डार्क सर्कल ने चुरा लिया है चेहरे की खूबसूरती, तो अपनाएं होममेड तरीके

आजकल के बिजी लाइफस्टाइल में आप आऱाम नहीं कर पाते औऱ न ही आपकी नींद पूरी होती है. जिसकी वजह से कई प्रौब्लम शुरू हो जाती हैं, जिनमें डार्क सर्कल भी एक बड़ी प्रौब्लम है. नींद की कमी आपकी स्किन को सुस्त और पीला बना देती है. जिससे आंखों के नीचे काले घेरे हो जाते हैं, जो हमारे डेली लाइफस्टाइल को इफेक्ट करता है. ऐसा लगने लगता है कि आप बहुत बीमार हैं. पर आज हम आपको इस खबर के जरिए बताएंगे कि घर पर ही आंखों के नीचे डार्क सर्कल को नेचुरल टिप्स से कैसे कम करें …

1. बादाम औयल

ये नेचुरल इन्ग्रीनएंट है, जो आपकी आंखों के चारों ओर की स्किन को फायदा पहुंचाता है, बादाम औयल काले घेरे को हल्का करने में मदद करता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

-अपने काले घेरों पर बादाम औयल लगाएं और स्किन पर धीरे-धीरे मालिश करें.

-तेल को रात भर लगा रहने दें.

-अगली सुबह इसे ठंडे पानी से धो लें।

-इसे हर दिन दोहराएं जब तक आपके काले घेरे दूर न हो जाएं.

2. खीरा

उन हौलीवुड फिल्मों को याद करें जब महिलाओं को अपनी आंखों पर खीरे के स्लाइस के साथ एक स्पा में आराम करते देखा जाता है. स्किन को हल्का करके खीरा पूरी तरह डार्क सर्कल को कम करता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

-एक ताजा खीरे को मोटी स्लाइस में काटें और इसे लगभग 30 मिनट तक ठंडा करें।

-लगभग 10 मिनट के लिए काले घेरे पर स्लाइस रखें.

-आंखों को पानी से अच्छी तरह से धो लें.

-इसे हफ्ते में दो बार दोहराएं.

3. कच्चा आलू

आलू में नेचुरल ब्लीचिंग एजेंट होते हैं जो काले घेरे को हल्का करने में मदद करने के साथ-साथ आपकी आंखों के पफीनेस (puffiness) को कम करता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

-रस निकालने के लिए ठंडा आलू को पीस लें.

-एक कौटन बौल को रस में भिगोएँ और इसे अपनी आंखों पर रखें.

-देख लें कि रस पूरी तरह से डार्क सर्कल को कवर करता हो.

-रस को लगभग 15 मिनट तक लगाए रखें और ठंडे पानी से आंखों को अच्छी तरह से धोएं.

– इसे 2 – 3 हफ्ते तक एक या दो बार रोजाना दोहराएं.

4. गुलाब जल

हर घर में मम्मी हमेशा बच्चों को सलाह देती है कि आंखे धोते वक्त गुलाब जल का इस्तेमाल जरूर करें. यह न केवल स्किन को फिर से लाइव करता है, बल्कि डार्क सर्कल को कम करता है, बल्कि थकी हुई आंखों पर अच्छा असर डालता है. इसके लाइट कसैले गुणों (mild astringent properties) के कारण, यह स्किन टोनर के रूप में भी अच्छा काम करता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

-कौटन आई पैड्स को गुलाब जल में कुछ मिनटों के लिए भिगोएं.

-भीगे हुए आई पैड को अपनी पलकों पर रखें.

-उन्हें लगभग 15 मिनट के लिए छोड़ दें.

-2-3 हफ्ते रोजाना इसे अपनाएं.

5. टमाटर

फल-सब्जी की तरह इस्तेमाल होने वाला टमाटर, नेचुरल रूप से पावरफुल ब्लीचिंग गुण होते हैं, जो स्किन को लाइट करता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

-एक चम्मच टमाटर के रस में डेढ़ चम्मच नींबू का रस मिलाएं.

-डार्क सर्कल पर इसे 10 मिनट तक लगाएं.

-इसे ठंडे पानी से अच्छी तरह से धो दें.

-2 – 3 हफ्ते में इसे दिन में दो बार लगाएं.

Women Rights In India : ये कानूनी अधिकार जो हर भारतीय महिला को होना चाहिए पता

आज के समय में महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं है, लेकिन समाज में कुछ लोगों की सोच महिलाओं को लेकर नहीं बदली है. देश के ऐसे कई जगह हैं, जहां महिलाओं को घर से बाहर निकलने पर भी पाबंदी है, शिक्षा तो बहुत दूर की बात है.

भारतीय संविधान में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में महिलाएं अपनी हक के लिए नहीं लड़ पाती हैं और उनकी जिंदगी बोझ बन जाती है. इस आर्टिकल में हम आपको कुछ अधिकारों के बारे में बात करेंगे, जो हर महिला के लिए जरूरी है.

United Front Women Empowering Communities

रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार

हर महिला को ये बात पता होना चाहिए कि दोषी होने के बाद भी सूरज डूबने के बाद और सूर्योदय से पहले उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. कानून यह भी है कि पुलिस आरोपी महिला से पूछताछ महिला कांस्टेबल और परिवार के सदस्यों या दोस्तों की मौजूदगी में ही कर सकती है.

निःशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार

अगर किसी महिला के साथ रेप हुआ है, तो उसे मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है. SHO के लिए जरूरी है कि Legal Services Authority को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करें ताकि मुश्किल समय में महिलाओं को कानूनी सहायता और प्रतिनिधित्व प्राप्त हो.

Young activists taking action

घरेलू हिंसा

अगर कोई महिला के साथ आर्थिक, फिजिकली, इमोशनल ब्लैकमेल या अन्य कोई भी Harassment करता है, तो उसके खिलाफ शिकायत दर्ज की जा सकती है. अपराधी जेल भी भेजा जा सकता है. इसलिए महिलाओं को डोमेस्टिक वॉयलेंस के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा के लिए साल 2005 में कानून बनाए गए. इसके आधार पर हर महिला को डोमेस्टिक वायलेंस के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का हक है.

women empowerment activists strong women defending rights on international woman day

सेक्सुअल हैरेसमेंट

महिलाएं जिन स्थानों पर काम करती हैं. वहां पर अगर कोई व्यक्ती छेड़छाड़ करता है. चाहे अश्लील टिप्पणी करना, सीटी बजाना या देखकर गाने गाना… इस तरह की कोई भी गलत हरकत करता है, तो आपको उसके खिलाफ शिकायत करने का कानूनी हक है.

पीछा करने के खिलाफ शिकायत दर्ज करना

अगर कोई व्यक्ती को बारबार पर्सनल बातचीत या फोन के जरिए महिलाओं का पीछा करता है, तो उसे कानूनी रूप से सजा मिल सकती है. आईपीसी की धारा 354डी उन व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार देती है जो बारबार किसी महिला का पीछा करते हैं. यह प्रावधान महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करता है.

लेडीज ! अच्छी फिटिंग वाली ब्रा पहनने के हैं नुकसान भी

किसी भी महिला के लिए शेप में बौडी होना खूबसूरती की निशानी माना जाता है और इसके लिए इनरवियर काफी मायने रखते हैं. इन्हीं में शामिल है ब्रा, जो महिलाओं के लिए बहुत ही जरूरी अडंरगारमेंट्स है. हालांकि इसे पहनना किसी टास्क से कम नहीं है. दिनभर टाइट ब्रा पहनने का दर्द सिर्फ एक महिला ही समझ सकती है.

कुछ ऐसी महिलाएं होती हैं, जिन्हें ब्रा पहनना बिलकुल भी पसंद नहीं होता है, तो वहीं कई महिलाएं बिना ब्रा के कौन्फिडेंट महसूस नहीं करती हैं. हेल्थ के लिहाज से ब्रा को लेकर एक्सपर्ट की अलगअलग राय है.
तो आइए जानते हैं ब्रा पहनने और न पहनने के फायदे और नुकसान.

Portrait of a beautiful woman in denim shorts and lingerie isolated on gray

ब्रा पहनने के नुकसान

संक्रमण

आप अकेली नहीं है, जो आपको ब्रा पहनने पर खीझ महसूस होती है. ब्रा आपकी स्किन को रगड़ते हैं और ज्यादा पसीना भी निकलता है. इससे जलन और सूजन महसूस होता है. कई बार टाइट ब्रा पहनना संक्रमण का भी कारण बनता है.

Workout at home

कंधे और पीठदर्द का कारण

टाइट ब्रा पहनना महिलाओं के लिए पिठदर्द और कंधेदर्द का कारण भी बन सकता है. यह प्रौब्लम हैवी ब्रेस्ट साइज महिलाओं में आम है.

Types of woman bras . Flat female figure in bra.Nude, pastel A4 vector illustration lingerie poster.

छाती में दर्द

अगर आप पूरे दिन टाइट ब्रा पहनकर रहती हैं, तो आपको ब्रेस्ट पेन हो सकता है. इसलिए ब्रा पहनते समय साइज का ध्यान जरूर रखें.

Woman sitting with strong chest pain and hands touching her chest while having trouble at home Heart attack or heart failure symptom

ब्लड सर्कुलेशन होता है प्रभावित

पूरे दिन ब्रा पहनने से ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है. दरअसल वहां की स्किन सांस नहीं ले पाती है, ऐसे में यह समस्या होना लाजिमी है. 24 घंटे ब्रा पहनने के कारण ब्रेस्ट टिशू डैमेज होने का खतरा हो सकता है.

ब्रा पहनने के फायदे

  • जिन महिलाओं की ब्रेस्ट हेवी होती है, उन्हें ब्रा वियर करना जरूरी माना जाता है. अगर आपके ब्रेस्ट का साइज ज्यादा बड़ा है, तो इसके कारण गर्दन में दर्द हो सकता है, क्योंकि इसका गर्दन पर स्ट्रेन पड़ता है.
  • ब्रा न पहनने से महिलाओं के बौडी पौश्चर पर भी असर पड़ता है.
  • अगर आप बिना ब्रा पहने एक्सरसाइज करना चाहती हैं, तो इससे आपके ब्रेस्ट में प्रौब्लम होगी. ऐसे में आप स्पोर्ट्स ब्रा पहनें, यह आपके लिए बेहतर होगा.

कब ब्रा पहनना है जरूरी

  • हर समय ब्रा पहनकर रहना जरूरी नहीं है. हालांकि यह पूरी तरह से महिला के शरीर पर निर्भर करता है.
  • फिजिकल वर्क करते समय ब्रेस्ट को सपोर्ट की जरूरत होती है. इस समय ब्रा जरूर पहनें.
  • अगर आप कोई स्टाइलिश या फिटिंग ड्रेस पहन रही हैं, तो आप अपनी बौडी शेप के लिए ब्रा पहनकर रहें.
  • अगर ब्रेस्ट में तकलीफ है, तो काटन की ब्रा कैरी करें.

क्या होता है AI मौडल्स ब्यूटी कौन्टेस्ट, भारत की जरा शातावरी ने टौप 10 में बनाई जगह

आज तक हम मिस यूनिवर्स, मिस वर्ल्ड, मिस एशिया जैसी मौडल के बारे में सुनते आए हैं हम 10 वर्ष पूर्व की भी सोचे तो हमारे जहन में भी नहीं आया होगा कि कभी हम इस तरह का ब्यूटी कांटेस्ट भी देख पाएंगे. जिस की हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी.लेकिन हाल ही में एक ऐसा कांटेस्ट हुआ जिसे देख हम हैरान तो होंगे ही साथ ही इस बात की खुशी भी होंगी कि हमने अपने जीवन में कल्पना से परे का कुछ देखा. जी हां हम बात कर रहे हैं AI मिस वर्ल्ड कांटेस्ट की.

