romantic story in hindi
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रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस एक जटिल बीमारी है, जिस में जोड़ों में सूजन और जलन की समस्या हो जाती है. यह सूजन और जलन इतनी ज्यादा हो सकती है कि इस से हाथों और शरीर के अन्य अंगों के काम और बाह्य आकृति भी प्रभावित हो सकती है. रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस पैरों को भी प्रभावित कर सकती है और यह पंजों के जोड़ों को विकृत कर सकती है.
इस बीमारी के लक्षण का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है. रह्यूमेटाइड आर्थराइटिस में सूजन, जोड़ों में तेज दर्द जैसे लक्षण होते हैं. पुरुषों की तुलना में यह बीमारी महिलाओं को अधिक देखने को मिलती है. वैसे तो यह समस्या बढ़ती उम्र के साथसाथ होती है, लेकिन अनियमित दिनचर्या और गलत खानपान के कारण कम उम्र की महिलाओं में भी यह बीमारी देखने को मिल रही है.
वास्तव में रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस से पीडि़त 90% लोगों के पैरों और टखनों में रोग के लक्षण सब से पहले दिखाई देने लगते हैं. इस स्थिति का आसानी से उपचार किया जा सकता है, क्योंकि मैडिकल साइंस ने अब काफी प्रगति कर ली है और विकलांगता से आसानी से बचा जा सकता है.
रह्यूमेटाइड आर्थराइटिस से ज्यादातर हाथों, कलाइयों, पैरों, टखनों, घुटनों, कंधों और कुहनियों के जोड़ प्रभावित होते हैं. इस रोग में शरीर के दोनों तरफ के एकजैसे हिस्सों में सूजन व जलन हो सकती है. रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस के लक्षण समय के साथ अचानक या फिर धीरेधीरे नजर आ सकते हैं. पैरों और हाथों में विकृति आना रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस का सब से सामान्य लक्षण है.
महिलाओं को यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है, पर बढ़ती उम्र के साथसाथ इस के होने की संभावना अधिक हो जाती है. रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस होने की सब से ज्यादा संभावना 40 साल की उम्र के बाद होती है. जो महिलाएं मां नहीं बनतीं उन में इस बीमारी का खतरा अधिक हो जाता है.
धूम्रपान करने वाली महिलाओं के बच्चों में भी रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस का खतरा अधिक होता है. आजकल मोटापा होना आम समस्या है, जो रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस का कारण बनता है. हालांकि इस बीमारी में आप का वजन कम होने लगता है. रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस एक जेनेटिक समस्या भी है. ऐसे में अगर आप के परिवार के किसी सदस्य को यह बीमारी हुई है, तो उस से यह बीमारी आप को भी हो सकती है.
पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस होने का खतरा 3 गुना तक अधिक होता है. उन में यह बीमारी प्रसव के बाद या मेनोपौज के बाद हारमोन में बदलाव होने के कारण देखी जा सकती है. इस के अलावा गलत खानपान और गलत लाइफस्टाइल के कारण भी महिलाओं को इस बीमारी का खतरा अधिक होता है.
रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस के गंभीर मामलों में शल्यक्रिया आखिर विकल्प बचता है विशेषकर तब जब दवाइयां, फिजियोथेरैपी आदि उपचार विफल साबित हो जाएं. शल्यक्रिया से रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस का उपचार नहीं होता, लेकिन इस रोग के पैदा होने वाली विकृतियों को दूर किया जा सकता है.
कुछ गंभीर मामलों में शल्यक्रिया के बाद भी रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस परेशान कर सकता है. इसलिए इस के लगातार उपचार की जरूरत पड़ सकती है. प्रभावित जोड़ों को मिलाया जाना रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस के उपचार के लिए सब से सामान्य शल्यक्रिया है.
इस शल्यक्रिया में एक जोड़ को हटा दिया जाता है और हड्डियों के 2 किनारों को मिला दिया जाता है. इस से बिना जोड़ वाली एक बड़ी हड्डी तैयार हो जाती है. यह क्रिया रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस के गंभीर रोगियों में की जाती है.
हड्डियों को जोड़ने के बाद हटाए गए जोड़ में कोई मूवमैंट नहीं रह जाता और मरीज सामान्य जीवन जी सकता है.
उपचार के दौरान शरीर इन जोड़ों की हड्डियों के बीच में नई हड्डियां पैदा कर लेता है. टखने के रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस के उपचार के लिए ऐंकल फ्यूजन और टखने को बदलने के 2 प्राथमिक सर्जिकल विकल्प उपलब्ध हैं. उपचार के दोनों ही विकल्पों से टखने के दर्द और परेशानी को कम किया जा सकता है. इन में से किस तरह की शल्यक्रिया उपयुक्त रहेगी यह हर मरीज की स्थिति तथा कई अन्य फैक्टर्स पर निर्भर करता है.
तपती गर्मी में कुल्फ़ी आइसक्रीम जैसी ठंडी ठंडी खाद्य वस्तुएं ही ठंडक देतीं हैं. इसीलिए इन दिनों हर जगह कुल्फ़ी, आइसक्रीम और बर्फ के गोले के ठेले नजर आते हैं. कुल्फ़ी को दूध के द्वारा इसके मोल्ड्स में जमाया जाता है आइसक्रीम की अपेक्षा दूध से बनी कुल्फ़ी आमतौर पर बच्चों और बड़े सभी को बेहद पसन्द होती है. आजकल बाजार में भांति भांति की कुल्फ़ी मौजूद है परन्तु बाजार की अपेक्षा घर पर कुल्फ़ी बनाना सस्ता तो पड़ता ही है साथ ही बहुत हाइजीनिक भी रहता है जिससे आप आराम से कितनी भी कुल्फ़ी खाने का लुत्फ उठा सकते हैं.
आज हम आपको ऐसी ही कुल्फ़ी बनाना बता रहे हैं जिनमे आपको कुल्फ़ी के साथ साथ फलों का भी भरपूर स्वाद मिलेगा तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है. किसी भी कुल्फ़ी को जमाने के लिए सर्वप्रथम एक बेसिक कुल्फ़ी तैयार करनी होती है फिर उससे फ्लेवर्ड कुल्फ़ी जमाई जा सकती है इसे जमाने के लिए हमें चाहिए-
बेसिक कुल्फ़ी
कितने लोगों के लिए – 8-10
बनने में लगने वाला समय – 30 मिनट
मील टाइप – वेज
सामग्री
दूध में शकर और केसर के धागे डालकर गैस पर लगभग आधा होने तक मध्यम आंच पर उबालें. गैस बंद करके ठंडा होने पर मिल्क पाउडर डालकर मिक्सी में चला लें इससे दूध का टेक्सचर एकदम स्मूथ हो जाएगा.
स्लाइस्ड कुल्फ़ी जमाने के लिए एक खरबूजा और एक आम ले लें.
एक खरबूजे को बीच से काटकर बीज को अच्छी तरह स्कूपर से निकाल दें. अब इसमें तैयार कुल्फ़ी ऊपर तक भर दें. ऊपर से बारीक कटी मेवा डालें और सिल्वर फॉयल से अच्छी तरह कवर करके फ्रीजर में 6-7 घण्टे जमने के लिए रखें. सर्व करने से पहले एक तेज धारवाले चाकू से खरबूजे को छीलें फिर स्लाइस में काटकर सर्व करें. आप चाहें तो सर्व करते समय इसके ऊपर रूह आफजा शर्बत भी डाल सकते हैं.
किसी भी अच्छी क्वालिटी के आम को धीरे धीरे दोनों हाथों से दबाएं ताकि आम की गुठली ऊपरी सतह से अलग हो जाये. अब ऊपर से थोड़ा सा आम काट दें और चाकू की सहायता सावधानी पूर्वक गुठली को स्कूप कर लें. अब इस गुठली रहित आम को एक ऐसे ग्लास में रखें जिसमें यह आसानी से सेट हो जाये. अब इसमें भी तैयार कुल्फ़ी डालकर बारीक कटी मेवा डालें और सिल्वर फॉयल से कवर करके 6-7 घण्टे जमने के लिए फ्रिज में रखें. जमने पर पहले आम को तेज धार वाले चाकू से छीलें फिर स्लाइस में काटकर सर्व करें.
लौटते हुए मिहिम बोला, ‘‘काफी रात हो गई है आलोक भैया. मैं ताप्ती को छोड़ दूंगा… आप को भी देर हो रही होगी.’’
आलोक का मन था वे फिर से ताप्ती के घर जाएं पर प्रत्यक्ष में कुछ न बोल सके.
रास्ते में मिहिम ताप्ती से बोला, ‘‘ताप्ती, अपनी मम्मी की गलती मत दोहराओ. यह तुम्हारा रास्ता नहीं है. गलत आदमी से प्यार करने का नतीजा आंटी के साथसाथ तुम ने भी भोगा है.’’
ताप्ती बोली, ‘‘तुम क्या कह रहे हो, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’
मिहिम समझाते हुए बोला, ‘‘तुम्हें तुम से ज्यादा जानता हूं और दिल के हाथों मजबूर होना मुझ से अधिक कौन जानेगा.’’
