आजकल एकल परिवारों का चलन तेजी से बढ़ रहा है. संयुक्त परिवार कहीं गुम होते जा रहे हैं. पहले की तरह वैसे भी परिवार बड़े नहीं होते. बच्चे 1 या 2 होते हैं जो जौब या शादी के बाद दूसरे शहर में सैटल हो जाते हैं. अगर नौकरी उसी शहर में मिल जाए या लड़का बिजनैस कर रहा है तो पेरैंट्स उम्मीद करते हैं कि बेटेबहू उन के साथ रहें. मगर इस में किसी का फायदा नहीं है क्योंकि अकसर बहू के आने के बाद घर में सासबहू की खटपट और कलह शुरू हो जाती है. ऐसे में अगर कुछ अप्रत्याशित घट जाए तो नतीजा पूरे परिवार को भोगना पड़ता है.

ज्यादातर घरों में देखा गया है कि जब बहूबेटे पेरैंट्स के साथ रहते हैं तो कहीं न कहीं पेरैंट्स बच्चों को ज्ञान देने से नहीं चूकते. बहू को कैसे काम करना चाहिए, कैसे पति का खयाल रखना चाहिए, कैसे घर मैनेज करना चाहिए या फिर कैसे बच्चे को संभालना चाहिए इन सब की सीख सासससुर लगातार देते नजर आते हैं.

कई बार जब पतिपत्नी के बीच छोटेमोटे झगड़े हो जाते हैं तो पेरैंट्स उन्हें सुलझाने के बजाय उलझाने में सहयोग देते हैं. बहू की मां दामाद की गलतियां दिखाती है तो लड़के की मां बहू की खामियां बेटे को बताती है कि बहू देर से घर लौटती है, पूरा दिन फोन में लगी रहती है, घर गंदा रखती है, दूसरे मर्दों से हंसहंस कर बातें करती है वगैरहवगैरह.

नतीजा, बहूबेटे के बीच दूरियां बढ़ने लगती हैं और सासससुर इस में भी दोष बहू को देते हैं. इस से बहू के मन में भी इनलौज के लिए नफरत पैदा होने लगती है और जब पानी सिर से ऊपर चला जाता है या कुछ गलत घट जाता है तो बहू या उस के घर वाले लड़के के मातापिता, भाईबहन आदि पूरे परिवार को शिकंजे में कस देते हैं. पूरे परिवार पर बहू को सताने या घरेलू हिंसा आदि के आरोप लगा दिए जाते हैं. कई दफा बहू खुद ही ससुराल वालों के खिलाफ ?ाठी एफआईआर दर्ज कराती है. इस तरह सारा परिवार बलि चढ़ जाता है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...