मेरे पति को शादी से पहले अबौर्शन के बारे में नहीं पता, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरे विवाह को ढाई साल हुए हैं और मैं चाहते हुए भी  प्रैंगनैंट नहीं हो पा रही हूं. विवाह से ढाई साल पहले मैं ने गर्भपात कराया था. अब मुझे डाक्टर के पास चैकअप के लिए जाने में यह डर लगता है कि कहीं विवाह से पहले कराए गए गर्भपात की बात मेरे पति के सामने न खुल जाए. कृपया सलाह दें कि ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

अगर आप और आप के पति संतान के इच्छुक हैं, तो अच्छा होगा कि आप दोनों किसी फर्टिलिटी स्पैशलिस्ट से जल्दी राय लें और अपनी जांच तथा इलाज कराएं. अब और इंतजार करते रहने से लाभ नहीं. जहां तक आप के अतीत का सवाल है, तो यह बात आप अब भी छिपा सकती  हैं. जब तक आप खुद इस बारे में कोई जानकारी नहीं देंगी तब तक डाक्टर के लिए यह अनुमान लगा पाना संभव नहीं कि आप ने पहले गर्भपात कराया है. हां, क्लीनिकल हिस्टरी लेते वक्त वे आप से इस बाबत सवाल जरूर पूछेंगी. आप उस समय अगर चाहें तो इस का उत्तर न में दे सकती हैं. यद्यपि यह सच है कि डाक्टर से हिस्टरी छिपाना ठीक नहीं होता, लेकिन हालात को देखते हुए यही उचित होगा कि आप अतीत की घटनाओं के बारे में चुप ही रहें. यह बात ठीक से समझ लें कि प्रैगनैंट न होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं. विकार पतिपत्नी में से किसी में भी हो सकता है. समस्या से उबरने के लिए धैर्य और हिम्मत रखने के साथसाथ डाक्टर पर भी विश्वास जरूरी है. बहुत से दंपती बारबार डाक्टर बदलते हैं. यह कतई ठीक नहीं है. ऐसा करने पर समस्या का समाधान नहीं निकल पाता.

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कई अध्ययनों में यह साफ हो गया है कि जैसेजैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती जाती है क्रोमोसोम में खराबी आने से असामान्य अंडों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. परिणामस्वरूप गर्भवती होने की संभावना कम हो जाती है, साथ ही अबौर्शन होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

कुछ महिलाओं के अंडों की गुणवत्ता 20 या 30 साल में ही खराब हो जाती है तो कुछ की 43 साल की उम्र तक भी बरकरार रहती है. एक औसत महिला की अंडों की गुणवत्ता उम्र बढ़ने के साथ कम हो जाती है.

40 की उम्र में अबौर्शन कितना सुरक्षित: 40 तक आतेआते परिवार पूरी तरह सैटल हो जाता है और बच्चे भी बड़े हो जाते हैं. तब गर्भवती होने की खबर एक शौक के समान हो सकती है. ऐसे में अबौर्शन का निर्णय लेना जरूरी लेकिन कठिन हो जाता है. यह सही निर्णय होता है, पर आसान नहीं. 30 से 35 की उम्र में अबौर्शन कराने की तुलना में 40 पार के लोगों के लिए यह अधिक रिस्की होता है.

बढ़ते अबौर्शन के मामले

स्वास्थ्य विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि मातृत्व में देरी न करें, क्योंकि 30 की उम्र पार करने के बाद फर्टिलिटी कम हो जाती है. बहुत सारी महिलाएं यह मानने लगी हैं कि गर्भनिरोधक उपायों की अनदेखी करना सुरक्षित है, इसलिए उन की संख्या बढ़ती जा रही है जो 40 के बाद अबौर्शन कराती है. आईवीएफ के बढ़ते चलन ने भी इस धारणा को मजबूत किया है कि उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं की प्रजनन क्षमता तेजी से कम होती है. 30 के बाद प्रजनन क्षमता कम हो जाती है, लेकिन इतनी कम भी नहीं हो जाती कि आप गर्भनिरोधक उपायों को नजरअंदाज कर दें.

Long Story: सुबह 10 बजे- मेघा की मां क्यों थी शादी के खिलाफ

Long Story: मेघा आज फिर जाम में फंस गई थी. औफिस से आते समय उस के कई घंटे ऐसे ही बरबाद हो जाते हैं, प्राइवेट नौकरी में ऐसे ही इतनी थकान हो जाती है, उस पर इतनी दूर स्कूटी से आनाजाना.

मेघा लोअर व टौप ले कर बाथरूम में घुस गई, कुछ देर बाद कपड़े बदल कर बाहर आई. उस के कानों में अभी भी सड़क की गाडि़यों के हौर्न गूंज रहे थे. तभी उस ने लौबी में अपनी मां को कुछ पैकेट फैलाए देखा, वे बड़ी खुश दिख रही थीं. मेघा भी उन के पास बैठ गई. मम्मी उत्साह से पैकेट से साड़ी निकाल कर उसे

दिखाने लगीं, ‘‘यह देखो अब की अच्छी साड़ी लाई हूं.’’ पर मम्मी अभी कुछ दिन पहले ही तो 6 साडि़यों का कौंबो मैं ने और 6 का रिया ने तुम्हें औनलाइन मंगा कर दिया था.’’

‘‘वे तो डेली यूज की हैं. कहीं आनेजाने पर उन्हें पहनूंगी क्या? लोग कहेंगे कि 2-2 बेटियां कमा रही हैं और कैसी साडि़यां पहनती हैं,’’ कह कर उन्होंने प्यार से मेघा के गाल पर धीरे से एक चपत लगा दी. मेघा मुसकरा दी.

तभी वे फिर बोलीं, ‘‘और देख यह बिछिया… ये मैचिंग चूडि़यां और पायलें… अच्छी हैं न?’’

‘‘हां मां बहुत अच्छी हैं. आप खुश रहें बस यही सब से अच्छा है, अब मैं बहुत थक गई हूं. चलो खाना खा लेते हैं. मुझे कल जल्दी औफिस जाना है,’’ मेघा बोली.

‘‘ठीक है तुम चलो मैं आई,’’ कह कर मम्मी अपना सामान समेटने लगीं.

उन के चेहरे पर खिसियाहट साफ दिखाई दे रही थी. सभी ने हंसीमजाक करते हुए खाना खाया. फिर अपनेअपने बरतन धो कर रैक में रख दिए. उन के घर में शुरू से ही यह नियम है कि खाना खाने के बाद हर कोई अपने जूठे बरतन खुद धोता है.

खाना खा कर मेघा लेटने चली गई, पर आंखों से नींद कोसों दूर थी, वह सोचने लगी कि हर नारी अपने को किसी के लिए समर्पित करने में ही सब से बड़ी खुशी महसूस करती है. कल की ही बात है. मेघा की दोस्त सोनल उस से कह रही थी कि यार तू भी 30 पार कर रही है. क्या शादी करने का इरादा नहीं है? मगर मेघा उसे कैसे बताती कि जब से उस ने नौकरी शुरू की है घर थोड़ा अच्छे से चलने लगा है.

अब कोई उस की शादी की बात उठाता ही नहीं, क्योंकि उन्हें उस से ज्यादा घर खर्च की चिंता रहती है… छोटी बहनों की पढ़ाई कैसे होगी… वे 4 बहनें हैं. पापा का काम कुछ खास चलता नहीं है. इसलिए उन्होंने बचपन अभाव में काटा है. जब से मेघा से छोटी रिया भी सर्विस करने लगी है, मम्मी अपनी कुछ इच्छाएं पूरी कर पा रही हैं वरना तो घर खर्च की खींचतान में ही लगी रहती थीं.

मेघा की दोस्त सोनल की 2 साल पहले ही शादी हुई है. औफिस में वह मेघा की कुलीग है. उसे खुश देख कर मेघा को बड़ा अच्छा लगता है. कभीकभी उस का मन कहता है, मेघा क्या तू भी कभी यह जीवन जी सकेगी?

आज सोनल ने फिर बात उठाई थी, ‘‘मेघा पिछले साल हम लोग औफिस टूर पर बाहर गए थे तो मयंक तुझ से कितना मिक्स हो गया था… यार तेरी ही कास्ट का है. तुझ से फोन पर तो अकसर बात होती रहती है. अच्छा लड़का है… क्यों नहीं मम्मी से कह कर उस से बात चलवाती हो? अगर बात बन गई तो दहेज का भी चक्कर नहीं रहेगा. फिर मयंक की तुझ से अंडरस्टैंडिंग भी अच्छी है. अच्छा ऐसा कर तू पहले मयंक से पूछ. अगर वह तैयार हो जाता है, तो अपने घर वालों को उस के घर भेज देना.’’ मेघा को सोनल की बात में दम लगा.

1-2 दिन पहले ही उस की मयंक से बात हुई थी, तो वह बता रहा था कि घर वाले उस की शादी के मूड में हैं. हर दूसरे दिन कोई न कोई रिश्ता ले कर आ रहा है.

मेघा सोचने लगी, ‘कल मयंक से बात करती हूं. यह तो मुझे भी महसूस होता है कि शादी करना जीवन में जरूरी होता है, पर कोई अच्छा लड़का मिले. मुझे जीवन में खुशियां देने के साथसाथ मेरे घर वालों को भी सपोर्ट करे, तो इस से अच्छी और क्या बात होगी,’ सोचतेसोचते उसे नींद आ गई.

सुबह नींद खुली तो 7 बज रहे थे. उसे 8 बजे औफिस पहुंचना था. वह जल्दी से फ्रैश होने के लिए बाथरूम की ओर भागी. जब तक वह तैयार हुई तब तक मम्मी ने मेज पर नाश्ता लगा दिया. टिफिन भी वहीं रख दिया. मेघा ने दौड़तेभागते 2 ब्रैड पीस खा कर चाय पी और फिर स्कूटी निकाल औफिस के लिए निकल गई. काम के चक्कर में उसे कुछ याद ही नहीं रहा.

लंच के समय सोनल ने फिर वही बात छेड़ी तो उसे कल रात की बात याद आई. लंच खत्म कर के उस ने मयंक को फोन लगाया.

सोनल सामने ही बैठी थी. वह इशारे से कह रही थी कि शादी के लिए पूछ. मेघा ने हिम्मत कर के पूछा तो मयंक हंस दिया, ‘‘अरे यार तुझे पा कर कौन खुश नहीं होगा भला… तुम ने मुझे अपने लायक समझा तो संडे को अपने मम्मीपापा को मेरे घर भेजो, बाकी सब मैं देख लूंगा.’’

‘‘ठीक है कह कर मेघा ने फोन काट दिया और फिर सोनल को सब बताया तो वह भी बहुत खुश हुई.

‘‘पर सोनल मैं अपनी शादी के बारे में अपने मम्मीपापा से कैसे बात कर पाऊंगी?’’

मेघा को परेशान देख कर सोनल बोली, ‘‘तू घर पहुंच उन से मेरी बात करा देना.’’

मेघा शाम 4 बजे ही औफिस से चल दी. घर पहुंच चाय पी कर बैठी ही थी कि सोनल का फोन आ गया. उसे दिन की सारी बातें याद आ गई. उस ने फोन मम्मी की ओर बढ़ा दिया. सोनल ने मम्मी को सब बता उन्हें संडे को मयंक के घर जाने के लिए कहा.

मम्मी के चेहरे पर मेघा को कुछ खास खुशी की झलक नहीं दिख रही थी. वे केवल हांहां करती जा रही थीं.

फोन कटने पर वे मेघा की तरफ घूम कर बोलीं, ‘‘हम लोगों के पास तो दहेज के लिए पैसे नहीं हैं. फिर हम रिश्ता ले कर कैसे जाएं? तुम्हें पहले मुझ से बात करनी चाहिए थी.’’

यह सुन कर मेघा हड़बड़ा गई. बोली, ‘‘मैं ने कुछ नहीं कहा. सोनल ने ही मयंक से बात की थी… आप और पापा उस के घर हो आओ… देखो घर में और लोग कैसे हैं… मयंक तो बहुत सुलझा हुआ है.’’

तभी पापा भी आ गए. जब उन्हें सारी बात पता लगी तो उन के चेहरे पर खुशी के भाव आ गए, ‘‘ठीक है हम लोग संडे को ही मयंक के घर जाएंगे,’’ कह उन्होंने खुशी से मेघा की पीठ थपथपाई.

फिर सब बहनों ने मिल कर आगे की प्लानिंग की. यह तय हुआ कि सोनल के हसबैंड, मम्मीपापा और छोटी बहन मयंक के घर चले जाएंगे. छोटी बहन के मयंक के घर जाने से वहां क्या बात हुई, कैसा व्यवहार रहा, सब पता लग जाएगा. मम्मी से तो पूछते नहीं बनेगा. पापा से भी पूछने में संकोच होगा.

मेघा की छोटी तीनों बहनें मन से उस की शादी के लिए सोचती रहती थीं, पर आज की महंगाई और दहेज के बारे में सोच कर चुप हो जाती थीं. मयंक के बारे में सुन कर सब को जोश आ गया था.

‘‘मैं अब अपना पैसा बिलकुल खर्च नहीं करूंगी,’’ यह रिया की आवाज थी.

‘‘मुझे भी कुछ ट्यूशन बढ़ानी पड़ेंगी, तो बढ़ा लूंगी,’’ यह तीसरे नंबर की ज्योति बोली.

‘‘मैं भी अब कोई फरमाइश नहीं करूंगी,’’ छोटी कैसे पीछे रहती.

