धुंधली सी इक याद: राज और ईशा के कैसे थे संबंध

‘‘बोलो न राज… एक बार मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती हूं. कहो न कि तुम्हें मुझ से प्यार है,’’ ईशा ने राज के गले में बांहें डालते हुए कहा.

‘‘हां, मुझे तुम से और सिर्फ तुम से प्यार है. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. तुम परी हो, अप्सरा हो और न जाने क्याक्या हो… हो गया या और भी कोई डायलौग सुनने को बाकी है?’’ राज ने मुसकराते हुए पूछा.

ईशा भी मुसकराते हुए बोली, ‘‘हुआ… हुआ… अब आया न मजा.’’

राज और ईशा एकदूसरे को 8 सालों से जानते थे. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. वहीं दोनों के प्यार का सिलसिला शुरू हुआ था. दोनों साथ घूमतेफिरते और अपनी पढ़ाई का भी ध्यान रखते. ईशा अमीर मातापिता की इकलौती संतान थी. उसे पैसे की नहीं सच्चे प्यार की तलाश थी और राज को पा कर वह धन्य हो गई थी. बस अब उसे इंतजार था कि कब राज की प्रमोशन हो और वह अपने मातापिता को राज के बारे में सब कुछ बता सके.  वैसे तो राज एक बड़ी कंपनी में ऊंचे ओहदे पर काम करता था. लेकिन ईशा चाहती थी कि राज की एक प्रमोशन और हो जाए ताकि वह अपने पिता से शान से कह सके कि उस ने राज को जीवनसाथी के रूप में चुना है. बस 1 महीने का और इंतजार था.

जैसे ही राज को प्रमोशन लैटर मिला,  ईशा ने खुशी से उसे बधाई देते हुए कहा, ‘‘बस राज मैं आज ही पापा से तुम्हारे बारे में बात  करती हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि पापा तुम्हें बहुत पसंद करेंगे.’’  जब ईशा रात का खाना खाने अपने परिवार के साथ बैठी तो उस ने धीरे से कहा, ‘‘पापा, मैं आप को एक खुशखबरी देना चाहती हूं. मैं ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है.’’

उस के पिता ने भी बड़े आश्चर्य से पूछा, ‘‘अच्छा, कौन है वह?’’

ईशा चहकते हुए बोली, ‘‘पापा वह राज है. आप कहें तो मैं कल उसे डिनर के लिए बुला लूं ताकि आप और मम्मी उस से मिल सकें?’’

ईशा के पिता ने झट से हामी भर दी. अगले दिन राज ईशा के घर में था. उस से मिल कर ईशा के पिता बोले, ‘‘हमें गर्व है अपनी बेटी की पसंद पर. हमें तुम से यही उम्मीद थी ईशा. तुम इतनी पढ़ीलिखी और समझदार हो कि तुम्हारी पसंद में तो हम कोई कमी निकाल ही नहीं सकते.’’

फिर अगले संडे को ईशा के मातापिता ने राज के मातापिता से मिल दोनों के रिश्ते की बात की.  बात ही बात में राज के पिता ने ईशा के पिता से कहा, ‘‘हमें ईशा बहुत पसंद है, किंतु हम आप को एक बात साफ बता देना चाहते हैं कि राज हमारा अपना बच्चा नहीं, इसे हम ने गोद लिया था. लेकिन हम ने इसे पालापोसा अपने बच्चे की तरह ही है. हमारी अपनी कोई संतान न थी. लेकिन हम यकीन दिलाते हैं कि हम ईशा को भी बड़े ही प्यार से रखेंगे.’’  राज के पिता का व्यवहार और कारोबार बहुत अच्छा था. अत: ईशा के पिता को इस रिश्ते पर कोई ऐतराज नहीं था. फिर क्या था. एक ही महीने में राज व ईशा की सगाई व शादी हो गई. ईशा दुलहन बनी बहुत ही सुंदर लग रही थी. कालेज के दोस्त व सहेलियां भी उन की शादी में उपस्थित थे. उन में से कुछ की शादी हो चुकी थी और कुछ तैयारी में थे. सभी राज व ईशा को बधाई दे रहे थे. विदाई की रस्म पूरी हुई और ईशा राज के घर आ गई. राज के मातापिता भी चांद सी बहू पा कर बहुत खुश थे.

आज राज व ईशा की पहली रात थी. उन का कमरा फूलों से सजाया गया था.  पलंग पर हलके गुलाबी रंग की चादर पर गहरे गुलाबी रंग की पंखुडि़यों को दिल के आकार में सजाया गया था. पूरा कमरा गुलाब की खुशबू से महक रहा था. उस पर सजीधजी ईशा इतनी खूबसूरत लग रही थी कि चांद की चमक भी फीकी पड़ जाए. रोज सलवारकुरता और जींसटौप पहनने वाली ईशा दुलहन बन इतनी सुंदर लगी कि राज के मुंह से निकल ही गया, ‘‘जी चाहता है इतने सुंदर चेहरे को आंखों में भर लूं और हर पल नजारा करूं.’’ ईशा शरमा कर राज की बांहों में समा गई.  अगली सुबह ईशा नहाधो कर हलके नीले रंग की साड़ी पहने किसी परी सी लग रही थी. सुबह से ही उस की सहेलियों के फोन आने शुरू हो गए. सब चुटकियां लेले पूछ रही थीं, ‘‘कैसी रही पहली रात ईशा?’’  उस का पूरा दिन इन चुहलबाजियों में ही बीत गया. ईशा भी सब को हंस कर एक ही जवाब देती, ‘‘अच्छी रही, वंडरफुल.’’

खैर, 1 महीना बीत गया और दोनों का हनीमून भी खत्म हुआ. अब राज को 1 महीने की छुट्टी के बाद दफ्तर जाना था. दफ्तर जाते ही सभी पुराने दोस्तों का भी वही सवाल था कि कैसा रहा हनीमून और जवाब में राज भी मुसकरा कर बोला कि अच्छा रहा.  दिन तेजी से बीत रहे थे. हर शाम ईशा सजीधजी राज के घर आने का इंतजार करती. रात को खाना खा कर दोनों छत पर लगे झूले में बैठ कर चांदनी रात में तारों को निहारा करते. प्यार की बातों में कब आधी रात हो जाती उन्हें मालूम ही न पड़ता. राज के मातापिता भी ईशा से बहुत खुश थे. उस के आने से घर की रौनक बढ़ गई थी. सारा काम नौकरचाकर करते, लेकिन ईशा राज की मां और स्वयं की थाली खुद ही लगाती. राज की मां के साथ ही खाना खाती.  1 साल बीत गया. अब राज की मां ईशा से कहने लगीं, ‘‘बेटी, तुम ने इस सूने घर में रौनक ला दी. बेटी अब इस घर में 1 बच्चा आ जाए तो यह रौनक 4 गुना बढ़ जाए.’’

ईशा भी कहती, ‘‘जी मम्मी, आप ठीक कह रही हैं.’’

जब कभी खाने के समय राज भी साथ होता तो यही बात मां राज से भी कहतीं.  राज कहता, ‘‘हो जाएगा मम्मी. इतनी भी क्या जल्दी है?’’

ऐसा चलते 1 साल और बीत गया. अब ईशा भी राज से कहने लगी, ‘‘राज, मैं तुम से एक बात पूछना चाहती हूं. तुम बुरा न मानना और मुझे गलत न समझना… तुम्हें क्या हो जाता है राज… तुम मुझ से प्यार की बातें करते हो, मुझे चूमते हो, मुझे बांहों में लेते हो, लेकिन वह क्यों करते नहीं जो एक बच्चा पैदा करने के लिए जरूरी है? हमारी शादी को 2 साल हो गए, लेकिन हम अभी कुंआरों की जिंदगी ही जी रहे हैं.’’  राज ने भी सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘हां, तुम ठीक कहती हो.’’

आज ईशा बहुत खुश थी. शादी के 2 साल बाद उस ने राज से अपने मन की बात कही और राज ने उसे स्वीकार भी किया. वह रात को गुलाबी रंग की नाइटी पहन और पूरे कमरे को खुशबू से तैयार कर स्वयं भी तैयार हो गई. राज भी उसे देख कर बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘तुम इस गुलाबी नाइटी में खिले कमल सी लग रही हो,’’ और फिर वह उस के गालों, माथे, होंठों को चूमने लगा. फिर न जाने उसे क्या हुआ वह ईशा से दूर होते हुए बोला, ‘‘ईशा, चलो सो जाते हैं, फिर कभी.’’  राज के इस व्यवहार से ईशा तो उस मोर समान हो गई जो बादल देख कर अपने  पंखों को पूरा गोल फैला कर खुश हो कर नाच रहा हो और तभी आंधी बादलों को उड़ा ले जाए. बादल बिन बरसे ही चले गए और मोर ने दुखी हो कर अपने पंख समेट लिए हों.  ईशा रोज किसी न किसी तरह कोशिश करती कि राज उस से शारीरिक संबंध स्थापित करे, लेकिन हर बार असफल हो जाती.

आज जब राज दफ्तर से आया तो ईशा ने जल्दी से रात का खाना निबटाया और सोने के पहले राज से बोली, ‘‘चलो न राज कहीं हिल स्टेशन घूम आते हैं… काफी समय हुआ हम कहीं नहीं गए हैं.’’  राज उस की कोई बात नहीं टालता था. अत: उस ने झट से हवाईजहाज के टिकट बुक किए और दोनों काठमांडु के लिए रवाना हो गए. ईशा काठमांडु में नेपाली ड्रैस पहन कर फोटो खिंचवा रही थी. उस की खूबसूरती देखने लायक थी. शादी के 4 साल बाद भी वह नवविवाहिता जैसी लगती थी. 7 दिन राज और ईशा नेपाल की सारी प्रसिद्ध जगहों पर घूमेफिरे.  राज ने उसे आसमान पर बैठा रखा था. जीजान से चाहता था वह ईशा को. ईशा भी उस के प्यार को दिल की गहराई से महसूस करती थी. राज उस की कोई ख्वाहिश अधूरी नहीं छोड़ता था. लेकिन रात के समय न जाने क्यों वह ईशा को वह नहीं दे पाता जिस का उसे पहली रात से इंतजार था और इस के लिए कई बार तो वह ईशा से माफी भी मांगता. कहता, ‘‘ईशा, तुम मुझ से तलाक ले लो और दूसरी शादी कर लो. न जाने क्यों मैं चाह कर भी…’’ इतना कह एक रात राज की आंखों में आंसू आ गए.

ईशा कहने लगी, ‘‘ऐसा न कहो राज. हम दोनों ने 7 फेरे लिए हैं… एकदूसरे का हर हाल में साथ निभाने का वादा किया है. मैं हर हाल में तुम्हारा साथ निभाऊंगी. मैं तुम से प्यार करती हूं राज. फिर भी हमें 1 बच्चा तो चाहिए. उस के लिए हमें प्रयास तो करना होगा न?’’  शादी के 5 साल बीत चुके थे. अब तो ईशा से उस के मातापिता, सहेलियां, रिश्तेदार सभी पूछने लगे थे, ‘‘ईशा, तुम 1 बच्चा क्यों पैदा नहीं कर लेतीं? कब तक ऐसे ही रहोगी? परिवार में बच्चा आने से खुशियां दोगुनी हो जाती हैं.’’

हर बार ईशा मुसकरा कर जवाब देती, ‘‘आप ने कहा न… अब मैं इस बारे में सोचती हूं.’’  मगर यह सिर्फ सोचने मात्र से तो नहीं हो जाता न. बच्चे के लिए पतिपत्नी में  शारीरिक संबंध भी तो जरूरी हैं. शादी को 6 वर्ष बीत गए थे. कई बार ईशा सोचती कि एक बच्चा गोद ले ले ताकि कोई उसे बारबार टोके नहीं. लेकिन फिर सोच में पड़ जाती कि राज को ऐसा क्या हो जाता है कि वह संबंध बनाने से कतराता है? सब कुछ ठीक ही तो चल रहा है. वह उस के साथ खुश भी रहता है, उसे सहलाता है, चूमता है, लेकिन सिर्फ उस वक्त वह क्यों उस से दूर हो जाता है. वह इंटरनैट पर ढूंढ़ने लगी और डाक्टर से भी मिली.

डाक्टर ने कहा, ‘‘ईशा मैं तुम्हारे पति से मिलना चाहूंगी. पुरुषों के शारीरिक संबंध स्थापित करने में असफल होने के कई कारण होते हैं.’’

जब राज घर आया तो ईशा ने उसे बताया, ‘‘मैं डाक्टर से मिल कर आई हूं. डाक्टर आप से मिलना चाहती हैं. कल 11 बजे का समय लिया है. आप को मेरे साथ चलना है.’’

राज ने कहा, ‘‘ठीक है चलेंगे.’’  अगले दिन दोनों तैयार हो कर डाक्टर से मिलने पहुंच गए.  डाक्टर ने राज व ईशा से उन की शादी की पहली रात से ले कर अब तक की  सारी बातें पूछीं. एक बार को तो डाक्टर को भी कुछ समझ न आया. डाक्टर ने बताया, ‘‘पुरुषों में शारीरिक संबंध स्थापित न कर पाने के कई कारण होते हैं जैसे धूम्रपान, जिस के कारण पुरुषों के जननांग तक रक्तसंचार नहीं हो पाता है और उन में नपुंसकता आ जाती है. जिस से इरैक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या आ जाती है और शुक्राणुओं में कमी आ जाती है. इस से सैक्स करने की कामना में कमी आ जाती है.  ‘‘इस का दूसरा कारण होता है डिप्रैशन. जिस तरह यह आम जीवन को प्रभावित करता है उसी तरह यह सैक्स लाइफ को भी प्रभावित करता है. इनसान का दिमाग उस के सैक्स जीवन की इच्छाओं को संचित करने में मदद करता है. इसलिए सैक्स के समय किसी भी तरह का टैंशन या स्ट्रैस संबंध में बाधा पैदा करता है. डिप्रैशन एक ऐसी स्थिति है, जिस के कारण दिमाग का कैमिकल कंपोजिशन बिगड़ जाता है और उस का सीधा प्रभाव वैवाहिक जीवन पर पड़ता है. कामवासना में कमी आ जाती है.

‘‘इस के कुछ उपाय होते हैं जैसे धूम्रपान कम करें, संतुलित आहार लें, व्यायाम करें. कई बार मोटापे के कारण भी शरीर में रक्तसंचार नहीं होता और काम उत्तेजना कम हो जाती है. कई बार मधुमेह रोग होने से भी समस्या होती है, क्योंकि मधुमेह इनसान के नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है, जिस के कारण इरैक्टाइल डिस्फंक्शन की शिकायत हो जाती है.  ‘‘कई बार पुरुषों में टेस्टोस्टेरौन हारमोन की कमी से भी सैक्स लाइफ प्रभावित होती है. इस के लिए सुबह के समय टेस्टोस्टेरौन लैवल का टैस्ट करवाना होता है, क्योंकि सुबह के समय इस का लैवल सब से ज्यादा होता है. शीघ्र पतन भी एक समस्या होती है, जिस में पुरुष महिला के सामने आते ही घबरा जाता है और स्खलित हो जाता है. इस कारण भी पुरुष महिला से दूर भागने लगता है.

‘‘वैसे तो मुझे आप से बात कर के सब ठीक ही लगता है फिर भी राज आप अपने हारमोन लैवल की जांच के लिए टैस्ट करवा लें और टैस्ट रिपोर्ट मुझे दिखाएं.’’  राज की हारमोन रिपोर्ट में कोई कमी नहीं थी. वह शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ था. डाक्टर चकित थी कि आखिर ऐसा क्या है कि राज ईशा को इतना चाहता है फिर भी वह वैवाहिक सुख से वंचित है?  डाक्टर ने काफी सोचविचार कर कहा, ‘‘राज व ईशा तुम दोनों सैक्स काउंसलर के पास जाओ. मैं आप को रैफर कर देती हूं.’’  अगले ही दिन राज व ईशा सैक्स काउंसलर के पास पहुंचे. काउंसलर ने उन की समस्या को ध्यान से सुना और समझा. फिर दोनों से उन के रहनसहन और जीवनशैली के बारे में पूछा. राज व ईशा ने उन्हें जवाब में जो बताया उस के हिसाब से तो दोनों के बीच सब ठीक ही चल रहा है. राज को दफ्तर में भी कोई समस्या नहीं थी, बल्कि इन 8 सालों में उसे हाल ही में तीसरी प्रमोशन मिली थी. ‘तो फिर आखिर क्या है, जो चाहते हुए भी राज को सैक्स के समय असफल कर देता है?’ सोच काउंसलर ने राज से अकेले में बात करने की इच्छा जाहिर की. ईशा काउंसलर का इशारा समझ कमरे से बाहर चली गई. अब काउंसलर ने राज से उस की शादी से पहले की जीवनी पूछी. उस से उसे पता चला कि राज गोद लिया बच्चा है. और सब जो राज ने डाक्टर को बताया वह इस तरह था, ‘‘सर मेरे परिवार में मैं, मेरी बड़ी बहन और मेरे मातापिता थे. बहन मुझ से 10 साल बड़ी थी. उस की शादी मात्र 18 वर्ष में पापा के दोस्त के इकलौते बेटे से कर दी गई. मेरे पापा ने अपनी वसीयत का ज्यादा हिस्सा मेरे नाम और कुछ हिस्सा दीदी के नाम किया.

अचानक एक कार ऐक्सिडैंट में मम्मीपापा की मृत्यु हो गई.  उस समय मैं 8 वर्ष का था. दीदी के सिवा मेरा कोई न था. अत: दीदी अब मुझे अपने पास रखने लगी थी. जीजाजी को भी कोई ऐतराज न था. जीजाजी के मातापिता को पैसों का लालच आ गया. फिर धीरेधीरे जीजाजी भी उन की बातों में आ गए. वे रोजरोज दीदी से कहने लगे कि वह वसीयत के कागज उन्हें दे दे. लेकिन दीदी ने नहीं दिए. वे दीदी को रोज मारनेपीटने लगे. दीदी समझ गई थी कि मुझे खतरा है.  ‘‘दीदी की एक सहेली थी. उन की कोई संतान न थी. वे एक बच्चा गोद लेना चाहते थे. दीदी ने उन से बात की और मुझे गोद लेने को कहा. वे झट से राजी हो गए. दीदी ने मुझे गोद देने के कागज तैयार करवा लिए. जीजाजी का व्यवहार दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था. अब वे रोज शराब पी कर दीदी को मारनेपीटने लगे थे. मैं तब दीदी के पास ही रह रहा था.  ‘‘एक रात जीजाजी देर से आए. मैं उस वक्त दीदी के कमरे में था. जीजाजी बहुत ज्यादा शराब पीए थे. जीजाजी ने आते ही अंदर से कमरा बंद कर लिया और मुझे व दीदी को लातघूंसों से बहुत मारा. उस के बाद दीदी को बिस्तर पर पटक दिया और उस के साथ सैक्स किया. मैं उस वक्त 10 वर्ष का था. वह दृश्य बहुत डरावना था.  ‘‘मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं और मुझे वहीं नींद आ गई. सुबह दीदी जिंदा नहीं थी. सिर्फ एक लाश थी. मुझे और तो कुछ खास याद नहीं कि उस के बाद क्या हुआ, हां उस के बाद मेरे वर्तमान मातापिता मुझे अपने घर ले आए. अब जब भी मैं ईशा से करीबियां बढ़ाना चाहता हूं, मेरी आंखों के सामने उस रात की डरावनी धुंधली सी वह याद आ जाती है.

‘‘मुझे लगता है दीदी की तरह कहीं मैं ईशा को भी न खो दूं. मैं ईशा से कुछ कह भी नहीं पाता हूं. हिम्मत नहीं जुटा पाता हूं. बस इसीलिए अपनेआप ही ईशा से दूर हो जाता हूं. यह सब अपनेआप होता है. मेरा अपने शरीर पर कोई नियंत्रण नहीं रहता और दीदी की लाश वहां दिखाई देती है.’’  राज की सारी बात सुन कर काउंसलर सब समझ गए कि क्यों चाह कर भी राज ईशा के साथ संबंध कायम करने में असफल रहता है. काउंसलर ने राज को घर जाने को कहा और अगले दिन आने को कहा. अगले दिन उन्होंने राज को प्यार से समझाया, ‘‘राज, तुम्हारी दीदी सैक्स के कारण नहीं मरीं, तुम्हारे जीजाजी ने उन्हें लातघूंसों से मारा. इस के कारण उन्हें कुछ अंदरूनी चोटें लगीं और वे उस दर्द को सहन नहीं कर पाईं और मौत हो गई.  ‘‘तुम ने दीदी को पिटते तो कई बार देखा था, लेकिन उस रात तुम ने जो दृश्य देखा वह पहली बार था और सुबह दीदी की लाश देखी तो तुम्हें ऐसा लगा कि दीदी सैक्स के कारण मर गई… आज इतने वर्षों बाद भी वह धुंधली सी याद तुम्हारे वैवाहिक जीवन को असफल कर रही है.’’  काउंसलर ने ईशा से भी इस बारे में बात की. उन्होंने राज के वर्तमान मातापिता को भी राज की स्थिति बताई. जब उन्हें हकीकत मालूम हुई तो उन्होंने राज की दीदी की मृत्यु की पोस्टमार्टम रिपोर्ट राज को दिखाई, जिस में साफ लिखा था कि राज की दीदी की जान दिमाग व पसलियों में चोट लगने से हुई थी और इसीलिए उस के जीजा को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

अब सारी स्थिति राज के सामने थी. ईशा राज को उस पुरानी याद से दूर ले जाना  चाहती थी. अत: उस ने गोवा में होटल बुक किया और राज से वहां चलने का आग्रह किया. राज ने खुशीखुशी हामी भर दी.  ईशा वहां राज को उस की खूबियां बताते हुए कहने लगी, ‘‘राज तुम बहुत नेक और होशियार हो… तुम्हें पा कर मैं धन्य हो गई हूं. मैं तुम्हारी हर हार व जीत में तुम्हारे साथ हूं.’’  ऐसी बातें कर वह राज का मनोबल बढ़ाना चाहती थी. फिर रात के समय जैसे ही राज उस के करीब आ कर उस के बालों को सहलाने लगा, तो वह कहने लगी, ‘‘आगे बढ़ो राज. जब तक तुम मेरे साथ हो मुझे कुछ नहीं होगा, हिम्मत  करो राज.’’

