इन कुकवेयर से अपनी किचन को दें मॉडर्न लुक

पहले के मुकाबले आज हम सभी घर के साथ साथ अपनी किचिन को बनवाने में भी अच्छा ख़ासा पैसा खर्च करते हैं ताकि घर के साथ साथ हमारी किचिन भी मॉडर्न लगे. कई बार हम अपनी किचिन को तो आधुनिक बना लेते हैं परन्तु किचिन में उपयोग किये जाने वाले कौन से बर्तन खरीदें जिनसे हमारी किचिन भी आधुनिक लगे यह नहीं समझ पाते. आजकल बाजार में भांति भांति के कुकवेयर उपलब्ध हैं जिनसे आप अपनी किचिन को एक मॉडर्न लुक दे सकतीं हैं. आजकल जो कुकवेयर मार्केट में उपलब्ध हैं उनकी सबसे बड़ी खासियत है कि वे हमारी सेहत के लिए भी बहुत अच्छे हैं साथ ही उनका मेंटेनेंस करना भी काफी आसान होता है. कुछ समय पूर्व तक जहाँ किचिन में स्टील और नानस्टिक बर्तनों का ही बोलबाला हुआ करता था वहीँ आज अनेकों प्रकार के कुकवेयर हमारी किचिन की खूबसूरती को बढ़ा रहे हैं तो आइये जानते हैं आज के कुछ मॉडर्न कुकवेयर के बारे में-

-स्टोन वेयर

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ये बर्तन पत्थर के बने होते हैं. इनका उपयोग पिज्जा बेस, ब्रेड, केक, और पास्ता के अलावा सूप और स्टयू बनाने में भी किया जाता है. इन बर्तनों में खाना पकाना सेहत के लिए काफी अच्छा होता है क्योंकि पत्त्थर से बने होने के कारण भोजन पकते समय इनमें से किसी भी प्रकार के जहरीले और केमिकल तत्व रिलीज नहीं होते. इन्हें साफ़ करना काफी आसान होता है, पूरे बर्तन में चारों तरफ एक समान आंच लगती है जिससे खाना एक समान पकता है और भारी होने के कारण इनमें खाना जलने का भी डर नहीं रहता. ये बर्तन काफी हाई तापमान को झेल लेते हैं और भोजन के सारे को उभारकर बाहर लाते हैं.

-कास्ट आयरन कुकवेयर

कास्ट आयरन के बर्तनों का उपयोग ब्रेसिंग, डीप फ्राइंग, मीट को धीमी आंच पर पकाने के अलावा पाय, ब्रेड और अन्य बेक्ड डिशेज को बनाने के काम आते हैं. इनमें धीमी कुकिंग भी आसानी से की जा सकती है. इन बर्तनों में कम से कम तेल में खाना पक जाता है, एक जैसा खाना पकता है, फ्लेवर भी बने रहते हैं साथ ही आयरन का होने से भोजन पकते समय इनमें आयरन जैसा पौष्टिक तत्व हमें अपने आप मिल जाता है जो मानव शरीर का हीमोग्लोबिन बढ़ाने में काफी मददगार होता है. इनमें स्टोव से लेकर माइक्रोवेब ओवन तक में खाना पकाया जा सकता है.

–पोर्सिलीन कुकवेयर

चोकलेट पिघलाना, क्रीमी सूप, और सौस आदि ऐसे खाद्य पदार्थ जिन्हें एकदम धीमी आंच पर खाना पकाया जाता है इनके लिए पोर्सलीन के बर्तन बहुत उपयुक्त होते हैं. ये वजन में बहुत हल्के और भांति भांति के कलर्स में मिलते हैं. ये स्क्रेच रेजिस्टेंट और इंसुलेटेड भी होत्ते हैं, साथ ही इन्हें माइक्रोवेब और ओवन में भी बड़ी आसानी से प्रयोग किया जा सकता है.

-क्ले कुकवेयर

आजकल क्ले अर्थात मिट्टी के बर्तन बहुत चलन में हैं, इनमे खाना धीमी आंच पर पकता है, इनमें तेल बहुत कम प्रयोग किया जाता है, जिससे खाने के फ्लेवर अच्छे से जब्त हो जाते हैं. इनमे खाना पकाने का मतलब है कि आप खाद्य पदार्थ के समस्त पौष्टिक तत्व प्राप्त कर पा रहे हैं. यदि एसिडिक खाने को भी इन बर्तनों में पकाया जा रहा है तो मिटटी के एल्केलाईन गुण खाने को बेलेंस कर देते हैं. इन्हें प्रयोग करने से पूर्व 15—20 मिनट तक पानी में भिगोकर रखें साथ ही भोजन बनाना शुरू करने से पहले इन्हें अच्छी तरह गर्म करना जरूरी होता है ताकि पूरे बर्तन में तापमान एक समान हो जाये.

-तांबे के बर्तन

ताम्बे के बर्तनों में पका खाना सेहत के लिए तो अच्छा होता है परन्तु यदि इनमे अधिक समय तक खाना रखा छोड़ दिया जाए तो ताम्बे के केमिकल तत्व भोजन में मिल जाते हैं दूसरे इन्हें साफ करना काफी मुश्किल होता था परन्तु तांबे के बर्तन आजकल फिर से अपने आधुनिक रूप में हमारी किचिन की शोभा बढ़ा रहे हैं. आजकल के ताम्बे के बर्तनों में बाहरी परत ताम्बे की और अंदरूनी परत स्टील वाले बर्तन काफी चलन में हैं परन्तु ये केवल शो के लिए होते हैं. प्योर ताम्बे के बर्तनों में खाना पकाने से ताम्बे के एल्केलाईन तत्व भोजन में मिल जाने से शरीर को अनेकों पौष्टिक तत्व मिल जाते हैं. परन्तु काफी महंगे होने के कारण इन्हें खरीदना हरेक के बस में नहीं होता.

-पीतल के बर्तन

ताम्बे के बर्तनों की ही भांति ही पीतल के बर्तन भी आजकल फिर से बहुत चलन में हैं. आजकल स्टील के भारी बर्तनों पर ही पीतल की परत चढाकर उन्हें पीतल का लुक दिया जाता है जो दिखने में बहुत अच्छे लगते हैं. इस परत को कोई अतिरिक्त सफाई की आवश्यकता नहीं होती इसलिए इन्हें बड़ी आसानी से मेनेज किया जाता है. ओरिजिनल पीतल के मुकाबले ये सस्ते भी होते हैं.

 

सुखद नीड़ : भाग 2- आखिर क्या हुआ सलोनी के साथ

गहरी सोच में गुम होने पर उस के भीतर से आवाजें आने लगतीं कि सलोनी तू कितनी खुदगर्ज है. अपने क्षणिक सुख के लिए तू कितनी सारी सुखी जिंदगियां दांव पर लगा रही है. मातापिता के नाम पर दाग लगा कर सलोनी क्या तू सुख से रह सकेगी?

कमल के साथ चले जाने के बाद यदि नीरज ने तु  झे अवि और गुड्डी से मिलने का अधिकार नहीं दिया तो क्या तू ममता का गला घोट कर जी सकेगी? नौकरी पर चले जाने के बाद सासूमां कितने प्यारदुलार से अवि और गुड्डी का पालनपोषण अपनी देखरेख में करती हैं. क्या तू उन की अच्छाइयों को   झुठला सकेगी?

अब बस कर यहीं रुक जा सलोनी, चल आज रोक ले अपने बढ़ते कदमों को. अपने सुखीशांत वैवाहिक जीवन को खुद अपने हाथों से तबाह मत कर. नीरज के बाहरी व्यक्तित्व और काम के बो  झ तले दबे जिम्मेदार पिता के व्यवहार को नकारने के बजाय उस के साथ बिताए गए 10 सालों की अच्छाइयों को याद रख. अपने बच्चों का भविष्य सुखद बनाने के लिए ही तो तुम दोनों दिनरात दोहरी मेहनत करते हो. मानसिक तनाव दूर करने के लिए नीरज को अपनी पत्नी का साथ चाहिए तो इस में भला उस की क्या गलती है? इस से पहले तो तुम ने कभी ऐसा नहीं सोचा था. कमल के बजाय नीरज की जिम्मेदारियों को सकारात्मक दृष्टिकोण से सामने रख कर देख. तब सारी तसवीर तेरे सामने स्पष्ट होगी और तू सही निर्णय लेने में स्वयं सक्षम होगी. धीरेधीरे आंखों के सामने बीते समय के चित्र उभरने लगे…

जब तू बुखार में बेसुध पड़ी थी तब नीरज ने कैसे रातरातभर जागते रह कर तेरे माथे पर ठंडी पट्टी रख कर तु  झे सुखसुकून पहुंचाया था. नीरज ने कितनी बार अपने औफिस से छुट्टी ले कर तेरे ठीक हो जाने तक सारे घर के कामकाज कितनी सुगमता से संभाले हैं. देर हो जाने के कारण कितनी बार तेरे साथ मिल कर रसोईघर में बरतन धुलवाए हैं.

