य रूप से अगर ससुराल में कुछ ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों से दोचार होना पड़ता है जो उन्हें लगता है कि बरदाश्त करने योग्य नहीं हैं तो उन्हें बिना दबाव या तनाव के विवाह विच्छेद करने का मौका मिलना चाहिए.

कठिन है रिश्ते को धोना

यहां हम यह नहीं कह रहे कि आप अपनी ससुराल में सामंजस्य न बैठाएं. हम कह रहे हैं कि आप तलाक के बाद होने वाले संघर्षपूर्ण जीवन अपमान आदि से डर कर कुछ ऐसा मत सहें जो कि सहना गलत हो. चाहे पति का आचरण हो या उस के किसी दूरपास के रिश्तेदार द्वारा यौन शौषण हो या सास अथवा ससुराल वालों की अमानवीय यातनाएं हों. मैं उन परिस्थितियों का उदाहरण तो नहीं दे सकती किंतु इतना कहूंगी कि आप अपने आत्मसम्मान को बचा कर ही अपना रिश्ता कायम रखें.

अगर आप का आत्मसम्मान ही मर गया है तो फिर आप के रिश्ते की मृत्यु निश्चित है और मरा हुआ रिश्ता लाश के समान भारी हो जाता है जिसे ढोना बहुत कठिन हो जाता है. हर बीतते दिन के साथ उस से दुर्गंध आती है. फिर कुकुरमुत्ते से उगते हैं अवैथ संबंध. खराब होती हैं कई और जिंदगियां. इसलिए तलाक को समाज का कोढ़ नहीं समझें.

जैसे विवाह एक सामान्य बात है वैसे ही विवाह के टूटने को भी सामान्य रूप से ही लें और तलाक लिए हुए लड़के और लड़की को भी सामान्य इंसान ही सम?ों. उन को अपनी चटपटी खबरों का जरीया न बनाएं. वे जैसे रहना चाहें उन्हें रहने दें. अगर मातापिता के साथ बेटी नहीं रहना चाहती है तो उसे स्वावलंबी बनाने में मदद करें.

जीवन जीने के लिए

पैतृक संपत्ति में से उन के हिस्से को उन्हें दे कर उन्हें सहयोग करें. अगर बेटी पहले से स्वावलंबी है और तलाक के बाद आप के साथ रहती है तो उसे कभी अपमानित या कमतर मत जताएं. अब जब समाज बहुत आगे निकल गया है किसी भी कारण से अगर दोनों का सामंजस्य बहुत सारी ईमानदार कोशिश के बाद भी ठीकठाक नहीं चल रहा है तो दोनों को अपनी राहें अलगअलग करने दें न कि रीतिरिवाज, समाज के भय से जबरदस्ती के बो?ा तले दब कर पूरी जिंदगी बरबाद करने दें.

जीवन सिर्फ जीने के लिए होता है. तिलतिल कर मरने के लिए नहीं. मरना तो तय है तो क्यों न जी लें जरा. झूठी खुशी का मुखौटा पहन कर जो कर बनने से अच्छा है सच के साथ स्वावलंबी जीवन जीएं और किसी भी मोड़ पर कोई नया मुकाम आप को फिर मिल भी सकता है तो उसे सहज रूप से अपनाएं.

अगर आप खुश नहीं हैं तो आप इस बात को गंभीरता से लें. आप सिर्फ समाज के डर से या मातापिता भाई के सम्मान को ठेस लगेगी इस डर से मानसिक तनाव को ?ोलते हुए विवाह में मत बनी रहें. हां, आप को पूरी स्थिति का आकलन बहुत ही गंभीरता से करना होगा. मैं रिश्ते को तोड़ने की वकालत नहीं कर रही हूं बस इतना ही कह रही हूं कि आप अपने रिश्ते को बचाने की पूरी ईमानदार कोशिश करिए और करनी भी चहिए. किंतु अपने आत्मसम्मान और अपनी आजादी को दांव पर लगा कर नहीं. आप की सब से बड़ी जिम्मेदारी आप स्वयं हैं.

खुद को खुश रखिए

खुद के सम्मान और गरिमा को बनाए रखिए. खुद को हद से ज्यादा न झुकाएं न गिराएं और अगर आप को ईमानदारी से पूरी परिस्थिति का अवलोकन करने पर लगता है कि नहीं साथ में रहना संभव नहीं है तो बड़े ही व्यावहारिक रूप से कुछ प्रश्नों के उत्तर तलाशें जैसेकि पति का घर छोड़ने के बाद आप को कहां रहना होगा? क्या करना होगा? स्वावलंबी बनने के लिए आप क्या कर सकती हैं आदिआदि.

पैसों में आप का गुजारा सम्मानपूर्वक हो सकेगा? इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर खोज लेने के बाद ही आप कोई ठोस कदम उठाएं.

ध्यान रखें कि हो सकता है मातापिता या भाईबहन आप को ऐसा फैसला लेने में कोई सहयोग न करें. इस के 2 प्रमुख कारण हैं- पहला यह कि इन्हें ऐसा लगता है कि तलाक लेने को समाज अच्छी नजर से नहीं देखेगा और कहीं न कहीं उन के दामन पर भी दाग दिखेगा और दूसरा कारण है कि कहीं आप उन पर बोझ न बन जाएं. अत: अपने फैसले पर उन से बहुत ज्यादा सकारात्मक उत्तर की अपेक्षा न रखें.

फैसला खुद के हिसाब और परिस्थिति के हिसाब से लें. भावना में बह कर कोई फैसला न लें. बस एक बात कहूंगी कि रिश्तों को बचाने के लिए थोड़ा सा झुक जाएं लेकिन अगर बारबार आप को ही झुकना पड़े तो फिर रुक जाएं. तलाक खुशियों के लिए अपने दरवाजे बंद करना नहीं है. हो सकता है तलाक एक अच्छे जीवन की शुरुआत हो.

पुराने सोफे को दें न्यू लुक, घर पर ही आजमाएं ये आसान टिप्स एंड ट्रिक्स

पुराना सोफा देखने में उबाऊ लगने लगा है और किसी काम का नहीं रहा, इसलिए आप उसे बदलना चाहते हैं तो जरा रुकिए, कुछ आसान और सस्ते तरीकों से इसे नया लुक दिया जा सकता है. ये तरीके न केवल आप के पैसे बचाएंगे बल्कि सोफे को स्टाइलिश और नया भी बना देगा.

आइए, जानते हैं कि कैसे आप कम बजट में भी अपने पुराने सोफे को नया बना सकते हैं :

कपड़ा बदलना

सोफा का कपड़ा बदलवाने से पहले आप अपने इलाके में फर्नीचर रिपेयर करने वाले या अपहोल्स्ट्री विशेषज्ञों से बात करें. अच्छे से रिसर्च करें ताकि वे आप को सही सुझाव दे सकें कि कौन सा फैब्रिक या मैटीरियल आप के सोफे के लिए अच्छा रहेगा, साथ ही लागत के बारे में भी वे आप को सटीक जानकारी दे सकते हैं. यह सब से अच्छा और प्रभावी तरीका है कि आप अपने सोफे के पुराने कपड़े को बदलवा लें. यह प्रक्रिया रिअफोल्स्ट्री कहलाती है.

आप नए कपड़े का चुनाव अपने घर की सजावट के अनुसार कर सकते हैं. बाजार में कई तरह के विकल्प उपलब्ध हैं, जैसे लेदर (चमड़ा), वैलवेट (मखमली कपड़ा), कौटन लिनेन. इस प्रक्रिया से आप का सोफा न केवल नया दिखेगा, बल्कि घर के इंटीरियर के साथ मेल भी खाएगी.

कुशन या फोम को बदलवाना

अगर सोफा के कुशन या फोम घिस चुके हैं और बैठने में आराम नहीं रह गया है, तो उन्हें बदलवाना एक अच्छा विकल्प हो सकता है. नई फोम या कुशन से सोफा और आरामदायक हो जाएगा और इस की लाइफ भी बढ़ जाएगी.

