गरमी में चेहरे पर लगाएं मुल्तानी मिट्टी, इन 6 Skin Problem की होगी छुट्टी

गरमी में महिलाओं की स्किन प्रौब्लम बढ़ जाती है. बेदाग और निखरी त्वचा पाना हर किसी की चाहत होती है, लेकिन धूल-मिट्टी, प्रदूषण, खराब लाइफस्टाइल, स्किन की सही तरीके से देखभाल न करने के कारण चेहरे की रौनक कम हो जाती है. चाहें तो आप नेचुरल उपाय अपनाकर भी स्किन प्रौब्लम से छुटकारा पा सकती हैं.

गरमी में चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी का फेस पैक लगा सकती हैं. यह मुंहासों, दागधब्बों और सनटैन को कम करने में काफी मददगार है. आइए जानते हैं त्वचा पर मुल्तानी मिट्टी लगाने के फायदे और इसका फेस पैक कैसे बनाएं.

चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी लगाने के फायदे

  • चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी के इस्तेमाल से कई समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है. अगर आप हर हफ्ते दो बार मुल्तानी फेस पैक चेहरे पर लगाती हैं, तो इससे डार्क सर्कल, मुंहासे से छुटकारा मिल सकता है.
  • जिन लोगों की त्वचा बहुत तैलीय होती है, उन्हें चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी का फेस पैक जरूर लगाना चाहिए. इसे फेस पर लगाने से स्किन पर मौजूद ब्लैकहेड्स से भी राहत मिल सकती है.
  • गरमी में चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी लगाने से त्वचा से एक्सट्रा औयल गंदगी, पसीना को कंट्रोल किया जा सकता है.
  • मुल्तानी मिट्टी में ठंडक और एक्सफोलिएटिंग गुण होते हैं, जो गरमी में त्वचा को ठंडक देने का काम करते हैं. यह त्वचा की सूजन को कम करने में भी मददगार है.
  • अगर आप सनटैन से परेशान हैं, तो चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी जरूर लगाएं. यह त्वचा पर हाइपरपिग्मेंटेशन और मुंहासों को कम करने में भी सहायक है.
  • मुल्तानी मिट्टी ढीली त्वचा में कसाव लाने में मदद करता है. अगर आप इस फेस पैक का यूज करती हैं, तो चेहरे पर महीन रेखाएं नहीं बनती हैं.

इस तरह बनाएं मुल्तानी मिट्टी का फेस पैक

एक छोटे बाउल में मुल्तानी मुल्तानी मिट्टी, गुलाब जल और शहद डालें और इस मिश्रण का चिकना पेस्ट बना लें. अब इसे चेहरे पर लगाएं और करीब 15-20 मिनट बाद पानी से धो लें. फिर चेहरे को थपथपा कर सुखा लें. एक अच्छी क्वालिटी की मौइश्चराइजर चेहरे पर लगाएं, हल्के हाथों से मसाज करें.

 C Dramas के 5 एक्टर्स पर जान छिड़कती है लड़कियां

चाइनीज ड्रामा में दिखाए जाने वाले एक्टर्स इतने हैंडसम होते हैं कि उनकी सुंदरता के दीवानों की संख्या का अंदाजा उनके सोशल मीडिया हैंडल्स के फॉलोअर्स को देखकर लगाया जा सकता है. बड़ी संख्या में इंडियन युथ्स इनके फैन्स हैं खासकर स्कूल और कॉलेज जानेवाली लड़कियां. 

आइए यहां कुछ एक्टर्स की दुनिया में झांककर यह जानने की कोशिश करते हैं कि किन वजहों से वे स्कूलकॉलेज की लड़कियों के चहेते बने हुए हैं. 

1 Dylan wang : 25 साल के इस एक्टर को वांग हेडी के नाम से भी जाना जाता है.  डायलन वांग एक्टर होने के साथसाथ एक अच्छा सिंगर भी है. लव बिटवीन फेयरी एंड डेविल, मेटियोर गार्डन, ओनली फॉर लव जैसे ड्रामा ने इनको वर्ल्ड में फेमस कर दिया. इंस्टाग्राम पर 53 लाख फॉलोअर्स हैं.

2  Xu Kai : भोलीभाली शक्लोसूरत का इस एक्टर का ड्रामा देखते ही आप इसके दीवाने हो जाएंगें. यह चीनी एक्टर न केवल देखने में क्यूट है बल्कि इसने बहुत ही अच्छे चाइनीज ड्रामाज में काम भी किया है. इस एक्टर की एक्टिंग को देखना चाहते हैं, तो आर्सेनल मिलिट्री एकेडमी देखें और इसकी खूबसूरती पर मर मिटना चाहते हैं, तो फॉलिंग इन टू योर स्माइल देखें. इसके 16 लाख फॉलोअर्स है. जू काई के रोमांटिक रूयमर्स की खबरें अक्सर चर्चा में रहती हैं, उनका नाम चीन की बहुत प्यारी एक्ट्रेस बे लू के साथ जोड़ा जाता है. 

3   Chen Zhe Yuan  : इनकी खूबसूरती लड़कियों को भी पीछे छोड़ देगी. 27 साल के चेन झेयुआन का चेहरा ऐसा है कि देखते ही प्यार हो जाएगा. हैंडसम होने के अलावा भी इनमें ढेरों खूबियां हैं, ये एक्टर होने के साथसाथ मॉडल और सिंगर भी हैं. इनका हिडन लव ड्रामा एक बार देख लिया, तो बारबार देखना चाहेंगे. इंस्टाग्राम पर इनके 11 लाख फॉलोअर्स है.  

4 Liu Te :  यह चाइनीज हीरो अपने ड्रामा माई बॉयीगार्ड से काफी पसंद किया गया. इसमें वह एक अमीर बिजनेस मैन है और जिसने अपनी सिक्योरिटी के लिए एक वुमन बॉडीगार्ड को रखा है.  यह एक रोमांटिक कॉमेडी ड्रामा है और इसका नाम बेस्ट चाइनीज ड्रामा के तौर पर लिया जाता है. यह केवल 26 साल के हैं. 

5 Liu yuanxi :  लव इज स्वीट ड्रामा सीरीज के देखने के बाद कोई भी इंडियन लड़की एक्टर लुओ यूंक्सी की दीवानी हो जाएगी. लुओ की भी खासियत है कि वे एक्टर होने के साथसाथ सिंगर भी हैं. इनका ड्रामा एशेज ऑफ लव देखने के बाद  कोई भी बड़ी आसानी से इनका फैन बन जाता है. लू की उम्र 35 साल है लेकिन अभी भी यह 25 साल से अधिक उम्र के नहीं होता है. 11 साल की उम्र में ल्यू एक प्रशिक्षित बैले डांसर बन चुके थे. शंघाई के मैडम टुसाड में इनकी वैक्स स्टैच्यू रखी है.

 

रोशन परिवार का हिस्सा होना गर्व की बात है : पश्मीना रोशन

परफैक्ट फिगर और खूबसूरती की मिसाल पश्मीना रोशन आजकल चर्चा में हैं.हों भी क्यों न पश्मीना रोशन उस परिवार का हिस्सा हैं, जो बौलीवुड में अपनी पीढ़ियों के योगदान के लिए जाना जाता है.

फिल्म ‘इश्क विश्क’ के सीक्वल से डैब्यू करने जा रहीं पश्मीना रोशन फेमस म्यूजिक कंपोजर राजेश रोशन की बेटी, निर्देशक राकेश रोशन की भतीजी और फेमस ऐक्टर ऋतिक रोशन की कजिन हैं.

10 नवंबर, 1995 को जन्मीं पश्मीना ने मुंबई से अपनी पढ़ाई की है.ग्रैजुएशन करने के बाद उन्होंने ऐक्टिंग सीखने के लिए जेफ गोल्डबर्ग स्टूडियो ड्रामा स्कूल जौइन किया था.वे थिएटर आर्टिस्ट भी हैं और कई प्ले कर चुकी हैं.उन्होंने फेमस कोरियोग्राफर सरोज खान से डांस भी सीखा.

आप को बता दें कि रोहित सर्राफ, पश्मीना रोशन, नैला ग्रेवाल और जिबरान खान अभिनीत रमेश तौरानी की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘इश्क विश्क रिबाउंड’ 21 जून को सिनेमाघरों में रिलीज के लिए तैयार है.पश्मीना रोशन इस फिल्म से अपनी ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत कर रही हैं.

हाल ही में मीडिया से बातचीत के दौरान पश्मीना ने रोशन होने और परिवार की विरासत के महत्त्व पर गर्व व्यक्त किया.

उन्होंने कहा,”रोशन परिवार का हिस्सा होना गर्व की बात है.मेरे पास प्रतिभा और कड़ी मेहनत की एक अविश्वसनीय विरासत है और मुझे उन सभी पर अविश्वसनीय रूप से गर्व है.यह निश्चित रूप से उस विरासत को जीने के दबाव के साथ आता है और मैं समर्थन के लिए बेहद आभारी हूं.”

मीडिया से बातचीत में पश्मीना ने बताया,”मुझे यह फिल्म इसलिए नहीं मिली क्योंकि मैं राजेश रोशन की बेटी थी, बल्कि इसलिए मिली क्योंकि मैं ने इस के लिए औडिशन दिया था.दिलचस्प बात यह है कि जब मैं ने औडिशन दिया, तो फिल्म के निर्माताओं को नहीं पता था कि मैं उन की बेटी हूं.”

फिल्म ‘इश्क विश्क रीबाउंड’ को निपुन धर्माधिकारी निर्देशित कर रहे हैं.इस में 4 यंगस्टर की कहानी है जो प्यार, दोस्ती और खुद को जानने की धुन में लगे हैं.

पश्मीना रोशन सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहती हैं.इंस्टाग्राम पर उन्हें लगभग 197 हजार लोग फौलो करते हैं.उन के सोशल मीडिया से पता चलता है कि उन्हें स्कीइंग और डांसिंग काफी पसंद हैं.इस के अलावा वे एक फिटनैस फ्रीक भी हैं.वे अकसर जिम में ऐक्सरसाइज करते हुए अपनी फोटोज शेयर करती रहती हैं.इस के अलावा वे अपनी बोल्ड और ग्लैमरस फोटोज भी पोस्ट करती रहती हैं.

शाम के नाश्ते में बनाएं चीजी कौर्न डिस्क

इस समय बच्चों की गरमियों की छुट्टियां चल रहीं हैं। ऐसे में उन्हें पूरे दिन खाना के अतिरिक्त कुछ न कुछ खाने को चाहिए होता है. हर समय बाजार के रैडीमेड फूड आइटम्स उन्हें खाने के लिए देना न तो उन के लिए स्वास्थ्यकर होता है और न ही बजट फ्रैंडली.

यदि थोड़ी सी कोशिश से उन के लिए घर पर ही कुछ बना लिया जाए तो वह हाइजीनिक भी रहेगा और बजट फ्रैंडली भी.

आज हम आप को पालक और कौर्न से एक ऐसा ही स्नैक्स बनाना बता रहे हैं, जिसे आप बहुत आसानी से घर पर बना सकती हैं. तो आइए जानते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है.

6 लोगों के लिए

बनने में लगने वाला समय : 20 मिनट
मील टाइप : वेज

सामग्री

250 ग्राम : बारीक कटी पालक की पत्तियां
1/2 कप उबले या फ्रोजन कौर्न
1 बङा चम्मच मैदा
2 बङे चम्मच बटर 1/2 कप दूध
1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर
नमक स्वादानुसार 1/4 बङा चम्मच औरिगेनो
6 ब्रैड स्लाइस
6 चीज क्यूब्स
1/2 छोटा चम्मच चिली फ्लैक्स

विधि

ब्रैड स्लाइस को एक गोल कटोरी से गोल काट कर अलग रख लें. एक पैन में 1 छोटा चम्मच बटर डाल कर मैदा को हलका भूरा होने तक भूनें और दूध डाल कर लगातार चलाएं ताकि यह पैन में चिपके नहीं. कालीमिर्च पाउडर, नमक और औरिगेनो डाल कर अच्छी तरह चलाएं. अब इसशमें पालक और कौर्न मिलाएं. ब्रैड स्लाइस के दोनों तरफ बटर लगा कर एक साइड में तैयार पालक का मिश्रण अच्छी तरह लगाएं. इसी तरह सारे डिस्क तैयार करें. अब सभी डिस्क पर 1-1 चीज क्यूब अच्छी तरह ग्रेट करें ऊपर से चिली फ्लैक्स डाल कर 5 मिनट या चीज के पूरी तरह मेल्ट होने तक बेक कर के टोमैटो सौस के साथ सर्व करें.

