अपनी ही दुश्मन: कविता के वैवाहिक जीवन में जल्दबाजी कैसे बनी मुसीबत

कविता भी एकदम गजब लड़की थी. उसे हर बात की जल्दी रहती थी. बचपन में उसे जितनी जल्दी खेल शुरू करने की रहती थी, उतनी ही जल्दी उस खेल को खत्म कर के दूसरा शुरू करने की रहती थी. लड़कों को तो बेवकूफ बना कर वह खूब खुश होती थी. युवा होने पर लड़कों की टोली उस के इर्दगिर्द घूमा करती थी. उस टोली में हर महीने एकदो सदस्य बढ़ जाते थे. कविता उन से खुल कर बातें करती थी. लेकिन उस की यही स्वच्छंदता उस के वैवाहिक जीवन में बाधक बन गई थी.

बचपन गया, किशोरावस्था आई, तब तक तो सब कुछ ठीक था. लेकिन जवानी की ड्यौढ़ी पर कदम रखते ही उसे जीवन के कठोर धरातल पर उतरना पड़ा. उस की शादी सुरेश के साथ कर दी गई. भूल या गलती किस की थी, यह तो नहीं पता, लेकिन एक दिन कविता अपने बेटे मोनू को गोद में थामे, हाथ में ट्रौली बैग खींचती आंगन में आ खड़ी हुई.

आंगन के तीनों ओर कमरे बने थे. आवाज सुनते ही तीनों ओर से दादी, बड़की अम्मा, छोटी अम्मा, भाभी, पापा और चचेरे भाईबहन बाहर निकल कर आंगन में एकत्र हो गए. कविता की शादी को अभी कुल डेढ़ साल ही हुआ था. उसे इस तरह आया देख कर सभी हैरत में थे. खुशी किसी के चेहरे पर नहीं थी. मम्मी पापा ने घबरा कर एक साथ पूछा, ‘‘क्या हुआ बिटिया, तू इस तरह…?’’

‘‘इसे संभालो.’’ कविता मोनू को मां की गोद में थमाते हुए बोली, ‘‘मैं अब सुरेश के साथ वापस नहीं जा सकती.’’ इसी के साथ वह ट्रौली बैग को आंगन में ही छोड़ कर एक कमरे की ओर बढ़ गई.

‘‘अरी चुप कर, जो मुंह में आया बक दिया. शर्म नहीं आती अपने मर्द का नाम लेते.’’ दादी ने नाराजगी दिखाई. लेकिन कविता ने उन की बात पर ध्यान नहीं दिया. भाभी ने मोनू को मां की गोद में से ले कर सीने से लगा लिया.

अंदर जाते ही कविता ने इस तरह जूड़ा खोला मानो चैन की सांस लेना चाहती हो. लंबे घने काले बाल उस की पीठ पर इस तरह पसर गए, जैसे उस के आधे अस्तित्व को ढंक लेना चाहते हों. सब लोग बाहर से अंदर आ गए थे. कविता पर सवालों की बौछार होने लगी. लेकिन कविता ने सब को 2 शब्दों में चुप करा दिया, ‘‘मुझे थकान भी है और भूख भी लगी है. पहले मैं नहाऊंगीखाऊंगी, उस के बाद बात करना.’’

चचेरा भाई कविता का ट्रौली बैग अंदर ले आया था. उस ने उठ कर बैग खोला और अपने कपड़े ले कर इस तरह नहाने के लिए बाथरूम में चली गई, जैसे उसे किसी की परवाह ही न हो. इस बीच भाभी और बच्चे मोनू को हंसाने और खेलाने में लग गए थे. जबकि कविता के मातापिता दूसरे कमरे में एकदूसरे पर कविता को बिगाड़ने का दोषारोपण कर रहे थे.

तभी उन की बातें सुन कर दादी अंदर आ गई और आते ही बोलीं, ‘‘अरे चुप करो दोनों. तुम दोनों ने ही बिगाड़ा है इसे. मैं तो इस के लच्छन पहले ही जानती थी. सुरेश शादी न हुई होती तो अब तक पता नहीं क्या गुलखिलाती. न सुनने की तो आदत ही नहीं है इसे. हर जगह मनमानी करती है. देखो 20-22 साल की हो गई और ससुराल से बच्चा लटका कर मायके लौट आई.’’

‘‘अरे अम्मा, बेकार परेशान हो रही हो, सुरेश को यहीं बुला कर दोनों का समझौता करा देंगे.’’ मोहन ने अंदर आते हुए कहा, ‘‘मियांबीबी में छोटेमोटे झगड़े तो चलते ही रहते हैं. कविता को तो जानती ही हो, सुरेश ने कुछ कह दिया होगा और यह तैश में आ कर भाग आई.’’

कविता नहा कर आ गई तो भाभी उस की बांह पकड़ कर छत पर ले गईं. ऊपर जा कर भाभी ने पूछा, ‘‘लाडो, दामादजी से कोई गलती हो गई क्या?’’

‘‘अब तुम से क्या छिपाना भाभी, अब सुरेश मुझ से पहले की तरह प्यार नहीं करते.’’ कहते हुए कविता के आंसू छलक आए.

भाभी का मुंह खुला का खुला रह गया. बोली, ‘‘कहीं और चक्कर तो नहीं चल रहा?’’

‘‘वह बौड़म क्या चक्कर चलाएगा भाभी, फैक्ट्री से आते ही बेदम हो कर पड़ जाता है. बिलकुल बेकार नौकरी है उस की.’’ कविता रोष में बोली, ‘‘2 दिन सुबह की शिफ्ट, फिर 2 दिन शाम की और 2 दिन रात की शिफ्ट.’’

‘‘तो तुझे क्या परेशानी है.’’ भाभी ने कविता को समझाया, ‘‘दामादजी की नईनई नौकरी है. मेहनत कर रहे हैं तो आगे जा कर लाभ मिलेगा.’’

‘‘भाभी, तुम नहीं समझोगी. एक तो वैसे ही फैक्ट्री के उलटेसीधे टाइमटेबल हैं, ऊपर से मोनू को संभालने के लिए इतना वक्त देना पड़ता है. इस सब से ऊब गई हूं मैं. बिलकुल नीरस जिंदगी है, किस से कहूं. क्या कहूं?’’

भाभी आश्चर्य से देखती रह गईं. वह समझ कर भी कुछ नहीं समझ पा रही थीं. 5 फुट 5 इंच लंबी, इकहरे बदन और तीखे नैननक्श वाली उस की ननद कविता में कुछ ऐसा आकर्षण था कि उस के मोहपाश में कोई भी बंध सकता था. सुरेश के साथ भी यही हुआ था.

उस ने छत पर कई बार कविता और सुरेश को नैनों के दांवपेंच लड़ाते देखा था. इस के बाद उस ने ही दादी को समझाबुझा कर सुरेश और कविता की शादी करा दी थी. सुरेश था तो उस के पति का सहपाठी, पर कविता के चक्कर में उन्हीं के घर में घुसा रहता था.

काफी भागदौड़ के बाद सुरेश को एक कंपनी में नौकरी मिली थी. कंपनी की तरफ से ही रहने का भी इंतजाम हो गया था. कविता की नाजायज मांगों के लिए वह अपनी नौकरी खतरे में कैसे डाल सकता था. भाभी कविता की मांग सुन कर हैरत में रह गईं. सुरेश भला उस की चांदतारों की मांग के लिए रोजीरोटी की फिक्र कैसे छोड़ सकता था.

‘‘क्या सोच रही हो भाभी, बडे़ भैया तो अभी भी तुम्हारे आगेपीछे घूमते हैं.’’ भाभी को चुप देख कर कविता ने हल्के व्यंग्य में कहा, ‘‘अच्छा हुआ जो तुम ने अभी बच्चे का बवाल नहीं पाला. अभी तो खूब मौजमजे की उम्र है.’’

कविता की बात का कोई जवाब दिए बिना भाभी सोचने लगी, ‘जब तक दादी जिंदा हैं, पूरा परिवार एक डोर में बंधा है, बाद में तो सब को अलगअलग ही हो जाना है. कविता अपना घर छोड़ कर आ गई तो सब के लिए मुसीबत बन जाएगी. अपनी आधी पढ़ाई छोड़ कर शादी के मंडप में बैठ गई थी और अब बच्चे को उठा कर चली आई, वह भी यह सोच कर कि अब वापस नहीं जाएगी. जरूर इस का कुछ न कुछ इलाज करना पड़ेगा.’

‘‘कहां खो गईं भाभी,’’ कविता ने भाभी की आंखों के सामने हाथ हिलाते हुए कहा, ‘‘बड़के भैया की रोमांटिक यादों में खो गईं क्या?’’

‘‘नहीं, तुम्हारे बारे में सोच रही थी. तुम मोनू की वजह से परेशान हो न, ऐसा करो उसे यहीं छोड़ जाओ, हम पाल लेंगे. बस आगे से सावधानी रखना कि कहीं मोनू का भैया न आ जाए. रही बात सुरेश की तो उन की ड्यूटी दिन की हो या रात की, बाकी वक्त तुम्हारे साथ ही रहेंगे, तुम्हारे पास. समय बचे तो अपना ग्रैजुएशन पूरा कर लेना. तुम भी व्यस्त हो जाओगी.’’

