Hindi Family Kahani: हाय बेचारी- रंजना का क्या था फैसला

Hindi Family Kahani: रंजना सोसाइटी के गेट पर अन्य महिलाओं के साथ खड़ी थी. मांओं और स्कूल जाने वाले बच्चों का मेला सा लगा था. रंजना भी अपनी 11 वर्षीय बेटी मिनी का हाथ पकड़े खड़ी थी. स्कूल बस आने वाली थी. सभी महिलाएं रंजना को जिन नजरों से देख रही थीं, उन नजरों की भाषा से रंजना भलीभांति परिचित थी. सब की निगाहें हमेशा की तरह यही कह रही थीं कि हाय बेचारी.

निगाहों का यह संदेश पा कर रंजना को हमेशा मन ही मन हंसी आती. सब उसे रोज ऊपर से नीचे तक कई बार देखतीं. उस के लेटैस्ट हेयरस्टाइल, बढि़या फिगर और आधुनिक कपड़ों की खूब प्रशंसा करतीं. लेकिन आंखों में वही हाय बेचारी के भाव.

स्कूल बस आ गई तो मांओं का अपनेअपने बच्चे को फ्लाइंग किस करने, आई लव यू बेटा, बाय बेटा, टेक केयर कहने का सिलसिला शुरू हो गया. रंजना ने भी मिनी को किस किया और मिनी बस में चढ़ गई. जब तक बस दिखती रही, रंजना वहीं खड़ी रही. फिर अपने फ्लैट की ओर चल दी. 11 बज रहे थे. मिनी का स्कूल 12 से 6 बजे तक था.

सारे काम करने के लिए मेड आ गई. 12 बजे तक रंजना फ्री हो चुकी थी. उस ने घड़ी देखी. 1 बजे अमित, उस का लेटैस्ट बौयफ्रैंड आने वाला था. उस ने सोचा 1 घंटा आराम कर ले. फिर अमित के साथ लंच कर के… इस के आगे की सोच कर ही रंजना के शरीर में मादक सी लहर दौड़ गई. आज

4 बजे उस की किट्टी पार्टी भी है. अमित को भेज कर वह किट्टी पार्टी में चली जाएगी. बैड पर लेट कर रंजना की आंखों के सामने बीते दिन किसी चलचित्र की तरह घूम गए… रंजना 21 साल की थी जब वह विनोद से एक पार्टी में मिली थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे.

दोनों ही सुंदर, स्मार्ट और आकर्षक थे. विनोद बैंगलुरु से मुंबई अपने बिजनैस के किसी काम से आया था. मिलने के 6 महीने बाद ही रंजना ने विजातीय विनोद से प्रेमविवाह कर लिया. दोनों के मातापिता इस विवाह के खिलाफ थे. रंजना के मातापिता जो अंधेरी, मुंबई में रहते थे, उन्होंने उस से संबंध तोड़ लिए. उस की छोटी बहन संजना कभीकभी उस से फोन पर बात कर लेती थी. रंजना विनोद के साथ बैंगलुरु चली गई. विनोद के मातापिता भी रंजना को बहू मानने के लिए तैयार नहीं हुए थे.

रंजना को याद आ रहा था कि उस ने अच्छी पत्नी और अच्छी बहू बनने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन बेहद कट्टरपंथी ससुराल में रहना मुश्किल होता जा रहा था.

एक दिन विनोद ने ही कह दिया, ‘‘रंजना, ऐसा करता हूं कि अलग घर ले लेता हूं, घर में रोजरोज का कलह अच्छा नहीं लगता.’’

रंजना को इस में भला क्या आपत्ति हो सकती थी. वह तैयार हो गई. विनोद ने एक फ्लैट ले लिया. अब रंजना खुश थी.

लेकिन यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकी. उस ने नोट किया, विनोद उस के साथ बस रात को सोने ही आता है. सुबह अपने घर चला जाता है. एक दिन वह झंझला गई. बोली, ‘‘यह क्या चल रहा है… यहां बस सोने आते हो… अब यही तो हमारा घर है?’’

‘‘वहां मेरे मातापिता, भाईबहन हैं, उन्हें छोड़ दूं?’’ विनोद ने चिढ़ कर पूछा.

‘‘मैं उन्हें छोड़ने के लिए कहां कह रही हूं, रोज मिलने जाओ. मुझे कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन यहां अपनी पत्नी के पास तुम चोरों की तरह आ रहे हो. मुझे बड़ा अजीब लग रहा है.’’

विनोद गरदन झटक कर चला गया. रंजना को कुछ समझ नहीं आया. यह तो वह देख ही चुकी थी कि विनोद एक बहुत धनी बिजनैसमैन का बेटा है, उन का बहुत लंबाचौड़ा बिजनैस था. पूरा दिन अकेली रहने पर रंजना बोर होने लगी थी. सुबह नाश्ते से डिनर तक वह अकेली होती थी. विनोद ने मेड का भी इंतजाम कर दिया था. 1 साल बीत रहा था. रंजना अब गर्भवती थी.

उसे लगा शायद अब सब ठीक हो जाएगा. उस ने यह खुशखबरी विनोद को सुनाई तो उस ने कोई खास उत्साह नहीं दिखाया. 2 दिन बाद रात को आ कर कहने लगा, ‘‘मैं ने मां को यह खबर सुनाई.’’

रंजना ने चहक कर पूछा, ‘‘वे खुश हुईं?’’

विनोद ने तटस्थ भाव से कहा, ‘‘मां ने कहा कि इस हालत में तुम्हारा

अपने मातापिता के पास जाना ज्यादा ठीक रहेगा.’’

रंजना को जैसे धक्का लगा. वह भड़क उठी, ‘‘मैं क्यों जाऊं कहीं? मैं ने सब को छोड़ कर तुम्हें अपनाया है, सब मुझ से नाराज हैं.’’

‘‘लेकिन मम्मीपापा अब भी तुम्हें अपनाने को तैयार नहीं हैं.’’

‘‘तुम तो हो न मेरे साथ, मुझे प्यार करते हो न? फिर मुझे किसी की जरूरत नहीं है.’’

विनोद ने थोड़ा अटकते हुए कहा, ‘‘वह तो ठीक है, पर मैं उन के खिलाफ नहीं जा सकता.’’

‘‘यह बात अब याद आ रही है मेरे जीवन से खेल कर?’’ रंजना चिल्ला पड़ी.

विनोद ने धीमे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने इस बारे में बहुत सोचा… यही ठीक लगा कि तुम मुंबई चली जाओ, मैं आता रहूंगा.’’

‘‘मैं क्यों जाऊं कहीं? मैं यहीं रहूंगी और अपने होने वाले बच्चे को पूरा हक दिलवाऊंगी.’’

रात भर रंजना और विनोद में कहासुनी होती रही. सुबह विनोद चला गया. अगले कुछ दिनों में विनोद के कुछ रिश्तेदारों से उसे उड़तीउड़ती खबर मिली कि विनोद के घर वाले उस पर दूसरा विवाह करने का दबाव डाल रहे हैं और रंजना को तलाक दिलवाना चाहते हैं.

रंजना को अपनी दुनिया उजड़ती लगी. वह पूरा दिन फूटफूट कर रोती रही. पड़ोसिन मालती आंटी उस की पूरी स्थिति से परिचित थीं. अत: उन्होंने उसे बहुत कुछ समझया. तब रंजना ने खुद को संभाला. अपने आंसू पोंछे. गर्भस्थ संतान को मन ही मन प्यार किया. अब वह और तरह सोच रही थी कि अगर विनोद और उस का परिवार इस विवाह के बंधन को खेल समझ रहा है तो वह क्यों रोते हुए जीए? क्यों वह एक कमजोर पुरुष के साथ अपनी जिंदगी बिताने के लिए मजबूर हो? वह आधुनिक लड़की है अत: कमजोर और बेबस हो कर नहीं जीएगी. कल उस की संतान इस दुनिया में जन्म ले लेगी. तब वह उस के साथ जी लेगी.

अब आगे क्या करना है, रंजना ने यह भी उसी समय सोच लिया. वह बस ग्रैजुएट थी. उसे कोई बहुत बड़ी नौकरी मिलने से रही, यह भी वह जानती थी.

अगली रात जब विनोद आया तो रंजना ने कहा था, ‘‘मैं मुंबई जाने के लिए

तैयार हूं.’’

विनोद उस का मुंह देखता रह गया.

रंजना ने कहा, ‘‘तुम मुझे मेरे नाम से वहां एक फ्लैट ले दो.’’

‘‘हां, यह तो हो जाएगा, मैं भी आता रहूंगा.’’

रंजना व्यंग्यपूर्वक हंसी, ‘‘और घर का खर्च?’’

‘‘मैं हर महीने क्व25-30 हजार तुम्हारे खाते में डाल दिया करूंगा और जरूरत हुआ करेगी तो और दे दिया करूंगा. तुम्हें कतई परेशानी नहीं होगी. बस मैं अपने परिवार से अलग कुछ कर नहीं सकता, यह मेरी मजबूरी है.’’

‘‘तुम रहो अपने परिवार के साथ, जितनी जल्दी हो सके मेरा मुंबई में रहने का अच्छा सा प्रबंध कर दो.’’

विनोद ने उसे बांहों में भरने की कोशिश की तो रंजना ने उस की बांहें झटक दीं. कहा, ‘‘तुम्हारे अब तक के प्यार को समझने में मुझ से जो भूल हुई है, पहले उस से तो उबर लूं… एक बात याद रखना, अगर मुझे या मेरे बच्चे को पैसे की तंगी हुई तो मैं तुम्हें कोर्ट में घसीट लूंगी.’’

रंजना जानती थी कि विनोद के परिवार को अपनी इज्जत जान से ज्यादा प्यारी है. समाज में एक नाम, इज्जत थी उन की.

‘‘नहींनहीं, तुम्हें कोई कमी नहीं रहेगी,’’ विनोद तुरंत बोला.

विनोद का बिजनैस के सिलसिले में मुंबई चक्कर लगता रहता था. उस ने 1 महीने के अंदर मुलुंड की एक अच्छी सोसाइटी में एक बैडरूम सैट खरीद कर रंजना के नाम कर दिया. मन ही मन वह दुखी और शर्मिंदा तो था. परिवार के दबाव के चलते उस ने रंजना के साथ अच्छा नहीं किया था. लेकिन परिवार की बात न मानने पर उसे सारी संपत्ति से हाथ धोना पड़ेगा, यह वह अच्छी तरह जानता था.

खुद को पूरी हिम्मत से संभाल कर रंजना मुंबई के इस फ्लैट में आ गई. संजना

उस के संपर्क में रहती थी. उसे पूरी बात पता थी. जब संजना ने अपने मम्मीपापा को यह बात बताई तो नाराजगी भूल उन्होंने आ कर रंजना को गले लगा लिया. तय समय पर रंजना ने स्वस्थ सुंदर मिनी को जन्म दिया. रंजना मिनी का चेहरा देख खिल उठी थी. विनोद और रंजना की फोन पर बातचीत होती रहती थी. वह खबर पाते ही मिनी को देखने चला आया.

सारा काम रंजना की मम्मी ने संभाला था. उस के मम्मीपापा विनोद से खिंचेखिंचे ही रहे. विनोद 2 दिन में रंजना के हाथ में भारी रकम रख कर चला गया. रंजना ने कोई नाराजगी नहीं दिखाई.

