यूटरस रिमूव करने की जरूरत क्यों

एक महिला के शरीर में यूटरस कितना जरूरी है यह बताने की जरूरत भले न हो, लेकिन जब यह दर्द और तड़पने का कारण बन जाए तो फिर क्या करना चाहिए…

का या 26 साल की है. वह फुटबाल खेलते समय असहनीय दर्द के कारण मैदान में ही गिर गई. उसे आननफानन में हौस्पिटल ले जाया गया. डाक्टर ने उस की जांच की. जांच में पता चला कि काया की पीरियड्स की ओवर ब्लीडिंग और दर्द से यह हालत हुई है. उस की हालत देख कर हौस्पिटल की गायनोकोलौजिस्ट डाक्टर ने उस के यूटरस को रिमूव करने की सलाह दी. काया अनमैरिड थी, इसलिए यूटरस रिमूव कराना इस उम्र और स्थिति में एक बोल्ड स्टैप था. लेकिन हैल्थ को देखते हुए काया और उस के पेरैंट्स ने यूटरस रिमूव कराना ही सही समझा.

वहीं दूसरी स्थिति नई दिल्ली के विकासपुरी इलाके में रहने वाली 34 साल की अंकिता श्रीवास्तव की है. वह बताती है, ‘‘कई दिनों से मु?ो बारबार टौयलेट जाने का प्रैशर महसूस होता था लेकिन यूरिन नहीं आता था. प्राइवेट पार्ट में जलन भी होती थी. जब हौस्पिटल जा कर डाक्टर को दिखाया तो ओवेरियन कैंसर निकला. यह सुनने के बाद मैं अंदर से टूट चुकी थी. मेरा 1 बेटा है. मैं फिर से मां बनाना चाहती थी लेकिन इस बीमारी ने मेरे सपनों पर पानी फेर दिया.

मैं अपना यूटरस नहीं निकलवाना चाहती थी. लेकिन मेरे हसबैंड ने मु?ो सम?ाया कि तुम्हारी हैल्थ हमारे बच्चे से ज्यादा जरूरी है और बच्चा तो हम सरोगेसी के जरीए या फिर गोद भी ले सकते हैं. हसबैंड की बातें सुन कर मैं ने यूटरस रिमूव करवाने का फैसला किया. यूटरस रिमूव कराने के बाद मेरी समस्या का समाधान हो गया.’’

डौक्टरों की सलाह

फेमस वोग मैगजीन में 2018 में अमेरिकन ऐक्टर, कौमेडियन और पौप कल्चर आइकोन लीना डनहम ने एक आर्टिकल लिखा. यह आर्टिकल उन के यूटरस निकलवाने के बारे में था. 31 साल की उम्र में वे ऐंडोमिट्रिओसिस से पीडि़त थी और तेज दर्द ने उन्हें बेसुध सा कर दिया था. उन के डाक्टरों ने यूटरस को निकालने की सलाह दी. कुछ और डाक्टरों की सलाह लेने के बाद उन्होंने अंत में यूटरस निकलवा ही दिया.

सोसाइटी में यूटरस रिमूव कराने को ले कर कई तरह ही धारणाएं बनी हुई हैं, जिन में सब से आम धारणा यह है कि एक औरत तभी पूरी है जब वह बच्चे को जन्म दे सके. ऐसे में महिला के शरीर में यूटरस कितना जरूरी है, यह बताने की जरूरत बिलकुल नहीं है. लेकिन जब यह दर्द और तड़पने का कारण बन जाए तो इसे निकलवा देना ही बेहतर होता है.

हौलीवुड ऐक्ट्रैस ऐंजेलीना जोली ने गर्भाशय के कैंसर से बचने के लिए अपने यूटरस और फैलोपियन ट्यूब को निकलवा दिया. इसी तरह मशहूर सितारवादक अनुष्का शंकर के यूटरस में कई गांठें थीं. इस वजह से उन का यूटरस 6 महीने की गर्भवती के जितना बड़ा हो गया. लेकिन अनुष्का ने सम?ादारी दिखाई और अपना यूटरस रिमूव करवा लिया.

क्या कहते हैं आंकड़े

केंद्रीय परिवार और स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय ने 2017-18 में 72 हजार महिलाओं के बीच सर्वे किया. उस के बाद यह रिपोर्ट सामने आई कि भारत में 45 साल से ज्यादा उम्र की 11% महिलाएं अपना यूटरस रिमूव करा लेती हैं. वहीं ‘सैंटर फौर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवैंशन’ के अनुसार अमेरिका में 40 से 44 साल की उम्र में 11.7% महिलाओं ने अपना यूटरस निकलवाया. जबकि ब्रिटेन में 20% महिलाएं इस सर्जरी का सहारा लेती हैं.

दरअसल, यूटरस वह संरचना है जिस में प्रैगनैंसी के दौरान बच्चा पलता है. यह ब्लैडर और पैल्विक एरिया की हड्डियों को भी सपोर्ट करता है. लेकिन कुछ वजहों से इसे रिमूव कराना जरूरी हो जाता है.

दिल्ली के सर गंगाराम हौस्पिटल में गायनोकोलौजिस्ट डाक्टर माला श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘जब बच्चेदानी का आकार बढ़ने लगे या पीरियड्स में बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होने लगे, रसौली हो, ओवरी सिस्ट या कैंसर हो तब यूटरस रिमूव किया जाता है. अगर बौडी में यह अंग ही बीमारी की जड़ हो तो इसे निकाल देना ही बेहतर होता है. हालांकि मरीज को पहले दवा दी जाती है. उस से प्रौब्लम सौल्व नहीं होती तभी सर्जरी की सलाह दी जाती है. सर्जरी होने के बाद 3 महीने का परहेज होता है. इस दौरान महिला को भारी वजन बिलकुल नहीं उठाना होता है.’’

कई तरह के औपरेशन

इस में 3 तरह के औपरेशन किए जाते हैं. पहला औपरेशन होता है हिस्टरेक्टोमी. इस में पूरे यूटरस को निकाला जाता है. यूटरस के साथसाथ ओवरी और फैलोपियन ट्यूब भी रिमूव कर दी जाती है. दूसरा होता है सुपरासर्विकल. इस में यूटरस के ऊपरी भाग को रिमूव किया जाता है, जबकि गर्भाशय ग्रीवा यानी सर्विक्स को शरीर में छोड़ दिया जाता है. तीसरी सर्जरी रैडिकल हिस्टेरेक्टोमी कहलाती है. इस में यूटरस के साथ सर्विक्स और वैजाइना का ऊपरी भाग निकाला जाता है.

आखिर क्यों रिमूव किया जाता है यूटरस

यूटरस रिमूव करने की कई वजहें हैं जैसे फाइब्रौयड्स. इस में यूटरस के आसपास गांठें हो जाती हैं. इस की वजह से पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा ब्लीडिंग और दर्द होता है. इस से ब्लैडर पर भी दबाव पड़ता है और बारबार टौयलेट जाना होता है. फाइब्रौयड्स साइज में छोटे हों तो ज्यादा दिक्कत नहीं हैं पर यदि इन का साइज बड़ा हो तो सर्जरी जरूरी हो जाती है. दूसरी वजह है कैंसर. यूटरस, सर्विक्स, ओवरीज का कैंसर होने या ऐसी गांठें होने पर जो आगे चल कर कैंसर में बदल सकती हैं उन के लिए हिस्टरेक्टोमी जरूरी हो जाती है.

तीसरी वजह है ऐंडोमिट्रिओसिस. जब यूटरस के आसपास की लाइनिंग ज्यादा फैल जाती है और यह ओवरीज, फैलोपियन ट्यूब और दूसरे अंगों पर असर डालने लगती है तो इसे  ऐंडोमिट्रिओसिस कहते हैं. इस तरह के पेशैंट की रोबोटिक हिस्टरेक्टोमी की जाती है और यूटरस निकाल दिया जाता है.

चौथी वजह है यूटराइन ब्लीडिंग. पीरियड्स के दौरान कई महिलाओं को बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती है जो दवाओं से भी कंट्रोल नहीं होती. ऐसे में उन्हें ऐनीमिया का खतरा बढ़ जाता है. इस स्थिति में भी हिस्टरेक्टोमी एक विकल्प रह जाता है. हालांकि यह सब से आखिरी विकल्प होता है.

कैसे होती है हिस्टरेक्टोमी सर्जरी

यूटरस रिमूव करने की सर्जरी मेजर सर्जरी में आती है जो कई तरीकों से परफौर्म की जाती है. इस में जनरल या लोकल ऐनेस्थीसिया की जरूरत होती है. जनरल ऐनेस्थीसिया यानी बेहोश करने का वह मैडिकल तरीका, जिस में पूरी प्रक्रिया के दौरान मरीज बेहोश रहता है. वहीं लोकल ऐनेस्थीसिया में केवल उसी हिस्से और उस के नीचे का कुछ एरिया सुन्न किया जाता है, जहां सर्जरी होनी होती है. हिस्टरेक्टोमी ऐब्डोमिनल, वैजाइनल और लैप्रोस्कोपिक 3 तरह की होती है. पहली 2 सर्जरी में क्रमश: पेट और वैजाइन में चीरा लगता है, वहीं लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में लैप्रोस्कोप यानी कैमरे की हैल्प से सर्जरी होती है.