लकड़ी के हिस्सों की मरम्मत और पौलिश

अगर आप के सोफे में लकड़ी का फ्रेम या आर्मरेस्ट हैं, तो उन्हें मरम्मत कर के और पौलिश करवा कर आप उसे एकदम नया लुक दे सकते हैं. पुरानी लकड़ी को ठीक करवा कर या फिर उसे नए रंग से पेंट करवा कर उस की चमक को वापस लाया जा सकता है. इस से सोफा का लुक काफी नया लगने लगेगा.

थ्रो कुशन और ऐक्सेसरीज

अगर आप अपने सोफे को थोड़ा और आकर्षक बनाना चाहते हैं, तो उस पर कुछ नए थ्रो कुशंस और ऐक्सेसरीज रख सकते हैं. रंगबिरंगे और स्टाइलिश कुशंस से सोफा का लुक तुरंत बदल जाता है. आप कंट्रास्ट रंगों का उपयोग कर सकते हैं ताकि सोफा और कमरे की सजावट में नयापन आ सके.

प्रोफैशनल सोफा रीडिजाइन सर्विस

अगर आप पूरी तरह से नया डिजाइन चाहते हैं, तो आप किसी प्रोफैशनल से सोफे की मरम्मत या डिजाइन बदलवा सकते हैं. प्रोफैशनल डिजाइनर या फर्नीचर मेकर सोफा के कपड़े, फोम और यहां तक कि फ्रेम को भी नया डिजाइन दे कर इसे बिलकुल नया रूप दे सकते हैं.

सोफा स्लिपकवर का इस्तेमाल

अगर आप सोफा को पूरी तरह बदलवाना नहीं चाहते हैं, तो आप एक अच्छा स्लिपकवर (सोफा कवर) भी इस्तेमाल कर सकते हैं. यह तुरंत सोफे का लुक बदलने का सस्ता और आसान तरीका है. बाजार में कई तरह के स्लिपकवर उपलब्ध हैं जो अलगअलग रंगों और डिजाइनों में आते हैं.

बजट बना कर चलें

मरम्मत की लागत आप के सोफे की हालत, कपड़े के प्रकार और इस्तेमाल की गई सामग्री पर निर्भर करेगी. साधारण मरम्मत के लिए यह ₹2,000 से ₹5,000 के बीच हो सकता है जबकि ज्यादा काम होगा तो थोड़ा अधिक खर्च हो सकता है.आप कारीगर से पहले ही बातचीत कर के एक अनुमानित बजट तय कर लें.

औनलाइन और औफलाइन तुलना

आजकल फर्नीचर नवीनीकरण के लिए औनलाइन और औफलाइन दोनों तरह के विकल्प मौजूद हैं. आप ई कौमर्स साइट्स जैसे अमेजन, फ्लिपकार्ट, अरबन लैदर आदि पर पुराने फर्नीचर को नया करने के लिए उपलब्ध कवर, गद्दे और कुशन जैसे विकल्प देख सकते हैं. वहीं, लोकल फर्नीचर मार्केट या फर्नीचर की दुकानों पर जा कर भी आप विभिन्न प्रकार के फैब्रिक और मरम्मत सेवाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

ट्रैंड्स पर ध्यान दें

सोफे के डिजाइन और फैब्रिक में ट्रैंड्स तेजी से बदलते हैं. नए सोफे के डिजाइन और रंगों का अध्ययन करें और देखें कि कौन सा स्टाइल आजकल लोकप्रिय हैं. उदाहरण के लिए वैलवेट फैब्रिक, मिनिमलिस्ट डिजाइन और मौड्यूलर सोफे आजकल चलन में हैं. आप इंटरनैट पर चल रहे नए ट्रैंड्स के बारे में पिंटरेस्ट, इंस्टाग्राम या डिजाइन पत्रिकाओं से जानकारी ले सकते हैं.

फीडबैक को पढ़ें

सोफे से जुड़े औनलाइन ग्राहकों के फीडबैक आप को यह समझने में मदद कर सकते हैं कि जो सामान आप खरीद रहे हैं उस की क्वालिटी कैसी है.

उदाहरण के लिए, यदि आप किसी औनलाइन स्टोर से सोफा कवर या गद्दे खरीद रहे हैं, तो ग्राहकों के फीडबैक और रेटिंग्स को ध्यान में रखें. इस से आप घटिया उत्पादों से बच सकते हैं और सही चुनाव कर सकते हैं.

ऐक्सपर्ट्स से सलाह लें

सोफा बनवाने से पहले मार्केट रिसर्च करें. आप अपने इलाके में फर्नीचर रिपेयर करने वाले या अपहोल्स्ट्री विशेषज्ञों से संपर्क कर सकते हैं. वे आप को सही सुझाव दे सकते हैं कि कौन सा फैब्रिक या मैटीरियल आप के सोफे के लिए सब से अच्छा रहेगा, साथ ही लागत के बारे में भी सटीक जानकारी दे सकते हैं.

औफर्स और वारंटी जरूर लें

जब आप नए सोफे को बनवा रहे हैं , तो यह भी देखना महत्त्वपूर्ण है कि क्या वे स्पैशल औफर या स्कीम दे रहे हैं या कोई वारंटी मिल रही है. कुछ दुकानदार सोफा कवर या गद्दों पर वारंटी प्रदान करते हैं, जो आप को लौग लाइफ सुरक्षा देता है. इस के अलावा यदि आप किसी ऐक्सपर्ट से पुराने सोफे को नया करवा रहे हैं, तो यह सुनिश्चित करें कि वे अपने काम की गारंटी दे रहे हों.

बेईमान बनाया प्रेम ने: क्या हुआ था पुष्पक के साथ

लेखिका- रफत बेगम

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है. इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पड़ने पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं. हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धड़कनों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था. उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था. जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था. उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था. योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया. कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता. इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके. लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा. इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके. पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है. जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया. आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई. उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था. उसे बहुत दुख हुआ. घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए. ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.’’

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया. ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे. भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे. दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था. नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई. हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

‘‘कोई खास खबर?’’ मालिनी ने पूछा.

‘‘अभी देखता हूं.’’ पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है डियर?’’

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, ‘‘समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.’’

‘‘हां संयोग ही है,’’ वह मुंह सिकोड़ कर बोला, ‘‘जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.’’

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढ़ने लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’ इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है. पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया. इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है. सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’

क्या मोटापे के कारण प्रैग्नेंसी में प्रौब्लम आ सकती है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 28 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मेरी लंबाई 5 फुट 4 इंच और वजन 85 किलोग्राम है. मैं और मेरे पति फैमिली प्लान करना चाहते हैं. क्या मोटापे के कारण गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं होने का खतरा बढ़ जाता है?

जवाब-

यह बात बिलकुल सही है कि मोटापे के कारण गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. आप गर्भावस्था के दौरान वजन नहीं घटा सकतीं न ही आप को प्रयास करना चाहिए. अगर आप का वजन अधिक है या आप मोटी हैं तो आप को कम से कम 1 साल पहले अपनी प्रैगनैंसी प्लान करना चाहिए ताकि गर्भावस्था तथा प्रसव के दौरान जटिलताएं न हों और आप एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें, प्रतिदिन 100-200 कैलोरी का इनटेक कम कर दें, इस से 1 वर्ष में आप बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के 5 से 10 किलोग्राम तक वजन कम कर लेंगी. अगर कोई महिला मोटापे से छुटकारा पाने के लिए वेट लौस सर्जरी करना चाहती है, तो यह जरूरी सुझाव है कि इसे गर्भधारण की योजना बनाने से कम से कम 18 महीने पहले कराएं.

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गर्भधारण करना किसी भी महिला के लिए सब से बड़ी खुशी की बात और शानदार अनुभव होता है. जब आप गर्भवती होती हैं, तो उस दौरान किए जाने वाले प्रीनेटल टैस्ट आप को आप के व गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हैं. इस से ऐसी किसी भी समस्या का पता लगाने में मदद मिलती है, जिस से शिशु के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है जैसे संक्रमण, जन्मजात विकार या कोई जैनेटिक बीमारी. ये नतीजे आप को शिशु के जन्म के पहले ही स्वास्थ्य संबंधी फैसले लेने में मदद करते हैं.