खिताब विजेता

AI मिस वर्ल्ड कांटेस्ट में अलगअलग देशों की 1500 खूबसूरत AI मौडल्स ने हिस्सा लिया.जिसमे मोरक्को की मौडल केन्जा लाइली (Kenza Layli) ने खिताब अपने नाम किया है. लाइली के इंस्टाग्राम पर 1 लाख से ज्यादा लोग फौलोवर हैं. यह मौडल हिजाब पहनती है. खूबसूरत इतनी की देखने वाले की नजर हीं ना हटे. मौडल 7 अलगअलग भाषाओं में अपने फौलोअर्स से जुड़ी है. लाइली ने स्पीच में कहा कि वह महिलाओं के उत्थान, पर्यावरण बचाने और पौजिटिव रोबोट कल्चर के बारे में जागरूकता के लिए काम करेंगी. इस प्रतियोगिता में पहले नंबर पर मोरक्को की मौडल केन्जा लाइली रही दूसरे 9 नंबर पर फ्रांस की लालिना वालिना रहीं और पुर्तगाल की आलिविया तीसरे स्थान पर रहीं. भारत की एआई मौडल जरा शातावरी ने टौप 10 में जगह बनाई. लाइली के क्रिएटर को 11 लाख रुपए की इनाम राशि भी दी गई.

कैसे आंका

इस ब्यूटी कौन्टेस्ट का आयोजन एक एआई प्लेटफौर्म Fanvue की ओर से किया गया जिसमे रियल मौडल्स नहीं, बल्कि एआई से बनाई गई मौडल्स ने हिस्सा लिया .यह एक औनलाइन कौन्टेस्ट है, इसमें मौडल्स का चयन भी औनलाइन माध्यम से ही किया गया. इस प्रतियोगियों को उनके लुक, औनलाइन ताकत और उनको बनाने में इस्तेमाल की गई तकनीकी कौशल के आधार पर आंका गया है. AI कांटेस्ट में Miss AI का ताज जीतने के लिए दुनियाभर के डिजिटल क्रिएटर्स ने अपनी मिस AI का दुनिया के सामने डेब्यू कराया. दुनियाभर से 1500 से अधिक AI मौडल्स ने भाग लिया, जिसमें 10 मौडल्स को शॉर्टलिस्ट किया गया. फैनव्यू द्वारा आयोजित इस अभूतपूर्व प्रतियोगिता ने सौंदर्य, प्रौद्योगिकी और सामाजिक प्रभाव के मिश्रण का प्रदर्शन करके वैश्विक ध्यान आकर्षित किया. सबसे बेहतरीन एआई मौडल का चयन करने वाले पैनल में एआई एक्सपर्ट भी शामिल थे. इस प्रतियोगिता की खास बात ये रही कि इसके जज में दो इंसान और 2 एआई जेनरेटेड मौडल्स भी थीं.

समझौते और स्वार्थ पर टिकी है फिल्म वालों की शादी…

फिल्म इंडस्ट्री जो पतिव्रता पत्नी, प्यार के लिए जान देने वाली प्रेमिका या प्रेमी जैसी प्रेम गाथा जहां फिल्मों में दिखाते हैं वही असल जिंदगी में इनका प्यार चाइना के माल की तरह होता है. चले तो चांद तक और ना चले तो शाम तक, जिसके चलते असल जिंदगी में कलाकारों की शादी की कोई गारंटी नहीं है. जिसका भुगतान, ज्यादातर पत्तियों को गुजारा भत्ता के रूप में करोड़ों रुपए देकर चुकाना पड़ता है फिर भले पत्नी कमाऊ ही क्यों ना हो.

चाहे फिर वह रितिक रोशन सुजैन खान हो, या अरबाज खान और मलाइका अरोड़ा हो. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आज के समय में बेवफाई के क्या मायने हैं? पति का किसी दूसरी औरत के साथ हम बिस्तर होना? या पत्नी को छोड़कर किसी दूसरी औरत के साथ ज्यादा समय बिताना या शादीशुदा होते हुए पहली पत्नी के सारे हक को छीनकर दूसरी पत्नी की झोली में डाल देना? और पहली पत्नी को पैर की जूती मानकर उसका तिरस्कार करना? अगर ऐसा नहीं है.

Medium shot couple crisis

पति अगर पहली पत्नी को पूरा खर्चा दे रहा है पूरा सम्मान दे रहा है और फिर दूसरी पत्नी को भी अपने साथ रखता है तो क्या यह बेवफाई नहीं है? क्योंकि यह कई सालों से चला आ रहा है कि एक राजा अपने महल में कई रानियां रखता था यहां तक की शाहजहां जिन्होंने मुमताज के लिए ताजमहल बनाया था उनकी भी 14 रानियां थी. जिसमे मुमताज 13 वी पत्नी थी और मुमताज की मौत के बाद शाहजहा १४ वी शादी भी की थी. उस दौरान की पौराणिक कथाएं हो या ऐतिहासिक कहानी इन सभी में एक राजा की कई सारी रानियां होती थी. अगर आज की बात करें तो फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े भी कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने दो शादियां की है जैसे के सलमान के पिता सलीम खान, धर्मेंद्र, सैफ अली खान, और हाल ही में अरमान मलिक जो बिग बौस ओटीटी में दो बीवियों को लेकर बड़े गर्व के साथ पधारे है इन सभी ने एक से ज्यादा शादियां की है.

अरमान मलिक जो दो बीवियों के साथ रहते हैं उन्होंने अपनी सफल शादी का राज बताया कि उन्होंने अपनी पूरी प्रौपर्टी दोनों बीवियों के नाम कर दी है. इसी के चलते अरमान मलिक की दो पत्नियों सौतन की तरह नहीं बल्कि दो बहनों की तरह साथ रहती हैं. इन सभी ने दो या दो से ज्यादा शादियां की है. इनमें से कई की पत्नियां तो एक साथ भी रह रही है. और जिन फिल्म वालो ने दूसरी शादी नही की वो अनैतिक संबंध के साथ दूसरी औरत के साथ बिना शादी किए रह रहे हैं. तो क्या यह बेवफाई नहीं है?

प्यार और शादी के मामले में फिल्म वालों का दोगलापन….

बहुत पहले एक गाना आया था यार दिलदार तुझे कैसा चाहिए प्यार चाहिए कि पैसा चाहिए…. अगर इस गाने पर गौर किया जाए तो इसमें शादी के समझौते वाले रिश्ते की सच्चाई छुपी है और वफादारी और बेवफाई की परिभाषा भी छिपी है अर्थात अगर पति-पत्नी को सारी सहूलियतों के साथ पैसे और प्रौपर्टी दे कर दूसरी पत्नी को भी साथ रखता है, तो वह बेवफा नहीं है. लेकिन अगर वही पति पहली पत्नी का तिरस्कार करके उसका हक मार कर दूसरी पत्नी के साथ उसको सब कुछ देकर उसके साथ जीवन बिताता है तो वह बेवफा है. क्योंकि एक सच यह भी है कि सिर्फ प्यार के साथ जीवन नहीं चलता और अगर पैसा है तो एक आदमी की एक बीबी क्या चार बीवी भी हो तो किसी को किसी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा.ये शादी के रिश्ते में दोगलापन नहीं है तो और क्या है .

मैन्सप्लेनिंग सहें नहीं आवाज उठाएं

सिंपल भाषा में मैन्सप्लेनिंग किसी पुरुष द्वारा यह दिखाना है कि वह मर्द है और इसलिए सामने वाली महिला से बेहतर जानकारी रखता है. मैन्सप्लेनिंग का अनुभव हम सभी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में आए दिन करते हैं. यह अंगरेजी के 2 शब्द मैन और ऐक्सप्लेनिंग (सम?ाना) से मिल कर बना है.

उदाहरण के लिए औफिस में जब आप किसी राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक मुद्दे पर अपनी राय रखती हैं या किसी प्रेजैंटेशन पर अपने विचार सुनाने लगती हैं तभी सामने  बैठा पुरुष सहकर्मी कह उठता है कि रुको आप की यह बात उतनी क्लीयर नहीं. मैं ठीक से सम?ाता हूं. यानी उसे यह लगता है कि चूंकि वह एक मर्द है और आप औरत तो जाहिर तौर पर वह आप से बेहतर जानकारी रखता है.

कई दफा औफिस में आप के सुपरवाइजर भी आप की बात को ठीक से सुने बगैर ही कह देते हैं कि आप के आइडियाज पुराने हैं. यानी एक महिला की बात या राय को दरकिनार कर खुद को सही और बेहतर साबित करने की कोशिश मैन्सप्लेनिंग है. इसी तरह जब साथ बैठा पुरुष आप की बात बीच में काट कर तेज आवाज में अपनी बात कहने या आप पर अपने विचार थोपने लगे तो यह मैन्सप्लेनिंग है.

ऐसा सिर्फ कार्यालयों में ही नहीं बल्कि घरों में भी होता है. ज्यादातर घरों में पति, बौयफ्रैंड या भाई अपनी बात ऊपर रखते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे सब जानते हैं जबकि औरतों को कुछ भी सही से पता नहीं होता.

हर तरह के मुद्दों पर पुरुषों की बिलकुल सटीक राय हो यह जरूरी नहीं. हर विषय पर हर पुरुष को गहराई से पता हो यह भी जरूरी नहीं खासतौर पर बात जब महिलाओं की जिंदगी और उन के अनुभवों के बारे में हो. मगर अकसर पुरुष उन मुद्दों पर भी महिलाओं को नहीं बोलने देते हैं या उन्हें टोकते हैं और उन की बात को अनसुना करते हैं. कई दफा वे उन की आलोचना भी करते हैं. यही मैन्सप्लेनिंग है जिसे किसी भी महिला को स्वीकारना नहीं चाहिए.

कई ऐसे भी पुरुष होते हैं जो अपने सामने बैठी महिला के पास अधिक जानकारी है यह महसूस कर घबरा जाते हैं, असुरक्षित महसूस करने लगते हैं. उन का मेल ईगो हावी होने लगता है और इसलिए अपने इस ईगो की खातिर वे मैन्सप्लेनिंग का सहारा लेते हैं.

क्या है मैन्सप्लेनिंग

मैन्सप्लेनिंग एक पुरुषवादी समाज की वास्तविकता है. यह पारंपरिक रूप से पुरुषों द्वारा खुद को श्रेष्ठ मानना और बात करते समय महिलाओं को कमतर आंकने का तरीका है. मरिमय ऐंड वैबस्टर डिक्शनरी के अनुसार, किसी महिला को किसी बात को इस तरह से सम?ाना कि मानो उसे उस विषय के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है, मैन्सप्लेनिंग कहलाता है.

कल्पना कीजिए कि आप किसी मीटिंग में हैं और आप का पुरुष सहकर्मी आप को बीच में रोकता है, आप की बात को काटता है और आप को सम?ाने लगता है कि वह आप से ज्यादा जानता है, वह आप को रोकते हुए खुद बोलना शुरू कर देता है. ऐसे में आप पर क्या बीतेगी? ठीक इसी तरह अकसर औफिस की मीटिंगों में पुरुष सहकर्मियों से तो इनपुट लिए जाते हैं लेकिन महिला सहकर्मियों की किसी भी जानकारी को नजरअंदाज कर दिया जाता है.

इस दौरान अकसर महिला कर्मचारियों को सुनने को मिलता है कि मैं आप को बाद में सम?ाऊंगा. आप को कुछ नहीं पता. यह थोड़ा कठिन मुद्दा है इसलिए मु?ो सम?ाने दीजिए. महिलाओं पर इस का क्या असर पड़ेगा? जाहिर है पुरुषों का इस तरह का व्यवहार स्त्री के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाता है.

दरअसल, हमारे पितृसत्तात्मक समाज में किसी महिला को होने वाले ऐसे अनुभव आम हैं. उसे अपने जीवन में कदमकदम पर इस तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ता है. खासतौर पर कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ साथी पुरुष कर्मी अकसर ऐसा करते हैं. जबकि घर में तो अपने ही करीबी रिश्तेदार भी ऐसा बरताव करने से नहीं हिचकते. इस तरह के व्यवहार की वजह से महिलाओं के आत्मसम्मान के साथसाथ कैरियर पर भी असर पड़ता है.