‘‘ठीक है ठीक है, सब लोगों को जो करना है करना पर पहले मयंक के घर तो हो आओ,’’ कह कर मेघा टीवी खोल कर बैठ गई.

संडे परसों था, पापा समय बरबाद नहीं करना चाहते थे. उन्होंने जाने की पूरी तैयारी कर ली. मम्मी ने भी कौन सी साड़ी पहननी है, छोटी क्या पहनेगी सब तय कर लिया.

दूसरे दिन शनिवार था. मेघा ने सोनल को बता दिया कि उस के हसबैंड को साथ जाना पड़ेगा.

वह तैयार हो गई. बोली, कोई इशू नहीं. एक अंकल का स्कूटर रहेगा एक इन की मोटरसाइकिल हो जाएगी… आराम से सब लोग मयंक के घर पहुंच जाएंगे.

मेघा ने फोन कर के मयंक से उस के पापा का फोन नंबर ले लिया. शाम को पापा ने मयंक के पापा को फोन कर के संडे को उन के घर पहुंचने का समय ले लिया. सुबह 10 बजे मिलना तय हुआ.

मेघा की मम्मी बड़ी उलझन में थी कि अगर वे लोग तैयार हो गए तो कैसे मैनेज करेंगे. कुछ नहीं पर अंगूठी तो चाहिए ही. मेरे सारे जेवर तो धीरेधीरे कर के बिक गए… बरात की खातिरदारी तो करनी ही पड़ेगी.

मेघा की मां को परेशान देख उस के पापा बोले, ‘‘अभी से क्यों परेशान हो? पहले वहां मिल तो आएं.’’

रविवार सुबह ही चुपके से मेघा ने मयंक को फोन मिला कर कहा, ‘‘मयंक, तुम घर में ही रहना… कोई बात बिगड़ने न पाए… सब संभाल लेना.’’

‘‘हांहां ठीक है. मेरे मम्मीपापा बहुत सुलझे हुए हैं… उन्हें अपने बेटे की खुशी के आगे कुछ नहीं चाहिए… जिस में मैं खुश उस में वे भी खुश.’’ मेघा बेफिक्र हो कर अंदर आ गई. देखा मम्मी तैयार हो गई थीं.

‘‘चलो, जल्दी लौट आएंगे वरना आज दुकान बंद रह जाएगी.’’ मेघा की मां बोली.

कुछ दिन पहले ही मेघा के पापा ने एक दुकान खोली थी. करीब 12 बजे सभी लौट आए. पापा बहुत खुश थे. सभी बातें कायदे से हुई थीं. बस मयंक के पापा कुंडली मिला कर बात आगे बढ़ाना चाहते थे. वे पापा से बोले कि आप बिटिया की कुंडली भिजवा देना.

जब सब लोग खाना खा कर लेट गए तो सब बहनों ने छोटी को बुला कर वहां का सारा हाल पूछा. छोटी ने वहां की बड़ी तारीफ की. बताया कि अगर कुंडली मिल गई तो शादी पक्की हो जाएगी.

मम्मी ने तो वहां साफसाफ कह दिया कि हम लोग पैसा नहीं दे सकते. किसी तरह जोड़ कर बरात की खातिरदारी कर देंगे. दहेज देने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है.

सुन कर रिया गुस्सा गई. बोली, ‘‘ये सब कहने की पहले ही दिन क्या जरूरत थी? आगे बात चलती तो बता देतीं.’’

‘‘दूसरे दिन मेघा की तबीयत ठीक नहीं थी. औफिस से छुट्टी ले कर जल्दी घर आ गई. दवा खा कर चादर ओढ़ कर लेट गई. थोड़ी देर बाद रिया और मम्मी की आवाज उस के कानों में पड़ी. रिया बोली, ‘‘दीदी की शादी फाइनल हो जाए तो मजा आ जाए. मयंक अच्छा लड़का है. एक बार मैं भी उस से मिली हूं.’’

मम्मी तुरंत बोली,‘‘अरे नहीं बहुत मौडर्न परिवार है. हम उन के स्तर का खर्च ही नहीं कर पाएंगे. तभी तो मैं उस दिन सब साफ कह आई थी. अगर मयंक मेघा से शादी का इच्छुक है, तो कुछ खर्च उसे भी तो करना चाहिए. सगाई, शादी सारे खर्च को आधाआधा बांट लें… जेवर भी… मैं ने कह दिया है हमारे पास नहीं हैं… जेवर तो आप को ही लाने पड़ेंगे… फिर मेरी तो 4 लड़कियां हैं. मुझे तो सब पर बराबर ध्यान देना पड़ेगा. आप के तो केवल एक लड़का है. आप को तो बस उसी के लिए सोचना है.’’

सुनते ही रिया गुस्सा हो गई, ‘‘मम्मी, आप को इस तरह नहीं बोलना चाहिए था. इस तरह तो शादी तय ही नहीं हो पाएगी.’’

‘‘तो न हो… कौन मेरी बेटी सड़क पर खड़ी भीग रही है. वह अपने घर में अपने मांबाप के साथ है. एक मयंक ही थोड़े हैं. हजार लड़के मिलेंगे. आखिर वह सर्विस कर रही है. हजार लड़के उस के आगेपीछे घूमेंगे.’’

‘‘मम्मी यह कहना आसान है, पर ऐसा संभव नहीं होता है,’’ रिया झल्ला कर बोली और फिर वहां से चली गई. मम्मी भी भुनभुनाती हुई किचन में चली गईं.

मेघा सारी बातें सुन कर सकपका गई कि आखिर मम्मी क्या चाहती हैं? क्या लड़की की शादी की बात करने जाने पर पहली बार ही इस तरह की बातें की जाती हैं… इस से तो इमेज खराब ही होगी. फिर मयंक भी कैसे बात संभाल पाएगा.

कल ही सोनल बता रही थी कि उस ने शादी के पहले 4 साल सर्विस की थी और उस की मम्मी ने उस की ही सैलरी से 2 अंगूठियां,

1 चेन और 1 जोड़ी पायल बनवा ली थीं. हर महीने कोई न कोई सामान उस के पीछे पड़ कर औनलाइन और्डर करा देती थी. साडि़यां, पैंटशर्ट, ऊनी सूट सब धीरेधीरे इकट्ठे कर लिए थे. बरतन, मिक्सी, बैडसीट्स कुछ भी शादी के समय नहीं खरीदना पड़ा था. सोनल के घर की हालत तो उन के घर से भी बदतर थी.

आज सोनल अपनी छोटी सी गृहस्थी में बहुत खुश है. एक प्यारा सा बेटा भी है. जीजाजी भी बहुत सुलझे हुए हैं. वे सोनल के मम्मीपापा का भी बहुत खयाल रखते हैं.

इसी बीच 8-10 दिन बीत गए. न यहां से किसी ने फोन किया, न मयंक के यहां से फोन आया. सोनल ने मेघा से पूछा तो वह बोली, ‘‘बारबार मेरा कहना अच्छा नहीं लगता.’’

तब सोनल ने ही मम्मी को फोन मिला कर पूछा तो वे बोलीं, ‘‘उन लोगों ने मेघा की कुंडली मांगी है… वह तो हम ने बनवाई नहीं… हमें कुंडली में विश्वास नहीं है.’’

तब सोनल बोली, ‘‘आंटी आप किसी से कुंडली चक्र बनवा कर भेज दीजिए. आप को तो वही करना पड़ेगा जो वे चाहते हैं. आखिर वे लड़के वाले हैं.’’

‘‘तो क्या हमारी लड़की कमजोर है? वह भी कमाती है. हम उन के हिसाब से क्यों चलें? वे रिश्ता बराबरी का समझें तभी ठीक है.’’ सुन कर सोनल ने फोन काट दिया.

दूसरे दिन मयंक का फोन आया, ‘‘अरे यार अपनी कुंडली तो भिजवाओ. उस दिन तो मैं ने सब संभाल लिया था पर बिना कुंडली के बात कैसे आगे बढ़ाऊं?’’

मेघा ने पापा से कहा तो उन्होंने अगले दिन दे कर आने की बात कही. मेघा के मन में यह बात चुभ रही थी कि मम्मी के मन में क्या यह इच्छा नहीं होती कि उन की बेटियों की भी शादी हो… कल ही पड़ोस की आंटी आई थीं तो मम्मी उन से कह रही थीं, ‘‘मैं तो कहती हूं चारों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं… कमाएं और आराम से साथ रहें. क्या दुनिया में सभी की शादी होती है? अपनी कमाई से ऐश करें.’’

सुन कर मेघा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई कि केवल उस को ही नहीं ये तो चारों बेटियों की शादी न करने के पक्ष में है. क्या कोई इतना स्वार्थी भी हो सकता है? उधर पापा जन्मकुंडली बनवा कर मयंक के घर दे आए.

4-5 दिन बाद मयंक के पापा का मेघा के पापा के पास फोन आया. उन्होंने कुंडली मिलवा ली थी. मिल गई थी. आगे की बात करने के लिए पापा को अपने घर बुलाया था.

पापा ने खुशीखुशी रात के खाने पर सब को यह बात बताई तो सभी बहनें खुशी से तालियां बजाने लगीं.

‘‘तो आप लोग कब जा रहे हैं? रिया ने पूछा.’’

‘‘आप लोग नहीं अकेले मैं जाऊंगा,’’ कह कर पापा खाना खाने लगे.

मम्मी हैरानी से उन का मुंह देखने लगीं. फिर बोली, ‘‘अकेले क्यों?’’

‘‘अभी भीड़ बढ़ाने से कोई फायदा नहीं. पता नहीं बात बने या नहीं. फिर

दुकान तुम देख लेना… बंद नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘आप साफ बात कर भी पाएंगे?’’

मम्मी की आवाज सुन कर पापा खाना खातेखाते रुक गए. बोले, ‘‘हां, ऐसी साफसाफ भी नहीं करूंगा कि बात ही साफ हो जाए.’’

सुन कर हम बहनें हंस पड़ी. मम्मी गुस्सा कर किचन में चली गईं.

रात में फिर चारों बहनों की मीटिंग हुई. पापा अकेले मयंक के घर जाएंगे, इस बात से सभी बहुत खुश थीं.

Long Story

निर्णय आपका : सास से परेशान बेचारे दामाद की कहानी

संसार में शायद मुझ से अधिक कोई बदनसीब नहीं होगा. विवाह में सब को दहेज में गाड़ी, सोफा, फ्रिज मिलता है, सुंदर पत्नी घर आती है, लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ. हमारा विवाह हुआ, पत्नी भी आई और दहेज में सास मिल गई.

हम ने सोचा 1-2 दिन की परेशानी होगी सो भोग लो, किंतु हमारी सोच एकदम गलत साबित हुई. हमें पत्नीजी ने बताया कि आप की सास को यहां का हवापानी काफी जम गया है सो वह अब यहीं रहेंगी. यहां की जलवायु से उन का ब्लड प्रेशर भी सामान्य हो गया है.

हम ने सुना तो हमारा ब्लड प्रेशर बढ़ गया, लेकिन यदि विरोध करते तो तलाक की नौबत आ जाती. हो सकता है ससुराल पक्ष के व्यक्ति दहेज लेने का, प्रताड़ना का मुकदमा ठोंक देते. इसलिए मन मार कर हम ने यह सोच कर कि आज का दौर एक पर एक फ्री का है, सास को भी स्वीकार कर लिया.

2-3 माह तक दिल पर पत्थर रख कर हम अपनी सास को सहन करते रहे, लेकिन सोचा कि आखिर यह छाती पर पत्थर रख कर हम कब तक जीवित रह पाएंगे? सो हम ने पत्नीजी से सास की पसंद एवं नापसंद वस्तुओं को जान लिया. हमारी सास को कुत्ते, बिल्ली से सख्त नफरत थी. बचपन में उन की मां का स्वर्गवास कुतिया के काटने से हुआ था. पिताजी का नरकवास बिल्ली के पंजा मारने से हुआ था. हम ने भी मन ही मन ठान लिया कि कुत्ता, बिल्ली जल्दी से लाएंगे ताकि सासूजी प्रस्थान कर जाएं और हम अपनी जिंदगी को सुचारु रूप से चला सकें.

हम ने अपने अभिन्न मित्र मटरू से अपनी समस्या बताई और वह महल्ले से एक खजिया कुत्ते का पिल्ला और एक मरियल बिल्ली को ले आए. हम उन्हें खुशीखुशी झोले में डाल कर अपने घर ले आए. हमारी पत्नी ने देखा तो दहाड़ मार कर पीछे हट गई. सासूमां ने बेटी की दहाड़ सुनी तो दौड़ती आईं. हमारे झोले से खजिया कुत्ता एवं बिल्ली को देखा. हम खुश हो गए कि अब तो हमारी सास आधे घंटे बाद घर छोड़ कर प्रस्थान कर जाएंगी लेकिन मनुष्य जो सोचता है वह कब पूरा होता है?

सास ने उन 2 निरीह प्राणियों को देखा तो चच्चच् कर के वहीं जमीन पर बैठ गईं और हमारी ओर बड़ी दया की नजरों से देख कर कहा, ‘‘सच में दामाद हो तो तुम जैसा.’’

‘‘क्यों, ऐसा हम ने क्या कर दिया सासूमां?’’ हम ने प्रसन्नता को मन में छिपाते हुए पूछा.

‘‘अरे, दामादजी, तुम इन निरीह प्राणियों को ऐसी स्थिति में उठा लाए, ये काम बिरले व्यक्ति ही कर सकते हैं. मैं पहले जानवरों से बहुत नफरत करती थी, लेकिन जब से जानवरों की रक्षा करने वाली संस्था की सदस्य बनी हूं तब से  मेरा दृष्टिकोण ही बदल गया. तुम खड़े क्यों हो…आटोरिकशा लाओ?’’ सासूजी ने आदेश दिया.

