Social Story: पुश्तैनी रिवॉल्वर

Social Story: वैसे तो रणबीर ग्रुप ने शहर में कई दर्शनीय इमारतें बनाई थीं, लेकिन उन के द्वारा नवनिर्मित ‘स्वप्नलोक’ वास्तुशिल्प में उन का अद्वितीय योगदान था. उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री एवं अन्य विशिष्ट व्यक्तियों की प्रशंसा के उत्तर में ग्रुप के चेयरमैन रणबीर ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘किसी भी प्रोजैक्ट की कामयाबी का श्रेय उस से जुड़े प्रत्येक छोटेबड़े व्यक्ति को मिलना चाहिए, इसीलिए मैं अपने सभी सहकर्मियों का बहुत आभारी हूं, खासतौर से अपने आर्किटैक्ट विभोर का जिन के बगैर मैं आज जहां खड़ा हूं वहां तक कभी नहीं पहुंचता.’’

समारोह के बाद जब विभोर ने रणबीर को धन्यवाद दिया तो उस ने सरलता से कहा, ‘‘किसी को भी उस के योगदान का समुचित श्रेय न देने को मैं गलत समझता हूं विभोर.’’

‘‘ऐसा है तो फिर मेरी सफलता का श्रेय तो मेरी सासससुर खासकर मेरी सास को मिलना चाहिए सर,’’ विभोर बोला, ‘‘यदि आप का इस सप्ताहांत कोई और कार्यक्रम न हो तो आप सपरिवार हमारे साथ डिनर लीजिए, मैं आप को अपने सासससुर से मिलवाना चाहता हूं.’’

‘‘मैं गरिमा और बच्चों के साथ जरूर आऊंगा विभोर. तुम्हारे सासससुर इसी शहर में रहते हैं?’’

‘‘जी हां, मैं उन के साथ यानी उन के ही घर में रहता हूं सर वरना मेरी इतनी बड़ी कोठी लेने की हैसियत कहां है…’’

‘‘कमाल है, अभी कुछ रोज पहले तो हम तुम्हारी प्रमोशन की पार्टी में तुम्हारे घर आए थे और उस से पहले भी आ चुके हैं, लेकिन उन से मुलाकात नहीं हुई कभी.’’

‘‘वे लोग मेरी पार्टियों में शरीक नहीं होते सर, न ही मेरी निजी जिंदगी में दखलंदाजी करते हैं. लेकिन मेरे बीवीबच्चों का पूरा खयाल रखते हैं. इसीलिए तो मैं इतनी एकाग्रता से अपना काम कर रहा हूं, क्योंकि न तो मुझे बीमार बच्चे को डाक्टर के पास ले जाना पड़ता है और न ही बीवी के अकेलेपन को दूर करने या गृहस्थी के दूसरे झमेलों के लिए समय निकालने की मजबूरी है. जब भी फुरसत मिलती है बेफिक्री से बीवीबच्चों के साथ मौजमस्ती कर के तरोताजा हो जाता हूं,’’ विभोर बोला.

‘‘ऋतिका इकलौती बेटी है?’’

‘‘नहीं सर, उस के 2 भाई अमेरिका में रहते हैं. पहले तो उन का वापस आने का इरादा था, मगर मेरे यहां आने के बाद दोनों लौटना जरूरी नहीं समझते. मिलने के लिए आते रहते हैं. कोठी इतनी बड़ी है कि किसी के आनेजाने से किसी को कोई दिक्कत नहीं होती.’’

रणबीर को ऋतिका के मातापिता बहुत ही सुलझे हुए, संभ्रांत और सौम्य

लगे. खासकर ऋतिका की मां मृणालिनी. न जाने क्यों उन्हें देख कर रणबीर को ऐसा लगा कि उस ने उन्हें पहले भी कहीं देखा है.

उस के यह कहने पर मृणालिनी ने बड़ी सादगी से कहा, ‘‘जरूर देखा होगा ‘दीपशिखा’ महिला क्लब के किसी समारोह या फिर अपनी शादी में,’’ मां की मृत्यु में कहना मृणालिनी ने मुनासिब नहीं समझा.

‘‘ठीक कहा आप ने,’’ रणबीर चहका, ‘‘किसी समारोह की तो याद नहीं, लेकिन बहुत सी तसवीरों में आप हैं मां के साथ.’’

‘‘मां की शादी से पहले की तसवीरों में भी देखा होगा, क्योंकि मैं और रुक्की शादी के पहले एक बार एनसीसी कैंप में मिली थीं और वहीं हमारी दोस्ती हुई थी.’’

रणबीर भावुक हो उठा. उस की मां रुक्मिणी को रुक्की उन के बहुत ही करीबी लोग कह सकते थे. रूप और धन के दंभ में अपने को विशिष्ट समझने वाली मां यह हक किसीकिसी को ही देती थीं यानी मृणालिनी उस की मां की अभिन्न सखी थीं.

‘‘विभोर को मालूम है कि मां आप की सहेली थीं?’’ रणबीर ने पूछा.

‘‘नहीं, क्योंकि उस का हमारे परिवार से जुड़ने से पहले ही रुक्की का देहांत हो गया था. विभोर बहुत मेहनती और लायक लड़का है,’’ मृणालिनी ने दर्प से कहा.

‘‘सही कह रही हैं आप. विभोर के बगैर तो मैं 1 कदम भी नहीं चल सकता. और अब तो मुझे आप का सहारा भी चाहिए मांजी. मां के देहांत के बाद आज आप से मिल कर पहली बार लगा जैसे मैं फिर से सिर्फ रणबीर बन कर जी सकता हूं.’’

‘‘गाहेबगाहे ही क्यों जब जी करे,’’ मृणालिनी ने स्नेह से उस का सिर सहलाते

हुए कहा.

‘‘रणबीर सर से क्या बातें हुईं मां?’’ अगली सुबह विभोर ने पूछा.

‘‘कुछ खास नहीं, बस उस की मां के बारे में,’’ मृणालिनी ने अनमने भाव से कहा.

‘‘पूरी शाम?’’ विभोर ने हैरानी से पूछा.

‘‘रुक्की थी ही ऐसी विभोर, उस के बारे में जितनी भी बातें की जाएं कम हैं, अमीर बाप की बेटी होने के बावजूद उस में रत्ती भर घमंड नहीं था. वह एनसीसी की अच्छी कैडेट थी. उस के बाप ने उसे रिवौल्वर इनाम में दिया था. मेरी निशानेबाजी से प्रभावित हो कर रुक्की ने अपने रिवौल्वर से मुझे प्रैक्टिस करवाई थी. तभी तो मुझे निशानेबाजी की प्रतियोगिता में इनाम मिला था.’’

‘‘लगता है मां अपनी सहेली की याद आने की वजह से विचलित हैं,’’ ऋतिका बोली.

‘‘और अब विचलित होने की बारी मेरी है, क्योंकि हम व्हिस्पर वैली में जो अरेबियन विलाज बना रहे हैं न उस बारे में मुझे आज रणबीर सर से विस्तृत विचारविमर्श करना है और अगर मां की याद में व्यथित होने के कारण उन्होंने मीटिंग टाल दी या दिलचस्पी नहीं ली तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी,’’ विभोर ने कहा.

लेकिन उस का खयाल गलत था. रणबीर ने बड़े उत्साह और दिलचस्पी से विभोर की प्रस्तावना पर विचार किया और सुझाव दिया, ‘‘अपने पास जमीन की कमी नहीं है विभोर. क्यों न तुम 2 को जोड़ कर पहले 1 बड़ा भव्य विला बनाओ. अगर लोगों को पसंद आया तो और वैसे बना देंगे.’’

‘‘लेकिन कीमत बहुत ज्यादा हो जाएगी सर और फिर कोई ग्राहक न मिला तो?’’

‘‘परवाह नहीं,’’ रणबीर ने उत्साह से कहा, ‘‘खुद के काम आ जाएगा. यही सोच कर बनाओ कि यह बेचने के लिए नहीं अपने लिए है. विभोर, तुम दूसरे काम उमेश और दिनेश को देखने दो. तुम इसी प्रोजैक्ट के निर्माण पर ध्यान दो और जल्दी यह काम पूरा करो. मैं सतबीर से कह दूंगा कि तुम्हें पैसे की दिक्कत न हो.’’

‘‘फिर तो देर होने का सवाल ही नहीं उठता सर,’’ विभोर ने आश्वासन दिया. उस के बाद वह काम में जुट गया.

रणबीर इस प्रोजैक्ट में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहा था, अकसर साइट पर भी आता रहता था. एक सुबह जब विभोर साइट पर जा रहा था तो उस ने देखा कि ढलान शुरू होने से कुछ पहले उस के कई सहकर्मियों की गाडि़यां और मोटरसाइकिलें, स्कूटर सड़क के किनारे खड़े हैं और कुछ लोग उस की गाड़ी को रोकने को हाथ हिला रहे हैं.

‘‘रणबीर साहब की गाड़ी भी खड़ी है साहब,’’ ड्राइवर ने गाड़ी रोकते हुए कहा.

विभोर चौंक पड़ा कि क्या वे इतनी सुबह यहां मीटिंग कर रहे हैं?

‘‘सर, बड़े साहब की गाड़ी में उन की लाश पड़ी है,’’ उसे गाड़ी से उतरते देख कर एक आदमी लपक कर आया और बोला.

विभोर भागता हुआ गाड़ी के पास पहुंचा. रणबीर ड्राइवर की सीट पर बैठा

था, उस की दाहिनी कनपटी पर गोली लगी थी और दाहिने हाथ में रिवौल्वर था. सीटबैल्ट बंधी होने के कारण लाश गिरी नहीं थी. रणबीर जौगर्स सूट और शूज में थे यानी वे सुबह को सैर के लिए तैयार हुए थे. ‘वे तो घर के पास के पार्क में ही सैर करते थे. फिर गाड़ी में यहां कैसे आ गए?’ विभोर सोच ही रहा था कि तभी पुलिस की गाड़ी आ गई.

इंस्पैक्टर देव को देख कर विभोर को तसल्ली हुई. उस के बारे में मशहूर था कि कितना भी पेचीदा केस क्यों न हो वह सप्ताह भर में सुलझा लेता है.

‘‘लाश पहले किस ने देखी?’’ देव ने पूछा.

‘‘मैं ने इंस्पैक्टर,’’ एक व्यक्ति सामने आया, ‘‘मैं प्रोजैक्ट मैनेजर विभास हूं. मैं जब साइट पर जाने के लिए यहां से गुजर रहा था तो साहब की गाड़ी खड़ी देख कर रुक गया. गाड़ी के पास जा कर मैं ने अधखुले शीशे से झांका तो साहब को खून में लथपथ पाया. मैं ने तुरंत साहब के घर और पुलिस को फोन कर दिया.’’

कुछ देर बाद रणबीर की पत्नी गरिमा, बेटी मालविका, बेटा कबीर, छोटा भाई सतबीर और उस की पत्नी चेतना आ गए. देव ने शोकविह्वल परिवार को संयत होने के लिए थोड़ा समय देना बेहतर समझा. कुछ देर के बाद गरिमा ने विभोर से पूछा कि क्या साइट पर कुछ गड़बड़ है, क्योंकि आज रणबीर रोज की तरह सुबह सैर पर निकले थे, पर चंद मिनट बाद ही लौट आए और चौकीदार से गाड़ी की चाबी मंगवा कर गाड़ी ले कर चले गए.

‘‘हमें तो किसी ने फोन नहीं किया,’’ विभास और विभोर ने एकसाथ कहा, ‘‘और साइट के चौकीदार को तो हम ने साहब का नंबर दिया भी नहीं है.’’

‘‘क्या मालूम भैया ने खुद दे दिया हो,’’ सतबीर बोला, ‘‘वह इस प्रोजैक्ट में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहे थे.’’

‘‘अगर किसी ने फोन किया था तो इस का पता मोबाइल से चल जाएगा,’’ देव ने कहा, ‘‘यह बताइए यह रिवौल्वर क्या रणबीर साहब का अपना है?’’

गरिमा और बच्चों ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘मैं इस रिवौल्वर को पहचानता हूं इंस्पैक्टर,’’ सतबीर बोला, ‘‘यह हमारा पुश्तैनी रिवौल्वर है.’’

‘‘लेकिन यह रिवौल्वर था कहां सतबीर?’’ गरिमा ने पूछा.

सतबीर ने कंधे उचकाए, ‘‘मालूम नहीं भाभी. दादाजी के निधन के कुछ समय बाद मैं पढ़ने के लिए बाहर चला गया था. जब लौट कर आया तो पापा पुरानी हवेली बेच कर हम दोनों भाइयों के लिए नई कोठियां बनवा चुके थे. पुराने सामान का खासकर इस रिवौल्वर का क्या हुआ, मुझे खयाल ही नहीं आया.’’

‘‘चाचा जब बड़े दादाजी गुजरे तब दयानंद काका थे क्या?’’ कबीर ने पूछा.

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘क्योंकि दयानंद काका को जरूर मालूम होगा कि यह रिवौल्वर किस के पास था,’’ कबीर बोला.

‘‘यह दयानंद काका कौन हैं और कहां मिलेंगे?’’ देव ने उतावली से पूछा.

‘‘घर के पुराने नौकर हैं और हमारे साथ ही रहते हैं,’’ गरिमा बोली.

‘‘उन से रिवौल्वर के बारे में पूछना बहुत जरूरी है, क्योंकि आत्महत्या दिखाने की कोशिश में हत्यारे ने गोली चला कर रिवौल्वर मृतक के हाथ में पकड़ाया है,’’ देव बोला.

‘‘दयानंद काका आ गए,’’ तभी औटो से एक वृद्ध को उतरते देख कर मालविका ने कहा.

‘‘साहब, काकाजी की जिद्द पर हमें इन्हें यहां लाना पड़ा,’’ दयानंद के साथ आए एक युवक ने कहा.

‘‘अच्छा किया,’’ सतबीर ने कहा और सहारा दे कर बिलखते दयानंद को गाड़ी के पास ले गया.

‘‘इस रिवौल्वर को पहचानते हो काका?’’ देव ने कुछ देर के बाद पूछा.

दयानंद ने आंसू पोंछ कर गौर से रिवौल्वर को देखा. फिर बोला, ‘‘हां, यह तो साहब का पुश्तैनी रिवौल्वर है. यह यहां कैसे आया?’’

‘‘यह रिवौल्वर किस के पास था?’’ सतबीर ने पूछा.

‘‘किसी के भी नहीं. बड़े बाबूजी के कमरे की अलमारी में जहां उन का और मांजी का सामान रखा है, उसी में रखा रहता था.’’

‘‘आप को कैसे मालूम?’’ कबीर ने पूछा.

‘‘हमीं से तो रणबीर भैया उस कमरे की साफसफाई करवाते थे. इस इतवार को भी करवाई थी.’’

‘‘तब मैं कहां थी?’’ गरिमा ने पछा.

‘‘होंगी यहीं कहीं,’’ दयानंद ने अवहेलना से कहा.

‘‘भैया कब क्या करते थे, इस की कभी खबर रखी आप ने?’’

‘‘पहले मेरे सवाल का जवाब दो काका,’’ देव ने बात संभाली, ‘‘उस रोज क्या उन्होंने यह रिवौल्वर अलमारी से निकाला था?’’

‘‘जी हां, हमेशा ही सब चीजें निकालते थे, फिर उन्हें बड़े प्यार से पोंछ कर वापस रख देते थे.’’

‘‘इतवार को भी रिवौल्वर वापस रखा था?’’

‘‘मालूम नहीं, हम तो अपना काम खत्म कर के भैया को वहीं छोड़ कर आ गए थे.’’

‘‘भैया को मांबाप से बहुत लगाव था. उन्होंने उन का कमरा जैसा था वैसा ही रहने दिया था. वे हमेशा उस कमरे में अकेले बैठना पसंद करते थे,’’ सतबीर ने जैसे सफाई दी.

इंस्पैक्टर देव फोटोग्राफर और फोरेंसिक वालों के साथ व्यस्त हो गया.

फिर शोकसंतप्त परिवार से बोला, ‘‘मैं आप की व्यथा समझता हूं, लेकिन हत्यारे को पकड़ने के लिए मुझे आप सब से कई अप्रिय सवाल करने पड़ेंगे. अभी आप लोग घर जाइए. लेकिन कोई भी घर से बाहर नहीं जाएगा खासकर दयानंद काका.’’

‘‘जो हमें मालूम होगा, हम जरूर बताएंगे इंस्पैक्टर. लेकिन हम सब से ज्यादा विभोर बता सकते हैं, क्योंकि भाभी से भी ज्यादा समय भैया इन के साथ गुजारते थे,’’ सतबीर ने विभोर का परिचय करवाया.

रणबीर के शरीर को पोस्टमाटर्म के लिए ले जाने को जैसे ही ऐंबुलैंस में रखा, पूरा परिवार बुरी तरह बिलखने लगा.

‘‘आप ही को इन सब को संभालना होगा विभोर साहब,’’ विभास ने कहा.

‘‘घर पर और भी कई इंतजाम करने पड़ेंगे विभास. आप साइट का काम बंद करवा कर बंगले पर आ जाइए और कुछ जिम्मेदार लोगों को अभी बंगले पर भिजवा दीजिए,’’ विभोर ने कहा.

विभोर जितना सोचा था उस से कहीं ज्यादा काम करने को थे. बीचबीच में मशवरे के लिए उसे परिवार के पास अंदर भी जाना पड़ रहा था. एक बार जाने पर उस ने देखा कि ऋतिका और मृणालिनी भी आ गई हैं. मृणालिनी गरिमा को गले लगाए जोरजोर से रो रही थी. चेतना और सतबीर उन्हें हैरानी से देख रहे थे.

