Crime Story in Hindi: सजा- रिया ने क्या किया

Crime Story in Hindi: ‘विश्वासघातवहीं होता है जहां विश्वास होता है,’ यह सुनीसुनाई बात रिया को आज पूरी तरह सच लग रही थी. आधुनिक, सुशिक्षित, मातापिता की इकलौती सुंदर, मेधावी संतान रिया रोरो कर थक चुकी थी. अब वास्तविकता महसूस कर होश आया तो किसी तरह चैन नहीं आ रहा था. अपने मातापिता विक्रम और मालती से वह अपना सारा दुख छिपा गई थी. तनमन की सारी पीड़ा खुद अकेले सहन करने की कोशिश कर रही थी. पिछले महीने ही विक्रम को हार्टअटैक हुआ था. रिया अब अपने मातापिता को 15 दिन पहले अपने साथ हुए हादसे के बारे में बता कर दुख नहीं पहुंचाना चाहती थी.

रात के 2 बज रहे थे. आजकल उसे नींद नहीं आ रही थी. रातभर अपने कमरे में सुबकती, फुफकारती घूमती रहती थी. बारबार वह काला दिन याद आता जब वह संडे को अपनी बचपन की सहेली सुमन के घर एक बुक वापस करने गई थी.

रिया को बाद में अपनी गलती का एहसास हुआ था कि उसे सुमन से फोन पर बात करने के बाद ही उस के घर जाना चाहिए था. पर कितनी ही बार दोनों एकदूसरे के घर ऐसे ही आतीजाती रहती थीं. सहारनपुर में पास की गलियों में ही दोनों के घर थे. स्कूल से कालेज तक का साथ चला आ रहा था. सुमन से 2 साल बड़े भाई रजत को रिया भी बचपन से भैया ही बोलती आ रही थी. उस दिन जब वह सुमन के घर गई तो दरवाजा रजत ने ही खोला. वह सुमनसुमन करती अंदर चली गई. उस के घर के अंदर जाते ही रजत ने मेन गेट बंद कर ड्राइंगरूम का दरवाजा भी लौक कर लिया.

रिया ने पूछा, ‘‘सुमन कहां है, भैया?’’

रजत उसे घूर कर देखता हुआ मुसकराया, ‘‘सब शौपिंग पर गए हैं… घर पर कोई नहीं है.’’

‘‘ओह, आप ने बाहर बताया ही नहीं, चलती हूं. फिर आऊंगी.’’

रजत ने आगे बढ़ कर उसे बांहों में भर लिया, ‘‘चली जाना, जल्दी क्या है?’’

रिया को करंट सा लगा, ‘‘भैया, यह क्या हरकत है?’’

‘‘यह हरकत तो मैं कई सालों से करना चाह रहा था, पर मौका ही नहीं मिला रहा था.’’

‘‘भैया, शर्म कीजिए.’’

‘‘यह भैयाभैया मत करो…भाई नहीं हूं मैं तुम्हारा, सम4ां?’’

रिया को एहसास हो गया कि वह खतरे में है. उस ने अपनी जींस की जेब से मोबाइल फोन निकालने की कोशिश की तो रजत ने उसे छीन कर दूर फेंक दिया और फिर उसे जबरदस्ती उठा कर अपने बैडरूम में ले गया. रिया ने बहुत हाथपैर मारे, रोईगिड़गिड़ाई पर रजत की हैवानियत से खुद को नहीं बचा पाई. बैड पर रोतीचिल्लाती रह गई.

रजत ने धूर्ततापूर्वक कहा, ‘‘मैं बाहर जा रहा हूं, तुम भी अपने घर चली जाओ, किसी से कुछ कहने की बेवकूफी मत करना वरना मैं सारा इलजाम तुम पर ही लगा दूंगा… वैसे भी तुम इतनी मौडर्न फैमिली से हो और हम परंपरावादी परिवार से हैं, सब जानते हैं… कोई तुम पर यकीन नहीं करेगा. चलो, अब अपने घर जाओ. और रजत कमरे में चला गया.

रिया को अपनी बरबादी पर यकीन ही नहीं हो रहा था. जोरजोर से रोए जा रही थी. फिर अपने अस्तव्यस्त कपड़े संभाले और बेहद टूटेथके कदमों से अपने घर चली गई.

दोपहर का समय था. विक्रम और मालती दोनों सो रहे थे. रिया चुपचाप अपने कमरे में जा कर औंधे मुंह पड़ी रोतीसिसकती रही.

शाम हो गई. मालती उस के कमरे में आईं तो वह सोई हुई होने का नाटक कर

चुपचाप लेटी रही. एक कयामत सी थी जो उस पर गुजर गई थी. तनमन सबकुछ टूटा व बिखरा हुआ था. रात को वह अपने मम्मीपापा के कहने पर बड़ी मुश्किल से खुद को संभाल कर उठी. थोड़ा सा खाना खाया, फिर सिरदर्द बता कर जल्दी सोने चली गई.

बारबार उस का मन हो रहा था कि वह अपने मम्मीपापा को अपने साथ हुए हादसे के बारे में बता दे पर डाक्टर ने उस के पापा विक्रम को किसी भी टैंशन से दूर रहने के लिए कहा था. मां मालती को बताती तो वे शायद पापा से छिपा न पाएंगी, यह सोच कर रिया चुप रह गई थी. अगले दिन सुमन कालेज साथ चलने के लिए आई तो रिया ने खराब तबीयत का बहाना बना दिया. वह अभी कहां संभाल पा रही थी खुद को.

रिया मन ही मन कु्रद्ध नागिन की तरह फुफकार रही थी. उसे रजत की यह बात तो सच लगी थी कि समाज की दूषित सोच उसे ही अपराधी ठहरा देगी. वैसे भी उस के परिवार की आधुनिक सोच आसपास के रहने वालों को खलती थी. विक्रम और मालती दोनों एक कालेज में प्रोफैसर थे. आंखें बंद कर के न किसी रीतिरिवाज का पालन करते थे, न किसी धार्मिक आडंबर का उन के जीवन में कोई स्थान था. 3 लोगों का परिवार मेहनत, ईमानदारी और अच्छी सोच ले कर ही चलता था. रिया को उन्होंने बहुत नए, आधुनिक, सकारात्मक व साहसी विचारों के साथ पाला था.

रिया मन ही मन खुद को तैयार कर रही थी कि वह अपने साथ हुए रेप के अपराधी को ऐसे नहीं छोड़ेगी. वह अपने हिसाब से उस अपराधी को ऐसी सजा जरूर देगी कि उस के जलते दिल को कुछ चैन आए. मगर क्या और कैसी सजा दे, यह सोच नहीं पा रही थी. कभी अपनी बेबसी पर तड़प कर रो उठती थी, तो कभी अपना मनोबल ऊंचा रखने के लिए सौ जतन करती थी.

रजत को सबक सिखाने के रातदिन उपाय सोच रहती थी. कभी मन होता कि रजत को इतना मारे कि उस के हाथपैर तोड़ कर रख दे पर शरीर से कहां एक मजबूत जवान लड़के से निबट सकती थी. फिर अचानक इस विचार ने सिर उठाया कि क्यों नहीं निबट सकती? आजकल तो हमारे देश की लड़कियां लड़कों को पहलवानी में मात दे रही हैं. फिर पिछले दिनों देखी ‘सुलतान’ मूवी याद आ गई. क्यों? वह क्यों नहीं शारीरिक रूप से इतनी मजबूत हो सकती कि अपने अपराधी को मारपीट कर अधमरा कर दे. हां, मैं हिम्मत नहीं हारूंगी.

मैं कोई सदियों पुरानी कमजोर लड़की नहीं कि सारी उम्र यह जहर अकेली ही पीती रहूंगी. रजत को उस के किए की सजा मैं जरूर दूंगी. यह एक फैसला क्या किया कि हिम्मत से भर उठी. शीशे में खुद को देखा. उस दिन के बाद आज पहली बार किसी बात पर दिल से मुसकराई थी. उस रात बहुत दिनों बाद आराम से सोई थी.

सुबह डाइनिंगटेबल पर उसे हंसतेबोलते देख विक्रम और मालती भी खुश हुए. विक्रम ने कहा भी, ‘‘आज बहुत दिनों बाद मेरी बच्ची खुश दिख रही है.’’

‘‘हां पापा, कालेज के काम थे…एक प्रोजैक्ट चल रहा था.’’

मन ही मन रिया अपने नए प्रोजैक्ट की तैयारी कर चुकी थी. पूरी प्लैनिंग कर चुकी थी कि उसे अब क्याक्या करना है. उस ने बहुत ही हलकेफुलके ढंग से कहा, ‘‘मम्मी, मु4ो जिम जौइन करना है.’’

‘‘अरे, क्यों? तुम्हें क्या जरूरत है? इतनी स्लिमट्रिम तो हो?’’

‘‘हां, स्लिम तो हूं पर शरीर अंदर से भी तो मजबूत होना चाहिए और मम्मी जूडोकराटे की क्लास भी जौइन करनी है.’’

विक्रम और मालती ने हैरानी से एकदूसरे को देखा. फिर विक्रम ने कहा, ‘‘ठीक है, जूडोकराटे तो आजकल हर लड़की को आने ही चाहिए… ठीक है, जिम भी जाओ और जूडोकराटे भी सीख लो.’’

अगला 1 महीना रिया सारा आराम, चिंता, दुख भूल कर अपनी योजना को

साकार करने की कोशिश में जुटी रही. सुबह कालेज जाने से पहले हैल्थ क्लब जाती. प्रशिक्षित टे्रनर की देखरेख में जम कर ऐक्सरसाइज करती. शाम को जूडोकराटे की क्लास होती. शुरू में ऐक्सरसाइज करकर के जब शरीर टूटता, मनोबल मुसकरा कर हाथ थाम लेता. क्लास से आ कर पढ़ने बैठती. अब उस पर एक ही धुन सवार थी कि रजत को सबक सिखाना है. पर जब हिम्मत टूटने लगती, उस दुर्घटना के वे पल याद कर फिर उठ खड़ी होती.

2 महीने में रिया को अपने अंदर अनोखी स्फूर्ति महसूस होने लगी. अब खूब फ्रैश रह कर अपने रूटीन में व्यस्त रहती. सुमन से वह पहले की ही तरह मित्रवत व्यवहार कर रही थी पर उस दिन के बाद वह सुमन के घर नहीं गई थी.

एक दिन सुमन ने बताया, ‘‘संडे को भैया की सगाई है. तुम जरूर आना, खूब मजा करेंगे… भैया भी बहुत खुश हैं. होने वाली भाभी बहुत अच्छी हैं.’’

‘‘अरे वाह, जरूर आऊंगी,’’ रिचा ने कह कर मन ही मन बहुत सारी बातों का हिसाब लगाया. फिर सुमन से कहा, ‘‘अपने भैया का फोन नंबर देना. मैं उन्हें पर्सनली भी बधाई दे देती हूं.’’

