Summer Special: नाश्ते में बनाएं स्वादिष्ट इंदौरी पोहा

पोहा ना केवल स्वादिष्ट होता बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी है. हल्की क्रंची सब्जियां और मुलायम पोहे को मिलाकर बनाये हुये तुरत फुरत बनने वाला वेज पोहा का नाश्ता आप सभी को बहुत पसंद आयेगा.

सामग्री

एक कप पोहा

2 टेबल स्पून कुकिंग ऑयल

1 टी स्पून सरसों के दानें

1 टी स्पून जीरा 1

टी स्पून सौंफ

1 टेबल स्पून कच्ची मूंगफली

½ टी स्पून अदरक (कटी हुई)

2 हरी मिर्च (अच्छी तरह कटी हुई)

7-8 करी पत्ते

½ टी स्पून हल्दी पाउडर

½ टी स्पून लाल मिर्च पाउडर

स्वादानुसार नमक

एक टेबल स्पून चीनी

2 टेबल स्पून धनिया पत्ती (कटी हुई)

1 प्याज (कटा हुआ)

¼ कप अनार के दाने

विधि

सूखे पोहे को साफ कर लें और फिर पानी छिड़ककर गीला कर लें. जब पोहा पूरी तरह पानी सोख ले तो चीनी और नमक डालकर सही तरह मिलाएं.

अब कढ़ाई में तेल गरम कर सरसों के दाने डालें. जब ये तड़क जाएं तो मूंगफली डालकर एक मिनट तक भूनें. एक मिनट बाद इसमें हरी मिर्च और करी पत्ते डालें और प्याज के भूरा होने तक पकायें.

अब इसमें सौंफ, अदरक, हल्दी, लाल मिर्च पाउडर डालकर कुछ मिनट और पकायें. पोहा डालें और अच्छी तरह मिलाएं. कढ़ाई को किसी चीज से ढक दें और 5 मिनट दीमी आंच तक पकायें.

आंच को बंद कर दें और इस पर कटे प्याज, हारा धनिया और अनार के दाने डालें. आपका स्वादिष्ट इंदौरी पोहा तैयार है. आप इस पर नमकीन सेव भी बुरक सकते हैं.

झांकी: क्या हुआ था लल्लाजी के साथ

‘‘चाचाजी, शाम को जन्माष्टमी की झांकी और उत्सव सजेगा. उस के लिए 100 रुपए चंदा दे दीजिए,’’ टोली के अगुवा गप्पू ने बड़ी धृष्टता से कहा. ‘‘100 रुपए. मैं तो 10 रुपए ही दे सकती हूं.’’ ‘‘नहीं, नहीं चाचीजी, जब सब लोग 100 रुपए दे रहे हैं तो आप 50 तो दे ही दीजिए. अरे, कन्हैयालला को दान नहीं करेंगी तो परलोक कैसे सुधरेगा?’’ गप्पू की तेज नजरों ने गुप्ताइन चाची के छोटे से बटुए में 50 का नोट ताड़ कर उन की कमजोर नस पर चोट की थी.

लक्ष्मीजी ने 50 का नोट दिया और जाते बच्चों से बोलीं, ‘‘शाम को प्रसाद भेज देना.’’

गुप्ताजी अपने बरामदे में बैठ सबकुछ देख रहे थे. पत्नी के आते ही बिगडे़, ‘‘बगैर बात के उन छोरों को 50 रुपए पकड़ा आईं.’’

‘‘अब छोड़ो भी. पासपड़ोस का मामला है. मिलजुल कर चलना ही पड़ता है,’’ गुप्ताइन बोलीं.

‘‘हांहां, क्यों नहीं? जन्माष्टमी की झांकी के नाम पर चंदा उगाह कर ये उस से शराब पीएंगे, मुरगा खाएंगे और शाम को झांकी सजाने के नाम पर महल्ले की बीच सड़क को जाम कर देंगे. इस सब में इन का साथ देना भी तो पुण्य का काम है.’’

गुप्ताजी के पड़ोसी मास्टरजी अपने गेट के बाहर खड़े हो कर यह सबकुछ देख रहे थे. दरअसल, वह गुप्ताजी को साथ ले कर लल्ला के खिलाफ शिकायत करने थाने जाना चाह रहे थे पर पतिपत्नी दोनों की तकरार सुन कर वह अकेले ही थाने की ओर चल पडे़.

मास्टरजी को देखते ही थाना प्रभारी रामसिंह उठ खडे़ हुए, ‘‘नमस्ते सर, आप

ने कैसे तकलीफ की?’’ रामसिंह कभी मास्टरजी का छात्र रह चुका था इसलिए भी वह उन का बहुत आदर करता था.

‘‘तकलीफ सिर्फ मुझे नहीं, बल्कि महल्ले भर की है. लज्जत बार कम रेस्तरां वाले लल्लाजी इस साल भी जन्माष्टमी की झांकी सजाने जा रहे हैं. तुम तो जानते ही हो कि पिछले साल इसी वजह से महल्ले की पूरी सड़क जाम हो गई थी. एक तो लल्ला ने गैरकानूनी ढंग से रिहायशी कालोनी में बार और रेस्तरां चला रखा है, जहां आएदिन कसबे भर के लुच्चेलफंगों का जमावड़ा लगा रहता है, दूसरे कभी झांकी तो कभी जागरण के नाम पर लोगों से जबरन चंदा वसूलता है. क्या तुम उसे किसी तरह रोक नहीं सकते?’’

‘‘रोक तो सकता हूं मास्टरजी, पर आप भी उसे जानते हैं कि धर्म के नाम पर भीड़ जमा कर के बखेड़ा खड़ा कर देगा. धार्मिक काम में रोड़ा अटकाया गया, इस पर लंबाचौड़ा बयान दे कर किसी अखबार में इस मुद्दे को उछलवा देगा.’’

‘‘हां, यह तो है,’’ मास्टरजी ने गहरी सांस ली.

‘‘मैं शाम को वहां 2 सिपाही तैनात करवा देता हूं ताकि कोई अप्रिय घटना न घटे,’’ इंस्पेक्टर रामसिंह ने मास्टरजी को आश्वासन दिया.

थाने से लौटते हुए मास्टरजी ने देखा कि लज्जत रेस्तरां के बाहर आधी सड़क को घेर कर बल्ली- तंबू ताने जा रहे थे. दोपहर बीततेबीतते लाउडस्पीकर  पर कानफोड़ ू आवाज में भजनों का प्रसारण शुरू हो गया.

शर्माजी की बहू सीमा बाहर लेटर बाक्स में चिट्ठी देखने के लिए बाहर आई तो उन के पड़ोस की ऋचा स्कूटर बाहर निकाल रही थी.

‘‘कहां चल दी ऋचा, तुम्हारी तो परीक्षा चल रही है?’’

‘‘इसीलिए तो जा रही हूं भाभीजी, इस हल्लेगुल्ले में तो पढ़ाई होने से रही. अपनी एक सहेली के घर जा कर पढूंगी.’’

‘‘वाकई, लाउडस्पीकर के शोर ने तो महल्ले भर को परेशान कर रखा है.’’

शाम ढलने तक झांकियां रोशनी के साथ सजाई जा चुकी थीं. मंदिर से लौटते लोग झांकियां देखने के लिए वहां रुक रहे थे. धीरेधीरे भक्तों की भीड़ से लगभग पूरी सड़क जाम हो गई. वाहनों का निकलना मुश्किल हो रहा था.

दमे की मरीज मां की उखड़ती सांसें देख कर गोपालजी उन्हें कार में डाक्टर के पास ले जाने के लिए निकले तो यह देख कर झल्ला पडे़ कि कोई श्रद्धालु उन के गेट के सामने अपनी लंबी कार खड़ी कर के चला गया था. गोपालजी अपने मित्र पद्मचंदजी के घर तक मां को गोद में उठा कर ले गए और वहां से उन की कार में बैठा कर मां को अस्पताल ले गए.

मंदिर से लौटते हुए एक श्रद्धालु ने पुण्य कमाने के लिए गौ मां के सामने केले डाल दिए. उसे देख सड़क पार की 2-3 गायें और आ जुटीं. कुल्फी वाला अपने ठेला वहां लाया तो उसे देख कर

2-3 और ठेले वाले धंधा करने आ पहुंचे.