मिनी 2 महीने की हो गई तो रंजना ने अपनी मम्मी से कहा, ‘‘मम्मी, अब आप घर लौट जाओ. अब मैं मिनी को देख लूंगी.’’

‘‘लेकिन तू अकेली कैसे…?’’

‘‘नहीं मम्मी, मैं सब कर लूंगी, मुझे अपनी लाइफ खुद संभालने दो,’’ रंजना बीच ही में बोली.

रंजना के चेहरे पर छाए आत्मविश्वास को देख कर अंजना भी कुछ कह नहीं सकीं और बेटी को बहुत सी हिदायतें दे कर अपने घर लौट गईं.

रंजना ने बखूबी मिनी को संभाल लिया था, उसी को देख कर उस के रातदिन कटते, सुंदर और आकर्षक तो वह थी ही, उस पर बेहतरीन रखरखाव, बेहद मौडर्न कपड़े, यत्न से संवारा रूपरंग. तभी तो भीड़ में भी वह अलग दिखती.

ऐसे ही दिन बीत रहे थे. 2-3 महीनों में विनोद आता तो शारीरिक जरूरत की पूर्ति के चलते. विनोद का सामीप्य, एक पुरुष और स्त्री का नैसर्गिक संबंध दोनों को एकदूसरे के करीब ले आता और फिर दोनों अभी पतिपत्नी तो थे ही.

पासपड़ोस में भी सब को यही लगता कि बेचारी बच्ची के साथ

अकेली रहती है. रंजना ने सब को यही बताया था कि उस के पति की टूरिंग जौब है. उन्हें अकसर विदेश जाना पड़ता है. मिनी 1 साल की हो रही थी. बैंगलुरु की एक परिचिता ने रंजना को बताया था कि विनोद दूसरी शादी करने के लिए तैयार हो गया है. सुन कर रंजना के तनबदन में आग लग गई. फिर उस ने ठंडे दिमाग से सोचा. वह विनोद पर आर्थिक रूप से निर्भर थी. वह ताव में आ कर अपना नुकसान नहीं कर सकती थी. अत: उस ने विनोद से कहा, ‘‘तुम्हें जो करना है कर लो, लेकिन कानूनन आज भी मैं ही तुम्हारी पत्नी हूं. मेरा और मिनी का खर्च हमेशा तुम ही उठाओगे, मैं भी अब कुछ भी करूं, तुम्हें बोलने का हक नहीं होगा.’’

विनोद ने तो जान छूटी, सोच कर झट से कहा, ‘‘हांहां, बिलकुल, तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी, मैं भी मिलने आता रहूंगा.’’

‘‘मिलने में मुझे अब कोई रुचि नहीं रहेगी. मिनी के प्रति कोई फर्ज महसूस हो तो उस से मिलने आ जाना,’’ और उसी क्षण रंजना ने अकेली और उदास रह कर नहीं, बल्कि आनंदपूर्वक जीने का निश्चय कर लिया.

मिनी को वह मां और पिता दोनों का प्यार देती. उस की हर जिम्मेदारी मन से पूरा कर रही थी. सुजय उस की सहेली निशा का छोटा भाई था. वह रंजना के मादक सौंदर्य के आकर्षण से बच नहीं पाया. कभी मिनी से मिलने तो कभी किसी और बहाने आने लगा तो रंजना मन ही मन मुसकरा उठी. उस ने सुजय को बड़ी अदाओं से बढ़ावा दिया और फिर दोनों एकदूसरे में खो गए. एमबीए करने के बाद वह जौब की तलाश में था. मिनी के स्कूल जाने के बाद वह रंजना के पास पहुंच जाता और रंजना का पुरुषस्पर्श को तरसता मन उस की चाहत में डूबडूब जाता. सुजय उस से विवाह करने के लिए भी तैयार था, लेकिन अब रंजना विवाह के नाम से ही दूर भागती. हाथ में भरपूर पैसा, मनचाहा जीवन, न पति का कोई काम, न कोई रोकनेटोकने वाला, उसे अब अपने आजाद जीवन में कोई अड़चन नहीं चाहिए थी.

सुजय को दिल्ली से जौब का बुलावा आया तो वह उदास मन से चला गया और रंजना सिर झटक कर जीवन में आगे बढ़ गई. वह अपने मम्मीपापा और बहन से फोन पर संपर्क में रहती ही थी, मिनी की छुट्टियों में आनाजाना भी लगा रहता था. विनोद आज भी फोन पर हालचाल लेता रहता था. अब भी मुंबई आने पर मिलने जरूर आता था. बस, अब मेहमान की तरह आता था, मेहमान की तरह चला जाता था. मिनी को अभी रंजना ने बहला दिया था. समझदार होने पर वह अपनी बेटी को सब साफसाफ समझ देगी, यह वह सोच चुकी थी.

विनोद के मन में आज भी अपराधबोध था. बेचारी कैसे जीती है अकेली. लेकिन रंजना कैसे जी रही है, यह उसे बताने वाला कोई नहीं था. वह दूसरा विवाह कर चुका था और अब 1 बेटे का पिता भी बन चुका था. रंजना सब जानती थी, लेकिन विनोद के पैसे पर ही उसे मौज करनी थी, इसलिए वह गंभीर बनी रहती थी.

फिर उस के जीवन में आए डा. नीरज. वे चाइल्ड स्पैशलिस्ट थे. उन्होंने एक बार मिनी को तेज बुखार होने पर उस का इलाज किया था. वे भी रंजना के आकर्षण में बंधे एक दिन मिनी को देखने के बहाने उस के घर जा पहुंचे और फिर

2 साल रंजना और उन का प्रेमप्रसंग चला. वे तलाकशुदा थे. वे भी रंजना के साथ विवाह करना चाहते थे, पर रंजना उन के साथ शारीरिक रूप से तो जुड़ी लेकिन विवाह तो अब उसे करना नहीं था. अंत में रंजना के साफसाफ मना करने पर उन्होंने अन्यत्र विवाह कर लिया. अब रंजना की दोपहरें अमित के साथ बीत रही थीं.

अमित कालसैंटर में काम करता था. उस की अकसर नाइट शिफ्ट होती थी.

अमित से रंजना मिनी के स्कूल में मिली थी. वह मिनी की क्लास में पढ़ रहे सुधांशु का चाचा था. सुधांशु के मातापिता दोनों कामकाजी थे, इसलिए पीटीएम में अकसर अमित ही आता था. अमित से 2-4 मुलाकातें होने पर ही रंजना को वह अच्छा लगने लगा था. फिर उन की धीरेधीरे अंतरंगता बढ़ती गई.

अब अमित के इंतजार में अतीत की स्मृतियों में डूबतेउतरते डोरबैल बजने पर ही उस की तंद्रा भंग हुई. अमित ने आते ही उसे बांहों में भर लिया.

रंजना ने अपनी मादक हंसी बिखेरते हुए कहा, ‘‘अरे, पहले फ्रैश तो हो जाओ, लंच तो कर लो.’’

‘‘सब बाद में,’’ कहते हुए अमित रंजना को गोद में उठा कर बैड पर ले गया. रंजना भी उस की बांहों में समाती चली गई. भावनाओं का ज्वार जब थमा तो दोनों काफी देर लेट कर हंसीमजाक करते रहे. फिर लंच करते हुए रंजना ने कहा, ‘‘आज मेरी किट्टी पार्टी है.’’

‘‘अच्छा, कब निकलोगी?’’

‘‘4 बजे.’’

‘‘ठीक है, मैं चलता हूं, तुम भी तैयारी करो,’’ अमित बोला.

‘‘कल से मिनी की गरमी की छुट्टियां हैं. हम फिलहाल नहीं मिलेंगे… स्कूल शुरू होने के बाद ही मिलेंगे.’’

‘‘एज यू विश, चलता हूं,’’ कहते हुए अमित ने रंजना के गाल पर किस किया.

रंजना ने तुरंत किचन समेटी, टाइम देखा.

3 बज चुके थे. ‘15 मिनट लेट कर तैयार होगी,’ सोच कर वह बैड पर लेट गई. लेटते ही कुछ पल पहले अमित के साथ बिताए पलों ने उसे फिर आंतरिक खुशी दी कि कितनी खुश है वह, क्या बढि़या जीवन जी रही है. अभी अपनी लेटैस्ट ड्रैस पहनेगी, लंबी रैड स्कर्ट के साथ ब्लैक टौप, साथ में मैचिंग ज्वैलरी. किट्टी पार्टी में सभी उस की डै्रसिंगसैंस की तारीफ करती नहीं थकतीं. उसे उन कुछ मूर्ख महिलाओं पर हंसी आती जिन की यह कानाफूसी उस के कानों में पड़ती कि हाय बेचारी, कितनी अकेली है, कैसे जीती होगी, अपना समय कैसे काटती होगी? इन फुसफुसाहटों पर उस का मन होता कि वह जोर से ठहाका लगाए, वह और बेचारी? बिलकुल नहीं, वह तो लाइफ ऐंजौय कर रही है. कहां जरूरत है उसे पति नामक प्राणी की? फिर वह मन ही मन हंस कर उठ कर तैयार होने लगी.

तैयार हो कर शीशे में देखा तो खुद पर इतरा उठी. फिर पर्स ले कर निशा के घर चल दी.

पार्टी आज उस के घर पर ही थी. उसे देखते ही सब वाहवाह कर उठीं. किट्टी पार्टी में लगभग 50 साल की 2-3 आंटियां भी थीं. सविता आंटी ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, फिर पूछा, ‘‘कैसी हो, बेटा?’’

‘‘एकदम ठीक,’’ कह कर रंजना औरों से मिलने लगी.

सविता अब मंजू आंटी से कह रही थी,

‘‘बेचारी किट्टी पार्टी में आ जाती है तो थोड़ा मन लग जाता होगा, हाय बेचारी.’’

अपने बारे में हमेशा होने वाली इस टिप्पणी

पर रंजना मन ही मन इन कुंठित सोच वाली महिलाओं पर तरस खाती थी. फिर रंजना ने पार्टी का पूरे मन से आनंद लिया. 5 बजते ही कई महिलाओं ने अपनाअपना पर्स संभाल कर कहा, ‘‘अब चलना पड़ेगा… अपना तो खानापीना हो गया, पति और बच्चों के लिए तो जा कर बनाना ही पड़ेगा.’’

एक ने कहा, ‘‘अरे, मुझे तो सासससुर के लिए चायनाश्ता बनाना है जा कर.’’

रंजना आराम से बैठी थी. मन ही मन सोच रही थी कि बेचारी तो ये हैं. वह कितने आराम से जी रही है, जीवन के 1-1 पल का भरपूर आनंद उठा रही है, और आगे भी उठाती रहेगी.

सब चली गईं. रंजना भी उठ खड़ी हुई तो निशा ने कहा, ‘‘तू बैठ न, तुझे क्या जल्दी है?’’

‘‘मिनी के आने का समय हो रहा है. आज उसे पिज्जा और आइसक्रीम खिलाने ले जाना है. सुबह ही कह कर गई थी,’’ कह कर निशा से विदा ले कर रंजना बस स्टैंड की ओर चल दी.

बस आई तो मिनी फुदकती हुई उस की तरफ बढ़ गई, बोली, ‘‘मौम, आज बाहर चलेंगे न?’’