यों तो प्रीनेटल टैस्ट बेहद मददगार साबित होते हैं, लेकिन यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि उन के परिणामों की व्याख्या कैसे करनी है. पौजिटिव टैस्ट का हमेशा यह मतलब नहीं होता है कि आप के शिशु को कोई जन्मजात विकार होगा. आप टैस्ट के नतीजों के बारे में अपने डाक्टर से बात करें और उन्हें समझें. आप को यह भी पता होना चाहिए कि नतीजे मिलने के बाद आप को सब से पहले क्या करना है.

डाक्टर सभी गर्भवती महिलाओं को प्रीनेटल टैस्ट कराने की सलाह देते हैं. कुछ महिलाओं के मामले में ही जैनेटिक समस्याओं की जांच के लिए अन्य स्क्रीनिंग टैस्ट कराने की जरूरत पड़ती है.

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पतिव्रता : धीरज क्यों मांग रहा था दया की भीख

पूरे समर्पण के साथ पतिव्रता का धर्म निभाने वाली वैदेही के प्रति उस के पति की मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ चुकी थीं. रात की खामोशी को तोड़ते हुए दरवाजा पीटने की बढ़ती आवाज से चौंक कर भास्कर बाबू जाग गए थे. घड़ी पर नजर डाली तो रात के 2 बजे थे. इस समय कौन हो सकता है? यह सोच कर दिल किसी आशंका से धड़क उठा.

उन्होंने एक नजर गहरी नींद में सोती अपनी पत्नी सौंदर्या पर डाली और दूसरे ही क्षण उसे झकझोर कर जगा दिया. ‘‘क्या हुआ? कौन है?’’ वह हड़बड़ा कर उठ बैठी. ‘‘क्या हुआ, यह तो मुझे भी नहीं पता पर काफी देर से कोई हमारा दरवाजा पीट रहा है,’’ भास्कर ने स्पष्ट किया. ‘‘अच्छा, पर आधी रात को कौन हो सकता है?’’ सौंदर्या ने कहा और दरवाजे के पास जा कर खड़ी हो गई. ‘‘कौन है? कौन दरवाजा पीट रहा है?’’ उस ने प्रश्न किया. ‘‘आंटी, मैं हूं प्रिंसी.’’ ‘‘यह तो धीरज बाबू की बेटी प्रिंसी का स्वर है,’’ सौंदर्या बोली और उस ने दरवाजा खोल दिया. देखा तो प्रिंसी और उस की छोटी बहन शुचि खड़ी हैं. ‘‘क्या हुआ, बेटी?’’ सौंदर्या ने चिंतित स्वर में पूछा. ‘‘मेरी मम्मी के सिर में चोट लगी है, आंटी. बहुत खून बह रहा है,’’ प्रिंसी बदहवास स्वर में बोली. ‘‘तुम्हारे पापा कहां हैं?’’ ‘‘पता नहीं आंटी, मम्मी को मारनेपीटने के बाद कहीं चले गए,’’ प्रिंसी सुबक उठी. सौंदर्या दोनों बच्चियों का हाथ थामे सामने के फ्लैट में चली गई. वहां का दृश्य देख कर तो उस के होश उड़ गए. उस की पड़ोसिन वैदेही खून में लथपथ बेसुध पड़ी थी.

वह उलटे पांव लगभग दौड़ते हुए अपने घर पहुंची और पति से बोली, ‘‘भास्कर, वैदेही बेहोश पड़ी है. सिर से खून बह रहा है. लगता है उस के पति भास्कर ने सिर फाड़ दिया है. बच्चियां रोरो कर बेहाल हुई जा रही हैं.’’ ‘‘तो कहो न उस के पति से कि वह अस्पताल ले जाए, हम कब तक पड़ोसियों के झमेले में पड़ते रहेंगे.’’ ‘‘वह घर में नहीं है.’’ ‘‘क्या? घर में नहीं है….पत्नी को मरने के लिए छोड़ कर आधी रात को कहां भाग गया डरपोक?’’ ‘‘मुझे क्या पता, पर जल्दी कुछ करो नहीं तो वैदेही मर जाएगी.’’ ‘‘तुम्हीं बताओ, आधी रात को बच्चों को अकेले छोड़ कर कहां जाएं?’’ भास्कर खीज उठा. ‘‘तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं, बस, जल्दी से फोन कर के एंबुलेंस बुला लो. तब तक मैं श्यामा बहन को जगा कर बच्चों के पास रहने की उन से विनती करती हूं,’’ इतना कह कर सौंदर्या पड़ोसिन श्यामा के दरवाजे पर दस्तक देने चली गई थी और भास्कर बेमन से फोन कर एंबुलेंस बुलाने की कोशिश करने लगा. श्यामा सुनते ही दौड़ी आई और दोनों पड़ोसिनें मिल कर वैदेही के बहते खून को रोकने की कोशिश करने लगीं. एंबुलेंस आते ही बच्चों को श्यामा की देखरेख में छोड़ कर भास्कर और सौंदर्या वैदेही को ले कर अस्पताल चले गए.

‘‘इस बेचारी की ऐसी दशा किस ने की है? कैसे इस का सिर फटा है?’’ आपातकालीन कक्ष की नर्स ने वैदेही को देखते ही प्रश्नों की झड़ी लगा दी. ‘‘देखिए, सिस्टर, यह समय इन सब बातों को जानने का नहीं है. आप तुरंत इन की चिकित्सा शुरू कीजिए.’’ ‘‘यह तो पुलिस केस है. आप इन्हें सरकारी अस्पताल ले जाइए,’’ नर्स पर वैदेही की गंभीर दशा का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. भास्कर नर्स के साथ बहस करने के बजाय मरीज को सरकारी अस्पताल ले कर चल पडे़. वैदेही को अस्पताल में दाखिल करते ही गहन चिकित्सा कक्ष में ले जाया गया. कक्ष के बाहर बैठे भास्कर और सौंदर्या वैदेही के होश में आने की प्रतीक्षा करने लगे. बहुत देर से खुद पर नियंत्रण रखती सौंदर्या अचानक फूटफूट कर रो पड़ी. झिलमिलाते आंसुओं के बीच पिछले कुछ समय की घटनाएं उस के दिलोदिमाग पर हथौडे़ जैसी चोट कर रही थीं. कुछ बातें तो उस के स्मृति पटल पर आज भी ज्यों की त्यों अंकित थीं. उस रात कुछ चीखनेचिल्लाने के स्वर सुन कर सौंदर्या चौंक कर उठ बैठी थी. कुछ देर ध्यान से सुनने के बाद उस की समझ में आया था कि जो कुछ उस ने सुना वह कोई स्वप्न नहीं बल्कि हकीकत थी. चीखनेचिल्लाने के स्वर लगातार पड़ोस से आ रहे थे. अवश्य ही कहीं कोई मारपीट पर उतर आया था. सौंदर्या ने पास सोते भास्कर पर एक नजर डाली थी. क्या गहरी नींद है.