भीड़ का जायजा ले रहे दोनों सिपाही, थाना प्रभारी रामसिंह का संदेश पा कर वहां से चले गए, क्योंकि वहां से सटे बाजार में मारपीट की वारदात हो गई थी और उन्हें घटनास्थल पर फौरन पहुंचने का आदेश मिला था.

शहर की ओर से आ रही मिनी बस भीड़ भरे रास्ते पर रेंगती हुई चल रही थी. उस के चालक की नजर सजी हुई झांकी पर पड़ी तो बड़ी श्रद्धा से उस ने स्टीयरिंग छोड़ कर दोनों हाथ जोड़ सिर झुका दिया. उसी एक पल में मिनी बस लहराई और अपने आगे जा रहे हाथ ठेले से जा टकराई. ठेले में लदे लोहे के सरियों में से एक सरिया खिसक कर केले के छिलकों की जुगाली करती गाय की आंख में जा लगा. पीड़ा से उछल कर गाय ने दाएंबाएं सींग चलाए. इस से उस के पास खड़ी 2 गायें और बिदक गईं और उस लकड़ी के खंभे से जा टकराईं जिस पर झांकी का तंबू टिका हुआ था.

गायों के बिदकने से भीड़ में मची अफरातफरी, तंबू के गिरने से भगदड़ में बदल गई. खंभा जिन लोगों पर गिरा वे संभल भी न पाए थे कि भीड़ की भगदड़ से रौंद दिए गए. भगदड़ का लाभ उठाते हुए 3-4 लफंगों ने औरतों के कपड़ों में हाथ डाले तो चीखपुकार मच गई. तभी पास के एस.टी.डी. बूथ से किसी ने थाने में फोन कर दिया.

कुछ ही देर में रामसिंह अपने मातहतों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उधर आसपास के घरों से भी लोग निकल कर बाहर आ गए थे . सभी घायलों को उठाने में मदद कर रहे थे. गंभीर रूप से घायल लोगों को अस्पताल भेजा गया. इस हादसे में 5 लोग अपने जीवन से हाथ धो बैठे थे और 20 से अधिक व्यक्ति घायल हो गए थे.

अगले दिन समाचारपत्र में इस पूरी घटना का विस्तृत वर्णन छपा था. लल्लाजी ने महल्ले की मुख्य सड़क को चौड़ी न करने को ले कर नगर  निगम की जम कर भर्त्सना की थी. पुलिस पर ऐसी भीड़ वाले कार्यक्रम में अनुपस्थित होने का आरोप लगाया गया. मिनी बस चालक के खिलाफ तेज रफतार से बस चलाने पर प्रशासन से काररवाई करने की मांग की गई थी.

उस दिन पूरे रवींद्र नगर में इसी घटना को ले कर चर्चा होती रही. मंदिर के पुजारी ने आकाश की ओर हाथ उठा कर कहा, ‘‘कैसा अहोभाग्य था उन लोगों का जो प्रभु के दर्शन करते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए. इतनी पवित्र मृत्यु सब को कहां नसीब होती है.’’

रात को लल्लाजी और उन के बेटे व भतीजों की बैठक जमी हुई थी. गप्पू बोला, ‘‘चाचा, आखिर क्यों हम हर साल ये झांकियां सजाया करते हैं? हमारा पैसा भी खर्च होता है और फिर कल जैसा हंगामा होने का अंदेशा बना रहता है.’’

‘‘देख गप्पू,’’ लल्लाजी ने मुंह में तली मछली का टुकड़ा रख कर जुगाली की और बोले, ‘‘जैसा धंधा हम बीच महल्ले में बैठ कर कर रहे हैं, उन के साथ कभीकभार ऐसे धार्मिक आयोजन करते रहना चाहिए, ताकि लोगों की नजरें हम से हट कर कुछ समय के लिए इन में उलझ जाएं. हमारे धंधे की सेहत के लिए यह जरूरी है बेटा.’’ द्

फैसला: क्या आदित्य की हो पाई अवंतिका?

‘‘4 साल… और इन 4 सालों में कितना कुछ बदल गया है न,’’ अवंतिका बोली.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं… तुम पहले भी 2 चम्मच चीनी ही कौफी में लिया करती थी और आज भी,’’ आदित्य ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘अच्छा, और तुम कल भी मुझे और मेरी कौफी को इसी तरह देखते थे और आज भी,’’ अवंतिका ने आदित्य की ओर देखते हुए कहा.

आदित्य एकटक दम साधे अवंतिका को देखे जा रहा था. दोनों आज पूरे 4 साल बाद एकदूसरे से मिल रहे थे. आदित्य का दिल आज भी अवंतिका के लिए उतना ही धड़कता था, जितना 4 साल पहले.

आदित्य और अवंतिका कालेज के दोस्त थे. दोनों ने एकसाथ अपनी पढ़ाई शुरू की और एकसाथ खत्म. आदित्य को अवंतिका पहली ही नजर में पसंद आ गई थी, लेकिन प्यार के चक्कर में कहीं प्यारा सा दोस्त और उस की दोस्ती खो न बैठे इसलिए कभी आई लव यू कह नहीं पाया. सोचा था, ‘कालेज पूरा करने के बाद एक अच्छी सी नौकरी मिलते ही अवंतिका को न सिर्फ अपने दिल की बात बताऊंगा, बल्कि उस के घर वालों से उस का हाथ भी मांग लूंगा.’

वक्त कभी किसी के लिए नहीं ठहरता. मेरे पास पूरे 2 साल थे अच्छे से सैटल होने के लिए, लेकिन 2 साल शायद अवंतिका के लिए काफी थे. उस शाम मुझे अवंतिका के घर से फोन आया कि कल अवंतिका की सगाई है. ये शब्द उस समय एक धमाके की तरह थे, जिस ने कुछ समय के लिए मुझे सन्न कर दिया.

मैं ने उसी दिन नौकरी के सिलसिले में बाहर जाने का बहाना बनाया और अपना शहर छोड़ दिया. मैं ने अवंतिका को बधाई देने तक के लिए भी फोन नहीं किया. मैं उस समय शायद अपने दिल का हाल बताने के काबिल नहीं था और अब उस का हाल जानने के लिए तो बिलकुल भी नहीं.

वक्त बदला, शहर बदला और हालात भी. हजार बार मन में अवंतिका का खयाल आया, लेकिन अब शायद उस के मन में कभी मेरा खयाल न आता हो और आएगा भी क्यों, आखिर उस की नई जिंदगी की शुरुआत हो गई है, जिस में उस का कोई भी दोष नहीं था.

मैं ने भी इसे एक अनहोनी मान लिया था या फिर जिस चीज को मैं बदल नहीं सकता उस के लिए खुद को बदल लिया था, लेकिन कहीं न कहीं अधूरापन, एक याद हमेशा मेरे साथ रहती थी.

वक्त की एक सब से बड़ी खूबी कभीकभी वक्त की सब से बड़ी कमी लगती है. शायद, यही मेरी अधूरी प्रेम कहानी का अंत था.

मेरी नौकरी और मेरे नए घर को पूरे 3 साल हो गए थे. रोज की ही तरह मैं अपने औफिस का कुछ काम कर रहा था. आज जल्दी काम हो गया तो अपना फेसबुक अकाउंट जो आज की जेनरेशन में बड़ा मशहूर है, को लौगइन किया. आज पता नहीं क्यों अवंतिका की बहुत याद आ रही थी.

कलैंडर पर नजर पड़ने पर याद आया कि आज तो अवंतिका का जन्मदिन है. मैं ने उस के पुराने मोबाइल नंबर को इस आशा से मिलाया कि अगर उस ने फोन उठा लिया तो उस को जन्मदिन की बधाई दे दूंगा. बहुत हिम्मत कर के मैं ने उस का नंबर मिलाया, लेकिन मोबाइल स्विचऔफ था.

पता नहीं क्यों, दिल ने कहा कि मैं उस को फेसबुक पर ढूंढं़ू, क्या पता खाली समय में वह भी फेसबुक लौगइन करती हो. अवंतिका नाम टाइप करते ही कई अवंतिकाओं की प्रोफाइल मेरी आंखों के सामने आ गई. कोई अवंतिका शर्मा, मल्होत्रा, खन्ना कितनी ही अवंतिका सामने आ गईं, लेकिन मेरी अवंतिका अभी तक नहीं मिली. आशा तो कोई थी नहीं, लेकिन एक अजीब सी निराशा हो रही थी.

