गर्मी की तपिश से राहत देंगें ये होममेड कन्सन्ट्रेट शर्बत

गर्मी की तपिश लगातार बढती ही जा रही है. आहार विशेषज्ञों के अनुसार गर्मियों में शरीर को हाईड्रेट रखना बहुत जरूरी होता है. यदि इन दिनों पानी अथवा तरल पदार्थ भरपूर मात्रा में न पियें जायें तो शरीर में पानी की कमी हो जाती है. कितनी भी कोशिश कर ली जाये परन्तु हर बार खाली पानी पीना सम्भव नहीं हो पाता इसलिए यदि हम पानी में कोई शरबत या ज्यूस मिला लें तो फ्लेवर्ड पानी पीना काफी आसान हो जाता है.

बाजार में मिलने वाले शर्बत न तो हाइजीनिक होते हैं और न ही प्योर दूसरे ये बहुत महंगे भी पड़ते हैं परन्तु थोड़ी सी मेहनत से यदि इन्हें घर पर बना लिया जाये तो ये काफी सस्ते तो ही पड़ते हैं दूसरे घर पर हम इन्हें अपने टेस्ट के अनुसार भी बना सकते हैं. आज हम आपको ऐसे ही 2 कन्सन्ट्रेट शरबत बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप घर आसानी से बना सकती हैं. कन्सन्ट्रेट शरबत अर्थात वे शरबत जिन्हें पकाकर काफी गाढ़ा बना लिया जाता है और फिर सर्व करते समय इनमें सिर्फ पानी ही मिलाना होता है तो आइये देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

पाइनएप्पल शर्बत

कितने लोगों के लिए 8
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
पाइनेपल 1
शकर 800 ग्राम
पानी 1/2 लीटर
काला नमक 1 टीस्पून
काली मिर्च 1/2 टीस्पून
चाट मसाला 1 टीस्पून
भुना जीरा पाउडर 1 टीस्पून
नीबू का रस 1 टीस्पून
खाने वाला पीला रंग 1 बूँद
विधि
पाइनएप्पल को छीलकर छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें. अब इसे आधी शकर और 1 कप पानी डालकर प्रेशर कुकर में डालकर धीमी आंच पर 2 सीटी ले लें. जब प्रेशर निकल जाये तो इसे मिक्सी में पीस कर छान लें. अब छने गूदे को एक पैन में डालकर बची शकर डालकर लगातार चलाते हुए 5 मिनट तक पकाएं. गैस बंद करके नीबू का रस, चाट मसाला, फ़ूड कलर और एनी सभी मसाले डालकर अच्छी तरह चलायें. जब मिश्रण पूरी तरह ठंडा हो जाये तो किसी क्यूब्स ट्रे में डालकर फ्रीजर में जमायें अथवा किसी कांच की बोतल में भरकर फ्रिज में रखें. सर्व करते समय कांच के ग्लास में 1 टेबलस्पून कंसन्ट्रेट शरबत या जमे क्यूब्स डालकर ठंडा पानी डालकर ठंडा ठंडा सर्व करें.

बेल का शरबत

कितने लोगों के लिए 8
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
बेल का फल 1
पानी आधा लीटर
गुड़ पाउडर 500 ग्राम
इलायची पाउडर 1/4 टीस्पून
भुना जीरा पाउडर 1/4 टीस्पून
चाट मसाला 1 टीस्पून

विधि

बेल के पके फल को किसी भारी चीज से दबाकर फोड़ लें और किसी बड़े चम्मच की मदद से इसका सारा गूदा निकाल लें. इस गूदे को एक बाउल में डालकर पानी में डालकर ढककर आधा घंटे के लिए रख दें. आधे घंटे बाद हाथ से मसलकर छलनी से छानकर गूदे और रेशे को अलग कर लें. अब इस गुदे को गुड डालकर 5 से 10 मिनट तक गाढ़ा होने तक पकाकर गैस बंद कर दें. ठंडा होने पर इलायची पाउडर, काला नमक और भुना जीरा पाउडर डालकर चलायें और कांच के जार में भरकर फ्रिज में रखकर प्रयोग करें. सर्व करते समय ग्लास में 1 टेबलस्पून तैयार कंसन्ट्रेट शरबत, आइस क्यूब्स और ठंडा पानी डालकर सर्व करें. आप चाहें तो इसमें स्वादानुसार नीबू का रस भी मिला सकते हैं.

युवा पीढ़ी में बढ़ता आक्रोश, बना रहा कमजोर

आज कल के युवाओं में गुस्सा बहुत सामान्य हो गया है, गुस्सा एक भावना है. जिसको नई पीढ़ी में अधिक मात्रा में देखा जा रहा है, यहां तक की बच्चे ही नहीं बड़ो में भी यह काफी हद तक बढ़ता जा रहा है. जिसकें कारण कम उम्र में ही व्यक्ति को अकेलेपन , स्ट्रेस, डिप्रेशन, एंग्जाइटी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

कई बार इस कारण जरा सा हताश होने पर अपनी जान से भी खेल जाते हैं और अपनी जीवन लीला समाप्त करने से नहीं चूकते. यह एक महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या यह गलत परवरिश का नतीजा है या बढ़ती आधुनिकता इसका कारण है. जरूरी है इसे समझना.

परिस्थिति से लें सकरात्मक सीख

अक्सर व्यक्ति अपने आक्रोश का दोष परिस्थिति को देता है. परंतु समय की तरह परिस्थिति भी हमेशा एक नहीं रहती. “परिवर्तन ही संसार का नियम है.” यह कथन सिर्फ किताबी नहीं हैं बल्कि जीवन की सच्चाई है यदि कोई परिस्थिति को समझते हुए अपने गुस्से पर काबू पा लेता है तो जीवन में सफलता उसके कदम चूमती हैं अन्यथा गुस्सा ही उसके विनाश का करण बनता है. गुस्सा एक नकारात्मक भाव है लेकिन गुस्से के सकारात्मक प्रभाव भी होतें हैं, जो व्यक्ति को कुछ हासिल करने और सफ़लता की ओर ले जाने में सहायक होता है.

साझा करना है जरूरी

अधिकतर युवा जिंदगी में आने वाली समस्याओं को बर्दाश्त नहीं कर पाते और वे अपनी बात किसी से साझा तक नहीं करते. ऐसे में तनाव और गुस्से का ग्राफ लगतार बढ़ता ही जाता है. जरूरी हैं अपनी समस्याओं को किसी भरोसेमंद से साझा करें.

लाइफस्टाइल बनाए बेहतर

बदलती लाइफस्टाइल का युवा पीढ़ी पर  अधिक असर पड़ रहा है क्योंकि शरारिक व्यायाम ना कर के सारे दिन सोशल मीडिया पर रहना, नींद कम लेना, परिवार के संग कम दोस्तों के साथ अधिक समय बिताना, उल झलूल खाना,  हार्मोनल डिस्बलेंस होना भी गुस्से का कारण बनता जा रहा है.

क्या है जरूरी

स्वस्थ आहार (हेल्दी फूड) और स्वस्थ नींद पर अधिक ध्यान दिया जाए. एक्सरसाइज को अपनी दिन का अभिन्न हिस्सा बनायें. सोशल मीडिया का कम से कम इस्तमाल करें. यदि व्यवहार में कोई बदलाव ना आए और गुस्से कि भावना अधिक बढ़ रही है तो साइकेट्रिस्ट कि मदद अवश्य लें.

आखिर क्यों बढ़ रहा है कोहैबिटेशन का ट्रेंड और क्यों बन रहा है यह युवाओं का फेवरेट

कोहैबिटेशन को आमतौर पर लोग लिव इन रिलेशनशिप बोलते हैं. पिछले कुछ सालों में कोहैबिटेशन का ट्रेंड युवाओं में काफी बढ़ा है.

