Jaggery Tea Benefits: पोषक तत्वों से भरपूर गुड़ सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह सर्दियों का सुपरफूड कहा जाता है। इसमें आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम,पोटैशियम, जिंक जैसे तमाम पोषक तत्व पाए जाते हैं। आप इसे अपनी डाइट में कई तरह से शामिल कर सकते हैं। सर्दियों में लगातार गुड़ की चाय पीने से आप कई बीमारियों से राहत पा सकते हैं। महिलाओं को पीरियड्स के दौरान पेट दर्द, ऐंठन आदि कई समस्याएं होती हैं। ऐसे में गुड़ की चाय बहुत ही लाभकारी साबित हो सकता है। आइए जानते हैं गुड़ की चाय के फायदे।
पाचन के लिए लाभदायक
सर्दियों में गुड़ पाचन के लिए दवा के रूप में काम करता है। अगर आप अक्सर कब्ज से परेशान रहते हैं, तो रोजाना गुड़ की चाय पी सकते हैं। इससे आपका पाचन तंत्र मजबूत रहेगा, साथ ही कब्ज की समस्या से भी राहत पा सकते हैं और यह चाय स्वादिष्ट भी होती है।
एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर गुड़ की चाय शरीर की कई समस्याओं को दूर करने में मदद करती है। ठंड के मौसम में नियमित रूप से गुड़ चाय पीने से मौसमी बीमारियों से बच सकते हैं। इसमें आयरन की मात्रा भी भरपूर होती है। जिससे यह शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में सहायक है। एनीमिया के मरीजों को गुड़ की चाय जरूर पीना चाहिए। इससे शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है।
जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, उन्हें अक्सर कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है, ऐसे में आप सर्दियों में गरमागरम गुड़ की चाय का लुत्फ उठा सकते हैं। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे आप इस मौसम में होने वाले संक्रमण और एलर्जी से बचे रहेंगे।
सर्दियों में वजन कम करना आसान नहीं है। ऐसे में गुड़ आपकी मदद कर सकता है। पर्याप्त मात्रा में गुड़ खाने से मेटाबॉलिज्म बूस्ट होता है, जिससे वजन कम होने में मदद मिल सकती है।
गुड़ शरीर में मौजूद टॉक्सिक पदार्थ बाहर निकालने में मदद करता है। इसके लिए आप गुड़ की चाय को अपनी डाइट का हिस्सा बना सकते हैं।
अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.
सवाल
मैं 24 साल की युवती हूं. 3-4 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. मैं ने अभी तक किसी के साथ सैक्स संबंध नहीं बनाए पर नियमित मास्टरबेशन करती हूं. मुझे लगता है कि इस से प्राइवेट पार्ट की स्किन ढीली हो गई है. इस वजह से बहुत तनाव में रह रही हूं. मैं क्या करूं?
जवाब
जिस तरह सैक्स करने से प्राइवेट पार्ट की स्किन लूज नहीं होती, उसी तरह मास्टरबेशन से भी स्किन पर कोई फर्क नहीं पड़ता और वह ढीली भी नहीं होती है. यह आप का एक भ्रम है. हकीकत तो यह है कि किसी अंग के कम उपयोग से ही उस में शिथिलता आती है न कि नियमित उपयोग से. आप अपनी शादी की तैयारियां जोरशोर से करें और मन में व्याप्त भय को पूरी तरह निकाल दें. आप की वैवाहिक जिंदगी पर इस का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा.
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मैं 25 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. ससुराल और मायका आसपास ही है. इस वजह से मेरी मां और अन्य रिश्तेदार अकसर ससुराल आतेजाते रहते हैं. पति को कोई आपत्ति नहीं है पर मेरी सास को यह पसंद नहीं. वे कहती हैं कि तुम अपनी मां से बात करो कि वे कभीकभी मिलने आया करें. हालांकि ससुराल में मेरे मायके के लोगों का पूरा ध्यान रखा जाता है, मानसम्मान में कमी नहीं है मगर सास का मानना है कि रिश्तेदारी में दूरी रखने से संबंध में नयापन रहता है. इस वजह से घर में क्लेश भी होता है पर मैं अपनी मां से कहूं तो क्या कहूं? एक बेटी होने के नाते मैं उन का दिल नहीं दुखाना चाहती. कृपया उचित सलाह दें?
जवाब
आप की सास का कहना सही है. रिश्ते दिल से निभाएं पर उन में उचित दूरी जरूरी है. इस से रिश्ता लंबा चलता है और संबंधों में गरमाहट भी बनी रहती है.अधिकांश मामलों में देखा गया है कि जब बेटी का ससुराल नजदीक होता है तब उस के मायके के रिश्तेदारों का बराबर ससुराल में आनाजाना होता है और वे अकसर पारिवारिक मामलों में दखलंदाजी करते हैं. इस से बेटी का बसाबसाया घर भी उजाड़ जाता है.भले ही हरेक सुखदुख में एकदूसरे का साथ निभाएं पर रिश्तों में दूरियां जरूर रखें. इस से सभी के दिलों में प्रेम व रिश्तों की मिठास बनी रहती है.आप अपनी मां से इस बारे में खुल कर बात करें. वे आप की मां हैं और यह कभी नहीं चाहेंगी कि इस वजह से घर में क्लेश हो. हां, एक बेटी होने का दायित्व भी आप को निभाना होगा और इसलिए एक निश्चित तिथि या अवकाश के दिन आप खुद भी मायके जा कर उन का हालचाल लेती रहें.आप उन से फोन पर भी नियमित संपर्क में रहें, मायकेवालों के सुखदुख में शामिल रहें. यकीनन, इस से घर में क्लेश खत्म हो जाएगा और रिश्तों में मिठास भी बनी रहेगी.
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सर्दियों में सर्द हवाएं न केवल हमारी त्वचा को रूखा बना देती है बल्कि उसकी नमी सोख कर उसे कड़ा कर देती है. ऐसे में हमें अपनी त्वचा का खास ख्यान रखना चाहिए. सर्दियों में ज्यादातर लोग गर्म पानी का प्रयोग करते हैं जो हमारी त्वचा के लिए काफी हानिकारक है.
आज हम आपको कुछ ऐसी टिप्स बताएंगे जिससे सर्दियों में भी आपकी त्वचा खिल उठेगी. हम सभी जानते है बैकिंग सोडा एक अच्छा क्लीनिंग एजेंट होता है. जो सभी के घरों में आसानी से उपलब्ध भी रहता है. क्या आप जानती है बैकिंग सोडा हमारी त्वचा के लिए कितना लाभदायक है.
1. अगर आपकी त्वचा में ब्लैक हेड हैं तो बैंकिंग सोडा का मास्क बना कर चेहरे में लगाने पर काफी फायदा होगा. मास्क बनाने के लिए एक चौथाई संतरे और नीबूं के रस को बैकिंग सोडा में अच्छी तरह मिलाकर चेहरे पर कम से कम 15 मिनट तक लगाए और बाद में इसे गर्म पानी से धो लें.
2. बैकिंग सोडा को सीधे चेहरे पर लगाने से यह एक फ्रेंशियल स्क्रब की तरह काम करता है. बैकिंग सोडा से स्क्रब करने पर त्वचा के पोर खुल जाते हैं.
3. क्या आप जानते है बैकिंग सोडा एक अच्छा डियोड्रेंट भी है. बैकिंग सोडा को पानी में मिलाकर नहाने पर त्वचा में पसीने की बदबू और खतनाक कैमिकल नहीं बनते. जिससे पसीने से बदबू नहीं आती.
4. दो चम्मच दही में बैकिंग सोडा मिलाकर लगाने से त्वचा में बनने वाले हानिकारकएंजाइमों को भी यह खत्म कर देता है.
5. बेकिंग सोडा का इस्तमाल आप जाड़ों में बाथ ऑयल के रुप में भी कर सकते हैं. इसके लिए आपको 2 टी स्पून विटामिन ई ऑयल,4 टी स्पून शहद,1 टी स्पून क्रीम, 1 टी स्पून नमक और 1 टी स्पून बेकिंग सोडा कि जरुरत पडेगी. इन सबको अच्छे से मिला लें और अपने पूरे शरीर पर इस मिश्रण से 20 मिनट तक मसाज करें और फिर गरम पानी से नहा लें. इससे आपकी स्किन की नमी बरकरार बनी रहेगी.
