Anupamaa: शो में होगा तोषु का पर्दाफाश, अपने बेटे को क्या सजा देगी अनुपमा?

Anupamaa Written Update: टीवी का पौपुलर सीरियल अनुपमा में इन दिनों हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. जिससे दर्शकों का भरपूर एंटरटेनमेंट हो रहा है. हाल ही में इस शो में दिखाया गया था कि अनुपमा पर चोरी का इल्जाम लगा है और वह जेल चली गई है, लेकिन यशदीप और अनुज ने अनुपमा की मदद की और वह जेल से बाहर आ गई है. शो के अपकमिंग एपिसोड में धमाकेदार ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिलेंगे.

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया गया कि अनुपमा ने जेल से आते ही तोषू का सामना किया और उससे चोरी से जुड़े कई सवाल पूछा. ऐसे में वहां बा भड़क जाती है. शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा अनुज के बारे में सोचेगी. वह सोचती है कि जेल से बाहर आने के बाद वह अनुज से नहीं मिली है, कहीं वह मुसिबत में न हो.

 

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तो दूसरी तरफ आप देखेंगे कि अनुज मुंबई पहुंच जाता है और वह अस्पताल में श्रुति से मिलता है. इस दौरान आध्या अपने पॉप्स को देखकर बहुत ज्यादा खुश होती है. तो वहीं श्रुति अनुज से पूछती है कि कहीं वापस जाने के लिए तो नहीं आए हो?

 

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इस दौरान अनुज के पास कॉल आता है और उसे पता चलता है कि अनुपमा की बेल हो गई है. इसके बाद अनुज असली गुनाहगार को पता लगाने का फैसला लेता है और वह अपने इम्पलॉई को फोन करके इवेंट की सारी सीसीटीवी फुटेज मांगता है.

शो में आगे देखने के लिए मिलेगा कि अनुपमा और बाकी लोगों को पता चलेगा कि हार तोषू ने चुराकर अनुपमा के बैग में डाला है. यह देखकर अनुज का पारा हाई होगा. अब देखना ये दिलचस्प होगा कि अनुपमा अपने बेटे को क्या सजा देगी?

फैसला: सुगंधा का प्यार की कुर्बानी देना क्या सही था

सुगंधा लौन में इधरउधर देख अपने  लिए एक कोना तलाश रही थी कि सामने खंभे के पास खड़े व्यक्ति के चेहरे की झलक ने उसे चौंका दिया. अपना शक दूर करने के लिए वह थोड़ा और करीब आ गई. वह मयंक ही था जो विवाह के अवसर पर सामने लगे सजावटी बल्बों को निहारते हुए जाने किस दुनिया में खोया हुआ था. उसे देख सुगंधा को लगा सारी दुनिया थम सी गई है. पहलू में धड़कते दिल को संभालना उस के लिए मुश्किल हो रहा था. पूरे 15 वर्षों के बाद वह मयंक को देख पा रही थी.

समय के इस लंबे अंतराल ने मयंक  में कहीं कुछ नहीं बदला था. वही छरहरा बदन और मुसकराता हुआ चेहरा. समय सिर्फ उस के बालों को छू कर निकल गया था. बालों पर जहांतहां सफेदी झलक रही थी.

मुड़ते ही मयंक की नजर सुगंधा पर पड़ी और उसे इस तरह अपने सामने पा कर वह भी स्तब्ध रह गया. उस के चेहरे पर आताजाता रंग बता रहा था कि उसे भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था.

‘‘सुगंधा, तुम यहां कैसे? कब आईं दिल्ली? क्या तुम्हारे पति का तबादला यहां हो गया है?’’

एक ही सांस में मयंक ने कई प्रश्न पूछ लिए थे. उस की आवाज में आश्चर्य और उत्सुकता साफ झलक रही थी पर आवाज की मिठास पहले की तरह ही कायम थी.

सुगंधा ने तबतक अपनेआप को काफी हद तक संभाल लिया था फिर भी आवाज की लड़खड़ाहट शब्दों में झलक ही आई थी.

‘‘नहीं, तबादला नहीं हुआ है, यह सौरभ के मामाजी का घर है और हम इस शादी में आमंत्रित हैं,’’ सुगंधा बोली.

‘‘अच्छा, कैसी हो?’’

‘‘ठीक हूं, अपनी कहो. तुम ने शादी कर ली या…’’ सुगंधा न चाहते हुए भी अपनी उत्सुकता रोक नहीं पाई थी.

‘‘किसी ने खुद को बेगाना बना इंतजार करने का अवसर ही नहीं दिया तो शादी करनी ही पड़ी. मांपापा का इकलौता, आशाओं का केंद्र जो था.’’

दोनों में अभी इतनी ही बात हो पाई थी कि एक खूबसूरत सी आधुनिका वहां आ धमकी थी.

‘‘इतनी देर से कहां गायब थे? जल्दी चलो, सब लोग तुम्हारा कब से इंतजार कर रहे हैं,’’ इतना कह कर वह लगभग मयंक को खींचते हुए वहां से ले जाने लगी.

‘‘रुको यार, क्या कर रही हो?’’ मयंक अपनेआप को उस से छुड़ाते हुए बोला था.

‘‘यह मेरी सहपाठी सुगंधा है. अचानक आज हम वर्षों बाद मिले हैं. कालिज के दिनों में हम दोनों के बीच अच्छी निभती थी.’’

फिर मयंक सुगंधा से बोला, ‘‘यह मेरी पत्नी सुकन्या है.’’

सुकन्या शायद जल्दी में थी इसीलिए बिना किसी भाव के उस ने यंत्रवत अपने दोनों हाथ जोड़ दिए. सुगंधा के हाथ भी स्वत: जुड़ गए थे जैसे. हवा के झोंके की तरह आई सुकन्या तेजी से मयंक को ले कर वहां से चली गई और अकेली खड़ी सुगंधा उसे देखती ही रह गई, ठीक वैसे ही जैसे आज से 15 वर्ष पहले मयंक उस से दूर हो गया था और वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकी थी. बस, चुपचाप टुकड़ेटुकडे़ होते तकदीर के खेल को देखती रही थी.

जिंदगी भी जाने कैसेकैसे रंग दिखाती है, जिस अतीत को अपनी जिंदगी की राहों पर हमेशाहमेशा के लिए वह पीछे छोड़ आई थी, आज मृगतृष्णा बन स्वयं उस के सामने आ खड़ा हुआ था.

आज मयंक के मुंह से अपने लिए ‘यह मेरी सहपाठी’ सुन सुगंधा के कलेजे में टीस सी उठी थी. सिर्फ सहपाठी और कुछ नहीं. एक समय था जब सबकुछ उस की मुठ्ठी में था जिसे उस ने रेत की तरह मुट्ठी से जानबूझ कर फिसल जाने दिया था.

उस ने ही मयंक से शादी न करने का फैसला किया था. यद्यपि मयंक ने उस पर फैसला बदलने के लिए भरपूर दबाव डाला था पर सुगंधा टस से मस नहीं हुई थी.

सच पूछो तो वह फैसला भी उस का कहां था, वह तो भैया और पापा का फैसला था जिसे उस ने अपना दायित्व समझ कर सिर्फ निबाहा था. तब उस ने अपने सुखों से ज्यादा पापा और भैया के सुखों को अहमियत दी थी, अपने परिवार के सुखों की रक्षा और समाज से जोड़े रखने की कीमत दी थी.

फिर सुगंधा के सामने अपनी 2 छोटी बहनों के भविष्य का सवाल भी था जो उस के दूसरी जाति में विवाह करने के साथ ही तहसनहस हो सकता था. दुनिया ने चाहे जितनी तरक्की कर ली हो पर जातियों में बंटा हमारा समाज आज भी 18वीं शताब्दी में ही जी रहा है. वैसे भी घरबार त्याग कर, परिवार के सभी सदस्यों को दुखी कर वह मयंक के साथ कभी भी सुखी वैवाहिक जीवन नहीं व्यतीत कर सकती थी.

जिंदगी हमेशा मनमुताबिक नहीं मिलती. सब को कहीं न कहीं समझौता तो करना ही पड़ता है. सौरभ के साथ शादी कर के जो समझौता उस ने अपनेआप से किया था वह उसे बहुत भारी पड़ा था. उस के और सौरभ के विचार कहीं नहीं मिलते थे. सौरभ उन दंभी पतियों में से था जिस के दिमाग में हमेशा यही रहता कि जो वह करता है, कहता है, सोचता है सब सही है, गलत तो हमेशा उस की पत्नी होती है.

सौरभ के दोहरे व्यक्तित्व से अकसर वह अचंभित रह जाती थी. जो व्यक्ति बाहर इतना हंसमुख, मिलनसार और सहयोगी दिखता था वही घर पहुंचतेपहुंचते कैसे दंभी, गुस्सैल और झगड़ालू व्यक्ति में बदल जाता था, बातबात में उसे नीचा दिखा अपमानित कर सुखी होता था, पर अपना वजूद खो कर भी सुगंधा ने अपनी सहनशीलता और समझौते से इस रिश्ते को अब तक बिखरने नहीं दिया था.

सौरभ के उद्दंड स्वभाव से कभीकभी पापा और भैया भी सहम जाते थे. सुगंधा के दुखों का एहसास कर अकसर उन के चेहरे पर पछतावे की परछाईं साफ दिखती थी जिस में मयंक जैसे सुशील लड़के को खो देने का गम भी शामिल होता था. न जाने क्यों उन क्षणों में सुगंधा को एक अजीब सी आत्मसंतुष्टि मिलती थी. चलो, पापा और भैया को अपनी गलती का एहसास तो हुआ.

सुगंधा और मयंक के घरों के बीच बस, एक सड़क का ही तो फासला था. यह अलग बात है कि उस का घर कोठीनुमा था और मयंक अपने परिवार के साथ 2 कमरों के फ्लैट में रहता था. उस के पिता सिंचाई विभाग में ऊंचे ओहदे पर थे जबकि मयंक के पिता एक सरकारी आफिस में मामूली क्लर्क थे पर मयंक की गिनती कालिज के मेधावी छात्रों में होती थी और सभी का विश्वास था कि एक दिन जरूर वह अपने मांबाप का ही नहीं अपने कालिज का भी नाम रोशन करेगा.

दिनप्रतिदिन की मुलाकातों और पढ़ाई की कठिनाइयों को हल करतेकरते जाने कब दोनों की दोस्ती के बीच प्यार का नन्हा सा अंकुर फूट पड़ा जो समय के साथ बढ़तेबढ़ते परिणयसूत्र में बंधने की आकांक्षा तक बढ़ गया. इस का थोड़ाबहुत आभास घर के लोगों को भी होने लगा था. भैया ने उस की शादी के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया था, पर इन सब बातों से अनजान दोनों के प्यार की पेंगें मुक्त आकाश को छूने लगी थीं.

मयंक अपनी पढ़ाई में भी जोरशोर से जुटा हुआ था. उसे पूरा विश्वास था कि अगर वह एक अच्छी नौकरी पाने में सफल हो गया तो सुगंधा के मातापिता उन की शादी से कभी इनकार नहीं करेंगे पर नियति को कुछ और ही मंजूर था.

अचानक एक दिन सुगंधा के भैया उस की शादी सौरभ से लगभग पक्की कर आए. घर में लड़की दिखाने की तैयारियां जोरशोर से शुरू हो गई थीं. इस अप्रत्याशित फैसले के लिए सुगंधा कतई तैयार नहीं थी. सुनते ही सुगंधा पर मानो बिजली गिर पड़ी. वह अच्छी तरह जानती थी कि मयंक और उस की शादी का घर में काफी विरोध होगा, फिर भी वह उसे आसानी से गंवा नहीं सकती थी.

भाभी को सबकुछ बता कर सुगंधा ने अंतिम कोशिश की थी. भाभी भी सब सुन सकते में आ गई थीं. वह उसे इस तरह की शादियों से होने वाली परेशानियों को समझाती रही थीं, पर सुगंधा का अत्यंत उदास चेहरा देख मौका पा भाभी ने भैया से बात की थी.

भैया के कान में बात पड़ते ही जैसे भूचाल आ गया. गुस्से से उबलते हुए भैया ने थोड़ी ही देर में भाभी और ननद के रिश्ते को ले कर न जाने कितनी बातों के पिन भाभी को चुभाए थे. दरवाजे की ओट में खड़ी सुगंधा भाभी की बेइज्जती से आहत और पछताती अपने कमरे में आ गई थी. उस का एकमात्र आसरा भाभी ही थीं, वह भी टूट गया था.

भैया बैठे उसे घंटों समझाते रहे थे, पर सुगंधा के बोल नहीं फूटे थे. भैया के विनीत भाव, कमरे के दरवाजे पर खड़ी अम्मां के चेहरे की बेचैनी और बहनों के अंधकारमय होते भविष्य ने उसे अपना फैसला बदलने के लिए मजबूर कर दिया था. सारे अपनों को दुखी कर वह कैसे सुखी रह सकती थी.

