आंधी से बवंडर की ओर: अर्पिता को क्यों मशीनी सिस्टम का हिस्सा बनाना चाहती थी उसकी मां?

फन मौल से निकलतेनिकलते, थके स्वर में मैं ने अपनी बेटी अर्पिता से पूछा, ‘‘हो गया न अप्पी, अब तो कुछ नहीं लेना?’’

‘‘कहां, अभी तो ‘टी शर्ट’ रह गई.’’

‘‘रह गई? मैं तो सोच रही थी…’’

मेरी बात बीच में काट कर वह बोली, ‘‘हां, मम्मा, आप को तो लगता है, बस थोडे़ में ही निबट जाए. मेरी सारी टी शर्ट्स आउटडेटेड हैं. कैसे काम चला रही हूं, मैं ही जानती हूं…’’

सुन कर मैं निशब्द रह गई. आज की पीढ़ी कभी संतुष्ट दिखती ही नहीं. एक हमारा जमाना था कि नया कपड़ा शादीब्याह या किसी तीजत्योहार पर ही मिलता था और तब उस की खुशी में जैसे सारा जहां सुंदर लगने लगता.

मुझे अभी भी याद है कि शादी की खरीदारी में जब सभी लड़कियों के फ्राक व सलवारसूट के लिए एक थान कपड़ा आ जाता और लड़कों की पतलून भी एक ही थान से बनती तो इस ओर तो किसी का ध्यान ही नहीं जाता कि लोग सब को एक ही तरह के कपड़ों में देख कर मजाक तो नहीं बनाएंगे…बस, सब नए कपड़े की खुशी में खोए रहते और कुछ दिन तक उन कपड़ों का ‘खास’ ध्यान रखा जाता, बाकी सामान्य दिन तो विरासत में मिले कपड़े, जो बड़े भाईबहनों की पायदान से उतरते हुए हम तक पहुंचते, पहनने पड़ते थे. फिर भी कोई दुख नहीं होता था. अब तो ब्रांडेड कपड़ों का ढेर और बदलता फैशन…सोचतेसोचते मैं अपनी बेटी के साथ गाड़ी में बैठ गई और जब मेरी दृष्टि अपनी बेटी के चेहरे पर पड़ी तो वहां मुझे खुशी नहीं दिखाई पड़ी. वह अपने विचारों में खोईखोई सी बोली, ‘‘गाड़ी जरा बुकशौप पर ले लीजिए, पिछले साल के पेपर्स खरीदने हैं.’’

सुन कर मेरा दिल पसीजने लगा. सच तो यह है कि खुशी महसूस करने का समय ही कहां है इन बच्चों के पास. ये तो बस, एक मशीनी जिंदगी का हिस्सा बन जी रहे हैं. कपड़े खरीदना और पहनना भी उसी जिंदगी का एक हिस्सा है, जो क्षणिक खुशी तो दे सकता है पर खुशी से सराबोर नहीं कर पाता क्योंकि अगले ही पल इन्हें अपना कैरियर याद आने लगता है.

इसी सोच में डूबे हुए कब घर आ गया, पता ही नहीं चला. मैं सारे पैकेट ले कर उन्हें अप्पी के कमरे में रखने के लिए गई. पूरे पलंग पर अप्पी की किताबें, कंप्यूटर आदि फैले थे…उन्हीं पर जगह बना कर मैं ने पैकेट रखे और पलंग के एक किनारे पर निढाल सी लेट गई. आज अपनी बेटी का खोयाखोया सा चेहरा देख मुझे अपना समय याद आने लगा…कितना अंतर है दोनों के समय में…

मेरा भाई गिल्लीडंडा खेलते समय जोर की आवाज लगाता और हम सभी 10-12 बच्चे हाथ ऊपर कर के हल्ला मचाते. अगले ही पल वह हवा में गिल्ली उछालता और बच्चों का पूरा झुंड गिल्ली को पकड़ने के लिए पीछेपीछे…उस झुंड में 5-6 तो हम चचेरे भाईबहन थे, बाकी पासपड़ोस के बच्चे. हम में स्टेटस का कोई टेंशन नहीं था.

देवीलाल पान वाले का बेटा, चरणदास सब्जी वाले की बेटी और ऐसे ही हर तरह के परिवार के सब बच्चे एकसाथ…एक सोच…निश्ंिचत…स्वतंत्र गिल्ली के पीछेपीछे, और यह कैच… परंतु शाम होतेहोते अचानक ही जब मेरे पिता की रौबदार आवाज सुनाई पड़ती, चलो घर, कब तक खेलते रहोगे…तो भगदड़ मच जाती…

धूल से सने पांव रास्ते में पानी की टंकी से धोए जाते. जल्दी में पैरों के पिछले हिस्से में धूल लगी रह जाती…पर कोई चिंता नहीं. घर जा कर सभी अपनीअपनी किताब खोल कर पढ़ने बैठ जाते. रोज का पाठ दोहराना होता था…बस, उस के साथसाथ मेडिकल या इंजीनियरिंग की पढ़ाई अलग से थोड़ी करनी होती थी, अत: 9 बजे तक पाठ पूरा कर के निश्ंिचतता की नींद के आगोश में सो जाते पर आज…

रात को देर तक जागना और पढ़ना…ढेर सारे तनाव के साथ कि पता नहीं क्या होगा. कहीं चयन न हुआ तो? एक ही कमरे में बंद, यह तक पता नहीं कि पड़ोस में क्या हो रहा है. इन का दायरा तो फेसबुक व इंटरनेट के अनजान चेहरे से दोस्ती कर परीलोक की सैर करने तक सीमित है, एक हम थे…पूरे पड़ोस बल्कि दूरदूर के पड़ोसियों के बच्चों से मेलजोल…कोई रोकटोक नहीं. पर अब ऐसा कहां, क्योंकि मुझे याद है कि कुछ साल पहले मैं जब एक दिन अपनी बेटी को ले कर पड़ोस के जोशीजी के घर गई तो संयोगवश जोशी दंपती घर पर नहीं थे. वहीं पर जोशीजी की माताजी से मुलाकात हुई जोकि अपनी पोती के पास बैठी बुनाई कर रही थीं. पोती एक स्वचालित खिलौना कार में बैठ कर आंगन में गोलगोल चक्कर लगा रही थी, कार देख कर मैं अपने को न रोक सकी और बोल पड़ी…

‘आंटी, आजकल कितनी अच्छी- अच्छी चीजें चल गई हैं, कितने भाग्यशाली हैं आज के बच्चे, वे जो मांगते हैं, मिल जाता है और एक हमारा बचपन…ऐसी कार का तो सपना भी नहीं देखा, हमारे समय में तो लकड़ी की पेटी से ही यह शौक पूरा होता था, उसी में रस्सी बांध कर एक बच्चा खींचता था, बाकी धक्का देते थे और बारीबारी से सभी उस पेटी में बैठ कर सैर करते थे. काश, ऐसा ही हमारा भी बचपन होता, हमें भी इतनी सुंदरसुंदर चीजें मिलतीं.’

‘अरे सोनिया, सोने के पिंजरे में कभी कोई पक्षी खुश रह सका है भला. तुम गलत सोचती हो…इन खिलौनों के बदले में इन के मातापिता ने इन की सब से अमूल्य चीज छीन ली है और जो कभी इन्हें वापस नहीं मिलेगी, वह है इन की आजादी. हम ने तो कभी यह नहीं सोचा कि फलां बच्चा अच्छा है या बुरा. अरे, बच्चा तो बच्चा है, बुरा कैसे हो सकता है, यही सोच कर अपने बच्चों को सब के साथ खेलने की आजादी दी. फिर उसी में उन्होंने प्यार से लड़ कर, रूठ कर, मना कर जिंदगी के पाठ सीखे, धैर्य रखना सीखा. पर आज इसी को देखो…पोती की ओर इशारा कर वे बोलीं, ‘घर में बंद है और मुझे पहरेदार की तरह बैठना है कि कहीं पड़ोस के गुलाटीजी का लड़का न आ जाए. उसे मैनर्स नहीं हैं. इसे भी बिगाड़ देगा. मेरी मजबूरी है इस का साथ देना, पर जब मुझे इतनी घुटन है तो बेचारी बच्ची की सोचो.’

मैं उन के उस तर्क का जवाब न दे सकी, क्योंकि वे शतप्रतिशत सही थीं.

हमारे जमाने में तो मनोरंजन के साधन भी अपने इर्दगिर्द ही मिल जाते थे. पड़ोस में रहने वाले पांडेजी भी किसी विदूषक से कम न थे, ‘क्वैक- क्वैक’ की आवाज निकालते तो थोड़ी दूर पर स्थित एक अंडे वाले की दुकान में पल रही बत्तखें दौड़ कर पांडेजी के पास आ कर उन के हाथ से दाना  खातीं और हम बच्चे फ्री का शो पूरी तन्मयता व प्रसन्न मन से देखते. कोई डिस्कवरी चैनल नहीं, सब प्रत्यक्ष दर्शन. कभी पांडेजी बोट हाउस क्लब से पुराना रिकार्ड प्लेयर ले आते और उस पर घिसा रिकार्ड लगा कर अपने जोड़ीदार को वैजयंती माला बना कर खुद दिलीप कुमार का रोल निभाते हुए जब थिरकथिरक कर नाचते तो देखने वाले अपनी सारी चिंता, थकान, तनाव भूल कर मुसकरा देते. ढपली का स्थान टिन का डब्बा पूरा कर देता. कितना स्वाभाविक, सरल तथा निष्कपट था सबकुछ…

सब को हंसाने वाले पांडेजी दुनिया से गए भी एक निराले अंदाज में. हुआ यह कि पहली अप्रैल को हमारे महल्ले के इस विदूषक की निष्प्राण देह उन के कमरे में जब उन की पत्नी ने देखी तो उन की चीख सुन पूरा महल्ला उमड़ पड़ा, सभी की आंखों में आंसू थे…सब रो रहे थे क्योंकि सभी का कोई अपना चला गया था अनंत यात्रा पर, ऐसा लग रहा था कि मानो अभी पांडेजी उठ कर जोर से चिल्लाएंगे और कहेंगे कि अरे, मैं तो अप्रैल फूल बना रहा था.

कहां गया वह उन्मुक्त वातावरण, वह खुला आसमान, अब सबकुछ इतना बंद व कांटों की बाड़ से घिरा क्यों लगता है? अभी कुछ सालों पहले जब मैं अपने मायके गई थी तो वहां पर पांडेजी की छत पर बैठे 14-15 वर्ष के लड़के को देख समझ गई कि ये छोटे पांडेजी हमारे पांडेजी का पोता ही है…परंतु उस बेचारे को भी आज की हवा लग चुकी थी. चेहरा तो पांडेजी का था किंतु उस चिरपरिचित मुसकान के स्थान पर नितांत उदासी व अकेलेपन तथा बेगानेपन का भाव…बदलते समय व सोच को परिलक्षित कर रहा था. देख कर मन में गहरी टीस उठी…कितना कुछ गंवा रहे हैं हम. फिर भी भाग रहे हैं, बस भाग रहे हैं, आंखें बंद कर के.

अभी मैं अपनी पुरानी यादों में खोई, अपने व अपनी बेटी के समय की तुलना कर ही रही थी कि मेरी बेटी ने आवाज लगाई, ‘‘मम्मा, मैं कोचिंग क्लास में जा रही हूं…दरवाजा बंद कर लीजिए…’’

मैं उठी और दरवाजा बंद कर ड्राइंगरूम में ही बैठ गई. मन में अनेक प्रकार की उलझनें थीं… लाख बुराइयां दिखने के बाद भी मैं ने भी तो अपनी बेटी को उसी सिस्टम का हिस्सा बना दिया है जो मुझे आज गलत नजर आ रहा था.