भाभी की राय कविता को जंच गई. बात चली तो यह सुझाव घर में भी सब को पसंद आया. बहरहाल 2 दिनों बाद कविता मोनू को मायके में छोड़ कर सुरेश के पास चली गई. उस के जाने से सभी ने राहत की सांस ली.

देखतेदेखते 5 साल गुजर गए. इस बीच कविता कानपुर छोड़ कर लखनऊ आ गई. वहां उसे एक सरकारी स्कूल में नौकरी मिल गई थी. मोनू को भी उस ने अपने पास बुला लिया था. सुरेश शनिवार को उस के पास आता और रविवार को उस के साथ रह कर सोमवार सुबह वापस लौट जाता.

बड़े लोगों से संपर्क बने तो वह पार्टियों में भी जाने लगी. मोनू की वजह से उसे नाइट पार्टियों में जाने में परेशानी होती थी, इसलिए उसे संभालने के लिए उस ने एक नौकर रख लिया.

कविता का सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन उस की जिंदगी में खलल तब पड़ा, जब सुरेश एक दिन दोपहर में आ गया. दरअसल उस दिन मंगलवार था और लखनऊ में उसे एक दोस्त की शादी में शामिल होना था. वैसे भी उस दिन कोई छुट्टी नहीं थी. उस ने सोचा था कि अचानक पहुंच कर कविता को सरप्राइज देगा. लेकिन दांव उलटा पड़ गया. ड्राइंगरूम में खुलने वाला दरवाजा खुला हुआ था. ड्राइंगरूम में खिलौने बिखरे पड़े थे. उन्हें देख कर लग रहा था कि मोनू खेल से बोर हो कर कहीं बाहर चला गया है. यह भी संभव हो कि वह मां के पास अंदर हो.

अंदर बैडरूम का दरवाजा वैसे ही भिड़ा हुआ था. अंदर से हंसनेखिलखिलाने की आवाजें आ रही थीं. सुरेश ने दरवाजे को थोड़ा सा खोल कर अंदर झांका. भीतर का दृश्य देख कर वह सन्न रह गया. बेशर्मी, बेहयाई और बेवफाई की मूरत बनी नग्न कविता परपुरुष की बांहों में अमरबेल की तरह लिपटी हुई पड़ी थी. पत्नी को इस हाल में देख कर सुरेश की आंखों में खून उतर आया. उस का मन कर रहा था कि वहीं पड़ा बैट उठा कर दोनों के सिर फोड़ दे.

‘‘पापा, पापा आ गए.’’ बाहर से आती मोनू की आवाज उस के कानों में पड़ी. कुछ नहीं सूझा तो उस ने झट से बैडरूम का दरवाजा बंद कर दिया. उसी वक्त अंदर से कुंडी लगाने की आवाज आई. यह काम शायद कविता ने किया होगा. सुरेश धीरे से बड़बड़ाया, ‘‘कमबख्त को बच्चे का भी लिहाज नहीं.’’

‘‘पापा, खेलने चलें.’’ मोनू ने सुरेश के पैर पकड़ कर इस तरह खींचते हुए कहा, जैसे उसे मम्मी से कोई मतलब ही न हो.

अब सुरेश की समझ में आ रहा था कि कविता उसे बौड़म क्यों कहती थी. सब कुछ उस की नाक के नीचे चलता रहा और वह उस पर विश्वास किए बैठा रहा. सचमुच बौड़म ही था वह. किराए का ही सही, महंगा घर, शानदार परदे, उच्च क्वालिटी की क्रौकरी, ब्रांडेड कपड़े, मोनू का महंगा स्कूल. सब कुछ कैसे मैनेज करती होगी कविता, उस ने कभी सोचा ही नहीं. यहां तक कि अभी अंदर आते वक्त उस ने दीवार के साथ खड़ी लाल रंग की आलीशान कार देखी थी, उस पर भी ध्यान नहीं दिया था उस ने. सुरेश सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया.

‘‘पापा, पापा खेलने चलें.’’ कहते हुए मोनू ने उस की टांगें हिलाईं. लेकिन वह जड़वत बैठा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि करे तो क्या करे. अब तो उस के मन में यह सवाल भी उठ रहा था कि वह मोनू का पिता है या नहीं?

‘‘तुम खेलने जाओ, मैं अभी आता हूं.’’ दुखी मन से कहते हुए उस ने मोनू को बाहर भेज दिया.

सुरेश ने घड़ी देखी तो शाम के 4 बज रहे थे. सोचविचार कर उस ने कविता को उस के हाल पर छोड़ कर आगे बढ़ने का फैसला कर लिया. उस ने 4 लाइनों का पत्र लिखा, ‘मैं ने तुम्हारा असली चेहरा देख लिया है. तुम्हारे खून से हाथ रंग कर मुझे क्या मिलेगा? मुझे यह भी नहीं पता कि मोनू मेरा बेटा है या किसी और का? लेकिन तुम्हें अब कोई सफाई देने की जरूरत नहीं है. क्योंकि मैं तुम्हें अपनी जिंदगी से निकाल कर खुली हवा में सांस लेना चाहता हूं’

सुरेश ने अपना बैग उठाया और वापस लौट गया. कभी वापस न लौटने के लिए. उस दिन से सुरेश कविता की जिंदगी से निकल गया और उस की जगह दरजनों मर्द आ गए. कविता को सुरेश के जाने का कोई गम नहीं हुआ. उस ने चैन की सांस ली. अब वह आजाद पंछी की तरह थी.

आजकल वह जिस आखिलेंद्र से पेंच लड़ा रही थी, वह व्यवसायी था और उस का पूरा परिवार लंदन में रहता था. वहां भी उन का बड़ा बिजनैस था. परिवार के कुछ लोग जरूर लखनऊ में पुश्तैनी घर में रहते थे. अखिलेंद्र उन से चोरीछिपे कविता के पास जाता था. उस के रहते उसे सुरेश की कोई चिंता नहीं थी.

धीरेधीरे कविता ने गोमतीनगर जैसे महंगे इलाके में घर ले लिया और कार भी. उस ने ड्राइविंग भी सीख ली. अखिलेंद्र चूंकि कभीकभी ही आता था और उस का लंदन आनाजाना भी लगा रहता था, इसलिए कविता ने कुछ और चाहने वाले ढूंढ लिए थे. स्कूल में वह प्रधानाध्यापक नवलकिशोर के सामने अपने सिंगल पैरेंट्स होने का रोना रोती रहती थी. कितनी ही बार वह आधे दिन की छुट्टी ले कर स्कूल से निकल जाती थी. तब तक मोनू 10 साल का हो गया था.

उस दिन कविता ने बेटे की बीमारी का रोना रो कर नवलकिशोर को 2 दिनों की आकस्मिक छुट्टी की अरजी दी थी. लेकिन अचानक ही उन्होंने उस के बेटे को देखने की इच्छा जाहिर करते हुए उस के घर चलने की इच्छा जाहिर कर दी. कविता किस मुंह से मना करती. उस ने हां कर दी. नवलकिशोर की नजर काफी दिनों से कविता पर जमी थी. वह उन्मुक्त पक्षी जैसी लगती थी, इसीलिए वह उस की हकीकत जानने को उत्सुक थे.

नवलकिशोर कविता के घर पहुंचे तो मोनू स्कूल से आ कर जूते बस्ता और बोतल इधरउधर फेंक कर टीवी पर कार्टून नेटवर्क देख रहा था. मां के साथ एक अजनबी को आया देख कर वह चौंका. कविता ने जल्दबाजी में सामान समेटा और उसे खिलापिला कर खेलने के लिए बाहर भेज दिया. अब कमरे में कविता और नवलकिशोर ही रह गए थे.

कविता उठ कर गई और फ्रिज से कोल्डड्रिंक की बोतलें और स्नैक्स ले आई. नवलकिशोर यह सब देख कर हैरान रह गए. बहरहाल दोनों साथसाथ खानेपीने लगे. जल्दी ही यह स्थिति आ गई कि दोनों ने ड्राइंगरूम की पूरी दूरी नाप ली. एक बार शुरुआत हुई तो सिलसिला चल निकला. स्कूल में भी कविता की पदवी बढ़ गई.

यह सब करीब एक साल तक चला. किसी तरह इस बात की भनक नवलकिशोर की पत्नी सुनीता को लग गई. वह तेज औरत थी. शोरशराबा मचाने के बजाए उस ने चोरीछिपे पति पर नजर रखनी शुरू कर दी. नतीजा यह निकला कि एक दिन वह सीधे कविता के घर जा पहुंची और दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया.

उस दिन जो कहासुनी हुई, उस में कविता की पड़ोसन ने कविता का साथ दिया. उस का कहना था कि कविता शरीफ औरत है. नवलकिशोर उस के अकेलेपन का फायदा उठाने के लिए वहां आता था.

इस का नतीजा यह निकला कि उस दिन के बाद नवलकिशोर का कविता के घर आनाजाना बंद हो गया. कविता और उस की पड़ोसन एक ही थैली के चट्टेबट्टे थे. जल्द ही दोनों ने मिल कर नया अड्डा ढूंढ लिया. सीतापुर रोड पर एक फार्महाउस था. दोनों अपने खास लोगों के साथ बारीबारी से वहां जाने लगीं. एक जाती तो दूसरी दोनों के बच्चों को संभालती.