‘‘आटोरिकशा किसलिए?’’

‘‘अस्पताल चलना है.’’

‘‘क्यों? यह (पत्नीजी उठ बैठी थीं) तो ठीकठाक हैं?’’ हम ने भोलेपन से कहा.

‘‘दामादजी, इन कुत्तेबिल्ली के बच्चों को ले कर चलना है, जल्दी करो,’’ सासूमां ने आर्डर दिया. हम दिल पर पत्थर रख कर चले गए. आगे की घटना बड़ी छोटी है.

आटोरिकशा आया, उस के रुपए हम ने दिए. वेटनरी डाक्टर को दिखाया उस के रुपए हम ने दिए. जानवरों के लिए 1 हजार रुपए की दवा खरीदी वह रुपए देतेदेते हमें चक्कर आने लगे थे. कुल जमा 1,500 रुपयों पर हमें हमारे दोस्त मटरू ने उतार दिया था. घर ला कर उन जानवरों के लिए दूध, ब्रेड की व्यवस्था भी की, और जब ओवर बजट होने लगा तो एक रात चुपके से हम ने दोनों को थैली में बंद कर के मटरू के?घर में छोड़ दिया.

हमारी सास जब सुबह उठीं तो बड़ी दुखी थीं कि पालतू जानवर कहां चले गए? हमारा दुर्भाग्य देखो कि मटरू स्कूटर से सुबह ही आ धमका, ‘‘अरे, गोपाल, ये दोनों मेरे घर आ गए थे. मैं इन्हें ले आया हूं,’’ कह कर उस ने मुझे शादी के तोहफे की तरह कुत्ते का पिल्ला और बिल्ली दी. सासूमां खुशी से झूम उठीं. हम मन ही मन कुढ़ कर रह गए. आखिर किस से अपने मन की व्यथा कहते?

कुत्ते का पिल्ला ठीक हो गया था. उस की खुराक भी हमारी सास की खुराक की तरह बढ़ रही थी. हम खून के आंसू रो रहे थे. सास को जमे 6 माह हो चुके थे. पत्नी थीं कि उन्हें घर भेजने का नाम ही नहीं ले रही थीं.

हम अपने दोस्त मटरू के पास गए. उस के सामने खूब रोएधोए. उसे हमारी दशा पर दया आ गई. उस ने मुझे एक प्लान बताया जिसे सुन कर हम खुश हो गए. उस प्लान में एक ही गड़बड़ी थी कि श्रीमती को ले कर मुझे बाहर जाना था, लेकिन वह सास के बिना माफ करना, अपनी मां के बिना जाने को तैयार ही नहीं होती थीं.

हम ने अपने मित्र मटरू को वचन दिया कि उस की दी गई तारीख को केवल सास ही घर में रहेंगी. मैं और पत्नी सिनेमा देखने जाएंगे. इन 3-4 घंटों में वह काम निबटा कर सब ठीक कर लेगा.

हम ने मौका देख कर पत्नी की प्रशंसा की, उस के साथ कुछ पल तन्हातन्हा गुजारने की मनोकामना प्रकट की. वह थोड़ा लजाई, थोड़ा घबराई, मां की याद भी आई, लेकिन हमारे प्यार ने जोर मारा और वह तैयार हो गई कि मैं और वह शाम को फिल्म देखने चलेंगे.

हालांकि सासूमां को अकेला छोड़ कर जाने पर उन्होंने आपत्ति प्रकट की लेकिन पत्नी ने उन्हें समझाया कि टिक्कू कुत्ता, दीयापक बिल्ली?है इसलिए अकेलापन खलेगा नहीं. बुझे मन से उन्होंने भी जाने की इजाजत दे दी.

हम ने खट से मटरू को मोबाइल से यह खबर दे दी कि हम शाम को निकल रहे हैं, देर से लौटेंगे. रात 10 से 1 के बीच सासूमां का काम निबटा ले. मटरू भी तैयार हो गया?था. हम भी खुश थे कि चलो, बला टलेगी, लेकिन पति हमेशा से ही बदकिस्मत पैदा होता है.

प्लान यह था कि मटरू रात में साढ़े 10 बजे के बीच घर में प्रवेश करेगा और मुंह पर कपड़ा बांध कर सासूमां को डरा कर चोरी कर लेगा. सासूमां डर के मारे या तो भाग जाएंगी या हमारे घर से हमेशा के लिए बायबाय कर लेंगी.

हम पत्नी को 4 घंटे की एक फिल्म दिखलाने शहर से बाहर ले गए. रात 10 बजे फिल्म छूटी. हम ने भोजन किया. फोन से मटरू को खबर भी कर दी कि जल्दी से अपने आपरेशन को अंजाम दे. हमारी पत्नी अपनी मां को ले कर काफी चिंतित थी. हम ने आटोरिकशा वाले को पटा कर 50 रुपए अधिक दिए ताकि वह घर पर लंबे रास्ते से धीमी गति से पहुंचे.

रात साढ़े 12 बजे जब हम अपने घर पहुंचे तो घर के बाहर भीड़ जमा थी. पुलिस की एक वैन खड़ी थी. चंद पुलिस वाले भी थे. हमारा माथा ठनका कि मटरू ने कहीं जल्दबाजी में सासूमां का मर्डर तो नहीं कर दिया?

हम जब आटोरिकशा से उतरे तो महल्ले के निवासी काफी घबराए थे. पत्नी अपनी मां की याद में रोने  लगी तभी अंदर से सासूमां पुलिस इंस्पेक्टर के साथ बाहर हंसतीखिलखिलाती निकलीं. उन्हें हंसते देख हमारा माथा ठनका कि भैया आज मटरू पकड़ा गया और हमारा प्लान ओपन हुआ. बस, तलाक के साथसाथ पूरा महल्ला थूथू करेगा सो अलग. सब कहेंगे, ‘‘ऐसे टुच्चे दोस्त हैं जो ऐसी सलाह देते हैं.’’

हम शर्म से जमीन में गड़ गए. मन ही मन विचार किया, कभी ऐसा गंदा प्लान नहीं बनाएंगे. अचानक हमारे कान में मटरू की आवाज सुनाई पड़ी. देखा कि वह तो भीड़ में खड़ा तमाशा देख रहा है. अब हमारी बारी चक्कर खा कर गिरने की आ गई थी.

हम हिम्मत कर के आगे बढ़े तो देखते हैं कि पुलिस एक चोर को पकड़ कर बाहर आ रही थी. हमें देख कर सासूमां ने कहा, ‘‘लो दामादजी, इसे पकड़ ही लिया, पूरा शहर इस की चोरियों से परेशान था.’’

पुलिस इंस्पेक्टर ने हमें बधाई दी और कहा, ‘‘आप की सास वाकई बड़ी हिम्मती हैं. इन्होंने एक शातिर चोर को पकड़वाया है. इन्हें सरकार से इनाम तो मिलेगा ही लेकिन हमें आज आप के भाग्य पर ईर्ष्या हो रही है कि ऐसी सास हमारे भाग्य में क्यों नहीं थी?’’ हम ने सुना तो गद्गद हो गए. हमारी पत्नी ने लपक कर अपनी मां को गले से लगा लिया.

किस्सा यों हुआ कि हमारे मटरू दोस्त को आने में देर हो गई थी. उस की जगह उस रात अचानक असली चोर घुस आया. सासूमां ने पुराना घी खाया था, सो बिना घबराए अपने कुत्ते के साथ उसे धोबी पछाड़ दे दी. महल्ले वालों को आवाज दे कर बुलाया, पुलिस आ गई. इस तरह सासूमां ने एक शातिर चोर को पकड़ लिया. अगले दिन समाचारपत्रों में फोटो सहित सासूमां का समाचार छपा हुआ था.

अब आप ही विचार करें, ऐसी प्रसिद्ध सासूमां को कौन घर से जाने को कहेगा? आप ही निर्णय करें कि हम भाग्यशाली हैं या दुर्भाग्यशाली? आप जो भी निर्णय लें लेकिन हमारी सासूमां जरूर सौभाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसा दामाद मिला…

हुनर बोलता है, आप का छोटा कद नहीं

फिल्म ‘लावारिस’ का एक गाना,’जिस की बीवी छोटी उस का भी बड़ा नाम है… छोटीछोटी, छोटी नाटी…’ इस गाने को सुन कर लोग आज भी खूब आनंद लेते हैं. यह गाना आज भी लोगों के जुबां पर है. खासकर शादी में इस गाने पर डांस किया जाता है. लोग इस गाने को ले कर कितना ऐंजौय करते हैं लेकिन क्या आप ने कभी गौर किया है कि इस में बीवी के शौर्ट हाइट को मजाक बनाया गया है.

केवल गाने ही नहीं बल्कि रियल लाइफ में भी लोग शौर्ट हाइट लोगों की खिल्ली उड़ाई जाती है, लेकिन शौर्ट हाइट के लोगों की टेलैंट भी तो आप देखें.

यहां पेश हैं शौर्ट हाइट के लोगों की खूबियां और उन के लिए कुछ टिप्स :

एक कहावत है ‘कद से काबिलियत को नहीं मापी जाती…’ कद्दावर बनने के लिए काम करना है जरूरी। कुछ लोग इस कहावत के सुबूत भी हैं.

कद टेलैंट को नहीं दर्शाता

लोगों की रंगत या लंबाई उन के टेलैंट को नहीं दर्शाता है. माना भी जाता है लंबे लोगों की तुलना में छोटे कद के लोगों में सोचने की ताकत ज्यादा होती है. इस का सब से बड़ा उदाहरण है लाल बहादुर शास्त्री।उन की हाइट छोटी थी लेकिन उन का व्यक्तित्व काफी उंचा था.

लाल बहादुर शास्त्री के बार में यह भी कहा जाता है कि दुनिया का हर बड़ा नेता उन से सिर झुकाशकर बात करता था. उन का कद छोटा था लेकिन उनकी काबिलियत ऊंची थी. तो वहीं सचिन तेंदुलकर की उपलब्धियां किसी से छिपी नहीं हैं. उन की काबिलियत इतनी अधिक है कि वहां तक किसी का पहुंच पाना आसान नहीं होता.

क्या आप जानते हैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी छोटे हाइट के थे लेकिन दुनियााभर में उन को शांतिदूत माना जाता है? उन के कर्म और जज्बे का विश्वभर में गुणगान किया जाता है.

हाइट के कारण डिप्रैशन क्यों

अगर आप छोटे हाइट के हैं, तो यह सोच कर निराश न हों कि लोग आप की मजाक उड़ाएंगे. कई बार लोग अपने छोटे कद की वजह से डिप्रैशन में चले जाते हैं. लोगों को शौर्ट हाइट के लोगों का मजाक उड़ाने से बचना चाहिए. आप के एक मजाक से किसी की जिंदगी बरबाद हो सकती है, तो शौर्ट हाइट के लोगों की मजाक न उड़ाएं. उन की कद को न देंखें, काबिलियत को पहचानें.

कैरियर औप्शन

छोटे कद वाले लोगों को लगता है कि उन के लिए बेहतर कैरियर औप्शन नहीं है, लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है. अगर आप की भी हाइट कम है, तो आप के लिए कुछ खास अवसर हैं. अगर आप को गेम में इंट्रैस्ट है, तो कैरमबोर्ड, चेस में अपना कैरियर जरूर आजमाएं. इस के अलावा अगर आप को गाने या डांसिंंग का शौख है, तो यह भी आप के लिए अच्छी औपर्च्युनिटी है. आप आईटी जैसे कैरियर का भी चुनाव कर सकते हैं.

फैशन टिप्स

शौर्ट हाइट के लोग भी स्मार्ट और फैशनेबल दिख सकते हैं. आप भी कौन्फिडेंट और क्लासी नजर आ सकते हैं. आप को अपने आउटफिट का विशेष खयाल रखना चाहिए. आजकल कई आउटफिट्स हैं, जो शौर्ट हाइट के लोगों को भी मौडर्न लुक देते हैं. शौर्ट हाइट के लोग अपने स्किन और बालों का भी खयाल रख कर अपने पर्सनैलिटी को बेहतर बना सकते हैं. आप कुछ अलग तरीके का हेयरकट अपना सकते हैं, जिस से आप को न्यु लुक मिलेगा.

टैलेंटेड ऐक्ट्रेस राधिका मदान ने अपने फैन गर्ल मोमेंट को किया याद, इस फेमस ऐक्ट्रेस के बारे में बताई खास बातें

अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत एकता कपूर के शो, ‘मेरी आशिकी तुमसे ही’ करने वाली टेलेंटेड एक्ट्रेस राधिका मदान ने फिल्म ‘पटाखा’ से अपने प्रभावशाली डेब्यू से लेकर डिफरैंट रोल में बेहतर प्रदर्शन किया. फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ और हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘सरफिरा’, तक राधिका मदान ने अपने दमदार अभिनय के बल पर जल्दी ही अपनी पीढ़ी की सबसे होनहार प्रतिभाओं में अपनी खास जगह बना ली है. फिल्मों में बेहतरीन काम की बदौलत राधिका ने दुनिया भर में एक फैनबेस बना लिया है. लेकिन क्या आपको पता है वो किसकी फैन है.