सोचतेसोचते मेरे हाथ में रिमोट आ गया और मैंने टेलीविजन औन किया… ब्रेकिंग न्यूज…बनारस में बी.टेक. की एक लड़की ने आत्महत्या कर ली क्योंकि वह कामर्स पढ़ना चाहती थी…लड़की ने मातापिता द्वारा जोर देने पर इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया था. मुझे याद आया कि बी.ए. में मैं ने अपने पिता से कुछ ऐसी ही जिद की थी… ‘पापा, मुझे भूगोल की कक्षा में अच्छा नहीं लग रहा क्योंकि मेरी सारी दोस्त अर्थशास्त्र में हैं. मैं भूगोल छोड़ रही हूं…’

‘ठीक है, पर मन लगा कर पढ़ना,’ कहते हुए मेरे पिता अखबार पढ़ने में लीन हो गए थे और मैं ने विषय बदल लिया था. परंतु अब हम अपने बच्चों को ‘विशेष कुछ’ बनाने की दौड़ में शामिल हो कर क्या अपने मातापिता से श्रेष्ठ, मातापिता साबित हो रहे हैं, यह तो वक्त बताएगा. पर यह तो तय है कि फिलहाल इन का आने वाला कल बनाने की हवस में हम ने इन का आज तो छीन ही लिया है.

सोचतेसोचते मेरा मन भारी होने लगा…मुझे अपनी ‘अप्पी’ पर बेहद तरस आने लगा. दौड़तेदौड़ते जब यह ‘कुछ’ हासिल भी कर लेगी तो क्या वैसी ही निश्ंिचत जिंदगी पा सकेगी जो हमारी थी… कितना कुछ गंवा बैठी है आज की युवा पीढ़ी. यह क्या जाने कि शाम को घर के अहाते में ‘छिप्पीछिपाई’, ‘इजोदूजो’, ‘राजा की बरात’, ‘गिल्लीडंडा’ आदि खेल खेलने में कितनी खुशी महसूस की जा सकती थी…रक्त संचार तो ऐसा होता था कि उस के लिए किसी योग गुरु के पास जा कर ‘प्राणायाम’ करने की आवश्यकता ही न थी. तनाव शब्द तो तब केवल शब्दकोश की शोभा बढ़ाता था… हमारी बोलचाल या समाचारपत्रों और टीवी चैनलों की खबरों की नहीं.

अचानक मैं उठी और मैं ने मन में दृढ़ निश्चय किया कि मैं अपनी ‘अप्पी’ को इस ‘रैट रेस’ का हिस्सा नहीं बनने दूंगी. आज जब वह कोचिंग से लौटेगी तो उस को पूरा विश्वास दिला दूंगी कि वह जो करना चाहती है करे, हम बिलकुल भी हस्तक्षेप नहीं करेंगे. मेरा मन थोड़ा हलका हुआ और मैं एक कप चाय बनाने के लिए रसोई की ओर बढ़ी…तभी टेलीफोन की घंटी बजी…मेरी ननद का फोन था…

‘‘भाभीजी, क्या बताऊं, नेहा का रिश्ता होतेहोते रह गया, लड़का वर्किंग लड़की चाह रहा है. वह भी एम.बी.ए. हो. नहीं तो दहेज में मोटी रकम चाहिए. डर लगता है कि एक बार दहेज दे दिया तो क्या रोजरोज मांग नहीं करेगा?’’

उस के आगे जैसे मेरे कानों में केवल शब्दों की सनसनाहट सुनाई देने लगी, ऐसा लगने लगा मानो एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई हो…अभी मैं अपनी अप्पी को आजाद करने की सोच रही थी और अब ऐसा समाचार.

क्या हो गया है हम सब को? किस मृगतृष्णा के शिकार हो कर हम सबकुछ जानते हुए भी अनजान बने अपने बच्चों को उस मशीनी सिस्टम की आग में धकेल रहे हैं…मैं ने चुपचाप फोन रख दिया और धम्म से सोफे पर बैठ गई. मुझे अपनी भतीजी अनुभा याद आने लगी, जिस ने बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर रहे अपने एक सहकर्मी से इसलिए शादी की क्योंकि आज की भाषा में उन दोनों की ‘वेवलैंथ’ मिलती थी. पर उस का परिणाम क्या हुआ? 10 महीने बाद अलगाव और डेढ़ साल बाद तलाक.

मुझे याद है कि मेरी मां हमेशा कहती थीं कि पति के दिल तक पेट के रास्ते से जाया जाता है. समय बदला, मूल्य बदले और दिल तक जाने का रास्ता भी बदल गया. अब वह पेट जेब का रास्ता बन चुका था…जितना मोटा वेतन, उतना ही दिल के करीब…पर पुरुष की मूल प्रकृति, समय के साथ कहां बदली…आफिस से घर पहुंचने पर भूख तो भोजन ही मिटा सकता है और उस को बनाने का दायित्व निभाने वाली आफिस से लौटी ही न हो तो पुरुष का प्रकृति प्रदत्त अहं उभर कर आएगा ही. वही हुआ भी. रोजरोज की चिकचिक, बरतनों की उठापटक से ऊब कर दोनों ने अलगाव का रास्ता चुन लिया…ये कौन सा चक्रव्यूह है जिस के अंदर हम सब फंस चुके हैं और उसे ‘सिस्टम’ का नाम दे दिया…

मेरा सिर चकराने लगा. दूर से आवाज आ रही थी, ‘दीदी, भागो, अंधड़ आ रहा है…बवंडर न बन जाए, हम फंस जाएंगे तो निकल नहीं पाएंगे.’ बचपन में आंधी आने पर मेरा भाई मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दूर तक भगाता ले जाता था. काश, आज मुझे भी कोई ऐसा रास्ता नजर आ जाए जिस पर मैं अपनी ‘अप्पी’ का हाथ पकड़ कर ऐसे भागूं कि इस सिस्टम के बवंडर बनने से पहले अपनी अप्पी को उस में फंसने से बचा सकूं, क्योंकि यह तो तय है कि इस बवंडर रूपी चक्रव्यूह को निर्मित करने वाले भी हम हैं…तो निकलने का रास्ता ढूंढ़ने का दायित्व भी हमारा ही है…वरना हमारे न जाने कितने ‘अभिमन्यु’ इस चक्रव्यूह के शिकार बन जाएंगे.

लोग मेरे चरित्र के बारे में बात करना चाहते हैं : रसिका दुग्गल

जमशेदपुर में जन्मीं, सुंदर व मृदुभाषी रसिका दुग्गल ने दिल्ली से सोशल कम्यूनिकेशन मीडिया में पोस्टग्रैजुएट डिप्लोमा के बाद एफटीआईआई में भी पोस्ट ग्रैजुएट किया है. उन्होंने कैरियर की शुरुआत वर्ष 2007 में पहली हिंदी फिल्म ‘अनवर’ में एक छोटी सी भूमिका के साथ किया था. इस के बाद फिल्म ‘नो स्मोकिंग’, ‘हाईजैक’, ‘तहन’, ‘अज्ञात’, ‘क्षय’ आदि फिल्मों के साथसाथ ‘पाउडर’, ‘रिश्ता डौट कौम’, ‘किस्मत’ आदि टीवी शो में दिखाई दीं.

उन की फिल्मी जर्नी सफल नहीं रही, लेकिन ओटीटी ने उन्हें खुल कर काम करने का मौका दिया और वह पौपुलर हुईं. इतना ही नहीं, उन्हें आजतक अधिकतर रोनेधोने के कम से कम 2 सीन्स फिल्मों में दिए जाते थे, जिस से वह कई बार परेशान हो जाती थीं और टाइपकास्ट से बचने की कोशिश कर रही थीं. ओटीटी ने उन्हें उन्हे इस का अवसर दिया.

हाल ही में उन की वैब सीरीज ‘शेखर होम’ रिलीज हो चुकी है, जो एक डिटैक्टिव सीरीज है, जिस में उन के काम को काफी सराहना मिल रही है. उन्होंने अपनी जर्नी के बारें में बात की। पेश हैं, कुछ अंश :

स्क्रिप्ट का अच्छा होना जरूरी

यह सीरीज रसिका के लिए एक नई चुनौती रही, जिसे करने में बहुत अच्छा लगा. वे कहती हैं कि इस से पहले मैं ने ‘डिटैक्टिव’ ड्रामा के बारे में ऐक्स्प्लोर नहीं किया था, जिस का मौका इस सीरीज में मिला. साथ ही मुझे के के मेनन के साथ काम करने की इच्छा भी थी, क्योंकि उन की फिल्म ‘हजारों ख़्वाहिशें ऐसी’ मेरी पसंदीदा फिल्म है और जब मैं ने सुना कि शेखर होम उन की वैब सीरीज है, तो मेरे लिए मना करने की कोई वजह नहीं थी.

मेरे पास स्क्रिप्ट आई और इस की कहानी मुझे अच्छी लगी, क्योंकि इस से पहले मैं ने फिल्म ‘डार्क फेज’
की थी और यह उस से अलग भूमिका थी.

छोटी फिल्मों की रिलीज में परेशानी

रसिका काफी सालों से इंडस्ट्री में काम कर रही हैं, लेकिन फिल्मों से अधिक वे ओटीटी में सफल रहीं, क्योंकि उन की सीरीज ‘मिर्जापुर’, ‘मेड इन हेवन’, ‘आउट औफ लव’, ‘ए सूटेबल बौय’ आदि सभी सफल रही.

इस की वजह वे बताती हैं कि ओटीटी से पहले मैं ने कई फिल्में कीं, लेकिन वह मास तक नहीं पहुंच पाई. मैं चाहती थी कि बड़ी संख्या में दर्शकों तक मेरी फिल्में पहुंचे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हालांकि फिल्में बहुत अच्छी थीं, फिर चाहे वह फिल्म ‘मंटो’ हो या ‘किस्सा’, इन फिल्मों को रिलीज करना मुश्किल था, क्योंकि कम बजट की छोटी फिल्म, जिस में कोई बड़ा स्टार न हो रिलीज करना मुश्किल होता है, लेकिन वैब
सीरीज ‘मिर्जापुर’ के बाद ‘दिल्ली क्राइम’ और फिर ‘आउट औफ लव’ इन सब के रिलीज होने के साथसाथ मुझे दर्शकों तक पहुंचने का अवसर मिला, जो मुझे बहुत अच्छा लगा, क्योंकि जितने अधिक लोग आप को, आप के काम से पहचानें, प्रसंशा करें, तो अच्छा फील होता है.

इस के अलावा छोटी फिल्मों को आज डिस्ट्रीब्यूटर से ले कर स्ट्रीमिंग के लिए भी प्लेटफौर्म मिलना कठिन हो चुका है. शोज की स्ट्रीमिंग कुछ हद तक हो रही है, लेकिन छोटी फिल्मों को लोग खरीदना नहीं चाहते. छोटी फिल्मों के रिलीज की समस्या अभी भी है. फिल्म ‘फेयरी फोक’ को रिलीज के लिए कोई जगह नहीं
मिल रही थी, बहुत मुश्किल से थिएटर में रिलीज हो पाई. स्ट्रीमिंग प्लेटफौर्म वालों ने एक दायरा तय कर लिया है, उस में अगर फिल्म फिट होती है, तभी वे उसे लेते हैं , नहीं तो मना कर देते हैं। इस तरह से यह मंच कमिशंड हो चुकी है.

दर्शकों को समझना जरूरी

काम के जरिए दर्शकों से जुड़ना ही किसी कलाकार के लिए सफलता की सीढ़ी मानी जाती है, जो रसिका को वैब सीरीज से मिली. वे कहती हैं कि वैब सीरीज ‘मिर्जापुर’ सभी शो से एकदम अलग थी और उस शो की पहुंच बाकी किसी भी शो से बहुत अधिक थी। जहां भी मैं जाती हूं, लोग आज भी मुझे उस शो का जिक्र करते हैं और मेरे चरित्र के बारे में बात करना चाहते हैं, अपनी प्रतिक्रिया बताते हैं, जो मुझे बहुत अच्छा लगता है.

अगर कोई शो अच्छा है, तो मुझे कुछ नया करने का प्रोत्साहन मिलता है, साथ ही बिना दर्शकों को जानें हमारा रिश्ता फिल्मों के जरीए जुड़ जाता है और यह एक अच्छा अनुभव होता है.