9 महीने तक एक मां के गर्भ में रहने के बाद, एक नवजात शिशु का बाहरी दुनिया में ख़ुशी और पूरे दिल से स्वागत किया जाता है. एक नवजात शिशु की स्किन और आंखें बहुत नाजुक और संवेदनशील होती हैं, नए वातावरण में आने के बाद, शिशु को रिएक्शंस और एलर्जी का खतरा हो जाता है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं, कि शिशु की स्किन को अत्यधिक देखभाल की आवश्यकता होती है.
अपने बच्चे की कोमल स्किन और कोमल गालों पर आप सर्दियों के महीनों में कुछ रूखापन देख सकते हैं. सर्दियों के महीनों में हवा बहुत खुश्क हो जाती है, यह अक्सर स्किन की नमी को नुकसान पहुंचा सकती है, विशेष रूप से बच्चे की स्किन पर.
सभी शिशुओं की स्किन बहुत नाजुक और कोमल होती है, और बड़ो की तुलना में अधिक संवेदनशील है. इसलिए, शिशु की स्किन को उन प्रोडक्ट्स के साथ सुरक्षित करने की आवश्यकता है जो कोमल स्किन पर रूखेपन को रोक सकते हैं. कुछ सरल विंटर केयर टिप्स के साथ, नए माता-पिता अपने शिशु के साथ किसी भी चिंता के बिना सर्दियों के मौसम का आनंद ले सकते हैं.
मॉइस्चराइजेशन पहली चीज है जो हमारे दिमाग में आती है जब हम रूखी स्किन के बारे में बात करते हैं, पर हम अक्सर उन प्रोडक्ट्स को अनदेखा करते हैं जो हम शिशु की स्किन को धोने के लिए उपयोग करते हैं ताकि स्किन की नमी और स्वास्थ्य बना रहे . नीचे कुछ शिशु को नहलाने के लिए सही प्रोडक्ट्स बताये गए है:
बाथिंग जेल –
यह 100% साबुन मुक्त फार्मूला से बनाया गया है जो शिशु की नाजुक स्किन को जेंटली साफ करता है. यह नो टियर्स फार्मूला इस तरह बनाया जाता है की यह शिशु की नाजुक आंखों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा. यह मैरीगोल्ड और ग्लिसरीन जैसी प्राकृतिक चीज़ो से मिलकर बना है और यह हर रोज शिशु की नाजुक स्किन के लिए प्रयोग किया जा सकता है जिससे शिशु की स्किन सॉफ्ट और मॉइस्चरीज़ड बनी रहे.
एक साबुन जो हाइड्रेटिंग, सूथिंग और मॉइस्चरीसिंग हो, वो शिशु कि रुखी स्किन में नमी बनाए रखने के लिए सबसे अच्छा है. ग्लिसरीन, एलो-वेरा और ओलिव फ्रूट आयल जैसे नेचुरल तत्वों से बने साबुन एक लम्बे समय तक नमीयुक्त और स्वस्थ स्किन बनाए रखने में सहायक होते है और याद रखें की शिशु की स्किन को रगड़े नहीं, धीरे से धोएं, थपथपाएं और नर्म टॉवल से उनका शरीर पोछें.
शिशु के बालों और स्किन की देखभाल करना एक बहुत ही महत्वपूर्ण नियम है और शिशु की स्किन को सही मॉइस्चराइजेशन प्रदान करने के लिए ग्लिसरीन और ओट्स जैसे प्राकृतिक गुणों वाले प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि कभी-कभी शिशु को नहलाने से स्किन की नमी को नुकसान होता है. ओट्स गंदगी और तेल को हटाने के लिए प्राकृतिक कंडीशनर और क्लींजर के रूप में काम करता है और ग्लिसरीन नमी की कमी को रोकता है. ओट्स में एंटी-ऑक्सीडेंट गुण भी होते हैं जो स्किन को मुलायम और नमीयुक्त बनाता है.
शिशु की कोमल स्किन के लिए उन प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल में लाएं जो 100% डर्मटोलॉजिकली टेस्टेड हो, पैराबेन मुक्त हो,SLS / SLES, मिनरल आयल, सिलिकॉन , रंग और डाई मुक्त हो.
नए माता-पिता को चाहिए कि वे अपने नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए इन बातो को ध्यान में रखें.
बेबी को का बाथ-टाइम कम रखें – टब में लंबे समय तक शिशु को न बैठाये और स्नान का समय शिशु के लिए सीमित रखें जिससे उसकी स्किन खुश्क और रूखी न हो. अधिक ठंड के दिनो आप एक गर्म वॉशक्लॉथ की मदद से शिशु को क्लीन कर सकती है . स्किन में नमी बनाये रखने के लिए पानी गुनगुना रखें.
सही मॉइस्चराइजर का उपयोग करें-
बहुत रूखी या सेंसिटिव स्किन वाले शिशुओं के लिए, उन प्रोडक्ट्स का प्रयोग करे जिनमें बिना रासायनिक योजक के मॉइस्चराइजिंग गुणों के साथ पानी और रिच आयल दोनों होते हैं. सर्वोत्तम परिणामों के लिए, नहाने के समय के बाद जब आप एक टॉवल के साथ स्किन को पोंछते हैं, तो उसके तुरंत बाद, बच्चे की स्किन को मॉइस्चराइज करें ताकि स्किन इसे अच्छी तरह से सोक कर ले.
हीटर का प्रयोग ज्यादा न करें –
ठंड के मौसम में, आपको अपने घर में हीटर इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है, लेकिन गर्म हवा से स्किन और भी अधिक रूखी हो सकती है इसीलिए हीटर का प्रयोग ज्यादा न करे.
राजेश वोहरा, चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर, आर्ट्साना ग्रुप, इन एसोसिएशन विथ कीको ऑब्जर्वेटरी से बातचीत पर आधारित
अगर आप बच्चों से लेकर बड़ों तक को कुछ हेल्दी और टेस्टी रेसिपी खिलाना चाहती हैं तो दाल पालक बेस्ट औप्शन है. आयरन से भरपूर पालक की इस रेसिपी को लंच या डिनर कभी भी ट्राय कर सकते हैं.
हमें चाहिए
– 1 कप तुअर दाल
– 250 ग्राम उबला पालक
– 1 बारीक कटा टमाटर
– 1 छोटा चम्मच अदरक कद्दूकस की
– 1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर
– 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर
– 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला पाउडर
– 1 बड़ा चम्मच घी
– नमक स्वादानुसार.
बनाने का तरीका
दाल को प्रैशर कुकर में 3 कप पानी के साथ पका कर एक बरतन में निकाल लें. अब प्रैशर कुकर में घी गरम कर उस में अदरक, टमाटर, हलदी पाउडर, जीरा पाउडर, गरममसाला पाउडर, नमक और पालक डालें. सारी सामग्री अच्छी तरह मिक्स कर एक सिटी आने तक पका लें. प्रैशर निकल जाने के बाद पकी हुई दाल को इस मिश्रण में मिला दें. कुछ देर पका कर सर्विंग डिश में निकालें और धनियापत्ती से सजा कर परोसें.
लेखक- नरेंद्र सिंह ‘नीहार’
रंजीता यों तो 30 साल की होने वाली थी, पर आज भी किसी हूर से कम नहीं लगती थी. खूबसूरत चेहरा, तीखे नैननक्श, गोलमटोल आंखें, पतलेपतले होंठ, सुराही सी गरदन, गठीला बदन और ऊपर से खनकती आवाज उस के हुस्न में चार चांद लगा देती थी. वह खुद को सजानेसंवारने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ती थी.
रामेसर ने जब रंजीता को पहली बार सुहागरात पर देखा था, तो उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. जब 22 साल की उम्र में रंजीता बहू बन कर ससुराल आई थी, तब टोेले क्या गांवभर में उस की खूबसूरती की चर्चा हुई थी.