गैस पर बनाने के लिए एक पैन या तवे पर सभी डिस्क को अच्छी तरह सेट कर के एकदम धीमी आंच पर चीज के मैल्ट होने तक पकाएं.

सिस्टिक मुंहासे से कैसे निबटें

ब्लौसम कोचर, ब्यूटी और वैलनैस ऐक्सपर्ट

सिस्टिक मुहांसे सब से आम त्वचा विकार हैं जो हारमोनल परिवर्तन, यौवन, आहार और जीवनशैली के इतने प्रकार के दौरान हो सकते हैं. इस बीमारी के गंभीर रूपों में से एक है जिस में त्वचा के नीचे बड़े सूजन वाले और अकसर दर्दनाक सिस्ट के रूप में पहचाना जा सकता है. इस तरह के मुहांसे दर्दनाक होते हैं और मवाद से भरे हो सकते हैं और संभवतया त्वचा पर निशान छोड़ सकते हैं.

सिस्टिक मुहांसे के कारण

त्वचा के छिद्रों में अतिरिक्त तेल और मृत त्वचा कोशिकाओं से बंद हो सकते हैं जिस से मुहांसे हो सकते हैं. जब हानिकारक बैक्टीरिया बंद छिद्रों में प्रवेश करते हैं और तेल और त्वचा कोशिकाओं के साथ फंस जाते हैं, तो त्वचा की प्रतिक्रिया त्वचा की मध्य परत (डर्मिस) में गहरी सूजन का कारण बनती है. यह संक्रमित, लाल, सूजी हुई गांठ/धब्बा एक मुहांसे की सिस्ट है.

इस तरह के मुहांसे आमतौर पर चेहरे पर दिखाई देते हैं जहां सब से ज्यादा तेल ग्रंथियां होती हैं. लेकिन आप को पीठ, नितंब, कंधे, गरदन, छातियां और ऊपरी बांहों पर भी मुंहासे हो सकते हैं.

सिस्टिक मुंहासे को दूर करने के उपाय

1. अपने चेहरे को साफ करने के लिए सौम्य क्लींजर का इस्तेमाल करें. अपना चेहरा धोने के लिए हमेशा गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें. आप ऐंटी ऐक्ने मैडिकेटेड फेसवाश का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
2. अपनी त्वचा को तेलमुक्त मोइस्चराइजर से मोइस्चराइज करें.
3. अपने बालों को नियमित रूप से धोएं और बालों को (जो तैलीय हो सकते हैं) अपने चेहरे से दूर रखें.
4. गहरे तले हुए और डेयरी खाद्य पदार्थों से बचें.

सिस्टिक मुंहासे की त्वचा की देखभाल में मददगार प्राकृतिक चीजें

1. टी ट्री औयल टी ट्री औयल में ऐंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं जो सिस्टिक ऐक्ने पैदा करने वाले बैक्टीरिया को मारने में मदद कर सकते हैं. यह तेल उत्पादन को नियंत्रित करने में भी मदद करता है जो बंद रोमछिद्रों को रोकने के लिए महत्त्वपूर्ण है.

उपयोग

अपनी पसंद के किसी भी वनस्पति तेल के साथ चाय के पेड़ के आवश्यक तेल की कुछ बूंदें मिलाएँ. आप इसे रात भर लगा रहने दें और सुबह धो लें.

2. एलोवेरा : एलोवेरा को इस के सूजन रोधी गुणों के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है जो इसे सिस्टिक मुंहासेके प्रबंधन के लिए एक सहायक प्राकृतिक उपचार बनाता है. यह घाव भरने और त्वचा के पुनर्निर्माण को बढ़ावा देता है.

उपयोग: आप त्वचा के प्रभावित क्षेत्रों पर शुद्ध एलोवेरा जैल लगा सकते हैं और इसे छोड़ सकते हैं. एलोवेरा जैल को शहद और 1 चुटकी हलदी के साथ मिलाएं. शहद में जीवाणुरोधी गुण होते हैं और हलदी सूजन को कम करती है. मास्क को अपने चेहरे पर लगाएं और गुनगुने पानी से धोने से पहले इसे 10-15 मिनट तक लगाएं.

3. विच हेजल  – विच हेजल एक प्राकृतिक कसैला पदार्थ है और सदियों से इस का इस्तेमाल मुहांसे और मुहांसे से जुड़ी समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता रहा है. यह त्वचा को कसने में मदद करता है जिस से तेल का उत्पादन कम हो सकता है और रोमछिद्रों का दिखना कम हो सकता है.

उपयोग:  अपने चेहरे को साफ करने के बाद एक कौटन पैड पर विच हेजल लगाएं और प्रभावित क्षेत्रों पर धीरे से रगड़ें.

4. हलदी हलदी कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं के लिए एक पुराना उपाय है जिस में मुहांसे भी शामिल हैं. इस में करक्यूमिन होता है जिस में सूजन रोकथाम, जीवाणुरोधी और ऐंटीऔक्सीडेंट गुण होते हैं जो सिस्टिक मुंहासों के इलाज के लिए फायदेमंद बनाता है.

उपयोग : आप 2 बड़े चम्मच दही में चुटकीभर हलदी पाउडर मिला सकते हैं. इस मिश्रण को अपने चेहरे पर लगाएं. इसे 15-20 मिनट तक लगाने दें और धो लें. आप इस मास्क का इस्तेमाल हफ्ते में 1 या 2 बार कर सकते हैं.

5. शहद – शहद एक प्राकृतिक उपचार है जिस का इस्तेमाल सदियों से त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता रहा है. इस में जीवाणुरोधी, सूजन रोकथाम और उपचारात्मक गुण होते हैं जो इसे त्वचा के मुंहासेके लिए फायदेमंद बनाते हैं.

उपयोग: नम त्वचा पर शहद लगाएं और कुछ मिनट तक हलके हाथों से मालिश करें. गुनगुने पानी से धो लें. आप इसे रोजाना स्किन केयर रूटीन के हिस्से के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. यह त्वचा को आराम और नमी प्रदान करता है.

त्वचा की देखभाल की दिनचर्या

1. सफाई: अपनी त्वचा को परेशान किए बिना अतिरिक्त तेल, गंदगी और अशुद्धियों को हटाने के लिए दिन में 2 बार सौम्य क्लींजर का उपयोग करें.
2. ऐक्सफोलिएशन : छिद्रों को साफ रखने के लिए आप कुछ बार हलके ऐक्सफोलिएशन का उपयोग कर सकते हैं.
3. मोइस्चराइजिंग: छिद्रों को बंद किए बिना अपनी त्वचा को हाइड्रेटेड रखने के लिए नौन कौमेडोजेनिक मोइस्चराइजर का उपयोग करें.
4. सूर्य से सुरक्षा: अपनी त्वचा को यूवी क्षति से बचाने के लिए प्रतिदिन सनस्क्रीन का प्रयोग करें क्योंकि यूवी किरणों से मुहांसे खराब हो सकते हैं और दाग पड़ सकते हैं.

आहार और जीवनशैली में बदलाव :

1. संतुलित आहार: ऐसे खाद्य पदार्थों से बचें जो मुहांसे उत्पन्न कर सकते हैं जैसे तैलीय भोजन, जंक फूड, चीनी और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ और पेय.
2. ज्यादा पानी पीएं : विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने और अपनी त्वचा को हाइड्रेटेड रखने के लिए खूब पानी पिएं.
3. नींद: सुनिश्चित करें कि आप कम से कम 6-8 घंटे की अच्छी नींद लेते हैं. इस से आप के दिमाग और शरीर को आराम मिलेगा और आप की त्वचा तरोताजा और स्वस्थ होगी.

तनाव प्रबंधन

तनाव एक मुख्य कारक है जो आप की त्वचा पर मुंहासेका कारण बनता है. आप को खुद पर तनाव हावी नहीं होने देना है. ध्यान, योग और किसी भी शौक का अभ्यास करें जो तनाव से निबटने में आप की मदद करेगा.

व्यायाम

किसी भी तरह की शारीरिक गतिविधि आप के दिमाग और शरीर को संतुलित रखने के लिए बेहद जरूरी है और त्वचा की स्थिति और मुंहासेके प्रबंधन में सुधार करने में मदद करती है. जब आप व्यायाम के दौरान पसीना बहाते हैं तो यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है. शारीरिक गतिविधियां ऐंडोर्फिन जारी कर के तनाव के स्तर को कम करती हैं. यह ब्लड सर्कुलेशन को भी बढ़ाता है जो त्वचा कोशिकाओं को औक्सीजन और अन्य पोषक तत्त्व प्रदान करता है.

अंत में जब आप सिस्टिक ऐक्ने से पीड़ित हों तो उन के मूल कारणों को समझने और उचित उपचार प्राप्त करने के लिए त्वचा विशेषज्ञ से परामर्श लेना बहुत महत्त्वपूर्ण है. हमेशा यह सुनिश्चित करें कि चिकित्सा उपचार के साथसाथ उपरोक्त सभी बातों का अभ्यास अवश्य किया जाए.

ऐसे बनाएं खुद को मजबूत

अधिकतर हम देखतें हैं कि महिलाओं में सहनशीलता परुषों के मुकाबले बहुत अधिक होती है जो कुछ हद तक बहुत अच्छी बात है लेकिन जब यह जरूरत से ज्यादा आप के जीवन का हिस्सा बन जाएं तो यह उतना ही घातक बन जाती है. क्योंकि तब उसे हरकोई अपने दबाव में रखना पसंद करता है जिस से वह अपना आत्मविश्वास खोने लगती है और कई बार यही परेशानी उसे मानसिक रूप से कमजोर बनाने का काम करती है.

इसलिए जरूरी है कि आप को पता हो कब और कौन आप का फायदा उठाने की कोशिश में है. जिस के लिए आप को वक्त रहते मानसिक और भावनात्मक तौर पर कमजोर होने से बचना आना चाहिए.

चलिए, जानते हैं कुछ ऐसी बातें जो हर महिला को अपने जीवन में अपनाना आना चाहिए जिस से वह जीवन का हर आंनद ले सकें.

आत्मविश्वास में कमी न आने दें

अकसर महिलाएं दूसरों पर बहुत जल्दी भरोसा कर लेती हैं. जिस का कई बार लोग बहुत जल्दी फायदा उठाने से नहीं चूकते. आत्मविश्वास मैंटली स्ट्रौंग होने की नींव है. इसलिए जरूरी है कि हर महिला को अपने ऊपर पूर्ण आत्मविश्वास हो. साथ ही किसी भी बात का निर्णय लेने से पहले जांचनेपरखने का गुण आता हो. खुद को आत्मनिर्भर बनाएं.

डर के आगे जीत है

यदि हमारी कमजोरी किसी और को पता होगी तो वह बहुत जल्दी उस का फायदा उठाने की सोचगा. इसलिए जरूरी है कि अपनी कमजोरियों पर काम करें और उसे अपनी खूबियों में तबदील करने कि पूरी कोशिश करें.