‘‘ये मेरी सास हैं और आप की मां की घनिष्ठ सहेली. यह बात कुछ महीने पहले ही उन्होंने सर को बताई थी, तब से सर अकसर उन से मिलते रहते थे,’’ विभोर ने धीरे से कहा.

‘‘हां, भैया ने बताया तो था कि मां की एक सहेली से मिल कर उन्हें लगता है कि जैसे मां से मिले हों. मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि वे आप की सास हैं,’’ सतबीर बोला.

‘‘विभोर साहब, बेहतर रहेगा अगर आप अपनी सासूमां को संभाल लें, क्योंकि उन के इस तरह रोने से भाभी और बच्चे और व्यथित हो जाएंगे और फिर हमें उन्हें संभालना पड़ेगा,’’ चेतना ने कहा.

‘‘आप ठीक कहती हैं,’’ कह कर विभोर ने ऋतिका को बुलाया, ‘‘मां को घर ले जाओ ऋतु. अगर इन की तबीयत खराब हो गई तो मेरी परेशानी और बढ़ जाएगी.’’

कुछ देर बाद ऋतिका का घर से फोन आया कि मां का रोनाबिलखना बंद ही नहीं हो रहा, ऐसी हालत में उन्हें छोड़ कर वापस आना वह ठीक नहीं समझती. तब विभोर ने कहा कि उसे आने की आवश्यकता भी नहीं है, क्योंकि वहां कौन आया या नहीं आया देखने की किसी को होश नहीं है.

एक व्यक्ति के जाने से जीवन कैसे अस्तव्यस्त हो जाता है, यह विभोर को पहली बार पता चला. सतबीर और गरिमा ने तो यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि रणबीर ने जो प्रोजैक्ट शुरू कराए थे, उन्हें उस की इच्छानुसार पूरा करना अब विभोर की जिम्मेदारी है. उन दोनों को भरोसा था कि विभोर कभी कंपनी या उन के परिवार का अहित नहीं करेगा. विभोर की जिम्मेदारियां ही नहीं, उलझनें भी बढ़ गई थीं.

रणबीर की मृत्यु का रहस्य उस के मोबाइल पर मिले अंतिम नंबर से और भी उलझ गया था. वह संदेश एक अस्पताल के सिक्का डालने वाले फोन से भेजा गया था और वहां से यह पता लगाना कि फोन किस ने किया था, वास्तव में टेढ़ी खीर था. पहले दयानंद के कटाक्ष से लगा था कि वह गरिमा के खिलाफ है और शायद गरिमा रणबीर की अवहेलना करती थी, लेकिन बाद में दयानंद

ने बताया कि वैसे तो गरिमा रणबीर के प्रति संर्पित थी बस उस की नियमित सुबह की सैर या दिवंगत मातापिता के कमरे में बैठने की आदत में गरिमा, बच्चों व सतबीर की कोई दिलचस्पी नहीं थी. दयानंद के अनुसार यह सोचना भी कि सतबीर या गरिमा रणबीर की हत्या करा सकते हैं, हत्या जितना ही जघन्य अपराध होगा.

मामला दिनबदिन सुलझने के बजाय उलझता ही जा रहा था. इंस्पैक्टर

देव का कहना था कि विभोर ही रणबीर के सब से करीब था. अत: उसे ही सोच कर बताना है कि रणबीर के किस के साथ कैसे संबंध थे. रणबीर की किसी से दुश्मनी थी, यह विभोर को बहुत सोचने के बाद भी याद नहीं आ रहा था और अगर किसी से थी भी तो उस की पहुंच रणबीर के रिवौल्वर तक कैसे हुई? इंस्पैक्टर देव का तकाजा बढ़ता जा रहा था कि सोचो और कोई सुराग दो. Social Story

Social Story: भाभी हो तो ऐसी

Social Story: ‘‘क्या आप मेरी बात सुनने की कृपा करेंगी?’’ रघु चीखा था. पर उस की पत्नी ईशा एक शब्द भी नहीं सुन पाई थी. वह कंप्यूटर पर काम करते हुए इयरफोन से संगीत का आनंद भी उठा रही थी. लेकिन ईशा ने रघु की भावभंगिमा से उस के क्रोधित होने का अनुमान लगाया और कानों में लगे तारों को निकाल दिया.

‘‘क्या है? क्यों घर सिर पर उठा रखा है?’’ ईशा भी रघु की तरह क्रोध में चीखी.

‘‘तो सुनो मेरी कजिन रम्या विवाह के बाद यहीं वाशिंगटन में रहने आ रही है. उस के पति रोहित यहां किसी सौफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत हैं. विवाह के बाद वह भारत से पहली बार यहां आ रही है. उस का फोन आया तो मुझे मजबूरन कुछ दिन अपने साथ रहने को कहना पड़ा,’’ रघु ने स्पष्ट स्वर में कहा.

‘‘रम्या कुछ जानापहचाना नाम लगता है. कहीं वही तुम्हारी बूआजी की बेटी तो नहीं जिन के पड़ोस में तुम कई वर्ष रहे हो?’’

‘‘हां वही, सगी बहन से भी अधिक अपनापन मिला है उस से. इसीलिए न चाह कर भी अपने साथ रहने का आमंत्रण देने को मजबूर हो गया,’’ क्रोध उतरने के साथ ही रघु का स्वर भी सहज हो गया था.

‘‘ठीक है, वह तुम्हारी फुफेरी बहन है और यह तुम्हारा घर. मैं कौन होती हूं उसे यहां आने से रोकने वाली? पर मैं साफ कह देती हूं कि मुझ से कोई आशा मत रखना. अगले 2-3 महीने मैं बहुत व्यस्त रहूंगी. मुझ से उन के स्वागतसत्कार की आशा न रखना,’’ ईशा ने अपना निर्णय सुना दिया. थोड़ी कहासुनी के बाद ईशा दोबारा अपने काम में व्यस्त हो गई. न जाने क्यों आजकल उन दोनों का हर वार्त्तालाप बहस से शुरू हो कर झगड़े में बदल जाता है. दोनों उच्च शिक्षा प्राप्त करने भारत से आए थे. पहली बार उस ने रघु को विदेशी विद्यार्थी सहायता केंद्र में देखा था और देखती ही रह गई थी. नैननक्श, रूपरंग, कदकाठी किसी भी नजरिए से वह भारतीय नहीं लगता था. पर उसे हिंदी बोलते देख उसे सुखद आश्चर्य हुआ था.

‘‘अरे, आप तो हिंदी बोल लेते हैं?’’ ईशा ने आश्चर्य से प्रश्न किया था.

‘‘शायद आप जानना चाहती हैं कि मैं भारतीय हूं या नहीं. तो सुनिए मैं हूं रघुनंदन, विशुद्ध भारतीय. हिंदी में काम चला लेता हूं, पर मेरी मातृभाषा तेलुगू है. उस्मानिया मैडिकल कालेज से एमबीबीएस कर के यहां रैजिडैंसी कर रहा हूं. और आप?’’

‘‘मैं…मैं ईशा मुंबई से बी.फार्मा कर के यहां एमएस कर रही हूं. पहली बार अमेरिका आई हूं, अत: जहां भी कोई भारतीय नजर आता है तो मन बात करने को मचल उठता है,’’ ईशा ने अपना परिचय दिया.

‘‘यकीन मानिए आप को निराश नहीं होना पड़ेगा. यहां आप को इतने भारतीय मिलेंगे कि विदेश में होने की भावना अधिक समय तक मन में नहीं टिकेगी,’’ कह रघु हंस दिया. धीरेधीरे दोनों के बीच मित्रता गहरी होने लगी. दोनों इतनी जल्दी विवाह के बंधन में बंध जाएंगे यह दूसरों ने तो क्या स्वयं रघु और ईशा ने भी नहीं सोचा था. वर्षों पहले ईशा के मातापिता कार दुर्घटना में चल बसे थे. संपन्न परिवार की इकलौती वारिस ईशा को उस के नानानानी और मामा ने बड़े प्यार से पाला था. रघु ने ईशा के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा तो ईशा ने तुरंत स्वीकार लिया. ईशा के नानानानी ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी. साथ ही राहत की सांस ली कि ईशा ने स्वयं ही योग्य वर चुन लिया. पर रघु के मातापिता को जब यह पता चला कि ईशा दूसरी जाति की है तो उन्होंने मुंह बना लिया. उन के यहां एक पंडित हर चौथे रोज आता था और उस ने उन्हें पढ़ा दिया था कि विजाति में विवाह करने से नर्क मिलता है.

‘जब तुम ने निर्णय ले ही लिया है, तो हमारे आशीर्वाद की क्या जरूरत है. समझ लेना हम दोनों मर गए तुम्हारे लिए. पिता का ई मेल पढ़ कर सकते में आ गया रघु. ईशा और रघु एक सादे समारोह में विवाह के  बंधन में बंध गए. ईशा के नानानानी उस के विवाह का जश्न मनाना चाहते थे, पर रघु ने साफ मना कर दिया. भारत जाने पर यदि वह अपने घर नहीं जा सकता तो कहीं नहीं जाएगा. रघु के कई संबंधी आसपास ही रहते थे पर उस के मातापिता के डर से अधिकतर उस से कतराने लगे थे. विवाह के बाद दोनों ने सुखद भविष्य की कल्पना की थी. पर विवाहपूर्व का प्रेम कपूर की भांति उड़ गया. दोनों हर बात पर भड़कते हुए एकदूसरे को खरीखोटी सुनाते और एकदूसरे को आहत करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते थे. ऐसे में रम्या के आने का समाचार सुन कर पुलक उठा था रघु. रम्या और उस के परिवार से उस की अनेक मधुर यादें जुड़ी थीं. उसे लगा मानो रेगिस्तान में गरम हवा के थपेड़ों के बीच अचानक ठंडी बयार बहने लगी हो. उस ने सोचा था कि रम्या के आने का समाचार सुन कर ईशा खुश होगी. विवाह के बाद पहली बार उस के परिवार का कोई आ रहा था पर ईशा के व्यवहार ने उसे बहुत आहत किया था अगले 2 सप्ताह रघु ने जितने उत्साह से रम्या के स्वागत की तैयारी की उतनी तो अपने विवाह की भी नहीं की थी. ईशा कुतूहल से सब देखती पर देख कर भी अनदेखा कर देती. न वह टोकती न रघु उत्तर देता. दोनों के बीच दिनरात की चिकचिक का स्थान अब तटस्थता ने ले लिया था.

रम्या और रोहित जब आए तो ईशा अपने कक्ष में थी. रम्या का चहकना सुन कर वह अपने कक्ष से बाहर आई. ‘‘ईशा भाभी,’’ रम्या उत्साह से बोली और लपक कर ईशा से लिपट गई.

‘‘रोहित मैं कहती थी न कि रघु भैया ने हीरा चुना है ईशा के रूप में. कैसा गरिमापूर्ण व्यक्तित्व है और कैसा अद्भुत सौंदर्य,’’ रम्या ने रोहित से कहा.

‘‘इस में कतई संदेह नहीं. मैं ने तो फोटो देखते ही कह दिया था,’’ रोहित ने हां में हां मिलाई.

‘‘फोटो से कहां पता चलता है. वह न बोलता है न भावनाओं को व्यक्त करता है,’’ रम्या अब भी मुग्धभाव से ईशा को निहार रही थी.

‘‘रम्या, छोड़ो यह नखशिख वर्णन. दोनों जल्दी से नहाधो कर तैयार हो जाओ. आज का भोजन हम बाहर करेंगे,’’ रघु ने रम्या के वार्त्तालाप को बीच में ही रोक दिया था.

‘‘क्या रघु भैया. हवाईजहाज का बेस्वाद खाना खा कर परेशान हो गए हम तो. हम तो घर का खाना खाएंगे. भाभी तुम चिंता मत करो मैं अभी 5 मिनट में नहाधो कर आई. आज सब के लिए खाना मैं बनाऊंगी और रम्या तुरंत बाथरूम में चली गई.’’ रम्या शीघ्र ही नहाधो कर आ गई. गुलाबी रंग के सूट में एकदम तरोताजा लग रही थी. ईशा कनखियों से उसे देखती रही. कोई खास गहने नहीं पहने थे उस ने. गले में मंगलसूत्र और दोनों हाथों में सोने की 4-4 चूडि़यां. कानों में शायद हीरे के कर्णफूल थे. हाथपैरों में लगी मेहंदी देख कर वह स्वयं को रोक नहीं सकी.

‘‘बड़ी अच्छी मेहंदी लगाई है. रंग अभी तक गहरा है,’’ ईशा ने रम्या की हथेलियां थामते हुए मेहंदी के डिजाइन पर नजर दौड़ाई.

‘‘इतनी आसानी से थोड़े छूटेगी… पूरे 8 घंटे बैठ कर लगवाई थी,’’ और रम्या खिलखिला कर हंस दी.

‘‘कोई बात नहीं. विवाह क्या बारबार होता है? हमारे विवाह में न मेहंदी, न डोली, न बाजा और न ही बराती. बस 2-4 मित्र और 2 हस्ताक्षर.’’

‘‘क्या कह रही हो भाभी?’’

‘‘मेरे लिए कौन करता यह सब? मातापिता तो रहे नहीं. नानानानी, मामामामी यहां आ नहीं सके. हम वहां गए नहीं और रघु के मातापिता के बारे में तो तुम जानती ही हो,’’ खाना बनाते हुए दोनों घनिष्ठ सहेलियों की तरह बातें कर रही थीं.

‘‘अरे, मैं तो भूल ही गई, कितनी मूर्ख हूं मैं भी,’’ अचानक रम्या ने माथे पर हाथ मारा. फिर, ‘‘मेरे साथ आओ,’’ कह वह ईशा को अपने साथ खींच ले गई. ‘‘यह देखो, आप दोनों के लिए शांता मामी ने भेजा है. शांता मामी आप दोनों को बहुत याद करती हैं. रघु का नाम लेते ही उन की आंखें छलछला जाती हैं. मनोहर मामा कुछ नहीं बोलते या फिर उन का दर्प बोलने नहीं देता. पर मन की बात चेहरे पर आ ही जाती है. उन की दयनीय स्थिति देख कर कलेजा मुंह को आता है.’’ ईशा ने सिल्क की भारी जरी की साड़ी पर हाथ फेरा था. कढ़ाईदार साड़ी और 1 हीरे का सैट. उपहार देख कर ईशा बुत सी बनी बैठी रह गई.

‘‘रघु के लिए शेरवानीनुमा कुरतापाजामा है. मामी का बहुत मन था कि रघु अपने विवाह के समय इसे पहने.’’

‘‘पता नहीं रम्या, मैं यह सब उपहार ले भी पाऊंगी या नहीं. रघु को तुम नहीं जानती. वे एकदम से आगबबूला हो जाते हैं.’’

‘‘मैं खूब जानती हूं रघु को. भाभी यह तो मातापिता का आशीर्वाद है. इसे अस्वीकार कर के तुम उन का अपमान नहीं कर सकतीं,’’ और फिर रम्या ने उपहार ईशा के कक्ष में रख दिए.

‘‘खाना बहुत स्वादिष्ठ बना है. किस ने बनाया है?’’ रघु ने भोजन करते हुए पूछा.

‘‘हम दोनों ने मिल कर बनाया है,’’ कहते हुए ईशा को न जाने क्याक्या याद आया.

नानी ने बड़े जतन से उसे खाना बनाना सिखाया था. उस के बनाए खाने की सब कितनी प्रशंसा करते थे. क्या हो गया है उसे? विवाह के बाद तो उस की जीवन में रुचि ही समाप्त हो गई है. रम्या और रोहित 1 सप्ताह ईशा और रघु के साथ रहे. इस बीच रोहित ने अलग अपार्टमैंट ले लिया. विवाहपूर्व वह अपने मित्र के साथ रहता था, किंतु नई जगह रम्या को अकेलापन न लगे, इसलिए रघु के घर के पास ही नए घर में व्यवस्थित होने का निर्णय लिया था. जब भी समय मिलता दोनों मिलने चले आते. रम्या ने शीघ्र ही कुछ नए मित्र बना लिए और कुछ पुराने खोज निकाले. जब से रम्या आई थी ईशा की जीवनशैली भी बदलने लगी थी. रम्या ने उस के जीवन में भी नई ऊर्जा का संचार कर दिया था. इसी बीच 7 महीने का समय बीत गया. एक दिन रम्या और रोहित अचानक आ धमके.

‘‘आज हम बहुत जरूरी बात करने आए हैं, चायपानी सब बाद में,’’ रम्या आते ही बोली.

‘‘तो पहले कह ही डालो, फिर चैन से बैठो,’’ रघु ने कहा.

‘‘हम भारत जा रहे हैं,’’ रम्या ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘क्या? सदा के लिए?’’

‘‘नहीं, मेरे भोले भैया, केवल 1 माह के लिए. दिव्या का विवाह है और…’’

‘‘दिव्या कौन?’’ ईशा ने पूछा.

‘‘रम्या की छोटी बहन है,’’ रघु का उत्तर था.

‘‘और क्या?’’

‘‘मनोहर मामा की षष्टिपूर्ति (60 साल का होना) का उत्सव है 20 जून को.’’

‘‘अच्छा,’’ रघु के मुख से निकला.

‘‘आप दोनों भी चलने की तैयारी कर लो,’’ रम्या ने मानो आदेश दिया हो.

‘‘हम क्यों?’’ रघु ने पूछा.

