सरकार ने गोद कानून को सरल बनाने के बजाय बना दिया है इसे बेहद जटिल

नवजातों की खरीदी के मामले के उजागर होने पर किसी को कोई आश्चर्र्य नहीं होना चाहिए. एक बेहद सामान्य, आमतौर पर नैतिक, मानवीय जरूरत के कानूनों के अंतर्गत अवैध घोषित कर के इसे कालाबाजारी में धकेल दिया गया है. जिन लोगों के बच्चे नहीं होते वे किसी न किसी को गोद लेना चाहते हैं और चूंकि अब रिश्तेदारों में गोद देने वाले बचे नहीं हैं, किसी दूरदराज इलाके के बच्चे को गोद लेना ही अकेला तरीका बचा है.

सरकारों ने गोद लेने की प्रक्रिया को बेहद जटिल बना दिया है. मानव तस्करी रोकने और बच्चों से भीख मंगवाने, उन्हें फैक्टरियों में स्लेव लेबर की तरह रखने, उन से प्रौस्टीट्यूशन करने से बचने के नाम पर जो कानून बनाए गए हैं वे ऐसे हैं कि कानूनी बच्चा पाना मुश्किल हो गया है. एक नवजात को खरीद लेना और फिर उसे नकली दस्तावेजों के सहारे अपना घोषित कर देना बेहद आसान है और व्यावहारिक भी. इसे अनैतिक भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि चाहे बच्चा खरीदा गया हो या खुद का जन्म दिया गया हो, उस पर पैसा बराबर का लगता है और एक बार अपने घर आ जाए तो अपना ही हो जाता है.

बच्चा अपना विधि विवाह से हुआ हो, यह समाज की देन है वरना कोई भी अपना उसी तरह हो जाता है जैसे एक पति या पत्नी बिना खून के रिश्ते से अपने हो जाते हैं. समाज ने पतिपत्नी को एकदूसरे का साथी समझ लिया है इसलिए जीवन आसान हो गया है वरना 2 अनजान जनों के रिश्तों का कोई ठीक आधार नहीं है. जब तक शरीर की चाहत हो या एकदूसरे से लेनादेना हो बात दूसरी वरना कैसी शादी, कैसा अपनापन? जो संबंध पतिपत्नी में एक लगाव के कारण पनपता है वह गोद लिए बच्चा चाहे खरीदा हो, चाहे रिश्तेदार का मंत्रशंत्र पढ़ कर लिया हो सब बराबर है. एक बार घर में एक शिशु आ जाए वह अपना हो जाता है.

आदिवासी बच्चों की खरीदी हो रही है इस बात को सैंसेशन बना कर हजारों उन जोड़ों को निराश किया जा रहा है जिन्हें उम्मीद थी कि वे कहीं से बच्चा ला कर उसे अपना कह सकेंगे चाहे उस का रंग, चालढाल, शारीरिक बनावट भिन्न ही क्यों न हो.

आदिवासियों में अभी भी बच्चे हो रहे हैं क्योंकि उन्हें न बर्थ कंट्रोल की तरकीबें मालूम हैं, न जरूरत है. उन के लिए बच्चे होना बेहद प्राकृतिक क्रिया है. उसे किसी को दे कर पैसे मिल जाएं तो अच्छा है वरना वे तो किसी को भी दे देंगे. देशभर में घरों में काम करने वाली लाखों लड़कियां आदिवासी क्षेत्रों से ही आती हैं जिन के जाने पर किसी को दुख नहीं होता.

जरूरत इस बात की है कि गोद कानून बेहद सरल हो चाहे उस के नुकसान हों. कठिन करने से ह्यूमन टै्रफिकिंग ज्यादा हो रही है. तलाकों के कारण ठुकराए गए बच्चे आसानी से दलालों के हाथ पड़ जाते हैं. बिनब्याही मांओं के बच्चे कूड़े में फेंके जा रहे हैं. उन्हें कोईर् अपना लेगा, अपना बना लेगा, यह उम्मीद रहे तो बहुत से बच्चे कई ट्रैजिडियों से बच सकते हैं.

सरकारी बालगृह यातना घर हैं, यह दुनियाभर में दिख रहा है. छोटी लड़कियां रेप की शिकार होती हैं, लड़के गुदा मैथुन के. यह जगजाहिर है. सिर्फ कानूनों के कारण जिन्हें बच्चे चाहिए वे तरसते रहते हैं, जिन्हें जरूरत नहीं है वे उन्हें सरकारी पैसा ले कर पालने का सरकारी काम कर मौज उड़ाते हैं. बीच में बच्चे मुहरे बने हुए हैं.

गोद कानून सरल हो, यही बच्चों के अवैध व्यापार पर नियंत्रण की गारंटी है. पर ऐसा नहीं होगा क्योंकि नेता और उन पर बैठे अफसर और उन्हीं में शामिल एनजीओ चलाने वाले सब बच्चों के बहाने मोटी कमाई कर रहे हैं. जब बच्चे सोने का नहीं तो चांदी का ही सही, नोटों का ही सही, अंडे देने वाली मुरगियां हों तो उन्हें गोद दे कर क्यों हाथ से निकल जाने दिया जाए?

अगर बच्चे पैदा होते ही दे दिए जाएं तो वे बहुत सी बीमारियों से भी बचें, कुपोषण से भी बचें, मारपीट से बचें. गोद लेने वाले को छोटे बच्चों से जो प्यार होता है उस का तो कोई मुकाबला ही नहीं. उसे व्यापार बनने से बचाइए. एक बार का लेनदेन हो जाना और छुट्टी. फिर शिशु नए मांबाप का अपना, अपना दुलारा.

चमकदमक और पार्टीबाजी में फंसी सारा अली खान, ‘काश फिल्मी कैरियर भी होता खूबसूरत ‘

अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की शादी में स्टार किड्स का जमावड़ा लगा हुआ था. इन्हीं में एक थी सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान, जो शादी में ब्लश पिंक, गोल्डन और ग्रीन कलर को हाईलाइट करता अनारगोटा लहंगा पहन कर आई थीं. हालांकि वे इस लहंगे में बेहद खूबसूरत लग रही थीं लेकिन काश, उन का फिल्मी कैरियर भी कुछ खूबसूरत होता.

पटौदी खानदान की यह बिटिया आजकल सिर्फ पार्टियों की शोभा बढ़ा रही हैं. 2018 में अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली सारा बौलीवुड के मशहूर स्टार किड्स की कैटेगरी में शामिल हैं. इस का उन्हें कई जगह फायदा भी मिला. इस के बावजूद वे फिल्म इंडस्ट्री में वह नाम नहीं कमा पाईं जिस की उन से उम्मीद लगाई गई थी.

सारा अली खान का फिल्मी सफर शुरू हुआ साल 2018 से, जब वे ‘केदारनाथ’ मूवी में दिखीं और उस के बाद ‘सिंबा’ मूवी में नजर आईं. उस के 2 साल बाद उन की ‘लव आजकल’ और फिर ‘कुली नंबर 1’ रिलीज हुईं. साल 2021 में उन की मूवी आई- ‘अतरंगी रे’, जिस में वे धनुष और अक्षय कुमार जैसे स्टार्स के साथ दिखीं. 2023 में वे ‘गैस लाइट’, ‘जरा हटके जरा बचके’ में दिखीं. इस साल वे ‘मर्डर मुबारक’ और ‘ऐ वतन मेरे वतन’ में दिख चुकी हैं. बहुत जल्द उन की ‘मैट्रो इन दिनों’, ‘स्काइ फौर्स’ और ‘ईगल’ आने वाली हैं.

लेकिन उन के फिल्मी कैरियर पर नजर डालें तो 6 साल के कैरियर में सारा ने 10 फिल्में की हैं. उन की इन फिल्मों में कोई भी ऐसा रोल नहीं है जिसे सिनेमाघर से बाहर निकल कर याद रखा जा सके. रही बात उन की ऐक्ंिटग की तो वह ‘लव आजकल 2’ और ‘कुली नंबर 1’ में साफ देखी जा सकती हैं. इस फिल्म में उन की ऐक्ंिटग नहीं ओवरऐक्ंिटग दिखी, जिस की वजह से ट्रोलर्स ने उन की जम कर खिंचाई भी की.

रोहित शेट्टी से मांगा रोल

फिल्म ‘केदारनाथ’ करने के बाद सारा के पास कोई फिल्म नहीं थी. इसी चाहत में वे रोहित शेट्टी के पास गईं. इस का खुलासा एक टीवी शो के दौरान हुआ. कुछ वर्षों पहले कपिल शर्मा के शो में रोहित शेट्टी ने खुलासा किया था कि ‘सिंबा’ फिल्म में सारा को कैसे कास्ट किया गया था. रोहित शेट्टी ने कहा, ‘‘वह मेरे पास आई और ‘सिंबा’ में रोल के लिए विनती करने लगी. यह सुन कर मैं रोने लगा. कल्पना कीजिए, सैफ अली खान और अमृता सिंह की बेटी मु  झ से रोल के लिए विनती कर रही है.’’

रोहित शेट्टी से रोल मांगने पर साफ जाहिर है कि सारा को यह मूवी अपने टैलेंट के दम पर नहीं, बल्कि स्टार की बेटी होने की वजह से मिली. विडंबना देखिए कि सारा के फिल्मी कैरियर की एकमात्र यही वह फिल्म है जो सुपरहिट रही. हालांकि सारा इस फिल्म में सिर्फ एक शोपीस थीं. इस फिल्म के चलने का एक कारण यह भी था कि उस समय रणवीर सिंह अच्छा चल रहे थे. वहीं इस फिल्म को ‘सिंघम’ से जोड़ कर देखा जा रहा था.

ट्रोलर्स के निशाने पर

स्टारकिड्स तो ट्रोलर्स के हमेशा फेवरेट होते हैं. फिर चाहे वह आलिया भट्ट हों या फिर किंग खान की लाड़ली सुहाना खान. हर किसी को ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा है. ऐसे में सैफ अली खान की बेटी कहां बचने वाली हैं.

सारा की जैसे ही कोई फिल्म रिलीज होने वाली होती है, वे मंदिर पहुंच जाती हैं. अपने स्किल्स पर मेहनत करने की जगह भगवान के सामने हाथ जोड़ना उन की कमजोरी ही दिखाती है. इस के अलावा वे पैपराजी को खुद ही शूट पर बुला कर कहती हैं, ‘‘अरे, आप यहां कैसे आ गए. आप को यहां किस ने बुलाया.’’ जबकि, उन पर यह इल्जाम लगते आए हैं कि वे खुद ही पैपराजी को इस की जानकारी देती हैं. सारा पीआर से बनी ऐक्ट्रैस हैं.

काम कम, चर्चाओं में ज्यादा

ट्रोलर्स का यह भी कहना है कि जिस भी फिल्म में सारा आती हैं, उस के को-स्टार के साथ उन का नाम जुड़ने लगता है. इस का एक उदाहरण ‘लव आजकल’ की शूटिंग के दौरान कार्तिक आर्यन के साथ उन का नाम जुड़ना है. वहीं मीडिया रिपोर्टों के हिसाब से फिल्मों में आने से पहले वे वीर पहाडि़या, जो कि बौलीवुड ऐक्ट्रैस जाह्नवी कपूर के रूमर्ड बौयफ्रैंड शिखर पहाडि़या के भाई हैं, को लंबे समय तक डेट कर चुकी हैं. इस के बाद उन का नाम क्रिकेटर शुभमन गिल के साथ जोड़ा गया. हालांकि उन्होंने इन बातों को कभी स्वीकारा नहीं. ‘केदारनाथ’ फिल्म के बाद सुशांत सिंह राजपूत के साथ भी उन का नाम जोड़ा जा चुका है.