जब उस ने अपना यह फैसला मयंक को सुनाया था तो वह भी कम आहत नहीं हुआ था.

पटना छोड़तेछोड़ते सुगंधा के परिवार के लोग सिर्फ इतना ही जान पाए थे कि मयंक सिविल सर्विसेज में चुन लिया गया था और टे्रनिंग के लिए गया हुआ था. 15 वर्षों बाद यों मुलाकात हो जाएगी उस ने कभी सोचा भी नहीं था.

अगले दिन दोपहर में वह कपड़े बदल कर लेटने जा ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी. दरवाजा खोलते ही अप्रत्याशित रूप से मयंक को सामने पा सुगंधा बुरी तरह से चौंक गई थी.

‘‘अब अंदर भी आने दोगी या इसी तरह खड़ा रहूं,’’ मयंक ने कहा.

बिना कुछ बोले सुगंधा ने मयंक को रास्ता दे दिया. ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठते ही बिना किसी भूमिका के मयंक ने सीधेसीधे बात शुरू कर दी थी.

‘‘तुम ने मेरी जिंदगी के साथ इतना बड़ा मजाक क्यों किया?’’

अचानक मयंक के इस सवाल और उस की आंखों के कोर पर चमकते हुए आंसुओं ने सुगंधा को बेहद व्याकुल बना दिया था. उस ने कल्पना भी नहीं की थी कि मयंक यों सीधेसीधे बात करेगा.

अपने को संयत करने का प्रयास करते हुए सुगंधा बोली, ‘‘क्या बचपना है, मयंक? अब हम बच्चे नहीं रहे. हम दोनों की एक बसीबसाई गृहस्थी और जिम्मेदारियां हैं जिस से हम भाग नहीं सकते.’’

‘‘सिद्धांत की बातें छोड़ो सुगंधा, मैं क्या करूं यह बताओ? मेरे लिए तुम्हें भुला देना आज भी आसान नहीं है.’’

अब सुगंधा के शब्द भी उस के भर्राए गले और भर आईं आंखों में खो गए थे. थोड़ी देर की चुप्पी को सुगंधा ने ही तोड़ा.

‘‘मैं जानती हूं, मयंक मेरे फैसले ने तुम्हें बहुत आहत किया है. इस फैसले ने मुझे भी कम आहत नहीं किया था. मेरे लिए तुम्हारे बिना जीना और भी कठिन था फिर भी मेरी अंतरात्मा ने मुझे स्वार्थ की डोर पकड़ने से रोक दिया था. उस समय अपने कर्तव्य से पलायन और अपनों को आहत करने का साहस मैं जुटा नहीं पाई थी.

‘‘ऐसा भी नहीं था कि मैं ने प्रयास नहीं किए. जब अत्यधिक प्रयास के बाद भी मुझे मेरे अपनों की मंजूरी नहीं मिली और मेरे अंदर उन्हें आहत करने का साहस चुक गया, मेरी कितनी रातें बेचैनी और छटपटाहट में गुजरीं. मेरे पास दो ही रास्ते थे, विद्रोह या अपनी इच्छाओं की कुरबानी. जी तो चाहता था समाज की पुरानी जीर्णशीर्ण मान्यताओं को रौंद, जीवन भर दूसरों के लिए जीने के बजाय खुद के लिए जीऊं. लेकिन सारी जद्दोजेहद के बाद मेरे अंतस ने मुझे कुरबानी के रास्ते पर ही ढकेला था.

‘‘मुझे लगा, प्यार के बंधन के अलावा दुनिया में और भी बंधन होते हैं जिन से इनकार नहीं किया जा सकता. जिन अपनों के स्नेह की छांव में हम पलते हैं, जिन के संग खेल कर, लड़ कर हम बड़े होते हैं, ये सभी रिश्ते भी तो प्यार के बंधन होते हैं. उन के सुखदुख भी तो हमारे सुखदुख होते हैं इसलिए मेरे कारण सभी के जीवन में घुलते जहर को खुद ही पी लेना मुझे कल्याणकारी लगा था.’’

एक गहरी सांस ले सुगंधा ने फिर अपनी बात कहनी शुरू की, ‘‘पर मन के बंधन क्या इतनी आसानी से टूट जाते हैं? मेरी समझ से शारीरिक आकर्षण से परे प्यार एक एहसास है जो हमेशा मन के कोने में सुरक्षित रहता है, जो सहजता से जीवन का फैसला लेने और निभाने का साहस देता है. आज मेरे जीवन में भी मेरा प्यार ही जीवन जीने की शक्ति है. अपने अंदर की उसी शक्ति के बलबूते मैं ने जीवन में आई कठिन परिस्थितियों को झेला है.

‘‘आज तुम्हें देख कर न मेरे दिल के तार झनझनाए न ही मन में कोई घंटी बजी, फिर भी यह सोच कर मेरी आंखें भर आईं कि आज भी तुम से ज्यादा अंतरंग मित्र और मुझे समझने वाला कोई नहीं है. यह विश्वास शायद उसी अछूते प्यार का एहसास है.

‘‘आज का सत्य यही है कि ढेर सारी कमियों के बावजूद मैं अपने पति और बच्चों से बेहद प्यार करती हूं. इतने दिनों के वैवाहिक जीवन में चाहे जितनी भी कमियां रही हों फिर भी एक अटूट विश्वास का रिश्ता जरूर हम दोनों के बीच कायम हो गया है जिसे तोड़ने का साहस हम में से कोई नहीं कर सकता.’’

वर्षों पहले अपने द्वारा लिए गए फैसले की अबूझ पहेली के सूत्र मयंक के हाथों में थमा कर सुगंधा यकायक चुप हो गई. थोड़ी देर तक उन दोनों के बीच एक सन्नाटा व्याप्त रहा. अब तक निढाल से बैठे मयंक का दुखी और मुरझाया चेहरा काफी कुछ सहज हो चला था. थोड़ी देर पहले आंखों में छाया दर्द पिघलने लगा था.

‘‘शायद तुम ठीक ही कह रही हो  सुगंधा. आज तक मैं भी एक मृगतृष्णा के पीछे ही तो भाग रहा था. जिस सचाई को जानते हुए भी मानने को तैयार नहीं था, संयोग से आज मिलते ही तुम ने उस का दूसरा पहलू दिखा कर मेरी सारी उलझन ही दूर कर दी. आज मुझे तुम्हारी दोस्ती पर गर्व हो रहा है. क्या मैं आशा रखूं कि आगे भी हम अच्छे दोस्त बने रहेंगे,’’ कुछ देर पहले मयंक की आवाज में जो दर्द भरा था वह अब गायब हो चुका था.

‘‘क्यों नहीं? आज और इसी वक्त से हम अपनी टूटी हुई दोस्ती की नई शुरुआत करेंगे.’’

शाम को खाने पर सौरभ से सुगंधा ने गर्व के साथ मयंक को मिलवाया, ‘‘इन से मिलो, यह मेरे सहपाठी और यहां के कमिश्नर मयंक अग्रवाल हैं.’’

‘‘हमारी दोस्ती बचपन के दिनों की तरह मजबूत है, चाहे हम 15 साल बाद मिल रहे हों,’’ मयंक ने सौरभ को गले लगाते हुए कहा, ‘‘हां, आज मुझे एक नया दोस्त मिल रहा है, सौरभ?’’

जानिए मेकअप की शब्दावली

मेकअप तो हम सभी करते हैं परन्तु आजकल मेकअप भी भांति भांति के होते हैं और इन्हें करने के लिए विविध प्रकार के प्रोडक्ट का प्रयोग भी किया जाता है. कई बार जब हम मेकअप करवाने जाते हैं तो मेकअप आर्टिस्ट जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं वे हमारे सर के ऊपर से गुजर जाते हैं. सोशल मीडिया के युग में मेकअप के इन शब्दों का बहुत अधिक प्रयोग किया जाने लगा है तो आइये जानते हैं मेकअप से सम्बन्धित कुछ शब्द जिन्हें जानना आपके लिए बहुत आवश्यक है-

टिंट

कोरियन मेकअप निर्माताओं द्वारा विकसित किया गया ये उत्पाद होठों को स्वाभाविक और ज्युसी लुक प्रदान करता है. ये एक तरल पदार्थ होता है जो होठों को लंबे समय तक सूखने नहीं देता और बाद में अपना कोई निशान भी नहीं छोड़ता. इसे होठों के टेटू भी कहा जाता है.

-बी बी क्रीम

चेहरे के मेकअप के लिए प्रयोग की जाने वाली बी बी क्रीम फाउंडेशन का ही एक रूप है, यह क्रीम फॉर्म में होती है. यह त्वचा को एक शाइनी और बेहतर टोन प्रदान करती है परन्तु यदि त्वचा पर मुहांसे, एक्ने आदि हैं तो उन्हें यह कुछ हल्का कर देती है.

लिट

जब गालों पर ज्यादा हाईलाइटर लगा लिया जाता है तो गाल चेहरे से एकदम अलग चमकते हैं और गालों के इस अलग चमकने को ही मेकअप की भाषा में लिट कहा जाता है.

-बेक

फाउंडेशन और कंसीलर के बाद थोडा सा लूज पाउडर लगाया जाता है जिससे चेहरे को एक मेट इफेक्ट मिलता है. कुछ देर बाद ये पाउडर शरीर की गर्मी से चेहरे के रंग में ही मिल जाता है. चेहरे की गर्मी में मिक्स होने की इस प्रक्रिया को ही बेक कहा जाता है.

-एम यू ए

एम यू ए मेकअप से जुडी एक वेबसाइट का नाम है जहां पर मेकअप के बारे में एक्सपर्ट से चर्चा किये जाने के साथ साथ मेकअप के बारे में नवीनतम जानकारी भी दी जाती है. ये मेकअप आर्टिस्ट का एक शोर्ट फॉर्म भी होता है.

-हिट पैन

जब पैन में रखे आई शैडो, ब्लश जैसे प्रोडक्ट को प्रयोग करने के बाद पैन की तली दिखाई देने लगती है तो इसे पैन हिट कहा जाता है अर्थात प्रोडक्ट ख़त्म हो गया.

-फ्रोस्टी

फ्रॉस्टी शब्द लिपस्टिक के टेक्सचर के लिए प्रयोग किया जाता है. इस टेक्सचर की लिपस्टिक काफी कुछ मेट जैसी होती है जिसमें शाइन होती है और टेक्सचर शिमरी होता है जो लिप्स पर आइस जैसा लुक देता है.

-ब्लीड

होठों की स्वाभाविक लिप लाइन के बाहर जब लिपस्टिक निकल जाती है तो इसे ब्लीड कहा जाता है इससे चेहरे का पूरा लुक खराब हो जाता है इससे बचने के लिए लिप लाइनर का प्रयोग किया जाता है अथवा लिप के आउटर कार्नर को कंसीलर से सील कर दिया जाता है.

-ड्यूप्स

महंगे प्रोडक्ट के सस्ते विकल्प को ड्यूप्स कहा जाता है, दाम में कम होने के बावजूद ड्यूप्स प्रोडक्ट से भी वही टेक्सचर और लुक मिलता है जो महंगे से मिलता है.

नेकेड

आमतौर पर इसे न्यूड मेकअप समझ लिया जाता है परन्तु नेकेड का तात्पर्य है कोई भी मेकअप नहीं अर्थात नों मेकअप लुक. इस प्रकार के मेकअप के लिए प्रशिक्षित मेकअप आर्टिस्ट की आवश्यकता होती है क्योंकि नेकेड मेकअप इस तरह से किया जाता है जिसमें मेकअप करने के बाद भी ऐसा लगता नहीं है कि मेकअप किया है.

-फेस ऑफ़ द डे

जिस तरह हर दिन हम बदल बदलकर कपड़े पहनते हैं उसी प्रकार हर दिन ड्रेस और अवसर के अनुसार मेकअप भी बदल बदल कर किया जाता है जिस दिन फेस बहुत अच्छा लगता है उसे फेस ऑफ़ द डे कहा जाता है.

-सेटिंन

आमतौर पर लिपस्टिक मेट, क्रीमी और शाइनी टेक्सचर में होती है परन्तु इन सबके मध्य में सेटिंन टेक्सचर की लिपस्टिक न ज्यादा शाइनी होती है, न बहुत अधिक मेट और न ही क्रीमी.

रील्स के लती बनते बुजुर्ग

बुजुर्गों के हाथों और चेहरे पर झुर्रियां पड़ चुकी हैं पर उन्हें रील देखने की बुरी लत लग चुकी है. फोन चला लेने में सक्षम हो चुके ये बुजुर्ग कांपते हाथों से हर समय रील्स देखने में लगे रहते हैं. पहले ये अपने से छोटों को समय की एहमियत पर लताड़ लगा दिया करते थे. टाइम पास नहीं होता था तो अपने पुराने किस्से बता दिया करते थे, पर अब खुद फोन पर घंटों लगे रहते हैं.

