अनिरुद्ध आचार्य ने ठुकरा दी करोड़ों की फीस, छवि खराब होने की वजह से शो में आने से किया इनकार

अनिरुद्धचार्या बाबा जो अपने प्रवचन और कथा वाचक, कहानियों को लेकर अतिचर्चित है . वह हाल ही में कलर्स चैनल के लाफ्टर शैफ शो में पधारे थे . वहां पर बाबा शो के प्रतियोगियों के साथ मजाक मस्ती करते नजर आए. चूंकि लाफ्टर शेफ एक खाना बनाने का कॉमेडी शो है जिसके चलते बाबा भी सभी के साथ मजाक करते नजर आए. लेकिन खबरों के अनुसार जब उन्हें बिग बौस शो में जाने का औफर मिला तो उन्होंने बिग बौस में जाने से इनकार कर दिया है.

प्राप्त सूत्रों के अनुसार अनिरुद्ध बाबा को बिग बौस 18 शो में बतौर प्रतियोगी आने का आफर मिला था . लेकिन इस शो में जाने से उन्होंने इनकार कर दिया. जिसकी वजह उनकी छवि खराब होने का डर ओर शो के दौरान होने वाली बेज्जती का डर बताया जा रहा है .

बिग बौस शो जिसमें आने वाले प्रतियोगी को नाम और पैसा दोनों तो बहुत मिलता है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा बदनामी और बेइज्जती सहन करनी पड़ती है. जिसकी वजह से इस शो में भाग लेने वाले कलाकार और अन्य प्रतियोगियों में से अगर किसी को अपार लोकप्रियता मिली है तो किसी प्रतियोगी को बेइंतहा बेज्जती के चलते करियर को लेकर भारी नुकसान भी उठाना पड़ा है और उनकी बदनामी भी बहुत हुई है.
खबरों के अनुसार क्योंकि अनिरुद्ध बाबा अपनी छवि खराब नहीं करना चाहते हैं और ना ही उन्हें बेज्जती सहना है . इसलिए उन्होंने इस शो में जाने से इनकार कर दिया है. हालांकि कलर्स चैनल की तरफ से औफीशियली ऐसा कोई अनाउंसमेंट नहीं हुआ था. लेकिन सूत्रों के अनुसार चैनल ने अनिरुद्ध बाबा को शो में आने का आमंत्रण दिया है.

इससे पहले भी कलर्स के बिग बौस 10 शो में स्वामी ओम बाबा पधारे थे. और उनको इस शो के दौरान भारी बेइज्जती का सामना करना पड़ा था. और उनकी छवि भी बोहत खराब हुई थी. इन सभी कारणों की वजह से खबरों के अनुसार आने वाले बिग बौस शो का अनिरुद्ध बाबा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया.

सुर्खियों में हैं देवोलीना भट्टाचार्य और सोनाली सहगल, इस यूनिक स्टाइल से किया गुड न्यूज शेयर

हर किसी की लाइफ में स्पेशल मूवमेंट की गुड न्यूज होती ही है फिर चाहे वो आपके औफिस में प्रोमोशन की हो हाऊस वार्मिंग की हो, इंगेजमेंट की हो, मैरिज की हो, प्रेगनेंसी की हो या बेबी शावर की हर कोई अपने स्पेशल मूवमैंट को अपने फैमिली, फ्रेंड्स रिलेटिव्स और कलीग्स के साथ शेयर करके सैलिब्रेट करता है लेकिन सोशल मीडिया के दौर में इस गुड न्यूज को शेयर करने का स्टाइल ही यूनिक हो गया है खास कर प्रेग्नेंसी की न्यूज का, इन गुड न्यूज को शेयर करने का यूनिक आइडिया दिया बौलीवुड सेलेब्रिटीज ने, ये सेलिब्रिटीज अपने स्पेशल मूवमैंट की न्यूज सोशल मीडिया पर इस तरह शानदार तरीके से देते हैं जिससे इम्प्रैस होकर आम लोग भी अपनी गुड न्यूज को सोशल मीडिया पर शेयर करने से पीछे नहीं रहते.

हाल ही में टीवी एक्ट्रेस देवोलीना भट्टाचार्य ने सोशल मीडिया पर अनाउंस किया कि वह प्रेग्नेंट हैं. वैसे उनकी प्रग्नेंसी की अटकलें काफी पहले से लगाई जा रही थी लेकिन अब खुद देवलीना ने अपने अंदाज में हसबैंड शाहनवाज के साथ फोटोज शेयर कर ये गुड न्यूज फैंस के साथ शेयर की. जिसमें वह व्हाइट कलर का बेबी आउटफिट लिए दिखीं, जिस पर लिखा था… you can stop asking now… कैप्शन के नीचे बेबी के पैर बने हुए थे. उनके फैंस इस न्यूज को सुनकर खुश है और उन्हें ढेर सारी बधाई दे रहे है.

प्रेग्नेंसी फैशन से बटोरी सुर्खियां 

देवलीना शादी के डेढ़ साल बाद अपने पहले बेबी की मौम बनने जा रही हैं. फोटो में देवलीना के फेस में प्रेग्नेंसी वाली चमक साफ दिख रही है एक्ट्रेस ने स्लीवलेस ब्लाउज के साथ गोल्डन बौर्डर वाली ग्रीन कलर की साड़ी पहनी है जिस पर छोटेछोटे गोल्डन बूटे बने हुए है. साड़ी के साथ रेड बैंगल्स और गोल्ड कंगन पहने गले में गोल्ड का चोकर हार और मैचिंग ईयररिंग्स ,फिंगर रिंग पहने हुए देवलीना की सादगी वाली खूबसूरती देखते ही बनती है

न्यूड मेकअप 

गुड न्यूज वाली फोटो में रूप की चमक को बढ़ाने के लिए देवलीना ने न्यूड मेकअप किया. लाइट लिपिस्टिक, ब्लश्ड चीक्स, पतला आईलाइनर और न्यूड आईशैडो कर वो कमाल की का दिख रही है, हेयर को साइड पार्टीशन में स्ट्रेटकर ओपन रखा हुआ है और उस पर रोली की बड़ी सी बिंदी उनके रूप में चार चांद लगा रही है.

एक्ट्रेस सोनाली सहगल

वही अब प्यार का पंचनामा फेम एक्ट्रेस सोनाली सहगल ने भी अनाउंसमेंट कर दी है कि वह भी बहुत जल्द मां बनने जा रही हैं. एक्ट्रेस ने बहुत ही यूनिक स्टाइल में इस गुड न्यूज को अपने फैंस को बताया है.

यूनिक स्टाइल

सोनाली सहगल ने इंस्टाग्राम पर प्रेग्नेंसी की अनाउंसमेंट करते हुए गुड न्यूज सुनाई है. एक्ट्रेस ने बेबी बंप वाली तीन फोटोज शेयर की हैं, जिसमे वह कुछ खाती हुई दिख रही हैं और साथ में उनके हस्बैंड
आशीष सजनानी मुंह में बीयर की बॉटल लगाए और हाथों में बेबी के दूध की बौटल पकड़े दिख रहे हैं. सामने बेड पर खूब सारे चिप्स के पैकेट, कुकीज और बुक्स दिख रही हैं.

खास कैप्शन के साथ प्रग्नेंसी अनाउंसमेंट

एक्ट्रेस सोनाली ने प्रेग्नेंसी की अनाउंसमेंट करते हुए कैप्शन लिखा, ‘बीयर की बोतलों से लेकर बेबी बोतलों तक, आशीष की जिंदगी बदलने वाली है. जहां तक मेरा सवाल है, कुछ चीजें वैसी ही रहती हैं. पहले 1 के लिए खा रही थी, अब 2 के लिए खा रही हूं. इस बीच शमशेर (सोनाली का डौगी) एक अच्छा बड़ा भाई बनने के लिए नोट्स बना रहा है. धन्य हूं और बहुत खुश हूं. प्रार्थना करिए’.

मदरहुड एंजौय

सोनाली सहगल ने आशीष से करीब 5 साल डेट करने के बाद 7 जून 2023 को साथ शादी की थी. शादी के एक साल बाद हुईं प्रेग्नेंट अब सोनाली मदरहुड एंजौय करती नजर आएंगी. उनकी डिलीवरी दिसंबर में होगी.

मेरे पति हमेशा इंटिमेट होने से बचते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल 

मेरी शादी को 1 साल हो चुके हैं, मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते हैं, लेकिन शादी से पहले उन का किसी के साथ अफेयर रहा है. उन्होंने सुहागरात के दिन ही यह बात बताई थी. उन के घर वाले इस शादी के लिए तैयार नहीं थे इसलिए उन्होंने अरैंज्ड मैरिज की. उन्होंने कहा कि अब मैं ही उन के लिए सब कुछ हूं और वे अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड को भूल चुके हैं. मैं कहती हूं तो ही मेरे साथ सैक्स करते हैं, वे खुद से कभी नहीं कहते. मुझे लगता है कि वे अपने अतीत की वजह से मुझ से नहीं जुड़ पाए हैं और आज भी अपनी ऐक्स से मिलने जाते हैं। हमेशा डर लगा रहता है कि अगर वे मुझे छोड़ कर ऐक्स गर्लफ्रैंड के पास चले गए तो मेरा क्या होगा?

जवाब 

देखिए, शादी के तुरंत बाद ही आप के पति ने अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड के बारे में बता दिया. आप को उन की ईमानदारी की कद्र करनी चाहिए. हम आप को यही राय देंगे कि बेवजह आप उन पर शक न करें.

रही बात सैक्स की तो आप इंटिमेट होने के दौरान सिर्फ रोमांटिक बातें करें, इधरउधर की बातें न करें. आप यह भी मानती हैं कि आप के पति आप को प्यार भी करते हैं. तो उन के अतीत के बारे में न सोचें.

आप भी उन्हें इतना प्यार दें कि उन को अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड की याद न आए. आप की नईनई शादी हुई है, घूमने के लिए रोमांटिक डैस्टिनेशन का चुनाव करें. आप हौट लुक में दिखने के लिए शौर्ट ड्रैसेज का औप्शन चुन सकती हैं। पति को रिझाने के लिए आप का यह लुक मददगार साबित हो सकता है.

शादी से पहले काउंसलिंग है जरूरी

पतिपत्नी एकदूसरे को समझने की बजाय छोटीछोटी बातों पर झगड़ने लगते हैं. बात इतनी बढ़ जाती है कि रिश्ते टूटने के कगार पर पहुंच जाते हैं. इसलिए शादी से पहले उन का काउंसलिंग करवाना जरूरी है. इस से कप्लस को अपने रिश्ते को संभालने में मदद मिलेगी.

मैरिज काउंसलर प्रोफैशनल ऐक्सपर्ट भी होते हैं, जो कपल्स के समाधानों को सुलझाते हैं और उन्हें आगे बढ़ने की सलाह देते हैं. साइकोलौजिस्ट के अनुसार,‘‘हम भारतीय शादी पर लाखोंकरोड़ों रुपए तो खर्च कर देते हैं, लेकिन शादी को निभाने के लिए जरूरी काउंसलिंग पर पैसा नहीं खर्च करते. तभी आजकल तलाक के कई ऐसे मामले भी देखने में आते हैं जहां छोटीछोटी समस्या भी तलाक की वजह बन जाती है.