किसी जमाने के पावर कपल कहे जाने वाले ऐक्टर सैफ अली खान और ऐक्ट्रैस अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान सोशल मीडिया पर अपने फैशन स्टाइल और टूर के लिए जानी जाती रही हैं, लेकिन पिछले साल एनसीबी (नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो) ने ड्रग्स के मामले में उन से पूछताछ की थी. यह पूछताछ अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु से जुड़ी थी. सारा ने सुशांत के साथ फिल्म ‘केदारनाथ’ में काम किया था.

आज के दौर में किसी की भी पौपुलैरिटी का अंदाजा उस के सोशल मीडिया के फौलोअर्स से चल जाता है. सोशल मीडिया पर सारा अकसर अपने वैकेशन की पिक्चर व वीडियो डालती रहती हैं.

सारा के इंस्टाग्राम पर 43 मिलियन फौलोअर्स हैं. वह अपनी फिल्मों से ज्यादा अपने कौंन्फिडैंस व ह्यूमर के लिए सुर्खियों में रहती हैं. यंगस्टर्स उन से काफी इंप्रैस हैं. हालांकि ये फौलोअर्स उन के स्टारकिड्स और स्टाइल स्टेटमैंट की वजह से हैं, न कि उन के ऐक्ंिटग कैरियर की वजह से क्योंकि ऐक्ंिटग तो उन की कुछ खास है ही नहीं. फिल्में भी उन्हें पटौदी खानदान या बड़े घर की बेटी के नाम पर ही मिलती हैं.

हमेशा सीखती हूं

27 साल की सारा ने कहा, ‘‘एक ऐक्ट्रैस के रूप में हम हर दिन बहुतकुछ सीखते हैं. मैं हमेशा कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करती हूं. लेकिन मु  झे यह भी लगता है कि मैं ने कुछ गलतियां की हैं. मैं ने ऐसी फिल्में की हैं जिन्हें दर्शकों ने पसंद नहीं किया.’’

लेकिन सारा को एक स्टारकिड्स के तौर पर काम ढूंढ़ना नहीं पड़ा और न ही आउटसाइडर के तौर पर उन्हें स्ट्रगल करना पड़ा व न ही प्रोड्यूसर के दफ्तर के चक्कर लगाने पड़े.

करण अंकल का खेमा छोड़ें

बौलीवुड के करण जौहर का साथ पा कर अच्छेअच्छे हीरोहीरोइन के बच्चे इंडस्ट्री में एंट्री पा लेते हैं और फिर वे अपने टैलेंट से इस इंडस्ट्री में अपने पैर जमा लेते हैं. आलिया भट्ट और रणबीर कपूर इस की अच्छी मिसाल हैं. लेकिन ये इसीलिए चल पाए क्योंकि ये ऐक्ंिटग अच्छी करते हैं.

लेकिन सारा को यह बात सम  झने की जरूरत है कि बौलीवुड में अपने पैर जमाने के लिए खुद को प्रूव भी तो करना होता है. प्रोड्यूसर्स कब तक इस बात का लिहाज करेंगे कि कोई स्टारकिड है.

जाह्नवी कपूर, अनन्या पांडे, खुशी कपूर, नव्या नवेली नंदा, अहान खान, सुहाना खान, सारा अली खान ने इन का साथ पकड़ा हुआ है. ये न तो कुछ पढ़ते हैं, न सीखते हैं. हिंदी फिल्मों में काम करने वाले इन स्टारकिड्स को हिंदी ठीक से नहीं आती.

ये अगर कुछ पढ़ते भी हैं तो ऐसा कुछ पढ़ते हैं जो हवाहवाई है. कैरेक्टर में पकड़ ये इसीलिए नहीं बना पाते क्योंकि ये समाज को सम  झते ही नहीं. सारा का दायरा बस इन्हीं स्टारकिड्स के आसपास ही घूमता रहता है. जब तक वे इस दायरे को नहीं तोड़ेंगी तब तक सफल अभिनेत्री बनने का सपना दूर की बात है.

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं, कैसे पता करूं कि वह मुझे पसंद करता है या नहीं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं कालेजगोइंग लड़की हूं. क्लास में हमारा अलग ग्रुप बन गया है. हम अच्छे दोस्त बन गए हैं. एकदूसरे के घर भी आनाजाना है. हम 5 लड़कियों और 8 लड़कों का ग्रुप है. उन 8 लड़कों में से एक लड़के को देख कर मु झे लगता है जैसे वह मुझसे दोस्ती से ज्यादा कुछ चाहता है. कई बार नहीं भी लगता. मैं बहुत कन्फ्यूज सी हो जाती हूं. क्या नोटिस करूं कि पता लगा सकूं कि वह मुझे पसंद करने लगा है? अब उस का तो पता नहीं लेकिन दिनोंदिन मेरा उस की ओर प्यार बढ़ता जा रहा है. प्लीज बताइए कैसे पता करूं कि वह भी मु झ से प्यार करता है?

जवाब

जब कोई आप से प्यार करता है तो मिलेजुले संकेत जरूर देता है. अकसर लड़के कुछ अजीब व्यवहार करने लगते हैं. जबान से कुछ नहीं बोलते जो लड़की के लिए भी औक्वर्ड हो जाता है. खैर, आप के केस में हम कुछ बातों पर आप को गौर करने के लिए सलाह देते हैं. जैसे देखें कि जब वह आप के आसपास होता है तो क्या बहुत मुसकराता है, यहां तक कि दूसरे लोगों से बात करते समय भी. इस का मतलब यह है कि आप को देख कर वह खुश हो जाता है जो उस के चेहरे पर दिखता है.

आप से बात करते समय वह आप की ओर  झुकेगा, जबकि अन्य आप से दूर रह कर बात करेंगे. आप की आंखों में आंखें डाल कर बात करेगा. जब भी मौका मिलेगा, आप को छूने की कोशिश करेगा. ऐसे में आप भी उसे छू कर उसे किलिंग अटैक दे सकती हैं. वह आप की पसंदनापसंद की परवा करेगा.

जब आप उस की तरफ देखती हैं और वह अपनी नजरें दूसरी तरफ कर ले तो सम झ जाइएगा कि वह आप को पसंद कर रहा है. एक बात और, वह आप को चिढ़ाने के लिए कुछ भी कह सकता है, ताकि आप की प्रतिक्रिया मिल सके. वह आप की नकल करेगा या आप का मजाक उड़ाएगा. ऐसा वह सिर्फ आप के साथ करता है, दूसरी लड़कियों के साथ नहीं तो आप उस के लिए खास हैं. वह ऐसा यह छिपाने के लिए करेगा कि उस के मन में आप के लिए फीलिंग्स हैं.

वह आप के कपड़ों, आप के बालों और आप के मेकअप पर ध्यान देता है. वह आप के परफ्यूम पर ध्यान देता है. अगर वह इन में से किसी भी चीज पर आप की तारीफ करता है तो सम झ जाइए, वह पूरी तरह से आप पर फिदा है. आमतौर पर लड़के सब से बुनियादी चीजों पर भी ध्यान नहीं देते हैं, इसलिए अगर वह आप पर नजर रख रहा है तो यह लव साइन है.

वह आप को औनलाइन देखता है, वह आप के फेसबुक पोस्ट को लाइक करता है, आप के ट्वीट को रीट्वीट करता है और आप की इंस्टा पिक्स पर कमैंट करता है, वह आप की तसवीरों पर अन्य लोगों की प्रतिक्रिया पर भी नजर रखता है तो साफ जाहिर है कि आप स्पैशल हैं उस के लिए. वह बिना किसी कारण आप को कौल करता है तो जाहिर है कि आप की आवाज सुनना उसे अच्छा महसूस कराता है. अब वह लड़का ऐसे सिग्नल दे रहा है तो डियर, मामला फिट है, हिट हो जाएगा.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कौर्पोरेट लुक के लिए मेकअप टिप्स, इस तरह दिखें कौन्फिडेंट

भारी या गहरा मेकअप न करें: औफिस में भारी या गहरा मेकअप सही नहीं होता. प्रोफेशनल लुक के लिए हल्का, नेचुरल दिखने वाला मेकअप ही चुनें.

गाढ़े या चमकीले रंग न पहनें: ऑफिस में चमकीले या बोल्ड रंग बहुत अच्छे नहीं लगते. कॉर्पोरेट लुक के लिए न्यूट्रल और प्राकृतिक रंगों के कपड़े पहनें और वैसा ही मेकअप लगाएं.

आईलाइनर या मस्कारा का ज्यादा इस्तेमाल न करें: थोड़ा सा आईलाइनर और मस्कारा आपकी आंखों को निखारने में मदद कर सकता है लेकिन बहुत ज्यादा लगाना अव्यवसायिक होता है. ज्यादा आईलाइनर और मस्कारा लगाने से आपकी आंखें हैवी और काली दिखाई देती हैं जिससे वे छोटी नजर आएंगी. यह आपकी आंखों की प्राकृतिक सुंदरता को कम कर सकता है.

बहुत ज्यादा परफ्यूम न लगाएं: कौर्पोरेट माहौल में बहुत ज्यादा परफ्यूम या कोलोन लगाना आपके आस-पास के लोगों के लिए परेशानी पैदा करने वाला हो सकता है. यह उन लोगों के लिए भी एक समस्या हो सकती है जिन्हें तेज गंध से एलर्जी या संवेदनशीलता हो सकती है. हल्की, कान के पीछे और गरदन जैसे पल्स पाइंट पर परफ्यूम लगाने से भी ज्यादा खुशबू नहीं आएगी.

कौर्पोरेट जौब में प्रोफेशनल और कौफिडेंट दिखना अत्यंत महत्वपूर्ण है. सही मेकअप आप के चेहरे को तरोताजा और तराशा हुआ दिखा सकता है, जिससे आप अधिक कॉन्फिडेंस से भरी हुई महसूस करती हैं. मेकअप आपके लुक को पूरा करता है और आपके व्यक्तित्व को निखारता है. विशेषकर तब जब आप महत्वपूर्ण मीटिंग्स या प्रेजेंटेशंस में भाग ले रही होती हैं. एक अच्छा मेकअप आपको और भी प्रभावी बनाता है. एक सुव्यवस्थित और खूबसूरत मेकअप यह दिखाता है कि आप अपनी भूमिका को गंभीरता से लेती हैं और हर स्थिति के लिए तैयार हैं.

कौर्पोरेट लुक के लिए मेकअप के स्टेप्स

सबसे पहले, अपनी स्किन को अच्छी तरह साफ करें, टोन करें और एक अच्छी क्वालिटी का मॉइस्चराइजर लगाएं. यह आपकी स्किन हाइड्रेटेड और तैयार करेगा.

अपने स्किन टोन से मेल खाता हुआ फाउंडेशन चुनें. इसे छोटे डॉट्स में चेहरे पर लगाएं और ब्लेंडिंग स्पॉन्ज या ब्रश का उपयोग करके अच्छी तरह ब्लेंड करें ताकि आपकी त्वचा एक समान और नैचुरल दिखे.

