सूरजमुखी सी वह: भाग 1- क्यों बहक गई थी मनाली

“लगता है विकास जीजू आए हैं. वाह, मजा आ गया. बाद में आ कर पढ़ लूंगी. 12वीं कक्षा है तो क्या हुआ? बोर्ड के ऐग्जाम का मतलब यह तो नहीं कि किसी से बात करना ही गुनाह है,” हाथों में पकड़ी किताब को बंद करते हुए मनाली मंदमंद मुसकरा कर अपने कमरे से निकल ड्राइंगरूम की ओर चल दी.

रिश्ते की दीदी कुमुद का विवाह लगभग 6 माह पहले हुआ था. विवाह से पहले कुमुद जब कभी उन से मिलने आती थी तो मनाली खूब नाकभौं सिकोड़ा करती. उस का साथ मनाली को कुछ देर के लिए भी नहीं सुहाता था, लेकिन कुमुद का विवाह हुआ तो विकास जीजू की कदकाठी और रंगयौवन देख मनाली के दिल में कुलबुलाहट सी होने लगी. अब कुमुद के साथ विकास के घर आते ही मनाली का मुखमंडल दमक उठता.
रात का अंधेरा भी उसे दीदी, जीजू के संबंधों की कल्पना से चकाचौंध करने लगा था.

‘जीजू की बगल में लेटी दीदी को कैसा लगता होगा? उन के प्रेम प्रदर्शित करने पर दीदी की प्रतिक्रिया क्या होती होगी…’ मन ही मन दीदी के स्थान पर स्वयं को कल्पना में रख वह अपनी सोच पर लजा जाती. दीदीजीजू के बीच हो रहे संवादों के सांकेतिक अर्थ जानने में उस की रुचि बढ़ रही थी.

‘क्या महत्त्व है जीवन में ऐसे संबंधों का? क्या अंतर होता होगा दोस्ती और ऐसे रिश्तों में…’ मन में घुमड़ते ऐसे सवालों का जवाब पाने को बेचैन वह अपनी सहेलियों से इस विषय पर चर्चा करना चाहती थी, मगर मातापिता के कठोर नियमों के कारण वह घर से निकल नहीं पाती थी. सहेलियों के घर आने पर भी वे क्षुब्ध हो जाते. मनाली स्वयं में खोई अंतर्मन में सब छिपाए व्याकुल सा जीवन जी रही थी.

मनाली के हावभाव देख मां को समझते देर न लगी कि उम्र की हलचल उस पर हावी हो रही है. अपनी संकीर्ण मानसिकता से इस का हल निकालते हुए मनाली को वे शाम को अपने साथ मंदिर ले जाने लगीं ताकि आचार्यजी से प्रवचन सुन कर मन में पल रही असामयिक इच्छाओं से मनाली का पीछा छूट जाए.

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सत्संग भवन में मां जब आंखें मूंदें भक्तिभाव में लीन होतीं तो मनाली आचार्यजी की लालसा में डूबी निगाहों को यहांवहां ताकते स्पष्ट रूप से देखती थी. बीमारी दूर करने व आशीर्वाद के नाम पर स्त्रियों के अंगों को स्पर्श करते हुए उन के चेहरे के भाव भी मनाली की आंखों से छिप न सके.

अपनी मां से पढ़ाई का बहाना बना उस ने वहां जाना तो बंद कर दिया, लेकिन इस घटना के बाद शारीरिक भूख जैसे शब्द उसे उलझाने लगे. ‘शायद जिस्म की प्यास सब को बेचैन करती है, चाहे कोई इस से दूर होने का कितना भी ढोंग कर ले. कभीकभी मेरा मन भी करता है कि कोई प्यार से सहलाता रहे. क्या यह वही भूख है? इसे शांत कैसे किया जाता होगा…’ ऐसे प्रश्न उसे लगातार झिंझोड़ रहे थे.

इस बीच पड़ोस की एक आंटी के किसी पुरुष के साथ संबंध होने की चर्चा ने उस के मन की उथलपुथल को और बढ़ा दिया. आंटी के पति विदेश में रह कर नौकरी कर रहे थे. उन की बेटी आयु में मनाली से थोड़ी ही छोटी थी. मनाली ने भी कई बार किसी अंकल को रात में कार से उतरते और सुबह वापस जाते देखा था. एक ओर इस रिश्ते के विषय में सोच कर मनाली के दिल में हलचल सी जाग रही थी, तो दूसरी ओर वह प्रेम का अर्थ खोज रही थी.

वह जानती थी कि पड़ोस में रहने वाली आंटी के पति 2 साल में 1 बार आते हैं, ऐसे में आंटी अकेलापन महसूस करती होंगी. लेकिन वह अंकल? सुना है, उन के विवाह को 3-4 वर्ष ही हुए हैं. वे खुश हैं अपने परिवार से. 2 वर्षीय बेटा भी है उन का, तो फिर यह सब क्यों? क्या वे दोनों केवल मित्र बन कर नहीं रह सकते? क्या सैक्स इतना जरूरी है कि नए संबंध बनने लगें?

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मां से मनाली ने पड़ोस वाली आंटी की बात शुरू की तो उन्होंने उसे झिड़कते हुए कहा, “खबरदार जो आइंदा ऐसी गंदी बातें की मुझ से. छोटी हो अभी बहुत, बच्चे की तरह रहो,” मनाली सहम कर चुप हो गई.

एक दिन अपने घर मिलने आए मामा को वह चाय देने कमरे में पहुंची तो मोबाइल पर उन को किसी से मीठी आवाज़ में बातें करते पाया. दरवाजे की ओर मामा की पीठ थी, इसलिए उस की उपस्थिति से अनभिज्ञ मामा नटखट अंदाज में द्विअर्थी संवाद बोलते हुए खिलखिला कर हंस रहे थे. मनाली के सामने जाते ही अचकचा कर “अभी करता हूं फोन,” कह कर उन्होंने काल काट दी. मोबाइल सामने टेबल पर रख वे निगाहें बचाते हुए हड़बड़ा कर वाशरूम में घुस गए.

‘कुछ देर पहले तो मामाजी मां से मामीजी की शिकायत कर रहे थे और अब इतनी प्यार भारी बातें? कहीं वे भी पड़ोसी आंटी की तरह…” मनाली ने झट से मोबाइल उठा कर ताजा काल का नंबर देखना चाहा. मोबाइल को टच करते ही वाट्सऐप खुल गया. शायद मामा की बातचीत वाट्सऐप काल के माध्यम से हो रही थी. सब से ऊपर की चैट में किसी महिला की डीपी लगी थी. मनाली ने झटपट चैट खोली तो इश्क में रंगी हुई बातचीत पढ़ते हुए उस का दिल धड़क उठा. मामा द्वारा ली गई एक सैल्फी भी दिखी जिस में मामा किसी होटल के बिस्तर पर उस महिला के साथ लेटे हुए थे. हैरत में पड़ी मनाली मोबाइल टेबल पर रख चुपचाप अपने कमरे में चली गई. अपनी मम्मी से इस बारे में बात करने का बहुत मन था मनाली का, लेकिन चाह कर भी वह ऐसा न कर सकी.

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उस रात मनाली को नींद नहीं आ रही थी. ‘शालिनी मामी सी खूबसूरत पत्नी के होते हुए उस महिला के चक्कर में क्यों हैं मामा? डीपी में दिखने वाली महिला तो मामी के सामने कहीं ठहरती ही नहीं. कहीं उस ने ही फुसला कर मामा को अपनी ओर तो नहीं कर लिया? लेकिन मामा क्यों मान गए? क्या शारीरिक सुख इतना अहम है कि सभी आंखें मूंदे उस रास्ते पर चलना चाहते हैं? या फिर ऐसा तो नहीं कि मामी अपने पति की इच्छाएं पूरी नहीं कर सकीं कि उन्हें किसी और से प्रेम की चाहत है? पुरुष की क्या अपेक्षाएं होती होंगी एक पार्टनर से? क्या मैं अपने साथी को वह सब दे सकूंगी जो उसे चाहिए ताकि वह भटक न पाए? कौन बताएगा यह सब? किसी पुरुष से नजदीकी हो तो शायद इस विषय में जान पाऊं…’ सोचते हुए मनाली को नींद आ गई.

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मुखौटे: क्या हुआ था इंदर के साथ

खुली खिड़की है भई मन, विचारों का आनाजाना लगा रहता है, कहती है जबां कुछ और तो करते हैं हम कुछ और कहते हैं बनाने वाले ने बड़ी लगन और श्रद्धा से हर व्यक्ति को गढ़ा, संवारा है. वह ऐसा मंझा हुआ कलाकार है कि उस ने किन्हीं 2 इंसानों को एक जैसा नहीं बनाया (बड़ी फुरसत है भई उस के पास). तन, मन, वचन, कर्म से हर कोई अपनेआप में निराला है, अनूठा है और मौलिक है. सतही तौर पर सबकुछ ठीकठीक है. पर जरा अंदर झांकें तो पता चलता है कि बात कुछ और है. गोलमाल है भई, सबकुछ गोलमाल है.

बचपन में मैं ने एक गाना सुना था. पूरे गाने का सार बस इतना ही है कि ‘नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छिपी रहे.’

कई तरह के लोगों से मिलतेमिलते, कई संदर्भों में मुझे यह गाना बारबार याद आ जाता है. आप ने अकसर छोटे बच्चों को मुखौटे पहने देखा होगा. फिल्मों में भी एक रिवाज सा था कि पार्टियों, गानों आदि में इन मुखौटों का प्रयोग होता था. दिखने में भले इन सब मुखौटों का आकार अलगअलग होता है पर ये सब अमूमन एक जैसे होते हैं. वही पदार्थ, वही बनावट, उपयोग का वही तरीका. सब से बड़ी बात है सब का मकसद एक-सामने वाले को मूर्ख बनाना या मूर्ख समझना, उदाहरण के लिए दर्शकों को पता होता है कि मुखौटे के पीछे रितिक हैं पर फिल्म निर्देशक यही दिखावा करते हैं कि कोई नहीं पहचान पाता कि वह कौन है.

इसी तरह आजकल हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी पद पर हो, किसी भी उम्र का हो, हर समय अपने चेहरे पर एक मुखौटा पहने रहता है. चौबीसों घंटे वही कृत्रिम चेहरा, कृत्रिम हावभाव, कृत्रिम भाषा, कृत्रिम मुसकराहट ओढ़े रहता है. धीरेधीरे वह अपनी पहचान तक भूल जाता है कि वास्तव में वह क्या है, वह क्या चाहता है.

जी चाहता है कि वैज्ञानिक कोई ऐसा उपकरण बनाएं जिस के उपयोग से इन की कृत्रिमता का यह मुखौटा अपनेआप पिघल कर नीचे गिर जाए और असली स्वाभाविक चेहरा सामने आए, चाहे वह कितना भी कुरूप या भयानक क्यों न हो क्योंकि लोग इस कृत्रिमता से उकता गए हैं.

‘‘अजी सुनो, सुनते हो?’’

अब वह ‘अजी’ या निखिल कान का कुछ कमजोर था या जानबूझ कर कानों में कौर्क लगा लेता था या नेहा की आवाज ही इतनी मधुर थी कि वह मदहोश हो जाता था और उस की तीसरीचौथी आवाज ही उस के कानों तक पहुंच पाती थी. यह सब या तो वह खुद जाने या उसे बनाने वाला जाने. इस बार भी तो वही होना था और वही हुआ भी.