प्रभावित करती है चरित्र

सभी फिल्में और वैब सीरीज रसिका को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है, लेकिन अगर उन से समानता की बात की जाए, तो रसिका खुद को दिल्ली क्राइम की नीति सिंह से खुद को जोड़ पाती हैं.

वे कहती हैं कि शो ‘दिल्ली क्राइम’ की नीति सिंह की शुरुआती भूमिका मुझे मेरे कालेज के दिनों को याद दिलाती है, क्योंकि उस उम्र में आदर्शवादिता और खुद पर परिस्थिति को बदल डालने का विश्वास मेरे अंदर था. इस के अलावा मैं आत्मविश्वास के साथसाथ सौफ्ट स्पोकेन भी हूं. कई बार लोग सौफ्ट स्पोकेन को वीकनैस से जोड़ लेते हैं, जबकि ऐसा नहीं होता. मैं ने ऐसी स्थिति को कई बार फेस किया है, क्योंकि सौफ्ट स्पोकेन होने की वजह से लोगों ने मुझे कई बार सीरीयसली नहीं लिया जबकि मृदुभाषी होने में एक बड़ी शक्ति छिपी होती है, जिस का फायदा मुझे मिला है.

संघर्ष है चुनौती

रसिका संघर्ष को चुनौती मानती हुई कहती हैं,”यह व्यक्ति को मोटिवेट करती है, खुद को आगे बढ़ने का मौका देती है और व्यक्ति को जमीन से जुड़ा रखती है, लेकिन मायूस न हो कर इसे सही अर्थ में लिया जाना चाहिए, ताकि आप निराश न हों. चुनौती हमेशा अच्छा होता है, आप को तरोताजा रखती है, नहीं तो
लाइफ बोरिंग हो जाती है. अगर आप को कुछ अच्छा करने की इच्छा है, तो
चुनौती आती है, अभी मैं आगे एक कौमेडी फिल्म करने की इच्छा रखती हूं.”

सफाई किसी एक की जिम्मेदारी नहीं

हमारे यहां साफसफाई एक त्योहार या मेहमान से जुड़ी एक अनयूजुअल चीज है वरना तो हम गंदगी के पूरी तरह आदी हैं. पहले दिल्ली की जम कर जी 20 के बाद साफसफाई हुई थी पर अब उस के निशान तक बचे नहीं सिवा कुछ फटे पोस्टरों के जिन में नरेंद्र मोदी विश्व नेता सा पोज बनाए दिख रहे हैं. जुलाई के अंतिम वीक में वर्ल्ड हैरीटेज कमेटी की दिल्ली की बैठक के लिए की गई साफसफाई भी इतनी बड़ी न्यूज थी कि कई अखबारों ने छापा कि एनक्रोचमैंट और क्लीनिंग जोर से चालू है.

हमारे डीएनए में सफाई अभी तक घुस नहीं पाई है क्योंकि हम ने कास्ट सिस्टम के मुताबिक क्लीनिंग की मोनोपौली केवल एक से लोगों को दे रखी है जो अब एक तरह से रिवोल्ट के कगार पर हैं. वे यह काम छोड़ कर कंस्टीम्यूशन की इक्वैलिटी की बात करने लगे हैं. वे मन मार कर सफाई करते हैं क्योंकि जहां वे खुद रहते हैं वहां की सफाई का कौंट्रैक्ट भी कोई म्यूनिसिपल बौडी किसी को नहीं देती. वहां तो गंदगी बस बरसात होने पर बह जाती है.

हमारे शहर गंदे हैं तो इसलिए कि क्लीनिंग थोड़ी सी ह्यूमन लेबर मांगती है. अगर आप ने कूड़ा डस्टबिन में डाला तो भी डस्टबिन को खाली कर के उस कूड़े को शहर के बाहर कही डंप करना भी एक मुश्किल काम है जिस में पैसा, प्लानिंग दोनों लगते हैं. हम चाहते हैं कि न पैसा लगे, न ऐनर्जी और सबकुछ अपनेआप क्लीन हो जाए.

शहरों की क्लीनिंग तभी संभव है जब पूरा शहर, ऊंचानीचा, जवान, बच्चा, बूढ़ा, सब लगें, सब को एहसास हो जैसे प्रोडक्शन की चेन होती है वैसे ही वेस्ट मैनेजमैंट की चेन है. प्रोडक्शन की चेन में भी हर स्टेज पर हर किसी को अपना कंट्रीब्यूशन देना होगा. नई चीजें डिजाइन करनी होंगी, डिस्पोजल की इंडियन टैक्नीक डैवलप करनी होगी जो बड़े शहरों में ही नहीं, छोटे गांवों में भी चल सके.

लोगों को अपनी गलियां खुद के जौइंट ऐर्फ्ट से साफ करने की प्रैक्टिस करनी होगी क्योंकि यहां मैकेनाइज्ड स्टीपिंग ट्रक नहीं चल सकते. लोगों को घरेलू वेस्ट ऐसे कंटेनरों में डालने की आदत डालनी होगी जो इसे कंप्रैस कर के, कर्ब कर के छोटा कर सकें जिसे घर वाले खुद आसानी से डिस्पोज कर सकें.

यह करो या कूड़ेदान में रहो जैसे सदियों से रहे हो. यह न भूलें कि अभी 100 साल पहले जब पानी घरों में मटकों में आता था, शहर भभका मारते थे और लोग उसी में मरतेखपते जीते थे. आज की थोड़ीबहुत सफाई टैक्नोलौजी की देन है पर चूंकि हमारे पास एससी जमात आती है, हमें यह कार्य करना अपने स्टेटस के खिलाफ  लगता है. जब तक हम इसे खुद नहीं सीखेंगे, शहर भी गंदे रहेंगे, टूरिस्ट प्लेसेज भी और घर भी.

पाना चाहती हैं सेलिब्रिटी जैसा लुक, तो ट्राई करें मल्टी डायमेंशनल हेयर कलर

फैशन के रंग भी बड़े निराले होते हैं. कल तक जहां काले घने बालों का फैशन था, वहीं आज के बदलते दौर में काली रेशमी जुल्फे रेड, ब्लू, औरेंज और पीकौक जैसे डिफरैंट कलर की नजर आने लगी हैं. इन कलरफुल जुल्फों का फैशन इस कदर जोर शोर से है कि आज टीनएज गर्ल्स से लेकर लेडीज भी इसको अपना रही हैं. तो क्यों न आप भी ट्रैंड को फौलो करते हुए भीड़ से अलग हट कर अपनी खास पहचान बनाएं.

सबकुछ ट्रेंड के अनुसार ही

जावेद हबीब सलोन के हेयर आर्टिस्ट आरिफ मियां का कहना है कि फैशनेबल और ट्रैंडी दिखना आजकल हर कोई चाहता है. अब ब्राउन, गोल्डन और बरगंडी हेयर के दिन गए अब फैशनेबल लड़कियों के लिए खासतौर पर मार्केट में ऐसे फंकी कलरफुल हेयर कलर आए हैं, जिसे आप अपने हेयर पर लगाकर लुक को चेंज कर पर्सनैलिटी को निखार सकती है.

फंकी हेयर कलर ट्रेंड

वहीं रिच लुक्स यूनिसेक्स सलोन के हेयर स्टाइलिश राजेन्द्र सिंह का कहना है कि लुक स्विच करने के लिए हेयर कलर भी बदला जा सकता है. नए ट्रैंड में नए कलर्स के साथ एक्सपैरिमेंट करना चाहते हैं तो इनमें से कोई एक फंकी शेड्स चुन सकते हैं. जैसे-फ्लर्टी रेड, मिस्टिक ब्लू, जेस्टी येलो, वंडर ब्लू, ग्लोरियस ग्रीन, क्रेजी वायलेट, पर्की ग्रीन,ऊम्फी औरेंज, ग्रोवी पिंक ये फंकी कलर अमोनिया फ्री और पेरोक्साइड फ्री है. इसके अलावा आप और्गन सीक्रेट्स हेयर कलर भी ट्राई कर सकती है जिसमें क्रिमसन रेड, हनी ब्लोंड, प्लम, बीज ब्लोंड, सेंडर ब्लोंड, ऐश ब्लोंड.

आजकल ट्रैंड कब बदल जाए कह नहीं सकते कुछ समय पहले तक सिर्फ हेयर की अंदर की तरफ की एक लट को डिफरैंट कलर से हाई लाइट करने का ट्रेंड था जिसमे आप अपनी पसंद का रेडवाइन, रेड चेरी, ब्लू, ग्रीन और पिकौक कलर कुछ भी करवा सकती थी लेकिन अब कुछ लड़कियां फंकी ग्लोबल कलर करवाने लगी है इससे आपका पूरा लुक ही बदल जाता है.

मैंटेन करना आसान नहीं

फैशन हेयर कलर मैंटेन करने के लिए आपको अपने हेयर एक्सपर्ट से कई अपाइंटमेंट की आवश्यकता पड़ेगी इससे आपका टाइम और रुपए ज्यादा खर्च होगा.

फैशन के रंग जल्दी फेड पड़ जाते हैं

फैशन के रंग जल्दी फेड हो जाते हैं क्योंकि ये कोई परमानेंट ट्रीटमेंट नहीं है इसलिए अपने हेयर एक्सपर्ट के टच में रहे और हेयर को लेकर जो भी प्रोटेक्शन आपको बताए जाए उसका पालन करे. जैसे कलर प्रोटेक्शन शैम्पू, कंडीशनर, मास्क सीरम का प्रयोग करें.

सेमी और परमानेंट हेयर कलर

आप चाहें तो अपने मनचाहे हेयर कलर की स्ट्रिप्स कलर करवा सकती हैं या फिर दो या तीन शेडों में अपने पूरे हेयर को कलर करवा सकती हैं. मार्केट में हेयर कलर दो प्रकार के मौजूद हैं, जिनमें परमानेंट व सेमी परमानेंट दोनों प्रकार के कलर आते हैं. यदि आप कुछ सप्ताह के लिए हेयर कलर करवाना चाहते हैं तो सेमी परमानेंट हेयर कलर आपके लिए बेस्ट होगा लेकिन ज्यादा लंबे समय तक हेयर को कलर्ड बनाने के लिए आप परमानेंट हेयर कलर का उपयोग कर सकती हैं.

फंकी हेयर कलर करवाने से पहले रखें इन बातों का खास ध्यान-

  • किसी अच्छे पार्लर या सैलून में हेयर एक्सपर्ट से ही ब्रांड का हेयर कलर करवाएं.
  • पहली बार फंकी कलर करवा रही है तो अपने हेयर की नीचे की लटो में कलर करवा कर देखे की ये कलर आपको सूट कर रहा है या नही.
  • हेयर पर कलर करते समय अपनी आईज की सुरक्षा का पूरा ख्‍याल रखें.
  • तेज धूप से आपके कलर किए हुए बाल खराब हो सकते हैं. अत: उन्हें धूप से बचाए और एक्सपर्ट के बताएं हुए कंडीशनर/मास्क और सीरम जरूर लगाएं.
  • इस बार अपने लुक को डिफरैंट दिखाने के लिए इन फंकी कलर्स को आजमा कर जरूर देखें और फैशन की ट्रैंड में आप भी शामिल हो जाए.

महंगी ज्वैलरी को लंबे समय तक बनाए रखना चाहती हैं नया, तो अपनाएं ये आसान तरीका

रश्मि को ज्वैलरी पहनने का बहुत शौक है, आजकल गोल्ड और डायमंड ज्वैलरी पहनना तो अपनी जान को ही खतरे में डालने जैसा है इसलिए उसने भांति भांति की आर्टिफिशियल ज्वैलरी खरीद रखी है पर इसके बावजूद जब भी वह ज्वैलरी पहनना चाहती है तो कभी कान का एक टौप्स नहीं मिलता, कभी नैकलेस की मैचिंग के कान इयरिंग्स नहीं मिलते. और इसका कारण है ज्वैलरी का व्यवस्थित ढंग से न रखा जाना.

