नागिन एक्ट्रैस Mouny Roy का बढ़ गया था 30 किलो वजन, इस बीमारी की वजह से कर रही थी बैडरैस्ट

नागिन फेम एक्ट्रैस मौनी राय (Mouny Roy) कई टीवी सीरियल्स में काम कर चुकी हैं. वह अपनी एक्टिंग के साथसाथ परफैक्ट फिगर के लिए भी जानी जाती हैं. एक्ट्रैस ने टीवी के अलावा बौलीवुड फिल्मों में भी काम किया है. मौनी राय ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान चौंकाने वाला खुलासा किया है.

3 महीने तक बैडरेस्ट पर थीं

मौनी ने बताया कि नागिन सीरियल करने से पहले उनका वजन 30 किलो बढ़ गया था जिसके कारण एक्ट्रैस परेशान हो गई थी. मौनी राय ने वजन बढ़ने का कारण बैडरैस्ट बताई.

एक्ट्रैस को हुई थी ये बीमारी

दरअसल नागिन फेम एक्ट्रैस को 7-8 साल पहले L4-L5, स्लिप डिस्क डिजनरेशन और कैल्शियम स्टोन था. जिस वजह उन्हें ज्यादा दवाइयां खानी पड़ती थी और वह 3 महीने तक बैड रैस्ट पर थी. ऐसे में उनका वजन 30 किलो बढ़ गया था.

वजन बढ़ने की वजह से लगा था जिंदगी खत्म हो गई

मौनी ने आगे बताया कि इतना वजन बढ़ने के बाद उन्हें लगा था कि उनकी जिंदगी खत्म हो गई. एक्ट्रैस ने यह भी कहा उस समय वह लाइमलाइट में नहीं थी. इस वजह उन्हें किसी ने देखा नहीं था.

मौनी राय ने कैसे कम किया अपना वजन

वजन कम करने के लिए मौनी ने दवाइयां खाना कम कर दी. ऐसे में उनके वजन पर फर्क पड़ा. एक्ट्रैस ने कुछ दिनों तक जूस पिया फिर उन्हें अहसास हुआ कि यह वजन कम करने का अनहैल्दी तरीका है.
फिर उन्होंने खाना शुरू किया, पहले वह बहुत ज्यादा खाना खा लेती थी लेकिन वेट कंट्रोल करने के लिए खाना कम कर दिया. एक्ट्रैस ने आगे बताया कि वह एक न्यूट्रिशनिस्ट के पास पहुंची, जो उनका वेट कंट्रोल करने में काफी मदद की.

क्यों होती है स्लिप डिस्क

बदलते लाइफस्टाइल की वजह से स्लिप डिस्क की समस्या किसी को भी हो सकती है. यह शारीरिक कमजोरी से संबंधित बीमारी है. गलत पौस्चर में बैठना, काम की वजह से देर तक बैठे रहना रीढ़ की सेहत पर भारी पड़ता है. पहले जहां लोगों को बढ़ती उम्र में स्लिप डिस्क की समस्या होती थी आज युवा भी इस समस्या के शिकार हो रहे हैं.

दरअसल, हमारे शरीर में रीढ़ की हड्डी में 33 कशेरुकाएं यानी हड्डियों की श्रृंखला होती है और ये डिस्क से जुड़ी रहती है. एक्सपर्ट के अनुसार, ये रबड़ की तरह होती है, जो हड्डियों को जोड़ने और लचीलापन बनाए रखने में मदद करती हैं. ये डिस्क रीढ़ की हड्डियों के सुरक्षा कवच होते हैं.किसी भी वजह से चोट लगने या कमजोरी के कारण डिस्क का आंतरिक भाग बाहरी रिंग से बाहर निकल सकता है, इसे स्लिप डिस्क कहा जाता है.

स्लिप डिस्क होने के लक्षण

  • जब कमर में तेज दर्द हो, जो बिलकुल बर्दाश्त करने लायक नहीं होता है. ऐसे में कमर की सारी मांशपेशियां जकड़ने लगती है, इस कंडिशन में व्यक्ती ठीक से खड़ा भी नहीं हो पाता है.
  • स्लिप डिस्क होने पर उन हिस्सों में झनझनाहट और जलन महसूस होती है. वहां की मांसपेशियां भी कमजोर होने लगती है.
  • खांसते या छींकते समय भी गर्दन, पीठ के ऊपरी हिस्से या बांहों के नीचे दर्द होता है.
  • सिर और गर्दन को पीछे झुकाने या ऊपर देखने पर पीठ के ऊपर वाले हिस्से में दर्द रहता है.

फेस्टाग्राम : भावी सासूमां और बहू हो गई रील्स लवर्स

आजकल छोटे कसबों में रहने वाली औरतों को कोई पिछड़ा हुआ न सम झे. इन छोटे कसबों की औरतें पहननेओढ़ने और पार्टी करने के मामले में शहर वालियों को भी पीछे करने लगी हैं.

अभी परसों कविता के यहां पर किट्टी पार्टी थी जिस में मेरी मुलाकात सनोबर से हुई. अरे वही सनोबर जो एक छोटे से गांव से आई थी. भाई वाह, क्या कमाल का कायाकल्प हो गया है उस का जब वह अपने गांव से इस कसबे में रहने आई थी तो उस के चेहरे पर छोटी जगह से होने के कारण एक डर और दबेपन का भाव  झलकता रहता था और बातचीत करने में भी हिचकती थी पर अब तो उस के चेहरे की चमक कुछ और ही बयां करती है.

सनोबर के लंबे बालों की जगह अब छोटे बालों ने ले ली है, कपड़ों में भी आधुनिकता की  झलक है जो थोड़े से छोटे हो गए हैं और उस

का शरीर भी किसी सांचे में ढला हुआ सा लगता है. अब तो ऐरोबिक कसरतें करती है वह और उस का सावलां रंग भी अब तो गोरागुलाबी हो चला है.

‘‘इतना फिट और खूबसूरत कैसे रह लेती हो सनोबर?’’ मैं ने हलकी सी  िझ झक के साथ कहा तो सनोबर ने दंभ भरे अंदाज में मु झे बताया कि यह सब सफलता की चमक है, सफलता? कैसी सफलता? मेरी आंखों में छिपे सवाल को भांप कर सनोबर ने समाधान करते हुए बताया कि दरअसल वह डांस के रील्स बनाती है और फिर उन्हें इंस्टाग्राम और अन्य तमाम तरह के सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर अपलोड करती है और फिर लोग लाइक और कमैंट करते हैं और उस की रील्स पसंद आने पर उसे फौलो भी करते हैं. सनोबर के 5 हजार से भी ज्यादा फौलोअर्स हैं और इतने फौलोअर्स होने से उसे एक तरह से सैलिब्रिटी स्टेटस तो हासिल है ही, साथ ही साथ वह इन रील्स को बना कर पैसे भी कमाती है.

कहीं न कहीं सनोबर की सफलता ने मु झे भी इंस्पायर किया कि मैं भी कुछ करूं और आजकल भला रील्स बनाने से ज्यादा सरल क्या होगा? किसी अधिक ताम झाम की जरूरत नहीं, थोड़ाबहुत शक्लसूरत ठीक हो तो अच्छी बात है और अगर नहीं भी हो तो फिल्टर लगा कर काम चल जाता है, बस शुरुआती दौर में लोग आप को लाइक करने लगें तो आगे का काम और आसान हो जाता है. हां तो लोगों के लाइक आने में कौन सी कठिनाई है. अरे भले मैं एक ट्रैंड डांसर न सही पर बचपन में पड़ोस वाली आंटी को भरतनाट्यम करते देखते थे तभी से क्लासिकल डांस के प्रति रुचि जागी थी और

मैं शौकिया क्लासिकल डांस करने लगी थी और अब तो मेरे पास सीखने के लिए इंटरनैट उपलब्ध है तो ऐसे में जब मैं अपनी क्लासिकल डांसिंग मूव्स दिखाऊंगी तो लोग मुझे जरूर पसंद करेंगे और मेरी रील को वायरल होने से कौन रोकेगा भला?

मगर मेरे साथ एक कड़क सासससुर की निगरानी की समस्या भी थी. शायद ही मेरी सासूमां को मेरा डांस करना भाता. पर कला तो कला है और उसे दबा कर रखने में उस का नष्ट हो जाना तय है, यही सोच कर मैं ने अपनी डांस की एक पोशाक निकाली जिसे मैं ने अपने रिश्तेदार की शादी में जाने के लिए खरीदा था. अब इस में ढेरों सिकुड़नें पड़ चुकी थीं क्योंकि जब मेरी बेटी गर्भ में थी तभी इसे अलमारी में रख दिया गया था और अलमारी की सफाई के दौरान ही इसे निकालते और धूप में सुखाकर वापस रख दिया जाता और आज पूरे 5 साल बाद इसे पहनने के मकसद से बाहर निकाला गया है. पोशाक की हालत देख कर इसे ड्राई क्लीन की जरूरत महसूस हुई तो फट से इसे कसबे की सब से अच्छी लौंड्री से ड्राईक्लीन कराया.

लांड्री वाले भी बड़े पारखी होते हैं, कपड़े के वजन और डिजाइन देखकर पोशाक की अहमियत जान लेते है और उसी के अनुसार बिल को ज्यादा या कम बनाते हैं.

खैर, कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है. मन में ललक थी एक सैलिब्रिटी स्टेटस पाने की सो मैं ने बिल चुकाया और चौराहे वाले पार्लर में चेहरे का रंगरोगन कराया. किसी भी नृत्य की विधा में चेहरे और आंखों के उपयोग की अहमियत को तो आप जानते ही हैं इसलिए आंखों पर मेकअप वाली लड़की को विशेष ध्यान देने को कहा. चेहरा ठीक हुआ तो घर आ कर डांस के लिए जगह तलाशनी थी मैं ने क्योंकि डांस ऐसी जगह करना था जो मेरी सास को बिलकुल डिस्टर्ब न करे.

वैसे तो मेरी सास हर घरेलू काम में परफैक्ट हैं और ऐसा ही परफैक्शन वे मु झ से चाहती हैं पर शायद ही वे कभी मेरे काम से संतुष्ट रही हों पर फिर भी हम सासबहू का रिश्ता ठीकठाक ही चल रहा था. इसलिए नीचे के कमरों को छोड़ कर मैं ने अपनी छत को चुना क्योंकि वहां पर कोई डिस्टरबैंस भी नहीं होगी और ठीक रोशनी मिलेगी जिस से वीडियो की क्वालिटी अच्छी आएगी.

वीडियो शूट करने के लिए पड़ोस की 20 साल की लड़की गरिमा को मैं ने अपना मोबाइल थमाया और बड़े ही मनोयोग से भरतनाट्यम की मुद्राएं बना कर नृत्य करने लगे. अभी थोड़ा ही वीडियो बना था कि मेरी 5 साल की बिटिया छुटकी रोने लगी. उस के रोने से

मेरी सास का ध्यान उस तरफ गया और वे तो मेरी रील्स बनाने और नाचने की तैयारियों को देख कर पहले से मुंह बनाए बैठी थीं सो अब

उन्हें मुझ पर चिल्लाने का पूरा अधिकार मिल चुका था. ‘‘अरे आजकल तो औरतों को अपने नाचगाने से फुरसत ही नहीं, जब बच्चे नहीं संभाले जाते तो उन्हें पैदा ही मत करो, हमारे जमाने में तो…’’ और इस के आगे सास ने क्याक्या कहा मैं ने सुनने की कोशिश भी नहीं करी और चुपचाप अपने कमरे में आ कर बेटी को चुप कराने लगी.