एकतरफा निर्णय लेने पर ठंडे दिमाग से सोचविचार करने पर कमल के मोह जाल में फंसी सलोनी की आंखों के सामने अब नीरज की सकारात्मक तस्वीर स्पष्ट होने लगी थी. मन ही मन जीवन में आने वाले पलों का निर्णय ले कर आज उस का मन असीम शांति का अनुभव कर रहा था.’’

सुबह सवेरे सुखद भोर का एहसास करते हुए सलोनी मीठी सी अंगड़ाई ले कर उठ खड़ी हुई. शीघ्रता से नहाधोकर उस ने बच्चों और पति का मनपसंद नाश्ता तैयार किया. दोनों बच्चों को उठा कर लाड़दुलार से दूध पिलाया. नन्हा अवि मां के आंचल की गरमाहट पा कर जल्द ही उनींदा हो गया. उस ने उसे मांजी के पास लिटाया और तत्पश्चात मांजी और नीरज को नाश्ता दे कर,

2-4 सामान्य बातें करने के बाद वह औफिस के लिए निकल गई.

औफिस में पहुंच कर सलोनी कई दिनों से पैंडिंग पड़ा काम निबटाने लगी. समय के पाबंद कमल के कैबिन में पहुंच जाने के बाद हाथों में फाइल थामे, दमसाधे वह उस के पीछेपीछे बौस के कैबिन में पहुंच गई.

सलोनी को सामने खड़े देख कर कमल ने मुसकराते हुए उस से कल के प्रस्ताव पर विचारविमर्श करने के विषय में पूछा. तुरंत ही फाइल खोल कर सलोनी ने करीने से रखी एक लिफाफा कमल के सामने रखते हुए बोली, ‘‘कमल यह मेरा इस्तीफा है… प्लीज इसे स्वीकार करो… मु  झे यह नौकरी छोड़ने की इजाजत दे दो.

‘‘सलोनी… क्या है ये सब कमल ने हैरत से पूछा?’’ अचानक अप्रत्याशित स्थिति का सामना करते हुए, हकबकाए कमल का मुंह खुला का खुला रह गया.

ठंडे ठहरे हुए लफ्जों में सलोनी आगे बोली क्या, ‘‘कुछ नहीं, कमल. यह मेरा इस्तीफा है. मैं इस नौकरी से रिजाइन कर रही हूं.’’

अगर तुम्हें मेरा प्रस्ताव इतना ही बुरा लग रहा था तो कल ही साफ इनकार कर देती न. मैं ने तुम से जबरदस्ती तो नहीं की थी. कमल के मन की नाराजगी जबान से जाहिर होने लगी. अब कमल का मूड़ उखड़ने लगा था, ‘‘इस तरह से नौकरी से रिजाइन करने के बारे में तुम सोच भी कैसे सकती हो? अपने घर की आर्थिक स्थिति तुम अच्छी तरह से सम  झती हो.’’

‘‘हां. अब तक तो नहीं सम  झी थी. लेकिन अब बहुत अच्छी तरह से सम  झने लगी हूं और वैसे भी कमल जिस रास्ते मु  झे जाना ही नहीं, तो उस का पता पूछने से हासिल भी क्या होगा. अब यह पक्का तय है कि हम दोनों के रास्ते अलगअलग हैं. हम लोग अब आगे साथ काम नहीं कर सकते?’’

सलोनी का बदला रुख देख कर कमल पैंतरा बदलते हुए बोला, ‘‘यार, सलोनी तुम जानती हो न कि मैं तुम्हारी पदोन्नति कर के तुम्हें मैनेजिंग डाइरैक्टर की सीट पर बैठा सकता हूं.

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हमें तुम से प्यार कितना

मधु के मातापिता उस के लिए काबिल वर की तलाश कर रहे थे. मधु ने फैसला किया कि यह ठीक समय है जब उसे आलोक और अंशू के बारे में उन्हें बता देना चाहिए.

‘‘पापा, मैं आप को आलोक के बारे में बताना चाहती हूं. पिछले कुछ दिनों से मैं उस के घर जाती रही हूं. वह शादीशुदा था. उस की पत्नी सुहानी की मृत्यु कुछ वर्षों पहले हो चुकी है. उस का एक लड़का अंशू है जिसे वह बड़े प्यार से पाल रहा है. मैं आलोक को बहुत चाहती हूं.’’

मधु के कहने पर उस के पापा ने पूछा, ‘‘तुम्हें उस के शादीशुदा होने पर कोई आपत्ति नहीं है. बेशक, उस की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. अच्छी तरह सोच कर फैसला करना. यह सारी जिंदगी का सवाल है. कहीं ऐसा तो नहीं है तुम आलोक और अंशू पर तरस खा कर यह शादी करना चाहती हो?’’

‘‘पापा, मैं जानती हूं यह सब इतना आसान नहीं है, लेकिन सच्चे दिल से जब हम कोशिश करते हैं तो सबकुछ संभव हो जाता है. अंशु मुझे बहुत प्यार करता है. उसे मां की सख्त जरूरत है. जब तक वह मुझे मां के रूप में अपना नहीं लेता है, मैं इंतजार करूंगी. बचपन से आप ने मुझे हर चुनौती से जूझने की शिक्षा और आजादी दी है. मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह फैसला कर रही हूं.’’

मधु के यकीन दिलाने पर उस की मां ने कहा, ‘‘मैं समझ सकती हूं, अगर अंशू के लालनपालन में तुम आलोक की मदद करोगी तो उस घर में तुम्हें इज्जत और भरपूर प्यार मिलेगा. सासससुर भी तुम्हें बहुत प्यार देंगे. मैं बहुत खुश हूं तुम आलोक की पत्नी खोने का दर्द महसूस कर रही हो और अंशू को मां मिल जाएगी. ऐसे अच्छे परिवार में तुम्हारा स्वागत होगा, मुझे लगता है हमारी परवरिश रंग लाई है.’’

मां ने मधु को गले लगा लिया. मधु की खुशी की कोई सीमा नहीं थी. उस ने कहा, ‘‘अब आप दोनों इस रिश्ते के लिए राजी हैं तो मैं आलोक को मोबाइल पर यह खबर दे ही देती हूं खुशी की.’’

मधु आलोक के दिल्ली के रोहिणी इलाके के शेयर मार्केटिंग औफिस में उस से मिलने जाया करती थी. इस का उस से पहला परिचय तब हुआ था जब उस ने कनाट प्लेस से पश्चिम विहार के लिए लिफ्ट मांगी थी. उस ने आलोक को बताया था वह एक पब्लिशिंग हाउस में एडिटर के पद पर कार्यरत थी. लिफ्ट के समय कार में ही दोनों ने एकदूसरे को अपने विजिटिंग कार्ड दे दिए थे. मधु की खूबसूरत छवि आलोक के दिमाग पर अंकित हो गई.

जब आलोक ने अपने बारे में पूरी तरह से बताया तो उस की बातचीत में उस के शादीशुदा और पत्नी सुहानी के निधन की बात शामिल थी.

बड़े ही अच्छे लहजे में मधु ने कहा था ‘मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम शादीशुदा हो. मेरे मातापिता मेरे लिए वर की तलाश कर रहे हैं. मैं ने तुम्हें अपने वर के रूप में पसंद कर लिया है जो भी थोड़ीबहुत मुलाकातें हुई हैं, उन में मैं जीवन के प्रति तुम्हारी सोच से प्रभावित हूं. तुम ने मुझे यह बताया है कि तुम्हारा एकमात्र मिशन है अपने लड़के अंशू को अच्छी परवरिश देना. दादादादी द्वारा उस का लालनपालन अपनेआप में काफी नहीं जान पड़ता है. यदि हमारा विवाह हो जाता है तो यह मेरे लिए बड़ी चुनौती का काम होगा कि मैं तुम्हारी मदद उस की परवरिश में करूं. मुझे काम करने का शौक है, मैं चाहूंगी कि अपना पब्लिशिंग हाउस का काम जारी रखते हुए घर के कामकाज को सुचारु रूप से चलाऊं.

