खलनायक: क्या हो पाई कविता और गौरव की शादी?

विवाह की 10वीं वर्षगांठ के निमंत्रणपत्र छप कर अभीअभी आए थे. कविता बड़े चाव से उन्हें उलटपलट कर देख रही थी. साथ ही सोच रही थी कि जल्दी से एक सूची तैयार कर ले और नाम, पते लिख कर इन्हें डाक में भेज दे. ज्यादा दिन तो बचे नहीं थे. कुछ निमंत्रणपत्र स्वयं बांटने जाना होगा, कुछ गौरव अकेले ही देने जाएंगे. हां, कुछ कार्ड ऐसे भी होंगे जिन्हें ले कर वह अके जाएगी.

सोचतेसोचते कविता को उन पंडितजी की याद आई जिन्होंने उस के विवाह के समय उस के ‘मांगलिक’ होने के कारण इस विवाह के असफल होने की आशंका प्रकट की थी. पंडितजी के संदेह के कारण दोनों परिवारों में उलझनें पैदा हो गई थीं. ताईजी ने तो अपने इन पंडितजी की बातों से प्रभावित हो कर कई पूजापाठ करवा डाले थे.

एकएक कर के कविता को अपने विवाह से संबंधित सभी छोटीबड़ी घटनाएं याद आने लगीं. कितना तनाव सहा था उस के परिवार वालों ने विवाह के 1 माह पूर्व. उस समय यदि गौरव ने आधुनिक एवं तर्कसंगत विचारों से अपने परिवार वालों को समझायाबुझाया न होता तो हो चुका था यह विवाह. कविता को जब गौरव, उस के मातापिता एवं ताईजी देखने आए थे तो सभी को दोनों की जोड़ी ऐसी जंची कि पहली बार में ही हां हो गई. गौरव के पिता नंदकिशोर का अपना व्यवसाय था. अच्छाखासा पैसा था. परिवार में गौरव के मातापिता, एक बहन और एक ताईजी थीं. कुछ वर्ष पूर्व ताऊजी की मृत्यु हो गई थी.

ताईजी बिलकुल अकेली हो गई थीं, उन की अपनी कोई संतान न थी. गौरव और उस की बहन गरिमा ही उन का सर्वस्व थे. गौरव तो वैसे ही उन की आंख का तारा था. बच्चे ताईजी को बड़ी मां कह कर पुकारते और उन्हें सचमुच में ही बड़ी मां का सम्मान भी देते. गौरव के मातापिता भी ताईजी को ही घर का मुखिया मानते थे. घर में छोटेबड़े सभी निर्णय उन की सम्मति से ही लिए जाते थे.

जैसा कि प्राय: होता है, लड़की पसंद आने के कुछ दिन पश्चात छोटीमोटी रस्म कर के रिश्ता पक्का कर दिया गया. इस बीच गौरव और कविता कभीकभार एकदूसरे से मिलने लगे. दोनों के मातापिता को इस में कोई आपत्ति भी न थी. वे स्वयं भी पढ़ेलिखे थे और स्वतंत्र विचारों के थे. बच्चों को ऊंची शिक्षा देने के साथसाथ अपना पूर्ण विश्वास भी उन्होंने बच्चों को दिया था. अत: गौरव का आनाजाना बड़े सहज रूप में स्वीकार कर लिया गया था. पंडितजी से शगुन और विवाह का मुहूर्त निकलवाने ताईजी ही गई थीं. पंडितजी ने कन्या और वर दोनों की जन्मपत्री की मांग की थी.

दूसरे दिन कविता के घर यह संदेशा भिजवाया गया कि कन्या की जन्मपत्री भिजवाई जाए ताकि वर की जन्मपत्री से मिला कर उस के अनुसार ही विवाह का मुहूर्त निकाला जाए. कविता के मातापिता को भला इस में क्या आपत्ति हो सकती थी, उन्होंने वैसा ही किया.

3 दिन पश्चात ताईजी स्वयं कविता के घर आईं. अपने भावी समधी से वे अनुरोध भरे स्वर में बोलीं, ‘‘कविता के पक्ष में ‘मंगलग्रह’ भारी है. इस के लिए हमारे पंडितजी का कहना है कि आप के घर में कविता द्वारा 3 दिन पूजा करवा ली जाए तो इस ग्रह का प्रकोप कम हो सकता है. आप को कष्ट तो होगा, लेकिन मैं समझती हूं कि हमें यह करवा ही लेना चाहिए.’’

कविता के मातापिता ने इस बात को अधिक तूल न देते हुए अपनी सहमति दे दी और 3 दिन के अनुष्ठान की सारी जिम्मेदारी सहर्ष स्वीकार कर ली. 2 दिन आराम से गुजर गए और कविता ने भी पूरी निष्ठा से इस अनुष्ठान में भाग लिया. तीसरे दिन प्रात: ही फोन की घंटी बजी और लगा कि कविता के पिता फोन पर बात करतेकरते थोड़े झुंझला से रहे हैं.

फोन रख कर उन्होंने बताया, ‘‘ताईजी के कोई स्वामीजी पधारे हैं. ताईजी ने उन को कविता और गौरव की जन्मकुंडली आदि दिखा कर उन की राय पूछी थी. स्वामीजी ने कहा है कि इस ग्रह को शांत करने के लिए 3 दिन नहीं, पूरे 1 सप्ताह तक पूजा करनी चाहिए और उस के उपरांत कन्या के हाथ से बड़ी मात्रा में 7 प्रकार के अन्न, अन्य वस्तुएं एवं नकद राशि का दान करवाना चाहिए. ताईजी ने हमें ऐसा ही करने का आदेश दिया है.’’