आशिमा जब भी बाजार जाती है विविध प्रकार की ज्वेलरी खरीद लेती है पर सही ढंग से न रखे जाने के कारण वह बहुत जल्दी काली पड़ जाती है या चमक खत्म हो जाने के कारण पुरानी सी दिखने लगती है.
आजकल आर्टिफिशियल ज्वैलरी से बाजार भरा पड़ा है. ये दिखने में बहुत खूबसूरत और दाम में काफी सस्ती होती हैं इसलिए ये हर किसी के लिए बजट फ्रैंडली भी होती हैं. ज्वैलरी कोई भी हो सबसे जरूरी होता है उसका रखरखाव. रखरखाव और पर्याप्त देखभाल के अभाव में महंगी से महंगी ज्वैलरी भी खराब हो जाती है और सही देखभाल से सस्ती ज्वैलरी भी सालों साल चलती है. यूं तो आजकल बाजार में विविध रंग और डिजाइन के ज्वैलरी बौक्सेज मौजूद हैं परन्तु कई बार ये काफी महंगे होते हैं जिन्हें हर कोई नहीं खरीद पाता आज हम आपको घर में ही मौजूद कुछ चीजों की मदद से ज्वैलरी स्टोर करने के आइडियाज दे रहे हैं जिनकी मदद से आप अपनी किसी भी ज्वैलरी को बड़े आराम से स्टोर कर सकती हैं.

1-हुक्स देंगे नया लुक

आजकल बाजार में विविध आकार और रंग के सेल्फ एडहेसिव हुक्स मौजूद हैं इन्हें आप औनलाइन या औफलाइन अपनी सुविधानुसार खरीद सकती हैं. इनमें पीछे की तरफ ग्लू लगा रहता है और इनके पीछे लगी प्लास्टिक की पतली चिप को हटाकर आप इन्हें अपनी कवर्ड के किसी भी प्लेन सरफेस पर चिपका सकतीं हैं. ये सिंगल और मल्टीपल हुक्स दोनों ही फौर्म में मार्केट में उपलब्ध हैं. इन्हें अपनी आवश्यकतानुसार अपनी वार्डरोब में चिपकाकर आप अपनी हर तरह की ज्वैलरी हैंग करके रख सकती हैं. सामने दिखने के कारण इन्हें निकालना भी काफी आसान रहता है.

2-हैंगर हैं बहुत यूजफुल

हैंगर का प्रयोग आमतौर पर कपड़े टांगने के लिए किया जाता है परन्तु आप इन पर अपनी ज्वैलरी भी स्टोर कर सकती हैं. एल्युमिनियम के हैंगर को एक साइड से खोलकर चौड़ा कर लें और फिर इसमें आप अपनी विविध प्रकार की लंबी, छोटी मालायें, चैन्स और इयरिंग्स आदि को हैंग करके खुली साइड को फिर से इस तरह बंद कर दें कि यह आसानी से खुल जाए.

लकड़ी और प्लास्टिक के हैंगर पर कपड़े सुखाते समय लगाए जाने वाले क्लिप से इन्हें हैंग करें.
3-कप और प्लेट्स हैं बहुत काम के किचिन के अनुपयोगी कप और प्लेट्स को आप अपनी ड्रेसिंग टेबल की ड्राअर में रखकर इसमें आप दो तीन टौप्स, इयरिंग्स आदि आसानी से रख सकती हैं. चैन्स और नैकलेस को आप कप के ऊपर या हैंडल में हैंग कर सकतीं हैं. आप डिस्पोजल ग्लास और कप्स का प्रयोग भी कर सकती हैं.

4- कलरफुल बटन्स

बड़े साइज के बटन्स के होल में आप नोज पिन, इयरिंग्स, आदि को हुक करके किसी भी डिब्बे में रख सकतीं हैं इससे ये गुमेगी भी नहीं और देखने में भी अच्छी लगेगी.

5- कांच की बौटल्स

लकड़ी के किसी भी पुराने बौक्स को सुतली या धागे की सहायता से दीवार पर हैंग कर दें. अब फेविकोल से इसमें 2 खाली कांच की बोतलें चिपकाकर इस पर आप अपनी चूड़ियां, ब्रेसलेट, हेयरबैंड्स आदि को हैंग कर सकतीं हैं. ये दिखने में भी एक शोपीस जैसा लगता है.

6-किचिन नैपकिन रोल

किचिन में टिश्यू पेपर रोल का प्रयोग किया जाना आजकल बहुत आम बात है. टिश्यू पेपर के प्रयोग के बाद खाली रोल का उपयोग आप अपनी बैंगल्स, ब्रेसलेट को रखने के लिए कर सकती हैं.

7-थर्माकोल शीट्स हैं बड़े काम की

अक्सर घर में आने वाले इलेक्ट्रौनिक सामान को थर्माकोल शीट्स में पैक किया जाता है. इस थर्माकोल शीट को आप अपनी वार्डरोब के आकार के अनुसार काटकर डबल साइड टैप से वार्डरोब में चिपका दें. अब इसमें विविध आकार के हुक्स लगाकर अपनी ज्वैलरी को टांग सकती हैं.

हौसले बुलंद रहें सरकार: क्या पत्नी को खुश करना है बेहद मुश्किल

आजकल पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है कि शाम को जब भी मैं औफिस से सहीसलामत घर लौट कर आता हूं तो पत्नी हैरान हो कर पूछती है, ‘आ गए आज भी वापस?’ कई बार तो मुझे उस के पूछने से ऐसा लगता है मानो मुझे शाम को सकुशल घर नहीं आना चाहिए था. उस के हिसाब से लगता है, वह मुझ से ऊब गई हो जैसे. वैसे, एक ही बंदे के साथ कोई 20 साल तक रहे, तो ऊबन, चुभन हो ही जाती है. मुझे भी कई बार होने लगती है.

हर रोज मेरे सकुशल घर आने पर उस में बढ़ती हैरानी को देख सच पूछो तो मैं भी परेशान होने लगा हूं. कई बार इस परेशानी में रात को नींद नहीं आती. अजीबअजीब से सपने आते हैं. कल रात के सपने ने तो मुझे तड़पा ही दिया.

मैं ने सपने में देखा कि जब मैं औफिस से सब्जी ले कर घर आ रहा था तो मेरा एनकाउंटर हो गया है. पुलिस कहानियां बना अपने को शेर साबित कर रही है. मीडिया में मरने के बाद मैं कुलांचे मार रहा हूं. इस देश में आम आदमी मरने के बाद ही कुलांचे मारता है वह भी मीडिया की कृपा से. बहरहाल, मामला आननफानन सरकार के द्वार पहुंचा तो उस ने मामले को सांत्वना देनी चाही. प्रशासन मेरी पत्नी के द्वार सांत्वना देने के बजाय मामला दबाने आ धमका. वह तो मेरे जाने से पहले ही प्रशासन का इंतजार कर रही थी जैसे.

मेरे फेक एनकाउंटर के बाद सरकार और पत्नी के बीच जो बातें हुईं, प्रस्तुत हैं, आने वाले समय में किए जाने वाले फेक एनकाउंटरों में शहीद होने वालों को प्रसन्न करने वाले उन बातों के कुछ अंश :

‘बहनजी, गलती हो गई, हमारे पुलिस वाले से आप के पति का एनकाउंटर हो गया,’ कोई सरकार सा मेरी बीवी के आगे दोनों हाथ जोड़े सांत्वना देने के बदले मेरी मौत की सौदेबाजी करने के पूरे मूड में.

‘कोई बात नहीं सर. पुलिस से बहुधा गलती हो ही जाती है. हमारी पुलिस है ही गलती का पुतला. उन के जाने के बाद ही सही, आप हमारे द्वार आए, हमें तो कुबेर मिल गया. अब हमें उन के एनकाउंटर का तनिक गम नहीं. वैसे भी इस धरती पर जो आया है, उसे किसी न किसी दिन तो जाना ही है. बंदा जाने के बाद भी कुछ दे कर जाए तो बहुत अच्छा लगता है सर.’ आह, मेरी बीवी का दर्द. वारि जाऊं बीवी की मेरे लिए श्रद्धांजलि के प्रति. काश, ऐसी बीवी ब्रह्मचारियों को भी मिले.

‘देखो बहनजी, हम वैसा दूसरा पति तो आप को ला कर दे नहीं सकते पर हम ऐसा करते हैं…’ सरकार ने बीच में अपनी वाणी रोकी तो मेरी बीवी की आर्थिक चेतना जैसे जागृत हुई. उन के जाने के बाद अब तो सरकार मुझे, बस, आप का ही सहारा है,’ पत्नी कुछ तन कर बैठी.

‘तो आप को अपने यहां आप के पति की जगह पर सरकारी नौकरी में लगा देते हैं. आप चाहो तो कल से ही आ जाओ. इस के साथ ही साथ आप को एक सरकारी टू रूम सैट भी हम अभी दे देते हैं. चाबियां निकालो यार. आप के खाते में अपनी गलतीसुधार के लिए जिंदा जनता के पैसों में से 20 लाख रुपए जमा करवा देते  हैं,’ सरकार ने मुसकराते हुए घोषणा की तो पत्नी के कान खड़े हुए.

‘पर सर, उस मामले में तो आप ने उन की पत्नी को पीआरओ बनाया है. वहां भी पति ही गया है. पति तो सारे एक से होते हैं. फिर मेरे साथ मुआवजे को ले कर भेदभाव क्यों? उस के खाते में आप ने 25 लाख रुपए डाले. उस के बच्चों की पढ़ाई के लिए 5-5 लाख रुपए की एफडी बना दी. मेरी आप से इतनी विनती है कि कम से कम पतियों के एनकाउंटर के मामले में हम महिलाओं के साथ भेदभाव तो न कीजिए. चलो, ऐसा करती हूं सास के खाते में डालने वाले पैसे आप की सरकार पर छोड़े. पर…’

‘देखिए बहनजी, आप उन से अपनी तुलना मत कीजिए. कहां राजा भोज, कहां आप का गंगू तेली.’

‘सरकार माफ करना, आप जात पर उतर रहे हैं,’ पत्नी ने सरकार को वैसे ही आंखें दिखाईं जैसे मुझे दिखाती थी तो सरकार सहमी. पत्नी की आंखों से बड़ेबड़े तीसमारखां सहम जाते हैं. ऐसे में भला सरकार की क्या मजाल.

‘जात पर नहीं बहनजी, मैं तो मुहावरे पर उतरा था,’ सरकार को लग गया कि किसी गलत बीवी से पाला पड़ा है. सो, सरकार ने मुहावरे पर स्पष्टीकरण जारी किया.

‘पर फिर भी?’

‘देखिए बहनजी, सरकार को आप भी ब्लैकमेल मत कीजिए. सच पूछो तो, कहां उन की बीवी, कहां आप? वह मामला कुछ अधिक ही पेचीदा हो गया था. मीडिया बीच में आ गया था वरना…’

‘तो आप को क्या लगता है कि मेरे मामले में मीडिया बीच में नहीं आएगा? नहीं आएगा तो मैं ढोल बजाबजा कर सब को बताऊंगी कि मेरे पति को इन की पुलिस ने फ्री में निशाना बना दिया है,’ मेरी पत्नी की धमकी सुन सरकार डरीसहमी.

‘प्लीज, बहनजी, आप जो चाहेंगी हम करेंगे, पर मीडिया को बीच में मत डालिए. यह मसला मेरे, आप के और आप के पति के बीच हुए एनकाउंटर का है. मतलब हम तीनों के बीच का. अब पुलिस से गलती हो गई तो हो गई. सरकारी कर्मचारियों से बहुधा गलती हो ही जाती है. नशे में ही रहते हैं हरदम. पर इस गलती के लिए हम उन की जान भी तो नहीं ले सकते न. पर अब आप को भविष्य में आप के पति से भी अधिक खुश रखने के लिए दिल खोल कर मुआवजा तो दे सकते हैं न. सो दे रहे हैं. वैसे भी बहनजी, आज के इस दौर में क्या रखा है पतिसती में? अब तो कोर्ट ने भी साफ कर दिया है कि…’

‘देखो सर, अपने पति के फेक एनकाउंटर के बदले जितना आप ने पिछली दीदी को दिया है, उतना तो कम से कम लूंगी ही. इधर हर रोज पैट्रोलडीजल के दाम तो सुबह होते ही 4 इंच बढ़े होते हैं, पर अब आप ने गैस के दाम भी बढ़ा दिए. अब हमारे पास दिल जलाने के और बचा ही क्या? ऐसे में आप खुद ही देख लीजिए कि पति का मुआवजा ईमानदारी से दीदी को दिए मुआवजे से अधिक नहीं, तो उतना तो कम से कम बनता ही है.’