आलोक ये सब बातें ध्यान से सुन रहा था, बोला, ‘सुहानी की मृत्यु के बाद मुझे ऐसा लगा कि मेरी दुनिया अंशू के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई है. मेरा पूरा ध्यान अंशू को पालने में केंद्रित हो गया. जिंदगी के इस पड़ाव पर जब मेरी तुम से मुलाकात हुई तो मुझे एक उम्मीद दिखी कि चाहे तुम्हारा साथ विवाह के बाद एक मित्र की तरह हो या पत्नी की हैसियत से, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. अगर तुम्हारे जैसी खूबसूरत और समझदार लड़की सारे पहलुओं का जायजा ले कर मेरे घर आती है तो अंशू को मां और परिवार को एक अच्छी बहू मिल जाएगी.’

मधु ने आलोक को यकीन दिलाते हुए कहा था, ‘इस में कोई शक नहीं है कि मुझे कुंआरे लड़के भी विवाह के लिए मिल सकते हैं, लेकिन मुझे विवाह के बाद की समस्याओं से डर लगता है. इसी समाज में लड़कियां शादी के बाद जला दी जाती हैं, दहेज की बलि चढ़ा कर उन्हें तलाक दे दिया जाता है या ससुराल पसंद न आने पर लड़कियों को वापस मायके आ कर रहना पड़ जाता है. तुम से मुलाकात के बाद मुझे लगता है ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं होने वाला. तुम्हारी तरह अंशू को पालने का चैलेंज मैं स्वीकार करती हूं. तुम्हारे घर आ कर अंशू से मेलजोल बढ़ाने का काम मैं बहुत जल्द शुरू करूंगी. अपनी मम्मी को यकीन में ले कर मेरे बारे में बात कर लो. एक बात और मैं बताना चाहूंगी, मैं ने एमए साइकोलौजी से कर रखा है. उस में चाइल्ड साइकोलौजी का विषय भी था.’

दूसरे दिन शाम को मधु आलोक के घर पहुंची. आलोक की मां ने उस का स्वागत मुसकराते हुए किया और कहा, ‘आओ मधु, तुम्हारे बारे में मुझे आलोक बता चुका है.’ मधु ड्राइंगरूम में सोफे पर आलोक की मां के साथ बैठ गई.

अंशु भी आवाज सुन कर वहां आ गया.

‘आंटी को पहली बार देखा है. कौन हैं, क्या आप दिल्ली में ही रहती हैं?’ अंशू ने पूछा.

‘हां, मैं दिल्ली में ही रहती हूं, मेरा नाम मधु है. अगर तुम्हें अच्छा लगेगा तो मैं तुम से मिलने आया करूंगी,’ अंशू की ओर निहारते हुए बड़े प्यार से मधु ने उस से कहा, ‘तुम अपने बारे में बताओ, कौन से गेम खेलते हो, किस क्लास में पढ़ते हो?’

शरमाते हुए अंशू ने कहा, ‘मैं क्लास थर्ड में पढ़ता हूं. नाम तो आप जानते ही हो. घर में दादादादी हैं, पापा हैं.’ उस की आंखें आंसुओं से भर आई थीं. उस ने आगे कहा, ‘आंटी, मैं मम्मी की फोटो आप को दिखाऊंगा. मेरी मां का नाम सुहानी था जो….’ आगे वह नहीं बोल पाया.

अंशू को मधु ने गले लगा लिया, ‘बेटा, ऐसा मत कहो, मां जहां भी हैं वे तुम्हारे हर काम को ऊपर से देखती हैं. वे हमेशा तुम्हारे आसपास ही कहीं होती हैं. मैं तुम्हें बहुत प्यार करूंगी. तुम्हारी अच्छी दोस्त बन कर रोज तुम्हारे पास आया करूंगी, ढेर सारी चौकलेट, गिफ्ट और गेम्स ला कर तुम्हें दूंगी. बस, तुम रोना नहीं. मुझे तुम्हारी स्वीट स्माइल चाहिए. बोलो, दोगे न?’ एक बार फिर मधु ने अंशू को गले से लगा लिया. आलोक की मम्मी ने चाय बना ली थी. चाय पीने के बाद मधु वापस अपने घर चली गई.

आलोक की मां ने उसे मधु के बारे में बताते हुए कहा, ‘मुझे मधु बहुत अच्छी लगी. अंशू से बातचीत करते समय मुझे उस की आंखों में मां की ममता साफ दिखाई दी.’ इस के जवाब में आलोक ने मां को सुझाव दिया, ‘अभी कुछ दिन हमें इंतजार करना चाहिए. मधु को अंशू से मेलजोल बढ़ाने का मौका देना चाहिए ताकि यह पता चले कि वह मधु को स्वीकार कर लेगा.’

इस के बाद मधु ने स्कूटी पर अंशू के पास जानाआना शुरू कर दिया. वह अच्छाखासा समय उस के साथ बिताती थी. कभी कैरम खेलती थी तो कभी उस के साथ अंत्याक्षरी खेलती थी. उस की पसंद की खाने की चीजें पैक करवा कर उस के लिए ले जाती तो कभी उसे मूवी दिखाने ले जाती थी. एक महीने में अंशू मधु के साथ इतना घुलमिल गया कि उस ने आलोक से कहा, ‘पापा, आप आंटी को घर ले आओ, वे हमारे घर में रहेंगी, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’

मधु और आलोक का विवाह हो गया. विवाह की धूमधाम में अंशू ने हर लमहे को एंजौय किया, जो निराशा और मायूसी पहले उस के चेहरे पर दिखती थी, वह अब मधुर मुसकान में बदल गई थी. वह इतना खुश था कि उस ने सुहानी की तुलना मधु से करनी बंद कर दी. सुहानी की फोटो भी शैल्फ से हटा कर अपनी किताबों वाली अलमारी में कहीं छिपा कर रख दी. आलोक ने महसूस किया जिद्दी अंशू अब खुद को नए माहौल में ढाल रहा था.

मधु ने आलोक का संबोधन तुम से आप में बदल दिया. उस ने आलोक से कहा, ‘‘तुम्हें अंशू के सामने तुम कह कर बुलाना ठीक नहीं लगेगा, इसलिए मैं आज से तुम्हें आप के संबोधन से बुलाऊंगी.’’ अपनी बात जारी रखते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘हम अपने प्यार और रोमांस की बातें फिलहाल भविष्य के लिए टाल देंगे. पहले अंशू के बचपन को संवारने में जीजान से लग जाएंगे. वह अपनी क्लास में फर्स्ट पोजिशन में आता है, इंटैलीजैंट है. जब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि अब वह मानसिक तौर पर मुझे मां के रूप में पूरी तरह स्वीकार कर चुका है, तब हम हनीमून के लिए किसी अच्छे स्थान पर जाएंगे.’’

यह सुन कर आलोक को अपनी हमसफर मधु पर गर्व महसूस हो रहा था. खुश हो कर उस ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया. वे दोनों शादी के बाद दिल्ली के एक रैस्तरां में कैंडिललाइट में डिनर ले रहे थे. घर लौटते समय उन्होंने कनाट प्लेस से अंशू की पसंद की पेस्ट्री पैक करवा ली थी.

वे दोनों आश्चर्यचकित थे जब वापसी पर अंशू ने मधु से कहा, ‘‘मम्मा, आप ने देर कर दी, मैं कब से आप का इंतजार कर रहा था.’’

मधु ने पेस्ट्री का पैकेट उसे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘अंशु, यह लो तुम्हारी पसंद की पेस्ट्री. तुम्हें यह बहुत अच्छी लगेगी.’’ अंशू की खुशी उस के चेहरे पर फैल गई.

अंशू चौथी कक्षा बहुत अच्छे अंकों के साथ पास कर चुका था. मधु की मां की ममता अपने शिखर पर थी. उस ने अपने बगीचे में अंशू की पसंद के फूलों के पौधे माली से कह कर लगवा दिए थे. जैसेजैसे ये पौधे फलफूल रहे थे, मधु को लगता था वह भी माली की तरह अपने क्यूट से बेटे की देखरेख कर रही है. आत्मसंतुष्टि क्या होती है, उस ने पहली बार महसूस किया.