समय और खर्चा

आमतौर पर पेट और योनि की हिस्टैरेक्टोमी के लिए 60 से 90 मिनट का समय लगता है, जबकि लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी में लगभग 120 मिनट लगते हैं. बात अगर लागत की करें तो गर्भाशय हटाने की प्रक्रिया की औसत कीमत 25 हजार रुपए से ले कर 1 लाख 80 हजार रुपए तक है. हालांकि किसी भी सर्जरी की तरह, यूटरस रिमूव की लागत हिस्टरेक्टोमी के लिए इस्तेमाल की जाने वाली टैक्निक और हटाए गए घटकों के आधार पर थोड़ीबहुत अलग हो सकती है.

यूटरस रिमूव कराने के बाद कैसी हो डाइट

डाइटीशियन सतनाम कौर ने बताया कि हिस्टरेक्टोमी के बाद महिलाओं को अपनी डाइट में प्रोटीन, ऐंटीऔक्सीडैट और फाइबर शामिल करना चाहिए. फल, सब्जियां, साबूत अनाज जैसे ओट्स, बाजरा, दालें आदि खूब खाएं. सर्जरी के बाद गैस और कब्ज की दिक्कत रहती है, इसलिए अपनी डाइट में फाइबर जरूर शामिल करें. साथ ही खूब सारा पानी भी पीएं ताकि पेट न फूले.

इस के अलावा सूप, छाछ, नारियल पानी भी जरूर पीएं. इन सब के अलावा आप को कुछ खाद्यपदार्थों से अपनेआप को बचाना होगा. जैसे मुनक्का या किशमिश, अंजीर, खूबानी, मटर, बींस, मैदा, फास्ट फूड, हाई फैट आदि.

सर्जरी के बाद हो सकते हैं कुछ बदलाव

ऐसा नहीं है कि यूटरस निकालने के बाद बौडी में कुछ महसूस ही नहीं होता. यूटरस निकालने के बाद भी प्राइवेट पार्ट में सैंसेशन रहती है. सर्जरी के बाद बौडी में कई तरह के बदलाव आते हैं जैसे हिस्टरेक्टोमी सर्जरी के बाद सब से पहले बौडी में जो बदलाव आता है वह पीरियड्स का बंद होना. इस के अलावा मूड स्विंग्स होना, सैक्स की इच्छा का कम होना, कब्ज की समस्या होना, कभी भी टौयलेट आना, बौडी के साइज और वेट में चेंज आना.

सर्जरी के बाद बौडी में ऐस्ट्रोजन हारमोन का प्रतिशत बड़ी मात्रा में गिर जाता है. इस का असर मूड पर पड़ता है, जिस से बारबार मूड स्विंग होता है. कई बार यह समस्या इतनी बढ़ जाती है कि हारमोन रिप्लेसमैंट थेरैपी करनी पड़ती है. हारमोंस का स्तर कम होने के कारण दिल की बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. पीरियड्स और प्रैगनैंसी की वजह से ज्यादातर महिलाओं की बौडी में कैल्सियम औसत से भी कम होता है. ऐसे में यूटरस हटाने से ऐस्ट्रोजन की कमी से हड्डियां और भी ज्यादा कमजोर हो जाती हैं.

यूटरस रिमूवल के साइड इफैक्ट्स

ऐसा नहीं है कि यूटरस रिमूव कराने से सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है. यूटरस रिमूव कराना आप को दर्द से राहत जरूर दिला सकता है लेकिन यह भी सच है कि इस के रिमूव कराने के कुछ साइड इफैक्ट्स भी होते हैं जैसे सर्जरी वाले हिस्से में दर्द, सूजन, जलन के अलावा पैर सुन्न होना, ऐनेस्थीसिया की वजह से सांस लेने में तकलीफ होती है. हिस्टरेक्टोमी करा चुकी महिला को मेनोपौज कम उम्र में ही आ जाता है यानी पीरियड्स बंद हो जाते हैं. इस का मतलब है प्रीमेनोपौजल लक्षण भी पहले ही ?ोलने होते हैं. हौट फ्लैशेज यानी फेस और तलवे लाल हो जाना या तपना, पसीना ज्यादा आना, नींद न आना और वैजाइना में सूखापन.

हो सकती है दर्द की शिकायत

किसी भी अन्य सर्जरी की तरह यूटरस को निकालने के बाद दर्द का एहसास होता है. हालांकि यह कितना दर्दनाक और कितने समय तक रहेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस प्रकार की लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया को अपना रहे हैं. वैजाइनल हिस्टरेक्टोमी के मामले में ज्यादातर महिलाओं को 2-3 हफ्ते तक दर्द की शिकायत रहती है. यूटरस निकलने के बाद इस के आसपास के बौडी पार्ट में चोट लगने के चांस बढ़ जाते हैं. दरअसल, महिला का गर्भाशय फैलोपियन ट्यूब, आंतों, पैल्विक मसल और अंडाशय जैसे अंगों से घिरा होता है. ऐसे में बौडी से यूटरस को हटाने की प्रक्रिया में आसपास के पार्ट को कुछ नुकसान हो जाता है.

दर्द दे सकता है सैक्स

यूटरस रिमूव कराने के बाद फिजिकल रिलेशन बनाते समय सूखेपन के कारण दर्द हो सकता है. यह दर्द पेट के निचले हिस्से में होता है जो कभीकभी दर्दनाक ऐंठन के रूप में भी हो सकता है. अगर महिला को कैंसर हुआ हो तो रेडिकल हिस्टरेक्टोमी सर्जरी होती है. इस में यूटरस के साथ सर्विक्स को भी निकाल दिया जाता है. सर्विक्स में एक नस होती है जो महिलाओं में सैक्स की इच्छा बढ़ाती है. इसके निकलने से महिला क्लाइमैक्स तक नहीं पहुंच पाती.

बढ़ता है कैंसर का रिस्क

यूटरस रिमूवल से कैंसर का रिस्क बढ़ सकता है. ऐसा लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टोमी के मामले में देखने को मिलता है. यूटरस के टिशू को तोड़ने के लिए पावर मोर्सलेटार का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा करने से पूरी बौडी में कैंसर टिशू फैलने के चांस बढ़ जाते हैं. ये टिशू आगे चल कर आप के लिए घातक साबित हो सकते हैं.

संक्रमण का खतरा

सर्जरी कोई भी हो, कई सारे टूल्स बौडी के संपर्क में आते ही हैं. इन से संक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. भले ही डाक्टर हाइजीन का ध्यान रखें लेकिन बैक्टीरिया किसी न किसी रास्ते पेशैंट की बौडी में एंटर हो ही जाते हैं.

शादी बाद दूरी क्यों होती है जरूरी

आजकल एकल परिवारों का चलन तेजी से बढ़ रहा है. संयुक्त परिवार कहीं गुम होते जा रहे हैं. पहले की तरह वैसे भी परिवार बड़े नहीं होते. बच्चे 1 या 2 होते हैं जो जौब या शादी के बाद दूसरे शहर में सैटल हो जाते हैं. अगर नौकरी उसी शहर में मिल जाए या लड़का बिजनैस कर रहा है तो पेरैंट्स उम्मीद करते हैं कि बेटेबहू उन के साथ रहें. मगर इस में किसी का फायदा नहीं है क्योंकि अकसर बहू के आने के बाद घर में सासबहू की खटपट और कलह शुरू हो जाती है. ऐसे में अगर कुछ अप्रत्याशित घट जाए तो नतीजा पूरे परिवार को भोगना पड़ता है.

ज्यादातर घरों में देखा गया है कि जब बहूबेटे पेरैंट्स के साथ रहते हैं तो कहीं न कहीं पेरैंट्स बच्चों को ज्ञान देने से नहीं चूकते. बहू को कैसे काम करना चाहिए, कैसे पति का खयाल रखना चाहिए, कैसे घर मैनेज करना चाहिए या फिर कैसे बच्चे को संभालना चाहिए इन सब की सीख सासससुर लगातार देते नजर आते हैं.

कई बार जब पतिपत्नी के बीच छोटेमोटे झगड़े हो जाते हैं तो पेरैंट्स उन्हें सुलझाने के बजाय उलझाने में सहयोग देते हैं. बहू की मां दामाद की गलतियां दिखाती है तो लड़के की मां बहू की खामियां बेटे को बताती है कि बहू देर से घर लौटती है, पूरा दिन फोन में लगी रहती है, घर गंदा रखती है, दूसरे मर्दों से हंसहंस कर बातें करती है वगैरहवगैरह.

नतीजा, बहूबेटे के बीच दूरियां बढ़ने लगती हैं और सासससुर इस में भी दोष बहू को देते हैं. इस से बहू के मन में भी इनलौज के लिए नफरत पैदा होने लगती है और जब पानी सिर से ऊपर चला जाता है या कुछ गलत घट जाता है तो बहू या उस के घर वाले लड़के के मातापिता, भाईबहन आदि पूरे परिवार को शिकंजे में कस देते हैं. पूरे परिवार पर बहू को सताने या घरेलू हिंसा आदि के आरोप लगा दिए जाते हैं. कई दफा बहू खुद ही ससुराल वालों के खिलाफ ?ाठी एफआईआर दर्ज कराती है. इस तरह सारा परिवार बलि चढ़ जाता है.