कुछ सासूमां की बातें और कुछ डांस ठीक से न कर पाने के कारण मन खिन्न हो चुका था और वैसे भी इतने दिनों से डांस करना छूट चुका था सो शरीर का लचीलापन भी कम हो गया था और मैं हांफने लगी थी. अगले कई दिनों तक मैं ने डांस नहीं किया पर फिर एक दिन जब सासूमां मार्केट गई थीं तब गरिमा की जिद पर मैं ने फिर से डांस किया और एक छोटा सा वीडियो बना कर रील के रूप में इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर दिया और तमाम हैशटैग बना कर अपने दोस्तों को टैग भी करना नहीं भूली.

रील के पोस्ट होने के ठीक बाद ही मैं लाइक्स और कमैंट का इंतजार करने लगी और इसी उम्मीद में घर का सब काम छोड़ कर आती और मोबाइल में नोटिफिकेशन चैक करती पर रात तक सिर्फ 10-12 लाइक्स ही आए थे. थोड़ी निराशा जरूर हुई पर वैसे मैं ने रील बनाने से पहले गूगल पर पढ़ा था कि रील बनाते ही आप फेमस नहीं हो जाओगे बल्कि इस के लिए बहुत धैर्य रखना होगा.

मुझे निराश देख कर गरिमा ने मुझे इशारों

में बताया कि लोग मसालेदार वीडियो ज्यादा देखना चाहते हैं. ऐसे में भला मेरे शुद्ध भरतनाट्यम के मूव्स को भला कौन देखना चाहेगा? और हो सकता है कि मेरे वीडियो

ठीक औडियंस तक पहुंच ही न पा रहे हों. अभी मैं दुविधा में ही थी कि मेरे पति कुमार आ गए. वे थोड़े परेशान लग रहे थे. कारण

पूछने पर पता चला कि कंपनी ने कुमार का प्रमोशन कर के उन का ट्रांसफर भी कर दिया है और अब उन्हें इस पैतृक कसबे को छोड़कर कानपुर जाना होगा,

ट्रांसफर का नाम सुनते ही मां और पापा का मन भारी हो गया. होता भी क्यों नहीं? कुमार को लखनऊ से अपनी ग्रैजुएशन खत्म करते ही जौब मिल गई थी और उन की कंपनी ने उन के पैतृक कसबे में ही अपने काम के विस्तार के लिए भेज दिया था. बड़े कम लोग होते हैं जिन्हें उन के मांबाप के पास रह कर ही नौकरी मिल जाती है और मांबाप की सेवा का अवसर भी पर अब तो इन्हें कानपुर जाना था.

रात का खाना किसी से नहीं खाया गया, मु झ से भी नहीं. सुबह सासूमां ने बनावटी हिम्मत दिखाते हुए कहा, ‘‘कानपुर कौन सा दूर है, हम दोनों हर महीने आते रहेंगे अपनी छुटकी के पास.’’

‘‘तो क्या आप लोग हमारे साथ नहीं चलोगे?’’ कुमार के इस सवाल के जवाब में बाबूजी ने कहा कि उम्र के इस पड़ाव में अपना घर छोड़ कर कहीं और नहीं जाना.

कुमार ने बहुत रिक्वैस्ट करी पर मांपापा नहीं माने, कुमार के साथ मु झे भी कानपुर जाना पड़ा. जब से ब्याह कर आई थी तब से इसी घर में सासससुर के साथ रही पर अब उन से दूर जाना थोड़ा बुरा तो लग ही रहा था पर अपने पति के साथ किसी बड़े शहर में जाना, बड़ी बिल्डिंगों के फ्लैट में रहना, मौल में ऐस्कलेटर पर चढ़तेउतरते हुए सैल्फी लेना यह सब मन को सुहा तो रहा ही था और फिर कुमार के साथ जब अकेली रहूंगी तो जी भर कर मनचाही रील्स भी तो बना सकूंगी, ये सब सोचते हुए उत्साह बढ़ रहा था, जरूरी पैकिंग कर ली गई थी और अगले दिन हम कानपुर के लिए रवाना हो गए.

कानपुर में फ्लैटरूपी आवास, कुमार की कंपनी ने दिलाया था इसलिए हमें कोई परेशानी नहीं हुई. हम ने अपना सामान भी सैट कर लिया और डिनर बाहर जा कर किया. नई जगह में आ कर मन प्रफुल्ल था और अपने कानपुर प्रवास के दूसरे ही दिन मैं ने धड़ल्ले से रील्स बनानी शुरू कर दीं. यहां तो सास की कोई पाबंदी भी नहीं थी. मैं ने कुछ नई साडि़यां खरीदीं और नाभिप्रदर्शना ढंग से बांध कर हिंदी फिल्मों के गानों पर रील्स बना इंस्टाग्राम पर पोस्ट कीं जिन पर अपेक्षाकृत कुछ अधिक लाइक्स भी आए थे. मु झे लगा कि इंस्टाग्राम पर स्टार बनने से मु झे कोई नहीं रोक सकता पर ऐसा नहीं था क्योंकि महीनों बीत जाने पर और सैकड़ों रील्स डालने के बाद भी मेरी कोई रील ऐसी नहीं थी जिस के हजारों लाइक्स आए हों और यह काम काफी कठिन है यह हमारी सम झ में आ चुका था.

इंस्टाग्राम से मन हटा तो पड़ोसी रीना ने फेसबुक का नाम कुछ लिखने और फोटोज पोस्ट करने के लिए सु झाया, मु झे ठीक लगा कि फेसबुक पर कोई किस्साकहानी लिखा जाए. मसलन, पहलेपहल मैं ने लिखा, ‘‘सिर में तेज दर्द है, कुछ अच्छा नहीं लग रहा.’’

इस छोटी सी बात के बदले कई राय और घरेलू नुसखे बताने वाले कमैंट आ गए. जुड़े लोगों की संख्या देख कर भी उत्साह जगा और फिर कुछ और लिखने को प्रेरित हुई. कभी कविता तो कभी बचपन की यादें तो कभी अपनी नन्ही बेटी की शैतानियों के बारे में लिखती रही तो मेरी पोस्ट अच्छे ढंग से वायरल होने लगीं, कभी लिखने को कुछ न होता तो मनगढ़ंत कहानी बना कर पोस्ट कर देती. अब तो मेरे कई रिश्तेदार भी मुझ से सोशल मीडिया पर जुड़ने लगे और मेरी तारीफ करने लगे थे.

कहते हैं कि अच्छा समय बहुत जल्दी गुजर जाता है. मुझे कानपुर आए कब 1 साल हो गया पता ही नहीं चला और आज ही सासूमां का फोन आया था कि वे कल शाम को कानपुर हमारे पास आ रही हैं.

अब जब से मैं ने अपनी सास के आने की खबर सुनी थी तब से तो मेरे होश ही उड़ गए. यहां पर 2 कमरों के फ्लैट में काम ही कितना था? कुमार लंच ले नहीं जाते थे सो अपने लिए 4 परांठे बना कर ही काम चला लेती थी. कभी जोमैटो का सहारा ले लेती. इधर जब से लिखना शुरू किया तब से तो और भी काहिल हो गई थी और मन को यह कह कर सम झा लेती कि अरे अब तू बड़ी फेसबुकिया लेखक हो गई है. इतना आराम तो कर ही सकती है पर अब सासूमां आ रही हैं तो सब से पहले तो वे मेरी किचन में  झांकेंगी और किचन के सारे कनस्तरों में उन्हें घुन और कीड़े ही नजर आएंगे. किचन से ही लगा हुआ एक छोटा सा स्टोर था. मैं ने सोचा लगे हाथों इस का भी मुआयना कर लूं सो देखा कि 2 किलोग्राम चने की दाल में घुन लग चुका था और चावलों में भी कीड़े पड़ गए थे.

1 लिटर पुराना शहद भी मिला, सोचा  झाड़ू करने वाली रजनी को यह सामान दे दूंगी पर उस ने भी मुंह बना कर कह दिया, ‘‘इस में तो अनाज से ज्यादा घुन है मैडम हम ऐसा सामान नहीं खाते.’’

मन मसोस कर मैं फिर से स्टोर में रखे सामान को तलाशने की नीयत से गई तो देखा कि अचार में फफूंद लगी हुई है और नीबू का अचार भी खराब हो रहा है. वैसे इतना सब सामान लाने में कुमार की गलती है. अरे, जब कम खर्चा है तो छोटी पैकिंग वाला सामान लाओ भला किलोकिलो क्यों लाते हो? मैं बहुत  झुं झुलाई और वहां अचार के डब्बे को हाथ में ले कर एक सैल्फी खींची और फेसबुक पर अपलोड कर दी. उस के साथ में कैप्शन लिख दिया कि कड़क और सख्त सासूमां के आने के साइड इफैक्ट. आगे लिखा कि जब सासूमां के साथ रहती थी तब उन्होंने रील्स बनाने को मना कर दिया था अब वे फिर से मेरे पास आ रही हैं,पता नहीं फेसबुक पर आप लोगों से कब मुलाकात होगी और इतना लिख कर बड़ी जल्दी से पोस्ट का बटन दबा दिया और मुक्त भाव से बिखरे सामान को ठीक करने में लग गई.

शाम तक काफी हद तक घर ठीक भी हो गया, अचानक मन में खयाल आया कि भले ही यह फ्लैट छोटा है, थोड़ाबहुत पैदल चल कर ही काम हो जाता है पर कितना अच्छा होता कि वेनिस की तरह यहां भी चारों तरफ पानी होता और एक से दूसरी जगह जाने के लिए हमें सुंदरसुंदर नावों का सहारा लेना पड़ता. खयाल अच्छा था पर अभी मैं इन खयालों में और डूबती कुमार के फोन ने मेरे विचारों पर रोक लगा दी.

‘‘अरे वह तुम्हारी चचेरी ननद बेबी का फोन आया था, बड़ी तारीफ कर रही थी तुम्हारे फेसबुकिया लेखन की और वह जो तुम ने मेरी मां पर कोई पोस्ट डाली है उस के बारे में भी जिक्र कर रही थी.’’

पोस्ट और अपनी चचेरी ननद का नाम सुनते ही मेरे मन में कुछ खटका. मैं सम झ गई थी कि अब तक मेरी सासूमां तक वह अचार वाली पोस्ट तो पहुंच ही गई होगी और सासूमां के बारे में लिखे शब्द उन्हें बता भी दिए गए होंगे.

मैं ने तुरंत मोबाइल खोला और पोस्ट हटानी चाहीें पर अब तक तो उस पोस्ट पर सैकड़ों लाइक्स आ चुके थे और इतनी देर में तो मेरी ननद ने अपना काम कर ही दिया होगा पर अब मैं सिर्फ इस पोस्ट को डिलीट करने के अलावा कर ही क्या सकती थी.

शाम को सासससुर आ गए ढेरों सामान लाए थे जिस में देशी घी और अचार मुख्य रूप से था, मेरी बेटी तो अपने दादादादी से अलग ही नही हो रही थी.

