Summer Special: गर्मियों में दिखना चाहती हैं कूल, तो ट्राई करें ये 5 कौटन ड्रेस

अक्सर आप गरमियों में कम्फरटेबल और लाइट कलर के कपड़े पहनना पसंद करते हैं, जिनमें सौफ्ट और गरमी को सहने वाला कौटन सबसे अच्छा कपड़ा होता है. वहीं, ऐसे मौसम में वाइट कलर सबसे ज्यादा लोग पसंद करते हैं, जबकि पेस्टल शेड्स दिमाग और बौडी दोनों को कूलिंग इफेक्ट करता है. बाजार में कौटन के कई तरह के फैशन मिलते हैं, जैसे शौर्ट या लौंग, हाफ या फुल स्लीव. इसी के साथ कपड़ों में अलग-अलग तरह के प्रिंट भी मिलते हैं. और आज हम ऐसे ही कौटन ड्रैसेज के बारे में बताएंगे, जो कंफर्ट के साथ-साथ आपके स्टाइल को भी एक अलग लुक देगा…

1. बोहेमियन कौटन ड्रेस…

 

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यह गरमियों में कूल और आरामदायक ड्रैस है, जिस पर बोहेमियन प्रिंट किया जाता है. यह एक स्लीवलेस लौंग ड्रैस होती है, जो कैज़ुअल आउटिंग्स के लिए परफैक्ट है. यह यूथ के लिए एक हिट ड्रैस है.

2. ब्लौक प्रिंट ड्रेस

 

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कौटन के कपड़े नौर्मली ब्लौक प्रिंट डिजाइन के साथ प्रिंट किए जाते हैं. यह राजस्थानी डिजाइन है जो इंडिया के साथ-साथ विदेश में भी पौपुलर है. यह ब्लौक प्रिंट कौटन ड्रेस लौंग होती है, जिसमें स्लीव्स छोटी होती हैं. ड्रैस में कमर वाले हिस्से पर एक पतली बेल्ट होती है. आम तौर पर ब्लॉक प्रिंट में फ्लावर एब्सट्रैक्ट डिजाइन आते हैं।

3. रैप कौटन ड्रैस…

यहां एक सुंदर रैप कौटन समर ड्रेस है, जो पार्टियों के लिए परफेक्ट है. रैप स्टाइल ड्रेस बौडी को रैप की तरह कवर करती है. ड्रैस को कमर के किनारे एक बेल्ट के साथ फिट किया जाता है. फ्रिल्ड ड्रेस और बेल स्लीव्स ड्रेस को स्टाइलिश बनाता है. इसका प्रिंट और पैटर्न बौडी को पतला बनाता है.

4. बोट नैक ड्रेस

 

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गरमियो में लेडिज के लिए कौटन ड्रैसेज में बोट नैक ड्रैसेज पौपुलर है, ये ड्रैस हर तरह के प्रिंट और पैटर्न में आता है. बोट नेक ड्रेस सिंपल लोगों के लिए परफेक्ट है. पौकेट के साथ फ्लेयर्ड ड्रेस स्टाइलिश है. खूबसूरत महिलाओं के लिए बोट नेक डिजाइन बहुत ही शानदार हैं.

5. पौकेट कौटन ड्रैस…

इसे लाइट कलर के साथ प्रिंट किया जाता है,  जिसमें ए-लाइन कट किया जाता है. यह ड्रैस लंबी होती है जिसे आप डेली औफिस या घूमने के पहन सकते हैं. चार्मिंग लगने के साथ यह आपको आराम भी देगी.

शक: क्या हुआ था राघव और ऋतिका के बीच

ऋतिका हंसमुंख और मिलनसार स्वभाव की तो थी ही, पुरुष सहकर्मियों के साथ भी बेहिचक बात करती थी. साथ काम करने वाली लड़कियों के साथ शौपिंग पर भी चली जाती थी और वहां खानेपीने का बिल भी दे देती थी. लेकिन जब कोई लड़की उसे अपने घर पर बुलाती थी तो वह मना कर देती थी.

‘‘लगता है इस के घर में जरूर कुछ गड़बड़ है तभी यह नहीं चाहती कि कोई इस के घर आए और यह किसी के घर जाए,’’ आरती बोली.

‘‘मुझे भी यही लगता है, क्योंकि फिल्म देखने या रेस्तरां चलने को कहो तो तुरंत मान जाती है और बिल भरने को भी तैयार रहती है,’’ मीता ने जोड़ा, तो सोनिया और चंचल ने भी सहमति में सिर हिलाया.

‘‘इतनी अटकलें लगाने की क्या जरूरत है?’’ पास बैठे राघव ने कहा, ‘‘ऋतिका बीमार है, इसलिए आप सब उसे देखने के बहाने उस का घर देख आओ.’’

‘‘उस के पापा टैलीफोन विभाग के आला अफसर हैं और शाहजहां रोड की सरकारी कोठी में रहते हैं, इतनी जानकारी तो जाने के लिए काफी नहीं है,’’ मीता ने लापरवाही से कहा.

बात वहीं खत्म हो गई. अगले सप्ताह ऋतिका औफिस आ गई. उस के पैर में मोच आ गई थी, इसलिए चलने में अभी भी दिक्कत हो रही थी. शाम को उसे छुट्टी के बाद भी काम करते देख कर राघव ने कहा, ‘‘मैं ने आप का कोई काम भी पैंडिंग नहीं रहने दिया था, फिर क्यों आप देर तक रुकी हैं?’’

‘‘धन्यवाद राघवजी, मैं काम नहीं नैट सर्फिंग कर रही हूं.’’

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘मजबूरी है. चार्टर्ड बस तक चल कर नहीं जा सकती और पापा को लेने आने में अभी देर है.’’

‘‘तकलीफ तो लगता है आप को बैठने में भी हो रही है?’’

‘‘हो तो रही है, लेकिन पापा मीटिंग में व्यस्त हैं, इसलिए बैठना तो पड़ेगा ही.’’

‘‘अगर एतराज न हो तो मेरे साथ चलिए.’’

‘‘इस शर्त पर कि आप चाय पी कर जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, अभी और्डर करता हूं.’’

‘‘ओह नो… मेरा मतलब है मेरे घर पर.’’

‘‘इस में शर्त काहे की… किसी के भी घर जाने पर चायनाश्ते के लिए रुकना पड़ता ही है.’’

ऋतिका ने पापा को मोबाइल पर आने को मना कर दिया. फिर राघव के साथ घर पहुंच गई. मां भी विनम्र थीं. कुछ देर बाद ऋतिका के पापा भी आ गए. वे भी राघव को ठीक ही लगे. कुल मिला कर घर या परिवार में कुछ ऐसा नहीं था जिसे ऋतिका किसी से छिपाना चाहे. बातोंबातों में पता चला कि वे लोग कई वर्षों से हैदराबाद में रह रहे थे और उन्हें वह शहर पसंद भी बहुत था.

‘‘इन की तो विभिन्न जिलों में बदली होती रहती थी, लेकिन मैं बच्चों के साथ हमेशा हैदराबाद में ही रही. बहुत अच्छे लोग हैं वहां के… अकेले रहने में कभी कोई परेशानी नहीं हुई,’’ ऋतिका की मां ने बताया.

‘‘यहां तो अभी आप की जानपहचान नहीं हुई होगी?’’ राघव ने कहा.

‘‘पासपड़ोस में हो गई है. वैसे रिश्तेदार बहुत हैं यहां, लेकिन अभी उन से मिले नहीं हैं. ऋतु पत्राचार से एमबीए की पढ़ाई कर रही है, इसलिए औफिस के बाद का सारा समय पढ़ाई में लगाना चाहती है और हम भी इसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहते. मिलने के बाद तो आनेजाने का सिलसिला शुरू हो जाएगा न.’’

राघव को ऋतिका की सहेलियों से मेलजोल न बढ़ाने की बात तो समझ आ गई, लेकिन एमबीए करने की बात छिपाने की नहीं.

यह सुन कर कि राघव के मातापिता सऊदी अरब में और बहन अपने पति के साथ सिंगापुर में रहती है और वह यहां अकेला, ऋतिका की मां ने आग्रह किया, ‘‘कभी घर वालों की याद आए तो आ जाया करो बेटा, अच्छा लगेगा तुम्हारा आना.’’

‘‘जी जरूर,’’ कह राघव ऋतिका की ओर मुड़ा, ‘‘आप डिस्टर्ब तो नहीं होंगी न?’’

‘‘कभीकभार कुछ देर के लिए चलेगा,’’ ऋतिका शोखी से मुसकाराई, ‘‘मगर यह एमबीए वाली बात औफिस में किसी को मत बताइएगा प्लीज.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि चंद घंटों की पढ़ाई के बाद सफलता की कोई गारंटी तो होती नहीं तो क्यों व्यर्थ में ढिंढोरा पीट कर अपना मजाक बनाया जाए. पास हो गई तो पार्टी कर के बता दूंगी.’’