सुकून भी रहेगा और प्यार भी

ऐसे हालात पैदा हों उस से अच्छा है कि नव दंपती शादी और बच्चों के बाद अपना एक छोटा सा आशियाना ढूंढ़ लें. भले ही आप के मांबाप का घर काफी बड़ा हो और उस में कई कमरे हों मगर जब आप अपना अलग एक कमरे का मकान भी ले लेंगे तो उस में जो सुकून और प्यार रहेगा वह बड़े घर में संभव नहीं क्योंकि दंपती जब अलग रहेंगे तो उन दोनों के ही मांबाप अपने बच्चों को आपस में एडजस्ट करने और मिल कर सुखदुख बांटते हुए जीने की शिक्षा देंगे. वे उन में ? झगड़े कराने के बजाय झगड़े सुलझने में मदद करेंगे ताकि दोनों एकदूसरे का खयाल रख सकें.

खुद नव दंपती भी अपनी समस्याएं और झगड़े बढ़ाने के बजाय जल्द ही उन्हें सुलझाने में सक्षम होंगे क्योंकि इस समय कोई उन्हें एकदूसरे के खिलाफ भड़काने वाला मौजूद नहीं होगा. इस के विपरीत यदि वे संयुक्त परिवार में रहते हैं तो कुछ भी हो सकता है.

जरा कल्पना कीजिए एक ऐसी स्थिति की जब पति को पता चले कि जिस पत्नी की हत्या के आरोप में वह 13 महीनों से जेल में था वह जिंदा है और अपने प्रेमी के साथ इटावा में रंगरलियां मना रही है.

पतिपत्नी के बीच का एक ऐसा ही मामला आजमगढ़ से सामने आया (मार्च, 2023 में) जिसे सुन कर आप सम?ा सकेंगे कि संयुक्त परिवारों में कभीकभी बेचारे पुरुष और उस के पूरे परिवार को किस तरह बेबुनियाद आरोपों के तहत जेल की हवा खानी पड़ जाती है.

सनसनीखेज मामला

रुचि और दीपू की शादी 2019 में हुई थी. दोनों के बीच अकसर ?ागड़ा होता रहता था. एक दिन रुचि ससुराल से अचानक लापता हो गई. इस की रिपोर्ट दीपू ने थाने में दर्ज कराई. दूसरी तरफ रुचि की मां माया देवी ने कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई कि उस की पुत्री रुचि को उस के पति दीपू, ससुर राजेंद्र, जेठानी विनीता ने दहेज के लिए प्रताडि़त करने के साथसाथ अपहरण कर हत्या के बाद लाश को गायब कर दिया है. उस के बाद पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

दीपू जब 13 माह बाद जमानत पर छूटा तो पत्नी की तलाश शुरू कर दी. उसे इस काम में कामयाबी हाथ लगी और जो राज सामने आया उस ने सब के होश उड़ा दिए. दीपू को पता चला कि रुचि इटावा जिले के इटैली गांव में प्रेमी के साथ रह रही है. दीपू ने जब पुलिस को सुबूत दिया तो पुलिस ने रुचि को पकड़ कर उस का बयान दर्ज किया.

ऐसा ही एक मामला जुलाई, 2022 में भी सामने आया जब एक नईनवेली दुलहन ने ससुराल पक्ष को ?ाठे मामलों में फंसाया. सचाई पता चलने पर अदालत ने सास, देवर और परिवार के अन्य सदस्यों पर घरेलू हिंसा व छेड़खानी का ?ाठा आरोप लगाने के जुर्म में बहू पर 2 लाख रुपए का जुरमाना लगाया.

मामला कुछ ऐसा था कि घर के बड़े बेटे का विवाह 1997 में हुआ था. विवाह के बाद 2001 में बहू अपने पति और बच्चों के साथ मायके में रहने लगी. ऐसे में महिला की सास ने बेटेबहू को संपत्ति से बेदखल कर दिया. इस के बाद महिला ने सास की संपत्ति पर हक जताते हुए मई, 2009 में द्वारका अदालत में मुकदमा दायर कर दिया, साथ ही उस ने जुलाई, 2009 में सास, देवर, देवरानी और उन के बेटे पर घरेलू हिंसा का केस दायर किया. इन दोनों मामलों में अदालत ने आरोपों को बेबुनियाद माना.

खानी पड़ी जेल की हवा

संपत्ति विवाद का मामला जुलाई, 2010 में खारिज कर दिया गया. इस के अलावा अदालत ने 13 साल से अलग रहने के आधार पर घरेलू हिंसा का मुकदमा दिसंबर, 2012 को खारिज कर दिया. 2015 में महिला के पति की मौत हो गई थी.

इसी दौरान महिला की सास कैंसर की बीमारी से पीडि़त हो गई जबकि देवरानी बेमतलब के मुकदमेबाजी की वजह से मानसिक रूप से बीमार रहने लगी. अदालत ने माना कि बगैर कुसूर रोजरोज पुलिस और कचहरी के चक्कर किसी को भी मानसिक रोगी बना सकते हैं.

इसी तरह अगस्त, 2022 को यूपी के बहराइच में एक सनसनीखेज मामला सामने आया जहां दहेज हत्या के आरोप में एक पति और उस के परिवार के 4 लोगों को जेल की हवा खानी पड़ी. लेकिन 13 साल बाद उस की पत्नी जिंदा निकल आई. आसपास के लोगों ने जब उसे जिंदा देखा तो सनसनी फैल गई. यह खबर जैसे ही पति को पता लगी तो उस ने फौरन पुलिस को इस की सूचना दी जिस के बाद पुलिस ने महिला को जिंदा बरामद कर लिया.

पीडि़त पति कंधई की शादी 2006 में रामावती से हुई थी. शादी के 3 साल बाद रामावती ससुराल से अचानक लापता हो गई जिस के बाद महिला के परिजनों ने कंधई और उस के परिवार के 4 सदस्यों पर दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस मामले में पुलिस ने काररवाई करते हुए कंधई, उस के 2 भाई और मां को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कंधई को पत्नी की दहेज हत्या करने के जुर्म में अदालत ने 10 साल की सजा और 17 हजार जुरमाने का फैसला सुनाया था.

फर्जी मुकदमे

इसी तरह अप्रैल, 2023 में उत्तर प्रदेश में एक शख्स गले में तख्ती लटका कर पुलिस कमिश्नर के दफ्तर पहुंचा. वह पत्नी पीडि़त था और अपने परिवार के साथ पहुंचा था. सभी के गले में तख्तियां लटकी थीं जिन पर लिखा था, ‘फर्जी मुकदमों से बचाओ.’

दरअसल, कानपुर के बर्रा निवासी आशीष मिश्रा अपने परिवार के साथ अधिकारी के यहां पहुंचे थे. उन्होंने अपनी पत्नी पर आरोप लगाया कि वह घर वालों पर आधा घर उस के नाम करने का दबाव बना रही है. इस के लिए वह पति और परिवार वालों के खिलाफ ?ाठे मुकदमे में फंसाने के लिए गलत आरोप लगा कर बारबार पुलिस को बुला कर प्रताडि़त करती है. बारबार पुलिस के आने पर बच्चे भयभीत हो जाते हैं. इसी वजह से वे लोग न्याय की आस में इस तरह पहुंचे हैं.

मई, 2023 में एक महिला ने अपने पति, ससुर और अन्य सदस्यों पर उस के साथ गैंगरेप करने का ?ाठा केस दर्ज कराया था. मगर जांच के बाद सामने आया कि महिला के आरोप ?ाठे हैं जिस के बाद कोर्ट ने महिला और उस के पिता के खिलाफ पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए.

महिला ने यह आरोप उस समय लगाया जब उस के वैवाहिक जीवन में कलह पैदा हुई. उस ने ?ाठे आरोप का सहारा लिया. महिला एक कानून की छात्रा थी और उस के पिता पेशे से वकील थे. महिला ने आरोप लगाया गया था कि आरोपी पति ने ससुर और ननद के साथ दहेज की मांग की और उस का इस्तेमाल किया. वे इस के लिए उसे पीटते और प्रताडि़त करते थे. उस के ससुर ने उस के पति और ननद की उपस्थिति में उस के साथ दुष्कर्म किया था.

कानूनों और अधिकारों का गलत इस्तेमाल

देखा जाए तो संयुक्त परिवारों में ऐसे बहुत से मामले आते हैं जहां महिलाएं अपने पति और उस के घर वालों के खिलाफ ?ाठी शिकायत करने के लिए महिला कानूनों और अधिकारों का गलत इस्तेमाल करती हैं. इस तरह वे उन्हें परेशान करती हैं. सिर्फ पति ही नहीं कई बार पूरा परिवार बहू के ?ाठे आरोपों का शिकार बन जेल की चक्की पीसने को विवश हो जाता है.

महिलाएं अपने पति पर ?ाठी शिकायत दर्ज करने के लिए धारा 498ए और दहेज अधिनियम  का इस्तेमाल करती हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए एक ऐसा प्रावधान है जिस के तहत एक पति, उस के मातापिता और साथ रह रहे रिश्तेदारों को उन की गैरकानूनी मांगों (दहेज) को पूरा करने के लिए किसी महिला के साथ कू्ररता के लिए मामला दर्ज किया जा सकता है.

आमतौर पर पति, उस के मातापिता और रिश्तेदारों को पर्याप्त जांच के बिना ही तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता है और गैरजमानती शर्तों पर सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है. शिकायत ?ाठी होने पर भी आरोपी को तब तक दोषी माना जाता है जब तक कि वह अदालत में निर्दोष साबित नहीं हो जाता.