7 दिन बस इसी तरह गुजर गए. अब राज का आत्मविश्वास लौटने लगा था. उस धुंधली सी याद की हकीकत वह समझ चुका था. ईशा ने राज की मम्मी व काउंसलर को खुशी से फोन कर बताया, ‘‘हम सफल हुए.’’  हालांकि राज एक बार तो डर गया था… सैक्स में सफल होने के बाद वह काफी देर  तक ईशा को टकटकी लगाए देखता रहा. फिर कहने लगा, ‘‘दुनिया तो सिर्फ तुम्हारी ऊपरी खूबसूरती देखती है ईशा… तुम्हारा दिल कितना सुंदर है… 8 वर्षों में तुम ने मेरी असफलता को एक राज रखा और हर वक्त मुसकराती रहीं.  आज मैं सफल हूं तो सिर्फ तुम्हारे कारण. तुम  ने इतनी मेहनत की, इतना सहा, विवाहित हो  कर भी 8 वर्षों तक कुंआरी का जीवनयापन करती रहीं और चेहरे पर शिकन भी न आने दी. तुम्हारा दिल कितना सुंदर है ईशा. तुम से सुंदर कोई नहीं.’’

दोनों जब गोवा से लौटे तो उन के चेहरे पर कुछ अलग ही चमक थी. वह चमक थी विश्वास और प्यार की. राज की मां भी बहुत खुश थीं. 3 महीने बाद ईशा ने खुशखबरी दी कि वह मां बनने वाली है.  राज की मां उसे ढेरों आशीर्वाद देते हुए बोलीं, ‘‘मैं दुनिया की सब से खुशहाल सास हूं, जिसे तुम जैसी बहू मिली.’’

अपने पराए: संकट की घड़ी में किसने दिया अमिता का साथ?

लखनऊ छोड़े मुझे 20 साल हो गए. छोड़ना तो नहीं चाहती थी पर जब पराएपन की बू आने लगे तो रहना संभव नहीं होता. जबतक मेरी जेठानी का रवैया हमारे प्रति आत्मिक था, सब ठीक चलता रहा पर जैसे ही उन की सोच में दुराग्रह आया, मैं ने ही अलग रहना मुनासिब समझा.

आज वर्षों बाद जेठानी का खत आया. खत बेहद मार्मिक था. वे मेरे बेटे प्रखर को देखना चाहती थीं. 60 साल की जेठानी के प्रति अब मेरे मन में कोई मनमुटाव नहीं रहा. मनमुटाव पहले भी नहीं था, पर जब स्वार्थ बीच में आ जाए तो मनमुटाव आना स्वाभाविक था.

शादी के बाद जब ससुराल में मेरा पहला कदम पड़ा तब मेरी जेठानी खुश हो कर बोलीं, ‘‘चलो, एक से भले दो. वरना अकेला घर काटने को दौड़ता था.’’

वे निसंतान थीं. तब भी उन का इलाज चल रहा था पर सफलता कोसों दूर थी. प्रखर हुआ तो मुझ से ज्यादा खुशी उन्हें हुई. हालांकि दिल में अपनी औलाद न होने की कसक थी, जिसे उन्होंने जाहिर नहीं होने दिया. बच्चों की किलकारियों से भला कौन वंचित रहना चाहता है. प्रखर ने घर की मनहूसियत को तोड़ा.

जेठानी ने मुझ से कभी परायापन नहीं रखा. वे भरसक मेरी सहायता करतीं. मेरे पति की आय कम थी. इसलिए वक्तजरूरत रुपएपैसों से मदद करने में भी वे पीछे नहीं हटतीं. प्रखर के दूध का खर्च वही देती थीं. कपड़े आदि भी वही खरीदतीं. मैं ने भी उन्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दिया. प्रखर को वे संभालतीं, तो घर का सारा काम मैं देखती. इस तरह मिलजुल कर हम हंसी- खुशी रह रहे थे.

हमारी खुशियों को ग्रहण तब लगा जब मुझे दूसरा बच्चा होने वाला था. नई तकनीक से गर्भधारण करने की जेठानी की कोशिश असफल हुई और डाक्टरों ने कह दिया कि इन की मां बनने की संभावना हमेशा के लिए खत्म हो गई, तो वे बुझीबुझी सी, उदास रहने लगीं. न उन में पहले जैसी खुशी रही न उत्साह. उन के मां न बन पाने की मर्मांतक पीड़ा का मुझे एहसास था, क्योंकि मैं भी एक मां थी. इसलिए प्रखर को ज्यादातर उन्हीं के पास छोड़ देती. वह भी बड़ी मम्मी, बड़ी मम्मी कह कर उन्हीं से चिपका रहता. रात को उन्हीं के पास सोता. उन की भी आदत कुछ ऐसी बन गई थी कि बिना प्रखर के उन्हें नींद नहीं आती. मैं चाहती थी कि वे किसी तरह अपने दुखों को भूली रहें.

जब मुझे दूसरा बच्चा होने को था, पता नहीं मेरे जेठजेठानी ने क्या मशविरा किया. एक सुबह वे मुसकरा कर बोलीं, ‘‘बबली, इस बच्चे को तू मुझे दे दे,’’ मैं ने इसे मजाक  समझा और उसी लहजे में बोली, ‘‘दीदी, आप दोनों ही रख लीजिए.’’

‘‘मैं मजाक नहीं कर रही,’’ वे थोड़ा गंभीर हुईं.

‘‘मैं चाहती हूं कि तुम इस बच्चे को कानूनन मुझे दे दो. मैं तुम्हें सोचने का मौका दूंगी.’’

जेठानी के कथन पर मैं संजीदा हो गई. मेरे चेहरे की हंसी एकाएक गुम हो गई. ‘कानूनन’ शब्द मेरे मस्तिष्क में शूल की भांति चुभने लगा.

शाम को मेरे पति औफिस से आए, तो मैं ने जेठानी का जिक्र किया.

‘‘दे दो, हर्ज ही क्या है. भैयाभाभी ही तो हैं,’’ ये बोले.

मैं बिफर पड़ी, ‘‘कैसे पिता हैं? आप को अपने बच्चे का जरा भी मोह नहीं. एक मां से पूछिए जो 9 महीने किन कष्टों से बच्चे को गर्भ में पालती है?’’

‘‘भैया हैं, कोई गैर नहीं.’’

‘‘मैं ने कब इनकार किया. फिर भी कैसे बरदाश्त कर पाऊंगी कि मेरा बच्चा किसी और की अमानत बने. मैं अपने जीतेजी ऐसा हर्गिज नहीं होने दूंगी.’’

‘‘मान लो लड़की हुई तो?’’

‘‘लड़का हो या लड़की. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

‘‘मुझे पड़ता है. सीमित आमदनी के चलते कहां से लाएंगे दहेज के लिए लाखों रुपए. भैयाभाभी तो संपन्न हैं. वे उस की बेहतर परवरिश करेंगे.’’

‘‘परवरिश हम भी करेंगे. मैं कुछ भी करूंगी पर अपने कलेजे के टुकड़े को यों जाने नहीं दूंगी,’’ मैं ने आत्मविश्वास के साथ जोर दे कर कहा.

‘‘सोच लो. बाद में पछताना न पड़े.’’

‘‘हिसाबकिताब आप कीजिए. प्रखर मुझ से ज्यादा उन के पास रहता है. क्या मैं ने कभी एतराज किया? जो आएगा उसे भी वही पालें, पर मेरी आंखों के सामने. मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा. उलटे मुझे खुशी होगी कि इसी बहाने खून की कशिश बनी रहेगी.’’

मेरे कथन से मेरे पति संतुष्ट न थे. फिर भी मैं ने मन बना लिया था कि लाख दबाव डालें मैं अपने बच्चे को उन्हें गोद लेने नहीं दूंगी. वैसे भी जेठानीजी को सोचना चाहिए कि क्या जरूरी है कि गोद लेने से बच्चा उन का हो जाएगा? बच्चा कोई सामान नहीं जो खरीदा और अपना हो गया. कल को बच्चा बड़ा होगा, तो क्या उसे पता नहीं चलेगा कि उस के असली मांबाप कौन हैं? वे क्या बच्चा ले कर अदृश्य हो जाएंगी. रहेगा तो वह हम सब के बीच ही.

मुझे जेठानी की सोच में क्षुद्रता नजर आई. उन्होंने हमें और हमारे बच्चों को गैर समझा, तभी तो कानूनी जामा पहनाने की कोशिश कर रही हैं. ताईताऊ, मांबाप से कम नहीं होते बशर्ते वे अपने भतीजों को वैसा स्नेह व अपनापन दें. क्या निसंतान ताईताऊ प्रखर की जिम्मेदारी नहीं होंगे?

15 दिन बाद उन्होंने मुझे पुन: याद दिलाया तो मैं ने साफ मना कर दिया, ‘‘दीदी, मुझे आप पर पूरा भरोसा है, पर मेरा जमीर गवारा नहीं करता कि मैं अपने नवजात शिशु को आप को सौंप दूं. मैं इसे अपनी सांसों तले पलताबढ़ता देखना चाहती हूं. वह मुझ से वंचित रहे, इस से बड़ा गुनाह मेरे लिए कोई नहीं. मैं अपराध बोध के साथ नहीं जी सकूंगी.’’

क्षणांश मैं भावुक हो उठी. आगे बोली, ‘‘ताईताऊ मांबाप से कम नहीं होते. मुझ पर यकीन कीजिए, मैं अपने बच्चों को सही संस्कार दूंगी.’’

मेरे कथन पर उन का मुंह बन गया. वे कुछ बोलीं नहीं पर पति (जेठजी) से देर तक खुसरपुसर करती रहीं. कुछ दिन बाद पता चला कि वे मायके के किसी बच्चे को गोद ले रही हैं. वैसे भी कानूनन गोद लेने की सलाह मायके वालों ने ही उन्हें दी थी. वरना रिश्तों के बीच कोर्टकचहरी की क्या अहमियत?

आहिस्ताआहिस्ता मैं ने महसूस किया कि अब जेठानी में प्रखर के प्रति वैसा लगाव नहीं रहा. दूध का पैसा इस बहाने से बंद कर दिया कि अब उन के लिए संभव नहीं. मुझे दुख भी हुआ, रंज भी. एक प्रखर था, जो दिनभर ‘बड़ीमम्मी’, ‘बड़ीमम्मी’ लगाए रखता था. मैं ने अपने बच्चों के मन में कोई दुर्भावना नहीं भरी. जब मैं ने बच्ची को जन्म दिया तो जेठानी ने सिर्फ औपचारिकता निभाई. जहां प्रखर के जन्म पर उन्होंने दिल खोल कर पार्टी दी थी, वहीं बच्ची के प्रति कृपणता मुझे खल गई. मैं ने भी साथ न रहने का मन बना लिया. घर जेठानी का था. उन्हीं के आग्रह पर रहती थी. जब स्वार्थों की गांठ पड़ गई, तो मुझे घुटन होने लगी. दिल्ली जाने लगी तो जेठ का दिल भर आया. प्रखर को गोद में उठा कर बोले, ‘‘बड़े पापा को भूलना मत,’’ मेरी भी आंखें भर गईं पर जेठानी उदासीन बनी रहीं.

20 साल गुजर गए. मैं एक बार लखनऊ तब आई थी जब जेठानी ने अपनी बहन के छोटे बेटे को गोद लिया था. इस अवसर पर सभी जुटे थे. उन के चेहरे पर अहंकार झलक रहा था, साथ में व्यंग्य भी. जितने दिन रही, उन्होंने हमारी उपेक्षा की. वहीं मायके वालों को सिरआंखों पर बिठाए रखा. इस उपेक्षा से आहत मैं दिल्ली लौटी तो इस निश्चय के साथ कि अब कभी उधर का रुख नहीं करूंगी.

आज 20 साल बाद भीगे मन से उन्होंने मुझे याद किया, तो मैं उन के प्रति सारे गिलेशिकवे भूल गई. उन्हें सहीगलत की पहचान तो हुई? यही बात उन्हें पहले समझ में आ जाती तो हमारे बीच की दूरियां न होतीं. 20 साल मैं ने भी असुरक्षा के माहौल में काटे. एकसाथ रहते तो दुखसुख में काम आते. वक्तजरूरत पर सहारे के लिए किसी को खोजना तो न पड़ता.

खत इस प्रकार था : ‘कागज पर लिख देने से न तो गैर अपना हो जाता है, न मिटा देने से अपना गैर. मैं ने खून से ज्यादा कागजों पर भरोसा किया. उसी का फल भुगत रही हूं. जिसे कलेजे से लगा कर रखा, पढ़ालिखा कर आदमी बनाया, वही ठेंगा दिखा कर चला गया. जो खून से बंधा था उसे कागज से बांधने की नादानी की. ऐसा करते मैं भूल गई थी कि कागज तो कभी भी फाड़ा जा सकता है. रिश्ते भावनाओं से बनते हैं. यहीं मैं चूक गई. मैं भी क्या करती. इस भय से एक बच्चे को गोद ले लिया कि इस पर किसी का कोई हक नहीं रह जाएगा. वह मेरा, सिर्फ मेरा रहेगा. मैं यह भूल गई थी कि 10 साल जिस बच्चे ने मां के आंचल में अपना बचपन गुजारा हो, वह मुझे मां क्यों मानेगा?

‘मैं भी स्वार्थ में अंधी हो गई थी कि वह मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा. उस मां के बारे में नहीं सोचा जिस ने उसे पैदा किया कि क्या वह ऐसा चाहेगी? सिर्फ नाम का गोदनामा था, इस की आड़ में मेरी बहन का मुख्य मकसद मेरी धनसंपदा हथियाना था, जिस में वह सफल रही. मैं यह तो नहीं कहूंगी कि प्रखर को मेरे पास बुढ़ापे की सेवा के लिए भेज दो, क्योंकि यह हक मैं ने खो दिया है फिर भी उस गलती को सुधारना चाहती हूं जो मैं ने 20 साल पहले की थी.’

पत्र पढ़ने के बाद मैं तुरंत लखनऊ आई. मेरे जेठ को फालिज का अटैक था. हमें देखते ही उन की आंखें भर आईं. प्रखर ने पहले ताऊजी फिर ताईजी के पैर छुए, तो जेठानी की आंखें डबडबा गईं. सीने से लगा कर भरे गले से बोलीं, ‘‘बित्ते भर का था, जब तुझे पहली बार सीने से लगाया था. याद है, मेरे बगैर तुझे नींद नहीं आती थी. मां की मार से बचने के लिए मेरे ही आंचल में सिर छिपाता था.’’

‘‘बड़ी मम्मी,’’ प्रखर का इतना कहना भर था कि जेठानीजी अपने आवेग पर नियंत्रण न रख सकीं. फफक कर रो पड़ीं.

‘‘मैं तो अब भी आप की चर्चा करता हूं. मम्मी से कितनी बार कहा कि मुझे बड़ी मम्मी के पास ले चलो.’’

‘‘क्यों बबली, हम क्या इतने गैर हो गए थे. कम से कम अपने बेटे की बात तो रखी होती. बड़ों की गलती बच्चे ही सुधारते हैं,’’ जेठानीजी ने उलाहना दिया.

‘‘दीदी, मुझ से भूल हुई है,’’ मेरे चेहरे पर पश्चात्ताप की लकीरें खिंच गईं.

2 दिन हम वहां रहे. लौटने को हुई तो मैं ने महसूस किया कि जेठानीजी कुछ कहना चाह रही थीं. संकोच, लज्जा जो भी वजह हो पर मैं ने ही उन से कहा कि क्या हम फिर से एकसाथ नहीं रह सकते.

मैं ने जैसे उन के मन की बात छीन ली. प्रतिक्रियास्वरूप उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और बोलीं, ‘‘बबली, मुझे माफ कर दो.’’

जेठानी के अपनेपन की तपिश ने हमारे मन में जमी कड़वाहट को हमेशा के लिए पिघला दिया.

साइबर ट्रैप: क्या कायम रह सका मानवी का भरोसा

‘‘ओएमजी, कहां थे यार?’’

‘‘थोड़ा बिजी था, तुम सुनाओ, एनीथिंग न्यू? हाउ आर यू, कैसा चल रहा तुम्हारा काम?’’

‘‘के.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘ओके…शौर्ट फौर्म के.’’

‘‘हाहाहा…तुम और तुम्हारे शौर्ट फौर्म्स.’’

‘‘हाहाहा…को तुम एलओएल भी लिख सकते हो, मतलब, लाफिंग आउट लाउड.’’

‘‘हाहा, वही एलओएल.’’

‘‘पर एक पहेली अब तक नहीं सुलझी, अब टालो नहीं बता दो.’’

‘‘केपी.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘क्या पहेली…हाहाहा…’’

‘‘मतलब कुछ भी शौर्ट.’’

‘‘और क्या?’’

‘‘ओके, मुझे बहस नहीं करनी. अब पहेली बुझाना बंद करो और जल्दी से औनलाइन वाला नाम छोड़ कर अपना ‘रियल नेम’ बताओ?’’

‘‘द रौकस्टार.’’

‘‘उहुं, यह तो हो ही नहीं सकता. कुछ तो रियल बताओ, न चेहरा दिख रहा, न नाम रियल.’’

‘‘हाहाहा…तुम तो बस मेरे नाम के पीछे ही पड़ गई हो, अरे बाबा, यह तो बस फेसबुक के लिए है. जैसे तुम्हारा नाम ‘स्वीटी मनु’ वैसे मेरा नाम.’’

‘‘तो तुम्हारा असली नाम क्या है?’’

‘‘असलियत फिर कभी, बाय.’’

‘‘बाय, हमेशा ऐसे ही टाल जाते हो, कह देती हूं अगर अगली बार तुम ने अपना नाम नहीं बताया और अपना चेहरा नहीं दिखाया तो फिर सीधा ब्लौक कर दूंगी. याद रखना कोई मजाक नहीं.’’

‘‘एलओएल.’’

‘‘मजाक नहीं, बिलकुल सच.’’

‘‘चलचल देखेंगे.’’

‘‘ठीक है, फिर तो देख ही लेना.’’

हर रोज लड़की लड़के से उस का असली नाम और पहचान पूछती, लेकिन लड़का बात ही बदल देता. लड़की धमकी देती और लड़का हंस कर टाल देता. दरअसल, दोनों को ही पता था कि यह तो कोरी धमकी है, सच के धरातल से कोसों दूर दोनों एकदूसरे से बात किए बगैर रह नहीं पाते थे. कंप्यूटर की भाषा में चैटिंग उन की रोजमर्रा की जीवनचर्या का हिस्सा थी. दोनों के बीच दोस्ती की पहल लड़के की ओर से ही हुई थी. दोनों के सौ से अधिक म्यूचुअल फ्रैंड्स थे. लड़के ने लड़की की डीपी (प्रोफाइल फोटो) देखी और बस फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. लड़की ने भी इतने सारे म्यूचुअल फ्रैंड्स देख कर रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली. बस, बातचीत का सिलसिला चल निकला, कभी ऊटपटांग तो कभी गंभीर. दोनों एक ही शहर से थे, तो कई कौमन फ्रैंड्स भी निकल आए. एक दिन बातचीत करते हुए लड़की लड़के की पहचान पर अटक गई.

‘‘तुम ने अपना चेहरा क्यों छिपा रखा है यार, एकदम मिस्टीरियस मैन टाइप. बिलकुल अच्छा नहीं लगता, कभीकभी बिलकुल अजनबी सा लगता है.’’

‘‘एक बात बताऊं, मैं भीड़ में या सोशल साइट्स पर बहुत असहज महसूस करता हूं.’’

‘‘हम्म…क्यों? अगर ऐसा है तो सोशल साइट पर क्यों हो?’’