शाम के समय जब आलोक घर आता था तो अंशू उस का फूलों के गुलदस्ते से स्वागत करता था. मधु का ध्यान अंशू की पढ़ाई के साथ उस की हर गतिविधि पर था. उस ने उसे तैयार किया कि वह स्कूल में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले. अंशू के स्टडीरूम में शैल्फ पर कई ट्रौफियां उस ने सजा कर रख ली थीं. सब खुशियों के होते हुए पिछले 2-3 साल अंशू ने अपना बर्थडे यह कह कर मनाने नहीं दिया कि ऐसे मौके पर उसे सुहानी मां की याद आ जाती है.

दूसरे के बच्चे को पालना कितना मुश्किल होता है, यह महसूस करते हुए उस ने तय किया कि कभी वह अंशू को सुहानी मां के साथ बिताए लमहों के बारे में हतोत्साहित नहीं करेगी. अंशू का विकास वह सामान्य परिस्थिति में करना चाहती थी. जैसेजैसे उस का शोध कार्य प्रगति पर था उसे अभिप्रेरणा मिलती रही कि सब्र के साथ हर बाधा को पार कर वह अंशू के समुचित विकास के काम में विजेता के रूप में उभरे. उसे उम्मीद थी कि जितना वह इस मिशन में कामयाब होगी, उतना ही उसे आलोक और सासससुर का प्यार मिलेगा. दोनों के रिश्ते की बुनियाद दोस्ती थी. प्यार और रोमांस के लिए भविष्य में समय उपलब्ध था.

आलोक मधु की अब तक भूमिका से इतना खुश था कि उस की इच्छा हुई किसी रैस्तरां में शाम को कुछ समय उस के साथ बिताए. कनाट प्लेस की एक ज्वैलरी शौप से उस की पसंद के कुछ जेवर खरीद कर उसे गिफ्ट करते हुए उस ने कहा, ‘‘मधु, वैसे तो तुम्हारे पास काफी गहने हैं लेकिन मैरिज एनिवर्सरी न मना पाने के कारण हम कोई खास खुशी तो मना नहीं पाते हैं, यह गिफ्ट तुम यही समझ कर रख लो कि आज हम ने अपने विवाह की वर्षगांठ मना ली है. मम्मीपापा को इस के विषय में बता सकती हो. हम धूमधाम से तभी एनिवर्सरी मनाएंगे जब अंशू अपना जन्मदिन खुशी के साथ दोस्तों को बुला कर मनाना शुरू कर देगा.’’

रैस्तरां में उन दोनों की बातचीत बड़ी प्यारभरी हुई. डिनर के बाद जब वे रैस्तरां से बाहर निकले तो आलोक ने मधु का हाथ अपने हाथ में ले कर उस का स्पर्श महसूस करते हुए कहा, ‘‘मधु, मैं इंतजार में हूं कि कब हम लोग हनीमून के लिए किसी हिलस्टेशन पर जाएंगे. जब ऐसा तुम भी महसूस करो, मुझे बता देना. हम लोग इसी बहाने अंशू को भी साथ ले चल कर घुमा लाएंगे.’’

मधु को यह बात कभीकभी परेशान करती थी कि अंशू कभी नहीं चाहेगा कि वह एक बच्चे को जन्म दे और वह बच्चा अंशू की ईर्ष्या का पात्र बन जाए. उस ने सोच रखा था कि वह उचित समय पर आलोक से इस विषय पर बात करेगी. वैसे, अंशू ने उसे इतना आदर और प्यार दिया जिस ने उसे भरपूर मां की ममता और सुख का एहसास करा दिया.

दोनों के बीच जो स्नेह और ममता का रिश्ता बन गया था वह बहुत मजबूत था. मधु को लगा, अंशू उसे पूरी तरह मां के रूप में मान चुका है और अगले वर्ष अपना बर्थडे बहुत धूमधाम से मनाना चाहेगा. वह बहुत खुश हुई जब अंशू ने उस से कहा, ‘‘मम्मा, सब बच्चे अपना बर्थडे दोस्तों के साथ हर साल मनाते हैं. मैं भी अपने क्लासमेट के साथ इस साल बर्थडे मनाना चाहता हूं.’’

फिर क्या था, आलोक और मधु ने घर पर ही उस का बर्थडे मनाने का इंतजाम कर दिया. ढेर सारे व्यंजन, डांस के फोटोशूट और केक के साथ बड़ी धूमधाम से उस का बर्थडे मनाया गया.

अंशू का लालनपालन मधु ने उस की हर भावना के क्षणों में अपने को मनोचिकित्सक मान कर किया जिस के सकारात्मक परिणाम ने हमेशा उसे हौसला दिया.

शादी के 6-7 साल पलक झपकते ही मधु के अंशू के साथ इस तरह गुजरे कि वह वैवाहिक जीवन के हर सुख की हकदार बन गई. मां बनने का हर सुख उसे महसूस हो चुका था.  अंशू के नैराश्य और मां की कमी की स्थिति से बाहर आने का श्रेय घर के हर सदस्य को था.

मधु ने आलोक को पति के रूप में स्वीकार करते समय यह सोचा था, आलोक अपनी पत्नी सुहानी को खोने के बाद उसे अपने घर में सम्मान और प्यारभरी जिंदगी जरूर दे सकेगा. उसे अंशू की मां के रूप में उस की सख्त जरूरत है. पहली नजर में, उस से मिलने पर उसे अपने सारे सपने साकार होते हुए जान पड़े. तभी तो उस ने ‘आई लव यू’ कहने के स्थान पर खुश हो कर उस से कहा था, ‘आलोक, तुम हर तरह से मेरे जीवनसाथी बनने के काबिल हो.’ तब वह उस के शादीशुदा होने के बैकग्राउंड से बिलकुल अनभिज्ञ थी.

7 वर्षों बाद, एक दिन जब अंशू स्कूल से घर लौटा तो उस के हाथ में एक बैग था. वह बहुत खुश दिखाई दे रहा था. मधु मां को उस ने गले लगा लिया और बताया, ‘‘मम्मा, मैं क्लास में फर्स्ट आया हूं. कई ऐक्टिविटीज में मुझे ट्रौफियां मिली हैं. पिं्रसिपल सर कह रहे थे यह सब मुझे अच्छी मां के कारण ही मिला है.’’ थोड़ी देर चुप रहने के पश्चात वह भावुक हो गया, बोला, ‘‘मम्मा, मैं एक बार सुहानी मां की फोटो, जो मैं ने छिपा कर रख ली थी, उसे देख लूं.’’

मधु ने कहा, ‘‘हां, क्यों नहीं, ले आओ. हम सब उस फोटो को देखेंगे.’’ मधु की आंखों से आंसू छलक पड़े थे. भावुक हो कर उस ने कहा, ‘‘अंशू, मैं ने कहा था न, तुम्हारी मां सुहानी हर समय तुम्हारे आसपास होती हैं.  अब तुम कभी उदास मत होना. सुहानी मां भी यही चाहती हैं तुम हमेशा खुश रहो.’’

उस रात आलोक ने मधु को अपनी बांहों में ले कर जीभर प्यार किया. इन भावुकताभरे लमहों में मधु ने आलोक को अपना फैसला सुनाते हुए अपील की, ‘‘आलोक, इतना आसान नहीं था मेरे लिए अब तक का सफर तय करना. तुम्हारा साथ मिला तो यह सफर आसान हो गया. मुझ से वादा करोगे कि कमजोर से कमजोर क्षणों में तुम मुझे मां बनाने की कोशिश नहीं करोगे. अंशू से मुझे पूरा मातृत्व सुख हासिल हो चुका है. मैं उस के प्रतिद्वंद्वी के रूप में कोई और संतान पैदा नहीं करना चाहती.’’

शादी के बाद मुझे किसी और से प्यार हो गया है?

सवाल-

मैं कालेज टाइम में किसी लड़के से बहुत प्यार करती थी. मगर कभी उस से अपने प्यार का इजहार नहीं कर सकी. बाद में मेरी अरेंज्ड मैरिज हो गई. पति काफी अंडरस्टैंडिंग और केयरिंग नेचर के हैं. मैं अपनी जिंदगी में काफी खुश थी, मगर एक दिन अचानक जिंदगी में तूफान आ गया. दरअसल, फेसबुक पर उसी लड़के का मैसेज आया कि वह मु  झ से बात करना चाहता है. मेरे मन में दबा प्यार फिर से जाग उठा. मैं ने तुरंत उस के मैसेज का जवाब दिया. फेसबुक पर हमारी दोस्ती फिर से परवान चढ़ने लगी. मैं अपना खाली समय उस से बातें करने में गुजारने लगी. धीरेधीरे शर्म और संकोच की दीवारें गिरने लगीं. फिर एक दिन उस ने मु  झे अकेले में मिलने बुलाया. मैं उस के इरादों से वाकिफ हूं, इसलिए हिम्मत नहीं हो रही कि इतना बड़ा कदम उठाऊं या नहीं. उधर मन में दबा प्यार मु  झे यह कदम उठाने की जिद कर रहा है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

यह बात सच है कि पहले प्यार को इंसान कभी नहीं भूल पाता, मगर जब जिंदगी आगे बढ़ चुकी हो तो लौट कर उस राह जाना मूर्खता होगी. वैसे भी आप को कोई अपने पति से शिकायत नहीं है. ऐसे में प्रेमी से रिश्ता जोड़ कर नाहक अपनी परेशानियां न बढ़ाएं.