‘‘कितनी बार बुलाया तुम्हें, सुनते ही नहीं हो. मुझे लगता है एक बार तुम्हें अपने कान किसी अच्छे डाक्टर को दिखा देने चाहिए.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ मेरे कानों को? ठीक ही तो हैं,’’ अखबार से नजर हटाते हुए निखिल ने पूछा.

नेहा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि उस के स्वर की तल्खी और आंखों के रूखेपन को ताड़ कर उस ने अपनेआप को नियंत्रित किया और एक मीठी सी मुसकराहट फैल गई उस के चेहरे पर. किसी भी आंख वाले को तुरंत पता चल जाए कि यह दिल से निकली हुई नहीं बल्कि बनावटी मुसकराहट थी. जब सामने वाले से कोई मतलब होता है तब लोग इस मुसकराहट का प्रयोग करते हैं. मगर निखिल आंख भर कर उसे देखे तब न समझ पाए.

‘‘मैं इस साड़ी में कैसी लग रही हूं? जरा अच्छे से देख कर ईमानदारी से बताना क्योंकि यही साड़ी मैं कल किटी पार्टी में पहनने वाली हूं,’’ उस ने कैटवाक के अंदाज में चलते हुए बड़ी मधुर आवाज में पूछा.

‘तो मेमसाब अपनी किटी पार्टी की तैयारी कर रही हैं. यह बनावशृंगार मेरे लिए नहीं है,’ निखिल ने मन ही मन सोचा, ‘बिलकुल खड़ूस लग रही हो. लाल रंग भी कोई रंग होता है भला. बड़ा भयानक. लगता है अभीअभी किसी का खून कर के आई हो.’ ये शब्द उस के मुख से निकले नहीं. कह कर आफत कौन मोल ले.

‘‘बढि़या, बहुत सुंदर.’’

‘‘क्या? मैं या साड़ी?’’ बड़ी नजाकत से इठलाते हुए उस ने फिर पूछा.

‘साड़ी’ कहतेकहते एक बार फिर उस ने अपनी आवाज का गला दबा दिया.

‘‘अरे भई, इस साड़ी में तुम और क्या? यह साड़ी तुम पर बहुत फब रही है और तुम भी इस साड़ी में अच्छी लग रही हो. पड़ोस की सारी औरतें तुम्हें देख कर जल कर खाक हो जाएंगी.’’

नेहा को लगा कि वह उस की तारीफ ही कर रहा है. उस ने इठलाते हुए कहा, ‘‘हटो भी, तुम तो मुझे बनाने लगे हो.’’  पता नहीं कौन किसे बना रहा था.

नन्हे चिंटू ने केक काटा. तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी. अतिथि एकएक कर आगे आते और चिंटू के हाथ में अपना तोहफा रख कर उसे प्यार करते, गालों को चूमते या ऐसे शब्द कहते जिन्हें सुन कर उस के मातापिता फूले न समाते. तोहफा देते हुए वे इतना अवश्य ध्यान रखते कि चिंटू के मातापिता उन्हें देख रहे हैं या नहीं.

‘‘पारुल, तुम्हारा बेटा बिलकुल तुम पर गया है. देखो न, उस की बड़ीबड़ी आंखें, माथे पर लहराती हुई काली घुंघराली लटें. इस के बड़े होने पर दुनिया की लड़कियों की आंखें इसी पर होंगी. इस से कहना जरा बच कर रहे,’’ जब मोहिनी ने कहा तो सब ठठा कर हंस पडे़.

चिंटू बड़ा हो कर अवश्य आप के जैसा फुटबाल प्लेयर बनेगा,’’ इधरउधर भागते हुए चिंटू को देख कर रमेश ने कहा.

‘‘हां, देखो न, कैसे हाथपांव चला रहा है, बिलकुल फुटबाल के खिलाड़ी की तरह,’’ खालिद ने उसे पकड़ने की कोशिश करते हुए कहा.

नरेश की बाछें खिल गईं. हिंदी सिनेमा के नायक की तरह वह खड़ाखड़ा रंगीन सपने देखने लगा.

खालिद, जो चिंटू को पकड़ने में लगा था, अपनी ही बात बदलते हुए बोला, ‘‘नहीं यार, इस के तो हीरो बनने के लक्षण हैं. इस की खूबसूरती और मीठी मुसकराहट यही कह रही है. बिलकुल भाभीजी पर गया है.’’

खालिद ने उधर से जाती हुई पारुल  को देख लिया था. उस के हाथों में केक के टुकड़ों से भरी प्लेट वाली ट्रे थी. पारुल ने रुक कर खालिद की प्लेट को भर दिया.

नरेश ने घूर कर खालिद को देखा फिर अगले ही पल माहौल देखते हुए होंठों पर वही मुसकराहट ले आया.

‘‘पारुल, चिंटू को जरा गलत नजर वालों से बचा कर रखो,’’ आशा ने जया को घूरते हुए कहा. उन दोनों की बिलकुल नहीं पटती थी. दोनों के पति एक ही दफ्तर में काम करते थे. दोनों के आपस में मिलनेजुलने वाले करीबकरीब वही लोग होते थे.इसलिए अकसर इन दोनों का मिलनाजुलना होता और एक बार तो अवश्य तूतू, मैंमैं होती.

‘‘कैसी बातें करती हो, आशा? यहां कौन पराया है? सब अपने ही तो हैं. हम ने चुनचुन कर उन्हीं लोगों को बुलाया है जो हमारे खास दोस्त हैं,’’ पारुल ने हंसते हुए कहा.

तभी अचानक उसे याद आया कि पार्टी शुरू हो चुकी है और उस ने अब तक अपनी सास को बुलाया ही नहीं कि आ कर पार्टी में शामिल हो जाएं. वह अपनी सास के कमरे की ओर भागी. यह सब सास से प्यार या सम्मान न था बल्कि उसे चिंता थीकि मेहमान क्या सोचेंगे. उस ने देखा कि सास तैयार ही बैठी थीं मगर उन की आदत थी कि जब तक चार बार न बुलाया जाए, रोज के खाने के लिए भी नहीं आती थीं. कदमकदम पर उन्हें इन औपचारिकताओं का बहुत ध्यान रहता थादोनों बाहर निकलीं तो मेहमानों ने मांजी को बहुत सम्मान दिया. औरतों ने उन से निकटता जताते हुए उन की बहू के बारे में कुरेदना चाहा.मगर वे भी कच्ची खिलाड़ी न थीं. इधर पारुल भी ऐसे जता रही थी मानो वह अपनी सास से अपनी मां की तरह ही प्यार करती है. यह बात और है कि दोनों स्वच्छ पानी में प्रतिबिंब की तरह एकदूसरे के मन को साफ पढ़ सकती थीं

पार्टी समाप्त होने के बाद सब बारीबारी से विदा लेने लगे.

‘‘पारुल, बड़ा मजा आया, खासकर बच्चों ने तो बहुत ऐंजौय किया.  थैंक्यू फौर एवरीथिंग. हम चलें?’’

‘‘हांहां, मंजू ठीक कहती है. बहुत मजा आया. मैं तो कहती हूं कि कभीकभी इस तरह की पार्टियां होती रहें तो ही जिंदगी में कोई रस रहे. वरना रोजमर्रा की मशीनी जिंदगी से तो आदमी घुटघुट कर मर जाए,’’ आशा ने बड़ी गर्मजोशी से कहा.

सब ने हां में हां मिलाई.

‘‘आजकल इन पार्टियों का तो रिवाज सा चल पड़ा है. शादी की वर्षगांठ की पार्टी, जन्मदिन की पार्टी, बच्चा पैदा होने से ले कर उस की शादी, उस के भी बच्चे पैदा होने तक, अनगिनत पार्टियां, विदेश जाने की पार्टी, वापस आने की पार्टी, कोई अंत हैइन पार्टियों का? हर महीने इन पर हमारी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा यों ही खर्च हो जाता है.

‘‘आशा की बातों का जया कोई तीखा सा जवाब देने वाली थी कि उस के पति ने उसे खींच कर रिकशे में बिठा दिया और सब ने उन को हाथ हिला कर विदा किया.‘‘तुम ठीक कहती हो, आशा. तंग आ गए इन पार्टियों से,’’ मोहिनी ने दीर्घ निश्वास लेते हुए कहा. उस का परिवार बड़ा था और खर्चा बहुत आता था

‘‘अरे, देखा नहीं उस अंगूठे भर के बच्चे को ले कर पारुल कैसे इतरा रही थी जैसे सचमुच सारे संसार में वही एक मां है और उस का बेटा ही दुनिया भर का निराला बेटा है.’’

‘‘सोचो जरा काली कजरारी आंखें, घुंघराले बाल और मस्तानी चाल, बड़ा हो कर भी यही रूप रहा तो कैसा लगेगा,’’ मोहिनी ने आंखें नचाते हुए कहा. उस का इशारा समझ कर सब ने जोरजोर से ठहाका लगाया.

‘‘भाभीजी, आप ने निखिल को देखा. वह अपने उसी अंगूठे भर के बेटे को देख कर ऐसा घमंड कर रहा था मानो वह दुनिया का नामीगिरामी फुटबाल का खिलाड़ी बन गया हो,’’ खालिद की बात पर फिर से ठहाके  गूंजे.

‘‘मगर खालिद भाई, तुम्हीं ने तो उसे चढ़ाया था कि उस का बेटा बहुत बड़ा फुटबाल प्लेयर बनेगा,’’ आनंद ने चुटकी ली. आनंद और खालिद में हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहता था. एकदूसरे को नीचा दिखाने का वे कोई भी मौका चूकते न थे.

‘‘कहा तो, क्या गलत किया. उन के यहां पेट भर खा कर उन के बच्चे की तारीफ में दो शब्द कह दिए तो क्या बुरा किया. कल किस ने देखा है,’’ रमेश भी कहां हाथ आने वाला था.

‘‘ऐसा उन्होंने क्या खिला दिया खालिद भाई कि आप आभार तले दबे जा रहे हैं?’’

रमेश की बात पर खालिद की जबान पर ताला लग गया. उस के आगे टिकने की शक्ति उस में न थी.

‘‘यह कैसा विधि का विधान है? मेरी बेटी तो अनाथ हो गई. मां तो मैं हूं पर सुशीला बहन ने उसे मां जैसा प्यार दिया. शादी के बाद तो वे ही उस की मां थीं. मेरी बेटी को मायके में आना ही पसंद नहीं था. पर आती थी तो उन की तारीफ करती नहींथकती थी. उन की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता. मेरी बेटी सच में दुखियारी है जो उस के सिर से ऐसी शीतल छाया उठ गई.’’

सुशीलाजी की मृत्यु की खबर मिलते ही वे (शीला) भरपेट नाश्ता कर के पति के साथ जो निकलीं तो 10 बजतेबजते बेटी की ससुराल में पहुंच गई थीं. कहने को दूसरा गांव था पर मुश्किल से40 मिनट का रास्ता था. तब से ले कर शव के घर से निकल कर अंतिम यात्रा के लिए जाने तक के रोनेधोने का यह सारांश था. कालोनी के एकत्रित लोग शीला के दुख को देख कर चकित रह गए थे. उस की आंखों से बहती अश्रुधारा ने लोगों क सहानुभूति लूट ली. सब की जबान पर एक ही बात थी, ‘दोनों में बहुत बनती थी. अपनी समधिन के लिए कोई इस तरह रोता है?

सारा कार्यक्रम पूरा होने तक शीला वहीं रहीं. पूरे घर को संभाला. दामाद सुनील तो पूरी तरह प्रभावित हो गया. उन्हें वापस भेजते समय उन के पैर छू कर बोला, ‘‘मांजी, मैं ने कभी नहीं सोचा था कि आप हम लोगों से इतना प्यार करती हैं. अब आपही हम तीनों की मां हैं. हमारा खयाल रखिएगा.’’