राघव ने औफिस में किसी को ऋतिका के घर जाने की बात भी नहीं बताई. कुछ दिनों के बाद ऋतिका ने उसे डिनर पर आने को कहा.

‘‘आज मेरे छोटे भाई ऋषभ का बर्थडे है. वह तो आस्ट्रेलिया में पढ़ रहा है, लेकिन मम्मी उस का जन्मदिन मनाना चाहती हैं पकवान बगैरा बना कर… अब उन्हें खाने वाले भी तो चाहिए… आप आ जाएं… पापा के औफिस और पड़ोस के कुछ लोग होंगे… मम्मी खुश हो जाएंगी,’’ ऋतिका ने आग्रह किया.

न जाने का तो सवाल ही नहीं था. ऋतिका ने अन्य मेहमानों से उस का परिचय अपने सहकर्मी के बजाय अपना मित्र कह कर कराया. उसे अच्छा लगा.

अगले सप्ताहांत चंचल ने सभी को बहुत आग्रह से अपने भाई की सगाई में बुलाया तो सब सहर्ष आने को तैयार हो गए.

‘‘माफ करना चंचल, मैं नहीं आ सकूंगी,’’ ऋतिका ने विनम्र परंतु इतने दृढ़ स्वर में कहा कि चंचल ने तो दोबारा आग्रह नहीं किया, लेकिन राघव ने मौका मिलते ही अकेले में कहा, ‘‘अगर आप अकेले जाते हुए हिचक रही हों तो मुझे आप ने मित्र कहा है, मित्र के साथ चलिए.’’

‘‘मित्र कहा है सो बता देती हूं कि मैं इस तरह के पारिवारिक समारोहों में कभी नहीं जाती.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि ऐसे समारोहों में ही सहेलियों की मामियां, चाचियां अपने चहेतों के लिए लड़कियां पसंद करती हैं. सहेलियों के भाई और उन के दोस्त तो ऐसी दावतों में जाते ही लड़कियों को लाइन मारने लगते हैं. वैसे सुरक्षित लड़के भी नहीं हैं, कुंआरी कन्याओं के अभिभावक भी गिद्ध दृष्टि से शिकार का अवलोकन करते हैं.’’

‘‘आप मुझे डरा रही हैं?’’

‘‘कुछ भी समझ लीजिए… जो सच है वही कह रही हूं.’’

‘‘खैर, कह तो सच रही हैं, फिर भी मुझे तो जाना ही पड़ेगा, क्योंकि औफिस से आप के सिवा सभी जा रहे हैं.’’

कुछ रोज बाद राघव को एक दूसरी कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई. ऋतिका बहुत खुश हुई.

‘‘अब हम जब चाहें मिल सकते हैं… औफिस की अफवाहों का डर तो रहा नहीं.’’

राघव की बढि़या नौकरी मिलने की खुशी और भी बढ़ गई. मुलाकातों का सिलसिला जल्दी दोस्ती से प्यार में बदल गया और फिर राघव ने प्यार का इजहार भी कर दिया.

ऋतिका ने स्वीकार तो कर लिया, लेकिन इस शर्त के साथ कि शादी सालभर बाद भाई के आस्ट्रोलिया से लौटने पर करेगी. राघव को मंजूर था क्योंकि उस के पिता को भी अनुबंध खत्म होने के बाद ही अगले वर्ष भारत लौटने पर शादी करने में आसानी रहती और वह भी नई नौकरी में एकाग्रता से मेहनत कर के पैर जमा सकता था.

भविष्य के सुखद सपने देखते हुए जिंदगी मजे में कट रही थी कि अचानक उसे टूर पर हैदराबाद जाना पड़ा. औफिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उसे वहां अपनी बहन को देने के लिए एक पार्सल दिया.

‘‘मेरी बहन और जीजाजी डाक्टर हैं, उन का अपना नर्सिंगहोम है, इसलिए वे तो कभी दिल्ली आते नहीं किसी आतेजाते के हाथ उन्हें यहां की सौगात सोहन हलवा, गज्जक बगैरा भेज देता हूं. तुम मेरी बहन को फोन कर देना. वे किसी को भेज कर सामान मंगवा लेंगी.’’

मगर राघव के फोन करने पर डा. माधुरी ने आग्रह किया कि वह डिनर उन के साथ करे. बहुत दिन हो गए किसी दिल्ली वाले से मिले हुए… वे उसे लेने के लिए गाड़ी भिजवा देंगी.

माधुरी और उस के पति दिनेश राघव से बहुत आत्मीयता से मिले और दिल्ली के बारे में दिलचस्पी से पूछते रहे कि कहां क्या नया बना है बगैरा. फिर उस के बाद उन्होंने अजनबियों के बीच बातचीत के सदाबहार विषय राजनीति और भ्रष्टाचार पर बात शुरू कर दी.

‘‘कितने भी अनशन और आंदोलन हो जाएं, कानून बन जाएं या सुधार हो जाएं सरकार या सत्ता से जुड़े लोग नहीं सुधरने वाले,’’ माधुरी ने कहा, ‘‘उन के पंख कितने भी कतर दिए जाएं, उन का फड़फड़ाना बंद नहीं होता.’’

‘‘प्रकाश का फड़फड़ाना फिर याद आ गया माधुरी?’’ दिनेश ने हंसते हुए पूछा.

राघव चौंक पड़ा. यह तो ऋतिका के पापा का नाम है. उस ने दिलचस्पी से माधुरी की ओर देखा, ‘‘मजेदार किस्सा लगता है दीदी, पूरी बात बताइए न?’’

माधुरी हिचकिचाई, ‘‘पेशैंट से बातचीत गोपनीय होती है, मगर वे मेरे पेशैंट नहीं थे,

2-3 साल पुरानी बात है और फिर आप तो इस शहर के हैं भी नहीं. एक साहब मेरे पास अबौर्शन का केस ले कर आए. पर मेरे यह कहने पर कि हमारे यहां यह नहीं होता उन्होंने कहा कि अब तो और कुछ भी नहीं हो सकेगा, क्योंकि वे टैलीफोन विभाग में चीफ इंजीनियर हैं. मैं ने बड़ी मुश्किल से हंसी रोक कर उन्हें बताया कि हमारे यहां तो प्राय सभी फोन, रिलायंस और टाटा इंडिकौम के हैं, सरकारी फोन अगर है भी तो खराब पड़ा होगा. उन की शक्ल देखने वाली थी. मगर फिर भी जातेजाते अन्य सरकारी विभागों में अपनी पहुंच की डुगडुगी बजा कर मुझे डराना नहीं भूले.’’

तभी नौकर खाने के लिए बुलाने आ गया. खाना बहुत बढि़या था और उस से भी ज्यादा बढि़या था स्नेह, जिस से मेजबान उसे खाना खिला रहे थे. लेकिन वह किसी तरह कौर निगल रहा था.

होटल के कमरे में जाते ही वह फूटफूट कर रो पड़ा कि क्यों हुआ ऐसा उस के साथ? क्यों भोलीभाली मगर संकीर्ण स्पष्टवादी ऋतिका ने उस से छिपाया अपना अतीत? वह संकीर्ण मानसिकता वाला नहीं है.

जवानी में सभी के कदम बहक जाते हैं. अगर ऋतिका उसे सब सच बता देती तो वह उसे सहजता से सब भूलने को कह कर अपना लेता. ऋतिका के परिवार का रिश्तेदारों से न मिलनाजुलना, ऋतिका का सहेलियों के घर जाने से कतराना और उन के परिवार के लिए सटीक टिप्पणी करना, डा. माधुरी के कथन की पुष्टि करता था.

लौटने पर राघव अभी तय नहीं कर पाया था कि ऋतिका से कैसे संबंधविच्छेद करे. इसी बीच अकाउंट्स विभाग ने याद दिलाया कि अगर उस ने कल तक अपने पुराने औफिस का टीडीएस दाखिल नहीं करवाया तो उसे भारी इनकम टैक्स भरना पड़ेगा.

राघव ने तुरंत अपने पुराने औफिस से संपर्क किया. संबंधित अधिकारी से उस की अच्छी जानपहचान थी और उस ने छूटते ही कहा कि तुम्हारे कागजात तैयार हैं, आ कर ले जाओ. पुराने औफिस जाने का मतलब था ऋतिका से सामना होना जो राघव नहीं चाहता था.

‘‘औफिस के समय में कैसे आऊं नमनजी, आप किसी के हाथ भिजवा दो न प्लीज.’’

‘‘आज तो मुमकिन नहीं है और कल का भी वादा नहीं कर सकता. वैसे मैं तो आजकल 7 बजे तक औफिस में रहता हूं, अपने औफिस के बाद आ जाना.’’

राघव को यह उचित लगा, क्योंकि ऋतिका 5 बजे की चार्टर्ड बस से चली जाएगी. अत: उस के बाद वह इतमीनान से नमनजी के पास जा सकता है.

6 बजे के बाद नमनजी कागज ले कर जब वह लौट रहा था तो लिफ्ट का इंतजार करती ऋतिका मिल गई.