उस लड़के को स्पष्ट रूप से ताकीद कर दें कि आप उस से केवल हैल्दी फ्रैंडशिप की उम्मीद रखती हैं, जो आप के जीवन की एकरसता दूर कर मन को सुकून और प्रेरणा दे. मगर शारीरिक रूप से जुड़ कर आप इस रिश्ते के साथसाथ अपने वैवाहिक रिश्ते के साथ भी अन्याय करेंगी. इसलिए देर न करते हुए बिना किसी तरह की दुविधा मन में लिए अपने प्रेमी से इस बारे में बात कर उसे अपना फैसला सुनाएं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

चाहत: क्या शोभा अपना सपना पूरा कर पाई?

लेखक- एकता एस दुबे

“थक गई हूं मैं घर के काम से, बस वही एकजैसी दिनचर्या, सुबह से शाम और फिर शाम से सुबह. घर का सारा टैंशन लेतेलेते मैं परेशान हो चुकी हूं, अब मुझे भी चेंज चाहिए कुछ,”शोभा अकसर ही यह सब किसी न किसी से कहती रहतीं.

एक बार अपनी बोरियत भरी दिनचर्या से अलग, शोभा ने अपनी दोनों बेटियों के साथ रविवार को फिल्म देखने और घूमने का प्लान किया. शोभा ने तय किया इस आउटिंग में वे बिना कोई चिंता किए सिर्फ और सिर्फ आनंद उठाएंगी.

मध्यवर्गीय गृहिणियों को ऐसे रविवार कम ही मिलते हैं, जिस में वे घर वालों पर नहीं बल्कि अपने ऊपर समय और पैसे दोनों खर्च करें, इसलिए इस रविवार को ले कर शोभा का उत्साहित होना लाजिमी था.

यह उत्साह का ही कमाल था कि इस रविवार की सुबह, हर रविवार की तुलना में ज्यादा जल्दी हो गई थी.

उन को जल्दी करतेकरते भी सिर्फ नाश्ता कर के तैयार होने में ही 12 बज गए. शो 1 बजे का था, वहां पहुंचने और टिकट लेने के लिए भी समय चाहिए था. ठीक समय वहां पहुंचने के लिए बस की जगह औटो ही एक विकल्प दिख रहा था और यहीं से शोभा के मन में ‘चाहत और जरूरत’ के बीच में संघर्ष शुरू हो गया. अभी तो आउटिंग की शुरुआत ही थी, तो ‘चाहत’ की विजय हुई.

औटो का मीटर बिलकुल पढ़ीलिखी गृहिणियों की डिगरी की तरह, जिस से कोई काम नहीं लेना चाहता पर हां, जिन का होना भी जरूरी होता है, एक कोने में लटका था. इसलिए किराए का भावताव तय कर के सब औटो में बैठ गए.

शोभा वहां पहुंच कर जल्दी से टिकट काउंटर में जा कर लाइन में लग गईं.

जैसे ही उन का नंबर आया तो उन्होंने अंदर बैठे व्यक्ति को झट से 3 उंगलियां दिखाते हुए कहा,”3 टिकट…”

अंदर बैठे व्यक्ति ने भी बिना गरदन ऊपर किए, नीचे पड़े कांच में उन उंगलियों की छाया देख कर उतनी ही तीव्रता से जवाब दिया,”₹1200…”

शायद शोभा को अपने कानों पर विश्वास नहीं होता यदि वे साथ में, उस व्यक्ति के होंठों को ₹1200 बोलने वाली मुद्रा में हिलते हुए नहीं देखतीं.

फिर भी मन की तसल्ली के लिए एक बार और पूछ लिया, “कितने?”

इस बार अंदर बैठे व्यक्ति ने सच में उन की आवाज नहीं सुनी पर चेहरे के भाव पढ़ गया.

उस ने जोर से कहा,”₹1200…”

शोभा की अन्य भावनाओं की तरह उन की आउटिंग की इच्छा भी मोर की तरह निकली जो दिखने में तो सुंदर थी पर ज्यादा ऊपर उड़ नहीं सकी और धम्म… से जमीन पर आ गई.

पर फिर एक बार दिल कड़ा कर के उन्होंने अपने परों में हवा भरी और उड़ीं, मतलब ₹1200 उस व्यक्ति के हाथ में थमा दिए और टिकट ले कर थिएटर की ओर बढ़ गईं.

10 मिनट पहले दरवाजा खुला तो हौल में अंदर जाने वालों में शोभा बेटियों के साथ सब से आगे थीं.

अपनीअपनी सीट ढूंढ़ कर सब यथास्थान बैठ गए. विभिन्न विज्ञापनों को झेलने के बाद, मुकेश और सुनीता के कैंसर के किस्से सुन कर, साथ ही उन के बीभत्स चेहरे देख कर तो शोभा का पारा इतना ऊपर चढ़ गया कि यदि गलती से भी उन्हें अभी कोई खैनी, गुटखा या सिगरेट पीते दिख जाता तो 2-4 थप्पड़ उन्हें वहीं जड़ देतीं और कहतीं कि मजे तुम करो और हम अपने पैसे लगा कर यहां तुम्हारा कटाफटा लटका थोबड़ा देखें… पर शुक्र है वहां धूम्रपान की अनुमति नहीं थी.

लगभग आधे मिनट की शांति के बाद सभी खड़े हो गए. राष्ट्रगान चल रहा था. साल में 2-3 बार ही एक गृहिणी के हिस्से में अपने देश के प्रति प्रेम दिखाने का अवसर प्राप्त होता है और जिस प्रेम को जताने के अवसर कम प्राप्त होते हैं उसे जब अवसर मिलें तो वे हमेशा आंखों से ही फूटता है.

वैसे, देशप्रेम तो सभी में समान ही होता है चाहे सरहद पर खड़ा सिपाही हो या एक गृहिणी, बस किसी को दिखाने का अवसर मिलता है किसी को नहीं. इस समय शोभा वीररस में इतनी डूबी हुई थीं कि उन को एहसास ही नहीं हुआ कि सब लोग बैठ चुके हैं और वे ही अकेली खड़ी हैं, तो बेटी ने उन को हाथ पकड़ कर बैठने को कहा.

अब फिल्म शुरू हो गई. शोभा कलाकारों की अदायगी के साथ भिन्नभिन्न भावनाओं के रोलर कोस्टर से होते हुए इंटरवल तक पहुंचीं.

चूंकि, सभी घर से सिर्फ नाश्ता कर के निकले थे तो इंटरवल तक सब को भूख लग चुकी थी. क्याक्या खाना है, उस की लंबी लिस्ट बेटियों ने तैयार कर के शोभा को थमा दीं.

शोभा एक बार फिर लाइन में खड़ी थीं. उन के पास बेटियों द्वारा दी गई खाने की लंबी लिस्ट थी तो सामने खड़े लोगों की लाइन भी कम लंबी न थी.

जब शोभा के आगे लगभग 3-4 लोग बचे होंगे तब उन की नजर ऊपर लिखे मेन्यू पर पड़ी, जिस में खाने की चीजों के साथसाथ उन के दाम भी थे. उन के दिमाग में जोरदार बिजली कौंध गई और अगले ही पल बिना कुछ समय गंवाए वे लाइन से बाहर थीं.

₹400 के सिर्फ पौपकौर्न, समोसे ₹80 का एक, सैंडविच ₹120 की एक और कोल्डड्रिंक ₹150 की एक.

एक गृहिणी जिस ने अपनी शादीशुदा जिंदगी ज्यादातर रसोई में ही गुजारी हो उन्हें 1 टब पौपकौर्न की कीमत दुकानदार ₹400 बता रहे थे.

शोभा के लिए वही बात थी कि कोई सुई की कीमत ₹100 बताए और उसे खरीदने को कहे.