लगभग दो साल की डेटिंग के बाद, 38 साल के आशीष ने अपनी 31 साल की गर्लफ्रेंड पूजा के साथ रहने का फैसला लिया. पूजा अपनी एक रूममेट के साथ दूसरे फ्लैट में रहती थी. लेकिन वे ज्यादातर समय आशीष के घर ​ही बिताती थी. इस लंबे रिलेशनशिप के बाद आशीष और पूजा दोनों ने अपने रिश्ते में एक कदम और आगे बढ़ने की सोची और भविष्य में शादी करने का फैसला भी लिया. हालांकि इससे पहले दोनों ने मजबूत रिश्ते के लिए एक और अहम फैसला किया. और यह था कोहैबिटेशन. कोहैबिटेशन को आमतौर पर लोग लिव इन रिलेशनशिप बोलते हैं. पिछले कुछ सालों में कोहैबिटेशन का ट्रेंड युवाओं में काफी बढ़ा है. युवाओं का मानना है कि शादी से पहले का यह समय उन्हें एक दूसरे को करीब से जानने का मौका देता है. कुछ घंटों की मुलाकात की जगह कुछ समय साथ रहने से एक दूसरे की पसंद, नापसंद, बिहेव, आदतों का आसानी से पता चल पाता है. यह एक रूममेट टेस्ट जैसा है.

चौका देंगे ये आंकड़े

एक समय था जब लिव इन रिलेशनशिप या कोहैबिटेशन को समाज स्वीकृति नहीं देता था, लेकिन विदेशों और देश के बड़े शहरों में अब ये चलन चल पड़ा है. नेशनल सर्वे ऑफ फैमिली ग्रोथ डेटा के 2021 के आंकड़े बताते हैं कि 18 से 44 साल के जिन लोगों ने साल 2015 से 2019 के बीच शादी की है, उनमें से 76 % कपल कोहैबिटेशन में रह चुके हैं. साल 1965 से 1974 के बीच यह आंकड़ा मात्र 11 % था. ऐसे में साफ है कि कोहैबिटेशन आज के युवाओं की मंजिल का सिर्फ एक पड़ाव है. उनका असली उद्देश्य एक अच्छा साथी खोज कर शादी करना ही है. नेशनल सर्वे आॅफ फैमिली एंड हाउसहोल्ड और नेशनल सर्वे ऑफ फैमिली ग्रोथ के अनुसार साल 2019 में मिले आंकड़े बताते हैं कि शादी से पहले एक कपल एवरेज ढाई साल से ज्यादा समय तक साथी के साथ रहता है.

सफलता की गारंटी नहीं

कोहैबिटेशन भले ही शादी की सफलता की गारंटी के लिए किया जाता है. लेकिन असल में ऐसा है नहीं. साल 2023 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि जो विवाहित जोड़े सगाई या शादी करने से पहले कोहैबिटेशन में रहते हैं, उनके तलाक की आशंका उन लोगों की तुलना में 48 % ज्यादा थी, जो केवल प्रपोज करने के बाद शादी कर लेते हैं. हालांकि इसके कई कारण हो सकते हैं. ऐसे में एक दूसरे के प्रति कमिटमेंट जरूरी है.

इसलिए बढ़ रहा है कोहैबिटेशन का चलन

कोहैबिटेशन को शादी का रन टेस्ट कहा जा सकता है. यह एक कपल को कई अच्छे मौके देता है, एक-दूसरे को समझने के. कई कारणों से कोहैबिटेशन का चलन बढ़ा है.

1. सामाजिक स्वीकृति

पहले की तुलना में, आजकल समाज कोहैबिटेशन को ज्यादा स्वीकार करता है. कई बॉलीवुड कपल्स भी इसका उदाहरण हैं. पारंपरिक मूल्यों में बदलाव के साथ ही आज के युवा पर्सनल इंडिपेंडेंस पर ज्यादा फोकस करते हैं. आज के युवाओं के लिए शादी ही जिंदगी का लास्ट गोल नहीं रह गया है. वे लाइफ में बहुत कुछ करना चाहते हैं.

2. आर्थिक कारण

शादी और बच्चों का पालन-पोषण करना महंगा हो सकता है. यही कारण है कि आज के युवा फाइनेंशली इंडिपेंडेंट होने के बाद ही शादी करना चाहते हैं. कोहैबिटेशन उन्हें साथ रहकर, अपनी लाइफ बनाने का मौका देता है. दो वर्किंग पर्सन मिलकर आसानी से अपने फ्यूचर को सिक्योर कर सकते हैं.

3. एक-दूसरे को जानने का मौका

कोहैबिटेशन, कपल को शादी करने से पहले एक-दूसरे को बेहतर ढंग से जानने का मौका देता है. वे एक साथ रहकर यह देख सकते हैं कि क्या वे इतनी लंबी जिंदगी एक साथ बिता सकते हैं. ऐसे में उन्हें आगे चलकर परेशानियां नहीं हो.

गर्मी के मौसम में बाल हो जाते हैं रूखे, बेजान तो ये तरीके आपके आ सकते हैं काम

सूरज की हानिकारक यूवी किरणें सिर्फ आपकी स्किन ही नहीं बालों को भी नुकसान पहुंचाती हैं. इसी के साथ इस समय बालों में पसीना बहुत ज्यादा आता है, जो इंफेक्शन का कारण बन सकता है.

गर्मी के मौसम में आपको अपनी स्किन के साथ ही बालों पर भी पूरा ध्यान रखना चाहिए. सूरज की हानिकारक यूवी किरणें सिर्फ आपकी स्किन ही नहीं बालों को भी नुकसान पहुंचाती हैं. इसी के साथ इस समय बालों में पसीना बहुत ज्यादा आता है, जो इंफेक्शन का कारण बन सकता है. वहीं पॉल्यूशन के कारण भी बाल कमजोर होते हैं. इन सभी कारणों से गर्मी के मौसम में अक्सर बाल रूखे, बेजान और फ्रिजी हो जाते हैं. इस मौसम में बाल टूटते भी ज्यादा हैं. अगर आप चाहते हैं कि मौसम का असर आपके बालों पर न पड़े तो कुछ आसान तरीके अपनाकर आप ऐसा कर सकते हैं.

1. ऑयलिंग जरूरी

बालों को मजबूती देने के लिए उन्हें पूरा पोषण देना बहुत जरूरी है. यह पोषण उन्हें ऑयलिंग से मिलता है. वीक में कम से कम एक या दो बार सिर में तेल जरूर लगाएं. इससे आपके स्कैल्प का ब्लड सर्कुलेशन सुधरता है, जिससे बालों की जड़ें मजबूत होती हैं. आमतौर पर लोग रात में तेल लगाकर सोते हैं, लेकिन आप ये गलती न करें. इससे बालों पर गंदगी पिचकने का डर रहता है और उन्हें नुकसान होता है. इसलिए बाल धोने से सिर्फ 30 से 40 मिनट पहले ही आप सिर में ऑयलिंग करें.

2. सही तेल चुनें

बालों को पोषण देने के लिए ऑयलिंग जरूरी है, लेकिन इसके लिए तेल आप हमेशा बालों की जरूरत के अनुसार चुनें. नारियल तेल सभी परेशानियों को दूर करने के लिए बेस्ट माना जाता है. यह तेल बालों को मॉइश्चराइज करने और पोषण देने में बहुत अच्छा है. यह रूखेपन और डैंड्रफ को दूर करता है. साथ ही बालों को झड़ने से रोकता है. वहीं जोजोबा ऑयल बालों को कंडीशनिंग देकर उन्हें चमकदार बनाने में मदद करता है. अरंडी का तेल बालों को मजबूत बनाने और उनकी ग्रोथ बढ़ाने का काम करता है. बादाम का तेल हेयर फॉल को कम करता है. आंवले का तेल भी हेयर फॉल को रोक कर हेयर ग्रोथ बढ़ाता है.

3. हेयर मास्क पर दें ध्यान

गर्मी में बालों के लिए कुछ हेयर मास्क बहुत काम के साबित होते हैं. ये बालों को पूरा पोषण देकर उनकी चमक लौटाते हैं.

एलोवेरा और नारियल तेल का हेयर मास्क : ये हेयर मास्क आपके लिए अच्छा ऑप्शन हो सकता है. यह हेयर मास्क बालों को मॉइस्चराइज करने और उन्हें ठंडक पहुंचाने में मदद करता है. एलोवेरा में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो स्कैल्प को रिलैक्स करते हैं और डैंड्रफ की परेशानी को दूर करते हैं. वहीं नारियल तेल बालों को पोषण और मजबूती देता है. इस मास्क को बनाने के लिए आप 2 टेबलस्पून एलोवेरा जेल और 1 टेबल स्पून नारियल तेल को अच्छी तरह मिला लें. इस मिक्स को अपने बालों और स्कैल्प पर लगाएं. 30 मिनट के लिए इसे लगा रहने दें, फिर अपने बालों को शैम्पू से धो लें.