इन से भी फोन का मोह नहीं छूट पा रहा है. एक आंख में मोतियाबिंद का औपरेशन हो रखा है पिर भी दूसरी आंख से रील देखने में व्यस्त हैं जबकि तिरछे में सफेद पट्टी माथे डाक्टर ने आंख पर ज्यादा जोर डालने से मना किया है पर फिर भी रील देखने से कंप्रोमाइज नहीं करते. स्क्रीन से तब तक नजर नहीं हटती है जब तक कोई टोक न दे.

रील का चसका ऐसा कि बहू किचन से खाना तैयार है जोर से बाबूजीबाबूजी कह कर ड्राइंगरूम में बुला रही है पर बाबूजी अपने कमरे में मोबाइल में उलझे पड़े हैं. खाना ठंडा हो जा रहा है, फिर भी बिस्तर से सरक नहीं रहे हैं.

हैरानी की बात

जो बाबूजी पहले खुद जल्दबाजी मचाया करते थे, समय पर खाना खाने की अहमियत बताया करते थे उन्हें अब खुद फोन की घंटी बजा कर बुलाना पड़ता है. हैरानी की बात तो यह कि खातेखाते भी रील देख रहे हैं. फोन कुछ देर रखने को कहो तो ?ाल्ला कर खाना ही छोड़ देंगे.

यही हाल सास का भी है. पहले जिस सास का काम दिनभर बहू की निगरानी करना था, उसे आटेदाल का भाव बताना था, सुबह जल्दी उठने की नसीहत देना था, बातबात पर टोकनाडपटना था वह भी अब बिना अलार्म की बांग पर उठ नहीं रही है. अलार्म भी 4-5 सैट करने पड़ते हैं. पहले अलार्म से तो केवल भौंहें ही फड़कती हैं.

इन बुजुर्गों का स्लीप साइकिल बुरी तरह बिगड़ चुका है. रात को देर तक जाग रहे हैं. सास और बहू एक ही समय में सो कर उठ रही हैं. घर में बड़ा इक्वल सा माहौल चल रहा है. नए जमाने की बहू रील बनाते हुए अपनी सास को ही रील में खींच लेती है. 4 ठुमके बहू खुद मारती कहती है 1 सास को मारने को कहती है. सास भी गानों पर लिप्सिंग करना जान गई है, ‘मेरे पिया गए रंगून…’ की जगह अब ‘तेरे वास्ते फलक से चांद…’ गुनगुना रही है.

बुजुर्ग अब बीपी और आर्थ्राइटिस की गोलियां तो भूल ही रहे हैं. सुबह खाली पेट थायराइड की गोलियां खाना भी भूल रहे हैं. कोई फूल कर कुप्पा हो रहा है तो कोई सिकुड़ रहा है. कईयों के कान में हड़ताल चल रही है. मगर कान में रिसीविंग एन केनाल मशीन लगा कर रील सुनी जा रही हैं.

अजीबोगरीब शौक

रील्स का बैकग्राउंड वौइस बेहतर सुनाई दे इसलिए जिन के कान ठीक चल रहे हैं वे कान में कुछ ब्लूटूथ भी लगा रहे हैं. बुजुर्ग भी जानते हैं रील में ‘मोयेमोये,’ ‘आएं… बैगन’ की आवाज के बीच गालीगलौज निकल जाती है इसलिए कुछ वायर लीड से ही काम चला रहे हैं.

बुजुर्ग अलगअलग प्लेटफौर्म पर अलगअलग कंटैंट कंज्यूम कर रहे हैं. अधिकतर शौर्ट वीडियो यानी रील्स ही देख रहे हैं. जहां पर सोफिया अंसारी और कोमल पांडे की तड़कतीभड़कती रील्स भी दिख जा रही हैं. इन की रील्स पर रुकने का मन हो रहा है पर उम्र जवाब दे रही है.

बेटे का फ्लैट शहर में है. मम्मीपापा को शहर ही ले आया है. 100 गज के बंधे फ्लैट में गांव की याद आ रही है. गांवों से शहरों में पलायन कर चुके बुजुर्ग यूट्यूब पर गांव की खूब खबरें देख रहे हैं. पिज्जाबर्गर खाते हुए गांव के इन्फ्लुएंसरों को खोजखोज कर देख रहे हैं. शहर को गरिया रहे हैं, पिज्जाबर्गर खा रहे हैं.

अधकचरा ज्ञान

कुछ तो यूट्यूब पर पौलिटिकल ऐनालिसिस सुन रहे हैं. यूट्यूब पर पौलिटिकल रिसर्च करने वाले इन इन्फ्लुएंसर को ये बुजुर्ग रजनी कोठारी से ले कर विद्या धर सारीका राजनीतिक शास्त्री मान बैठे हैं. मामला अब व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से यूट्यूब रिसर्च इंस्टिटयूट में शिफ्ट हो चुका है. इन यूट्यूबरों कम इन्फ्लुएंसरों का मोबाइल पर इतना कंटैंट आ जाता है कि एक बार बुजुर्ग देखना शुरू करते हैं तो रुक ही नहीं पाते.

कुछ यहां से सुना अधकचरा ज्ञान ले कर वे सहबुजुर्गों के व्हाट्सऐप ग्रुप में शेयर कर रहे हैं. व्हाट्सऐप पर इन का ग्रुप बना पड़ा है, जिस पर आधे से ज्यादा मैसेज भगवान की पिक्चर के साथ गुड मौर्निंग, गुड नाइट के होते हैं.

पहले ये बुजुर्ग अपने इलाके में बनी चौपाल पर मिला करते थे. पुरुषों की सारी चुगलियां बरगद के पेड़ के नीचे हुआ करती थीं, चुगलियों के बीच घरपरिवार के दुखों को भी बांट जाया करते थे.

अंधविश्वास को बढ़वा

थोड़ीबहुत पौलिटिकल बातें भी होती थीं पर अब चौपाल में कहने को 500 साल पुराना बरगद का पेड़ कट चुका है. वहां महल्ले के लड़केलड़कियों की बाइकस्कूटियां खड़ी होती हैं. इसलिए व्हाट्सऐप ग्रुप ही नया चौपाल बना गया है.

समस्या यह कि इंटरनैट ऐल्गोरिदम में फंसे ये बुजुर्ग नया कुछ नहीं देखसुन पा रहे. जो सुन रहे हैं वही शेयर कर रहे हैं. उसी को ज्ञान मान रहे हैं, उसी को सही मान रहे हैं, कुछ तो अलग लैवल के भक्त बन पड़े हैं.

फेसबुक पर लंबेलंबे धार्मिक पोस्ट पढ़ रहे हैं. विटामिन की गोली खा रहे हैं फिर नीचे कमैंट में जय श्रीराम लिख रहे हैं. ऐल्गोरिदम इन्हें यही पोस्ट और रील्स भेज रहा है, जिसे देखसुन कर ये लोटपोट हुए जा रहे हैं.

कुछ दिनों से मेरी शेविंग वाली स्किन खुरदुरी और काली दिखने लगी है, क्या करूं?

सवाल

मैं वैक्सिंग के दर्द और उस में लगने वाले समय से बचने के लिए रेजर का इस्तेमाल करती हूं. कुछ दिनों से मेरी शेविंग वाली स्किन खुरदुरी और काली दिखने लगी है. क्या शेविंग करना बंद कर देना चाहिए?

जवाब 

शेविंग के दौरान कुछ बातों का खयाल रखा जाए तो स्किन को कोई हानि नहीं होती. लिहाजाशेविंग से जुड़ी ये सावधानियां जरूर रखें. अनवांटेड हेयर हटाने के लिए रेजर यूज करने से पहले शेविंग क्रीम यूज करें. ऐसा न करने से स्किन डैमेज होती हैउस में रैडनैस आ जाती हैरेजर बर्न्स हो जाते हैंजिस से स्किन रफ और ड्राई हो जाती है. बौडी हेयर शेव करने से पहले ऐक्सफौलिएट करना जरूरी है ताकि डैड स्किन सैल्स हट जाएं. ऐसा करने से स्किन तो स्मूथ बनेगी हीकिसी तरह का कट या रैडनैस भी नहीं होगी.

स्किन की स्मूथनैस और हाइजीन को को बरकरार रखने के लिए बेहद जरूरी है कि आप नियमित रेजर यूज करें. शेविंग के दौरान जो पहली चीज करनी चाहिए वह यह है कि हेयर ग्रोथ की दिशा में अनचाहे बालों को शेव करें और उस के बाद विपरीत दिशा में शेविंग के बाद मौइस्चराइजेशन लगाना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह स्किन को आराम पहुंचाता है.

परिचय: वंदना को क्यों मिला था भरोसे के बदले धोखा

कहानी- नंदिनी मल्होत्रा

मैंअपने केबिन में बैठी मुंशीजी से पेपर्स टाइप करवा रही थी. मन काम में नहीं लग रहा था. पिछले 1 घंटे से मैं कई बार घड़ी देख चुकी थी, जो लंच होने की सूचना शीघ्र ही देने वाली थी. दरअसल, मुझे वंदना का इंतजार था. पूरी वकील बिरादरी में एक वही तो थी, जिस से मैं हर बात कर सकती थी. इधर घड़ी ने 1 बजाया,

उधर वंदना अपना काला कोट कंधे पर टांगे और अपने चेहरे को रूमाल से पोंछती हुई अंदर दाखिल हुई. मेरे चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. ‘‘बहुत गरमी है आज,’’ कहती हुई वंदना कुरसी खींच कर बैठ गई. मुंशीजी खाना खाने चले गए. मेरा चेहरा फिर गंभीर हो गया. वंदना एक अच्छी वकील होने के साथ ही मन की थाह पा लेने वाली कुशाग्रबुद्धि महिला भी है.

‘‘आज फिर किसी केस में उलझ गई हैं श्रीमती सुनंदिता सिन्हा,’’ उस ने प्रश्नसूचक दृष्टि मेरे चेहरे पर टिका दी.

‘‘नहीं तो.’’

‘‘इस ‘नहीं तो’ में कोई दम नहीं है. तुम कोई बात छिपाते वक्त शायद यह भूल जाती हो कि हम पिछले 3 साल से साथ हैं और अच्छी दोस्त भी हैं.’’

मैं उत्तर में केवल मुसकरा दी.

‘‘चलो, चल कर लंच करें, मुझे बहुत भूख लगी है,’’ वंदना बोली.

‘‘नहीं वंदना, यहीं बैठ जाओ. एक दिलचस्प केस पर काम कर रही हूं मैं.’’

‘‘किस केस पर काम चल रहा है भई?’’ वह उतावली हो कर बोली.

मैं उसे नम्रता के बारे में बताने लगी.

‘‘आज नम्रता मेरे पास आई थी. वह सुंदर, मासूम, भोलीभाली, बुद्धिमान युवती है. 4 साल पहले उस की शादी मुकुल दवे के साथ हुई थी. दोनों खुश भी थे. किंतु शादी के तकरीबन 2 साल बाद उस का परिचय एक अन्य लड़की के साथ हुआ. उन दोनों के बारे में नम्रता को कुछ ही दिन पहले पता चला है. मुकुल, जो एक 3 साल के बेटे का पिता है, उस ने गुपचुप ढंग से उस लड़की से 2 साल पहले विवाह कर रखा है. लड़की उसी के महल्ले में रहती थी. अजीब बात है.’’

‘‘ऐसा तो हर रोज कहीं न कहीं होता रहता है. तुम और मैं, वर्षों से देख रहे हैं. इस में अजीब बात क्या है?’’ वंदना बोली.

‘‘अजीब यह है कि लड़की उसी महल्ले में रहती थी, जिस में नम्रता. बल्कि नम्रता उस लड़की को जानती थी. हैरानी तो इस बात की है कि उन दोनों के पास रहते हुए भी वह यह कैसे नहीं जान पाई कि उस के पति के इस औरत के साथ संबंध हैं.’’

वंदना मेरी इस बात पर ठहाका लगा कर हंस पड़ी, ‘‘भई, मुकुल क्या नम्रता को यह बता कर जाता था कि वह फलां लड़की से मिलने जा रहा है और वह उसे रंगे हाथों आ कर पकड़ ले. वैसे नम्रता को उस के बारे में पता कैसे चला?’’

‘‘उस बेचारी को खुद मुकुल ने बताया कि वह उसे तलाक देना चाहता है. नम्रता उसे तलाक देना नहीं चाहती. उस का उस के पति के सिवा इस दुनिया में कोई नहीं है. कोई प्रोफेशनल टे्रनिंग भी नहीं है उस के पास कि वह आत्मनिर्भर हो सके,’’ मैं ने लंबी सांस छोड़ी.

‘‘क्या वह दूसरी औरत छोड़ने के लिए तैयार  होगा? तुम तो जानती हो ऐसे संबंधों को साबित करना कितना कठिन होता है,’’ वंदना घड़ी देख उठती हुई बोली.