अचानक मेरी नजर एक प्रोफाइल पर पड़ी. अवंतिका वर्मा… मुझे आश्चर्य हुआ कि शादी के बाद भी उस का सरनेम नहीं बदला और लोकेशन भी मुंबई की है. लगता है मुंबई के ही किसी शख्स से उस की शादी हुई होगी.

उस ने अपना फोटो नहीं डाला था और सबकुछ लौक कर रखा था. मैं फिर भी उस की प्रोफाइल को बारबार देख रहा था. मुझे विश्वास था यह मेरी ही अवंतिका है, लेकिन मुझे खुद पर विश्वास नहीं था. मैं ने उस को फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी.

एक पुराने दोस्त के नाते वह मेरी रिक्वैस्ट जरूर स्वीकारेगी. उस रात मुझे नींद नहीं आई. मैं मन ही मन यह सोच रहा था कि कितनी बदल गई होगी न वह, शादी के बाद सबकुछ बदल जाता है.  अगर वह मुझे भूल गई होगी तो? अरे, ऐसे कैसे कोई कालेज के दोस्तों को भूलता है, भला? इसी असमंजस में पूरी रात बीत गई.

सुबह होते ही सब से पहले मैं ने फेसबुक अकाउंट चैक किया. आज पता चला कि लोग प्यार को बेवकूफ क्यों कहते हैं? उस दिन मुझे निराशा ही हाथ लगी.

2 दिन तक यही सिलसिला चलता रहा और 2 दिन बाद आखिर वह दिन आ ही गया जिस का मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा था. अवंतिका ने मेरी रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली, लेकिन सबकुछ अच्छा होते हुए भी मुझे अचानक आश्चर्य हुआ, क्योंकि यह अवंतिका वर्मा तो सिंगल थी. उस का रिलेशनशिप स्टेटस सिंगल आ रहा था.

कहीं मैं ने किसी दूसरी अवंतिका को तो रिक्वैस्ट नहीं भेज दी. अचानक एक मैसेज मेरे फेसबुक अकाउंट पर आया. ‘‘कहां थे, इतने दिन तक.’’

यह मैसेज अवंतिका ने भेजा था. वह इस समय औनलाइन थी. मेरा दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था. मन कर रहा था कि उस से सारे सवालों के जवाब पूछ लूं. किसी तरह अपनेआप पर काबू पाते हुए मैं ने जवाब दिया, ‘‘बस, काम के सिलसिले में शहर छोड़ना पड़ा.’’ तभी अवंतिका ने जवाब देते हुए कहा, ‘‘ऐसा भी क्या काम था कि एक बार भी फोन तक करने की जरूरत नहीं समझी.’’

‘‘वह सब छोड़ो, यह बताओ कि शादी के बाद उसी शहर में हो या कहीं और शिफ्ट हो गई हो? और हां, फेसबुक पर अपना फोटो क्यों नहीं डाला? बहुत मोटी हो गई हो क्या,’’ उसे लिख कर भेजा.

‘‘शादी… यह तुम्हें किस ने कहा,’’ अवंतिका ने लिख कर भेजा. ‘‘मतलब…’’ मैं ने एकदम पूछा.

‘‘तुम्हारी तो सगाई हुई थी न.’’ मैं ने लिखा. ‘‘हम्म…’’ अवंतिका ने बस इतना ही लिख कर भेजा.

‘‘तुम अपना नंबर दो मैं तुम्हें फोन करता हूं.’’ अवंतिका ने तुरंत अपना नंबर लिख दिया. मैं ने बिना एक पल गवांए अवंतिका को फोन कर दिया. उस ने तुरंत फोन रिसीव कर कहा, ‘‘हैलो…’’

आज मैं पूरे 4 साल बाद उस की आवाज सुन रहा था. एक पल के लिए लगा कि यह कोई खुली आंखों का ख्वाब तो नहीं. अगर यह ख्वाब है तो बहुत ही खूबसूरत है जिस ख्वाब से मैं कभी बाहर न निकलूं. मुझे खुद पर और उस पल पर विश्वास ही नही हो रहा था. उस की हैलो की दूसरी आवाज ने मुझे अपने विचारों से बाहर निकाला.

मैं ने कहा, ‘‘कैसी हो?’’ ‘‘मैं तो ठीक हूं, लेकिन तुम बताओ कहां गायब हो गए थे. वह तो शुक्र है आजकल की टैक्नोलौजी का वरना मुझे तो लगा था कि अब तुम से कभी बात ही नहीं हो पाएगी.’’

‘‘अरे, ऐसे कैसे बात नहीं हो पाएगी,’’ मैं ने कहा, ‘‘लेकिन तुम यह बताओ कि तुम ने शादी क्यों नहीं की अभी तक?’’ ‘‘अभी तक? क्यों, तुम्हारी शादी हो गई क्या,’’ अवंतिका ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘नहीं हुई,’’ मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘क्या कर रही हो आजकल.’’

उस ने हंसते हुए बताया, ‘‘जौब कर रही हूं. दिल्ली में एक सौफ्टवेयर कंपनी है पिछले 3 साल से वहीं जौब कर रही हूं.’’ ‘‘क्या?’’ मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था. उस पल पर, न अपने कानों पर, न ही अवंतिका पर. कौन कहता है अतीत अपनेआप को नहीं दोहराता? मेरा अतीत मेरे सामने एक बार फिर आ गया था. 3 साल से हम दोनों एक ही शहर में थे और आज इस तरह…‘‘तुम्हें पता है कि मैं कौन से शहर में हूं,’’ मैं ने उस से पूछा. ‘‘नहीं,’’ उस ने कहा. ‘‘मैं भी दिल्ली में ही हूं.’’ ‘‘पता है मुझे,’’ अवंतिका बोली. ‘‘क्या,’’ मैं ने उस से कहा. ‘‘मुझे तुम से मिलना है, जल्दी बोलो कब मिलेंगे.’’ ‘‘ठीक है… जब तुम फ्री हो तो कौल कर देना.’’

‘‘तुम से मिलने के लिए मुझे वक्त निकालने की जरूरत है क्या?’’ ‘‘ठीक है तो कल मिलते हैं.’’ ‘‘हां, बिलकुल,’’ मैं ने तपाक से कहा.आज मुझे अवंतिका से मिलना था. पूरे 4 साल बाद मैं जैसा इस समय महसूस कर रहा हूं, उसे बताने के लिए शब्दों की कमी पड़ रही थी. मेरा दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था, जैसे मानों पेट में तितलियां उड़ रहीं थीं.

जिंदगी भी बड़ी अजीब होती है, जो पल सब से खूबसूरत होते हैं, उन्हीं पर विश्वास करना मुश्किल होता है. जब आप को जिंदगी दूसरा मौका देती है, तो आप चाहते हैं कि हर एक कदम संभलसंभल कर रखें. यही है जिंदगी, शायद ऐसी ही होती है जिंदगी.

मैं एक रेस्तरां के अंदर बैठा अवंतिका का इंतजार कर रहा था और सोच रहा था कि किस सवाल से बातों की शुरुआत करूं. मेरी निगाहें मेन गेट पर थीं. दिल की धड़कन बहुत तेजी से आवाज कर रही थी, लेकिन उसे सिर्फ मैं ही सुन सकता था.

आखिरकार, वह समय आ ही गया. जब अवंतिका मेरे सामने थी. वह बिलकुल भी नहीं बदली थी. उस में 4 साल पहले और अब में कोई फर्क नहीं आया था, मुझे ऐसा लग रहा था कि कल की एक लंबी रात के बाद जैसे आज एक नई सुबह में हम मिले हों. उस के वही पहले की तरह खुले बाल, वही मुसकराहट ओढ़े हुए उस का चेहरा… सबकुछ वही.

मैं ने अवंतिका से पूछा, ‘‘अच्छा, तुम्हारी मम्मी ने तो मुझे बताया था कि तुम्हारी सगाई है. मुझे तो लगा था अब तक तुम्हारी एक प्यारी सी फैमिली बन गई होगी.’’