दही और शहद का हेयर मास्क: ये हेयर मास्क बालों को मॉइस्चराइज करने और उन्हें पोषण देने में मदद करता है. दही में लैक्टिक एसिड होता है जो बालों पर कंडीशनर की तरह काम करता है और उन्हें चमक देता है. वहीं शहद में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो बालों को सूरज की यूवी किरणों से बचाते हैं. इस मास्क को बनाने के लिए 2 टेबल स्पून दही और 1 टेबल स्पून शहद को अच्छी तरह मिक्स कर लें. अब मास्क को बालों और स्कैल्प पर लगाएं. करीब आधा घंटा इसे सूखने दें और फिर शैंपू कर लें.

द ग्रेट इंडियन कपिल शो पर पहुंचे आमिर खान, खोले कुछ राज

बौलीवुड एक्टर  आमिर खान द ग्रेट इंडियन कपिल शो पर बतौर गेस्ट शामिल हुए. शो के दौरान जब अर्चना पुरन सिंह ने आमिर से अवॉर्ड फंक्शन में शामिल ना होने के बारे में पूछा तो आमिर ने जवाब दिया कि समय बहुत कीमती है और इसे सोच-समझकर खर्च करना चाहिए.

शो पर आमिर ने कई राज खोले उन्होंने बताया कि अक्सर उनके बच्चे उनकी बात को नहीं सुनते हैं उनके कपड़ो को रिजेक्ट कर देते हैं और शो पर आने से पहले भी बच्चों ने उनके कपड़े सिलेक्ट किए थे. वो शॉर्ट्स में आ रहे थे लेकिन बच्चों ने रग्ड जींस सेलेक्ट करके दी.

 

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‘पीके’ फिल्म में आमिर के न्यूड सीन को लेकर कपिल शर्मा ने चुटकी लेते हुए कहा कि अगर पीके फिल्म में रेडियो की फ्रीकवेंसी जरा सी इधर से उधर हो जाती तो सारा ब्रॉडकास्ट वहीं हो जाता. आमिर इस बात पर जोर से हंसने लगे.

शो पर कीकू शारदा और सुनील ग्रोवर के साथ उऩ्होंने बहुत कॉमेडी की. टीजर में ऐसा लग रहा है कि आमिर ने शो के हर पल को मौज मस्ती के साथ बिताया और खूब मजे करे.

 

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शो की एक और खास बात यह थी कि कपिल और आमिर दोनों ने ब्लू रंग की जैकेट और ओवरशर्ट पहनी हुई थी. जैसे ही आमिर ने शो पर एंटर किया, पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा और सबसे अधिक खुशी कपिल के चेहरे पर झलक रही थी, वो बहुत एक्साइटिड थे. अर्चना पुरन सिंह सहित शो पर मौजूद हर शख्स ने आमिर का स्वागत स्टैंडिंग ओवोशन के साथ किया.

वर्कफ्रंट की बात करें तो आमिर इन दिनों फिल्म ‘लाहौर 1947’ के लिए शूट कर रहे हैं इस फिल्म में उनके साथ एक्ट्रेस प्रीति जिंटा भी हैं। इससे पहले इन दोनों को एक साथ फिल्म दिल चाहता है में भी देखा गया था. फिल्म की खासियत है कि इसमें सनी देओल और आमिर पहली बार साथ में काम कर रहे हैं.

मरजी की मालकिन: घर की चारदीवारी से निकलकर अपने सपनों को पंख देना चाहती थी रश्मि

family story in hindi

उसकी मम्मी मेरी अम्मा: दो माओं की कहानी

दीक्षा की मम्मी उसे कार से मेरे घर छोड़ गईं. मैं संकोच के कारण उन्हें अंदर आने तक को न कह सकी. अंदर बुलाती तो उन्हें हींग, जीरे की दुर्गंध से सनी अम्मा से मिलवाना पड़ता. उस की मम्मी जातेजाते महंगे इत्र की भीनीभीनी खुशबू छोड़ गई थीं, जो काफी देर तक मेरे मन को सुगंधित किए रही.

मेरे न चाहते हुए भी दीक्षा सीधे रसोई की तरफ चली गई और बोली, ‘‘रसोई से मसालों की चटपटी सी सुगंध आ रही है. मौसी क्या बना रही हैं?’’

मैं ने मन ही मन कहा, ‘सुगंध या दुर्गंध?’ फिर झेंपते हुए बोली, ‘‘पतौड़े.’’

दीक्षा चहक कर बोली, ‘‘सच, 3-4 साल पहले दादीमां के गांव में खाए थे.’’

मैं ने दीक्षा को लताड़ा, ‘‘धत, पतौड़े भी कोई खास चीज होती है. तेरे घर उस दिन पेस्ट्री खाई थी, कितनी स्वादिष्ठ थी, मुंह में घुलती चली गई थी.’’

दीक्षा पतौड़ों की ओर देखती हुई बोली, ‘‘मम्मी से कुछ भी बनाने को कहो तो बाजार से न जाने कबकब की सड़ी पेस्ट्री उठा लाएंगी, न खट्टे में, न ढंग से मीठे में. रसोई की दहलीज पार करते ही जैसे मेरी मम्मी के पैर जलने लगते हैं. कुंदन जो भी बना दे, हमारे लिए तो वही मोहनभोग है.’’

अम्मा ने दही, सौंठ डाल कर दीक्षा को एक प्लेट में पतौड़े दिए तो उस ने चटखारे लेले कर खाने शुरू कर दिए. मैं मन ही मन सोच रही थी, ‘कृष्ण सुदामा के तंबुल खा रहे हैं, वरना दीक्षा के घर तो कितनी ही तरह के बिस्कुट रखे रहते हैं. अम्मा से कुछ बाजार से मंगाने को कहो तो तुरंत घर पर बनाने बैठ जाएंगी. ऊपर से दस लैक्चर और थोक के भाव बताने लगेंगी, ताजी चीज खाया करो, बाजार में न जाने कैसाकैसा तो तेल डालते हैं.’

दीक्षा प्लेट को चाटचाट कर साफ कर रही थी और मैं उस की मम्मी, उस के घर के बारे में सोचे जा रही थी, ‘दीक्षा की मम्मी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में मुसकराती हुई कितनी स्मार्ट लगती हैं. यदि वे क्लब चली जाती हैं तो कुंदन लौन में कुरसियां लगा देता है और अच्छेअच्छे बिस्कुटों व गुजराती चिवड़े से प्लेटें भरता जाता है. अम्मा तो बस कहीं आनेजाने में ही साड़ी पहनती हैं और उन के साथ लाल, काले, सफेद रूबिया के 3 साधारण ब्लाउजों से काम चला लेती हैं.’

प्लेट रखते हुए दीक्षा अम्मा से बोली, ‘‘मौसी, आप ने कितने स्वादिष्ठ पतौड़े बनाए हैं. दादी ने तो अरवी के पत्ते काट कर पतौड़े बनाए थे, पर उन में वह बात कहां जो आप के चटपटे पतौड़ों में है.’’

मैं और दीक्षा कैरम खेलने लगीं. मैं ने उस से पूछा, ‘‘मौसीजी आज कहां गई हैं?’’

दीक्षा ने उदासी से उत्तर दिया, ‘‘उन का महिला क्लब गरीब बच्चों के लिए चैरिटी शो कर रहा है, उसी में गई हैं.’’

मैं ने आश्चर्य से चहक कर कहा, ‘‘सच? मौसी घर के साथसाथ समाजसेवा भी खूब कर लेती हैं. एक मेरी अम्मा हैं कि कहीं निकलती ही नहीं. हमेशा समय का रोना रोती रहेंगी. कभी कहो कि अम्मा, मौल घुमा लाओ, तो पिताजी को साथ भेज देंगी. तुम्हारी मम्मी कितनी टिपटौप रहती हैं. अम्मा कभी हमारे साथ चलेंगी भी तो यों ही चल देंगी. दीक्षा, सच तो यह है कि मौसीजी तेरी मम्मी नहीं, वरन दीदी लगती हैं,’’ मैं मन ही मन अम्मा पर खीजी.