उन्हें कीमत देख कर चक्कर आने लगे. मन ही मन उन्होंने मोटामोटा हिसाब लगाया तो लिस्ट के खाने का ख़र्च, आउटिंग के खर्च की तय सीमा से पैर पसार कर पर्स के दूसरे पौकेट में रखे बचत के पैसों, जोकि मुसीबत के लिए रखे थे वहां तक पहुंच गया था. उन्हें एक तरफ बेटियों का चेहरा दिख रहा था तो दूसरी तरफ पैसे. इस बार शोभा अपने मन के मोर को ज्यादा उड़ा न पाईं और आनंद के आकाश को नीचा करते हुए लिस्ट में से सामान आधा कर दिया. जाहिर था, कम हुआ हिस्सा मां अपने हिस्से ही लेती है. अब शोभा को एक बार फिर लाइन में लगना पड़ा.

सामान ले कर जब वे अंदर पहुंचीं तो फिल्म शुरू हो चुकी थी. कहते हैं कि यदि फिल्म अच्छी होती है तो वह आप को अपने साथ समेट लेती है, लगता है मानों आप भी उसी का हिस्सा हों. और शोभा के साथ हुआ भी वही. बाकी की दुनिया और खाना सब भूल कर शोभा फिल्म में बहती गईं और तभी वापस आईं जब फिल्म समाप्त हो गई. वे जब अपनी दुनिया में वापस आईं तो उन्हें भूख सताने लगी.

थिएटर से बाहर निकलीं तो थोड़ी ही दूरी पर उन्हें एक छोटी सी चाटभंडार की दुकान दिखाई दी और सामने ही अपना गोलगोल मुंह फुलाए गोलगप्पे नजर आए. गोलगप्पे की खासियत होती है कि उन से कम पैसों में ज्यादा स्वाद मिल जाता है और उस के पानी से पेट भर जाता है.

सिर्फ ₹60 में तीनों ने पेटभर गोलगप्पे खा लिए. घर वापस पहुंचने की कोई जल्दी नहीं थी तो शोभा ने अपनी बेटियों के साथ पूरे शहर का चक्कर लगाते हुए घूम कर जाने वाली बस पकड़ी.

बस में बैठीबैठी शोभा के दिमाग में बहुत सारी बातें चल रही थीं. कभी वे औटो के ज्यादा लगे पैसों के बारे में सोचतीं तो कभी फिल्म के किसी सीन के बारे में सोच कर हंस पड़तीं, कभी महंगे पौपकौर्न के बारे में सोचतीं तो कभी महीनों या सालों बाद उमड़ी देशभक्ति के बारे में सोच कर रोमांचित हो उठतीं.

उन का मन बहुत भ्रमित था कि क्या यही वह ‘चेंज’ है जो वे चाहतीं थीं? वे सोच रही थीं कि क्या सच में वे ऐसा ही दिन बिताना चाहती थीं जिस में दिन खत्म होने पर उनशके दिल में खुशी के साथ कसक भी रह जाए?

तभी छोटी बेटी ने हाथ हिलाते हुए अपनी मां से पूछा,”मम्मी, अगले संडे हम कहां चलेंगे?”

अब शोभा को ‘चाहत और जरूरत’ में से किसी 1 को चुनने का था. उन्होंने सब की जरूरतों का खयाल रखते हुए साथ ही अपनी चाहत का भी तिरस्कार न करते हुए कहा,”आज के जैसे बस से पूरा शहर देखते हुए बीच चलेंगे और सनसेट देखेंगे.”

शोभा सोचने लगीं कि अच्छा हुआ जो प्रकृति अपना सौंदर्य दिखाने के पैसे नहीं लेती और प्रकृति से बेहतर चेंज कहीं और से मिल सकता है भला?

शोभा को प्रकृति के साथसाथ अपना घर भी बेहद सुंदर नजर आने लगा था. उस का अपना घर, जहां उस के सपने हैं, अपने हैं और सब का साथ भी तो.

महिलाओं की लाइफ में मोटापे का असर

एक स्वस्थ व्यक्ति की अपेक्षा मोटे लोग 25 गुना अधिक सेक्स समस्याओं से जूझते हैं, जिन में इच्छा की कमी, सेक्स के प्रति विरक्ति, सहवास के दौरान संतुष्टि के न होने के अतिरिक्त कई लोगों में तो सेक्स के प्रति एकदम से नफरत तक होने लगती है. उन्हें सेक्स के प्रति कोई रुचि नहीं होती. आधे लोगों को इस बात की शिकायत होती है कि बेडौल और भारी शरीर के कारण उन्हें सेक्स स्थापित करने में परेशानी होती है. इसलिए सेक्स करने में हिचक होती है और वे इस से बचने की कोशिश करते हैं. वैसे मोटे लोग, जो चिकित्सीय सलाह की जरूरत महसूस नहीं करते यानी जिन के लिए मोटापा परेशानी का सबब नहीं बनता है, वे इस तरह की शिकायत नहीं करते. यानी उन का सेक्स जीवन प्रभावित नहीं होता और अपने को संतुष्ट महसूस करते हैं. लेकिन, जिन की सेक्सुअल लाइफ प्रभावित होती है, वे ऐसा महसूस करते हैं कि उन्हें वास्तव में मोटापे के कारण समस्याएं आ रही हैं और इस के लिए इलाज की जरूरत पड़ती है एक सेक्स विशेषज्ञ के शब्दों में, ‘‘ऐसे मरीज आत्मविश्लेषण करते हैं और अपने अंदर तरहतरह की सेक्स समस्याएं महसूस करते हैं. ऐसे लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है.’’

शारीरिक मानसिक परेशानियां

मोटापे का शिकार लोगों का सहवास आनंददायक और पूरी तरह संतुष्टि करने वाला नहीं होता. शरीर में अत्यधिक मात्रा में वसा के जमाव से फिगर के बेडौल होने और भारी हो जाने के कारण कई तरह की परेशानियां होती हैं. पेट के निकल जाने, जांघ, कमर तथा कूल्हों में वसा के जमाव के कारण ऐसे लोग सहजता और सफलतापूर्वक सेक्स स्थपित नहीं कर पाते. ऐसा देखा गया है कि उम्र बढ़ने के बाद यानी 45 से 64 वर्ष की अवस्था के बीच जो लोग मोटापे की गिरफ्त में आते हैं उन में वसा का जमाव कमर के निचले भाग में ज्यादा हो जाता है. फलस्वरूप दैनिक कार्यों के निष्पादन में भी समस्याएं आने लगती हैं. यानी कपड़े पहनने तथा उठनेबैठने और खानेपीने तक में परेशानी होने लगती है. वैसे भी महिलाओं में वसा का जमाव कमर के निचले भाग में और पुरुषों में पेट में ज्यादा होता है, जिस कारण ऐसे पुरुषों का पेट बाहर निकल जाता है. कमर और जांघ में वसा के जमाव के कारण महिलाओं को सामान्य की तुलना में डेढ गुना ज्यादा परेशानी होती है.

महिलाओं में मोटापे के कारण प्रजनन क्षमता तो प्रभावित होती ही है, गर्भावस्था के दौरान कई दूसरी परेशानियों तथा जटिलताओं का भी सामना करना पड़ता है. ऐसी महिलाएं यदि गर्भधारण करती हैं तो बच्चा और जच्चा दोनों को कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियां होती हैं. मोटी औरतों के गर्भस्थ शिशु में सामान्य महिलाओं की तुलना में न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट संबंधित जन्मजात बीमारियों के होने की संभावना दोगुनी होती है. इतना ही नहीं, ऐसी महिलाओं को इस की संभावनाओं को रोकने के लिए यदि फोलिक एसिड का सेवन कराया जाता है तो भी इस की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

नवजात शिशु भी प्रभावित

ऐसी महिलाओं के नवजात शिशु को नियोनेटल इंटेसिव केयर यूनिट में रखने की जरूरत पड़ती है. इसीलिए, ऐसी महिलाएं जब गर्भधारण करने की इच्छा अपने चिकित्सक के सामने प्रकट करती हैं तो उन्हें इस के खतरों के बारे में उसी तरह से सचेत किया जाता है जिस तरह इस दौरान सिगरेट या शराब पीने से होने वाली हानियों के बारे में बताया जाता है. अत: ऐसी महिलाएं, जो गर्भधारण करती हैं या गर्भधारण करने की इच्छा प्रकट करती हैं, उन्हें नियमित रूप से फोलिक एसिड का सेवन करने तथा सिगरेट और शराब को छोड़ने की सलाह दी जाती है. इतना ही नहीं, इस दौरान संतुलित आहार लेने और नियमित रूप से व्यायाम करने की भी सलाह दी जाती है.

