गुठली के दाम: बाबा सनातन की क्या थी चाल

बाबा सनातन के सामने बैठा बद्दूराम अपने बाहर निकले दांतों से टपकती लार पोंछता हुआ हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘हम तो धन्य हो गए बाबाजी. आप की उदारता और करुणा अनंत है, तभी तो हम कमेटी के मैंबर हैं और आप की छाया में बैठे हैं.’’

‘‘छाया तो हम पर महायोगी की है, जो 25 साल से लोगों की भलाई के लिए तप कर रहे हैं. साईं के सौ खेल हैं, भाई. उन्हीं की कृपा से यह महायज्ञ कराया जा रहा है और यह तुम्हारी किस्मत है कि तुम यज्ञ के कुंड में पवित्र लकडि़यां डालोगे.’’

‘‘इसी बात से तो आप का अपने भक्तों के प्रति लगाव साबित होता है.’’

यह सुन कर बाबा सनातन ने घमंड का शहद फिर चखा. ऐसे अंधभक्तों को अपने सामने इस तरह झुका देख कर बाबा सनातन का मन शहद से भरभर जाता है. इस शहद की डायबिटीज से घमंड का जन्म होता है, जो हमेशा के लिए उस के चेहरे से चिपका रहता है.

‘‘और हां, बद्दूराम, ‘एकता महायज्ञ’ की गंगा में हम महर्षि मिथ्यानंद के हाथों से तुम्हारा नाम शुद्ध कर के ‘दलित बंधु राम’ की उपाधि देंगे.’’

‘‘बैकुंठ पा लिया बाबाजी. मुक्ति का द्वार महायोगी परशुराम के जन्मदाता ही दिखा सकते हैं…मैं इस काबिल कहां कि आप को गुरुदक्षिणा दे सकूं, पर प्रभु, आप के लिए यह एकलव्य अपनी बीसों उंगलियां कटाने को तैयार है,’’ बद्दूराम शहद में केसर मिलाता हुआ बोला.

‘‘यज्ञ कामयाब हो तो मन की सभी मुरादें पूरी होती हैं. अगर चलोगे नहीं तो मंजिल तक कैसे पहुंचोगे. इस यज्ञ में तुम भी अपनी हिस्सेदारी दिखाओ. नीयत की बरकत से हो सकता है कि खुश हो कर महायोगी तुम्हारा भी भला कर दें.’’

बाबा की कलाई पर गुदे यज्ञकुंड और नीचे लिखे श्री सनातन शब्दों को देख कर बद्दूराम भक्ति से भरा होने की ऐक्ंिटग करता हुआ बोला, ‘‘बड़ा ही शानदार चित्र है. मैं भी ऐसा ही बनवाऊंगा.’’

यह सुन कर बाबा का वंशअभिमान जोश में आ गया, ‘‘कचौड़ी की बू अभी तक नहीं गई. तुम तो बेदाम की गुठली हो. अरे बेवकूफ, यह साधारण चित्र नहीं है. यह हमें हमारे यज्ञधर्म की याद कराता है और हमारे पवित्र गोत्र का निशान है. इस में छिपे संकेतों को कोई दूसरा कभी नहीं बना सकता.’’

पिछले 6 महीने से महायोगी परशुराम तप रजत जयंती के मौके पर ‘वर्ण एकता महायज्ञ’ कराने की तैयारियां बड़े हाई लैवल पर हो रही हैं और अखबारों की सुर्खियों में हैं. इसे कराने वाले बाबा सनातन खुद हैं.

दरअसल, दलित वोट के चांदी लगे लड्डुओं का अंबार देख कर ललचाई ‘कुटिल पंडा पार्टी’ ने पिछड़ों को पुचकारने का ठेका बाबा सनातन को दिया था. बाबा तकरीबन सभी प्रदेशों के छोटेबड़े दलित नेताओं को इकट्ठा कर, उन्हें पद देने के लालच में जकड़ कर इस भेड़ बाजार को महाहिंदू मेला बनाने में रातदिन जुटा था. इसी की एक कड़ी बद्दूराम था, जो गुजरात की सफाई कर्मचारी कालोनियों का उभरता नेता था और सालों से अपमान का जहर हजम करता हुआ अपनेआप को पंडा राजनीति में फिट करने की जुगत लगा रहा था.

‘‘तो ध्यान रहे कि जिस की बंदरिया वही नचावे…अभी भी बेटी बाप की है. ज्यादा से ज्यादा लोगों का इंतजाम हो. उस दिन पूरे हिंदू परिवार की सेवा के लिए रेल बुक कराई गई है…कहीं ऐसा न हो कि आसपास बरसे और दिल्ली बेचारी तरसे… सभी को यज्ञ में ले आना,’’ कहता हुआ बाबा अपने आसन से उठ खड़ा हुआ और इशारा समझ कर बद्दूराम भी उठ गया.

‘‘जाने से पहले मठ की आरती के लिए जरूर रुकना…महाप्रसाद लेते जाना. देनहार समर्थ है सो देवे दिन रैन. महायोगी तुम्हारा भला करें.’’

बद्दूराम ने जाते समय बाबा के पैर छुए. उस के जाने के बाद ‘खाइए मन भाता पहनिए जग भाता’ पर अमल करते हुए बाबा ने पास ही रखी सुराही मुंह से लगाई. ह्विस्की पीने से मठ की आरती और बाद में टैलीविजन पर आने वाले प्रवचन में माहौल जो जमेगा.

बाबा को मठ की दुकान लगाए 20 साल हो चुके हैं. महर्षि मिथ्यानंद ने जब से हिमालय पर दिव्य महायोगी परशुराम के दर्शन किए हैं तब से भक्तों में यह फैलाया गया है कि बाबा सनातन के छोटे बेटे महायोगी परशुराम 15 साल की उम्र से ही भक्तों की भलाई के लिए हिमालय की किसी अनदेखी गुफा में तप कर रहे हैं. इस बात को अब 25 साल गुजर चुके हैं.

महर्षि मिथ्यानंद, जो डीलडौल से भैंसे जैसा है, अपने गुस्से के लिए अखाड़ों में मशहूर है. तपस्वी है और हिमालय पर तप करता है, पर कब? यह मालूम नहीं. उसे ज्यादातर दिल्ली के आसपास ही देखा जा सकता है. जब बाबा सनातन अपनी दुकानदारी का प्रचार कराने के लिए मिथ्यानंद के पास गया था तब उस की बड़ीबड़ी लाल आंखें गुस्से से बाहर निकल आई थीं और उस ने बिगड़ कर फुफकारते हुए कहा था, ‘एक भगोड़े को तपस्वी बनाना चाहते हो.’

तब उसे भरी चिलम थमा कर शांत करते हुए सनातन बाबा ने कहा था, ‘महर्षि, कपूत बेटा तो मरा ही भला. वह तो 5 साल पहले ही मरखप गया. किसे क्या, सब अपनेअपने खयाल में मस्त हैं… और अगर कहीं से लौट भी आया, तो कहेंगे तपस्या से लौटा है.

‘ऋषिवर, आप खुद महाज्ञानी हैं. समझ सकते हैं कि अपनी गरज तो बावली होती है. हम ने तो ग्रंथों में देवीदेवताओं से न जाने कैसेकैसे काम करवाए हैं. धर्म की हिफाजत और उसे आगे बढ़ाने के लिए यह ठीक भी है. फिर मठ की माया में योगीराज आप का भी तो हिस्सा होगा, एक दम में हजार दम. आप को बस, जहांतहां महायोगी परशुराम से हिमालय पर मिलने की बात फैलानी है. आप के खोटे वचन से मेरा खोटा सिक्का चल पड़ेगा…इस के बाद हमें धनकुबेर बनने से खुद ब्रह्मा भी नहीं रोक पाएंगे.’

बाबा का बिजनेस औफर मिथ्यानंद ठुकरा नहीं पाया था और तभी से उस का मठ चल पड़ा. उस की तूती बोल रही है. अनेक भक्त उस के चक्कर में फंस चुके हैं. अब तो यह मठ करोड़ों रुपए की मिल्कीयत बन चुका है.

बाबा का बड़ा बेटा विष्णु पढ़ाई कर के जरमनी चला गया और एक ईरानी औरत से शादी कर के खुशहाल जिंदगी बिता रहा है. वक्त पर बाबा को मोटी रकम भी भेजता रहता है. यह बेटा बाबा के लिए रसीले आम की हैसियत रखता है. हां, पुरखों का बैठाबिठाया धर्म का धंधा नहीं करता, तो क्या हुआ, वहां कमोड का बड़ा कारोबारी है.

हां, मोटी अक्ल का छोटा बेटा परशुराम, जिसे पढ़ाई में कभी मजा नहीं आया था, एक दिन मास्टर को पत्थर से बुरी तरह घायल कर के घबराहट में गांव से नौ दो ग्यारह हो गया. यह बेटा गुठली था.

आम तो खा ही रहे थे, पर बेदाम गुठली का हाथों से निकल जाने का दुख बाबा को रातदिन खा रहा था. सोचा था, ‘किसी तरह कुछ पढ़ लेगा तो धर्म की दुकानदारी इसे सौंपेंगे, गुठली के दाम पाएंगे.’

पर सब बेकार साबित हुआ. बाबा ने अपने कुलकलंकी बेटे को ढूंढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी, आकाशपाताल, स्वर्गनरक सब एक कर दिया. इस चक्कर में काफी माल भी खर्च हो गया. 5 साल की निराशा के बाद बाबा को गुठली के दाम वसूलने की तरकीब सूझी.

मिथ्यानंद को चतुराई से इस्तेमाल कर के अनेक झूठे चमत्कारों और प्रवचनों से अपने भगोड़े बेटे परशुराम को महायोगी बना कर भावुक शिष्यों के मत्थे मढ़ दिया. आज अंधश्रद्धा की महिमा के चलते वही गुठली अब करोड़ों के दाम की है.

यज्ञ की सारी तैयारियां हो चुकी हैं. वीआईपी संतमहंतों से अपौइंटमैंट ले लिया गया है. अब सिर्फ यज्ञ कामयाब हो जाए, तब तो राजनीति में इस गुठली की कीमत इंटरनैशनल करंसी में होगी. सभी बाबा के आदेश का पालन करेंगे. वाह रे, गुठली के दाम.

रामलीला मैदान का विशाल मंच. पीछे बड़े अक्षरों में महायोगी परशुराम तप साधना रजत जयंती के पावन अवसर पर आयोजित ‘वर्ण एकता महायज्ञ’ लिखा था. मंच पर तथाकथित कई जानीमानी हस्तियों के अलावा जल्दी गुस्सा होने वाले सांड़ मिथ्यानंद समेत दूसरे संतमहंत भी मौजूद थे. भक्तों का इतना बड़ा जमावड़ा देख कर बाबा सनातन अपनेआप को संत सम्राट समझ कर इतरा रहा था.