‘‘हांहां, देती हूं.’’

शुक्रवार को रिया ने रजत को फोन किया, रजत हैरान हुआ. रिया ने कहा, ‘‘मैं आप से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘जो हुआ सो हुआ, अब इस बात के लिए सुमन और अपनी दोस्ती में कोई बाधा खड़ी नहीं करना चाहती.’’

‘‘हां, तो ठीक है, मिलने की क्या जरूरत है?’’

‘‘परसों आप की सगाई है, इस बात को खत्म करते हुए मैं पहले आप से मिलना चाहती हूं. आप जानते हैं सुमन मेरी बैस्ट फ्रैंड है. वह मु4ो बारबार बुलाती है, आप की सगाई, शादी में भी उसे मेरे साथ ऐंजौय करना है तो पहले एक बार मिलने का मन है, थोड़ा सहज होने के लिए.’’

‘‘ठीक है, कहां मिलना है?’’

‘‘कंपनी गार्डन के पिछले हिस्से में.’’

‘‘पर वहां तो कम ही लोग जाते हैं?’’

‘‘आप डर रहे हैं?’’

‘‘नहींनहीं, ठीक है, आता हूं.’’

‘‘तो कल शाम 6 बजे.’’

‘‘ठीक है.’’

रिया ने चैन की सांस ली. चलो आने के लिए तैयार तो हुआ. मना कर देता तो इतने दिनों की मेहनत खराब हो जाती. वैसे उस ने सोच लिया था अगर मिलने के लिए ऐसे न मानता तो वह सगाई वाले दिन उस की हरकत सब को बताने की धमकी देती. आना तो उसे पड़ता ही. रिया ने सुमन से भी फोन पर बातें कीं.

सुमन बहुत खुश थी. बोली, ‘‘तुम थोड़ा पहले ही आ जाना. बहुत ऐंजौय करेंगे… भैया भी आजकल बहुत अच्छे मूड में हैं.’’

‘‘हां, जरूर आऊंगी.’’

शनिवार शाम को जब रिया अपनी स्कूटी से कंपनी गार्डन पहुंची तो वहां

रजत पहले से ही था. उसे देख कर बेशर्मी से मुसकराया, ‘‘मु4ा से मिलने का इतना ही मन था तो घर आ जाती… सुमन और मम्मीपापा तो अकसर शौपिंग पर जाते हैं.’’

रिया ने नफरत की आग सी महसूस की अपने मन में. फिर बोली, ‘‘जो मन में था, उस के लिए ऐसी ही जगह चाहिए थी.’’

‘‘अच्छा, बोलो क्या है मन में?’’ कहते हुए रजत ने रिया की तरफ हाथ बढ़ाया ही था कि रिया ने आव देखा न ताव और शुरू हो गई. कई दिनों का लावा फूटफूट कर अंगअंग से बह निकला. उस के अंदर एक बिजली सी भर गई. उस ने रजत के प्राइवेट पार्ट पर जम कर एक लात मारी. रजत के मुंह से तेज चीख निकली. इसी बीच रिया ने रजत को नीचे पटक दिया था.

वह चिल्लाया, ‘‘क्या है यह… रुक बताता हूं तु4ो अभी.’’

मगर वह फिर कुछ बताने की स्थिति में कहां रहा. पिछले दिनों सीखे सारे दांवपेंच आजमा डाले रिया ने. रजत रिया का कोई मुकाबला नहीं कर पाया. रिया ने उसे इतना मारा कि उसे अपनी पसलियां साफसाफ टूटती महसूस हुईं. उस के चेहरे से खून बह चला था, होंठ फट गए थे, चेहरे पर मार के कई निशान पड़ गए थे.

वह जमीन पर पड़ा कराह उठा, ‘‘सौरी, रिया, माफ कर दो मु4ो.’’

उसे पीटपीट कर जब रिया थक गई, तब वह रुकी. फिर अपनी चप्पल निकाल कर उस के सिर पर मारी और फिर अपनी स्कूटी स्टार्ट कर वहां से निकल गई. विजयी कदमों से घर वापस आ गई.

विक्रम और मालती शाम की सैर पर गए थे. बहुत दिनों बाद रिया के मन को आज इतनी शांति मिली कि भावनाओं के आवेश में उस की आंखों से आंसू भी बह निकले. इतने दिनों से शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को मजबूत बनाने के लिए उस ने जीतोड़ मेहनत की थी जो आज रंग लाई थी. वह बहुत देर यों ही लेटी रही. कभी खुशी से रो पड़ती, तो कभी खुद पर हंस पड़ती.

मालती आईं, बेटी का चमकता चेहरा देख कर खुश हुईं. बोलीं, ‘‘आज बहुत खुश हो?’’

‘‘हां मम्मी, एक प्रोजैक्ट पर काम कर रही थी. आज पूरा हो गया.’’

‘‘वाह, गुड,’’ कहते हुए मालती ने उसे प्यार किया.

रिया फिर आराम से घर के कामों में मालती का हाथ बंटाने लगी.

रात को 10 बजे सुमन का फोन आया, ‘‘रिया, बहुत गड़बड़ हो गई.’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘सगाई स्थगित करनी पड़ी. शाम को कई गुंडों ने मिल कर भैया पर हमला कर दिया… पता नहीं कौन थे. उन के हाथ और पसलियों में फ्रैक्चर है. चेहरे पर भी बहुत चोटें लगी हैं… भैया हौस्पिटल में एडमिट हैं… उन्हें बहुत दर्द है,’’ कह कर सुमन सुबकने लगी.

‘‘ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ… मेरी कोई जरूरत हो तो बताना?’’

‘‘हां, अब रखती हूं,’’ सुबकते हुए सुमन ने फोन रख दिया.

अपने कमरे में अकेली खड़ी रिया सुन कर हंस पड़ी. ड्रैसिंग टेबल के सामने

खड़ी हो कर खुद से बोली कि कई गुंडों ने मिल कर? नहीं, एक बहादुर लड़की ही काफी है ऐसे इंसान से निबटने के लिए.

रिया अपने कमरे में उत्साहित सी घूम रही थी, अपने किए पर खुद अपनेआप को शाबाशी दे रही थी… काम भी तो ऐसा ही किया था. शाबाशी तो बनती ही थी.

‘‘रिया मन ही मन खुद को तैयार कर रही थी कि वह अपने साथ हुए रेप के अपराधी को ऐसे नहीं छोड़ेगी…’’

‘‘अब उस पर एक ही धुन सवार थी कि रजत को सबक सिखाना है. पर जब हिम्मत टूटने लगती, उस दुर्घटना के वे पल याद कर फिर उठ खड़ी होती…’’

Crime Story in Hindi

Online Shopping से वो मिलना भी आसान हुआ जो बाजारों में भी नहीं मिलता

Online Shopping: पुराने जमाने में खरीदारी मतलब था- बैग उठाओ, लिस्ट बनाओ, मार्केट जाओ, दुकानदारों से मोलभाव करो और फिर पसीना पोंछते हुए घर लौटो. अब जमाना बदल गया है. आज बस फोन उठाओ, ऐप खोलो, ‘ Add to Cart’ दबाओ और सामान सीधे दरवाजे पर! सबसे मजेदार बात यह है कि अब आपको वो सब मिल जाएगा जो आपके शहर के बड़े मार्केट्स या बड़ी दुकानों में कभीकभी नहीं मिल पाता है.

  1. घर बैठे इंटरनेशनल टूर

अब लंदन की चॉकलेट, कोरिया का स्किनकेयर, जापान के क्यूट खिलौने खरीदने के लिए विदेश जाने की जरूरत नहीं होती है बल्कि सब कुछ एक क्लिक में आपके पास आ जाता है वह भी बिना पासपोर्ट के. आप अपने ही देश के दूसरे शहरों की मशहूर चीजों को भी औनलाइन शौफिंग की मदद से मंगा लेते हैं.

  1. यूनिक चीजें, जिनकी चर्चा भी कम हो

कभी-कभी कुछ ऐसी चीजों को ढूंढने में नानी याद आ जाती है दुनिया भर के धक्के खाने पड़ते हैं. यहां तक कि ऑफलाइन जाकर किसी दुकानदार से पूछो – “भैया, यह मिल जाएगा?” तो वह ऐसे देखता है जैसे आपने मंगल ग्रह से आए एलियन का नाम ले लिया हो?

ऑनलाइन में ये परेशानी नहीं होती है वहां तो ऐसे प्रोडक्ट्स भी मिलते हैं, जिनका आपको पहले पता ही नहीं था.

  1. भारी थैले उठाने से छुट्टी

ऑफलाइन मार्केट में खरीदारी का मतलब होता है – शॉपिंग बैग्स का वजन उठाने के साथ ही भीड़ में धक्का खाना और साथ में शरीर से बहता पसीना भी परेशान करता है.

ऑनलाइन में बस ‘Order Placed’ होते ही और थैले उठाने का काम डिलीवरी बॉय का होता है.

  1. डिस्काउंट का तड़का

ऑफलाइन में दुकानदार से बीस या पचास रुपए कम कराने में भी आपको चिक चिक करनी पड़ेगी और फिर वह बोलेगा -“मैडम, ये फिक्स रेट है” लेकिन ऑनलाइन में तो आपको बिना मांगे डिस्काउंट मिल जाता है- “Congratulations! आपने 50% बचाए. ” बस, दिल खुश और जेब भी .

  1. रिव्यू, जो आंख खोल दें

ऑफलाइन में शापिंग करते समय बस भरोसा कर लीजिए, ये बेस्ट है यही लाइन आपको सुनाई देती है लेकिन ऑनलाइन में “4.8 स्टार, 2 हजार लोगों ने कहा बढ़िया है. अरे भई, जब इतनी भीड़ ने हां कह दी, तो मान लो.

ऑनलाइन शॉपिंग ने आराम का भी मजा दे दिया और स्मार्टनेस का भी. अब बड़े बाजार भी हर चीज की गारंटी नहीं देते, लेकिन इंटरनेट ने पूरी दुनिया आपके घर के ड्रॉइंग रूम में बिठा दिया है.

तो अगली बार जब कोई कहे,  “चलो बाज़ार चलते हैं”, आप मुस्कुराकर कहिए, “नहीं भाई, मैं तो बस एक क्लिक में पूरी दुनिया घूम आती हूं.”

Online Shopping

Life After Divorce: तलाक के बाद जिंदगी कैसे जीएं, सीखें सामंथा और नागा से

Life After Divorce: शादी के बाद जब रिश्ते नहीं संभल पाते हैं तो उसका नतीजा होता है तलाक. अगर आपको लगता है कि कपल्स के लिए तलाक सिर्फ कागज के टुकड़ों पर साइन करने जितना आसान है तो ऐसा नहीं है. तलाक के बाद डेली लाइफ में आए बदलाव के साथ ही यह स्‍वीकारना कि अब शादी टूट चुकी है, कई लोगों के लिए काफी कठिन होता है.