कालोनी में कोई भी दोनों पर ज्यादा ध्यान नहीं देता था. समय गुजरता गया. गुजरते समय के साथ मोनू यानी मुकुल 20 साल का हो गया. कविता भी अब 40 पार कर चुकी थी. मुकुल का मन पढ़ाई में कम और कालेज की नेतागिरी में ज्यादा लगता था. धीरेधीरे उस का उठनाबैठना बड़े नेताओं के चमचों के साथ होने लगा. उन लोगों ने उसे उकसाया, ‘‘तुम कालेज का चुनाव जीत कर दिखा दो, हम तुम्हें पार्टी में कोई न कोई जिम्मेदारी दिला देंगे. फिर बैठेबैठे चांदी काटना.’’

अब उस के पुराने आशिकों ने आना कम कर दिया था. एक अखिलेंद्र ही ऐसा था, जो अभी तक उस की जरूरतों को पूरा कर रहा था. लेकिन वह भी अब कम ही आता था. फोन पर जरूर बराबर बातें करता रहता था. अलबत्ता इस बात की कोई गारंटी नहीं थी कि वह कब तक साथ निभाएगा.

इस बीच कविता की सहेली सुनीता अपनी दोनों बेटियों को ले कर मुंबई शिफ्ट हो गई थी. वह अपनी बेटियों को मौडलिंग के क्षेत्र में उतारना चाहती थी. उस ने अपना मकान 75 लाख में बेच दिया था.

जो परिवार कविता का पड़ौसी बन कर सुनीता के मकान में आया, उस में मुकुल का ही हमउम्र लड़का सौम्य और उस से एक साल छोटी बेटी सांभवी थी. परिवार के मुखिया सूरज बेहद व्यवहारकुशल थे. उन की पत्नी सरला भी बहुत सौम्य स्वभाव की थीं. पतिपत्नी में तालमेल भी खूब बैठता था. सूरज सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर तैनात थे.

पतिपत्नी ने अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दी थी. उन के घर रिश्तेदारों, मित्रों और परिचितों का आनाजाना लगा रहता था. सरला सब की आवभगत करती थी. अब उस घर में खूब रौनक रहने लगी थी. घर में खूब ठहाके गूंजते थे.

कविता कभीकभी मन ही मन अपनी तुलना सरला से करती तो उसे अपने हाथ खाली और जिंदगी सुनसान नजर आती. उसे लगता कि वह जिंदगी भर अंधी दौड़ में दौड़ती रही, लेकिन मिला क्या? सुरेश के साथ रहती तो बेटे को भी पिता का साया मिल जाता और उस की जिंदगी भी आराम से कट जाती.

वह सोचती कितना अभागा है मुकुल, जो पिता के संसार में होते हुए भी उस से दूर है. यह तक नहीं जानता कि उस के पिता कौन हैं और कहां हैं? वह तो सब से यही कहती आई थी कि मुकुल के पिता हमें छोड़ कर विदेश चले गऐ हैं और वहीं बस गए हैं. वह अखिलेंद्र को ही मुकुल का पिता साबित करने की कोशिश करती, क्योंकि वह ज्यादातर विदेश में ही रहता था और साल में एकदो बार आया करता था.

कालोनी में किसी को भी कविता का सच मालूम नहीं था. कोई जानना भी नहीं चाहता था. देखतेदेखते 2 साल और बीत गए. पड़ोसन की बिटिया की शादी थी. तमाम मेहमान आए हुए थे. सरला विशेष आग्रह कर के कविता को सभी रस्मों में शामिल होने का निमंत्रण दे गई. कविता इस बात को ले कर बेचैन थी. वह खुद को सब के बीच जाने लायक नहीं समझ रही थी. इसलिए चुपचाप लेटी रही.

अखिलेंद्र विदेश से आ रहा था. एयरपोर्ट से उसे सीधे उसी के घर आना था. मुकुल उसे लेने एयरपोर्ट गया हुआ था.

पड़ोस में मंगल गीत गाए जा रहे थे, बड़े ही हृदयस्पर्शी. सुन कर कविता की आंखें भर आईं. उस की शादी भी भला कोई शादी थी. सच तो यह था कि शादी के नाम पर उसे उस की गलतियों की सजा सुनाई गई थी. जिस सुरेश को कभी वह मोतीचूर का लड्डू समझ रही थी, उस के हिसाब से वह गुड़ की ढेली भर नहीं निकला था.

‘‘मां कहां हो तुम, देखो हम आ गए.’’ मुकुल की आवाज सुन कर वह चौंकी. मुकुल अखिलेंद्र को एयरपोर्ट से ले आया था. कैसा अभागा लड़का था यह, लोगों के सामने अखिलेंद्र को न पापा कह सकता था, न अंकल. हां, उस के समझाने पर घर में वह जरूर उन्हें पापा कह कर पुकार लेता था.

कविता अनायास आंखों में उतर आए आंसू पोंछ कर अखिलेंद्र के सामने आ बैठी. ऐसा पहली बार हुआ था, जब वह अखिलेंद्र को देख कर खुश नहीं हुई थी. अखिलेंद्र और कविता की उम्र में काफी बड़ा अंतर था. फिर भी सालों से साथ निभता रहा था.

‘‘क्या बात है, बीमार हो क्या कविता?’’ अखिलेंद्र ने पूछा तो कविता धीरे से बोली, ‘‘नहीं, बीमार तो नहीं हूं, टूट जरूर गई हूं भीतर से. ये झूठी दोहरी जिंदगी अब जी नहीं पा रही हूं. सोचती हूं, हम दोनों के संबंध भी कब तक चल पाएंगे.’’

‘‘हूं, तो ये बात है.’’ अखिलेंद्र ने गहरी सांस ली.

कविता अपनी धुन में कहे जा रही थी, ‘‘मैं भी औरतों के बीच बैठ कर मंगल गीत गाना चाहती हूं. अपने पति के बारे में दूसरी औरतों को बताना चाहती हूं. चाहती हूं कि कोई मेरे बेटे का मार्गदर्शन करे, उसे सही राह दिखाए. पर हम दोनों की किस्मत ही खोटी है.’’

‘‘और…?’’

‘‘एक दिन उस का भी घर बनेगा. कोई तो आएगी उस की जिंदगी में. फिर मैं रह जाऊंगी अकेली. क्या किस्मत है मेरी, लेकिन इस सब में दोष तो मेरा ही है.’’

तब तक मुकुल चाय बना लाया था. ट्रे से चाय के कप रख कर वह जाने लगा तो अखिलेंद्र ने उसे टोका, ‘‘यहीं बैठो बेटा, तुम्हारी मां और तुम से कुछ बातें करनी हैं. पहले मेरी बात सुनो, फिर जवाब देना.’’

कविता और मुकुल चाय पीते हुए अखिलेंद्र के चेहरे को गौर से देखने लगे. अखिलेंद्र ने कहना शुरू किया, ‘‘मेरी पत्नी पिछले 15 सालों से कैंसर से जूझ रही थी. मैं उसे भी संभालता था, बिजनैस को भी और दोनों बच्चों को भी. भागमभाग की इस नीरस जिंदगी में कविता का साथ मिला. सुकून की तलाश में मैं यहां आने लगा. मेरी वजह से मुकुल के सिर से पिता का साया छिन गया और कविता का पति. मैं जब भी आता, मुझे तुम दोनों की आंखों में दरजनों सवाल तैरते नजर आते, जो लंदन तक मेरा पीछा नहीं छोड़ते. इसीलिए मैं बीचबीच में फोन कर के तुम लोगों के हालचाल लेता रहता था.’’

अखिलेंद्र चाय खत्म कर के प्याला एक ओर रखते हुए बोला, ‘‘6 महीने पहले मेरी पत्नी का देहांत हो गया. उस के बाद मैं ने धीरेधीरे सारा बिजनैस दोनों बेटों को सौंप दिया. दोनों की शादियां पहले ही हो गई थीं और दोनों अलगअलग रहते थे. धीरेधीरे उन का मेरे घर आनाजाना भी बंद हो गया. फिर एक दिन मैं ने उन्हें अपना फैसला सुना दिया, जिसे उन्होंने खुशीखुशी मान भी लिया.’’

‘‘कैसा फैसला?’’ कविता और मुकुल ने एक साथ पूछा.

‘‘यही कि मैं तुम से शादी कर के अब यहीं रहूंगा.’’ अखिलेंद्र ने कविता की ओर देख कर एक झटके में कह दिया.

मुकुल का मुंह खुला का खुला रह गया. उसे लगा कि मां के दोस्त के रूप में जो सोने का अंडा देने वाली मुर्गी थी, अब वह सिर पर आ बैठेगी. पक्की बात है कि अगर अखिलेंद्र घर में रहेगा तो मां को और मर्दों से नहीं मिलने देगा और उन लोगों से जो पैसा मिलता था, वह भी मिलना बंद हो जाएगा.