‘‘बिजनैस की वजह से यहां होना मजबूरी है.’’

‘‘ओके, ठीक है पर हम लोग इतने समय से एकदूसरे से बातें कर रहे हैं. हम दोनों के बीच राज जैसा तो कुछ होना नहीं चाहिए. मुझे तो अपना चेहरा दिखा ही सकते हो, प्लीज.’’इस बार लड़का उस के आग्रह को टाल नहीं पाया. बिना नानुकुर के उस ने अपनी फोटो भेज दी.

‘‘ओएमजी. इस युग में भी इतनी घनी मूंछें, यहां आने के बाद तो सब की मूंछें सफाचट हो जाती हैं, एलओएल.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ तुम्हारा नाम स्वीटी है या मनु?’’

‘‘गेस करो.’’

‘‘उम्म्म…स्वीटी.’’

‘‘नहीं… मानवी नाम है मेरा. सहेलियां मनु कह कर बुलाती हैं. तुम्हारा नाम भी मनु ही है न?’’

‘‘नहीं….मानव नाम है, एलओएल. ओके, बाद में बातें करते हैं, मीटिंग का समय हो गया है.’’

‘‘ओके, बीओएल.’’

‘‘अब ये बीओएल का मतलब क्या हुआ?’’

‘‘बैस्ट औफ लक, बुद्धू.’’

‘‘ओके, बाय.’’

‘‘मतलब कुछ भी तो शौर्टकट.’’

‘‘हां…हाहाहा…बाय.’’

छोटे शहरों से युवक जब महानगरों का रुख करते हैं तो दोस्तों की संगत में सब से पहली कुर्बानी मूंछों की ही होती है. भले ही जवानी कब की गुजर गईर् हो, पर मूंछें छिलवा कर जवान दिखने की ख्वाहिश बनी रहती है. इस मामले में मानव थोड़ा अलग था. उसे अपनी मूंछें बेहद प्रिय थीं. बड़े शहर ने उस की मूंछों को नहीं छीना था. अपने सपनों को मूर्तरूप देने के लिए वह घर से पैसे लिए बिना महानगर भाग आया था. अपनी मेहनत और लगन से उस ने नौकरी तो पा ली, लेकिन मूंछें कटने नहीं दी. घनी मूंछें उस के चेहरे पर फबती थीं.

वास्तविक दुनिया में वह महिलाओं से दूर रहता था. उन से जल्दी घुलमिल नहीं पाया था, लेकिन आभासी दुनिया में महिलाओं से चैटिंग और फ्लर्टिंग करना उस की आदत थी. लफ्फाजी में उस से कोई नहीं जीत पाता था. उस की इसी काबिलीयत पर महिलाएं रीझ जाती थीं.

मानवी और मानव दोनों के नाम बिलकुल एक से थे, लेकिन दोनों एकदूसरे से एकदम अलग थे. जहां मानव किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लेता, चाहे वह रिश्ते की ही क्यों न हो, वहीं मानवी के लिए छोटीछोटी चीजें भी महत्त्वपूर्ण हुआ करती थीं. वह टूट रहे रिश्तों को जोड़ने की कोशिश में लगी रहती. उस ने अपने मातापिता को अलग होते देखा था. वह अपनों के खोने का दर्द अच्छी तरह जानती थी.

उसे लगता था कि मर रहे रिश्ते में भी जान फूंकी जा सकती है, बशर्ते सच्चे दिल से इस के लिए कोशिश की जाए. मानवी और मानव की रुचि लगभग एक सी थीं. दोनों को ही पढ़ने और नाटक का शौक था. शेक्सपियर और उन का लिखा ड्रामा रोमियोजूलिएट दोनों के ही पसंदीदा थे. चैटिंग करते हुए वे घंटों रोमियोजूलिएट के संवाद बोलते हुए उन्हें जी रहे होते.

उन दोनों के कुछ चुनिंदा दोस्तों को इस की भनक लग चुकी थी. दोनों के कौमनफ्रैंड्स उन्हें रोमियोजूलिएट कह कर छेड़ने लगे थे.

मानव और मानवी दोनों हमउम्र थे. वे एक ही शहर के रहने वाले थे और महानगर में अपना भविष्य संवार रहे थे. मानवी भी उसी महानगर में नौकरी कर रही थी, जहां मानव की नौकरी थी. शुरुआत में हलकीफुलकी बातचीत से शुरू होने वाली चैटिंग धीरेधीरे 24 घंटे वाली चैटिंग में बदल गई थी. कभी स्माइली, कभी इमोजी, कभी साइन लैंग्वेज तो कभी हम्म… नजदीकियां बढ़ीं और बात वीडियो कौलिंग तक पहुंच गई.

दोनों साइबर लव की गिरफ्त में आ चुके थे. अब तक साक्षात मुलाकात यानी आमनासामना नहीं हुआ था, लेकिन प्यार परवान चढ़ चुका था. साइबर दुनिया में एकदूसरे की बातों का वैचारिक विरोध करते हुए एक समय ऐसा आया जब दोनों एकदूसरे के कट्टर समर्थक हो गए. पहली बार दोनों एक कौफी शौप पर मिले. मोबाइल पर दिनरात चाहे जितनी भी बातें कर लें पर इस पहली मुलाकात में मानव की नजरें लगातार झुकी रहीं. मानवी की तरफ उस ने नजर उठा कर भी नहीं देखा. यही नहीं, उस से बातें करते हुए मानव के हाथपांव कांप रहे थे, जो लड़का सोशल नैटवर्किंग साइट पर इतना बिंदास हो, उस का यह रूप देख कर मानवी की हंसी रुक नहीं रही थी और मानव अपनी झेंप मिटाने के लिए इधरउधर की बातें करने और जबरदस्ती चुटकुले सुनाने की कोशिश कर रहा था. बीतते समय के साथ मानवी का मानव पर भरोसा गहरा होता चला गया.

दुनिया से बेखबर दोनों ने उस महानगर में एकसाथ, एक ही फ्लैट में रहने का निर्णय ले लिया. अब वे दोनों एकदूसरे के पूरक और साझेदार बन गए थे. मानव कभी खुल कर नहीं हंसता था. और मानवी की खुशी अकसर मानव के होंठों पर छिपी मुसकान में फंस कर रह जाती. गरमी अपने चरम पर थी, पर इश्क के मौसम ने दोनों के एहसास ही बदल डाले थे. एक रोज जब गरमी के उबाऊ मौसम से ऊब कर सूखी सी दोपहर उबासी ले रही थी. पारा 40 डिगरी पहुंचने को था. गरमी से बचने के लिए लोग अपने घरों में दुबके पड़े थे. प्यासी चिडि़यां पानी की खोज में इधरउधर भटक रही थीं. उस रोज दोनों ही जल्दी घर चले आए थे. उस उबाऊ और तपती दोपहरी में सारे बंधन टूट गए. उमस और इश्क अपने उत्कर्ष पर था.

उस दिन घर, घर नहीं रहा पृथ्वी बन गया और मानवमानवी पूरी पृथ्वी पर अकेले, बिलकुल आदमहौआ की तरह. तृप्त मानव गहरी नींद सो गया, लेकिन मानवी की आंखों में नींद नहीं थी. मानवी के होंठों पर मुसकान तैर गई. देर तक उस सुखद एहसास को वह महसूस करती रही.

उस दिन मानवी को एक पूर्ण महिला होने का एहसास हुआ. उस का अंगअंग खिल चुका था, चेहरे पर कांति महसूस हो रही थी. चाल में अल्हड़पन की जगह लचक आ गई थी. उन दोनों के बीच कोई कमिटमैंट नहीं था, कोई सात फेरे और वचन नहीं…. न ही मांग में सिंदूर या मंगलसूत्र का बंधन, लेकिन एक भरोसा था. उसी भरोसे पर तो मानवी ने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया.

मानवी की दुनिया अब मानव के इर्दगिर्द सिमटने लगी थी. उसे अब सोशल साइट्स पर महिलाओं के संग मानव की फ्लर्टिंग पसंद नहीं आती थी. इस पर मानवी अकसर अपना गुस्सा जाहिर भी कर देती और मानव खामोश रह जाता.

छोटे शहर की यह लघु प्रेमकथा धीरेधीरे बड़ी कहानी में बदलती जा रही थी. मानव की बुलेट की आवाज मानवी दूर से ही पहचान जाती. जब दोनों अपने शहर जाते तो ये बुलेट ही थी जो दोनों को मिलवा पाती. मानव की बुलेट धड़धड़ाती, मानवी की खिड़की पर आ जाती. एकदूसरे की एक झलक पाने के लिए बेताब दोनों के होंठों पर मुसकान थिरक उठती. दोनों आपस में अकसर वैसे ही बातें करने लगते जैसे की सचमुच के रोमियोजूलिएट हों. दोनों की लवलाइफ भी बुलेट की तरह ही तेज गति से भाग रही थी, अंतर सिर्फ इतना था कि बुलेट शोर मचाती है और यह बेहद खामोश थी. दिन बीत रहे थे. कुछ करीबी दोस्तों के सिवा उन दोनों के इस सहजीवन की खबर किसी को नहीं थी.

उन्हें एकसाथ रहते 2 साल हो गए थे. एक दिन मानवी के मोबाइल पर उन दोनों की एक अंतरंग तसवीर किसी अनजान नंबर से आई. यह देख मानवी के होश उड़ गए. वह इस बारे में बात करने के लिए मानव को ढूंढ़ने लगी, पर मानव उसे पूरे घर में कहीं नहीं मिला. उस का फोन भी स्विच औफ आ रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उन की यह तसवीर किस ने ली. इतनी अंतरंग तसवीर या तो वह खुद ले सकती थी या फिर मानव.

उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह तसवीर भेजने वाले तक पहुंची कैसे? उस ने तसवीर भेजने वाले नंबर पर फोन लगाया पर वह भी स्विच औफ था. उस के बाद मानवी ने एक कौमनफ्रैंड को फोन कर के सारी बातें उसे कह सुनाईं. उस ने थोड़ी ही देर में इस संबंध में बहुत सारी ऐसी सूचनाएं मानवी को दीं, जिस से उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. उस ने बताया कि उन दोनों की और भी ऐसी कई तसवीरें व वीडियोज मानव ने एक साइट पर अपलोड कर रखे हैं.

‘‘मानव ने?’’

‘‘हां, मानव ने.’’

मानवी को यह सुन कर अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. उसे लग रहा था कि शायद उन दोनों के रिश्ते को वह कौमनफ्रैंड तोड़ना चाहता है, इसलिए ऐसा कह रहा है, लेकिन फिर मानव का फोन स्विच औफ क्यों आ रहा है? ऐसा तो वह कभी नहीं करता है. अब मानवी को पूरी दुनिया अंधकारमय लगने लगी. उसे अपने उस दोस्त की बातों पर यकीन होेने लगा था. क्या इसलिए उस ने कभी खुल कर अपने प्यार का इजहार नहीं किया? वह फूटफूट कर रोने लगी. ‘‘मैं मान नहीं सकती, ही लव्स मी, ही लव्स मी यार,’’ मानवी ने चिल्लाते हुए कहा. सिसकियों की वजह से उस के शब्द अस्पष्ट थे. जब अंदर का तेजाब बह निकला तो वह पुलिस स्टेशन की ओर चल पड़ी. शिकायत दर्ज करवाने के दौरान उसे कई जरूरी गैरजरूरी सवालों से दोचार होना पड़ा. मानवी हर सवाल का जवाब बड़ी दृढ़ता से दे रही थी.

बात जब बिना ब्याह के सहजीवन की आई और महिला कौंस्टेबल उसे ही कटघरे में खड़ी करने लगी, तो उस के सब्र का बांध टूट गया. उस का दम घुटने लगा. वह वहां से उठी और घर के लिए चल पड़ी. उस दिन हर नजर उसे नश्तर की तरह चुभ रही थी, सब की हंसी व्यंग्यात्मक लग रही थी. उस दिन उसे सभी पुरुषों की आंखों में हवस की चमक दिख रही थी. मानवी शर्म से पानीपानी हुए जा रही थी. किसी से नजर मिलाने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. घर पहुंचने के साथ ही उस ने मानव पर चिल्लाना शुरू कर दिया. क्षोभ और शर्मिंदगी से वह पागल हुई जा रही थी. हर कमरे में जा कर वह मानव को ढूंढ़ रही थी, लेकिन मानव तो कहीं था नहीं. वह तो वहां से जा चुका था, हमेशा के लिए.

आभासी दुनिया से शुरू हुआ प्यार आभासी हो कर ही रह गया. उसे दुनिया के सामने नंगा कर मानव भाग चुका था. इस धोखे के लिए मानवी बिलकुल तैयार नहीं थी. उस ने संपूर्णता के साथ मानव को स्वीकार किया था. वह मानव के इस ओछेपन को स्वीकार नहींकर पा रही थी. 2 साल तक दोनों सहजीवन में रहे थे. मानवी उस की नसनस से वाकिफ थी, लेकिन ऐसे किसी धोखे की गंध से वह दूर रह गई. उसे आत्मग्लानि हो रही थी, दुख हो रहा था. वह दोबारा पुलिस के पास नहीं जाना चाहती थी. घर पर कुछ बता नहीं सकती थी.

मानव ने जो किया उस की माफी भी संभव नहीं थी. मानवी ने सोशल मीडिया के जरिए मानव को ट्रैक करना शुरू किया. जालसाजी करने वाला शख्स हमेशा अपने बचाव की तैयारी के साथ आगे बढ़ता है. मानव भी फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्वीटर सब की पुरानी आईडी को ब्लौक कर नई आईडी बना चुका था. लेकिन मानवी भी हार मानने वाली नहीं थी. एक पुरानी कड़ी से उस का नया प्रोफाइल मिल गया. मानवी ने अपना एक नकली प्रोफाइल बनाया और उस से दोस्ती कर ली. नकली प्रोफाइल के जरिए उस ने मानव को मजबूर कर दिया कि वह उस से मिले. एक बार फिर मानव आत्ममुग्ध हुआ जा रहा था. मिलने की बात सोच कर बारबार वह अपनी मूंछों पर ताव दे रहा था. उस की आंखों में वही शैतानी चमक थी और होंठों पर हंसी थिरक रही थी.

दोनों के मिलने का स्थान मानव के औफिस का टैरिस गार्डन तय हुआ. मानव बेसब्री से आभासी दुनिया की इस नई दोस्त का इंतजार कर रहा था. एकएक पल गुजारना उस के लिए मुश्किल हो रहा था.

थोड़े इंतजार के बाद मानवी उस के सामने थी. उसे देख कर मानव चौंक पड़ा. जब तक वह कुछ समझ पाता, कुछ बोलता, मानवी बिजली की तेजी से आई और तेजाब की पूरी शीशी उस के चेहरे पर उड़ेल दी. पहले ठंडक और फिर जलन व दर्द से वह छटपटाने लगा.

मानवी पर तो जैसे भूत सवार था. वह चिल्लाती जा रही थी, ‘‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की, अब मैं तुम्हें बरबाद करूंगी. इसी चेहरे से तुम सब को छलते हो न. अब यह चेहरा ही खत्म हो जाएगा.’’ मानव अवाक रह गया. उसे इस अंजाम की उम्मीद न थी. उस के सोचनेसमझने की शक्ति खत्म हो गई थी. मानवी चीख रही थी, ठहाके लगा रही थी. मानव का चेहरा धीरेधीरे वीभत्स हो रहा था. वह छटपुटा रहा था.

उस की इस हालत को देख कर मानवी को एहसास हुआ कि वह अब भी उस इंसान से प्यार करती है. उस की नफरत क्षणिक थी, लेकिन प्रेम स्थायी है. उस से उस की यह छटपटाहट बरदाश्त नहीं हो पा रही थी. देखते ही देखते मानवी ने भी उस ऊंची छत से छलांग लगा दी और इस तरह 2 जिंदगियां साइबर ट्रैप में फंस कर तबाह हो गईं.

औरों से जुदा: निशा ने जब खुद को रवि को सौंपने का फैसला किया

अपनीसहेली महक का गुस्से से लाल हो रहा चेहरा देख कर निशा मुसकराने से खुद को रोक नहीं सकी. बोली, ‘‘मयंक की बर्थडे पार्टी में तेरे बजाय रवि प्रिया को क्यों ले जा रहा है?’’ निशा की मुसकराहट ने महक का गुस्सा और ज्यादा भड़का दिया.

निशा ने प्यार से महक का हाथ थामा और फिर शांत स्वर में जवाब दिया, ‘‘परसों रविवार को मेरा जापानी भाषा का एक महत्त्वपूर्ण इम्तिहान है, इसलिए मैं ने रवि को सौरी बोल दिया था. रही बात प्रिया की, तो वह रवि की अच्छी फ्रैंड है. दोनों का पार्टी में साथ जाना तुझे क्यों परेशान कर रहा है?’’ ‘‘क्योंकि मैं प्रिया को अच्छी तरह जानती हूं. वह तेरा पत्ता साफ रवि को हथियाना चाहती है.’’

‘‘देख एक सुंदर, स्मार्ट और अमीर लड़के को जीवनसाथी बनाने की चाह हर लड़की की तरह प्रिया भी अपने मन में रखती है, तो क्या बुरा कर रही है?’’ ‘‘तू रवि को खो देगी, इस बात को सोच कर क्या तेरा मन जरा भी चिंतित या परेशान नहीं होता है?’’

‘‘नहीं, क्योंकि रवि की जिंदगी में मुझ से बेहतर लड़की और कोई नहीं है,’’ निशा का स्वर आत्मविश्वास से लबालब था. ‘‘उस ने पहले मुझ से ही पार्टी में चलने को कहा था, यह क्यों भूल रही है तू?’’

‘‘प्रिया को रवि के साथ जाने का मौका दे कर तू ने गलती करी है, निशा. तुम जैसी मेहनती लड़की को इम्तिहान में पास होने की चिंता करनी ही नहीं चाहिए थी. रवि के साथ पार्टी में तुझे ही जाना चाहिए था, बेवकूफ.’’ ‘‘सच बात तो यह है कि मेरा मन भी नहीं लगता है रवि के अमीर दोस्तों के द्वारा दी जाने वाली पार्टियों में, महक. लंबीलंबी कारों में आने वाले मेहमानों की तड़कभड़क मुझे नकली और खोखली लगती है. न वे लोग मेरे साथ सहज हो पाते हैं और न मैं उन सब के साथ. तब रवि भी पार्टी का मजा नहीं ले पाता है. इन सब कारणों से भी मैं ऐसी पार्टियों में रवि के साथ जाने से बचती हूं,’’ निशा ने बड़ी सहजता से अपने मन की बात महक से कह दी.

‘‘तू मेरी एक बात का सचसच जवाब देगी?’’ ‘‘हां, दूंगी.’’

‘‘क्या तू रवि से शादी करने की इच्छुक नहीं है?’’

कुछ पलों के सोचविचार के बाद निशा ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘यह सच है कि रवि मेरे दिल के बेहद करीब है…उस का साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है, लेकिन हमारी शादी जरूर हो, ऐसी उलझन मैं अपने मन में नहीं पालती हूं. भविष्य में जो भी हो मुझे स्वीकार होगा.’’ ‘‘अजीब लड़की है तू,’’ महक हैरानपरेशान हो उठी, देख, ‘‘अमीर खानदान की बहू बन कर तू अपने सारे सपने पूरे कर सकेगी. तुझे रवि को अपना बना कर रखने की कोशिशें बढ़ा देनी चाहिए. इस मामले में जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी होना गलत और नुकसानदायक साबित होगा, निशा.’’

‘‘रवि को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरा उस के पीछे भागना मूर्खतापूर्ण और बेहूदा लगेगा, महक. अच्छे जीवनसाथी साथसाथ चलते हैं न कि आगेपीछे.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘अब लेकिनवेकिन छोड़ और मेरे साथ जिम चल. कुछ देर वहां पसीना बहा कर मैं तरोताजा होना चाहती हूं,’’ निशा ने एक हाथ में अपना बैग उठाया और दूसरे हाथ से महक का हाथ पकड़ कर बाहर चल पड़ी. निशा ने अपनी मां को जिम जाने की बात बताई और फिर दोनों सहेलियां फ्लैट से बाहर आ गईं.

जिम में अच्छीखासी भीड़ इस बात की सूचक थी कि लोगों में स्वस्थ रहने व स्मार्ट दिखने की इच्छा बढ़ती जा रही है. निशा वहां की पुरानी सदस्य थी, इसलिए ज्यादातर लोग उसे जानते थे. उन सब से हायहैलो करते हुए वह पसीना बहाने में दिल से लग गई. लेकिन महक की दिलचस्पी तो उस से बातें करने में कहीं ज्यादा थी.

खुद को फिट रखने की आदत ने निशा की फिगर को बहुत आकर्षक बना दिया था. उस का पसीने में भीगा बदन वहां मौजूद हर पुरुष की प्रशंसाभरी नजरों का केंद्र बना हुआ था. उन नजरों में अश्लीलता का भाव नहीं था, क्योंकि अपने मिलनसार स्वभाव के कारण वह उन सभी की दोस्ती, स्नेह व आदरसम्मान की पात्रता हासिल कर चुकी थी. लगभग 1 घंटा जिम में बिताने के बाद दोनों घर चल पड़ीं.