देश के कोनेकोने से पिछड़ी जाति के लोगों को लाया गया था. उन के अपनेअपने मुखिया थे. हर मुखिया को मंच पर बुलाए जाने पर साधु द्वारा किसी उपाधि का सर्टिफिकेट ले कर, उस साधु के पैर लेट कर छूने थे और उन की तारीफ में दो शब्द कहने थे. बस, यही था ‘वर्ण एकता महायज्ञ’.

एकएक मुखिया यज्ञ में तिलजौ की तरह हवन हो रहा था. पंडा संस्कृति के तमाम लक्षणों वाले तामझाम के साथ चल रहा यह प्रोग्राम अपनी हद पर था. इधर टैलीविजन चैनल वाले इस मसालेदार यज्ञ को कवर करने की होड़ में लगे हुए थे.

बद्दूराम का जोश उस की बेचैनी को छलका रहा था. उसे शिद्दत से अपने नाम का इंतजार था कि तभी… ‘गुजरात के यजमान दलित बंधु राम यानी बद्दूराम का यज्ञ मंच पर स्वागत है…’ का ऐलान होते ही गिरतापड़ता बद्दूराम मंच पर किसी तरह पहुंचा और बाबा सनातन के पैरों पर लोट गया.

बाबा ने उसे पास बैठे मिथ्यानंद के पैरों की धूल लेने का इशारा किया. बद्दूराम ने वैसे ही किया. जवाब में मिथ्यानंद ने चिलम का जोरदार कश खींचा और प्रसाद के रूप में बद्दूराम पर धुएं का छोटा वाला बादल छोड़ा. बद्दूराम ने इसे उसी शिद्दत से स्वीकारा और बाकी सभी को प्रणाम कर बाबा के आदेश पर अपने मन की बात कहने के लिए माइक थामा और अपने मुंह का बांध फोड़ा.

वह बीचबीच में अपनी टपकती लार भी पोंछता रहा, ‘‘बाबाजी, आज का दिन बड़ा ही पावन है. हम सोचते थे कोई इतने सालों तक कैसे तप कर सकता है? माफ करें प्रभु, हम आप योगियों की चमत्कारी ताकत से अनजान थे. नहीं जानते थे कि हम पापियों के बीच रह कर भी योगी साधना करते हैं.

‘‘इस चमत्कार का बखान करने के लिए मैं ने आप से मिलने की बहुत कोशिश की, पर आप के बिजी रहने के चलते और आप की सेके्रटरी की चालाकी से ऐसा नहीं हो सका. शायद यह बखान यज्ञ की जगह पर ही हो, यही प्रभु इच्छा भी थी…

‘‘उस दिन कालोनी में मुझे यज्ञकुंड और नीचे लिखे श्री परशुराम गोदने के सभी गुण संकेतों के दर्शन हुए. मेरी तो आंखें खुल गईं. प्रभु, आप का महायज्ञ कामयाब हुआ. आप की मनचाही चीज आप को ब्याज के साथ हासिल हुई.

‘‘महायोगी परशुराम, जिन्हें आज तक हम अभागे ‘परसू’ कहते रहे, इस यज्ञधर्म को खुद साधारण इनसान बन कर, हमारे कंधे से कंधा, झाड़ू से झाड़ू मिला कर पिछले 25 साल से पाखानों की सफाई के रूप में करते आ रहे हैं.

‘‘हम कैसे जानते कि यह उन का सफाई योग चल रहा है.

‘‘इसी योग के चलते आखिरकार म्यूनिसिपैलिटी को उन्हें ‘कुशल कर्मचारी’ अवार्ड देना पड़ा. इतना ही नहीं, आप ने सच कहा था कि ‘साईं के सौ खेल हैं, वर्ण एकता को मजबूत करने के लिए उन्होंने मेरे समाज की अनाथ विधवा को अपनी छाया में ले कर एक बेटे को भी जन्म दिया, जो अब 15 साल का हो चुका है और आप का पवित्र गोत्र चिह्न, यज्ञकुंड गोदने का हकदार है.

‘‘प्रभु, वे जो सामने टैलीविजन वालों को इंटरव्यू दे रहे हैं, वही आप के बेटे सफाई महायोगी परशुराम हैं.’’

पूरा रामलीला मैदान भौचक्का सा आंखें फाड़े बद्दूराम को सुन रहा था. मंच पर नीले पड़ते बाबा सनातन को देख

कर आगबबूला मिथ्यानंद गरजा, ‘सनातन…’ और ‘त्राहिमाम’ वाला पोज अपना कर धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा. बाबा सनातन पगला जाने की हालत में पहुंच गया. उस का सत्संगी चोला गल सा गया.

बद्दूराम इस से आगे और कुछ कहता, उस से पहले ही खुद फट पड़ा, ‘‘गोद में बैठ कर आंख में उंगली डालता है.’’

इतना कह कर आव देखा न ताव उस ने अपनी खड़ाऊं उठा कर बद्दूराम की ओर कस कर दे मारी. पूरे रामलीला मैदान में हड़कंप मच गया. इसी दौरान परशुराम और बद्दूराम लीला का दौर शुरू हो गया. सनसनीखेज खबर के भूखे पत्रकारों ने बद्दूराम और परशुराम के लंबे इंटरव्यू लिए और पूरी सचाई का टैलीविजन पर प्रसारण कर अगले कई दिनों तक इसी खबर की जुगाली करते रहे.

सभी पाखंडियों को जेल की बदबूदार हवा खानी पड़ी. दिमागी बैलेंस खो चुका बाबा सनातन आखिर तक अपने खोए बेटे को उस की गवाही और सुबूतों के साबित होने पर भी अपना मानने से इनकार करता रहा. वह बस इतना ही कहता रहा, ‘यह गुठली मेरी नहीं.’

मिथ्यानंद न जाने कितने समय तक के लिए समाधि में चला गया. डाक्टरी भाषा में कहें तो इस चोट से वह कोमा में चला गया.

बाबा सनातन की गुठली के दाम ‘चालाक पंडा पार्टी’ को काफी महंगे पड़े. वह उन की मौत की वजह बनी. ‘जो अपने बेटे को अपनाने से इनकार कर सकता है, वह भला जनता को क्या अपना समझेगा.’ इस वजह से उन्हें जिन लोगों का समर्थन हासिल भी था, अब वह भी जाता रहा. एक बेदाग गुठली विषवृक्ष को बरबाद करने वाली बनी.

Summer Special: गर्मियों में जरुरी है स्किन की केयर

गर्मियों में तापमान के बढ़ने से स्किन मे जलन और चिपचिपाहट शुरू हो जाती है. स्किन अधिक सेंसेटिव होने की वजह से तपती गर्मी को सहन नहीं कर पाती, जिससे हमारी शुष्क स्किन रूखी और बेजान दिखाई देने लगती है, अगर स्किन तैलीय है, तो वह और भी तैलीय हो जाती है. सूरज की तेज किरणों की वजह से मेलेनिन पिगमेंटेशन को बढ़ाकर टैनिंग का कारण बनती है,क्योंकि मेलेनिन पिगमेंटेशन स्किन के रंग को निर्धारित करता है और स्किन को विटामिन डी प्राप्त करने में मदद करता है. इस बारें में एड्रोइट बायोमेड लिमिटेड के एक्सपर्ट सुशांत रावराने कहते है कि सूर्य के संपर्क में आने से मेलेनिन का अत्यधिक उत्पादन होता है, जिससे स्किन पर काले धब्बे और पैच होने का डर रहता है. इसके अलावा तापमान के बढ़ने से स्किन के पोर्स खुल जाते है और उसमें गंदगी और तेल भरने से चेहरे पर मुंहासे और झाइयां जैसी स्किन की समस्याएं पैदा होने लगती है. इसे चमकदार बनाने के कुछ उपाय निम्न है,

रखें हाइड्रेटेड स्किन को हमेशा

गर्मियों में स्किन को हाइड्रेशन की आवश्यकता अधिक होती है, ऐसे में सही हाइड्रेटिंग सीरम का चुनाव करना ज़रूरी है, जो स्किन को हाइड्रेट कर चमकदार बनाने में कारगर होगी. इसके लिए सल्फर मुक्त उत्पाद का प्रयोग करना अच्छा रहता है. सेरामोसाइड्स या ओरल मॉइस्चराइज़र प्राकृतिक पौधा गेहूँ से उत्पन्न न्यूट्रास्युटिकल्स(पौष्टिक औषधीय पदार्थ) है, जो स्किन को हाइड्रेट करने में मदद करती है, जिसके परिणामस्वरूप स्किन की चमक प्रभावित नहीं होती. यह एक अद्भुत ओरल मॉइस्चराइज़र है, जो अंदर से पूरे शरीर के लिए काम करती है. सेंसिटिव स्किन वालों को विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेना चाहिए

मेकअप में करें कटौती

समर में कम से कम मेकअप का प्रयोग करना चाहिए, जिससे आसानी से आपका लुक नैचुरल दिखे. अधिक मेकअप से पोर्स खुल जाते है और फेस सुस्त दिखने लगता है. नमी और गर्मी की वजह से स्किन मे सांस लेने की क्षमता कम हो जाती है. स्किन को नैचुरल रखने की कोशिश करें, जिससे स्किन अंदर से सुंदर और जीवंत दिखे. व्यस्त जीवनशैली में स्किन का ध्यान रखना बहुत मुश्किल होता है और व्यक्ति खुद की उपेक्षा, अनावश्यक तनाव आदि का शिकार हो जाता है, जिसका प्रभाव स्किन पर सबसे पहले पड़ता है. ग्लूटाथियोन जैसे न्यूट्रास्यूटिकल्स, पिगमेंटेशन और ब्लेमिशेज को स्किन से हटाकर खूबसूरत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. ग्लूटाथियोन हमारे शरीर में मेलेनिन के विकास को बढ़ने, जिससे स्किन को बहुत अधिक काला होने और काले धब्बे बनने से रोकता है. इसके अलावा ग्लूटाथियोन स्किन में अवशोषित अल्ट्रा वायलेट किरणों द्वारा निर्मित विषाक्त पदार्थों और फ्री रेडिकल्स से छुटकारा पाने में मदद करता है, जिसके परिणामस्वरूप चमकदार और उज्ज्वल स्किन दिखाई पड़ती है.

करें सेवन विटामिन सी

विटामिन सी सबसे अधिक जरुरी एंटीऑक्सिडेंट है, जो स्किन को हमेशा मुलायम और चमकदार बनाती है. आंवला अर्क में प्राकृतिक रूप से विटामिन सी पाया जाता है. यह मेलेनिन पिगमेंट को कम कर, एंटी-एजिंग प्रोटीन के उत्पादन में वृद्धि और फ्री रेडिकल्स को बे असर कर कोलेजन को बढ़ावा देने में मदद करती है. इसके अलावा हर तरह के सिट्रस फल जिसमें नीबू, संतरा, तरबूज आदि में विटामिन सी पाया जाता है.

