सेम सेक्स पर बनी ये मूवीज रही कंट्रोवर्शियल

बौलीवुड में समलैंगिक रिश्ते पर कई सारी फिल्में भी बनी हैं, जो कंट्रोवर्सी में भी रहीं, लेकिन देखा जाए, तो इन फिल्मों में सिर्फ पोर्न दिखाए गए हैं. समलैंगिक जोड़े को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन फिल्म में ये चीजें नहीं दिखाई जाती है, सिर्फ चस्का के लिए समलैंगिक फिल्में बनाई जाती हैं. इनमें कोई व्यवहारिक बातें नहीं की गई हैं.

फिल्म निर्मताओं में इतनी हिम्मत होनी चाहिए कि होमोसेक्सुअल आधारित फिल्म में ये दिखाएं कि सेम सेक्स जोड़े बुढ़ापे तक साथ रहें और उनके रिश्तेदार आसानी से इन्हें स्वीकार करें.

हालांकि सदियों पहले भी समलैंगिक रिश्ते बनते थे, लेकिन इसका कोई कानून नहीं था. उस समय किसी को पता भी नहीं चलता था कि कौन होमोसेक्सुअल है, लेकिन कुछ सालों पहले समलैंगिक रिश्ते का मामला सुप्रिम कोर्ट तक पहुंच गया. सुप्रिम कोर्ट ने समलैंगिक शादियों को मान्यता देने से इनकार कर दिया. हालांकि सुप्रिम कोर्ट की तरफ से समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए कई दिशानिर्देश भी जारी किए. सीजेआई ने समलैंगिक जोड़े को बच्चा गोद लेने का भी अधिकार दिया है.

आज इस आर्टिकल में कुछ गे फिल्में और लेस्बियन फिल्मों के बारे में बताएंगे, जो विवादों में रही.

lesbian पर बनने वाली फेमस फिल्में

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अनफ्रीडम (2015)

अनफ्रीडम फिल्म की कहानी समलैंगिक रिश्तों पर आधारित है. इसमें दो लड़कियों की प्रेम कहानी दिखाया गया है, जो समाज में अपनी शादी के लिए लंबी लड़ाई लड़ती है. दोनों लड़कियों के बीच कई बोल्ड सीन्स भी दिखाए गए हैं. यह उस समय की विवादित फिल्मों में से एक थी. इस फिल्म को कई सीन्स के लिए सेंसर बोर्ड ने बैन कर दिया था.

राज कुमार अमित द्वारा अनफ्रीडम फिल्म का डायरेक्शन किया गया है. इस फिल्म में कई एक्टर्स ने शानदार किरदार निभाया है, प्रीती गुप्ता, विक्टर हुसैन, आदिल हुसैन, भानु उदय,  जैसे मुख्य कलाकार इस फिल्म के हिस्सा थे.

मार्गरिटा विद ए स्ट्रॉ (2005)

साल 2014 में आई फिल्म मार्गरिटा विद ए स्ट्रा दो महिलाओं के बीच के प्यार को दर्शाती है. इस में कल्कि कोचलिन और सयानी गुप्ता मुख्य किरदार में हैं. इन दोनों के बीच इंटिमेट सीन दिखाए गए हैं. इस फिल्म में कल्कि कोचलिन की एक्टिंग काबिल-ए-तारिफ है. सयानी गुप्ता ने भी अच्छी एक्टिंग की है. यह फिल्म भी कंट्रोवर्शी में रही है.

फायर (1996)

यह रोमांटिक ड्रामा फिल्म है.  फायर फिल्म में जेठानी और देवरानी के बीच संबंध दिखाए गए हैं. इस फिल्म में शबाना आजमी और नंदिता दास के समलैंगिक रिश्तों को दिखाया गया था. फिल्म की कहानी ये है कि दोनों महिलाओं के पति को उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है. शबाना (सीता) और नंदिता (राधा) दोनों एकदूसरे की देखभाल करती हैं. वो पूरा दिन किचन में काम करती हैं. पतियों द्वारा छोड़ी गई ये महिलाएं कब एकदूसरे की प्रेमिका बन जाती है और अपनी इच्छाओं को पूरी करती हैं, इस फिल्म में ये सारी चीजें बखूबी दिखाई गई हैं.

साल 1996 में आई यह फिल्म  विवादित सीन के कारण सुर्खियों में छायी रही. यह रोमांटिक ड्रामा फिल्म है.

Gay पर बनने वाली फेमस फिल्में

माई ब्रदर निखिल (2005)

डायरेक्टर ओनिर द्वारा निर्देशित फिल्म माई ब्रदर निखिल में दो युवाओं के बीच समलैंगिक रिश्तों को दिखाया गया है. इस फिल्म में जूही चावला भी हैं, उनके भाई (निखिल) का किरदार संजय सूरी ने निभाया है, जो किसी लड़के से प्यार करते हैं. उनको एड्स भी हो जाता है. इस फिल्म का मुख्य आकर्षण समलैंगिक रिश्ता है. यह फिल्म भी उस दौर में कंट्रोवर्सी में छायी रही.

अलीगढ़ (2016)

यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है. इस फिल्म में उत्रर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में स्थापित डॉ. श्रीनिवास रामचंद्र सिरस की कहानी दिखाई गई है. ये अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के प्रोफेशर थे. उन्हें किसी कारणवश सस्पेंड कर दिया जाता है. इस फिल्म की कहानी प्रोफेशर के इर्दगिर्द घूमती है. प्रोफेशर के रोल मनोज वाजपेयी ने निभाया है. उनका किरदार हामोसेक्सुअल प्रोफेशर का है. उनका संबंध एक रिक्शा चलाने वाले के साथ है. ये फिल्म भी विवादित फिल्मों में से एक है. इस फिल्म में मनोज वाजपेयी के अलावा राजकुमार राव भी नजर आए हैं.

पद्मावत (2018)

रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, शाहिद कपूर स्टारर फिल्म पद्मावत में  खिलजी का सेवक समलैंगिक होता है. फिल्म में दिखाया गया है कि मलिक कफूर के दिल में अलाउद्दीन खिलजी के लिए एक अलग ही प्रेम होता है. वह खिलजी के इशारों पर करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है. फिल्म में ऐसे कई सीन्स हैं, जहां काफूर के दिल में खिलजी के लिए साफ प्यार नजर आता है. इस फिल्म पर रोक लगी थी, यहां तक कि धरणें भी निकाले गए थे. इस फिल्म के विरोध में डायरेक्टर संजय लीला भंसाली को थप्पड़ भी जड़ दिया गया था.

आई एम (2010)

साल 2010 में आई फिल्म आई एम होमोसेक्सुअल पर आधारित है. इसमें राहुर बोस ने समलैंगिक का किरदार निभाया था. इसमें मनिशा कोइराला, जूही चावला, नंदिता दास जैसे कालाकार मुख्य भूमिका में हैं.

वेडिंग फंक्शन में दिखा Cocktail Girl का गोल्डन स्टाइल, देखें Photos

बौलीवुड एक्ट्रेस डायना पेंटी को उनकी ड्रेसिंग सेंस, बोल्डनेस और लुक्स के लिए जाना जाता है. अक्सर वो इंस्टाग्राम पर अपने ट्रेडिशनल लुक, ग्लैमरस स्टाइल और बोल्ड फोटोज से तहलका मचाती रहती हैं. हाल ही में उन्हें एक वेडिंग फंक्शन में गोल्ड अवतार में देखा गया.

गोल्डन लेस साड़ी

एक्ट्रेस डायना पैंटी वेडिंग फंक्शन में गोल्डन कलर की साड़ी में नजर आयी ब्रांड ईक्षा की गोल्ड लेस साड़ी,
जिसमें कटडाना स्वारोवस्की क्रिस्टल, सेक्विन और पर्ल्स का काम था जो रात की जगमग रोशनी में उनके रूप में चार-चांद लगा रही थी.

केप डिजाइनर ब्लाउज

साड़ी के साथ केप ब्लाउज में भी बेहतरीन काम था. फ्रंट से वी नैक कस्टम-मेड, हैवी डेकोरेटेड ब्लाउज में क्रिस्टल जड़े हुए थे जालीदार पैनल के साथ एक बंद नेकलाइन थी जो एक नैकलेस की तरह थी. एल्बो तक की लंबाई वाली ट्रांसपरेंट केप स्लीव्स, जिसमे फ्लावर की एप्लीक इम्ब्रॉइडरी की गई थी साथ ही इसे चमकीले पर्ल से सजाया गया था. इस साड़ी और ब्लाउज में उनका अंदाज लाजवाब लग रहा था.

ग्लोसी मेकअप

इसके साथ ही लुक को और स्टाइलिश बनाने के लिए डायना ने ग्लॉसी मेकअप किया, मैरून लिप कलर से लिप को सजाया, आखों में थोड़ा बाहर की तरफ निकला हुआ स्टाइलिश आई लाइनर लगाया और बालों को जूड़ा बना कर फ्रंट के बालों की 2 लटे फेस पर छोड़ रखी थी. स्टोन और पर्ल वाले हैंगिंग इयररिंग पहन कर लुक को अच्छे से कंपलीट किया हुआ था. उनका ये अंदाज काफी ग्लैमरस लग रहा था.

चोपर्ड पार्टी में दिखा ग्लैमरस लुक

इससे पहले भी डायना के गोल्डन ग्लैमरस लुक ने सभी को अपना दीवाना बनाया हुआ था. चोपर्ड
(Chopard) पार्टी में में डायना पेंटी ग्रीस फैशन डिजाइनर Celia Kritharioti की डिजाइन की हुई फ्रिंज शिमरी गोल्डन ड्रेस पहने हुए नजर आई थी. इसमें उन्होंने गोल्डन ड्रेस के साथ गोल्डन कलर के लांग बूट्स भी कैरी किए हुए थे साथ ही मिनिमल मेकअप के साथ खुले बालों मे डायना का ये लुक फैंस को काफी पंसद आया था.

फिल्म ‘कौकटेल’ से डेब्यू करने वाली डायना अपने स्टाइल और ग्लैमर से इंटरनेट पर अक्सर छाई रहती हैं. वो आखिरी बार फिल्म सेक्शन 84 आईपीएस में अमिताभ बच्चन के साथ नजर आई थीं.

फिटनेस फ्रिक लोगों को क्यों आता है हार्ट अटैक, Akshay Kumar ने बताई इसकी वजह और बचने के टिप्स

अक्षय कुमार उन एक्टरों में से एक है जो सिक्स पैक मसल्स वाली बौडी बनाने के बजाय फिटनेस, अच्छी सेहत, एनर्जी से भरपूर स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं. जिसके चलते अक्षय कुमार वेटलिफ्टिंग, स्टेराइड्स, सप्लीमेंट लेने के बजाय सीढ़ी चढ़ना, दौड़ना, और घर का बना खाना खाकर अच्छी सेहत बनाने पर ज्यादा विश्वास रखते हैं. हाल ही में हुई बातचीत के दौरान अक्षय कुमार ने युवाओं में बढ़ती अति व्यस्तता के चलते टेंशन, डिप्रेशन, हाइपर टेंशन और जल्दी से जल्दी हीरो और हीरोइन की तरह बौडी बनाने के चक्कर में सप्लीमेंट स्टेराइड लेकर अपने आप को मानसिक और शारीरिक तौर पर गंभीर बीमारी की तरफ़ ढकेलते हुए कम उम्र में दिल की बीमारी से ग्रस्त होने वाले युवाओं के प्रति चिंता जाहिर की…..

अक्षय कुमार ने बताया की उन्होंने पिछले कुछ दिनों पहले एक अस्पताल में विजिट किया था . जहां पर उन्होंने 20 से 30 उम्र के युवाओं को अस्पताल के बेड पर पाया. ऐसे में जब अक्षय ने उनके बीमारी की वजह जानी तो पता चला की ज्यादातर लड़के लड़कियां दिल की बीमारी से ग्रस्त है. जिसकी वजह हाइपरटेंशन, डिप्रेशन, आदि ही बताई जा रही थी. इसी बात को मद्दे नजर रखते हुए अक्षय कुमार ने युवाओं के लिए कुछ खास टिप्स और जानकारी दी..