खुद से प्यार करें

 

जीवन में हर रिश्ता महत्त्वपूर्ण है लेकिन ऐसे में हम खुद को भूल जाते हैं. इसलिए खुद से प्यार करना न भूलें. यदि आप अपनी नजरों में बैस्ट हैं तो हर किसी कि नजरों में आप बैस्ट ही रहेंगी. अपने मन में सैल्फ डाउट को पनपने न दें.

सकरात्मक रवैया रखें

साईकोलौजिकली देखें तो हमारी आदत होती है कि हमारा ध्यान नकारात्मक बातों पर या चीजों पर बहुत जल्दी जाता है जिस कारण हम परेशानियों से घिर जाते हैं. ऐसे में जरूरी है कि अपनी सोच को सकरात्मक बनाएं व ज्यादा सोचविचार यानी ओवर थिंकिंग से बचें. बारबार एक ही बात के बारे में सोचना हमारी मानसिक स्थिति को बिगाड़ता है.

मन को खाली करें

अधिकतर महिलाएं अपनी परेशानियों को दूसरे से साझा करने में कतराती हैं जिस कारण वे अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं जिस का असर उन पर न सिर्फ मानसिक बल्कि शरारिक रूप से भी पड़ता है. ऐसे में किसी अपने से अपने मन की बात करने से कतराएं नहीं. ऐसा करने से आप का मन हलका और तनाव कम होगा.

हौल्टरनेक ब्रालेट ब्लाउज में जाह्नवी कपूर की तरह दिखें Hot

श्रीदेवी की तरह उनकी बड़ी बिटिया जाह्नवी कपूर को भी साड़ी पहनना काफी पसंद है. वह मूवी की शूटिंग या प्रमोशन के अलावा भी कई निजी फंक्शन्स में साड़ी में नजर आती हैं. जाह्नवी कपूर जैसी बौडी टाइप पर साड़ी दिखती भी काफी अच्छी है. 

वेस्टर्न ड्रेसेज की ही नहीं साड़ियों की शौकीन हैं जाह्नवी कपूर 
यह एक्ट्रेस अपनी हमउम्र एक्ट्रेसेस की तुलना में साड़ी में अधिक नजर आती है. हाल ही में रिलीज हुई उनकी मूवी मिस्टर एंड मिसेज माही के प्रमोशन के दौरान भी वह रेड और वाइट कलर की स्ट्राइप्स की साड़ी में नजर आईं. जाह्नवी की साड़ी स्टाइलिंग की सबसे खास बात यह है कि साड़ी के साथ अपने लुक को ट्रेंडी दिखाने के लिए वह ब्लाउज के साथ एक्सपेरिमेंट करती नजर आती हैं. जाह्नवी की तरह साड़ी पहनकर आप भी पार्टियों की जान बनना चाहती हैं, तो  इस तरह के ट्रेंडी ब्लाउज डिजाइन को ट्राई कर सकती हैं

ब्रालेट ब्लाउज   
इस तरह के टौप का ट्रेंड हमेशा ही रहा है. आजकल ऐसे ब्लाउज भी कौमन हो गए है. स्लिम वुमन के ऊपर यह काफी सूट करेगा. यह पूरी पर्सनालिटी को स्मार्ट लुक देता है. मौर्निंग पार्टीज में साड़ी के साथ ट्राई करें. 

हौल्टरनेक ब्लाउज
आपकी साड़ी पर हैवी वर्क है, तो हौल्टर नेक ब्लाउज ट्राई करें. इससे बॉडी को ब्रीदिंग स्पेस मिलेगा. आपकी पर्सनालिटी भरीभरी सी नजर नहीं आएगी. लोगों का ध्यान आपकी साड़ी की एंब्रायडरी की ओर जाएगा.

स्ट्रैपलेस ब्लाउज
साड़ी में ट्रेडिशनल की बजाय मौडर्न दिखना चाहती हैं, तो स्ट्रैपलेस ब्लाउज के साथ इसे कैरी करके देखें. यह ब्लाउज डिजाइन आपकी बौडी को जलपरी जैसा लुक देगा. किसी क्लब में पार्टी करने जा रही हैं, तो एक बार इस तरह से खुद को संवार कर देखें.

इनकट स्लीव
यह स्लीव हमेशा ही पसंद किया जाता है. इसमें ट्रेडिशन और मौडर्न दोनों का टच नजर आता है. शिफौन या जौर्जट की लाइट साड़ियों के साथ इनकट स्लीव के हैवी ब्लाउज ट्राई करके देखें. 

चेहरे की तरह नेक और बैक को ग्लोइंग बनाने के लिए मैं क्या करुं?

सवाल

मुझे चेहरे की तरह गरदन और बैक यानी पीठ की स्किन को भी साफसुथरीनिखरी और ग्लोइंग बनाने के लिए घरेलू उपचार और ब्यूटी ट्रीटमैंट बताएं. स्क्रब करने के लिए बाजार से कौन सा स्क्रब खरीदूं और क्या बौडी स्क्रब चेहरे के स्क्रब से अलग होता है?

जवाब

गरदन और पीठ की स्किन को साफसुथरा और ग्लोइंग बनाने के लिए संतरे के गूदे का उपयोग करें. इस में मौजूद विटामिन सी स्किन को निखारने में मदद करता है.

संतरे के गूदे में पाउडर मिल्क के 2 स्पून मिला कर पेस्ट बना कर उसे अपनी गरदन और पीठ पर लगाएं. 20 मिनट के बाद धो लें. आप की स्किन साफ होने लगेगी. इस के अलावा 2 टी स्पून औलिव औयल में 2-3 नींबू के रस की बूंदें अच्छी तरह मिला लें फिर उसे अपनी गरदन और पीठ के हिस्से में लगाएं. 20 मिनट तक ऐसे ही रहने दे और फिर पानी से धो लें.

आप चाहें तो बाजार से कोई भी अच्छे ब्रैंड का अच्छा स्क्रब खरीद सकती हैं. स्क्रब दानेदार होना चाहिए क्योंकि इस से आप के पोर्स खुलेंगे और गंदगी बाहर निकलेगी. लेकिन आप स्क्रब खरीदते वक्त अपनी स्किन टाइप जरूर जांच लें. हां बौडी स्क्रब चेहरे के स्क्रब से अलग होता है. आप घर पर भी स्क्रब बना सकती हैं.

1 चम्मच चने की दाल का आटा1 चम्मच चावल का आटा दरदरा पिसा हुआ1 चम्मच चंदन पाउडरचुटकीभर हलदी1 बड़ा चम्मच दूध व 1 बड़ा चम्मच फ्रैश ऐलोवेरा जेल मिला लें. यह स्क्रब बन जाएगा. इसे इस्तेमाल करें. रंग भी निखरेगा और साथ ही स्किन मौइस्चराइज भी हो जाएगी.

-डा. शीतल गुप्ता

बीडीएसएमआईडीएएफएजीई,

डा. गुप्ता डैंटल क्लीनिककमला नगर 

नहीं बदली हूं मैं : क्यों सुनयना का पति उसे लेस्बियन समझने लगा?

‘‘चलो कहीं घूमने चलते हैं. राघव भी अपने दोस्तों के साथ 15 दिनों के लिए सिंगापुर जा रहा है. कितने दिन हो गए हमें कहीं गए हुए,’’ सुनयना ने अपने पति जय से बहुत ही मनुहार करते हुए कहा.

‘‘मुझे कहीं नहीं जाना. कोफ्त होती है मुझे कहीं जाने की सुन कर. मिलता क्या है कहीं बाहर जा कर? वापस घर ही तो आना होता है. ट्रेन में सफर करो, थको और फिर किसी होटल में रहो और बेवकूफों की तरह उस जगह की सैर करते रहो. बेकार में इतना पैसा खर्च हो जाता है और वापस आ कर फिर थकान उतारने में 2 दिन लग जाते हैं. सारा शैड्यूल बिगड़ जाता है वह अलग. पता नहीं क्यों तुम्हें हमेशा घूमने की लगी रहती है. तुम्हें पता है मुझे कहीं बाहर जाना पसंद नहीं, फिर भी कहती रहती हो,’’ जय ने चिढ़ते हुए कहा.

‘‘पता है मुझे तुम्हें नहीं पसंद पर कभी मेरी खुशी की खातिर तो जा सकते हो? शादी को 22 साल हो गए पर कभी कहीं ले कर नहीं गए. राघव को भी नहीं ले जाते थे. शुक्र है वह तुम्हारे जैसा खड़ूस नहीं है और घूमने का शौक रखता है. शादी के बाद हर लड़की का ख्वाब होता है कि उस का पति उसे घुमाने ले जाए. बंधीबंधाई रूटीन जिंदगी से निकल कुछ समय अगर रिलैक्स कर लिया जाए तो स्फूर्ति आ जाती है और फिर नएनए लोगों और जगहों को जानने का भी अवसर मिलता है. दुनिया पागल नहीं जो देशविदेश की सैर पर जाती है. केवल तुम ही अनोखे इनसान हो. असल में पैसा खर्चते हुए मुसीबत होती है तुम्हें. अव्वल दर्जे के कंजूस जो ठहरे… कभी दूसरे की भावना का भी सम्मान करना सीखो. छोटीछोटी खुशियों को तरसा देते हो,’’ सुनयना के अंदर भरा गुबार जैसे बाहर आने को बेताब था.

‘‘ज्यादा बकवास करने की जरूरत नहीं है. रही बात राघव की तो अभी उस की शादी नहीं हुई है. हो जाने दो अपनेआप सारे शौक खत्म हो जाएंगे जब पैसे खर्चने पड़ेंगे. अभी तो बाप के पैसों पर ऐश कर रहा है.’’

‘‘बेकार की बातें न करो. तुम्हारी जेब से कहां निकलते हैं पैसे. उस के ट्रिप का सारा खर्च मैं ने ही दिया है,’’ सुनयना गुस्से से बोली.

‘‘हां, तो कौन सा एहसान कर दिया. कमाती हो तो खर्च करना ही पड़ेगा वरना क्या सारा पैसा अपने ऊपर ही खर्च करने का इरादा है?’’

दोनों के बीच बहस बढ़ती जा रही थी. यह कोई एक दिन की बात नहीं थी. अकसर उन में मतभेद पैदा हो जाते थे. जय का स्वभाव ही ऐसा था. पता नहीं उसे खुश रहने से क्या ऐलर्जी थी. बस सुनयना की हर बात को काटना, उस में दोष देखना… जैसे उसे मजा आता था इस सब में.

‘‘मैं ने भी सोच लिया है कि कहीं घूमने जाऊंगी,’’ उस ने जैसे जय को चुनौती दी. उसे पता था कि इन दिनों वूमन ओनली ट्रैवल जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिन में औरतें चाहें तो अकेले या फिर ग्रुप में ट्रैवल कर सकती हैं. सारा अरेंजमैंट वही करते हैं, इसलिए सेफ्टी की भी चिंता नहीं रहती.

उस ने गूगल पर ऐसे अरेंजमैंट करने वाले देखने शुरू किए. ‘वूमन ऐंजौय विद ट्रैवलर्स ग्रुप’ नामक साइट पर क्लिक करने पर जब उस ने संस्थापक का नाम पढ़ा तो जानापहचाना लगा. उस का प्रोफाइल पढ़ते ही उस की आंखें चमक उठीं. मानसी उस की कालेज फ्रैंड. शादी के बाद दोनों का संपर्क टूट गया था, जैसेकि अकसर लड़कियों के साथ होता है. जय को तो वैसे भी उस का किसी से मिलना या किसी के घर जाना पसंद नहीं था खासकर दोस्तों के तो बिलकुल भी नहीं. इसलिए शादी के बाद उस ने अपने सारे फ्रैंड्स से नाता ही तोड़ लिया था खासकर पुरुष मित्रों से.

साइट से मानसी का फोन नंबर ले कर सुनयना ने जैसे ही उसे फोन कर अपना परिचय दिया वह चहक उठी. बोली, ‘‘हाय सुनयना, कितने दिनों बाद तुम्हारी आवाज सुन रही हूं… यार कहां गायब हो गई थी? बता कैसा चल रहा है?’’

