पूर्व कथा
ज्योति अपने भाई के घर मिलने जाती है तो उस की भाभी और भांजी अनवेक्षा उस का अपमान कर के उसे घर से निकाल देते हैं.
बस में बैठते ही उस का मन अतीत की गलियों में भटकने लगता है कि किस तरह भाभी के रूखे व्यवहार ने सभी भाईबहनों को भाई से अलग कर दिया. ज्योति जब अपने घर पहुंचती है तो सभी लोग खुश होते हैं लेकिन वह पति जतिन से वहां दोबारा न जाने की बात कहती है.
एक दिन पुलिस स्टेशन में ज्योति की मुलाकात अभिषेक से होती है. वह उसे नहीं पहचान पाता. घर आ कर वह जतिन को अभिषेक के बारे में बताती है और उस की मदद करने को कहती है.
जतिन की योजनानुसार उस के मैनेजर का बेटा अभिषेक को उस के आफिस ले कर आता है. वह बड़ी बदतमीजी से उस के साथ पेश आता है. फिर भी जतिन उसे अपना विजिटिंग कार्ड दे देता है. एक दिन अभिषेक अपने दोस्त विनीत के घर मिलने के लिए जाता है तो रास्ते में उसे जतिन मिलता है और अपने घर ले जाता है. वहां उस की मुलाकात मानसी से होती है. जतिन, मानसी को बताता है कि अभिषेक उस के दोस्त का बेटा है. वह अभिषेक से खाना खाने के लिए कहता है तो वह नानुकर करने लगता है लेकिन मानसी के स्नेह भरे व्यवहार और आग्रह करने पर वह खाना खाने को तैयार हो जाता है और अब आगे…
गतांक से आगे…
अंतिम भाग
‘‘क्या पापा, आप पुरानी बातें सुना कर इसे उदास कर रहे हैं,’’ मानसी बोली, ‘‘आओ अभिषेक, मैं तुम्हें अपनी सीडी का कलेक्शन दिखाती हूं.’’
‘‘मैं फिर आऊंगा, अभी चलता हूं,’’ कह कर अभिषेक ने हाथ जोड़ दिए.
लौटते समय विनीत के पास जाने का मन ही नहीं हुआ सो अभिषेक सीधा होस्टल चला गया. देर रात तक उसे अपने घर की बातें याद आती रहीं. उस की अनवेक्षा दीदी को तो शायद रसोई का नक्शा ही मालूम न हो. कभी वह जिद करता था तो फोन कर के पिज्जा मंगा देती थीं. मां को तो क्लब और किटी पार्टियों से ही फुरसत नहीं थी. पापा को हर पल ताना मार कर यह एहसास दिलाना उन का खास शगल था कि ये तमाम शानोशौकत, इतना बड़ा बिजनेस सब उन के पापा का दिया हुआ है. ये तमाम बातें याद करते करते वह गहरी नींद में सो गया.
सुबह कालिज जाते समय विनीत आ गया. पता नहीं क्यों विनीत का आना उसे अच्छा नहीं लगा. वह थोड़ा रूखे स्वर में बोला, ‘‘कहो, कैसे हो?’’
‘‘तुम तो यार बड़ी पहुंची चीज निकले. हम से आंख बचा कर ही निकल आए और हां, उन अंकल से तुम्हारी कैसे जानपहचान निकल आई?’’
‘‘मेरे पापा के वह पुराने मित्र हैं.’’
‘‘बच के रहना उन से क्योंकि तुम नशे की दुनिया के नए खिलाड़ी हो,’’ विनीत चेतावनी के लहजे में समझाते हुए बोला.
मन में बहुत कुछ उमड़ आया अभिषेक के. क्यों अच्छा इनसान बने वह, किस के लिए बने. उस की परवा भी किसे है. दीदी उस धोखेबाज के साथ अपना और मम्मी का जेवर ले कर भाग गईं. एक बार भी मुड़ कर अपने छोटे भाई की तरफ नहीं देखा. मां हार्टअटैक से चल बसीं. पापा को बिजनेस के घाटे और दीदी के सदमे ने इतना दर्द दिया कि शरीर को लकवा मार गया. अब तो उस बडे़ घर में भी उल्लू ही बोलते हैं. सारे नौकर, जिस को जो मिला समेट कर चलता बना. पापा की देखभाल के लिए सिर्फ बांके चाचा ही तो बचे हैं.
जतिन अंकल के प्रेम और मानसी के अधिकार से भरे अपनत्व ने अभिषेक के टूटे मन पर मरहम का काम किया. तीसरे दिन ही न चाहते हुए भी अभिषेक के कदम जतिन अंकल के घर की ओर उठ गए.
