इंद्रधनुष: अनुुपम ने कौनसा मजाक किया था

‘‘वाह, आज तो आप सचमुच बिजली गिरा रही हैं. नई साड़ी है क्या?’’ ऋचा को देखते ही गिरीश मुसकराया.

‘‘न तो यह नई साड़ी है और न ही मेरा किसी पर बिजली गिराने का इरादा है,’’ ऋचा रूखेपन से बोली, जबकि उस ने सचमुच नई साड़ी पहनी थी.

‘‘आप को बुरा लगा हो तो माफी चाहता हूं, पर यह रंग आप पर बहुत फबता है. फिर आप की सादगी में जो आकर्षण है वह सौंदर्य प्रसाधनों से लिपेपुते चेहरों में कहां. मैं तो मां से हमेशा आप की प्रशंसा करता रहता हूं. वह तो मेरी बातें सुन कर ही आप की इतनी बड़ी प्रशंसक हो गई हैं कि आप के मातापिता से बातें करने, आप के यहां आना चाहती थीं, पर मैं ने ही मना कर दिया. सोचा, जब तक आप राजी न हो जाएं, आप के मातापिता से बात करने का क्या लाभ है.’’

गिरीश यह सब एक ही सांस में बोलता चला गया था और ऋचा समझ न सकी थी कि उस की बातों का क्या अर्थ ले, ‘अजीब व्यक्ति है यह. कितनी बार मैं इसे जता चुकी हूं कि मेरी इस में कोई रुचि नहीं है.’ सच पूछो तो ऋचा को पुरुषों से घृणा थी, ‘वे जो भी करेंगे, अपने स्वार्थ के लिए. पहले तो मीठीमीठी बातें करेंगे, पर बाद में यदि एक भी बात मनोनुकूल न हुई तो खुद ही सारे संबंध तोड़ लेंगे,’ ऋचा इसी सोच के साथ अतीत की गलियों में खो गई.

तब वह केवल 17 वर्ष की किशोरी थी और अनुपम किसी भौंरे की तरह उस के इर्दगिर्द मंडराया करता था. खुद उस की सपनीली आंखों ने भी तो तब जीवन की कैसी इंद्रधनुषी छवि बना रखी थी. जागते हुए भी वह स्वप्नलोक में खोई रहती थी.

उस दिन अनुपम का जन्मदिन था और उस ने बड़े आग्रह से ऋचा को आमंत्रित किया था. पर घर में कुछ मेहमान आने के कारण उसे घर से रवाना होने में ही कुछ देर हो गई थी. वह जल्दी से तैयार हुई थी. फिर उपहार ले कर अनुपम के घर पहुंच गई थी. पर वह दरवाजे पर ही अपना नाम सुन कर ठिठक गई थी.

‘क्या बात है, अब तक तुम्हारी ऋचा नहीं आई?’ भीतर से अनुपम की दीदी का स्वर उभरा था.

‘मेरी ऋचा? आप भी क्या बात करती हैं, दीदी. बड़ी ही मूर्ख लड़की है. बेकार ही मेरे पीछे पड़ी रहती है. इस में मेरा क्या दोष?’

‘बनो मत, उस के सामने तो उस की प्रशंसा के पुल बांधते रहते हो,’ अब उस की सहेली का उलाहना भरा स्वर सुनाई दिया.

‘वह तो मैं ने विवेक और विशाल से शर्त लगाई थी कि झूठी प्रशंसा से भी लड़कियां कितनी जल्दी झूम उठती हैं,’ अनुपम ने बात समाप्त करतेकरते जोर का ठहाका लगाया था.

वहां मौजूद लोगों ने हंसी में उस का साथ दिया था.

पर ऋचा के कदम वहीं जम कर रह गए थे.‘आगे बढ़ू या लौट जाऊं?’ बस, एकदो क्षण की द्विविधा के बाद वह लौट आई थी. वह अपने कमरे में बंद हो कर फूटफूट कर रो पड़ी थी.

कुछ दिनों के लिए तो उसे सारी दुनिया से ही घृणा हो गई थी. ‘यह मतलबी दुनिया क्या सचमुच रहने योग्य है?’ ऋचा खुद से ही प्रश्न करती. पर धीरेधीरे उस ने अपनेआप को संयत कर लिया था. फिर अनुपम प्रकरण को वह दुस्वप्न समझ कर भूल गई थी. उस घटना को 1 वर्ष भी नहीं बीता था कि घर में उस के विवाह की चर्चा होने लगी. उस ने विरोध किया और कहा, ‘मैं अभी पढ़ना चाहती हूं.’

‘एकदो नहीं पूरी 4 बहनें हो. फिर तुम्हीं सब से बड़ी हो. हम कब तक तुम्हारी पढ़ाई समाप्त करने की प्रतीक्षा करते रहेंगे?’ मां ने परेशान हो कर प्रश्न किया था. ‘क्या कह रही हो, मां? अभी तो मैं बी.ए. में हूं.’ ‘हमें कौन सी तुम से नौकरी करवानी है. अब जो कुछ पढ़ना है, ससुराल जा कर पढ़ना,’  मां ने ऐसे कहा, मानो एकदो दिन में ही उस का विवाह हो जाएगा.

ऋचा ने अब चुप व तटस्थ रह कर पढ़ाई में मन लगाने का निर्णय किया. पर जब हर तीसरेचौथे दिन वर पक्ष के सम्मुख उस की नुमाइश होती, ढेरों मिठाई व नमकीन खरीदी जाती, सबकुछ अच्छे से अच्छा दिखाने का प्रयत्न होता, तब भी बात न बनती.

इस दौरान ऋचा एम.ए. प्रथम वर्ष में पहुंच गई थी. उस ने कई बार मना भी किया कि वरों की उस नीलामी में बोली लगाने की उन की हैसियत नहीं है. पर हर बार मां का एक ही उत्तर होता, ‘तुम सब अपनी घरगृहस्थी वाली हो जाओ, और हमें क्या चाहिए.’

‘पर मां, ‘अपने घर’ की दहलीज लांघने का मूल्य चुकाना क्या हमारे बस की बात है?’ मां से पूछा था ऋचा ने. ‘अभी बहुत भले लोग हैं इस संसार में, बेटी.’ ‘ऋचा, क्यों अपनी मां को सताती हो तुम? कोशिश करना हमारा फर्ज है. फिर कभी न कभी तो सफलता मिलेगी ही,’ पिताजी मां से उस की बातचीत सुन कर नाराज हो उठे तो वह चुप रह गई थी.

पर एक दिन चमत्कार ही तो हो गया था. पिताजी समाचार लाए थे कि जो लोग ऋचा को आखिरी बार देखने आए थे, उन्होंने ऋचा को पसंद कर लिया था.

एक क्षण को तो ऋचा भी खुशी के मारे जड़ रह गई, पर वह प्रसन्नता उस वक्त गायब हो गई जब पिताजी ने दहेजटीका की रकम व सामान की सूची दिखाई. ऋचा निराश हो कर शून्य में ताकती बैठी रह गई थी.‘25 हजार रुपए नकद और उतनी ही रकम का सामान. कैसे होगा यह सब. 3 और छोटी बहनें भी तो हैं,’ उस के मुंह से अनायास ही निकल गया था.

‘जब उन का समय आएगा, देखा जाएगा,’ मां उस का विवाह संबंध पक्का हो जाने से इतनी प्रसन्न थीं कि उस के आगे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थीं. जब मां ने अजित को देखा तो वह निहाल ही हो गईं, ‘कैसा सुंदरसजीला दूल्हा मिला है तुझे,’ वह ऋचा से बोलीं.

पर वर पक्ष की भारी मांग को देखते हुए ऋचा चाह कर भी खुश नहीं हो पा रही थी.