यह सब सुन कर कविता को अच्छा नहीं लगा. एक तो घर में वैसे ही विवाह के कारण काम बढ़ा हुआ था, जिस पर दिनरात पंडितों के पूजापाठ, उन के खानेपीने का प्रबंध और उन की देखभाल. वह बेहद परेशान हो उठी.  कविता जानती थी कि दानदक्षिणा की जो सूची बताई गई है उस में भी पिताजी का काफी खर्च होगा. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. लेकिन मां के चेहरे पर कोई परेशानी नहीं थी. उन्होंने ही जैसेतैसे पति और बेटी को समझाबुझा कर धीरज न खोने के लिए राजी किया. उन की व्यावहारिक बुद्धि यही कहती थी कि लड़की वालों को थोड़ाबहुत झुकना ही पड़ता है.

इस बीच गौरव भी अपनी और अपने मातापिता की ओर से कविता के घर वालों से उन्हें परेशान करने के लिए क्षमा मांगने आया. वह जानता था कि यह सब ढकोसला है, लेकिन ताईजी की भावनाओं और उन की ममता की कद्र करते हुए वह उन्हें दुखी नहीं करना चाहता था. इसलिए वह भी इस में सहयोग देने के लिए राजी हो गया था, वरना वह और उस के मातापिता किसी भी कारण से कविता के परिवार वालों को अनुचित कष्ट नहीं देना चाहते थे.

लेकिन अभी एक और प्रहार बाकी था. किसी ने यह भी बता दिया था कि इस अनुष्ठान के पश्चात कन्या का एक झूठमूठ का विवाह बकरे या भेड़ से करवाना जरूरी है क्योंकि मंगल की जो कुदृष्टि पूजा के बाद भी बच जाएगी, वह उसी पर पड़ेगी. उस के पश्चात कविता और गौरव का विवाह बड़ी धूमधाम से होगा और उन का वैवाहिक जीवन संपूर्ण रूप से निष्कंटक हो जाएगा.  ताईजी यह संदेश ले कर स्वयं आई थीं. उस समय कविता घर पर नहीं थी. जब वह आई और उस ने यह बेहूदा प्रस्ताव सुना तो बौखला उठी. उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे. पहली बार उस ने गौरव को अपनी ओर से इस में सम्मिलित करने का सोचा.

उस ने गौरव से मिल कर उसे सारी बात बताई. गौरव की भी वही प्रतिक्रिया हुई, जिस की कविता को आशा थी. वह सीधा घर गया और अपने परिवार वालों को अपना निर्णय सुना डाला, ‘‘यदि आप इन सब ढकोसलों को और बढ़ावा देंगे या मानेंगे तो मैं कविता तो क्या, किसी भी अन्य लड़की से विवाह नहीं करूंगा और जीवन भर अविवाहित रहूंगा. मैं आप को दुखी नहीं करना चाहता, आप की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता, नहीं तो मैं पूजा करने की बात पर ही आप को रोक देता. लेकिन अब तो हद ही हो गई है. आप लोगों को मैं ने अपना फैसला सुना दिया है. अब आगे आप की इच्छा.’’

ताईजी का रोरो कर बुरा हाल था. उन्हें तो यही चिंता खाए जा रही थी कि कविता के ‘मांगलिक’ होने से गौरव का अनिष्ट न हो, लेकिन गौरव उन की बात समझने की कोशिश ही नहीं कर रहा था. उस का कहना था, ‘‘यह झूठमूठ का विवाह कर लेने से कविता का क्या बिगड़ जाएगा?’’  उधर कविता को भी गौरव ने यही पट्टी पढ़ाई थी कि तुम पर कैसा भी दबाव डाला जाए, तुम टस से मस न होना, भले ही कितनी मिन्नतें करें, जबरदस्ती करें, किसी भी दशा में तुम अपना फैसला न बदलना. भला कहीं मनुष्यों के विवाह जानवरों से भी होते हैं. भले ही यह झूठमूठ का ही क्यों न हो.

कविता तो वैसे ही ताईजी के इस प्रस्ताव को सुन कर आपे से बाहर हो रही थी. उस पर गौरव ने उस की बात को सम्मान दे कर उस की हिम्मत को बढ़ाया था. साथ ही गौरव ने यह भी बता दिया था कि उस के मातापिता को कविता बहुत पसंद है और वे इन ढकोसलों में विश्वास नहीं करते. इसलिए ताईजी को समझाने में उस के मातापिता भी सहायता करेंगे. वैसे ताईजी को यह स्वीकार ही नहीं होगा कि गौरव जीवन भर अविवाहित रहे. वे तो न जाने कितने वर्षों से उस के विवाह के सपने देख रही थीं और उस की बहू के लिए उन्होंने अच्छे से अच्छे जेवर सहेज कर रखे हुए थे.

लेकिन पुरानी रूढि़यों में जकड़ी अशिक्षित ताईजी एक अनजान भय से ग्रस्त इन पाखंडों और लालची पंडितों की बातों में आ गई थीं. गौरव ने कविता को बता दिया था कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा और अगर फिर भी ताईजी ने स्वीकृति न दी तो दोनों के मातापिता की स्वीकृति तो है ही, वे चुपचाप शादी कर लेंगे.

कविता को गौरव की बातों ने बहुत बड़ा सहारा दिया था. पर क्या ताईजी ऐसे ही मान गई थीं? घर छोड़ जाने और आजीवन विवाह न करने की गौरव द्वारा दी गई धमकियों ने अपना रंग दिखाया और 4 महीने का समय नष्ट कर के अंत में कविता और गौरव का विवाह बड़ी धूमधाम से हो गया.