घंटी पर हाथ रखने से पहले ही मानसी दरवाजा खोले मुसकराती हुई खड़ी थी.
‘‘अंकल व आंटी कहां हैं. दिखाई नहीं दे रहे हैं.’’
‘‘कोई नहीं है. मम्मी- पापा एक शादी में गए हैं, थोड़ी देर से आएंगे.’’
‘‘आप को शादीब्याह में जाना क्या अच्छा नहीं लगता?’’
‘‘अच्छा क्यों नहीं लगता पर वह क्या है कि अब मैं शादी लायक उम्र में हूं और मुझे देखते ही लोग मां को शादी लायक लड़कों के रिश्ते बताने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि दूल्हादुलहन को बधाई देना भी भूल जाते हैं. इसीलिए शादियों में जाना मैं ने बंद कर दिया है…अरे, तुम हंस क्यों रहे हो? मैं ने कोई जोक थोडे़ ही मारा है.’’
‘‘नहीं, मैं सिर्फ देख रहा हूं कि आप कितनी रफ्तार से और कितना सारा बोल सकती हैं.’’
‘‘हां, यह तो है. मुझे बोलना और बातें करना अच्छा लगता है. पर तुम क्या इतने ही चुप रहते हो हमेशा? अब तुम भी तो कुछ बोलो.’’
‘‘मैं…मैं क्या बोलूं?’’ अभिषेक सकपका गया.
‘‘चलो, मैं बताती हूं, तुम कुछ अपने घरपरिवार के बारे में बताओ, कौनकौन हैं घर में? अंकल व आंटी कैसे हैं. पापा बता रहे थे कि तुम्हारी एक बड़ी बहन भी है. कहां है वह?’’
‘‘बहुत लंबी कहानी है. सुन कर ऊब जाएंगी आप.’’
‘‘मैं ऊब क्यों जाऊंगी,’’ मानसी बोली, ‘‘तुम बताओ तो सही.’’
अभिषेक ने अनवेक्षा के घर से भागने से ले कर मां की मृत्यु और पिता के बिस्तर पर लाचार पड़ने की सारी कहानी मानसी को बता दी.
रसोई में ही बैठा कर उस से बातें करतेकरते मानसी ने अपने और उस के लिए खाना बनाया. खाना खाते समय अभिषेक बोला, ‘‘तुम इतना स्वादिष्ठ खाना बना लेती हो और मेरी दीदी तो रसोई में घुसती भी नहीं थीं.’’
अभिषेक चला गया, देर रात गए जब ज्योति और जतिन आए तो मानसी ने अभिषेक के आने के बारे में बताया, साथ ही अभिषेक ने अपने परिवार के बारे में जो कुछ मानसी को बताया था उसे भी उस ने अपनी मां को बता दिया.
अभिषेक के परिवार की दुख भरी कहानी सुनने के बाद ज्योति का चेहरा सफेद पड़ गया. जतिन भी बेहद दुखी हो उठे. मानसी दौड़ कर गई और रसोई से पानी ला कर मां को दिया फिर बोली, ‘‘मां, तुम सुन कर इतनी परेशान हो उठीं. सोचो, अभिषेक ने तो यह सब अपनी आंखों से देखा है, भोगा है. इतनी कम उम्र में इतना सब देखने के बाद अगर वह गलत रास्ते पर भटक गया तो उस का क्या दोष है?’’
‘‘तुम ठीक कह रही हो, मनु, पर इस से पहले कि वह नशे की दुनिया में बहुत आगे बढ़ जाए, उसे वापस लाना होगा.’’
‘‘मुझे लगता है यह कोई खास मुश्किल काम नहीं है क्योंकि अभी भी उस के मन में अपने घर वालों के लिए स्नेह का झरना बह रहा है. बस, वक्त के बहाव ने उस में मिठास की कमी कर दी है. सिर्फ उसे उस झरने का एहसास कराना है और उस से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है उसे उस के खतरनाक दोस्तों से दूर करना.’’
अगली शाम ज्योति ने खाना खाते समय मानसी से कहा, ‘‘बेटी, इस बार शुभम को राखी वक्त से भेज देना. देर होने पर वह उदास हो जाता है और फिर बहुत नाराज भी होता है.’’
‘‘मां, मैं इस बार अभिषेक को बुला कर राखी बांधूं?’’
‘‘नहीं,’’ ज्योति की आवाज की दृढ़ता से जतिन और मानसी दोनों चौंक उठे.
‘‘आखिर वह है तो उसी ओछी मानसिकता की पैदावार. क्या पता तुम्हारी राखी…तुम्हारे स्नेह को वह पैसे लूटने का एक बहाना समझे और मैं यह कतई बरदाश्त नहीं करूंगी,’’ कह कर मेज से प्लेट उठाने लगी ज्योति.
राखी वाले दिन अभिषेक कुरता- पाजामा में आ कर दरवाजे पर खड़ा हो गया. उसे मुसकराता देख कर मानसी का मन खुशी और आश्चर्य से भर गया.
‘‘अरे, तुम? आज कैसे तैयार हो कर आए हो?’’
‘‘क्यों, आज राखी है न?’’
मानसी ने उसे अंदर ड्राइंगरूम में बैठाया और ‘अभी आई’ कह कर, अंदर चली गई.
मानसी अंदर से पानी का गिलास ले कर आई तो अभिषेक बोला, ‘‘अरे, मैं तो समझा कि आप राखी की थाली लेने गई हैं. जानती हो, आज मैं कितने बरसों बाद राखी बंधवाऊंगा. अनवेक्षा दीदी तो इस त्योहार को हंसी में टाल देती थीं. कहती थीं, ‘कमाल है, यह छुटकू मेरी क्या रक्षा करेगा? अपने को संभालने के लिए मैं खुद ही काफी हूं. रही शगुन की बात तो पापा की जायदाद में से आधा हक तो है ही मेरा, फिर मैं इस के हिस्से में से पनौती क्यों मारूं?’ मेरा मन रखने के लिए भी उन्होंने मुझे कभी राखी नहीं बांधी पर कल जब समीर ने कहा, ‘देख, अभिषेक, मैं ने दोनों बहनों को राखी का उपहार देने के लिए पैसे जमा किए हैं. चल, मेरे साथ चल कर उन के लिए कुछ खरीद दे, कल राखी है न,’ तो अचानक मेरी आंखों के सामने तुम्हारा चेहरा आ गया. मुझे लगा कि राखीरोली का थाल सजा कर तुम शायद मेरा इंतजार करोगी, पर…’’
उस की बात बीच में काट कर मानसी बोली, ‘‘भाई, जब तक आ कर इस चौकी पर बैठोगे नहीं तो कैसे तुम्हारी आरती उतारूंगी.’’
चौंक कर देखा अभिषेक ने. लाल बांधनी का सूट पहने मानसी हाथ में थाल पकडे़ मुसकराती हुई खड़ी थी. इतनी जल्दी इतना सबकुछ, अवाक् रह गया वह.
अभिषेक की आरती उतार कर मानसी ने उस की कलाई पर राखी बांधी और माथे पर तिलक लगा कर मुंह में मिठाई डाल दी. हंसते हुए अभिषेक ने भी उस के मुंह में बरफी का टुकड़ा भर दिया.
मानसी ठुनक पड़ी, ‘‘और भैया, मेरा तोहफा?’’
एक पल चुप रह कर अभिषेक ने स्नेहिल स्वर में कहा, ‘‘इतने अनमोल पल में तुम्हें देने के लिए पैसे से खरीदा कोई तोहफा काफी नहीं होता, इसलिए मनु दी, मेरे लिए यह राखी कितनी कीमती है, इस का अंदाजा शायद आप नहीं लगा सकतीं. हां, तोहफे के रूप में एक वादा आप को थमाता हूं कि तुम्हारा भाई, आज इस दिन से ही अपनी तमाम गंदी आदतों को छोड़ कर एक अच्छा इनसान बनेगा.’’
‘‘मेरे लिए इस से कीमती तोहफा कोई और हो भी नहीं सकता मेरे भाई, और आज का दिन सरप्राइज देने का है तो मैं तुम्हें एक और सरप्राइज दूंगी, पहले आंखें बंद करो.’’
मां का हाथ पकड़ कर मानसी उन्हें परदे से बाहर ले आई.
‘‘अब खोलो.’’
सामने ज्योति को खड़ा देख अभिषेक अचानक बौखला ही गया.
‘‘आप…आप तो गर्ल्स कालिज की प्रधानाचार्या हैं.’’
‘‘हां, पर तुम्हारी बूआ भी हूं. वही बूआ जिसे याद कर एक दिन तुम मानसी से कह रहे थे कि उन के स्नेह भरे आंचल की छांव तुम्हें भूले नहीं भूलती.’’
‘‘हैलो, एक्सक्यूज मी. मिस्टर अभिषेक, यहां एक अदद थैंक्यू के हकदार तो हम भी हैं. आखिर आप के फूफाजी जो ठहरे.’’
‘‘आप को एक क्या, हजार थैंक्यू कह कर भी उस प्यार का बदला मैं नहीं दे पाऊंगा. मुझे सही वक्त पर मेरी बहन का स्नेह, एक अच्छे अंकल का साथ और एक स्नेहिल परिवार सभी कुछ, फूफाजी, आप की वजह से ही तो मिला है.’’