रसोई से अम्मा की खटरपटर की आवाज आ रही थी. वे मेरे और दीक्षा के लिए मोटेमोटे से 2 प्यालों में चाय ले आईं. दीक्षा उन से लगभग लिपटते हुए बोली, ‘‘मौसी, आप भी कमाल हैं, बच्चों का कितना ध्यान रखती हैं. आइए, आप भी कैरम खेलिए.’’

अम्मा छिपी रुस्तम निकलीं. एकसाथ 2-2, 3-3 गोटियां निकाल कर स्ट्राइकर छोड़तीं. अचानक उन को जैसे कुछ याद आया. कैरम बीच में ही छोड़ कर कहते हुए उठ गईं, ‘‘मुझे मसाले कूट कर रखने हैं. तुम लोग खेलो.’’

अम्मा के जाने के बाद दीक्षा आश्चर्य से बोली, ‘‘तुम लोग बाजार से पैकेट वाले मसाले नहीं मंगाते?’’

मेरा सिर फिर शर्म से झुक गया. रसोई से इमामदस्ते की खटखट मेरे हृदय पर हथौड़े चलाने लगी, ‘‘कई बार मिक्सी के लिए बजट बना, पर हर बार पैसे किसी न किसी काम में आते रहे. अंत में हार कर अम्मा ने मिक्सी के विचार को मुक्ति दे दी कि इमामदस्ते और सिलबट्टे से ही काम चल जाएगा. मिक्सी बातबात में खराब होती रहती है और फिर बिजली भी तो झिंकाझिंका कर आती है. ऐसे में मिक्सी रानी तो बस अलमारी में ही सजी रहेंगी.’’

मुझे टैस्ट की तैयारी करनी थी, मैं ने उस से पूछा, ‘‘मौसीजी चैरिटी शो से कब लौटेंगी? तेरे पापा भी तो औफिस से आने वाले हैं.’’

दीक्षा ने लंबी सांस ले कर उत्तर दिया, ‘‘मम्मी का क्या पता, कब लौटें? और पापा को तो अपने टूर प्रोग्रामों से ही फुरसत नहीं रहती, महीने में 4-5 दिन ही घर पर रहते हैं.’’

अतृप्ति मेरे मन में कौंधी, ‘एक अपने पिताजी हैं, कभी टूर पर जाते ही नहीं. बस, औफिस से आते ही हम भाईबहनों को पढ़ाने बैठ जाएंगे. टूर प्रोग्राम तो टालते ही रहते हैं. दीक्षा के पापा उस के लिए बाहर से कितना सामान लाते होंगे.’

मैं ने उत्सुकता से पूछा, ‘‘सच दीक्षा, फिर तो तेरा सारा सामान भारत के कोनेकोने से आता होगा?’’

दीक्षा रोनी सूरत बना कर बोली, ‘‘घर पूरा अजायबघर बन गया है और फिर वहां रहता ही कौन है? बस, पापा का लाया हुआ सामान ही तो रहता है घर में. महल्ले की औरतें व्यंग्य से मम्मी को नगरनाइन कहती हैं, उन्हें समाज कल्याण से फुरसत जो नहीं रहती. होमवर्क तक समझने को तरस जाती हूं मैं. मम्मी आती हैं तो सिर पर कस कर रूमाल बांध कर सो जाती हैं.’’

पहली बार दीक्षा के प्रति मेरे हृदय की ईर्ष्या कुछ कम हुई. उस की जगह दया ने ले ली, ‘बेचारी दीक्षा, तभी तो इसे स्कूल में अकसर सजा मिलती है. इस का मतलब अभी यह जमेगी हमारे घर.’

अम्मा ने रसोई से आ कर प्यार से कहा, ‘‘चलो दीक्षा, सीमा, कल के लिए कुछ पढ़ लो. ये आएंगे तो सब साथसाथ खाना खा लेना. उस के बाद उन से पढ़ लेना. कल तुम लोगों के 2-2 टैस्ट हैं, बेटे.’’

दीक्षा ने अम्मा की ओर देखा और मेरे साथ ही इतिहास के टैस्ट की तैयारी करने लगी. उसे कुछ भी तो याद नहीं था. उस की रोनीसूरत देख कर अम्मा उसे पाठ याद करवाने लगीं. जैसेजैसे वह उसे सरल करकर के याद करवाती जा रही थीं, उस के चेहरे की चमक लौटती जा रही थी. आत्मविश्वास उस के चेहरे पर झलकने लगा था.

पिताजी औफिस से आए तो हम सब के साथ खाना खा कर उन्होंने मुझे तथा दीक्षा को गणित के टैस्ट की तैयारी के लिए बैठा दिया. दीक्षा को पहाडे़ भी ढंग से याद नहीं थे. जोड़जोड़ कर पहाड़े वाले सवाल कर रही थी. तभी दीक्षा की मम्मी कार ले कर उसे लेने आ गईं.

अम्मा सकुचाई सी बोलीं, ‘‘दीक्षा को मैं ने जबरदस्ती खाना खिला दिया है. जो कुछ भी बना है, आप भी खा लीजिए.’’

थोड़ी नानुकुर के बाद दीक्षा की मम्मी ने हमारे उलटेसीधे बरतनों में खाना खा लिया. मैं शर्र्म से पानीपानी हो गई. स्टूल और कुरसी से डाइनिंग टेबल का काम लिया. न सौस, न सलाद. सोचा, अम्मा को भी क्या सूझी? हां, उन्होंने उड़द की दाल के पापड़ घर पर बनाए थे. अचानक ध्यान आया तो मैं ने खाने के साथ उन्हें भून दिया. दीक्षा की मम्मी ने भी दीक्षा की ही तरह हमारे घर का खाना चटखारे लेले कर खाया. फिर मांबेटी चली गईं.

अब अकसर दीक्षा की मम्मी उसे हमारे घर कार से छोड़ जातीं और रात को ले जातीं. समाज कल्याण के कार्यों में वे पहले से भी अधिक उलझती जा रही थीं. शुरूशुरू में दीक्षा को संकोच हुआ, पर धीरेधीरे हम भाईबहनों के बीच उस का संकोच कच्चे रंग सा धुल गया. पिताजी औफिस से आ कर हम सब के साथ उसे भी पढ़ाते और गलती होने पर उस की खूब खबर लेते.

मैं ने दीक्षा से पूछा, ‘‘पिताजी तुझे डांटते हैं तो कितना बुरा लगता होगा? उन्हें तुझे डांटना नहीं चाहिए.’’

दीक्षा मुसकराई, ‘‘धत पगली, मुझे अच्छा लगता है. मेरे लिए उन के पास वक्त है. दवाई भी तो कड़वी होती है, पर वह हमें ठीक भी करती है. मेरे मम्मीपापा के पास तो मुझे डांटने के लिए भी समय नहीं है.’’

मुझे दीक्षा की बुद्धि पर तरस आने लगा, ‘अपने मम्मीपापा की तुलना मेरे मातापिता से कर रही है. मेरे पिताजी क्लर्क और उस के पापा बहुत बड़े अफसर. उस की मम्मी कई समाजसेवी संस्थाओं की सदस्या, मेरी अम्मा घरघुस्सू. उस के  पापा क्लबों, टूरों में समय बिताने वाले, मेरे पिताजी ट्यूशन का पैसा बचाने में माहिर. उस की मम्मी सुंदरता का पर्याय, मेरी अम्मा को आईना देखने तक की भी फुरसत मुश्किल से ही मिल पाती है.’

अचानक दीक्षा 1 और 2 जनवरी को विद्यालय नहीं आई. यदि वह 3 जनवरी को भी नहीं आती तो उस का नाम कट जाता. इसलिए मैं 3 जनवरी को विद्यालय जाने से पूर्व उस के घर जा पहुंची. काफी देर घंटी बजाने के बाद दरवाजा खुला.

मैं आश्चर्यचकित हो दीक्षा को देखे चली जा रही थी. वह एकदम मुरझाए हुए फूल जैसी लग रही थी. मैं ने उसे मीठी डांट पिलाते हुए कहा, ‘‘दीक्षा, तू बीमार है, मुझे मैसेज तो कर देती.’’

वह फीकी सी हंसी के साथ बोली, ‘‘मम्मी पास के गांवों में बच्चों को पोलियो की दवाई पिलवाने चली जाती हैं…’’

‘‘और कुंदन?’’ मैं ने पूछा.

‘‘4-5 दिनों से गांव गया हुआ है. उस की बेटी बीमार है.’’