महिलाओं के कैरियर पर बुरा असर

फार्चून में प्रकाशित रिपोर्ट में एक स्टडी के माध्यम से कहा गया है कि शौर्ट टर्म के लिए मैन्सप्लेनिंग महिला कर्मचारियों को अपमानित महसूस कराती है. लेकिन अगर लंबे वक्त तक इस के असर की बात करें तो इस का असर महिलाओं के कैरियर पर पड़ता है.

पुरुषों द्वारा महिला को बीच में सिर्फ इसलिए टोकना क्योंकि वह एक महिला है, काफी अपमानजनक होता है. कैलिफोनिंया यूनिवर्सिटी सांता बारबरा के एक अध्ययन में पाया गया कि एक मिक्स्ड जैंडर कनवरसेशन में 48 में से 47 व्यवधानों में पुरुषों द्वारा महिलाओं की बातचीत को बाधित करना शामिल होता है.

एक अन्य शोध में सामने आया कि पुरुषों द्वारा एक महिला की तुलना में 3 गुना अधिक बाधा डालने की संभावना होती है. इसी शोध से पता चला कि पुरुषों द्वारा अकसर मीटिंग्स में महिलाओं पर हावी हो कर, और आक्रामक हो कर बात करने की फितरत होती है जिस से कमरे में बाकी सभी लोग चुप हो जाते हैं.

कार्यस्थल पर महिलाओं को मैन्सप्लेनिंग के साथसाथ हैपीटिंग (जब कोई पुरुष किसी विचार को दोहराता है जो पहले महिला ने सु?ाया हो) जैसी समस्या का भी सामना करना पड़ता है. इस तरह के नकारात्मक व्यवहार को खत्म करने का प्रयास बहुत जरूरी है वरना लंबे समय तक ऐसा व्यवहार महिलाओं के कैरियर को प्रभावित करता है. मैन्सप्लेनिंग जैंडर स्टीरियोटाइप को वर्कप्लेस पर बनाए रखता है जिस का महिला कर्मचारियों पर कई तरह से असर पड़ता है.

मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी, कोलरार्डो स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों द्वारा इस विषय पर अध्ययन किया गया है कि यह व्यवहार वर्कप्लेस में महिलाओं के काम को कई स्तर पर प्रभावित करता है.  इस तरह का लगातार व्यवहार महिलाओं को सैल्फ इवैल्यूएशन पर केंद्रित कर देता है. उन्हें लगने लगता है कि वे सच में कम योग्य हैं. वे इस वजह से प्रतिस्पर्धा और पैसा कमाने में पीछे छूट जाती हैं.

इस प्रकार के व्यवहार के पीछे वजह चाहे जो भी हो पुरुषों को यह सम?ाना बहुत ही जरूरी है कि हर मुद्दे और बात की सम?ा उन्हें हो यह जरूरी नहीं होता. उन्हें महिला को बोलने का मौका देना सीखना होगा, उन्हें अपने आसपास बैठी महिलाओं की बातों को बिना टोके सुनना सीखना होगा. उन्हें यह भी स्वीकारना होगा कि जिंदगी सिर्फ उन्हीं के अनुभवों से परिभाषित नहीं होती.

इस सोच का आधार पितृसत्ता और धर्म है

ऐसा नहीं है कि प्रत्येक पुरुष मैन्सप्लेनिंग करता है या फिर वह ऐसा जानबू?ा कर करता है. परंपरागत तौर पर पुरुष को बेहतर मानने वाले व्यवहार की वजह से और इस तरह के माहौल में रहने की वजह से छोटे लड़कों में ही इस तरह की प्रवृत्ति समाज द्वारा विकसित कर दी जाती है. पुरुषों के इस तरह के व्यवहार के पीछे कई सारी वजहें होती हैं.

बचपन से घरों में पुरुषों को ऊपर रखा जाता है. उन की हर बात को तवज्जो दी जाती है और अकसर उन्हें यह एहसास दिलाया जाता है कि घर की महिलाओं के आगे वे सुप्रीम हैं. चाहें अच्छे खाने की बात हो या अच्छी पढ़ाई की, ज्यादातर घरों में लड़के को ही वरीयता दी जाती है.

इस वजह से उन के अंदर मेल ईगो घर जमाने लगता है जो युवा होतेहोते उन के दिलोदिमाग पर गहरी जड़ें जमा लेता है. यही वजह है कि अधिकतर वे ये मान कर चलते हैं कि चूंकि सामने एक महिला है इसलिए वह हर बात में कमतर है. उसे कुछ नहीं पता और इसलिए बगैर मांगे सलाह देने लग जाते हैं.

पितृसत्तात्मक सोच कहीं न कहीं धर्म से कनैक्टेड है. ज्यादातर धर्मग्रंथों में पुरुषों को ही सुप्रीम दर्जा दिया गया है. औरतों को उन की दासी की तरह ट्रीट किया जाता है. धर्म के द्वारा औरतों को पुरुषों के अधीन करना भी एक तरह की साजिश है. वह पुरुषों को औरतों का मालिक बना कर उन्हें लड़ने के लिए उकसाता है और यह दिखाता है कि पुरुष की गैरमौजूदगी में धर्म की वजह से औरतें सुरक्षित रहेंगी.

पुरुष जब आपस में लड़ते हैं तो उन्हें प्रलोभन के रूप में स्त्री सौंपी जाती है. इस तरह यह दुष्चक्र चलता रहता है जिस का नतीजा यह होता है कि पुरुष औरतों को अहमियत नहीं देते और उन्हें अपने बराबर का नहीं मानते.

कैसे बचें इस समस्या से

सब से पहले महिलाओं का खुद के लिए खड़ा होना जरूरी महिलाओं को ऐसा होने पर उसी समय तुरंत बोलने की जरूरत है. जिस तरह कुछ समय पहले एक बार अमेरिका की उप राष्ट्रपति कमला हेरिस ने पूर्व राष्ट्रपति पेंस को तुंरत मौके पर बोल कर किया था. सीनेटर कमला हैरिस ने कहा कि मिस्टर उपराष्ट्रपति मैं बोल रही हूं. जब उपराष्ट्रपति पेंस ने उन से बात करना जारी रखा तो उन्होंने मुसकराते हुए एक बार फिर दोहराया कि मैं बोल रही हूं.

दरअसल, वैसी स्थिति में तुरंत बोलने पर सामने वाले को अपने गलत व्यवहार के बारे में पता चलता है. उसे खुद के व्यवहार को महसूस करने में मदद मिलती है.

खुद के लिए खड़ा होने से आप का आत्मविश्वास बढ़ाता है. साथ ही यह संदेशों औरों तक भी जाता है कि आप खुद का सम्मान करते हैं और अनुचित हस्तक्षेप या खराब व्यवहार स्वीकार नहीं करेंगे. इस के विपरीत तुरंत न बोलने से दूसरे व्यक्ति को यह पता ही नहीं चलता है कि उस का व्यवहार अपमानजनक है और वह इसे कभी बदलने के बारे में सोचेगा ही नहीं.

बोलना है जरूरी

आप को ऐसे व्यवहार के सामने कभी चुप नहीं बैठना चाहिए. अपनी बात कहते रहें और पुरुषों को चुनौती देते रहें. जब भी ऐसा लगे कि औफिस में आप का स्पेस किसी पुरुष कलीग के द्वारा खत्म किया जा रहा है तो वहां बोलना बहुत जरूरी है. अकसर महिलाएं सबकुछ जानने के बावजूद कुछ बोलना नहीं चाहती हैं और इस वजह से स्थिति खराब हो जाती है. आप जब तक अपने लिए बोलेंगी नहीं आप की आवाज को सुनने के लिए कोई तैयार ही नहीं होगा.

आत्मविश्वास बनाए रखें. जब हम किसी विषय पर काम कर रहे होते हैं तो हम उस के अनेक पहलुओं को जानते हैं. आप अपनी जानकारी जब तक सब के सामने नहीं रखेंगी तब तक आप की क्षमता का पता लोगों को खासकर बौस को कैसे चलेगा?

अपनी बात जारी रखें

वर्कप्लेस में मैन्सप्लेनिंग एक सामान्य व्यवहार है इसलिए जब भी आप औफिस में इस का सामना करती हैं तो विनम्रता से हस्तक्षेप करते हुए कहें कि मैं इस विषय से परिचित हूं या मैं अपनी बात रखने के बाद आप का दृष्टिकोण जानना चाहूंगी.

औफिस में महिलाएं खुद से अपनी बातों को रखने की कोशिश करें और जो स्पेस उन्हें मिली है उसे यूज करें क्योंकि पुरुषों की बनाई दुनिया में अपना स्पेस क्लेम करना बहुत आवश्यक है. अगर आप की बात दब गई है तो आप उसे दोबारा बता कर सामने रखें. आप के प्रयास से ही चीजें बदलेंगी.

महिलाएं एकदूसरे को मदद करें

शोध से पता चलता है कि महिलाएं बैठकों में केवल 25त्न समय ही बोलती हैं जबकि पुरुष शेष 75त्न समय बोलते हैं. पुरुष न केवल विचारों को अधिक सा?ा करते हैं बल्कि वे अन्य पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक बार बाधित भी करते हैं. अगर महिलाएं एकदूसरे की मदद करते हुए एकसाथ मिल कर काम करना शुरू करें और एकदूसरे की सपोर्ट करें तो वे अधिक समय तक अपनी बात रख सकेंगी. यह रणनीति महिलाओं को ऊपर उठाने के साथसाथ अपने स्वयं के बिंदुओं को साबित करने में भी मदद कर सकती है.

जब मैनस्प्लेन किया जा रहा हो या बात की जा रही हो तो महिलाएं किसी अन्य महिला की ओर रीडाइरैक्ट कर सकती हैं. उदाहरण के तौर पर वे मीटिंग में खुद के बाद बोलने के लिए किसी महिला को आमंत्रित करें. अगर कोई पुरुष सहकर्मी बीच में बोल रहा है तो उसे रुकने को कहें. यह मीटिंग में खुद की आवाज को अधिक समय तक रखने का एक तरीका है.

कौल आउट

फोर्ब्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर समय पुरुषों को एहसास नहीं होता है कि वे ऐसा कर रहे हैं और उन के व्यवहार को कौल आउट करने से सम?ा बढ़ती है. आप साफतौर पर सामने वाले से कहें कि इस तरह उन का बीच में बोलना ऐटिकेट के खिलाफ है और आप को समस्या हो रही है. तब दूसरों का धयान भी आप पर जाएगा और पुरुषों को अपनी गलती का एहसास होगा.

मैन्सप्लेनिंग से महिलाओं को कमतर आंका जाता है. मैन्सप्लेनिंग का कार्य यह मानता है कि महिलाओं के पास वह ज्ञान या सम?ा नहीं है जो व्याख्या करने वाले के पास है. अकसर मामला इस के विपरीत होता है. मैन्सप्लेनिंग से महिला कर्मचारियों को यह महसूस हो सकता है कि उन्हें महत्त्व नहीं दिया जा रहा, उन्हें कमतर आंका जा रहा है और वे अक्षम हैं.

इन भावनाओं से उत्पादकता में कमी आ सकती है और उन में अपनेपन की भावना कम हो सकती है, जिस के कारण कुछ महिलाएं अपनी कंपनी को छोड़ कर ऐसी जगहों की तलाश में चली जाती हैं जहां उन्हें अधिक मूल्यवान और सराहनीय महसूस हो. विविधता प्रशिक्षण कार्यक्रमों में कर्मचारियों विशेष रूप से पुरुष कर्मचारियों को मैन्सप्लेनिंग और इसे कैसे रोका जा सकता है, के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए.