कंसीलर का प्रयोग आंखों के नीचे, नाक के किनारों और अन्य डार्क एरिया पर करें. यह आपके चेहरे के दाग-धब्बों और काले घेरे को छिपाने में मदद करेगा.

फाउंडेशन सेट करने के लिए हल्के हाथों से ट्रांसलूसेंट पाउडर या कम्पैक्ट पाउडर का प्रयोग करें. यह आपके चेहरे को एक मैट फिनिश देगा और मेकअप को लंबे समय तक टिकाए रखेगा, खासकर अगर आपकी त्वचा तैलीय है.

आंखों पर न्यूट्रल या हल्के रंगों का आईशैडो चुनें, जैसे ब्राउन, बेज या हल्का गुलाबी. आईशैडो को अपनी पलकों पर हल्के हाथों से या ब्रश से लगाएं. अगर आप थोड़ा डेफिनेशन चाहती हैं तो क्रीज पर हल्का डार्क शेड भी लगा सकती हैं.

आईलाइनर का प्रयोग करके अपनी आंखों को और उभारें. ब्लैक या ब्राउन आईलाइनर का पतला सा स्ट्रोक ज़रा ऊपर जाते हुए लगाएं ताकि आंखें बड़ी और खुली दिखें.

लौंग लैश मस्कारा लगाकर अपनी पलकें को उभारें. 2 कोट्स लगाएं ताकि पलकें लंबी और घनी दिखें.

आईब्रो पेंसिल या पाउडर का उपयोग करके अपनी ऑय ब्राउज को हल्के से भरें और उन्हें नेचुरल लुक दें. सुनिश्चित करें कि वे साफ और अच्छी तरह से आकार दी गई हों, क्योंकि अच्छी ऑय ब्राउज आपके चेहरे को फ्रेम करती हैं और आपको अधिक खूबसूरत लुक देती हैं.

हल्के गुलाबी या पीच रंग के ब्लश का इस्तेमाल करें. इसे गालों की हाई बोनस पर हल्के हाथों या ब्लशिंग ब्रश से लगाएं ताकि आपके चेहरे पर एक ताजगी भरा निखार आ सके. ब्लश को अच्छी तरह से ब्लेंड करें ताकि यह नेचुरल लगे.

हाइलाइटर का हल्का सा टच अपने चीकबोन्स, नाक के ब्रिज और माथे के बीच वाले हिस्से पर लगाएं. यह आपके चेहरे को एक हेल्दी और ग्लोइंग लुक देगा.

न्यूट्रल या हल्के पिंक शेड का लिपस्टिक या लिपग्लॉस चुनें. पहले लिप लाइनर से अपने होंठों की आउटलाइन बनाएं ताकि लिपस्टिक लंबे समय तक टिकी रहे और फैलने न पाए. फिर लिपस्टिक या लिपग्लॉस लगाएं ताकि आपके होंठ प्रोफेशनल और सॉफिस्टिकेटेड दिखें.

मेकअप को बनाए रखने के और देर तक सेट रखने के लिए मेकअप सेटिंग स्प्रे का इस्तेमाल करें. यह आपके मेकअप को पूरे दिन ताजा बनाए रखेगा और उसे फैलने से रोकेगा.

दिन में एक या दो बार टू वे केक या फिर कॉम्पैक्ट पाउडर का उपयोग करें ताकि चेहरे का अतिरिक्त तेल हटाया जा सके. यह आपके चेहरे को चमकदार और तेल रहित बनाए रखेगा.

औफिस के पर्स में दिनभर टच-अप के लिए कॉम्पैक्ट पाउडर या टू वे केक साथ रखें. यह आपके चेहरे को ताजा और मैट बनाए रखेगा.

अपने पर्स में लिप बाम या लिपस्टिक जरूर रखें जो लिप्स को फ्रेश और मॉइस्चराइज रखने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.

मिनी परफ्यूम या बौडी मिस्ट का इस्तेमाल बौडी को फ्रेश और खुशबूदार महसूस करने के लिए साथ रखें.

पर्स में मिरर और कंघी अपने लुक को चेक और ठीक करने के लिए रखें.

मिनी मेकअप ब्रश भी फटाफट टचअप के लिए रख सकते हैं.

इस प्रकार सही मेकअप और कुछ आसान टिप्स से आप ऑफिस में हमेशा प्रोफेशनल, कॉन्फिडेंट और खूबसूरत दिख सकती हैं. कौर्पोरेट लुक के लिए मेकअप को सरल और सजीव रखें, ताकि आप हर दिन प्रभावी और आत्मविश्वास से भरी रहें.

-भारती तनेजा, सौंदर्य विशेषज्ञा 

प्यार उसका न हो सका

लेखक- किशन लाल शर्मा

‘‘कौन है?’’ दरवाजे पर कई बार दस्तक देने के बाद अंदर से आवाज आई पर अब भी दरवाजा नहीं खिड़की खुली थी.

‘‘मैं, नेहा. दरवाजा खोल,’’ नेहा बोली, ‘‘कब से दरवाजा खटखटा रही हूं.’’

‘‘सौरी,’’ प्रिया नींद से जाग कर उबासी लेते हुए बोली, ‘‘तू और कहीं कमरा तलाश ले.’’

‘‘कमरा तलाश लूं,’’ नेहा ने हैरानी से प्रिया की ओर देखा व बोली, ‘‘कमरा तो तुझे तलाशना है?’’

‘‘अब मुझे नहीं, कमरा तुझे तलाशना है,’’ प्रिया बोली.

‘‘क्यों?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘मैं ने और कर्ण ने शादी कर ली है.’’

‘‘क्या?’’ नेहा ने आश्चर्य से प्रिया को देखा. उस के माथे की बिंदी और मांग में भरा सिंदूर इस बात के गवाह थे.

‘‘पतिपत्नी के बीच तेरा क्या काम?’’ और इतना कहने के साथ ही प्रिया ने खिड़की बंद कर ली.

नेहा खड़ीखड़ी कभी खिड़की को तो कभी दरवाजे को ताकती रह गई. प्रिया औैर कर्ण के बारे में सोचतेसोचते उस के अतीत के पन्ने खुलने लगे.

नेहा और कर्ण कानपुर में इंजीनियरिंग कालेज में साथसाथ पढ़ते थे. अंतिम वर्ष की परीक्षाएं चल रही थीं, तभी कालेज कैंपस में प्लेसमैंट के लिए कई कंपनियां आईं. मुंबई की एक कंपनी में नेहा और कर्ण का सलैक्शन हो गया. परीक्षा समाप्त होने के बाद दोनों मुंबई चले गए.

मुंबई में नेहा और कर्ण ने मिल कर एक फ्लैट किराए पर ले लिया और दोनों लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे. साथ रहतेरहते दोनों एकदूसरे के करीब आ गए.

एक रात जब कर्ण ने नेहा का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा तो वह चौंकते हुए बोली, ‘कर्ण, क्या कर रहे हो?’

‘प्यार… लव…’

‘नहीं,’ नेहा बोली, ‘अभी हमारी शादी नहीं हुई है.’

‘क्या प्यार करने के लिए शादी करना जरूरी है?’

‘हां, हमारे यहां शादी के बाद ही पतिपत्नी को शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत है.’

‘कैसी दकियानूसी बातें करती हो, नेहा. जब शादी के बाद हम सैक्स कर सकते हैं तो पहले क्यों नहीं,’ कर्ण बोला, ‘अगर तुम शादी को जरूरी समझती हो तो वह भी कर लेंगे.’

नेहा शिक्षित और खुले विचारों की थी, लेकिन सैक्स के मामले में उस का मानना था कि शादी के बाद ही शारीरिक संबंध बनाने चाहिए. लेकिन कर्ण ने अपने प्यार का विश्वास दिला कर शादी से पहले ही नेहा को समर्पण के लिए मजबूर कर दिया.सैक्स का स्वाद चखने के बाद नेहा को भी उस का चसका लग गया. रोज रात को समर्पण करने से तो वह इनकार नहीं करती थी, लेकिन सावधानी जरूर बरतने लगी थी.

शुरू में तो नेहा ने कर्ण से शादी के लिए कहा, लेकिन दिन गुजरने के साथ वह भी सोचने लगी थी कि औरतआदमी दोनों अगर साथ जीवन गुजारने को तैयार हों तो जरूरी नहीं कि समाज को दिखाने के लिए शादी के बंधन में बंधें. बिना शादी के भी वे पतिपत्नी बन कर रह सकते हैं.

नेहा को कर्ण के प्यार पर पूरा विश्वास था इसीलिए उस ने शादी का जिक्र तक करना छोड़ दिया था और उसे शादी का खयाल आता भी नहीं अगर उन के बीच प्रिया न आती.

प्रिया पिछले दिनों ही उन की कंपनी में नई नई आई थी. वह दिल्ली की रहने वाली थी. मुंबई में उस का कोई परिचित नहीं था. जब तक प्रिया को कहीं कमरा नहीं मिल जाता तब तक के लिए कर्ण और नेहा ने उसे अपने साथ फ्लैट में रहने की इजाजत दे दी.

प्रिया नेहा से ज्यादा सुंदर और तेजतर्रार थी. कर्ण प्रिया की सुंदरता और उस की मनमोहक बातों से इतना प्रभावित हुआ कि वह उस में कुछ ज्यादा ही रुचि लेने लगा.

जिस कर्ण को नेहा सब से ज्यादा सुंदर नजर आती थी, वही कर्ण अब प्रिया के पीछे घर में ही नहीं औफिस में भी लट्टू था.

नेहा ने कई बार कर्र्ण को रोका, लेकिन कर्ण ने उस की बातों पर ध्यान नहीं दिया. नेहा समझ गई कि अगर जल्दी कर्ण को शादी के बंधन में नहीं बांधा गया तो वह हाथ से निकल जाएगा.

नेहा शादी के बारे में अपनी मां से बात करने एक सप्ताह की छुट्टी ले कर कानपुर चली गई. उस ने मां से कुछ नहीं छिपाया. मां ने उसे डांटते हुए कहा, ‘देर मत कर, उस से शादी कर ले.’

लेकिन नेहा आ कर कर्ण से शादी करती उस से पहले ही प्रिया ने उसे अपना बना लिया था.

कर्ण पर विश्वास कर के नेहा शादी से पहले अपना सबकुछ कर्ण को समर्पित कर चुकी थी और समर्पण कर के वह बुरी तरह ठगी जा चुकी थी. अपना सबकुछ लुटा कर भी नेहा कर्ण को अपना नहीं बना पाई.

40 की उम्र के बाद फिट एंड हैल्दी रहने के लिए जरूर करवाएं ये टैस्ट

पुरुष हो या स्त्री सभी को अपने सेहत का ख्याल रखना चाहिए. पर देखा जाता है कि घर की जिम्मेदारियों में उलझ कर महिलाएं अपनी सेहत का ख्याल नहीं रख पाती. खास तौर पर जो महिलाएं 40 के पार की होती हैं, वो अपनी सेहत को ले कर काफी लापरवाह होती हैं. जबकि इसी दौरान जरूरी होता है कि आप अपने सेहत को ले कर ज्यादा सजग रहें. क्योंकि इस दौरान स्वास्थ्य की समस्याओं की संभावनाएं और ज्यादा बढ़ जाती हैं. स्वास्थ्य के बारे में पता लगाने के लिए आपको समय रहते कुछ टेस्ट करवा लेनी चाहिए. ये टेस्ट आपके शरीर को स्वस्थ और हेल्दी रखने में मदद करती हैं और यदि किसी प्रकार की कोई समस्या होती है तो उसकी जानकारी भी दे देती है.

1. बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट

40 के बाद महिलाओं को ये टेस्ट कराते ही रहना चाहिए क्योंकि ये बीमारी हार्मोन एस्ट्रोजेन के घटते स्तर के कारण होती है. हड्डियों के सुरक्षा में हार्मोन एस्ट्रोजेन की भूमिका अहम होती है. इसलिए इस टेस्ट को कराते रहना जरूरी है.

2. ब्लड प्रेशर

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि समय समय पर आप बल्ड प्रेशर नापते रहें. ब्लड प्रेशर संबंधी परेशानी उम्र के किसी पड़ाव पर हो सकती है. सही डाइट, एक्सरसाइज और मेडिकेशन की मदद से आप अपने बल्ड प्रेशर को नियंत्रित रख सकती हैं.

3. थायरायड टेस्ट

आजकल महिलाओं में थायरायड की शिकायत तेज हुई है.  इसके कारण उनमें वजन का बढ़ना या घटना, बालों का झड़ना, नाखून के टूटने की शिकायत होती है. इसका कारण थायरायड है. यह ग्रंथि हार्मोन टी 3, टी 4 और टीएसएच को गुप्त करता है और शरीर के चयापचय को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होता है. इसलिए हर 5 सालों में आपको ये टेस्ट कराते रहना चाहिए.

4. ब्लड शुगर

असंतुलित आहार के कारण ब्लड शुगर का खतरा काफी बढ़ जाता है. इसलिए जरूरी है कि 40 की उम्र के बाद ब्लड शुगर टेस्ट कराया जाए. इसे हर साल करनाना चाहिए ताकि आप अपने ब्लड में शुगर की मात्रा से हमेशा अपडेट रह सकें.

5. पेल्विक टेस्ट

महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का खतरा काफी अधिक रहता है. इस लिए जरूरी है कि 40 की उम्र के बाद आप स्त्री रोग विषेशज्ञ के संपर्क में रहें.

6. लिपीड प्रोफाइल टेस्ट

ट्राइग्लिसराइड और बैड कोलेस्ट्रौन के स्तर की जांच के लिए ये टेस्ट जरूरी है. कोलेस्ट्रौल एक मोटा अणु है, जो उच्च स्तरों में उपस्थित होने से रक्त वाहिकाओं में जमा हो सकता है और आपके दिल, रक्त वाहिकाओं और मस्तिष्क के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है. इसलिए हर 6 महीने पर इसकी जांच जरूर करवाएं.

मान अभिमान : क्यों बहुओं से दूर हो गई थी रमा?

कहानी- वीना टहिल्यानी

अपने बच्चों की प्रशंसा पर कौन खुश नहीं होता. रमा भी इस का अपवाद न थी.ं अपनी दोनों बहुओं की बातें वह बढ़चढ़ कर लोगों को बतातीं. उन की बहुएं हैं ही अच्छी. जैसी सुंदर और सलोनी वैसी ही सुशील व विनम्र भी.

एक कानवेंट स्कूल की टीचर है तो दूसरी बैंक में अफसर. रमा के लिए बच्चे ही उन की दुनिया हैं. उन्हें जितनी बार वह देखतीं मन ही मन बलैया लेतीं. दोनों लड़कों के साथसाथ दोनों बहुओं का भी वह खूब ध्यान रखतीं. वह बहुओं को इस तरह रखतीं कि बाहर से आने वाला अनजान व्यक्ति देखे तो पता न चले कि ये लड़कियां हैं या बहुएं हैं.

सभी परंपराओं और प्रथाओं से परे घर के सभी दायित्व को वह खुद ही संभालतीं. बहुओं की सुविधा और आजादी में कभी हस्तक्षेप नहीं करतीं. लड़के तो लड़के मां के प्यार और प्रोत्साहन से पराए घर से आई लड़कियों ने भी प्रगति की.

मां का स्नेह, सीख, समझदारी और विश्वास मान्या और उर्मि के आचरण में साफ झलकता. देखते ही देखते अपने छोटे से सीमित दायरे में उन्हें यश भी मिला और नाम भी. कार्यालय और महल्ले में वे दोनों ही अच्छीखासी लोकप्रिय हो गईं. जिसे देखो वही अपने घर मान्या और उर्मि का उदाहरण देता कि भाई बहुएं हों तो बस, मान्या और उर्मि जैसी.

‘‘रमा, तू ने मान्या व उर्मि के रूप में 2 रतन पाए हैं वरना आजकल के जमाने में ऐसी लड़कियां मिलती ही कहां हैं और इसी के साथ कालोनी की महिलाओं का एकदूसरे का बहूपुराण शुरू हो जाता.

रमा को तुलना भली न लगती. उन्हें तो इस की उस की बुराई भी करनी नहीं आती पर अपनी बहुओं की बड़ाई उन्हें खूब सुहाती थी. वह खुशी से फूली न समातीं.

इधर कुछ समय से रमा की सोच बदल रही है. मान्या और उर्मि की यह हरदम की बड़ाई उन्हें कहीं न कहीं खटक रही है. अपने ही मन के भाव रमा को स्तब्ध सा कर देते हैं. वह लाख अपने को धिक्कारेफटकारे पर विचार हैं कि न चाहते हुए भी चले आते हैं.

‘मैं जो दिन भर खटती हूं, परिवार में सभी की सुखसुविधाओं का ध्यान रखती हूं. दोनों बहुओं की आजादी में बाधक नहीं बनती…उन पर घरपरिवार का दायित्व नहीं डालती…वो क्या कुछ भी नहीं…बहुओं को भी देखो…पूरी की पूरी प्रशंसा कैसे सहजता के साथ खुद ही ओढ़ लेती हैं…मां का कहीं कोई जिक्र तक नहीं करतीं. उन की इस सफलता में मेरा काम क्या कुछ भी नहीं?’

अपनी दोनों बहुओं के प्रति रमा का मन जब भी कड़वाता तो वह कठोर हो जातीं. बातबेबात डांटडपट देतीं तो वे हकबकाई सी हैरान रह जातीं.

मान्या और उर्मि का सहमापन रमा को कचोट जाता. अपने व्यवहार पर उन्हें पछतावा हो आता और जल्द ही सामान्य हो वह उन के प्रति पुन: उदार और ममतामयी हो उठतीं.

मांजी में आए इस बदलाव को देख कर मान्या और उर्मि असमंजस में पड़ जातीं पर काम की व्यस्तता के कारण वे इस समस्या पर विचार नहीं कर पाती थीं. फिर सोचतीं कि मां का क्या? पल में तोला पल में माशा. अभी डांट रही हैं तो अभी बहलाना भी शुरू कर देंगी.

क्रिसमस का त्योहार आने वाला था. ठंड खूब बढ़ गई थी. उस दिन सुबह रमा से बिस्तर छोड़ते ही नहीं बन रहा था. ऊपर से सिर में तेज दर्द हो रहा था. फिर भी मान्या का खयाल आते ही रमा हिम्मत कर उठ खड़ी हुईं.

किसी तरह अपने को घसीट कर रसोईघर में ले गईं और चुपचाप मान्या को दूध व दलिया दिया. रात की बची सब्जी माइक्रोवेव में गरम कर, 2 परांठे बना कर उस का लंच भी पैक कर दिया. मां का मूड बिगड़ा समझ कर मान्या ने बिना किसी नाजनखरे के नाश्ता किया. लंचबौक्स रख टाटाबाई कहती भागती हुई घर से निकल गई. 9 बजे तक उर्मि भी चली गई. सुयश और सुजय के जाने के बाद अंत में राघव भी चले गए थे.

10 बजे तक घर में सन्नाटा छा जाता है. पीछे एक आंधीअंधड़ छोड़ कर सभी चले जाते हैं. कहीं गीला तौलिया पलंग पर पड़ा है तो कहीं गंदे मोजे जमीन पर. कहीं रेडियो बज रहा है तो किसी के कमरे में टेलीविजन चल रहा है. किसी ने दूध अधपिया छोड़ दिया है तो किसी ने टोस्ट को बस, जरा कुतर कर ही धर दिया है, लो अब भुगतो, सहेजो और समेटो.

कभी आनंदअनुराग से किए जाने वाले काम अब रमा को बेमजा बोझ लगते. सास के जीतेजी उन के उपदेशों पर उस ने ध्यान न दिया…अब जा कर रमा उन की बातों का मर्म मान रही थीं.

‘बहू, तू तो अपनी बहुओं को बिगाड़ के ही दम लेगी…हर दम उन के आगेपीछे डोलती रहती है…हर बात उन के मन की करती है…अरी, ऐसा तो न कहीं देखा न सुना…डोर इतनी ढीली भी न छोड़…लगाम तनिक कस के रख.’

‘अम्मां, ये भी तो किसी के घर की बेटियां हैं. घोडि़यां तो नहीं कि उन की लगाम कसी जाए.’ सास से रमा ठिठोली करतीं तो वह बेचारी चुप हो जातीं.

तब मान्या और उर्मि उस का कितना मान करती थीं. हरदम मांमां करती आगे- पीछे लगी रहती थीं. अब तो सारी सुख- सुविधाओं का उन्होंने स्वभाव बना लिया है…न घर की परवा न मां से मतलब. एक के लिए उस की टीचरी और दूसरी के लिए उस की अफसरी ही सबकुछ है. घर का क्या? मां हैं, सुशीला है फिर काम भी कितना. पकाना, खाना, सहेजना, समेटना, धोना और पोंछना, बस. शरीर की कमजोरी ने रमा के अंतस को और भी उग्र बना दिया था.

सुशीला काम निबटा कर घर से निकली तो 2 बज चुके थे. रमा का शरीर टूट रहा था. बुखार सा लग रहा था. खाने का बिलकुल भी मन न था. उन्होंने मान्या की थाली परोस कर मेज पर ढक कर रख दी और खुद चटाई ले कर बरामदे की धूप में जा लेटीं.

बाहर के दरवाजे का खटका सुन रमा चौंकीं. रोज की तरह मान्या ढाई बजे आ गई थी.

‘‘अरे, मांजी…आप धूप सेंक रही हैं…’’ चहकती हुई मान्या अंदर अपने कमरे में चली गई और चाह कर भी रमा आंखें न खोल पाईं.

हाथमुंह धो कर मान्या वापस पलटी तो रमा अभी भी आंखें मूंदे पड़ी थीं.

‘मेज पर एक ही थाली?’ मान्या ने खुद से प्रश्न किया फिर सोचा, शायद मांजी खा कर लेटी हैं. थक गई होंगी बेचारी. दिन भर काम करती रहती हैं…

रमा को झुरझुरी सी लगी. वह धीरे से उठीं. चटाई लपेटी दरवाजा बंद किया और कांपती हुई अपनी रजाई में जा लेटीं.

उधर मान्या को खाने के साथ कुछ पढ़ने की आदत है. उस दिन भी वही हुआ. खाने के साथ वह पत्रिका की कहानी में उलझी रही तो उसे यह पता नहीं चला कि मांजी कब उठीं और जा कर अपने कमरे में लेट गईं. बड़ी देर बाद वह मेज पर से बरतन समेट कर जब रमा के पास पहुंची तो वह सो चुकी थीं.