तलाक के बाद लाइफ को लेकर बहुत सारे सवाल खड़े हो जाते हैं. इन सवालों से डील करना भी मुश्किल काम है. लेकिन अगर आप बेहतर जीवन जीना चाहते हैं और खुद को खुश रखना चाहते हैं तो यहां दिए गए टिप्स को अपना कर आगे की जिंदगी को बेहतर बना सकते हैं.

कुछ तो लोग कहेंगे

जब भी किसी कपल का तलाक होता है, तो बातें बनाने वाले लोग तो जाने क्याक्या बोलते हैं. कई बार तो अपने घर के लोगों की बातें ही जीने नहीं देती. लेकिन आपने एक फैसला ले लिया है तो अब उसे लेकर शर्मिंदगी न महसूस करें क्योंकि कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना. आपको ये सब भूल कर और इग्नोर कर लाइफ में आगे बढ़ना होगा. जब आप पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा तो लोग भी कहना छोड़ देंगे.

किसी पर बोझ ना बनें

अगर आपने तलाक लिया है तो यह समय है आत्‍मनिर्भर बनने का. आप अपने घर वालों पर बोझ बनने की बजाय अपनी जिंदगी को अपने हाथ में लें और घर बाहर का काम खुद निबटाएं. इस तरह आप बिजी भी रहेंगे और आपका आत्मिवश्वास भी बढ़ता जाएगा, जिसकी आपको इस समय बहुत जरूरत होती है.

अपनी पसंद का कोई काम करें

अगर आप पहले से कोई जॉब करती हैं तो अच्छी बात है उसमें तरक्की करने की सोचें लेकिन अगर कुछ नहीं करती हैं तो करने के बारे में सोचें. भले ही आप आर्थिक रूप से मजबूत हो लेकिन फिर भी अपने पैरों पर खड़ा होना बहुत जरुरी है. अपनी किसी हॉबी को अपना प्रोफेशन बना लें. इससे आपका मनपसंद काम भी हो जायेगा और 4 पैसे भी घर आएंगे. इससे आपके कॉन्फिडेंस का लेवल ही कुछ और होगा.

परिवार के साथ तलाक के कारणों पर अब बातचीत न करें

जो बीत गया सो बीत गया. अब उनकी गलती थी या आपकी थी ये कोई मायने नहीं रखता. इससे सिर्फ तकलीफ ही होगी. बारबार इस बारे में सोचने या इस पर चर्चा करने से आप इस गम से कभी बहार नहीं आ पाएंगे. इसलिए अपने परिवार को अच्छी तरह से समझा दें कि अब आपके तलाक के विषय में कोई बातचीत नहीं होगी। उसे बारबार ना कुरेदा जाए. फैमिली के साथ बातचीत के लिए कोई नए टॉपिक लाएं, जब आप कहेंगे तो वह भी समझेंगे और आपके तलाक का टॉपिक आप सभी लोगों की जिंदगी से खत्म हो जाएगा जो होना भी चाहिए.

अपने इमोशंस को दबाएं नहीं

सेपरेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर आपके अंदर नकारात्‍मक विचार आ रहे हैं और आप एंग्‍जाइटी या डर महसूस कर रहें हैं तो इसे दबाने से बेहतर होगा कि आप इसे स्‍वीकारें और किसी के साथ शेयर करें. याद रखिए कि जब तक आप भावनाओं को छिपाएंगे या स्‍वीकारेंगे नहीं, तब तक आप परेशान रहेंगे. इसके लिए आप विशेषज्ञों की मदद ले सकते हैं.

अकेले भी खुशियां मनाई जा सकती है

कई लोगों को लगता है अब अकेले कैसे जीवन काटें. अकेले तो कहीं घूमने भी नहीं जा सकते. लेकिन ऐसा नहीं है अगर बच्चे हैं तो उन्हें सहारा बना लें. अगर नहीं है तो तो सोलो ट्रिप पर भी जा सकते हैं. एक बार जा कर तो देखें शांति से ट्रिप एंजौय करने का मजा ही कुछ और है. अब हर वक्त किसी की चिकचिक नहीं रहेगी. फेस्टिवल है तो भी आप अपने परिवार और दोस्तों में खुश रहें. अगर आप प्रयास करें तो जीवन में हर खुशियां संभव है. आप तलाक को जीवन में एक अवसर की तरह देखें और खुद को एक्‍सप्‍लोर करें.

तलाक के बाद बच्चों का पिता मिलने आएं, तो मुंह न बनायें

तलाक के बाद बच्चे हैं और बच्चे मां के पास हैं, तो भी पिता उनसे मिलता रहेगा, उन्हें छोड़ने जाएगा और लेने भी आयेगा, लेकिन उस सब को ऐसे हैंडल करो जैसे आपके घर में कोई एक AC की सर्विस करने आता है. उसको देखते ही मुंह न बनाये . बच्चों को बोले पापा के साथ जाएं. अब वह आपके लिए कुछ नहीं है तो उन्हें पहले के रिश्ते से न नापें. अब वह केवल आपके बच्चों के बाप है. जो भी आप दोनों के बीच हुआ उसका नतीजा ही यह डिवोर्स है. अब उन्हें सजा देने के चक्कर में नहीं पड़ें. खुद भी आगे बढ़ें और उन्हें भी बढ़ने दें.

सेलिब्रेटीज से सीखें तलाक के बाद नई शुरुआत

फिल्म एक्टर रितिक रोशन-सुजैन खान, मलाइका अरोड़ा-अरबाज खान, आमिर खान-किरण राव जैसे कई सेलेब्स का डिवोर्स यह सिखाता है कि तलाक जिंदगी का अंत नहीं बल्कि नई शुरुआत है. साउथ इंडिया की पौपुलर एक्टर सामंथा रुथ प्रभु ने नागा चैतन्य से डिवोर्स के बाद के बाद अपने शादी के सामानों का मेकओवर कर दिया. इन्होने न सिर्फ अपने वेडिंग गाउन को ब्लैक ड्रेस में तब्दील करवाया और अपनी एंगेजमेंट रिंग को पेंडेंट के रूप में डिजाइन करा दिया.

उन्होंने अपने शादी के सामानों को डिवोर्स के साथ जलाया या फेंका नहीं बल्कि उसे रीयूज किया. ऐसा करके उन्होंने सोसाइटी को यह मैसेज दिया कि तलाक कोई टैबू नहीं है और वह कोई अबला नारी नहीं है जो कोने में बैठकर आंसू बहायेगी. यहीं नहीं मशहूर टेलीविजन प्रोड्यूसर और एक्टर रघु राम तलाक के बाद पार्टी कर चुके हैं. हॉलीवुड एक्ट्रेस किम कार्दशियन, केटी होम्स और सिंगर रेहाना भी डिवोर्स के बाद जश्न मना चुकी हैं. इसलिए आप भी अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ें और खुश रहने के बहाने खोजें.

Life After Divorce

John Abraham क्यों नहीं बनाना चाहते ‘छावा’, ‘कश्मीर फाइल्स’ जैसी मूवीज

John Abraham: बॉलीवुड के हैंडसम हंक और सेक्सी हीरो कहलाने वाले मॉडल और एक्टर जॉन अब्राहम ने एक एक्टर के रूप में ‘धूम’ , ‘जिस्म’ , ‘दोस्ताना’ ,’पठान’, ‘न्यूयॉर्क’, ‘शूटआउट एट वडाला, जैसी कई हिट फिल्में की. बतौर फिल्म निर्माता जॉन ने आयुष्मान खुराना अभिनीत ‘विकी डोनर’, ‘मद्रास कैफे’, ‘बाटला हाउस’, ‘सत्यमेव जयते’, ‘अटैक पार्ट 1’, और ‘वेदा’ जैसी एक से बढ़ कर एक मूवीज भी दर्शकों को दी है.

अब जॉन अब्राहम अपनी नई फिल्म ‘तेहरान’ को लेकर चर्चा में है जो zee5 में रिलीज हुई है. ‘तेहरान’ के प्रमोशन के दौरान जब जॉन अब्राहम से बॉलीवुड की सबसे चर्चित फिल्में ‘छावा’ और ‘कश्मीर फाइल्स’ को लेकर सवाल किया गया कि अगर उनको मौका मिले तो वह राजनीति पर आधारित कौन सी फिल्म बनाना चाहेंगे?

इसका जवाब जॉन अब्राहम ने गंभीरता से देते हुए कहा कि मैं एक जिम्मेदार फिल्म मेकर हूं, मैं वही फिल्में बनाना पसंद करता हूं जो राजनीति से प्रभावित नहीं है क्योंकि मैं कोई पॉलीटिशियन नहीं हूं बल्कि एक फिल्म मेकर हूं और मेरा मकसद दर्शकों का मनोरंजन करना है. मैं ‘छावा’ और ‘कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्में कभी नहीं बनाऊंगा जो राजनीतिक माहौल को लेकर लोगों को प्रभावित करने के इरादे से बनाई जाती है. मेरा मन कभी भी ऐसी फिल्में बनाने का नहीं हुआ.

जब कोई फिल्म ज्यादा राजनीतिक माहौल में लोगों को प्रभावित करने के इरादे से बनाई जाती है और वह सफल होती है तो मुझे डराता है क्योंकि इससे लोगों के सोचने का नजरिया बदलता है. दर्शकों का ऐसी फिल्मों को पसंद करना अच्छा संकेत नहीं है.साथ ही जॉन ने आज की सेंसरशिप पर भी कटाक्ष करते हुए कहा कि वो मेरे साथ हमेशा अच्छे रहे हैं,हमें सेंसरशिप की जरूरत नहीं है ,लेकिन जिस तरह से उसे नियंत्रण किया गया है, वो थोड़ा सवाल खड़े करता है.

मैं जब कोई फिल्म बनाता हूं तो उसकी पूरी जिम्मेदारी लेता हूं, मुझे जो चीज ठीक नहीं लगती मैं वो नहीं करता, क्योंकि मै नहीं चाहता कि मेरी फिल्मों के जरिए दर्शको को गलत संदेश जाए .

John Abraham

Vaginal Health: इन संकेतों को न करें इग्नोर, हो सकती है बीमारी की शुरुआत

Vaginal Health: वजाइना महिलाओं के शरीर का एक बेहद संवेदनशील और अहम हिस्सा है, जिसकी सेहत पर पूरा प्रजनन तंत्र निर्भर करता है. सीके बिरला अस्पताल, गुरुग्राम, में औब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलाजी स्पेशलिस्ट, डाक्टर अरुणा कालरा के मुताबिक, अगर आपकी वजाइना से असामान्य डिस्चार्ज हो रहा है, जलन हो रही है या बारबार इंफेक्शन होता है, तो ये सामान्य नहीं हो सकता.

वजाइनल डिस्चार्ज, बदबू, खुजली, सूजन और दर्द जैसे लक्षण छोटी समस्याओं से ले कर बड़ी बीमारियों जैसे पीसीओडी, यौन संक्रमण या यहां तक कि सर्वाइकल कैंसर की ओर इशारा कर सकते हैं. लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है, समय रहते अगर इन संकेतों को समझ लिया जाए, तो आप अपनी वजाइना की हेल्थ को बनाए रख सकती हैं और किसी भी बड़ी परेशानी से बच सकती हैं.