फिर तो जो उन के बीच बातों का सिलसिला चला तो रुका ही नहीं. उसे पता चला कि मानसी के साथ इस वूमन ऐंजौय विद ट्रैवलर्स ग्रुप में उन के कालेज की 2 फै्रंड्स भी शामिल हैं.

‘‘अब तुम्हारा नैक्स्ट ट्रिप कब और कहां जा रहा है? मैं भी जाना चाहती हूं.’’

‘‘अरे, तो चल न. 4 दिन बाद ही लद्दाख का 10 दिन का ट्रिप प्लान किया है. सारा अरेंजमैंट हो चुका है. 10 लेडीज का ग्रुप ले कर जाते हैं, पर मैं तुझे शामिल कर लूंगी. मजा आएगा. चलेगी न? लैट्स हैव फन… इसी बहाने पुरानी यादों को ताजा भी कर लेंगे… तू बस हां कर दे… मैं बाकी सारी व्यवस्था कर लूंगी और हां तुझे डिस्काउंट भी दे दूंगी.’’

‘‘बिलकुल… मैं तैयारी कर लेती हूं. ऐसा मौका कौन गंवाना चाहेगा,’’ सुनयना ने चहकते हुए कहा.

पर जय को जैसे ही उस ने यह बात बताई उस का पारा 7वें आसमान पर पहुंच गया. बोला, ‘‘दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा… इतना पैसा बरबाद करोगी… फिर ऐसी औरतें जिन के साथ तुम जा रही हो न सब फ्रस्ट्रेटेड होती हैं… या तो इन की शादी नहीं हुई होती है या फिर तलाकशुदा होती हैं अथवा पति से अलग रह रही होती हैं वरना क्यों बनातीं वे ऐसा ग्रुप, जो केवल औरतों के लिए हो? न जाने ये औरतें क्याक्या करती हैं… घूमने के बहाने क्या गुल खिलाती हैं… कोई जरूरत नहीं है तुम्हें जाने की. पुरुषों के लाइफ में न होने पर आपस में ही संबंध बना लेती होंगी तो भी कोई बड़ी बात नहीं… पुरुषों की न सही, औरतों की ही कंपनी सही… यही फंडा होता है इन का. सब की सब बेकार की औरतें होती हैं. ऐक्सपैरिमैंट करने के चक्कर में यहांवहां घूमती हैं और स्वयं को इंटेलैक्चुअल कह समाज को दिखाती हैं कि अकेले भी वे बहुत कुछ कर सकती हैं. ऐसी औरतें सैक्सुअल प्लैजर को तरसने वाले वर्ग में आती हैं. तुम्हें तो नहीं है न मुझ से कोई ऐसी शिकायत?’’ जय ने व्यंग्य कसा.

‘‘छि:… तुम्हारी इस तरह की सोच पर मुझे हैरानी होती है जय. तुम्हें क्या लगता है कि जो औरतें अकेले बिना पति के या बिना किसी पुरुष के फिर चाहे वह उन का पिता हो या पुत्र अथवा भाई अकेले कुछ करती हैं तो उन में

कोई खोट होता है या वे फ्रस्ट्रेट होती हैं? अपनी खुशी से कुछ पल गुजारना क्या इतने प्रश्नचिन्ह लगा सकता है, मैं ने कभी सोचा न था… और यह सैक्सुअल प्लैजर की बात कहां से आ गई… मुझे तुम से किसी तरह की बहस नहीं करनी है. मैं नहीं जाती… लेकिन तब तुम्हें मुझे ले कर जाना होगा.’’

सुनयना की बात सुन तिलमिला गया जय. चुपचाप दूसरे कमरे में चला गया.

मानसी और अन्य 2 फ्रैंड्स से मिल सुनयना बहुत अच्छा महसूस कर रही थी. जय की रूढि़वादी मानसिकता और रोकटोक से मुक्त वह 1-1 पल ऐंजौय कर रही थी. लद्दाख की प्राकृतिक सुंदरता अभिभूत करने वाली थी. वहां जा कर ऐसा महसूस होता है मानो पूरी दुनिया की छत पर घूम रहे हैं. लद्दाख की ऊंचाई इतनी है मानो हम धरती और आकाश के बीच खड़े हैं. लद्दाख का नीला पानी और ताजा हवा उस पर जादू सा असर कर रही थी. मानसी ने उसे बताया कि लद्दाख भारत का ऐसा क्षेत्र है जो आधुनिक वातावरण से बिलकुल अलग है. वास्तविकता से जुड़ी पुरानी परंपराओं को समेटे हुए है यहां का जीवन. जो पर्यटक यहां आते हैं उन्हें लद्दाख का जनजीवन, संस्कृति और लोग दुनिया से अलग लगते हैं. महान बुद्ध की परंपरा को वहां के लोगों ने आज भी सहेज रखा है. इसी कारण लद्दाख को छोटा तिब्बत भी कहा जाता है. छोटा तिब्बत कहने का एकमात्र कारण यह है कि यहां तिब्बती संस्कृति का प्रभाव दिखाईर् देता है. यह अपनेआप में इतना अद्भुत है कि हर किसी को आकर्षित करता है. पहाड़ों के बीच बने यहां के गांव, आकाश छूते स्तूप और खड़ी व पथरीली चट्टानों पर बने मठ ऐसे दिखाई देते हैं जैसे हवा में झूल रहे हों.

सुनयना को लग रहा था कि वह बहुत लंबे समय के बाद अपने हिसाब से जी रही है. उस ने तय कर लिया कि वह अब मानसी के साथ अकसर ऐसे ट्रिप में आया करेगी.

10 दिन कब बीत गए पता ही नहीं चला मानसी को. एकदम रिलैक्स हो कर जब वह लौटी तब तक राघव भी वापस आ चुका था. दोनों एकदूसरे के साथ अपने ट्रिप के अनुभवों को शेयर कर रहे थे कि अचानक जय भड़क गया, ‘‘पता नहीं दोनों क्या तीर मार कर आए हैं, जो इतने खुश हो रहे हैं… और तुम सुनयना जरूरत से ज्यादा खिली हुई लग रही हो. क्या बात है? उन औरतों का साथ कहीं ज्यादा तो नहीं भा गया तुम्हें? कहीं उन औरतों का रंग तो नहीं चढ़ गया है तुम पर?’’

मानसी जो जय के व्यवहार व सोच से पहले ही दुखी रहती थी, अब उस से कटीकटी रहने लगी. उस की बातें, उस के कटाक्ष सीधे उस के दिल पर चोट करते थे. उस के बाद दोनों के बीच तनाव बहुत बढ़ गया. कैसेकैसे इलजाम लगाता है जय. वह जब भी उस के साथ सैक्स संबंध बनाने की कोशिश करता वह उस का हाथ झटक देती… हद होती है, किसी बात की. इतने ताने सुनने के बाद कैसे वह जय के करीब जा सकती थी… थोड़ी देर पहले किसी का दिल दुखाओ और फिर उस के शरीर को पाना चाहो, आखिर कैसे संभव है यह? मन खुश न हो तो तन कैसे साथ देगा?

जय की तिलमिलाहट सुनयना के  इस व्यवहार से और बढ़ गई. एक रात उस के करीब आने की कोशिश में जब सुनयना ने उसे धक्का दे दिया तो वह चिल्लाने लगा, ‘‘सब समझ रहा हूं मैं तुम में आए इस बदलाव की वजह…

औरतों के साथ रहोगी तो पति का साथ कैसे अच्छा लगेगा? स्वाद जो बदल गया है तुम्हारा अब…. देख रहा हूं मानसी से भी खूब मिलने लगी हो तुम.’’

सुनयना यह सुन सकते में आ गई, ‘‘क्या कहना चाहते हो तुम? साफसाफ कहो.’’

‘‘साफसाफ क्यों सुनना चाहती हो, समझ जाओ न खुद ही,’’ जय ने ताना मारा.

‘‘नहीं, मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती हूं. जब से घूम कर लौटी हूं तुम कुछ न कुछ मुझे सुनाते ही रहते हो… आखिर ऐसा क्या बदल गया मुझ में?’’ सुनयना का चेहरा लाल हो गया था.

‘‘तुम तो पूरी ही बदल गई हो. मुझे तो लगता है कि तुम लेस्बियन बन गई हो. इसलिए मेरे स्पर्श से भी दूर भागती हो.’’

सुनयना अवाक खड़ी रह गई. कैसे जय ने इतनी आसानी से रिश्ते की सारी गरिमा को कलंकित कर दिया था… अगर महिला दोस्तों के साथ कोई महिला घूमने जाए तो लेस्बियन कहलाती है और पुरुष मित्रों के साथ घूमे तो चरित्रहीन… समाज की खोखली परिभाषाएं उसे परेशान कर रही थीं.

अब जय रात को देर से घर लौटने लगा. वह कुछ पूछती तो कहता कि घूमता रहता हूं दोस्तों के साथ, पर जान लो मैं गे नहीं हूं. बीचबीच में उस के कानों में यह बात जरूर पहुंच रही थी कि जय आजकल बहुत सी औरतों से मिलता है. उन्हें घुमाने ले जाता है, मूवी भी देखता है और शायद उन के साथ संबंध भी बनाता है. सुनयना इन सब बातों पर विश्वास नहीं करना चाहती थी पर एक दिन जय की शर्ट पर लिपस्टिक के निशान देख उस का शक यकीन में बदल गया. हालांकि पहले भी उस के कई दोस्तों ने उसे चेताया था कि जय के कदम डगमगा रहे हैं, पर उन की बातों को नजरअंदाज कर देती थी.

रात को जब जय लौटा तो नशे की हालत में था. शराब की बदबू कमरे में फैल गई थी. सुनयना ने गुस्से में जब जय से सवाल किया

तो वह चिल्लाया, ‘‘मेरी जासूसी करने लगी हो. खुद लद्दाख में ऐय्याशी कर के आई हो और मुझ से सवाल कर रही हो. तुम तो एकदम ही बदल गई हो. जब तुम मुझे सैक्स सुख नहीं दोगी तो कहीं तो जाऊंगा या नहीं. हां, मेरे संबंध हैं कई औरतों से तो इस में गलत क्या है? कम से कम पुरुषों से तो नहीं हैं… तुम लेस्बियन बन गई हो पर मैं….’’

‘‘जय मेरी बात सुनो, मैं नहीं बदली हूं. मुझे तुम्हारा साथ, स्पर्श अच्छा लगता है, पर तुम्हारा व्यवहार कचोटता है मुझे… एक बार मुझे समझने की कोशिश तो करो…’’

मगर सुनयना की बात ठीक से सुने बिना ही जय बिस्तर पर लुढ़क गया था. सुनयना को समझ नहीं आ रहा था कि जय ने उस पर अपने दोष छिपाने के लिए इतना बड़ा इलजाम लगाया था ताकि उसे और औरतों से संबंध बनाने का लाइसैंस मिल जाए या फिर उसे उस के  ट्रिप पर जाने की सजा दे रहा था.

दहकता पलाश: क्या प्रवीण के दोबारा जिंदगी में आने से खुश रह पाई अर्पिता?

‘‘अरे अर्पिता तुम?’’

अपना नाम सुन कर अर्पिता पीछे मुड़ी तो देखा, एक गोरा स्टाइलिश बालों वाला लंबा व्यक्ति उस की ओर देख कर मुसकरा रहा था. अर्पिता ने उसे गौर से देख कर पहचाना तो उत्साह से चहक कर बोली, ‘‘अरे प्रवीण तुम… यहां कैसे?’’

‘‘3 महीने पहले ही मेरी यहां पोस्टिंग हुई है और तुम अब भी यहीं हो?’’ प्रवीण ने उस से पूछा.

‘‘हां, मैं तो यहीं हूं. बस घर का पता बदल गया है,’’ अर्पिता ने हंसते हुए कहा.