‘‘कैसी बातें करते हो बेटा. मेरे लिए तो जैसे सरला और सूरज हैं वैसे तुम तीनों हो. जब भी मेरी जरूरत पडे़, बुला लेना, मैं अवश्य आ जाऊंगी.’’

उसी शीला ने अकेले में अपनी बेटी को समझाया, ‘‘बेटी, यही समय है. संभाल अपने घर को अक्लमंदी से. कम से कम अब तो तुझे इस जंजाल से मुक्ति मिली. जब तक जिंदा थी, महारानी ने सब को जिंदा जलाया. कोई खुशी नहीं, कोई जलसा नहीं. यहां उस की दादागीरी में सड़ती रही. इतने सालों के बाद तू आजादी की सांस तो ले सकेगी.’’

अपने गांव जाने से पहले शीला बेटी को सीख देना नहीं भूलीं कि बहुत हो गया संयुक्त परिवार का तमाशा. मौका देख कर कुछ समय के बाद देवरदेवरानी का अलग इंतजाम करा दे. मगर उस से पहले दोनों भाई मिल कर ननद की शादी करा दो, तब तक उन से संबंध अच्छे रखने ही पड़ेंगे. तेरी ननद के लिए मैं ऐसा लड़का ढूंढूंगी कि अधिक खर्चा न आए. वैसे तेरी देवरानी भी कुछ कम नहीं है. वह बहुत खर्चा नहीं करने देगी. ससुर का क्या है, कभी यहां तो कभी वहां पडे़ रहेंगे. आदमी का कोई ज्यादा जंजाल नहीं होता.

दिखावटी व्यवहार, दिखावटी बातें, दिखावटी हंसी, सबकुछ नकली. यही तो है आज की जिंदगी. जरा इन के दिलोदिमाग में झांक कर देखेंगे तो वहां एक दूसरी ही दुनिया नजर आएगी. इस वैज्ञानिक युग में अगर कोई वैज्ञानिक ऐसी कोई मशीन खोजनिकालता जिस से दिल की बातें जानी जा सकें, एक्सरे की तरह मन के भावों को स्पष्ट रूप से हमारे सामने ला सके तो…? तब दुनिया कैसी होती? पतिपत्नी, भाईभाई या दोस्त, कोई भी रिश्ता क्या तब निभ पाता? अच्छा ही है कि कुछ लोग बातों को जानते हुए भी अनजान होने का अभिनय करते हैं या कई बातें संदेह के कोहरे में छिप जाती हैं. जरा सोचिए ऐसी कोई मशीन बन जाती तो इस पतिपत्नी का क्या हाल होता?

‘‘विनी, कल मुझे दफ्तर के काम से कोलकाता जाना है. जरा मेरा सामान तैयार कर देना,’’ इंदर ने कहा.

‘‘कोलकाता? मगर कितने दिनों के लिए?’’

‘‘आनेजाने का ले कर एक सप्ताह तो लग जाएगा. कल मंगलवार है न? अगले मंगल की शाम को मैं यहां लौट आऊंगा, मैडमजी,’’ उस ने बड़े अदब से कहा.

‘‘बाप रे, एक सप्ताह? मैं अकेली न रह पाऊंगी. उकता जाऊंगी. मुझे भी ले चलिए न,’’ उस ने लाड़ से कहा.

‘‘मैं तुम्हें जरूर साथ ले जाता मगर इस बार काम कुछ ज्यादा है. वैसे तो

10-12 दिन लग जाते मगर मैं ने एक हफ्ते में किसी तरह निबटाने का निश्चय कर लिया है. भले मुझे रातदिन काम करना पडे़. क्या लगता है तुम्हें, मैं क्या तुम्हारे बिना वहां अकेले बोर नहीं होऊंगा? अच्छा, बताओ तो, कोलकाता से तुम्हारे लिए क्या ले कर आऊं?’’

‘‘कुछ नहीं, बस, आप जल्दी वापस आ जाइए,’’ उस ने पति के कंधे पर सिर टिकाते हुए कहा.

इंदर ने पत्नी के गाल थपथपाते हुए उसे सांत्वना दी.अगले दिन धैर्यवचन, हिदायतें, बिदाई होने के बाद  आटोरिकशा स्टेशन की ओर दौड़ने लगा. उसी क्षण इंदर का मन उस के तन को छोड़ कर पंख फैला कर आकाश में विचरण करने लगा. उस पर आजादी का नशा छाया हुआ था

जैसे ही इंदर का आटोरिकशा निकला, विनी ने दरवाजा बंद कर लिया और गुनगुनाते हुए टीवी का रिमोट ले कर सोफे में धंस गई. जैसे ही रिमोट दबाया, मस्ती चैनल पर नरगिस आजाद पंछी की तरह लहराते हुए ‘पंछी बनूं उड़ती फिरूं मस्त गगन में, आज मैं आजाद हूं दुनिया के चमन में’ गा रही थी. वाह, क्या इत्तेफाक है. वह भी तो यही गाना गुनगुना रही थी.

‘‘आहा, एक सप्ताह तक पूरी छुट्टी. खाने का क्या है, कुछ भी चल जाएगा. कोई टैंशन नहीं, कोई नखरे नहीं, कोई जीहुजूरी नहीं. खूब सारी किताबें पढ़ना, गाने सुनना और जी भर के टीवी देखना. यानी कि अपनी मरजी के अनुसार केवल अपने लिए जीना,’’ वह सीटी बजाने लगी, ‘ऐ मेरे दिल, तू गाए जा…’ ‘‘अरे, मैं सीटी बजाना नहीं भूली. वाह…वाह.’’

इंदर का कार्यक्रम सुनते ही उस ने अपनी पड़ोसन मंजू से कुछ किताबें ले ली थीं. मंजू के पास किताबों की भरमार थी. पतिपत्नी दोनों पढ़ने के शौकीन थे. उन में से एक बढि़या रोमांटिक किताब ले कर वह बिस्तर पर लेट गई. उस को लेट कर पढ़ने की आदत थी.

गाड़ी में चढ़ते ही इंदर ने अपने सामान को अपनी सीट के नीचे जमा लिया और आराम से बैठ गया. दफ्तर के काम के लिए जाने के कारण वह प्रथम श्रेणी में सफर कर रहा था, इसलिए वहां कोई गहमागहमी नहीं थी. सब आराम से बैठे अपनेआप मेंतल्लीन थे. सामने की खिड़की के पास बैठे सज्जन मुंह फेर कर खिड़की में से बाहर देख रहे थे मानो डब्बे में बैठे अन्य लोगों से उन का कोई सरोकार नहीं था. ऐसे लोगों को अपने अलावा अन्य सभी लोग बहुत निम्न स्तर के लगते हैं.

वह फिर से चारों ओर देखने लगा, जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हो. गाड़ी अभीअभी किसी स्टेशन पर रुक गई थी. उस की तलाश मानो सफल हुई. लड़कियां चहचहाती हुई डब्बे में चढ़ गईं और इंदर के सामने वाली सीट पर बैठ गईं. इंदर ने सोचा, ‘चलो, आंखें सेंकने का कुछ सामान तो मिला. सफर अच्छा कट जाएगा.’ वह खयालों की दुनिया में खो गया.

‘वाह भई वाह, हफ्ते भर की आजादी,’ वह मन ही मन अपनी पीठ थपथपाते हुए सोचने लगा, ‘भई इंदर, तेरा तो जवाब नहीं. जो काम 3-4 दिन में निबटाया जा सकता है उस के लिए बौस को पटा कर हफ्ते भर की इजाजत ले ली. जब आजादी मिल ही रही है तो क्यों न उस का पूरापूरा लुफ्त उठाए. अब मौका मिला ही है तो बच्चू, दोनों हाथों से मजा लूट. सड़कों पर आवारागर्दी कर ले, सिनेमा देख ले, दोस्तों के साथ शामें रंगीन कर ले. इन 7 दिनों में जितना हो सके उतना आनंद उठा ले. फिर तो उसी जेल में वापस जाना है. शाम को दफ्तर से भागभाग कर घर जाना और बीवी के पीछे जीहुजूरी करना.’

आप अपनी आंखें और दिमाग को खुला छोड़ दें तो पाएंगे कि एक नहीं, दो नहीं, ऐसी हजारों घटनाएं आप के चारों ओर देखने को मिलेंगी. इंसान जैसा दिखता है वैसा बिलकुल नहीं होता. उस के अंदर एक और दुनिया बसी हुई है जो बाहर की दुनिया से हजारों गुना बड़ी है और रंगीन है. समय पा कर वह अपनी इस दुनिया में विचरण कर आता है, जिस की एक झलक भी वह दुनिया वालों के सामने रखना पसंद नहीं करता.

आज की  दुनिया विज्ञान की दुनिया है. विज्ञान के बल पर क्याक्या करामातें नहीं हुईं? क्या वैज्ञानिक चाहें तो ऐसी कोई मशीन ईजाद नहीं कर सकते जिसे कलाई की घड़ी, गले का लौकेट या हाथ की अंगूठी के रूप में धारण कर के सामने खड़े इंसान के दिलोदिमाग में चल रहे विचारों को खुली किताब की तरह पढ़ा जा सके? फिर चाहे वह जबान से कुछ भी क्यों न बोला करे.

मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसा महान वैज्ञानिक अवश्य कहीं न कहीं पैदा हुआ होगा. उस ने ऐसी चीज बनाने की कोशिश भी की होगी. मगर यह सोच कर अपने प्रयत्नों को बीच में ही रोक दिया होगा कि कौन इस बला का आविष्कार करने का सेहरा अपने सिर बांधे? दुनिया वाले तो जूते मारेंगे ही, भला स्वयं के लिए भी इस से बढ़ कर घोर संकट और क्या होगा

नए साल का दांव: भाग-2

कपिल बच्चों पर बिना बात के चिल्लाता रहता. वंदिता की बातबात में इंसल्ट करता. खाने की थाली उठा कर फेंक देता. वंदिता ने दिल्ली में रहने वाले अपने भाई और मां से यह दुख शेयर किया तो उन्होंने फौरन कपिल को छोड़ कर आने की सलाह दी. वे बेहद नाराज हुए. उन्होंने कपिल से बात की तो कपिल ने उन की खूब इंसल्ट करते हुए जवाब दिए. संजय और साक्षी सब जान चुके थे. दोनों ने गुस्से में कपिल से बात करना बंद कर दिया था.

उस दिन वंदिता ने सारी स्थिति पर ठंडे दिमाग से सोचा. हर बात पर बारीकी से ध्यान दिया. उस ने सोचा कपिल को छोड़ कर मायके जाना तो समस्या का हल नहीं है. वह कोई नौकरी तो करती नहीं है… वहां जा कर भाई और मां कितने दिन खुशीखुशी उसे सहारा देंगे और वह स्वयं को इतनी कमजोर, मजबूर क्यों सम झ रही है? कपिल बेवफाई कर गया, इस की सजा वह क्यों परेशान, दुखी रह कर भुगते? वह क्यों अपनी हैल्थ इस धोखेबाज के लिए खराब करे और बच्चे? दोनों सुबह के गए रात को आते हैं. व्यस्त हैं, अपने पैरों पर खड़े हैं. नई जौब है. कपिल से नाराज रह कर उन का काम चल ही रहा है. कपिल अपनी ऐयाशियों में मस्त है, सिर्फ वही क्यों इस पीड़ा का दंश सहे?