खुद से प्यार करना कितना जरूरी-

हाल ही में एक इंटरव्यू में राधिका मदान ने फेमस एक्ट्रैस करीना कपूर खान के बारे में खुलकर बात की और उनके साथ अपने फैन गर्ल मोमेंट को याद किया. राधिका ने कहा, “बचपन से ही मैंने खुद को करीना कपूर की तरह समझा है. करीना तो करीना है, और उनसे मैंने ये सीखा है कि खुद से प्यार करना कितना ज़रूरी है… जब मैंने काम करना शुरू किया, तो मुझे अहसास हुआ कि जो भी इंडस्ट्री में चलता है, लोग वही करते हैं. चाहे वो शरीर का आकार हो, चेहरा हो, कद हो या कुछ और… जब मुझे ऐसा रिएक्शन मिला, तो मैंने सोचा, अगर हर कोई एक जैसा बन जाए तो दर्शकों के लिए रोमांचक क्या रहेगा? मैंने करीना कपूर को बड़े होते देखा है. वह एक उदाहरण सेट करती हैं, मैं देख सकती थी कि वह अलग हैं और उनका काम भी.”

उन्होंने आगे कहा, “हर इंसान अलग होता है, तो अगर मैं किसी की नकल करूं, तो मैं बस एक नकल ही रहूंगी. जो मैं दे सकती हूं, वह है मेरी अनूठी पहचान.”

करीना के साथ का औनसेट अनुभव

करीना के साथ अपने औनसेट अनुभव के बारे में बात करते हुए राधिका ने कहा, “जब मुझे पता चला कि वह ‘अंग्रेजी मीडियम’ में हैं और मेरा उनके साथ एक सीन है जिसमें मेरा कोई डायलौग नहीं था, उस दिन मैं कांप रही थी. मेरे पास एक वीडियो है जिसमें मैंने ‘हेलो’ कहने की लगभग सौ बार रिहर्सल की थी. लेकिन जब मैं उनसे मिली, तो मुझे बहुत खुशी हुई और उन्होंने मुझे लंच के लिए इनवाइट किया. मैं उनके सामने बेवकूफी कर रही थी और फिर जब अगली बार मुलाकात हुई, तब चीजें थोड़ी अलग हो गईं, लेकिन मैं अभी भी उनके सामने कांप जाती हूं.”

अचीवमेंट्स

राधिका ने बहुत कम उम्र में ही बौलीवुड में अपना नाम बना लिया है. उन्होंने सिर्फ 27 साल की उम्र में नेशनल अवार्ड जीत लिया था. पटाखा के बाद राधिका ने मर्द को दर्द नहीं होता, अंग्रेजी मीडियम, शिद्दत ‘कुत्ते’, ‘कच्चे लिंबू’ और ‘सजिनी शिंदे का वायरल वीडियो’ समेत कई और फिल्मों में काम किया है. इसके अलावा राधिका ने ओटीटी पर भी कदम रखा और ‘सास, बहू और फ्लेमिंगो वेब सीरीज में भी मुख्य किरदार निभाया है. फोर्ब्स इंडिया 2024 की लिस्ट में 30 साल के कम उम्र के 30 दिग्गजों के लिस्ट में राधिका मदान ने अपनी जगह बनाई है.

18 साल की उम्र में प्यार में टूटा दिल : गुरु रंधावा

गुरु रंधावा अपनी उम्दा गायकी से एक अलग पहचान बना रखते हैं. उन के कई सारे गाने सुपरहिट हुए हैं. अब गुरु रंधावा पहली बार जी टीवी के मशहूर म्यूजिकल शो ‘सारेगामापा’ में जज के रूप में नजर आएंगे.

गुरु रंधावा के अलावा ‘सारेगामापा’ के जजों के पैनल में 2 और जज हैं जो जोड़ी में नजर आएंगे, जिस में एक संगीतकार सचिन जिगर और मशहूर गायक सचेत परंपरा बतौर जज के रूप में नजर आने वाले हैं.

गुरु रंधावा के अनुसार, जब वह तीसरी क्लास में थे तभी से उन को गाने का शौक था और इतनी छोटी उम्र में उन की इच्छा थी कि वह टीवी पर नजर आएं.

गुरु रंधावा की इसी इच्छा ने बतौर गायक संगीतमय सफर के लिए संघर्षभरा सफर शुरू किया जो उन को पंजाब से दिल्ली और दिल्ली से मुंबई तक ले आया. आखिरकार उन की टीवी पर दिखने की इच्छा बहुत ही सम्मान के साथ पूरी हुई जिस के चलते गुरु रंधावा पहली बार बतौर जज जी टीवी के ‘सारेगामापा’ में नजर आएंगे.

गुरु रंधावा के कई सारे गाने सुपरहिट रहे हैं जिन में कई गाने उन्होंने खुद लिखे हैं। इन गानों में गुरु रंधावा के टूटे हुए दिल की दास्तान भी नजर आती है.

गुरु रंधावा के औल टाइम फेवरिट गाने

‘नाच मेरी रानी…’ ,’पटोला पटोला..’,’क्रेजी हबीबी…’,’इन्नी सोनी…’,’हूस देट गर्ल…’,’डांस मेरी रानी…’,’हाई रेटेड गबरू…,”हुस्न ईरानी…’,’इशारे तेरे..’,’इश्क तेरा..’,’लड़की लाहौर दी…’,’मेड इन इंडिया…’,’बन जा रानी…’,’इशारे तेरे…’,’लाहौर..’,’पागल…’ आदि कई गाने हैं गुरु रंधावा के जिन के लाखों में फौलोवर्स हैं.

प्यार में दिल टूटा था

कहते हैं कि दिल टूटने से तकलीफ तो बहुत होती है मगर जिंदगीभर का आरंभ हो जाता है। ऐसा ही कुछ गुरु रंधावा के साथ भी हुआ.

गुरु के अनुसार,”जब मैं 18 साल का था तो एक लड़की मेरी जिंदगी में आई थी, जो मुझ से उम्र में बड़ी थी. शायद उस वक्त वह 23- 24 साल की थी. मैं उस के प्यार में पड़ गया था. उसी की वजह से मैं पंजाब से दिल्ली आया. उस ने मुझे काफी कुछ सिखाया। सही ढंग से कपड़े पहनना, बोलना वगैरह। मुझे इंग्लिश नहीं आती थी जिस की वजह से मैं ने इंग्लिश सीखी। मैं इंग्लिश फिल्में देख कर सबटाइटल के जरिए इंग्लिश बोलना सीखता था. लेकिन बाद में मेरा ब्रेकअप हो गया। उस ने मेरा साथ छोड़ दिया और कहीं और शादी कर ली. उस के बाद मैं काफी समय तक निराशा रहा. लेकिन बाद में मुझे अपने डैडी का खयाल आया जिन्होंने मेरे लिए कई सपने देखे थे. लिहाजा, मैं ने अपनेआप को संभालते हुए नई राह पकड़ी और अपना पूरा फोकस अपने काम पर, अपने कैरियर पर लगा दिया.”

कामयाबी का राज

“जब मेरा पहला गाना रिलीज हुआ तो उसी लड़की का फोन आया जिस से मैं बेहद प्यार करता था. उस ने बताया कि उस के ससुराल वाले मेरे फैन हैं. उस दिन मुझे एहसास हुआ कि वक्त बुरा हो या अच्छा, कभी होश नहीं खोना चाहिए क्योंकि उस का नुकसान सिर्फ और सिर्फ आप को और आप के परिवार को होता है.

“शायद अगर उस वक्त मैं अपनेआप को नहीं संभालता तो आज आप के सामने इंटरव्यू नहीं दे रहा होता. शायद इतना कामयाब भी नहीं होता.”

गुरु रंधावा की कुछ समय पहले बतौर हीरो एक फिल्म भी रिलीज हुई है जिस का नाम ‘कुछ खट्टा हो जाए’ है। यह एक कौमेडी फिल्म है और इस में गुरु रंधावा के साथ हीरोइन साई मांजरेकर हैं.

नामचीन कलाकार

गौरतलब है 1995 में शुरू हुआ म्यूजिकल शो सारेगामापा टीवी इंडस्ट्री का सब से लोकप्रिय म्यूजिकल शो है जिस में इस से पहले कई और दिग्गज गायक और संगीतकार को बतौर जज इस शो में जज करते नजर आए हैं। अनु मलिक, हिमेश रेशमिया, अलका याग्निक, शंकर महादेवन आदि कई जजों ने इस शो में आ कर चार चांद लगाए हैं।

इस बार गुरु रंधावा यह म्यूजिकल शो को जज करने वाले हैं जिस को ले कर वह बेहद ऐक्साइटेड और खुश हैं. गुरु रंधावा के अनुसार वे ‘सारेगामापा’ में जज बन कर बेहद ऐक्साइटेड है.

गुरु रंधावा ने अपने काम को पूरी गंभीरता से अंजाम देने की बात कही है। उन के अनुसार उन्हें हंसीमजाक बहुत पसंद है। वह कभी गंभीर नहीं होते. लेकिन इस शो को जज करते समय वह पूरी गंभीरता के साथ अपने फैसले देंगे.

पंजाबी गायक गुरु रंधावा की खासतौर पर महिला प्रशंसक ज्यादा हैं. लिहाजा, ‘सारेगामापा’ में गुरु रंधावा को बतौर जज देख कर उनकी महिला फैन फौलोइंग जरूर खुश हो जाएगी. जी टीवी का यह पौपुलर सैंसेशनल म्यूजिकल शो 14 सितंबर 2024 को हर शनिवार और रविवार रात 9:00 बजे जी टीवी पर टैलीकास्ट होगा.

GHKKPM : सवि और रजत की लव स्टोरी होगी शुरू, लेकिन दोनों के बीच आएगी आशिका

Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin : टीवी का फेमस सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की कहानी अब दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ खींच रही है. शो की कहानी में लगातार ट्विस्ट एंड टर्न दिखाए जा रहे हैं. शो के पिछले एपिसोड में आपने देखा था कि सवि यह साबित करती है कि सई रजत की बेटी है. यह जानकर रजत बहुत खुश होता है और वह अपनी बेटी को गले लगाता है, उसे अहसास होता है कि वह अपने बेटी को कितना हर्ट किया है.

दूसरी तरफ सवि सोचती है कि रजत कितना स्वार्थी है, उसे मैंने इतनी बड़ी बात बताई और उसने एक थैंक्यू तक नहीं कहा. शो के अपकमिंग एपिसोड में हाईवोल्टेज ड्रामा होने वाला है. आइए जानते हैं, सीरियल के नए अपडेट्स के बारे में…

शो में दिखाया गया कि आशिका को पता चलता है कि अर्श उसका इस्तेमाल कर रहा था वह कभी भी उससे शादी नहीं करेगा. ये बात जानकर आशिका पूरी तरह टूट जाती है.

सवि और रजत के बीच आएगी आशिका

अब आशिका ऐसा कुछ करने वाली है, जिससे रजत और सवि को झटका लगेगा. खबरों की माने तो आशिका फिर से रजत को प्रपोज करेगी और सीरियल में पति पत्नी और वो का ड्रामा शुरू होगा. शो में आप आगे ये भी देखेंगे कि रजत की वजह से ईशा और शांतनु का उसकी एनिवर्सरी के दिन झगड़ा हो जाएगा. ऐसे में सवि का पारा सातवें आसमान पर पहुंच जाएगा और रजत को फोन खूब सुनाएगी. तो दूसरी तरफ रजत का फोन प्रोजेक्टर के साथ जुड़ा होगा और औफिस के सारे लोग सवि और रजत का झगड़ा सुन लेंगे. जिसके बाद रजत सवि के पास जाएगा और दोनों जमकर लड़ाई करेंगे.

क्या रजत मांगेगा सवि से माफी

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया जा रहा है कि रजत को यह एहसास हो गया है कि सवि उसके साथ गलत नहीं कर सकती. अब वह सवि पर विश्वास करने लगा है. हालांकि उसने सवि से माफी नहीं मांगी है और दोनों की लड़ाई भी नहीं बंद हुई है. तो दूसरी तरफ रजत की मां गुजराल हाउस में जाकर आशिका को खूब सुनाती है. ऐसे में अर्श गुजराल रजत की मां से बदतमीजी करता है और धक्का भी देता है, लेकिन उसी समय रजत आता है और वह अपनी मां को संभालता है और अर्श को उसकी औकात दिखाता है.

सवि और रजत की लव स्टोरी

शो के अपकमिंग एपिसोड में सवि और रजत की लव स्टोरी की जल्द ही शुरुआत होगी. सीरियल गौसिप के अनुसार, फैंस सवि और रजत का रोमांस देखना चाहते हैं. शो के मेकर्स भी शो में इस एंगल को लाने के लिए तैयारियों में जुट गए हैं. रिपोर्ट्स की माने तो सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की कहानी में रजत पहली बार सवि के आगे झुकने वाला है. शो के आने वाले एपिसोड सवि से माफी मांगने के लिए रजत को काफी मेहनत करनी पड़ेगी, सवि उसे भाव नहीं देगी पर वह सवि के आगेपीछे घूमता रहेगा.

दाग: एक गलती जब कर देती है कलंकित

कहानी- मंगला रामचंद्रन

वह दौरे से लौटे ही थे. मैं ने अरदली से चाय बनाने को कहा. यह नहा कर गुसलखाने से निकले. मैं ने थोड़ा नमकीन चिवड़ा और मीठे बिस्कुट प्लेट में निकाल कर मेज पर रखे. इतने में अरदली ट्रे में करीने से चाय लाया.

अचानक अंदर के कमरे से ही इन की तेज आवाज आई, ‘‘ये दशहरी आम कौन लाया है?’’