पासपड़ोस की बहुत सी लड़कियां हर रोज अपनी नई भाभी को देखने पहुंच जाती थीं. वे एकटक नई भाभी को निहारती रहती थीं. जब उस की खूबसूरती को ले कर तरहतरह के सवालजवाब करतीं, तो वह हंस कर बोलती, ‘‘धत तेरे की, यह भी कोई बात हुई…’’
रामेसर ठहरा एक देहाती लड़का. बहुत ज्यादा पढ़ालिखा तो था नहीं, पर बिजली मेकैनिक का काम अच्छा जानता था. उसी के चलते तकरीबन 5,000 रुपए महीना वह कमा लेता था. काम करने वह पास के एक कसबे में जाता था. शाम ढले दालसब्जी और गृहस्थी का सामान ले कर लौटता था.
रंजीता सजसंवर कर उस का इंतजार कर रही होती थी. अगर कभी रामेसर को देर हो जाती तो रंजीता उसे उलाहना देते हुए कहती, ‘‘देखोजी, हम पूरे दिन आप के इंतजार में खटते रहते हैं, पर आप को एक बार भी हमारी याद तक नहीं आती. ज्यादा सताओगे तो हम अपने मायके चले जाएंगे.’’
यह सुन कर रामेसर उस की जीहुजूरी करने लग जाता था. रंजीता मान भी जाती थी. गरमागरम जलेबी उस की कमजोरी थी. रामेसर घर वालों से छिपतेछिपाते थोड़ी जलेबी अकसर ले आता था.
वक्त बुलेट ट्रेन से भी तेज रफ्तार के साथ आगे बढ़ता गया. 3 साल में घर में 2 बच्चे भी हो गए. फिर शुरुआत हुई उन की पढ़ाईलिखाई की.
गांव में बहुत अच्छे स्कूल तो नहीं थे इसलिए रंजीता ने रामेसर को कसबे में जा कर रहने के लिए राजी कर लिया.
कसबे में आ कर रामेसर पूरी तरह काम में रम गया. अब उसे पहले से ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही थी. किराए का घर, मोलतोल का सामान, बच्चों की फीस, ऊपर से गांव में मांबाप के लिए भी कुछ न कुछ भेजने की चिंता हमेशा रामेसर को खाए रहती थी. वह ओवरटाइम भी करने लगा था.
जिंदगी की भागदौड़ में रामेसर हांफने लगा था. अब उस में पहले जैसा जोश व ताजगी नहीं बची थी. वह खापी कर रात में जल्दी सो जाता था. उस के पास रंजीता की तारीफ करने के लिए न तो शब्द बचे थे और न ही समय बचा था.
उन्हीं दिनों रामेसर का दूर का रिश्ते का एक भाई रघु काम की तलाश में उस के पास आया. उस ने सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली. रामेसर के पास वाला ही कमरा किराए पर ले लिया.
रघु की ड्यूटी ज्यादातर रात में ही होती थी. वह आधे दिन आराम करता और बाकी दिन में अपने छोटेमोटे काम निबटा लेता. रंजीता से उस की पटरी खूब बैठती थी. खाली समय में वे दोनों खूब हंसीमजाक करते थे.
रघु रंजीता की तारीफ के पुल बांधता तो वह मुंह में आंचल भर कर हंस देती थी. रघु उस की मस्त हंसी में कहीं खो जाता था.
रघु की अभी शादी नहीं हुई थी. वह भाभी के चुलबुलेपन, रूपरंग और मदमस्त अदाओं का दीवाना हो चला था. रंजीता भी उसे छेड़ने का कोई मौका जाने नहीं देती थी.
एक दिन रंजीता रघु से बोली थी, ‘‘गांव कब जाओगे?’’
‘‘क्यों, आप के लिए कुछ लाना है क्या भाभी?’’
‘‘हां, लाना तो है… एक देवरानी.’’
रघु इस पर कुछ झेंप सा गया था.
उधर बच्चों के स्कूल में छुट्टियां हो गई थीं. रामेसर का साला बंटू शहर घूमने आया था. वापस जाते समय वह अपने साथ दोनों बच्चों को भी ले गया. नानी के घर के क्या कहने. जाना तो रंजीता भी चाहती थी मगर रामेसर के खयाल ने उसे रोक दिया था. उस के खानेपीने, कपड़े धोने की चिंता बनी हुई थी.
रामेसर सुबह 8 बजे अपना खाना ले कर घर से निकल जाता था और देर शाम 7-8 बजे तक ही घर लौटता था.
रघु की छुट्टी बुधवार को होती थी. एक दिन वह आराम से दोपहर के 1 बजे तक सो कर उठा. चाय बना कर पी.
बरतनों की खटपट की आवाज सुन कर रंजीता ने पुकारा, ‘‘अरे रघुजी, थोड़ा आना तो.’’
‘‘आया भाभी,’’ कह कर रघु दौड़ादौड़ा रंजीता के कमरे में गया. वह औंधे मुंह बिस्तर पर लेटी हुई थी.
‘‘क्या हुआ?’’
‘‘ज्यादा कुछ नहीं, थोड़ा सिरदर्द है. दुकान से दवा ला दो.’’
रघु पास की कैमिस्ट की दुकान से सिरदर्द की गोली ले आया.
रघु ने रंजीता को गोली थमा दी और पानी का गिलास भी भर कर ले आया.
‘‘रघु, तुम कितना ध्यान रखते हो हमारा,’’ रंजीता ने चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा.
‘‘भाभी, आप कहो तो थोड़ा सिर भी दबा दूं,’’ रघु ने अपनेपन में कहा.
रंजीता ने ‘हां’ में गरदन हिला दी. रघु उस के सिरहाने एक कुरसी पर बैठ गया. उस की जादुई उंगलियां रंजीता के माथे पर थिरकने लगीं. दवा के असर और रघु की सेवा से रंजीता के माथे का दर्द तो बंद हो गया, मगर बदन में एक झुरझुरी सी दौड़ गई.
अब एक अजब सा खिंचाव रंजीता के मन में आ गया था. वह बड़ी मुश्किल से खुद को रोक पा रही थी. उस ने बंद आंखों से ही कहा, ‘‘ठीक है रघु, तुम्हारा शुक्रिया.’’
‘‘अरे, शुक्रिया कैसा भाभी? अपने ही तो काम आएंगे. जब से यहां आया हूं, मेरे सिर में आज तक किसी ने मालिश नहीं की है. आप कर सकती हो क्या?’’
रंजीता सोच में पड़ गई कि आखिर आज रघु चाहता क्या है? बड़ी मुश्किल से वह खुद को रोक पाई थी. फिर आगपानी का मिलन. क्या करे, मना भी नहीं कर सकती. उस ने खुद को वक्त के हवाले कर दिया.
रंजीता की पतलीलंबी उंगलियां रघु के सिर में हलचल मचा रही थीं. वह धीरेधीरे सुधबुध खो रहा था. उस ने रंजीता की गोलमटोल हथेली को पकड़ कर चूम लिया.
रंजीता ने अपना हाथ खींचते हुए कहा, ‘‘यह क्या है रघु.’’
‘‘यह मेरा शुक्रिया है, भाभी.’’
रंजीता ने रोमांटिक होते हुए कहा, ‘‘बस, इतना सा शुक्रिया.’’
रघु ने रंजीता को अपने सामने की ओर खींच लिया. वह किसी धधकते ज्वालामुखी सी लग रही थी. आंखों के लाललाल डोरे अंदर की हलचल को साफ बयां कर रहे थे.
रघु ने अपने तपते होंठ रंजीता के गुलाबी होंठों पर रख दिए. इस के बाद हुई प्यार की बरसात में वे दोनों जम कर भीगे. जब एकदूसरे से अलग हुए तो दोनों ने मुसकराते हुए कहा, ‘जी शुक्रिया.’
अक्सर महिलाएं अपने बौडीशेप को लेकर परेशान रहती हैं. उन्हें लगता है कि जब तक उन का बौडीशेप परफेक्ट नहीं होगा तब तक वे स्टाइलिश नहीं लगेंगी. बौडी का आकार, रंग और बनावट खूबसूरती की पहचान होते हैं. अगर आप भी ऐसा सोचती हैं तो ठहरिए. जब बात कपड़ों की आती है तो इसमें आप के बौडी का आकार मायने नहीं रखता. मायने रखता है तो यह कि आप किस फिटिंग के कपड़े पहनती हैं. आप की बौडी शेप कैसी भी क्यों न हो अगर आप उस अनुरूप सही और स्टाइलिश कपड़े पहनती हैं तो आप का आत्मविश्वास बढ़ता है और आप खूबसूरत नजर आती हैं.