लड़कियों को डराने और सैक्सी दिखाने वाली फिल्में

हौरर फिल्मों के दीवानों के लिए ओटीटी पर एक से बढ़ कर एक हौरर फिल्मों का स्टौक है, लेकिन आप अपनी लिस्ट में ये सैक्सी हौरर मूवीज भी शामिल कर सकते हैं, जो न सिर्फ डरावनी हैं, गजब का रोमांस भी दिखाया गया है.

कुछ फिल्में सालों पहले आई थीं जिन्हें आज भी लोगों को देखना चाहिए. इन फिल्मों में ग्लैमरस, प्रेमकहानी, सस्पेंस सबकुछ देखने को मिलेगा. ये फिल्में आप के इस वीकेंड को शानदार बना सकती हैं :

वीराना : यह फिल्म साल 1988 में आई थी. इस फिल्म में हौरर के साथ सैक्स का भी तड़का था. माना जाता है कि इस फिल्म जैसी हौरर मूवी आज तक हिंदी सिनेमा में नहीं बन पाई. रामसे ब्रदर्स की फिल्म ‘वीराना’ एक समय काफी मशहूर हुई थी.

इस हौरर फिल्म की कहानी के चर्चे खूब हुए थे। इस में हीरोइन के किरदार में जैस्मीन नजर आई थीं. उन की खूबसूरती की भी काफी तारीफ हुई थी. इस फिल्म में ऐक्ट्रैस के बोल्ड अवतार ने सुर्खियां बटोरी थीं. फिल्म में संगीत बप्पी लहरी ने दिया था.

रेड रोज : राजेश खन्ना की फिल्म *रेड रोज’ सैक्सी सीन और थ्रिलर से भरपूर थी. साल 1980 में आई फिल्म को देख कर आप आज भी हैरान हो जाएंगे. राजेश खन्ना की छवि रोमांटिक हीरो के रूप में थी, लेकिन किसी फिल्म में सीरियल किलर बन कर एक के बाद एक लड़कियों का खून भी करता है, उन का यह किरदार देख कर ऐक्टर के फैंस हैरान थे.

इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने बैन भी लगाया था. बता दें कि यह तमिल फिल्म ‘सिगाप्पु रोजाक्कल’ का हिंदी रीमेक थी.

इस फिल्म की कहानी मानसिक रूप से बीमार शख्स की है, जो सैक्सी लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाता है और फिर उन का कत्ल कर देता है. इस फिल्म में ऐक्ट्रैस पूनम ढिल्लो भी मुख्य किरदार में नजर आई थीं.

उस समय बौलीवुड में इस फिल्म का विषय काफी बोल्ड था. इसलिए सेंसर बोर्ड ने इसे बैन कर दिया था. इस फिल्म में बौलीवुड के लिए यह बेहद बोल्ड विषय था. इस फिल्म में जिन फीमेल कलाकारों ने काम किया था वे बहुत ही हौट अवतार में नजर आई थीं.

राज 3 : विक्रम भट्ट की डरावनी फिल्म ‘राज 3’ सैक्सी सीन से भरपूर फिल्म है. हालांकि यह फिल्म कम बजट की थी. इस में इमरान हाशमी और बिपाशा बसु मुख्य किरदार में नजर आए थे. इस फिल्म में बिपाशा भूतों से सैक्स करते हुए दिखी थीं. इस फिल्म में ईशा गुप्ता बोल्ड अवतार में नजर आई थीं. यह फिल्म साल 2012 में रिलीज हुई थी.

रागिनी एमएमएस 2 : यह साल 2014 में आई एरोटिक हौरर फिल्म थी. इस में सनी लियोनी मुख्य किरदार में नजर आई थीं. इस फिल्म में ऐक्ट्रैस का ऐसा रूप देखने को मिला था कि जिसशके बारे में शायद ही किसी ने सोचा हो. इस फिल्म में हौट सीन के साथ डरावनी चीजें भी दिखाई गई हैं जिन से रोंगटे खड़े हो जाएंगे.

अलोन : फिल्म ‘अलोन’ हौरर सैक्सी मूवी है। इस में करण सिंह ग्रोवर और बिपाशा बसु और कई ऐक्टर्स नजर आए हैं. इस में रोमांस का जबरदस्त तड़का है. इस फिल्म का विषय कुछ खास नहीं है. लेकिन डरावनी सीन आप की धड़कनें बढ़ा सकती हैं. यह हौरर फिल्म अमेजान पर भी मौजूद है.

बैडरैस्ट: आखिर जया को कौनसी बीमारी हुई थी?

और्थोपैडिक डाक्टर अमित ने जब मुझे 10 दिन की बैडरैस्ट बताई तो तेज दर्द में भी मैं ने अपने होंठों पर आने के लिए तैयार हंसी रोक ली. मनमयूर नाच उठा. मन में दर्द में आह और बैडरैस्ट सोच कर वाह एकएक निकल रही थीं. मेरे पति विजय ने बैडरैस्ट सुन कर मुझे देखा तो मैं ने फौरन अपना चेहरा गंभीर कर लिया.

आप ने यह तो सुना ही होगा न कि हर औरत के अंदर एक अभिनेत्री होती है. विजय के मुंह से बैडरैस्ट सुन कर आह ही निकली थी. डाक्टर के सारे निर्देश समझ कर विजय ने जाने के लिए उठते हुए मुझे हाथ का सहारा दे कर उठाया. मेरे मुंह से एक कराह निकल ही गई.

‘‘बहुत ध्यान से जया… 10 दिन की बैडरैस्ट है,’’ मुझसे कह डाक्टर अमित ने मेरे दवा के परचे पर भी बड़ेबड़े अक्षरों में सीबीआर यानी कंप्लीट बैडरैस्ट लिख दिया.

डाक्टर अमित को हम काफी सालों से जानते हैं पर सच कहती हूं 60 साल के डाक्टर अमित आज तक मुझे इतने अच्छे नहीं लगे थे जितने आज लगे. अचानक मुझे अपनी कल्पना में डाक्टर अमित एक सुपरमैन की तरह लगे जो घर के कामों में पिसती औरत को कुछ दिन आराम करवाने आए हों. उन का मन ही मन शुक्रिया करते हुए मैं मन में खुद से कहने लगी कि जया, कर ले अब अपना सपना पूरा… कितने अरमान थे कभी बैडरैस्ट मिले… कम से कम कुछ दिन तो चैन से लेट कर टीवी देखेगी, किताबें पढ़ेगी. बस खाएगीपीएगी, नहाएगी फिर अच्छे से कपड़े पहन कर लेट जाएगी. फ्रैंड्स देखने आएंगी, गप्पें मारेंगे. बढि़या टाइम पास होगा. चलो, जया ऐंजौय योर बैडरैस्ट. जी ले अपनी जिंदगी. यह बैडरैस्ट डाक्टर रोजरोज नहीं बोलेगा. 40 साल में पहली बार बोला है. जया, जीभर कर इस बैडरैस्ट का 1-1 पल जी लेना.

मु?ो सोच में डूबे देख विजय ने कहा, ‘‘डौंट वरी जया. बस अब तुम घर चल कर आराम करना. हम सब मैनेज कर लेंगे.’’

मैं कुछ नहीं बोली. बहुत दर्द तो था ही.

विजय ने मु?ो ध्यान से कार की सीट पर बैठा

कर सीटबैल्ट भी खुद ही बांध दी. मैं ने सोचा वाह, इतना ध्यान रखा जाएगा, बढि़या है पर प्रत्यक्षत: इतना ही कहा, ‘‘सम?ा नहीं आ रहा कैसे होगा…डाक्टर का क्या है. ?ाट से बैडरैस्ट बोल दिया.’’

‘‘चिंता क्यों करती हो? हम हैं न… बच्चों के साथ मिल कर मैं सब संभाल लूंगा.’’

विजय ने कार स्टार्ट की. स्पीड ब्रेकर्स, गड्ढों का ध्यान रखते हुए गाड़ी चला रहे थे ताकि ?ाटका आदि लगने पर मु?ो दर्द न हो. दरअसल, हुआ यह था कि मैं आज सुबह तेजी से सीढि़यां उतरते हुए सब्जी लेने जा रही थी कि मेरा पैर फिसल गया… मैं बड़ी मुश्किल से उठ पाई थी. टैस्ट्स और ऐक्सरे के बाद डाक्टर अमित ने कहा कि यह प्रो स्लिप डिस्क इंजरी है… बच गई तुम, जया नहीं तो मुश्किल हो जाती.

मेरा मूड हलका करने के लिए विजय ने कहा ‘‘क्यों दौड़तीभागती हो इतना जया? कितनी बार कहा कि घोड़े की तरह इधर से उधर मत भागती फिरा करो… तुम आराम से क्यों नहीं चलती, डियर?’’

‘‘इस का सारा क्रैडिट मेरे पापी मायके वालों को है, जिन्होंने सब से छोटी होने के

कारण मुझे हर काम बताते हुए यही कहा कि जया, जाओ भाग कर यह ले आओ, भाग कर

वह ले आओ. किसी ने कभी यह कहा ही नहीं कि जाओ जया आराम से ले आओ. तो जनाब, मु?ो तो हर काम भागभाग कर करने की ही

आदत है.’’

मेरी नाटकीयता के साथ कही इस बात पर विजय हंस पड़े. बोले, ‘‘वाह, दर्द में भी हंसना कोई तुम से सीखे.’’

अब मैं उन्हें यह तो नहीं बता सकती थी कि दर्द में मु?ो बस बैडरैस्ट दिख रही है… मेरा सपना पूरा होने जा रहा है.

घर पहुंचे तो बच्चे नीरुषा और तन्मय परेशान से हमारी ही राह देख रहे थे. दोनों ने सवालों की ?ाड़ी लगा दी. विजय ने मुझे बैड तक ले जा कर लिटाते हुए उन्हें सब बताया.

पहले तो बच्चों ने आह कह कर गंभीर प्रतिक्रिया दी, फिर अचानक दोनों

जोश से भर गए. नीरुषा ने कहा, ‘‘मम्मी, हम सब मिल कर आप का ध्यान रखेंगे, डौंट वरी…’’

तन्मय भी बोला, ‘‘हां, बस आप लेटेलेटे हमें बताते रहना कि क्या काम करना है.’’

मैं ने मन ही मन सोचा कि चलो अब शायद सचमुच आराम मिलेगा. कितने प्यारे बच्चे हैं… कितना प्यारा पति है. मु?ो बड़ा लाड़ सा आया तीनों पर. फिर कहा, ‘‘मेड से कुछ और काम भी कह दूंगी…थोड़ी हैल्प हो जाएगी.’’

विजय बोले, ‘‘मैं ने आज छुट्टी ले ली है.’’

तभी नीरुषा बोली, ‘‘कल मैं कालेज नहीं जाऊंगी.’’

तन्मय भी कहां पीछे रहता. बोला ‘‘नहीं दीदी, आप चली जाना, मैं स्कूल नहीं जाऊंगा.’’

