शाम का वक्त था भाग्यश्री के घर पर काफी चहलपहल थी. सभी सेवक भागभाग कर काम कर रहे थे. घर की सजावट देखने लायक थी. उसी समय वह कालेज से घर आई. यों कोलकाता का धर्मतल्ला काफी भीड़भाड़ वाला इलाका है. यही वजह थी कि उसे घर आतेआते देर हो गई थी. भाग्यश्री के पिता वहीं पर एक साधारण व्यापारी थे. वे दहेज के लिए पैसे इकट्ठा करने से ज्यादा अपनी दोनों बेटियों को शिक्षित करने पर जोर देते थे और इस में वे कामयाब भी रहे. भाग्यश्री को अपने घर में किए गए सजावट आदि के बारे में कुछ नहीं पता था.
‘‘अरे वाह, आज इतनी सजावट? कोई खास बात है क्या?’’ चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए भाग्यश्री ने पूछा.
‘‘शायद तेरी शादी का खयाल दिल में आया है, इसीलिए मम्मी ने लङके वालों को बुलाया है…’’ छोटी बहन दिव्या फिल्मी अंदाज में बोलती हुई उसे छेङने लगी.
‘‘मां, इस बार कौन आ रहा है तुम्हारी इस कालीकलूटी बेटी को देखने के लिए? कितनी नुमाइश करनी है आप को… क्यों नहीं थक जातीं आप?’’ कंधे से बैग उतार कर पैर पटकते हुए भाग्यश्री ने रोष प्रकट किया.
‘‘बेटा, बड़े अच्छे लोग हैं. तुम्हारी मौसी के सुसराल वाले हैं. लङका मानव यहीं यादवपुर में अपना कारोबार करता है. बहुत पैसे वाले लोग हैं.
“अच्छी बात क्या है पता है? तुम्हारे रंग से उन्हें कोई ऐतराज नहीं है बेटा,’’ मां ने उसे समझाते हुए लङके और उस के पूरे खानदान की जानकारी दी, जिस में भाग्यश्री की कोई दिलचस्पी नहीं थी.
‘‘यह क्या बात हुई… मुझ से पूछा भी नहीं और रिश्ता तय कर दिया? अभी तो स्नातक का आखिरी साल चल रहा है और उस के बाद मुझे कानून की पढ़ाई करनी है…’’ वह बोले जा रही थी.
‘‘हां पढ़ लेना, एक बार रिश्ता हो जाए उस के बाद सबकुछ करना. किस ने रोका है तुम्हें,’’ मां ने बीच में ही टोका.
‘‘और हर बार यही अच्छे और संस्कारी लोग न तुुम्हारी बेटी को डार्क कौंप्लैक्शन का खिताब दे कर चले जाते हैं…रहम करो मां,’’ भाग्यश्री पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई.
वहां बिस्तर पर उस के लिए एक सुंदर गुलाबी साड़ी रखी हुई थी.
“अब क्या इसे भी पहनना होगा,’’ वह लगभग चिल्ला कर बोली.
उस ने अपनेआप को आईने में देखा. लंबा कद, छरहरा बदन, पतले होंठ लेकिन सब से ऊपर उस का सांवला रंग… उस ने आईने से नजरें फेर लीं.
तभी गैस्टरूम से पापा की आवाज आई, ‘‘मेहमान आ गए.’’
पापा की आवाज सुनते ही भाग्यश्री का मन स्थिर हो गया. फिर वही सब होगा. लङके वालों को सबकुछ पसंद आएगा पर सांवली रंगत के आगे सब कुछ फीका पड़ जाएगा. वह अनमने ढंग से तैयार हो गई. उस की खूबसूरती गुलाबी साड़ी में और निखर गई थी. उस के तीखे नैननक्श किसी का भी दिल चुराने लिए काफी थे.
शरबत का गिलास लिए जैसे ही वह अंदर आई, मानव की नजरें भाग्यश्री पर स्थिर हो गईं. दोनों की आंखें चार हुईं, दिल की धङकनों ने एकसाथ धङक कर एकदूसरे का अभिनंदन किया. मानव को भाग्यश्री देखते ही पसंद आ गई थी. दोनों पक्षों में बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ ही था कि भाग्यश्री ने अपनी बात रख दी,”मुझे आप सभी से कुछ कहना है… मैं पहले अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी और एक सफल वकील बनने के बाद ही शादी करूंगी,’’ भाग्यश्री ने तनिक ऊंची आवाज में अपनी बात रखी, जिसे सुन सभी स्तब्ध हो गए.