पहली बार मेरे मन में दीक्षा की मम्मी के लिए रोष के तीव्र स्वर उभरे, ‘‘और तू जो बीमार है तो तेरे लिए मौसीजी का समाजसेविका वाला रूप क्यों धुंधला जाता है. चैरिटी घर से ही शुरू होती है.’’ यह कह कर मैं ने उस को बिस्तर पर बैठाया.

दीक्षा ने बात पूरी की, ‘‘पर घर की  चैरिटी से मम्मी को प्रशंसा के पदक और प्रमाणपत्र तो नहीं मिलते. गवर्नर उन्हें भरी सभा में ‘कल्याणी’ की उपाधि तो नहीं प्रदान करता.’’

शो केस में सजे मौसी को मिले चमचमाते पदक, जो मुझे सदैव आकर्षित करते थे, तब बेहद फीके से लगे. अचानक मुझे पिछली गरमी में खुद को हुए मलेरिया के बुखार का ध्यान आ गया. बोली, ‘‘दीक्षा, मुझे कहलवा दिया होता. मैं ही तेरे पास बैठी रहती. मुझे जब मलेरिया हुआ था तो मैं अम्मा को अपने पास से उठने तक नहीं देती थी. बस, मेरी आंख जरा लगती थी, तभी वे झटपट रसोई में कुछ बना आती थीं.’’

दीक्षा के सिरहाने बिस्कुट का पैकेट तथा थर्मस में गरम पानी रखा हुआ था. मैं ने उसे चाय बना कर दी. फिर स्कूल जा कर अपनी और दीक्षा की छुट्टी का प्रार्थनापत्र दे आई. लौटते हुए अम्मा को सब बताती भी आई.

पूरा दिन मैं दीक्षा के पास बैठी रही. थर्मस का पानी खत्म हो चुका था. मैं ने थर्मस गरम पानी से भर दिया. दीक्षा का मन लगाने के लिए उस के साथ वीडियो गेम्स खेलती रही.

शाम को मौसीजी लौटीं. उन की सुंदरता, जो मुझे सदैव आकर्षित करती थी, कहीं गहन वन की कंदरा में छिप गई थी. बालों में चांदी के तार चमक रहे थे. मुंह पर झुर्रियों की सिलवटें पड़ी थीं. उन में सुंदरता मुझे लाख ढूंढ़ने पर भी न मिली.

वे आते ही झल्लाईं, ‘‘यह पार्लर भी न जाने कब खुलेगा. रोज सुबहशाम चक्कर काटती हूं. आजकल मुझे न जाने कहांकहां जाना पड़ता है. कोई पहचान ही नहीं पाता. यदि पार्लर कल भी न खुला तो मैं घर पर ही बैठी रहूंगी. इस हाल में बाहर जाते हुए मुझे शर्म आती है. सभी आंखें फाड़फाड़ कर देखते हैं कि कहीं मैं बीमार तो नहीं.’’

मैं ने चैन की सांस ली कि चलो, मौसी कल से दीक्षा के पास पार्लर न खुलने की ही मजबूरी में रहेंगी. उन की सुंदरता ब्यूटीपार्लर की देन है. क्रीम की न जाने कितनी परतें चढ़ती होंगी.

मन ही मन मेरा स्वर विद्रोही हो उठा, ‘मौसी, तब भी आप को अपनी बीमार बिटिया का ध्यान नहीं आता. कुंदन, ब्यूटीपार्लर…सभी तो बारीबारी से बीमार दीक्षा की ओर संकेत करते हैं. आप ने तो यह भी ध्यान नहीं किया कि स्कूल में 3 दिनों की अनुपस्थिति में दीक्षा का नाम कटतेकटते रह गया.

‘ओह, मेरी अम्मा कितनी अच्छी हैं. उन के बिना मैं घर की कल्पना ही नहीं कर सकती. वे हमारे घर की धुरी हैं, जो पूरे घर को चलाती हैं. आप से ज्यादा तो कुंदन आप के घर को चलाने वाला सदस्य है.

मेरी अम्मा की जो भी शक्लसूरत है, वह उन की अपनी है, किसी ब्यूटीपार्लर से उधार में मांगी हुई नहीं. यदि आप का ब्यूटीपार्लर 4 दिन भी न खुले तो आप की सुंदरता दम तोड़ देती है. अम्मा ने 2 कमरों के मकान को घर बनाया हुआ है, जबकि आप का लंबाचौड़ा बंगला, बस, शानदार मगर सुनसान स्मारक सा लगता है.

‘मौसी, आप कितनी स्वार्थी हैं कि अपने बच्चों को अपना समय नहीं दे सकतीं, जबकि हमारी अम्मा का हर पल हमारा है.’

मेरा मन भटके पक्षी सा अपने नीड़ में मां के पास जाने को व्याकुल होने लगा.

 

अनचाही Pregnancy से कैसे बचें

अनचाहा गर्भधारण न केवल एक नवविवाहित स्त्री के स्वास्थ्य पर असर डालता है अपितु उस का संपूर्ण विवाहित जीवन भी प्रभावित होता है. अनचाहा गर्भ ठहरने पर गर्भपात (एबार्शन) कराना इस का उचित समाधान नहीं है. शिशु को जन्म दें या नहीं, इस का निर्णय एक दंपती के जीवनकाल का अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्णय होता है. गर्भपात कराने से बेहतर है कि अनचाहा गर्भ ठहरने ही न पाए. इस से स्त्रीपुरुष को आर्थिक, सामाजिक व मानसिक रूप से सुकून मिलता है. अनचाहे गर्भ से कैसे बचें? कौन सा गर्भनिरोधक कितना प्रभावी है और क्यों? इस तरह के कई सवाल महिलाओं के जेहन में उठते हैं और इस का सही जवाब उन्हें समय से ज्ञात नहीं हो पाता. सामान्यत: निम्न सवालों का जवाब अधिकांश महिलाएं अवश्य जानना चाहेंगी :

स्त्री कंडोम क्या है?

स्त्री कंडोम एक पतले रबर का बना होता है. इस का बंद सिरा गर्भाशय ग्रीवा को ढक देता है और दूसरा खुला सिरा बाहर रहता है. इसे संबंध बनाने से ले कर 8 घंटे तक धारण किया जा सकता है परंतु सेक्स के बाद लगाने पर इस का कोई उपयोग नहीं रहता है. यह 79.95% सुरक्षा प्रदान करता है.

क्या स्त्री व पुरुष दोनों को कंडोम इस्तेमाल करना चाहिए?

नहीं, इस की आवश्यकता नहीं है, न ही करना चाहिए.

क्या स्त्री कंडोम के साथ जैली लगानी चाहिए?

स्त्री कंडोम में जैली लगी रहती है. इसलिए किसी प्रकार की लुब्रिकेटिंग जैली की जरूरत नहीं होती है, परंतु आवश्यकतानुसार के-वाई जैली या ल्यूबिक जैली इस्तेमाल की जा सकती है. सही तरीके से विधिवत इस्तेमाल करने पर यह 95% सुरक्षित है.

क्या इस के कोई दुष्प्रभाव हैं?

स्त्री कंडोम के कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं. गर्भनिरोधक के साथसाथ यह एचआईवी, एड्स व गुप्त रोगों से भी सुरक्षा प्रदान करता है. स्त्री को शुरूशुरू में इसे इस्तेमाल करने में थोड़ी परेशानी व उलझन हो सकती है.

यह कहां उपलब्ध है?

दवा की दुकानों या सुपर बाजार में उपलब्ध है.

गर्भाशय के अंदर लगाए जाने वाली डिवाइस (कौपर टी, मल्टीलोड व मरीना) क्या है?

इन्हें डाक्टरी जांच के बाद डाक्टर द्वारा लगाया जाता है. यह 3, 5 व 10 साल तक प्रभावी होता है. यह अपनी जगह पर ठीक है या नहीं, गर्भाशय ग्रीवा के बाहर लटकते पतले धागे से ज्ञात किया जा सकता है.

इंट्रायूटराइन डिवाइस के क्या लाभ हैं?

यह बिना किसी बेहोशी या आपरेशन के गर्भाशय में डाक्टर द्वारा लगाया जा सकता है.

यह संभोग क्रिया में किसी प्रकार की बाधा नहीं डालता है. डाक्टर इसे स्त्री के इच्छानुसार बिना किसी सूई अथवा बेहोशी के सरलतापूर्वक निकाल सकता है.