‘‘यू आर द बैस्ट, निशा,’’ अचानक महक के मुंह से निकले इन प्रशंसाभरे शब्दों को सुन कर निशा खुश होने के साथसाथ हैरान भी हो उठी. ‘‘थैंकयू, स्वीटहार्ट, लेकिन अचानक यों प्यार क्यों दर्शा रही है?’’ निशा ने भौंहें मटकाते हुए पूछा.

‘‘मैं सच कह रही हूं, सहेली. तेरे पास क्या नहीं है? सुंदर नैननक्श, गोरा रंग, लंबा कद… एमकौम, एमबीए और जापानी भाषा की जानकारी…बहुराष्ट्रीय कंपनी में शानदार नौकरी…एक साधारण से स्कूल मास्टर की बेटी के लिए ऐसे ऊंचे मुकाम पर पहुंचना सचमुच काबिलेतारीफ है.’’ ‘‘जो गुण और परिस्थितियां कुदरत ने दिए हैं, मैं न उन पर घमंड करती हूं और न ही कोई शिकायत है मेरे मन में. अपने व्यक्तित्व को निखारने व कड़ी मेहनत के बल पर अच्छा कैरियर बनाने के प्रयास दिल से करते रहना मेरे लिए हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है. अपनी गरीबी और सुखसुविधाओं की कमी का बहाना बना कर जिंदगी में तरक्की करने का अपना इरादा कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया. मेरे इसी गुण ने मुझे इन ऊंचाइयों तक पहुंचाया है,’’ अपने मन की बातें बताते हुए निशा की आवाज में उस का आत्मविश्वास साफ झलक रहा था.

‘‘अब रवि से तेरी शादी भी हो जाए तो फिर तेरी जिंदगी में कोई कमी नहीं रहेगी,’’ महक ने भावुक लहजे में अपने मन की इच्छा दर्शाई. कुछ पल खामोश रह कर निशा ने किसी दार्शनिक के से अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी खुशियों को रवि के साथ शादी होने से बिलकुल नहीं जोड़ रखा है. कुछ खास पा कर अपनी खुशियां हमेशा के लिए तय कर लेना मुमकिन भी नहीं होता है, सहेली. जीवनधारा निरंतर गतिमान है और मैं अपनी जिंदगी की गुणवत्ता बेहतर बनाने को निरंतर गतिशील रहना चाहती हूं. मेरे लिए यह जीवन यात्रा महत्त्वपूर्ण है, मंजिलें नहीं. रवि से मेरी शादी हो गई, तो मैं खुश हूंगी और नहीं हुई तो दुखी नहीं हूंगी.’’

‘‘तुम दूसरी लड़कियों से कितनी अलग हो.’’ ‘‘सहेली, हम सब ही इस दुनिया में अनूठे और भिन्न हैं. दूसरों से अपनी तुलना करते रहना अपने समय व ताकत को बेकार में नष्टकरना है. मैं अपनी जिंदगी को खुशहाल अपने बलबूते पर बनाना चाहती हूं. इस यात्रा में रवि मेरा साथी बनता है, तो उस का स्वागत है. ऐसा नहीं होता है, तो भी कोई गम नहीं क्योंकि कोई दूसरा उपयुक्त हमराही मुझे जरूर मिलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है.’’

‘‘शायद तेरे इस अनूठेपन के कारण ही रवि तेरा दीवाना है… तेरा आत्मविश्वास, तेरी आत्मनिर्भरता ही तेरी ताकत और अनूठी पहचान है.’’ महक के मुंह से निकले इन वाक्यों को सुन कर निशा बड़े रहस्यमयी अंदाज में मुसकराने लगी थी.

महक और निशा ने घर का आधा रास्ता ही तय किया होगा जब रवि की कार उन की बगल में आ कर रुकी. उसे अचानक सामने देख कर निशा का चेहरा गुलाब के फूल सा खिल उठा. ‘‘हाय, तुम यहां कैसे?’’ निशा ने रवि से प्रसन्न अंदाज में हाथ मिलाया और फिर छोड़ा

ही नहीं. ‘‘पार्टी में जाने का मन नहीं किया,’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए जवाब दिया, ‘‘कुछ समय तुम्हारे साथ बिताने के बाद पार्टी में जाऊंगा.’’

‘‘क्या? प्रिया को भी साथ ले जाओगे?’’ महक चुभते से लहजे में यह पूछने से खुद को नहीं रोक पाई. ‘‘नहीं, वह अमित के साथ जा चुकी है. चलो, आइसक्रीम खाने चलते हैं,’’ रवि ने महक के सवाल का जवाब लापरवाही से देने के बाद अपना ध्यान फिर से निशा पर केंद्रित कर लिया.

‘‘पहले मुझे घर छोड़ दो,’’ महक का मूड उखड़ा सा हो गया. ‘‘ओके,’’ रवि ने साथ चलने के लिए महक पर जरा भी जोर नहीं डाला.

निशा रवि की बगल में और महक पीछे की सीट पर बैठ गई तो रवि ने कार आगे बढ़ा दी. ‘‘पहले तुम दोनों मेरे घर चलो,’’ निशा ने मुसकराते हुए माहौल को सहज करने की कोशिश करी. ‘‘नहीं, यार. मैं कुछ वक्त सिर्फ तुम्हारे साथ गुजारना चाहता हूं,’’ रवि ने उस के प्रस्ताव का फौरन विरोध किया.

‘‘पहले घर चलो, प्लीज,’’ निशा ने प्यार से रवि का कंधा दबाया, ‘‘मां के हाथ की बनी एक खास चीज तुम्हें खाने को मिलेगी.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘वह सीक्रेट है.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘प्लीज, बड़े प्यार से करी गई प्रार्थना को रवि अस्वीकार नहीं कर सका और फिर कार निशा के घर की तरफ मोड़ दी.’’

महक अपने घर की तरफ जाना चाहती थी, पर निशा ने उसे प्यार से डपट कर खामोश कर दिया. वह समझती थी कि उस की सहेली रवि को उस के प्रेमी के रूप में उचित प्रत्याशी नहीं मानती है. महक को डर था कि रवि उसे प्रेम में जरूर धोखा देगा. काफी समझाने के बाद भी निशा उस के इस डर को दूर करने में सफल नहीं रही थी. इसीलिए जब ये दोनों उस के साथ होती थीं, तब उसे माहौल खुश बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास हमेशा करना पड़ता था.

रवि मीठा खाने का शौकीन था. निशा की मां के हाथों के बने शाही टोस्ट खा कर उस की तबीयत खुश हो गई. मीठा खा कर महक अपने घर चली गई. निशा ने रवि को खाना खिला कर ही भेजा. हंसतेबोलते हुए 2 घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला.

‘‘लंबी ड्राइव पर जाने का मौसम हो रहा है,’’ ताजी ठंडी हवा को चेहरे पर महसूस करते हुए रवि ने कार में बैठने से पहले अपने मन की इच्छा व्यक्त करी. ‘‘आज के लिए माफी दो. फिर किसी दिन कार्यक्रम…’’

‘‘परसों चलने का वादा करो…, इम्तिहान के बाद?’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए पूछा. ‘‘श्योर,’’ निशा ने फौरन रजामंदी जाहिर

कर दी. ‘‘इम्तिहान खत्म होते ही निकल लेंगे.’’

‘‘ओके.’’ ‘‘पूछोगी नहीं कि कहां चलेंगे?’’

‘‘तुम्हारा साथ है, तो हर जगह खूबसूरत बन जाएगी.’’

‘‘आई लव यू.’’ ‘‘मी टू.’’

रवि ने निशा के हाथ को कई बार प्यार से चूमा और फिर कार आगे बढ़ा दी. रवि के चुंबनों के प्रभाव से निशा के रोमरोम में अजीब सी मादक सिहरन पैदा हो गई थी. दिल में अजीब सी गुदगुदी महसूस करते हुए वह अपने कमरे में लौटी और तकिए को छाती से लगा कर पलंग पर लेट गई. रवि के बारे में सोचते हुए उस का तनमन अजीब सी खुमारी में डूबता जा रहा था. उस के होंठों की मुसकान साफ जाहिर कर रही थी कि उस वक्त उस के सपनों की दुनिया बड़ी रंगीन बनी हुई थी.

रविवार को दोपहर 12 बजे निशा की जापानी भाषा की परीक्षा समाप्त हो गई. वह हौल से बाहर आई तो उस ने रवि को अपना इंतजार करते पाया. सिर्फ 1/2 घंटे बाद रवि की कार दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग पर दौड़ रही थी. दोनों का साथसाथ किसी दूसरे शहर की यात्रा करने का यह पहला मौका था.

मौसम बहुत सुहावना था. ठंडी हवा अपने चेहरों पर महसूस करते हुए दोनों प्रसन्न अंदाज में हसंबोल रहे थे. कुछ देर बाद निशा आंखें बंद कर के मीठे, प्यार भरे गाने गुनगुनाने लगी. रवि रहरह कर उस के सुंदर, शांत चेहरे को देख मुसकराने लगा.

‘‘तुम संसार की सब से सुंदर स्त्री हो,’’ रवि के मुंह से अचानक यह शब्द निकले, तो निशा ने झटके से अपनी आंखें खोल दीं.

रवि की आंखों में अपने लिए गहरे प्यार के भावों को पढ़ कर उस के गौरे गाल गुलाबी हो उठे और फिर शरमाए से अंदाज में वह सिर्फ इतना ही कह पाई, ‘‘झूठे.’’

रवि ने कार की गति धीमी करते हुए उसे एक पेड़ की छाया के नीचे रोक दिया. फिर उस ने झटके से निशा को अपनी तरफ खींचा और उस के गुलाबीि होंठों पर प्यारा सा चुंबन अंकित कर दिया. निशा की तेज सांसों और खुले होंठों ने उसे फिर से वैसा करने को आमंत्रित किया, तो रवि के होंठ फिर से निशा के होंठों से जुड़ गए.

इस बार का चुंबन लंबा और गहन तृप्ति देने वाला था. उस की समाप्ति पर दोनों ने एकदूसरे की आंखों में गहन प्यार से झांका. ‘‘तुम एक जादूगरनी हो,’’ निशा की पलक को चूमते हुए रवि ने उस की तारीफ करी.

‘‘वह तो मैं हूं,’’ निशा हंस पड़ी. ‘‘मेरा दिल इस वक्त मेरे काबू में नहीं है.’’

‘‘मेरा भी.’’ ‘‘मैं तुम्हें जी भर कर प्यार करना चाहता हूं.’’

‘‘मैं भी.’’ ‘‘सच?’’

निशा ने बेहिचक ‘हां’ में सिर ऊपरनीचे हिलाया, तो रवि की आंखों में हैरानी के भाव उभरे. ‘‘क्या तुम्हें अपनी बदनामी का, अपनी छवि खराब होने का डर नहीं है?’’

‘‘क्या करना है और क्या नहीं, इसे मैं दूसरों की नजरों से नहीं तोलती हूं, रवि.’’ ‘‘फिर भी शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने को समाज गलत मानता है, खासकर लड़कियों के लिए.’’

निशा ने आगे झुक कर रवि के गाल को चूमा और फिर सहज अंदाज में बोली, ‘‘स्वीटहार्ट, पुरानी मान्यताओं को जबरदस्ती ओढ़े रखने में मेरा विश्वास नहीं है. मैं इतना जानती हूं कि मैं तुम्हें प्यार करती हूं और तुम्हारा स्पर्श मेरे रोमरोम में मादक झनझनाहट पैदा कर देता है.’’ ‘‘तुम्हारे साथ सैक्स संबंध बनाने का फैसला मैं तुम्हारी और अपनी खुशियों को ध्यान में रख कर करूंगी. वैसा करने के लिए तुम मुझ से शादी करने का झूठासच्चा वादा करो, यह कतई जरूरी नहीं है.’’

‘‘तो क्या तुम मेरे साथ सोने को तैयार हो?’’ ‘‘बड़ी खुशी से,’’ निशा का ऐसा जवाब सुन कर रवि जोर से चौंका, तो वह खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘तुम्हें समझना मेरे बस की बात नहीं है. साधारण से घर में पैदा हुई लड़की इतनी असाधारण… इतनी अनूठी… इतनी आत्मविश्वास से भरी कैसे हो गई है?’’ कार को फिर से आगे बढ़ाते हुए हैरान रवि ने यह सवाल मानो खुद से ही पूछा हो. ‘‘जिस के पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए हिम्मत, लगन और कठिन मेहनत करने जैसे गुण हों, वह इंसान साधारण घर में पैदा होने के बावजूद असाधारण ऊंचाइयां ही छू सकती है,’’ होंठों से बुदबुदा कर निशा ने रवि के सवाल का जवाब खुद को दिया और फिर रवि के हाथ को प्यार से पकड़ कर शांत अंदाज में आंखें मूंद लीं.

आत्मविश्वासी निशा अपने भविष्य के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थी. मस्त अंदाज में सीटी बजा रहे रवि ने भी भविष्य को ले कर एक फैसला उसी समय कर लिया. ताजमहल के सामने निशा के सामने शादी करने का प्रस्ताव रखने का निर्णय लेते हुए उस का दिल अजीब खुशी और गुदगुदी से भर उठा था, साधारण बगीचे में उगे इस असाधारण फूल की महक से वह अपना भावी जीवन भर लेने को और इंतजार नहीं करना चाहता था.

सजा: अंकिता ने सुमित को ऐसा क्या बताया जिसे सुन सुमित परेशान हो उठा?

वेटर को कौफी लाने का और्डर देने के बाद सुमित ने अंकिता से अचानक पूछा, ‘‘मेरे साथ 3-4 दिन के लिए मनाली घूमने चलोगी?’’

‘‘तुम पहले कभी मनाली गए हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो उस खूबसूरत जगह पहली बार अपनी पत्नी के साथ जाना.’’

‘‘तब तो तुम ही मेरी पत्नी बनने को राजी हो जाओ, क्योंकि मैं वहां तुम्हारे साथ ही जाना चाहता हूं.’’

‘‘यार, एकदम से जज्बाती हो कर शादी करने का फैसला किसी को नहीं करना चाहिए.’’

सुमित उस का हाथ पकड़ कर उत्साहित लहजे में बोला, ‘‘देखो, तुम्हारा साथ मुझे इतनी खुशी देता है कि वक्त के गुजरने का पता ही नहीं चलता. यह गारंटी मेरी रही कि हम शादी कर के बहुत खुश रहेेंगे.’’

उस के उत्साह से प्रभावित हुए बिना अंकिता संजीदा लहजे में बोली, ‘‘शादी के लिए ‘हां’ या ‘न’ करने से पहले मैं तुम्हें आज अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें बताना चाहती हूं, सुमित.’’

सुमित आत्मविश्वास से भरी आवाज में बोला, ‘‘तुम जो बताओगी, उस से मेरे फैसले पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है.’’

‘‘फिर भी तुम मेरी बात सुनो. जब मैं 15 साल की थी, तब मेरे मम्मीपापा के बीच तलाक हो गया था. दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर होने के कारण उन के बीच रातदिन झगड़े होते थे.

‘‘तलाक के 2 साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. ढेर सारी दौलत कमाने की इच्छुक मेरी मां ने अपना ब्यूटी पार्लर खोल लिया. आज वे इतनी अमीर हो गई हैं कि समाज की परवा किए बिना हर 2-3 साल बाद अपना प्रेमी बदल लेती हैं. हमारे जानकार लोग उन दोनों को इज्जत की नजरों से नहीं देखते हैं.’’

अंकिता उस की प्रतिक्रिया जानने के लिए रुकी हुई है, यह देख कर सुमित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘मैं मानता हूं कि हर इंसान को अपने हिसाब से अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार होना ही चाहिए. तलाक लेने के बजाय रातदिन लड़ कर अपनीअपनी जिंदगी बरबाद करने का भी तो उन दोनों के लिए कोई औचित्य नहीं था. खुश रहने के लिए उन्होंने जो रास्ता चुना, वह सब को स्वीकार करना चाहिए.’’

‘‘क्या तुम सचमुच ऐसी सोच रखते हो या मुझे खुश करने के लिए ऐसा बोल रहे हो?’’

‘‘झूठ बोलना मेरी आदत नहीं है, अंकिता.’’

‘‘गुड, तो फिर शादी की बात आगे बढ़ाते हुए कौफी पीने के बाद मैं तुम्हें अपनी मम्मी से मिलाने ले चलती हूं.’’

‘‘मैं उन्हें इंटरव्यू देने के लिए बिलकुल तैयार हूं,’’ सुमित बोला तो उस की आंखों में उभरे प्रसन्नता के भाव पढ़ कर अंकिता खुद को मुसकराने से नहीं रोक पाई. आधे घंटे बाद अंकिता सुमित को ले कर अपनी मां सीमा के ब्यूटी पार्लर में पहुंच गई.

आकर्षक व्यक्तित्व वाली सीमा सुमित से गले लग कर मिली और पूछा, ‘‘क्या तुम इस बात से हैरान नजर आ रहे हो कि हम मांबेटी की शक्लें आपस में बहुत मिलती हैं?’’

‘‘आप ने मेरी हैरानी का बिलकुल ठीक कारण ढूंढ़ा है,’’ सुमित ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘हम दोनों की अक्ल भी एक ही ढंग से काम करती है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘हम दोनों ही ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत में विश्वास रखती हैं. उन लोगों से संबंध रखना हमें बिलकुल पसंद नहीं जो हमारी जिंदगी में टैंशन पैदा करने की फिराक में रहते हों.’’

‘‘मम्मी, अब सुमित से भी इस के बारे में कुछ पूछ लो, क्योंकि यह मुझ से शादी करना चाहता है,’’ अंकिता ने अपनी बातूनी मां को टोकना उचित समझा था.

‘‘रियली, दिस इज गुड न्यूज,’’ सीमा ने एक बार फिर सुमित को गले से लगा कर खुश रहने का आशीर्वाद दिया और फिर अपनी बेटी से पूछा, ‘‘क्या तुम ने सुमित को अपने पापा से मिलवाया है?’’

‘‘अभी नहीं.’’

सीमा मुड़ कर फौरन सुमित को समझाने लगी, ‘‘जब तुम इस के पापा से मिलो, तो उन के बेढंगे सवालों का बुरा मत मानना. उन्हें करीबी लोगों की जिंदगी में अनावश्यक हस्तक्षेप करने की गंदी आदत है, क्योंकि वे समझते हैं कि उन से ज्यादा समझदार कोई और हो ही नहीं सकता.’’

‘‘मौम, सुमित यहां आप की शिकायतें सुनने नहीं आया है. आप उस के बारे में कोई सवाल क्यों नहीं पूछ रही हैं?’’ अंकिता ने एक बार फिर अपनी मां को विषय परिवर्तन करने की सलाह दी.

‘‘ओकेओके माई डियर सुमित, मुझे तो तुम से एक ही सवाल पूछना है. क्या तुम अंकिता के लिए अच्छे और विश्वसनीय जीवनसाथी साबित होंगे?’’

‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि शादी के बाद हम बहुत खुश रहेंगे,’’ सुमित ने बेझिझक जवाब दिया.

‘‘मैं नहीं चाहती कि अंकिता मेरी तरह जीवनसाथी का चुनाव करने में गलती

करे. मेरी सलाह तो यही है कि तुम दोनों शादी करने का फैसला जल्दबाजी में मत करना. एकदूसरे को अच्छी तरह से समझने के बाद अगर तुम दोनों शादी करने का फैसला करते हो, तो सुखी विवाहित जीवन के लिए मेरा आशीर्वाद तुम दोनों को जरूर  मिलेगा.’’

‘‘थैंक यू, आंटी. मैं तो बस, अंकिता की ‘हां’ का इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘गुड, प्लीज डोंट माइंड, पर इस वक्त मैं जरा जल्दी में हूं. मैं ने एक खास क्लाइंट को उस का ब्राइडल मेकअप करने के लिए अपौइंटमैंट दे रखा है. तुम दोनों से फुरसत से मिलने का कार्यक्रम मैं जल्दी बनाती हूं,’’ सीमा ने बारीबारी दोनों को प्यार से गले लगाया और फिर तेज चाल से चलती हुई पार्लर के अंदरूनी हिस्से में चली गई.

बाहर आ कर सुमित सीमा से हुई मुलाकात के बारे में चर्चा करना चाहता था, पर अंकिता ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘मैं लगे हाथ अपने पापा को भी तुम्हारे बारे में बताने जा रही हूं. मेरे फोन का स्पीकर औन है. हमारे बीच कैसे संबंध हैं, यह समझने के लिए तुम हमारी बातें ध्यान से सुनो, प्लीज.’’

अंकिता ने अपने पापा को सुमित का परिचय देने के बाद जब उस के साथ शादी करने की इच्छा के बारे में बताया, तो उन्होंने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम सुमित को कल शाम घर ले आओ.’’