40 के बाद भी रहें खिलींखिलीं, बस इस तरह करें मेकअप

महिलाएं अक्सर खुद को सुंदर देखना चाहती हैं,  लेकिन कुछ महिलाओं को लगता है कि उम्र बढ़ने के साथ उनका चेहरा खूबसूरत नहीं दिखेगा. अगर आपको भी ऐसा ही लगता है तो परेशान होने की बात नहीं क्योंकि आप अपनी उम्र के हिसाब से मेकअप कर खुद को जवां दिखा सकती हैं.

 

उम्र बढ़ने के साथ आपकी स्किन में कुछ बदलाव आ सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप खूबसूरत नहीं दिखेंगी. आप अपनी स्किन की देखभाल के लिए स्वस्थ आहार और व्यायाम करें. इसके साथ आप मेकअप से भी अपनी खूबसूरती को बढ़ा सकती हैं इसीलिए यहां हम आपके लिए ऐसे ही कुछ मेकअप प्रोडक्ट्स की जानकारी को साझा करेंगे, जो आपको जवानों जैसी खुबसूरती देने में मदद कर सकते हैं. आइए जानते हैं-

प्राइमर– प्राइमर आपकी स्किन को सौफ्ट और फ्लैट करता है जिससे आप इसके ऊपर प्रोडक्ट लगाएं तो वह अपनी जगह पर टिके रहे और बेहतर दिखे. यह छिद्रों की उपस्थिति को कम और आपकी स्किन की रंगत को एक समान करता है. आपको ऐसा प्राइमर चुनना चाहिए जो आपकी स्किन के लिए हेल्दी हो जिसमें ग्लिसरीन, एलोवेरा जैसे पौष्टिक और हाइड्रेटिंग गुणों वाले तत्व शामिल हो.

फाउंडेशन– फाउंडेशन आपके चेहरे के दाग, धब्बों झुर्रियों को छुपाने के लिए काफी जरूरी होता है इसलिए फाउंडेशन के साथ कोई समझौता न करें. ऐसे फाउंडेशन को चुने जो आपकी स्किन टोन को इवन और सॉफ्ट बनाता है.

कंसीलर– कंसीलर आपकी आंखों के नीचे काले घेरे, दाग, धब्बे को छुपाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इससे आपके चेहरे की थकान को भी कम किया जा सकता है. कंसीलर का चुनाव करते समय यह ध्यान रखें की यह आपकी स्किन को हाइड्रेटेड और बैलेंस रखें. कंसीलर का लॉन्ग लास्टिंग होना आपका मेकअप के लिए बेहद जरूरी है.

ब्लश– ब्लश का इस्तेमाल करना आपकी डेली लाइफ के लिए बेहद आवश्यक है. यह आपकी स्किन को शाइनी बनाता है. गुलाबी रंग सभी स्किन टोन के लिए अच्छा रहता है इसीलिए ज्यादातर महिलाएं गुलाबी रंग के ब्लश का ही इस्तेमाल करती हैं. अगर आप मेकअप कम इस्तेमाल करती हैं तो भी ब्लश लगाना ना भूले.

आईलाइनर, मस्कारा और आईशैडो– अगर आप हमेशा थके हुए दिखते हैं तो आपको आंखों के मेकअप पर ध्यान देना चाहिए जिसके लिए आईलाइनर, मस्कारा,आईशैडो का उपयोग करें. आईशैडो का चुनाव करते समय अपनी स्किन टोन का ध्यान रखें. मस्कारा लगाते वक्त अपनी आंखों की पलकों को कर्ल करें.

लिपस्टिक– लिपस्टिक आपके लुक को निखारने का सबसे अच्छा तरीका होती है. लिपस्टिक से आपके चेहरे पर अलग ही चमक होती है इसलिए लिपस्टिक का कलर ऐसा चुने जो आपकी स्किन टोन के लिए परफेक्ट हो. लिपस्टिक को लगाने से पहले अपने होठों पर लिप बाम जरूर लगाए. हाइड्रेटेड और लॉन्ग लास्टिंग लिपस्टिक आपके अट्रैक्टिव लुक को पूरा दिन बनाए रखती है.

कभी नहीं: क्या गायत्री को समझ आई मां की अहमियत

‘‘पहली नजर से जीवनभर जुड़ने के नातों पर विश्वास है तुम्हें?’’ सूखे पत्तों को पैरों के नीचे कुचलते हुए रवि ने पूछा.

कड़ककड़क कर पत्तों का टूटना देर तक विचित्र सा लगता रहा गायत्री को. बड़ीबड़ी नीली आंखें उठा कर उस ने भावी पति को देखा, ‘‘क्या तुम्हें विश्वास है?’’

गायत्री ने सोचा, उस के प्रेम में आकंठ डूब चुका युवा प्रेमी कहेगा, ‘है क्यों नहीं, तभी तो संसार की इतनी लंबीचौड़ी भीड़ में बस तुम मिलते ही इतनी अच्छी लगीं कि तुम्हारे बिना जीवन की कल्पना ही शून्य हो गई.’ चेहरे पर गुलाबी रंगत लिए वह कितना कुछ सोचती रही उत्तर की प्रतीक्षा में, परंतु जवाब न मिला.तनिक चौंकी गायत्री, चुप रवि असामान्य सा लगा उसे. सारी चुहलबाजी कहीं खो सी गई थी जैसे. हमेशा मस्त बना रहने वाला ऐसा चिंतित सा लगने लगा मानो पूरे संसार की पीड़ा उसी के मन में आ समाई हो.

उसे अपलक निहारने लगा. एकबारगी तो गायत्री शरमा गई. मन था, जो बारबार वही शब्द सुनना चाह रहा था. सोचने लगी, ‘इतनी मीठीमीठी बातों के लिए क्या रवि का तनाव उपयुक्त है? कहीं कुछ और बात तो नहीं?’ वह जानती थी रवि अपनी मां से बेहद प्यार करता है. उसी के शब्दों में, ‘उस की मां ही आज तक उस का आदर्श और सब से घनिष्ठ मित्र रही हैं. उस के उजले चरित्र के निर्माण की एकएक सीढ़ी में उस की मां का साथ रहा है.’एकाएक उस का हाथ पकड़ लिया गायत्री ने रोक कर वहीं बैठने का आग्रह किया. फिर बोली, ‘‘क्या मां अभी तक वापस नहीं आईं जो मुझ से ऐसा प्रश्न पूछ रहे हो? क्या बात है?’’

रवि उस का कहना मान वहीं सूखी घास पर बैठ गया. ऐसा लगा मानो अभी रो पड़ेगा. अपनी मां के वियोग में वह अकसर इसी तरह अवश हो जाया करता है, वह इस सत्य से अपरिचित नहीं थी.

‘‘क्या मां वापस नहीं आईं?’’ उस ने फिर पूछा.

रवि चुप रहा.‘‘कब तक मां की गोद से ही चिपके रहोगे? अच्छीखासी नौकरी करने लगे हो. कल को किसी और शहर में स्थानांतरण हो गया तब क्या करोगे? क्या मां को भी साथसाथ घसीटते फिरोगे? तुम्हारे छोटे भाईबहन दोनों की जिम्मेदारी है उन पर. तुम क्या चाहते हो, पूरी की पूरी मां बस तुम्हारी ही हों? तुम्हारे पिता और उन दोनों का भी तो अधिकार है उन पर. रवि, क्या हो गया है तुम्हें?’’

‘‘ऐसा लगता है, मेरा कुछ खो गया है. जी ही नहीं लगता गायत्री.  पता नहीं, मन में क्याक्या होता रहता है.’’

‘‘तो जा कर मां को ले आओ न. उन्हें भी तो पता है, तुम उन के बिना बीमार हो जाते हो. इतने दिन फिर वे क्यों रुक गईं?’’ अनायास हंस पड़ी गायत्री. धीरे से रवि का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाने लगी, ‘‘शादी के बाद क्या करोगे? तब मेरे हिस्से का प्यार क्या मुझे मिल पाएगा? अगर मुझे ही तुम्हारी मां से जलन होने लगी तो? हर चीज की एक सीमा होती है. अधिक मीठा भी कड़वा लगने लगता है, पता है तुम्हें?’’

रवि गायत्री की बड़ीबड़ी नीली आंखों को एकटक निहारने लगा.

‘‘मां तो वे तुम्हारी हैं ही, उन से तुम्हारा स्नेह भी स्वाभाविक ही है लेकिन वक्त के साथसाथ उस स्नेह में परिपक्वता आनी चाहिए. बच्चों की तरह मां का आंचल अभी तक पकड़े रहना अच्छा नहीं लगता. अपनेआप को बदलो.’’

‘‘मैं अब चलूं?’’ एकाएक वह उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘कल मिलोगी न?’’

‘‘आज की तरह गरदन लटकाए ही मिलना है तो रहने दो. जब सचमुच मिलना चाहो, तभी मिलना वरना इस तरह मिलने का क्या अर्थ?’’ एकाएक गायत्री खीज उठी. वह कड़वा कुछ भी कहना तो नहीं चाहती थी पर व्याकुल प्रेमी की जगह उसे व्याकुल पुत्र तो नहीं चाहिए था न. हर नाते, हर रिश्ते की अपनीअपनी सीमा, अपनीअपनी मांग होती है.

‘‘नाराज क्यों हो रही हो, गायत्री? मेरी परेशानी तुम क्या समझो, अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊं?’’

‘‘क्या समझाना है मुझे, जरा बताओ? मेरी तो समझ से भी बाहर है तुम्हारा यह बचपना. सुनो, अब तभी मिलना जब मां आ जाएं. इस तरह 2 हिस्सों में बंट कर मेरे पास मत आना.’’गायत्री ने विदा ले ली. वह सोचने लगी, ‘रवि कैसा विचित्र सा हो गया है कुछ ही दिनों में. कहां उस से मिलने को हर पल व्याकुल रहता था. उस की आंखों में खो सा जाता था.’   भविष्य के सलोने सपनों में खोए भावी पति की जगह एक नादान बालक को वह कैसे सह सकती थी भला. उस की खीज और आक्रोश स्वाभाविक ही था. 2 दिन वह जानबूझ कर रवि से बचती रही. बारबार उस का फोन आता पर किसी न किसी तरह टालती रही. चाहती थी, इतना व्याकुल हो जाए कि स्वयं उस के घर चल कर आ जाए. तीसरे दिन सुबहसुबह द्वार पर रवि की मां को देख कर गायत्री हैरान रह गई. पूरा परिवार समधिन की आवभगत में जुट गया.

‘‘तुम से अकेले में कुछ बात करनी है,’’ उस के कमरे में आ कर धीरे से मां बोलीं तो कुछ संशय सा हुआ गायत्री को.

‘‘इतने दिन से रवि घर ही नहीं आया बेटी. मैं कल रात लौटी तो पता चला. क्या वह तुम से मिला था?’’ ‘‘जी?’’ वह अवाक् रह गई, ‘‘2 दिन पहले मिले थे. तब उदास थे आप की वजह से.’’

‘‘मेरी वजह से उसे क्या उदासी थी? अगर उसे पता चल गया कि मैं उस की सौतेली मां हूं तो इस में मेरा क्या कुसूर है. लेकिन इस से क्या फर्क पड़ता है?

‘‘वह मेरा बच्चा है. इस में संशय कैसा? मैं ने उसे अपने बच्चों से बढ़ कर समझा है. मैं उस की मां नहीं तो क्या हुआ, पाला तो मां बन कर है न?’’ ऐसा लगा, जैसे बहुत विशाल भवन भरभरा कर गिर गया हो. न जाने मां कितना कुछ कहती रहीं और रोती रहीं, सारी कथा गायत्री ने समझ ली. कांच की तरह सारी कहानी कानों में चुभने लगी. इस का मतलब है कि इसी वजह से परेशान था रवि और वह कुछ और ही समझ कर भाषणबाजी करती रही.