एक बार सोचा कि भास्कर को जगा दे पर उस की गहरी नींद देख कर साहस नहीं हुआ था. वह करवट बदल कर खुद भी सोने का उपक्रम करने लगी पर चीखनेचिल्लाने के पूर्ववत आते स्वर उसे परेशान करते रहे थे. सौंदर्या सुबह उठी तो सिर बहुत भारी था. ‘क्या हो गया? सुबह के 7 बजे हैं. अब सो कर उठी हो? आज बच्चों की छुट्टी है क्या?’ भास्कर ने चाय की प्याली थामे कमरे में प्रवेश किया था. ‘पता नहीं क्या हुआ है जो सुबह ही सुबह सिरदर्द से फटा जा रहा है.’ ‘चाय पी कर कुछ देर सो जाओ. जगह बदल गई है इसीलिए शायद रात में ठीक से नींद न आई हो,’ भास्कर ने आश्वासन दिया तो सौंदर्या रोंआसी हो उठी थी. ‘सोचा था अपने नए फ्लैट में आराम से चैन की बंसी बजाएंगे. पर यहां तो पहली ही रात को सारा रोमांच जाता रहा.’ ‘ऐसा क्या हो गया? उस दिन तो तुम बेहद उत्साहित थीं कि पुरानी गलियों से पीछा छूटा. नई पौश कालोनी मेें सभ्य और सलीकेदार लोगों के बीच रहने का अवसर मिलेगा,’ भास्कर ने प्रश्न किया था. ‘यहां तो पहली रात को ही भ्रम टूट गया.’ ‘ऐसा क्या हो गया जो सारी रात नींद नहीं आई,’ भास्कर ने कुछ रोमांटिक अंदाज में कहा, ‘प्रिय, देखो तो कितना सुंदर परिदृश्य है. उगता हुआ सूरज और दूर तक फैला हुआ सजासंवरा हराभरा बगीचा. एक अपना वह पुराना बारादरी महल्ला था जहां सूर्य निकलने से पहले ही लोग कुत्तेबिल्लियों की तरह झगड़ते थे. वह भी छोटीछोटी बातों को ले कर. ‘इतना प्रसन्न होने की जरूरत नहीं है. वह घर हम अवश्य छोड़ आए हैं पर वहां का वातावरण हमारे साथ ही आया है.’ ‘क्या तात्पर्य है तुम्हारा?’ ‘यही कि जगह बदलने से मानव स्वभाव नहीं बदल जाता. रात को पड़ोस के फ्लैट से रोनेबिलखने के ऐसे दयनीय स्वर उभर रहे थे कि मेरी तो आंखों की नींद ही उड़ गई. बच्चे भी जोर से चीख कर कह रहे थे कि पापा मत मारो, मत मारो मम्मी को.’ ‘अच्छा, मैं ने तो समझा था कि यह सभ्य लोगों की बस्ती है, पुरानी बारादरी थोडे़ ही है. यहां के लोग तो मानवीय संबंधों का महत्त्व समझते होंगे पर लगता है कि…

सौंदर्या ने पति की बात बीच में काट कर वाक्य पूरा किया, ‘कि मानव स्वभाव कभी नहीं बदलता, फिर चाहे वह पुरानी बारादरी महल्ला हो या फिर शहर का सभ्य सुसंस्कृत आधुनिक महल्ला.’ ‘तुम ने मुझे जगाया क्यों नहीं, मैं तभी जा कर उस वीर पति को सबक सिखा देता. अपने से कमजोर पर रौब दिखाना, हाथ उठाना बड़ा सरल है. ऐसे लोगों के तो हाथ तोड़ कर हाथ में दे देना चाहिए.’ ‘देखो, बारादरी की बात अलग थी. यहां हम नए आए हैं. हम क्यों व्यर्थ ही दूसरों के फटे में पांव डालें,’ सौंदर्या ने सलाह दी. ‘यही तो बुराई है हम भारतीयों में, पड़ोस में खून तक हो जाए पर कोई खिड़की तक नहीं खुलती,’ भास्कर खीज गया था. दिनचर्या शुरू हुई तो रात की बात सौंदर्या भूल ही गई थी पर नीलम और नीलेश को स्कूल बस मेें बिठा कर लौटी तो सामने के फ्लैट से 3 प्यारी सी बच्चियों को निकलते देख कर ठिठक गई थी. सब से बड़ी 10 वर्षीय और दूसरी दोनों उस से छोटी थीं. तीनों लड़कियां मानों सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थीं. सीढि़यां चढ़ते ही सामने के फ्लैट का दरवाजा पकडे़ एक महिला खड़ी थी.

दूधिया रंगत, तीखे नाकनक्श. सौंदर्या ने महिला का अभिवादन किया तो वह मुसकरा दी थी. बेहद उदास फीकी सी मुसकान. ‘मैं आप की नई पड़ोसिन सौंदर्या हूं,’ उस ने अपना परिचय दिया था. ‘जी, मैं वैदेही’ इतना कहतेकहते उस ने अपने फ्लैट में घुस कर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था, मानो कोई उस का पीछा कर रहा हो. भारी कदमों से सौंदर्या अपने फ्लैट में आई थी. अजीब बस्ती है. यहां कोई किसी से बात तक नहीं करता. इस से तो अपनी पुरानी बारादरी अच्छी थी कि लोग आतेजाते हालचाल तो पूछ लेते थे. दालचावल बीनते, सब्जी काटते पड़ोसिनें बालकनी में भी छत पर खड़ी हो सुखदुख की बातें तो कर लेती थीं और मन हलका हो जाता था. पर इस नए परिवेश में तो दो मीठे बोल सुनने को मन तरस जाता था. यही क्रम जब हर 2-3 दिन पर दोहराया जाने लगा तो सौंदर्या का जीना दूभर हो गया. बारादरी में तो ऐसा कुछ होने पर पड़ोसी मिल कर बात को सुलझाने का प्रयत्न करते थे, पर यहां तो भास्कर ने साफ कह दिया था कि वह इस झमेले में नहीं पड़ने वाला. और वह कानों में रूई के फाहे लगा कर चैन की नींद सोता था. पड़ोसियों के पचडे़ में न पड़ने के अपने फैसले पर भास्कर भी अधिक दिनों तक टिक नहीं पाया. हुआ यों कि कार्यालय से लौटते समय अपने फ्लैट के ठीक सामने वाले फ्लैट के पड़ोसी धीरज द्वारा अपनी पत्नी पर लातघूंसों की बरसात को भास्कर सह नहीं सका था.

उस ने लपक कर उस का गिरेबान पकड़ा था और दोचार हाथ जमा दिए. ‘मैं तो आप को सज्जन इनसान समझता था पर आप का व्यवहार तो जानवरों से भी गयागुजरा निकला,’ भास्कर ने पड़ोसी की बांह इस प्रकार मरोड़ी कि वह दर्द से कराह उठा था. भास्कर ने जैसे ही धीरज का हाथ छोड़ा वह शेर हो गया. ‘आप होते कौन हैं हमारे व्यक्तिगत मामलों में दखल देने वाले. मेरी पत्नी है वह. मेरी इच्छा, मैं उस से कैसा भी व्यवहार करूं.’ ‘लानत है तुम्हारे पति होने पर जो मारपीट को ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हो,’ दांत पीसते हुए भास्कर पड़ोसी की ओर बढ़ा पर दूसरे ही क्षण वैदेही हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगी थी. ‘भाई साहब, मैं आप के हाथ जोड़ती हूं, आप हमारे बीच पड़ कर नई मुसीबत न खड़ी करें.’ भास्कर को झटका सा लगा था. दूसरी ओर अपने फ्लैट का द्वार खोले सौंदर्या खड़ी थी. वैदेही पर एक पैनी नजर डाल कर भास्कर अपने फ्लैट की ओर मुड़ गया था. सौंदर्या उस के पीछे आई थी. वह सौंदर्या पर ही बरस पड़ा था. ‘कोई जरूरत नहीं है ऐसे पड़ोसियों से सहानुभूति रखने की. अपने काम से काम रखो, पड़ोस में कोई मरे या जिए. नहीं सहन होता तो दरवाजेखिड़कियां बंद कर लो, कानों में रूई डाल लो और चैन की नींद सो जाओ.’ सौंदर्या भास्कर की बात भली प्रकार समझती थी. उस का क्रोध सही था पर चुप रहने के अलावा किया भी क्या जा सकता था. धीरेधीरे सौंदर्या और वैदेही के बीच मित्रता पनपने लगी थी. ‘क्या है वैदेही, ऐसे भी कोई अत्याचार सहता है क्या? सिर पर गुलम्मा पड़ा है, आंखों के नीचे नील पडे़ हैं जगहजगह चोट के निशान हैं… तुम कुछ करती क्यों नहीं,’ एक दिन सौंदर्या ने पूछ ही लिया था. ‘क्या करूं दीदी, तुम्हीं बताओ. मेरे पिता और भाइयों ने साम, दाम, दंड, भेद सभी का प्रयोग किया पर कुछ नहीं हुआ. आखिर उन्होंने मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया. मुझे तो लगता है एक दिन ऐसे ही मेरा अंत आ जाएगा.’ ‘क्या कह रही हो. इस आधुनिक युग में भी औरतों की ऐसी दुर्दशा? मुझे तो तुम्हारी बातें आदिम युग की जान पड़ती हैं.’ ‘समय भले ही बदला हो दीदी पर समाज नहीं बदला. जिस समाज में सीताद्रौपदी जैसी महारानियों की भी घोर अवमानना हुई हो वहां मेरी जैसी साधारण औरत किस खेत की मूली है.’ ‘मैं नहीं मानती, पतिपत्नी यदि एकदूसरे का सम्मान न करें तो दांपत्य का अर्थ ही क्या है.’ ‘हमारे समाज में यह संबंध स्वामी और सेवक का है,’ वैदेही बोली थी.

