Summer Special: खूबसूरती का सतरंगा अहसास है सापूतारा

गुजरात का सापूतारा एक ऐसा टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, जहां ट्रैकिंग,एडवेंचर के साथ वाटरफॉल और दूर-दूर तक हरियाली दिखाई देता है. यह गुजरात का एकमात्र हिल स्टेशन है. भीड़भाड़ से दूर एक ऐसी जगह, जहां गांव और शहर दोनों का मजा साथ-साथ है. शहर की आपाधापी से दूर आदिवासियों के बीच एक दूसरी ही दुनिया है.

फैमिली के साथ करें एंज्वॉय

छुट्टियों पर जाने का मकसद तो बस इतना ही होता है कि ज्यादा से ज्यादा एंज्वॉय कर सकें. जगह इतनी खूबसूरत हो कि सारी परेशानियां और पूरे साल की आपाधापी की थकावट दूर कर सकें. वादियां इतनी खूबसूरत हों कि साल भर मन गुदगुदाता रहे. कुछ ऐसा ही है सापूतारा.

बादल कब आपको भिगो दें, पता ही नहीं चलता. थोड़ी-थोड़ी देर में होने वाली रिमझिम से पूरी वादी हरी-भरी, चंचल-सी लगने लगती है. जिधर नजर दौड़ाइए, वादियां, पहाडिय़ां, उमड़ते-घुमड़ते बादल, तपती गरमी में मन को शांति देते हैं, जबकि ठंड में पहाडिय़ों पर सफेद बर्फ की चादर हर किसी को लुभाती है.

एडवेंचर के साथ मस्ती भी

एक पर्यटक को चंद दिन गुजारने के लिए जो सुकून, मस्ती चाहिए सापूतारा में वह सब एक साथ मौजूद है. घने जंगलों के बीच से गुजरते इस छोटे से टूरिस्ट स्पॉट पर एडवेंचर पसंद करने वाले पर्यटकों के लिए जिप राइडिंग, पैराग्लाइडिंग, माउंटेन बाइकिंग के साथ साथ माउंटेनियरिंग की सुविधाएं भी मौजूद हैं. घने जंगलों से होकर इस गुजराती आदिवासी प्रदेश से गुजरना काफी रोमांचक है. पहाडिय़ों के बीच से जब आप गुजरेंगे, तो जगह- जगह छोटे-छोटे वाटरफॉल रोमांचित करते जाएंगे. झील, फॉल, ट्रैकिंग और एडवेंचर को एंज्वॉय करने का कंपलीट डेस्टिनेशन होने की वजह से युवाओं का फेवरेट टूरिस्ट स्पॉट भी है.

आदिवासियों का जनजीवन

गुजरात पर्यटन सापूतारा को हॉट टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने और आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए खास तरह की तैयारी कर रहा है. आदिवासियों के घरों का चयन कर टूरिस्ट फ्रेंडली और उनके घरों में शौचालयों की व्यवस्था कर रही है. पर्यटक अधिक से अधिक आदिवासियों के जनजीवन को समझ सकें, इसके लिए आदिवासियों को भी खास तरह का प्रशिक्षण दिया गया है. आदिवासियों के साथ एक रात गुजारने की कीमत 2500 से तीन हजार रुपये है.

सापूतारा महाराष्ट्र और गुजरात के बॉर्डर पर है. सापूतारा नासिक और शिरडी से महज 70-75 किलोमीटर की दूरी पर है इसलिए यहां देशभर के पर्यटक आते हैं. दो-दो धार्मिक स्थल के बीच में होने की वजह से यह पूरा क्षेत्र शाकाहारी है. बहुत ढूंढऩे के बाद कहीं एक-आध नानवेज की दुकान मिलती है. इसलिए इसे शाकाहारी शहर भी कहते हैं.

बारिशों का लुत्फ

रिमझिम बारिश के बारे में यहां के लोगों का कहना है कि यहां कभी-भी बारिश होती है और छतरी की जरूरत नहीं पड़ती है. ये बारिश आपको गुदगुदाती हैं. पहाड़ियों पर उमड़ते-घुमड़ते बादल कभी भी पहाड़ियों को अपने आगोश में ले लेते हैं. इन्हीं पहाड़ियों के बीच जिप ट्रैकिंग भी है.

अन्य आकर्षण

सापूतारा नाम के हिसाब से यहां सांप का झुंड या बसेरा होना चाहिए था. शायद वह घने जंगलों में हो. हां, यहां सांप का मंदिर जरूर है, जो पर्यटकों और बच्चों में खासा पॉपुलर है. यहां एक झील भी है, जो कपल्स के लिए मोस्ट रोमांटिक डेटिंग प्लेस की तरह दिखाई देता है. बोटिंग करते लोग और बारिश पूरे वातावरण को रोमांचक बना देता है. यहां पर जगह-जगह छल्ली मिलती है-नमक, मिर्च और नींबू के साथ,चाय और उबली हुई मूंगफली. अलग ही मजा है उबली मूंगफली का भी. यहां से ही कुछ दूरी पर है गिरा फॉल, जिसे नियाग्रा फॉल के नाम से भी जाना जाता है. यहां पहुचने का रास्ता घने जंगलों से होकर गुजरता है. मध्यमवर्गीय परिवारों का भी यह फेवरेट टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, क्योंकि यहां 1100 रुपये से लेकर 5500 रुपये तक के कमरे मौजूद हैं.

कैसे पहुंचें

सापूतारा सूरत, नासिक या शिरडी से भी पहुंचा जा सकता है. नजदीकी हवाई अड्डा सूरत है, जो करीब 170 किमी. की दूरी पर है. छोटी लाइन की ट्रेन से बाघई फिर वहां से सापूतारा पहुंच सकते हैं.

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Travel Special: चलिए टॉय ट्रेन के मजेदार सफर पर

खूबसूरत वादियों में कभी घने जंगल, तो कभी टनल और चाय के बगानों के बीच से होकर गुजरती टॉय ट्रेन की यात्रा आज भी लोगों को खूब रोमांचित करती है. अगर आप फैमिली के साथ किसी ऐसी ही यात्रा पर निकलने का प्लान बना रहे हैं, तो विश्व धरोहर में शामिल शिमला, ऊटी, माथेरन, दार्जिलिंग के टॉय ट्रेन से बेहतर और क्या हो सकता है?

कालका-शिमला टॉय ट्रेन

हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वैली हमेशा से पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती रही है. लेकिन कालका-शिमला टॉय ट्रेन की बात ही कुछ और है. इसे वर्ष 2008 में यूनेस्को ने वल्र्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया था. कालका शिमला रेल का सफर 9 नवंबर, 1903 को शुरू हुआ था. कालका के बाद ट्रेन शिवालिक की पहाड़ियों के घुमावदार रास्तों से होते हुए करीब 2076 मीटर की ऊंचाई पर स्थित खूबसूरत हिल स्टेशन शिमला पहुंचती है. यह दो फीट छह इंच की नैरो गेज लेन पर चलती है.

इस रेल मार्ग में 103 सुरंगें और 861 पुल बने हुए हैं. इस मार्ग पर करीब 919 घुमाव आते हैं. कुछ मोड़ तो काफी तीखे हैं, जहां ट्रेन 48 डिग्री के कोण पर घूमती है. शिमला रेलवे स्टेशन की बात करें, तो छोटा, लेकिन सुंदर स्टेशन है. यहां प्लेटफॉर्म सीधे न होकर थोड़ा घूमा हुआ है. यहां से एक तरफ शिमला शहर और दूसरी तरफ घाटियों और पहाड़ियों के खूबसूरत नजारे देखे जा सकते हैं.

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (टॉय ट्रेन) को यूनेस्को ने दिसंबर 1999 में वल्र्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया था. यह न्यू जलापाईगुड़ी से दार्जिलिंग के बीच चलती है. इसके बीच की दूरी करीब 78 किलोमीटर है. इन दोनों स्टेशनों के बीच करीब 13 स्टेशन हैं. यह पूरा सफर करीब आठ घंटे का है, लेकिन इस आठ घंटे के रोमांचक सफर को आप ताउम्र नहीं भूल पाएंगे. ट्रेन से दिखने वाले नजारे बेहद लाजवाब होते हैं. वैसे, जब तक आपने इस ट्रेन की सवारी नहीं की, आपकी दार्जिलिंग की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी.

शहर के बीचों-बीच से गुजरती यह रेल गाड़ी लहराती हुई चाय बागानों के बीच से होकर हरियाली से भरे जंगलों को पार करती हुई, पहाड़ों में बसे छोटे -छोटे गांवों से होती हुई आगे बढ़ती है. इसकी रफ्तार भी काफी कम होती है. अधिकतम रफ्तार 20 किमी. प्रति घंटा है. आप चाहें, तो दौड़ कर भी ट्रेन पकड़ सकते हैं. इस रास्ते पर पड़ने वाले स्टेशन भी आपको अंग्रेजों के जमाने की याद ताजा कराते हैं.

दार्जिलिंग से थोड़ा पहले घुम स्टेशन है, जो भारत के सबसे ऊंचाई पर स्थित रेलवे स्टेशन है. यह करीब 7407 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां से आगे चलकर बतासिया लूप आता है. यहां एक शहीद स्मारक है. यहां से पूरे दार्जिलिंग का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है. इसका निर्माण 1879 और 1881 के बीच किया गया था. पहाड़ों की रानी के रूप में मशहूर दार्जिलिंग में पर्यटकों के लिए काफी कुछ है. आप दार्जिलिंग और आसपास हैप्पी वैली टी एस्टेट, बॉटनिकल गार्डन, बतासिया लूप, वॉर मेमोरियल, केबल कार, गोंपा, हिमालियन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट म्यूजियम आदि देख सकते हैं.

नीलगिरि माउंटेन रेलवे

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे की तरह नीलगिरि माउंटेन रेल भी एक वल्र्ड हेरिटेज साइट है. इसी टॉय ट्रेन पर मशूहर फिल्म ‘दिल से’ के ‘ चल छइयां-छइयां’ गाने की शूटिंग हुई थी. आपको जानकर थोड़ी हैरानी भी हो सकती है कि मेट्टुपालियम-ऊटी नीलगिरि पैसेंजर ट्रेन भारत में चलने वाली सबसे धीमी ट्रेन है. यह लगभग 16 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है. कहीं-कहीं पर तो इसकी रफ्तार 10 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो जाती है. आप चाहें, तो आराम से नीचे उतर कर कुछ देर इधर-उधर टहलकर, वापस इसमें आकर बैठ सकते हैं. मेट्टुपालियम से ऊटी के बीच नीलगिरि माउंटेन ट्रेन की यात्रा का रोमांच ही कुछ और है. इस बीच में करीब 10 रेलवे स्टेशन आते हैं.

मेट्टुपालियम के बाद टॉय ट्रेन के सफर का अंतिम पड़ाव उदगमंदलम है. यह टॉय ट्रेन हिचकोले खाते हरे-भरे जंगलों के बीच से जब ऊटी पहुंचती है, तब आप 2200 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर पहुंच चुके होते हैं. मेट्टुपालियम से उदगमंदलम यानी ऊटी तक का सफर करीब 46 किलोमीटर का है. यह सफर करीब पांच घंटे में पूरा होता है. अगर इतिहास की बात करें, तो वर्ष 1891 में मेट्टुपालियम से ऊटी को जोड़ने के लिए रेल लाइन बनाने का काम शुरू हुआ था. पहाड़ों को काट कर बनाए गए इस रेल मार्ग पर 1899 में मेट्टुपालियम से कन्नूर तक ट्रेन की शुरुआत हुई. जून 1908 इस मार्ग का विस्तार उदगमंदलम यानी ऊटी तक किया गया. देश की आजादी के बाद 1951 में यह रेल मार्ग दक्षिण रेलवे का हिस्सा बना. आज भी इस टॉय ट्रेन का सुहाना सफर जारी है.