धीरेधीरे अजित घर के सदस्य जैसा ही होता जा रहा था. लगभग तीसरेचौथे दिन बैंक से लौटते समय वह आ जाता. तब अतिविशिष्ट व्यक्ति की भांति उस का स्वागत होता या फिर कभीकभी वे दोनों कहीं घूमने के लिए निकल जाते.

‘मुझे तो अपनेआप पर गर्व हो रहा है,’ उस दिन रेस्तरां में बैठते ही अजित, ऋचा से बोला.

‘रहने दीजिए, क्यों मुझे बना रहे हैं?’ ऋचा मुसकराई.

‘क्यों, तुम्हें विश्वास नहीं होता क्या? ऐसी रूपवती और गुणवती पत्नी बिरलों को ही मिलती है. मैं ने तो जब पहली बार तुम्हें देखा था तभी समझ गया था कि तुम मेरे लिए ही बनी हो,’ अजित अपनी ही रौ में बोलता गया.

ऋचा बहुत कुछ कहना चाह रही थी, पर उस ने चुप रहना ही बेहतर समझा था. जब अजित ने पहली ही नजर में समझ लिया था कि वह उस के लिए ही बनी है तो फिर वह मोलभाव किस लिए. कैसे दहेज की एकएक वस्तु की सूची बनाई गई थी. घर के छोटे से छोटे सदस्य के लिए कपड़ों की मांग की गई थी.

ऋचा के मस्तिष्क में विचारों का तूफान सा उठ रहा था. पर वह इधरउधर देखे बिना यंत्रवत काफी पिए जा रही थी.

तभी 2 लड़कियों ने रेस्तरां में प्रवेश किया. अजित को देखते ही दोनों ने मुसकरा कर अभिवादन किया और उस की मेज के पास आ कर खड़ी हो गईं.

‘यह ऋचा है, मेरी मंगेतर. और ऋचा, यह है उमा और यह राधिका. हमारी कालोनी में रहती हैं,’ अजित ने ऋचा से उन का परिचय कराया.

‘चलो, तुम ने तो मिलाया नहीं, आज हम ने खुद ही देख लिया अपनी होने वाली भाभी को,’ उमा बोली.

‘बैठो न, तुम दोनों खड़ी क्यों हो?’ अजित ने औपचारिकतावश आग्रह किया.

‘नहीं, हम तो उधर बैठेंगे दूसरी मेज पर. हम भला कबाब में हड्डी क्यों बनें?’

राधिका हंसी. फिर वे दोनों दूसरी मेज की ओर बढ़ गईं.

‘राधिका की मां, मेरी मां की बड़ी अच्छी सहेली हैं. वह उस का विवाह मुझ से करना चाहती थीं. यों उस में कोई बुराई नहीं है. स्वस्थ, सुंदर और पढ़ीलिखी है. अब तो किसी बैंक में काम भी करती है. पर मैं ने तो साफ कह दिया था कि मुझे चश्मे वाली पत्नी नहीं चाहिए,’ अजित बोला.

‘क्या कह रहे हैं आप? सिर्फ इतनी सी बात के लिए आप ने उस का प्रस्ताव ठुकरा दिया? यदि आप को चश्मा पसंद नहीं था तो वह कांटेक्ट लैंस लगवा सकती थीं,’ ऋचा हैरान स्वर में बोली.

‘बात तो एक ही है. चेहरे की तमाम खूबसूरती आंखों पर ही तो निर्भर करती है, पर तुम क्यों भावुक होती हो. मुझे तो तुम मिलनी थीं, फिर किसी और से मेरा विवाह कैसे होता?’ अजित ने ऋचा को आश्वस्त करना चाहा.

कुछ देर तो ऋचा स्तब्ध बैठी रही. फिर वह ऐसे बोली, मानो कोई निर्णय ले लिया हो, ‘आप से एक बात कहनी थी.’

‘कहो, तुम्हारी बात सुनने के लिए तो मैं तरस रहा हूं. पर तुम तो कुछ बोलती ही नहीं. मैं ही बोलता रहता हूं.’

‘पता नहीं, मांपिताजी ने आप को बताया है या नहीं, पर मैं आप को अंधेरे में नहीं रख सकती. मैं भी कांटेक्ट लैंसों का प्रयोग करती हूं,’ ऋचा बोली.

‘क्या?’

पर तभी बैरा बिल ले आया. अजित ने बिल चुकाया और दोनों रेस्तरां से बाहर निकल आए. कुछ देर दोनों इस तरह चुपचाप साथसाथ चलते रहे, मानो कहने को उन के पास कुछ बचा ही न हो.

‘मैं अब चलूंगी. घर से निकले बहुत देर हो चुकी है. मां इंतजार करती होंगी,’  वह घर की ओर रवाना हो गई.

कुछ दिन बाद-

‘क्या बात है, ऋचा? अजित कहीं बाहर गया है क्या? 3-4 दिन से आया ही नहीं,’ मां ने पूछा.

‘पता नहीं, मां. मुझ से तो कुछ कह नहीं रहे थे,’ ऋचा ने जवाब दिया.

‘बात क्या है, ऋचा? परसों तेरे पिताजी विवाह की तिथि पक्की करने गए थे तो वे लोग कहने लगे कि ऐसी जल्दी क्या है. आज फिर गए हैं.’

‘इस में मैं क्या कर सकती हूं, मां. वह लड़के वाले हैं. आप लोग उन के नखरे उठाते हैं तो वे और भी ज्यादा नखरे दिखाएंगे ही,’ ऋचा बोली.

‘क्या? हम नखरे उठाते हैं लड़के वालों के? शर्म नहीं आती तुझे ऐसी बात कहते हुए?  कौन सा विवाह योग्य घरवर होगा जहां हम ने बात न चलाई हो. तब कहीं जा कर यहां बात बनी है. तुम टलो तो छोटी बहनों का नंबर आए मां की वर्षों से संचित कड़वाहट बहाना पाते ही बह निकली.

ऋचा स्तब्ध बैठी रह गई. अपने ही घर में क्या स्थिति थी उस की? मां के लिए वह एक ऐसा बोझ थी, जिसे वह टालना चाहती थी. अपना घर? सोचते हुए उस के होंठों पर कड़वाहट रेंग आई, ‘अपना घर तो विवाह के बाद बनेगा, जिस की दहलीज पार करने का मूल्य ही एकडेढ़ लाख रुपए है. कैसी विडंबना है, जहां जन्म लिया, पलीबढ़ी न तो यह घर अपना है, न ही जहां गृहस्थी बसेगी वह घर अपना है.’

जाने और कितनी देर ऋचा अपने ही खयालों में उलझी रहती यदि पिताजी का करुण चेहरा और उस से भी अधिक करुण स्वर उसे चौंका न देता, ‘क्या बात है, ऋचा? हम तुम्हारी भलाई के लिए कितने प्रयत्न करते हैं, पर पता नहीं क्यों तुम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने पर तुली रहती हो.’

‘क्या हुआ, पिताजी?’ ऋचा हैरान स्वर में पूछने लगी.

‘तुम्हें अजित से यह कहने की क्या जरूरत थी कि तुम कांटेक्ट लैंसों का प्रयोग करती हो?’

‘मैं ने जानबूझ कर नहीं कहा था, पिताजी. ऐसे ही बात से बात निकल आई थी. फिर मैं ने छिपाना ठीक नहीं समझा.’

‘तुम नहीं जानतीं, तुम ने क्या कह दिया. अब वे लोग कह रहे हैं कि हम ने यह बात छिपा कर उन्हें अंधेरे में रखा,’ पिताजी दुखी स्वर में बोले.

‘पर विवाह तो निश्चित हो चुका है, सगाई हो चुकी है. अब उन का इरादा क्या है?’ मां ने परेशान हो कर पूछा था, जो जाने कब वहां आ कर खड़ी हो गई थीं.