कई बार महिलाएं जब अपनी सास या ननद वगैरह से निभा नहीं पातीं या साथ नहीं रहना चाहतीं तो वे इस तरह का हथकंडा अपना लेती हैं. इस चक्कर में पति का पूरा परिवार आरोपों के घेरे में आ जाता है और उस परिवार की सुखशांति और सुकून सब खत्म हो जाता है.

इस तरह के मामले एकल परिवारों में होने की संभावना बहुत कम होती है क्योंकि यहां सिर्फ पतिपत्नी और उन के बच्चे रहते हैं. ऐसे में अगर पतिपत्नी के बीच किसी बात को ले कर ?ागड़ा या विवाद होता भी है तो वह बहुत उग्र रूप नहीं ले पाता. ?ागड़े के 1-2 दिन बाद ही पति और पत्नी में से किसी को अपनी गलती का एहसास हो जाता है और वे मामला सुलझा लेते हैं. जब तक कोई बहुत बड़ी बात या अफेयर का मसला न हो कपल्स अपने ?ागड़े सुल?ा लेते हैं और मिल कर जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ाते हैं.

संयुक्त परिवार में स्थिति विकट हो जाती है

संयुक्त परिवारों में स्थिति कुछ अलग होती है. इन परिवारों में अकसर पतिपत्नी के ?ागड़े के बीच घर के बड़े घुस जाते हैं खासकर सास या ननद इस में अहम भूमिका निभाती हैं सास को अपने बेटे की गलती सामान्यतया नजर नहीं आती और वे जानेअनजाने अपने बेटे का पक्ष लेने लगती हैं. बेटा अगर अपनी गलती मान भी लेता है तो उस की मां या बहन बहू के खिलाफ उसे फिर से भड़काने लगती है या बहू की गलतियां सामने रखने लगती है.

आर्थिक जिम्मेदारी

इस से पति ?ाकने को तैयार नहीं होता और पत्नी भी अपने आत्मसम्मान की आड़ में कोई सम?ाता करने से इनकार कर देती है. इस तरह ?ागड़ा बढ़ता जाता हैं और स्थिति विकट होने लगती है. घर में कलह बढ़ती है और बहू को लगने लगता है जैसे उस के ससुराल वाले ही दोषी हैं. उसे सास या ननद डायन और ससुर या देवरजेठ भेडि़ए नजर आने लगते हैं.

इस तरह जब मामला बिगड़ता है तो महिलाएं अपने अधिकारों का गलत प्रयोग कर पति और ससुराल वालों के खिलाफ आरोप लगा कर अपनी खुन्नस निकालने की कोशिश करती हैं.

कई समस्याओं की जड़

संयुक्त परिवार में रहने में और भी कई तरह की समस्याएं आती हैं. मसलन, इन में प्राइवेसी की कमी होती है. बड़ा परिवार होने के कारण हर समय आसपास कोई न कोई मौजूद होता है. संयुक्त परिवार में रहने वाले लोगों को कभी अकेलापन नहीं मिलता. ऐसे में कपल्स के बीच जो मधुर रिश्ता कायम रह सकता है उस में बाधा आती है.

यही नहीं संयुक्त परिवार में अपने जीवन से जुड़ा कोई फैसला लेना हो तो परिवार के प्रत्येक सदस्य खासकर बड़ेबुजुर्गों की स्वीकृति जरूरी होती है. इंसान अपनी मरजी से कुछ नहीं कर पाता. चाहे वह रात को 7 बजे के बाद बाहर जाने की बात हो या किसी दोस्त के यहां पार्टी करने की या फिर कोई मनपसंद कोर्स करना हो. इस के लिए भी उसे बड़ों से आज्ञा लेनी होती है. कभीकभी नई बहू को यह रवैया परेशान कर देता है और उस के अंदर गुस्सा भरने लगता है.

इसी तरह आर्थिक जिम्मेदारी की बात हो तो कई बार जब नई बहू का पति ही सारे घर की बागडोर संभालते हुए सारा खर्च कर रहा होता है और भाईबहनों को पढ़ाने या शादी करने का खर्च उठाता है तो बहुएं इस बात को सहज स्वीकार नहीं कर पातीं और उन के अंदर की विद्रोह की चिनगारी फूटने लगती है. यही नहीं संयुक्त परिवार में बच्चों की परवरिश कई लोगों के हाथों में होती है. ऐसे में हो सकता है कि अगर मातापिता अपने बच्चे को किसी चीज के लिए मना कर रहे हों लेकिन वही चीज घर के दूसरे सदस्य की नजर में गलत न हो. इस से संयुक्त परिवार के सदस्यों में आपसी वैचारिक मतभेद हो सकते हैं. बहू अपनी जिंदगी अपने हिसाब से नहीं जी पाती.

एक शोध की मानें तो संयुक्त परिवारों में महिलाओं को अधिक घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है. कुल मिला कर संयुक्त परिवारों में 95त्न महिलाएं घरेलू हिंसा का सामना करती हैं. यही सब कारण हैं कि संयुक्त परिवारों में बहुएं अपनी खुन्नस निकालने और ससुराल वालों को सबक सिखाने के लिए पूरे परिवार पर आरोप लगा देती हैं.

निजी खुशियों की कुरबानी

हमारे देश में परिवार को सब से ज्यादा अहमियत दी जाती है. लोग अपने परिवार की खुशी के लिए अपनी निजी खुशियों की कुरबानी देते हैं तो कुछ लड़के परिवार को खुश रखना ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लेते हैं. लेकिन भावनाओं में बह कर फैसले लेना उचित नहीं होता. उम्र के फर्क के साथसाथ मां और बच्चों के मूल्यों में अंतर आ जाता है. यहीं से टकराव की शुरुआत होती है. इस टकराव से बेहतर है कि अलग रहा जाए.

एकल परिवार में रहना हमेशा ही खराब हो ऐसा नहीं है. बहुत से केस में इस के नतीजे बहुत सकारात्मक रहे हैं. एक तलख रिश्ते में रहने से बेहतर है अलग हो जाना. ससुराल वालों से दूर यूनिट्री फैमिली का कौंसैप्ट आज के समय की मांग है. अकसर दूर रहने से मांबाप और भाईबहन के प्रति प्यार बढ़ता है. पतिपत्नी की जिंदगी भी बेहतर हो जाती है.

जिंदगी में आगे बढ़ने के मौके मिलते हैं. मर्द हो या औरत वह स्वाभाविक तौर पर आजाद रहना चाहती है और एक बहू अलग होने के बाद इस आजादी का मजा ले पाती है. उसे अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने का मौका मिलता है. इस से घर में खुशियां कायम रहती हैं और कोर्टकचहरी के मामले घटते हैं.

 

अविश्वास: रश्मि ने अकेलेपन को ख़त्म करने के लिए क्या तय किया?

अपनेकाम निबटाने के बाद मां अपने कमरे में जा लेटी थीं. उन का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. शिखा से फोन पर बात कर वे बेहद अशांत हो उठी थीं. उन के शांत जीवन में सहसा उथलपुथल मच गई थी. दोनों रश्मि और शिखा बेटियों के विवाह के बाद वे स्वयं को बड़ी हलकी और निश्ंिचत अनुभव कर रही थीं. बेटेबेटियां अपनेअपने घरों में सुखी जीवन बिता रहे हैं, यह सोच कर वे पतिपत्नी कितने सुखी व संतुष्ट थे.

शिखा की कही बातें रहरह कर उन के अंतर्मन में गूंज रही थीं. वे देर तक सूनीसूनी आंखों से छत की तरफ ताकती रहीं. घर में कौन था, जिस से कुछ कहसुन कर वे अपना मन हलका करतीं. लेदे कर घर में पति थे. वे तो शायद इस झटके को सहन न कर सकें.

दोनों बेटियों की विदाई पर उन्होंने अपने पति को मुश्किल से संभाला था. बारबार यही बोल उन के दिल को तसल्ली दी थी कि बेटी तो पराया धन है, कौन इसे रख पाया है. समय बहुत बड़ा मलहम है. बड़े से बड़ा घाव समय के साथ भर जाता है, वे भी संभल गए थे.

बड़ी बेटी रश्मि के लिए उन के दिल में बड़ा मोह था. रश्मि के जाने के बाद वे बेहद टूट गए थे. रश्मि को इस बात का एहसास था, सो हर 3-4 महीने बाद वह अपने पति के साथ पिता से मिलने आ जाती थी.

शादी के कई वर्षों बाद भी भी रश्मि मां नहीं बन सकी थी. बड़ेबड़े नामी डाक्टरों

से इलाज कराया गया, पर कोईर् परिणाम नहीं निकला. हर बार नए डाक्टर के पास जाने पर रश्मि के दिल में आशा की लौ जागती, पर निराशारूपी आंधी उस की लौ को निर्ममता से बुझा जाती. किसी ने आईवीएफ तकनीक से संतान प्राप्ति का सुझाव दिया लेकिन आईवीएफ तकनीक में रश्मि को विश्वास न था.

अकेलापन जब असह्य हो उठा तो रश्मि ने तय किया कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखेगी.

‘सुनो, मैं एमए जौइन कर लूं?’

‘बैठेबैठे यह तुम्हें क्या सूझा?’

‘खाली जो बैठी रहती हूं, इस से समय भी कट जाएगा और कुछ ज्ञान भी प्राप्त हो जाएगा.’

‘मुझे तो कोई एतराज नहीं, पर बाबूजी शायद ही राजी हों.’