अक्षय कुमार के अनुसार आज के युवा वर्ग में एक ऐसी प्रवृत्ति पाई जा रही है जिसमे वह कम समय में ज्यादा से ज्यादा पाने की कोशिश में लगे रहते हैं. फिर चाहे वह आर्थिक तौर पर हो या तो शारीरिक तौर पर ही क्यों ना हो. जबकि सच्चाई यह है कि किसी भी चीज को बिगाड़ने में अगर चंद सेकंड लगते हैं तो बनाने में महीनो और सालो लग जाते हैं . लेकिन आज के युवा फास्ट फूड की तरह लाइफ में भी सब कुछ फास्ट फास्ट चाहते हैं. ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में या अपनी इच्छा अनुसार सफलता पाने के चक्कर में मानसिक तौर पर बीमार होने लगते हैं जिसके चलते हाइपर टेंशन डिप्रेशन जेसी खतरनाक मानसिक बीमारियां उनको अस्पताल पहुंचा देती हैं. जबकि सच्चाई यह है की आर्थिक और शारीरिक तौर पर मजबूत होने के लिए अपने आप को पूरा समय देना होता है. जल्दबाजी का काम शैतान का होता है. जो हमेशा आपको गलत रास्ते पर ही लेकर जाता है यही वजह है कि आज के युवाओं में सब्र की कमी है और दिल का दौरा ज्यादा बढ़ रहा है.

जिम में एक्सरसाइज करते हुए , हुई मौत के जिम्मेदार युवा खुद ही है…

आजकल बहुत सारी ऐसी खबरें आ रही हैं की कई सारे जवान लड़के लड़कियां जिम में एक्सरसाइज करतेकरते या औफिस में काम करतेकरते दिल का दौरा पढ़ने से अचानक मौत के घाट उतर गए. ऐसे में अगर मैं कहूं कि आप अपनी मौत का कारण खुद है तो शायद आपको गलत लगेगा .लेकिन सच्चाई यह है कि अगर आप जिम में एक्सरसाइज कर रहे हैं तो कई सारी सावधानियां जरूरी हैं. सबसे पहले तो सप्लीमेंट यह स्टेरायड से दूर रहे यह आपके लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है. दूसरा एक्सरसाइज शुरू करने से पहले 10-15 मिनट वार्म अप जरूर करें ताकि आपकी बौडी का तापमान एक्सरसाइज के लायक हो. और एक्सरसाइज पूरी होने के बाद 10 मिनट का आराम भी जरूर करें.

आपकी मांसपेशियां नार्मल हो सके. जिम में एक्सरसाइज करते समय सर पर पानी बिल्कुल भी ना डालें इससे शरीर पर गलत और हानिकारक अंजाम होते हैं. बहुत ज्यादा एक्सरसाइज करने के बाद आपका ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है ऐसे में सिर पर पानी डालना नुकसान देह साबित होता है . इसलिए सर पर पानी डालकर अपने दिमाग की गर्मी शांत ना करें. इसके अलावा डाइटिंग करके लोग जल्दी से जल्दी पतले होना चाहते हैं या गलत दवाइयां का इस्तेमाल करते हैं ताकि उनका वेट जल्द से जल्द कम हो जाए ऐसा करने से भी शरीर पर गलत प्रभाव पड़ता है. बजाय इसके अगर घर का बना खाना खाएंगे भूखे रहने के बजाय सही डाइट लेंगे तो आप आराम से घर बैठे भी पतले हो सकते हैं.

मेरी दादी रोज सुबह दो चम्मच देसी घी खाती थी और वह 98 साल तक जिंदा रही. कहने का मतलब ये है देसी घी, बादाम अखरोट का सेवन भी जरूर करे ये आपको शारीरिक तौर पर मजबूत करता है. और किसी भी बीमारी से लड़ने की आपके शरीर में पर्याप्त ऊर्जा और क्षमता रहती है. कहने का मतलब यह है कि अगर आपको लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन जीना है तो आपको अनुशासन के साथ सही मार्ग पर चलकर अपने आप को खुद ही मानसिक और शारीरिक तौर पर फिट रखना होगा. और तभी आप दिल की बीमारी या किसी और भयानक बिमारी से अपने आप को बचा सकते है और पूरी तरह फिट रह सकते है .

बारिश में बनाएं लेयर्ड वर्मीसेली मैंगो पुडिंग, बहुत आसान है इसकी रेसिपी

मौसम चाहे कोई भी हो मीठे की चाहत तो होती ही है. यूं तो आजकल बाजार में रेडीमेड चीजों की भरमार है परन्तु रेडीमेड खाद्य वस्तुओं को खाने में सबसे बड़ी समस्या उनकी कम पौष्टिकता की होती है क्योंकि इनका स्वाद बढ़ाने के लिए भांति भांति के स्वीटनर्स, रंग और प्रिजर्वेटिव का प्रयोग किया जाता है जिससे हर समय इन्हें खाना सेहतमंद नहीं होता. यदि थोड़ी सी कोशिश से घर पर ही कुछ मीठा बना लिया तो यह सेहत के लिए तो अच्छा रहता ही है साथ ही बाजार के रेडीमेड मीठे की अपेक्षा काफी सस्ता भी पड़ता है. इस समय आम का सीजन है, तो आज हम आपको आम से ही एक बहुत टेस्टी और झटपट बनने वाला मीठा बनाना बता रहे हैं जिसे आप चुटकियों में घर पर बना सकते हैं तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है.

कितने लोगों के लिए 4

बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

रोस्टेड वर्मीसेली 1 कप
फूल क्रीम दूध 2 कप
मिल्क पाउडर 2 टेबलस्पून
शकर 2 टेबलस्पून
कस्टर्ड पाउडर 1 टीस्पून
पके दशहरी आम 4
इलायची पाउडर 1/4 टीस्पून
बारीक कटी मेवा 2 टेबलस्पून
रूहाफजा शर्बत 3 टीस्पून

विधि

दूध को 4-5 उबाल आने तक पका लें. अब इसमें वर्मीसेली डालकर चलाएं और धीमी आंच पर 5 मिनट तक ढककर पकाएं. 1 टीस्पून गुनगुने दूध में मिल्क पाउडर और कस्टर्ड पाउडर को मिक्स लरें और इसे वर्मीसेली में डालकर चलाएं. शकर डालकर 2-3 मिनट तक पकाकर गैस बंद कर दे . इसे ठंडा होने के लिए पंखे की हवा में रख दें बीच बीच में चलाते रहें ताकि इसमें मलाई न पड़ने पाए. 2 आम को छीलकर पीस लें और बचे 2 आम को छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें.

अब एक लंबे ग्लास में पहले 1 टीस्पून आम की प्यूरी फिर तैयार वर्मीसेली, फिर 1 टीस्पून कटे आम और रोस्टेड नट्स डालकर ग्लास के किनारे से आधा टीस्पून रूहाफजा शर्बत ग्लास के किनारों से चारों तरफ डालकर पुनः मैंगो प्यूरी, वर्मीसेली, कटे आम और रोस्टेड नट्स की लेयर लगा दें. इसी प्रकार तीसरी लेयर दोहराकर सबसे ऊपर कटे नट्स और आम के टुकड़े डालकर फ्रिज में रखकर ठंडा ठंडा सर्व करें.

बेइज्जती पाने की होड़

पहले मैं इस भरम में जीता था कि हर इनसान इज्जत के साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहता है लेकिन बाद में मेरी इस सोच में बदलाव तब आया जब मुझे अपनी खुद की आंखों से बेइज्जती के साथ जीनेमरने की कसमें खाने वाले धुरंधरों के दर्शन करने का मौका मिला.

भारत की खोज बड़े ही मौज के साथ वास्को डी गामा ने की थी, लेकिन बेइज्जती के बोझ की खोज किस रोज और किस ने की थी, यह बता पाना उतना ही मुश्किल है जितना मुश्किल आम आदमी के लिए बिना रीचार्ज किए स्मार्ट फोन की बैटरी को पूरा दिन चलाना है.

कुछ लोग बेइज्जत होने को अपना बुनियादी हक मानते हैं और इसे पाने के लिए वे लगातार अपनी इज्जत को तारतार करते हुए इसी जद्दोजेहद में लगे रहते हैं. ‘बेइज्जती पिपासु’ लोगों को अपनी पूरी उम्र इज्जत की प्राणवायु हजम नहीं होती है. इज्जत भरी जिंदगी की इच्छा से ही ‘बेइज्जती प्रिय’ लोग सहम जाते हैं और इज्जत जैसी नुकसान पहुंचाने वाली और मारक चीज से उचित दूरी बना कर चलते हैं. बेइज्जत होना इन के लिए रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी जरूरतों में शुमार होता है.

बेइज्जती के नशेड़ी उलट हालात में भी बेइज्जती का हरण कर उस का वरण करने में कामयाब हो जाते हैं. आम का सीजन हो या केले का, ये लोग हमेशा से ही सरेआम बेइज्जती से गले मिलना पसंद करते हैं ताकि सार्वजनिक जिंदगी में ट्रांसपेरैंसी बनी रहे.

इसी ट्रांसपेरैंसी और ईमानदारी के चलते ये जल्द ही बेइज्जती के वामन रूप से विराट रूप धर लेते हैं. हर देश, काल और हालात में ‘बेइज्जती उपासक’ अपनी निष्ठा और निष्ठुरता से बेइज्जती हासिल कर ही लेते हैं.

बेइज्जती के इस धंधे में कभी मंदी नहीं आती है क्योंकि बेइज्जती में हमेशा नकद से ही आप का कद बढ़ता रहता है और उधार से बेइज्जती की धार कुंद होती चली जाती है.

विजय माल्या और नीरव मोदी ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बैंक को चूना लगा दिया हो, लेकिन देश से भाग कर, बेइज्जत होने की दौड़ में सब को पछाड़ कर ‘बेइज्जती उद्योग’ को चार चांद लगा दिए हैं.

कुछ लोगों में बेइज्जत होने का जुनून ही उन के सुकून की वजह होता है. बेइज्जती का घूंट वे कहीं से भी लूट लेते हैं. गलती से मिली इज्जत की वाह, इन की धमनियों में होने वाली बेइज्जती के नियमित बहाव को नहीं रोक पाती है.

बेइज्जती प्रदेश के मूल निवासी, चाहे अपने निवास पर हों या दूसरी किसी जगह के प्रवास पर, वे बेइज्जती की लौजिंगबोर्डिंग हमेशा अपने शरीर पर धारण किए रहते हैं.

इस प्रदेश के मूल निवासी हमेशा बेइज्जत होने के नएनए मौके और तरीके खोजने की कोशिश करते रहते हैं ताकि बेइज्जती की बोरियत से बचा कर इसे समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके.

लगातार बेइज्जत होना भी एक ऐसी कला है जिसे आम आदमी के लिए अंजाम देना मुश्किल होता है. बेइज्जती के फील्ड में पेशेवर फील्डिंग करने वालों की कमी महसूस की जाती रही है.

डिमांड के मुकाबले सप्लाई न होने से बैलैंस गड़बड़ा रहा?है. लेकिन फिर भी देख कर संतोष और कुछकुछ होता है कि कुछ लोगों ने बेइज्जत होने को अपनी जिंदगी का मिशन और सहारा बना लिया है और वे बेइज्जती के सामने मुसाफिर की तरह ट्रैफिक के नियमों का पालनपोषण कर, इस रास्ते पर दांडी मार्च रहे हैं.

इन्हीं लोगों द्वारा उपजी क्वालिटी के चलते क्वांटिटी की कमी महसूस नहीं हो पाती है और क्वांटिटी की कमी के खिलाफ उठने वाली संगठित आवाज बेइज्जती के बोझ के नीचे दब जाती है.