‘कहते हैं कि वे हमारी छोटी बेटी पूर्णिमा को अपने घर की बहू बनाने को तैयार हैं. पर मैं ने कहा कि बड़ी से पहले छोटी का विवाह हो ऐसी हमारे घर की रीति नहीं है. फिर भी घर में सलाह कर के बताऊंगा. लेकिन बताना क्या है, हमारी बेटियों को क्या उन्होंने पैर की जूतियां समझ रखा है कि अगर बड़ी ठीक न आई तो छोटी पहन ली,’  वह क्रोधित स्वर में बोले.

‘इस में इतना नाराज होने की बात नहीं है, पिताजी. यदि उन्हें पूर्णिमा पसंद है तो आप उस का विवाह कर दीजिए. मैं तो वैसे भी पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं,’ ऋचा ने क्षणांश में ही मानो निर्णय ले लिया.

कुछ देर सब चुप खड़े रहे, मानो कहने को कुछ बचा ही न हो.

‘ऋचा ठीक कहती है. अधिक भावुक होने में कुछ नहीं रखा है. इतनी ऊंची नाक रखोगे तो ये सब यहीं बैठी रह जाएंगी,’ मां ने अपना निर्णय सुनाया.

फिर तो एकएक कर के 8 वर्ष बीत गए थे. उस से छोटी तीनों बहनों के विवाह हो गए थे. ऋचा भी पढ़ाई समाप्त कर के कालिज में व्याख्याता हो गई थी. पिताजी भी अवकाश ग्रहण कर चुके थे.

अब तो वह विवाह के संबंध में सोचती तक नहीं थी. पर गिरीश ने अपने   व्यवहार से मानो शांत जल में कंकड़ फेंक दिया था. अब अतीत को याद कर के वह बहुत अशांत हो उठी थी.

‘‘अरे दीदी, यहां अंधेरे में क्यों बैठी हो? बत्ती भी नहीं जलाई. नीचे मां तुम्हें बुला रही हैं. तुम्हारे कालिज के कोई गिरीश बाबू अपनी मां के साथ आए हैं. अरे, तुम तो रो रही हो. तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ ऋचा की छोटी बहन सुरभि ने आ कर कहा.

‘‘नहीं, रो नहीं रही हूं. ऐसे ही कुछ सोच रही थी. तू चल, मैं आ रही हूं,’’ ऋचा अपने आंसू पोंछते हुए बोली.

ड्राइंगरूम में पहुंची तो एकाएक सब की निगाहें उस की ओर ही उठ गईं.

‘‘आप की बेटी ही पहली लड़की है, जिसे देख कर गिरीश ने विवाह के लिए हां की है. नहीं तो यह तो विवाह के लिए हां ही नहीं करता था,’’ ऋचा को देखते ही गिरीश की मां बोलीं.

‘‘आप ने तो हमारा बोझ हलका कर दिया, बहनजी. इस से छोटी तीनों बहनों का विवाह हो चुका है. मुझे तो दिनरात इसी की चिंता लगी रहती है.’’

ऋचा के मां और पिताजी अत्यंत प्रसन्न दिखाई दे रहे थे.

‘तो मुझ से पहले ही निर्णय लिया जा चुका है?’ ऋचा ने बैठते हुए सोचा. वह कुछ कहती उस से पहले ही गिरीश की मां और उस के मातापिता उठ कर बाहर जा चुके थे. बस, वह और गिरीश ड्राइंगरूम में रह गए थे.

‘‘एक बात पूछूं, आप कभी हंसती- मुसकराती भी हैं या यों ही मुंह फुलाए रहती हैं?’’ गिरीश ने नाटकीय अंदाज में पूछा.

‘‘मैं भी आप से एक बात पूछूं?’’ ऋचा ने प्रश्न के उत्तर में प्रश्न कर दिया, ‘‘आप कभी गंभीर भी रहते हैं या यों ही बोलते रहते हैं?’’

‘‘चलिए, आज पता चल गया कि आप बोलती भी हैं. मैं तो समझा था कि आप गूंगी हैं. पता नहीं, कैसे पढ़ाती होंगी. मैं सचमुच बहुत बोलता हूं. अब क्या करूं, बोलने का ही तो खाता हूं. पर मैं इतना बुरा नहीं हूं जितना आप समझती हैं,’’ गिरीश अचानक गंभीर हो गया.

‘‘देखिए, आप अच्छे हों या बुरे, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. पुरुषों में तो मुझे विशेष रूप से कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘आप के अनुभव निश्चय ही कटु रहे होंगे. पर जीवन में किसी न किसी पर विश्वास तो करना ही पड़ता है. आप एक बार मुझ पर विश्वास तो कर के देखिए,’’ गिरीश मुसकराया.

‘‘ठीक है, पर मैं आप को सबकुछ साफसाफ बता देना चाहती हूं. मैं कांटेक्ट लैंसों का प्रयोग करती हूं. दहेज में देने के लिए मेरे पिताजी के पास कुछ नहीं है,’’ ऋचा कटु स्वर में बोली.

‘‘हम एकदूसरे को समस्त गुणों व अवगुणों के साथ स्वीकार करेंगे, ऋचा. फिर इन बातों का तो कोई अर्थ ही नहीं है. मैं तुम्हें 3 वर्षों से देखपरख रहा हूं. मैं ने यह निर्णय एक दिन में नहीं लिया है. आशा है कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी.’’

गिरीश की बातों को समझ कर ऋचा खामोश रह गई. इतनी समझदारी की बातें तो आज तक उस से किसी ने नहीं कही थीं. फिर उस के नेत्र भर आए.

‘‘क्या हुआ?’’ गिरीश ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘कुछ नहीं, ये तो प्रसन्नता के आंसू हैं,’’ ऋचा ने मुसकराने की कोशिश की. उसे लगा कि आंसुओं के बीच से ही दूर क्षितिज पर इंद्रधनुष उग आया है.

 

मैं 25 वर्षीय अविवाहित युवक हूं. मेरी समस्या अपनी गर्लफ्रैंड को लेकर है

मैं 25 वर्षीय अविवाहित युवक हूं. मेरी समस्या अपनी गर्लफ्रैंड को ले कर है, जो दिल की तो अच्छी है और मुझे प्यार भी करती है, लेकिन वह बातबेबात रूठ जाती है. वह चाहती है कि मैं उसे अकसर घुमाने-फिराने ले जाऊं, मूवी दिखाऊं, शौपिंग कराऊं. वह बारबार फोन कर मुझे परेशान भी करती रहती है. कहती है कि कुछ भीकरो तो बता कर. कभी-कभी लगता है मैं बुरी तरह फंस गया हूं. बताएं मैं क्या करूं?

हर गर्लफ्रैंड यही चाहती है कि उस का बौयफ्रैंड उसे प्रेम करे, उसे समय दे, मूवी दिखाने ले जाए, शौपिंग कराए , उपहार दे. आप की गर्लफ्रैंड भी आप से यही उम्मीद रखती है. अगर आप कामकाजी हैं और आप के पास समय का अभाव है, तो सप्ताहांत या अवकाश के दिन गर्लफ्रैंड को समय जरूर दें. हां, बाकी दिनों में हालचाल लेते रहें.

वह आप को बिना वजह बारबार फोन करती है, तो इस बारे में उस से बात करें और मिलने व घूमने जाने का प्रोग्राम समय के अनुसार तय कर लें. बावजूद इस के वह नहीं मानती और आप को परेशान करे तो उस से दूरी बनाने में ही फायदा है.मैं 29 वर्षीय और 2 बच्चों की मां हूं. हम आगे बच्चा नहीं चाहते और इस के लिए मेरे पति स्वयं पुरुष नसबंदी कराना चाहते हैं. कृपया बताएं कि इस से वैवाहिक जीवन पर कोई असर तो नहीं होगा?