‘ठीक है, बाबूजी से मैं स्वयं बात कर लूंगी.’

उस रात बाबूजी को खाना परोसते हुए रश्मि ने अपनी इच्छा जाहिर की तो एक पल को बाबूजी चुप हो गए. रश्मि समझी शायद बाबूजी को मेरी बात बुरी लगी है. अनुभवी बाबूजी समझ गए कि रश्मि ने अकेलेपन से ऊब कर ही यह इच्छा प्रकट की है. उन्होंने रश्मि को सहर्ष अनुमति दे दी.

कालेज जाने के बाद नए मित्रों और पढ़ाई के बीच 2 साल कैसे कट गए, यह स्वयं रश्मि भी न जान सकी. रश्मि ने अंगरेजी एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर ली. उस के ससुर ने उसे एक हीरे की सुंदर अंगूठी उपहार में दी.

शिखा की शादी तय हो गई थी. रश्मि

के लिए शिखा छोटी बहन ही नहीं, मित्र व हमराज भी थी. शिखा ने व्हाट्सऐप पर लिखा कि, ‘सच में बड़ी खुशी की बात यह है कि तुम्हारे जीजाजी का तुम्हारे शहर में अपने व्यापार के संबंध में खूब आनाजाना रहेगा. मुझे तो बड़ी खुशी है कि इसी बहाने तुम्हारे पास हमारा आनाजाना लगा रहेगा.’

व्हाट्सऐप में मैसेज देख कर और उस में लिखा पढ़ कर रश्मि खिल उठी थी. कल्पना में ही उस ने अनदेखे जीजाजी के व्यक्तित्व के कितने ही खाके खींच डाले थे, पर दिल में कहीं यह एहसास भी था कि शिखा के चले जाने के बाद मां और बाबूजी कितने अकेले हो जाएंगे.

शिखा की शादी में रमेश से मिल कर रश्मि बहुत खुश हुई, कितना हंसमुख, सरल, नेक लड़का है. शिखा जरूर इस के साथ खुश रहेगी. रमेश भी रश्मि से मिल कर प्रभावित हुआ था. उस का व्यक्तित्व ही ऐसा था. शिखा की शादी के बाद एक माह रश्मि मांबाप के पास ही रही थी, ताकि शिखा की जुदाई का दुख उस की उपस्थिति से कुछ कम हो जाए.

शिखा अपने पति के साथ रश्मि के घर आतीजाती रही. हर बार रश्मि ने उन की जी खोल कर आवभगत की. उन के साथ बीते दिन यों गुजर जाते कि पता ही न लगता कि कब वे लोग आए और कब चले गए. उन के जाने के बाद रश्मि के लिए वे सुखद स्मृतियां ही समय काटने को काफी रहतीं.

शिखा शादी के बाद जल्द ही एकएक कर

2 बेटियों की मां बन गई थी. रश्मि ने शिखा के हर बच्चे के स्वागत की तैयारी बड़ी धूमधाम और लगन से की. अपने दिल के अरमान वह शिखा की बेटियों पर पूरे कर रही थी. मनोज भी रश्मि को खुश देख कर खुश था. उस की जिंदगी में आई कमी को किसी हद तक पूरी होते देख उसे सांत्वना मिली थी.

शिखा के तीसरे बच्चे की खबर सुन कर रश्मि अपने को रोक न सकी. शिखा की चिंता उस के शब्दों से साफ प्रकट हो रही थी. उस ने तय कर लिया कि वह शिखा के इस बच्चे को गोद ले लेगी. इस से उस के अपने जीवन का अकेलापन, खालीपन तथा घर का सन्नाटा दूर हो जाएगा. बच्चे की जरूरत उस घर से ज्यादा इस घर में है. रश्मि ने जब मनोज के सामने अपनी इच्छा जाहिर की तो मनोज ने सहर्ष अपनी अनुमति दे दी.

‘शिखा, घबरा मत, तेरे ऊपर यह बच्चा भार बन कर नहीं आ रहा है. इस बच्चे को तुम मुझे दे देना. मुझे अपने जीवन का अकेलापन असह्य हो उठा है. तुम अगर यह उपकार कर सको तो आजन्म तुम्हारी आभारी रहूंगी.’ रश्मि ने शिखा से फोन पर बात की.

शाम को जब रमेश घर आया तब शिखा ने मोबाइल पर हुई सारी बात उसे बताई.

‘रश्मि मुझे ही गोद क्यों नहीं ले लेती, उसे कमाऊ बेटा मिल जाएगा और मुझे हसीन मम्मी.’ रमेश ने मजाक किया.

‘क्या हर वक्त बच्चों जैसी बातें करते हो. कभी तो बात को गंभीरता से लिया करो.’

रमेश ने गंभीर मुद्रा बनाते हुए कहा, ‘लो, हो गया गंभीर, अब शुरू करो अपनी बात.’

नाराज होते हुए शिखा कमरे से जाने लगी तो रमेश ने उस का आंचल खींच लिया, ‘बात पूरी किए बिना कैसे जा रही हो?’

‘रश्मि के दर्द व अकेलेपन को नारी हृदय ही समझ सकता है. हमारा बच्चा उस के पास रह कर भी हम से दूर नहीं रहेगा. हम तो वहां आतेजाते रहेंगे ही. ‘हां’ कह देती हूं.’

‘बच्चे पर मां का अधिकार पिता से अधिक होता है. तुम जैसा चाहो करो, मेरी तरफ से

स्वतंत्र हो.’

शिखा ने रश्मि को अपनी रजामंदी दे दी. सुन कर रश्मि ने तैयारियां शुरू कर दीं. इस बार वह मौसी की नहीं, मां की भूमिका अदा कर रही थी. उस की खुशियों में मनोज पूरे दिल से साथ दे रहा था.

ऐसे में एक दिन उसे पता चला कि वह स्वयं मां बनने वाली है. रश्मि डाक्टर की बात का विश्वास ही न कर सकी.

उस ने अपने हाथों पर चिकोटी काटी.

मनोज ने खबर सुनते ही रश्मि को चूम लिया.

उसी रात रश्मि ने शिखा को फोन किया, ‘शिखा, तेरा यह बच्चा मेरे लिए दुनियाजहान की खुशियां ला रहा है. सुनेगी तो विश्वास नहीं आएगा. मैं मां बनने वाली हूं. कहीं तेरे बच्चे को गोद लेने के बाद मां बनती तो शायद तेरे बच्चे के साथ पूरा न्याय न कर पाती.’ रश्मि की आवाज में खुशी झलक रही थी.

‘आज मैं इतनी खुश हूं कि स्वयं मां बनने पर भी इतनी खुश न हुई थी. 14 साल बाद पहली बार तुम्हारे घर में खुशी नाचेगी,’ शिखा बहन की इस खुशी से दोगुनी खुश हो कर बोली.

मां और बाबूजी भी यह खुशखबरी सुन कर आ गए थे. रश्मि के ससुर की खुशी का

ठिकाना ही न था.

रश्मि ने अपनी बेटी का नाम प्रीति रखा था. प्रीति घरभर की लाड़ली थी. शिखा व रमेश का आनाजाना लगा ही रहता. शिखा के तीसरा बच्चा बेटा था. रश्मि ने यही सोच कर कि घर में बेटा होना भी जरूरी है, शिखा से उस का बेटा नहीं मांगा.

रश्मि की खुशियां शायद जमाने को भायी नहीं. शिखा व रमेश रश्मि के पास आए हुए थे. उन की दूर की मौसी प्रीति को देखने आई थीं. रश्मि को बधाई देते हुए उन्होंने कहा, ‘रश्मि, तेरा रूप बिटिया न ले सकी. यह तो अपने मौसामौसी की बेटी लगती है.’

‘यह तो अपनेअपने समझने की बात है, मौसी, मैं प्रीति को अपनी बेटी से बढ़ कर प्यार करता हूं.’

मौसी का कथन और रमेश का समर्थन शिखा के दिल में तीर बन कर चुभ गए. जिन आंखों से प्रीति के लिए प्यार उमड़ता था, वही आंखें अब उस का कठोर परीक्षण कर रही थीं. प्रीति का हर अंग उसे रमेश के अंग से मेल खाता दिखाई देने लगा. प्रीति की नाक, उस की उंगलियां रमेश से कितनी मिलती हैं, तो क्या प्रीति रमेश की बेटी है? शिखा के दिल में संदेह का बीज पनपने लगा. मौसी का विषबाण अपना काम कर चुका था.

‘रश्मि बच्चे की चाह में इतना गिर सकती है और रमेश ने मेरे विश्वास का यही परिणाम दिया,’ शिखा सोचती रही, कुढ़ती रही.

घर लौटते ही शिखा उबल पड़ी. सुनते ही रमेश सन्नाटे में आ गया. यह रश्मि की

सगी बहन बोल रही है या कोई शत्रु?

‘तुम पढ़ीलिखी हो कर भी अनपढ़ों जैसा व्यवहार कर रही हो. तुम में विश्वास नाम की कोई चीज ही नहीं. इतना ही भरोसा है मुझ पर.’

‘अविश्वास की बात ही क्या रह जाती है? प्रीति का हर अंग गवाह है कि तुम्हीं उस के बाप हो. औरत सौत को कभी बरदाश्त नहीं कर पाती, चाहे वह उस की सगी बहन ही क्यों न हो.’