सामान्य और असामान्य वजाइनल डिस्चार्ज में फर्क जानें

हर महिला को वजाइनल डिस्चार्ज होता है, जो शरीर को साफ रखने का एक प्राकृतिक तरीका है. लेकिन जब ये डिस्चार्ज पीला, हरा या दुर्गंध वाला हो, तो ये चिंता की बात हो सकती है.

जलन, खुजली या पेन के साथ डिस्चार्ज होना संक्रमण, यीस्ट इन्फेक्शन या यौन संचारित रोग (STI) का संकेत हो सकता है. अगर ये लक्षण लगातार बने रहें, तो बिना देरी डाक्टर से सलाह लें.

 बारबार होने वाला इंफेक्शन एक चेतावनी है

अगर आप को हर महीने या थोड़ेथोड़े समय में बारबार वजाइना में इंफेक्शन हो रहा है, तो ये सामान्य नहीं है. यह शरीर की इम्युनिटी में कमी, हार्मोनल असंतुलन या पीसीओडी जैसे रोगों की शुरुआत का संकेत हो सकता है.

इस के अलावा साफसफाई की कमी या गलत अंडरगारमेंट्स का इस्तेमाल भी कारण हो सकता है. बारबार इंफेक्शन को हल्के में न लें, विशेषज्ञ की राय लें.

वजाइनल दर्द को नजरअंदाज करना हो सकता है खतरनाक

महिलाएं अक्सर वजाइनल दर्द को पीरियड्स या थकान से जोड़कर अनदेखा कर देती हैं. लेकिन अगर ये दर्द लगातार हो रहा है या सेक्स के दौरान होता है, तो यह एंडोमेट्रियोसिस, फाइब्राइड या सर्वाइकल इन्फेक्शन जैसे रोगों की ओर इशारा कर सकता है.

दर्द अगर रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है, तो बिना झिझक डाक्टर से जांच कराएं.

हेल्दी वजाइना के लिए क्या है जरूरी?

वजाइना को हेल्दी बनाए रखने के लिए साफसफाई बेहद जरूरी है. हमेशा काटन के अंडरवियर पहनें, हार्श केमिकल वाले साबुन या स्प्रे का इस्तेमाल न करें, और पीरियड्स के दौरान पैड को समय पर बदलें.

ज्यादा मीठा खाना और टाइट कपड़े भी वजाइनल हेल्थ पर असर डालते हैं. साथ ही साल में एक बार पैप स्मीयर टेस्ट जरूर करवाएं ताकि किसी भी गंभीर बीमारी को शुरुआती स्तर पर पकड़ा जा सके.

Vaginal Health

Rajesh Khanna: निधन के बाद घर से मिले गिफ्ट्स से भरे 64 सूटकेस

Rajesh Khanna: फिल्म इंडस्ट्री मानती है कि बॉलीवुड के पहले राजेश खन्ना थे , इन्होंने ही सुपरस्टार की परंपरा शुरू की. राजेश खन्ना की पौपुलरिटी का यह आलम था की लड़कियां उनकी कार के सामने लेट जाती थी, ताकि एक बार राजेश खन्ना के दीदार हो सके. इतना ही नहीं कई दीवानी लड़कियां राजेश खन्ना के नाम का सिंदूर अपनी मांग में भरती थी. एक्टर राजेश खन्ना ने सिनेमा की दुनिया में कई सालों तक राज किया है, वह पहले एक्टर थे जो न सिर्फ शाही जिंदगी जीते थे, बल्कि शुरुआती करियर में ही फिल्म की शूटिंग की जगह पर महंगी कार से पहुंचते थे.

महंगी कारों में ही वह इंटरव्यू देने भी जाया करते थे. 1966 में ‘आखिरी खत’ से डेब्यू करने वाले राजेश खन्ना ने ‘आराधना’, ‘कटी पतंग’, ‘आनंद’, ‘अमर प्रेम’, ‘आन मिलो सजना’, ’दाग’, ’नमक हराम’ जैसी अनगिनत हिट फिल्में दी थी.

शुरू से ही अमीर घर से ताल्लुक रखने वाले राजेश खन्ना 18 जुलाई 2012 को इस दुनिया को अलविदा कह कर चले गए. इसके बाद उनके बंगले से 64 तोहफे से भरे सूटकेस मिले, जो उन्होंने अपने जीते जी नहीं खोले थे. यह सभी ज्यों का त्यों राजेश खन्ना के आशीर्वाद बंगले से रखे थे.

लेखक गौतम चिंतामणि ने राजेश खन्ना की जीवनी पर लिखी किताब ‘डार्क स्टार’ में इस बात का जिक्र कियाा है कि राजेश खन्ना जब भी विदेश घूमने जाते थे वहां से महंगे उपहार लेकर आते थे, जो अपने प्रियजनों को नहीं देने की बजाय सूटकेस में ही रह जाते थे. अभिनेता के निधन के बाद उनके बंगले आशीर्वाद में वही 64 पैक्ड सूटकेस प्राप्त हुए, जो गिफ्ट से भरे हुए थे लेकिन आखिरी वक्त में राजेश खन्ना अकेले रहते थे कैंसर जैसी बीमारी होने के बावजूद सिगरेट पीना नहीं छोड़ते थे. उनकी पत्नी डिंपल कपाड़िया और दो बेटियां ट्विंकल खन्ना और रिंकी खन्ना भी पिता के साथ नहीं रहती थी.

लाखों के गिफ्ट लोगों को बांटने वाले लाखों दिलों की धड़कन कहलाने वाले राजेश खन्ना आखिरी दिनों में तन्हा थे और कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से जूझ रहे थे. आखिरी दिनों में वह कीमो थेरेपी ले कर कैंसर से लड़ने की भरसक कोशिश कर रहे थे . शाही जिंदगी जीने वाले राजेश खन्ना के बंगले से मिले महंगे गिफ्ट से भरे 64 सूटकेस यह बताता है कि यह सिनेस्टार मन ही मन काफी भावुक था शायद इसी वजह से वह सबके लिए तोहफे लाता था लेकिन उसे किसी को दे नहीं पाया. आखिरी दिनों में अपने दर्द को वह अकेले ही झेलता रहा.

Rajesh Khanna

Moral Story in Hindi: मजुरिया का सपना- कैसे पूरा हुआ उस का सपना

Moral Story in Hindi: ‘‘बहनजी, इन का भी दाखिला कर लो. सुना है कि यहां रोज खाना मिलता है और वजीफा भी,’’ 3 बच्चों के हाथ पकड़े, एक बच्चा गोद में लिए एक औरत गांव के प्राइमरी स्कूल में बच्चों का दाखिला कराने आई थी.

‘‘हांहां, हो जाएगा. तुम परेशान मत हो,’’ मैडम बोली. ‘‘बहनजी, फीस तो नहीं लगती?’’ उस औरत ने पूछा.

‘‘नहीं. फीस नहीं लगती. अच्छा, नाम बताओ और उम्र बताओ बच्चों की. कौन सी जमात में दाखिला कराओगी?’’ ‘‘अब बहनजी, लिख लो जिस में ठीक समझो.‘‘बड़ी बेटी का नाम मजुरिया है. इस की उम्र 10 साल है. ये दोनों दिबुआ और शिबुआ हैं. छोटे हैं मजुरिया से,’’ बच्चों की मां ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘नाम मंजरी. उम्र 8 साल. देव. उम्र 7 साल और शिव. उम्र 6 साल. मजुरिया जमात 2 में और देव व शिव का जमात एक में दाखिला कर लिया है. अब मैं तुम्हें मजुरिया नहीं मंजरी कह कर बुलाऊंगी,’’ मैडम ने कहा.

मजुरिया तो मानो खुशी से कूद पड़ी, ‘‘मंजरी… कितना प्यारा नाम है. अम्मां, अब मुझे मंजरी कहना.’’ ‘‘अरे बहनजी, मजुरिया को मंजरी बना देने से वह कोई रानी न बन जाएगी. रहेगी तो मजदूर की बेटी ही,’’ मजुरिया की अम्मां ने दुखी हो कर कहा.

‘‘नहीं अम्मां, मैं अब स्कूल आ गई हूं, अब मैं भी मैडम की तरह बनूंगी. फिर तू खेत में मजदूरी नहीं करेगी,’’ मंजरी बनते ही मजुरिया अपने सपनों को बुनने लगी थी. मजुरिया बड़े ध्यान से पढ़ती और अम्मां के काम में भी हाथ बंटाती.

मजुरिया पास होती गई. उस के भाई धक्का लगालगा कर थोड़ाबहुत पढ़े, पर मजुरिया को रोकना अब मुश्किल था. वह किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देती थी और अपनी मैडम की चहेती बन गई थी. ‘‘मंजरी, यह लो चाबी. स्कूटी की डिक्की में से मेरा लंच बौक्स निकाल कर लाना तो. पानी की बोतल भी है,’’ एक दिन मैडम ने उस से कहा.

मजुरिया ने आड़ीतिरछी कर के डिक्की खोल ही ली. उस ने बोतल और लंच बौक्स निकाला. वह सोचने लगी, ‘जब मैं पढ़लिख कर मैडम बनूंगी, तो मैं भी ऐसा ही डब्बा लूंगी. उस में रोज पूरी रख कर लाया करूंगी. ‘मैं अम्मां के लिए साड़ी लाऊंगी और बापू के लिए धोतीकुरता.’

मजुरिया मैडम की बोतल और डब्बा हाथ में लिए सोच ही रही थी कि मैडम ने आवाज लगाई, ‘‘मंजरी, क्या हुआ? इतनी देर कैसे लगा दी?’’ ‘‘आई मैडम,’’ कह कर मजुरिया ने मैडम को डब्बा और बोतल दी और किताब खोल कर पढ़ने बैठ गई.

अब मजुरिया 8वीं जमात में आ गई थी. वह पढ़ने में होशियार थी. उस के मन में लगन थी. वह पढ़लिख कर अपने घर की गरीबी दूर करना चाहती थी. उस की मां मजुरिया को जब नए कपड़े नहीं दिला पाती, तो वह हंस कर कहती, ‘‘तू चिंता मत कर अम्मां. एक बार मैं नौकरी पर लग जाऊं, फिर सब लोग नएनए कपड़े पहनेंगे.’’

‘‘अरे, खुली आंख से सपना न देख. अब तक तो तेरी फीस नहीं जाती है. कौपीकिताबें मिल जाती हैं. सो, तू पढ़ रही है. इस से आगे फीस देनी पड़ेगी.’’ अम्मां मजुरिया की आंखों में पल रहे सपनों को तोड़ना नहीं चाहती थी, पर उस के मजबूत इरादों को थोड़ा कम जरूर करना चाहती थी. वह जानती थी कि अगर सपने कमजोर होंगे, तो टूटने पर ज्यादा दर्द नहीं देंगे.