नरेल-माथेरान टॉय ट्रेन

महाराष्ट्र में स्थित माथेरान छोटा, लेकिन अद्भुत हिल स्टेशन है. यह करीब 2650 फीट की ऊंचाई पर है. नरेल से माथेरान के बीच टॉय ट्रेन के जरिए हिल टॉप की जर्नी काफी रोमांचक होती है. इस रेल मार्ग पर करीब 121 छोटे-छोटे पुल और करीब 221 मोड़ आते हैं. इस मार्ग पर चलने वाली ट्रेनों की स्पीड 20 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा नहीं होती है. माथेरान करीब 803 मीटर की ऊंचाई पर इस मार्ग का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है. यह रेलवे की विरासत का एक अद्भुत नमूना है.

माथेरान रेल की शुरुआत 1907 में हुई थी. बारिश के मौसम में एहतियात के तौर पर इस रेल मार्ग को बंद कर दिया जाता है. पर मौसम ठीक रहने पर एक रेलगाड़ी चलाई जाती है. माथेरन का प्राकृतिक नजारा बॉलीवुड के निर्माताओं को हमेशा से आकर्षित करता रहा है.

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जीवन में चाहे जितनी कठिनाइयां क्यों न आएं लेकिन अगर आप अपनों को समय देते हुए साथ साथ काम करते चलते हैं तो कठिनाइयां चुटकियों में कम हो जाती हैं. अपने बिजी शेड्यूल से कुछ वक्त चुराइए और आ जाइए नार्थ की इन रोमांटिक डेस्टिनेशन पर जाए. जहां आप और आपके पार्टनर के बीच सारी गलतफहमियां खत्म हो जायेंगी.

शादी एक ऐसा पवित्र बंधन जो न सिर्फ दो लोगों या दो परिवारों को मिलाती है बल्कि दो आत्माओं को भी एक करती है. एक ऐसी गांठ जो लाइफ को प्यार, आनंद और रोमांस की ओर ले जाता है. तो क्यों न इसमें एक ट्विस्ट डाले जो जाए एक सुखद रोमांटिक ट्रीप पर. पर ज्यादातर लोग यह सोचकर परेशान हो जाते हैं कि आखिर जाए कहां. अपने रोमांटिक ट्रीप को यादगार कैसे बनाए.

तो आइए हम आपको कुछ खूबसूरत और आनंद से भरे रोमांटिक डेस्टिनेशन के बारे में बताते हैं.

1. चंबा

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित चंबा रोमांटिक युगल के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है. प्रदूषित रहित वातावरण, शांत व मनोरम दृश्य, ऊंचे ऊंचे घने वृक्ष, नदी का कल कल करता पानी और यहां की संस्कृति आपको बेहद भाएगी, कि आप यहीं रह जाने को सोचने लगेंगे. यह जगह सेब के बाग के लिए भी मशहूर है. यहां आप कई आकर्षक मंदिरों के भी दर्शन कर सकते हैं.

2. शिलांग

पूर्वोत्तर भारत का बेहद आकर्षक स्थल शिलांग पूर्वोत्तर भारत का स्कॉटलैंड कहा जाता है. हरे भरे घने जंगल, फूलों की मनमोहक खुशबु, बादलों को ओढ़े पहाड़ और पानी का शोर यह सब देखके मन शिलांग की खूबसूरती में डूब जाता है. यहाँ के लोग और उनकी संस्कृति भी बेमिसाल है, मेहमानों की खातिरदारी का यह एक जीत जागता उदाहरण हैं.

3. नुब्रा घाटी

लद्दाख के बाग के नाम से जाना जाने वाली नुब्रा घाटी फूलों की घाटी कहलाती है. गर्मियों के मौसम में यहाँ पीले रंग के जंगली गुलाब खिल जाते हैं. जिनका दृश्य बेहद लुभावना लगता है. साल बाहर बर्फ से ढकी रहने वाली नुब्रा घाटी कारण विश्व प्रसिद्ध है, जिसे हर युगल जोड़ा पसंद करती है, इसकी ठंडी वादिया प्यार को गर्म करने की कोशिश करती है.

4. सापूतारा

गुजरात का हरा भरा और गुजरात की नमी को समेटे हुए सापूतारा बेहद लोकप्रिय स्थल है. सापूतारा झील, सूर्यास्त प्वाइंट, सूर्योदय प्वाइंट, टाउन व्यू प्वाइंट और गांधी शिखर जैसे कई आकर्षणों के लिए जाना जाता है. यहाँ कई अभ्यारण,पार्क और बाग़ हैं- वंसदा नेशनल पार्क, पूर्णा अभयारण्य, गुलाब उद्यान, रोपवे सापूतारा आदि. यहाँ आकर आप प्राकृतिक नज़ारों का जी भर के लुफ्त उठा सकते हैं.

5. कलिम्‍पोंग

कलिम्‍पोंग भारत के पश्चिम बंगाल राज्‍य में स्थित यह आकर्षक स्थल हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है. आप अपने पार्टनर के साथ यहाँ आ सकते हैं क्यूंकि यहाँ की बर्फ से ढकी चोटियां एक बेहद रोमांटिक दृश्य प्रस्तुत करती हैं. यहाँ की ठंडी ठंडी हवा आपकी सारी थकान पल-भर में गायब कर देगी, जिससे आप एकदम रिलेक्स फील करेंगे.

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पर्यटन आज शौक का नहीं, बल्कि लाइफस्टाइल का भी हिस्सा बन चुका है. रोजमर्रा की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब नीरसता पनपने लगती है तो इंसान चंद दिनों के लिए मौजमस्ती पर निकलना चाहता है.

हम अपनी छुट्टियों को यादगार बना सकते हैं. किंतु उस के लिए जरूरी है कि हम अपने यात्रा के व्यय को नियंत्रित रखें, क्योंकि लापरवाही से खर्च कर के हम मस्ती तो कर लेंगे, लेकिन बाद में बजट बिगड़ने से उत्पन्न स्थिति अच्छेखासे मूड को खराब भी कर सकती है.

पहले बजट बनाएं

छुट्टियां मनाने के लिए प्राय: एकमुश्त रकम की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह खर्च दैनिक जीवन के सामान्य खर्चों से अलग होता है. इसलिए यह जरूरी है कि हौलिडे प्लान करते समय पहले आप अपना बजट बनाएं. तय करें कि आप कितने दिनों के लिए सफर पर जाना चाहते हैं और कितना पैसा खर्च करना चाहते हैं. उसी आधार पर आप को अपना डैस्टिनेशन चुनना होगा.

आप किस मोड से ट्रैवल करना चाहते हैं और किस तरह के होटल में ठहरना चाहते हैं यह भी आप को बजट के अनुरूप ही तय करना होगा. यदि आप सैल्फ कस्टमाइज टुअर पर जाना चाहते हैं, तो उस के लिए समय रहते बुकिंग करा कर कुछ रुपए बचा सकते हैं.

यदि आप पैकज टुअर पर जाना चाहते हैं तब भी आवश्यक है कि आप जल्द ही पैकेज की बुकिंग करा लें, क्योंकि टुअर औपरेटर जब देखते हैं कि टुअर की डिमांड अधिक है, तो वे भी कीमत बढ़ा देते हैं.

पर्यटन के दौरान रोज आप को कितना व्यय करना पड़ सकता है, बजट बनाते समय इस का अनुमान भी लगाना होगा, ताकि आप उतनी राशि नकद साथ रखें या क्रैडिट कार्ड अथवा एटीएम की लिमिट बचा कर रखें.

स्वतंत्र टुअर किफायती या पैकेज टुअर

अपने देश में घूमने के लिए अधिकतर लोग स्वतंत्र टुअर को प्राथमिकता देते हैं. जबकि विदेश यात्रा के लिए पर्यटक अकसर गु्रप पैकेज टुअर चुनना पसंद करते हैं.

अपने देश में भ्रमण करते समय आप को अपनी मुद्रा में व्यय करना होता है. आप पर्यटन स्थल के परिवेश और वहां की संस्कृति को समझते हैं. इसलिए आप असुरक्षित महसूस नहीं करते. ऐसे टुअर की स्वयं तैयारी करते हुए इसे अपने बजट में आसानी से सीमित रख सकते हैं.

जबकि विदेश यात्रा के मामले में विदेशी मुद्रा और वहां की भाषा, संस्कृति का अंतर होने के कारण पर्यटक के मन में असुरक्षा की भावना बनी रहती है. इसलिए विदेश यात्रा में लोगों को ग्रुप पैकेज टुअर में जाना अच्छा लगता है. वहीं विदेश में होटल, फूड आदि की स्वयं व्यवस्था करना पैकेज टुअर की तुलना में महंगा पड़ता है. इसलिए ट्रैवल फाइनैंस का प्रबंधन करते समय ध्यान रखें कि अपने देश में यात्रा करनी हो तो आप स्वतंत्र टुअर प्लान कर के पैसा बचा सकते हैं और विदेश यात्रा करनी हो तो पैकेज टुअर ज्यादा किफायती रहता है.

बुकिंग कराते समय

जब आप ने यह तय कर लिया कि आप स्वतंत्र टुअर पर निकलना चाहते हैं या पैकेज टुअर पर, तब आप उसी हिसाब से बुकिंग का माध्यम तय करें. खुद अपनी यात्रा मैनेज कर रहे हैं तो पहले ट्रेन या हवाईयात्रा की बुकिंग कराएं. यह आजकल आसानी से औनलाइन कराई जा सकती है.

ध्यान रखें, हवाईयात्रा के लिए आप जितना जल्दी बुकिंग कराएंगे टिकट उतना ही सस्ता मिलेगा. बहुत सी एअरलाइंस 30 दिन या 45 दिन पहले बुकिंग कराने पर बहुत सस्ता टिकट उपलब्ध कराती हैं. इस के अलावा आप लो कौस्ट एअरलाइन का विकल्प भी चुन सकते हैं.

छूट के मौसम में यात्रा करें

कम बजट में पर्यटन का ज्यादा आनंद लेना है, तो आप अपना कार्यक्रम पीक सीजन में न बनाएं. अब देखिए न पीक सीजन में ट्रैवल पैकेज हों या होटल पैकेज सभी महंगे होते हैं. लेकिन उन्हीं पैकेज पर औफ सीजन में 30 से 50% तक का डिस्काउंट मिलता है. तब कई लग्जरी पैकेज हमें अपने बजट के अनुरूप लगने लगते हैं. पीक सीजन में सैलानियों की तादाद ज्यादा होने लगती है, तो हर जगह कीमत शिखर पर पहुंचने लगती है.

विदेश यात्रा के मामले में भी सैलानियों को पीक सीजन से बचना चाहिए. ग्रीष्म अवकाश, न्यूईयर, क्रिसमस और शादियों के सीजन आदि के अलावा आप विदेश यात्रा का कार्यक्रम बनाएंगे तो यकीनन आप को सस्ते पैकेज मिलेंगे.