‘‘जरा सोचसमझ कर हमें घर आने का न्योता दो, पापा. आप मेरी जिंदगी में दिलचस्पी ले रहे हैं, यह देख कर आप की दूसरी वाइफ नाराज तो नहीं होंगी न?’’

अंकिता के व्यंग्य से तिलमिलाए उस के पापा ने भी तीखे लहजे में कहा, ‘‘तुम बिलकुल अपनी मां जैसी बददिमाग हो गई हो और उसी के जैसे वाहियात लहजे में बातें भी करती हो. पिता होने के नाते मैं तुम से दूर नहीं हो सकता, वरना तुम्हारा बात करने का ढंग मुझे बिलकुल पसंद नहीं है.’’

‘‘आप दूर जाने की बात मत करिए, क्योंकि आप की सैकंड वाइफ ने आप को मुझ से पहले ही बहुत दूर कर दिया है.’’

‘‘देखो, यह चेतावनी मैं तुम्हें अभी दे रहा हूं कि कल शाम तुम उस के साथ तमीज से पेश…’’

‘‘मैं कल आप के घर नहीं आ रही हूं. सुमित को किसी और दिन आप के औफिस ले आऊंगी.’’

‘‘तुम बहुत ज्यादा जिद्दी और बददिमा होती जा रही हो.’’

‘‘थैंक यू एेंड बाय पापा,’’ चिढ़े अंदाज में ऐसा कह कर अंकिता ने फोन काट दिया था.

अपने मूड को ठीक करने के लिए अंकिता ने पहले कुछ गहरी सांसें लीं और फिर सुमित से पूछा, ‘‘अब बताओ कि तुम्हें मेरे मातापिता कैसे लगे? क्या राय बनाई है तुम ने उन दोनों के बारे में?’’

‘‘अंकिता, मुझे उन दोनों के बारे में कोई भी राय बनाने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है. तुम्हें उन से जुड़ कर रहना ही है और मैं उन के साथ हमेशा इज्जत से पेश आता रहूंगा,’’ सुमित ने उसे अपनी राय बता दी.

उस का जवाब सुन अंकिता खुश हो कर बोली, ‘‘तुम तो शायद दुनिया के सब से ज्यादा समझदार इंसान निकलोगे. मुझे विश्वास होने लगा है कि हम शादी कर के खुश रह सकेंगे, पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘पर फिर भी मैं चाहूंगी कि तुम अपना फाइनल जवाब मुझे कल दो.’’

‘‘ओके, कल कब और कहां मिलोगी?’’

‘‘करने को बहुत सी बातें होंगी, इसलिए नेहरू पार्क में मिलते हैं.’’

‘‘ओके.’’

अगले दिन रविवार को दोनों नेहरू पार्क में मिले. सुमित की आंखों में तनाव के भाव पढ़ कर अंकिता ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘यार, इतनी ज्यादा टैंशन लेने की जरूरत नहीं है. तुम मुझ से शादी नहीं कर सकते हो, अपना यह फैसला बताने से तुम घबराओ मत.’’

उस के मजाक को नजरअंदाज करते हुए सुमित गंभीर लहजे में बोला, ‘‘कल रात को किसी लड़की ने मुझे फोन कर राजीव के बारे में बताया है.’’

‘‘यह तो उस ने अच्छा काम किया, नहीं तो आज मैं खुद ही तुम्हें उस के बारे में बताने वाली थी,’’ अंकिता ने बिना विचलित हुए जवाब दिया.

‘‘क्या तुम उस के बहुत ज्यादा करीब थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम दोनों एकदूसरे से दूर क्यों हो गए?’’

‘‘उस का दिल मुझ से भर गया… उस के जीवन में दूसरी लड़की आ गई थी.’’

‘‘क्या तुम उस के साथ शिमला घूमने गई थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या तुम वहां उस के साथ एक ही कमरे में रुकी थी’’

उस की आंखों में देखते हुए अंकिता ने दृढ़ लहजे में जवाब दिया, ‘‘रुके तो हम अलगअलग कमरों में थे, पर मैं ने 2 रातें उस के कमरे में ही गुजारी थीं.’’

उस का जवाब सुन कर सुमित को एकदम झटका लगा. अपने आंतरिक तनाव से परेशान हो वह दोनों हाथों से अपनी कनपटियां मसलने लगा.

‘‘मैं तुम से इस वक्त झूठ नहीं बोलूंगी सुमित, क्योंकि तुम से… अपने भावी जीवनसाथी से अपने अतीत को छिपा कर रखना बहुत गलत होगा.’’

‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या कहूं. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. तुम से शादी करना चाहता हूं, पर…पर…’’

‘‘मैं अच्छी तरह से समझ सकती हूं कि तुम्हारे मन में इस वक्त क्या चल रहा है, सुमित. अच्छा यही रहेगा कि इस मामले में तुम पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं खुद नहीं चाहती हूं कि तुम जल्दबाजी में मुझ से शादी करने का फैसला करो.’’ बहुत दुखी और परेशान नजर आ रहे सुमित ने अपना सारा ध्यान अंकिता पर केंद्रित कर दिया.

अंकिता ने उस की आंखों में देखते हुए गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘राजीव मुझ से बहुत प्रेम करने का दम भरता था और मैं उस के ऊपर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. इसीलिए जब उस ने जोर डाला तो मैं न उस के साथ शिमला जाने से इनकार कर सकी और न ही कमरे में रात गुजारने से.

‘‘मैं ने फैसला कर रखा है कि उस धोखेबाज इंसान को न पहचान पाने की अपनी गलती के लिए घुटघुट कर जीने की सजा खुद को बिलकुल नहीं दूंगी. अब तुम ही बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए?

‘‘क्या मैं आजीवन अपराधबोध का शिकार बन कर जीऊं? तुम्हारे प्रेम का जवाब प्रेम से न दूं? तुम से शादी हो जाए, तो हमेशा डरतीकांपती रहूं कि कहीं से राजीव और मेरे अतीत के नजदीकी रिश्तों के बारे में तुम्हें पता न लग जाए?

‘‘मैं चाहती हूं कि तुम भावुक हो कर शादी के लिए ‘हां’ मत कहो. तुम्हें राजीव के बारे में पता है… मेरे मातापिता के तलाक, उन की जीवनशैली और उन के मेरे तनाव भरे रिश्तों की जानकारी अब तुम्हें है.

इन सब बातों को जान कर तुम्हारे मन में मेरी इज्जत कम हो गई हो या मेरी छवि बिगड़ गई हो, तो मेरे साथ सात फेरे लेने का फैसला बदल दो.’’

अंकिता की सारी बातें सुन कर सुमित जब खामोश बैठा रहा, तो अंकिता उठ कर खड़ी हो गई और बुझे स्वर में बोली, ‘‘तुम अपना फाइनल फैसला मुझे बाद में फोन कर के बता देना. अभी मैं चलती हूं.’’

पार्क के गेट की तरफ बढ़ रही अंकिता को जब सुमित ने पीछे से आवाज दे कर नहीं रोका, तो उस के तनमन में अजीब सी उदासी और मायूसी भरती चली गई थी.

आंखों से बह रही अविरल अश्रुधारा को रोकने की नाकामयाब कोशिश करते हुए जब वह आटोरिकशा में बैठने जा रही थी, तभी सुमित ने पीछे से आ कर उस का हाथ पकड़ लिया. उस की फूली सांसें बता रही थीं कि वह दौड़ते हुए वहां पहुंचा था.

‘‘तुम्हें मैं इतनी आसानी से जिंदगी से दूर नहीं होने दूंगा, मैडम,’’ सुमित ने उस का हाथ थाम कर भावुक लहजे में अपने दिल की बात कही.

‘‘मेरे अतीत के कारण तुम हमारी शादी होने के बाद दुखी रहो, यह मेरे लिए असहनीय बात होगी. सुमित, अच्छा यही रहेगा कि हम दोस्त…’’

उस के मुंह पर हाथ रख कर सुमित ने उसे आगे बोलने से रोका और कहा, ‘‘जब तुम चलतेचलते मेरी नजरों से ओझल हो गई, तो मेरा मन एकाएक गहरी उदासी से भर गया था…वह मेरे लिए एक महत्त्वपूर्ण फैसला करने की घड़ी थी…और मैं ने फैसला कर लिया है.

‘‘मेरा फैसला है कि मुझे अपनी बाकी की जिंदगी तुम्हारे ही साथ गुजारनी है.’’

‘‘सुमित, भावुक हो कर जल्दबाजी में…’’

उस के कहे पर ध्यान दिए बिना बहुत खुश नजर आ रहा सुमित बोले जा रहा था, ‘‘मेरा यह अहम फैसला दिल से आया है, स्वीटहार्ट. अतीत में किसी और के साथ बने सैक्स संबंध को हमारे आज के प्यार से ज्यादा महत्त्व देने की मूढ़ता मैं नहीं दिखाऊंगा. विल यू मैरी मी?’’

‘‘पर…’’

‘‘अब ज्यादा भाव मत खाओ और फटाफट ‘हां’ कर दो, माई लव,’’ सुमित ने अपनी बांहें फैला दीं.

‘‘हां, माई लव,’’ खुशी से कांप रही आवाज में अपनी रजामंदी प्रकट करने के बाद अंकिता सुमित की बांहों के मजबूत घेरे में कैद हो गई.

Valentine’s Day 2024: लाल फ्रेम- पहली नजर में हुआ प्रियांक को दिया से प्यार

कार पार्क कर के प्रियांक तेज कदमों से इधरउधर कुछ ढूंढ़ता हुआ औफिस की लिफ्ट की तरफ बढ़ गया.  कहीं वह लाल फ्रेम के चश्मे वाली स्मार्ट सुंदरी पहले चली तो नहीं गई. लिफ्ट का दरवाजा खुला मिल गया, वह सोच ही रहा था कि अंदर घुसूं या नहीं, तभी चिरपरिचित सुगंध के झोंके के साथ वह युवती लिफ्ट में प्रवेश कर गई तो वह भी यंत्रवत अंदर चला आया. अब तो रोज ही का कुछ ऐसा किस्सा था. नजरें मिलतीं, फिर दोनों दूसरी ओर देखने लगते. धीरेधीरे वे एकदूसरे को पहचानने लगे तो देख कर अब स्माइल भी करने लगे. युवती 10वीं मंजिल पर जाती तो 11वीं मंजिल पर उतर कर उस के साथ के खुशनुमा एहसासों को समेटे ऊर्जावान हुआ प्रियांक दोगुने उत्साह से सीढि़यां उतरता तीसरी मंजिल पर स्थित अपने औफिस में गुनगुनाते हुए पहुंच जाता.

‘ला ल ला हूम् हूम् ल ला…चलो, अच्छा हुआ उसे आज भी नहीं पता चला कि मैं सिर्फ उस का साथ पाने के लिए ही 11वीं मंजिल तक जाता हूं. उस के लाल फ्रेम ने तो मेरे दिल को ही फ्रेम कर लिया है…’ अपनी धुन में सोचता प्रियांक फिसलतेफिसलते बचा.

‘‘अरे भाई, संभल के, प्रियांक, क्या बात है, बड़ा खुश नजर आ रहा है. कहीं किसी से प्यार तो नहीं हो गया…. और यह बता ऊपर से कहां से आ रहा है? कई बार पहले भी तुम्हें ऊपर सीढि़यों से आते देखा, लेकिन पूछना भूल जाता हूं.’’

‘‘कुछ ऐसा ही समझ लो प्यारे,’’ प्रियांक ने मस्ती में जवाब दिया.

‘‘वाह भई वाह, मुबारक हो, मुबारक हो…अब कौन है, क्या नाम है ये भी तो बता दो प्यारे.’’

‘‘अरे ठहर भई, सब यहीं पूछ लेगा, कैंटीन में बात करते हैं. वैसे, इस से ज्यादा मुझे भी कुछ नहीं पता, बस,’’ कह कर प्रियांक मुसकराया.

जिस दिन वह युवती नहीं मिलती तो पूरे दिन उस का मन फ्यूज बल्ब जैसा बुझाबुझा सा रहता. न तो उस दिन उस के मन को तरोताजा करने वाली वह खुशबू रचबस पाती, न ही किसी काम में उस का मन लगता. 2 महीने तक यही सिलसिला चलता रहा.

फिर वह औफिस के बाद भी उस का साथ पाने के लिए इंतजार करता… उस के साथ ही बाहर निकलता और कार पार्किंग तक साथसाथ जाता. पता चला कि घर का रास्ता भी कुछ दूर तक एक ही है. उन की कार कभी आगे, कभी पीछे होती, नजरें मिलतीं, वे मुसकराते. इतने में उस के घर का रास्ता आ जाता. आखिर में लड़की की कार उसे बाय कहते हुए आगे निकल जाती. प्रियांक मन मसोस कर रह जाता.

कुछ दिन यों ही बीत गए. प्रियांक उस युवती का इंतजार तो करता लेकिन दूर से ही उस का लाल फ्रेम देख कर झट से लिफ्ट के अंदर हो लेता, जैसा कि उस ने उसे देखा ही नहीं. ऐसा इसलिए करता कि वह यह न समझ बैठे कि मैं उस से मुहब्बत करता हूं. पर क्या मैं सही में तो उस से प्यार नहीं करने लगा हूं.

उधर भीड़ में भी वह युवती दिया उसे महसूस कर लेती. उस का दिल जोरों से धड़क उठता. ऐसा क्यों हो रहा है, कहीं उस अनजाने से प्यार तो नहीं हो गया. यह सोचते ही उस के लाल फ्रेम के नीचे दोनों कान और गुलाबी गाल गरम लाल हो कर और भी मैच करने लगते. वह कोशिश करती कि आंख बचा कर निकल जाए, पर आंखें तो जैसे उसी का पीछा करने को आतुर रहतीं और जैसे ही वह देखती, उस का जी धक से हो उठता.

बहुत पुराना मम्मी का पसंदीदा गाना उस के जेहन में चलने लगता…’ मेरे सामने जब तू आता है जी धक से मेरा हो जाता है… महसूस ये होता है मुझ को जैसे मैं तेरा दम भरती हूं, इस बात से ये न समझ लेना कि मैं तुझ से मुहब्बत करती हूं…’ सच ही तो है, कितनी हकीकत है इस गाने में. उस ने माथे पर उभर आया पसीना पोंछ लिया था. जबतब मेरा पीछा ही करता रहता है, मेरा ही इंतजार कर रहा था शायद, पर आता देख जल्दी से अंदर हो लिया वरना लिफ्ट और भी तो जाती हैं. यह महज संयोग तो नहीं हो सकता. कभीकभी लिफ्ट के डोर पर ही उधर मुुंह घुमा कर खड़ा हो जाता है जब तक मैं चढ़ नहीं जाती. फिर भी, वह दिखने में कोई लुच्चालफंगा तो नहीं लगता. हां, अकड़ू जरूर लगता है.

एक दिन उसे आता देख वह लिफ्ट रोक कर खड़ा हो गया कि तभी लाल फ्रेम वाली लड़की से पहले तेज चलती हुई एक मोटी अफ्रीकन महिला टकराई और वह धड़ाम से नीचे गिर गई. महिला बड़ेबड़े हाथों से जल्दी का इशारा करते हुए सौरीसौरी बोलते हुए फिर उसी तेजी से निकल गई. प्रियांक लिफ्ट से बाहर आ कर उस की ओर लपका.

‘‘मे आई हैल्प यू,’’ उस ने संकोच से हाथ बढ़ा दिया था.

‘‘नोनो थैंक्स…इट्स ओके.’’

‘‘रियली?’’

वह धीरेधीरे उठ खड़ी हुई. तो प्रियांक ने उस का बैग झाड़ कर उसे थमा दिया.

‘‘अजीब हैं लोग, अपनी तेजी में अपने सिवा कुछ और देख ही नहीं पाते…’’

‘‘हूं,’’ एक पल को उस ने नजरें उठा कर देखा, कुछ अलग सा आकर्षण लगा था युवक में उसे.

बस, फिर खामोशी…

चलते हुए दोनों लिफ्ट के अंदर हो लिए.

‘वह इग्नोर कर रही है तो मैं कौन सा मरा जा रहा हूं.’ उधर दिया भी सोच रही थी, मैं ने एक बार मना किया तो क्या दोबारा भी तो पूछ सकता था, कितना दर्द हुआ उठने में, अब खड़े होने में तकलीफ हो रही है. अवसर का लाभ न उठा पाने का उसे भी मलाल था.

इस बार हफ्तेदस दिन हो गए, प्रियांक को लड़की दिखी ही नहीं. प्रियांक की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी. अपने औफिस से शायद उस ने छुट्टी ली होगी, घर पर कोई शादीवादी हो. कहीं बीमार तो नहीं, कोई दुर्घटना… अरे यार, मैं भी क्याक्या फालतू सोचे जा रहा हूं… बुद्धू हूं जो उस का नाम भी नहीं पता किया. उस के औफिस जा कर पूछूं भी तो क्या कैसे? वह लाल फ्रेम वाली मैडम? हां, चपरासी से पूछना ठीक रहेगा, बाहर जो बैठता है उसी से पूछता हूं.

उस दिन शाम को औफिस से निकलते वक्त मौका देख कर उस ने चपरासी से पूछ ही लिया था.

‘‘कौन? लाल चश्मेवाली? वे दिया मैम हैं साब, कोई काम था क्या…’’

‘‘कई दिनों से औफिस नहीं आ रहीं? क्या बात हो गई?’’

‘‘अब मुझे क्या पता, कोई काम था क्या?’’ उस ने दोबारा पूछा था.

‘‘नहीं, यों ही. कई दिनों से देखा नहीं,’’ अपने आप झुंझलाए खड़े प्रियांक के मन में तो आ रहा था कि कह दे कि अपने काम से काम रख, औफिस की इतनी सी खबर नहीं रख सकता तो क्या कर सकता है. उसे अपनी ओर देखतेदेखते वह खिसियाया सा लिफ्ट की तरफ मुड़ गया. चलो, यह तो अच्छा हुआ, नाम तो पता चला उस का. दिलोदिमाग उजाले से भर गया हो जैसे…‘‘दिया,’’ वह बोल उठा था.

3 दिनों बाद प्रियांक के साथ ही दिया कि कार पार्किंग में रुकी. दिया को देखते ही वह झटके से गाड़ी से उतरा, फिर सधे कदमों से उस के पास पहुंचने से अपनेआप को रोक नहीं पाया. वह नीचे उतरी थी. उस की लौंग स्कर्ट के नीचे बाएं पैर की एंकल में बंधी क्रेप बैंडेज साफ नजर आ रही थी. उसे देख कर वह मुसकराई और धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी.

‘‘मैं कुछ मदद करूं?’’ वह  सहारा देने बढ़ा था.

‘‘नो थैंक्स, इट्स ओके… आप चलें,’’ अपना चश्मा ठीक करते हुए वह मुसकराई. अपने दिल की तेज होती धड़कन उसे साफ सुनाई देने लगी थी. वह भी साथसाथ चलने लगा.

‘‘मैं, प्रियांक, 11वीं मंजिल पर स्थित निप्पो ओरिएंटल में काम करता हूं. आप को कई बार आतेजाते देखा है. पर कभी परिचय नहीं हुआ था. कैसे चोट लगा ली आप को?’’ वह मन की अकुलाहट छिपाते हुए बातों का सिलसिला आगे बढ़ाने लगा था.

‘‘माइसैल्फ दिया, दिया दीक्षित.’’

‘‘दिया, आई नो.’’

‘‘जी?’’ दिया ने उसे हैरानी से देखा था.

‘‘जी, वो आप भी नाम बताएंगी, मैं जानता था,’’ थोड़ी घबराहट के साथ वह बात घुमाने में कामयाब हो गया था.

‘‘एक मैरिज पार्टी में गई थी. डांस करते समय पैर ऊंचेनीचे पड़ा और बस मुड़ गया. जबरदस्त मोच आ गई थी. बिलकुल नहीं चला जा रहा था. अब तो काफी ठीक हूं,’’ कह कर वह फिर मुसकराई.

‘‘अच्छा, डांस का तो मैं भी दीवाना हूं. बस, मौका मिलना चाहिए कि शुरू हो जाता हूं. हाहा,’’ अपने जोक पर खुद ही हंसा था. दिया को मौन देख कर हंसी को ब्रेक लग गया था. वह सीरियस होते हुए बोला, ‘‘आप का मेरा रास्ता काफी दूर तक एक ही है. आप चाहें तो आप को मैं घर से ही पिकड्रौप कर सकता हूं. आप को गाड़ी चलाने में बेकार की असुविधा नहीं झेलनी पड़ेगी. मैं लाजपत नगर मुड़ जाता हूं, आप शायद मूलचंद…साउथऐक्स… वह बातोंबातों में उस का पताठिकाना जान लेना चाहता था.

‘‘ओ नो. चोट बाएं पैर में है, फिर कार को चलाने के लिए एक ही पैर की जरूरत पड़ती है. औटोमैटिक है न,’’ कह कर वह मुसकराई.