‘‘यह भी ठीक है, आप तो मेरे विवाह में भी नहीं आए थे तो दिव्या के विवाह में क्यों जाने लगे. पर मनोहर मामा की षष्टिपूर्ति के उत्सव में तो आप अवश्य जाना चाहेंगे.’’

‘‘कभी नहीं, उन्होंने तुम्हें आमंत्रित किया है, सभी मित्रों, संबंधियों को भी किया होगा, पर मुझे सूचित करने की जरूरत नहीं समझी.’’

‘‘यह भी ठीक है, फिर भी सोच लो. अपने घर जाने के लिए भी क्या किसी निमंत्रण की जरूरत होती है?’’

‘‘रम्या, क्या तुम पापा के क्रोध को नहीं जानतीं? हमारे विवाह के समय उन्होंने हमें आशीर्वाद तक नहीं दिया.’’

‘‘तुम ने आशीर्वाद मांगा ही कब भैया? क्या तुम ईशा को ले कर एक बार भी उन से मिलने गए?’’

‘‘उन्होंने कभी बुलाया भी तो नहीं.’’

‘‘विवाह तुम ने अपनी मरजी से किया… तुम्हें स्वयं जाना चाहिए था. यह देखो षष्टिपूर्ति उत्सव का निमंत्रणपत्र. उत्तराकांक्षी के स्थान पर तुम्हारा नाम लिखा है. तुम्हें तो स्वयं जा कर सारा प्रबंध करना चाहिए. मनोहर मामा का जन्मदिन तो याद है न तुम्हें?’’ और रम्या ने निमंत्रणपत्र रघु की ओर बढ़ा दिया. रघु देर तक निमंत्रणपत्र को देखता रहा. फिर रम्या को लौटा दिया.

‘‘तुम्हारे तर्क अपने स्थान पर ठीक हैं रम्या, पर मैं इस तरह जाने के लिए स्वयं को आश्वस्त नहीं कर पा रहा हूं,’’ रघु ने दोटूक शब्दों में कहा. कुछ देर तक मौन पसरा रहा मानो चाह कर भी कोई कुछ बोल नहीं पा रहा हो.

‘‘रम्या, रघु अपनी मरजी के मालिक हैं पर मैं तुम्हारे साथ चलूंगी. मुझे नानानानी से भी क्षमा मांगनी है… उन का आशीर्वाद लेना है. रघु के मातापिता से मेरा भी कोई संबंध है. अपने मातापिता को तो मैं खो चुकी हूं, पर अब उन्हें नहीं खोना चाहती,’’ ईशा ने अपना निर्णय सुनाया.

‘‘यह हुई न बात. मुझे अपनी ईशा भाभी पर गर्व है. हम गरमगरम जलेबियां और समोसे ले कर आए थे. 50% लक्ष्य प्राप्त करने में तो हमें सफलता मिल ही गई. चलो, अब गरमगरम चाय पीएंगे,’’ और फिर रम्या और ईशा चाय बनाने चली गईं. रोहित जलेबियां और समोसे प्लेट में लगाने लगा. रघु मुंह फुलाए सोफे पर बैठा अपने ही विचारों में खोया था.

‘‘भ्राताश्री, कब तक यों बैठे रहेंगे? आइए, चाय लीजिए,’’ रम्या नाटकीय अंदाज में बोल कर खिलखिला दी.

‘‘रम्या बहुत नटखट हो गई हो तुम. जब देखो तब मेरा मजाक उड़ाती रहती हो,’’ रघु चाय का कप उठाते हुए बोला.

‘‘कैसी बातें करते हो भैया, मजाक और आप का? मैं ऐसा साहस भला कैसे कर सकती हूं? मैं तो केवल आप को अपने साथ भारत ले जाने की कोशिश कर रही हूं,’’ रम्या मुसकराई.

‘‘लगता है तुम अपनी कोशिश में कुछकुछ सफलता प्राप्त कर रही हो.’’

‘‘कुछकुछ सफलता? अर्थात आप भी हमारे साथ चल रहे हैं?’’

‘‘हां, जब ईशा ने जाने का निर्णय ले ही लिया है, तो मैं उसे अकेले तो नहीं छोड़ सकता,’’ रघु ने संकुचित स्वर में कहा तो हंसते हुए भी ईशा की आंखों में आंसू भर आए, जिन्हें छिपाने के लिए उस ने मुंह फेर लिया. Social Story

Best Family Story: देसी वाइफ

Best Family Story: ‘‘हैलो.’’

‘‘बोलो.’’

‘‘सुनो.’’

‘‘सुनाओ.’’

‘‘एक खुशखबरी है.’’

‘जल्दी कहो.’’

‘‘उस के बदले में क्या दोगी?’’

‘‘जो बोलोगे.’’

‘‘पक्का?’’

‘‘पक्का. अब बोल भी दो. हमेशा सौदेबाजी करते हो. व्यापारी बाप के बेटे जो हो.’’

‘तुम्हारा पासपोर्ट है न?’’

‘‘प्लीज रमन पहेलियां मत बुझाओ. जल्दी से बताओ.’’

‘‘अच्छा गैस करो क्या बात हो सकती है. अब तो मैं ने हिंट भी दे दिया है.’’

‘‘बाहर घुमाने ले कर जा रहे हो क्या?’’

‘‘हां, डार्लिंग, हमारी तो लौटरी निकल आई है. कंपनी मुझे 6 महीने के लिए लंदन भेज रही है.’’

‘‘सच, कहीं तुम मुझे बेवकूफ तो नहीं बना रहे? इतनी अच्छी खबर सुना कर अगर बेवकूफ बनाया तो मैं तुम से बात नहीं करूंगी.’’

‘‘नहीं, मैं सच बोल रहा हूं. अगले महीने की 10 तारीख को वहां रिपोर्ट करनी है. जरा अपना पासपोर्ट निकाल कर देख लो, कहीं ऐक्सपायर तो नहीं हो गया है.’’ मीता तो फोन रख कर वहीं कुरसी पर धम से बैठ गई. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो कुछ भी उस ने फोन पर सुना वह सच है. ,लंदन जाने का उस का सपना बहुत पुराना था. लोग जब भी विदेश जाने की बात करते, तो उस के लिए विदेश का मतलब केवल और केवल लंदन जाना होता था. स्कूल में उस की एक पक्की सहेली होती थी. उस के पापा का ट्रांसफर एक बार कंपनी की तरफ से लंदन हो गया था. वह उन के साथ 1 साल के लिए लंदन चली गई थी और जब वहां से लौट कर आई थी तो कितने मजे ले कर पूरे लंदन को देखने की बात उस ने बताई थी. उस ने इस अनुभव को इतनी बार सुना था कि सहेली का यह अनुभव उसे अपना अनुभव लगने लगा था. उस ने भी लंदन देखने का सपना बहुत बार देखा था. आज की बात से उसे सपना साकार होता नजर आ रहा था. मीता और रमन के विवाह को अभी 3 साल ही हुए थे. अभी तक परिवार बढ़ाने की बात उन्होंने नहीं सोची थी. आज मीता को लग रहा था कि अच्छा ही हुआ कि उन के यहां कोई बच्चा अभी नहीं था. वह आराम से घूम सकती थी. वह एक कोचिंग सैंटर में नौकरी करती थी और वह कभी भी काम छोड़ सकती थी.

बड़े उत्साह के साथ दोनों ने तैयारी शुरू की. वहां ठहरने की समस्या भी सुलझ गई. जब रमन ने अपनी मां को लंदन जाने की बात बताई तो वे बोलीं, ‘‘वहां जा कर कहां ठहरोगे? होटल तो वहां बहुत महंगे हैं. फ्लैट भी लोगे तो भी बहुत महंगा पड़ेगा. मैं सोच रही हूं कि तुम एक पेइंग गैस्ट की तरह मेरी सहेली रानी के घर रुक जाओ. तुम्हें रानी मासी की तो याद होगी जो तुम्हें बचपन में स्कूटर पर घुमाती थीं और चौकलेट भी ला कर देती थीं?’’

‘‘हां मौम, अच्छी तरह याद है. क्या आजकल वे लंदन में हैं?’’

‘‘हां शादी के बाद वह लंदन चली गई थी और तब से वहीं है. उस का घर बड़ा है और वह पेइंग गैस्ट रखती है. उस की बेटी और दामाद उस के साथ ही रहते हैं. दामाद अंगरेज है. मैं उस का फोन नंबर दे दूंगी, बाकी बात तुम खुद कर लेना.’’

‘‘मौम, यह तो बहुत अच्छा हुआ. आप मुझे फोन नंबर भेज दो. मैं आज ही उन से बात कर लूंगा. मीता वहां एक भारतीय परिवार के साथ रहेगी तो उस के लिए ठीक रहेगा.’’ रमन की मां ने अपने सहेली को फोन मिलाया और उस से बात की, तो रमन को फोन नंबर मिला तो उस ने भी रानी मासी से बात कर ली. रानी बोलीं, ‘‘मेरी बेटी नीना और दामाद को पेइंग गैस्ट रखने में कोई आपत्ति नहीं होगी. लेकिन उस वक्त मैं यहां नहीं रहूंगी. मैं कुछ समय के लिए अपनी छोटी बेटी के पास अमेरिका जा रही हूं.’’ फोन पर ही सब पक्का हो गया. निश्चित समय पर मीता और रमन नीना के घर जा पहुंचे. नीना और रौबिन ने उन का स्वागत किया और उन्हें रहने की जगह दिखाई. चारों हमउम्र थे. रौबिन आधा भारतीय बन चुका था और नीना आधी अंगरेज. वह जन्म से भारतीय थी पर उस का लालनपालन और शिक्षा लंदन में होने के कारण उस पर पश्चिमी सभ्यता का असर ज्यादा था. नीना घर से 10 बजे निकलती, इसलिए 9 बजे तक किचन उस के पास होता.  इस के बाद ही मीता का किचन में प्रवेश होता. दोनों के बीच यही तय हुआ था. नीना के जाने के बाद ही रौबिन भी चला जाता और वह नाश्ते में आमतौर पर केवल फल और दूध ही लेता. मीता चायकौफी आदि अपने कमरे में ही बना लेती और 10 बजे के बाद जब वह किचन में घुसती तो उसे किचन पूरी तरह व्यवस्थित मिलता. नीना पूरी सफाई कर के ही बाहर निकलती. मीता झट से रमन के लिए नाश्ता बनाती, जो अधिकतर आमलेट और टोस्ट ही होता.

रमन को भारतीय खाना ही भाता था और मीता को खाना बनाने में बहुत आनंद आता था. वह रोज ही दाल, सब्जी, चावल और रोटी बनाती. बाहर का सब काम भी वह स्वयं ही करती. उस की सारी दोपहर बाहर ही बीतती. बाजार का रास्ता उस ने याद कर लिया था. सब सामान खरीद कर वह एक पार्क में जा कर बैठ जाती और वहां बैठ कर प्रकृति और लोकल लोगों को देखने का लुत्फ लेती. फिर घर लौट आती और बड़े प्यार से खाना बनाती. पश्चिमी सभ्यता में पलीबढ़ी नीना व्यवहार में बिलकुल विदेशी थी. उस ने हर क्षेत्र में सीमाएं बनाई हुई थीं. उन सीमाओं को न वह पार करती थी और न ही औरों को करने देती थी. वह और उस का पति दोनों अपना सारा काम स्वयं करते थे. दोनों चायकौफी अपनीअपनी बना कर पीते थे तो अपनेअपने कपड़े भी खुद ही प्रेस करते थे. हफ्ते में 1 दिन वाशिंग मशीन चलती थी. गंदे कपड़े नीना इकट्ठा करती और मशीन में डालती, तो धुल जाने पर रौबिन कपड़ों को सुखाने के लिए डालता. घर की सफाई करते वक्त सब चीजों की झाड़पोंछ नीना करती और वैक्यूम क्लीनर रौबिन चलाता.

मीता को तो अपने पति रमन का हर काम करने में खुशी होती थी. उस की पसंद का भोजन बनाना उस की प्राथमिकता थी. अलगे दिन रमन को कौन से कपड़े पहनने हैं, यह सोच कर उन्हें निकाल कर वह प्रेस करती थी. एक दिन जब वह रमन की कमीज प्रेस कर रही थी, तो नीना जल्दी घर आ गई. मीता को कमीज प्रेस करता देख कर वह बोली, ‘‘तुम रमन की कमीज क्यों प्रेस कर रही हो? उसे यह काम खुद करना चाहिए. यदि तुम्हें पति की सेवा का ज्यादा शौक है तो करो. पर यह काम रौबिन के सामने मत करना वरना उस की भी अपेक्षा हो जाएगी कि मैं भी उस की कमीज प्रेस करूं. ऐसा मैं करने वाली नहीं. उस ने तो पहले से ही तुलना करनी शुरू कर दी है कि इंडियन वाइफ कितनी अच्छी होती है.’’

मीता ने हैरानी से नीना की ओर देखा तो नीना बोली, ‘‘मैं इस बात को ले कर बहुत सीरियस हूं. तुम अपने छोटेछोटे कामों से हमारे बीच तनाव पैदा कर रही हो. रौबिन ने मुझ में एक इंडियन वाइफ तलाशनी शुरू कर दी है, जो मैं कभी बन नहीं सकती. इसलिए हम पर कुछ रहम करो.’’ मीता को बहुत अजीब लगा. उस के तो सपने में भी ऐसी बात नहीं आ सकती थी कि उस के व्यक्तिगत कामों से भी नीना इतना प्रभावित हो सकती है. रात को उस ने रमन को सारी बात बताई तो वह बोला, ‘‘जैसा नीना बोले वैसा कर लो. हमें 2 महीने और बिताने हैं, क्यों किसी को तकलीफ दी जाए.’’ तभी एक घटना और घट गई. उस दिन रविवार था. सब अपनेअपने टाइम से उठ रहे थे. सब से पहले नीना उठी. उस ने अपने लिए कौफी बनाई और अपना आईपैड ले कर बैठ गई. उस के बाद रौबिन उठा. उस ने अपने लिए ग्रीन टी बनाई और न्यूज पेपर ले कर बैठ गया. बाद में मीता रसोई में आई और उस ने 2 कप अदरक वाली चाय बनाई. उस ने चाय बनाने से पहले नीना से भी पूछा कि क्या वह भी चाय लेगी पर उस ने मना कर दिया. चाय ले कर वह अपने कमरे में चली गई. रमन और उस ने आराम से चुसकियां ले कर चाय पी और बौंबे को याद किया जहां प्लेट में डाल कर व चुसकी ले कर ही लोग चाय पीते हैं. उस के बाद रमन बोला, ‘‘जानेमन आज जरा चंपी कर दो, यहां तो बाल कटवाने इतने महंगे हैं कि सोचा है कि अब इंडिया जा कर ही बाल कटवाऊंगा और तब ही मालिश भी होगी. पर आज तुम अपने हाथों का कमाल दिखा दो.’’

मीता झट से चंपी मालिश करने के लिए तेल उठा लाई और उस ने मालिश करनी शुरू कर दी. रमन आंखें बंद कर के चंपी मालिश का मजा लेने लगा. तभी रौबिन को कोई काम याद आया तो रमन से बात करने के लिए उस ने उन के दरवाजे पर दस्तक दी. रमन फौरन बोला कि अंदर आ जाओ. अंदर आ कर उस ने जो दृश्य देखा उस से तो वह हैरान हो गया. वह पूछ बैठा, ‘‘यह क्या हो रहा है? क्या इंडियन वाइफ यह भी करती है?’’ रमन और मीता जोर से हंसे. रमन बोला, ‘‘आज सुबह से सिर थोड़ा भारी था, इसलिए मीता ने चंपी मालिश कर के उसे दूर कर दिया.’’ रौबिन ने अजीब नजरों से मीता की ओर देखा. मीता को तुरंत नीना की चेतावनी याद आ गई. उस के हाथ एकदम से रुक गए और उस का चेहरा फक हो गया. रौबिन ने भी उस के चेहरे के भाव बदलते देखे तो वह बिना कोई भी बात किए कमरे से बाहर आ गया. उस के चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी. बाहर आ कर वह नीना से बोला, ‘‘ये इंडियन पति भी अजीब होते हैं. अपनी वाइफ से नौकरों की तरह काम करवाते हैं. देखो तो रमन आराम से कुरसी पर बैठा है और वह उस की सेवा में खड़ी है.’’

इसे रमन ने भी सुना तो वह कमरे से बाहर आ कर बोला, ‘‘रौबिन तुम्हें गलतफहमी हो रही है. मैं मीता से जबरदस्ती कुछ भी नहीं करवाता हूं. वह सब अपनी मरजी से करती है. उसे मना करने का भी पूरा अधिकार है.’’ बाद में नीना बोली, ‘‘ये इंडियन औरतें आदमियों को अच्छे से बिगाड़ कर रखती हैं. मैं इन से नफरत करती हूं.’’ अंदर मीता ने भी सुना. वह डर गई कि अब नीना से सामना होगा तो वह न जाने क्याक्या बोलेगी. बाद में जब दोनों का आमनासामना हुआ तो नीना बोली, ‘‘अपने पति की सेवा इंडिया जा कर करना. मेरे लिए समस्या पैदा मत करो. तुम्हें क्या पता कि आजकल रौबिन के मन में सारा दिन क्या चलता रहता है. वह कहता है कि वह इंडियन लड़की से शादी करना चाहता था. उस की दादी जोकि ब्रिटिश टाइम में बहुत समय इंडिया रह कर आई थीं, हमेशा ही इंडियन वाइफ के गुणगान किया करती थीं. तब उस के मन में भी आता था कि वह बड़ा हो कर एक इंडियन लड़की से शादी करेगा. इसलिए जब उस की दोस्ती मुझ से हुई तो वह मेरी ओर आकर्षित हो गया. पर अब तुम्हें देखने के बाद ही उसे समझ में आया है कि इंडियन वाइफ क्या होती है. और सुनो, वह मुझे कहता है कि उस के साथ धोखा हो गया है.’’