‘किसी के रूपरंग का किसी से मिलना

क्या किसी को दोषी मानने के लिए काफी है? गर्भावस्था में मां की आंखों के सामने जिस की तसवीर होती है, बच्चा उसी के अनुरूप ढल

जाता है.’

‘अपनी डाक्टरी अपने पास रखो, तुम्हारी कोई सफाई मेरे लिए पर्याप्त नहीं.’

‘डाक्टर राजेश को तो जानती हो न? उस की बेटी के बाल सुनहरे हैं, पर पतिपत्नी में से किस के बाल सुनहरे हैं? राजेश ने तो आज तक कोई तोहमत अपनी पत्नी पर नहीं लगाई.’

‘मैं औरत हूं, मेरे अंदर औरत का दिल है, पत्थर नहीं.’

बेचैनी में शिखा अपनी परेशानी मां को बता चुकी थी. उस की रातें जागते कटतीं, भूख खत्म हो गई थी. फोन करने के बाद मां कितनी बेचैन हो उठेंगी, यह उस ने सोचा ही न था.

मां अंदर ही अंदर परेशान हो उठीं. दोपहर को जब पति सोने चले गए तो उन्होंने शिखा को फोन किया, ‘‘तुम्हारी बात ने मुझे बहुत अशांत कर दिया है. रश्मि तुम्हारी बहन है, रमेश तुम्हारा पति, तुम उन के संबंध में ऐसा सोच भी कैसे सकती हो. रश्मि अगर 14 साल बाद मां बनी है तो इस का अर्थ यह तो नहीं कि तुम उस पर लांछन थोप दो. तुम्हारा अविश्वास तुम्हारे घर के साथसाथ रश्मि का घर भी ले डूबेगा. जिंदगी में सुख व खुशी हासिल करने के लिए विश्वास अत्यंत आवश्यक है. बसेबसाए घरों में आग मत लगाओ. रश्मि को इतने वर्षों बाद खुश देख कर कहीं तुम्हारी ईर्ष्या तो नहीं जाग उठी?’’

मां से बात करने के बाद शिखा के अशांत मन में हलचल सी उठी. सचाई सामने होते आंखें कैसे मूंदी जा सकती हैं. बातबात पर झल्ला जाना, पति पर व्यंग्य कसना शिखा का स्वभाव बन

चुका था.

‘‘बचपना छोड़ दो, रश्मि सुनेगी तो कितनी दुखी होगी.’’

‘‘क्यों? तुम तो हो, उस के आंसू पोंछने

के लिए.’’

‘‘चुप रहो, तमीज से बात करो, तुम तो हद से ज्यादा ही बढ़ती जा रही हो. जो सच नहीं है, उसे तुम सौ बार दोहरा कर भी सच नहीं बना सकतीं.’’

शिखा को हर घटना इसी एक बात से संबद्घ दिखाई पड़ रही थी. चाह कर भी वह अपने मन से किसी भी तरह इस बात को निकाल न सकी.

इधर रमेश को रहरह कर मौसीजी पर गुस्सा आ रहा था, जो उन के शांत जीवन में पत्थर फेंक कर हलचल मचा गई थीं. पढ़लिख कर इंसान का मस्तिष्क विकसित होता है, सोचनेसमझने और परखने की शक्ति आती है, पर शिखा तो पढ़लिख कर भी अनपढ़ रह गई थी.

एकदूसरे के लिए अजनबी बन पतिपत्नी अपनीअपनी जिंदगी जीने लगे. आखिर हुआ वही जो होना था. बात रश्मि तक भी पहुंच गई. सुन कर उसे गुस्सा कम और दुख अधिक हुआ. मनोज को भी इस बात का पता लगा, पर व्यक्ति व्यक्ति में भी कितना अंतर होता है. रश्मि के प्रति विश्वास की जो जड़ें सालों से जमी थीं, वे इस कुठाराघात से उखड़ न सकीं.

रश्मि ने मन मार कर शिखा को फोन कर कहा, ‘‘इसे तुम चाहो तो मेरी तरफ से

अपनी सफाई में एक प्रयत्न भी समझ सकती हो. हमारा सालों का रिश्ता, खून का रिश्ता यों इतनी जल्दी तोड़ दोगी? शांत मन से सोचो, मैं तो तुम्हारा बच्चा गोद लेने वाली थी, फिर मुझे ऐसा करने की आवश्यकता क्यों होती? रमेश को मैं ने हमेशा छोटे भाई की तरह प्यार किया है, इस निश्चल प्यार को कलुषित मत बनाओ.

‘‘वैवाहिक जीवन की नींव विश्वासरूपी भूमि पर खड़ी है. अपनी बसीबसाई गृहस्थी में शंकारूपी कुल्हाड़ी से आघात क्यों करना चाहती हो? तनाव और कलह को क्यों निमंत्रण दे बैठी हो? रमेश को तुम इतने सालों में भी समझ नहीं सकी हो.’’

शिखा इन बातों से और जलभुन गई. रमेश उस की नजर में अभी भी अपराधी है. घर वह सोने और खाने को ही आता है. उस का घर से बस इतना ही नाता रह गया है. मां द्वारा पिता की उपेक्षा होते देख बच्चे भी उस से वैसा ही व्यवहार करते हैं.

शिखा ने स्वयं ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि आज न वह स्वयं खुश है, न उस का पति रमेश.

फौरगिव मी: क्या मोनिका के प्यार को समझ पाई उसकी सौतेली मां

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Top 7 Health Tips in hindi: टॉप 7 हेल्थ टिप्स

इन दिनों  हर कोई हेल्थ से जुड़ी समस्या का सामना कर रहा है. सबसे ज्यादा सफर करती हैं हम महिलाएं जिनके कंधो पर दोनों जिम्मेदारी होती है, पहली वो घर भी संभालती है और दूसरी वो बाहर अपनी पहचान बनाने के लिए काम भी करती है. इस क्रम में हमे हेल्थ से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आज हम  आपके साथ कुछ ऐसे ही समस्याओं से जुड़े आर्टिकल शेयर कर रहे हैं.

प्रेगनेंसी के दौरान करें ये 5 एक्सरसाइज तो रहेंगी फिट

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को कई प्रौब्लम का सामना करना पड़ता है. कई बार ये प्रौब्लम्स प्रेग्नेंसी में ज्यादा न करने व एक्सरसाइज न करने से होता है. इसीलिए जरूरी है कि प्रेग्नेंसी में एक्सरसाइज करना न भूलें. प्रेग्नेंसी के दौरान डौक्टर कुछ खास एक्सरसाइज बताते हैं, जिसे करने से मां और बच्चे की सेहत बनी रहती है. साथ ही प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली प्रौब्लम्स से भी छुटकारा मिलते है.

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जानें क्या हैं प्रेग्नेंसी में होने वाली प्रौब्लम और ऑटिज़्म के खतरे

ऑटिज़्म को विकास सम्बन्धी बीमारी के रूप मे जाना जाता है. इसे ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) कहा जाता है. डॉ रोहित अरोड़ा , निओनैटॉलॉजी और पेडियाट्रिक्स हेड ,मिरेकल्स मेडीक्लीनिक और अपोलो क्रेडल हॉस्पिटल का कहना है कि, “यह डिसऑर्डर (विकार)  बच्चे के व्यवहार और बातचीत करने के तरीके पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. बच्चों में होने वाली  यह बीमारी तब नज़र आती है जब बच्चे की सोशल स्किल्स, एक ही व्यवहार को बार-बार दोहराना, बोलने तथा बिना बोलकर कम्युनिकेट करने में परेशानी महसूस होती है तो इसे ऑटिज़्म  का लक्षण माना जाता है.

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जानिए रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस के लक्षण और उपचार

रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस एक जटिल बीमारी है, जिस में जोड़ों में सूजन और जलन की समस्या हो जाती है. यह सूजन और जलन इतनी ज्यादा हो सकती है कि इस से हाथों और शरीर के अन्य अंगों के काम और बाह्य आकृति भी प्रभावित हो सकती है. रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस पैरों को भी प्रभावित कर सकती है और यह पंजों के जोड़ों को विकृत कर सकती है.

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अनचाही Pregnancy से कैसे बचें

अनचाहा गर्भधारण न केवल एक नवविवाहित स्त्री के स्वास्थ्य पर असर डालता है अपितु उस का संपूर्ण विवाहित जीवन भी प्रभावित होता है. अनचाहा गर्भ ठहरने पर गर्भपात (एबार्शन) कराना इस का उचित समाधान नहीं है. शिशु को जन्म दें या नहीं, इस का निर्णय एक दंपती के जीवनकाल का अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्णय होता है.

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महिला गर्भनिरोधक : क्या सही, क्या गलत

 

बचाव इलाज से ज्यादा अच्छा होता है, महिला गर्भनिरोधक उपायों पर यह बात बिलकुल सही बैठती है. बाजार में काफी पहले से महिला गर्भनिरोधक मौजूद हैं, लेकिन आज भी भारत में लाखों महिलाएं ऐसी हैं, जो नहीं जानतीं कि उनके लिए कौन सा गर्भनिरोधक उपाय सही है.

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 डिहाइड्रेशन से हैं परेशान तो अपनाएं ये नेचुरल उपाय

पानी हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी होता है. शरीर में पानी की कमी को ही डिहाइड्रेशन कहते हैं. सामान्यत: जब गर्मियों के दिनों में आपके शरीर में पानी की मात्रा में कमी आ जाती है, तो आपको डीहाइड्रेशन से गुजरना पड़ता है. शरीर में पानी की कमी होने पर शरीर को ताकत देने वाले खनिज पदार्थ जैसे नमक, शक्कर आदि कम होने लगते हैं. आमतौर पर गर्मियों के दिनों में ऐसा होता है.