निकालने के तुरंत बाद शीघ्र ही गर्भ ठहरने की संभावना रहती है, क्योंकि यह मासिकधर्म चक्र पर कोई परिवर्तन नहीं होने देता है.

इसे गर्भाशय में लगाने में केवल 10 मिनट लगते हैं और तुरंत ही यह प्रभावकारी हो जाता है. यह लगभग 99% सुरक्षा प्रदान करता है.

आई.यू.एस. मरीना माहवारी में अधिक रक्तस्राव को कम करता है. यह गर्भाशय की छोटी रसौली (फायब्रायड) को भी बढ़ने से रोकता है, जिस से भविष्य में गर्भाशय निकालने जैसे बड़े आपरेशन की नौबत नहीं आती है.

इंट्रायूटराइन डिवाइस से क्या फायदे नहीं हैं?

गुप्तरोग, एचआईवी व एड्स जैसे रोगों से सुरक्षा प्रदान नहीं होती है. माहवारी अनियमित हो सकती है. कभीकभी यह खिसक कर अपनी जगह से नीचे आ जाता है, जिस से गर्भ ठहरने का खतरा हो सकता है, विशेषत: यदि माहवारी में टैंपून का इस्तेमाल किया जाए. कभीकभी गर्भाशय में सूजन, सफेद पानी का स्राव, पीठ में दर्द जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

गर्भनिरोधक गोली क्या है और यह किस प्रकार गर्भाधारण को रोकती है?

गर्भनिरोधक खाने की गोली सब से अधिक प्रचलित है. सही तरीके से लिए जाने पर यह अत्यधिक प्रभावी है और साधारणत: इस का कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है. इन गोलियों में वही हारमोंस होते हैं, जो अंडाशय बनाते हैं. इस्ट्रोजन व प्रोजेस्टरोन या केवल प्रोजस्टरोन, जिन्हें मिनी पिल कहा जाता है. यह गोली प्रत्येक माह अंडाशय से अंडा बनने की प्रक्रिया को रोकती है, जिस से अंडा नहीं बनता है और इस प्रकार माहवारी तो प्रतिमाह अपने समय पर आती है परंतु गर्भ नहीं ठहरने पाता है. मिनी पिल गर्भ ग्रीवा से स्रावित द्रव को गाढ़ा करती है, जिस से शुक्राणु गर्भ के अंदर नहीं पहुंच पाते और इस प्रकार गर्भाधारण नहीं होता है.

बाजार में कितने प्रकार की गोलियां उपलब्ध हैं?

स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह ही सर्वोत्तम है कि कौन सी गोली का सेवन किया जाए. भारत में विभिन्न प्रकार की गर्भनिरोधक गोलियां उपलब्ध हैं- माला डी, ट्राईक्यूलार, ओवेराल-एल, लोएट्, नोवेलोन, फेमिलोन, डायन्, यासमीन इत्यादि.

क्या गर्भनिरोधक गोली के दुष्प्रभाव भी हैं?

अधिकांश महिलाओं पर इस का कोई कुप्रभाव नहीं होता है. कुछ महिलाओं को थोड़ीबहुत परेशानी होती है, जो 3-4 माह गोली का सेवन करने पर स्वत: दूर हो जाती है. अधिकांश महिलाओं को छाती में दर्द व भारीपन, उलटी व मिचली होती है. कभीकभी गोली से चेहरे पर झाइंयां पड़ जाती हैं. कभीकभी महिला को 2 माहवारियों के बीच में भी रक्तस्राव हो जाता है. यदि रक्तस्राव ज्यादा हो तो स्त्रीरोग विशेषज्ञ की सलाह लेना आवश्यक है. गर्भनिरोधक गोली का महिला के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव इस के फायदों की तुलना में लेशमात्र है. अनचाहा गर्भ व एबार्शन का स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है.

गर्भनिरोधक गोली का सेवन क्यों करें, इस के क्या फायदे हैं?

नवदंपती के लिए गर्भाधारण को स्थगित करने का सुरक्षित एवं सरल उपाय है- गर्भनिरोधक गोली. इस के अलावा भी इन गोलियों के अनेक फायदे हैं. यह गोली 20 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में मासिक अनियमितताओं एवं कम रक्तस्राव को नियमित करती हैं. इस से चेहरे पर मुंहासों में कमी, चेहरे की कांति का बढ़ना एवं चेहरे पर अनचाहे बालों के उगने पर भी रोकथाम होती है. गर्भनिरोधक गोली भारी माहवारी एवं असहनीय दर्द को भी कम करती है, यदि दर्द का कोई विशेष कारण न हो. यह अंडाशय एवं स्तनों में पानी की रसौली (सिस्ट) को बनने से रोकती है. यह माहवारी पूर्व के दुष्प्रभाव जैसे-पेट में दर्द, स्तनों में भारीपन व दर्द, शरीर का फूलना, मितली जैसी परेशानी का भी निवारण करती है.

यह विभिन्न प्रकार के कैंसर होने से भी रोकती है जैसे :

अंडाशय कैंसर में 40% की कमी.

गर्भाशय कैंसर में 50% की कमी.

बड़ी आंत के कैंसर में भी कमी.

निरोधक गोली सेवन समाप्त करने पर भी इस का प्रभाव 15 वर्षों तक बना रहता है और कैंसर बनने पर रोकथाम करती हैं.

गर्भनिरोधक गोली सेवन के पूर्व क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

यह गोली शरीर में रक्त के जमने की प्रक्रिया पर प्रभाव डालती है और पैरों में खून के जमने की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए जिन महिलाओं में हृदय रोग, मोटापा, हार्ट अटैक या अधिक रक्तचाप जैसी बीमारी हो या इन की संभावना हो तो उन्हें गर्भनिरोधक गोली का सेवन नहीं करना चाहिए. आमलोगों में एवं हमारे समाज में गर्भनिरोधक गोली के विषय में कुछ गलत धारणाएं हैं, जिन का निवारण अत्यंत आवश्यक है. मसलन :

वजन का बढ़ना.

बांझपन और अपंग बच्चों का जन्म होना या एबार्शन हो जाना.

गोलियों का सेवन करने पर, बाद में गर्भाधान का कभी न हो पाना.

संभोग क्रिया में रुझान व इच्छा का कम होना.

मिनी पिल नवजात शिशु को दुग्धपान कराने वाली महिलाओं को गर्भाधारण से बचाती है. इस के सेवन से नवजात शिशु के स्वास्थ्य पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है, साथ ही महिला के स्तनों में बनने वाली दूध की मात्रा में भी कोई कमी नहीं होती है.

इन सभी बातों पर ध्यान दे कर जीवन में खुशहाली के साथसाथ कई बीमारियों से बचाव भी किया जा सकता है.   

– डा. मीता वर्मा

सस्ता नहीं अच्छा हो मेकअप प्रोडक्ट

सुंदरता 2 तरह की होती है- एक आंतरिक और दूसरी बाह्य. नैननक्श, रंगरूप मिल कर बाह्य सौंदर्य का निर्माण करते हैं, जो उम्र के साथसाथ ढलता जाता है. फिर भी महिलाएं इसी सुंदरता को बनाए रखने के लिए किसी भी सौंदर्यप्रसाधन को इस्तेमाल करने पर आतुर रहती हैं. नगरों में बढ़ते ब्यूटीपार्लर इस का एहसास कराते हैं, जो जम कर तरहतरह के कैमीकल्स इस्तेमाल करते हैं.

इंगलैंड के प्रसिद्ध चिकित्सा विज्ञानी

डा. आर.एन.थिन और बर्लिन यूनिवर्सिटी के त्वचा रोग विशेषज्ञ डा. गुटर स्टुटजन लंबे समय से शोध कार्य में लगे हैं. इन दोनों विशेषज्ञों के सम्मिलित प्रयासों से विटामिन ए ऐसिज नामक औषधि की खोज हुई जो त्वचा रोगों के निवारण में सहायक सिद्ध होती है.