‘‘नहीं, मेरा कालेज जाना जरूरी नहीं, तुम स्कूल जाना.’’

तन्मय का मुंह उतर गया तो मु?ो हमेशा की तरह फ्रंट पर आना पड़ा, ‘‘ऐसा करो कि तीनों बारीबारी से 1-1 दिन रह लेना… तब तक तो मु?ो आराम हो ही जाएगा. चलो, आज तुम दोनों जाओ… आज तो विजय हैं.’’

दोनों बेमन से जाने के लिए उठ गए. विजय ने औफिस के 2-4 फोन निबटाए.

फिर मैं ने कहा, ‘‘सुनो, मैं ने नाश्ता तो बना ही दिया था. चलो, सब नाश्ता कर लेते हैं. बस मेरे लिए 1 कप चाय बना दो प्लीज.’’

विजय का चेहरा उतर गया, ‘‘चाय?’’

‘‘हां.’’

घर में सिर्फ मु?ो ही चाय पीने की आदत है. ज्यादा नहीं. 1 कप सुबह उठ

कर, 1 नाश्ते के साथ और 1 शाम को.

इस से ज्यादा एक बार भी नहीं. बच्चे तैयार हो रहे थे. मेड सुबह का काम कर के जा चुकी थी.

विजय ने किचन से वापस आ कर पूछा, ‘‘जया, मंजू चाय का बरतन कहां

रख गई?’’

‘‘टोकरे में रखे धुले बरतनों में होगा.’’

‘‘मतलब टोकरे में ढूंढूं?’’

थोड़ी देर में टोकरे के बरतनों की आवाज से लगा कि चाय का बरतन नहीं, पूरे टोकरे के बरतन एकसाथ नीचे गिर गए हैं. मैं ने आज नाश्ते में पोहा बनाया था. बस बना कर ही ताजा सब्जी लेने उतर रही थी जब यह हादसा हुआ. बच्चे तैयार हो कर अपना और मेरा नाश्ता ले कर मेरे पास ही आ गए, ‘‘मम्मी, आप भी खा लो. दवा लेनी होगी.’’

‘‘विजय चाय ला रहे हैं… तुम लोग शुरू करो… मैं खाती हूं.’’

विजय ?ोंपते हुए बड़ी देर बाद आधा कप चाय ले कर आए तो मैं ने पूछा, ‘‘अरे, इतनी कम बनाई?’’

‘‘नहीं, वह छानते हुए गिर गई.’’

बच्चे जोर से हंस पड़े. मैं ने भी हंसते हुए कहा, ‘‘हंसो मत, तुम लोगों का भी नंबर आने वाला है.’’

विजय ने प्यारे, मीठे स्वर में कहा, ‘‘पी कर बताओ. जया कैसी बनी है? सालों बाद बनाई है.’’

मैं ने पहला घूंट भरा. तीनों एकटक मेरा चेहरा देख रहे थे. मैं ने जानबू?ा कर गंभीरता से कहा, ‘‘तुम से यह उम्मीद नहीं थी, विजय.’’

‘‘क्या हुआ… पीने लायक नहीं है?’’

‘‘अरे, अच्छी बनी है.’’

अब तीनों एकसाथ हंस पड़े. विजय ने बच्चों को गर्व से देखा. मैं कहतीकहती रुक गई कि विजय प्लीज, चाय वापस ले जाओ. मैं कल से चाय पीने की अपनी गंदी आदत छोड़ दूंगी पर कह नहीं पाई. तब ऐसा तो कुछ भी नहीं लगा कि महबूब के हाथ से जहर भी अमृत लग रहा है और उस की आंखों में देखते हुए सब पी गए. जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ. चाय खराब थी पर पोहे के साथ गटक ली. विजय सब काम कर सकते हैं पर किचन में जरा अनाड़ी हैं, छोड़ो आज ?ाठ नहीं बोलूंगी… जरा नहीं पूरे अनाड़ी हैं और मजेदार बात यह है कि उन्हें लगता है कि उन्हें किचन के काम आते हैं. जनाब की इस गलतफहमी को मैं कभी दूर नहीं कर पाई.

बच्चे चले गए तो विजय ने कहा, ‘‘अब तुम आराम करो.’’

मैं सुहाने सपनों में खोई लेटी थी.

10 दिन रैस्ट… डिलिवरी के समय ही कुछ दिन लेटी थी. उस के बाद तो रैस्ट शब्द याद ही नहीं आया आज तक. खैर, मन ही मन काफी कुछ सोचने के बाद मैं ने व्हाट्सऐप पर अपनी 3 खास सहेलियों गीता, नीरा और संजू को बैडरैस्ट की न्यूज दे दी. हम चारों को व्हाट्सऐप पर गु्रप है. तीनों के ज्ञान, जोक्स शुरू हो गए.

 

तभी विजय आए, ‘‘जया, फोन रख कर आराम कर लो,’’ और फिर मेरी

बगल में ही लेट गए. थोड़ी देर हम आम बातें करते रहे. फिर अचानक उन के खर्राटे शुरू हो गए. लो हो गया आराम… मैं ने अपना साइड में रखा नौवेल उठा लिया. ‘इस टाइम सोने की आदत तो है नहीं. चलो नौवेल ही पढ़ लूं,’ सोच मैं हिली तो मेरे शरीर में तेज दर्द की लहर दौड़ गई.

एक कराह सी निकली तो विजय की नींद खुल गई. मु?ो देख बोले, ‘‘उठना मत. कुछ चाहिए तो मु?ो बताना,’’ कह कर करवट बदल कर फिर सो गए.

मु?ो बस वाशरूम जाने की परमिशन थी. मैं रोज 1 बजे लंच करती हूं. मेरा टाइम तय है. 1 बजा तो मु?ो भूख लगने लगी. विजय सो रहे थे. डेढ़ बजे तक मैं ने वेट किया, फिर आवाज दे दी, ‘‘विजय, लंच कर लें?’’

ऊंघती हुई आवाज आई, ‘‘अभी तो खाया था?’’

‘‘भूख लगी है, विजय,’’ मु?ो अपने स्वर में अतिरिक्त गंभीरता का पुट देना पड़ा. जानती हूं इस का असर.

विजय तुंरत उठ गए, ‘‘क्या लाऊं?’’

‘‘तुम लोगों के टिफिन के लिए जो खाना बनाया था, वही रखा है, ले आओ.’’

कुछ ही पलों बाद वे फिर आए, ‘‘खाना गरम करना है?’’

आदतन मु?ो मस्ती सू?ा, ‘‘रोज तो गरम कर के खाती हूं, आज तुम्हारी मरजी है जैसा दोगे खा लूंगी.’’

विजय हंस दिए, ‘‘इतनी बेचारी बन कर मत दिखाओ. गरम कर के ला रहा हूं.’’

विजय मेरा और अपना खाना ले आए. खाना हम ने अच्छे मूड में हंसतेबोलते खाया. मेरा खाना खत्म हुआ तो मैं प्लेट रखने व हाथ धोने के लिए उठने लगी.

तब विजय ने उठने नहीं दिया. बोले, ‘‘मैं तुम्हारे हाथ यहीं धुलवा दूंगा.’’

‘‘नहीं, इतना तो उठूंगी,’’ कह कदम आगे बढ़ाने पर कमर में दर्द की लहर दौड़ गई पर जरा हिम्मत कर के किचन तक चली ही गई. किचन में आने न देने का कारण भी फौरन स्पष्ट हो गया. विजय खिसियाए से मु?ो देख रहे थे. सुबह से दोपहर तक ही किचन की काफी दयनीय स्थिति हो चुकी थी. सुबह टोकरे में जो चाय का बरतन ढूंढ़ा गया था तो बाकी के सारे बरतन किचन में बिखरे अपनी दर्दनाक कहानी सुना रहे थे.

मैं जड़ सी खड़ी रही तो विजय ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘जया, खड़ी मत रहो. दर्द होगा. तुम चलो, मैं सब समेट कर आता हूं.’’

मैं चुपचाप लेट गई. किचन तक आनेजाने में काफी दर्र्द हुआ था. विजय ने मु?ो दोपहर की दवाई दी. थोड़ी देर बाद मेरी आंख लग गई. मैं गहरी नींद सोई. विजय के खर्राटों से ही फिर 4 बजे आंख खुली. रोज की तरह चाय पीने का मन हुआ, पर विजय के हाथ की चाय पीने की हिम्मत नहीं थी. संजू मेरी बराबर की बिल्डिंग में रहती है. मैं ने उसे मैसेज डाला, ‘‘आ जाओ, चाय पीनी है, बना कर दो.’’

उस ने खुशी से रोने वाली इमोजी भेजी. पूछा, ‘‘विजय से नहीं बनवाओगी?’’

मैं ने भी सिर पर हाथ मारने वाली इमोजी भेज दी, थोड़ी मस्ती में चैट की, फिर संजू आ गई. चाय उसी ने बनाई तो विजय ने भी चैन की सांस ली.

संजू ने कहा, ‘‘डिनर मैं बना लाऊंगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, बना लाना आज. कल से अंजू को बोल दूंगी… दोनों टाइम का बना लाएगी.’’

तभी नीरा और गीता भी आ गईं. गीता ही फिर थोड़ी देर बाद सब के

लिए चाय बना लाई. मेरे दर्द की बात होती रही. दर्द तो था ही, फिर मैं शरारत से इठलाते हुए बोली, ‘‘मैं तो अभी बैडरैस्ट करूंगी, तुम लोग आती रहना.’’

गीता ने घुड़का, ‘‘ज्यादा उड़ो मत. हमारा भी टाइम आएगा… कभी तो हम भी बैडरैस्ट करेंगे.’’

नीरा ने भी कहा, ‘‘हां, बिलकुल.

ऐसा थोड़े ही है कि हम कभी बैडरैस्ट नहीं करेंगे. चिढ़ाओ मत हमें, सब का टाइम आता है.’’

हम सब जी भर कर हंसे. गीता मस्ती मैं बोली, ‘‘यार, जरा टिप्स दो, कैसे गिरना है कि ज्यादा बुरा हाल भी न हो और बैडरैस्ट भी हो जाए.’’

हम मस्ती कर ही रहे थे कि बच्चे भी आ गए. सब से मिल कर, थोड़ी देर बैठ कर फिर फ्रैश होने चले गए.

डिनर संजू ले आई थी. सब ने खाया तो मु?ो याद आया, ‘‘अरे, कोई मशीन चला दो. कपड़े धोते हैं…’’

तीनों ने एकदूसरे का मुंह देखा. विजय ने कहा, ‘‘अब तो थक गए, कोई इमरजैंसी तो है नहीं, कल धो लेंगे.’’

मैं ने मन में कहा कि थक गए? सोसो कर? मैं बस वाशरूम जाने के लिए ही किसी न किसी का सहारा ले कर उठी थी. मैं ने सचमुच आराम किया था. मु?ो अच्छा लग रहा था.

अगले दिन नीरुषा ने मु?ा से कहा, ‘‘मम्मी, पापा को औफिस भेज दो न. मेरा मन कर रहा है आप के पास रुक कर आप का खयाल रखने का.’’