‘बहस में तो तुम से कोई जीत नहीं सकता. इतनी अच्छी बातें करती हो तुम पर धीरज को समझाती क्यों नहीं,’ सौंदर्या मुसकरा दी थी. ‘समझाया इनसान को जाता है हैवान को नहीं,’ वैदेही की आंखें डबडबा आईं और गला भर आया था. सौंदर्या गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर बेंच पर बैठी थी कि चौंक कर उठ खड़ी हुई. अचानक ही वर्तमान में लौट आई वह. ‘‘मरीज को होश आ गया है,’’ सामने खड़ी नर्स कह रही थी, ‘‘आप चाहें तो मरीज से मिल सकती हैं.’’ सौंदर्या को देखते ही वैदेही की आंखों से आंसुओं की धारा बह चली. ‘‘मैं घर चलता हूं. कल काम पर भी जाना है,’’ भास्कर ने कहा. ‘‘भाई साहब, अब भी नाराज हैं क्या? कोई भूल हो गई हो तो क्षमा कर दीजिए इस अभागिन को,’’ वैदेही का स्वर बेहद धीमा था, मानो कहीं दूर से आ रहा हो. ‘‘गांधी नगर में मेरी बहन रहती है. उसे आप फोन कर दीजिएगा,’’ इतना कह कर वैदेही ने फोन नंबर दिया पर वह चिंतित थी कि न जाने कब तक अस्पताल में रहना पड़ेगा. भास्कर घर पहुंचा तो धीरज वापस आ चुका था. उसे देख कर बाहर निकल आया. ‘‘वैदेही कहां है?’’ उस ने प्रश्न किया. ‘‘कौन वैदेही? मैं किसी वैदेही को नहीं जानता,’’ भास्कर तीखे स्वर में बोला. ‘‘देखो, सीधे से बता दो नहीं तो मैं पुलिस को सूचित करूंगा,’’ धीरज ने धमकी दी. ‘‘उस की चिंता मत करो, पुलिस खुद तुम्हें ढूंढ़ती आ रही होगी.

वैसे तुम्हारी पतिव्रता पत्नी तो तुम्हारे विरोध में कुछ कहेगी नहीं, पर हम तुम्हें छोड़ेंगे नहीं,’’ भास्कर का क्रोध हर पल बढ़ता जा रहा था. तभी भास्कर ने देखा कि उस माउंट अपार्टमेंट के फ्लैटों के दरवाजे एकएक कर खुल गए थे और उन में रहने वाले लोग मुट्ठियां ताने धीरज की ओर बढ़ने लगे थे. ‘‘इस राक्षस को सबक हम सिखाएंगे,’’ वे चीख रहे थे. भास्कर के होंठों पर मुसकान खेल गई. इस सभ्यसुसंस्कृत लोगों की बस्ती में भी मानवीय संवेदना अभी पूरी तरह मरी नहीं है. उसे वैदेही और उस की बच्चियों के भविष्य के लिए आशा की नई किरण नजर आई. उधर धीरज वहां से भागने की राह न पा कर हाथ जोडे़ सब से दया की भीख मांग रहा था.

मेरी गर्लफ्रैंड की शादी हो चुकी है, लेकिन वह मेरे बच्चे की मां बनने वाली है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी गर्लफ्रैंड की शादी 1 महीने पहले हुई. लेकिन हमारे बीच पहले फिजिकल रिलेशन था. अब कह रही है कि वह प्रेग्नेंट है और मैं उस बच्चे का पिता हूं. मुझे समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूं ?

Unhappy depressed Indian woman holding head in hands sitting alone on couch at home stressed young female worried about bad relationship

जवाब

देखिए अब आपकी गर्लफ्रैंड की शादी हो चुकी है. और ये बात बाहर आती है, तो शादी तो टूटेगी, इसके अलावा आपको भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. ऐसे में बेहतर है कि आप अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड को समझाएं और उनसे कहें कि ये बच्चा किसका है, इस बात का भूल से भी अपने पति से जिक्र न करें. शादी के बाद जाहिर सी बात है उन दोनों पतिपत्नी का संबंध बना ही होगा, लेकिन ये बात सिर्फ एक लड़की ही जान सकती है, उसके बच्चे का पिता कौन है. इसी में भलाई है कि आप अपने गर्लफ्रैंड को कहें कि वह अपने शादी पर ध्यान दें और प्रेग्नेंसी एंजौय करें.

लौन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में इस तरह बढ़ाएं प्यार

Happy couple embracing and smiling

  • भले ही आप दोनों नौकरी, पढ़ाई या परिवार की वजह से अलगअलग शहर में रहते हैं, लेकिन हमेशा एकदूसरे की मदद करने के लिए तैयार रहें. अगर आपको लगे कि आपके पार्टनर को पैसे या इमोशनल सपोर्ट की जरूरत है, तो  बेझिझक आप अपने पार्टनर की सपोर्ट करें. जब उसे जरूरत हो, तो बिना कहे उसके पास चले जाएं.
  • आजकल मोबाइल का जमाना है, जब चाहे बात कर सकते हैं. इसके अलावा आप दिन में एक-दो बार वीडियो कौल जरूर करें. वीडियो कौल पर आप अपने प्यार का इजहार करें. ऐसे में आप दूर होते हुए भी एकदूसरे को महसूस कर पाएंगे.
  • आप दूर रहते हैं, तो जाहिर सी बात है कि आप एकदूसरे के पसंद के बारे में कम ही जानते होंगे. ऐसे में आप फोन पर अपने पार्टनर की पसंदनापसंद के बारे में पता करें और उनकी इच्छानुसार गिफ्ट भिजवाएं, इससे आप दोनों की दूरियां कम होंगी और आपके बीच प्यार बढ़ेगा.
  • इन दिनों सोशल मीडिया ने रिश्ते में आई दूरियों को कम कर दिया है. ऐसे में आप कहां घूमने जा रहे हैं, क्या स्पेशल खा रहे हैं, इन सभी की फोटोज आप इन एप्स के जरिए आप अपने पार्टनर को शेयर कर सकते हैं.

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कौन अपना कौन पराया: अमर ने क्या किया था

कहानी- करुणा कोछर

घुटनों के असहनीय दर्द के चलते मेरे लिए खड़ा होना मुश्किल हो रहा था किंतु मजबूरी थी. इस अनजान जगह पर मुझे दूरदूर तक कोई सहारा नजर नहीं आ रहा था.

विराट को परसों जबरदस्त हार्ट अटैक पड़ा था और देहरादून में उचित व्यवस्था न होने के कारण वहां के डाक्टरों की सलाह से विराट को दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में लाना पड़ा. हालांकि विराट की तबीयत खराब होने की खबर बच्चों को कर दी थी लेकिन उन की सुध लेने कोई नहीं आया. यह सोच कर मेरी आंखें भर आईं कि क्या इसी दिन के लिए लोग औलाद चाहते हैं? दर्द असहनीय होता जा रहा था. चक्कर सा आने लगा कि अचानक किसी ने आ कर थाम लिया और अधिकार के साथ बोला, ‘‘आप हटिए यहां से, मैं पैसे जमा करवा दूंगा,’’ आवाज सुन कर मैं ने चौंक कर ऊपर देखा तो मेरी निगाहें जम सी गईं.