‘‘हां उस की निशानी तो मैं देख रहा हूं,’’ प्रवीण ने मंगलसूत्र की तरफ इशारा किया तो दोनों हंस पड़े.

‘‘आओ न, यहां पास के रैस्टोरैंट में चल कर बैठते हैं,’’ प्रवीण ने सुझाव दिया तो अर्पिता इनकार नहीं कर पाई. फिर दोनों रैस्टोरैंट में एक कोने वाली टेबल पर जा कर बैठ गए.

‘‘तुम तो अब भी पहले जैसी हो, जरा भी नहीं बदलीं,’’ बेयरे को कौफी का और्डर देते हुए प्रवीण बोला.

‘‘वैसी कहां हूं मैं, थोड़ी मोटी तो हो ही गई हूं. हां, तुम जरूर बिलकुल पहले जैसे ही हो,’’ अर्पिता ने कहा.

‘‘मैं कहना चाह रहा था कि तुम्हारा चेहरा आज भी वैसा ही नाजुक और मासूम है, जैसा 7-8 साल पहले था. तभी तो मैं तुम्हें देखते ही पहचान गया…’’ प्रवीण ने अर्पिता को भरपूर नजर से देखते हुए कहा तो वह शरमा गई.

‘‘चलो छोड़ो, तुम क्या मेरे चेहरे को ले कर बैठ गए. यह बताओ कि आज भरी दोपहरी में बाजार में क्या कर रहे थे?

कालेज छोड़ने के बाद क्या किया? तुम तो आई.ए.एस. की तैयारी कर रहे थे न, क्या हुआ? और इतने दिन कहां रहे? अभी क्या काम कर रहे हो?’’ अर्पिता ने एक के बाद एक इतने सारे सवाल कर डाले कि प्रवीण हड़बड़ा गया.

‘‘तुम ने तो प्रैस वालों की तरह एक के बाद एक ढेर सारे सवाल कर डाले. पहले किस सवाल का जवाब दूं यही समझ में नहीं आ रहा,’’ फिर हंसते हुए बोला, ‘‘मैं बी.ए. करने के बाद आई.ए.एस. की कोचिंग करने इंदौर चला गया था, यह तो तुम्हें पता ही है. 2 साल जम कर मेहनत की पर पहली बार में सिलैक्शन नहीं हुआ. पर दूसरे अटैंप्ट में मैं सिलैक्ट हो ही गया. फिर मेन ऐग्जाम फिर इंटरव्यू. 6-7 साल के बाद अब जा कर मनचाही पोस्ट मिली है और चार इमली पर एक घर भी अलौट हुआ है.’’

‘‘अरे वाह,’’ अर्पिता के चेहरे पर प्रशंसा के भाव आ गए, ‘‘वहां के मकान तो बहुत बड़े और सुंदर है.’’

‘‘हां, उसी के लिए थोड़ाबहुत फर्नीचर देखने आया था. अब तो पापा का भी ट्रांसफर फिर से यहां हो गया है. अगले हफ्ते वे लोग भी यहां आ जाएंगे,’’ प्रवीण ने बताया.

‘‘और तुम्हारी पत्नी? शादी की या नहीं की अब तक?’’ अर्पिता ने पूछा.

‘‘नहीं, अभी तक तो नहीं की. 1-2 साल जरा सर्विस में जम जाऊं फिर सोचूंगा. अब

मैं तुम्हारी तरह सवालों की झड़ी नहीं लगाऊंगा, तुम खुद ही अपने बारे में बता दो,’’ प्रवीण ने कौफी का खाली प्याला नीचे रखते हुए कहा.

‘‘कुछ खास नहीं. बी.ए. करने के बाद मैं ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया. अभी शहर के 4-5 बुटीक्स के लिए सूट्स डिजाइन करती हूं. रोजरोज आनेजाने की झंझट नहीं है. जब उन को जरूरत होती है बुला लेते हैं. बस कमाई भी हो जाती है और शौक भी पूरा हो जाता है. अगर मन हुआ तो अपना एक बुटीक भी खोल लूंगी. बस मेरी तो सीधीसादी छोटी सी कहानी है,’’ अर्पिता ने बताया.

‘‘और तुम्हारे पतिदेव क्या करते हैं?’’ प्रवीण ने पूछा.

‘‘वे एक प्राइवेट कंपनी में हैं और अकसर टूर पर रहते हैं,’’ अर्पिता के मुंह पर पति के टूर पर रहने की बात कहने पर हलकी सी मायूसी छा गई जिसे प्रवीण ने भांप लिया. वह तुरंत ही बातचीत का विषय कालेज के दिनों और पुराने साथियों की तरफ ले गया. फिर 2 घंटे कब निकल गए पता ही नहीं चला. फिर दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर लिए और अपनेअपने घरों की ओर लौट गए.

अर्पिता जब घर पहुंची तब तक उस के पति आनंद घर नहीं पहुंचे थे. बाजार से लाया सामान टेबल पर रख कर वह टीवी औन कर के बैठ गई, लेकिन आज उस का मन टीवी देखने में नहीं लग रहा था. वह तो प्रवीण के बारे में सोच रही थी.

वह और प्रवीण 8वीं कक्षा से साथसाथ पढ़े थे. कालेज में भी दोनों एक ही सैक्शन में थे. अन्य लड़कों की अपेक्षा प्रवीण अंतर्मुखी और मेधावी लड़का था. वह फ्री पीरियड में भी बाकी लड़कों की तरह ऊधम, मस्ती न करते हुए कुछ न कुछ पढ़ता रहता था. क्लास के अन्य लड़कों से अलग प्रवीण को स्कूल या कालेज की किसी भी लड़की में दिलचस्पी लेते हुए कभी किसी ने नहीं देखा था. प्रवीण के स्वभाव की इसी खूबी से अर्पिता मन ही मन उस से प्रभावित थी. फर्स्ट ईयर के अंत तक जहां क्लास के प्रत्येक लड़के की क्लास की या दूसरे क्लास की या महल्ले की किसी लड़की के साथ अफेयर की बातें सुनाई देती थीं, वहीं प्रवीण के बारे में अर्पिता ने कभी भी ऐसी कोई बात नहीं सुनी.

प्रवीण दिखने में बहुत अच्छा था. ऊंचा कद, हलके घुंघराले बाल, गोरा रंग, तीखी नाक. वह क्लास में ही क्या कालेज में सब से स्मार्ट लड़के के रूप में मशहूर हो गया था. पास से गुजरती लड़की चाहे जूनियर हो चाहे सीनियर एक बार तो भरपूर नजर से उसे देखती जरूर थी. प्रवीण के रंगरूप और बुद्धि पर फिदा बहुत सी लड़कियां उस पर मरती थीं, लेकिन वह आंख उठा कर भी किसी की ओर नहीं देखता था.

फाइनल तक पहुंचतेपहुंचते अर्पिता से उस की अच्छी पटने लगी थी, क्योंकि क्लास में प्रवीण के बाद अर्पिता ही पढ़ाई में तेज थी. विभिन्न चैप्टर्स और किस किताब में कौन सा चैप्टर कितना अच्छा है इस विषय पर क्लास में या लाइब्रेरी में दोनों देर तक बातें करते रहते थे. प्रवीण से दोस्ती की वजह से कई लड़कियां अर्पिता से ईर्ष्या करने लगी थीं. वर्ष के अंत तक अर्पिता भी प्रवीण के प्रति एक अलग ही आकर्षण महसूस करने लगी थी. उसे यह भी लगने लगा था कि प्रवीण का उसे देखने का अंदाज भी कुछ बदल सा गया है.

एक दिन फ्री पीरियड में दोनों लाइब्रेरी में बैठे थे. अर्पिता किताब पढ़ने में तल्लीन थी. बीच में इतिहास की एक तारीख समझ में न आने के कारण उस ने प्रवीण से पूछने के लिए सिर ऊपर उठाया तो देखा वह किताब टेबल पर रख कर खोईखोई सी नजरों से उसे देख रहा था.

अर्पिता का दिल बड़ी जोर से धड़कने लगा. वह भी बिना कुछ कहे अपनी किताब देखने लगी, लेकिन बड़ी देर तक उस के मन में एक हलचल सी होती रही.

इस के बाद अर्पिता को लगने लगा कि वह शायद धीरेधीरे प्रवीण की ओर आकर्षित होती जा रही थी. कालेज में प्रवेश करते ही उस की नजरें प्रवीण को खोजती रहतीं.

क्लास में बैठे हुए भी अर्पिता की नजरें दरवाजे पर ही टिकी रहतीं और जैसे ही प्रवीण अंदर आता अर्पिता का दिल बड़ी जोरजोर से धड़कने लगता.

अर्पिता के मन में भावनाओं के कई नएनए, अनजाने मगर अपने से लगने वाले रंग तैरने लगे थे. लेकिन दोनों ही ओर से ये रंग भावनाओं का रूप ले कर शब्दों में अभिव्यक्त हो पाते, फाइनल ऐग्जाम सिर पर आ गए और फिर लास्ट पेपर जिस दिन था उसी दिन प्रवीण अपने मातापिता के साथ इंदौर चला गया, क्योंकि उस के पिता का वहां ट्रांसफर हो चुका था. वे तो बस प्रवीण के पेपर की खातिर ही रुके थे. प्रवीण एक ख्वाहिश भरी नजर अर्पिता पर डाल कर चला गया.

दोनों के बीच जो भी था बस मूक ही रहा. कभी शब्दों या भावनाओं के रूप में अभिव्यक्त नहीं हो पाया, इसलिए कोई किसी का इंतजार भी क्या करता. अर्पिता ने फैशन डिजाइनर का कोर्स किया और जब उस के मातापिता ने आनंद को उस के जीवनसाथी  के रूप में चुना तो उस ने भी उन की इच्छा का सम्मान करते हुए अपनी स्वीकृति दे दी.

आनंद के साथ उस का जीवन आराम से गुजर रहा था. आनंद अर्पिता का बहुत ध्यान रखता था, लेकिन उस के बारबार टूर पर जाने और काम में अत्यधिक व्यस्त रहने से अर्पिता अकेलापन महसूस करती थी. दिन तो घर के काम और बुटीकों के डिजाइन वगैरह तैयार करने में कट जाता, लेकिन उदास शामें और तनहा रातें उसे काट खाने को दौड़तीं. आनंद के बगैर वह सारीसारी रातें पलंग पर करवटें बदलते हुए गुजार देती. महीनों वह आनंद के साथ पिक्चर देखने या कहीं बाहर घूमने जाने को तरस जाती. लेकिन फिर भी आनंद की भी मजबूरी समझ कर वह अपने मन को समझा लेती.

अर्पिता एक गहरी सांस ले कर उठी. आज प्रवीण से मिल कर न जाने क्यों वह अपने अंदर बहुत खुशी महसूस कर रही थी. मन के कोने में बरसों से दबे हुए जिन रंगों पर समय की धूल पड़ गई थी, उन्हें जैसे किसी ने पानी की कुनकुनी फुहारें बरसा कर धो दिया था. और फीके पडे़ रंग धुल जाने से ताजे हो कर चमचमाने लगे थे.

2 दिन बाद बुटीक से आ कर अर्पिता चाय पीते हुए एक फैशन मैगजीन में कपड़ों के लेटैस्ट डिजाइन देख रही थी कि फोन बज उठा. अर्पिता ने फोन उठाया, ‘‘हैलो…’’

‘‘हैलो, क्या कर रही हो अर्पिता?’’ उधर से प्रवीण का स्वर सुनाई दिया.

‘‘अरे, तुम?’’ अर्पिता का स्वर और चेहरा दोनों खिल गए.

‘‘हां सुनो, संग्रहालय में मणिपुरी कलाकारों की बहुत अच्छी प्रस्तुति है. सारा इंतजाम मेरी ही देखरेख में चल रहा है. तुम लोग आ जाओ,’’ प्रवीण ने कहा.