बेइज्जती उद्योग में अभी भी बहुत उम्मीदें हैं जिन पर बेइज्जत हो कर गंभीरता से विचार करना जरूरी है. समाज के फायदे के लिए इस क्षेत्र में लोगों को बढ़ावा देने की जरूरत है क्योंकि आज की गलाकाट होड़ में जहां लोगों को इज्जत और नाम के लिए दरदर भटकने के बाद भी बेइज्जती ही हाथ लगती है, वहीं अगर उन्हें सीधे ही बेइज्जत होने के लिए बढ़ावा दिया जाए तो उन का यह भटकाव काफी हद तक कम होगा और नतीजतन समाज में इज्जत पाने की अंधी दौड़ में भागने वाले, उसेन बोल्ट जैसे धावक की आवक भी कम हो जाएगी.

वादियों का प्यार : जब दो प्यार करनेवालों के बीच बनी शक की दीवार

साकेत से विवाह कर के कितनी खुश थी मैं, तभी एक शक की दीवार हमारे बीच आ खड़ी हुई और शिमला की वादियों में पनपा प्यार किन्हीं और वादियों में खोता दिखाई देने लगा.

नैशनल कैडेट कोर यानी एनसीसी की लड़कियों के साथ जब मैं कालका से शिमला जाने के लिए टौय ट्रेन में सवार हुई तो मेरे मन में सहसा पिछली यादों की घटनाएं उमड़ने लगीं.

3 वर्षों पहले ही तो मैं साकेत के साथ शिमला आई थी. तब इस गाड़ी में बैठ कर शिमला पहुंचने तक की बात ही कुछ और थी. जीवन की नई डगर पर अपने मनचाहे मीत के साथ ऐसी सुखद यात्रा का आनंद ही और था.

पहाडि़यां काट कर बनाई गई सुरंगों के अंदर से जब गाड़ी निकलती थी तब कितना मजा आता था. पर अब ये अंधेरी सुरंगें लड़कियों की चीखों से गूंज रही हैं और मैं अपने जीवन की काली व अंधेरी सुरंग से निकल कर जल्द से जल्द रोशनी तलाश करने को बेताब हूं. मेरा जीवन भी तो इन सुरंगों जैसा ही है- काला और अंधकारमय.

तभी किसी लड़की ने पहाड़ी के ऊपर उगे कैक्टस को छूना चाहा तो उस की चीख निकल गई. साथ आई हुई एनसीसी टीचर निर्मला उसे फटकारने लगीं तो मैं अपने वर्तमान में लौटने का प्रयत्न करने लगी.

तभी सूरज बादलों में छिप गया और हरीभरी खाइयां व पहाड़ और भी सुंदर दिखने लगे. सुहाना मौसम लड़कियों का मन जरूर मोह रहा होगा पर मुझे तो एक तीखी चुभन ही दे रहा था क्योंकि इस मौसम को देख कर साकेत के साथ बिताए हुए लमहे मुझे रहरह कर याद आ रहे थे.

सोलन तक पहुंचतेपहुंचते लड़कियां हर स्टेशन पर सामान लेले कर खातीपीती रहीं, लेकिन मुझे मानो भूख ही नहीं थी. निर्मला के बारबार टोकने के बावजूद मैं अपने में ही खोई हुई

थी उन 20 दिनों की याद में जो मैं

ने विवाहित रह कर साकेत के साथ गुजारे थे.

तारा के बाद 103 नंबर की सुरंग पार कर रुकतीचलती हमारी गाड़ी ने शिमला के स्टेशन पर रुक कर सांस ली तो एक बार मैं फिर सिहर उठी. वही स्टेशन था, वही ऊंचीऊंची पहाडि़यां, वही गहरी घाटियां. बस, एक साकेत ही तो नहीं था. बाकी सबकुछ वैसा का वैसा था.

लड़कियों को साथ ले कर शिमला आने का मेरा बिलकुल मन नहीं था, लेकिन प्रिंसिपल ने कहा था, ‘एनसीसी की अध्यापिका के साथ एक अन्य अध्यापिका का होना बहुत जरूरी है. अन्य सभी अध्यापिकाओं की अपनीअपनी घरेलू समस्याएं हैं और तुम उन सब से मुक्त हो, इसलिए तुम्हीं चली जाओ.’

और मुझे निर्मला के साथ लड़कियों के एनसीसी कैंप में भाग लेने के लिए आना पड़ा. पिं्रसिपल बेचारी को क्या पता कि मेरी घरेलू समस्याएं अन्य अध्यापिकाओं से अधिक गूढ़ और गहरी हैं पर खैर…

लड़कियां पूर्व निश्चित स्थान पर पहुंच कर टैंट में अपनेअपने बिस्तर बिछा रही थीं. मैं ने और निर्मला ने

भी दूसरे टैंट में अपने बिस्तर बिछा लिए. खानेपीने के बाद मैं बिस्तर पर

जा लेटी.

थकान न तो लड़कियों को महसूस हो रही थी और न निर्मला को. वह उन सब को ले कर आसपास की सैर को निकल गई तो मैं अधलेटी सी हो कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगी.

यद्यपि हम लोग शिमला के बिलकुल बीच में नहीं ठहरे थे और हमारा कैंप भी शिमला की भीड़भाड़ से काफी दूर था फिर भी यहां आ कर मैं एक अव्यक्त बेचैनी महसूस कर रही थी.

मेरा किसी काम को करने का मन नहीं कर रहा था. मैं सिर्फ पत्रिका के पन्ने पलट रही थी, उस में लिखे अक्षर मुझे धुंधले से लग रहे थे. पता नहीं कब उन धुंधले हो रहे अक्षरों में कुछ सजीव आकृतियां आ बैठीं और इस के साथ ही मैं तेजी से अपने जीवन के पन्नों को भी पलटने लगी…

वह दिन कितना गहमागहमी से भरा था. मेरी बड़ी बहन की सगाई होने वाली थी. मेरे होने वाले जीजाजी आज उस को अंगूठी पहनाने वाले थे. सभी तरफ एक उल्लास सा छाया हुआ था. पापा अतिथियों के स्वागतसत्कार के इंतजाम में बेहद व्यस्त थे.

सब अपेक्षित अतिथि आए. उस में मेरे जीजाजी के एक दोस्त भी थे.

जीजाजी ने दीदी के हाथ में अंगूठी पहना दी, उस के बाद खानेपीने का दौर चलता रहा. लेकिन एक बात पर मैं ने ध्यान दिया कि जीजाजी के उस

दोस्त की निगाहें लगातार मुझ पर ही टिकी रहीं.

यदि कोई और होता तो इस हरकत को अशोभनीय कहता, किंतु पता नहीं क्यों उन महाशय की निगाहें मुझे बुरी नहीं लगीं और मुझ में एक अजीब सी मीठी सिहरन भरने लगी. बातचीत में पता चला कि उन का नाम साकेत है और उन का स्वयं का व्यापार है.

सगाई के बाद पिक्चर देखने का कार्यक्रम बना. जीजाजी, दीदी, साकेत और मैं सभी इकट्ठे पिक्चर देखने गए. साकेत ने बातोंबातों में बताया, ‘तुम्हारे जीजाजी हमारे शहर में 5 वर्षों पहले आए थे. हम दोनों का घर पासपास था, इसलिए आपस में कभीकभार बातचीत हो जाती थी पर जब उन का तबादला मेरठ हो गया तो हम लोगों की बिलकुल मुलाकात न

हो पाई.

‘मैं अपने काम से कल मेरठ आया था तो ये अचानक मिल गए और जबरदस्ती यहां घसीट लाए. कहो, है न इत्तफाक? न मैं मेरठ आता, न यहां आता और न आप लोगों से मुलाकात होती,’ कह कर साकेत ठठा कर हंस दिए तो मैं गुदगुदा उठी.

सगाई के दूसरे दिन शाम को सब लोग चले गए, लेकिन पता नहीं साकेत मुझ पर कैसी छाप छोड़ गए कि मैं दीवानी सी हो उठी.

घर में दीदी की शादी की तैयारियां हो रही थीं पर मैं अपने में ही खोई हुई थी. एक महीने बाद ही दीदी की शादी हो गई पर बरात में साकेत नहीं आए. मैं ने बातोंबातों में जीजाजी से साकेत का मोबाइल नंबर ले लिया और शादी की धूमधाम से फुरसत पाते ही

मैसेज किया.

साकेत का रिप्लाई आ गया. व्यापार की व्यस्तता की बात कह कर उन्होंने माफी मांगी थी.

और उस के बाद हम दोनों में मैसेज का सिलसिला चलता रहा. मैं तब बीएड कर चुकी थी और कहीं नौकरी की तलाश में थी, क्योंकि पापा आगे पढ़ाने को राजी नहीं थे. मैसेज के रूप में खाली वक्त गुजारने का बड़ा ही मोहक तरीका मुझे मिल गया था.

साकेत के प्रणयनिवेदन शुरू हो गए थे और मैं भी चाहती थी कि हमारा विवाह हो  जाए पर मम्मीपापा से खुद यह बात कहने में शर्म आती थी. तभी अचानक एक दिन साकेत का मैसेज मेरे मोबाइल पर मेरी अनुपस्थिति में आ गया. मैं मोबाइल घर पर छोड़ मार्केट चली गई, पापा ने मैसेज पढ़ लिया.

मेरे लौटने पर घर का नकशा ही बदला हुआ सा लगा. मम्मीपापा दोनों ही बहुत गुस्से में थे और मेरी इस हरकत की सफाई मांग रहे थे.

लेकिन मैं ने भी उचित अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया और अपने दिल की बात पापा को बता दी. पहले तो पापा भुनभुनाते रहे, फिर बोले, ‘उस से कहो कि अगले इतवार को हम से आ कर मिले.’

और जब साकेत अगले इतवार को आए तो पापा ने न जाने क्यों उन्हें जल्दी ही पसंद कर लिया. शायद बदनामी फैलने से पहले ही वे मेरा विवाह कर देना चाहते थे. जब साकेत भी विवाह के लिए राजी हो गए तो पापा ने उसी दिन मिठाई का डब्बा और कुछ रुपए दे कर हमारी बात पक्की कर दी. साकेत इस सारी कार्यवाही में पता नहीं क्यों बहुत चुप से रहे, जाते समय बोले, ‘अब शादी अगले महीने ही तय कर दीजिए. और हां, बरात में हम ज्यादा लोग लाने के हक में नहीं हैं, सिर्फ 5 जने आएंगे. आप किसी तकल्लुफ और फिक्र में

न पड़ें.’

और 1 महीने बाद ही मेरी शादी साकेत से हो गई. सिर्फ 5 लोगों का बरात में आना हम सब के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श था.

किंतु शादी के बाद जब मैं ससुराल पहुंची तो मुंहदिखाई के वक्त एक उड़ता सा व्यंग्य मेरे कानों में पड़ा, ‘भई, समय हो तो साकेत जैसा, पहली भी कम न थी लेकिन यह तो बहुत ही सुंदर मिली है.’

मुझे समझ नहीं आया कि इस का मतलब क्या है? जल्दी ही सास ने आनेजाने वालों को विदा किया तो मैं उलझन में डूबनेउतरने लगी.

कहीं ऐसा तो नहीं कि साकेत ने पहले कोई लड़की पसंद कर के उस से सगाई कर ली हो और फिर तोड़ दी हो या फिर प्यार किसी से किया हो और शादी मुझ से कर ली हो? आखिर हम ने साकेत के बारे में ज्यादा जांचपड़ताल की ही कहां है. जीजाजी भी उस के काफी वक्त बाद मिले थे. कहीं तो कुछ गड़बड़ है. मुझे पता लगाना ही पड़ेगा.

पता नहीं इसी उधेड़बुन में मैं कब तक खोई रही और फिर यह सोच कर शांत हो गई कि जो कुछ भी होगा, साकेत से पूछ लूंगी.