ओ क्विड, नाइस. कार है तो छोटी सी पर पिकअप फीचर बढि़या हैं. मेरे एक दोस्त के पास भी यही है. मैं ने चलाई है पर वह औटोमेटिक मौडल नहीं थी,’’ वह खिसियाई हंसी हंसा. थोड़ी देर बाद वे दोनों लिफ्ट के अंदर थे.

‘‘शाम को मैं आप का वेट कर लूंगा, निकलेंगे साथ ही घर को… क्या पता कोई मदद ही हो जाए,’’ प्रियांक ने माथे पर आई झूलती घुंघराले बालों की लट को स्टाइल से ऊपर किया तो माथे की नसों के साथ उस का चेहरा चमकने लगा.

‘‘ओके, नो प्रौब्लम,’’ कुछ तो आकर्षण था प्रियांक के चितवन में, जब भी देखती तो उस की नजरें जैसे बंध जातीं. पर जाहिर नहीं होने देती.

शाम को दिया लिफ्ट से बाहर निकली तो प्रियांक खड़ा मिला.

‘‘चलें?’’ दिया लिफ्ट से उतरी तो प्रियांक की प्रश्नवाचक नजरें पूछ रही थीं.

‘‘हूं, उस ने हामी भरी तो प्रियांक ने बड़े हक से उस के हाथों से बड़ा बैग अपने हाथों में ले लिया.’’

‘‘कोई नहीं, इस में क्या हुआ, इंसान इंसान के काम नहीं आएगा तो कौन आएगा,’’ दोनों मुसकरा दिए.

‘‘न्यू कौफी होम की कौफी पी है आप ने, गजब की है.’’

‘‘अच्छा?’’ कुछ पलों के साथ के लिए थोड़ी दिलचस्पी दिखाना दिया को अच्छा लग रहा था.

‘‘मैं जा रहा हूं, ट्राई करनी है आप को? थोड़ा टाइम हो तो?’’ वह अपना भाव बनाए हुए बोला.

‘‘डोंट माइंड, आज देखती हूं पी कर, काफी थक भी गई हूं. काम था औफिस में. किसी ने बताया ही नहीं कभी. मैं भी तो बस, औफिस आती हूं, काम किया और फिर सीधे घर, चलिए,’’ आज न जाने कैसे दिया ने आसानी से हामी भर दी. जैसे उस के साथ के लिए तड़प रही हो और इतने दिनों तक उसे न देखने की सारी कसर अभी पूरी कर लेना चाहती हो. वह खुद हैरान थी, लेकिन उस ने कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया. उस के दिल की धड़कन कुछ हद तक सामान्य हो गई थी.

‘‘घर पर इंतजार करने वाले हों तो औफिस के बाद घर जाना ही अच्छा लगता है,’’ शायद वह बता दे कि कौनकौन रहता है उस के घर में साथ. पर नहीं, दिया ने तो बात का रुख ही मोड़ दिया.

‘‘अंदर नहीं, यहीं बाहर ओपन एयर में बैठते हैं. वेटर…’’ उस ने पुकारा था.

‘‘अरे, मैं और्डर दे कर आता हूं. कूपन सिस्टम है यहां, भीड़ देख रही हैं? आप बैठिए, मैं ले आता हूं.’’

‘‘वाउ, वेरी नाइस कौफी, पी कर दिनभर की थकान दूर हो गई,’’ कौफी पी कर दिया ने कहा. इधरउधर की बातें करते हुए वह चोर नजरों से उसे बारबार देख लेती. उस का साथ दिया को अच्छा लग रहा था. कुछ और साथ बैठना भी चाहती थी पर कहीं ये ज्यादा ही भाव में न आ जाए…

‘‘अब चलना चाहिए मिस्टर प्रियांक.’’

‘‘हां, चलिए.’’ मन तो उस का भी नहीं कर रहा था कभी जाने का. वह शाम के धुंधलके में चल रही मंदमंद बयार की दीवाना बनाने वाली चिरपरिचित भीनीभीनी सुगंध में सबकुछ भूल जाना चाहता था. पर मन ही मन सोचता कि इसे पता नहीं चलने देना है अभी, कहीं मुझे चिपकू न समझने लगे. घमंडी है थोड़ी, न घर बताया, न घर में कौनकौन है बताया. बस, बात घुमा दी. कहीं मुझे ऐसावैसा तो नहीं समझ रही मिस लाल फ्रेम. मैं भी थोड़ा कड़क, थोड़ा रिजर्व बन जाता हूं. पर इस के बारे में जानने का जो दिल करता है, उस का क्या करूं?

एक दिन प्रियांक ने ठान लिया कि जैसे ही दिया की कार आगे निकलेगी, वह बैक कर के गाड़ी वापस कर लेगा और फिर दिया का गंतव्य जान कर ही रहेगा. उस ने ऐसा ही किया. दिया जान भी नहीं पाई कि वह एक निश्चित दूरी बनाते हुए उस के पीछे चलने लगा पर दिया ने तो यू टर्न ले लिया और आश्रम के पैट्रोल पंप के साथ लगे मकानों में से किसी एक में घुस गई. 3 दिन लगातार पीछा करने के बाद प्रियांक इस नतीजे पर पहुंचा.

‘तो शायद मुझे चकमा देने के लिए ऐसा किया जा रहा था ताकि यहां रहती होगी, मैं सोच भी न सकूं… हाउस नंबर ये, नेम प्लेट पर नाम रिटायर्ड कर्नल एस के दीक्षित. फिर तो सही है… ठिकाने का पता तो लगा ही लिया मिस लाल फ्रेम. मगर खाली पते का करूंगा क्या?’ अपना सवाल सोच वह बौखलाया सा सड़क पर ही दो पल रुका रहा. ‘सड़कछाप आशिक तो नहीं कि मुंह उठाए घर चला जाऊं… पुरानी फिल्मों के हीरो जैसे कि मैं आप की लड़की का हाथ मांगने आया हूं. लड़की अपने लाल फ्रेम में से घूरे कि जैसे’ मेरा तो इस से कोई सरोकार ही नहीं. और कर्नल बाप मुझे गोली से ही उड़ा दे. अच्छा लगने या एकतरफा प्यार से क्या हो सकता है भला? वह तो अपने ही में रहती है, कछुए की तरह सबकुछ सिकोड़ कर बैठ जाती है, कुछ बताना ही नहीं चाहती. शायद ट्राई तो किया था या मेरी तरह वह भी कह नहीं पाती हो. अगर ऐसा है तो कायनात पर ही छोड़ देते हैं… पर शिद्दत से, बस, चाहो और बाकी कायनात पर छोड़ दो. नो एफर्ट… यह दुनिया का एक ही उदाहरण होगा शायद… चलता हूं…’ सोच कर वह मुसकराया. कार की दीवार पर हलके से मुक्के मारता वह वापस हो लिया.

‘आज ऊपर जा कर इन की मंजिल देख ही आती हूं, जनाब वहां काम करते भी हैं या नहीं… क्यों इस के बारे में जानने को दिल करता है. कहीं वाकई इस से मुझे इश्क तो नहीं होने लगा.’ दिया अपनी मंजिल पर न उतर कर आज प्रियांक के साथ उस के 11वें फ्लोर पर पहुंच गई.

‘‘चलिए, आज थोड़ा टाइम है मैं ने सोचा आप का औफिस ही देख लेती हूं. वैसे भी मैं ने इस बिल्डिंग में किसी और फ्लोर को अभी देखा नहीं…’’

अचकचा गया था प्रियांक उस के इस अचानक निर्णय पर. अब…‘ क्या कहे, मैं ने उस का साथ पाने के लिए उस से 11वीं फ्लोर पर अपना औफिस होने का झूठ बोला था, पर सच तो अब बोलना ही पड़ेगा. खिसियाया सा वह बोला, ‘‘वो दरअसल, मेरा औफिस तो तीसरे फ्लोर पर ही है. मैं ने आप का साथ पाने के लिए आप से झूठ बोला था दिया पर आप भी…मूलचंद नहीं… बल्कि आश्रम में…’’ उस के मुंह से अधूरा वाक्य रोकतेरोकते भी फिसल ही गया था.

अब खिसियाने की बारी दिया की थी, ‘अच्छा, तो इसे मेरे झूठ का पता चल गया कि मैं इस के मोड़ से आगे मूलचंद साउथऐक्स वगैरह में कहीं नहीं बल्कि इस के भी पहले रहती हूं. लगता है मेरा पीछा करते हुए उस ने मेरा घर देख लिया, तभी तो आश्रम…’’ सोचते ही उस के दांतों में जीभ अपनेआप आ गई.

‘‘जी, वो मैं…’’ उस के लाल फ्रेम में से उस की आंखों से झांकती झेंप स्पष्ट दिखाई दे रही थी.

‘इस का मतलब तुम भी…’ वह हर्ष मिश्रित विस्मय से अधीर होता हुआ आप से तुम पर आ कर और पास आ गया था.

दिया ने आंखोंआंखों में ही हामी भरी.

‘‘ओहो, प्रियांक ने खुशी से अपनी छाती पर घूंसा मारा. फिर दोनों हाथों को वी बनाते हुए ऊपर उठाया मानो उस ने जग जीत लिया हो.’’

‘‘चलो यार, यह भी खूब रही, अब मुझे 11वीं मंजिल और तुम्हें मूलचंद की तरफ जाने की जरूरत नहीं…’’ पास के लोगों से अनजान दोनों जोरों से हंस कर आलिंगनबद्ध हो गए. प्रियांक ने दिया का वह लाल फ्रेम वाला चेहरा मारे खुशी के दोनों हथेलियों में हौले से ऐसे भर लिया मानो तितली संग गुलाब थाम रखा हो.

खट्टामीठा: काश वह स्वरूप की इच्छा पूरी कर पाती

साढ़े 4 बजने में अभी पूरा आधा घंटा बाकी था पर रश्मि के लिए दफ्तर में बैठना दूभर हो रहा था. छटपटाता मन बारबार बेटे को याद कर रहा था. जाने क्या कर रहा होगा? स्कूल से आ कर दूध पिया या नहीं? खाना ठीक से खाया या नहीं? सास को ठीक से दिखाई नहीं देता. मोतियाबिंद के कारण कहीं बेटे स्वरूप की रोटियां जला न डाली हों? सवेरे रश्मि स्वयं बना कर आए तो रोटियां ठंडी हो जाती हैं. आखिर रहा नहीं गया तो रश्मि बैग कंधे पर डाल कुरसी छोड़ कर उठ खड़ी हुई. आज का काम रश्मि खत्म कर चुकी है, जो बाकी है वह अभी शुरू करने पर भी पूरा न होगा. इस समय एक बस आती है, भीड़ भी नहीं होती.

‘‘प्रभा, साहब पूछें तो बोलना कि…’’

‘‘कि आप विधि या व्यवसाय विभाग में हैं, बस,’’ प्रभा ने रश्मि का वाक्य पूरा कर दिया, ‘‘पर देखो, रोजरोज इस तरह जल्दी भागना ठीक नहीं.’’

रश्मि संकुचित हो उठी, पर उस के पास समय नहीं था. अत: जवाब दिए बिना आगे बढ़ी. जाने कैसा पत्थर दिल है प्रभा का. उस के भी 2 छोटेछोटे बच्चे हैं. सास के ही पास छोड़ कर आती है, पर उसे घर जाने की जल्दी कभी नहीं होती. सुबह भी रोज समय से पहले आती है. छुट्टियां भी नहीं लेती. मोटीताजी है, बच्चों की कोई फिक्र नहीं करती. उस के हावभाव से लगता है घर से अधिक उसे दफ्तर ही पसंद है. बस, यहीं पर वह रश्मि से बाजी मार ले जाती है वरना रश्मि कामकाज में उस से बीस ही है. अपना काम कभी अधूरा नहीं रखती. छुट्टियां अधिक लेती है तो क्या, आवश्यकता होने पर दोपहर की छुट्टी में भी काम करती है. प्रभा जब स्वयं दफ्तर के समय में लंबे समय तक खरीदारी करती है तब कुछ नहीं होता. रश्मि के ऊपर कटाक्ष करती रहती है. मन तो करता है दोचार खरीखरी सुनाने को, पर वक्त बे वक्त इसी का एहसान लेना पड़ता है.

रश्मि मायूस हो उठी, पर बेटे का चेहरा उसे दौड़ाए लिए जा रहा था. साहब के कमरे के सामने से निकलते समय रश्मि का दिल जोर से धड़कने लगा. कहीं देख लिया तो क्या सोचेंगे, रोज ही जल्दी चली जाती है. 5-7 लोगों से घिरे हुए साहब कागजपत्र मेज पर फैलाए किसी जरूरी विचारविमर्श में डूबे थे. रश्मि की जान में जान आई. 1 घंटे से पहले यह विचार- विमर्श समाप्त नहीं होगा.

वह तेज कदमों से सीढि़यां उतरने लगी. बसस्टैंड भी तो पास नहीं, पूरे 15 मिनट चलना पड़ता है. प्रभा तो बीमारी में भी बच्चों को छोड़ कर दफ्तर चली आती है. कहती है, ‘बच्चों के लिए अधिक दिमागखपाई नहीं करनी चाहिए. बड़े हो कर कौन सी हमारी देखभाल करेंगे.’

बड़ा हो कर स्वरूप क्या करेगा यह तो तब पता चलेगा. फिलहाल वह अपना कर्तव्य अवश्य निभाएगी. कहीं वह अपने इकलौते पुत्र के लिए आवश्यकता से अधिक तो नहीं कर रही. यदि उस के भी 2 बच्चे होते तो क्या वह भी प्रभा के ढंग से सोचती? तभी तेज हार्न की आवाज सुन कर रश्मि ने चौंक कर उस ओर देखा, ‘अरे, यह तो विभाग की गाड़ी है,’ रश्मि गाड़ी की ओर लपकी.

‘‘विनोद, किस तरफ जा रहे हो?’’ उस ने ड्राइवर को पुकारा.

‘‘लाजपत नगर,’’ विनोद ने गरदन घुमा कर जवाब दिया.

‘‘ठहर, मैं भी आती हूं,’’ रश्मि लगभग छलांग लगा कर पिछला दरवाजा खोल कर गाड़ी में जा बैठी. अब तो पलक झपकते ही घर पहुंच जाएगी. तनाव भूल कर रश्मि प्रसन्न हो उठी.

‘‘और क्या हालचाल है, रश्मिजी?’’ होंठों के कोने पर बीड़ी दबा कर एक आंख कुछ छोटी कर पान से सने दांत निपोर कर विनोद ने रश्मि की ओर देखा.

वितृष्णा से रश्मि का मन भर गया पर इसी विनोद के सहारे जल्दी घर पहुंचना है. अत: मन मार कर हलकी हंसी लिए चुप बैठी रही.

घर में घुसने से पहले ही रश्मि को बेटे का स्वर सुनाई दिया, ‘‘दादाजी, टीवी बंद करो. मुझ से गृहकार्य नहीं हो रहा है.’’

‘‘अरे, तू न देख,’’ रश्मि के ससुर लापरवाही से बोले.

‘‘न देखूं तो क्या कान में आवाज नहीं पड़ती?’’

रश्मि ने संतुष्टि अनुभव की. सब कहते हैं उस का अत्यधिक लाड़प्यार स्वरूप को बिगाड़ देगा. पर रश्मि ने ध्यान से परखा है, स्वरूप अभी से अपनी जिम्मेदारी समझता है. अपनी बात अगर सही है तो उस पर अड़ जाता है, साथ ही दूसरों के एहसासों की कद्र भी करता है. संभवत: रश्मि के आधे दिन की अनुपस्थिति के कारण ही आत्मनिर्भर होता जा रहा है.

‘‘मां, यह सवाल नहीं हो रहा है,’’ रश्मि को देखते ही स्वरूप कापी उठा कर दौड़ आया.

बेटे को सवाल समझा व चाय- पानी पी कर रश्मि इतमीनान से रसोईघर में घुसी. दफ्तर से जल्दी लौटी है, थकावट भी कम है. आज वह कढ़ीचावल और बैगन का भरता बनाएगी. स्वरूप को बहुत पसंद है.

खाना बनाने के बाद कपड़े बदल कर तैयार हो रश्मि बेटे को ले कर सैर करने निकली. फागुन की हवा ठंडी होते हुए भी आरामदेह लग रही थी. बच्चे चहलपहल करते हुए मैदान में खेल रहे थे. मां की उंगली पकड़े चलते हुए स्वरूप दुनिया भर की बकबक किए जा रहा था. रश्मि सोच रही थी जीवन सदा ही इतना मधुर क्यों नहीं लगता.

‘‘मां, क्या मुझे एक छोटी सी बहन नहीं मिल सकती. मैं उस के संग खेलूंगा. उसे गोद में ले कर घूमूंगा, उसे पढ़ाऊंगा. उस को…’’

रश्मि के मन का उल्लास एकाएक विषाद में बदल गया. स्वरूप के जीवन के इस पहलू की ओर रश्मि का ध्यान ही नहीं गया था. सरकार जो चाहे कहे. आधुनिकता, महंगाई और बढ़ते हुए दुनियादारी के तनावों का तकाजा कुछ भी हो, रश्मि मन से 2 बच्चे चाहती थी, मगर मनुष्य की कई चाहतें पूरी नहीं होतीं.

स्वरूप के बाद रश्मि 2 बार गर्भवती हुई थी पर दोनों ही बार गर्भपात हो गया. अब तो उस के लिए गर्भधारण करना भी खतरनाक है.

रश्मि ने समझौता कर लिया था. आखिर वह उन लोगों से तो बेहतर है जिन के संतान होती ही नहीं. यह सही है कपड़ेलत्ते, खिलौने, पुस्तकें, टौफी, चाकलेट स्वरूप की हर छोटीबड़ी मांग रश्मि जहां तक संभव होता है, पूरी करती है. पर जो वस्तु नहीं होती उस की कमी तो रहती ही है.

‘‘देख बेटा,’’ 7 वर्षीय पुत्र को रश्मि ने समझाना आरंभ कर दिया, ‘‘अगर छोटी बहन होगी तो तेरे साथ लड़ेगी. टौफी, चाकलेट, खिलौनों में हिस्सा मांगेगी और…’’

‘‘तो क्या मां,’’ स्वरूप ने मां की बात को बीच में ही काट दिया, ‘‘मैं तो बड़ा हूं, छोटी बहन से थोड़े ही लड़ूंगा. टौफी, चाकलेट, खिलौने सब उस को दूंगा. मेरे पास तो बहुत हैं.’’

रश्मि की बोलती बंद हो गई. समय से पहले क्यों इतना समझदार हो गया स्वरूप? रात का भोजन देख कर नन्हे स्वरूप के मस्तिष्क से छोटी बहन वाला विषय निकल गया. पर रश्मि जानती है यह भूलना और याद आना चलता ही रहेगा. हो सकता है बड़ा होने पर रश्मि स्वरूप को बहन न होने का सही कारण बता भी दे लेकिन जब तक वह इसी तरह जीने का आदी नहीं हो जाता, रश्मि को इस प्रसंग का सामना करना ही होगा.

मनपसंद व्यंजन पा कर स्वरूप चटखारे लेले कर खा रहा था, ‘‘कितना अच्छा खाना है. सलाद भी बहुत अच्छा है. मां, आप रोज जल्दी घर आ जाया करो.’’

रश्मि का मन कमजोर पड़ने लगा. मन हुआ कल ही त्यागपत्र भेज दे, नहीं चाहिए यह दो कौड़ी की नौकरी, जिस के कारण उस के लाड़ले को मनपसंद खाना भी नसीब नहीं होता.

‘‘चलो मां, लूडो खेलते हैं,’’ स्वरूप हाथमुंह धो आया था.

‘‘थोड़ी देर तक पिता के संग खेलो, मैं चौका संभाल कर आती हूं,’’ रश्मि ने बरतन समेटते हुए कहा.

ऐसा नहीं कि केवल सतीश की तनख्वाह से गृहस्थी नहीं चलेगी लेकिन घर में स्वयं उस की तनख्वाह का महत्त्व भी कम नहीं. रोज तरहतरह का खाना, स्वरूप के लिए विभिन्न शौकिया खर्चे, उस के कानवैंट स्कूल का खर्चा आदि मिला कर कोई कम रुपयों की जरूरत नहीं पड़ती. अभी तो अपना मकान भी नहीं. फिर वास्तविकता यह है कि प्रतिदिन हर समय मां घर में दिखेगी तो मां के प्रति उस का आकर्षण कम हो जाएगा. इसी तरह रोज ही अच्छा भोजन मिलेगा तो उस भोजन का महत्त्व भी उस के लिए कम हो जाएगा. जैसेजैसे स्वरूप बड़ा होगा उस की अपनी दुनिया विकसित होती जाएगी. मां के आंचल से निकल कर पढ़ाई- लिखाई, खेलकूद और दोस्तों में व्यस्त हो जाएगा. उस समय रश्मि अकेली पड़ जाएगी. इस से यही बेहतर है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ेगा.