आइये जानते हैं फैशन डिजाइनर आशिमा शर्मा से कि अपने बौडी टाइप को कैसे पहचानें और फिर उस के हिसाब से सही और स्टाइलिश कपड़ों का चयन कैसे करें….
नौर्मली हमारा बौडी टाइप पांच प्रकार का हो सकता है;
1. एप्पल शेप के लिए ये करें ट्राय
एप्पल शेप वालों का शारीरिक आकार नीचे की तुलना में ऊपर से भारी होता है. ऐसे बौडी का ज्यादातर वजन हिप्स के ऊपरी हिस्से में होता है. अगर आप के बौडी के बीच यानी पेट और कमर के आसपास बहुत ज्यादा फैट है तो आप के बौडी का आकार सेब के आकार जैसा दिखता है.
एप्पल बॉडी शेप वालों के कंधे और सीना, कमर की तुलना में कुछ चौड़ा होता है इसलिए कपड़े ऐसे लें कि आप के उन हिस्सों पर लोगों का ध्यान कम से कम जाए जब कि खूबसूरती उभर कर सामने आये. आप अपने पैरों को दिखाने वाली वी या डीप वी गले की ड्रेस चुन सकती हैं. इससे आप का ऊपर का बौडी लंबा दिखेगा. अपने ऊपरी हिस्से से ध्यान भटकाने के लिए आप प्रिंटिड ड्रेस और प्रिंटिड जैकेट भी चुन सकती हैं. आप मोनोक्रोम लुक, गहरे रंग के कपड़े, पूरी या 3/4 स्लीव्स की ड्रेस भी चुन सकती हैं. लेकिन स्किनी जींस के साथ फिगर-हगिंग ड्रेसेस या टौप पहनने से बचें.
2. औवरग्लास बौडी शेप करें ट्राय
इस प्रकार की शेप वाली बौडी का ऊपरी और निचला, दोनों हिस्सा समान होता है और कमर पतली और आकर्षक लगती है. आज के समय में ज्यादातर महिलाएं ऐसे बॉडी पाने के लिए जिम का सहारा ले रही है. इस तरह की बौडी टाइप पर अक्सर हर तरह के कपड़े अच्छे लगते हैं.
लुक और बेहतर बनाने के लिए ऐसी ड्रेसचुनें जिसे कमर से बांधना पड़े. वी नेक, डीप वी और स्वीटहार्ट नेक भी आप पर काफी अच्छा लगेगा. यह आप के ऊपरी बौडी को दिखाने में मदद करेगा. ए लाइन ड्रेस या इसी तरह के कट बौडी के निचले हिस्से को बेहतर दिखाते हैं. इस के साथ ही बॉडीहगिंग ड्रेसेस भी आकर्षक लुक देते हैं.
3. पीयर शेप बौडी के लिए ट्राय करें ये फैशन
इस शेप की बौडी के लोगों का बौडी ऊपर के बजाए नीचे से अधिक चौड़ा होता है. इन के हिप्स और जांघ ऊपरी बौडी की तुलना में बड़े होते हैं.
ऐसी बौडी शेप वालों पर पैटर्न वाली वाइड लेग्ड पैंट (चौड़ी पैंट), ए-लाइन स्कर्ट और रफल्ड टौप जैसे कपड़े ज्यादा अच्छे लगते हैं. इन से बौडी के ऊपरी हिस्से को बेहतर शेप मिलती है और आप खूबसूरत दिखती हैं. अगर आप औवरग्लास की तरह अपना बॉडी शेप दिखाना चाहती हैं तो ढीले टौप के साथ स्किनी जींस पहनें.
4. रेक्टेंगल बौडी शेप के लिए ट्राय करें ये फैशन
ऐसे बौडी का आकार आमतौर पर कंधों से हिप्स तक अच्छी तरह से संतुलित होता है. रेक्टेंगल बौडी शेप में बस्ट, कमर और हिप्स चौड़ाई लगभग बराबर ही होती है.
ऐसी शेप वाले ए-लाइन स्कर्ट, रफल्ड और लेयर्ड टॉप पहन सकते हैं. स्लीवलेस, स्ट्रैपलेस और स्वीटहार्ट लाइन्स ऐसी शेप के लोगों को अच्छी लगेंगी. अपने स्टाइल को और आकर्षक बनाने के लिए ब्लेजर, लौन्ग जैकेट और केप्स आजमाएं.
5. इंवर्टेड ट्राईएंगल बौडीशेप के लिए ट्राय करें ये फैशन
ऐसी बौडीशेप ज्यादातर एथेलेटिक लोगों की होती है. इन के कंधे हिप्स से ज्यादा चौड़े होते हैं. आपके हाथ और कंधे बड़े होते हैं. ऐसा बौडी शेप हो तो आप पेंसिल कट स्कर्ट, स्किनी जींस के साथ टौप पहन सकती हैं. मगर रफल्स, लेयर्स पहनने से बचें और मिनिमलिस्टिक ड्रेस ट्राय करें.
पुरानी डायरी के पन्ने पलटते हुए अनुशा को जब रागिनी के गांव का पता मिला तो उसे लगा जैसे कोई खजाना हाथ लग गया है. अनुशा को अतीत में रागिनी के कहे शब्द याद आ गए, ‘मेरे पति को अपने गांव से बड़ा लगाव है. गांव से नाता बना रहे, इस के लिए वह साल में 1-2 बार गांव जरूर जाते हैं.’
यही सोच कर अनुशा खुश थी कि अब वह रागिनी को पत्र लिख सकती है और जब भी उस के पति गांव जाएंगे तो वहां भेजा उस का पत्र उन्हें जरूर मिल जाएगा. रागिनी को कितना आश्चर्य होगा जब वह इस चौंका देने वाली खबर के बारे में जानेगी.
अनुशा के दिमाग में रागिनी की चाची के साथ घटित हुआ वह हादसा तसवीर की भांति घूमने लगा जिसे रागिनी ने कालिज के दिनों में उसे बताया था.
मैं और रागिनी बी.ए. कर रही थीं. दशहरे की छुट्टियां होने वाली थीं. इसलिए ज्यादातर अध्यापिकाएं घर चली गई थीं. उस दिन खाली पीरियड में हम दोनों कालिज कैंपस के लान में बैठी थीं. मैं ने रागिनी से पूछा, ‘आज तो तुम भी व्रत होगी?’
रागिनी ने बड़े रूखेपन से कहा था, ‘नहीं, घर में बस, मुझे छोड़ कर सभी का व्रत है. मेरी तो धर्मकर्म से आस्था ही मर गई है.’
‘क्यों, ऐसा क्या हो गया है?’ मैं ने हंसते हुए पूछा तो रागिनी और भी गंभीर हो उठी और बोली, ‘अनुशा, मेरे यहां एक बड़ी दर्दनाक घटना घट चुकी है जिस की चर्चा भी अब घर में नहीं होती.’
मैं उत्सुकता से रागिनी को एकटक देखे जा रही थी. उस ने कहा, ‘मेरी चाची को तो तुम ने देखा है. वह अपनी मां और छोटी बहन के साथ विंध्याचल गई थीं. चाची की बहन सुशीला अविवाहित थी लेकिन पूजापाठ, धर्मकर्म में उस की बड़ी रुचि थी. वे तीनों कई दिनों तक विंध्याचल में एक पंडे के घर रुकी रहीं. रोज गंगास्नान, पूजन, दर्शन और पंडे के यहां रात्रिनिवास. उन का यही क्रम चल रहा था.
‘एक दिन सुशीला खाना बना रही थी. उसे छोड़ कर चाची और उन की मां पूजा करने मंदिर चली गईं. कुछ देर बाद जब वे लौट कर आईं तो सुशीला को घर में न पा कर उन्होंने पंडे से पूछा तो उस ने बताया कि सुशीला भी खाना बनाने के बाद गंगास्नान को कह कर यहां से चली गई थी.