मीता बोली, ‘‘मुझे बहुत दुख है कि मेरे कारण तुम दोनों के बीच तनाव चल रहा है. मैं ध्यान रखूंगी कि मैं ऐसा कोई काम न करूं जिस से रौबिन को लगे कि मैं तुम से बेहतर हूं.’’ उस दिन रौबिन का जन्मदिन था. सुबह ही रमन और मीता ने उसे बधाई दी. रमन बोला, ‘‘आज स्पैशल क्या हो रहा है?’’

रौबिन बोला, ‘‘आज मुझे अपनी मदर इन ला की याद आ रही है. हर बर्थडे पर वे गाजर से एक स्वीट डिश बनाती थीं. मुझे उस का नाम याद नहीं आ रहा है. नीना जरा बताओ तो उस डिश का क्या नाम है?’’ नीना बोली, ‘‘इतने सालों से खाते आ रहे हो और अभी तक नाम याद नहीं हुआ. उसे गजरेला कहते हैं.’’ रमन झट से बोला, ‘‘मीता बहुत स्वादिष्ठ गजरेला बनाती है. आज तुम्हारे बर्थडे पर बनाएगी. क्यों मीता पक्का रहा न? आज शाम को मैं भी गजरेला खाऊंगा और इंडिया को और अपनी मां को याद करूंगा.’’ इस सब के बीच मीता कुछ बोल ही नहीं पाई. जानती थी कि उस का गजरेला बनाना नीना को बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा. पर अब वह असहाय थी. मना करती तो रमन और रौबिन को बुरा लगता और बनाती है तो नीना को अच्छा नहीं लगता.

नीना बोली, ‘‘शाम को वापस आते वक्त इंडियन स्टोर से मैं लेती आऊंगी. मीता को कष्ट देने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘नहीं मीता को ही बनाने दो. घर के बने खाने की तो बात ही कुछ और होती है,’’ रौबिन बोला. मीता ने मेहनत से गजरेला बनाया. शाम को छोटी सी पार्टी में सब ने गजरेला की तारीफ की. यहां तक कि नीना ने भी उंगलियां चाटचाट कर गजरेला खाया और सारी प्लेट साफ कर दी. नीना को खाते देख कर मीता ने सोचा कि आज तो वह कोई शिकायत नहीं करेगी.

रौबिन बोला, ‘‘मैं ने नीना से विवाह इसलिए किया था कि मुझे इंडियन वाइफ मिलेगी. लेकिन इंडियन वाइफ क्या होती है यह मैं ने मीता से मिल कर ही जाना है. मैं चाहता हूं कि अगले जन्म में मैं रमन बन कर पैदा होऊं.’’ इतना सुनते ही नीना, मीता और रमन के चेहरे के भाव बदल गए. उन के चेहरे देख कर रौबिन ने झट से अपना स्टेटमैंट बदल दिया, ‘‘ओह मैं कहना, यह चाह रहा था कि मीता बहुत अच्छी है. अगले जन्म में मुझे मीता जैसी पत्नी मिले. गजरेला बहुत टेस्टी था. थैंक यू वैरी मच.’’ उस के बाद वातावरण वही नहीं रहा. मीता और रमन अपने कमरे में आ गए. रमन बोला, ‘‘रौबिन पगला गया है. ऐसे ही व्यवहार करता रहा तो अपनी आधी इंडियन वाइफ से भी हाथ धो लेगा.’’

‘‘मुझे तो अब नीना से डर लग रहा है. कल पता नहीं क्याक्या सुनाएगी. अभी कुछ दिन यहां और बाकी हैं. फिर तो इन्हें बाय बोल देना है.’’ सुबह मीता इंतजार करती रही कि नीना घर से चली जाए तभी वह अपने कमरे से बाहर निकले. पर नीना काम पर नहीं गई. तब मीता नीचे आई. नीना बोली, ‘‘रौबिन तुम्हारा दीवाना बनता जा रहा है. मैं इसे सहन नहीं कर सकती हूं. तुम अपना बंदोबस्त कहीं और कर लो या इंडिया लौट जाओ. तुम नहीं जानती हो कि हर जगह वह तुम्हारी ही बात करता है और तारीफों के पुल बांधता है. मुझे तुम जैसी बनने को बोलता है. मैं जैसी हूं वैसी ही रहूंगी. तुम यहां से जाओ तो मेरा भला हो जाएगा.’’ मीता बात सुन कर सन्न रह गई. रात को जब रमन ने सुना तो बोला, ‘‘अगली फ्लाइट से तुम वापस चली जाओ. अगले हफ्ते ही तुम्हारी सहेली की शादी है. वहां जा कर शादी का मजा लो. अगले हफ्ते मैं भी आ जाऊंगा.’’ फिर ऐसा ही हुआ. रौबिन को बिना बताए ही मीता ने लंदन छोड़ दिया. नीना ने चैन की सांस ली. रौबिन को पता ही नहीं चला कि मीता अचानक क्यों चली गई. पर उस के मन में इंडियन वाइफ की जो छाप छोड़ कर गई उसे मिटाना आसान नहीं होगा. वह बारबार यही दोहराता रहा कि अगले जन्म में वह एक इंडियन पति के रूप में पैदा होना चाहता है. Best Family Story

Family Story: पूरा हुआ अधूरा प्यार

Family Story: सुबह होते ही  दीप  का  मोबाइल बज  उठा, ‘‘हाय जीजू, कैसे हो? रात कैसी थी? दीदी सो रही हैं या नहीं. आप ने उन्हें सोने भी दिया या नहीं?’’

‘‘बसबस, सवाल ही पूछती रहोगी या कुछ जवाब भी देने दोगी,’’ दीप ने बीना से कहा, बीना उस की नईनवेली पत्नी शिखा की लाड़ली बहन है. ‘‘लो बहन से ही पूछो. मैंने सबकुछ कह दिया तो तुम दोनों ही शरम से लाल हो जाओगी.’’

शिखा और बीना की बातें शुरू हुईं तो लगा मानो वर्षों बाद बात हो रही है.

बीना का रिजल्ट निकला. वह पास हो गई थी. शिखा ने ही बीना को पढ़ाया था. नौकरी लगने के फौरन बाद ही शिखा ने बीना को इंजीनियरिंग कालिज में प्रवेश दिला दिया था. कालिज की पढ़ाई का भारी खर्च शिखा के ही कंधों पर था क्योंकि मां एक साधारण अध्यापिका थीं और पिता कुछ नहीं करते थे.

शिखा को तो मां ने अतिरिक्त ट्यूशन पढ़ापढ़ा कर इंजीनियरिंग का कोर्स पूरा कराया था पर बीना का बोझ शिखा ने उठा लिया था.

आज की युवा पीढ़ी की तरह मौजमस्ती से दूर केवल पढ़ाई को लक्ष्य बना कर दोनों बहनों ने सफलता प्राप्त की.

शिखा बहुत बड़ी कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर थी, उस का वेतन 20 हजार रुपए महीना था. पर देखने में वह इतनी सीधी थी कि उसे देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वह इतनी पढ़ीलिखी है और 20 हजार रुपए महीना कमाने वाली लड़की है.

शिखा देखने में सुंदर भी थी. 2 साल से उस के लिए रिश्ते आ रहे थे पर वह उन्हें टालती जा रही थी.

शिखा ने एक दिन मां से पूछ ही लिया, ‘‘मां, आप लड़के के बारे में पूछ रही थीं न, अगर दूसरी बिरादरी का लड़का होगा तो भी आप मान जाएंगी न?’’

‘‘ओह हो, तो यह बात है. मेरी रानी बिटिया को कोई भा गया है. बता, जल्दी से बता. मुझे बिरादरी अलग होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. बस, लड़का लायक होना चाहिए.’’

‘‘मां, जब एक बार मैं बीमार पड़ी थी तब आफिस के कई साथी हालचाल पूछने आए थे, उन में वह लड़का भी था. उस ने सफेद कुरतापाजामा पहना हुआ था. बाल थोड़े लंबे थे.’’

‘‘अच्छाअच्छा, तू दीप की बात कर रही है जिसे देख कर मैं ने उसे शायर की उपाधि दी थी.’’

‘‘हां, मां. हम दोनों एक ही प्रोजेक्ट पर काम करते हैं. बहुत ही अच्छा लड़का है. मेरी तरह वह भी उड़ने वाले लड़कों में से नहीं है.’’

‘‘उस की मां को पता है कि तुम दूसरी जाति की हो?’’

‘‘उस की मां को सब पता है. वह यह जानती है कि मैं हरियाणा के जाट परिवार से हूं. अब आप की तरफ से अगर हां हो तो दीप मुझे एक दिन अपनी मां से मिलवाने ले जाएगा.’’

‘‘ठीक है जब उन की तरफ से हां हो जाएगी तब हम भी उन से मिल लेंगे.’’

मां बड़ी खुश थीं. एक बड़ा बोझ उन के सिर से जैसे उतर गया हो. अगले इतवार को ही दीप शिखा को अपनी मां से मिलवाने ले गया. शिखा बहुत ही सामान्य कपड़ों में और बिना किसी मेकअप के दीप के घर उन की मां से मिलने आई थी. दीप की मां तो उसे देखते ही मुग्ध हो गई थीं. उन्हें तेजतर्रार लड़कियों से बड़ा डर लगता था.

उन के मन में एक ही इच्छा थी कि दीप को उस की तरह ही सीधी-

सादी लड़की मिले क्योंकि एक  तो वह बेहद सरल स्वभाव का था दूसरे छलकपट और दिखावे से भी बहुत दूर रहता था. बस, अपने काम की दुनिया में वह मस्त रहने वाला इनसान था.

शिखा को देख कर दीप की मां उस से बातें करने में खो गईं. दोनों की बातों में दीप जैसे अकेला पड़ गया तो वह चुपचाप उठ कर कंप्यूटर पर जा बैठा था.

पहली ही मुलाकात में शिखा ने अपने और अपने परिवार के बारे में दीप की मां को सबकुछ बता दिया था. दीप के बारे में तो वह जानती ही थी.

दीप की मां ने पहली मुलाकात में ही शिखा को अपनी बेटी के रूप में स्वीकार कर लिया तो दोनों परिवार मिले और बात आगे बढ़ी. शादी की तारीख तय हुई और फिर खरीदारी शुरू हो गई. दीप की मां ने सारी खरीदारी शिखा को साथ ले जा कर की.

इस तरह रोज की मुलाकातों में शिखा की व्यवहारकुशलता और बचत करने की आदत से भी वह परिचित हो गई थीं.

जीवन की कठिनाइयों ने शिखा को पैसे का मूल्य समझना सिखा दिया था. वह कहीं भी फुजूलखर्ची न तो खुद करती न दूसरों को करने देती थी. दीप की मां जस्सी शिखा के बारे में सोचसोच कर हैरान होती कि देखो जमाने की हवा से शिखा कितनी दूर है. इतना कमाती है फिर भी सोचसमझ कर ही खर्च करती है. जस्सी की ओर से खरीदारी पूरी हो चुकी थी. तभी एक दिन शिखा का फोन आया.

‘‘मां, आप से एक बात पूछनी है. आप बुरा मत मानना और किसी को भी बताना नहीं, यहां तक कि दीप को भी नहीं बताना.’’

‘‘क्या बात है? कोई गंभीर समस्या है क्या?’’

‘‘नहीं मां, कोईर् गंभीर बात नहीं है. पर फिर भी आप की रजामंदी के बिना मैं कुछ नहीं करूंगी.’’

‘‘अच्छा बोलो, मैं वादा करती हूं कि तुम्हारा पूरा साथ दूंगी.’’

‘‘मां शादी पर पहनने वाली ड्रेस मैं बनवाना नहीं चाहती. इधर मैं ने बाजार में सब देखा. कोई भी डे्रस 10-12 हजार रुपए से कम की नहीं है. सिर्फ एक दिन पहनने के लिए इतना पैसा बरबाद करने का मेरा मन नहीं है. क्या मैं किराए पर ले कर पहन लूं. आजकल किराए पर एक से एक बढि़या ड्रेस और साथ में मैचिंग गहने मिलते हैं. आप तो जानती हैं कि मैं दोबारा ऐसे कपड़े पहनने वाली नहीं हूं. यदि आप मेरा साथ देंगी तभी मैं यह कदम उठा सकती हूं. दूसरे दिन ही सब सामान वापस चला जाएगा.’’

‘‘तू कैसी लड़की है?’’ जस्सी ने कहा, ‘‘शादी की डे्रेस पर तो सब लड़कियां अपने पूरे अरमान निकाल लेती हैं और तू कहती है कि बनवानी ही नहीं है. बेटी, मैं पैसे देती हूं, तू अपनी पसंद की बनवा ले.’’

‘‘मां, बात पैसे की नहीं है. मेरी समझ में यह पैसे की बरबादी है. आप भी मेरी बात से सहमत होंगी.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी क्या कहती हैं?’’

‘‘वह कहती हैं कि अगर समधनजी मान जाएं तो ऐसा कर लो. मां को तो मैं ने मना लिया है, अब आप को मनाना बाकी है.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम चाहो वैसा कर लो. मुझे कोई आपत्ति नहीं है और यह रहस्य मेरे तक ही सीमित रहेगा.’’

‘‘थैंक्यू मां,’’ कह कर शिखा ने फोन रख दिया.

जस्सी के मन में अब शिखा के लिए आदर का भाव और भी बढ़ गया. उस ने सोचा कि देखो शिखा कितना सोचती है अपने परिवार के बारे में. बेकार में पैसा उड़ाने में विश्वास नहीं रखती है. कल को पति के घर को भी अच्छे से संभाल लेगी.

शादी का दिन आ पहुंचा. गुलाबी रंग के लहंगेचुनरी में शिखा का सौंदर्य निखर उठा था. गहने उस की सुंदरता को और भी बढ़ा रहे थे. शिखा की डोली विदा हो कर दीप के घर आ गई थी. सब तरह के रीतिरिवाजों से निबट कर जब आराम करने के लिए शिखा अपने कमरे में जाने लगी तो उस ने अपनी सास को इशारे से कमरे में बुला लिया. बहुत ही ध्यान से शिखा ने कपड़े उतार कर अटैची में बंद किए. सब गहने उतार कर डब्बे में रखे. इस काम में जस्सी ने शिखा की मदद की. बहुत ही ध्यान से दर्जनों सेफ्टीपिन लहंगे और चुनरी से निकाले. सबकुछ सहेज कर रखने के बाद शिखा ने राहत की सांस ली और अपनी सास को एक बार फिर दिल से थैंक्यू कहा.

सास ने प्यार से उसे बांहों में भर लिया और बोलीं, ‘‘बेटी, जैसे तुम ने अपने मायके का पूरा ध्यान रखा है उसी तरह से ससुराल का भी ध्यान रखना.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है मां. अब तो यह मेरा घर है. मेरी जान इसी पर न्योछावर है.’’

रात होतेहोते दीप के दोस्तों और मौसेरे, चचेरे भाईबहनों ने मिल कर बोलना शुरू किया, ‘‘अरे दीप, किस होटल में कमरा बुक किया है. चलो, तुम दोनों को छोड़ आएं.’’

‘‘हम अपनेआप चले जाएंगे, तुम लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

घर मेहमानों से भरा हुआ था क्योंकि वह 2 कमरों का एक छोटा सा फ्लैट था. दीप भी जानता था कि समाज के रिवाज के अनुसार उसे शिखा को ले कर किसी होटल में जाना ही पड़ेगा, अन्यथा आज की सोच वाले उस के दोस्त उस का पीछा नहीं छोड़ेंगे. रात के 10 बज चुके थे, दीप और शिखा ने सब को ‘बाय’ किया और अपनी कार में घर से चल दिए. रास्ते में शिखा ने दीप से पूछा कि होटल के कमरे में कितने रुपए लगेंगे?

‘‘पांचसितारा होटल में 5 हजार, तीनसितारा होटल में 3 हजार और एक सितारा होटल में 1 हजार रुपए. तुम बोलो कि तुम्हें कहां चलना है, पैसे का प्रबंध मैं ने कर रखा है.’’

‘‘और कंपनी के गेस्ट हाउस के कमरे के कितने?’’

‘‘मुफ्त. केवल 100 रुपए चौकीदार को टिप के रूप में देने पड़ेंगे.’’

‘‘तो चलो वहीं चलते हैं.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है. लोग क्या कहेंगे?’’

‘‘मेरा दिमाग बिलकुल ठीक है,’’ शिखा बोली, ‘‘मैं लोगों की चिंता नहीं करती. पैसे की बरबादी मैं नहीं करती, यह तुम अच्छे से जानते हो.’’

‘‘यह रात फिर कभी नहीं आएगी. बाद में ताना मत मारना कि मैं कंजूस हूं.’’

‘‘नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा,’’ इतना कह कर शिखा ने धीरे से दीप के हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

दीप ने कार गेस्ट हाउस की दिशा में मोड़ दी. रात बहुत हो चुकी थी फिर भी सड़क के किनारे एक फूल वाला अपने फूल समेटने की तैयारी में था. दीप ने कार रोकी और उस के सारे गुलाब के फूल खरीद लिए. दीप जानता था कि शिखा को गुलाब के फूल बहुत अच्छे लगते हैं.वह सप्ताह में एक दिन गुलाब के फूलों का एक गुच्छा खरीद कर घर ले जाती थी और उन्हें ही सहेज कर हफ्ता निकाल देती थी.