‘‘आलोक भैया एक बेहद सुलझे हुए इंसान हैं पर अपने ससुर के बहुत एहसान हैं उन पर या यों कहूं उन का यह मुकाम उन के ससुर की वजह से है तो गलत न होगा. अपनी उलझनों को मत बढ़ाओ, लौट आओ.’’
ताप्ती के दिल का चोर जानता था यह सच है. वह न जाने क्यों आलोक की तरफ झुकी जा रही है. उन का रुतबा या उन का व्यक्तित्व क्या उसे खींच रहा है, उसे नहीं मालूम. पर गुस्से में उस ने मिहिम को अंदर भी नहीं बुलाया और धड़ाक से कार का दरवाजा बंद कर के चली गई.
रातभर वह मिहिम की बात पर विचार करती रही और फिर निर्णय ले लिया कि वह कोई भी बहाना बना कर ट्यूशन से मना कर देगी.
जब वह सोमवार को ट्यूशन लेने पहुंची तो देखा अनीताजी भी वहीं हैं. उसे देख कर मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘ताप्ती, तुम ने आरवी की शौपिंग में मदद करी, थैंकयू सो मच.’’
‘‘आज उस की क्लास नहीं होगी, आज हम मांबेटी और कुछ सामान लेने जा रही हैं पर कल तुम जरूर आना. अपनी बर्थडे पार्टी में तुम्हारे बिना यह केक भी नहीं काटेगी.’’
घर पहुंची ही थी कि कूरियर आया था. पैकेट खोल कर देखा तो वही शिफौन की साड़ी थी और साथ एक नोट भी था, जिस पर लिखा था कि कल की पार्टी में यही पहनना, मुझे बहुत खुशी होगी.
ताप्ती पैकेट हाथ में लिए बैठी रही. न जाने क्यों उसे गुस्से के बजाय असीम आनंद आ रहा था.
अगले दिन बैंक से आने के बाद वह पार्टी के लिए तैयार हो रही थी कि तभी दरवाजे की बैल बजी. देखा मिहिम खड़ा था.
मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैडम, अभी भी नाराज हो क्या? मुझे पता था कि तुम आरवी के जन्मदिन की पार्टी के लिए तैयार हो रही होगी, इसलिए सोचा तुम्हें लेता चलूं.’’
पता नहीं क्यों मिहिम के सामने उस की हिम्मत नहीं पड़ी वह साड़ी पहनने की. मन मार कर उस ने अपनी मां की आसमानी मुक्कैश जड़ी साड़ी पहनी और साथ में गोल्डन झुमके पहन लिए, जो उस के चेहरे पर खूब खिल रहे थे.
मिहिम उसे देख कर बोला, ‘‘वाह, एकदम फुलझड़ी लग रही हो, पर मैडम अभी दीवाली 2 माह दूर है.’’
जब वे पार्टी में पहुंचे तो आलोक ने दूर से ही देख लिया कि ताप्ती ने उन की साड़ी
नहीं पहनी है और ऊपर से उसे मिहिम के साथ देख कर उन का मूड और उखड़ गया. आरवी ताप्ती का हाथ पकड़ कर उसे केक की टेबल के पास ले आई. ताप्ती ने आलोक और अनीता दोनों का अभिवादन किया.
केक काटने के बाद ताप्ती जब वाशरूम की तरफ जा रही थी तो आलोक रास्ते में मिल गए. इधरउधर देख कर बोले, ‘‘मेरा उपहार पसंद नहीं आया क्या? मेरा कितना मन था तुम्हें उस साड़ी में देखने का.’’
तभी न जाने कहां से अनीता आ गईं और पति को देख कर बोलीं, ‘‘तुम यहां खड़े हो, वहां सारे मेहमान तुम्हारी राह देख रहे हैं.’’
अनीता को न जाने क्यों यह आभास हो गया था कि उन के पति का इस लड़की से कोई संबंध है. मन ही मन उन्हें अपने गोरे रंग और खूबसूरती पर बहुत अहंकार था पर इस लड़की के सामने न जाने क्यों वे हीनभावना से ग्रस्त हो जाती थीं.
लौटते समय ताप्ती और मिहिम अनीताजी से विदा लेने आए तो ताप्ती ने सही मौका देख कर कहा, ‘‘मैम, मैं अब यह ट्यूशन नहीं पढ़ा पाऊंगी, मुझे एक परीक्षा की तैयारी करनी है… मेरी मां की इच्छा थी कि मैं राज्य प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में बैठूं.’’
अनीता के दिल पर से जैसे बहुत बड़ा बोझ हट गया हो. अत: मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘अवश्य तुम कर लोगी… मेरे लायक कोई काम हो तो जरूर बताना.’’
रास्ते में मिहिम बोला, ‘‘सही निर्णय सही समय पर, प्राउड औफ यू.’’
न जाने क्यों रोज ताप्ती आरवी की प्रतीक्षा करती. उसे लगता कि वह जरूर आएगी और उस पर गुस्सा करेगी या यों कहें वह आलोक का इंतजार कर रही थी.
1 हफ्ता बीत गया और ताप्ती ने अपने मन को मजबूत कर लिया था. वह खुश भी थी कि वह बाहर निकल आई और फिर से उस ने अपने एकांतवास से दोस्ती कर ली.
उस दिन शनिवार की शाम थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. ताप्ती ने सोचा मिहिम होगा पर देखा, आलोक खड़े थे. बिना कुछ बोले उन्होंने ताप्ती को एक फूल की तरह अपनी गोद में उठा लिया और फिर उसे सोफे पर बैठा कर बोले, ‘‘मेरा क्या कुसूर है… तुम ने मुझे क्यों अपनी जिंदगी से बाहर कर दिया? पता है आरवी का बुरा हाल है… वह किसी भी ट्यूटर से पढ़ने को तैयार नहीं है.’’
ताप्ती चुप रही.
आलोक आगे बोले, ‘‘ताप्ती, मैं क्या करूं. अगर मेरा मन तुम्हारी तरफ झुका जा रहा है… झूठ नहीं बोलूंगा तुम मेरी जिंदगी की पहली औरत हो, जिस ने मेरे दिल के तार छुए हैं… अनीता मेरी पत्नी हैं पर पत्नी से ज्यादा वे मुझे एक सख्त मिजाज प्रिंसिपल लगती हैं. हमारे विवाह की नींव ही एहसान और नियमकायदों पर टिकी हुई है. उस में कहीं भी रोमांचित करने वाले पल नहीं हैं.
‘‘अगर कोशिश भी करूं तो मेरी पत्नी मेरे गंवारपन का उपहास उड़ाती है, उस ने आलोक से नहीं, एक पुलिस अधिकारी से शादी करी है.’’
उस रात आलोक ने अपने जीवन की पूरी कहानी सुनाई. वे एक गरीब परिवार से थे. जब वे दिल्ली आए थे, तब उन की मुलाकात अनीता से हुई. अनीता उन की वाक्पटुता की कायल थीं. आलोक एक बहुत अच्छे डिबेटर थे और उन की इसी बात पर अनीता फिदा हो गई थीं.
वे आलोक के जीवन की पहली महिला थीं. अनीता का हाथ पकड़ कर उन्होंने सभ्य और उच्चवर्गीय समाज में उठनेबैठने के सलीकों को सीखा था. अनीता के पिता ने देखते ही इस हीरे को पहचान लिया था. उन्हें अपनी राजकुमारी के बारे में अच्छी तरह से पता था कि उसे आलोक जैसा ही कोई शांत और प्रखर बुद्धि का जीवनसाथी चाहिए. ऊपर से आलोक का भव्य व्यक्तित्व सोने में सुहागा था. अनीता के पिता में आलोक को अपने ही पिता की भूलीबिसरी छवि याद आती थी, इसलिए वे उन की कोई भी बात कभी नहीं टालते थे.
अकसर युवाओं के चेहरों पर धूलमिट्टी, स्ट्रैस और हारमोनल बदलाव के कारण पिंपल्स हो जाते हैं जोकि त्वचा के रोमछिद्र बंद हो जाने के कारण होते हैं. मुंहासे या फुंसियां त्वचा की परतों के अंदर गहराई तक घुस जाती हैं. इन के फट जाने के बाद कोलोजन उत्पादन ट्रिगर होता है, जिस के कारण मुंहासे त्वचा पर निशान छोड़ देते हैं, जिन्हें ऐक्ने स्कार भी कहा जाता है.
ब्रेकआउट के बाद चेहरे पर पड़ने वाले स्कार से निबटना भी एक बड़ी समस्या बन जाती है. गहरे काले रंग के दाग की तरह दिखने वाले ऐक्ने स्कार लड़कियों को अकसर परेशान करते हैं.