नीरुषा ने मु?ा से लिपट कर यह बात ऐसे कही कि मना करने का सवाल ही नहीं उठता था. मैं ने सोचा, विजय दिनभर आराम ही तो करेंगे… बेटी का मन है तो वही रह लेगी. अत: मैं ने हामी भर दी. फिर कहा, ‘‘चलो, अब चाय पिला दो.’’

‘‘पापा नहीं बनाएंगे?’’

मैं ने जल्दी से कहा कि ‘‘थक गए? सोसो कर?’’

उसे हंसी आ गई. बोली, ‘‘सम?ा गई… बनाती हूं.’’

विजय और तन्मय चले गए. अंजू ने सफाई के साथसाथ खाने का काम भी कर दिया. नीरुषा मेरे पास ही लेट कर अपने फोन में व्यस्त रही. बीचबीच में कुछ बात कर लेती. पूरा दिन नीरुषा ने अच्छा रिलैक्स कर के बिताया. खूब सोई, गाने सुने. मैं ने उसे जब भी कोई काम कहा वह मु?ा से लिपट गई, ‘‘मम्मी, आप के पास ही लेटने का मन है. काम तो हो ही जाएगा.’’

दिनभर धोबी, कूरियर वाले किसी ने भी डोरबैल बजाई तो नीरुषा ?ां?ालाई, ‘‘उफ, मम्मी दिनभर कितनी घंटियां बजती हैं. कोई आराम से लेट भी नहीं सकता.’’

शाम को उसे चाय के लिए उठाया तो नींद में बोली, ‘‘मम्मी, चाय क्यों पीती हो? अच्छी चीज नहीं है?’’

मु?ो हंसी आ गई, ‘‘अच्छा, आज याद आया? चलो, उठो बना लो.’’

शाम को 2-3 पड़ोसिनें देखने आ गईं.

अंजू उन के घर भी काम करती थी, तो पता चलना ही था.

रात को तन्मय शुरू हो गया, ‘‘कल मैं मम्मी के पास रहूंगा…’’

विजय और नीरुषा ने मना किया तो उस का मुंह लटक गया. मैं ने हां में सिर हिलाया तो प्यार से मु?ा से लिपट गया.

अगले दिन 11 बजे उस ने मु?ा से पूछा, ‘‘मम्मी, आप को अभी मु?ा से कोई काम तो

नहीं है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘कुछ चाहिए?’’

‘‘नहीं, बेटा.’’

‘‘मम्मी, थोड़ी देर खेल आऊं?’’

‘‘जाओ.’’

‘‘प्यारी मम्मी,’’ कह तन्मय ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दीं, ‘‘मम्मी, आप के लंच तक आ जाऊंगा. आप उठना नहीं. बाय, लव यू,’’ कह कर तन्मय यह जा, वह जा.

मुझे पता है कि खेलने का दीवाना तन्मय घर रह कर  यह मौका कैसे छोड़ देता. बाहर

बच्चों के खेलने की आवाजें मु?ो भी आ रही थीं तो भला तन्मय ने क्यों न सुनी होंगी. 1 बजे वह आ गया. तब तक मैं अपना नौवेल पढ़ रही थी. फोन पर भी थी, अच्छा टाइम पास हो रहा था. हम दोनों ने खाना खाया. तन्मय सो गया. मैं ने भी थोड़ी देर ?ापकी ली. दर्द में थोड़ा आराम लग रहा था. उठ कर नहाने में भी किसी का सहारा नहीं लेना पड़ा. अब मेरा मन उठ कर चलनेफिरने का होने लगा. 4 बजे सोचा, चाय आज खुद ही बना लेती हूं.

उठी तो दर्द तो हुआ पर धीरेधीरे कदम रखते हुए चल कर आदतन बच्चों के कमरे में नजर डाली. देखते ही चक्कर आ गया. पूरा कमरा अस्तव्यस्त, हर जगह सामान बिखरा. बहुत गुस्सा आया.

किचन में गई तो वहां भी हाल खराब. अंजू भी अपने हिसाब से बस निबटा ही गई थी. गैस चूल्हा गंदा, फ्रिज पर गंदे हाथों के निशान, बरतन कहीं के कहीं. वाशप्लैश पर नजर डाली. धुलने वाले कपड़ों का अंबार. उफ, बहुत काम इकट्ठा हो गया. मैं बु?ो मन से धीरेधीरे चलती हुई अपनी चाय ले कर लिविंगरूम में सोफे पर बैठ गई. अंजू ने डस्टिंग की ही नहीं थी. हर जगह धूल. 2 दिन के पेपर सोफे पर ही थे. सफाईपसंद विजय को ये सब कैसे नहीं दिखाई दिया, हैरानी हुई. पैर ज्यादा देर लटकाने नहीं थे. मैं फिर ठंडी सांस ले कर बैड पर आ कर लेट गई.

तभी गीता का फोन आ गया, ‘‘कैसी चल रही है बैडरैस्ट?’’

मैं ने कहा, ‘‘चुप हो जाओ. अभीअभी पूरे घर की हालत देख कर लेटी हूं.’’

गीता हंस पड़ी, ‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘आ कर देख लो.’’

‘‘तुम्हें आराम मिल रहा है न? बस ऐंजौय करो.’’

‘‘मु?ो अब डर लग रहा है कि ठीक हो जाने के बाद यह बैडरैस्ट मु?ो बहुत महंगी पड़ने वाली है.’’

‘‘हाहा, बड़ी आई थी हमें चिढ़ाने वाली?’’

रात को सब साथ बैठे तो मैं ने कहा, ‘‘तुम लोग प्लीज घर ठीक कर लो… सारा सामान बिखरा है… बच्चो, अपनाअपना कमरा ठीक कर लो… विजय प्लीज लिविंगरूम संवार लो.’’

‘‘अरे, तुम इतना क्यों उठीं? तुम्हें अभी बैडरैस्ट करनी है.’’

‘‘अच्छा ही हुआ कि उठी. सम?ा आया कि बैडरैस्ट महंगी पड़ेगी… ठीक होने पर 4 गुना काम करना पड़ेगा.’’

तीनों ?ोंप गए. बच्चों ने मासूम शक्ल बना कर कहा, ‘‘आप को यह अच्छा नहीं लगा कि हम छुट्टी ले कर आप के पास रहें? फाम का क्या है मम्मी, आप ठीक हो कर कर ही लोगी. आप के लिए काम इंपौर्टैंट है या हमारी कंपनी?’’

मैं निरुत्तर हो गई. कह नहीं पाई कि भाई, काम कर दो कुछ पहले. कंपनी मिलती रहेगी… कोई भागा नहीं जा रहा है… यह जो हर जगह सामान फैला है… मेरे ठीक होने का इंतजार हो रहा है. डांटना, उलाहने देना मेरे स्वभाव में नहीं. सो बस अब लेटेलेटे अपने तथाकथित ध्यान रखने वालों की हरकतें नोट कर रही थी.

सोच रही थी कि इन लोगों के हिसाब से तो सबकुछ टाला जा सकता है… मशीन चलाने की कोई जल्दी नहीं क्योंकि अभी तो काम चल ही रहा है, बहुत कपड़े हैं… जो एक टाइम भी दाल खा कर खुश नहीं होते वे सुबहशाम दाल खा रहे हैं क्योंकि सब्जी लेने भी जाना पड़ेगा… जो नीरुषा दही के बिना खाना नहीं खाती, अब दही जमाना याद दिलाने पर कहती है कि मम्मी जरूरत नहीं है. दही के बिना भी खाना ठीक लग रहा है. फ्रूट्स लाने को कहा तो उसे फोन कर दिया गया.

एक दिन बहुत कहने पर नीरुषा ने वाशिंग मशीन चला ही दी. फ्लैट की सीमित जगह में इतने कपड़े कहां, कैसे सुखाने हैं, इस पर जबरदस्त विचारविमर्श हुआ, जिसे मैं ने चुपचाप आंखें बंद कर अपनी हंसी रोक कर सुना. अंजू को तो यह दिन बड़ी मुश्किल से मिला. रोज मु?ा से मेरी तबीयत पूछती और पहले से भी ज्यादा फुरती से काम निबटा कर भागती. पति और बच्चों को तो टोका जा सकता पर मेड के आगे तो अच्छोंअच्छों की बोलती बंद रहती है कि कहीं कुछ कह दिया तो भाग न जाए. मेड से तो हम लोग इतने प्यार से बोलते हैं कि इतना पति और बच्चों से बोल लें तो बेचारे निहाल हो जाएं.

मु?ो जरा बेहतर लगा तो मैं ने कहा, ‘‘अब तुम सब जाओ, मैं मैनेज कर लूंगी. काफी आराम कर लिया.’’

अब मु?ो लेटेलेटे चैन भी नहीं आ रहा था. मैं ने सब को छुट्टी दी. तीनों आश्वस्त हो कर चले गए तो मैं ने थोड़ाथोड़ा धीरेधीरे काम संभालना शुरू किया. 3 बजे गीता आई तो मैं तीसरी बार मशीन के कपड़े निकाल कर सुखा रही थी. उस ने फौरन नीरा और संजू को भी बुला लिया. तीनों इकट्ठा हुईं तो पूरे घर पर एक नजर डाली. तीनों हंसने लगीं. मैं ने इन दिनों उन्हें इस बात पर खूब चिढ़ाया था कि तुम लोग बस मूर्ख औरतों की तरहकाम करती रहो… मैं तो बैडरैस्ट पर हूं. देखो मु?ो… आजकल तो मेरा स्टेटस भी यही था, बैडरैस्ट.

मैं ने धीरेधीरे चलते हुए कहा, ‘‘यार, अगर पता होता कि बैडरैस्ट के बाद दोगुनी मेहनत

करनी पड़ेगी तो बैडरैस्ट पर कभी खुशियां न मनाई होतीं.’’

नीरा जोर से हंसी, ‘‘क्यों, आराम नहीं मिला? कितनी अच्छी सेवा हो रही थी है न?’’

‘‘छुट्टी ले ले कर सब ने बस आराम ही किया, काम सुनते ही कहते थे कि अरे, हो जाएगा. तुम बस आराम करो.’’

मेरे नाटकीय ढंग से बताने पर सब हंसने लगीं.

संजू बोली, ‘‘मेरी आंखों के आगे तो इस का पहले दिन का चेहरा आ रहा है जब बैडरैस्ट बताते हुए मुंह अनोखी चमक से चमक उठा था मैडम का. जया मैडम, हमारा पति है, बच्चे हैं, भरीपूरी गृहस्थी है, एकल परिवार है और सब से बड़ी बात हम औरतें हैं, बैडरैस्ट हमारे लिए कोई खुशी की बात नहीं हो सकती… ठीक होने पर डबल काम करने पड़ते हैं.’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘हां, इसीलिए सब को भेज दिया… काम कोई कर नहीं रहा था… जब खुद ही करना है तो इन लोगों को घर में क्या रखना.’’