मानव के घर वाले जहां बड़ी मुश्किल से उस के सांवले रंग से समझौता कर लङकी के घरेलू होने की बात पर राजी हो कर रिश्ता ले कर आए थे, वहीं उस का मुखर हो कर बोलना एवं पढ़ाई और नौकरी वाली बात को सभी के समक्ष बेबाक हो कर रखना उन से बरदाश्त नहीं हुआ.
मानव की मां मालती देवी बोलीें, ‘‘लड़कियों को घर के काम ही शोभा देते हैं और हमारा मानव इतना कमा लेता है कि उस की गृहस्थी अच्छे से गुजरबसर हो जाएगी. तुम्हारी नौकरी हमें…’’ वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि भाग्यश्री उठ खड़ी हुई. मालती देवी का इशारा साफ था. न तो वह भाग्यश्री को आगे पढ़ने की अनुमति दे रही थीं और न ही एक सफल वकील बनने की इजाजत जोकि भाग्यश्री का सपना था. ऐसे घर में शादी कर अपने सपनों को कुचलना उसे कतई मंजूर नहीं था.
उस ने उन की शर्तों पर शादी करने से इनकार कर दिया और अपने कमरे में चली गई. भाग्यश्री के इस व्यवहार को मालती देवी ने अपना अपमान समझ लिया और मानव का हाथ पकड़ कर खींचती हुईं कमरे से बाहर निकल गईं.
पर मानव का दिल तो वहीं भाग्यश्री के पास छूट गया था. उस ने घर पहुंचते ही भाग्यश्री के मोबाइल पर मैसेज किया…
“प्रिए भाग्यश्री,
‘‘मुझे आप के सपनों के साथ कदम से कदम मिला कर चलना है. मां पुराने खयालात की हैं लेकिन मेरा यकीन कीजिए कि मैं उन्हें मना लूंगा. आप बस वह कीजिए जो आप का दिल चाहता है और हां, कहीं अगर मेरी जरूरत महसूस हो तो एक बार आवाज जरूर दें.
“एक बात और… मैं मां के खिलाफ जा कर आप से शादी कर तो सकता हूं पर करना नहीं चाहता. थोड़ा समय दीजिए, मैं सबकुछ ठीक कर लूंगा. यकीन मानिए, मैं बारात ले कर आप के घर ही आऊंगा. आशा है तब तक आप भी मेरा इंतजार करेंगी.’’
“आप का और सिर्फ आप का
मानव.”
‘‘सामने तो कुछ बोला न गया, पीठ पीछे हल्ला बोल… बहुत देखे ऐसे आशिक आवारा,” कहते हुए वह संदेश को मिटाने लगी पर हाथ रुक गया. पहली बार किसी से इतनी आत्मीयता मिली थी, कैसे जाने देती भला.
इस बात को बीते लगभग 7 साल हो गए थे. भाग्यश्री ने वह मुकाम हासिल कर लिया था, जिस के लिए उस ने शादी के कई रिश्ते को ठुकराया था. वैसे इन 7 सालों में मानव ने कभी उसे अकेलेपन का एहसास होने नहीं दिया था. दोनों औपचारिक रूप से मिलते व एकदूसरे का हालचाल लेते रहते थे. यह बात और थी कि मालती देवी इन बातों से बिलकुल अनजान थीं. भाग्यश्री अपने सपनों को साकार करती सिविल कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगी थी. उस की छोटी बहन का विवाह अच्छे घराने में हो गया था.
उस दिन सुबह के करीब 10 बजे थे. मालती देवी रोजमर्रा के कामों के लिए अपने नौकरों पर हुक्म चला रही थीं. तभी उन की बेटी कामिनी रोतेबिलखते मुख्य दरवाजे से अंदर आई.
‘‘मां, अब मैं कभी ससुराल वापस नहीं जाऊंगी,’’ चेहरे पर खून जमने से बने स्याह धब्बे साफ नजर आ रहे थे.
कामिनी मानव की बड़ी बहन थी. कहने को तो शादी के 8 साल हो गए थे लेकिन 1 भी साल ऐसा नहीं गुजरा था जब कामिनी को सताया न गया हो और कामिनी रोतीबिलखती घर न आई हो. हर बार उसे समझा दिया जाता, हाथ जोड़े जाते थे और समझाबुझा कर उसे ससुराल भेज दिया जाता था.
‘‘लोग क्या कहेंगे… बेटी की डोली मायके से निकलती है और अर्थी ससुराल से,’’ मालती देवी हर बार इन्हीं बातों का वास्ता दे कर कामिनी को सुसराल भेज देती थीं और यही वजह थी कि उन्होंने भाग्यश्री का रिश्ता ठुकरा दिया था क्योंकि वह समाज के नियमों के विरुद्ध जा कर पढ़ना चाहती थी, अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी, वकील बनना चाहती थी. मगर आज कामिनी के इस दशा ने कोई ठोस कदम लेने पर उन्हें मजबूर कर दिया था.
‘‘राजू…राजू…’’ मालती देवी ने ड्राइवर को जोर से आवाज लगाई.
‘‘जी मैम साहब…’’ राजू दौड़ कर आया.
‘‘गाड़ी निकालो,’’ मालती देवी ने आदेश दिया.
‘‘कामिनी, गाड़ी में बैठो,’’ मालती देवी ने पर्स हाथ में लेते हुए कहा.
राजू गाड़ी निकाल कर खड़ा था. दोनों मांबेटी गाड़ी में बैठ गए. गाड़ी चलने लगी.
‘‘कहां जाना है मैम साहब?’’ ड्राइवर ने डरतेडरते पूछा.
‘‘सिविल कोर्ट,’’ मालती देवी ने आत्मविश्वास के साथ कहा.
कामिनी उन के चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी, क्योंकि उसे लग रहा था कि इस बार भी मां उसे ससुराल छोङने जा रही हैं और उस ने यह भी सोच लिया था कि इस बार अर्थी निकलने वाली बात को वह सच कर दिखाएगी.
लेकिन मां द्वारा सिविल कोर्ट का जिक्र करने से वह अपने अंदर संतोष का अनुभव करने लगी. अब तक वह दूर बैठी थी. करीब आ कर वह मां से लिपट कर रोने लगी.
सिविल कोर्ट के आगू राजू ने गाड़ी रोक दी. मालती देवी कामिनी का हाथ पकड़े लगभग दौड़ती हुई चल रही थीं. मन में केवल यही था कि इस बार बेटी को इस नकली रिश्ते से आजाद करना है, तलाक दिलवा कर ही चैन लेगी. जहां न पति का प्यार है, न सासससुर का स्नेह फिर क्यों बनी रहे वहां? उन्हें सारी बातें याद आ रही थीं कि किस तरह से कामिनी को बहू न समझ बेटी समझने का वादा किया था उस के ससुराल वालों ने लेकिन खोखले वादों के अलावा कुछ भी नहीं दिया था. मालती देवी के आंखों के आगे चलचित्र की तरह सारे दृश्य घूमने लगे थे.
कामिनी का हाथ थामे सिविल कोर्ट के बड़े से दरवाजे से अंदर चली गईं वह. सभी वकील अपनेअपने क्लाइंट के साथ व्यस्त थे. किस से अपनी बात कहे, किसी को तो नहीं जानतीं वे. तभी उन की नजर एक नेम प्लेट पर पड़ी ‘भाग्यश्री.’
नाम को दोहराया उन्होंने. यादों के मानस पटल पर धूल जम चुकी थी. उसे झाड़ा तो तसवीर साफ हो गई. वे लगभग दौड़ती हुई उस के पास पहुंचीं. भाग्यश्री के आगे हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं. उन्हें ऐसी स्थिति में देख कर भाग्यश्री हड़बड़ा कर उठ कर खड़ी हो गई. वह समझ नहीं पा रही थी कि मालवी देवी ऐसे क्यों खड़ी हैं? कई सवाल एकसाथ सामने आजा रहे थे.
‘‘आप बैठ जाइए न मैडम,’’ भाग्यश्री ने औपचारिकता निभाई.
‘मैडम कहा उस ने. लगता है, मुझे नहीं पहचाना,’ मन ही मन सोचने लगीं मालवी देवी.
मालती देवी ने पर्स से फोन निकाला और नंबर डायल करने लगीं,”मानव, तुम जहां कहीं भी हो यहां आ जाओ? पता राजू से पूछ लेना,’’ जल्दबाजी में केवल इतना ही बोल पाईं वह.
“मां, क्या हुआ?” मानव ने कभी मां को इस तरह बात करते नहीं सुना था. वह भी घबरा गया.
आधे घंटे में मानव उन सब के सामने था. भाग्यश्री ने मालती देवी को पानी पिलाया, उन्हें शांत किया और फिर एकएक जानकारी उन से लेने लगी.
मामला दहेज उत्पीङन का था.
‘‘मैडम देखिए, हमारे पास 2 रास्ते हैं, एक तो आप जा कर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाएं और आगे कानूनी काररवाई की लंबी प्रक्रिया होगी फिर जो फैसला होगा वह हमें मानना ही होगा. दूसरा, मैं कामिनीजी के ससुराल वालों से मिल कर उन्हें न्यायिक प्रक्रिया के साथ समझाऊं, क्योंकि किसी का घर टूटे यह कोई नहीं चाहता, मैं तो बिलकुल भी नहीं. आगे आप जैसा कहें,’’ भाग्यश्री बोले जा रही थी, जिसे मालवी देवी सुन कर निहाल हुई जा रही थीं और उन्हें अपने किए पर ग्लानि भी हो रही थी.
‘‘बेटा, तुुम्हें जो ठीक लगे वही करो,’’ मालती देवी बोलीं.
भाग्यश्री मानव के साथ जा कर कामिनी के ससुराल वालों से मिली. काले कोर्ट वाले को देखते ही वे सिहर गए थे. रहीसही कसर उस के रौबीले अंदाज ने पूरी कर दी थी. उस ने उन्हें दहेज उत्पीङन पर लगने वाले धाराओं के बारे में बताया. न मानने की स्थिति में होने वाले दुष्परिणामों की भी जानकारी दी. ‘मरता क्या न करता…’ नतीजा यह हुआ कि कामिनी के ससुराल वाले उन की हर बात मानने के लिए तैयार हो गए.
कामिनी के लिए 6 महीने का पूरा आराम, साथ ही पति द्वारा खाना बना कर खिलाए जाने की हिदायत एवं देखभाल करने की जिम्मेदारी सासससुर के ऊपर दे कर साथ ही दहेज में दी गई पूरी रकम को कामिनी के बैंक खाते में भेजने का आदेश दे कर भाग्यश्री और मानव वापस आ गए थे.
यह सब देख मालती देवी की आंखों में भाग्यश्री के लिए ढेर सारा प्यार उमड़ रहा था. जब उन्हें पश्चाताप करने का कोई और रास्ता नहीं दिखा तो एक दिन बेटे से बोलीं,‘‘मानव, मैं भाग्यश्री को बहू बनाना चाहती हूं, वह मान तो जाएगी न?”
‘‘मां, पिछले 7 सालों से वह भी हमारा ही इंतजार कर रही है.’’
‘‘सच मानव,’’ सजल नेत्रों से कहा मालती देवी ने.
उत्तर में मानव ने कुछ फोटोज दिखाए जिस में वे साथसाथ थे. भाग्यश्री के घर जा कर उस की मां से उन्होंने जो कुछ भी कहा वह काबिलेतारीफ थी,
‘‘मुझे अपने बेटे के लिए आप की होनहार और काबिल बेटी का हाथ चाहिए. आशा है, आप मुझे मना नहीं करेंगी.’’
भाग्यश्री की मां ने नम आंखों से मालती देवी को गले से लगा लिया था. मालती देवी ने भाग्यश्री के गले में सोने का हार पहनाया, ‘‘अब से मैं तुम्हारी मां हूं. मुझे मैडम मत कहना प्लीज,” मालती देवी ने याचना भरे शब्दों में कहा.
मानव वहीं सोफे पर बैठा मुसकरा रहा था. जैसे ही एकांत मिला तो बोल पङा, ‘‘कहा था न मैं ने बारात ले कर आप के घर ही आऊंगा…’’
भाग्यश्री क्या कहती भला… शरमा कर दोनों हाथों से चेहरे को ढंक लिया था उस ने.
‘‘वाह…वाह… जी, क्या जोड़ी है बनाई… भैया और भाभी को बधाई हो बधाई…” दिव्या ने फिल्मी अंदाज में गा कर दोनों को साथ खड़ा किया. फिर दोनों ने घर के सभी बड़े सदस्यों का आशीर्वाद लिया. माहौल बेहद खुशनुमा लग रहा था.