‘‘हम्म… सोचा तो मैं ने भी यही था, लेकिन जो सोचा होता है अगर हमेशा वही हो तो जिंदगी का मतलब ही नहीं रह जाता. मेरा एक जगह रिश्ता तय हुआ तो था, लेकिन जिस दिन सगाई थी, जिस के लिए मेरी मम्मी ने तुम्हें इन्वाइट किया था, उसी दिन लड़के वालों ने दहेज में कार और कैश मांग लिया, उन्हें बहू से ज्यादा दहेज प्यारा था. मैं ने उसी समय उस लड़के से शादी करने से मना कर दिया. उस दिन काफी दुख हुआ था मुझे, सोचा तुम मिलोगे तो तुम्हें अपनी दिल की व्यथा सुनाऊंगी लेकिन तुम भी ऐसे गायब हुए जैसे कभी थे ही नहीं,’’ अवंतिका ने कहा.

उस वक्त मुझे अपने ऊपर इतना गुस्सा आ रहा था कि काश, मैं उस दिन अवंतिका के घर चला जाता… कितनी जरूरत रही होगी न उस वक्त उस को मेरी. जिस वक्त मैं यह सोच रहा था कि उस के साथ उस का हमसफर होगा उस वक्त उस के साथ तनहाई थी… मैं कितना गलत और स्वार्थी था.

‘‘यहां नौकरी कब मिली,’’ मैं ने अवंतिका से पूछा. ‘‘3 साल पहले,’’ उस ने बताया. 3 साल… 3 साल से हम दोनों एक ही शहर में थे. कभी हम दोनों गलती से भी नहीं टकराए,’’ मैं ने मन में सोचा. आज मैं इस सुनहरे मौके को गवांना नहीं चाहता था. आज मैं वह गलती नहीं करना चाहता था, जो मैं ने 4 साल पहले की थी.

मैं ने अवंतिका का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘अवंतिका मुझे माफ कर दो, पहले मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी कि तुम से अपने दिल की बात कह सकूं, लेकिन आज मैं इस मौके को खोना नहीं चाहता. मैं तुम्हारे साथ जिंदगी बिताना चाहता हूं, बोलो न, दोगी मेरा साथ,’’ अवंतिका मुझे एकटक देखे जा रही थी. उस ने धीरे से पास आ कर कहा, ‘‘ठीक है, लेकिन एक शर्त पर, तुम हफ्ते में एक बार डिनर बनाओगे तो,’’ इतना कह कर वह जोर से हंस दी. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था, लेकिन आखिर पूरे 4 साल बाद मैं अपने खो प्यार से जो मिला था.

 

अपने पराए: संकट की घड़ी में किसने दिया अमिता का साथ

मुहल्ले में जिस ने भी सुना, उस की आंखें विस्मय से फटी की फटी रह गईं… ‘सतीश दास मर गया.’ विस्मय की बात यह नहीं कि मरियल सतीश दास मर गया बल्कि यह थी कि वह पत्नी के लिए पूरे साढ़े 5 लाख रुपए छोड़ गया है. कोई सोच भी नहीं सकता था कि पैबंद लगे अधमैले कपड़े पहनने वाले, रोज पुराना सा छाता बगल में दबा कर सवेरे घर से निकलने, रात में देर से  लौटने वाले सतीश के बैंक खाते में साढ़े 5 लाख की मोटी रकम जमा होगी.

गली के बड़ेबूढ़े सिर हिलाहिला कर कहने लगे, ‘‘इसे कहते हैं तकदीर. अच्छा खाना- पहनना भाग्य में नहीं लिखा था पर बीवी को लखपती बना गया.’’ कुछ ने मन ही मन अफसोस भी किया कि पहले पता रहता तो किसी बहाने कुछ रकम कर्ज में ऐंठ लेते, अब कौन आता वसूल करने.

जीते जी तो सभी सतीश को उपेक्षा से देखते रहे, कोई खास ध्यान न देता जैसे वह कोई कबाड़ हो. किसी से न घनिष्ठता, न कोई सामाजिक व्यवहार. देर रात चुपचाप घर आना, खाना खा कर सो जाना और सवेरे 8 बजे तक बाहर…

महल्ले में लोगों को इतना पता था कि सतीश दास थोक कपड़ों की मंडी में दलाली किया करता है. कुछ को यह भी पता था कि जबतब शेयर मार्केट में भी वह जाया करता था. जो हो, सचाई अपनी जगह ठोस थी. पत्नी के नाम साढ़े 5 लाख रुपए निश्चित थे.

आमतौर पर बैंक वाले ऐसी बातें खुद नहीं बताते, नामिनी को खुद दावा करने जाना पड़ता है. वह तो बैंक का क्लर्क सुभाष गली में ही रहता है, उसी ने बात फैला दी. अमिता के घर यह सूचना देने सुभाष निजी रूप से गया था और इसी के चलते गली भर को मालूम हो गई यह बात.

वह नातेदार, पड़ोसी, जो कभी उस के घर में झांकते तक न थे, वह भी आ कर सतीश के गुणों का बखान करने लगे. गली वालों ने एकमत से मान लिया कि सतीश जैसा निरीह, साधु प्रकृति आदमी नहीं मिलता है. अपने काम से काम, न किसी की निंदा, न चुगली, न झगड़े. यहां तो चार पैसे पाते ही लोग फूल कर कुप्पा हो जाते हैं.

अमिता चकराई हुई थी. यह क्या हो गया, वह समझ नहीं पा रही थी.

उसे सहारा देने दूर महल्ले के मायके से मां, बहन और भाई आ पहुंचे. बाद में पिताजी भी आ गए. आते ही मां ने नाती को गोद में उठा लिया. बाकी सब भी अमिता के 4 साल के बच्चे राहुल को हाथोंहाथ लिए रहते.

मां ने प्यार से माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘मुन्नी, यों उदास न रहो. जो होना था वह हो गया. तुम्हें इस तरह उदास देख कर मेरी तो छाती फटती है.’’

पिता ने खांसखंखार कर कहा, ‘‘न हो तो कुछ दिनों के लिए हमारे साथ चल कर वहीं रह. यहां अकेली कैसे रहेगी, हम लोग भी कब तक यहां रह सकेंगे.’’

‘‘और यह घर?’’ अमिता पूछ बैठी.

‘‘अरे, किराएदारों की क्या कमी है, और कोई नहीं तो तुम्हारे मामा रघुपति को ही रख देते हैं. उसे भी डेरा ठीक नहीं मिल रहा है, अपना आदमी घर में रहेगा तो अच्छा ही होगा.’’

‘‘सुनते हो जी,’’ मां बोलीं, ‘‘बेटी की सूनी कलाई देख मेरी छाती फटती है. ऐसी हालत में शीशे की नहीं तो सोने की चूडि़यां तो पहनी ही जाती हैं, जरा सुखलाल सुनार को कल बुलवा देते.’’

‘‘जरूर, कल ही बुला देता हूं.’’

अमिता ने स्थायी रूप से मायके जा कर रहना पसंद नहीं किया. यह उस के पति का अपना घर है, पति के साथ 5 साल यहीं तो बीते हैं, फिर राहुल भी यहीं पैदा हुआ है. जाहिर है, भावनाओं के जोश में उस ने बाप के घर जा कर रहने से मना कर दिया.

सुभाषचंद्र के प्रयास से वह बैंक में मैनेजर से मिल कर पति के खाते की स्वामिनी कागजपत्रों पर हो गई. पासबुक, चेकबुक मिल गई और फिलहाल के जरूरी खर्चों के लिए उस ने 25 हजार की रकम भी बैंक से निकाल ली.

अब वह पहले वाली निरीह गृहिणी अमिता नहीं बल्कि अधिकार भाव रखने वाली संपन्न अमिता है. राहुल को नगर निगम के स्कूल से हटा कर पास के ही एक अच्छे पब्लिक स्कूल में दाखिल करा दिया. अब उसे स्कूल की बस लाती, ले जाती है.

बेटी घर में अकेली कैसे रहेगी, यह सोच कर मां और छोटी बहन वीणा वहीं रहने लगीं. वीणा वहीं से स्कूल पढ़ने जाने लगी. छोटा भाई भी रोज 1-2 बार आ कर पूछ जाता. अब एक काम वाली रख ली गई, वरना पहले अमिता ही चौका- बरतन से ले कर साफसफाई का सब काम करती थी.