इसके आगे सुशांत कहते है कि स्किन को स्वस्थ रखना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि यह न केवल हमें सुंदर बनाती है, बल्कि खुद में आत्मविश्वास भी भर देती है. स्किन की सुंदरता और चमक के अलावा, न्यूट्रास्यूटिकल्स स्किन सम्बन्धी कई बिमारियों मसलन मुँहासे और फंगल संक्रमण को भी कम करती है. प्राकृतिक चीजों का प्रयोग जितना हो सकें, उतना करें और स्किन की ताजगी को बनाये रखें. स्किन की देखभाल के कुछ सुझाव निम्न है,

हमेशा नैचुरल इन्ग्रेडिएन्ट को देखकर अच्छी कंपनी की सनस्क्रीन 30-50 SPF और UVA & UVB लें, जो स्किन पर भारी किरणों को पड़ने से रोकती है,

गर्मी में टिंटेड मॉइस्चराइज़र, टिंटेड लिप बाम और ऑर्गेनिक सुरमा का इस्तेमाल कर अपनी खूबसूरती को बनाएं रखे,

लिक्विड पदार्थो का सेवन अधिक करें, ताकि स्किन, कोमल, मुलायम और कांतिमान रहे, पानी विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने का काम करती है,

गर्मी के कारण स्किन पर सूखापन और धूल जम जाती है, इसलिए इस मौसम में माइल्ड क्लींजर से नियमित स्किन को क्लीन करना जरुरी है,

एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर भोजन लें, ताकि स्किन निखरी सी दिखे.

फर्क: इरा की कामयाबी सफलता थी या किसी का एहसान

इरा की स्कूल में नियुक्ति इसी शर्त पर हुई थी कि वह बच्चों को नाटक की तैयारी करवाएगी क्योंकि उसे नाटकों में काम करने का अनुभव था. इसीलिए अकसर उसे स्कूल में 2 घंटे रुकना पड़ता था.

इरा के पति पवन को कामकाजी पत्नी चाहिए थी जो उन की जिम्मेदारियां बांट सके. इरा शादी के बाद नौकरी कर अपना हर दायित्व निभाने लगी.

वह स्कूल में हरिशंकर परसाई की एक व्यंग्य रचना ‘मातादीन इंस्पेक्टर चांद पर’ का नाट्य रूपांतर कर बच्चों को उस की रिहर्सल करा रही थी. प्रधानाचार्य ने मुख्य पात्र के लिए 10वीं कक्षा के एक विद्यार्थी मुकुल का नाम सुझाया क्योंकि वह शहर के बड़े उद्योगपति का बेटा था और उस के सहारे पिता को खुश कर स्कूल अनुदान में खासी रकम पा सकता था.

मुकुल में प्रतिभा भी थी. इंस्पेक्टर मातादीन का अभिनय वह कुशलता से करने लगा था. उसी नाटक के पूर्वाभ्यास में इरा को घर जाने में देर हो जाती है. वह घर जाने के लिए स्टाप पर खड़ी थी कि तभी एक कार रुकती है. उस में मुकुल अपने पिता के साथ था. उस के पिता शरदजी को देख इरा चहक उठती है. शरदजी बताते हैं कि जब मुकुल ने नाटक के बारे में बताया तो मैं समझ गया था कि ‘इरा मैम’ तुम ही होंगी.

इरा उन के साथ गाड़ी में बैठ जाती है. तभी उसे याद आता है कि आज उस के बेटे का जन्मदिन है और उस के लिए तोहफा लेना है. शरदजी को पता चलता है तो वह आलीशान शापिंग कांप्लेक्स की तरफ गाड़ी घुमा देते हैं. वह इरा को कंप्यूटर गेम दिलवाने पर उतारू हो जाते हैं. इरा बेचैन थी क्योंकि पर्स में इतने रुपए नहीं थे. अब आगे…

3ह्म्द्मड्डस्र द्यह्य 1द्म3ह्य्न्न्न

एक महंगा केक और फूलों का बुके आदि तमाम चीजें शरदजी गाड़ी में रखवाते चले गए. वह अवाक् और मौन रह गई.

शरदजी को घर में भीतर आने को कहना जरूरी लगा. बेटे सहित शरदजी भीतर आए तो अपने घर की हालत देख सहम ही गई इरा. कुर्सियों पर पड़े गंदे,  मुचड़े, पहने हुए वस्त्र हटाते हुए उस ने उन्हें बैठने को कहा तो जैसे वे सब समझ गए हों, ‘‘रहने दो, इरा… फिर किसी दिन आएंगे… जरा अपने बेटे को बुलाइए… उस से हाथ मिला लूं तब चलूं. मुझे देर हो रही है, जरूरी काम से जाना है.’’

इरा ने सुदेश और पति को आवाज दी. वे अपने कमरे में थे. दोनों बाहर निकल आए तो जैसे इरा शरम से गड़ गई हो. घर में एक अजनबी को बच्चे के साथ आया देख पवन भी अचकचा गए और सुदेश भी सहम सा गया पर उपहार में आई ढेरों चीजें देख उस की आंखें चमकने लगीं… स्नेह से शरदजी ने सुदेश के सिर पर हाथ फेरा. उसे आशीर्वाद दिया, उस से हाथ मिला उसे जन्मदिन की बधाई दी और बेटे मुकुल के साथ जाने लगे तो सकुचाई इरा उन्हें चाय तक के लिए रोकने का साहस नहीं बटोर पाई.

पवन से हाथ मिला कर शरदजी जब घर से बेटे मुकुल के साथ बाहर निकले तो उन्हें बाहर तक छोड़ने न केवल इरा ही गई, बल्कि पवन और सुदेश भी गए.

उन्होंने पवन से हाथ मिलाया और गाड़ी में बैठने से पहले अपना कार्ड दे कर बोले, ‘‘इरा, कभी पवनजी को ले कर आओ न हमारे झोंपड़े पर… तुम से बहुत सी बातें करनी हैं. अरसे बाद मिली हो भई, ऐसे थोड़े छोड़ देंगे तुम्हें… और फिर तुम तो मेरे बेटे की कैरियर निर्माता हो… तुम्हें अपना बेटा सौंप कर मैं सचमुच बहुत आश्वस्तहूं.’’

पवन और सुदेश के साथ घर वापस लौटती इरा एकदम चुप और खामोश थी. उस के भीतर एक तीव्र क्रोध दबे हुए ज्वालामुखी की तरह भभक रहा था पर किसी तरह वह अपने गुस्से पर काबू रखे रही. इस वक्त कुछ भी कहने का मतलब था, महाभारत छिड़ जाना. सुदेश के जन्मदिन को वह ठीक से मना लेना चाहती थी.

सुदेश के जन्मदिन का आयोजन देर रात तक चलता रहा था. इतना खुश सुदेश पहले शायद ही कभी हुआ हो. इरा भी उस की खुशी में पूरी तरह डूब कर खुश हो गई.

बिस्तर पर जब वह पवन के साथ आई तो बहुत संतुष्ट थी. पवन भी संतुष्ट थे, ‘‘अरसे बाद अपना सुदेश आज इतना खुश दिखाई दिया.’’

‘‘पर खानेपीने की चीजें मंगाने में काफी पैसा खर्च हो गया,’’ न चाहते हुए भी कह बैठी इरा.

‘‘घर वालों के ही खानेपीने पर तो खर्च हुआ है. कोई बाहर वालों पर तो हुआ नहीं. पैसा तो फिर कमा लिया जाएगा… खुशियां हमें कबकब मिलती हैं,’’ पवन अभी तक उस आयोजन में डूबे हुए थे.

‘‘सोया जाए… मुझे सुबह फिर जल्दी उठना है. सुदेश का कल अंगरेजी का टेस्ट है और मैं अंगरेजी की टीचर हूं अपने स्कूल में. मेरा बेटा ही इस विषय में पिछड़ जाए, यह मैं कैसे बरदाश्त कर सकती हूं? सुबह जल्दी उठ कर उस का पूरा कोर्स दोहरवाऊंगी…’’

‘‘आजकल की यह पढ़ाई भी हमारे बच्चों की जान लिए ले रही है,’’ पवन के चेहरे पर से प्रसन्नता गायब होने लगी, ‘‘हमारे जमाने में यह जानमारू प्रतियोगिता नहीं थी.’’

‘‘अब तो 90 प्रतिशत अंक, अंक नहीं माने जाते जनाब… मांबाप 99 और 100 प्रतिशत अंकों के लिए बच्चों पर इतना दबाव बनाते हैं कि बच्चों का स्वास्थ्य तक चौपट हुआ जा रहा है. क्यों दबा रहे हैं हम अपने बच्चों को… कभीकभी मैं भी बच्चों को पढ़ाती हुई इन सवालों पर सोचती हूं…’’

‘‘शायद इसलिए कि हम बच्चों के भविष्य को ले कर बेहद डरे हुए हैं, आशंकित हैं कि पता नहीं उन्हें जिंदगी में कुछ मिलेगा या नहीं… कहीं पांव टिकाने को जगह न मिली तो वे इस समाज में सम्मान के साथ जिएंगे कैसे?’’ पवन बोले, ‘‘हमारे जमाने में शायद यह गलाकाट प्रतियोगिता नहीं थी पर आजकल जब नौकरियां मिल नहीं रहीं, निजी कामधंधों में बड़ी पूंजी का खेल रह गया है. मामूली पैसे से अब कोई काम शुरू नहीं किया जा सकता, ऐसे में दो रोटियां कमाना बहुत टेढ़ी खीर हो गया है, तब बच्चों के कैरियर को ले कर सावधान हो जाने को मांबाप विवश हो गए हैं… अच्छे से अच्छा स्कूल, ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं, साधन, अच्छे से अच्छा ट्यूटर, ज्यादा से ज्यादा अंक, ज्यादा से ज्यादा कुशलता और दक्षता… दूसरा कोई बच्चा हमारे बच्चे से आगे न निकल पाए, यह भयानक प्रत्याशा… नतीजा तुम्हारे सामने है जो तुम कह रही हो…’’

‘‘मैं तो समझती थी कि तुम इन सब मसलों पर कुछ न सोचते होंगे, न समझते होंगे… पर आज पता चला कि तुम्हारी भी वही चिंताएं हैं जो मेरी हैं. जान कर सचमुच अच्छा लग रहा है, पवन,’’ कुछ अधिक ही प्यार उमड़ आया इरा के भीतर और उस ने पवन को एक गरमागरम चुंबन दे डाला.

पवन ने भी उसे बांहों में भर, एक बार प्यार से थपथपाया, ‘‘आदमी को तुम इतना मूर्ख क्यों मानती हो? अरे भई, हम भी इसी धरती के प्राणी हैं.’’

‘‘यह नाटक मैं ठीक से करा ले जाऊं और शरदजी को उन के बेटे के माध्यम से प्रसन्न कर पाऊं तो शायद उस एहसान से मुक्त हो सकूं जो उन्होंने मुझ पर किए हैं. जानते हो पवन, शरदजी ने अपने निर्देशन में मुझे 3 नाटकों में नायिका बनाया था. बहुत आलोचना हुई थी उन की पर उन्होंने किसी की परवा नहीं की थी. अगर तब उन्होंने मुझे उतना महत्त्व न दिया होता, मेरी प्रतिभा को न निखारा होता तो शायद मैं नाटकों की इतनी प्रसिद्ध नायिका न बनी होती. न ही यह नौकरी आज मुझे मिलती. यह सब शरदजी की ही कृपा से संभव हुआ.’’