ये निशान कई महीनों तक बने रह सकते हैं. सामान्यतया कई प्रकार के मुंहासों के निशान अपनेआप दूर नहीं होते. ऐसे में हमें कई तरह के कौस्मैटिक प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना पड़ता है. ऐक्ने स्कार्स को मिटाने के लिए निम्न स्कार रिमूवर्स का इस्तेमाल किया जा सकता है:
ग्लाइकोलिक ऐसिड एक प्रकार का अल्फा हाइड्रौक्सी ऐसिड (एएचए) है जोकि खाद्यपदार्थों में भी पाया जाता है. ग्लाइकोलिक ऐसिड त्वचा की मृत कोशिकाओं की ऊपरी परत को हटाने का काम करता है.
ग्लाइकोलिक ऐसिड का इस्तेमाल मुंहासे, चेहरे पर काले धब्बे और मुंहासों के निशान मिटाने के लिए किया जाता है. इस का इस्तेमाल कई दैनिक फेस क्लींजर, सीरम या स्पौट ट्रीटमैंट क्रीम में भी शामिल किया जाता है. अधिकतर पील औफ मास्क में भी ग्लाइकोलिक एसिड उपलब्ध होता है. स्कार्स दूर करने के लिए आप इस का इस्तेमाल कर सकती हैं. यह कुछ हद तक आप को राहत दे सकता है.
सैलिसिलिक ऐसिड एक शक्तिशाली ऐक्सफौलिएंट है जो मुंहासों के निशानों को हटाने में मदद करता है. इस का इस्तेमाल मृत कोशिकाओं के बीच के बौंड को तोड़ता है और उन्हें त्वचा से हटाता है, जिस से नई कोशिकाएं ऐक्सपोज होती हैं. ऐक्सफौलिएशन स्किन पोर्स को बंद होने से रोके रखता है जिस से मुंहासे होते हैं. इस का इस्तेमाल औयली स्किन पर विशेष रूप से फायदेमंद है.
मुंहासों के निशानों के इलाज के लिए सैलिसिलिक ऐसिड सब से अच्छे पीलिंग वाले एजेंटों में से एक है. यह सूजन और लालिमा को कम कर के और बंद त्वचा छिद्रों को खोल कर मुंहासों को कम करने का काम भी करता है. इस के इस्तेमाल से डल कोशिकाएं नर्म और ढीली हो कर गिर जाती हैं जिस से दाग हलके हो जाते हैं.
लैक्टिक ऐसिड एक अल्फा हाइड्रौक्सी ऐसिड है जिस के इस्तेमाल से कठोर कोशिकाएं सैपरेट हो जाती हैं जो पपड़ी का कारण बनता है.
ऐसा एएचए के संपर्क में आने और मृत कोशिकाओं की सब से बाहरी परत के खिसकने के कारण होता है. इस प्रकार त्वचा की बनावट में सुधार होता है और सतह साफ हो जाती है. यह स्किन पर ऐक्सफौलिएटर की तरह काम करता है.
यह डैड स्किन को हटा कर स्किन से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा दिलाता है. बेदाग और कोमल त्वचा के लिए आप इस स्किन केयर ऐसिड को आजमा सकती हैं. यह चेहरे के दागधब्बे दूर करने में भी कारगर साबित होता है.
स्किन ऐक्सपर्ट विटामिन सी के इस्तेमाल की भी सलाह देते हैं. ऐसा भी देखा गया है कि एसपीएफ का इस्तेमाल पुराने ऐक्ने स्कार्स को हलका करने में भी मदद करता है.
ये सभी तत्त्व सैल टर्नओवर को बढ़ावा देते हैं जिस से आप की त्वचा सनबर्न के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है. इन का उपयोग करते समय हमेशा सनस्क्रीन एसपीएफ 30 का इस्तेमाल करें और स्किन ेलर्जीज का भी ध्यान रखें.
खुद को तरो-ताजा और खुश रखना चाहते हैं तो महीने में कम-से-कम एक बार किसी ट्रीप पर ज़रूर जाएं और जिंदगी से खुद को आराम दे. बहुत सारी ऐसे जगह हैं जो फन और ऐचवेंचर से भरपुर हैं जैसे ट्रैकिंग, रिवर राफ्टिंग. जहां आप एक से दो दिन के अंदर जाकर वापस आ सकते हैं.
आगरा, शाहजहां के बनवाए खूबसूरत इमारत ताज महल के लिए प्रसिद्ध हैं. यह शहर यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है. प्रेम के प्रतीक इस स्मारक का दीदार करने एक साल में करीब 20 से 40 लाख तक देशी-विदेश पर्यटक आते हैं.
राजस्थान का यह शहर उदयपुर जो झील के किनारें बसा हुआ है. चारों ओर पहाड़ों से घिरा हुआ यह शहर टूरिस्ट का मन मोह लेता है. खूबसूरती के कारण उदयुपर को वेनिस ऑफ ईस्ट भी कहा है. यहां का मुख्य आकर्षण रणकपुर के जैन मंदिर, सिटी पेलेस, पिछोला झील, जयसमंद झील आदि.
देहरादून की प्राकृतिक सुंदरता और पहाडिय़ों से घिरा शहर अपनी विरासत और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है. यहां के लोग गहरी आस्थाओं से जुड़े हुए हैं. पशु-पक्षी प्रेमियों के लिए भी आकर्षक है जो दूर से ही टूरिस्ट को लुभाता है. यहां राफ्टिंग, ट्रेकिंग आदि का भरपूर आनंद उठा सकते हैं. इसके आलावा अगर आप खेलों के शौक़ीन हैं तो यहां आपके लिए बेहद रोमांचक खेल भी उपलब्ध हैं.
राजस्थान का गुलाबी शहर जयपुर जो अपने विशाल किलों और महलों के लिए प्रसिद्ध है. जयपुर में होने वाले त्यौहारों में आधुनिक जयपुर साहित्य स मेलन से लेकर पारंपरिक तीज और काइट फेस्टीवल भी हैं. गर्मियों में जयपुर का मौसम बहुत गर्म रहता है और तापमान लगभग तक 45 डिग्री हो जाता है. यहां घूमने आने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का होता जब तापमान लगभग 8.3 डिग्री तक गिर जाता है.
कुदरत का अनमोल खजाना मसूरी जिसे पहाड़ों की रानी के नाम से भी जाना जाता हैं. उत्तराखंड राज्य में स्थित मसूरी देहरादून से 35 किमी की दूरी पर स्थित हैं, जहां लोग बार-बार आना पंसद करते हैं. मसूरी अपने खूबसूरती के लिए काफी प्रसिद्ध हैं. यहां के कुछ फेमस जगह जैसे- मसूरी झील, संतरा देवी मंदिर, गन हिल, केम्पटी फॉल, लेक मिस्ट ट्रीप को यादगार बनाते हैं.
नैनीताल, उत्तराखंड का एक बहुत ही फेमस टूरिस्ट प्लेस है. नैनी शब्द का अर्थ है आंखें और ताल का अर्थ है झील. नैनीताल को झीलों के शहर के नाम से भी जाना जाता है.बर्फ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्थान झीलों से घिरा हुआ है. अगर आपको मन की शांति चाहिए तो नैनीताल की हसीन वादियों में रोमांचक समय बिता सकते हैं. यहां रिवर राफ्टिंग, ट्रेकिंग, रोपवे और बोटिंग का भरपूर मज़ा उठा सकते हैं.
जीवन एक बाजार है जिस में हर दूसरा जना एक कस्टमर है. आप के रिश्तेदार, दोस्त, बच्चे तक आप के तब तक हैं जब तक आप उन्हें वह दे रहे हैं जो वे चाहते हैं और आप तब तक ही देते हैं जब तक वे उस की कीमत चुकाते हैं. इस जीवन के बाजार में हर चीज पर एमआरपी रुपयों में नहीं लिखी होती. यहां बार्टर सिस्टम चलता है. तुम मेरे लिए करते रहो, मैं तुम्हारे लिए करता रहूं.
बहुत से दुख इसलिए होते हैं कि जीवन के संबंधों में एक जना बारगेन कर के या नाजायज कीमत मांग कर अपना फायदा बढ़ाना चाहता है. यहीं से टकराव शुरू होता है चाहे मांबेटे का रिश्ता ही क्यों नहीं हो. छोटा 5 साल का बेटा मां को ‘आई लव यूं’ कह कर चिपक कर एक सुख देता है और उस के बदले वह मां का प्यार, दुलार, सुरक्षा और जीने की आवश्यक चीजें पाता है.
यह सोचना कि जीवन का व्यापार एकतरफा हो सकता है, सब से बड़ी कठिनाइयां पैदा करता है. इस में शक नहीं कि बाजार में धोखा देने वाले भी सैकड़ों होते हैं जो सुंदर पैकिंग में खाली डब्बा पकड़ा देते हैं. सैकड़ों इस तरह की खरीद के शिकार होते हैं, हर रोज रोतेकलपते नजर आते हैं.