कार गुलाबों से महक उठी. गेस्ट हाउस के उस कमरे को दोनों ने मिल कर सजाया. दोनों के दिलों में प्यार की महक थी इसलिए वह साधारण सा कमरा भी किसी पांचसितारा होटल से अधिक सुंदर लग रहा था. दोनों एकदूसरे की बाहों में खो गए थे.

सुबह होते ही घर जाने की तैयारी हुई. शिखा बहुत ही खुश नजर आ रही थी. दीप ने पूछा, ‘‘क्या बात है बहुत खुश हो.’’

‘‘हां, वो तो है. मैं बहुत खुश हूं क्योंकि आज मैं दीपशिखा बन गई हूं.’’

‘‘दीप भी तो शिखा के बिना अधूरा था,’’ दीप बोला, ‘‘चलो, अब दीपशिखा मिल कर चलें,’’ शिखा हसंती हुई बोली.

शिखा का खिला हुआ चेहरा देख कर जस्सी ने उसे गले से लगा लिया था. शिखा की खुशी का एक और राज भी था जिसे उस ने मां को नहीं बताया था. पहले दिन से उस ने अपने घर की सुरक्षा का बीमा अपने हाथों में ले लिया था. Family Story

Monsoon Special: अब घर पर ही बनाएं स्वादिष्ट मिल्क केक

Monsoon Special: मिठाई की बात की जाए और मिल्क केक का नाम ना आए ऐसा तो हो ही नहीं सकता. सबसे ज्यादा पसंद किए मिठाईयों मेंसे एक है मिल्क केक. इस मिठाई को आप घर पर भी बड़ी आसानी से बना सकती हैं. जानिए अपनी मनपसंद मिठाई बनाने की विधि.

सामग्री

– 3 लीटर दूध

– 2 टेबल स्पून नींबू का रस

– 1 टी स्पून हरी इलायची

– 1 टेबल स्पून देसी घी

– 250 ग्राम चीनी

– तेल

– बादाम (गार्निशिंग के लिए)

विधि

एक भारी कड़ाही में दूध लेकर उबालें. फिर इसमें 2 टेबल स्पून नींबू का रस डालकर तब तक हिलाएं जब तक दूध फटना न शुरू हो. फिर इसमें 1 टी स्पून हरी इलायची, 1 टेबल स्पून देसी घी और 250 ग्राम चीनी डालकर अच्छे से मिक्स करते हुए पकाएं. जब तक सारा मिश्रण कड़ाही के किनारों को छोड़ने न लगे.

इस सारे मिश्रण को तेल से ग्रीस की हुई ट्रे में निकालकर ऊपर से बादाम से गार्निश करें. सारी रात के लिए ढककर रखें. फिर मनचाहे आकार में काटकर सर्व करें. Monsoon Special

Family Story: मैं शादी के लिए तैयार हूं

Family Story: शशि ने जब पायल से विवाह की बात दोबारा छेड़ी तो पायल ने कहा, ‘‘इस उम्र में विवाह? क्यों मजाक करती हो. लोग क्या कहेंगे?’’

शशि ने पहले भी कई बार पायल से विवाह की चर्चा की थी. आज फिर कहा, ‘‘अपने बारे में सोचो. आधा जीवन अकेले काट लिया. तुम्हारी परेशानी, अकेलेपन में कोई आया तुम्हारा हाल पूछने? और लोगों का क्या है, वे तो कुछ न कुछ कहते ही हैं. शादी नहीं हुई तब भी और हो जाएगी तब भी. कहने दो जिस को जो कहना है.’’

शशि अपने घर चली गई. दोनों सहेलियां थीं. एक ही कालोनी में रहती थीं. शशि विवाहित और 2 बच्चों की मां थी, जबकि 45 की उम्र में भी पायल कुंआरी थी. शशि के जाने के बाद पायल ने खुद को आईने में देखा. ठीक उसी तरह जैसे वह 20 साल की उम्र में खुद को आईने में निहारा करती थी. बालों को कईकई बार संवारा करती थी.

इधर कुछ सालों से तो वह आईने को मात्र बालों में कंघी करने के लिए झटपट देख लिया करती थी. पिछले कई वर्षों से उस ने खुद को आईने में इस तरह नहीं देखा. शशि शादी की बात कर के गई तो पायल ने स्वयं को आईने में एक बार निहारना चाहा. आधे पके हुए बाल, चेहरे का खोया हुआ जादू, आंखों के नीचे काले गड्ढे. स्वयं को संवारना भूल गई थी पायल. आज फिर संवरने का खयाल आया और आईने में झांकते हुए वह अपने अतीत में खो गई.

जब वह 20 साल की थी तब पिता की असमय मृत्यु हो गई थी. जवान होती लड़कियों की तरह स्वयं को भी आईने में निहारती रहती थी. मां को पेंशन मिलने लगी. लेकिन किराए के मकान में 2 बेटियों और 1 बेटे के साथ मां को घर चलाने में समस्या होने लगी. 2 लड़कियों की शादी और बेटे को पढ़ालिखा कर रोजगार लायक बनाना मां के लिए कठिन प्रतीत हो रहा था. पायल कालेज में थी और 5 साल छोटा भाई अनुज अभी स्कूल में था.

पिता की मृत्यु के बाद पायल ने नौकरी के लिए तैयारी करना शुरू कर दी. वह घर के हालात समझती थी और मां का हाथ भी बंटाना चाहती थी. कुछ दिनों बाद पायल की नौकरी लग गई. वह शिक्षा विभाग में क्लर्क बन गई. पायल को समझ ही नहीं आया कि नौकरी उस के लिए वरदान था या श्राप. मां ने भाईबहन की जिम्मेदारी उसे सौंप दी. पायल ने सहर्ष स्वीकार भी कर ली. पायल के लिए रिश्ते आते तो मां मना कर देती. कहती, ‘‘पहले छोटी की शादी हो जाए और बेटा अपने पैरों पर खड़ा हो जाए. उस के बाद पायल की शादी के बारे में सोचूंगी.’’

पायल की कमाई घर आने लगी तो भाईबहन के शौक बढ़ गए. मां भी दिल खोल कर खर्च करती. पायल ने भी भाईबहन और मां की इच्छाओं को हमेशा पूरा किया. 20 बरस की पायल की जवानी शुरू होते ही खत्म सी हो गई.

अब उसे एक ही सबक मां बारबार सिखाती, ‘‘अब तुम्हें अपने लिए नहीं, अपने भाईबहन के लिए जीना है.’’

जरूरतें व्यक्ति को स्वार्थी बना देती हैं. पायल को औफिस में देर हो जाती

या औफिस का कोई घर छोड़ने आता तो मां उस से पचासों सवाल करती. पायल क्या बात कर रही है, मां की नजरें और कान इसी पर लगे रहते.

मां कहती, ‘‘यह ठीक नहीं है. कोई प्यार की बीमारी मत पाल लेना. तुम कमाऊ लड़की हो. दसों लोग डोरे डालेंगे. लेकिन ध्यान रखना, तुम्हारे ऊपर परिवार की जिम्मेदारी है. फिर भी यदि करना ही चाहो तो कोई क्या कर सकता है? तुम्हारी खुशी में हमारी खुशी. हम अपना देख लेंगे.’’

मां की आंखों में आंसू भर आते और पायल को कई प्रकार से समझाते हुए कसम खानी पड़ती कि जब तक भाईबहन को किनारे नहीं लगा देती तब तक ऐसाकुछ नहीं होगा.

पायल जब 30 वर्ष की हुई तब रुचि की शादी हुई. रिश्ते बहुत आए लेकिन रुचि को पसंद नहीं आए. रुचि के अपने सपने थे. उस के सपनों का राजकुमार ढूंढ़ने में एक दशक लग गया. पायल जब उसे समझाती कि हम बहुत बड़े लोग नहीं हैं. इतने बड़े सपने मत पालो. अपने बराबर वालों में से किसी को पसंद कर लो. पायल की बात पर मां उलाहना देते हुए कहतीं, ‘‘समय लग रहा है तो लगे. रुचि को लड़का पसंद तो आना चाहिए. मन मार कर शादी करने का क्या अर्थ है? तुम्हें रुचि की शादी की इतनी जल्दी क्यों है? तुम चाहो तो…’’

पायल को चुप होना पड़ा. खातेपीते घर के इंजीनियर से शादी तय हुई तो उस के मुताबिक खर्च भी करना पड़ा. पायल को अपने पीएफ के अलावा विभागीय लोन भी लेना पड़ा. विवाह में अच्छाखासा खर्च हुआ. इस वजह से उसे 5 साल अपने वेतन से लोन चुकाना पड़ा.

यदाकदा आने वाले रिश्तों को भी यह कह कर अस्वीकृत कर दिया जाता कि बस भाई अपने पैर पर खड़ा हो जाए. फिर मांबेटे मिल कर पायल के हाथ पीले करेंगे. पायल ने आईना देखना छोड़ दिया. बस झट से कंघी कर के पीछे चोटी कर लेती. स्वयं को जी भर कर देखना ही भूल गई पायल. छोटा भाई अनुज बीटैक कर रहा था. पढ़ाई में होने वाला खर्चा पायल को ही प्रतिमाह भेजना था. शुरू में तो अनुज फोन पर अकसर कहता पायल से कि दीदी, एक बार मुझे नौकरी मिल गई फिर आप की शादी धूमधाम से करूंगा. लेकिन नौकरी मिलते ही वह अपनी नौकरी में व्यस्त हो गया.

मां की इच्छा थी कि एक बार बहू का मुंह देख लूं तो समझो गंगा नहा लिया. फिर कोई परवाह नहीं. पायल के विषय में नहीं सोचा मां ने. पायल को दुख तो हुआ लेकिन मां के कई कड़वे घूंट की तरह वह इसे भी पी गई. अनुज के लिए शादी के प्रस्ताव आने लगे थे. मां के अपने तौरतरीके थे लड़की पसंद करने के. दहेज, सुंदर लड़की… और इतने तामझाम से निबटने के बाद मां किसी लड़की को शादी के लिए पसंद करती तो अनुज के नखरे शुरू हो जाते. पायल 40 साल की हो गई. अपनी शादी के बारे में उस ने न जाने कब से सोचना बंद कर दिया. अनुज की शादी हुई तो अपनी पत्नी को ले कर वह मुंबई चला गया.

कुछ महीनों बाद मां चल बसी. मां की मृत्यु के बाद पायल अकेली रह गई. भाईबहन फोन करते या कभीकभार मिलने भी आते तो अकेली कमाऊ बहन के कुछ देने की बजाय उस से ही आर्थिक मदद मांगते.

पायल का तबादला हो गया नए शहर में. इस नए शहर में उसे शशि जैसी सहेली मिली. शशि को जब पायल के बारे में पता चला तो उस ने समझाया, ‘‘ठीक है तुम ने अपनी जिम्मेदारी निभाई, लेकिन अब तो सोचो अपने बारे में.’’

पायल कहती, ‘‘मेरी उम्र 45 साल के आसपास है. इस उम्र में शादी? लोग क्या सोचेंगे? मेरे भाईबहन, उन के रिश्तेदार क्या कहेंगे?’’

शशि कहती, ‘‘अब निकलो इस जंजाल से. तुम्हारे बारे में किस ने सोचा? तुम ने अपनी जिम्मेदारी निभाई. अब क्या तुम्हारे भाईबहन की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती या अब उन के बच्चों की जिम्मेदारी भी उठाने वाली हो? इस से पहले कि भाईबहन अपना बच्चा यह कह कर तुम्हारे पास छोड़ जाएं कि बहन तुम अकेली हो, मेरे बच्चे को रख लो. आप का मन लगा रहेगा और आप की देखभाल भी हो जाएगी, अच्छा होगा कि तुम अपना नया जीवन शुरू करो.’’

पायल ने स्वयं को काफी देर तक गौर से आईने में निहारा. उसे लगा जैसे

जिम्मेदारी के नाम पर छल किया गया हो उस के साथ. लेकिन शिकायत करे तो किस से करे? वह कमाती थी इसलिए जिम्मेदारी भी उसी की बनती थी. उस ने तय किया कि वह आज ही ब्यूटीपार्लर जाएगी.

शशि ने एक अधेड़ युवक से उस का परिचय करवाया था. युवक के चेहरे पर जिंदगी के पूरे निशान मौजूद थे. करीने से कटे और रंगे हुए बाल. उम्र को मात देने की भरपूर कोशिश करता हुआ उस का क्लीन शेव चेहरा और जींस टीशर्ट पहने हुए पूरी जिंदादिली के साथ जीता हुआ वह युवक रमेश था.

पहला विवाह असफल हो चुका था. चोट के निशान तो थे जीवन पर लेकिन भरपूर जीने के लिए मरहमपट्टी के साथ मुसकराता चेहरा था. अच्छी नौकरी में था. पायल से विवाह के लिए तैयार था. कई बार मिल भी चुका था. लेकिन पायल के मन में मोती बिखर चुके थे. वह हर बार कुछ न कुछ बहना बना कर टाल जाती. लेकिन आज जब उस ने स्वयं को आईने में निहारा तो अमृत की चंद बूंदें उस के चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थीं. जीवन हर अवस्था में खूबसूरत रहता है. पायल ने शशि को फोन किया,

‘‘मैं विवाह के लिए राजी हूं.’’ शशि की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. रुचि और अनुज को जब उस ने अपने विवाह की बात बताई तो दोनों ने मिलीजुली बात ही कही.

‘‘दीदी इस उम्र में शादी? लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे? आप को सहारा ही चाहिए, तो मेरे बेटे को अपने पास रख लो.’’

‘‘मुझे सहारा नहीं जीवन चाहिए. मुझे जीना है. अपनी खुशी के लिए, अपने लिए.’’

रुचि और अनुज कुछ पल खामोश रहे. उन्हें अपने स्वार्थ का एहसास हुआ. दोनों ने कहा, ‘‘हम आप के विवाह में शामिल होने के लिए कब आएं. होने वाले जीजा से तो मिलाओ.’’

‘‘जल्दी खबर करती हूं,’’ पायल ने खुशी से चहकते हुए कहा. कोई आप के विषय में सोचे यह अच्छी बात है. न सोचे तो स्वयं सोचना चाहिए. अपनी खुशियां तलाशने का हक हर किसी को है. Family Story

Hindi Family Story: बहू मुबारक हो शैली

Hindi Family Story: पहियों की घड़घड़ाहट में अचानक ठहराव आ जाने से शैला की ध्यान समाधि टूट गई. अपने घर, अपने पुराने शहर, अपने मातापिता के पास 4 बरस बाद लौट कर आ रही थी. घर तक की 300 किलोमीटर की दूरी, अपने अतीत के बनतेबिगड़ते पहलुओं को गिनते हुए कुछ ऐसे काट दी कि समय का पता ही न चला.

पूरे दिन गाड़ी की घड़घड़ और डब्बे में कुछ बंधेबंधे से परिवेश में बैठे विभिन्न मंजिलों की दूरी तय करते उन सहयात्रियों में शैला को कहीं कुछ ऐसा न लगा था कि उन की उपस्थिति से वह जी को उबा देने वाली नीरस यात्रा के कुछ ही क्षणों को सुखद बना सकती. हर स्टेशन पर चाय, पान और मौसमी फलों को बेचने वालों के चेहरों पर उसे जीवन में किसी तरह झेलते रहने वाली मासूम मजबूरी ही दिखाई देती थी.

शैला घर जा रही थी. यह भी शायद उस की एक आवश्यक मजबूरी ही थी. 4 साल से हर लंबी छुट   ्टी में वह किसी न किसी पहाड़ी स्थान पर चली जाती थी. इसलिए नहीं कि वह उस की आदी हो गई थी, पर शायद इसलिए कि उसी बहाने वह अपने घर न जाने का एक बहाना ढूंढ़ लेती थी, क्योंकि घर पर सब के साथ रह कर भी तो वह अपने मन के रीतेपन से मुक्ति नहीं पा सकती थी. घर के लोगों के लिए भी शायद वह अपने में ही मगन, किसी तरह जिंदगी का भार ढोने वाली एक सदस्य बन कर रह गई थी.

25 वर्ष पहले एम.एससी. की पढ़ाई पूरी कर के शैला 1 वर्ष के लिए विदेश में रह कर प्रशिक्षण भी ले आई थी. भारत लौटते ही उस की मेधा में डा. रजत जैसे होनहार सर्जन की मेधा का मेल विवाह के पावन बंधन ने कर दिया था. सबकुछ मिला शैला को…प्यार, अपनत्व, विश्वास, सम्मान और रजत पर अपना संपूर्ण एकाधिकार.

27 वर्ष की आयु में ही डाक्टरी की कई उपाधियां ले कर रजत विदेश से लौटा था. शैला साल भर भी अपने जीवन के उन सुखद क्षणों को अपनी खाली झोली में भर कर संजो न पाई थी कि    डा. हरीश के यहां से डिनर से लौटते हुए रास्ते में कार दुर्घटना और फिर अंतिम क्षणों में रजत का शैला के हाथ को मुट्ठी में जकड़ कर चिरनिद्रा में सो जाना शैला कभी नहीं भूल सकती थी.

हर सफल आपरेशन के बाद रजत के चेहरे की चमक और स्नेहसिक्त आंखों से शैला को देख कर कहना, ‘शैला, तुम मेरी प्रेरणा हो,’ शैला के मन को कहां भिगो जाता, उस कोने को शैला शायद स्वयं अपनी खुशी के छिपे ढेर में ढूंढ़ न पाती.