पहले घूमें फिर भुगतान करें

कभीकभी ऐसा भी हो सकता है कि आप ने बच्चों से छुट्टियों पर निकलने का वादा किया हुआ है, लेकिन हौलिडे प्लानिंग करते समय आप को लगता है कि उस समय आप अपनी बचत या रूटीन खर्चों से उतना पैसा नहीं निकाल पाएंगे. तब जरूरी नहीं कि आप छुट्टियां मनाने की योजना को स्थगित कर पूरे परिवार को निराश करें.

इस का सब से अच्छा विकल्प आज ट्रैवल लोन है. जी हां, लोगों के बढ़ते पर्यटन शौक को देखते हुए आज अनेक बैंक अपने ग्राहकों को ट्रैवल लोन देते हैं. यानी आप अपना ट्रैवल प्लान फाइनैंस करा कर आज घूमें और भविष्य में भुगतान करें. सामान्यतया यह लोन 1 वर्ष से 3 वर्ष के दौरान चुकाना होता है. ट्रैवल लोन ले कर आप अपने देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी घूम सकते हैं.

सफर के साथी क्रैडिट व ट्रैवल कार्ड

सफर की प्लानिंग करते समय डैस्टिनेशन पर बहुत से खर्चों और शौपिंग आदि के लिए आप के पास पर्याप्त राशि होनी चाहिए. लेकिन आजकल ज्यादा नकदी साथ रखना भी उचित नहीं है. ऐसे में क्रैडिट व डेबिट कार्ड आप के लिए बहुत सहायक होते हैं.

विदेश यात्रा के दौरान फंड की समुचित व्यवस्था बनाए रखने के लिए फौरेन करेंसी ट्रैवल कार्ड रखना अच्छा विकल्प है. एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, ऐक्सिस बैंक आदि की बड़े शहरों की चुनिंदा शाखाओं में इस तरह के ट्रैवल कार्ड जारी किए जाते हैं.

ओवरसीज इंश्योरैंस

विदेश यात्रा की तैयारी में ओवरसीज इंश्योरैंस एक आवश्यक कदम होता है. इस के अंतर्गत कवर होने वाले जोखिम जानने के बाद आप भी समझ सकते हैं कि थोड़े से प्रीमियम का भुगतान कर हम कितने सारे अकस्मात हो सकने वाले खर्चों से अपनी सुरक्षा कर लेते हैं.

इस पौलिसी के अंतर्गत दुर्घटना या बीमारी के इलाज से जुड़े खर्चे मुख्य रूप से कवर होते हैं. इन के अतिरिक्त हवाईजहाज में ले जाने वाले सामान का खोना या मिलने में एकदो दिन का विलंब होने का खर्च, पासपोर्ट गुम होने पर किया जाने वाला खर्च, किसी चूक से होटल या शोरूम आदि में हुई क्षति की भरपाई या ऐसे ही किसी और आकस्मिक नुकसान की स्थिति में यह पौलिसी एक सुरक्षाकवच के समान काम आती है.

ओवरसीज इंश्योरैंस पौलिसी ज्यादा महंगी भी नहीं होती. यह पौलिसी 1 दिन से 180 दिन के बीच किसी भी अवधि की ली जा सकती है. इस का प्रीमियम पौलिसी की अवधि एवं यात्री की आयु पर निर्भर करता है.

यह पौलिसी सभी साधारण बीमा कंपनियों एवं प्राइवेट इंश्योरैंस कंपनियों द्वारा जारी की जाती है. इस के लिए आप को अपने पासपोर्ट की कौपी देनी होगी. कुछ कंपनियां इस के लिए यात्री की मैडिकल रिपोर्ट भी साथ मांगती हैं. यात्रा के दौरान पौलिसी के साथ उन संस्थानों के फोन नंबर एवं वैबसाइट पते अवश्य साथ रखने होंगे.

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Travel Special: घूमने जाते समय मददगार साबित होंगे ये 15 टिप्स

बच्चों के ग्रीष्मावकाश प्रारम्भ हो चुके हैं और 2 वर्ष के कोरोना काल के बाद अब सभी अपने मनपसन्द पर्यटन स्थलों पर घूमने जाने का प्लान बना रहे हैं. घूमने जाने से पूर्व हमें 2 प्रकार की तैयारियां करनी होती हैं एक तो सफर के लिए दूसरे घर के लिए ताकि जब हम घूमकर आयें तो घर साफ़ सुथरा और व्यवस्थित मिले और आते ही हमें काम में न जुटना पड़े. यदि आप भी घूमने जाने का प्लान बना रहे हैं तो इन टिप्स आपके लिए बेहद मददगार हो सकते हैं-

1-आजकल अधिकांश पर्यटन स्थलों पर घूमने के लिए सभी बुकिंग्स ऑनलाइन होती है, भीडभाड से बचने और अपने सफर को आनन्ददायक  बनाने के लिए आप अपने रुकने और घूमने की सभी बुकिंग्स ऑनलाइन ही करके जायें.

2-जो भी बुकिंग्स आपने ऑनलाइन की हैं उनके या तो प्रिंट निकाल लें अथवा रसीद को स्केन करके अपने मोबाईल में सेव कर लें इसके अतिरिक्त घर से निकलने से पूर्व अपने होटल या रिजोर्ट में फोन काल अवश्य कर लें ताकि आपके पहुंचने पर आपको अपना रूम साफ सुथरा मिले.

3-यदि आपके बच्चे 10 वर्ष से अधिक उम्र के हैं तो परिवार के सभी सदस्यों के बैग्स अलग अलग रखकर उन्हें अपने बैग्स की जिम्मेदारी सौंप दें इससे आप फ्री होकर घूमने का आनन्द ले सकेंगी.

4-परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड और वेक्सिनेशन सर्टिफिकेट अपने मोबाईल में सेव करके रखें ताकि आवश्यता पड़ने पर आप उनका उपयोग कर सकें.

5-यदि आपका सफर लम्बा है तो अपने मोबाईल, टैब या लेपटॉप में अपनी मनपसन्द मूवी या गाने डाऊनलोड कर लें ताकि आपको सफर में बोरियत न हो.

6-आजकल फोटो खींचने के लिए मोबाईल का ही उपयोग किया जाता है, सफर पर जाने से पूर्व अपने मोबाईल की गेलरी में से सभी वीडिओ और फोटोज को लेपटॉप में ट्रांसफर कर लें ताकि घूमने के दौरान आप भरपूर फोटोज ले सकें.

7-अपने साथ पावर बैंक, अतिरिक्त मेमोरी कार्ड भी रखें ताकि आपका मोबाईल हर समय अपडेट रहे.

8-सफर की तैयारियों के दौरान अक्सर घर अव्यवस्थित हो जाता है और फिर वापस आकर अस्त व्यस्त घर को देखकर आपका ही मूड ऑफ हो जाता है इससे बचने के लिए आप जाने से पूर्व घर को भली भांति व्यवस्थित करके जायें ताकि वापस आकर आप चैन से आराम फरमा सकें.

9-जहां तक सम्भव हो किचिन के सिंक में जूठे बर्तन न छोड़ें साथ किचिन के प्लेटफोर्म और गैस स्टैंड की अच्छी तरह सफाई करके ही जायें ताकि लौटने पर आपको बदबू और काकरोच आदि का सामना न करना पड़े.

10-फ्रिज में गर्म करके रखा गया दूध 10 से 15 दिन तक खराब नहीं होता, वापस आने पर आपको चाय और बच्चों के लिए दूध आदि के लिए परेशान न होना पड़े इसलिए फ्रिज में ढककर दूध रखकर जायें.

11-टमाटर, पालक, धनिया, पुदीना, कच्ची केरी आदि को मिक्सी में पीस लें और इस प्यूरी को आइस ट्रे में फ्रिज में जमा दें, इनके अतिरिक्त जो भी सब्जियां उन्हें या तो हटा दें अथवा किसी कामगार को दे दें.

12-घर के बेड, सोफा, डायनिंग टेबल आदि पर पुरानी चादर डाल दें वापस आकर केवल चादर हटाकर आप अपना दैनिक कार्य प्रारम्भ कर सकें.

13-यदि आप अपनी गाड़ी से जा रहे हैं तो फ़ास्ट टैग अवश्य लगवाएं अन्यथा आपको दोगुना टोल टैक्स देना पड़ सकता है. फ़ास्ट टैग आर टी ओ आफिस, बैंक या किसी भी नागरिक सुविधा केंद्र से आसानी से प्राप्त किया जा सकता है.

14-अपने साथ हैण्ड सेनेटाइजर, मास्क, उल्टी, दस्त, बुखार, सिरदर्द की आवश्यक दवाइयां तथा ग्लूकोज अवश्य ले जायें साथ ही तरल पदार्थों का भरपूर सेवन करके स्वयं को हाईड्रेट रखें.

15-यदि सम्भव हो तो अपने साथ कुछ खाद्य पदार्थ घर से बनाकर ले जायें क्योंकि कई बार रास्ते में कुछ भी नहीं मिलता और सफर में काम के अभाव में भूख तो लगती ही है.

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Summer Special: नैनों में नैनीताल…

नैनीताल उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख शहर है. कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल जिले का विशेष महत्व है. देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है. यह ‘छखाता’ परगने में आता है. ‘छखाता’ नाम ‘षष्टिखात’ से बना है. ‘षष्टिखात’ का तात्पर्य साठ तालों से है. इस अंचल मे पहले साठ मनोरम ताल थे. इसीलिए इस क्षेत्र को ‘षष्टिखात’ कहा जाता था.

आज भी नैनीताल जिले में सबसे अधिक ताल हैं. इसे भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है. ‘नैनी’ शब्द का अर्थ है आँखें और ‘ताल’ का अर्थ है झील. झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल है. बर्फ़ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्‍थान झीलों से घिरा हुआ है. इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा है. इसलिए इसे झीलों का शहर भी कहा जाता है. नैनीताल को जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है.

आकाश पर छाये हुए बादलों का प्रतिबिम्ब इस तालाब में इतना सुन्दर दिखाई देता है कि इस प्रकार के प्रतिबिम्ब को देखने के लिए सैकड़ो किलोमीटर दूर से प्रकृति प्रेमी नैनीताल आते-जाते हैं. जल में विहार करते हुए बत्तखों का झुण्ड, थिरकती हुई तालों पर इठलाती हुई नौकाओं तथा रंगीन बोटों का दृश्य और चाँद-तारों से भरी रात का सौन्दर्य नैनीताल के ताल की शोभा बढ़ाने में चार – चाँद लगा देता है. इस ताल के पानी की भी अपनी विशेषता है. गर्मियों में इसका पानी हरा, बरसात में मटमैला और सर्दियों में हल्का नीला हो जाता है.

1.नैना देवी मंदिर

नैनी झील के उत्‍तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है. १८८० में भूस्‍खलन से यह मंदिर नष्‍ट हो गया था. बाद में इसे दुबारा बनाया गया. यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है. मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं.

2.नैनी झील

नैनीताल का मुख्‍य आकर्षण यहाँ की झील है. स्‍कंद पुराण में इसे त्रिऋषि सरोवर कहा गया है. कहा जाता है कि जब अत्री, पुलस्‍त्‍य और पुलह ऋषि को नैनीताल में कहीं पानी नहीं मिला तो उन्‍होंने एक गड्ढा खोदा और मानसरोवर झील से पानी लाकर उसमें भरा.