‘‘बिलकुल, पहले चल कर कपड़े तो

बदल लो.’’

‘‘ठीक है मौम.’’

घर आ कर मिनी को याद आया, ‘‘अरे, आज आप की किट्टी पार्टी थी न? आप बहुत स्मार्ट लग रही हैं, आप की फ्रैंड्स आप की नई डै्रस देख कर क्या बोलीं मौम?’’

‘‘वे बोलीं, हाय बेचारी,’’ कह कर रंजना ने जोर से ठहाका लगाते हुए बेटी को सीने से लगा लिया.

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Family Story in Hindi: पांव पड़ी जंजीर

Family Story in Hindi: सुबह दाढ़ी बनाते समय अचानक  बिजली चली गई. नीरज ने जोर  से आवाज दे कर कहा, ‘‘रितु, बिजली चली गई, जरा मोमबत्ती ले कर आना.’’

‘‘मैं मुन्ने का दूध गरम कर रही हूं,’’ रितु ने कहा, ‘‘एक मिनट में आती हूं.’’

तब तक नीरज आधी दाढ़ी बनाए ही भागे चले आए और गुस्से से बोले, ‘‘कई दिनों से देख रहा हूं कि तुम मेरी बातों को सुन कर भी अनसुनी कर देती हो.’’

खैर, उस समय तो रितु ने नीरज को मोमबत्ती दे दी थी लेकिन नाश्ता परोसते समय वह उस से बोली, ‘‘आप तो ऐसे न थे. बातबात पर गुस्सा करने लग जाते हो. मेरी मजबूरी भी तो समझो. सुबह से ले कर देर रात तक घर और बाहर के कामों में चरखी की तरह लगी रहती हूं. रात होतेहोते तो मेरी कमर ही टूट जाती है.’’

‘‘मैं क्या करूं अब,’’ नीरज ठंडी सांस लेते हुए बोले, ‘‘समय पर आफिस नहीं पहुंचो तो बड़े साहब की डांट सुनो.’’

फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘‘लगता है, इस बार इनवर्टर लेना ही पड़ेगा.’’

‘‘इनवर्टर,’’ रितु ने मुंह बना कर कहा, ‘‘पता भी है कि उस की कीमत कितनी है. कम से कम 7-8 हजार रुपए तो चाहिए ही. कोई लोन मिल रहा है क्या?’’

‘‘लोन की बात कर क्यों मेरा मजाक उड़ा रही हो. तुम्हें तो पता ही है कि पिछला लोन पूरा करने में ही मेरे पसीने छूट गए थे. मैं तो सोच रहा था कि तुम अपने पापा से बात कर लो….उधार ही तो मांग रहा हूं.’’

‘‘क्याक्या उधार मांगूं?’’ रितु तल्ख हो गई, ‘‘गैस, टेलीफोन, सोफा, दीवान और भी न जाने क्याक्या. सब उधार के नाम पर ही तो आया है. अब और यह सबकुछ मुझ से नहीं होगा.’’

‘‘क्यों, क्या मुझ में उधार चुकाने की सामर्थ्य नहीं है?’’ नीरज बोेले, ‘‘इतने ताने मत दो. आखिर, जो हुआ उस में कहीं न कहीं तो तुम्हारी भी सहमति थी.

‘‘मेरी सहमति,’’ रितु फैल गई, ‘‘मैं जिस प्रकार तुम्हें निभा रही हूं मैं ही जानती हूं.’’

‘‘तो ठीक है, निभाओ अब, कह क्यों रही हो,’’ नीरज गुस्से से उठते हुए बोले.

‘‘मैं तो निभा ही रही हूं. इतना ही गरूर था तो बसाबसाया घर क्यों छोड़ कर आ गए. तब तो बड़ी शान से कहते थे कि मैं अपना अलग घर ले कर रहूंगा. कोई मोहताज तो नहीं किसी का. और अब…मैं पापा से कुछ नहीं मांगूंगी,’’ रितु गुस्से से कहती गई.

‘‘अच्छा बाबा, गलती हो गई तुम से कुछ कह कर,’’ नीरज कोट पहनते हुए बोले, ‘‘अब तक यह घर चला ही रहा हूं, आगे भी चलाऊंगा. कोई भूखे तो नहीं मर रहे.’’

आज सुबहसुबह ही मूड खराब हो गया. अभाव में पलीबढ़ी जिंदगी का यही हश्र होता है. आएदिन किसी न किसी बात पर हमारी अनबन रहती है और फिर न समाप्त होने वाला समझौता. आज स्कूल जाने का रहासहा मूड भी जाता रहा सो गुमसुम सी पड़ी रही. मन में छिपी परतों से बीते पल चलचित्र की तरह एकएक कर सामने आने लगे.

अपना नया नियुक्तिपत्र ले कर आफिस में प्रवेश किया तो मैं पूरी तरह घबराई हुई थी. इतना बड़ा आफिस. सभी लोग चलतेफिरते रोबोट की तरह अपने में व्यस्त. एक कोने में मुझे खड़ा देख कर एक स्मार्ट से लड़के ने पूछा, ‘आप को किस से मिलना है?’

बिना कुछ बोले मैं ने अपना नियुक्तिपत्र उस की ओर बढ़ाया था.

‘ओह, तो आप को इस दफ्तर में आज ज्वाइन करना है,’ कहते हुए वह लड़का मुझे एक केबिन में ले गया और एक कुरसी पर बैठाते हुए बोला, ‘आप यहां बैठिए, मेहताजी आप के बौस हैं. वह आएंगे तो आप के काम और बैठने की व्यवस्था करेंगे.’

मैं इंतजार करने लगी. थोड़ी देर बाद वह लड़का फिर आया और कहने लगा, ‘सौरी, मैडम, मेहताजी आज थोड़ी देर में आएंगे. आप चाहें तो नीचे रिसेप्शन पर इंतजार कर सकती हैं. कुछ चाय वगैरह लेंगी?’

मुझे इस समय चाय की सख्त जरूरत थी किंतु औपचारिकतावश मना कर दिया.

‘आर यू श्योर,’ उस ने चेहरे पर मुसकराहट बिखेर कर पूछा तो इस बार मैं मना न कर सकी.

‘अच्छा, मैं अभी भिजवाता हूं,’ फिर अपना परिचय देते हुए बोला, ‘मेरा नाम नीरज है और मैं सामने के हाल में उस तरफ बैठता हूं. यहां सेल्स एग्जीक्यूटिव हूं.’

नीरज मुझे बेहद सहायक और मधुर से लगे. बस, फिर तो क्रम ही बन गया. हर रोज सुबह नीरज मुझ से मिलने आ जाते या कभी मैं ही चली जाती. इस तरह सुबह की गुडमार्निंग कब और कहां अनौपचारिक ‘हाय’ में बदल गई पता ही न चला.

नीरज का मधुर स्वभाव मुझे अपनी ओर अनायास ही खींचता चला गया. अंतत: इस खिंचाव ने प्रगति मैदान जा कर ही दम लिया. हम दोनों प्राय: इसी मैदान में आते और हाथों में हाथ डाले शकुंतलम थिएटर की फिल्में देखते.

एक दिन मैं ने नीरज से कहा, ‘अब बहुत हो चुकी डेटिंग, नीरज. अब शादी के लिए गंभीर हो जाओ. कहीं किसी ने यों ही देख लिया तो आफत आ जाएगी. आफिस का स्टाफ तो पहले से ही शक करता है.’

‘गंभीर क्या हो जाऊं,’ वह मेरी लटों को संभालते हुए बोले, ‘यही तो दिन हैं घूमने के. फिर ये कभी हाथ नहीं आएंगे. पर तुम शादी के लिए इतनी उत्सुक क्यों हो रही हो? क्या रात में नींद नहीं आती? इतना कह कर नीरज ने मेरा हाथ जोर से दबा दिया. उन का स्पर्श मुझे अभिभूत कर गया. लजा कर रह गई थी मैं. थोड़ी देर के लिए सपनों की दुनिया में चली गई थी. समय का आभास होते ही मैं ने पूछा, ‘क्या सोचा तुम ने?’

‘मुझे क्या सोचना है,’ नीरज थोड़ा चिंतित हो कर बोले, ‘मैं तो तुम्हारे साथ ही शादी करूंगा, पर…’

‘पर क्या?’ उन के चेहरे के भावों को पढ़ते हुए मैं ने पूछा.

‘मां को मनाने में थोड़ा समय लगेगा. दरअसल, उन्होंने एकदम सीधीसादी सलवारकमीज वाली धार्मिक लड़की की कल्पना की है, जो हमारे घर के पास रह रही है. किंतु वह लड़की मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती.’

‘फिर क्या होगा?’ मैं ने गंभीर होते हुए पूछा.

‘होगा वही जो मैं चाहूंगा. आखिर रखना तो मुझे है न. तुम चिंता न करो. समय देख कर किसी दिन मां से बात करूंगा, पर डरता हूं, कहीं वे मना न कर दें.’

एक दिन शाम को नीरज अपनी मां से मिलवाने के लिए मुझे ले गए. मेरी नानुकुर नीरज के सामने ज्यादा न चल सकी. कहने लगे, ‘मां को अपनी पसंद भी बता दूं क्योंकि सीधा कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती है. तुम्हें मेरे साथ देख कर शायद बातचीत का कोई रास्ता निकल आए.’

नीरज ने थोड़े शब्दों में मेरा परिचय दिया. मां की अनुभवी नजरों से कुछ भी छिपा न रह सका.

नीरज की जिद और इच्छा को देखते हुए मां ने बेमन से शादी के लिए हां तो कह दी किंतु जिस तरह दुलहन को इस घर में आना चाहिए था वह सारी रस्में फीकी पड़ गईं. मेरी सारी सजने- संवरने की आशाएं धरी की धरी रह गईं. मां ने कोई खास उत्सुकता नहीं दिखाई क्योंकि शादी उन की मरजी के खिलाफ जो हुई थी.

कुछ दिन तो हंसीखेल में बीत गए पर हमारा देर रात तक घूमना और बाहर खा कर आना ज्यादा दिन तक न चल सका. मां ने एक दिन नाश्ते पर कह दिया कि हम से देर रात तक इंतजार नहीं किया जाता. समय पर घर आ जाया करो. फिर घर की तरफ बहू को थोड़ा ध्यान देना चाहिए.

इस पर नीरज तुनक कर बोले, ‘मां, इस के लिए तो सारी उम्र पड़ी है. हम दूसरी चाबी ले कर चले जाया करेंगे आप सो जाया करो, क्योंकि पार्टी में दोस्तों के साथ देर तो हो ही जाती है.’

मेरे मन में न जाने क्यों शांत स्वभाव वाले मां और बाबूजी के प्रति सहानुभूति उभर आई. बोली, ‘मां ठीक कहती हैं, नीरज. हम समय पर घर आ जाएंगे. अपनी पार्टियां अब हम वीकेंड्स में रख लेंगे.’

मांजी के व्यवहार में आई सख्ती को मैं कम करना चाहती थी. इस के लिए अपनी एक हफ्ते की छुट्टी और बढ़ा ली ताकि मांजी के व्यवहार को समझ सकूं.

एक दिन नीरज शाम को मुसकराते हुए आए और कहने लगे, ‘रितु, सब लोग तुम्हें बहुत याद करते हैं. देखना चाहते हैं कि तुम शादी के बाद कैसी लगती हो.’