‘बहुत ढूंढ़ने के बाद भी जब सुशीला का कहीं पता न चला तो उन्होंने घर पर खबर भेजी. घर के पुरुष भी विंध्याचल आ गए. कई दिनों तक वे लोग सुशीला को इधरउधर ढूंढ़ते रहे. पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज कराई लेकिन सुशीला का कहीं पता नहीं चला.
‘चाची की मां का रोरो कर बुरा हाल हो गया था. वह पागलों की तरह हर किसी से सुशीला के बारे में ही पूछती रहतीं. यह पीड़ा वह अधिक दिनों तक नहीं झेल सकीं और कुछ ही महीने बाद उन की मौत हो गई.
‘बेटी के गायब होने से चाची के पिता तो पहले ही टूट चुके थे, पत्नी के मरने के बाद तो एकदम बेसहारा ही हो गए. बीमारी की हालत में मेरे चाचाजी उन्हें गांव से यहां ले आए. कुछ दिन इलाज चला लेकिन अंत में वह भी चल बसे. उसके बाद तो सुशीला मामले का अंत सा हो गया.
‘अब उस घटना की एकमात्र गवाह मेरी चाची ही बची हैं जो सीने में सबकुछ दफन किए बैठी हैं. उन की हंसी जैसे किसी ने छीन ली हो. इसीलिए मुझ पर हमेशा पाबंदियां लगाए रहती हैं. इतने समय जाना है, इतने समय तक आना है, तरहतरह की चेतावनी मुझे देती रहती हैं.
‘मुझे चाची पर बड़ा गुस्सा आता था, उन की टोकाटाकी से परेशान हो कर मैं ने एक दिन चाची को बुरी तरह झिड़क दिया था. तभी चाची ने मुझे यह घटना रोरो कर बताई थी. अनुशा, उसी दिन से मेरा मन धर्मकर्म, पूजापाठ, व्रतउपवास से बुरी तरह उचट गया.
‘उक्त घटना ने मेरे मन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं. मेरी निसंतान चाची, जिस संतान की कामना से गई थीं उन की वह इच्छा आज तक पूरी नहीं हो सकी है. चाची की मां कुंआरी बेटी सुशीला को अच्छा घरवर पाने की जिस कामना के लिए विंध्याचल गई थीं वह पूरी होनी तो दूर, सुशीला बेचारी तो दुनिया से ही ओझल हो गई. अब तुम्हीं बताओ अनुशा, मैं क्या उत्तर दूं अपने मन को?’
रागिनी की बातें सुन कर वास्तव में मैं निरुत्तर और ठगी सी रह गई. रागिनी ने मुझे कसम दी थी कि इस घटना की चर्चा मैं कभी किसी दूसरे से न करूं क्योंकि उस के परिवार की इज्जत, मर्यादा का सवाल था.
बी.ए. के बाद रागिनी की शादी हो गई. उस की ससुराल झांसी के एक गांव में है. शादी के बाद भी हमारा संपर्क बना रहा. उस ने अपने गांव का पता मेरी डायरी में यह कह कर लिख दिया था कि मेरे पति को गांव से बहुत लगाव है. वहां उन का आनाजाना लगा ही रहता है.
कुछ दिनों बाद मेरी भी शादी हो गई. मैं जब भी मायके जाती तो रागिनी का समाचार मिल जाता था. लेकिन बाद में रागिनी के पिता स्कूल से रिटायर होने के बाद अपने पुश्तैनी घर इटावा चले गए और उस के बाद हमारा संपर्क टूट गया.
मैं अपने छोटे बेटे का मुंडन कराने विंध्याचल गई थी. मुझे क्या पता था कि सुशीला की जीवनकथा में अभी एक और नया अध्याय जुड़ने वाला है जिस का सूत्रपात मेरे ही हाथों होगा. तभी से मेरे मन में अजीब सी खलबली मची हुई है. जी करता है किसी तरह रागिनी मिल जाए तो मन का बोझ हलका कर लूं. जाने उस की चाची अब इस दुनिया में हैं भी या नहीं.
अचानक पति की इस आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई, ‘‘मैं 5 मिनट से खड़ा तुम्हें देख रहा हूं और तुम इन पुरानी किताबों और डायरी में न जाने क्या तलाश रही हो. मेरा आफिस से आना तक तुम्हें पता नहीं चल सका. अनुशा, यही हाल रहा तो तुम एक दिन मुझे भी भूल जाओगी. अब उस घटना के पीछे क्यों पड़ी हो जिस का पटाक्षेप हो चुका है.’’
‘‘नहीं, सुधीर, रागिनी को सबकुछ बताए बगैर मुझे चैन नहीं मिलेगा, आज उस का पता मुझे मिल गया है. परिस्थितियों ने तुम्हें उस घटना का राजदार तो बना ही दिया है सुधीर, अच्छाखासा किरदार तुम ने भी तो निभाया है. रागिनी को सबकुछ जान कर कितना आश्चर्य होगा. कैसा लगेगा उसे जब दुखों की पीड़ा और खुशियों की हिलोरें उस के मन में एकसाथ तरंगित हो उठेंगी. हो सकता है, उस की चाची भी अभी जीवित हों और सबकुछ जानने के बाद और कुछ नहीं तो उन के मन को एक शांति तो मिलेगी ही.’’
सुधीर बोले, ‘‘मैडम, अब जरा आप इन झंझावातों से बाहर निकलें और चल कर चायनाश्ते की व्यवस्था करें.’’
‘‘ठीक है, मैं नाश्ता बनाती हूं. आप दोनों बच्चों को बाहर से बुला लें.’’
‘‘मम्मी, मेरा होमवर्क अभी पूरा नहीं हुआ है. प्लीज, करा दो न,’’ बड़े भोलेपन से पिंकू ने अनुशा से कहा.
‘‘बेटे, आप लोग आज सारे काम खुदबखुद करो. तुम्हारी मम्मी अपनी पुरानी सहेली को पत्र लिखने जा रही हैं जो शायद सुबह तक ही पूरा हो पाएगा. क्यों अनुशा, सही कह रहा
हूं न?’’
‘‘बेशक, आप सच कह रहे हैं. रागिनी को पत्र लिखे बिना मेरा मन न तो किसी काम में लगेगा, न ही चित्त स्थिर हो सकेगा. संजीदगी भरे पत्र के लिए रात का शांतिपूर्ण माहौल ही अच्छा होता है.’’
अनुशा विचारों में खोई हुई पेन और पैड ले कर रागिनी को पत्र लिखने बैठ गई.
स्नेहमयी रागिनी,
मधुर स्मृति,
इतने लंबे अरसे बाद मेरा पत्र पा कर तुम अचंभित तो होगी ही. साथ ही रोमांचित भी. बात ही कुछ ऐसी है जो अकल्पनीय होते हुए भी सत्य है. अच्छा तो बगैर किसी भूमिका के मैं सीधे मुख्य बात पर आती हूं.
पिछले माह हम अपने छोटे बेटे पिंकू का मुंडन कराने अपने पूरे परिवार के साथ विंध्याचल गए थे. शायद मेरे ये वाक्य तुम्हारे दिमाग में एक पुरानी तसवीर खींच रहे होंगे. सच, मैं उसी से संबंधित घटना तुम्हें लिख रही हूं.
उस दिन सोमवार था. हम वहां रुकना नहीं चाहते थे लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि हमें शीतला पंडे के यहां ठहरना पड़ा.
दूसरे दिन पिंकू का मुंडन हो गया. हम ने सोचा, थोड़ा घूमफिर कर आज ही निकल जाएंगे.
हम एक टैक्सी तय कर उस में बैठ ही रहे थे कि शीतला पंडे का लड़का, जिस का नाम भानु था, मेरे पास आ कर बोला कि मांजी, हमें भी साथ ले चलिए, आप का बड़ा उपकार होगा. और बीचबीच में वह सहमी निगाहों से अपने घर की तरफ भी देख लेता था.
