‘‘मैं मैं इस घर में एक भी दिन नहीं रह सकती. मुझे बस तलाक चाहिए,’’ कृति के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन वकील ने मौन साध लिया.
जवाब न सुन कृति का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया, ‘‘आप बोल क्यों नहीं रहे वकील साहब? देखिए मुझे नहीं पता कि कोरोना की क्या गाइडलाइंस हैं. आप ने कहा था कि 1 महीना पूरा होते ही मेरी अर्जी पर कोर्ट फैसला दे देगा,’’ कृति के चेहरे पर परेशानी उभर आई.
‘‘देखिए कृतिजी. कोर्ट बंद हैं और अभी खुलने के आसार भी नहीं तो केस की सुनवाई तो अभी नहीं हो सकती और मैं जज नहीं जो डिसीजन दे कर आप के तलाक को मंजूर कर दूं,’’ वकील ने समझते हुए कहा.
‘‘पर मैं यहां से जाना चाहती हूं. 1 महीने के चक्कर में फंस गई हूं मैं. मुझ से उस आदमी की शक्ल नहीं देखी जा रही जिस ने मुझे धोखा दिया. मैं नहीं रह सकती वैभव के साथ.’’
कृति के शब्दों की झंझलाहट और मन में छिपे दर्द को वकील ने साफ महसूस किया. 2 पल की खामोशी के बाद वह फिर बोला, ‘‘आप अपनी मां के घर चली जाएं.’’
‘‘अरे नहीं जा सकती. इस इलाके को कारोना जोन घोषित कर दिया है. यहां से निकली तो 40 दिन के लिए क्वारंटीन कर दी जाऊंगी,’’ कृति ने हांफते हुए कहा.
‘‘तो बताओ मैं क्या कर सकता हूं?’’ वकील ने कहा.
‘‘आप बस इतना करें कि इस लौकडाउन के बाद मुझे तलाक दिला दें,’’ और कृति ने फोन काट दिया. फिर किचन की ओर मुड़ गई. उस के गले में हलका दर्द था और सिर भारी हो रहा था. एक कप चाय बनाने के लिए जैसे ही उस ने किचन के दरवाजे पर कदम रखा वैभव को अंदर देख कृति के सिर पर गुस्से का बादल जैसे फट पड़ा. पैर पटकते वापस बैडरूम में आ कर लेट गई.
छत पर घूमते पंखे के साथ पिछली यादें उस की आंखों के सामने तैरने लगीं…
दीयाबाती के नाम से मशहूर वैभव और कृति अपने कालेज की सब से हाट जोड़ी थी. दोनों के बीच की कैमिस्ट्री को देख कर न जाने कितने दिल जल कर खाक हुए जाते थे.
कृति के चेहरे पर मुसकान लाने के लिए वैभव रोज नए ट्रिक्स अपनाता. दोनों की दीवानगी कोई वक्ती न थी. अपने कैरियर के मुकाम पर पहुंच वैभव और कृति परिवार की रजामंदी से विवाह के बंधन में बंध गए.
सबकुछ बेहद खूबसूरत चल रहा था लेकिन वह एक शाम दोनों की जिंदगी में बिजली बन कर कौंध गई. प्रेम की मजबूत दीवार पर शक के हथौड़े का वार गहरा पड़ा. वैभव ने लाख सफाई दी कि उस का मेघना के साथ सिर्फ मित्रता का संबंध है लेकिन शक की आग में जलती कृति कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी. 15 दिन बाद दोनों की शादी को 2 साल पूरे हो जाएंगे लेकिन कृति उस से पहले ही वैभव से तलाक चाहती थी. कोर्ट ने एक बार दोबारा विचार करने के लिए दोनों को कुछ समय साथ रहने का फैसला सुनाया था.