आज जबकि सरकारें पुरुष नसबंदी को प्रोत्साहन दे रही हैं, आप के पति का इस के लिए स्वयं पहल करना काफी सुखद है. आमतौर पर पुरुष नसबंदी को ले कर समाज में अफवाहें ज्यादा हैं. आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि भारत में पुरुष नसबंदी कराने वालों का प्रतिशत काफी निराशाजनक है.दरअसल, पुरुष नसबंदी अथवा वासेक्टोमी पुरुषों के लिए सर्जरी द्वारा परिवार नियोजन की एक प्रक्रिया है. इस क्रिया से पुरुषों की शुक्रवाहक नलिका अवरुद्ध यानी बंद कर दी जाती है ताकि शुक्राणु वीर्य (स्पर्म) के साथ पुरुष अंग तक नहीं पहुंच सकें.

यह बेहद ही आसान व कम खर्च में संपन्न होने वाली सर्जरी है, जिस में सर्जरी के 2-3 दिनों बाद ही पुरुष सामान्य कामकाज कर सकता है. सरकारी अस्पतालों में तो यह सर्जरी मुफ्त की जाती है. अपने मन से किसी भी तरह का भय निकाल दें और पति के इस निर्णय का स्वागत करें.

Summer Special: फैमिली के लिए बनाएं ब्रेड पुडिंग

बच्‍चों को मीठा पसंद होता है और ब्रेड-पुडिंग हो तो बात ही कुछ और है. घर में रखे ब्रेड से आप बच्‍चों के लिए मजेदार पुडिंग बना सकती हैं. ऐसे बनाएं स्‍वादिष्‍ट ब्रेड पुडिंग.

सामग्री

डेढ़ लीटर दूध

12 स्लाइस ब्रेड

2 कप चीनी

1 कप ताजा नारियल कद्दूकस हुआ

एक कप कस्टर्ड पाउडर

बारीक कटा बादाम-पिस्ता-काजू

विधि

– पहले ब्रेड का चूरा कर लें. फिर चूरे को कढ़ाही में थोड़ा भून लें.

– अब धीरे-धीरे इसमें एक लीटर दूध डालें तथा बराबर चलाते रहें.

– इसके बाद इसमें चीनी और नारियल मिलाएं और गाढ़ा करें.

– जमने लायक हो जाए तो कांच के बर्तन में निकाल लें.

– फिर थोड़े दूध में कस्टर्ड पाउडर घोलें व बाकी दूध में चीनी मिलाकर उबालें.

– उबलते दूध में कस्टर्ड मिला लें और लगातार चलाते रहें. गाढ़ा होने पर आंच से उतारें व ब्रेड के मिश्रण के ऊपर फैला लें.

– इसे ड्राई फ्रूट से गार्निश करें और फ्रिज में ठंडा करके सेट करें.

 

क्या है स्लीप डायवोर्स

आलोक के खर्राटे पूरे कमरे में गूंज रहे थे. सीमा कभी करवटें बदलती, कभी तकिया कानों पर रखती, तो कभी सिर आलोक के पैरों की तरफ करती. यही सब करतेकरते रोज रात को 3 बज जाते थे. सुबह उठती तो उस का सिर भारी रहता. बातबात पर चिढ़ती रहती, दिन भर औफिस में काम करना मुश्किल हो जाता. तबीयत हर समय बिगड़ी रहने लगी तो दोनों डाक्टर के पास गए. डाक्टर ने पूरी बात सुनने के बाद स्लीप डायवोर्स के बारे में बात करते हुए दोनों को अलगअलग सोने की सलाह दी, तो दोनों हैरानपरेशान घर लौट आए. 1 हफ्ते में ही भरपूर नींद के बाद सीमा प्रसन्नचित्त और चुस्तदुरुस्त दिखने लगी, तो दोनों इस से खुश हुए और फिर डाक्टर को जा कर धन्यवाद दिया.

आहत न हों भावनाएं

मनोचिकित्सकों के अनुसार, कई पतिपत्नी ऐसे होते हैं, जो अलगअलग सोना चाहते हैं. कारण कई हैं, साथी के बारबार करवट बदलने से, बिस्तर में खर्राटे भरने से नींद डिस्टर्ब होने के कारण वे अलग सोना तो चाहते हैं पर साथी की भावनाएं आहत न हों, इसलिए कह नहीं पाते. कई पतिपत्नी ऐसे भी होते हैं, जो एकदूसरे को प्यार तो बहुत करते हैं पर सोना अलगअलग चाहते हैं और चली आ रही परंपराओं के अनुसार पतिपत्नी को एक बैडरूम में ही सोना चाहिए पर अपने रिश्ते को मजबूत बनाए रखने के लिए जब भी अकेले सोने का मन करे, तो स्लीप डायवोर्स की स्थिति को समझ लेना चाहिए.

स्लीप डायवोर्स है क्या

इसे नाइट डायवोर्स भी कहते हैं. इस का मतलब है पतिपत्नी का अलगअलग सोना. ठीक से न सोने से रिश्ते के साथसाथ हैल्थ भी प्रभावित होती है. कई पतिपत्नियों को जिन्हें नींद न आने की समस्या होती है. उन्हें अलगअलग सोने की सलाह दी जाती है ताकि उन की नींद का स्तर सुधर सके. कम सोने से रिश्ते पर, घर की अन्य समस्याओं पर इस का नकारात्मक असर पड़ सकता है. डाक्टरों के अनुसार, अलगअलग सोने में कुछ भी गलत नहीं है. वास्तव में इस से पतिपत्नी का रिश्ता और मजबूत होता देखा गया है. साथ ही सोना है, यह पुरानी सोच है. कई घरों में पति सुबह जल्दी उठता है, मौर्निंग वौक पर जाता है, जबकि पत्नी थोड़ी देर और सोना चाहती है. यदि वे साथ सोते हैं, तो पत्नी जरूर डिस्टर्ब होगी. तब पति अपनी पत्नी को डिस्टर्ब न करने के खयाल से अपनी सैर छोड़ देता है, जिस से भविष्य में किसी भी तरह की समस्या हो सकती है.

एक दूसरे का खयाल

पढ़नेलिखने की शौकीन कविता बंसल का कहना है, ‘‘मुझे सोने से पहले कुछ पढ़ना अच्छा लगता है. आजकल मैं कुछ कविताएं भी लिख रही हूं. दिन भर घर की व्यस्तता में समय नहीं मिल पाता है. रात में सब कामों से फ्री होने पर मुझे एकांत में अपना यह शौक पूरा करने का समय मिलता है. यदि मैं बैडरूम में रहूंगी तो दिन भर के थके पति को आराम नहीं मिल पाएगा, उन की नींद जरा सी आवाज से ही खुल जाती है, इसलिए मैं दूसरे रूम में ही सो जाती हूं. एकदूसरे के आराम का खयाल रखने से हमारे रिश्ते में प्यार बढ़ा ही है.’’

पतिपत्नी के रिश्ते में सब से महत्त्वपूर्ण चीज है प्यार और विश्वास. अगर साथ सोने से एकदूसरे के आराम और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच रहा हो तो स्लीप डायवोर्स में कोई बुराई नहीं है. अगर एकदूसरे के आराम, नींद का खयाल रखते हुए अलग सो लिया जाए, तो इस से इस रिश्ते को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, बल्कि यह और मजबूत ही होगा, एकदूसरे के लिए प्यार और सम्मान बढ़ेगा. एकदूसरे का खयाल रख कर प्यार से रहें, खुश रहें, चैन से सोएं और सोने दें.

 

Happy Birthday Varun Dhawan: जानिए वरुण के बारे में कुछ खास बातें

Happy Birthday Varun Dhawan. बौलीवुड के चार्मिंग बॉय वरुण धवन आज 37 साल के हो गए हैं. वरुण ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत करण जौहर की फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ से की थी. इस फिल्म को दर्शकों ने खूब पसंद किया था. इस फिल्म में वरुण के साथ एक्ट्रेस आलिया भट्ट और सिद्धार्थ मलहोत्रा ने भी डेब्यू किया था.