सच कहूं तो सासूमां के सामने काफी असहज महसूस कर रही थी मैं और उस का कारण मेरी सासूमां के हैशटैग वाली पोस्ट थी, पर तीर तो कमान से निकल ही चुका था इसलिए मैं पूरे मनोयोग से सासूमां की सेवा करने में लग गई. उन की पसंद का पूरा ध्यान रखा और देर रात तक उन के पास बैठ कर पुरानी यादों को ताजा करती रही.

‘‘तुम्हारी ननद बेबी कह रही थी कि अब तुम बड़ी अच्छी कविताकहानी लिखने लगी हो.’’

मैं यह बात सुन कर सन्न रह गई कि निश्चित ही बेबी ने सासूमां को उस पोस्ट के बारे में सबकुछ बता दिया होगा तभी तो वे पूछताछ कर रही हैं. मैं हकला गई.

सासूमां ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘अरे तू चाहे नाचे या गीत लिखे या गाए पर जो भी कर एक स्त्री की मर्यादा में रह कर कर. उस कसबे में थे तो हमें भी आसपास की लोकलाज का ध्यान रखना था, परिवार की इज्जत का खयाल रखने के लिए हम ने भी घूंघट में जीवन काट दिया पर अब जीवन की सां झ आ गई है, अब तक तो हम ने सब का ध्यान रखा और अब भी हम लोगों के लिए जीते रहेंगे तो भला हम कब जीवन जी पाएंगे इसलिए अब जो हमें अच्छा लगेगा हम वही करेंगे.’’

सासूमां थोड़ा रुकीं और फिर बोलीं, ‘‘वह जो तुम लोगों का नाच का अड्डा है न वह जो ग्राम है न, क्या कहते हैं उसे? हां इंस्टाग्राम, उस जगह पर आजकल तो बहुएं अपनी सास के साथ मिल कर खूब रील्स बनाती है. अरे, अब हम से नाचवाच तो होगा नहीं पर कुरसी पर बैठेबैठे आंखों के इशारे तो हम भी कर सकते हैं.’’

सासूमां शरमाते हुए कह रही थीं. मैं अब तक उन की सारी मजबूरी और छोटी जगह में रहने के कारण एक दायरे में बंधे रहने की विवशता सम झ चुकी थी.

इतनी देर में दूसरे कमरे से कुमार और ससुर साहब उठ कर हमारा डांस देखने के लिए आ गए थे और सब सासूमां का यह रूप देख कर मारे खुशी से फूले नहीं समा रहे थे.

फट से मैं ने मोबाइल उठाया और अपनी सासूमां के साथ एक छोटा सा शूट किया. पाशर्व में गाना बज रहा था, ‘‘सास गाली देवे, ननद चुटकी लेवे ससुराल गेंदा फूल…’’

गाना भले ही बहुत  झुमाने वाला नहीं था मगर सोलफूल था जिस में सासूमां पहले तो बैठेबैठे अपने ऐक्सप्रैशन देती रहीं पर फिर वे जल्दी से बैड से उतर कर मेरे साथ नाचने लगीं और तब तक नाचती रही जब तक वे थक नहीं गईं. यह देख कर ससुर और कुमार भी हमारे साथ नाच में शामिल हो गए थे.

इसी बीच मैं सब की नजर बचा कर इस मजेदार मौके को फेसबुक और इंस्टाग्राम दोनों जगह लाइव और पोस्ट करने में लग गई थी. इंस्टाग्राम पर रील्स के रूप में तो फेसबुक पर एक कहानी के रूप में.

मैं और मेरी सास के भले ही फौलोअर्स नहीं थे पर हम दोनों अपनेआप में ही एक सैलिब्रिटी स्टेटस हासिल कर चुकी थीं और मेरी ससुराल सच में एक गेंदाफूल ही तो थी जिस मे रिश्तों के रंग थे, आपसी प्रेम की सुगंध थी. यहां इंस्टाग्राम की रील्स थी तो फेसबुक की कहानियां भी और मैं और मेरी सास अब मिल कर चला रहे थे जीवन का फेस्टाग्राम.

दोस्त की बीवी मुझ से संबंध बनाना चाहती है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मुझे अपने कलिग से अच्छी दोस्ती हो गई और हमारी यह दोस्ती पारिवारिक भी होती जा रही है. वह भी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता है और मेरी भी कुछ दिनों पहले ही शादी हुई है, तो मैं भी अपने पत्नी के साथ रहता हूं. हम दोनों का अकसर एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता है.

मेरे दोस्त की पत्नी 2 बच्चों की मां है, लेकिन उस ने अपने फिगर को बहुत खूबसूरती से मैंटेन किया है. वह जिम भी जाती है. वह दिखने में बहुत खूबसूरत है. अभी कुछ दिनों पहले मेरी पत्नी मायके गई थी। ऐसे में मैं रात का खाना खाने अपने दोस्त के घर गया था. जब मैं उस के घर गया तो भाभीजी ने मुझे खाना खिलाया। मेरा दोस्त कहीं बाहर गया था. किचन में कुछ सामान गिरने की आवाज आई. मैं इसी बहाने भाभीजी के करीब गया. वह मना नहीं की और हम दोनों बच्चों से छिप कर एक कमरे में चले गए। भाभीजी ने बताया कि पति को घर आने में समय लगेगा. मैं ने उन्हें किस किया.

मैं इंटिमेट होने के लिए फोरप्ले कर ही रहा था कि तभी दरवाजे की घंटी बजी. हम दोनों चौंक गए और खुद को संभाला. भाभीजी तो कमरे से बाहर निकल कर दरवाजा खोलने चली गईं, मैं अभी कमरे से बाहर जा ही रहा था कि मेरे दोस्त ने मुझे देख लिया, लेकिन उसे शक नहीं हुआ. उस ने बस इतना ही पूछा कि मेरा कमरा कैसा लगा? मैं ने बात बनाते हुए कहा कि भाभीजी ने कमरे को काफी अच्छे तरीके से सजाया है. वह भी बस मुझे ही देखे जा रही थी.

अब जब भी मैं दोस्त के घर जाता हूं मेरी निगाहें भाभीजी पर होती हैं। वे भी उसी निगाह से मुझे देखती हैं. मेरी पत्नी भी मेरे पास आ गई है. मैं जब भी उस के साथ सैक्स करता हूं तो मुझे भाभीजी की याद आती है. सोचता हूं कि कब मैं अपनी अधूरी इच्छा पूरी कर पाऊंगा. इसी वजह से किसी भी काम में मन नहीं लगता. आप ही बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

देखिए, आप शादीशुदा हैं और जिस महिला से आप संबंध बनाना चाहते हैं, वह आप के दोस्त की पत्नी है जिस के 2 बच्चे भी हैं. कोई भी किसी के प्रति आकर्षित हो सकता है, लेकिन शादीशुदा जिंदगी को अनदेखा कर अपने सुख के लिए मन में ऐसी इच्छा पालना गलत साबित हो सकता है.

अभी आप की नईनई शादी हुई है. आप की पत्नी को आप से ढेर सारी उम्मीदें होंगी. ऐसे में आप अपनी पत्नी को प्यार और सम्मान दें. उन की इच्छाओं को पूरी करें. आप कहीं घूमने जाएं। जो प्यार आप अपने दोस्त की पत्नी को देना चाहते हैं, वह प्यार आप अपनी पत्नी को दें. इस से आप की भी जिंदगी बेहतर होगी और दोनों दोस्त का घर भी टूटने से बच जाएगा.

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 हमें इस ईमेल आईडी पर भेज सकते हैं- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

डैडलाइन : आखिर विदित के चौंकने की क्या थी वजह ?

गाड़ी ने स्पीड पकड़ी तो पूजा और नेहा की बातों ने भी स्पीड पकड़ ली. दोनों पिछले 4 दिनों में स्वाति की शादी में की मस्ती के 1-1 पल को फिर से जीने लगीं. तभी नेहा के मोबाइल पर आए मैसेज ने उस के मस्ती भरे मूड पर विराम लगा दिया.

‘‘क्या हुआ? सब ठीक तो है?’’ पूजा ने पूछा.

‘‘हांहां बिलकुल. बौस ने कुछ काम भेजा है, देखती हूं,’’ और नेहा लैपटौप खोल कर बैठ गई.

पूजा भी आसपास के यात्रियों को देखने लगी. सामने वाली सीट पर कोने में बैठी एक महिला को लगातार अपनी ओर ताकते देख पूजा थोड़ा असहज हो उठी. मगर पूजा से नजरें मिलते ही वह महिला मुसकराते हुए उठी और पूजा की बगल में आ कर बैठ गई. नेहा सहित अन्य सहयात्रियों को मजबूरन उस के लिए जगह बनानी पड़ी.

‘‘आप तारिणी की क्लासटीचर हैं न?’’ बैठते ही उस ने सवाल दाग दिया.

‘‘तारिणी? ओह हां. मेरी ही क्लास में है. आप उस की… मदर?’’

‘‘हां ठीक पहचाना आपने,’’ वह उत्साहित हो कर पूजा के और पास खिसक ली, ‘‘पेरैंट्स मीटिंग में मिले थे हम आप से.’’

उस का देशी लहजा सुन कुछ सहयात्री मंदमंद मुसकराने लगे. पर पूजा अप्रभावित बनी रही. स्कूल पेरैंट्स मीटिंग में सभी तरह के अभिभावकों से मिलतेमिलते वह इन सब की अभ्यस्त हो चुकी थी.

‘‘हम जानते हैं वह पढ़ाई में ज्यादा अच्छी नहीं है पर फिर भी हम चाहते हैं कि वह जिंदगी में कुछ बन जाए… डाक्टर, टीचर, वकील, कुछ भी… बस कैसे भी हो, अपने पैरों पर खड़ी हो जाए. हम ने भी शादी के बाद ही बीए, एमए सब किया और अब बीएड कर रहे हैं.’’

‘‘वाह, बहुत अच्छा,’’ पूजा ने प्रोत्साहित किया.

‘‘पर उस का ध्यान दूसरी चीजों में ज्यादा है. उसे अच्छा खानेपहनने का शौक है, सिनेमा देखने का शौक है. अपनी ओर से मैं उस पर पूरी नजर रखे हूं पर आप से भी थोड़ी उम्मीद रखती हूं… वह क्या है कि…’’ वह महिला पूजा को अपनी दर्दभरी दास्तां सुनाने लग गई.

नेहा ने अपना पूरा ध्यान लैपटौप पर केंद्रित कर लिया था. कुछ अन्य सहयात्री भी उकता कर आपस में बतियाने लगे. मगर पूजा सहित 1-2 और सहयात्री उस महिला की आपबीती ध्यान से सुनने लगे.

नेहा का काम समाप्त हुआ तब तक दोनों सहेलियों का स्टेशन आने में थोड़ा ही वक्त बचा था. वह महिला शायद अपनी आपबीती सुना चुकी थी क्योंकि पूजा उसे धैर्य बंधा रही थी कि उस की बेटी अपनी मां से सीख ले कर अवश्य कुछ बन कर दिखाएगी.

वह महिला अपनी सीट पर लौट गई तो नेहा अपनी उत्सुकता नहीं रोक सकी. पूछा, ‘‘कैसी है इस की बेटी?’’

‘‘क्लास की सब से डफर स्टूडैंट है. पास होने के भी लाले पड़ रहे हैं,’’ पूजा धीरे से उस के कान में फुसफुसाई.