‘‘बताती हूं. आप पहले चाय तो ले लीजिए,’’ मैं खुशी दबाते हुए बोली. बताने की उत्सुकता मेरी आवाज में साफ झलक रही थी.

हथेलियों में क्रीम मलते हुए यह आ  कर बैठे और चाय का कप उठा लिया. मैं ने भी चाय हाथ में ली.

‘‘सब इंस्पेक्टर विनोद आया था. कहने लगा, साहब तो हम को पास फटकने भी नहीं देते. हम को सेवा करने का मौका ही नहीं देते,’’ मैं ने भूमिका बांधने की कोशिश की.

‘‘उस को तो मालूम था कि हम दौरे पर गए हैं. फिर आया क्यों?’’

‘‘नहीं, उस को नहीं मालूम था. बड़े आश्चर्य से कह रहा था-हैं, साहब नहीं हैं. दौरे पर गए हैं. खैर, हमारे लिए तो आप में और साहब में फर्क ही क्या है. आप दोनों ही हमारे माईबाप हैं.’’

‘‘उस ने कहा और तुम मान गईं. दौरे पर जाते समय थाने में उस से मिलते हुए गया हूं. वह जानबूझ कर मेरे पीछे आ कर आम दे गया है. मेरे सामने तो दुम दबा कर रहता है. ‘जी हां, साहब’ के अलावा मुंह से कुछ निकलता ही नहीं. वह तो चालाक और धूर्त है, पर तुम इतनी नासमझ तो नहीं हो कि उस ने दिया और रख लिया.’’

‘‘बस, तुम रहे भोलेनाथ. भई, कोई प्रेम से अपने अधिकारी को भेंट दे रहा है. खुद तो लोगे नहीं, घर आ कर दे रहा है तो भी गलतसलत सोचोगे? क्या सभी को ऐसे डरा कर रखा है? बेचारे झूठ न बोलें तो क्या करें?’’

‘‘डरा कर मैं ने रखा है? जिस के मन में मैल न हो, खोट न हो, वह किसी से क्यों डरेगा? मेरी सेवा करना चाहता है. यदि वास्तव में सेवा करना चाहता है तो दफ्तर के काम में ढील नहीं करता. मामले की तहकीकात करने गया तो गांव के बड़े आदमी के साथ शराब के नशे में डूब कर असली अपराधी को छोड़ गरीब को पकड़ कर नहीं लाता.’’

चेहरे पर आई कड़वाहट से लग रहा था, अभी और कड़वाहट उगलेंगे. पर नहीं, एक उसांस ले कर यह चुप हो गए.

‘‘पता नहीं, आप के दफ्तर में या आपसी रिश्ते क्या हैं. मुझ से तो बहुत आदरपूर्वक बोल रहा था. कहने लगा, ‘आप को दीदी कहूं तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी न? मेरी कोई बहन नहीं है. दिल ही दिल में रंज होता है. पर आज तक किसी को बहन बनाने की इच्छा ही नहीं हुई. आप को देखा तो लगा मानो आप मेरी सगी बहन हैं.’’’

‘‘आप उस की बहन बनिए या अम्मां, पर याद रखिए, इस बहाने मेरे साथ कोई रिश्ता उस का नहीं हो सकता. बदमाश, चाल चलता है. उस को मैं अभी बुलाता हूं. उस के आम वापस कर दो.’’

‘‘पर काफी आम खत्म हो गए. कुछ तो बच्चों और मैं ने खा लिए और थोड़े आसपास बांट दिए.’’ मेरी सहमी हुई सी आवाज एकदम संभल गई, ‘‘यदि आम वैसे ही रखे होते तो क्या आप सचमुच वापस कर देते?’’

‘‘और नहीं तो क्या, यों ही बोल रहा हूं. तुम इतने वर्षों में मुझे पहचान नहीं पाईं, इसी बात का तो दुख है. अपने उसूल और आदर्शों को निभा सकूं, इस में तुम्हीं सहायता कर सकती हो. इस से ज्यादा कुछ भी कहना व्यर्थ है,’’ इन की आवाज में थोड़ा दर्द, थोड़ी निराशा थी.

‘‘बस, आप भी कमाल करते हैं. जरा से आम कोई क्या दे गया, सदमे के मारे मानो दिल का दौरा पड़ जाएगा. और भी तो लोग हैं, मांग कर लेने वाले. खुद आंखें मूंदे रहते हैं, बीवी पिछवाड़े से मंगवाती है तो अनजान बने रहते हैं. साल भर का गल्ला, रोज की सब्जीभाजी, सूखे मेवे, मौसम के फल, यहां तक कि बच्चों के दूध, बिस्कुट तक का प्रबंध हो जाता है.’’

इतना बोल कैसे गई, सोच कर आश्चर्य हो रहा था. मन को संभाल रही थी कि इन की निराशा और दर्दभरी आवाज में हमेशा की तरह बह न जाऊं. मन को मार कर जीने में क्या रखा है? क्यों न मैं भी और लोगों की बीवियों की तरह फायदा उठाऊं? हो सकता है, कुछ समय बाद इन को भी मेरी बात रास आ जाए.

काश, यह खयाल मेरे मन में उस दिन आता ही नहीं. उस दिन तो मैं ने न जाने किस तरह और किस मनोदशा में इन से ऐसी बातें कहीं. यह जानते हुए भी कि किस तरह इन का दिल दुखा रही हूं, पिछले डेढ़ साल में कभी इन बातों को महसूस ही नहीं किया. शायद अभी भी मेरा पागलपन खत्म नहीं होता, अगर सचाई मेरे सामने न आ गई होती.

इन से इस तरह बातें कर के मैं ने सोचा कि बहस में जीत हासिल कर ली. यह भी मान लिया कि अब मैं जो करूंगी उस में इन की स्वीकृति होगी, भले ही यह चुप रहें. अब तो सोचते हुए शरम आती है. पर उस दिन तो यही लगा था कि मैं इन से कई गुना अधिक बुद्धिमान हूं. जो यह नहीं कर सकते वह मैं ने कर दिखाया. मैं भी और अफसरों की बीवियों की तरह शानोशौकत से रह रही हूं. बच्चों का मनमाफिक खानेपहनने का शौक पूरा हो रहा है.

इंस्पेक्टर विनोद ने तो दीदी बनाया ही, और लोग भी आने लगे. कोई भाभी, कोई भौजी, कोई बेटी कहता. गरज के मारे रिश्ते कायम होते रहे और मैं समझ नहीं पाई. जो रिश्ता प्रेम और विश्वास के आधार पर टिका था उस को नकारने की भूल कैसे कर बैठी? लोग अपना काम करवाने के लिए नजर भेंट लाते और घर पर मुझे ही देते.

‘‘दीदी, आप साहब से कहेंगी तो हमारा काम जरूर हो जाएगा. आप की बात को साहब मना नहीं करेंगे.’’

मेरी तो शायद सोचनेसमझने की शक्ति ही खत्म हो गई थी, नहीं तो मैं इन बातों से अपनेआप को गौरवान्वित महसूस कैसे करती?

‘‘भाभी, आप ही तो सबकुछ हैं. देवी हैं देवी. बस, आप की कृपादृष्टि हो जाए तो हम तर जाएं. आप का चेहरा देख कर कोई किसी बात के लिए न नहीं कर सकता. फिर भला साहब आप की बात क्यों नहीं मानेंगे?’’

मैं तो एक समझदार महिला कहलाने योग्य भी नहीं रही पर इन खोखली बातों का नशा ऐसा था कि मैं अपनेआप को देवी मानने लगी.

कई बार इन के दोस्तों ने मजाक में कहा भी, ‘‘असली पुलिस अधीक्षक तो भाभीजी हैं. आप तो बस, दफ्तर और दौरों में जांच वगैरह में लगे रहते हैं.’’

मैं इन लोगों का व्यंग्य समझ ही नहीं पाई. यदि कोशिश करती तो इन का चेहरा देख कर ही भांप जाती कि असलियत क्या है. उस समय तो इन का दुख से काला पड़ता चेहरा देख कर एक दबा हुआ गुस्सा ही फूटता था, जो धीरेधीरे इन की उपेक्षा में बदल गया. मैं सचमुच अपने को पुलिस अधीक्षक की कुरसी की हकदार समझने लगी.

अरदलियों से इन का और मेरा व्यवहार बड़ा संयत और शिष्ट था पर धीरेधीरे मेरी अकड़ रंग लाने लगी. उन्हें डांटना, फटकारना, बारबार बाजार दौड़ाना, उन की व्यक्तिगत परेशानी या दुखदर्द की बातें सुनने या जानने का मामूली सा भी धीरज न दिखाना मानो पुलिस अधीक्षक की पत्नी हो जाने से उन के साथ इनसानियत के नाते खत्म हो जाते हैं. मालिक और गुलाम का रिश्ता ही रह जाता हो.

एक बार शहर में हड़ताल हुई और भयंकर दंगा हुआ. इन्होंने जान पर खेल कर दंगाइयों को बस में किया. इन के साहस और प्रेमपूर्ण व्यवहार से दंगाइयों के दिल में इन की इज्जत कई गुना बढ़ गई. उस समय एक हवलदार ने घर आ कर खबर दी कि साहब कुशलपूर्वक हैं. बस, मामूली सी चोट आई है. स्थिति काबू में आ गई है.

हवलदार बूढ़ा था. इन के प्रति वफादार भी था. उस के मुंह से निकल गया, ‘‘बाईजी, आप के सुहाग का प्रताप है कि साहब आज उन दंगाइयों के बीच से सहीसलामत बच भी गए और शांति भी स्थापित कर सके.’’

इन का साहस, धीरज और समझदारी से किया गया कार्य भी मैं अपने द्वारा किया गया समझती रही. बाद में इन को जब तमगा मिला तो बोलना नहीं चूकी कि मैडल की सही हकदार तो मैं हूं. तब इन्होंने कितनी सहजता से कहा, ‘‘और नहीं तो क्या, यदि तुम्हें पत्नी के रूप में न पाता तो इतना सब कर पाता?’’ इन की वाणी में कहीं छलावा नहीं था, यह मैं दावे के साथ कह सकती हूं.

मैं गलतफहमियों से घिरी रही. सावन के अंधे को हर चीज हरी दिखती है. मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि कुछ न होते हुए भी मैं इन की सारी उपलब्धियों का श्रेय अपनेआप को देती रही. बच्चों पर मेरे इस व्यवहार का जो खराब असर हुआ उस को तब तो समझ नहीं पाई, पर अब उन की उच्छृंखलता को अच्छी तरह समझ कर भी कुछ नहीं कर पा रही हूं. बच्चे इन से ज्यादा मुझे महत्त्व देते हैं, ऐसा खयाल मन में बैठ गया.

पत्नी पति से ज्यादा लायक हो तब भी पति की भावनाओं का खयाल और बच्चों के मन में पिता की सम्मानपूर्ण छवि बनाने के लिए प्रयत्नशील रहती है. मैं तो योग्य न होते हुए भी अपनेआप को इन से उंचा समझने लगी. मेरी नालायकी का इस से बड़ा सुबूत और क्या होगा? बच्चे मुझे प्राथमिकता नहीं दे रहे, बल्कि अपना स्वार्थ मेरे द्वारा साध रहे हैं, यह तब समझ में नहीं आया था. उसी का फल था कि बच्चे मेरी उपेक्षा करने लगे.

अपनेआप को सर्वेसर्वा समझने वाली मैं अब न तो उपेक्षा को ग्रहण करने की स्थिति में थी न उन को डांटने या समझाने की. बच्चों के सामने सही बात, सही आदर्श रखने की आवश्यकता को ताक पर रख दिया था.

दोनों बच्चों के बात करने के ढंग से मैं उन के स्वभाव को समझ सकती थी, यदि थोड़ी सी जागरूक होती.

‘‘मां, क्या हम रंगीन टेलीविजन नहीं ले सकते? ब्लैक एंड ह्वाइट में भी कोई मजा आता है?’’

‘‘हां, मां, सब के यहां रंगीन टेलीविजन है. बस, हमारे यहां ही नहीं है?’’

‘‘तुम दोनों तो ऐसे कह रहे हो, मानो अभी तुरंत रंगीन टेलीविजन आ जाएगा. इतना सरल नहीं है. पैसे कहां से आएंगे?’’

‘‘मां, आप चाहें तो क्या नहीं कर सकतीं?’’

बस, दोनों ने मिल कर मुझे गर्व के शिखर पर चढ़ा दिया. मैं दिमागी तौर पर दिवालिया होते हुए भी खुद को सब से बुद्धिमान समझने लगी.

रंगीन टेलीविजन जिस दिन आया, बच्चे और मैं फूले नहीं समा रहे थे. 10-15 दिन तक इन से तर्क, कुतर्क, बहस कर मंगवा ही लिया. मैं ने इन के मातहत से ही पहले कहा था. खून मुंह को लग चुका था. उस को अपना तबादला रुकवाना था. सोचा, ऐसे समय कहूंगी तो जरूर जल्दी और सस्ते में करवा देगा. पर जैसे ही इन को पता लगा सब की शामत आ गई.

इतना गुस्सा होते इन्हें कभी नहीं देखा था. उस दिन खाना भी नहीं खाया. काफी दिनों बाद मैं थोड़ा डर गई. अपनी ओर से गलती हो रही है, ऐसा लग रहा था, पर मन मानने को तैयार नहीं था.