वह 12वीं कक्षा तक के बच्चों को मैथ की ट्यूशन पढ़ती थी. पूरी सोसाइटी में उस के जैसी मैथ की टीचर नहीं थी. बच्चों से घिरी इतने रोचक ढंग से पढ़ाती कि बच्चों को मैथ जैसा विषय कभी मुश्किल ही न लगता उन के पेरैंट्स भी बहुत खुश रहते. मैथ की ट्यूशन की फीस भी उसे अच्छी मिलती. दिन के 4 घंटे तो उस के ट्यूशन में ही बीतते थे. अपनी जरूरतों के लिए वह इन पैसों को आराम से खर्च करती. नहीं,

वह रोरो कर तो नहीं जाएगी. यह जीवन बारबार नहीं मिलता. वह छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी,

जो गलत काम कर रहा है. वह दुखी रहे. वह खुश रहेगी.

हफ्ते में 2 दिन सुबह 6 बजे वंदिता सोसाइटी में ही चलने वाले जिम में जाती थी, वहां उस का एक अलग ही ग्रुप था. सुबह सब के साथ व्यायाम करना उस के मन को खूब भाता था. शिनी भी उस के साथ रहती थी.

अगले दिन जिम में मिलने पर वंदिता के रिलैक्स्ड चेहरे को देख कर शिनी हंसी, ‘‘वाह, क्या बात है… बड़ी खुश लग रही हो… कपिल से कुछ बात हुई क्या?’’

वंदिता खुल कर हंसी, सुबहसुबह किस का नाम ले दिया? वह तो टूर पर गया है.’’

‘‘तो इतनी रिलैक्स्ड क्यों लग रही हो?’’

‘‘बाद में बताऊंगी. आज अमायरा और सिम्मी नहीं आई हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ शिनी बोली.

वंदिता घर आई तो बच्चे औफिस के लिए तैयार हो रहे थे. मां को आज खुश देख साक्षी ने कहा, ‘‘मम्मी, पापा आजकल टूर पर जाते हैं तो अच्छा लगता है न?’’

वंदिता हंस पड़ी, ‘‘हां, बहुत.’’

संजय बोला, ‘‘मेरा मन ही नहीं होता उन से बात करने का. आप कैसे बरदाश्त कर रही हैं, मम्मा?’’

‘‘छोड़ो बच्चो, मैं अब उस पर अपनी ऐनर्जी वेस्ट करने वाली नहीं.

मैं ने सोच लिया है कि मु झे कैसे जीना है. वह चाहे कुछ भी करे, मैं अपना मैंटल पीस खत्म नहीं होने दूंगी.

मैं ने कुछ गलत नहीं किया न, फिर दुखी मैं क्यों रहूं?’’

बच्चों ने उसे गले लगा लिया, ‘‘प्राउड औफ यू मम्मी.’’ उस दिन बढि़या

वर्कआउट करने के बाद चारों सहेलियां क्लब हाउस के एक कोने में बैठ गई. सिम्मी ने कहा, ‘‘यार, तू कुछ बदलीबदली सी अच्छी लग रही है.’’

‘‘हां, मैं अब कपिल में उल झ कर दुखी नहीं रहने वाली और भी बहु कुछ है मेरी लाइफ में जिसे मैं ऐंजौय कर सकती हूं… अब बैठ कर एक बेवफा के लिए तो हरगिज नहीं रोऊंगी. जितना रोना था रो ली, अब नहीं. अब तक उस पर मेरे रोने का न असर हुआ है न होगा, उलटा वह धोखेबाज इंसान मु झे रोते देख मेरा मजाक उड़ाता है.’’

अमायरा ने खुश हो कर कहा, ‘‘प्राउड औफ यू यार, आज मोहना का लैंडलौर्ड सुधीर सुबह आया था. कुछ गुस्से में दिख रहा था. कुछ तेज आवाजें आ रही थीं,’’ अमायरा मोहना के फ्लोर के सामने वाले फ्लोर पर रहती थी.

शिनी चौंकी, ‘‘अच्छा?’’

‘‘हां, कुछ ऐसा सुना कि किराया टाइम पर नहीं दिया गया है.’’

सिम्मी ने कहा, ‘‘मु झे अभीअभी आइडिया आया है. यह मोहना ही इस सोसाइटी से चली जाए तो अच्छा रहेगा न? इसे ही भगाते हैं. अमायरा. तुम इस के लैंडलौर्ड को जानती हो?’’

‘‘हां, मोहना को फ्लैट देने के समय काम करवाने कई बार यहां आता था. हमारी उम्र का ही होगा. मेरे पति नितिन से आमनासामना होने पर अच्छी जानपहचान हो गई है. भला इंसान है.’’

‘‘उस का फोन नंबर है?’’

‘‘हां, नितिन के पास है. मेरे सामने ही उस ने अपना नंबर दिया था.’’

फिर चारों सिर जोड़े बहुत देर तक प्लानिंग करतीं रहीं. उस के बाद संतुष्ट हो कर अपनेअपने घर चली गई.

उसी रात सुधीर को नितिन ने फोन किया. दोस्ताना लहजे में हालचाल पूछा  फिर कहा, ‘‘तुम्हारा फ्लैट तो मशहूर हो गया.’’

‘‘कैसे?’’

नितिन ने उसे सब बता दिया कि मोहना का सोसाइटी के ही किसी पुरुष से संबंध हैं

और वह पुरुष रातदिन खूब आताजाता है और मोहना के फ्लैट से काफी डिस्टरबैंस सी रहने लगी हैं.

सुधीर बहुत सभ्य आदमी था, वह आजकल वैसे ही किराया समय पर न मिलने से परेशान था. विनय उस का फोन उठाता नहीं था. 2 महीने का किराया इकट्ठा हो चुका था. नितिन ने यह भी बताया कि विनय का कोई काम है ही नहीं. हर समय शराब में डूबा रहता है. मोहना ही पैसा ऐंठने का काम करती है, किसी से भी. वह तो अच्छा था, सुधीर ने ऐडवांस में डिपौजिट लिया हुआ था. सारी बात सुन कर सुधीर ने एक फैसला ले लिया.

अगले दिन सुबह ही सुधीर को घर आया देख विनय और मोहना हड़बड़ा गए. सुधीर ने कहा, ‘‘1 हफ्ते के अंदर मु झे अपना फ्लैट खाली चाहिए.’’

मोहना गुर्राई, ‘‘यह कोई रूल नहीं है… ऐडवांस नोटिस क्यों नहीं दिया?’’

‘‘रूल की बात तो करना मत तुम लोग… गैर के साथ रातदिन रंगरलियां मनाने वाली रूल की बात करेगी? विनय, आप अपने नशे में इन बातों से आंखें बचा सकते हैं, बिल्डिंग में रहने वाले इन चीजों को बरदाश्त नहीं करेंगे और मु झे इतना भी शरीफ मत सम झ लेना… 1 हफ्ते में फ्लैट खाली नहीं किया तो सामान उठवा कर बाहर फिंकवा दूंगा.’’

नए साल का दांव: भाग-3

काफी बहस हुई पर सुधीर ने दोनों की बोलती बंद कर दी और वार्निंग दे कर चला गया. अमायरा ने अपने फ्लैट की बालकनी से अपने बेटे को स्कूल जाते हुए बाय करते समय सुधीर को आते देख लिया था सो मोहना के फ्लैट के पास खड़े हो कर पूरी बात सुन कर अपने घर चली गई थी.

खुशी के मारे उस की आवाज वंदिता को फोन पर बताते हुए कांप गई, ‘‘बस,

अब तो यह यहां से चली जाएगी… एक मुश्किल तो, खत्म हुई.’’

वंदिता ने शांत स्वर में कहा, ‘‘यह तो तुम लोगों ने बहुत अच्छा किया पर अब कपिल पर मु झे कभी विश्वास नहीं होगा. अब मेरे दिल में उस के लिए कोई जगह नहीं… यह चली जाएगी कोई और आ जाएगी. यही होता रहा है. खैर, थैंक्स यार.’’

उस दिन जब चारों जिम में मिलीं तो सब खुश थीं. वंदिता हंसी, ‘‘तो अमायरा ने मोहना को भगा ही दिया.’’

शिनी ने कहा, ‘‘अब तुम से पार्टी चाहिए.’’

वंदिता जोर से हंसी, ‘‘शर्म करो तुम लोग. इस बात की पार्टी कौन मागता है?’’

‘‘अरे, हम आज की मौडर्न फ्रैंड्स हैं.झ्र ऐसी बातों से निबटेंगे, तो पार्टी तो बनती ही है यार.’’

‘‘ठीक है, पहले इसे आने तो दो.’’

‘‘ठीक है.’’

कपिल 1 हफ्ते के लिए टूर पर था. अब जब तक कुछ बहुत ही जरूरी न हो, उस की और वंदिता की बात ही नहीं होती थी. इस बार जब कपिल टूर से आया तो उस का मूड बहुत ही खराब था. वंदिता ने अंदाजा लगा लिया कि उसे मोहना के फ्लैट खाली करने की टैशन है. कपिल औफिस न गया. बस बैड पर था. कोई काम नहीं कर रहा था. लगातार चैट कर रहा था… मोहना से फोन पर धीरेधीरे बातें कर रहा था. वंदिता प्रत्क्षत: अपने रोज के कामों में व्यस्त थी… ट्यूशन पढ़ा रही थी पर उस की नजरें लगातार कपिल की हरकतों पर थीं. इस आदमी ने उसे बहुत मानसिक कष्ट दिया था. फिर भी उस ने बहुत धैर्य बनाए रख था.

15 दिनों में मोहना ने फ्लैट खाली कर दिया. उस की मेड से ही अमायरा को पता चला कि अब उस ने काफी दूर एक छोटी सी सोसाइटी में एक छोटा सस्ता फ्लैट किराए पर लिया. जिस दिन मोहना का सामान गया, कपिल बैड से उठा ही नहीं. वंदिता ने भी कुछ नहीं पूछा.

चारों सहेलियां मिलीं तो वंदिता ने कहा, ‘‘थैंक्स दोस्तो, तुम लोग सच में मेरी दोस्त हैं.’’

सिम्मी ने कहा, ‘‘पार्टी कब दे रही है?’’

‘‘चलो, अब हम लोग न्यू ईयर पर 2 रातों के लिए माथेरान चलते हैं. आनाजाना, होटल, खानापीना सब मेरी तरफ से. न्यू ईयर पर वहीं धमाल कर के आते हैं. एक चेंज की मु झे सख्त जरूरत है.’’

सब चौंक पड़ी, ‘‘सच?’’

‘‘और क्या, तुम लोग अपनी फैमिली से न्यू ईयर पर छुट्टी ले लो.’’

‘‘हां यार, अब बच्चे बड़े हैं… हमारे हस्बैंड तो जानते ही हैं तुम किस दौर से गुजरी हो.

तुम्हारे साथ न्यू ईयर की ऐसी शुरुआत करने से हमें कोई नहीं रोकेगा पर कपिल का क्या होगा?’’

‘‘उसे माशूका के जाने का दुख मनाने दो. संजय गोवा और साक्षी महाबालेश्वर

जा रही हैं. वे भी न्यू ईयर पर फ्रैंड्स के ही साथ हैं. उन्हें पूरी बात बताई तो वे बहुत खुश हुए.

असल में तुम लोगों के साथ मेरा यह ट्रिप वे दोनों ही स्पौंसर कर रहे हैं. वे चाहते हैं कि मैं तुम लोगों के साथ ऐंजौय कर के जाऊं.’’