फिट ऐंड फाइन डिलिवरी के बाद भी

शिल्पा शेट्टी या करिश्मा कपूर की पतली कमर देख कर भला किस का दिल नहीं मचलेगा. इन अभिनेत्रियों की परफैक्ट फिगर व चमकती त्वचा को देख कर भला कौन कह सकता है कि ये न केवल शादीशुदा हैं बल्कि मां भी बन चुकी हैं अधिकतर महिलाएं शादी मां बनने के बाद खुद को रिटायर समझने लगती हैं और सोचने लगती हैं कि अब उन की फिगर पहले जैसा आकार नहीं ले सकती. इसलिए वे अपनी फिटनैस को ले कर लापरवाह हो जाती हैं, उसके लिए कोई कोशिश ही नहीं करतीं. नतीजतन उन का शरीर थुलथुला हो जाता है व त्वचा मुरझा जाती है.

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जब मायके जाएं शादी के बाद

जब मायके जाएं तो क्या करें कि आपकी इज्जत भी हो और सम्मान भी…

अकेले रहने वाली 70 साल की गौतमी आजकल अपने घर का रैनोवेशन करवा रही हैं. उन का सादा व साफसुथरा खुला सा घर अच्छी स्थिति में ही है पर फिर भी उन्होंने यह काम छेड़ दिया है. अस्वस्थ हैं पर फिर भी घर में इतनी तोड़फोड़ चल रही है कि शाम तक मजदूरों को देखने के चक्कर में उन की हालत पतली हो जाती है.

छोटा शहर है, आसपास के लोग बारबार पूछने लगे कि क्या जरूरत है ये सब करवाने की तो उन्होंने एक पड़ोसी से मन की बात शेयर कर ली. बताया, ‘‘बेटी सुमन जब भी आती है, नाराज ही होती रहती है कि आप के पास कैसे आएं, आप के पुराने जमाने का बना घर बहुत असुविधाजनक है. इतने पुराने ढंग का वाशरूम, न टाइल्स, न एसी, कोई सुविधा नहीं. आना भी चाहें तो यहां की तकलीफें देख कर आने का मन भी नहीं होता. न आप ने कोई खाना बनाने वाली रखी है. जब भी आओ, खाना बनाना पड़ता है.

‘‘अब एक ही तो बेटी है. बेटा अलग रहता है, उसे तो कोई मतलब ही नहीं. अब सुमन को यहां आ कर कोई परेशानी न हो, सब उस की मरजी से करवा रही हूं, मेरा खर्चा तो बहुत हो रहा है पर ठीक है, कितनी बार ये सब बातें बारबार सुनूं.’’

हर बात में नुक्ताचीनी

सुमन सचमुच जब भी मायके आती है. गौतमी का सिर घूम जाता है. उस की हर बात में नुक्ताचीनी, आप के पास यह नहीं है, वह नहीं है, अभी तक यह क्यों नहीं लिया, वह क्यों नहीं लिया. सुमन आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध है, जितनी देर मां के घर रहती है, अकेली रहने वाली अपनी मां को नचाने में कोई कसर नहीं छोड़ती. ऐसा भी नहीं कि मां के घर में कोई आधुनिक बदलाव चाहिए तो खुद रह कर कुछ काम देख ले या अपने पैसों से ही कुछ काम करवा दे. वह भी नहीं. बस फरमाइश. वापस जाने लगती है तो मां से मिले सामान पर बहुत मुश्किल से ही कभी संतुष्ट होती है.

गौतमी कभी बेटी और उस के बच्चों को कुछ सामान दिलाने बाजार ले जाती हैं तो उन्होंने बेटी को अपने बच्चों से साफसाफ कहते सुना कि नानी दिलवा रही हैं, महंगे से महंगा ले लेना.

बेटी के जाने के बाद गौतमी को बहुत देर तक अपना दिल उदास लगता है कि यह कैसी बेटी है जो जब भी आती है, किसी न किसी बात पर मन दुखा कर ही जाती है. उस का लालच है कि जाता ही नहीं, जबकि बेटी को पैसे की कोई कमी नहीं.

रोकटोक क्यों

इस के ठीक उलट मुंबई में रहने वाली नीरू जब रोहिणी, दिल्ली अपने मातापिता के पास मायके जाती है तो जितने दिन भी वहां रहती है उस की कोशिश होती है कि इन दिनों होने वाले हर खर्च को वह खुद देखे. जब उस के लौटने का समय होता है उस की मम्मी उस के हाथ में जो पैसे देती हैं वह उस में से बस क्व100 अपनी मम्मी का आशीर्वाद सम?ा कर ले लेती है और बाकी सब चुपके से एक जगह रख जाती है. बाद में फोन कर के बता देती है कि जितने लेने थे, ले लिए, बाकी आप वापस संभाल लो.

नीरू की मम्मी उसे हर बार ऐसा करने पर टोकती हैं पर नीरू कहती है, ‘‘जब मेरे रिटायर्ड पेरैंट्स अपने आप अपना खर्चा चला रहे हैं, मेरा जाना किसी भी हालत में उन पर बो?ा नहीं होना चाहिए. मैं जितना कर सकती हूं, उतना कर आती हूं. उन्होंने पढ़ालिखा कर, शादी कर के अपने सब फर्ज पूरे कर दिए हैं अब मेरा फर्ज बनता है कि जब भी जाऊं, उन्हें आराम ही दूं.’’

कोमल जब भी सहारनपुर मायके जाती है जाते ही कह देती है, ‘‘मां, भाभी, मु?ा से किचन के किसी काम की उम्मीद मत करना, अपने घर तो करते ही हैं, यहां भी करेंगे तो कैसे पता चलेगा कि मायके आई हूं.’’

वे तो उस की भाभी सरल स्वभाव की हैं जो हंसते हुए कह देती हैं, ‘‘हां, आप आराम करो, अपने घर ही काम करना. मायके का कुछ आराम मिलना ही चाहिए.’’

कोमल जितने भी दिन मायके रहती है मजाल है कि 1 कप चाय भी बना ले.

रिश्ते में मिठास जरूरी

उधर जयपुर में रेखा जितने दिन भी मायके रहती है उस के मायके में एक अलग ही रौनक रहती है. भाभी के साथ मिल कर नईनई चीजें बनाती है, कभी भाभी और मां को किचन से छुट्टी दे कर कहती है, ‘‘देखो, मैं ने क्याक्या सीख लिया है, आज सब मेरे हाथ का बना खाना खाएंगें.’’

किसी न किसी बहाने से हर रिश्ते में मिठास घोल देती है. कभी घर के सब बच्चों को कुछ खिलानेपिलाने ले जाती है. उस के पति जब उसे लेने आते हैं तो घर में कोई काम न बढ़े, सब सहज रहें, इस बात का विशेष ध्यान रखती है. सब को उस के आने का फिर दिल से इंतजार रहता है.

मायका आप का है, जहां कुछ दिन बिता कर आप फिर एक बच्ची सी बन जाती हैं, एक रिचार्ज हुई बैटरी की तरह अपने घरसंसार में लौट आती हैं. एक वयस्क महिला भी मायके जाते  हुए एक चंचल तरुणी सा अनुभव करती है. पर मायके जाएं तो ऐसे जाएं कि घर के किसी प्राणी पर आप का जाना बो?ा न लगे.

असुविधा हो तो सहन करें

आप अब मायके से जा चुकी हैं, आप का अपना घर है, आप के जाने के बाद आप के पेरैंट्स अकेले होंगें या भाभी होंगी तो इस बात का ध्यान जरूर रखें कि आप के जाने से उन्हें किसी तरह की असुविधा न हो. आप को असुविधा हो भी तो सहन कर लें.

मायके के रिश्ते बहुत सहेज कर रखने लायक होते हैं. कुछ बुरा भी लगे तो मुंह से कुछ कड़वा कह कर किसी का दिल न दुखाएं. अगर आप मायके से ज्यादा समृद्ध हैं तो घमंड और दिखावे से दूर रहें. ये चीजें अकसर रिश्तों में दीवार खड़ी कर देती हैं. मायके में रहने वाले हर सदस्य को स्नेह, सम्मान दें.

ऐसा भी न हो कि आप भी इतना खर्च कर के मायके जा रही हैं, उन का भी खर्च हो रहा है और कोई भी खुश नहीं है. रुपएपैसे को इतना महत्त्व न दें कि भावनात्मक दूरी आए. आप को अपने हिसाब से अपने घर में रहने की आदत है तो मायके के भी हर सदस्य को अपने रूटीन की आदत है. वह मां का घर है, वहां प्यार, मुहब्बतें होनी चाहिए न कि कोई स्वार्थ या हिसाबकिताब. न ईगो, न दिखावा.

निर्णय: वक्त के दोहराये पर खड़ी सोनू की मां

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Summer Special: हेयर रिमूवल के लिए अपनाएं ये 6 थेरैपी

अकसर महिलाओं को अचानक किसी पार्टी में जाना पड़ जाए, तो वे काफी परेशान हो उठती हैं कि कैसे आईब्रो और वैक्सिन करवाएं. लेकिन अब चिंता करने की जरूरत नहीं है. अब टैक्सिंग तकनीक आ चुकी है, जिस की मदद से अनचाहे बालों से हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है.