और यही हुआ. मजुरिया की 9वीं जमात की फीस उस की मैडम ने अपने ही स्कूल के सामने चल रहे सरकारी स्कूल में भर दी. मजुरिया तो खुश हो गई, लेकिन कोई भी मजुरिया आज तक इस स्कूल

में पढ़ने नहीं आई थी. एक दिन जब मजुरिया स्कूल पढ़ने गई और वहां के टीचरों ने उस की पढ़ाई की तारीफ की, तो वहां के ठाकुर बौखला गए. ‘‘ऐ मजुरिया की अम्मां, उधार बहुत बढ़ गया है. कैसे चुकाएगी?’’

‘‘मालिक, हम दिनरात आप के खेत पर काम कर के चुका देंगे.’’ ‘‘वह तो ठीक है, पर अकेले तू कितना पैसा जमा कर लेगी? मजुरिया को क्यों पढ़ने भेज रही है? वह तुम्हारे काम में हाथ क्यों नहीं बंटाती है?’’ इतना कह कर ठाकुर चले गए.

मजुरिया की अम्मां समझ गई कि निशाना कहां था. लेकिन इन सब से बेखबर मजुरिया अपनी पढ़ाई में खुश थी. पर कोई और भी था, जो उस के इस ख्वाब से खुश था. पल्लव, बड़े ठाकुर का बेटा, जो मजुरिया से एक जमात आगे गांव से बाहर के पब्लिक स्कूल में पढ़ता था. वह मजुरिया को उस के स्कूल तक छोड़ कर आगे अपने स्कूल जाता था.

‘‘तू रोज इस रास्ते से क्यों स्कूल जाता है? तुझे तो यह रास्ता लंबा पड़ता होगा न?’’ मजुरिया ने पूछा. ‘‘हां, सो तो है, पर उस रास्ते पर तू नहीं होती न. तू उस रास्ते से आने लगे, तो मैं भी उसी से आऊंगा,’’ पल्लव ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘न बाबा न, वहां तो सारे ठाकुर रहते हैं. बड़ीबड़ी मूंछें, बाहर निकली हुई आंखें,’’ मजुरिया ने हंस कर कहा. ‘‘अच्छा, तो तू ठाकुरों से डरती है?’’ पल्लव ने पूछा.

‘‘हां, पर मुझे ठकुराइन अच्छी लगती हैं.’’

‘‘तू ठकुराइन बनेगी?’’ ‘‘मैं कैसे बनूंगी?’’

‘‘मुझ से शादी कर के,’’ पल्लव ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘तू पागल है. जा, अपने स्कूल. मेरा स्कूल आ गया है,’’ मजुरिया ने पल्लव को धकेलते हुए कहा और हंस कर स्कूल भाग गई.

उस दिन मजुरिया के घर आने पर उस की अम्मां ने कह दिया, ‘‘आज से स्कूल जाने की जरूरत नहीं है. ठाकुर का कर्ज बढ़ता जा रहा है. अब तो तुझे स्कूल में खाना भी नहीं मिलता है. कल से मेरे साथ काम करने खेत पर चलना.’’ मजुरिया टूटे दिल से अम्मां के साथ खेत पर जाने लगी.

वह 2 दिन से स्कूल नहीं गई, तो पल्लव ने खेत पर आ कर पूछा, ‘‘मंजरी, तू स्कूल क्यों नहीं जा रही है? क्या मुझ से नाराज है?’’ ‘‘नहीं रे, ठाकुर का कर्ज बढ़ गया है. अम्मां ने कहा है कि दिनरात काम करना पड़ेगा,’’ कहते हुए मजुरिया की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘तू परेशान मत हो. मैं तुझे घर आ कर पढ़ा दिया करूंगा,’’ पल्लव ने कहा, तो मजुरिया खुश हो उठी. अम्मां जानती थी कि ठाकुर का बेटा उन के घर आ कर पढ़ाएगा, तो हंगामा होगा. पर वह छोटे ठाकुर की यह बात काट नहीं सकी.

पल्लव मजुरिया को पढ़ाने घर आने लगा. लेकिन उन के बीच बढ़ती नजदीकियों से अम्मां घबरा गई. अम्मां ने अगले दिन पल्लव से घर आ कर पढ़ाने से मना कर दिया. मजुरिया कभीकभी समय मिलने पर स्कूल जाती थी. पल्लव रास्ते में उसे मिलता और ढेर सारी बातें करता. कब

2 साल गुजर गए, पता ही नहीं चला. आज मजुरिया का 10वीं जमात का रिजल्ट आएगा. उसे डर लग रहा था.

पल्लव तेजी से साइकिल चलाता हुआ गांव में घुसा, ‘‘मजुरिया… मजुरिया… तू फर्स्ट आई है.’’ मजुरिया हाथ में खुरपी लिए दौड़ी, उस का दुपट्टा उस के कंधे से उड़ कर दूर जा गिरा. उस ने पल्लव के हाथ से अखबार पकड़ा और भागते हुए अम्मां के पास आई, ‘‘अम्मां, मैं फर्स्ट आई हूं.’’

अम्मां ने उस के हाथ से अखबार छीना और हाथ पकड़ कर घर ले गई. पर उस की आवाज बड़े ठाकुर के कानों तक पहुंच ही गई. ‘‘मजुरिया की मां, तेरी लड़की जवान हो गई है. अब इस से खेत पर काम मत करवा. मेरे घर भेज दिया कर…’’ ठाकुर की बात पूरी नहीं हो पाई थी, उस से पहले ही अम्मां ने उसे घूर कर देखा, ‘‘मालिक, हम खेतिहर मजदूर हैं. किसी के घर नहीं जाते,’’ इतना कह कर अम्मां घर चली गई.

घर पर अम्मां मजुरिया को कमरे में बंद कर प्रधान के घर गई. उन की पत्नी अच्छी औरत थीं और उसे अकसर बिना सूद के पैसा देती रहती थीं. ‘‘मालकिन, मजुरिया के लायक कोई लड़का है, तो बताओ. हम उस के हाथ पीले करना चाहते हैं.’’

प्रधानजी की पत्नी हालात भांप गईं. ‘‘हां मजुरिया की अम्मां, मेरे मायके में रामदास नौकर है. पुरखों से हमारे यहां काम कर रहे हैं. उस का लड़का है. एक टांग में थोड़ी लचक है, उस से शादी करवा देते हैं. छठी जमात पास है.

‘‘अगर तू कहे, तो आज ही फोन कर देती हूं. मेरे पास 2-3 कोरी धोती रखी हैं. तू परेशान मत हो, बाकी का इंतजाम भी मैं कर दूंगी.’’ मजुरिया की अम्मां हां कह कर घर आ गई.

7वें दिन बैलगाड़ी में दूल्हे समेत 3 लोग मजुरिया को ब्याहने आ गए. बिना बाजे और शहनाई के मजुरिया

को साड़ी पहना कर बैलगाड़ी में बैठा दिया गया. मजुरिया कुछ समझ पाती, तब तक बैलगाड़ी गांव से बाहर आ गई. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई और बैलगाड़ी से कूद कर गांव के थाने में पहुंच गई.

‘‘कुछ लोग मुझे पकड़ कर ले जा रहे हैं,’’ मजुरिया ने थानेदार को बताया. पुलिस ने मौके पर आ कर उन्हें बंद कर दिया. मजुरिया गांव वापस आ गई. जब सब को पता चला, तो उसे बुराभला कहने लगे. मां ने उसे पीट कर घर में बंद कर दिया.

मजुरिया के घर पर 2 दिन से न तो चूल्हा जला और न ही वे लोग घर से बाहर निकले. पल्लव छिप कर उस के लिए खाना लाया. उस ने समझाया, ‘‘देखो मंजरी, तुम्हें ख्वाब पूरे करने के लिए थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ेगी. बुजदिल हो कर, रो कर तुम अपने सपने पूरे नहीं कर सकोगी…’’

पल्लव के इन शब्दों ने मजुरिया को ताकत दी. वह अगले दिन अपनी मैडम के घर गई. उन्होंने उसे 12वीं जमात का फार्म भरवाया. इस के बाद पल्लव मंजरी को रास्ता दिखाता रहा और उस ने बीए कर लिया. पल्लव की नौकरी लग गई.

‘‘मंजरी, मैं अहमदाबाद जा रहा हूं. क्या तुम मुझ से शादी कर के मेरी ठकुराइन बनोगी?’’ पल्लव ने मंजरी का हाथ पकड़ कर कहा. ‘‘अगर मैं ने दिल की आवाज सुनी और तुम्हारे साथ चल दी, तो फिर कभी कोई मजुरिया दोबारा मंजरी बनने का ख्वाब नहीं देख पाएगी. फिर कभी कोई टीचर किसी मजुरिया को मंजरी बनाने की कोशिश नहीं करेगी.

‘‘एक मंजरी का दिल टूटने से अगर हजार मजुरियों के सपने पूरे होते हैं, तो मुझे यह मंजूर है,’’ मजुरिया ने कड़े मन से अपनी बात कही. पल्लव समझ गया और उसे जिंदगी में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे कर वहां से चला गया.

लेखिका- डा. सुजाता विरेश

Emotional Story: खेल- दिव्या ने रचा ऐसा प्रपंच

Emotional Story: आज से 6-7 साल पहले जब पहली बार तुम्हारा फोन आया था तब भी मैं नहीं समझ पाया था कि तुम खेल खेलने में इतनी प्रवीण होगी या खेल खेलना तुम्हें बहुत अच्छा लगता होगा. मैं अपनी बात बताऊं तो वौलीबौल छोड़ कर और कोई खेल मुझे कभी नहीं आया. यहां तक कि बचपन में गुल्लीडंडा, आइसपाइस या चोरसिपाही में मैं बहुत फिसड्डी माना जाता था.

फिर अन्य खेलों की तो बात ही छोड़ दीजिए कुश्ती, क्रिकेट, हौकी, कूद, अखाड़ा आदि. वौलीबौल भी सिर्फ 3 साल स्कूल के दिनों में छठीं, 7वीं और 8वीं में था, देवीपाटन जूनियर हाईस्कूल में.उन दिनों स्कूल में नईनई अंतर्क्षेत्रीय वौलीबौल प्रतियोगिता का शुभारंभ हुआ था और पता नहीं कैसे मुझे स्कूल की टीम के लिए चुन लिया गया और उस टीम में मैं 3 साल रहा.

आगे चल कर पत्रकारिता में खेलों का अपना शौक मैं ने खूब निकाला. मेरा खयाल है कि खेलों पर मैं ने जितने लेख लिखे, उतने किसी और विषय पर नहीं. तकरीबन सारे ही खेलों पर मेरी कलम चली. ऐसी चली कि पाठकों के साथ अखबारों के लोग भी मुझे कोई औलराउंडर खेलविशेषज्ञ समझते थे. पर तुम तो मुझ से भी बड़ी खेल विशेषज्ञा निकली.