‘‘तो फिर तुम ने उस से खरीखरी बात बोली क्यों नहीं कि वह अपनी बेटी से बेकार ही उम्मीद न लगाए?’’

‘‘तुम ने शायद गौर नहीं किया कि उस की जिंदगी कितनी संघर्षपूर्ण रही है. कितनी उम्मीदों से वह अपनी उस इकलौती संतान को पाल रही है और कितनी उम्मीद से वह मेरे पास आई थी. क्या वह अपनी बेटी और उस के कैलिबर को नहीं जानती? मु झ से बेहतर जानती है पर फिर भी उस ने उम्मीद नहीं छोड़ी है. निरंतर प्रयत्नरत है. तो मैं उस की उम्मीदें तोड़ने वाली कौन होती हूं? और हो सकता है कल को ये मांबेटी मु झे ही गलत सिद्ध कर दें बल्कि इस महिला का जीवट देख कर तो मैं चाहती हूं कि वह मु झे गलत सिद्ध करे… नेहा, सामने वाला जब दिल से सवाल कर रहा हो तो उसे दिमाग से जवाब देना मेरी नजर में तो अक्लमंदी नहीं है.’’

पूजा की बातों ने नेहा को गहराई तक प्रभावित किया. विशेषकर उस के कहे अंतिम वाक्य ने तो नेहा को आत्मविश्लेषण के लिए मजबूर कर दिया. अभी 4 दिन पहले की ही तो बात है. शादी में जाने की तैयारी निबटा कर वह लैपटौप पर प्रोजैक्ट का काम समाप्त कर लेने के इरादे से बैठी ही थी कि नहा कर बेहद रोमांटिक मूड में कमरे में घुसे विदित ने उसे बांहों में भर लिया.

‘‘इतने दिनों के लिए दूर जा रही हो. एडवांस में भरपाई करना तो बनता है जान.’’

नेहा  झटके से दूर खिसक गई, ‘‘नो विदित प्लीज. 4 दिन शादी में कुछ काम नहीं हो पाएगा. इसलिए मैं ने पहले से ही इस प्रोजैक्ट के लिए आज की डैडलाइन फिक्स कर दी थी. चाहे रातभर बैठना पड़े पर मु झे इसे आज पूरा करना ही होगा.’’

नेहा को याद आ रहा था सिर्फ यही नहीं प्यार में डूब कर विदित कई बार उस से अब 2 से 3 हो जाने का आग्रह भी कर चुका था पर नेहा को हर बार ही ऐसे अवसरों पर कभी अपनी प्रमोशन याद आ जाती तो कभी नए फ्लैट या कार की ईएमआई की डैडलाइन.

‘‘सालभर बाद मैं ऐसोसिएट होने वाली हूं. फिर प्लान करें तो बेहतर नहीं होगा? आखिर पेट में 9 महीने रख कर तो मु झे ही घूमना है न?’’

हर काम में सहयोग करने वाला विदित भला इस में क्या सहयोग कर सकता था?

इसलिए मन मार कर उसे अपनी उत्तेजना के आवेग को शांत करना पड़ा. इधर ऐसोसिएट हो जाने के बाद अब नेहा पर जल्द से जल्द वीपी बन जाने का भूत सवार हो गया था.

‘‘मैं ने वीपी बनने की डैडलाइन तय कर ली है… 2 साल के अंदरअंदर,’’ वह अकसर गर्व से कहती.

ऐसा नहीं कि प्रमोशन की चाह केवल नेहा को ही थी और विदित अपने कैरियर के प्रति सर्वथा उदासीन था. फर्क था तो बस इतना कि दोनों की प्राथमिकताएं अलग थीं. तभी तो विदित उस के सम्मुख छोटे से ले कर बड़ा प्रस्ताव तक दिल से रखता था. चाहे वह होटल में डिनर का प्रस्ताव हो या 2 से 3 हो जाने का प्रस्ताव. लेकिन उस ने आज तक रखे ऐसे हर प्रस्ताव का जवाब दिमाग से दे कर विदित को कितना हर्ट किया है इस का एहसास नेहा को आज हो रहा था.

मोबाइल बजा तो नेहा की चेतना लौटी. बौस का फोन था. स्टेशन से सीधे औफिस आने का निर्देश था. जरूरी मीटिंग रखी गई थी.

‘‘पर सर एक बार फ्रैश…’’ नेहा ने कहना चाहा.

‘‘हमारा औफिस घर जैसी सुविधाएं इसीलिए उपलब्ध करवाता है ताकि कर्मचारी का बेकार समय नष्ट न हो. नेहा, तुम औफिस आ कर भी फ्रैश हो सकती हो,’’ और उधर से फोन काट दिया गया.

बहस की कोई गुंजाइश न देख नेहा खुद को सीधे औफिस जाने के लिए तैयार

करने लगी. तभी विदित की कौल आ गई, ‘‘हाय डार्लिंग, कैसी रही विजिट? मैं तुम्हें लेने स्टेशन निकल रहा हूं.’’

‘‘नहींनहीं, तुम मत आना. मैं तुम्हें फोन करने ही वाली थी. बौस ने गाड़ी भेज दी है. मु झे सीधे औफिस पहुंचना होगा. जरूरी मीटिंग है.’’

‘‘क्या जानू, इतने दिनों बाद आई हो और… अच्छा, शाम को घर जल्दी पहुंचने की कोशिश करना. मेरा यार बलजीत डिनर पर आ रहा है अपनी नईनवेली दुलहन के साथ. हम लोग तो उस की शादी में भी नहीं जा पाए थे.’’

‘‘पर मैं डिनर कैसे मैनेज करूंगी? आई मीन इतने दिनों बाद लौटी हूं. घर में क्या है, क्या नहीं पहले देखना पड़ेगा तभी तो कुक को बता बताऊंगी कि क्या बनाना है?’’ हमेशा की तरह वर्कप्रैशर बढ़ते ही नेहा  झल्ला उठी थी.

‘‘ओके रिलैक्स डार्लिंग, तुम चिंता मत करो. खाना मैं बाहर से पैक करवा कर ले आऊंगा. तुम बस डिनर टाइम तक घर जरूर पहुंच जाना.’’

‘‘ठीक है, मैं कोशिश करूंगी,’’ एक ठंडी सांस छोड़ते हुए नेहा ने फोन बंद कर दिया.

‘‘4 दिन वहां शादी में नैटवर्क नहीं मिल रहा था तो कितने आराम से दिन गुजरे. घर पहुंचने से पहले ही फिर वही आपाधापी वाली जिंदगी शुरू हो गई.

न जाने वैसे चिंतामुक्त दिन फिर कब मिलेंगे?’’ नेहा ने गौर किया उस की मनोस्थिति से सर्वथा अनजान पूजा अपने फोन पर लगी हुई थी.

‘‘चुनचुन ने ज्यादा परेशान तो नहीं किया न तुम्हें? क्या? अच्छा जनाब. मेरे बिना बापबेटी ज्यादा आराम से रहे. ठीक है तो फिर मैं घर ही क्यों लौटूं? मैं अपनी फ्रैंड के यहां जा रही हूं… क्या? घंटे भर से स्टेशन पर सूख रहे हो? हाय, उफ, तो इतनी जल्दी लेने क्यों आए? अच्छा अब कुछ नारियल पानी या जूस वगैरह पी लो और चुनचुन को भी पिला दो. उस से कहना ममा उस के लिए बहुत सुंदर फ्रौक ले कर आई है… तुम्हारे लिए? कुछ नहीं… अरे बाबा, ऐसा हो सकता है कि बाहर जाऊं और तुम्हारे लिए कुछ न लाऊं? सरप्राइज है, घर पहुंच कर बताऊंगी… क्या मेरे लिए भी घर पर सरप्राइज है? क्या? बताओ न?’’ पूजा आस पास का सबकुछ भूल फोन पर ही बच्चों की तरह ठुनकने लगी थी. उसे देख कर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था कि वह एक बेहद जिम्मेदार और अनुभवी शिक्षिका है. नेहा को अपनी ओर टकटकी बांधे देख पूजा लजा गई और सामान समेटने का उपक्रम करने लगी.

खाली होती रेल नेहा को अपने अंदर भी एक रीतेपन का एहसास करा रही थी. पूजा को गरमजोशी और आत्मीयता से पति और बच्ची से मिलते देख रीतेपन की यह कसक और भी गहरा उठी. ड्राइवर ने आगे बढ़ कर उस के हाथ से सूटकेस थाम लिया तो नेहा जल्दीजल्दी कदम बढ़ा कर गाड़ी में जा कर बैठ गई.

पूरा दिन एक के बाद एक मीटिंग और प्रेजैंटेशन ने उसे बुरी तरह थका दिया, ‘आज तो घर लौट कर भी आराम नहीं है,’ सोचते हुए नेहा घर में घुसी तो मनपसंद गरमगरम सूप की सुगंध ने उस के मुंह में पानी भर दिया.

‘‘आओ नेहा, बिलकुल सही वक्त पर आई हो. पहले अपना फैवरिट सूप पी कर थकान मिटा लो. फिर चेंज वगैरह कर लेना. बलजीत से तो तुम पहले मिल ही चुकी हो. ये जस्सीजी हैं. इन्होंने तो आते ही साधिकार रसोई संभाल ली है. मेरे मना करतेकरते भी देखो सूप गरम कर के ले ही आईं.’’

नेहा ने थैंक्यू कहते हुए सूप उठा लिया. बोली, ‘‘इस वक्त मु झे वाकई इस की बहुत जरूरत थी. सौरी जस्सीजी, जो काम मु झे करना चाहिए था आप को करना पड़ रहा है.’’

‘‘अरे कोई गल नहीं भरजाईजी. जस्सी तो जहां जाती है उस घर और घर वालों को अपना बना कर छोड़ती है. मेरे तो सारे घर वालों को इस ने अपने वश में कर लिया है. घर में कोई मेरी तो सुनता ही नहीं, सब इसी की बात मानते हैं. आज तो इस ने खाना लगाया ही है, कभी बनवा कर देखो. उंगुलियां चाटते रह जाओगे,’’ बलजीत ने गर्व से कहा तो जस्सी लजा गई.

नेहा को पूरी उम्मीद थी विदित यह मौका हाथ से नहीं जाने देंगे. अब वे अवश्य दोस्त के सामने अपने दिल की भड़ास निकालेंगे. अत: चेंज करने के बहाने वह उठ कर अंदर चली गई. चेंज कर के रसोई में पहुंची तो पाया जस्सी वहां पहले से मौजूद थी. विदित द्वारा पैक करवा कर लाया खाना वह डोगों में सजा रही थी.

‘‘बलजीत भैया आप की तारीफ ठीक ही कर रहे थे. आप वाकई गृहलक्ष्मी हैं,’’ नेहा कहे बिना नहीं रह सकी.

‘‘अरे, असली तारीफ तो अब हो रही है. ध्यान से सुनिए,’’ जस्सी ने कहा तो नेहा कान लगा कर सुनने लगी. विदित यह सब क्या कह रहा है? नेहा को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था.