सदियों से धर्म और राजाओं ने बिना कुछ बदले में दिए पैसा, अनाज, जमीन वसूलने का तरीका अपनाया. उन्होंने कहा कि वे लुटेरों से रक्षा करेंगे, आपस में विवादों में न्याय करेंगे, वे जीवन जीने के नियम बनाएंगे, घरों को सही चलाने में सहायता करेंगे, गांवोंशहरों का प्रबंध करेंगे. पर बदले में उन्होंने दूसरों पर फालतू में उस चीज के पैसे मांगने शुरू कर दिए जो दी नहीं गई, दूसरों पर आक्रमण कर के जान मांगनी शुरू कर दी.
जंगली जानवरों, प्रकृति, बीमारियों, बाहरी लुटेरों ने समय से पहले उतनी जानें नहीं ली होंगी जितनी धर्म और राजाओं ने बिना उतना दिए जितना लिया कह कर ली हैं. धर्म ने राजाओं से ज्यादा लिया है, दिया नहीं. धर्मों के दुकानदारों ने घरों में घुस कर स्त्रीपुरुष के बैड पर क्या होगा इस की दलाली कीमतें तय करनी शुरू कर दीं.
घर के बाजार में धर्म और सरकार का कानून एक छिपी जीएसटी के अनेक रूप में छा गया. कब प्रेम किया जाए, कैसे किया जाए, किस से किया जाए, बच्चों को कैसे पाला जाए, भाइयों, बहनों से संबंध कैसे हों, दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ कैसे निभाएं, किन के साथ उठेंबैठें, सब पर नियम लागू कर दिए और प्यार के लेनदेन से आधाअधूरा ही हाथ में बचने लगा.
आम जना अपनी पत्नी, रिश्तेदारों, बच्चों, दोस्तों से परेशान रहता है तो इसलिए कि उन से बाजार वाले नियमों के अनुसार आपसी लेनदेन कर के एक सुखद फैसले पर नहीं पहुंचा जा सकता. औरतों को गुलाम बना कर उन की कीमत घटा दी गई. वे प्यार देती हैं, बच्चे देती हैं, घर चलाती हैं पर उन्हें सुरक्षा नहीं बस जीने भर का एहसास मिलता है. वे बराबर की हकदार नहीं हैं.
जीवन को सुखी रखना है तो जो मिल रहा है, उस की वाजिब कीमत दो, चाहे कुछ दे कर के,
बना कर या कुछ प्यार दे कर.
एक बेटी की करुणामयी पुकार
सुनें, ‘‘मैं अपनी मां से परेशान हूं क्योंकि वे चाहती हैं कि मैं अपनी नौकरी छोड़ कर दूसरी बहन की तरह रिसर्च करूं और अरेंज्ड मैरिज करूं. पर मैं दोनों नहीं करना चाहती. न करने पर मां आपा खो बैठती हैं, सिर पटकने लगती हैं. क्या करूं? बेटी से ज्यादा कीमत वसूलने के चक्कर में मां भी लेनदेन का सिद्धांत भूल गईं.
सैकड़ों परिवारों में बेटे
अपनी पत्नी को ले कर मां को छोड़ कर चले जाते हैं क्योंकि मां द्वारा आपसी लेनदेन सही कीमत पर नहीं देने पर प्यार का बैलेंस बिगड़ जाता है.
संबंध सुधार कर रखने हैं तो इस का ध्यान रखें कि जो चाह रहे हो, उस की सही कीमत दो.
दोपहर के 2 बज रहे थे. रसोई का काम निबटा कर मैं लेटी हुई अपने बेटे राहुल के बारे में सोच ही रही थी कि किसी ने दरवाजे की घंटी बजा दी. कौन हो सकता है? शायद डाकिया होगा यह सोचते हुए बाहर आई और दरवाजा खोल कर देखा तो सामने एक 22-23 साल की युवती खड़ी थी.
‘‘आंटी, मुझे पहचाना आप ने, मैं कंचन. आप के बगल वाली,’’ वह बोली.
‘‘अरे, कंचन तुम? यहां कैसे और यह क्या हालत बना रखी है तुम ने?’’ एकसाथ ढेरों प्रश्न मेरे मुंह से निकल पड़े. मैं उसे पकड़ कर प्यार से अंदर ले आई.
कंचन बिना किसी प्रश्न का उत्तर दिए एक अबोध बालक की तरह मेरे पीछेपीछे अंदर आ गई.
‘‘बैठो, बेटा,’’ मेरा इशारा पा कर वह यंत्रवत बैठ गई. मैं ने गौर से देखा तो कंचन के नक्श काफी तीखे थे. रंग गोरा था. बड़ीबड़ी आंखें उस के चेहरे को और भी आकर्षक बना रही थीं. यौवन की दहलीज पर कदम रख चुकी कंचन का शरीर बस, ये समझिए कि हड्डियों का ढांचा भर था.
मैं ने उस से पूछा, ‘‘बेटा, कैसी हो तुम?’’
नजरें झुकाए बेहद धीमी आवाज में कंचन बोली, ‘‘आंटी, मैं ने कितने पत्र आप को लिखे पर आप ने किसी भी पत्र का जवाब नहीं दिया.’’
मैं खामोश एकटक उसे देखते हुए सोचती रही, ‘बेटा, पत्र तो तुम्हारे बराबर आते रहे पर तुम्हारी मां और पापा के डर के कारण जवाब देना उचित नहीं समझा.’
मुझे चुप देख शायद वह मेरा उत्तर समझ गई थी. फिर संकोच भरे शब्दों में बोली, ‘‘आंटी, 2 दिन हो गए, मैं ने कुछ खाया नहीं है. प्लीज, मुझे खाना खिला दो. मैं तंग आ गई हूं अपनी इस जिंदगी से. अब बरदाश्त नहीं होता मां का व्यवहार. रोजरोज की मार और तानों से पीडि़त हो चुकी हूं,’’ यह कह कर कंचन मेरे पैरों पर गिर पड़ी.
मैं ने उसे उठाया और गले से लगाया तो वह फफक पड़ी और मेरा स्पर्श पाते ही उस के धैर्य का बांध टूट गया.
‘‘आंटी, कई बार जी में आया कि आत्महत्या कर लूं. कई बार कहीं भाग जाने को कदम उठे किंतु इस दुनिया की सचाई को जानती हूं. जब मेरे मांबाप ही मुझे नहीं स्वीकार कर पा रहे हैं तो और कौन देगा मुझे अपने आंचल की छांव. बचपन से मां की ममता के लिए तरस रही हूं और आखिर मैं अब उस घर को सदा के लिए छोड़ कर आप के पास आई हूं वह स्पर्श ढूंढ़ने जो एक बच्चे को अपनी मां से मिलता है. प्लीज, आंटी, मना मत करना.’’
उस के मुंह पर हाथ रखते हुए मैं ने कहा, ‘‘ऐसा दोबारा भूल कर भी मत कहना. अब कहीं नहीं जाएगी तू. जब तक मैं हूं, तुझे कुछ भी सोचने की जरूरत नहीं है.’’
उसे मैं ने अपनी छाती से लगा लिया तो एक सुखद एहसास से मेरी आंखें भर आईं. पूरा शरीर रोमांचित हो गया और वह एक बच्ची सी बनी मुझ से चिपकी रही और ऊष्णता पाती रही मेरे बदन से, मेरे स्पर्श से.
मैं रसोई में जब उस के लिए खाना लेने गई तो जी में आ रहा था कि जाने क्याक्या खिला दूं उसे. पूरी थाली को करीने से सजा कर मैं बाहर ले आई तो थाली देख कंचन रो पड़ी. मैं ने उसे चुप कराया और कसम दिलाई कि अब और नहीं रोएगी.
वह धीरेधीरे खाती रही और मैं अतीत में खो गई. बरसों से सहेजी संवेदनाएं प्याज के छिलकों की तरह परत दर परत बाहर निकलने लगीं.
कंचन 2 साल की थी कि काल के क्रूर हाथों ने उस से उस की मां छीन ली. कंचन की मां को लंग्स कैंसर था. बहुत इलाज कराया था कंचन के पापा ने पर वह नहीं बच पाई.
इस सदमे से उबरने में कंचन के पापा को महीनों लग गए. फिर सभी रिश्तेदारों एवं दोस्तों के प्रयासों के बाद उन्होंने दूसरी शादी कर ली. इस शादी के पीछे उन के मन में शायद यह स्वार्थ भी कहीं छिपा था कि कंचन अभी बहुत छोटी है और उस की देखभाल के लिए घर में एक औरत का होना जरूरी है.
शुरुआत के कुछ महीने पलक झपकते बीत गए. इस दौरान सुधा का कंचन के प्रति व्यवहार सामान्य रहा. किंतु ज्यों ही सुधा की कोख में एक नए मेहमान ने दस्तक दी, सौतेली मां का कंचन के प्रति व्यवहार तेजी से असामान्य होने लगा.
सुधा ने जब बेटी को जन्म दिया तो कंचन के पिता को विशेष खुशी नहीं हुई, वह चाह रहे थे कि बेटा हो. पर एक बेटे की उम्मीद में सुधा को 4 बेटियां हो गईं और ज्योंज्यों कंचन की बहनों की संख्या बढ़ती गई त्योंत्यों उस की मुसीबतों का पहाड़ भी बड़ा होता गया.