तुम्हें रिश्तों का खेल खेलने में महारत हासिल है. 6-7 साल पहले जब पहली बार तुम ने फोन किया था तो मैं किसी कन्या की आवाज सुन कर अतिरिक्त सावधान हो गया था.

‘हैलो सर, मेरा नाम दिव्या है, दिव्या शाह. अहमदाबाद से बोल रही हूं. आप का लिखा हुआ हमेशा पढ़ती रहती हूं.’‘जी, दिव्याजी, नमस्कार, मुझे बहुत अच्छा लगा आप से बात कर. कहिए मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं.’जी सर, सेवावेवा कुछ नहीं. मैं आप की फैन हूं. मैं ने फेसबुक से आप का नंबर निकाला. मेरा मन हुआ कि आप से बात की जाए.‘थैंक्यूजी. आप क्या करती हैं, दिव्याजी?’‘सर, मैं कुछ नहीं करती. नौकरी खोज रही हूं.

वैसे मैं ने एमए किया है समाजशास्त्र में. मेरी रुचि साहित्य में है.’‘दिव्याजी, बहुत अच्छा लगा. हम लोग बात करते रहेंगे,’ यह कह कर मैं ने फोन काट दिया. मुझे फोन पर तुम्हारी आवाज की गर्मजोशी, तुम्हारी बात करने की शैली बहुत अच्छी लगी. पर मैं लड़कियों, महिलाओं के मामले में थोड़ा संकोची हूं. डरपोक भी कह सकते हैं. उस का कारण यह है कि मुझे थोड़ा डर भी लगा रहता है कि क्या मालूम कब, कौन मेरी लोकप्रियता से जल कर स्टिंग औपरेशन पर न उतर आए. इसलिए एक सीमा के बाद मैं लड़कियों व महिलाओं से थोड़ी दूरी बना कर चलता हूं.

पर तुम्हारी आवाज की आत्मीयता से मेरे सारे सिद्धांत ढह गए. दूरी बना कर चलने की सोच पर ताला पड़ गया. उस दिन के बाद तुम से अकसर फोन पर बातें होने लगीं. दुनियाजहान की बातें. साहित्य और समाज की बातें. उसी दौरान तुम ने अपने नाना के बारे में बताया था. तुम्हारे नानाजी द्वारका में कोई बहुत बड़े महंत थे.

तुम्हारा उन से इमोशनल लगाव था. तुम्हारी बातें मेरे लिए मदहोश होतीं. उम्र में खासा अंतर होने के बावजूद मैं तुम्हारी ओर आकर्षित होने लगा था. यह आत्मिक आकर्षण था. दोस्ती का आकर्षण. तुम्हारी आवाज मेरे कानों में मिस्री सरीखी घुलती. तुम बोलती तो मानो दिल में घंटियां बज रही हैं. तुम्हारी हंसी संगमरमर पर बारिश की बूंदों के माध्यम से बजती जलतरंग सरीखी होती.

उस के बाद जब मैं अगली बार अपने गृहनगर गांधीनगर गया तो अहमदाबाद स्टेशन पर मेरीतुम्हारी पहली मुलाकात हुई. स्टेशन के सामने का आटो स्टैंड हमारी पहली मुलाकात का मीटिंग पौइंट बना. उसी के पास स्थित चाय की एक टपरी पर हम ने चाय पी. बहुत रद्दी चाय, पर तुम्हारे साथ की वजह से खुशनुमा लग रही थी. वैसे मैं बहुत थका हुआ था.

दिल्ली से अहमदाबाद तक के सफर की थकान थी, पर तुम से मिलने के बाद सारी थकान उतर गई. मैं तरोताजा हो गया. मैं ने जैसा सोचा सम?ा था तुम बिलकुल वैसी ही थी. एकदम सीधीसादी. प्यारी, गुडि़या सरीखी. जैसे मेरे अपने घर की. एकदम मन के करीब की लड़की. मासूम सा ड्रैस सैंस, उस से भी मासूम हावभाव. किशमिशी रंग का सूट.

मैचिंग छोटा सा पर्स. खूबसूरत डिजाइन की चप्पलें. ऊपर से भीने सेंट की फुहार. सचमुच दिलकश. मैं एकटक तुम्हें देखता रह गया. आमनेसामने की मुलाकात में तुम बहुत संकोची और खुद्दार महसूस हुई.कुछ महीने बाद हुई दूसरी मुलाकात में तुम ने बहुत संकोच से    कहा कि सर, मेरे लिए यहीं अहमदाबाद में किसी नौकरी का इंतजाम करवाइए.

मैं ने बोल तो जरूर दिया, पर मैं सोचता रहा कि इतनी कम उम्र में तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत है? तुम्हारी घरेलू स्थिति क्या है? इस तरह कौन मां अपनी कम उम्र की बिटिया को नौकरी करने शहर भेज सकती है? कई सवाल मेरे मन में आते रहे, मैं तुम से उन का जवाब नहीं मांग पाया.

सवाल सवाल होते हैं और जवाब जवाब. जब सवाल पसंद आने वाले न हों तो कौन उन का जवाब देना चाहेगा. वैसे मैं ने हाल में तुम से कई सवाल पूछे पर मुझे एक का भी उत्तर नहीं मिला. आज 20 अगस्त को जब मुझे तुम्हारा सारा खेल समझ में आया है तो फिर कटु सवाल कर के क्यों तुम्हें परेशान करूं.मेरे मन में तुम्हारी छवि आज भी एक जहीन, संवेदनशील, बुद्धिमान लड़की की है.

यह छवि तब बनी जब पहली बार तुम से बात हुई थी. फिर हमारे बीच लगातार बातों से इस छवि में इजाफा हुआ. जब हमारी पहली मुलाकात हुई तो यह छवि मजबूत हो गई. हालांकि मैं तुम्हारे लिए चाह कर भी कुछ कर नहीं पाया. कोशिश मैं ने बहुत की पर सफलता नहीं मिली.दूसरी पारी में मैं ने अपनी असफलता को जब सफलता में बदलने का फैसला किया तो मुझे तुम्हारी तरफ से सहयोग नहीं मिला. बस, मैं यही चाहता था कि तुम्हारे प्यार को न समझ पाने की जो गलती मुझ से हुई थी उस का प्रायश्चित्त यही है कि अब मैं तुम्हारी जिंदगी को ढर्रे पर लाऊं. इस में जो तुम्हारा साथ चाहिए वह मुझे प्राप्त नहीं हुआ. बहरहाल, 25 जुलाई को तुम फिर मेरी जिंदगी में एक नए रूप में आ गई.

अचानक, धड़धड़ाते हुए. तेजी से. सुपरसोनिक स्पीड से. यह दूसरी पारी बहुत हंगामाखेज रही. इस ने मेरी दुनिया बदल कर रख दी. मैं ठहरा भावुक इंसान. तुम ने मेरी भावनाओं की नजाकत पकड़ी और मेरे दिल में प्रवेश कर गई.मेरे जीवन में इंद्रधनुष के सभी रंग भरने लगे. मेरे ऊपर तुम्हारा नशा, तुम्हारा जादू छाने लगा. मेरी संवेदनाएं जो कहीं दबी पड़ी थीं उन्हें तुम ने हवा दी और मेरी जिंदगी फूलों सरीखी हो गई. दुनियाजहान के कसमेवादों की एक नई दुनिया खुल गई. हमारेतुम्हारे बीच की भौतिक दूरी का कोई मतलब नहीं रहा. बातों का आकाश मुहब्बत के बादलों से गुलजार होने लगा.

तुम्हारी आवाज बहुत मधुर है और तुम्हें सुर और ताल की सम?ा भी है. तुम जब कोई गीत, कोई गजल, कोई नगमा, कोई नज्म अपनी प्यारी आवाज में गाती तो मैं सबकुछ भूल जाता. रात और दिन का अंतर मिट गया. रानी, जानू, राजा, सोना, बाबू सरीखे शब्द फुसफुसाहटों की मदमाती जमीन पर कानों में उतर कर मिस्री घोलने लगे.

उम्र का बंधन टूट गया. मैं उत्साह के सातवें आसमान पर सवार हो कर तुम्हारी हर बात मानने लगा. तुम जो कहती उसे पूरा करने लगा. मेरी दिनचर्या बदल गई. मैं सपनों के रंगीन संसार में गोते लगाने लगा.क्या कभी सपने भी सच्चे होते हैं? मेरा मानना है कि नहीं. ज्यादा तेजी किसी काम की नहीं होती.

25 जुलाई को शुरू हुई प्रेमकथा 20 अगस्त को अचानक रुक गई. मेरे सपने टूटने लगे. पर मैं ने सहनशीलता का दामन नहीं छोड़ा. मैं गंभीर हो गया था. मैं तो कोई खेल नहीं खेल रहा था. इसलिए मेरा व्यवहार पहले जैसा ही रहा. पर तुम्हारा प्रेम उपेक्षा में बदल गया. कोमल भावनाएं औपचारिक हो गईं. मेरे फोन की तुम उपेक्षा करने लगी.

अपना फोन दिनदिन भर, रातभर बंद करने लगी. बातों में भी बोरियत झलकने लगी. तुम्हारा व्यवहार किसी खेल की ओर इशारा करने लगा.इस उपेक्षा से मेरे अंदर जैसे कोई शीशा सा चटख गया, बिखर गया हो और आवाज भी नहीं हुई हो. मैं टूटे ताड़ सा झक गया. लगा जैसे शरीर की सारी ताकत निचुड़ गई है. मैं विदेह सा हो गया हूं.

डा. सुधाकर मिश्र की एक कविता याद आ गई, इतना दर्द भरा है दिल में, सागर की सीमा घट जाए. जल का हृदय जलज बन कर जब खुशियों में खिलखिल उठता है. मिलने की अभिलाषा ले कर,भंवरे का दिल हिल उठता है. सागर को छूने शशधर की किरणें,भागभाग आती हैं, झमझम कर, चूमचूम कर, पता नहीं क्याक्या गाती हैं.

तुम भी एक गीत यदि गा दो,आधी व्यथा मेरी घट जाए.पर तुम्हारे व्यवहार से लगता है कि मेरी व्यथा कटने वाली नहीं है.अभी जैसा तुम्हारा बरताव है, उस से लगता है कि नहीं कटेगी. यह मेरे लिए पीड़ादायक है कि मेरा सच्चा प्यार खेल का शिकार बन गया है.

मैं तुम्हारी मासूमियत को प्यार करता हूं, दिव्या. पर इस प्यार को किसी खेल का शिकार नहीं बनने दे सकता. लिहाजा, मैं वापस अपनी पुरानी दुनिया में लौट रहा हूं. मुझे पता है कि मेरा मन तुम्हारे पास बारबार लौटना चाहेगा. पर मैं अपने दिल को समझ लूंगा. और हां, जिंदगी के किसी मोड़ पर अगर तुम्हें मेरी जरूरत होगी तो मुझे बेझिझक पुकारना, मैं चला आऊंगा. तुम्हारे संपर्क का तकरीबन एक महीना मुझे हमेशा याद रहेगा. अपना खयाल रखना.