‘‘वाह, क्या बात है. मतलब आशिक साहब अकेले रहेंगे. वह है ही इसी लायक.’’

वंदिता बच्चों के साथ अब खूब खुश रहती. कपिल सूजा मुंह ले कर घूमता. वंदिता नाश्ता, खाना चुपचाप टेबल पर रख देती. वह खा कर चला जाता. रात को फिर ऐसे ही खा कर टीवी देखने बैठ जाता.

कभीकभी रात देर से लौटता. वंदिता अंदाजा लगाती मोहना से मिलने गया होगा. पर कपिल अब परेशान था. उस ने मोहना के साथ बहुत रंगरलियां मनाई थीं. अब वह जिस फ्लैट में गई थी, वह वन बैडरूम ही था. यहां वाला टू बैडरूम था.

विनय के बाहर जाने पर यश को दूसरे रूम में सुला कर रातभर मस्ती की जाती थी. अब इस फ्लैट में जगह बहुत कम थी. फ्लोर पर भी प्राइवेसी नहीं थी. मोहना चिढ़ीचिढ़ी रहने लगी थी. वह नाराज भी थी कि कपिल ने ही उस का किराया क्यों नहीं भर दिया था. कपिल उस पर खर्च तो खूब करता था पर किराए की रकम हर महीने क्व32 हजार देना आसाना नहीं था.

मोहना कपिल से अब बहुत कम मिलने लगी थी. यहां से जाने के बाद दोनों के रिश्ते में ठंडापन भर रहा था जो कपिल को बरदाश्त नहीं हो रहा था. इधर वंदिता का केयर फ्री अंदाज उसे और चिढ़ा रहा था. 31 दिसंबर को वंदिता को बैग पैक करते देख कपिल बुरी तरह चौंका, ‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘माथेरान.’’

‘‘क्या?’’ करंट सा लगा कपिल को, ‘‘क्यों? किस के साथ?’’

‘‘तुम भी तो जा रहे न, पर चिंता मत करो, मैं तुम्हें वहां डिस्टर्ब नहीं करूंगी और न ही पूछूंगी किस के साथ जा रहे हो? हां, मैं तुम्हें बता सकती हूं कि मैं किस के साथ जा रही हूं… अपनी सहेलियों के साथ जा रही हूं.’’

कपिल का चेहरा देखने लायक था. कुछ बोल ही नहीं पाया. तभी संजय और साक्षी भी अपनाअपना बैग ले कर आ गए. वंदिता को गले लगा कर खूब प्यार किया और कहा, ‘‘मम्मी, खूब ऐंजौय करना. हम टच में तो रहेंगे ही,’’ और फिर तीनों घूमने निकल गए.

संजय ने चारों सहेलियों के लिए अच्छे होटल में 2 रूम बुक करवा दिए थे. चारों ने जीभर कर ऐंजौय किया. न्यू ईयर की रात

होटल में ही खूब मस्ती की. होटल के खुले गार्डन में म्यूजिक, डांस का आयोजन था. सब ने खूब डांस किया. शानदार खाने का लुत्फ उठाया. कपिल की 2 मिस्ड कौल्स देख चारों खूब हंसीं. वंदिता ने कपिल को वापस फोन नहीं किया.

संजय, साक्षी और वंदिता अपनेअपने फ्रैंड्स के साथ न्यू ईयर का टाइम ऐंजौय कर के जब वापस घर आए तो कपिल बुरी तरह खी झता हुआ टीवी देख रहा था. वे तीनों दूसरे कमरे में नए साल पर कई गई मस्ती शेयर कर रहे थे. उन के खिलखिलाने की आवाजों से कपिल के कान जैसे फट रहे थे. जब तक की अपनी हरकतें वह भी जानता था, कुछ कहने का मुंह था ही नहीं. पैर पटकते हुए उन लोगों के कमरे का दरवाजा बंद कर आया ताकि उन सब के हंसने की आवाजें उसे सुनाई न दें.

कहां कपिल मोहना के साथ न्यू ईयर पर माथेरान जा कर जश्न मनाने वाला था,

पर अकेला खी झता,  झुंझलाता घर में बैठा रह गया था. अकेला होने पर उस ने मोहना को घर आने के लिए बहुत कहा, पर वह नहीं आई. उसे नया आशिक मिल चुका था. कपिल उसे किसी और पुरुष के साथ 1-2 जगह देख चुका था. मोहना ने बहुत जल्दी उसे भुला दिया. अब वह घर में अपनी बिगड़ी स्थिति कैसे संभाले, इसी उधेड़बुन में बेचैन था. वंदिता नए साल के इस दांव से बहुत खुश, उत्साहित हो कर जीवन में आगे बढ़ने के लिए एकदम तैयार थी.

‘‘नितिन ने उसे सब बता दिया कि मोहना का

सोसाइटी के ही किसी पुरुष से संबंध हैं और वह

पुरुष रातदिन खूब आताजाता है…’

Top 10 Best Social Story in Hindi : टॉप 10 सोशल कहानियां हिंदी में

Social Story in Hindi: समाज से जुड़ी कुछ नीतियां और कुरीतियां सभी को माननी पड़ती हैं. लेकिन कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो इन नियमों को मानने की बजाय अपना रास्ता खुद बनाने का प्रयास करते हैं. हालांकि इस रास्ते पर उनकी जिंदगी में कई मुश्किलें आती है. लेकिन वह बिना हार माने अपनी जीत हासिल करते हैं. तो इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की Top 10 Social Story in Hindi 2022. समाज का एक पहलू दिखाती ये कहानियां आपकी लाइफ में गहरी छाप छोड़ेंगी. तो पढ़िए गृहशोभा की Top 10 Social Story in Hindi 2022.

1. आसमान छूते अरमान : चंद्रवती के अरमानों की कहानी

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चंद्रो बस से उतर कर अपनी सहेलियों के साथ जैसे ही गांव की ओर चली, उस के कानों में गांव में हो रही किसी मुनादी की आवाज सुनाई पड़ी.

‘गांव वालो, मेहरबानो, कद्रदानो, सुन लो इस बार जब होगा मंगल, गांव के अखाड़े में होगा दंगल. बड़ेबडे़ पहलवानों की खुलेगी पोल, तभी तो बजा रहा हूं जोर से ढोल. देखते हैं कि मंगलवार को लल्लू पहलवान की चुनौती को कौन स्वीकार करता है. खुद पटका जाता है कि लल्लू को पटकनी देता है. मंगलवार शाम4 बजे होगा अखाड़े में दंगल.’‘‘देख चंद्रो, इस बार तो तेरा लल्लू गांव में ही अखाड़ा जमाने आ गया,’’ एक सहेली बोली….

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2. उलझन: टूटती बिखरती आस्थाओं और आशाओं की कहानी

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बेटी की शादी की बधाई तथा उस के सुखमय भविष्य के लिए आशीषों की वर्षा की जगह हम पर झूठ, धोखेबाजी, दुरावछिपाव और न जाने किनकिन मिथ्या आरोपों की बौछार हो रही थी और हम इन आरोपों की बौछार तले सिर झुकाए बैठे थे…

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3. हुस्न का बदला: क्या हुआ था शीला के साथ

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शीला की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे. पिछले एक महीने से वह परेशान थी. कालेज बंद होने वाले थे. प्रदीप सैमेस्टर का इम्तिहान देने के बाद यह कह कर गया था, ‘मैं तुम्हें पैसों का इंतजाम कर के 1-2 दिन बाद दे दूंगा. तुम निश्चिंत रहो. घबराने की कोई बात नहीं.’

‘पर है कहां वह?’ यह सवाल शीला को परेशान कर रहा था. उस की और प्रदीप की पहचान को अभी सालभर भी नहीं हुआ था कि उस ने उस से शादी का वादा कर उस के साथ… ‘शीला, तुम आज भी मेरी हो, कल भी मेरी रहोगी. मुझ से डरने की क्या जरूरत है? क्या मुझ पर तुम्हें भरोसा नहीं है?’ प्रदीप ने ऐसा कहा था.

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4. गर्भपात: रमा क्या इस अनजाने भय से मुक्त हो पाई?

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रमा अपने बारबार होने वाले गर्भपात का कारण बचपन में घटी एक कटु घटना को मानती रही जिस ने उस के मन में एक अनजाने भय को उत्पन्न कर दिया था. जबकि वास्तविकता तो कुछ और थी. अंतर्द्वंद्व से जूझती रमा क्या इस अनजाने भय से मुक्त हो पाई?

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5. मसीहा: शांति के दुख क्या मेहनत से दूर हो पाए

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शांति का नाम आते ही मानसपटल पर अतीत का पन्ना खुल गया. छोटी सी उम्र में ही कितने दुख उठाने पड़े थे उसे. लेकिन अपनी हिम्मत और जिंदगी में कुछ करने की लगन ने उसे कहां से कहां पहुंचा दिया.

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6. सफर: फौजी पर कौन तरस खाता है

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रात के ठीक 10 बजे ‘झेलम ऐक्सप्रैस’ ट्रेन ने जम्मूतवी से रेंगना शुरू किया, तो पलभर में रफ्तार पकड़ ली. कंपार्टमैंट में सभी मुसाफिर अपना सामान रख आराम कर रहे थे.

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7. चीयर गर्ल: फ्रैंड रिक्वैस्ट एक्सैप्ट करने के बाद क्या हुआ उसके साथ

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फेसबुक पर आई एक फ्रैंड रिक्वैस्ट को ऐक्सैप्ट करने के बाद उसे खुद ही पता नहीं था कि उस की शांत जिंदगी अचानक से बदल जाएगी…

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8. नीलोफर: क्या दोबारा जिंदगी जी पाई नीलू

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एक दुर्घटना में अपने दोनों पैर खोने के बाद हताशा में जी रही नीलू को एक चिडि़या ने जीना सिखाया. आखिर कैसे…

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9. ब्लैक फंगस: क्या महुआ और उसके परिवार को मिल पाई मदद

अस्पताल में पति अमित जीवन और मौत से जूझ रहा था, मगर ऐसा कोई नहीं था जो महुआ की मदद को आगे आए. फिर एक दिन…

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10. फर्क: पल्लव के धोखे के बाद क्या था रवीना का खतरनाक कदम

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जिस पल्लव की वजह से रवीना अपने घर की देहरी लांघ आई थी, उसी पल्लव ने उस की पूरी जिंदगी ही तबाह कर दी. अब वह अकेली थी और इस अकेलेपन ने उसे खतरनाक कदम उठाने को विवश कर दिया…

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रेखाएं : कैसे टूटा अम्मा का भरोसा

लेखक-रानी दर

‘‘छि, मैं सोचती थी कि बड़ी कक्षा में जा कर तुम्हारी समझ भी बड़ी हो जाएगी, पर तुम ने तो मेरी तमाम आशाओं पर पानी फेर दिया. छठी कक्षा में क्या पहुंची, पढ़ाई चौपट कर के धर दी.’’ बरसतेबरसते थक गई तो रिपोर्ट उस की तरफ फेंकते हुए गरजी, ‘‘अब गूंगों की तरह गुमसुम क्यों खड़ी हो? बोलती क्यों नहीं? इतनी खराब रिपोर्ट क्यों आई तुम्हारी? पढ़ाई के समय क्या करती हो?’’ रिपोर्ट उठा कर झाड़ते हुए उस ने धीरे से आंखें ऊपर उठाईं, ‘‘अध्यापिका क्या पढ़ाती है, कुछ भी सुनाई नहीं देता, मैं सब से पीछे की लाइन में जो बैठती हूं.’’