नाटक उम्मीद से कहीं अधिक सफल रहा. मुकुल ने इंस्पेक्टर मातादीन के रूप में वह समां बांधा कि पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. स्कूल प्रबंधक और प्रधानाचार्या अपनेआप को रोक नहीं सके और दोनों उठ कर इरा के पास मंच के पीछे आए, ‘‘इरा, तुम तो कमाल की टीचर हो भई.’’

मुकुल के पिता शरदजी तो अपने बेटे की अभिनय क्षमता और इरा के कुशल निर्देशन से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने वहीं, मंच पर आ कर स्कूल के लिए एक वातानुकूलित कंप्यूटर कक्ष और 10 कंप्यूटर अत्यंत उच्च श्रेणी के देने की घोषणा कर प्रबंधक और प्रधानाचार्या के मन की मुराद ही पूरी कर दी.

जब वे आयोजन के बाद चायनाश्ते पर अन्य अतिथियों के साथ प्रबंधक के पास बैठे तो न जाने उन के कान में क्या कहते रहे. इरा ने 1-2 बार उन की ओर देखा भी पर वे उन से ही बातें करते रहे. बाद में इरा को धन्यवाद दे वे जातेजाते पवन और सुदेश की तरफ देख हाथ हिला कर बोले, ‘‘इरा…मुझे अभी तक उम्मीद है कि किसी दिन तुम आने के लिए मुझे दफ्तर में फोन करोगी…’’

‘‘1-2 दिन में ही तकलीफ दूंगी, सर, आप को,’’ इरा उत्साह से बोली थी.

‘‘जो आदमी खुश हो कर लाखों रुपए का दान स्कूल को दे सकता है, उस से हम बहुत लाभ उठा सकते हैं, इरा… और वह आदमी तुम से बहुत खुश और प्रभावित भी है,’’ अपना मंतव्य आखिर पवन ने घर लौटते वक्त रास्ते में प्रकट कर ही दिया.

परंतु इरा चुप रही. कुछ बोली नहीं. किसी तरह पुन: पवन ने ही फिर कहा, ‘‘क्या सोच रही हो? कब चलें हम लोग शरदजी के घर?’’

‘‘पवन, तुम्हारे सोचने और मेरे सोचने के ढंग में बहुत फर्क है,’’ कहते हुए बहुत नरम थी इरा की आवाज.

‘‘सोच के फर्क को गोली मारो, इरा. हमें अपने मतलब पर ध्यान देना चाहिए, अगर हम किसी से अपना कोई मतलब आसानी से निकाल सकते हैं तो इस में हमारे सोच को और हमारी हिचक व संकोच को आड़े नहीं आना चाहिए,’’ पवन की सूई वहीं अटकी हुई थी, ‘‘तुम अपने घरपरिवार की स्थितियों से भली प्रकार परिचित हो, अपने ऊपर कितनी जिम्मेदारियां हैं, यह भी तुम अच्छी तरह जानती हो. इसलिए हमें निसंकोच अपने लिए कुछ हासिल करने का प्रयास करना चाहिए.’’

‘‘मैं तुम्हें और सुदेश को ले कर उन के बंगले पर जरूर जाऊंगी, पर एक शर्त पर… तुम इस तरह की कोई घटिया बात वहां नहीं करोगे. शरदजी के साथ मैं ने नाटकों में काम किया है, मैं उन्हें बहुत अच्छी तरह जानती हूं. वह इस तरह से सोचने वाले व्यक्ति नहीं हैं. बहुत समझदार और संवेदनशील व्यक्ति हैं. उन से पहली बार ही उन के घर जा कर कुछ मांगना मुझे उन की नजरों में बहुत छोटा बना देगा, पवन. मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती.’’

दूसरे दिन इरा जब स्कूल में पहुंची तो प्रधानाचार्या ने उसे अपने दफ्तर में बुलाया, ‘‘हमारी कमेटी ने तय किया है कि यह पत्र तुम्हें दिया जाए,’’ कह कर एक पत्र इरा की तरफ बढ़ा दिया.

एक सांस में उस पत्र को धड़कते दिल से पढ़ गई इरा. चेहरा लाल हो गया, ‘‘थैंक्स, मेम…’’ अपनी आंतरिक प्रसन्नता को वह मुश्किल से वश में रख पाई. उसे प्रवक्ता का पद दिया गया था और स्कूल की सांस्कृतिक गतिविधियों की स्वतंत्र प्रभारी बनाई गई थी. साथ ही उस के बेटे सुदेश को स्कूल में दाखिला देना स्वीकार किया गया था और उस की इंटर तक फीस नहीं लगेगी, इस का पक्का आश्वासन कमेटी ने दिया था.

शाम को जब घर आ उस ने वह पत्र पवन, ससुरजी व घर के अन्य सदस्यों को पढ़वाया तो जैसे किसी को विश्वास ही न आया हो. एकदम जश्न जैसा माहौल हो गया, सुदेश देर तक समझ नहीं पाया कि सब इतने खुश क्यों हो गए हैं.

इरा ने नजदीकी पब्लिक फोन से शरदजी को दफ्तर में फोन किया, ‘‘आप को हार्दिक धन्यवाद देने आप के बंगले पर आज आना चाहती हूं, सर. अनुमतिहै?’’

सुन कर जोर से हंस पड़े शरदजी, ‘‘नाटक वालों से नाटक करोगी, इरा?’’

‘‘नाटक नहीं, सर. सचमुच मैं बहुत खुश हूं. आप के इस उपकार को कभी नहीं भूलूंगी,’’ वह एक सांस में कह गई, ‘‘कितने बजे तक घर पहुंचेंगे आप?’’

‘‘मेरा ड्राइवर तुम्हें लगभग 9 बजे घर से लिवा लाएगा… और हां, सुदेश व पवनजी भी साथ आएंगे,’’ उन्होंने फोन रख दिया था.

अपनी इरा मैम को अपने घर पर पाकर मुकुल बेहद खुश था. देर तक अपनी चीजें उन्हें दिखाता रहा. अगले नाटकों में भी इरा मैम उसे रखें, इस का वादा कराता रहा.

पूरे समय पवन कसमसाते रहे कि किसी तरह इरा मतलब की बात कहे शरदजी से. शरदजी जैसे बड़े आदमी के लिए यह सब करना मामूली सी बात है, पर इरा थी कि अपने विश्वविद्यालय के उन दिनों के किए नाटकों के बारे में ही उन से हंसहंस कर बातें करती रही.

जब वे लोग वापस चलने को उठे तो शरदजी ने अपने ड्राइवर से कहा, ‘‘साहब लोगों को इन के घर छोड़ कर आओ…’’ फिर बड़े प्रेम से उन्होंने पवन से हाथ मिलाया और उन की जेब में एक पत्र रखते हुए बोले, ‘‘घर जा कर देखना इसे.’’

रास्ते भर पवन का दिल धड़कता रहा, माथे पर पसीना आता रहा. पता नहीं, पत्र में क्या हो. जब घर आ कर पत्र पढ़ा तो अवाक् रह गए पवन… उन की नियुक्ति शरदजी ने अपने दफ्तर में एक अच्छे पद पर की थी.

तलाक के बाद- भाग 4: क्या स्मिता को मिला जीवनसाथी

मुकदमा चलता रहा. इस बीच न जाने कितने जज आए और चले गए, लेकिन मुकदमा अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिला था. तलाक के प्रति अब उस का मोहभंग हो गया था.

कुछ और साल निकल गए. ढाक के वही तीन पात, कहीं कोई ओरछोर नजर नहीं आ रहा था.

जब उस का शरीर सूख गया, आंखों की चमक धूमिल हो गई, सौंदर्य ने साथ छोड़ दिया, बाल चांदी हो गए, तब एक दिन जज ने उस की तरफ देखते हुए पूछा, ‘क्या अभी भी आप तलाक चाहती हैं?’

उस की सूनी आंखें राजीव की तरफ मुड़ गई थीं. वह सिर झुकाए बैठा था. उस की तरफ कभी नहीं देखता था. स्मिता भी नहीं देखती थी. आज पहली बार देखा था. दोनों की आंखें चार होतीं तो बहुत सारे गिलेशिकवे दूर हो जाते. अब तक 10 साल बीत चुके थे और वह अच्छी तरह समझ गई थी कि अब उस के लिए तलाक के कोई माने नहीं थे.

वह चुप रही तो उस के वकील ने कहा, ‘हुजूर, हम पहले ही कह चुके हैं कि वादी प्रतिवादी के साथ जीवन नहीं गुजार सकती.’

स्मिता का मन हुआ था कि वह चीखचीख कर कहे, ‘नहीं…नहीं… नहीं….’ लेकिन उस समय जैसे किसी ने उस का गला दबा दिया था. वह कुछ नहीं कह पाई थी और तब कोर्ट ने निर्देश दिया, ‘कुछ दिन और साथ रह कर देखो.’ लेकिन दोनों कभी साथ नहीं रहे. दोनों ही पक्ष इस बात को कोर्टज़्से छिपा रहे थे. वह इसलिए इस तथ्य को छिपा रही थी कि कोर्ट उस के आदेश की अवहेलना मान कर उस के खिलाफ कोई कार्यवाही न कर दे. राजीव पता नहीं क्यों इस तथ्य को छिपा रहा था. संभवतया वह स्मिता की भावनाओं के कारण इस बात को कोर्टज़्से छिपा रहा था.

सब के अपनेअपने अहं थे, अपनेअपने कारण थे. कोर्ट की अपनी रफ्तार थी. वह किसी की निजी जिंदगी

से प्रभावित नहीं हो रही थी, लेकिन

2 जिंदगियां अदालती कार्यवाही में फंस कर पिस रही थीं.

सोचसोच कर उस ने अपने को जिंदा लाश बना लिया था. एक दिन वकील का उस के पास फोन आया कि अगली पेशी पर कोर्टज़्का आदेश आएगा. राजीव ने लिख कर दे दिया है कि वह उस को तलाक देना चाहता था. सुन कर स्मिता के दिल में एक बड़ा पहाड़ टूट कर गिर गया. वह अंदर से रो रही थी, परंतु बाहर उस के आंसू सूख गए थे. वह एक सूखी झील के समान थी, जिस में गहराई तो थी, लेकिन संवेदना और जीवन के जल की एक बूंद भी न थी.

राजीव के लिख कर देने के बाद ही शायद वर्तमान जज को यह भान हुआ होगा कि इतने सालों बाद भी अगर पतिपत्नी सामंजस्य नहीं बिठा पाए तो उन्हें तलाक दे देना ही बेहतर होगा. अगली पेशी पर वह कोर्ट गई, राजीव भी आया था. वह भी उस की तरह बूढ़ा हो गया था. दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा था. राजीव की आंखों में गहन पीड़ा का भाव था. वह आहत था, लेकिन अपनी पीड़ा किसी को बयान नहीं कर सकता था. वे दोनों विपरीत दिशा में खड़े हो कर फैसले का इंतजार करने लगे.