मुकुल को नेतागिरी में आड़ेटेढे़ हाथ आजमाने आ गए थे. वह रसोई से लंबे फल का चाकू उठा लाया और पीछे से अखिलेंद्र की गरदन पर जोरों से वार कर दिया. जरा सी देर में खून का फव्वारा फूट निकला और वह वहीं ढेर हो गया. कविता आंखें फाड़े देखती रह गई. जब उसे होश आया तो देखा, मुकुल लाश को उठा कर बाहर ले जा रहा था.

मुकुल ने पता नहीं ऐसा क्या किया कि वह तो बच गया, लेकिन कविता फंस गई. पुलिस ने मुकुल से पूछताछ की और घर की तलाशी भी ली, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. मुकुल के प्रयासों से 4-5 महीने बाद कविता को जमानत मिल गई. कविता और मुकुल फिर से एक छत के नीचे रहने लगे, लेकिन दोनों ही एकदूसरे को दोषी मानते रहे?

Health Tips: क्या आप भी खाली पेट खाते हैं ये चीजें, तो जान लें इससे होने वाले नुकसान

अक्‍सर कई खाद्य पदार्थों के बारे में कहा जाता है कि वो आपके स्‍वास्‍थय के लिए काफी लाभदायक हैं, पर इसके बावजूद उनका सेवन आपको नुकसान पहुंचा देता है. कई बार स्वास्थय के लिए फायदमंद चीजें भी गलत समय पर खाने से सेहत पर इसका उल्टा असर हो जाता है.  कई खाद्य पदार्थ अगर खाली पेट लिए जायें तो वे बेहद नुकसानदेह हो सकते हैं. यहां हम आपको बता रहें हैं कि खाली पेट किन खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए.

1. सोडा

सोडा में उच्च मात्रा में कार्बोनेट एसिड पाया जाता है. जब यह पेट में मौजूद अम्ल के साथ मिलता है तो पेट दर्द जैसी कई परेशानियों को जन्म देता है.

2. केला

खाली पेट केला खाने से शरीर में मैग्नीशियम की मात्रा काफी बढ़ जाती है जिसकी वजह से शरीर में कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्रा में असंतुलन हो जाता है. इसलिए सुबह खाली पेट केला न खाएं.

3. टमाटर

कच्चे टमाटर खाने के कई फायदे होते हैं लेकिन खाली पेट कच्चे टमाटर खाना नुकसानदायक हो सकता है. टमाटर में मौजूद अम्लीयता पेट में उपस्थित गैस्ट्रोइंटस्टानइल एसिड के साथ क्रिया करके एक ऐसा जेल बनाता है जो पेट दर्द, ऐंठन जैसी समस्याओं का कारण बनता है. खाली पेट टमाटर खाने से पथरी होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

4. दवाइयां

आपने अक्सर डाक्टर को ये कहते सुना होगा कि कुछ खाने के बाद ही दवाइयां लेना. हमारे घरों में भी हमें यही बताया जाता है कि कोई भी दवा खाली पेट नहीं लेनी चाहिए. इसकी मुख्य वजह ये है कि खाली पेट दवा लेने से वह पेट की सबसे अंदरुनी सतह को प्रभावित करती है और पेट में मौजूद एसिड्स के साथ क्रिया करके शरीर के संतुलन को डिस्टर्ब कर देती है.

5. अल्कोहल

कई लोगों को खाली पेट अल्कोहल लेना पसंद होता है. ऐसे में नशा जल्दी होता है, लेकिन खाली पेट अल्कोहल लेने से आंतें बुरी तरह प्रभावित होती हैं.

6. चीनी

सुबह उठकर या फिर खाली पेट आप किसी मीठी चीज को खाते-पीते हैं तो यह आपके शरीर में डायबिटीज को बढ़ने का खतरा ज्यादा हो जाता है. इसलिए जरूरी है कि खाली पेट पहले पानी पिएं फिर कोई चीज खाएं.

7. मसालेदार खाना

ज्यादातर लोगों को मसालेदार और चटपटा खाना पसंद होता है लेकिन ऐसी चीजों को कभी भी खाली पेट नहीं लेना चाहिए. हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से कुछ एसिड मौजूद होते हैं. बहुत अधिक मसालेदार खाना खाने से इस एसिड और मसालों के बीच जो रासायनिक क्रिया होती है, उसका आंतों पर बुरा असर पड़ता है.

8. कौफी

खाली पेट कौफी का सेवन करना नुकसानदायक हो सकता है. कौफी में मौजूद कैफीन पेट के लिए सही नहीं होता है. अगर आपको सुबह के समय कौफी पीने की आदत है तो आप पहले एक गिलास पानी पी लें. उसके बाद ही कौफी का कप लें.

9. चाय

इसी तरह चाय का सेवन भी खाली पेट नहीं करना चाहिए. खाली पेट चाय पीने से गैस और कब्ज होने की आशंका बढ़ जाती है.

शादी के बाद संयुक्त परिवार में रहने से मुझे प्रौब्लम हो रही है?

सवाल

मैं 29 वर्षीय विवाहिता हूं. हमारा संयुक्त परिवार है. शादी से पहले ही हमें यह बता दिया गया था कि मुझे संयुक्त परिवार में रहना है. वैसे तो यहां किसी चीज की दिक्कत नहीं है पर ससुराल के अधिकतर लोग खुले विचारों के नहीं हैं, जबकि मैं काफी खुले विचार रखती हूं. इस वजह से मुझे कभीकभी उन की नाराजगी भी सहनी पड़ती है और खुलेपन की वजह से मेरी ननदें व जेठानियां मुझे अजीब नजरों से भी देखती हैं. पति को कहीं और फ्लैट लेने को नहीं कह सकती. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

घरपरिवार में कभीकभी कलह, वादविवाद, झगड़ा आम बात है. मगर परिवार फेसबुक अथवा व्हाट्सऐप की तरह नहीं है जिस में आप ने सैकड़ों लोगों को जोड़ कर तो रखा है, मगर आप को कोई पसंद नहीं है तो आप उसे एक ही क्लिक में एक झटके में बाहर कर दें.

इस बात की कतई परवाह न करें कि परिवार के कुछ सदस्य आप को किन नजरों से देखते हैं और कैसा व्यवहार करते हैं. अच्छा यही होगा कि अपनेआप को इस तरीके से व्यवस्थित करें कि आप हमेशा खूबसूरत इंसान बनी रहें. कोई कैसे देखता है यह उस पर है.

आजकल जहां ज्यादातर लोग एकल परिवारों में रहते हुए तमाम वर्जनाओं के दौर से गुजरते हैं,वहीं आज के समय में आप को संयुक्त परिवार में रहने का मौका मिला है, जिस में अगर थोड़ी सी सूझबूझ दिखाई जाए तो आगे चल कर यह आप के लिए फायदेमंद ही साबित होगा.

बेहतर यही होगा कि छोटीछोटी बातों को नजरअंदाज करें और सब को साथ ले कर चलने की कोशिश करें. धीरेधीरे ही सही पर वक्त पर घर के लोग आप को हर स्थिति में स्वीकार कर लेंगे और आप सभी की चहेती बन जाएंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

दिल पे न जोर कोई

रीमा जल्दी से जूस दे दो, बहुत थकान हो रही है, आशीष ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा.

‘‘हां, अभी लाई,’’ कह रीमा रसोई में चली गई.

यह आशीष का रोज का काम था. अगले दिन आशीष बोला, ‘‘सुनो रीमा, मेरा कालेज का दोस्त मनीष अपने अपार्टमैंट में शिफ्ट हो गया है… वही जिस के बेटे के जन्मदिन पर हम गए नहीं थे… आज मिला, जब मैं जिम से आ रहा था. वह तो झल्ला सा है, लेकिन उस की बीवी गजब की खूबसूरत है, आशीष बोला.

‘‘हमें क्या वह जाने और उस की बीवी,’’ रीमा बोली.

‘‘तुम जल्दी से नहा लो मैं नाश्ता तैयार करती हूं.’’

रीमा नोट कर रही थी कि आजकल आशीष जिम में ज्यादा देर लगा रहा है. अत: एक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है देर कैसे हो गई? आज क्या खास बात है… जिम से पसीनापसीना हो कर आए, फिर भी चेहरे पर अलग ही खुशी झलक रही है? रोज की तरह अपनी थकान का रोना नहीं?’’ रीमा ने चुटकी लेते हुए आशीष से कहा.

‘‘क्या मैं रोज थकान का रोना रोता हूं?

अरे अपनेआप को फिट रखना क्या इतना आसान है? कभी जिम जा कर देख आओ कि अपनेआप को मैंटेन करने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है. लो हो गए शुरू…. मेरी तरह 2 बच्चे पैदा करो पहले, फिर फिटनैस की बात करो मुझ से,’’ रीमा ने कहा.

‘‘पर आज तुम देर से आए… कोई खास बात?’’

‘‘नहीं कुछ खास नहीं,’’ आशीष बोला.

‘‘अरे वह मेरे दोस्त की पत्नी जिया जिम आती है आजकल, तो बस बातों में टाइम लग गया. क्या ऐक्सरसाइज करती है. तभी इतनी फिट है… कोई उस की उम्र का अंदाजा भी नहीं लगा सकता,’’ कह आशीष नहाने चला गया.

रीमा को आशीष के इरादे नेक न लगे. अब यह रोज का काम हो गया था.