मुझे उस पर बड़ी दया आई. मैं ने सुधीर से उसे भी साथ ले चलने के लिए कहा तो वह बोले कि देख रही हो, इस के घर के सभी लोग मना कर रहे हैं. तुम जानती तो हो नहीं. घर वाले सोच रहे होंगे कि बेटा धंधा छोड़ कर कहीं घूमने न चला जाए. खैर, मेरे कहने पर सुधीर शीतला पंडे से भानु को साथ ले जाने की बात कह आए और वह मान भी गया.
मेरे दोनों बच्चे बहुत खुश थे. वे विंध्याचल के पहाड़ और पत्थर देख कर उछल रहे थे. हम लोग मंदिर पहुंच गए और वहीं बैठ कर नाश्ता करने लगे. बातों के सिलसिले में मैं ने सुधीर से कहा कि ऐसे स्थानों पर पिकनिक मनाना कितना अच्छा लगता है. भौतिक और आध्यात्मिक दोनों का आनंद एकसाथ मिल जाता है.
‘‘भानु, तुम भी खाओ,’’ कह कर मैं ने पहला कौर मुंह में उतारा ही था कि वह जोरजोर से रो पड़ा. अचानक उस का रोना देख हम परेशान हो गए. लेकिन रागिनी, भानु की कहानी तो हर पल रुलाने वाली थी.
भानु रोते हुए कहे जा रहा था कि मांजी, बाबूजी, मुझे इस नरक से निकाल लीजिए. शीतला मेरा बाप नहीं, मेरा काल है जो मुझे खा जाएगा. मैं मरना नहीं चाहता. मुझे अपने साथ ले चलिए, मांजी.
भानु की आंखों में समंदर उमड़ रहा था. उस ने धीमे स्वर में अपनी जो कहानी सुनाई वह तुम्हारे द्वारा बताई कहानी ही थी. भानु तुम्हारी चाची की छोटी बहन सुशीला का बेटा है.
मैं ने भानु को चुप कराया और आगे की बात जल्दी पूरी करने को कहा क्योंकि उस को टैक्सी ड्राइवर का खौफ भयभीत किए जा रहा था. मैं ने सुधीर के कान में यह समस्या बताई तो सुधीर जा कर ड्राइवर से बातें करते हुए उसे कुछ आगे ले गए.
भानु अब थोड़ा आश्वस्त हो कर आंसू पोंछता हुआ कहने लगा कि मेरी मां ने मरने से पहले मुझे अपनी कहानी सुनाई थी जो इस प्रकार है : ‘उस दिन जब मेरी अम्मां और दीदी मंदिर चली गईं तो शीतला मेरे पास आकर बैठ गया और कहने लगा कि सुशीला,क्या बनाया है आज, जरा मुझे भी खिलाओ.
‘मैं थाली में खाना लगाने लगी तो शीतला बोला कि तू तो बड़ी भोली है. सुशीला, मैं तो ऐसे ही कह रहा था. अच्छा, खाना तो बना ही चुकी है. चल तुझे आज घुमा लाऊं.
अभी अम्मां और दीदी आ जाएं तो साथ ही चलेंगे सब लोग. मैं अपनी बात कह ही रही थी तभी शीतला ने मुझे पकड़ कर कुछ सुंघा दिया था. बस, मुझे सुस्ती छाने लगी.
जब मुझे होश आया तो मैं ने खुद को एक बड़े से पुराने मकान में कैद पाया. वहां शीतला के साथ कुछ लोग और थे जिन की आवाजें ही मुझे सुनाई पड़ती थीं. मेरा कमरा अलग था जिस में शीतला के सिवा और कोई नहीं आता था.’
भानु अपनी मां की कही कहानी को विस्तार से सुना रहा था :
‘एक दिन मैं वहां से भागने का रास्ता तलाश रही थी कि शीतला भांप गया. फिर तो उस का रौद्ररूप देख कर मैं कांप गई. मुझे कई तरह से प्रताडि़त करने के बाद वह बोला कि आगे से ऐसी हरकत की तो ऐसी दुर्गति बनाऊंगा कि तुझे खुद से भी नफरत हो जाएगी.
‘अब मेरे सामने कोई रास्ता नहीं था. मैं ने इसे ही अपनी तकदीर मान लिया और होंठ सी कर चुप रह गई. एक दिन मेरे कहने पर शीतला ने मेरी मांग में सिंदूर भर कर मुझे पत्नी का चोला जरूर पहना दिया. साल भर के अंदर ही तेरा जन्म हुआ. शीतला ने बड़ा जश्न मनाया. खुश तो मैं भी थी कि मेरा भी कोई अपना आ गया. साथ ही मैं कल्पना करने लगी कि मेरा बेटा ही मुझे यहां से मुक्ति दिलाएगा. लेकिन क्या पता था कि यह राक्षस तुझ पर भी जुल्म ढाएगा. गलती मेरी ही है, कभीकभी गुस्से में मेरे मुंह से निकल जाता था कि मेरा बेटा, बड़ा हो कर तुझे बताएगा. बस, तभी से शीतला के मन में भय सा व्याप्त हो गया था.’
भानु ने आगे बताया कि मेरी मां जिस दिन अपनी दुख भरी कहानी बता कर रो रही थी शीतला छिप कर सबकुछ सुन रहा था. वह गुस्से में तमतमाया, गड़ासा ले कर आया और मेरे सामने ही मेरी मां का सिर धड़ से अलग कर दिया. मुझे तरहतरह से समझाया और डराया- धमकाया. मैं भी बेबस, लाचार था. मां के चले जाने से मैं एकदम अकेला पड़ गया था लेकिन मेरे मन में बदले की जो आग लगी थी वह आज तक जल रही है, मांजी.
भानु की कहानी दिल दहला देने वाली थी लेकिन हम कर ही क्या सकते थे. खैर, उस समय उसे दिलासा दे कर हम वापस लौट आए थे.
यद्यपि भानु पर बड़ा तरस आ रहा था. वह आंखों में आंसू लिए मायूसी से हमें देख रहा था. भानु यानी तुम्हारी चाची की बहन सुशीला का बेटा, रागिनी. तुम्हारी बताई वह घटना मेरी आंखों के सामने नग्न सत्य बन कर खड़ी थी, जो मेरी आस्था पर चोट कर रही थी. साथ ही यह पूरे समाज के सामने एक ऐसा सवाल खड़ा कर रही है जिस का जवाब हम सभी को मिल कर ढूंढ़ना है. खासकर हम औरतें अपनी मर्यादा पर यह प्रहार कब तक सहती रहेंगी, इस का भी जवाब हमें खुद तलाशना है. धर्म की आड़ में धर्म के ठेकेदार कब तक यह नंगा नाच करते रहेंगे?
ऐसे अनेक सवाल हैं रागिनी, जिन के जवाब हमें ही तलाशने हैं. खैर, अभी तो मैं अपनी मुख्य बात पर आती हूं. हां, तो दूसरे दिन हम अपने घर आ गए. सुधीर से मैं बारबार भानु को छुड़ा लाने की सिफारिश करती रही.
मेरे इस आग्रह पर उन्होंने यहां पुलिस स्टेशन में सूचना भी दर्ज कराई. यहां से विंध्याचल थाने पर संपर्क कर के जांचपड़ताल शुरू हो गई. यहां से पुलिस टीम विंध्याचल गई. दुर्भाग्य से वहां के दरोगा की सांठगांठ भी शीतला से थी जिस से शीतला को पुलिस काररवाई की भनक लग गई थी. लेकिन पुलिस उसे गिरफ्तार करने में सफल हो गई. भानु ने पुलिस के सामने कई रहस्य उजागर किए.
खैर, तुम्हें यह जान कर खुशी होगी कि शीतला को आजीवन कारावास हो गया है और उस की संपत्ति जब्त कर ली गई है. भानु 8वीं तक पढ़ा था सो आजकल वह एक सरकारी दफ्तर में चपरासी है. उस ने अपना घरपरिवार बसा लिया है और अपना अतीत भूल कर वह एक नई जिंदगी जीने का प्रयास कर रहा है. उस का यह कहना कितना सच है कि धर्मस्थलों में एक शीतला नहीं अनेक धूर्त शीतला अभी भी मौजूद हैं जो देवी- देवताओं की आड़ में भोली जनता और महिलाओं का शोषण कर रहे हैं.