‘‘तुम अभी तक घर नहीं गईं?’’ वह पूछे बगैर नहीं रह सका.

‘‘एक प्रोजैक्ट रिपोर्ट पूरी करने के चक्कर में रुकना पड़ा. लेकिन तुम कहां गायब थे रविवार के बाद से?’’

‘‘सोम की शाम को अचानक टूर पर हैदराबाद जाना पड़ गया, आज ही लौटा हूं.’’

‘‘अच्छा किया जाने से पहले घर नहीं आए वरना मम्मी न जाने कितने पार्सल पकड़ा देतीं अपनी सखीसहेलियों के लिए.’’

‘‘पार्सल तो फिर भी ले कर गया था बड़े साहब की बहन डा. माधुरी के लिए,’’ राघव ने पैनी दृष्टि से ऋतिका को देखा, ‘‘तुम तो जानती होगी डा. माधुरी को?’’

ऋतिका के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया और वह लापरवाही से कंधे झटक कर बोली, ‘‘कभी नाम भी नहीं सुना. पापा को फोन कर दूं कि वे सीधे घर चले जाएं मैं तुम्हारे साथ आ रही हूं. पहले कहीं कौफी पिलाओ, फिर घर चलेंगे.’’

राघव मना नहीं कर सका और फिर घर पर डा. माधुरी का नाम बता कर प्रकाश और रमा की प्रतिक्रिया देखने की जिज्ञासा भी थी.

रमा के चेहरे पर तो डा. माधुरी का नाम सुन कर कोई भाव नहीं आया, मगर प्रकाश जरूर सकपका सा गए. रमा के आग्रह के बावजूद राघव खाने के लिए नहीं रुका और यह पूछने पर कि फिर कब आएगा उस ने कुछ नहीं कहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि मांबेटी सफल अदाकारा की तरह डा. माधुरी को न जानने का नाटक कर रही थीं या उन्हें बगैर कुछ बताए प्रकाश साहब अबौर्शन की व्यवस्था करने गए थे.

कुछ भी हो ऋतिका को निर्दोष तो नहीं कहा जा सकता. लेकिन चुपचाप सब बरदाश्त भी तो नहीं हो सकता. यह भी अच्छा ही था कि अभी न तो सगाई हुई थी और न इस बारे में परिवार के अलावा किसी और को पता था, इसलिए धीरेधीरे अवहेलना कर के किनारा कर सकता है. रात इसी उधेड़बुन में कट गई.

सुबह वह अखबार ले कर बरामदे में बैठा ही था कि प्रकाश की गाड़ी घर के सामने रुकी. उन का आना अप्रत्याशित तो नहीं था, मगर इतनी जल्दी आने की संभावना भी नहीं थी.

‘‘रात तो खैर अपनी थी जैसेतैसे काट ली, लेकिन दिन को तो तुम्हें भी काम करना है और मुझे भी और उस के लिए मन का स्थिर होना जरूरी है, इसलिए औफिस जाने से पहले तुम से बात करने आया हूं,’’ प्रकाश ने बगैर किसी भूमिका के कहा, ‘‘यहीं बैठेंगे या अंदर चलें?’’

‘‘अंदर चलिए अंकल,’’ राघव विनम्रता से बोला और फिर नौकर को चाय लाने को कहा.

‘‘मैं नहीं जानता डा. माधुरी ने तुम से क्या कहा, मगर जो भी कहा होगा उसे सुन कर तुम्हारा विचलित होना स्वाभाविक है,’’ प्रकाश ने ड्राइंगरूम में बैठते हुए कहा, ‘‘और यह सोचना भी कि तुम से यह बात क्यों छिपाई गई. वह इसलिए कि किसी की जिंदगी के बंद परिच्छेद बिना वजह खोलना न मुझे पसंद है और न ऋतु को. मैं ने अपनी भतीजी रुचि को हैदराबाद में एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब दिलवाई थी.

वह हमारे साथ ही रहती थी.

‘‘सौफ्टवेयर टैकीज के काम के घंटे तो असीमित होते हैं, इसलिए हम ने रुचि के देरसवेर आने पर कभी रोक नहीं लगाई और इस गलती का एहसास हमें तब हुआ जब रुचि ने बताया कि वह मां बनने वाली है, उस की सहेली का भाई उस से शादी करने को तैयार है, लेकिन कुछ समय यानी पैसा जोड़ने के बाद, क्योंकि उस की जाति में दहेज की प्रथा है और उस के मातापिता बगैर दहेज के विजातीय लड़की से उसे कभी शादी नहीं करने देंगे. पैसा जोड़ कर वह मांबाप को दहेज दे देगा.

‘‘फिलहाल रुचि को गर्भपात करवाना पड़ेगा. हम भी नहीं चाहते थे कि रुचि के मातापिता को इस बात का पता चले. अत: मैं ने गर्भपात करवाने की जिम्मेदारी ले ली. जिन अच्छे डाक्टरों से संपर्क किया उन्होंने साफ मना कर दिया और झोला छाप डाक्टरों से मैं यह काम करवाना नहीं चाहता था. बहुत परेशान थे हम लोग. तब हमें परेशानी से उबारा ऋतु और ऋषभ ने.

‘‘ऋतु को आईआईएम अहमदाबाद में एमबीए में दाखिला मिल गया था और ऋषभ भी अमेरिका जाने की तैयारी कर रहा था. दोनों ने कहा कि जो पैसा हम ने उन की पढ़ाई पर लगाना है, उसे हम रुचि को दहेज में दे कर उस की शादी तुरंत प्रशांत से कर दें. और कोई चारा भी नहीं था. मुझ में अपने भाईभाभी की नजरों में गिरने और लापरवाह कहलवाने की हिम्मत नहीं थी. अत: इस के लिए मैं ने अपने बच्चों का भविष्य दांव पर लगा दिया.

‘‘खैर, रुचि की शादी हो गई, बच्चा भी हो गया और उस के बाद दोनों को ही बैंगलुरु में बेहतर नौकरी भी मिल गई. ऋतु ने भी पत्राचार से एमबीए कर लिया और ऋषभ भी आस्ट्रेलिया चला गया. इस में रुचि और प्रशांत ने भी उस की सहायता करी.’’

‘‘मगर मेरा हैदराबाद में रहना मुश्किल हो गया. लगभग सभी नामीगिरामी

डाक्टरों के पास मैं गया था और उन सभी से गाहेबगाहे क्लब या किसी समारोह में आमनासामना हो जाता था. वे मुझे जिन नजरों से देखते थे उन्हें मैं सहन नहीं कर पाता था. मैं ने कोशिश कर के दिल्ली बदली करवा ली. सोचा था वह प्रकरण खत्म हो गया. लेकिन वह तो लगता है मेरी बेटी की ही खुशियां छीन लेगा.

‘‘तुम्हें मेरी कहानी मनगढं़त लगी हो तो मैं रुचि को यहां बुला लेता हूं. उस के बच्चे की उम्र और डा. माधुरी की बताई तारीखों से सब बात स्पष्ट हो जाएगी.’’

‘‘इस सब की कोई जरूरत नहीं है पापा.’’

अभी तक अंकल कहने वाले राघव के ऋतिका की तरह पापा कहने से प्रकाश को लगा कि राघव के मन में अब कोई शक नहीं है.

 

प्रेगनेंसी के दौरान करें ये 5 एक्सरसाइज तो रहेंगी फिट

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को कई प्रौब्लम का सामना करना पड़ता है. कई बार ये प्रौब्लम्स प्रेग्नेंसी में ज्यादा न करने व एक्सरसाइज न करने से होता है. इसीलिए जरूरी है कि प्रेग्नेंसी में एक्सरसाइज करना न भूलें. प्रेग्नेंसी के दौरान डौक्टर कुछ खास एक्सरसाइज बताते हैं, जिसे करने से मां और बच्चे की सेहत बनी रहती है. साथ ही प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली प्रौब्लम्स से भी छुटकारा मिलते है.

कम्फर्ट के अनुसार करें एक्सरसाइज

एक्सरसाइज शरीर को मजबूती प्रदान करने वाले होने चाहिए. इस के लिए आप तैराकी करें, टहलें और अपने शरीर को स्ट्रैच करें. ये एक्सरसाइज हफ्ते में 3 बार किए जा सकते हैं. होने वाली मां ध्यान रखें कि उतनी ही देर तक एक्सरसाइज करें जितनी देर तक वे इस में कम्फर्ट महसूस करें. यह बात बेहद महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने शरीर और सुविधा के अनुसार ही एक्सरसाइज करें क्योंकि एक्सरसाइज के दौरान हार्ट रेट सामान्य ही होनी चाहिए. आप इसे इस तरह ले सकती हैं कि एक्सरसाइज के समय आप आराम से किसी से बातचीत कर सकें. आइए आपको बताते हैं प्रेग्नेंसी के दौरान किए जाने वाली खास एक्सरसाइज के बारे में…

 

1. स्क्वाट्स

यह पैरों के लिए बहुत अच्छा एक्सरसाइज है. पैरों को कंधे के बराबर में खोलें. अपनी रीढ़ की दिशा में नाभी को अंदर खीचें और एबडौमिनल्स को टाइट करें. धीरे-धीरे अपने शरीर को नीचे की ओर झुकाएं जैसे कि आप कुरसी पर बैठी हों. यदि आप इतनी नीचे जा सकें कि आप के पैर आप के घुटनों की सीध में आ जाएं तो अच्छा होगा. लेकिन ऐसा न हो तो आप जितनी कोशिश कर सकती हैं उतना ही नीचे जाएं. यह सुनिश्चित कर लें कि आप के घुटने आप के पैरों की उंगलियों के पीछे हैं. 4 तक गिनती गिनें और फिर धीर-धीरे अपने शरीर को पहले वाली स्थिति में वापस ले आएं. इस प्रक्रिया को 5 बार दोहराएं.