मैं खिलखिला कर हंस पड़ी. मुझे आफिस का एकएक चेहरा याद आने लगा. मैं ने कहा, ‘ठीक है, कुछ दिनों की ही तो बात है. अगले सोमवार से तो आफिस जा ही रही हूं?’

‘‘मांजी पास में बैठी चाय पी रही थीं. बड़े शांत स्वर में बोलीं, ‘बेटा, हमारे घरों में शादी के बाद नौकरी करने की रीति नहीं है. बहू को बहू की तरह ही रहना चाहिए, यही अच्छा लगता है. आगे जैसा तुम को ठीक लगे, करो.’

मां का यह स्वर मुझे भीतर तक हिला कर रख गया था. उन के यह बोल अनुभव जन्य थे. जोर से डांटडपट कर कहतीं तो शायद मैं प्रतिकार भी करती. मुझे मां का इस तरह कहना अच्छा भी लगा और उन का सामीप्य पाने का रास्ता भी.

नीरज फट से बोल पड़े थे, ‘मां, आजकल दोनों मिल कर कमाएं तभी तो घर ठीक से चलता है. फिर यह तो अकेली यहां बोर हो जाएगी.’

‘क्यों? क्या कमी है यहां जो दोनों को काम करने की आवश्यकता पड़ रही है. भरापूरा घर है. तेरे बाबूजी भी अच्छा कमाते हैं. सबकुछ ठीक चल रहा है. हम कौन सा तुम से कुछ मांग रहे हैं,’ मांजी का स्वर तेज हो गया, ‘फिर भी तू बहू से काम करवाना चाहता है तो तेरी मरजी.’

मैं खामोश ही रही. पर इस तरह नीरज का बोलना मुझे अच्छा नहीं लगा था. भीतर जा कर मैं ने नीरज से कहा, ‘नौकरी मुझे करनी है. मांजी को अच्छा नहीं लगता तो मैं नहीं जाऊंगी. बस.’

‘नहीं, तुम नौकरी करने जरूर जाओगी. मैं ने जो कह दिया सो कह दिया,’ नीरज ने कठोर स्वर में कहा.

मन के झंझावात में मैं अंतत: कोई निर्णय नहीं ले पाई. मैं ने हार कर मां से पूछा, ‘मैं क्या करूं, मां?’

‘जो नीरज कहता है वही कर,’ मां ने सीधासपाट सा उत्तर दिया.

उस दिन काम पर तो चली गई किंतु मां के मूक आचरण से एहसास हो गया था कि उन को यह सब ठीक नहीं लगा.

मैं, मां और बाबूजी को खुश करने के लिए हरसंभव प्रयास करती रही. नीरज को भी समझाया कि यह सब उन को ठीक नहीं लगता पर उन के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया. क्या पता था कि ऊपर से इतने मृदुभाषी और हंसमुख इनसान अंदर से इतने अस्वाभाविक और सख्त हो सकते हैं.

इस प्रपंच से जल्दी ही मुझे मुक्ति मिल गई. मेरा पांव भारी हो गया और आफिस न जाने का बहाना मिल गया. इस में मां ने मेरी तरफदारी की तो अच्छा लगा.

मुन्ना के होने के बाद तो मांबाबूजी के स्वभाव में पहले से कहीं ज्यादा बदलाव आ गया. आफिस के साथियों ने पार्टी की जिद पकड़ ली तो मैं ने नीरज को कहा कि पार्टी घर पर ही रख लेते हैं. किसी होटल या रेस्तरां में पार्टी करेंगे तो बहुत महंगा पड़ेगा. फिर मां और बाबूजी को भी अच्छा लगेगा. नीरज भी बजट को देखते हुए कुछ नहीं बोले.

सारा दिन मैं घर संवारने में लगी रही. मां को घर में आ रहे इस बदलाव से अच्छा लगने लगा था. सारे सामान का आर्डर पास ही के रेस्तरां में दे दिया था.

‘मांजी कहां हैं,’ मेरी एक आफिस की सहेली ने पूछ लिया. मैं मां को बुलाने उन के कमरे में गई तो मां हंस कर बोलीं, ‘मैं वहां जा कर क्या करूंगी. बच्चों की पार्टी है, तुम लोग मौजमस्ती करो.’

‘नहीं, मां, आप वहां जरूर चलो. बस, मिल कर आ जाना…अच्छा लगता है,’ मैं ने स्नेहवश मां को कहा तो मेरा दिल रखने के लिए उन्होंने कह दिया, ‘अच्छा, तुम चलो, मैं तैयार हो कर आती हूं.’

मैं मुन्ने को ले कर ड्राइंगरूम में आ गई. मांबाबूजी अभी ड्रांइगरूम में आए ही थे कि दरवाजे की घंटी बजी. बाबूजी दरवाजे की तरफ जाने लगे तो मैं ने नीरज को इशारा किया.

‘बाबूजी, आप बैठिए. मैं जा रहा हूं. बाजार से खाना मंगवाया है, वही होगा.’

‘अरे, कोई बात नहीं,’ बाबूजी बोले.

‘नहीं, बाबूजी,’ नीरज थोड़ी तेज आवाज में बोले, ‘इसे हाथ न लगाना. इस में चिकन है. बाजार से दोस्तों के लिए मंगवाया है.’

‘नानवैज?’

मां और बाबूजी बिना किसी से मिले चुपचाप अपने कमरे में चले गए. मैं नीरज के साथ उन के पीछेपीछे कमरे तक गई तो देखा, मांजी माथा पकड़ कर एक तरफ पसर कर बैठी कह रही थीं, ‘अब यही दिन देखना रह गया था. जिस घर में अंडा, प्याज और लहसुन तक नहीं आया चिकन आ रहा है.’

‘मां, हम लोग तो खाते नहीं. बस, दोस्तों के लिए मंगवाया था. मैं ने घर पर तो नहीं बनवाया,’ नीरज ने सफाई देते हुए कहा.

मेरा चेहरा पीला पड़ गया था.

‘तुम लोग भी खा लो, रोका किस ने है…मैं क्या जानती नहीं कि तुम लोग बाहर जा कर क्या खाते हो…और अब यह घर पर भी….’ मां सुबक पड़ीं, ‘मेरा सारा घर अपवित्र कर दिया तू ने. मैं अब इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगी.’

‘नहीं, मां, तुम क्यों जाती हो, हम ही चले जाते हैं. हमारी तो सारी खुशियां ही छीनी जा रही हैं. मैं ही अलग घर ले कर रह लेता हूं, कहते हुए नीरज बाहर चले गए.

सुबह नाश्ते पर बैठते ही नीरज ने कहा, ‘मां, कल रात के लिए मैं माफी मांगता हूं किंतु मैं ने अलग रहने का फैसला ले लिया है.’

‘नीरज,’ मैं चौंक कर बोली, ‘आप क्या कह रहे हो, आप को पता भी है.’

‘तुम बीच में मत बोलो, रितु,’ वह एकाएक उत्तेजित और असंयत हो उठे. मैं सहम गई. वह बोलते रहे, ‘अच्छा कमाताखाता हूं, अलग रह सकता हूं… अब यही एक रास्ता रह गया है. आप को हमारे देर से आने में परेशानी होती है. यह करो वह न करो, कितने समझौते करने पड़ रहे हैं. मेरा अपना कोई जीवन ही नहीं रहा.’

‘ठीक है, बेटा, जैसा तुम को अच्छा लगे, करो. हम ने तो अपना जीवन जैसेतैसे काट दिया. किंतु इस घर के नियमों को तोड़ा नहीं जा सकता. मन के संस्कार हमें संयत रखते हैं. खेद है, तुम में ठीक से वह संस्कार नहीं पड़ सके. तुम चाहते हो कि तुम्हारे मिलनेजुलने वाले यहां आएं, हुड़दंग मचाएं, खुल कर शराब पीएं और जुआ खेलें…इस घर को मौजमस्ती का अड्डा बनाएं…’ बाबूजी पहली बार तेज आवाज में अपने मन की भड़ास निकाल रहे थे. कहतेकहते बाबूजी की आंखें भर आईं.

मेरे बहुत समझाने के बाद भी नीरज ने अलग घर ले कर ही दम लिया. 2-3 महीने तो घर को व्यवस्थित करने में लग गए पर जब घर का बजट हिलने लगा तो पास के एक स्कूल में मुझे भी नौकरी करनी पड़ी. मुन्ने की आया और के्रच के खर्चे बढ़ गए. असुविधाएं, अभाव और आधीअधूरी आशाओं के सामने प्यार ने दम तोड़ दिया. कभी सोचा भी न था कि मुझ पर दुनिया की जिम्मेदारियां पड़ेंगी. मुन्ने के किसी बात पर मचलते ही मैं अतीत से वर्तमान में आ गई.

एक दिन सुबह कपड़े धोतेधोते पानी आना बंद हो गया. मैं ने उठ कर नीरज से कहा कि सामने के हैंडपंप से पानी ला दो.

‘‘सौरी, यह मुझ से नहीं होगा,’’ उन्होंने साफ मना कर दिया.

‘‘तो फिर वाशिंग मशीन ला दो, कुछ काम तो आसान हो जाएगा,’’ मैं ने उठते हुए कहा.

‘‘मैं कहां से ला दूं,’’ बड़बड़ाते हुए नीरज बोले, ‘‘तुम भी तो कमाती हो. खुद ही खरीद लो.’’

‘‘मेरी तनख्वाह क्या तुम से छिपी है. सबकुछ तो तुम्हारे सामने है. जितना कमाती हूं उस का आधा तो क्रेच और आया में चला जाता है. आनेजाने और खुद का खर्च निकाल कर बड़ी मुश्किल से हजार भी नहीं बच पाता.’’

‘‘कमाल है,’’ नीरज नरम होते हुए बोले, ‘‘तो फिर यह सब पहले मां के घर पर कैसे चलता था.’’

‘‘वहां काम करने वाली आया थी. बाबूजी का सहारा था. कोई किराया भी नहीं देना पड़ता था और उन सब से ऊपर मांजी की सुलझी हुई नजर. वह घर जो सुचारु रूप से चल रहा था उस के पीछे सार्थक श्रम और निस्वार्थ समर्पण था. पर यह सब तुम्हारी समझ में नहीं आएगा क्योंकि सहज से प्राप्त हुई वस्तु का कोई मोल नहीं होता,’’ मैं ने झट से बालटी उठाई और पानी लेने चली गई.

पानी ले कर वापस आई तो नीरज वहीं गुमसुम बैठे थे. उन के चेहरे के बदलते रंग को देखते हुए मैं ने कहा, ‘‘क्या सोचने लगे.’’

‘‘चलो, मां से मिल आते हैं,’’ उन की आंखें नम हो गईं.

अभावों में पलीबढ़ी जिंदगी ने वे सारे सुख भुला दिए जिन के लिए नीरज ने घर छोड़ा था. चिकनआमलेट तो छोड़ उन का दोस्तों के साथ आनाजाना भी कम होता गया. मांजी कभीकभी मिलने चली आतीं और शाम तक लौट जातीं. बस, बंटी हुई जिंदगी जी रही थी मैं.

एक दिन बाबूजी का फोन आया. बोले, ‘‘2 दिन के लिए लंदन वाले चाचा आए हैं. खाना रखा है तुम्हारी मां ने….ठीक समय से पहुंच जाना.’’