अमिता के मायके का रुख देख कर पासपड़ोस की औरतों ने आना लगभग छोड़ सा दिया. अमिता और उस के मायके वालों की महल्ले भर में कटु आलोचनाएं होने लगीं.

‘‘पैसा क्या मिला दिमाग आसमान पर चढ़ गया है… कोई पूछे, तमाम दुनिया में तुम्हीं एक अनोखी लखपती हो क्या?’’

‘‘हम तो गए थे हालचाल पूछने, घड़ी दो घड़ी बातचीत करने, लेकिन घर वाले यों घूर कर देखते हैं जैसे कुछ चुराने या मांगने आए हों.’’

‘‘लानत भेजो जी, तुम देखना, घर वाले सारा पैसा चूस कर अमिता को छोड़ देंगे…’’

पड़ोसियों की इन बातों से अमिता अनजान नहीं थी. मां ने अफसोस से कहा, ‘‘कैसा सूनासूना लगता है बेटी का गला. बेटी, मेरा हार यों ही पड़ा है. ठहरो, ला देती हूं. गले में कुछ डाले रहो…’’

यही मां है. अभी 2 साल की ही तो बात है, सतीश के साथ एक विवाह में अमिता को जाना पड़ा था. यों तो वह कहीं साथ नहीं जाते थे, लेकिन एक थोक कपड़ा व्यापारी सतीश के खास दोस्त थे, उन के घर विवाह में वह सपरिवार वहां निमंत्रित थे. अमिता के कानों में हलके रिंग थे, लेकिन कलाई और गले में भी तो कुछ चाहिए, सूना गला नहीं जंचता था. मां से हार मांगने गई थी कि शादी में पहनेगी और वापस कर देगी. लेकिन मां ने यह कह कर साफ इंकार कर दिया था कि शादीब्याह की भीड़ में कोई छीन कर भाग जाएगा तो?

और आज वही मां उस के सूने गले में अपना वही हार डालने को बेचैन हैं.

मन में कितनी कटु बातें उमड़ीं, लेकिन वह बोली, ‘‘नहीं मां, वह पुराने फैशन का हार मुझ से नहीं पहना जाएगा. मैं हार बनवा लूंगी…’’

कई बार सतीश से वह झगड़ी थी, ‘कहीं आनाजाना हो तो गले में कुछ तो चाहिए.’ वह चुपचाप सुन लेता.

मां ने सुखलाल सुनार से अमिता के खर्चे पर ही उसे 4 सोने की चूडि़यां बनवा दी थीं, लेकिन वह दोपहर में बिना किसी को कुछ बताए कपड़े बदल कर निकल पड़ी. जौहरी बाजार उस का देखा हुआ था. रिकशे से सीधी वहीं पहुंची और एक दुकान में घुस गई. दुकानदार ने हार दिखाए. दाम पूछ कर उस ने एक हलका सा किंतु कीमती हार चुन लिया. सोने की शुद्धता की गारंटी दुकानदार ने खुद दे दी और साथ में यह भी कहा, ‘‘बहनजी, इसे आप अपनी ही दुकान समझें. कुछ भी लेनादेना  या तुड़वाना हो तो हम सेवा के लिए ही हैं.’’

अमिता लौटी. मन में एक तृप्ति थी. रुपया भी क्या चीज है. उस के मन में एक सुखद अनुभूति थी. हार देख कर मां और बहन की आंखें फटी की फटी रह गईं.

अमिता मन में सोचने लगी कि रुपए के लिए वह बेचारे जिंदगी भर खटते रहे, मेहनत की, न अच्छा खायापिया न पहना और मुझ को लखपती बना गए. उस का मन भर आया. वह सतीश की फोटो के आगे सिर झुका कर बुदबुदाई, ‘तुम्हारी मेहनत के पैसों का…ध्यान रखूंगी…यों ही बरबाद न होने दूंगी…अपनेपराए बहुत पहचान में आ रहे हैं…पैसा सब की कलई उतार देता है…’

पिता नगर निगम की क्लर्की से रिटायर हुए थे. पेंशन से घर चलाना कठिन होने पर कपड़ा मंडी में उन्होंने एक दुकान का बहीखाता लिखने का काम संभाल लिया था. वह एक दिन घबराए हुए आए. बताया कि बरसों पहले आफिस से एक मित्र क्लर्क को बैंक से लोन लेने में उन्होंने अपनी जमानत दी थी. पूरा कर्ज वसूल न हो पाया, मित्र रिटायर हो कर न जाने कहां चला गया है, पता नहीं लगता और बैंक वालों ने उन पर दावा दायर कर दिया है. अब 15 दिनों में रकम जमा न करने पर घर का सामान नीलाम करा लेंगे या मुझे जेल यात्रा करनी पड़ेगी.

पिता के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. मां रोने लगीं.

‘‘कितनी रकम का कर्ज था?’’ अमिता ने सहमते हुए पूछा.

‘‘कर्ज तो 50 हजार का था पर उस ने किस्तों में 30 हजार दे दिए थे, बाकी के 20 हजार का दावा बैंक वालों ने किया है…’’

मां ने रोते हुए अमिता का हाथ पकड़ लिया, ‘‘बेटी, अब तुम्हारे ही ऊपर है, इन्हें जेल जाने से बचाओ…’’

अमिता ने बैंक द्वारा भेजे गए कागज देखने चाहे. पिता का चेहरा उतर गया. बोले, ‘‘बैंक ने अभी तो सम्मन नहीं भेजा है, लेकिन वहां के एक जानपहचान के आदमी ने बताया है कि जल्द भेजने की तैयारी हो रही है. उस ने राय दी है कि मैं मैनेजर से मिल लूं और शीघ्र रुपए की व्यवस्था करूं.’’

‘‘तो कागज आने दीजिए, तब देखेंगे.’’

‘‘तुम बात नहीं समझीं. सम्मन आने पर तुरंत बात फैल जाएगी, क्या इज्जत रहेगी तब?’’

मां ने कातर भाव से कहा, ‘‘बेटी, अब मांबाप की इज्जत तुम्हीं बचा सकती हो.’’

अमिता ने चेकबुक निकाली और पिता के नाम 20 हजार रुपए की राशि भर उन्हें चेक दे दिया.

मांबाप ने आशीर्वाद की झड़ी लगा दी. घर का वातावरण फिर सहज होने लगा.

अमिता ने हिसाब लगाया. खर्च के लिए पहले निकाली रकम 25 हजार लगभग खत्म होने को है. अब यह 20 हजार और बैंक की रकम से निकल गई. यों ही यदि चलता रहा, तो…

सुबह राहुल को स्कूल की बस ले गई तो वह कपड़े बदल कर बैंक के क्लर्क सुभाषचंद्र के घर गई. वह बैंक जाने की तैयारी में थे और उन की पत्नी टिफिन में खाना रख रही थी. दोनों ने बड़े अपनेपन से अमिता का स्वागत किया. सुभाष की पत्नी उस के लिए चाय बनाने चली गई.

‘‘सुभाषजी,’’ अमिता बोली, ‘‘मैं सोचती हूं कि बैंक में पड़ी रकम के लिए कुछ ऐसा उपाय हो कि जब तब उस में से रुपए निकाले न जा सकें, सुरक्षित रहें.’’

‘‘वही तो मैं आप को राय देना चाहता था,’’ सुभाषचंद्र ने उत्साह से कहा, ‘‘आप ने कल 20 हजार का एक चेक भुनवाया है. मेरी सलाह मानिए तो पूरी रकम को 5 साल के लिए फिक्स्ड डिपाजिट में डाल दें. ब्याज भी अधिक मिलेगा और रकम भी सुरक्षित रहेगी.’’

उन्होंने अमिता को विस्तार से चालू और सावधिक खातों के बारे में समझाया. अमिता ने राहुल की फीस, किताब, कापी, कपड़ों और अपने अन्य खर्चों के बारे में बताया तो सुभाष ने कहा, ‘‘आप की जो जमा रकम है, उस पर हर साल 25 हजार से ज्यादा का ब्याज मिलेगा. आप प्रतिमाह 2 हजार उस में से ले सकती हैं. इस के लिए आप को बैंक को लिखित रूप में देना होगा. इतने में तो आप के जरूरी घरेलू खर्च चल जाने चाहिए.’’