‘‘क्यों, किस ने कहा पीछे बैठने को तुम से?’’

‘‘अध्यापिका ने. लंबी लड़कियों को  कहती हैं, पीछे बैठा करो, छोटी लड़कियों को ब्लैक बोर्ड दिखाई नहीं देता.’’

‘‘तो क्या पीछे बैठने वाली सारी लड़कियां फेल होती हैं? ऐसा कभी नहीं हो सकता. चलो, किताबें ले कर बैठो और मन लगा कर पढ़ो, समझी? कल मैं तुम्हारे स्कूल जा कर अध्यापिका से बात करूंगी?’’

झल्लाते हुए मैं कमरे से निकल गई. दिमाग की नसें झनझना कर टूटने को आतुर थीं. इतने वर्षों से अच्छीखासी पढ़ाई चल रही थी इस की. कक्षा की प्रथम 10-12 लड़कियों में आती थी. फिर अचानक नई कक्षा में आते ही इतना परिवर्तन क्यों? क्या सचमुच इस के भाग्य की रेखाएं…

नहींनहीं. ऐसा कभी नहीं हो सकेगा. रात को थकाटूटा तनमन ले कर बिस्तर पर पसरी, तो नींद जैसे आंखों से दूर जा चुकी थी. 11 वर्ष पूर्व से ले कर आज तक की एकएक घटना आंखों के सामने तैर रही थी.

‘‘बिटिया बहुत भाग्यशाली है, बहनजी.’’

‘‘जी पंडितजी. और?’’ अम्मां उत्सुकता से पंडितजी को निहार रही थीं.

‘‘और बहनजी, जहांजहां इस का पांव पड़ेगा, लक्ष्मी आगेपीछे घूमेगी. ननिहाल हो, ददिहाल हो और चाहे ससुराल.’’

2 महीने की अपनी फूल सी बिटिया को मेरी स्नेहसिक्त आंखों ने सहलाया, तो लगा, इस समय संसार की सब से बड़ी संपदा मेरे लिए वही है. मेरी पहलीपहली संतान, मेरे मातृत्व का गौरव, लक्ष्मी, धन, संपदा, सब उस के आगे महत्त्वहीन थे. पर अम्मां? वह तो पंडितजी की बातों से निहाल हुई जा रही थीं.

‘‘लेकिन…’’ पंडितजी थोड़ा सा अचकचाए.

‘‘लेकिन क्या पंडितजी?’’ अम्मां का कुतूहल सीमारेखा के समस्त संबंधों को तोड़ कर आंखों में सिमट आया था.

‘‘लेकिन विद्या की रेखा जरा कच्ची है, अर्थात पढ़ाईलिखाई में कमजोर रहेगी. पर क्या हुआ बहनजी, लड़की जात है. पढ़े न पढ़े, क्या फर्क पड़ता है. हां, भाग्य अच्छा होना चाहिए.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं, पंडितजी, लड़की जात को तो चूल्हाचौका संभालना आना चाहिए और क्या.’’

किंतु मेरा समूचा अंतर जैसे हिल गया हो. मेरी बेटी अनपढ़ रहेगी? नहींनहीं. मैं ने इंटर पास किया है, तो मेरी बेटी को मुझ से ज्यादा पढ़ना चाहिए, बी.ए., एम.ए. तक, जमाना आगे बढ़ता है न कि पीछे.

‘‘बी.ए. पास तो कर लेगी न पंडितजी,’’ कांपते स्वर में मैं ने पंडितजी के आगे मन की शंका उड़ेल दी.

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‘‘बी.ए., अरे. तोबा करो बिटिया, 10वीं पास कर ले तुम्हारी गुडि़या, तो अपना भाग्य सराहना. विद्या की रेखा तो है ही नहीं और तुम तो जानती ही हो, जहां लक्ष्मी का निवास होता है, वहां विद्या नहीं ठहरती. दोनों में बैर जो ठहरा,’’ वे दांत निपोर रहे थे और मैं सन्न सी बैठी थी.

यह कैसा भविष्य आंका है मेरी बिटिया का? क्या यह पत्थर की लकीर है, जो मिट नहीं सकती? क्या इसीलिए मैं इस नन्हीमुन्नी सी जान को संसार में लाई हूं कि यह बिना पढ़ेलिखे पशुपक्षियों की तरह जीवन काट दे.

दादी मां के 51 रुपए कुरते की जेब में ठूंस पंडितजी मेरी बिटिया का भविष्यफल एक कागज में समेट कर अम्मां के हाथ में पकड़ा गए.

पर उन के शब्दों को मैं ने ब्रह्मवाक्य मानने से इनकार कर दिया. मेरी बिटिया पढ़ेगी और मुझ से ज्यादा पढ़ेगी. बिना विद्या के कहीं सम्मान मिलता है भला? और बिना सम्मान के क्या जीवन जीने योग्य होता है कहीं? नहीं, नहीं, मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगी. किसी मूल्य पर भी नहीं.

3 वर्ष की होतेहोते मैं ने नन्ही निशा का विद्यारंभ कर दिया था. सरस्वती पूजा के दिन देवी के सामने उसे बैठा कर, अक्षत फूल देवी को अर्पित कर झोली पसार कर उस के वरदहस्त का वरदान मांगा था मैं ने, धीरेधीरे लगा कि देवी का आशीष फलने लगा है. अपनी मीठीमीठी तोतली बोली में जब वह वर्णमाला के अक्षर दोहराती, तो मैं निहाल हो जाती.

5 वर्ष की होतेहोते जब उस ने स्कूल जाना आरंभ किया था, तो वह अपनी आयु के सभी बच्चों से कहीं ज्यादा पढ़ चुकी थी. साथसाथ एक नन्हीमुन्नी सी बहन की दीदी भी बन चुकी थी, लेकिन नन्ही ऋचा की देखभाल के कारण निशा की पढ़ाई में मैं ने कोई विघ्न नहीं आने दिया था. उस के प्रति मैं पूरी तरह सजग थी.

स्कूल का पाठ याद कराना, लिखाना, गणित का सवाल, सब पूरी निष्ठा के साथ करवाती थी और इस परिश्रम का परिणाम भी मेरे सामने सुखद रूप ले कर आता था, जब कक्षा की प्रथम 10-12 बच्चियों में एक उस का नाम भी होता था.

5वीं कक्षा में जाने के साथसाथ नन्ही ऋचा भी निशा के साथ स्कूल जाने लगी थी. एकाएक मुझे घर बेहद सूनासूना लगने लगा था. सुबह से शाम तक ऋचा इतना समय ले लेती थी कि अब दिन काटे नहीं कटता था.

एक दिन महल्ले की समाज सेविका विभा के आमंत्रण पर मैं ने उन के साथ समाज सेवा के कामों में हाथ बंटाना स्वीकार कर लिया. सप्ताह में 3 दिन उन्हें लेने महिला संघ की गाड़ी आती थी जिस में अन्य महिलाओं के साथसाथ मैं भी बस्तियों में जा कर निर्धन और अशिक्षित महिलाओं के बच्चों के पालनपोषण, सफाई तथा अन्य दैनिक घरेलू विषयों के बारे में शिक्षित करने जाने लगी.

घर के सीमित दायरों से निकल कर मैं ने पहली बार महसूस किया था कि हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में कितना पिछड़ा हुआ है, महिलाओं में कितनी अज्ञानता है, कितनी अंधेरी है उन की दुनिया. काश, हमारे देश के तमाम शिक्षित लोग इस अंधेरे को दूर करने में जुट जाते, तो देश कहां से कहां पहुंच जाता. मन में एक अनोखाअनूठा उत्साह उमड़ आया था देश सेवा का, मानव प्रेम का, ज्ञान की ज्योति जलाने का.

पर आज एका- एक इस देश और मानव प्रेम की उफनतीउमड़ती नदी के तेज बहाव को एक झटका लगा. स्कूल से आ कर निशा किताबें पटक महल्ले के बच्चों के साथ खेलने भाग गई थी. उस की किताबें समेटते हुए उस की रिपोर्ट पर नजर पड़ी. 3 विषयों में फेल. एकएक कापी उठा कर खोली. सब में लाल पेंसिल के निशान, ‘बेहद लापरवाह,’ ‘ध्यान से लिखा करो,’  ‘…विषय में बहुत कमजोर’ की टिप्पणियां और कहीं कापी में पूरेपूरे पन्ने लाल स्याही से कटे हुए.

देखतेदेखते मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा. यह क्या हो रहा है? बाहर ज्ञान का प्रकाश बिखेरने जा रही हूं और घर में दबे पांव अंधेरा घुस रहा है. यह कैसी समाज सेवा कर रही हूं मैं. यही हाल रहा तो लड़की फेल हो जाएगी. कहीं पंडितजी की भविष्यवाणी…

और निशा को अंदर खींचते हुए ला कर मैं उस पर बुरी तरह बरस पड़ी थी.

दूसरे दिन विभा बुलाने आईं, तो मैं निशा के स्कूल जाने की तैयारी में व्यस्त थी.

‘‘क्षमा कीजिए बहन, आज मैं आप के साथ नहीं जा सकूंगी. मुझे निशा के स्कूल जा कर उस की अध्यापिका से मिलना है. उस की रिपोर्ट काफी खराब आई है. अगर यही हाल रहा तो डर है, उस का साल न बरबाद हो जाए. बस, इस हफ्ते से आप के साथ नहीं जा सकूंगी. बच्चों की पढ़ाई का बड़ा नुकसान हो रहा है.’’

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‘‘आप का मतलब है, आप नहीं पढ़ाएंगी, तो आप की बेटी पास ही नहीं होगी? क्या मातापिता न पढ़ाएं, तो बच्चे नहीं पढ़ते?’’

‘‘नहीं, नहीं बहन, यह बात नहीं है. मेरी छोटी बेटी ऋचा बिना पढ़ाए कक्षा में प्रथम आती है, पर निशा पढ़ाई में जरा कमजोर है. उस के साथ मुझे बैठना पड़ता है. हां, खेलकूद में कक्षा में सब से आगे है. इधर 3 वर्षों में ढेरों इनाम जीत लाई है. इसीलिए…’’

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी, पर समाज सेवा बड़े पुण्य का काम होता है. अपना घर, अपने बच्चों की सेवा तो सभी करते हैं…’’

वह पलट कर तेजतेज कदमों से गाड़ी की ओर बढ़ गई थी.

घर का काम निबटा कर मैं स्कूल पहुंची. निशा की अध्यापिका से मिलने पर पता चला कि वह पीछे बैठने के कारण नहीं, वरन 2 बेहद उद्दंड किस्म की लड़कियों की सोहबत में फंस कर पढ़ाई बरबाद कर रही थी.

‘‘ये लड़कियां किन्हीं बड़े धनी परिवारों से आई हैं, जिन्हें पढ़ाई में तनिक भी रुचि नहीं है. पिछले वर्ष फेल होने के बावजूद उन्हें 5वीं कक्षा में रोका नहीं जा सका. इसीलिए वे सब अध्यापिकाओं के साथ बेहद उद््दंडता का बरताव करती हैं, जिस की वजह से उन्हें पीछे बैठाया जाता है ताकि अन्य लड़कियों की पढ़ाई सुचारु रूप से चल सके,’’ निशा की अध्यापिका ने कहा.

सुन कर मैं सन्न रह गई.