2. केगेल एक्सरसाइज

केगेल एक्सरसाइज मूत्राशय, गर्भाशय और आंत का समर्थन करने वाली मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद करता है. गर्भावस्था के दौरान इन मजबूत मांसपेशियों के सहारे आप आराम से प्रसव पीड़ा को झेल सकती हैं और शिशु को जन्म दे सकती हैं. केगेल करने के लिए आप को ऐसा सोचना पड़ेगा जैसे आप मूत्र के प्रवाह को रोकने का  प्रयास कर रही हों. ऐसा करते वक्त आप पैल्विक फ्लोर की मांसपेशियों को नियंत्रित करेंगी. ऐसा करते वक्त 5 बार गिनती गिनें. इस प्रक्रिया को 10 बार दोहराएं. यह एक्सरसाइज दिन में 3 बार करना चाहिए.

3. ऐबडौमिनल एक्सरसाइज

इस अभ्यास से पेट की मांसपेशियां मजबूत बनती हैं. जमीन पर पैरों को मोड़ कर बैठें और पीठ एकदम सीधी रखें. अब अपने पेट को अंदर की तरफ लें और उन्हें टाइट रख कर 10 सैकंड तक रखें. लेकिन यह सुनिश्चित कर लें कि ऐसा करते वक्त आप को सांस नहीं रोकनी है. इस के बाद आराम से अपनी प्रारंभिक अवस्था में लौट आएं. इस प्रक्रिया को 10 बार दोहराएं.

4. कैट ऐंड कैमल एक्सरसाइज

यह अभ्यास आप की पीठ और पेट को मजबूत बनाता है.इस अभ्यास को करने के लिए चटाई पर हाथों और घुटनों के बल बैठ जाएं. घुटने आप के कूल्हे की सीध में होने चाहिए और कलाई कंधों की सीध में. साथ ही यह सुनिश्चित कर लें कि पेट लटक न रहा हो.अब अपना सिर झुकाएं और अपने पेट को अंदर की तरफ ले जाएं. अपनी रीढ़ की हड्डी को ऊपर की तरफ निकालें. इस अवस्था में 10 सैकंड तक रहें. लेकिन सांस लेना बंद न करें.

 

5. एक्सरसाइज के लिए चेतावनी संकेत

– सीने में दर्द, पेट में दर्द, पैल्विक पेन या लगातार संकुचन.

– भ्रूण की स्थिति में ठहराव आना.

– योनि से तेजी से तरल पदार्थ का स्राव होना.

– अनियमित या तेज दिल की धड़कन.

– हाथपैरों में अचानक सूजन आ जाना.

– चलने या सांस लेने में दिक्कत.

– मांसपेशियों में कमजोरी.

– एक्सरसाइज तब भी हानिकारक है जब आप को गर्भावस्था से संबंधित कोई परेशानी हो.

– प्लेसैंटा का गर्भाशय ग्रीवा के पास होना या गर्भाशय ग्रीवा को पूरी तरह से कवर करना.

– पिछले प्रसव के दौरान आई समस्याएं जैसे प्रीमैच्योर बेबी का जन्म या समय से पहले लेबर पेन उठी हो.

– कमजोर गर्भाशय.

प्रतिशोध: आखिर किस वजह के कारण राणा के लिए डॉ मीता के मन में प्रतिशोध की भावना थी?

आपरेशन थियेटर से निकल करडा. मीता अपने केबिन में आईं. एप्रिन उतारने के बाद उन्होंने इंटरकाम का बटन दबाते हुए पूछा, ‘‘रीना, क्या डा. दीपक का कोई फोन आया था?’’

‘‘जी, मैम, वह 2 बजे तक कानपुर से लौट आएंगे और लंच घर पर ही करेंगे,’’ इंटरकाम पर रिसेप्शनिस्ट रीना की आवाज सुनाई पड़ी.

‘‘ठीक है,’’ कह कर डा. मीता ने फोन रख दिया और घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 12 बजे थे. वह सोचने लगीं कि

डा. दीपक के लौटने में अभी डेढ़ घंटे का समय है और इतनी देर में अस्पताल का एक राउंड लिया जा सकता है.

डा. मीता ने आज अकेले ही 3 आपरेशन किए थे, इसलिए कुछ थकावट महसूस कर रही थीं. तभी अटेंडेंट कौफी दे गया. वह कुरसी की पुश्त से टेक लगा कर कौफी की चुस्कियां लेने लगीं.

मीता और दीपक लखनऊ मेडिकल कालिज में सहपाठी थे. एम.एस. करने के बाद दोनों ने शादी कर ली थी. पहले उन्होंने अपना नर्सिंग होम लखनऊ में खोला था किंतु अचानक घटी एक दुर्घटना के कारण उन्हें लखनऊ छोड़ना पड़ गया था.

उस के बाद वे इलाहाबाद चले आए. उन की दिनरात की मेहनत के कारण 3 वर्षों में ही उन के नए नर्सिंग होम की शोहरत काफी बढ़ गई थी. डा. दीपक आज सुबह किसी जरूरी काम से कानपुर गए थे. आज के आपरेशन पूरा करने के बाद डा. मीता उन की प्रतीक्षा कर रही थीं.

अचानक बाहर कुछ शोर सुनाई पड़ा. उन्होंने अटेंडेंट को बुला कर पूछा, ‘‘यह शोर कैसा है?’’

‘‘जी…एक्सीडेंट का एक केस आया है और स्टाफ उन्हें भगा रहा है लेकिन वे लोग भाग नहीं रहे हैं,’’ अटेंडेंट ने हिचकते हुए बताया.

‘‘क्यों भगा रहे हैं? क्या तुम लोगों को पता नहीं कि हमारे नर्सिंग होम में छोटेबड़े सभी का इलाज बिना किसी भेदभाव के किया जाता है,’’ मीता का चेहरा तमतमा उठा. वह जानती थीं कि शहर के कई नर्सिंग होम तो ऐसे हैं जिन में गरीबों को घुसने भी नहीं दिया जाता है.

‘‘जी…वो…’’ अटेंडेंट हकला कर रह गया. ऐसा लग रहा था कि वह कुछ कहना चाह रहा है किंतु साहस नहीं जुटा पा रहा है.

‘‘यह क्या वो…वो…लगा रखी है,’’ डा. मीता ने अटेंडेंट को डांटा फिर पूछा, ‘‘घायल की हालत कैसी है?’’

‘‘खून काफी बह गया है और वह बेहोश है.’’

‘‘तो फौरन उसे आपरेशन थियेटर में ले चलो. मैं भी पहुंच रही हूं,’’

डा. मीता ने खड़े होते हुए आदेश दिया.

अटेंडेंट हक्काबक्का सा चंद पलों तक उन के चेहरे को देखता रहा फिर आंखें झुकाते हुए बोला, ‘‘जी, मैडम, वह विधायक उपदेश सिंह राणा हैं. नर्सिंग होम के पास ही उन की गाड़ी को एक ट्रक ने टक्कर मार दी है.’’

इतना सुनने के बाद डा. मीता को लगा जैसे कोई ज्वालामुखी फट पड़ा हो और पूरी सृष्टि हिल गई हो. वह धम्म से कुरसी पर गिर पड़ीं. अगर उन्होंने कुरसी के दोनों हत्थों को मजबूती से थाम न लिया होता तो शायद चकरा कर नीचे गिर पड़ती होतीं. उन के दिमाग पर हथौड़े बरसने लगे और सांस धौंकनी की तरह चलने लगी थी. अटेंडेंट उन की मनोदशा को समझ गया था अत: चुपचाप वहां से खिसक गया.

लगभग साढ़े 3 वर्ष पहले की बात है. उस दिन भी डा. मीता अपने पुराने नर्सिंग होम में अकेली थीं. तभी कुछ लोग गोली से बुरी तरह घायल एक व्यक्ति को ले कर आए. उस की गोली निकालने के लिए वह आपरेशन थियेटर में अभी जा ही रही थीं कि फोन की घंटी बज उठी :

‘डा. साहिबा, मैं उपदेश सिंह राणा बोल रहा हूं,’ फोन पर आवाज आई.