मेरी लास्ट लाइन पर सब जोर से हंस पड़ीं. सब बातें करते हुए मेरा हाथ भी बंटा रही थीं. घर गया तो नीरा सब के लिए चाय बना लाई. गीता ने कहा, ‘‘चलो, यह तय हुआ कि अब बैडरैस्ट की तमन्ना नहीं करेंगे.’’

हम सब ने हंसते हुए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हां, नहीं चाहिए बैडरैस्ट.’’

किस्सा डाइटिंग का: क्या अपना वजन कम कर पाए गुप्ताजी

एक दिन सुबहसुबह पत्नी ने मुझ से कहा, ‘‘आप ने अपने को शीशे में  देखा है. गुप्ताजी को देखो, आप से 5 साल बड़े हैं पर कितने हैंडसम लगते हैं और लगता है जैसे आप से 5 साल छोटे हैं. जरा शरीर पर ध्यान दो. कचौरी खाते हो तो ऐसा लगता है कि बड़ी कचौरी छोटी कचौरी को खा रही है. पेट की गोलाई देख कर तो गेंद भी शरमा जाए.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गया. यह क्या, मैं तो अपने को शाहरुख खान का अवतार समझता था. मैं ने शीशे में ध्यान से खुद को देखा, तो वाकई वे सही कह रही थीं. यह मुझे क्या हो गया है. ऐसा तो मैं कभी नहीं था. अब क्या किया जाए? सभी मिल कर बैठे तो बातें शुरू हुईं. बेटे ने कहा, ‘‘पापा, आप को बहुत तपस्या करनी पड़ेगी.’’

फिर क्या था. बेटी भी आ गई, ‘‘हां पापा, मैं आप के लिए डाइटिंग चार्ट बना दूं. बस, आप तो वही करते जाओ जोजो मैं कहूं, फिर आप एकदम स्मार्ट लगने लगेंगे.’’

मैं क्या करता. स्मार्ट बनने की इच्छा के चलते मैं ने उन की सारी बातें मंजूर कर लीं पर फिर मुझे लगा कि डाइटिंग तो कल से शुरू करनी है तो आज क्यों न अंतिम बार आलू के परांठे खा लिए जाएं. मैं ने कहा कि थोड़ी सी टमाटर की चटनी भी बना लेते हैं. पत्नी ने इस प्रस्ताव को वैसे ही स्वीकार कर लिया जैसे कि फांसी पर चढ़ने वाले की अंतिम इच्छा को स्वीकार करते हैं.

मैं ने भरपेट परांठे खाए. उठने ही वाला था कि बेटी पीछे पड़ गई, ‘‘पापा, एक तो और ले लो.’’

पत्नी ने भी दया भरी दृष्टि मेरी ओर दौड़ाई, ‘‘कोई बात नहीं, ले लो. फिर पता नहीं कब खाने को मिलें.’’

आमतौर पर खाने के मामले में इतना अपमान हो तो मैं कदापि नहीं खा सकता था पर मैं परांठों के प्रति इमोशनल था कि बेचारे न जाने फिर कब खाने को मिलें.

रात को सो गया. सुबह अलार्म बजा. मैं ने पत्नी को आवाज दी तो वे बोलीं, ‘‘घूमने मुझे नहीं, आप को जाना है.’’

मैं मरे मन से उठा. रात को प्रोग्राम बनाते समय सुबह 5 बजे उठना जितना आसान लग रहा था अब उतना ही मुश्किल लग रहा था. उठा ही नहीं जा रहा था.

जैसेतैसे उठ कर बाहर आ गया. ठंडीठंडी हवा चल रही थी. हालांकि आंखें मुश्किल से खुल रही थीं पर धीरेधीरे सब अच्छा लगने लगा. लगा कि वाकई न घूम कर कितनी बड़ी गलती कर रहा था. लौट कर मैं ने घर के सभी सदस्यों को लंबा- चौड़ा लैक्चर दे डाला. और तो और अगले कुछ दिनों तक मुझे जो भी मिला उसे मैं ने सुबह उठ कर घूमने के फायदे गिनाए. सभी लोग मेरी प्रशंसा करने लगे.

पर सब से खास परीक्षा की घड़ी मेरे सामने तब आई जब लंच में मेरे सामने थाली आई. मेरी थाली की शोभा दलिया बढ़ा रहा था जबकि बेटे की थाली में मसालेदार आलू के परांठे शोभा बढ़ा रहे थे. चूंकि वह सामने ही खाना खा रहा था इसलिए उस की महक रहरह कर मेरे मन को विचलित कर रही थी.

मरता क्या न करता, चुपचाप मैं जैसेतैसे दलिए को अंदर निगलता रहा और वे सभी निर्विकार भाव से मेरे सामने आलू के परांठों का भक्षण कर रहे थे, पर आज उन्हें मेरी हालत पर तनिक भी दया नहीं आ रही थी.

खाने के बाद जब मैं उठा तो मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं ने कुछ खाया है. क्या करूं, भविष्य में अपने शारीरिक सौंदर्य की कल्पना कर के मैं जैसेतैसे मन को बहलाता रहा.

डाइटिंग करना भी एक बला है, यह मैं ने अब जाना था. शाम को जब चाय के साथ मैं ने नमकीन का डब्बा अपनी ओर खिसकाया तो पत्नी ने उसे वापस खींच लिया.

‘‘नहीं, पापा, यह आप के लिए नहीं है,’’ यह कहते हुए बेटे ने उसे अपने कब्जे में ले लिया और खोल कर बड़े मजे से खाने लगा. मैं क्या करता, खून का घूंट पी कर रह गया.

शाम को फिर वही हाल. थाली में खाना कम और सलाद ज्यादा भरा हुआ था. जैसेतैसे घासपत्तियों को गले के नीचे उतारा और सोने चल दिया. पर पत्नी ने टोक दिया, ‘‘अरे, कहां जा रहे हो. अभी तो तुम्हें सिटी गार्डन तक घूमने जाना है.’’

मुझे लगा, मानो किसी ने पहाड़ से धक्का दे दिया हो. सिटी गार्डन मेरे घर से 2 किलोमीटर दूर है. यानी कि कुल मिला कर आनाजाना 4 किलोमीटर. जैसेतैसे बाहर निकला तो ठंडी हवा बदन में चुभने लगी. आंखों में आंसू भले नहीं उतरे, मन तो दहाड़ें मार कर रो रहा था. मैं जब बाहर निकल रहा था तो बच्चे रजाई में बैठे टीवी देख रहे थे. बाहर सड़क पर भी दूरदूर तक कोई नहीं था पर क्या करता, स्मार्ट जो बनना था, सो कुछ न कुछ तो करना ही था.

फिर यही दिनचर्या चलने लगी. एक ओर खूब जम कर मेहनत और दूसरी ओर खाने को सिर्फ घासफूस. अपनी हालत देख कर मन बहुत रोता था. लोग बिस्तर में दुबके रहते और मैं घूमने निकलता था. लोग अच्छेअच्छे पकवान खाते और मैं वही बेकार सा खाना.

तभी एक दिन मैं ने सुबह 9 बजे अपने एक मित्र को फोन किया. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि वह अभी तक सो कर ही नहीं उठा था जबकि उस ने मुझे घूमने के मामले में बहुत ज्ञान दिया था. करीब 10 बजे मैं ने दोबारा फोन किया. तो भी जनाब बिस्तर में ही थे. मैं ने व्यंग्य से पूछा, ‘‘क्यों भई, तुम तो घूमने के बारे में इतना सारा ज्ञान दे रहे थे. सुबह 10 बजे तक सोना, यह सब क्या है.’’

मित्र हंसने लगा, ‘‘अरे भई, आज संडे है. सप्ताह में एक दिन छुट्टी, इस दिन सिर्फ आराम का काम है.’’

मुझे लगा, यही सही रास्ता है. मैं ने फौरन एक दिन के साप्ताहिक अवकाश की घोषणा कर दी और फौरन दूसरे ही दिन उसे ले भी लिया. देर से सो कर उठना कितना अच्छा लगता है और वह भी इतने संघर्ष के बाद. उस दिन मैं बहुत खुश रहा. पर बकरे की मां कब तक खैर मनाती, दूसरे दिन तो घूमने जाना ही था.

तभी बीच में एक दिन एक रिश्तेदार की शादी आ गई. खाना भी वहीं था. पहले यह तय हुआ था कि मेरे लिए कुछ हल्काफुल्का खाना बना लिया जाएगा पर जब जाने का समय आया तो पत्नी ने फैसला सुनाया कि वहीं पर कुछ हल्का- फुल्का खाना खा लेंगे. बस, मिठाइयों पर थोड़ा अंकुश रखें तो कोई परेशानी थोड़े ही है.

उन के इस निर्णय से मन को बहुत राहत पहुंची और मैं ने वहां केवल मिठाई चखी भर, पर चखने ही चखने में इतनी खा गया कि सामान्य रूप से कभी नहीं खाता था. उस रात को मुझे बहुत अच्छी नींद आई थी क्योंकि मैं ने बहुत दिनों बाद अच्छा खाना खाया था लेकिन नींद भी कहां अपनी किस्मत में थी. सुबह- सुबह कम्बख्त अलार्म ने मुझे फिर घूमने के लिए जगा दिया. जैसेतैसे उठा और घूमने चल दिया.

मेरी बड़ी मुसीबत हो गई थी. जो चीजें मुझे अच्छी नहीं लगती थीं वही करनी पड़ रही थीं. जैसेतैसे निबट कर आफिस पहुंचा. पर यहां भी किसी काम में मन नहीं लग रहा था. सोचा, कैंटीन जा कर एक चाय पी लूं. आजकल घर पर ज्यादा चाय पीने को नहीं मिलती थी. चूंकि अभी लंच का समय नहीं था इसलिए कैंटीन में ज्यादा भीड़ नहीं थी पर मैं ने वहां शर्मा को देखा. वह मेरे सैक्शन में काम करता था और वहां बैठ कर आलूबड़े खा रहा था. मुझे देख कर खिसिया गया. बोला, ‘‘अरे, वह क्या है कि आजकल मैं डाइटिंग पर चल रहा हूं. अब कभीकभी अच्छा खाने को मन तो करता ही है. अब इस जबान का क्या करूं. इसे तो चटपटा खाने की आदत पड़ी है पर यह सब कभीकभी ही खाता हूं. सिर्फ मुंह का स्वाद चेंज करने के लिए…मेरा तो बहुत कंट्रोल है,’’ कह कर शर्मा चला गया पर मुझे नई दिशा दे गया. मेरी तो बाछें खिल गईं. मैं ने फौरन आलूबड़े और समोसे मंगाए और बड़े मजे से खाए.

उस दिन के बाद मैं प्राय: वहां जा कर अपना जायका चेंज करने लगा. हां, एक बात और, डाइटिंग का एक और पीडि़त शर्मा, जोकि अपने कंट्रोल की प्रशंसा कर रहा था, वह वहां अकसर बैठाबैठा कुछ न कुछ खाता रहता था. शुरूशुरू में वह मुझ से शरमाया भी पर फिर बाद में हम लोग मिलजुल कर खाने लगे.