किंतु रात को अकेले होते ही साकेत से जब मैं ने यह बात पूछनी चाही तो साकेत मुझे बाहों में भर कर बोले, ‘देखो, कल रात कालका मेल से शिमला जाने के टिकट ले आया हूं. अब वहां सिर्फ तुम होगी और मैं, ढेरों बातें करेंगे.’ और भी कई प्यारभरी बातें कर मेरे निखरे रूप का काव्यात्मक वर्णन कर के उन्होंने बात को उड़ा दिया.

मैं ने भी उन उन्मादित क्षणों में यह सोच कर विचारों से मुक्ति पा ली कि ज्यादा से ज्यादा यह होगा कि प्यार किसी और से किया होगा पर विवाह तो मुझ से हो गया है. और मैं थकान से बोझिल साकेत की बांहों में कब सो गई, मुझे पता ही न चला.

दूसरे दिन शिमला जाने की तैयारियां चलती रहीं. तैयारियां करते हुए कई बार वही सवाल मन में उठा लेकिन हर बार कोई न कोई बात ऐसी हो जाती कि मैं साकेत से पूछतेपूछते रह जाती. रात को कालका मेल से रिजर्व कूपे में हम दोनों ही थे. प्यारभरी बातें करतेकरते कब कालका पहुंच गए, हमें पता ही न चला. सुबह 7 बजे टौय ट्रेन से शिमला पहुंचने के लिए उस गाड़ी में जा बैठे.

घुमावदार पटरियों, पहाड़ों और सुरंगों के बीच से होती हुई हमारी गाड़ी बढ़ी जा रही थी और मैं साकेत के हाथ पर हाथ धरे आने वाले कल की सुंदर योजनाएं बना रही थी.

मैं बीचबीच में देखती कि साकेत कुछ खोए हुए से हैं तो उन्हें खाइयों और पहाड़ों पर उगे कैक्टस दिखाती और सुरंग आने पर चीख कर उन के गले लग जाती.

खैर, किसी तरह शिमला भी आ गया. पहाड़ों की हरियाली और कोहरे ने मन मोह लिया था. स्टेशन से निकल कर हम मरीना होटल में ठहरे.

कुछ देर आराम कर के चाय आदि पी कर हम माल रोड की सैर को निकल पड़े.

साकेत सैर करतेकरते इतनी बातें करते कि ऊंची चढ़ाई हमें महसूस ही न होती. माल रोड की चमकदमक देख कर और खाना खा कर हम अपने होटल लौट आए. लौटते हुए काफी रात हो गई थी व पहाड़ों की ऊंचाईनिचाई पर बसे होटलों व घरों की बत्तियां अंधेरे में तारों की झिलमिलाहट का भ्रम पैदा कर रही थीं. दूसरे दिन से घूमनेफिरने का यही क्रम रहने लगा. इधरउधर की बातें करतेकरते हाथों में हाथ दिए हम कभी रिज, कभी माल रोड, कभी लोअर बाजार और कभी लक्कड़ बाजार घूम आते.

दर्शनीय स्थलों की सैर के लिए तो साकेत हमेशा टैक्सी ले लेते. संकरी होती नीचे की खाई देख कर हम सिहर जाते. हर मोड़ काटने से पहले हमें डर लगता पर फिर प्रकृति की इन अजीब छटाओं को देखने में मग्न हो जाते.

इस प्रकार हम ने वाइल्डफ्लावर हौल, मशोबरा, फागू, चैल, कुफरी, नालडेरा, नारकंडा और जाखू की पहाड़ी सभी देख डाले.

हर जगह ढेरों फोटो खिंचवाते. साकेत को फोटोग्राफी का बहुत शौक था. हम ने वहां की स्थानीय पोशाकें पहन कर ढेरों फोटो खिंचवाईं. मशोबरा के संकरे होते जंगल की पगडंडियों पर चलतेचलते साकेत कोई ऐसी बात कह देते कि मैं खिलखिला कर हंस पड़ती पर आसपास के लोगों के देखने पर

हम अचानक अपने में लौट कर चुप

हो जाते.

नारकंडा से हिमालय की चोटियां और ग्लेशियर देखदेख कर प्रकृति के इस सौंदर्य से और उन्मादित हो जाते.

इस प्रकार हर जगह घूम कर और माल रोड से खापी कर हम अपने होटल लौटने तक इतने थक जाते कि दूसरे दिन सूरज उगने पर ही उठते.

इस तरह घूमतेघूमते कब 10 दिन गुजर गए, हमें पता ही न चला. जब हम लौट कर वापस दिल्ली पहुंचे तो शिमला की मस्ती में डूबे हुए थे.

साकेत अब अपनी वर्कशौप जाने लगे थे. मैं भी रोज दिन का काम कराने के लिए रसोई में जाने लगी.

एक दिन चुपचाप मैं अपने कमरे में

खिड़की पर बैठी थी कि साकेत

आए. मैं अभी कमरे में उन के आने का इंतजार ही कर रही थी कि मेरी सासूजी की आवाज आई, ‘साकेत, कल काम पर मत जाना, तुम्हारी तारीख है.’ और साकेत का जवाब भी फुसफुसाता सा आया, ‘हांहां, मुझे पता है पर धीरे बोलो.’

उन लोगों की बातचीत से मुझे कुछ शक सा हुआ. एक बार आगे भी मन में यह बात आई थी लेकिन साकेत ने टाल दिया था. मुझे खुद पर आश्चर्य हुआ, पहले दिन जिस बात को साकेत ने प्यार से टाल दिया था उसे मैं शिमला के मस्त वातावरण में पूछना ही भूल गई थी. खैर, आज जरूर पूछ कर रहूंगी. और जब साकेत कमरे में आए तो मैं ने पूछा, ‘कल किस बात की तारीख है?’

साकेत सहसा भड़क से उठे, फिर घूरते हुए बोले, ‘हर बात में टांग अड़ाने को तुम्हें किस ने कह दिया है? होगी कोई तारीख, व्यापार में ढेरों बातें होती हैं. तुम्हें इन से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. और हां, कान खोल कर सुन लो, आसपड़ोस में भी ज्यादा आनेजाने की जरूरत नहीं. यहां की सब औरतें जाहिल हैं. किसी का बसा घर देख नहीं सकतीं. तुम इन के मुंह मत लगना.’ यह कह कर साकेत बाहर चले गए.

मैं जहां खड़ी थी वहीं खड़ी रह गई. एक तो पहली बार डांट पड़ी थी, ऊपर से किसी से मिलनेजुलने की मनाही कर दी गई. मुझे लगा कि दाल में अवश्य ही कुछ काला है. और वह खास बात जानने के लिए मैं एड़ीचोटी का जोर लगाने के लिए तैयार हो गई.

दूसरे दिन सास कहीं कीर्तन में गई थीं और साकेत भी घर पर नहीं थे. काम वाली महरी आई. मैं उस से कुछ पूछने की सोच ही रही थी कि वह बोली, ‘मेमसाहब, आप से पहले वाली मेमसाहब की साहबजी से क्या खटरपटर हो गई थी कि जो वे चली गईं, कुछ पता है आप को?’

यह सुन कर मेरे पैरों तले जमीन खिसकने लगी. कुछ रुक कर वह धीमी आवाज में मुझे समझाती हुई सी बोली, ‘साहब की एक शादी पहले हो चुकी है. अब उस से कुछ मुकदमेबाजी चल रही है तलाक के लिए.’ सुन कर मेरा सिर चकरा गया.

?सगाई और शादी के समय साकेत का खोयाखोया रहना, सगाई के लिए मांबाप तक को न लाना और शादी में सिर्फ

5 आदमियों को बरात में लाना, अब मेरी समझ में आ गया था. पापा खुद सगाई के बाद आ कर घरबार देख गए थे. जा कर बोले थे, ‘भई, अपनी सुनीता का समय बलवान है. अकेला लड़का है, कोई बहनभाई नहीं है और पैसा बहुत है. राज करेगी यह.’

उन को भी तब इस बात का क्या गुमान था कि श्रीमान एक शादी पहले ही रचाए हुए हैं.

जीजाजी भी तब यह कह कर शांत हो गए थे, ‘लड़का मेरा जानादेखा है पर पिछले 5 वर्षों से मेरी इस से मुलाकात नहीं हुई, इसलिए मैं इस से ज्यादा क्या बता सकता हूं.’

इन्हीं विचारों में मैं न जाने कब तक खोई रही और गुस्से में भुनभुनाती रही कि वक्त का पता ही न चला. अपने संजोए महल मुझे धराशायी होते लगे. साकेत से मुझे नफरत सी होने लगी.

क्या इसी को प्यार कहते हैं? प्यार की पुकार लगातेलगाते मुझे कहां तक घसीट लिया और इतनी बड़ी बात मुझ से छिपाई. यदि तलाक मिल जाता तो शादी भी कर लेते पर अभी तो यह कानूनन जुर्म था. तो क्या साकेत इतना गिर गए हैं?

और मैं ने अचानक निश्चय कर लिया कि मैं अभी इसी वक्त अपने मायके चली जाऊंगी. साकेत से मुझे कोई स्पष्टीकरण नहीं चाहिए. इतना बड़ा धोखा मैं कैसे बरदाश्त कर सकती थी? और मैं दोपहर को ही बिना किसी से कुछ कहेसुने अपने मायके के लिए चल पड़ी. आते समय एक नोट जल्दी में गुस्से में लिख कर अपने तकिए के नीचे छोड़ आई थी :

‘मैं जा रही हूं. वजह तुम खुद जानते हो. मुझे धोखे में रख कर तुम सुख चाहते थे पर यह नामुमकिन है. अपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात करते तुम को शर्म नहीं आई? क्या मालूम और कितनी लड़कियां ऐसे फांस चुके हो. मुझे तुम से नफरत है. मिलने की कोशिश मत करना.          -सुनीता’

घर आ कर मम्मीपापा को मैं ने यह सब बताया तो उन्होंने सिर धुन लिया. पापा गुस्से में बोले, ‘उस की यह हिम्मत, इतना बड़ा जुर्म और जबान तक न हिलाई. अब मैं भी उसे जेल भिजवा कर रहूंगा.’

मैं यह सब सुन कर जड़ सी हो गई. यद्यपि मैं साकेत को जेल भिजवाना नहीं चाहती थी पर पापा मुकदमा करने पर उतारू थे.

मेरी समझ को तो जैसे लकवा मार गया था और पापा ने कुछ दिनों बाद ही साकेत पर इस जुर्म के लिए मुकदमा ठोंक दिया. मैं भी पापा के हर इशारे पर काम करती रही और साकेत को दूसरा विवाह करने के अपराध में 3 वर्षों की सजा हो गई.

मेरे सासससुर ने साकेत को बचाने के लिए बहुत हाथपैर मारे, पर सब बेकार.

इस फैसले के बाद मैं गुमसुम सी रहने लगी. कोर्ट में आए हुए साकेत की उखड़ीउखड़ी शक्ल याद आती तो मन भर आता, न जाने किन निगाहों से एकदो बार उस ने मुझे देखा कि घर आने पर मैं बेचैन सी रही. न ठीक से खाना खाया गया और न नींद आई.

साकेत के साथ बिताया, हुआ हर पल मुझे याद आता. क्या सोचा था और क्या हो गया.

इन सब उलझनों से मुक्ति पाने के लिए मैं ने स्थानीय माध्यमिक विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी कर ली.

दिन गुजरते गए और अब स्कूल की तरफ से ही शिमला आ कर मुझे पिछली यादें पागल बनाए दे रही थीं.

बाहर लड़कियों के खिलखिलाने के स्वर गूंज रहे थे. मैं अचानक वर्तमान में लौट आई. निर्मला जब मेरे करीब आई तो वह हंसहंस कर ऊंचीनीची पहाडि़यों से हो कर आने की और लड़कियों की बातें सुनाती रही और मैं निस्पंद सी ही पड़ी रही.