‘जी, कहिए,’ डा. मीता अचकचा उठीं.

उपदेश सिंह राणा शहर का आतंक था. छोटेबड़े सभी उस के नाम से थर्राते थे. उस का भला उन से क्या काम?

‘डा. साहिबा, वह मेरी गोली से तो बच गया है लेकिन आप के आपरेशन थियेटर से जिंदा वापस नहीं आना चाहिए,’ उपदेश सिंह राणा ने आदेशात्मक स्वर में कहा.

‘मैं एक डाक्टर हूं और डाक्टर के हाथ लोगों की जान बचाने के लिए उठते हैं, लेने के लिए नहीं,’ डा. मीता ने स्पष्ट इनकार कर दिया.

‘मैं आप के हाथों को बहकने की कीमत देने के लिए तैयार हूं. आप मुंह खोलिए,’ राणा ने हलका सा कहकहा लगाया.

‘आप अपना और मेरा समय बरबाद कर रहे हैं,’ राणा का प्रस्ताव सुन

डा. मीता का मन कसैला हो उठा.

‘डा. साहिबा, कुछ करने से पहले सोच लीजिएगा कि मैं महिलाओं को सिर्फ उपदेश ही नहीं देता बल्कि…’ इतना कहतेकहते राणा क्षण भर के लिए रुका फिर खतरनाक अंदाज में बोला, ‘अगर आप ने मेरे शिकार को बचाने की कोशिश की तो फिर आप का कुछ भी नहीं बच पाएगा.’

डा. मीता ने बिना कुछ कहे फोन रख दिया और आपरेशन थियेटर में घुस गईं. उस व्यक्ति की हालत बहुत खराब थी. 3 गोलियां उस की पसलियों में घुस गई थीं. 2 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद वह गोलियां निकाल पाई थीं. अब उस की जान को कोई खतरा नहीं था.

किंतु राणा ने अपनी धमकी को सच कर दिखाया. 2 दिन बाद ही उस ने

डा. मीता का अपहरण कर उन की इज्जत लूट ली. दीपक ने बहुत भागदौड़ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. राणा गिरफ्तार हुआ किंतु 3 दिन बाद ही जमानत पर छूट गया. उस के आतंक के कारण कोई भी उस के खिलाफ गवाही देने के लिए तैयार नहीं हुआ था.

इस घटना ने डा. मीता को तोड़ कर रख दिया था. वह एक जिंदा लाश बन कर रह गई थीं. हमेशा बुत सी खामोश रहतीं. जागतीं तो भयानक साए उन्हें अपने आसपास मंडराते नजर आते. सोतीं तो स्वप्न में हजारों गिद्ध उन के शरीर को नोंचने लगते. उन की मानसिक हालत बिगड़ती जा रही थी.

मनोचिकित्सकों की सलाह पर दीपक ने वह शहर छोड़ दिया था. नए शहर के नए माहौल ने मरहम का काम किया. अतीत की यादों को करीब आने का मौका न मिल सके, इसलिए डा. दीपक अपने साथ

डा. मीता को भी मरीजों की सेवा में व्यस्त रखते. धीरेधीरे जीवन की गाड़ी एक बार फिर पटरी पर दौड़ने लगी थी. दोनों की मेहनत और लगन से इन चंद वर्षों में ही उन के नर्सिंग होम का काफी नाम हो गया था.

इन चंद वर्षों में और भी बहुत कुछ बदल चुका था. अपने आतंक और बूथ कैप्चरिंग के दम पर शहर का दुर्दांत गुंडा उपदेश सिंह राणा दबंग विधायक बन चुका था. अब इसे समय का क्रूर मजाक ही कहा जाए कि डा. मीता की जिंदगी बरबाद करने वाले दरिंदे उपदेश सिंह राणा की जिंदगी बचाने के लिए लोग आज उसे उन की ही शरण में ले आए थे.

डा. मीता की आंखों के सामने उस दिन के दृश्य कौंध गए जब वह गिड़गिड़ाते हुए उस शैतान से दया की भीख मांग रही थी और वह हैवानियत का नंगा नाच नाच रहा था. वह अपने डाक्टरी पेशे की मर्यादा और कर्तव्यनिष्ठा की दुहाई दे रही थीं और वह उन की इज्जत की चादर को तारतार किए दे रहा था. वह रोती रहीं, बिलखती रहीं, तड़पती रहीं पर उस नरपिशाच ने उन की अंतर आत्मा तक को अंगारों से दाग दिया था.

सोचतेसोचते डा. मीता के जबड़े भिंच गए और आंखों से चिंगारियां फूटने लगीं. बाहर बढ़ रहे शोर के कारण उन की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. क्रोध की अधिकता के चलते वह हांफने सी लगीं. व्याकुलता जब बरदाश्त से बाहर हो गई तो उन्होंने सामने रखा पेपरवेट उठा कर दीवार पर दे मारा. पर न तो पेपरवेट टूटा और न ही दीवार टस से मस हुई.

पेपरवेट फर्श पर गिर कर गोलगोल घूमने लगा. डा. मीता की दृष्टि उस पर ठहर सी गई. पेपरवेट के स्थिर होने पर उन्होंने अपनी दृष्टि ऊपर उठाई. उन में दृढ़ता के चिह्न छाए हुए थे. ऐसा लग रहा था कि वह कुछ कर गुजरने का फैसला कर चुकी हैं.

इंटरकाम का बटन दबाते हुए डा. मीता ने पूछा, ‘‘रीना, घायल को आपरेशन थियेटर में पहुंचा दिया गया है या नहीं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘जी…वो…दरअसल…स्टाफ कह… रहा है…कि…’’ रिसेप्शनिस्ट झिझक के कारण अपनी बात कह नहीं पा रही थी.

‘‘तुम लोग सिर्फ वह करो जो कहा जा रहा है. बाकी क्या करना है, मैं जानती हूं,’’ डा. मीता ने सर्द स्वर में आदेश दिया और आपरेशन थियेटर की ओर चल दीं.

अचानक उन्हें कुछ याद आया. वापस लौट कर उन्होंने इंटरकाम का बटन दबाते हुए कहा, ‘‘रीना, मैं उस आदमी का चेहरा नहीं देख सकती. नर्स से कहो कि आपरेशन टेबल पर पहुंचाने से पहले उस का मुंह किसी कपड़े से बांध दे या ठीक से ढंक दे.’’

इतना कह कर बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए डा. मीता तेजी से आपरेशन थियेटर की ओर चली गईं. घायल के भीतर जाते ही आपरेशन थियेटर का दरवाजा बंद हो गया और उस पर लगा लाल बल्ब जल उठा.

टिक…टिक…टिक…की ध्वनि के साथ घड़ी की सूइयां आगे बढ़ती जा रही थीं. इसी के साथ आपरेशन कक्ष के बाहर खड़े स्टाफ के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. आपरेशन कक्ष के दरवाजे को बंद हुए 2 घंटे से अधिक समय बीत चुका था. भीतर डा. मीता क्या कर रही होंगी इस का अंदाजा होते हुए भी कोई सचाई को अपने होंठों तक नहीं लाना चाहता था.

डा. दीपक 3 बजे लौट आए. भीतर घुसते ही उन्होंने एक वार्ड बौय से पूछा, ‘‘डा. मीता कहां हैं?’’

‘‘थोड़ी देर पहले उन्होंने एक घायल का आपरेशन किया था. उस के बाद…’’ वार्ड बौय कुछ कहतेकहते रुक गया.

‘‘उस के बाद क्या?’’

‘‘उस के बाद वह उसे अपना खून दे रही हैं, क्योंकि उस का ब्लड गु्रप ‘ओ निगेटिव’ है और वह कहीं मिल नहीं सका,’’ वार्ड बौय ने हिचकिचाते हुए बताया.

‘‘ऐसा कौन सा खास मरीज आ गया है जिसे डा. मीता को खुद अपना खून देने की जरूरत आ पड़ी?’’

डा. दीपक ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘जी…विधायक उपदेश सिंह राणा हैं.’’

‘‘तुझे होश भी है कि तू क्या कह रहा है?’’ वार्ड बौय का गिरेबान पकड़ डा. दीपक चीख पड़े.

‘‘सर, हम लोग उसे नर्सिंग होम से भगा रहे थे लेकिन मैडम ने जबरन बुला कर उस का आपरेशन किया और अब उसे अपना खून भी दे रही हैं,’’ तब तकवहां जमा हो चुके कर्मचारियों में से एक ने हिम्मत कर के बताया.

डा. दीपक ने उसे घूर कर देखा फिर बिना कुछ कहे अपने केबिन की ओर चले गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मीता ने ऐसा क्यों किया. क्या किसी ने मीता को इस के लिए मजबूर किया था या कोई और कारण था? सोचतेसोचते डा. दीपक के दिमाग की नसें फटने लगीं लेकिन वह अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं खोज सके.