वैभव के लाख प्रयासों के बाद भी कृति का मन नहीं बदला बल्कि वैभव की हर कोशिश उसे सफाई नजर आती. नफरत और गुस्से से वह वैभव को शब्दबाणों से घायल करती रहती. वैभव का संयम अभी टूटा नहीं था इसलिए उस ने मौन ओढ़ लिया. केस की अगली सुनवाई तक दोनों को साथ ही रहना था इसलिए मजबूरन कृति वैभव को बरदाश्त कर रही थी.
समय बीत रहा था लेकिन अचानक आए कोरोना के वायरस ने जिंदगी की रफ्तार को जैसे थाम लिया. लौकडाउन लग चुका था. चारों ओर डर और अफरातफरी का माहौल था. कृति अपने मायके जाना चाहती थी लेकिन उन की सोसायटी सील कर दी गई थी क्योंकि उस में कोरोना के केस लगातार बढ़ रहे थे. मन मार कर एक ही छत के नीचे रहती कृति अंदर ही अंदर घुल रही थी.
कृति अपने खयालों में खोई कमरे में चहलकदमी कर रही थी कि ऐंबुलैंस की तेज आवाज से उस का ध्यान भटका. वह भाग कर बालकनी की ओर भागी. सामने वाली बिल्डिंग
के नीचे ऐंबुलैंस खड़ी थी. उस के आसपास पीपीई किट पहने 4 लोग खड़े थे. कृति ने ध्यान दिया तो उसे सामने वाली बिल्डिंग के 4 नंबर फ्लैट की बालकनी में सुधा आंटी रोती नजर आई. ऐंबुलैंस के अंदर एक बौडी को डाला जा रहा था. थोड़ी देर में ऐंबुलैंस सायरन बजाते निकल गई. सुधा आंटी के रोने की आवाज अब साफ नजर आ रही थीं.
ऐंबुलैंस में उन के एकलौते बेटे रजत को ले जाया गया था.
‘‘रजत नहीं रहा,’’ बगल की बालकनी में मुंह लपेटे पारुल खड़ी थी. उस की बात सुन कर कृति का दिल धक से रह गया.
‘‘क्या बोल रही हो पारुल. यार एक ही बेटा था आंटी का… कोई नहीं है उन के पास तो… कैसे बरदाश्त करेंगी वे यह दुख,’’ कृति दुखी स्वर में बोली.
‘‘कारोना जाने कितनों को अपने साथ ले जाएगा. तुम ने मास्क नहीं पहना और तुम बाहर खड़ी हो. इतनी लापरवाही ठीक नहीं कृति,’’
कह कर पारुल अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. घबराई कृति कमरे में आ कर अपने चेहरे और हाथों को साबुन से रगड़ने लगी. सुधा आंटी का विलाप चारों तरफ फैले सन्नाटे में डर पैदा कर रहा था. कृति अपने कमरे को सैनिटाइज कर बिस्तर पर लेट गई. सिर में दर्द और गले की खराश मन में भय की तरंगें बनाने लगी. नाक से बहता पानी मस्तिष्क को बारबार झंझड़ रहा था. लेकिन आंटी और रजत के बारे में सोचतेसोचते उसे गहरी नींद आ गई.
कृति को कमरे से बाहर न निकलते देख वैभव को चिंता हो रही थी. कृति कभी इतनी देर नहीं सोती. रात के 8 बज रहे थे और कृति 4 बजे से कमरे के अंदर थी. रजत के जाने का दुख वैभव को अंदर तक हिला गया. उस पर कृति का कमरे में बंद होना वैभव के मन में हजार आशंकाओं को जन्म दे रहा था. घड़ी की सूई बढ़ती जा रही थी. 9 बज चुके थे. अब वैभव उस के कमरे के दरवाजे के पर जा कर खड़ा हो गया.