‘गहरी नींद है…सोने दो…शाम को समझ लूंगी…’ सोचतेसोचते मान्या भी जा लेटी तो झपकी लग गई.

रोज का यही नियम था. दोपहर के खाने के बाद घंटा दो घंटा दोनों अपनेअपने कमरों में झपक लेतीं.

शाम की चाय बनाने के बाद ही रमा मान्या को जगातीं. सोचतीं बच्ची थकी है. जब तक चाय बनती है उसे सो लेने दिया जाए.

बहुत सारे लाड़ के बाद जाग कर मान्या चाय पीती स्कूल की कापियां जांचती और अगले दिन का पाठ तैयार करती.

इस बीच रमा रसोई में चली जातीं और रात का खाना बनातीं. जल्दीजल्दी सबकुछ निबटातीं ताकि शाम का कुछ समय अपने परिवार के साथ मिलबैठ कर गुजार सकें.

संगीत के शौकीन पति राघव आते ही टेपरिकार्ड चला देते तो घर चहकने लगता.

उर्मि को आते ही मांजी से लाड़ की ललक लगती. बैग रख कर वह वहीं सोफे पर पसर जाती.

सुजय एक विदेशी कंपनी में बड़ा अफसर था. रोज देर से घर आता और सुयश सदा का चुप्पा. जरा सी हायहेलो के बाद अखबार में मुंह दे कर बैठ जाता था. उर्मि उस से उलझती. टेलीविजन बंद कर घुमा लाने को मचलती. दोनों आपस में लड़तेझगड़ते. ऐसी खट्टीमीठी नोकझोंक के चलते घर भराभरा लगता और रमा अभिमान अनुराग से ओतप्रोत हो जातीं.

लगातार बजती दरवाजे की घंटी से मान्या अचकचा कर उठ बैठी. खूब अंधेरा घिर आया था.

दौड़ कर उस ने दरवाजा खोला तो सामने तमतमायी उर्मि खड़ी थी.

‘‘कितनी देर से घंटी बजा रही हूं. आप अभी तक सो रही थीं. मां, मां कहां हैं?’’ कह कर उर्मि के कमरे की ओर दौड़ी.

मांजी को कुछ खबर ही न थी. वह तो बुखार में तपी पड़ी थीं. डाक्टर आया, जांच के बाद दवा लिख कर समझा गया कि कैसे और कबकब लेनी है. घर सुनसान था और सभी गुमसुम.

मान्या का बुरा हाल था.

‘‘मैं तो समझी थी कि मांजी थक कर सोई हुई हैं…हाय, मुझे पता ही न चला कि उन्हें इतना तेज बुखार है.’’

‘‘इस में इतना परेशान होने की क्या बात है…बुखार ही तो है…1-2 दिन में ठीक हो जाएगा,’’ पापा ने मान्या को पुचकारा तो उस की आंखें भर आईं.

‘‘अरे, इस में रोने की कौन सी बात है,’’  राघव बिगड़ गए.

अगले दिन, दिनचढ़े रमा की आंख खुली तो राघव को छोड़ सभी अपनेअपने काम पर जा चुके थे.

घर में इधरउधर देख कर रमा अकुलाईं तो राघव उन बिन बोले भावों को तुरंत ताड़ गए.

‘‘मान्या तो जाना ही नहीं चाहती थी. मैं ने ही जबरदस्ती उसे स्कूल भेज दिया है. उर्मि को तो तुम जानती ही हो…इतनी बड़ी अफसरी तिस पर नईनई नौकरी… छुट्टी का तो सवाल ही नहीं…’’

‘‘हां…हां…क्यों नहीं…सभी काम जरूरी ठहरे. मेरा क्या…बीमार हूं तो ठीक भी हो जाऊंगी,’’ रमा ने ठंडी सांस छोड़ते हुए कहा था.

राघव ने बताया, ‘‘मान्या तुम्हारे लिए खिचड़ी बना कर गई है. और उर्मि ने सूप बना कर रख दिया है.’’

रमा ने बारीबारी से दोनों चीजें चख कर देखीं. खिचड़ी उसे फीकी लगी और सूप कसैला…

3 दिनों तक घर मशीन की तरह चलता रहा. राघव छुट्टी ले कर पत्नी की सेवा करते रहे. बाकी सब समय पर जाते, समय पर आते.

आ कर कुछ समय मां के साथ बिताते.

तीसरे दिन रमा का बुखार उतरा. दोपहर में खिचड़ी खा कर वह भी राघव के साथ बरामदे में धूप में जा बैठी.

राघव पेपर देखने लगे तो रमा ने भी पत्रिका उठा ली. ठीक तभी बाहर का दरवाजा खुलने का खटका हुआ. रमा ने मुड़ कर देखा तो मान्या थी. साथ में 2-3 उस के स्कूल की ही अध्यापिकाएं भी थीं.

‘‘अरे, मांजी, आप अच्छी हो गईं?’’ खुशी से मान्या ने आते ही उन्हें कुछ पकड़ाया और खुद अंदर चली गई.

‘‘अरे, यह क्या है?’’ रमा ने पैकेट को उलटपलट कर देखा.

‘‘आंटी, मान्या को बेस्ट टीचर का अवार्ड मिला है.’’

‘‘क्या? इनाम…अपनी मनु को?’’

‘‘जी, आंटी, छोटामोटा नहीं, यह रीजनल अवार्ड है.’’

रोमांचित रमा ने झटपट पैकेट खोला. अंदर गोल डब्बी में सोने का मैडल झिलमिला रहा था. प्रमाणपत्र के साथ 10 हजार रुपए का चेक भी था. मारे खुशी के रमा की आवाज ही गुम हो गई.

‘‘आंटी, देखो न, मान्या ने कोई ट्रीट तक नहीं दी. कहने लगी, पहले मां को दिखाऊंगी…अब देखो न कब से अंदर जा छिपी है.’’ खुशी के लमहों से निकल कर रमा ने मान्या को आवाज लगाई, ‘‘मनु, बेटा…आना तो जरा.’’

अपने लिए मनु का संबोधन सुन मान्या भला रुक सकती थी क्या? आते ही सहजता से उस ने अपनी सहेलियों का परिचय कराया, ‘‘मां, यह सौंदर्या है, यह नफीसा और यह अमरजीत. मां, ये आप से मिलने नहीं आप को देखने आई हैं. वह क्या है न मां, यह समझती हैं कि आप संसार का 8वां अजूबा हो…’’

‘‘यह क्या बात हुई भला?’’ रमा के माथे पर बल पड़ गए.

मान्या की सहेलियां कुछ सकपकाईं फिर सफाई देती हुई बोलीं, ‘‘आंटी, असल में मान्या आप की इतनी बातें करती है कि हम तो समझते थे कि आप ही मान्या की मां हैं. हमें तो आज तक पता ही न था कि आप इस की सास हैं.’’

‘‘अब तो पता चल गया न. अब लड्डू बांटो…’’ मान्या ने मुंह बनाया.

‘‘लड्डू तो अब मुझे बांटने होंगे,’’ रमा ने पति को आवाज लगाई, ‘‘अजी, जरा फोन तो लगाइए और इन सभी की मनपसंद कोई चीज जैसे पिज्जा, पेस्ट्री और आइसक्रीम मंगा लीजिए.’’

रमा ने मान से मैडल मान्या के गले में डाला और खुद अभिमान से इतराईं. मान्या लाज से लजाई. सभी ने तालियां बजाईं.

जालीदार बैकलेस ब्लाउज में Sonam Kapoor दिखीं बेहद स्टाइलिश, पार्टी के लिए ये लुक आप भी करें ट्राई

बौलीवुड की फैशन क्वीन सोनम कपूर अक्सर सुर्खियों में छायी रहती हैं. वह सोशल मीडिया पर आए दिन फोटोज शेयर करती रहती हैं. अब एक्ट्रैस ने अपनी बैस्ट फ्रैंड मसाबा गुप्ता के साथ कुछ खूबसूरत तस्वीरें शेयर की हैं.

मसाबा गुप्ता की बेबी शावर पार्टी में सोनम ग्लैमरस अंदाज

फैशन डिजाइनर मसाबा गुप्ता और सोनम बैस्ट फ्रैंड्स हैं. मसाबा जल्द ही मां बनने वाली हैं. ऐसे में सोनम ने मसाबा के लिए बेबी शावर पार्टी रखी थी. इस पार्टी को तस्वीरें एक्ट्रैस ने सोशल मीडिया पर फैंस के साथ शेयर किया है.

बैकलेस ब्लाउज में कहर ढा रही हैं सोनम कपूर

ये फोटोज जमकर वायरल हो रही हैं. तस्वीरों से पता चलता है कि इस फंक्शन में सोनम का स्टाइलिश लुक देखने को मिला था. एक्ट्रैस बैकलेस ब्लाउज में कमाल की लग रही हैं. उन्होंने ब्राउन साड़ी के साथ इस डिजाइनिंग ब्लाउज को कैरी किया है. इसे क्रोसिए के साथ बनाया गया है.

इस डिजाइनिंग ब्लाउज के पीछे एक डोरी भी लगी हुई है. जो काफी स्टाइलिश दिख रहा है. एक्ट्रैस ने अपना लुक ब्लाउज की मैचिंग के ज्वैलरी के साथ कंपलीट किया है. जो उनके लुक को चार चांद लगा रहा है. सोनम ने इस डिजाइनिंग ब्लाउज के साथ ब्राउन कलर की प्लेन साड़ी पहनी है. इस पर व्हाइट कलर का पतला सा लैस वाला बौर्डर भी बना है. जिससे साड़ी काफी अट्रैक्टिव लग रही है. एक तस्वीर में वो मसाबा गुप्ता के बेबी बंप पर हाथ रखे हुए नजर आ रही हैं.

सोनम ने अप्लाई किया सटल मेकअप

मेकअप की बात करे तो सोनम ने सटल मेकअप अप्लाई किया है. उनके कान के बड़ेबड़े झुमके उनके लुक को गौर्जियस बना रहे हैं. एक्ट्रैस का ये लुक फैंस को खूब पसंद आ रहा है. बेबी शावर पार्टी की तस्वीरें शेयर करते हुए सोनम ने इंस्टाग्राम पर लिखा है कि ”हर विवरण को प्यार से तैयार किया गया. जो मेरी ड्रीम टीम द्वारा स्टाइल किया गया.

सोनम के वर्कफ्रंट की बात करे तो वह फिल्मों से काफी दूर हैं. इन दिनों एक्ट्रैस अपनी फैमिली और फ्रैंड्स के साथ क्वालिटी टाइम बिता रही हैं.

प्रैगनैंसी के बाद स्ट्रैच मार्क्स से परेशान हूं, इस निशान को हटाने के लिए क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं कुछ महीनों पहले ही मां बनी हूं. कुछ दिनों से मेरे पेट, कूल्हे और स्तन पर भी स्ट्रैच मार्क्स के निशान नजर आ रहे हैं. मैं इस निशान को हटाने के लिए क्रीम का इस्तेमाल कर रही हूं पर कोई फर्क नजर नहीं आ रहा है. इस निशान को हटाने के लिए कोई समाधान बताएं…

जवाब

प्रेग्नेंसी के दौरान स्ट्रैच मार्क्स आना आम समस्या है. जो डिलीवरी के बाद स्किन पर ज्यादा दिखती है. स्ट्रैच मार्क्स त्वचा के खिचाव के कारण होते हैं. हालांकि इस निशान को पूरी तरह से हटाना मुश्किल है.