इस खूबसूरत झील में नौकायन का आनंद लेने के लिए देश-विदेश से लाखों पर्यटक यहाँ आते हैं. झील के पानी में आसपास के पहाड़ों का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है. रात के समय जब चारों ओर बल्‍बों की रोशनी होती है तब तो इसकी सुंदरता और भी बढ़ जाती है. झील के उत्‍तरी किनारे को मल्‍लीताल और दक्षिणी किनारे को तल्‍लीताल करते हैं. यहां एक पुल है जहां गांधीजी की प्रतिमा और पोस्‍ट ऑफिस है. यह विश्‍व का एकमात्र पुल है जहां पोस्‍ट ऑफिस है.

नैनीताल के ताल के दोनों ओर सड़के हैं. ताल का मल्ला भाग मल्लीताल और नीचला भाग तल्लीताल कहलाता है. मल्लीताल में फ्लैट का खुला मैदान है. मल्लीताल के फ्लैट पर शाम होते ही मैदानी क्षेत्रों से आए हुए सैलानी एकत्र हो जाते हैं. यहाँ नित नये खेल – तमाशे होते रहते हैं.

3.नैना पीक

सात चोटियों में चीनीपीक (नैना पीक या चाइना पीक) २,६११ मीटर की ऊँचाई वाली पर्वत चोटी है. नैनीताल से लगभग साढ़े पाँच किलोमीटर पर यह चोटी पड़ती है. यहां एक ओर बर्फ़ से ढ़का हिमालय दिखाई देता है और दूसरी ओर नैनीताल नगर का पूरा भव्य दृश्‍य देखा जा सकता है. इस चोटी पर चार कमरे का लकड़ी का एक केबिन है जिसमें एक रेस्तरा भी है.

4.हनुमानगढ़ी

हनुमानगढ़ी तल्लीताल के दक्षिण में है. यह मंदिर समुद्र तल 6,401 फीट की ऊंचाई पर है. धार्मिक महत्तव के साथ ही यहां पर सूर्योदय और सूर्यास्त का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है.

5.भवाली

भवाली से अल्मोरा और बागेश्वर आसानी से पहुंचा जा सकता है.

6.नौकुचियाताल

यह भीमताल से 4 कि मी दक्षिण-पूरब समुद्र की सतह से 1292 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. इसे ‘नौ कोने वाले ताल’ भी कहा जाता है. इस ताल में विदेशी पक्षियों का बसेरा रहता है. नौका विहार के शौकीन लोगों की यह पसंदीदा जगह है.

7.सात ताल

सात ताल का अनोखा और नैसर्गिक सौंदर्य सबका मन मोह लेता है. इस ताल तक पहुँचने के लिए भीमताल से ही मुख्य मार्ग है. यहां माहरा गांव से भी पहुंचा जा सकता है. इसके आस-पास घने जंगल है. इस ताल की विशेषता है कि लगातार सात तालों का सिलसिला इससे जुड़ा हुआ है.

सात ताल की विशेषता है कि इससे लगातार सात तालों का सिलसिला जुड़ा हुआ है.

8.भीमताल

यह एक त्रिभुजाकर झील है. यह काठगोदाम से 10 कि. मी. की दूरी पर है. यह नैनीताल से भी बड़ा ताल है. नैनीताल से भीमताल की दूरी 22.5 कि. मी. है. इस ताल के बीच में एक टापू है.

कैसे पहुंचे

वायु मार्ग- निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर विमानक्षेत्र नैनीताल से ७१ किमी. दूर है. यहाँ से दिल्‍ली के लिए उड़ानें हैं.

रेल मार्ग- निकटतम रेलहेड काठगोदाम रेलवे स्‍टेशन (३५ किमी.) है जो सभी प्रमुख नगरों से जुड़ा है.

सड़क मार्ग- नैनीताल राष्ट्रीय राजमार्ग ८७ से जुड़ा हुआ है. दिल्ली, आगरा, देहरादून, हरिद्वार, लखनऊ, कानपुर और बरेली से रोडवेज की बसें नियमित रूप से यहां के लिए चलती हैं.

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नेचर का लाइट जोन है हिमाचल

हमारी टोली की ट्रैक गाइड आइसा कह रही थी, ‘‘इस बार कुछ नया हंगामा करेंगे. खानाबदोशी का निराला जश्न मनाएंगे. ऐसा ट्रैक पकड़ेंगे कि हिमाचल प्रदेश के अधिकांश ऊपरी रोमांचक स्थलों पर पैदल घूमा जा सके और वहां बसे लोगों के संग फुरसत से रहा जा सके. हम तिब्बत से जुड़ी भारत की अंतिम आबादियों तक जाएंगे.’’

इस सफर में 14 मित्र शामिल हुए, हालांकि हमें 10 से ज्यादा की उम्मीद नहीं थी. पहाड़ों पर छोटी टोली में  झं झट कम रहते हैं. आइसा जैसी गाइड हों तो 2 ही बहुत हैं.

अगली सुबह हम ओल्ड मनाली से क्लबहाउस के रास्ते सोलंगनाला की पगडंडी पर थे. मनालसू नदी पीछे छूट गई. अब व्यास नदी हमारे दाहिने थी. सब नदी पार बसे वसिष्ठ गांव और उस के आगे के जोगनी फौल के खुलेपन को देख रहे थे. धीरेधीरे हम सब में एक फासला आ गया और हम बातचीत भूल कर नजारों में डूब गए.

हिमालय की घाटियों से बचपन से परिचित आइसा सब से आगे थी. पीछे छूट जाने वाले मित्रों की सुविधा के लिए वह हर मोड़ या दोराहे पर चट्टान पर चाक से तीर का निशान बना कर ‘एस’ लिख रही थी, ताकि अगर मोबाइल फोन काम न कर सके तो आगे मिला जा सके.

स्कूल के लिए निकले बालकबालिकाएं और बागों व वनों में निकले स्त्रीपुरुष मुसकराते और हाथ हिलाते. दोनों ओर फैले सेब के बागों में भरे अधपके सेबों पर लाली आ रही थी. सामने धौलाधार का अंतिम शिखर और उस से जुड़ा रोहतांग पर्वत अपने विराट रूप में सुबह की किरणों का सुनहरा जादू ओढ़े प्रतीत हो रहे थे.

2 घंटे के बाद सोलंगनाला के चट्टानी नदी तट पर हमारी टोली शवासन में लेटी थी. आइसा ने हमें मन और सांस को साधने की यौगिक क्रिया से गुजारा और बताया कि किस तरह शरीर थक जाने के बाद भी वह स्वयं को दोबारा अनोखी ऊर्जा से भर देता है. होश और जोश के साथ मन से मिलजुल कर भोजन पकाया व खाया. दोपहर बाद चाय पी कर हम मनाली-लेह रोड की चढ़ाई की ओर मुड़े. पलचान और कोठी के बीच के अनोखे मखमली भूभाग से गुजर कर शाम को गुलाबा के ऊपरी वन में पहुंचे, जहां देवदारों का सिलसिला समाप्त होता है और भोजपत्र के वन दिखाई देने लगते हैं.

सुबह हम चले तो ग्लेशियरों और  झरनों से घिरी चढ़ाई पार कर के मढ़ी पहुंचे, जहां पेड़पौधे नहीं उगते. हमारे सिरों के ऊपर सैलानी हैंडग्लाइडरों पर उड़ रहे थे. यहां से मनाली तक की ढलानों और उन पर बिछी सर्पीली सड़क और चारों ओर के बर्फ ढके पहाड़ों को देखना रोमांचक है.

मढ़ी के निचले क्षेत्र में नदी की धाराओं और ग्लेशियरों पर हजारों पर्यटकों को एक नजर में खेलते और खातेपीते देखा जा सकता है. मढ़ी में भी एक ढाबे में जलते चूल्हे के इर्दगिर्द हमारे रैनबसेरे का इंतजाम हो गया, अपने पल्ले में ओढ़नेबिछाने और खानेपीने का इंतजाम हो तो मईजून में जनवरीफरवरी की ठंडक पाने का मजा ही कुछ और है. जहां जलाने की लकड़ी नहीं होती, वहां चाय बनाने के लिए नन्हा गैसस्टोव हमारी मदद कर रहा था. रोमांच की आंच हो तो इस से अच्छा और क्या हो सकता है.

हमारी टोली की जयपुरवासी नेहा गा रही थी, ‘‘इस रंग में कोई जी ले अगर…’’

सुबह सूरज निकलते ही हम रोहतांग पर्वत की चोटी पर चढ़ रहे थे, दिसंबर से 5-6 महीने के लिए यह रास्ता वाहनों और पैदल यात्रियों के लिए पूरी तरह बंद हो जाता है, लेकिन जून से अक्तूबर तक इस पर दुनियाभर के सैलानियों का मेला दिखाई देता है. हजारों लोग जोखिम उठा कर अपनी कारों पर सपरिवार यहां पहुंचते हैं.

मनाली से रोहतांग शिखर 52 किलोमीटर है. हम ने शौर्टकट वाली कुछ पगडंडियां पकड़ कर 10-12 किलोमीटर कम कर लिए थे. इस में चढ़ाई ज्यादा बढ़ जाती है, लेकिन कुदरत के अजूबे ज्यादा मिलते हैं.

दोपहर से पहले हम रोहतांग की चोटी पर थे. पर्यटकों को ले कर मनाली से मुंहअंधेरे निकली गाडि़यों की कतारें लग रही थीं. यहां की बर्फ से व्यास नदी निकली है जो आगे आने वाले  झरनों और नालों से भरती चली गई है. रोहतांग पर्वत पर नीले आसमान से उतरी मीठी धूप में बैठने, बर्फीले मैदानों पर टहलने और ढलानों पर फिसलने का मजा लेने के बाद रोहतांग के उस पार निकले.

उतराई पर बसमार्ग से हट कर निकली पगडंडी ने हमारे सफर को राहत दी. 3 घंटे के बाद हम रोहतांग की तलहटी पर बहती चंद्र नदी के किनारे अगले भोजन के लिए

3 पत्थरों वाला चूल्हा बना रहे थे. सूखे हुए तिनके और डंठल आसानी से मिल गए. सूखा हुआ गोबर भी काम आया. ग्रांफू नामक इस जगह से बाएं लाहुलस्पिति के मुख्यालय केलांग को और दाएं स्पिति घाटी को रास्ते हैं. हमें स्पिति जाना था. तभी घास से अधभरा एक ट्रक हमारे चूल्हे के पास आ कर रुका. ड्राइवर ने हमारी चाय सुड़की और बताया कि अगर हम 14 नरनारी घास के बीच समाना पसंद करें तो वह हमें बातल तक पहुंचा देगा. यह एक संयोग था कि हमें बातल में डेरा डालना था, जहां से 12 किलोमीटर का चंद्रताल लेक ट्रैक दुनिया के बेहतरीन घुमक्कड़ों को निमंत्रण देता आया है.  शाम को हम चंद्र नदी के किनारे बातल में डेरा डाल चुके थे.

रोमांच से भरा चंद्रताल

सुबह आइसा की आवाज गूंजी, ‘‘चायवाय और बाकी सब कुछ रास्ते में होगा. 7 बजने वाले हैं. दोपहर को हम चंद्रताल पर खिली धूप में खाना पका रहे होंगे. आप लोग वहां फैसला करेंगे कि आज यहां लौटना है या वहीं कहीं गुफा में रहना है. मैं रात को वहीं रुकना चाहती हूं.’’ मैं ने बताया, ‘‘मैं अकेला होता हूं तो सप्ताहभर वहीं रहता हूं. आज तो नहीं लौटूंगा.’’