उन्होंने राहुल को नौमनी बनाते हुए अमिता को अपना जीवनबीमा करा लेने की सलाह भी दी.

अमिता के आगे सुरक्षा का नया संसार खुल गया. मन की चिंता दूर हो गई. सुभाष के साथ वह बैंक गई और जमा राशि को फिक्स्ड डिपाजिट में करवा देने की काररवाई उसी दिन पूरी कर दी.

बैंक से फोन कर सुभाष ने बीमा कार्यालय के एक एजेंट को वहां बुलवाया और अमिता से परिचय कराते हुए जीवन बीमा पालिसी के बारे में बातें कीं.

एजेंट विवेक ने अमिता को विभिन्न पालिसियों के बारे में समझाया और शाखा कार्यालय में ले जा कर फार्म भरवाने के साथसाथ अन्य जांचों की भी काररवाई पूरी करा दी.

बीमे की किस्त अमिता को हर 3 माह पर नकद देनी थी. विवेक ने जिम्मा लिया कि वह समय पर आ कर रुपए ले जा कर कागजी काररवाई निबटा देगा.

अमिता लगभग 4 बजे घर पहुंची तो सब चिंतित थे. मां ने पूछा, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी, बेटी?’’

‘‘बैंक गई थी मां, कुछ और भी जरूरी काम थे…’’

घर वालों के चेहरे आशंकाओं से घिर गए कि बैंक क्या करने गई थी. पर पूछने का साहस किसी में न हुआ.

2 दिन बाद छोटा भाई ललित आया और बोला, ‘‘दीदी, कालिज से 20 लड़कों का एक ग्रुप विन्टरविकेशन में गोआ घूमने जा रहा है, हर लड़के को 5 हजार जमा करने पड़ेंगे…’’

अमिता ने सख्ती से कहा, ‘‘अभी, गरमियों की छुट्टी में तुम मसूरी घूमने गए थे न? हर छुट्टी में मटरगश्ती गलत है. तुम्हें छुट्टियों में यहीं रह कर वार्षिक परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए. मैं इतने रुपए न जुटा सकूंगी…’’

ललित का चेहरा उतर गया. मां भी अमिता का रुख देख कुछ न कह सकीं.

3 माह पूरे होने पर विवेक आ कर बीमे की किस्त ले गया और कागजों पर उस से हस्ताक्षर भी कराए. अमिता ने साफ शब्दों में मां को बता दिया कि उसे अब राहुल की फीस और ललित की कोचिंग की फीस ही देने योग्य आय होगी, वीणा की फीस पिताजी जैसे पहले देते थे, दिया करें.

विवेक की सलाह से अमिता ने एक स्वयंसेवी संस्था की सदस्यता ग्रहण कर ली. उस के कार्यक्रमों में वह अधिकतर घर के बाहर ही रहने लगी. बाहरी अनुभव बढ़ने और व्यस्तता के चलते अब अमिता का तनमन अधिक खुश रहने लगा.

विवेक से अमिता की अच्छी पटने लगी. अकसर दोनों साथ ही बाहर घूमनेफिरने निकलते. यह देख कर मांपिता सहमते, किंतु सयानी और लखपती बेटी को क्या कहते. उस के कारण घर की हालत बदली थी.

साल भर बाद ही एक दिन अमिता, मां से बोली, ‘‘मां, मैं ने विवेक से विवाह करना तय कर लिया है, तुम्हारा आशीर्वाद चाहिए…’’

मां को तो कानों पर विश्वास ही न हुआ. हतप्रभ सी खड़ी रह गईं. बगल के कमरे से पिताजी भी आ गए, ‘‘क्या हुआ? मैं क्या सुन रहा हूं?’’

‘‘मैं विवेक के साथ विवाह करने जा रही हूं, आशीर्वाद दें.’’

मां फट पड़ीं, ‘‘तेरी बुद्धि तो ठीक है, भला कोई विधवा…’’ तभी विवेक आ गया. उसे देख कर मां खामोश हो गईं. लेकिन आतेआते उस ने उन की बातें सुन ली थीं, अंतत: हंस कर विवेक बोला, ‘‘मांजी, आप किस जमाने की बात कह रही हैं? अब जमाना बदल गया है. अब विधवा की दोबारा शादी को बुरा नहीं समझा जाता. जब हमें कोई आपत्ति नहीं है तो दूसरों से क्या लेनादेना. खैर, आप लोगों का आशीर्वाद हमारे साथ है, ऐसा हम ने मान लिया है. चलो, अमिता.’’

उसी दिन आर्यसमाज मंदिर में उन का विवाह संपन्न हो गया. मन में सहमति न रखते हुए भी अमिता के मातापिता व भाईबहन विवाह समारोह में शामिल हुए. मांपिता ने कन्यादान किया. विवेक के घर में केवल मां और छोटी बहन थीं और विवेक के आफिस के सहयोगी भी पूरे उत्साह के साथ सम्मिलित हुए. साथियों ने निकट के रेस्तरां में नवदंपती के साथ सब की दावत की.

अमिता ने मांपिता के पैर छुए. फिर अमिता के साथ सभी लोग उस के घर आ गए तो विवेक की मां ने कहा, ‘‘समधीजी, अब अमिता को विदा कीजिए. वह अब मेरी बहू है, उसे अपने घर जाने दें…’’

पिता की जबान खुली, ‘‘लेकिन, राहुल…’’

विवेक की मां ने हंस कर कहा, ‘‘राहुल विवेक को बहुत चाहता है, विवेक भी उसे अपने बेटे की तरह प्यार करता है. बच्चे को उस का पिता भी तो मिलना चाहिए.’’

अमिता बोली, ‘‘पिताजी, मेरे इस घर को फिलहाल किराए पर उठा दें. उस पैसे से भाईबहनों की पढ़ाई, घर की देखभाल आदि का खर्च निकल आएगा.’’

चलते समय विवेक ने अमिता के मातापिता से कहा, ‘‘पिताजी, मैं ने अमिता से स्पष्ट कह दिया है कि तुम्हारा जो धन है वह तुम्हारा ही रहेगा, तुम्हारे ही नाम से रहेगा. मैं खुद अपने परिवार, पत्नी और पुत्र के लायक बहुत कमा लेता हूं. आप ऐसा न सोचें कि उस के धन के लालच से मैं ने शादी की है. वह उस का, राहुल का है.’’

फिर मातापिता के पैर छू कर विवेक और अमिता थोड़े से सामान और राहुल को साथ लेकर चले गए.

 

तापसी पन्नू ने अपने पति को क्यों कहा चमकता सितारा

बौलीवुड एक्ट्रेस तापसी पन्नू ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म इंस्टाग्राम पर अपने पति माथियास बो को एक चमकता सितारा कहा है जो अपने आसपास के वातावरण को रोशन कर देता है. तापसी ने लिखा, ‘’मुझे आप पर गर्व है’’.

दरअसल हाल ही में तापसी ने बैडमिंटन प्लेयर माथियास बो से शादी की है. दोनों की शादी मार्च में उदयपुर में हुई थी और तापसी ने अपनी शादी की सभी रस्मों को मीडिया से छिपाकर रखा और इससे जुड़ी कोई भी फोटोज शेयर नहीं की.

दोनों की शादी में सिख और इसाई धर्म की रस्में हुईं. आपको बता दें कि तापसी सिख परिवार से हैं और माथियास बो क्रिशचन फैमिली से बिलौंग करते हैं. दोनों 2013 में इंडियन बैडमिंटन लीग की ओपनिंग सेरेमनी में मिले थे. फिर दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया और दोनों के परिवार मिले. दोनों लोगों ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर चैट करना शुरू किया और फिर मुलाकातों का दौर शुरू हुआ.

शादी का एक वीडियो लीक हुआ था जिसमें तापसी ने लाल रंग का सूट पहना हुआ है और वह अपनी सहेलियों और बहनों के साथ ‘कोठे ते आजा माहिया गाने’ पर डांस कर रही हैं। शादी में ‘थप्पड़’ मूवी के को स्टार पावेल गुलाटी, राइटर कविता ढिल्लों, डायरेक्टर अनुराग कश्यप और करीबी दोस्त और रिश्तेदार शामिल हुए थे.