‘देखो बहनजी, हम ठहरे ब्रह्मचारी. हमें न पति के रेट पता हैं न पत्नी के. इस झंझट से बचने के लिए ही तो हम ने विवाह नहीं करवाया. तो अच्छा, ऐसा करते हैं, चलो, न मेरी न आप की. जो मेरे सलाहकार आप के पति के एनकाउंटर का तय करेंगे, सो आप को दे दूंगा. मेरा क्या? मेरे लिए तो सब टैक्स देने वालों का है. मैं तो बस बांटनहार हूं. अब पुलिस से गलती हो गई तो भुगतनी भी तो मुझे ही पड़ेगी. पर जो आप सरकार पर थोड़ा रहम करतीं तो…’ बीवी चुप रही.

आखिर, सरकार ने मेरी पत्नी को सांत्वना देते सहर्ष घोषणा की कि सरकार बहनजी के पति के फेक एनकाउंटर के मुआवजे के दुख में शरीक होते हुए उन्हें पुलिस में थानेदार की नौकरी, रहने को थ्री बैडरूम सरकारी आवास, उन के खाते में 25 लाख रुपए, बच्चों की सगाई के लिए 10-10 लाख रुपए और सास के लिए 5 लाख रुपए देने की सहर्ष घोषणा करती है.

सरकार की इस घोषणा के बाद मत पूछो कि पत्नी कितनी खुश. उस वक्त मेरा फेक एनकाउंटर उसे कितना पसंद आया, मत पूछो. उस ने ऊपर वाले को दोनों हाथ जोड़े और कहा, ‘हे ऊपर वाले, मेरे हर पति का ऐसा फेक एनकाउंटर हर जन्म में 4-4 बार हो.’

और मैं पत्नी से भी ज्यादा खुश. उसे इतना प्रसन्न मैं ने उस वक्त पहली बार देखा, तो मन गदगद हो गया. मेरी अंधी आंखें खुशी के आंसुओं से लबालब हो आईं. वाह, अपने एनकाउंटर के बाद ही सही, पत्नी को खुश तो देख सका.

हे जनपोषण को चौबीसों घंटे वचनबद्ध मित्रो, आप ने मेरा फेक एनकाउंटर कर मुझे मृत्यु नहीं, खुशियों भरा नया जीवन प्रदान किया है. आप के हौसले यों ही बुलंद रहें.

इन विटामिन्स की कमी से शरीर में हो सकती हैं कई बीमारियां, भूलकर भी न करें नजरअंदाज

शरीर के लिए विटामिंस से भरपूर डाइट लेना बहुत जरूरी है वरना शरीर में अनेक बीमारियां घर करने लगती हैं. विटामिंस कमी के कारण शरीर में कुछ लक्षण दिखाई देने लगते हैं, जिन्हें पहचान कर यदि समय रहते डाइट में जरूरी बदलाव कर लें तो शरीर को बड़ी तकलीफों से बचा सकते हैं.

आइए, जानते हैं उन लक्षणों के बारे में जिन से पता चलता है कि शरीर में किस विटामिन की कमी है.

विटामिन ए की कमी के लक्षण

स्किन का ड्राई होना: स्किन का ड्राई होना विटामिन ए की कमी का मुख्य लक्षण होता है. विटामिन ए से स्किन की कोशिकाओं का निर्माण होता है. विटामिन ए उन की मरम्मत करने का भी काम करता है. पर्याप्त विटामिन ए नहीं मिलने से ऐग्जिमा और अन्य स्किन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

आंखों में समस्या: आंखों की समस्याएं विटामिन ए की कमी से होने वाली समस्याओं में सब से मुख्य हैं. विटामिन ए की कमी का पहला संकेत आंखों का ड्राई होना है. इस की कमी से रतौंधी नामक बीमारी भी हो सकती है. व्यक्ति को शाम या रात को कम दिखाई देना शुरू हो जाता है. आंखें तेज प्रकाश को सहन नहीं कर पाती हैं.

बांझपन: विटामिन ए पुरुषों और महिलाओं दोनों ही के प्रजनन स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होता है, साथ ही यह शिशुओं के उचित विकास के लिए भी आवश्यक होता है. यदि किसी स्त्री को गर्भवती होने में परेशानी हो रही है तो विटामिन ए की कमी इस का एक कारण हो सकता है.

बच्चों का विकास धीमा होना: जिन बच्चों को पर्याप्त मात्रा में विटामिन ए नहीं मिलता है उन का विकास बहुत धीमा होता है. मानव शरीर के समुचित विकास के लिए विटामिन ए बेहद जरूरी है.

गले और छाती में संक्रमण: गले या छाती में बारबार संक्रमण, विशेष रूप से विटामिन ए की कमी का संकेत हो सकता है. विटामिन ए श्वसनतंत्र के संक्रमण से बचाता है.

घाव भरने में समस्या: जब शरीर में चोट लगती है तो उस के घाव या फिर सर्जरी के बाद ठीक नहीं होने वाले घाव विटामिन ए की कमी के लक्षण हो सकते हैं. ऐसा इसलिए है, क्योंकि विटामिन ए स्वस्थ स्किन के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटक कोलोजन के निर्माण को बढ़ावा देता है.

मुंहासे होना: मुंहासे होना भी विटामिन ए की कमी का लक्षण हो सकता है. विटामिन ए स्किन के विकास को बढ़ावा देता है और सूजन से लड़ता है, इसलिए यह मुंहासों को रोकने या उन का इलाज करने में मदद करता है.

विटामिन ए की प्राप्ति के स्रोत: अंडे, दूध, यकृत, गाजर, पीली या नारंगी सब्जियां जैसे स्क्वैश, पालक, स्वीट पोटैटो, दही, सोयाबीन व अन्य पत्तेदार हरी सब्जियां.

विटामिन बी12 की कमी के लक्षण

हाथों या पैरों में झुनझुनी: विटामिन बी12 की कमी के कारण हाथों या पैरों में झुनझुनी हो सकती है. यह लक्षण इसलिए होता है क्योंकि विटामिन बी12 तंत्रिकातंत्र के संचालन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

चलने में परेशानी: समय के साथ विटामिन बी12 की कमी के कारण व्यक्ति को चलने की समस्य हो सकती है. मांसपेशियों में कमजोरी भी महसूस हो सकती है.

पीली स्किन: पीलिया विटामिन बी12 की कमी का एक प्रमुख लक्षण है. पीलिया तब होता है जब किसी व्यक्ति का शरीर पर्याप्त मात्रा में लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने में सक्षम नहीं होता है.

विटामिन बी12 लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस की कमी से लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो सकती है, जिस से पीलिया होने की संभावना बढ़ जाती है.

थकान: विटामिन बी12 की कमी के कारण व्यक्ति को थकावट महसूस हो सकती है. इस की वजह शरीर में चारों ओर औक्सीजन ले जाने के लिए पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाओं की कमी होती है, जिस से व्यक्ति बेहद थका हुआ महसूस करता है.

तेज हृदय गति: हृदय की गति का तेज होना भी विटामिन बी12 की कमी का लक्षण हो सकता है. शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या कम होने पर दिल तेजी से धड़कना शुरू कर देता है.

मुंह का दर्द: विटामिन बी12 की कमी से मुंह में छाले या जलन की समस्या हो सकती है.

मानसिक समस्या: विटामिन बी12 की कमी से व्यक्ति की सोचने या तर्क करने की क्षमता प्रभावित होती है. वह चिड़चिड़ा या अवसादग्रस्त हो सकता है.

विटामिन बी की प्राप्ति के स्रोत: दूध और उस से बने उत्पादों में, अंडे के सफेद भाग में और मछली एवं मुरगे में विटामिन बी भरपूर मात्रा में होता है. अखरोट में भी बिटामिन बी पाया जाता है. सुपारी, अंगूर, पिस्ता, नारंगी आदि में भी यह विटामिन भरपूर होता है.

विटामिन सी की कमी के लक्षण

थकान: असामान्य रूप से थकान महसूस होना विटामिन सी की कमी का संकेत हो सकता है. दरअसल, यह विटामिन शरीर में कार्निटाइन को कम करता है, जिस से मैटाबोलिज्म और ऐनर्जी बढ़ती है. ऐसे में इस की कमी के कारण आप बेवजह थकान महसूस कर सकते हैं.

त्चचा पर नील के निशान: अगर शरीर पर नील के निशान पड़ने लगें तो समझ लें कि शरीर में विटामिन सी की कमी हो गई है. इस से रक्त वाहिकाएं कमजोर हो जाती हैं, जिस से शरीर पर ऐसे निशान पड़ने लगते हैं.

नाक या मसूढ़ों से खून आना: अगर आप की नाक या मसूढ़ों से अकसर खून आने लगा है तो यह भी विटामिन सी की कमी का लक्षण हो सकता है.

जोड़ों में दर्द और सूजन: जोड़ों में तेज दर्द और सूजन होना भी इस की कमी की तरफ इशारा करता है. जोड़ों में कोलोजन का स्तर कम हो जाता है, जिस से दर्द व सूजन की समस्या हो सकती है.

ऐनीमिया: शरीर में विटामिन सी की कमी होने से आयरन का बैलेंस भी बिगड़ जाता है, जिस से ऐनीमिया का खतरा हो सकता है.

रूखे बाल और हेयर फौल: अगर आप के बाल असामान्य रूप से झड़ रहे हैं, तो यह भी विटामिन सी की कमी का संकेत हो सकता है. इस के अलावा रूखे, बेजान और दोमुंहे बाल भी इस की कमी की ओर इशारा करते हैं.

अचानक वजन बढ़ना: अगर ऐक्सरसाइज और डाइटिंग के बावजूद वजन बढ़ रहा है, तो समझ लें कि शरीर में विटामिन सी की कमी हो गई है. दरअसल, विटामिन सी मैटाबोलिज्म को रैग्युलेट करती है. शरीर में इस की कमी से मैटाबोलिज्म धीमा हो जाता है और वजन बढ़ने लगता है.

रूखी स्किन: अगर आप की स्किन पर मुंहासे दिखने लगे हैं या स्किन जरूरत से ज्यादा रूखी रहने लगी है तो यह विटामिन सी की कमी के कारण हो सकता है.

जल्दीजल्दी इन्फैक्शन होना: विटमिन सी शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत बना कर इसे इन्फैक्शन से बचाने में मदद करता है. इस की कमी होने पर आप बैक्टीरियल और वायरल इन्फैक्शन की चपेट में आ सकते हैं.

विटामीन सी की प्राप्ति के स्रोत: खट्टे रसदार फल जैसे आंवला, नारंगी, नीबू, संतरा, बेर, कटहल, पुदीना, अंगूर, टमाटर, अमरूद, सेब, दूध, चुकंदर, चौलाई, पालक आदि विटामिन सी के अच्छे स्रोत हैं. इन के अलावा दालों में भी विटामिन सी पाया जाता है.

विटामिन डी की कमी के लक्षण

थकान महसूस करना: हड्डियों में दर्द और कमजोरी महसूस होना. इस के अलावा शरीर के अलगअलग हिस्सों की मांसपेशियों में लगातार दर्द भी इस का एक लक्षण है. आमतौर पर औरतों में विटामिन डी की कमी से डिप्रैशन या स्ट्रैस की समस्या ज्यादा होती है. इस विटामिन की कमी से इंसान के बाल तेजी से झड़ने लगते हैं. चोट लगने पर उस के भरने में काफी समय लगता है.