‘‘मुश्किल तो है, लेकिन लड़ना तो होगा. साहस से लड़ेंगे तो जरूर जीतेंगे,’’ मेरे चेहरे पर आत्मविश्वास था.

‘‘अच्छा चलती हूं,’’ कह कर वंदना चली गई.

मैं दिन भर कचहरी के कामों में उलझी रही. शाम 5 बजे के लगभग घर लौटी तो शांतनु लौन में मेघा के साथ खेल रहे थे. मेरी गाड़ी घर में दाखिल होते ही मेघा मम्मीमम्मी कह कर मेरी तरफ दौड़ी. मैं मेघा को गोद में उठाने को लपकी. शांतनु हमें देख मंदमंद मुसकरा रहे थे. उन्होंने झट से एक खूबसूरत गुलाब तोड़ कर मेरे बालों में लगा दिया.

‘‘कब आए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आधा घंटा हो गया जनाब,’’ कह कर शांतनु मेरे लिए चाय कप में उड़ेलने लगे.

‘‘अरे अरे, मैं बना लेती हूं.’’

‘‘नहीं, तुम थक कर लौटी हो, तुम्हारे लिए चाय मैं बनाता हूं,’’ वह मुसकरा कर बोले. तभी फोन की घंटी बजी और अंदर चले गए. मैं आंखें मूंदे वहीं कुरसी पर आराम करने लगी.

शांतनु का यही स्नेह, यही प्यार तो मेरे जीवन का सहारा रहा है. घर आते ही शांतनु और मेघा के अथाह प्रेम से दिन भर की थकान सुकून में बदल जाती है. अगर शांतनु का साथ न होता तो शायद मैं कभी भी इतनी कामयाब वकील न होती कि लोग मुझे देख कर रश्क कर सकें.

दिन बीतते गए. यही दिनचर्या, यही क्रम. पता नहीं क्यों मैं नम्रता के केस में अधिक ही दिलचस्पी लेने लगी थी और हर कीमत पर उस के पति को सबक सिखाना चाहती थी, जो अपनी  पत्नी को छोड़ किसी अन्य पर रीझ गया था.

मुझे नम्रता के केस में उलझे हुए लगभग 1 साल बीत गया. दिन भर की व्यस्तता में वंदना की मुसकराहट मानसिक तनाव को कम कर देती थी. उस दिन भी कोर्ट में नम्रता के केस की तारीख थी. मैं जीजान से जुटी थी. आखिर फैसला हो ही गया.

मुकुल दवे सिर झुकाए कोर्ट में खड़ा था. उस ने जज साहब के सामने नम्रता से माफी मांगी और जिंदगी भर उस लड़की से न मिलने का वादा किया. नम्रता की आंखों में खुशी के आंसू थे. मैं भी बहुत खुश थी. घर लौट कर यही खुशखबरी मैं शांतनु को सुनाना चाहती थी.

उस दिन शांतनु पहली बार लौन में नहीं बल्कि अपने कमरे में मेरा इंतजार कर रहे थे. इस से पहले कि मैं कुछ कह पाती वह बोले, ‘‘बैठो सुनंदिता, मुझे तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं.’’

उन की मुखमुद्रा गंभीर थी. मैं कुरसी खींच कर पास बैठ गई. मैं ने आज तक उन्हें इतना गंभीर नहीं देखा था.

वह बोले, ‘‘हमारी शादी को 6 साल हो गए हैं सुनंदिता और इन 6 सालों में मैं ने यह महसूस किया है कि तुम एक संपूर्ण स्त्री नहीं हो, जो मुझे पूर्णता प्रदान कर सके. तुम में कुछ अधूरा है, जो मुझे पूर्ण होने नहीं देता.’’

मैं अवाक् रह गई. मेरा चेहरा आंसुओं से भीग गया.

वह आगे बोले, ‘‘मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है सुनंदिता. तुम एक चरित्रवान पत्नी, अच्छी मां और अच्छी महिला भी हो. मगर कहीं कुछ है जो नहीं है.’’

शब्द मेरे गले में घुटते चले गए, ‘‘तो इतना बता दो शांतनु, वह कौन  है, जिस के तुम्हारे जीवन में आने से मैं अधूरी लगने लगी हूं?’’

‘‘तुम चाहो तो मेघा को साथ रख सकती हो. उसे मां की जरूरत है.’’

‘‘मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर दो, शांतनु, कौन है वह?’’

वह खिड़की के पास जा कर खड़े हो गए और अचानक बोले, ‘‘वंदना.’’

मुझ पर वज्रपात हुआ.

‘‘हां, एडवोकेट वंदना प्रधान.’’

मैं बेजान हो गई. यहां तक कि एक सिसकी भी नहीं ले सकी. जी चाह रहा था कि पूछूं, कब मिलते थे वंदना से और कहां? सारा दिन तो वह कोर्ट में मेरे साथ रहा करती थी. तभी वंदना के वे शब्द मेरे कानों में गूंज उठे, ‘क्या मुकुल नम्रता को बता कर जाता होगा कि कब मिलता है उस पराई स्त्री से. ऐसा तो रोज ही होता है.’

‘मैं नम्रता से कहा करती थी कि कैसी बेवकूफ स्त्री हो तुम नम्रता, पति के हावभाव, उठनेबैठने, बोलनेचालने से तुम इतना भी अंदाजा नहीं लगा सकीं कि उस के दिल में क्या है.’ मैं खुद भी तो ऐसा नहीं कर पाई.

मैं ने कस कर अपने कानों पर हाथ टिका लिए. जल्दीजल्दी सामान अपने सूटकेस में भरने लगी. शांतनु जड़वत खड़े रहे. मैं मेघा की उंगली थामे गेट से बाहर निकल आई.

अगले दिन मैं कोर्ट नहीं गई. दिमाग पर बारबार अपने ही शब्द प्रहार कर रहे थे, ‘एक महल्ले में रह कर भी नम्रता कुछ न जान पाई’ और मैं दिन में वंदना और शाम को शांतनु इन दोनों के बीच में ही झूलती रही थी फिर भी…गिला करती तो किस से. पराया ही कौन था और अपना ही कौन निकला. एक पल को मन चाहा कि मुकुल की तरह शांतनु भी हाथ जोड़ कर माफी मांग ले. लेकिन दूसरे ही पल शांतनु का चेहरा खयालों में उभर आया. मन वितृष्णा से भर उठा. मैं शायद उसे कभी माफ न कर सकूं?

मैं नम्रता नहीं हूं. अगले दिन मुंशी जी टाइपराइटर ले कर बैठे और बोले, ‘‘जी, मैडम, लिखवाइए.’’

‘‘लिखिए मुंशीजी, डिस्साल्यूशन आफ मैरिज बाई डिक्री ओफ डिवोर्स सुनंदिता सिन्हा वर्सिज शांतनु सिन्हा,’’ टाइपराइटर की टिकटिक का स्वर लगातार ऊंचा हो रहा था.

मैट्रिमोनियल साइट्स पर कहीं आप भी न हो जाएं ठगी के शिकार

गौरव धमीजा नाम का यह शख्स कार के पार्ट्स बेचने का काम करता था. साइट पर अपनेआप को एक हैंडसम पुरुष की तरह दिखाता था जिस की सालाना इनकम 25-30 लाख हो. इस व्यक्ति के खिलाफ पुलिस में शिकायत करने वाली महिला ने बताया कि इस शख्स ने रुउस के प्रोफाइल में रुचि दिखाई थी. महिला द्वारा स्वीकार करने पर धमीजा ने उस से अपने खाते में पैसे डलवाए. फिर धमीजा ने महिला को भावनाओं के जाल में फंसाया और कहा कि वह अपनी पत्नी से पीड़ित है. साथ ही वादा किया कि वह उसे महंगे तोहफे देगा.’

जब पीड़िता पूरी तरह धमीजा के झांसे में फंस गई तो इस ने अलगअलग बहाने कर महिला से पैसे मांगने शुरू कर दिए. मसलन मातापिता का इलाज, व्यवसाय में निवेश और अन्य बहाने. इस तरह वह महिला को लम्बे समय तक ठगता रहा.

वस्तुतः एक आदर्श जीवनसाथी की कामना करना एक बात है और वास्तव में उसे ढूंढना एक मुश्किल काम है. आज के समय में जब लड़कियां पढ़लिख कर जॉब करती हैं और आत्मनिर्भर बन जाती हैं तो रिश्तेदारियों में लड़का खोजने के बजाय वे वैवाहिक साइटस की तरफ रुख करती हैं जहाँ अपने हिसाब से जीवनसाथी तलाश कर सकें. पर इस तरह की साइट्स पर भी अक्सर धोखाधड़ी के मामले आते रहते हैं.

कुछ धोखेबाज औनलाइन वैवाहिक साइटों पर लोगों को धोखा देते हैं. वे नकली प्रोफाइल बना कर जीवनसाथी की तलाश करने वाले निर्दोष लोगों को धोखा दे कर अपना उल्लू सीधा करते हैं. पिछले साल फ्रौडस्टर तन्मय गोस्वामी के मामले ने भी मीडिया का ध्यान खींचा था क्यों कि विभिन्न शहरों की 8 महिलाओं ने शादी का वादा कर के पैसे की धोखाधड़ी करने के लिए इस शख्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. पुलिस का अनुमान है कि उस ने उन से कम से कम 1.25 करोड़ रुपये ठग लिये थे. इस तरह की घटनाएं न केवल किसी व्यक्ति को आर्थिक रूप से प्रभावित करती हैं बल्कि गंभीर भावनात्मक क्षति भी पहुंचा सकती हैं. जरुरी है कि ब्लैकमेलिंग और धोखाधड़ी से बचने के लिए आप सजग हो कर ही कदम आगे बढ़ाएं. अल्ट्रा रिच मैच के संस्थापक-निदेशक सौरभ गोस्वामी के मुताबिक़ कुछ बुनियादी उपायों पर ध्यान दे कर आप ऐसी धोखाधड़ी से बच सकती हैं;

1. औनलाइन बैकग्राउंड चेक करें

अगर आप किसी से बात आगे बढ़ाने की सोच रही हैं तो सब से पहला कदम यह है कि आप को उस व्यक्ति के सोशल मीडिया लिंक की पूरी खबर रखनी चाहिए. फेसबुक / ट्विटर / इंस्टाग्राम / लिंक्डइन आदि माध्यम से आप उसे बहुत अच्छी तरह से जान सकती हैं. उस की प्रोफ़ाइल कितनी पुरानी है, कोई विसंगति तो नजर नहीं आ रही,  तस्वीरें कितनी वास्तविक लगती हैं, दोस्तों की संख्या क्या है आदि के आधार पर व्यक्ति को समझा जा सकता है. किसी भी तरह का संदेह पैदा होने पर सीधे उस व्यक्ति से पूछें. यदि वह कोई स्पष्ट उत्तर देने में विफल होता है तो उस से दूरी बढ़ा लेना ही उचित होगा. ऐसे व्यक्तियों को तुरंत ब्लॉक करें और आगे बढ़ें.

2. व्यक्तिगत विवरण साझा न करें

इस तरह के औनलाइन प्लेटफ़ौर्मस पर भूल कर भी अपने बैंक खातों से जुड़ी ईमेल आईडी का उपयोग न करें. कोई और ऐसी निजी जानकारी भी न दें जिन का गलत उपयोग हो सकता है. क्योंकि ऐसे में धोखेबाजों के लिए आप की व्यक्तिगत जानकारी ढूंढना और खातों को हैक करना बहुत आसान हो जाता है.

3. किसी को कोई पैसा उधार न दें

सामने वाला कितनी भी इमरजेंसी दिखाए, वह छोटी सी रकम ही क्यों न मांग रहा हो, आप उस की बातों पर ऐतबार न करें. ये जालसाज तरहतरह की रणनीति का उपयोग कर महिलाओं को फंसाने का प्रयास करते हैं. ऐसे लोगों को इनकार और ब्लॉक किया जाना ही धोखों से बचने का एकमात्र तरीका है.

4. हमेशा सतर्क रहें

अगर प्रारंभिक बातचीत के किसी भी बिंदु पर आप को लगता है कि व्यक्ति बहुत अधिक अनुचित व्यक्तिगत विवरणों के लिए पूछ रहा है तो उन्हें स्पष्ट रूप से बताएं कि आप अभी इन सवालों का जवाब देने में सहज नहीं हैं. सुनिश्चित करें कि उन्हें अपनी सीमा का एहसास हो.

5. ’बहुत संवेदनशीलया बहुत अधिक समझ वाले व्यक्तियों रहें सावधान

’बहुत संवेदनशील’ या ’बहुत अधिक समझ वाले व्यक्तियों’ से सावधान रहें. ये धोखेबाज होते हैं. वे कुछ देर बात कर के ही सामने वाले के कमजोर पहलुओं को समझ लेते हैं और मौका मिलते ही उन का शोषण करना शुरू कर देते हैं. वे आप को भावनात्मक रूप से समर्थन देने का दिखावा करते हैं जब कि उस का मकसद धोखाधड़ी से लेकर ब्लैकमेल तक होता है.