‘‘उसे समझा कर घर ले आ, बेटी. सूना घर उस के बिना काटने को दौड़ता है मुझे. उसे समझाना,’’ मां आंसू पोंछते हुए बोलीं.

‘‘जी,’’ रो पड़ी गायत्री स्वयं भी, सोचने लगी, कहां खोजेगी उसे अब? बेचारा बारबार बुलाता रहा. शायद इस सत्य की पीड़ा को उसे सुना कर कम करना चाहता होगा और वह अपनी ही जिद में उसे अनसुना करती रही.

मां आगे बोलीं, ‘‘मैं ने उसे जन्म नहीं दिया तो क्या मैं उस की मां नहीं हूं? 2 महीने का था तब, रातों को जागजाग कर उसे सुलाती रही हूं. कम मेहनत तो नहीं की. अब क्या वह घर ही छोड़ देगा? मैं इतनी बुरी हो गई?’’

‘‘वे आप से बहुत प्यार करते हैं मांजी. उन्हें यह बताया ही किस ने? क्या जरूरत थी यह सच कहने की?’’

‘‘पुरानी तसवीरें सामने पड़ गईं बेटी. पिता के साथ अपनी मां की तसवीरें दिखीं तो उस ने पिता से पूछ लिया, ‘आप के साथ यह औरत कौन है?’ वे बात संभाल नहीं पाए, झट से बोल पड़े, ‘तुम्हारी मां हैं.’

‘‘बहुत रोया तब. ये बता रहे थे. बारबार यही कहता रहा, ‘आप ने बताया क्यों? यही कह देते कि आप की पहली पत्नी थी. यह क्यों कहा कि मेरी मां भी थी.’

‘‘अब जो हो गया सो हो गया बेटी, इस तरह घर क्यों छोड़ दिया उस ने? जरा सोचो, पूछो उस से?’’

किसी तरह भावी सास को विदा तो कर दिया गायत्री ने परंतु मन में भीतर कहीं दूर तक अपराधबोध सालने लगा, कैसी पागल है वह और स्वार्थी भी, जो अपना प्रेमी तलाशती रही उस इंसान में जो अपना विश्वास टूट जाने पर उस के पास आया था.उसे महसूस हो रहा होगा कि उस की मां कहीं खो गई है. तभी तो पहली नजर से जीवनभर जुड़ने के नातों में विश्वास का विषय शुरू किया होगा. कुछ राहत चाही होगी उस से और उस ने उलटा जलीकटी सुना कर भेज दिया. मातापिता और दोनों छोटे भाई समीप सिमट आए. चंद शब्दों में गायत्री ने उन्हें सारी कहानी सुना दी.

‘‘तो इस में घर छोड़ देने वाली क्या बात है? अभी फोन आएगा तो उसे घर ही बुला लेना. हम सब मिल कर समझाएंगे उसे. यही तो दोष है आज की पीढ़ी में. जोश से काम लेंगे और होश का पता ही नहीं,’’ पिताजी गायत्री को समझाने लगे.

फिर आगे बोले, ‘‘कैसा कठोर है यह लड़का. अरे, जब मां ही बन कर पाला है तो नाराजगी कैसी? उसे भूखाप्यासा नहीं रखा न. उसे पढ़ायालिखाया है, अपने बच्चों जैसा ही प्यार दिया है. और देखो न, कैसे उसे ढूंढ़ती हुई यहां भी चली आईं. अरे भई, अपनी मां क्या करती है, यही सब न. अब और क्या करें वे बेचारी?

‘‘यह तो सरासर नाइंसाफी है रवि की. अरे भई, उस के कार्यालय का फोन नंबर है क्या? उस से बात करनी होगी,’’ पिता दफ्तर जाने तक बड़बड़ाते रहे.

छोटा भाई कालेज जाने से पहले धीरे से पूछने लगा, ‘‘क्या मैं रवि भैया के दफ्तर से होता जाऊं? रास्ते में ही तो पड़ता है. उन को घर आने को कह दूंगा.’’

गायत्री की चुप का भाई ने पता नहीं क्या अर्थ लिया होगा, वह दोपहर तक सोचती रही. क्या कहती वह भाई से? इतना आसान होगा क्या अब रवि को मनाना. कितनी बार तो वह उस से मिलने के लिए फोन करता रहा था और वह फोन पटकती रही थी. शाम को पता चला रवि इतने दिनों से अपने कार्यालय भी नहीं गया.

‘क्या हो गया उसे?’ गायत्री का सर्वांग कांप उठा.

मां और पिताजी भी रवि के घर चले गए पूरा हालचाल जानने. भावी दामाद गायब था, चिंता स्वाभाविक थी. बाद में भाई बोला, ‘‘वे अपने किसी दोस्त के पास रहते हैं आजकल, यहीं पास ही गांधीनगर में. तुम कहो तो पता करूं. मैं ने पहले बताया नहीं. मुझे शक है, तुम उन से नाराज हो. अगर तुम उन्हें पसंद नहीं करतीं तो मैं क्यों ढूंढ़ने जाऊं. मैं ने तुम्हें कई बार फोन पटकते देखा है.’’

‘‘ऐसा नहीं है, अजय,’’ हठात निकल गया होंठों से, ‘‘तुम उन्हें घर ले आओ, जाओ.’’

बहन के शब्दों पर भाई हैरान रह गया. फिर हंस पड़ा, ‘‘3-4 दिन से मैं तुम्हारा फोन पटकना देख रहा हूं. वह सब क्या था? अब उन की इतनी चिंता क्यों होने लगी? पहले समझाओ मुझे. देखो गायत्री, मैं तुम्हें समझौता नहीं करने दूंगा. ऐसा क्या था जिस वजह से तुम दोनों में अबोला हो गया?’’

‘‘नहीं अजय, उन में कोई दोष नहीं है.’’

‘‘तो फिर वह सब?’’

‘‘वह सब मेरी ही भूल थी. मुझे ही ऐसा नहीं करना चाहिए था. तुम पता कर के उन्हें घर ले आओ,’’ रो पड़ी गायत्री भाई के सामने अनुनयविनय करते हुए.

‘‘मगर बात क्या हुई थी, यह तो बताओ?’’

‘‘मैं ने कहा न, कुछ भी बात नहीं थी.’’ अजय भौचक्का रह गया.

‘‘अच्छा, तो मैं पता कर के आता हूं,’’ बहन को उस ने बहला दिया.

मगर लौटा खाली हाथ ही क्योंकि उसे रवि वहां भी नहीं मिला था. बोला, ‘‘पता चला कि सुबह ही वहां से चले गए रवि भैया. उन के पिता उन्हें आ कर साथ ले गए.’’

‘‘अच्छा,’’ गायत्री को तनिक संतोष हो गया.

‘‘उन की मां की तबीयत अच्छी नहीं थी, इसीलिए चले गए. पता चला, वे अस्पताल में हैं.’’चुप रही गायत्री. मां और पिताजी का इंतजार करने लगी. घर में इतनी आजादी और आधुनिकता नहीं थी कि खुल कर भावी पति के विषय में बातें करती रहे. और छोटे भाई से तो कदापि नहीं. जानती थी, भाई उस की परेशानी से अवगत होगा और सचमुच वह बारबार उस से कह भी रहा था, ‘‘उन के घर फोन कर के देखूं? तुम्हारी सास का हालचाल…’’

‘‘रहने दो. अभी मां आएंगी तो पता चल जाएगा.’’

‘‘तुम भी तो रवि भैया के विषय में पूछ लो न.’’

भाई ने छेड़ा या गंभीरता से कहा, वह समझ नहीं पाई. चुपचाप उठ कर अपने कमरे में चली गई. काफी रात गए मां और पिताजी घर लौटे. उस समय कुछ बात न हुई. परंतु सुबहसुबह मां ने जगा दिया, ‘‘कल रात ही रवि की माताजी को घर लाए, इसीलिए देर हो गई. उन की तबीयत बहुत खराब हो गई थी. खानापीना सब छोड़ रखा था उन्होंने. रवि मां के सामने आ ही नहीं रहा था. पता नहीं क्या हो गया इस लड़के को. बड़ी मुश्किल से सामने आया.‘‘क्या बताऊं, कैसे बुत बना टुकुरटुकुर देखता रहा. मां को घर तो ले गया है, परंतु कुछ बात नहीं करता. तुम्हें बुलाया है उस की मां ने. आज अजय के साथ चली जाना.’’

‘‘मैं?’’ हैरान रह गई गायत्री.

‘‘कोई बात नहीं. शादी से पहले पति के घर जाने का रिवाज हमारी बिरादरी में नहीं है, पर अब क्या किया जाए. उस घर का सुखदुख अब इस घर का भी तो है न.’’

गायत्री ने गरदन झुका ली. कालेज जाते हुए भाई उसे उस की ससुराल छोड़ता गया. पहली बार ससुराल की चौखट पर पैर रखा. ससुर सामने पड़ गए. बड़े स्नेह से भीतर ले गए. फिर ननद और देवर ने घेर लिया. रवि की मां तो उस के गले से लग जोरजोर से रोने लगीं. ‘‘बेटी, मैं सोचती थी मैं ने अपना परिवार एक गांठ में बांध कर रखा है. रवि को सगी मां से भी ज्यादा प्यार दिया है. मैं कभी सौतेली नहीं बनी. अब वह क्यों सौतेला हो गया? तुम पूछ कर बताओ. क्या पता तुम से बात करे. हम सब के साथ वह बात नहीं करता. मैं ने उस का क्या बिगाड़ दिया जो मेरे पास नहीं आता. उस से पूछ कर बताओ गायत्री.’’ विचित्र सी व्यथा उभरी हुई थी पूरे परिवार के चेहरे पर. जरा सा सच ऐसी पीड़ादायक अवस्था में ले आएगा, किस ने सोचा होगा.

‘‘भैया अपने कमरे में हैं, भाभी. आइए,’’ ननद ने पुकारा. फिर दौड़ कर कुछ फल ले आई, ‘‘ये उन्हें खिला देना, वे भूखे हैं.’’

गायत्री की आंखें भर आईं. जिस परिवार की जिम्मेदारी शादी के बाद संभालनी थी, उस ने समय से पूर्व ही उसे पुकार लिया था. कमरे का द्वार खोला तो हैरान रह गई. अस्तव्यस्त, बढ़ी दाढ़ी में कैसा लग रहा था रवि. आंखें मींचे चुपचाप पड़ा था. ऐसा प्रतीत हुआ मानो महीनों से बीमार हो. क्या कहे वह उस से? कैसे बात शुरू करे? नाराज हो कर उस का भी अपमान कर दिया तो क्या होगा? बड़ी मुश्किल से समीप बैठी और माथे पर हाथ रखा, ‘‘रवि.’’

आंखें सुर्ख हो गई थीं रवि की. गायत्री ने सोचा, क्या रोता रहता है अकेले में? मां ने कहा था वह पत्थर सा हो गया है.

‘‘रवि यह, यह क्या हो गया है तुम्हें?’’ अपनी भूल का आभास था उसे. बलात होंठों से निकल गया, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझे तुम्हारी बात सुननी चाहिए थी. मुझ से ऐसा क्या हो गया, यह नहीं होना चाहिए था,’’ सहसा स्वर घुट गया गायत्री का. वह रवि, जिस ने कभी उस का हाथ भी नहीं पकड़ा था, अचानक उस की गोद में सिर छिपा कर जोरजोर से रोने लगा. उसे दोनों बांहों में कस के बांध लिया. उसे इस व्यवहार की आशा कहां थी. पुरुष भी कभी इस तरह रोते हैं. गायत्री को बलिष्ठ बांहों का अधिकार निष्प्राण करने लगा. यह क्या हो गया रवि को? स्वयं को छुड़ाए भी तो कैसे? बालक के समान रोता ही जा रहा था.

‘‘रवि, रवि, बस…’’ हिम्मत कर के उस का चेहरा सामने किया.