त्वचा संबंधी रोग

दोनों विशेषज्ञों के अनुसार कृत्रिम रूप से तैयार किए गए जेवरात पहनने और सिंथैटिक बिंदी लगाने से कई तरह के त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न हो सकते हैं. बालों को लंबे समय तक रंगने से रक्त कैंसर जैसे रोगों को सामना करना पड़ सकता है. सिंथैटिक कपड़ों को खूबसूरती बढ़ाने का माध्यम मानना आम बात हो गई है, जबकि इन में से निरंतर होने वाला स्टैटिक इलैक्ट्रिक प्रवाह यदि हृदय के विद्युत प्रवाह में प्रवेश करने लगे तो परिणाम घातक ही होंगे. शरीर से अधिक रगड़ खाने के कारण ब्लड की बीमारी का शिकार बनना पड़ता है.

चर्मरोग विशेषज्ञों के अनुसार सौंदर्य प्रसाधनों का अत्यधिक प्रयोग करने से ऐलर्जी की शिकायत होना तो सामान्य बात है. चेहरे पर लाली, खुजली और उभरते चकत्तों को देख कर इस का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है. समय रहते इस की रोकथाम न की जाए तो सफेद दाग भी दिखने लगते हैं.

जिस आंतरिक सौंदर्य की आवश्यकता समाज को है उस की वह उपेक्षा करता है और कृत्रिम सौंदर्य की ओर भागता है. इस से शरीर की स्वाभाविक सुंदरता तो नष्ट होती ही है, बनावटीपन का आवरण भी हर समय ओढ़े रहना पड़ता है.

स्वास्थ्य पर असर

सौंदर्य रसायन शरीर पर दुश्प्रभाव छोड़ते हैं. आईब्रो पैंसिल में लेड की मात्रा होती है. अत: इस का अधिक प्रयोग अंधेपन का शिकार बना सकता है. सफेद क्रीम में अमीनो मरक्यूरिक क्लोराइड के मिले रहने से किडनियों पर गलत असर पड़ता है. परफ्यूम में वगामोट होने से त्वचा को विशेष हानि पहुंचती है, पलकों के बाल झड़ने लगते हैं और रूसी हो जाती है.

आंखों से पानी आने लगता है और उन में सूजन भी आ जाती है. डर्माटाइटिस जैसे त्वचा रोग की संभावना अधिक हो जाती है. लिपस्टिक में टाईटेनियम डाई औक्साइड और बैंजोहक ऐसिड के मिले होने से होंठ काले पड़ने लगते हैं और उन में सूजन भी आ जाती है. यही नहीं कैंसर जैसे रोग होने की संभावना भी बढ़ जाती है.

हेयर डाई में हाइड्रोजन पैरा औक्साइड, अमोनिया ऐसिड लेड ग्रेफाइट आदि का मिश्रण होने से बाल बड़ी तेजी से झड़ने लगते हैं, ऐक्जीमा और खुजली की शिकायत भी होती है. फाउंडेशन में वरमामोट होने से रोमछिद्र बंद हो जाते हैं और त्वचा को चर्म रोगों का शिकार बना कर कई तरह के रोग हो जाते हैं. नेलपौलिश और हेयर स्प्रे में पैराफिनायलीन डाजमीन नामक रसायन तत्त्व घुलामिला होता है जो आंखों में जलन व खुजली करता है और माइग्रेन रोग का शिकार बना देता है.

वैक्सिंग में एक प्रकार का ऐसिड प्रयुक्त होता है जो त्वचा के रंग को काला कर देता है. कृत्रिम सौंदर्यप्रसाधनों की इन हानियों को जानने के बाद भी महिलाएं इन का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रही हैं.

आंतरिक सौंदर्य की खूबियों को जानते हुए भी आज की महिलाएं कृत्रिम सौंदर्य को सबकुछ मान बैठती हैं, जबकि यह नहीं भूलना चाहिए कि दर्पण आंख, कान, नाक, चेहरे की आकृति और बनावट तो बता सकता है, पर वास्तविक स्वरूप का पता तो आंतरिक आईने में झंकने से ही चलता है.

 

 

यह कैसा इंसाफ : परिवार का क्या था फैसला

14 साल की पूनम ने हाईस्कूल की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली थी और आगे की पढ़ाई के लिए उसी स्कूल में 11वीं का फार्म भर दिया था. बोर्ड की परीक्षा पास करने के बाद दूसरे स्कूलों के स्टूडेंट भी पूनम के स्कूल में एडमिशन के लिए आए थे. पूनम की कक्षा में कई नए छात्र थे.

हमारी जिंदगी में रोजाना कई चेहरे आते हैं और बिना कोई असर छोड़े चले जाते हैं. लेकिन जिंदगी के किसी मोड़ पर कोई ऐसा भी आता है, जिस की एक झलक ही दिल की हसरत बढ़ा देती है. कुछ ऐसा ही पूनम के साथ भी हुआ था.

उस की क्लास में मोहित ने भी एडमिशन लिया था. पूनम की उस से दोस्ती हुई तो कुछ ही दिनों में वह उसे दिल दे बैठी थी. फतेहपुर की पूनम और नूरपुर के मोहित दो अलगअलग गांवों में पलेबढ़े थे. लेकिन उन का स्कूल एक ही था और यहीं दोनों ने एकदूसरे से कुछ वादे किए.

पहले तो दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं होती थी, सिर्फ नजरें मिलने पर मुसकरा कर खुश हो जाया करते थे, लेकिन जल्द ही मोहब्बत के अल्फाजों ने इशारों की जगह ले ली जो एक नया एहसास दिलाने लगे. पहली नजर में किसी को प्यार होता है या सिर्फ चंद दिनों की चाहत होती है, इस का नतीजा निकालना थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन कुछ नजरें ऐसी भी होती हैं जो दिलों में हमेशा के लिए मुकाम बना लेती हैं.

पूनम ने अपने प्यार का पहले इजहार नहीं किया था, क्योंकि वह प्यारमोहब्बत के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती थी. लेकिन कभीकभी ऐसा होता है कि जो न चाहो वही होता है. पूनम भी इसी चाहत का शिकार हो गई और मोहित से दिल के बदले दिल का सौदा कर बैठी.

पूनम और मोहित का प्यार भले ही 2 नाबालिगों का प्यार था, लेकिन उन के प्यार में पूरा भरोसा  और यकीन था. उसी प्यार की गहराई में डूब कर पूनम सब कुछ छोड़ कर मोहित का हाथ थामे प्यार में गोते लगाती चली गई.

2 प्यार करने वाले भले ही ऊंचनीच, दौलत शोहरत न देखें, लेकिन घर और समाज के लोग यह सब जरूर देखते हैं. इसी ऊंचनीच के फेर में दोनों बुरी तरह फंस कर उलझ गए. पूनम सवर्ण थी तो मोहित दलित परिवार से ताल्लुक रखता था.

पूनम का भरापूरा परिवार जरूर था, जिस में मांबाप और बड़े भाई साथ रहते थे. लेकिन उसे कभी घर वालों का प्यार नहीं मिला. आए दिन छोटीछोटी गलतियों की वजह से उसे मारपीट और गालीगलौज के दौर से गुजरना होता था. ये सब कुछ वह चुपचाप बरदाश्त करती थी.

लेकिन उसे इस बात की खुशी थी कि स्कूल में उसे मोहित का प्यार मिल रहा था. मोहित को देखते ही उस का सारा दुखदर्द छूमंतर हो जाता था. एक दिन उस ने मोहित से अपने साथ की जाने वाली मारपीट की पूरी बात बताई. उस की कहानी सुन कर मोहित द्रवित हो गया. बाद में एक दिन पूनम और मोहित घर से भाग गए.जिस समय मोहित और पूनम घर से भागे, उस वक्त दोनों नाबालिग थे. पहले तो दोनों के घर वालों ने भागने की बात को छिपा लिया, लेकिन उसे कब तक छिपाए रखते. कहते हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं. देखते ही देखते यह बात पूनम के गांव से होते हुए मोहित के गांव तक जा पहुंची.

अब हर ओर उन्हीं दोनों की चर्चा हो रही थी. कुछ लोग इसे सही ठहरा रहे थे, जबकि कुछ का यह कहना भी था कि मोहित ने ठीक किया. इस से पूनम के घर वाले अब समाज में सिर उठा कर नहीं बोल सकेंगे. बड़ी दबंगई दिखाते थे. बेटी ने नाक कटवा कर सारी दबंगई निकाल दी.