बस, यह सिलसिला ऐसे ही चलने लगा. इधर तो पत्नी मुझ से मेहनत करवा रही थी और दूसरी ओर आफिस जाते ही कैंटीन मुझे पुकारने लगती थी. मैं और मेरी कमजोरी एकदूसरे पर कुरबान हुए जा रहे थे. पत्नी ध्यान से मुझे ऊपर से नीचे तक देखती और सोच में पड़ जाती.

फिर 2 महीने बाद वह दिन भी आया जहां से मेरा जीवन ही बदल गया. हुआ यों कि हम सब लोग परिवार सहित फिल्म देखने गए. वहां पत्नी की निगाह वजन तौलने वाली मशीन पर पड़ी. 2-2 मशीनें लगी हुई थीं. फौरन मुझे वजन तौलने वाली मशीन पर ले जाया गया. मैं भी मन ही मन प्रसन्न था. इतनी मेहनत जो कर रहा था. सुबहसुबह उठना, घूमनाफिरना, दलिया, अंकुरित नाश्ता और न जाने क्याक्या.

मैं शायद इतने गुमान से शादी में घोड़ी पर भी नहीं चढ़ा होऊंगा. सभी लोग मुझे घेर कर खड़े हो गए. मशीन शुरू हो गई. 2 महीने पहले मेरा वजन 80 किलो था. तभी मशीन से टिकट निकला. सभी लोग लपके. टिकट मेरी पत्नी ने उठाया. उस का चेहरा फीका पड़ गया.

‘‘क्या बात है भई, क्या ज्यादा कमजोर हो गया? कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’’ मैं ने पत्नी को सांत्वना दी.

पर यह क्या, पत्नी तो आगबबूला हो गई, ‘‘खाक दुबले हो गए. पूरे 5 किलो वजन बढ़ गया है. जाने क्या करते हैं.’’

मैं हक्काबक्का रह गया. यह क्या? इतनी मेहनत? मुझे कुछ समझ में नहीं आया. कहां कमी रह गई, बच्चों के तो मजे आ गए. उस दिन की फिल्म में जो कामेडी की कमी थी, वह उन्होंने मुझ पर टिप्पणी कर के पूरी की. दोनों बच्चे बहुत हंसे.

मैं ने भी बहुत सोचा और सोचने के बाद मुझे समझ में आया कि आजकल मैं कैंटीन ज्यादा ही जाने लगा था. शायद इतने समोसे, आलूबडे़, कचौरियां कभी नहीं खाईं. पर अब क्या हो सकता था. पिक्चर से घर लौटने के बाद रात को खाने का वक्त भी आया. मैं ने आवाज लगाई, ‘‘हां भई, जल्दी से मेरा दलिया ले आओ.’’

पत्नी ने खाने की थाली ला कर रख दी. उस में आलू के परांठे रखे हुए थे. ‘‘बहुत हो गया. हो गई बहुत डाइटिंग. जैसा सब खाएंगे वैसा ही खा लो. और थोड़े दिन डाइटिंग कर ली तो 100 किलो पार कर जाओगे.’’

मैं भला क्या कहता. अब जैसी पत्नीजी की इच्छा. चुपचाप आलू के परांठे खाने लगा. अब कोई नहीं चाहता कि मैं डाइटिंग करूं तो मेरा कौन सा मन करता है. मैं ने तो लाख कोशिश की पर दुबला हो ही नहीं पाया तो मैं भी क्या करूं. इसलिए मैं ने उन की इच्छाओं का सम्मान करते डाइटिंग को त्याग दिया.

आदिवासी हेयर औयल और इन्फ्लुएंसर्स की दौड़

क्या मेरा अकेला ऐसा मोबाइल है जिस पर हर कुछ टाइम बाद आदिवासी हेयर औयल का विज्ञापन चलने लगा है? डाबर और हिंदुस्तान लीवर के रेडियस से क्या इतने लोग बचे रह गए हैं कि तेल के स्टार्टअप धंधे में अभी भी पैसा कमाया जा सकता है? आखिर ऐसा क्या है आदिवासी हेयर औयल में कि देशभर के तमाम बड़ेछोटे इन्फ्लुएंसर्स, यहां तक कि फराह खान जैसी फिल्म डायरैक्टर भी इस का प्रचार करने में लगे हैं? क्या आदिवासी हेयर औयल सच में चमत्कारिक प्रोडक्ट है? यह तमाम वे सवाल हैं जो आजकल सोशल मीडिया यूज करने वालों के मन में चल रहे हैं.

आजकल उत्तर भारत का हर छोटाबड़ा इन्फ्लुएंसर आदिवासी हेयर औयल का प्रचार कर रहा है. यहां तक कि फिल्म से जुड़ी हस्तियां भी इस तेल का प्रचार कर रही हैं. इंस्टाग्राम, फेसबुक से ले कर यूट्यूब तक जिधर देखो उधर आदिवासी तेल खरीदने की चर्चाएं चल रही हैं और इस आयुर्वेदिक प्रोडक्ट को चमत्कारिक बताया जा रहा है. कई आम लोग भी इस औयल को सर्च कर रहे हैं और खरीद रहे हैं.

इन के अधिकतर विज्ञापन बेहद साधारण और मोबाइल से शूट किए गए लगते हैं. देख कर लगता है जो तेल बना रहे हैं उन में से ही कुछ एक्ट कर लेते हैं. इन में अकसर लंबे और घने जटाओं वाला एक शख्स जमीन पर रखी कई तरह की जड़ीबूटियों के साथ दिखाई देता है. वह दावे करता है कि इस में 108 प्रकार की जड़ीबूटियों का इस्तेमाल किया गया है और यह पूरी तरह से और्गेनिक है, जो कुछ महीनों में ही बालों की ग्रोथ और स्ट्रैंथ बढ़ाता है. हालांकि कई आयुर्वेदिक प्रोड्क्ट्स में पहले भी स्टेरौइड पाए जा चुके हैं तो जब तक इस तेल की बायोकैमिकल रिपोर्ट किसी विश्वसनीय एजेंसी से नहीं आ जाती संदेह जताया जा सकता है. दावे के अनुसार इसे लगाने से सफेद बाल जड़ से काले और बंजर टांट में हरियाली उग आती है.

आदिवासी हेयर औयल की वार सोशल मीडिया पर ज्यादा बड़ी इसलिए हो गई है कि मैसूर के हक्कीपक्की आदिवासी कम्युनिटी के कई उत्पादक एकसाथ उग आए हैं. इन के प्रोडक्ट की सिमिलेरिटी ऐसी है कि लगता है ये आसपास के लोग या रिश्तेदार हों, जिन का नुस्खा, प्रचार का तरीका और तेल की लेबलिंग एक सी होती है. ऐसा भी लगता है जैसे इन सब की मार्केटिंग ही अपने हेयर औयल को असली और दूसरे को नकली बता कर चल रही है ताकि सभी का बज बना रहे.

इन सब के विज्ञापन का पैटर्न एक सा है. इस में एक शख्स अपने घने बालों पर हाथ फेरता दिखाई देता है. अपने बालों को वह कभी खोल कर दिखाता है कभी बांधता है. बाल ऐसे कि गंजी टांट वालों को उसे देख कर रश्क हो जाए. वीडियो में पीछे एक पोस्टर टंगा रहता है जिस में कुछ जड़ीबूटियों के चित्र और 2-3 नंबर लिखे रहते हैं. उस के साथ 6-7 लोगों की एक छोटी टीम भी दिखाई पड़ती है जिस में 3-4 महिलाएं होती हैं. ये महिलाएं अपने घुटनों से नीचे आए सिर के बालों को दिखाती हैं. बालों को लहराती हैं और कैमरा एंगल बौटम से टौप की तरफ जाता है. इन का चेहरा कम ही दिखाई देता है. ये ज्यादातर कैमरे की तरफ पीठ कर खड़ी रहती हैं.

प्रधानमंत्री मोदी के बाद यदि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को कोई एकसाथ एक जगह ला पाया है तो वह आदिवासी हेयर औयल ही है. इस ने तमाम इन्फ्लुएंसर्स को अपने प्रचार में लगा दिया है. ठगेश, मिस्टर इंडियन हैकर्स, सौरभ जोशी, फुकरा इंसान, मलिक और उस की बीवियां, एल्विश यादव, आरजे नावेद जैसे कुछ बड़े नाम हैं जो इस का प्रचार करते दिखाई दिए हैं.

ये वे इन्फ्लुएंसर्स हैं जिन के सब्सक्राइबर्स नहीं होते बल्कि आर्मी होती है. मगर कई ऐसे ढेरों छोटे इन्फ्लुएंसर्स भी हैं जिन के फौलोअर्स 1 मिलियन से ज्यादा हैं. वे भी इस के लिए प्रचार कर रहे हैं. ये सारे लोग एक के बाद एक तेल के प्रचार के लिए मैसूर जा रहे हैं, जहां यह कम्युनिटी रहती है. इन्हें ट्रैवल अलाउंस, रहना, खानापीना और फौलोअर्स के अकोर्डिंग अच्छा पैकेज भी मिल रहा है. यानी अच्छाखासा पैसा हेयर औयल प्रचार में लगा रही है. अपनी वीडियो में ये इन्फ्लुएंसर्स हक्कीपिक्की कम्युनिटी का जिक्र करते हैं. रिषभ भिदुरी जैसे कुछ इन्फ्लुएंसर्स ने इन्हें ले कर पोडकास्ट तक किया है और इस कम्युनिटी को सब से पुरानी कम्युनिटी घोषित कर इन्हें महाराणा प्रताप के वंशज तक बता दिया है.

दरअसल, यह बात भी है कि बरसात के मौसम में अकसर हेयर ग्रोथ को ले कर कंपनियों के दावे वाले विज्ञापन चलते रहते हैं. नमी के चलते सब से ज्यादा इसी समय बाल ?ाड़ने और टूटने लगते हैं. इसी समय लोग अपने बालों को ले कर चिंता में रहते हैं. पिछले साल तक ट्राया खूब दिखाई देता था. हर दूसरे सोशल मीडिया फीड में इसी का एड चला करता था. आकाश बनर्जी, श्याम मीरा सिंह इस ने भी प्रचार के लिए इन्फ्लुएंसर्स का इस्तेमाल किया.

एक्टर राजकुमार राव, नीना गुप्ता और आयुष्मान खुराना जैसे बड़ेबड़े सैलिब्रिटीज आज भी इस का प्रचार करते हैं. लेकिन तमाम सोशल मीडिया रिव्यू के अनुसार हेयर ग्रोथ को ले कर जिस तरह के दावे किए गए उन में दम दिखाई नहीं दिया. ‘अंश ट्रांसफौर्मेशन’ नाम के एक यूट्यूबर ने इसी पर अपना रिव्यू सोशल मीडिया पर डाल दिया जिस ने बताया कि 9 महीने इस्तेमाल करने के बाद भी मामला जम नहीं पाया. हालांकि यह भी संभव है कि रिव्यू करने वाले खुद किसी और कंपनी से स्पौंसर्ड हों.