 

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वर्क फ्रंट की बात करें तो तापसी ‘फिर आई हसीन दिलरुबा’, ‘खेल खेल में’ फिल्मों में नजर आएंगी. इस फिल्म में अक्षय कुमार वाणी कपूर, फरदीन खान, प्रज्ञा जैसवाल प्रमुख भूमिकाओं में हैं. यह मूवी लंबे समय के बाद मिले दोस्तों के इर्द-मिर्द घूमती है. ‘फिर आई हसीन दिलरुबा’ फिल्म ‘हसीन दिलरुबा’ का सीक्वल है जो साल 2021 में ओटीटी प्लैटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर आई थी. इस फिल्म को औडियंस से पॉजीटिव रिस्पौंस मिला था. फिल्म में विक्रांत मेसी, तापसी और हर्षवर्धन राणे लीड रोल्स प्ले कर थे. दूसरे भाग में तापसी के साथ विक्रांत और सनी कौशल स्क्रीन शेयर करते नजर आएंगे.

अपने नाखूनों को नेल आर्ट से बनाइए शार्प और अट्रैक्टिव

कहते हैं कि खूबसूरत और मजबूत नाखून अच्छी सेहत की निशानी होते हैं, इसलिए ये शरीर के बहुत जरूरी अंग माने जाते हैं. युवा महिलाओं में तो इन्हीं नाखूनों यानी नेल्स की एक अलग ही सतरंगी दुनिया होती है जो उन की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. तभी तो महिलाएं अपने नेल्स के साथ खूब ऐक्सपैरिमैंट भी करती रहती हैं.

यही वजह है कि अब साधारण नेल पौलिश की जगह नेल आर्ट ने ले ली है और ब्यूटीपार्लर में बाकायदा महिला अथवा पुरुष नेल आर्टिस्ट या टैक्नीशियन होते हैं जो किसी फंक्शन या महिला की उम्र के मुताबिक नेल्स को शेप और स्टाइल देते हैं और उन में दिलकश रंग भी भरते हैं.

क्या है नेल आर्ट

अब सवाल उठता है कि नेल आर्ट क्या है? क्या इसे कोई भी कर सकता है या इस के लिए कोई प्रोफैशनल डिप्लोमा या कोर्स आदि भी किया जाता है? इन सवालों के जवाब फरीदाबाद, हरियाणा की नेल टैक्नीशियन अर्चना सिंह ने दिए, जिन्होंने औराने इंटरनैशनल ऐकैडमी, लाजपतनगर, नई दिल्ली से नेल आर्ट में डिप्लोमा किया है जिसे प्रोफैशनल भाषा में ‘डीएन डिप्लोमा इन नेल टैक्नोलौजी’ कहा जाता है. इस डिप्लोमा कोर्स की अवधि 45 दिनों की होती है.

अर्चना सिंह ने अपना यह कोर्स पूरा करने के बाद नई दिल्ली के साकेत में स्थित सलैक्ट सिटी वाक मौल में एक आउटलेट ‘नेल ऐंड मोर’ में 1 महीने की ट्रेनिंग की थी और उस के बाद लगभग 6 महीने तक वहीं पर इंटर्नशिप भी की थी.

अपनी ट्रेनिंग और इंटर्नशिप पूरी करने के बाद अर्चना सिंह ने 6 महीने तक एक सैलून में काम किया था और वहां काफीकुछ सीखने के आधार पर वे अब फ्रीलांसिंग के साथसाथ ‘ड्यूड्स ऐंड डौल्स’ में भी बतौर एक नेल टैक्नीशियन काम कर रही हैं.

अर्चना सिंह ने बताया, ‘‘हमारी सोसाइटी में जब मेकअप या ग्रूमिंग की बात की जाती है तो महिलाएं सिर्फ अपने चेहरे, बालों या फिजिकल लुक के बारे में ही सोचती हैं या उस पर ध्यान देती हैं जोकि बिलकुल सही है. लेकिन आमतौर पर ज्यादातर महिलाएं अपने हाथों और पैरों के बारे में न तो बहुत ज्यादा सोचती हैं और न ही उन के लिए किसी तरह की मेकअप सर्विस का इस्तेमाल करती हैं.

‘‘वे अकसर इस बात पर ध्यान नहीं देतीं कि हमारे हाथों की स्किन की संरचना इस प्रकार की है कि अगर इन पर ध्यान न दिया जाए तो ये ही सब से पहले हमें बूढ़ा करना शुरू करते हैं और वहां की स्किन पर झुर्रियां पड़ जाती हैं.

‘‘नेल आर्ट अपने हाथों को सजाने और उन्हें बेहतर तरीके से प्रेजैंट करने का एक बहुत खूबसूरत तरीका है. मैं तो यही कहूंगी की नेल आर्ट बेसिकली सैल्फकेयर है.

‘‘नेल आर्ट के साथ बहुत सी चीजें जुड़ी हैं, जिन में सब से पहले आता है ‘नेल केयर’ और ‘नेल केयर’ की सर्विसेज आप को ‘मैनीक्योर’ और ‘पैडीक्योर’ से मिल सकती हैं. उस के बाद नैचुरल नेल्स को भी सजा सकती हैं. इस के लिए मार्केट में बहुत से प्रोडक्ट्स मिल जाते हैं जैसेकि नेल पेंट्स या फिर आप किसी पेशेवर नेल सैलून में जा कर अपने नेल्स पर नेल आर्ट या नेल ऐक्सटैंशन भी करवा सकती हैं.’’

ट्रैंड में है

वैसे तो काफी समय से महिलाएं अपने नेल्स पर नेल पौलिश लगाती आ रही हैं, पर नेल आर्ट ने इस बाजार को और बड़ा बना दिया है. इस से दिमाग में एक सवाल जरूर उठता है कि नेल आर्ट कैसे ट्रैंड में आया है?

अर्चना सिंह ने बताया, ‘‘अगर हम कुछ समय पहले की बात करें तो तब नेल आर्ट महिलाओं में बहुत ज्यादा पौपुलर नहीं था, लेकिन समय के साथसाथ उन में अपनी सैल्फकेयर को ले कर जागरूकता आ रही है और अब वे नेल आर्ट की तरफ आकर्षित हो रही हैं.

‘‘नेल आर्ट उन महिलाओं के लिए बहुत सहायक साबित हो रहा है, जिन के नैचुरल नेल्स में कुछ दिक्कतें होती हैं. ये समस्याएं उन की नेल्स की ग्रोथ या फिर उन के नेल्स के दिखने से जुड़ी हो सकती हैं. लेकिन नेल आर्ट इंडस्ट्री में लगातार और बहुआयामी इनोवेशन आने से आज मार्केट में बहुत सारे साधन मौजूद हैं, जिन के इस्तेमाल से महिलाओं के नेल्स लंबे समय तक मैंटेन रहते हैं.’’

नेल आर्ट का अभी कौन सा ट्रैंड चल रहा है? इस सवाल के जवाब में अर्चना सिंह ने बताया, ‘‘आज के समय में नेल आर्ट इंडस्ट्री ने काफी तरक्की कर ली है और आज मार्केट में कस्टमर को बहुत सारे प्रोडक्ट्स और सर्विस मिल जाती है.

‘‘वर्तमान में नेल इंडस्ट्री में ‘ऐक्रिलिक’ और ‘जैल’ नेल्स का बहुत ज्यादा ट्रैंड है. ये दोनों अलगअलग प्रकार के कंपोजिट होते हैं जिन से नेल्स का बेस तैयार किया जाता है. अगर आप को लेम नाखून पसंद हैं, लेकिन आप के नाखून कुदरती कुछ कम लंबे हैं तो आप ‘नेल ऐक्सटैंशन’ करवा कर मनमुताबिक नाखून पा सकती हैं.

‘‘अगर कोई महिला किसी प्रोफैशनल नेल टैक्नीशियन या आर्टिस्ट से किसी भी तरह की सर्विस लेती है तो 3 से 4 हफ्तों तक उस के नेल्स बिलकुल अच्छी तरह से मैंटेंड रहेंगे और उसे बारबार अपने नेल आर्टिस्ट के पास चक्कर नहीं लगाने पड़ेगे.’’