मोटापे की शिकार महिलाओं में बांझपन तथा प्रजनन से संबंधित बीमारियों के साथसाथ उच्च रक्तचाप, गेस्टे्रशनल, डायबिटीज, रक्त न जमने जैसी जटिलताओं की भी प्रबल संभावना होती है. सामान्य महिलाओं की अपेक्षा मोटी महिलाओं में प्रसव के लिए सीजेरियन की ज्यादा जरूरत पड़ती है. इसीलिए गर्भधारण की पहले वजन घटाने की सलाह दी जाती है. ऐसी औरतों में हारमोन से संबंधित परिवर्तन होते हैं जिस से इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टरोन नामक हारमोंस का स्राव बाधित हो जाता है, जिस का सीधा प्रभाव सेक्सुअल लाइफ पर पड़ता है. यानी इस परिवर्तन के कारण ऐसी महिलाओं में सेक्स में कमी तथा धीरेधीरे इस के प्रति विरक्ति होने लगती है. इतना ही नहीं, इन हारमोनों के स्राव तथा रक्त में इस के स्तर में परिवर्तन हो जाने के कारण अंडाशय में अंडे के निर्माण की क्रिया भी बाधित हो जाती है और निषेचन नहीं हो पाता है, जिस से आगे चल कर बांझपन जैसी समस्या भी आ घेरती है. इस के साथ मासिकचक्र भी प्रभावित हो जाता है, जिस से मासिक संबंधित तरहतरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिस में या तो मासिक स्राव होता ही नहीं या फिर काफी बढ़ जाता है. मासिक स्राव ज्यादा होने की स्थिति में कई बार महिलाएं रक्ताल्पता का शिकार हो जाती है.

कई तरह की बीमारियां

पेट में वसा के ज्यादा जमाव होने की स्थिति में सेक्स स्थापित करने में ज्यादा कठिनाई होती है. पेट के बाहर निकल जाने की स्थिति में पेट और छाती को विभाजित करने वाली रचना डायफ्राम पर दबाव पड़ने के कारण ऊपर की ओर खिंच जाता है, जिस का सीधा प्रभाव फेफड़े पर पड़ता है. यानी डायफ्राम के कारण फेफड़े पर दबाव बढ़ जाता है, जिस से सांस लेने में कठिनाई होने लगती है और दम फूलने लगता है. फेफड़े की रक्त नलियों में भी रक्त का दबाव काफी बढ़ जाता है. सहवास के क्रम में शारीरिक क्रियाशीलता तथा हारमोन के स्राव में अधिकता के कारण सांस की गति जब स्वत: बढ़ जाती है तो मोटे लोगों का दम फूलने लगता है और सहवास में व्यवधान उत्पन्न हो जाता है.

मोटे लोगों में दूसरी समस्या आती है हृदय की असामान्य और तेज धड़कन की. शरीर में वसा की अधिकता के कारण रक्त में कोलेस्टरोल की मात्रा काफी बढ़ जाती है. यह कोलेस्टरोल हृदय की धमनियों की भीतरी दीवार में एकत्रित हो कर इन की दीवार को मोटी, संकरी और सख्त बना देता है. ऐसी स्थिति में हृदय की धड़कन तेज और असामान्य हो जाती है. इस के कारण कई बार छाती में दर्द, एंजाइना तथा हृदयाघात की संभावना बनी रहती है. सहवास के दौरान असामान्य धड़कन की वजह से भी परेशानी होती है. मरीज इस बात से भयभीत हो जाता है कि कहीं हार्ट अटैक तो नहीं हो जाएगा. अत: ऐसे लोग हमेशा चिंतित और भयभीत होते हैं. कई बार सेक्स के प्रति विरक्ति और भय भी होने लगता है. तीसरी समस्या, जो आमतौर पर मोटे लोगों में जोड़ों में दर्द और सूजन की देखने को मिलती है. ऐसे लोगों में कमर और घुटनों में दर्द तथा सूजन ज्यादा होती है. इस से सहवास के क्रम में परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस कारण घुटनों को मोड़ने में तकलीफ होती है, जिस से आसन में परेशानी होती है. डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और किडनी संबंधी जटिलताओं से पीडि़त मरीजों में सेक्स के प्रति विरक्ति आम बात है. उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने वाली दवाओं में कई ऐसी दवाएं हैं, जिन का सेवन अधिक समय तक करने पर सेक्स समस्याएं तथा परेशानियां होने लगती हैं. इन में बीटा ब्लाकर प्रमुख है. डायबिटीज की वजह से रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है. इस का दुष्परिणाम प्रजनन अंगों पर भी पड़ता है. इन में लिंग में कमजोरी, शीघ्रपतन तथा सेक्स के प्रति विरक्ति मुख्य है.

मानसिक तनाव

मोटे लोगों के साथ सेक्स स्थापित करने के प्रति पति या पार्टनर इच्छुक नहीं होते. वैसे लोगों के प्रति विरक्ति तथा वितृष्णा होने लगती है. ऐसे लोगों की यह भी शिकायत होती है कि उस का पति या पत्नी सेक्स के लिए इच्छुक नहीं होते, हमेशा कटेकटे रहते हैं. ऐसे लोगों का दांपत्य जीवन हमेशा तनावभरा होता है. कई बार तो तलाक तक की नौबत आ जाती है  मोटापे के कारण शारीरिक परेशानियां तो होती ही हैं, सेक्स संबंधित कई तरह की परेशानियां भी होती हैं. यदि समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया और इस से बचने के लिए उचित उपाय नहीं किया गया तो आगे चल कर कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

अंगूर के इस्तेमाल से सवारें रूप

अगर आपकी त्वचा भी रूखी, बेजान और बीमार नजर आने लगी है तो घबराने की जरूरत नहीं है.

सूरज की तेज रोशनी, धूल, मिट्टी, गंदगी और दूसरे कई कारणों की वजह से हमारी त्वचा रंगत खो देती है. ऐसे में आप चाहें तो अंगूर के इस्तेमाल से अपनी खोई निखरी-जवां त्वचा वापस पा सकते हैं.

आप चाहें तो अंगूर के अलग-अलग फेस-पैक बना सकते हैं और नेचुरल ग्लो वापस पा सकते हैं.

अंगूर के इन फेस पैक की मदद से निखारे रूप-रंग:

1. अंगूर और पुदीने का फेस पैक

अंगूर को महीन पीस लें और इसमें पुदीने की कुछ पत्तियों को पीसकर मिला लें. आप चाहें तो इसमें नींबू के रस की कुछ बूंदें भी डाल सकते हैं. इन तीनों को अच्छी तरह मिला लीजिए. इस फेस पैक को चेहरे पर लगाकर 10 मिनट के लिए छोड़ दीजिए. उसके बाद चेहरे को हल्के गुनगुने पानी से धो लीजिए. इसके बाद बर्फ के एक टुकड़े को गुलाब जल में डुबोकर पूरे चेहरे पर मलें. इस पैक से चेहरे पर निखार तो आएगा ही साथ ही अगर आपकी त्वचा ऑयली है तो भी ये आपके लिए फायदेमंद रहेगा.

2. अंगूर और गाजर का फेस पैक

अंगूर को इतना पीस लीजिए कि वो एकसार हो जाए. इस पेस्ट में एक चम्मच क्रीम मिला लें. साथ ही एक चम्मच चावल का आटा और एक चम्मच गाजर का जूस मिला लें.

इन सभी को अच्छी तरह मिला लें. इस पैक को चेहरे पर लगाकर छोड़ दें. जब ये सूख जाए तो इसे हल्के गुनगुने पानी से धो लें. इस मास्क के इस्तेमाल से त्वचा में कसाव आता है और ग्लो भी.

3. ऑयली स्क‍िन के लिए अंगूर का फेस पैक

एक छोटी कटोरी में मुल्तानी मिट्टी ले लें. इसमें कुछ बूंदें नींबू के रस की और कुछ बूंदें गुलाब जल की मिला लें. इसके बाद इसमें अंगूर का पेस्ट अचछी तरह मिला लें. इस पैक को चेहरे पर लगाकर 20 मिनट के लिए छोड़ दें. जब ये सूख जाए तो सामान्य पानी से चेहरा धो लें.