जहां तक तेल की बात है तो किसी भी सर्टिफाइड औयल को स्कैल्प पर रैगुलरली मसाज करने से बालों की रूट्स स्ट्रौंग होती हैं. इस से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है. लेकिन इस के लिए कोई भी तेल, जैसे पैराशूट का कोकोनैट औयल, डाबर आंवला औयल, सरसों औयल, केश 99 या आदिवासी हेयर औयल यूज किया जा सकता है.

यह बात भी कुछ ही हद तक सही है कि तेल लगाने से हेयर फौल कम हो सकता है. पर एक कंडीशन पर कि बालों के झड़ने का कारण ड्राईनैस और फ्रिंजीनैस हो. यदि जेनेटिक, हार्मोनल, डीएसटी या न्युट्रीशियल डैफिशिएंसी कारणों से बाल झड़ रहे हैं तो दुनिया का कोई भी तेल काम नहीं करने वाला. दूसरा यह कि हेयर औयल लगाने से न तो नए बाल आते हैं न ही सफेद बाल काले हो सकते हैं. फिर बालों के उग आने के दावे क्या हैं?

अगर बात बालों के हेयर ग्रोथ की हो तो मिनौक्सिडिल नाम का एक हेयर ग्रोथ स्टेरौइड लंबे समय से लोग यूज करते हैं, इसे बालों की जड़ों में लगाया जाता है, ये पतले बालों को तेजी से मोटा करता है, लेकिन टकली जगह नए बाल नहीं उगा सकता. लोगों को तेजी से चमत्कारिक फायदा भी इस स्टेरौइड से मिलता है लेकिन लंबे समय तक इस स्टेरौइड को यूज करने के सीरियस साइड इफैक्ट्स भी हैं. फिर भी बहुत से हेयर ग्रोथ देने वाले प्रोडक्ट्स में मिनौक्सिडिल मिलाया या थोड़ी ज्यादा मात्रा में मिलाया जाता है.

हेयर ग्रोथ कंपनियां जो हेयर ग्रोथ की बातें करती हैं वे कहीं न कहीं आंशिक या खुले तौर से इस का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन वे सीधेसीधे नहीं बतातीं कि उन्होंने इसे अपने प्रोडक्ट में मिलाया है, क्योंकि इस से उन के प्रोडक्ट का और्गेनिक होने का ठप्पा कमजोर पड़ता है. तमाम चाइनीज हर्बल प्रोडक्ट्स में स्टेरौइड मिला कर हर्बल और नैचुरल के नाम पर बेचा जा रहा है.

बात यहां ट्राया या आदिवासी तेल की नहीं है, बल्कि इन का प्रचार करने वाले इन्फ्लुएंसर्स की है कि क्या हमें अपने फेवरेट इन्फ्लुएंसर्स की बातों को मानना चाहिए? और मानना चाहिए तो कितना मानना चाहिए? क्या उन की बातों में सही में दम है और अगर वे बस पैसों के लिए ऐसा कर रहे हैं तो क्या उन्हें फौलो करना चाहिए?

क्योंकि यह तो तय है कि जैसे शाहरुख खान, अक्षय कुमार और अजय देवगन पैसों के लिए गुटके कंपनी का एड करते हैं मगर गुटका नहीं खाते, ठीक वैसे ही ये सारे इन्फ्लुएंसर्स इन प्रोडक्ट्स का सिर्फ एड कर रहे हैं वे इसे इस्तेमाल नहीं करते. कंपनियां इन के पास जा ही इसलिए रही हैं ताकि फौलोअर्स, यानी आप की संख्या के आधार पर उन्हें पैसा दिया जाए. इन्फ्लुएंसर्स तो आप की संख्या दिखा कर मालामाल हो रहे हैं, लेकिन उस के एवज में ऐसा न हो कि आप खुद को ठगा महसूस करें. बस अब सवाल आप के ऊपर है कि कहीं आप तो इस ट्रैंड में नहीं बह रहे?

क्रिएटिविटी बढ़ाने के साथ स्ट्रैस रिलीफ तक, घूमनेफिरने से होते हैं कई फायदे

एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली मुंबई की 30 वर्षीय सुजाता हर साल 7 दिन के लिए ट्रैवल पर निकल जाती है, क्योंकि काम से थक जाने के बाद उन्हे कही जाना सुकून देता है, वह अधिकतर सिंगल टूर करती है, जिसमें वह वहां की रीतिरिवाज, संस्कृति, खान पान, पोशाक आदि पर अधिक ध्यान देती है. वह देश में ही नहीं, विदेश में भी कई बार घूमने जा चुकी है. उनके हिसाब से बजट के हिसाब से ट्रैवलिंग आजकल किया जा सकता है, ट्रैवल पर जाने के लिए बड़ी बजट की जरूरत नहीं होती, अपने देश में ही पहाड़ों पर कई ऐसे शहर और गांव है, जहां जाने पर भी सुकून मिलता है. इसमें वह अधिकतर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में जाना पसंद करती है, जबकि विदेश में अमेरिका, यूरोप, साउथ अफ्रीका, थाईलैंड आदि जगहों पर सुजाता घूम चुकी है.

विज्ञान क्या कहता है

किसी स्थान की यात्रा करने से मस्तिष्क को उस स्थान की दृश्य, रहनसहन, आवाज, परिवेश आदि से एक उत्तेजना मिलती है, जिससे व्यक्ति में ज्ञान संबंधी फ्लैक्सिबिलिटी बढ़ती है. मस्तिष्क में नई चीजों को अडाप्ट करने की क्षमता विकसित होती है, विचार बदलते है, क्योंकि जब व्यक्ति किसी नए जगह की यात्रा करता है, तो वहां के नए लोग और संस्कृति के साथ साथ नई परिवेश से व्यक्ति परिचित होता है, फिर चाहे वह अनुभव अच्छे हो या बुरे एक एडवेंचर का एहसास होता है. यही वजह है कि आज के यूथ से लेकर वरिष्ठ नागरिक सभी पर्यटन को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मान चुके है.  कुछ तो इसके लिए पूरे साल थोड़ेथोड़े कर पैसे जमाकर घूमने जाते है, उनके लिए बिना ट्रैवल किए एक स्थान पर सालों से रहना मुश्किल होता है.

बढ़ी है पर्यटन व्यवसाय

देखा जाए तो पर्यटन का विकास पिछले कुछ 10 से 15 सालों से अधिक हुआ  है. इसकी वजह पतिपत्नी का आत्मनिर्भर होना है, जिससे वे आराम से किसी नए स्थान को इक्स्प्लोर कर सकते है. ट्रैवल एजेंसी भी मानती है कि पिछले 10 सालों से उनका व्यवसाय बढ़ा है, खास कर आज के युवा खासकर महिलायें और वरिष्ठ नागरिक कही घूमने जाना पसंद करते है, इसलिए वे सीनियर सिटिज़न ग्रुप और लेडिज ग्रुप का आयोजन करती है और ये देश में ही नहीं विदेश में भी जाते है. ट्रैवल चाहे किसी भी रूप में हो हमेशा कुछ अच्छा सीखने का मौका देती है. इसके फायदे निम्न है,

रिलेक्स्ड फिलिंग

असल में ट्रैवलिंग किसी भी व्यक्ति को रिलेक्स्ड फ़ील करवाने के अलावा  उस स्थान को जानने की उत्सुकता, संस्कृति और इतिहास से परिचय करवाती है. साथ ही किसी भी नकारात्मक सोच को हटाती है, जिससे डिप्रेशन होने का रिस्क नहीं होता.

स्ट्रेस रिलीफ

ट्रैवल से तनाव कम होता है और स्ट्रेस कम होने पर व्यक्ति किसी भी समस्या का समाधान जल्दी ढूंढ लेता है. विज्ञान के अनुसार स्ट्रेस कम होने पर कॉर्टिसॉल का लेवल कम होता है, जिससे व्यक्ति अधिक से आधिक खुद को काम पर केंद्रित रख सकता है.

बढ़ती है क्रीएटिवटी

ट्रैवलिंग क्रीऐटिवटी को बढ़ाती है, क्योंकि नई जगह की नई आइडियास, वहां की खानपान, संस्कृति को व्यक्ति सामने देख पाता है. यही वजह है कि क्रिएटिव फील्ड में काम करें वाले अधिकतर ट्रैवल करते है.

बढ़ती है लर्निंग 

किसी नए जगह की यात्रा करने पर व्यक्ति की स्किल्स, वहाँ की इतिहास, भाषा और सोच में बदलाव होता है. इसके अलावा नए फ्रेंड्स बनते है और स्थानीय लोगों से संवाद बढ़ती है.

रिश्तों में बढ़ती है मिठास

लव्ड वन के साथ ट्रैवल करने से रिश्तों में मिठास बढ़ती है, रिसर्च बताती है कि तकरीबन 52 प्रतिशत कपल्स के रिश्ते छुट्टियों में कही घूमने जाने के बाद से इम्प्रूव हुए.

बनते है यादगार पल

यात्रा से कई यादगार पल बन जाते है, जिसे बाद में याद करने पर खुशी मिलती है. आप जब भी घूमने जाए, निम्न बातों पर अवश्य ध्यान दें, ताकि आप यात्रा सुखद और यादगार हो,

  • उस स्थान की नई जगह और संस्कृति को जाने,
  • वहां की लोकल खाने और पेय पदार्थ को टेस्ट करें,
  • वहां की तस्वीरें ले और जर्नी को यादगार बनाएं,
  • वहां की खास वस्तु की सौवेनियर्स की शौपिंग करें, पर अधिक शौपिंग से बचें,
  • आउट्डोर एक्टिविटीज में भाग लें मसलन हाइकिंग, वाटर स्पोर्ट्स आदि
  • सभी ऐतिहासिक साइट्स और लैंडमार्क्स को देखें और उसके बारें में जानने की कोशिश करें.

वैज्ञानिक मानते हैं कि ट्रैवल मस्तिष्क को बदल देती है, क्योंकि नई भाषा, गंध, टेस्ट और दृश्य सभी से व्यक्ति को एक नई ऊर्जा मिलती है.  यही वजह है कि एंटरटेन्मेंट इंडस्ट्री में समय मिलते ही कलाकर अपने परिवार या अकेले यात्रा पर निकल जाते है, इस बारें में उनका कहना क्या है आइए जानते है.

माधुरी दीक्षित

माधुरी दीक्षित हर साल व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर ट्रैवल करती है, जो अधिकतर अमेरिका में होता है, उनके हिसाब से ट्रैवलिंग से मुझे अधिक काम करने की प्रेरणा मिलती है और मैँ अधिकतर अमेरिका जाती हूँ, क्योंकि वहाँ मेरे काफी फैंस और दोस्त है.

अजय देवगन

अजय देवगन कहते है कि काम से अलग मैं जिस किसी भी स्थान पर जाता हूँ, वह मेरे लिए ट्रैवल होता है, जिसे मैं अपने परिवार के साथ गुजारना चाहता हूँ और यह मेरे लिए बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि काम से थकने के बाद एक शांतिपूर्ण यात्रा पूरी थकान को मिटा देती है. इसमें मैँ अधिकतर लॉन्ग ड्राइव पर जाना पसंद करता हूँ, देश में राजस्थान, लद्दाख और विदेश में लंदन और आस्ट्रेलिया मेरा पसंदीदा जगह है. मैँ शौपिंग नहीं करता, लेकिन वहां की हैन्डीक्राफ्ट को खरीदना पसंद करता हूँ.