आशीष रोज अपनी बेटी को स्कूल बस में छोड़ने जाता. उधर से जिया अपने बेटे को ले कर आती. दोनों बातें करते और देर हो जाती. कभी आशीष स्विमिंग पूल जाता तो जिया वहां मिल जाती… जब रीमा उन्हें आते बालकनी से देखती तो कुढ़ जाती.

कुछ दिन पहले अपार्टमैंट में न्यू ईयर पार्टी थी. दोनों दोस्त अपने परिवारों के साथ पार्टी हौल में आए. जिया को देख आशीष के चेहरे की मुसकराहट दोगुनी हो गई और रीमा उन्हें देख कर अपनी सहेलियों की तरफ बढ़ने लगी. ये मेरी सब से अच्छी सहेलियां हैं. हम इन्हीं के साथ रहेंगे. तुम्हारा दोस्त तो झल्ला सा है पर ये लोग तो बहुत अच्छी हैं.’’

आशीष बोला, ‘‘बस दोस्त ही झल्ला है, जिया को देखो… आज भी कितनी सुंदर ड्रैस पहन कर आई है. पूरी फिगर निखर कर आ रही है और उस लंगूर को देखो… वही कपड़े जो औफिस में पहन कर जाता है.’’

रीमा आशीष को वहां से खींच कर ले गई. आशीष था तो रीमा के साथ, लेकिन नजरें जिया पर ही टिकी थीं. जिया भी आशीष की प्लैंजेंट पर्सनैलिटी से बहुत प्रभावित थी सो जब आशीष उसे देखता तो मुसकरा देती. उस का अपना पति तो किसी चीज का शौकीन नहीं था. उसे तो पार्टी में भी खींच कर लाना पड़ता. न तो वह कपड़े ढंग से पहनता न ही जूते. जबकि जिया हर वक्त मौसम के हिसाब से बनीठनी रहती. तभी तो आशीष मनीष के लिए लंगूर के हाथ में अंगूर बोलता.

एक दिन आशीष ने मनीष की फैमिली को डिनर पर बुलाया. रीमा कहने लगी,

‘‘जब तुम्हें अपना दोस्त पसंद ही नहीं तो क्यों बुलाते हो उसे?’’

आशीष बोला, ‘‘अच्छा नहीं लगता… इतने दिन हुए यहां आए उन्हें… हम ने एक बार भी अपने घर नहीं बुलाया?’’

‘‘तो उन्होंने कौन सा बुलाया?’’ रीमा चिढ़ कर बोली.

संडे को जिया पूरे परिवार के साथ आशीष के घर थी. जब आशीष ने उस से औैर बातें कीं तो वह उस के नौलेज को देखता ही रह गया. उसे मन ही मन लगने लगा कि कहां मनीष कहां जिया. उस ने जिया की बहुत तारीफ  की. रीमा को यह सब फूटी आंख नहीं सुहा रहा था.

मनीष का परिवार खाना खा कर चला गया. उन के जाने के बाद आशीष बोला, ‘‘जिया ने अपने बच्चों की परवरिश बहुत सही तरीके से की है. कितने सलीके से बात करते हैं और पढ़ाई में भी अच्छे हैं.’’

‘‘तो हमारे कौन से कम हैं?’’ रीमा का जवाब सुन आशीष ने चुप्पी लगा ली.

अब आशीष के घर अकसर जिया की बात होती जो रीमा को जरा भी न सुहाती. उसे ऐसा लगता जैसे आशीष के दिलोदिमाग में जिया रचबस गई है.

उधर जिया भी मनीष से अकसर आशीष की ही बातें करती. कहती, कितना शौकीन है तुम्हारा दोस्त आशीष. हर वक्त हंसीठहाके लगाता रहता है… सोसायटी के कार्यक्रमों में भी कितना आगे रहता है… हर प्रोग्राम में उस का नाम अनाउंस होता है, स्पोर्ट्स में, कल्चरल्स में.

शायद जिया और आशीष एकदूसरे को मन ही मन चाहने लगे थे. इसीलिए दोनों अपनेअपने परिवार में एकदूसरे की बात किया करते. मनीष का तो इस तरफ ध्यान नहीं पड़ा क्योंकि वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहता, लेकिन रीमा मन ही मन जिया से जलने लगी थी. यहां तक कि अपने बच्चों से भी कहती कि जिया के बच्चों के साथ न खेलें.

जिया के बच्चे जब उन से खेलने को कहते तो रीमा की बेटी कहती, ‘‘नहीं मम्मी डांटेंगी.’’ जब यह बात जिया को पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा.

एक दिन स्कूल बस जल्दी आ गई और जिया व आशीष दोनों के बच्चों की बस छूट गई. आशीष बोला, ‘‘मैं कार से ड्रौप कर आता हूं.’’

‘‘ओके,’’ जिया बोली लेकिन जिया का बेटा नए अंकल के साथ जाने को तैयार नहीं. अत: जिया भी उस के साथ कार में पीछे की सीट पर बैठ गई.

आशीष ने कहा,‘‘ जिया, यू कैन कम टू फ्रंट सीट.’’

‘‘आई डौंट माइंड,’’ जिया ने कहा और कार की अगली सीट पर आ कर बैठ गई.

रीमा की सहेली ने जब यह बात रीमा को बताई तो उस के तो जैसे होश उड़ गए. अत: अगले दिन वह आशीष से बोली, ‘‘बच्चों को स्कूल बस तक मैं ही छोड़ जाऊंगी. तुम्हें वहां बहुत समय लग जाता है.’’

आशीष को कुछ समझ न आया कि रीमा क्या कहना चाहती है. लेकिन जब वह बस स्टौप पर गई तो उसे जिया फूटी आंख न सुहाई. दूसरी सहेलियों के साथ खड़ी बातों ही बातों में वह जिया को ताने मारने लगीं. जिया को भी समझते देर न लगी. लेकिन क्या करती. पहले दिन वही तो उस के पति के साथ कार की आगे की सीट पर बैठ कर गई थी. वह चुपचाप अपने बेटे को बस में बैठा कर वहां से चली गई.

रीमा जब लौट कर आई तो देखा आशीष बालकनी में खड़ा जिया से जोरजोर से बातें कर रहा था.

रीमा जिया के पास पहुंच कर बोली, ‘‘जिया के घर में ही आ जाओ न… ऐसे जोरजोर से बातें करना अच्छा नहीं लगता न.’’

कहने को तो रीमा घर आने का आग्रह कर रही थी, लेकिन उस के चेहरे की कुटिल मुसकान देख जिया समझ गई थी कि रीमा क्या कहना चाह रही है. अत: वह वहां से चुपचाप चल दी. पीछे मुड़ कर देखा तो आशीष बालकनी से उसे हाथ हिला कर बायबाय कर रहा था.

घर आ कर जिया बहुत उदास थी. मन ही मन सोच रही थी कि रीमा की गलती भी तो नहीं… आखिर उस का पति है आशीष… पर स्वयं भी क्या करे? बस बात ही तो कर रही थी उस से… अगर उसे आशीष से बात करना अच्छा लगता है तो उस में बुराई भी क्या है? क्या किसी के पति से बात करना गुनाह है? रीमा इतनी चिढ़ क्यों गई?

एक दिन जब आशीष औफिस चला गया तो जिया ने रीमा को इंटरकौम किया, ‘‘रीमा, इस रविवार तुम सपरिवार हमारे घर आओ, डिनर साथ ही करेंगे.

रीमा ने बहाना बनाते हुए कहा, ‘‘दरअसल, उस दिन के हमारे मूवी टिकट आए हैं. हम पिक्चर देखने जाएंगे, इसलिए नहीं आ पाएंगे.’’

‘‘ओके, नो प्रौब्लम… फिर कभी,’’ औैर इंटरकौम रख दिया.

शाम के समय जब जिया अपने बेटे के साथ स्विमिंग के लिए गई तो आशीष नीचे ही मिल गया. जिया ने पूछा, ‘‘गए नहीं मूवी के लिए?’’

आशीष बोला, ‘‘कौन सी मूवी?’’

जिया बोली, ‘‘रीमा ने कहा था कि तुम लोग आज मूवी देखने जा रहे हो.’’

आशीष को कुछ समझ न आया कि ऐसा क्यों बोला रीमा ने. लेकिन जिया सब समझ गई थी कि रीमा उसे पसंद नहीं करती. आशीष ने

घर आ कर रीमा से पूछा तो बोली, ‘‘हां कह दिया ऐसे ही… जब वह मुझे पसंद नहीं, तो क्यों दोस्ती बढ़ाऊं?’’

आशीष मन ही मन तड़प उठा कि यह जिया के लिए कितना इनसल्टिंग है? पर क्या करता.

अब रोज रीमा ही बच्चों को स्कूल बस तक छोड़ने जाती. जिया आशीष से मिलने को तरस गई थी. कभी नीचे मिलती तो रीमा की घूरती नजरें देख वह बात न कर पाती. बस अपना रास्ता बदल लेती. आखिर रीमा आशीष की पत्नी है, सो आशीष पर हक तो उसी का है. अब जिया को आशीष को देखे बगैर चैन न मिलता. रीमा को जब भी मौका मिलता जिया को ताना मार ही देती. एक बार तो किट्टी पार्टी में जब सब महिलाएं बोलीं कि बच्चों को संभालने में ही सारा वक्त बीत जाता है. तो रीमा ने जिया की तरफ आंखें मटकाते हुए कहा, ‘‘बच्चों को ही नहीं पति को भी तो संभालना पड़ता है… बहुत शूर्पणखा हैं यहां जो डोरे डालने आ जाती हैं.’’