तब से ले कर अब तक अपने सेवारत समय के 25 वर्ष शैला ने अपने हिसाब से तो बड़ी अच्छी तरह बिता दिए थे. इतना अवश्य था कि अपनी कठोर अनुशासनप्रियता या कुछ व्यक्तिगत आदर्शों की आलोचना, कभी अपने ऊपर लगाए कुछ झूठे सामाजिक आरोप, जो कभी उस के चरित्र से जोड़ कर लगाए जाते थे, वह सुनती थी. फिर समय ही सब स्पष्ट कर के कहने वालों के मुंह पर पछतावे की छाप छोड़ देता था.

शैला का सब सुनना और सब झेल जाना, अब उस का स्वभाव बन गया था. घर पर कभीकभी आना आवश्यक भी हो जाता था.

4 बरस पहले छोटी बहन सोनी की शादी में आई थी. वह भी बरात आने के 2 दिन पहले. सोनी की शादी के मौके पर ही छोटी भाभी ने पूछा था, ‘खूब पैसा जोड़ लिया होगा तुम ने तो शैला. क्या करोगी इतने धन का?’

शैला मुसकराई थी, ‘जोड़ा तो नहीं, हां, जुड़ गया है सब अपनेआप.’

किसी चीज की कमी नहीं थी उसे. उस के पास सभी भौतिक सुख के साधन थे और उस से बढ़ कर उस की सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्मान था. पर जो कभी उस के रीते मन पर निरंतर हथौड़े की चोट करती थी.

उसे वह कभी कह भी तो नहीं सकती थी. उस ने बचपन का वह मस्त और आनंदपूर्ण रूप नहीं देखा था, जो अन्य भाईबहनों में था. कुछ ऐसे हालात रहे कि वह शुरू से ही हंसना चाह कर भी खुल कर हंस न सकी. नियमित, सीमित, अपनेआप से बंधा हुआ एक जीवन. कालिज में पढ़ती थी तो कभी अगर छोटा भाई उस की पेंसिल ले लेता था या ‘डिसेक्शन बाक्स’ से छुरी निकाल लेता था तो कभी दीदी का और कभी मां का यही स्वर सुनाई देता था, ‘देबू देख, अभी शैला आएगी, कैसी हायहाय मचा देगी.’

शायद शैला की गंभीरता ने ही उस घर में आतंक फैला दिया था. देबू के मन में शैला के प्रति पहले भय उपजा और फिर वही भय पलायन और कालांतर में आंशिक घृणा में बदल गया था. ऐसा शैला कभीकभी अब महसूस करती थी.

देबू अब डा. देवेंद्र था पर कभी उस ने शैला से खुल कर बातें नहीं की थीं. शैला चाहती थी कि देबू उस का पल्ला पकड़ कर उस से अपना अधिकार जताए और कहे, ‘दीदी, इस बार कश्मीर घुमा दो.’

‘ऐसा सूट बनवा दो.’

‘कुछ खिलातीपिलाती नहीं,’ आदि.

फिर अब तो देबू भी बीवी वाला हो गया था. सुंदरसलोनी बड़े ही सरल मन की सुनंदा उस की पत्नी थी. शादी के कुछ दिनों बाद ही देबू ने सुनंदा से कहा था, ‘नंदा, दीदी की खातिर यही है कि इन का कमरा बिलकुल ठीक रहे, इन की कोई चीज इधरउधर न हो.’

शैला के मन में कहीं चोट लगी थी. ठीक रहने को तो उस का खूबसूरत बंगला सवेरे से रात तक कई बार झाड़ापोंछा जाता था. उस के बगीचे के बराबर और कोई बगीचा पास में नहीं था. पर हर साल ‘पुष्पप्रदर्शनी’ में प्रथम पुरस्कार पाने वाले बगीचे के फूल क्या कभी उस के सूनेपन को महका सके थे?

ससुराल से उजड़ी मांग और सूने माथे पर सादी धोती का पल्ला डाल कर रोते वृद्ध ससुर के साथ जब शैला मांपिताजी के सामने अचानक आ कर तांगे से उतरी थी तो उस के सारे आंसू सूख चुके थे. चेहरा गंभीर था. निस्तेज ठहरी हुई आंखें थीं और वह अपने कमरे में आ गई थी. वह 1 वर्ष पहले छोड़े चिरपरिचित स्थान पर आ कर शांत हो कर बैठ गई थी, बस, ऐसे ही, जैसे एक यात्रा पर गई हो. उसी यात्रा में अपनी चिरसंचित निधि गंवा कर लौट आई हो.

फिर दूसरे वर्ष नैनीताल में साइंस कालिज की पिं्रसिपल हो कर चली गई थी. कुछ जीवन का खोखलापन और जीवन के प्रति विरक्तिपूर्ण उदासीनता में अगर कहीं आनंद की आशा और अपनत्व का कोई अंश था तो परेश.

परेश उस के बड़े भैया का बड़ा बेटा था. जबजब घर आई, परेश का आकर्षण उसे खींच लाया. जीवन के इतने मधुर कटु अनुभव ले कर भी अगर कहीं शैला ने अपने पूर्ण अधिकार का प्रयोग किया था तो वह परेश पर. घर वह आए या न आए, पर दूसरे क्लास की प्रगति रिपोर्ट से ले कर मेडिकल कालिज के तीसरे वर्ष तक का परिणाम उसे परेश के हाथों का लिखा निरंतर मिलता रहा था. उसी के साथ लगी हर पत्र में एक सूची होती थी जिस में कभी सूट, कभी घड़ी और कभी पिताजी से छिपा कर दोस्तों को पिकनिक पर ले जाने के लिए रुपयों की मांग.

परेश का इस प्रकार मांगना और अंत में ‘बूआजी, अब्दुल के हाथ जल्दी भिजवा देना’ वाक्य शैला को अपनत्व की कौन सी सुखानुभूति दे जाता था, वह स्वयं नहीं जानती थी. मातापिता को अगर कहीं शैला के प्रति संतोष था तो वह परेश और शैला के इस ममतापूर्ण संबंध को देख कर.

घर जाती थी तो इधरउधर के हाल ले कर फिर भैयाभाभी और उस की परेश को ले कर विविध समस्या समाधान की वार्त्ता. वह क्या खाता था, क्यों उस के साथ घर के अन्य बच्चों सा व्यवहार होता था, जब वह शैला का एकमात्र वारिस था आदि.

कभीकभी मजाक में भाभी कहती थीं, ‘परेश तो बूआ का हकदार है, बूआ का बेटा है.’

सुन कर शैला कितनी खुश होती थी. खून का रिश्ता कभी झूठा नहीं होता, न ही हो सकता है. उस के गंभीर चेहरे पर खुशी की एक रेखा सी खिंच जाती थी. जिस साल परेश का जन्म हुआ था, उस के 3 साल के अंदर शैला ने घर के 4-5 चक्कर लगाए थे, कुछ अनुभवी प्रौढ़ महिलाएं दबी जबान से शैला से हंसहंस कर कहती थीं, ‘दीदी, भतीजा ऐसी जंजीर ले कर पैदा हुआ है जिस का फंदा बूआ के गले में है. जरा सी जंजीर कसी और बूआजी चल पड़ती हैं घर की ओर.’

और शैला के चेहरे पर आ जाता था गर्वीला ममत्वपूर्ण भाव. वह हलके से मुसकरा कर कहती, ‘बहुत प्यारा है मेरा भतीजा. घर जाती हूं तो पल्ला पकड़ कर पीछेपीछे घूमता रहता है.’ इस वाक्य के साथ ही शैला एक आनंदमिश्रित तृप्ति का अनुभव करती थी. 3 बरस के बच्चे को उस से कितना प्यार था.

जब से परेश बड़ा हो कर सफर करने लायक हुआ था, शैला उसे छुट्टियों में लगभग हर वर्ष अपने पास बुला लेती थी और भूल जाती थी कि वह अकेली है.

कभी परेश कहता, ‘बूआजी, आज तो पिक्चर चलना ही है, चाहे जो हो.’  तब शैला परेश को टाल न पाती.

अब तो परेश पूरे 24 साल का हो गया था. डाक्टरी के अंतिम वर्ष में था. शैला शुरू से जानती थी कि अगर वह मुंह खोल कर कह देती तो बड़े भैया व भाभी परेश को स्वयं आ कर उस के पास छोड़ जाते. पर कहने से पहले जाने क्यों मन के कोने में कहीं एक बात उठती, ‘अपनी गोद तो सूनी थी ही. भाभी से परेश जैसा प्यारा और होनहार बेटा ले कर उस के मन में सूनापन कैसे भर दूं.’

इधर कई बार वह तैयार हो कर आती, भैया से कुछ कहने को. पर जहां बात का आरंभ होता, वह सब के बीच से हट कर स्नानघर में जा कर खूब रो आती. एक बार फिर रजत का वाक्य कानों में गूंज उठता, ‘शैला, कभी बेटा होगा तो उसे ऐसा अव्वल दरजे का सर्जन बनाऊंगा कि बाल चीर कर 2 टुकड़े कर देगा.’

कल्पना में ही दोनों जाने कितने नाम दे चुके थे अपने अजन्मे बेटे को. उन्हीं नामों में से एक नाम ‘परेश’ भी था. यह शैला के सिवा कोई नहीं जानता था. पर शैला के ये सब सपने तो रजत की मृत्यु के साथ ही टूट गए थे. भाभी को जब बेटा हुआ था तब अस्पताल में ही भरे गले, भारी मन से अतीत के घावों को भुला कर, शैला मुसकराते चेहरे से भतीजे का नाम रख आई थी, ‘परेश.’

आज 4 वर्ष बाद शैला घर आई तो परेश में बड़े परिवर्तन पा रही थी. कुछ आधुनिकता का प्रभाव, कुछ बदलते समय को जानते हुए भी शैला ने परेश पर अपना वही अधिकार और अपनी पसंद के अनुसार परेश को ढालने के प्रयासों में कोई कमी न की. लंबाचौड़ा, खूबसूरत युवक के रूप में परेश, शैला को स्टेशन लेने आया तो बस ‘हाय बूआ’ कह कर उस के हाथ से सूटकेस ले लिया. भविष्य की कल्पना में खोई शैला को परेश का वह व्यवहार कहीं भीतर तक साल गया. कार पर बैठते ही बोली, ‘‘क्यों रे परेश, अब ऐसा आधुनिक हो गया कि बूआ के पैर तक छूना भूल गया. देख तो घर पहुंच कर तेरी क्या खबर लेती हूं.’’

और शैला अधिकारपूर्ण अपनत्व की गरिमा से खिलखिला कर हंस पड़ी थी. पर शायद वह परेश के चेहरे पर आतेजाते भावों को देख न पाई थी.

15 दिन की छुट्टी पर आई थी शैला इस बार. भैयाभाभी हर खुशी उसे देने को उतावले नजर आते थे. मातापिता थके हुए, पर संतुष्ट मालूम होते थे. शैला दिन भर मातापिता के साथ बगीचे में बैठ कर, कभी पीछे नौकरों के क्वार्टरों में जा कर बूढ़े माली, चौकीदार, महाराज सब का हाल पूछती, तो कभी परेश से घंटों बातें करती.

परेश पास बैठता था, पर शाम होते ही अजीब सी बेचैनी महसूस करता और किसी न किसी बहाने वहां से उठ जाता था.

जाने से 5 दिन पहले यों ही घूमते- घूमते शैला, परेश के कमरे में पहुंच गई. पढ़ने की मेज पर तमाम किताबों, कागजों के बीच सिगरेट के अधजले टुकड़ों से भरी ऐश ट्रे थी. उस के नीचे एक मुड़ा रंगीन कागज रखा था. शैला ने उसे यों ही उत्सुकतावश उठा लिया. पत्र था किसी के नाम. लिखा था :

‘सोनाली, तुम्हें मैं कितना चाहता हूं, शायद मुझे अब यह लिखने की कोई जरूरत नहीं. मैं जानता हूं, मेरे उत्तर न देने पर तुम कितना नाराज होगी. कारण बस, यही है कि आजकल मेरी बूआजी आई हुई हैं, जो आज भी शायद 18वीं शताब्दी के कायदेकानूनों की कायल हैं. उन के सामने अभी तुम्हारा जिक्र नहीं करना चाहता. बेकार में आफत उठ जाएगी. मातापिता की कोई चिंता नहीं. वह तो आखिरकार मान ही जाएंगे. अंत में अपनी ही जीत होगी. पर बूआजी के सामने कुछ कहने की अभी हिम्मत नहीं है मेरी.

‘अब तुम ही समझ लो, ऐसे में कैसे तुम्हें घर ले जाऊं. पर वादा करता हूं कि उन के जाते ही मांपिताजी के पास तुम्हें ला कर उन्हें सब बता दूंगा और तुम्हें मांग लूंगा. बूआजी के रहते हुए ऐसा संभव नहीं है. समझ रही हो न? फिर यों भी मुझे कुछ तो आदर दिखाना ही चाहिए. आखिर वह मेरी बूआजी हैं. मैं क्षत्रिय और तुम ब्राह्मण, वह जमीनआसमान एक कर देंगी.’

और शैला वहीं पसीने में भीग गई थी. वह आंखों के सामने घिरते अंधेरे को ले कर कुरसी पकड़ कर किसी तरह बैठ गई थी. उस की आंखों के सामने, साड़ी का पल्लू पकड़ कर पीछेपीछे घूमने वाला परेश, फिर भविष्य की कल्पना में घोड़े पर चढ़ा दूल्हा परेश और जीवन की अंतिम घडि़यों में शैला की मृत्यु शैया के पास बैठा परेश अपने विभिन्न रूपों में घूम गया.

शैला वर्षों बाद स्नानघर में खड़ी हो कर रो रही थी. ऐसे ही जैसे बड़े अरमानों और त्यागों से जीवन की सारी संचित निधि से बनाया अपना घर कोई ईंटईंट के रूप में गिरता देख रहा हो. दिमाग पर बारबार लोहे की गरम सलाखें चोटें कर रही थीं.

‘आखिर वह मेरी बूआजी हैं… बूआजी…बस, और कुछ नहीं.’

तभी शैला के मन का एक कोना प्रश्नवाचक चिह्न बन कर सामने आ गया. क्या वह स्वयं जिम्मेदार नहीं थी परेश की उन भावनाओं के लिए? ठीक था, वह स्वयं अपने लिए अब तक समाज की परंपराओं और कहींकहीं खोखले आदर्शवाद को भी स्वीकारती आई थी. पर इस का अर्थ यह तो नहीं था कि वह उन्हें इस पीढ़ी पर भी थोपती रहेगी. क्यों वह इतनी उम्मीदें रखती थी परेश से? क्या हुआ जो वह आधुनिक ढंग से पहनता- घूमता था.

शैला अब सोचती थी कि शायद उस का उन छोटीछोटी बातों को गंभीर रूप देना ही उसे परेश से इतना दूर ले आया था. वह क्यों नहीं सोचती थी कि समाज बहुत आगे आ चुका है. ब्राह्मण, क्षत्रिय जैसे जातीय भेदभाव को सोचना क्या शैला जैसी पढ़ीलिखी, अच्छे संस्कारों में पलीबढ़ी स्त्री को शोभा देता था? शैला समझौता करेगी उस स्थिति से. वह उस नई पीढ़ी पर हावी होने का प्रयास नहीं करेगी. पुरानी लकीरों पर चलती आई जिंदगी को नया मोड़ दे कर, वह परंपरागत रूढि़यों व मान्यताओं की अंत्येष्टि स्वयं करेगी.

रात को खाने के बाद उस ने परेश को बगीचे में बुलाया. ओस से भीगी घास पर टहलती शैला का मन प्रफुल्लित था. परेश आया और चुपचाप खड़ा हो गया. शैला का हाथ उठ कर सहज ढंग से परेश के कंधे पर टिक गया. आंखों में सारा लाड़ उमड़ आया. बोली, ‘‘क्यों रे, परेश, मैं क्या इतनी बुरी हूं जो तू ने मेरी बहू को मुझ से छिपा कर रखा? यह बता, क्या मुझ से अलग हो पाएगा? मैं जानती हूं, अपनी बूआजी के लिए तेरा सीना फिर धड़केगा. बता, कहां रहती है सोनाली? यों ही ले आएगा उसे? बेटे, मेरे मन की आग तभी ठंडी होगी जब तू मुझे सोनाली के पास ले चलेगा. पहला आशीर्वाद तो मैं ही दूंगी उसे. तू शायद नहीं जानता कि मैं ने कितने अरमान संजोए हैं इन दिनों के लिए. मैं तेरी खुशी के बीच में कहीं भी ब्राह्मण, क्षत्रिय जैसी घटिया बात नहीं लाऊंगी.’’

और दूसरे दिन मेजर विक्रम के ड्राइंगरूम में भैयाभाभी और परेश के साथ बैठी शैला के सामने सौम्य, शालीन और सुंदर सी सोनाली ने प्रवेश किया. उस की मां ने उसे भाभी के सामने करते हुए उन के पैर छूने को कहा ही था कि भाभी ने सोनाली को बड़े प्यार से पकड़ कर शैला की तरफ करते हुए कहा, ‘‘इन का आशीर्वाद पहले लो. भले ही मैं ने परेश को जन्म दिया है, पर बेटा तो यह बूआ का ही है.’’

और शैला की आंखों से खुशी की ज्यादती से बहती आंसुओं की धारा उस के बरसों से जलते दिल को शीतलता देती चली गई.