‘‘तुम ने बच्चों का मन भी बिगाड़ दिया और अपने मन की कर के रहीं. पर तुम को अंदाज भी है कि मैं ने किस तरह प्रबंध किया? अपनी भविष्यनिधि से उधार लिया है. पूरी कीमत दे कर लाया हूं. जिस धन को आदमी बच्चों का भविष्य सुधारने, अपने बुढ़ापे में खर्च करने के लिए संचित करता है, तुम्हारी बेहूदा हरकत से नष्ट हो रहा है.’’

मैं वास्तव में मूर्ख ही थी, जो तब भी संभली नहीं, मुंह से निकल ही गया, ‘‘क्या, भविष्यनिधि से पैसे निकाले? आप सचमुच कुछ नहीं कर सकते. मैं तो करीबकरीब मुफ्त करा देती. बस आप भी… पैसे यों ही खर्च हो गए.’’

‘‘बस, चुप रहो. मेरे उसूलों की तो तुम ने धज्जियां उड़ा दीं. मेरा साथ न दे पाईं, उलटे मुझे भी गलत बात सिखाने पर तुली हो. सुना था, हर सफल आदमी के पीछे एक स्त्री होती है. पर तुम ने सिद्ध कर दिया कि असफलता की ओर चरण बढ़ाने के लिए भी पुरुष को स्त्री का साथ ही नहीं संरक्षण भी मिल सकता है. आज तक तुम को समझा कर हार गया. अब मैं हुक्म देता हूं कि जिस कुरसी का मैं अधिकारी हूं, उस अधिकार का तुम दुरुपयोग नहीं कर सकतीं.’’

यह गुस्से में तमतमाते हुए बाहर चले गए. दोनों बच्चे भी सहम गए थे. अरदली की आंखों में तभी से एक व्यंग्यभरी मुसकान देखती आ रही हूं.

कुछ ही दिनों में इन का तबादला हो गया. उस समय तो नहीं पर अब पता लग गया कि इन्होंने खुद ही तबादला करवाया था. मैं चाह रही थी कि बच्चों की परीक्षा तक वहीं रुक जाऊं. इन्होंने कहा भी कि ऐसा कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला. वहां के स्कूलों की जानकारी ले चुके थे वह. पर मेरे सिर पर तो भूत सवार हो गया था. कुछ तो इन के गुस्से वाले मूड से दूर रहना चाह रही थी. दो महीने के लिए बच्चों की पढ़ाई में होने वाले नुकसान या उस नुकसान को पूरा करने की जिम्मेदारी से भी बचना चाह रही थी.

इन्होंने कहा भी, ‘‘मैं जब तक हूं तभी तक ये अरदली और कर्मचारी ध्यान देंगे फिर तो नए साहब की जी हजूरी में लग जाएंगे.’’ मुझ में जो झूठा दंभ था, उस ने फिर सिर उठाया. मेरी गलतफहमी कि इन के मातहत मुझे बहुत मानते हैं, मेरे जरा से इशारे पर बिछ जाएंगे. इन के बहुत कहने पर भी मैं वहीं रुक गई. बच्चों को पढ़ाने के कारण तो यह व्यवस्था अच्छी लगी पर मेरा व्यवहार शायद उन को भी अटपटा लगा था.

अपने पिताजी के इतना कहने पर भी मेरा रुकना उन्हें ठीक नहीं लगा था. वे दोनों दोएक बार बोले, ‘‘मां, चले चलते हैं. थोड़ी सी मेहनत से हमारी पढ़ाई ठीक चलने लगेगी.’’

इन के जाने के तीसरे दिन ही नए पुलिस अधीक्षक आ गए. एक बूढ़ा अरदली हमारे पास रह गया, जो करीबकरीब किसी काम का न था. सारा काम खुद ही करना पड़ रहा था. खीज के मारे उस बूढ़े अरदली पर जबतब गुस्सा निकलता. वह भी अब किसी तरह सहन नहीं करता था. साहब तो हमेशा से ही बहुत मधुरता और प्यार से बोलते थे. मैं भी पहले मीठे स्वभाव की ही थी. अब क्यों सहेगा जब साहब कोई और हो?

अब तो कहीं से जरा भी आसरा नहीं था. कोई झांक कर भी न देखता. फोन भी नहीं रह गया था कि किसी इंस्पेक्टर, सबइंस्पेक्टर को बुला कर कोई काम बता सकूं.

मैं जिस प्राप्य के बारे में सोचसोच कर खुश हुआ करती थी, वह मेरा खुद का, व्यक्तिगत न था, यह समझने में देर जरूर हो गई. मेरा आदर, सम्मान होता रहा था इन की पत्नी होने के कारण और मुझे भी इन पर गर्व था. सिवा इन बीच के कुछ दिनों के जब मैं ने अपनेआप को इस का हकदार माना था. मैं एक सफल, अच्छे अफसर की पत्नी बन कर संतुष्ट रहती तो आज मेरा सम्मान बढ़ जाता.

जो मुझे दीदी और भाभी बना कर तारीफों के पुल बांधते थे, अब इधरउधर इन से, उन से कहते फिर रहे थे, ‘‘अजी, सब दूसरों की आंखों में धूल झोंकने वाली करतूत है. साहब तो एकदम सीधे बन जाते थे, कुछ लेते नहीं थे. अब साहब लें या मेम साहब, फर्क क्या पड़ता है? बात तो एक ही हुई न. भई, असली साहब तो वही हैं. साहब के चार्ज में तो बस, पुलिस अधीक्षक की कुरसी है.’’

अरदली और दफ्तर के सिपाहियों की ये बातें कानों मे पड़ने लगीं, ‘‘सारे के सारे साहब एक जैसे हुए हैं. मेम साहब ने राजपूत साहब का तबादला रुकवा लिया. बदले में रंगीन टेलीविजन मुफ्त. साहब भले ही ऊपर से मेम साहब को डाटें पर मन ही मन खुश ही हुए होंगे कि चलो भई, पैसा न धेले का खर्च और मुफ्त का मनोरंजन घर बैठेबैठे.’’

सुन कर मैं एकदम बौखला गई. ओह, मैं ने यह क्या किया? इन के इतने साल की तपस्या भंग कर दी. इन के 10 हजार रुपयों का नुकसान कराया और नाम भी खराब करवा दिया. किसकिस का मुंह बंद करूं, किसकिस को सफाई देती फिरूं?

वे 2-3 महीने मेरे और बच्चों के कैसे कटे, सिर्फ हम ही जानते हैं. मैं ने तो टेलीविजन की ओर देखना तक छोड़ दिया. उस को देख कर न जाने कैसा दर्द उठता है. बच्चों के परचे भी ज्यादा अच्छे नहीं हुए. मेरी नादानी से एक ऐसा नुकसान हुआ था, जिस की भरपाई मुश्किल ही लगती रही. इन के पास पहुंच कर मैं ने अपने किए पर पश्चात्ताप किया. भविष्य में दोबारा ऐसी गलती न होने देने का वादा भी किया.

इन का इतना ही कहना था, ‘‘हम अपराधी को पकड़ते हैं. इलजाम लगा कर जेल भेजते हैं कि वह अपने किए की सजा भुगतने के बाद एक अच्छे नागरिक का जीवन जी सके. उन को इस का मौका मिलता है.’’

‘‘हम सरकारी कर्मचारी, वह भी खासकर पुलिस में साफसुथरों को भी दाग लगा ही माना जाता है. फिर एक बार की गलती हमेशा के लिए कलंकित कर देती है. हर तबादले पर हमारे पहुंचने से पहले उस की ख्याति पहुंच जाती है. इस दाग को दुनिया की कोई जेल नहीं मिटा सकती.’’

चिंता की कोई बात नहीं: क्या सुकांता लौटेगी ससुराल

लेखिका प्रतिमा डिके

आज अगर कोई मुझ से पूछे कि दुनिया का सब से सुखी व्यक्ति कौन है? तो सीना तान कर मेरा जवाब होगा, मैं. और यह बात सच है कि मैं सुखी हूं. बहुत सुखी हूं, औसत से कुछ अधिक ही रूप, औसत से कुछ अधिक ही गुण, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा, अच्छी नौकरी, अच्छा पैसा, मनपसंद पत्नी, समझदार, स्वस्थ और प्यारे बच्चे, शहर में अपना मकान.

अब बताइए, जिसे सुख कहते हैं वह इस से अधिक या इस से अच्छा क्याक्या हो सकता है? यानी मेरी सुख की या सुखी जीवन की अपेक्षाएं इस से अधिक कभी थीं ही नहीं. लेकिन 6 माह पूर्व मेरे घर का सुखचैन मानो छिन गया.

सुकांता यानी मेरी पत्नी, अपने मायके में क्या पत्र लिखती, मुझे नहीं पता. लेकिन उस के मायके से जो पत्र आने लगे थे उन में उस की बेचारगी पर बारबार चिंता व्यक्त की जाने लगी थी. जैसे :

‘‘घर का काम बेचारी अकेली औरत  करे तो कैसे और कहां तक?’’

‘‘बेचारी सुकांता को इतना तक लिखने की फुरसत नहीं मिल रही है कि राजीखुशी हूं.’’

‘‘इन दिनों क्या तबीयत ठीक नहीं है? चेहरे पर रौनक ही नहीं रही…’’ आदि.

शुरूशुरू में मैं ने उस ओर कोई खास ध्यान नहीं दिया. मायके वाले अपनी बेटी की चिंता करते हैं, एक स्वाभाविक बात है. यह मान कर मैं चुप रहा. लेकिन जब देखो तब सुकांता भी ताने देने लगी, ‘‘प्रवीणजी को देखो, घर की सारी खरीदफरोख्त अकेले ही कर लेते हैं. उन की पत्नी को तो कुछ भी नहीं देखना पड़ता…शशिकांतजी की पसंद कितनी अच्छी है. क्या गजब की चीजें लाते हैं. माल सस्ता भी होता है और अच्छा भी.’’

कई बार तो वह वाक्य पूरा भी नहीं करती. बस, उस के गरदन झटकने के अंदाज से ही सारी बातें स्पष्ट हो जातीं.

सच तो यह है कि उस की इसी अदा पर मैं शुरू में मरता था. नईनई शादी  हुई थी. तब वह कभी पड़ोसिन से कहती, ‘‘क्या बताऊं, बहन, इन्हें तो घर के काम में जरा भी रुचि नहीं है. एक तिनका तक उठा कर नहीं रखते इधर से उधर.’’ तो मैं खुश हो जाता. यह मान कर कि वह मेरी प्रशंसा कर रही है.

लेकिन जब धीरेधीरे यह चित्र बदलता गया. बातबात पर घर में चखचख होने लगी. सुकांता मुझे समझने और मेरी बात मानने को तैयार ही नहीं थी. फिर तो नौबत यहां तक आ गई कि मेरा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य भी गड़बड़ाने लगा.

अब आप ही बताइए, जो काम मेरे बस का ही नहीं है उसे मैं क्यों और कैसे करूं? हमारे घर के आसपास खुली जगह है. वहां बगीचा बना है. बगीचे की देखभाल के लिए बाकायदा माली रखा हुआ है. वह उस की देखभाल अच्छी तरह से करता है. मौसम में उगने वाली सागभाजी और फूल जबतब बगीचे से आते रहते हैं.

लेकिन मैं बालटी में पानी भर कर पौधे नहीं सींचता, यही सुकांता की शिकायत है, वह चाहे बगीचे में काम न करे. लेकिन हमारे पड़ोसी सुधाकरजी बगीचे में पूरे समय खुरपी ले कर काम करते हैं. इसलिए सुकांता चाहती है कि मैं भी बगीचे में काम करूं.

मुझे तो शक है कि सुधाकरजी के दादा और परदादा तक खेतिहर मजदूर रहे होंगे. एक बात और है, सुधाकरजी लगातार कई सिगरेट पीने के आदी हैं. खुरपी के साथसाथ उन के हाथ में सिगरेट भी होती है. मैं तंबाकू तो क्या सुपारी तक नहीं खाता. लेकिन सुकांता इन बातों को अनदेखा कर देती है.

शशिकांत की पसंद अच्छी है, मैं भी मानता हूं. लेकिन उन की और भी कई पसंद हैं, जैसे पत्नी के अलावा उन के और भी कई स्त्रियों से संबंध हैं. यह बात भी तो लोग कहते ही हैं.

लेदे कर सुकांता को बस, यही शिकायत है, ‘‘यह तो बस, घर के काम में जरा भी ध्यान नहीं देते, जब देखो, बैठ जाएंगे पुस्तक ले कर.’’

कई बार मैं ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह समझने को तैयार ही नहीं. मैं मुक्त मन से घर में पसर कर बैठूं तो उसे अच्छा नहीं लगता. दिन भर दफ्तर में कुरसी पर बैठेबैठे अकड़ जाता हूं. अपने घर में आ कर क्या सुस्ता भी नहीं सकता? मेरे द्वारा पुस्तक पढ़ने पर, मेरे द्वारा शास्त्रीय संगीत सुनने पर उसे आपत्ति है. इन्हीं बातों से घर में तनाव रहने लगा है.

ऐसे ही एक दिन शाम को सुकांता किसी सहेली के घर गई थी. मैं दफ्तर से लौट कर अपनी कमीज के बटन टांक रहा था. 10 बार मैं ने उस से कहा था लेकिन उस ने नहीं किया तो बस, नहीं किया. मैं बटन टांक रहा था कि सुकांता की खास सहेली अपने पति के साथ हमारे घर आई.