थोड़ी देर बाद डा. मीता ने वहां प्रवेश किया. उन का चेहरा पत्थर की भांति भावनाशून्य था. डा. दीपक ने आगे बढ़ उन की बांह थाम कांपते स्वर में पूछा, ‘‘मीता…तुम ने… उस की जान क्यों बचाई?’’

‘‘हम लोग डाक्टर हैं. हमारा काम ही लोगों की जान बचाना है,’’ डा. मीता के होंठों ने स्पंदन किया.

डा. दीपक ने पत्नी की बांहों को छोड़ चंद पलों तक उस के चेहरे की ओर देखा फिर मुट्ठियां भींचते हुए बोले, ‘‘लेकिन क्या उस का आपरेशन करते समय तुम्हारे हाथ नहीं कांपे थे?’’

‘‘अगर हाथ कांप जाते तो हम में और सामान्य लोगों में क्या फर्क रह जाता,’’ डा. मीता ने धीमे स्वर में कहा. उन का चेहरा पूर्ववत भावनाशून्य था.

‘‘हम इनसान हैं मीता, इनसान,’’ डा. दीपक तड़प उठे.

‘‘मैं ने इनसानियत का ही फर्ज निभाया है,’’ डा. मीता के होंठ यंत्रवत हिले.

‘‘फर्ज निभाने का शौक था तो निभा लेतीं, महानता की चादर ओढ़ने का शौक था तो ओढ़ लेतीं, लेकिन अपना खून चूसने वाले को अपना खून तो न देतीं,’’

डा. दीपक मेज पर घूंसा मारते हुए चीख पड़े.

डा. मीता ने कोई उत्तर नहीं दिया.

दीपक ने आगे बढ़ कर उन के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया और उन की आंखों में झांकते हुए बोले, ‘‘मीता, प्लीज, मुझे बताओ ऐसी क्या मजबूरी थी जो तुम ने उस दरिंदे की जान बचाई? क्या किसी ने तुम्हें फिर धमकी दी थी?’’

डा. मीता ने अपनी आंखें बंद कर लीं पर उन्हें देख कर ऐसा लग रहा थामानो वह सप्रयास अपने को कुछ कहने से रोक रही हैं.

‘‘मैडम, उस मरीज को होश आ गया,’’ तभी एक नर्स ने वहां आ कर बताया.

डा. मीता के भीतर जैसे कोई शक्ति समा गई हो. दीपक को परे धकेल वह आंधीतूफान की तरह भागते हुए वार्ड की ओर दौड़ पड़ीं. भौचक्के से डा. दीपक अपने को संभालते हुए पीछेपीछे दौड़े.

उपदेश सिंह राणा को अब तक उन के पास खड़े पुलिस वालों ने बता दिया था कि जिस लेडी डाक्टर ने उन का आपरेशन किया था उसी ने उन्हें अपना खून भी दिया है क्योंकि उन के गु्रप का खून किसी ब्लड बैंक में उपलब्ध न था.

‘‘वह महान डाक्टर कौन हैं. मैं उन के दर्शन करना चाहता हूं,’’ राणा ने कराहते हुए कहा.

‘‘लो, वह आ गईं,’’ एक पुलिस वाले ने वार्ड के भीतर आ रही डा. मीता की ओर इशारा किया.

उन पर दृष्टि पड़ते ही राणा को ऐसा झटका लगा जैसे किसी को करंट लग गया हो. घबरा कर उस ने उठना चाहा लेकिन कमजोरी के कारण हिल भी न सका.

‘‘इन्होंने ही आप की जान बचाई है. जीवन भर इन के चरण धो कर पीजिएगा तब भी आप इस ऋण से उऋण नहीं हो सकेंगे,’’ दूसरे पुलिस वाले ने बताया.

पल भर के लिए राणा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ किंतु सत्य अपने पूरे वजूद के साथ सामने उपस्थित था. राणा की आंखों के सामने उस दिन के दृश्य कौंधने लगे जब रोती हुई

डा. मीता हाथ जोड़जोड़ कर विनती कर रही थीं कि उन्होंने सिर्फ एक डाक्टर के फर्ज का पालन किया है किंतु वह उन की एक नहीं सुन रहा था.

आज एक बार फिर उन्होंने सबकुछ भुला कर एक डाक्टर के फर्ज को पूरा किया है. तभी उस की सासें शेष बच पाई हैं.राणा के भीतर उन से आंख मिलाने का साहस नहीं बचा था. उन के विराट व्यक्तित्व के आगे वह अपने को बहुत छोटा महसूस कर रहा था.

बहुत मुश्किल से अपनी पूरी शक्ति को बटोर कर राणा, ने अपने हाथों को जोड़ा और कांपते स्वर में बोला, ‘‘डाक्टर साहिबा, मुझे माफ कर दीजिए.’’

‘‘माफ और तुम्हें,’’ डा. मीता दांत भींचते हुए चीख पड़ीं, ‘‘राणा, तुम ने मेरे साथ जो किया था उस के बाद मैं तो क्या दुनिया की कोई भी औरत मरते दम तक तुम्हें माफ नहीं कर सकती.’’

चीख सुन कर पूरे वार्ड में सन्नाटा छा गया. किसी में भी उसे भंग करने का साहस न था. अपनी ओर डा. मीता को आता देख कर राणा ने एक बार फिर अपनी बिखरती हुई सांसों को बटोरा और लड़खड़ाते स्वर में बोला, ‘‘आप ने जो एहसान किया है मैं उसे कभी…’’

‘‘मैं ने कोई एहसान नहीं किया है तुम पर,’’ डा. मीता राणा की बात को बीच में काट कर फिर चीख पड़ीं, ‘‘तुम क्या समझते हो अपनेआप को? सर्वशक्तिमान? जो जिस की जिंदगी से जब चाहे खेल लेगा? तुम ने मेरी जिंदगी से खेला था, आज मैं ने तुम्हारी जिंदगी से खेला है. मेरे जिस खून को तुम ने अपवित्र किया था आज वही खून तुम्हारी रगों में दौड़ रहा है. तुम चाह कर भी उसे अपने शरीर से अलग नहीं कर सकते. जब तक जीवित रहोगे यह एहसास तुम्हें कचोटता रहेगा कि तुम्हारी जिंदगी मेरी दी हुई भीख है.

‘‘कमजोर समझ कर जिस नारी के चंद पलों को तुम ने रौंदा था उस के रक्त के चंद कतरे अब हर पल तुम्हारे स्वाभिमान को रौंदते रहेंगे. तुम्हारा रोमरोम तुम्हारे गुनाहों के लिए तुम्हें धिक्कारेगा लेकिन तुम्हें दया की भीख नहीं मिलेगी. जब तक जीवित रहोगे, राणा, तुम प्रायश्चित की आग में जलते रहोगे लेकिन तुम्हें शांति नहीं मिलेगी. यही मेरा प्रतिशोध है.’’

डा. मीता के मुंह से निकला एकएक शब्द गोली की तरह राणा के दिल और दिमाग को छेदे जा रहा था. गुनाहों के बोझ तले दबी उस की अंतर आत्मा में कुछ कहने की शक्ति नहीं बची थी. उस की कायरता बेबसी बन उस की आंखों से छलक पड़ी.

राणा के आंसुओं ने अग्निकुंड में घी का काम किया. डा. मीता गरजते हुए बोलीं, ‘‘इस से पहले कि मेरे अंदर की नारी, डाक्टर को पीछे ढकेल कर सामने आ जाए और मैं तुम्हारा खून कर दूं, दूर हो जाओ मेरी नजरों से. चले जाओ यहां से.’’

हतप्रभ डा. दीपक अब तक चुपचाप खड़े थे. उन्होंने पुलिस वालों को इशारा किया तो वे राणा के बेड को धकेलते हुए बाहर ले जाने लगे.

डा. मीता हिचकियां भरती हुई पूरी शक्ति से डा. दीपक के चौड़े सीने से लिपट गईं. उन्होंने उन्हें अपनी बांहों में यों संभाल लिया जैसे किसी वृक्ष की शाखाएं नन्हे घोंसले को संभाल लेती हैं.

नहीं रहे दिग्गज कन्नड़ अभिनेता द्वारकिश

कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री के एक्टर द्वारकिश का लंबी बीमारी के बाद दिल का दौरा पड़ने से  मंगलवार को निधन हो गया. द्वारकिश ने लगभग 100 फिल्मों में काम किया. इनमें से 50 फिल्मों में वो निर्देशक और निर्माता भी रहे.

साल 1966 में द्वारकिश ने थुंगा पिक्चर बैनर के तले बनी फिल्म ‘ममथ्या बंधन से कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था. द्वारकिश को इसलिए भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने हिंदी एक्टर किशोर कुमार को हिन्दी प्लेबैक सिंगर के तौर पर  इंडस्ट्री में इंट्रड्यूस कराया था. द्वारकिश का जन्म 19 अगस्त 1942 को मैसूरु में हुआ था. उन्होंने मकैनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया हुआ था।

अंतिम दर्शन के लिए उनका पार्थिव शरीर उनके घर पर रखा जाएगा और बुधवार को अंतिम संस्कार किया जाएगा. कर्नाटक फिल्म इंडस्ट्री में उनके सहयोग के लिए कर्नाटक फिल्म चैंबर्स ने उन्हें सम्मानित भी किया था. उनके पास डॉक्टरेट की उपाधी भी थी.