विटामिन डी की कमी का असर मूड पर भी होता है. इस की कमी का असर सैरोटोनिन हारमोन पर भी पड़ता है, जो मूड स्विंग्स की समस्या पैदा करता है. विटामिन डी की बहुत ज्यादा कमी होने पर जरा सी चोट लगने पर हड्डी टूटने, खासतौर पर जांघों, पेल्विस और हिप्स में दर्द होता है.

विटामिन डी की प्राप्ति के स्रोत: धूप, मछली, अंडा, दूध, मशरूम, संतरा आदि.

विटामिन ई की कमी से होने वाली समस्याएं

ऐनीमिया यानी शरीर में खून की कमी, बालों का विकास रुक जाना, स्किन ड्राई रहना, मांसपेशियों में दर्द और कमजोरी, रोग प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना, आंखों की रोशनी कम हो जाना आदि.

विटामिन ई की प्राप्ति के स्रोत: कीवी, पीनट बटर, सूरजमुखी के बीज, पालक, ऐवोकाडो, बादाम, ब्रोकली, टमाटर, मूंगफली, पपीता, शिमलामिर्च आदि.

विटामिन के की कमी के लक्षण

विटामिन के की कमी के कारण शरीर में रक्त का थक्का नहीं जमता और इस वजह से इस से जुड़ी समस्याएं नजर आने लगती हैं.

आसानी से चोट लगना या स्किन पर चोट के निशान दिखाई देना, हलकी चोट लगने पर भी बहुत खून बहना, नाक या मसूढ़ों से अचानक खून आना, मलमूत्र में खून आना, मासिकधर्म के समय खून का काफी ज्यादा बहाव, अधिक गंभीर मामलों में खोपड़ी के भीतर रक्तस्राव भी शामिल हो सकता है.

विटामिन के की प्राप्ति के स्रोत: पालक, ब्रोकली, शतावरी, स्प्राउट्स, गोभी, शलगम, डेयरी उत्पाद, अनाज, वनस्पति तेल, सोयाबीन, अनार, हरी सेम, पत्तागोभी, कीवी, काजू आदि.

शौर्टकट बाल कटवाने के बाद हेयर फौल होने लगा है, मैं क्या करूंं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैंने अपने बालों में जब से शौर्टकट करवाया है मेरे बाल गिरने शुरू हो गए हैं. बताएं मैं क्या करूं कि मेरे बाल गिरने बंद हो जाएं और लंबे भी हो जाएं?

जवाब-

कभी भी कट कराने से बालों का गिरना शुरू हो ऐसा नहीं हो सकता, बल्कि कट कराने से बालों की ग्रोथ बढ़ती है क्योंकि अब सारा खाना आप के छोटे बालों को मिल रहा है. वे जल्दी बढ़ने लगते हैं. बालों के गिरने के बहुत सारे रीजन हो सकते हैं जैसेकि खाने में प्रोटीन की कमी क्योंकि बाल बने हैं हार्ड प्रोटीन कैरोटिन से.

आप अपने खाने में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाएं जैसेकि दूध, दही, अंडा, हरी सब्जियां, राजमा, दालें या चिकन इत्यादि. आप चैक कीजिए कि कहीं आप के हारमोंस इनबैलेंस तो नहीं हैं. इस के लिए आप किसी डाक्टर या किसी हेयर कंसलटैंट या किसी अच्छे क्लीनिक में जा कर काउंसलर से मिलें जो आप के बालों के गिरने का रीजन ढूंढ़ ले.

थायराइड या दूसरे हारमोंस इनबैलेंस होने से बालों का गिरना शुरू हो जाता है. आप वैसे घर पर हैड मसाज करें. इस के लिए आप ऐरोमैटिक औयल का इस्तेमाल कर सकती हैं जिस में लैवेंडर×रोजमैरी औयल हों या फिर एक पैक का इस्तेमाल कर सकती हैं.

इस के लिए रात को 1 कप दही में 2 बड़े चम्मच मेथीदाना भिगो दें. सुबह इसे बारीक पीस लें. इस में 2 बड़े चम्मच फ्रैश ऐलोवेरा जैल मिला लें. अगर अंडा खाती हैं तो 1 अंडा इस में डाल दें. 1 चम्मच शहद व 1 चम्मच औलिव औयल मिला लें. इस पैक को बालों की जड़ों में लगाएं. फिर 1 घंटे बाद धो लें. ऐसे लगातार करते रहने से बाल लंबे हो जाते हैं.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बुढ़ापे में जो दिल बारबार खिसका

पार्क के ट्रैक पर जौगिंग कर रही नेहा को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. यह तो माथुर अंकल ने मुझे आंख मारी, एक बार नहीं बल्कि 2 बार. पिछले हफ्ते ही तो घर पर आए थे, पापाजी से बात कर रहे थे. मैं चाय दे कर आई थी. शायद धोखा हुआ है, पर दोबारा घूम कर आई तो फिर वही हरकत. नहीं, वही हैं माथुर अंकल, बदतमीज इंसान, इन्हें तो नमस्ते भी नहीं करना. वह शिखा के साथ आगे बढ़ गई. ‘‘क्या हुआ अचानक तेरा मुंह क्यों उतर गया और बोलती बंद?’’ शिखा उस के चेहरे को ध्यान से देख रही थी.

‘‘अरे यार, देख रही है ब्लू स्ट्राइप्स की टीशर्ट में जो अंकल 3 बंदों के बीच बैठे हैं, उस ने बिना सिर घुमाए आंखों से इशारा किया था. वे हर राउंड पर मुझे आंख मारे जा रहे हैं और मेरे घुसते ही हाथ का इशारा कर के गाना गाने लगे ‘जरा हौलेहौले चलो मोरे साजना…’ शिट, फादर इन लौ के जानपहचान के हैं वरना इन्हें अच्छे से सबक सिखा देती अभी. पिछले हफ्ते घर आए थे. मुझ से मिले भी थे. फिर भी ऐसी हरकत, न उम्र का लिहाज न रिश्ते की मर्यादा. मम्मीजी को बोलूंगी, वही बताएंगी इन्हें.’’ ‘‘तू अभी नई है न यहां. अरे, ये चारों बुड्ढ़े हैं ही ऐसे. सभी को आएदिन चेतावनी मिलती रहती है, पर जबतब ये किसी को छेड़ने से बाज नहीं आते. मजाल है कि सुधर जाएं. कभी चाट वाले के पास, तो कभी कहीं…रोजरोज कौन मुंह लगे इन के. लेने दो इन को मजा. तुझे नहीं पता, नई खोज है, वैज्ञानिक बता रहे हैं कि महिला को छेड़नाघूरना आदमी की सेहत के लिए अच्छा होता है, उम्र बढ़ती है. बीवी बूढ़ी होगी तो ठीक से करवाचौथ रख नहीं पाती होगी, सेंकने दो इन्हें आंखें, बढ़ा लेने दो उम्र, इस से ज्यादा कर भी क्या पाएंगे. यार, इग्नोर कर, बस,’’ यह कह कर शिखा हंसने लगी.

‘‘समझा लीजिए इन्हें रेवती बहन, पानी सिर से ऊपर जा रहा है, रामशरणजी तो बहूबेटियों पर भी छींटाकशी से बाज नहीं आ रहे. बुढ़ापे में मुफ्त जेल की सैर हो जाएगी. कैसे रहती हैं ऐसे घटिया, लीचड़ आदमी के साथ. आप की भी बहू आने वाली है, तब देखेंगे,’’ भन्नाई हुई पड़ोसिन लीला निगम धमकी दे कर चली गईं. रामशरण माथुर अपनी आदत से लाचार थे. 60 साल के होने के बावजूद वे सड़कछाप आशिक बने हुए थे. बुढ़ापे में भी यही उन का शगल था. 2 ही बच्चे थे उन के. बड़ी लड़की रानी और बेटा रणवीर छोटा था. उन की ऐसी ओछी बातें सुनते ही वे दोनों बड़े हुए थे. पहले तो पड़ोस की औरतों के लिए लवलैटर क्या, पूरा रजिस्टर लिख कर अपने ही बच्चों को पढ़ापढ़ा कर हंसते, तो कभी चुपके से खत उन के घर फेंक आने को कहते और दोस्तों के साथ मजे लेते.

रेवती उन की बुद्धि पर हैरानपरेशान होती, अपने बच्चों के साथ कोई पिता ऐसा कैसे कर सकता है. नादान बच्चे गलत रास्ते पर न चल पड़ें, आशंका से रेवती गुस्सा करती, मना करती तो लड़ने बैठ जाते, समझते वह दूसरी औरतों से जलन के मारे ऐसा कह रही है. उसे चिढ़ाने के लिए वे ऐसी हरकतें और करने लगते. मां कुछ कहे, बाप कुछ और सिखाए, तो बच्चों पर अलग प्रभाव पड़ना ही था. रानी ने रोधो कर किसी तरह बीए किया. वह अपनी शादी के लिए लालायित रहती. जल्दी से जल्दी घर बसा कर इस माहौल से दूर चले जाना चाहती थी. बाप की हरकतों से जबतब कालोनी, कालेज की सखीसहेलियों में उसे शर्मिंदगी झेलनी पड़ती. ‘पापाजी तो अभी अपने में ही रमे हुए हैं, मेरी शादी क्या खाक करेंगे,’ यह सोच कर उस ने फेसबुक पर किसी रईस से पींगें बढ़ाईं और उस से शादी कर सुदूर विदेश चली गई.

रेवती चाहती थी छोटा बेटा रणवीर भी शादी कर अपना घर बसा ले. उस का माहौल बदले और वह खुश रहे. पर वह शादी के लिए तैयार ही नहीं हो रहा था. ऐसे वातावरण में होता भी कैसे, घर की प्रतिष्ठा पर पिता ही कीचड़ उछाल रहा था. वह किसी बड़ी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर जौब करने लगा था. बढि़या कमा रहा था. सो, घर की सारी जिम्मेदारी बाप द्वारा उस पर डाल दी गई कि उस के ऊपर इतना खर्च हुआ है, अब वह नहीं करेगा तो क्या हम बूढ़े करेंगे. जवानी में खूब पैसे उड़ाए, कुछ बुढ़ापे के लिए न जोड़ा न छोड़ा, कि बेटा आखिर होता किसलिए है? पढ़ायालिखाया, खर्च किया किसलिए? रेवती क्या, निर्लज्ज से वे बेटे को भी उस पर खर्च हुआ जुड़ाने लग जाते.

रेवती को गुस्सा आता, तो कह उठती, ‘‘ऐसा भी कोई बाप होता है? बेटे के लिए लोग क्याक्या नहीं करते, कितना कुछ कर गुजरते हैं उन के सुंदर भविष्य के लिए. इस ने तो हर जगह अपने दम से ऐडमिशन लिया, शुरू से स्कौलरशिप से पढ़ाई की. तुम तो उसे खिलाया आलूगोभी, आटादाल भी जोड़ लो, छि, कैसे पिता हो.’’ अब तो बेटा ही घर का सारा खर्च उठा रहा था, फिर भी जबतब अलग से कभी चाटजलेबी खाने, तो कभी वाकिंग शू, शर्ट कुछ भी खरीदने के लिए रामशरण आतुर रहते और बिना झिझके रणवीर के सामने हाथ फैला देते. पत्नी रेवती इस तरह के व्यवहार से पहले ही बहुत शर्मिंदा रहती. अब जो लोगों से बहूबेटियों को छेड़ने की शिकायत सुनती तो जमीन में धंसती जाती. वह उन्हें समझासमझा कर थक गई. वे कुछ सुनने को राजी नहीं. उस पर से हंसते कहते, ‘जोर किस का, बुढ़ाने में जो दिल खिसका.’

इस बार अगर रणवीर के कानों में यह बात पड़ गई तो गुस्से और शर्मिंदगी में वह जाने क्या कर डाले. पिछली बार भी ऐसी ओछी हरकत से शर्मिंदा हो कर कितना फटकारा था बाप को और फिर तंग आ कर आखिरी चेतावनी भी दी थी कि अगर नहीं सुधरे, तो वह घर छोड़ कर चला जाएगा. ‘अच्छा है, रणवीर आज 8 बजे तक आएगा, तब तक शायद मामला ठंडा पड़ जाए,’ रेवती सोचने लगी.