कितना खर्चा आता है

अब सवाल यह है कि नेल आर्ट पर कितना खर्चा आता है?

अर्चना सिंह ने बताया, ‘‘नेल आर्ट में बहुत तरह की सर्विस दी जाती हैं और बहुत ही अलगअलग तरह के प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल भी किया जाता है. प्रोडक्ट्स की क्वालिटी भी कई तरह की होती है और मार्केट में कई रेंज में उपलब्ध हैं.

‘‘अगर आप एक प्रोफैशनल नेल टैक्नीशियन से नेल आर्ट से जुड़ी कोई सर्विस लेती हैं जैसेकि नेल ऐक्सटैंशन, जैल पौलिश तो इस का खर्चा करीब ₹12 सौ से ₹15 सौ तक आना चाहिए (यह अनुमानित खर्चा है. यह निर्भर करता है कि आप किस तरह का प्रोडक्ट इस्तेमाल कर रहे हैं).’’

चूंकि नेल आर्ट का चलन बहुत ज्यादा बढ़ रहा है तो बहुत सी लड़कियां इस में अपना कैरियर बनाना चाहती हैं. ऐसे में यह सवाल उठता है कि वे नेल टैक्नीशियन कैसे बन सकती हैं और इस प्रोफैशन का आगे स्कोप क्या है?

ग्रूमिंग का अभिप्राय

अर्चना सिंह ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा, ‘‘नेल आर्ट आज के समय में ग्रूमिंग का अभिप्राय बन चुका है और यह एयरलाइंस इंडस्ट्री में एयर होस्टेस और कैबिन क्रू, होटल इंडस्ट्री, कौरपोरेट सैक्टर इत्यादि में काफी ट्रैंडी है. इस के साथसाथ नेल आर्ट शादीविवाह समारोह या घर के दूसरे कार्यक्रमों के समय कराया जाता है.

‘‘नेल टैक्नोलौजी एक कौस्मैटोलौजी का हिस्सा है. आज के समय में आप कौस्मैटोलौजी ऐकेडमी को अपनी पढ़ाई के एक विषय के तौर पर चुन सकती हैं, जो कई स्कूल और कालेज में उपलब्ध विषय है. कई कालेजों में तो इसे आप अपने मेन सब्जैक्ट की तरह भी चुन सकती हैं. बहुत सारे प्रोफैशनल और अनुभवी नेल आर्टिस्ट अपना नेल आर्ट स्कूल भी चलाते हैं. आप उन से भी यह काम सीख सकती हैं.

‘‘नेल आर्टिस्ट या टैक्नीशियन बनने के लिए सब से पहले एक ट्रेनिंग की जरूरत होती है. एक प्रोफैशनल सर्टिफाइड नेल टैक्नीशियन कोर्स की फीस ₹50 हजार से ले कर ₹80 हजार के बीच हो सकती है. यह जगह के आधार पर कम या ज्यादा भी हो सकती है.

‘‘नेल आर्ट के काम में शुरुआत में एक नेल टैक्नीशियन को करीब ₹12 हजार से ₹15 हजार तक की मासिक सैलरी मिल सकती है. 2-4 वर्ष के अनुभव के बाद यह सैलरी ₹18 हजार से ₹30 हजार तक जा सकती है और भविष्य में इस पेशे में बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं.’’

Nail Art: आमदनी का खूबसूरत जरिया

Summer Special: घर पर बनाएं चटपटी राज कचौड़ी

राज कचौड़ी भारत के प्रमुख चटपटे व्यंजन में से प्रमुख है. लोग नाश्ते में इसे चटकारे लेकर खाना पसंद करते हैं. कचौड़ी और आलू की कोमलता, मसालों का चटपटा स्वाद और अनोखी खुशबू ही इस राज कचौड़ी का स्वाद बढाता हैं.

सामग्री

300 ग्राम मोठ अंकुरित

4 उबले हुए आलू

250 ग्राम मैदा

100 ग्राम बेसन

तलने के लिए तेल

स्वादानुसार नमक

1/2 टी स्पून देगी मिर्च

1 टी स्पून गरम मसाला पाउडर

500 ग्राम दही

1/2 कप इमली की चटनी

1/2 कप हरी चटनी

सजाने के लिए

1 कप अनार के दाने

1 कप बीकानेरी भुजियाए

2 टेबल स्पून बारीक कटा हरा धनिया

विधि

मैदा में पानी मिलाकर अच्छी तरह से गूंध लें. बेसन में थोड़ा-सा तेल, देगी मिर्च और नमक डाल कर गूंध लें.

मैदे की छोटी-छोटी लोइयां बनाएं और उसमें बेसन की छोटी गोली भर कर पूरी के आकार में बेलें. एक कड़ाही में तेल गर्म करें और पूडि़यां को करारा तल लें.

मोठ को उबाल कर उसमें नमक, मिर्च, गरम मसाला, उबले हुए आलू मिलाएं और कचौड़ी में भरे, दही में नमक मिलाएं और तैयार राज कचौड़ी के बीच में डालें ऊपर से मीठी और हरी चटनी डालें.

बीकानेरी भुजिया और अनार के दानों से सजाकर सर्व करें.

 

Summer Special: तेज धूप से कैसे करे त्वचा की रक्षा, फॉलो करें ये टिप्स

गरमी में खुद को सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचा कर रखना जरूरी होता है. अब काम तो रुकते नहीं. घर से बाहर निकलना ही पड़ता है. ऐसे में त्वचा पर तेज धूप की वजह से रैशेज पड़ जाते हैं. धूप का प्रभाव मुख्य रूप से चेहरे, गरदन और बांहों पर पड़ता है, क्योंकि शरीर के यही हिस्से हमेशा खुले रहते हैं. इन्हें धूप के असर से बचाने के लिए आप क्या सावधानियां बरतें, आइए जानें:

  1. घर से बाहर छतरी के बिना न निकलें और अच्छे ब्रैंड के साबुन से दिन में 2 बार नहाएं.
  2. दिन में 2 बार सनब्लौक क्रीम का उपयोग करें. यह क्रीम यूवी किरणों से त्वचा की रक्षा करती है.
  3. सूती वस्त्रों का प्रयोग करें और सारे शरीर को ढक कर रखें.
  4. सनब्लौक क्रीम खरीदते समय सनप्रोटैक्शन फैक्टर यानी एसपीएफ की जांच कर लें.

कपड़ों का चुनाव

  1. कपड़े हमेशा हलके रंग के पहनें. इस से गरमी भी कम लगती है और व्यक्तित्व भी आकर्षक लगता है.
  2. इन दिनों टाइट कपड़े नहीं पहनने चाहिए. पैंट या स्कर्ट अथवा साड़ी तो डार्क कलर की हो सकती है, लेकिन ध्यान रहे कि कमर से ऊपर के कपड़े हलके रंग के होने चाहिए.
  3. काम पर जाती हैं, तो सूती कपड़ों का ही प्रयोग करें.
  4. वैसे जहां तक हो सके शिफौन, क्रैप और जौर्जेट का इस्तेमाल अधिक करें. बड़ेबड़े फूलों वाले और पोल्का परिधान भी इस मौसम में सुकून देते हैं.
  5. ग्रेसफुल दिखने के लिए कौटन के साथ शिफौन का उपयोग कर सकती हैं.
  6. एक और फैब्रिक है, लिनेन. इस का क्रिस्पीपन इसे खास बनाता है.
  7. फैब्रिक्स का बेताज बादशाह है डैनिम. इस का हर मौसम के अनुकूल होना ही इसे खास बनाता है. लेकिन इस मौसम में पहना जाने वाला डैनिम पतला होना चाहिए. मोटा डैनिम सर्दियों में पहना जाता है.

मेकअप

  1. जैलयुक्त फाउंडेशन का इस्तेमाल करें. इस से चेहरा चमकता है.
  2. गालों पर क्रीमी चीजों का इस्तेमाल करें, लेकिन यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि वे ग्रीसी न हों. इस मौसम में हलके गुलाबी या जामुनी रंग का इस्तेमाल सुंदरता को बढ़ाता है.
  3. इस मौसम में चांदी और मोती के बने गहने ही पहनें.
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