‘‘तुम…तुम यहां कैसे पहुंचे?’’ मैं ने कांपते स्वर में पूछा.

‘‘कैसे भी? पर आप ने तो नहीं बताया न. हमेशा की तरह मुझे गैर ही समझा न,’’ उस के स्वर में शिकायत थी, ‘‘खैर छोडि़ए, आप बाबा के पास जाइए, मैं पैसे जमा करवा कर और डाक्टर से बात कर के अभी आता हूं,’’ वह बोला.

मैं धीरेधीरे चलती हुई विराट के कमरे तक पहुंची. वह आंखें मूंदे लेटे थे. मैं धीरे से पास रखे स्टूल पर बैठ गई. बुद्धि शून्य हुई जा रही थी. थोड़ी देर में वह भी कमरे में आया और विराट के पैर छूने लगा. विराट ने जैसे ही आंखें खोलीं और उसे सामने देखा तो खिल उठे, और अपनी दोनों बांहें फैला दीं तो वह छोटे बच्चे की तरह सुबकता हुआ उन बांहों में सिमट गया. थोड़ी देर बाद सिर उठा कर बोला, ‘‘मैं आप से बहुत नाराज हूं बाबा, आप ने भी मुझे पराया कर दिया. 2 दिन से घर पर घंटी बज रही थी, कोई फोन नहीं उठा रहा था सो मुझ से रहा नहीं गया और मैं घर पहुंचा तो पड़ोसियों से पता चला कि आप बीमार हैं और मैं यहां चला आया.

‘‘बाबा, आप इतने बीमार रहे लेकिन मुझे कभी बताया तक नहीं. क्या मेरा इतना हक भी आप पर नहीं है. बोलो न, बाबा?’’

वह लगातार प्रश्न करता रहा और विराट मुसकराते रहे. उस ने कहा, ‘‘अब आप बिलकुल चिंता न करना बाबा, अब मैं सब संभाल लूंगा.’’

विराट काफी निश्चिंत लग रहे थे. मन ही मन मुझे भी उस के आने से काफी खुशी हो रही थी. फिर वह मेरी तरफ मुड़ा और बोला, ‘‘बाहर मेरा अर्दली खड़ा है. आप उस के साथ मेरे गेस्ट हाउस पर चली जाइए. आप भी थक गई होंगी. थोड़ा आराम कर लीजिए. बाबा की आप बिलकुल चिंता न करें. मैं इन का पूरा खयाल रखूंगा,’’ उस ने कहा और मैं ने शायद जीवन में पहली बार उस की किसी बात की अवहेलना नहीं की. सिर झुका कर अपनी मौन स्वीकृति दे दी.

बाहर आ कर उस ने अपने अर्दली को कुछ निर्देश दिए और मैं उस की जीप में चुपचाप बैठ कर उस के गेस्ट हाउस पहुंच गई. नहाधो कर जब मैं लौन में आ कर बैठी तो अर्दली चाय और बिस्कुट ले आया. चाय पी कर थोड़ी राहत महसूस हुई. अंदर आ कर मैं ने कमरा बंद किया और सोने का उपक्रम करने लगी किंतु नींद मेरी आंखों से कोसों दूर थी. बीता समय मानस पटल पर उजागर होने लगा.

जब मेरी शादी विराट से हुई थी तो वह वकालत में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे. वैसे मेरे ससुरजी एक कामयाब वकील थे. धीरेधीरे विराट भी वकालत के पेशे में पैर जमाने लगे और इन की भी गिनती नामी वकीलों में की जाने लगी. हमारे 2 बेटे हुए जिन्हें हम ने लाड़प्यार से पाला. कुछ समय बाद ससुरजी की मृत्यु हो गई तो उन के एक बहुत पुराने मुंशीजी को विराट ने अपने साथ रख लिया.

मुंशीजी की विश्वसनीयता और कर्मठता के कारण विराट उन पर बहुत निर्भर हो गए. एक दिन अचानक मुंशीजी घबराए हुए आए और एक हफ्ते की छुट्टी मांगने लगे. विराट के पूछने पर उन्होंने बताया कि उन का गांव भूकंप की चपेट में आ गया है और वह अपने परिवार के लिए चिंतित हैं. तब पहली बार मैं ने जाना कि मुंशीजी का अपना परिवार भी है.

करीब 10 दिन बाद मुंशीजी लौटे तो उन के साथ एक 12 साल का लड़का था. विराट को देखते ही मुंशीजी बच्चों की तरह फूटफूट कर रोने लगे. रोतेरोते उन्होंने बताया कि भूकंप की चपेट में उन के दोनों बेटेबहुएं और पोतेपोतियों की मृत्यु हो गई है. केवल यही एक बच्चा बच पाया है. चूंकि गांव में अपना कोई बचा नहीं है इसलिए अपने इस छोटे पोते को साथ लेता आया हूं.

विराट एक नरमदिल इनसान हैं सो मुंशीजी को सांत्वना देते हुए बोले, ‘घबराइए मत मुंशीजी, होनी को तो कोई टाल नहीं सकता. हम सब आप के दुख में आप के साथ हैं,’ फिर बच्चे की ओर देख कर विराट बोले, ‘क्या नाम है बेटा?’

‘जी अमर… अमरदीप,’ वह बच्चा हकलाते हुए बोला.

‘अरे वाह, बड़ा अच्छा नाम है. पढ़ते हो?’

उस ने सिर हिला कर ‘हां’ कहा.

‘कौन सी क्लास में?’ विराट ने पूछा.

‘जी, 5वीं में,’ अमर बोला.

‘साहब, आप इस का दाखिला सेंट्रल स्कूल में करवा दीजिए. थोड़ा पढ़लिख जाएगा तो कमा खा लेगा. मेरा क्या भरोसा?’ मुंशीजी लाचारी से बोले.

‘क्यों नहीं, मुंशीजी, पर सेंट्रल स्कूल में क्यों, मैं इस का दाखिला वरुण के स्कूल में करवा दूंगा,’ विराट ने दरियादिली दिखाई, ‘और आप अमर की चिंता न करें, इस की पढ़ाई का सारा खर्चा मेरे जिम्मे होगा.’

हालांकि मुझे यह बात नागवार लगी किंतु मैं चुप रही. बाद में विरोध जताने पर विराट मुझे समझाते हुए बोले, ‘क्या फर्क पड़ता है सुमि, अनाथ बच्चा है, पढ़लिख जाएगा तो तुम्हें दुआ देगा.’

‘नहीं चाहिए मुझे दुआ,’ मैं खीज कर बोली, ‘आप इसे सरकारी स्कूल में ही भरती करवा दें. वहां किताबें और यूनीफार्म भी मुफ्त में मिल जाएगी.’

‘इस की फीस भर कर और साल में एक बार किताबकापियों और यूनीफार्म पर खर्च कर के तुम्हारा खजाना खाली हो जाएगा. है न,’ विराट व्यंग्यात्मक मुसकराहट से बोले तो मैं कुढ़ गई. मुझे यह कतई गवारा न था कि मेरे नौकर का बच्चा मेरे बच्चों की बराबरी में पढ़े.

विराट ने अपने मन की मानी और अमर का दाखिला मेरे बच्चों के स्कूल में ही हो गया और वह भी मेरे बच्चों के साथ गाड़ी में स्कूल आताजाता था.

मुंशीजी अपने परिवार के सदमे से टूट गए थे अत: 6 महीने के भीतर ही उन की भी मृत्यु हो गई. विराट अमर को घर ले आए. उस दिन मैं ने विराट से खूब लड़ाई की. किंतु वह यही तर्क देते रहे कि मुंशीजी उन के पुराने वफादार मुलाजिम थे अत: उन के पोते के प्रति उन का नैतिक कर्तव्य बनता था.