‘‘यदि आप अपनी बेटी की तरफ ध्यान नहीं देंगी तो पढ़ाई के साथसाथ उस का जीवन भी बरबाद होने में देर नहीं लगेगी. यह बड़ी भावुक आयु होती है, जो बच्चे के भविष्य के साथसाथ उस का जीवन भी बनाती है. आप ही उसे इस भटकन से लौटा सकती हैं, क्योंकि आप उस की मां हैं. प्यार से थपथपा कर उसे धीरेधीरे सही राह पर लौटा लाइए. मैं आप की हर तरहसे मदद करूंगी.’’

‘‘आप से एक अनुरोध है, मिस कांता. कल से निशा को उन लड़कियों के साथ न बिठा कर कृपया आगे की सीट पर बिठाएं. बाकी मैं संभाल लूंगी.’’

घर लौट कर मैं बड़ी देर तक पंखे के नीचे आंखें बंद कर के पड़ी रही. समाज सेवा का भूत सिर पर से उतर गया था. समाज सेवा पीछे है, पहले मेरा कर्तव्य अपने बच्चों को संभालना है. ये भी तो इस समाज के अंग हैं. इन 4-5 महीने में जब से मैं ने इस की ओर ध्यान देना छोड़ा है, यह पढ़ाई में कितनी पिछड़ गई है.

अब मैं ने फिर पहले की तरह निशा के साथ नियमपूर्वक बैठना शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस की पढ़ाई सुधरने लगी. बीचबीच में मैं कमरे में जा कर झांकती, तो वह हंस देती, ‘‘आइए मम्मी, देख लीजिए, मैं अध्यापिका के कार्टून नहीं बना रही, नोट्स लिख रही हूं.’’

उस के शब्द मुझे अंदर तक पिघला देते, ‘‘नहीं बेटा, मैं चाहती हूं, तुम इतना मन लगा कर पढ़ो कि तुम्हारी अध्यापिका की बात झूठी हो जाए. वह तुम से बहुत नाराज हैं. कह रही थीं कि निशा इस वर्ष छठी कक्षा हरगिज पास नहीं कर पाएगी. तुम पास ही नहीं, खूब अच्छे अंकों में पास हो कर दिखाओ, ताकि हमारा सिर पहले की तरह ऊंचा रहे,’’ उस का मनोबल बढ़ा कर मैं मनोवैज्ञानिक ढंग से उस का ध्यान उन लड़कियों की ओर से हटाना चाहती थी.

धीरेधीरे मैं ने निशा में परिवर्तन देखा. 8वीं कक्षा में आ कर वह बिना कहे पढ़ाई में जुट जाती. उस की मेहनत, लगन व परिश्रम उस दिन रंग लाया, जब दौड़ते हुए आ कर वह मेरे गले में बांहें डाल कर झूल गई.

‘‘मां, मैं पास हो गई. प्रथम श्रेणी में. आप के पंडितजी की भविष्यवाणी झूठी साबित कर दी मैं ने? अब तो आप खुश हैं न कि आप की बेटी ने 10वीं पास कर ली.’’

‘‘हां, निशा, आज मैं बेहद खुश हूं. जीवन की सब से बड़ी मनोकामना पूर्ण कर के आज तुम ने मेरा माथा गर्व से ऊंचा कर दिया है. आज विश्वास हो गया है कि संसार में कोई ऐसा काम नहीं है, जो मेहनत और लगन से पूरा न किया जा सके. अब आगे…’’

‘‘मां, मैं डाक्टर बनूंगी. माधवी और नीला भी मेडिकल में जा रही हैं.’’

‘‘बाप रे, मेडिकल. उस में तो बहुत मेहनत करनी पड़ती है. हो सकेगी तुम से रातदिन पढ़ाई?’’

‘‘हां, मां, कृपया मुझे जाने दीजिए. मैं खूब मेहनत करूंगी.’’

‘‘और तुम्हारे खेलकूद? बैडमिंटन, नैटबाल, दौड़ वगैरह?’’

‘‘वह सब भी चलेगा साथसाथ,’’ वह हंस दी. भोलेभाले चेहरे पर निश्छल प्यारी हंसी.

मन कैसाकैसा हो आया, ‘‘ठीक है, पापा से भी पूछ लेना.’’

‘‘पापा कुछ नहीं कहेंगे. मुझे मालूम है, उन का तो यही अरमान है कि मैं डाक्टर नहीं बन सका, तो मेरी बेटी ही बन जाए. उन से पूछ कर ही तो आप से अनुमति मांग रही हूं. अच्छा मां, आप नानीजी को लिख दीजिएगा कि उन की धेवती ने उन के बड़े भारी ज्योतिषी की भविष्यवाणी झूठी साबित कर के 10वीं पास कर ली है और डाक्टरी पढ़ कर अपने हाथ की रेखाओं को बदलने जा रही है.’’

‘‘मैं क्यों लिखूं? तुम खुद चिट्ठी लिख कर उन का आशीर्वाद लो.’’

‘‘ठीक है, मैं ही लिख दूंगी. जरा अंक तालिका आ जाने दीजिए और जब इलाहाबाद जाऊंगी तो आप के पंडितजी के दर्शन जरूर करूंगी, जिन्हें मेरे भाग्य में विद्या की रेखा ही नहीं दिखाई दी थी.’’

आज 6 वर्ष बाद मेरी निशा डाक्टर बन कर सामने खड़ी है. हर्ष से मेरी आंखें छलछलाई हुई हैं.

दुख है तो केवल इतना कि आज अम्मां नहीं हैं. होतीं तो उन्हें लिखती, ‘‘अम्मां, लड़कियां भी लड़कों की तरह इनसान होती हैं. उन्हें भी उतनी ही सुरक्षा, प्यार तथा मानसम्मान की आवश्यकता होती है, जितनी लड़कों को. लड़कियां कह कर उन्हें ढोरडंगरों की तरह उपेक्षित नहीं छोड़ देना चाहिए.

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‘‘और ये पंडेपुजारी? आप के उन पंडितजी के कहने पर विश्वास कर के मैं अपनी बिटिया को उस के भाग्य के सहारे छोड़ देती, तो आज यह शुभ दिन कहां से आता? नहीं अम्मां, लड़कियों को भी ईश्वर ने शरीर के साथसाथ मन, मस्तिष्क और आत्मा सभी कुछ प्रदान किया है. उन्हें उपेक्षित छोड़ देना पाप है.’’

‘‘तुम भी तो एक लड़की हो, अम्मां, अपनी धेवती की सफलता पर गर्व से फूलीफूली नहीं समा रही हो? सचसच बताना.’’

पर कहां हैं पुरानी मान्यताओं पर विश्वास करने वाली मेरी वह अम्मां?

महिलाएं भारत में असुरक्षित

अमेरिकी सरकार ने हाल ही में एक चेतावनी जारी की है कि अमेरिकी नागरिक भारत जाते समय यह ध्यान रखें कि वहां बलात्कार बहुत होते हैं. यह बहुत ही गंभीर बात है कि महान हिंदू सांस्कृतिक राष्ट्र बनने की राह पर चलने वाला देश दुनिया में बलात्कार का केंद्र माना जाए और यह चेतावनी भारत जैसे थोड़े से ही देशों में दी गई है.

भारत के अपने नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार 2020 में 28 हजार ?बलात्कार के मामले दर्ज किए गए थे. बलात्कार के मामलों में ज्यादातर में लड़कियां खुद ही रेप छिपा जाती हैं और जहां मातापिता को पता चल भी जाए तो वे भी मुंह पर जिप लगा लेते हैं.

भारत में रेप पौराणिक युग से चला आ रहा है और कभी कोई देवता बलात्कारी को दंड देने के लिए अवतरित हुआ, ऐसा नहीं लगता. यहां तो बलात्कार के शक की शिकार को भी दोषी माना जाता है. वह अहिल्या या सीता की तरह दोषी मान ली जाती है और फिर या तो वह पत्थर बन जाती है या फिर उसे घर निकाला दे दिया जाता है.

यह आश्चर्य की बात है कि भारत के भगवा गैंग किसी को भी जय श्रीराम बोलने को मजबूर कर सकते हैं, कहीं भी मांस की बिक्री बंद करा सकते हैं, किसी भी सड़क या किसी की निजी संपत्ति पर मंदिर बना सकते हैं, किसी मसजिद को तोड़ सकते हैं पर बलात्कारी को नहीं पकड़ सकते.

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हाल ही में एक बालगृह में रह रही लड़की ने आरोप लगाया कि 16 वर्ष की आयु में उस का 400 लोगों ने रेप किया था, जिन में कई पुलिस वाले भी थे. क्या भगवाई प्रचारक इन अपराधियों को अपने सुधार करने वाले प्रवचनों से नहीं रोक सकते?

क्या इन अपराधों को रोकने के लिए हर नुक्कड़ पर खाकी वरदी वाले बैठाए जाएं, जबकि हर नुक्कड़ एक तिलकधारी सीताराम का दुपट्टा ओढ़े बैठा है जो दान तो ले रहा है पर क्या आदर्श व्यवहार लागू नहीं कर सकता?

अमेरिकी सरकार की नजर में नेपाल भारत से ज्यादा सुरक्षित है, बंगलादेश, अफ्रीका का मलावी देश ज्यादा सुरक्षित है. अमेरिकी चेतावनी ने अपने नागरिकों को भारत में धार्मिक हिंसा के प्रति भी आगाह किया है कि धर्म परिवर्तन का बहाना बना कर किसी भी विद्यर्मी विदेशी को भारत में निशाना बनाया जा सकता है.

रेप के मामलों में चेतावनी ने सख्त शब्दों में कहा है कि अमेरिकी नागरिकों को इस अपराध को झेलना पड़ सकता है चाहे उन्होंने सही ढंग के कपड़े ही क्यों न पहन रखे हों. अगर अमेरिकी महिला अश्वेत है तो उस के साथ भारत में कुछ ज्यादा ही बुरा व्यवहार रिपोर्ट किया गया है.

अपराध दुनिया में हर जगह होते हैं पर भारत में जितने मंदिर हैं और जितने प्रवचन हो रहे हैं और जितना ज्ञान यहां व्हाट्सऐप और फेसबुक पर बांटा जा रहा है उस से तो हर हिंदू भारतीय विशुद्ध आचरण वाला बन जाना चाहिए था. जो पूजापाठ, ईश्वर भक्ति, चढ़ावा, तीर्थयात्राएं, दानपुण्य भारत में होता है शायद कहीं और नहीं और फिर भी औरतें सुरक्षित न हों यह आखिर कैसे संभव है?

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यह चेतावनी सिर्फ अमेरिकी नागरिकों के लिए ही नहीं है. भारत में शाम ढलते ही भारतीय औरतें घरों में घुस जाती हैं क्योंकि धर्मशास्त्र सुनने के बाद भी सड़कों पर अपराधियों का जाल बिछा रहता है. आखिर क्यों? अगर धर्म सत्य के मार्ग पर चलाने वाला है तो भारत के लोगों को दुनिया के सब से सभ्य इंसान होना चाहिए, अगर धर्म परिवार प्रेम सिखाता है तो भारत में तो पारिवारिक विवाद शून्य के बराबर होने चाहिए. अगर धर्म हर पाप का लेखाजोखा रखने वाला है तो यहां कोई पापी होना ही नहीं चाहिए. मगर यहां तो कुछ और ही हो रहा है. इस का दोष सरकार को दें, पुलिस को दें या इन के ऊपर की शक्ति धर्म के ठेकेदारों को?

खाउड्या : रिश्वत लेना आखिर सही है या गलत

लेखक- मदन बड़ोलिया

सीतू झोंपड़पट्टी वाले थाने में नयानया सिपाही भरती हुआ था. एक दिन थानेदार ने उसे रामू बनिए को बुला लाने के लिए भेजा.