वरुण धवन कॉमेडी फिल्म डायरेक्टर डेविड धवन के बेटे हैं। वरुण ने नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी से बिजनेस स्टडीज में ग्रेजुएशन किया. करण जौहर की फिल्म ‘माई नेम इज खान’ में बतौर असिसटेंट डायरेक्टर काम किया.

 

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वरुण धवन को उनके जिगरी दोस्त वरुण शर्मा ने भी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म इंस्टाग्राम पर बर्थडे विश किया है। उनके साथ तस्वीर शेयर करते हुए वरुण शर्मा ने लिखा, “हैप्पी बर्थडे भाई, @varundhawan इश्क है तू” keep shining loveeee you”. दोनों ने दिलवाले फिल्म में साथ काम किया था.

एक इंटरव्यू के दौरान वरुण ने बताया कि, बचपन से उनमें हीरों बनने की इच्छा थी. बचपन में जब वो 10 साल के थे तब एक महिला पर होने वाले अत्याचार को रोका था. दरअसल वरुण ने महिला को चिल्लाते हुए सुना और तुरंत 100 नंबर डायल करके पुलिस को बुला लिया था.

आपको बता दें कि बीते रविवार को वरुण की पत्नी नताशा का बेबी शावर हुआ था. साथ ही वरुण ने उनके घर के बाहर इकट्ठे हुए मीडियाकर्मियों के बीच मिठाई बांटकर खुशी मनाई थी.

 

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वरुण ने अपनी गर्लफ्रेंड नताशा से 24 जनवरी 2021 में शादी की थी. कोरोनावायरस महामारी के कारण शादी में बहुत कम लोग शामिल हुए थे. वर्कफ्रंट की बात करें तो वरुण अपकमिंग थ्रिलर फिल्म ‘बेबी जॉन’ में नज़र आएंगे. इस फिल्म को डायरेक्टर ए. कालीस्वरन ने डायरेक्ट किया हैं. इसके अलावा हॉलीवुड सीरिज सिटाडेल के हिन्दी वर्जन में समांथा रूथ के साथ काम करते नजर आएंगे. इसका हिंदी वर्जन राज और डीके ने बनाया है.

अभिनेत्री विद्या बालन से जाने स्ट्रौंग रिलेशनशिप के राज, पढ़ें इंटरव्यू

फिल्म ‘परिणीता’, ‘लगे रहो मुन्ना भाई’, ‘द डर्टी पिक्चर’ ‘कहानी’ आदि कई फिल्मों से अपने अभिनय की लोहा मनवा चुकी अभिनेत्री विद्या बालन स्वभाव से हंसमुख, विनम्र और स्पष्ट भाषी है. ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ उनके करियर की टर्निंग पॉइंट थी, जिसके बाद से उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. उन्होंने  बेहतरीन परफोर्मेंस के लिए कई अवार्ड जीते. साल 2014 में उसे पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. विद्या बालन आज भी निर्माता,निर्देशक की पहली पसंद है.

अपनी कामयाबी से वह खुश है और मानती है कि एक अच्छी स्टोरी ही एक सफल फिल्म दे सकती है. विद्या तमिल, मलयालम, हिंदी और अंग्रेजी अच्छी तरह से बोल लेती है. विद्या ने हर तरह की फिल्में की है और वह हर किरदार से प्रभावित होती है, लेकिन उन्हे एक्शन पसंद नहीं. उन्हे कॉमेडी और ड्रामा वाली फिल्में करने में मजा आता है. वह कहती है कि मुझे कॉमेडी नाच – गाना, मनोरंजन वाली फिल्मों में अलग – अलग भूमिका में अभिनय करने की इच्छा रहती है और उन्ही स्क्रिप्ट को मैँ खोजती रहती हूँ.

माँ ने दिया सही सोच

विद्या के कामयाब जीवन में उनकी मां का बहुत बड़ा हाथ है. वह कहती है कि मां ने मुझे खुद के बारें में सोचना सिखाया. ये मुझे हमेशा अभी भी याद दिलाती रहती है. साल 2007-08 में जब मुझे मेरे ड्रेस और वजन को लेकर काफी आलोचना की जा रही थी. मैने अभिनय छोड़ने का मन बना लिया था, पर माँ ने मुझे पास बिठाकर समझाया था कि मेहनत करने पर वजन घट जायेगा. किसी के कहने पर मैं हार नहीं मान सकती और मैंने उनकी बात मानी और आज यहाँ पर पहुंची हूँ. उनकी फिल्म ‘दो और दो प्यार’ रिलीज हो चुकी है, जिसमें उनके काम को दर्शक सराह रहे है.

चरित्र पर दिया ध्यान

आप खूबसूरत और सॉफ्ट लुक की धनी होने के बावजूद आपने बहुत सारी फिल्मों में एक स्ट्रॉंग लड़की की भूमिका निभाई है, फिर चाहे शेरनी हो या कहानी आपका लुक बहुत सिम्पल होता है, इसकी वजह के बारें में विद्या कहती है कि मुझे ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ, क्योंकि जब भी कुछ ऑफर हुआ तो लगा कि इस पहलू पर मैंने कभी कोई डिस्कवर, एक कलाकार के रूप में नहीं किया. जब मैँ किसी चरित्र को करने जाती हूँ तो मैँ खुद के बारें में भी डिस्कवर करती हूँ, कि ये भूमिका तो मैने कभी नहीं निभाई, जैसे फिल्म जलसा, हर एक कहानी में नया पहलू खोजने का मौका मिलता है, और कभी नहीं लगा कि निर्देशक ने मुझे सही मौका नहीं दिया. मैंने अपनी ब्यूटी के साथ सज – धजकर कोई फिल्म नहीं की है, उम्मीद है आगे कोई ऐसी फिल्म अवश्य  कर लूँगी.

माड़-धाड़ नहीं पसंद

विद्या आगे कहती है कि मैंने 10 साल बाद फिर से रोमांटिक फिल्म किया है, मुझे ये जोनर काफी समय बाद मिला है. आजकल रोमांटिक और लव स्टोरी वाली फिल्में बहुत कम बन रही है, लव स्टोरी अब नहीं बन रही है. आज के सारे कंटेन्ट से मैँ बहुत फैड अप हो चुकी हूँ, दर्शक के रूप में भी मैँ ऐसी फिल्में देखना नहीं चाहती. आज की फिल्मों में माड़ – धाड़ , एक्शन, गोली चलना, इंटेन्स सीन्स आदि सब है, इंसान मक्खियों की तरह ढेर हो रहे है, ये सारी फिल्में मुझे पसंद नहीं. उसी समय मुझे ये फिल्म मिली, जिसमें हँसना, हँसाना, रोमांटिक कॉमेडी आदि है, जिसे मुझे करना पसंद आया. इस फिल्म में एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ैयर के साथ -साथ, लवर्स भी एक दूसरे को धोखा दे रहे है और मैंने ऐसा कभी पहले नहीं सुना था. बहुत ही अलग कहानी है, हालांकि ऐसी कहानी देखने में बहुत फनी लगती है, लेकिन जिसके जीवन में होता है, उनके लिए ये अच्छी बात नहीं होती.लोग एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ैयर करते है, लेकिन देखा जाए, तो बाहर के रिश्ते से जो रिश्ता आपके पास होता है, वही सबसे अच्छा रिश्ता होता है.