‘‘ठीक है, बाबूजी, मैं पूरी कोशिश करूंगी,’’ मैं ने औपचारिकतावश कह दिया.

‘‘कोशिश,’’ वे थोड़ा रुक कर बोले, ‘‘क्यों, कहीं जाना है क्या?’’

‘‘नहीं, बाबूजी,’’ मैं सुबक पड़ी. मेरे सारे शब्द बर्फ बन कर गले में अटक गए. मैं ने आंसू पोंछ कर कहा, ‘‘हफ्ते भर से इन की तबीयत ठीक नहीं है. दस्त और उलटियां लगी हुई हैं. डाक्टर की दवा से भी आराम नहीं आया.’’

‘‘अरे, तो हमें फोन क्यों नहीं किया?’’

‘‘मना किया था इन्होंने,’’ मैं बोली.

‘‘नालायक,’’ बाबूजी भारीभरकम आवाज में बोले, ‘‘चिंता न करो, मैं अभी आता हूं.’’

थोड़ी देर में मां और बाबूजी भी पहुंच गए. नीरज एक तरफ सिमट कर पड़े हुए थे. मां को देखते ही उन की रुलाई फूट पड़ी. बेटे के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘अरे, किसी से कहलवा दिया होता. देख तो क्या हालत बना रखी है. थोड़ा सा भी उलटासीधा खा लेता है तो हजम नहीं होता.’’

बाबूजी भी पास ही बैठे रहे. मैं चाय बना कर ले आई.

मांजी बोलीं, ‘‘चल, घर चल, अब बहुत हो चुका. अब तेरी एक न सुनूंगी. परीक्षा की घडि़यां तो जीवन में आती ही रहती हैं. चंचल मन इधरउधर भटक ही जाता है. कोई इस तरह मां को छोड़ कर भी चला आता है क्या. चल, बहुत मनमानी कर ली.’’

वात्सल्यमयी मां के स्वर सुन कर मेरी आंखों से आंसू बहने लगे. मांजी मेरी साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘इस तरह की जिद बहू करती तो समझ में आता. उस ने तो स्वयं को घर के वातावरण के अनुसार ढाल लिया था पर तुझ से तो ऐसी उम्मीद ही नहीं थी. तुझ से तो मेरी बहू ही अच्छी है.’’

‘‘मां, मुझे माफ कर दो,’’ नीरज रो पड़े. उन का रोना मां और बाबूजी दोनों को रुला गया.

‘‘मैं ने दवाई के लिए नीरज को सहारा दे कर उठाया तो बड़े ही आत्मविश्वास से बोले, ‘‘अब इस की जरूरत नहीं पड़ेगी. मां आ गई हैं, अब मैं जल्दी ही अच्छा हो जाऊंगा.’’

मैं मुन्ने को उठा कर सामान समेटने में लग गई.

Family Story in Hindi

Festival Special: घर की साफसफाई में प्रोफेशनल क्लीनर का बढ़ता ट्रेंड

Festival Special: कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करने वाली 25 वर्षीय सिमरन हर साल दिवाली पर घर की साफसफाई के लिए प्रोफेशनल क्लीनर को हायर करती हैं. यह काम केवल एक दिन में पूरा हो जाता है. 2 बेडरूम वाले फ्लैट में वह अपने पेरेंट्स के साथ रहती है, इस काम के लिए न तो उसके पास समय है और न ही उसके पेरेंट्स से ये काम हो पाते हैं. प्रोफेशनल क्लीनर हर बार गहराई से उसके घर की क्लीनिंग कर देते है जो उसे काफी पसंद आता है.

असल में आजकल लोगों के पास फेस्टिवल पर अपने घरों की साफसफाई करने और स्वच्छता बनाए रखने का समय बहुत कम होता है. बड़े शहरों में यह समस्या आम है जबकि साफसुथरा घर स्वस्थ जीवन का प्रतीक होता है इसलिए वहां रहने वाले अधिकतर लोग हाउस हेल्प पर निर्भर रहते हैं. पर उन्हें यह शिकायत भी होती है कि हाउसहेल्प इन कामों को ठीक से नहीं करती है.

ऐसे में वे प्रोफेशनल क्लीनर्स से संपर्क कर साल में एक या दो बार अपने घर की सफाई करवाते हैं. मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में ऐसे प्रोफेशनल्स की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है इसलिए ऐसी एजेंसियां लोगों को हर बार त्योहारों पर खास छूट देती है, ताकि हर कोई अपनी बजट के अनुसार घर की साफसफाई करवा सकें.

हाइजिन के साथ सफाई 

एक प्रोफेशनल क्लीनर के द्वारा घर की सफाई कराना इसलिए बहुत जरूरी है, क्योंकि यह न केवल समय बचाता है बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि घर का कोनाकोना साफ होने के साथ ही आंखों की पहुंच  से अछूते रह जानेवाले जगह भी चमकने लगे. इसके अलावा पेशेवर क्लीनर विशेष उपकरणों और उत्पादों का भी उपयोग करते हैं, जो आम तौर पर घरों में उपलब्ध नहीं होते हैं.  इन उत्पादों और मशीनों का उपयोग कर धूल, गंदगी और एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों को प्रभावी ढंग से हटाया जा सकता है.

इस बारे में मुंबई की केएचएफएम के अजय राजेश भूसेनउर कहते हैं कि आजकल प्रोफेशनल क्लीनर से घर या फ्लैट की साफसफाई कराने का क्रेज मुंबई और पुणे में बहुत बढ़ा है, क्योंकि आज अधिकतर वुमन वर्किंग हैं और उन्हें साफसफाई कर समय बर्बाद करना पसंद नहीं होता है.  ऐसे में वे प्रोफेशनल क्लीनर को हायर करना पसंद कर रही हैं, क्योंकि मुंबई में अधितर मेड सर्वेन्ट भी घर को क्लीन करने के लिए अलग से पैसे मांगती हैं, जो ज्यादा होता है. ऐसे में अगर कोई प्रोफेशनल इस काम को करता है, तो उसकी सफाई गहराई तक होती है, साथ ही वह चीजों को साफ करने के लिए अलगअलग इकोफ्रैंडली लिक्विड का प्रयोग करते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होता और सफाई भी अच्छी होती है.

जागरूक ग्राहक

अजय आगे कहते हैं कि आज के ग्राहक काफी जागरूक हो चुके हैं, किसी भी प्रोफेशनल क्लीनर को हायर करने से पहले उनके सफाई के तरीकों और इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पादों की पूरी जानकारी लेते हैं. इसमें उन्हें घर के कुल एरिया मसलन कमरे, बाथरूम, स्टोर रूम के अनुसार बजट और सफाई के तरीकों की जानकारी देनी होती है. क्लीनिंग दो तरीके की होते है:

नॉर्मल क्लीनिंग, डीप क्लीनिंग

नॉर्मल क्लीनिंग में रूम में एंटर करने के बाद जितनी भी धूल या गंदगी होती है, उसे साफ किया जाता है.  इसके अलावा किचन के टाइल्स, फ्लोर, बेडरूम्स, वाशरूम्स आदि सब साफ किये जाते है.

नॉर्मल डीप क्लीनिंग में विंडो क्लीनिंग जैसी चीजें शामिल होती है.  इसमें स्लाइडिंग डोर के विंडो के पैनेल में जमी धूलमिट्टी को वैक्यूम क्लीनर से साफ किया जाता है. बालकनी के एरिया की धूलमिट्टी साफ कर वेट क्लीनिंग की जाती है और वैक्यूम से सुखाया जाता है. इसके अलावा किचन की ट्रॉली, टाइल्स, एक्जौस्ट फैन, सीलिंग फैन, सोफा सेट, मैटरेस, फर्नीचर, स्विच बोर्ड, सजावट का समान डीप क्लीन किये जाते हैं, ताकि आपका घर फिर से चमकने लगे.

हर कमरे के लिए अलग इकोफ्रेंडली लिक्विड होता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होता, इसलिए लोग इसे करवाना अधिक पसंद करते है. त्योहार में अधिकतर लोग डीप क्लीनिंग करवाना पसंद करते हैं क्योंकि त्योहार के दौरान उन्हें घर को सजाना होता है. इस काम के लिए 2 से 3 या 4 लोगों की जरूरत होती है, जो अपने काम में माहिर होते हैं और उन्हें हर वस्तु को क्लीन करने का तरीका पता होता है.

प्रोफेशनल क्लीनर के फायदे

इस प्रकार घर या फ्लैट की एरिया के हिसाब से पैसों को निश्चित किया जाता है, जो हर व्यक्ति की बजट के अनुसार होता है, प्रोफेशनल क्लीनर को हायर करने के ये फायदे हैं –

समय की बचत

पेशेवर क्लीनर समय बचाते हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो व्यस्त जीवनशैली जीते हैं या जिनके पास सफाई के लिए ज्यादा समय नहीं है.

गहरी सफाई

ये लोग गहरी सफाई करते हैं, जो आमतौर पर परिवारवालों से नहीं हो पाता है. प्रशिक्षित होने के कारण फर्नीचर के नीचे, कोनों और ऊंची जगहों की सफाई आसानी से कर देते है.

स्वस्थ वातावरण

पेशेवर क्लीनर धूल, एलर्जी और हानिकारक बैक्टीरिया को कम करके एक स्वस्थ रहने का वातावरण बनाने में मदद करते हैं. ये विभिन्न प्रकार की सफाई तकनीकों और उपकरणों के विशेषज्ञ होते हैं जैसे कि कालीन की सफाई, भाप से सफाई आदि.

एलर्जी से राहत

पेशेवर सफाई एलर्जी से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद होते हैं, क्योंकि वे एलर्जी कारकों को कम कर सकते हैं.

स्ट्रेस फ्री होना

पेशेवर क्लीनर को काम पर रखने से घर की सफाई का तनाव कम हो सकता है, जिससे आप अन्य महत्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. जब आपको विशेष सफाई सेवाओं की आवश्यकता हो, मसलन कालीन की सफाई या स्टीम से सफाई.

अंत में इतना कहना सही होगा कि प्रोफेशनल क्लीनर घर की सफाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो समय बचाना चाहते हैं, गहरी सफाई चाहते हैं और घर में हाइजीन को लेकर सचेत होते हैं. सही प्रोफेशनल क्लीनर को चुनते समय दिए रिव्यूज को अवश्य पढ़ें, ताकि आपके मनमुताबिक घर की क्लीनिंग हो सकें.

Festival Special

Vidya Balan ने बताई ऑन-स्क्रीन किसिंग की मुश्किल

Vidya Balan: फिल्मों में आज के समय में ‘लिप टू लिप किस’ आम बात है . पहले जमाने में जब किसिंग सीन होता था तो फूल से फूल टकराते थे या दो कबूतरों को चोंच लड़ाते हुए ऐसे सीन दिखाए जाते थे. लेकिन आज के समय में ‘लिप टू लिप किस’ हो या इंटिमेट सीन एक्टर्स के लिए इसे करना कोई बड़ी बात नहीं है. बल्कि खाने में जिस तरह नमक जरूरी होता है, वैसे ही आज के समय में रोमांटिक फिल्म हो या नॉर्मल फिल्म एक दो चुंबन दृश्य तो होते ही हैं.