अपने लिए शूर्पणखा शब्द सुन जिया को बहुत बुरा लगा. उस की आंखें भर आईं. लेकिन दिल से मजबूर थी. सो पलट कर कुछ न बोली. आखिर रीमा पत्नी का हक रखती है. इसीलिए बोल रही है. फिर क्या पता उस के दिल में बसी यह चाहत एकतरफा हो… पता नहीं आशीष उसे चाहता भी है या नहीं? फिर मन ही मन सोचने लगी काश, मुझे आशीष जैसा पति मिला होता तो शायद यह न होता. कहने को तो मनीष बहुत ठीक है, लेकिन इतना पढ़ाकू , कैरियर कौंशस, न ही कोई शौक न इच्छाएं. पर उस में मनीष का दोष भी तो नहीं. सब देखभाल कर ही तो जिया ने इस विवाह के लिए हामी भरी थी. मनीष तो घर के लिए अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह निभा ही रहा है. बस उस का ही दिल है कि न जाने क्यों आशीष की तरफ खिंचा जाता है.

अब जिम ही बस एकमात्र ठिकाना था जहां दोनों मिल सकते थे. सो वहीं थोड़ी देर मिल कर बात कर लेते. लेकिन कहते हैं न इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते सो जिम में आसपास वर्कआउट करते लोग उन्हें बातें करते चोर नजरों से देखते और कभीकभी तो कोई टौंट भी मार देते.

अब जिया को लगने लगा कि पानी सिर से ऊपर जा रहा है. अत: उस ने अपने जिम का टाइम चेंज करा लिया. आशीष से बात न करने की ठान ली.

कई दिन जब जिया दिखाई न दी तो आशीष अनमना सा हो गया. फिर एक दिन अपने दोस्त से मिलने के बहाने जिया के घर चला गया. घर में जिया अकेली थी. आशीष ने जिया से अपने दिल की बात कह डाली. सुन कर जिया खिल उठी. अब दोनों ने तय किया कि अपार्टमैंट के बाहर मिला करेंगे. रीमा ने अपार्टमैंट की सभी महिलाओं को भी बता दिया था कि जिया कैसे उस के पति पर डोरे डाल रही है. अत: सभी महिलाओं ने उस से दूरी बना ली थी.

एक दिन आशीष औफिस से जल्दी निकल गया और फिर जिया को फोन कर पास ही की कौफी शौप में बुला लिया. जिया भी झट से बनठन कर उस से मिलने चली आई. कहने को तो कौफी शौप खचाखच भरा था, लेकिन उन दोनों के लिए तो जैसे पूरा एकांत था. दोनों आंखों में आंखें डाले मुसकरा कर बातें कर रहे थे कि तभी जिया की नजर रीमा की सहेली पर पड़ी.

वह वहां अपने पति के साथ आई थी. दोनों को साथ देख कर बोली, ‘‘हैलो, आप दोनों यहां?

नो प्रौब्लम ऐंजौय. ऐंजौय पर उस ने जो जोर डाला जिया समझ गई कि टौंट मार कर गई है. आशीष और जिया भी शीघ्र ही अपने घर रवाना हो गए. अगले दिन बच्चों को स्कूल बस में छोड़ने बस स्टौप पर जिया नहीं गईर् और मनीष को भेजा. वह जानती थी कि आज रीमा उसे नहीं छोड़ने वाली. मनीष जब घर आए तो कुछ उखड़े हुए दिखाई दिए.

जिया ने पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘रीमा तुम्हारी शिकायत कर रही थी. सब लोगों के सामने मुझे बहुत बुराभला कहा.’’

जिया के तो मानो पैरों तले की जमीन खिसक गई हो. झट से नहाने का बहाना कर बाथरूम में चली गई. क्या करती बेचारी. एक तरफ पति तो दूसरी तरफ प्यार. वहीं खड़े कुछ आंसू बहा आई.

उस दिन मनीष दफ्तर नहीं गया. बोला, ‘‘ हम घर बदल लेते हैं जिया.’’

अगले ही महीने वे नए अपार्टमैंट में शिफ्ट हो गए. इतना ही नहीं मनीष ने दूसरे शहर में ट्रांसफर के लिए दफ्तर में रिक्वैस्ट भी दे दी. शहर तो बदल गया, लेकिन जिया के मन में आशीष की याद सदा के लिए रह गई. कोशिश करती कि भूल जाए, किंतु भुलाए न भूलती. दिल के हाथों मजबूर थी. उस ने तो सोचा भी न था कि कभी प्यार इतने दबे कदमों आएगा और उस के दिल पर सदा के लिए अपना राज कर लेगा.  बरस बीते, किंतु चंद लमहे जो आशीष के साथ बिताए थे, उस के मन को तरोताजा कर जाते. वह मुसकरा उठती और मन ही मन कहती दिल पे न जोर कोई.

घर-औफिस के टाइम मैनेजमेंट के लिए वुमन की बेस्ट एक्सेसरीज है Smart Watches

वुमन की सबसे बेस्ट एक्सैसरीज है Smart Watch. यह वुमन को फैमिली और फ्रेंड्स के साथ जुड़ा रखता है लेकिन इसके साथ ही यह आपको दुनियाभर की जानकारियों और खबरों से कनैक्ट करता है. फिटनेस फ्रीक वुमन के लिए यह तो और भी जरूरी हो गया है, वह दिन में कितना वौक है, उससे कितनी कैलोरी बर्न हुई यह सारी जानकारी उसकी मुट्ठी में होती है, कोई ऐसी स्मार्टवाच जो आपके पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ से मैच करता हो, आपकी बेस्ट फ्रेंड हो सकती है, हो सकता है यहां दिए गए वौच में से एक आपके लिए सही मैच साबित हो.

कैजुअल वियर स्मार्टवॉच नौन-वर्किंग वुमन के लिए

Redmi Watch 3 Active एक स्मार्टवॉच है जो डेली यूज के लिए डिजाइन की गई है। इसमें कई फीचर्स हैं जो इसे वुमन के लिए खास एक्सेसरी बनाते हैं। Redmi Watch 3 Active आपको नोटिफिकेशन्स देती रहेगी, इसमें म्यूजिक को कंट्रोल कर सकते हैं. इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि यह हैल्थ मौनिटर कर सकता है. आपकी नींद, हार्टरेट और ब्लड ऑक्सीजन लेवल्स को मॉनिटर कर सकते हैं. इस वॉच में एक कस्टमाइज्ड फेस और SOS फंक्शन है जो आपातकालीन स्थिति में आपके परिवार को अलर्ट भेजता है. इसकी वाटर रेजिस्टेंट क्वालिटी भी इसको वुमन फ्रेंडली बनाती है क्योंकि महिलाएं घर में पानी से जुड़े काम करती हैं इसलिए गलती से भी वॉच पानी के संपर्क में आता है तो खराब नहीं होगा.

पार्टी वियर स्मार्टवॉच की है बहुत डिमांड

Wachet की ओर से लौंच की गई Generic Smartwatch एक बजट-फ्रेंडली स्मार्टवॉच है जो कई फीचर्स ऑफर करती है. यह वॉच आपको नोटिफिकेशन्स, म्यूजिक को कंट्रोल करने और नींद, हार्ट रेट और ब्लड ऑक्सीजन लेवल्स को मॉनिटर करने की सुविधा देती है। इसमें एक टचस्क्रीन डिस्प्ले, कस्टमाइज्ड वॉच फेस और IP67 वॉटर रेसिस्टेंस है।
इसके अलावा रिमाइंडर्स जैसी खास सुविधा वर्किंग वुमन के लिए बहुत मायने रखती है क्योंकि महिलाओं को औफिस की मीटिंग, बच्चों की पीटीएम का डेट, हसबैंड की दवाइयों का समय, पैरेंट्स को डौक्टर के पास ले जाने जैसी कई चीजें याद रखनी पड़ती है, जिसे वह रिमाइंडर की मदद से याद रख सकती हैं. अलार्म सैटिंग्स और एक बिल्ट-इन पेडोमीटर के साथ, यह वॉच उन लोगों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है जो एक बेसिक स्मार्टवॉच की तलाश में हैं। एंड्रॉइड और iOS डिवाइसेस के साथ कंपेटिबल, Wachet द्वारा Generic Smartwatch अपने प्राइस के लिए बेहतरीन वैल्यू ऑफर करती है।