6. हमेशा सार्वजनिक स्थानों पर मिलें

अगर उस से मिलने का प्लान बने तो प्रयास करें कि आप उस से हमेशा सार्वजनिक स्थानों पर मिलें. कभी भी अपनेआप को किसी भी तरह का  समझौता करने की स्थिति में न रखें. पहली या दूसरी मीटिंग में किसी दोस्त या सहेली को साथ ले जाएँ तो अच्छा होगा. यहां तक कि अगर आप उस के लिए गंभीर हो रही हैं तो भी मातापिता या घरवालों की सहमति और जानकारी के बिना किसी भी निजी स्थान पर मिलने जाने से बचें.

7. अपनी हिम्मत पर भरोसा करें

अगर उस के साथ रहते हुए आप को कभी भी कुछ गलत महसूस होता है तो तुरंत सतर्क हो जाएं. इस भावना को अनदेखा न करें. याद रखें आप का अवचेतन मन हमेशा आप के एहसासो की तुलना में बहुत अधिक सक्रिय रहता है और किसी व्यक्ति के बारे में छोटे संकेतो को भी समझ सकता है.

8.बैकग्राउंड चेक करें

आज के समय में ऐसी कितनी ही एजेंसियां हैं जो किसी भी व्यक्ति के बैकग्राउंड और ऑथेंटिटी की खोजखबर लेने का काम करती है. इस के लिए वे बहुत मामूली सा शुल्क वसूलती हैं. यदि आप को लगता है कि चीजें गंभीर हो रही हैं और आप उस के साथ जिंदगी बिताने को तैयार हो सकती हैं तो किसी फैसले से पहले ऐसी सेवाओं के लिए जाना हमेशा विवेकपूर्ण होता है. आप को लग सकता हैं कि इस तरह के कदम से कहीं आप के संभावित साथी की भावना आहत न हो जाए मगर यकीन रखिये जीवन में किसी बड़े धोखे का शिकार होने से लाख गुना बेहतर है कि पहले अच्छी तरह से छानबीन कर ली जाएतभी कदम बढ़ाया जाए.

9. भरोसेमंद मैट्रिमोनियल्स चुनें

शादी करना जीवन भर का सौदा है. आगे पछताना न पड़े इस के लिए जरुरी है कि केवल विश्वसनीय वैवाहिक साइटों को चुनें. उन के पर्सनल पैकेज लें. केवल उन मैट्रिमोनियल्स पर विचार करें जो अपने ग्राहकों के विवरण को सत्यापित करने की जिम्मेदारी लेते हैं. यही नहीं उन ‘सत्यापित’ प्रोफाइल में से भुगतान किए गए सदस्यों को चुनें. धोखेबाज सदस्य आमतौर पर पेड सदस्यता नहीं लेते.

चिराग : करुणा को क्यों बहू नहीं मान पाए अम्मा और बापूजी

कानपुर रेलवे स्टेशन पर परिवार के सभी लोग मुझ को विदा करने आए थे, मां, पिताजी और तीनों भाई, भाभियां. सब की आंखोें में आंसू थे. पिताजी और मां हमेशा की तरह बेहद उदास थे कि उन की पहली संतान और अकेली पुत्री पता नहीं कब उन से फिर मिलेगी. मुझे इस बार भारत में अकेले ही आना पड़ा. बच्चों की छुट्टियां नहीं थीं. वे तीनों अब कालेज जाने लगे थे. जब स्कूल जाते थे तो उन को बहलाफुसला कर भारत ले आती थी. लेकिन अब वे अपनी मरजी के मालिक थे. हां, इन का आने का काफी मन था परंतु तीनों बच्चों के ऊपर घर छोड़ कर भी तो नहीं आया जा सकता था. इस बार पूरे 3 महीने भारत में रही. 2 महीने कानपुर में मायके में बिताए और 1 महीना ससुराल में अम्मा व बाबूजी के साथ.

मैं सब से गले मिली. ट्रेन चलने में अब कुछ मिनट ही शेष रह गए थे. पिताजी ने कहा, ‘‘बेटी, चढ़ जाओ डब्बे में. पहुंचते ही फोन करना.’’ पता नहीं क्यों मेरा मन टूटने सा लगा. डब्बे के दरवाजे पर जातेजाते कदम वापस मुड़ गए. मैं मां और पिताजी से चिपट गई. गाड़ी चल दी. सब लोग हाथ हिला रहे थे. मेरी आंखें तो बस मां और पिताजी पर ही केंद्रित थीं. कुछ देर में सब ओझल हो गए. डब्बे के शौचालय में जा कर मैं ने मुंह धोया. रोने से आंखें लाल हो गई थीं. वापस आ कर अपनी सीट पर बैठ गई. मेरे सामने 3 यात्री बैठे थे, पतिपत्नी और उन का 10-11 वर्षीय बेटा. लड़का और उस के पिता खिड़की वाली सीटों पर विराजमान थे. हम दोनों महिलाएं आमनेसामने थीं, अपनीअपनी दुनिया में खोई हुईं.

‘‘आप दिल्ली में रहती हैं क्या?’’ उस महिला ने पूछा.

‘‘नहीं, लंदन में रहती हूं. दिल्ली में मेरी ससुराल है. यहां पीहर में इतने सारे लोग हैं, इसलिए बहुत अच्छा लगता है. दिल्ली में सासससुर के साथ रहने का मन तो बहुत करता है पर वक्त काटे नहीं कटता. वहां बस खरीदारी में ही समय खराब करती रहती हूं,’’ अब मेरा मन कुछ हलका हो गया था, ‘‘आप मुझे आशा कह कर पुकार सकती हैं,’’ मैं ने अपना नाम भी बता दिया.

‘‘मेरा नाम करुणा है और यह है हमारा बेटा राकेश, और ये हैं मेरे पति सोमेश्वर.’’ करुणा के पति ने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया. राकेश अपनी मां के कहने पर नमस्ते के बजाय केवल मुसकरा दिया. लेकिन सोमेश्वर ने नमस्ते के बाद उस से आगे बात करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. मैं ने अनुमान लगाया कि शायद वे दक्षिण के थे. करुणा और मैं तो हिंदी में ही बातें कर रही थीं. शायद सोमेश्वर को हिंदी में बातें करने में परेशानी महसूस होती थी, इसलिए वे चुप ही रहे. ‘‘गाड़ी दिल्ली कब तक पहुंचेगी?’’ मैं ने पूछा, ‘‘वैसे पहुंचने का समय तो दोपहर के 3 बजे का है. अभी तक तो समय पर चल रही है शायद?’’ ‘‘यह गाड़ी आगरा के बाद मालगाड़ी हो जाती है. वहां से इस का कोई भरोसा नहीं. हम तो साल में 3-4 बार दिल्ली और कानपुर के बीच आतेजाते हैं, इसलिए इस गाड़ी की नसनस से वाकिफ हैं,’’ करुणा बोली, ‘‘शायद 5 बजे तक पहुंच जाएगी. आप दिल्ली में कहां जाएंगी?’’

‘‘करोलबाग,’’ मैं बोली.

‘‘आप को स्टेशन पर कोई लेने आएगा?’’ करुणा ने पूछा, ‘‘हमें तो टैक्सी करनी पड़ेगी, हम छोड़ आएंगे आप को करोलबाग, अगर कोई लेने नहीं आया तो…’’ ‘‘मुझे लेने कौन आएगा. बेचारे सासससुर के बस का यह सब कहां है,’’ मैं ने संक्षिप्त उत्तर दिया. सोमेश्वर ने अंगरेजी में कहा, ‘‘आप फिक्र न कीजिए, हम छोड़ आएंगे.’’

‘‘हम तो हौजखास में रहते हैं. कभी समय मिला तो आप से मिलने आऊंगी,’’ करुणा बोली. न जाने क्यों वह मुझे बहुत ही अच्छी लगी. ऐसे लगा जैसे बिलकुल अपने घर की ही सदस्य हो. ‘‘हांहां, जरूर आ जाना…परसों तो इंदू भी आ जाएगी. हम तीनों मिल कर खरीदारी करेंगी.’’ करुणा की आंखों में प्रश्न तैरता देख कर मैं ने कहा, ‘‘इंदू मेरी ननद है. मेरे पति से छोटी है. कलकत्ता में रहती है.’’

‘‘कहीं इंदू के पति का नाम वीरेश तो नहीं?’’ करुणा जल्दी से बोली.

‘‘हांहां, वही…तुम कैसे जानती हो उसे?’’ मैं उत्साह से बोली. अचानक शायद कोई धूल का कण सोमेश्वर की आंखों में आ गया. उस ने तुरंत चश्मा उतार लिया और आंख रगड़ने लगा.

करुणा बोली, ‘‘आप से कितनी बार कहा है कि खिड़की के पास वाली सीट पर मत बैठिए. खुद बैठते हैं, साथ ही राकेश को भी बिठाते हैं. अब जाइए, जा कर आंखों में पानी के छींटे डालिए.’’ सोमेश्वर सीट से उठ खड़ा हुआ. उस के जाने के बाद करुणा ने राकेश को पति की सीट पर बैठने को कहा और खुद मेरे पास आ कर बैठ गई.

‘‘आशाजी, आप मुझे नहीं पहचानतीं, मैं वही करुणा हूं जिस की शादी हरीश से हुई थी.’’

‘‘अरे, तुम हो करुणा?’’ मेरे मुंह से चीख सी निकल गई. करुणा ने मेरी ओर देखा फिर राकेश को देखा. वह अपने में मस्त बाहर खिड़की के नजारे देख रहा था. करुणा का नाम लेना भी हमारे घर में मना था. हम सब के लिए तो वह मर गई थी. मेरे देवर से उस की शादी हुई थी, 12 वर्ष पहले. शादी अचानक ही तय हो गई थी. हरीश 2 वर्ष के लिए रूस जा रहा था, प्रशिक्षण के लिए. साथ में पत्नी को ले जाने का भी खर्चा मिल रहा था.अम्मा और बाबूजी तो हमारे आए बिना शादी करने के पक्ष में नहीं थे. इन का औ?परेशन हुआ था, डाक्टरों ने मना कर दिया था यात्रा पर जाने के लिए, इसलिए हम में से तो कोई आ नहीं पाया था. शादी के कुछ दिनों बाद हरीश और करुणा रूस चले गए. लेकिन 2 महीने के भीतर ही हरीश की कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई. मेरे पति लंदन से मास्को गए थे हरीश का अंतिम संस्कार करने. बेचारी करुणा भी भारत लौट गई. दुलहन के रूप में भारत से विदा हुई थी और विधवा के रूप में लौटी थी.

अम्मा और बाबूजी के ऊपर तो दुख का पहाड़ टूट पड़ा था. उन का बेटा भरी जवानी में ही उन को छोड़ कर चला गया था. वे करुणा को अपने पास रखना चाहते थे, लेकिन वह नागपुर अपने मातापिता के पास चली गई. कभीकभार करुणा के पिता ही बाबूजी को पत्र लिख दिया करते थे. अम्मा और बाबूजी की खुशी की सीमा नहीं रही, जब उन्हें पता चला कि उन के बेटे की संतान करुणा की कोख में पनप रही है. कुछ महीनों बाद करुणा के पिता ने पत्र द्वारा बाबूजी को उन के पोते के जन्म की सूचना दी. अम्मा और बाबूजी तो खुशी से पागल ही हो गए. दोनों भागेभागे नागपुर गए, अपने पोते को देखने. लेकिन वहां पहुंचने पर पता चला कि करुणा ने बेटे को जन्म अपने पीहर में नहीं बल्कि अपने दूसरे पति के यहां बंबई में दिया था. दोनों तुरंत नागपुर से लौट आए. बाद में करुणा के 1 या 2 पत्र भी आए, परंतु अम्मा और बाबूजी ने हमेशाहमेशा के लिए उस से रिश्ता तोड़ लिया. हरीश की मृत्यु के बाद इतनी जल्दी करुणा ने दूसरी शादी कर ली, इस बात के लिए वे उसे क्षमा नहीं कर पाए. जब उन्हें इस बात का पता चला कि करुणा का दूसरा पति उस समय मास्को में ही था, जब हरीश और करुणा वहां थे तो अम्माबाबूजी को यह शक होने लगा कि क्या पता करुणा के पहले से ही कुछ नाजायज ताल्लुकात रहे हों. क्या पता यह संतान हरीश की है या करुणा के दूसरे पति की? कहीं जायदाद में अपने बेटे को हिस्सा दिलाने के खयाल से इस संतान को हरीश की कह कर ठगने तो नहीं जा रही थी करुणा? ‘‘राकेश एकदम हरीश पर गया है. एक बार अम्माबाबूजी इस को देख लें तो सबकुछ भूल जाएंगे,’’ मुझ से रहा न गया. ‘‘भाभीजी, आप ने मेरे मुंह की बात कह दी. यह बात कहने को मैं बरसों से तरस रही थी लेकिन किस से कहती. बेचारा सोमेश्वर तो राकेश को ही अपना बेटा मानता है. शायद हरीश भी कभी राकेश से इतना प्यार नहीं कर पाता जितना सोमेश्वर करता है.’’