1. गेल्वेनिक

इस में बिजली से बालों को खत्म किया जाता है. सूई या प्रोब से हेयर फोलिकल्स को बिजली का करंट दिया जाता है और उस में कैमिकल चेंजेज कर दिए जाते हैं. ये कैमिकल चेंजेज हेयर फोलिकल्स को जड़ से खत्म कर देते हैं. इस से दोबारा बाल नहीं आते.

2. थर्मोलिसिस

थर्मोलिसिस में सिर्फ एक सूई के जरिए बाल हटाए जाते हैं. इस में आल्टरनेटिंग करंट से सूई के आखिरी सिरे पर गरमी पैदा की जाती है. इसी गरमी की मदद से हेयर फोलिकल्स को खत्म किया जाता है.

3. ब्लैंड

यह थेरैपी गेल्वेनिक और थर्मोलिलिस का मिलाजुला रूप है. सख्त बालों को हटाने के लिए यह थेरैपी कारगर साबित होती है.

4. ट्रांसडर्मल

इस में बालों को हटाने के लिए जैल इलैक्ट्रोड पैचेज या ट्वीजर का प्रयोग किया जाता है. पैचेज और जैल इस्तेमाल करने से इस में काफी कम समय लगता है.

5. लेजर थेरैपी

इस थेरैपी में वेवलैंथ के जरिए किरणें स्किन पर डाली जाती हैं. ये लेजर किरणें फोलिकल्स को आसानी से खत्म कर देती हैं.

6. जीन थेरैपी

इस में स्किन पर ऐंटीग्रोथ एजेंट लगाने के बाद करंट से बालों को हटाया जाता है. इस थेरैपी में बालों को विकसित करने वाले तंतु हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं. ध्यान रहे कि किसी भी तरह की थेरैपी को सीधे अपने फेस पर ट्राई न करें. पहले शरीर के किसी दूसरे हिस्से पर प्रयोग करें. इन थेरैपीज के अलावा वैक्सिंग, थ्रैडिंग, शेविंग, ब्लीच से भी आप अनचाहे बालों से नजात पा सकती हैं. 

 

Summer Special: बच्चों के लिए बनाएं स्ट्राबेरी स्मूदी

गर्मियों में कोल्ड ड्रिंक और बाजार में उपलब्ध अन्य ड्रिंक का इस्तेमाल हेल्थ के लिए नुकसान दायक होता है क्योंकि इन्हें सुरक्षित रखने के लिए प्रिजर्वेटिव का प्रयोग तो किया ही जाता है, जिसमें चीनी ज्यादा होती है. इसी लिए आज हम आपको स्ट्राबेरी से बनीं स्मूदी की रेसिपी के बारे में बताएंगे.

सामग्री

–  1 कप स्ट्राबेरी

–  2 कप दही फेटा

–  1 कप दूध

–  6-7 पिस्ता

–  2 बड़े चम्मच शहद.

सामग्री लेयरिंग की

–  1 कप ट्रायल मिक्स

–  थोड़े से चिया सीड्स भीगे.

सामग्री गार्निशिंग की

–  ट्रायल मिक्स

–  थोड़ी सी पुदीनापत्ती कटी.

विधि

ब्लैंडर में स्ट्राबेरी, दही, दूध, पिस्ता व शहद को स्मूद ब्लैंड करें.

विधि लेयरिंग की

1 गिलास में ट्रायल मिक्स, चिया सीड्स डाल कर उस पर स्मूदी ऐड करें. फिर ट्रायल मिक्स व पुदीनापत्ती से गार्निश कर के तुरंत सर्व करें.

 

40 की उम्र में करने जा रही हैं ड्रीम वेडिंग तो स्किन पर ऐसे दें ध्यान कि नजर आए दुल्हन वाला ग्लो

उम्र के साथ-साथ स्किन रूखी और बेजान नजर आने लगती है, झुर्रियां और फाइन लाइंस दिखने लगती हैं। ऐसे में ब्राइड टू बी को अपनी स्किन पर खास ध्यान देना चाहिए.

अगर आप भी 40 की उम्र में ड्रीम वेडिंग करने जा रही हैं तो जरूरी है कि आप अपनी स्किन पर खास ध्यान दें। आप ऐसे ट्रीटमेंट और उपाय अपनाएं, जिससे अपनी जिंदगी के इस खास दिन पर आप सबसे खूबसूरत और निखरी हुई नजर आएं। आपके चेहरे की चमक आपको कॉन्फिडेंस देगी। इसलिए चेहरे पर दुल्हन वाला ग्लो लाने के लिए आप कुछ बेहद आसान स्टेप्स अपना सकती हैं.

1. स्किन को रखें हाइड्रेटेड

उम्र के साथ-साथ स्किन रूखी और बेजान नजर आने लगती है, झुर्रियां और फाइन लाइंस दिखने लगती हैं.  अपनी स्किन को हाइड्रेट रखकर आप इन परेशानियों से आराम पा सकती हैं. अपने स्किन रूटीन में आर्गन ऑयल, जोजोबा ऑयल, रोज ऑयल, ऑलिव ऑयल आदि शामिल हैं. इससे स्किन मॉइस्चराइज रहेगी. साथ ही स्किन सॉफ्ट होगी और ग्लोइंग नजर आएगी. दिनभर में भरपूर पानी पिएं. नींबू पानी, नारियल पानी, खीरा, टमाटर आदि को अपनी डेली डाइट का हिस्सा बनाएं.

2. एक्सफोलिएशन जरूरी

स्किन को एक्सफोलिएट करना जरूरी है। इससे डैड स्किन और सेल्स हटते हैं और अंदर से सॉफ्ट स्किन बाहर आती है. इससे स्किन की चमक लौट आती है. फलों के एंजाइम, लैक्टिक एसिड और ग्लाइकोलिक एसिड आपकी स्किन को एक्सफोलिएट करते हैं. लैवेंडर और कैमोमाइल जैसे ऑयल भी आपके काम आ सकते हैं.

3. एंटी-एजिंग सीरम करें यूज

उम्र के साथ ही स्किन पर असर साफ नजर आने लगते हैं. फाइन लाइंस, झुर्रियां, डार्क स्पॉट्स आदि कम करने के लिए एंटी एजिंग सीरम को शामिल करें. कुछ विटामिन और सीरम इसमें आपकी मदद करेंगे. विटामिन सी, हाइलूरोनिक एसिड और रेटिनॉल जैसे तत्वों से बने सीरम आप नियमित रूप से लगाएं. इससे कोलेजन का प्रोडक्शन बढ़ता है और स्किन प्रॉब्लम दूर होती हैं. अपने स्किन केयर रूटीन में रोजमेरी, चंदन, लेमन, लोबान ऑयल की कुछ बूंदे भी आप शामिल कर सकते हैं. इससे कुछ ही दिनों में आपको असर नजर आएगा.

4. धूप से करें बचाव

ब्राइड टू बी के लिए यह जरूरी है कि हर ​लेवल पर वह अपनी स्किन की सुरक्षा करे. खासतौर पर धूप और सूरज की हानिकारक यूवी किरणों से बचाव जरूरी है. यूवी एक्सपोजर स्किन की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को तेज कर देता है. ऐेसे में न सिर्फ स्किन टेनिंग होती है, बल्कि डार्क स्पॉट्स, अन इवन स्किन टोन और लूज स्किन जैसी प्रॉब्लम होने लगती है. अपने डेली रुटीन में आप एसपीएफ 30 या 50 वाले ब्रॉड-स्पेक्ट्रम सनस्क्रीन शामिल करें. सिर्फ घर से बाहर जाने के दौरान ही नहीं, आप घर में भी इन्हें लगाएं. रास्पबेरी सीड ऑयल, ओलिव ऑयल और कोकोनट ऑयल में सबसे ज्यादा एसपीएफ होता है, आप इनका भी उपयोग कर सकती हैं.

5. स्किन को अंदर से दें पोषण

अगर आप स्किन को ग्लोइंग और शानदार बनाना चाहती हैं तो उसे अंदर से भी पोषण देना होगा. इसके लिए बैलेंस और हेल्दी डाइट लें. अपनी डेली डाइट में विटामिन, हेल्दी फैट, एंटीऑक्सिडेंट और ओमेगा फैटी एसिड शामिल करें. ये सभी आपकी स्किन के लिए अच्छे हैं. ताजे फल, सब्जियां, ड्राई फ्रूट्स, सीड्स, सी फूड आदि से आपको ये सभी पोषक तत्व आसानी से मिलेंगे।. इनसे आपकी स्किन फ्लोलेस नजर आएगी. उसमें अंदर से चमक दिखेगी.

6. टेंशन कम और नींद पूरी लें

स्किन प्रोडक्ट्स और डाइट के साथ ही कई और फैक्टर्स भी हैं, जो स्किन पर असर डालते हैं. टेंशन के कारण आपकी स्किन पर समय से पहले बुढ़ापा नजर आने लगता है. इसलिए योग को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाएं. भरपूर नींद लें. रात में कम से कम 8 से 9 घंटे की नींद लें. इससे डार्क स्पॉट्स, डार्क सर्कल कम होंगे. ये फाइन लाइंस को कम करने में भी मददगार होगी.  इस दौरान आपकी स्किन को रिपेयर होने का भी टाइम मिलता है.

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