लिहाजा हीरोइन हो या हीरो वह पहले से ही इस तरह के सीन्स के लिए मेंटली प्रिपेयर होते हैं, मुश्किल तब आती है जब ‘लिप टू लिप किस’ सीन के दौरान हीरो या हीरोइन के मुंह से बदबू आ रही हो, ऐसे में रोमांटिक सीन करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है.

अपने ऐसे ही एक सीन का जिक्र करते हुए एक्ट्रेस विद्या बालन ने एक किस्सा शेयर किया. जिसमें उन्हें अपने हीरो के साथ उस वक्त ऐसा राेमांटिक सीन करना पड़ा था जब एक्टर के मुंह से भयानक बदबू आ रही थी. विद्या बालन के अनुसार मैं फिल्म इंडस्ट्री में नई आई थी मुझे अपनी पहली ही फिल्म परिणीता में संजय दत्त के साथ इंटिमेट सीन करना पड़ा था उस वक्त में बहुत घबराई हुई थी क्योंकि उस दौरान मैं डेब्यू कर रही थी और संजय दत्त हिट स्टार थे.

लेकिन संजय दत्त ने मुझे अपनी बातों के जरिए बहुत कंफर्टेबल करवा दिया और मैं उनके साथ अच्छे से इंटिमेट सीन कर पाई. लेकिन करियर के उसी दौर में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान मुझे एक सीनियर हीरो के साथ किसिंग सीन करना था. मुझे वह सीन करना बहुत भारी पड़ गया क्योंकि उस हीरो ने एक रात पहले चाइनीज खाया था और शराब पी थी.

दूसरे दिन सीन करते समय ऐसा लग रहा था जैसे हीरो बिना ब्रश किये ही शूटिंग पर आकर रोमांटिक सीन करने लगा था. उसे तो इस बात का एहसास नहीं था लेकिन उसके मुंह से इतनी बदबू आ रही थी कि मेरा उसके साथ ‘लिप टू लिप किस’ करना बहुत मुश्किल हो गया. मै नई थी और वह पुराना एक्टर था इसलिए मैं उससे कुछ कह नहीं पाई.

ऐसा ही एक अनुभव एक बार सनी देओल ने शेयर किया था, जब एक फेमस हीरोइन सुबह-सुबह शराब पीकर बिना ब्रश किए सेट पर आ गई थी, ऐसे में जब सनी देओल ने हीरोइन के साथ किसिंग सीन शुरू किया तो हीरोइन के मुंह से आ रही बदबू को सहन नहीं कर पाए और उसी वक्त उस हीरोइन के साथ किसिंग करने से मना कर दिया.

बॉलीवुड में कई एक्टर्स ऐसे हैं जो रात को पार्टी करके शराब पीकर और नॉन वेज खाकर सो जाते हैं. अगली सुबह बिना ब्रश किए या बिना माउथ फ्रेशनर का इस्तेमाल किए सेट पर पहुंच जाते हैं, इनके साथ सह कलाकारों को काम करना मुश्किल हो जाता है, कुछ इस पर रिएक्ट कर देते हैं तो कुछ झिझक के मारे चुप रहते हैं.

Vidya Balan

Silver Nipple Cups: ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली माओं की नई पसंद

Silver Nipple Cups: सिल्वर निप्पल कप्स, जिसे सिल्वर कप भी कहा जाता है, स्तनपान कराने वाली माओं के लिए एक प्राकृतिक और प्रभावी प्रोडक्ट है, जो निप्पल में होने वाले दर्द और दरारों से राहत पाने में मदद करता है. ये छोटे कप सिल्वर से बने होते हैं और इनमें प्राकृतिक रोगाणुरोधी, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीफंगल गुण होते हैं.

ये कप आमतौर पर 99.9 प्रतिशत शुद्ध चांदी से बने होते हैं और निप्पल क्षेत्र पर आराम से फिट होने के लिए ढाले जाते हैं. इनमें कोई क्रीम या रसायन नहीं होता, इसलिए ये उन स्त्री को पसंद आते हैं जो अधिकतर नैचुरल चीजों को पसंद करते है.

क्या है इसका इतिहास

सिल्वर निप्पल कप्स का इतिहास सदियों पुराना है, और यह प्राकृतिक उपचार विधियों से जुड़ा है. चांदी में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, जो स्तन के संक्रमण को रोकने और उपचार को बढ़ावा देने में मदद करते हैं.

माओं को निप्पल की समस्याओं से राहत देने के लिए चांदी का उपयोग एक पारंपरिक उपाय रहा है और इस कड़ी में सिल्वर निप्पल कप्स का प्रयोग आज की नई माएं करने लगी है.

ये सिल्वर निप्पल कप्स ऑनलाइन या बाजार में आजकल आसानी से मिल जाते है. इस बारें में ग्रेटर नोएडा के मदरहुड अस्पताल की लेक्टेशन कंसल्टेंट और फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. मुस्कान रस्तोगी कहती है कि सिल्वर निपल्स उन माओं के लिए अधिक फायदेमंद होता है, जिन्हें बच्चे को दूध पिलाते समय निप्पल में दर्द, जलन या फटने की समस्या हो रही हो.
आजकल की नई माओं ने सिल्वर निप्पल कप्स को प्रयोग करना शुरू कर दिया है और इसका ट्रेंड काफी बढ़ा है, जो शुरू में बच्चे को स्तनपान के दर्द से राहत दिलाने में मदद करती है.

सिल्वर निप्पल कप्स को स्तनपान कराने से पहले और बाद में निप्पल पर पहना जाता है. कुछ माओं को वे हर समय पहने रखने की आवश्यकता हो सकती है, जबकि अन्य को केवल स्तनपान के बीच में ही आवश्यकता हो सकती है.

सिल्वर कप्स पहनना है आसान

स्तनपान बच्चों के लिए बेहद जरूरी होता है, लेकिन दर्द या निप्पल्स का फटना कुछ माओं के लिए आम समस्या होती है और वे स्तनपान से कतराती है, ऐसे में दर्द की समस्या से राहत पाने के लिए नई माएं सिल्वर निप्पल कप्स का इस्तेमाल कर रही हैं.

यह शुद्ध चांदी से बने छोटे, गोल और ढक्कन जैसे कप्स होते हैं, जिन्हें मां अपने निप्पल पर तब लगाती है, जब बच्चा दूध नहीं पी रहा होता है. ये कप्स निप्पल को ढककर उसे सुरक्षा और आराम देते हैं. इसके फायदे निम्न है:

सिल्वर निप्पल्स के फायदे

प्राकृतिक गुणों से भरपूर

चांदी में एंटीमाइक्रोबियल (कीटाणुनाशक), एंटीइंफ्लेमेटरी (सूजन कम करने वाले) और एंटीफंगल गुण होते हैं. इससे निप्पल जल्दी ठीक होते हैं और इंफेक्शन का खतरा कम होता है.

सुरक्षा कवच की तरह करते हैं काम

ये कप्स निप्पल को कपड़े या नर्सिंग पैड की रगड़ से बचाते हैं, जिससे दर्द कम होता है.

बिना केमिकल वाला विकल्प

कई बार स्तनपान में दर्द या क्रैक होने पर माएं कुछ क्रीम लगती है, जिसमें केमिकल होते हैं, जिन्हें दूध पिलाने से पहले साफ करना पड़ता है, लेकिन सिल्वर कप्स में ऐसा कुछ नहीं होता, जिसे इस्तेमाल करना आसान और सुरक्षित होता है.

बारबार कर सकते हैं प्रयोग

इन्हें कई महीनों तक इस्तेमाल किया जा सकता है और अगली बार के बच्चे के समय भी कर सकते है, इसकी वजह से पैड या क्रीम खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती.

ध्यान रखने योग्य बातें

सही दूध पिलाने की तकनीक को जानना जरूरी

अगर बच्चा सही तरीके से दूध नहीं पी रहा है (गलत लैचिंग), तो केवल सिल्वर कप्स से फायदा नहीं होगा, ऐसी स्थिति में लेक्टेशन कंसल्टेंट से सलाह जरूर लें.

जरूरी है साफसफाई

कप्स को रोज साफ पानी से धोकर सूखा कर के रखना जरूरी होता है.

सभी के लिए आरामदायक नहीं

हर मां के लिए इसका निप्पल पर परफेक्ट फिट बैठना जरूरी नहीं होता.  कुछ को भारी लग सकता है या ज्यादा देर पहनने पर नमी से परेशानी हो सकती है.

होते है थोड़े महंगे

हालांकि ये चांदी के बने होते हैं, इनकी कीमत थोड़ी ज्यादा हो सकती है. इस प्रकार सिल्वर निप्पल कप्स दूध पिलाने के दौरान होने वाले दर्द से राहत दिलाने में बहुत मददगार हो सकते हैं, लेकिन ध्यान रखें कि ये केवल एक हेल्प की तरह ही काम करता है, अगर स्तन में दर्द लगातार बना रहे, तो डॉक्टर या लेक्टेशन एक्सपर्ट से सलाह लेना आवश्यक होता है.

Silver Nipple Cups

Big Boss 19: इन सितारों ने ठुकराया लाखों का ऑफर

Big Boss 19: पिछले 18 सालों से चल रहे पौपुलर रियलिटी शो ‘बिग बॉस’ ने कई कलाकारों की जिंदगी को नया रंग दिया और उनके कैरियर को संवारा है. ‘बिग बॉस’ में आने के बाद कई कलाकारों को न सिर्फ काम मिला बल्कि वह बहुत पौपुलर भी हो गए. यही वजह है कि बॉलीवुड में काम कर रहे कई छोटेबड़े कलाकार ‘बिग बॉस’ में जाने के लिए लालायित रहते हैं क्योंकि एक तो तीन साढ़े तीन महीने बिग बॉस के घर में रहने का मौका मिलता है साथ ही मोटी रकम भी मिलती है. यही वजह है कि हर साल बिग बॉस में कई विवादित तो कई नएपुराने स्टार्स कंटेस्टेंट की एंट्री होती है.

लेकिन कई कलाकार ऐसे भी हैं जिन्हें ‘बिग बॉस’ में जाने से सख्त परहेज है. टीवी और फिल्म एक्टर राम कपूर ने ‘बिग बॉस’ का ऑफर ठुकरा दिया क्योंकि राम कपूर के अनुसार उनको रियलिटी शोज में काम करना पसंद नहीं है. उन्हें करोड़ों रुपए भी दे तो भी वह किसी भी रियलिटी शो में बतौर प्रतिभागी नहीं जाएंगे.

इसी तरह एक जमाने की हॉट एंड सेक्सी हीरोइन मल्लिका शेरावत को लेकर चर्चा थी कि वह ‘बिग बॉस’ में आने वाली है लेकिन मल्लिका शेरावत ने भी शो में आने से इनकार कर दिया और साथ ही यह भी कह दिया कि मैं प्राइवेट पर्सन हूं. मैं कैद में या लगातार कैमरे के सामने नहीं रह सकती.

शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा को भी यह शो ऑफर हुआ था, इससे पहले वह करण जौहर के रियलिटी शो द ट्रेटर कर चुके हैं लेकिन राज कुंद्रा ने भी ‘बिग बॉस’ का ऑफर ठुकरा दिया. राज कुंद्रा को न तो पैसों की कमी है नहीं प्रसिद्धि की.