सब काम निबटा कर रश्मि की आंखें थकावट से बोझिल होने लगीं. निद्रित पुत्र के ऊपर चादर डाल कर वह सतीश की ओर मुड़ी.

‘‘कभी मेरा भी ध्यान कर लिया करो. हमेशा बेटे में ही रमी रहती हो,’’ सतीश ने रश्मि का हाथ थामा.

‘‘जरा याद करो तुम्हारी मां ने भी कभी तुम्हारा इतना ही ध्यान रखा था,’’ रश्मि ने शरारत से कहा.

‘‘वह उम्र तो गई, अब तो हमें तुम्हारा ध्यान चाहिए.’’

‘‘अच्छा, यह लो ध्यान,’’ रश्मि पति से लिपट गई.

सुबह उठ कर, सब को चाय दे कर रश्मि ने स्वरूप के स्कूल का टिफिन तैयार किया. फिर दूध गरम कर के उसे उठाने चली.

‘‘ऊं, ऊं, अभी नहीं,’’ स्वरूप ने चादर तान ली.

‘‘नहीं बेटा, और नहीं सोते. देखो, सुबह हो गई है.’’

‘‘नहीं, बस मुझे सोना है,’’ स्वरूप ने अड़ कर कहा.

आखिर 15 मिनट तक समझाने- बुझाने के बाद उस ने बेमन से बिस्तर छोड़ा. पर ब्रश करने, कपड़े पहनने व दूध पीने के बीच वह बारबार जा कर फिर से चादर ओढ़ कर लेट जाता और मनाने के बाद ही उठता. अंत में बैग कंधे पर डाले सतीश का हाथ पकड़े वह बस स्टाप की ओर रवाना हुआ तो रश्मि ने चैन की सांस ली. बिस्तर संवारना है, खाना बनाना, नाश्ता बनाना, नहाना फिर तैयार हो कर दफ्तर जाना है. रश्मि झटपट हाथ चलाने लगी. कपड़ों का ढेर बड़ा होता जा रहा है. 2 दिन से समय ही नहीं मिल रहा. आज शाम को आ कर अवश्य धोएगी.

‘‘कभी तो आंगन में झाड़ू लगा दिया कर रश्मि,’’ सब्जी छौंकते हुए रश्मि के कान में सास की आवाज पड़ी. कमरों के सामने अहाते के भीतर लंबाचौड़ा आंगन है, पक्के फर्श वाला. झाड़ू लगाने में 15-20 मिनट लग जाना मामूली बात है.

‘‘आप ही बताओ अम्मां, किस समय लगाऊं?’’

‘‘अब यह भी कोई समस्या है? जो दफ्तर जाती हैं क्या वे झाड़ू नहीं लगातीं?’’

रश्मि चुप हो गई. बहस में कुछ नहीं रखा. सब्जी में पानी डाल कर वह कपड़े निकालने लगी.

मांजी अब भी बोले जा रही थीं, ‘‘करने वाले बहुत कुछ करते हैं. स्वेटर बनाते हैं, पापड़बड़ी अचार, डालते हैं, कशीदाकारी करते हैं…’’

बदन पर पानी डालते हुए रश्मि सोच रही थी, ‘आज जा कर सब से पहले मार्च के महीने का ड्यूटी चार्ट नाना है.’

‘‘अम्मां, जमादार आए तो उसे 2 रुपए दे कर आंगन में झाड़ू लगवा लेना,’’ रश्मि ने सास को आवाज दी.

‘‘सुन, मेरे लिए एक जोड़ी चप्पल ले आना.’’

‘‘ठीक है, अम्मां,’’ कंघी कर के रश्मि ने लिपस्टिक लगाई.

‘‘वह सामने अंगूठे और पीछे पट्टी वाली चप्पल.’’

रश्मि ने भौंहें सिकोड़ीं, सास किसी खास डिजाइन के बारे में कह रही थीं.

‘‘अरे, वैसी ही जैसी स्वीटी की नानी ने पहनी थी, हलके पीले से रंग की.’’

‘‘अम्मां, मैं शाम को समझ लूंगी और कल चप्पल ला दूंगी.’’

रश्मि टिफिन पैक करने लगी. परांठा भी पैक कर लिया. नाश्ता करने का समय नहीं था.

‘‘मेरे ब्लाउज के जो बटन टूटे थे, लगा दिए हैं?’’

‘‘ओह,’’ रश्मि को याद आया, ‘‘शाम को लगा दूंगी.’’

अम्मां का चेहरा असंतुष्ट हो उठा. रश्मि किसी तरह पैरों में चप्पल डाल कर दफ्तर के लिए रवाना हुई. तेज चले तो 9 बजे वाली बस अब भी मिल सकती है.

आज शाम रश्मि जल्दी नहीं निकल सकी. 4 बजे साहब ने बुला कर जो टारक योजना समझानी शुरू की तो 5 बजने पर भी नहीं रुके.

‘‘मेरी बस निकल जाएगी, साहब,’’ उस ने झिझकते हुए कहा.

‘‘ओह, मैं तो भूल ही गया,’’ बौस ने चौंक कर घड़ी देखी.

‘‘जी, कोई बात नहीं,’’ रश्मि ने मुसकराने का प्रयास किया.

दफ्तर से निकलते ही टारक योजना दिमाग से निकल गई और रात को क्या भोजन बनाए इस की चिंता ने आ घेरा. जाते हुए सब्जी भी खरीदनी है. बस आने पर धक्कामुक्की कर के चढ़ी पर वह बीच रास्ते में खराब हो गई. रश्मि मन ही मन गालियां देने लगी. दूसरी बस ले कर घर पहुंचतेपहुंचते 7 बज गए. दूर से ही छत के ऊपर छज्जे पर खड़ा स्वरूप दिख गया. छुपनछुपाई खेल रहा था बच्चों के संग. बहुत ही खतरनाक स्थिति में खड़ा था. गलती से भी थोड़ा और खिसक आया तो सीधे नीचे आ गिरेगा. रश्मि का तो कलेजा मुंह को आ गया.

‘‘स्वरूप,’’ उस ने कठोर स्वर में आवाज दी, ‘‘जल्दी नीचे उतर आओ.’’

‘‘अभी आया, मां,’’ कह कर स्वरूप दीवार फांद कर छत के दूसरी ओर गायब हो गया. अभी तक स्कूल के कपड़े भी नहीं बदले थे. सफेद कमीज व निकर पर दिनभर की गर्द जमा हो गई थी. बाल अस्तव्यस्त और हाथपांव धूल में सने थे. रश्मि का खून खौलने लगा. अम्मां दिन भर क्या करती रहती हैं. लगता है सारा दिन धूप में खेलता रहा है. हजार बार कहा है उसे छत के ऊपर न जाने दिया करें.

‘‘अम्मां,’’ अभी रश्मि ने आवाज ही दी थी कि सास फूट पड़ीं, ‘‘तेरा बेटा मुझ से नहीं संभलता. कल ही किसी क्रेच में इस का बंदोबस्त कर दे. सारा दिन इस के पीछे दौड़दौड़ कर मेरे पैरों में दर्द हो गया. कोई कहना नहीं मानता. स्कूल से लौट कर न नहाया, न कपड़े बदले, न ही ठीक से खाना खाया. ऊधम मचाने में लगा है. तू अपनी आंखों से देख क्या हाल बनाया है. मैं ने छत पर जाने से रोका तो मुझे धक्का मार कर निकल गया.’’

‘‘है कहां वह? अभी तक आया नहीं नीचे,’’ क्रोध से आगबबूला होती रश्मि स्वयं ही छत पर चली.

‘‘क्या बात है? नीचे क्यों नहीं आए?’’ ऊपर पहुंच कर उस ने स्वरूप को झिंझोड़ा.

‘‘बस, अपनी पारी दे कर आ रहा था मां.’’

मां के क्रोध से बेखबर स्वरूप की मासूमियत रश्मि के क्रोध को पिघलाने लगी, ‘‘चलो नीचे. दादी का कहा क्यों नहीं माना?’’

‘‘मुझे अच्छा नहीं लगता,’’ स्वरूप ने मुंह फुलाया, ‘‘इधर मत कूदो, कागज मत फैलाओ. कमरे में बौल से मत खेलो, गंदे पांव ले कर सोफे पर मत चढ़ो.’’

रश्मि की समझ में न आया किस पर क्रोध करे. बच्चे को बचपना करने से कैसे रोका जा सकता है? सास की भी उम्र बढ़ रही है, ऐसे में सहनशीलता कम होना स्वाभाविक है.

‘‘दादी तुम से बड़ी हैं स्वरूप. तुम्हें बहुत प्यार करती हैं. उन का कहना मानना चाहिए.’’

‘‘फिर मुझे आइसक्रीम क्यों नहीं खाने देतीं?’’

रश्मि थकावट महसूस करने लगी. कब तक नासमझ रहेगा स्वरूप.

‘‘आ गए लाट साहब,’’ पोते को देखते ही दादी का गुस्सा भड़क उठा, ‘‘तुम ने अभी तक इसे कुछ भी नहीं कहा? अरे, मैं कहती हूं इतना सिर न चढ़ाओ,’’ अपने प्रति दोषारोपण होते देख रश्मि का शांत होता क्रोध फिर उबल पड़ा.

‘‘चलो, कपड़े बदल कर हाथमुंह धोओ.’’

‘‘मैं नहीं धोऊंगा,’’ स्वरूप ने अड़ कर कहा.

‘‘क्या?’’ रश्मि जोर से चिल्लाई.

‘‘बस, मैं न कहती थी तुम्हारा लाड़प्यार इसे जरूर बिगाड़ेगा. लो, अब भुगतो,’’ सास ने निसंदेह उसे उकसाने के लिए नहीं कहा था पर रश्मि ने तड़ाक से एक चांटा बेटे के कोमल गाल पर जड़ दिया.

स्वरूप जोर से रो पड़ा, ‘‘नहीं बदलूंगा कपड़े. जाओ, कभी नहीं बदलूंगा,’’ कह कर दूर जा कर खड़ा हो गया.

‘‘हांहां, कपड़े क्यों बदलोगे, सारा दिन आवारा बच्चों के साथ मटरगश्ती के सिवा क्या करोगे? देख रश्मि, असली बात तो मैं भूल गई, जा कर देख बौल मार कर ड्रेसिंग टेबल का शीशा तोड़ डाला है.’’

रश्मि को अब अचानक सास के ऊपर क्रोध आने लगा. थकीमांदी लौटी हूं और घर में घुसते ही राग अलापना शुरू कर दिया. गुस्से में उस ने स्वरूप के गाल पर 2 चांटे और जड़ दिए.

रश्मि क्रोध से और भड़की. पुत्र को खींच कर खड़ा किया और तड़ातड़ पीटना शुरू कर दिया.

‘‘सारी उम्र मुझे तंग करने के लिए ही पैदा हुआ था? बाकी 2 तो मर गए, तू भी मर क्यों न गया?’’

‘‘क्या पागल हो गई है रश्मि. बच्चे ने शरारत की, 2 थप्पड़ लगा दिए बस. अब गाली क्यों दे रही है? क्या पीटपीट कर इसे मार डालेगी?’’

क्रोध, ग्लानि और अवसाद ने रश्मि को तोड़ कर रख दिया था. कमरे में आ कर वह फफकफफक कर रो पड़ी. यह क्या किया उस ने. जान से भी प्रिय एकमात्र पुत्र के लिए ऐसी अशुभ बातें उस के मुंह से कैसे निकलीं?

‘‘जोश को समय पर लगाम दिया कर. जो मुंह में आता है वही बकने लगती है,’’ इकलौता पोता रश्मि की सास को भी कम प्रिय न था, ‘‘अरे, मैं सारा दिन सहती हूं इस की शरारतें और तू ने सुन कर ही पीटना शुरू कर दिया,’’ रश्मि की सास देर तक उसे कोसती रही. रश्मि के आंसू थम ही नहीं रहे थे. रहरह कर किसी अज्ञात आशंका से हृदय डूबता जा रहा था.

तभी एक कोमल स्पर्श पा कर रश्मि ने आंखें खोलीं. जाने स्वरूप कब आंगन से उठ आया था और यत्न से उस के आंसू पोंछ रहा था, ‘‘मत रोओ, मां. कोई मां की बद्दुआ लगती थोड़ी है.’’

रश्मि ने खींच कर पुत्र को हृदय से लगा लिया. कौन सिखाता है इसे इस तरह बोलना. समय से पहले ही संवेदनशील हो गया. फिर अभीअभी जो नासमझी कर रहा था वह क्या था?

जो हो, नासमझ, समझदार या परिपक्व, रश्मि के हृदय का टुकड़ा हर स्थिति में अतुलनीय है. पुत्र को बांहों में भींच कर रश्मि सुख का अनुभव कर रही थी.

उपहार: स्वार्थी विभव क्यों कर रहा था शीली का इंतजार

शीली के लिए विभव से मिलना अचानक ही था. हां, वह जरूर उस के आने की राह तकता पार्क के किनारे खड़ा इंतजार कर रहा था. भूल गए अतीत को इस तरह इंतजार करता देख शीली को कितनी तकलीफ हुई थी.

स्कूटर रोक लेने का इशारा करता विभव उस के नजदीक ही चला आया. लुटेपिटे व्यक्तित्व और खंडित मनोशक्ति वाला विभव दीनहीन याचक बना खड़ा था. उस ने इस पुरुष से तो प्रेम नहीं किया था. विभव के कहे कुछ शब्दों को सुन कर ही उसे मचली आने लगी. नजरें नीची कर स्कूटर स्टार्ट कर वह चुपचाप घर चली आई. विभव पुकारता ही रह गया…

घर पहुंच कर शीली को लगा कि अब खुल कर सांस आई है. मुंहहाथ धो कर ताजादम हुई.

चाय का घूंट भरते ही दिन भर की थकान पल भर में गायब हो गई. थोड़ा सहज होते ही फिर उस के मन में उलझाने वाले सवाल उठने लगे कि विभव अब क्यों आया? क्यों पहले की तरह वह पार्क के किनारे खड़ा उस का इंतजार कर रहा था. क्या वह उसे अपने से कमतर आंक रहा था? उस ने क्या सोचा कि वह 8 वर्ष के अतीत को भूल कर उसे फिर अपना लेगी… दोस्ती कर लेगी…पर क्यों? माना कि तब मेरे मन के सारे कोमल भाव उसी के इर्दगिर्द उमड़घुमड़ कर स्नेह की वर्षा करते थे तो क्या अब भी विभव उसे उसी मोड़ पर खड़े देखना चाहता है जहां उसे छोड़ गया था… कैसा दोटूक जवाब दिया था जब शीली ने स्नेह में भर, उस से विवाह का प्रस्ताव रखा था. एक लिजलिजा सा कारण दे कर सारे संबंध तोड़ गया था.

‘तुम से शादी कैसे कर लूं, शीली… तुम तो मेरी प्रेरणा हो, मेरा स्नेह हो, मेरे जीवन का संबल हो. क्या घरेलू औरत बन कर खो नहीं जाओगी? सच शीली, मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकता कि जब मैं आफिस से थकाहारा लौटूं तो तुम मसालों से गंधाती और बच्चों की चिल्लपों से घिरी दिखाई दो. छि:…शीली, यह काम तो कोई साधारण औरत ही कर देगी, इसी से तो नंदी से विवाह कर रहा हूं…तुम तो बस, मेरी प्रेरणा बनी रहो.’

शीली अवाक् विभव का मुंह ताकती रह गई, क्योंकि वह तो यही जानती थी कि वर्षों से चले आ रहे स्नेहबंधन की परिणति विवाह ही होती है. खुद के गढ़े गए तर्कों में छिपी विभव की सोच उसे घृणित लगी. विवाह एक से और स्नेह दूसरी से…ऐसा संबंध समाज की किस परिभाषा के अंतर्गत आता है. प्रेमिका…रखैल…

ये शब्द शीली के दिमाग में आते ही उस का पूरा बदन सिहर गया, रोएं खड़े हो गए.

उस दिन के बाद कितनी ही बार उस ने विभव को वहीं पार्क के किनारे खड़ा देखा. हर बार उस के मुंह से अनायास ही दगाबाज या धोखेबाज शब्द निकलता और वह स्कूटर मोड़ कर दूसरे रास्ते से चली जाती.

एक बार शीली ने विभव से दूर रहने का फैसला किया तो स्नेह के झूठे बिरवे को नोंचनोंच कर फेंक दिया. चूंकि मातापिता बेटी की दशा से परिचित थे इसलिए उन्होंने शीली को उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली भेज दिया. दिल्ली में शीली की मौसी का घर था और उस की हमउम्र मौसेरी बहन भी थी. शीली के लिए अब दिन बिताना सहज होने लगा. मौसाजी ने एम.एससी. में शीली का एडमिशन करा दिया. विषय की गंभीरता और कैरियर बनाने की चाह ने शीली के अतीत पर पानी सा डाल दिया. कठिन मेहनत और लगन से उस का व्यक्तित्व बदलने लगा. अब वह अदम्य साहस और कर्मठता जैसे गुणों से लबरेज हो गई थी.

शीली की मेहनत ने परिणाम भी बहुत अच्छा दिया. एम.एससी. में फर्स्ट डिवीजन पा कर वह खुद भी चकित थी. मौसेरी बहन ने सुझाया कि पीएच.डी. भी कर लो. मातापिता से पूछने पर उन्होंने भी सहमति दे दी.

प्रो. प्रशांत के निर्देशन में शीली को पीएच.डी. करने की इजाजत मिल गई. शीली के अंदर कुछ करने की ललक से प्रो. प्रशांत बहुत प्रभावित थे. उन्होंने बहुत धीरज से शीली को काम का विषय समझाया. यही नहीं अपनी गाइडेंस में प्रशांत जैसाजैसा बताते गए शीली एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह वैसावैसा करती गई. इस तरह 4 साल की लंबी और कठिन मेहनत से शीली की पीएच.डी. पूरी हो गई.

प्रो. प्रशांत खुश थे. कहां मिलते थे ऐसे छात्र. अधिकतर तो घोड़े पर सवार… खुद से कुछ करते न बनता. न ही करने की इच्छा रखते…बस, हर समय यही चाहत कि सारी विषयवस्तु तैयार मिल जाए और वे अपने नाम के साथ इस उपाधि को जोड़ते. कुछ तो इतना करना भी गवारा न करते, 4 साल यों ही गुजार देते और पीएच.डी. को अधूरा छोड़ देते.

शोध शिक्षकों के बारे में शीली ने भी बहुत कुछ सुन रखा था लेकिन

प्रो. प्रशांत ऐसे न थे. 4 सालों में शीली ने कुछ कहने भर को भी हलकापन नहीं पाया उन के व्यक्तित्व में. साथी छात्र भी खुशमिजाज और सहयोग करने में कभी पीछे न रहने वाले थे.

शोध पूरा होने के बाद शीली अपने मातापिता के पास लौट आई और काम की तलाश करने लगी. उसे इस बात की खुशी है कि उस ने अपनी मेहनत के बल पर इस संस्थान में नौकरी पाई है. इस संस्थान में काम करने का मन उस ने इसीलिए बनाया कि यहां तनख्वाह ठीक थी और काम की शर्तें भी अनुकूल थीं.

शीली ने धीरेधीरे संस्थान के वातावरण में खुद को ढालना शुरू किया. वैसे कितनी ही बार स्त्री होने के नाते उस के काम करने की क्षमता पर उंगली उठाई गई जो उसे पसंद न आई थी फिर भी यहां का अपना काम उसे पसंद आ रहा था.

बीतते समय के साथ शीली के व्यक्तित्व से निरीहता गायब हो गई और आत्मविश्वास से भरी कर्मठता ने उसे ऊंचा, और ऊंचा उठने के हौसले दिए. तीखी धार सा निखरता उस का व्यक्तित्व आसपास की परिस्थितियों को छीलता और अपने लिए जगह बना लेता. वह संस्थान के सम्माननीय पद पर काम कर रही थी.

शीली को लगा कि आज विभव का मिलना उस के शांत जीवन में पत्थर मारने जैसा है. उसे फिर से विभव की बातें याद आने लगीं. कैसे बिना उस की इच्छा जाने वह कहे जा रहा था:

‘कितनी गलती पर था मैं? अपनी मूर्खता से तुम्हारा अपना दोनों का सर्वनाश कर दिया…नंदी को क्या कहूं…जेवर, कपड़ा, ईर्ष्या और अपशब्दों का पर्याय है वह. मन इन्हीं उलझावों में भटक कर रह गया है. तुम…तुम मेरी प्रेरणा बनी रहो, मैं बाकी जीवन जी लूंगा.’