और आखिरकार कोर्टज़्का फैसला आ गया था. उसे तलाक मिल गया था, लेकिन वह खुश नहीं थी. 11 साल बहुत लंबा वक्त होता है. इतने सालों के बाद अब तलाक ले कर उस के मन में किस तरह के जीवन की अभिलाषा बची थी.

अब आगे क्या…एक बार फिर से वही प्रश्न उस के सामने था.

अंधेरा घिर आया था. चारों तरफ बत्तियां जल गई थीं. लेकिन उस के अंदर असीम अंधेरा था. उस का दिल डूब रहा था, उस का सारा सौंदर्य खत्म हो गया था. सौंदर्यज़्के जाते ही उस का घमंड भी न जाने कहां गायब हो गया था. अब उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे? कोई भी तो उस का नहीं था इस दुनिया में? भाईभाभी पहले ही उस से विमुख हो गए थे. पति से तलाक मिल गया. अब उस का कौन था? आधी उम्र बीत जाने के बाद वह किस के सहारे जीवन बिताएगी. दूसरा विवाह कर सकती थी. बुढ़ापे तक लोग एकदूसरे का सहारा ढूंढ़ लेते हैं.

उस का मन बैचेन था और वह भाग कर कहीं चली जाना चाहती थी. आज उस का अहं चकनाचूर हो गया था.

मन में एक संकल्प लेने के बाद वह एक तय दिशा में चल पड़ी. गली बड़ी सुनसान थी. चारों ओर अंधेरा था. केवल घरों का प्रकाश खिड़कियों से छन कर गली में आ रहा था. ऐसे में गली में सबकुछ साफसाफ नहीं दिखाई दे रहा था, लेकिन स्मिता के मन के अंदर एक अनोखा प्रकाश व्याप्त हो गया था, जिस में वह सबकुछ साफसाफ देख रही थी. अब उस के मन में कोई दुविधा नहीं थी.

घर के अंदर भी सन्नाटा था. उस ने धीरे से घंटी दबाई, अंदर से घंटी की आवाज सुनाई दी. फिर 2 मिनट बाद दरवाजा खुला. उस के सामने मुदर्नी चेहरा लिए राजीव खड़ा था. मूक, अंदर का प्रकाश स्मिता के चेहरे पर पड़ रहा था. वह पहचान गया था, लेकिन तुरंत उस के मुंह से आवाज नहीं निकली. स्मिता का दिमाग स्थिर था, मन शांत था. दिल में बस एक गुबार था, जो बाहर निकलने के लिए बेताब हो रहा था.

‘‘राजीव,’’ उस ने भीगे स्वर में कहा. राजीव कुछ कहना चाहता था, लेकिन स्मिता ने उसे लगभग धकेलते हुए कहा, ‘‘मैं बहुत थक चुकी हूं, राजीव, कुछ देर बैठना चाहती हूं.’’ राजीव ने उसे अंदर आने का रास्ता दिया. वह अंदर आ कर धड़ाम से सोफे पर गिर गई और लंबीलंबी सांसें लेने लगी. राजीव दौड़ कर एक गिलास पानी ले आया और उस के हाथ में थमा कर बोला, ‘‘लो, पी लो.’’

राजीव ने सिर झुका कर कहा, ‘‘सबकुछ खत्म हो गया.’’

वह उठ कर सीधी बैठ गई, ‘‘नहीं राजीव, सबकुछ खत्म नहीं हुआ है. जीवन कभी खत्म नहीं होता, आशाएं कभी नहीं मरतीं. अगर कुछ खत्म हुआ है, तो मेरा अज्ञान, मूढ़ता और घमंड. मेरा सौंदर्यज़्भी खत्म हो गया है, लेकिन तुम्हारे लिए प्यार बढ़ गया है.’’

‘‘अब इस का कोई अर्थ नहीं है,’’ राजीव ने मरे स्वर में कहा.

‘‘क्या हम एकदूसरे के पास वापस नहीं आ सकते?’’ उस ने गिड़गिड़ाते स्वर में कहा और उस की बगल में आ कर बैठ गई, ‘‘मैं ने आप को बहुत कष्ट दिया, लेकिन सच मानिए, बहुत पहले ही मेरी समझ में आ गया था कि मैं जो कर रही थी, सही नहीं था.’’

‘‘फिर तभी लौट कर क्यों नहीं आई?’’ राजीव का स्वर थोड़ा खुल गया.

‘‘बस, अविवेक का परदा पूरी तरह से हटा नहीं था. अहं की दीवार तड़क गई थी, लेकिन टूटी नहीं थी. परंतु आप ने क्यों बयान दे दिया कि आप भी तलाक देना चाहते हो?’’

‘‘स्मिता, तुम्हें नहीं पता, अदालतों और वकीलों के चक्कर में न जाने कितने परिवार बरबाद हो गए. पहले मुझे लगता था, दोएक साल तक कोर्ट के चक्कर लगाने के बाद तुम्हारी अक्ल ठिकाने आ जाएगी और तुम तलाक का मुकदमा वापस ले लोगी. परंतु जब देखा 11 साल निकल गए, जवानी साथ छोड़ती जा रही है. तब मैं ने कोर्ट में अपनी सहमति दे दी, वरना यह कार्यवाही जीवन के अंत तक समाप्त नहीं होती.’’

स्मिता कुछ पल तक उस के चेहरे को देखती बैठी रही, फिर पूछा, ‘‘तो क्या अदालत का फैसला मानोगे या…’’ उस ने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

राजीव के दिल में एक कसक सी उठी. वह कराह उठा, ‘‘मेरे मन में कभी भी तुम्हें ठुकराने की बात नहीं आई, यह तो तुम्हारी जिद के आगे मैं मजबूर हो गया था, तभी…’’

‘‘तो क्या आप को मन का फैसला मंजूर है?’’

राजीव कुछ नहीं बोला, बस, भावपूर्ण आंखों से उस के मलिन चेहरे पर निगाह गड़ा दी. स्मिता समझ गई और धीरे से अपना सिर उस के कंधे पर रख दिया.

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तलाक के बाद- भाग 3: क्या स्मिता को मिला जीवनसाथी

राजीव ने चलतेचलते कहा था, ‘हर बात में जिद अच्छी नहीं होती. इतना ध्यान रखना कि कोर्ट इतनी आसानी से किसी को तलाक नहीं देता, जब तक उस का कोई ठोस आधार न हो.’

स्मिता तब यह बात नहीं समझी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए उस ने एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका की नौकरी कर ली थी.

कोर्टज़्ने वादी स्मिता को 6 महीने का समय दिया, ताकि वह अपने फैसले पर दोबारा विचार कर सके. तब भी अगर उसे लगे कि वह अपने पति के साथ गुजारा नहीं कर सकती तो फिर से याचिका पर सुनवाई होगी. इस 6 महीने के दौरान राजीव ने फिर उस से मिलने की कोशिश की. लेकिन वह उस से बात तक करने को तैयार नहीं हुई. उसे पूरा यकीन था कि

6 महीने बाद उसे तलाक मिल जाएगा और तब वह अपनी मरजीज़्से किसी धनवान लड़के के साथ शादी कर लेगी. उस ने अखबारों, पत्रिकाओं और इंटरनैट पर अपने लिए योग्य वर की खोज भी करनी शुरू कर दी थी.

लेकिन उस की आशाओं पर पहली बार पानी तब फिरा, जब 6 महीने बाद सुनवाई शुरू हुई. हर सुनवाई पर तारीख पड़ जाती, कभी जज छुट्टी पर होते, कभी कोई वकील, कभी वकीलों की हड़ताल होती, कभी जज महोदय अन्य मामलों में बिजी होते. राजीव ने अपना जवाब दाखिल कर दिया था. वह स्मिता को तलाक नहीं देना चाहता था, जबकि तलाक की याचिका में स्मिता ने कहा था कि उस का पति उस का भरणपोषण करने में समर्थ नहीं था. राजीव की आय के प्रमाणपत्र मांगे गए थे.

यह सब करतेकरते 2-3 साल और निकल गए. फिर जज बदल गए. नए जज महोदय ने नए सिरे से सुनवाई शुरू की. हर पेशी पर केस की सुनवाई हुए बिना अगली तारीख पड़ जाती. बहुत दिनों बाद एक जज ने खुद स्मिता और राजीव से व्यक्तिगत तौर पर कुछ प्रश्न किए.

उस के बाद अगली तारीख पर फैसला सुनाया, ‘दोनों पक्षों को सुनने के बाद मैं इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि वादी के पास अपने पति से तलाक मांगने का कोई उचित कारण नहीं है. उन के बीच कलह का मात्र एक कारण है कि वादी अपने सासससुर से अलग रहना चाहती है, लेकिन पति ऐसा नहीं चाहता.

‘वादी ने दूसरा कारण यह बताया है कि प्रतिवादी उस का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं है. वादी का पति एक शिक्षक है और उस की आय का ब्योरा अदालत में मौजूद है, जिस से यह प्रमाणित होता है कि वह उस का भरणपोषण करने में सक्षम है. वादी के पास प्रतिवादी द्वारा प्रताडि़त करने का कोई प्रमाण भी नहीं है, सो वादी को निर्देश दिया जाता है कि वह पति के साथ रह कर अपना पारिवारिक दायित्य निभाते हुए रिश्तों में सामंजस्य बिठाए. मुझे विश्वास है कि दोनों सुखद दांपत्यजीवन व्यतीत करेंगे. याचिका खारिज की जाती है.’

कोर्ट का आदेश सुन कर स्मिता को गश आ गया था. लगभग 5 वर्षों बाद यह फैसला आया था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह किधर जाए. उसे कोर्टज़्के आदेश के ऊपर गुस्सा नहीं आ रहा था. उस का गुस्सा राजीव के ऊपर था. वह अगर सहमति दे देता तो उसे आसानी से तलाक मिल जाता.

पतिपत्नी साथसाथ रिश्तों में तालमेल बिठा कर रहने की कोशिश करेंगे. साथ रहेंगे तो मतभेद अपनेआप दूर हो जाएंगे, लेकिन स्मिता ऐसा नहीं सोचती थी. वह अपने पति के घर नहीं गई तो राजीव उसे मनाने आया था.

‘स्मिता, तुम अपनी जिद में हम दोनों का जीवन बरबाद कर रही हो,’ उस ने कहा था.

‘मेरा जीवन तो तुम बरबाद कर रहे हो. जब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती तो तुम मुझे तलाक क्यों नहीं दे देते.’

‘पता नहीं तुम कुछ समझने की कोशिश क्यों नहीं करती. शादीब्याह कोई हंसीमजाक नहीं है कि जब चाहा ब्याह कर लिया और जब चाहा तलाक ले लिया. हमारी अदालतें भी इन मामलों को गंभीरता से लेती हैं. वे दांपत्यजीवन को तोड़ने में नहीं, जोड़ने में विश्वास करती हैं. मुझे नहीं लगता, तुम्हें आसानी से तलाक मिल पाएगा.’

‘सबकुछ बहुत आसान है. तुम मुझे छोड़ दो, तो मैं आसानी से दूसरा ब्याह कर सकती हूं.’

‘तुम सुंदर हो, इसलिए तुम्हें लगता है कि तुम आसानी से दूसरा विवाह कर लोगी. हो सकता है, तुम्हें कोई राजकुमार मिल जाए, परंतु इस बात की क्या गारंटी है कि वह तुम्हें सुख से रखेगा,’ राजीव ने ताना मारते हुए कहा था.

‘मैं उसे खुश रखूंगी तो वह मुझे सुख से क्यों नहीं रखेगा?’

‘यही व्यवहार तुम मेरे साथ भी कर सकती हो. तुम अपनी बेवजह की जिद छोड़ दो, तो खुशियां पाने के बहुत सारे रास्ते खुल जाएंगे.’

‘मैं तुम्हारे साथ ऐडजस्ट नहीं कर सकती. तुम्हारे मांबाप मुझे अच्छे नहीं लगते. तुम मुझे छोड़ दो. मैं ने शादी डौटकौम पर अपना प्रोफाइल डाल रखा है, बहुत अच्छेअच्छे प्रपोजल आ रहे हैं.’ उस ने राजीव से इस तरह कहा, जैसे वह अपना अधिकार मांग रही थी. परंतु राजीव ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया. गुस्से से बोला, ‘तुम तो शादी कर लोगी, लेकिन मेरा क्या होगा? मैं दूसरी शादी नहीं कर सकता. पड़ोसी और रिश्तेदार क्या सोचेंगे कि मैं तुम्हारे साथ क्यों नहीं निभा पाया?’

‘किसी गरीब लड़की से शादी कर लो, सुखी रहोगे,’ स्मिता ने मजाक उड़ाते हुए कहा.

राजीव निराश लौट गया था.

अपने ही मांबाप के घर में उसे लगने लगा था कि वह पराई हो गई थी. बड़ा उपेक्षित सा जीवन जी रही थी वह अपने सगों के बीच में. धीरेधीरे उस की समझ में आ रहा था कि एक युवा स्त्री के लिए सही जगह उस की ससुराल ही होती है, मायका नहीं. यह समझने के बावजूद वह राजीव से कोई समझौता करने को तैयार नहीं थी. इंटरनैट पर आने वाले सुंदर प्रस्ताव उसे लुभा रहे थे. कई लड़कों से वह फोन पर बातें भी कर चुकी थी.

कुछ दिनों बाद जब उस के हाथ में कुछ पैसा आया तो उस के मंसूबों को फिर से पंख लग गए.

उस ने फिर वकील से बात की, ‘वकील साहब, आप किसी तरह मुझे मेरे पति से तलाक दिलवा दो.’

‘फिर से अर्जीज़्देनी होगी. इस बार केस में कोई ठोस वजह बतानी पड़ेगी. पहले वाले जज का तबादला हो गया है. अब नए जज आए हैं. कल तुम फीस के पैसे ले कर आ जाओ. परसों अर्जीज़् दाखिल कर देंगे.’

अर्जीज़्फिर से कोर्ट में दाखिल हो गई. कोर्टज़्ने फिर से विचार के लिए 6 महीने का समय दिया. कानून के तहत यह एक निर्धारित प्रक्रिया थी.

स्मिता नहीं जानती थी कि कानूनी प्रक्रिया इतनी लंबी ख्ंिचती है. इस बार भी 3-4 महीने में एक तारीख पड़ती तो उस में सुनवाई न हो पाती. किसी न किसी कारण फिर से अगली तारीख पड़ जाती. अगली तारीख भी 3-4 महीने बाद की होती. पेशियों की तारीखें लंबी पड़ती थीं, लेकिन उम्र के हाशिए छोटे होते जा रहे थे.

एक मन कहता, अहं छोड़ कर वह राजीव के पास चली जाए, लेकिन तत्काल दूसरा मन उस की इस सोच को दबा देता. क्या वह अपनी हार को स्वीकार कर लेगी. लोग क्या कहेंगे, ससुराल पक्ष के लोग ताने मारमार कर उस का जीना हराम नहीं कर देंगे? क्या वह अपने स्वाभिमान को बचा पाएगी? उस के अंदर अहं का नाग फनफना कर अपना सिर उठा लेता और उसे आगे बढ़ने से रोक लेता. जब भी वह लंबे चलने वाले मुकदमे से हताश और निराश होती, तो उस के कदम पीछे हट कर पति से समझौता करने के लिए उकसाते, लेकिन अहं के पहाड़ की सब से ऊंची चोटी पर बैठी स्मिता नीचे उतरने से डर जाती.

एक बार उस ने अपने वकील से मुकदमा वापस लेने की बात की, तो उस ने कहा, ‘अब इतना आगे आ कर पीछे हटने का कोई मतलब नहीं है.’

वह अपनी सुंदर काया को जला कर राख किए दे रही थी. 36 की उम्र में वह 45 साल की लगने लगी थी. उस के सपने टूटटूट कर बिखरने लगे थे, सौंदर्यज़्के रंग फीके पड़ने लगे थे. उस के जीवन की बगिया में न तो भंवरों की गुनगुनाहट थी, न तितलियों के रंग. उस के चारों तरफ सूना आसमान पसर गया था और पैरों के नीचे तपता हुआ रेगिस्तान था, जिस का कोई ओरछोर नहीं था.

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मन के दर्पण में: क्या एक-दूसरे का सहारा बन सके ललितजी और मृदुला?

Summer Special: गर्मियों में लें फ्लेवर्ड लस्सी का आनंद, बस ट्राई करें ये रेसिपी

गर्मियों का मौसम प्रारम्भ हो चुका है अक्सर गर्मी के कारण मुंह और गला सूखता है और कुछ ठंडा पीने का मन करता है. गर्मी को दूर करने के लिए हम शर्बत, ज्यूस, पना, और अन्य शीतल पेय का सेवन करते हैं उन्हीं में से एक है लस्सी. अन्य पेय पदार्थों की अपेक्षा लस्सी स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी होती है क्योंकि इसे दही से बनाया जाता है. दही में कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन्स, लैक्टोज, आयरन, और फॉस्फोरस भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. दही एक प्रोबायोटिक फ़ूड है जो पाचन क्षमता को दुरुस्त रखता है.

बर्फ, शकर और दही के द्वारा बनाई जाने वाली लस्सी के बारे में हम सभी जानते हैं परन्तु आज हम आपको फ्लेवर्ड लस्सी के बारे में बता रहे हैं जो सादा लस्सी के मुकाबले अधिक स्वादिष्ट होती हैं. चूंकि बच्चे सादा लस्सी पीने में आनाकानी करते हैं आप ये फ्लेवर्ड लस्सी बनाकर बच्चों को दें इससे उन्हें दही की पौष्टिकता भी मिलेगी और स्वाद भी तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं.

तरबूजी लस्सी

कितने लोंगों के लिए 2
बनने में लगने वाला समय 15 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

ताजा दही 2 कप
तरबूज के टुकड़े 2 कप
शकर 2 टीस्पून
काली मिर्च पाउडर 1 चुटकी
कुटी बर्फ 1 कप
रूहअफजा शर्बत 1 टीस्पून

विधि

तरबूज के टुकड़ों में से बीज निकाल दें. ब्लेंडर में तरबूज के टुकड़े, काली मिर्च पाउडर और शकर डालकर ब्लेंड कर लें. अब दही में रुहआफजा शर्बत, ब्लेंड किया तरबूज डालकर मथनी से अच्छी तरह चलाएं. सर्विग ग्लास में कुटी बर्फ डालकर तैयार लस्सी डालें. ऊपर से तरबूज के टुकड़ों से सजाकर सर्व करें.

ओरियो बिस्किट लस्सी

कितने लोंगों के लिए 2
बनने में लगने वाला समय 20 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

ताजा दही 2 कप
ओरियो बिस्किट 6
चॉकलेट सॉस 2 टीस्पून
शकर 1 टीस्पून
चॉकलेट चिप्स 1 टीस्पून
बारीक कटे काजू 1 टीस्पून
आइस क्यूब्स 1 कप

विधि

ओरियो बिस्किट की परत को खोलकर क्रीम को अलग कर दें. दही में बिस्किट की क्रीम, शकर डालकर चलायें. बिस्किट को दरदरा क्रश कर लें. अब इस फेंटे हुए दही में क्रश्ड बिस्किट और आइस क्यूब्स डालकर भली भांति चलाएं. सर्विंग ग्लास के चारों तरफ चाकलेट सॉस फैलाकर तैयार लस्सी डालें ऊपर से चॉकलेट चिप्स और कटे काजू डालकर सर्व करें.

गर्मियों में त्वचा हो गई है रूखी और बेजान, तो फॉलो करें ये टिप्स

गर्मियों के मौसम में कुछ लोगों की त्वचा औयली हो जाती है, लेकिन जिन लोगों की त्वचा प्राकृतिक रूप से ड्राई होती है, उन की त्वचा गर्मी में ज्यादा ड्राई होने लगती है.

ड्राई स्किन को समझने के लिए जरूरी है कि आप पहले नौर्मल स्किन के बारे में जान लें. नौर्मल स्किन में पानी और लिपिड की मात्रा संतुलित बनी रहती है. लेकिन जब त्वचा में पानी या वसा या दोनों की मात्रा कम हो जाती है तो त्वचा ड्राई यानि शुष्क होने लगती है. इस से त्वचा में खुजली होना, उस की परतें उतरना, त्वचा फटना जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं.

आमतौर पर त्वचा के निम्न हिस्से ड्राई होते हैं:

हाथ और पैर:

बारबार सख्त साबुन से हाथ धोने से त्वचा ड्राई होने लगती है. ऐसा मौसम बदलने के समय भी होता है. कपड़ों से रगड़ खाने पर भी बाजुओं और जांघों की त्वचा ड्राई होने लगती है. इसलिए गर्मियों में टाईट फिटिंग के कपड़े न पहनें.

घुटने और कोहनी:

एडि़यां फटना इस मौसम में आम है. नंगे पैर चलने या पीछे से खुले फुटवियर पहनने से यह समस्या बढ़ती है. इसलिए एडि़यों पर मौइश्चराइजर लगा कर इन्हें नम बनाए रखें.

अगर आप ड्राई स्किन पर ध्यान नहीं देंगे, तो यह समस्या रैशेज, ऐग्जिमा, बैक्टीरियल इन्फैक्शन आदि में बदल सकती है.

ड्राई स्किन के कारण

गरमी के मौसम में ड्राई स्किन के कारण कुछ इस तरह हैं:

पसीना आना:

पसीने के साथ त्वचा की नमी बनाए रखने वाला जरूरी औयल भी निकल जाता है जिस से त्वचा शुष्क होने लगती है.

पर्याप्त मात्रा में पानी न पीना:

गर्मियों में कम पानी पीने से डीहाइड्रेशन हो जाता है. इसलिए शरीर में पानी की सही मात्रा बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी और तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए.

एयर कंडीशनर:

ठंडी हवा में नमी की मात्रा कम होती है, जिस से आप की त्वचा ड्राई हो सकती है. इस के अलावा जब आप ठंडी हवा से गरम हवा में जाते हैं तो गरम हवा त्वचा की बचीखुची नमी भी सोख लेती है. इस से त्वचा ड्राई होने लगती है.

बहुत ज्यादा नहाना:

बारबार नहाने से त्वचा से औयल निकल जाता है. इस के अलावा स्विमिंग पूल में तैरने से क्लोरीन त्वचा के प्राकृतिक सीबम को घोल देती है, जिस से त्वचा की नमी खो जाती है और त्वचा ड्राई होने लगती है.

ड्राई स्किन से कैसे बचें

ऐसी चीजों से बचें जो त्वचा की नमी सोख लेती हैं जैसे ऐल्कोहल, ऐस्ट्रिंजैंट या हैंड सैनिटाइजिंग जैल.

सख्त साबुन और ऐंटीबैक्टीरियल साबुन का इस्तेमाल न करें, क्योंकि ये त्वचा से प्राकृतिक तेल को सोख लेते हैं.

रोज स्क्रबिंग न करें. सप्ताह में एक से 3 बार स्क्रबिंग करें.

सनस्क्रीन लोशन लगा कर ही घर से बाहर जाएं. यूवी किरणों के संपर्क में आने से फोटो ऐजिंग की समस्या होने लगती है. इस से भी त्वचा ड्राई हो जाती है.

लिप बाम में मैंथौल और कपूर जैसे अवयव होते हैं जो होंठों का सूखापन बढ़ाते हैं.

औयल बेस्ड मेकअप का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इस से त्वचा के रोमछिद्र बंद हो जाते हैं.

प्रदूषण से त्वचा का विटामिन ए नष्ट होने लगता है, जो त्वचा के टिश्यूज को रिपेयर करने के लिए जरूरी है. ऐसे में दिन में 4-5 बार हर्बल फेस वाश से चेहरा साफ करें.

उम्र बढ़ने के साथसाथ त्वचा को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. खासतौर पर तब जब आप की त्वचा ड्राई हो. ऐंटीऐजिंग मौइश्चराइजर इस्तेमाल करें ताकि त्वचा की कसावट बनी रहे.

ड्राई स्किन की देखभाल

सेहतमंद आहार लें:

ऐसे आहार का सेवन करें, जिस में ऐंटीऔक्सीडैंट पर्याप्त मात्रा में हों. इस से त्वचा में तेल और वसा की मात्रा सही बनी रहती है और त्वचा मुलायम बनी रहती है. बेरीज, औरेंज, लाल अंगूर, चेरी, पालक व ब्रोकली इत्यादि ऐंटीऔक्सीडैंट से भरपूर खाद्यपदार्थ हैं.

सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें:

इस का इस्तेमाल हर मौसम में करना चाहिए, क्योंकि यूवी किरणें त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती हैं.

ऐक्सफोलिएशन:

इस से ड्राई स्किन की उपरी परत निकल जाती है और त्वचा में नमी बनी रहती है.

मौइश्चराइजिंग:

चेहरे और शरीर की त्वचा के लिए अलगअलग मौइश्चराइजर की जरूरत होती है. चेहरे का मौइश्चराइजर माइल्ड होना चाहिए, जबकि शरीर की त्वचा के लिए औयल बेस्ड थिक मौइश्चराइजर उपयुक्त है.

अपने पैरों को दें पोषण:

पैरों की अनदेखी न करें. पैरों को 10 मिनट के लिए कुनकुने पानी में भिगो कर रखने के बाद इन की स्क्रबिंग करें. इस के बाद फुट क्रीम या मिल्क क्रीम का इस्तेमाल करें. इस से पैरों की त्वचा नर्ममुलायम बनी रहेगी.

घरेलू उपचार

नारियल के तेल में मौजूद फैटी ऐसिड्स त्वचा को प्राकृतिक नमी देते हैं. सोने से पहले नारियल का तेल लगाएं. आप नहाने के बाद भी नारियल का तेल लगा सकते हैं.

औलिव औयल में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट और फैटी ऐसिड ड्राई त्वचा को नम बनाते हैं. यह केवल त्वचा ही नहीं, बल्कि बालों और नाखूनों के लिए भी फायदेमंद है.

दूध मौइश्चराइजर का काम करता है. दूध त्वचा की खुजली, खुश्की, सूजन को दूर करता है. गुलाबजल या नींबू के रस में दूध मिला कर कौटन से त्वचा पर लगाने से वह नम और मुलायम बनी रहेगी.

शहद में कई जरूरी विटामिन और मिनरल्स होते हैं जो त्वचा के लिए फायदेमंद हैं. इसे पपीता, केला या ऐवोकाडो के साथ मिला कर हाथोंपैरों पर 10 मिनट के लिए लगाएं और पानी से धो दें.

योगर्ट त्वचा के लिए बेहतरीन मौइश्चराइजर है. इस में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट और ऐंटीइन्फ्लेमैटरी तत्व त्वचा को नर्म बनाते हैं. इस में मौजूद लैक्टिक ऐसिड बैक्टीरिया से भी बचाता है, जिस से त्वचा की खुजली दूर होती है. इसे चने के आटे, शहद और नींबू के रस में मिला कर त्वचा पर लगाएं. 10 मिनट बाद ठंडे पानी से धो दें.

ऐलोवेरा त्वचा की खुश्की मिटाने के साथसाथ डैड सैल्स हटाने में भी मददगार है.

ओटमील त्वचा पर सुरक्षा की परत बनाता है. बाथटब में एक कप प्लेन ओटमील और कुछ बूंदे लैवेंडर औयल डाल कर नहाने से फ्रैशनैस आती है. इसे पके केले के साथ मिला कर फेसमास्क बनाएं व लगाने के 15 मिनट बाद ठंडे पानी से धो दें.

इन उपायों को अपना कर गर्मियों का ये मौसम आप के लिए भी बन जाएगा हैप्पी समर सीजन.

– डा. साक्षी श्रीवास्तव, कंसल्टैंट डर्मैटोलौजिस्ट, जेपी हौस्पिटल

जौर्जेट लेडी: क्यों साड़ी को निहार रही थी पपीहा

पपीहाने घर से आया कूरियर उत्सुकता से खोला. 2 लेयर्स के नीचे 3 साडि़यां   झांक रही थीं. तीनों का ही फैब्रिक जौर्जेट था. एक मटमैले से रंग की थी, दूसरी कुछ धुले हरे रंग की, जिस पर सलेटी फूल खिले हुए थे और तीसरी साड़ी चटक नारंगी थी.

पपीहा साडि़यों को हाथ में ले कर सोच रही थी कि एक भी साड़ी का रंग ऐसा नहीं है जो उस पर जंचेगा. पर मम्मी, भाभी या दादी किसी को भी कोई ऐसी सिंथैटिक जौर्जेट मिलती है तो फौरन उपहारस्वरूप उसे मिल जाती है.

दीदी तो नाक सिकोड़ कर बोलती हैं, ‘‘मेरे पास तो रखी की रखी रह जाएगी… मु  झे तो ऐलर्जी है इस स्टफ से. तू तो स्कूल में पहन कर कीमत वसूल कर लेगी.’’

पपीहा धीमे से मुसकरा देती थी. उस के पास सिंथैटिक जौर्जट का अंबार था. बच्चे भी हमेशा बोलते कि बैड के अंदर भी मम्मी की साडि़यां, अलमारी में भी मम्मी की साडि़यां. ‘‘फिर भी मम्मी हमेशा बोलती हैं कि उन के पास ढंग के कपड़े नहीं हैं.’’

आज स्कूल का वार्षिकोत्सव था. सभी टीचर्स आज बहुत सजधज कर आती थीं. अधिकतर टीचर्स के लिए यह नौकरी बस घर से बाहर निकलने और लोगों से मिलनेजुलने का जरीया थी.

पपीहा ने भी वसंती रंग की साड़ी पहनी और उसी से मेल खाता कंट्रास्ट में कलमकारी का ब्लाउज पहना. जब स्कूल के गेट पर पहुंची तो जयति और नीरजा से टकरा गई.

जयति हंसते हुए बोली, ‘‘जौर्जेट लेडी आज तो शिफौन या क्रैप पहन लेती.’’

जयति ने पिंक रंग की शिफौन साड़ी पहनी हुई थी और उसी से मेल खाती मोतियों की ज्वैलरी.

नीरजा बोली, ‘‘मैं तो लिनेन या कौटन के अलावा कुछ नहीं पहन सकती हूं.’’

‘‘कौटन भी साउथ का और लिनेन भी

24 ग्राम का.’’

पपीहा बोली, ‘‘आप लोग अच्छी तरह

कैरी कर लेते हो. मैं कहां अच्छी लगूंगी इन साडि़यों में?’’

पूरी शाम पपीहा देखती रही कि सभी छात्राएं केवल उन टीचर्स को कौंप्लिमैंट कर रही थीं, जिन्होंने महंगे कपड़े पहने हुए थे.

किसी भी छात्रा या टीचर ने उस की तारीफ नहीं की. वह घर से जब निकली थी तो उसे तो आईने में अपनी शक्ल ठीकठाक ही लग रही थी.

तभी उस की प्रिय छात्रा मानसी आई और बोली, ‘‘मैम, आप रोज की तरह आज भी अच्छी लग रही हैं.’’

पपीहा ये शब्द सुन कर अनमनी सी हो गई. उसे सम  झ आ गया कि वह रोज की तरह ही बासी लग रही है.

घर आतेआते पपीहा ने निर्णय कर लिया कि अब अपनी साडि़यों का चुनाव सोचसम  झ कर करेगी. क्या हुआ अगर उस के पति की आमदनी औरों की तरह नहीं है. कम से कम कुछ महंगी साडि़यां तो खरीद ही सकती है.

जब पपीहा घर पहुंची तो विनय और

बच्चों ने धमाचौकड़ी मचा रखी थी. उस का

मूड वैसे ही खराब था और यह देख कर उस

का पारा चढ़ गया. चिल्ला कर बोली, ‘‘अभी स्कूल से थकी हुई आई हूं… घर को चिडि़याघर बना रखा है.’’

मम्मी का मूड देख कर ओशी और गोली अपने 2 अपने कमरे में दुबक गए.

विनय प्यार से बोला, ‘‘पपी क्या हुआ है? क्यों अपने खूबसूरत चेहरे को बिगाड़ रही हो.’’

पपीहा आंखों में पानी भरते हुए बोली, ‘‘बस तुम्हें लगती हूं… आज किसी ने भी मेरी तारीफ नहीं की. सब लोग कपड़ों को ही देखते

हैं और मेरे पास तो एक भी ढंग की साड़ी

नहीं है.’’

विनय बोला, ‘‘बस इतनी सी बात. चलो तैयार हो जाओ, बाहर से कुछ पैक भी करवा लेते हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की साड़ी भी खरीद लेते हैं.’’

जब विनय का स्कूटर एक बहुत बड़ी साड़ी की दुकान के आगे रुका तो पपीहा बोली, ‘‘अरे फुजूलखर्ची क्यों कर रहे हो.’’

विनय बोला, ‘‘एक बार देख लेते हैं… तुम नौकरी करती हो, बाहर आतीजाती हो…. आजकल सीरत से ज्यादा कपड़ों का जमाना है.’’

पपीहा ने जब साड़ी के लिए कहा तो दुकानदार ने साडि़यां दिखानी आरंभ कर दीं. एक से बढ़ कर एक खूबसूरत साडि़यां थीं पर किसी भी साड़ी की कीमत क्व8 हजार से कम नहीं थी. पपीहा की नजर अचानक एक साड़ी पर ठहर गई. एकदम महीन कपड़ा, उस पर रंगबिरंगे फूल खिले थे.

दुकानदार भांप गया और बोला, ‘‘मैडम

यह साड़ी तो आप ही के लिए बनी है. देखिए फूल से भी हलकी है और आप के ऊपर तो खिलेगी भी बहुत.’’

विनय बोला, ‘‘क्या प्राइज है?’’

‘‘क्व12 हजार.’’

पपीहा बोली, ‘‘अरे नहीं, थोड़े कम दाम

की दिखाइए.’’

विनय बोला, ‘‘अरे एक बार पहन कर

तो देखो.’’

पपीहा ने जैसे ही साड़ी का पल्लू अपने से लगा कर देखा, ऐसा लगा वह कुछ और ही बन गई है.

पपीहा का मन उड़ने लगा, उसे लगा जैसे वह फिर से स्कूल पहुंच गई है. जयति और नीरजा उस की साड़ी को लालसाभरी नजरों से देख रही हैं.

छात्राओं का समूह उसे घेरे हुए खड़ा है और सब एक स्वर में बोल रहे थे कि मैम यू आर लुकिंग सो क्यूट.

तभी विनय बोला, ‘‘अरे, कब तक हाथों में लिए खड़ी रहोगी?’’

जब साड़ी ले कर दुकान से बाहर निकले तो पपीहा बेहद ही उत्साहित थी. यह उस की पहली शिफौन साड़ी थी.

पपीहा बोली, ‘‘अब मैं इस साड़ी की स्पैशल फंक्शन में पहनूंगी.’’

पपीहा जब अगले दिन स्कूल पहुंची तो स्टाफरूम में साडि़यों की चर्चा हो रही थी. पहले पपीहा ऐसी चर्चा से दूर रहती थी, परंतु अब उस के पास भी शिफौन साड़ी थी. अत: वह भी ध्यान से सुनने लगी.

नीरजा शिफौन के रखरखाव के बारे में बात कर रही थी.

पपीहा भी बोल पड़ी, ‘‘अरे वैसे शिफौन थोड़ी महंगी जरूर है पर सिंथैटिक जौर्जेट उस के आगे कहीं नहीं ठहरती है.’’

अब पपीहा प्रतीक्षा कर रही थी कि कब

वह अपनी शिफौन साड़ी पहन कर

स्कूल जाए. पहले उस ने सोचा कि पेरैंटटीचर मीटिंग में पहन लेगी पर फिर उसे लगा कि टीचर्स डे पर पहन कर सब को चौंका देगी. पपीहा ने पूरी तैयारी कर ली थी पर 5 सितंबर को जो बरसात की   झड़ी लगी वह थमने का नाम ही नहीं ले रही थी.

जब पपीहा तैयार होने लगी तो विनय ने कहा भी, ‘‘पपी, वह शिफौन वाली साड़ी पहन लो न.’’

पपीहा मन मसोस कर बोली, ‘‘विनय इतनी महंगी साड़ी बरसात में कैसे खराब कर दूं?’’

जब पपीहा स्कूल पहुंची तो देखा चारों

तरफ पानी ही पानी भरा था पर तब भी जयति बड़ी अदा से शिफौन लहराते हुए आई और बोली, ‘‘जौर्जेट लेडी, आज तो तुम शिफौन

पहनने वाली.’’

पपीहा बोली, ‘‘बरसात में कैसे पहनती?’’

नीरजा ग्रे और गोल्डन लिनेन पहने इठलाती हुई आई और बोली, ‘‘अरे लिनेन सही रहती है इस मौसम में.’’

पपीहा को लग रहा था वह कितनी

फूहड़ हैं.

पपीहा के जन्मदिन पर विनय बोला,

‘‘शाम को डिनर करने बाहर जाएंगे तो वही साड़ी पहन लेना.’’

पपीहा बोली, ‘‘अरे किसी फंक्शन में

पहन लूंगी.’’

विनय चिढ़ते हुए बोला, ‘‘मार्च से फरवरी आ गया… कभी तो उस साड़ी को हवा लगा दो.’’

पपीहा बोली, ‘‘विनय इस बार पेरैंटटीचर मीटिंग पर पहन लूंगी.’’

पेरैंटटीचर मीटिंग के दिन जब विनय ने याद दिलाया तो पपीहा बोली, ‘‘अरे काम में लथड़पथड़ जाएगी.’’

ऐसा लग रहा था जैसे पपीहा के लिए वह साड़ी नहीं, अब तक की जमा की हुई जमापूंजी हो. पपीहा रोज अलमारी में टंगी हुई शिफौन साड़ी को ममता भरी नजरों से देख लेती थी.

पेरैंटटीचर मीटिंग में फिर पपीहा ने मैहरून सिल्क की साड़ी

पहन ली.

पपीहा ने सोच रखा था कि नए सैशन में वह साड़ी वही पहन कर सब टीचर्स के बीच ईर्ष्या का विषय बन जाएगी, परंतु कोरोना के कारण स्कूल अनिश्चितकाल के लिए बंद हो गए थे. पपीहा के मन में रहरह कर यह खयाल आ जाता कि काश वह अपनी साड़ी अपने जन्मदिन पर पहन लेती या फिर पेरैंटटीचर मीटिंग में. देखते ही देखते 10 महीने बीत गए, परंतु लौकडाउन के कारण क्या शिफौन कया जौर्जेट किसी भी कपड़े को हवा नहीं लगी.

धीरे- धीरे लौकडाउन खुलने लगा और जिंदगी की गाड़ी वापस पटरी पर

आ गई. पपीहा के भाई ने अपने बेटे के जन्मदिन पर एक छोटा सा गैटटुगैदर रखा था. पपीहा ने सोच रखा था कि वह भतीजे के जन्मदिन पर शिफौन की साड़ी पहन कर जाएगी. जरा भाभी भी तो देखे कि शिफौन पहनने का हक बस उन्हें ही नहीं है. कितने दिनों बाद घर से बाहर निकलने और तैयार होने का अवसर मिला था. सुबह भतीजे के उपहार को पैक करने के बाद पपीहा नहाने के लिए चली गई.

बाहर विनय और बच्चे बड़ी बेसब्री से पपीहा का इंतजार कर रहे थे.

विनय शरारत से बोल रहा था, ‘‘बच्चो आज मम्मी से थोड़ा दूर ही रहना. पूरे क्व12 हजार की शिफौन पहन रही है वह आज.’’

आधा घंटा हो गया पर पपीहा बाहर नहीं निकली तो विनय बोला, ‘‘अरे भई आज किस की जान लोगी.’’ फिर अंदर जा कर देखा तो पपीहा जारजार रो रही थी. शिफौन की साड़ी बिस्तर पर पड़ी थी.

विनय ने जैसे ही साड़ी को हाथ में लिया तो जगहजगह साड़ी में छेद नजर आ रहे थे. विनय सोचने लगा कि शिफौन साड़ी इस जौर्जेट लेडी के हिस्से में नहीं है.

मेरे गर्भाशय की लाइनिंग बहुत पतली है, क्या मैं मां नहीं बन सकती?

सवाल

मैं 32 साल की कामकाजी महिला हूं. मेरी शादी को 5 साल हो गए हैं. मेरे गर्भाशय की लाइनिंग बहुत पतली है. डाक्टरों का कहना है कि मैं मां नहीं बन सकती?

जवाब

जब गर्भाशय की सब से अंदरूनी परत जिसे ऐंडोमिट्रिओसिस कहते हैं, बहुत पतली हो तो गर्भधारण करने में ज्यादातर परेशानी आती है. लेकिन आज बहुत सारी तकनीकें हैं, जिन से इस का उपचार संभव है. अगर आप को माहवारी सही समय पर आती है और फ्लो भी ठीक है तो दवा, इंजैक्शन, स्पेम सैल और पीआरपी (प्लेटलेट रिच प्लाज्मा-ग्रोथ फैक्टर) तकनीक के  द्वारा गर्भाशय की लाइनिंग, जिसे ऐंडोमिट्रियल थिकनैस कहा जाता है को मोटा किया जा सकता है. आजकल ऐंडोमिट्रियल थिकनेस को बढ़ाने में पीआरपी का इस्तेमाल बहुत अधिक किया जा रहा है.

शादी के बाद मां बनने की ख्वाहिश हर महिला की होती है. लेकिन कैरियर के चक्कर में एक तो देरी से शादी करने का फैसला और उस के बाद भी मां बनने का फैसला लेने में देरी करना उन की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है, जिस से उन्हें कंसीव करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में जरूरी है समय पर सही फैसला लेने की व कंसीव करने में सफलता नहीं मिलने पर डाक्टरी परामर्श ले कर इलाज करवाने की.

जानते हैं इस संबंध में गाइनोकोलौजिस्ट ऐंड ओब्स्टेट्रिशिन (नर्चर आईवीएफ सैंटर) की डा. अर्चना धवन बजाज से:

कब आती है समस्या

पीसीओडी, ऐंडोमिट्रिओसिस, अंडे कम बनना या बनने पर उन की क्वालिटी का सही नहीं होना, फैलोपियन ट्यूब में ब्लौकेज, हारमोंस का इंबैलेंस, पुरुष में शुक्राणुओं की कमी की वजह से दंपती संतान सुख से वंचित रह जाते हैं.

आज संतान सुख से वंचित दंपतियों की संख्या दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जो तनाव का भी कारण बनती जा रही है. ऐसे में जरूरी है कि अगर आप दोनों साथ रहते हैं और 1 साल से भी ज्यादा समय से बच्चे के लिए ट्राई कर रहे हैं और आप को सफलता नहीं मिल रही है तो आप तुरंत डाक्टर से संपर्क करें ताकि समय पर इलाज शुरू हो सके. सक्सैस नहीं मिलने पर आईयूआई, आईवीएफ व आईसीएसआई का विकल्प आइए, जानते हैं विस्तार से आईयूआई, आईवीएफ व आईसीएसआई प्रक्रिया के बारे में:

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