औफिस से निकलते समय रणवीर एक बैंक के एटीएम में जा घुसा, उस का कार्ड ब्लौक हो गया. वह अंदर बैंक में गया तो ‘मे आई हैल्प यू’ सीट पर जयंति सिन्हा का साइन बोर्ड रखा था. सीट खाली थी. कुछ जानापहचाना सा नाम लग रहा है, वह यह सोच ही रहा था कि सीट वाली आ गई. ‘‘सर, मैं आप की क्या हैल्प कर सकती हूं,’’ जयंति ने कुछ पेपर टेबल पर रख कर सिर उठाया था.

दोनों एकदूसरे को देख कर आवाक रह गए. ‘मिस खुराफाती सिन्हा?’ वह मन ही मन बोल कर मुसकराया. इतने सालों बाद भी रणवीर 7वीं-8वीं क्लास में साथ पढ़ी जयंति को पहचान गया, ‘यही नाम तो रखा था उस के सहपाठियों ने इस का.’

‘‘अरे तुम, मास्टर रोंदूतोंदू, खुला बटन, बहती नाक, पढ़ाकू वीर,’’ वह थोड़ा झिझकी थी फिर फ्लो में बोल कर खिलखिला उठी, ‘‘वाउ, तोंद तो गायब हो गई है. ओहो, अब तो बड़े स्मार्ट हो गए हो, चमकता सूटबूटटाई, महंगी वाच…क्या बात है, क्या ठाठ हैं?’’ अगलबगल खड़े लोग भी सुन रहे थे, रणवीर झेंप गया. ‘‘तो अब मास्टर से मिस्टर शर्मीले बन गए हो, अच्छा छोड़ो ये सब, यार बताओ, किस काम से आना हुआ यहां. मैं पहले दूसरी ब्रांच में थी, अभी कल ही यहां जौइन किया है. अच्छा इत्तफाक है, जल्दी बोलो, ड्यूटी आवर खत्म होने को है, फिर बाहर निकल कर ढेर सारी बातें करेंगे,’’ वह मुसकराई.

जयंति ने फटाफट उस की समस्या का समाधान करवाया और उस के साथ बाहर निकल आई. ‘‘कोई घर पर इंतजार तो नहीं कर रहा होगा?’’ वह मुसकराई.

‘‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं, अभी शादी नहीं की. मां को इंतजार रहता है, फोन कर देता हूं.’’ और वे दोनों कौम्प्लैक्स के हल्दीराम रैस्टोरैंट में आराम से बैठ गए. मां को तभी आज उस ने 8 बजे घर पहुंचने का टाइम बता दिया. दोनों बचपन के किस्सों में खो गए. फिर अब तक क्याक्या, कैसे किया वगैरह एकदूसरे से शेयर करते व हंसते बाहर निकल आए. रणवीर बहुत दिनों बाद इतना हंसा था. जयंति अब भी वैसी ही मस्तमौला खुराफाती है. उस को उस का साथ बहुत भला लगा. ‘इतनी परेशानियां झेली… पिता का असमय अचानक देहांत, मां का कैंसर से निधन, भाई का ससुराल में घरजमाई बन कर चले जाना और जाने क्याक्या उस ने इतने दिनों में. पर अपने मस्तमौला स्वभाव पर कोई असर न आने दिया. यह सीखने वाली बात है,’ यह सोच कर वह हलका महसूस कर रहा था. उस दिन रणवीर को कुछ मालूम नहीं चलने पाया कि कोई पड़ोसी फिर पापा की शिकायत कर के गए हैं. वह खाना खा कर सो गया और दूसरे दिन सुबह फिर औफिस चला गया. रेवती ने चैन की सांस ली. बेकार ही इन पर गुस्सा हो कर उलझता, और फिर बहुत बड़ा बखेड़ा हो जाता. घर बिखर जाए, इस से पहले मैं ही कुछ करती हूं. पिछली बार अपनी सहेली संध्या के दरोगा भतीजे ने इन पर विश्वास कर, भला जानते हुए इन्हें छेड़खानी के आरोप से छुड़ाया था. उसी से मदद लेती हूं. बिना शर्म के बताऊंगी कि ये ऐसे ही मस्तमिजाज हैं. लोग सही आरोप लगाते हैं. तू ही सुधार के लिए कुछ कर, यही ठीक रहेगा. यह सोचते हुए वह कुछ आश्वस्त हुई.

रणवीर और जयंति का तकरीबन रोज ही मिलना हो जाता. दोनों को एकदूसरे का बरसों बाद मिला साथ अच्छा लगने लगा था. एक दिन जब जयंति ने रणवीर से कहा, ‘‘यार, इतने दिन हो गए कई बार कहा भी, घर में तो सब से मिलवाओ, मेरा तो कोई है नहीं, लेदे के एक वही मस्ताना डौग है, वैसे वह भी मिलने लायक चीज है, चलोगे, मिलोगे?’’ वह हंसी थी.

‘‘चलूंगा, पर आज नहीं. मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं जयंति कि क्यों मैं तुम्हें घर नहीं ले जा पाता,’’ रणवीर ने पिता की वजह से घरबाहर फैले रायते को जयंति के सामने रख दिया. ‘‘छि, बड़ी शर्म आती है मुझे, घर से बाहर निकलते लोगों से मिलते. सब बाप की तरह बेटे को भी समझते होंगे. क्या करूं कोई उपाय सूझ नहीं पाता. मैं खुद उस घर में नहीं जाना चाहता. सिर्फ मां की वजह से वहां हूं. मां से अलग घर, मैं सोच भी नहीं पाता. ऐसे पिता की वजह से न घर में कोई आता है न ही हम किसी को बुलाने की हिम्मत कर पाते हैं. मां की तो पूरी जिंदगी ही उन्होंने खराब कर दी, वही अब मेरे साथ भी कर रहे हैं. रानी दी ने तो सही किया, लड़की थीं, निकल गईं जंजाल से. पर मैं तो बेटा हूं, इन्हें छोड़ भी नहीं सकता, बुढ़ापे में मां को इन से अलग भी नहीं कर सकता. साथ रख कर ही पालना पड़ेगा. जब तक इन की हरकतें रहेंगी, ये जिंदा रहेंगे, तब तक कुछ नहीं हो सकता. कितना भी कर लूं, पर न मैं ऐसे में खुश रह सकता हूं, न मां को या किसी को खुशी दे सकता हूं. शादी के बारे में तो सोच ही नहीं सकता.’’

‘‘ओह, तो यह बात है जरा सी, जो तुम सब को कब से परेशान किए हुए है.’’

‘‘तुम्हें यह जरा सी बात लगती है?’’ ‘‘इसीलिए तुम ने शादी न करने का फैसला कर लिया है,’’ वह बोली.

‘‘ऊं, न, नहीं, ऐसा कुछ नहीं. पर कुछ हद तक सही ही है. जहां खुद मेरा दम घुटता हो वहां किसी को लाने की मैं सोच भी कैसे सकता हूं.’’ ‘‘लग तो कुछ ऐसा ही रहा है,’’ वह मुसकराई, तुम शादी तो करो, यार, मैं उसे ऐसे गुरुमंत्र दूंगी कि बस, फिर तुम कमाल देखते ही रहना. आई प्रौमिस यू, तुम तो जानते ही हो, जो मैं कहती हूं वह जरूर कर के रहती हूं.’’

‘‘कोई और क्यों, तुम क्यों नहीं. जानता हूं कि असलियत जान कर किसी को मुझ से शादी करना मंजूर नहीं होगा,’’ वह कुछ संकुचाते हुए बोल ही गया. उस के संबल में उसे एक उम्मीद की किरण सी उसे दिखने लगी. पर जयंति अचानक दिए इस प्रपोजल पर हैरान थी. अपनी हैसियत से उसे ऐसी सपने में भी कल्पना न थी. जल्दी में कुछ न सूझा तो वह बोल पड़ी, ‘‘मेरे ऊपर तो बड़ी जिम्मेदारी है जो कभी पीछा नहीं छोड़ेगी.’’

‘‘अभी तो तुम ने कहा, कोई नहीं रहता, तुम अकेले हो?’’ ‘‘भूल गए, मस्ताना, उस का भी कोई नहीं मेरे सिवा,’’ वह अमिताभ की फिल्म ‘द ग्रेट गैम्बलर’ के अंदाज में गा उठी.

‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा, पूरी तरह से सीरियस हूं.’’ ‘‘अच्छा, चलो, फिर कर लेते हैं, पर समझ लो, मैं तुम्हारी हस्ती से मैच भी करूंगी? एक पहिया गाड़ी का, एक स्कूटी का. आड़ातिरछा चलाचला के झूम…’’ और वह हंसने लगी. रणवीर की गंभीर गुस्से वाली मुद्रा देख कर वह फिर बोली, ‘‘अच्छा, अब सीरियस हो जाती हूं. मां से तो मिलवाओगे या सीधे कोर्ट मैरिज कर के घर ले चलना है.’’ वह फिर से हंसने वाली थी, अपने को रोक कर मुसकराई.

जयंति रणवीर की मां रेवती से मिली, आशीर्वाद लिया और फिर शहनाइयां बज उठीं. जयंति ब्याह कर रणवीर के घर आ गई. उस के साथ मस्ताना भी था. रेवती, रणवीर दोनों ही ने उसे साथ लाने को कहा था. रेवती ने देखा, हमेशा गंभीर दिखने वाले बेटे के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी. मस्ताना की चमकती आंखें रामशरण को लगता उन्हें ही घूर रही हैं. वह अपनी लहरदार, घनी पूंछ जब पटकता तो लगता उन्हें धमकी दे रहा हो. कई बार रामशरण मस्ताना की वजह से ताकझांक करते हुए, कहीं चोरी पकड़ी न जाए, गिरतेगिरते बचते क्योंकि मस्ताना कहीं न कहीं से उन्हें देख लेता. लहराती दुम उठा कर जो वह जोरजोर से भूंकना शुरू करता तो रुकने का नाम ही न लेता. जयंति को मालूम हो गया था कि ससुरजी मस्ताना से थोड़ा डरते हैं. वह अकसर उन्हें मस्ताना से काफी दूर घूम कर जाते हुए देखती तो मुसकराती. कोई शरारत उस के खुराफाती दिमाग में दौड़ने लगी थी. कुछ तो करना ही पड़ेगा घर में सब के सुकून के लिए.

सुबहशाम जयंति भी ससुरजी के टाइम पर ही मस्ताना को टहलाने के लिए जाने लगी. पहले बहुत जिद की थी पापाजी से, ‘‘आप ही उसे अपने साथ ले जाया कीजिए पापाजी, मैं मां का हाथ बंटा लूंगी. फिर औफिस भी जाना होता है.’’ पर रामशरण किसी न किसी बहाने से टाल गए. अगले वीक उस की छुटटी सैंक्शन हो गई. जितनी भी छुट्टियां बची थीं, सब ले डालीं. रणवीर तो उसे यह जौब छोड़ कर उसे अपना पसंदीदा एनीमेशन कोर्स कर कुछ बड़ा करने पर जोर दे रहा था जिसे वह अपने घर की परेशानियों के चलते पूरा न कर सकी थी.

‘‘अब ये सब करने की क्या जरूरत है? जो चाहती थी वह कर डालो न.’’ ‘‘ओ थैंक्स डियर, तुम्हें अब भी याद है? मेरा तो सपना ही था. अभी कुछ दिन रुक जाओ, फिर देखती हूं.’’