दूसरे दिन से एनसीसी का काम जोरों से शुरू हो गया. लड़कियां सुबह होते ही चहलपहल शुरू कर देतीं और रात तक चुप न बैठतीं.

एक दिन लड़कियों की जिद पर उन्हें बस में मशोबरा, फागू, कुफरी और नालडेरा वगैरह घुमाने ले जाया गया. हर जगह मैं साकेत की ही याद करती रही, उस के साथ जिया हरपल मुझे पागल बनाए दे रहा था.

हमारे कैंप के दिन पूरे हो गए थे. आखिरी दिन हम लोग लड़कियों को ले कर माल रोड और रिज की सैर को गए.

मैं पुरानी यादों में खोई हुई हर चीज को घूर रही थी कि सामने भीड़ में एक जानापहचाना सा चेहरा दिखा. बिखरे बाल, सूजी आंखें, बढ़ी हुई दाढ़ी पर इस सब के बावजूद वह चेहरा मैं कभी भूल सकती थी भला? मैं जड़ सी हो गई. हां, वह साकेत ही थे. खोए, टूटे और उदास से.

मुझे देख कर देखते ही रहे, फिर बोले, ‘‘क्या मैं ख्वाब देख रहा हूं? तुम और यहां? मैं तो यहां तुम्हारे साथ बिताए हुए क्षणों की याद ताजा करने के लिए आया था पर तुम? खैर, छोड़ो. क्या मेरी बात सुनने के लिए दो घड़ी रुकोगी?’’

मेरी आंखें बरस पड़ने को हो रही थीं. निर्मला से सब लड़कियों का ध्यान रखने को कह कर मैं भीड़ से हट कर किनारे पर आ गई. मुझे लगा साकेत आज बहुतकुछ कहना चाह रहे हैं.

सड़क पार कर साकेत सीढि़यां उतर कर नीचे प्लाजा होटल में जा बैठे, मैं भी चुपचाप उन के पीछे चलती रही.

साकेत बैठते ही बोले, ‘‘सुनीता, तुम मुझ से बगैर कुछ कहेसुने चली गईं. वैसे मुझे तुम को पहले ही सबकुछ बता देना चाहिए था. उस गलती की मैं बहुत बड़ी सजा भुगत चुका हूं. अब यदि मेरे साथ न भी रहना चाहो तो मेरी एक बात जरूर सुन लो कि मेरी शादी मधु से हुई जरूर थी पर पहले दिन ही मधु ने मेरे पैर पकड़ कर कहा था, ‘आप मेरा जीवन बचा सकते हैं. मैं किसी और से प्यार करती हूं और उस के बच्चे की मां बनने वाली हूं. यह बात मैं अपने पिताजी को समझासमझा कर हार गई पर वे नहीं माने. उन्होंने इस शादी तक मुझे एक कमरे में बंद रखा और जबरदस्ती आप के साथ ब्याह दिया.

‘‘‘मैं आप की कुसूरवार हूं. मेरी वजह से आप का जीवन नष्ट हो गया है पर मैं आप के पैर पड़ती हूं कि मेरे कारण अपनी जिंदगी खराब मत कीजिए. आप तलाक के लिए कागजात ले आइए, मैं साइन कर दूंगी और खुद कोर्ट में जा कर सारी बात साफ कर दूंगी. आप और मैं जल्दी ही मुक्त हो जाएंगे.’

‘‘यह कह कर मधु मेरे पैरों में गिर पड़ी. मेरी जिंदगी के साथ भी खिलवाड़ हुआ था पर उस को जबरदस्ती अपने गले मढ़ कर मैं और बड़ी गलती नहीं करना चाहता था, इसलिए मैं ने जल्दी ही तलाक के लिए अरजी दे दी. मुझे तलाक मिल भी जाता, पर तभी तुम जीवन में आ गईं.’’

‘‘मैं स्वयं चाह कर भी अपनी तरफ से तुम्हें मैसेज नहीं लिख रहा था पर जब तुम्हारा मैसेज आया तो मैं समझ गया कि आग दोनों तरफ लगी है और मैं अनचाहे ही तुम्हें भावभरे मैसेज भेजता गया.

‘‘फिर तुम्हारे पापा ने जब सगाई करनी चाही तो मैं अपनी बात कहने के लिए इसलिए मुंह नहीं खोल पाया कि कहीं इस बात से बनीबनाई बात बिगड़ न जाए और मैं तुम्हें खो न बैठूं.

‘‘बस, वहीं मुझ से गलती हुई. तुम्हें पा जाने की प्रबल अभिलाषा ने मुझ से यह जुर्म करवाया. शिमला की रंगीनियां कहीं फीकी न पड़ जाएं, इसलिए यहां भी मैं ने तुम्हें कुछ नहीं बताया. उस के बाद मुझे लगा कि यह बात छिपाई जा सकती है और तलाक मिलने पर तुम्हें बता दूंगा पर वह नौबत ही नहीं आई. तुम अचानक कहीं चली गईं और मिलने से भी मना कर गईं.

‘‘जेल की जिंदगी में मैं ने जोजो कष्ट सहे, वे यह सोच कर दोगुने हो जाते थे कि अब तुम्हारा विश्वास कभी प्राप्त न कर सकूंगा और इस विचार के आते ही मैं पागल सा हो जाता था.

‘‘पिछले महीने ही मैं सजा काट कर आया हूं पर घर में मन ही नहीं लगा. तुम्हारे साथ बिताए हर पल दोबारा याद करने के लालच में ही मैं यहां आ गया.’’

और साकेत उमड़ आए आंसुओं को अपनी बांह से पोंछने लगे, फिर झुक कर बोले, ‘‘हाजिर हूं, जो सजा दो, भुगतने को तैयार हूं. पर एक बार, बस, इतना कह दो कि तुम ने मुझे माफ कर दिया.’’

मैं बौराई हुई सी साकेत की बातें सुन रही थी. अब तक सिर्फ श्रोता ही बनी रही. भर आए गले को पानी के गिलास से साफ कर के बोली, ‘‘क्या समझते हो, मैं इस बीच बहुत सुखी रही हूं? मुझे भी तुम्हारी हर याद ने बहुत रुलाया है. बस, दुख था तो यही कि तुम ने मुझ से इतनी बड़ी बात छिपाई.

‘‘यदि एक बार, सिर्फ एक बार मुझे अपने बारे में खुल कर बता देते तो यहां तक नौबत ही न आती. पतिपत्नी में जब विश्वास नाम की चीज मर जाती है तब उस की जगह नफरत ले लेती है. इसी वजह से मैं ने तुम्हें मिलने को भी मना कर दिया था पर तुम्हारे बिना रह भी नहीं पाती थी.

‘‘जब तुम्हें सजा हुई तब मेरे दिल पर क्या बीती, तुम्हें क्या बताऊं. 3-4 दिनों तक न खाना खाया और न सोई, पर खैर उठो…जो हुआ, सो हुआ, विश्वास के गिर जाने से जो खाई बन गई थी वह आज इन वादियों में फिर पट गई है. इन वादियों के प्यार को हलका न होने दो.’’

और हम दोनों एकएक कप कौफी पी कर हाथ में हाथ डाले होटल से बाहर आ गए माल रोड की चहलपहल में खो जाने के लिए, एकदूसरे की जिंदगी में समा जाने के लिए.

प्रजनन संबंधी समस्याओं के लक्षण क्या हैं और मुझे कब मदद लेनी चाहिए?

सवाल 

मैं 32 वर्षीय महिला हूं और पिछले एक साल से गर्भधारण करने में असमर्थ हूं. प्रजनन संबंधी समस्याओं के लक्षण क्या हैं और मुझे कब मदद लेनी चाहिए?

जवाब

अगर आप पिछले एक साल से गर्भधारण करने की कोशिश कर रही हैं और आप इस में सफल नहीं हो पा रही हैं तो आप अपने डाक्टर से कंसल्ट करें और जांच कराएं. डाक्टर आप को बता सकते हैं कि किस समय संभोग करने से गर्भ ठहर सकता है. आप का डाक्टर कुछ टेस्ट भी कर सकता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि ओवरी का ट्यूब खुला है कि नहीं, फौर्मेशन हो रहा है कि नहीं, यूटरस ठीक है कि नहीं आदि. डाक्टर आप के पुरुष साथी की भी जांच कर सकता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या उस में कोई कमी तो नहीं है.

सवाल

मैं 27 वर्षीय महिला हूं और अभी मै गर्भवती हूं. स्वस्थ गर्भावस्था के लिए मु?ो किन प्रसवपूर्व विटामिनों पर विचार करना चाहिए?

जवाब

आप को फोलिक ऐसिड का सेवन करना चाहिए क्योंकि गर्भावस्था के पहले 3 महीने में यह बच्चे के नर्वस सिस्टम के विकास के लिए बहुत जरूरी होता है.  विटामिन डी भी काफी जरूरी विटामिन है. कैल्शियम और आयरन भी बच्चे के विकास के लिए बहुत जरूरी होता है. आयरन से गर्भ में बच्चे के प्रति ब्लड फ्लो बढ़ता है.

सोने की चिड़िया: पीयूष की मौत के बाद सुहासिनी की जिंदगी में क्या हुआ

बड़े से मौल में अपनी सहेली शिखा के साथ चहलकदमी करते हुए साड़ी कार्नर की ओर बढ़ गई थी सुहासिनी. शो केस में काले रंग की एक साड़ी ने उस का ध्यान आकर्षित किया पर सेल्स- गर्ल की ओर पलटते ही वह कुछ यों चौंकी मानो सांप पर पांव पड़ गया हो.

‘‘अरे, मानसी तुम, यहां?’’ उस के मुंह से अनायास ही निकला था.

‘‘जी हां, मैं यहां. कहिए, किस तरह की साड़ी आप को दिखाऊं? या फिर डे्रस मेटीरियल?’’ सेल्स गर्ल ने मीठे स्वर में पूछा था.

‘‘नहीं, कुछ नहीं चाहिए मुझे. मैं तो यों ही देख रही थी,’’ सुहासिनी के मुख से इतना भी किसी प्रकार निकला था.

मानसी कुछ बोलती उस से पहले ही सुहासिनी बोल पड़ी, ‘‘मानसी, क्या मैं तुम से कुछ देर के लिए बातें कर सकती हूं?’’

‘‘क्षमा कीजिए, मैम, हमें काम के समय व्यक्तिगत कारणों से अपना स्थान छोड़ने की अनुमति नहीं है. आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगी,’’ मानसी ने धीमे स्वर में उत्तर दिया था और अपने कार्य में व्यस्त हो गई थी.

‘‘क्या हुआ? इस तरह प्रस्तरमूर्ति बनी क्यों खड़ी हो? चलो, जल्दी से भोजन कर के चलते हैं. लंच टाइम समाप्त होने वाला है,’’ शिखा ने उसे झकझोर ही दिया था और मौल की 5वीं मंजिल पर स्थित रेस्तरां की ओर खींच ले गई थी.

‘‘क्या लोगी? मैं तो अपने लिए कुछ चाइनीज मंगवा रही हूं,’’ शिखा ने मीनू पर सरसरी निगाह दौड़ाई थी.

‘‘मेरे लिए एक प्याली कौफी मंगवा लो और कुछ खाने का मन नहीं है,’’ सुहासिनी रुंधे गले से बोली थी.

‘‘बात क्या है? कैंटीन में खाने का तुम्हारा मन नहीं था इसीलिए तो हम यहां तक आए. फिर अचानक तुम्हें क्या हो गया?’’ शिखा अनमने स्वर में बोली थी.

‘‘साड़ी कार्नर के काउंटर पर खड़ी सेल्सगर्ल को ध्यान से देखा तुम ने?’’

‘‘नहीं. मैं ने तो उस पर ध्यान नहीं दिया. मैं दुपट्टा खरीदने लगी थी पर तुम ने तो उस से बात भी की थी और उसे ध्यान से देखा भी था.’’