दाहिनी आंख: भाग 1- अनहोनी की आशंका ने बनाया अंधविश्वास का डर

लेखिकाइंदिरा दांगी

उस दिन मेरी दाहिनी आंख फड़क रही थी. शकुनअपशकुन मानने वाले हिंदुस्तानी समाज के इस गहरे यकीन पर मुझे कभी भरोसा नहीं कि स्त्री के बाएं अंगों का फड़कना शुभ होता है, दाएं का अशुभ. पुरुषों के लिए विपरीत विधान है, दायां शुभ बायां अशुभ. क्या बकवास है. इस बाईंदाईं फड़कन का मुझ पर कुल प्रभाव बस इतना रहा है कि अपनी गरदन को कुछ अदा से उठा कर, चमकते चेहरे से आसपास के लोगों को बताती रही हूं, मैं इन सब में यकीन नहीं रखती.

जब से मैं ने अपने मातापिता से इस संसार के बारे में जाना तब से खुदमुख्तार सा जीवन जी रही हूं. चलतीफिरती संस्कृति बन चुकी अपनी मां के मूल स्वभाव के ठीक विपरीत मैं ने हर परंपरारिवाज, विश्वासअंधविश्वास के जुए से अपनी गरदन बचाई और सैकड़ों दलीलों के बाद भी मेरा माथा आस्थाओं, अंधविश्वासों के आगे नहीं झुकाया जा सका. कालेज के दिनों में मैं ने ईश्वर के अस्तित्व पर भी उंगलियां उठाईं, उस के बारे में अपनी विचित्र परिभाषाएं दीं. शादी के बाद भी सब ने मुझे आधुनिक गृहिणी के तौर पर ही स्वीकारा. कांच की खनखन चूडि़यों से पति की दीर्घायु का संबंध, बिछियों की रुपहली चमक से सुहाग रक्षा, बिंदीसिंदूर की शोखी से पत्नीत्व के अनिवार्य वास्ते, सजीसंवरी सुहागिन के?रूप में ही मर जाने की अखंड सौभाग्यवती कामनाएं… और भी न जाने कितना कुछ, मैं ने अगर कभी कुछ किया भी तो बस यों ही. हंगामों से अपनी ऊर्जा बचाए रखने के लिए या कभी फैशन के मारे ही निभा लिया, बस.

जब मैं गर्भवती थी, अदृश्य रक्षाओं से तब भी भागती रही, कलाई पर काले कपड़े में हींग बांधने, सफर के दौरान  चाकूमाचिस ले कर चलने और इत्रफुलेल, मेहंदी निषेध की अंधमान्यताएं मुझे बराबर बताई जाती रहीं लेकिन मैं ने सिर्फ अपनी गाइनोकोलौजिस्ट यानी डाक्टर पर भरोसा किया. फिर जब मेरा बेटा हुआ, तावीजगंडों, विचित्रविचित्र टोटकों, नमकमिर्च और राई के धुएं और काले टीके से मैं ने उसे भी बचा लिया.

दिल को विश्वास था कि मैं बस उस का पूरापूरा ध्यान रखूं तो वह स्वस्थ रहेगा और वह रहा भी. हालांकि इस घोर नास्तिकता ने मेरी वृद्ध विधवा सास को इतना आहत किया कि वे सदा के लिए अपने सुदूर पुश्तैनी गांव जा बसीं, जहां कथित देवताओं, पुरखों और रिवाजों से पगपग रचे परिवेश में उन का जीवन ऐसा सुंदर, सहज है जैसे हार में जड़ा नगीना.

हां, तो उस दिन मेरी दाईं आंख फड़क रही थी जो कतई ध्यान देने वाली बात नहीं थी. पति बिजनैस टूर पर एक हफ्ते से बाहर थे और आज शाम लौटने वाले थे. मैं और मेरा 5 साल का बेटा नैवेद्य घर पर थे. हम मांबेटे अपनेअपने में मस्त थे. वह टैलीविजन पर कोई एनीमेशन मूवी देख रहा था और मैं शाम के खाने की तैयारियों में लगी थी. बड़े दिनों बाद घर लौटते पति की शाम को हार्दिकता के रंगों से सजाने की तैयारियां लगभग पूरी होने को थीं. मैं रसोई में थी कि खिड़की से टूटते बादलों को देख मेरे होंठों पर एक गजल खुदबखुद आ गई :

‘तेरे आने की जब खबर महके,

तेरी खुशबू से सारा घर महके…’

कि अचानक, सैलफोन की प्रिय पाश्चात्य रिंगटोन गूंजी :

‘यू एंड आई, इन दिस ब्यूटीफुल वर्ल्ड…’

दूसरे सिरे पर पति थे. हम ने संयत लेकिन अपनत्व भरे स्वर में एकदूसरे का हालचाल जाना. उन्होंने कहा कि उन के बौस ने एक जरूरी फाइल मांगी है जो भूलवश घर पर है, और मुझे वह फाइल अभी उन के दफ्तर पहुंचानी होगी. मुझे ‘हां’ कहना चाहिए था और मैं ने कहा भी. वैसे भी सब्जी लाने, बिजली का बिल जमा करने, गेहूं पिसवाने से ले कर लौकर से जेवर ले आने, रख आने जैसे तमाम घरेलू काम मैं अकेली ही करती रही हूं. मेरे पास एक चमचमाती दुपहिया गाड़ी है और मैं अनुशासित ड्राइवर मानी जाती हूं.

फोन रखते ही मैं जाने की तैयारियां करने लगी. चुस्त जींस और कसी कुरती पहन मैं तैयार हो गई. बेटे नानू यानी नैवेद्य की कोई दिक्कत नहीं थी. ऐसे मौकों पर मिसेज सिंह फायदे और कायदे की पड़ोसी साबित होती हैं. उन के बेटाबहू सुदूर दक्षिण के किसी शहर में इंजीनियर हैं और ऊंचे पैकेज पर कार्यरत उन 2 युवा इंजीनियरों को चूड़ीबिंदी, साड़ी वाली बूढ़ी मां की जरूरत महसूस नहीं होती.

मिसेज सिंह की एक प्रौढ़ बेटी भी है जो विदेश में पतिबच्चों के साथ सैटल है और मातापिता अब उस से पुरानी तसवीरों, सैलफोन और वैबकौम इंटरनैट में ही मिल पाते हैं.

मिस्टर सिंह रिटायर हो चुके हैं और शामसवेरे की लंबी सैर व लाफ्टर क्लब से भी जब उन का वक्त नहीं कटता तो अपनी अनंत ऊब से भागते हुए वे वृद्धाश्रमों, अनाथालयों या रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर घंटों जिंदगी की तलाश में भटकते हैं जबकि मिसेज सिंह पूरा समय घर में रहती हैं.

थायरायड उन की उतनी खतरनाक बीमारी नहीं है जितनी उन की सामाजिकता.

पहले वे पड़ोसियों के यहां घंटों बैठी रहा करती थीं, पर जब लोग उन से ऊबने लगे, काम के बहाने कतराने लगे तो मिसेज सिंह ने यहांवहां बैठना छोड़ दिया. अब वे चढ़ती दोपहरी से ढलती शाम तक बालकनी में बैठी रहती हैं और कभीकभी तो आधी रात के वक्त भी इस एकाकी बूढ़ी को सड़क के सूने अंधकार में ताकते देखा जा सकता है.

 

सिंह दंपती स्वयं से ही नहीं, एकदूसरे से भी ऊबे हुए हैं और इसी भीतरी सूनेपन ने उन के सामाजिक व्यक्तित्व को मधुरतम बना दिया है. आसपड़ोस के हर मालिककिराएदार परिवार के लिए उन की बुजुर्गीयत का झरना कलकल बहता रहता है. मिसेज सिंह जब भी कहीं घूमने जाती हैं, सारी पड़ोसिनों के लिए सिंदूर, चूडि़यां, लोहेतांबे के छल्ले (उन्हें सब के नाप याद हैं) लाना नहीं भूलतीं. यहां के तमाम नन्हे बच्चों की कलाइयों के पीले, तांबई या काले चमकीले मोतियों वाले कड़े किसी न किसी तीर्थस्थान का प्रसाद हैं और निसंदेह मिसेज सिंह के ही उपहार हैं. होली, दीवाली, करवाचौथ जैसे त्योहारों पर मैं भी इस अतृप्ता के पैर छूती हूं. आंटीजी कहती हूं, बच्चे से दादी कहलवाती हूं और बदले में निहाल मिसेज सिंह जरूरत पड़ने पर मेरे बच्चे को इस स्नेहखयाल से संभालती हैं जो एक दादी या नानी ही अपने वंशज के लिए कर सकती है.

 

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