मैं सोच सकती हूं कि मेरा पत्र पढ़ कर तुम्हें कैसा लग रहा होगा. पर सबकुछ सत्य है. मिलने पर तुम्हें विस्तार से सारी बातें बताऊंगी. भानु अपनी मां द्वारा दिए नाम से ही अब जाना जाता है.
पत्र का उत्तर फौरन देना. मुझे बेसब्री से इंतजार रहेगा. प्रतीक्षा के साथ…
तुम्हारी अनुशा.’’
कहानी- किरन पांडेय
कहते हुए शिंदे साहब अपना पसीना पोंछते हुए ‘धप’ से सोफे में धंस गए. गोमा तिरछी नजरों से उन्हें एकटक देखता रहा. ‘लाल मुंह का बंदर… इस के खून में जरूर अंगरेजों का खून मिला होगा, नहीं तो ऐसा लाल भभूका मुंह नहीं हो सकता,’ गोमा सोचते हुए मुसकरा उठा.
शिंदे साहब की नजर गोमा पर पड़ी, तो उस की तिरछी नजर देख कर उन के तनबदन में आग लग गई. वे चिल्लाए, ‘‘अरे कैसा बेशर्म है तू, इतनी मार खा कर भी कोई असर नहीं हुआ?’’
शिंदे साहब को गुस्सा तो बहुत आ रहा था और इच्छा भी हो रही थी कि गोमा का खून कर दें, पर वे ऐसा नहीं कर सकते, यह बात वे दोनों जानते थे.
गोमा शराब पीता था, पर तनख्वाह मिलते ही… और वह भी 2 दिन तक. उस के बाद अगली तनख्वाह के मिलने तक शराब को मुंह नहीं लगाता था. लगाता भी कैसे? पैसे मिलते ही घर में खर्च के लिए कुछ पैसे दे कर एक बार जो पीने के लिए जाता, तो तीसरे दिन होश आने पर खुद को किसी नाले या गटर में पाता. फिर उसे साहब का और खुद का घर याद आता.
शिंदे साहब के घर पहुंचते ही हर महीने मेम साहब से पड़ने वाली नियमित डांट सुनने को मिलती कि पिछले 3 दिन से कहां रहे? यहां काम कौन करेगा? इस तरह शराब में धुत्त रहोगे तो साहब से कह कर पिटवाऊंगी.
मेम साहब मन ही मन भुनभुनाती रहतीं और गोमा चुपचाप अपना काम करता जाता मानो वे किसी और को सुना रही हों. इन के जैसे कितने ही साहब और मेम साहब के लिए गोमा काम कर चुका है. उन लोगों का गुजारा गोमा जैसे लोगों के बिना मुमकिन नहीं है.
अर्दली तो बहुत होते हैं, जिन में से आधे तो केवल भरती और गिनती के नाम पर होते हैं, गोमा जैसे पुराने और मंजे हुए तो बस 2-4 ही होते हैं, जो साहब व मेम साहब की सारी जरूरतें जानते हैं. तभी तो मेम साहब केवल धमकी दे कर रह जाती हैं.
साहब लोगों की बातें नौकर असली या नकली नशे की आड़ में ही तो उजागर कर सकते हैं. वैसे, गोमा की यह आदत भी नहीं थी कि वह साहब लोगों के बारे में इधरउधर चर्चा करे.
गोमा अपने काम से काम रखता था, इसलिए साहब या मेम साहब कैसे हैं या उन के स्वभाव के बारे में ज्यादा सोचता ही नहीं था. पर शिंदे साहब को पहली बार देखते ही उस का मन खराब सा हो गया था. उन की शक्ल से ले कर हर चीज, हर बात बनावटी और बेढंगी लगी थी.
शिंदे साहब का अजीब सा गोराभूरा रंग, कंजी आंखें, मोटे होंठ, भारीभरकम शरीर और बेवजह चिल्लाचिल्ला कर बात करने का तरीका कुछ भी अच्छा नहीं लगा था, इसीलिए उन से सामना न हो, इस बात का वह खयाल रखता था.
पर, उस दिन गोमा ने अपने पूरे होशोहवास में साहब के मुंह पर ऐसी बात कही थी क्योंकि मेम साहब उस से उलझी हुई थीं और जब उस से सहन न हुआ, तो साहब व मेम साहब दोनों को देख कर ही बोला था.
गोमा सोचता है कि इन बड़े लोगों को रोज नियम से शाम को पीनी है, पूरे तामझाम के साथ. एक अर्दली बोतल खोलेगा, दूसरा भुने हुए काजू, पनीर के टुकड़े, नमकीन वगैरह लाता रहेगा.
2-4 अफसर अपनी बीवियों के साथ हर दिन मौजूद रहते थे.
‘‘मैडम, आप थोड़ी सी लीजिए न, फोर कंपनीज सेक.’’
‘‘न बाबा, हम को हमारा सौफ्ट ड्रिंक ही ठीक है. अपनी वाइफ को पिलाओ,’’ बड़े अफसर की बीवी अफसराना अंदाज में कहतीं.
दूसरी तरफ बड़े साहब इन की बीवी से इस तरह चोंच लड़ा रहे होते जैसे सुग्गा अपनी मादा से.
‘‘मोनाजी, आप तो मौडर्न हैं, कम से कम हमारे पैग को तो छू दीजिए,’’ कहतेकहते उन की नजरें मोनाजी के पूरे जिस्म का सफर कर किसी ऐसे उभार पर टिक जातीं, जो उन्हें लुभावना लगता था.
गोमा मन ही मन सोच कर हंसता कि अगर कोई नया आदमी उस कमरे में आ जाए, तो उस के लिए यह पहचानना मुश्किल होगा कि कौन किस की बीवी है. सभी अपने पति को छोड़ दूसरे मर्दों से सटीं, हंसतींखिलखिलातीं, लाड़ लड़ाती मिलेंगीं. फिर मर्दों का तो क्या कहना, सारी बगिया के फूल तो उन के लिए हैं, कोई भी तोड़ लो.
शिंदे साहब गोमा पर जितना ही चिल्लाते या झल्लाते, उतना ही उन्हें हैरान करने में मजा आ रहा था. उस ने भी कोई झूठ थोड़े ही बोला था, ‘‘अपनी बीवी को संभाल नहीं पाते हैं और दुनिया वालों की बातों पर गुर्राते हैं.’’
गोमा ने तो कई बार मेम साहब और साहब के जूनियर रमेश को चोंच लड़ाते और इशारे करते देखा था. जब शिंदे साहब दौरे पर होते, तो उन दोनों की पौबारह रहती थी. एकलौते बेटे को बोर्डिंग स्कूल में दाखिल करा कर मिसेज शिंदे एकदम आजाद हो गई थीं.
पति के दौरे पर चले जाने के बाद तो मैदान एकदम साफ रहता. पर, एक मुसीबत तो फिर भी सिर पर होती थी. दिनभर रहने वाले अर्दली को भले ही काम न होने का कह कर विदा कर दें, पर रात को पहरे पर रहने वाला गार्ड तो 9 बजे आ धमकता था.
हालांकि रोज शाम को रमेश ‘इधर से जा रहा था, सोचा पूछ लूं कि कोई काम तो नहीं है’ कहते हुए आ जाता था. गार्ड के आते ही वे दोनों ऐसा बरताव करते, मानो चंद मिनट पहले ही मिले हों और रमेश हालचाल पूछ कर चला जाएगा.
मेम साहब बाजार का कुछ काम बता देती थीं. केवल एक चीज के लिए तो कभी भेजती नहीं थीं, लिस्ट बना कर देती थीं. आज भी एक चीज जो वे लाने को कह रही थीं, उस की ऐसी खास जरूरत नहीं थी.
गोमा ने कहा, ‘‘कुछ और चीजों का नाम लिख दीजिए, फिर चला जाऊंगा. एक चीज के पीछे 2 घंटे बरबाद हो जाएंगे.’’
‘‘अरे वाह, तुझे समय की फिक्र कब से होने लगी. जब पी कर 2 दिनों तक बेसुध पड़ा रहता है, तब समय का खयाल नहीं आता,’’ मेम साहब ने मुंह बनाते हुए जिस तरह कहा, गोमा अपनेआप को रोक न पाया और बोला, ‘‘पीते हैं तो अपने पैसे की, बड़े लोगों की तरह मुफ्त की नहीं.’’