अफवाहों के भले ही पर नहीं होते, लेकिन परिंदों से भी ज्यादा तेजी से उड़ती हैं. आसपास के गांवों में पूनम और मोहित के भागने की खबर फैल गई. आखिर पूनम के घर वालों ने पुलिस थाने में जा कर मोहित के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी. इस के बाद पुलिस उन दोनों को तलाश करने लगी. लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. पुलिस वालों ने दूसरे जिलों के थानों में भी खबर कर दी थी.

काफी दिन बाद पूनम और मोहित दिल्ली पुलिस को मिल गए. दिल्ली पुलिस ने उन की गिरफ्तारी की सूचना संबंधित थाने को दे दी तो उस थाने की पुलिस दोनों को अपने साथ ले गई. क्योंकि पूनम के पिता मोहित के खिलाफ पहले ही पूनम को भगाने और रेप की एफआईआर दर्ज करवा चुके थे.

पुलिस के हत्थे चढ़ने पर पूनम मोहित को ले कर बहुत परेशान थी क्योंकि उसे मालूम था कि उस के घर वाले पुलिस से मिल कर मोहित के साथ क्या करवाएंगे. इस के अलावा उस की जिंदगी भी घर में नरक बन जाएगी. यही सोचसोच कर पूनम रो रही थी क्योंकि उस के बाद जो होना था, उस का उसे अंदाजा था.

मोहित को पुलिस ने हवालात में डाल दिया और पूनम को उस के घर वालों के सुपुर्द कर दिया. जबकि वह उन के साथ नहीं जाना चाहती थी. वह मोहित के साथ ही रहना चाहती थी. लेकिन मजबूर थी. क्योंकि उन लोगों ने मोहित के खिलाफ मामला दर्ज करवा दिया था.

घर पहुंच कर पिता और भाई ने पूनम को जम कर पीटा और उसे धमकाया कि अगर उस ने कोर्ट में मोहित के खिलाफ बयान नहीं दिया तो उसे और मोहित को जान से मार डालेंगे. पूनम घर वालों की धमकियों से बहुत डर गई. लेकिन अपने लिए नहीं, बल्कि मोहित के लिए वह घर वालों के कहे अनुसार बयान देने को राजी हो गई.

घर वालों ने पूनम को दबाव में ला कर कोर्ट में जबरदस्ती बयान दिलवाया कि मोहित उसे जबरदस्ती भगा कर ले गया था और उस ने उस के साथ रेप भी किया था.

पूनम के लिए यह बहुत बुरा दौर था. उसे उसी के पति के खिलाफ झूठी गवाही के लिए मजबूर किया जा रहा था. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे प्यार करने की इतनी बड़ी सजा क्यों दी जा रही है. एक तरफ पूनम अपने घर में ही रह कर बेगानी थी तो वहीं दूसरी तरफ मोहित पर पुलिस का सितम टूट रहा था.

जब पूनम और मोहित घर से भागे थे, तभी उन्होंने शादी कर ली थी. पुलिस ने जब दोनों को दिल्ली से पकड़ा तब मोहित बालिग हो चुका था, जबकि घर से भागे थे तब दोनों नाबालिग थे. पुलिस ने मोहित को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

पूनम के घर वालों ने पुलिस से सांठगांठ कर के मोहित पर अत्याचार करवा कर अपनी बेइज्जती का बदला तो लिया ही साथ ही अपना प्रभाव भी दिखाया.

पूनम के घर वालों में से कोई भी उस के साथ हमदर्दी तक नहीं दिखा रहा था. इस दुनिया में मां ही ऐसी होती है, जिसे अपने बच्चों से सब से ज्यादा प्यार होता है. लेकिन उस की मां सरिता एकदम पत्थरदिल हो गई थी. उसे अपनी बेटी की जरा भी परवाह नहीं थी.

अगर परवाह थी तो अपने परिवार की इज्जत की, जो पूनम ने सरेबाजार नीलाम कर दी थी. बल्कि सरिता तो उसे ताने देते हुए यही कह रही थी कि अगर उसे प्यार ही करना था तो क्या दलित ही मिला था. क्या बिरादरी में सब लड़के मर गए थे. यही बात सोचसोच कर उस की आंखों में शोले भड़कने लगते थे.

करीब 5 महीने बाद मोहित के केस की सेशन कोर्ट में काररवाई शुरू हुई तो हर सुनवाई से पहले पूनम को उस के घर वाले समझाते कि उसे कोर्ट में क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना. बाप और भाई के रूप में राक्षसों के जुल्मोसितम के आगे पूनम ने घुटने टेक दिए थे. उस से जो कहा जाता वही वह अदालत में कहती. ये पूनम की गवाही का ही नतीजा था कि मोहित को हाईकोर्ट से जमानत मिलने में 22 महीने लगे.

मोहित जब जमानत पर जेल से बाहर आया तो किसी तरह पूनम को भी उस की खबर लग गई. वह मोहित को एक नजर देखने के लिए बेकरार हो गई. लेकिन उस के लिए मिलना तो नामुमकिन सा था. पूनम को मोहित के घर वालों का नंबर अच्छी तरह से याद था. एक दिन अकेले कमरे में किसी तरह से मोबाइल ले कर उस ने नंबर डायल कर दिया. दूसरी ओर फोन की घंटी बज रही थी, लेकिन उस से तेज पूनम के दिल की धड़कनें बढ़ चुकी थीं.

वह यही चाह रही थी कि मोहित ही फोन रिसीव करे तो अच्छा रहेगा. आखिर उस की आरजू पूरी हुई और मोहित ने ‘हैलो’ बोला, जिसे सुन कर पूनम सुधबुध खो बैठी. कई बार उधर से हैलो की आवाज से उसे होश आया और रुंधे गले से सिर्फ लरजती आवाज में बोल पाई मोहित. मोहित उस की आवाज को पहचान गया और ‘पूनम पूनम’ कह कर चीख पड़ा.

खैर, उस दिन दोनों के बीच थोड़ी बातचीत हुई. इस के बाद एक बार फिर से पहले की तरह सब कुछ चलने लगा. फोन पर बातें होती रहीं और दोनों ने एक बार फिर पहले की तरह साथ रहने का फैसला कर लिया. तय वक्त पर पूनम और मोहित दोबारा घर से भाग गए और गांव से दूर आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली, जिस का उन्हें प्रमाणपत्र भी मिला. पहले जब उन्होंने शादी की थी, उस समय वे नाबालिग थे.

उन्होंने शादी तो कर ली, लेकिन पूनम के घर वालों ने उसे हमेशा के लिए छोड़ दिया. क्योंकि उस ने दोबारा से उन्हें समाज में मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा था. काफी अरसे तक पूनम ने अपने घर वालों से कोई बातचीत नहीं की, जबकि मोहित के घर वालों ने उन दोनों को अपना लिया था.

पूनम मोहित के घर पर ही रह रही थी. मोहित के पिता की मौत पहले ही हो चुकी थी. अब घर में सास और एक ननद थी. उन के बीच ही वह हंसीखुशी से रह रही थी. पूनम को अब एक खुशी मिलने वाली थी, क्योंकि वह मां बनने वाली थी. उस ने एक खूबसूरत बच्ची को जन्म दिया, जिस से पूरा घर खुश था. अब सब सामान्य था लेकिन उस का एक जख्म भरता नहीं था कि दूसरा बन जाता था.

अभी उस की मासूम बच्ची ने सही तरह से आंखें भी नहीं खोली थीं कि उस के ऊपर मुसीबतों का एक और पहाड़ टूट पड़ा. हुआ यूं कि मोहित पर पहले का जो केस चल रहा था, उस का फैसला आ गया, जिस में सेशन कोर्ट ने मोहित को 7 साल की सजा और 5 हजार रुपए जुरमाने का आदेश दिया.

इस फैसले से पूनम के पैरों तले से जैसे जमीन ही खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जब मोहित से उस ने शादी कर ली और वह बालिग भी है, तब क्यों ऐसा फैसला आया. इस से तो हमारा पूरा परिवार ही बिखर जाएगा. उस ने कोर्ट में इंसानियत के नाते मोहित को छोड़ने की गुजारिश की, पर कोई लाभ नहीं मिला.

पूनम को अपनी बेटी पर बड़ा तरस आ रहा था, जिसे बिना किसी कसूर के इतनी बड़ी सजा मिल रही है, जो उसे 7 सालों तक बाप के प्यार से दूर रहना पड़ेगा. इस दुधमुंही की क्या गलती थी, जो इसे हमारे किए की सजा मिलेगी.

 

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