कैजुअल वियर स्मार्टवॉच को हल्के में न लें

Boat Lunar Peak एक फीचर-पैक्ड स्मार्टवॉच है जो एक्टिव वुमन के लिए डिजाइन की गई है। इसकी डिजाइन काफी स्लीक हैं और फीचर्स बेहद स्मार्ट. जो इसे फिटनेस फ्रीक्स का बेस्ट फ्रैंड बनाते हैं। Boat Lunar Peak के साथ, आप अपने हार्ट रेट, ब्लड ऑक्सीजन लेवल्स और नींद को ट्रैक कर सकते हैं। इसमें बिल्ट-इन GPS भी है, और आप अपने रन, हाइक और अन्य आउटडोर एक्टिविटीज को सटीकता से ट्रैक कर सकते हैं। इसके अलावा, वॉच स्मार्ट नोटिफिकेशन्स, म्यूजिक कंट्रोल और एक कस्टमाइज्ड वॉच फेस ऑफर करती है। 7 दिनों तक की बैटरी लाइफ और वॉटर रेसिस्टेंस के साथ, Boat Lunar Peak उन वुमन के लिए स्टाइलिश एक्सेसरी है जो फिटनेस और वेलनेस को प्राइयोरिटी देती हैं।

म्यूजिक की शौकीन वुमन के लिए स्मार्टवॉच

Vibez by Lifelong Ruby एक स्टाइलिश और फीचर-रिच स्मार्टवॉच है जो खास तौर से वर्किंग वुमन के लिए डिजाइन की गई है। अगर आपको औफिस जाने के लिए लंबी दूरी ट्रैवल करनी पड़ती है, तो यह आपकी तनहाई का दोस्त हो सकता है क्योंकि इसका म्यूजिक प्लेबैक को सीधे कलाई से कंट्रोल कर सकती हैं। स्मार्ट नोटिफिकेशन्स के अलावा हेल्थ और फिटनेस फीचर्स ऑफर करती है, जिसमें हार्ट रेट मॉनिटरिंग, स्लीप ट्रैकिंग और ब्लड ऑक्सीजन लेवल मॉनिटरिंग शामिल हैं। भाभी या बड़ी दीदी को गिफ्ट करने के लिए परफैक्ट है ताकि वह खाली समय में गाने सुने और अपनी हेल्थ को भी मौनिटर करती रहे

Snacks For Diabetics : ये इवनिंग स्नैक्स डायबिटीज में भी हैं फायदेमंद, जानें इसे कैसे बनाएं

डायबिटीज के मरीजों को खानपान का विशेष ख्याल रखना चाहिए. बढ़ते शुगर के कारण कुछ खाने से पहले कई बार सोचना पड़ता है. अक्सर शाम के नाश्ते की तलब होती है, लेकिन अगर आपका ब्लड शुगर बढ़ा हुआ है, तो खाने में परहेज करें. आज हम आपको इस आर्टिकल में डायबिटीज के मरीजों के लिए कुछ स्नैक्स के बारे में बताएंगे, जो आप खा सकते हैं.

भेलपुरी चाट

भेलपुरी चाट खाना हर किसी को पसंद होता है, डायबिटीज के मरीज भी इस टेस्टी नाश्ते का स्वाद ले सकते हैं. यह मुरमुरा, पापड़ी, प्याज, टमाटर, भुनी हुई चना दाल, धनिया पत्ती, नींबू का रस, सेव, इमली और पुदीने की चटनी मिक्स कर बनाई जाती हैं. आप इस चाट को घर पर आसानी से बना सकते हैं और चाय के साथ इसका लुत्फ उठा सकते हैं.

मूंगलेट

इसे पीली मूंग दाल से बनाया जाता है, इसमें प्याज़, शिमला मिर्च, मक्का और चुकंदर जैसी सब्जियां भी डाली जाती हैं. इसे बनाने के लिए पीली मूंग दाल का इस्तेमाल करके गाढ़ा और चिकना घोल तैयार करें और इसे पकाते समय कम मक्खन या तेल का इस्तेमाल करें.

घुगनी चाट

घुगनी चाट डायबिटीज के मरीजों के साथसाथ वेट लास करने वालों के लिए भी बढ़िया रेसिपी है. उबले हुए सफेद छोले से तैयार की गई घुगनी चाट में बिल्कुल भी तेल नहीं होता है. इसे स्वादिष्ट बनाने के लिए कटी हुई सब्जियां और मसाले डालें और इसे खाएं.

मूंग दाल की इडली

चावल की इडली के बजाय, आप हरी मूंग दाल की इडली को सब्जियों से भरकर खा सकते हैं. डायबिटीज के मरीजों के लिए मूंग दाल काफी फायदेमंद होता है. इससे ब्लड शुगर का स्तर नहीं बढ़ता है.

रोस्टेड मखाना

स्नैक्स के रूप में आप रोस्टेड मखाना भी खा सकते हैं, आप इसे घर पर आसानी से बना सकते हैं, कड़ाई में कम मात्रा में घी गर्म करें, इसमें मखाना डाल दें, साथ में नमक और काली मिर्च भी डालकर चलाएं, धीमी आंच पर लगातार चलाते रहें. जब मखाने क्रिस्पी हो जाए, तो गैस बंद कर दें.

‘खेत खेत में’ और ‘अतुल्य भारत की अमूल्य निधियां’ Doordarshan लाया है दो न्यू प्रोग्राम्स

दूरदर्शन दो नए प्रोग्राम खेत खेत में और अतुल्य भारत की अमूल्य निधियां ले कर आ रहा है.  ये कार्यक्रम 6 जुलाई से प्रत्येक शनिवार और रविवार को 12:30 PM प्रसारित हो रहा है.  इस कार्यक्रम का दोबारा प्रसारण उसी दिन रात्रि 11:00 PM बजे किया जा रहा है. 

खेत खेत में

 कार्यक्रम खेत खेत में फ्रेम्स प्रोडक्शन कंपनी के साथ साझीदारी में बना एक रियलिटी शो है.  यह प्रोग्राम कंटैस्टेंट के रूप में अनुभवी किसानों के साथ-साथ प्रतिभाशाली युथ को एक मंच दे रहा है, जिसमें कंटैस्टेंट को अनुभवी किसानों की ओर से दिए गए चैलेंजेज को पूरा करना होता है.   इस प्रोग्राम में कुल 10 कंटैस्टेंट शामिल होते हैं, जो चिलचिलाती धूप में भी अपनी कठिन मेहनत करते नजर आ रहे हैं. 

 इस कार्यक्रम में इंडियन एग्रीकल्चर के बदल रहे रूप को भी दिखाया जा रहा है. गरीबी और संघर्ष की सदियों पुरानी छवि से अलग यह शो, देश के मेहनती और काबिल किसानों की कामयाबी को बखूबी दर्शाया जा रहा है.  यह कार्यक्रम भारत के युवाओं की उस सोच को भी प्रस्तुत कर रहा है जो  कृषि को व्यावहारिक व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित करता है. ‘खेत खेत में’ प्रोग्राम को टेलीविजनऔर फिल्म इंडस्ट्री के फेमस एक्टर राजेश कुमार होस्ट कर रहे हैं. प्रोग्राम में एंटरटेनमेंट के साथसाथ कई नई चीजें देखने, सुनने और सीखने को मिल रही है.

अतुल्य भारत की अमूल्य निधियां

 

दूरदर्शन के पौपुलर चैनल डीडी नेशनल पर एक नया शो अतुल्य भारत की अमूल्य निधियां’’ भी टेलीकास्ट हो रही है. यह शो उन प्रोडक्ट्स पर केंद्रित है, जिन्हें भारत के विभिन्न राज्यों और स्थानों में  GI  यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिला है. इस शो में विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के विशषेज्ञ, किसान और उत्पादक शामिल होंगे, जो इन जीआई टैग वाले उत्पादों की जानकारी शेयर कर रहे हैं इस शो का उद्देश्य न केवल इन विशिष्ट उत्पादों की कहानी को दर्शाना है, बल्कि उन किसानों और कारीगरों की मेहनत और समर्पण को भी सम्मानित करना है, जिन्होंने इन उत्पादों को देश विदेश के कोनेकोने तक पहुंचाया हैअतुल्य भारत की अमूल्य निधियां” को  फेमस टेलीविजन एक्टर अमन वर्मा होस्ट के कर रहे हैं.   यह शो न सिर्फ दर्शकों का एंटरटैनमेंट कर रहा है, बल्कि उन्हें अपने देश की समृद्ध कृषि, हस्तशिल्प और खाद्य जैसी दूसरी विरासतों और उन अमूल्य निधियों से जोड़ने का भी काम कर रहा है, जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है.  

दूरदर्शन की नई पहल

दूरदर्शन, भारत सरकार की एक स्वायत्त सार्वजनिक सेवा प्रसारक है, जो प्रसार भारती के अहम प्रभागों में से एक है.  वर्षों से दूरदर्शन अपने दर्शकों को जागरुक करने और उनका मनोरंजन करने के उद्देश्य से विशिष्ठ कार्यक्रमों को प्रसारित करता आया है.  हमेशा की तरह प्रसार भारती ने आध्यात्मिक, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन के विभिन्न कार्यक्रमों के प्रसारण से लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास किया है.  ये दोनों नए प्रोग्राम्स के माध्यम से दूरदर्शन अपने इन्हीं उद्देश्यों को पूरा करेगा. ‘खेत खेत में’ और ‘अतुल्य भारत की अमूल्य निधियां’ को दूरदर्शन ने ‘फ्रेम और कॉम्फेड प्रोडक्शन’  के सहयोग से तैयार किया है।

 

 

 

Best Comedy Web Series : वीकेंड पर लगाएं खूब ठहाके, देखें ये बेस्ट कौमेडी वेब सीरिज

Best Comedy Web Series : हम सभी जानते हैं कि हंसना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है. डौक्टर भी सलाह देते हैं कि चाहे कोई भी बीमारी हो, इंसान को स्ट्रेस नहीं लेना चाहिए, टेंशन लेने से मुश्किलें और भी बढ़ती हैं. व्यक्ति को हमेशा खुश रहना चाहिए, लेकिन बदलती लाइफस्टाइल के कारण लोगों के पास हंसने के लिए भी टाइम नहीं है.