‘‘बलजीत, नेहा मेरे लिए बहुत खास है. वह आम महिलाओं की तरह चूल्हाचैका संभालने या बच्चे पैदा करने के लिए नहीं बनी है. कुदरत ने उसे किसी खास प्रयोजन हेतु इस दुनिया में भेजा है. अपने काम के प्रति उस का समर्पण ऐसा है कि बड़ेबड़े प्रोजैक्ट वह डैडलाइन तय कर चुटकियों में तैयार कर लेती है. मगर बेचारी को इस की कीमत भी चुकानी पड़ रही है. अब आज का ही उदाहरण ले लो. बेचारी सहेली की शादी से लौटी नहीं कि इधर मैं ने उम्मीदें लगानी शुरू कर दीं. उधर उस के बौस ने तो गाड़ी भेज कर स्टेशन से ही औफिस बुलवा लिया. इसलिए मेरा प्रयास रहता है उस पर घर परिवार की कम से कम जिम्मेदारियां लादूं ताकि वह अपना प्रबुद्ध दिमाग और बेशकीमती समय बड़ेबड़े कामों में लगा सके.’’

‘‘आप तो बहुत लकी हैं भाभी,’’ कहते हुए जस्सी ने आत्मीयता से नेहा के गालों पर लुढ़क आए आंसू पोंछ दिए तो नेहा की तंद्रा लौटी. कुछ पलों के लिए शायद वह किसी और ही दुनिया में चली गई थी.

रात में विदित चेंज कर बैडरूम में घुसे तो चौंक उठे. नेहा बत्ती बु झाए आकर्षक नाइटी में बिस्तर पर उन का इंतजार कर रही थी.

‘‘आज तो जनाब के तेवर कुछ बदलेबदले लग रहे हैं,’’ फिर लैपटौप की ओर इंगित करते हुए कहा, ‘‘गोद का बच्चा भी इधर छिटका पड़ा है. आज की कोई डैडलाइन तय नहीं कर रखी है क्या?’’

‘‘कर रखी है न, 2 से 3 होने की,’’ कह नेहा ने शरारत से विदित को रजाई में खींच लिया.

मानसून के लिए बैस्ट हैं ये 3 नेचुरल फेस स्क्रब, आप भी करें ट्राई

मानसून का मौसम हमारी त्वचा के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय हो सकता है. नमी और उमस के कारण त्वचा तैलीय और बेजान हो जाती है. ऐसे में चेहरे की सही देखभाल बेहद महत्वपूर्ण है. फेस स्क्रब का नियमित उपयोग त्वचा को साफ, ताजा और चमकदार बनाए रखने में मदद करता है. बदलते मौसम के कारण हमारी त्वचा में कई परिवर्तन होते हैं, जो विभिन्न त्वचा प्रकारों पर अलग-अलग तरीके से प्रभाव डालते हैं. आइए, जानें कि मानसून के मौसम में त्वचा पर क्या प्रभाव पड़ता है. मानसून के मौसम में त्वचा की देखभाल अत्यंत महत्वपूर्ण होती है. विभिन्न त्वचा प्रकारों पर मानसून का अलग-अलग प्रभाव होता है, इसलिए सही स्किनकेयर रूटीन अपनाना आवश्यक है. एक्सफोलिएशन त्वचा की सफाई और नमी संतुलन बनाए रखने में मदद करता है, जिससे त्वचा स्वस्थ और चमकदार बनी रहती है. इस मौसम में नियमित एक्सफोलिएशन को अपने स्किनकेयर रूटीन में शामिल करें और खूबसूरत त्वचा का आनंद लें.

विभिन त्वचाओं पर मानसून का प्रभाव

तैलीय त्वचा: तैलीय त्वचा वाले लोगों को मानसून के मौसम में अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. हवा में नमी की मात्रा बढ़ जाने के कारण त्वचा की तेल ग्रंथियां अधिक सक्रिय हो जाती हैं, जिससे त्वचा पर तेल और पसीना अधिक मात्रा में आता है. इससे पोर क्लोजिंग और मुंहासों की समस्या हो सकती है.

शुष्क त्वचा: शुष्क त्वचा वाले लोगों को मानसून के मौसम में भी नमी की कमी महसूस हो सकती है. त्वचा की बाहरी परत में पानी की मात्रा कम हो जाती है, जिससे त्वचा खुरदरी और रूखी हो जाती है. नमी की कमी के कारण त्वचा पर खुजली और जलन भी हो सकती है.

कॉम्बिनेशन त्वचा: संवेदनशील त्वचा वाले लोगों को मानसून के मौसम में एलर्जी और संक्रमण का खतरा अधिक होता है. हवा में बढ़ी हुई नमी और प्रदूषण से त्वचा में जलन और लालिमा हो सकती है. संवेदनशील त्वचा पर छोटे-छोटे दाने और रैशेज भी हो सकते हैं.

सामान्य त्वचा: सामान्य त्वचा वाले लोगों को मानसून के मौसम में कुछ हद तक राहत मिलती है, लेकिन वे भी इस दौरान त्वचा संबंधी समस्याओं से पूरी तरह मुक्त नहीं रहते. मानसून के मौसम में त्वचा की नमी संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण होत  है.

एक्सफोलिएशन का महत्व

मानसून के मौसम में एक्सफोलिएशन बहुत महत्वपूर्ण होता है. यह प्रक्रिया हमारी त्वचा की मृत कोशिकाओं को हटाने में मदद करती है, जिससे त्वचा की नमी संतुलित रहती है और त्वचा चमकदार और स्वस्थ दिखती है.

मानसून के मौसम के लिए तीन बेहतरीन फेस स्क्रब

यहां हम तीन ऐसे ष्ठढ्ढङ्घ फेस स्क्त्रब के बारे में बताएंगे, जो आप आसानी से घर पर बना सकते हैं और मानसून के मौसम में अपनी त्वचा को स्वस्थ रख सकते हैं.

ओट्स और शहद फेस स्क्रब: ओट्स एक नेचुरल एक्सफोलिएटर है जो त्वचा से मृत कोशिकाओं को हटाने में मदद करता है. शहद त्वचा को मॉइस्चराइज करता है और दही त्वचा को शीतलता और चमक प्रदान करता है. यह स्क्त्रब तैलीय त्वचा के लिए विशेष रूप से लाभकारी है, क्योंकि यह अतिरिक्त तेल को हटाने में मदद करता है.

सामग्री: 2 बड़े चम्मच ओट्स, 1 बड़ा चम्मच शहद, 1 बड़ा चम्मच दही.

विधि: ओट्स को अच्छे से पीस लें ताकि यह पाउडर की तरह बन जाए. एक कटोरी में ओट्स पाउडर, शहद और दही को मिलाएं.

इस मिश्रण को अपने चेहरे पर लगाएं और हल्के हाथों से 5-10 मिनट तक मसाज करें. इसके बाद गुनगुने पानी से चेहरा धो लें.

कॉफी और नारियल तेल फेस स्क्रब: कॉफी पाउडर त्वचा को एक्सफोलिएट करता है और उसे तरोताजा करता है. नारियल तेल त्वचा को गहराई से मॉइस्चराइज करता है और चीनी त्वचा की सतह को कोमल बनाती है. यह स्क्रब सूखी त्वचा के लिए बहुत अच्छा है और त्वचा को नमी प्रदान करता है.

सामग्री: 2 बड़े चम्मच कॉफी पाउडर, 1 बड़ा चम्मच नारियल तेल, 1 बड़ा चम्मच चीनी.

विधि: एक कटोरी में कॉफी पाउडर, नारियल तेल और चीनी को मिलाएं.

इस मिश्रण को अपने चेहरे पर लगाएं और हल्के हाथों से गोलाकार गति में मसाज करें. 5-7 मिनट के बाद चेहरा गुनगुने पानी से धो लें.

बेसन और हल्दी फेस स्क्रब: बेसन त्वचा को साफ और उज्ज्वल बनाता है, हल्दी एंटीसेप्टिक और एंटीइन्फ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होती है जो त्वचा की समस्याओं को दूर करने में मदद करती है. गुलाब जल त्वचा को ताजगी प्रदान करता है. यह स्क्रब संवेदनशील त्वचा के लिए बहुत अच्छा है और त्वचा को प्राकृतिक चमक देता है.

सामग्री: 2 बड़े चम्मच बेसन, 1/2 छोटा चम्मच हल्दी, 2 बड़े चम्मच गुलाब जल.

विधि: एक कटोरी में बेसन, हल्दी और गुलाब जल को मिलाएं. इस मिश्रण को अपने चेहरे पर लगाएं और हल्के हाथों से मसाज करें. 10 मिनट के बाद चेहरा ठंडे पानी से धो लें.

स्क्रब के उपयोग के टिप्स

सप्ताह में दो बार करें स्क्रब: चेहरे पर स्क्त्रब का अत्यधिक उपयोग त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए सप्ताह में केवल 2 बार ही स्क्रब करें.

हल्के हाथों से करें मसाज: स्क्रब करते समय हमेशा हल्के हाथों से मसाज करें ताकि त्वचा पर खरोंच न आए.

स्क्रब के बाद मॉइस्चराइजर का उपयोग करेंर् स्क्रब करने के बाद त्वचा को मॉइस्चराइज करना बेहद जरूरी है ताकि त्वचा में नमी बरकरार रहे.

प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करें: स्क्रब बनाते समय हमेशा ताड़ी और प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करें ताकि त्वचा को किसी भी प्रकार की हानि न हो.

पैच टेस्ट अवश्य करे: किसी भी बनाये गए ष्ठढ्ढङ्घ को लगाने से पहले थोड़ा सा त्वचा पर लगा कर जरूर चेक करें की किसी प्रकार का नुक्सान न हो.

मानसून के मौसम में त्वचा की देखभाल

के लिए इन ष्ठढ्ढङ्घ फेस स्क्त्रब का उपयोग करना बेहद फायदेमंद हो सकता है. यह न केवल त्वचा को साफ और तरोताजा बनाए रखते हैं, बल्कि त्वचा को पोषण भी प्रदान करते हैं. इन सरल और प्रभावी स्क्रब्स को घर पर बनाकर आप मानसून में भी अपनी त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाए रख सकते हैं. नियमित रूप से इन स्क्रब्स का उपयोग करें और पाएं एक चमकदार और स्वस्थ त्वचा.

-ब्लॉसम कोचर, सौंदर्य विशेषज्ञा द्

अधूरा ज्ञान देता मोबाइल

सोशल मीडिया ने आज आम लोगों की खासतौर पर  लड़कियों, औरतों, मांओं, प्रौढ़ों, वृद्धाओं की सोच को कुंद कर दिया है क्योंकि उन्हें लगता है कि जो उन के मोबाइल की स्क्रीन पर दिख रहा है वही अकेला और अंतिम सच है, वही देववाणी है, वही धर्मादेश है, वही हो रहा है. अब यह न कोई बताने वाला बचा है कि जो दिखा है वह उस का भेजा है जो आप जैसी सोच का है, आप के वर्ग का है, आप की बिरादरी का है क्योंकि सोशल मीडिया चाहे अरबों को छू रहा हो, एक जना उन्हीं को फौलो कर सकता है जिन्हें वह जानता है या जानना चाहता है.

सोशल मीडिया की यह खामी कि इसे कोई ऐडिट नहीं करता, कोई चैक नहीं करता. इस पर कमैंट्स में गालियां तक दी जा सकती हैं. सोशल मीडिया को जानकारी का अकेले सोर्स मानना सब से बड़ी गलती है. यह दिशाहीन भी है, यह भ्रामक भी है,  झूठ भी है. यह जानकारी दे रहा है पर टुकड़ों में.