फोटो क्रेडिट- श्रीनिवास देव (फेसबुक)

हैप्पी बर्थेडे टू यू लारा, आज अपना 46वां जन्मदिन मना रही हैं लारा

एक्ट्रेस लारा दत्ता आज अपना 46वां जन्मदिन मना रही हैं. लारा ने साल 2000 में मिस यूनिवर्स का ताज अपने नाम किया था. एक्ट्रेस सुष्मिता सेन के बाद लारा यह खिताब जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला थी.

 

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कौनटेस्ट के आखिरी राउंड में लारा से पूछा गया कि वेन्यू के बाहर जो लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, उन लोगों को कंविन्स करने के लिए आप क्या करेंगी.

इसके जवाब में लारा ने कहा था कि इस तरह का प्लैटफौर्म हम युवा लड़कियों को मौका देता है कि हम अपने पसंद के क्षेत्र में आगे बढ़ सकें और हमें अवसर मिलता है कि किसी भी विषय पर अपने विचार रख सकें. यह प्लैटफौर्म हमें स्ट्रॉंग और फाइनेंशिली इंडिपेंडेंट बनने का मौका भी देता है. इसी सवाल के जवाब के बाद लारा को मिस यूनिवर्स बना दिया गया था.

 

 

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इसके बाद उन्होंने वर्ष 2003 में बड़े पर्दे पर फिल्म अंदाज से कदम रखा. इस फिल्म में लीड रोल्स में मिस वर्ल्ड प्रियंका चोपड़ा और एक्टर अक्षय कुमार भी थे.

लारा को फिल्म अंदाज के लिए बेस्ट डेब्यू एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी दिया गया था.

लारा की शादी भारतीय टेनिस खिलाड़ी महेश भूपति के साथ हुई है. दोनों के एक बेटी है. इससे पहले लारा और मॉडल केली दौर्जी के अफेयर की खबरें भी खूब चर्चा में थीं.

लारा ने कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों में भी काम किया है जिनमें मस्ती, नो एंट्री, भागम-भाग, पार्टनर, हाउसफुल, डौन-2 आदि शामिल हैं.

कुछ मीठा खाने का मन है तो बनाएं चावल का जर्दा

त्योहारों का सीजन चल रहा है और ऐसे हर कोई मीठा खाना पसंद करता है. चावल की खीर बनाना तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आपने कभी चावल की जर्दी खाया है? आज आपको इस आर्टिकल में इसकी रेसिपी बताएंगे, जो आप त्योहार के दौरान ट्राई कर सकते हैं.

सामग्री

½ किलो चावल

चीनी-स्वादानुसार

काजू- 15-20

बादाम-20-22

पिसे हुए ड्राइफ्रूट्स- सजाने के लिए

सूखा गोला- 1साबुत छोटे-छोटे पीस में कटा हुआ

दालचीनी- थोड़ी सी

लौंग- 2 कली

खाने का रंग- दो चमच्च

दूध-1 लीटर

देसी घी- ज़रूरत के अनुसार

किशमिश-स्वादानुसार

गुलाब जल- 1 या दो बूंद

 

बनाने की विधि

सबसे पहले एक बर्तन में चावल को थोड़ा सा देसी घी, पानी, दालचीनी, लौंग और रंग मिलाकर ढककर उबाल लें. इसके बाद जब चावल आधे कच्चे-पक्के हो जाएं तो इन्हें अलग रख लें.

इसके बाद एक पैन में घी के साथ बादाम, काजू को गोल्डन ब्राउन कर लें फिर साइड में रखे चावल को इसमें डालकर थोड़ा-थोड़ा दूध मिलाकर चलाएं और फिर इसे पकने के लिए ढक दें. इस पूरे मिश्रण को आधे घंटे तक पकने दें और फिर दो बूंद गुलाब जल या फिर केवड़े की बूंद डालकर गरम-गरम परोसें.

 

Summer Special: अपनों के लिए बनाएं जूस, स्मूदी और शेक

गर्मी हो या सर्दी हम जूस स्मूदी और शेक के बारे में पूरे वर्ष भर ही सुनते रहते हैं. प्रत्येक कैफे, रेस्टोरेंट या आइसक्रीम पार्लर सभी के मेन्यू कार्ड में हमें इन तीनों के नाम देखने को मिलते हैं. ये सभी बहुत सेहतमंद होते हैं क्योंकि ये हमारे शरीर को मिनरल्स, विटामिन्स, एंजाइम्स और एंटीऑक्सीडेंट प्रदान करने के साथ एनर्जी लेवल को बढ़ाते हैं.

इनका नियमित प्रयोग करने से वजन को संतुलित रखने में भी मदद मिलती है. सेहत के लिए इनके महत्त्व को बताते हुए डायटीशियन डॉ सुधा कहतीं हैं,” स्वस्थ लोंगों के साथ साथ जो बुजुर्ग, बच्चे या गर्भवती महिलाएं किसी कारण से फलों का सेवन नहीं कर पाते हैं उनके लिए शेक, जूस और स्मूदी बहुत अच्छा विकल्प हैं इससे उन्हें फल और सब्जियों की भरपूर पौष्टिकता प्राप्त हो जाती है.” आमतौर पर हम इन्हें घर में बनाते भी हैं और बाहर जाकर आर्डर भी करते हैं परन्तु इन तीनों का समुचित लाभ प्राप्त करने के लिए हमें इन तीनों का अंतर जानना बेहद आवश्यक है. निस्संदेह गर्मियों की तपिश को कम करने के लिए इन तीनों का ही सेवन बहुतायत से किया जाता है. यहां पर प्रस्तुत हैं ज्यूस, शेक और स्मूदी के बारे में विस्तृत जानकारी, इनका अंतर और इन्हें बनाने का सही तरीका-

जूस

ज्यूस को ज्यूसर में फल और सब्जी से बनाया जाता है. जूस बनाने की प्रक्रिया में फल या सब्जी का छिलका निकालकर ज्यूसर में डाला जाता है जिसमें इसका गूदा और रेशा अलग हो जाता है और यह केवल तरल रूप में हमें प्राप्त होता है. ज्यूस शरीर को त्वरित ऊर्जा प्रदान करता है क्योंकि यह शरीर में शीघ्र ही अवशोषित हो जाता है. इसके सेवन से शरीर हल्का अनुभव करता है परन्तु केवल तरल स्वरूप में होने से स्मूदी के मुक़ाबले ज्यूस के कुछ विटामिन्स नष्ट हो जाते हैं.

स्मूदी

स्मूदी को भी फल और सब्जी दोनों से ही बनाया जाता है. इसमें रेशे और गूदे को अलग नहीं किया जाता बल्कि ब्लेंडर में सीधे ही पीसकर सेवन किया जाता है.ज्यूस की अपेक्षा इसका स्वरूप गाढ़ा होता है. स्मूदी में फलों के टुकड़े भी होते हैं और ये स्वाद में भी अच्छे लगते हैं. इसे बनाने के लिए दूध और दही का प्रयोग भी किया जाता है. इसे पीने के बाद पेट भरा भरा सा प्रतीत होता है. स्मूदी पीने के बाद पोषक तत्व धीरे धीरे शरीर में अवशोषित होते हैं. चूंकि स्मूदी बनाने के लिए फलों और सब्जी को सीधा ही ब्लेंडर में ब्लेंड किया जाता है इसलिए इसके सभी पौष्टिक तत्व बरकरार रहते हैं.

शेक

शेक्स को मुख्यतया दूध, दही और आइसक्रीम जैसे डेयरी प्रोडक्ट के साथ मिलाकर बनाया जाता है. इसे बनाने में सब्जी का प्रयोग न करके केवल फलों, बिस्किट, आइसक्रीम और कॉफी आदि से बनाया जाता है. फ्लेवर बढ़ाने के लिए विभिन्न सीरप, क्रश और पाउडर का प्रयोग किया जाता है. शेक्स की गार्निशिंग के लिए बारीक कटी मेवा, टूटी फ्रूटी और व्हिपड क्रीम आदि का उपयोग किया जाता है.

बनाते समय रखें ध्यान

-सभी को बनाने के लिए ताजे फलों और सब्जी का ही प्रयोग करें.
-बनाने के तुरंत बाद प्रयोग कर लें क्योंकि रखे जाने से इसके पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं.
-केवल दूध का शेक बनाने की अपेक्षा इसमें फल को शामिल करें इससे आपका पेट भी भरेगा और शेक की पौष्टिकता भी बढ़ जाएगी.