करुणा ने बात बीच में ही रोक दी. सोमेश्वर लौट आया था. उस के बैठने से पहले ही राकेश उठ खड़ा हुआ, ‘‘चलिए पिताजी, भोजनकक्ष में. कुछ खाने को बड़ा मन कर रहा है.’’ सोमेश्वर का मन तो नहीं था, परंतु करुणा द्वारा इशारा करने पर वह चला गया. उन के जाने पर करुणा ने चैन की सांस ली. हम दोनों चुप थीं. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बात करें. ‘‘करुणा, अम्मा और बाबूजी को बहुत बुरा लगा था कि तुम ने हरीश की मृत्यु के बाद इतनी जल्दी दूसरी शादी कर ली,’’ मैं ने चुप्पी तोड़ने के विचार से कहा. शायद करुणा को इस प्रश्न का एहसास था. वह धीरे से बोली, ‘‘क्या करती भाभीजी, सोमेश्वर हमारे फ्लैट के पास ही रहता था. वह उन दिनों बंबई की आईआईटी में वापस जाने की तैयारी कर रहा था. उस ने हरीश की काफी मदद की थी. हर शनिवार को वह हमारे ही यहां शाम का खाना खाने आ जाया करता था. जिस कार दुर्घटना में हरीश की मृत्यु हुई थी, उस में सोमेश्वर भी सवार था. संयोग से यह बच गया.

‘‘भाई साहब तो हरीश का अंतिम संस्कार कर के तुरंत लंदन वापस चले गए थे परंतु मैं वहां का सब काम निबटा कर एक हफ्ते बाद ही आ पाई थी. सोमेश्वर भी उसी हवाई उड़ान से मास्को से दिल्ली आया था. वह अम्मा और बाबूजी का दिल्ली का पता और हमारे घर का नागपुर का पता मुझ से ले गया,’’ कहतेकहते करुणा चुप हो गई. ‘‘तुम दिल्ली भी केवल एक हफ्ता ही रहीं और नागपुर चली गईं?’’ मैं ने पूछा.‘‘क्या करती भाभी, सोमेश्वर दिल्ली से सीधा नागपुर गया था, मेरे मातापिता से मिलने. उस से मिलने के बाद उन्होंने तुरंत मुझे नागपुर बुला भेजा, भैया को भेज कर. फिर जल्दी ही सोमेश्वर से मेरी सिविल मैरिज हो गई,’’ करुणा की आंखों में आंसू भर आए थे. ‘‘तुम ने सोमेश्वर से शादी कर के अच्छा ही किया. राकेश को पिता मिल गया और तुम्हें पति का प्यार. तुम्हारे कोई और बालबच्चा नहीं हुआ?’’

‘‘भाभीजी, राकेश के बाद हमारे जीवन में अब कोई संतान नहीं होने वाली. कानूनी तौर पर राकेश सोमेश्वर का ही बेटा है. सोमेश्वर ने तो मुझ को पहले ही बता दिया था कि युवावस्था में एक दुर्घटना के कारण वह संतानोत्पत्ति में असमर्थ हो गया था. मेरे मातापिता ने यही सोचा कि इस समय उचितअनुचित का सोच कर अगर समय गंवाया तो चाहे उन की बेटी को दूसरा पति मिल जाएगा, परंतु उन के नवासे को पिता नहीं मिलने वाला. मैं शादी के बाद बंबई में रहने लगी. जब राकेश हुआ तो किसी को तनिक भी संदेह नहीं हुआ.’’ वर्षों से करुणा के बारे में हम लोगों ने क्याक्या बातें सोच रखी थीं. अम्मा और बाबूजी तो उस का नाम आते ही क्रोध से कांपने लगते थे. परंतु अब सब बातें साफ हो गई थीं. बेचारी शादी के बाद कितनी जल्दी विधवा हो गई थी. पेट में बच्चा था. फिर एक सहारा नजर आया, जो उस की जीवननैया को दुनिया के थपेड़ों से बचाना चाहता था. ऐसे में कैसे उस सहारे को छोड़ देती? अपने भविष्य को, अपनी होने वाली संतान के भविष्य को किस के भरोसे छोड़ देती? मैं ने करुणा के सिर पर हाथ रख दिया. वह मेरी ओर स्नेह से देखने लगी. अचानक वह झुकी और मेरे पांवों को हाथ लगाने लगी, ‘‘आप तो रिश्ते में मेरी जेठानी लगती हैं. आप के पांव छूने का अवसर फिर पता नहीं कभी मिलेगा या नहीं.’’

मैं ने उस को अपने पांवों को छूने दिया. चाहे अम्मा और बाबूजी ने करुणा को अपनी पुत्रवधू के रूप में अस्वीकार कर दिया था, परंतु मुझे अब वह अपनी देवरानी ही लगी. कुछ ही देर में सोमेश्वर और राकेश लौट आए. भोजनकक्ष से काफी सारा खाने का सामान लाए थे. हम सभी मिलजुल कर खाने लगे. दिल्ली जंक्शन आ गया. सामान उठाने के लिए 2 कुली किए गए. सोमेश्वर ने मुझे कुली को पैसे देने नहीं दिए. टैक्सी में सोमेश्वर आगे ड्राइवर के साथ बैठा था. मैं, करुणा और राकेश पीछे बैठे थे. कुछ ही देर बाद हमारा घर आ गया. सोमेश्वर डिक्की से मेरा सामान निकालने लगा. ‘‘बेटा, ताईजी को नमस्ते करो, पांव छुओ इन के,’’ करुणा ने कहा तो राकेश ने आज्ञाकारी पुत्र की तरह पहले हाथ जोड़े फिर मेरे पांव छुए. मैं ने उन दोनों को सीने से लगा लिया. सोमेश्वर ने मेरा सामान उठा कर बरामदे में रख कर घंटी बजाई. मैं ने करुणा और राकेश से विदा ली. चलतेचलते मैं ने 100 रुपए का 1 नोट राकेश की जेब में डाल दिया. अम्मा और बाबूजी तो मेरी ही प्रतीक्षा कर रहे थे, तुरंत दरवाजा खोल दिया. मेरे साथ सोमेश्वर को देख कर तनिक चौंके, परंतु मैं ने कह दिया, ‘‘अम्माजी, ये अपनी टैक्सी में मुझे साथ लाए थे, कार में इन की पत्नी और बेटा भी हैं.’’

‘‘चाय वगैरा पी कर जाइएगा,’’ बाबूजी ने आग्रह किया.

‘‘नहीं, अब चलता हूं,’’ सोमेश्वर ने हाथ जोड़ दिए. अम्मा और बाबूजी मुझ को घेर कर बैठ गए. वे सवाल पर सवाल किए जा रहे थे, सफर के बारे में, मेरे पीहर के बारे में परंतु मेरा मन तो कहीं और भटक रहा था. लेकिन उन से क्या कहती.

मैं कहना तो चाहती थी कि आप यह सब मुझ से क्यों पूछ रहे हैं? अगर कुछ पूछना ही चाहते हैं तो पूछिए कि वह आदमी कौन था, जो यहां तक मुझे टैक्सी में छोड़ गया था? टैक्सी में बैठी उस की पत्नी और पुत्र कौन थे? शायद मैं साहस कर के उन को बता भी देती कि उन के खानदान का एक चिराग कुछ क्षण पहले उन के घर की देहरी तक आ कर लौट गया है. वे दोनों रात के अंधेरे में उसे नहीं देख पाए थे. शायद देख पाते तो उस में उन्हें अपने दिवंगत पुत्र की छवि नजर आए बिना नहीं रहती.

परिवार: क्या हुआ था सत्यदेव के साथ

कहानी- संजय दुबे

सत्यदेव का परिवार इन दिनों सफलता की ऊंचाइयां छू रहा था. बड़ा बेटा लोक निर्माण विभाग में जूनियर इंजीनियर, मझला बेटा बिल्डर और छोटा बेटा अपने बड़े भाइयों का सहयोगी. लगातार पैसे की आवक से सत्यदेव के परिवार के लोगों के रहनसहन में भी आश्चर्यजनक ढंग से बदलाव आया था. केवल 3 साल पहले सत्यदेव का परिवार सामान्य खातापीता परिवार था. बड़ा बेटा समीर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगा था तो मझला बेटा सुजय, एक बिल्डर के यहां सुपरवाइजर बन कर ढाई हजार रुपये की नौकरी करता था. छोटा बेटा संदीप कालिज की पढ़ाई पूरी करने में लगा था. सत्यदेव सरकारी विभाग में अकाउंटेंट के पद से रिटायर हुए थे. उन्होंने अपने जीवन के पूरे सेवाकाल में कभी रिश्वत नहीं ली थी इस कारण उन्हें अपनी ईमानदारी पर गुमान था.

2 साल के अंतराल में समीर लोक निर्माण विभाग में जूनियर इंजीनियर बन गया तो सुजय बैंक वालों की मदद से कालोनाइजर बन गया. उधर संदीप का बतौर कांटे्रक्टर पंजीयन करा कर समीर उस के नाम से अपने विभाग में ठेके ले कर भ्रष्टाचार से रकम बटोरने लगा. उधर कालोनाइजिंग के बाजार में एडवांस बुकिंग कराने वालों में सुजय ने अपनी इमेज बनाई तो घर में पैसा बरसने लगा.

पैसा आया तो दिखा भी. पहले घर फिर कार और फिर ऐशोआराम के साधन जुटने लगे. सत्यदेव अपने परिवार की समाज में बढ़ती प्रतिष्ठा को देख फूले नहीं समाते. दोनों बेटों, समीर व सुजय का विवाह भी उन्होंने हैसियत वाले परिवारों में किया था. संयुक्त परिवार में 2 बहुओं के आने के बावजूद एकता बनी रही तो कारण दोनों भाइयों की समझबूझ थी.

शाम के समय सत्यदेव पार्क मेें अपने दोस्तों के साथ बैठे राजनीतिक चर्चा में मशगूल थे तभी बद्रीप्रसाद ने कहा, ‘‘आजकल आप के बेटों की चर्चा बहुत हो रही है सत्यदेवजी, आप को पता है कि नहीं?’’

सत्यदेव ने तुनक कर कहा, ‘‘चलो, मुझे पता नहीं तो अब आप ही बता दो.’’

‘‘अरे, आजकल आप के बड़े बेटे द्वारा घटिया सामग्री से बनवाई सड़क की खूब चर्चा है. लोक निर्माण मंत्री दौरे पर आए थे तो जांच के आदेश दे कर गए हैं.’’

‘‘मेरा बेटा ऐसा नहीं कर सकता है,’’ सत्यदेव ने नाराजगी जाहिर की, ‘‘वह मेहनती है इसलिए लोग उस से जलते हैं.’’

‘‘सत्यदेवजी, बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह,’’ ओंकारनाथ बोले, ‘‘कल कुछ लोग कलेक्टर के पास आप के मझले बेटे की शिकायत ले कर गए थे. जनाब ने एक प्लाट को 2 लोगों को बेच दिया है.’’

‘‘ओंकारनाथजी, मेरे परिवार की तरक्की लोगों के गले से नीचे नहीं उतर रही है, इस कारण कुछ लोग फुजूल की बातें करते रहते हैं,’’ यह कहते हुए सत्यदेव पैर पटकते घर की ओर चल पड़े.

रात के 9 बज रहे थे. शाम को हुई बातों से सत्यदेव का मन खिन्न था. बड़ा बेटा समीर मोटरसाइकिल से आया और उसे खड़ा कर घर के भीतर जाने लगा तो सत्यदेव बोले, ‘‘बेटा, 5 मिनट तुम से अकेले में बात करनी है.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. कहिए, बाबूजी.’’

‘‘बेटा, आज पार्क में बद्रीप्रसाद बता रहा था कि तुम ने जो सड़क बनवाई है उस की जांच तुम्हारे विभाग के मंत्री ने की है.’’

‘‘यह सच है बाबूजी. मैं सर्किट हाउस से ही लौट कर आ रहा हूं. मुझे मैनेज करना पडे़गा. मैं सर्किट हाउस फिर जा रहा हूं क्योंकि रात 12 बजे मंत्रीजी ने मिलने के लिए कहा है.’’

‘‘इतनी रात को क्यों बुलाया है?’’

‘‘बाबूजी, आप परेशान मत हों. अच्छा, मैं चलता हूं.’’

सत्यदेव फिर घूमने लगे. थोड़ी देर बाद सुजय कार से घर पहुंचा और तेजी से अंदर जाने लगा.