चंद्रताल पहुंचे तो वहां का मंजर देख कर चिल्लाए, ‘‘आज यहीं रहेंगे.’’ जेएनयू दिल्ली के हितेश और लंदन की मिरांडा को कल से हलका बुखार था, लेकिन उन्होंने बताया कि यहां की प्यारी हवा में दोपहर तक बुखार उड़ जाएगा. सब उस पतली धारा में हाथपांव भिगोने लगे जो चंद्रताल  झील में से निकल कर चंद्रताल नदी बनाती है और केलांग के पास भागा नदी से मिल कर चंद्रभागा हो जाती है. इसी नदी को चेनाब कहा जाता है यानी चंद्रनीरा.

एक छोर पर थैले और स्टिक्स छोड़ कर सब चुपचाप अकेलेअकेले  झील की ढाई किलोमीटर की परिक्रमा पर निकल गए. हम ने पूर्णिमा की रात यहां रहने के लिए चुनी थी. आइसा यह देख कर मुसकराई कि कुछ साथी अपनी नोटबुकें निकाल कर कुछ लिखने लगे हैं. वह बोली, ‘‘यहां आ कर मैं ने अकसर कविताएं और कहानियां लिखी हैं. हिमाचल प्रदेश में यह एकमात्र जगह है, जहां मकान या मंदिर जैसी कोई चीज दिखाई नहीं देती. आकाश जैसी यह  झील है और उस के चारों ओर खड़े बर्फीले पर्वत. मन सीधा कुदरत से बात करता है,’’ सहसा वह गाने लगी, ‘‘अज्ञात सा कुछ उड़नखटोले पर आता है और हमारे कोरे कागज पर उतर जाता है…’’

रात को चांद निकला तो वही हुआ, जिसे सम झाया नहीं जा सकता. चांद के निकलते ही  झील में लहरें उठने लगीं और चांद की परछाईं उन में नाचती रही. हमारे पास चांद और लहरों के साथ थिरकने के अलावा और कुछ नहीं था. चंद्रताल और उस के सारे विराट मंजर को प्रणाम कर के हम अपना हर निशान मिटा कर लौटे. अधकचरे लोग तो हर कहीं अपना नाम खोद कर ही लौटते हैं.

तन और मन का शोध करने वालों की बस्ती

बातल से कुंजुम दर्रे तक खड़ी चढ़ाई है. दोपहर को बातल में बस मिली और शाम को हम कुंजुम और लोसर गांव की अनोखी बुलंदियों से होते हुए स्पिति के मुख्यालय काजा में पहुंचे. अगली सुबह हम पास ही ‘की’ गोंपा को निकले और दोपहर को दुनिया के ऐसे सब से ऊंचे गांव किब्बर में पहुंचे जहां बिजली भी है और बस भी पहुंचती है. स्पिति नदी के तट पर बसे काजा क्षेत्र और वहां के लोगों के बीच 2 दिन बिताने और जीभर कर सुस्ताने के बाद हम ने ताबो की बस पकड़ी. लगभग डेढ़ सदी पहले ताबो में ऐसे  स्त्रीपुरुषों ने डेरा जमाया था जो निपट सन्नाटे में रह कर तन और मन के रहस्यों को जानना चाहते थे. ताबो संग्रहालय में उन लोगों की प्रतिमाएं और ममियां देखी जा सकती हैं. ‘की’ गोंपा, काजा और ताबो में आज भी गहरी रुचियों वाले लोग अज्ञातवास में रहने आते हैं. हर गोंपा में ध्यान, निवास और खानेपीने की सुविधाएं हैं. बौद्ध परंपरा में भी हालांकि रूढि़यां भर गई हैं लेकिन वहां हर व्यक्ति को अपने ढंग से भीतरबाहर का अध्ययन करने की स्वतंत्रता है. शांत चित्त के लिए तो यहां की दुनिया संजीवनी है.

किन्नर कैलास और वास्पा घाटी

चांगो की हिमानी और चट्टानी दुनिया और नाको  झील की खामोशी से बातें करते हम उस सतलुज नदी के तटों पर थे जो मानसरोवर से निकल कर यहां से गुजरती है. हिमाचल का जिला किन्नौर सामने था. मुख्यालय रिकांगपिओ और कल्पा से हम ने किन्नर कैलास की बुलंदियों को देखा.

रिकांगपिओ से हम सतलुज और वास्पा नदियों के संग पर कड़छम गए और वास्पा नदी के साथसाथ सांगला घाटी पहुंचे. वास्पा या सांगला घाटी किन्नर कैलास पर्वत के ठीक पीछे बसी है. यहां काला जीरा और केसर की खेती होती है. कई गांवों में से गुजरते हुए हम अंतिम भारतीय गांव चितकुल पहुंचे. हर गांव कलात्मक मंदिरों से संपन्न हैं. हर कहीं देवदारों के सिलसिले हैं.

ओगला और फाफरा नामक अनाजों से खेत सजे हुए मिले. नृत्य व संगीत के लिए कभी मौका न चूकने वाली मेहनती युवतियों ने हमें कई जगह घेरा और मेहमान बनाया. हिमालय के लोगों का दुर्लभ सरल स्वभाव इस घाटी की माटी में रचाबसा हुआ है. चितकुल में हमें शिमला जाने वाली बस मिली.

जलोड़ी दर्रे के आरपार

किन्नौर के टापरी, वांगतू, भाभानगर, तरंडा और निगुलसरी होते हुए हम शिमला जिले के ज्योरी, सराहन और फिर रामपुर बुशहर पहुंचे. अगले दिन फिर बड़ा रोमांच सामने था. सतलुज पार की चढ़ाई से पैदल कुल्लू जिले के जलोड़ी दर्रे पर पहुंचना और अगले दिन दूसरी तरफ उतरना. जलोड़ी की चढ़ाई रोहतांग से आसान है. रास्ते में कई गांव हैं. हम यहां की अनोखी सरयोलसर  झील तक गए और पास ही वनविभाग की हट में शरण ली. अगले दिन जलोड़ी दर्रे की दूसरी तरफ की उतराई पर शोजा और बनजार होते हुए दिल्ली-मनाली मार्ग पर आ गए.

शाम को हम नए ट्रैक्स पर जाने की योजना बना रहे थे, वे थे : मनाली के वसिष्ठ गांव से भुगु लेक, मनाली से नग्गर होते हुए मलाना, मलाना से मणिकर्ण होते हुए पार्वती वैली के रोमांचक स्थल क्षीरगंगा, क्षीरगंगा से बजौरा होते हुए पर्वत शिखर पर पराशर  झील, रिवालसर  झील और शिकारीदेवी शिखर. इस में एक और महीना लगने वाला था.

हिमाचल प्रदेश के अधिकांश ट्रैक्स आज ठहरने और खानेपीने की सुविधाओं से भरे हुए हैं, इसलिए जब भी जरूरी हो, पैदल चलने वाले लोग उन सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं.

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Summer Special: नेचुरल ब्यूटी से भरपूर है पूर्वोत्तर राज्य

पूर्वोत्तर राज्यों में कुदरती खूबसूरती सौगात बन कर बरसती है. यहां आ कर एक नए भारत के दर्शन होते हैं. आदिवासी जीवन, नृत्यसंगीत, लोककलाएं व परंपराओं से रूबरू होने के साथसाथ प्राकृतिक सुंदरता और सरल जीवनशैली भी यहां के खास आकर्षण हैं.

पूर्वोत्तर राज्यों की  खूबसूरती का जवाब नहीं. यहां के घने जंगल, हरेभरे मैदान, पर्वत शृंखलाएं सैलानियों को बहुत लुभाते हैं. सरल स्वभाव के पूर्वोत्तरवासी अपनी परंपराएं और संस्कृति आज भी कायम रखे हुए है. यहां आ कर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हम किसी दूसरी दुनिया में आ गए हैं. यहां के हर राज्य का अपना नृत्य व अपना संगीत है.

गुवाहाटी

गुवाहाटी असम का प्रमुख व्यापार केंद्र है. गुवाहाटी उत्तरपूर्व सीमांत रेलवे का मुख्यालय है. सड़क मार्ग से भी यह आसपास के राज्यों के अनेक शहरों शिलौंग, तेजपुर, सिलचर, अगरतला, डिब्रूगढ़, इंफाल आदि से जुड़ा हुआ है. यही कारण है यह पूर्वोत्तर का गेटवे कहलाता है.

असम

यहां का सब से बड़ा आकर्षण कांजीरंगा नैशनल पार्क है. गैंडे, बाघ, बारहसिंगा, बाइसन, वनविलाव, हिरण, सुनहरा लंगूर, जंगली भैंस, गौर और रंगबिरंगे पक्षी इस नैशनल पार्क के आकर्षण हैं. बल्कि बर्ड वाचर्स के लिए तो कांजीरंगा बर्ड्स पैराडाइज है. पार्क में हर तरफ घने पेड़ों के अलावा एक खास किस्म की घास, जो हाथी घास कहलाती है, भी देखने को मिलती है. इस घास की खासीयत यह है कि इस की ऊंचाई आम पेड़ जितनी है. यहां की घास इतनी लंबी है कि इन के बीच हाथी भी छिप जाएं. इसी कारण यह घास हाथी घास कहलाती है. कांजीरंगा ऐलीफैंट सफारी के लिए ही अधिक जाना जाता है. यहां हर साल फरवरी में हाथी महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस महोत्सव का मकसद सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा देना नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र में पाए जाने वाले एशियाई हाथियों का संरक्षण और उन्हें सुरक्षा प्रदान करना भी है.

कांजीरंगा में हाथी सफारी का मजा बागुड़ी, मिहीमुखी में लिया जा सकता है. हाथी की सवारी के लिए सब से जरूरी हिदायत यह दी जाती है कि पैर पूरी तरह से ढके होने चाहिए वरना यहां पाए जाने वाली हाथी घास से दिक्कत पेश आ सकती है. कांजीरंगा जाने का बेहतर समय नवंबर से ले कर अप्रैल तक है. यहां खुली जीप में या हाथी की सवारी कर पहुंचा जा सकता है. कांजीरंगा के पास ही नामेरी नैशनल पार्क है. यह रंगबिरंगी चिडि़यों और ईकोफिश्ंिग के लिए जाना जाता है. नामेरी पार्क हिमालयन पार्क के नाम से भी जाना जाता है.

यहां से 40 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐतिहासिक खंडहर है. यह देखने में बड़ा अद्भुत है, लेकिन विडंबना यह है कि इस खंडहर के बारे में अभी तक ज्यादा पता नहीं चल पाया है. गुवाहाटी से 369 किलोमीटर की दूरी पर शिवसागर है. असम के चाय और तेल व प्राकृतिक गैस के लिए शिवसागर जिला प्रसिद्ध है. यहां एक  झील है. इसी  झील के चारों ओर बसा है. असम के अन्य दर्शनीय स्थलों में बोटैनिकल गार्डन, तारामंडल, ब्रह्मपुत्र पर सरायघाट पुल, बुरफुकना पार्क साइंस म्यूजियम और मानस नैशनल पार्क शामिल हैं.

भारत में सब से अधिक वर्षा के लिए जाना जाने वाला चेरापूंजी भी असम में ही है. यह बंगलादेश की सीमा पर है. पर्यटन के लिए सब से अच्छा समय अक्तूबर से मई तक है.

क्या खरीदें

खरीदारी के लिए यहां बांस के बने शोपीस से ले कर बहुत सारा सजावटी सामान है. इस के अलावा महिलाओं के पहनने के लिए मेखला है. यह थ्री पीस ड्रैस है. चोली और लुंगीनुमा मेखला असम का पारंपरिक पहनावा है. इस के साथ दुपट्टेनुमा एक आंचल, साड़ी के आंचल की तरह ओढ़ा जाता है.