आएदिन कंचन के शरीर पर उभरे स्याह निशान मां के सौतेलेपन को चीखचीख कर उजागर करते थे. कितनी बेरहम थी सुधा…जब बच्चों के कोमल, नाजुक गालों पर मांबाप के प्यार भरे स्पर्श की जरूरत होती है तब कंचन के मासूम गालों पर उंगलियों के निशान झलकते थे.
सुधा का खुद की पिटाई से जब जी नहीं भरता तो वह उस के पिता से कंचन की शिकायत करती. पहले तो वह इस ओर ध्यान नहीं देते थे पर रोजरोज पत्नी द्वारा कान भरे जाने से तंग आ कर वह भी बड़ी बेरहमी से कंचन को मारते. सच ही तो है, जब मां दूसरी हो तो बाप पहले ही तीसरा हो जाता है.
अब तो उस नन्ही सी जान को मार खाने की आदत सी हो गई थी. मार खाते समय उस के मुंह से उफ तक नहीं निकलती थी. निकलती थीं तो बस, सिसकियां. वह मासूम बच्ची तो खुल कर रो भी नहीं सकती थी क्योंकि वह रोती तो मार और अधिक पड़ती.
खाने को मिलता बहनों का जूठन. कंचन बहनों को जब दूध पीते या फल खाते देखती तो उस का मन ललचा उठता. लेकिन उसे मिलता कभीकभार बहनों द्वारा छोड़ा हुआ दूध और फल. कई बार तो कंचन जब जूठे गिलास धोने को ले जाती तो उसी में थोड़ा सा पानी डाल कर उसे ही पी लेती. गजब का धैर्य और संतोष था उस में.
शुरू में कंचन मेरे घर आ जाया करती थी किंतु अब सुधा ने उसे मेरे यहां आने पर भी प्रतिबंध लगा दिया. कंचन के साथ इतनी निर्दयता देख दिल कराह उठता था कि आखिर इस मासूम बच्ची का क्या दोष.
उस दिन तो सुधा ने हद ही कर दी, जब कंचन का बिस्तर और सामान बगल में बने गैराज में लगा दिया. मेरी छत से उन का गैराज स्पष्ट दिखाई देता था.
जाड़ों का मौसम था. मैं अपनी छत पर कुरसी डाल कर धूप में बैठी स्वेटर बुन रही थी. तभी देखा कंचन एक थाली में भाईबहन द्वारा छोड़ा गया खाना ले कर अपने गैराज की तरफ जा रही थी. मेरी नजर उस पर पड़ी तो वह शरम के मारे दौड़ पड़ी. दौड़ने से उस के पैर में पत्थर द्वारा ठोकर लग गई और खाने की थाली गिर पड़ी. आवाज सुन कर सुधा दौड़ीदौड़ी बाहर आई और आव देखा न ताव चटाचट कंचन के भोले चेहरे पर कई तमाचे जड़ दिए.
‘कुलटा कहीं की, मर क्यों नहीं गई? जब मां मरी थी तो तुझे क्यों नहीं ले गई अपने साथ. छोड़ गई है मेरे खातिर जी का जंजाल. अरे, चलते नहीं बनता क्या? मोटाई चढ़ी है. जहर खा कर मर जा, अब और खाना नहीं है. भूखी मर.’ आवाज के साथसाथ सुधा के हाथ भी तेजी से चल रहे थे.
उस दिन का वह नजारा देख कर तो मैं अवाक् रह गई. काफी सोचविचार के बाद एक दिन मैं ने हिम्मत जुटाई और कंचन को इशारे से बाहर बुला कर पूछा, ‘क्या वह खाना खाएगी?’
पहले तो वह मेरे इशारे को नहीं समझ पाई किंतु शीघ्र ही उस ने इशारे में ही खाने की स्वीकृति दे दी. मैं रसोई में गई और बाकी बचे खाने को पालिथीन में भर एक रस्सी में बांध कर नीचे लटका दिया. कंचन ने बिना किसी औपचारिकता के थैली खोल ली और गैराज में चली गई, वहां बैठ कर खाने लगी.
धीरेधीरे यह एक क्रम सा बन गया कि घर में जो कुछ भी बनता, मैं कंचन के लिए अवश्य रख देती और मौका देख कर उसे दे देती. उसे खिलाने में मुझे एक आत्मसुख सा मिलता था. कुछ ही दिनों में उस से मेरा लगाव बढ़ता गया और एक अजीब बंधन में जकड़ते गए हम दोनों.
मेरे भाई की शादी थी. मैं 10 दिन के लिए मायके चली आई लेकिन कंचन की याद मुझे जबतब परेशान करती. खासकर तब और अधिक उस की याद आती जब मैं खाना खाने बैठती. यद्यपि हमारे बीच कभी कोई बातचीत नहीं होती थी पर इशारों में ही वह सारी बातें कह देती एवं समझ लेती थी.
भाई की शादी से जब वापस घर लौटी तो सीधे छत पर गई. वहां देखा कि ढेर सारे कागज पत्थर में लिपटे हुए पड़े थे. हर कागज पर लिखा था, ‘आंटी आप कहां चली गई हो? कब आओगी? मुझे बहुत तेज भूख लगी है. प्लीज, जल्दी आओ न.’
एक कागज खोला तो उस पर लिखा था, ‘मैं ने कल मां से अच्छा खाना मांगा तो मुझे गरम चिमटे से मारा. मेरा हाथ जल गया है. अब तो उस में घाव हो गया है.’
मैं कागज के टुकड़ों को उठाउठा कर पढ़ रही थी और आंखों से आंसू बह रहे थे. नीचे झांक कर देखा तो कंचन अपनी कुरसीमेज पर दुबकी सी बैठी पढ़ रही थी. दौड़ कर नीचे गई और मायके से लाई कुछ मिठाइयां और पूरियां ले कर ऊपर आ गई और कंचन को इशारा किया. मुझे देख उस की खुशी का ठिकाना न रहा.
मैं ने खाने का सामान रस्सी से नीचे उतार दिया. कंचन ने झट से डब्बा खोला और बैठ कर खाने लगी, तभी उस की छोटी बहन निधि वहां आ गई और कंचन को मिठाइयां खाते देख जोर से चिल्लाने ही वाली थी कि कंचन ने उस के मुंह पर हाथ रख कर चुप कराया और उस से कहा, ‘तू भी मिठाई खा ले.’
निधि ने मिठाई तो खा ली पर अंदर जा कर अपनी मां को इस बारे में बता दिया. सुधा झट से बाहर आई और कंचन के हाथ से डब्बा छीन कर फेंक दिया. बोली, ‘अरे, भूखी मर रही थी क्या? घर पर खाने को नहीं है जो पड़ोस से भीख मांगती है? चल जा, अंदर बरतन पड़े हैं, उन्हें मांजधो ले. बड़ी आई मिठाई खाने वाली,’ कंचन के साथसाथ सुधा मुझे भी भलाबुरा कहते हुए अंदर चली गई.
इस घटना के बाद कंचन मुझे दिखाई नहीं दी. मैं ने सोचा शायद वह कहीं चली गई है. पर एक दिन जब चने की दाल सुखाने छत पर गई तो एक कागज पत्थर में लिपटा पड़ा था. मुझे समझने में देर नहीं लगी कि यह कंचन ने ही फेंका होगा. दाल को नीचे रख कागज खोल कर पढ़ने लगी. उस में लिखा था :
‘प्यारी आंटी,
होश संभाला है तब से मार खाती आ रही हूं. क्या जिन की मां मर जाती हैं उन का इस दुनिया में कोई नहीं होता? मेरी मां ने मुझे जन्म दे कर क्यों छोड़ दिया इस हाल में? पापा तो मेरे अपने हैं फिर वह भी मुझ से क्यों इतनी नफरत करते हैं, क्या उन के दिल में मेरे प्रति प्यार नहीं है?
खैर, छोडि़ए, शायद मेरा नसीब ही ऐसा है. पापा का ट्रांसफर हो गया है. अब हम लोग यहां से कुछ ही दिनों में चले जाएंगे. फिर किस से कहूंगी अपना दर्द. आप की बहुत याद आएगी. काश, आंटी, आप मेरी मां होतीं, कितना प्यार करतीं मुझ को. तबीयत ठीक नहीं है…अब ज्यादा लिख नहीं पा रही हूं.’
समय धीरेधीरे बीतने लगा. अकसर कंचन के बारे में अपने पति शरद से बातें करती तो वह गंभीर हो जाया करते थे. इसी कारण मैं इस बात को कभी आगे नहीं बढ़ा पाई. कंचन को ले कर मैं काफी ऊहापोह में रहती थी किंतु समय के साथसाथ उस की याद धुंधली पड़ने लगी. अचानक कंचन का एक पत्र आया. फिर तो यदाकदा उस के पत्र आते रहे किंतु एक अज्ञात भय से मैं कभी उसे पत्र नहीं लिख पाई और न ही सहानुभूति दर्शा पाई.
अचानक कटोरी गिरने की आवाज से मैं अतीत की यादों से बाहर निकल आई. देखा, कंचन सामने बैठी है. उस के हाथ कंपकंपा रहे थे. शायद इसी वजह से कटोरी गिरी थी.
मैं ने प्यार से कहा, ‘‘कोई बात नहीं, बेटा,’’ फिर उसे अंदर वाले कमरे में ले जा कर अपनी साड़ी पहनने को दी. बसंती रंग की साड़ी उस पर खूब फब रही थी. उस के बाल संवारे तो अच्छी लगने लगी. बिस्तर पर लेटेलेटे हम काफी देर तक इधरउधर की बातें करते रहे. इसी बीच कब उसे नींद आ गई पता नहीं चला.
कंचन तो सो गई पर मेरे मन में एक अंतर्द्वंद्व चलता रहा. एक तरफ तो कंचन को अपनाने का पर दूसरी तरफ इस विचार से सिहर उठती कि इस बात को ले कर शरद की प्रतिक्रिया क्या होगी. शायद उन को अच्छा न लगे कंचन का यहां आना. इसी उधेड़बुन में शाम के 7 बज गए.
दरवाजे की घंटी बजी तो जा कर दरवाजा खोला. शरद आफिस से आ चुके थे. पूरे घर में अंधेरा छाया देख पूछ बैठे, ‘‘क्यों, आज तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’
कंचन को ले कर मैं इस तरह उलझ गई थी कि घर की बत्तियां जलाना भी भूल गई.
घर की बत्तियां जला कर रोशनी की और रसोई में आ कर शरद के लिए चाय बनाने लगी. विचारों का क्रम लगातार जारी था. बारबार यही सोच रही थी कि कंचन के यहां आने की बात शरद को कैसे बताई जाए. क्या शरद कंचन को स्वीकार कर पाएंगे. सोचसोच कर मेरे हाथपैर ढीले पड़ते जा रहे थे.
शरद मेरी इस मनोदशा को शायद भांप रहे थे. तभी बारबार पूछ रहे थे, ‘‘आज तुम इतनी परेशान क्यों दिख रही हो? इतनी व्यग्र एवं परेशान तो तुम्हें पहले कभी नहीं देखा. क्या बात है, मुझे नहीं बताओगी?’’
मैं शायद इसी पल का इंतजार कर रही थी. उचित मौका देख मैं ने बड़े ही सधे शब्दों में कहा, ‘‘कंचन आई है.’’
मेरा इतना कहना था कि शरद गंभीर हो उठे. घर में एक मौन पसर गया. रात का खाना तीनों ने एकसाथ खाया. कंचन को अलग कमरे में सुला कर मैं अपने कमरे में आ गई. शरद दूसरी तरफ करवट लिए लेटे थे. मैं भी एक ओर लेट गई. दोनों बिस्तर पर दो जिंदा लाशों की तरह लेटे रहे. शरद काफी देर तक करवट बदलते रहे. विचारों की आंधी में नींद दोनों को ही नहीं आ रही थी.
बहुत देर बाद शरद की आवाज ने मेरी विचारशृंखला पर विराम लगाया. बोले, ‘‘देखो, मैं कंचन को उस की मां तो नहीं दे सकता हूं पर सासूमां तो दे ही सकता हूं. मैं कंचन को इस तरह नहीं बल्कि अपने घर में बहू बना कर रखूंगा. तब यह दुनिया और समाज कुछ भी न कह पाएगा, अन्यथा एक पराई लड़की को इस घर में पनाह देंगे तो हमारे सामने अनेक सवाल उठेंगे.’’
शरद ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली थी. कभी सोचा ही नहीं था कि वे इस तरह अपना फैसला सुनाएंगे. मैं चिपक गई शरद के विशाल हृदय से और रो पड़ी. मुझे गर्व महसूस हो रहा था कि मैं कितनी खुशनसीब हूं जो इतने विशाल हृदय वाले इनसान की पत्नी हूं.
जैसा मैं सोच रही थी वैसा ही शरद भी सोच रहे थे कि हमारे इस फैसले को क्या राहुल स्वीकार करेगा?
राहुल समझदार और संस्कारवान तो है पर शादी के बारे में अपना फैसला उस पर थोपना कहीं ज्यादती तो नहीं होगी. आखिर डाक्टर बन गया है, कहीं उस के जीवन में अपना कोई हमसफर तो नहीं? उस की क्या पसंद है? कभी पूछा ही नहीं. एक ओर जहां मन में आशंका के बादल घुमड़ रहे थे वहीं दूसरी ओर दृढ़ विश्वास भी था कि वह कभी हम लोगों की बात टालेगा नहीं.
कई बार मन में विचार आया कि फोन पर बेटे से पूछ लूं पर फिर यह सोच कर कि फोन पर बात करना ठीक नहीं होगा, अत: उस के आने का हम इंतजार करने लगे. इधर जैसेजैसे दिन व्यतीत होते गए कंचन की सेहत सुधरने लगी. रंगत पर निखार आने लगा. सूखी त्वचा स्निग्ध और कांतिमयी हो कर सोने सी दमकने लगी. आंखों में नमी आ गई.
मेरे आंचल की छांव पा कर कंचन में एक नई जान सी आ गई. उसे देख कर लगा जैसे ग्रीष्मऋतु की भीषण गरमी के बाद वर्षा की पहली फुहार पड़ने पर पौधे हरेभरे हो उठते हैं. अब वह पहले से कहीं अधिक स्वस्थ एवं ऊर्जावान दिखाई देने लगी थी. उस ने इस बीच कंप्यूटर और कुकिंग कोर्स भी ज्वाइन कर लिए थे.
और वह दिन भी आ गया जब राहुल दिल्ली से वापस आ गया. बेटे के आने की जितनी खुशी थी उतनी ही खुशी उस का फैसला सुनने की भी थी. 1-2 दिन बीतने के बाद मैं ने अनुभव किया कि वह भी कंचन से प्रभावित है तो अपनी बात उस के सामने रख दी. राहुल सहर्ष तैयार हो गया. मेरी तो मनमांगी मुराद पूरी हो गई. मैं तेजी से दोनों के ब्याह की तैयारी में जुट गई और साथ ही कंचन के पिता को भी इस बात की सूचना भेज दी.
कंचन और राहुल की शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हो गई. शादी में न तो सुधा आई और न ही कंचन के पिता. कंचन को बहुत इंतजार रहा कि पापा जरूर आएंगे किंतु उन्होंने न आ कर कंचन की रहीसही उम्मीदें भी तोड़ दीं.
अपने नवजीवन में प्रवेश कर कंचन बहुत खुश थी. एक नया घरौंदा जो मिल गया था और उस घरौंदे में मां के आंचल की ठंडी छांव थी.
उसने बिना भूमिका बांधे अपने मन की बात उस से कह दी और उस से साफसाफ हां या न में जवाब मांगा. नमिता जिस बात से इतने बरसों से बचती आ रही थी वह सामने आ ही गई. वह कुछ क्षणों तक हतप्रभ सी आकाश को देखती रह गई. उस की आंखों में नमी तैरने लगी.
‘‘देखो अगर तुम्हारे जीवन में कोई और है तो कह दो. अगर तुम मु झे पसंद नहीं करती तो भी बता दो लेकिन आज मैं तुम्हारे दिल की बात जानना चाहता हूं. जो भी हो साफ कह दो,’’ आकाश ने नम्रता से कहा.
‘‘म… मैं क्या कहूं. सच तो यह है कि मैं किसी से भी शादी नहीं कर सकती,’’ नमिता के माथे पर पसीना आ गया और आंखों में आंसू. ‘‘जो भी बात हो मन में वह कह डालो नमिता और कुछ नहीं तो हम दोस्त तो हैं, दोस्ती के नाते ही अपना हाल सुना दो,’’ आकाश में दोस्ताना स्वर में कहा.
नमिता कुछ देर असमंजस की स्थिति में बैठी रही मानो अपने भीतर साहस जुटा रही हो, फिर जैसे खुद को संयत कर के इस तरह कहने लगी जैसे वह भी इस स्थिति को साफ कर लेना चाहती हो.
‘‘मैं तुम्हारी भावनाओं को बरसों से सम झ रही हूं आकाश. मु झे पता है तुम सालों से मु झे मन ही मन चाहते हो इसलिए मैं तटस्थ रह कर तुम से एक दूरी बना कर रखती रही,’’ नमिता बोली.
‘‘उस दूरी का ही कारण जानना चाहता हूं मैं आज,’’ आकाश ने कहा.
‘‘बचपन में हम सभी एक खेल खेलते हैं विष अमृत. उस में एक बच्चा दाम देता है और बाकी बच्चे उस से दूर भागते हैं क्योंकि दाम देने वाला जिस पर भी हाथ रख कर विष कह देता वह बच्चा खेल से अलग हो कर एक ओर स्थिर हो कर बैठ जाता है. फिर वह खेल का हिस्सा नहीं रह जाता. विष उसे मार देता है,’’ नमिता आंसू पोंछते हुए एक गहरी सांस लेते हुए कुछ पलों के लिए चुप हो गई.
आकाश दम साधे सुन रहा था. उस ने आंसुओं के साथ नमिता के मन का गुबार निकल जाने दिया.
कुछ देर बाद नमिता ने दोबारा बोलना शुरू किया, ‘‘बस ऐसे ही एक दिन खेलते हुए किसी ने मु झे ऐसा विष दिया कि मैं सुन्न हो गई, जीते जी मर गई. अब मैं जीवन के स्वाभाविक खेल का हिस्सा नहीं रह गई. विष कह कर किसी ने मु झे एक तरफ, सब से कट कर बैठा दिया है. आज तक…’’ आगे नमिता के बोल आंसुओं में बह गए.
‘‘कौन था वह?’’ आकाश ने गंभीर स्वर में पूछा.
‘‘पता नहीं, पड़ोस में कोई रहता था उन आंटी का भाई था. मैं उन की बेटी के साथ खेलती थी. एक दिन मैं शाम को अपनी सहेली के साथ खेलने उस के घर गई लेकिन वह और आंटी दोनों ही घर पर नहीं थे. मगर उस का मामा घर पर था. मैं बहुत छोटी थी कुछ सम झती नहीं थी लेकिन इतना जानती थी कि मेरे साथ जो हो रहा है वह गलत है. डर के मारे मैं चिल्ला भी नहीं पाई. मगर विष भरा वह हादसा मैं आज तक भूल नहीं पाई. उसी रात को वह भाग गया. मु झे डर के दौरे पड़ने लगे. मेरा परिवार उस शहर से दूर यहां चला आया ताकि मैं वह सब भूल जाऊं लेकिन आज तक वह विष मेरे तनमन में बसा हुआ है. मु झे भूल जाओ आकाश और किसी अच्छी लड़की से…’’ कहते हुए नमिता की हिचकी बंध गई.
आकाश स्पष्ट देख रहा था उस हादसे के विष का कितना बुरा असर है उस के मन पर आज तक. उस ने नमिता को रोने दिया. जब वह स्थिर हो गई तब आकाश गंभीर स्वर में बोला, ‘‘तुम ने खेल का आधा हिस्सा ही बताया नमिता. उस खेल में जब कोई साथी हाथ बढ़ा कर विष वाले साथी को छू कर उसे अमृत कह देता तो वह फिर से खेल में शामिल हो जाता, जी जाता. जिंदगी में हादसे सब के ही साथ होते हैं. किसी के हाथपैर टूटते हैं, किसी को सिर में चोट लगती है. लेकिन कोई उम्रभर उन्हें याद कर के रोता नहीं रहता. जीना नहीं छोड़ देता. यह भी ऐसा ही एक हादसा भर है जिसे याद रखने की कोई जरूरत नहीं है.’’
नमिता दूर तालाब की ओर देख रही थी. वह सम झ नहीं पा रही थी कि उस ने यह सब कह कर कहीं गलत तो नहीं किया. अभी भी उस की आंखों से आंसू बह रहे थे.
‘‘मैं तुम्हें छू कर अमृत कहना चाहता हूं नमिता. प्लीज, भूल जाओ सब पिछला जिस में तुम्हारा कोई दोष था ही नहीं. उबर जाओ इस विष से और मेरी जिंदगी को अमृत कर दो जो तुम्हारे बिना विष जैसी है. प्लीज निमी,’’ आकाश ने अपनी हथेली नमिता के सामने टेबल पर रख दी.
नमिता कभी आकाश को देखती जिस की आंखों में सच्चा प्यार और आग्रह झलक रहा था और कभी उस की हथेली को देखती. अब भी उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. आखिर धड़कते दिल के साथ उस ने आकाश का हाथ थाम लिया और टेबल पर उस के हाथ पर सिर रख कर सिसक पड़ी.
आकाश उस के बाल सहलाने लगा. आसमान पर डूबता सूरज सिंदूरी आभा बिखेर रहा था. उस सिंदूरी आभा में लहराता तालाब जैसे कोई प्रेम गीत गा रहा था. जब नमिता ने सिर उठाया तो आंखों में नमी के साथ ही उस के चेहरे पर मुसकान थी और डूबते सूरज की लालिमा की सिंदूरी आभा में उस का चेहरा दमक रहा था.
‘‘कल तुम्हारे घर आऊंगा तुम्हारे मातापिता से तुम्हारा हाथ मांगने,’’ आकाश बहुत प्यार से बोला.
‘‘अरे वाह यह क्या बात हुई भला. बड़े बेशर्म हो अपनी शादी की बात करने खुद
जाओगे. नहीं कल हम जाएंगे नमिता के घर तुम्हारे लिए उस का हाथ मांगने,’’ पीछे से आ कर अचानक पंकज और कनू ने आकाश के कंधे पर हाथ रख कर कहा.
‘‘बहुतबहुत बधाई हो सच में आज हम बहुत खुश हैं,’’ कनू ने नमिता को गले लगा कर कहा तो उस के कपोल लाल हो गए.
‘‘चलो इसी बात पर चारों की एक मुसकराती सैल्फी हो जाए. फिर उसे मीनाक्षी मैडम को भेज देते हैं. वहां वह खबर जानने के लिए बेताब हो रही होगी. आकाश और नमिता तुम दोनों बीच में आ जाओ,’’ कहते हुए पंकज ने चारों की सैल्फी ले कर मीनाक्षी को भेज दी जिस में नमिता के कंधे पर रखा आकाश का हाथ उस के प्यार की हां का प्रमाण था. नमिता के चेहरे पर एक खिली मुसकान थी. बरसों पहले उस की जीवनलता किसी विष के प्रभाव से मुरझा गई थी वह आज आका के प्याररूपी अमृत में भीग कर फिर से लहलहा उठी थी.
‘‘तुम ने जो टाइम दिया है शाम 6 बजे उसी समय आऊंगा.’ रोली ने मोबाइल स्पीकर पर रखा था. अरुणा को डाक्टर अमन की आवाज जानीपहचानी लगी. तब तक होली मोबाइल पर बात कर चुकी थी और अरुणा को देख रही थी ‘‘क्या सोच रही हो मां?’’ रोली बोली ‘‘कुछ नहीं,’’ अरुणा ने कहा.‘‘बता भी दो,’’ रोली बोली‘‘तु झे जो डाक्टरेट करवा रहे हैं उन का पूरा नाम क्या है?’’ अरुणा ने पूछा ‘‘क्यों क्या हुआ?’’ रोली बोली.
‘‘मेरे कालेज में भी एक लड़का था अमन. मेरी ही क्लास में था,’’ अरुणा ने बताया. फिर दिल की धड़कन बढ़ गई कि कहीं यह वही अमन तो नहीं जो पढ़ने में कमजोर था उस के पीछे पागल था. वह डाक्टरेट कर के कालेज में प्रोफैसर बन गया हो. नहींनहीं यह वह नहीं हो सकता. यह दूसरा होगा. कितना पीछे पड़ा था शादी के लिए. दोनों ही एकदूसरे को पसंद भी करते थे और शादी भी करना चाहते थे. लेकिन बाऊजी नहीं माने थे. कोई नौकरीधंधा नहीं है. घर में पैसा है तो क्या हुआ. अमन के मातापिता ने बाउजी को सम झाया था. पर बाउजी नहीं माने थे. लड़का कुछ करता हो तो शादी भी कर देते. जातपात में भले विश्वास नहीं हो.
अमन के मातापिता ने भी सम झाया था कि अरुणा को सुखी रखेंगे. लेकिन कुछ नहीं हुआ. अरुणा भी मातापिता से विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई ‘‘मां क्या सोचने लगी हो?’’ रोली बोली.
‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ कह कर अरुणा लंच की तैयारी में लग गई. ‘शाम को डिनर के लिए रोली बाहर जाएगी इसलिए लंच हलकाफुलका ही बना लेती,’ यही सोच कर उस ने धुली मूंग की दालचावल धो कर रख दिए. मटर, गाजर, गोभी, आलू, भूनने के लिए रख दिए. पुलाव और रायता चल जाएगा. रोली अपना रूम समेटने में लगी थी. शाम सुरमई होने लगी थी. केक मानस लाने वाला था. रोली ने मना भी किया था
लेकिन वह नहीं माना था. रोली सुंदर लग रही थी. अरुणा सोच में डूबी थी. क्या पहने? किस रंग की साड़ी पहने? फिर उसे याद आया कालेज में अमन ब्लू कलर पसंद करता था. आज ब्लू रंग की साड़ी पहन लेती.
दिल ने कहा क्यों ब्लू रंग क्यों? क्या मन के किसी कोने में अमन की कोमल याद जिंदा है? क्या तू अभी उस से प्यार करती हो? नहींनहीं मैं प्यार नहीं करती. अरुणा ने मन को सम झाया. क्या पता, वही अमन है या नहीं? चलो मान लिया वही अमन है, दिल ने सवाल किया तो उस से प्यार कर पाओगी?
तुम्हारी बेटी 24 साल की है. सही बात है अमन से मैं प्यार नहीं कर पाऊंगी. लेकिन ब्लू साड़ी पहनूंगी. अरुणा का दिल नहीं माना उस ने ब्लू साड़ी पहनी. वालों को हलके जुड़े की शक्ल में बांध लिया. गले में सच्चे मोतियों की माला, हाथ में गोल्ड का ब्रेसलेट ‘‘कितनी सुंदर लग रही हो मां. साड़ी का कलर भी कितना प्यारा है,’’ रोली बोली.
अरुणा तारीफ सुन कर शरमा गई. आज उसे अपने दिल की धड़कन सुनाई दे रही थी. हवा में एक मस्ती महसूस हो रही थी. मन कालेज के ग्राउंड में दूर तक चलने का हो रहा था. लाइब्रेरी में किताबों के पीछे मुसकराते अमन का चेहरा परेशान कर रहा था. कालेज की कैंटीन की कौफी की खुशबू भाप उसे महसूस होने लगी थी. तभी डोरबैल बजी तो रोली दौड़ कर दरवाजे पर गई. अरुणा घबरा गई. तुरंत किचन में चली गई. ‘‘हैप्पी बर्थडे रोली,’’ फूलों के बड़े से बुके के पीछे मानस की आवाज आई. ‘अरे मानस आओआओ,’’ कह कर जोर से हंसी. ‘‘अरे बाबा आया हूं तो अंदर तो आऊंगा ही,’’ मानस बोला.
तभी किचन से बाहर आती अरुणा के पैर छू लिए मानस ने, ‘‘नमस्ते आंटीजी, यह तुम्हारा केक,’’ कहते हुए मानस ने एक बड़ा बौक्स टेबल पर रख दिया और आराम से सोफे पर बैठ गया. ‘‘बेटा चाय पीयोगे या कौफी?’’ अरुणा ने पानी का गिलास बढ़ाया. ‘‘कुछ नहीं आंटीजी. जब कटेगा तो केक लूंगा.’’ अरुणा हंस दी.‘‘आंटी हंसती हुई आप बहुत अच्छी लगती है. उदासी चेहरे पर अच्छी नहीं लगती,’’ मानस बोला.अरुणा ने जवाब नहीं दिया और किचन में चली गई. थोड़ी देर हुई होगी डोरबैल फिर बजी. किचन से बाहर आतेआते अरुणा वहीं रुक गई. अमन होगा उस के चेहरे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं.मां, सर आ गए. जल्दी आओ.’’ अरुणा के पैर मानो जमीन से चिपक गए. वही अमन हुआ तो?
‘‘मांमां,’’ कहते हुए रोली किचन में घुसी. मां का चेहरा देखे बिना हाथ पकड़ कर बाहर ड्राइंगरूम में ले आई. अरुणा की नजर जैसे जमीन में गड़ जाना चाह रही हो. बड़ी मुश्किल से उस ने नजर उठाई तो देखा सामने वही अमन था जो कालेज में साथ था. ‘‘अरुणा तुम? तुम पर ब्लू रंग आज भी उतना ही खिलता है जितना कालेज में खिलता था,’’ डा. अमन ने जैसे ही ये शब्द कहे रोली आश्चर्य में भर गई, ‘‘सर आप मां को जानते हैं?’’ ‘‘तुम्हारी मां और हम साथ कालेज पढ़ते थे.’’ ‘‘अरे वाह तालियां,’’ मानस जो चुप था. अचानक खुश हो उठा. अरुणा के चेहरे पर लालिमा छा गई थी. अमन मुसकरा रहे थे.
‘‘चलोचलो केक काटो, मु झे बहुत भूख लगी है,’’ मानस बोला. ‘‘बातें बाद में पहले केक,’’ रोली बोली. ‘‘हैप्पी बर्थडे टू यू,’’ डाक्टर अमन बोले. रोली ने केक काटा और पहला टुकड़ा अरुणा को खिलाया, ‘‘मेरी प्यारी और अच्छी मां.’’ उस के बाद मानस और अमन को. ‘‘डिनर की क्या तैयारी है?’’ मानस ने रोली से पूछा. ‘‘डिनर मेरी तरफ से रहेगा,’’ डाक्टर अमन ने घोषणा की. ‘‘लेकिन घर में जो तैयारी,’’ अरुणा बोली. ‘‘उसे फ्रिज में रख दो,’’ डाक्टर अमन बोले. ‘‘हां, मां चलो न,’’ रोली बोली. डाक्टर अमन शहर के प्रसिद्ध होटल प्रिंस प्लाजा में ले गए.
रोली बहुत खुश थी रहरह कर सैल्फी ले रही थी. कभी सब के साथ कभी अकेले. अमन और मानस किसी विषय पर चर्चा में बिजी थे. साथ ही अरुणा से भी बात करते जा रहे थे. अरुणा चाह कर भी उस चर्चा में शामिल नहीं हो पा रही थी. ‘‘मां, डिनर के लिए और्डर करो.’’ ‘‘आज सब डिश रोली की पसंद की रहेंगी.’’‘‘नहीं सब की पसंद की डिश रहेंगी,’’ रोली ने कहा. फिर सब की पसंद से डिनर का और्डर दिया गया. वैजिटेबल बिरयानी, मुगलई मक्खनी पनीर, पंचमेल दाल, वेज कोफ्ता, बंगाली खिचड़ी, लच्छा परांठा, मिक्स बीन सलाद. अरुणा ने बहुत कुछ अपनेआप को संभाल लिया था. वह नौर्मल महसूस कर रही थी.
‘‘एक बात बताओ मां, डाक्टर साहब इतने अच्छे हैं क्या कभी आप दोनों ने शादी की बात नहीं सोची?’’ रोली ने मासूम सा सवाल किया.
अरुणा चुप रही. डाक्टर अमन भी चुप. फिर पता नहीं क्या सोच कर डाक्टर अमन ने पूरी सहीसही बात रोली के सामने रख दी. अंत में कहा, ‘‘मैं उसे समय बेरोजगार नहीं होता तो शादी हो चुकी होती. बाऊजी की जिद और मेरे बेरोजगार होने से हम ने अपने रास्ते अलग कर लिए,’’ अमन बोले. ‘‘ तो क्या हुआ रास्ते तो अभी भी साथ हो सकते हैं?’’ अब की बार मानस बोला. ‘‘नहींनहीं मैं मां को कहीं नहीं जाने दूंगी,’’ रोली ने अरुणा को कस कर पकड़ लिया. रोली हो सकता है तुम्हारी जिम्मेदारी और प्यार की जंजीरों ने अरुणा को बांध कर रखा हो,’’ मानस ने कहा, ‘‘इसलिए आंटी खुद के बारे में नहीं सोच पाती हों. इतनी भी बड़ी नहीं हुई है मां कि हंसनामुसकराना छोड़ दे.\ ‘‘मानस शायद तुम सही कह रहे हो,’’ डाक्टर अमन बोले, ‘‘जंजीरों को थोड़ा ढीला भी किया जा सकता है.’’ ‘‘मतलब?’’ अरुणा बोली, ‘‘शादी? पागल हुए हो तुम लोग.’’\ ‘‘नहीं अरुणा शादी की बात कहां हुई,’’ डाक्टर अमन बोले.
‘‘आप की पत्नी, बच्चे?’’ अरुणा बोली. ‘‘मैं ने शादी की ही नहीं न ही अब करूंगा,’’ डाक्टर अमन बोले.‘‘क्या?’’ अरुणा के चेहरे पर आश्चर्य था. ‘‘आश्चर्य की कोई बात नहीं है. जीवन में शादी के अलावा
दूसरे भी लक्ष्य हो सकते हैं,’’ अमन बोले, ‘‘क्या हम अच्छे दोस्त नहीं बन सकते?’’ कह डाक्टर अमन ने अरुणा को देखा. अरुणा के चेहरे पर खुशी शर्म की मिलीजुली छाया देख फिर रोली से बोली, ‘‘बेटा तुम्हारी जिम्मेदारी ने भी अरुणा को शायद जंजीरों से बांधा हुआ हो इसलिए हंसनाबोलना भूल गई हो. सब को थोड़ी स्पेस की जरूरत है.’’ रोली बोली, ‘‘मैं तो बहुत प्यार करती हूं मां से.’’
‘‘वह सही है लेकिन इस उम्र में सैक्स से ज्यादा एक साथी की जरूरत होती है जो बातें कर सके. दुनियाभर की, सुखदुख की… मु झे विश्वास है शायद मैं खरा उतर सकूं.’’‘‘यह हुई न बात,’’ मानस मुसकराया फिर रोली को देख कर बोला, ‘‘अभी भी देर करोगी शादी में?’’
रोली शरमा कर अरुणा के गले लग गई. अरुणा के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. रोली का जन्मदिन उस के जीवन में नया सवेरा ले कर आया.