सारा अली खान

सारा कहती है कि समुद्र ऊंची – ऊंची लहरे, आसपास की शांति और पहाड़ों की खूबसूरत वादियाँ मुझे हमेशा से ही आकर्षित करती है. मैँ एक पर्यटक के रूप में इन्ही स्थानों पर जाना पसंद करती हूँ. मेरे हिसाब से जब आप ऐसी जगहों की यात्रा करते है, तो सही माइने में आप खुद को पहचान पाते है.

जान्हवी कपूर

अभिनेत्री जान्हवी  कपूर को ट्रैवल करना बहुत पसंद है, उन्होंने बचपन से अपने पेरेंट्स के साथ कई स्थानों पर यात्रा की है. उनका मानना है कि ट्रैवल से व्यक्ति खुद को समझ पाता है और यह जरूरी है, क्योंकि हर जगह का अपना एक इतिहास होता है, जिसे ट्रैवल के द्वारा ही जाना जा सकता है. इसमें मुझे इटली का परिवेश बहुत अच्छा लगा, जहां शाम को साथ बैठकर लोग गपशप और गाना बजाना करते है.

बौक्स में

ट्रैवल पर बनी कुछ फिल्में, जो यात्रा को प्रेरित करती है,

दिल चाहता है (2001), हम तुम (2004)

रंग दे बसंती (2006), जब वी मेट (2007)

लव आजकल (2009), थ्री इडियट्स (2009)

जिंदगी न मिलेगी दुबारा (2011), हाइवै (2014)

क्वीन (2014) पी के (2014), पिकू (2015) आदि.

शाम के नाश्ते में बनाएं लेयर्ड काठी रोल, नोट करें ये आसान रेसिपी

मौसम कोई भी हो दोपहर के खाने के बाद शाम को भूख लगना स्वाभाविक ही है. आहार विशेषज्ञों के अनुसार इस समय बहुत भारी नाश्ता भी नहीं करना चाहिए अन्यथा रात्रि का भोजन करने की इच्छा नहीं होती. ऐसे में हमें चाहिए होती है कोई ऐसी रेसिपी जिसे बनाने में न तो अधिक समय लगे, दूसरे घर में उपलब्ध सामग्री से बन भी जाये, तीसरे हैल्दी भी हो. आज हम आपको घर में रोज बनने वाली चपाती से ऐसी ही रेसिपी बनाना बता रहे हैं जिसे आप बहुत आसानी से घर पर बना तो सकती ही हैं साथ ही मेहमानों के आने से पहले इसे बनाकर फ्रिज में स्टोर भी कर सकतीं हैं. तो आइये देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कितने लोगों के लिए 4

बनने में लगने वाला समय 15 मिनट

मील टाइप वेज

सामग्री (रोल के लिए)

गेहूं की चपाती 4
बेसन 1 कप
नमक 1 टीस्पून
अदरक, लहसुन पेस्ट ½ टीस्पून
बारीक कटा हरा धनिया 1 टीस्पून
घी 1 टीस्पून
सामग्री(फिलिंग के लिए)
शिमला मिर्च 1
प्याज 1
बारीक कटी हरी मिर्च 4
बीन्स 4
टमाटर 1
हरी चटनी 1 टेबलस्पून
टोमेटो सौस 1 टेबलस्पून
काला नमक ¼ टीस्पून
चाट मसाला ¼ टीस्पून
बारीक कटी हरी धनिया 1 टीस्पून
बटर 1 टीस्पून

विधि

बेसन में नमक, अदरक, लहसुन, हरी धनिया और ½ कप पानी के साथ मिलाकर गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें. इसे 10 मिनट के लिए ढककर रख दें. सभी सब्जियों को आधा आधा इंच लम्बाई में काट लें. कटी सब्जियों को बटर में डालकर 2-3 मिनट के लिए तेज आंच पर मसाले डालकर सौते कर लें ताकि इनका कच्चापन निकल जाये. हरा धनिया डालकर ठंडा होने दें.

अब एक बड़ा चम्मच बेसन को नानस्टिक तवे पर पतला पतला फैलाकर ऊपर से तैयार चपाती रखकर हल्के से दबा दें. धीमी आंच पर 2-3 मिनट पकाकर पलट दें. अब इस पर हरी चटनी और टोमेटो सौस की लेयर लगाकर बीच में 1 बड़ा चम्मच फिलिंग रखकर फोल्ड कर दें. तैयार रोल को घी लगाकर सुनहरा होने तक सेंककर सर्व करें. आप इसे तैयार करके फीजर में 1 सप्ताह तक फ्रीज करके आवश्यकतानुसार प्रयोग कर सकते हैं.

नई मां के लिए जरूरी टिप्स, ‘ब्रैस्ट फीडिंग होगा आसान’

नवजात के साथ मां जितना भावनात्मक लगाव बनाए रखती है, पिता भी इस के लिए उतना ही उत्सुक रहता है. दोनों के बीच एकमात्र यही अंतर रहता है कि पिता को इस तरह का लगाव रखने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं, जबकि मां का अपने बच्चे से यह स्वाभाविक बन जाता है.

यदि आप भी पिता बनने का सुख पाने वाले हैं, तो हम आप को कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं, जो इस दुनिया में कदम रखने वाले बच्चे के प्रति आप के गहरे लगाव को विकसित कर सकते हैं. हमारे समाज में लिंगभेद संबंधी दकियानूसी सोच के कारण पुरुष अधिक भावनात्मक रूप से पिता का सुख पाने से कतराते हैं.

मां से ही बच्चे की हर तरह की देखभाल की उम्मीद की जाती है. मां को ही बच्चे का हर काम करना पड़ता है. लेकिन अपने बच्चे के साथ आप जितना जुड़ेंगे और उस की प्रत्येक गतिविधि में हिस्सा लेंगे, बच्चे के प्रति आप का लगाव उतना ही बढ़ता जाएगा. लिहाजा, बच्चे का हर काम करने की कोशिश करें. नैपकिन धोने, डाइपर बदलने, दूध पिलाने, सुलाने से ले कर जहां तक हो सके उस के काम कर उस के साथ अधिक से अधिक समय बिताने की कोशिश करें.

गर्भधारण काल से ही खुद को व्यस्त रखें

गर्भधारण की प्रक्रिया के साथ सक्रियता से जुड़ते हुए पिता भी बच्चे के समग्र विकास में अहम भूमिका निभा सकता है. हर बार पत्नी के साथ डाक्टर के पास जाए. डाक्टर के निर्देशों को सुने और पत्नी को प्रतिदिन उन पर अमल करने में मदद करे. पत्नी को क्या खाना चाहिए तथा प्रतिदिन वह क्या कर रही है, उस पर नजर रखे. इस के अलावा सोनोग्राफी सैशन का नियमित रूप से पालन करे. गर्भ में पल रहे बच्चे के समुचित विकास की प्रक्रिया के साथ घनिष्ठता से जुड़ते हुए पिता भी बच्चे के जन्म के पहले से ही उस के साथ गहरा लगाव कायम कर सकता है.

जहां तक संभव हो बच्चे को संभालें

जब कभी अपने नवजात को अपनी बांहों में लेने का मौका मिले, उसे गंवाएं नहीं. बच्चे को सुलाना, लोरी सुनाना या बच्चे के तकलीफ में रहने के दौरान उसे सीने से लगाए रखना सिर्फ मां की ही जिम्मेदारी नहीं होती है. ये सभी काम करने में खुद पहल करें. अपने बच्चे के साथ जल्दी लगाव विकसित करने के लिए स्पर्श एक अनिवार्य उपाय माना जाता है. अपने बच्चे को आप जितना स्पर्श करेंगे, उसे गले लगाएंगे, गोद में उठाएंगे, बच्चे से आप की और आप से बच्चे की नजदीकी उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी.

डकार के लिए बच्चे को थामना

यह बच्चे के साथ लगाव बढ़ाने में विशेष रूप से मदद करता है और मां को भी मदद मिलती है, क्योंकि भोजन के बाद मां और शिशु दोनों थक जाते हैं और थोड़ा आराम चाहते हैं. शिशु को कई बार डकार लेने में 10-15 मिनट का वक्त लग जाता है और मां को उस की डकार निकालने के लिए अपने कंधे पर रखना भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि वह खुद दुग्धपान कराने के बाद थक जाती है. ऐसे में यदि पिता यह दायित्व संभाल ले और बच्चे को इस तरह से थामे रखे कि उसे डकार आ जाए, तो मां को भी थोड़ा आराम मिल जाता है और शिशु भी अपनी मुद्रा बदल कर आराम पा सकता है.

बच्चे को दिन में एक बार खिलाएं

पत्नी जब बच्चे को नियमितरूप से स्तनपान करा सकती है, तो आप भी उसे बांहों में रख कर बोतल का दूध क्यों नहीं पिला सकते? किसी मां या पिता के लिए अपने बच्चे को खिलाने और यह देख कर संतुष्ट होने से बड़ा कोई एहसास नहीं हो सकता कि भूख शांत होते ही वह निश्चिंत हो गया है. इस से आप को अपने बच्चे के और करीब आने में भी मदद मिलेगी.

बच्चे को नहलाएं

शुरुआती दौर में बच्चे को स्नान कराना महत्त्वपूर्ण होता है, जिस में बच्चा आनंद लेता है. अत: अपने बच्चे को किसी एक वक्त खुद नहलाना, उस के कपड़े धोना तय करें.

बच्चे से बातें करें

बच्चा जन्म लेने से पहले से ही आवाज पहचानने लगता है. बच्चे के जन्म लेने के बाद उस से बात करने का एक छोटा सा सत्र तय कर लें.

जब बच्चा अच्छे मूड में हो तो उस की आंखों में देखें और तब अपने दिल की बात उसे सुनाएं. कुछ लोगों में बच्चों से बातें करने की स्वाभाविक दक्षता होती है जबकि कुछ को इसे विकसित करने में वक्त लगता है. प्रतिदिन अपने बच्चे से बातें करें. धीरेधीरे वह आप की आवाज सुन कर प्रतिक्रिया भी देने लगेगा.

बच्चे के रोजमर्रा के काम निबटाएं

बच्चे के पालनपोषण की प्रक्रिया में आप खुद को जितना व्यस्त रखेंगे, आप का बच्चा और आप का एकदूसरे से लगाव उतना ही गहरा होता जाएगा. कुछ लोगों को डर लगता है कि बच्चे का कोई काम निबटाने में उन के हाथों कुछ गलत न हो जाए, लेकिन इस में घबराने की कोई बात नहीं है, क्योंकि मां भी तो धीरेधीरे ही सब कुछ सीखती है. बच्चे का डाइपर बदलना, उस की उलटी साफ करना, उस के कपड़े, बदलना आदि काम सीखना सिर्फ मां की ही जिम्मेदारी नहीं है. बच्चे के साथ खुद को आप जितना अधिक जोड़ेंगे, उस के साथ आप का लगाव भी उतना ही गहरा होता जाएगा.

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