मेरे तर्कवितर्कों का विराट पर कोई असर नहीं पड़ा बल्कि अब वह अमर पर ज्यादा ध्यान देने लगे. उस की पढ़ाई, उस का खानापीना, उस के कपड़े आदि का खास ध्यान रखते.

हालांकि अमर अपनी पढ़ाई के साथसाथ मेरे कामों में भी मेरी मदद कराता. बाजार के भी काम कर देता. जिस समय मेरे बच्चे कंप्यूटर गेम खेल रहे होते वह उन का होमवर्क भी कर देता. फिर भी मेरी नाराजगी कम न होती. मेरे बच्चे भी जबतब उसे जलील करते रहते किंतु वह उफ तक नहीं करता.

मेरे बच्चों की देखादेखी एक बार मेरे लिए अमर के मुंह से ‘मम्मी’ निकला तो मैं ने उसे झिड़क दिया. फिर एक बार बाजार से आ कर सौदा सौंपते हुए उस ने मुझे ‘मांजी’ कहा तो मैं चिल्ला उठी, ‘खबरदार, मुझे मम्मी या मांजी कहा तो. कहना है तो मालकिन कहो.’

वह सहम गया. उस दिन के बाद से उस ने मुझे कोई भी संबोधन नहीं दिया.

अमर पढ़ाई में बहुत होशियार था. अपनी कक्षा में वह हमेशा प्रथम आता था. इस से विराट बहुत खुश होते थे. 12वीं की परीक्षा समाप्त होने पर एक दिन विराट बोले, ‘मैं सोचता हूं अमर को पी.एम.टी. की परीक्षा में बिठाऊं और…’

विराट अभी बात पूरी भी न कह पाए थे कि मेरे सब्र का बांध टूट गया और उस दिन मेरे क्रोध की भी सीमा न रही.

‘बस कीजिए, अब क्या इस ढोल को सारी जिंदगी मुझे बजाते रहना पड़ेगा. डाक्टरी की पढ़ाई 5-6 साल से कम नहीं और खर्चा बेतहाशा. मैं ने क्या इस का ठेका उठाया है जो अपने बच्चों के हिस्से का पैसा भी इस पर खर्च करूंगी. 12वीं तक पढ़ा दिया अब यह कोई छोटामोटा काम करे और हमारा पीछा छोड़े. मैं अब इसे और बरदाश्त नहीं करूंगी.’

मैं ने गुस्से में यह भी न सोचा कि कहीं अमर ने यह सब सुन लिया तो? और शायद उस ने मेरी बातें सुन ली थीं.

2 दिन बाद विराट के पास जा कर अमर धीरे से बोला, ‘बाबूजी, मैं डाक्टर या इंजीनियर नहीं बनना चाहता बल्कि मैं सैनिक बनना चाहता हूं. मैं एन.डी.ए. का फार्म लाया हूं. आप इस पर हस्ताक्षर कर दें.’

विराट ने न चाहते हुए भी उस पर दस्तखत कर दिए. और फिर एक दिन अमर को एन.डी.ए. की परीक्षा में शामिल होने का पत्र भी आ गया. 5 दिन की कड़ी परीक्षा दे कर जब वह देहरादून से लौटा तो उस का चेहरा खुशी से दमक रहा था. उस का चयन हो गया था. जिस दिन वह अपना सामान ले कर टे्रनिंग पर जा रहा था विराट की आंखों में आंसू थे.

‘बेटा, मैं तुम्हारे लिए ज्यादा कर नहीं पाया,’ अमर को गले लगाते हुए विराट बोले.

‘ऐसा न कहें बाबूजी, मैं आज जो भी हूं और भविष्य में जो भी बन पाऊंगा सिर्फ आप की वजह से. मेरा रोमरोम आप का सदा आभारी रहेगा,’ अमर रोते हुए बोला. जब वह मेरे चरणस्पर्श करने आया तो मैं ने बेरुखी से कहा, ‘ठीक है…ठीक है’ और वह चला गया. मैं ने भी चैन की सांस ली.

मेरे दोनों बच्चे इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे. वरुण ने आई.आई.टी. मुंबई से एम.टेक. किया. उसे विदेश में नौकरी मिल गई. वहीं उस ने एक लड़की से शादी कर ली. उस दिन मैं बहुत रोई थी. छोटे बेटे शशांक को बोकारो, जमशेदपुर में नौकरी मिल गई. उस ने भी एक विजातीय लड़की से प्रेम विवाह किया जिस ने कभी हमें अपना नहीं माना.

अमर के पत्र लगातार विराट के पास आते रहते. टे्रनिंग पूरी कर के उस की लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति हुई. एक बार हम से मिलने के लिए अमर 2 दिन के लिए आया था. किंतु मेरा व्यवहार उस के प्रति रूखा ही रहा. हां, उन 2 दिनों में मैं ने विराट को कहकहे लगाते देखा था.

फिर विराट को पक्षाघात हुआ तो मैं ने दोनों बच्चों को खबर दी. वे आए भी लेकिन किसी ने भी हमें अपने साथ रखने की बात नहीं की और न ही कोई पैसे से मदद की. उलटे दोनों बेटे नसीहत देने लगे कि हम अपना बंगला बेच दें और एक छोटा सा फ्लैट ले लें. पहली बार मुझे अपनी कोख पर अफसोस हुआ और एक पल को अमर की याद भी आई किंतु मेरा अहम आड़े आ गया.

कभीकभी अमर का फोन आता तो मैं टाल देती. विराट की बीमारी पर काफी पैसा लगा. आमदनी रही नहीं, सिर्फ खर्चे ही खर्चे. रोजरोज पानी उलीचने से तो कुआं भी खाली हो जाता है तो हमारे बैंक में जमा पैसे का क्या. हार कर अपना बंगला मुझे बेचना पड़ा.

देहरादून में पुश्तैनी टूटाफूटा घर था. उसी की मरम्मत करवा कर हम वहां रहने के लिए आ गए. मैं ने गुस्से के मारे अपने बेटों को खबर भी नहीं दी. हां, विराट के बहुत आग्रह पर 2 लाइनें अमर को लिख दीं जिस में अपना नया पता व टेलीफोन नंबर था.

पत्र मिलते ही अमर देहरादून आया. अब वह कैप्टन बन चुका था. सारी बात पता चलने पर उस ने अपने साथ चलने के लिए बहुत जिद की लेकिन विराट ने उसे समझाबुझा कर वापस भेज दिया.

अमर नियमित रूप से पत्र भेजता रहता. हालांकि वह पैसे से भी मदद करना चाहता था लेकिन मेरे अहम को यह गवारा न था.

अमर की शादी का निमंत्रण आया तो मैं ने कार्ड छिपा दिया. किसी कर्नल की बेटी से उस की शादी हो रही थी. उस का फोन भी आया तो मैं ने विराट को नहीं बताया. फिर एक दिन वह अपनी पत्नी को ले कर ही देहरादून आ गया. हालांकि बड़ी प्यारी और संस्कारी लड़की थी लेकिन मैं उन लोगों से खिंचीखिंची ही रही. उन के जाने पर विराट ने मुझ से झगड़ा किया कि मैं ने शादी के बारे में क्यों नहीं बताया.

अब विराट कुछ चुपचुप से रहने लगे थे. एक तो अपनी अपंगता के कारण, दूसरे, बच्चों की बेरुखी से वह आशाहीन से हो गए थे. शायद इसी कारण उन्हें यह अटैक पड़ा था. मैं ने घबराहट में दोनों बच्चों को फोन पर सूचना दी तो दोनों ने ही आने में अपनी असमर्थता जाहिर की. इस बार चाहते हुए भी मैं अमर को मदद के लिए नहीं बुला पाई. हां, दिल्ली आते समय पड़ोसियों को अस्पताल का पता दे कर आई थी एक उम्मीद में और वही हुआ. आखिर अमर पहुंच ही गया.

अचानक दरवाजे पर हुई दस्तक से मेरी तंद्रा भंग हो गई. दरवाजा खोल कर देखा तो सामने नौकर खड़ा था.