  -साधना

ईटानगर

असम, मेघालय के रास्ते अरुणाचल की राजधानी ईटानगर पहुंचा जा सकता है. ईटानगर पहुंचने का दूसरा रास्ता है मालुकपोंग, जो असम के करीब है. यानी असम की यात्रा यहां पूरी हो सकती है, इस के आगे का रास्ता ईटानगर को जाता है.

ईटानगर के आकर्षणों में ईंटों का बना अरुणाचल फोर्ट है. इस के अलावा एक और आकर्षण है और वह है हिमालय के नीचे से हो कर बहती एक नदी जिसे स्थानीय आबादी गेकर सिन्यी के नाम से पुकारती है. जवाहर लाल नेहरू म्यूजियम, क्राफ्ट सैंटर, एंपोरियम ट्रेड सैंटर, चिडि़याघर और पुस्तकालय भी हैं.

टिपी और्किड सैंटर से 165 किलोमीटर की दूरी पर बोमडिला है जो खूबसूरत और्किड के फूलों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. यहां और्किड फूलों का एक सेंटर है, जो टिपी आर्किडोरियम के नाम से जाना जाता है. यहां 300 से भी अधिक विभिन्न प्रजातियों के और्किड के फूलों के पौधे देखने को मिल जाते हैं.

बोमडिला की ऊंचाई से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां, विशेष रूप से गोरिचन और कांगटो की चोटियां खूबसूरत एहसास दिलाती हैं. यहां से 24 किलोमीटर की दूरी पर सास्सा में पेड़पौधों की एक सैंक्चुरी है. पहाड़ी नदी माकेंग में पर्यटक और एडवैंचर टूरिज्म के शौकीनों के लिए यहां वाइट वाटर राफ्ंिटग का मजा कुछ और ही है. यहां नदी में फिश्ंिग का भी शौक पर्यटक पूरा करते हैं.

अरुणाचल के हरेक टूरिस्ट स्पौट के लिए बसें, टैक्सी, जीप और किराए पर हर तरह की कार मिल जाती हैं. ईटानगर अक्तूबर से ले कर मई के बीच कभी भी जाया जा सकता है. यहां सर्दी और गरमी दोनों ही मौसम में पर्यटन का अलग मजा है.

अगरतला

पूर्वोत्तर भारत में त्रिपुरा वह राज्य है जो राजेरजवाड़ों की धरती कहलाती है. दुनियाभर में हर जगह लोग प्रदूषण की मार  झेल रहे हैं जबकि त्रिपुरा को प्रदूषणविहीन राज्य माना जाता है. इस राज्य का बोलबाला यहां के खुशगवार और अनुकूल पर्यावरण के लिए भी है. त्रिपुरा पर्यटन के कई सारे आयाम हैं. सिपाहीजला, तृष्णा, गोमती, रोवा अभयारण्य और जामपुरी हिल जैसे यहां प्राकृतिक पर्यटन हैं. वहीं पुरातात्विक पर्यटन के लिए उनाकोटी, पीलक, देवतैमुरा (छवि मुरा), बौक्सनगर भुवनेश्वरी मंदिर आदि हैं. अगर वाटर टूरिज्म की बात की जाए तो रुद्रसार नीलमहल, अमरपुर डुमबूर, विशालगढ़ कमला सागर मौजूद हैं.

त्रिपुरा में ईको टूरिज्म के लिए कई ईको पार्क हैं. तेपानिया, कालापानिया, बारंपुरा, खुमलांग, जामपुरी आदि ईको पार्क हैं. पर्यटकों के लिए त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में सब से महत्त्वपूर्ण दर्शनीय स्थल जो है वह उज्जयंत पैलेस है. यह राजमहल एक वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. 3 गुंबज वाले इस दोमंजिले महल की ऊंचाई 86 फुट है. बेशकीमती लकड़ी की नक्काशीदार भीतरी छत व इस की दीवारें देखने लायक हैं. महल के बाहर मुगलकालीन शैली का बगीचा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है.

पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थलों में अगरतल्ला से 55 किलोमीटर की दूरी पर है रुद्धसागर नामक एक  झील. इस  झील के किनारे बसा है नीरमहल. इस महल का स्थापत्य मुगलकालीन है. ठंड के मौसम में यहां यायावर पक्षियों का जमघट लग जाता है. अगरतला से 178 किलोमीटर की दूरी पर उनकोटि है. यह जगह चट्टानों पर खुदाई कर के बनाई गई कलाकृतियों के लिए विख्यात है. पहाड़ों की ढलान पर यहां 7वीं और 9वीं शताब्दी के दौरान चट्टानों को काट कर, छील कर और खुदाई कर अनुपम कलाकृतियां बनाई गई हैं. ये कलाकृतियां विश्व- विख्यात हैं.

यहां 19 से भी अधिक आदिवासी जनजातियों का वास है. इसीलिए त्रिपुरा को आदिवासी समुदायों की धरती भी माना जाता है. हालांकि मौजूदा समय में आदिवासी और गैर आदिवासी समुदाय यहां मिलजुल कर रहते हैं और एकदूसरे के पर्वत्योहार भी मनाते हैं.

कैसे पहुंचें

हवाई रास्ते से अगरतला देशभर से जुड़ा हुआ है. ज्यादातर हवाई जहाज गुवाहाटी हो कर अगरतला पहुंचते हैं. ट्रेन के रास्ते गुवाहाटी से होते हुए अगरतला तक पहुंचा जा सकता है. सड़क के रास्ते कोलकाता से अगरतला की दूरी 1,645 किलोमीटर, गुवाहाटी से 587, शिलौंग से 487 और सिलचर से 250 किलोमीटर है. सड़क के रास्ते जाने के लिए लक्जरी कोच, निजी व सरकारी यातायात के साधन उपलब्ध हैं. पासपोर्ट और वीजा साथ ले कर चलें तो त्रिपुरा के रास्ते बंगलादेश भी घूमा जा सकता है.

सिक्किम

रेल मार्ग या सड़क मार्ग से सिक्किम जाया जा सकता है. रेलयात्री जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी, कलिंपोंग होते हुए जाते हैं, जबकि सड़क मार्ग तिस्ता नदी के किनारेकिनारे चलता है. तिस्ता सिक्किम की मुख्य नदी है. जलपाईगुड़ी से एक टैक्सी ले कर हम सिक्किम की राजधानी गंगटोक के लिए चल पड़े. तिस्ता की तरफ निगाह पड़ती तो उस का साफ, स्वच्छ सतत प्रवाहमान जल मनमोह लेता और जब वनश्री की ओर निगाह उठती तो उस की हरीतिमा चित्त चुरा लेती. प्रारंभ में शाल, सागौन, अश्वपत्र, आम, नीम के  झाड़ मिलते रहे और कुछ अधिक ऊंचाई पर चीड़, स्प्रूस, ओक, मैग्नोलिया आदि के वृक्ष मिलने लगे. हम 7 हजार फुट की ऊंचाई पर पहुंच गए थे, जिस से समशीतोष्ण कटिबंधीय वृक्षों की अधिकता दिखाई दे रही थी.

रंगपो शहर पश्चिम बंगाल व सिक्किम के सीमांत पर स्थित है. यहां ठंड अधिक होती है. फिर हम गंगटोक पहुंचे. वहां हनुमान टैंक घूमने गए. वहां से कंचनजंघा की तुषार मंडित, धवल चोटियां स्पष्ट दिखाई दे रही थीं.  अपूर्व अलौकिक दृश्य देखा. अहा, यहां प्रकृति प्रतिक्षण कितने रूप बदलती है. सूर्योदय के पूर्व कंचनजंघा अरुणिम आभा में रंगा था और जब सूर्य ने प्रथमतया उस की ओर अपनी सुनहरी किरणों से स्पर्श किया, उस का रंग और भी लाल हो गया.

धूप में कंचनजंघा की बर्फीली चोटियां स्वच्छ धवल चांदी की तरह चमक रही थीं. गंगटोक से थोड़ी ही दूर है जीवंती उपवन प्रकृति का मनोरम नजारा प्रस्तुत करता है यह उपवन. रूमटेक गुम्पा भी सिक्किम का एक प्रसिद्ध गुम्पा है. गंगटोक से 30 किलोमीटर दूर तक छोटी सी पहाड़ी की पृष्ठभूमि में इस का निर्माण किया गया है. यहां लामाओं को प्रशिक्षित किया जाता है. वहां का शांत और पवित्र वातावरण सुखद अनुभव देता है.

गंगटोक से पहले की सिक्किम की राजधानी गेजिंग से 15 किलोमीटर दूर पश्चिम में एक छोटा सा गांव है प्रेमयांची. यहां से अन्यत्र जाने के लिए अपने पैरों पर ही भरोसा रखना पड़ता है. 2,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित प्रेमयांची बौद्ध धर्म की नियंगमा शाखा का सब से बड़ा गुम्पा है. यहां के सभी लामा लाल टोपी पहनते हैं. इसे लाल टोपी धारी लामाओं का गुम्पा भी कहते हैं.

इस गुम्पा के अंदर ‘संग थी पाल्थी’ नाम की उत्कृष्ट कलाकृति प्रथम तल पर स्थापित है. इस कलाकृति से जीव की 7 अवस्थाओं का परिचय मिलता है. कक्ष की भीतरी दीवारों पर अनेक सुंदर चित्र निर्मित हैं, जो भारतीय बाम तंत्र से प्रभावित जान पड़ते हैं.

सेमतांग के पहाड़ों पर चाय के खूबसूरत बागान हैं. दूर से देखने पर लगता है जैसे हरी मखमली कालीन बिछा दी गई हो. यहां से सूर्यास्त का नजारा देखने लायक होता है. इस अद्वितीय दृश्य का लाभ लेने के लिए हमें वहां कुछ घंटों तक ठहरना पड़ा और जब सूर्य दूसरे लोक में गमन की तैयारी करने लगा तो हमारी आंखें उधर ही टंग गईं. सूर्यास्त का नजारा देखने लायक था.

सारा सिक्किम कंचनजंघा की आभा से मंडित प्रकृति सुंदरी के हरेभरे आंचल के साए में लिपटा हुआ है. चावल, बड़ी इलायची, चाय और नारंगी के बाग से वहां की धरती समृद्धि से भरपूर है. तिस्ता की घाटी अपनेआप में सौंदर्य व प्रेम के गीतों की संरचना सी है. यहां की वनस्पतियों में विविधता है. सब से बड़ी बात यह है कि औषधीय गुण वाले वृक्षों की वहां बहुतायत है.

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Summer Special: कम खर्च में एडवेंचर ट्रिप के लिए जाएं ऋषिकेश

अक्सर लोग  गरमी के मौसम  में  ऐसी जगह जाना चाहते हैं जहां का मौसम भी ठीक हो और ज्यादा खर्च भी न होने पाए. तो आइए, ले चलते हैं आपको कुछ ऐसी ही जगहों की सैर पर, जहां मजा तो बहुत है पर खर्च कम. यानी इन जगहों पर आप कम खर्च में भी रोमांचक पर्यटन का आनंद उठा सकते हैं.