स्ट्रैच मार्क्स होने के कारण

  • प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं का वजन तेजी से बढ़ता है.जिससे त्वचा पर अधिक दबाव पड़ता है और स्ट्रेच मार्क्स नजर आने लगते हैं.
  • अगर आपको पहले से ही स्ट्रैच मार्क्स के निशान है, तो प्रेग्नेंसी के दौरान नए स्ट्रैच मार्क्स आने की संभावना होने लगती है.

स्ट्रैच मार्क्स कम करने के आसान टिप्स

स्किन को मौइश्चराइज करें

बौडी जिन पार्ट्स पर स्ट्रेच मार्क्स हैं, आप वहां मौइस्चराइज करते रहें. इसके लिए शिया बटर, बादाम के तेल से हल्के हाथों से मालिश करें. आप एक्सपर्ट की सलाह से भी किसी क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं. इससे त्वचा हाइड्रेटेड रहती है.

त्वचा को हाइड्रैटेड रखें

स्किन को हाइड्रैटेड रखने के लिए रोजाना पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं. इससे आपकी स्किन सौफ्ट होती है, जिससे स्ट्रैच मार्क्स कम होने में मदद मिलती है.

वेट कंट्रोल

प्रेग्नेंसी के बाद वजन कंट्रोल करने के लिए आप एक्सपर्ट की सलाह ले सकती हैं.

डाइट का रखें खास ख्याल

आप अपनी डाइट में पोषक तत्वों से भरपूर खाना खाएं. विटामिन-ए, विटामिन-सी, विटामिन-ई, और जिंक से भरपूर चीजों को अपने खाने में शामिल करें.

धूप में निकलते समय करें ये काम

यूवी किरणें त्वचा को नुकसान पहुंचाती है. इसलिए धूप में जाने से पहले स्किन प्रोटैक्शन के लिए हाई एसपीएफ वाला ब्रौडस्पेक्ट्रम सनस्क्रीन लगाएं.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बच्चों की भावना : अकी के बदले व्यवहार के पीछे क्या थी वजह

‘‘अकी, बेटा उठो, सुबह हो गई, स्कूल जाना है,’’ अनुभव ने अपनी लाडली बेटी आकृति को जगाने के लिए आवाज लगानी शुरू की.

‘‘हूं,’’ कह कर अकी ने करवट बदली और रजाई को कानों तक खींच लिया.

‘‘अकी, यह क्या, रजाई में अब और ज्यादा दुबक गई हो, उठो, स्कूल को देर हो जाएगी.’’

‘‘अच्छा, पापा,’’ कह कर अकी और अधिक रजाई में छिप गई.

‘‘यह क्या, तुम अभी भी नहीं उठीं, लगता है, रजाई को हटाना पड़ेगा,’’ कह कर अनुभव ने अकी की रजाई को धीरे से हटाना शुरू किया.

‘‘नहीं, पापा, अभी उठती हूं,’’ बंद आंखों में ही अकी ने कहा.

‘‘नहीं, अकी, साढ़े 5 बज गए हैं, तुम्हें टौयलेट में भी काफी टाइम लग जाता है.’’

यह सुन कर अकी ने धीरे से आंखें खोलीं, ‘‘अभी तो पापा रात है, अभी उठती हूं.’’

अनुभव ने अकी को उठाया और हाथ में टूथब्रश दे कर वाशबेसन के आगे खड़ा कर दिया.

सर्दियों में रातें लंबी होने के कारण सुबह 7 बजे के बाद ही उजाला होना शुरू होता है और ऊपर से घने कोहरे के कारण लगता ही नहीं कि सुबह हो गई. आकृति की स्कूल बस साढ़े 6 बजे आ जाती है. वैसे तो स्कूल 8 बजे लगता है, लेकिन घर से स्कूल की दूरी 14 किलोमीटर तय करने में बस को पूरा सवा घंटा लग जाता है.

जैसेतैसे अकी स्कूल के लिए तैयार हुई. फ्लैट से बाहर निकलते हुए आकृति ने पापा से कहा, ‘‘अभी तो रात है, दिन भी नहीं निकला. मैं आज स्कूल जल्दी क्यों जा रही हूं.’’

‘‘आज कोहरा बहुत अधिक है, इसलिए उजाला नहीं हुआ, ऐसा लग रहा है कि अभी रात है, लेकिन अकी, घड़ी देखो, पूरे साढ़े 6 बज गए हैं. बस आती ही होगी.’’

कोहरा बहुत घना था. 7-8 फुट से आगे कुछ नजर नहीं आ रहा था. सड़क एकदम सुनसान थी. घने कोहरे के बीच सर्द हवा के झोंकों से आकृति के शरीर में झुरझुरी सी होती और इसी झुरझुराहट ने उस की नींद खोल दी. अपने बदन को बे्रक डांस जैसे हिलातेडुलाते वह बोली, ‘‘पापा, लगता है, आज बस नहीं आएगी.’’

‘‘आप को कैसे मालूम, अकी?’’

‘‘देखो पापा, आज स्टाप पर कोई बच्चा नहीं आया है, आप स्कूल फोन कर के मालूम करो, कहीं आज स्कूल में छुट्टी न हो.’’

‘‘आज छुट्टी किस बात की होगी?’’

‘‘ठंड की वजह से आज छुट्टी होगी. इसलिए आज कोई बच्चा नहीं आया. देखो पापा, इसलिए अभी तक बस भी नहीं आई है.’’

‘‘बस कोहरे की वजह से लेट हो गई होगी.’’

‘‘पापा, कल मोटी मैडम शकुंतला राधा मैडम से बात कर रही थीं कि ठंड और कोहरे के कारण सर्दियों की छुट्टियां जल्दी हो जाएंगी.’’

‘‘जब स्कूल की छुट्टी होगी तो सब को मालूम हो जाएगा.’’

‘‘आप ने टीवी में न्यूज सुनी, शायद आज से छुट्टियां कर दी हों.’’

आकृति ही क्या सारे बच्चे ठंड में यही चाहते हैं कि स्कूल बंद रहे, लेकिन स्कूल वाले इस बारे में कब सोचते हैं. चाहे ठंड पहले पड़े या बाद में, छुट्टियों की तारीखें पहले से तय कर लेते हैं. ठंड और कोहरे के कारण न तो छुट्टियां करते हैं न स्कूल का टाइम बदलते हैं. सुबह के बजाय दोपहर का समय कर दें, लेकिन हम बच्चों की कोई नहीं सुनता है. सुबहसुबह इतनी ठंड में बच्चे कैसे उठें. आकृति मन ही मन बड़बड़ा रही थी.

तभी 3-4 बच्चे स्टाप पर आ गए. सभी ठंड में कांप रहे थे. बच्चे आपस में बात करने लगे कि मजा आ जाएगा यदि बस न आए. तभी एक बच्चे की मां अनुभव को संबोधित करते हुए बोलीं, ‘‘भाभीजी के क्या हाल हैं. अब तो डिलीवरी की तारीख नजदीक है. आप अकेले कैसे मैनेज कर पाएंगे. अकी की दादी या नानी को बुलवा लीजिए. वैसे कोई काम हो तो जरूर बताइए.’’

‘‘अकी की नानी आज दोपहर की टे्रन से आ रही हैं,’’ अनुभव ने उत्तर दिया.

तभी स्कूल बस ने हौर्न बजाया, कोहरे के कारण रेंगती रफ्तार से बस चल रही थी. किसी को पता ही नहीं चला कि बस आ गई. बच्चे बस में बैठ गए. सभी पेरेंट्स ने बस ड्राइवर को बस धीरे चलाने की हिदायत दी.

बस के रवाना होने के बाद अनुभव जल्दी से घर आया. स्नेह को लेबर पेन शुरू हो गया था, ‘‘अनु, डाक्टर को फोन करो. अब रहा नहीं जा रहा है,’’ स्नेह के कहते ही अनुभव ने डाक्टर से बात की. डाक्टर ने फौरन अस्पताल आने की सलाह दी.

अनुभव कार में स्नेह को नर्सिंग होम ले गया. डाक्टर ने चेकअप के बाद कहा, ‘‘मिस्टर अनुभव, आज ही आप को खुशखबरी मिल जाएगी.’’

अनुभव ने अपने बौस को फोन कर के स्थिति से अवगत कराया और आफिस से छुट्टी ले ली. अनुभव की चिंता अब रेलवे स्टेशन से आकृति की नानी को घर लाने की थी. वह सोच रहा था कि नर्सिंग होम में किस को स्नेह के पास छोड़े.

आज के समय एकल परिवार में ऐसे मौके पर यह एक गंभीर परेशानी रहती है कि अकेला व्यक्ति क्याक्या और कहांकहां करे. सुबह आकृति को तैयार कर के स्कूल भेजा और फिर स्नेह के साथ नर्सिंग होम. स्नेह को अकेला छोड़ नहीं सकता, मालूम नहीं कब क्या जरूरत पड़ जाए.

आकृति की नानी अकेले स्टेशन से कैसे घर आएंगी. घर में ताला लगा है. नर्सिंग होम के वेटिंगरूम में बैठ कर अनुभव का मस्तिष्क तेजी से चल रहा था कि कैसे सबकुछ मैनेज किया जाए. वर्माजी को फोन लगाया और स्थिति से अवगत कराया तो आधे घंटे में मिसेज वर्मा थर्मस में चाय, नाश्ता ले कर नर्सिंग होम आ गईं.

‘‘बेटा, पहले तो आप चाय और नाश्ता लीजिए, मैं यहां स्नेह के पास बैठती हूं. आप आकृति की नानी को रेलवे स्टेशन से ले आइए.’’

अनुभव ने बिस्कुट के साथ चाय पी और रेलवे स्टेशन रवाना हुआ. स्टेशन पहुंचने पर पता चला कि गाड़ी 2 घंटे लेट है. रेलवे प्लेटफार्म के बेंच पर बैठा अनुभव सोचने लगा कि एकल परिवार के जहां एक तरफ अपने सुख हैं तो दूसरी ओर दुख भी. आज जब प्रसव के समय किसी अपने की जरूरत है, तो अकेले सभी कार्य खुद को करने पड़ रहे हैं. लेकिन यह उस की मजबूरी है. नौकरी जहां मिलेगी, वहीं रहना पड़ेगा. ऐसे समय में पड़ोस ही सगा होता है. पता नहीं डाक्टर भी डिलीवरी की गलत तारीख क्यों बताते हैं. तारीख के हिसाब से आकृति की नानी को 10 दिन पहले बुलाया है, लेकिन कुदरत के सामने किसी का बस चलता तो नहीं न.

पड़ोसी वर्माजी की भी कुछ ऐसी स्थिति है. दोनों बुजुर्ग दंपती रिटायरमेंट के बाद अकेले रह रहे हैं. एक बेटा विदेश में नौकरी कर रहा है, 2-3 साल बाद 2 महीने के लिए मिलने आता है और दूसरा बेटा बंगलौर में आईटी कंपनी में नौकरी करता है. साल में 10 दिन के लिए मिलने आता है. 2 बेटियां हैं, एक अहमदाबाद में रहती है, दूसरी नोएडा में, जो हर रविवार को सपरिवार मिलने आती है. बाकी सप्ताह भर वर्मा दंपती अकेले. इसी कारण अनुभव और वर्माजी के बीच काफी नजदीकियां हो गई थीं.