‘‘मांजी, खाना तैयार है. आप खा लीजिए. अस्पताल का खाना भी मैं ने पैक कर लिया है. फिर हम अस्पताल चलेंगे.’’

मैं ने जल्दीजल्दी कुछ कौर निगले और उस अर्दली के साथ अस्पताल पहुंच गई. देखा तो विराट काफी खुश लग रहे थे. मुझे यह देख कर बहुत अच्छा लगा. अमर ने बताया 2 दिन बाद आपरेशन है.

आपरेशन कामयाब रहा. सारी भागदौड़ और खर्च अमर ने ही किया. इस बार मैं ने उसे नहीं रोका. जब विराट को अस्पताल से छुट्टी मिली तो अमर ने एक बार फिर अपने साथ उस के घर डलहौजी चलने का आग्रह किया. जब विराट ने प्रश्नसूचक नजरों से मेरी ओर देखा तो मैं ने मुसकराते हुए मौन स्वीकृति दे दी. अमर को तो जैसे कुबेर का खजाना मिल गया. उस ने फौरन फोन कर के अपनी पत्नी भावना को बता दिया.

हम जब डलहौजी में अमर के बंगले पर पहुंचे तो भावना बाहर खड़ी मिली. जीप से उतरते ही उस ने सिर पर आंचल डाल कर मेरे पैर छुए. अमर सहारा दे कर विराट को अंदर ले गया.

विराट काफी खुश नजर आ रहे थे. मुझे भी काफी सुकून सा महसूस हुआ. अपनी बहुओं का तो मैं ने सुख देखा नहीं. पहली बार सास बनने का एहसास हो रहा था.

रात का खाना अमर ने अपने हाथों से अपने बाबूजी को खिलाया. काफी देर तक दोनों गप्पें मारते रहे. भावना बारबार आ कर मेरी जरूरतों के बारे में पूछ जाती.

खाने के बाद जब मैं बिस्तर पर लेटी थी तो अचानक मुझे दरवाजे के बाहर अमर की आवाज सुनाई पड़ी. मैं ने ध्यान से सुना तो वह भावना को मेरे लिए कौफी बनाने को कह रहा था.

मेरा मन भीग गया. उसे अभी भी याद है कि मैं खाने के बाद कौफी पीती हूं. थोड़ी देर में भावना टे्र में कौफी का मग ले कर आई, ‘‘मांजी, आप की कौफी लाई हूं साथ में आप का मीठा पान भी है.’’

अमर को याद रहा कि मीठा पान मेरी कमजोरी है. विराट को मेरा पान खाना पसंद नहीं था सो मैं कभीकभी अमर से ही पान मंगवाया करती थी. मैं द्रवित हो उठी.

2-3 सप्ताह बाद जब विराट की तबीयत में काफी सुधार आ गया तो मैं ने अमर से अपने घर जाने की बात की. अमर उदास हो गया और कहने लगा, ‘‘क्या आप यहां खुश नहीं हैं? क्या आप को कोई तकलीफ है?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है बेटा,’’ मेरे मुंह से अचानक निकल गया.

‘‘बेटा भी कह रही हैं और बेटे का हक भी नहीं दे रही हैं,’’ अमर भावुक हो कर बोला.

‘‘एक शर्त पर बेटे का हक दे सकती हूं, यदि तुम मुझे ‘मां’ कहो तो,’’ अपनी भावनाओं को मैं रोक नहीं पाई और अपनी दोनों बांहें पसार दीं. वह एक मासूम बच्चे की तरह मेरी गोद में समा गया और रोतेरोते बोला, ‘‘मां, अब मैं आप को और बाबूजी को कहीं नहीं जाने दूंगा. अब आप दोनों मेरे पास ही रहेंगे. बोलो मां, रहोगी न?’’ वह लगातार यह पूछता जा रहा था और मैं उस के बालों को सहलाते हुए बोली, ‘‘अपने बच्चों को छोड़ कर कौन मांबाप अकेले रहना चाहते हैं. हम यहीं रहेंगे, अपने बेटे के पास.’’

मैं भावुकता में बोले जा रही थी और मेरी आंखों से गंगायमुना बह रही थी. थोड़ी देर में तालियां बजने लगीं. मैं ने नजर उठा कर देखा तो विराट और भावना तालियां बजा रहे थे और हंस रहे थे.

उस रात मैं ने विराट से कहा, ‘‘अमर मेरी कोख से क्यों न हुआ?’’ तो वह बोले, ‘‘इस से क्या फर्क पड़ता है. है तो वह मेरा ही बेटा.’’

‘‘मेरा नहीं हमारा बेटा,’’ मैं तुरंत बोली और हम दोनों ठठा कर हंस पड़े.

YRKKH : विद्दा पोद्दार हाउस से अभिरा को निकालेगी बाहर, अपनी मां की बात मानेगा अरमान?

टीवी का चर्चित सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) के दर्शकों की संख्या अनगिनत है. यह सीरियल साल 2009 से दिखाया जा रहा है. इन बिते सालों में शो की कहानी में कई उतारचढ़ाव और लीप दिखाए गए. लेकिन दर्शकों का इस शो को लेकर इंट्रैस्ट बढ़ता ही गया. शो में अब तक कई कालाकर बदल चुके हैं. सीरियल में रोजाना एक से बढ़कर एक ट्विस्ट देखने को मिलता है. आज आपको इस सीरियल के नए अपडेट के बारे में बताएंगे.

ये रिश्ता क्या कहलाता है की कहानी में अब तक दिखाया गया है कि शादी से ठीक पहले रूही जमकर आंसू बहाती है और अभिरा से माफी मांगती है. तो दूसरी तरफ अभिरा अरमान के साथ मंडप में बैठ जाती है. दोनों की शादी होती है और वो दोनों परिवार का आशीर्वाद लेते हैं.

yeh rihsta kya kehlata hai

अरमान और अभिरा छोड़ेंंगे अपना घर

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि अरमान की मां विद्दा अभिरा और अपने बेटे की बेइज्जती खुद को कमरे में बंद कर लेगी. अरमान अपनी मां की ये हालत देखकर घबरा जाएगा. वह बिना देर किए अपनी मां को मनाने जाएगा. हालांकि विद्या अपने कमरे का दरवाजा खोल देगी, अरमान अपनी मां से माफी मांगेगा लेकिन वह कहेगी कि अगर अरमान अभिरा को छोड़ेगा तभी उसको माफी मिलेगी.

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अपनी मां को याद करेगा अरमान

शो में आप आगे देखेंगे कि अरमान अभिरा इसके लिए राजी हो जाएगा, लेकिन वह भी अभिरा के साथ घर छोड़ देगा. पोद्दार हाउस से निकलने के बाद अरमान और अभिरा को काफी संघर्ष करना पड़ेगा और दोनों आम आदमी की तरह जिंदगी जिएंगे. अरमान को अपनी मां की याद आएगी, लेकिन वह कठोर बनकर फैसला करेगा कि वह कभी भी अपने परिवार को अपना चेहरा नहीं दिखाएगा.

अरमान ने रूही को किया जमकर जलील

सीरियल के बिते एपिसोड में आपने देखा था कि शादी के बाद अरमान और अभिरा को कई चैलेंजेस का सामना करना पड़ा. अरमान की मां ही उसकी दुश्मन बन गई. तो दूसरी तरफ अरमान ने रूही को जमकर जलील किया. उसने दावा किया कि रूही उससे प्यार नहीं करती है. रूही को सबक सिखाने के बाद अरमान अभिरा के पास गया और उसने अपने दिल की बात कही. अरमान ने कहा कि वह सिर्फ और सिर्फ अभिरा से प्यार करता है. जिसके बाद दोनों शादी करने के लिए मंडप में गए.

तो इधर अरमान की मां विद्या आगबबूला हो गई और कहा कि कि शादी के बाद अरमान और अभिरा  कभी भी खुश नहीं रहेंगे. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि परिवार से दूर अरमान और अभिरा अपनी नई जिंदगी में आने वाली मुश्किलों का कैसे सामना करेंगे?

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