‘‘ठीक है भई, तू शराब पी या कहीं पड़ा रहे, बस अब जा,’’ उन की आवाज में एक उतावलापन था, मानो गोमा को वहां से हटाना ही उन का मकसद था.
गोमा भी शब्दों के तीर छोड़ कर अब वहां से भागना ही चाह रहा था, पर मेम साहब के बरताव से मन में उलझन सी हो रही थी. गोमा को ज्यादा सोचना नहीं पड़ा, क्योंकि तभी रमेश की शानदार मोटरसाइकिल बंगले के अहाते में घुसी.
जब भी शिंदे साहब के घर कोई पार्टी होती, तो सारे इंतजाम रमेश को ही करने पड़ते थे. शिंदे साहब के हर आदेश को ‘यस सर’ कहते हुए वह इस तरह पूरा करता, मानो सिर पर अपने बौस के आदेश का बोझ नहीं, बल्कि फूलों का ताज हो.
पार्टी के दिन रमेश और मेम साहब के बीच हंसीमजाक, नैनमटक्का चलता रहता था. गोमा के अलावा और भी 3-4 अर्दली होते थे. पानी की तरह ‘ड्रिंक’ ले जाने, परोसने, स्नैक्स की प्लेटें ले जाने, चारों ओर घुमाघुमा कर सब को देने के लिए इतने नौकर तो चाहिए ही थे.
पार्टी के बीच अचानक शिंदे साहब के बौस के दिमाग में आइडिया का बल्ब जला. शाम की ‘डलनैस’ को दूर करने के लिए कोई मौडर्न ‘गेम’ खेलने का फुतूर.
‘‘अरे शिंदे, क्या पिलापिला कर ही मार डालोगे?’’
‘‘नो सर, आप कहें तो डिनर सर्व हो जाए?’’
‘‘होहो…’’ अट्टहास करते हुए बौस ने कहा, ‘‘तुम हो पूरे बेवकूफ और वही रहोगे. कभी दिल्लीमुंबई की ‘ऐलीट’ लोगों की पार्टी में शामिल होओगे,
तब समझ आएगा पार्टी का असली रंग और मजा.’’
‘‘जी सर,’’ शिंदे साहब बोले.
‘‘कुछ ‘थ्रिलिंग गेम’ हो जाए,’’ बौस ने कहा.
शिंदे साहब अपने बौस के चेहरे को उजबक की तरह ताकने लगे, कुछ देर पहले जब वे अपनी बीवी से कुछ कहने अंदर जा रहे थे और रमेश के साथ उन की प्रेमलीला देखी, तो उस से वे काफी आहत थे.
‘‘मैडम, अब आप अंदर जाइए, अच्छा नहीं लगता कि आप इस खादिम के साथ यहां रहें,’’ रमेश मेम साहब को चिढ़ाते हुए बोल रहा था.
‘‘यार रमेश, कम से कम अकेले में मुझे मैडम मत कहो,’’ शिंदे साहब की बीवी मचल कर बोलीं.
ऐसा कह कर मेम साहब हाल की तरफ जाने को पलट ही रही थीं कि शिंदे साहब पास ही दिखे.
‘‘क्या बात है डार्लिंग, थकेथके से लग रहे हो? अभी तो पार्टी पूरे शबाब पर भी नहीं आई है,’’ मेम साहब ने शिंदे साहब से पूछा.
शिंदे साहब मन ही मन बोले, ‘तुम तो हो अभी से पूरे शबाब पर,’ फिर रमेश की ओर देख कर रूखी आवाज में बोले, ‘‘गोमा या किसी और को समझा कर आप भी हाल में तशरीफ ले आइए.’’
उन की रूखी आवाज से रमेश को भला क्या फर्क पड़ता. छड़ा, कुंआरा बस मौजमस्ती चल रही है. ज्यादा से ज्यादा उस का तबादला हो जाएगा. वह तो वैसे भी कभी न कभी होना ही है.
‘‘तुम कब से गायब हो, क्या ऐसे अच्छा लगता है कि ‘होस्टेस’ अपने ‘गैस्ट्स’ का खयाल न रखे,’’ अपनी बीवी से कहते हुए शिंदे साहब की दबी आवाज में भी गुस्सा नजर आ रहा था.
‘‘गैस्ट्स के लिए तो सारा तामझाम कर रही हूं डार्लिंग, परेशान मत होइए. तुम्हारे बौस इतने खुश हो जाएंगे कि तुम भी क्या याद करोगे,’’ मेम साहब बोलीं.
उधर बौस के आदेश से थ्रिलिंग गेम ‘वाइफ स्वैपिंग’ की तैयारी में एक खूबसूरत डब्बों में सब की कारों की चाबियां डाल दी गई थीं.
गोमा साहबों और मेम साहबों के तरहतरह के चोंचले, सनकीपन और मूड से उसी तरह वाकिफ था, जिस तरह अपनी हथेली की लकीरों से. उसे किसी भी साहब या मेम साहब के लिए कोई दिली आदर न था और न ही उन से किसी तरह का डर लगता था. उस के कुछ उसूल थे, जिन का पालन वह पूरी ईमानदारी से करता था.
गोमा ने मन ही मन सोचा कि अगर उस की बीवी दूसरे आदमी के साथ इस तरह जाए, तो वह दोबारा उस का मुंह भी नहीं देखे. अगर उस का खुद का रिश्ता दूसरी औरत से हो जाए, तो उस की घरवाली भी उसे यों ही नहीं छोड़ देगी. गोमा के इसी स्वाभिमान ने तो उस के मुंह से वह कहलवाया, जो शिंदे साहब को बरदाश्त नहीं हुआ.
महीने का पहला हफ्ता था और हमेशा की तरह गोमा 3 दिन गायब रह कर चौथे दिन आया था. इस बीच रमेश को ले कर साहब और मेम साहब में तीखी नोकझोंक हुई. जब गोमा सामने आया, तो दोनों का बचाखुचा गुस्सा उसी पर उतरा, वह भी ऐसा उतरा कि बिलकुल बेलगाम.
मेम साहब की जबान फिसलती गई, ‘‘फिर जा कर गिरा नाले में, तू नाले का कीड़ा ही बना रहेगा. किसी दिन यह शराब तुझे और तेरे घर को बरबाद कर देगी.
‘‘देखना, तेरी बीवी एक दिन तुझे छोड़ कर किसी और के साथ घर बसा लेगी. तुम्हारी जात में तो वैसे भी एक को छोड़ कर दूसरे के साथ बैठ जाना बुरा नहीं माना जाता.’’
इतना सुन कर गोमा मेम साहब के ठीक सामने आ गया और बोला, ‘‘हमारी जात? हमारी जात को कितना जानती हैं आप? आप लोगों की ऊंची जात में होती होगी चीजों की तरह लुगाइयों की अदलाबदली. हम लोगों के घर बसाने में एक तमीज होती है. कोठे की बाई की तरह नहीं कि आज इस के साथ, कल उस के साथ और परसों तीसरे के साथ.’’
मेम साहब को तो जैसे सांप सूंघ गया. इसी बात का फायदा उठा कर गोमा फिर शुरू हो गया. लगा जैसे आज उस के मन में जो फोड़ा था, वह पक कर फूट गया और सारा मवाद निकल रहा हो, ‘‘मैं तो महीने में 1-2 दिन ही पीता हूं. केवल इसलिए कि 2-3 दिन तक पैसे की तंगी, घर की चिंता से इतना दूर चला जाऊं कि अपनेआप को मैं खुशकिस्मत समझ सकूं.
‘‘पर, आप बड़े लोग तो रोज महंगी अंगरेजी शराब बहाते हैं अपनी खुशी, अपना फालतू पैसा दिखाने को. मैं तो शराब पी कर भी आप जैसे बड़े लोगों जैसी छोटी हरकत कभी नहीं करता…’’
तब से शिंदे साहब गोमा को पीटे जा रहे हैं, मानो बीवी का सारा गुस्सा उस पर उतार देंगे. उधर गोमा इतनी मार खा कर भी मन ही मन जीत की खुशी महसूस कर रहा था.
लेखक- मंगला रामचंद्रन