खूबसूरत रिश्ता पति-पत्नी का

विद्या बताती है कि मेरा अनुभव है कि पति-पत्नी को एक दूसरे के साथ लगातारसमय बिताना बहुत जरूरी होता है, एक दूसरे के जीवन में क्या चल रहा हैं उसकी चर्चा आवश्यक होता है. भले ही आप साथ -साथ खाना खाते है, मूवी देखते है या लॉंग ड्राइव पर जाते है आदि करते रहते है, पर अधिक से अधिक समय एक दूसरे के साथ बिताना जरूरी होता है और अपनी भावनाओं को सही-सही एक दूसरे के लिए शेयर करना भी आवश्यक होता है. ये मैँ खुद हमेशा करती हूँ, क्योंकि मैँ किसी बात को ढककर नहीं रख सकती, जो मेरे मन मे होता है, उसे उसी रूप में कह देती हूँ. मेरे पति सिद्धार्थ रॉय कपूर भी इसमे मेरा पूरा साथ देते है और मुझे पूरी समय देते है. इससे कपल्स को नई चीजों को ट्राई करने का मौका मिलता है. किसी रिश्ते को अगर कोई टिकाना चाहता है तो उसे बनाए रखने के लिए काउन्सलर की मदद लें, उस पर कुछ वर्क करें, लेकिन अगर आप उस रिश्ते से बाहर आना चाहते है, तो अपना समय नष्ट न करें, क्योंकि आपको दूसरा प्यार मिल सकता है और आपको खुश रहने का एक अच्छा मौका भी मिल सकता है.

यूथ है कन्फ्यूज़्ड

आज के जेनरेशन किसी भी रिलेशनशिप को अलग नजरिए से देखती है, जिसे विद्या कन्फ्यूज़िंग मानती है. वह कहती है कि मैँ इस दौर में सिंगल नहीं हूँ. आज के यूथ किसी सामान को ऑनलाइन ऑर्डर कर ठीक न होने पर वापस कर देने में विश्वास रखते है, वैसा ही वे किसी रिश्ते के साथ भी करते है, अगर ठीक नहीं है, तो वापस कर कुछ नया ट्राय करना पसंद करते है. नई जेनरेशन के लिए बहुत कन्फ्यूज़िंग समय है.

महिलाओं को हो आजादी

विद्या हँसती हुई कहती है कि एक चीज जो मैँ भी यहाँ कहने से परहेज नहीं करती,मैगज़ीन के हर कवर पर महिलाओं की सेक्सी फोटो लगा दिया जाता है, जिसे पुरुष मजे से देखते है. किसी पुरुष की भी सेक्सी फोटो लगाने से वे क्यों कतराते है, मुझे पता नहीं. महिलाओं को भी अपनी आंखे सेकने के लिए कुछ ऐसी चीजें होनी चाहिए और मुझे रणवीर सिंह की सेक्सी कवर बहुत अच्छी लगी थी, जिसपर मैंने कमेंट्स भी किये थे. केवल महिलाओं कोआब्जेक्टिफाइ न कर, पुरुषों को भी आब्जेक्टिफाइकरने की जरूरत है.

आगे विद्या भूल भुलैया 3 में फिर से मंजूलिका की भूमिकाएक बार फिर निभा रही है,उनकी ये अलग तरीके की भूमिका है, जिसे लेकर वह काफी खुश है, उनकी उम्मीद है दर्शक इसे पसंद करेंगे.

 

कुछ ऐसे संवारें बच्चों का कल

श्रुति की जिद थी कि उसे आगे की पढ़ाई होस्टल में रह कर ही करनी है वहीं उस की मां इस के जरा भी पक्ष में नहीं थीं. श्रुति का देर तक सोना, अपने मैले कपड़े बाथरूम में छोड़ देना, खाने पर सौ नखरे करना जैसे कई कारण मां की धारणा को पुख्ता कर रहे थे. उधर श्रुति का कहना था कि सिर पर पड़ेगा तो सब सीख जाऊंगी. लेकिन मां को कहने भर से भला विश्वास कैसे होता.

एक दिन श्रुति की सहेली मिताली उस से मिलने आई. मां ने चाय का पूछा तो मिताली ने कहा, ‘‘आंटी, आप बैठिए, चाय मैं बना कर लाती हूं.’’

मां उसे आश्चर्य से देख रही थीं. मिताली तुरंत रसोई में गई और 3 कप चाय बना लाई, साथ में बिस्कुट और नमकीन भी रखा था. मां ने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन एक चुभती सी निगाह श्रुति पर डाल कर चाय पीने लगीं.

‘‘तूने ये सब कब सीख लिया?’’ श्रुति ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘अरे यार, क्या बताऊं… तु झे तो पता है न कि इंजीनियरिंग के लिए बाहर का कालेज मिला है. 2 महीने बाद जाना है. सोचा कुछ प्री ट्रेनिंग ही ले लूं ताकि अनजान जगह पर परेशान न होना पड़,’’ मिताली ने कहा, ‘‘तु झे पता है नेहा के साथ पिछले साल क्या हुआ था जब वह एमबीए करने पुणे गई थी?’’

‘‘क्या?’’ मां बीच में ही बोल पड़ीं, ‘‘होस्टल का खाना उसे अच्छा नहीं लगा तो वह एक पीजी में रहने लगी, लेकिन वहां भी एकसाथ कई लड़कियों का खाना बनता था. नेहा को वह खाना भी नहीं जंचा. जंचता भी कैसे? कहां राजस्थान और कहां महाराष्ट्र.

अब खुद को तो कुछ बनाना आता नहीं था सो बाहर से मंगवाने लगी. नतीजा, होटल का खाखा कर वजन तो बढ़ा ही, पेट भी खराब रहने लगा. जांच में पता चला पेट में अल्सर हो गया. अब तो सब से कहती है कि बाहर का रोज खाने से तो अच्छा है खिचड़ीदलिया बना लो,’’ मिताली ने नेहा की पूरी कहानी सुनाई तो श्रुति की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘‘मैं कहती हूं न कि कुछ बनाना, करना सीख ले, लेकिन इसे कुछ सम झ में आए तब न? देखना यह भी नेहा की ही तरह परेशान होगी. अरे घर से बाहर अकेले रहना आसान है क्या?’’ मां ने श्रुति को सुनाते हुए कहा. आखिर वह भी तो इसी नाव की सवारी करना चाह रही थी.

अरे आंटी, सिर्फ खाना ही तो एक समस्या नहीं होती न और भी गम हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा,’’ शायराना होने के साथ ही मिताली ने एक जोरदार ठहाका लगाया.

तो जानते हैं कि घर से बाहर रहने जा रहे युवाओं को वे कौन सी खास बातें जाननीसीखनी चाहिए जो उन के प्रवास को परेशानी रहित बना सकती है:

व्यक्तिगत ट्रेनिंग

–  घर से बाहर निकलने के बाद सब से पहली समस्या खाने को ले कर आती है. यों तो अमूमन सभी संस्थाओं में होस्टल के साथसाथ मेस की व्यवस्था भी होती है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि रोज बनने वाला सामूहिक खानानाश्ता आप की पसंद का ही हो, इसलिए आप को कुछ बेसिक फूड बनाना आना चाहिए और वे खास डिशेज भी जो आप को पसंद हों.

–  खाना आप ने बना लिया तो बरतन भी इस्तेमाल किए होंगे, लेकिन सब जानते हैं कि बरतन साफ करना कितनी टेढ़ी खीर है. घर में अवश्य सहायिका आती होगी, लेकिन यहां तो यह काम खुद आप को ही करना पड़ेगा, इसलिए बरतन

मांजने की ट्रेनिंग भी बाहर जाने वालों के लिए जरूरी है.

–  खाना बनाने के लिए जिस उपकरण का उपयोग किया गया यथा हीटर, गैस स्टोव या फिर इंडक्शन प्लेट तो इस के रखरखाव की सामान्य जानकारी भी आप को होनी चाहिए.

–  खाने के बाद बारी आती है कपड़ों की. रोज पहनने या फिर चद्दरतौलिए बेशक धोबी से धुलवाए जा सकते हैं, लेकिन अंतर्वस्त्र तो खुद ही धोने चाहिए. आपात स्थिति के लिए कपड़े सही तरीके से प्रैस करने भी आने चाहिए.