कविता एक भरपूर गृहस्थी के हर सुख से संपन्न थी. धनसंपत्ति, अच्छा पति, बढि़या स्कूलों में पढ़ते लाड़ले बच्चे और अपने सासससुर की वह दुलारी बहू थी. बस, उस के वैवाहिक जीवन का एक खलनायक था, ‘मंगल ग्रह’ जिस पर गौरव की सहायता एवं प्रोत्साहन से कविता ने विजय पाई थी. कभीकभी परिवार के सभी सदस्य मंगल ग्रह की पूजा और नकली विवाह की बातें याद करते हैं तो ताईजी सब से अधिक दिल खोल कर हंसतीं. काफी देर से अकेली बैठी कविता इन्हीं मधुर स्मृतियों में खोई हुई थी. फोन की घंटी ने उसे चौंका कर इन स्मृतियों से बाहर निकाला.

फोन पर बात करने के बाद उस ने अपना कार्यक्रम निश्चित किया और यही तय किया कि अपने सफल विवाह की 10वीं वर्षगांठ का सब से पहला निमंत्रणपत्र वह आज ही पंडितजी को देने स्वयं जाएगी, ऐसा निर्णय लेते ही उस के चेहरे पर एक शरारत भरी मुसकान उभर आई.

 

गर्मी में बनाएं बादाम रोल कट कुल्फी

गर्मियों के मौसम में ठंडी ठंडी चीजें ही खाने का मन करता है. वास्तव में गर्मियों को तो कुल्फी, आइसक्रीम, ड्रिंक्स और शर्बत के लिए ही जाना जाता है. बाजार में मिलने वाली कुल्फी एक तो बहुत महंगी होती है दूसरे उतनी हाइजीनिक भी नहीं होती. घर में बनाने पर यह काफी सस्ती पड़ती है. घर में हम मनचाहे फ्लेवर में जमाकर रख सकते हैं. आज हम आपको एक ऐसी ही आइसक्रीम बनाना बता रहे हैं जिसे आप बहुत आसानी से घर की चीजों से ही बना सकती हैं तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कितने लोगों के लिए 4

बनने में लगने वाला समय 30 मिनट

मील टाइप वेज

सामग्री

फुल क्रीम दूध 1 लीटर
बादाम 12
शकर 2 टेबलस्पून
इलायची पाउडर 1/4 टीस्पून
पिस्ता कतरन 1 टीस्पून

विधि

बादाम को उबलते पानी में डालकर आधा घण्टे के लिए ढककर रख दें. गैस पर दूध उबलने रखें और इसे 10 से 15 मिनट तक धीमी आंच पर उबलने दें.

आधे घण्टे बाद बादाम का छिल्का उतारकर इन्हें 1 कप दूध के साथ मिक्सी में पीस लें. अब इस तैयार दूध को उबलते दूध में डालकर 5 मिनट तक उबालें.

दूसरे पैन में शकर डालकर धीमीं आंच पर कैरेमलाइज करें. शकर पिघलकर जब हल्के ब्राउन रंग में परिवर्तित हो जाये तो इसे उबलते दूध में मिला दें.

प्रारम्भ में यह जगह इकट्ठी हो जाएगी फिर धीरे धीरे दूध में मिलकर उसे हल्का ब्राउन रंग दे देगी. अब गैस को बंद कर दें और दूध को ठंडा होने दें.

जब दूध पूरी तरह ठंडा हो जाये तो इसे कुल्फी मोल्ड या सीधी शेप वाले ग्लास में भरकर जमाएं, ध्यान रखें कि मोल्ड या ग्लास को 3/4 ही भरना है.

सिल्वर फॉयल से इसे अच्छी तरह कवर कर दें. 7 से 8 घण्टे तक फ्रिज में जमाएं. डिमोल्ड करके कुल्फी के रोल को आधे आधे इंच के स्लाइस में काटकर ऊपर से पिस्ता कतरन डालकर सर्व करें.

स्वयंसिद्धा: जब स्मिता के पैरों तले खिसकी जमीन

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Summer Special: गरमियों में घूमने के लिए बेस्ट औप्शन है लाहुल-स्पीति

चारों तरफ झीलों, दर्रों और हिमखंडों से घिरी, आसमान छूते शैल शिखरों के दामन में बसी लाहुल-स्पीति की घाटियां अपने सौंदर्य और प्रकृति की विविधताओं के लिए विख्यात हैं. जहां एक तरफ इन घाटियों की प्राकृतिक सौंदर्यता निहारते आंखों को सुकून मिलता है वहीं दूसरी तरफ हिंदू और बौद्ध परंपराओं का अनूठा संगम आश्चर्यचकित कर देता है. वैसे तो लाहुल-स्पीति दोनों को मिला कर एक जिला बनता है, लेकिन ये दोनों ही जगह अपनेअपने नाम के आधार पर सौंदर्य की अलगअलग परिभाषाएं गढ़ती हैं.
स्पीति

स्पीति हिमाचल प्रदेश के उत्तरपूर्वी भाग में हिमालय की घाटी में बसा है. स्पीति का मतलब बीच की जगह होता है. इस जगह का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह तिब्बत और भारत के बीच स्थित है. यह जगह अपनी ऊंचाई और प्राकृतिक सुंदरता के लिए लोकप्रिय है. स्पीति क्षेत्र बौद्ध संस्कृति और मठों के लिए भी प्रसिद्ध है.