‘‘आनंद तो टूर पर बैंगलुरु गए हुए हैं. मैं अगर आई तो लौटते वक्त रात हो जाएगी. मैं अकेली इतनी दूर रात में वापस कैसे आऊंगी?’’ अर्पिता के स्वर में मायूसी छा गई.

‘‘बस इतनी सी बात,’’ प्रवीण हंसते हुए बोला, ‘‘अरे पगली मेरे होते हुए तुम्हें अकेले आने की क्या जरूरत है? तुम ठीक 5 बजे तैयार रहना, मैं ड्राइवर को भेज दूंगा तुम्हें ले आने को. मैं बहुत बिजी हूं नहीं तो खुद आ जाता,’’ इतना कह कर बिना जवाब का इंतजार किए प्रवीण ने फोन काट दिया. अर्पिता मुसकरा दी.

प्रवीण ने उस दिन बताया कि वह संस्कृति विभाग में एग्जीक्यूटिव डायरैक्टर है. उसे यों भी भारतीय लोक संस्कृति से बहुत लगाव था. स्कूल, कालेज में भी वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन व संचालन करने में हमेशा आगे रहता था.

अर्पिता को भी सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनियां आदि देखने का बहुत शौक था लेकिन आनंद को कभी भी टाइम नहीं मिलता. संडे को भी आनंद अकसर या तो औफिस में या फिर घर पर ही कोई न कोई काम करता रहता था. 4 साल पहले 10 दिनों के लिए वे हनीमून पर गए थे. उस के बाद से आनंद लगातार अपने काम में व्यस्त ही रहा है.

5 बजे बाहर गाड़ी का हौर्न सुन कर अर्पिता ने खिड़की से झांक कर देखा. बाहर एक गाड़ी खड़ी थी. अर्पिता समझ गई कि यह गाड़ी प्रवीण ने ही भेजी होगी. वह ताला लगा कर बाहर आ गई.

‘‘आप अर्पिताजी हैं?’’ ड्राइवर ने गाड़ी से उतरते हुए पूछा. और अर्पिता के ‘हां’

कहते ही दरवाजा खोल दिया. अर्पिता गाड़ी में बैठ गई. संग्रहालय पहुंच कर ड्राइवर ने उसे प्रवीण के पास पहुंचा दिया और वापस चला गया.

‘‘आओ अर्पिता,’’ प्रवीण ने आगे बढ़ कर उस का स्वागत किया और उसे ले कर आगे चल कर सब से आगे के एक सोफे पर बैठा कर बोला, ‘‘तुम थोड़ी देर यहां बैठो मैं जरा व्यवस्था देख कर आता हूं. कार्यक्रम बस 10 मिनट में शुरू हो जाएगा.’’

10 मिनट बाद ही प्रवीण आ कर उस के बगल बैठ गया. कार्यक्रम शुरू हुआ और कलाकार अपनी मनोरम प्रस्तुतियां देने लगे. बेयरे पानी, चाय, कौफी और स्नैक्स वगैरह सर्व कर रहे थे. प्रवीण अर्पिता को अपने विभाग और विभाग के अन्य लोगों के बारे में बताता जा रहा था.

सुरमई शाम, सुहावना मौसम, सामने नृत्य व संगीत की प्रस्तुति. अर्पिता को लग रहा था कि वह सपनों के लोक में पहुंच गई है. कुछ बात कहने के लिए जब प्रवीण उस की ओर झुका तो उस का कंधा अर्पिता के कंधे से छू गया. अर्पिता का दिल अचानक वैसे ही जोर से धड़कने लगा जैसे कालेज के दिनों में प्रवीण को पहली बार अपनी ओर देखता पा कर धड़का था.

दिल में सालों से दबी हुई कोई कुंआरी अनछुई सी अनुभूति अचानक ही जाग गई. मन में न जाने कब से सोए पड़े एहसास अंगड़ाई ले कर जाग गए. अर्पिता को लग रहा था जैसे वह कुंआरी है और उस के कुंआरे मन में आज पहली बार किसी के प्रति कोई अनजानी सी कशिश, अनजाना सा रोमांच महसूस किया है. प्रवीण के साथ पहली पंक्ति में बैठी वह और चारों ओर बड़ेबड़े सरकारी अफसर और गणमान्य अतिथि. सब कुछ कितना भव्य लग रहा था.

तालियों की गड़गड़ाहट से अर्पिता की तंद्रा भंग हुई. कार्यक्रम समाप्त हो चुका था. प्रवीण ने अपने साथी अफसरों और उन की पत्नियों से अर्पिता की पहचान कराई. देर तक सब से बातें होती रहीं फिर डिनर के बाद प्रवीण उसे घर पहुंचा कर चला गया. विवाह के बाद शायद यह पहली शाम थी, जो अर्पिता अपनी मरजी से अपनी खुशी के लिए इतनी अच्छी तरह से बिताई थी.

उस रात पलंग पर लेटी अर्पिता देर तक प्रवीण के बारे में और उस शाम के बारे में सोचती रही. उस के मन की गहराई में एक कसक सी उठी कि काश, उस समय वह अपनी भावनाओं को प्रवीण के सामने व्यक्त कर देती तो आज प्रवीण के बगल में वह अधिकारपूर्वक बैठी होती. आज तो यह जाहिर ही है कि जल्दी ही उस की भी शादी हो जाएगी और फिर उस के साथ उस की पत्नी बैठा करेगी.

अर्पिता हमेशा चाहती थी कि उस की शादी किसी ऊंचे पद वाले सरकारी अधिकारी से हो और बड़ा बंगला, नौकरचाकर, गाड़ी हो. अर्पिता खिड़की से झांकते चांद में अपने सपनों का चेहरा तलाशती पता नहीं कब गहरी नींद में सो गई.

दूसरे दिन प्रवीण की छुट्टी थी. वह सुबह ही अर्पिता को लेने आ पहुंचा. सिर से पैर तक सादगी में लिपटी वह इतनी सुंदर लग रही थी कि प्रवीण उसे देखता ही रह गया. अर्पिता का दिल जोर से धड़क गया. उस ने तुरंत ही प्रवीण के चेहरे से अपनी नजरें हटा लीं और दूसरी ओर देखने लगी. प्रवीण मुसकरा दिया.

दिन भर प्रवीण और अर्पिता आसपास की जगहों में घूमतेफिरते रहे. दोनों एक जगह लगी चित्र प्रदर्शनी भी देखने गए. शाम को दोनों ने भारत भवन में नाटक देखा. लंच और डिनर भी बाहर ही किया. चित्र प्रदर्शनी व नाटक देखते और साथ में घूमते जब प्रवीण की बांह अर्पिता की बांह से छू जाती तब अर्पिता के शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती.

आनंद के साथ उसे यह अनुभूति कभी नहीं हो पाई थी, क्योंकि आनंद के मन ने आज तक उस के मन की कोमल अभिरुचियों को छुआ ही नहीं था. आनंद का साहचर्य अर्पिता के तनमन के पलाश को आज तक खिला नहीं पाया था.

चित्र प्रदर्शनी में दोनों देर तक 1-1 चित्र के ऊपर आपस में चर्चा करते रहे. एक जैसी रुचियां बातचीत के कितने मार्ग प्रशस्त कर देती हैं, अर्पिता को पहली बार लगा.

डिनर के बाद प्रवीण अर्पिता को घर तक छोड़ने आया तो अर्पिता ने उस से बहुत आग्रह किया कि वह कौफी पी कर जाए लेकिन प्रवीण बाहर से ही चला गया.

अर्पिता कपड़े बदल कर पलंग पर लेट गई. आज उसे लग रहा था कि वह एक सुंदर बगीचे में खड़ी है और उस के चारों ओर सुर्ख पलाश खिल रहा है. देर तक वह फूलों की मादक गंध से सराबोर हो कर मन ही मन महकती रही.

2 दिनों तक अर्पिता स्वप्नलोक में खोई उन्हीं भावनाओं में विचरती रही. तीसरे दिन आनंद टुअर से वापस आ गया तो अर्पिता भी स्वप्नलोक से निकल कर यथार्थ में आ गई. जीवन अपनी गति से चलता रहा. लेकिन अर्पिता के लिए जीवन में एक नया रोमांच भर गया था. घर और बुटीक्स से उसे जब भी समय मिलता और प्रवीण को फुरसत होती, दोनों कहीं न कहीं घूमने चले जाते. कभी चित्रों की तो कभी फूलों की या क्राफ्ट की प्रदर्शनी में. कभी किसी नाटक का मंचन देखने तो कभी किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम या मेले में.

अर्पिता के तनमन में प्रवीण की नजदीकियों से एक अलग ही खुमारी छाती जा रही थी. वह प्रवीण के चेहरे पर भी अपने प्रति आकर्षण के विशिष्ट भाव ढूंढ़ने का प्रयास करती, लेकिन प्रवीण उसे बिलकुल सहज व संतुलित नजर आता. अर्पिता समझ नहीं पा रही थी कि प्रवीण उसे बस एक बहुत अच्छी दोस्त भर समझता है या फिर उस का उस से खास लगाव भी है. अर्पिता देर तक अकेले में इसी ऊहापोह में पड़ी रहती पर समझ नहीं पाती तब सिर को झटका दे कर अपनेआप को यही समझाती कि मुझे क्या करना, प्रवीण का साथ और अटैंशन मिल रहा है यही बहुत है.

इस तरह 6-7 महीने बीत गए. आनंद इतने महीनों में काम में अधिक व्यस्त हो गया था और अर्पिता अकेली होती चली गई थी.

घर का अकेलापन अर्पिता को काट खाने को दौड़ता था. ऐसे में प्रवीण का साथ ही था जिस ने उसे संबल दिया हुआ था. कभीकभी अर्पिता के मन के साथसाथ तन भी प्रवीण की नजदीकियां पाने के लिए मचल उठता था. खासतौर पर तब, जब आनंद कईकई दिनों कंपनी के काम की वजह से शहर से बाहर रहता था.

पलंग पर करवटें बदलती अर्पिता सोचने लगती कि काश… लेकिन प्रवीण का संतुलित व्यवहार और अर्पिता के संस्कार अर्पिता को मर्यादा की सीमा पार नहीं करने देते थे. कभीकभी आनंद के साथ रहते हुए अर्पिता को अचानक ग्लानि और अपराधबोध सा महसूस होने लगता था कि वह उस के साथ विश्वासघात तो नहीं कर रही? ऐसे में वह आनंद से सहज हो कर आंखें नहीं मिला पाती थी. उसे लगता था कि कहीं वह उस का चेहरा देख कर मन के भावों को पढ़ न ले. पर आनंद के टुअर पर जाते ही अर्पिता निश्चिंत हो जाती और अपनी भावनाओं की मादकता में खोई रहती.

इसी बीच प्रवीण के पिताजी रिटायर हो गए तो वे और प्रवीण की मां प्रवीण के पास ही आ कर रहने लगे. प्रवीण की मां जोरशोर से प्रवीण के लिए लड़की तलाशने लगीं ताकि उस का विवाह हो जाए. अर्पिता ऐसी खबरों पर ऊपर से तो सहज रहती लेकिन अंदर ही अंदर अत्यंत चिंतित हो जाती. पर जब सुनती किसी कारण बात नहीं बन पाई तो चैन की सांस लेती.

तभी प्रवीण के लिए एक बहुत ही अच्छा रिश्ता आया. घरपरिवार भी बहुत अच्छा था और लड़की भी बहुत योग्य थी. प्रवीण की मां की इच्छा थी कि उस का रिश्ता यहां पक्का हो जाए. बस प्रवीण ही था, जो आनाकानी कर रहा था. अर्पिता भी मन ही मन बेचैन थी. वह जानती थी कि उस का सोचना गलत है पर प्रवीण की शादी हो जाएगी यह बात सोच कर वह मन ही मन एक पीड़ा का अनुभव करती थी. इस बात को ले कर उस का मन उदास सा रहता था.