-केवल एक ही फल का प्रयोग करने के स्थान पर दो तीन फल या सब्जी का प्रयोग करें. उदाहरण के लिए सेब के साथ गाजर, हरे सेब के साथ खीरा और तरबूज के साथ अदरक और गाजर तथा अनन्नास के साथ ककड़ी मिलाई जा सकती है.

 

-स्मूदी को पीसने के लिए पानी के स्थान पर दही या ठंडे दूध का प्रयोग करें.

-स्मूदी, शेक या ज्यूस बनाने के लिए फल और सब्जी का छिल्का अवश्य उतारें इनमें प्रयोग किये जाने वाले केमिकल्स के कारण छिल्का सहित उपयोग करना सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है.

-शेक बनाने के लिए मलाई निकले ठंडे दूध का प्रयोग करें अन्यथा शेक के ऊपर फेट बबल्स आ जाएंगे जो स्वाद को बिगाड़ देंगे.

-स्मूदी और ज्यूस में शकर या नमक मिलाने की अपेक्षा ऐसे ही प्रयोग करना अधिक सेहतमंद होता है.

-यदि आप तरबूज, खरबूज और लीची जैसे किसी बीज वाले फल का प्रयोग करने जा रहीं हैं तो बीजों को फल से भली भांति अलग कर दें अन्यथा ये स्वाद को कड़वा कर देंगे.

-शेक बनाने के लिए पिसी शकर का ही प्रयोग करें क्योंकि साबुत शकर बर्फ के साथ जल्दी घुलती नहीं है.

-यदि आप शुगर के मरीज हैं तो शेक में मिठास के लिए खजूर या शहद का प्रयोग करें.

Summer Special: गर्मियों में Oily स्किन से हैं परेशान, तो इन उपायों से पाएं निजात

गर्मियों के दिनों में स्किन का नॉर्मल दिनों के मुकाबले ज्यादा ध्यान देना पड़ता है. क्योंकि गर्मियों में हमारी स्किन पर सूरज की हानिकारक किरणें पड़ती है जो नॉर्मल स्किन के लिए तो खराब होती ही है बल्कि उससे ऑइली स्किन पर भी बुरा असर पड़ता है. क्योंकी यहीं वह वक्त है जब ऑइली स्किन पर एक्ने और पिंपल्स होने के चांसेज ज्यादा होते है.

गर्मियों के दिनों में गर्मी और ह्यूमिडिटी के कारण स्किन के सिबेसियस ग्लैंड्स पर ऑयल का उत्पादन ज्यादा होने लगता है. जो कई बार ऑयली स्किन के लिए काफी नुकसानदेह हो जाते है. इसलिए गर्मियों के दिनों में स्किनकेयर के लिए आप कुछ आसान से टिप्स बता रहें हैं, डॉ. अजय राणा  डर्मेटोलॉजिस्ट और एस्थेटिक फिजिशियन संस्थापक और निदेशक, आईएलएएमईडी.

समर में ऑयली स्किन के लिए अपनाएं 9 आसान टिप्स-

1.डबल क्लीजिंग करें

गर्मियों के दिनों में स्किन को डबल क्लींजिंग करना ऑयली स्किन वालों के लिए बेस्ट माना जाता है. क्लींजिंग के लिए आप गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें. इससे स्किन बार मौजुद सारे डर्ट और इंप्यूरिटीज को स्किन से निकाल देता है और स्किन के बंद पोर्स को खोल देता है.

 

2.डेड स्किन सेल्स निकाले

क्लींजिंग के लिए ऐसे क्लिंजर का उपयोग करें जिसमें सेलीसाइलिक एसिड, सिट्रिक एसिड और ग्लाइकोलिक एसिड की मात्रा ज्यादा हो. जो ऑइली स्किन से डेड स्किन सेल्स को निकाल देता है जो स्किन में पिंपल होने का एक महत्वपूर्ण कारक है.

3. स्किन एक्सफोलिएट करें

अगर आपकी स्किन ऑइली है तो आप सप्ताह है कम से कम 2 से 3 बार एक्सफोलिएट करें, जो स्किन से ब्लैकहेड्स निकालने में मदद करता है. पर यह याद रखें की स्किन को जरूरत से ज्यादा स्क्रब न करें.

4. ऑयल फ्री सनस्क्रीन लगाएं

अगर आपकी स्किन ऑयली है तो गर्मियों में आपको ज्यादा सूरज की हानिकारक किरणों से बचने की जरूरत है. इसके लिए आप एक अच्छे सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें. आप अपने ऑयली स्किन ने लिए ऑयल फ्री और ड्राई टच वाला सनस्क्रीन लगाए जो आपकी स्किन को सूरज की हानिकारक किरणों से निकलने वाले यूवी रेज और फ्री रेडिकल्स से बचाता है.

5.स्किन हाइड्रेट करना जरूरी

चाहे आपकी स्किन कैसी भी हो, खासकर ऑयली है तो आपको गर्मियों में हमेशा अपने स्किन को मॉइश्चराइज और हाइड्रेटेड रखना जरूरी है. इसके लिए आप एक ऑयल फ्री और जेल बेस्ड मॉइश्चराइजर का उपयोग करें, मॉइश्चराइजर में ज्यादा वॉटर कंटेंट होता है जो स्किन को लाईट फील करवाता है.

6. क्ले बेस्ड मास्क का इस्तेमाल

गर्मियों में ऑयली स्किन के लिए क्ले बेस्ड मास्क का उपयोग सप्ताह में कम से कम एक बार जरूर करें. यह मास्क आपकी ऑयली स्किन से डर्ट, ऑयल और बैक्टीरिया और जरूरत से ज्यादा सेबुम को निकालने में मदद करता है और स्किन को ग्लोइंग और चमकदार बनाता है. इसके साथ ही साथ यह ऑयली स्किन में होने वाले फाइन लाइन्स और रिंकल्स को होने से भी रोकता है.

7. डाइट पर दे ध्यान

अगर आपकी स्किन ऑयली है तो गर्मियों के दिनों में आप क्या डाइट के रहे है, क्या खा रहे है इस पर ध्यान देना बहुत जरुरी है. गर्मियों में आप ऑयली और तला भुना खाना न खाए. क्योंकि इससे आपकी स्किन पर पिंपल्स और एक्ने होने के चांसेज बढ़ जाते है. डाइट में ऐसी चीज़े शामिल करें जिसमें विटामिन ए की मात्रा ज्यादा हो.

8. बॉडी डिटॉक्स जरूरी

गर्मियों के दिनों में अपनी ऑयली स्किन को हाइड्रेट रखना बहुत जरुरी है. इसके लिए आप दिन में कम से कम 8 से 10 ग्लास पानी जरूर पिए. इससे आपकी बॉडी डिटॉक्स होती है और यह स्किन को ग्लोइंग और हेल्दी बनाता है.

9.स्किन पोर्स का रखें ध्यान

गर्मियों के दिनों में आप कम से कम मेकअप का इस्तेमाल करें. क्योंकि गर्मियों के दिनों में ऑयली स्किन में मेकअप का इस्तेमाल करने से आपकी स्किन के पोर्स बंद हो सकते है जो आपकी स्किन को और भी ऑयली बना देता है.

मिर्गी के दौरे का क्या है उपचार और दोबारा ब्रेन स्ट्रोक होने पर क्या करें

सवाल

मेरी बेटी की उम्र 12 साल है. उसे पिछले 1 साल से मिर्गी के दौरे पड़ रहे हैं. क्या इस का कोई उपचार नहीं है?

जवाब

जब मस्तिष्क में स्थाई रूप से परिवर्तन हो जाता है और मस्तिष्क असामान्य संकेत भेजता है तब मिर्गी के दौरे पड़ते हैं. मिर्गी भी अन्य रोगों की तरह एक रोग ही है और अगर ठीक समय पर उचित उपचार मिल जाए तो मरीज पूरी तरह ठीक हो कर सामान्य जीवन जी सकता है. आप किसी अच्छे डाक्टर को दिखाएं. जरूरी जांचों के बाद उपचार के विभिन्न विकल्पों, दवाइयों, सर्जरी और विभिन्न थेरैपियों के द्वारा आप की बेटी को ठीक करने का प्रयास किया जाएगा.

सवाल

मेरी उम्र 57 साल है. मुझे एक बार ब्रेन स्ट्रोक हो चुका है. क्या दोबारा इस के होने का खतरा है?

जवाब

ब्रेन स्ट्रोक के दोबारा होने की आशंका काफी अधिक होती है इसलिए उपचार के बाद भी आवश्यक सावधानियां बरतना जरूरी है क्योंकि एक बार स्ट्रोक की चपेट में आने पर पुन: स्ट्रोक होने की आशंका पहले सप्ताह में 11त्न और पहले 3 महीनों में 20त्न तक होती है. डाक्टर द्वारा सु?ाई दवाइयां समय पर लें, संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें. शारीरिक सक्रियता बहुत जरूरी है, इसलिए नियमित रूप से टहलें या हलकीफुलकी ऐक्सरसाइज करें.

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