अनुभव और स्नेह दोनों नौकरी करते थे. आकृति की वजह से वर्मा दंपती की नजदीकियां बढ़ीं. दोपहर को आकृति स्कूल से आती तो अधिक समय उस का वर्माजी के घर बीतता. घर के कार्य के लिए अनुभव ने नौकरानी रखी हुई थी, लेकिन नौकरानी आकृति का कम और अपना ध्यान अधिक रखती थी. इस कारण कई नौकरानियां आईं और चली गईं, लेकिन वर्मा परिवार से संबंध बढ़ता ही गया. अकेलेपन को दूर करने के लिए एक छोटे बच्चे का सहारा वर्माजी को अपने खुद के बच्चों की दूरी भुला देता था. इस में दोष किसी का नहीं है.

तभी रेलवे की घोषणा ने अनुभव को विचलित कर दिया. गाड़ी 2 घंटे और लेट है. उफ, ये रेलवे वाले कभी नहीं सुधरेंगे. एक बार में क्यों नहीं बता देते कि गाड़ी कितनी देर से आएगी. सुबह से एकएक घंटे बाद और अधिक देरी से आने की घोषणा कर रहे हैं. सर्दियों में कोहरे के कारण गाडि़यां अकसर देरी से चलती हैं. अनुभव आज और अधिक इंतजार नहीं कर सकता था. लेकिन इस समय वह केवल झुंझला कर रेलवे प्लेटफार्म के एक छोर से दूसरे छोर के चक्कर लगा रहा था. तभी मोबाइल की घंटी बजी. दूसरी तरफ वर्माजी थे.

‘‘मुबारक हो, अनु बेटे. अकी का भाई आया है. स्नेह और छोटा काका एकदम ठीक हैं. तुम चिंता मत करो. मैं घर जा रहा हूं, अकी के स्कूल से वापस आने का समय हो गया है. चिंता मत करना.’’

यह सुन कर अनुभव की जान में जान आई. अब शांति से बेंच पर बैठ गया. निश्ंिचत हो कर अब अनुभव टे्रन का इंतजार करने लगा. गाड़ी पूरे 6 घंटे देरी से आई. बच्चे की खुशखबरी सुन कर नानी की सफर की सारी थकान मिट गई.

‘‘अनु बेटे, अब सीधा नर्सिंग होम ले चल. पहले छोटे काके को देख कर स्नेह से मिल लूं.’’

नर्सिंग होम में स्नेह के पास झूले में छोटा काका सो रहा था. नानी को देख कर वर्मा दंपती ने बधाई दी. नानी ने नर्स और आया को रुपए न्योछावर किए और छोटे काके को गोद में लिया. छोटे काके को गोद में लेते देख आकृति बोली, ‘‘नानी, मैं ने आप से पहले छोटे काका को देखा. नानी, कितना गोरा है. देखो, कितना सौफ्ट है लेकिन एकदम गंजा है. सिर पर एक भी बाल नहीं है.’’

नानी ने लाड़ में कहा, ‘‘बाल भी आ जाएंगे. अकी से भी ज्यादा. जब तुम पैदा हुई थीं, तुम्हारे भी सिर में बाल नहीं थे, अब देखो, कितने लंबे बाल हैं.’’

‘‘नानी, मुझे दो न छोटे काका को, मम्मी तो हाथ भी नहीं लगाने दे रहीं.’’

नानी ने प्यार से कहा, ‘‘अभी बहुत छोटा है, मेरे पास बैठो, तुम्हारी गोदी में देती हूं.’’

गोदी में काका को पा कर आकृति उल्लास से भर कर बोली, ‘‘नानी, देखो, अभी आंखें खोल रहा था, देखो, कितने अच्छे तरीके से मुसकरा रहा है.’’

ऐसे हंसतेखेलते शाम हो गई. स्नेह ने नानी को घर जा कर आराम करने को कहा. आकृति का मन जाने को नहीं हो रहा था.

‘‘नानी, थोड़ा रुक कर चलते हैं. अभी काका जाग रहा है. जब सो जाएगा, तब चलेंगे.’’

‘‘अकी, अब घर चलो, होमवर्क भी करना होगा और फिर तुम उठने में देर कर देती हो,’’ अनुभव ने आकृति से कहा.

घर में होमवर्क करते समय अकी का ध्यान छोटे काका में लगा हुआ था. जैसेतैसे होमवर्क पूरा किया. रात को एक बार फिर वह अनुभव के साथ नर्सिंग होम गई और काफी देर तक छोटे काका को निहारती रही, पुचकारती रही.

रात को घर आने में देरी हो गई. पूरे दिन की थकान के बाद स्नेह और अपने बेटे को सही देख कर संपूर्ण निश्ंिचतता के साथ अनुभव सोया तो सुबह उठने में देरी हो गई.

वर्मा आंटी ने कालबेल बजाई तब जा कर अनुभव की आंख खुली.

‘‘बेटे, क्या बात है, क्या अकी स्कूल नहीं जाएगी. मैं ने उस का नाश्ता भी बना दिया है.’’

‘‘आंटी, मालूम नहीं आज घड़ी का अलार्म कैसे नहीं सुनाई दिया. अभी अकी को उठाता हूं. स्कूल की तो अगले सप्ताह से छुट्टियां हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं, बेटा. मैं तुम्हारी चाय और अकी का नाश्ता रसोई में रख देती हूं और हां, स्नेह और नानी की चाय ले कर नर्सिंग होम जा रही हूं. तुम आराम से अकी को स्कूल के लिए तैयार करो.’’

अनुभव के उठने पर बड़ी मुश्किल से अकी स्कूल जाने के लिए तैयार हुई. चूंकि स्कूल बस आज निकल गई, इसलिए अनुभव को कार ले जानी पड़ी. अनुभव अकी को ले कर स्कूल पहुंचा तो गेट पर प्रिंसिपल खड़ी थीं और देरी से आने वाले बच्चों को घर वापस भेज रही थीं.

अनुभव ने काफी मिन्नत की लेकिन प्रिंसिपल के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा, उलटे वह अनुभव पर बिफर पड़ीं, ‘‘आप अभिभावकों का कर्तव्य है कि बच्चों को नियमित समय पर स्कूल भेजें, उन को अनुशासित करें, लेकिन आप उन को शह दे कर और अधिक बिगाड़ रहे हैं. मैं स्कूल का नियम किसी को नहीं तोड़ने दूंगी. आप अपने बच्चे को वापस ले जाइए.’’

‘‘मैडम प्लीज, आगे से देर नहीं होगी. आज अधिक सर्दी और धुंध के कारण देर हुई है,’’ अनुभव ने विनती की.

‘‘अगर आप का घर दूर है तो आप घर के पास किसी स्कूल में बच्चे को दाखिल करवाइए. मुझे अपने स्कूल का अनुशासन नहीं तोड़ना,’’ पिं्रसिपल ने कड़क स्वर में कहा.

इस के आगे अनुभव कुछ नहीं कह सका और चुपचाप अकी के साथ कार स्टार्ट कर घर के लिए रवाना हो गया. अनुभव का मूड खराब हो गया कि कितने कठोर हैं स्कूल वाले जो बच्चों के साथ उन के मातापिता से भी कितने गलत तरीके से पेश आते हैं. इतनी ठंड में छोटे बच्चों को सुबह उठाना, तैयार करना कितना मुश्किल होता है. ठंड की परेशानी को समझना चाहिए. स्कूल के समय को बदलना चाहिए. यदि 1 घंटा देरी से सर्दियों में स्कूल लगाया जाए तो सब समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है. चाहे कुछ हो जाए, इस साल अकी का स्कूल बदलवा दूंगा. घर के पास जिस भी स्कूल में दाखिला मिलेगा, उसी में करवा दूंगा. आखिर मैं भी तो घर के पास के सरकारी स्कूल में पढ़ा हूं. क्या जिंदगी की दौड़ में पिछड़ गया. स्कूल के बड़े नाम में क्या रखा है.

अनुभव यह सोचता हुआ धीरेधीरे कार चला रहा था. अकी समझ गई कि पापा पिं्रसिपल की बात से उदास और नाराज हो गए हैं. अकी ने सीडी प्लेयर औन कर पापा की मनपसंद सीडी लगा दी. मुसकरा कर अनुभव ने अकी को देखा और कार की रफ्तार तेज की. आखिर बच्चे भी सब समझते हैं. हमें कुछ कहते नहीं, शायद डरते हैं क्योंकि हम डांट मार कर उन्हें चुप करा देते हैं.

‘‘अकी, जब स्कूल की छुट्टी हो गई है तब कुछ समय नानी, स्नेह और छोटे काका के संग गुजारा जाए,’’ यह कहते हुए अनुभव ने कार सीधे नर्सिंग होम की तरफ मोड़ दी. अकी बहुत खुश हुई कि छोटे काका के साथ उसे सारा दिन गुजारने को मिलेगा.

स्कूल बैग के साथ अकी को देख कर स्नेह कुछ नाराज हुई, ‘‘आप ने अकी की छुट्टी क्यों करवाई.’’

अनुभव ने कहा कि इस विषय में घर चल कर बात करेंगे.

शाम को स्नेह को नर्सिंग होम से छुट्टी मिल गई. अनुभव ने अकी से कहा कि आज स्कूल की छुट्टी हो गई तो वह अपनी फें्रड से होमवर्क पूछ कर पूरा कर ले.

अकी ने जैसेतैसे होमवर्क किया और फिर नानी के पास सट के बैठ गई कि इसी बहाने वह छोटे काका के पास रह लेगी. रात काफी हो गई थी, खुशी में बातोंबातों में आंखों से नींद गायब थी, घड़ी देख कर स्नेह ने अकी को सोने को कहा कि कल सुबह भी कहीं लेट न हो जाए.

अभी अकी को एक सप्ताह और स्कूल जाना था, ठंड इस साल कुछ अधिक थी. सुबह जबरदस्त कोहरा होने लगा. रोज सुबह अकी को इतनी जल्दी स्कूल के लिए तैयार होते देख कर नानी ने स्नेह से कहा, ‘‘बेटी, किसी पास के स्कूल में अकी को दाखिल करवा दे. इतना अधिक परिश्रम छोटे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए घातक है.’’

‘‘मां, मैं स्कूल चेंज नहीं कराऊंगी. बहुत नामी और बढि़या स्कूल है.’’

इस का जवाब अनुभव ने दिया, ‘‘स्नेह, नानी ठीक कह रही हैं, मैं ने सोच लिया है कि इस साल रिजल्ट निकलने पर अकी का दाखिला किसी पास के स्कूल में करवा दूंगा,’’ और फिर उस ने पूरी बात स्नेह को विस्तारपूर्वक बताई कि कैसे फटकार लगा कर प्रिंसिपल ने उसे अपमानित किया. ऐसी बात सुन कर स्नेह उदास हो गई कि उस का अकी को एक नामी स्कूल में पढ़ाने का अरमान साकार नहीं हो पाएगा. लेकिन अनुभव के दृढ़ निश्चय और नानी के सहयोग के आगे स्नेह को झुकना पड़ा.