इतिहास :

हिमालय की गोद में बसी इस जगह के लोगों को स्पीतियन कहते हैं. स्पीतियन लोगों का एक लंबा इतिहास है. इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि स्पीति पर वजीरों का शासन था जिन्हें नोनो भी कहा जाता था. वैसे तो समयसमय पर स्पीति पर कई लोगों ने शासन किया लेकिन स्पीतियन लोगों ने किसी की गुलामी ज्यादा दिनों तक नहीं सही. वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद यह पंजाब के कांगड़ा जिले का हिस्सा हुआ करता था. 1960 में यह लाहुल-स्पीति नामक जिले के रूप में एक नए प्रदेश यानी हिमाचल प्रदेश के साथ जुड़ा. बाद में स्पीति को सब डिवीजन बनाया गया और काजा को मुख्यालय.

आबादी :

स्पीति और उस के आसपास के क्षेत्रों को भारत में सब से कम आबादी वाले क्षेत्रों में गिना जाता है. इस क्षेत्र के 2 सब से महत्त्वपूर्ण शहर काजा और केलोंग हैं. कुछ वनस्पतियों और जीव की दुर्लभ प्रजातियां भी स्पीति के महत्त्व को बढ़ाती हैं. यहां के लोग गेहूं, जौ, मटर आदि फसलें उगाते हैं.

यातायात :

स्पीति जाने के लिए सब से निकटतम हवाई अड्डा भुंतर है, जो नई दिल्ली और शिमला जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा है. अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक भुंतर एअर बेस के लिए दिल्ली से जोड़ने वाली उड़ानों का लाभ ले सकते हैं. स्पीति से निकटतम रेलवे स्टेशन जोगिंद्रनगर है, जो छोटी लाइन का रेलवे स्टेशन है. इस के अलावा स्पीति से चंडीगढ़ और शिमला नजदीकी प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं, जो भारत के प्रमुख शहरों से जुड़े हैं.

यात्री रेलवे स्टेशन से स्पीति के लिए टैक्सियों और कैब की सुविधा आसानी से ले सकते हैं. सड़क से स्पीति राष्ट्रीय राजमार्ग 21 के माध्यम से पहुंचा जा सकता है. स्पीति तक रोहतांग दर्रा और कुंजम पास दोनों से पहुंचा जा सकता है.

मौसम :

नवंबर से जून तक भारी बर्फबारी के कारण स्पीति जाने वाले सभी मार्ग बंद हो जाते हैं. इसलिए वहां सर्दियों को छोड़ कर साल भर कभी भी आया जा सकता है. गरमी के मौसम में मई से अक्तूबर तक का महीना स्पीति आने के लिए अनुकूल है क्योंकि यहां का तापमान

15 डिगरी सैल्सियस से ऊपर नहीं जाता है. स्पीति बारिश के छाया क्षेत्र में स्थित है, इसलिए यहां ज्यादा बारिश नहीं होती है. सर्दियों के दौरान यह जगह बर्फबारी से ढक जाती है औैर तापमान शून्य डिगरी से नीचे चला जाता है.

दर्शनीय स्थल

स्पीति एक ऐसी घाटी है जहां सदियों से बौद्ध परंपराओं का पालन हो रहा है. यह घाटी अपने कई मठों के लिए देश और विदेश में विशेष स्थान रखती है. यहां कई मठ ऐसे हैं जिन की स्थापना सदियों पहले की गई थी. इन में तबो और धनकर मठ प्रमुख हैं.

तबो :  

तबो मठ को स्पीति घाटी में 996 में खोजा गया. यह स्थान बहुत ही सुंदर है. यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. बताया जाता है कि यह मठ हिमालय पर्वतमाला के सब से पुराने मठों में से एक है. यहां की सुंदर पेंटिंग्स, मूर्तिंयां और प्राचीन ग्रंथों के अलावा दीवारों पर लिखे गए शिलालेख यात्रियों को बहुत आकर्षित करते हैं.

धनकर :

यह मठ धनकर गांव में है जोकि हिमाचल के स्पीति क्षेत्र में समुद्र तल से 3,890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह जगह तबो और काजा 2 प्रसिद्ध जगहों के बीच में है. स्पीति और पिन नदी के संगम पर स्थित धनकर, दुनिया की ऐतिहासिक विरासतों में भी स्थान रखता है.

काजा :

काजा स्पीति घाटी का उप संभागीय मुख्यालय है. यह स्पीति नदी के बाएं किनारे पर खड़ी चोटी की तलहटी पर स्थित है. काजा में रैस्ट हाउस और रहने के लिए कई छोटेछोटे होटल बने हुए हैं. यहां से हिक्किम, कोमोक और लांगिया मठों पर घूमने जाया जा सकता है.

अन्य दर्शनीय स्थल

स्पीति आने वाले लोगों के लिए घूमने के स्थान की कमी नहीं है. यहां किब्बर, गेट्टे, पिन वैली, लिंगटी वैली, कुंजम पास और चंद्रताल कुछ ऐसी जगहें हैं जहां जाए बिना स्पीति की यात्रा पूरी नहीं होती.

लाहुल

कुछ लोग इसे हिमालयन स्कौटलैंड कहते हैं. वैसे लाहुल को लैंड विद मैनी पासेस भी कहा जाता है क्योंकि लाहुल से दुनिया का सब से ऊंचा हाईवे गुजरता है जो इसे मनाली, लेह, रोहतांग ला, बारालाचा ला, लचलांग ला और तंगलांग ला से जोड़ता है.

नदियां :

हिमालय की पर्वत शृंखलाओं से घिरे लाहुल में जो शिखर दिखाईर् देते हैं उन्हें गयफांग कहा जाता है. साथ ही, यहां चंद्रा और भागा नाम की 2 नदियां बहती हैं. इन्हें यहां का जलस्रोत माना जाता है. चंद्रा नदी को यहां के लोग रंगोली कहते हैं. इस के तट पर खोक्सर, सिसु, गोंढला और गोशाल 4 गांव बसे हुए हैं जबकि भागा नदी केलौंग और बारालाचा से बहती हुई चंद्रा में मिल जाती है. जब ये दोनों नदियां तांडी नाम की नदी में मिलती हैं तो इसे चंद्रभागा कहा जाता है.

भाषा और रोजगार :

लाहुल की जमीन बंजर है, इसलिए यहां घास और झाडि़यों के अलावा ज्यादा कुछ नहीं उगता. स्थानीय लोग खेती के नाम पर आलू की पैदावार करते हैं. पशुपालन औैर बुनाई ही यहां के लोगों का प्रमुख रोजगार है. यहां के घर लकड़ी, पत्थर और सीमेंट के बने होते हैं. लाहुल के निवासियों की भाषा का वैसे तो कोई नाम नहीं है लेकिन इन की  भाषा लद्दाख और तिब्बत से प्रभावित है.

यातायात :

लाहुल पहुंचने के लिए भी स्पीति की तरह भुंतर हवाई अड्डा एकमात्र साधन है. वैसे टैक्सियों औैर कैब के जरिए भी लाहुल पहुंचा जा सकता है. लाहुल का कोई अपना रेलवे स्टेशन नहीं है, इसलिए यात्रियों को पास में स्थित जोगिंदर नगर रेलवे स्टेशन उतरना पड़ता है. फिर वहां से टैक्सी और कैब से सड़क मार्र्ग द्वारा लाहुल जाया जाता है.

प्रमुख स्थल

लाहुल के आसपास घूमने के लिए केलौंग, गुरुकंटाल मठ, करडांग, शाशुर, तैयुल, गेमुर, सिसु और गोंढाल जैसे प्रमुख स्थल हैं जो किसी न किसी विशेषता की चादर ओढ़े हुए हैं.

Summer Special: बदलते मौसम में कौनसा स्क्रब करें

महिलाओं में यह गलत धारणा बनी हुई है कि रोज स्क्रबिंग करने से त्वचा को नुकसान होता है, जबकि सचाई यह है कि यदि रोज किसी माइल्ड स्क्रब से त्वचा की स्क्रबिंग न की जाए तो त्वचा पर धूल, गंदगी समेत कई अनावश्यक तत्त्वों की परत जमा होने लगती है, जिस से वह रूखी और बेजान हो जाती है.

स्क्रबिंग जिसे एक्सफोलिएशन भी कहा जाता है, त्वचा से इन्हीं आवश्यक तत्त्वों की परत हटाने की क्रिया है. इसे रोजाना करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि रात को सोते समय हमारी त्वचा में कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं. तैलीय कण सक्रिय हो जाते हैं और नई कोशिकाएं पैदा होती हैं. यदि किसी माइल्ड स्क्रब से स्क्रबिंग की जाए तो त्वचा कोमल और आकर्षक बनती है. स्क्रब करने का सही तरीका यह है कि सब से पहले चेहरा गीला कर के हथेली में थोड़ा सा स्क्रब लें, फिर उसे चेहरे पर बाहर की ओर मसाज करते हुए लगाना शुरू करें. स्क्रब हमेशा हलके हाथों से करना चाहिए. आंखों के नजदीक स्क्रब लगाते समय थोड़ी सावधानी बरतें, क्योंकि यहां की त्वचा बेहद नाजुक होती है.

मुंहासों से भी नजात

नियमित रूप से स्क्रबिंग करने से त्वचा की अशुद्धियां और पिगमेंटेशन दूर होती है. रक्तसंचार भी बढ़ता है, त्वचा के रोमछिद्र भी खुल जाते हैं और त्वचा निखर उठती है. कास्मेटोलोजिस्ट डा. राजिका कचेरिया का कहना है कि त्वचा पर से मृत कोशिकाएं हटाए बिना क्लींजिंग और टोनिंग करने से मुंहासे होने की संभावना बढ़ जाती है. यह मृत त्वचा रोमछिद्रों में अवरोध उत्पन्न कर उन्हें बंद कर देती है, जिस से बैक्टीरिया पनपते हैं और मुंहासे निकल आते हैं. रोज स्क्रबिंग करने से रोमछिद्र खुले रहते हैं. इस से ब्लैकहैड्स की समस्या भी दूर हो जाती है. ये ब्लैकहैड्स केराटिन और सीबमयुक्त तैलीय तत्त्वों से बने होते हैं, जिन का हमारी त्वचा से स्राव होता है. डेड सेल्स की मोटी परत जमा होने, अधिक तैलीय त्वचा, डीहाईडे्रशन, अधिक कास्मेटिक्स का प्रयोग व थायराइड या कब्ज जैसी मेडिकल समस्याओं के कारण भी मुंहासे होते हैं. इन्हें दूर करने का भी सब से सरल, सस्ता और आसान उपाय स्क्रबिंग ही है.

इन बातों पर भी गौर फरमाएं

रोजाना स्क्रबिंग के लिए पपीते, एप्रीकोट और त्वचा के लिए जरूरी विटामिनयुक्त स्क्रब अच्छा रहता है, जो त्वचा को सूर्य की हानिकारक किरणों और प्रदूषण से बचा कर समय से पहले दिखने वाले बढ़ती उम्र के लक्षणों को नियंत्रण में रखता है.

स्क्रब हमेशा अपनी त्वचा के अनुकूल ही इस्तेमाल करना चाहिए वरना त्वचा को हानि पहुंच सकती है.

चेहरे की गीली त्वचा पर हाथ या रुई से स्क्रब काफी हलके हाथों से लगाएं.

अखरोट बेहद अच्छा स्क्रब है, जो कुदरती रूप से त्वचा की मृत कोशिकाएं हटा कर नई कोशिकाएं बनाने में मदद करता है. अखरोट युक्त स्क्रब सौम्य त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद है.

माइल्ड स्क्रब से रोज स्क्रबिंग करना सेंसेटिव त्वचा के लिए लाभदायक है.

‘अदृश्यम’ से दिव्यांका त्रिपाठी ने वेब सीरिज की दुनिया में की शुरुआत, पोस्टर जारी

एक्ट्रेस दिव्यांका त्रिपाठी ने ‘अदृश्यम’ सीरिज के साथ वेब सीरिज़ की दुनिया में कदम रख दिया है.

‘अदृश्यम’ ऐसी कहानी है जिसमें एक्टर एजाज खान मुख्य भूमिका में हैं. यह फिल्म खुफिया एजेंसी आईबीसी-47 की कहानी है. यह एजेंसी आतंकवाद के खिलाफ लड़ती ‘अदृश्यम’ ऐसी कहानी है जिसमें एक्टर एजाज खान मुख्य भूमिका में है और देश की रक्षा करती है. इस एजेंसी में काम करने वाले लोग अपनी पहचान को गुप्त रखते हैं.

यह सीरिज़ हर गुरुवार और शुक्रवार रात 8 बजे सोनी लिव एप पर आएगी. स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाले शो ये हैं मोहब्बतें में दिव्यांका ने इशिता भल्ला की रोल किया था और इस रोल को दर्शकों ने बहुत ज्यादा पसंद किया था.

दिव्यांका के जीवन के संघर्षों की बात करें तो उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया था जब उन्होंने खाना खाने के लिए टूथपेस्ट के डिब्बे बेचकर काम चलाया था. दिव्यांका ने 2016 में टीवी एक्टर विवेक दहिया से शादी कर ली थी. दोनों ने टीवी शो ये हैं मोहब्बतें में काम किया था.

दिव्यांका ने एकता कपूर के टीवी सीरियल बनूं मैं तेरी दुल्हन से एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी. इस शो के मेन लीड एक्टर शरद मल्होत्रा के साथ कई सालों तक अफेयर रहा.

अदृश्म सीरिज में दिव्यांका और एजाज स्पाई की भूमिका निभा रहे हैं. एजाज इस सीरिज में रवि वर्मा का रोल कर रहे हैं जिसके लिए सबसे पहले देश है.

दिव्यांका इस सीरिज में पारवति सेहगल का रोल कर रही हैं जो स्पाई के साथ-साथ सिंगल मदर भी है. दिव्यांका ने इस रोल में फिजिकली फिट दिखने के लिए बहुत मेहनत की. सीरिज में वह मोड़ बहुत ही रोमांचक हो जाता है जब दोनों लोग एक साथ स्क्रीन पर आ जाते हैं.

स्कूली बच्चों की मौत: परिवहन व्यवस्था की त्रासदी

आधुनिक समय में देश का कोई ऐसा कोना नहीं है जहां निजी स्कूलों में बस की व्यवस्था नहीं की गई है, स्कूल के स्टूडेंट के लिए स्कूल आने और जाने के लिए स्कूल प्रबंधन जो व्यवस्था करते हैं मगर जो लापरवाही सामने आ रही है वह चिंताजनक है और कई सवाल खड़े करती है.

कुल मिलाकर के बच्चे चाहे ऑटो में हो या रिक्शा में या फिर बसों में स्कूल जाते – आते समय एक तरह से जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते दिखाई देते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि राज्य सरकारें हो या फिर स्थानीय जिला प्रशासन इस और आंखें बंद किए रहता है जब कभी कोई दुर्घटना हो जाती है तो शासन की आंखें खुलती है और फिर कुछ ही दिनों बाद फिर सब वैसे का वैसा‌ चलने लगता है.

हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले में 11 अप्रेल 2024 को स्कूल के बच्चों को लेकर जा रही एक बस के पेड़ से टकराकर पलट गई और छह स्कूली विद्यार्थियों की मौत हो गई साथ, लगभग 20 घायल हो गए. पुलिस के मुताबिक- स्कूल प्रधानाध्यापक और बस चालक समेत तीन लोगों को गिरफ्तार कर – लिया गया है. सबसे चिंताजनक बात यह है कि जांच में पाया गया है कि हादसे के समय बस चालक नशे में था.

अब विचारणीय बात यह है कि जब स्कूल के बस वाहन को चलाते समय परिचालक नशा करने लगे और स्कूल प्रबंधन ध्यान ना दे पाए तो ऐसे स्कूल प्रबंधन को तत्काल बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए और कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए.

जैसा कि होता है घटना दुर्घटना के बाद शासन की कुंभ करनी नींद खुलती है ऐसा ही हरियाणा में हुआ राज्य की शिक्षा मंत्री सीमा त्रिखा ने अस्पतालों में घायल छात्रों का हालचाल जाना. उनके मुताबिक निजी स्कूल को कारण बताओ नोटिस भेजकर पूछा गया है कि ईद के अवसर पर छुट्टी होने के बावजूद यह कैसे खुला था. यह घटना कनीना में उन्हाणी गांव के निकट सुबह लगभग 8.30 बजे हुई जब बस प्राथमिक से माध्यमिक कक्षाओं के लगभग 40 बच्चों को लेकर जीएल पब्लिक स्कूल जा रही थी.

पुलिस के मुताबिक बस चालक धर्मेंद्र तेजी से बस चला रहा था और उसका बस पर से नियंत्रण खो गया और बस एक पेड़ से टकराकर पलट गई. हरियाणा के महेंद्रगढ़ के पुलिस अधीक्षक अर्श वर्मा के मुताबिक 11 अप्रेल के हादसे में छह छात्रों की मौत हो गई है जबकि लगभग 20 छात्र घायल हैं.

सबसे आश्चर्य की बात यह है कि निजी स्कूल ईद के दिन खुला हुआ था और जिला शिक्षा अधिकारी ने राज्य सरकार को स्कूल की मान्यता रद्द करने का प्रस्ताव भेजा है, दूसरी तरफ स्कूल प्रबंधन की ओर जिला प्रशासन की निगाह नहीं गई है जो सबसे बड़ा दोषी है जिसका यह काम था कि वह बच्चों की सुरक्षा का जिम्मेदार था मगर लापरवाही की गई.

स्थानीय निवासी एक अधिवक्ता का दावा सुर्खियों में है जो बता रहे हैं – कुछ गांव वालों को जब पता चला कि बस चालक नशे में है तो उन्होंने बस रोक ली लेकिन प्रधानाध्यापक ने हस्तक्षेप कर उनसे उसे छोड़ने का आग्रह किया और वादा किया कि आगामी समय से वाहन चालक बदल दिया जाएगा. हालांकि, कुछ मिनट बाद ही बस दुर्घटना का शिकार हो गई.

महेंद्रगढ़ की उपायुक्त मोनिका गुप्ता ने कहा कि निजी स्कूल ईद के दिन खुला था और राज्य के परिवहन मंत्री असीम गोयल ने कहा है – राज्य सरकार ने प्राथमिकी दर्ज करने के बाद घटना की जांच के आदेश दिए हैं. उन्होंने अधिकारियों को सभी स्कूल बसों की ‘फिटनेस’ की जांच करने का निर्देश भी दिया.बस पर पिछले दिनों जुर्माना लगाया गया था क्योंकि चालक के पास दस्तावेज नहीं थे और इसके बाद भी इसका इस्तेमाल करना स्कूल के अधिकारियों की ओर से स्पष्ट खामी को दर्शाता है.

पुलिस के मुताबिक -नियमों का उल्लंघन करते हुए स्कूल छुट्टी के दिन खुला रखा गया इस मामले में महेंद्रगढ़ के जिला परिवहन सह सचिव कार्यालय में एक सहायक सचिव को भी निलंबित कर दिया गया है. अतिरिक्त परिवहन आयुक्त (सड़क सुरक्षा) को निर्देश दिया गया है कि घटना के कारण की विस्तृत जांच की जाए और जिम्मेदार लोगों का पता लगाया जाए.

इस घटना की गूंज देश भर में हुई और लोग सोचने विवश हो गए की ऐसी दुर्घटनाएं दोबारा नहीं होनी चाहिए शायद यही कारण है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री साहब सिंह सैनी ने हादसे पर दुख जताया . मगर अभी तक यही देखा गया है कि ऐसी दुर्घटनाएं होती हैं नेता शोक व्यक्त करते हैं और चंद दिनों बाद सब कुछ सामान्य ढर्रे पर चलने लगता है जो यह बताता है कि हमारे देश में व्यवस्था कैसी लुंज पुंज बनी हुई है, जब तक इसे ठीक नहीं किया जाएगा ऐसे त्रासदी होते रहेंगी.

‘अनुपमा’ सीरियल में शादी से पहले हो जाएगा अनुज का एक्सीडेंट

स्टार प्लस पर आनेवाला शो अनुपमा इन दिनों दर्शकों के दिलों पर छाया हुआ है। यह शो बीएआरसी की रेंटिंग में अव्वल है।

इन दिनों शो की कहानी अनुपमा के अमेरिका जाने के इर्द-गिर्द घूम रही है। आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि आद्या को अपनी फेवरेट ड्रेस फटी हुई मिलती है और वह ऐसा करने का आरोप अनुपमा पर जड़

 

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वहीं अनुपमा उसकी ड्रेस को ठीक कर देती है लेकिन श्रुति अनुपमा को नीचा दिखाते हुए  इसका सारा क्रेडिट ले लेती है जिसके बाद आद्या श्रुति से प्रभावित हो जाती है।

आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि आद्या सभी हदों को पार कर जाएगी। इसी बीच शादी से पहले अनुज का एक्सीडेंट हो जाएगा।

इससे पहले के एपिसोड में आपने देखा था कि आद्या अनुपमा से नफरत करने लगती है और श्रुति की सराहना करती है। आद्या अपनी ज़िदगी में अनुज और श्रुति के साथ आगे बढ़ना चाहती है।

आद्या की बातों को याद करके अनुपमा भावुक हो जाती है और हसमुख जी उन्हें समझाते है। इसके बाद अनुपमा फंक्शन की तैयारी करती है।

इसी बीच अनुज भी शाह परिवार से मिलता है और उसे पता लगता है कि वो लोग इंडिया वापस जा रहे हैं। हसमुख अनुज से कहता है कि वो अपनी ज़िदगी में आगे बढ़ जाए। श्रुति अनुज के लिए डांस करती है। वहीं अनुपमा कुछ बिते पलों को याद करती है जो उसने अनुज के साथ बिताए थे।

 

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इसके बाद यशदीप आ जाता है और फंक्शन की तैयारियों को लेकर अनुपमा की तारीफ करते हुए पूछता है कि तुम सही हो। वो कहती है कि वो ठीक है और बस थोड़ा लो फील कर रही है और यशदीप से फोन पर बात करने के लिए कहती है और यशदीप उससे शाह परिवार के बारे में पूछता है तो अनुपमा कहती है कि सभी लोग आने वाले हैं।

सोना: ठगी के रंग हजार

ऐसा लगता है कि हमारा लालच हमें बार-बार बर्बाद करता है मगर हम हैं कि सुधरने को तैयार नहीं है छोटी से लालच में आकर के हम अपने कीमती रुपये पैसे गंवा बैठते हैं और सबसे दुखद पहलू गया है कि हमारे आसपास होती हुई इन घटनाओं को देखने के बावजूद हम अपने आप में सुधार नहीं लाते और एक बार फिर ठगी का शिकार हो जाते हैं.

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पुलिस ने मुंबई के दो शातिर ठगों को गिरफ्तार किया है. ये ठग वारदात को अंजाम देने के लिए फ्लाइट से रायपुर आते थे और वारदात करने के बाद वापस मुंबई भाग जाते थे. ठगों ने रायपुर की अलग-अलग ज्वेलरी दुकानों में नकली सोना गिरवी रखवा कर लाखों रुपये उधार लिए. जब दुकान मालिकों को यह बात पता चली, तो उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई.

पहली शिकायत विधानसभा थाने में महेश कुमार थवाईत ने लिखवाई. उन्होंने पुलिस को बताया – दोंदेकला में उनकी ज्वेलरी दुकान है. 19 मार्च को विशाल कुमार सोनी नाम का व्यक्ति गिरवी रखवाने के लिए सोने का ब्रेसलेट लेकर आया उसने अपना आधार कार्ड और गोल्ड ब्रेसलेट का बिल भी दिया था.
जब दुकानदार महेश ने उसे सोना गिरवी रखने का कारण पूछा तो ठग ने जमीन खरीदने का बहाना बना दिया। साथ ही कहा की उसे पैसे की तत्काल जरूरत है.ब्रेसलेट में होलमार्क भी छपा हुआ था. लिहाजा, महेश ने उसे 61 ग्राम सोना गिरवी रखने की एवज में 2 लाख 50 हजार रुपये उधार दे दिए.

आरोपियों ने इसी पैटर्न पर आरंग थाना क्षेत्र के समृद्धि ज्वेलर्स में नकली सोने का ब्रेसलेट गिरवी रखवा कर 2 लाख 10 हजार रुपए उधार लिए. साथ ही पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र के भी एक ज्वेलरी दुकान में भी इसी तरह नकली सोने के बदले रुपए ऐंठ लिए.

इन तीनों ही ज्वेलरी दुकान के मालिकों ने जब ब्रेसलेट को दोबारा बारीकी से चेक किया, तो वह नकली निकला. इसके बाद अलग-अलग दिनों में विधानसभा थाना, आरंग और पुरानी बस्ती थाने में शिकायतें पहुंचीं. इस एक ही पैटर्न में सिलसिलेवार ढंग से हुई ठगी के बाद पुलिस की नींद उड़ गई.इसके बाद आरोपियों की खोजबीन शुरू की गई.

घटना के सामने आने के बाद रायपुर पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार सिंह ने अधीनस्थों को इस मामले में फौरन जांच के निर्देश दिए. इसके बाद एंटी क्राइम यूनिट विधानसभा थाना पुलिस के साथ मिलकर आरोपियों की खोजबीन में जुट गई.

इस मामले में पुलिस को पहला क्लू इस बात से मिला कि आरोपियों ने ज्वेलरी दुकान में जो आधार कार्ड दिया था, वह दूसरे राज्य का था.जिसके बाद पुलिस ने अपनी जांच का दायरा बढ़ाकर दूसरे राज्यों तक किया। इस दौरान वहां भी इसी पैटर्न पर हुई ठगी का पता लगा। पुलिस ने कई फुटेज भी खंगाले.

पुलिस ने इन आरोपियों को शनिवार को रायपुर से ही गिरफ्तार कर लिया.महाराष्ट्र के रहने वाले इन आरोपियों के नाम साहेब बनर्जी और अक्षय सोनी हैं.आरोपियों ने पुलिस को बताया कि वह एक बार फिर ठगी करने के लिए रायपुर पहुंचे थे. उन्होंने गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, ओडिशा और झारखंड में भी इसी तरीके से वारदात को अंजाम दिया है। वह आने-जाने के लिए फ्लाइट का इस्तेमाल करते थे। पुलिस को आरोपियों के पास से 50 हजार रुपए कैश भी मिले हैं.

इस संपूर्ण घटनाक्रम को अगर हम ध्यान से देखें तो पाते हैं कि ठगी के नए-नए तरीके निकाल करके लोगों को ठगा जा रहा है और लोग भी छोटी सी लालच या फिर लापरवाही के कारण लोगों के शिकार हो जाते हैं.

स्पाइनल स्ट्रोक के उपचार के क्या-क्या विकल्प है?

सवाल

मेरी सास की उम्र 62 साल है. उन्हें कुछ दिन पहले स्पाइनल स्ट्रोक आया है. डाक्टर ने उन्हें सर्जरी कराने की सलाह दी है. मैं जानना चाहती हूं कि इस के उपचार के क्याक्या विकल्प हैं?

जवाब

स्पाइनल स्ट्रोक एक गंभीर स्थिति है जिस में स्पाइनल कार्ड की ओर रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है और इस के लिए तुरंत उपचार की जरूरत होती है. अगर समस्या अधिक गंभीर नहीं है तो कार्टिकोस्टेराइड (सूजन को कम करने), रक्त को पतला करने, रक्तदाब को कम करने और कोलैस्ट्रौल को नियंत्रित करने वाली दवाइयों से आराम मिल जाता है. आप की सास की स्थिति गंभीर होगी इसलिए डाक्टर ने सर्जरी की सलाह दी है. सर्जरी से डरने की जरूरत नहीं है, मिनिमली इनवेसिव सर्जरी (एमईएस) तकनीक ने सर्जरी को बहुत आसान बना दिया है. इस में पारंपरिक सर्जरी की तुलना में परेशानियां कम होती हैं और अस्पताल में ज्यादा रुकने की जरूरत भी नहीं होती है.

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