परेश ने अपने पुराने दुलार भरे भाव से शैला को पकड़ते हुए इतना ही कहा, ‘‘बूआजी, आशीर्वाद दो कि तुम्हारे और अपने सब स्वप्न साकार कर सकूं.’’

शैला की सारी उदासी छिटक कर कहीं दूर जाने लगी और दूर होतेहोते उस की छाया तक विलीन हो गई. वह देख रही थी. उस की कल्पना में मृतक पति  डा. रजत की धुंधली छाया उभर आई. वह मुसकरा रहे थे. शायद कह भी रहे थे, ‘पुत्रवधू मुबारक हो शैली.? Hindi Family Story

Makeup Tips: इन 8 टिप्स से बनाएं Lipstick को लॉन्ग लास्टिंग

Makeup Tips: लिपिस्‍टिक लगाना भी अपने आप में एक कला ही होती है. लिपिस्टिक को होठों पर अप्लाय करना अपने आप में कोई कठिन कार्य तो नहीं है, पर लिपिस्‍टिक लगाने के लिए थोड़ी पसा तयारी करनी पड़ती है और साथ ही आपको प्रोडक्ट को चुनाव भी ध्यान से करना पड़ता है.

हम यहां कुछ टिप्स आपको दे रहे हैं, जिन्हें अपनाकर आप लिपिस्टिक को लंबे समय तक के लिए रख सकती हैं..

1. सबसे पहले आपको इस बात के लिए सुनिश्चित होना होगा कि आपके लिप्स पर कोई मृत त्वचा तो नहीं है. अगर ऐसा है तो इसे हटाने के लिए किसी अच्छे प्रोडक्ट का इस्तेमाल कर पहले होठों पर स्क्रब करें.

2. अब इसके बाद ऐसे लिप बाम का इस्तेमाल करें जिसमें तैल न हो.

3. लिपिस्टिक लगाने से पहले अपने होठों के ऊपर थोड़ा सा क्लिंजर लगा कर साफ करें और बाद में फाउंडेशन का प्रयोग करें. ये आपके लिपिस्टिक के सही रंग को निखारने में आपकी मदद करता है.

4. अगर आप किसी बोल्ड या गहरे रंग का लिपिस्टिक इस्तेमाल करना चाहती हैं, तो कंसीलर की मदद से अपने होठों को आउटलाइन करें. ऐसा करने से आपके लिप्स्टिक का रंग बाहर की तरफ नहीं फैलेगा.

5. लिप लाइनर का भी इस्तेमाल करें. यह लिप्स्टिक की अपेक्षा थोड़ा ड्राय होता है, जो लंबे समय तक आपकी लिपिस्टिक को बनाये रखने में मदद करता है.

6. अब इन लाइन्स के अंदर लिपिस्टिक को लगाएं. लिपिस्टिक लगाने के बाद एक टिश्यु लेकर इसे अपने होठों के उपर रखें और इसके उपर कोई मेकअप पाउडर लगालें. ये तरीका अक्सर फैशन शो में मॉडल्स अपनाया करती हैं. ये तरीका आपके लिपिस्टिक रंग को लंबे समय के लिए सेट करता है.

7. अब इसके उपर थोड़ा और लिपिस्टिक लगा लें. इसके बाद कोई अच्छी सा लिप-ग्लॉस अप्लाय करें और इसे फिनिशिंग टच दें.

8. क्या आपको पता है कि ऐसा कोई लिप ग्लॉस नहीं होता है जो पूरे दिन तक चलता हो. ऐसा करने के लिए आपको पूरे दिन इसका इस्तेमाल करते रहना पड़ेगा या फिर आप चाहें तो होठ के बीच में लिपिस्टिक की मात्रा को बढ़ाकर इसे एक ग्लॉसी लुक दे सकते हैं.

हम आपको बता देना चाहते हैं कि आपको लिपिस्टिक का उपयोग हमेशा ब्रश के साथ ही करना चाहिए. Makeup Tips

Intimate Hygiene: हर मौसम के लिए जरूरी टिप्स और उपाय

Intimate Hygiene: इंटीमेट हाइजीन को हर मौसम में अच्छी तरह से बनाए रखना बहुत आवश्यक है, यह न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए, बल्कि समग्र स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है. इंटीमेट हाइजीन को ठीक से फॉलो न करने पर बैक्टीरिया और फंगल इन्फेक्शन हो सकते हैं, जो जलन, खुजली और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं. खराब इंटीमेट हाइजीन से मूत्र पथ के संक्रमण (UTI) और अन्य बीमारियां हो सकती हैं.

स्वच्छता बनाए रखने से बदबू और बेचैनी से बचा जा सकता है. इस बारें में विरार, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी की आईवीएफ एक्सपर्ट डॉ. ज्योत्सना पालगामकर कहती है कि हमारे यहाँ प्रमुख रूप से तीन मौसम की मार सबको झेलनी पड़ती है और हर मौसम में इंटीमेट हाइजीन को बनाए रखना जरूरी होता है. इंटीमेट हाइजीन को कभी भी निग्लेक्ट नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि बार – बार वेजाइनल इन्फेक्शन से आज की लड़कियों को आगे चलकर प्रेग्नेंसी में भी खतरा हो जाता है. कुछ सुझाव निम्न है.

मॉनसून में इंटीमेट हाइजीन

मॉनसून में इंटीमेट हाइजीन को बनाए रखना काफी मुश्किल होता है. इस मौसम में इसकी समस्या अधिक बढ़ने लगती है, क्योंकि इस समय वातावरण में नमी की मात्रा अधिक होती है, जिससे यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन की समस्या, महिलाओं में अधिक हो जाती है. गर्मी और पसीने की वजह से बेक्टेरिया के पनपने से वेजाइनल इन्फेक्शन का खतरा अधिक बढ़ जाता है.

  • इंटिमेट पार्ट को हमेशा ड्राइ रखें, क्योंकि लगातार बारिश होते रहने की वजह से कपड़ों को अच्छी तरह सूखाना एक समस्या हो जाता है, ऐसे में जो भी इनरवेयर पहने, वे अच्छी तरह से ड्राई हो, इसका ख्याल रखें, क्योंकि इस मौसम में अधिक पसीना आता है, ऐसे में इनरवियर के फैब्रिक ब्रीदेबल होनी चाहिए. सिंथेटिक फैब्रिक नमी को बाहर निकलने से रोकती है, जिससे इरीटेशन और फ्रिक्शन होता है, जो त्वचा के लिए भी ठीक नहीं. इसलिए ऐसे इनरवेयर या लौन्जरी को थोड़े समय के लिए ही पहने. इसके अलावा अगर आप बारिश में भींग चुकी है, तो घर आने पर तुरंत नहा लें और खुद को अच्छी तरह से सुखा लें.
  • इस मौसम में टाइट कपड़े पहनने से बचें, जिसमें स्किनी जींस और टाइट शॉर्ट्स को पहनना अवॉयड करें, इससे पसीने अधिक होते है और एयर फ्लो शरीर में ठीक से नहीं हो पाता, जिससे त्वचा में जलन और घर्षण होने लगता है. आरामदायक और ढीले कपडे इस मौसम में पहने. सोते समय भी आरामदायक हल्के शॉर्ट्स पहने, ताकि एयर फ्लो सही तरीके से हो सकें, जिससे जलन और घर्षण कम से कम हो.
  • बारिश के मौसम में खुद को हाइड्रेटेड रखना जरूरी होता है, अधिक मात्रा में पानी और फ्रूट जूस पियें, ताकि यूरिन सही मात्रा में हो और यूरिनरी ट्रैक साफ़ और हेल्दी रहे. पानी शरीर के टोक्सिन को बाहर निकालती है और बॉडी की पीएच वैल्यू को संतुलित रखती है. इस मौसम में गर्मी और नमी की वजह से पसीना अधिक आता है. इससे शरीर की बॉडी फ्लूइड कम हो जाती है, जिससे युरिनेट के समय जलन का अनुभव होता है, जो कई बार यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन का रूप ले लेती है.
  • मॉनसून में हेल्दी फ़ूड हैबिट को मेंटेन करना जरूरी होता है. अधिक स्पाइसी फ़ूड खाने से परहेज करें, एसिडिक फ़ूड पीएच के संतुलन को बिगाडती है, जिससे इंटिमेट एरिया से गन्दी बदबू आने लगती है. प्री और प्रोबायोटिक युक्त भोजन अधिक लें, जिसमें प्लेन दही, प्याज, लहसुन, स्ट्राबेरी, और हरी पत्तेदार सब्जियां जो वेजाइना में हेल्दी बेक्टेरिया को पनपने में मदद करती है और आपका इंटिमेट हेल्थ अच्छा रहता है.

गर्मी में इंटीमेट हाइजीन

गर्मी में हर व्यक्ति को पूरे दिन पसीना आता है, भले ही किसी को कम, तो किसी को ज़्यादा. पसीना सूखने के बाद भी हमारे शरीर पर जर्म्स रह जाते हैं.  जिसे तुरंत साफ़ करना चाहिए, वरना इंफेक्शन या एलर्जी होने का खतरा रहता है. इस मौसम में त्वचा को साफ़ रखना बहुत जरूरी है, इसलिए हर रोज हो सके तो दिन में दो बार अच्‍छे साबुन या लिक्विड का इस्‍तेमाल करते हुए नहाएं. गर्मियों का मौसम पसीना, रेशेज और कई तरह के इन्‍फेक्‍शन भी साथ लेकर आता है. इसलिए इस दौरान जरूरी है कि आप अपनी इंटीमेट हाइजीन पर खास ध्‍यान दें.

  • पसीने और बैक्टीरिया से अपने इंटीमेट एरिया को हमेशा साफ़ रखें.
  • नहाते व़क्त रोज़ गुनगुने गरम पानी से इंटीमेट एरिया को साफ करें, बाहरी कॉस्मेटिक प्रोडक्ट का जितना हो सकें, कम प्रयोग करें, इससे वेजाइना का नैचुरल PH वैल्यू डिस्टर्ब नहीं होता.
  • प्युबिक हेयर को हमेशा साफ़ करते रहें, वरना वहां बॉइल्स व बैक्टीरियल इंफेक्शन हो सकते हैं, लेकिन ध्यान रहें कि रेज़र का इस्तेमाल सावधानी से करें, छीलने से खुद को बचाए, पाउडर या क्रीम का प्रयोग न करें. जरूरत पड़ने पर बैक्टीरियल क्रीम लगाएँ.

डॉक्टर आगे कहती है कि आजकल की लड़कियां पीरियड्स के दौरान मेंस्ट्रुअल कप का अधिक प्रयोग करती है, कप को अच्छे से हल्के गरम पानी से धोकर प्रयोग करें, गीला पैंटी न पहने. इससे फंगल इन्फेक्शन, ईस्ट इन्फेक्शन आदि बढ़ जाते है. मैरिड लड़की अगर रिलेशन के बाद वेजाइना का प्रोपर क्लीन नहीं करती है, तो इन्फेक्शन का खतरा बढ़ता है.

सही इलाज न मिलने पर कई बार यही इन्फेक्शन यूट्रेस तक फैल जाता है, और गर्भाशय एरिया में इन्फेक्शन के अलावा पेलविक इंफलेमेटरी डीसीज होने पर यूट्रेस की ट्यूब ब्लॉक हो सकता है, अबॉर्शन हो सकता है और इंफर्टिलिटी बढ़ती है.

गर्मियों में पैड या टैम्पोन को हर 4 से 6 घंटे में जरूर बदलें, भले ही ब्लीडिंग कम हो. बहुत देर तक एक ही पैड इस्तेमाल करने से इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. पैड बदलने के बाद उस हिस्से को हल्के हाथों से पानी की मदद से साफ करें और टिशू से पोंछें.

इसके अलावा गर्मियों का मौसम पसीना, रेशेज और कई तरह के इन्‍फेक्‍शन भी साथ लेकर आता है. ज़्यादा देर तक टाइट अंडरवेयर्स या स्किन फिट जींस न पहनें. इससे पसीना बाहर नहीं निकल पाता और बैक्टीरिया को पनपने में मदद करता है. मोटापे के शिकार लड़कियों को फंगल इन्फेक्शन अधिक होता है, इसलिए वजन हमेशा कंट्रोल में रखें.

सर्दी के मौसम में इंटीमेट हाइजीन 

डॉ. ज्योत्सना आगे कहती है कि सर्दी के मौसम में गर्मी और मॉनसून की तुलना में इन्फेक्शन कम होता है, लेकिन सर्दी में ठंड की वजह से अधिकांश लोग हायजीन के प्रति लापरवाह हो जाते हैं. अधिक ठंड होने की वजह से कई बार वे नियमित गतिविधियों के साथ टालमटोल करना शुरू कर देते हैं. इस प्रकार की लापरवाही सबसे पहले इंटिमेट एरिया को प्रभावित करती है. यही वजह है कि विंटर सीजन में यूटीआई का रिस्क अधिक बढ़ जाता है.

  • सर्दी के मौसम में पसीना नहीं आता, जिसकी वजह से महिलाएं रिलैक्स हो जाती हैं और उन्हें लगता है कि बार-बार अंडर गारमेंट्स बदलने की आवश्यकता नहीं है. वहीं कुछ महिलाएं सोचती हैं कि एक दिन यदि वेजाइना को वॉश न किया जाए, तो कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन यह एक गलती सीधे यूईटीआई का कारण बन सकती है.
  • सर्दी ड्राई सीजन है और इस दौरान वेजाइना पहले से ही ड्राई होती है. जिसकी वजह से आपकी छोटी सी भी लापरवाही बैक्टीरिया और वायरस को अट्रैक्ट कर सकती है.
  • पूरी तरह से हाइड्रेटेड रहने की कोशिश करें, ठंड के मौसम में लोग पानी कम पीते है, जो सबसे बड़ी गलती होती है. इसकी वजह ठंड की वजह से प्यास का कम लगना. कम पानी पीने की वजह से उनमें तमाम स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है. खासकर डिहाइड्रेशन की वजह से महिलाओं में यूटीआई होने का खतरा बढ़ जाता है.
  • उचित मात्रा में पानी पीने से ब्लैडर में बैक्टीरिया का ग्रोथ नहीं होता और अनचाहे बैक्टीरियल ग्रोथ को फ्लश आउट करने में भी मदद मिलती है. इसके अलावा यह बॉडी से टॉक्सिक सब्सटेंस को बाहर निकाल देते हैं जिससे कि शरीर में किसी प्रकार के अनहेल्दी बैक्टीरिया का ग्रोथ नहीं होता. पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं और खुद को हाइड्रेटेड रखें.
  • लंबे समय तक यूरिन को होल्ड बिल्कुल भी न करें, बहुत से लोगों में यूरिन होल्ड करने की आदत होती है. खास कर सर्दियों में लोग वॉशरूम जाने के आलस में लंबे समय तक पेशाब को रोके रहते हैं, जिसकी वजह से ब्लैडर में हानिकारक बैक्टीरिया का ग्रोथ बढ़ सकता है. वहीं ये यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन का कारण बनता है. यदि आप ऐसी किसी भी परेशानी को बुलावा नहीं देना चाहती हैं, तो सर्दियों में भी वॉशरूम जाने में आलस न करें. यूरिन पास करने की इच्छा होने पर फौरन ब्लैडर खाली कर दें, ताकि किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े.
  • प्रॉपर हाइजीन मेंटेन करने के लिए सर्दियों में भी अपनी पैंटी को कम से कम दो बार जरूर बदलें. हर बार यूरिन पास करने के बाद वेजाइना को टिशु से आगे से पीछे की तरफ ड्राई अवश्य करें.
  • सर्दियों में वेजाइना ड्राई हो जाती है, जिसकी वजह से इचिंग और इन्फेक्शन का खतरा बना रहता है. इन स्थितियों से बचने के लिए वेजाइना को मॉइश्चराइज रखें. इसके लिए एंटीबैक्टीरियल और एंटी इन्फ्लेमेटरी गुणों से भरपूर कोकोनट ऑयल का इस्तेमाल कर सकती हैं. कोकोनट ऑयल की 4 से 5 बूंदे वेजाइना को अच्छी तरह से मॉइश्चराइज रहने में मदद करेंगी.
  • हालांकि, आजकल बाजार में तरह-तरह के वेजाइनल क्रीम्स उपलब्ध है, जिसे डॉक्टर की सलाह पर ही प्रयोग करें, क्योंकि इन्हें बनाने में केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है, जो आपकी वेजाइना को मॉइश्चराइज करने की जगह इन्हें बैक्टीरिया और वायरस का घर बना सकते है.
  • वेजाइना को हर मौसम में पर्याप्त हवा की आवश्यकता होती है और उनकी त्वचा को भी खुलकर सांस लेने की आजादी मिलनी चाहिए. इसके लिए पूरे दिन वूलन और टाइट कपड़े पहन कर न रहे, कुछ देर ढीले और लूज कपड़े भी पहने.
  • डाइट में संतरा, जो विटामिन सी का एक समृद्ध स्रोत है, यह इम्यूनिटी को बढ़ावा देता है और यूरिन में एसिड के स्तर को सामान्य रखता है और इंफेक्शन फैलाने वाले बैक्टीरिया का ग्रोथ सीमित रहता है.