यूट्यूबर और पूर्व पायलट गौरव तनेजा को भी ‘बिग बॉस’ ऑफर हुआ लेकिन पर्सनल रीजन के चलते उन्होंने ‘बिग बॉस’ को नो कह दिया. करण जौहर के शो ‘द ट्रेटर’ में काम कर चुके यूट्यूबर गौरव तनेजा फिलहाल बहुत व्यस्त हैं और उनके पास अभी इस शो के लिए टाइम नहीं है.

इसी तरह अर्जुन कपूर की बहन अंशुला कपूर ने भी ‘बिग बॉस’ में जाने से मना कर दिया क्योंकि वह इस शो के लिए मेंटली तैयार नहीं है.

बहरहाल 18 साल से चल रहे इस शो को बॉलीवुड के हिट स्टार की जरूरत नहीं है, क्योंकि ‘बिग बॉस’ शो एक आम कलाकार को स्टार बनाने का दम रखता है. बहरहाल ‘बिग बॉस’ कलर्स चैनल पर 24 अगस्त से शुरू हो रहा है.

Big Boss 19

Harnaaz Sandhu: मिस यूनिवर्स को ‘बागी 4’ के टीजर में देख उड़ेंगे होश

Harnaaz Sandhu: बॉलीवुड के एक्शन अखाड़े में एंट्री हो चुकी है नई ‘लीडिंग लेडी’ हरनाज संधू की. एंट्री भी ऐसी धमाकेदार जो देखने वालों के दिल की धड़कन को बढ़ा देगी. ‘बागी 4’  का टीजर रिलीज होते ही धमाका कर दिया है. मिस यूनिवर्स 2021 हरनाज संधू का हिंदी सिनेमा में डेब्यू बहुत ही इंटरेस्टिंग होने वाला है.

पहले ही हरनाज संधू मिस यूनिवर्स बन कर दुनिया भार में अपनी शालीनता और ग्लैमर की छाप छोड़ चुकी हैं लेकिन ‘बागी 4’ में उन्हें देखने वाले दंग रह गए हैं. रोमांटिक गानों और स्लो-मोशन में एंट्री बेहद जबरदस्त है. उनका हाई-ऑक्टेन एक्शन सीन देख कर बड़ेबड़े स्टंटमैन भी पसीना पोंछ लेंगे.

टाइगर श्रॉफ के साथ उनकी केमिस्ट्री और संजय दत्त का विलेनअवतार के बीच हरनाज़ की मौजूदगी सिल्वर स्क्रीन पर करंट की तरह दौड़ती नजर आएगी. हड्डियां हिला देने वाले हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट से लेकर हथियारों के साथ निंजा-लेवल एक्शन में हरनाज का रोल किसी तूफान से कम नहीं है.

साजिद नाडियाडवाला प्रोडक्शन और डायरेक्टर ए. हर्षा की यह मेगा-एक्शन फिल्म इस 5 सितंबर 2025 को सिनेमाघरों में धूम मचाने आ रही है. टीज़र देखकर एक बात तय है कि हरनाज का यह नया ‘फायर मोड’ आने वाले महीनों तक चर्चा में रहेगा और ‘बागी 4’  का सफर होगा रोमांच और धमाकों से भरा.

Harnaaz Sandhu

Rajnikant: पिता के कहने पर सुपरस्टार बने कुली, दोस्त ने की बेइज्जती

Rajnikant: सुपरस्टार रजनीकांत ने संघर्ष की कहानी याद करते हुए कहा, “एक बार मेरे पिताजी ने सख्ती से कहा कि कुली का काम करना है, बोरियां ढोनी हैं. मैंने कहा, ‘ठीक है ’. मैंने तीन बोरियां ठेले पर लाद दीं और निकल पड़ा. जो काम 500 मीटर में खत्म होना था, वो एक हादसे की वजह से ट्रैफिक डायवर्जन होने के कारण 1 से 1.5 किलोमीटर का सफर बन गया.

ऐसी स्थिति में उन बोरियों को संतुलित रखना आसान नहीं था. सड़क पर ट्रक, बस और गाड़ियां भरी थीं और रास्ते का हर गड्ढा या उभार मेरे बोझ को गिराने को तैयार था. एक जगह संतुलन बिगड़ गया और एक बोरी नीचे गिर गई.

लोग चारों तरफ से चिल्लाने लगे. बस के यात्री, राहगीर, सब मेरी तरफ देखकर चिल्ला रहे थे कि ‘ये ठेला सड़क पर क्यों लाए हो? किसने दिया तुम्हें?’ शायद मैं उस काम के लिए बहुत दुबला-पतला दिखता था. मैंने बोरी फिर उठाई, डांट खाई, और किसी तरह आगे बढ़ा. वहां पहुंचकर मेरे मामा ने कहा, ‘तीन बोरियां आई हैं इन्हें टेम्पो में चढ़ा दो. मैंने कहा ‘ठीक है’ और कर दिया. फिर मैंने पैसे मांगे.

कहानी का अंत बताते हुए रजनीकांत ने कहा, “उस आदमी ने मुझे ₹2 दिए और कहा, ‘टिप समझकर रख लो. वह आवाज मैंने पहचान लिया था, वह मेरे कॉलेज के दोस्त मुनिस्वामी का था, जिसे मैं अक्सर चिढ़ाता था. उसने कहा, ‘बहुत अकड़ दिखाते थे, अब देखो हालत!’ मैं उन बोरियों के सहारे टिक गया और रो पड़ा. उस दिन मैं पहली बार मैं रोया था.
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए रजनीकांत ने कहा कि यह घटना उनकी विनम्र शुरुआत, संघर्ष और मेहनत की गरिमा की याद है. उस दिन के बाद से यह आज भी उनके दिलोदिमाग में अंकित रह गई. ऐसे में आज जब वे फिल्म ‘कुली – द पावरहाउस’ में एक कुली का किरदार निभा रहे हैं तो रील और रियल के बीच के अंतर को बखूबी समझ रहे हैं.

बता दें कि ‘कुली – द पावरहाउस’ अपनी रिलीज से पहले ही देशभर में जबरदस्त हलचल मचा रही है. ₹400 करोड़ के बजट में बनी यह मेगाप्रोडक्शन मूवी में सुपरस्टार रजनीकांत के साथ आमिर खान, नागार्जुन, सत्यराज, उपेंद्र, सौबिन शाहीर और श्रुति हासन जैसे स्टार्स हैं.

सन पिक्चर्स के बैनर तले और विक्रम, लियो, कैथी और मास्टर जैसे फिल्मों के निर्देशक लोकेश कनगराज के निर्देशन में बनी यह फिल्म, इंडियन एक्शन मूवी की परिभाषा बदलने को तैयार है.

Rajnikant

इन Ready to Mix Spices से बनाए खाना, बच्चे उंगलियां चाटते रह जाएंगे

Ready to Mix Spices: हर दिन बनने वाली सब्जी को नया और स्वादिष्ट कैसे बनाएं? ये हर महिला की चिंता होती है. बच्चे हो या पति हर दिन लजीज खाने की फरमाइश महिलाओं को परेशान करती रहती है. अक्सर खाना बनाते समय रोटी, दाल, चावल आदि तो आसानी से बन जाता है, लेकिन सब्जी में वेराइटी लाना बहुत मुश्किल हो जाता है.

एक जैसा खाना रोजरोज खाया जाए तो बोरियत तो हो ही जाती है, लेकिन हर रोज वेरायटी लाने के लिएf आखिर इतनी मेहनत कौन करे? ऐसे में कुछ मसाला ऐसा होना चाहिए जो आपकी सब्जियों के स्वाद को बढ़ा दें. ये अक्सर हमारी किचन में होते भी हैं पर इन पर हमारा ध्यान कम ही जाता है.

तो आइए जाने वह कौन से मसाले होते हैं जो सादी और सिंपल सब्जी के फ्लेवर, स्वाद और खुशबू को बढ़ाते है.

किचन किंग मसाला से बनाये भरवा सब्जी का स्वाद

भरवा बैंगन के नाम अगर आपके बच्चे भी मुंह बनाते हैं, तो अब परेशान होने का नहीं. कोई भी भरवा सब्जी हो चाहे वह भरवा भिंडी हो, भरवा बैंगन हो या फिर भरवा तौरी हो अब आपको अलग से बच्चों के लिए कुछ बनाने का टेंशन नहीं लेने का. बस किचन किंग मसाला लाएं. यह अपने नाम की ही तरह किचन का राजा है और जब बात राजा की हो तो आपके बेटे को तो राजा बेटा बनना ही पड़ेगा.

जब ये मसाला किसी भी भरवा सब्जी में डालता है न तो उस  बकबका स्वाद अपने आप खत्म हो जाता है और एक अलग ही खड़े मसाले की खुशबु से आपकी डिश महकने लगती है और दूर से लगता है मानो आज तो पक्का घर में मेहमान आ रहें हैं और मम्मी कुछ अच्छा बना रही हैं. अब आप खुद ही सोचिये जिसकी खुशबु इतनी जानदार है उसका स्वाद कैसा होगा?

मैगी मसाला है बड़ा मजेदार, बढ़ाएं आलू घीए की सब्जी का स्वाद

मैगी का दीवाना तो बच्चों से लेकर बड़ों तक हर कोई होता है. एक बार आप सोच कर देखिये कि अगर आपकी सब्जियों में से भी मैगी का स्वाद आने लगे तो भल कौन मैगी  के लिए हर वक्त मम्मी की डांट खायेगा. भाई हम तो सब्जी में ही मैगी का स्वाद लेना ज्यादा पसंद करेंगे.

ब्रोकली की सब्जी में मैगी मसाला डालें. इसके इस्तेमाल से सब्जी का जायका बढ़ सकता है. इसके लिए सबसे पहले ब्रोकली में सब्जी मसाला छोड़कर अन्य सभी मसाले को डालकर पका लें. जब लगे कि सब्जी आधी पक गई है तो उसमें मैगी मसाला डालकर अच्छे से चला लें और लगभग 5 मिनट बाद गैस को बंद कर दीजिए. इससे सब्जी का जायका बढ़ सकता है.

इसके इस्तेमाल से सब्जी का जायका बढ़ सकता है. इसके लिए सबसे पहले ब्रोकली में सब्जी मसाला छोड़कर अन्य सभी मसाले को डालकर पका लें. जब लगे कि सब्जी आधी पक गई है तो उसमें मैगी मसाला डालकर अच्छे से चला लें और लगभग 5 मिनट बाद गैस को बंद कर दीजिए.

इसके इस्तेमाल से सब्जी का जायका बढ़ सकता है. इसके लिए सबसे पहले ब्रोकली में सब्जी मसाला छोड़कर अन्य सभी मसाले को डालकर पका लें. जब लगे कि सब्जी आधी पक गई है तो उसमें मैगी मसाला डालकर अच्छे से चला लें और लगभग 5 मिनट बाद गैस को बंद कर दीजिए. इससे सब्जी का जायका बढ़ सकता है.

मैगी मसाला आमलेट खाया है आपने कभी? अगर नहीं तो एक बार बनाकर देखें. सबसे पहले एक बौल में अंडे को फोड़कर डालें और उसमें बारीक़ कटा हुआ प्याज, हरी मिर्च. टमाटर और नमक डालकर अच्छे से मिक्स कर लीजिए. फिर इसमें डालिये अपना मैजिक मैगी मसाला और इसे डालकर दो बार अच्छे से फेंट लीजिए.