रणवीर की आंखों में असीमित प्यार देख कर वह निहाल हुई जा रही थी. उसे सब याद आया कि वह ब्लैकबोर्ड पर, कौपी में अकसर सहपाठियों, टीचर के कार्टून बना दिया करती, हूबहू कोई भी पहचान लेता. एक बार प्रिंसिपल शशिपुरी का भी कार्टून बना डाला. अचानक मैम राउंड पर आ गईं. सभी बच्चे हंसी से लोटपोट हुए जा रहे थे. मैम ने अपना कार्टून पहचान लिया और औफिस बुला कर उसे खूब झाड़ा. उस दिन मिस खुराफाती को पहली बार किसी ने रोते देखा था. सब बच्चों को तो मजा आया पर जाने क्यों रणवीर को अच्छा नहीं लगा था, जबकि उस ने उसे कितनी ही बार चिढ़ाया, कितने ही नाम दिए थे. वह सोचता, ‘इसे तो आज इस अनोखी प्रतिभा के लिए इनाम मिलना चाहिए था.’

जयंति के मस्ताना के साथ सुबह टहलने जाने से पार्क में रामशरण और उन के दोस्तों की मस्ती थोड़ी कम हो गई थी. एक तो साथियों में से वह एक की बहू थी, उस पर से उस का खूंखार नजरों से घूरता अल्सेशियन डौग मस्ताना. कभी जयंति शाम को जल्दी घर आती तो वह शाम को भी मस्ताना को ले कर निकल पड़ती सखियों के पास टहलते हुए. फिर तो रामशरण और उन के दोस्तों की शाम भी खराब होती. चाटगोलगप्पे वालों के यहां उन का लड़कियों से छेड़खानीचुहल करने का मजा किरकिरा हो जाता. जयंति अपने मस्तमौला स्वभाव के कारण जल्दी ही नेहा, शिखा आदि लड़कियों से घुलमिल गई. इतवार व छुट्टियों के दिनों में अकसर वे सुबह अपनीअपनी स्कूटी पर पास की पहाड़ी की ओर खुली हवा में सैर कर आतीं. इन बुड्ढों के दिल में हूक उठती, पार्क में रौनक जो नहीं दिखती.

एक दिन आखिर एक बुड्ढे ने कमैंट कर ही दिया, ‘‘अरे, कहां जाती हो घूमने अकेलेअकेले, हमें भी तो कभी घुमा दिया करो, तरस खाओ हम पे.’’ सुन लिया था जंयति ने भी. मस्ताना को ले कर वह थोड़ा आगे बढ़ गई थी नेहा के पास. उस ने नेहा से धीरे से कहा, ‘‘बोल दो, ‘हांहां, एकएक बैठ जाओ स्कूटी पर’ तुम चारों अपनीअपनी स्कूटी पे इन्हें वहीं पहाड़ी के पीछे झरने के पास दूर छोड़ कर वापस आ जाना. आज इन्हें मजा चखा ही देते हैं. फिर सारी आशिकी भूल जाएंगे. मैं फोन पर कौंटैक्ट में रहूंगी. ससुर हैं एक, इसलिए मैं नहीं जा सकती. तब तक मैं घर जा कर वापस मस्ताना को दोबारा टहलाने यहां आती हूं.’’

नेहा ने पलक झपकते ही कहे पर अमल किया और बाकी सहेलियों को आंख मारी.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, अंकल, जरूर. हम 4 हैं, आप भी 4 स्कूटी पर बैठ सकेंगे? तो आइए, आप लोग भी क्या याद करेंगे.’’ ‘‘बुड्ढों का चौगड्डा खुशी की बौखलाहट में जल्दी ही एकएक कर के चारों लड़कियों के पीछे मजे लेने बैठ गया. लड़कियों ने आपस में एकदूसरे को आंख मारी, तो बुड्ढों ने अपने साथियों को. सब के अपने मंसूबे थे. लड़कियों ने जो झटके से स्कूटी स्टार्ट की तो अंकल लोगों की मानो हलक में सांस अटक गई. और जो स्पीड पकड़ी तो वे लाललाल हुए मुंह से रोकने के लिए चिल्लाते रहे. लड़कियां आज दूर निकल कर पहाड़ी के पीछे झरने के पास तक चली गईं, जिसे देखने की तमन्ना तो थी पर अकेली वे वहां जाने से डरती थीं. आज मौका मिल गया, एक पंथ दो काज. वे सोचने लगीं कि काश, जयंति भी साथ आ पाती तो कितना मजा आता.

‘‘अंकल, आप लोग यहां पत्थरों पर चैन से बैठो. हम थोड़ा दूसरी ओर से भी देख कर आती हैं.’’ उन्होंने कहा. ‘‘ओके गर्ल्स,’’ बुड्ढे मस्त थे.

‘‘हां जयंति, तुम्हारे कहे अनुसार हम ने चारों बुड्ढों को वहीं झरने के पास धोखे से छोड़ दिया है. अब हम वापस आ रही हैं, आधे घंटे में मिलते हैं, ओके,’’ आगे बढ़ कर नेहा ने जयंति को मिशन पहाड़ी सफल हुआ बता दिया था.

अंकल लोग तो अभी अपनी सांसें ही ठीक कर रहे थे, वे दूसरी ओर के दूसरे रास्ते से निकल कर वापस पार्क पहुंच कर देर तक मजा लेती रहीं. जयंति वहीं इंतजार कर रही थी. मोबाइल पर सारा डायरैक्शन उन्हें वही दे रही थी. ‘‘काश, तू भी साथ चल सकती तो सब की बिगड़ी शक्लें देखती.’’

‘‘कोई नहीं, अब घर पर बिगड़ी शक्लों के साथ बुरी हालत भी देख लूंगी, वह हंसी थी.’’ ‘‘बुरे फंसे सारे बुढ़ऊ. वहां न कोई सवारी, न कोई आदमी. पैदल जब इतनी दूर चल कर आएंगे हांफतेकांपते, तब असली मजा आएगा.’’

‘‘आज अच्छी तरह ले लिया होगा लड़कियों के संग सैर का मजा.’’ ‘‘अब शायद सुधर जाएं और हमें छेड़ने की हिमाकत न करें,’’ सब अपने मिशन पर खूब हंसीं.

अब यह देखो, चारचांद लगाने के लिए और क्या लाई हूं.’’ जयंति बैग से कुछ निकालने लगी तो सभी उत्सुकतावश देखने लगीं. ‘‘अरे वाह, कैप्स, स्कार्फ. कितना प्यारा रैड कलर. पर एक ही कलर क्यों? किस के लिए? हमारे लिए?’’ शिखा, सीमा, नेहा, ज्योति सब खुश भी थीं, हैरान भी.

‘‘अब सीक्रेट सुनो, मेरे फादर इन लौ नई कैप के लिए मेरे हबी से कह रहे थे. मैं ने कहा कि मैं ले आऊंगी, और मैं एक नहीं, 4-4 लाल रंग की टोपियां उठा लाई, इसी चौकड़ी के लिए. जानती हो क्यों? क्योंकि मस्ताना, द हीरो, को लाल रंग से सख्त चिढ़ है. कल पार्क में आ कर बैठने तो दो बुड्ढों को. जब ज्यादा लोग टहल के चले जाते हैं, पार्क तकरीबन खाली हो जाता है. ये बुड्ढे तब भी बैठे मजे ले रहे होते हैं. बस, तभी इन्हें ये गिफ्ट पहना कर और फिर उन्हें मजा दिलाएंगे. आइडिया कैसा लगा?’’ ‘‘हां, स्कार्फ की गांठ जरा कस के लगाना सभी, ताकि जल्दी खोल न सकें वे,’’ शिखा ने कहा तो सभी हंस पड़ीं.

‘‘हां, मैं और शिखा पार्क के दोनों गेट बंद कर के रखेंगी,’’ नेहा ने योजना को सफल बनाने में एक और टिप जोड़ा. ‘‘और मस्ताना को पार्क के अंदर छोड़ कर वहां से थोड़ी देर के लिए बाहर निकल जाऊंगी. फिर मस्ताना अपना काम करेगा और मैं 5-7 मिनट बाद लौट आऊंगी स्थिति संभालने,’’ हाहा, सब खूब हंसीं.

‘‘बुढ़ापे में जब रेबीज की कईकई सुइयां लगेंगी, तो सारी लोफरी निकल जाएगी.’’ उन के सम्मिलित ठहाकों से पार्क गुंजायमान हो उठा. दूसरे दिन कांड हो चुका था. टोपियां संभालते स्कार्फ खोलने की कोशिश में गिरतेपड़तेचिल्लाते उन आशिकमिजाज बुड्ढों की हालत देखने लायक थी. बाकी खड़े लोगों ने भी लड़कियों का साथ दिया.

‘‘जो हुआ, ठीक हुआ इन के साथ.’’ ‘‘अच्छा सबक है. सभी को तंग कर रखा था.’’

‘अच्छा हुआ, सबक तो मिला. जोर किस का बुढ़ापे में जो दिल खिसका,’ रेवती भी चिढ़ से बुदबुदा उठी. पास खड़ी जयंति ने सुना, उन की आंखों में कोई दर्द भी न दिखा तो उसे राहत मिली कि वह उन की दोषी नहीं है. पास के अस्पताल में रोज इंजैक्शन लगवाने जाते दोस्त आंसुओं में कराहते हुए मिलते, पर कुछ न कह पाते न आपस में, न घर वालों से, न ही और किसी से. जयंति की टीम ने उन्हें एक नारे से सावधान कर दिया था, ‘जब तक बहूबेटियों के लिए इज्जत आप के पास, तब तक खैर मनाओ आप…वरना और भी तरीके हैं अपने पास…’

फिल्म बैड न्यूज में दिखाए गए इंटिमेट और न्यूड सीन से संजय दत्त को है सख्त ऐतराज

अपनी असल जिन्दगी में 308 प्रेम संबंध रखने वाले  और जेल की हवा खा चुके संजय दत्त को बैड न्यूज में विक्की कौशल और तृप्ती डिमरी पर फिल्माए गए इंटिमेट और न्यूड सीन को लेकर सख्त ऐतराज है. जो की फिल्म में दो तीन बार दिखाए गए हैं. जहां एक और बैड न्यूज़ बौक्स औफिस पर अच्छा कलेक्शन कर रही है. वहीं दूसरी तरफ एक खास वर्ग इस फिल्म में दिखाए गए इंटिमेट और न्यूड सीन को लेकर फिल्म की आलोचना भी कर रहे हैं.

इसी श्रेणी में हाल ही में संजय दत्त ने भी एक वीडियो शेयर किया जिसमें उन्होंने इस फिल्म की आलोचना करते हुए कहा है कि बौलीवुड फिल्मों का स्तर दिन पर दिन गिर रहा है. जिससे हमारे देश का और बौलीवुड फिल्मों का नाम खराब हो रहा है. नए कलाकार जल्दी सफलता पाने के लिए गंदेगंदे सीन देकर प्रसिद्धि पाना चाहते हैं. जिसके चलते हमारे बौलीवुड फिल्मों का भविष्य खतरे में है. क्योंकि इस तरह के सस्ते और घटिया दृश्यों की वजह से दर्शक फिल्म देखने थिएटर तक नहीं पहुंच रहे. संजय दत्त ने खास तौर पर बैड न्यूज़ में विकी कौशल और तृप्ति डीमरी के बैड सीन्स को लेकर यह तानाकशी की है.

गौरतलब है तृप्ति डीमरी ने इससे पहले भी फिल्म एनिमल में बोल्ड सीन और इंटिमेट सीन खुल कर दिए हैं. एनिमल से पहले भी तृप्ति ने कुछ फिल्में की है . जिससे उनका खास पहचान नहीं मिली. लेकिन एनिमल में अंग प्रदर्शन और सेक्सी सीन के बाद उनको कई फिल्मों के औफर आए. जहां तक संजय दत्त का सवाल है तो संजय दत्त का ऐतराज ठीक वैसा ही है जैसे हम करें तो रासलीला और दूसरा करे तो करेक्टर ढीला. कहने का तात्पर्य है यह है कि की संजय दत्त ने अपने फिल्मी करियर में तमाम लव और इंटिमेट सीन किये हैं लेकिन अब वही दूसरे कर रहे है तो उनको बौलीवुड फिल्मों और देश की बदनामी की चिंता सता रही है .

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