‘‘ठीक कह रही हो तुम. मेरे मनमस्तिष्क पर इतनी देर से वही छाई हुई है. पता है कौन है वह?’’

‘‘नहीं तो.’’

‘‘वह मेरी ननद मानसी है, शिखा.’’

‘‘क्या कह रही हो? वह यहां क्या कर रही है?’’

‘‘साडि़यों के काउंटर पर साडि़यां बेच रही है और क्या करेगी.’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘यही तो जानना चाहती थी मैं पर उस ने तो बात तक नहीं की.’’

‘‘बात नहीं की तो तुम उसे गोली मारो. क्यों अपनी जान हल्कान कर रही हो. वैसे भी तुम तो उस घर को 3 वर्ष पहले ही छोड़ चुकी हो. जब पीयूष ही नहीं रहा तो तुम्हारा संपर्क सूत्र तो यों भी टूट चुका है,’’ शिखा ने समझाया था.

‘‘संपर्क सूत्र तोड़ना क्या इतना सरल होता है, शिखा? उस समय पीयूष का संबल छूट जाने पर मैं कुछ भी सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थी. मातापिता, भाईभाभी ने विश्वास दिलाया कि वे मेरे सच्चे हितैषी हैं और मैं अपनी ससुराल छोड़ कर उन के साथ चली आई थी. उन्हें यह डर सता रहा था कि पीयूष के बीमे और मुआवजे आदि के रूप में जो 20  लाख रुपए मिले थे उन्हें कहीं मेरे ससुराल वाले न हथिया लें.’’

‘‘उन का डर निर्मूल भी तो नहीं था, सुहासिनी?’’

‘‘पता नहीं शिखा, पर मेरे और पीयूष के विवाह को मात्र 3 वर्ष हुए थे. परिवार का बड़ा, कमाऊ पुत्र हादसे का शिकार हुआ था…उन पर तो दुखों का पहाड़ टूटा था…मैं स्वयं भी विक्षिप्त सी अपनी 2 वर्ष की बेटी को सीने से चिपकाए वास्तविकता को स्वीकार करने का प्रयत्न कर रही थी. ऐसे में मेरे परिवार ने क्या किया जानती हो?’’

‘‘क्या?’’

‘‘मेरे दहेज की एकएक वस्तु वापस मांग ली थी उन्होंने. मेरी सास ने विवाह में उन्हें दी गई छोटीमोटी भेंट भी लौटा दी थी. सिसकते हुए कहने लगीं, ‘मेरा बेटा ही चला गया तो इन व्यर्थ की वस्तुओं को रख कर क्या करूंगी?’ पर जब मैं अपनी बेटी टीना को उठा कर चलने लगी तो वे तथा परिवार के अन्य सदस्य फफक उठे थे, ‘मत जाओ, सुहासिनी और तुम जाना ही चाहती हो तो टीना को यहीं छोड़ जाओ. पीयूष की एकमात्र निशानी है वह. हम पाल लेंगे उसे. वैसे भी वह तुम्हारे भविष्य में बाधक बनेगी.’’’

‘‘तो तुम ने क्या उत्तर दिया था, सुहासिनी?’’

‘‘मैं कुछ कह पाती उस से पहले ही बड़ी भाभी ने झपट कर टीना को मेरी गोद से छीन लिया था और टैक्सी में जा बैठी थीं. मैं निशब्द चित्रलिखित सी उन के पीछे खिंची चली गई थी.’’

‘‘जो हुआ उसे दुखद सपना समझ कर भूल जाओ सुहासिनी. उन दुख भरी यादों को याद करोगी तो जीना दूभर हो जाएगा,’’ शिखा ने सांत्वना दी थी.

‘‘जीना तो वैसे ही दूभर हो गया है. तब मैं कहां जानती थी कि धन के लालच में ही मेरा परिवार मुझे ले आया था. छोटे भाई सुहास ने कार खरीदी तो मुझ से 2 लाख रुपए उधार लिए थे. वादा किया था कि वर्ष भर में सारी रकम लौटा देंगे पर लाख मांगने पर भी एक पैसा नहीं लौटाया. अब तो मांगने का साहस भी नहीं होता. सुहास उस प्रसंग के आते ही आगबबूला हो उठता है.’’

‘‘चल छोड़ यह सब पचड़े और थोड़ा सा चाऊमीन खा ले. भूख लगी होगी,’’ शिखा ने धीरज बंधाया था.

‘‘मैं लाख भूलने की कोशिश करूं पर मेरे घर के लोग भूलने कहां देते हैं. अब बडे़ भैया को फ्लैट खरीदना है. प्रारंभिक भुगतान के लिए 10 लाख मांग रहे हैं. मैं ने कहा कि सारी रकम टीना के लिए स्थायी जमा योजना में डाल दी है तो कहने लगे, खैरात नहीं मांग रहे हैं, बैंक से ज्यादा ब्याज ले लेना.’’

‘‘ऐसी भूल मत करना, तुम्हें अपने लिए भी तो कुछ चाहिए या नहीं. मुझे नहीं लगता उन की नीयत ठीक है,’’ शिखा ने सलाह दी थी.

‘‘मुझे तो पूरा विश्वास है कि मेरे प्रति उन का पे्रेम केवल दिखावा है. टीना बेचारी तो बिलकुल दब कर रह गई है. हर बात पर उसे डांटतेडपटते हैं. मैं बीच में कुछ बोलती हूं तो कहते हैं कि तुम टीना को बिगाड़ रही हो.’’

‘‘तुम्हारे मातापिता कुछ नहीं कहते?’’

‘‘नहीं, वे तो अपने बेटों का ही पक्ष लेते हैं. जब से मैं ने बड़े भैया को फ्लैट के लिए 10 लाख देने से मना किया है, मां मुझ से बात तक नहीं करतीं,’’ सुहासिनी के नेत्र डबडबा गए थे.

‘‘क्यों अपने को दुखी करती है, सुहासिनी. अलग फ्लैट क्यों नहीं ले लेती. मैं ने तो पहले भी तुझे समझाया था. क्या नहीं है तेरे पास? सौंदर्य, उच्च शिक्षा, मोटा बैंक बैलेंस. दूसरे विवाह के संबंध में क्यों नहीं सोचती तू?’’

‘‘मेरे जीवन में पीयूष का स्थान कोई और नहीं ले सकता और मैं टीना के लिए सौतेला पिता लाने की बात सोच भी नहीं सकती.’’

‘‘इसीलिए तुम ने योगेश जैसे योग्य युवक को ठुकरा दिया?’’ शिखा ने अपना चाऊमीन समाप्त करते हुए कहा था.

‘‘नहीं, मैं खुद दूसरा विवाह नहीं करना चाहती. यों भी उसे मुझ से या टीना से नहीं मेरे पैसे और नौकरी में अधिक रुचि थी.’’

‘‘चलो, ठीक है, तुम सही और सब गलत. बहस में तुम से कोई जीत ही नहीं सकता,’’ शिखा ने पटाक्षेप करते हुए बिल चुकाया और दोनों सहेलियां मौल से बाहर आ गईं.

कार्यालय में व्यस्तता के बीच भी मानसी का भोलाभाला चेहरा सुहासिनी की आंखों के सामने तैरता रहा था.

5 बजते ही सुहासिनी अपना स्कूटर उठा कर मौल के सामने आ खड़ी हुई. उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. कुछ ही देर में मानसी आती नजर आई थी.

‘‘अरे, भाभी, आप अभी तक यहीं हैं? आप तो मुझे देख कर बिना कुछ खरीदे ही लौट गई थीं?’’ मानसी ने उसे देख कर नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए थे.

‘‘मैं तब से यहीं नहीं हूं, मैं और मेरी सहेली शिखा यहां लंच के लिए आए थे. मैं कार्यालय से यहां फिर से केवल तुम्हारे लिए आई हूं. चलो बैठो, कहीं बैठ कर बातें करेंगे,’’ सुहासिनी ने अपने स्कूटर की पिछली सीट की ओर इशारा किया था.

‘‘नहीं भाभी, मेरी बस छूट जाएगी. देर हो जाने पर मां बहुत चिंता करने लगती हैं,’’ मानसी संकुचित स्वर में बोली थी.

‘‘बैठो मानसी, मैं तुम्हें घर तक छोड़ दूंगी,’’ सुहासिनी का अधिकारपूर्ण स्वर सुन कर मानसी ना नहीं कह सकी थी.

‘‘अब बताओ, तुम्हें मौल में सेल्सगर्ल की नौकरी करने की क्या आवश्यकता पड़ गई?’’ रेस्तरां में आमने- सामने बैठते ही पूछा था सुहासिनी ने.

‘‘समय हमेशा एक सा तो नहीं रहता न भाभी. पीयूष भैया का सदमा पापा सह नहीं सके. पक्षाघात का शिकार हो गए. जो कुछ भविष्य निधि मिली उन के इलाज और अमला दीदी के विवाह में खर्च हो गई. पेंशन से फ्लैट की कि स्त दें या घर का खर्च चलाएं. उस पर रोहित भैया की डाक्टरी की पढ़ाई. रोहित भैया पढ़ाई छोड़ कर नौकरी करने जा रहे थे. मैं ने ही कहा कि मैं तो प्राइवेट पढ़ाई भी कर सकती हूं. रोहित भैया ने पढ़ाई पूरी कर ली तो पूरे परिवार का सहारा बन जाएंगे. इसीलिए नौकरी कर ली. 7 हजार भी बड़ी रकम लगती है आजकल,’’ पूरी कहानी बताते हुए रो पड़ी थी मानसी.

‘‘इतना सब हो गया और तुम लोगों ने मुझे सूचित तक नहीं किया. एकदम से पराया कर दिया अपनी भाभी को?’’ सुहासिनी के नेत्र डबडबा आए थे.

‘‘पराया तो आप ने कर दिया, भाभी. भैया क्या गए आप भी हमें भूल गईं और जैसे ही आप घर छोड़ कर गईं मां तो बिलकुल बुझ सी गई हैं. सदा एक ही बात कहती हैं, ‘मैं ने सुहासिनी को अपनी बहू नहीं बेटी समझा था पर उस ने तो पीयूष के बाद पलट कर भी नहीं देखा.’ टीना को देखने को तड़पती रहती हैं. उस के जन्मदिन पर बधाई देना चाहती थीं पर पापा ने मना कर दिया. कहने लगे, आप सोचेंगी कि पैसे के चक्कर में बच्ची को बहका रहे हैं ससुराल वाले,’’ मानसी किसी प्रकार अपने आंसू रोकने का प्रयत्न करने लगी थी.

सुहासिनी ने खाने के लिए जो हलकाफुलका, मंगाया था वैसे ही पड़ा रहा. चाय भी ठंडी हो गई पर दोनों में से किसी ने छुआ तक नहीं.

‘‘मुझे घर छोड़ दो, भाभी. मां सदा यही सोचती रहती हैं कि कहीं कुछ अशुभ न घट गया हो,’’ मानसी उठ खड़ी हुई थी.

सुहासिनी मानसी को बाहर से ही छोड़ कर चली आई थी. घर के अंदर जा कर किसी का सामना करने का साहस उस में नहीं था. वैसे भी कहीं एकांत में बैठ कर फूटफूट कर रोने का मन हो रहा था उस का. अनजाने में ही कैसा अन्याय हो गया था उस से.

पीयूष की पत्नी होने के नाते ही उसे मुआवजा मिला था. उसी के स्थान पर नौकरी मिली थी और वह सारे बंधन तोड़ कर मुंह फेर कर चली आई थी.

‘‘लो, आ गईं महारानी,’’ सुहासिनी को देखते ही मां ने ताना कसा था.

‘‘क्यों, क्या हुआ? आप इतने क्रोध में क्यों हैं,’’ सुहासिनी ने पूछ ही लिया था.

‘‘पूछ रही हो तो सुन भी लो. तुम दिन भर गुलछर्रे उड़ाओ और हम तुम्हारी बिटिया को संभालें, यह हम से नहीं होगा.’’