अब एक पैन में तेल गरम करके ऑमलेट बना लीजिए. यक़ीनन ये आपको पसंद आएगा. इसके आलावा आप मैगी मसाला से जीरा आलू और पकोड़े भी बना सकते हैं.

छोला मसाला लगाएं पनीर भुजी में पंजाबी तड़का

चना मसाला से आप कई स्वादिष्ट व्यंजन बना सकते हैं. जैसे चना मसाला सैंडविच, चना मसाला चाट, और चना मसाला पराठा. इसके अलावा, आप दही वाले छोले, छोले की सब्जी, चना मसाला कबाब और चना मसाला सूप भी बना सकते हैं.

अगर आप पनीर का सैंडविच बना रहे हैं तो पनीर में चना मसाला मैश करके इसे बनाया जा सकता है.आप दही, चटनी, प्याज, टमाटर और चना मसाला मिला सकते हैं. इस तरह चना मसाला से एक अच्छी चाट बनाये जा सकती है. चना मसाला को पराठे के अंदर भरकर, पराठा बनाकर भी खाया जा सकता है. इसके लिए चने को बॉयल मैश करके छोले मसाला मिलकर भी परांठे में भरा जा सकता है.

चना मसाला को दही के साथ मिलाकर, दही वाले छोले बनाए जा सकते हैं, जो रोटी या चावल के साथ बहुत स्वादिष्ट लगते हैं. इसके आलावा पनीर की भुजी में बाकि मसलों के साथ छोला मसाला डालने पर एक बिलकुल अलग पंजाबी टेस्ट आ जायेगा.

सांभर मसाला से दाल बन जाये ढांबे की तड़का दाल

अब कौन है भला जो ढाबे की तड़का दाल नहीं खाना चाहेगा. ये बन तो जाएगी पर इसके लिए आपको सांभर मसाला यूज़ करना होगा. खूब सारा प्याज, टमाटर, अदरक, हरी मिर्च अपने मसलदानी के मसाले और 1 चम्मच सांभर मसाला. फिर देखिये कैसे पूरा घर उंगलिया चाट चाट कर दाल चट कर जायेंगे. इस तरह सांभर मसाला किसी भी दाल या सब्जी की करी में एक स्वादिष्ट और सुगंधित स्वाद जोड़ सकता है. इसके आलावा सांभर मसाला पकोड़े, भजिए, और अन्य स्नैक्स के लिए एक स्वादिष्ट मसाला के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

Ready to Mix Spices

Bollywood Tragedy : जब श्रीदेवी, दिव्या भारती, सुशांत सिंह की मौत पर उठे सवाल

Bollywood Tragedy : बॉलीवुड की चकाचौंध में आम एक्टर रातोंरात स्टार बन जाता है वहीं उनकी प्रसिद्धि के साथ कई अनकही बातें, गलतियां, गलत आदतें गॉसिप के रूप में  फैंस के बीच चर्चा का विषय बन जाती हैं.
आम जिंदगी जीने वाले ये स्टार्स अचानक ही इतने प्रसिद्ध हो जाते हैं कि उनसे जुड़ी हर खबर न्यूज बन जाती है. हर कोई उनके बारे में जानना चाहता है उनसे जुड़ी हर खबर को लोग जानना चाहते हैं. सोशल मीडिया हो या न्यूज चैनल या अखबार, इनके माध्यम से मिलने वाली हर जानकारी को दिलचस्पी से देखते, सुनते और पढ़ते हैं.

पर्सनल लाइफ हो जाती है सोशल

शोहरत, नाम और पैसा कमाने वाले ये स्टार्स एक समय बाद अपनी पर्सनल जिंदगी को न सिर्फ मिस करने लगते हैं, बल्कि लोगों से छुपाने भी लगते हैं, इन स्टार्स से जुड़ी छोटी सी बात भी बतंगड़ बन जाती है.
कभी-कभी ज्यादा प्रसिद्धि ,हाई प्रोफाइल लाइफस्टाइल, इन स्टार्स को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करता है जहां से वापस लौटने का कोई रास्ता नहीं होता ठीक उसी तरह जैसे  तेज रोशनी के पीछे हमेशा घटाधोप अंधेरा होता है. हिट स्टार्स की लाइफ में भी जाने अनजाने में कई ऐसी बातें हो जाती हैं जो कई बार उन्हें गलत रास्ते पर ले जाती हैं. अपनी शान और हाई प्रोफाइल लाइफ को बरकरार रखने के चक्कर में कई मॉडल्स गलतियां कर बैठते हैं जैसे काम नहीं मिलने पर या रिलेशनशिप में फेल्योर की वजह से या किसी और कारण से पंखे से लटक कर या छत से कूद कर आत्महत्या तक कर लेते हैं.  उन्हें अपनी मुश्किल से छुटकारा पाने का एक ही रास्ता दिखाई देता है और वह रास्ता होता है मौत का रास्ता.

सुशांत सिंह राजपूत की मौत का सच 

कई सितारे ऐसे भी होते हैं जिनकी अचानक मौत एक अनकही घटना बनकर सामने आती है पुलिस और कानून की नजर में जो आत्महत्या होती है जबकि उसके पीछे कई अनकहे राज छिपे होते हैं जिसके चलते उनके प्रशंसक और परिवार वाले उसे आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या या  योजनाबद्ध तरीके से गई साजिश मानते हैं. बॉलीवुड के यंग एक्टर सुशांत सिंह राजपूत इस बात का जीता जागता उदाहरण है , जिनकी मौत को पुलिस और कानून आत्महत्या मानती है जबकि उनके फैंस और परिवार वाले इसे पूरी तरह हत्या मानते हैं. आज इतने सालों बाद भी सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर संशय बना हुआ है और उनके परिवार वाले आज भी अदालत के दरवाजे पर न्याय की गुहार लगा रहे हैं.

बॉलीवुड में हर साल कई मॉडल और स्टार्स आत्महत्या के नाम पर मौत के घाट उतर जाते हैं लेकिन उनकी मौत आत्महत्या है, हत्या है, या हादसा है, यह राज बन कर रह जाती है. कई बार यह राज उनकी मौत के साथ ही दफन हो जाता है . सुशांत सिंह राजपूत के अलावा भी कई स्टार्स की डेथ एक मिस्ट्री की तरह देखा जाता है . ऐसी घटनाओं पर एक नजर …

 सितारे जो संशय भरी मौत के साथ दुनिया को अलविदा कह गए

बॉलीवुड में कई ऐसे सितारे हुए हैं जिनकी अचानक मौत ने सबको निशब्द कर दिया, साथ ही मन में एक शक पैदा कर गया कि इनकी मौत नेचुरल थी या साजिश जैसे 2005 में  हीरोइन परवीन बॉबी की उनके  मुंबई स्थित फ्लैट में मौत हुई और दो दिन तक उनकी लाश घर में ही सड़ती रही तो कानून ने इसे नेचुरल डेथ बताया लेकिन परवीन बॉबी के चाहने वाले इस बात को मानने को तैयार नहीं थे.

इसी तरह मॉडल एक्ट्रेस जिया खान जिन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ ‘निशब्द’ फिल्म में काम किया था और आमिर खान के साथ गजनी, अक्षय कुमार के साथ हाउसफुल जैसी हिट फिल्में दे चुकी थी वह अचानक 2013 में अपने घर में पंखे से लटक कर मृत पाई गईं , पहले सभी ने इसे आत्महत्या का नाम दिया लेकिन बाद में जिया खान के सुसाइड नोट के ओपन होने के बाद इस घटना का रुख बदल गया और जिया खान के प्रेमी सूरज पंचोली शक के दायरे में आ गए और पुलिस में उनको गिरफ्तार कर लिया. कोई सबूत न मिलने की वजह से सूरज पंचोली 2023 में जिया खान के मर्डर केस से रिहा हो गए .

90 के दशक में 18 वर्षीय खूबसूरत हीरोइन दिव्या भारती अपने घर की बालकनी से गिर कर मर गईं. पुलिस के अनुसार दिव्या भारती ने शराब पी हुई थी इसलिए उन्होंने अपना बैलेंस खो दिया और वह नीचे गिर गई लेकिन मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वह भी किसी साजिश का शिकार थी. उन दिनों बॉलीवुड पर अंडरवर्ल्ड का खौफ छाया हुआ था.

बॉलीवुड की मोस्ट टैलेंटेड और खूबसूरत हीरोइन श्रीदेवी दुबई में एक शादी अटेंड करने गई थी वहां पर अपने होटल के बाथटब में वह मृत पाई गई, पुलिस ने इस मौत को जहां शराब की वजह से कार्डियक अटैक बताया, चहीं श्रीदेवी के जान पहचान वालों ने इसे एक्सीडेंट नहीं हत्या बताया, श्रीदेवी की एक करीबी दोस्त ने पिछले दिनों में इस केस को फिर से ओपन कराया है ताकि उनकी दोस्त श्रीदेवी को सही न्याय मिल सके. श्री देवी की मौत की गुत्थी अभी तक सुलझ नहीं पाई है, उनकी मौत के पीछे कई सारे कारणों को हाइलाइट किया गया है जैसे उनके नाम पर करोड़ों का लाइफ इंश्योरेंस का होना, श्री देवी की मौत के पीछे अंडरवर्ड का हाथ होना आदि

हर साल फिल्म इंडस्ट्री और टीवी इंडस्ट्री के कई कलाकार बिना किसी ठोस वजह के आत्महत्या या एक्सीडेंट के नाम पर मृत करार दिए जाते हैं जबकि यह संशय बना रहता है कि इन आकस्मिक मौतों के जिम्मेदार वह खुद है या इसके पीछे किसी ओर का हाथ या साजिश है.
कहते हैं बिना सबूत के सच को सच नहीं कहा जा सकता अर्थात सच को भी सबूत की जरूरत होती है , अगर सबूत नहीं है तो सच सामने नहीं आ पाता है. कानून की किताबों में कम से कम इसी को सच माना जाता है. सच का पता लगाने वाले पुलिस और सीआईडी भी शक की कगार पर खड़े हैं क्योंकि यहां कुछ लोगों के इमान पैसों के लिए बिक जाते हैं, इमानदारी तो बहुत दूर की बात है.
एक समय था जब मीडिया का खौफ लोगों पर बना रहता था क्योंकि सजा और बदनामी को झेलने की ताकत किसी में नहीं होती थी.  एक बार एक नामचीन न्यूजपेपर को एक प्रसिद्ध सेलिब्रिटी ने अपनी खबर न छापने के लिए ब्लैंक चेक दिया यह कह कर कि उस पेपर का एडिटर चाहे जितनी रकम भर ले लेकिन उस अमीर आदमी की न्यूज़ किसी भी हाल में ना छापे. उस न्यूज पेपर के संपादक ने दूसरे दिन वह ब्लैक चेक की फोटो ही अपने अखबार में छाप दिया. लेकिन आज मामला उल्टा है मीडिया का नाम बहुत ज्यादा खराब हो चुका है कई लोगों का मानना है मीडिया भी चंद पैसों के लिए बिक चुकी है . जिसके चलते हाई प्रोफाइल लोगों को बचाने के लिए हत्या को आत्महत्या बताया जा रहा है और सबूत न होने की वजह से कानून भी कुछ नहीं कर पाता. Bollywood Tragedy

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