हर बार विभव ने अपने ही जीने की रट लगाई है. उस के बारे में तो कभी सोचा ही नहीं. आखिर वह कैसे जी रही है? नहीं…नहीं, अब नहीं याद करना…न विभव को न उस की बातों को. उस की बातों में अब भी वही पुरानी कुटिल मानसिकता छिपी पड़ी है. उस ने जीवन में पहले एक प्रयोग किया और वह असफल रहा और अब इतने लंबे अरसे बाद एक और प्रयोग…नारी को क्या बेजान गुडि़या मान लिया जो ललक कर उस के नजदीक रहना चाहेगी. कापुरुष…

नंदिनी से शादी इसलिए की, क्योंकि वह उस की तुलना में अमीर थी और अब फिर वैसे ही ओछे प्रयास…क्योंकि अब वह नंदिनी की तुलना में अधिक पढ़ीलिखी, अधिक दक्ष और अधिक कमाती है…उसे पहले भी जीवनसाथी नहीं चाहिए था और न ही अब…

शीली ने आज की घटना की उधेड़बुन से थके दिमाग को आंखें बंद कर दिलासा दी और करवट बदल कर सोने का यत्न करने लगी और कब उसे नींद आ गई पता ही न चला.

अगले दिन संस्थान जाते समय शीली सोच रही थी कि आज फिर विभव पार्क के किनारे खड़ा मिलेगा. उसे कुछ न कुछ उपाय जरूर सोच लेना है. यह रुटीन यों ही नहीं चल सकता. विभव का भरोसा नहीं, चोट खाया वह कहीं छिछोरेपन पर उतर आया तो? कुछ तो सोचना और करना ही होगा कि विभव वापस अपनी दुनिया में लौट जाए और वह चैन से जी सके.

काफी सोचविचार के बाद एक आइडिया उस के दिमाग में आया. वह लंच के समय सीट से उठी और बाजार चली गई. क्राफ्ट बनाने के सामान वाली दुकान पर दुकानदार को बहुत कुछ समझा कर अपना आर्डर दिया और वापस आ गई. शाम को घर लौटते समय अपना आर्डर लिया, उसे आकर्षक पैकिंग से पैक कराया और घर की तरफ चल दी.

शीली का अनुमान बिलकुल सही निकला. उस ने दूर से ही पार्क के किनारे खड़े विभव को देख लिया. एक घृणा की लहर उठी और उस के पूरे शरीर में फैल गई. अपने पर काबू कर उस ने अपना स्कूटर विभव के सामने रोका. उसे देख कर विभव की आंखों में चमक आ गई. शीली ने मन ही मन विभव को कोसा फिर झुक कर स्कूटर की डिक्की से पैकेट उठाया और विभव को थमा दिया.

‘‘यह क्या है?’’ कामयाबी की मुसकान के साथ विभव ने पूछा.

‘‘तुम्हारे और मेरे संबंधों को एक नाम,’’ शीली का उत्तर भावहीन था.

विभव ने खुशीखुशी पैकेट को खोला तो देखता ही रह गया. कांपते हाथों से बाहर निकाला तो वह तिनकों से बना छोटा सा ‘बिजूका’ था. सिर पर नन्ही सी रंगबिरंगी हांडी धरे, रंगीन परिधान पहने, लाललाल होंठों से हंसता…कालीकाली आंखें चमकाता…

विभव के चेहरे पर प्रश्नचिह्न का भाव उभरा तो वह तटस्थ हो गई. उस के चेहरे पर कोई भाव न था, न गम न खुशी.

‘‘विभव, यह बिजूका है, तिनकों से बना, मिट्टी का सिर, रंगीन कपड़ों से सजा…यह उस इनसान का प्रतीक है जो लालच में सबकुछ पा लेने की लालसा में सबकुछ गंवा देता है. भावनाओं की सचाई से अछूता…दिखावे की रंगीनी ओढ़े. अब क्या बचा है इस के जीवन में… जीवन भर मरुस्थल में खड़े रहने की सजा…निपट सूनेपन में अपने अरमानों के पक्षियों को इधरउधर बच कर भागते हुए देखते रहने के सिवा…’’

विभव ने धीरे से बिजूका पैकेट में रख दिया. पता नहीं वह उस में छिपे संदेश को कितना समझ पाया…न समझे, पर शीली के प्रशस्त मार्ग पर कांटा बन कर चुभे तो नहीं…

शीली कुछ न कह कर मुड़ गई. स्कूटर स्टार्ट किया और घर की ओर चल दी. उसे उम्मीद थी कि अब विभव पार्क के किनारे खड़ा कभी नहीं मिलेगा.

Valentine’s Day 2024: फैसला- आभा के प्यार से अविरल ने क्यों मोड़ा मुंह

लेखक- डा. कृष्णकांत

अविरल टैक्सी से उतर कर तेज कदमों से चलता हुआ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में दाखिल हुआ. सुबह के 7.35 बज चुके थे. वह प्लेटफार्म नं. 1 पर खड़ी शताब्दी एक्सप्रेस के एसी चेयरकार के अपने डब्बे में घुस गया और अपनी सीट पर बैठ गया. उस की बीच के रास्ते के साथ वाली सीट थी.

उसे कल शाम को ही सूचना मिली कि आज पंजाब सरकार के अधिकारियों के साथ चंडीगढ़ में मीटिंग है, इसलिए उसे सुबहसुबह चंडीगढ़ के लिए रवाना होना पड़ा. शाम को ही उस ने आभा को फोन करने का विचार किया. उस के घर में बेकार का बवाल न खड़ा हो जाए, यह सोच कर उस ने इस विचार को त्याग दिया.

‘आप का शताब्दी एक्सप्रेस पर जो दिल्ली से पानीपत, कुरुक्षेत्र, अंबाला, चंडीगढ़ होते हुए कालका जा रही है, स्वागत है…’ उद्घोषणा हुई.

उसी समय चाय और बिस्कुट की सेवा शुरू हो गई. चाय पीने के बाद अविरल ने आंखें बंद कर लीं. आंखें बंद करते ही उस के सामने आभा का मुसकराता हुआ चेहरा आ गया. वह आभा के बारे में सोचने लगा, जब उस ने आभा को पहली बार देखा था.

आभा से उस की पहली मुलाकात 6 माह पहले अचानक एक पार्टी में हुई थी. उन दिनों उस की पत्नी सुधा बीमार थी. चूंकि यह उस के बौस राहुल साहब की लड़की की शादी की पार्टी थी, इसलिए उसे जाना पड़ा था. आभा भी अकेली आई थी.

बाद में मालूम हुआ कि उस के पति को पार्टियों से नफरत है. आभा एक कंपनी में निदेशक थी. चूंकि उस की कंपनी के राहुल साहब की कंपनी के साथ व्यावसायिक संबंध थे, इसलिए उसे भी औपचारिकतावश आना पड़ा था.

‘‘आप अकेली हैं?’’ अविरल ने आभा के पास जा कर पूछा.

‘‘अब नहीं हूं. आप जो आ गए हैं.’’ आभा ने मुसकरा कर कहा.

कुछ ही देर में वे ऐसे घुलमिल गए, जैसे बरसों से एकदूसरे को जानते हों. पार्टी के बाद अविरल उसे घर छोड़ने गया. विदा लेते समय आभा ने धीरे से उस का हाथ दबा कर कहा, ‘‘शुक्रिया, मैं आशा करती हूं कि यह हमारी आखिरी मुलाकात नहीं होगी.’’

उस रात अविरल के जेहन में आभा छाई रही. ‘मैं आशा करती हूं कि यह हमारी आखिरी मुलाकात नहीं होगी’ उस का यह वाक्य उस के मन में बारबार कौंधता रहा.

एक सप्ताह बाद वह उसे अपने आफिस के गलियारे में मिल गई. पूछने पर बताया कि वह किसी मीटिंग में आई थी. दोपहर के खाने का समय हो रहा था. अविरल ने उसे खाने का आमंत्रण दिया तो वह तुरंत तैयार हो गई.

अविरल को लगा कि आभा उस की ओर आकर्षित है. उस की बातों से आभास हुआ कि पति की अधिक उम्र होने के कारण वह अपने पारिवारिक जीवन से असंतुष्ट है. वे दोनों अकसर आफिस के बाहर मिलने लगे.

एक दिन शाम को लोदी गार्डन में बैठेबैठे आभा ने अविरल के कंधे पर सिर रख दिया और आंखें बंद कर लीं. अविरल ने उस के अधरों पर अपने अधर रख दिए. वह उस से लिपट गई.

‘‘तुम मुझे धोखा तो नहीं दोगे, मेरा साथ दोगे न?’’

‘‘जरूर,’’ अविरल ने कहा.

‘अब हम पानीपत रेलवे स्टेशन पहुंच रहे हैं. यह स्थान इतिहास में 3 लड़ाइयों के लिए प्रसिद्ध है…’ उद्घोषणा हुई.

अविरल ने आंखें खोल कर घड़ी में देखा.

9 बज चुके थे. यानी गाड़ी 15 मिनट विलंब से चल रही है. उस ने आभा को फोन किया.

‘‘क्या कर रही हो?’’

‘‘अभीअभी आफिस आई हूं.’’

‘‘मैं इस समय शताब्दी से चंडीगढ़ जा रहा हूं. तुम्हारी याद आ रही है.’’

‘‘अचानक चंडीगढ़ कैसे?’’

‘‘पंजाब सरकार के अधिकारियों के साथ मीटिंग अचानक तय हुई. मैं आज देर रात तक लौटूंगा. इसलिए आज के बजाय कल शाम को मिलते हैं.’’

‘‘मैं ने कल रात सपने में देखा कि हम शादी के बाद गोवा जा रहे हैं. मैं इस सपने को साकार करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं. और तुम?’’

‘‘मैं भी,’’ अविरल ने कहा.

‘‘मैं शाम को 6.00 बजे बात करूंगी. अभी मीटिंग में जाना है. मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूं,’’ कह कर आभा ने फोन काट दिया.

अविरल ने मुसकरा कर अपना सैल फोन बंद किया.

उसे अचानक लगा कि किसी ने धक्का दिया है. उस ने मुड़ कर देखा कि एक वृद्ध सज्जन और एक महिला बहुत ही धीरेधीरे चल कर रास्ते के दूसरी ओर वाली 2 सीटों पर बैठ गए. उसे वृद्ध का मुंह टेढ़ा सा लगा. ध्यान से देखा तो पाया कि उन्हें एक ओर का पक्षाघात है.

‘‘माफ कीजिएगा,’’ महिला ने अविरल से कहा.

‘‘कोई बात नहीं.’’

‘‘तुम बेकार के लिए यह सब कर रही हो. कुछ नहीं होने वाला,’’ वृद्ध ने महिला से कहा.

‘‘मैं आप की जीवनसंगिनी हूं. मरते दम तक आशा नहीं छोड़ूंगी. सुना है कि साधु बाबा में बड़ी शक्ति है. बाबा बस, 2 दिनों के लिए अंबाला आ रहे हैं. मुझे उम्मीद है कि आप जरूर ठीक हो जाएंगे,’’ महिला ने अपने पति के मुंह को आराम से पोंछते हुए कहा.

‘अच्छा तो ये पतिपत्नी हैं. किसी साधु बाबा से पक्षाघात का इलाज कराने जा रहे हैं. इस 21वीं सदी में भी ये लोग इन बातों को मानते हैं. हैं न बेवकूफ,’ अविरल ने सोचा.

इसी समय ट्रेन पानीपत से चल पड़ी.

अविरल का सैल फोन बज उठा. अविरल ने फोन उठाया. अक्षय का फोन था, जो उस का सेके्रटरी था.

‘‘हैलो सर, मैं अक्षय बोल रहा हूं.’’

‘‘बोलो अक्षय.’’

‘‘सर, मेरी पत्नी की तबीयत बहुत खराब हो गई है. मैं एक सप्ताह नहीं आऊंगा. डाक्टरों ने जवाब दे दिया है. कहते हैं कि कैंसर पूरे शरीर में फैल गया है.’’

‘‘अक्षय, तुम्हारे घर में यदि कोई देखभाल करने वाला है तो बेकार में छुट्टियां बरबाद मत करो.’’

‘‘सर, ऐसे में उस का साथ नहीं दूंगा तो कब दूंगा?’’

‘‘ठीक है,’’ अविरल ने अक्षय से बहस करने के बजाय कहा और फोन काट दिया. ‘ये लोग कभी व्यावहारिक नहीं होंगे,’ उस ने सोचा.

इसी समय जलपान सेवा प्रारंभ हो गई. अविरल ने देखा कि महिला पति को अपने हाथ से खिला रही है. शायद उस के शरीर का दायां भाग पक्षाघात से ग्रस्त था.

अविरल का सैल फोन फिर बज उठा.

‘‘हैलो पापा, मैं निशा बोल रही हूं. हमारी आज से ही दशहरे की एक हफ्ते की छुट्टियां हैं. स्कूल बच्चों को नैनीताल ले जाने का प्रोग्राम बना रहा है, लेकिन मैं नहीं जा रही.’’

‘‘क्यों बेटा? तुम्हें जरूर जाना चाहिए.’’

‘‘नहीं पापा, मैं छुट्टियों में मम्मी के साथ समय बिताना चाहती हूं. मम्मी आप से बात करना चाहती हैं.’’

‘‘हैलो, मैं सुधा बोल रही हूं. सुबह आप मुझ से बिना बताए चले गए. मुझ से नाराज हैं क्या?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. तुम सो रही थीं. तुम्हें जगाना उचित नहीं समझा.’’

‘‘मैं ने देखा है कि आप कई दिनों से चुपचाप रहते हैं. ठीक से बात भी नहीं करते. यदि कोई गलती हो गई हो तो मुझे माफ कर दीजिए,’’ सुधा सुबकसुबक कर रोने लगी.

अविरल ने फोन काट दिया और आंखें बंद कर लीं. उस ने निश्चय किया कि तलाक के बाद भी वह सुधा और निशा की पूरी मदद करेगा. उन की सारी जरूरतें पूरी करेगा. आखिर उन का तो कोई दोष नहीं है.

‘अब हम कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन पहुंच रहे हैं…’ उद्घोषणा हुई. अविरल ने घड़ी में देखा. 10 बज चुके थे.

‘‘यानी ट्रेन 30 मिनट विलंब से चल रही है,’’ उस ने सोचा.

उस ने बगल में देखा. वृद्ध सज्जन आंखें बंद किए सो रहे थे. उस की नजरें महिला से मिलीं. वह थोड़ा सा मुसकरा दीं.

‘‘इन को कब से ऐसा है?’’

‘‘2 साल पहले एकाएक इन्हें पक्षाघात हो गया. कई जगह इलाज कराया, परंतु कुछ नहीं हुआ. सुना है कि अंबाला में कोई चमत्कारी बाबा आ रहे हैं.’’

‘‘आप मानती हैं यह सब?’’ अविरल के मुंह से निकल गया.

‘‘जब उम्मीद के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, तब कुछ भी मानने को मन करता है. मैं ने हिम्मत नहीं हारी है. अंत तक साथ दूंगी और कोशिश करती रहूंगी.’’

ट्रिन, ट्रिन, ट्रिन…

‘‘हैलो,’’ अविरल ने कहा.

‘‘हैलो, यार मैं कुमार बोल रहा हूं.’’

कुमार अविरल का साथी था, जो हैड आफिस में था.

‘‘बोलो कुमार, कैसा चल रहा है?’’

‘‘यार, तेरे लिए खुशखबरी है. बताता हूं पर पहले पार्टी का वादा कर.’’

‘‘जरूर, यार.’’

‘‘तेरा प्रमोशन हो गया है. बौस ने अभी फाइल पर हस्ताक्षर किए हैं.’’

‘‘तेरी पार्टी पक्की. मैं कल आफिस आ रहा हूं. फिर पार्टी का प्रोग्राम बनाते हैं.’’

कुमार ने फोन काट दिया.

अविरल के मन में आया कि आभा को फोन कर के बताए. परंतु वह तो मीटिंग में व्यस्त होगी. शाम तक इंतजार करने की सोची.

‘अब हम अंबाला रेलवे स्टेशन पहुंच रहे हैं…’ उद्घोषणा हुई.

वृद्ध सज्जन और महिला उठ कर धीरेधीरे पीछे जाने लगे. महिला ने एक ओर से अपने पति को संभाला हुआ था. बीच में वृद्ध सज्जन थोड़ा सा लड़खड़ाए, परंतु महिला ने उन्हें जोर से पकड़ कर संभाल लिया. वह धीरे से स्टेशन पर उतर गए और ट्रेन चल पड़ी.

अविरल ने आंखें बंद कर लीं और सोने की कोशिश करने लगा. अचानक उसे लगा कि उस ने वृद्ध सज्जन का स्थान ले लिया है. वह पक्षाघात से ग्रस्त है. गिर रहा है, लड़खड़ा रहा है, परंतु उस के बगल में कोई संभालने वाला नहीं था.

‘आभा कहां है?’ उस ने सोचा.

‘आभा तो अपने वर्तमान पति को इसलिए छोड़ना चाहती है, क्योंकि उस की उम्र ज्यादा है. फिर वह उस के अपंग होने पर उस का साथ क्यों देगी,’ उस ने सोचा.

‘सुधा तो है न?’

‘सुधा को तो वह तलाक दे चुका है. वह यहां उस का साथ देने के लिए कैसे हो सकती है?’

अविरल को पसीना आ गया. उस ने आंखें खोलीं.

‘अच्छा हुआ कि यह सपना था,’ उस ने सोचा.

‘अब हम चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन पहुंच रहे हैं. यह स्थान राक गार्डन के लिए विश्व में प्रसिद्ध है…’ उद्घोषणा हुई.

अविरल अपना बैग ले कर उतर गया. कंपनी के अतिथिगृह में जा कर वह तैयार हुआ और मीटिंग के लिए रवाना हो गया.

दिन भर मीटिंग में व्यस्त रहने के बावजूद वह अनमना सा रहा. उस की आंखों के सामने बारबार एक ही दृश्य आता ‘महिला अपने पक्षाघातग्रस्त वृद्ध पति को संभाल रही है.’

‘मैं ने हिम्मत नहीं हारी है. अंत तक साथ दूंगी और कोशिश करती रहूंगी,’ महिला का स्वर था.

‘सर, मैं ऐसे में साथ नहीं दूंगा तो कब दूंगा,’ अक्षय का स्वर भी गूंज उठा.

‘क्या आभा उस का कठिनाइयों में साथ देगी?’ वह सोचता रहा.

वह मीटिंग खत्म कर के शाम को 5.30 बजे चंडीगढ़ स्टेशन पहुंच गया, जिस से वह शाम को 6.00 बजे वाली शताब्दी एक्सप्रेस से दिल्ली जा सके.

यदि कभी आप शाम को चंडीगढ़ स्टेशन जाएं, तो पाएंगे कि पूरा स्टेशन चिडि़यों की आवाज से गूंज रहा है. प्लेटफार्म की भीतरी छत पर लगी लोहे की जालियों में चिडि़यां रैन बसेरा करती हैं. यह इस स्टेशन की विशेषता है.

अविरल कुछ देर तक चिडि़यों की आवाज सुनता रहा. उसे लगा कि दिन चाहे कहीं भी बीते, शाम को हर पक्षी लौट कर अपने घर आता है. यहां ये अपना दुखसुख बांट कर कितने खुश हैं. उसे अपने प्रश्न का उत्तर खुदबखुद मिल गया. उस ने आभा को फोन किया.

‘‘मैं तुम्हें फोन करने ही वाली थी.’’

‘‘मैं ने तुम्हें यह कहने के लिए फोन किया है कि मैं अपनी पत्नी और बच्ची को किसी भी हालत में नहीं छोड़ पाऊंगा.’’

‘‘तो क्या तुम्हारा प्यार झूठा था?’’ आभा के स्वर में गंभीरता थी.

‘‘शायद वह एक सपना था, जो टूट गया.’’

‘‘क्या यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ आभा ने पूछा.

‘‘हां, मैं तुम्हें दोस्त होने के नाते सलाह दूंगा कि तुम किसी मृगतृष्णा में मत पड़ो और अपना बना बनाया घर बरबाद मत करो.’’

‘‘मुझे तुम्हारी सलाह की जरूरत नहीं है,’’ कह कर आभा ने फोन काट दिया.

अविरल ने सुधा को फोन किया.

‘‘हैलो,’’ सुधा के स्वर में उदासी थी.

‘‘सुनो सुधा, एक खुशखबरी है. मेरा प्रमोशन होने वाला है. निशा की एक सप्ताह की छुट्टियां हैं. तुम और निशा कल शताब्दी से चंडीगढ़ आ जाओ. हम हफ्ता भर साथ बिताएंगे फिर शिमला वगैरह चलेंगे.’’

‘‘सच?’’ सुधा के स्वर में आश्चर्य एवं खुशी थी.

‘‘हां, मैं अपने आफिस फोन कर के छुट्टी ले रहा हूं. कल मैं तुम्हें स्टेशन पर मिलूंगा. तुम से एक बात बहुत दिनों से नहीं कही मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

अविरल अपनेआप को बहुत हलका महसूस कर रहा था. ठीक चहचहाती हुई चिडि़यों की तरह. वह थोड़ी देर तक और चिडि़यों की चहचहाहट सुनता रहा फिर वह अपना टिकट रद्द करा के अतिथि गृह के लिए रवाना हो गया. अगले दिन उसे भी अपने परिवार से मिलना था.

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