आप अपनी बिजी शेडयूल से खुद के लिए जरूर टाइम निकालें. अगर आप मेंटली स्ट्रौन्ग रहेंगे, तो आपका दिन भी अच्छा जाएगा और काम में मन भी लगेगा. वीकेंड भी शुरू हो चुका है, ऐसे में आप मारधाड़, लड़ाईझगड़े वाली सीरियल देखने के बजाय कौमेडी सीरियल देखकर एंजौय कर सकते हैं, जिससे आपका वीकेंड शानदार होगा और आप बहुत ही हल्का महसूस करेंगे.

इस वीकेंड पर देखें ये बेहतरीन कौमेडी वेब सीरिज

पिचर्स

टीवीएफ पर ‘पिचर्स’ वेब सीरिज आपको मिल जाएगी. इसके दो सीजन है, इस सीरिज की रेटिग भी 4 स्टार हैं. इस सीरिज में आपको इंडियन स्टार्टअप्स की शानदार कहानी देखने को मिलेगी. सीरीज की कहानी कुछ ऐसी है, जिससे आम आदमी जुड़ा हुआ महसूस करता है. इसमें चार दोस्तों की कहानी दिखाई गई है, आपको इसमें फुल कौमेडी भी देखने को मिलेगी.

मेट्रो पार्क

यह वेब सीरीज आपको एक गुजराती परिवार के जीवन से रूबरू कराएगी, जो विदेश में जाकर बस गए है. इसमें आपको कहानी, कौमेडी, रोमांस सबकुछ देखने को मिलेगा.

कोटा फैक्ट्री

जैसा कि आप जानते हैं, भारत में हजारों स्टूडेंट्स हैं, जो हर साल कोटा शहर में कम्पटिशन की तैयारी करने के लिए जाते हैं, ताकि देश के अच्छे कालेजों में उन्हें एडमिशन मिल सकें, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस शहर में वास्तव में क्या होता है? यहां की स्टूडेंट लाइफ किस तरह से प्रभावित होती है, इस बारे में जानने के लिए ये सीरीज जरूर देखें. आपको इस सीरिज से एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिलेगा.

परमानेंट रूममेट्स

मुकेश और तान्या एक कपल हैं, लेकिन उन्हें यकीन नहीं है कि वे एकदूसरे से शादी करना चाहते हैं या नहीं. इस कन्फ्यूजन में यह जोड़ा कई उतारचढ़ावों से गुजरता है. जो बहुत ही मजेदार और देखने लायक कौमेडी वेब सीरीज है. आपको यह भी बता दें कि यह इंडिया की पहली वेब सीरिज है, जो साल 2014 में रिलीज हुई थी. पहला सीजन हिट होने के बाद दूसरा सीजन साल 2016 में आया और तीसर सीजन 2023 में स्ट्रीम किया गया.

चाचा विधायक हैं हमारे

जाकिर खान की वेब सीरिज ‘चाचा विधायक हैं हमारे’ अमेजन प्राइम पर देख सकते हैं. आप इसे देखकर हंसी के ठहाके लगा सकते हैं. इस इस सीरिज के तीन सीजन अमेजन पर उपलब्ध हैं. इस सीरिज में आपको मजेदार ट्विस्ट देखने को मिलेंगे. इसमें आप रॉनी भैया की शानदार एक्टिंग आपका दिल जीत लेगी.

इंटरनेशनल कौमेडी वेब सीरिज

अगर आप इंडियन वेब सीरिज से बोर हो गए हैं, तो आप इंटरनेशनल कौमेडी वेब सीरिज भी देख सकते हैं. ‘सेक्स एजुकेशन’, मॉन्क, हैक्स, द ऑफिस, थैंकयू नेक्सट, यंग शेल्डन , द गेम, क्वीन ऑफ टीयर्स जैसे वेब सीरिज भी देखकर आप अपने वीकेंड को यादगार बना सकते हैं.

हंसने के फायदे जानकर चौंक जाएंगे आप

  • डिप्रेशन का खतरा होता है कम.
  • अच्छी नींद आती है.
  • इम्यून सिस्टम मजबूत होता है.
  • दिल की सेहत के लिए फायदेमंद.
  • कई गंभीर बीमारियों का खतरा टल जाता है.

Arbi Cutlet Recipe : मानसून में खाएं हेल्दी और स्वादिष्ट स्नैक्स, ट्राई करें ये कटलेट

Arbi Cutlet Recipe : रिमझिम बरसात के होते ही कुछ चटपटा, तीखा और स्वादिष्ट खाने का मन करने लगता है. पकौड़े,समोसे, चाट और कटलेट जैसी डिशेज मानसून में काफी पसंद की जाती हैं. बाहर इस मौसम में कुछ भी खाना हाइजीनिक नहीं होता इसलिए घर पर ही बनाने की कोशिश की जानी चाहिए. बारिश में अरबी बहुतायत से बाजार में मिलती है और अरबी से आमतौर पर विविध प्रकार की सब्जी बनाई जाती है. यह विटामिन, मिनरल्स, फाइबर से भरपूर कंद प्रजाति की एक सब्जी है जिसका प्रयोग भोजन में करना स्वास्थ्यप्रद रहता है. आज हम आपको अरबी से एक बहुत ही टेस्टी स्नैक्स बनाना बता रहे हैं जिसे आप आसानी से घर में उपलब्ध सामान से ही बना सकतीं हैं तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कितने लोगों के लिए 4

बनने में लगने वाला समय 30 मिनट

मील टाइप वेज

सामग्री

उबली अरबी 500 ग्राम
बारीक कटा प्याज 1
बारीक कटी हरी मिर्च 3
दरदरा कुटी मिंट लीव्स 1/2 कप
बारीक कटा अदरक 1 छोटी गांठ
किसा गोभी 1 कप
किसी गाजर 1 कप
कटी शिमला मिर्च 1
भुने चने का पाउडर 1/2 कप
काली मिर्च पाउडर 1/4 टीस्पून
नमक स्वादानुसार
लाल मिर्च पाउडर 1/4 टीस्पून
गरम मसाला 1/4 टीस्पून
अमचूर पाउडर 1/2 टीस्पून
ब्रेड क्रम्ब्स 1 कटोरी
मैदा 1 टेबलस्पून
तेल तलने के लिए

विधि

अरबी को अच्छी तरह मैश करके उसमें तेल, ब्रेड क्रम्ब्स और मैदा को छोड़कर अन्य सभी मसाले और सब्जियां डाल दें. इसे अच्छी तरह मिक्स करें ताकि सारी सामग्री एकसार हो जाये. तैयार मिश्रण से एक छोटी लोई लेकर मनचाहे आकार में कटलेट बना लें . मैदा को एक टीस्पून पानी मे घोलकर एक पतला पेस्ट तैयार करें और तैयार कटलेट को इसमें डुबोकर ब्रेड क्रम्ब्स में लपेट लें. इसी प्रकार सारे कटलेट तैयार कर लें.अब इन्हें गर्म तेल में मध्यम आंच पर सुनहरा होने तक शैलो फ्राई करके बटर पेपर पर निकाल लें. आयल फ्री अथवा जीरो आयल कबाब बनाने के लिए इन्हें माइक्रोवेब या एयर फ्रायर में 180 डिग्री पर 25 मिनट तक सेंकें. तैयार कबाब को हरी चटनी या टोमेटो सौस के साथ सर्व करें.

ब्रेन ट्यूमर का क्या उपचार है ?

सवाल

मेरे पति को ब्रेन ट्यूमर है. मैं जानना चाहती हूं कि इस के लिए कौन सा उपचार सब से बेहतर रहेगा?

जवाब

ब्रेन ट्यूमर का उपचार ट्यूमर के प्रकार, आकार और स्थिति पर निर्भर करता है. इस के साथ ही आप के संपूर्ण स्वास्थ्य और आप की प्राथमिकता का भी ध्यान रखा जाता है. अगर ट्यूमर ऐसे स्थान पर स्थित है जहां औपरेशन के द्वारा पहुंचना संभव है तो सर्जरी का विकल्प चुना जाता है. जब ट्यूमर मस्तिष्क के संवेदनशील भाग के पास स्थित होता है तो सर्जरी जोखिम भरी हो सकती है. इस स्थिति में सर्जरी के द्वारा उतना ट्यूमर निकाल दिया जाएगा जितना सुरक्षित होता है. अगर ट्यूमर के एक भाग को भी निकाल दिया जाए तो भी लक्षणों को कम करने में सहायता मिलती है. इस के अलावा ब्रेन ट्यूमर के उपचार के लिए आवश्यकतानुसार कीमोथेरैपी, रैडिएशन थेरैपी, टारगेट थेरैपी और रेडियोथेरैपी का इस्तेमाल भी किया जाता है.

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