‘‘ऐसा लगता है मैं अनाथ हो गया हूं. मेरी मां मर गई हैं गायत्री, मेरी मां मर गई हैं. उन के बिना कैसे जिंदा रहूं, कहां जाऊं, बताओ?’’

उस के शब्द सुन कर गायत्री भी रो पड़ी. स्वयं को छुड़ा नहीं पाई बल्कि धीरे से अपने हाथों से उस का चेहरा थपथपा दिया.

‘‘ऐसा लगता है, आज तक जितना जिया सब झूठ था. किसी ने मेरी छाती में से दिल ही खींच लिया है.’’

‘‘ऐसा मत सोचो, रवि. तुम्हारी मां जिंदा हैं. वे बीमार हैं. तुम कुछ नहीं खाते तो उन्होंने भी खानापीना छोड़ रखा है. उन के पास क्यों नहीं जाते? उन में तो तुम्हारे प्राण अटके हैं न? फिर क्यों उन्हें इस तरह सता रहे हो?’’

‘‘वे मेरी मां नहीं हैं, पिताजी ने बताया.’’

‘‘बताया, तो क्या जुर्म हो गया? एक सच बता देने से सारा जीवन मिथ्या कैसे हो गया?’’

‘‘क्या?’’ रवि टुकुरटुकुर उस का मुंह देखने लगा. क्षणभर को हाथों का दबाव गायत्री के शरीर पर कम हो गया.

‘‘वे मुझ बिन मां के बच्चे पर दया करती रहीं, अपने बचों के मुंह से छीन मुझे खिलाती रहीं, इतने साल मेरी परछाईं बनी रहीं. क्यों? दयावश ही न. वे मेरी सौतेली मां हैं.’’

‘‘दया इतने वर्षों तक नहीं निभाई जाती रवि, 2-4 दिन उन के साथ रहे हो क्या, जो ऐसा सोच रहे हो? वे बहुत प्यार करती हैं तुम से. अपने बच्चों से बढ़ कर हमेशा तुम्हें प्यार करती रहीं. क्या उस का मोल इस तरह सौतेला शब्द कह कर चुकाओगे? कैसे इंसान हो तुम?’’ एकाएक उसे परे हटा दिया गायत्री ने. बोली, ‘‘उन्हें सौतेला जान जो पीड़ा पहुंची थी, उस का इलाज उन्हीं की गोद में है रवि, जिन्होंने तुम्हें पालपोस कर बड़ा किया. मेरी गोद में नहीं जिस से तुम्हारी जानपहचान कुछ ही महीनों की है. तुम अपनी मां के नहीं हो पाए तो मेरे क्या होगे, कैसे निभाओगे मेरे साथ?’’

लपक कर उस का हाथ पकड़ लिया रवि ने, ‘‘मैं अपनी मां का नहीं हूं, तुम ने यह कैसे सोच लिया?’’

‘‘तो उन से बात क्यों नहीं करते? क्यों इतना रुला रहे हो उन्हें?’’

‘‘हिम्मत नहीं होती. उन्हें या भाईबहन को देखते ही कानों में सौतेला शब्द गूंजने लगता है. ऐसा लगता है मैं दया का पात्र हूं.’’

‘‘दया के पात्र तो वे सब बने पड़े हैं तुम्हारी वजह से. मन से यह वहम निकालो और मां के पास चलो. आओ मेरे साथ.’’

‘‘न,’’ रवि ने गरदन हिला दी इनकार में, ‘‘मां के पास नहीं जाऊंगा. मां के पास तो कभी नहीं…’’

‘‘इस की वजह क्या है, मुझे समझाओ? क्यों नहीं जाओगे उन के पास? क्या महसूस होता है उन के पास जाने से?’’ एकाएक स्वयं ही उस की बांह सहला दी गायत्री ने. निरीह, असहाय बालक सा वह अवरुद्ध कंठ और डबडबाए नेत्रों से उसे निहारने लगा.

‘‘तुम्हें 2 महीने का छोड़ा था तुम्हारी मां ने. उस के बाद इन्होंने ही पाला है न. तुम तो इन्हें अपना सर्वस्व मानते रहे हो. तुम ही कहते थे न, तुम्हारी मां जैसी मां किसी की भी नहीं हैं. जब वह सच सामने आ ही गया तो उस से मुंह छिपाने का क्या अर्थ? वर्तमान को भूत में क्यों मिला रहे हो? ‘‘अब तुम्हारा कर्तव्य शुरू होता है रवि, उन्हें अपनी सेवा से अभिभूत करना होगा. कल उन्होंने तुम्हें तनमन से चाहा, आज तुम चाहो. जब तुम निसहाय थे, उन्होंने तुम्हें गोद में ले लिया था. आज तुम यह प्रमाणित करो कि सौतेला शब्द गाली नहीं है. यह सदा गाली जैसा नहीं होता. बीमार मां को अपना सहारा दो रवि. सच को उस के स्वाभाविक रूप में स्वीकार करना सीखो, उस से मुंह मत छिपाओ.’’

‘‘मां मुझे इतना अधिक क्यों चाहती रहीं, गायत्री? मेरे मन में सदा यही भाव जागता रहा कि वे सिर्फ मेरी हैं. छोटे भाईबहन को भी उन के समीप नहीं फटकने दिया. मां ने कभी विरोध नहीं किया, ऐसा क्यों, गायत्री? कभी तो मुझे परे धकेलतीं, कभी तो कहतीं कुछ,’’ रवि फिर भावुक होने लगा.

‘‘हो सकता है वे स्वाभाविक रूप में ही तुम्हें ज्यादा स्नेह देती रही हों. तुम सदा से शांत रहने वाले इंसान रहे हो. उद्दंड होते तो जरूर डांटतीं किंतु बिना वजह तुम्हें परे क्यों धकेल देतीं.’’

‘‘गायत्री, मैं इतना बड़ा सच सह नहीं पा रहा हूं. मैं सोच भी नहीं सकता. ऐ लगता है, पैरों के नीचे से जमीन ही सरक गई हो.’’

‘‘क्या हो गया है तुम्हें, इतने कमजोर क्यों होते जा रहे हो?’’कुछ ऐसी स्थिति चली आई. शायद उस का यही इलाज भी था. स्नेह से गायत्री ने स्वयं ही अपने समीप खींच लिया रवि को. कोमल बाहुपाश में बांध लिया.भर्राए स्वर में गिला भी किया रवि ने, यही सब सुनाने तुम्हारे पास भी तो गया था. सोचा था, तुम से अच्छी कोई और मित्र कहां होगी, तुम ने सुना नहीं. मैं कितने दिन इधरउधर भटकता रहा. मैं कहां जाऊं, कुछ समझ नहीं पाता?’’

‘‘मां के पास चलो, आओ मेरे साथ. मैं जानती हूं, उन्हीं के पास जाने को छटपटा रहे हो. चलो, उठो.’’

रवि चुप रहा. भावी पत्नी की आंखों में कुछ ढूंढ़ने लगा.

गायत्री तनिक गुस्से से बोली, ‘‘जीवन में बहुतकुछ सहना पड़ता है. यह जरा सा सच नहीं सह पा रहे तो बड़ेबड़े सच कैसे सहोगे? आओ, मेरे साथ चलो?’’ रवि खामोशी से उसे घूरता रहा.

‘‘देखो, आज तुम्हारी मां इतनी मजबूर हो गई हैं कि मेरे सामने हाथ जोड़े हैं उन्होंने. तुम्हें समझाने के लिए मुझे बुला भेजा है. तुम तो जानते हो, हम लोगों में शादी से पहले एकदूसरे के घर नहीं जाते. परंतु मुझे बुलाया है उन्होंने, तुम्हें समझाने के लिए. अपनी मां का और मेरा मान रखना होगा तुम्हें. मेरे साथ अपनी मां और भाईबहन से मिलना होगा और बड़ा भाई बन कर उन से बात करनी होगी. उठो रवि, चलो, चलो न.’’ अपने अस्तित्व में समाए बालक समान सुबकते भावी पति को कितनी देर सहलाती रही गायत्री. आंचल से कई बार चेहरा भी पोंछा.

रवि उधेड़बुन में था, बोला, ‘‘मां मेरे पास क्यों नहीं आतीं, क्यों नहीं मुझे बुलातीं?’’

‘‘वे तुम्हारी मां हैं. तुम उन के बेटे हो. वे क्यों आएं तुम्हारे पास. तुम स्वयं ही रूठे हो, स्वयं ही मानना होगा तुम्हें.’’

‘‘पिताजी मां को मेरे कमरे में नहीं आने देना चाहते, मुझे पता है. मैं ने उन्हें मां को रोकते सुना है.’’

‘‘ठीक ही तो कर रहे हैं. उन की भी पत्नी के मानसम्मान का प्रश्न है. तुम उन के बच्चे हो तो बच्चे ही क्यों नहीं बनते. क्या यह जरूरी है कि सदा तुम ही अपना अधिकार प्रमाणित करते रहो? क्या उन्हें हक नहीं है?’’

बड़ी मुश्किल से गायत्री ने उसे अपने शरीर से अलग किया. प्रथम स्पर्श की मधुर अनुभूतियां एक अलग ही वातावरण और उलझे हुए वार्त्तालाप की भेंट चढ़ चुकी थीं. ऐसा लगा ही नहीं कि पहली बार उसे छुआ है. साधिकार उस का मस्तक चूम लिया गायत्री ने. गायत्री पर पूरी तरह आश्रित हो वह धीरे से उठा, ‘‘तुम भी साथ चलोगी न?’’

‘‘हां,’’ वह तनिक मुसकरा दी.

फिर उस का हाथ पकड़ सचमुच वह बीमार मां के समीप चला आया. अस्वस्थ और कमजोर मां को बांहों में बांध जोरजोर से रोने लगा.

‘‘मैं ने तुम से कितनी बार कहा है, तुम मुझे छोड़ कर कहीं मत जाया करो,’’ उसे गोद में ले कर चूमते हुए मां रोने लगीं. छोटी बहन और भाई शायद इस नई कहानी से पूरी तरह टूट से गए थे. परंतु अब फिर जुड़ गए थे. बडे़ भाई ने मां पर सदा से ही ज्यादा अधिकार रखा था, इस की उन्हें आदत थी. अब सभी प्रसन्न दिखाई दे रहे थे.

‘‘तुम कहीं खो सी गई थीं, मां. कहां चली गई थीं, बोलो?’’

पुत्र के प्रश्न पर मां धीरे से समझाने लगीं, ‘‘देखो रवि, सामने गायत्री खड़ी है, क्या सोचेगी? अब तुम बड़े हो गए हो.’’

‘‘तुम्हारे लिए भी बड़ा हो गया हूं क्या?’’

‘‘नहीं रे,’’ स्नेह से मां उस का माथा चूमने लगीं.

‘‘आजा बेटी, मेरे पास आजा,’’ मां ने गायत्री को पास बुलाया और स्नेह से गले लगा लिया. छोटा बेटा और बेटी भी मां की गोद में सिमट आए. पिताजी चश्मा उतार कर आंखें पोंछने लगे.गायत्री बारीबारी से सब का मुंह देखने लगी. वह सोच रही थी, ‘क्या शादी के बाद वह इस मां के स्नेह के प्रति कभी उदासीन हो पाएगी? क्या पति का स्नेह बंटते देख ईर्ष्या का भाव मन में लाएगी? शायद नहीं, कभी नहीं.’

आ, अब लौट चलें

लेखक- डा. रंजना जायसवाल

कोर्टरूम में सन्नाटा छाया हुआ था. सिर के ऊपर लगे एक पुराने पंखे और फाइलों के पन्नों के पलटने के अलावा कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी.

आज मुकदमे की आख्रिरी तारीख थी. पाखी सांस रोके फैसले के इंतजार में थी. उस ने दोनों बच्चों के हाथ कस कर पकड़ रखे थे. वकीलों की दलीलों के आगे वह हर बार टूटती, बिखरती और फिर अपनेआप को मजबूती से समेट हर तारीख पर अपनेआप को खड़ा कर देती. क्याक्या आरोप नहीं लगे थे इन बीते दिनों में. हर तारीख पर जलील और अपमानित होती थी पाखी. 8 साल की शादी. सबकुछ तो ठीक ही था.