‘‘आप को लगता है कि मैं गुलछर्रे उड़ा कर आ रही हूं? टीना आप से नहीं संभलती यह तो आप ने कभी कहा नहीं. आप कहें तो स्कूल के बाद के्रच में डाल दूंगी,’’ सुहासिनी सीधेसपाट स्वर में बोली थी.

‘‘तो डाल दो न. मना किस ने किया है. अब अम्मां की सेवा करने की नहीं करवाने की उम्र है,’’ बड़े भैया चाय पीते हुए बोले थे और बड़ी भाभी हंस दी थीं.

‘‘मुझे भी एक प्याली चाय दे दो, बहुत थक गई हूं,’’ सुहासिनी ने बात का रुख मोड़ना चाहा था.

‘‘बना लो न बीबी रानी. आज मैं भी बहुत थक गई हूं. वैसे तुम थीं कहां अब तक? आफिस तो 5 बजे बंद होता है और अब तो 7 बजने वाले हैं.’’

‘‘मानसी मिल गई थी, उस से बातें करने में देर हो गई.’’

‘‘मानसी कौन?’’ बड़ी भाभी पूछ बैठी थीं.

‘‘अरे, वही मन्नो, इस की छोटी ननद. वह क्या लेने आई थी तुझ से?’’ मां बिफर उठी थीं.

‘‘कुछ लेने नहीं आई थी. मैं ने ही उसे मौल में देखा था. बेचारी आरोहण के साड़ी कार्नर में सेल्सगर्ल क ा काम करती है.’’

‘‘मां, आप नहीं जानतीं, वहां तो अलग ही खिचड़ी पक रही है. हम ने फ्लैट के लिए केवल 10 लाख मांगे तो मना कर दिया. वहां जाने कितने लुटा कर आई है,’’ अब बड़े भैया भी क्रोध में आ गए थे.

‘‘ठीक है. मेरा पैसा है, जैसे और जहां चाहूंगी खर्च करूंगी,’’ सुहासिनी ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया था.

‘‘फिर यहां क्यों पड़ी हो? वहीं जा कर रहो जहां पैसा लुटा रही हो.’’

‘‘भैया…’’ सुहासिनी इतने जोर से चीखी थी कि घर में हलचल सी मच गई थी.

‘‘चीखोचिल्लाओ मत. माना कि तुम बहुत धनी हो. पर घर में रहना है तो नियमकायदे से रहना होगा. नहीं तो जहां सींग समाएं वहां जाने को स्वतंत्र हो तुम,’’ बड़े भैया अपना निर्णय सुना कर भीतर अपने कमरे में चले गए. सुहासिनी पत्थर की मूर्ति बनी वहीं बैठी रही थी.

तभी अंदर से टीना के रोने की आवाज आई.

‘‘टीना कहां है?’’ सुहासिनी के मुख से अनायास ही निकला था.

‘‘अंदर सो रही है. थोड़ी चोट लग गई है. बड़ी जिद्दी हो गई है. बारबार सीढि़यां चढ़उतर रही थी कि फिसल गई. सिर और चेहरे पर चोट आई है,’’ मां ने अपेक्षाकृत सौम्य स्वर में कहा था.

सुहासिनी लपक कर कमरे में गई और टीना को गोद में उठा लिया. टीना उस के कंधे से लग कर देर तक सिसकती रही थी. सुहासिनी चुपचाप अपने आंसू पीती रही थी.

कुछ ही देर में माथे पर किसी स्पर्श का अनुभव कर वह पलटी थी. मां बड़े प्यार से उस के माथे और कनपटी पर मालिश कर रही थीं.

‘‘भैया की बात का बुरा मान गई क्या बेटी?’’

‘‘नहीं मां, तकदीर ने जो खेल मेरे साथ खेला है उस में भलाबुरा मानने को बचा ही क्या है?’’

‘‘मां हूं तेरी, इतना भी नहीं समझूंगी क्या? इसीलिए तो तुझे यहां ले आई थी. आंखों के सामने रहेगी तो संतोष रहेगा कि सबकुछ ठीकठाक है. सब तुझे बरगलाने का प्रयत्न करेंगे पर तू विचलित मत होना, थकहार कर सब चुप हो जाएंगे.’’

‘‘पर मां, वहां से इस तरह आना कुछ ठीक नहीं हुआ. आप को पता है क्या पीयूष के पिता को पक्षाघात हुआ है…परिवार मुसीबत में है. उन्हें मेरी आवश्यकता है.’’

‘‘कुत्ते की दुम को चाहे कितने दिनों तक दबा कर रखो निक ालने पर टेढ़ी ही रहेगी. तू ने वहां जाने की ठान ली है तो जा पर थोड़े ही दिनों बाद रोतीगिड़गिड़ाती हुई मत आना,’’ मां पुन: क्रोधित हो उठी थीं.

सुहासिनी ने टीना की देखभाल के लिए छुट्टी ले ली थी पर घर में अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी मानो सुहासिनी से कोई अपराध हो गया हो.

एक सप्ताह बाद सुहासिनी प्रतिदिन की भांति तैयार हो कर आई थी. उस की सहेली शिखा भी आ गई थी.

‘‘आज टीना भी स्कूल जा रही है क्या?’’ मां ने पूछा था.

‘‘नहीं मां, आज हम दोनों पीयूष के घर जा रहे हैं, अपने घर. मां, हो सके तो मुझे क्षमा कर देना. उन लोगों को इस समय मेरी आवश्यकता है,’’ सुहासिनी ने घर में सभी के गले मिल कर विदा ली थी और बाहर खड़ी टैक्सी में जा बैठी थी. सुहासिनी की मां जहां खड़ी थीं वहीं सिर पकड़ कर बैठ गई थीं.

‘‘देखो मां, तुम्हारी सोने की चिडि़या तो फुर्र हो गई. क्यों दुखी होती हो. पराया धन ही तो था. पराए घर चला गया,’’ व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोल कर भैया ने ठहाका लगाया था जिस की कसैली प्रतिध्वनि देर तक दीवारों से टकरा कर गूंजती रही थी.

Waterproof Makeup से मानसून में बढ़ेगी खूबसूरती, फौलो करें ये Easy टिप्स

वाटरप्रूफ  मेकअप की सब से खास बात यह होती है कि इसे बारिश का पानी भी नहीं बिगाड़ पाता है. शादी और पार्टी में कैमरे और लाइट के सामने गरमी लगने से भी मेकअप बहने लगता है. ऐसे में भी वाटरप्रूफ मेकअप बहुत अच्छा रहता है. रेनडांस, स्विमिंग पूल और समुद्र किनारे गरमी की छुट्टियों का मजा लेते वक्त भी वाटरप्रूफ मेकअप का कमाल दिखाई देता है.

 

क्या है वाटरप्रूफ मेकअप

बौबी सैलून की स्किन, हेयर और ब्यूटी ऐक्सपर्ट बौबी श्रीवास्तव का कहना है, ‘‘पसीना आने पर मेकअप घुल कर त्वचा के रोमछिद्रों में चला जाता है, जिस से मेकअप बदरंग दिखाई देने लगता है. मेकअप रोमछिद्रों के जरिए शरीर में न जाए वाटरप्रूफ मेकअप में यही किया जाता है. त्वचा के रोमछिद्रों को बंद कर के किया गया मेकअप ही वाटरप्रूफ मेकअप कहलाता है. रोमछिद्रों को 2 तरह से बंद किया जाता है. तरीका नैचुरल वाटरपू्रफ और दूसरा प्रोडक्ट वाटरप्रूफ का होता है. नैचुरल  वाटरप्रूफ तरीके में त्वचा के रोमछिद्रों को बंद करने के लिए ठंडे तौलिए का प्रयोग किया जाता है. जिस तरह भाप लेने से त्वचा के रोमछिद्र खुल जाते हैं. उसी तरह से ठंडा तौलिया रखने से रोमछिद्र बंद हो जाते हैं. इस के लिए बर्फ का प्रयोग भी किया जा सकता है. इस के बाद मेकअप करने से पसीना उसे बहा नहीं पाता है.’’

वाटरप्रूफ मेकअप की बढ़ती मांग को देखते हुए मेकअप प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनियों ने वाटरपू्रफ मेकअप प्रोडक्ट्स बनाने शुरू कर दिए. इन प्रोडक्ट्स के अंदर ही ऐसे तत्त्व डाल दिए जाते हैं जो मेकअप करने के दौरान त्वचा के रोमछिद्रों को बंद कर देते हैं. इस से मेकअप त्वचा के अंदर नहीं जा पाता और पसीना उसे

बहा नहीं पाता है. इस तरह के मेकअप प्रोडक्ट्स से मेकअप करते समय त्वचा को वाटरप्रूफ करने की जरूरत नहीं रहती है. वाटरप्रूफ प्रोडक्ट्स में क्रीम, लिपस्टिक, फेस बेस, रूज, मसकारा, काजल जैसी ढेर सारी चीजें अब बाजार में मिलने लगी हैं.

वाटरप्रूफ मेकअप प्रोडक्ट्स सिलिकौन का प्रयोग कर के बनाए जाते हैं. इस में प्रयोग होने वाला डाइनोथिकौन औयल त्वचा को चमकदार बनाता है. यह वाटरप्रूफ मेकअप को आसानी से फैलने में मदद करता है. जहां वाटरप्रूफ मेकअप के तमाम फायदे हैं वहीं कुछ खामियां भी हैं, जिन्हें जान लेना भी जरूरी है. वाटरप्रूफ मेकअप को हटाने के लिए पानी का प्रयोग ही काफी नहीं होता है वरन बेबी औयल या फिर सिलिकौन औयल का भी प्रयोग करना होता है. इस का प्रयोग त्वचा पर खराब प्रभाव डालता है. इस से त्वचा को नुकसान पहुंचता है. त्वचा पर इन्फैक्शन हो जाता है. ज्यादा प्रयोग करने से समय से पहले त्वचा पर झुर्रियां भी पड़ने लगती हैं. इसलिए वाटरप्रूफ मेकअप का प्रयोग खास अवसरों पर ही करें. रोज इस का प्रयोग न करें.

जानें ब्यूटी ऐक्सपर्ट बौबी श्रीवास्तव से कुछ खास मेकअप टिप्स:

– इस मौसम में मेकअप करते समय डार्क शेड का प्रयोग कभी न करें. फाउंडेशन भी लाइट ही लगाएं. दागधब्बों को छिपाने के लिए वाटर बेस्ड फाउंडेशन का प्रयोग करें. अगर इस से चमक ज्यादा आने लगे तो पाउडर के बजाय ब्लौटिंग पेपर का प्रयोग करें.

– अपने गालों को गुलाबी दिखाने के लिए लाइट ब्लशर का प्रयोग करें. थोड़ा सा शिमर पाउडर आंखों के आसपास लगा कर उन्हें आकर्षक बना सकती हैं. होंठों पर लिपकलर लगाने के बाद चमकाने के लिए हलका लिपग्लौस लगाएं. लैक्मे मेकअप प्रोडक्ट्स में इस तरह का सारा सामान मिलता है.

– मसकारा दिनभर टिका रहे, इस के लिए बरौनियों के टिप्स पर मसकारा लगाएं. ऐसा करने से वह फैलता नहीं है.

– शाम की पार्टी का मेकअप करते समय नैचुरल मेकअप ही करें. शाम को धूप नहीं रहती, इसलिए चेहरे पर शिमर का प्रयोग कर सकती हैं. अगर आप धूप में निकल रही हों तो एसपीएफ -15 युक्त सनक्रीम या लोशन का प्रयोग जरूर करें. इस से त्वचा पर सनबर्न का असर कम होता है.

– स्विमिंग पूल में जाने से पहले और बाद में कीटाणुनिरोधक साबुन आदि से स्नान जरूर करें.

– इस मौसम में पूरे शरीर की डीप क्लींजिंग कराएं. सप्ताह में 1 बार बौडी मसाज कराएं. सप्ताह में 1 बार स्टीमबाथ जरूर लें. स्टीम लेते समय पानी में हलका बौडी औयल मिला लें.