‘‘कृति, तुम ठीक हो न? कृतिकृति,’’ दरवाजे को थपथपा कर वह बोला. लेकिन कृति की कोई आवाज नहीं आई. वैभव ने दरवाजे को हलके से धकेला तो कृति को बिस्तर पर बेसुध पाया. उस ने करीब जा कर उस के माथे को छूआ माथा तप रहा था.
‘‘कृतिकृति उठो आंखें खोलो,’’ वैभव उसे झंझड़ कर बोला.
कृति ने अपनी आंखें खोलने की कोशिश की लेकिन खोल नहीं पाई. वैभव तुरंत अपना मास्क चेहरे पर लगा कर ठंडे पानी का कटोरा ले कर उस के सिरहाने बैठ गया. ठंडे पानी की पट्टियां सिर पर रख उस की हथेलियां रगड़ने लगा.
कृति को कुछ होश आया. आंखें खोलीं तो वैभव सामने था. कृति की आंखें लाल थीं. वैभव उसे होश में आया देख तुरंत पैरासिटामोल ले आया और सहारा दे कर दवा उस के मुंह में डाल दी.
कृति को अपना शरीर बिलकुल निष्क्रिय लग रहा था. वह उठ नहीं पा रही थी.
कोरोना उस के शरीर को जकड़ चुका था लेकिन वैभव उस के करीब खड़ा था. यह देख कृति बोली, ‘‘तुम दूर रहो वैभव, मुझे कारोना… तुम भी बीमार हो जाओ,’’ और फिर खांसने लगी. उसे सांस लेने में तकलीफ महसूस हुई.
‘‘तुम शांत रहो. मुझे कुछ नहीं होगा. मैं ने मास्क और दस्ताने पहने हैं और तुम्हें बस वायरल बुखार है कारोना नहीं. घबराओ नहीं. मैं चाय लाता हूं,’’ कह वैभव रसोई में चला गया. थोड़ी देर में चाय और स्टीमर उस के साथ था. कृति को चाय दे कर वैभव ने स्टीमर का प्लग लगाया और उसे गरम करने लगा. कृति चाय पी कर स्टीम लेने लगी. वैभव वहीं खड़ा था.
‘‘तुम जाओ बीमार हो जाओगे. जाओ प्लीज,’’ कृति ने जोर दे कर कहा.
‘‘मैं ठीक हूं. सुबह कोरोना का टैस्ट होगा हमारा. तुम रिलैक्स रहना कृति,’’ वैभव उसे समझते हुए बोला.
कृति ने हां में सिर हिलाया. थोड़ी देर में वह फिर सो गई. कोरोना के लक्षण अभी इतने नहीं दिखाई दे रहे थे लेकिन वैभव डर गया. कृति के मायके फोन कर खबर देने के बाद वैभव ने सारे घर को सैनिटाइज किया. चाय का कप ले कर कृति के कमरे के बाहर ही बैठ गया.
कृति बीचबीच में खांस रही थी और बेचैनी से अपने सीने को रगड़ रही थी. अस्पताल ले जाना खतरनाक था क्योंकि अस्पताल से आती मौत की खबरों ने दहशत फैला रखी थी. वैभव की आंखों में नींद नहीं थी. वह एकटक कृति को देख रहा था. कृति बारबार अपनी गरदन पर हाथ फेर रही थी. बाहर फैला सन्नाटा कोरोना के साथ मिल कर सब के दिलों से खेल रहा था जैसे.
‘‘पा… पानी,’’ कृति के होंठ बुदबुदाए.
वैभव ने भाग कर कुनकुना पानी ला कर कृति के होंठों से लगा दिया. लिटा कर टेम्प्रेचर लेता है. बुखार कुछ कम हुआ था, लेकिन अब भी 102 पर अटका था.
रात भी जाने कितनी लंबी थी जो सरक ही नहीं रही थी. वह कृति के कमरे के बाहर दरवाजे पर टेक लगाए बैठा था. बीचबीच में पुलिस की गाड़ी की आवाज सुनाई देती.