सत्यदेव, सुजय के पीछेपीछे अंदर आए तो देखा वह कहीं फ ोन कर रहा था.

‘‘हैलो कलेक्टर साहब…सर, आप से मिलना था. जी सर…जी सर….थैंक्यू वेरीमच.’’

सुजय ने फोन रखा तो सामने सत्यदेव खड़े थे.

‘‘बेटा, बिल्डिंग के काम में कलेक्टर क्या करते हैं?’’

‘‘बाबूजी, कुछ लोग कलेक्टर के पास मेरी शिकायत ले कर गए थे…’’

सत्यदेव ने बेटे की बात को बीच में काट कर कहा, ‘‘एक जमीन को 2 लोगों के नाम रजिस्ट्री की बात को ले कर?’’

‘‘हां, पर आप को कैसे पता चला, बाबूजी? खैर, मैं मैनेज कर लूंगा,’’ कह कर सुजय अंदर चला गया.

‘क्या बात है, समीर भी कहता है मंत्री को मैनेज कर लेगा. सुजय भी कलेक्टर को मैनेज कर लेगा,’ सत्यदेव मन ही मन विचार करने लगे.

थोड़ी देर बाद सत्यदेव ने देखा कि समीर एक छोटा ब्रीफकेस ले कर निकला. 10 मिनट बाद सुजय भी एक ब्रीफकेस ले कर जाते दिखा.

‘लगता है, बद्रीप्रसाद और ओंकार नाथ ठीक बोल रहे थे,’ सत्यदेव मन ही मन बुदबुदाए.

रात के 3 बज रहे थे. सत्यदेव के कान मोटरसाइकिल और कार की आवाज सुनने के लिए बेचैन थे. अचानक जीप रुकने की आवाज आई. उन्होंने लपक कर दरवाजा खोला. सामने पुलिस इंस्पेक्टर और 4 सिपाहियों के साथ सुजय खड़ा था.

‘‘बेटा सुजय, यह सब क्या है?’’

‘‘मैं बताता हूं आप को,’’ इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘जनाब ने एक एडिशनल कलेक्टर को प्लाट बेचा था. एक सप्ताह पहले वह अपना प्लाट देखने गए तो वहां किसी और का मकान बन रहा था. उन्होंने अपने कलेक्टर मित्र को खबर कर दी. यह जनाब कलेक्टर को रिश्वत देने चले थे. रंगेहाथ पकड़े गए हैं. यह रहा सर्च वारंट और हमें अब आप के घर की तलाशी लेनी है,’’ कहते हुए इंस्पेक्टर और चारों सिपाही घर में घुस कर तलाशी लेने लगे.

‘‘बाबूजी, मुझे बचा लीजिए.’’

‘‘सुजय, यह गलत काम करने की जरूरत क्या थी?’’

‘‘बाबूजी, गलती तो हो गई है. आप समीर को बुलाइए, उस की बहुत जानपहचान है. वह सबकुछ कर सकता है.’’

सत्यदेव ने समीर को फोन कर शीघ्र घर आने को कहा.

थोड़ी ही देर में समीर घर पहुंच गया. सत्यदेव ने पुलिस के घर में होने की जानकारी दी.

‘‘बाबूजी, इंस्पेक्टर साहब कहां हैं?’’

‘‘अंदर हैं बेटा.’’

समीर अंदर दाखिल हुआ. इंस्पेक्टर को देख कर बोला, ‘‘एक्सक्यूज मी, सर, मैं समीर, सुजय का बड़ा भाई. आप से कुछ कहना है.’’

‘‘क्या घूस देना चाहते हो? एक भाई तो इसी में पकड़ा गया है. चले थे कलेक्टर को रिश्वत देने.’’

‘‘सर, जमाना ही ऐसा है. हम गलती मान रहे हैं. आप कोई रास्ता तो बताइए.’’

‘‘काफी समझदार हो. देखो दोस्त, सर्च में कमी कर देंगे. उस का अलग लेंगे. आप के भाई को जमानत कोर्ट से मिलेगी. इस काम के लिए 2 पेटी लगेंगी.’’

‘‘2 मिनट रुकिए.’’

‘‘सुनो मिस्टर, 2 मिनट से ज्यादा नहीं, समझे,’’ इंस्पेक्टर ने अकड़ दिखाई.

समीर ने कमरे से बाहर आ कर सुजय को बताया, ‘‘सुजय, इंस्पेक्टर 2 पेटी जांच न करने की मांग रहा है. बाकी तुम्हारी जमानत कोर्ट से होगी.’’

‘‘मेरे को बचाने के लिए भी पूछ. रास्ता बता दे तो एक पेटी और दे देंगे.’’

सत्यदेव दोनों बेटों की बात सुन रहे थे. वह भयभीत और सशंकित थे. तभी दोनों बहुएं और बच्चे भी उठ कर ड्राइंगरूम में आ गए. तभी समीर उठ कर अंदर गया.

‘‘सर, पैसा तैयार है, कहां लेंगे?’’

‘‘कल बताऊंगा. और हां, सुनो, इस घर के कागजात और पैसे आधे घंटे में कहीं और भेज दो, समझे.’’

‘‘सर, सुजय मेरा छोटा भाई है. उस को गिरफ्तार नहीं करते तो…’’

‘‘देखो भाई, उस के खिलाफ तो कलेक्टर गवाह है. उसे जमानत कोर्ट से ही मिलेगी.’’

‘‘सर, बहुत बदनामी होगी. कैसे भी कुछ कीजिए.’’

‘‘आप बिलकुल भोले हैं. आप के भाई को अब 10-20 लाख रुपए भी छुड़ा नहीं सकते.’’

‘‘हां, एक रास्ता मैं बताता हूं. जमानत कराने के लिए जज को मैनेज कर लो. रामधन गुप्ता एडवोकेट हैं. सुबह बात कर लो. सुनो, घर से बाहर के 2 लोगों को बुलाइए, पंचनामा बनाना है.’’

कागजी काररवाई कर पुलिस सुजय को ले कर चली गई. समीर भी उन के साथ चला गया.

सत्यदेव धम्म से सोफे पर बैठ गए. आंखें जो अब तक नम थीं वे बह निकलीं. आंखों के सामने लाचार सुजय का चेहरा घूम गया.

रश्मि, सत्यदेव के बाजू में सिसक रही थी. बड़ी बहू उसे ढाढ़स बंधा रही थी.

सत्यदेव की समझ में नहीं आ रहा था कि कल सुबह किस मुंह से लोगों के सामने जाएंगे. सुबह होते ही यह बात सब जगह फैलेगी. महल्ले के लोग मजे लेने आएंगे.

‘‘रश्मि बेटा और सुजाता, तुम दोनों बच्चों को ले कर सुबह होने से पहले अपनेअपने मायके चली जाओ. जैसे ही सबकुछ ठीक होगा वापस आ जाना.’’

‘‘बाबूजी, इस मुसीबत में मैं मायके चली जाऊं, खबर तो वहां भी पहुंचेगी,’’ रश्मि ने परेशानी के साथ कहा, ‘‘बाबूजी, जब पैसा आ रहा था तो सब को अच्छा लग रहा था, अब परेशानी आई है तो यहीं रह कर झेलेंगे.’’

‘‘ठीक है, जाओ, बच्चों को सुला दो. हां, इन्हें कल स्कूल मत भेजना, समझी.’’

सुबह की पहली किरन फूटी तो पैर में चप्पल डाल कर सत्यदेव, सोमनाथ वकील के यहां चल पड़े. दरवाजे पर पहुंच कर कालबेल दबाई तो अंदर से आवाज आई, ‘‘ठहरो, भगोना ले कर आ रही हूं.’’

दरवाजा खुला. सामने सत्यदेव को खड़ा देख कर मिसेज सोमनाथ झेंप गईं.

‘‘दरअसल, भाई साहब, दूध वाला इसी समय आता है. माफ करेंगे, मैं इन को बुलाती हूं.’’

अंदर से अधिवक्ता सोमनाथ बाहर आए.

‘‘अरे, सत्यदेव, इतनी सुबहसुबह. क्या कोई खास बात है?’’

‘‘हां, आफिस खोलो. वहीं बताता हूं.’’

सोमनाथ ने आफिस खोला. सत्यदेव आफिस के सोफे पर धम्म से बैठ गए. उन के माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं.

‘‘क्या बात है, सत्यदेव, बहुत घबराए हुए हो?’’

‘‘सोमनाथ, मेरे बेटे सुजय को बचा लो. मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूं,’’ इतना कह कर सत्यदेव ने एक सांस में रात की सारी बातें बता दीं. फिर बोले, ‘‘सोमनाथ, इंस्पेक्टर बता रहा था कि कोई रामधन गुप्ता वकील हैं, वही जज को मैनेज कर सकते हैं.’’

‘‘सत्यदेव, यह सब फालतू की बात है. फिर भी अगर वह मैनेज कर लेता है तो अच्छा ही है. हां, उस से अगर काम नहीं होता है तो जेल में डाक्टर किशोर मेरा भतीजा है. उसे कह कर सुजय को अस्पताल में 2 दिन के लिए शिफ्ट कराने की कोशिश करेंगे, और सोमवार को तो तुम्हारे बेटे की जमानत हो ही जाएगी. ऐसा मैं कर सकता हूं. तुम रामधन गुप्ता के यहां जाओ.’’

‘‘कहां रहते हैं वह?’’

‘‘शंकर टावर के फ्लैट नं. 117 में.’’

‘‘ठीक है. मैं वहां काम होने के बाद तुम्हें फोन करता हूं.’’

सत्यदेव आटो से जब रामधन के घर पहुंचे तो वहां की भीड़ देख कर वह हतप्रभ रह गए. आफिस में घुसने लगे तो सामने बैठे व्यक्ति ने उन्हें रोक कर पूछ लिया, ‘‘क्या अपाइंटमेंट है?’’

‘‘नहीं, मुझे इंस्पेक्टर घोरपड़े ने भेजा है.’’

‘‘अरे, तब तो आप खास व्यक्तियों में हैं. आप बस, मेरे पीछेपीछे चले आइए.’’

सत्यदेव उस आदमी के साथ पिछले दरवाजे से एक सुसज्जित ड्राइंगरूम में दाखिल हुए.

‘‘आप बैठिए. रामधनजी आधे घंटे में यहां आएंगे.’’

सत्यदेव कुरसी पर बैठ गए. आंखें बंद कीं तो रात की घटनाएं किसी चलचित्र की तरह उन की आंखों के सामने घूमती रहीं और उन से भयभीत हो कर उन्होंने जब आंखें खोलीं तो सामने काले कपड़ों में कोई वकील खड़ा था.

‘‘आप मिस्टर सत्यदेवजी. हैलो, मैं रामधन गुप्ता. इंस्पेक्टर घोरपड़े का फोन मेरे पास आया था. देखिए, जमानत के लिए 1 लाख रुपए एडवांस लेता हूं. लोवर कोर्ट से साढ़े 12 बजे जमानत रद्द होगी. सी.जी.एम. के यहां प्रार्थनापत्र लगाएंगे और शाम 7 बजे तक आप का बेटा आप के घर. मंजूर है?’’

‘‘काम नहीं हुआ तो?’’ सत्यदेव बोले.

‘‘रुपए 25 हजार काट कर रकम वापस, क्योंकि कभीकभी जज का मूड ठीक नहीं होता.’’

सत्यदेव ने तुरंत समीर को फोन लगाया.

‘‘हैलो समीर, मैं बाबूजी.’’

‘‘बाबूजी, आप हैं कहां? मैं कब से आप को खोज रहा हूं.’’

‘‘बेटा, मैं रामधन वकील साहब के यहां से बोल रहा हूं. इंस्पेक्टर साहब ने इन से मिलने के लिए कहा था न. बेटा, एक लाख रुपए एडवांस मांग रहे हैं. यदि काम नहीं हुआ तो 25 हजार रुपए काट कर 75 हजार रुपए वापस करेंगे.’’

‘‘बाबूजी, आप उन को बताइए कि मैं रकम ले कर आ रहा हूं,’’ समीर ने कहा और फोन कट गया.

सत्यदेव ने रामधन वकील को बताया कि मेरा बेटा रकम ले कर आ रहा है.

‘‘ठीक है, तो आप वकालतनामे पर दस्तखत कर दीजिए. आप के बेटे के आने तक पेपर तैयार हो जाएंगे. आप के लिए चाय भेजता हूं. परेशान मत होइए.’’

सत्यदेव कमरे में अकेले रह गए.

क्या जमाना आ गया है. यहां तो न्याय भी बिकने के लिए तैयार है. पैसा पानी हो गया है. इंस्पेक्टर 2 लाख, जज 1 लाख.

समीर ब्रीफकेस ले कर अंदर दाखिल हुआ तो सत्यदेव को खामोश आंखें बंद किए कुरसी पर बैठा पाया. सामने रखी चाय ठंडी हो गई थी.