नतीजा यह है कि आज की लड़कियां, युवतियां, मांएं, औरतें पढ़ीलिखी व कमाऊ होते हुए भी देश व समाज को बदलने के बारे में न कुछ जान पा रही हैं, न कह पा रही हैं, न कर पा रही हैं क्योंकि उन्हें हर बात की जानकारी अधूरी है. यह उन से मिली है जो खुद अनजान हैं, उन के अपने साथी हैं. सभी प्लेटफौर्मों से आप उन्हीं के पोस्ट देखते हो जिन्हें फौलोे कर रहे हों और अगर कहीं महिलाओं के अधिकारों की बात हो भी रही हो तो वह दब जाती है क्योंकि जो फौरवर्ड कोई नहीं कर रहा. औरतों की समस्याएं कम नहीं हैं. आज भी हर लड़की पैदा होते ही सहमीसहमी रहती है. उसे गुड टच बैड टच का पाठ पढ़ा कर डरा दिया जाता है. उसे मोबाइल पकड़ा कर फिल्मों, कार्टूनों में उल झा दिया जाता है. उसे घर से बाहर के वायलैंस के सीन इतने दिखते हैं कि वह हर समय डरी रहती है. हर समय घर में मोरचा तो खोले रहती हैं पर घर के बाहर का जीवन क्या है यह उसे पता ही नहीं होता.

हमारी टैक्स्ट बुक्स आजकल एकदम खाली या भगवा पब्लिसिटी का सोर्स बन गई हैं. उन से जीने की कला नहीं आती. घरों में मोबाइल और सोशल मीडिया की वजह से संवाद कम हो जाता है, अनजानों की रील्स और आधीअधूरी जानने वालों की पोस्टों से ही फुरसत नहीं होती कि घर में रहने वाले कैसे रह रहे हैं, क्या सोच रहे हैं, क्या कर रहे हैं. यह संवादहीनता ही घरों में विवादों की जड़ है. कोई दूसरे को सम झ ही नहीं रहा क्योंकि मोबाइल पर एकतरफा बात हो रही है और यह बात भी ऐसी कि अगर अच्छी हो तो उसे संजो कर नहीं रख सकते.

धर्म वाले अभी भी धंधा चालू रख रहे हैं. वे मोबाइलों पर आरतियों, कीर्तनों, धार्मिक उपदेशों,  झूठी महानता की कहानियों, रीतिरिवाजों को विज्ञान से जोड़ कर बकवास पोस्ट करे जा रहे हैं. चूंकि सोशल मीडिया एक तरफा मीडियम है, उसे देखने वालों को सच झूठ पता नहीं चल पा रहा. यह औरतों को ज्यादा भयभीत कर रहा है क्योंकि आज भी उन्हें डर है कि उन का बौयफ्रैंड या पति धोखा न दे जाए. औरतों को जो कहना होता है वे अब कह नहीं पा रहीं क्योंकि ऐसे प्लेटफौर्म कम होते जा रहे हैं, जहां कुछ गंभीर कहा जा सकता था.

बलौर्ग्स को भी इंस्टाग्राम और यूट्यूब को शौर्ट रील्स की फालतू की चुहुलबाजी, बेमतलब की ड्रैसों, फूहड़ नाचगानों ने कहीं पीछे कोने में धकेल दिया है.

जीवन आज भी फिजिकल चीजों से चलता है. सिर्फ पढ़ने या जानने के अतिरिक्त सबकुछ फिजिकल है, ब्रिक ऐंड मोर्टार का है, वर्चुअल नहीं है. आज जो भी हमारे चारों ओर है वह फिजिकल वर्ल्ड की देन है, यहां तक कि मोबाइल भी जो ब्रिक ऐंड मोर्टार व इंजीनियरिंग मशीनों से भरी फैक्टरियों से निकलते हैं, दुकानों में बिकते हैं. इस फिजिकल वर्ल्ड को भूल कर वर्चुअल वर्ल्ड में खो जाना एक तरह से धर्म की जीत है जो चाहता है कि भक्त काम करें पर फिजिकल चीजें उसे दे दें और खुद भक्ति में रमे रहें, किसी भगवान के आगे पसरे रहें, दान देते रहें.

फिजिकल वर्ल्ड का नुकसान आम लड़कियों को हो रहा है, युवतियों को हो रहा है, प्रौढ़ मांओंको हो रहा है, वृद्धाओं को हो रहा है जिन के पास अपना कहने को सिर्फ मोबाइल पर आने वाली सैकड़ों की तसवीरें और जल्दी मिट जाने वाले शब्दों के अलावा कुछ ज्यादा नहीं. अंबानी, अडानी, ऐलन मस्क को छोड़ दीजिए. वे धार्मिक कौंसपिरेसी का हिस्सा हैं, औरतों के दुश्मन हैं, उन्हें नाचने, अपनी वैल्थ दिखाने के लिए पास रखते हैं.

घर पर बनाएं रेस्टोरैंट स्टाइल गोभी मंचुरियन, ये रही रेसिपी

गोभी मंचूरियन एक देसी चाइनीज व्यंजन है जो ज्यादातर रेस्टोरैंट में मिलता है और सभी उम्र के लोगों का पसंदीदा है. अपने घर पर रेस्टॉरंट जैसा स्वादिष्ट और कुरकुरा गोभी मंचूरियन बनाने की विधि जानें.

हमें चाहिए

पकोड़े बनाने के लिए:

1 कप कद्दूकस की हुई गोभी

1 बारीक कटी हुई हरी मिर्च

1 छोटा चम्मच कटा हुआ अदरक

1/4 कप बेसन

नमक स्वादानुसार

2 कप (300 मिलीलीटर) पानी

तलने के लिए तेल

1 पैकेट चिंग्स सीक्रेट वेज मंचूरियन मसाला

1 कप (100 ग्राम) कटी हुई सब्जी – प्याज, गाजर, शिमला मिर्च

गार्निशिंग के लिए कटे हुए हरे प्याज का पत्ता

बनाने का तरीका

  1. कद्दूकस की हुई गोभी से पानी बाहर निचोड़ दें और पैन में डालें.
  2. 1 इंच बारीक कटा हुआ अदरक डालें.
  3. मिश्रण में मिर्च, बेसन और नमक डालें और अच्छी तरह मिलाएँ.
  4. छोटे आकार के गोले बनाएं और एक तरफ गहरे तलने (डीप फ्राई) के लिए रखें. अतिरिक्त तेल निकालें.
  5. वेज मंचूरियन मसाला का एक पैक एक कटोरे में डालें और उसमें पानी डालें. इससे अच्छी तरह से मिलाएं.
  6. पैन में 3 चम्मच तेल गरम करें. उसमें कटा हुआ प्याज, शिमला मिर्च और गाजर डालें और फ्राई करें. ज़्यादा न पकाएं.

7. इसमें पानी और वेज मंचूरियन मसाला मिश्रण मिलाएं. इस मिश्रण में गोभी के गोलों को डालें, 15 मिनट तक उबालें और ग्रेवी गाढ़ी होने पर गैस बंद कर दें. कटे हुए हुआ हरे प्याज पत्ते के साथ गार्निश करें और गर्म परोसें.

रेसिपी सहयोग: शेफ प्रणव जोशी

अबौर्शन के कारण मेरी मैरिड लाइफ में प्रौब्लम हो रही है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 35 वर्षीय विवाहिता हूं. मेरी 13 साल की बेटी है. 2 बार गर्भपात से भी गुजर चुकी हूं. मेरी वैजाइना बिलकुल ढीली हो गई है. इस वजह से मेरे पति और मुझे सैक्स के समय संतुष्टि नहीं मिलती. कोई ऐसा इलाज बताएं जिस से कि यह पहले जैसी टाइट हो जाए. इंटरनैट पर मैं ने कुछ जैल क्रीम के बारे में पढ़ा था. क्या जैल क्रीम असरदायक होती है? पति औपरेशन के लिए राजी नहीं हैं. बताएं, क्या करूं? 

जवाब-

आप का इशारा शायद ऐस्ट्रोजन युक्त क्रीम और जैली की ओर है. इस की उपयोगिता उन महिलाओं के लिए होती हैं, जो मेनोपौज से गुजर चुकी होती हैं, जिन के शरीर में प्राकृतिक रूप से ऐस्ट्रोजन बनना बंद हो चुका होता है उन की योनि की प्राकृतिक नमी भी खत्म हो चुकी होती है. यह स्थिति 45 से 50 साल की उम्र के बाद ही कुछ महिलाओं में देखने को मिलती है. उस शुष्क हुई योनि की अंदरूनी सतह में कोशिकीय भरणपोषण और तरलता लौटाने में ऐस्ट्रोजन युक्त क्रीम उपयोगी सिद्ध होती है. आप के मामले में जरूरत योनि की ढीली हुई पेशियों में फिर से पहले जैसी चुस्ती लौटाने की है. इस के लिए नियम से श्रोणि पेशियों का व्यायाम करें. यह व्यायाम बिलकुल सरल है. आप इसे लेटे हुए, बैठे हुए या खड़े हुए किसी भी मुद्रा में कर सकती हैं. बस, श्रोणि पेशियों को इस प्रकार सिकोड़ें और भींच कर रखें मानो मूत्रत्याग की क्रिया पर रोक लगा रही हैं. 10 की गिनती तक श्रोणि पेशियों को भींचे रखें और फिर उन्हें ढीला छोड़ दें. अगले 10 सैकंड तक श्रोणि पेशियों को आराम दें. इस के लिए 10 तक गिनती गिनें. यह व्यायाम पहले दिन 10-12 बार दोहराएं. फिर धीरेधीरे बढ़ाते हुए सुबहशाम 20-25 बार करने का नियम बना लें. 2-3 महीनों के भीतर ही आप योनि की पेशियों को फिर से कसा हुआ पाएंगी.

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प्रैग्नेंसी में रखें ये हैल्दी आदतें, मां और बच्चा दोनों रहेंगे सुरक्षित

गर्भावस्था के दौरान मां की सेहत का तुरंत और लंबे समय में बच्चे की सेहत पर गहरा प्रभाव पड़ता है. गर्भकाल की डायबिटीज और एनीमिया, यानी कि मां में एनीमिया और डायबिटीज बच्चे की सेहत पर बुरा असर डाल सकते हैं. मां में एनीमिया हो तो बच्चे का जन्म के समय 6.5 प्रतिशत मामलों में वजन कम होने और 11.5 प्रतिशत मामलों में समय से पहले प्रसव की समस्या हो सकती है. गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की वजह से बच्चे को 4.9 प्रतिशत मामलों में एनआईसीयू (नवजात गहन चिकित्सा इकाई) में भरती होने और 32.3 प्रतिशत मामलों में सांस प्रणाली की समस्याएं होने का खतरा रहता है.

गर्भावस्था में इन समस्याओं की वजह से पैदा हुए बच्चों में मोटापे, दिल के विकार और टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा उम्रभर रहता है.

गर्भावस्था के दौरान हाइपरटैंशन, जो कि 20वें सप्ताह में होता है, पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है. इस से गर्भनाल (एअंबीलिकल कौर्ड) की रक्तधमनियां सख्त हो जाती हैं जिस से भू्रूण तक औक्सीजन और पोषण उचित मात्रा में नहीं पहुंच पाता. इस वजह से गर्भाशय में बच्चे की वृद्धि में रोक, जन्म के समय बच्चे का कम वजन, ब्लडशुगर में कमी और लो मसल टोन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कुछ मामलों में आगे चल कर किशोरावस्था में बच्चे में हाइपरटैंशन की समस्या भी हो सकती है.