अरुण एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे, खुद का मकान, खातापीता परिवार, सासससुर और एक छोटा भाई व बहन. एक लड़की को और क्या चाहिए था. फूफाजी ने रिश्ता बताया था. पापा कितने खुश थे. कोई जिम्मेदारी नहीं, एक छोटी बहन है वह भी शादी के बाद अपने घर चली जाएगी. पाखी उन्हें एक ही नजर में पसंद आ गई थी. पापा बहुत खुश थे.

‘’आप लोगों की कोई डिमांड हो तो बता दीजिए…’ पाखी के पिताजी ने कहा था. पाखी को आज भी याद है… अरुण ने छूटते ही कहा था, ‘अंकल, मैं इतना कमा लेता हूँ कि आप की बेटी को खुश रख लूंगा. आप अपनी बेटी को जो देना चाहे, दे सकते हैं, पर हमें कुछ नहीं चाहिए.‘ पाखी की नजर में कितनी इज्जत बढ़ गई थी अरुण के लिए. पर…

“कृपया शांति बनाए रखें, जज साहब आ रहे हैं.” इस आवाज़ ने पाखी की सोच को तेजी से ब्रेक लगा दिया. जज साहब ने बड़े ही सधे स्वर में फैसला सुनाना शुरू किया. वाद संख्या 15, सन 2018 अरुण सिंह बनाम पाखी सिंह के द्वारा याचिका दाखिल की गई थी. न्यायालय के द्वारा 6 महीने का वक्त दिए जाने पर भी दोनों पक्ष  साथ रहने को सहमत नहीं है. सो, यह न्यायालय तलाक के मुकदमे तथा बच्चों की कस्टडी के सम्बंध में मुकदमे का फैसला सुनाती है.

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 बी के अनुसार दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि अरुण सिंह एवं पाखी सिंह दोनों की सहमति से उन का सम्बंध विच्छेद किया जाता है. चूंकि दोनों की संतानें अभी नाबालिग हैं और पाखी सिंह एक सामान्य गृहिणी हैं व आर्थिक रूप से कमजोर हैं, इसलिए अरुण सिंह पाखी सिंह को उन के भरणपोषण के अलावा बच्चों के पालनपोषण व भरणपोषण के लिए भी 10 हजार रुपये खर्चे के तौर पर देंगे,  साथ ही, यह न्यायालय महीने में 2 बार या हर 15 दिन पर पिता को अपने बच्चों से मिलने का अधिकार देने का फैसला सुनाती है. पाखी सिंह को इस सम्बंध में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

जज साहब फैसला सुना कर चले गए. धीरेधीरे सभी लोग कमरे से बाहर निकल गए. पाखी बहुत देर तक यों ही बैठी रही. अरुण ने जातेजाते मुड कर उसे देखा. दोनों की आंखें टकरा गईं. न जाने कितने सवाल उन की आंखों में तैर रहे थे. मानो दोनों एकदूसरे से पूछ रहे थे, अब तो खुश हो न… यही चाहते थे न हम. पर क्या सचमुच वे दोनों यही चाहते थे…

विवाह की वेदी पर ली गईं सारी कसमें एकएक याद आ रही थीं… हिंदू विवाह सिर्फ एक संस्कार नहीं, सात जन्मों का नाता है जिसे कोई नहीं तोड़ सकता. एकदूसरे का हाथ थामे अरुण और पाखी ने भी तो यही कसमें खाई थीं. पर वक्त के थपेड़ों ने रिश्तों के धागों को तारतार कर दिया था. पारिवारिक न्यायालय के बाहर तलाक के लिए खड़े दंपतियों को देख कर मन कैसाकैसा हो गया था. आखिर ऐसा क्या हो जाता है जो संभाला नहीं जा सकता. पाखी भी तो यही सोचती थी. पर उसे क्या पता था, जिंदगी उसे ऐसे मोड़ पर ला कर खड़ा कर देगी.

पिताजी ने यथासंभव सबकुछ तो दिया. पर कहीं कुछ अधूरा सा था जिस की भरपाई पाखी अपने आसुओं से करती रही. बड़ी बहू…बहुत सारी जिम्मेदारियाँ उस के कंधों पर थीं. दिनभर वह चकरघिन्नी की तरह नाचती रहती. कभी पापा की दवा तो माँ जी का नाश्ता, तो कभी सोनल का प्रोजेक्ट. कहने को तो सोनल उस की हमउम्र थी पर 2 भाई की लाडली और इकलौती बहन लाड़ के कारण कभी बड़ी न हो पाई.

पाखी हमेशा सोचती थी…हमउम्र हैं, सहेलियों की तरह चुटकियों में हर काम निबटा देंगे और देवर तो मेरे भाई सोनू की तरह ही है. जब सोनू का काम कर सकती थी, उस का क्यों नहीं. पर लोग सच कहते हैं, ससुराल तो ससुराल ही होती है.

पाखी की बचपन की सहेली हमेशा कहती थी, पाखी किसी रिश्ते में कोई रिश्ता न ढूंढना, तो खुश रहोगी. कितनी नादान थी वह. उसे क्या पता था ससुराल पहुँचने से पहले ही एक छवि वहाँ बन चुकी थी – बड़े बाप की बेटी है, डिग्री वाली है. इन को कौन समझा सकता है. मांजी अकसर कह देतीं, ‘वह तो अरुण ने शराफत में कह दिया कि दो जोड़ी कपड़ों में विदा कर दीजिए. इस के पापा मान भी गए. कितने अच्छेअच्छे रिश्ते आ रहे थे मेरे लाडले के लिए. पर हमारी ही मति मारी गई थी.‘ पाखी हदप्रद सी देखती रह जाती. जिन डिग्रियों को देख कर पापा का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था, आज वही उलाहनों और तानों का जरिया बन गई थीं.

पापा ने शादी में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. सबकुछ तो दिया था पर…. पर मांजी अनर्गल प्रलाप अकसर शुरू हो जाता था. पाखी ने कई बार अरुण से इस बारे में बात करने की कोशिश की. पर अरुण तो जैसे कुछ सुनना ही नहीं चाहते थे. शुरुआत में तो वे हँस कर टाल देते पर वक्त बीतने के साथ वह मुसकराहट झुंझलाहट में बदलती चली गई. सब को खुश करने के चक्कर में पाखी अपनेआप को खुश रखना तो कब का भूल चुकी थी. तारीफ और ढांढस का एक शब्द सुनने के लिए उस के कान तरस गए थे.

अरुण भी खिंचेखिंचे से रहने लगे थे. पाखी भरेपूरे घर मे अकेले रह गई थी. पाखी और अरुण में न के बराबर बातें होती थीं और जब कभी बातें होतीं भी,   धीरेधीरे बहस, फिर झगड़े का रूप ले लेतीं. पाखी और अरुण के बीच झगड़े अपने मसलों को ले कर नहीं होते, पर आखिर पिस तो दोनों ही रहे थे. पाखी…पाखी, तुम ने बच्चों की फीस नहीं जमा  की, स्कूल से नोटिस आई है.

पाखी अरुण की आवाज सुन कर किचन से दौड़ी चली आई. अरे, अभी तक फीस नहीं जमा हुई? मैं ने तो भैया को बोला था. ‘मुझ से…मुझ से कब बोला भाभी’? ‘अरे भैया, आप उस दिन अपने दोस्त से मिलने जा रहे थे उसी तरफ, तब आप ही ने कहा था कि मैं जमा कर दूंगा’. पाखी की आवाज सुन कर पापा, मांजी, सोनल कमरे से बाहर निकल आए, ‘क्या बात है भाई, सुबहसुबह इतना शोर क्यों मचा रखा है’.

‘पापा देखिए न, बच्चों के स्कूल से नोटिस आई है कि अभी तक फीस जमा नहीं हुई है. मैं क्याक्या देखूं… घर कि बाहर’. अरुण सिर पकड़ कर बैठ गए. मम्मी ने बेटे की ऐसी हालत देख कर पाखी पर ही चिल्लाना शुरू कर दिया. एक काम ठीक से नहीं कर पाती. पता नहीं दिनभर करती क्या रहती है. हर चीज़ के लिए आदमी लगा हुआ है, तब भी महारानी को अपनेआप से फुरसत नहीं.

पाखी की आंखें फ़टी की फटी रह गईं. दिनभर इन लोगों की फरमाइशों को पूरा करतेकरते दिन कब निकल जाता है, पता ही नहीं चलता. और मैं दिनभर करती ही क्या हूं. पाखी ने बड़ी उम्मीद से अरुण की तरफ देखा, शायद …शायद आज तो कुछ बोलेंगे. पर अरुण हमेशा की तरह आज भी चुप थे.

पाखी के दिल का दर्द आंखों मे उभर आया और वह सैलाब बन कर आंखों की सरहदों को तोड़ कर बह निकला. पाखी चुपचाप अपने कमरे में चली आई. वह घंटों तक रोती रही. तभी कमरे में किसी ने लाइट जलाई. कमरा रोशनी से नहा गया. रोतेरोते उस की आंखें लाल हो चुकी थीं. अरुण चुपचाप बिस्तर पर आ कर लेट गए.

पाखी चुपचाप बाथरूम में चली गई और शावर की तेज धार के नीचे खड़े हो कर अपने मनमस्तिष्क में चल रहे तूफान को रोकने का प्रयास करती रही. पर, बस, अब बहुत ही हो चुका. अब और बरदाश्त नहीं होता. इस घर के लिए वह एक सजावटी गुड़िया से ज्यादा कुछ नहीं थी, जिस का होना न होना किसी के लिए कोई माने नहीं रखता था. पाखी ने अपने कपड़े बदले और गीले बालों का एक ढीला सा जूड़ा बना कर छोड़ दिया.

‘अरुण…अरुण, मुझे आप से कुछ बात करनी है.‘ ‘हूं, मेरे सिर में बहुत दर्द है. मैं इस समय बात करने के मूड में नहीं हूँ.’ पाखी ने जैसे अरुण की बात ही नहीं सुनी और वह बोलती चली गई. ‘अरुण, अब बस, बहुत हो चुका. मैं ने अब तक बहुत निभाया कि आप सभी को खुश रखने की कोशिश करूं. पर बस, अब और नहीं. अब मुझ से बरदाश्त नहीं होता. हर बात पर मेरे घर वालों को और मुझे घसीटा जाता है. दम घुटता है मेरा. अब मैं यहाँ और नहीं रख सकती. मैं बच्चों को ले कर अपने घर जा रही.’

अरुण ने जलती निगाहों से देखा, ‘पाखी सोच लो, अगर आज तुम गईं तो इस गलतफहमी में बिलकुल भी नहीं रहना कि मैं या मेरे घरवाले तुम्हें मनाने आएंगे. आज से इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद’.

पाखी का दिल टूट गया. सात जन्मों तक साथ निभाने की कसमें खाने वाले रिश्ते एक झटके के साथ टूट  गए. 6 महीने की मोहलत भी उन के रिश्ते को नहीं जोड़ पाई.

समय बीतता गया. जीवन पटरी पर आने लगा. पाखी ने एक स्कूल में नौकरी कर ली. घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी. अरुण हर दूसरे हफ्ते बच्चों से मिलने आते और दिनभर उन को होटल व माल घुमाते. शाम को बच्चे जब लौटते तो कभी उन के हाथों में खिलौने कभी चौकलेट तो कभी किताबें होतीं.