पर शायद आप पूछें कि यह खास सखी कौन होती है? सच बताऊं, यह बात अभी तक मेरी समझ में भी नहीं आई है. हर स्त्री की खास सखी कैसे हो जाती है? और अगर वह खास सखी होती है तो अपनी सखी की बुराई ढूंढ़ने में, और उस की बुराई करने में ही उसे क्यों आनंद आता है? खैर, जो भी हो, इस खास सखी के पति का नाम भी सुकांता की आदर्श पतियों की सूची में बहुत ऊंचे स्थान पर है. वह पत्नी के हर काम में मदद करते हैं. ऐसा सुकांता कहती है.

मुझे बटन टांकते देख कर खास सखी ऊंची आवाज में बोली, ‘‘हाय राम, आप खुद अपने कपड़ों की मरम्मत करते हैं? हमें तो अपने साहब को रोज पहनने के कपड़े तक हाथ में देने पड़ते हैं. वरना यह तो अलमारी के सभी कपड़े फैला देते हैं कि बस.’’

सराहना मिश्रित स्वर में खास सखी का उलाहना था. मतलब यह कि मेरे काम की सराहना और अपने पति को उलाहना था. और बस, यही वह क्षण था जब मुझे अलीबाबा का गुफा खोलने वाला मंत्र, ‘खुल जा सिमसिम’ मिल गया.

मैं ने बड़े ही चाव और आदर से खास सखी और उस के पति को बैठाया. और फिर जैसे हमेशा ही मैं वस्त्र में बटन टांकने का काम करता आया हूं, इस अंदाज से हाथ का काम पूरा किया. कमीज को बाकायदा तह कर रखा और झट से चाय बना लाया.

सच तो यह है कि चाय मैं ने नौकर से बनवाई थी और उसे पिछले दरवाजे से बाहर भेज दिया था. खास सखी और उस के पति ‘अरे, अरे, आप क्यों तकलीफ करते हैं?’ आदि कहते ही रह गए.

चाय बहुत बढि़या बनी थी, केतली पर टिकोजी विराजमान थी. प्लेट में मीठे बिस्कुट और नमकीन थी. इस सारे तामझाम का नतीजा भी तुरंत सामने आया. खास सखी के चेहरे पर मेरे लिए अदा से श्रद्धा के भाव उमड़ते साफ देखे जा सकते थे. खास सखी के पति का चेहरा बुझ गया.

मैं मन ही मन खुश था. इन्हीं साहब की तारीफ सुकांता ने कई बार मेरे सामने की थी. तब मैं जलभुन गया था, आज मुझे बदला लेने का पूरापूरा सुख मिला.

कुछ दिन बाद ही सुकांता महिलाओं की किसी पार्टी से लौटी तो बेहद गुस्से में थी. आते ही बिफर कर बोली, ‘‘क्यों जी? उस दिन मेरी सहेली के सामने तुम्हें अपने कपड़ों की मरम्मत करने की क्या जरूरत थी? मैं करती नहीं हूं तुम्हारे काम?’’

‘‘कौन कहता है, प्रिये? तुम ही तो मेरे सारे काम करती हो. उस दिन तो मैं यों ही जरा बटन टांक रहा था कि तुम्हारी खास सहेली आ धमकी मेरे सामने. मैं ने थोड़े ही उस के सामने…’’

‘‘बस, बस. मुझे कुछ नहीं सुनना…’’

गुस्से में पैर पटकती हुई वह अपने कमरे में चली गई. बाद में पता चला कि भरी पार्टी में खास सखी ने सुकांता से कहा था कि उसे कितना अच्छा पति मिला है. ढेर सारे कपड़ों की मरम्मत करता है. बढि़या चाय बनाता है. बातचीत में भी कितना शालीन और शिष्ट है. कहां तो सात जनम तक व्रत रख कर भी ऐसे पति नहीं मिलते, और एक सुकांता है कि पूरे समय पति को कोसती रहती है.

अब देखिए, मैं ने तो सिर्फ एक ही कमीज में 2 बटन टांके थे, लेकिन खास सखी ने ढे…र सारे कपड़े कर दिए तो मैं क्या कर सकता हूं? समझाने गया तो सुकांता और भी भड़क गई. चुप रहा तो और बिफर गई. समझ नहीं पाया कि क्या करूं.

सुकांता का गुस्सा सातवें आसमान पर था. वह बच्चों को ले कर सीधी मायके चली गई. मैं ने सोचा कि 15 दिन में तो आ ही जाएगी. चलो, उस का गुस्सा भी ठंडा हो जाएगा. घर में जो तनाव बढ़ रहा था वह भी खत्म हो जाएगा. लेकिन 1 महीना पूरा हो गया. 10 दिन और बीत गए, तब पत्नी की और बच्चों की बहुत याद आने लगी.

सच कहता हूं, मेरी पत्नी बहुत अच्छी है. इतने दिनों तक हमारी गृहस्थी की गाड़ी कितने सुचारु रूप से चल रही थी, लेकिन न जाने यह नया भूत कैसे सुकांता पर सवार हुआ कि बस, एक ही रट लगाए बैठी है कि यह घर में बिलकुल काम नहीं करते. बैठ जाते हैं पुस्तक ले कर, बैठ जाते हैं रेडियो खोल कर.

अब आप ही बताइए, हफ्ते में एक बार सब्जी लाना क्या काफी नहीं है? काफी सब्जी तो बगीचे से ही मिल जाती है. जो घर पर नहीं है वह बाजार से आ जाती है. और रोजरोज अगर सब्जी मंडी में धक्के खाने हों तो घर में फ्रिज किसलिए रखा है?

लेकिन नहीं, वरुणजी झोला ले कर मंडी जाते हैं, तो मैं भी जाऊं. अब वरुणजी का घर 2 कमरों का है. आसपास एक गमला तक रखने की जगह नहीं है. घर में फ्रिज नहीं है, इसलिए मजबूरी में जाते हैं. लेकिन मेरी तुलना वरुणजी से करने की क्या तुक है?

बच्चे हमारे समझदार हैं. पढ़ने में भी अच्छे हैं, लेकिन सुकांता को शिकायत है कि मैं बच्चों को पढ़ाता ही नहीं. सुकांता की जिद पर बच्चों को हम ने कानवेंट स्कूल में डाला. सुकांता खुद अंगरेजी के 4 वाक्य भी नहीं बोल पाती. बच्चों की अंगरेजी तोप के आगे उस की बोलती बंद हो जाती है.

यदाकदा कोई कठिनाई हो तो बच्चे मुझ से पूछ भी लेते हैं. फिर बच्चों को पढ़ाना आसान काम नहीं है. नहीं तो मैं अफसर बनने के बजाय अध्यापक ही बन जाता. अपना अज्ञान बच्चों पर प्रकट न हो इसीलिए मैं उन की पढ़ाई से दूर ही रहता हूं. शायद इसीलिए उन के मन में मेरे लिए आदर भी है. लेकिन शकीलजी अपने बच्चों को पढ़ाते हैं. रोज पढ़ाते हैं तो बस, सुकांता का कहना है मैं भी बच्चों को पढ़ाऊं.

पूरे डेढ़ महीने बाद सुकांता का पत्र आया. फलां दिन, फलां गाड़ी से आ रही हूं. साथ में छोटी बहन और उस के पति भी 7-8 दिन के लिए आ रहे हैं.

मैं तो जैसे मौका ही देख रहा था. फटाफट मैं ने घर का सारा सामान देखा. किराने की सूची बनाई. सामान लाया. महरी से रसोईघर की सफाई करवाई. डब्बे धुलवाए. सामान बिनवा कर, चुनवा कर डब्बों में भर दिया.

2 दिन का अवकाश ले कर माली और महरी की मदद से घर और बगीचे की, कोनेकोने तक की सफाई करवाई. दीवान की चादरें बदलीं. परदे धुलवा दिए. पलंग पर बिछाने वाली चादरें और तकिए के गिलाफ धुलवा लिए. हाथ पोंछने के छोटे तौलिए तक साफ धुले लगे थे. फ्रिज में इतनी सब्जियां ला कर रख दीं जो 10 दिन तक चलतीं. 2-3 तरह का नाश्ता बाजार से मंगवा कर रखा, दूध जालीदार अलमारी में गरम किया हुआ रखा था. फूलों के गुलदस्ते बैठक में और खाने की मेज पर महक रहे थे.

इतनी तैयारी के बाद मैं समय से स्टेशन पहुंचा. गाड़ी भी समय पर आई. बच्चों का, पत्नी का, साली का, उस के पति का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया. रास्ते में सुकांता ने पूछा, (स्वर में अभी भी कोई परिवर्तन नहीं था) ‘‘क्यों जी, महरी तो आ रही थी न, काम करने?’’

मैं ने संक्षिप्त में सिर्फ ‘हां’ कहा.

बहन की तरफ देख कर (उसी रूखे स्वर में) वह फिर बोली, ‘‘डेढ़ महीने से मैं घर पर नहीं थी. पता नहीं इतने दिनों में क्या हालत हुई होगी घर की? ठीकठाक करने में ही पूरे 3-4 दिन लग जाएंगे.’’

मैं बिलकुल चुप रहा. रास्ते भर सुकांता वही पुराना राग अलापती रही, ‘‘इन को तो काम आता ही नहीं. फलाने को देखो, ढिकाने को देखो’’ आदि.

लेकिन घर की व्यवस्था देख कर सुकांता की बोलती ही बंद हो गई. आगे के 7-8 दिन मैं अभ्यस्त मुद्रा में काम करता रहा जैसे सुकांता कभी इस घर में रहती ही नहीं थी. छोटी साली और उस के पति इस कदर प्रभावित थे कि जातेजाते सालीजी ने दीदी से कह दिया, ‘‘दीदी, तुम तो बिना वजह जीजाजी को कोसती रहती हो. कितना तो बेचारे काम करते हैं.’’

सालीजी की विदाई के बाद सुकांता चुप तो हो गई थी. लेकिन फिर भी भुनभुनाने के लहजे में उस के कुछ वाक्यांश कानों में आ ही जाते. इसी समय मेरी बूआजी का पत्र आया. वह तीर्थयात्रा पर निकली हैं और रास्ते में मेरे पास 4 दिन रुकेंगी.

मेरी बूआजी देखने और सुनने लायक चीज हैं. उम्र 75 वर्ष. कदकाठी अभी भी मजबूत. मुंह के सारे के सारे दांत अभी भी हैं. आंखों पर ऐनक नहीं लगातीं और कान भी बहुत तीखे हैं. पुराने आचारव्यवहार और विचारों से बेहद प्रेम रखने वाली महिला हैं. मन की तो ममतामयी, लेकिन जबान की बड़ी तेज. क्या छोटा, क्या बड़ा, किसी का मुलाहिजा तो उन्होंने कभी रखा ही नहीं. मेरे पिताजी आज तक उन से डरते हैं.

मेरी शादी इन्हीं बूआजी ने तय की थी. गोरीचिट्टी सुकांता उन्हें बहुत अच्छी लगी थी. इतने बरसों से उन्हें मेरी गृहस्थी देखने का मौका नहीं मिला. आज वह आ रही थीं. सुकांता उन की आवभगत की तैयारी में जुट गई थी.

बूआजी को मैं घर लिवा लाया. बच्चों ने और सुकांता ने उन के पैर छुए. मैं ने अपने उसी मंत्र को दोहराना शुरू किया. यों तो घर में बिस्तर बिछाने का, समेटने का, झाड़ ू  लगाने का काम महरी ही करती है, लेकिन मैं जल्दी उठ कर बूआजी की चाकरी में भिड़ जाता. उन का कमरा और पूजा का सामान साफ कर देता, बगीचे से फूल, दूब, तुलसी ला कर रख देता. चंदन को घिस देता. अपने हाथ से चाय बना कर बूआजी को देता.

और तो और, रोज दफ्तर जातेजाते सुकांता से पूछता, ‘‘बाजार से कुछ मंगाना तो नहीं है?’’ आते समय फल और मिठाई ले आता. दफ्तर जाने से पहले सुकांता को सब्जी आदि साफ करने या काटने में मदद करता. बूआजी को घर के कामों में मर्दों की यह दखल देने की आदत बिलकुल पसंद नहीं थी.

सुकांता बेचारी संकोच से सिमट जाती. बारबार मुझे काम करने को रोकती. बूआजी आसपास नहीं हैं, यह देख कर दबी आवाज में मुझे झिड़की भी देती. और मैं उस के गुस्से को नजरअंदाज करते हुए, बूआजी आसपास हैं, यह देख कर उस से कहता, ‘‘तुम इतना काम मत करो, सुकांता, थक जाओगी, बीमार हो जाओगी…’’

बूआजी खूब नाराज होतीं. अपनी बुलंद आवाज में बहू को खूब फटकारतीं, ताने देतीं, ‘‘आजकल की लड़कियों को कामकाज की आदत ही नहीं है. एक हम थे. चूल्हा जलाने से ले कर घर लीपने तक के काम अकेले करते थे. यहां गैस जलाओ तो थकान होती है और यह छोकरा तो देखो, क्या आगेपीछे मंडराता है बीवी के? उस के इशारे पर नाचता रहता है. बहू, यह सब मुझे पसंद नहीं है, कहे देती हूं…’’

सुकांता गुस्से से जल कर राख हो जाती, लेकिन कुछ कह नहीं सकती थी.

ऐसे ही एक दिन जब महरी नहीं आई तो मैं ने कपड़ों के साथ सुकांता की साड़ी भी निचोड़ डाली. बूआजी देख रही हैं, इस का फायदा उठाते हुए ऊंची आवाज में कहा, ‘‘कपड़े मैं ने धो डाले हैं. तुम फैला देना, सुकांता…मुझे दफ्तर को देर हो रही है.’’