तभी रामधन भी कमरे में आ गए.

‘‘सर, यह 1 लाख रुपए हैं.’’

‘‘ठीक है, आप 11 बजे कोर्ट आ जाइएगा. और सुनिए, बाबूजी को मत लाइएगा.’’

‘‘वकील साहब, मेरा बेटा मुसीबत में है,’’ सत्यदेव ने मिन्नत की.

‘‘बाबूजी, आप घर जाइए. मैं कोर्ट चला जाऊंगा. आप को मोबाइल से खबर करता रहूंगा,’’ समीर बोला.

आटो में बैठ कर सत्यदेव बोले, ‘‘गांधी उद्यान चलो.’’

सत्यदेव पार्क में बैठ कर आतेजाते लोगों को देख रहे थे. देखतेदेखते शाम हो आई. वह उठ कर पास के पी.सी.ओे. पहुंचे और समीर को फोन लगाया.

‘‘हैलो, समीर बेटा.’’

‘‘बाबूजी, सुजय की जमानत नहीं हुई. उसे जेल भेज दिया गया है. 2 दिन छुट््टी है. सोमवार को ही जमानत होगी. आप हैं कहां? घर पर मैं कब से मोबाइल लगा रहा हूं.’’

सत्यदेव आगे कुछ बोले नहीं. फोन रख कर पैसे दिए और पी.सी.ओ. से बाहर निकल कर सोच में पड़ गए कि इस समय घर जाऊंगा तो सब दुकानें खुली होंगी. वहां लोग बैठे होंगे. सब एक ही प्रश्न पूछेंगे. इस से तो अच्छा है पहले सोमनाथ वकील के यहां चलता हूं, फिर घर जाऊंगा.

सत्यदेव जब सोमनाथ वकील के कार्यालय पहुंचे तो अंदर कई लोगों को बैठा देख कर वे वहीं खड़े हो कर सब के जाने का इंतजार करने लगे. अंतिम व्यक्ति जब बाहर निकला तो वह अंदर घुसे.

‘‘सोमनाथ, सुजय की जमानत नहीं हुई?’’

‘‘मैं ने तो पहले ही कहा था. खैर, प्रयास तो किया,’’ कहते हुए सोमनाथ ने जेल के डाक्टर को फोन मिला कर कहा, ‘‘हैलो, किशोर, मैं तुम्हारा चाचा बोल रहा हूं. बेटा, एक काम था. जेल में सुजय नाम का एक आरोपी गया है. वह अपने दोस्त सत्यदेव का बेटा है. किसी तरह उसे लोहिया अस्पताल में शिफ्ट करा दो, बेटा,’’ सोमनाथ ने फोन बंद करते हुए सत्यदेव की ओर देखा. बोले, ‘‘सत्यदेव, आधे घंटे बाद लोहिया अस्पताल चलेंगे. किशोर ने कहा है, वह तब तक सुजय को शिफ्ट करा देगा.’’

थोड़ी देर में मिसेज सोमनाथ चायनाश्ता ले कर आईं.

‘‘भाई साहब, आप नाश्ता कर लीजिए.’’

‘‘धन्यवाद,’’ सत्यदेव नाश्ते को देखते रहे और सोचते रहे पता नहीं सुजय ने क्या खाया होगा? आधे घंटे बाद सोमनाथ अंदर से तैयार हो कर सत्यदेव के पास आए तो देखा, चायनाश्ता ज्यों का त्यों पड़ा है. वह बोले, ‘‘अरे, तुम ने तो कुछ भी नहीं लिया.’’

‘‘सोमनाथ, चलो अस्पताल चलते है,’’ इतना कहते हुए सत्यदेव उठ गए तो सोमनाथ ने भी मनोस्थिति को समझते हुए आगे कुछ नहीं कहा.

अस्पताल पहुंचते ही सोेमनाथ को पता चला कि सुजय कैदी वार्ड नंबर 7 के बेड नंबर 14 पर है. दोनों वार्ड नं. 7 में पहुंचे. वार्ड के सामने 4 पुलिस वाले बैठे थे. उन के सामने से हो कर सोमनाथ 14 नंबर बेड के पास पहुंचे. सुजय के हाथ में हथकड़ी लगी हुई थी. हथकड़ी का दूसरा सिरा लोहे के पलंग से बंधा था. उसे छिपाने के लिए सुजय ने चादर डाल रखी थी.

सुजय, सत्यदेव को देख कर रो पड़ा. वह असहाय खड़े रह गए. उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. अचानक आगे बढ़ कर सुजय से लिपट कर वह फफक कर रो पडे़.

‘‘बाबूजी, जिंदगी में कोई गलत काम नहीं करूंगा. मेरे कारण आज सब परेशान हैं. सब की इज्जत मिट्टी में मिल गई. बाबूजी, पैसा कमाने के चक्कर में मैं बेईमानी करने लगा था. खुद बेईमान बना तो सब को बेईमान समझ लिया. सोचता था, सब बिकते हैं परंतु मेरा सोचना गलत था. ईमानदारी के सामने पैसा कुछ भी नहीं है. मुझे माफ कर दो, बाबूजी.’’

‘‘काश, बेटा, पैसे बटोरने की अंधी दौड़ से बचने की कोशिश करते. अब तो पता नहीं कौनकौन से शब्द सुनाएंगे लोग. बात करेंगे तो विषय यही होगा. मैं तो पिता हूं, माफ ही कर सकता हूं लेकिन दूसरे लोग तो इस बात का मजा ही लेंगे,’’ इतना कह कर वह सोमनाथ को साथ ले कर वार्ड से बाहर हो गए.

सीढ़ी उतरतेउतरते सत्यदेव की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा. रेलिंग पकड़ कर संभलने की कोशिश करते कि उन्हें सीने में तेज दर्द उठा और उन का शरीर निढाल हो कर सीढ़ी से लुढ़क गया. जब तक सोमनाथ कुछ समझते और उन्हें संभालने का प्रयास करते सत्यदेव की सांसें थम चुकी थीं. उन की आंखें बेबस खुली हुई थीं.

मेनोपॉज के दौरान बढ़ते वजन से जंग: जानें पीरियड में कैसे घटाएं वजन

मेनोपॉज एक सामान्य प्रक्रिया है जिसका अनुभव महिलाओँ को उम्र बढने के साथ होता है. जब महिलाओँ की माहवारी बंद होती है तब उनके शरीर में कई तरह के बदलाव आते हैं जिसका असर उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति दोनोँ पर पडता है. इस दौरान महिलाओँ का वजन भी बढ सकता है. उम्र बढने के साथ महिलाओँ के लिए वजन पर नियंत्रण रखना कठिन हो सकता है. ऐसा देखा जाता है कि बहुत सारी महिलाओँ का वजन मेनोपॉज होने की प्रक्रिया में बहुत अधिक बढ जाता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मेनोपॉज के दौरान वजन बढने से रोकना मुश्किल होता है. लेकिन अगर आप स्वस्थ जीवनशैली और खान-पान की अच्छी आदतोँ का पालन करती हैं, तो इस अतिरिक्त वजन को बढने से रोका जा सकता है.

1. मेनोपॉज के दौरान वजन बढने के कारण

मेनोपॉज के दौरान, हार्मोनल बदलावोँ की वजह से महिलाओँ के पेट, कूल्हो और जांघोँ के आस-पास अधिक फैट जमा होने की आशंका बढ जाती है. हालांकि मेनोपॉज के दौरान अतिरिक्त वजन बढने के लिए अकेले हार्मोनल बदलाव जिम्मेदार नहीं होते हैं. वजन बढने का सम्बंध बढती उम्र के साथ-साथ जीवनशैली और जेनेटिक कारणोँ के साथ भी होता है. वजन बढने के साथ मांसपेशियोँ का घनत्व कम होने लगता है, जबकि फैट का अनुपात शरीर में बढने लगता है. मसल मास कम होने के कारण  शरीर कैलोरी का इस्तेमाल कम करता है (बीएमआर-बेसल मेटाबोलिक रेट). ऐसे में वजन को स्वस्थ्य सीमा में रखना कठिन हो जाता है. अगर एक महिला अपना खाना-पीना उतना ही रखती है, जितना पहले और साथ में शारीरिक सक्रियता नहीं बढा पाती है तो वह मोटी हो जाती है.

2. जैनेटिक कारण

इसके साथ-साथ, मेनोपॉज सम्बंधी वजन बढने में जैनेटिक कारक भी जिम्मेदार होते हैं. अगर आपकी माँ अथवा अन्य करीबी सम्बंधियोँ का वजन अधिक है तो आपको भी पेट के आस-पास अतिरिक्त फैट जमा होने का खतरा अधिक रहता है. इतना ही नहीं, व्यायाम की कमी, अस्वस्थ्य खान-पान, नींद की कमी आदि कारणोँ से भी वजन बढता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यदि किसी को नींद कम आती है तो वह अतिरिक्त कैलोरी लेकर वजन में बढोत्तरी को न्योता दे देती हैं.

3. एस्ट्रोजन के स्तर से मेनोपॉज के दौरान पडता है वजन पर असर

एस्ट्रोजन की मात्रा कम होने का सबसे आम कारण है मेनोपॉज. ऐसा तब होता है जब महिला के प्रजनन सम्बंधी हार्मोंस कम होने लगते हैं और उनकी माहवारी बंद हो जाती है. ऐसे में महिलाओँ का वजन बढ सकता है. जैसा कि पहले बताया जा चुका है मेनोपॉज के दौरान वजन बढने का एक कारण हार्मोंस के स्तर का घटना-बढना होता है. एस्ट्रोजन हार्मोन दिल को सुरक्षा देता है और इसकी कमी होने पर डायबीटीज और हार्ट डिजीज जैसी समस्याओँ का खतरा तेजी से बढता है. हार्मोनल बदलाव की वजह से अक्सर लोगोँ की सक्रियता कम हो जाती है और उनकी मांसपेशियोँ का घनत्व कम हो जाता है. इसका मतलब है कि ये महिलाएं दिन भर में पहले की तुलना में कम कैलोरी बर्न कर पाती हैं.

4. मेनोपॉज के बाद वजन बढने से होने वाली समस्याओँ के बारे में जानें:

मेनोपॉज के बाद बढने वाले वजन की वजह से तमाम तरह की समस्याओँ का खतरा बढ जाता है:

अत्यधिक वजन, खासकर शरीर के बीच के हिस्से में. टाइप 2 डायबीटीज, दिल की बीमारियोँ और तमाम प्रकार के कैंसर का खतरा बढना, इनमेँ ब्रेस्ट, कोलोन और एंडोमेट्रियल कैंसर का खतरा सबसे अधिक बढ जाता है.

 5. मेनोपॉज के बाद वजन बढने से रोकने के तरीके

शारीरिक रूप से सक्रिय रहें

एरोबिक एक्सरसाइज अथवा स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करेँ इससे आपको वजन घटाने में सहायता मिलेगी. एरोबिक एक्टिविटी जैसे कि तेज कदमोँ से चलना, जॉगिंग जैसे व्यायाम कम से कम हफ्ते में 150 मिनट तक करेँ. इसी प्रकार से स्ट्रेंथ ट्रेनिंग एक्सरसाइज हफ्ते में कम से कम दो बार करेँ.

6. खान-पान की अच्छी आदतेँ अपनाएँ

अपने वजन को स्वस्थ्य सीमा में रखने के लिए संतुलित आहार लेँ और कैलोरी का ध्यान रखें.  पोषण के साथ समझौता किए बिना कैलोरी कम रखने के लिए यह ध्यान रखेँ कि आप क्या खा-पी रहें.

आपके आहार में भरपूर दूध और दूध से बने अन्य उत्पाद भरपूर मात्रा में होने चाहिए ताकि जीवन के इस चरण में आपके लिए जरूरी मात्रा में कैल्शियम मिले.

फल, सब्जियां और साबुत अनाज भरपूर मात्रा में खाएँ खासकर ऐसी चीजेँ जिन्हेँ कम प्रॉसेस किया गया हो और फाइबर से भरपूर हों.

प्लांट-बेस्ड आहार अन्य सभी चीजोँ से बेहतर विकल्प होता है.

फलियां, नट्स, सोया, फिश और कम फैट वाले डेयरी उत्पाद इस्तेमाल करेँ.

रेड मीट कम खाएं इसकी जगह चिकन खाना बेहतर विकल्प हो सकता है.

अतिरिक्त शुगर वाले पेय पदार्थ जैसे कि सॉफ्ट ड्रिंक, जूस, एनर्जी ड्रिंक, फ्लेवर्ड पानी और चाय या कॉफी आदि कम मात्रा में लेँ.

इसके अलावा अन्य चीजेँ जैसे कि कुकीज, पाई, केक, डोनट्स, आइस क्रीम और कैंडी जैसी चीजेँ भी वजन बढने का कारण बनती हैं.

 डॉ. संचिता दूबे, कंसल्टेंट, ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकॉलजी, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा

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