अगर आप एडवेंचर के शौकीन हैं और एडवेंचर ट्रिप का प्लान बना रहे हैं तो आप उत्तराखंड के ऋषिकेश जरूर जाएं. गंगा के तट पर बसा यह छोटा सा शहर कुदरती नजारों के लिए मशहूर है. यहां कई तरह के एडवेंचर स्पोटर्स भी कराएं जाते हैं. ऋषिकेश में रिवर राफ्टिंग, क्लिफ जंपिंग, बौडी सर्फिंग जैसे स्पोटर्स शामिल हैं. ऋषिकेश के हरी वादियों में सब से मशहूर क्लिफ जंपिंग है. यहां देश का सबसे ऊंचा बंजी फ्लैटफौर्म तैयार किया गया है, जिसकी ऊंचाई लगभग 273 फुट है. इस ऊंचाई से कूदने के बाद आपको एक अलग ही तरीके का रोमांच का एहसास होगा.

अगर आप यह सोच रहे हैं कि इतना सब कुछ है तो खर्चा भी ज्यादा होगा. तो नहीं, अगर आप आने-जाने का खर्चा हटा दें तो आप 1500 रुपये में ही एडवेंचर का मजा उठा सकते हैं. मई-जून के महीने में ज्यादातर लोग घूमने जाते हैं. ऐसे में कई ट्रैवल कंपनियां पैकेज औफर करती हैं.

यह पैकेज काफी सस्ते होते हैं जिससे आपकी जेब भी ढीली नहीं होगी. कई कंपनियां मात्र 400 से 500 रुपये में ही रिवर राफ्टिंग, क्लिफ जंपिंग और बौडी सर्फिंग करवाती हैं. जब भी आप ऋषिकेश या कोई भी एडवेंचर ट्रिप प्लान करें तो एक बार ट्रैवल कंपनियों का पैकेज जरूर देख लें. पर ध्यान दें कि ये सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हों.

यदि आप आने-जाने की खर्च के वजह से प्लान कैंसिल कर रहे हैं तो ऐसा बिलकुल न करें.  जो 300 रुपये आप एक दिन में बाहर पिज्जा, बर्गर खाने में खर्च कर देते हैं उस से बेहतर है कि आप उस 300 रुपये में ऋषिकेश जाने का मजा ले सकते हैं.

आने-जाने का खर्चा

अगर आप बस से जाना चाहते हैं तो इसका शुरुआती किराया 300 रुपये से शुरू होता है. अगर आप औन लाइन बुकिंग करते है तो कई बार आपको स्पेशल औफर भी दिया जाता है. जिसमें आप कुपन कोड का इस्तेमाल करके सस्ते रेट में ऋषिकेश की वादियों में जा सकते हैं. अगर आपके पास ऋषिकेश जाने का कोई भी जुगाड़ नहीं है तो आप पैसेंजर ट्रेन से भी जा सकते हैं. पैसेंजर ट्रेन में किराया भी कम लगता है और आप की पौकेट भी मैनेज रहती है.

ठहरनें का प्रबंध

अधिकतर टुरिस्ट प्लेस पर सीजन के अनुसार ही होटल का दाम घटता बढ़ता है. गर्मी के मौसम की शुरुआत होते ही अधिकतर पहाड़ी इलाकों के होटल के दाम बढ़ा दिए जाते हैं. लेकिन कुछ ऐसे होटल भी होते हैं जो सस्ते तो होते हैं लेकिन उनकी सर्विस अच्छी नहीं होती. ऐसे में आप चाहें तो आश्रम या धर्मशाला में भी रुक सकते है. ऋषिकेश में कई आश्रम और धर्मशाला हैं जहां आप कम बजट में ठहर सकते हैं. इन के कमरें काफी बड़े और आरामदायक होते हैं. इन कमरों को आप 350 रुपए में बूक कर सकते हैं.

पहले बुकिंग है जरूरी 

आपको अगर होटल, आश्रम या धर्मशाला में रुकना है तो बुकिंग आपको ट्रिप से 10-15 दिन पहले करानी होगी. अगर आप वहां जा कर बुकिंग करेंगे तो आपको काफी महंगा रूम मिलेगा जो आपका सारा बजट बिगाड़ सकता है. इसलिए आप बुकिंग घर से ही कर के जाएं.

बैग पैक में खाना खजाना

बैग पैक में तो हम तमाम जरूरी समान रखते हैं. लेकिन बात जब जेब तंगी और बाहर घूमने की हो तो पेट पूजा का ध्यान रखना भी जरूरी है. सफर करते वक्त भूख ज्यादा लगती है ऐसे में घर से ही बिसकुट, नमकपारे, नमकीन, नट्स, ड्राई फ्रूट, चिप्स, मिल्क पाउडर, टी बैग, शुगर पाउडर और गर्मपानी आप अपने बैग में रख सकते हैं. इससे भूक तो कम होगी ही साथ ही आपका खर्चा भी बचेगा.

ठगने से बचें

अक्सर जब हम नए शहर में जाते हैं तो वहां हर चीज का दाम डबल कर के बताया जाता है. ऐसे में आपका ठगना तो तय है. कोशिश करें मोल-भाव करने की खरीदारी करते वक्त कई बार हमें कोई अलग सी चीज दिखती है तो झट से खरीद लेते हैं जिससे आपकी जैब तो खाली होती ही है और वस्तु भी आपके कोई काम नहीं आता. इसलिए कोई भी फालतू समान बिलकुल न खरीदें यदि वो वस्तु आपके काम की है तो ही खरीदें.

अगर आपको एक जगह से दुसरें जगह जाना है तो पर्सनल गाड़ी न करें. वहां 5-10 रुपये में शेयरिंग टेम्पो आपको आसानी से मिल जाएगा.

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Summer Special: शाही अंदाज में सैरसपाटा

घुमक्कड़ लोग 2 मिजाज के होते हैं. पहले वाले घुमक्कड़ पर्यटन स्थलों के सैरसपाटे से ही वास्ता रखते हैं. उन के लिए कहां रुकना है या फिर कहां खानपान होगा, ज्यादा माने नहीं रखता. जबकि दूसरे मिजाज के पर्यटक पर्यटन स्थलों को जितनी तरजीह देते हैं उतनी ही तरजीह रहने के शाही ठौर और खाने के मशहूर ठिकानों को देते हैं. दूसरे मिजाज के इन्हीं पर्यटकों के लिए लग्जरी पैकेज का चलन बना है. आमतौर पर लग्जरी पैकेज कुलीन वर्ग या कहें एलीट क्लास के लोग ही अफोर्ड कर सकते हैं क्योंकि इन में शानदार इंटरकौंटिनैंटल रेस्तरां, होटल, लग्जरी रिजौर्ट, पांचसितारा होटल शामिल होते हैं. लेकिन ऐसी कोई शर्त नहीं है कि आम मध्यमवर्गीय लोग लग्जरी पैकेज नहीं ले सकते, साल में 5 बार नहीं तो साल दो साल में 1 बार तो वे भी लग्जरी पैकेज का आनंद ले ही सकते हैं. लग्जरी पैकेज में हम आप के लिए लाए हैं कुछ चुनिंदा पर्यटन ठिकानों के बारे में जानकारीपरक फीचर, ताकि इन छुट्टियों में आप भी लग्जरी टूरिज्म का यादगार अनुभव ले सकें.

पैलेस औन व्हील्स

लग्जरी पैकेज में पैलेस औन व्हील्स एक ऐसा विकल्प है जो सफर में ही पर्यटन का इतना लुत्फ देता है कि किसी मंजिल तक जाने की जरूरत ही नहीं होती. यानी चलतेचलते ही सैर कर होटल, रेस्तरां और पर्यटन का पैकेज एकसाथ लिया जा सकता है. इसीलिए पैलेस औन व्हील्स सिर्फ देसी पर्यटकों के लिए ही नहीं, बल्कि विदेशी सैलानियों को भी खासा भाता है. राजामहाराजाओं की जीवनशैली और ठाटबाट के साथ राजस्थान की सैर कराने वाली आलीशान ट्रेन ने उत्तर भारत की सर्वश्रेष्ठ लग्जरी ट्रेन का खिताब जीता है. इस ट्रेन को राजस्थान पर्यटन विकास निगम लिमिटेड एवं भारतीय रेलवे द्वारा संचालित किया जाता है. मेहमाननवाजी एवं परंपरागत शाही अंदाज के लिए हर कोई इस की सवारी एक बार जरूर करना चाहता है. ट्रेन में राजसी जीवनशैली के ठाट हैं तो वहीं पर्यटकों की मौडर्न जरूरतों को ध्यान में रखते हुए स्पा और हैल्थ क्लब, जिम आदि का भी इंतजाम है. जरा सोचिए चलती ट्रेन में प्रत्येक सैलून में वाशरूम के साथ वाटर प्यूरीफायर्स की सुविधा के साथ मनोरंजन का भी इंतजाम हो तो कौन नहीं चाहेगा कि यह सफर यों ही चलता रहे. इस गाड़ी में पांचसितारा होटल जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं.

फलकनुमा पैलेस

दक्षिण भारत में अगर लग्जरी पर्यटन का मजा लेना है तो ताज फलकनुमा से बेहतर विकल्प हो ही नहीं सकता. बजट यहां भी मोटा होगा लेकिन जिस शाही अंदाज की सुविधाएं यहां मिलती हैं उन्हें देखते हुए इसे महंगा कहना सही नहीं होगा. फलकनुमा पैलेस की हाल में चर्चा सलमान खान की बहन अर्पिता की शादी के दौरान जम कर हुई थी. वैसे फलकनुमा पैलेस अपने शाही मेहमानों के लिए काफी अरसे से मशहूर माना जाता है. यहां आ कर अगर आप को बीते दौर के निजाम या महाराजा जैसा फील हो तो आश्चर्य की बात नहीं.

इतिहास :

हैदराबाद का यह लग्जूरियस पैलेस पैगाह हैदराबाद स्टेट से ताल्लुक रखता है. इस पर बाद में निजामों ने आधिपत्य किया. 32 एकड़ में फैला यह शाही महल चारमीनार से महज 5 किलोमीटर दूर है. इसे नवाब विकार उल उमरा ने बनवाया था जो तत्कालीन हैदराबाद के प्रधानमंत्री थे. फलकनुमा यानी आसमान की तरह या आसमान का आईना. इस की रचना एक अंगरेजी शिल्पकार ने की थी. इसे कुल 9 साल में पूरा किया गया. इटैलियन पत्थर से बना यह फलकनुमा 93,971 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला है. सर विकार इस स्थान को अपने निजी निवास के तौर पर प्रयोग करते थे, बाद में यह हैदराबाद के निजाम को सौंप दिया गया.

फलकनुमा पैलेस के निर्माण में इतनी अधिक लागत आई कि एक बार तो सर विकार को भी एहसास हुआ कि वे अपने लक्ष्य से कहीं ज्यादा खर्च कर चुके हैं. बाद में उन की बुद्धिमान पत्नी लेडी उल उमरा की चालाकी से उन्होंने यह पैलेस निजाम को उपहार में दे दिया जिस के बदले में उन्हें इस पर हुए खर्च का पूरा पैसा मिल गया. बाद में निजाम ने इस महल को शाही अतिथि गृह की तरह से प्रयोग करना शुरू कर दिया क्योंकि इस से पूरे शहर का नजारा देखने को मिलता था. सन 2000 तक यह पैलेस सामान्य जनता के लिए बंद था.