– बाथटब में पानी भर कर उस में मिनरल साल्ट मिलाएं. 10-15 मिनट इस में गुजारें. फिर देखें त्वचा में चमक जरूर आएगी.

– जब भी तेज धूप से लौटें ठंडे पानी में पतला सूती कपड़ा डुबो कर निचोड़ लें और फिर उसे धूप से प्रभावित जगह पर थोड़ीथोड़ी देर के लिए रखें.

– एक टब में पानी भर नमक मिला कर हाथों और पैरों को 10 मिनट तक डुबोए रखें. इस से मृत त्वचा मुलायम हो जाएगी. इसे बाद में रगड़ कर आसानी से छुड़ाया जा सकता है. इस के बाद मौइश्चराइजर लगाएं. पैरों को 2 मिनट ठंडे पानी और 2 मिनट गरम पानी में बारीबारी से डुबोएं. इसे हौट ऐंड कोल्ड ट्रीटमैंट कहते हैं. इस से रक्तसंचार बढ़ता है.

हेयर केयर का भी रखें इन टिप्स से खास ख्याल

– अगर बाल छोटे हैं तो हलका कर्ल करा सकती हैं. बाल मीडियम साइज के हों या बढ़े हुए तो उन्हें बंधा हुआ हेयरस्टाइल देने की कोशिश करें. बाल खुले रखने हों तो उस हिसाब से कटे होने चाहिए. आजकल बालों को कलर कराने का ट्रैंड भी चल रहा है. यदि कलर करवाना है तो ब्लौंड हेयर या नैचुरल ब्राउन कलर कराएं.

– बालों में नियमित रूप से अच्छे किस्म के कंडीशनर का प्रयोग जरूर करें. इस से बाल चमकदार और मुलायम होते हैं. कंडीशनर लगाने का सब से अच्छा तरीका यह होता है कि बालों के ऊपरी हिस्सों से ले कर नीचे तक अच्छी तरह से लगाएं.

– बालों को चमकदार बनाने के लिए नैचुरल हिना का प्रयोग करें. इस से बालों को कमजोर होने से बचाया जा सकता है.

सास बिना ससुराल, बहू हुई बेहाल

बचपन में एक लोक गीत ‘यह सास जंगल घास, मुझ को नहीं सुहाती है, जो मेरी लगती अम्मां, सैयां की गलती सासू मुझ को वही सुहाती है…’ सुन कर सोचा शायद सास के जुल्म से तंग आ कर किसी दुखी नारी के दिल से यह आवाज निकली होगी. कालेज में पढ़ने लगी तो किसी सीनियर को कहते हुए सुना, ‘ससुराल से नहीं, सास से डर लगता है.’ यह सब देखसुन कर मुझे तो ‘सास’ नामक प्राणी से ही भय हो गया था. मैं ने घर में ऐलान कर दिया था कि पति चाहे कम कमाने वाला मिले मंजूर है, पर ससुराल में सास नहीं होनी चाहिए. अनुभवी दादी ने मुझे समझाने की कोशिश की कि बेटी सुखी जिंदगी के लिए सास का होना बहुत जरूरी होता है, पर मम्मी ने धीरे से बुदबुदाया कि चल मेरी न सही तेरी मुराद तो पूरी हो जाए.

शायद भगवान ने तरस खा कर मेरी सुन ली. ग्रैजुएशन की पढ़ाई खत्म होते ही मैं सासविहीन ससुराल के लिए खुशीखुशी विदा कर दी गई. विदाई के वक्त सारी सहेलियां मुझे बधाई दे रही थीं. यह कहते हुए कि हाय कितनी लकी है तू जो ससुराल में कोई झमेला ही नहीं, राज करेगी राज.

लेकिन वास्तविक जिंदगी में ऐसी बात नहीं होती है. सास यानी पति की प्यारी और तेजतर्रार मां का होना एक शादीशुदा स्त्री की जिंदगी में बहुत माने रखता है, इस का एहसास सब से पहले मुझे तब हुआ जब मैं ने ससुराल में पहला कदम रखा. न कोई ताना, न कोई गाना, न कोई सवाल और न ही कोई बवाल बस ऐंट्री हो गई मेरी, बिना किसी झटके के. सच पूछो तो कुछ मजा नहीं आया, क्योंकि सास से मिले ‘वैल्कम तानों’ के प्लाट पर ही तो बहुएं भावी जीवन की बिल्डिंग तैयार करती हैं, जिस में सासूमां की शिकायत कर सहानुभूति बटोरना, नयनों से नीर बहा पति को ब्लैकमेल करना, देवरननद को उन की मां के खिलाफ भड़काना, ससुरजी की लाडली बन कर सास को जलाना जैसे कई झरोखे खोल कर ही तो जिंदगी में ताजा हवा के मजे लिए जा सकते हैं.

क्या कहूं और किस से कहूं अपना दुखड़ा. अगले दिन से ही पूरा घर संभालने की जिम्मेदारी अपनेआप मेरे गले पड़ गई. ससुरजी ने चुपचाप चाभियों को गुच्छा थमा दिया मुझे. सखियो, वही चाभियों का गुच्छा, जिसे पाने के लिए टीवी सीरियल्स में बहुओं को न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं. कहते हैं न कि मुफ्त में मिली चीज की कोई कद्र नहीं होती. बिलकुल ठीक बात है, मेरे लिए भी उस गुच्छे को कमर में लटका कर इतराने का कोई क्रेज नहीं रहा. आखिर कोई देख कर कुढ़ने वाली भी तो होनी चाहिए.

मन निराशा से भर उठता है कभीकभी तो. गुस्से और झल्लाहट में कभी बेस्वाद खाना बना दिया या किसी को कुछ उलटापुलटा बोल दिया, तो भी कोईर् प्रतिक्रिया या मीनमेख निकालने वाला नहीं है इस घर में. कोई लड़ाईझगड़ा या मनमुटाव नहीं. अब आप सब सोचो किसी भी खेल को खेलने में मजा तो तब आता है जब खेल में द्वंद्वी और प्रतिद्वंद्वी दोनों बराबरी के भागीदार हों. एकतरफा प्रयास किस काम का? अब तो लगने लगा है लाइफ में कोई चुनौती नहीं रही. बस बोरियत ही बोरियत.

एक बार महल्ले की किसी महान नारी को यह कहते सुना था कि टीवी में सासबहू धारावाहिक देखने का अलग ही आकर्षण है. सासबहू के नित्य नए दांवपेच देखना, सीखना और एकदूसरे पर व्यवहार में लाना सचमुच जिंदगी में रोमांच भर देता है. उन की बातों से प्रभावित हो कर मैं ने भी सासबहू वाला धारावाहिक देखना शुरू कर दिया. साजिश का एक से बढ़ कर एक आइडिया देख कर जोश से भर उठी मैं पर हाय री मेरी किस्मत आजमाइश करूं तो किस पर? बहुत गुस्सा आया अपनेआप पर. अपनी दादी की बात याद आने लगी मुझे. उन्होंने मुझे समझाने की कोशिश की थी कि बेटा सास एक ऐसा जीव है, जो बहू के जीवनरूपी स्वाद में चाटमसाले का भूमिका अदा करता है, जिस से पंगे ले कर ही जिंदगी जायकेदार बनाईर् जा सकती है. काश, उस समय दादी की बात मान ली होती तो मजबूरन दिल को यह न गाना पड़ता, ‘न कोई उमंग है, न कोई तरंग है, मेरी जिंदगी है क्या, सासू बिना बेरंग है…’

मायके जाने का भी दिल नहीं करता अब तो. क्या जाऊं, वहां बैठ कर बहनें मम्मी से जहां अपनीअपनी सास का बखान करती रहती हैं, मुझे मजबूरन मूक श्रोता बन कर सब की बातें सुननी पड़ती हैं. बड़ी दीदी बता रही थीं कि कैसे उन की सास ने एक दिन चाय में कम चीनी डालने पर टोका तो दूसरे दिन से किस तरह उन की चाय में डबल चीनी मिला कर उन्होंने उन का शुगर लैवल बढ़ा दिया. लो अब पीते रहो बिना चीनी की चाय जिंदगी भर. मूवी देखने की शौकीन दूसरी बहन ने कहा कि मैं ने तो अपनी सास को सिनेमाघर में मूवी देखने का चसका लगा दिया है. ससुरजी तो जाते नहीं हैं, तो एहसान जताते हुए मुझे ही उन के साथ जाना पड़ता है मूवी देखने. फिर बदले में उस दिन रात को खाना सासू अम्मां ही बनातीं सब के लिए तथा ससुरजी बच्चों का होमवर्क करवाते हैं. यह सब सुन कर मन में एक टीस सी उठती कि काश ऐसा सुनहरा मौका मुझे भी मिला होता.

अब कल की ही बात है. मैं किट्टी पार्टी में गई थी. सारी सहेलियां गपशप में व्यस्त थीं. बात फिल्म, फैशन, स्टाइल से शुरू हो कर अंतत: पति, बच्चों और सास पर आ टिकी. 4 वर्षीय बेटे की मां मीनल ने कहा, ‘‘भई मैं ने तो मम्मीजी (सास) से ऐक्सचेंज कर लिया है बेटों का. अब उन के बेटे को मैं संभालती हूं और मेरे बेटे को मम्मीजी,’’ सुन कर कुढ़ गई मैं.

सुमिता ने मेरी तरफ तिरछी नजर से देखते हुए मुझे सुनाते हुए कहा, ‘‘सुबह पति और ससुरजी के सामने मैं अपनी सास को अदरक और दूध वाली अच्छी चाय बना कर दे देती हूं फिर उन के औफिस जाने के बाद से घर के कई छिटपुट कार्य जैसे सब्जी काटना, आटा गूंधना, चटनी बनाना, बच्चों को संभालने में दिन भर इतना व्यस्त रखती हूं कि उन्हें फुरसत ही नहीं मिलती कि मुझ में कमी निकाल सकें. शाम को फिर सब के साथ गरमगरम चाय और नमकीन पेश कर देती हूं बस.’’

उस के इतना कहते ही एक जोरदार ठहाका लगाया सारी सखियों ने.

बात खास सहेलियों की कि जाए तो पता चला कि सब ने मिल कर व्हाट्सऐप पर एक गु्रप बना रखा है, जिस का नाम है- ‘सासूमां’ जहां सास की खट्टीतीखी बातें और उन्हें परास्त करने के तरीके (मैसेज) एकदूसरे को सैंड किए जाते हैं, जिस से बहुओं के दिल और दिमाग में दिन भर ताजगी बनी रहती है, पर मुझ जैसी नारी को उस गु्रप से भी दूर रखा गया है अछूत की तरह. पूछने पर कहती हैं कि गु्रप का मैंबर बनने के लिए एक अदद सास का होना बहुत जरूरी है. मजबूरन मनमसोस कर रह जाना पड़ा मुझे.

अपनी की गई गलती पर पछता रही हूं मैं, मुझे यह अनुभव हो चुका है कि सास गले की फांस नहीं, बल्कि बहू की सांस होती है. बात समझ में आ गई मुझे कि सासबहू दोनों का चोलीदामन का साथ होता है. दोनों एकदूसरे के बिना अधूरी और अपूर्ण हैं. कभीकभी दिल मचलता है कि काश मेरे पास भी एक तेजतर्रार, दबंग और भड़कीली सी सास होती पर ससुरजी की अवस्था देख कर यह कहने में संकोच हो रहा है कि पापा एक बार फिर घोड़ी पर चढ़ने की हिम्मत क्यों नहीं करते आप?

नई लड़कियों और अविवाहित सखियो, मेरा विचार बदल चुका है. अब दिल की जगह दिमाग से सोचने लगी हूं मैं कि पति चाहे कम कमाने वाला हो पर ससुराल में एक अदद सास जरूर होनी चाहिए. जय सासूमां की.

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