Emotional Story

Social Story: तबादला- उसे कौनसा दंश सहना पड़ा

Social Story: ‘‘इन से मिलिए, यह मेरे विभाग के वरिष्ठ अफसर राजकुमारजी हैं. जब से यह आए हैं स्वास्थ्य विभाग का कामकाज बहुत तेजी से हो रहा है. किसी भी फाइल को 24 घंटे के अंदर निबटा देते हैं,’’ स्वास्थ्य मंत्री मोहनलाल ने राजकुमार का परिचय अपनी पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ मंत्री रामचंद्रजी से कराया.

रामचंद्र ने एक उड़ती नजर राजकुमार पर डाली और बोले, ‘‘आप के विभाग में मेरे इलाके के कई डाक्टर हैं जिन के बारे में मुझे आप से बात करनी है. मैं अपने सचिव को बता दूंगा. वह आप से मिल लेगा. आप जरा उन पर ध्यान दीजिएगा.’’

राजकुमार का अधिकारी वर्ग में अच्छा नाम था. वह केवल कार्यकुशल ही नहीं थे बल्कि फैसले भी समझदारी के साथ लेते थे. फाइलों को दबा कर रखना उन के उसूल के खिलाफ था. फैसला किस के हक में हो रहा है, इस बात पर वह ज्यादा माथापच्ची नहीं करते थे. हां, किसी के साथ पक्षपात नहीं करते थे चूंकि दबंग व्यक्तित्व के थे. इसलिए राजनीतिक दखल को सहन नहीं करते थे. आम व्यक्ति उन की कार्य प्रणाली से संतुष्ट था.

मोहनलाल पहली बार मंत्री बने थे. उन्हें राजकुमार की कार्यशैली का अनुभव नहीं था. उन्होंने जो फाइलों में देखा या दूसरे अधिकारियों व आम लोगों से सुना, उसी के आधार पर मंत्रीजी राजकुमार से बेहद प्रभावित थे. यह और बात है कि मंत्री आमतौर पर जो चाहते हैं वही करवाने की अपने अधिकारियों से उम्मीद करते हैं, चाहे वह नियम के खिलाफ ही क्यों न हो.

मंत्री रामचंद्र के सचिव मुरली मनोहर ने राजकुमार से फोन पर संपर्क किया और बोले, ‘‘कहो भाई, कैसा चल रहा है तुम्हारे विभाग का काम? मेरे विभाग के मंत्री रामचंद्र तुम्हारी बड़ी तारीफ कर रहे थे. उन के इलाके के कुछ डाक्टर 4-5 साल पहले दुबई नौकरी करने चले गए थे. लगता है जाने से पहले उन्होंने सरकार से कोई मंजूरी नहीं ली थी और वहां नौकरी कर ली थी. अब वे पैसा कमा कर भारत लौट आए हैं. वह इस गैरहाजिरी के समय को छुट्टी मनवा कर वापस नौकरी पर आना चाहते हैं. उन सब की फाइलें तुम्हारे पास हैं, क्या विचार है? मैं मंत्रीजी से क्या कहूं?’’

राजकुमार ने शांति से मगर दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘ऐसे डाक्टरों की तादाद बहुत ज्यादा है और इस बात को उन्होंने मौखिक रूप से स्वीकार भी किया है, लेकिन अपने लिखित पत्र में मातापिता की लंबी बीमारी या उन के देहांत का बहाना बना कर छुट्टी मंजूर करने की प्रार्थना की है. समस्या यह है कि उन की गैरहाजिरी के दौरान स्वास्थ्य विभाग ने दूसरे डाक्टरों की नियुक्ति कर दी थी. अब उन्हें हटा कर इन्हें वापस लेने का कोई औचित्य नहीं है. ऐसे डाक्टरों पर विभागीय जांच भी चल रही है. ऐसे में इन्हें वापस नौकरी पर लेना मुमकिन नहीं है. मेरी स्वास्थ्य मंत्री से इस बारे में बात हुई है. आप अपने मंत्री को हमारी इस बातचीत से अवगत करा सकते हैं.’’

स्वास्थ्य मंत्री मोहनलाल को जब इस बात का पता चला तो वह तिलमिला उठे. फौरन राजकुमार को बुला कर कहने लगे, ‘‘आप मंत्री रामचंद्रजी के बारे में कुछ जानते भी हैं. वह मेरे आराध्य हैं. उन्हीं की मदद से मैं मंत्री बन पाया हूं. यदि उन का यह छोटा सा काम नहीं हुआ तो वह मुझ से नाराज हो जाएंगे. हो सकता है कि वह मुख्यमंत्री तक इस विषय को ले जाएं और मुझे मंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ जाए. आप इतनी सख्ती न करें तो अच्छा होगा.’’

राजकुमार गंभीर हो कर बोले, ‘‘आप इस विभाग के मंत्री हैं. हालात की गंभीरता को समझने की कोशिश करें. हमारे दिमाग को कुछ डाक्टर समझते हैं कि वह कैसा भी अनैतिक कार्य क्यों न करें, उन पर कोई काररवाई नहीं हो सकती क्योंकि उन्हें राजनीतिक समर्थन प्राप्त है.

‘‘अंधेरगर्दी मची हुई है. कई डाक्टर अस्पताल से गायब रह कर अपनी निजी प्रैक्टिस करते हैं तो कुछ बिना अनुमति लिए विदेशों में नौकरी करते हैं. और फिर अचानक वापस आ कर अपनी बहाली की बात धड़ल्ले से करते हैं. मैं इस विषय पर एक नोट तैयार कर देता हूं. आप उसे कैबिनेट में चर्चा के लिए रख दीजिए. मुख्यमंत्रीजी जो फैसला करेंगे उसे हम लागू कर देंगे. मेरे विचार में यही इस समस्या का सही हल होगा.’’

इस के बाद मंत्रीजी चुप्पी साध गए.

कुछ ही दिनों में मुख्यमंत्री का फैसला फाइल पर आ गया. वह राजकुमार के तर्क से सहमत थे. स्वास्थ्य मंत्री ने भी इस समस्या को आगे न खींचने में ही अपनी भलाई समझी.

विभाग में डाक्टरों के 1 हजार खाली पड़े पदों को भरने का सरकारी आदेश आया. मंत्रीजी का पी.ए. बड़ा घाघ था. उस ने उन्हें समझाया, ‘‘सर, अपने आराध्य रामचंद्रजी तथा दूसरे मंत्रिगण को खुश करने का यह बड़ा अच्छा मौका है. आप एक कमेटी का निर्माण कर के सचिव राजकुमार को उस का चेयरमैन बना दीजिए तथा सभी मंत्रिगण की सिफारिश पर डाक्टरों की भरती कीजिए. ऐसा पहले भी किया जा चुका है.’’

पी.ए. के सुझाव पर मंत्रीजी बेहद खुश हुए. उन्होंने फौरन राजकुमार से बातचीत करते हुए कहा, ‘‘आप ने डाक्टरों की भरती के लिए आया सरकारी आदेश जरूर देखा होगा. मैं चाहता हूं कि एक कमेटी बना कर आप को उस का चेयरमैन बनाया जाए. मैं ने सभी कैबिनेट स्तर के मंत्रियों के लिए 30-30 डाक्टरों का कोटा तय किया है. आप उन की सिफारिश पर उन्हें बतौर दैनिक वेतन पर नियुक्त करें तो सभी मंत्री संतुष्ट हो जाएंगे. कुछ भरतियां विरोधी पक्ष के नेताओं की सिफारिश पर भी की जा सकती हैं ताकि वे सदन में हंगामा खड़ा न करें. आशा है कि इस बार आप मेरे इस सुझाव के अनुसार ही कार्य करेंगे.’’

राजकुमार थोड़ी देर सोचते रहे. फिर बोले, ‘‘मान्यवर, आप का सुझाव सरकारी नियमों के खिलाफ है. कमेटी की रचना तथा मुझे चेयरमैन बनाने का कानून में कोई प्रावधान नहीं है. सरकार के लिखित आदेश मौजूद हैं जिस के तहत डाक्टरों की दैनिक वेतन पर भरती नहीं की जा सकती. डाक्टरों की भरती का अधिकार केवल लोकसेवा आयोग को है. मेरे पास सरकारी आदेश उपलब्ध हैं. मैं आप को फाइल भेज दूंगा. आप कृपया पढ़ लीजिएगा.’’

मंत्रीजी बहुत निराश हुए. उन्होंने सभी बड़े मंत्रियों को उन के सुझाए डाक्टरों की नियुक्ति का वादा कर दिया था. अब क्या होगा? यह सवाल उन के सामने खड़ा था और इसी के साथ जुड़ा था उन की इज्जत का सवाल.

पी.ए. ने एक बार फिर उन्हें बहकाया और कहा, ‘‘सर, आप की आज्ञा सरकारी आदेशों के ऊपर है. आप सार्वजनिक हित में कोई भी आदेश दे सकते हैं. सचिव को उस का पालन करना ही पड़ेगा. आप इतना निराश न हों. आप फाइल पर आदेश दे दीजिए. मैं एक नोट तैयार कर देता हूं.’’

मंत्रीजी ने वैसा ही किया. राजकुमार ने अपने सेवाकाल में ऐसे कई आदेश देखे थे. वह पी.ए. की शरारत को समझ गए और मंत्रीजी से मिल कर उन्हें सुझाया, ‘‘सर, इस फाइल को मैं अपनी टिप्पणी सहित कानून विभाग को भेज देता हूं. उन की सलाह पर ही आगे की काररवाई करना उचित होगा.’’

यह पहली बार था कि राजकुमार चाहते हुए भी फाइल का निबटारा जल्दी नहीं कर पा रहे थे. कुछ अरसे बाद कानून विभाग के सचिव की टिप्पणी सहित फाइल वापस आ गई. राजकुमार के तर्क से उन्होंने सहमति जाहिर की थी. एक बार फिर वह अपने मंत्री से मिले. उन्हें फाइल दिखाई और सुझाव दिया, ‘‘कानून विभाग के सचिव ने अपनी टिप्पणी फाइल पर लिखित रूप में दी है. इस के खिलाफ कार्य करने पर विधानसभा में हंगामा खड़ा हो सकता है. विरोधी पक्ष वाले इस तरह के नियम के विरुद्ध काररवाई की भनक पड़ते ही आप के लिए बहुत बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं. मेरा सुझाव है कि नियमों के दायरे में ही डाक्टरों की भरती करें तो अच्छा होगा.’’

मंत्रीजी नाराज थे, वह बोले, ‘‘आप इस फाइल को कुछ दिनों के लिए रोक लें. मैं मुख्यमंत्री से बात कर के आप को बताऊंगा कि क्या करना है.’’