पाखी कभीकभी अरुण को चाय के लिए पूछ लेती. पर चाय की चुस्कियों की बीच एक अजीब सा सन्नाटा पसरा रहता. दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं होती.शब्द मानो खो से गए थे. एक बार चीकू का जन्मदिन था. अरुण ने चीकू से वादा किया था उसे पसंदीदा होटल में खाना खिलाएंगे. इस बार बच्चों की जिद के आगे पाखी की भी एक  न चली. कितने दिनों बाद वह किसी होटल में आई थी. अरुण वेटर को खाने का और्डर दे रहे थे.

पाखी ने चोर निगाहों से अरुण की ओर देखा…कितना कमजोर लगने लगा था. चेहरे की रौनक भी न जाने कहां खो गई थी. पाखी का भी तो कुछ ऐसा ही हाल था…पहननेओढ़ने का शौक तो न जाने कब का मर चुका था. आईने की तरफ देखे तो जमाना हो गया था. पाखी ने गहरी सांस ली.

अरुण पाखी और बच्चों छोड़ कर वापस अपने घर लौट गए. चीकू आज बहुत खुश था. आज उस के पापा ने उसे रिमोट कंट्रोल कार गिफ्ट में दी थी. पाखी ने कपड़े बदले और टीवी खोल कर बैठ गई. हर तरफ कोरोना का समाचार चल रहा था. समाचारवाचक गला फाड़फाड़ चिल्ला रहा था. दुनियाभर के सभी देशों में यह बीमारी अपने पैर पसार चुकी है. इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है. भारत के प्रधानमंत्री ने भी इस संबंध में सख्त निर्णय लेते हुए आज रात 12 बजे से लौकडाउन की घोषणा की है.

पाखी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं.  घर में राशन और जरूरत का सामान सब तो लाना पड़ेगा. तभी मोबाइल की घंटी बजी…”पाखी, मैं… मैं अरुण बोल रहा हूं.” क्या कहती पाखी, उस की आवाज तो वह हजारों में भी पहचान सकती थी. “पाखी, तुम ने टीवी देखा?”

“हां, वही देख रही थी”.

“अगर तुम्हें कोई एतराज न हो तो बच्चों के साथ घर आ जाओ. पता नहीं कल क्या हो. जब तक सासें हैं, मैं अपने बच्चों के साथ रहना चाहता हूं,” अरुण की आवाज में निराशा का स्वर सुनाई दिया. पता नहीं वह क्या था.

पाखी अरुण को मना नहीं कर पाई, “पर अरुण, आप आएंगे कैसे? कल से तो निकलना बंद हो जाएगा”.

“तुम तैयारी करो, मैं अभी आ रहा हूं”. पता नहीं वह  कौन सा धागा था जो पाखी को खींचता ले जा रहा था. बच्चे खुशी से नाच रहे थे कि वे पापा के पास रहने जा रहे हैं पर वे मासूम यह नहीं जानते थे कि उन की यह खुशी कितने दिनों की है.

बच्चों की आवाजों से सासससुर कमरे से निकल आए. सासससुर की सवालिया निगा्हें उसे अंदर तक भेद गईं. “यह यहां क्या कर रही, नशा उतर गया सारा,” मम्मीजी ने भुनभुनाते हुए तीर छोड़ा. “मां, इन्हें मैं ले कर आया हूं,” अरुण ने सख्ती से कहा.

“चीकू, मिष्टि चलो, दादी व बाबा का पैर छुओ,” पाखी की बात सुन कर बच्चों ने झट से पैर छू लिए. मम्मी वहां भी ताना मारने से नहीं चूकीं, “चलो, कुछ तो संस्कार दिए वरना…”

“पापा, आप का कमरा कहाँ है?” अरुण ने उंगली से कमरे की तरफ इशारा कर दिया. बच्चे हल्ला मचाते हुए उस ओर भागे. कितने वर्षों बाद अरुण के चेहरे पर मुसकान आई थी.

पाखी कमरे के बाहर आ कर ठिठक कर रह गई. पैर जम से गए. जिस कमरे में वह दुलहन बन कर आई थी, आज वह उसे अपरिचितों की तरह देख रहा था. “मां, हम पापा के पास ही सोएंगे.” “अरे नहीं, तुम लोग बहुत पैर चलाते हो, पापा को दिक्कत होगी.” “पाखी, इन्हें यहीं रहने दो,” अरुण ने कहा था. अरुण की आंखों में अजीब सा दर्द उस ने महसूस किया था. वह आगे बोला, “सोनल और सोबित की शादी के बाद कमरा खाली पड़ा है. मैं तुम्हारा सामान उसी कमरे में रख देता हूँ.

सब अपनेअपने कमरे में चले गए. पाखी की आंखों से नींद कोसों दूर थी. सारी रात करवटें बदलते बीत गई. भोर में न जाने कब आंखे लग गईं. बरतनों की आवाज से पाखी की नींद टूट गई. ‘अरे इतना दिन चढ़ आया’ पाखी बुदबुदा कर उठ बैठी. आने को तो वह अरुण के साथ चली आई पर यह सब क्या इतना आसान था.

सहमे हुए कदमों से उस ने ड्राइंगरूम में कदम रखा. अरुण झाड़ू लगा रहे थे. मम्मीजी बरतन धो रही और पापाजी…पापाजी शायद चाय बनाने की कोशिश कर रहे थे. पाखी के कदमों की आहट सुन कर मम्मीजी बड़बड़ाईं, “आ गई महारानी.” पाखी ने सुन कर भी अनसुना कर दिया. उस ने सोचा, ‘वह कौन सा यहां बसने आई है. कुछ ही दिनों की तो बात है. फिर वही जिंदगी और फिर वही कशमकश.

“पाखी, तुम जग गईं,”  अरुण की आवाज़ थी. “आप…आप क्यों झाडू लगा…” पाखी बोल ही रही थी कि अरुण बोल पड़ा, “अरे वह अचानक लौकडाउन हो गया न, इसलिए कोई कामवाली काम करने नहीं आएगी. अब तो अपना हाथ जगन्नाथ.” इतना कहने के साथ ही अरुण के चेहरे पर सहज मुसकान आ गई. कितना बदल गया है इन सालों में सबकुछ.

जिस अरुण को औफिस के कामों, मम्मीजी को पूजापाठ और पापाजी को अखबार से फुरसत नहीं मिलती थी, आज वक्त ने सबकुछ सिखा दिया था. पाखी के लिए समय काटना मुश्किल हो रहा था. मम्मीजी ने शुरूशुरू में पाखी के चौके में घुसने पर नाकभौं सिकोड़ी. पर अरुण के सख्त चेहरे और परिस्थितियों के आगे को वे ढीली पड़ गईं. शुरूशुरू में रिश्तेदारों के फोन आते रहते और घर बैठेबैठे आग में घी डालने का काम करते रहते पर जैसेजैसे लौकडाउन की समयसीमा खिसकती रही, उन के फोन आने बंद हो गए.

पाखी ने घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली. उसे देख कर लगता ही नहीं था कि वह इस घर से कभी गई भी थी. पापा की नीबू वाली चाय, मम्मीजी की बिना चीनी वाली चाय और अरुण की चीनी कम ज्यादा दूध वाली चाय… आज भी उसे याद थी. पर इन बीते सालों में एक एक बहुत बड़ा बदलाव आया था. जो पाखी अकेले दिनभर घर के कामों में जूझती रहती थी, आज हर आदमी उस की सहायता के लिए तत्पर था. मम्मीजी सब्जी काट कर दे देतीं तो अरुण धुले कपड़ो को फैलाने व तह लगाने में उस की मदद कर देता. बच्चे दिनभर बाबा और दादी की रट लगाए रहते. अरुण को लगा मानो उस के घर की खुशियां वापस लौट आई हों.

लौकडाउन की तारीख बारबार बढ़ रही थी. सब बहुत परेशान थे, पर अरुण और पाखी के सूखते रिश्ते को मानो नया जीवन मिल गया था. सब लोग ड्राईंगरूम में समाचार देख रहे थे… ‘कोरोना की व्यापकता को देखते हुए पूरे देश को कई जोन में बांट दिया गया है. लौकडाउन में कुछ छूट दी जाएगी. कल से कुछ जरूरी दुकानें और प्रतिष्ठान कुछ नियमों के साथ खुलेंगे. पर अभी भी सावधानी बरतने की आवश्यकता है.

“मां, हम  लोग का शहर किस जोन में आएगा?” चीकू ने पूछा तो पाखी ने बताया, “ग्रीन”. “मां, तो क्या अब हम वापस अपने घर जाएंगे. अब हम पापा के साथ नहीं रहेंगे?” चीकू की बात सुन कर सब सकते में आ गए. किसी के पास कोई जवाब नहीं था. पाखी ने धीरेधीरे अपना सामान समेटना शुरू किया. पता नहीं क्यों उस का मन भारी हो रहा था. पर किस हक़ से वह यहाँ रुक सकती है. न जाने कितने सवाल उस के मनमस्तिष्क में घूम रहे थे. बच्चे उदास मन से गाड़ी में जा कर बैठ गए.

पाखी ने पापा और मम्मीजी के पैर छुए. “खुश रहो, अखंड…. यह क्या कहने जा रहे थे वे. वे बुझेमन से अपने कमरे की तरफ चले गए. अरुण को समझ नहीं आ रहा था कि वह पाखी से क्या कहे. इन बीते दिनों में दोनों ने एकदूसरे को जितना करीब से समझा था उतना तो पहले भी नहीं जानते थे. पाखी के कान भी न जाने क्या सुनने को आतुर थे. एक बार, बस एक बार तो कह कर देखो.

अरुण के शब्द लड़खड़ा रहे थे, “पाखी…पाखी, क्या ऐसा नहीं हो सकता तुम हमेशा के लिए यही रुक जाओ”. अरुण की आंखों से आंसू बह रहे थे, पश्चात्ताप के आँसू, उम्मीद के आँसू. पाखी, बस, यही तो सुनना चाहती थी. कितने साल लगा दिए अरुण ने यह कहने के लिए.

पाखी की आंखों से भी आंसू बह रहे थे. उस ने अपने आंसुओ को आंचल में समेटा. अरुण बहुत देर हो रही है, मुझे…मुझे अब जाने दीजिए हमेशा के लिए लौट आने के लिए. दोनों की आंखें आंसुओ से भरी थीं. पर ये आंसू खुशी के थे. करोना ने न जाने कितनों की गोद उजाड़ी, कितनों का सुहाग छीना पर आज किसी के घर की खुशियों का कारण भी यह कोरोना ही बना था.

Monsoon Special: बच्चों के लिए बनाएं Hot Dog, टेस्टी इतना कि खाने में नहीं दिखाएंगे नखरे

बच्चों को बाहर का खाना काफी पसंद होता है. लेकिन बाहर का खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. ऐसे में घर में ही बच्चों के लिए हौट डौग बनाएं.

सामग्री

2 लंबे वाले हौट डौग

50 ग्राम मक्खन

1/2 कप पत्तागोभी बारीक कटी

2 बड़े चम्मच गाजर कद्दूकस की

1/4 कप उबली व अंकुरित मूंग

1/4 कप आलू उबले व मैश किए

1/4 कप लाल व पीली शिमलामिर्च जूलियंस से कटी

3 कलियां लहसुन बारीक कटी

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1 छोटा चम्मच रिफाइंड औयल

2 बड़े चम्मच मक्खन

चाटमसाला

नमक स्वादानुसार

विधि

एक नौनस्टिक पैन में तेल और 1 छोटा चम्मच मक्खन पिघला कर लहसुन भूनें. फिर हलदी पाउडर और सभी सब्जियां डाल कर 2 मिनट उलटेंपलटें.

इस में मूंग, नमक व चाटमसाला डाल कर 2 मिनट और उलटेंपलटें. प्रत्येक हौट डौग को बीच से लंबाई में काटें. थोड़ाथोड़ा मक्खन लगाएं और 1 मिनट सेंक लें.

फिर मिश्रण भरें और दूसरे भाग से ढक दें. थोड़ा मक्खन डाल कर दोनों हौट डौग सेंक लें. सौस के साथ टिफिन में रखें.

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