–  रोटी, कपड़ों के बाद मकान की बारी. जिस घर, होस्टल या पीजी में आप रह रहे हैं उस की नियमित साफसफाई होनी जरूरी है. यह न केवल आप की सेहत के लिए अच्छा है, बल्कि व्यवस्थित कमरा आप को उत्साही बनाए रखने में भी सहायक होता है. कमरे में बिखरा सामान नकारात्मक ऊर्जा लाता है.

–  यदि कमरा किसी के साथ शेयर कर रहे हैं तो रूमपार्टनर के साथ दोस्ताना हैं. याद रखें कि यही वह व्यक्ति होगा जो सब से पहले आप की मदद के लिए उपलब्ध होगा.

व्यावहारिक ट्रेनिंग

व्यक्तिगत और तकनीकी ट्रेनिंग तो किसी अन्य व्यक्ति की मदद से भी ली जा सकती है, लेकिन व्यावहारिक ट्रेनिंग तो आप को स्वयं ही लेनी होगी. निम्नलिखित बातें जानना बेहद जरूरी हैं:

–  बाहर जाने पर सब से जरूरी बात है कि आप का आत्मविश्वास बना रहे. आत्मविश्वास आप को  किसी भी अप्रिय स्थिति में सहज बने रहने एवं सही निर्णय लेने में मदद करता है.

–  अनजान व्यक्तियों के साथ व्यवहार में भी कुशल होना बहुत जरूरी है. आप का व्यवहार आप की बहुत सी समस्याओं को हल कर सकता है.

–  शारीरिक स्वास्थ्य के साथसाथ अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी खयाल रखें. अकेलापन न खले इसलिए अपने शौक कायम रखें. दोस्तों और घर वालों के साथ नियमित संवाद बनाए रखें.

तकनीकी ट्रेनिंग

व्यक्तिगत ट्रेनिंग के साथसाथ कुछ अन्य तकनीकी बातों की जानकारी होनी भी बहुत जरूरी है. ये बातें चाहे रोजाना काम में आने वाली नहीं हैं, लेकिन इन की महत्त्वपूर्ण भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता.

–  यात्रा के लिए औनलाइन टिकट बुक करवाना.

–  औनलाइन ट्रांजक्शन करना.

–  बैंक और पोस्ट औफिस से जुड़े सामान्य कामकाज.

–  इंटरनैट डेटा का सही इस्तेमाल.

–  अपने सामान की सही तरीके से पैकिंग करना.

–  आपातकालीन दवाओं की जानकारी होना.

–  खर्च के लिए मिलने वाले पैसे का सही इस्तेमाल.

इन 5 Rules को फॉलो कर गर्मी में रखें स्किन का ख्याल

गर्मियों में स्किन को ऐक्स्ट्रा केयर की जरूरत होती है. लेकिन अपनी भागदौड़ वाली जिंदगी में हम अपनी स्किन की तरफ ध्यान ही नहीं दे पाते हैं, जिस का नतीजा यह होता है कि हमारी स्किन डल, बेजान सी दिखने लगती है. ऐसे में अगर रोज अपनी स्किन की कुछ मिनट ही सही से केयर कर लेंगे तो आप की स्किन गरमियों में भी दमक उठेगी.

जानते हैं, उन जरूरी चीजों के बारे में, जिन पर गौर कर आप इस समर में फ्रैश स्किन पा सकती हैं:

1. फ्रैश स्टार्ट:

अगर आप की स्किन सुबह फ्रैश फील देती है तो आप को खुद तो तरोताजा महसूस होता ही है, साथ ही आप का कौन्फिडैंस भी बढ़ता है. आप ज्यादा ऐनर्जेटिक हो कर काम कर पाती हैं. इस के लिए आप अपने मौर्निंग स्किन केयर रूटीन में अयूर का बौडी वाश शामिल जरूर करें. इस से स्किन पर जो धूलमिट्टी के कारण गंदगी जमा हो जाती है, वह रिमूव हो कर आप की स्किन सौफ्ट फील देने लगेगी, साथ ही यह स्किन के नैचुरल औयल को भी मैंटेन रखने का काम करेगा. इस से स्किन पर नैचुरल मौइस्चर भी बैलेंस में रहेगा.

2. मौइस्चराइज जरूर करें:

कई महिलाओं को यह समस्या होती है कि नहाने के बाद उन की स्किन ड्राई होने लगती है. इस का कारण है कि वे स्किन को मौइस्चर करना जरूरी नहीं सम झतीं, जिस से स्किन खिंचीखिंची व ड्राई सी लगने लगती है, जो उन्हें पूरे दिन असहज महसूस करवाने का काम करती है. इस के लिए जरूरी है कि आप नहाने के बाद अपनी स्किन को अच्छी तरह मौइस्चराइज जरूर करें. इस बात का भी खास ध्यान रखें कि जिस भी मौइस्चराइजर का चयन करें  वह नैचुरल इन्ग्रीडिएंट्स से बना हो, क्योंकि इस से स्किन को काफी फायदा मिलता है. कोशिश करें कि आप के मौइस्चराइजर में गुलाब, ऐलोवेरा, खीरे जैसे तत्त्व हों, जो गरमियों में स्किन को कूलिंग इफैक्ट देने के साथसाथ स्किन को टैनिंग व डलनैस से भी बचाने का काम करते हैं, जबकि कैमिकल्स वाले प्रोडक्ट्स का स्किन पर ज्यादा इस्तेमाल करने से स्किन के डैमेज होने का डर बना रहता है.

3. सन प्रोटैक्शन जरूरी:

मौइस्चराइजर के बाद स्किन को सन प्रोटैक्शन देना बहुत जरूरी होता है वरना सूर्य की हानिकारक किरणें धीरेधीरे स्किन को पिगमैंट करने के साथसाथ स्किन की नैचुरल ब्यूटी को चुरा लेती हैं. इसलिए अपनी स्किन के टाइप के हिसाब से सन प्रोटैक्शन का इस्तेमाल करें. इस बात का भी ध्यान रखें कि आप बाहर के संपर्क में कितनी देर रहती हैं, इसे ध्यान में रख कर एसपीएफ का चयन करें ताकि आप को सनस्क्रीन का सही फायदा मिल सके. इस के लिए आप अयूर हर्बल ऐंटी सन टैन का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस से आप की स्किन में ग्लो भी नजर आएगा.

4. सीटीएम रूटीन करे स्किन रिलैक्स:

सीटीएम यानी स्किन की क्लींजिंग, टोनिंग व मौइस्चराइजिंग से स्किन को रिलैक्स करना. गरमी, धूलमिट्टी व प्रदूषण के कारण हमारी स्किन का अट्रैक्शन धीरेधीरे कम होने लगता है, जिस के लिए सीटीएम रूटीन का पालन करना बहुत जरूरी होता है. यह स्किन की डीप मसाज कर के उसे क्लीन करने का काम करता है. इस से स्किन फिर से खिल उठती है और आप को अपने मुर झाए चेहरे से छुटकारा मिल जाता है. इस के लिए आप ऐसे इन्ग्रीडिएंट्स वाले प्रोडक्ट्स खरीद सकती हैं, जिन में नीम, चारकोल और पपाया जैसे तत्त्व शामिल हों, क्योंकि ये स्किन पर बहुत थोड़े समय में ही बेहतर रिजल्ट देने का काम करते हैं.

5. पोर्स को करे टाइट:

अकसर क्लींजिंग के बाद स्किन का तो अट्रैक्शन बढ़ जाता है, लेकिन इस के चक्कर में स्किन के पोर्स खुल जाते हैं, जो न तो दिखने में अच्छे लगते हैं और न ही स्किन के लिए अच्छे माने जाते हैं. इस के लिए क्लींजिंग के बाद आप को स्किन पर टोनर जरूर अप्लाई करना चाहिए, क्योंकि यह स्किन पर गुलाबी ग्लो लाने के साथसाथ पोर्स को भी छोटा करने का काम करता है. इस से स्किन लचीली  भी बनी रहती है.  इस के बाद स्किन पर हर्बल मौइस्चराइजर अप्लाई करना न भूलें. यकीनन कुछ ही दिनों में आप की स्किन फिर से यंग व फ्रैश दिखने लगेगी.