आकृति यह सुन कर बहुत खुश हुई कि अब उसे नए सत्र से पास के किसी स्कूल में जाना होगा. इतनी जल्दी भी नहीं उठना पड़ेगा. स्कूल बस में वह बहुत अधिक परेशान होती थी. बड़े बच्चे बस की सीटों पर छोटे बच्चों को बैठने नहीं देते थे. स्कूल टीचर भी उन्हें कुछ नहीं कहती थीं. उलटे सब से आगे की सीटों पर बैठ जाती थीं.

गरमियों में तो इतना ज्यादा पसीना आता, घबराहट होती कि तबीयत खराब हो जाती थी, लेकिन पापामम्मी तो इस बारे में सोचते ही नहीं. सर्दियों में कितनी ज्यादा ठंड होती है. स्कर्ट पहन कर जाना पड़ता है. ऊपर से कोट पहना देते हैं, लेकिन स्कर्ट पहनने से टांगों में बहुत ज्यादा ठंड लगती है. छोटे बच्चों की परेशानी कोई नहीं समझता.

ठंड बढ़ती जा रही थी. बच्चों की परेशानी को महसूस कर प्रशासन ने सरकारी स्कूलों की छुट्टी समय से पहले घोषित कर दी. अभिभावकों के दबाव में आ कर निजी स्कूलों में भी निर्धारित समय से पहले सर्दियों की छुट्टियां घोषित कर दीं. जिस दिन छुट्टियों की घोषणा की, आकृति अत्याधिक खुशी के साथ झूमती हुई, नाचती हुई स्कूल से वापस आई. जैसे नानी ने फ्लैट का दरवाजा खोला, आकृति नानी से लिपट गई.

‘‘नानी, मेरी प्यारी नानी, आज मैं आजाद पंछी हूं. हमारी कल से पूरे 20 दिन की छुट्टी. अब मैं रोज छोटे काका के संग खेलूंगी,’’ और अपना स्कूल बैग एक तरफ पटक दिया और आईने के सामने कमर मटकाते हुए गीत गाने लगी.

तभी स्नेह ने आवाज लगाई, ‘‘अकी, काका सो रहा है, शोर मत मचाओ.’’

‘‘गाना भी नहीं गाने देते,’’ कह कर अकी बाथरूम में मुंह धोने के लिए चली गई और गीत गाने लगी, ‘‘मैं ने जिसे अभी देखा है, उसे कह दूं, प्रीटी वूमन, देखो, देखो न प्रीटी वूमन, तुम भी कहो न प्रीटी वूमन.’’

अकी का गाना सुन कर स्नेह ने उस की नानी से कहा, ‘‘मम्मी, जा कर अकी को बाथरूम से निकालो, वरना वह 2 घंटे से पहले बाहर नहीं आएगी.’’

नानी ने अकी को बाथरूम में जा कर कहा, ‘‘प्रीटी वूमन, बहुत बनसंवर लिए. अब बाहर आ जाइए. छोटा काका आप को बुला रहा है.’’

‘‘सच्ची,’’ कह कर अकी ने फर्राटे की दौड़ लगाई, ‘‘यह क्या नानी, छोटा काका तो सो रहा है, आप ने मेरा मजाक उड़ा कर सारा मूड खराब कर दिया,’’ अकी ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘मूड कैसे बनेगा, मेरी लाड़ो का,’’ नानी ने अकी को अपनी गोद में बिठाते हुए पूछा.

‘‘जब पापा गाना गाएंगे तब मैं पापा के साथ मिल कर गाऊंगी.’’

‘‘वह क्यों?’’

‘‘नानी, आप को नहीं पता, पापा को यह गाना बहुत अच्छा लगता है. मम्मी को देख कर गाते हैं.’’

‘‘अच्छा अकी, पापा का गाना तो बता दिया, मम्मी कौन सा गाना गाती हैं, पापा को देख कर?’’ इस से पहले अकी कुछ कहती, स्नेह तुनक कर बोली, ‘‘मां, तुम यह क्या बातें ले कर बैठ गईं.’’

यह सुनते ही अकी नानी के कान में धीरे से बोली, ‘‘नानी, मम्मी को थोड़ा समझाओ. हमेशा डांटती रहती हैं.’’

छुट्टियों में अकी को बेफिक्र देख कर नानी ने स्नेह से कहा कि बच्चों के कुदरती विकास के लिए जरूरी है कि उन्हें पूरा समय मिले, पढ़ने के साथ खेलने का मौका मिले. क्या तू भूल गई, किस तरह बचपन में तू पड़ोस की लड़कियों के साथ खेलती थी और पूरा महल्ला शोर से सिर पर उठाती थी. हम अपना बचपन भूल जाते हैं कि हम ने भी शैतानियां की थीं. बच्चों पर आदर्श थोपते हैं, जो एकदम अनुचित है.

‘‘मां, तुम भाषण पर आ गई हो,’’ स्नेह ने तुनक कर कहा.

‘‘तुम खुद देखो कि अकी आजकल कितनी खुश है, जितने दिन स्कूल गई, एकदम थकी सी रहती थी, अब एकदम चुस्त रहती है. इसलिए कहती हूं कि अनुभव की बात मान ले.’’

‘‘मम्मी, तुम और अनु एक जैसे हो, एकदूसरे की हां में हां मिलाते रहते हो. मेरी भावनाओं की तरफ सोचते भी नहीं हो. आखिर आप ने मुझे इतना क्यों पढ़ाया. एमबीए के बाद शादी कर दी. मेरा कैरियर भी नहीं बनने दिया. मुश्किल से 1 साल भी नौकरी नहीं की, शादी हो गई. शादी के बाद शहर बदल गया, फिर अकी के जन्म के कारण नौकरी नहीं की. अकी स्कूल जाने लगी, तब बड़ी मुश्किल से अनु को राजी किया. 3-4 साल ही नौकरी की, अब फिर छोटे काका के जन्म पर नौकरी छोड़नी पड़ रही है.’’

‘‘स्नेह, एक बात तुम समझ लो, परिवार के लालनपालन और बच्चों में अच्छी आदतों की नींव डालने के लिए मांबाप को अपनी कई इच्छाओं को मारना पड़ता है. परिवार को सही तरीके से पालना नौकरी करने से अधिक कठिन है. गृहस्थी की कठिन राह से परेशान लोग संन्यास लेते हैं, लेकिन दरदर भटकने पर भी न तो शांति मिलती है और न ही सुख. कठिन गृहस्थी में ही सच्चा सुख है.’’

स्नेह मां के आगे निरुत्तर हो गई और आकृति को घर के पास वाले स्कूल में दाखिल करने को राजी हो गई. सर्दियों की छुट्टियों में वर्माजी की लड़की भी अपने परिवार के साथ रहने आ गई. वर्माजी की नातिन वृंदा आकृति की हमउम्र थी. दोनों सारा दिन एकसाथ धमाचौकड़ी करती रहतीं और नानी, स्नेह, छोटा काका वर्मा परिवार के साथ सोसाइटी के लौन में धूप सेंकते. एक दिन धूप सेंकते वर्माजी ने अपनी लड़की को सलाह दी कि वह भी वृंदा को पास के स्कूल में दाखिल करवा दे. वे आकृति की नानी के गुण गाने लगे कि उन्होंने स्नेह को आकृति के स्कूल बदलने के लिए राजी कर लिया है.

स्नेह मुंह बना कर बोली, ‘‘क्या अंकल आप भी स्कूल पुराण ले कर बैठ गए. बड़ी मुश्किल से तो नानी की कथा बंद की है.’’

‘‘बेटे, इस का जिक्र बहुत जरूरी है. देखो, जब हम स्कूल में पढ़ते थे तब गरमियों और सर्दियों में स्कूल का अलग समय होता था. गरमी में सुबह 7 बजे और सर्दियों में 10 बजे स्कूल लगता था. गरमी में 12 बजे घर वापस आ जाते थे और सर्दी में धूप में बैठ कर पढ़ते थे.’’

‘‘अच्छा,’’ वृंदा ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘आप कुरसीमेज क्लास से रोज बाहर लाते थे और फिर अंदर करते थे. अपने सर पर उठाते थे, क्या नानाजी?’’

‘‘नहीं बेटे, हमारे समय में तो मेजकुरसी नहीं होते थे. जमीन पर दरी बिछा कर बैठते थे. धूप निकलते ही मास्टरजी हुक्म देते थे और सारे बच्चे फटाफट दरियां उठा कर क्लासरूम के बाहर धूप में बैठ जाते थे. मजे की बात तो बरसात में होती थी. स्कूल की छत टपकती थी. जिस दिन बारिश होती थी, उस दिन छुट्टी हो जाती थी, मास्टरजी कहते थे, रेनी डे, बच्चो, आज की छुट्टी.’’

यह सुन कर वृंदा और आकृति जोरजोर से हंसने लगीं…रेनी डे, होलीडे, कहतेकहते और हंसतेहंसते दोनों लोटपोट हो गईं.

अब अनुभव कहने लगा, ‘‘वर्मा अंकल के बाद मेरी भी सुनो, मेरा स्कूल 2 शिफ्टों में लगता था. छठी क्लास तक दूसरी शिफ्ट में स्कूल लगता था. खाना खा कर 1 बजे स्कूल जाते थे. 6 बजे वापस आते थे, मजे से सुबह 7-8 बजे सो कर उठते थे, सुबह स्कूल जाने की कोई जल्दी नहीं होती थी.’’

आकृति और वृंदा को स्कूल की बातों में बहुत अधिक रस आ रहा था और वे हंसतेहंसते लोटपोट होती जा रही थीं.

अकी को छुट्टियों में इतना अधिक खुश देख कर स्नेह ने पास के स्कूल का महत्त्व समझा और फाइनल परीक्षा के बाद नए सत्र में घर के पास स्कूल में अकी का दाखिला करा दिया. घर से स्कूल का पैदल रास्ता सिर्फ 5 मिनट का था. 2 दिन में ही अकी इतनी अधिक खुश हुई और स्नेह से कहा, ‘‘मम्मी, यह स्कूल बहुत अच्छा है, मेरी 2 फ्रेंड्स साथ वाली सोसाइटी में रहती हैं. मम्मी, आप को मालूम है, वे साइकिल पर स्कूल आती हैं, मुझे भी साइकिल दिला दो, 2 मिनट में स्कूल पहुंच जाऊंगी.’’

अनुभव ने आकृति को साइकिल दिला दी. अब अकी को न तो टेंशन था सुबह जल्दी उठ कर स्कूल जाने की और न स्कूल बस मिस हो जाने का. सारा दिन वह खुश रहती था. होमवर्क करने के बाद काफी समय छोटे काका के साथ खेलती और बेफिक्र चहकती रहती.

6 महीने में एकदम लंबा कद पा गई आकृति को देख कर स्नेह खुशी से फूली नहीं समाती थी. जो अकी कल तक सारा दिन थकीथकी रहती थी, आज वह कहने लगी, ‘‘मम्मी, मुझे चाय बनाना सिखाओ, मैं आप को सुबह बेड टी पिलाया करूंगी.’’

सुन कर स्नेह को अपनी मां की कही बातें बारबार याद आतीं कि बच्चों के बहुमुखी विकास के लिए उन का बेफिक्र होना बहुत जरूरी है. उन पर उन की क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालना चाहिए. बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी होती है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें