GHKKPM: मामा ने की घटिया हरकत, क्या भोसले परिवार के सामने आएगा मुकुल का सच?

Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin : टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ लव ट्रैंगल का ट्रैक दर्शकों को काफी पसंद आ रहा है. सवि और ईशान की शादी के बाद भी रीवा भोसले परिवार के सुख-दुख में हमेशा साथ देती है. वो और ईशान एक-दूसरे को बेस्ट फ्रेंड मानते हैं और अपनी हर बात शेयर करते हैं. भोसले हाउस में सुरेखा और राव साहब की एनिवर्सी का सेलिब्रेशन चल रहा है. इस दौरान कई ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिलेंगे.

मुकुल मामा ने जीता सबका दिल

इस सीरियल में भाविका शर्मा और शक्ति अरोड़ा लीड रोल निभा रहे हैं, जिनकी जोड़ी को फैंस खूब पसंद करते हैं. अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि आदर्शवादी मुकुल मामा सबका ध्यान अपनी तरफ खिचेंगे. वह सुरेखा के मेहंदी फंक्शन में खूब धमाल मचाएंगे. वह राव साहब से जिद करेंगे कि वो अपने हाथों में सुरेखा का नाम लिखवाए. सवि मामाजी की दिल से तारीफ करेगी, कहेगी कि वो सबका कितना ख्याल रखते हैं, मामाजी बहुत अच्छे हैं.

 

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आदर्शवादी  मामा ने की घटिया हरकत

दूसरी तरफ डरी हई अन्वी भी फंक्शन में आएगी. मुकुल मामा उसे गुड़िया-गुड़िया कह कर लाड़ जताएंग और वह उसके हाथों पर मेहंदी लगाने चलेंगे. ऐसे में अन्वी डर जाएगी. अस्मित उन्हें मेहंदी लगाने से रोकेगी, लेकिन मामाजी नहीं मानेंगे. मुकुल मामा अन्वी के हाथ पर M लिख देंगे और पूछेंगे अच्छा लग रहा है न? इतना ही नहीं वह उसे गलत तरीके से भी टच करने की कोशिश करेंगे. अन्वी वहां से भाग जाएगी और मेहंदी मिटा देगी.

 

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टूटेगा रीवा का दिल

मेहंदी फंक्शन के दौरान सवि और ईशान की नोकझोक होगी. मेहंदी लगाने वाली सवि से उसेक पति का नाम पूछेगी, ऐसे में सवि अपने पति का नाम चिड़िक्या बताएगी, तो दूसरी तरफ मामी सवि से कहेंगी कि लड़ाई-झगडे़ बेडरूम तक ही होना चाहिए, हाथ पर ईशान का नाम लिखवाए. तो दूसरी तरफ ये सब देखकर रीवा का दिल टूट जाएगा और वह अपने हाथ पर मेहंदी से I Love लिखेगी.

अब शो के अपकमिंग में ये देखना दिलचस्प होगा कि मुकुल मामा के घटिया हरकत का खुलासा सवि भोसले परिवार के सामने कैसे करेगी?

 शिक्षा पर भारी अमीरी

तमिलनाडु के सेलम शहर की रहने वाली 46 साल की पप्पाथी इसलिए चलती बस के सामने आ गई क्योंकि उसे किसी ने बताया था कि दुर्घटना में मौत पर मुआवजा मिलता है. उसे अपने बेटे के कालेज की फीस भरने के लिए पैसे चाहिए थे जिस के लिए उस ने इतना बड़ा कदम उठाया. यह वायरल वीडियो बहुत ही हृदयविदारक था कि अपने बेटे की फीस भरने के लिए एक मां बस के नीचे आ गई ताकि उस की मौत के बाद जो मुआवजा मिलेगा उन पैसों से उस के बेटे का कालेज में एडमिशन हो सकेगा.

यह महिला स्थानीय कलैक्टर औफिस में अस्थाई सफाई मजदूर व सिंगल पेरैंट थी. वह महीने के 10 हजार रुपए कमाती थी, जिन से उसे अपने दोनों बच्चों बेटाबेटी की पढ़ाई का खर्चा उठाने में बहुत मुश्किल हो रही थी. वह अपने बेटे के कालेज की 45 हजार रुपए की फीस के लिए पैसे नहीं जुटा पा रही थी तो उसे लगा कि उस की मौत के मुआवजे से बेटे की फीस के पैसों का जुगाड़ हो जाएगा. इस महिला ने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए अपनी जान दे दी.

यह सिर्फ एक मां के त्याग की दिल दहलाने वाली कहानी भर नहीं है बल्कि यह देश में लगातार महंगी होती शिक्षा से आम गरीबों और वर्किंग क्लास परिवारों की कड़वी सचाई है.

महंगी होती शिक्षा

आज देश में लोगों के लिए खाना, पीना, रहना और स्वास्थ्य सेवाएं ही महंगी नहीं होती जा रही हैं बल्कि मनुष्य के सर्वांगीण विकास की चाबी शिक्षा भी लगातार महंगी होती जा रही है. हर वर्ष शिक्षा करीब 10 से 12 फीसदी महंगी होती जा रही है. शिक्षा संस्थान हर वर्ष अपनी फीस में बढ़ोतरी कर रहे हैं. जिदगी की बाकी खर्चों के मुकाबले शिक्षा के क्षेत्र में महंगाई दोगुनीतिगुनी गति से बढ़ रही है.

सिर्फ बड़ेबड़े संस्थाओं में पढ़ाई पर ही नहीं बल्कि स्कूलकालेज और कोचिंग की शिक्षा के खर्चों में भी गुणात्मक बढ़ोतरी हो रही है. इंजीनियरिंग, मैडिकल, एमबीए, आईआईटी, एनआईआईटी, आईएमएम का पढ़ाई का खर्च आम मध्यवर्गीय परिवारों की हैसियत से बाहर चला गया है. चाहे पढ़ाई सरकारी स्कूलकालेजों में हो या प्राइवेट इंग्लिश मीडियम स्कूलों में यह उन करोड़ों गरीब और मध्यवर्गीय परिवारों की कहानी है, जो अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाने के लिए अपना पेट काट कर, जमीन और घर गिरवी रख कर, लोगों से कर्ज ले कर बच्चों की कालेज की फीस चुकाते हैं. यहां तक कि उस महिला की तरह अपनी जान देने तक को तैयार हो जाते हैं ताकि उन के बच्चों की पढ़ाई न रुके और उन के बच्चे भी काबिल इंसान बन पाएं. लेकिन देश में महंगी होती शिक्षा व्यवस्था बच्चों के साथसाथ उन के अभिभावकों के सपनों को भी कुचल रही है.

इंजीनियरिंग, मैडिकल, आईआईटी जैसे प्रोफैशनल कोर्सेज की फीस दिनप्रतिदिन आसमान छू रही है. ऐसे में महंगी होती शिक्षा आम परिवारों की पहुंच से दूर होती जा रही है. सिर्फ आईआईएम (अहमदाबाद) की फीस 2007 से 2023 के बीच 4 लाख रुपए सालाना से बढ़ कर 27 लाख रुपए सालाना पहुंच गई जोकि 575त्न की बढ़ोतरी है. यही नहीं अशोका, जिंदल, मणिपाल जैसी प्राइवेट यूनिवर्सिटियां, ग्रैजुएशन कोर्स के लिए सालाना 5 से 11 लाख रुपए तक की फीस लेती हैं. हर शिक्षण संस्थान प्रत्येक वर्ष अपनी फीस बढ़ाता जा रहा है.

सरकारी आंकड़े के 75वें चक्र के सर्वेक्षण ‘हाउसहोल्ड सोशल कंजंप्शन औफ ऐजुकेशन इन इंडिया’ (2017-18) की तरफ देखें तो साफ पता चलता है कि आम भारतीय परिवारों के लिए महंगी होती शिक्षा उन की पहुंच से दूर होती जा रही है. यहां तक कि एक बच्चे की पढ़ाई का खर्च उठाना भी गरीब व मध्यवर्गीय परिवारों के लिए मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में वे और बच्चों को कैसे और कहां से पढ़ा पाएंगे क्योंकि एक तो कोचिंग की भारीभरकम फीस और उस पर स्कूलकालेज की महंगी पढ़ाई, मातापिता की पहुंच से बाहर होती जा रही है.

लाभ अमीर छात्रों को ही क्यों

यूनिसेफ ने वैश्विक शैक्षिक असमानता को उजागर करते हुए एक रिपोर्ट में कहा है कि सार्वजनिक शिक्षा का केवल 16 फीसदी पन सब से गरीब 20 फीसदी को जाता है, जबकि 28 फीसदी सब से अमीर 20 फीसदी को जाता है. सब से गरीब परिवारों के बच्चों को राष्ट्रीय सार्वजनिक शिक्षा निधि से कम से कम लाभ मिलता है.

एक सचाई है कि अच्छी शिक्षा बेहतर भविष्य का आधार होती है. शिक्षा एक ऐसा हथियार है जिस से इंसान केवल खुद को ही नहीं बल्कि देशदुनिया को बदलने की भी ताकत रखता है. लेकिन चिंता की बात यह है कि इस सकारात्मक सोच के बावजूद हमारी शिक्षा प्रणाली विपरीत संकेत दे रही है. तमाम प्रयासों के बाद भी देश में अब भी 20 फीसदी से अधिक आबादी निरक्षर है.

सब से चौंकाने वाली बात यह है कि आज भारत में बड़ी संख्या में छात्र बीच में ही पढ़ाई छोड़ रहे हैं या आत्महत्या का रास्ता अपना रहे हैं. 2019 से ले कर अभी तक 32 हजार छात्र उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई छोड़ चुके हैं, वहीं 5 वर्षों में 98 छात्रों ने खुदकुशी कर ली जहां उन्होंने मेहनत से एडमिशन लिया था. 2023 में ही अब तक आत्महत्या की 24 घटनाएं हो चुकी हैं.

बड़े शिक्षण संस्थाओं से पढ़ाई छोड़ने वाले छात्र ज्यादातर दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के हैं. ये शिक्षण संस्थान कोई सामान्य सरकारी कालेज नहीं बल्कि आईआईटी, एनआईटी और आईआईएसईआर, आईआईएम व केंद्रीय विश्वविद्यालय और उन के जैसे स्तर के हैं. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए इन आंकड़ों से पता चलता है कि शिक्षण संस्थान छात्रों में उम्मीदों की उड़ान पैदा करने के बजाय निराशा और अवसाद का माहौल रच रहे हैं.

पढ़ाई छूटने की वजह

इस सवाल को कोई सीधा जवाब नहीं है. लेकिन शिक्षाशास्त्रियों का कहना है कि आदर्श के रूप में अन्य छात्रों को नामांकन लेने के बाद असफलता का सामना करना पड़ता है. इस से वे हीनभावना के शिकार हो जाते हैं. इस के अलावा कई छात्र अपने साथ भेदभाव और पक्षपात की भी शिकायत करते हैं.

21वीं सदी को ज्ञान की सदी कहा गया है. ज्ञान परंपरा और मातृभाषा में शिक्षा देने की बात खूब जोरशोर से उठी. शिक्षा की पूंजी से गरीब और वंचित छात्रों के लिए उच्च पद, बड़ा उद्योगपति और विश्वस्तरीय तकनीशियन बनने के रास्ते भी खुले, बावजूद इस के शिक्षण संस्थाओं से छात्रों का पलायन और आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं तो यह चिंता का विषय है.

आज सुविधाएं हमारी मुट्ठी में हैं और लक्ष्य अंतरिक्ष में इंसान को बसाने की संभावनाएं तलाश रहा है. ऐसे में शिक्षा से छात्रों का मुंह मोड़ना, मौत को गले लगाना समूची शिक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न है.

कुछ साल पहले केंद्रीय विश्वविद्यालय हैदराबाद के छात्र रोहित वेमुला और फिर तमिलनाडु के प्राकृतिक शिक्षा एवं योग विद्यालय की 3 छात्राओं द्वारा एकसाथ आत्महत्या किए जाने का मामला सामने आया था. कोटा और इंदौर से कोचिंग ले रहे छात्रों की खुदकुशी के मामले निरंतर सामने आते रहते हैं.

कोचिंग हब बनता शहर

कोचिंग हब बनते जा रहे शहरों में यह अलग तरह की समस्या सामने आ रही है, जिस में सकारात्मक माहौल बनाने के तमाम प्रयासों के बावजूद कोचिंग छात्रों को निराशा के ऐसे भंवर से निकाल पाना बड़ी चुनौती बनी हुई है. राजस्थान के कोटा शहर में भी अवसाद में आए बच्चों के मौत को गले लगाने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं.

देश की युवाओं के मरने की ये घटनाएं संभावनाओं की मौत हैं. लेकिन फिर भी इन्हें राजनीति के चश्मे से देखा जा रहा है. सरकार ने बताया कि बीच में पढ़ाई छोड़ने का कारण विषय का गलत चुनाव, व्यक्तिगत परफौर्मैंस और स्वास्थ्य समस्या रही है. लेकिन बच्चों के पढ़ाई छोड़ने को जो कारण सरकार ने बताए हैं क्या उन का निदान संभव नहीं है? आमतौर पर दोष मांबाप पर मढ़ दिया जाता है कि वे अपने सपने पूरे कराने के लिए गलत कोर्स कराते हैं.

पूरी दुनिया जानती है कि भारत के इन संस्थानों की प्रवेश परीक्षा दुनिया की सब से कठिन परीक्षाओं में मानी जाती है. हर साल लगभग 15 लाख बच्चे रातदिन मेहनत कर बड़ीबड़ी फीस दे कर सफलता के इस दरवाजे तक पहुंचते हैं. निश्चित ही वे पढ़ना चाहते होंगे, इतनी मेहनत कर के बीच में ही पढ़ाई छोड़ने के लिए तो यहां एडमिशन नहीं लिया होगा न? बच्चों के पढ़ाई छोड़ने की वजह पैसा या फिर पारिवारिक जिम्मेदारी भी एक वजह हो सकती है, पर यही पूरा सच नहीं है.

2014 में रुड़की आईआईटी में प्रथम वर्ष के लगभग 70 छात्र फेल हुए थे. मामला कोर्ट तक भी पहुंचा और जो मुख्य कारण सामने आया वह था संस्थान, पाठ्यक्रम का अंगरेजी माहौल, विशेषकर गरीब बच्चे जो अपनीअपनी मातृभाषा में पढ़ कर आते हैं वे इन संस्थाओं के अंगरेजी कुलीन माहौल में आसानी से फिट नहीं बैठ पाते हैं, ऊपर से पाठ्यक्रम का दबाव. हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था का ढांचा ही ऐसा बनाया गया है कि  यदि आप उस के अनुसार खुद को नहीं ढाल पाते हैं तो पढ़ाई छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता है.

2012 में अनिल मीणा नाम के एक छात्र ने दिल्ली एम्स में आत्महत्या कर ली थी. उस ने मरने से पहले एक पत्र लिखा था जिस में लिखा था कि यहां का पाठ्यक्रम जो अंगरेजी में है वह मेरी सम?ा में नहीं आता. शिक्षक और सहपाठियों से भी मु?ो कोई सहयोग नहीं मिल पा रहा है.

अंगरेजी का दबाव

लगभग ऐसा ही पत्र 2015 में इंदौर इंजीनियरिंग कालेज के एक छात्र ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि हमारे संस्थानों में अंगरेजी का दबाव इतना भयानक है कि छात्र न केवल इन उच्च संस्थानों से बल्कि पूरी शिक्षा व्यवस्था से ही बाहर हो जाते हैं.

जानेमाने वैज्ञानिक प्रोफैसर यशपाल, जयंत नारलीकर बारबार इन संस्थाओं में भाषा और पद्धति की निर्दयता पर सवाल उठाते रहे हैं पर कोई फायदा नहीं हुआ. विदेशी विश्वविद्यालयों की तरफ रुख करने वाले ज्यादातर छात्रों का कहना है कि हमारे संस्थान पाठ्यक्रम अपडेट के मामले में बहुत पीछे हैं और फकल्टी भी ज्यादातर मामलों में छात्रों को रचनात्मकता की तरफ मोड़ने में बहुत सक्षम नहीं है. ज्यादातर स्टडी भी विदेशी पाठ्यक्रम से ली हुई होती है जिस का भारत की समस्याओं से बहुत कम लेनादेना होता है. ये सब मिल कर एक ऐसी दुनिया का निर्माण करते हैं जिस में अपनी मातृभाषा में पढ़ेलिखे गरीब आदिवासी मेधावी छात्र अपनेआप को अलगथलग पाते हैं.

दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग की जातियों के बच्चे बड़ेबड़े सपने ले कर देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में यह सोच कर दाखिला लेते हैं कि समानता और वैचारिक गहराई की मजबूत नींव रखने वाली संस्थाएं उन्हें ऊंचा उड़ना सिखाएंगी. लेकिन होता इस के विपरीत है. कहा तो यह जाता है कि पिछड़ी जातियां ही हिंदू समाज की रीढ़ हैं लेकिन जमीनी स्तर पर ऊंची जातियां उन के ही पैर खींचने में सब से आगे हैं. भारत में स्वर्ण लोग स्वयं को देश का धर्मरक्षक मानते हैं. शुरू से शिक्षित बनने की प्रक्रिया को अवरुद्ध करने से परिवर्तन की प्रक्रिया को रोका जा सकता है.

जाति आधारित भेदभाव

‘टाटा इंस्टिट्यूट औफ सोशल साइंसेज,’ ‘इंडियन इंस्टिट्यूट औफ साइंस बिट्स पिलानी’ और ‘क्राइस्ट यूनिवर्सिटी बैंगलुरु’ के शोधकर्ताओं के एक समूह द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार कई विश्वविद्यालयों ने अभी तक यूजीसी द्वारा जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए दिए गए निर्देशों को लागू नहीं किया है.

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि किस तरह से उच्च शिक्षण संस्थानों में दलित और आदिवासी छात्रों के ऊपर ऊंची जातियों के छात्रों व शिक्षकों द्वारा मानसिक दबाव डाला जाता है जबकि यूजीसी द्वारा जाति आधारित भेदभाव के मद्देनजर जारी निर्देशों के अनुसार हर संस्थान द्वारा इस के लिए प्रावधान किया जाना अनिवार्य है ताकि कोई छात्र जातिगत भेदभाव का शिकार न होने पाए. वहीं संस्थानों को स्टूडैंट वैलनैस सैंटर भी स्थापित करने का निर्देश है ताकि कोई छात्र मानसिक दबाव महसूस करे तो उस की मदद की जा सके.

विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ जनवरी, 2023 के अंक में अंकुर पालीवाल के आलेख के अनुसार, भारत के विज्ञान क्षेत्र में ऊंची जातियों का वर्चस्व है. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे उच्च संस्थानों में आदिवासी और दलित समुदायों के छात्रों और शिक्षकों का प्रतिनिधित्व कम है. इस आलेख में दिए गए आंकड़े के अनुसार, सरकारी अनुसंधान और शिक्षा संस्थानों में पीएचडी शोधार्थियों में उच्च जाति के 66.34त्न, दलित 8.9त्न व अन्य 24.76त्न के शोधार्थी शामिल हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े

सहायक प्रोफैसरों में सवर्णों की हिस्सेदारी 89.69त्न है वहीं दलित व अन्य केवल 3.51त्न और 6.8त्न हैं. यह समानता की एक बड़ी खाई है. 2016 और 2020 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के ‘इंपायर फैक्ल्टी फैलोशिप के डेटा से पता चलता है कि 80त्न लाभार्थी उच्च जातियों से थे, जबकि केवल 16त्न अनुसूचित जाति और 1त्न से कम अनुसूचित जनजाति से थे.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भी देश भर के आईआईटी संस्थानों में केवल 2.81त्न एससी और एसटी शिक्षक हैं.

ये आंकड़े बताते हैं कि उच्च शिक्षण संस्थानों में किस तरह का जातिवाद है. दुखद है कि शिक्षण संस्थानों में भी दलित, आदिवासी और पिछड़े छात्रों को अपमान और बदनामी जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है. आईआईटी, मुंबई में ही दर्शन सोलंकी द्वारा खुदकुशी से पहले अनिकेत अंभोरे नामक छात्र ने 2014 में खुदकुशी कर ली थी. दोनों के मातापिता ने उन्हें प्रताडि़त किए जाने की शिकायत दर्र्ज कराईर् थी. लेकिन उन की शिकायतें बस शिकायतें ही रहीं. कोई ठोस काररवाई नहीं की गई.

ऐसे ही मुंबई के नायर हौस्पिटल में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही डा. पायल तड़वी ने 22 मई, 2019 को प्रताड़ना से तंग आ कर अपनी जान दे दी थी, जिस से पूरे देश में विवाद पैदा हो गया था लेकिन दोषियों पर कोई काररवाई नहीं हुई. भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने 26 फरवरी, 2023 को कहा था कि भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में दलित या आदिवासी छात्रों के उत्पीड़न की समस्या पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उन की आत्महत्या की प्रवृत्ति पर सवाल उठाया जाना चाहिए. लेकिन जब सत्ता खामोश है तो असमानता की इस व्यवस्था को कौन सुधारेगा, यह मुख्य प्रश्न है.

कल्पवृक्ष: भाग 1- विवाह के समय सभी व्यंग क्यों कर रहे थे?

छोटी ननद की शादी की बात वैसे तो कई जगह चल रही थी, किंतु एक जगह की बात व संबंध सभी को पसंद आई. लड़की देख ली गई और पसंद भी कर ली गई. परंतु लेनदेन पर आ कर बात अटक गई. नकदी की लंबीचौड़ी राशि मांगी गई और महंगी वस्तुओं की फरमाइश ने तो जैसे छक्के छुड़ा दिए. घर पर कई दिनों से इसी बात पर बहस छिड़ी हुई थी. सब परेशान से बैठे थे. पिता सहित तीनों भाई, दोनों भाभियां तरहतरह के आरोपों से जैसे व्यंग्य कस रहे थे.

लड़का कोई बड़ा अधिकारी भी नहीं था. उन्हीं लोगों के समान मध्यम श्रेणी का विक्रय कर लिपिक था, परंतु मांग इतनी जैसे कहीं का उच्चायुक्त हो. कई लाख रुपए नकद, साथ ही सारा सामान, जैसे स्कूटर, फ्रिज, वाश्ंिग मशीन, रंगीन टैलीविजन, गैस चूल्हा, मशीन, वीसीआर और न जाने क्या क्या.

‘‘बाबूजी, यह संबंध छोडि़ए, कहीं और देखिए,’’ बड़े बेटे मुकेश ने तो साफ बात कह दी. बड़ी बहू ने भी इनकार ही में राय दी. म झले अखिलेश व उस की पत्नी ने भी यही कहा. छोटा निखिलेश तो जैसे तिलमिला ही गया. वह बोला, ‘‘ऐसे लालचियों के यहां लड़की नहीं देनी चाहिए. अपनी विभा किस बात में कम है. हम ने भी तो उस की शिक्षा में पैसे लगाए हैं. शुरू से अंत तक प्रथम आ रही है परीक्षाओं में, और देखना, एमएससी में टौप करेगी, तो क्या वह नौकरी नहीं कर सकेगी कहीं?’’

‘‘ये सब तो बाद की बातें हैं निखिल. अभी तो जो है उस पर गौर करो. कहीं भी बात चलाओ, मांग में कमी होगी क्या. एक यही घर तो सब को सही लगा है. और जगह बात कर लो, मांग तो होगी ही. आजकल नौकरीपेशा लड़के के जैसे सुरखाब के पर निकल आते हैं. यह लड़का सुंदर है, विभा के साथ जोड़ी जंचेगी. परिवार छोटा है, 2 भाईबहन, बहन का विवाह हो गया. बड़ा भाई भी विवाहित है. छोटा होने से छोटे पर अधिक दायित्वभार नहीं होगा. बहन सुखी रहेगी तुम्हारी,’’ पिताजी दृढ़ स्वर में बोले.

‘‘यह तो ठीक है बाबूजी. 2 लाख रुपए नकद, फिर इतना साजोसामान हम कहां से दे सकेंगे. आभा के विवाह से निबटे 2 ही बरस तो हुए हैं, वहां इतनी मांग भी नहीं थी,’’ अनिल बोला.

‘‘अब सब एक से तो नहीं हो सकते. 2 बरस में समय का अंतर तो आ ही गया है. सामान कम कर दें, तो शायद बात बन जाए. रुपए भी एक लाख तक दे सकते हैं. यदि सामान खरीदना न पड़े तो कुछ निखिल की ससुराल का नया रखा है. अभी 6 माह ही तो विवाह को हुए हैं,’’ बाबूजी बोले.

‘‘तो क्या छोटी बहू को बुरा नहीं लगेगा कि उस के मायके का सामान कैसे दे रहे हैं? कई स्त्रियों को मायके का एक तिनका भी प्रिय होता है,’’ बड़ा बेटा मुकेश बोला.

‘‘नहीं.’’ ‘‘बिलकुल नहीं, बाबूजी, फालतू का तनाव न पैदा करें. बहुओं में बड़ी और म झली क्या दे देगी अपना कुछ सामान. कोई नहीं देने वाला है, जानते तो हैं आप, जब छोटी का दहेज देंगे तो क्या वह नहीं चाहेगी कि ये दोनों भी कुछ दें, अपने मायके का कौन देगा, टीवी, फ्रिज, अन्य सामान?’’ अखिल बोला.

‘‘न भैया, मैं खुद नहीं चाहता कि मधु के मायके का सामान दें. जब हमें मिला है तो हम कैसे न उस का उपयोग कर पाएं, यह कहां की शराफत की बात हुई? फिर बड़ी व म झली भाभियों का नया सामान है कहां कि वह दिया जा सके,’’ निखिल उत्तेजित हो खीझ कर बोला.

‘‘रहने दो भैया. कोई कुछ मत दो. मना कर दो कि हम इतने बड़े रईस नहीं हैं, न धन्ना सेठ कि उन की इतनी लंबीचौड़ी फरमाइश पूरी कर सकें. हमें नहीं देनी ऐसी कोई चीज जो बहुओं के मायके की हो. कौन सुनेगा जनमभर ताने और ठेने? इसी से आभा को किसी का कुछ नहीं दिया,’’ मां सरोज बोलीं.

‘‘तब और बात थी. मुकेश की मां, अब रिटायर हो चुका हूं मैं. बेटी क्या, बेटोें के विवाह में भी तो लगती है रकम, और लागत लगाई तो है मैं ने. तीनों बेटों के विवाह में हम ने इतना बड़ा दानदहेज कब मांगा था, बेटों की ससुराल वालों से? अपने बेटे भी तो नौकरचाकर थे. हां, छोटे निखिल के समय अवश्य थोड़ाबहुत मुंह खोला था, परंतु इतना नहीं कि सुन कर देने वाले की कमर ही टूट जाए,’’ बाबूजी गर्व से बोले.

‘‘तो ऐसा करो, छोड़ो सर्विस वाला लड़का, कोई बिजनैस वाला ढूंढ़ो, जो इतना मुंह न फाड़े कि हम पैसे दे न सकें,’’ मां बोलीं.

‘‘लो, अभी तक कहती थीं कि लड़का नौकरीपेशा चाहिए. अब कहती हो कि व्यापारी ढूंढ़ो. लड़की की उम्र 21 बरस पार कर गई है. व्यापारी या कैसा भी ढूंढ़तेढूंढ़ते अधिया जाएगी. समय जाते देर लगती है क्या?’’

‘‘तो कर्ज ले लो कहीं से.’’

बाबूजी खिसिया कर बोले, ‘‘कर्ज ले लो. कौन चुकाएगा कर्ज? तुम चुकाओगी?’’

‘‘मैं चुकाऊंगी, क्या भीख मांगूंगी,’’ वे रोंआसी हो कर बोलीं.

‘‘तुम लोग कितनाकितना दे पाओगे तीनों,’’ वे तीनों बेटों की ओर देख कर बोले.

बाबूजी, आप जानते तो हैं कि क्लर्क, शिक्षकों की तनख्वाह होती कितनी है. तीनों ही भाईर् लगभग एक ही श्रेणी में तो हैं, वादा क्या करें. निखिल को छोड़ तीनों पर 3-3 बच्चों का भार है. पढ़ाईलिखाई आदि से ले कर क्या बचता है, आप जानते तो हैं क्या दे पाएंगे. हिसाब लगाया कहां है. पर जितना बन पड़ेगा देंगे ही. आप अभी तो उन्हीं को साफ लिख दें कि हम केवल 50 हजार नकद और यह सामान दे सकेंगे, यदि उन्हें मंजूर है तो ठीक, वरना मजबूरी है. एक लाख तो नकद किसी प्रकार नहीं दे पाएंगे, न इतना सामान ही,’’ मुकेश ने कहा तो जैसे दोनों भाइयों ने सहमति से सिर हिला दिया. बड़ी व म झली बहू कब से कमरे में घुसी खुसरफुसर कर रही थीं. छोटी मधु रसोई में थी, चारों जनों को गरमगरम रोटियां सेंक कर खिला रही थी. 6 माह हुए जब वह ब्याह कर आई थी. तब से वह रसोई की जैसे इंचार्ज बन गई थी. बच्चों सहित पूरे घर को परोस कर खिलाने में उसे न जाने कितना सुख मिलता था.

उस से छोटी हमउम्र विभा जैसे उस की सगी छोटी बहन सी ही थी. गहरा लगाव था दोनों में. विभा विज्ञान ले कर इस बरस स्नातक होने जा रही थी. घर वालों की अनुमति ले कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी, जो विषय उस का था पहले वही ननद विभा का था. इस से वह उसे खुद पढ़ाती, बताती रहती. पूरा घर उस पर जैसे जान छिड़कता.

जब से वह आई थी, बड़ी और म झली की  झड़पें कम हो गईर् थीं. सासननद का मानसम्मान जैसे बढ़ गया था. बातबात पर उत्तेजित होने वाले तीनों भाई शांत पड़ चले थे. रोब गांठने वाले ससुरजी का स्वर धीमा पड़ गया था. सासुमां की ममता बहुओं पर बेटियों के समान लहरालहरा उठती. कटु वाक्यों के शब्द अतीत में खोते चले जा रहे थे. क्रोध तो जैसे उफन चुके दूध सा बैठ गया था.

‘‘छोटी बहू, यह बाबूजी की दूधरोटी का कटोरा लगता है, मेरे आगे भूल से रख गई हो, यह रखा है.’’

‘‘अरे, मेरे पास तो रखा है, शायद भूल गई.’’

तभी मधु गरम रोटी सेंक कर म झले जेठ के लिए लाई, बोली, ‘‘बड़े दादा, यह दूधरोटी आप ही के लिए है.’’

‘‘परंतु मेरे तो अभी पूरे दांत हैं, बहू.’’

‘‘तो क्या हुआ, बिना दांत वाले ही दूधरोटी खा सकते हैं. देखते नहीं हैं, आप कितने दुबले होते जा रहे हैं. अब तो रोज बाबूजी की ही भांति खाना पड़ेगा. तभी तो आप बाबूजी जैसे हो पाएंगे और देखिए न, बाल कैसे सफेद हो चले हैं अभी से.’’

वे जोर से हंसते चले गए. फिर स्नेह से छलके आंसू पोंछ कर बोले, ‘‘पगली कहीं की. यह किस ने कहा कि दूधरोटी खाने से मोटे होते हैं व बाल सफेद नहीं होते.’’

‘‘बाबूजी को देखिए न. उन के तो न बाल इतने सफेद हैं न वे आप जैसे दुबले ही हैं.’’

‘‘तब तो मधु, मु झे भी दूधरोटी देनी होगी. बाल तो मेरे भी सफेद हो रहे हैं,’’ म झला अखिल बोला.

‘‘म झले भैया, आप को कुछ साल बाद दूंगी.’’

‘‘पर छोटी बहू, बच्चों को तो पूरा नहीं पड़ता, तू मु झे देगी तो वहां कटौती

न होगी.’’

‘‘नहीं, बड़े भैया. मैं चाय में से बचा कर दूंगी आप को. अब केवल 2 बार चाय बना करेगी. पहले हम सब दोपहर में पीते थे. फिर शाम को आप सब के साथ. अब हम सब की भी साथ ही बनेगी और आप चुपचाप रोज बाबूजी की तरह ही खाएंगे.’’

आगे पढ़ें- विभा की परीक्षाएं भी हो गईं. फिर सगाई की…

प्यार था या कुछ और

लेखक- ताराचंद मकसाने

प्रमिला और शंकर के बीच अवैध संबंध हैं, यह बात रामनगर थाने के लगभग सभी कर्मचारियों को पता था. मगर इन सब से बेखबर प्रमिला और शंकर एकदूसरे के प्यार में इस कदर खो गए थे कि अपने बारे में होने वाली चर्चाओं की तरफ जरा भी ध्यान नहीं जा रहा था.

शंकर थाने के इंचार्ज थे तो प्रमिला एक महिला कौंस्टेबल थी. थाने के सर्वेसर्वा अर्थात इंचार्ज होने के कारण शंकर पर किसी इंस्पैक्टर, हवलदार या स्टाफ की उन के सामने चूं तक करने की हिम्मत नहीं होती थी.

थाने की सब से खूबसूरत महिला कौंस्टेबल प्रमिला थाने में शेरनी बनी हुई थी, क्योंकि थाने का प्रभारी उस पर लट्टू था और वह उसे अपनी उंगलियों पर नचाती थी.

जिन लोगों के काम शंकर करने से मना कर देते थे, वे लोग प्रमिला से मिल कर अपना काम करवाते थे.
प्रमिला और शंकर के अवैध रिश्तों से और कोई नहीं मगर उन के परिजन जरूर परेशान थे. प्रमिला 1 बच्चे की मां थी तो शंकर का बड़ा बेटा इस वर्ष कक्षा 10वीं की परीक्षा दे रहा था.

मगर कहते हैं न कि प्रेम जब परवान चढ़ता है तो वह खून के रिश्तों तक को नजरअंदाज कर देता है. प्रमिला के घर में अकसर इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच झगड़ा होता था मगर प्रमिला हर बार यही दलील देती थी कि लोग उन की दोस्ती का गलत अर्थ निकाल रहे हैं. थाना प्रभारी जटिल केस के मामलों में या जहां महिला कौंस्टेबल का होना बहुत जरूरी होता है तभी उसे दौरों पर अपने साथ ले जाते हैं. थाने की बाकी महिला कौंस्टेबलों को यह मौका नहीं मिलता है इसलिए वे लोग मेरी बदनामी कर रहे हैं. यही हाल शंकर के घर का था मगर वे भी बहाने और बातें बनाने में माहिर थे. उन की पत्नी रोधो कर चुपचाप बैठ जाती थीं.

शंकर किसी न किसी केस के बहाने शहर से बाहर चले जाते थे और अपने साथ प्रमिला को भी ले जाते थे. अपने शहर में वे दोनों बहुत कम बार साथसाथ दिखाई देते थे ताकि उनके अवैध प्रेम संबंधों को किसी को पता न चलें. लेकिन कहते हैं न कि खांसी और प्यार कभी छिपाए नहीं छिपता, इन के साथ भी यही हो रहा था.

एक दिन शाम को प्रमिला अपने प्रेमी शंकर के साथ एक फिल्म देख कर रात देर से घर पहुंची तो उस के पति ने हंगामा खड़ा कर दिया. दोनों में जम कर हंगामा हुआ.

प्रमिला के घर में घुसते ही अमित ने गुस्से से कहा,”प्रमिला, तुम्हारा चालचलन मुझे ठीक नहीं लग रहा है. पूरे मोहल्ले में तुम्हारे और डीएसपी शंकर के अवैध संबंधों के चर्चे हो रहे हैं. तुम्हें शर्म आनी चाहिए. 1 बच्चे की मां हो कर तुम किसी पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो…”

अमित की बात बीच में ही काटती हुई प्रमिला ने शेरनी की दहाड़ती हुई बोली,”अमित, बस करो, मैं अब और नहीं सुन सकती… तुम मेरे पति हो कर मुझ पर ऐसे घिनौने लांछन लगा रहे हो, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. मेरे और थाना प्रभारी के बीच दोस्ताने रिश्ते हैं. कई बार जटिल और महिलाओं से संबंधित मामलों में जब दूसरी जगह जाना पड़ता है तब वे मुझे अपने साथ ले जाते हैं, जिस के कारण बाकी के लोग मुझ से जलते हैं और मुझे बदनाम करते हैं.

“अमित, तुम्हें एक बात बता दूं कि तुम्हारी यह दो टके की मास्टर की नौकरी से हमारा घर नहीं चल रहा है. तुम्हारी तनख्खाह से तो राजू के दूध के 1 महीने का खर्च भी नहीं निकलता है…समझे. फिर तुम्हारे बूढ़े मांपिता भी तो हमारी छाती पर बैठे हुए हैं, उन की दवाओं का खर्च कहां सा आता है, यह भी सोचो.

“अमित, पैसे कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, कई पापड़ बेलने पड़ते हैं. थाना प्रभारी के साथ मेरे अच्छे संबंधों की बदौलत मुझे ऊपरी कमाई में ज्यादा हिस्सा मिलता है, फिर मैं उन के साथ अकसर दौरे पर जाती हूं तो तब टीएडीए आदि का मोटा बिल भी बन जाता है. यह सब मैं इस परिवार के लिए कर रही हूं. तुम कहो तो मैं नौकरी छोड़ कर घर पर बैठ जाती हूं, फिर देखती हूं तुम कैसे घर चलाते हो?“

अमित ने ज्यादा बात बढ़ाना उचित नहीं समझा. वह जानता था कि प्रमिला से बहस करना बेकार है. वह प्रमिला को जब तक रंगे हाथों नहीं पकड़ लेता तब तक वह उस पर हावी ही रहेगी. अमित के बुजुर्ग पिता ने भी उसे चुप रहने की सलाह दी. वे जानते थे कि घर में अगर रोजाना कलह होते रहेंगे तो घर का माहौल खराब हो जाता है और घर में सुखशांति भी नहीं रहती है.

उन्होंने अमित को समझाते हुए कहा,”बेटा अमित, बहू से झगड़ा मत करो, उस पर अगर इश्क का भूत सवार होगा तो वह तुम्हारी एक भी बात नहीं सुनेगी. इस समय उलटा चोर कोतवाल को डांटने वाली स्थिति बनी हुई है. जब उस की अक्ल ठिकाने आएगी तब सबकुछ ठीक हो जाएगा.

“बेटा, वक्त बड़ा बलवान होता है. आज उस का वक्त है तो कल हमारा भी वक्त आएगा.“

अपने उम्रदराज पिता की बात सुन कर अमित ने खामोश रहने का निर्णय ले लिया.

एक दिन जब प्रमिला अपने घर जाने के लिए रवाना हो रही थी, तभी उसे शंकर ने बुलाया.

“प्रमिला, हमारे हाथ एक बहुत बड़ा बकरा लगने वाला है. याद रखना किसी को खबर न हो पाए. कल सुबह 4 बजे हमारी टीम एबी ऐंड कंपनी के मालिक के घर पर छापा डालने वाली है. कंपनी के मालिक सुरेश का बंगला नैपियंसी रोड पर है. हम आज रात उस के बंगले के ठीक सामने स्थित होटल हिलटोन में ठहरेंगे. मैं ने हम दोनों के लिए वहां पर एक कमरा बुक कर दिया है. टीम के बाकी सदस्य सुबह हमारे होटल में पहुंचेंगे, इस के बाद हमारी टीम आगे की काररवाई के लिए रवाना हो जाएगी. तुम जल्दी से अपने घर चली जाओ और तैयारी कर के रात 9 बजे सीधे होटल पहुंच जाना, मैं तुम्हें वहीं पर मिलूंगा.“

“यस सर, मैं पहुँच जाऊंगी…” कहते हुए प्रमिला थाने से बाहर निकल गई.

सुबह ठीक 4 बजे सायरन की आवाज गूंज उठी. 2 जीपों में सवार पुलिसकर्मियों ने एबी कंपनी के बंगले को घेर लिया. गहरी नींद में सो रहे बंगले के चौकीदार हडबड़ा कर उठ गए. पुलिस को गेट पर देखते ही उनकी घिग्घी बंध गई. चौकीदारों ने गेट खोल दिया. कंपनी के मालिक सुरेश के घर वालों की समझ में कुछ आता इस से पहले पुलिस ने उन सब को एक कमरे में बंद कर के घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

प्रमिला को सुरेश के परिवार की महिला सदस्यों को संभालने का जिम्मा सौंपा गया था.

करीब 2 घंटे तक पूरे बंगले की तलाशी जारी रही. छापे के दौरान पुलिस ने बहुत सारा सामान जब्त कर लिया.

कंपनी का मालिक सुरेश बड़ी खामोशी से पुलिस की काररवाई को देख रहा था. वह भी पहुंचा हुआ खिलाड़ी था, उसे पता था कि शंकर एक नंबर का भ्रष्ट पुलिस अधिकारी है. उसे छापे में जो गैरकानूनी सामान मिला है उस का आधा तो शंकरऔर उस के साथी हड़प लेंगे, फिर बाद में शंकर की थोड़ी जेब गरम कर देगा तो वह मामले को रफादफा भी कर देगा.

बंगले पर छापे के दौरान मिले माल के बारे में सुन कर थाने के अन्य पुलिस वालों के मुंह से लार टपकने लगी. शंकर ने सभी के बीच माल का जल्दी से बंटवारा करना उचित समझा. बंटवारे को ले कर उन के अर्दली और कुछ कौंस्टबलों में झगड़ा भी शुरू हो गया. शंकर ने अपने अर्दली और अन्य कौंस्टबलों को समझाया मगर उन के बीच लड़ाई कम होने के बजाय बढ़ती ही गई.

शंकर ने छापे में मिला हुआ कुछ महंगा सामान उसी होटल के कमरे में छिपा कर रखा था. इधर बंटवारे से नाराज अर्दली और 2 कौंस्टेबल शंकर से बदला लेने की योजना बनाने लगे.

उन्होंने तुरंत अपने इलाके के एसपी आलोक प्रसाद को सारी घटना की जानकारी दी. उन्हें यह भी बताया कि शंकर और प्रमिला हिलटोन होटल में रूके हुए हैं.

उन्हें रंगे हाथ पकड़ने का यह सुनहरा मौका है. एसपी आलोक प्रसाद को यह भी सूचना दी गई कि कंपनी मालिक के घर पर पड़े छापे के दौरान बरामद माल का एक बड़ा हिस्सा शंकर और प्रमिला ने अपने कब्जे में रखा था, जो उसी होटल में रखा हुआ है.

एसपी आलोक प्रसाद अपनी टीम के साथ तुरंत होटल हिलटोन पर पहुंच गए. इस मौके पर कंपनी के मालिक के साथसाथ शंकर की पत्नी और प्रमिला के पति को भी होटल पर बुला लिया गया ताकि शंकर और प्रमिला के बीच के अवैध संबंधों का पर्दाफाश हो सके.

एसपी आलोक प्रसाद ने डुप्लीकैट चाबी से होटल के कमरे का दरवाजा खुलवाया, तो कमरे में शंकर और प्रमिला को बिस्तर पर नग्न अवस्था में सोए देख कर सभी हैरान रह गए.

एसपी को सामने देख कर शंकर की हालत पतली हो गई. वह बिस्तर से कूद कर अपनेआप को संभालते हुए उन्हें सैल्यूट करने लगा.

शंकर के सैल्यूट का जवाब देते हुए आलोक प्रसाद ने व्यंग्य से कहा,”शंकर पहले कपड़े पहन लो, फिर सैल्यूट करना. यह तुम्हारे साथ कौन है? इसे भी कपड़े पहनने के लिए कहो…”

प्रमिला की समझ में कुछ नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है. वह दौड़ कर बाथरूम में चली गई.

कुछ देर के बाद आलोक प्रसाद ने सभी को अंदर बुलाया. शंकर की पत्नी तो भूखी शेरनी की तरह शंकर पर झपटने लगी. वहां मौजूद लोगों ने किसी तरह बीचबचाव किया.

आलोक प्रसाद ने प्रमिला के पति की ओर मुखातिब होते हुए कहा,”अमित, अपनी पत्नी को बाथरूम से बाहर बुला दो, बहुत देर से अंदर बैठी है, पसीने से तरबतर हो गई होगी…”

“प्रमिला बाहर आ जाओ, अब अपना मुंह छिपाने से कोई फायदा नहीं है, तुम्हारा मुंह तो काला हो चुका है और तुम्हारी करतूतों का पर्दाफाश भी हो चुका है,“ अमित तैश में आ कर कहा.

प्रमिला नजरें और सिर झुकाते हुए बाथरूम से बाहर आई. उसे देखते ही अमित आगबबूला हो उठा और वह प्रमिला पर झपटने के लिए आगे बढ़ा, मगर उसे भी समझा कर रोक दिया गया.

“अमित, अब पुलिस अपना काम करेगी. इन दोनों को इन के अपराधों की सजा जरूर मिलेगी…” कहते हुए आलोक प्रसाद शंकर के करीब पहुंचे  और उन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,”शंकर, कंपनी मालिक के घर छापे के दौरान जब्त माल कहां है? जल्दी से बाहर निकालो. कोई भी सामान छिपाने की तुम्हारी कोशिश नाकाम होगी, क्योंकि इस वक्त हमारे बीच कंपनी का मालिक भी मौजूद है.”

शंकर ने प्रमिला को अंदर से बैग लाने को कहा. प्रमिला चुपचाप एक बड़ा सूटकेस ले कर आई.

भारीभरकम सूटकेस देख कर आलोक प्रसाद ने एक इंस्पैक्टर से कहा,”सूटकेस अपने कब्जे में ले लो और इन दोनों को पुलिस स्टैशन ले कर चलो. अब आगे की काररवाई वहीं होगी.“

सिर झुकाए हुए शंकर और प्रमिला एक कौंस्टेबल के साथ कमरे से बाहर निकल गए हैं.

एसपी आलोक प्रसाद शंकर और प्रमिला को रोक कर बोले,”आप दोनों एक बात याद रखना, जो आदमी अपने परिवार को धोखे में रख कर उस के साथ अन्याय करता है, अनैतिक संबंधों में लिप्त हो कर अपने परिवार की सुखशांति भंग करता है और जो अपनी नौकरी के साथ बेईमानी करता है, उसे एक न एक दिन बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है.”

वे दोनों सिर झुकाए चुपचाप खङे थे. उन्हें पता था कि अब आगे न सिर्फ उन की नौकरी छिन जाएगी, बल्कि जेल भी जाना होगा.
लालच और वासना ने दोनों को मुंह दिखाने लायक नहीं छोङा था.

आउटडोर फर्नीचर खरीदने से पहले जान लें ये 5 बातें

घर के लिए फर्नीचर खरीदना एक जिम्मेदारी भरा काम है. अगर आप अपने घर के हिसाब से फर्नीचर नहीं खरीदती तो आपको बाद में परेशानियां होंगी. मिसफिट फर्नीचर कबाड़ ही बन जाते हैं, पैसों की जो बर्बादी हुई वो अलग. क्या आप अपने घर के लिए आउटडोर फर्नीचर खरीदने जा रही हैं? तो फर्नीचर खरीदने से पहले बरतें थोड़ी सी सावधानी. फर्नीचर खरीदने से पहले खुद से पूछें ये 6 सवाल

1. क्या आप खरीदे हुए फर्नीचर को यूज करेंगी?

सबसे पहले खुद से पूछिए कि क्या आपको और आपके घर को फर्नीचर की जरूरत है? कुछ फर्नीचर ऐसे होते हैं, जिनका घर में होना जरूरी है. पर कुछ फर्नीचर को बिना जरूरत के भी हम अपने घर में ले आते हैं. इसलिए सबसे पहले यह देखें कि आपके माइंड में जो फर्नीचर है, क्या आपके घर को उसकी जरूरत है?

2. क्या आप फर्नीचर की नियमित क्लिनिंग कर सकती हैं?

आपके पास दिन भर इतना काम होता है कि आप खुद को वक्त नहीं दे पाती. ऐसे में क्या आप डेली आउटडोर फर्नीचर की सफाई का वक्त निकाल सकती हैं? आउटडोर फर्नीचर घर से बाहर रहेगा, यानी उस पर ज्यादा गंदगी बैठेगी और उसे रोजाना सफाई की जरूरत पड़ेगी.

3. क्या आपका फर्नीचर और कूशन वॉटरप्रूफ हैं?

मौसम कब बदल जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. इसलिए आपके फर्नीचर और कूशन का वॉटरप्रूफ होना जरूरी है. ताकि बिन मौसम बरसात में आपके कूशन भीगने से बचे रहे और आपके फर्नीचर को बारीश से ज्यादा नुकसान न हो.

4. क्या आप अपने वुडन फर्नीचर की 6 महीने में एक बार पॉलिशिंग कर सकेंगी?

वुडन फर्नीचर की पॉलिशिंग बहुत जरूरी है. धीरे-धीरे ये अपनी चमक खोने लगते हैं. इसलिए समय-समय पर वुड या टिंबर के फर्नीचर की पॉलिशिंग करना जरूरी है. अगर आप इस पर समय दे सकेंगी तभी टिंबर के फर्नीचर को चुनें.

5. क्या आप फेडेड फर्नीचर का इस्तेमाल कर सकेंगी?

आउटडोर फर्नीचर को यूवी रेज भी झेलना पड़ेगा. यूवी रेज से फर्नीचर फेड हो जाते हैं. अगर आप प्लास्टिक फर्नीचर खरीद रही हैं तो ब्लैक कलर के फर्नीचर सेलेक्ट करना ही समझदारी है. रेड और येलो कलर के फर्नीचर काफी जल्दी फेड होते हैं. सफेद रंग के फर्नीचर क्लासी लुक देते हैं, पर ये भी बहुत जल्दी गंदे हो जाते हैं.

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तबाही: आखिर क्या हुआ था उस तूफानी रात को

सब कुछ पहले की तरह सामान्य होने लगा था. 1 सप्ताह से जिन दफ्तरों में काम बंद था, वे खुल गए थे. सड़कों पर आवाजाही पहले की तरह सामान्य होने लगी थी. तेज रफ्तार दौड़ने वाली गाडि़यां टूटीफूटी सड़कों पर रेंगती सी नजर आ रही थीं. सड़क किनारे हाकर फिर से अपनी रोजीरोटी कमाने के लिए दुकानें सजाने लगे थे. रोज कमा कर खाने वाले मजदूर व घरों में काम करने वाली महरियां फिर से रास्तों में नजर आने लगी थीं.

पिछले दिनों चेन्नई में चक्रवाती तूफान ने जो तबाही मचाई उस का मंजर सड़कों व कच्ची बस्तियों में अभी नजर आ रहा था. अभी भी कई जगहों में पानी भरा था. एअरपोर्ट बंद कर दिया गया था. पिछले दिनों चेन्नई में पानी कमरकमर तक सड़कों पर बह रहा था. सारी फोन लाइनें ठप्प पड़ी थीं, मोबाइल में नैटवर्क नहीं था. गाडि़यों के इंजनों में पानी चला गया था, जिस के चलते कार मालिकों को अपनी गाडि़यां वहीं छोड़ जाना पड़ा था. कई लोग शाम को दफ्तरों से रवाना हुए, तो अगली सुबह तक घर पहुंचे थे और कई तो पानी में ऐसे फंसे कि अगली सुबह तक भी न पहुंचे. कई कालेजों और यूनिवर्सिटीज में छात्रछात्राएं फंसे पड़े थे, जिन्हें नावों द्वारा सेना ने निकाला.  पूरे शहर में बिजली नहीं थी.

चेन्नई तो वैसे भी समुद्र के किनारे बसा शहर है, जहां कई झीलें थीं. उन झीलों पर कब्जा कर सड़कें व अपार्टमैंट बना दिए गए हैं. इन 7 दिनों में चेन्नई का दृश्य देख ऐसा मालूम होता था जैसे वे झीलें आक्रोश दिखा कर तबाही मचाते हुए अपना हक वापस मांग रही हों. चेन्नई की सड़कों पर हर तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा था.

निचले तबके के लोगों के घर तो पूरी तरह डूब चुके थे. लोग फुटपाथों पर अपने परिवारों के संग सोने को मजबूर थे और सुबह के वक्त जब पेट की आग तन को जलाने लगी, तो वे झपट पड़े एक छोटे रैस्टोरैंट मालिक पर खाने के लिए. क्या करते बेचारे जब बच्चे भूख से बिलख रहे हों. जेब में एक फूटी कौड़ी न हो तो इनसान जानवर बन ही जाएगा न. हर तरफ तबाही का मंजर था. रात के करीब 11 बजे थे. जिस को जहां जगह मिली उस ने वहीं शरण ले ली. ऊपर से मूसलाधार बारिश और नीचे समुद्र का साम्राज्य. ऐसे में दफ्तर से निकली रिया पैदल एक स्टोर की पार्किंग में पनाह के लिए आ खड़ी हुई. धीरेधीरे पार्किंग में 2-4 और लोग भी शरण लेने आ पहुंचे. तभी 2-4 लोग शराब के नशे में धुत्त वहां आ गए और फिर रिया से छेड़छाड़ करने लगे. वह समझ चुकी थी कि उसे वहां खतरा है, लेकिन करती भी क्या? आगे समुद्र की तरह हाहाकार मचाता पानी और पीछे जैसे देह के भूखे भेडि़ए. वे उसे ठीक वैसे ही घूर रहे थे जैसे जंगली जानवर ललचाई नजरों से अपने शिकार को देखते हैं. वहां खड़ी भीड़ यह सब देख रही थी और समझ भी रही थी, लेकिन गुंडेबदमाशों से पंगा कौन ले? अत: सब समझते हुए भी अनजान बने हुए थे.

वहीं भीड़ में खड़े आकाश से यह सब होते देखा न गया तो वह बोल पड़ा, ‘‘अरे भाई साहब क्यों परेशान कर रहे हैं आप इन्हें? पहले ही पानी ने इतनी तबाही मचाई है, ऊपर से आप लोग एक अकेली लड़की को परेशान कर रहे हैं.’’

बस फिर क्या था. अब आफत आकाश पर आन पड़ी थी. उन शराबियों में से एक बोला, ‘‘तू कौन लगता है इस का? क्या लगती है यह तेरी? बड़ी फिक्र है तुझे इस की?’’ और फिर उस लड़की को छूते हुए बोला, ‘‘क्या छूने से घिस गई यह? अब बोल तू क्या कर लेगा? और छुएंगे इसे बोल क्या करेगा तू?’’

आसपास के सभी लोग सहमे से खड़े तमाशा देख रहे थे. सब देख कर भी नजरें इधरउधर घुमा रहे थे. कोई अपनी जान जोखिम में नहीं डालना चाहता था.

रिया घबराई, सहमी सी आकाश के पीछे खड़ी हुई. आकाश ही उस का एकमात्र सहारा है, यह वह जान चुकी थी. अब तो उन शराबियों की हरकतें और बढ़ गईं.

आकाश ने रिया को घबराते देख कहा, ‘‘जब तक मैं हूं तुम्हें कुछ नहीं होगा. तुम डरो नहीं.’’

रिया सिर्फ  रोए जा रही थी. अब तो उन शराबियों ने आकाश के साथ हाथापाई भी शुरू कर दी.

तभी भीड़ में से कुछ लोग आकाश का साथ देने लगे और रिया को घेर कर खड़े हो गए ताकि वे उसे परेशान न कर सकें. शराबियों को अब आकाश से मुकाबला करना भारी पड़ रहा था. उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे आकाश के कारण आज उन का शिकार उन के पंजे से छूट गया.

वे आकाश को गालियां दे रहे थे. तभी उन शराबियों में से एक ने छुरा निकाल कर आकाश के सीने में 5-6 वार कर दिए उसे बुरी तरह जख्मी कर वहां से भाग निकले. किसी के मुंह से खौफ के मारे उफ तक न निकली. ऐसी तबाही में आकाश को अस्पताल पहुंचाते भी तो कैसे? जैसेतैसे एक नाव का इंतजाम किया और उसे अस्पताल ले जाया गया. उस के शरीर से बहुत खून बह चुका था. डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया.

आकाश चेन्नई में सौफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत था और उस का परिवार मुंबई में रहता था. उसे कंपनी ने तबादले पर यहां भेजा था. मैं और आकाश एक ही दफ्तर में कार्य करते थे. जब मैं ने उस की मौत की खबर अखबारों में पढ़ी तो मुझ से रहा न गया और मैं अगले ही दिन मुंबई चल दी. ताकि उस के परिवार वालों को सांत्वना दे सकूं.

मुंबई पहुंची तो आकाश के घर में मातम पसरा था. उस के बच्चों के आंसू रोके न रुकते थे और उस की पत्नी वह तो स्वयं तबाही का एक मंजर लग रही थी. मैं मन ही मन कुदरत से पूछती रही कि अच्छे काम का तो इनाम मिलता है. तो फिर यह कैसी सजा मिली है आकाश व उस के परिवार को? एक असहाय लड़की की इज्जत को तबाह होने से बचाने की यह सजा? आखिर क्यों?

आकाश के घर में ऐसा हाहाकार मचा था मानो धरती का करूण हृदय भी फूट पड़े और आंसुओं की अविरल धारा में सारा शहर समा जाए. चेन्नई में तो तबाही के बाद जनजीवन सामान्य होने लगा था, किंतु वह तबाही जो चेन्नई से मुंबई आकाश के घर पहुंची थी शायद कभी सामान्य न हो. झीलें तो शायद अपना हक हाहाकार मचा कर मांग रही थीं, किंतु आकाश की पत्नी अपना हक किस से मांगे? क्या कोई लौटा सकता है उन बच्चों के पिता को? आकाश को?

थ्रैडिंग करवाने से पहले जान लें ये जरूरी बातें

किसी चेहरे पर मोटी आईब्रोज फबती हैं, तो किसी पर करीने से खींची गई 2 लकीरें. ध्यान रहे कि अगर आईब्रोज चेहरे के अनुरूप नहीं हैं तो वे आप को लोगों के बीच हंसी का पात्र भी बना सकती हैं. इन्हें सही शेप देने के लिए प्लकर या थ्रैड का प्रयोग अहम है. आईब्रोज की शेप बहुत हद तक चेहरे की बनावट पर निर्भर करती है. अत: अगली बार जब भी ब्यूटीपार्लर में थ्रैडिंग के लिए जाएं तो कुछ बातों का खास खयाल रखें:

लंबा चेहरा:

लंबे चेहरे वाली महिलाओं को आईब्रोज की लंबाई कम नहीं करवानी चाहिए. साथ ही उन का उभार आईबोन के करीब ही रखवाना चाहिए. ऐसा करने से चेहरे की लंबाई कम दिखती है. ऐसे चेहरे पर सीधी, बादाम के आकार की और अंडाकार शेप अच्छी लगती है.

गोल चेहरा:

गोल चेहरे पर आईब्रोज का उभार आईबोन से थोड़ा ऊपर होना चाहिए. ऐसा करने से चेहरा भराभरा नहीं लगता है. चेहरे की ऐसी बनावट पर धनुषाकार आईब्रोज अधिक फबती हैं.

अंडाकार चेहरा:

चेहरे की यह बनावट हर लिहाज से बैस्ट मानी जाती है यानी ऐसे चेहरे पर हर तरह की आईब्रोज शेप, हेयर कट और मेकअप जंचता है. जहां तक बात आईब्रोज शेप की है, तो इस बनावट पर अंडाकार शेप आईब्रोज चेहरे को आकर्षक बनाती हैं.

चौकोर चेहरा:

चेहरे की ऐसी बनावट वाली महिलाओं को आईब्रोज की राउंड या धनुषाकार शेप करवानी चाहिए. ये शेप उन्हें सौफ्ट लुक देती है.

छोटा चेहरा:

ऐसे चेहरे की बनावट वाली महिलाओं को दोनों आईब्रोज के बीच में सामान्य से ज्यादा दूरी करवानी चाहिए. इस के अलावा अगर नाक लंबी है, तो आईब्रोज को आईबोन से अधिक ऊपर नहीं बनवाना चाहिए अन्यथा बड़ी आंखें भी छोटी दिखती हैं. यदि आंखें बड़ी हैं, तो आईब्रोज पतली बनवाएं और अगर आंखें छोटी हैं, तो आईब्रोज मोटी व लंबी बनवाएं.

संवारिए स्वयं भी

यदि नियमित थ्रैडिंग करवाना संभव नहीं है, तो ऐसे में आप इन्हें स्वयं सप्ताह में 1 बार प्लकर से शेप दे सकती हैं, लेकिन इस के लिए ब्यूटी पार्लर से आईब्रोज को शेप दिलवाना बहुत जरूरी है अन्यथा एक आईब्रो मोटी हो जाएगी, तो दूसरी पतली.

प्लकिंग के लिए जरूरी है-

  1. आईब्रोज को शेप हमेशा दिन की रोशनी में ही दें.
  2. जहां से बाल उगते हैं केवल वहीं से ऐक्स्ट्रा बालों को निकालें.
  3. दोनों आईब्रोज के बीच उचित अंतर रखें.
  4. प्लकिंग हमेशा शांत मन से करें.
  5. प्लकिंग से पहले दोनों आईब्रोज पर पाउडर लगाएं. ऐसा करने से छोटेछोटे ऐक्स्ट्रा बाल भी नजर आ जाते हैं और दर्द भी नहीं होता है.
  6. शेप देने से पहले और अंत में आईब्रोज को बारीक दांत वाली कंघी से अवश्य एकसार करें.

दक्षता के अलावा अहम यह भी

  1. आईब्रोज को नियमित शेप देना जरूरी है, लेकिन इस के लिए हाथों का दक्ष होना भी बेहद जरूरी है. आप भी इस में दक्ष हो सकती हैं इन बेसिक बातों को जान कर:
  2. आईब्रोज की ट्रिमिंग के लिए कभी भी हेयर रिमूवर या रेजर का प्रयोग न करें.
  3. अगर आईब्रोज पतली हों, तो आईब्रो पैंसिल का इस्तेमाल करें, लेकिन चेहरे की रंगत के अनुरूप ही.
  4. प्लकिंग हमेशा थ्रैडिंग करवाने के 1 सप्ताह बाद ही शुरू कर देनी चाहिए.
  5. आईपैंसिल से दोनों आईब्रोज पर रेखा खींच लें. इस के बाद शीशे में देखें कि रेखा के ऊपर व नीचे कितने अनावश्यक बाल उगे हैं. उस के बाद उन्हें प्लक कर दें.
  6. प्लकिंग करने से पहले चेहरे पर किसी प्रकार की कोल्ड क्रीम या मौइश्चराइजर न लगाएं अन्यथा अनावश्यक बाल दिखेंगे नहीं.
  7. कोमल ब्रश से आईब्रोज को कंघी करने के बाद ही फालतू बाल प्लक करें.

डिवोर्सी: मुक्ति ने शादी के महीने भर बाद ही लिया तलाक

वह डिवोर्सी है. यह बात सारे स्टाफ को पता थी. मुझे तो इंटरव्यू के समय ही पता चल गया था. एक बड़े प्राइवेट कालेज में हमारा साक्षात्कार एकसाथ था. मेरे पास पुस्तकालय विज्ञान में डिगरी थी. उस के पास मास्टर डिगरी. कालेज की साक्षात्कार कमेटी में प्राचार्य महोदया जो कालेज की मालकिन, अध्यक्ष सभी कुछ वही एकमात्र थीं. हमें बताया गया था कि कमेटी इंटरव्यू लेगी, मगर जब कमरे के अंदर पहुंचे तो वही थीं यानी पूरी कमेटी स्नेहा ही थीं. उन्होंने हमारे भरे हुए फार्म और डिगरियां देखीं. फिर मुझ से कहा, ‘‘आप शादीशुदा हैं.’’ ‘‘जी.’’

‘‘बी. लिब. हैं?’’ ‘‘जी,’’ मैं ने कहा.

फिर उन्होंने मेरे पास खड़ी उस अति सुंदर व गोरी लड़की से पूछा, ‘‘आप की मास्टर डिगरी है? एम.लिब. हैं आप मुक्ति?’’ ‘‘जी,’’ उस ने कहा. लेकिन उस के जी कहने में मेरे जैसी दीनता नहीं थी.

‘‘आप डिवोर्सी हैं?’’ ‘‘जी,’’ उस ने बेझिझक कहा.

‘‘पूछ सकती हूं क्यों?’’ ‘‘व्यक्तिगत मैटर,’’ उस ने जवाब देना उचित नहीं समझा.

‘‘ओके,’’ कालेज की मालकिन, जो अध्यक्ष व प्राचार्य भी थीं, ने कहा. ‘‘तो आप आज से लाइब्रेरियन की पोस्ट संभालेंगी और कार्तिक आप सहायक लाइब्रेरियन. और हां अटैंडैंट की पोस्ट इस वर्ष नहीं है. आप दोनों को ही सब कुछ संभालना है.’’

‘‘जी,’’ हम दोनों के मुंह से एकसाथ निकला. इस प्राइवेट कालेज में मेरा वेतन क्व15 हजार मासिक था. और मेरी सीनियर मुक्ति का क्व20 हजार. मुक्ति अब मेरे लिए मुक्तिजी थी क्योंकि वे मुझ से बड़ी पोस्ट पर थीं.

मुक्ति के बाहर जाते ही मैं भी बाहर निकलने ही वाला था कि प्राचार्य महोदया ने मुझे रोकते हुए कहा, ‘‘कार्तिक डिवोर्सी है… संभल कर… भूखी शेरनी कच्चा खा जाती है शिकार को,’’ कह वे जोर से हंसती हुई आगे बोलीं, ‘‘मजाक कर रही थी, आप जा सकते हैं.’’ विशाल लाइब्रेरी कक्ष. काम बहुत ज्यादा नहीं रहता था. मैं मुक्तिजी के साथ ही काम करता था, बल्कि उन के अधीनस्थ था. मुझे उन के डिवोर्सी होने से हमदर्दी थी. दुख था… इतनी सुंदर स्त्री… कैसा बेवकूफ पति है, जिस ने इसे डिवोर्स दे दिया. लेकिन मुक्तिजी के चेहरे पर कोई दुख नहीं था. वे खूब खुश रहतीं. हरदम हंसीमजाक करती रहतीं. पहले तो उन्होंने मुझ से अपने नाम के आगे जी लगवाना बंद करवाया, ‘‘आप की उम्र 30 वर्ष है और मेरी 29. एक साल छोटी हूं आप से. यह जी लगाना बंद करिए, केवल मुक्ति कहा करिए.’’

‘‘लेकिन आप सीनियर हैं.’’ ‘‘यह कौन सी फौज या पुलिस की नौकरी है. इतने अनुशासन की जरूरत नहीं है. हम साथ काम करते हैं. दोस्तों की तरह बात करें तो ज्यादा सहज रहेगा मेरे लिए.’’

मैं उन की बात से सहमत था. इन 8 महीनों में हम एकदूसरे से बहुतघुल मिल गए थे. विद्यालय के काम में एकदूसरे की मदद कर दिया करते थे. अपनी हर बात एकदूसरे को बता दिया करते थे. उन्होंने अपने जीवन को ले कर, परिवार को ले कर कभी कोई शिकायत नहीं की और न ही मुझ से कभी मेरे परिवार के बारे में पूछा. वे सिर्फ इतना पूछतीं, ‘‘और घर में सब ठीक हैं?’’

उन के हंसीमजाक से मुझे कई बार लगता कि वे अपने अंदर के दर्द को छिपाने के लिए दिखावे की हंसी हंसती हैं. लेकिन मुझे बहुत समय बाद भी ऐसा कुछ नजर नहीं आया उन में. कोई दर्द, तकलीफ, परेशानी नहीं और मैं हद से ज्यादा जानने को उत्सुक था कि उन के पति ने उन्हें तलाक क्यों दिया? हम लंच साथ करते. चाय साथ पीते. इधरउधर की बातें भी दोस्तों की तरह मिल कर करते. कालेज के काम से भी कई बार साथ बाहर जाना होता.

‘‘आप से एक बात पूछूं मुक्ति?’’ एक दोपहर लंच के समय मैं ने कहा. ‘‘मेरे डिवोर्स के बारे में?’’ उन्होंने सहज भाव से कहा.

फिर हंसते हुए बोलीं, ‘‘एक पुरुष को स्त्री के बारे में जानने की उत्सुकता रहती ही है, पूछिए.’’ ‘‘आप इतनी सुंदर हैं. सिर से ले कर पैरों तक आप में कोई कमी नहीं. व्यावहारिक भी हैं. पढी़लिखी भी हैं. फिर आप के पति ने आप को तलाक कैसे दे दिया?’’

उन्होंने सहज भाव से कहा, ‘‘सुंदरता का डिवोर्स से कोई तालमेल नहीं होता. और दूसरी बात यह कि तलाक मेरे पति ने नहीं, मैं ने दिया है उन्हें.’’

अब मैं विस्मय में था, ‘‘आप ने? क्या आप के पति शराबी, जुआरी टाइप व्यक्ति हैं?’’ ‘‘हैं नहीं थे. अब वे मेरे पति नहीं हैं. नहीं, वे शराबी, कबाबी, जुआरी टाइप नहीं थे.’’

‘‘तो किसी दूसरी औरत से …’’ मेरी बात बीच ही में काटते हुए उन्होंने कहा, ‘‘नहीं.’’

‘‘तो दहेज की मांग?’’ ‘‘नहीं,’’ मुक्ति ने कहा.

‘‘तो आप की पसंद से शादी नहीं हुई थी?’’ ‘‘नहीं, हमारी लव मैरिज थी,’’ मुक्ति ने बिलकुल सहज भाव से कहा. कहते हुए उन के चेहरे पर हलका सा भी तनाव नहीं था. अब मेरे पास पूछने को कुछ नहीं था. सिवा इस के कि फिर डिवोर्स की वजह? लेकिन मैं ने दूसरी बात पूछी, ‘‘आप के मातापिता को चिंता रहती होगी.’’

‘‘रहती तो होगी,’’ मुक्ति ने लापरवाही से कहा, ‘‘हर मांबाप को रहती है. लेकिन उतनी नहीं, बल्कि उन का यह कहना है कि अपनी पसंद की शादी की थी. अब भुगतो. फिर उन्हें शायद अच्छा लगा हो कि बेटी ने बगावत की. विद्रोह असफल हुआ. बेटी हार कर घर वापस आ गई. जैसा कि सहज मानवीय प्रकृति होती है. बेटी घर पर है तो घर भी देखती है और अपना कमा भी लेती है. एक भाई है जो अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहता है.’’ अब मुझे पूछना था क्योंकि मुख्य प्रश्न यही था, ‘‘फिर डिवोर्स की वजह?’’ उस ने उलटा मुझ से प्रश्न किया, ‘‘पुरुष क्यों डिवोर्स देते हैं अपनी पत्नी को?’’

मैं कुछ देर चुप रहा. फिर कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘शायद उन्हें किसी दूसरी स्त्री से प्रेम

हो जाता होगा इसलिए.’’ ‘‘बस यही एक वजह है.’’

‘‘दूसरी कोई वजह हो तो मुझे नहीं मालूम,’’ मैं ने कहा. फिर मेरे मन में अनायास ही खयाल आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मुक्ति को किसी और से प्यार हो गया हो शादी के बाद. हो सकता है कि बड़े घर में शादी हुई हो. सोचा होगा तलाक में लंबी रकम हासिल कर के आराम से अपने प्रेमी से विवाह… लेकिन नहीं, इतने समय में तो कोई नहीं दिखा ऐसा और न ही कभी मुक्ति ने बताया… न कोई उस से मिलने आया.

मुक्ति ने मुझे विचारों में खोया देख कर कहा, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है कार्तिक जैसा आप सोच रहे हैं.’’ ‘‘मैं क्या सोच रहा हूं?’’ मुझे लगा कि मेरे मन की बात पकड़ ली मुक्ति ने. मैं हड़बड़ा गया.

उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘‘मुझे किसी दूसरे पुरुष से प्रेम नहीं हुआ. जैसा कि आजकल महिलाएं करती हैं. तलाक लो… तगड़ा मुआवजा मांगो. मेरा भूतपूर्व पति सरकारी अस्पताल में लोअर डिवीजन क्लर्क था. था से मतलब वह जिंदा है, लेकिन मेरा पति नहीं है.’’ मैं समझ नहीं पा रहा था कि फिर तलाक की क्या वजह हो सकती थी?

‘‘समाज डिवोर्सी स्त्री के बारे में क्या सोचता है?’’ मैं ने पूछा. ‘‘कौन सा समाज? मुझे क्या लेनादेना समाज से? समाज का काम है बातें बनाना. समाज अपना काम बखूबी कर रहा है और मैं अपना जीवन अपने तरीके से जी रही हूं,’’ उन्होंने समाज को ठेंगा दिखाने वाले अंदाज में कहा.

‘‘लेकिन कोई तो वजह होगी तलाक की… इतना बड़ा फैसला… शादी 7 जन्मों का बंधन होता है,’’ मैं ने कहा. ‘‘शादी 7 जन्मों का बंधन… आप पुरुष लोग कब तक 7 जन्मों की आड़ ले कर हम औरतों को बांध कर रखेंगे? ये औरतों को बेवकूफ बनाने की बात है,’’ मुक्ति ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा.

‘‘आप तो नारीवादी विचारधारा की हैं.’’ ‘‘नहीं, मैं बिलकुल भी पुरुषविरोधी विचारधारा की नहीं हूं.’’

लंच समाप्त हो चुका था. मैं ने उठते हुए पूछा, ‘‘मुक्ति, शादीशुदा रही हैं आप… अपनी शारीरिक इच्छाएं कैसे…’’ मुझे लगा कि प्रश्न मर्यादा लांघ रहा है. अत: मैं बीच ही में चुप हो गया.

लेकिन उन्होंने मेरी बात का उत्तर अपने हाथ की मध्यमा और तर्जनी उंगली उठा कर दिया और फिर नारी सुलभ हया से अपना चेहरा झुका लिया.

शाम को हम अपनेअपने घर निकल जाते. कालेज की बस हमें हमारे स्टौप पर छोड़ देती. पहले उन का घर पड़ता था. वे हंसते हुए बाय कहते हुए उतर जातीं. उन्होंने मुझ से कभी अपने घर आने को नहीं कहा. मुझे जाना भी नहीं चाहिए. पता नहीं एक डिवोर्सी महिला के घर जाने पर उस के पासपड़ोस के लोग, उस के मातापिता क्या सोचें? कहीं मुझे उस का नया प्रेमी न समझ बैठें. फिर प्राचार्य महोदया ने कहा भी था भले ही मजाक में कि भूखी शेरनी है बच के रहना. कच्चा खा जाएगी.

मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा. इन 8 महीनों में व्यावहारिकता के नाते मैं तो उन्हें अपने घर आमंत्रित कर सकता हूं. अत: दूसरे दिन मैं ने कहा, ‘‘कभी हमारे घर आइए.’’ ‘‘औपचारिकता निभाने की कोई जरूरत नहीं है. आप से दिन भर मिलना होता है. आप के घर के लोगों को मैं जानती भी नहीं. उन से मिल कर क्या करूंगी? फिर मेरे डिवोर्सी होने का पता चलेगा तो तुम्हारी पत्नी के मन में शक बैठ सकता है कि कहीं मेरा आप से…’’ मुक्ति ने बात अधूरी छोड़ दी.

उसे मैं ने यह कह कर पूरा किया, ‘‘वह ऐसा क्यों सोचेगी?’’ ‘‘सोचने में क्या जाता है? सोच सकती है. क्यों बेचारी के दिमाग में खलल डालना. मुझे और आप को कोई यहां परमानैंट नौकरी तो करनी नहीं है. न ही कालेज वालों ने हमें रखना है. दूसरी अच्छी जौब मिली तो मैं भी छोड़ दूंगी… आप का परिवार है, आप को घर चलाने के लिए ज्यादा रुपयों की जरूरत है. आप भी कोई न कोई नौकरी तलाश ही रहे होंगे.’’

‘‘हां, मैं ने पीएससी का फार्म भरा है.’’ ‘‘और मैं ने भी सैंट्रल स्कूल में.’’

‘‘आप बिलकुल स्पष्ट बोलती हैं.’’ ‘‘सही बात को बोलने में हरज कैसा?’’

‘‘फिर आप ने तलाक की वजह क्यों नहीं बताई?’’

‘‘चलो, अब बता देती हूं. मैं और विनय एकदूसरे से प्यार करते थे, बल्कि वह मेरा ज्यादा दीवाना था. घर से भाग कर शादी की. दोनों के घर वालों ने अपनाने से इनकार कर दिया. समाज अलगअलग था दोनों का. लेकिन विनय के पास सरकारी नौकरी थी, तो कोई दिक्कत नहीं हुई. व्यक्ति आर्थिक रूप से सक्षम हो तो बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाता है.’’ ‘‘पता नहीं मेरी दीवाने पति को शादी की रात क्या सूझी कि उस ने एक फालतू प्रश्न उठाया कि मुक्ति, अब हम नई जिंदगी शुरू करने वाले हैं. अच्छा होगा कि हम विवाह से पूर्व के संबंधों के बारे में एकदूसरे को सचसच बता दें. इस से संबंधों में प्रेम, विश्वास और ईमानदारी बढ़ेगी.

‘‘और फिर उस ने विवाह से पूर्व के अपने संबंधों के बारे में बताया. एक रिश्ते की भाभी से और एक कालेज की प्रेमिका से संबंध होना स्वीकार किया. उस ने यह भी स्वीकारा कि जब मेरे साथ प्रेम में था तब भी उस के एक विवाहित स्त्री से संबंध थे. वह कई बार वेश्यागमन भी कर चुका है. उस के बताने में शर्म बिलकुल नहीं थी. बल्कि गर्व ज्यादा था. फिर उस ने कहा कि अब तुम बताओ?’’ ‘‘मैं ने कुछ याद किया. फिर कहा, ‘‘बहुत पहले की बात है. उस समय मेरी उम्र 16 साल रही होगी और मेरे साथ पढ़ने वाले लड़के की 16 या ज्यादा से ज्यादा 17. एक दिन मेरे घर में कोई नहीं था. वह आया तो था पढ़ाई के काम से, लेकिन उसे न जाने क्या सूझी कि उस ने मुझे चूमना शुरू कर दिया. ‘‘हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे. मैं मना नहीं कर पाई. तापमान इतना बढ़ चुका था शरीर का कि लौटना संभव नहीं था. मैं स्वयं आग में पिघलना चाहती थी. मैं पिघली और शरीर का सारा भार फूल सा हलका हो गया.

‘‘मेरे पति विनय के चेहरे का रंग ही बदल गया. उस के चेहरे पर अनेक भाव आ जा रहे थे, जिन में कठोरता, धिक्कार और भी न जाने क्याक्या था. उस ने कहा कि इस से अच्छा था कि तुम मुझे न ही बताती. मैं ने एक ऐसी लड़की से प्यार किया, जिस का कौमार्य पहले ही भंग हो चुका है वो भी उस की इच्छा से.

जिस लड़की के पीछे मैं ने सब कुछ छोड़ा, घर, परिवार, जाति, समाज, वही चरित्रहीन निकली.’’

‘‘मैं ने गुस्से में कहा कि यह तुम क्या कह रहे हो? जब तुम ये सब करते चरित्रहीन नहीं हुए तो मैं कैसे हो गई? मैं ने भी तुम्हारे लिए अपना सब कुछ छोड़ा है. फिर तुम ने ही अतीत के बारे में पूछा. वह अतीत जिस से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं. उस समय तो मैं तुम्हें जानती तक नहीं थी. तुम ने तो उस समय भी चरित्रहीनता दिखाई जब तुम मेरे प्रेम में डूबे हुए थे.’’ ‘‘मेरी बात सुन कर वह बोला कि मेरी बात और है. मैं पुरुष हूं.’’

‘‘मैं ने कहा कि तुम करो तो पुरुषत्व और मैं करूं तो चरित्रहीनता… मेरा शरीर है… मेरी मरजी है, मेरी स्वीकारोक्ति थी. तुम ने पूछा इसलिए मैं ने बताया.’’ ‘‘इस पर उस का कहना था कि शादी से पहले बता देती.’’

‘‘मैं ने जवाब दिया कि तुम पूछते तो जरूर बताती.’’

‘‘इस के बाद वह मुझ से खिंचाखिंचा सा रहने लगा. जब देखो उस का मुंह लटका रहता. उस का मूड उखड़ा रहता.’’ ‘‘कई दिन बीत गए. एक दिन मैं ने उस से कहा कि इस में इतना तनाव लेने की क्या जरूरत है? हम अलग हो जाते हैं. डिवोर्स ले लेते हैं.’’

‘‘इस पर उस ने कहा कि शादी के 1 महीने बाद ही तलाक… मजाक है क्या?

लोग क्या सोचेंगे?’’ ‘‘मेरा जवाब था कि लोग गए भाड़ में. मैं ऐसे आदमी के साथ नहीं रहना चाहती जो अपने संबंध गर्व से बताए और पत्नी के बताने पर ऐसा जाहिर करे जैसे उस ने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो. सच सुनने की हिम्मत नहीं थी तो पूछा क्यों? अपना सच बताया क्यों?’’

‘‘वह अभिमान से बोला कि मैं तो पुरुष हूं. लोग तुम्हें डिवोर्सी कहेंगे.’’ ‘‘मेरा कहना था कि मेरे बारे में इतना सोचने की जरूरत नहीं. लोग कहेंगे तो तुम्हारे बारे में भी. लेकिन मर्द होने के अहं में तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. मेरे बारे में उलटासीधा कह कर तुम लौट जाओगे अपने घर वापस. तुम्हारी धूमधाम से शादी हो जाएगी और मुझे लोग वही कहेंगे जो तुम कह रहे हो. कहते रहें. मैं दोगले खोखले व्यक्ति के साथ नहीं रहना चाहती. सारी जिंदगी घुट कर जीने से अच्छा है कि हम एकदूसरे से मुक्त हो कर अपने जीवन को अपनेअपने तरीके से जीएं. मेरे लिए संबंध टूटने का अर्थ जीवन खत्म होना नहीं है और मैं डिवोर्सी हो गई.’’

मैं मुक्ति के सच को सुन कर एक ओर हैरान भी था तो दूसरी ओर उस के सच से प्रभावित भी. लेकिन फिर भी मैं ने उस से कहा, ‘‘मुक्ति, औरतों को कुछ बातें छिपा कर ही रखना चाहिए. उन्हें उजागर न करना ही बेहतर रहता है.’’

उस ने गुस्से से मेरी तरफ देख कर कहा, ‘‘छिपा कर गुनाह रखा जाता है. मैं ने कोई अपराध नहीं किया था. जब उस ने नहीं छिपाया, तो मैं क्यों छिपाती, क्योंकि मैं औरत हूं. मैं ऐसे पुरुषों को पसंद नहीं करती जो स्त्री के लिए अलग और अपने लिए अलग मानदंड तय करें. मेरे शरीर का एक अंग मेरा सर्वांग नहीं है. ‘‘मेरे पास अपना स्वाभिमान है… शिक्षा है… मेरा अपना वजूद है. अपनी स्वेच्छा से अपने शरीर को अपनी पसंद के व्यक्ति को एक बार सौंपने का अर्थ यदि पुरुष की नजर में चरित्रहीनता है तो हम क्या वेश्याओं से गएगुजरे हो गए… और वे पुरुष क्या हुए जो अपने रिश्ते की महिलाओं से ले कर वेश्याओं तक से संबंध बनाए हैं वे मर्द हो गए… नहीं चाहिए मुझे ऐसा पाखंडी पति.’’

मुक्ति की बात ठीक ही थी. हम दोनों के संबंध नौकरी करते तक मधुर रहे. वह सच्ची थी. सच कहने का हौसला था उस में. कोई भी आवेदन करते समय आवेदन के कौलम में क्यों पूछा जाता है विवाहित, अविवाहित, तलाकशुदा, विधवा. किसी एक पर निशान लगाइए. नौकरी से इन सब बातों का क्या लेनादेना? नौकरी का फार्म भरवा रहे हैं या शादी का? मुझे मालूम था कि मुक्ति को कहीं अच्छी जगह नौकरी मिल चुकी होगी. और आवेदन के कौलम में उस ने डिवोर्सी भरा होगा बिना किसी झिझक के.

और सारे विभाग में उस के डिवोर्सी होने की चर्चा भी होने लगी होगी. लोग तरहतरह से उस के बारे में बातें करने लगे होंगे. लेकिन मुक्ति जैसी महिलाओं को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. जब व्यक्ति सच बोलता है, तो डरता नहीं है और न ही किसी की परवाह करता है. मुक्ति भी उन्हीं में से एक है.

गर्भनिरोधक से जुड़ी सावधानियों के बारे में बताएं?

सवाल

मेरे आप से 2 सवाल हैं. पहला यह कि क्या वीर्यपात से पहले पुरुष से अलग हो जाने पर बगैर गर्भनिरोध भी काम चल सकता है? दूसरा यह कि स्त्री के शारीरिक मिलन में एचआईवी एड्स होने का रिस्क किसे अधिक होता है?

जवाब

यद्यपि कुछ दंपती गर्भनिरोध युक्तियों से बचने के लिए यह तरीका अपनाते हैं कि वीर्यपात होने से पहले स्त्री पुरुष से अलग हो जाती है, पर यह तरीका जरा भी भरोसे का नहीं है. उस में भूल होने का हमेशा खतरा रहता है. यौनोत्तेजना के क्षणों में स्खलन से पहले भी वीर्य की बूंद छूटने से गर्भ ठहर सकता है. समय से अलग न हो पाने पर तो अवांछित गर्भ ठहरने की तब तक चिंता बनी रहती है जब तक कि अगला महीना नहीं हो जाता. अत: गर्भनिरोध के लिए कोई बेहतर विधि अपनाना ही अच्छा है.

जहां तक स्त्रीपुरुष के शारीरिक मिलन में एचआईवी एड्स होने के रिस्क का सवाल है, तो दोनों में से कोई भी एचआईवी से संक्रमित है तो दूसरे को रोग हो सकता है, लेकिन पुरुष से स्त्री में एचआईवी विषाणु जाने का रिस्क अधिक होता है. इस का ठोस कारण भी है. शारीरिक मिलन के बाद पुरुष से स्खलित हुआ वीर्य लंबे समय तक स्त्री की योनि में रहता है. यदि यह वीर्य एचआईवी से संक्रमित है, तो वायरस के स्त्री में पैठ करने का रिस्क बढ़ जाता है.

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कुछ दिनों से आलोक कुछ बदलेबदले से नजर आ रहे हैं. वे पहले से ज्यादा खुश रहने लगे हैं. आजकल उन की सक्रियता देख कर युवक दंग रह जाते हैं. असल में उन के घर में एक नन्ही सी खुशी आई है. वे पिता बन गए हैं. 52 साल की उम्र में एक बार फिर पिता बनने का एहसास उन को हर पल रोमांचित किए रखता है. इस खुशी को चारचांद लगाती हैं उन की 38 वर्षीय पत्नी सुदर्शना. सुदर्शना की हालांकि यह पहली संतान है लेकिन आलोक की यह तीसरी है.

दरअसल, आलोक की पहली पत्नी को गुजरे 5 साल बीत चुके हैं. उन के बच्चे जवान हो चुके हैं और अपनीअपनी गृहस्थी बखूबी संभाल रहे हैं. कुछ दशक पहले की बात होती तो इन हालात में आलोक के दिल और दिमाग में बच्चों के सही से सैटलमैंट के आगे कोई बात नहीं आती. इस उम्र में अपनी खुशी के लिए फिर से शादी की ख्वाहिश भले ही उन के दिल में होती लेकिन समाज के दबाव के चलते इस खुशी को वे अमलीजामा न पहना पाते. अब जमाना बदल चुका है. लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग हो गए हैं, एंप्टी नैस्ट सिंड्रोम से बाहर निकल रहे हैं. और अपनी खुशियों को ले कर भी वे ज्यादा स्पष्ट और मुखर हैं. अब लोग 70 साल तक स्वस्थ और सक्रिय रहते हैं.

जब आलोक ने देखा कि उन के बच्चों का उन के प्रति दिनप्रतिदिन व्यवहार बिगड़ता जा रहा है. अपने कैरियर व भावी जिंदगी को बेहतर बनाने की आपाधापी में बच्चों के पास उन की खुशियों को जानने व महसूस करने की फुरसत नहीं है तो आलोक ने न केवल उन से अलग रहने का निर्णय लिया बल्कि एक बार फिर से अपनी जिंदगी को व्यवस्थित करने का मन बनाया.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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