रामू बनिया तो घर पर नहीं मिला, पर उस के मुनीम ने सीतू को 50 रुपए का नोट पकड़ा कर कहा, ‘‘थानेदार से कह देना कि सेठजी आते ही थाने में हाजिर हो जाएंगे.’’

लौट कर सीतू ने 50 रुपए का नोट थानेदार की मेज पर रख दिया और साथ ही मुनीम का पैगाम भी कह सुनाया.

जब वह जाने लगा तो थानेदार ने 50 रुपए का नोट उसे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘इसे रख लो, यह तुम्हारा इनाम है.’’

बाद में थाने के सिपाहियों ने सीतू का काफी मजाक उड़ाया और बताया कि मुनीम ने 50 रुपए उसे दिए थे, न कि थानेदार को. थानेदार तो 100 रुपए से कम को हाथ तक नहीं लगाता.

सीतू 50 रुपए ले कर खुश हो गया. यह उस की पहली ऊपर की कमाई थी. थानेदार उस की ईमानदारी का कायल हो गया. इस के बाद से थानेदार को जहां से भी पैसा ऐंठना होता, तो वह सीतू को भेज देता या अपने साथ ले जाता.

सीतू जो भी पैसा ऐंठ कर लाता था, उस में से उसे भी हिस्सा मिलता था. धीरेधीरे उस के पास काफी पैसा जमा हो गया. पर मन के किसी कोने में उसे अपनी इस ऊपर की कमाई से एक तरह के जुर्म का अहसास होता, मगर जब वह अपनी तुलना दूसरों से करता तो यह अहसास कहीं गायब हो जाता.

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सीतू को एक बात अकसर चुभती थी कि कसबे के लोग बाकी सिपाहियों को तो पूरी इज्जत देते और सलाम करते थे, मगर उसे केवल मजबूरी में ही सलाम करते थे. वह चाहता था कि उसे भी दूसरे सिपाहियों के बराबर समझा जाए, मगर वह इस बारे में कुछ कर नहीं सकता था.

वैसे, अब सीतू काफी सुखी था.

उस के पास सरकारी मकान था. एक साइकिल भी उस ने खरीद ली थी. वह शान से साफसुथरे कपड़ों में रहता था. कम से कम झोंपड़पट्टी के लोग तो उस की कद्र करते ही थे.

सीतू अपने साथी सिपाहियों के मुकाबले खुद को बेहतर समझता था. उस के सभी साथी शादीशुदा थे, मगर वह इस झंझट से अभी तक आजाद था. मांबाप की याद भी उसे ज्यादा नहीं आती थी, क्योंकि उसे उन से ज्यादा लगाव कभी रहा ही नहीं था.

एक दिन सीतू अपनी साइकिल पर सवार हो कर बाजार से गुजर रहा था कि एक जगह भीड़ लगी देख कर वह रुक गया. उस ने देखा कि झोंपड़पट्टी में रहने वाली एक लड़की भीड़ से घिरी खड़ी थी और रोते हुए गालियां बक रही थी. वह कभीकभार भीड़ पर पत्थर भी फेंक रही थी.

भीड़ में शामिल लोग लड़की के पत्थर फेंकने पर इधरउधर भागते हुए उस के बारे में उलटीसीधी बातें कर रहे थे.

सीतू ने देखा कि कुछ लफंगे से दिखाई देने वाले लड़के उस लड़की को घेरने की कोशिश कर रहे थे. सीतू ने पास खड़े झोंपड़पट्टी में रहने वाले एक बूढ़े आदमी से पूछा, ‘‘बाबा, आखिर माजरा क्या है?’’

बूढ़े ने सीतू को पुलिस की वरदी में देख कर पहले तो मुंह बिचकाया, फिर बोला, ‘‘यह लड़की यहां बैठ कर लकड़ी के खिलौने बेच रही थी. जब सब खिलौने बिक गए, तो उस ने पैसे रख लिए और थैले में से रोटी निकाल कर खाने लगी.

‘‘तभी ये 3 बदमाश लड़के यहां आ धमके. एक ने उसे 50 का नोट दिखा कर पूछा कि ‘चलती है क्या मेरे साथ?’ तो लड़की ने उस के मुंह पर थूक दिया.

‘‘बस फिर क्या था, तीनों लड़के उस पर टूट पड़े. लड़की की चीखपुकार सुन कर भीड़ जमा हो गई तो लड़कों ने शोर मचा दिया कि इस लड़की ने चोरी की है. बस, तभी से यह नाटक चल रहा है.’’

इतना बता कर वह बूढ़ा सीतू को इस तरह घूर कर देखने लगा मानो कह रहा हो, ‘है हिम्मत इस लड़की को इंसाफ दिलाने की?’

इतना सुनते ही सीतू साइकिल की घंटी बजाते हुए भीड़ में जा घुसा. उस ने कड़क लहजे में लड़की से पूछा, ‘‘ऐ लड़की, यह सब क्या हो रहा है?’’

‘‘साहब, ये तीनों मुझ से बदतमीजी कर रहे हैं. मैं ने रोका तो जबरदस्ती करने लगे. मैं ने शोर मचाया तो बोले कि मैं चोर हूं, पर मैं ने कोई चोरी नहीं की है,’’ लड़की गुस्से में बोली.

‘‘साहब, यह झूठी है. यह तो पक्की चोर है. इस ने पहले भी कई चोरियां की हैं. जो घड़ी इस के हाथ में बंधी है वह मेरी है,’’ एक लड़के ने कहा.

‘‘इस ने मेरा 50 का नोट चुराया है,’’ दूसरा लड़का बोला.

‘‘ये लड़के झूठ बोलते हैं साहब. मैं ने चोरी नहीं की है,’’ लड़की ने सीतू के आगे हाथ जोड़ कर कहा.

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लड़की के मुंह से ‘साहब’ सुन कर सीतू की छाती चौड़ी हो गई. उस ने एक लड़के से पूछा, ‘‘क्या सुबूत है कि यह घड़ी तेरी है?’’

इस से पहले कि वह लड़का कुछ कह पाता, भीड़ में से किसी की आवाज आई, ‘‘इस लड़की के पास क्या सुबूत है कि यह घड़ी इसी की है?’’

यह सुन कर सीतू भड़क उठा. साइकिल स्टैंड पर लगा कर उस ने अपना डंडा निकाल लिया. फिर वह भीड़ की तरफ मुड़ गया और हवा में डंडा लहराते हुए बोला, ‘‘किसे चाहिए सुबूत? इस लड़की के पास यह सुबूत है कि घड़ी इस के कब्जे में है… और किसी को कुछ पूछना है? चलो, भागो यहां से. क्या यहां जादूगर का तमाशा हो रहा है?’’

सीतू की फटकार सुन कर वहां जमा हुए लोग धीरेधीरे खिसकने लगे.

‘‘देखो साहब, वे तीनों भी भाग रहे हैं,’’ लड़की बोली.

‘‘तुम तीनों यहीं रुको और बाकी सब लोग जाएं,’’ सीतू ने उन लफंगों को रोकते हुए कहा.

जब भीड़ छंट गई, तो सीतू उन लड़कों से बोला, ‘‘चलो, थाने चलो.’’

थाने का नाम सुन कर उन तीनों लड़कों के साथसाथ वह लड़की भी घबरा गई. वह बोली, ‘‘देखो साहब, ये तो बदमाश हैं, मगर मैं थाने नहीं जाना चाहती.’’

‘‘अरी, तुझे कोई खा जाएगा क्या वहां? मैं हूं न तेरे साथ,’’ सीतू उसे दिलासा देते हुए बोला.

‘‘साहब, घड़ी इसी के पास रहने दीजिए. कहां थाने के चक्कर में फंसाते हैं,’’ एक लड़का बोला.

‘‘साला… फिर कहता है कि मैं चोर हूं. चलो साहब, थाने ही चलो,’’ लड़की गुस्से में बोली.

‘‘गाली नहीं देते लड़की,’’ सीतू ने लड़की से कहा और फिर लड़कों से बोला, ‘‘मैं तुम लोगों को तब से देख रहा हूं, जब तुम ने इस लड़की को 50 का नोट दिखाया था.’’

यह सुन कर तीनों लड़कों के चेहरे फीके पड़ गए. सीतू ने लड़की को बूढ़े के पास रुकने को कहा और तीनों लड़कों को ले कर थाने की ओर बढ़ चला. लड़कों ने आपस में कानाफूसी की और एक लड़के ने सौ का नोट सीतू की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अब तो जाने दो साहब. कभीकभी गलती हो जाती है.’’

सीतू ने एक नजर नोट पर डाली और फिर इधरउधर देखा, कुछ लोग उन्हें देख रहे थे.

‘‘रिश्वत देता है. इस जुर्म की दफा और लगेगी,’’ कहते हुए सीतू उन्हें धकेलता हुआ सड़क के मोड़ पर ले गया.

‘‘साहब, इस समय तो हमारे पास इतने ही पैसे हैं,’’ कहते हुए लड़के ने 50 का नोट और बढ़ा दिया.

सीतू ने इधरउधर देखा, वहां उन्हें कोई नहीं देख रहा था. वह बोला, ‘‘ठीक है, अब आगे ऐसी घटिया हरकत मत करना.’’

‘अरे साहब, कसम पैदा करने वाले की, अब ऐसा कभी नहीं करेंगे,’ तीनों ने एकसाथ कहा.

‘‘अच्छा जाओ, मगर दोबारा अगर पकड़ लिया तो सीधा सलाखों के पीछे डाल दूंगा,’’ सीतू ने नोट जेब में रखते हुए कहा.

सीतू कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा, फिर धीरेधीरे साइकिल धकेलता हुआ वहीं जा पहुंचा, जहां बूढ़े के पास लड़की को छोड़ कर गया था. लड़की तो वहां नहीं थी, पर बूढ़ा वहीं बैठा हुआ था. बूढ़ा सीतू को सिर से पैर तक घूर रहा था.

‘‘ऐ बूढ़े, वह लड़की कहां गई?’’ सीतू ने पूछा.

बूढ़े ने सीतू को घूरते हुए कहा, ‘‘पुलिस में भरती हो गए तो क्या यह तमीज भी भूल गए कि बड़ेबूढ़ों से किस तरह बात करते हैं. वह लड़की चली गई, पर इस से तुम्हें क्या मतलब? तुम्हारी जेब तो गरम हो गई न, जाओ ऐश करो.’’

‘‘क्या बकता है? किस की जेब की बात करता है? तुम ने उस लड़की को क्यों जाने दिया?’’ सीतू भड़क उठा.

‘‘इस इलाके में कोई भी तुम पुलिस वालों पर यकीन नहीं करता. ऐसे में वह लड़की क्या करती? सोचा था कि अपनी बिरादरी का एक आदमी पुलिस में आया है तो वह कुछ ठीक करेगा, मगर वाह री पुलिस की नौकरी, बेच दी अपनी ईमानदारी शैतान के हाथों और बन गया खाउड्या… जा खाउड्या अपना काम कर.’’

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‘‘क्या बकता है? थाने में बंद कर दूंगा,’’ कहने को तो सीतू कह गया, मगर न जाने क्यों वह बूढ़े से नजरें नहीं मिला पाया.

सीतू इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि रिश्वत लेना जुर्म है, मगर आज तक किसी पुलिस वाले ने उसे यह बात नहीं बताई थी. हां, साथियों ने यह जरूर समझाया था कि रिश्वत लेते समय पूरी तरह से चौकस रहना बहुत ही जरूरी होता है.

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