सूरज अपने समय पर उगा. खिड़की से आती सूरज की रोशनी कृति के चेहरे पर पड़ने लगी तो वह जाग गई. शरीर में टूटन थी. सहारा
ले बिस्तर से उठ कर बाथरूम में घुस गई. वैभव दरवाजे के पास ही जमीन पर बेखबर सो रहा था. बाथरूम से बाहर आकर कृति की नजर जमीन पर लेटे वैभव पर पड़ी. वह कसमसा कर रह गई.
2 कदम चलने की हिम्मत भी कृति की नहीं हो रही थी. सांस लेने में तकलीफ होने लगी.वह वैभव को बुलाना चाहती थी लेकिन खांसी के तेज उफान से यह नहीं हो सका. उस के खांसने की आवाज से वैभव की नींद टूट गई. वह हड़बड़ा कर उठा तो देखा कि कृति बिस्तर पर सिकुड़ कर लेटी हुई है. वह अपना मास्क ठीक करता है और उस के पास जा कर उसे सीधा करता है. कृति गले में रुकावट का इशारा करती है. वैभव कुनकुना पानी उस के गले में उतार देता है. कृति को कुछ राहत महसूस होती है.
वैभव की घबराहट कृति के लिए बढ़ती जा रही थी. वह लगातार व्हाट्सऐप पर औक्सीजन सिलैंडर के इंतजाम के लिए मैसेज कर रहा था. औक्सीमीटर और्डर कर वैभव कोरोना हैल्पलाइन सैंटर में कौल कर कृति की स्थिति बताई. वहां से वैभव को कुछ निर्देश मिले. कोरोना टैस्ट के लिए पीपीई किट पहने 2 लोग आए और उन के सैंपल ले गए. मौत का भय कैसे मस्तिष्क को शून्य कर देता है यह वैभव और कृति महसूस कर रहे थे.
बिस्तर पर पड़ी कृति वैभव की उस के लिए चिंता साफ महसूस कर रही थी. प्यार जो स्याहीचूस की तरह कहीं सारी भावनाओं को चूस रहा था एक बार फिर वापस तरल होने लगा.
घर के काम और कृति की देखभाल में वैभव भूल गया था कि कृति उस के साथ बस कुछ दिनों के लिए है. औक्सीमीटर से रोज औक्सीजन नापने से ले कर कृति को नहलाने तक का काम वैभव कर रहा था और कृति उस के प्रेम को धीरेधीरे पी रही थी.
मन में अजीब सी ग्लानि महसूस कर कृति अकसर रो पड़ती. लेकिन वैभव के सामने सामान्य बनी रहती. कृति तकलीफ में थी. मन से भी और शरीर से भी. लेकिन उस के अपनों ने उस से दूरी ही रखी. शायद भय था कि कहीं
कृति उन से कोई मदद न मांग ले. वैभव कोरोना को ले कर औनलाइन सर्च करता रहता. कृति के इलाज के साथ सावधानी और उस की डाइट पर वैभव कोई लापरवाही नहीं करना चाहता था. दिन बीत रहे थे और कृति तेजी से रिकवर कर रही थी लेकिन कमजोरी इतनी थी कि वह खुद के काम करने में भी सक्षम महसूस नहीं कर रही थी. बालकनी में कुरसी पर बैठी कृति शहर के सन्नाटे को महसूस कर रही थी. आसपास के फ्लैट्स की बालकनियों के दरवाजे कस कर बंद पड़े थे शायद सब को उस का कोरोना पौजिटिव होना पता चल गया था. इंसानों के बीच आई यह दूरी कितनी पीड़ादायक थी.
कृति अपने खयालों में खोई थी कि रसोई से आती तेज आवाज से उस का ध्यान भंग हुआ. वह दीवार का सहारा ले कर कमरे से बाहर निकली. रसोई में वैभव अपना हाथ झटक रहा था. फर्श पर दूध का बरतन पड़ा था जिस में से भाप उठ रही थी. माजरा सम?ाते उसे देर न लगी.