प्रवीण अर्पिता को उदास देख कर उस से पूछता रहता था कि उस की उदासी का क्या कारण है पर अर्पिता क्या बताती, कैसे बताती. कैसे कहती प्रवीण से कि वह शादी न करे. उसे उदास देख कर अपनी व्यस्तता के बावजूद प्रवीण समय निकाल कर उस से बराबर संपर्क बनाए रखता और उसे खुश रखने का प्रयत्न करता रहता. अर्पिता आनंद और प्रवीण की तुलना कर के एक गहरी सांस भर कर रह जाती. प्रवीण व्यस्त रहते हुए भी उस का हालचाल पूछने के लिए समय निकाल लेता था, लेकिन आनंद कभी भी काम के बीच में से समय निकाल कर पूछताछ नहीं करता था कि वह कैसी है, उसे कोई परेशानी तो नहीं है.

आनंद की कंपनी उसे ट्रेनिंग के लिए कैलिफोर्निया भेज रही थी. उसे साल भर के लिए वहां ठहरना था और 15 दिन के भीतर ही दिल्ली से फ्लाइट पकड़नी थी. आनंद के जाने के नाम से अर्पिता एक ओर जहां खुद को दुखी महसूस कर रही थी वहीं दूसरी ओर खुश भी थी, क्योंकि उसे लग रहा था कि प्रवीण के साथ घूमते हुए जो थोड़ीबहुत झिझक होती थी, वह अब नहीं रहेगी.

‘‘तुम अकेली कैसे रहोगी साल भर? अपने मम्मीपापा के यहां शिफ्ट हो जाओ,’’ आनंद ने कहा.

‘‘मम्मी का घर तो शहर के दूसरे कोने में है. वहां से तो मुझे बुटीक काफी दूर पड़ेंगे. फिर बेवजह घर को साल भर बंद रखने से क्या फायदा? इतने सारे सामान की देखभाल कौन करेगा? कभीकभी मैं वहां चली जाया करूंगी या बीचबीच में उन्हें यहां बुला लिया करूंगी. आप मेरी चिंता मत कीजिए,’’ अर्पिता ने आनंद को आश्वस्त कर दिया.

वैसे आनंद के साथ रहते हुए भी एक तरह से अर्पिता अकेली ही रहती आई है. फिर मम्मीपापा के यहां रहे तो प्रवीण से मिलना कहां हो पाएगा? मम्मी के सामने वह प्रवीण से बात भी नहीं कर पाएगी. यह सब सोच कर उस ने अपने घर पर ही रहना ठीक समझा. अर्पिता के पिताजी अभी रिटायर नहीं हुए थे, उन का औफिस घर के पास ही था. इसलिए वे लोग साल भर के लिए अर्पिता के पास आ कर रह पाएंगे, इस की भी संभावना कम थी.

15 दिनों बाद आनंद कैलिफोर्निया चला गया. अर्पिता के मातापिता 5-6 दिन उस के साथ रह कर अपने घर चले गए. अब अर्पिता के सामने अपनी खुशियों का उन्मुक्त और विस्तृत खुला आसमान था. अब वह अपने पंख फैला कर इस आसमान में जी भर कर उड़ लेना चाहती थी. वर्षों से मन में दबा कर रखी इच्छाएं पंख फड़फड़ाने लगी थीं. प्रवीण का ठाटबाट, प्रतिष्ठा और आनबान देख कर अर्पिता की आंखें चौंधियाने लगी थीं. काश पिताजी उस की शादी की इतनी जल्दी न करते, तो आज उस के पास सब कुछ होता. वह भी सरकारी गाडि़यों में घूमती. बड़े सरकारी बंगले में रहती. नौकरचाकर दिन भर उस की जी हुजूरी करते.

प्रवीण की जिस दिन छुट्टी रहती, वह कभीकभी अर्पिता को अपने घर भी ले जाता था. अर्पिता प्रवीण की मां से बातें करती रहती. प्रवीण के मातापिता को पता था कि अर्पिता और प्रवीण कालेज में साथ पढ़े हैं, इसलिए वे दोनों उन की मित्रता को सहज रूप से लेते थे.

अर्पिता को कभीकभी मन ही मन ग्लानि होती थी अपनेआप पर कि वह आनंद को धोखा दे रही है. कितना विश्वास करता है आनंद उस पर. लेकिन जीवन में सुख की और भी कई इच्छाएं होती हैं. सिर्फ विश्वास के बल पर रिश्ते उम्र भर नहीं ढोए जा सकते. प्रवीण से उस की इच्छाएं, उस की रुचियां उस के विचार मेल खाते हैं, तभी उस का साथ इतना अच्छा लगता है.

‘‘पचमढ़ी चलोगी 2 दिनों के लिए?’’ कौफी हाउस में जब एक दिन दोनों कौफी पी रहे थे तो प्रवीण ने अर्पिता से पूछा.

‘‘अचानक पचमढ़ी?’’ अर्पिता ने आश्चर्यमिश्रित खुशी से पूछा.

‘‘हां, वहां सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत लोकरंग का कार्यक्रम होने वाला है, इसलिए मुझे 2 दिनों के लिए वहां जाना है,’’ प्रवीण ने बताया.

‘‘तुम्हारे साथ और कौन जा रहा है?’’ अर्पिता ने थोड़ी मायूसी से पूछा.

‘‘कोई नहीं. मम्मीपापा तो उस समय इंदौर जा रहे हैं शादी में. बस तुम और मैं चलेंगे,’’ प्रवीण ने कौफी खत्म करते हुए कहा.

अर्पिता के मन की कली खिल उठी. 2 दिन वह पूरा समय प्रवीण के साथ बिताएगी. उसे तो मुंहमांगी मुराद मिल गई. अगले हफ्ते दोनों पचमढ़ी रवाना हो गए. दिन भर दोनों पचमढ़ी के दर्शनीय स्थलों पर घूमते रहे. शाम 5-6 बजे दोनों गैस्ट हाउस में वापस आए. चाय पी और अपनेअपने कमरों में तैयार होने चले गए. शाम 7 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू होने वाला था.

शाम को 7 बजे के पहले प्रवीण ने दरवाजे पर नौक कर के उसे आवाज दी. अर्पिता ने दरवाजा खोला तो वह अर्पिता को देखता रह गया.

‘‘बहुत खूबसूरत लग रही हो अर्पिता,’’ प्रवीण ने उस के गाल से बालों की लट को पीछे हटाते हुए प्रशंसात्मक स्वर में उस की तारीफ की.

यह पहली बार हुआ था कि प्रवीण ने मुक्त कंठ से उस की सुंदरता की तारीफ की थी और उस के गालों को छुआ था. अर्पिता का रोमरोम सिहर गया.

‘‘चलो न,’’ अर्पिता ने आगे बढ़ते हुए कहा.

‘‘2 मिनट रुको तो सही तुम्हें जी भर कर देख तो लूं,’’ प्रवीण ने बांह पकड़ कर अर्पिता को अपने सामने खड़ा कर लिया.

अर्पिता नई दुलहन की तरह शरमा गई. बंधनरहित मुक्त वातावरण में आ कर प्रवीण की झिझक भी दूर हो गई थी. वह मुग्ध भाव से उसे ऊपर से नीचे तक निहारता रहा.

गाड़ी में प्रवीण पिछली सीट पर अर्पिता के साथ ही बैठा. दोनों के बीच की दूरियां सिमट गई थीं. प्रवीण अर्पिता से सट कर बैठा था. अर्पिता की देह की सिहरन पलपल बढ़ती जा रही थी.

आयोजन स्थल पर पहुंच कर प्रवीण थोड़ा अलग हट कर बैठ गया. वहां दूसरे पहचान वालों के साथ प्रवीण ने अर्पिता की मुलाकात अपने दोस्त की पत्नी के रूप में करवाई. मेल मुलाकात के समय ही एक वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी ने रायपुर से हाल ही में भोपाल ट्रांसफर हो कर आए चौधरीजी से प्रवीण को मिलवाया.

‘‘इन्हें तो तुम जानते ही होगे. चौधरीजी और उन की पत्नी नीलांजना चौधरी. 8 दिन ही हुए हैं इन्हें भोपाल आए हुए. परसों ही जौइन किया है.’’

नीलांजना को देखते ही प्रवीण अचानक सकपका गया. उन्होंने एक भरपूर नजर प्रवीण पर डाली और फिर उस के पास खड़ी अर्पिता को अजीब सी नजरों से देखने लगीं. अर्पिता को उन का देखने का अंदाज अच्छा नहीं लग रहा था. उसे लग रहा था कि नीलांजना की आंखें उस की आंखों से होती हुईं उस के मन में छिपे हुए चोर का भेद पा गई हैं. कुछ देर बाद नीलांजनाजी के मुख पर एक तिरछी व्यंग्यात्मक मुसकान तैरने लगी.

अर्पिता अपना ध्यान हटा कर दूसरी ओर देखने लगी. प्रवीण भी जल्दी ही वहां से चला गया. कुछ ही देर में कार्यक्रम शुरू हो गया और सब लोग अपनीअपनी जगह बैठ गए.

अर्पिता को लग रहा था मानो वह स्वप्नलोक में पहुंच गई है. सामने खुले आकाश के नीचे भव्य मंच पर नर्तकों द्वारा नृत्य की प्रस्तुति. वह स्वप्नलोक के सुखसागर में तैरने लगी.

कार्यक्रम समाप्त होने पर वहीं रात के खाने का इंतजाम था. प्रवीण और अर्पिता भी वहीं डिनर करने लगे. खाना खाते हुए जब भी नीलांजना से आमनासामना होता वे अजीब नजरों से घूरघूर कर प्रवीण और अर्पिता को देखने लगतीं. अर्पिता को अच्छा नहीं लग रहा था और प्रवीण भी उन्हें देखते ही अर्पिता को ले कर उन के सामने से हट जाता था.

रात के लगभग 12 बजे दोनों वहां के गैस्ट हाउस वापस आ गए. चौकीदार दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में सोने चला गया. अर्पिता अपने कमरे में जाने लगी तो प्रवीण भी उस के पीछे आ गया और दरवाजा बंद कर के उस ने अर्पिता को अपनी बांहों में भर लिया. अर्पिता के अंगअंग में पलाश की कलियां चटक कर फूल बनने लगीं और वह पलाश के दहकते फूलों की तरह पलंग पर बिछ गई.

2 दिन और 2 रातें प्यार की बड़ी खुमारी में बीत गईं. अर्पिता को लग रहा था कि जैसे वह हनीमून पर आई है. प्यार क्या होता है, कितना रोमांचक और सुखद होता है यह तो उस ने पहली बार ही जाना है. उस का अंगअंग निखर आया. तीसरे दिन सुबह प्रवीण और वह वापस आ गए.

इस के बाद अकसर ही शनिवार रविवार को आसपास के छोटे छोटे टूरिस्ट स्पौट्स, जहां ज्यादा लोगों का आनाजाना नहीं होता था, प्रवीण अर्पिता को ले कर चला जाता. दोनों गैस्ट हाउस या फिर होटल में रुकते. अब तो

2 कमरों की औपचारिकता भी समाप्त हो गई थी. अर्पिता के गले का मंगलसूत्र देख कर गैस्ट हाउस के चौकीदार उसे प्रवीण की पत्नी ही समझते. दोनों 2 दिन साथ रहते मौजमस्ती करते और वापस आ जाते. पड़ोसियों को लगता अर्पिता मां के यहां गई है और मां से अर्पिता किसी सहेली के घर जाने का बहाना कर देती.