शाही ठाट :

वर्ष 2000 में इस को मौडिफाइड कर 2010 में पर्यटकों और शाही मेहमानों के लिए खोल दिया गया. इस के कमरों व दीवारों को फ्रांस से मंगाए गए और्नेट फर्नीचर, हाथ के काम किए गए सामान तथा ब्रोकेड से सुसज्जित किया गया. यहां बिलियर्ड्स रूम भी है जिसे कि बोरो और वाट्स ने डिजाइन किया था. इस में स्थित टेबल अपनेआप में अद्भुत है क्योंकि ऐसी 2 टेबल्स का निर्माण किया गया था जिन में से एक बकिंघम पैलेस में है तथा दूसरी यहां स्थित है. खानपान के मामलों में तो यहां निजामों वाला शाही इंतजाम है. 101 सीट्स वाला भोजनगृह है जिसे दुनिया का सब से बड़ा डाइनिंग हाल माना जाता है. यहां का दरबार हाल भी काफी आकर्षक है.

शाही होटल्स :

फलकनुमा के सभी कमरों में शाही फाइवस्टार होटल के जैसे इंतजाम हैं. इंटरनैट, बिजनैस सैंटर, जिम, पूल, बेबी सिटिंग सर्विस, ब्यूटी सैलून, कौन्फ्रैंस सर्विस, नौनस्मोकिंग रूम, कौकटेल लाउंज, जकूजी मसाज सर्विस, बौडी ट्रीटमैंट, बैंक्वेट, जेड रूम, हुक्का लाउंज, बिलियर्ड ऐंड डाइनिंग रूम जैसी शाही सुविधाएं हैं. साथ ही संगीत के विशेष कार्यक्रमों की सौगात भी है.

खानपान :

जितना शाही यह पैलेस है उतना ही शाही यहां का खानपान है. खाने के नाम पर नवाबी अंदाज में बार्बेक्यू रेस्तरां में शाही लजीज कबाब और रौयल अंदाज में बिरयानी सर्व की जाती है. जेड रूम में लंच, स्पैशल खाना, चौकलेट शैंपेन और कई रौयल डिशेज परोसी जाती हैं. वाइन लिस्ट में दुनियाभर की वाइन का इंतजाम होता है. वहीं, बे्रकफास्ट में जेड वरंदाह में परंपरागत हैदराबादी डिश, चारमीनारी ब्रेकफास्ट, टर्किश और साउथ इंडियन खाना खास है. हालांकि यह सुविधा सिर्फ विंटर्स में मिलती है. रौयल टैरेस में भी इंडियन, चाइनीज और कौंटिनैंटल की सारी डिशेज फलकनुमा के टैरेस में रौयल अंदाज में परोसी जाती हैं. हुक्का लाउंज में फ्लेवर्ड हुक्का की बेहतरीन वैराइटीज और रोमांटिक मूड का खास इंतजाम है.

कुल मिला कर इस

के होटल में लग्जरी के सारे विकल्प मौजूद हैं. कौन्फ्रैंस हाल दरबार में 500 मेहमान, जेड रूम में चायपान के लिए 40 मेहमान, राजस्थानी गार्डन में 150 मेहमान और बोर्डरूम में 17 लोगों का खास इंतजाम हर समय रहता है. होटल मैनेजमैंट की तरफ से लोकल टूर गाइड भी मुहैया कराया जाता है, जो आप को लग्जरी ठिकानों की सैर कराता है.

किराया :

ताज फलकनुमा पैलेस में शुरुआती रेट 38 हजार से 40 हजार के बीच है. बाकी टूर औपरेटर्स के जरिए इस से कम की डील भी ली जा सकती है.

कैसे पहुंचें

हैदराबाद पहुंच कर इंजन बावली पहुंच गए तो समझ लीजिए आप फलकनुमा आ गए. पास में और भी पर्यटन स्थल जैसे कि नेहरू जूलौजिकल पार्क, चारमीनार, तारामती बारादरी, सालारजंग संग्रहालय भी हैं. यानी यहां शाही रहनसहन के साथ नजदीकी पर्यटन के अड्डों का भी मजा लेना बेहद आसान है. सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन से इस की दूरी 15 किलोमीटर है जबकि राजीव गांधी हवाई अड्डे से यह 17 किलोमीटर दूर है. अन्य जानकारियां इस की वैबसाइट ताज होटल्स डौट कौम पर मिल जाएंगी.

द लीला : गोआ

अकसर सैलानी गोआ जाने का मतलब वहां के बीच और आईलैंड ही मानते हैं और जब वहां के नजारे के साथ रहने के विकल्प खोजते हैं तो मुश्किल में फंस जाते हैं. कोई पेइंगगैस्ट ढूंढ़ता है तो कोई होटल के मामले में कन्फ्यूज्ड रहता है. जबकि गोआ में घूमने का मतलब ढेर सारी मस्ती, स्पा, बीच और शाही रहनसहन से है. भारत में ज्यादातर नए कपल्स हनीमून के लिए गोआ आते हैं.

लेकिन जरा सोचिए, अगर हनीमून के लिए शाही कमरा या होटल न हो तो फिर गोआ आने का मजा कैसा. इसलिए अगर अपना बजट थोड़ा सा संभाल सकते हैं तो गोआ का द लीला होटल न सिर्फ आप के हनीमून को यादगार बना सकता है बल्कि बीच और आईलैंड के बीच कमरे में रहने और शानदार सुविधाओं का यादगार तोहफा भी देता है.

शाही अंदाज

लीला होटल देशीविदेशी लोगों को लग्जरी के मामले में खासा भाता है. यह कई तरह के पैकेज देता है जो अलगअलग सीजन के हिसाब से मुफीद बैठते हैं. इस पांचसितारा होटल में 206 शानदार कमरे हैं जो वैलफर्निश्ड होने के साथसाथ वाईफाई तकनीक और अन्य आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं. इन मौडर्न डिजाइन कमरों में कई क्लास हैं. मसलन, लैगून टैरेस रूम, रूम लैगून, सुइट लैगून, डीलक्स सुइट, क्लब पूल सुइट, रौयल विला आदि. लीला में खानपान के नाम पर इंडियन से ले कर इटैलियन और सभी देशों के व्यंजन मिलते हैं. जरा सोचिए, चांदनी रात में होटल के पूल एरिया में डिनर करना कितना शाही अनुभव होगा. इस के अलावा कैफे, ब्रेकफास्ट सर्विस, बार, बार्बेक्यू ग्रिल और रेस्तरां आप को लग्जरी ट्रिप का पूरा मजा देते हैं. पूल एरिया में ही डांस, मस्ती और बार का भी इंतजाम है. लीला में बौडी मसाज से ले कर स्पा, जिम और बौडी ट्रीटमैंट के भी ढेरों विकल्प मौजूद हैं.

कहां और कैसे

दक्षिण गोआ में स्थित इस होटल तक पहुंचने के लिए एअरपोर्ट से 40 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. इस के नजदीक मोबोर बीच काफी फेमस है. अन्य जानकारी इस की वैबसाइट लीला डौट कौम पर मिल जाएगी. पैकेज : लीला में समर गेटवे औफर, समर मानसून पैकेज सीजन के मुताबिक मिलते हैं जिन का किराया, 5 हजार रुपए से शुरू हो कर 10 हजार रुपए तक चलता है. अधिक जानकारियां इस की वैबसाइट द लीला डौट कौम/गोवा होटल्स पर मिलेंगी.

अन्य सुविधाएं : अन्य सुविधाओं में बार, रेस्तरां, बार्बेक्यू, इंटरनैट, बिजनैस सैंटर, जिम, पूल, बेबी सिटिंग सर्विस, ब्यूटी सैलून, कौन्फ्रैंस सर्विस, नौन स्मोकिंग रूम, कौकटेल लाउंज, जकूजी मसाज सर्विस, बौडी ट्रीटमैंट, बैंक्वेट, जेड रूम, हुक्का लाउंज शामिल हैं.

रामनिवास बाग

जयपुर खूबसूरत बगीचों का शहर है. जयपुर में केसर क्यारी, मुगल गार्डन, कनक वृंदावन, जयनिवास उद्यान, विद्याधर का बाग, सिसोदिया रानी का बाग, परियों का बाग, फूलों की घाटी, रामनिवास बाग, सैंट्रल पार्क, स्मृति वन जलधारा, जवाहर सर्किल, स्वर्ण जयंती उद्यान आदि दर्जनों उद्यान हैं. लेकिन रामनिवास बाग सब को मात दे कर चहेता पर्यटन स्थल बन गया है. यहां के बाग शहर के सब से खूबसरत उद्यानों में से एक हैं. 

इतिहास :

रामनिवास बाग का निर्माण 1868 में जयपुर के महाराजा सवाई प्रतापसिंह ने कराया. हवामहल का निर्माण कराने वाले महाराजा प्रतापसिंह सौंदर्योपासक थे. उन्होंने जयपुर की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए बहुत प्रयास किए जिन में उस समय का सब से खूबसूरत और विशाल उद्यान था रामनिवास बाग. राजस्थान एक कम वर्षा वाला राज्य है. इसलिए यहां के शासकों ने शहर को सुंदर बनाने और सर्वसाधारण को गरमी में विहार करने के लिए उपयुक्त स्थान देने के लिए बागबगीचों का निर्माण कराया. प्राकृतिक संतुलन के लिए भी यह जरूरी है. शाम के समय यहां राजपरिवार के सदस्य भ्रमण के लिए आते थे. अल्बर्ट हाल के स्थान पर एक केंद्रीय बड़ा गुलाब बगीचा था. हर शाम यहां विदेशी मेहमानों के परिवार और राजपरिवार के सदस्यों की मौजूदगी से खुशगवार माहौल बन जाता है. कुछ समय के लिए यह गार्डन नागरिकों के लिए भी खोला जाता था. रामनिवास बाग का निर्माण शहर को सूखे से बचाने के लिए किया गया था.

क्या है खास

रामनिवास बाग आधुनिक महानगर जयपुर के बीचोबीच है और अपने विस्तार व खूबसूरती से सभी को बहुत प्रभावित करता है. शहर के बीचोंबीच इतना बड़ा हराभरा भूभाग अपनेआप में एक मिसाल है. यह जयपुर को ग्रीन सिटी का दरजा दिलाने में अहम भूमिका निभाता है. यहां मनोरंजन के भी कई विकल्प हैं. यहां फुटबाल का एक बड़ा मैदान है. इस के अलावा इस के कई टुकड़ों में बने वर्गाकार बगीचों में नागरिकों के बैठने, सुस्ताने और आराम करने के लिए छायादार घने वृक्ष हैं. रामनिवास बाग परिसर में ही रवींद्र मंच, अल्बर्ट हाल, चिडि़याघर आदि हैं जो पर्यटकों के लिए मनोरंजन के विशेष साधन हैं.

आकर्षण :

बाग के बीचोंबीच गोलाकार सर्किल में शहर का म्यूजियम अल्बर्ट हाल स्थित है. जब रामनिवास बाग बना था तब यहां यह म्यूजियम नहीं था. बाद में महाराजा प्रतापसिंह से माधोसिंह (द्वितीय) तक के कार्यकाल में इसे बना कर तैयार किया गया. वर्तमान में अल्बर्ट हाल रामनिवास बाग की पहचान बन गया है. वहीं रवींद्र मंच रामनिवास बाग के उत्तरपूर्वी परिसर में स्थित है. रवींद्र मंच एक विशाल प्रेक्षागृह है. यह राजस्थान का सब से बड़ा प्रेक्षागृह है. समयसमय पर यहां नाटकों का मंचन किया जाता है. यहां 2 चिडि़याघर हैं. जयपुर के चिडि़याघर में दुर्लभ वन्यजीवों के साथ टाइगर का होना मुख्य आकर्षण है.

कैसे जाएं

यहां जाने के लिए जयपुर के अजमेरी गेट जाना पड़ता है. उस के पास ही यह बाग स्थित है.

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