इस प्रकार इंटीमेट एरिया की हाइजीन को बनाए रखना एक आदत है, जिसे हर लड़की को छोटी उम्र से सीखना जरूरी है, ताकि किसी प्रकार की बीमारी का सामना उन्हे न करना पड़े. अगर कुछ समस्या है, तो समय रहते डॉक्टर की सलाह अवश्य लें. Intimate Hygiene

Hindi Family Story: शादीशुदा दीदी पर शक

Hindi Family Story: भारत और पाकिस्तान के बीच पुन: एक दोस्ती का पैगाम. एक बार फिर से दिल्लीलाहौर बस सेवा शुरू होने जा रही है. जैसे ही रात के समाचारों में यह खबर सुनाई दी, रसोई में काम करतेकरते मेरे हाथ अचानक रुक गए. दिल में उठी हूक के साथ मां की ओर देखा तो उन का सपाट व शांत चेहरा थोड़ी देर के लिए हिला और फिर पहले जैसा शांत हो गया. आज के समाचार ने मुझे 2 साल पीछे धकेल दिया. वे सारी घटनाएं, जिन्होंने इस परिवार की दुनिया ही बदल दी, मेरी आंखों के सामने सिनेमा की तसवीर की तरह घूमने लगीं.

हम 2 बहन और 1 भाई थे. मातापिता का लाड़प्यार हर पल हमें मिलता रहता था. मैं सब से छोटी थी. भैया व दीदी जुड़वां थे. दीदी मात्र 4 मिनट भैया से बड़ी थीं. बचपन से ही वे आपस में काफी घुलेमिले थे पर झगड़े भी दोनों में खूब होते थे.

मैं उन दोनों से 7 साल छोटी होने के कारण दोनों की लाड़ली थी. मुझे तो शायद याद भी नहीं कि मेरी लड़ाई उन दोनों से कभी हुई हो. संजय भैया पढ़ाई में काफी होशियार थे. यद्यपि दीदी भी पढ़ने में तेज थीं किंतु उन का मन खेलकूद की ओर अधिक लगता था. जिला स्तर पर खेलतेखेलते कई बार उन का चुनाव राज्य स्तर पर भी हुआ जोकि मां को कभी अच्छा नहीं लगा क्योंकि मुझे व दीदी को ले कर मां की सोच पापा से थोड़ी संकरी थी. खासकर तब जब दीदी को खेलने के लिए अपने शहर से बाहर जाने की बात होती थी, तब भैया का साथ ही मां और पापा के प्रतिरोध को हटा पाता था और इस तरह दीदी को बाहर जा कर खेलने का मौका मिलता था.

मलयेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में कई देशों की टीमें आई थीं. वहीं पर दीदी की मुलाकात अनुपम से हुई जो किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी का रिश्तेदार था और उस के साथ ही क्वालालम्पुर आया था. दोनों की मुलाकात काफी दिलचस्प थी. दिन में दोनों एकसाथ कौफी पीने जाया करते थे. चेहरे के नैननक्श अपने जैसे होने के कारण दोनों ने एकदूसरे से बात करने में दिलचस्पी दिखाई. धीरेधीरे दोनों ने ही महसूस किया कि उन में दोस्ती के अलावा कुछ और भी है. इसी तरह 7 दिन की मुलाकात में ही उन का प्यार परवान चढ़ने लगा था. दीदी जब लौट कर आईं तो कुछ बदलीबदली सी थीं. मां की अनुभवी आंखों को समझते देर न लगी कि दीदी के मन में कुछ उथलपुथल मची है. मां के थोड़े से प्रयासों से पता चला कि दीदी जिसे चाहती हैं वह पाकिस्तानी हिंदू है. यद्यपि लड़का पाकिस्तान में इंजीनियर है पर वह पाकिस्तान से बाहर किसी अच्छी नौकरी की तलाश में है. कुल मिला कर लड़का किसी भी तरफ से अनदेखा करने योग्य न था. बस, उस का पाकिस्तानी होना ही सब के लिए चुभने वाली बात थी.

यहां भी भैया ने दीदी का साथ दिया. आखिर एक दिन हम सब को छोड़ कर दीदी अपने ससुराल चली गई. हालांकि पाकिस्तान के नाम से दीदी के मन में भी थोड़ा अलग विचार आया था लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं था. अनुपम के परिवार ने दीदी का खुले दिल से स्वागत किया. एक खिलाड़ी के रूप में दीदी की शोहरत वहां पर भी थी, तो तालमेल बैठाने में दीदी को कोई परेशानी नहीं हुई.

दीदी के जाते ही पूरा घर सूना हो गया. भैया का मन नहीं लगता तो दीदी के घर का चक्कर लगा आते थे. मां कहतीं कि बेटी के घर इतनी जल्दीजल्दी जाना ठीक नहीं, पर भैया का यही उत्तर होता कि देखो न मां, दीदी के ससुराल जाते ही हमारी सरकार ने भारतपाकिस्तान के बीच बस सेवा शुरू कर दी है.

पढ़ाई समाप्त कर भैया ने भी नौकरी की तलाश शुरू कर दी. हमारा मध्यवर्गीय परिवार था. घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए भैया को नौकरी की जरूरत महसूस होने लगी. उन के प्रथम श्रेणी में पास होने के प्रमाणपत्र भी उन्हें कोई नौकरी नहीं दिला सके तो उन्होंने सोचा, जब तक नौकरी नहीं मिलती क्यों न राजनीति में ही हाथपांव मारे जाएं. कालिज में 2 बार उपाध्यक्ष पद पर रह चुके थे. ऐसे में उन्हें अपने दोस्त समीर की याद आई, जोकि उन के साथ कालिज में अध्यक्ष पद के लिए चुना गया था.

समीर हमारे घर भी काफी आताजाता था. उस के पिता विधायक थे. भैया को लगा, वे शायद कुछ मदद कर सकते हैं. पर भैया ने एक बात नोट नहीं की, वह थी कि दीदी की शादी होते ही समीर ने भैया के साथ अपनी दोस्ती काफी सीमित कर ली थी.

समीर के पिता ने आश्वासन दिया कि अच्छी नौकरी में वे भैया की मदद करेंगे, यदि कोई बात नहीं बनी तो राजनीति में तो शामिल कर ही लेंगे. इसी दौरान किसी काम के सिलसिले में भैया को दीदी के घर जाना पड़ा. इस बार समीर भी उन के साथ पाकिस्तान गया. दीदी के ससुराल वाले बड़ी आत्मीयता के साथ समीर से मिले. केवल बाबूजी यानी दीदी के ससुर से समीर की ज्यादा बातचीत नहीं हो सकी क्योंकि वे उस दौरान सरहदी मामलों को ले कर काफी व्यस्त थे और 2 ही दिन बाद भैया व समीर को वापस भारत आना था.

वापस आ कर भैया जब समीर के घर गए तो उस के पिता ने घुसते ही उन से सीधे सवाल पूछा, ‘संजय, क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारी बहन क्या जासूसी करती है?’

उन के मुंह से यह सवाल सुन कर भैया सन्न रह गए. उन्हें सपने में भी इस तरह के सवाल की उम्मीद नहीं थी. अत: वह पूछ बैठे, ‘अंकल, आप के इस तरह सवाल पूछने का मतलब क्या है?’

‘बड़े भोले हो तुम, संजय,’ वह बोले, ‘तुम्हारी बहन की शादी को 2 साल हो गए. अभी तक तुम वास्तविकता से अनजान हो. अरे, उस पाकिस्तानी ने जानबूझ कर तुम्हारी बहन को फंसाया है ताकि पत्नी के सहारे वह भारत की सारी गतिविधियों की खबर लेता रहेगा. यही नहीं उस का ससुर सेना में अधिकारी है. इसलिए उस ने तुम्हारी बहन को अपने घर की बहू बनाना स्वीकार किया ताकि देश के अंदर की जानकारी उसे हो सके.’

‘यह सब बेबुनियाद बातें हैं,’ इतना कह कर भैया घर वापस आ गए. पर जासूस वाली बात उन के दिल में कहीं चुभ गई. भैया ने नोट किया कि दीदी अपने ससुर से काफी हिलीमिली हैं. लगता ही नहीं कि दीदी उन की बहू हैं. वह उन के आफिस भी आतीजाती हैं. बाबूजी भी दीदी से काफी प्यार जताते हैं और जब भी मैं दीदी से मिलने जाता हूं तो मुझ से बात करने का भी उन के पास समय नहीं रहता. शक का छोटा बुलबुला जब कुछ बड़ा हुआ तो भैया दीदी से फोन पर घर के हालचाल से ज्यादा भारत के अंदर की खबरों के बारे में बात करते. दीदी सिर्फ सुनतीं और हां हूं में ही जवाब देतीं तो भैया को लगता कि दीदी पहले जैसी नहीं रहीं, सिर्फ पाकिस्तानी बन कर रह गई हैं.

पिछली बार जब समीर घर आया तो भैया से कहने लगा कि देख संजय, पिताजी की बातों में कुछ तो दम है. जब मैं तेरे साथ दीदी के घर गया था तो शायद तू ने ध्यान नहीं दिया हो, किंतु मैं ने ऐसी कई बातें नोट कीं जोकि मुझे शक करने को मजबूर कर रही थीं. जैसे तेरी दीदी के साथ उन के ससुराल वालों का हमेशा हिंदुस्तानी खबरों पर बात करना. और हमारे देश में भी उतारचढ़ाव होते रहे हैं, उन के बारे में विस्तार से चर्चा करना.

भैया उस की बातें चुपचाप सुनते रहे थे. एक बार भैया ने दीदी को फोन किया व जानबूझ कर अपनी नौकरी व देश के माहौल के बारे में बात करने लगे. थोड़ी देर तक दीदी उन की बातें सुनती रहीं फिर एकाएक भैया की बात काट कर वह बीच में ही बोल पड़ीं, ‘संजय, मैं तुम से रात में बात करती हूं, अभी मुझे कुछ जरूरी काम के सिलसिले में बाहर जाना है.’

अब तो भैया के मन में शक के बीज पनपने लगे. उन्होंने गौर किया कि आमतौर पर दीदी मेरा फोन नहीं काटतीं पर आज जब मैं ने थोड़ी अपने देश के अंदर की कुछ बातें उन्हें बताईं तो मेरा फोन काट कर फौरन अपने बाबूजी को खबर देने चली गईं.

इस दौरान जीजाजी को अमेरिका में नौकरी मिल गई. पतिपत्नी अमेरिका चले गए. वहां पर पाकिस्तानी ग्रुप एसोसिएशन के कारण काफी पाकिस्तानी लोग मिले. इन सब से वहां पर दीदी का मन लगने लगा. पिछली बार फोन कर के जब दीदी ने इस गु्रप के बारे में भैया को बताया तो वह बीच में ही बोल पड़े, ‘तुम कोई इंडियन ग्रुप क्यों नहीं ज्वाइन करतीं? ऐसा तो है नहीं कि अमेरिका में इंडियन नहीं हैं.’

भैया की यह बात सुन कर दीदी बोली थीं, ‘क्या फर्क पड़ता है…मात्र एक दीवार से दिल नहीं बंटते. वैसे भी बाहर आ कर सब एक ही लगते हैं…क्या हिंदुस्तानी क्या पाकिस्तानी.’

अब भैया का शक अंदर ही अंदर साकार रूप लेने लगा. इधर हम सब इन बातों से काफी अनजान थे. भैया परेशान दिखते तो हम सब को यही लगता कि नौकरी को ले कर परेशान हैं. वह जब भी दीदी से बात करते तो दीदी जानबूझ कर चिढ़ाने के लिए पाकिस्तानी ग्रुप की बातें ज्यादा किया करती थीं. पर उन्हें क्या पता कि यही सब बातें एक दिन उन की जान की दुश्मन बन जाएंगी.

समीर व उस के पिता की बातें सुनतेसुनते भैया के अंदर एक कट्टर विचारधारा ने जन्म ले लिया था. दीदी कुछ दिनों के लिए घर आ रही थीं. उन्हें पहले अपनी ससुराल पाकिस्तान जाना था फिर मायके यानी हिंदुस्तान आना था. उन का प्लान कुछ ऐसा बना कि वह पहले मायके आ गईं और एक हफ्ते रह कर अपनी ससुराल चली गईं.

‘देखा संजय, तुम्हारी बहन पहले अपनी ससुराल जाने वाली थी फिर यहां हिंदुस्तान आती पर नहीं, यदि वह ऐसा करती तो यहां की ताजा खबरें कैसे अपने ससुर को दे पाती? वाह, मान गए तुम्हारी बहन को,’ ऐसा कह कर समीर के पिता ने जोर से ठहाका लगाया.

इस घटना के दूसरे ही दिन भैया मां से बोले, ‘मैं दीदी से मिलने पाकिस्तान जा रहा हूं. हो सका तो साथ ले कर आऊंगा.’

‘अभी तो हफ्ते भर रह कर गई है. थोड़ा उसे अपने ससुराल वालों के साथ भी रहने दे. वरना वे क्या सोचेंगे?’ मां बोलीं.

भैया ने मां की बात अनसुनी कर दी. मां को लगा शायद भाईबहन का प्यार उमड़ रहा है.

दीदी के घर पहुंच कर उन के घर वालों से भैया बोले कि घर पर पापा की तबीयत अचानक खराब हो गई है इसलिए कुछ दिनों के लिए दीदी को ले कर जा रहा हूं. जल्दी ही वापस छोड़ जाऊंगा.

जीजाजी तो नहीं आए पर भैया दीदी को ले कर लाहौर से दिल्ली वाली बस पर बैठ गए. बस में ही भैया ने दीदी से उलटेसीधे सवाल करने शुरू कर दिए. दीदी को लगा, यों ही पूछ रहा है पर उन के चेहरे पर गुस्सा व ऊंची होती आवाज से दीदी हैरान रह गईं. फिर भी उन्होंने भैया से यही कहा, ‘इस बस में तो ऐसी बातें मत करो, संजय, और भी पाकिस्तानी बैठे हैं.’

भैया को उस समय किसी की परवा नहीं थी. उन्हें सिर्फ अपने ढेरों सवालों के जवाब चाहिए थे. किसी तरह दीदी, भैया को धीरे बोलने के लिए राजी कर पाईं.

‘सुनो संजय, मुझे अपना घर सब से प्यारा है. भले ही वह पाकिस्तान में क्यों न हो और सब से ज्यादा घर वाले, ससुराल वाले प्यारे हैं,’ इतना कह दीदी चुप हो कर खिड़की से बाहर की ओर देखने लगीं. भैया भी चुपचाप बैठ गए.

लाहौर से निकलने के बाद विश्राम के लिए एक स्थान पर बस रुकी. सभी यात्री नीचे उतर कर सड़क पार करने लगे. भैया व दीदी दूसरे यात्रियों से थोड़ा पीछे थे क्योंकि दोनों का मूड खराब था. वे एकदूसरे से बात भी नहीं कर रहे थे. जैसे ही दीदी व भैया सड़क पार करने लगे कि सामने से दूसरी बस को आती देख वे रुक गए.

सामने से आती बस उन्हें क्रास करने वाली थी कि जाने कहां से भैया के हाथों में हैवानी शक्ति आ गई और पूरे जोर से उन्होंने दीदी को बस के सामने धकेल दिया पर दीदी ने बचाव के लिए भैया की बांह भी जोर से थाम ली, दोनों एकसाथ बीच सड़क पर बस के आगे जा गिरे और दोनों को रौंदती हुई बस आगे चली गई. इस हादसे को देख कर सारे यात्री सन्न रह गए. आननफानन में एंबुलेंस बुलाई गई. दोनों में प्राण अभी बाकी थे.

‘यह क्या किया मेरे भैया, अपनी बहन पर इतना विश्वास नहीं,’ दीदी रोरो कर, अटकअटक कर बोलती रहीं मानो जाने से पहले सारी गलतफहमी दूर कर देना चाहती थीं, ‘यह तुम्हारा ही दिया संस्कार है न मां कि पति का घर ही शादी के बाद अपना घर होता है व उस के घर वाले अपने. बोलो न मां, मेरी क्या गलती है? अरे, मैं तो बाबूजी को खाना देने उन के आफिस जाया करती थी. उन के कोई बेटी नहीं थी इसी से वह मुझे बेटी बना कर रखते थे. वे लोग तो बहुत ही सीधे हैं मेरे भैया. हमेशा मुझे मानसम्मान देते रहे हैं.’

‘मुझे माफ करना, दीदी, मैं लोगों की बातों में न आ कर काश, अपने दिल की सुनता,’ इतना कह कर भैया भी अटकअटक कर रोने लगे.

कुछ ही पल बाद दोनों भाईबहन शांत हो गए. एकसाथ ही इस दुनिया में आए थे और साथ ही चले गए.

मांपापा को तो जैसे होश ही नहीं रहा. उन की आंखों के सामने ही उन की 2 संतानों ने अपनी जान गंवा दी, महज एक गलतफहमी के कारण. मैं पागलों की भांति कभी मां को देखती, कभी पापा को चुप कराती. एक ही पल में सबकुछ बिखर गया.

दूसरे दिन समाचार की सुर्खियों में छाया रहा, ‘देश की भूतपूर्व खिलाड़ी की उस के भाई के साथ बस दुर्घटना में दर्दनाक मौत.’

तब से समीर हमारे घर नहीं आया. आता भी क्यों, उस की मनोकामना जो पूरी हो चुकी थी. उजड़ा तो हमारा घर था.

घड़ी ने 10 बजने का अलार्म दिया, मेरी तंद्रा भंग हुई. अभी तक मम्मीपापा ने खाना नहीं खाया है. उन्होंने अपने को बंद कमरे में समेट लिया है. वहीं उन की सुबह होती है, वहीं रात होती है. उन्हें अपनी परवा नहीं है किंतु मुझे तो है. आखिर, मेरे अलावा उन्हें देखने वाला और कौन है? Hindi Family Story

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