कृति बेचैनी से चिल्लाई, ‘‘वैभव ठंडा पानी डालो हाथ पर… जल्दी करो वैभव.’’
‘‘ठीक है. लेकिन तुम जाओ आराम करो परेशान न हो,’’ वैभव ने फ्रिज खोलते हुए कहा.
‘‘मेरी चिंता न करो. मैं ठीक हूं. अपना हाथ दिखाओ,’’ वह चिल्लाई.
वैभव का हाथ लाल हो गया था.
‘‘क्या किया तुम ने यह क्या हाथ से बरतन उठा रहे थे? बरतन गरम है यह तो देख लेते?’’ कृति गुस्से से बोली.
‘‘मेरी चिंता मत करो. वैसे भी अकेले ही रहना है मुझे,’’ अपनी हथेली को कृति की हथेलियों से. छुड़ा कर वह बोला.
‘‘तो तुम क्यों चिंता कर रहे थे मेरी? रातदिन मेरे लिए दौड़ रहे थे… मेरे लिए अपनी नींद खो रहे थे… मरने देते मुझे,’’ कृति की आवाज में दर्द था.
‘‘प्यार करता हूं तुम से. तुम्हारे लिए तो जान भी दे सकता हूं,’’ वैभव न कहा.
‘‘तो क्यों नहीं मुझे रोक लेते?’’ सुबकते हुए कृति बोली.
‘‘मैं ने तो कभी तुम से दूर होने की कल्पना नहीं की. तुम ही मुझ से नफरत करती हो,’’ वैभव रसोई के फर्श पर बैठ गया.
‘‘नफरत. तुमतुम वह मेघना… मैं ने तुम्हें उस के साथ… तुम ने मुझे धोखा क्यों दिया वैभव?’’ कृति तड़प उठी.
‘‘मैं तुम्हें धोखा देने की कल्पना भी नहीं कर सकता. उस रात मेघना को अस्थमा का अटैक आया था. मैं सिर्फ उसे गोद में उठा कर पार्किंग में कार में बैठा रहा था लेकिन तुमने सिर्फ यही देख मु?ा पर शक किया. मेघना को भी अपराधी बना दिया जबकि उस समय वह खतरे में थी,’’ वैभव एक सांस में बोल गया.
कृति खामोश हो नीचे बैठ गई. उस की आंखों से बहता पानी अपनी गलती का एहसास करा रहा था. वैभव उस के गालों पर आंसू देख परेशान हो गया.
‘‘तुम रो क्यों रही हो कृति? देखो अभी तुम्हारी तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं.
सांस लेने में दिक्कत हो जायेगी,’’ वैभव बोला.
‘‘कुछ नहीं होगा मुझे. इस कांरोना संक्रमण ने मेरे शक के संक्रमण को मार दिया है वैभव. मुझे माफ कर दो मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. तुम्हें किसी और के करीब देख मेरी चेतना शून्य हो गई थी. मैं जलन में गलती कर गई. तुम्हारा अपमान किया, तुम पर आरोप लगाए. मुझे माफ कर दो वैभव,’’ कृति हाथ जोड़ कर बिलखने लगी.
‘‘तुम्हारी आंखों में अपने लिए नफरत देख मैं कितना तड़पा हूं तुम नहीं समझ सकती. अब ऐसे रो कर मुझे और तड़पा रही हो. कैसे सोच लिया था तुम ने कि तुम्हारे बिना मैं जिंदा रह पाता. मर जाता मैं,’’ कह कर वैभव ने कृति को बांहों में भींच लिया. दोनों की आंखों से बहता पानी प्रेम के सागर को और गहरा करने लगा.
अगली तारीख पर अपना फैसला सुनाने के लिए कृति ने वैभव के सीने पर चुंबन अंकित कर दिया.