मां में मोटापा हो तो गर्भावस्था में डायबिटीज होने की संभावना होती है जिस वजह से समय से पहले प्रसव और बच्चे में डायबिटीज व मोटापा होने के खतरे रहते हैं. गर्भावस्था के दौरान मां के पोषण में मामूली कमी का भी प्रतिकूल असर बच्चे की सेहत पर पड़ सकता है, जैसे कि गर्भावस्था में विटामिन डी की कमी से आगे चल कर जच्चा और बच्चा दोनों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

डा. संजय कालरा, कंसल्टैंट एंडोक्राइनोलौजिस्ट, भारती हौस्पिटल, करनाल एवं वाइस पै्रसिडैंट, साउथ एशियन फैडरेशन औफ एंडोक्राइन सोसायटीज, कहते हैं कि अगर मां को गर्भावस्था में डायबिटीज या हाइपरटैंशन हो जाए तो बच्चे की सेहत का, खासतौर पर शुरुआती दिनों में, पूरा ध्यान रखना चाहिए. बच्चे के ग्रोथ चार्ट पर नियमित ध्यान देते रहना चाहिए और रोगों की रोकथाम वाली जीवनशैली अपनानी चाहिए. आहार में आयरन, फोलेट और विटामिन बी12 की कमी की वजह से गर्भवती महिलाओं में एनीमिया होने की संभावना काफी ज्यादा होती है.

गर्भावस्था में आयरन की अत्यधिक जरूरत होने की वजह से यह समस्या और भी बढ़ जाती है. एनीमिया की वजह से गर्भनाल से भ्रूण तक औक्सीजन जाने में कमी से शिशु के विकास में कमी हो सकती है और एंडोक्राइन ग्रंथि की कार्यप्रणाली पर असर पड़ सकता है.

भारतीय महिलाओं को आयरन और हेमाटोपौयटिक (रक्तोत्पादक) विटामिन देने चाहिए ताकि गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के दौरान हीमोग्लोबीन का उचित स्तर बना रहे. गर्भावस्था में डायबिटीज और हाइपरटैंशन के  आने वाले जीवन में पड़ने वाले प्रभावों से बचने के लिए मां और बच्चे दोनों को ही रोगों की रोकथाम वाली जीवनशैली अपनानी चाहिए.

अलग धरातल : घर छोड़ने के बाद वह मां को क्यों इतना याद कर रही थी

Writer- Vimla Rastogi

सुबह  व दोपहर के बाद शाम भी होने जा रही थी. समय के हर पल के साथ मेरी बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी. हर आहट पर मैं चौंक उठती. दुविधा, आशंकाएं मेरे सब्र पर हावी होती जा रही थीं. खिड़की पर जा कर देखती, कुसुम का कहीं पता न था. क्यों नहीं आई अब तक? शायद बस न मिली हो. देरी का कोई भी कारण हो सकता है. मैं अपने मन को सम झाने का असफल प्रयास करती रही. तभी मैं ने संतोष की सांस ली. सामने बैग लिए कुसुम खड़ी थी. इस से पहले कि मैं अपनी बेचैनी जाहिर करती, उस के पैरों की शिथिलता ने मु झे भी शिथिल बना दिया. वह रेंगते कदमों से सोफे पर धंस गई.

‘‘बात नहीं बनी?’’ मैं ने स्वयं को संयत कर पूछा.

‘‘हां, तरू. अशोक किसी भी कीमत पर सम झौता करने को तैयार नहीं है.’’

‘‘तू ने मेरी तरफ से…’’

‘‘हां, मैं ने हर तरीके से सम झा दिया. वह यही कहता रहा कि अब हम दोनों के धरातल अलगअलग हैं. एक ही मकान अलगअलग नींवों पर खड़ा नहीं हो सकता.’’

‘‘सच है उस का कहना. अपनी बरबादी का कारण मैं स्वयं हूं. मु झे अपने किए का फल मिलना ही चाहिए ताकि दूसरी लड़कियां मु झ से कुछ सीख सकें. मेरे जैसी गलतियां दोहराई न जाएं.’’

‘‘सच तरू तू ने अकारण ही अपना बसाबसाया घर उजाड़ डाला.’’

‘‘हां कुसुम मेरे  झूठे अहं ने मु झे कहीं का न छोड़ा. तू तो मेरे बारे में बहुत कुछ जानती है. पर जिंदगी के कुछ खास अध्याय मैं तु झे विस्तार से बताना चाहती हूं. पश्चात्ताप की जलन ने मु झे मेरी भूलों का एहसास करा दिया है. उस दिन भी मंगलवार ही था. मैं दफ्तर से आई थी तो उठी तो 7 बज चुके थे. खुद को ठीक किया. कमरा सुबह से अस्तव्यस्त पड़ा था. तभी अशोक आ गए.

‘‘बुक करा लिया टिकट?’’ प्रश्न बंदूक की गोली सा उन पर दाग दिया गया.

‘‘बताता हूं. पहले एक कप चाय हो जाए.’’

‘‘चाय पीने में देर हो जाएगी, वहीं कैफे में पी लेंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘हम तो तुम्हारे हाथ की बनी चाय ही पीएंगे,’’ अशोक बोले.

‘‘देखो, बातों में मत फुसलाओ. साफसाफ बताओ कि टिकट बुक किया या नहीं?’’

‘‘दरअसल…’’

‘‘हांहां, सोच लो कोई बहाना,’’ मैं ने कहा.

‘‘बहाना नहीं, सच कह रहा हूं. आज

दफ्तर में बहुत काम था. बीच में 1-2 बार ट्राई किया पर साइट विजी थी इसलिए हो न सका.’’

‘‘यह काठ का रैक बुक करने की फुरसत तुम्हें मिल गई, म्यूजिक कंसर्ट के टिकट के

लिए नहीं.’’

‘‘अरे बाबा, यह तो सुबह और्डर कर दिया था. सख्त जरूरत थी इस की. डब्बे इस रैक में लग जाने से कमरा खाली दिखाई देगा.’’

‘‘जब देखो कमरे की सफाई, सामान को ठीक ढंग से लगाने पर जोर, इस तरह के कभीकभार होने वाले लाइव व म्यूजिक को

जाने को मन ही कब करता है तुम्हारा? तुम तो खुश होगे कि 3-4 हजार रुपए भी बच गए.’’

‘‘तरू, तुम हर बात कितनी आसानी से कह जाती हो.’’

‘‘क्या गलत कहा है? तुम हर समय पैसे का खयाल करते हो.’’

‘‘कहीं भी कुछ भी शुरू करने से पहले अपनी जेब तो देखनी ही पड़ती है.’’

‘‘जेब को इतना ही देखना था तो फिर शादी क्यों की?’’ मेरा क्रोध अग्नि बनता जा रहा था और उन का धैर्य पानी.

‘‘‘तरू, नाहक परेशान न हो. यह स्टार तो आतेजाते रहते हैं. अगली बार चल चलेंगे.’’

इस सिंगर को लाइव देखने का कितना मन था. स्टेडियम का मैदान पूरा भरा होगा. जो थ्रिल होगी उस की कल्पना नहीं कर सकते. फिर कब होगा किसे पता? हो सकता है तुम्हारा कोई दोस्त, पुरानी गर्लफ्रैंड, रिश्तेदार ही आ धमके.

‘‘तरू, बात कहने से पहले सोच तो लिया करो.’’

‘‘तुम ने शादी से पहले कुछ सोचा था? लोगबाग अपनी बीवियों के लिए क्या कुछ नहीं करते? एक तुम हो कि एक कमरे के मकान में ला कर डाल दिया कि लो बना लो अपने रहनसहन का स्तर. एक दिन भी खुशी प्राप्त नहीं हुई. मेरी नौकरी न होती तो इस का किराया भी न दे पाते.’’

‘‘खुशी मन की होती है. तुम कभी किसी बात से संतुष्ट ही नहीं होतीं. मेरी तो बराबर तुम्हें खुश रखने की कोशिश रहती है.’’

‘‘बातें खूब कर लेते हो.’’

‘‘क्यों? तुम्हारे कहने पर ही तो मैं ने

यहां शहर में बदली कराई है वरना मौमडैड

के साथ रहते. खर्चा भी कम होता, तुम्हें आराम भी मिलता.’’

‘‘मेरे बस का नहीं था उस छोटी सी

जगह घर में घुसते ही सिर ढकेढके काम करना, दब कर रहना. मौम की किट्टी सहेलियों की

सेवा करना.’’

‘‘पर अफसोस तो यह है कि तुम यहां आ कर भी खुश नहीं हो.’’

‘‘यहां कितना घुमाफिरा रहे हो तुम मु झे?’’

‘‘केवल घूमना ही सुख नहीं है. शादी से पहले क्या घूमती ही रहती थी? हम लोग डेटिंग करते समय 5 सालों में कब कहां जा पाए थे?’’

‘‘तब सोचते थे शादी के बाद घूमेंगे, हम ने शादी से पहले भी मनचाहा खाया, पहना, क्या पता था कि…’’ मेरी हिचकियां तेज हो गई थीं.

वे फिर भी मेरे आंसुओं की लडि़यां संजोते हुए बोले, ‘‘बचपना छोड़ दो, तरू. अब तुम अकेली नहीं हो, कोई और भी है जो तुम्हारे प्यार पर बिछबिछ जाता है. तुम्हारा अपना घर है, अपनी जिम्मेदारियां हैं और जहां जिम्मेदारियां होती हैं, वहां कुछ परेशानियां भी होती हैं. कुछ पाने के लिए खोना भी पड़ता है.’’

‘‘साफसाफ सुन लो अशोक, मैं परेशानियां ढोने वाला कोई वाहन नहीं हूं. मेरी सब सहेलियां कितने ठाट से रहती हैं, एक मैं ही…’’

‘‘तो किसी करोड़पति वाले से शादी की होती. सुबह देर से उठती हो, सारा दिन दफ्तर पर रहती हो, संडे को इधरउधर चल देती हो. घर कभी व्यवस्थित नहीं रहता. मैं कुछ नहीं कहता, जो मु झ से बन पड़ता है करता हूं. फिर भी…’’

‘‘अशोक, मैं तुम्हारी नौकरानी बनने नहीं आई हूं.’’

‘‘तरू, बहुत हो चुका. अब चुप हो जाओ वरना…’’

‘‘वरना क्या कर लोगे मेरा? मारोगे? घर से निकालोगे? ब्रेकअप करोगे जो कसर बाकी हो, वह भी पूरी कर लो,’’ दोनों तरफ से तड़ातड़ वाक्यबाण चलते रहे.

‘‘तरू, मेहरबानी कर के चुप हो जाओ. क्यों घर बरबाद करने पर तुली हो?’’

‘‘यह घर आबाद ही कब हुआ था?’’

‘‘बात में बात निकाल कर बढ़ाती जा रही हो. चुप नहीं रह सकतीं क्या?’’

‘‘मैं ने कभी अपने मांबाप की नहीं सुनी… तभी तो तुम जैसे अपनी से नीची जाति वाले से शादी कर ली.’’

‘‘तो वहीं जा कर रहो.’’

‘‘हांहां, वहीं चली जाऊंगी. खुली हवा में सांस तो ले सकूंगी. एक कमरे का कोई घर होता है? न बैठक, न खाने का कमरा. न फर्नीचर, न क्रौकरी. क्या सजाऊं, क्या संवारूं?’’