एक माह से ज्यादा समय बीत गया पर मंत्रीजी ने न तो मुख्यमंत्री से कोई बात की और न ही अपने सचिव को कोई आदेश दिया. राजकुमार के याद दिलाने पर कि भरती का सूचनापत्र सरकारी आदेश के अनुसार अगले एक माह के अंदर निकलना चाहिए वरना समय बढ़ाने के लिए फिर सरकार को भेजना पड़ेगा. विरोधी पक्ष इस तरह की अनियमितताओं की खोजखबर रखता है. अच्छा होगा कि हम अगली काररवाई समयावली के मुताबिक कर लें. मंत्रीजी कुछ नहीं बोले.

राजकुमार मुख्य सचिव से मिलने गए. पूरी बात सुनने पर वह बोले, ‘‘कानून विभाग के सचिव की टिप्पणी फाइल पर है. आप के पास भरती करने के पूरे अधिकार हैं. मंत्रीजी के आदेश की कोई जरूरत नहीं है. यह सरकार का आदेश है और इस पर आप के मंत्री की भी परोक्ष रूप से सहमति कैबिनेट में ली जा चुकी है. वह इसे लटका नहीं सकते. आप आगे की काररवाई कीजिए.’’

लोकसेवा आयोग का डाक्टरों की भरती के लिए सूचनापत्र गजट में छप गया. पी.ए. ने मंत्रीजी को अवगत कराया, ‘‘सर, आप की मंजूरी के बिना सचिव ने लोकसेवा आयोग को भरती का निर्देश जारी कर दिया है. यह आप के सम्मान का सवाल है.’’

मंत्रीजी गुस्से से लालपीले हो गए. अपने पी.ए. को फाइल लाने को कहा. राजकुमार ने मंत्रीजी से फोन पर पूछा, ‘‘क्या मैं आ कर आप को पूरी स्थिति से अवगत कराऊं?’’

मंत्री मोहनलाल तो गुस्से से फड़फड़ा रहे थे. वह रूखे स्वर में बोले, ‘‘कोई जरूरत नहीं है. मैं स्वयं देख लूंगा…’’ उन्होंने अपने वरिष्ठ मंत्रियों से सलाह ली. मालूम नहीं उन्होंने क्या सुझाव दिया पर 2 दिन के बाद फाइल वापस राजकुमार की मेज पर थी. उस पर मंत्रीजी ने अपनी सहमतिस्वरूप हस्ताक्षर कर दिए थे.

मंत्री मोहनलाल मुख्यमंत्री से जा कर मिले. अगले ही दिन राजकुमार अपने पद का कार्यभार एक दूसरे अफसर को दे रहे थे. यह उन की 30 साल के सेवाकाल का 27वां तबादला था.

Social Story

Short Story in Hindi: मुखरता- रिचा घुटनभरी जिंदगी क्यों जी रही थी

Short Story in Hindi: रिचा बीए प्रथम वर्ष की छात्रा थी. वह क्लास में आखिरी बैंच पर बैठती थी और एकदम बुझीबुझी सी रहती थी. कुछ पूछने पर वह या तो चुप हो जाती या फिर बहुत कम सवालों का जवाब देती. वैसे रिचा पढ़ने में होशियार और मेहनती थी, लेकिन हरदम अकेली, खुद में खोई रहती.

कोई न कोई बात तो थी जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. सब से ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि वह लड़कों की मौजूदगी में सामान्य नहीं रहती थी. अगर गलती से कोई लड़का उसे छू लेता या कंधे पर हाथ रख देता, तो वह क्रोधित हो जाती.

उस के मातापिता भी कुछ समझ नहीं पा रहे थे. वे अगर उस से कुछ पूछते, तो वह एक गहरी चुप्पी साध लेती. उस की बचपन की सहेली मीरा जब भी मिलती, रिचा से चुप रहने की वजह पूछती पर उसे कोई जवाब नहीं मिलता.

लेकिन मनोविज्ञान की स्टूडैंट होने के कारण वह रिचा की मानसिक अवस्था समझ रही थी. उसे किसी अनहोनी का डर खाए जा रहा था.  एक दिन मीरा ने उस से बात करने का निश्चय किया. शुरू में तो रिचा ने सवालों से बचना चाहा, शायद वह थोड़ी भयभीत भी थी, पर मीरा के साथ रोज वार्त्तालाप करने से उस का हौसला बढ़ने लगा.

एक दिन उस के दुखों का बांध ढह गया और उस की भावनाओं ने उथलपुथल की और वह रोने लगी. फिर धीरेधीरे उस ने अपनी बीती सारी बातें बताईं.

उस ने बताया, ‘‘एक दिन दोपहर को मैं इतिहास पढ़ रही थी. वैसे भी इतिहास का विषय सब के लिए नींद की गोली जैसा होता है, पर मेरे लिए यह एक रोमांचक था. अनजाने में ही मेरे अंकल जल्दी घर वापस आ गए. वे हमेशा से ही मेरे कपड़ों, पढ़ाई व मेरे दोस्तों में रुचि रखते थे.

‘‘मैं उन से प्रेरित थी. वे मुझे मेरे पिता से ज्यादा निर्देशित करते थे. कई चीजों के बारे में चर्चा करतेकरते अंकल ने मुझे अपने पास आ कर बैठने को कहा. मुझे इस में कुछ भी अटपटा नहीं लगा और मैं उन के पास जा कर बैठ गई.

बात करतेकरते वे अचानक मेरे गुप्तांगों को बेहूदे तरीके से छूने लगे. यह देख कर मैं पीछे हट गई. मुझे उन की इस हरकत से असुविधा महसूस होने लगी. मैं सही समय पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाई. संयोग से मेरी मां हौल में आ गईं. मैं मौके का फायदा उठा कर अपने कमरे में भाग गई.

मेरे साथ हौल में जो कुछ हुआ वह समझने में मुझे थोड़ा वक्त लगा. वह एक ऐसी अनहोनी थी जिस ने मेरी जिंदगी अस्तव्यस्त कर दी थी.‘‘मैं ने खुद से घृणा के भाव से पूछा, ‘मेरे साथ क्यों?’ मैं अपनी मां को यह बात नहीं बता पा रही थी, क्योंकि मुझे शर्मिंदगी और घबराहट महसूस हो रही थी.

‘‘अगले दिन अंकल ने मुझे फिर पीछे से पकड़ा और शैतानों वाली हंसी हंसते हुए पूछा कि मुझे कैसा लग रहा है.‘‘मेरे कुछ जवाब न देने और घूर कर देखने पर उन्होंने मुझे धमकाया. मैं डर के साथसाथ क्रोधित भी हो गई थी. मैं उन्हें थप्पड़ मारना चाहती थी पर उन की पकड़ से छूट ही नहीं पा रही थी.

‘‘मेरी चुप्पी उन की इस हरकत को बढ़ावा दे रही थी. धीरेधीरे मैं अंकल से दूरी बना कर रहने लगी. मैं ऐसी किसी जगह नहीं जाती थी जहां वे मौजूद हों. अब उन्हें देखते ही मुझे घृणा महसूस होने लगती थी. मेरा सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा न लेना मेरे मातापिता को अनुचित लगता था.

वे मेरे इस व्यवहार का कारण पूछते थे. मैं इस उलझन में थी कि यह सब सुनने के बाद इस बारे में उन की क्या राय होगी? डर से मैं ने यह बात उन्हें न बताना ही सही समझ.‘‘मैं अब खुद को असहाय सा महसूस करने लगी हूं और सालों से सबकुछ चुपचाप सह रही हूं.

लंबे समय से वे बातें मेरे दिमाग में चलचित्र की तरह ताजी हैं. मैं अपनी मां से इस बारे में बात करना चाहती हूं पर नहीं कर पाती.‘‘जीवन में आगे चल कर मैं मर्दों के साथ रिश्ता नहीं निभा पाऊंगी. मुझे अपने दोस्तों (किसी लड़के) का साधारण तरीके से छूना भी पसंद नहीं आता.

मैं अपने बिगड़ते रिश्तों का कारण नहीं जान पा रही हूं. मैं खुद का आदर नहीं कर पाती और खुद से ही नाराज रहती हूं.’’ यह सब कहते हुए वह रोने लगी. यह सब सुन कर मीरा को बहुत दुख हुआ.

मीरा ने उस से कहा,’’ अच्छा, बुरा मत मानना, अन्याय सहना भी बहुत बड़ा अपराध है. आज अपनी इस दशा की जिम्मेदार तुम खुद हो. अगर तुम खुल कर अपनी मम्मी से इस यौनशोषण के बारे में बतातीं, तो शायद आज यह स्थिति न आती.

‘‘तुम क्यों हिचकिचाती रही? क्यों तुम ने शर्मिंदगी महसूस की. जीवन में बलि का बकरा बनने से अच्छा है कि हम खुद के लिए आवाज उठाएं. तुम आज ही अपनी मां से इस बारे में बात करो. तुम ने कोई अपराध नहीं किया है, जो तुम डरो. अगर तुम डर कर अपराधी को सजा नहीं दोगी, तो तुम उसे अपराध करने के लिए प्रेरित करोगी.

कल को कुछ भी हो सकता है.‘‘मुखरता, सहनशीलता और आक्रामकता का सही बैलेंस है. मुखर होना मतलब खुद के या दूसरों के अधिकार के लिए आराम से और सकारात्मक भाव से अपनी बात रखना होता है, न कि आक्रामक या सहनशील हो कर खड़ा होना.

मुखरता खुद में ही एक पुरस्कार की तरह है, क्योंकि यह देख कर अच्छा लगता है कि लोग आप की बातें ध्यान से सुनते हैं और परिस्थितियां भी अकसर अपने अनुसार ही चलती हैं. ‘‘मुखरता हमें अपने सोचविचार को खुल कर सामने लाने का आत्मविश्वास और ताकत देती है.

यह हम से किसी को भी गलत फायदा उठाने नहीं देती है. मुखरता एक तरह का व्यावहारिक उपचार है जो लोगों को खुद की मदद करने में सक्षम बनाता है.’’ मीरा की बातें सुन कर रिचा शायद अपनी भूल समझ गई थी.

उस ने उसी दिन अपनी मां को सारी बातें बता दीं. रिचा की मां कु्रद्ध हो गईं और उस की इस दुर्दशा को न जान पाने के लिए शर्मिंदगी महसूस करने लगी.

अब रिचा को एहसास हुआ कि जिस बात को सब के सामने आने के डर से वह हिचकिचाती थी और शर्मिंदगी महसूस करती थी, अगर चुप नहीं रहती, तो उसे इतने समय तक सबकुछ नहीं सहना पड़ता.रिचा अपने अंकल से ही नहीं, बल्कि अपनी बात समाज के सामने रखने से भी नहीं डरती.

मीरा ने उसे एक नया जीवन दिया. परिचय कराया उस का मुखरता से. उसे एक सकारात्मक आत्मछवि और जीने का विश्वास दिया. रिचा अब चुपचाप कुछ भी नहीं सहती है.

Short Story in Hindi

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें