संयुक्त परिवार में रहने के कारण काफी परेशान हो गई हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 32 वर्षीय विवाहिता हूं. संयुक्त परिवार में रहती हूं. मेरे सासससुर के अलावा विवाहयोग्य देवर भी है. मेरी एक ननद भी है, जो विवाहिता है. समस्या यह है कि मेरी सास हमेशा हम पर दबाव बनाए रखती हैं कि हम ननद के लिए वक्तबेवक्त उपहार देते रहें. और तो और मेरी ससुराल वाले मेरे मायके से भी लेने का कोई मौका नहीं छोड़ते. घर का सारा खर्च हमें ही उठाना पड़ता है. ससुर रिटायर्ड हैं. देवर नौकरी करता है पर घरखर्च के लिए 1 रुपया नहीं देता. कभी कहो तो सुनने को मिलता है कि शादी के बाद वह भी जिम्मेदारी समझने लगेगा. इतनी महंगाई में एक व्यक्ति पर सारी गृहस्थी का बोझ डालना क्या वाजिब है? पति अपने मांबाप के सामने कभी जबान नहीं खोलते. ऐसे में मेरा उन से इस बारे में कुछ कहना क्या उचित होगा? पति को परेशान होते देखती हूं तो दुखी हो जाती हूं. बताएं क्या करूं?

जवाब-

आप के सासससुर को जीवन का लंबा अनुभव है. जब आप का देवर भी कमा रहा है, तो उस पर भी घरखर्च की जिम्मेदारी डालनी चाहिए. दोनों भाई मिल कर खर्च उठाएंगे तो किसी एक को परेशान नहीं होना पड़ेगा. इस के अलावा ननद पर भी खास मौके पर और अपनी हैसियत के अनुसार ही खर्च करें. सासससुर विशेषकर अपनी सास से शालीनता से बात कर सकती हैं कि वे देवर से भी घर की थोड़ीबहुत जिम्मेदारी उठाने को कहें. पूरे परिवार का एक व्यक्ति पर निर्भर रहना सही नहीं है. प्यार से बात करेंगी तो वे अवश्य इस विषय पर विचार करेंगी. भले ही शुरू में उन्हें आप का हस्तक्षेप अखरे और आप को आलोचना भी सुननी पड़े पर पति के भले के लिए आप इतना तो सुन ही सकती हैं.

बढ़ रहा है वॉटर बर्थ डिलीवरी का चलन, जानिए इसके कारण और फायदे

जब बात बेबी बर्थ डिलीवरी की होती है, तो अधिकतर दो ऑप्शंस का नाम लिया जाता है पहला नार्मल या वजाइनल बर्थ और दूसरी सी सेक्शन डिलीवरी. लेकिन, आजकल एक और डिलीवरी ऑप्शन भी चर्चित हो रहा है, जिसे वॉटर बर्थ डिलीवरी के नाम से जाना जाता है. दूसरे देशों में यह तकनीक अधिक प्रचलित है. इसमें पानी के अंदर बेबी की डिलीवरी होती है. इस तकनीक के कई फायदे हैं लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं. आइए जानें क्या हैं इसके फायदे और क्या हो सकते हैं इसके नुकसान?

वॉटर बर्थ डिलीवरी के फायदे क्या हैं?

वॉटर बर्थ डिलीवरी का अर्थ है कि गर्भवती महिला के लेबर, डिलीवरी या दोनों का कुछ पार्ट पानी के पूल में कराना. इस डिलीवरी को अस्पताल, बर्थ सेंटर या घर में ही किया जा सकता है. डॉक्टर, नर्स आदि इसमें मदद करते हैं. इस डिलीवरी के कई फायदे हैं, जैसे:

1- आरामदायक-

वॉटर बर्थ डिलीवरी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे फीटल कॉम्प्लीकेशन्स कम होती है. इस प्रोसेस में टेंस नर्वस और मसल्स को आराम मिलने में मदद होती है. यह एक आरामदारक प्रोसेस है.

2- नेचुरल पेन रिलीफ-

वॉटर बर्थ के दौरान गर्म पानी एक नेचुरल पेन रिलीवर का काम करता है. इससे नर्वस को आराम मिलता है और ब्लड प्रेशर लेवल भी सही रहता है.

3- लेबर का समय कम होता है-

स्टडीज यह बताती हैं कि लेबर के फर्स्ट स्टेज के दौरान गर्म पानी में रहने से लेबर का समय कम होता है.

4- कम कॉम्प्लीकेशन्स-

यह बात साबित हुई है कि जो महिलाएं वॉटर में बर्थ को चुनती हैं उन्हें स्ट्रेस कम होता है. यही नहीं, इससे शिशु के जन्म के दौरान चोट लगने का खतरा भी कम होता है.

वॉटर बर्थ डिलीवरी के नुकसान
वॉटर बर्थ डिलीवरी के दौरान कुछ समस्याएं भी हो सकती हैं जो हालांकि दुर्लभ हैं. यह नुकसान इस प्रकार हैं:

-इससे गर्भवती महिला और शिशु को इंफेक्शन हो सकता है.
-शिशु के पानी से बाहर आने से पहले गर्भनाल टूट सकती है.
-शिशु के शरीर का तापमान बहुत अधिक या कम हो सकता है.
-शिशु बर्थ वॉटर में ब्रीद कर सकता है या उसे अन्य समस्याएं हो सकती हैं.

हालांकि, वॉटर बेबी बर्थ बहुत ही सुरक्षित है. लेकिन, इसे अनुभवी एक्सपर्ट्स और डॉक्टर की प्रजेंस में किया जाता है. यही नहीं, अगर किसी को प्रेग्नेंसी में डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है, तो उन्हें इससे बचना चाहिए. प्रीमेच्योर डिलीवरी में भी इसकी सलाह नहीं दी जाती है.

Women’s Day 2024: कम उम्र में ही तरनप्रीत कौर ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में विशारद की डिगरी ली

तरनप्रीत कौर मेहंदी भारत की पहली आॢटस्ट मैनेजमैंट कंपनी ‘डी रिकाड्र्स’ की सीईओ हैं. साथ ही वे आॢकटैक्ट, लेखिका, गायिका, सौंग कंपोजर, ड्रैस डिजाइनर, मां और फेमस पौप ङ्क्षसगर दलेर मेहंदी की पत्नी भी हैं. डीरिकौड्र्स कंपनी एक रिकौर्ड लेबल है जिसे ऊंचाइयों तक पहुंचाने का श्रेय तरनप्रीत मेहंदी को ही जाता है. डी रिकौड्र्स कंपनी नई दिल्ली में स्थित है जहां तरन मेहंदी ने कई

शैलियों में संगीत अलबम बनाए हैं. उन्होंने इम्तियाज अली रियाज अली, उस्ताद हुसैन बख्श गुल्लू जैसे कुछ प्रतिष्ठित कलाकारों के साथ भी काम किया है.

जगजीत सिंह से सराहना

तरन मेहंदी ने चंदा नारंग ‘इंस्टिट्यूट औफ फिल्म,’ नई दिल्ली से फिल्म मेङ्क्षकग में डिप्लोमा किया है और दूरदर्शन के लिए वौल्ट डिजनी कार्टून मिकी माउस और डोनाल्ड डक के ङ्क्षहदी डब संस्करण के लिए प्रोडक्शन मैनेजर और स्क्रिप्ट राइटर के रूप में भी काम किया है. उन्होंने गर्ल चाइल्ड ‘गुडिय़ा रानी’ समेत कई वीडियो बनाए. संगीत के प्रति तरन मेहंदी के जनून के लिए उन्हें गुलाम अली खान साहब से ले कर जगजीत ङ्क्षसह तक से सराहना मिली है. तरन मेहंदी वर्तमान में हायर कौंशियसनैस पर एक किताब लिख रही हैं.

अपनी जर्नी के बारे में बताते हुए तरनप्रीत कहती हैं, ‘‘मैं ने कम उम्र में ही ङ्क्षहदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में विशारद की डिगरी ली. मु?ो स्पिक मैके से स्कौलरशिप भी मिली. स्कूल के समय से ही मेरी गुरबाणी गाने में बहुत रुचि रही है. वैसे मैं प्रोफैशनली आॢकटैक्ट हूं. मैं ने बीआईटी से आॢकटैक्चर किया है. मगर आॢकटैक्चर पढऩे के बाद मु?ो लगा जैसे म्यूजिक मु?ो अपनी तरफ खींच रहा है. आॢकटैक्ट पढऩे के समय से ही मैं ने अपने कंसर्ट आयोजित करने शुरू कर दिए थे. मेरे इस कैरियर की शुरुआत हुई जगजीत ङ्क्षसहजी के साथ.

1994 में अंबेडकर स्टेडियम दिल्ली में

मैंने पहला कंसर्ट आयोजित किया था जो जगजीतजी का भी ऐसा पहला और आखिरी कंसर्ट था जहां उन्होंने लुंगीलाचा पहन कर परफौर्म किया और डांस भी किया. यह बैसाखी का प्रोग्राम था. बड़ेबड़े दिग्गज पंजाबी गायक

वहां मौजूद थे. इस कंसर्ट में दलेर साहब भी गा रहे थे. उन का पहला स्टेडियम कंसर्ट था. वहां पर जगजीतजी के कहने पर मैं ने पहली दफा 10 हजार लोगों के बीच उन के साथ संगत की. यह मेरे म्यूजिक जीवन का माइलस्टोन इवेंट बन गया.

माइलस्टोन इवेेंट

1994 में मैं ने अपनी कंपनी अवालांच की शुरुआत की थी और कई गजलों के शो और ब्रैंङ्क्षडग प्रोजेक्ट्स किए. उसी समय दलेर साहब एक कंपनी खोलने का प्लान बना रहे थे. 1996 के आसपास दलेर जी की डी. एम. ऐंटरटेनमैंट कंपनी ओपन हुई जिस ने कई माइलस्टोन स्थापित किए. यह आॢटस्ट मैनेजमैंट कंपनी थी. इस ने बहुत ऊंचाइयां छुईं. विदेशों तक में कंसर्ट आयोजित किए.

जवां दिखने के लिए कर लें इन 4 फलों से कर लें दोस्ती

उम्र  से पहले यदि आपकी त्वचा बेजान, आंखों के नीचे काले घेरे ,कमजोरी ,झुर्रियां ,व त्वचा की चमक खोने लगी है तो जरूरी है की आप अपने खान पान की आदत में बदलाव करें.  क्योंकि संतुलित व पौष्टिक आहार के साथ साथ  फलों का सेवन हमें लम्बे समय तक जवां बनाए रखने में मदद करता है. साथ ही हमें शारारिक व मानसिक रूप से भी स्वस्थ बनाता है. इस लेख में हम आपको कुछ ऐसे फलों  के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपको युवा बनाएं रखने में मदद करेंगे.

 1-अनार

अनार एंटी ऑक्सीडेंट व पॉलीफेनोल गुणों से भरपूर होता है. इसमें एंथोसायन्स, एलेजिक एसिड ,पोटैशियम, फाइबर, विटामिन की अधिक मात्रा पाई जाती है. जो त्वचा को डिटॉक्स करने में मदद करते  हैं. इससे त्वचा मुलायम और चमकदार होती ह. यह हमारे इम्युन  सिस्टम और  ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाने के साथ साथ खराब कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है व हृदय रोग और  कैंसर के खतरे को कम करता है.अनार में विटामिन और मिनरल के साथ फ्लोरिक एसिड पाया जाता हैं जो गर्भवती महिलाओं के लिए फायदेमंद होता है.

2-केला

केले में पोटाशियम ,कैरोटीन ,विटामिन ई,बी १ ,बी और सी शामिल होते हैं जो हमारी त्वचा के लिए फायदेमंद हैं. इससे त्वचा बेदाग और निखरती है.  केले का नियमित सेवन आपको त्वचा के साथ आपके बोलों को भी चमकदार बनता है  साथ ही यह आपको ह्रदय रोग , ब्लड प्रेशर ,कैंसर जैसी  बिमारियों से बचता भी है व पाचनतंत्र को स्वस्थ रखता है.

3-संतरा

संतरे में भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होते हैं, जो त्वचा को  अल्ट्रावायलेट किरणों से बचातें हैं. यदि संतरे के छिलके का पाउडर  नियमित रूप से लेप बनाकर चेहरे पर लगाया जाए तो त्वचा चमकदार ,बेदाग होती है इससे  झुर्रियां और  टैनिंग खत्म होती है. साथ ही संतरा हमें अल्सर ,बवासीर , पथरी ,  जोड़ो के दर्द ,डिप्रेशन जैसी बिमारियों में राहत दिलाता है व कैंसर ,ह्रदय रोग ,व आँखों से संबंधित रोगो से बचाता है.

4-स्ट्रॉबेर्री

स्ट्रॉबेरी, में एंटीऑक्सीडेंट गुण , पॉलीफेनोल कंपआउंड व कई  पौष्टिक तत्व जैसे प्रोटीन, कैलोरी, फाइबर, आयोडीन, फोलेट, ओमेगा 3, पोटेशियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, विटामिन आदि पाए जाते हैं. इसमें मौजूद अल्फा हाइड्रोक्सी एसिड मृत त्वचा को जीवित कर नई सेल्स का निर्माण करता है. साथ ही इसमें सलिसीक्लिक एसिड और एललगिक एसिड की उपस्थ्ति सभी काले धब्बों को हटाने में मदद करते हैं यह हमें गठिया ,डायबिटीज,गर्भावस्था ,वजन घटाने ,कैंसर से बचाव में फायदेमंद हैं साथ ही इसमें पाये जाने वाले अफ्रोडीसीएक  कामोत्तेजना को बढ़ाने में सहायक होता है.

Women’s Day 2024: तो महिलाएं हैं पुरुषों से बेहतर ड्राइवर

औफिस में बैठे 4 पुरुष दोस्त महिलाओं के गाड़ी चलाने को ले कर बातें कर रहे हैं. एक पुरुष कहता है, ‘‘महिलाएं कई बार बिना इंडिकेटर के खटाक से लेन बदल देती हैं.’’

उस पर हंसते हुए दूसरा पुरुष दोस्त कहता है, ‘‘हां, सही कह रहे हो भाई, लेकिन ये महिलाएं मानती ही कहां हैं कि इन्हें ठीक से गाड़ी चलाना नहीं आता. पार्किंग की तो जरा भी सैंस नहीं है इन में. गाड़ी कहीं भी पार्क कर देती हैं.’’

उस पर तीसरा पुरुष दोस्त उन की हां में हां मिलाते हुए कहता है, ‘‘मैं ने जब भी ड्राइव करते हुए अचानक ब्रेक लगाए, तो ज्यादातर मेरे आगे गाड़ी चलाने वाली महिला की ही गलती होती है.’’

उस पर चौथा दोस्त ठहाके लगाते हुए बोलता है, ‘‘तभी तो औरतों को गाड़ी चलाते देख मैं और ज्यादा सतर्क हो जाता हूं क्योंकि उन का क्या भरोसा, कहीं ठोक दिया तो वेबजह मारा जाऊंगा.’’

शबनम कहती हैं, जब सिर पर हैलमेट और हाथों में ग्लव्स पहने अपनी बुलेट पर वे निकलती हैं, तो लोगों को यह बात कुछ हजम नहीं होती. रोजरोज सड़कों पर इन का सामना चौंकाई हुई नजरों से होता है. एक बार जब वे और उन की महिला मित्र बाइक पर सवार थीं और जब रास्ते में ट्रैफिक सिगनल पर वे रुकीं तो पास खड़े मारुति वैन में बैठे कुछ पुरुष चिल्लाते हुए बोलें कि अरे, देखो.

बाइक चलाने वाली महिला और पिछली सीट पर भी महिला. उस के बाद आसपास मौजूद लोग उन्हें अजीब नजरों से देखने लगे. उन्हें बाइक पर देख कुछ पुरुषों ने आश्चर्य के बजाय घृणा व्यक्तकी. बाइक चलाते वक्त एक युवक ने तो उन्हें धक्का तक देने की कोशिश की.

बदली नहीं सोच

पितृसत्तात्मक समाज यह बात पचा नहीं पाता है कि गाड़ी में पीछे बैठने वाली महिलाएं आगे आ कर इतनी अच्छी ड्राइविंग कैसे कर सकती हैं. देश में पहले महिलाएं किचन और बच्चे संभालती थीं और पुरुष के हाथों में स्टेयरिंग होता था. लेकिन अब जमाना बदल गया है. महिला को ड्राइवरी करते देख पुरुषों को उन की आजादी पची नहीं और आज जब वे किसी महिला को गाड़ी चलाते देखते हैं तो उन्हें सहन नहीं होता और अपनी खुन्नस निकालने के लिए तरहतरह के कमैंट्स करने लगते हैं कि पता नहीं इन्हें गाड़ी चलाने क्यों दे देते हैं.

अगर कोई महिला धीरे गाड़ी चला रही है, तो कहेंगे कि अरे, अभी नईनई गाड़ी चलाना सीख रही है न और अगर पूरे विश्वास के साथ गाड़ी चला रही होती है, तो ऐसे आंखें फाड़ कर आश्चर्य से देखते हैं जैसे दुनिया का कोई अजूबा दिख गया हो उन्हें. अगर महिला ड्राइवर गाड़ी पार्किंग में लगा रही होती हैं तो पुरुष उस की मदद के लिए आ जाते हैं. उन्हें लगता है कि औरत है, इसलिए यह काम उस से नहीं हो पाएगा. अगर महिला ट्रैफिक जाम में फंस जाती है तो सुनने को मिल जाएगा कि आप से नहीं होगा, मैं कर देता हूं. लोग यह क्यों नहीं सम झते कि औरतें भी पुरुषों की ही तरह हैं. उन के भी 2 पैर, 2 हाथ, 2 आंखें और 1 दिमाग है. फिर अगर वे भी सड़कों पर गाड़ी दौड़ा रही हैं तो इस में इतना आश्चर्यचकित होने वाली क्या बात है.

औटो, कैब चलाते पुरुष दिख जाएं तो ठीक, पर अगर महिला दिख जाए, तो लोग हैरानी से आंखें फाड़ कर देखने लगते हैं. क्या कभी आप ने किसी डिलीवरी गर्ल के लिए दरवाजा खोला है? भारत सहित दक्षिण एशियाई क्षेत्र, दुनिया भर में परिवहन क्षेत्र में महिला श्रमिकों के सब से कम शेयरों में से एक है और मध्य पूर्व की तुलना में केवल मामूली रूप से अधिक है, जहां कानूनी मानदंडों ने कुछ महिलाओं को ड्राइविंग से रोक दिया था.

मिथक तोड़ती महिलाएं

महिलाओं की ड्राइविंग को ले कर जब भी चर्चा होती है, हमेशा यही बात कही जाती है कि वे बहुत बुरी ड्राइविंग कहती हैं. बातबात पर महिलाओं, लड़कियों की ड्राइविंग का मजाक उड़ाने वाले बाहर तो कम, घर में ही ज्यादा मिल जाएंगे. और तो और वे भी उन का मजाक बनाने से बाज नहीं आते, जिन्हें खुद ठीक से गाड़ी चलाना नहीं आता है. लेकिन एक सर्वे में यह खुलासा हो चुका है कि महिलाएं पुरुषों से बेहतर ड्राइविंग करती हैं.

ब्रिटेन की ब्रैडफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि महिलाओं में ऐस्ट्रोजन हारमोन होता है. वह नए नियम सीखने में उन की क्षमता को पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ा देता है. ऐस्ट्रोजन हारमोन महिलाओं में पाया जाने वाला सैक्स हारमोन है जो उन के रिप्रोडक्टिव सिस्टम के विकास में भी मदद करता है. महिलाओं की बौडी में हारमोन का बहुत बड़ा रोल होता है, जो दिल से ले कर दिमाग तक को कंट्रोल करता है. ऐस्ट्रोजन हारमोन महिलाओं के लिए काफी लाभदायक माना गया है.

होनहार होती हैं महिलाएं

स्टडी में 18 से 35 साल के बीच के 43 पुरुषों और महिलाओं से उन की ड्राइविंग स्किल को ले कर सवाल पूछे गए. इन में रूल्स सीखने, ध्यान केंद्रित करने, योजना बनाने और कार कंट्रोलिंग स्किल से संबंधित सवाल शामिल किए गए थे. एक से दूसरी स्थिति पर ध्यान बदलने की कला में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले ज्यादा जीनियस पाया गया और इसी स्किल की वजह से उन्हें ड्राइविंग और दूसरे कामों में होनहार पाया गया.

मनोवैज्ञानिक योगिता कादियान का कहना है कि महिलाएं अपनी हर जिम्मेदारी की तरह ड्राइविंग रूल्स, ट्रैफिक रूल्स को भी अच्छी तरह फौलो करती हैं. वहीं पुरुष ड्राइविंग के दौरान किसी और काम को भी करना शुरू कर देते हैं जैसे मोबाइल पर बात करना, स्टीरियो सिस्टम से छेड़छाड़ लेकिन महिलाएं अपना पूरा ध्यान ड्राइविंग पर रखती हैं.

चौंकाने वाले तथ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2016 के आंकड़ों के मुताबिक, 5 करोड़ लोग हर साल सड़क हादसों के शिकार होते हैं. इन में 10 लाख लोगों की मौत हो जाती है. दुनिया में सब से कम सड़क हादसे नौर्वे में होते हैं. नौर्वे की संस्था ‘ट्रांसपोर्ट इकोनौमिक’ ने यह एक शोध 1100 ड्राइवरों पर किया था. शोध में पाया गया था कि गाड़ी चलाते समय महिलाओं के मुकाबले पुरुष ड्राइवरों का ध्यान ज्यादा भटकता है.

एक दूसरा शोध हाइड पार्क इलाके में हुआ था. हाइड पार्क चौराहा वहां का सब से व्यस्त चौराहा माना जाता है. वहां हुए एक सर्वे के मुताबिक, महिलाएं ड्राइविंग में पुरुषों से कई मामलों में बेहतर हैं. जिन मामलों में उन्हें कैलकुलेट किया है था वे इस प्रकार है:

गाड़ी की स्पीड, इंडिकेटर का इस्तेमाल, स्टेयरिंग कंट्रोल, गाड़ी चलाते समय फोन पर बात करने आदि.

इस सर्वे में महिलाओं को 30 में से 23.6 अंक मिले थे जबकि पुरुषों को महज 19.8 अंक.

पुरुष करते हैं खतरनाक ड्राइविंग

शोधकर्ता के मुताबिक, अगर अधिक महिलाओं को ट्रक चलाने का रोजगार मिल जाए, तो सड़कें काफी सुरक्षित होंगी. लंदन का वेस्टमिंस्टर यूनिवर्सिटी में रेशल एल्ड्रेड ने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादातर ड्राइवर की नौकरी करने वाले पुरुषों में खतरनाक तरीके से वाहन चलाने की संभावना ज्यादा होती है. इस से सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों की जान को खतरा होता है.

एल्ड्रेड और उन की टीम ने ब्रिटिश डाटा से लिए गए 4 कारकों पर ध्यान केंद्रित किया. इन में 2005 से 2015 के बीच चोट और यातायात के आंकड़े, यात्रा सर्वेक्षण के आंकड़े और जनसंख्या और लिंग के आंकड़े शामिल थे.

शोधकर्ता ने पाया कि 6 तरह के वाहनों में से 5 वाहनों को चलाने पर पुरुषों ने सड़क के मुसाफिरों को खतरे में डाला. उन्होंने कहा कि शोध के निष्कर्षों से पता चला कि कार और वैन चलाने वाले पुरुषों को महिलाओं की तुलना में दोगुना खतरा था. जबकि पुरुष ट्रक ड्राइवरों के लिए जोखिम 4 गुना अधिक था.

एल्ड्रेड ने कहा कि कुल मिला कर दोतिहाई मौतें कारों और टैक्सियों से संबंधित थीं. लेकिन शोध से पता चलता है कि अन्य वाहन और खतरनाक हो सकते हैं.

एल्ड्रेड ने कहा कि हम सु झाव देते हैं कि नीतिनिर्धारकों को ड्राइविंग के पेशे में लैंगिक संतुलन को बढ़ाने के लिए नीतियों पर विचार करना चाहिए. इस से वाहन से लगने वाली चोटों और मौतों में कमी आएगी.

ड्राइविंग लाइसैंस के लिए महिलाओं को पहनने होंगे सलीकेदार कपड़े. टाइम्स औफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, चेन्नई के, के.के नगर आरटीओ में ड्राइविंग टैस्ट देने से महिलाओं को इसलिए रोक दिया गया था क्योंकि उन्होंने जींस और कैपरी पहन रखी थी. लेकिन जानकारी के मुताबिक, ड्राइविंग टैस्ट के लिए भारत में कपड़ों को ले कर कोई खास ड्रैस कोड का नियम नहीं बनाया गया है. मोटर व्हीकल ऐक्ट में भी महिलाओं द्वारा ड्राइविंग करते समय किसी तरह के ड्रैस कोड का जिक्र नहीं किया गया है. महिलाओं द्वारा जींस और कैपरी पहन कर ड्राइविंग करने में आखिर नुकसान क्या है, यह बात सम झ नहीं आई.

ड्राइविंग लाइसैंस के लिए गाइनेकोलौजिस्ट से चैकअप जरूरी

ड्राइविंग लाइसैंस पाने के लिए हमें कई तरह के टैस्ट से गुजरना होता है. हर देश में ड्राइविंग लाइसैंस के लिए अलगअलग कानून होते हैं जैसे रिटन टैस्ट, ओरल टैस्ट, ड्राइविंग एबिलिटी, लेकिन एक देश ऐसा भी है जहां महिलाओं को ड्राइविंग लाइसैंस पाने के लिए गाइनेकोलौजिस्ट से चैकअप जरूरी होता था. जी हां, यह बात एकदम सच है. यूरोपीय देश लुथियाना में महिलाओं को ड्राइविंग लाइसैंस पाने के लिए पहले गाइनेकोलौजिस्ट के पास जाना होता था. वहां वे अपना चैकअप कराती थीं, तभी वे ड्राइविंग लाइसैंस के लिए अप्लाई कर पाती थीं.

क्यों बना था यह कानून

2002 तक यह विवादित कानून लुथियाना में लागू रहा. यह कानून बनाने के पीछे मकसद यह था कि लाइसैंस पाने वाली महिलाएं किसी बीमारी की शिकार न हों. ऐसा मानना था कि बीमार औरतें ठीक से गाड़ी नहीं चला सकतीं. वहीं पुरुषों पर यह कानून लागू नहीं हुआ था.

मुद्दा सुरक्षा का

बाहर जाने वाली लड़कियों, महिलाओं के लिए सुरक्षा एक बुनियादी आवश्यकता है. जनगणना के आंकड़ों (2011) की लिंग तुलना से पता चलता है कि बैंगलुरु में औसतन 43% महिलाएं पुरुषों की तुलना में काम पर जाती हैं, जबकि चेन्नई में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या 34% है.

दुनिया भर के अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में सार्वजनिक परिवहन पर अधिक निर्भर करती हैं खासकर जब वे निम्न आय वर्ग का हिस्सा होती हैं. एक सुरक्षित और विश्वसनीय अंतिम मील परिवहन के अभाव में या तो वे रोजाना संघर्ष करती हैं या अपने घरों के आसपास के क्षेत्र में अपने रोजगार के अवसरों को सीमित कर के व्यापार बंद कर देती हैं.

महिलाओं और पुरुषों के बीच का अंतर तो सदियों से चला आ रहा है. पुरुष शारीरिक रूप से मजबूत रहे हैं इसलिए ताकत से जुड़े कार्यों को ज्यादा बेहतरी से करते आए हैं. लेकिन आज के दौर में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. इस नजरिए से महिलाएं भी अब वे सारे काम कर सकती हैं जो पुरुष करते हैं.

हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि संकट के समय महिलाएं जल्दी घबरा कर हिम्मत छोड़ देती हैं या सही फैसले नहीं ले पातीं. लेकिन एक अध्ययन के मुताबिक, पुरुषों की तुलना में महिलाएं अच्छी ड्राइवर साबित होती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, पुरुष बहुत ही आक्रामक तरीके से गाड़ी चलाते हैं और दूसरों की जान जोखिम में डालते हैं. यह ‘अध्ययन जनरल इंजरी प्रिवैंशन’ में प्रकाशित हुआ था.

परिवर्तनशील समय

रोजगार और जीवन में बेहतर अवसर दिलाने के लिए महिलाओं को ड्राइविंग सिखाने की मुहिम शुरू कर दी गई है यानी अब ड्राइविंग महिलाओं के लिए कमाई का एक बड़ा जरीया बन सकता है. देशभर में कई सामाजिक उद्यमों ने यात्रियों के साथसाथ वाणिज्यिक वाहनों के मालिक चालकों दोनों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है. वे कम आय वाली पृष्ठभूमि वाली महिलाओं के साथ काम करते हैं ताकि उन्हें ड्राइविंग सीखने के लिए प्रोसाहित किया जा सके.

दिल्ली में स्थित एक महिला केवल अंतिम मील ई कौमर्स लौजीस्टिक्स कंपनी है जो महिलाओं को गाड़ी चलाना सिखा कर डिलीवरी एजेंट बनने के लिए प्रशिक्षण दे रही है और इस ने 500 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया है और पूरे देश में 250 से अधिक महिलाओं को डिलीवरी ऐसोसिएट्स के रूप में रखा है.

एक अन्य पहल, ‘मुविंग वूमन सोशल ऐनिशिएटिव फाउंडेशन’ (रूशङ्खश) हैदराबाद में 1500 से अधिक महिलाओं को दोपहिया वाहन चलाने का प्रशिक्षण दे रही है.

मुहिम का मकसद

इस मुहिम का मकसद यह भी है कि महिलाएं इस बात के प्रति जागरूक हों कि ड्राइविंग और अकेले सुरक्षित यात्रा करना कितना जरूरी है. इस से वे अपने जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी अपनी संभावनाओं का विस्तार कर सकती हैं. मुहिम का जोर न सिर्फ इस बात पर है कि महिलाएं न सिर्फ ड्राइविंग सीखें, बल्कि इलैक्ट्रिक वाहन भी खरीदें, इस से उन की कमाई का ग्राफ बढ़ेगा.

दुनियाभर में महिलाओं को अपने

आवागमन को ले कर कई अड़चनों का सामना करना पड़ता है. वे अच्छी पढ़ाई या ऐसे कामों के लिए घर से ज्यादा दूर नहीं जा पातीं. अगर उन्हें ज्यादा या असुरक्षित यात्रा करनी पड़े तो वे बाहर जाने के प्रति उत्साहित नहीं होतीं. ऐसे में उन के पास रोजगार के काफी सीमित मौके ही रह जाते हैं.

‘शेल फाउंडेशन’ की शिप्रा नायर का कहना है कि हमारा मकसद महिलाओं की मोबिलिटी बढ़ा कर उन्हें समान अवसर पाने में मदद करना है. बड़ी संख्या में ऐसी महिला ड्राइवर्स को तैयार करना है जो इलैक्ट्रिक वाहन की मालिक हों. देश में पहला महिला ड्राइविंग संस्थान तेलंगाना में शुरू हुआ. बता दें कि पूरे देश में केवल 10% ही लाइसैंस महिलाओं के नाम से है.

नारी कमजोर नहीं, शक्ति का स्वरूप है

किसी भी क्षेत्र में महिला और पुरुष बराबरी से काम कर सकते हैं. लेकिन जब तक सोच नहीं बदलेगी, तब तक महिलाओं को उन का पूर्ण अधिकार नहीं मिल पाएगा. पुरुषप्रधान समाज में आज भी महिलाओं को घर से निकलने से पहले घर के पुरुषों से पूछना पड़ता है. यह सब से बड़ा अंतर है महिला और पुरुषों के बीच. जिस दिन सभी पुरुष इस अंतर को दूर करने का प्रयास करेंगे उस दिन सच में महिलाओं को उन का अधिकार मिल जाएगा.

ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं को टैक्नोलौजी से जोड़ना जरूरी

दूर अंचलों में महिलाओं, लड़कियों को यह भी नहीं पता कि उन्हें क्या करना चाहिए. शहरी क्षेत्रों में तो महिलाएं, लड़कियां टैक्नोलौजी का इस्तेमाल कर के आगे बढ़ रही हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह नहीं हो पा रहा है.सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रयास करना चाहिए कि महिलाएं भी आधुनिक टैक्नोलौजी से जुड़ें और विकास करें.

देश की आधी आबादी औरतें हैं, ऐसे में अगर उन्हें बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और नौकरियों तक पहुंचने में सुरक्षित महसूस करने के लिए सामूहिक रूप से सक्षम करने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास नहीं किए जाएंगे, तब तक इन की शक्ति का पूरी तरह से उपयोग नहीं हो पाएगा क्योंकि जब तक महिलाएं आगे नहीं बढ़ेंगी, देश आगे नहीं बढ़ पाएगा.

Women’s Day 2024: बोया पेड़ बबूल का…- शालिनी को कैसे हुआ छले जाने का आभास

‘‘तुम्हेंमालूम है चिल्लाते समय तुम बिलकुल जंगली बिल्ली लगती हो. बस थोड़ा बालों को फैलाने की कमी रह जाती है,’’ सौम्य दांत किटकिटा कर चिल्लाया.

‘‘और तुम? कभी अपनी शक्ल देखी है आईने में? चिल्लाचिल्ला कर बोलते समय पागल कुत्ते से लगते हो.’’

यह हम दोनों का असली रूप था, जो अब किसी भी तरह परदे में छिपने को तैयार नहीं था. बस हमारे मासूम बेटे के बाहर जाने की देर होती. फिर वह चाहे स्कूल जाए या क्रिकेट खेलने. पहला काम हम दोनों में से कोई भी एक यह कर देता कि खूब तेज आवाज में गाने बजा देता और फिर उस से भी तेज आवाज में हम लड़ना शुरू कर देते. कारण या अकारण ही. हां, सब के सामने हम अब भी आदर्श पतिपत्नी थे. शायद थे, क्योंकि कितनी ही बार परिचितों, पड़ोसियों की आंखों में एक कटाक्ष, एक उपहास सा कौंधता देखा है मैं ने.

मैं ने और सौम्य ने प्रेमविवाह किया था. मैं मात्र 18 वर्ष की थी और सौम्य का 36वां साल चल रहा था. वे अपनी पहली पत्नी को एक दुर्घटना में गंवा चुके थे और 2 बच्चों को उन के नानानानी के हवाले कर जीवन को पूरी शिद्दत और बेबाकी से जी रहे थे. मस्ती, जोश, फुरतीलापन, कविता, शायरी, कहानियां, नाटक, फिल्में, तेज बाइक चलाना सब कुछ तो था, जो मुझ जैसी फिल्मों से बेइंतहा प्रभावित और उन्हीं फिल्मों की काल्पनिक दुनिया में जीने वाली लड़की के लिए जरूरी रहा था. 36 साल का व्यक्ति 26 साल के युवक जैसा व्यवहार कर रहा है, उस के जैसा बनावशृंगार कर रहा है, इस में मुझे कुछ भी गलत नहीं लगा था उस समय. शायद 18 साल की उम्र होती ही है भ्रमों में जीने की या शायद मैं पूरी तरह सौम्य के इस भ्रमजाल में फंस चुकी थी. मम्मीपापा का कुछ भी समझाना मेरी समझ में नहीं आया.

‘‘36 साल की आयु में कहीं भी उस में गंभीरता नहीं, न संबंधोंरिश्तों को निभाने में और न ही अपनी जिम्मेदारियां निभाने में. वह तुम्हारी क्या देखभाल करेगा? कैसे रहोगी उस के साथ जीवन भर?’’ मम्मी ने समझाने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन मैं तो प्रेम के खुमार में डूबी थी.

‘‘यह तो तारीफ की बात है मम्मी. हर समय मुंह लटकाए रखने की जगह अगर कोई खुशदिली से रह रहा है, तो उस में बुरा क्यों देखना? तारीफ करनी चाहिए उस की तो,’’ मैं उलटा मम्मी को ही समझाने लगती.

पापा चुपचाप अखबार पढ़ते रहते. जिस दिन पापा जबरदस्त तनाव में होते उस दिन

के अखबार में न जाने क्याक्या खोजते रहते. फिर भले ही अखबार सुबह पूरा पढ़ लिया हो.

यह देख मैं, मम्मी और मेरे दोनों छोटे भाई शालीन और कुलीन बिलकुल चुप्पी साध लेते. घर में इतनी शांति हो जाती कि केवल बीचबीच में पापा की गहरी सांसों की आवाज ही सुनाई देती.

‘‘तनाव तो सब को हो ही जाता है कभीकभी. शायद बड़ों को ज्यादा ही होता है,’’ मम्मी हमें समझातीं.

तो इस समय पापा पूरी तरह तनाव में हैं.

‘‘शालिनी,’’ पापा ने आवाज लगाई.

पापा का मुझे इस समय शालू के बजाय शालिनी कहना तो यही बताता है कि पापा हाई टैंशन में नहीं वरन सुपर हाई टैंशन में हैं.

‘‘शालिनी, मेरे सामने बैठो… मेरी बात को समझो बेटा. मैं ने पता किया है. सौम्य ठीक लड़का नहीं है. उस की पहली शादी भी प्रेमविवाह थी. फिर बीवी को मानसिक रूप से इतना प्रताडि़त किया कि उस ने आत्महत्या कर ली. बच्चों को उन के नानानानी के पास पहुंचाने के बाद पिछले 5 वर्षों में एक बार भी उन की खोजखबर लेने नहीं गया और न उन्हें कोई पैसे भेजता है. बच्चों के नानानानी को इस कदर डराधमका रखा है कि वे कोर्टकचहरी नहीं करना चाहते और बच्चों और अपनी सुरक्षा के लिए चुप रह गए हैं.

‘‘ऐसा आदमी जो अपनी पहली बीवी और अपनी ही संतान के प्रति इतना निष्ठुर हो, वह तुम्हारी क्या देखभाल करेगा? कैसे रखेगा तुम्हें? फिर तुम दोनों की उम्र में भी बहुत ज्यादा अंतर है. जीवनसाथी तो हमउम्र ही ठीक रहता है. तुम एक बार गंभीरता से सोच कर देखो. प्रेम अच्छी चीज है बेटा. लेकिन प्रेम में इस तरह अंधा हो जाना कि सचाई दिखाई ही न दे, ठीक नहीं है. बेटा, तुम्हें हम ने अच्छे स्कूलों में पढ़ाया, अच्छे संस्कार दिए. आज तुम्हारी सारी समझदारी की परीक्षा है बेटा… 1 बार नहीं 10 बार सोचो और तब निर्णय करो.’’

अपनी सारी अच्छाइयों के बावजूद पापा खुद निर्णय लेने में बेहद दृढ़ रहे हैं. बेहद कड़ाई से निर्णय लेते रहे हैं, लेकिन उस दिन मुझे समझाने में कितने कातर हुए जा रहे थे. उन की कातरता मुझे और भी उद्दंड बना रही थी. उन की किसी बात, किसी तर्क पर मैं ने एक क्षण के लिए भी ध्यान नहीं दिया. सोचनेसमझने की तो बात ही दूर थी.

मैं चिल्ला कर बोली, ‘‘मैं तो निर्णय कर चुकी हूं पापा. एक बार सोचूं या 10 बार… मेरा निर्णय यही है कि मैं सौम्य से शादी कर रही हूं. आप सब की मरजी हो तब भी और न हो तब भी,’’ मैं आपे से बाहर हुई जा रही थी.

‘‘तो मेरा भी निर्णय सुन लो. आज के बाद हमारा तुम से कोई संबंध नहीं. मैं, मेरी बीवी और मेरे दोनों बेटे शालीन और कुलीन तुम्हारे कुछ नहीं लगते और न तुम हमारी कुछ हो. जब मरूंगा तभी आना और मेरी संपत्ति से अपना हिस्सा ले कर निकल जाना. नाऊ, गैट लौस्ट,’’ पापा अपने पूरे दृढ़ रूप में आ गए थे.

मगर मैं ही कौन सा डर रही थी? दृढ़ स्वर में बोली, ‘‘ओके देन. मैं आप की संपत्ति पर थूकती हूं. कभी इस घर का रुख नहीं करूंगी. बाय,’’ और मैं जोर से दरवाजा बंद कर बाहर निकल गई थी.

उसी रात हम ने मंदिर में शादी कर ली. सौम्य के 2-4 मित्रों की मौजूदगी में. अब मैं श्रीमती सौम्य थी, जिसे बहुत लाड़ से सौम्य ने ही सौम्या नाम दिया था.

शादी के कुछ दिनों बाद तक सब बहुत सुंदर था. कथा, कहानियों या कहें फिल्मों के परीलोक जैसा और फिर जल्द ही मासूम के आने की आहट सुनाई दी. मेरे लिए तो यह पहली बार मां बनने का रोमांच था, लेकिन सौम्य तो इस अनुभव से 2 बार गुजर चुके थे और उस अनुभव को कपड़े पर पड़ी धूल की तरह झाड़ चुके थे. उन्हें कोई उत्साह न होता. लेकिन मैं इसे पूरी उदारता से समझ लेती. आखिर मैं हूं ही बहुत समझदार. दूसरे के मनोविज्ञान, दूसरे के मनोभावों को खूब अच्छी तरह समझती हूं. इसलिए मां बनने के अपने उत्साह को मैं ने तनिक भी कम नहीं होने दिया.

समय पर सुंदर बेटे को जन्म दे कर खुद ही निहाल होती रही. सौम्य इस सब में कहीं भी मेरे साथ, मेरे पास नहीं थे. लेडी डाक्टर और नर्सों के साथ उन की हंसीठिठोली चलती रहती. लेकिन इस जिंदादिली की तो मैं खुद कायल थी. तो अब क्या कहती?

इधर मां के रूप में मेरी व्यस्तता बढ़ती जा रही थी उधर सौम्य बरतन साफ करने वाली बाई, मासूम की देखभाल करने वाली आया, यहां तक कि मेरी मालिश करने के लिए आने वाली, मेरा हाल पूछने आने वाली पड़ोसिनों, मेरी सहेलियों को भी अपनी जिंदादिली से भिगोए रहते. काश, थोड़ी सी यही जिंदादिली मेरे मासूम बेटे को भी मिल जाती. ‘मेरे’ इसलिए कहा, क्योंकि सौम्य ने ही कहा था कि यह सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा बच्चा है. मेरे तो पहले ही 2 बच्चे हैं, जो बेचारे मां के मरने की वजह से अपने नानानानी के पास पड़े हैं.

सौम्य का गिरगिट की तरह बदलता रंग मुझे आश्चर्यचकित कर देता. प्रेम की पींगें बढ़ाते समय तो कभी उस ने पत्नी और बच्चों का जिक्र भी नहीं किया था और अब अचानक बच्चों से इतनी ज्यादा सहानुभूति पैदा हो गई थी. बस यहीं कहीं से मेरे प्रेम का दर्पण चटकना शुरू हो गया था और दिनबदिन इस में दरारें बढ़ती जा रही थीं. शायद सब से बड़ी दरार या कहें पूरा दर्पण ही तब चकनाचूर हो गया जब मैं ने सौम्य को किसी से कहते सुना कि यह बेवकूफ औरत (मैं) अपने बाप की सारी दौलत छोड़ कर खाली हाथ मेरा माल उड़ाने चली आई. उस वक्त इस के रूप और यौवन पर फिदा हो कर मैं भी शादी करने की मूर्खता कर बैठा वरना ऐसी औरतों को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा करना मुझे खूब आता है.

आज शादी के 8 साल बाद पेट के निचले हिस्से में दर्द होने पर जब जांच करवाई तो पता चला कि गर्भाशय में कुछ समस्या है, इसलिए उसे निकालना बेहद जरूरी है वरना कैंसर होने का खतरा है.

आज एक बार फिर मैं अस्पताल के बिस्तर पर हूं. किसे खबर करूं? मेजर औपरेशन है, लेकिन कोई ऐसा नहीं दिखता जिसे अपने पास बुला सकूं, जो सांत्वना के 2 शब्द कहे. मासूम के भोले मुखड़े को ममता से दुलारे ताकि उस की उदासी कुछ कम हो जाए. अपने पापा की विरक्ति उस से छिपी नहीं है. और मम्मी? न जाने उन्हें क्या हुआ है, क्या होने वाला है. मम्मी को कुछ हो गया तो? कहां जाएगा वह? पहले वाली मम्मी के मांबाप की तरह उस के नानानानी तो उसे रखेंगे नहीं. वे तो मम्मी से सारे संबंध तोड़ चुके हैं. नन्हे से भोले मन में कितनी दुश्चिंताएं सिर पटक रही हैं और मैं सिर्फ उस की पसीजती हथेलियों को अपनी मुट्ठी में दबा कर उसे झूठी सांत्वना देने की कोशिश ही कर पा रही हूं.

नर्स, वार्डबौय सब यमदूत की तरह घेरे हुए हैं मुझे. कोई नस खोज रहा है सूई लगाने के लिए, कोई ग्लूकोस चढ़ाने का इंतजाम कर रहा है, कोई सफाई कर रहा है. औपरेशन से पहले इतनी तैयारी हो रही है कि मेरा मन कांपा जा रहा है और सौम्य? सौम्य कहां हैं? वे बाहर खड़े बाकी नर्सों से हंसीठट्ठा कर रहे हैं.

‘‘अरे मैडम, मुझ से तो यह सब देखा ही नहीं जाता. मेरा वश चले तो मैं अस्पताल आऊं ही नहीं. लेकिन क्या किया जाए? अच्छा है कि आप लोगों जैसी सुंदरसुंदर हंसमुख परियां यहां हैं वरना तो इस नर्क में मेरा बेड़ा गर्क हो जाता. आप सब के भरोसे ही यहां हूं,’’ सौम्य की कामुक आवाज और हंसी अंदर तक आ रही थी.

‘‘चलिए मैडम, औपरेशन का समय हो गया. औपरेशन थिएटर चलना है,’’ स्ट्रेचर लिए

2 वार्डबौय हाजिर हो गए.

मैं दरवाजे की ओर देख रही हूं. शायद अब तो सौम्य अंदर आएं. उन के सामने से ही तो स्ट्रेचर अंदर आई होगी न? आंखों से आंसू भरे मासूम मुझ से लिपट गया.

‘‘अरे, मेरा बहादुर बेटा रो रहा है. मैं जल्दी बाहर आऊंगी और फिर कुछ दिनों में बिलकुल ठीक हो जाऊंगी. रोना नहीं,’’ मैं उसे सांत्वना दे रही हूं, लेकिन मुझे सांत्वना देने वाला वहां कोई नहीं है.

‘‘जल्दी कीजिए मैडम. डाक्टर साहब गुस्सा करेंगी,’’ वार्डबौय ने टोका.

‘‘हां चलिए,’’ कह मैं स्ट्रेचर पर लेट गई. बाहर भी सौम्य का कहीं अतापता न था.

‘‘भैया, मेरे पति कहां हैं?’’ मैं हकलाई.

‘‘वे सारी सिस्टर्स के लिए मिठाई लाने गए हैं. कुछ कह रहे थे… आज उन का स्वतंत्रता दिवस है… आते ही होंगे,’’ कह बेहयाई से दांत निपोरे वार्डबौय ने, लेकिन साथ ही थोड़ा धैर्य भी बंधा दिया. शायद मुझ पर दया आ गई उसे.

औपरेशन थिएटर के अंदर तो जैसे भय सा लगने लगा. अबूझ, अनाम सा भय. निराधार होता मेरा अपना वजूद. मुंह पर मास्क, सिर पर टोपी और ऐप्रन पहने डाक्टर, नर्स, वार्डबौय सभी. किसी की अलग से कोई पहचान नहीं. केवल आंखें और दस्ताने पहने हाथ. ये आंखें मुझे घूर रही हैं जैसे कुछ तोल रही हैं. ‘क्या? मेरी मूर्खता? मेरी निरीहता? मेरा अपमान? मेरा मजाक? या मेरी बीमारी? और ये दस्ताने पहने हाथ? मुझे मेरे वजूद से ही छुटकारा दिला देंगे या सिर्फ मेरी बीमारी को ही निकाल फेकेंगे? क्या सोच रही हूं मैं? मम्मीपापा, शालीन, कुलीन सब के चेहरे आंखों के सामने घूम रहे हैं.

फिर सौम्य, एक नर्स के कंधे पर हाथ टिकाए, दूसरी को समोसा खिलाता. उस की आवाज कानों को चीर रही है, ‘‘अरे, जब यूटरस ही नहीं रहा तो औरत औरत नहीं रही. और मैं? मैं तो आजाद पंछी हूं. कभी इस डाल पर तो कभी उस डाल पर. बंध कर रहना तो मैं ने सीखा ही नहीं. आज से मैं स्वतंत्र हूं, पहले की तरह… अरे यह मैं क्या सोच रही हूं?

‘बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से होय?’ पापा, आप ने, मम्मी ने मुझे अच्छे संस्कार दिए, अच्छी परवरिश दी, अच्छे स्कूलों में पढ़ाया ताकि आप की बेटी संस्कारी बने, समझदार बने. लेकिन मैं न समझदार बनी, न ही संस्कारी. पापा, मुझे माफ कर दो, मम्मी मुझे माफ कर दो.

अरे, यह क्या हो रहा है मुझे? कहीं दूर से आवाज आ रही है, ‘‘अरे डाक्टर, ये तो बेहोश हो रही हैं, बीपी बहुत डाउन हो गया है. अभी तो ऐनेस्थीसिया दिया भी नहीं गया. ये तो खुदबखुद बेहोश हो रही हैं. डाक्टर… डाक्टर… जल्दी आइए.’’

मैं, मेरा वजूद अंधेरे में डूब गया है.

फौरगिव मी: भाग 1- क्या मोनिका के प्यार को समझ पाई उसकी सौतेली मां

रात के 12 बजे थे. मैं रोज की तरह अपने कमरे में पढ़ रही थी. तभी डैड मेरे कमरे में आए. मु झे देख कर बोले, ‘‘पढ़ रही हो क्या, प्रिया?’’

मैं ने उन की तरफ बिना देखे कहा, ‘‘आप को जो कहना है कहिए और जाइए.’’

मैं जानती थी कि डैड इस समय मेरे कमरे में सिर्फ तुम पढ़ रही हो क्या, पूछने तो नहीं आए होंगे. जरूर कुछ और कहने आए होंगे और भूमिका बांध रहे हैं. भूमिकाओं से मु झे खासी नफरत है. यह वजह काफी थी मु झे क्रोध दिलाने के लिए.

डैड ने सिर  झुका कर कहा, ‘‘अब उसे माफ कर दो प्रिया… वैसे भी वह हमें छोड़ कर जाने वाली है.’’

‘‘माफ… माई फुट, मैं उसे कभी माफ नहीं कर सकती,’’ मैं ने गुस्से को रोकते हुए कहा.

‘‘आखिर वह तुहारी मौम है.’’

डैड के ये शब्द मु झे अंदर तक तोड़ गए. मैं गुस्से में चीख पड़ी, ‘‘डैड, वह आप की वाइफ हो सकती है. मेरी मौम नहीं है और न ही वह कभी मेरी मौम की जगह ले सकती है. दुनिया की कोई भी ताकत ऐसा नहीं करवा सकती है.’’

‘‘पर प्रिया…’’

डैड का वाक्य पूरा होने से पहले ही मैं ने अपनी किताब जमीन पर फेंक दी, ‘‘जाइए… जाइए यहां से… जस्ट लीव मी अलोन.’’

डैड मेरा गुस्सा देख कर चले गए और मैं देर तक सुबकती रही. मैं भले ही सिर्फ 15 साल की थी पर परिस्थितियों ने मु झे अपनी उम्र से काफी बड़ा कर दिया था. रोतेरोते अचानक मु झे डैड के शब्द ध्यान आए कि वह हमें छोड़ कर जाने वाली है… और मेरे दिमाग ने इस का सीधासादा मतलब निकाल लिया कि डैड और मोनिका का तलाक होने वाला है. क्या सच? क्या इसीलिए डैड दुखी थे? मेरे चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. मैं अपने दोनों कानों पर हाथ रख कर चिल्लाई, ‘‘ओह, ग्रेट.’’

दूसरे दिन मैं खुशीखुशी स्कूल गई. मैं ने अपनी सहेलियों को कैंटीन में ले जा कर ट्रीट दी. हालांकि सब खानेपीने में मस्त थीं पर नैन्सी ने पूछ ही लिया, ‘‘प्रिया, आखिर यह ट्रीट किस खुशी में दी जा रही है?’’

मैं ने चहकते हुए कहा, ‘‘फाइनली… फाइनली ऐंड फाइनली मोनिका और मेरे डैड में तलाक होने वाला है और वह हमें छोड़ कर जाने वाली है.’’

अपनी स्टैप मौम मोनिका के लिए मेरे मन में इतनी नफरत थी कि मैं ने उसे कभी मौम नहीं कहा. मैं हमेशा उसे मोनिका ही कहती रही, डैड के लाख सम झाने के बावजूद. वैसे भी खुली संस्कृति वाले अमेरिका में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

तभी रीता ने कोक का घूंट गटकते हुए पूछा, ‘‘प्रिया, क्या तुम्हारे डैड और स्टैप मौम में काफी  झगड़े होते हैं?’’

‘‘नहीं तो?’’

इस बात का उत्तर देने के साथ ही मैं अतीत में पहुंच गई…

जब मैं छोटी थी तब मेरी मौम और डैड में बहुत  झगड़े होते थे. उन को  झगड़ता देख कर मैं रोने लगती. थोड़ी देर के लिए दोनों चुप हो जाते पर फिर  झगड़ना शुरू कर देते. उन के  झगड़े में बारबार मेरा नाम भी शामिल होता. दोनों कहते कि अगले की वजह से मेरा जीवन खराब हो

रहा है. मैं बहुत सहम जाती थी. मैं मौम या डैड में से किसी एक को चुनना नहीं चाहती थी. इसी कारण कई बार नींद खुल जाने के कारण भी मैं आंखें बंद किए पड़ी रहती कि कहीं मु झे रोता देख कर दोनों एकदूसरे पर मु झे रुलाने का कारण न थोपने लगें.

कई बार भय से मेरा टौयलेट बिस्तर पर ही छूट जाता और मौम मु झे बाथरूम में ले जा कर शावर के नीचे बैठा देतीं. रात में ही बैडशीट बदली जाती. मु झे थोड़ा पुचकार कर फिर दोनों  झगड़ने लगते. पर बात संभलते न देख कर दोनों की सहमति से मु झे दूसरे कमरे में सुलाया जाने लगा. अफसोस,  झगड़े की आवाजों ने यहां भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा. मैं कानों पर तकिया रख कर जोर से दबाती पर आवाजें मेरा पीछा न छोड़तीं. मैं रोज कामना करती कि मेरे मौमडैड

के बीच सब ठीक हो जाए. हम भी ‘हैपी फैमिली’ की तरह रहें. मगर मेरी कामना कभी पूरी नहीं हुई.

मु झे आज भी वे दिन अच्छी तरह याद हैं. मैं 6 साल की थी. मौम ने मु झे गुलाबी रंग का फ्रौक पहनाया और खूब प्यार किया. मौम बहुत रोती जा रही थीं. रोतेरोते ही उन्होंने मु झ से कहा, ‘‘प्रिया, मैं केस हार गई हूं, तुम्हारी कस्टडी पापा को मिली है. मैं वापस इंडिया जा रही हूं. तुम्हें यहां अमेरिका में रहना है, अपने पापा के साथ. हो सकता है आगे तुम्हारी कोई स्टैप मौम आए, पर तुम संयत रहना. बड़ा होने पर मैं कैसे भी तुम्हें ले जाऊंगी.’’

मौम चली गईं और मैं रह गई डैड के साथ अकेली. पहले 2 सालों में डैड मु झे इंडिया ले कर गए. मौम से भी मिलाया, पर उस के बाद यह संपर्क टूट गया. हां, कभीकभी मौम से फोन पर बात होती. उन के आंसू मु झे अंदर तक चीर देते थे. मैं इमोशनल सपोर्ट के लिए डैड पर निर्भर होती जा रही थी.

मेरा 8वां बर्थडे था जब मोनिका डैड की जिंदगी में आई. वह पार्टी में इनवाइटेड

गैस्ट्स में थी. डैड उस से बहुत हंसहंस कर बातें कर रहे थे. मु झे उस का डैड के साथ इस तरह घुलमिल कर बातें करना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. अलबत्ता उस के बेटे जौन के साथ मेरी अच्छी जमी. हम ने कई खेल साथ खेले. उस के बाद मोनिका अकसर हमारे घर आने लगी. डैड का टाइम जो मेरे लिए था उस पर वह कब्जा जमाने लगी. उसे डैड के साथ देख कर मेरे मन में न जाने कैसे आग सी लग जाती. मु झे लगता डैड के इतने पास कोई नहीं बैठ सकता. वह जगह मेरी मौम की थी, जिसे कोई नहीं ले सकता. मैं तरकीबें सोचती कि कैसे डैड को उस से दूर रखूं. पर डैड और मोनिका के प्रेम के बहाव के आगे मेरी छोटी नादान सारी तरकीबें बह गईं. प्रेम अंधा होता है और स्वार्थी भी. डैड को मोनिका को अपनी प्राथमिकताओं की लिस्ट में पहला स्थान देते समय मेरी बिलकुल याद नहीं आई. कुछ ही महीनों में दोनों ने शादी कर ली.

मोनिका के साथ उस का बेटा जौन भी हमारे घर आ गया. जौन के रूप में मु झे सौतेला ही सही पर छोटा भाई तो मिल ही गया. मगर मोनिका को मैं कभी माफ नहीं कर सकी. न ही कभी अपनी मौम की जगह दे सकी.

वैडिंग गाउन में जब मोनिका ने हमारे घर में प्रवेश किया था तो मेरा गुस्से से भरा चेहरा देख कर उस के पहले शब्द यही निकले थे, ‘‘प्रिया, जिंदगी एक बहाव है. जीवननदी कैसे बहती है कोई नहीं जानता. यह नदी कभी पत्थरों को साथ बहा ले जाती है, तो कभीकभी बड़े पर्वत को काट देती है, तो कभी मन बना लेती है कि उसे पर्वत से नहीं टकराना और फिर चुपचाप अपना रास्ता बदल लेती है. अब यह पता नहीं कि नदी ये सब अपनी इच्छा से करती है या सबकुछ पूर्वनियोजित होता है. फिर भी हम किसी सूरत से नदी को दोष नहीं दे सकते. तुम्हारे जीवन में मैं आ गई हूं. मैं जानती हूं तुम मु झे पसंद नहीं करती हो. सबकुछ अचानक हुआ, यह पूर्व नियोजित नहीं था. फिर भी अगर तुम मु झे गलत सम झती हो तो प्लीज फौरगिव मी. अब हम एक फैमिली हैं और मैं कोशिश करूंगी कि हम एक अच्छी फैमिली के रूप में आगे बढ़ें.’’

मु झे उस की बात में दम लगा था. मैं भी एक अच्छी जिंदगी जीना चाहती थी. शायद मैं उसे माफ कर देती पर मेरी मां के आंसू मु झे ऐसा करने से रोक रहे थे. मैं ने अपनेआप को संयत किया. ‘ओह, कितनी चालाक है, अपना ज्ञान बघार रही है, पर मु झे इंप्रैस नहीं कर सकती,’ सोचते हुए मैं ने उस का हाथ  झटक दिया और अपने कमरे में चली गई.

 

Women’s Day 2024: पीली दीवारें- क्या पति की गलतियों की सजा खुद को देगी आभा?

“तुम कोई भी काम ठीक से कर सकती हो या नहीं? सब्जी में नमक कम है, दूध में चीनी ज्यादा है और रोटियां तो ऐसी लग रही हैं जैसे 2 दिन पहले की बनी हों,’’ अजय इतनी जोर से चिल्लाया कि रसोई में काम कर रही उस की पत्नी आभा के हाथ से बरतन गिर गए. बरतनों के गिरते ही अजय का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

‘‘जाहिल औरत, किसी भी काम को करने का सलीका नहीं है. कहने को एमए पास है, नौकरी करती है, पर है एकदम गंवार.’’

‘‘कभी अपने अंदर भी झांक कर देखो कि तुम कैसे हो. हर समय झगड़ा करते रहते हो. बात करने तक का सलीका तुम में नहीं है. माना मैं बुरी हूं पर अपने 10 साल पुराने दोस्त विक्रम से किस तरह रूठे हुए हो, यह सोचा है कभी. वह

6 बार घर आ चुका है, पर उस से बात करना तो दूर तुम उस से मिले तक नहीं. ऐसे नहीं निबाहे जाते रिश्ते, उन के लिए त्याग करना ही पड़ता है,’’ आभा औफिस जाने के लिए तैयार होते हुए बोली.

उन की शादी को 2 साल हो गए थे, पर एक भी दिन ऐसा नहीं गया था जब अजय ने झगड़ा न किया हो.

‘‘मुझ से ज्यादा बकवास करने की जरूरत नहीं है. मुझे किसी की परवाह नहीं है. तुम अपनेआप को समझती क्या हो? यह भाषण देना बंद करो.’’

‘‘मैं भाषण नहीं दे रही हूं अजय, सिर्फ तुम्हें समझाने की कोशिश कर रही हूं कि हमेशा अकड़े रहने से कुछ हासिल नहीं होता. ऐसा कर के तो तुम हर किसी को अपने से

दूर कर लोगे. इंसान को अपनी गलती भी माननी चाहिए.’’

‘‘बड़ी आई मुझे समझाने वाली. मुझे सीख मत दो. मैं कभी कोई गलती नहीं करता और अगर तुम्हें इतनी ही दिक्कत हो रही है

तो तुम भी जा सकती हो. मुझे किसी की परवाह नहीं,’’ बड़बड़ाते हुए वह घर से बाहर निकल गया.

आभा सकते में आ गई. क्या कह गया था अजय. वह 2 वर्षों से उसे बरदाश्त कर रही थी, क्योंकि उसे उम्मीद थी कि अजय के स्वभाव में कभी तो बदलाव आएगा और वह रिश्तों की कद्र करना सीख जाएगा. लेकिन अजय था कि हर किसी से लड़ाई करने को तैयार रहता था. कोई भी बात अगर उस के मन की नहीं होती थी तो वह भड़क उठता था. लेकिन आज तो हद ही हो गई थी. आखिर वह कहना क्या चाहता था? आभा कुछ देर तक खड़ी सोचती रही और फिर उस ने निर्णय करने में पल भर की भी देर नहीं की.

अजय औफिस से फिल्म देखने चला गया. फिर रात को देर से घर लौटा तो घर उस समय अंधेरे में डूबा हुआ था. यह देख उसे झल्लाहट हुई.

‘‘पता नहीं क्या समझती है अपनेआप को. मेरे आने से पहले ही सो गई. कम से कम बालकनी की ही लाइट जला कर छोड़ देती,’’ अपनी आदत के अनुसार अजय बड़बड़ाया. फिर काफी देर तक कालबैल बजाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो उस ने डुप्लीकेट चाबी से दरवाजा खोला. आभा घर पर नहीं थी. हर तरफ एक सन्नाटा बिखरा हुआ था. ऐसा पहली बार हुआ था कि आभा उस के आने के समय घर पर न हो. तो क्या आभा सचमुच घर छोड़ कर चली गई है? पल भर को उसे अजीब लगा, लेकिन फिर वह सामान्य हो गया, ‘‘हुंह,

जाती है तो जाए, मैं उस के नखरे तो उठाने से रहा. अपनेआप 1-2 दिन में वापस आ जाएगी,’’ वह बड़बड़ाया और उस रात भूखा ही सो गया.

दिन, हफ्ते और फिर महीने बीतते गए पर आभा नहीं लौटी, न ही अजय ने उसे बुलाने की कोशिश की. इस बीच उस ने विक्रम को कई बार फोन किया, पर उस ने बिना बात किए ही फोन काट दिया. औफिस के अपने एक सहयोगी से जब उस ने विक्रम के व्यवहार के बारे में जिक्र किया तो वह मुसकराया और अपनी सीट पर जा कर बैठ गया. जब दूसरे सहयोगी ने उस के मुसकराने का कारण पूछा तो वह बोला, ‘‘हमारे अजय को यह नहीं पता कि अपने जीवन से दोस्त को तो एकबारगी हटाना आसान है, पर अगर पत्नी ही चली जाए तो फिर दोस्त ही क्या किसी भी रिश्ते को संभाल कर रखना मुश्किल हो जाता है. अब देखना हर कोई इस से मुंह मोड़ लेगा.’’

आभा के जाने के बाद शुरूशुरू में तो अजय को अपनी आजादी बहुत अच्छी लगी. जब दिल करता घर आता, होटल में खाना खाता और सुबह देर तक सोता. लेकिन धीरेधीरे उसे घुटन सी होने लगी. रात को अंधेरे और सन्नाटे में डूबे घर में लौटना, खुद कच्चापक्का बनाना और अकेले बैठे टीवी देखते रहना. अब आभा तो थी नहीं, जिस पर वह अपनी झुंझलाहट उतारता, इसलिए कामवाली पर ही अपनी खीज उतारता. कभी उस के देर से आने पर तो कभी घर ठीक से साफ न करने पर.

कामवाली मालकिन के जाने के बाद अकेले साहब के लिए काम करने से कतरा

रही थी. उस ने एक दिन यह कह कर काम छोड़ दिया कि घर में कोई औरत नहीं है, इसलिए मेरे मर्द ने यहां काम करने से मना कर दिया है.

क्या करता अजय, उस ने एक लड़का नौकर रखा जो सारा दिन घर पर रहता था. लेकिन वह जितना सामान लाता था, वह कम पड़ने लगा. आज यह नहीं है, वह नहीं है, कह कर वह अजय की जान खाए रहता. उस के पड़ोसी उसे 1-2 बार चेतावनी भी दे चुके थे कि तुम्हारा नौकर दिन में अपने जानपहचान वालों को यहां बैठाए रखता है, पर अजय को लगा था कि उस पड़ोसी को उस के नौकर रखने से शायद जलन हो रही है.

एक दिन तबीयत खराब होने की वजह से अचानक अजय घर आया तो देखा कि उस के बैडरूम में नौकर एक लड़की के साथ है. यह देखते ही वह क्रोध से भड़क उठा और उस ने नौकर को घर से बाहर निकाल दिया.

अकेलापन उस पर हावी होने लगा था. उस ने कई बार अपनी मां से कहा कि वे उस के पास आ कर रह लें, पर उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, मेरी तबीयत खराब रहती है, उस पर से बहू भी नहीं है. कौन देखभाल करेगा मेरी? बेकार में मेरे आने से तेरा काम बढ़ जाएगा.’’

यहां तक कि अजय की बहनें, जो भाभी के होने पर महीने में 2-3 बार चक्कर लगा जाती थीं, उन्होंने भी आना छोड़ दिया. वे कहतीं कि भैया, अपनी ही गृहस्थी से फुरसत नहीं मिलती, अब वहां आ कर भी खाना बनाओ, यह बस में नहीं. भाभी थीं तो आराम था, सब कुछ तैयार मिलता था और हम भी मायके में 2-4 दिन चैन से बिता लेते थे. अजय उन की बातें सुन कर चिढ़ जाता था और उन्हें भी खरीखोटी सुना देता था, लेकिन अकेलेपन और नीरसता के समुद्र में डुबकी लगाने के कारण वह खामोशी से उन की बातें सुन लेता. उस का दिल रोने को होता.

आभा ने कैसे कुशलता और प्यार से सारे रिश्तों को जोड़ा हुआ था. तभी तो उस के जाने के बाद उस के अपनों ने ऐसे मुंह मोड़ा मानो वे आभा के रिश्तेदार हों. कुछ घंटों के लिए बहुत आग्रह करने पर बूआ आईं तो बहुत उदास होते हुए बोलीं, ‘‘अब मन नहीं करता तेरे घर आने को. मेरी बातें तुझे बुरी लग रही होंगी पर सच तो यह है कि तेरा लटका हुआ मुंह देखने को कौन आएगा? आभा थी तो कितनी आवभगत करती थी.

चाहे कितनी भी थकी हुई हो, पर कभी मुंह नहीं बनाती थी. औरत से ही घर होता है बेटा. वह नहीं तो जीवन बेकार हो जाता है. यारदोस्त, रिश्तेदार, सगेसंबंधी कब तक और कितना साथ देंगे? साथ तो पत्नी ही अंत तक निभाती है. पतिपत्नी की आपस में चाहे कितनी भी लड़ाई क्यों न हो जाए, पर वही ऐसा संबंध है, जो जीवन भर कायम रहता है.’’

क्या कहता अजय और कैसे रोकता उन्हें. उसे लगा कि बूआ सचमुच उसे आईना दिखा गई हैं. पिछले 6 महीनों में वह इतनी तकलीफ सह चुका था कि उस की अकड़ हवा हो चुकी थी.

होटल का खाना खातेखाते वह तंग आ चुका था और नौकर कोई घर पर टिकता नहीं था. उस ने यह सोच कर अपने दोस्त पीयूष को फोन किया कि आज रात उस के घर खाना खा लेगा. पर उस ने कहा, ‘‘यार, मेरे पिता की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए आज तो संभव नहीं हो पाएगा. मैं तुझे खुद फोन कर के बुलाऊंगा किसी दिन.’’

क्या करता अजय, रेस्तरां में ही खाने गया. वहां देखा कि पीयूष अपने परिवार के साथ आया हुआ है. एक कसक सी उठी उस के मन में कि उस के दोस्त भी उसे घर नहीं बुलाना चाहते.

पीयूष ने भी उसे देख लिया था, इसलिए अगले दिन फोन कर के उस से बोला, ‘‘यार, क्या करूं, तेरी भाभी कहती है कि अजय अकेला आ कर क्या करेगा. उसे

भी बहुत अनकंफर्टेबल फील होता है. आभा थी तो उसे कंपनी मिल जाती थी. ट्राई टू अंडरस्टैंड, फैमिली वाले घर में अकेले आदमी का आना जरा अखरता है. आई होप तू माइंड नहीं करेगा.’’

अब वह पहले वाला अजय तो रहा नहीं था, जो बुरा मानता. अकेलापन, दिनरात का तनाव और ठीक से खाना न मिल पाने के कारण उस की सेहत लगातार गिरती जा रही थी. आए दिन उसे बुखार हो जाता. उसे महसूस हो रहा था कि थकावट उस के शरीर में डेरा डाल कर बैठ गई है.

बाहर का खाना खाने और पानी पीने से उस के लिवर पर असर हो गया था. अब हालत यह थी कि वह कुछ भी खाता तो उसे उलटी हो जाती या फिर पेट दर्द से वह कराहने लगता. डाक्टर का कहना था कि उसे जौंडिस हो सकता है. तब से उसे लगने लगा  था कि उस की जिंदगी की तरह जैसे हर चीज पीली और मटमैली सी हो गई है.

उस की हालत पर तरस खा कर एक दिन पीयूष अपनी बीवी सहित उस से मिलने आया. उस की बीवी चाय बनाने रसोई में गई तो देखा हर चीज अस्तव्यस्त है. बदबू से परेशान वह चाय की पत्ती ढूंढ़ती रही. हार कर अजय को ही उठ कर चाय बनानी पड़ी. फुसफुसाते हुए वह पीयूष से बोली, ‘‘यहां मैं और एक पल के लिए भी नहीं ठहर सकती. घर है या कूड़े का ढेर.’’

अजय ने सुना तो मनमसोस कर निढाल हो कर पलंग पर लेट गया. किस से शिकायत करता, गलती तो उस की ही थी. आभा को कब उस ने मान दिया था. हर समय उसे दुत्कारता ही तो रहता था. उस के जाने के बाद हर किसी ने उस से मुंह मोड़ लिया था. आखिर क्यों कोई उसे बरदाश्त करे. एक वही थी, जो उस की हर ज्यादती को सह कर भी उस की परवाह करती थी. हर काम उसे परफैक्ट ढंग से किया मिलता था. पर तब वह कमियां ढूंढ़ता रहता था.

उस का गला सूख रहा था. जैसेतैसे उठा तो सामने लगे शीशे पर उस की नजर गई. आंखें अंदर धंस गई थीं, दाढ़ी बढ़ गई थी और दुर्बल शरीर से निकली हड्डियां जैसे उस की बेबसी का उपहास उड़ा रही थीं. पसीने से नहा उठा वह. सारी खिड़कियां

खोल दीं और पानी पीने के लिए फ्रिज खोला. खाली फ्रिज उस का मुंह चिढ़ा रहा था. उस की रोशनी को देख डर से उस ने आंखें बंद कर लीं.

उसे याद आया आज सुबह उस ने पीने का पानी भरा ही नहीं था. कांटे उस के गले

में चुभने लगे और वह उस चुभन के साथ रसोई में खड़ा पीली हो गई दीवारों को देखने लगा. यह पीलापन उसे धीरेधीरे अपने शरीर और मन पर हावी होता महसूस हुआ. उसे लगा उस की बोझिल पलकों पर मानो पीली दीवारें कतराकतरा उतर रही थीं.

एक दोस्त है मेरा: रिया ने किस से मिलाया था हाथ

मैं बैडरूम की खिड़की में बस यों ही खड़ी बारिश देख रही थी. अमित बैड पर लेट कर अपने फोन में कुछ कह रहे थे. मैं ने जैसे ही खिड़की से बाहर देखते हुए अपना हाथ हिलाया, उन्होंने पूछा, ‘‘कौन है?’’

मैं ने कहा, ‘‘पता नहीं.’’

‘‘तो फिर हाथ किसे देख कर हिलाया?’’

‘‘मैं नाम नहीं जानती उस का.’’

‘‘रिया, यह क्या बात कर रही हो? जिस का नाम भी नहीं पता उसे देख कर हाथ हिला रही हो?’’ मैं चुप रही तो उन्होंने फिर कुछ शरारत भरे स्वर में पूछा, ‘‘कौन है? लड़का है या लड़की?’’

‘‘लड़का.’’

‘‘ओफ्फो, क्या बात है, भई, कौन है, बताओ तो.’’

‘‘दोस्त है मेरा.’’

इतने में तो अमित ने झट से बिस्तर छोड़ दिया. संडे को सुबह 7 बजे इतनी फुर्ती. तारीफ की ही बात थी, मैं ने भी कहा, ‘‘वाह, बड़ी तेजी से उठे, क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, देखना था उसे जिसे देख कर तुम ने हाथ हिलाया था. बताती क्यों नहीं कौन था?’’

अब की बार अमित बेचैन हुए. मैं ने उन के गले में अपनी बांहें डाल दीं, ‘‘सच बोल रही हूं, मुझे उस का नाम नहीं पता.’’

‘‘फिर क्यों हाथ हिलाया?’’

‘‘बस, इतनी ही दोस्ती है.’’ अमित कुछ समझते नहीं, गरदन पर झटका देते हुए बोले, ‘‘पता नहीं कैसी बात कर रही हो, जान न पहचान और हाथ हिला रही हो हायहैलो में.’’

‘‘अरे उस का नाम नहीं पता पर पहचानती हूं उसे.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘बस यों ही आतेजाते मिल जाता है. एक ही सोसायटी है, पता नहीं कितने लोगों से आतेजाते हायहैलो हो ही जाती है. जरूरी तो नहीं कि सब के नाम पता हों.’’

‘‘अच्छा ठीक है. मैं फ्रैश होता हूं, नाश्ता बना लो,’’ अमित ने शायद यह टौपिक यहीं खत्म करना ठीक समझा होगा.

संडे था, मैं अमित और बच्चों की पसंद का नाश्ता बनाने में व्यस्त हो गई. बच्चों को कुछ देर से ही उठना था.

नाश्ता बनाते हुए मेरी नजर बाहर सड़क पर गई. वह शायद कहीं से कुछ रैडीमेड नाश्ता पैक करवा कर ला रहा था. हां, आज उस की पत्नी आराम कर रही होगी. उस की नजर फिर मुझ पर पड़ी. वह मुसकराता हुआ चला गया.

10 साल पहले हम अंधेरी की इस सोसायटी के फ्लैट में आए थे. हमारी बिल्डिंग के सामने कुछ दूरी पर जो बिल्डिंग है उसी में उस का भी फ्लैट है. मैं तीसरी फ्लोर पर रहती हूं और वह

5वीं पर. जब हम शुरूशुरू में आए थे तभी वह मुझे आतेजाते दिख जाता था. पता नहीं कब उस से हायहैलो शुरू हुई थी, जो आज तक जारी है.

इन 10 सालों में भी न तो मुझे उस का नाम पता है, न शायद उसे मेरा नाम पता होगा. दरअसल, ऐसा कोई रिश्ता है ही नहीं न कि मुझे उस का नाम जानने की जरूरत पड़े. बस समय के साथ इतना जरूर हुआ कि मेरी नजर उस की तरफ उस की नजरें मेरी तरफ अब अनजाने में नहीं, इरादतन उठती हैं, अब तो उस का इकलौता बेटा भी 10-12 साल का हो रहा है. मैं अनजाने में ही उस का सारा रूटीन जान चुकी हूं. दरअसल मेरे बैडरूम की खिड़की से पता नहीं उस के कौन से मरे की खिड़की दिखती है. बस, साल भर पहले ही तो जब उसे खिड़की में खड़े अचानक देख लिया तभी तो पता चला कि वह उसी फ्लैट में रहता है. पर उस के बाद जब भी महसूस हुआ कि वह खिड़की में खड़ा है, तो मैं ने फिर नजरें उधर नहीं उठाईं. अच्छा नहीं लगता न कि मैं उस की खिड़की की तरफ दिखूं.

हां, इतना होता है कि वह जब भी रोड से गुजरता है, तो एक नजर मेरी खिड़की की तरफ जरूर उठाता है और अगर मैं खड़ी होती हूं तो हम एकदूसरे को हाथ हिला देते हैं और कभीकभी यह भी हो जाता है कि मैं सोसायटी के गार्डन में सैर कर रही हूं और वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ आ जाए तब भी वह पत्नी की नजर बचा कर मुसकरा कर हैलो बोलता है, तो मैं मन ही मन हंसती हूं.

अब मुझे उस का सारा रूटीन पता है. सुबह 7 बजे वह अपने बेटे को स्कूल बस में बैठाने जाता है. फिर उस की नजर मेरी किचन की तरफ उठती है. नजरें मिलने पर वह मुसकरा देता है. साढ़े 9 बजे उस की पत्नी औफिस जाती है. 10 बजे वह निकलता है. 3 बजे तक वह वापस आता है. फिर अपने बेटे को सोसायटी के ही डे केयर सैंटर से लेने जाता है. उस की पत्नी लगभग 7 बजे तक आती है.

मेरे बैडरूम और किचन की खिड़की से हमारी सोसायटी की मेन रोड दिखती है. घर में सब हंसते हैं. अमित और बच्चे कहते हैं, ‘‘सब की खबर रहती है तुम्हें.’’ बच्चे तो हंसते हैं, ‘‘कितना बढि़या टाइमपास होता है आप का मौम. कहीं जाना भी नहीं पड़ता आप को और सब को जानती हैं आप.’’

इतने में अमित की आवाज आ गई,

‘‘रिया, नाश्ता.’’

‘‘हां, लाई.’’ हम दोनों ने साथ नाश्ता किया. हमारी 20 वर्षीय बेटी तनु और 17 वर्षीय राहुल 10 बजे उठे. वे भी फ्रैश हो कर नाश्ता कर के हमारे साथ बैठ गए.

इतने में तनु ने कहा, ‘‘आज उमा के घर मूवी देखने सब इकट्ठा होंगे, वहीं लंच है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौनकौन?’’

‘‘हमारा पूरा ग्रुप. मैं, पल्लवी, निशा, टीना, सिद्धि, नीरज, विनय और संजय.’’

अमित बोले, ‘‘नीरज, विनय को तो मैं जानता हूं पर अजय कौन है?’’

‘‘हमारा नया दोस्त.’’

अमित ने मुझे छेड़ते हुए कहा, ‘‘ठीक है बच्चों पर कभी मम्मी का दोस्त देखा है?’’

राहुल चौंका, ‘‘क्या?’’

‘‘हां भई, तुम्हारी मम्मी का भी तो एक दोस्त है.’’

तनु गुर्राई, ‘‘पापा, क्यों चिढ़ा रहे हो मम्मी को?’’

राहुल ने कहा, ‘‘उन का थोड़े ही कोई दोस्त होगा.’’

अमित ने बहुत ही भोलेपन से कहा, ‘‘पूछ लो मम्मी से, मैं झूठ थोड़े ही बोल रहा हूं.’’ दरअसल, हम चारों एकदसूरे से कुछ ज्यादा ही फ्रैंक हैं. युवा बच्चों के दोस्त बन कर ही रहते हैं हम दोनों इसलिए थोड़ाबहुत मजाक, थोड़ीबहुत खिंचाई हम एकदूसरे की करते ही रहते हैं.

तनु थोड़ा गंभीर हुई, ‘‘मौम, पापा झूठ बोल रहे हैं न?’’

मैं पता नहीं क्यों थोड़ा असहज सी हो गई, ‘‘नहीं, झूठ तो नहीं है.’’

‘‘मौम, क्या मजाक कर रहे हो आप लोग, कौन है, क्या नाम है?’’

मैं ने जब धीरे से कहा कि नाम तो नहीं पता, तो तीनों जोर से हंस पड़े. मैं भी मुसकरा दी.

राहुल ने कहा, ‘‘कहां रहता है आप का दोस्त मौम?’’

‘‘पता नहीं,’’ मैं ने पता नहीं क्यों झूठ बोल दिया. इस बार मेरे घर के तीनों शैतान हंसहंस कर एकदूसरे के ऊपर गिर गए. वह सामने वाले फ्लैट में रहता है, मैं ने जानबूझ कर नहीं बताया. मुझे पता है अमित की खोजी नजरें फिर सामने वाली खिड़की को ही घूरती रहेंगी. बिना बात के अपना खून जलाते रहेंगे.

तनु ने कहा, ‘‘पापा, आप बहुत शैतान हैं, मम्मी को तो कुछ भी नहीं पता फिर दोस्त कैसे हुआ मम्मी का.’’

‘‘अरे भई, तुम्हारी मम्मी उस की दोस्त हैं. तभी तो उस की हैलो का जवाब दे रही थीं, हाथ हिला कर.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम तीनों के दोस्त हो सकते हैं, मेरा क्यों नहीं हो सकता? आज तुम्हारे पापा ने किसी को हाथ हिलाते देख लिया, उन्हें चैन ही नहीं आ रहा है.’’

तीनों फिर हंसे, ‘‘लेकिन हमें हमारे दोस्तों के नाम तो पता हैं.’’ मैं खिसिया गई. फिर उन की मस्ती का मैं ने भी दिल खोल कर आनंद लिया. इतने में मेड आ गई, तो मैं उस के साथ किचन की सफाई में व्यस्त हो गई.

आज मेरे हाथ तो काम में व्यस्त थे पर मन में कई विचार आजा रहे थे. मुझे उस का नाम नहीं पता पर उसे आतेजाते देखना मेरे रूटीन का एक हिस्सा है अब. बिना कुछ कहेसुने इतना महसूस करने लगी हूं कि अगर उस की पत्नी उस के साथ होगी तो वह हाथ नहीं हिलाएगा. बस धीरे से मुसकराएगा. बेटे को बस में बैठा कर मेरी किचन की तरफ जरूर देखेगा. उस की कार तो मैं दूर से ही पहचानती हूं अब. नंबर जो याद हो गया है.

उस की पार्किंग की जगह पता है मुझे. यह सब मुझे कुछ अजीब तो लगता है पर यह जो ‘कुछ’ है न, यह मुझे अच्छा लगता है. मुझे दिन भर एक अजीब से एहसास से भरे रखता है. यह ‘कुछ’ किसी का नुकसान तो कर नहीं रहा है. मैं जो अपने पति को अपनी जान से ज्यादा प्यार करती हूं, उस में कोई रुकावट, कोई समस्या तो है नहीं इस ‘कुछ’ से. यह सच है कि जब अमित और बच्चों के साथ होती हूं तो यह ‘कुछ’ विघ्न नहीं डालता हमारे जीवन में. ऐसा नहीं है कि वह बहुत ही हैंडसम है. उस से कहीं ज्यादा हैंडसम अमित हैं और उस की पत्नी भी मुझ से ज्यादा सुंदर है पर फिर भी यह जो ‘कुछ’ है न इस बात की खुशी देता है कि हां, एक दोस्त है मेरा जिस का नाम मुझे नहीं पता और उसे मेरा. बस कुछ है जो अच्छा लगता है.

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