‘‘एक कमरे को सजानेसंवारने की ज्यादा आवश्यकता होती है, एक बार याद रखो, आलीशान इमारतें और फर्नीचर से होटल बनते हैं, घर नहीं. घर बनता है प्यार से, अपनेपन से.’’

‘‘रहने दो अपने उपदेश. अब मुझे यहां नहीं रहना.’’

‘‘तरू, जल्दबाजी में उठे कदम हमेशा पतन और पश्चात्ताप की ओर जाते हैं.’’

‘‘तुम्हारी बला से मैं मरूं या जीऊं. तुम खर्च से बचोगे.’’

‘‘तरू, क्या हम दोनों अलग रहने के लिए एक हुए थे?’’

‘‘अब मु झे कुछ नहीं सुनना, मैं जा रही हूं,’’ गुस्सा मेरे विवेक पर हावी हो चुका था. मैं ने बैग में कपड़े डालने शुरू कर दिए.

‘‘पागल हुई हो? मैं रात में तुम्हें अकेले नहीं जाने दूंगा,’’ कह कर अशोक ने मेरे हाथ से बैग छीन लिया.

‘‘जीभर कर परेशान कर लो पर मैं ने भी सोच लिया है मु झे यहां नहीं रहना… नहीं रहना…’’ और मैं औंधे मुंह पलंग पर गिर कर सिसकती रही.

बिन बुलाए मेहमान सी साधिकार रात आ चुकी थी. हम दोनों की आंखें नींद से कोरी थीं. कुलबुलाते पेट, बेचैन दिल और करवटें बदलते हम. रात पंख लगा कर उड़ती रही, पर मेरा क्रोध कम न हुआ. अशोक का आत्मसम्मान भी जाग चुका था. वे भी कुछ नहीं बोले. भोर होते ही मैं ने 2 कप चाय बनाई, जो प्यालों की खनखनाहटट के बीच पी ली गई. मैं ने बैग उठाया, 2 मिनट रुकी. मैं जानती थी अशोक कुछ न कुछ जरूर कहेंगे. ऐसा ही हुआ. वे बोले, ‘‘तरू, गुस्सा कम होते ही मैसेज कर देना, मैं आ जाऊंगा. चाहो तो स्वयं चली आना.’’

मैं बिना जवाब दिए ही आगे बढ़ गई. रास्तेभर मेरे दिमाग में अनेकानेक विचार आतेजाते रहे.

मु झे अचानक और अकारण आया देख कर घर में सब लोग आश्चर्यचकित रह गए. सब की हमदर्दी से मु झे रुलाई आ गई.

‘‘और तू ने खूब बढ़ाचढ़ा कर अपने घरवालों से कह दिया कि अशोक ने तु झे मारा, घर से निकाला और घर के लिए रुपए लाने को कहा है?

‘‘हां कुसुम, मैं पूरी तरह अपना विवेक खो चुकी थी. मु झ पर अशोक को नीचा दिखाने का जनून सवार था. मेरी बातें सुन कर मेरा भाई राकेश भड़क उठा. बोला, ‘‘उस नीच जाति के अशोक की इतनी हिम्मत कि मेरी बहन पर हाथ उठाए? लालची कहीं का… रुपए मांगता है. ऐसा सबक  सिखाऊंगा कि जिंदगीभर याद रखेगा. देख लेना यहीं आ कर तु झ से माफी मांगेगा. मैं कल ही अपने दोस्त विनोद के साथ उस के पास जाऊंगा,’’ कह कर राकेश चला गया.

और अगले दिन अशोक के घर पहुंच कर विनोद और राकेश ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई.

 

वे दोनों जाते ही अशोक पर बस पड़े. विनोद ने कहा,

‘‘बनो मत, अशोक. हम आप जैसे लालची युवकों की नसनस से वाकिफ हैं. शर्म नहीं आती आप को. आप जैसों के अच्छी तरह सम झते हैं हम और इसीलिए 2 साल शादी नहीं होने दी. खुद तो कभी सलीके से नहीं रहे, हमारी बहन को भी उसी तरह रखना चाहते हो.’’

‘‘विनोद, आप को गलतफहमी हुई है. तरूणा को मारना तो दूर, मैं ने उस से कटु शब्द भी नहीं कहे. आप का धन, आप की जाति आप को मुबारक हो.’’

‘‘भोले मत बनो अशोक, हम से टकराना महंगा पड़ेगा. हम दब्बू लड़की वाले नहीं हैं.’’

‘‘मेरे घर में मेरा अपमान करने का आप को कोई हक नहीं है.’’

‘‘खैरियत इसी में है अशोक आप 2 दिन के अंदर ही हमारे घर आ कर तरूणा से माफी मांगें अन्यथा अंजाम अच्छा न होगा, पछताओगे.’’

‘‘कुसुम, ये लोग आंधी की तरह गए और तूफान की तरह आ गए. इन लोगों ने लौट कर मु झे केवल इतना ही बताया कि 1-2 दिन में अशोक यहां आएंगे,’’ मैं ने कुसुम से कहा.

‘‘तरू, अशाक ने तुम से शदी की थी, अपना स्वाभिमान नहीं बेचा था. तुम्हारे घर आ कर तुम से माफी मांग कर वह अपने अपमान पर मुहर नहीं लगाना चाहता था.’’

‘‘हां, इसीलिए वह नहीं आया और 4 दिन बाद ही तुम्हारे भाई ने किराए के आदमियों से उसे पिटवा दिया. कितना नीच काम किया.’’

‘‘मैं ने ऐसा नहीं कहा था. मु झे यह बात काफी दिन बाद पता चली.’’

‘‘अपने भाई को तुम पहले ही काफी भड़का चुकी थीं. बस जवानी के जोश में राकेश ने भलाबुरा कुछ भी न सोचा. उस ने बारबार पढ़ रख था कि वे लोग ताड़न के अधिकारी हैं. उस का जाति अहम जाग चुका था. तुम्हें मालूम है न आज का माहौल कैसा है?’’

‘‘कुसुम, अपने घर को मैं ने खुद ही आग लगाई है. फिर किस से दोष दूं?’’

‘‘जिंदगी की हकीकतों से घबरा कर तुम जैसी पलायनवादी लड़कियां अपने साथ अपनी जिंदगी को भी ले डूबती हैं. सभी लड़कियों को दहेज के कारण नहीं मारा जाता. उन में से आधी धैर्य व साहस के अभाव में या बदले की भावना से आत्महत्या कर बैठती हैं या तलाक ले कर जीवनभर नए की तलाश करती रहती हैं.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो. मैं भी अशोक को नीचा दिखा कर ऊंची बनना चाहती थी. शायद मेरा पुश्तैनी  झूठा अहं भी इस से संतुष्ट होता.’’

‘‘तरू, तू ने अपने साथ अशोक को भी कहीं का न छोड़ा. बेचारे ने मारे शर्म के उस शहर में नौकरी छोड़ दी. अपने मांबाप के पास भी उस का मन नहीं लगा क्योंकि घर वालों की सहानुभूति और बाहर वालों के व्यंग्य दोनों ही उस से बरदाश्त नहीं हुए. वह फिर नौकरी की तलाश में भटकता रहा. जैसेतैसे उसे एक नौकरी मिल गई. उस की जिंदगी में न कोई चाह है, न कोई उमंग, बढ़ी दाढ़ी, आंखों के नीचे काले गड्ढे, दुबला शरीर, असमय ही बूढ़ा हो गया है वह.’’

‘‘मेरी जिंदगी भी कम वीरान नहीं. अब न सुबह होने की खुशी होती है, न रात होने का अवसाद. न सुबह को किसी की विदाई, न शाम को किसी का इंतजार. नौकरी पर जाती हूं पर कोई उत्साह नहीं. मशीन की तरह काम करती हूं. सबकुछ गड्डमड्ड हो गया. मैं ने जीती हुई बाजी हार दी है. क्या मु झे हारी हुई बाजी ले कर ही बैठे रहना होगा? कुसुम मु झे कोई तो रास्ता बता?’’ मैं ने कहा.

मैं ने अशोक को बहुत सम झाया. यह भी कहा कि तरूणा अपने किए पर बेहद शर्मिंदा है उसे माफ कर दो पर वह यही कहता रहा कि  झूठे लांछनों से प्रताडि़त मैं तरूणा को कभी माफ नहीं कर सकता. हम दोनों कभी एक नहीं हो सकते. तरूणा ने मु झ से किस जन्म का बदला लिया है, मैं आज तक सम झ नहीं पाया. तुम्हारे भाई ने न जाने उस की जाति को ले कर क्याक्या कह दिया कि अब वह बदलने को तैयार की.’’

‘‘हां, कुसुम, वे मु झे बहुत चाहते थे. मैं ही सपनों के रंगमहल में खोई रहती. सचाई के धरातल पर पैर ही न रखना चाहती थी. मैं मांबाप की बहुत मुंहचढ़ी थी. मैं ने कभी किसी की एक भी बात बरदातश्त नहीं की थी. जब मैं गुस्से में घर छोड़ कर चली आई, उस दिन काश, मेरी मां मु झे बजाय आंचल में छिपाने के फटकार कर अशोक के पास भेज देतीं तो कुछ और होता. मौमडैड ने तो यही कहा कि इन छोटी जातियों वालों में तो यही होता है. अब तलाक दिला कर तेरी शादी कुलीन घर में कराएंगे.’’

‘‘पीहर वालों की शह भी लड़की की जिंदगी में सुलगती लकडि़यों सा काम करती है, तरू.’’

‘‘अब सब अपनीअपनी दुनिया में मगन हैं. राकेश से कुछ कहो तो वह भी मेरी गलती बताता है. मां भी मेरे  झूठे बोलने को दोष देती हैं. मैं अकेली वीरान जिंदगी लिए समाज की व्यंग्योेक्तियां, दोषारोपण कैसे सह पाऊंगी? वकील ने कह दिया कि अगर सहमति से तलाक न हुआ तो केस 4-5 साल चलेगा और 5 लाख रुपए तो लग जाएंगे. अब इतने पैसे न भाई खर्च करने को तैयार न मौमडैड. मेरी सैलरी भी उन्हें मिल रही है तो वे क्यों चिंता करें.

‘‘हर इंसान अपने किए को भोगता है, तरू. रो कर सहो या चुप रह कर, तुम्हें सहना ही होगा. अशोक तुम से इतनी दूर जा चुका है कि तुम्हारा रुदन, तड़प कुछ भी उस तक नहीं पहुंच सकता.’’

‘‘एक भूल की इतनी बड़ी सजा?’’

‘‘दियासलाई की एक तीली ही सारा घर फूंकने की सामर्थ्य रखती है.’’

‘‘कुसुम, तुम भी मु झे ही…’’

‘‘मैं क्या करूं, तरू? अलगअलग धरातलों पर खड़े तुम दोनों किसकिस को दोष दोगे? अब मैं चलूंगी, तरू, देर हो रही है.’’

‘‘जाओ कुसुम, कहीं लौटने में बहुत देर न हो जाए. घर पर कोई तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा,’’ मैं ने हार कर कहा.

कुसुम चली गई. मैं निर्विकार भाव से उसे जाती हुई देखती रही. रह गया केवल सन्नाटा, जिस के साए में ही मुझे दिन गुजारने हैं.

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