जानें क्या हैं प्रेग्नेंसी में होने वाली प्रौब्लम और ऑटिज़्म के खतरे

ऑटिज़्म को विकास सम्बन्धी बीमारी के रूप मे जाना जाता है. इसे ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) कहा जाता है. डॉ रोहित अरोड़ा , निओनैटॉलॉजी और पेडियाट्रिक्स हेड ,मिरेकल्स मेडीक्लीनिक और अपोलो क्रेडल हॉस्पिटल का कहना है कि, “यह डिसऑर्डर (विकार)  बच्चे के व्यवहार और बातचीत करने के तरीके पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. बच्चों में होने वाली  यह बीमारी तब नज़र आती है जब बच्चे की सोशल स्किल्स, एक ही व्यवहार को बार-बार दोहराना, बोलने तथा बिना बोलकर कम्युनिकेट करने में परेशानी महसूस होती है तो इसे ऑटिज़्म  का लक्षण माना जाता है.

एएसडी से साधारण सी दिक्कत तो हो ही सकती है साथ ही साथ इससे जीवन पर्यंत की विनाशकारी विकलांगता भी हो सकती है. इस तरह की विकलांगता होने पर फिर हॉस्पिटल केयर की आवश्यकता हो सकती है. ऑटिज़्म के संकेत आमतौर पर 2 या 3 वर्ष की आयु तक दिखाई देते हैं. हालांकि कुछ विकास संबंधी देरी होने पर यह समय से पहले भी दिखाई दे सकते है. 18 महीने का होने पर भी बच्चे को ऑटिज़्म से डायग्नोज्ड किया जा सकता है. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर में ऐसी कंडीशन शामिल होती हैं जिन्हें पहले इससे अलग माना जाता था. ऑटिज्म, एस्पर्जर्स सिंड्रोम बचपन का एक विघटनकारी डिसऑर्डर है. एस्पर्जर सिंड्रोम को ऑटिज्म का एक उग्र रूप माना जाता है.”

ऑटिज्म के खतरे को बढ़ाने वाले फैक्टर

ऑटिज्म एक से ज्यादा कारणों की वजह से हो सकता है.

आनुवांशिक (जेनेटिक)

जेनेटिक डिसऑर्डर जैसे कि रिट्ट सिंड्रोम या फ्रेगाइल एक्स सिंड्रोम का ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से संबंध होने की संभावना है. म्यूटेशन के नाम से जाने जाने वाले आनुवंशिक परिवर्तन से ऑटिज़्म का खतरा बढ़ सकता है. कुछ आनुवंशिक परिवर्तन बच्चे को उसके माँ-बाप से मिल सकते हैं, जबकि अन्य परिवर्तन अनायास हो सकते हैं. अन्य जीन बच्चे के मस्तिष्क के विकास या मस्तिष्क कोशिकाओं के संचार के तरीके को प्रभावित कर सकते हैं, या वे लक्षणों की गंभीरता को बढ़ा सकते हैं.

वातावरण

गर्भावस्था के दौरान वायरल इन्फेक्शन, दवाएं या कॉम्प्लिकेशन तथा वायु प्रदूषण से ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का खतरा बढ़ जाता है.

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों की संख्या में वृद्धि हो रही है और नीचे कुछ फैक्टर दिए गए हैं जो बच्चों में एएसआई के खतरे को बढ़ा सकते हैं:

बच्चे का लिंग:

बच्चा अगर पुल्लिंग अर्थात लड़का है तो उसमे लड़कियों की तुलना में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर होने की संभावना चार गुना ज्यादा होती है.

पारिवारिक इतिहास:

जिन परिवारों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाला बच्चा होता है, उनमें इस डिसऑर्डर के   दूसरे बच्चे में होने का खतरा बढ़ जाता है.

बहुत ज्यादा अपरिपक्व बच्चे: 

गर्भधारण के 26 हफ्ते से पहले पैदा हुए नवजात बच्चों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर होने का ज्यादा खतरा हो सकता है. सामान्य बच्चों में ऑटिज्म का प्रसार 7% है, जबकि सामान्य आबादी में यह प्रसार 1.7 % है.

इसके अलावा वैज्ञानिकों का मानना है कि बड़ी उम्र के माता-पिता और एएसडी से पैदा हुए बच्चों के बीच संबंध हो सकता है. गर्भावस्था के दौरान अन्य समस्याएं जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर  या असामान्य ब्लीडिंग, साथ ही सीजेरियन डिलीवरी, बच्चे में ऑटिज्म के खतरे को बढ़ा सकती है.

अन्य डिसऑर्डर:

कुछ मेडिकल कंडीशन वाले बच्चों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर या ऑटिज्म जैसे लक्षण होते हैं जैसे कि ट्यूबरल स्क्लेरोसिस, यह एक ऐसी कंडीशन जिसमें सॉफ्ट ट्यूमर मस्तिष्क (ब्रेन) में विकसित होता हैं; और रेट्ट सिंड्रोम सिर के विकास को धीमा कर देता है, किसी भी चीज को समझने में परेशानी होना और हाथों का सही से इस्तेमाल न कर पाने की भी समस्या भी  रेट्ट सिंड्रोम से होती है. रेट्ट सिंड्रोम विशेष रूप से लड़कियों में होने वाली एक आनुवांशिक कंडीशन है.

 

मैं 26 साल का हूं और जानना चाहता हूं कि असामान्य पैप स्मीयर परिणामों का क्या मतलब है?

आजकल युवाओं में गंभीर बीमारियों की समस्या बढ़ती जा रही है. सर्वाइकल कनाल और यूटरस के मुहाने पर यानी सर्विक्स में सेलुलर बदलाव की जांच करने के लिए पैप स्मीयर टेस्ट किया जाता है. जाने कब करवाना चाहिए पैंप स्मीयर टेस्ट

सवाल

मैं 26 साल का हूं और जानना चाहता हूं कि असामान्य पैप स्मीयर परिणामों का क्या मतलब है?

जवाब

पैप स्मीयर टेस्ट का रिजल्ट आसामान्य आने का मतलब सर्विक्स में विकसित हो रहा चीज नौर्मल नहीं है. सर्वाइकल कनाल और यूटरस के मुहाने पर यानी सर्विक्स में सेलुलर बदलाव की जांच करने के लिए पैप स्मीयर टेस्ट किया जाता है. अगर पैप स्मीयर टेस्ट में कोई असामान्यता पाई जाती है तो आप का डाक्टर इंफैक्शन के लिए इलाज सुलझा सकता है.

डाक्टर लिक्विड बेस साइकोलौजी टेस्ट जैसे एडवांस पैप स्मीयर टेस्ट की सलाह दे सकता है. इस के साथ ह्यूमन पैपुलोमा टेस्ट की भी सलाह दे सकता है. अगर इन टेस्ट में भी रिजल्ट असामान्य आते हैं तो डाक्टर आप को 3 महीने की फालोअप विजिट पर बुला सकता है. अगर3 महीने बाद भी टेस्ट का रिजल्ट असामान्य आता है तो डाक्टर सर्विक्स के मुहाने की माइक्रोस्कोपिक जांच जिसे कौल्पोस्कोपी या सर्वाइकल बायोप्सी कराने की सलाह दे सकता है.

 

-डा. रितु सेठी एसोसिएट डाइरैक्टर (औब्सटेट्रिक्स ऐंड गायनोकोलौजी), मैक्स हौस्पिटल्स, औरा स्पैश्यालिटी क्लीनिक 

 

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