‘‘जोरू का गुलाम, मर्द है या हिजड़ा?’’ बूआजी की गाली दनदनाते हुए सीधे सुकांता के कानों में…

मैं अपना बैग उठा कर सीधे दफ्तर को चला.

बूआजी अपनी काशी यात्रा पूरी कर के वापस अपने घर पहुंच गई हैं. मैं शाम को दफ्तर से घर लौटा हूं. मजे से कुरसी पर पसर कर पुस्तक पढ़ रहा हूं. सुकांता बाजार गई है. बच्चे खेलने गए हैं. चाय का खाली कप लुढ़का पड़ा है. पास में रखे ट्रांजिस्टर से शास्त्रीय संगीत की स्वरलहरी फैल रही है.

अब चिंता की कोई बात नहीं है. सुख जिसे कहते हैं, वह इस के अलावा और क्या होता है? और जिसे सुखी इनसान कहते हैं, वह मुझ से बढ़ कर और दूसरा कौन होगा?

फैस्टिव सीजन में साड़ी को दे मौर्डन ट्विस्ट, इस तरह करें कैरी

फैस्टिव सीजन शुरू हो चुका है. ऐसे में अपने लुक को खास और खूबसूरत दिखाने के लिए आप की पहली चौइस साड़ी ही होती है. और हो भी क्यों न, साड़ियां सालों से सुंदरता और परंपरा का प्रतीक रही हैं और हर फैस्टिवल और इवेंट के लिए परफैक्ट होती हैं.

लेकिन अब बदलते फैशन के हिसाब से साड़ियों में भी कई ट्रैंड देखने को मिल रहे हैं. तो क्यो न मौर्डन जमाने के साथ चलते हुए आप भी इस फैस्टिवल पर ट्रैडिशनल साड़ी में मौर्डन टच दे कर अपने लुक में स्टाइल का तड़का लगाएं. जो आप को स्टाइलिश और ट्रैंडिंग दिखाए.

फैशन डिजाइनर प्रगति नागपाल (लेबल मस्तानी) का कहना है, “फैस्टिव सीजन में साड़ी ही एक ऐसा आउटफिट है जो हर महिला पर परफैक्ट लगता है. लेकिन समय और फैशन के हिसाब से साड़ी में कई बदलाव हुए हैं. आजकल फ्यूजन साड़ियों का ट्रैंड देखने को मिल रहा है. आप भी इन बदलाव को फौलो कर फैस्टिव सीजन में कुछ ऐसा ट्राई करें, जिस से आप भी इस खास मौके पर स्टाइलिश और ट्रैंडिंग नजर आएं.”

साड़ी को दे मौर्डन ट्विस्ट

बदलते फैशन के ट्रैंड में अब ट्रैडिशनल साड़ियां नए रूप में सामने आ रही हैं. चाहे आप प्री ड्रेप्ड साड़ियों का ऐलिगेंट लुक पसंद करती हों या फिर इंडो वैस्टर्न फैशन का फ्यूजन, साड़ी हर फैशन के लिए परफैक्ट औप्शन है.

इंडो वैस्टर्न पेंट स्टाइल साड़ी

इंडो वैस्टर्न आउटफिट है, ट्रैडिशनल इंडियन और वेस्टर्न आउटफिट दोनों को एकसाथ जोड़ता है. पैंट स्टाइल की साड़ी उन फैशनपरस्त महिलाओं के लिए आदर्श है जिन का इंडियन ट्रैडिशनल ड्रैसेज के प्रति लगाव है. इस स्टाइल में नौरमल पेटीकोट के बजाय पैंट या लैगिंग के ऊपर साड़ी ड्रेप करना शामिल है जिस से एक स्टाइलिश फ्यूजन लुक तैयार होता है जो महिलाओं को खूब पसंद आता है. इस साड़ी ड्रैस में 3 चीजें होती हैं. पेंट साड़ी और टौप. यह एक कमरबंद के साथ आता है. इसशमें साड़ी को बौडी के चारों ओर लपेट कर सोल्डर के ऊपर पल्लू की तरह सैट किया जाता है. फिर इस में एक फिटेड शौर्ट स्लीव्स लेस वाला टौप जैसा ब्लाउज साड़ी और पेंट की मैचिंग का कैरी किया जाता है.

स्टाइलिश धोती साड़ी

ये मार्केट में डिफरैंट कलर, पैटर्न और डिजाइन में मिल जाती हैं. धोती साड़ी पहनने में बहुत स्टाइलिश लगती है. इस साड़ी के नीचे पेटीकोट नहीं पहना जाता बल्कि इस में आप लैगिंग या फिर टाइट पजामी को पहन सकती हैं. जैंट्स द्वारा पहनी जाने वाली ट्रैडिशनल धोती से इंस्पायर्ड इस स्टाइल में साड़ी को धोती जैसा बनाया जाता है, जिस में पैरों के बीच प्लीट्स को टक किया जाता है और पल्लू को कंधे पर लपेटा जाता है.

लहंगा स्टाइल साड़ी

लहंगा स्टाइल ड्रेपिंग मौर्डन स्टाइल है, जो साड़ी को लहंगे के स्टाइल के साथ मिलाती है. साड़ी को लहंगे की स्कर्ट की तरह ड्रेप किया जाता है, जिस में पल्लू लैफ्ट सोल्डर पर होता है. खास मौकों के लिए यह स्टाइल परफैक्ट है.

गाउन स्टाइल साड़ी

आप फ्लोर लेंथ वाली इंडो वैस्टर्न साड़ी ट्राई कर सकती हैं. इस में ए कट गाउन होता है. इस के ऊपर से गाउन से मैचिंग साड़ी पल्लू को ऊपर से शोल्डर पर टक करें और कमर पर बेल्‍ट लगा कर स्‍टाइलिश लुक दें.

स्लिट कट स्टाइल साड़ी

इस ट्रैडिशनल आउटफिट में थाई हाई स्लिट दे कर इसे मौर्डन और ट्रैंडी लुक दिया जा रहा है. ये रेडीमेड साड़ियां अलगअलग पार्ट्स में आती हैं जिसे टक कर के थाई हाई स्लिट बना सकते हैं. अगर आप इस साड़ी को और भी अक्ट्रैटिव बनाना चाहती हैं तो ब्रोकेट के औफ सोल्डर ब्लाउज के साथ पहनें. ध्यान रहे हैवी थाइज पर स्मौल स्लिट पहनें.

कस्टमाइज फिश टेल साड़ी

फिश टेल वाली साड़ी को नया और खास स्टाइल देने के लिए आप स्ट्रैपलेस ब्रालेट ब्‍लाउज के साथ कैरी करें और ब्लाउज डिजाइन को फ्लौंट करने के लिए आप काउल स्‍टाइल में पल्लू को ड्रैप कर सकती हैं.

अगर आप अपनी पसंद के अनुसार कोई साड़ी डिजाइन करवाना चाहती हैं तो कस्टमाइज साड़ी आप को मार्केट में कई वैरायटी में आसानी से मिल जाएंगी, नहीं तो आप अपने टेलर से डिजाइन दे कर भी उसे बनवा सकती हैं.

प्री ड्रैप्ड साड़ियां दें मौर्डन ट्विस्ट

आज की महिलाएं फैस्टिवल पर साड़ियां पहनना तो चाहती हैं लेकिन समय की कमी की वजह से ड्रैप करने में उन्हें दिक्कत होती है. ऐसी महिलाओं के लिए मार्केट में प्री ड्रैप्ड साड़ियां उपलब्ध हैं. ये साड़ियां बनीबनाई होती हैं, जिस में प्लीट बना कर सिल दिया जाता है.

इन साड़ियों को आप आसानी से पहन सकती हैं. चाहे वह कैजुअल आउटिंग हो या कोई फंक्शन हो, प्री ड्रैप्ड साड़ियां आसानी से पहनने और स्टाइलिश दिखने का एक शानदार तरीका है.

स्‍टाइलिश और ऐलिगेंट साड़ियां

आजकल साड़ी को डिफरैंट स्टाइल में ड्रैप किया जा रहा है. इस के अलावा अगर आप को साड़ी ड्रैप करना नहीं आता तो आप को प्री ड्रैप स्‍टाइलिश और ऐलिगेंट साड़ियां भी मार्केट से मिल जाएंगी. इन्‍हें ड्रैप करना बहुत आसान होता है.

मौर्डन प्लीटिंग वाली साड़ियां

आप पारंपरिक तरीके से साड़ी पहनने का आनंद लेती हैं लेकिन कुछ नया करना चाहती हैं, तो मौर्डन प्लीटिंग तकनीक से तैयार की गई साड़ियों को कैरी कर सकती हैं. इस लुक में आप पल्लू को औफ सैंटर कर के तिरछा रहने दें. इस मौर्डन, ग्लैमरस लुक को और निखारने के लिए पल्लू को बेल्ट या पिन के साथ बांध लें.

जैकेट स्टाइल साड़ी

आजकल इस तरह की साड़ी ट्रैंड में हैं. इस में साड़ी को ओवरआल एक ड्रैस जैसा लुक मिलता है. इन में भी हैवी लुक के लिए ब्रोकेड या सिल्क, रा सिल्क या हैवी ऐंब्रौयडरी के जैकेट पहने जाते हैं जबकि सिंपल लुक के लिए जौर्जेट, शिफौन, प्रिंटेड सिल्क या मल कौटन के श्रग जैसे जैकेट्स पसंद किए जा रहे हैं.

इंडो वैस्टर्न साड़ी

इंडो वैस्‍टर्न लुक के लिए साड़ी की लोअर प्‍लेट्स तो बेसिक तरीके से ड्रेप करें मगर शोल्‍डर प्‍लेट्स को कंधे पर कैरी करने की जगह अपने हाथों में फोल्‍ड करे. साड़ी ड्रैपिंग का यह अंदाज आजकल काफी ट्रैंड में है. इस तरह की साड़ी में स्टाइलिश और डिजाइनर ब्लाउज डिजाइन करवा सकती हैं और उसे फ्लौंट कर सकती हैं. आप ब्‍लाउज की जगह क्रौप टौप या फिर शौर्ट कुरती भी कैरी कर सकती हैं.

मरमेड साड़ी ड्रैपिंग

यह एक ग्लैमरस और मौर्डन ड्रैप है जो साड़ी को एक स्लिक, फिगर हगिंग लुक और बैस्ट बनाता है. इस स्टाइल में साड़ी को कमर और कूल्हों के चारों ओर कस कर लपेटा जाता है, जिस में प्लीट्स को मरमेड की पूंछ जैसा दिखने के लिए टक किया जाता है और पल्लू बाएं कंधे पर लपेट दिया जाता है.

प्लाजो साड़ी ड्रैपिंग

प्लाजो साड़ी ड्रैपिंग एक फ्यूजन स्टाइल है जो साड़ी की शान और प्लाजो पैंट को जोड़ती है. इस स्टाइल में साड़ी को प्लाजो पैंट के ऊपर पहना जाता है और पल्लू को बाएं कंधे पर लपेटा जाता है जिस से यह फौरमल और इनफौरमल दोनों अवसरों के लिए बैस्ट है.

बेल्टेड साड़ी ड्रैपिंग स्टाइल

बेल्ट वाली साड़ी ड्रैपिंग स्टाइल एक कंटेंपररी ट्विस्ट है जो ट्रैडिशनल साड़ी में स्ट्रक्चर और स्टाइल को ऐड करता है. इस स्टाइल में साड़ी को लपेटने के बाद कमर को कसने के लिए बेल्ट लगाई जाती है, जिस से पल्लू तो सैट रहता ही है, कमर को उभारने में मदद मिलती है.

बेल्ट वाली साड़ी का स्टाइल वर्सेटाइल है, क्योंकि इसे कई साड़ियों जैसे सिल्क साड़ियों, शिफौन साड़ियों और जौर्जेट साड़ियों के साथ ऐड किया जा सकता है, जिस से यह 2024 में एक ट्रैंडी विकल्प औप्शन बन जाएगा.

डबल साड़ी ड्रैपिंग स्टाइल

डबल साड़ी ड्रैपिंग स्टाइल एक यूनिक और डिटेल्ड स्टाइल है. इस में 2 साड़ियों को यूज किया जाता है. यह स्टाइल एक लेयर्ड लुक बनाता है, जिस में पहली साड़ी ट्रैडिशनल रूप से ड्रैप की जाती है और दूसरी साड़ी उस के ऊपर कौंप्लिमैंटरी स्टाइल में ड्रैप की जाती है. दूसरी साड़ी का पल्लू सोल्डर पर लपेटा जाता है, जिस से उस में वौल्यूम आ जाता है।

दुपट्टा साड़ी ड्रैपिंग स्टाइल

दुपट्टा साड़ी ड्रैपिंग स्टाइल ट्रैडिशनल साड़ी ड्रैपिंग का मिक्सचर है जिस में दुपट्टा ऐड कर एक बेहतर लुक दिया जाता है. इस स्टाइल में साड़ी को बेसिक मैथेड से ड्रैप किया जाता है, जिस में दुपट्टा या तो पल्लू के ऊपर या फिर सिर और कंधों पर अलग से डाला जाता है.

साड़ी के साथ मौर्डन स्टाइल में ऐक्सेसरीज

परफैक्ट ऐक्सेसरीज आप की साड़ी को स्टेटमैंट इयररिंग्स, बेल्ट्स और स्टाइलिश क्लच आप के लुक में एक मौडर्न टच दे सकता है. इसलिए ज्वैलरी के साथ ऐक्सपेरिमैंट्स करना न भूलें. इस से आप का फैशन का लुक पूरा हो सकेगा और आप परफैक्ट दिखेंगी.

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