धीरेधीरे 7 महीने निकल गए. अर्पिता और प्रवीण का मिलनाजुलना बदस्तूर जारी था. प्रवीण कभीकभी सरकारी काम से इंदौर या रायपुर चला जाता तो अर्पिता से जुदाई के ये दिन काटे नहीं कटते थे. ऐसे ही समय कटता रहा और आनंद को कैलिफोर्निया गए 10 महीने बीत गए. अर्पिता का मन कभीकभी घबरा जाता. वह प्रवीण के साथ इतनी आगे बढ़ गई है, अब लौट कर आनंद के साथ कैसे निभा पाएगी? अगर वह आनंद को तलाक दे दे तो क्या प्रवीण उस से शादी कर लेगा? अब प्रवीण के बिना जिंदगी बिताने के बारे में वह सोच भी नहीं सकती और ऐसी हालत में आनंद के साथ अपने रिश्ते को जबरन ढो भी नहीं सकती. अर्पिता रातदिन सोच में डूबी रहती. वह कैसे दोराहे पर आ कर खड़ी हो गई थी. एक ओर आनंद मम्मीपापा, समाज और दूसरी ओर प्रवीण का साथ.

एक दिन प्रवीण इंदौर गया हुआ था. अर्पिता का मन उदास था. बुटीक में काम निबटा कर अर्पिता पार्लर चली गई. सोचा, फेस मसाज करवा कर थोड़ा रिलैक्स फील करेगी. पार्लर में भीड़ थी, अर्पिता बाहर के रूम में सोफे पर बैठ कर मैगजीन पढ़ने लगी.

‘‘कैसी हो अर्पिता?’’

अपना नाम सुन कर अर्पिता ने चौंक कर सिर उठाया. देखा तो सामने नीलांजना खड़ी थीं, जो उसे पचमढ़ी में मिली थीं. नीलांजना अर्पिता के पास ही सोफे पर बैठ गईं.

‘‘जी मैं ठीक हूं. आप कैसी हैं?’’ अर्पिता ने मुसकरा कर पूछा. 2 मिनट तक दोनों के बीच औपचारिक बातें होती रहीं, फिर अचानक नीलांजना असल बात पर आ गईं.

‘‘प्रवीण को कब से जानती हो?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘जी वह मेरा कालेज के समय का दोस्त है,’’ अर्पिता को उन के हावभाव देख कर आशंका हो रही थी कि वे उस के बारे में ही बात करना चाह रही हैं.

‘‘मैं इधरउधर की बात न कर के सीधी बात पर आती हूं अर्पिता. प्रवीण ठीक आदमी नहीं है. उस का चरित्र अच्छा नहीं है. तुम उस से दूर ही रहो तो ठीक होगा. तुम्हारा उस के साथ अकेले पचमढ़ी जाना और वहां तुम दोनों के एकदूसरे के प्रति जो ऐक्सप्रेशंस थे उस से मैं समझ गई थी कि तुम उस की दोस्त से आगे बढ़ कर कुछ और भी हो,’’ नीलांजना की गहरी आंखें अर्पिता के मन में छिपे चोर को साफ देख रही थीं.

अर्पिता अपनी चोरी पकड़ी जाने से हड़बड़ा गई. नीलांजनाजी ने इतने दृढ़ और विश्वास भरे स्वर में यह बात कही थी कि क्षण भर को अर्पिता को समझ ही नहीं आया कि उन की बात कैसे झुठलाए.

क्षण भर बाद खुद को संयत कर के उस ने कमजोर स्वर में प्रतिवाद किया, ‘‘मैं उसे सालों से जानती हूं. वह तो किसी लड़की की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखता था.’’

‘‘तब की बात मैं नहीं जानती. मैं तो आज के प्रवीण को जानती हूं. प्रवीण के कई शादीशुदा औरतों से संबंध हैं. रायपुर में जब यह 6 माह की ट्रेनिंग पर आया था तो वहां के भी एक अधिकारी की खूबसूरत बीवी को अपने जाल में फांस लिया था. यह अब भी वहां जा कर उस से मिलता है,’’ नीलांजना ने बताया तो अर्पिता को लगा कि जैसे उस के चारों ओर एकसाथ सैकड़ों धमाके हो गए हैं. वह सन्न सी बैठी रह गई.

‘‘लेकिन अगर ऐसा ही है तो उसे कुंआरी लड़कियों की क्या कमी, वह शादीशुदा औरतों के पीछे क्यों पड़ेगा भला?’’ अर्पिता ने नीलांजना को गलत साबित करना चाहा.

‘‘प्रवीण बहुत शातिर है. कुंआरी लड़की शादी के सपने देखने लगती है और फिर छोड़े जाने पर व्यर्थ का बवाल खड़ा करती है, जो उस की छवि को खराब करेगा. शादीशुदा औरतों को अगर वह छोड़ भी देता है तो वे आंसू बहा कर चुप रह जाती हैं. अपनी और पति व घर की इज्जत की खातिर वे तमाशा खड़ा नहीं करतीं. बस प्रवीण का काम बन जाता है. जैसा कि उस ने इंदौर के एक बिजनैसमैन की पत्नी के साथ किया.

‘‘पति की अनुपस्थिति में उस के साथ खूब घूमाफिरा, मौजमस्ती की और फिर भोपाल आ गया. वह बेचारी आज भी उस की याद में रो रही है. जहां तक शादी का सवाल है, उस की महत्त्वाकांक्षा बहुत ऊंची है. उस की इच्छा किसी बहुत बड़े अधिकारी की आई.ए.एस. बेटी से ही शादी करने की रही है. इसीलिए 2 महीने पहले उस ने इंदौर के एक उच्च अधिकारी की आई.ए.एस. बेटी नीलम से सगाई कर ली है,’’ नीलांजना ने संक्षेप में बताया.

‘‘क्या प्रवीण की सगाई हो गई?’’ अर्पिता बुरी तरह चौंक कर बोली. उसे लगा जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो.

नीलांजना बोलीं, ‘‘तुम तो उस से दोस्ती का दम भरती हो, तुम्हें उस ने बताया नहीं कि उस की शादी पक्की हो गई है? तभी तो आजकल उस के इंदौर के टूर बढ़ गए हैं.’’

प्रवीण उस से इतनी बड़ी बात छिपाएगा, उसे धोखे में रखेगा, इस का उसे जरा भी अंदेशा नहीं था. उस का सिर चकराने लगा.

‘‘आप प्रवीण के बारे में इतना सब कैसे जानती हैं?’’ अर्पिता ने थके से स्वर में पूछा.

‘‘रायपुर वाली घटना तो मेरी आंखों के सामने की ही है और इंदौर वाली…’’ नीलांजना एक गहरी सांस भर कर बोलीं, ‘‘वह बिजनैसमैन और कोई नहीं मेरा भाई है. तभी प्रवीण मुझे देखते ही सकपका जाता है. प्रवीण के चक्कर में पड़ कर अपना घरसंसार व्यर्थ में बरबाद मत करो. आज नहीं तो कल वह वैसे भी तुम्हें छोड़ ही देगा. अच्छा है समय रहते ही तुम खुद उसे छोड़ दो.’’

अर्पिता शाम को घर लौटी तो उस का सिर बुरी तरह से चकरा रहा था. नीलांजना की बातों में सचाई झलक रही थी. वह भी देख रही थी कि पिछले 2 महीनों से प्रवीण कुछ बदल सा गया है. अब छुट्टियों में अर्पिता के साथ बाहर जाने के बजाय वह सरकारी काम का बहाना बना कर अकेला ही चला जाता है. यदि यह सच है कि प्रवीण को औरतों को फंसाने की आदत ही है तो वह कितनी बड़ी गलती कर बैठी है. उस के पद और प्रतिष्ठा की चकाचौंध में अंधी हो कर अपने पति के साथ बेवफाई कर बैठी. अब पता नहीं अपनी गलती की क्या कीमत चुकानी पड़ेगी. धोखे के एहसास से अर्पिता तिलमिला गई. उस ने प्रवीण को फोन लगाया.

‘‘तुम ने सगाई कर ली और मुझे बताया भी नहीं,’’ प्रवीण के फोन उठाने पर अर्पिता गुस्से से चिल्लाई.

‘‘ओह तो तुम्हें पता चल गया. अच्छा हुआ. मैं खुद ही सोच रहा था कि मौका देख कर तुम्हें बता दूं,’’ प्रवीण का स्वर अत्यंत सामान्य था.

‘‘तुम ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? तुम ने मुझे धोखा दिया है,’’ उस के सामान्य स्वर पर अर्पिता तिलमिला गई.

‘‘क्या किया है मैं ने?’’ प्रवीण आश्चर्य से बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें कौन सा धोखा दिया है? मैं कुंआरा हूं और एक न एक दिन मेरी शादी होगी यह तो तुम जानती ही थीं. मैं ने कोई तुम से तो शादी का वादा किया नहीं था फिर धोखे की बात कहां से आ गई?’’

‘‘तुम ने मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है. क्यों खेलते रहे मेरे जज्बातों से इतने दिन?’’ अर्पिता अब भी तिलमिला रही थी.

‘‘मैं ने तुम्हारी भावनाओं से नहीं खेला. जो कुछ हुआ तुम्हारी मरजी से हुआ. मैं ने कोई जबरदस्ती तो की नहीं. हम दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगा और हम ने साथ में जीवन के मजे लूटे. मैं ने जिंदगी भर साथ निभाने का कोई वादा तो किया नहीं है तुम से. हां, तुम कालेज के दिनों से मुझे पसंद थीं. तुम कुंआरी होती तो मैं तुम से शादी के बारे में सोच भी सकता था, लेकिन तुम तो शादीशुदा हो. ऐसा सोच भी कैसे सकती हो कि तुम से शादी करूंगा? मैं इतनी बड़ी पोस्ट पर हूं. शहर में मेरा नाम व रुतबा है. तुम से शादी कर के मुझे अपनी इज्जत खराब नहीं करवानी,’’ प्रवीण तल्ख स्वर में बोला, ‘‘हां, तुम चाहो तो हम ये रिश्ता ऐसे ही बरकरार रखेंगे वरना…’’

अपमान और पीड़ा से अर्पिता छटपटा गई. वह बिफर कर बोली, ‘‘मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम इतने गिरे हुए होगे.’’ फिर उस ने उस से रायपुर और इंदौर वाले किस्सों का जवाब भी मांगा.

‘‘तुम औरतें पतियों से दुखी रह कर उन से ऐडजस्ट न कर पाने के कारण खुद ही बाहर किसी सहारे की तलाश में रहती हो. तुम लोगों को हमेशा एक ऐसे कंधे की तलाश रहती है, जिस पर सिर रख कर तुम अपना दुख हलका कर सको. अपने जीवनसाथी की थोड़ी सी भी कमी तुम लोगों से सहन नहीं होती और तुम लोग बाहर उसे पूरा करने को तत्पर रहती हो.

‘‘सच तो यह है कि मर्दों की बजाय औरतों को ऐसे संबंधों की ज्यादा जरूरत होती है और वे इन्हें ज्यादा ऐंजौय करती हैं. अगर औरतें ऐसे संबंधों को न चाहें तो मर्द की हिम्मत ही नहीं होगी किसी भी औरत की ओर आंख उठा कर देखने की. औरतें खुद ही यह सब चाहती हैं और मर्दों को फालतू बदनाम करती हैं. अपने पति से बेवफाई कर के उन्हें धोखा तुम ने दिया और धोखेबाज मुझे कह रही हो. तुम सोचो, बेवफा और धोखेबाज सही अर्थों में कौन है?’’

अर्पिता सन्न रह गई. प्रवीण ने उसे आईना दिखा दिया था. आनंद की जो कमियां उसे खलती थीं उन्हें प्रवीण के द्वारा पूरा कर के वह सुख पाना चाहती थी. गलत तो वही थी. पलाश की सुर्ख मादकता में डूबने से पहले उस ने कभी सोचा ही नहीं था कि सुर्ख रंग सिर्फ मादकता का ही नहीं खतरे का प्रतीक भी होता है. लेकिन अब क्या हो सकता था. उस ने खुद ही अपने ही संसार में आग लगा ली थी. अर्पिता कटे पेड़ की भांति पलंग पर गिर कर फूटफूट कर रोने लगी. दहकते पलाश ने इस का जीवन झुलसा दिया था.

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